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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40;
 
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जैसा मौका अजय को प्राप्त हुआ है और इस मौके का जिस तरह अजय सदुपयोग कर रहा है वैसा ही शायद हर इंसान करता , अगर उसे भी यह करने का अवसर प्राप्त होता ।
शुरुआत अपनी प्रारम्भिक शिक्षा से ही होती , जैसा कि अजय ने किया । वगैर मजबूत नींव के इमारत बुलंद नही होता ।
यह सब पढ़कर मुझे अपने बचपन के दिन याद आ गए जब मैने अपने शिक्षा पर ज्यादा ध्यान नही दिया था । वैसे पढ़ाई मे तेज तो बहुत था पर कुछ लापरवाही और कुछ सही मार्गदर्शन की कमी से मै रास्ते से भटक गया । गलत आदत अगर कोई था तो उपन्यास पढ़ना और सिनेमा देखना ।

मेरा मानना है कि मैट्रिक और हायर सेकेंडरी एजुकेशन मे फर्स्ट डिविजन बहुत मायने रखता है जब आप को एक अच्छी नौकरी प्राप्त करनी होती है । नो डाऊट , आप के ग्रेजुएशन की पर्सेंटेज भी अवश्य हेल्दी होनी चाहिए । लेकिन यह एक बार तो आप को अच्छी कंपनी मे जाॅब दिला तो सकता है पर स्थापित सिर्फ आप का टैलेंट , हुनर और हार्ड वर्क ही करा सकता है ।

रूचि गुप्ता एक टैलेंटेड और तेज शिक्षित लड़की है । उसका फ्यूचर खराब न हो इसलिए अजय को अपने पढ़ाई पर थोड़ा कम ध्यान देना चाहिए , तर्कहीन सोच है । मैट्रिक और हायर सेकेंडरी मे सिर्फ एक स्टूडेंट ही फर्स्ट डिविजन से पास नही होता । बहुत सारे स्टूडेंट्स फर्स्ट डिविजन से पास होते हैं । हां उनके प्राप्त अंकों मे थोड़े-बहुत का अंतर अवश्य होता है । इसलिए मुझे नही लगता अजय को अपने पढ़ाई मे किसी भी तरह की कमी करनी चाहिए ।

अजय को एक और उपलब्धि हासिल हुई और वह है फाॅरेन मे जाकर अपने हायर एजुकेशन डिग्री प्राप्त करने की । यह वाकई मे बहुत बड़ी उपलब्धि है ।
यहां पर मै कुछ अपनी बात कह रहा हूं । अपने जीवन मे मैने बहुत ही ज्यादा स्ट्रगल किया है । गरीबी का सामना किया है । अपने तीनों बच्चों को सरकारी स्कूल मे ही पढ़ा सका ।
ट्यूशन पढ़ाने का तो मै सोच भी नही सकता । पैसों की तंगी की वजह से उन सभी को ट्यूशन भी मैने ही दिया । जब बच्चे काॅलेज मे गए तब कभी-कभार ऐसी हालात होती थी कि काॅलेज के फीस भी देने के पैसे नही होते थे । कुछ कमा कर और कुछ जमीन बेचकर अपने बच्चों की उच्च शिक्षा पुरी करवाई । जमीन बेचकर ही अपनी बड़ी लड़की की शादी करी । यह जानकर आप ताज्जुब करेंगे कि यह जमीन मेरे अपने एकलौते बड़े भाई ने खरीदी थी । उनके बच्चों ने हाई फाई प्राइवेट स्कूल और कॉलेज मे पढ़कर डिग्री हासिल करी । एक एक बच्चे के ऊपर पच्चीस तीस लाख रुपए तक खर्च किए उन्होने ।
लेकिन कहते हैं आप की सच्चाई , आप की इमानदारी और आप की मेहनत कभी न कभी तो अपना प्रभाव दिखाती ही है । कभी न कभी तो भाग्य परिवर्तित होता ही है ।
आज मेरे लड़के की तनख्वाह मेरे भाई साहब के दोनो लड़कों के तनख्वाह मिलाकर जो होता है उससे भी अधिक है । मेरी बड़ी लड़की अमेरिका मे अपने हसबैंड के साथ सेटल है और वहां जाॅब करती है ।
मै खुद काम करता हूं और अच्छे खासे पैसा कमाता हूं । जीवन के पांचवे दशक के बाद मेरे मुफ़लिसी का सफर समाप्त हुआ । आज मेरे और मेरे संतान पर मां लक्ष्मी की दया दृष्टि है ।
मेरे कहने का मतलब यह कोई जरूरी नही कि हम अपने देश मे , सरकारी स्कूल या कॉलेज मे , साधारण यूनिवर्सिटी मे पढ़कर कामयाब नही हो सकते । अगर बच्चा हार्ड वर्क करे , पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करे , अनुशासन मे रहे , अपनी घर की हालात को समझे , पैसे का महत्व समझे , सकारात्मक सोच रखे तो वह अवश्य ही सफल हो सकता है ।

मैने स्वयं सफलता का स्वाद अपने जीवन के पांचवे दशक मे चखा । आपने अमेरिकन प्रेसिडेंट अब्राहम लिंकन के बारे मे अवश्य सुना होगा । उन्होने जीवन भर अपने जीवन के हर एग्जाम मे मात खाई , कभी जीत का स्वाद न चखा । लेकिन जब किस्मत मेहरबान हुई तो वह सीधे अमेरिका का प्रेसिडेंट बन गए , और वह भी उनके जीवन के छठे दशक के उम्र मे ।
ऐसे व्यक्ति को आप क्या कहेंगे - सफल या असफल इंसान !
इसीलिए आप के इस थ्रीड पर कहा था - आप के हाथ मे सिर्फ आप का कर्म करना है । भाग्य आप के हाथ मे नही होता । आप के कर्म के साथ भाग्य कब जुटता है , यह सिर्फ ऊपर वाला ही जानता है ।


अब बात करते हैं माया की । मुझे याद है प्रजापति साहब से अजय ने कुछ चीजों के बारे मे डिस्कश किया था जिनमे प्रमुख था कि वह अपने पिताजी के लिए कुछ अच्छा काम कर सके , अपने ताई के लिए कुछ बढ़िया काम कर सके , भाई और माया के लिए कुछ हित कर सके , अपने हुनर का इस्तेमाल करने का सही मंच प्राप्त हो सके और उसकी पत्नी से जीवन मे कभी मुलाकात तक न हो सके ।
बदले मे अजय को अपनी अच्छाई बरकरार रखनी होगी । परहित सेवा धर्म नही भाई जैसी भावना रखनी होगी । ईमानदारी और सहिष्णुता पर चलना होगा । कुल मिलाकर एक नेक इंसान बनकर रहना होगा ।

एजुकेशन के बाद माया पर ध्यान केंद्रित करना अजय के इस कार्यक्रम का ही एक पार्ट लगता है । शायद कई लोग की प्रारब्ध बदलने वाली है ! शायद कई वैवाहिक जोड़े चेंज होने वाले हैं !

