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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


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Bittoo

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अपडेट 1


“अंकल जी,” अजय अंदर ही अंदर पूरी तरह से हिला हुआ था, लेकिन फिर भी ऊपर से स्वयं को संयत दिखाने का पूरा प्रयास कर रहा था कि उस बूढ़े आदमी को डर न महसूस हो, “आप चिंता मत करिए... मैंने इमरजेंसी पर कॉल कर दिया है... एम्बुलेंस बस आती ही होगी!”

बूढ़ा आदमी बहुत मुश्किल से साँसे ले पा रहा था। उसका पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ था और उसके चेहरे पर पीड़ा वाले भाव थे। अजय ने उसको अपनी बोतल से पानी पिलाने की कोशिश करी भी थी, लेकिन वो बस दो तीन छोटी घूँट भर कर रह गया।

दोपहर की कड़ी, चिलचिलाती धूप उसके चेहरे पर पड़ रही थी, इसलिए वो अपनी आँखें भी ठीक से नहीं खोल पा रहा था। अजय ने यह देखा। घोर आश्चर्य की बात थी कि इन पंद्रह मिनटों में कई सारी गाड़ियाँ उनके सामने से चली गई थीं, लेकिन अभी तक एक ने भी अपना वाहन रोक कर माज़रा जानने की ज़हमत नहीं उठाई थी। दुनिया ऐसी ही तो है!

यह देख कर अजय समझ गया कि जो करना है, उसको खुद से ही करना है। उसका खुद का दाहिना कन्धा अपने जोड़ से थोड़ा हट गया था, लेकिन फिर भी उसने अपनी सारी ताक़त इकट्ठा करी और बूढ़े को अपनी बाँहों में उठा लिया। पीड़ा की एक तीव्र लहर उसके दाहिने कन्धे से उठ कर मानों पूरे शरीर में फ़ैल गई। लेकिन उसने कोशिश कर के अपनी ‘आह’ को दबा लिया।

‘बस पाँच छः स्टेप्स (कदम), और फिर कोई प्रॉब्लम नहीं!’ उसने सोचा और बूढ़े को अपनी बाँहों में लिए अपना पहला कदम बढ़ाया।

अजय एक ‘क्लासिक अंडरअचीवर’ था। उसको अपने जीवन में अपनी प्रतिभा और क्षमता के हिसाब से बहुत ही कम सफ़लता मिली थी - इतनी कि उसको समाज एक ‘असफ़ल’ व्यक्ति या फिर एक ‘फेलियर’ कहता था। कम से कम उसके दोस्त तो यही कहते थे!

एक समय था जब उसके कॉलेज में उसके दोस्त और उसके शिक्षक सभी सोचते थे कि अगर आईआईटी न सही, वो एक दिन किसी न किसी अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज - जैसे रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज - में तो जाएगा ही जाएगा! उसके आस पड़ोस की आंटियाँ सोचती थीं कि उनके बच्चे अजय के जैसे हों। लेकिन ऊपरवाले ने उसकी तक़दीर न जाने किस क़लम से लिखी हुई थी। एक के बाद एक विपत्तियों और असफ़लताओं ने उसको तोड़ कर रख दिया था। ठीक कॉलेज से इंजीनियरिंग करना तो छोड़िए, इंजीनियरिंग कर पाना भी दूर का सपना बन गया। लिहाज़ा, मन मार कर उसको बीएससी और फ़िर ऍमसीए की डिग्री से ही समझौता करना पड़ा। आज तक उसकी एक भी ढंग की नौकरी नहीं लगी - एक आईटी कंपनी में नौकरी लगी थी, लेकिन वो दुर्भाग्यवश छूट गई। फिर, कभी किसी स्कूल में टीचर, तो कभी इंश्योरेंस एजेंट, तो कभी एमवे जैसी स्कीमें! कुछ बड़ा करने की चाह, कुछ हासिल कर पाने ही चाह दिन-ब-दिन बौनी होती जा रही थी।

वो बूढ़े को अपनी बाँहों में उठाये पाँच छः कदम चल तो लिया, लेकिन अभी भी छाँव दूर थी। ऐसी चटक धूप में छाँव भी चट्टानों और पेड़ों के ठीक नीचे ही मिलती है। उसको लग रहा था कि अब उसका हाथ टूट कर गिर जाएगा। लेकिन वैसा होने पर उस बूढ़े को अभूतपूर्ण हानि होनी तय थी। जैसे तैसे तीन चार ‘और’ कदम की दूरी तय करनी ही थी। अजय ने गहरी साँस भरी, और आगे चल पड़ा।

संयोग भी देखिए - आज 'एमवे' की मीटिंग थी मुंबई में। उसी के सिलसिले में वो अपने पुणे वाले घर से निकला था मुंबई को। जब उसने मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे पकड़ा, तब उसको लगा था कि आज तो आराम से पहुँच जाएगा वो! सामान्य दिनों के मुकाबले आज ट्रैफिक का नामोनिशान ही नहीं था जैसे। लेकिन फिर उसने अपने सामने वाली गाड़ी को देखा - बहुत अजीब तरीक़े से चला रहा था उसका ड्राइवर। कभी इस लेन में, तो कभी उस लेन में। लोगों में ड्राइविंग करने की तमीज़ नहीं है, लेकिन ऐसा गड़बड़ तो कम ही लोग चलाते हैं। कहीं ड्राइवर को कोई समस्या तो नहीं है - यह सोच कर न जाने क्यों अजय उस गाड़ी से कुछ दूरी बना कर उसके पीछे ही चलने लगा।

कुछ ही क्षणों में उसकी शंका सच साबित हुई।

अचानक से ही सामने वाली गाड़ी सड़क के बीचों-बीच चीख़ती हुई सी रुक गई - कुछ ऐसे कि लेन के समान्तर नहीं, बल्कि लेन के लंबवत। यह स्थिति ठीक नहीं थी। फिलहाल ट्रैफिक बहुत हल्का था - बस इक्का दुक्का गाड़ियाँ ही निकली थीं उसके सामने से, लेकिन यह स्थिति कभी भी बदल सकती थी। उसने जल्दी से अपनी गाड़ी सड़क के किनारे पार्क करी और भाग कर अपने सामने वाली गाड़ी की तरफ़ गया। यह बहुत ही डरावनी स्थिति थी - सौ किलोमीटर प्रति घण्टे वाली सड़क पर पैदल चलना - मतलब जानलेवा दुर्घटना को न्यौता देना। लेकिन क्या करता वो!

जब उसने उस गाड़ी में झाँक कर देखा तो पाया कि एक बूढ़ा आदमी पसीने पसीने हो कर, अपना सीना पकड़े, पीड़ा वाले भाव लिए अपनी सीट पर लुढ़का हुआ था। उसकी साँस उखड़ गई थी और दिल की धड़कन क्षीण हो गई थी। उसको देख कर लग रहा था कि उसको अभी अभी हृदयघात हुआ था। अजय ने जल्दी से बूढ़े को ड्राइवर की सीट से हटा कर पैसेंजर सीट पर बैठाया, और ख़ुद उसकी कर को ड्राइव कर के अपनी कार के ही पीछे पार्क कर दिया। एक मुसीबत कम हुई थी... अब बारी थी बूढ़े को बचाने की। हाँलाकि अजय को थोड़ा ही ज्ञान था, लेकिन उसने बूढ़े को कार्डिओपल्मोनरी रिसुसिटेशन चिकित्सा, जिसको अंग्रेज़ी में सीपीआर कहा जाता है, दिया।

जैसा फ़िल्मों में दिखाते हैं, वैसा नहीं होता सीपीआर! उसमें इतना बल लगता है कि कभी कभी चिकित्सा प्राप्त करने वाले की पसलियाँ चटक जाती हैं। वो बूढ़ा आदमी कमज़ोर था - इसलिए उसकी भी कई पसलियाँ चटक गईं। नुक़सान तो हुआ था, लेकिन फिलहाल उसकी जान बच गई लग रही थी। इस पूरी चिकित्सा में अजय के दाहिना कन्धा अपने स्थान से थोड़ा निकल गया!

छाँव तक जाते जाते अजय की खुद की साँसें उखड़ गईं थीं। उसको ऐसा लग रहा था कि कहीं उसको भी हृदयघात न हो जाए! उसने सावधानीपूर्वक बूढ़े को ज़मीन पर लिटाया। बूढ़ा दर्द के मारे दोहरा हो गया। अजय की हालत भी ठीक नहीं थी। लेकिन,

“अंकल जी,” उसने बूढ़े से पूछा, “अब आपको कैसा लग रहा है?”

“ब... बेटा...” बूढ़े ने बड़ी मुश्किल से टूटी फूटी आवाज़ में कहा, “तुम...ने ब...चा... लिया म...मुझे...”

“नहीं अंकल जी,” अजय ने सामान्य शिष्टाचार दिखाते हुए कहा, “ऐसा कुछ नहीं है! ... और आप भी... थोड़ा आराम कर लीजिए।”

बूढ़ा अल्पहास में हँसा और तुरंत ही अपनी इस हरक़त पर उसको पछतावा हो आया। हँसी के कारण उसको अपने पूरे शरीर में तीव्र पीड़ा महसूस हुई। लेकिन फिर भी वो बोला,

“अब इस बूढ़े की ज़िन्दगी में आराम ही आराम है बेटे,” उसने मुश्किल से कहा, “बयासी साल का हो गया हूँ... अपना कहने को कोई है नहीं यहाँ! ... जो अपने थे, वो विदेश में हैं।”

“आपके पास उनका नंबर तो होगा ही न!” अजय ने उत्साह से कहा, “मैं कॉल कर देता हूँ? आपका मोबाइल कार में ही होगा न?”

वो मुस्कुराया, “नहीं बेटे... तुम मेरे पास बैठो। उनको मेरी ज़रुरत नहीं है अब! ... तुमने बीस मिनट में मेरे लिए इतना कुछ कर दिया, जो उन्होंने मेरे लिए बीस साल में नहीं किया!”

अजय फ़ीकी हँसी में हँसा। यही तो नियम है संसार का। काम बन जाए, तो क्या बाप? क्या माँ?

लेकिन उसको अपने माँ बाप की कमी महसूस होती थी। उनको गए लगभग पंद्रह साल होने को आए थे अब! दोनों के इंश्योरेंस थे और अजय को उनकी मृत्यु पर इंश्योरेंस के रुपए भी मिले। लेकिन अधिकतर रक़म उसके पापा के देनदारों को अदा करने में चली गई। अपने जीते जी, वो अपने माँ बाप का नाम ख़राब नहीं कर सकता था।

“... और मेरी बदक़िस्मती देखिए न अंकल जी,” उसने निराशापूर्वक कहा, “मैं अपने माँ बाप के लिए कुछ कर नहीं सकता!”

“क्या हुआ उनको बेटे?”

“अब वो इस दुनिया में नहीं हैं अंकल जी,”

“दुःख हुआ जान कर!”

“कोई बात नहीं अंकल जी,” उसने गहरी साँस भरी, “... आपका नाम क्या है?”

“प्रजापति...” बूढ़े ने बताया, “मैं प्रजापति हूँ,” फिर उसने पूछा, “और तुम बेटे?”

“जी मेरा नाम अजय है...” अजय ने कहा, और पानी की बोतल बूढ़े के होंठों से लगाते हुए बोला, “लीजिए, थोड़ा पानी पी लीजिए...”

“अजय बेटे, तुम बहुत अच्छे हो!” बूढ़े ने इस बार अच्छी तरह से पानी पिया, “माफ़ करना, बहुत प्यास लगी थी... तुम्हारे लिए कुछ बचा ही नहीं!”

अजय ने मुस्कुरा कर कहा, “अंकल जी, आप सोचिए नहीं! वैसे भी आपकी ज़रुरत मुझसे अधिक थी।”


**
बहुत सुंदर आरंभ
एक नयी सोच की kahani
 

Bittoo

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दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


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सभी अपडेट आज ही पढ़ लिए
बहुत सुंदर
अद्भुत 👌👌
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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सही बात है - अपने बच्चों के लिए सभी सोचते ही हैं।
लेकिन उसकी गलती बस यही हो गई कि उसने बिना सब कुछ समझे अपनी चाल चल दी।
फिर अमर के ऊपर एक ग़लत केस भी डालने की कोशिश करी।
यह बातें सामायिक ही हैं। ख़ैर, ये कहानी थोड़ा भिन्न है। देखते हैं, "मोहब्बत के सफ़र" के लोग यहाँ दिखाई देते हैं या नहीं! :)
वो खुद से ज्यादा दूसरों के बहकावे में आ गई थी, और इंसान खास कर औरत सबसे बड़ी गलती यही करती है कि वो दूसरों के दिमाग से ज्यादा चलते हैं।
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अपडेट 10


“अरेरेरेरेरेरे! आ गए आप लोग,” दोनों के देखते ही चक्कू सर ने बेहद हिकारत से कहा - छात्र चाहे कैसा हो, अगर वो अनुशासन तोड़ता, तो चक्कू सर के ताप से उसको शायद ही कोई बचा सके, “आईये आईये...”

