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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; ...
 
Last edited:

avsji

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माया और कमल की शादी के डेट्स लगभग फिक्स हो गए हैं । यह बहुत बढ़िया डिसिजन है । जब लड़का लड़की शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार हों तो शुभ कार्य मे देर नही करनी चाहिए ।

मैं स्वयं भी यही मानता हूँ संजू भाई! :)
लीगली वयस्क लोगों पर अनावश्यक और बेसिरपैर के प्रतिबन्ध लगा कर सरकारें ऐसी स्थितियाँ पैदा करती हैं, जिनसे घर्षण होता है।
उद्दाहरण के रूप में, दिल्ली में मदिरा पीने की लीगल उम्र पच्चीस साल है।
मतलब कैसी चूतियापेदार बात है न? अट्ठारह में आप वयस्क हैं, अपनी सरकार चुन सकते हैं, लेकिन मदिरा पीने के लिए पच्चीस साल तक इंतज़ार करना पड़ेगा।
ऐसे बेवकूफ़ी वाले नियम बना कर सरकारें स्वयं चाहती हैं कि लोग वो नियम तोड़ें।

शादी से पूर्व माया और कमल ने एकांत मे कुछ रोमांटिक पल भी साथ गुजारे । यह भी एक अच्छा कदम था । इस से उन्हे एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने का मौका मिल गया ।
कमल के मां-बाप भी कोई कम रोमांटिक नही है । वैसे भी उनकी उम्र अब भी रोमांटिक होने की ही है । यह देखना वास्तव मे रोमांचित होगा जब दोनो बाप बेटे लगभग एक समय मे ही बाप बनेंगे ।
यह दर्शाता है कि प्यार इश्क मोहब्बत किसी उम्र का मोहताज नही होती ।

हाँ, यह बात आज के अपडेट्स में हैं :)

इधर कणिका मैडम का पता आखिरकार कट ही गया । वह प्रशांत के जीवन मे ग्रहण बनने से रह गई और निस्संदेह इसका कारण अजय ही था । कोई जानबूझकर अपने लिए गढ्ढा नही खोदता और कणिका मैडम की असलियत अजय से बेहतर कौन जान सकता था !
कणिका के माता पिता अपनी बेटी को डोली पर बिठाने चाहते थे लेकिन कहार ही भाग खड़े हुए । :horseride:

कहानी से vamps के जाने से बड़ी ख़ुशी मिलती है! हा हा हा!
कणिका का पत्ता साफ़ हो गया है।

वैसे हम इन्तजार कर रहे हैं रागिनी मैडम की । आखिर हम भी तो देखें , शादी से पूर्व उसके लक्षण कैसे थे ! :?:

देखते हैं, वो आती भी है या नहीं!
शायद आपने ध्यान न दिया हो, लेकिन अजय ने प्रजापति जी से कहा था कि वो उससे मिलना नहीं चाहता।

खुबसूरत अपडेट अमर भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।

बहुत बहुत धन्यवाद संजू भाई !
नए अपडेट्स आने वाले हैं। :)
 

avsji

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What an update... :applause:
Kitne unexpected turn of events the...
To ajay ghar laut aaya nd we got to see tai maa... Kiran ji... Dekh k achha lga ki kiran ji koi egoistic bad lady nhi h ... Wo ek sacchi maa ki tarah ajay k paas h...

किरण जी सोना हैं। इस कहानी का एक मजबूत स्तम्भ!

But ye kya... Ab ek aur kahani pdhni padegi kajal Suman k baare me jaanne k liye??? 😓😓
Mujhe lga ye alag se new story thi... Kya use bina padhe aage continue kar sakti hu? Wo wali fir kabhi padh lungi jab time milega to... Plz answer this for me. I'll wait... Before continuing...

पूरी तरह से अलग कहानी है। बस एक पुरानी कहानी का प्रोमोशन कर रहा था। :)
हा हा हा हा!

Aapki teacher's love me bhi ye tha... Aur isme bhi aapne wo touch de dia... Tai maa ka suddenly apna blouse side kar k ajay ko breastfeed karwana... 🥵 :hot: My god...

कई कहानियों में है ये बात।
मोहब्बत का सफर, मंगलसूत्र, कायाकल्प, श्राप...
कुछ बातें मेरी सिग्नेचर स्टाइल कह सकती हैं आप।

I don't know why but it turns me on somehow... 🥵🫣🫣

Depends.
मैं इसको ममता / वात्सल्य वाले context में लिखता हूँ।
शुरू में इरोटिक लग सकता है, लेकिन होता नहीं।

Aapne shayad galti se aayush likh dia ajay ki jagah... 🤔🤔 Ya shayad main kuch bhul to nhi rhi?? 🤔

सॉरी! टाइपिंग मिस्टेक।
पहले नायक का नाम आयुष सोचा था। बाद में अजय कर दिया।
आयुष का ताल्लुक़ उम्र से है, अजय का विषम परिस्थितियों से। इसलिए अजय नाम ही सही लगा।

Dekh k accha lga ki aap english words ko bhi sath me use karte jaa rhe ho... iss se kahani aur bhi relatable lgti h kyuki hum day to day life me na jaane kitne English words ka use karte h... Wo bhi bina dhyan diye...

धन्यवाद!

Har serial me jaise ek vamp hoti h wese hi yha bhi h... aur uska naam h... Kanika...

कणिका प्रशांत की वैम्प है, और रागिनी अजय की।

Suman ki family interesting lg rhi h... Hope wakai me wo acchi nikle... Update bohut sundar tha... Nd humesha ki tarah to the point...

Nd this line.... 🤣🤣🤣🤣

धन्यवाद !
 

avsji

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अपडेट 25


अजय के वापस आये हुए अब दस सप्ताह हो गए थे।

यह समय अजय के हिसाब से सही से गुजरा। सही से इसलिए क्योंकि अजय को अब लग रहा था कि उसने जो कुछ ठाना था, वो उनमें से अब तक बहुत कुछ हासिल कर चुका था। सबसे पहली बात यह थी कि वो अपने पुराने ‘नए’ जीवन में अब ठीक से रम गया था। उसके मन में अब एक ठहराव वाली भावना आ गई थी कि अब यही उसका जीवन है। वो ‘फिर से’ अपने पिछले तेरह साल जिएगा और उस दौरान वो कोशिश करेगा कि जो भी कुछ तब बिगड़ा था, अब न बिगड़ सके। और, यह भी कि उसके वापस आने से लोगों को कुछ लाभ भी मिल सके।

और इन सभी कार्यों के लिए सबसे आवश्यक था उसका अपना... स्वयं का जीवन बेहतर करना!

वो पहले भी एक अच्छा स्टूडेंट था, लेकिन अब वो अपनी पढ़ाई लिखाई के प्रति एक अलग ही जोश दिखाने लगा था। अब वो एक बेहतर स्टूडेंट बन गया था। ऐसा नहीं था कि बहुत प्रयास करने की आवश्यकता नहीं थी उसको - वो पहले से ही अपने विषयों के बारे में बहुत कुछ जानता था। लेकिन फिर भी, कमल के साथ कंबाइंड स्टडीज़ करने के कारण उसका ज्ञान और भी बेहतर हो गया था। दोनों अपनी टेक्स्ट बुक्स के साथ साथ बाहर की किताबों को भी पढ़ते थे। लिहाज़ा, टेस्ट इत्यादि में अजय के नंबर अच्छे रहते। अन्य लोगों के लिए आश्चर्यजनक रूप से वो और रूचि अब टक्कर के हो गए थे! गणित, फिजिक्स, और कंप्यूटर में अजय उससे आगे रहता, तो अंग्रेजी और केमिस्ट्री में रूचि। दोनों ही अब टॉप टू रैंक्स में रहते।

शशि मैम के सुझाव को उसने दिल से लिया और ठीक से जानने की कोशिश करी कि हॉगवर्ट्स का किन किन विदेशी विश्व-विद्यालयों के साथ अच्छा सम्बन्ध था। वो सब जान कर उसको बहुत एक्साइटमेंट नहीं हुआ, क्योंकि लाइब्रेरी की मैगज़ीनों में पढ़ कर लगा कि हाँलाकि वो यूनिवर्सिटीज़ अच्छी हैं, लेकिन फिर भी बेहतरीन नहीं हैं। कुछेक यूरोप के उन देशों में थीं, जहाँ सामान्य भाषा अंग्रेजी नहीं थी। आस पड़ोस में एक दो लोगों की संतानें अमेरिका में पढ़ने गई थीं, लेकिन हॉगवर्ट्स का किसी उच्च-स्तरीय अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ के साथ ताल्लुक नहीं था। इसलिए अजय ने ठाना कि वो अमेरिका या कनाडा में से किसी टॉप युनिवर्सिटी में पढ़ेगा। और वो भी स्कालरशिप के साथ! उसने जब यह बात शशि मैम को बताई, तो वो बहुत खुश हुईं। और उन्होंने वायदा किया कि उनसे जो भी मदद बन पड़ेगी, वो करेंगी।

रूचि अजय के मुकाबले बहुत समृद्ध परिवार से नहीं थी। लिहाज़ा वो उन्हीं यूनिवर्सिटीज़ में जाना चाहती थी जहाँ हॉगवर्ट्स उसकी मदद कर सके और जहाँ से पूरी स्कॉलरशिप मिल सके। यह बात उसको पता थी कि अब अजय के साथ उसकी ‘सीधी’ टक्कर नहीं है। लिहाज़ा रूचि और अजय की यह प्रतिस्पर्धा वैमनस्य वाली नहीं रह गई थी। हाँलाकि रूचि को शुरू शुरू में अजय को लेकर चिंता हुई थी, लेकिन अजय ने ही पहल कर के उसकी चिंता को दूर कर दिया था। पहले तो दोनों ही एक दूसरे के ‘रडार’ में नहीं थे। रूचि क्लास की मेधावी छात्रा थी। अजय नहीं। इसलिए अजय ने ही पहल कर के उससे बात करने की ठानी।

“रूचि, हाय!” एक दिन इंटरवेल के समय अजय उसके सामने आ कर बोला।

रूचि अपनी एक अन्य सहेली के साथ खाना खा रही थी। उसने एक्सपेक्ट किया कि अजय उसको भी “हाय” करेगा। लेकिन अजय ने उसको पूरी तरह से इग्नोर कर दिया। इस बात से शायद वो शायद बुरा मान गई और मुँह बना कर वहाँ से चली गई। वैसे वो सहेली भी मतलबी थी - रूचि उसको होमवर्क की नक़ल करवाती थी और एग्जाम में नक़ल करने को देती थी। इसलिए उसकी मज़े में चल रही थी। यह बात भी रूचि को समझाना ज़रूरी था कि सही तरीक़े के मित्र बनाए।

“हाय,” उसने थोड़े समय तक असमंजस की स्थिति में रहते हुए, एक अनिश्चित सा उत्तर दिया।

“मैं तुम्हारे साथ खाना खा सकता हूँ?”

