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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


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kas1709

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अपडेट 27


एक शनिवार को अशोक जी ने अजय से कहा,

“बेटे,”

“जी पापा?”

“उस दिन तुमको मन कर रहा था, लेकिन आज मेरा मन हो रहा है कि हम दोनों बाप बेटा बैठ कर साथ में स्कॉच पियें...”

“आई वुड लव इट पापा,”

“यू मेक इट...” उन्होंने सुझाया।

“ग्लेनफ़िडिक?”

अशोक जी ने हाँ में सर हिला कर कहा, “यस... एटीन ऑर ट्वेंटी वन, यू डिसाइड...”

“ओके पापा!”

“और, जैसा मैंने तुम्हारा पेग बनाया था लास्ट टाइम, वैसा ही बनाना अपने लिए,” उन्होंने मुस्कुराते हुए उसको हिदायद दी।

“यस सर,”

कह कर अजय दोनों के लिए ड्रिंक्स बनाने लगा। कुछ देर में वो एक ट्रे में दोनों के लिए स्कॉच के ग्लास ले आया। एक अशोक जी को दिया और दूसरा स्वयं ले कर उनके सामने बैठ गया।

“चियर्स बेटे,”

“चियर्स पापा!”

इन दस हफ़्तों में पापा के साथ उसके सम्बन्ध बहुत अच्छे बन गए थे। दोनों साथ में बहुत सारे काम करते - बातें, कसरतें, इन्वेस्टमेंट और बिज़नेस की बातें, इत्यादि!

दो चुस्की लगा कर अशोक जी ने कहा,

“अब बताओ बेटे, क्या बात है?”

“बात पापा?” अजय ने उनकी बात न समझते हुए कहा।

उन्होंने एक गहरी साँस भरी, “बेटे, पिछले दो ढाई महीनों से देख रहा हूँ कि तुम्हारे अंदर बहुत से चेंजेस आ गए हैं। नो, आई ऍम नॉट कम्प्लेनिंग! तुम्हारे अंदर सारे चेंजेस बहुत ही पॉजिटिव हैं... लेकिन चेंजेस हैं।”

“पापा...”

“बेटे, झूठ न बोलना! ... तुम मुझसे झूठ नहीं कहते, सो डोंट स्टार्ट! लेकिन छुपाना भी कुछ नहीं,”

“लेकिन पापा, आपको क्यों...”

“क्यों लगता है कि तू बदल रहा है?” उन्होंने पूछा।

अजय ने नर्वस हो कर ‘हाँ’ में सर हिलाया।

वो वात्सल्य भाव से मुस्कुराए, “बाप हूँ तेरा! ये सेन्स केवल माँओं में ही नहीं होता... बाप में भी होता है।” फिर एक गहरी सांस ले कर आगे बोले, “मुझे आज भी याद है... तूने मुझे हीरक पटेल से कोई भी डील न करने को कहा था।”

अजय नर्वस होते हुए कसमसाया।

“आज मिला था वो।” अशोक जी दो क्षण रुक कर बोले, “तू सही कह रहा था... शार्क है वो। ऊपर से मीठी मीठी बातें कर रहा था, लेकिन उसकी आँखों में लालच दिखता है।”

“कहाँ मिला वो आपको पापा?”

“अशोक होटल में,” - अशोक होटल दिल्ली का एक पाँच सितारा लक्ज़री होटल है - अशोक जी बोले, “एक समिट था वहाँ,”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“वो सब ठीक है... लेकिन तुझे उसके बारे में पता कैसे चला? वो तो बस तीन दिन पहले ही इस समिट के लिए आया है कीनिया से इंडिया... उसके पहले तीन साल पहले ही उसकी इण्डिया ट्रिप लगी थी,”

अजय चुप रहा।

“केवल यही बात नहीं है... तू माया से जिस तरह बातें करता है... उसके लिए जो पहला प्रोपोज़ल आया था तूने उसको जैसे मना किया, उसकी शादी कमल से तय करवाई... और अब प्रशांत के लिए पैट्रिशिया...” वो थोड़ा रुके, “बात क्या है बेटे? अपने बाप से छुपाएगा अब?”

“नहीं पापा,” अजय ने एक गहरी साँस भरी और एक ही बार में पूरा पेग गटक गया, “... मैं आपको सब कुछ बताऊँ, उसके लिए मुझे एक और पेग चाहिए... स्ट्रांगर!”

अशोक जी को अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन आँखों के इशारे से उन्होंने उसको दूसरे पेग की अनुमति दे दी।

कोई पाँच मिनट दोनों मौन रहे। वो अपना पेग ले कर वापस आया और अपने सोफ़े पर बैठा।

एक सिप ले कर बोला, “पापा, पता नहीं आप मेरी बातों का कितना यकीन करेंगे... इवन आई डोंट फुल्ली ट्रस्ट एंड बिलीव इट माइसेल्फ...”