खुबसूरत अपडेट अमर भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग अपडेट ।
 
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parkas

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अपडेट 12


“अरे सही कह रहा हूँ,” कमल ने ज़ोर दिया।

“हाँ हाँ! सही कह रहा है!” उसने कहा, “चल...”

“कहाँ?”

“घर... और कहाँ? देख भाई -- दीदी ने कहा था कि कमल को साथ लेकर सीधे घर आना। ... आज दीदी कुछ स्पेशल बना रही हैं! बोलीं, कि तुझे नाश्ता करा कर ही वापस जाने देंगी वो!” अजय ने बड़े अभूतपूर्व तरीके से कहा, "दीदी का आदेश है, हाँ! बस!"

“यार तू सच में बदल गया है!” कमल ने अचानक से गंभीर होते हुए कहा।

“अब क्या हो गया?”

“आज तक मेरे सामने तूने माया दीदी को ‘दीदी’ नहीं कहा...”

कमल की बात पर अजय को झटका सा लगा।

हाँ... सच ही तो कह रहा था कमल। घर में पापा और माँ के चलते वो माया को ‘माया दीदी’ ज़रूर कहता था, लेकिन बाहर - अपने मित्रों के सामने वो उसको कभी माया-देवी, तो कभी माया-बेन, तो कभी केवल माया ही कह कर बुलाता था। कोई इज़्ज़त नहीं दिखाता था। शायद मित्रों के सामने ‘कूल’ दिखने की चाहत हो? उसको यह समझ नहीं थी कि इस कूल दिखने की चाहत में वो मित्रों के सामने ‘फ़ूल’ दिखता था। कम से कम कमल के सामने।

कमल की बात पर अजय के दिल में एक टीस उठी।

माया दीदी उससे ऐसा तिरस्कार डिज़र्व नहीं करती थीं। वो एक बेहद अच्छी लड़की थीं, जिन्होंने अपने श्रम और प्रेम के बल पर उसके परिवार को बाँध कर रखा हुआ था। वो सही मायनों में ‘दीदी’ थीं!

हाँ, अब पुरानी बातें बदलने का समय आ गया था। भविष्य से आया हुआ अजय, अपने लिए एक नया भविष्य लिखने वाला था! ऐसा अवसर शायद ही किसी को आज तक मिला हो! भगवान ने उसको एक मौका दिया था - वो उसको यूँ जाने नहीं दे सकता था।

“गलती थी वो मेरी यार...” अजय बुदबुदाया, “नासमझी में ऐसी बहुत सी गलतियाँ हुई हैं मुझसे... अब सब कुछ रियलाइज़ हो रहा है मुझे!”

“हाँ... गलती तो थी!” कमल ने कहा, “वो अच्छी हैं बहुत! ... अच्छा लगा मुझे कि तू फाइनली उनको रेस्पेक्ट दे रहा है!”

कमल के कहने का अंदाज़ थोड़ा अलग था।

लड़कपन वाला अजय अवश्य ही न समझ पाता, लेकिन ये वयस्क अजय ऐसी बातें भाँप लेता है।

“क्या बात है कमल?” अजय ने दो-टूक पूछ लिया, “कुछ है जो तुम मुझे बताना चाहते हो?”

“कुछ नहीं!” कमल ऐसे अचानक पूछे जाने से थोड़ा अचकचा गया, जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ ली गई हो।

“मुझसे छुपायेगा? अपने जिगरी दोस्त से?”

कमल कुछ बोला नहीं। उसकी हिचक साफ़ दिखाई दे रही थी।

लिहाज़ा, अजय ने ही कुरेदा,

“तुझे माया दीदी पसंद हैं?”

कमल ने चौंक कर अजय को देखा। लेकिन कुछ बोला नहीं।

“यार तू अगर बताएगा ही नहीं, तो फिर मैं तेरे लिए कुछ कैसे कर पाऊँगा?”

“आर यू सीरियस?” कमल को विश्वास नहीं हुआ कि अजय ऐसा कुछ कह देगा।

“और नहीं तो क्या?”

“तू नाराज़ नहीं है?”

“अरे मैं क्यों नाराज़ होऊँगा?” अजय ने कहा, “तुम दोनों ही मेरे अपने हो!”

नाराज़ होने की कोई वजह ही नहीं थी - जब आखिरी बार, कोई दो साल पहले, कमल से अजय की मुलाक़ात हुई थी, तो अजय जेल में ही था। मिलने आया था वो। उसी दिन माया दीदी भी आई थीं। अजय ने देखा था तब... कमल की आँखों में माया को देख कर निराशा के भाव थे।

माया अपने वैवाहिक जीवन में खुश कत्तई नहीं थीं, यह बात शायद पाठकों को बता चुका हूँ!

बेहद नालायक पति था उनका। शादी के तीन साल ही में दो बच्चे हो गए थे उनको, और उनको पालने का पूरा भार उन्ही पर था। उनके नाकारा पति ने अशोक जी द्वारा दिया गया धन (दहेज़ और संपत्ति में से हिस्सा) भी यूँ ही गँवा दिया था! फिर भी एक कर्तव्यनिष्ठ स्त्री होने के नाते वो मुस्कुराते हुए सब सहती रहीं। वो आदमी केवल नालायक ही होता, तो भी चलता। वो काईयाँ भी बहुत था। जब तक अजय के परिवार के पास धन दौलत थी, तब तक वो बड़ी मीठी मीठी बातें करता। लेकिन एक बार धन सम्पदा जाते ही उसने गिरगिट के जैसे रंग बदल दिया।
अशोक जी की अंत्येष्टि में वो केवल खाना - पूरी करने आया हुआ था। और तो और, वो माया को अजय और माँ से जेल में मिलने से भी मना करता। ये बेचारी ही जस-तस बहाने कर कर के इनसे मिलने आ जातीं।

बहुत अत्याचार हुआ था माया दीदी जैसी कोमल लड़की पर!