“इट्स अ फ़्री कंट्री! और... वैसे भी तुमने अनीता को भगा दिया...”

रूचि अभी भी समझ नहीं पा रही थी कि वो अजय से क्या कहे।

“वो भाग गई, मैंने भगाया नहीं,” अजय उसके बगल बैठते हुए बोला।

“यू वर नॉट एनफ कॉर्टियस टू हर,”

“मैं ऐसा ही हूँ... व्हाट यू सी, इस व्हाट यू गेट,”

“आज मेरे साथ बैठने की क्या ज़रुरत आ पड़ी?” अंततः रूचि ने थोड़ा संयत होते हुए पूछा।

“कोई ज़रुरत नहीं आई।” अजय ने मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन मैंने सोचा कि यूँ अलूफ अलूफ नहीं रहना चाहिए मुझे... तुम टॉप स्टूडेंट हो! तो तुम्हारे साथ रह कर थोड़ा सुधार कर लेता हूँ अपने में!”

“हा हा... सभी टीचर्स तुमसे इम्प्रेस्ड हैं! क्या सुधार करना है अब?”

चाहे कोई कुछ कह ले - रूचि और अजय में इस समय जो अंतर था उसको ही लोग जेनेरेशन गैप पहते हैं। वो अभी भी एक किशोरवय लड़की थी, और अजय मन से एक तीस वर्षीय वयस्क। ऐसे में वो रूचि से क्या बात कहे, या क्या बात करे, उसको अभी भी ठीक से समझ में नहीं आ रहा था। फिर उसने सोचा कि वो बिना लाग-लपेट के, सीधी तरीके से बात करेगा। ईमानदारी एक अच्छी चीज़ होती है।

“रूचि, मैंने एक बात जानी है... सभी लोग दिखावों के फ़ेर में पड़ जाते हैं, और कुछ नहीं,” अजय एक गहरी साँस लेता हुआ बोला, “पहले मैं चुप रहता था, तो कोई जानता ही नहीं था... एक दिन थोड़ा सा कुछ बोल क्या दिया, सभी ने उस बात का बतंगड़ बना दिया।”

रूचि ने पहली बार अजय को इंटरेस्ट से देखा।

“लेकिन आज तक मेरे सबसे अच्छे दोस्त के अलावा किसी और ने एक बार भी यह बात जानने की कोशिश नहीं करी कि मैं क्लास में यूँ चुप चाप क्यों रहता हूँ... था!”

“क्यों रहते थे?” रूचि ने थोड़ा सतर्क होते हुए और सुरक्षात्मक तरीक़े से पूछा।

अजय ने एक साँस भरी। उसको उम्मीद नहीं थी कि वो रूचि को इस दुविधा में डाल देगा।

“तीन साल पहले... मेरी माँ और मेरे ताऊ जी की डेथ हो गई थी एक एक्सीडेंट में!”

यह सुनते ही रूचि के चेहरे का भाव बदल गया - उसके चेहरे पर पीड़ा और सहानुभूति वाले भाव आ गए।

वो कह रहा था, “... वो शॉक ऐसा था कि मुझे समझ ही नहीं आया कि मैं उससे डील कैसे करूँ! ... लेकिन कुछ दिनों पहले समझ में आया कि पूरी उम्र भर मैं उसी शॉक में नहीं बैठा रह सकता... उससे उबरना ज़रूरी है। उससे बाहर आना ज़रूरी है। ... बस! और कुछ भी नहीं...”

“ओह, आई ऍम सो सॉरी अजय! मुझे पता नहीं था।”

“तुमको क्यों पता होगा, रूचि? तुम तो इलेवेंथ में ही आई हो यहाँ...” वो मुस्कुराते हुए बोला, “लेकिन मैं वो सब बातें डिसकस करने नहीं आया हूँ।”

उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “हाँ, अब क्यों आए हो! पिछले पूरे साल तुमने एक बार भी मुझसे बात नहीं करी... तो अभी अचानक से...? क्यों?”

“रूचि, मैं भी चाहता हूँ कि तुम्हारी ही तरह मैं भी टॉप स्टूडेंट्स में आ सकूँ... कुछ कर सकूँ अपनी लाइफ में! इसलिए तुमसे सीखना चाहता हूँ,”

“ओह अजय,” वो अचानक से ही थोड़ा लज्जित सी हो गई - जब आपको अपनी पूर्व-कल्पित धारणाओं के बारे में मालूम होता है, तो लज्जा होना स्वाभाविक ही है, “आई ऍम सॉरी! मुझे लगता था कि तुम थोड़ा अपने में ही रहने वाले लड़के हो,” वो थोड़ा सकुचाई, “थोड़े इंट्रोवर्ट... थोड़े... उम... यू नो, फियरसम...”

“हा हा हा... सभी को यही लगता है।” अजय उसकी ईमानदारी से प्रभावित हो गया, “आई थिंक, आई नीड टू चेंज दैट,”

“व्हाट इस फॉर लंच?” रूचि का स्वर अचानक से दोस्ताना हो गया, और उसने बात बदल दी।

“आलू पराठे, और दही और,” अजय ने अपनी टिफ़िन में देखते हुए कहा, “ओह, नीम्बू का अचार!”

“वॉव! माय फेवरिट्स!”

“सच में?” अजय ने अपनी टिफ़िन रूचि की तरफ़ बढ़ा दी, “यू हैव इट देन,”

“नहीं अजय! मैं तुम्हारा खाना कैसे खा लूँ?”

“अरे यार! तुम भी न! खा लो - तभी तो दोस्ती होगी!”

रूचि भी इस बात पर मुस्कुरा दी।

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अपडेट 26


दोस्ती शुरू हुई, तो दोनों ने उसको ढंग से निभाना भी शुरू कर दिया।

रूचि ने मान लिया था कि अजय के विषय में उसको हरा पाना मुश्किल है, लिहाज़ा उसने उससे प्रतिस्पर्द्धा करने के बजाय उससे सीखना शुरू कर दिया। अजय भी पूरे खुले हाथ उसको गणित और कंप्यूटर विज्ञान की गूढ़ बातें बताता। लोगों में असुरक्षा की भावना बड़ी बलवती होती है। लेकिन अजय में वैसी कोई भावना नहीं थी। उसकी इस खासियत से रूचि बड़ी प्रभावित हुई थी।

अजय से मित्रता होने के कारण वो कमल की भी अच्छी दोस्त बन गई थी। इसलिए वो अब यदा-कदा दोनों के घर भी जाने लगी थी। पिछले कुछ दिनों में तीनों ने मिल कर ‘कंबाइंड स्टडीज़’ करनी शुरू कर दी थी। उसी के दौरान उसको पता चला कि अजय की दीदी की शादी कमल के साथ पक्की हुई है। यह एक अनोखी बात थी, जो देखने सुनने में नहीं आती थी। उसको समझ में नहीं आया कि इतनी कम उम्र में कमल को शादी करने की क्यों सूझ रही थी। लेकिन जब उसने माया और कमल को साथ में प्रेम से बातें करते देखा, तो उसकी समझ में आ गया कि प्रेम उम्र का मोहताज नहीं होता। जब सच्चा प्रेम मिल जाए, उसको ईश्वर का प्रसाद समझ कर सर आँखों पर लगा लेना चाहिए।

माया को ले कर वो अक्सर मज़ाक करती कि वो माया को दीदी कहे या भाभी! यह सवाल इतना मुश्किल था जिसका उत्तर दे पाना न तो अजय के लिए और न ही कमल के लिए संभव था। लिहाज़ा उसका उत्तर उसके स्वयं के विवेक पर छोड़ दिया गया।

जैसा कि किशोरवय जीवन में होता है - कौशल, सौंदर्य, मित्रता इत्यादि के कारण विपरीत लिंग के दो सदस्यों में आकर्षण होने ही लगता है। लिहाज़ा रूचि उससे प्रभावित हुए बिना न रह सकी। यह बीत गए भूत-काल से एक बड़ा परिवर्तन था। पहले रूचि उसको घास तक नहीं डालती थी। ऐसा नहीं था कि वो पहले उससे किसी तरह की नफरत करती थी - बस, दोनों के बीच कोई प्रतिच्छेदन (इंटरसेक्शन) नहीं था।

लेकिन अब बातें बदल गईं थीं।

सबसे पहली बात यह थी कि उसको अजय से सीखने को बहुत कुछ मिलता था। अजय किसी भी तरह से इनसेक्योर नहीं था। वो उसको सब कुछ बताता और समझाता था। ऊपर से उसका परिपक्व सा व्यवहार! बिल्कुल पुरुषों जैसा! एक ठहराव था अजय की अदा में, जिससे रूचि उसकी तरफ अनजाने ही आकर्षित होती चली गई। वो कोई न कोई अवसर या बहाना निकाल कर अजय के पास चली आती उससे बातें करने और उसके साथ समय बिताने।

रूचि सुन्दर भी थी और शारीरिक रूप से आकर्षक भी। हाँलाकि उसके स्कूली या फिर घर के कपड़ों से पता नहीं चलता था, लेकिन उसका शरीर समुचित और सौम्य रूप से कटाव लिए हुए था। अन्य पढ़ाकू लड़के लड़कियों की तरह फिलहाल उसको चश्मा नहीं लगा था। इसलिए उसके चेहरे का सौंदर्य भी साफ़ दिखता था। वो एक छरहरे शरीर वाली लड़की थी। उसके शरीर के हिसाब से उसके स्तन भी उन्नत थे।

ऐसा नहीं था कि इनकी बढ़ती हुई दोस्ती कॉलेज में किसी ने न देखी हो - सभी ने देखी थी। अजय भी अपनी किशोरवय उम्र के हिसाब से अच्छा दिखता था।