“ट्राई मी बेटे,”

“पापा, मैं फ़्यूचर से आया हूँ,”

“व्हाट?” अशोक जी के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे उनको लगा हो कि उनका बेटा उनको मूर्ख बना रहा है।

“पापा पहले सुन तो लीजिए,”

“हाँ बोलो, बट दिस इस सो हिलेरियस...”

अजय ने उनकी बात नज़रअंदाज़ करी और फिर एक गहरी साँस ले कर उनको मुंबई पुणे द्रुतमार्ग पर हुई घटना से उल्टे क्रम में सभी बातें बताना शुरू करीं। प्रजापति जी के साथ हुई घटना, रागिनी नाम की लड़की से उसका ब्याह, झूठे केस, उससे सम्बन्ध विच्छेद, संपत्ति का बिकना, ग़रीबी के दिन, और फिर जेल में बिताये तीन साल, उसके पश्चात गरिमामय जीवन जीने के लिए रोज़ रोज़ जूझना...

“एक मिनट,” अशोक जी बोले, “मुंबई पुणे एक्सप्रेसवे जैसा कुछ नहीं है,”

“आई नो! अभी नहीं है, लेकिन पाँच छः साल में हो जाएगा पापा,”

नर्वस होने की बारी अब अशोक जी की थी।

“जब ये सब हो रहा था, तब मैं कहाँ था?” उन्होंने सर्द आवाज़ में पूछा।

अजय की आँखों से आँसू आ गए, “आप नहीं थे पापा...” उसकी आवाज़ भर आई, “आप नहीं थे।”

“कहाँ था मैं बेटे?” वो समझ तो गए, लेकिन फिर भी जानना चाहते थे।

“इस हीरक पटेल ने आपको आपके बिज़नेस में भारी नुक़सान पहुँचाया था पापा... सामने तो आपका दोस्त बना रहा, लेकिन समझिये कि उसने आपकी पीठ में छूरा घोंपा है। आपके आधे बिज़नेस उसका कब्ज़ा हो गया था। आपके ऊपर सारे उधार छोड़ दिए, और सारा मलाई माल ले कर चल दिया।”

अशोक जी अभी भी उत्तर की प्रतीक्षा में थे।

अब अजय को वो बातें बतानी पड़ीं, जो वो बताना नहीं चाहता था, “उसके कारण आपको बहुत धक्का लगा पापा... यू हैड हार्ट अटैक...”

वो बात पूरी नहीं कर पाया।

तीन चार मिनट दोनों मौन रहे। फिर अशोक जी ही बोले,

“कब हुआ?” उनकी आवाज़ भी बैठ गई थी।

उनके बेटे और भाभी के साथ इतना कुछ हो गया, जान कर वो भी दुःखी हो गए थे।

“जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था,” उसने गहरी साँस ली, “वैसे शायद कुछ न होता, लेकिन आपको डॉक्टर की लापरवाही के कारण गलत मेडिकेशन दे दिया गया... उसके कारण आपको एलर्जिक रिएक्शन हो गया।”

“किस ऑर्गन में इंफेक्शन हुआ?”

“रेस्पिरेटरी... मुझे ठीक से नहीं मालूम, लेकिन आपको और माँ को फिर से पूरा हेल्थ चेक करवाना चाहिए। स्पेसिफ़िक फॉर एलर्जीस...”

“हम्म...”

“वानप्रस्थ अस्पताल में कोई अजिंक्य देशपाण्डे डॉक्टर आएगा,”

“अभी नहीं आया है?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“लेकिन बेटे, अगर मुझे मरना लिखा है, तो मर तो जाऊँगा न?”

“आई डोंट बिलीव इट पापा,” अजय ने दृढ़ता से कहा, “अगर चीज़ें बदल ही न सकतीं, तो प्रजापति जी मुझे वापस भेजते ही क्यों? उससे क्या हासिल होता?”

अशोक जी ने समझते हुए सर हिलाया।

“और देखिए न, माया दीदी की लाइफ भी तो बदल रही है! उस मुकेश के साथ उनकी शादी नहीं हो रही है न अब,”

“तू उस बात पर भी सही था बेटे,” अशोक जी बोले, “मैंने पता लगवाया था। तेरे चतुर्वेदी अंकल ने पता किया था कि मुकेश और उसका परिवार ठीक नहीं है।”

“आपने यह बात मुझे नहीं बताई,” इतनी देर में अजय पहली बार मुस्कुराया।

“कोई ज़रुरत ही नहीं थी बेटे,” अशोक जी भी मुस्कुराए, “कमल और माया दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं... यह तो मैं भी बता सकता हूँ! राणा साहब के परिवार में अपनी बिटिया जा रही है, यही दिखा रहा है कि ईश्वर की हम पर बड़ी दया है।”

“जी पापा, मेरी पिछली लाइफ में कमल ने कभी बताया ही नहीं कि उसको दीदी इतनी पसंद हैं!”