चक्कू सर बंगाली थे, इंटरमीडिएट क्लास को इंग्लिश पढ़ाते थे... अजय की क्लास के क्लास टीचर भी थे, और अजय का कॉलेज इंग्लिश मीडियम भी था। ... इसलिए अगर चक्कू सर हिंदी में बात करने लगे, तो समझ जाना चाहिए कि अब ये आदमी जान खा लेगा। क्लास के बाकी के स्टूडेंट्स को भी एहसास हो गया कि अब तमाशा होने ही वाला है। सभी कमल और अजय के खर्चे पर मज़ा लेने को तत्पर हो गए।

लेकिन बाकी दिनों के मुकाबले आज एक बात अलग थी - और वो यह कि ‘ये’ वाला अजय ‘वो’ वाला अजय नहीं था।

“सर... आई ऍम सॉरी!” अजय ने कहना शुरू किया, “आई वास नॉट फ़ीलिंग वेल व्हेन आई वोक अप टुडे... दैट्स व्हाय आई वास लेट ऐस वेल! आई हैड हाई फ़ीवर टू... बट कमल एनकरेजड मी टू नॉट मिस कॉलेज फॉर स्माल इशू ऑफ़ फ़ीवर! बिकॉज़ ऑफ़ मी, इवन ही गॉट लेट! सो प्लीज़... इफ यू मस्ट पनिश समवन, देन पनिश मी... बट नॉट कमल! ... ही इस नॉट एट फॉल्ट!”

अजय ने सारी बात ही बदल दी।

चक्कू सर के चेहरे का हाव भाव भी हिकारत से प्रशंसा में बदल गया। अचानक ही!

कमल भी एक बार को चकरा गया।

कहाँ चक्कू सर से डाँट लगने वाली थी और कहाँ,

“वैरी गुड कमल! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू...” उन्होंने दोनों की बढ़ाई करते हुए कहा, “एंड अजय, थैंक यू फॉर बींग ऑनेस्ट विद मी!”

चक्कू सर ने दोनों को अंदर आने का इशारा किया और अटेंडेंस रजिस्टर में दोनों को उपस्थित दिखा कर अजय से कहा, “देयर इस नो नीड टू स्ट्रेस टू मच अजय! इफ यू फ़ील दैट योर हेल्थ इस वीक, देन यू कैन गो होम! ओके?”

“यस सर!” अजय बोला, “थैंक यू सर!”

“एंड क्लास,” चक्कू सर ने क्लास को सम्बोधित करते हुए कहा, “लर्न समथिंग फ्रॉम कमल... बी अ फ्रेंड लाइक हिम! बी अ पॉजिटिव फ़ोर्स फॉर योर फ्रेंड्स!”

सारी क्लास निराश हो गई - कहाँ तमाशे का मज़ा आने वाला था, और कहाँ ये!

सब गुड़-गोबर! कोई मज़ा ही नहीं!

चक्कू सर की बाकी की क्लास बिना किसी अन्य तमाशे के पूरी हो गई।


अगली क्लास मैथ्स की थी।

मैथ्स पढ़ने एक नई टीचर नियुक्त हुई थीं - शशि सिंह। शशि मैम लगभग अट्ठाइस साल की थीं! उन्होंने इस नए सत्र के शुरुवात में ही कॉलेज ज्वाइन किया था। उनके बारे में इतना तो सभी समझते थे कि वो बहुत अच्छी थीं... और मेहनती भी। मेहनती इसलिए, कि उनको अपने स्टूडेंट्स की सफ़लता से बेहद अधिक सरोकार था। वो कोशिश करती थीं कि सभी को सारे कॉन्सेप्ट्स समझ में आ जाएँ। सुन्दर भी थीं - इसलिए भी सभी छात्र - कम से कम सभी लड़के - उनको बहुत पसंद करते थे! पुरुष शिक्षक भी उनको पसंद करते थे, लेकिन वो एक अलग बात है।

पुराना अजय सभी क्लासेस में अक्सर चुप ही बैठता था। पूछे जाने पर ही किसी प्रश्न का उत्तर देता था। वैसे भी भारतीय कक्षाओं में शिक्षक और छात्र के बीच में ‘डिस्कशन’ नहीं होता, ‘प्रश्नोत्तर’ होता है।

लेकिन ये पुराना अजय नहीं था।

इस नए अजय को गणित का अच्छा ज्ञान था - ग्रेजुएशन में उसका विषय गणित तो था ही, साथ ही साथ कंप्यूटर ऍप्लिकेशन में मास्टर्स करने के कारण उसको गणित का बहुत बढ़िया और उच्च-स्तरीय ज्ञान हो गया था। ऊपर से अदालत में अनेकों बार जिरह करने के कारण उसके अंदर कमाल का कॉन्फिडेंस आ गया था। साथ ही ‘ऑथोरिटी’ के लिए उसके मन में पहले जैसी इज़्ज़त थी, अब लगभग समाप्त हो गई थी। अब वो किसी भी सरकारी ऑथोरिटी के व्यक्ति को अपनी जूती के नोक के बराबर भी नहीं समझता था। अवश्य ही वो आर्थिक रूप से टूट गया था, लेकिन आत्मसम्मान उसका बरकरार था। रस्सी जल गई थी, लेकिन उसमें ऐंठन आ गई थी।

वो कब अनजाने में ही शशि मैम के साथ आज के विषय पर ‘शास्त्रार्थ’ करने लगा - यह उसको खुद भी नहीं पता चला। लेकिन क्लास में अन्य स्टूडेंट्स, उसके मित्रों, और शशि मैम को भी उसमें आया हुआ यह अभूतपूर्व परिवर्तन साफ़ दिखाई दिया। जिस आत्मविश्वास के साथ अजय कैलकुलस जैसे कठिन विषय पर आराम से बातें कर रहा था, ऐसा लग रहा था कि जैसे टीचर शशि मैम नहीं, स्वयं अजय हो!

शशि मैम ने भी यह बात जाहिर कर ही दी, “अजय! आई ऍम सो हैप्पी दैट यू हैव सच अ स्ट्रांग कमांड ओवर दिस टॉपिक! कीप इट अप!”

क्लास ख़तम होने से पहले शशि मैम ने अजय से उनसे अलग से आ कर मिलने को कहा।

अगली क्लास फिजिक्स की थी - उसमें भी अजय अपने पूरे फॉर्म में दिखा। फिजिक्स की टीचर सिंघल मैम ने भी उसको बहुत सराहा। सिंघल मैम कोई बावन तिरपन साल की महिला थीं। खूब मोटी सी थीं, लेकिन बहुत मज़ाकिया भी थीं। उनका फिजिक्स जैसे कठिन विषय को पढ़ाने का तरीका इतना मज़ेदार और इतना सुगम्य था कि आज तक उनका रिकॉर्ड था कि उनका एक भी स्टूडेंट फर्स्ट डिवीज़न से कम में पास नहीं हुआ। लेकिन यह भी बात थी कि वो मुक्त-हस्त तरीके से किसी की बढ़ाई भी नहीं करती थीं। लेकिन अजय ने आज उनको बाध्य कर दिया था।

अजय पढ़ने लिखने में अच्छा था, लेकिन ये रातों-रात वो ऐसा ‘मेधावी’ कैसे बन गया - यह परिवर्तन देख कर सभी आश्चर्यचकित थे। टीचर शायद ये समझ रहे हों कि शायद वो अभी तक शर्माता रहता हो, इसलिए न बोलता हो। लेकिन उसके सहपाठियों को उसके ज्ञान से जलन अवश्य होने लगी। ख़ास कर के क्लास की मेधावी छात्राओं को। कुछ क्लास में तो शिक्षक केवल लड़कियों को ही पढ़ाते दिखाई देते थे। लेकिन आज वो बात अजय ने तोड़ कर रख दी थी।

ख़ैर, लंच का समय आया, तो वो शशि मैम से मिलने स्टाफ़ रूम में आया।

“अजय,” उसको देखते ही शशि मैम बड़े उत्साह से बोलीं, “कम इन... कम इन!”

“बैठो,” उन्होंने उसको बैठने का इशारा कर के आगे कहा, “देखो... मैंने तुमको इसलिए बुलाया है कि तुमसे तुम्हारी हायर स्टडीज़ के बारे में डिसकस कर सकूँ।”

अजय ने समझते हुए सर हिलाया।

शशि ने आगे कहा, “तुम एक अच्छे स्टूडेंट हो! यह मुझे पहले भी समझ में आता था, लेकिन आज क्लास में तुम्हारी परफॉरमेंस से मुझे लगता है कि तुमको मैथ्स में एडवांस्ड समझ है! एक बार को यह सोच सकती थी कि शायद तुमने कोई ट्यूशन ज्वाइन किया है, लेकिन मैंने तुमसे कुछ ऐसे सवाल पूछे थे, जो इंटरमीडिएट से आगे के हैं। तुमको वो भी आते हैं। सो आई नो दैट यू नो!”

वो मुस्कुराईं, “आई डोंट नो अबाउट अदर्स, बट सिंघल मैम भी यही कह रही थीं अभी।”

“थैंक यू मैम,” अजय ने विनम्रता से कहा, “मुझे भी लगता है कि मुझे थोड़ा अधिक सीरियस हो जाना चाहिए स्टडीज़ को ले कर! दिस इस माय ट्वेल्फ़्थ! यहीं से कैरियर शुरू होता है।”

“बहुत अच्छा लगा सुन कर! लेकिन एक बात बताओ, तुम क्लास में इतना पार्टिसिपेट क्यों नहीं करते हो?”

“मैम... वो क्या है कि मैं नेचर से थोड़ा शाय हूँ! ... बट, आई हैव डिसाइडेड टू चेंज दैट आल्सो!” अजय ने कहा, “इसलिए आपको थोड़ा डिफरेंट लगा होगा आज...”

“हाँ... एंड दैट वास अ गुड चेंज!” शशि मैम ने कहा, “एक और बात है - तुम्हारा मैथ्स और फिजिक्स में कमांड देख कर मैं चाहती हूँ कि तुम कुछ अमेरिकन और यूरोपियन यूनिवर्सिटीज़ में हायर स्टडीज़ के लिए अप्लाई करो! इंजीनियरिंग ही नहीं, किसी भी सब्जेक्ट में तुम हायर एजुकेशन ले सकते हो।”

“इस दैट सो मैम?”

“हाँ! और एक अच्छी बात यह है कि इस साल से हमारे कॉलेज ने डिसाइड किया है कि हम कॉलेज के तीन टॉप स्टूडेंट्स को बाहर हायर एजुकेशन के लिए रिकमेंड करेंगे! ... मैं और सिंघल मैम तुमको करेंगे... आई मीन, तुम्हारा नाम प्रोपोज़ करेंगे!”

“थैंक यू सो मच मैम...” अजय यह सब सुन कर ख़ुशी से फूला नहीं समाया।

“डोंट वरी अबाउट इट! लेकिन तुमको टॉप में रहना होगा। जो मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे लिए बहुत मुश्किल होगा।” वो बोलीं, “थोड़ा सोच लो, और फिर पक्का बताना हमको! ओके? अगर तुमको इंटरेस्ट हो, तभी ऐसा करेंगे हम।”

“यस मैम... थैंक यू मैम...”

“वैरी गुड! और हाँ... इनसे मिलो...” शशि ने अपने बगल बैठी टीचर की तरफ़ इशारा कर के बताया, “ये हैं तुम्हारी कंप्यूटर साइंस की नई टीचर, श्रद्धा वर्मा!”

“वेलकम टू हॉगवर्ट्स मैम,” अजय ने बड़े ही आत्मविश्वास से मुस्कुराते हुए कहा, “आई ऍम श्योर दैट व्ही विल लर्न अ लॉट फ्रॉम यू!”

“थैंक यू...” श्रद्धा मैम ने मुस्कुराते जवाब दिया, “... अजय!”


**

अपडेट 11


लंच के बाद अगली क्लास केमिस्ट्री की थी। रूहेला सर केमिस्ट्री पढ़ाते थे। वो कोई पैंतीस साल के ऊँचे क़द के आदमी थे। बहुत भारी आवाज़ थी उनकी, और वो बहुत ही आराम से बोलते थे। इतनी भारी आवाज़ में, और इतने आराम में, और लंच के बाद अगर केमिस्ट्री पढ़ाई जाए, तो स्टूडेंट्स की क्या हालत होगी, बताने की कोई ज़रुरत नहीं है। अक्सर ही उनकी क्लास में एक चौथाई स्टूडेंट्स नींद में लुढ़के हुए ही दिखाई देते थे। उनको भी कोई परवाह नहीं थी - पढ़ना हो पढ़ो, नहीं तो मरो! मेरी बला से -- शायद वो इसी नारे पर काम करते थे।

क्लास को लगा कि शायद अजय इस क्लास में भी अपने जलवे दिखाएगा, लेकिन उनको केवल निराशा हाथ लगी। अजय भी कई अन्य स्टूडेंट्स की ही तरह बड़ी मुश्किल से अपनी आँखें खोल पा रहा था।

फ़िर आई आज की आख़िरी क्लास।

कंप्यूटर साइंस की नई टीचर, श्रद्धा वर्मा मैम कंप्यूटर साइंस पढ़ाने आईं। रूहेला सर की क्लास के बाद वैसे भी अजय को नींद आने लगी थी, लेकिन शशि मैम के चक्कर में वो नहीं चाहता था कि श्रद्धा मैम पर से उसका इम्प्रैशन ख़राब हो। लिहाज़ा वो बड़ी कोशिश कर के तन्मयता से बैठा कि कम से कम सोता हुआ न दिखाई दे उनको। कहीं उन्होंने शशि मैम से शिकायत कर दी, तो बना बनाया मामला ख़राब हो जायेगा!