अजय कोई बहुत प्रभावशाली शरीर का मालिक नहीं था, लेकिन सामान्य कद-काठी का एक स्वस्थ नवयुवक था। जेल में रहते हुए उसने पाया था कि व्यायाम करने से उस विषम परिस्थिति में भी उसकी सकारात्मक सोच बनी रहती थी। इसलिए वो अब पूरे जोश से व्यायाम करता था। अपने साथ वो अशोक जी और किरण जी से भी व्यायाम करवाता था। माया दीदी शाम को अक्सर ही अपनी होने वाली ससुराल चली जाती थीं, इसलिए वो उसकी इस प्रताड़ना से बच जाती थीं। लेकिन उसके कमल को भी व्यायाम करने को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया था। ख़ैर, कुल जमा, वो अपनी सामान्य कद-काठी के साथ भी मज़बूत लगता था। ऐसे में जब भी रूचि उसके बगल आ कर खड़ी हो जाती, तो दोनों बहुत सुन्दर लगते। उनके दोस्त और टीचर्स सभी उनको साथ देख कर समझ रहे थे कि कॉलेज में कम से कम एक ढंग का कपल बन रहा था।

घर में यह बात अनदेखी नहीं रह गई। आज तक केवल एक ही लड़की अजय से मिलने आई थी। जाहिर सी बात है कि उसके माँ, पापा, और दीदी यह बात नोटिस ज़रूर करेंगे। सभी ने ही रूचि में बहुत रूचि ले कर उससे बातचीत करी थी। और वो सभी को पसंद भी आई थी। माया को वो बहुत पसंद आई, क्योंकि वो भी चाहती थी कि उसका वीरन भी प्रेम जैसी अद्भुत वस्तु का आस्वादन कर सके। माया ने यह बात अजय और कमल से कही भी। कमल ने भी इस बात की संतुति करी कि रूचि को अजय में बहुत दिलचस्पी है - शायद प्रेमाकर्षण भी।

अजय ने इन बातों को नज़रअंदाज़ कर रखा था। उसको रूचि अच्छी लगती थी, लेकिन उसके मन में आकर्षण वाली भावना नहीं थी। और हो भी तो कैसे? पहला तो रागिनी ने ऐसा जबरदस्त चूतिया काटा था अजय का, कि अब वो किसी से प्रेम सम्बन्ध नहीं रखना चाहता था। ऊपर से अजय के लिए रूचि छोटी थी। वो स्वयं तीस साल का था। अपने से बारह साल छोटी लड़की की तरफ़ वो कैसे आकर्षित हो जाए? यह उसके लिए नैतिक नहीं था।


**


प्रशांत भैया ने पिछले ही सप्ताह पैट्रिशिया ‘भाभी’ से घर में सभी से ‘मुलाक़ात’ करवाई... मुलाक़ात मतलब, फ़ोन पर सभी से बात करवाई। शिकागो से दिल्ली यूँ नहीं ला सकता था न वो उसको।

भारत में लोगों को स्वदेशियों और विदेशियों के व्यवहार और संस्कार को ले कर अनेकों ग़लतफ़हमियाँ हैं। अधिकतर स्वदेशियों के लिए विदेशी दुश्चरित्र, असभ्य, और असंस्कारी होते हैं। जबकि स्वदेशी चरित्रवान, सभ्य, और संस्कारी! लेकिन इस पूर्व धारणा से अलग, जब ध्यान दिया जाता है तो पाया जाता है कि विदेशियों में अपने देश, समाज, और वातावरण को ले कर जिस तरह की संजीदगी है, उसके सामने स्वदेशी लोग जंगली या फिर कबीलाई ही कहलाएँगे। अंग्रेज़ी में जिसको सिविक सेन्स (नागरिक भावना) कहते हैं, वो कूट कूट कर भरी हुई है विदेशियों में। उनमें अपने देश को लेकर जो जज़्बात हैं, वो खोखले और दिखावटी नहीं हैं। इसलिए उनके देश साफ़-सुथरे, अनुशासित, और सुचारु रूप से संचालित होते हैं। भ्रष्टाचार कहाँ नहीं होता - लेकिन वो बाहरी देशों के लोगों के आम जीवन की हर बात में घुसा हुआ नहीं रहता। लोग अपने काम की इज़्ज़त करते हैं और बड़ी ईमानदारी से काम करते हैं - फिर वो चाहे बढ़ई का काम हो, या फ़िर साहबी का! शायद इसीलिए विभिन्न कार्यों में वेतन में बड़ी भिन्नता नहीं होती।

हाँ, वहाँ लड़के लड़कियाँ सेक्स और प्रेम-संबंधों को ले कर खुले विचार रखते हैं, लेकिन वो इसलिए क्योंकि उनके यहाँ विवाह माँ बाप नहीं तय करते। शायद यही कारण है कि स्वदेशियों को वो दुश्चरित्र लगते हैं। शादी विवाह की ज़िम्मेदारी विदेशियों में खुद की होती है - और होनी भी चाहिए! लगभग हर जोड़ा अपना परिवार अपने बलबूते पर बनाता है - उसमें वो अपने माँ बाप से ‘बेगारी’ नहीं करवाते। बच्चों को छुटपन से ही सही मूल्य सिखाए जाते हैं। आत्मविश्वास बड़ा होता है उनमें। उनके बच्चे अपने पाँवों पर बहुत जल्दी खड़े हो जाते हैं। यहाँ के अधिकतर ‘बच्चों’ की तरह ताउम्र अपने माँ बाप पर आश्रित नहीं रहते। इसलिए उचित पारिवारिक मूल्य भी उनमें होते हैं। अमूमन परिवारों के अंदर एक दूसरे के प्रति जलन और दुर्भाव नहीं रहता। सब अपने अपने कार्य में संलग्न रहते और अपने जीवन में मस्त रहते हैं। कोई किसी अन्य के साथ होड़ या प्रतिस्पर्धा में नहीं होता। इसलिए किसी से ऊँचा - नीचा होने का सवाल नहीं होता। क्रिसमस और इसी तरह के बड़े अवसरों पर पूरा कुनबा एक जगह इकठ्ठा हो कर आनंद से समय बिताता है।

तो अगर एक बार हम अपने पूर्वाग्रहों को छोड़ दें, तो समझ में आ जाता है कि आम तौर पर विदेशी एक अच्छा इंसान होता है।

पैट्रिशिया से बातें कर के यह बात सभी को समझ में आ गई।

पैट्रिशिया मृदुल भाव वाली, लेकिन दृढ़ चरित्र लड़की थी। अच्छी पढ़ी-लिखी और एक अच्छे परिवार से थी। वो धार्मिक भी थी - अपने साप्ताहिक काम के साथ साथ वो अपने धर्म और उससे सम्बंधित कार्यों में वो व्यस्त रहती थी। स्वेच्छा से वो अनेकों सामाजिक कार्यों में श्रम-दान और सहयोग करती थी। अच्छे संग का प्रभाव भी अच्छा होता है। उसकी देखा देखी प्रशांत ने भी यह सब शुरू कर दिया था। जब वो कणिका के साथ था, तब उसका सप्ताहांत फालतू के कार्यों, जैसे देर तक सोना, टीवी या फिल्म देखना, बाहर होटलों में खाना, बेकार की शॉपिंग करने इत्यादि में ही व्यव हो जाता था। जब वो सोमवार को उठता, तब उसको ताज़गी के बजाय थकावट महसूस होती। लेकिन पैट्रिशिया की संगत में आ कर अब वो अधिक अनुशासित हो गया था। कुछ दिनों पहले उसने निकट के एक मंदिर में जा कर श्रमदान भी करना शुरू कर दिया था। वो भी उसके साथ आती। उसके अंदर ये सभी परिवर्तन पैट्रिशिया के कारण ही आये थे और इस बात से किरण जी भी उससे प्रभावित हुए बिना न रह सकीं।

लेकिन अशोक जी को वो किरण जी की अपेक्षा अधिक पसंद आई। शायद इसलिए, क्योंकि उन्होंने किरण जी की अपेक्षा अधिक दुनिया देखी थी।

शायद किरण जी उसकी वर्जिनिटी को ले कर हतोत्साहित हो गई हों! तो क्या फ़र्क़ पड़ता है कि उनका खुद का बेटा वर्जिन नहीं था और उसने पैट्रिशिया और कणिका दोनों के साथ सेक्स किया हुआ था। या फिर शायद इस बात से कि उसको ‘भारतीय’ खाना पकाना नहीं आता। तो क्या फ़र्क़ पड़ता है कि भारतीय खाने जैसा कुछ भी नहीं होता। जैसे भारत में पग पग पर संस्कृति बदल जाती है, वैसे ही भोजन भी। या फिर शायद इस बात से, कि विवाह के बाद उनका बेटा वहीं, अमेरिका का हो कर रह जाएगा! हाँ, शायद यही बात हो! लेकिन संपन्न परिवारों के लिए सात समुद्र पार की यात्रा कर पाना कोई कठिन काम नहीं है। संसाधन उपलब्ध हैं सभी के पास। वो दोनों भारत आ सकते थे, और यहाँ से सभी अमेरिका भी जा सकते थे! फिर क्या चिंता?

माया और अजय अपनी होने वाली भाभी से मिल कर बहुत प्रसन्न हुए। माया को उसकी बातें समझने में समय लग रहा था और आधी से अधिक बातें वो समझ भी नहीं पा रही थी। लेकिन अजय ही अनुवाद कर के उसको सब समझा रहा था। पैट्रिशिया ने माया को उसकी होने वाली सगाई के लिए बहुत बधाईयाँ भी दीं। बात ख़तम होते होते उसने अजय को ‘स्पेशल’ थैंक यू कहा।

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अपडेट 27


एक शनिवार को अशोक जी ने अजय से कहा,

“बेटे,”

“जी पापा?”

“उस दिन तुमको मन कर रहा था, लेकिन आज मेरा मन हो रहा है कि हम दोनों बाप बेटा बैठ कर साथ में स्कॉच पियें...”

“आई वुड लव इट पापा,”

“यू मेक इट...” उन्होंने सुझाया।

“ग्लेनफ़िडिक?”

अशोक जी ने हाँ में सर हिला कर कहा, “यस... एटीन ऑर ट्वेंटी वन, यू डिसाइड...”

“ओके पापा!”