“तुझे भी तो पसंद नहीं थी,”

“हाँ पापा, नहीं थी। लेकिन मैंने देखा कि कैसे वो बेचारी उस मुकेश से छुप कर हमसे मिलने आती थीं। दीदी ने हमारा साथ कभी नहीं छोड़ा। कमल ने हमारा साथ नहीं छोड़ा। राणा अंकल और आंटी जी ने तो हमको अपने घर आ कर रहने को कहा भी था... लेकिन आपका बेटा ऐसा नहीं है कि वो अपने बूते पर अपनी माँ को दो जून का खाना न खिला सके।”

कहते कहते अजय को फिर से अपने संघर्ष की बातें याद आ गईं। आँसुओं की बड़ी बड़ी बूँदें उसकी आँखों से टपक पड़ीं।

“मेरा बेटा,”

“हाँ पापा, आपका बेटा हूँ! आपकी सारी क्वालिटीज़ हैं मेरे अंदर,” उसने मुस्कुराने की कोशिश करी।

फिर जैसे उसको कुछ याद आया हो, “मनोहर भैया भी साथ थे! वफ़ादारी के चक्कर में छोटी मोटी नौकरी कर रहे थे वो जेल के पास,”

“ओह बेटे,”

“पापा,” अजय ने जैसे उनको समझाने की गरज़ से कहा, “आप ऐसे न सोचिए! वो सब नहीं होगा अब। ... हमारे सामने दूसरी मुश्किलें आएँगी, लेकिन वो मुश्किलें नहीं...”

दोनों फिर से कुछ देर मौन हो गए।

“माँ को पता है ये सब?” अंततः अशोक जी ने ही चुप्पी तोड़ी।

“नहीं। मैंने उनको एक चिट्ठी में लिख कर कुछ इंस्ट्रक्शंस दिये थे, आपके हास्पिटलाइज़ेशन को ले कर... लेकिन यहाँ डॉक्टर या हॉस्पिटल नहीं, उस एलर्जी को अवॉयड करना है... इस पटेल को अवॉयड करना है,”

“ठीक है, हम चारों इसी वीक फुल सीरियस चेकअप करवाते हैं।”

“ठीक है पापा,”

“ओह बेटे, इतना बड़ा बोझ लिए घूम रहे हो इतने दिनों से!”

“कोई बोझ नहीं है पापा। फॅमिली बोझ नहीं होती... आप सभी को खुश देखता हूँ, तो इट आल फील्स वर्थ इट,”

“हाँ बेटे, ख़ुशियाँ तो बहुत हैं! ... सब तेरे कारण ही हो रहा है!”

“क्या पापा! हा हा हा!”

“अच्छा बेटे एक बात बता, तब माया की शादी कब हुई थी?”

“इसी साल... नवम्बर में पापा!”

“तो क्या कहते हो? इस बार इन दोनों के लिए वेट करें? कमल अभी भी पढ़ रहा है न,”

“पर्सनली, मैं तो चाहूँगा कि दोनों की शादी जल्दी ही हो जाए... अगर शुभ मुहूर्त नवम्बर में हैं तो नवम्बर में ही। शादी तय हो गई है, दोनों एडल्ट भी हैं, तो फालतू के कारणों से शादी जैसी इम्पोर्टेन्ट चीज़ रुकनी नहीं चाहिए।”

“हम्म,”

“लेकिन वो आप और माँ बताइए... और दीदी,”

“एक्चुअली, कल दिन में ऑफिस में, राणा साहब का कॉल आया था। उन्होंने अपनी इच्छा बताई है कि दोनों को क्यों न इसी नवंबर में ब्याह दें,”

“बहुत बढ़िया है फिर तो!” अजय बोला, “आपने माँ से बात करी?”

“अभी नहीं... लेकिन आज पूछता हूँ भाभी से,”

“परफेक्ट!”

“और प्रशांत का क्या करें?”

“मैं तो कहता हूँ कि दोनों की साथ ही में शादी करवा देते हैं पापा, खर्चा बचेगा!”