उसने पाया कि श्रद्धा मैम समझाने और पढ़ाने की अच्छी कोशिश कर रही थीं। लेकिन उनके पास पढ़ाने के अनुभव की भारी कमी लग रही थी। शायद वो पहली बार इंटरमीडिएट की किसी क्लास को पढ़ा रही थीं।

अजय ने अंदाज़ा लगाया - चौबीस या पच्चीस से अधिक की नहीं लग रही थीं श्रद्धा मैम!

साधारण कद-काठी! नहीं - साधारण नहीं, दरअसल सामान्य से छोटी ही थीं। नाटी (ठिगनी) नहीं, छोटी! अंग्रेज़ी में ऐसी लड़कियों को "पेटीट" कहते हैं। नाटे और छोटे में अंतर होता है। उनके शरीर का आकार क़द के हिसाब से अच्छा था। हाँलाकि ढीले ढाले कपड़ों में ठीक से पता नहीं चल रहा था, लेकिन वो छरहरी थीं। उनका औसत सा चेहरा था... खूबसूरत नहीं, लेकिन प्लीसिंग अवश्य था। थोड़ी साँवली भी थीं श्रद्धा मैम... लगभग माया दीदी जैसी ही! कुल मिला कर श्रद्धा मैम ऐसी लड़की थीं, कि उनको अभी देखो तो अगले कुछ पलों में भूल जाओ।

अजय भूल भी जाता... लेकिन वो कंप्यूटर साइंस में दक्ष था। बहुत संभव है कि मैम से भी अधिक! संभव क्या - यह बात सिद्ध ही है अपने आप में। अपनी शादी होने से पहले और कुछ समय बाद तक वो एक बहुत अच्छी सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता था। वेतन बहुत कम था उसका, क्योंकि वो किसी अग्रणी इंजीनियरिंग कॉलेज से नहीं था। तो ज्ञान तो उसको बहुत था। इसलिए बहुत देर तक खुद को रोक न सका। अपने पसंद के विषय पर जब चर्चा होती है, तो अच्छा लगता ही है!

कुछ ही देर में क्लास के बाकी के स्टूडेंट्स को ऐसा लगने लगा कि मानों श्रद्धा मैम और अजय ‘सर’ दोनों मिल कर उनकी क्लास ले रहे हैं!

अधिकतर शिक्षक ऐसे होते हैं जो क्लास को और अपने विषय को अपनी ‘बपौती’ समझते हैं। उनको चैलेंज कर दो, तो ऐसे काटने को दौड़ते हैं कि मानों कि वो कोई कटखने कुत्ते हों, और आपने उनकी पूँछ पर पैर रख दिया हो। वो अपने छात्रों को नीचा दिखाने का प्रयास करने लगते हैं।

लेकिन श्रद्धा मैम वैसी नहीं लग रही थीं।

वो कोशिश कर रही थीं कि उनकी क्लास को उनका पढ़ाया हुआ ठीक से समझ में आए, और साथ ही साथ अजय से सीखने की कोशिश भी कर रही थीं। यह एक अद्भुत बात थी। अजय ने भी महसूस किया कि अवश्य ही श्रद्धा को पढ़ाने का अनुभव न हो, लेकिन उनको अपना विषय अच्छे से आता था और उनको पढ़ाने का एक पैशन भी था।

मृदु-भाषी तो थीं हीं, और भी एक बात महसूस करी उसने - श्रद्धा मैम में अनावश्यक ईगो नहीं था।


**


“क्या भाई,” कॉलेज ख़तम होने के बाद कमल ने अजय से कहा, “क्या हो गया है तुमको?”

“आएँ! मुझको क्या हुआ? कुछ भी तो नहीं!”

“अबे स्साले... कल तक जो था कालिदास, आज वो कैसे बन गया आदिदास?” कमल ने अपने आशु-कवि होने का एक निहायत घटिया सा उदहारण पेश कर दिया।

“हा हा हा! अरे कुछ नहीं यार!” कमल की बात पर अजय ज़ोर से हँसने लगा, “... कुछ दिनों से कोशिश कर के पढ़ रहा था... वैसे बोलता नहीं, लेकिन बस आज बोल दिया क्लास में!”

“हम्म... अच्छा है! एक्साम्स में तेरे पीछे या बगल वाली सीट पर बैठने को मिल जाय, तो फ़िर मज़ा आ जाए!” कमल हँसते हुए बोला, “टॉप करेंगे हम दोनों भाई!”

“हा हा...”

“अच्छा सुन, तूने रूचि को नोटिस किया क्या?” उसने चटख़ारे लेते हुए कहा।

रूचि गुप्ता क्लास के टॉप स्टूडेंट्स में से एक थी।

वो सुन्दर भी थी और मेधावी भी। लेकिन वो अजय को एक पैसे की भी घास नहीं डालती थी, क्योंकि वो अक्सर क्लास में फर्स्ट आती थी। और अगर बहुत बुरा परफॉरमेंस हुआ तो सेकंड रैंक! अजय चौथी पांचवीं से अधिक रैंक नहीं ला पाया था आज तक। ऐसे में उसके मन में अजय और उसका कोई मुक़ाबला ही नहीं था।

“नहीं! क्यों?”

सच में उसने आज अपनी क्लास की किसी भी लड़की या लड़के को नोटिस नहीं किया।

करता भी क्यों? वो तीस साल का आदमी था, और ये सब सत्रह अट्ठारह के छोकरे छोकरियाँ!

कोई मेल ही नहीं था उनमें और अजय में!

“फट गई है उसकी! ... आज तूने मुँह क्या खोला, उसकी गाँड़ ही फट गई है ऐसा लगता है!” कमल मन ही मन आनंदित होता हुआ बोला, “स्साली सोच रही होगी कि इस बार पहली रैंक तू मार ले जाएगा! अब देखियो - कैसा रट्टा लगाएगी आज रात से ही!”

मनोविज्ञान गज़ब की चीज़ है।

जब अपना अभिन्न मित्र कुछ अच्छा करता है, तो हमको ऐसा लगता है कि हमने ही कुछ अच्छा कर दिया हो। अपना कोई खिलाड़ी जब यदा-कदा ओलिंपिक में कोई पदक जीत लेता है, तो सभी लोग ऐसे सीना चौड़ा कर के घूमते हैं, कि जैसे उन्होंने ही ओलिंपिक का क़िला फतह कर लिया हो!

“हा हा... तू भी न यार!”

लेकिन कमल की बात पर अजय को शर्म सी आ गई। रूचि एक अच्छी और पढ़ाकू लड़की थी। वो फर्स्ट आ रही थी इस कारण से क्योंकि वो न केवल मेहनती थी बल्कि मेधावी भी थी! वो अनावश्यक तरीके से अपना समय गँवाती नहीं थी। ऐसे में रूचि को उसके स्थान से अपदस्थ करने का विचार अच्छा नहीं था - नैतिक नहीं था। रूचि के मुक़ाबले उसके पास भविष्य, उम्र, और अनुभव का बेहद अनुचित लाभ था।

रूचि क्या ही थी? एक बच्ची ही तो थी उसके सामने! ऐसे में वो - एक तीस साल का पुरुष एक बच्ची से कैसे कम्पटीशन करे? कितना गलत था यह! लेकिन फिर यह एक अवसर भी था उसके लिए - एक सेकंड चांस - कि वो अपने जीवन को एक सही राह दे सके। उसके परिवार पर जो आपदाएँ आने वाली हैं, वो उनको उन आपदाओं से बचा सके। अपने परिवार के सदस्यों - माया दीदी और प्रशांत भैया की शादियाँ गलत होने से रोक सके।

उसने मन ही मन सोचा कि वो अपनी क्लास के किसी भी मेधावी छात्र का रास्ता नहीं काटेगा।

अपने निजी लाभ के लिए तो बिल्कुल ही नहीं।


**

अपडेट 12


“अरे सही कह रहा हूँ,” कमल ने ज़ोर दिया।

“हाँ हाँ! सही कह रहा है!” उसने कहा, “चल...”

“कहाँ?”

“घर... और कहाँ? देख भाई -- दीदी ने कहा था कि कमल को साथ लेकर सीधे घर आना। ... आज दीदी कुछ स्पेशल बना रही हैं! बोलीं, कि तुझे नाश्ता करा कर ही वापस जाने देंगी वो!” अजय ने बड़े अभूतपूर्व तरीके से कहा, "दीदी का आदेश है, हाँ! बस!"

“यार तू सच में बदल गया है!” कमल ने अचानक से गंभीर होते हुए कहा।

“अब क्या हो गया?”

“आज तक मेरे सामने तूने माया दीदी को ‘दीदी’ नहीं कहा...”

कमल की बात पर अजय को झटका सा लगा।

हाँ... सच ही तो कह रहा था कमल। घर में पापा और माँ के चलते वो माया को ‘माया दीदी’ ज़रूर कहता था, लेकिन बाहर - अपने मित्रों के सामने वो उसको कभी माया-देवी, तो कभी माया-बेन, तो कभी केवल माया ही कह कर बुलाता था। कोई इज़्ज़त नहीं दिखाता था। शायद मित्रों के सामने ‘कूल’ दिखने की चाहत हो? उसको यह समझ नहीं थी कि इस कूल दिखने की चाहत में वो मित्रों के सामने ‘फ़ूल’ दिखता था। कम से कम कमल के सामने।

कमल की बात पर अजय के दिल में एक टीस उठी।

माया दीदी उससे ऐसा तिरस्कार डिज़र्व नहीं करती थीं। वो एक बेहद अच्छी लड़की थीं, जिन्होंने अपने श्रम और प्रेम के बल पर उसके परिवार को बाँध कर रखा हुआ था। वो सही मायनों में ‘दीदी’ थीं!

हाँ, अब पुरानी बातें बदलने का समय आ गया था। भविष्य से आया हुआ अजय, अपने लिए एक नया भविष्य लिखने वाला था! ऐसा अवसर शायद ही किसी को आज तक मिला हो! भगवान ने उसको एक मौका दिया था - वो उसको यूँ जाने नहीं दे सकता था।

“गलती थी वो मेरी यार...” अजय बुदबुदाया, “नासमझी में ऐसी बहुत सी गलतियाँ हुई हैं मुझसे... अब सब कुछ रियलाइज़ हो रहा है मुझे!”

“हाँ... गलती तो थी!” कमल ने कहा, “वो अच्छी हैं बहुत! ... अच्छा लगा मुझे कि तू फाइनली उनको रेस्पेक्ट दे रहा है!”

कमल के कहने का अंदाज़ थोड़ा अलग था।

लड़कपन वाला अजय अवश्य ही न समझ पाता, लेकिन ये वयस्क अजय ऐसी बातें भाँप लेता है।

“क्या बात है कमल?” अजय ने दो-टूक पूछ लिया, “कुछ है जो तुम मुझे बताना चाहते हो?”

“कुछ नहीं!” कमल ऐसे अचानक पूछे जाने से थोड़ा अचकचा गया, जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ ली गई हो।

“मुझसे छुपायेगा? अपने जिगरी दोस्त से?”

कमल कुछ बोला नहीं। उसकी हिचक साफ़ दिखाई दे रही थी।

लिहाज़ा, अजय ने ही कुरेदा,

“तुझे माया दीदी पसंद हैं?”

कमल ने चौंक कर अजय को देखा। लेकिन कुछ बोला नहीं।

“यार तू अगर बताएगा ही नहीं, तो फिर मैं तेरे लिए कुछ कैसे कर पाऊँगा?”

“आर यू सीरियस?” कमल को विश्वास नहीं हुआ कि अजय ऐसा कुछ कह देगा।

“और नहीं तो क्या?”

“तू नाराज़ नहीं है?”

“अरे मैं क्यों नाराज़ होऊँगा?” अजय ने कहा, “तुम दोनों ही मेरे अपने हो!”

नाराज़ होने की कोई वजह ही नहीं थी - जब आखिरी बार, कोई दो साल पहले, कमल से अजय की मुलाक़ात हुई थी, तो अजय जेल में ही था। मिलने आया था वो। उसी दिन माया दीदी भी आई थीं। अजय ने देखा था तब... कमल की आँखों में माया को देख कर निराशा के भाव थे।

माया अपने वैवाहिक जीवन में खुश कत्तई नहीं थीं, यह बात शायद पाठकों को बता चुका हूँ!

बेहद नालायक पति था उनका। शादी के तीन साल ही में दो बच्चे हो गए थे उनको, और उनको पालने का पूरा भार उन्ही पर था। उनके नाकारा पति ने अशोक जी द्वारा दिया गया धन (दहेज़ और संपत्ति में से हिस्सा) भी यूँ ही गँवा दिया था! फिर भी एक कर्तव्यनिष्ठ स्त्री होने के नाते वो मुस्कुराते हुए सब सहती रहीं। वो आदमी केवल नालायक ही होता, तो भी चलता। वो काईयाँ भी बहुत था। जब तक अजय के परिवार के पास धन दौलत थी, तब तक वो बड़ी मीठी मीठी बातें करता। लेकिन एक बार धन सम्पदा जाते ही उसने गिरगिट के जैसे रंग बदल दिया।
अशोक जी की अंत्येष्टि में वो केवल खाना - पूरी करने आया हुआ था। और तो और, वो माया को अजय और माँ से जेल में मिलने से भी मना करता। ये बेचारी ही जस-तस बहाने कर कर के इनसे मिलने आ जातीं।

बहुत अत्याचार हुआ था माया दीदी जैसी कोमल लड़की पर!