उधर कमल ने भी आज तक शादी नहीं करी थी।

अजय उससे कहता कि वो बच गया! आज कल शादियाँ सही नहीं होतीं। लेकिन कमल उसको कहता कि सही लड़का लड़की से शादी होने पर शादियाँ सही होती हैं।

तब नहीं पता था अजय को कि कमल माया दीदी को अपने लिए सही लड़की मानता है।

लेकिन आज...

“बोल न?” अजय ने कमल को कुरेदा।

“यार...” कमल ने झिझकते हुए बताया, “पसंद तो हैं मुझे तेरी दीदी!”

“तुमको अजीब नहीं लगता,” अनजाने ही अजय ‘तुझको’ से ‘तुमको’ पर आ गया।

“क्यों अजीब लगना चाहिए? कितनी अच्छी सी तो है माया दीदी... कितनी सुन्दर... सुशील... गुणी!” कमल बोला, “माँ को भी पसंद हैं दीदी! ... भगवान ने चाहा, तो या तो माया दीदी से या फिर उन्ही जैसी किसी लड़की से शादी करूँगा! नहीं तो कुँवारा बैठूँगा!”

अजय ने कुछ पल चुप रह कर सोचा। कमल की बात सही थी। माया दीदी वाक़ई बहुत ही अच्छी लड़की थीं… हैं।

“सच में?”

“हाँ!”

बात तो सही थी - कमल ने शादी नहीं करी थी। इस बात का गवाह वो ‘पुराना’ वाला अजय था।

‘प्यार ऐसा होता है? कमाल है!’ अजय ने सोचा, ‘शायद ऐसा ही होता हो... किसी के लिए अगर इतनी पक्की धारणा बन जाए, तो फिर क्या कहना! ... काश उसको भी इसी तरह का प्यार होता किसी से!’

“यार, ऐसी क्लैरिटी होनी चाहिए लाइफ में!” प्रत्यक्ष में उसने कहा।

“बिलकुल होनी चाहिए!” कमल ने बड़े अभिमान से कहा, “कम से कम मुझे तो है!”

अजय ने सर हिला कर उसका समर्थन किया। फिर मूड को थोड़ा हल्का करने के लिए उसने चुहल करी,

“अबे, एक बात बता... तू अगर माया दीदी से शादी करना चाहता है, तो उनको ‘दीदी’ क्यों कह रहा है? केवल ‘माया’ कह न... केवल उनके नाम से बुलाया कर न!”

“भाई देखो... अभी तक उनसे इस बारे में कोई बात ही नहीं हुई है, तो और क्या कहूँ?” कमल बड़ी परिपक्वता से बोला, “वो मेरे सबसे पक्के दोस्त - मेरे भाई - की बड़ी बहन हैं, इसलिए इज़्ज़त तो करनी ही होगी न!” वो मुस्कुराया।

“क्या बात है यार!” अजय उसकी बात पर बहुत खुश हुआ।

‘कमल और माया दीदी,’ अजय के मन में ये विचार आए बिना न रह सके!

कमल अच्छा लड़का तो था ही! इसीलिए तो वो उसका दोस्त था... और बेहद अच्छा दोस्त था। लेकिन केवल इसी कारण से ही नहीं!

जब अजय के बाकी सबसे नाते रिश्ते छूट गए थे, तब कुछ ही लोग तो संग रहे! कमल उनमें से था... माया दीदी उनमें से एक थीं!

‘माया दीदी... कमल...’ सोच कर वो मुस्कुराया।

दो बेहद अच्छे लोग!

दोनों अपने अपने हिस्से की खुशियों से वंचित!

वो ख़ुशियाँ, जिनके वो हक़दार थे!

‘कमल और माया दीदी... नाइस!’

**
Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....
Nice and excellent update....
 
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उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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आप के हाथ मे सिर्फ आप का कर्म करना है । भाग्य आप के हाथ मे नही होता । आप के कर्म के साथ भाग्य कब जुटता है , यह सिर्फ ऊपर वाला ही जानता है ।
शत प्रतिशत सहमत, न अकेले कर्म कुछ कर सकते हैं न अकेले भाग्य।

जब तक दोनों एक साथ नहीं आते कोई कामयाब नहीं होता।

हां प्रारब्ध ही बदलने का मौका मिला है अजय को, और उसे बदलना भी बस भाग्य की बात है जो अजय को ऐसा मौका मिला, उसे प्रारब्ध पता है, बस उसे उसको घटित होने से रोकना पड़ेगा।
 
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manu@84

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दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


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" फिर से " वाह कमाल कर दिया बड़े भाई शब्दों का चयन शॉर्ट एंड स्वीट ❤

एक गीत की लाइन याद आ गयी-

" चलो इक बार फिर से अजनबी हो जाये हम दोनों "
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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बहुत सुंदर
ज्यादा लिखूंगा नहीं
ज्यादा पढ़ूंगा

अजय के पुनर्जीवन में कम से कम दो लोगों के जीवन को सकारात्मक परिवर्तन देने का अवसर मिला है
कमल और माया दीदी

रूचि का एक अलग मसला है
क्योंकि जीवन में सम जो भी प्राप्त करते हैं वो किसी और के खो देने से ही मिलता है। जितना ज्यादा पाने की लालसा होगी उतने ही ज्यादा लोगों से छिनेगा
तो कटु सत्य यही है कि आप अन्तरात्मा (सुचिता और नैतिकता) के साथ महत्वाकांक्षी नहीं हो सकते। दोनों ने से एक को चुनना होगा अब अजय क्या करेगा ये avsji भाई जानें
 
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park

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अपडेट 10


“अरेरेरेरेरेरे! आ गए आप लोग,” दोनों के देखते ही चक्कू सर ने बेहद हिकारत से कहा - छात्र चाहे कैसा हो, अगर वो अनुशासन तोड़ता, तो चक्कू सर के ताप से उसको शायद ही कोई बचा सके, “आईये आईये...”