“हा हा हा हा!” इस बात पर आज की शाम अशोक जी पहली बार दिल खोल कर हँसने लगे।

दिल पर से एक भार हट गया, ऐसा महसूस हो रहा था उनको।

“पापा,” अजय ने शरारत से पूछा, “एक और पेग?”

“हा हा हा... मेरी आड़ में खुद पीना चाहता है बदमाश!” वो आनंद से बोले, “चल ठीक है! एक और!”

“चियर्स पापा,”

“चियर्स बेटे,”

**
Nice update....
 
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रूचि और अजय -
यह दोनो होनहार स्टूडेंट्स पढ़ाई-लिखाई मे एक दूसरे की मदद कर रहे हैं । यह बहुत अच्छी बात है । पुरी दुनिया मे शिक्षा एकमात्र धन है जो खर्च करने पर घटता नही । आप अगर किसी को पढ़ा रहे है , शिक्षित कर रहे है तो सामने वाले का ज्ञान बढ़े या न बढ़े पर आप का ज्ञान अवश्य बढ़ जाता है । यह बांटने से घटता नही , बढ़ता है ।

इस पढ़ाई-लिखाई के साथ साथ रूचि का दिल हिलकोरे भी लेने लगा है । भई , लड़की शिक्षित और पारम्परिक मुल्यों का निर्वहन करने वाली हो तो बेशक लड़के को एक कदम आगे बढ़ना चाहिए । और जब लड़का लड़की साथ-साथ पढ़ाई करे तो उन्हें एक दूसरे के लगभग हर गुण दोष का ज्ञान भी हो जाता है ।

पैट्रिशिया और पश्चिमी संस्कति -

पैट्रिशिया के माध्यम से आपने पश्चिमी संस्कति की महिमामंडित की जो बहुत मायने मे सच है लेकिन ,

मेरा मानना है संस्कृति एक दिन बैठकर निर्धारित की नही जाती । हमारी संस्कृति पांच हजार वर्ष मे पनपी है जो समय और जरूरत के हिसाब से विकसित होती है । उदाहरण के तौर पर आज बेटा होना उतना आवश्यक नही रह गया है ।
भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी खूबी यहां का संयुक्त परिवार है । पश्चिम मे अठारह साल होते ही युवाओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अलग रहें ।
हमारी संस्कृति मे मूल घटक समाज है जब की पश्चिम मे व्यक्ति ही स्वतंत्र घटक होता है ।
हमारे यंहा विश्व के जितने भी धर्म हैं वह शताब्दियों से विना किसी रोक टोक के साथ रह रहे हैं । धर्मों की इस विविधता ने हमारे देश को एक रंगारंग गुलशन की मानिंद बना दिया है जहां हर रंग और हर आकृति के फूल खिलते हैं । हमारे देश के हर प्रांत की भाषा , पहनावा , भोजन , अनेकों रस्मो रिवाज अपने आप मे अद्भुत है ।
" वसुधैव कुटुम्बकम " हमारे देश का मंत्र है ।
सभ्यता का जन्म हमारे देश से शुरू हुआ ।

जैसा कि कामदेव भाई ने कहा , विदेशी आक्रांताओं और अंग्रेजों ने हमारे सनातन धर्म और संस्कृति पर अनेकों प्रहार किए लेकिन यह हमारी हस्ती है कि हम मिटते नही ।

अशोक जी और अजय -
यह अध्याय वास्तव मे एक ट्विस्ट था । मुझे लगा नही था कि अजय अपने फादर को हकीकत से अवगत करायेगा ।
लेकिन अजय ने सबकुछ सच सच बता दिया । इस का मतलब टाइम ट्रेवल की सच्चाई एक से अधिक व्यक्ति के जानकारी मे आ गई । यह सच्चाई अन्य लोगों को भी प्राप्त होगी या यह सिर्फ दो लोगों तक सीमित रह जायेगा , यह देखने लायक बात होगी ।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट अमर भाई ।
 
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dhparikh

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एक शनिवार को अशोक जी ने अजय से कहा,

“बेटे,”

“जी पापा?”

“उस दिन तुमको मन कर रहा था, लेकिन आज मेरा मन हो रहा है कि हम दोनों बाप बेटा बैठ कर साथ में स्कॉच पियें...”

“आई वुड लव इट पापा,”

“यू मेक इट...” उन्होंने सुझाया।

“ग्लेनफ़िडिक?”

अशोक जी ने हाँ में सर हिला कर कहा, “यस... एटीन ऑर ट्वेंटी वन, यू डिसाइड...”

“ओके पापा!”