उधर कमल ने भी आज तक शादी नहीं करी थी।

अजय उससे कहता कि वो बच गया! आज कल शादियाँ सही नहीं होतीं। लेकिन कमल उसको कहता कि सही लड़का लड़की से शादी होने पर शादियाँ सही होती हैं।

तब नहीं पता था अजय को कि कमल माया दीदी को अपने लिए सही लड़की मानता है।

लेकिन आज...

“बोल न?” अजय ने कमल को कुरेदा।

“यार...” कमल ने झिझकते हुए बताया, “पसंद तो हैं मुझे तेरी दीदी!”

“तुमको अजीब नहीं लगता,” अनजाने ही अजय ‘तुझको’ से ‘तुमको’ पर आ गया।

“क्यों अजीब लगना चाहिए? कितनी अच्छी सी तो है माया दीदी... कितनी सुन्दर... सुशील... गुणी!” कमल बोला, “माँ को भी पसंद हैं दीदी! ... भगवान ने चाहा, तो या तो माया दीदी से या फिर उन्ही जैसी किसी लड़की से शादी करूँगा! नहीं तो कुँवारा बैठूँगा!”

अजय ने कुछ पल चुप रह कर सोचा। कमल की बात सही थी। माया दीदी वाक़ई बहुत ही अच्छी लड़की थीं… हैं।

“सच में?”

“हाँ!”

बात तो सही थी - कमल ने शादी नहीं करी थी। इस बात का गवाह वो ‘पुराना’ वाला अजय था।

‘प्यार ऐसा होता है? कमाल है!’ अजय ने सोचा, ‘शायद ऐसा ही होता हो... किसी के लिए अगर इतनी पक्की धारणा बन जाए, तो फिर क्या कहना! ... काश उसको भी इसी तरह का प्यार होता किसी से!’

“यार, ऐसी क्लैरिटी होनी चाहिए लाइफ में!” प्रत्यक्ष में उसने कहा।

“बिलकुल होनी चाहिए!” कमल ने बड़े अभिमान से कहा, “कम से कम मुझे तो है!”

अजय ने सर हिला कर उसका समर्थन किया। फिर मूड को थोड़ा हल्का करने के लिए उसने चुहल करी,

“अबे, एक बात बता... तू अगर माया दीदी से शादी करना चाहता है, तो उनको ‘दीदी’ क्यों कह रहा है? केवल ‘माया’ कह न... केवल उनके नाम से बुलाया कर न!”

“भाई देखो... अभी तक उनसे इस बारे में कोई बात ही नहीं हुई है, तो और क्या कहूँ?” कमल बड़ी परिपक्वता से बोला, “वो मेरे सबसे पक्के दोस्त - मेरे भाई - की बड़ी बहन हैं, इसलिए इज़्ज़त तो करनी ही होगी न!” वो मुस्कुराया।

“क्या बात है यार!” अजय उसकी बात पर बहुत खुश हुआ।

‘कमल और माया दीदी,’ अजय के मन में ये विचार आए बिना न रह सके!

कमल अच्छा लड़का तो था ही! इसीलिए तो वो उसका दोस्त था... और बेहद अच्छा दोस्त था। लेकिन केवल इसी कारण से ही नहीं!

जब अजय के बाकी सबसे नाते रिश्ते छूट गए थे, तब कुछ ही लोग तो संग रहे! कमल उनमें से था... माया दीदी उनमें से एक थीं!

‘माया दीदी... कमल...’ सोच कर वो मुस्कुराया।

दो बेहद अच्छे लोग!

दोनों अपने अपने हिस्से की खुशियों से वंचित!

वो ख़ुशियाँ, जिनके वो हक़दार थे!

‘कमल और माया दीदी... नाइस!’

**
माया दीदी के लिए तो एक अच्छी राह दिखी है अजय को। अब लगता है कि श्रद्धा मैडम भी शायद इनके जीवन में आएंगी, और शायद रुचि भी.....

खैर वो तो आगे की बात है, फिलहाल तो अभी अपने करियर पर ज्यादा कॉन्सेंट्रेट करनी की जरूरत है।
 
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kas1709

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“अरेरेरेरेरेरे! आ गए आप लोग,” दोनों के देखते ही चक्कू सर ने बेहद हिकारत से कहा - छात्र चाहे कैसा हो, अगर वो अनुशासन तोड़ता, तो चक्कू सर के ताप से उसको शायद ही कोई बचा सके, “आईये आईये...”

चक्कू सर बंगाली थे, इंटरमीडिएट क्लास को इंग्लिश पढ़ाते थे... अजय की क्लास के क्लास टीचर भी थे, और अजय का कॉलेज इंग्लिश मीडियम भी था। ... इसलिए अगर चक्कू सर हिंदी में बात करने लगे, तो समझ जाना चाहिए कि अब ये आदमी जान खा लेगा। क्लास के बाकी के स्टूडेंट्स को भी एहसास हो गया कि अब तमाशा होने ही वाला है। सभी कमल और अजय के खर्चे पर मज़ा लेने को तत्पर हो गए।

लेकिन बाकी दिनों के मुकाबले आज एक बात अलग थी - और वो यह कि ‘ये’ वाला अजय ‘वो’ वाला अजय नहीं था।

“सर... आई ऍम सॉरी!” अजय ने कहना शुरू किया, “आई वास नॉट फ़ीलिंग वेल व्हेन आई वोक अप टुडे... दैट्स व्हाय आई वास लेट ऐस वेल! आई हैड हाई फ़ीवर टू... बट कमल एनकरेजड मी टू नॉट मिस कॉलेज फॉर स्माल इशू ऑफ़ फ़ीवर! बिकॉज़ ऑफ़ मी, इवन ही गॉट लेट! सो प्लीज़... इफ यू मस्ट पनिश समवन, देन पनिश मी... बट नॉट कमल! ... ही इस नॉट एट फॉल्ट!”

अजय ने सारी बात ही बदल दी।

चक्कू सर के चेहरे का हाव भाव भी हिकारत से प्रशंसा में बदल गया। अचानक ही!

कमल भी एक बार को चकरा गया।

कहाँ चक्कू सर से डाँट लगने वाली थी और कहाँ,

“वैरी गुड कमल! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू...” उन्होंने दोनों की बढ़ाई करते हुए कहा, “एंड अजय, थैंक यू फॉर बींग ऑनेस्ट विद मी!”

चक्कू सर ने दोनों को अंदर आने का इशारा किया और अटेंडेंस रजिस्टर में दोनों को उपस्थित दिखा कर अजय से कहा, “देयर इस नो नीड टू स्ट्रेस टू मच अजय! इफ यू फ़ील दैट योर हेल्थ इस वीक, देन यू कैन गो होम! ओके?”

“यस सर!” अजय बोला, “थैंक यू सर!”

“एंड क्लास,” चक्कू सर ने क्लास को सम्बोधित करते हुए कहा, “लर्न समथिंग फ्रॉम कमल... बी अ फ्रेंड लाइक हिम! बी अ पॉजिटिव फ़ोर्स फॉर योर फ्रेंड्स!”

सारी क्लास निराश हो गई - कहाँ तमाशे का मज़ा आने वाला था, और कहाँ ये!

सब गुड़-गोबर! कोई मज़ा ही नहीं!

चक्कू सर की बाकी की क्लास बिना किसी अन्य तमाशे के पूरी हो गई।


अगली क्लास मैथ्स की थी।

मैथ्स पढ़ने एक नई टीचर नियुक्त हुई थीं - शशि सिंह। शशि मैम लगभग अट्ठाइस साल की थीं! उन्होंने इस नए सत्र के शुरुवात में ही कॉलेज ज्वाइन किया था। उनके बारे में इतना तो सभी समझते थे कि वो बहुत अच्छी थीं... और मेहनती भी। मेहनती इसलिए, कि उनको अपने स्टूडेंट्स की सफ़लता से बेहद अधिक सरोकार था। वो कोशिश करती थीं कि सभी को सारे कॉन्सेप्ट्स समझ में आ जाएँ। सुन्दर भी थीं - इसलिए भी सभी छात्र - कम से कम सभी लड़के - उनको बहुत पसंद करते थे! पुरुष शिक्षक भी उनको पसंद करते थे, लेकिन वो एक अलग बात है।

पुराना अजय सभी क्लासेस में अक्सर चुप ही बैठता था। पूछे जाने पर ही किसी प्रश्न का उत्तर देता था। वैसे भी भारतीय कक्षाओं में शिक्षक और छात्र के बीच में ‘डिस्कशन’ नहीं होता, ‘प्रश्नोत्तर’ होता है।

लेकिन ये पुराना अजय नहीं था।

इस नए अजय को गणित का अच्छा ज्ञान था - ग्रेजुएशन में उसका विषय गणित तो था ही, साथ ही साथ कंप्यूटर ऍप्लिकेशन में मास्टर्स करने के कारण उसको गणित का बहुत बढ़िया और उच्च-स्तरीय ज्ञान हो गया था। ऊपर से अदालत में अनेकों बार जिरह करने के कारण उसके अंदर कमाल का कॉन्फिडेंस आ गया था। साथ ही ‘ऑथोरिटी’ के लिए उसके मन में पहले जैसी इज़्ज़त थी, अब लगभग समाप्त हो गई थी। अब वो किसी भी सरकारी ऑथोरिटी के व्यक्ति को अपनी जूती के नोक के बराबर भी नहीं समझता था। अवश्य ही वो आर्थिक रूप से टूट गया था, लेकिन आत्मसम्मान उसका बरकरार था। रस्सी जल गई थी, लेकिन उसमें ऐंठन आ गई थी।

वो कब अनजाने में ही शशि मैम के साथ आज के विषय पर ‘शास्त्रार्थ’ करने लगा - यह उसको खुद भी नहीं पता चला। लेकिन क्लास में अन्य स्टूडेंट्स, उसके मित्रों, और शशि मैम को भी उसमें आया हुआ यह अभूतपूर्व परिवर्तन साफ़ दिखाई दिया। जिस आत्मविश्वास के साथ अजय कैलकुलस जैसे कठिन विषय पर आराम से बातें कर रहा था, ऐसा लग रहा था कि जैसे टीचर शशि मैम नहीं, स्वयं अजय हो!

शशि मैम ने भी यह बात जाहिर कर ही दी, “अजय! आई ऍम सो हैप्पी दैट यू हैव सच अ स्ट्रांग कमांड ओवर दिस टॉपिक! कीप इट अप!”

क्लास ख़तम होने से पहले शशि मैम ने अजय से उनसे अलग से आ कर मिलने को कहा।

अगली क्लास फिजिक्स की थी - उसमें भी अजय अपने पूरे फॉर्म में दिखा। फिजिक्स की टीचर सिंघल मैम ने भी उसको बहुत सराहा। सिंघल मैम कोई बावन तिरपन साल की महिला थीं। खूब मोटी सी थीं, लेकिन बहुत मज़ाकिया भी थीं। उनका फिजिक्स जैसे कठिन विषय को पढ़ाने का तरीका इतना मज़ेदार और इतना सुगम्य था कि आज तक उनका रिकॉर्ड था कि उनका एक भी स्टूडेंट फर्स्ट डिवीज़न से कम में पास नहीं हुआ। लेकिन यह भी बात थी कि वो मुक्त-हस्त तरीके से किसी की बढ़ाई भी नहीं करती थीं। लेकिन अजय ने आज उनको बाध्य कर दिया था।

अजय पढ़ने लिखने में अच्छा था, लेकिन ये रातों-रात वो ऐसा ‘मेधावी’ कैसे बन गया - यह परिवर्तन देख कर सभी आश्चर्यचकित थे। टीचर शायद ये समझ रहे हों कि शायद वो अभी तक शर्माता रहता हो, इसलिए न बोलता हो। लेकिन उसके सहपाठियों को उसके ज्ञान से जलन अवश्य होने लगी। ख़ास कर के क्लास की मेधावी छात्राओं को। कुछ क्लास में तो शिक्षक केवल लड़कियों को ही पढ़ाते दिखाई देते थे। लेकिन आज वो बात अजय ने तोड़ कर रख दी थी।

ख़ैर, लंच का समय आया, तो वो शशि मैम से मिलने स्टाफ़ रूम में आया।

“अजय,” उसको देखते ही शशि मैम बड़े उत्साह से बोलीं, “कम इन... कम इन!”

“बैठो,” उन्होंने उसको बैठने का इशारा कर के आगे कहा, “देखो... मैंने तुमको इसलिए बुलाया है कि तुमसे तुम्हारी हायर स्टडीज़ के बारे में डिसकस कर सकूँ।”

अजय ने समझते हुए सर हिलाया।

शशि ने आगे कहा, “तुम एक अच्छे स्टूडेंट हो! यह मुझे पहले भी समझ में आता था, लेकिन आज क्लास में तुम्हारी परफॉरमेंस से मुझे लगता है कि तुमको मैथ्स में एडवांस्ड समझ है! एक बार को यह सोच सकती थी कि शायद तुमने कोई ट्यूशन ज्वाइन किया है, लेकिन मैंने तुमसे कुछ ऐसे सवाल पूछे थे, जो इंटरमीडिएट से आगे के हैं। तुमको वो भी आते हैं। सो आई नो दैट यू नो!”