“और, जैसा मैंने तुम्हारा पेग बनाया था लास्ट टाइम, वैसा ही बनाना अपने लिए,” उन्होंने मुस्कुराते हुए उसको हिदायद दी।

“यस सर,”

कह कर अजय दोनों के लिए ड्रिंक्स बनाने लगा। कुछ देर में वो एक ट्रे में दोनों के लिए स्कॉच के ग्लास ले आया। एक अशोक जी को दिया और दूसरा स्वयं ले कर उनके सामने बैठ गया।

“चियर्स बेटे,”

“चियर्स पापा!”

इन दस हफ़्तों में पापा के साथ उसके सम्बन्ध बहुत अच्छे बन गए थे। दोनों साथ में बहुत सारे काम करते - बातें, कसरतें, इन्वेस्टमेंट और बिज़नेस की बातें, इत्यादि!

दो चुस्की लगा कर अशोक जी ने कहा,

“अब बताओ बेटे, क्या बात है?”

“बात पापा?” अजय ने उनकी बात न समझते हुए कहा।

उन्होंने एक गहरी साँस भरी, “बेटे, पिछले दो ढाई महीनों से देख रहा हूँ कि तुम्हारे अंदर बहुत से चेंजेस आ गए हैं। नो, आई ऍम नॉट कम्प्लेनिंग! तुम्हारे अंदर सारे चेंजेस बहुत ही पॉजिटिव हैं... लेकिन चेंजेस हैं।”

“पापा...”

“बेटे, झूठ न बोलना! ... तुम मुझसे झूठ नहीं कहते, सो डोंट स्टार्ट! लेकिन छुपाना भी कुछ नहीं,”

“लेकिन पापा, आपको क्यों...”

“क्यों लगता है कि तू बदल रहा है?” उन्होंने पूछा।

अजय ने नर्वस हो कर ‘हाँ’ में सर हिलाया।

वो वात्सल्य भाव से मुस्कुराए, “बाप हूँ तेरा! ये सेन्स केवल माँओं में ही नहीं होता... बाप में भी होता है।” फिर एक गहरी सांस ले कर आगे बोले, “मुझे आज भी याद है... तूने मुझे हीरक पटेल से कोई भी डील न करने को कहा था।”

अजय नर्वस होते हुए कसमसाया।

“आज मिला था वो।” अशोक जी दो क्षण रुक कर बोले, “तू सही कह रहा था... शार्क है वो। ऊपर से मीठी मीठी बातें कर रहा था, लेकिन उसकी आँखों में लालच दिखता है।”

“कहाँ मिला वो आपको पापा?”

“अशोक होटल में,” - अशोक होटल दिल्ली का एक पाँच सितारा लक्ज़री होटल है - अशोक जी बोले, “एक समिट था वहाँ,”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“वो सब ठीक है... लेकिन तुझे उसके बारे में पता कैसे चला? वो तो बस तीन दिन पहले ही इस समिट के लिए आया है कीनिया से इंडिया... उसके पहले तीन साल पहले ही उसकी इण्डिया ट्रिप लगी थी,”

अजय चुप रहा।

“केवल यही बात नहीं है... तू माया से जिस तरह बातें करता है... उसके लिए जो पहला प्रोपोज़ल आया था तूने उसको जैसे मना किया, उसकी शादी कमल से तय करवाई... और अब प्रशांत के लिए पैट्रिशिया...” वो थोड़ा रुके, “बात क्या है बेटे? अपने बाप से छुपाएगा अब?”

“नहीं पापा,” अजय ने एक गहरी साँस भरी और एक ही बार में पूरा पेग गटक गया, “... मैं आपको सब कुछ बताऊँ, उसके लिए मुझे एक और पेग चाहिए... स्ट्रांगर!”

अशोक जी को अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन आँखों के इशारे से उन्होंने उसको दूसरे पेग की अनुमति दे दी।

कोई पाँच मिनट दोनों मौन रहे। वो अपना पेग ले कर वापस आया और अपने सोफ़े पर बैठा।

एक सिप ले कर बोला, “पापा, पता नहीं आप मेरी बातों का कितना यकीन करेंगे... इवन आई डोंट फुल्ली ट्रस्ट एंड बिलीव इट माइसेल्फ...”

“ट्राई मी बेटे,”

“पापा, मैं फ़्यूचर से आया हूँ,”

“व्हाट?” अशोक जी के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे उनको लगा हो कि उनका बेटा उनको मूर्ख बना रहा है।

“पापा पहले सुन तो लीजिए,”

“हाँ बोलो, बट दिस इस सो हिलेरियस...”

अजय ने उनकी बात नज़रअंदाज़ करी और फिर एक गहरी साँस ले कर उनको मुंबई पुणे द्रुतमार्ग पर हुई घटना से उल्टे क्रम में सभी बातें बताना शुरू करीं। प्रजापति जी के साथ हुई घटना, रागिनी नाम की लड़की से उसका ब्याह, झूठे केस, उससे सम्बन्ध विच्छेद, संपत्ति का बिकना, ग़रीबी के दिन, और फिर जेल में बिताये तीन साल, उसके पश्चात गरिमामय जीवन जीने के लिए रोज़ रोज़ जूझना...

“एक मिनट,” अशोक जी बोले, “मुंबई पुणे एक्सप्रेसवे जैसा कुछ नहीं है,”

“आई नो! अभी नहीं है, लेकिन पाँच छः साल में हो जाएगा पापा,”

नर्वस होने की बारी अब अशोक जी की थी।

“जब ये सब हो रहा था, तब मैं कहाँ था?” उन्होंने सर्द आवाज़ में पूछा।

अजय की आँखों से आँसू आ गए, “आप नहीं थे पापा...” उसकी आवाज़ भर आई, “आप नहीं थे।”

“कहाँ था मैं बेटे?” वो समझ तो गए, लेकिन फिर भी जानना चाहते थे।

“इस हीरक पटेल ने आपको आपके बिज़नेस में भारी नुक़सान पहुँचाया था पापा... सामने तो आपका दोस्त बना रहा, लेकिन समझिये कि उसने आपकी पीठ में छूरा घोंपा है। आपके आधे बिज़नेस उसका कब्ज़ा हो गया था। आपके ऊपर सारे उधार छोड़ दिए, और सारा मलाई माल ले कर चल दिया।”

अशोक जी अभी भी उत्तर की प्रतीक्षा में थे।

अब अजय को वो बातें बतानी पड़ीं, जो वो बताना नहीं चाहता था, “उसके कारण आपको बहुत धक्का लगा पापा... यू हैड हार्ट अटैक...”

वो बात पूरी नहीं कर पाया।

तीन चार मिनट दोनों मौन रहे। फिर अशोक जी ही बोले,

“कब हुआ?” उनकी आवाज़ भी बैठ गई थी।

उनके बेटे और भाभी के साथ इतना कुछ हो गया, जान कर वो भी दुःखी हो गए थे।

“जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था,” उसने गहरी साँस ली, “वैसे शायद कुछ न होता, लेकिन आपको डॉक्टर की लापरवाही के कारण गलत मेडिकेशन दे दिया गया... उसके कारण आपको एलर्जिक रिएक्शन हो गया।”

“किस ऑर्गन में इंफेक्शन हुआ?”

“रेस्पिरेटरी... मुझे ठीक से नहीं मालूम, लेकिन आपको और माँ को फिर से पूरा हेल्थ चेक करवाना चाहिए। स्पेसिफ़िक फॉर एलर्जीस...”

“हम्म...”

“वानप्रस्थ अस्पताल में कोई अजिंक्य देशपाण्डे डॉक्टर आएगा,”

“अभी नहीं आया है?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“लेकिन बेटे, अगर मुझे मरना लिखा है, तो मर तो जाऊँगा न?”

“आई डोंट बिलीव इट पापा,” अजय ने दृढ़ता से कहा, “अगर चीज़ें बदल ही न सकतीं, तो प्रजापति जी मुझे वापस भेजते ही क्यों? उससे क्या हासिल होता?”

अशोक जी ने समझते हुए सर हिलाया।

“और देखिए न, माया दीदी की लाइफ भी तो बदल रही है! उस मुकेश के साथ उनकी शादी नहीं हो रही है न अब,”

“तू उस बात पर भी सही था बेटे,” अशोक जी बोले, “मैंने पता लगवाया था। तेरे चतुर्वेदी अंकल ने पता किया था कि मुकेश और उसका परिवार ठीक नहीं है।”

“आपने यह बात मुझे नहीं बताई,” इतनी देर में अजय पहली बार मुस्कुराया।

“कोई ज़रुरत ही नहीं थी बेटे,” अशोक जी भी मुस्कुराए, “कमल और माया दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं... यह तो मैं भी बता सकता हूँ! राणा साहब के परिवार में अपनी बिटिया जा रही है, यही दिखा रहा है कि ईश्वर की हम पर बड़ी दया है।”

“जी पापा, मेरी पिछली लाइफ में कमल ने कभी बताया ही नहीं कि उसको दीदी इतनी पसंद हैं!”

“तुझे भी तो पसंद नहीं थी,”

“हाँ पापा, नहीं थी। लेकिन मैंने देखा कि कैसे वो बेचारी उस मुकेश से छुप कर हमसे मिलने आती थीं। दीदी ने हमारा साथ कभी नहीं छोड़ा। कमल ने हमारा साथ नहीं छोड़ा। राणा अंकल और आंटी जी ने तो हमको अपने घर आ कर रहने को कहा भी था... लेकिन आपका बेटा ऐसा नहीं है कि वो अपने बूते पर अपनी माँ को दो जून का खाना न खिला सके।”

कहते कहते अजय को फिर से अपने संघर्ष की बातें याद आ गईं। आँसुओं की बड़ी बड़ी बूँदें उसकी आँखों से टपक पड़ीं।

“मेरा बेटा,”

“हाँ पापा, आपका बेटा हूँ! आपकी सारी क्वालिटीज़ हैं मेरे अंदर,” उसने मुस्कुराने की कोशिश करी।

फिर जैसे उसको कुछ याद आया हो, “मनोहर भैया भी साथ थे! वफ़ादारी के चक्कर में छोटी मोटी नौकरी कर रहे थे वो जेल के पास,”

“ओह बेटे,”

“पापा,” अजय ने जैसे उनको समझाने की गरज़ से कहा, “आप ऐसे न सोचिए! वो सब नहीं होगा अब। ... हमारे सामने दूसरी मुश्किलें आएँगी, लेकिन वो मुश्किलें नहीं...”