चक्कू सर बंगाली थे, इंटरमीडिएट क्लास को इंग्लिश पढ़ाते थे... अजय की क्लास के क्लास टीचर भी थे, और अजय का कॉलेज इंग्लिश मीडियम भी था। ... इसलिए अगर चक्कू सर हिंदी में बात करने लगे, तो समझ जाना चाहिए कि अब ये आदमी जान खा लेगा। क्लास के बाकी के स्टूडेंट्स को भी एहसास हो गया कि अब तमाशा होने ही वाला है। सभी कमल और अजय के खर्चे पर मज़ा लेने को तत्पर हो गए।

लेकिन बाकी दिनों के मुकाबले आज एक बात अलग थी - और वो यह कि ‘ये’ वाला अजय ‘वो’ वाला अजय नहीं था।

“सर... आई ऍम सॉरी!” अजय ने कहना शुरू किया, “आई वास नॉट फ़ीलिंग वेल व्हेन आई वोक अप टुडे... दैट्स व्हाय आई वास लेट ऐस वेल! आई हैड हाई फ़ीवर टू... बट कमल एनकरेजड मी टू नॉट मिस कॉलेज फॉर स्माल इशू ऑफ़ फ़ीवर! बिकॉज़ ऑफ़ मी, इवन ही गॉट लेट! सो प्लीज़... इफ यू मस्ट पनिश समवन, देन पनिश मी... बट नॉट कमल! ... ही इस नॉट एट फॉल्ट!”

अजय ने सारी बात ही बदल दी।

चक्कू सर के चेहरे का हाव भाव भी हिकारत से प्रशंसा में बदल गया। अचानक ही!

कमल भी एक बार को चकरा गया।

कहाँ चक्कू सर से डाँट लगने वाली थी और कहाँ,

“वैरी गुड कमल! आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू...” उन्होंने दोनों की बढ़ाई करते हुए कहा, “एंड अजय, थैंक यू फॉर बींग ऑनेस्ट विद मी!”

चक्कू सर ने दोनों को अंदर आने का इशारा किया और अटेंडेंस रजिस्टर में दोनों को उपस्थित दिखा कर अजय से कहा, “देयर इस नो नीड टू स्ट्रेस टू मच अजय! इफ यू फ़ील दैट योर हेल्थ इस वीक, देन यू कैन गो होम! ओके?”

“यस सर!” अजय बोला, “थैंक यू सर!”

“एंड क्लास,” चक्कू सर ने क्लास को सम्बोधित करते हुए कहा, “लर्न समथिंग फ्रॉम कमल... बी अ फ्रेंड लाइक हिम! बी अ पॉजिटिव फ़ोर्स फॉर योर फ्रेंड्स!”

सारी क्लास निराश हो गई - कहाँ तमाशे का मज़ा आने वाला था, और कहाँ ये!

सब गुड़-गोबर! कोई मज़ा ही नहीं!

चक्कू सर की बाकी की क्लास बिना किसी अन्य तमाशे के पूरी हो गई।


अगली क्लास मैथ्स की थी।

मैथ्स पढ़ने एक नई टीचर नियुक्त हुई थीं - शशि सिंह। शशि मैम लगभग अट्ठाइस साल की थीं! उन्होंने इस नए सत्र के शुरुवात में ही कॉलेज ज्वाइन किया था। उनके बारे में इतना तो सभी समझते थे कि वो बहुत अच्छी थीं... और मेहनती भी। मेहनती इसलिए, कि उनको अपने स्टूडेंट्स की सफ़लता से बेहद अधिक सरोकार था। वो कोशिश करती थीं कि सभी को सारे कॉन्सेप्ट्स समझ में आ जाएँ। सुन्दर भी थीं - इसलिए भी सभी छात्र - कम से कम सभी लड़के - उनको बहुत पसंद करते थे! पुरुष शिक्षक भी उनको पसंद करते थे, लेकिन वो एक अलग बात है।

पुराना अजय सभी क्लासेस में अक्सर चुप ही बैठता था। पूछे जाने पर ही किसी प्रश्न का उत्तर देता था। वैसे भी भारतीय कक्षाओं में शिक्षक और छात्र के बीच में ‘डिस्कशन’ नहीं होता, ‘प्रश्नोत्तर’ होता है।

लेकिन ये पुराना अजय नहीं था।

इस नए अजय को गणित का अच्छा ज्ञान था - ग्रेजुएशन में उसका विषय गणित तो था ही, साथ ही साथ कंप्यूटर ऍप्लिकेशन में मास्टर्स करने के कारण उसको गणित का बहुत बढ़िया और उच्च-स्तरीय ज्ञान हो गया था। ऊपर से अदालत में अनेकों बार जिरह करने के कारण उसके अंदर कमाल का कॉन्फिडेंस आ गया था। साथ ही ‘ऑथोरिटी’ के लिए उसके मन में पहले जैसी इज़्ज़त थी, अब लगभग समाप्त हो गई थी। अब वो किसी भी सरकारी ऑथोरिटी के व्यक्ति को अपनी जूती के नोक के बराबर भी नहीं समझता था। अवश्य ही वो आर्थिक रूप से टूट गया था, लेकिन आत्मसम्मान उसका बरकरार था। रस्सी जल गई थी, लेकिन उसमें ऐंठन आ गई थी।

वो कब अनजाने में ही शशि मैम के साथ आज के विषय पर ‘शास्त्रार्थ’ करने लगा - यह उसको खुद भी नहीं पता चला। लेकिन क्लास में अन्य स्टूडेंट्स, उसके मित्रों, और शशि मैम को भी उसमें आया हुआ यह अभूतपूर्व परिवर्तन साफ़ दिखाई दिया। जिस आत्मविश्वास के साथ अजय कैलकुलस जैसे कठिन विषय पर आराम से बातें कर रहा था, ऐसा लग रहा था कि जैसे टीचर शशि मैम नहीं, स्वयं अजय हो!

शशि मैम ने भी यह बात जाहिर कर ही दी, “अजय! आई ऍम सो हैप्पी दैट यू हैव सच अ स्ट्रांग कमांड ओवर दिस टॉपिक! कीप इट अप!”