“और, जैसा मैंने तुम्हारा पेग बनाया था लास्ट टाइम, वैसा ही बनाना अपने लिए,” उन्होंने मुस्कुराते हुए उसको हिदायद दी।

“यस सर,”

कह कर अजय दोनों के लिए ड्रिंक्स बनाने लगा। कुछ देर में वो एक ट्रे में दोनों के लिए स्कॉच के ग्लास ले आया। एक अशोक जी को दिया और दूसरा स्वयं ले कर उनके सामने बैठ गया।

“चियर्स बेटे,”

“चियर्स पापा!”

इन दस हफ़्तों में पापा के साथ उसके सम्बन्ध बहुत अच्छे बन गए थे। दोनों साथ में बहुत सारे काम करते - बातें, कसरतें, इन्वेस्टमेंट और बिज़नेस की बातें, इत्यादि!

दो चुस्की लगा कर अशोक जी ने कहा,

“अब बताओ बेटे, क्या बात है?”

“बात पापा?” अजय ने उनकी बात न समझते हुए कहा।

उन्होंने एक गहरी साँस भरी, “बेटे, पिछले दो ढाई महीनों से देख रहा हूँ कि तुम्हारे अंदर बहुत से चेंजेस आ गए हैं। नो, आई ऍम नॉट कम्प्लेनिंग! तुम्हारे अंदर सारे चेंजेस बहुत ही पॉजिटिव हैं... लेकिन चेंजेस हैं।”

“पापा...”

“बेटे, झूठ न बोलना! ... तुम मुझसे झूठ नहीं कहते, सो डोंट स्टार्ट! लेकिन छुपाना भी कुछ नहीं,”

“लेकिन पापा, आपको क्यों...”

“क्यों लगता है कि तू बदल रहा है?” उन्होंने पूछा।

अजय ने नर्वस हो कर ‘हाँ’ में सर हिलाया।

वो वात्सल्य भाव से मुस्कुराए, “बाप हूँ तेरा! ये सेन्स केवल माँओं में ही नहीं होता... बाप में भी होता है।” फिर एक गहरी सांस ले कर आगे बोले, “मुझे आज भी याद है... तूने मुझे हीरक पटेल से कोई भी डील न करने को कहा था।”

अजय नर्वस होते हुए कसमसाया।

“आज मिला था वो।” अशोक जी दो क्षण रुक कर बोले, “तू सही कह रहा था... शार्क है वो। ऊपर से मीठी मीठी बातें कर रहा था, लेकिन उसकी आँखों में लालच दिखता है।”

“कहाँ मिला वो आपको पापा?”

“अशोक होटल में,” - अशोक होटल दिल्ली का एक पाँच सितारा लक्ज़री होटल है - अशोक जी बोले, “एक समिट था वहाँ,”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“वो सब ठीक है... लेकिन तुझे उसके बारे में पता कैसे चला? वो तो बस तीन दिन पहले ही इस समिट के लिए आया है कीनिया से इंडिया... उसके पहले तीन साल पहले ही उसकी इण्डिया ट्रिप लगी थी,”

अजय चुप रहा।

“केवल यही बात नहीं है... तू माया से जिस तरह बातें करता है... उसके लिए जो पहला प्रोपोज़ल आया था तूने उसको जैसे मना किया, उसकी शादी कमल से तय करवाई... और अब प्रशांत के लिए पैट्रिशिया...” वो थोड़ा रुके, “बात क्या है बेटे? अपने बाप से छुपाएगा अब?”

“नहीं पापा,” अजय ने एक गहरी साँस भरी और एक ही बार में पूरा पेग गटक गया, “... मैं आपको सब कुछ बताऊँ, उसके लिए मुझे एक और पेग चाहिए... स्ट्रांगर!”

अशोक जी को अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन आँखों के इशारे से उन्होंने उसको दूसरे पेग की अनुमति दे दी।

कोई पाँच मिनट दोनों मौन रहे। वो अपना पेग ले कर वापस आया और अपने सोफ़े पर बैठा।

एक सिप ले कर बोला, “पापा, पता नहीं आप मेरी बातों का कितना यकीन करेंगे... इवन आई डोंट फुल्ली ट्रस्ट एंड बिलीव इट माइसेल्फ...”

“ट्राई मी बेटे,”

“पापा, मैं फ़्यूचर से आया हूँ,”

“व्हाट?” अशोक जी के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे उनको लगा हो कि उनका बेटा उनको मूर्ख बना रहा है।

“पापा पहले सुन तो लीजिए,”

“हाँ बोलो, बट दिस इस सो हिलेरियस...”