दोनों फिर से कुछ देर मौन हो गए।

“माँ को पता है ये सब?” अंततः अशोक जी ने ही चुप्पी तोड़ी।

“नहीं। मैंने उनको एक चिट्ठी में लिख कर कुछ इंस्ट्रक्शंस दिये थे, आपके हास्पिटलाइज़ेशन को ले कर... लेकिन यहाँ डॉक्टर या हॉस्पिटल नहीं, उस एलर्जी को अवॉयड करना है... इस पटेल को अवॉयड करना है,”

“ठीक है, हम चारों इसी वीक फुल सीरियस चेकअप करवाते हैं।”

“ठीक है पापा,”

“ओह बेटे, इतना बड़ा बोझ लिए घूम रहे हो इतने दिनों से!”

“कोई बोझ नहीं है पापा। फॅमिली बोझ नहीं होती... आप सभी को खुश देखता हूँ, तो इट आल फील्स वर्थ इट,”

“हाँ बेटे, ख़ुशियाँ तो बहुत हैं! ... सब तेरे कारण ही हो रहा है!”

“क्या पापा! हा हा हा!”

“अच्छा बेटे एक बात बता, तब माया की शादी कब हुई थी?”

“इसी साल... नवम्बर में पापा!”

“तो क्या कहते हो? इस बार इन दोनों के लिए वेट करें? कमल अभी भी पढ़ रहा है न,”

“पर्सनली, मैं तो चाहूँगा कि दोनों की शादी जल्दी ही हो जाए... अगर शुभ मुहूर्त नवम्बर में हैं तो नवम्बर में ही। शादी तय हो गई है, दोनों एडल्ट भी हैं, तो फालतू के कारणों से शादी जैसी इम्पोर्टेन्ट चीज़ रुकनी नहीं चाहिए।”

“हम्म,”

“लेकिन वो आप और माँ बताइए... और दीदी,”

“एक्चुअली, कल दिन में ऑफिस में, राणा साहब का कॉल आया था। उन्होंने अपनी इच्छा बताई है कि दोनों को क्यों न इसी नवंबर में ब्याह दें,”

“बहुत बढ़िया है फिर तो!” अजय बोला, “आपने माँ से बात करी?”

“अभी नहीं... लेकिन आज पूछता हूँ भाभी से,”

“परफेक्ट!”

“और प्रशांत का क्या करें?”

“मैं तो कहता हूँ कि दोनों की साथ ही में शादी करवा देते हैं पापा, खर्चा बचेगा!”

“हा हा हा हा!” इस बात पर आज की शाम अशोक जी पहली बार दिल खोल कर हँसने लगे।

दिल पर से एक भार हट गया, ऐसा महसूस हो रहा था उनको।

“पापा,” अजय ने शरारत से पूछा, “एक और पेग?”

“हा हा हा... मेरी आड़ में खुद पीना चाहता है बदमाश!” वो आनंद से बोले, “चल ठीक है! एक और!”

“चियर्स पापा,”

“चियर्स बेटे,”

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parkas

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अजय के वापस आये हुए अब दस सप्ताह हो गए थे।

यह समय अजय के हिसाब से सही से गुजरा। सही से इसलिए क्योंकि अजय को अब लग रहा था कि उसने जो कुछ ठाना था, वो उनमें से अब तक बहुत कुछ हासिल कर चुका था। सबसे पहली बात यह थी कि वो अपने पुराने ‘नए’ जीवन में अब ठीक से रम गया था। उसके मन में अब एक ठहराव वाली भावना आ गई थी कि अब यही उसका जीवन है। वो ‘फिर से’ अपने पिछले तेरह साल जिएगा और उस दौरान वो कोशिश करेगा कि जो भी कुछ तब बिगड़ा था, अब न बिगड़ सके। और, यह भी कि उसके वापस आने से लोगों को कुछ लाभ भी मिल सके।

और इन सभी कार्यों के लिए सबसे आवश्यक था उसका अपना... स्वयं का जीवन बेहतर करना!

वो पहले भी एक अच्छा स्टूडेंट था, लेकिन अब वो अपनी पढ़ाई लिखाई के प्रति एक अलग ही जोश दिखाने लगा था। अब वो एक बेहतर स्टूडेंट बन गया था। ऐसा नहीं था कि बहुत प्रयास करने की आवश्यकता नहीं थी उसको - वो पहले से ही अपने विषयों के बारे में बहुत कुछ जानता था। लेकिन फिर भी, कमल के साथ कंबाइंड स्टडीज़ करने के कारण उसका ज्ञान और भी बेहतर हो गया था। दोनों अपनी टेक्स्ट बुक्स के साथ साथ बाहर की किताबों को भी पढ़ते थे। लिहाज़ा, टेस्ट इत्यादि में अजय के नंबर अच्छे रहते। अन्य लोगों के लिए आश्चर्यजनक रूप से वो और रूचि अब टक्कर के हो गए थे! गणित, फिजिक्स, और कंप्यूटर में अजय उससे आगे रहता, तो अंग्रेजी और केमिस्ट्री में रूचि। दोनों ही अब टॉप टू रैंक्स में रहते।

शशि मैम के सुझाव को उसने दिल से लिया और ठीक से जानने की कोशिश करी कि हॉगवर्ट्स का किन किन विदेशी विश्व-विद्यालयों के साथ अच्छा सम्बन्ध था। वो सब जान कर उसको बहुत एक्साइटमेंट नहीं हुआ, क्योंकि लाइब्रेरी की मैगज़ीनों में पढ़ कर लगा कि हाँलाकि वो यूनिवर्सिटीज़ अच्छी हैं, लेकिन फिर भी बेहतरीन नहीं हैं। कुछेक यूरोप के उन देशों में थीं, जहाँ सामान्य भाषा अंग्रेजी नहीं थी। आस पड़ोस में एक दो लोगों की संतानें अमेरिका में पढ़ने गई थीं, लेकिन हॉगवर्ट्स का किसी उच्च-स्तरीय अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ के साथ ताल्लुक नहीं था। इसलिए अजय ने ठाना कि वो अमेरिका या कनाडा में से किसी टॉप युनिवर्सिटी में पढ़ेगा। और वो भी स्कालरशिप के साथ! उसने जब यह बात शशि मैम को बताई, तो वो बहुत खुश हुईं। और उन्होंने वायदा किया कि उनसे जो भी मदद बन पड़ेगी, वो करेंगी।

रूचि अजय के मुकाबले बहुत समृद्ध परिवार से नहीं थी। लिहाज़ा वो उन्हीं यूनिवर्सिटीज़ में जाना चाहती थी जहाँ हॉगवर्ट्स उसकी मदद कर सके और जहाँ से पूरी स्कॉलरशिप मिल सके। यह बात उसको पता थी कि अब अजय के साथ उसकी ‘सीधी’ टक्कर नहीं है। लिहाज़ा रूचि और अजय की यह प्रतिस्पर्धा वैमनस्य वाली नहीं रह गई थी। हाँलाकि रूचि को शुरू शुरू में अजय को लेकर चिंता हुई थी, लेकिन अजय ने ही पहल कर के उसकी चिंता को दूर कर दिया था। पहले तो दोनों ही एक दूसरे के ‘रडार’ में नहीं थे। रूचि क्लास की मेधावी छात्रा थी। अजय नहीं। इसलिए अजय ने ही पहल कर के उससे बात करने की ठानी।

“रूचि, हाय!” एक दिन इंटरवेल के समय अजय उसके सामने आ कर बोला।

रूचि अपनी एक अन्य सहेली के साथ खाना खा रही थी। उसने एक्सपेक्ट किया कि अजय उसको भी “हाय” करेगा। लेकिन अजय ने उसको पूरी तरह से इग्नोर कर दिया। इस बात से शायद वो शायद बुरा मान गई और मुँह बना कर वहाँ से चली गई। वैसे वो सहेली भी मतलबी थी - रूचि उसको होमवर्क की नक़ल करवाती थी और एग्जाम में नक़ल करने को देती थी। इसलिए उसकी मज़े में चल रही थी। यह बात भी रूचि को समझाना ज़रूरी था कि सही तरीक़े के मित्र बनाए।

“हाय,” उसने थोड़े समय तक असमंजस की स्थिति में रहते हुए, एक अनिश्चित सा उत्तर दिया।

“मैं तुम्हारे साथ खाना खा सकता हूँ?”

“इट्स अ फ़्री कंट्री! और... वैसे भी तुमने अनीता को भगा दिया...”

रूचि अभी भी समझ नहीं पा रही थी कि वो अजय से क्या कहे।

“वो भाग गई, मैंने भगाया नहीं,” अजय उसके बगल बैठते हुए बोला।

“यू वर नॉट एनफ कॉर्टियस टू हर,”

“मैं ऐसा ही हूँ... व्हाट यू सी, इस व्हाट यू गेट,”

“आज मेरे साथ बैठने की क्या ज़रुरत आ पड़ी?” अंततः रूचि ने थोड़ा संयत होते हुए पूछा।

“कोई ज़रुरत नहीं आई।” अजय ने मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन मैंने सोचा कि यूँ अलूफ अलूफ नहीं रहना चाहिए मुझे... तुम टॉप स्टूडेंट हो! तो तुम्हारे साथ रह कर थोड़ा सुधार कर लेता हूँ अपने में!”

“हा हा... सभी टीचर्स तुमसे इम्प्रेस्ड हैं! क्या सुधार करना है अब?”

चाहे कोई कुछ कह ले - रूचि और अजय में इस समय जो अंतर था उसको ही लोग जेनेरेशन गैप पहते हैं। वो अभी भी एक किशोरवय लड़की थी, और अजय मन से एक तीस वर्षीय वयस्क। ऐसे में वो रूचि से क्या बात कहे, या क्या बात करे, उसको अभी भी ठीक से समझ में नहीं आ रहा था। फिर उसने सोचा कि वो बिना लाग-लपेट के, सीधी तरीके से बात करेगा। ईमानदारी एक अच्छी चीज़ होती है।

“रूचि, मैंने एक बात जानी है... सभी लोग दिखावों के फ़ेर में पड़ जाते हैं, और कुछ नहीं,” अजय एक गहरी साँस लेता हुआ बोला, “पहले मैं चुप रहता था, तो कोई जानता ही नहीं था... एक दिन थोड़ा सा कुछ बोल क्या दिया, सभी ने उस बात का बतंगड़ बना दिया।”

रूचि ने पहली बार अजय को इंटरेस्ट से देखा।

“लेकिन आज तक मेरे सबसे अच्छे दोस्त के अलावा किसी और ने एक बार भी यह बात जानने की कोशिश नहीं करी कि मैं क्लास में यूँ चुप चाप क्यों रहता हूँ... था!”