क्लास ख़तम होने से पहले शशि मैम ने अजय से उनसे अलग से आ कर मिलने को कहा।

अगली क्लास फिजिक्स की थी - उसमें भी अजय अपने पूरे फॉर्म में दिखा। फिजिक्स की टीचर सिंघल मैम ने भी उसको बहुत सराहा। सिंघल मैम कोई बावन तिरपन साल की महिला थीं। खूब मोटी सी थीं, लेकिन बहुत मज़ाकिया भी थीं। उनका फिजिक्स जैसे कठिन विषय को पढ़ाने का तरीका इतना मज़ेदार और इतना सुगम्य था कि आज तक उनका रिकॉर्ड था कि उनका एक भी स्टूडेंट फर्स्ट डिवीज़न से कम में पास नहीं हुआ। लेकिन यह भी बात थी कि वो मुक्त-हस्त तरीके से किसी की बढ़ाई भी नहीं करती थीं। लेकिन अजय ने आज उनको बाध्य कर दिया था।

अजय पढ़ने लिखने में अच्छा था, लेकिन ये रातों-रात वो ऐसा ‘मेधावी’ कैसे बन गया - यह परिवर्तन देख कर सभी आश्चर्यचकित थे। टीचर शायद ये समझ रहे हों कि शायद वो अभी तक शर्माता रहता हो, इसलिए न बोलता हो। लेकिन उसके सहपाठियों को उसके ज्ञान से जलन अवश्य होने लगी। ख़ास कर के क्लास की मेधावी छात्राओं को। कुछ क्लास में तो शिक्षक केवल लड़कियों को ही पढ़ाते दिखाई देते थे। लेकिन आज वो बात अजय ने तोड़ कर रख दी थी।

ख़ैर, लंच का समय आया, तो वो शशि मैम से मिलने स्टाफ़ रूम में आया।

“अजय,” उसको देखते ही शशि मैम बड़े उत्साह से बोलीं, “कम इन... कम इन!”

“बैठो,” उन्होंने उसको बैठने का इशारा कर के आगे कहा, “देखो... मैंने तुमको इसलिए बुलाया है कि तुमसे तुम्हारी हायर स्टडीज़ के बारे में डिसकस कर सकूँ।”

अजय ने समझते हुए सर हिलाया।

शशि ने आगे कहा, “तुम एक अच्छे स्टूडेंट हो! यह मुझे पहले भी समझ में आता था, लेकिन आज क्लास में तुम्हारी परफॉरमेंस से मुझे लगता है कि तुमको मैथ्स में एडवांस्ड समझ है! एक बार को यह सोच सकती थी कि शायद तुमने कोई ट्यूशन ज्वाइन किया है, लेकिन मैंने तुमसे कुछ ऐसे सवाल पूछे थे, जो इंटरमीडिएट से आगे के हैं। तुमको वो भी आते हैं। सो आई नो दैट यू नो!”

वो मुस्कुराईं, “आई डोंट नो अबाउट अदर्स, बट सिंघल मैम भी यही कह रही थीं अभी।”

“थैंक यू मैम,” अजय ने विनम्रता से कहा, “मुझे भी लगता है कि मुझे थोड़ा अधिक सीरियस हो जाना चाहिए स्टडीज़ को ले कर! दिस इस माय ट्वेल्फ़्थ! यहीं से कैरियर शुरू होता है।”

“बहुत अच्छा लगा सुन कर! लेकिन एक बात बताओ, तुम क्लास में इतना पार्टिसिपेट क्यों नहीं करते हो?”

“मैम... वो क्या है कि मैं नेचर से थोड़ा शाय हूँ! ... बट, आई हैव डिसाइडेड टू चेंज दैट आल्सो!” अजय ने कहा, “इसलिए आपको थोड़ा डिफरेंट लगा होगा आज...”

“हाँ... एंड दैट वास अ गुड चेंज!” शशि मैम ने कहा, “एक और बात है - तुम्हारा मैथ्स और फिजिक्स में कमांड देख कर मैं चाहती हूँ कि तुम कुछ अमेरिकन और यूरोपियन यूनिवर्सिटीज़ में हायर स्टडीज़ के लिए अप्लाई करो! इंजीनियरिंग ही नहीं, किसी भी सब्जेक्ट में तुम हायर एजुकेशन ले सकते हो।”

“इस दैट सो मैम?”

“हाँ! और एक अच्छी बात यह है कि इस साल से हमारे कॉलेज ने डिसाइड किया है कि हम कॉलेज के तीन टॉप स्टूडेंट्स को बाहर हायर एजुकेशन के लिए रिकमेंड करेंगे! ... मैं और सिंघल मैम तुमको करेंगे... आई मीन, तुम्हारा नाम प्रोपोज़ करेंगे!”

“थैंक यू सो मच मैम...” अजय यह सब सुन कर ख़ुशी से फूला नहीं समाया।

“डोंट वरी अबाउट इट! लेकिन तुमको टॉप में रहना होगा। जो मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे लिए बहुत मुश्किल होगा।” वो बोलीं, “थोड़ा सोच लो, और फिर पक्का बताना हमको! ओके? अगर तुमको इंटरेस्ट हो, तभी ऐसा करेंगे हम।”

“यस मैम... थैंक यू मैम...”

“वैरी गुड! और हाँ... इनसे मिलो...” शशि ने अपने बगल बैठी टीचर की तरफ़ इशारा कर के बताया, “ये हैं तुम्हारी कंप्यूटर साइंस की नई टीचर, श्रद्धा वर्मा!”

“वेलकम टू हॉगवर्ट्स मैम,” अजय ने बड़े ही आत्मविश्वास से मुस्कुराते हुए कहा, “आई ऍम श्योर दैट व्ही विल लर्न अ लॉट फ्रॉम यू!”

“थैंक यू...” श्रद्धा मैम ने मुस्कुराते जवाब दिया, “... अजय!”


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Nice and superb update....
 