वो मुस्कुराईं, “आई डोंट नो अबाउट अदर्स, बट सिंघल मैम भी यही कह रही थीं अभी।”

“थैंक यू मैम,” अजय ने विनम्रता से कहा, “मुझे भी लगता है कि मुझे थोड़ा अधिक सीरियस हो जाना चाहिए स्टडीज़ को ले कर! दिस इस माय ट्वेल्फ़्थ! यहीं से कैरियर शुरू होता है।”

“बहुत अच्छा लगा सुन कर! लेकिन एक बात बताओ, तुम क्लास में इतना पार्टिसिपेट क्यों नहीं करते हो?”

“मैम... वो क्या है कि मैं नेचर से थोड़ा शाय हूँ! ... बट, आई हैव डिसाइडेड टू चेंज दैट आल्सो!” अजय ने कहा, “इसलिए आपको थोड़ा डिफरेंट लगा होगा आज...”

“हाँ... एंड दैट वास अ गुड चेंज!” शशि मैम ने कहा, “एक और बात है - तुम्हारा मैथ्स और फिजिक्स में कमांड देख कर मैं चाहती हूँ कि तुम कुछ अमेरिकन और यूरोपियन यूनिवर्सिटीज़ में हायर स्टडीज़ के लिए अप्लाई करो! इंजीनियरिंग ही नहीं, किसी भी सब्जेक्ट में तुम हायर एजुकेशन ले सकते हो।”

“इस दैट सो मैम?”

“हाँ! और एक अच्छी बात यह है कि इस साल से हमारे कॉलेज ने डिसाइड किया है कि हम कॉलेज के तीन टॉप स्टूडेंट्स को बाहर हायर एजुकेशन के लिए रिकमेंड करेंगे! ... मैं और सिंघल मैम तुमको करेंगे... आई मीन, तुम्हारा नाम प्रोपोज़ करेंगे!”

“थैंक यू सो मच मैम...” अजय यह सब सुन कर ख़ुशी से फूला नहीं समाया।

“डोंट वरी अबाउट इट! लेकिन तुमको टॉप में रहना होगा। जो मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे लिए बहुत मुश्किल होगा।” वो बोलीं, “थोड़ा सोच लो, और फिर पक्का बताना हमको! ओके? अगर तुमको इंटरेस्ट हो, तभी ऐसा करेंगे हम।”

“यस मैम... थैंक यू मैम...”

“वैरी गुड! और हाँ... इनसे मिलो...” शशि ने अपने बगल बैठी टीचर की तरफ़ इशारा कर के बताया, “ये हैं तुम्हारी कंप्यूटर साइंस की नई टीचर, श्रद्धा वर्मा!”

“वेलकम टू हॉगवर्ट्स मैम,” अजय ने बड़े ही आत्मविश्वास से मुस्कुराते हुए कहा, “आई ऍम श्योर दैट व्ही विल लर्न अ लॉट फ्रॉम यू!”

“थैंक यू...” श्रद्धा मैम ने मुस्कुराते जवाब दिया, “... अजय!”


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Nice update....
 

kas1709

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अपडेट 11


लंच के बाद अगली क्लास केमिस्ट्री की थी। रूहेला सर केमिस्ट्री पढ़ाते थे। वो कोई पैंतीस साल के ऊँचे क़द के आदमी थे। बहुत भारी आवाज़ थी उनकी, और वो बहुत ही आराम से बोलते थे। इतनी भारी आवाज़ में, और इतने आराम में, और लंच के बाद अगर केमिस्ट्री पढ़ाई जाए, तो स्टूडेंट्स की क्या हालत होगी, बताने की कोई ज़रुरत नहीं है। अक्सर ही उनकी क्लास में एक चौथाई स्टूडेंट्स नींद में लुढ़के हुए ही दिखाई देते थे। उनको भी कोई परवाह नहीं थी - पढ़ना हो पढ़ो, नहीं तो मरो! मेरी बला से -- शायद वो इसी नारे पर काम करते थे।

क्लास को लगा कि शायद अजय इस क्लास में भी अपने जलवे दिखाएगा, लेकिन उनको केवल निराशा हाथ लगी। अजय भी कई अन्य स्टूडेंट्स की ही तरह बड़ी मुश्किल से अपनी आँखें खोल पा रहा था।

फ़िर आई आज की आख़िरी क्लास।

कंप्यूटर साइंस की नई टीचर, श्रद्धा वर्मा मैम कंप्यूटर साइंस पढ़ाने आईं। रूहेला सर की क्लास के बाद वैसे भी अजय को नींद आने लगी थी, लेकिन शशि मैम के चक्कर में वो नहीं चाहता था कि श्रद्धा मैम पर से उसका इम्प्रैशन ख़राब हो। लिहाज़ा वो बड़ी कोशिश कर के तन्मयता से बैठा कि कम से कम सोता हुआ न दिखाई दे उनको। कहीं उन्होंने शशि मैम से शिकायत कर दी, तो बना बनाया मामला ख़राब हो जायेगा!

उसने पाया कि श्रद्धा मैम समझाने और पढ़ाने की अच्छी कोशिश कर रही थीं। लेकिन उनके पास पढ़ाने के अनुभव की भारी कमी लग रही थी। शायद वो पहली बार इंटरमीडिएट की किसी क्लास को पढ़ा रही थीं।

अजय ने अंदाज़ा लगाया - चौबीस या पच्चीस से अधिक की नहीं लग रही थीं श्रद्धा मैम!

साधारण कद-काठी! नहीं - साधारण नहीं, दरअसल सामान्य से छोटी ही थीं। नाटी (ठिगनी) नहीं, छोटी! अंग्रेज़ी में ऐसी लड़कियों को "पेटीट" कहते हैं। नाटे और छोटे में अंतर होता है। उनके शरीर का आकार क़द के हिसाब से अच्छा था। हाँलाकि ढीले ढाले कपड़ों में ठीक से पता नहीं चल रहा था, लेकिन वो छरहरी थीं। उनका औसत सा चेहरा था... खूबसूरत नहीं, लेकिन प्लीसिंग अवश्य था। थोड़ी साँवली भी थीं श्रद्धा मैम... लगभग माया दीदी जैसी ही! कुल मिला कर श्रद्धा मैम ऐसी लड़की थीं, कि उनको अभी देखो तो अगले कुछ पलों में भूल जाओ।

अजय भूल भी जाता... लेकिन वो कंप्यूटर साइंस में दक्ष था। बहुत संभव है कि मैम से भी अधिक! संभव क्या - यह बात सिद्ध ही है अपने आप में। अपनी शादी होने से पहले और कुछ समय बाद तक वो एक बहुत अच्छी सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता था। वेतन बहुत कम था उसका, क्योंकि वो किसी अग्रणी इंजीनियरिंग कॉलेज से नहीं था। तो ज्ञान तो उसको बहुत था। इसलिए बहुत देर तक खुद को रोक न सका। अपने पसंद के विषय पर जब चर्चा होती है, तो अच्छा लगता ही है!

कुछ ही देर में क्लास के बाकी के स्टूडेंट्स को ऐसा लगने लगा कि मानों श्रद्धा मैम और अजय ‘सर’ दोनों मिल कर उनकी क्लास ले रहे हैं!

अधिकतर शिक्षक ऐसे होते हैं जो क्लास को और अपने विषय को अपनी ‘बपौती’ समझते हैं। उनको चैलेंज कर दो, तो ऐसे काटने को दौड़ते हैं कि मानों कि वो कोई कटखने कुत्ते हों, और आपने उनकी पूँछ पर पैर रख दिया हो। वो अपने छात्रों को नीचा दिखाने का प्रयास करने लगते हैं।

लेकिन श्रद्धा मैम वैसी नहीं लग रही थीं।

वो कोशिश कर रही थीं कि उनकी क्लास को उनका पढ़ाया हुआ ठीक से समझ में आए, और साथ ही साथ अजय से सीखने की कोशिश भी कर रही थीं। यह एक अद्भुत बात थी। अजय ने भी महसूस किया कि अवश्य ही श्रद्धा को पढ़ाने का अनुभव न हो, लेकिन उनको अपना विषय अच्छे से आता था और उनको पढ़ाने का एक पैशन भी था।

मृदु-भाषी तो थीं हीं, और भी एक बात महसूस करी उसने - श्रद्धा मैम में अनावश्यक ईगो नहीं था।


**


“क्या भाई,” कॉलेज ख़तम होने के बाद कमल ने अजय से कहा, “क्या हो गया है तुमको?”

“आएँ! मुझको क्या हुआ? कुछ भी तो नहीं!”

“अबे स्साले... कल तक जो था कालिदास, आज वो कैसे बन गया आदिदास?” कमल ने अपने आशु-कवि होने का एक निहायत घटिया सा उदहारण पेश कर दिया।

“हा हा हा! अरे कुछ नहीं यार!” कमल की बात पर अजय ज़ोर से हँसने लगा, “... कुछ दिनों से कोशिश कर के पढ़ रहा था... वैसे बोलता नहीं, लेकिन बस आज बोल दिया क्लास में!”

“हम्म... अच्छा है! एक्साम्स में तेरे पीछे या बगल वाली सीट पर बैठने को मिल जाय, तो फ़िर मज़ा आ जाए!” कमल हँसते हुए बोला, “टॉप करेंगे हम दोनों भाई!”

“हा हा...”

“अच्छा सुन, तूने रूचि को नोटिस किया क्या?” उसने चटख़ारे लेते हुए कहा।

रूचि गुप्ता क्लास के टॉप स्टूडेंट्स में से एक थी।

वो सुन्दर भी थी और मेधावी भी। लेकिन वो अजय को एक पैसे की भी घास नहीं डालती थी, क्योंकि वो अक्सर क्लास में फर्स्ट आती थी। और अगर बहुत बुरा परफॉरमेंस हुआ तो सेकंड रैंक! अजय चौथी पांचवीं से अधिक रैंक नहीं ला पाया था आज तक। ऐसे में उसके मन में अजय और उसका कोई मुक़ाबला ही नहीं था।

“नहीं! क्यों?”

सच में उसने आज अपनी क्लास की किसी भी लड़की या लड़के को नोटिस नहीं किया।

करता भी क्यों? वो तीस साल का आदमी था, और ये सब सत्रह अट्ठारह के छोकरे छोकरियाँ!

कोई मेल ही नहीं था उनमें और अजय में!

“फट गई है उसकी! ... आज तूने मुँह क्या खोला, उसकी गाँड़ ही फट गई है ऐसा लगता है!” कमल मन ही मन आनंदित होता हुआ बोला, “स्साली सोच रही होगी कि इस बार पहली रैंक तू मार ले जाएगा! अब देखियो - कैसा रट्टा लगाएगी आज रात से ही!”

मनोविज्ञान गज़ब की चीज़ है।

जब अपना अभिन्न मित्र कुछ अच्छा करता है, तो हमको ऐसा लगता है कि हमने ही कुछ अच्छा कर दिया हो। अपना कोई खिलाड़ी जब यदा-कदा ओलिंपिक में कोई पदक जीत लेता है, तो सभी लोग ऐसे सीना चौड़ा कर के घूमते हैं, कि जैसे उन्होंने ही ओलिंपिक का क़िला फतह कर लिया हो!

“हा हा... तू भी न यार!”

लेकिन कमल की बात पर अजय को शर्म सी आ गई। रूचि एक अच्छी और पढ़ाकू लड़की थी। वो फर्स्ट आ रही थी इस कारण से क्योंकि वो न केवल मेहनती थी बल्कि मेधावी भी थी! वो अनावश्यक तरीके से अपना समय गँवाती नहीं थी। ऐसे में रूचि को उसके स्थान से अपदस्थ करने का विचार अच्छा नहीं था - नैतिक नहीं था। रूचि के मुक़ाबले उसके पास भविष्य, उम्र, और अनुभव का बेहद अनुचित लाभ था।

रूचि क्या ही थी? एक बच्ची ही तो थी उसके सामने! ऐसे में वो - एक तीस साल का पुरुष एक बच्ची से कैसे कम्पटीशन करे? कितना गलत था यह! लेकिन फिर यह एक अवसर भी था उसके लिए - एक सेकंड चांस - कि वो अपने जीवन को एक सही राह दे सके। उसके परिवार पर जो आपदाएँ आने वाली हैं, वो उनको उन आपदाओं से बचा सके। अपने परिवार के सदस्यों - माया दीदी और प्रशांत भैया की शादियाँ गलत होने से रोक सके।

उसने मन ही मन सोचा कि वो अपनी क्लास के किसी भी मेधावी छात्र का रास्ता नहीं काटेगा।

अपने निजी लाभ के लिए तो बिल्कुल ही नहीं।


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kas1709

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“अरे सही कह रहा हूँ,” कमल ने ज़ोर दिया।

“हाँ हाँ! सही कह रहा है!” उसने कहा, “चल...”

“कहाँ?”

“घर... और कहाँ? देख भाई -- दीदी ने कहा था कि कमल को साथ लेकर सीधे घर आना। ... आज दीदी कुछ स्पेशल बना रही हैं! बोलीं, कि तुझे नाश्ता करा कर ही वापस जाने देंगी वो!” अजय ने बड़े अभूतपूर्व तरीके से कहा, "दीदी का आदेश है, हाँ! बस!"

“यार तू सच में बदल गया है!” कमल ने अचानक से गंभीर होते हुए कहा।

“अब क्या हो गया?”

“आज तक मेरे सामने तूने माया दीदी को ‘दीदी’ नहीं कहा...”