“क्यों रहते थे?” रूचि ने थोड़ा सतर्क होते हुए और सुरक्षात्मक तरीक़े से पूछा।

अजय ने एक साँस भरी। उसको उम्मीद नहीं थी कि वो रूचि को इस दुविधा में डाल देगा।

“तीन साल पहले... मेरी माँ और मेरे ताऊ जी की डेथ हो गई थी एक एक्सीडेंट में!”

यह सुनते ही रूचि के चेहरे का भाव बदल गया - उसके चेहरे पर पीड़ा और सहानुभूति वाले भाव आ गए।

वो कह रहा था, “... वो शॉक ऐसा था कि मुझे समझ ही नहीं आया कि मैं उससे डील कैसे करूँ! ... लेकिन कुछ दिनों पहले समझ में आया कि पूरी उम्र भर मैं उसी शॉक में नहीं बैठा रह सकता... उससे उबरना ज़रूरी है। उससे बाहर आना ज़रूरी है। ... बस! और कुछ भी नहीं...”

“ओह, आई ऍम सो सॉरी अजय! मुझे पता नहीं था।”

“तुमको क्यों पता होगा, रूचि? तुम तो इलेवेंथ में ही आई हो यहाँ...” वो मुस्कुराते हुए बोला, “लेकिन मैं वो सब बातें डिसकस करने नहीं आया हूँ।”

उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “हाँ, अब क्यों आए हो! पिछले पूरे साल तुमने एक बार भी मुझसे बात नहीं करी... तो अभी अचानक से...? क्यों?”

“रूचि, मैं भी चाहता हूँ कि तुम्हारी ही तरह मैं भी टॉप स्टूडेंट्स में आ सकूँ... कुछ कर सकूँ अपनी लाइफ में! इसलिए तुमसे सीखना चाहता हूँ,”

“ओह अजय,” वो अचानक से ही थोड़ा लज्जित सी हो गई - जब आपको अपनी पूर्व-कल्पित धारणाओं के बारे में मालूम होता है, तो लज्जा होना स्वाभाविक ही है, “आई ऍम सॉरी! मुझे लगता था कि तुम थोड़ा अपने में ही रहने वाले लड़के हो,” वो थोड़ा सकुचाई, “थोड़े इंट्रोवर्ट... थोड़े... उम... यू नो, फियरसम...”

“हा हा हा... सभी को यही लगता है।” अजय उसकी ईमानदारी से प्रभावित हो गया, “आई थिंक, आई नीड टू चेंज दैट,”

“व्हाट इस फॉर लंच?” रूचि का स्वर अचानक से दोस्ताना हो गया, और उसने बात बदल दी।

“आलू पराठे, और दही और,” अजय ने अपनी टिफ़िन में देखते हुए कहा, “ओह, नीम्बू का अचार!”

“वॉव! माय फेवरिट्स!”

“सच में?” अजय ने अपनी टिफ़िन रूचि की तरफ़ बढ़ा दी, “यू हैव इट देन,”

“नहीं अजय! मैं तुम्हारा खाना कैसे खा लूँ?”

“अरे यार! तुम भी न! खा लो - तभी तो दोस्ती होगी!”

रूचि भी इस बात पर मुस्कुरा दी।

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Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 

parkas

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दोस्ती शुरू हुई, तो दोनों ने उसको ढंग से निभाना भी शुरू कर दिया।

रूचि ने मान लिया था कि अजय के विषय में उसको हरा पाना मुश्किल है, लिहाज़ा उसने उससे प्रतिस्पर्द्धा करने के बजाय उससे सीखना शुरू कर दिया। अजय भी पूरे खुले हाथ उसको गणित और कंप्यूटर विज्ञान की गूढ़ बातें बताता। लोगों में असुरक्षा की भावना बड़ी बलवती होती है। लेकिन अजय में वैसी कोई भावना नहीं थी। उसकी इस खासियत से रूचि बड़ी प्रभावित हुई थी।

अजय से मित्रता होने के कारण वो कमल की भी अच्छी दोस्त बन गई थी। इसलिए वो अब यदा-कदा दोनों के घर भी जाने लगी थी। पिछले कुछ दिनों में तीनों ने मिल कर ‘कंबाइंड स्टडीज़’ करनी शुरू कर दी थी। उसी के दौरान उसको पता चला कि अजय की दीदी की शादी कमल के साथ पक्की हुई है। यह एक अनोखी बात थी, जो देखने सुनने में नहीं आती थी। उसको समझ में नहीं आया कि इतनी कम उम्र में कमल को शादी करने की क्यों सूझ रही थी। लेकिन जब उसने माया और कमल को साथ में प्रेम से बातें करते देखा, तो उसकी समझ में आ गया कि प्रेम उम्र का मोहताज नहीं होता। जब सच्चा प्रेम मिल जाए, उसको ईश्वर का प्रसाद समझ कर सर आँखों पर लगा लेना चाहिए।

माया को ले कर वो अक्सर मज़ाक करती कि वो माया को दीदी कहे या भाभी! यह सवाल इतना मुश्किल था जिसका उत्तर दे पाना न तो अजय के लिए और न ही कमल के लिए संभव था। लिहाज़ा उसका उत्तर उसके स्वयं के विवेक पर छोड़ दिया गया।

जैसा कि किशोरवय जीवन में होता है - कौशल, सौंदर्य, मित्रता इत्यादि के कारण विपरीत लिंग के दो सदस्यों में आकर्षण होने ही लगता है। लिहाज़ा रूचि उससे प्रभावित हुए बिना न रह सकी। यह बीत गए भूत-काल से एक बड़ा परिवर्तन था। पहले रूचि उसको घास तक नहीं डालती थी। ऐसा नहीं था कि वो पहले उससे किसी तरह की नफरत करती थी - बस, दोनों के बीच कोई प्रतिच्छेदन (इंटरसेक्शन) नहीं था।

लेकिन अब बातें बदल गईं थीं।

सबसे पहली बात यह थी कि उसको अजय से सीखने को बहुत कुछ मिलता था। अजय किसी भी तरह से इनसेक्योर नहीं था। वो उसको सब कुछ बताता और समझाता था। ऊपर से उसका परिपक्व सा व्यवहार! बिल्कुल पुरुषों जैसा! एक ठहराव था अजय की अदा में, जिससे रूचि उसकी तरफ अनजाने ही आकर्षित होती चली गई। वो कोई न कोई अवसर या बहाना निकाल कर अजय के पास चली आती उससे बातें करने और उसके साथ समय बिताने।

रूचि सुन्दर भी थी और शारीरिक रूप से आकर्षक भी। हाँलाकि उसके स्कूली या फिर घर के कपड़ों से पता नहीं चलता था, लेकिन उसका शरीर समुचित और सौम्य रूप से कटाव लिए हुए था। अन्य पढ़ाकू लड़के लड़कियों की तरह फिलहाल उसको चश्मा नहीं लगा था। इसलिए उसके चेहरे का सौंदर्य भी साफ़ दिखता था। वो एक छरहरे शरीर वाली लड़की थी। उसके शरीर के हिसाब से उसके स्तन भी उन्नत थे।

ऐसा नहीं था कि इनकी बढ़ती हुई दोस्ती कॉलेज में किसी ने न देखी हो - सभी ने देखी थी। अजय भी अपनी किशोरवय उम्र के हिसाब से अच्छा दिखता था।

अजय कोई बहुत प्रभावशाली शरीर का मालिक नहीं था, लेकिन सामान्य कद-काठी का एक स्वस्थ नवयुवक था। जेल में रहते हुए उसने पाया था कि व्यायाम करने से उस विषम परिस्थिति में भी उसकी सकारात्मक सोच बनी रहती थी। इसलिए वो अब पूरे जोश से व्यायाम करता था। अपने साथ वो अशोक जी और किरण जी से भी व्यायाम करवाता था। माया दीदी शाम को अक्सर ही अपनी होने वाली ससुराल चली जाती थीं, इसलिए वो उसकी इस प्रताड़ना से बच जाती थीं। लेकिन उसके कमल को भी व्यायाम करने को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया था। ख़ैर, कुल जमा, वो अपनी सामान्य कद-काठी के साथ भी मज़बूत लगता था। ऐसे में जब भी रूचि उसके बगल आ कर खड़ी हो जाती, तो दोनों बहुत सुन्दर लगते। उनके दोस्त और टीचर्स सभी उनको साथ देख कर समझ रहे थे कि कॉलेज में कम से कम एक ढंग का कपल बन रहा था।

घर में यह बात अनदेखी नहीं रह गई। आज तक केवल एक ही लड़की अजय से मिलने आई थी। जाहिर सी बात है कि उसके माँ, पापा, और दीदी यह बात नोटिस ज़रूर करेंगे। सभी ने ही रूचि में बहुत रूचि ले कर उससे बातचीत करी थी। और वो सभी को पसंद भी आई थी। माया को वो बहुत पसंद आई, क्योंकि वो भी चाहती थी कि उसका वीरन भी प्रेम जैसी अद्भुत वस्तु का आस्वादन कर सके। माया ने यह बात अजय और कमल से कही भी। कमल ने भी इस बात की संतुति करी कि रूचि को अजय में बहुत दिलचस्पी है - शायद प्रेमाकर्षण भी।

अजय ने इन बातों को नज़रअंदाज़ कर रखा था। उसको रूचि अच्छी लगती थी, लेकिन उसके मन में आकर्षण वाली भावना नहीं थी। और हो भी तो कैसे? पहला तो रागिनी ने ऐसा जबरदस्त चूतिया काटा था अजय का, कि अब वो किसी से प्रेम सम्बन्ध नहीं रखना चाहता था। ऊपर से अजय के लिए रूचि छोटी थी। वो स्वयं तीस साल का था। अपने से बारह साल छोटी लड़की की तरफ़ वो कैसे आकर्षित हो जाए? यह उसके लिए नैतिक नहीं था।