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park

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अपडेट 11


लंच के बाद अगली क्लास केमिस्ट्री की थी। रूहेला सर केमिस्ट्री पढ़ाते थे। वो कोई पैंतीस साल के ऊँचे क़द के आदमी थे। बहुत भारी आवाज़ थी उनकी, और वो बहुत ही आराम से बोलते थे। इतनी भारी आवाज़ में, और इतने आराम में, और लंच के बाद अगर केमिस्ट्री पढ़ाई जाए, तो स्टूडेंट्स की क्या हालत होगी, बताने की कोई ज़रुरत नहीं है। अक्सर ही उनकी क्लास में एक चौथाई स्टूडेंट्स नींद में लुढ़के हुए ही दिखाई देते थे। उनको भी कोई परवाह नहीं थी - पढ़ना हो पढ़ो, नहीं तो मरो! मेरी बला से -- शायद वो इसी नारे पर काम करते थे।

क्लास को लगा कि शायद अजय इस क्लास में भी अपने जलवे दिखाएगा, लेकिन उनको केवल निराशा हाथ लगी। अजय भी कई अन्य स्टूडेंट्स की ही तरह बड़ी मुश्किल से अपनी आँखें खोल पा रहा था।

फ़िर आई आज की आख़िरी क्लास।

कंप्यूटर साइंस की नई टीचर, श्रद्धा वर्मा मैम कंप्यूटर साइंस पढ़ाने आईं। रूहेला सर की क्लास के बाद वैसे भी अजय को नींद आने लगी थी, लेकिन शशि मैम के चक्कर में वो नहीं चाहता था कि श्रद्धा मैम पर से उसका इम्प्रैशन ख़राब हो। लिहाज़ा वो बड़ी कोशिश कर के तन्मयता से बैठा कि कम से कम सोता हुआ न दिखाई दे उनको। कहीं उन्होंने शशि मैम से शिकायत कर दी, तो बना बनाया मामला ख़राब हो जायेगा!

उसने पाया कि श्रद्धा मैम समझाने और पढ़ाने की अच्छी कोशिश कर रही थीं। लेकिन उनके पास पढ़ाने के अनुभव की भारी कमी लग रही थी। शायद वो पहली बार इंटरमीडिएट की किसी क्लास को पढ़ा रही थीं।

अजय ने अंदाज़ा लगाया - चौबीस या पच्चीस से अधिक की नहीं लग रही थीं श्रद्धा मैम!

साधारण कद-काठी! नहीं - साधारण नहीं, दरअसल सामान्य से छोटी ही थीं। नाटी (ठिगनी) नहीं, छोटी! अंग्रेज़ी में ऐसी लड़कियों को "पेटीट" कहते हैं। नाटे और छोटे में अंतर होता है। उनके शरीर का आकार क़द के हिसाब से अच्छा था। हाँलाकि ढीले ढाले कपड़ों में ठीक से पता नहीं चल रहा था, लेकिन वो छरहरी थीं। उनका औसत सा चेहरा था... खूबसूरत नहीं, लेकिन प्लीसिंग अवश्य था। थोड़ी साँवली भी थीं श्रद्धा मैम... लगभग माया दीदी जैसी ही! कुल मिला कर श्रद्धा मैम ऐसी लड़की थीं, कि उनको अभी देखो तो अगले कुछ पलों में भूल जाओ।

अजय भूल भी जाता... लेकिन वो कंप्यूटर साइंस में दक्ष था। बहुत संभव है कि मैम से भी अधिक! संभव क्या - यह बात सिद्ध ही है अपने आप में। अपनी शादी होने से पहले और कुछ समय बाद तक वो एक बहुत अच्छी सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता था। वेतन बहुत कम था उसका, क्योंकि वो किसी अग्रणी इंजीनियरिंग कॉलेज से नहीं था। तो ज्ञान तो उसको बहुत था। इसलिए बहुत देर तक खुद को रोक न सका। अपने पसंद के विषय पर जब चर्चा होती है, तो अच्छा लगता ही है!

कुछ ही देर में क्लास के बाकी के स्टूडेंट्स को ऐसा लगने लगा कि मानों श्रद्धा मैम और अजय ‘सर’ दोनों मिल कर उनकी क्लास ले रहे हैं!

अधिकतर शिक्षक ऐसे होते हैं जो क्लास को और अपने विषय को अपनी ‘बपौती’ समझते हैं। उनको चैलेंज कर दो, तो ऐसे काटने को दौड़ते हैं कि मानों कि वो कोई कटखने कुत्ते हों, और आपने उनकी पूँछ पर पैर रख दिया हो। वो अपने छात्रों को नीचा दिखाने का प्रयास करने लगते हैं।

लेकिन श्रद्धा मैम वैसी नहीं लग रही थीं।

वो कोशिश कर रही थीं कि उनकी क्लास को उनका पढ़ाया हुआ ठीक से समझ में आए, और साथ ही साथ अजय से सीखने की कोशिश भी कर रही थीं। यह एक अद्भुत बात थी। अजय ने भी महसूस किया कि अवश्य ही श्रद्धा को पढ़ाने का अनुभव न हो, लेकिन उनको अपना विषय अच्छे से आता था और उनको पढ़ाने का एक पैशन भी था।

मृदु-भाषी तो थीं हीं, और भी एक बात महसूस करी उसने - श्रद्धा मैम में अनावश्यक ईगो नहीं था।


**


“क्या भाई,” कॉलेज ख़तम होने के बाद कमल ने अजय से कहा, “क्या हो गया है तुमको?”

“आएँ! मुझको क्या हुआ? कुछ भी तो नहीं!”

“अबे स्साले... कल तक जो था कालिदास, आज वो कैसे बन गया आदिदास?” कमल ने अपने आशु-कवि होने का एक निहायत घटिया सा उदहारण पेश कर दिया।

“हा हा हा! अरे कुछ नहीं यार!” कमल की बात पर अजय ज़ोर से हँसने लगा, “... कुछ दिनों से कोशिश कर के पढ़ रहा था... वैसे बोलता नहीं, लेकिन बस आज बोल दिया क्लास में!”

“हम्म... अच्छा है! एक्साम्स में तेरे पीछे या बगल वाली सीट पर बैठने को मिल जाय, तो फ़िर मज़ा आ जाए!” कमल हँसते हुए बोला, “टॉप करेंगे हम दोनों भाई!”

“हा हा...”