अजय ने उनकी बात नज़रअंदाज़ करी और फिर एक गहरी साँस ले कर उनको मुंबई पुणे द्रुतमार्ग पर हुई घटना से उल्टे क्रम में सभी बातें बताना शुरू करीं। प्रजापति जी के साथ हुई घटना, रागिनी नाम की लड़की से उसका ब्याह, झूठे केस, उससे सम्बन्ध विच्छेद, संपत्ति का बिकना, ग़रीबी के दिन, और फिर जेल में बिताये तीन साल, उसके पश्चात गरिमामय जीवन जीने के लिए रोज़ रोज़ जूझना...

“एक मिनट,” अशोक जी बोले, “मुंबई पुणे एक्सप्रेसवे जैसा कुछ नहीं है,”

“आई नो! अभी नहीं है, लेकिन पाँच छः साल में हो जाएगा पापा,”

नर्वस होने की बारी अब अशोक जी की थी।

“जब ये सब हो रहा था, तब मैं कहाँ था?” उन्होंने सर्द आवाज़ में पूछा।

अजय की आँखों से आँसू आ गए, “आप नहीं थे पापा...” उसकी आवाज़ भर आई, “आप नहीं थे।”

“कहाँ था मैं बेटे?” वो समझ तो गए, लेकिन फिर भी जानना चाहते थे।

“इस हीरक पटेल ने आपको आपके बिज़नेस में भारी नुक़सान पहुँचाया था पापा... सामने तो आपका दोस्त बना रहा, लेकिन समझिये कि उसने आपकी पीठ में छूरा घोंपा है। आपके आधे बिज़नेस उसका कब्ज़ा हो गया था। आपके ऊपर सारे उधार छोड़ दिए, और सारा मलाई माल ले कर चल दिया।”

अशोक जी अभी भी उत्तर की प्रतीक्षा में थे।

अब अजय को वो बातें बतानी पड़ीं, जो वो बताना नहीं चाहता था, “उसके कारण आपको बहुत धक्का लगा पापा... यू हैड हार्ट अटैक...”

वो बात पूरी नहीं कर पाया।

तीन चार मिनट दोनों मौन रहे। फिर अशोक जी ही बोले,

“कब हुआ?” उनकी आवाज़ भी बैठ गई थी।

उनके बेटे और भाभी के साथ इतना कुछ हो गया, जान कर वो भी दुःखी हो गए थे।

“जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था,” उसने गहरी साँस ली, “वैसे शायद कुछ न होता, लेकिन आपको डॉक्टर की लापरवाही के कारण गलत मेडिकेशन दे दिया गया... उसके कारण आपको एलर्जिक रिएक्शन हो गया।”

“किस ऑर्गन में इंफेक्शन हुआ?”

“रेस्पिरेटरी... मुझे ठीक से नहीं मालूम, लेकिन आपको और माँ को फिर से पूरा हेल्थ चेक करवाना चाहिए। स्पेसिफ़िक फॉर एलर्जीस...”

“हम्म...”

“वानप्रस्थ अस्पताल में कोई अजिंक्य देशपाण्डे डॉक्टर आएगा,”

“अभी नहीं आया है?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“लेकिन बेटे, अगर मुझे मरना लिखा है, तो मर तो जाऊँगा न?”

“आई डोंट बिलीव इट पापा,” अजय ने दृढ़ता से कहा, “अगर चीज़ें बदल ही न सकतीं, तो प्रजापति जी मुझे वापस भेजते ही क्यों? उससे क्या हासिल होता?”

अशोक जी ने समझते हुए सर हिलाया।

“और देखिए न, माया दीदी की लाइफ भी तो बदल रही है! उस मुकेश के साथ उनकी शादी नहीं हो रही है न अब,”

“तू उस बात पर भी सही था बेटे,” अशोक जी बोले, “मैंने पता लगवाया था। तेरे चतुर्वेदी अंकल ने पता किया था कि मुकेश और उसका परिवार ठीक नहीं है।”

“आपने यह बात मुझे नहीं बताई,” इतनी देर में अजय पहली बार मुस्कुराया।

“कोई ज़रुरत ही नहीं थी बेटे,” अशोक जी भी मुस्कुराए, “कमल और माया दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं... यह तो मैं भी बता सकता हूँ! राणा साहब के परिवार में अपनी बिटिया जा रही है, यही दिखा रहा है कि ईश्वर की हम पर बड़ी दया है।”

“जी पापा, मेरी पिछली लाइफ में कमल ने कभी बताया ही नहीं कि उसको दीदी इतनी पसंद हैं!”