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प्रशांत भैया ने पिछले ही सप्ताह पैट्रिशिया ‘भाभी’ से घर में सभी से ‘मुलाक़ात’ करवाई... मुलाक़ात मतलब, फ़ोन पर सभी से बात करवाई। शिकागो से दिल्ली यूँ नहीं ला सकता था न वो उसको।

भारत में लोगों को स्वदेशियों और विदेशियों के व्यवहार और संस्कार को ले कर अनेकों ग़लतफ़हमियाँ हैं। अधिकतर स्वदेशियों के लिए विदेशी दुश्चरित्र, असभ्य, और असंस्कारी होते हैं। जबकि स्वदेशी चरित्रवान, सभ्य, और संस्कारी! लेकिन इस पूर्व धारणा से अलग, जब ध्यान दिया जाता है तो पाया जाता है कि विदेशियों में अपने देश, समाज, और वातावरण को ले कर जिस तरह की संजीदगी है, उसके सामने स्वदेशी लोग जंगली या फिर कबीलाई ही कहलाएँगे। अंग्रेज़ी में जिसको सिविक सेन्स (नागरिक भावना) कहते हैं, वो कूट कूट कर भरी हुई है विदेशियों में। उनमें अपने देश को लेकर जो जज़्बात हैं, वो खोखले और दिखावटी नहीं हैं। इसलिए उनके देश साफ़-सुथरे, अनुशासित, और सुचारु रूप से संचालित होते हैं। भ्रष्टाचार कहाँ नहीं होता - लेकिन वो बाहरी देशों के लोगों के आम जीवन की हर बात में घुसा हुआ नहीं रहता। लोग अपने काम की इज़्ज़त करते हैं और बड़ी ईमानदारी से काम करते हैं - फिर वो चाहे बढ़ई का काम हो, या फ़िर साहबी का! शायद इसीलिए विभिन्न कार्यों में वेतन में बड़ी भिन्नता नहीं होती।

हाँ, वहाँ लड़के लड़कियाँ सेक्स और प्रेम-संबंधों को ले कर खुले विचार रखते हैं, लेकिन वो इसलिए क्योंकि उनके यहाँ विवाह माँ बाप नहीं तय करते। शायद यही कारण है कि स्वदेशियों को वो दुश्चरित्र लगते हैं। शादी विवाह की ज़िम्मेदारी विदेशियों में खुद की होती है - और होनी भी चाहिए! लगभग हर जोड़ा अपना परिवार अपने बलबूते पर बनाता है - उसमें वो अपने माँ बाप से ‘बेगारी’ नहीं करवाते। बच्चों को छुटपन से ही सही मूल्य सिखाए जाते हैं। आत्मविश्वास बड़ा होता है उनमें। उनके बच्चे अपने पाँवों पर बहुत जल्दी खड़े हो जाते हैं। यहाँ के अधिकतर ‘बच्चों’ की तरह ताउम्र अपने माँ बाप पर आश्रित नहीं रहते। इसलिए उचित पारिवारिक मूल्य भी उनमें होते हैं। अमूमन परिवारों के अंदर एक दूसरे के प्रति जलन और दुर्भाव नहीं रहता। सब अपने अपने कार्य में संलग्न रहते और अपने जीवन में मस्त रहते हैं। कोई किसी अन्य के साथ होड़ या प्रतिस्पर्धा में नहीं होता। इसलिए किसी से ऊँचा - नीचा होने का सवाल नहीं होता। क्रिसमस और इसी तरह के बड़े अवसरों पर पूरा कुनबा एक जगह इकठ्ठा हो कर आनंद से समय बिताता है।

तो अगर एक बार हम अपने पूर्वाग्रहों को छोड़ दें, तो समझ में आ जाता है कि आम तौर पर विदेशी एक अच्छा इंसान होता है।

पैट्रिशिया से बातें कर के यह बात सभी को समझ में आ गई।

पैट्रिशिया मृदुल भाव वाली, लेकिन दृढ़ चरित्र लड़की थी। अच्छी पढ़ी-लिखी और एक अच्छे परिवार से थी। वो धार्मिक भी थी - अपने साप्ताहिक काम के साथ साथ वो अपने धर्म और उससे सम्बंधित कार्यों में वो व्यस्त रहती थी। स्वेच्छा से वो अनेकों सामाजिक कार्यों में श्रम-दान और सहयोग करती थी। अच्छे संग का प्रभाव भी अच्छा होता है। उसकी देखा देखी प्रशांत ने भी यह सब शुरू कर दिया था। जब वो कणिका के साथ था, तब उसका सप्ताहांत फालतू के कार्यों, जैसे देर तक सोना, टीवी या फिल्म देखना, बाहर होटलों में खाना, बेकार की शॉपिंग करने इत्यादि में ही व्यव हो जाता था। जब वो सोमवार को उठता, तब उसको ताज़गी के बजाय थकावट महसूस होती। लेकिन पैट्रिशिया की संगत में आ कर अब वो अधिक अनुशासित हो गया था। कुछ दिनों पहले उसने निकट के एक मंदिर में जा कर श्रमदान भी करना शुरू कर दिया था। वो भी उसके साथ आती। उसके अंदर ये सभी परिवर्तन पैट्रिशिया के कारण ही आये थे और इस बात से किरण जी भी उससे प्रभावित हुए बिना न रह सकीं।

लेकिन अशोक जी को वो किरण जी की अपेक्षा अधिक पसंद आई। शायद इसलिए, क्योंकि उन्होंने किरण जी की अपेक्षा अधिक दुनिया देखी थी।

शायद किरण जी उसकी वर्जिनिटी को ले कर हतोत्साहित हो गई हों! तो क्या फ़र्क़ पड़ता है कि उनका खुद का बेटा वर्जिन नहीं था और उसने पैट्रिशिया और कणिका दोनों के साथ सेक्स किया हुआ था। या फिर शायद इस बात से कि उसको ‘भारतीय’ खाना पकाना नहीं आता। तो क्या फ़र्क़ पड़ता है कि भारतीय खाने जैसा कुछ भी नहीं होता। जैसे भारत में पग पग पर संस्कृति बदल जाती है, वैसे ही भोजन भी। या फिर शायद इस बात से, कि विवाह के बाद उनका बेटा वहीं, अमेरिका का हो कर रह जाएगा! हाँ, शायद यही बात हो! लेकिन संपन्न परिवारों के लिए सात समुद्र पार की यात्रा कर पाना कोई कठिन काम नहीं है। संसाधन उपलब्ध हैं सभी के पास। वो दोनों भारत आ सकते थे, और यहाँ से सभी अमेरिका भी जा सकते थे! फिर क्या चिंता?

माया और अजय अपनी होने वाली भाभी से मिल कर बहुत प्रसन्न हुए। माया को उसकी बातें समझने में समय लग रहा था और आधी से अधिक बातें वो समझ भी नहीं पा रही थी। लेकिन अजय ही अनुवाद कर के उसको सब समझा रहा था। पैट्रिशिया ने माया को उसकी होने वाली सगाई के लिए बहुत बधाईयाँ भी दीं। बात ख़तम होते होते उसने अजय को ‘स्पेशल’ थैंक यू कहा।

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Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....
Nice and lovely update....
 

Ajju Landwalia

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अपडेट 24


ऊपर :


कमल ने पाया कि उसके होंठों पर माया के कोमल होंठों का गर्म एहसास बहुत ही अद्भुत था! एक अबूझ सा अपनापन! एक नादान सी घबराहट! एक अभूतपूर्व सी उत्तेजना! माया का अनुभव भी कमल के अनुभव से इतर नहीं था। अपने प्रेमी के आग्रहपूर्ण चुम्बन के ताप से वो अंदर तक पिघल गई थी।

अब तक बारिश ने दोनों को समुचित रूप से भिगो दिया था।

माया ने जो कुर्ता पहना हुआ था, उसके पीछे एक ज़िपर लगी हुई थी। वैसी ही जैसी पुरानी हिंदी फिल्मों में हिरोइनें पहनती थीं। कमल का हाथ उसके ज़िपर की फ्लाई पर उलझा और उसको नीचे करने लगा।

“क्या कर रहे हैं आप...” माया की घबराहट भरी आवाज़ निकली।

“हमने आपसे कहा है न, आज हम अपनी करेंगे!” कमल ने याद दिलाया।

“लेकिन...”

“आपको पता है न, कि हम आपकी बहुत इज़्ज़त करते हैं?”

माया ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तो फिर?”

“हमको शर्म आएगी...”

“अँधेरा है... इतनी जल्दी लाइट नहीं आने वाली।” अब तक ज़िपर माया की कमर के नीचे अपने आख़िरी सिरे तक आ गया था।

“लेकिन आप हमको नंगा क्यों करना चाहते हैं?” माया ने फुसफुसाते हुए पूछा।

“हमारी पहली बारिश है न... मन हो रहा है कि एक बार फिर से आपको यूँ पकड़ लूँ और हमारे बीच में इस बारिश के सिवा कुछ न हो!”

कमल ने कुर्ते को माया के कन्धों से अलग सरका दिया।

“आप बहुत बदमाश होते जा रहे हैं,” माया की आवाज़ उत्तेजना की घबराहट से अस्थिर हो रही थी।

आज से पहले वो ऐसी स्थितियों में कमल को नियंत्रण में रख लेती थी। लेकिन आज वो कमल को रोक नहीं पा रही थी। इस रिश्ते में वो बड़ी थी, वो समझदार थी, और वो ही ज़िम्मेदार भी थी। लेकिन आज कमल ने जिस तरह से उससे अपनी बात कही थी, उसके कारण वो उसकी अनुचरी बन गई थी। एक बार कमल को भी अपने मन की करने का होना चाहिए न! वो कमल पर विश्वास करती है। उससे प्रेम करती है। वो उसकी ही है। तो फिर चिंता किस बात की है?

“कोई बदमाशी नहीं... हम बस आपको देखना चाहते हैं और आपको अपनी बाहों में भर लेना चाहते हैं!” कमल उसके कुर्ते को नीचे करते हुए बोला, “लेकिन, बिना इन कपड़ों के!”