“अच्छा सुन, तूने रूचि को नोटिस किया क्या?” उसने चटख़ारे लेते हुए कहा।

रूचि गुप्ता क्लास के टॉप स्टूडेंट्स में से एक थी।

वो सुन्दर भी थी और मेधावी भी। लेकिन वो अजय को एक पैसे की भी घास नहीं डालती थी, क्योंकि वो अक्सर क्लास में फर्स्ट आती थी। और अगर बहुत बुरा परफॉरमेंस हुआ तो सेकंड रैंक! अजय चौथी पांचवीं से अधिक रैंक नहीं ला पाया था आज तक। ऐसे में उसके मन में अजय और उसका कोई मुक़ाबला ही नहीं था।

“नहीं! क्यों?”

सच में उसने आज अपनी क्लास की किसी भी लड़की या लड़के को नोटिस नहीं किया।

करता भी क्यों? वो तीस साल का आदमी था, और ये सब सत्रह अट्ठारह के छोकरे छोकरियाँ!

कोई मेल ही नहीं था उनमें और अजय में!

“फट गई है उसकी! ... आज तूने मुँह क्या खोला, उसकी गाँड़ ही फट गई है ऐसा लगता है!” कमल मन ही मन आनंदित होता हुआ बोला, “स्साली सोच रही होगी कि इस बार पहली रैंक तू मार ले जाएगा! अब देखियो - कैसा रट्टा लगाएगी आज रात से ही!”

मनोविज्ञान गज़ब की चीज़ है।

जब अपना अभिन्न मित्र कुछ अच्छा करता है, तो हमको ऐसा लगता है कि हमने ही कुछ अच्छा कर दिया हो। अपना कोई खिलाड़ी जब यदा-कदा ओलिंपिक में कोई पदक जीत लेता है, तो सभी लोग ऐसे सीना चौड़ा कर के घूमते हैं, कि जैसे उन्होंने ही ओलिंपिक का क़िला फतह कर लिया हो!

“हा हा... तू भी न यार!”

लेकिन कमल की बात पर अजय को शर्म सी आ गई। रूचि एक अच्छी और पढ़ाकू लड़की थी। वो फर्स्ट आ रही थी इस कारण से क्योंकि वो न केवल मेहनती थी बल्कि मेधावी भी थी! वो अनावश्यक तरीके से अपना समय गँवाती नहीं थी। ऐसे में रूचि को उसके स्थान से अपदस्थ करने का विचार अच्छा नहीं था - नैतिक नहीं था। रूचि के मुक़ाबले उसके पास भविष्य, उम्र, और अनुभव का बेहद अनुचित लाभ था।

रूचि क्या ही थी? एक बच्ची ही तो थी उसके सामने! ऐसे में वो - एक तीस साल का पुरुष एक बच्ची से कैसे कम्पटीशन करे? कितना गलत था यह! लेकिन फिर यह एक अवसर भी था उसके लिए - एक सेकंड चांस - कि वो अपने जीवन को एक सही राह दे सके। उसके परिवार पर जो आपदाएँ आने वाली हैं, वो उनको उन आपदाओं से बचा सके। अपने परिवार के सदस्यों - माया दीदी और प्रशांत भैया की शादियाँ गलत होने से रोक सके।

उसने मन ही मन सोचा कि वो अपनी क्लास के किसी भी मेधावी छात्र का रास्ता नहीं काटेगा।

अपने निजी लाभ के लिए तो बिल्कुल ही नहीं।


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“अरे सही कह रहा हूँ,” कमल ने ज़ोर दिया।

“हाँ हाँ! सही कह रहा है!” उसने कहा, “चल...”

“कहाँ?”

“घर... और कहाँ? देख भाई -- दीदी ने कहा था कि कमल को साथ लेकर सीधे घर आना। ... आज दीदी कुछ स्पेशल बना रही हैं! बोलीं, कि तुझे नाश्ता करा कर ही वापस जाने देंगी वो!” अजय ने बड़े अभूतपूर्व तरीके से कहा, "दीदी का आदेश है, हाँ! बस!"

“यार तू सच में बदल गया है!” कमल ने अचानक से गंभीर होते हुए कहा।

“अब क्या हो गया?”

“आज तक मेरे सामने तूने माया दीदी को ‘दीदी’ नहीं कहा...”

कमल की बात पर अजय को झटका सा लगा।

हाँ... सच ही तो कह रहा था कमल। घर में पापा और माँ के चलते वो माया को ‘माया दीदी’ ज़रूर कहता था, लेकिन बाहर - अपने मित्रों के सामने वो उसको कभी माया-देवी, तो कभी माया-बेन, तो कभी केवल माया ही कह कर बुलाता था। कोई इज़्ज़त नहीं दिखाता था। शायद मित्रों के सामने ‘कूल’ दिखने की चाहत हो? उसको यह समझ नहीं थी कि इस कूल दिखने की चाहत में वो मित्रों के सामने ‘फ़ूल’ दिखता था। कम से कम कमल के सामने।

कमल की बात पर अजय के दिल में एक टीस उठी।

माया दीदी उससे ऐसा तिरस्कार डिज़र्व नहीं करती थीं। वो एक बेहद अच्छी लड़की थीं, जिन्होंने अपने श्रम और प्रेम के बल पर उसके परिवार को बाँध कर रखा हुआ था। वो सही मायनों में ‘दीदी’ थीं!

हाँ, अब पुरानी बातें बदलने का समय आ गया था। भविष्य से आया हुआ अजय, अपने लिए एक नया भविष्य लिखने वाला था! ऐसा अवसर शायद ही किसी को आज तक मिला हो! भगवान ने उसको एक मौका दिया था - वो उसको यूँ जाने नहीं दे सकता था।

“गलती थी वो मेरी यार...” अजय बुदबुदाया, “नासमझी में ऐसी बहुत सी गलतियाँ हुई हैं मुझसे... अब सब कुछ रियलाइज़ हो रहा है मुझे!”

“हाँ... गलती तो थी!” कमल ने कहा, “वो अच्छी हैं बहुत! ... अच्छा लगा मुझे कि तू फाइनली उनको रेस्पेक्ट दे रहा है!”

कमल के कहने का अंदाज़ थोड़ा अलग था।

लड़कपन वाला अजय अवश्य ही न समझ पाता, लेकिन ये वयस्क अजय ऐसी बातें भाँप लेता है।

“क्या बात है कमल?” अजय ने दो-टूक पूछ लिया, “कुछ है जो तुम मुझे बताना चाहते हो?”

“कुछ नहीं!” कमल ऐसे अचानक पूछे जाने से थोड़ा अचकचा गया, जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ ली गई हो।

“मुझसे छुपायेगा? अपने जिगरी दोस्त से?”