“तुझे भी तो पसंद नहीं थी,”

“हाँ पापा, नहीं थी। लेकिन मैंने देखा कि कैसे वो बेचारी उस मुकेश से छुप कर हमसे मिलने आती थीं। दीदी ने हमारा साथ कभी नहीं छोड़ा। कमल ने हमारा साथ नहीं छोड़ा। राणा अंकल और आंटी जी ने तो हमको अपने घर आ कर रहने को कहा भी था... लेकिन आपका बेटा ऐसा नहीं है कि वो अपने बूते पर अपनी माँ को दो जून का खाना न खिला सके।”

कहते कहते अजय को फिर से अपने संघर्ष की बातें याद आ गईं। आँसुओं की बड़ी बड़ी बूँदें उसकी आँखों से टपक पड़ीं।

“मेरा बेटा,”

“हाँ पापा, आपका बेटा हूँ! आपकी सारी क्वालिटीज़ हैं मेरे अंदर,” उसने मुस्कुराने की कोशिश करी।

फिर जैसे उसको कुछ याद आया हो, “मनोहर भैया भी साथ थे! वफ़ादारी के चक्कर में छोटी मोटी नौकरी कर रहे थे वो जेल के पास,”

“ओह बेटे,”

“पापा,” अजय ने जैसे उनको समझाने की गरज़ से कहा, “आप ऐसे न सोचिए! वो सब नहीं होगा अब। ... हमारे सामने दूसरी मुश्किलें आएँगी, लेकिन वो मुश्किलें नहीं...”

दोनों फिर से कुछ देर मौन हो गए।

“माँ को पता है ये सब?” अंततः अशोक जी ने ही चुप्पी तोड़ी।

“नहीं। मैंने उनको एक चिट्ठी में लिख कर कुछ इंस्ट्रक्शंस दिये थे, आपके हास्पिटलाइज़ेशन को ले कर... लेकिन यहाँ डॉक्टर या हॉस्पिटल नहीं, उस एलर्जी को अवॉयड करना है... इस पटेल को अवॉयड करना है,”

“ठीक है, हम चारों इसी वीक फुल सीरियस चेकअप करवाते हैं।”

“ठीक है पापा,”

“ओह बेटे, इतना बड़ा बोझ लिए घूम रहे हो इतने दिनों से!”

“कोई बोझ नहीं है पापा। फॅमिली बोझ नहीं होती... आप सभी को खुश देखता हूँ, तो इट आल फील्स वर्थ इट,”

“हाँ बेटे, ख़ुशियाँ तो बहुत हैं! ... सब तेरे कारण ही हो रहा है!”

“क्या पापा! हा हा हा!”

“अच्छा बेटे एक बात बता, तब माया की शादी कब हुई थी?”

“इसी साल... नवम्बर में पापा!”

“तो क्या कहते हो? इस बार इन दोनों के लिए वेट करें? कमल अभी भी पढ़ रहा है न,”

“पर्सनली, मैं तो चाहूँगा कि दोनों की शादी जल्दी ही हो जाए... अगर शुभ मुहूर्त नवम्बर में हैं तो नवम्बर में ही। शादी तय हो गई है, दोनों एडल्ट भी हैं, तो फालतू के कारणों से शादी जैसी इम्पोर्टेन्ट चीज़ रुकनी नहीं चाहिए।”

“हम्म,”

“लेकिन वो आप और माँ बताइए... और दीदी,”

“एक्चुअली, कल दिन में ऑफिस में, राणा साहब का कॉल आया था। उन्होंने अपनी इच्छा बताई है कि दोनों को क्यों न इसी नवंबर में ब्याह दें,”

“बहुत बढ़िया है फिर तो!” अजय बोला, “आपने माँ से बात करी?”

“अभी नहीं... लेकिन आज पूछता हूँ भाभी से,”

“परफेक्ट!”

“और प्रशांत का क्या करें?”

“मैं तो कहता हूँ कि दोनों की साथ ही में शादी करवा देते हैं पापा, खर्चा बचेगा!”

“हा हा हा हा!” इस बात पर आज की शाम अशोक जी पहली बार दिल खोल कर हँसने लगे।

दिल पर से एक भार हट गया, ऐसा महसूस हो रहा था उनको।

“पापा,” अजय ने शरारत से पूछा, “एक और पेग?”

“हा हा हा... मेरी आड़ में खुद पीना चाहता है बदमाश!” वो आनंद से बोले, “चल ठीक है! एक और!”

“चियर्स पापा,”

“चियर्स बेटे,”

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Nice update....
 

Rihanna

Don't get too close dear, you may burn yourself up
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कब नींद आ गई उसे, उसको नहीं पता।

लेकिन सोते समय बड़े अजीब से सपने आए उसको...