कमल की बात पर अजय को झटका सा लगा।

हाँ... सच ही तो कह रहा था कमल। घर में पापा और माँ के चलते वो माया को ‘माया दीदी’ ज़रूर कहता था, लेकिन बाहर - अपने मित्रों के सामने वो उसको कभी माया-देवी, तो कभी माया-बेन, तो कभी केवल माया ही कह कर बुलाता था। कोई इज़्ज़त नहीं दिखाता था। शायद मित्रों के सामने ‘कूल’ दिखने की चाहत हो? उसको यह समझ नहीं थी कि इस कूल दिखने की चाहत में वो मित्रों के सामने ‘फ़ूल’ दिखता था। कम से कम कमल के सामने।

कमल की बात पर अजय के दिल में एक टीस उठी।

माया दीदी उससे ऐसा तिरस्कार डिज़र्व नहीं करती थीं। वो एक बेहद अच्छी लड़की थीं, जिन्होंने अपने श्रम और प्रेम के बल पर उसके परिवार को बाँध कर रखा हुआ था। वो सही मायनों में ‘दीदी’ थीं!

हाँ, अब पुरानी बातें बदलने का समय आ गया था। भविष्य से आया हुआ अजय, अपने लिए एक नया भविष्य लिखने वाला था! ऐसा अवसर शायद ही किसी को आज तक मिला हो! भगवान ने उसको एक मौका दिया था - वो उसको यूँ जाने नहीं दे सकता था।

“गलती थी वो मेरी यार...” अजय बुदबुदाया, “नासमझी में ऐसी बहुत सी गलतियाँ हुई हैं मुझसे... अब सब कुछ रियलाइज़ हो रहा है मुझे!”

“हाँ... गलती तो थी!” कमल ने कहा, “वो अच्छी हैं बहुत! ... अच्छा लगा मुझे कि तू फाइनली उनको रेस्पेक्ट दे रहा है!”

कमल के कहने का अंदाज़ थोड़ा अलग था।

लड़कपन वाला अजय अवश्य ही न समझ पाता, लेकिन ये वयस्क अजय ऐसी बातें भाँप लेता है।

“क्या बात है कमल?” अजय ने दो-टूक पूछ लिया, “कुछ है जो तुम मुझे बताना चाहते हो?”

“कुछ नहीं!” कमल ऐसे अचानक पूछे जाने से थोड़ा अचकचा गया, जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ ली गई हो।

“मुझसे छुपायेगा? अपने जिगरी दोस्त से?”

कमल कुछ बोला नहीं। उसकी हिचक साफ़ दिखाई दे रही थी।

लिहाज़ा, अजय ने ही कुरेदा,

“तुझे माया दीदी पसंद हैं?”

कमल ने चौंक कर अजय को देखा। लेकिन कुछ बोला नहीं।

“यार तू अगर बताएगा ही नहीं, तो फिर मैं तेरे लिए कुछ कैसे कर पाऊँगा?”

“आर यू सीरियस?” कमल को विश्वास नहीं हुआ कि अजय ऐसा कुछ कह देगा।

“और नहीं तो क्या?”

“तू नाराज़ नहीं है?”

“अरे मैं क्यों नाराज़ होऊँगा?” अजय ने कहा, “तुम दोनों ही मेरे अपने हो!”

नाराज़ होने की कोई वजह ही नहीं थी - जब आखिरी बार, कोई दो साल पहले, कमल से अजय की मुलाक़ात हुई थी, तो अजय जेल में ही था। मिलने आया था वो। उसी दिन माया दीदी भी आई थीं। अजय ने देखा था तब... कमल की आँखों में माया को देख कर निराशा के भाव थे।

माया अपने वैवाहिक जीवन में खुश कत्तई नहीं थीं, यह बात शायद पाठकों को बता चुका हूँ!

बेहद नालायक पति था उनका। शादी के तीन साल ही में दो बच्चे हो गए थे उनको, और उनको पालने का पूरा भार उन्ही पर था। उनके नाकारा पति ने अशोक जी द्वारा दिया गया धन (दहेज़ और संपत्ति में से हिस्सा) भी यूँ ही गँवा दिया था! फिर भी एक कर्तव्यनिष्ठ स्त्री होने के नाते वो मुस्कुराते हुए सब सहती रहीं। वो आदमी केवल नालायक ही होता, तो भी चलता। वो काईयाँ भी बहुत था। जब तक अजय के परिवार के पास धन दौलत थी, तब तक वो बड़ी मीठी मीठी बातें करता। लेकिन एक बार धन सम्पदा जाते ही उसने गिरगिट के जैसे रंग बदल दिया।
अशोक जी की अंत्येष्टि में वो केवल खाना - पूरी करने आया हुआ था। और तो और, वो माया को अजय और माँ से जेल में मिलने से भी मना करता। ये बेचारी ही जस-तस बहाने कर कर के इनसे मिलने आ जातीं।

बहुत अत्याचार हुआ था माया दीदी जैसी कोमल लड़की पर!

उधर कमल ने भी आज तक शादी नहीं करी थी।

अजय उससे कहता कि वो बच गया! आज कल शादियाँ सही नहीं होतीं। लेकिन कमल उसको कहता कि सही लड़का लड़की से शादी होने पर शादियाँ सही होती हैं।

तब नहीं पता था अजय को कि कमल माया दीदी को अपने लिए सही लड़की मानता है।

लेकिन आज...

“बोल न?” अजय ने कमल को कुरेदा।

“यार...” कमल ने झिझकते हुए बताया, “पसंद तो हैं मुझे तेरी दीदी!”

“तुमको अजीब नहीं लगता,” अनजाने ही अजय ‘तुझको’ से ‘तुमको’ पर आ गया।

“क्यों अजीब लगना चाहिए? कितनी अच्छी सी तो है माया दीदी... कितनी सुन्दर... सुशील... गुणी!” कमल बोला, “माँ को भी पसंद हैं दीदी! ... भगवान ने चाहा, तो या तो माया दीदी से या फिर उन्ही जैसी किसी लड़की से शादी करूँगा! नहीं तो कुँवारा बैठूँगा!”

अजय ने कुछ पल चुप रह कर सोचा। कमल की बात सही थी। माया दीदी वाक़ई बहुत ही अच्छी लड़की थीं… हैं।

“सच में?”

“हाँ!”

बात तो सही थी - कमल ने शादी नहीं करी थी। इस बात का गवाह वो ‘पुराना’ वाला अजय था।

‘प्यार ऐसा होता है? कमाल है!’ अजय ने सोचा, ‘शायद ऐसा ही होता हो... किसी के लिए अगर इतनी पक्की धारणा बन जाए, तो फिर क्या कहना! ... काश उसको भी इसी तरह का प्यार होता किसी से!’

“यार, ऐसी क्लैरिटी होनी चाहिए लाइफ में!” प्रत्यक्ष में उसने कहा।

“बिलकुल होनी चाहिए!” कमल ने बड़े अभिमान से कहा, “कम से कम मुझे तो है!”

अजय ने सर हिला कर उसका समर्थन किया। फिर मूड को थोड़ा हल्का करने के लिए उसने चुहल करी,

“अबे, एक बात बता... तू अगर माया दीदी से शादी करना चाहता है, तो उनको ‘दीदी’ क्यों कह रहा है? केवल ‘माया’ कह न... केवल उनके नाम से बुलाया कर न!”

“भाई देखो... अभी तक उनसे इस बारे में कोई बात ही नहीं हुई है, तो और क्या कहूँ?” कमल बड़ी परिपक्वता से बोला, “वो मेरे सबसे पक्के दोस्त - मेरे भाई - की बड़ी बहन हैं, इसलिए इज़्ज़त तो करनी ही होगी न!” वो मुस्कुराया।

“क्या बात है यार!” अजय उसकी बात पर बहुत खुश हुआ।

‘कमल और माया दीदी,’ अजय के मन में ये विचार आए बिना न रह सके!

कमल अच्छा लड़का तो था ही! इसीलिए तो वो उसका दोस्त था... और बेहद अच्छा दोस्त था। लेकिन केवल इसी कारण से ही नहीं!

जब अजय के बाकी सबसे नाते रिश्ते छूट गए थे, तब कुछ ही लोग तो संग रहे! कमल उनमें से था... माया दीदी उनमें से एक थीं!

‘माया दीदी... कमल...’ सोच कर वो मुस्कुराया।

दो बेहद अच्छे लोग!

दोनों अपने अपने हिस्से की खुशियों से वंचित!

वो ख़ुशियाँ, जिनके वो हक़दार थे!

‘कमल और माया दीदी... नाइस!’

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अजय को एक बात समझ में आ तो रही थी, और वो यह कि उसकी तीस वर्षीय ‘चेतना’, उसके किशोरवय शरीर में आ गई थी। तो उसकी किशोरवय चेतना का क्या हुआ? वो कहाँ गई? उस सपने का मतलब क्या था? वो सपना था भी या कुछ और था? कुछ और - मतलब हक़ीक़त!

उसकी चेतना का इस युवा शरीर में प्रविष्ट होना टाइम ट्रेवल तो कत्तई नहीं था। अन्यथा वो सशरीर इस घटनाक्रम में भी होता, और उसके दो दो संस्करण एक साथ भी होते - एक युवा और एक वयस्क। किन्तु हाल फिलहाल एक ही संस्करण है उसका - युवा... किशोर! लेकिन चेतना भविष्य से आई हुई। कंप्यूटर की भाषा में कहें, तो जैसे एक कोरी डिस्क पर एक नया प्रोग्राम लोड कर दिया गया हो। पुरानी वाली चेतना का अवशेष उसकी वयस्क चेतना के कारण उपलब्ध है, लेकिन पुरानी (किशोर) चेतना के साथ अब उसका कोई संपर्क नहीं।

उसने दिमाग पर ज़ोर दिया - सपने में उसको ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी कुछ स्मृतियाँ जल रही हों। क्या सच में वही हो रहा था?

‘उसको क्या क्या याद है?’ अजय ने सोचा, लेकिन फिर अगले ही पल उसने सोचा कि यह सोचना भी व्यर्थ है। क्योंकि अगर उसके वयस्क संस्करण की कोई घटना, कोई स्मृति उसकी चेतना से गायब हो गई है, तो उसको कैसे पता चलेगा कि वो गायब हो गई है? अगर कुछ खोया है उससे, तो उसको ज्ञात भी नहीं है कि उससे कुछ खोया भी है। ऐसे अज्ञात को ढूँढा नहीं जा सकता। वैसे भी समय आगे की तरफ़ ही बढ़ता है। लिहाज़ा, अब यही उसका जीवन है।

हाँ - एक बात अवश्य है। कम से कम उसको अपने सभी सम्बन्धियों के नाम मालूम हैं, उनके चरित्र मालूम हैं। इस बात का कोई लाभ होना चाहिए। है कि नहीं?

लेकिन जो मालूम है, कहीं उसमें ही कोई अंतर तो नहीं आ गया?

उसने सोचा।

एक बड़ा अंतर तो उसमें स्वयं में ही आ गया है - वो उम्र के हिसाब से कहीं अधिक परिपक्व हो गया है। इस बात का प्रभाव आने वाले भविष्य पर तो पड़ेगा ही पड़ेगा। मतलब भविष्य में परिवर्तन अवश्यम्भावी है। और क्या क्या परिवर्तन आए हैं - वो जानना चाहता था। लेकिन सुबह से उसको इस बात के बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिला था। अभी भी चकराया हुआ था वो।

अचानक वयस्क से पुनः किशोरवय छात्र बन जाना कोई आसान बात नहीं है। वो एक स्वतंत्र पुरुष था - कमाता था, जो भी थोड़ा बहुत कमाता था, जीवन के थपेड़ों से वो परिचित था। सबसे कठिन बात यह थी कि वो भूतपूर्व ‘भविष्य’ की बातों से परिचित भी था। संभव है प्रजापति जी ने उसको उस भविष्य को बदलने के लिए ही यह अवसर दिया हो?