कमल कुछ बोला नहीं। उसकी हिचक साफ़ दिखाई दे रही थी।

लिहाज़ा, अजय ने ही कुरेदा,

“तुझे माया दीदी पसंद हैं?”

कमल ने चौंक कर अजय को देखा। लेकिन कुछ बोला नहीं।

“यार तू अगर बताएगा ही नहीं, तो फिर मैं तेरे लिए कुछ कैसे कर पाऊँगा?”

“आर यू सीरियस?” कमल को विश्वास नहीं हुआ कि अजय ऐसा कुछ कह देगा।

“और नहीं तो क्या?”

“तू नाराज़ नहीं है?”

“अरे मैं क्यों नाराज़ होऊँगा?” अजय ने कहा, “तुम दोनों ही मेरे अपने हो!”

नाराज़ होने की कोई वजह ही नहीं थी - जब आखिरी बार, कोई दो साल पहले, कमल से अजय की मुलाक़ात हुई थी, तो अजय जेल में ही था। मिलने आया था वो। उसी दिन माया दीदी भी आई थीं। अजय ने देखा था तब... कमल की आँखों में माया को देख कर निराशा के भाव थे।

माया अपने वैवाहिक जीवन में खुश कत्तई नहीं थीं, यह बात शायद पाठकों को बता चुका हूँ!

बेहद नालायक पति था उनका। शादी के तीन साल ही में दो बच्चे हो गए थे उनको, और उनको पालने का पूरा भार उन्ही पर था। उनके नाकारा पति ने अशोक जी द्वारा दिया गया धन (दहेज़ और संपत्ति में से हिस्सा) भी यूँ ही गँवा दिया था! फिर भी एक कर्तव्यनिष्ठ स्त्री होने के नाते वो मुस्कुराते हुए सब सहती रहीं। वो आदमी केवल नालायक ही होता, तो भी चलता। वो काईयाँ भी बहुत था। जब तक अजय के परिवार के पास धन दौलत थी, तब तक वो बड़ी मीठी मीठी बातें करता। लेकिन एक बार धन सम्पदा जाते ही उसने गिरगिट के जैसे रंग बदल दिया।
अशोक जी की अंत्येष्टि में वो केवल खाना - पूरी करने आया हुआ था। और तो और, वो माया को अजय और माँ से जेल में मिलने से भी मना करता। ये बेचारी ही जस-तस बहाने कर कर के इनसे मिलने आ जातीं।

बहुत अत्याचार हुआ था माया दीदी जैसी कोमल लड़की पर!

उधर कमल ने भी आज तक शादी नहीं करी थी।

अजय उससे कहता कि वो बच गया! आज कल शादियाँ सही नहीं होतीं। लेकिन कमल उसको कहता कि सही लड़का लड़की से शादी होने पर शादियाँ सही होती हैं।

तब नहीं पता था अजय को कि कमल माया दीदी को अपने लिए सही लड़की मानता है।

लेकिन आज...

“बोल न?” अजय ने कमल को कुरेदा।

“यार...” कमल ने झिझकते हुए बताया, “पसंद तो हैं मुझे तेरी दीदी!”

“तुमको अजीब नहीं लगता,” अनजाने ही अजय ‘तुझको’ से ‘तुमको’ पर आ गया।

“क्यों अजीब लगना चाहिए? कितनी अच्छी सी तो है माया दीदी... कितनी सुन्दर... सुशील... गुणी!” कमल बोला, “माँ को भी पसंद हैं दीदी! ... भगवान ने चाहा, तो या तो माया दीदी से या फिर उन्ही जैसी किसी लड़की से शादी करूँगा! नहीं तो कुँवारा बैठूँगा!”

अजय ने कुछ पल चुप रह कर सोचा। कमल की बात सही थी। माया दीदी वाक़ई बहुत ही अच्छी लड़की थीं… हैं।

“सच में?”

“हाँ!”

बात तो सही थी - कमल ने शादी नहीं करी थी। इस बात का गवाह वो ‘पुराना’ वाला अजय था।

‘प्यार ऐसा होता है? कमाल है!’ अजय ने सोचा, ‘शायद ऐसा ही होता हो... किसी के लिए अगर इतनी पक्की धारणा बन जाए, तो फिर क्या कहना! ... काश उसको भी इसी तरह का प्यार होता किसी से!’

“यार, ऐसी क्लैरिटी होनी चाहिए लाइफ में!” प्रत्यक्ष में उसने कहा।

“बिलकुल होनी चाहिए!” कमल ने बड़े अभिमान से कहा, “कम से कम मुझे तो है!”

अजय ने सर हिला कर उसका समर्थन किया। फिर मूड को थोड़ा हल्का करने के लिए उसने चुहल करी,

“अबे, एक बात बता... तू अगर माया दीदी से शादी करना चाहता है, तो उनको ‘दीदी’ क्यों कह रहा है? केवल ‘माया’ कह न... केवल उनके नाम से बुलाया कर न!”

“भाई देखो... अभी तक उनसे इस बारे में कोई बात ही नहीं हुई है, तो और क्या कहूँ?” कमल बड़ी परिपक्वता से बोला, “वो मेरे सबसे पक्के दोस्त - मेरे भाई - की बड़ी बहन हैं, इसलिए इज़्ज़त तो करनी ही होगी न!” वो मुस्कुराया।

“क्या बात है यार!” अजय उसकी बात पर बहुत खुश हुआ।

‘कमल और माया दीदी,’ अजय के मन में ये विचार आए बिना न रह सके!

कमल अच्छा लड़का तो था ही! इसीलिए तो वो उसका दोस्त था... और बेहद अच्छा दोस्त था। लेकिन केवल इसी कारण से ही नहीं!

जब अजय के बाकी सबसे नाते रिश्ते छूट गए थे, तब कुछ ही लोग तो संग रहे! कमल उनमें से था... माया दीदी उनमें से एक थीं!

‘माया दीदी... कमल...’ सोच कर वो मुस्कुराया।

दो बेहद अच्छे लोग!

दोनों अपने अपने हिस्से की खुशियों से वंचित!

वो ख़ुशियाँ, जिनके वो हक़दार थे!

‘कमल और माया दीदी... नाइस!’

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