उसको ऐसा लगा कि जैसे उसके जीवन के सभी अनुभव... जीवन का हर एक पल एक रबड़ जैसी एक अथाह चादर पर बिखेर दिए गए हों, और वो चादर हर दिशा में खिंच रही हो। चादर अपने आप में बेहद काले रंग की थी... शायद आदर्श कृष्णिका रही हो! “आदर्श कृष्णिका” भौतिकी में ऐसी काली सतह या पदार्थ होता है, जो किसी भी प्रकार की रोशनी को पूरी तरह से सोख़ ले, और उसमें से कुछ भी प्रतिबिंबित या उत्सर्जित न होने दे!

चादर अवश्य ही आदर्श कृष्णिका रही हो, लेकिन हर तरफ़ अजीब सी रोशनियाँ दीप्तिमान थीं। ऐसी रोशनियाँ जो आज तक उसने महसूस तक नहीं करी थीं! उस चादर पर उसने ख़ुद को खड़ा हुआ महसूस किया। लेकिन उसको अपना शरीर भी नहीं महसूस हो रहा था। उसको ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका खुद का शरीर भी उसी रबड़ जैसी चादर का ही हिस्सा हो।

चादर निरंतर खिंचती चली जा रही थी, और उसके खिंचते खिंचते अजय के जीवन ही हर घटना जगमग ज्योतिर्मय होने लगी और वो उस जगमग सी वीथी पर अबूझ से पग भरते हुए आगे बढ़ रहा था।

उसने यह भी महसूस किया कि अचानक से उसके जीवन की कई घटनाओं में आग लग गई हो और वो बड़ी तेजी से धूं धूं कर के जलने लगीं। वो भाग कर उनको जलने से बचाना चाह रहा था, लेकिन वो चादर थी कि उसका फैलना और खिंचना रुक ही नहीं रहा था!

अजय बस निःस्सहाय सा अपने ही अवचेतन में स्वयं को समाप्त होते महसूस कर रहा था। लेकिन वो कुछ नहीं कर पा रहा था। जैसे उसको लकवा मार गया हो। और उसको जब ऐसा लगने लगा कि उसकी सारी स्मृतियाँ जल कर भस्म हो जाएँगी, और यह उसके जीवन की चादर फट कर चीथड़े में परिवर्तित हो जाएगी, अचानक से सब रुक गया।

एक तेज श्वेत रौशनी का झमका हुआ, और अचानक से ही सब कुछ उल्टा होने लगा। जो चादर एक क्षण पहले तक फ़ैल और खिंच रही थी, अब वो बड़ी तेजी से हर दिशा से सिकुड़ने लगी। संकुचन का दबाव अत्यंत पीड़ादायक था। अजय वहाँ से निकल लेना चाहता था, लेकिन उसके पैर जैसे उस चादर पर जम गए हों! कुछ ही पलों में अजय का सारा जीवन, किसी बॉल-बिअरिंग के छोटे से छर्रे जितना सिकुड़ गया। आश्चर्यजनक था कि वो खुद अपने जीवन के ‘छर्रे’ को देख भी पा रहा था और उसका हिस्सा भी था!

और फिर अचानक से सब कुछ शून्य हो गया!



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(सपने को दर्शाना आवश्यक था शायद! यह पहली और आखिरी बार है कि कहानी के बीच में किसी चित्र का प्रयोग होगा। यह चित्र AI की मदद से बनाया गया है...)
Kaafi unique tha.... Par ye kya... Update itna Chhota??? 🥹 Sirf sapna? Ajay ko jagte hue thoda sa dikha dete...

Anyways... Aaj ye jaanane ko mila ki adarsh krishnika ka matlab black body hota h.... 😁😁

Basically... Ajay ko aisa lga jese use chaaro or se kheech jaa rha ho... Nd wo jaise black body me tha.. hr taraf darkness... Koi ujala nhi... Na ujala jaa sakta h na hi nikal sakta h... Aur wo apni marzi k khilaf khichta chala jaa rha tha... Mujhe chaadar ka thoda samjh ni aaya...

Example me chaadar ka use tha... Like chaadar par wo fel rha tha... Something like that... 😅 I tried my best to imagine it... I think aisa hi kuchh ho rha tha uske saath... Nd then suddenly ek raushni aayi... Sab kuchh reset hone lga...

Mujhe aisa bhi lg rha ki ajay k saath past me kuchh bohut memorable cheeze hui h??? Kuchh meethi meethi yaade?? Jinhe wo khona nhi chaahta?? Nd unka aag par lgna... Nd ajay ka unhe bachana?? To main definitely ye dekh paa rhi hu..
Interesting... Very interesting... Bas update chhota tha... Yahi shikayat h meri... 😁 Shayad sirf dream dikhaane k liye ye update tha..
Kaash thoda aur lamba hota... Anyways... Keep writing... 💯
 
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