उसने सुना - कमल कुछ कह रहा था उससे। लेकिन उसको सुनाई दे कर भी सुनाई नहीं दे रहा था।

कमल और अजय दोनों ही दिल्ली के प्रसिद्ध हॉगवर्ट्स कॉलेज ऑफ़ हायर एजुकेशन में पढ़ते थे। हॉगवर्ट्स दिल्ली और एनसीआर में एक प्रसिद्ध कॉलेज था। लेकिन यहाँ अति-संपन्न घरों के बच्चे नहीं पढ़ते थे। उनके लिए अलग अति-संपन्न कॉलेज थे। हॉगवर्ट्स में सामान्य से ऊपर संपन्न लोगों के बच्चे पढ़ते थे। शिक्षक भी यहाँ लगभग परमानेंट ही थे, क्योंकि उनको वेतन अच्छा मिलता था।

अजय का मित्र कमल - कमल राणा - अजय से एक साल बड़ा था।

वो केवल उसका मित्र ही नहीं, अनन्य मित्र भी था। कमल के पिता, किशोर राणा एक सफल बिज़नेसमैन थे। वो घरेलू उपयोग की वस्तुओं जैसे कि दाल चावल मसाले इत्यादि जैसी किराने का विक्रय करते थे। लेकिन उनका कोई छोटा मोटा नहीं, बल्कि बहुत बड़ा बिज़नेस था। दिल्ली में कुल मिला कर छः बड़ी दुकानें थीं उनकी। यह कोई छोटी बात नहीं है। लिहाज़ा, बहुत संपन्न परिवार था उनका। उनके मुकाबले देखा जाए तो अजय का परिवार कम संपन्न था। ख़ैर! कमल और अजय की गाढ़ी मित्रता के कारण दोनों परिवारों में भी गाढ़ी मित्रता हो गई थी। दोनों लड़के अक्सर ही एक दूसरे के घरों में खाना, पीना, सोना, और रहना भी कर लेते थे। उनके परिवारों के बीच भी मधुर मैत्री सम्बन्ध थे।

अजय के विवाह के समय तक कमल पूरी तरह से अपने पारिवारिक पेशे में मशगूल हो गया था। और अजय…! खैर, अजय का हश्र तो हम पहले ही जान चुके हैं। उन दोनों की यह गाढ़ी दोस्ती आगे आने वाले सालों में भी बनी रही। तब भी जब अजय का सब कुछ तहस नहस हो गया। उन्होंने उसकी कानूनी लड़ाई का खर्चा भी वहन किया था। जेल से निकलने के बाद भी किशोर जी ने उससे कहा भी कि वो और किरण जी उनके साथ आ कर रहें। लेकिन किरण जी और अजय दोनों ने ही इस पेशकश को ससम्मान मना कर दिया कि कहीं उनके कारण किशोर जी के परिवार पर भी कोई आँच न आ जाए।

कमल को कुछ वर्षों पहले एक कक्षा में ड्राप लेना पड़ा था - इसलिए नहीं कि वो पढ़ने लिखने में फिसड्डी था, बल्कि इसलिए क्योंकि एक लम्बी बीमारी के कारण उस क्लास का कोर्स अधूरा रह गया, और वो अपना फाइनल एग्जाम नहीं लिख सका था। हाँलाकि वो पढ़ाई लिखाई में ठीक था, लेकिन फिर भी प्रिंसिपल ने उसके पिता से कहा था कि वो यह क्लास फिर से कर ले, नहीं तो उसको आगे दिक्कत होगी। लिहाज़ा वो आठवीं से अजय की क्लास में था। कमल अच्छा लड़का था - थोड़ी मस्ती करता था, लेकिन वो पढ़ने में अजय से बहुत पीछे नहीं था। अजय के साथ वो एक बड़े भाई जैसा भी बर्ताव करता था। आज कल वो उसको कार चलाना भी सिखा रहा था। मोटरसाईकल चलाना उसने बहुत पहले ही सिखा दिया था उसको।

रास्ते में कमल मोटरसाइकिल चलाते हुए अजय से कह रहा था, “अज्जू, आज लेट होगा!”

“हम्म!” अजय क्या कहता - उसको तो कॉलेज का टाइम भी याद नहीं था।

उसके दिमाग में तो एक अलग ही उधेड़बुन चल रही थी।

“चल आज बंक करते हैं कॉलेज और कोई फिल्म देखने चलते हैं?”

“कौन सी?”

“बॉम्बे?” उसने सुझाया, “बाज़ी भी अच्छी है सुना है!”

“नहीं यार... कॉलेज चलते हैं न! दोस्तों से मिलने का मन है...”

“कल ही तो मिला था सभी से! एक रात में क्या बदल गया ऐसा?”

“बहुत कुछ...” अजय ने बुदबुदाते हुए कहा।

“क्या?”

“कुछ नहीं,” उसने प्रत्यक्षतः कहा, “... थोड़ी तबियत नासाज़ है भाई! इसीलिए देर से उठा।” फिर उसने सुझाया, “कल चल सकते हैं? कल तो संडे है ही!”

“हम्म्म... अब तो साला चक्कू दिमाग खाएगा!” कमल बड़बड़ाते हुए बोला, “देर तो होनी ही है! तू भी न यार! पहले बापू ने सर खाया, अब ये स्साला चक्कू खाएगा!”

“कोई नहीं,” अजय ने मुस्कुराते हुए कहा, “सह लेंगे!”

जिस तरह से अजय ने कहा, उस पर दोनों ही ठठाकर हँसने लगे।

चक्कू - चक्रवर्ती सर - अजय और कमल की क्लास के क्लास-टीचर थे। कोई पचास साल के थे वो! समय और अनुशासन के बहुत पाबन्द थे, इसलिए छात्रों को बहुत पसंद नहीं थे। यहाँ तक भी ठीक था। दिक्कत यह थी कि बहुत ‘ठस’ प्रकार के व्यक्ति थे वो। मुस्कान उनके होंठों से छू जाए, मज़ाल है? उनके जैसे शिक्षकों के लिए ही ‘खड़ूस’ और ‘कंटाला’ जैसे शब्दों का आविष्कार किया गया है। अजय की सबसे पहली क्लास उन्ही की होती थी, लिहाज़ा, अटेंडेंस भी उन्ही को ही लेना होता है। आज कमल और अजय दोनों कम से कम दस से बारह मिनट देर से पहुँचने वाले थे। प्रेयर वैसे भी मिस हो ही चुकी थी।

कमल को इसी बात पर झुंझलाहट हुई थी - एक तो शनिवार है, और ऊपर से बेवज़ह डाँट सहो!


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parkas

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“अरेरेरेरेरेरे! आ गए आप लोग,” दोनों के देखते ही चक्कू सर ने बेहद हिकारत से कहा - छात्र चाहे कैसा हो, अगर वो अनुशासन तोड़ता, तो चक्कू सर के ताप से उसको शायद ही कोई बचा सके, “आईये आईये...”

चक्कू सर बंगाली थे, इंटरमीडिएट क्लास को इंग्लिश पढ़ाते थे... अजय की क्लास के क्लास टीचर भी थे, और अजय का कॉलेज इंग्लिश मीडियम भी था। ... इसलिए अगर चक्कू सर हिंदी में बात करने लगे, तो समझ जाना चाहिए कि अब ये आदमी जान खा लेगा। क्लास के बाकी के स्टूडेंट्स को भी एहसास हो गया कि अब तमाशा होने ही वाला है। सभी कमल और अजय के खर्चे पर मज़ा लेने को तत्पर हो गए।

लेकिन बाकी दिनों के मुकाबले आज एक बात अलग थी - और वो यह कि ‘ये’ वाला अजय ‘वो’ वाला अजय नहीं था।

“सर... आई ऍम सॉरी!” अजय ने कहना शुरू किया, “आई वास नॉट फ़ीलिंग वेल व्हेन आई वोक अप टुडे... दैट्स व्हाय आई वास लेट ऐस वेल! आई हैड हाई फ़ीवर टू... बट कमल एनकरेजड मी टू नॉट मिस कॉलेज फॉर स्माल इशू ऑफ़ फ़ीवर! बिकॉज़ ऑफ़ मी, इवन ही गॉट लेट! सो प्लीज़... इफ यू मस्ट पनिश समवन, देन पनिश मी... बट नॉट कमल! ... ही इस नॉट एट फॉल्ट!”

अजय ने सारी बात ही बदल दी।

चक्कू सर के चेहरे का हाव भाव भी हिकारत से प्रशंसा में बदल गया। अचानक ही!

कमल भी एक बार को चकरा गया।

कहाँ चक्कू सर से डाँट लगने वाली थी और कहाँ,

“वैरी गुड कमल! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू...” उन्होंने दोनों की बढ़ाई करते हुए कहा, “एंड अजय, थैंक यू फॉर बींग ऑनेस्ट विद मी!”

चक्कू सर ने दोनों को अंदर आने का इशारा किया और अटेंडेंस रजिस्टर में दोनों को उपस्थित दिखा कर अजय से कहा, “देयर इस नो नीड टू स्ट्रेस टू मच अजय! इफ यू फ़ील दैट योर हेल्थ इस वीक, देन यू कैन गो होम! ओके?”

“यस सर!” अजय बोला, “थैंक यू सर!”

“एंड क्लास,” चक्कू सर ने क्लास को सम्बोधित करते हुए कहा, “लर्न समथिंग फ्रॉम कमल... बी अ फ्रेंड लाइक हिम! बी अ पॉजिटिव फ़ोर्स फॉर योर फ्रेंड्स!”

सारी क्लास निराश हो गई - कहाँ तमाशे का मज़ा आने वाला था, और कहाँ ये!

सब गुड़-गोबर! कोई मज़ा ही नहीं!

चक्कू सर की बाकी की क्लास बिना किसी अन्य तमाशे के पूरी हो गई।


अगली क्लास मैथ्स की थी।

मैथ्स पढ़ने एक नई टीचर नियुक्त हुई थीं - शशि सिंह। शशि मैम लगभग अट्ठाइस साल की थीं! उन्होंने इस नए सत्र के शुरुवात में ही कॉलेज ज्वाइन किया था। उनके बारे में इतना तो सभी समझते थे कि वो बहुत अच्छी थीं... और मेहनती भी। मेहनती इसलिए, कि उनको अपने स्टूडेंट्स की सफ़लता से बेहद अधिक सरोकार था। वो कोशिश करती थीं कि सभी को सारे कॉन्सेप्ट्स समझ में आ जाएँ। सुन्दर भी थीं - इसलिए भी सभी छात्र - कम से कम सभी लड़के - उनको बहुत पसंद करते थे! पुरुष शिक्षक भी उनको पसंद करते थे, लेकिन वो एक अलग बात है।

पुराना अजय सभी क्लासेस में अक्सर चुप ही बैठता था। पूछे जाने पर ही किसी प्रश्न का उत्तर देता था। वैसे भी भारतीय कक्षाओं में शिक्षक और छात्र के बीच में ‘डिस्कशन’ नहीं होता, ‘प्रश्नोत्तर’ होता है।

लेकिन ये पुराना अजय नहीं था।

इस नए अजय को गणित का अच्छा ज्ञान था - ग्रेजुएशन में उसका विषय गणित तो था ही, साथ ही साथ कंप्यूटर ऍप्लिकेशन में मास्टर्स करने के कारण उसको गणित का बहुत बढ़िया और उच्च-स्तरीय ज्ञान हो गया था। ऊपर से अदालत में अनेकों बार जिरह करने के कारण उसके अंदर कमाल का कॉन्फिडेंस आ गया था। साथ ही ‘ऑथोरिटी’ के लिए उसके मन में पहले जैसी इज़्ज़त थी, अब लगभग समाप्त हो गई थी। अब वो किसी भी सरकारी ऑथोरिटी के व्यक्ति को अपनी जूती के नोक के बराबर भी नहीं समझता था। अवश्य ही वो आर्थिक रूप से टूट गया था, लेकिन आत्मसम्मान उसका बरकरार था। रस्सी जल गई थी, लेकिन उसमें ऐंठन आ गई थी।

वो कब अनजाने में ही शशि मैम के साथ आज के विषय पर ‘शास्त्रार्थ’ करने लगा - यह उसको खुद भी नहीं पता चला। लेकिन क्लास में अन्य स्टूडेंट्स, उसके मित्रों, और शशि मैम को भी उसमें आया हुआ यह अभूतपूर्व परिवर्तन साफ़ दिखाई दिया। जिस आत्मविश्वास के साथ अजय कैलकुलस जैसे कठिन विषय पर आराम से बातें कर रहा था, ऐसा लग रहा था कि जैसे टीचर शशि मैम नहीं, स्वयं अजय हो!

शशि मैम ने भी यह बात जाहिर कर ही दी, “अजय! आई ऍम सो हैप्पी दैट यू हैव सच अ स्ट्रांग कमांड ओवर दिस टॉपिक! कीप इट अप!”

क्लास ख़तम होने से पहले शशि मैम ने अजय से उनसे अलग से आ कर मिलने को कहा।

अगली क्लास फिजिक्स की थी - उसमें भी अजय अपने पूरे फॉर्म में दिखा। फिजिक्स की टीचर सिंघल मैम ने भी उसको बहुत सराहा। सिंघल मैम कोई बावन तिरपन साल की महिला थीं। खूब मोटी सी थीं, लेकिन बहुत मज़ाकिया भी थीं। उनका फिजिक्स जैसे कठिन विषय को पढ़ाने का तरीका इतना मज़ेदार और इतना सुगम्य था कि आज तक उनका रिकॉर्ड था कि उनका एक भी स्टूडेंट फर्स्ट डिवीज़न से कम में पास नहीं हुआ। लेकिन यह भी बात थी कि वो मुक्त-हस्त तरीके से किसी की बढ़ाई भी नहीं करती थीं। लेकिन अजय ने आज उनको बाध्य कर दिया था।

अजय पढ़ने लिखने में अच्छा था, लेकिन ये रातों-रात वो ऐसा ‘मेधावी’ कैसे बन गया - यह परिवर्तन देख कर सभी आश्चर्यचकित थे। टीचर शायद ये समझ रहे हों कि शायद वो अभी तक शर्माता रहता हो, इसलिए न बोलता हो। लेकिन उसके सहपाठियों को उसके ज्ञान से जलन अवश्य होने लगी। ख़ास कर के क्लास की मेधावी छात्राओं को। कुछ क्लास में तो शिक्षक केवल लड़कियों को ही पढ़ाते दिखाई देते थे। लेकिन आज वो बात अजय ने तोड़ कर रख दी थी।

ख़ैर, लंच का समय आया, तो वो शशि मैम से मिलने स्टाफ़ रूम में आया।

“अजय,” उसको देखते ही शशि मैम बड़े उत्साह से बोलीं, “कम इन... कम इन!”

“बैठो,” उन्होंने उसको बैठने का इशारा कर के आगे कहा, “देखो... मैंने तुमको इसलिए बुलाया है कि तुमसे तुम्हारी हायर स्टडीज़ के बारे में डिसकस कर सकूँ।”

अजय ने समझते हुए सर हिलाया।

शशि ने आगे कहा, “तुम एक अच्छे स्टूडेंट हो! यह मुझे पहले भी समझ में आता था, लेकिन आज क्लास में तुम्हारी परफॉरमेंस से मुझे लगता है कि तुमको मैथ्स में एडवांस्ड समझ है! एक बार को यह सोच सकती थी कि शायद तुमने कोई ट्यूशन ज्वाइन किया है, लेकिन मैंने तुमसे कुछ ऐसे सवाल पूछे थे, जो इंटरमीडिएट से आगे के हैं। तुमको वो भी आते हैं। सो आई नो दैट यू नो!”

वो मुस्कुराईं, “आई डोंट नो अबाउट अदर्स, बट सिंघल मैम भी यही कह रही थीं अभी।”

“थैंक यू मैम,” अजय ने विनम्रता से कहा, “मुझे भी लगता है कि मुझे थोड़ा अधिक सीरियस हो जाना चाहिए स्टडीज़ को ले कर! दिस इस माय ट्वेल्फ़्थ! यहीं से कैरियर शुरू होता है।”

“बहुत अच्छा लगा सुन कर! लेकिन एक बात बताओ, तुम क्लास में इतना पार्टिसिपेट क्यों नहीं करते हो?”

“मैम... वो क्या है कि मैं नेचर से थोड़ा शाय हूँ! ... बट, आई हैव डिसाइडेड टू चेंज दैट आल्सो!” अजय ने कहा, “इसलिए आपको थोड़ा डिफरेंट लगा होगा आज...”

“हाँ... एंड दैट वास अ गुड चेंज!” शशि मैम ने कहा, “एक और बात है - तुम्हारा मैथ्स और फिजिक्स में कमांड देख कर मैं चाहती हूँ कि तुम कुछ अमेरिकन और यूरोपियन यूनिवर्सिटीज़ में हायर स्टडीज़ के लिए अप्लाई करो! इंजीनियरिंग ही नहीं, किसी भी सब्जेक्ट में तुम हायर एजुकेशन ले सकते हो।”

“इस दैट सो मैम?”

“हाँ! और एक अच्छी बात यह है कि इस साल से हमारे कॉलेज ने डिसाइड किया है कि हम कॉलेज के तीन टॉप स्टूडेंट्स को बाहर हायर एजुकेशन के लिए रिकमेंड करेंगे! ... मैं और सिंघल मैम तुमको करेंगे... आई मीन, तुम्हारा नाम प्रोपोज़ करेंगे!”

“थैंक यू सो मच मैम...” अजय यह सब सुन कर ख़ुशी से फूला नहीं समाया।

“डोंट वरी अबाउट इट! लेकिन तुमको टॉप में रहना होगा। जो मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे लिए बहुत मुश्किल होगा।” वो बोलीं, “थोड़ा सोच लो, और फिर पक्का बताना हमको! ओके? अगर तुमको इंटरेस्ट हो, तभी ऐसा करेंगे हम।”

“यस मैम... थैंक यू मैम...”

“वैरी गुड! और हाँ... इनसे मिलो...” शशि ने अपने बगल बैठी टीचर की तरफ़ इशारा कर के बताया, “ये हैं तुम्हारी कंप्यूटर साइंस की नई टीचर, श्रद्धा वर्मा!”

“वेलकम टू हॉगवर्ट्स मैम,” अजय ने बड़े ही आत्मविश्वास से मुस्कुराते हुए कहा, “आई ऍम श्योर दैट व्ही विल लर्न अ लॉट फ्रॉम यू!”

“थैंक यू...” श्रद्धा मैम ने मुस्कुराते जवाब दिया, “... अजय!”


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Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....
Nice and lovely update....
 

parkas

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लंच के बाद अगली क्लास केमिस्ट्री की थी। रूहेला सर केमिस्ट्री पढ़ाते थे। वो कोई पैंतीस साल के ऊँचे क़द के आदमी थे। बहुत भारी आवाज़ थी उनकी, और वो बहुत ही आराम से बोलते थे। इतनी भारी आवाज़ में, और इतने आराम में, और लंच के बाद अगर केमिस्ट्री पढ़ाई जाए, तो स्टूडेंट्स की क्या हालत होगी, बताने की कोई ज़रुरत नहीं है। अक्सर ही उनकी क्लास में एक चौथाई स्टूडेंट्स नींद में लुढ़के हुए ही दिखाई देते थे। उनको भी कोई परवाह नहीं थी - पढ़ना हो पढ़ो, नहीं तो मरो! मेरी बला से -- शायद वो इसी नारे पर काम करते थे।

क्लास को लगा कि शायद अजय इस क्लास में भी अपने जलवे दिखाएगा, लेकिन उनको केवल निराशा हाथ लगी। अजय भी कई अन्य स्टूडेंट्स की ही तरह बड़ी मुश्किल से अपनी आँखें खोल पा रहा था।

फ़िर आई आज की आख़िरी क्लास।

कंप्यूटर साइंस की नई टीचर, श्रद्धा वर्मा मैम कंप्यूटर साइंस पढ़ाने आईं। रूहेला सर की क्लास के बाद वैसे भी अजय को नींद आने लगी थी, लेकिन शशि मैम के चक्कर में वो नहीं चाहता था कि श्रद्धा मैम पर से उसका इम्प्रैशन ख़राब हो। लिहाज़ा वो बड़ी कोशिश कर के तन्मयता से बैठा कि कम से कम सोता हुआ न दिखाई दे उनको। कहीं उन्होंने शशि मैम से शिकायत कर दी, तो बना बनाया मामला ख़राब हो जायेगा!

उसने पाया कि श्रद्धा मैम समझाने और पढ़ाने की अच्छी कोशिश कर रही थीं। लेकिन उनके पास पढ़ाने के अनुभव की भारी कमी लग रही थी। शायद वो पहली बार इंटरमीडिएट की किसी क्लास को पढ़ा रही थीं।

अजय ने अंदाज़ा लगाया - चौबीस या पच्चीस से अधिक की नहीं लग रही थीं श्रद्धा मैम!

साधारण कद-काठी! नहीं - साधारण नहीं, दरअसल सामान्य से छोटी ही थीं। नाटी (ठिगनी) नहीं, छोटी! अंग्रेज़ी में ऐसी लड़कियों को "पेटीट" कहते हैं। नाटे और छोटे में अंतर होता है। उनके शरीर का आकार क़द के हिसाब से अच्छा था। हाँलाकि ढीले ढाले कपड़ों में ठीक से पता नहीं चल रहा था, लेकिन वो छरहरी थीं। उनका औसत सा चेहरा था... खूबसूरत नहीं, लेकिन प्लीसिंग अवश्य था। थोड़ी साँवली भी थीं श्रद्धा मैम... लगभग माया दीदी जैसी ही! कुल मिला कर श्रद्धा मैम ऐसी लड़की थीं, कि उनको अभी देखो तो अगले कुछ पलों में भूल जाओ।

अजय भूल भी जाता... लेकिन वो कंप्यूटर साइंस में दक्ष था। बहुत संभव है कि मैम से भी अधिक! संभव क्या - यह बात सिद्ध ही है अपने आप में। अपनी शादी होने से पहले और कुछ समय बाद तक वो एक बहुत अच्छी सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता था। वेतन बहुत कम था उसका, क्योंकि वो किसी अग्रणी इंजीनियरिंग कॉलेज से नहीं था। तो ज्ञान तो उसको बहुत था। इसलिए बहुत देर तक खुद को रोक न सका। अपने पसंद के विषय पर जब चर्चा होती है, तो अच्छा लगता ही है!

कुछ ही देर में क्लास के बाकी के स्टूडेंट्स को ऐसा लगने लगा कि मानों श्रद्धा मैम और अजय ‘सर’ दोनों मिल कर उनकी क्लास ले रहे हैं!

अधिकतर शिक्षक ऐसे होते हैं जो क्लास को और अपने विषय को अपनी ‘बपौती’ समझते हैं। उनको चैलेंज कर दो, तो ऐसे काटने को दौड़ते हैं कि मानों कि वो कोई कटखने कुत्ते हों, और आपने उनकी पूँछ पर पैर रख दिया हो। वो अपने छात्रों को नीचा दिखाने का प्रयास करने लगते हैं।

लेकिन श्रद्धा मैम वैसी नहीं लग रही थीं।

वो कोशिश कर रही थीं कि उनकी क्लास को उनका पढ़ाया हुआ ठीक से समझ में आए, और साथ ही साथ अजय से सीखने की कोशिश भी कर रही थीं। यह एक अद्भुत बात थी। अजय ने भी महसूस किया कि अवश्य ही श्रद्धा को पढ़ाने का अनुभव न हो, लेकिन उनको अपना विषय अच्छे से आता था और उनको पढ़ाने का एक पैशन भी था।

मृदु-भाषी तो थीं हीं, और भी एक बात महसूस करी उसने - श्रद्धा मैम में अनावश्यक ईगो नहीं था।


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“क्या भाई,” कॉलेज ख़तम होने के बाद कमल ने अजय से कहा, “क्या हो गया है तुमको?”

“आएँ! मुझको क्या हुआ? कुछ भी तो नहीं!”

“अबे स्साले... कल तक जो था कालिदास, आज वो कैसे बन गया आदिदास?” कमल ने अपने आशु-कवि होने का एक निहायत घटिया सा उदहारण पेश कर दिया।

“हा हा हा! अरे कुछ नहीं यार!” कमल की बात पर अजय ज़ोर से हँसने लगा, “... कुछ दिनों से कोशिश कर के पढ़ रहा था... वैसे बोलता नहीं, लेकिन बस आज बोल दिया क्लास में!”

“हम्म... अच्छा है! एक्साम्स में तेरे पीछे या बगल वाली सीट पर बैठने को मिल जाय, तो फ़िर मज़ा आ जाए!” कमल हँसते हुए बोला, “टॉप करेंगे हम दोनों भाई!”

“हा हा...”

“अच्छा सुन, तूने रूचि को नोटिस किया क्या?” उसने चटख़ारे लेते हुए कहा।

रूचि गुप्ता क्लास के टॉप स्टूडेंट्स में से एक थी।

वो सुन्दर भी थी और मेधावी भी। लेकिन वो अजय को एक पैसे की भी घास नहीं डालती थी, क्योंकि वो अक्सर क्लास में फर्स्ट आती थी। और अगर बहुत बुरा परफॉरमेंस हुआ तो सेकंड रैंक! अजय चौथी पांचवीं से अधिक रैंक नहीं ला पाया था आज तक। ऐसे में उसके मन में अजय और उसका कोई मुक़ाबला ही नहीं था।

“नहीं! क्यों?”

सच में उसने आज अपनी क्लास की किसी भी लड़की या लड़के को नोटिस नहीं किया।

करता भी क्यों? वो तीस साल का आदमी था, और ये सब सत्रह अट्ठारह के छोकरे छोकरियाँ!

कोई मेल ही नहीं था उनमें और अजय में!

“फट गई है उसकी! ... आज तूने मुँह क्या खोला, उसकी गाँड़ ही फट गई है ऐसा लगता है!” कमल मन ही मन आनंदित होता हुआ बोला, “स्साली सोच रही होगी कि इस बार पहली रैंक तू मार ले जाएगा! अब देखियो - कैसा रट्टा लगाएगी आज रात से ही!”

मनोविज्ञान गज़ब की चीज़ है।

जब अपना अभिन्न मित्र कुछ अच्छा करता है, तो हमको ऐसा लगता है कि हमने ही कुछ अच्छा कर दिया हो। अपना कोई खिलाड़ी जब यदा-कदा ओलिंपिक में कोई पदक जीत लेता है, तो सभी लोग ऐसे सीना चौड़ा कर के घूमते हैं, कि जैसे उन्होंने ही ओलिंपिक का क़िला फतह कर लिया हो!

“हा हा... तू भी न यार!”

लेकिन कमल की बात पर अजय को शर्म सी आ गई। रूचि एक अच्छी और पढ़ाकू लड़की थी। वो फर्स्ट आ रही थी इस कारण से क्योंकि वो न केवल मेहनती थी बल्कि मेधावी भी थी! वो अनावश्यक तरीके से अपना समय गँवाती नहीं थी। ऐसे में रूचि को उसके स्थान से अपदस्थ करने का विचार अच्छा नहीं था - नैतिक नहीं था। रूचि के मुक़ाबले उसके पास भविष्य, उम्र, और अनुभव का बेहद अनुचित लाभ था।

रूचि क्या ही थी? एक बच्ची ही तो थी उसके सामने! ऐसे में वो - एक तीस साल का पुरुष एक बच्ची से कैसे कम्पटीशन करे? कितना गलत था यह! लेकिन फिर यह एक अवसर भी था उसके लिए - एक सेकंड चांस - कि वो अपने जीवन को एक सही राह दे सके। उसके परिवार पर जो आपदाएँ आने वाली हैं, वो उनको उन आपदाओं से बचा सके। अपने परिवार के सदस्यों - माया दीदी और प्रशांत भैया की शादियाँ गलत होने से रोक सके।

उसने मन ही मन सोचा कि वो अपनी क्लास के किसी भी मेधावी छात्र का रास्ता नहीं काटेगा।

अपने निजी लाभ के लिए तो बिल्कुल ही नहीं।


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Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 
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