आज से पहले इस हालत में वो केवल अपने घर के लोगों के सामने आई थी। इसलिए घबराहट होना स्वाभाविक ही था।

माया ने चूड़ीदार पजामी पहनी हुई थी। भीगने के कारण वो अजीब तरीके से उसके शरीर से चिपक गई थी। वैसे भी चूड़ीदार पजामी पहनने वाले की नाप से कोई डेढ़ गुणा लम्बी होती है, जिससे चूड़ियाँ ठीक से बन सकें। इसलिए भीगी हुई पजामी उतारना आसान काम नहीं है।

कमल माया की पजामी का नाड़ा ढीला कर के उसको और उसके कुर्ते दोनों को नीचे उतारने लगा। कपड़े आसानी से उतर नहीं थे, इसलिए थोड़ा ज़ोर लगाना पड़ा। इस ज़ोराज़ोरी में माया एक बार फिसल कर गिरने को हो गई,

“मैं बैठ जाती हूँ,” उसने सुझाया।

कमल ने सहमति में सर हिलाया।

माया बारिश के पानी से पूरी तरह से भीग चुकी छत की फ़र्श पर बैठ गई। और कुछ ही समय में वो केवल अपनी ब्रा और चड्ढी में उसके सम्मुख थी। वो समझ रही थी अपनी सासू माँ और ससुर जी के सामने आज उसकी बहुत बुरी भद पिटने वाली है। उसका कुर्ता और पजामी आपस में बुरी तरह उलझ गए थे। वो स्वयं पूरी तरह से भीग गई थी। ऐसे में उनके सामने कोई बहाना बना कर बच निकलना संभव नहीं था। ख़ैर, वो जब होगा, तब होगा।

फिलहाल तो उसके होने वाली पतिदेव उसके साथ अपनी मनमर्ज़ी पूरी करने को आतुर थे।

कमल ने हाथ बढ़ा कर उसकी चड्ढी भी उतार दी। माया ने अपने नितम्ब उठा कर उसका सहयोग ही किया। अँधेरे में कुछ सूझ नहीं रहा था - बस यही गनीमत थी। नहीं तो बारिश के पानी के साथ साथ वो शर्म से भी भीग जाती!

कमल उठ गया और उसने हाथ बढ़ा कर माया के हाथों को पकड़ कर उसको भी उठा दिया। वो जल्दी जल्दी अपने कपड़े उतारने लगा। यह एक आसान काम था। उसने टीशर्ट और नेकर पहनी हुई थी। दस सेकंड के अंदर अंदर वो माया के सामने पूरी तरह से नग्न खड़ा था। माया को कुछ सूझ नहीं था, लेकिन वो जान रही थी कि कमल उसके सामने निर्वस्त्र हो रहा था। इस बोध से भी वो शर्मसार हुई जा रही थी। यह एहसास उसको कभी नहीं हुआ था। तब भी नहीं जब वो अजय को नहलाने के लिए उसके कपड़े उतार देती है। किसी की बड़ी बहन होने में और किसी की पत्नी होने में यह बड़ा अंतर है!

कमल ने इस बार उसको झपट कर अपने आलिंगन में भर लिया - कुछ ऐसे कि वो चौंक गई। लेकिन कमल की अधीरता - उसके जोश को देख कर उसकी एक छोटी सी हँसी भी छूट गई। फिर उसने ‘उसको’ महसूस किया।

कमल का लिंग पूरी तरह से कठोर और ऊर्ध्व हो कर माया के पेट से चिपक गया। उसकी कठोरता और उसकी गर्मी को अपने ठन्डे भीगे शरीर पर महसूस कर के माया को झुरझुरी हो आई।

एक बार फिर से दोनों के होंठ आपस में एक चुम्बन में उलझ गए।

जब तक चुम्बन समाप्त हुआ, तब तक माया की ब्रा भी उसके शरीर से उतर चुकी थी।

माया और कमल दोनों ही, कमल की इच्छानुसार पूरी तरह से नग्न हो कर अपनी पहली बारिश में भीगने का आनंद ले रहे थे।



नीचे :

“सुनिए जी?” सरिता जी की आवाज़ अस्थिर थी।

“हम्म” किशोर जी अपनी पत्नी के चूचक को पीते हुए बोले।

“ब... बच्चे अभी... आह... अभी तक नीचे नहीं... आह... आए...” किशोर जी के लिंग के हर धक्के से उनकी आँहें निकल रही थीं।

“आप चाहती हैं कि वो अभी नीचे आ जाएँ?”

“नहीं... आह...” सरिता जी ने जैसे तैसे कहा।

“भाग्यवान?”

“जी?”

“यार...” किशोर जी ने उनसे जैसे अपने मन की बात बताते हुए कहा, “एक और बच्चा हो जाता...”

वो मुस्कुराईं, “जानते हैं आप... आह... अरे धीरे धीरे कीजिए न!”

“हाँ बताओ?”

“अपनी बहू बहुत लकी है! ... जब अशोक भाई साहब उसको लाए थे न, तब प्रियंका दीदी और किरण दीदी दोनों प्रेग्नेंट हुई थीं।”

“हाँ... वो तो है...”

“सोच रही हूँ कि सगाई वगाई नहीं, सीधे दोनों की शादी ही करवा देते हैं!”

“हा हा हा हा!”

“और क्या! क्या फालतू का झंझट है ये सब! शुभ साईत है! सीधे शादी करवाते हैं न जी, उन दोनों की! ... फिर हम सास बहू दोनों एक साथ प्रेग्नेंट होंगीं...”

“क्या मस्त आईडिया है मेरी जान!” कह कर किशोर जी ने ज़ोर का धक्का लगाया।

“आह्ह्ह... आराम से...” सरिता जी ने शिकायत करी।

“बहू छोटी है अभी! इसलिए उसका जब हो तब हो, लेकिन तुम हो जाओ न प्रेग्नेंट!”

“आप न,” सरिता जी ने बड़े ही मीठेपन से कहा, “इतना काम न किया करिए! ईश्वर ने सब कुछ दिया है। अब तो इतनी प्यारी सी बहू भी आ रही है! परिवार का आनंद उठाते हैं साथ में!”

फिर थोड़ा शरमाते हुए, “थोड़ा हम पर भी मेहनत कीजिए... हो जाएँगे हम प्रेग्नेंट!”

“हाँ भाग्यवान, हाँ!”



ऊपर :

“सुनिए?”

“हम्म्म?”

“कब तक आप मुझे यूँ पकड़े रहेंगे?”

“जब तक...”

“हम्म?”

“बताया तो,” कमल ने धीमी आवाज़ में कहा, “जब तक...”

“नीचे माँ जी और पापा जी सोच रहे होंगे कि हम यहाँ क्या कर रहे हैं!”

“अब तो वो भी समझ गए होंगे कि हम दोनों यहाँ रोमांटिक हो रहे हैं...”

“अब बस! बाकी का रोमांटिक बाद में हो लीजिएगा!” माया बोली, “नीचे चलते हैं न!”

“एक बार इनको भी किस कर लूँ?”

कमल ने कुछ कहा नहीं, लेकिन फिर भी माया समझ गई कि ‘किनको’ चूमने की बात कर रहा है कमल।

उसने ‘न’ में सर हिलाया।

अँधेरे के कारण कमल को कुछ समझा नहीं, “हम्म?”

“मैंने कहा नहीं! ... अभी नहीं... फिर कभी!”

“ओहो! मतलब आगे भी चांस है हमारा!”

“क्यों नहीं होगा?” माया इस पूरे प्रकरण में पहली बार चंचलता से बोली, “आप हमारे पतिदेव बनने वाले हैं! आपका नहीं, तो फिर किसका चांस होगा?”

कमल ने एक बार फिर से माया के होंठों को चूम लिया।

“लेकिन अभी बस,” माया ने कोमलता से समझाया, “अगर अब हम एक और कदम आगे बढ़े, तो बहक जाएँगे! ... आप भी और हम भी! इसलिए अब बस?”

माया ने एक तरह से मनुहार करते हुए उसको समझाया।

“जैसी आपकी आज्ञा!”

“आज्ञा नहीं है...” माया बोली, “अपने हस्बैंड को आज्ञा देने की हिम्मत मैं नहीं कर सकती! आप ही मेरे सब कुछ हैं। ... लेकिन हमको अपनी मर्यादा में रहना चाहिए! माँ जी और पापा जी को अच्छा नहीं लगेगा कि हमने उनके विश्वास को तोड़ दिया...”

कमल को समझ में आ गया। उसने एक गहरी साँस भरी, और समझते हुए मुस्कुराया।

बोला, “आई लव यू, हनी! एंड, थैंक यू!”

“आई लव यू टू, माय हार्ट!”

“... एंड आई लव यू बोथ,”

सरिता जी की आवाज़ सुन कर दोनों चौंके।

“आ जाओ दोनों... इतनी देर से भीग रहे हो, तबियत खराब हो जाएगी।” उन्होंने समझाया, “तौलिए लाई हूँ! शरीर पोंछ लो!”

माया शरमाते सकुचाते सरिता जी के पास आई। हाथ कंगन को आरसी क्या? कोई बहाना चिपक ही नहीं सकता था। सरिता जी ने माया को तौलिया में लपेट दिया। टाइमिंग भी गज़ब की बैठी - उसी समय बिजली भी वापस आ गई।

“शर्माने की कोई ज़रुरत नहीं है बहू,” सरिता जी ने पुनः बड़े वात्सल्य से कहा, “हम भाई साहब से बात करेंगे कि तुमको जल्दी से जल्दी हमें दे दें!”

“जी?”

“अरे मेरी भोली बिटिया, हम चाहते हैं कि तुम दोनों की शादी नवम्बर में ही हो जाए!”


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Bahut hi shandar updates he avsji Bhai,

Ajay ne aakhirkar prashnat ke jivan me patricia ko wapis laane me kamyab ho hi gaya.....

Barish me bhigte huye do premiyo ke aalingan ka bahut hi sunder aur jivant chitran kiya he aapne...........

Gazab Bhai...............Keep rocking
 

Ajju Landwalia

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सूचना :

मित्रों, काम के सिलसिले में मैं देश से बाहर रहूँगा कुछ दिन (कोई दो सप्ताह)!
अगला अपडेट उसके बाद ही मिलेगा।

धैर्य बनाए रखें :)

Koi baat nahi avsji Bhai,

Kaam sabse pehle................hum intezar karenge aapke wapis lotne ka.........
 

parkas

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अपडेट 27


एक शनिवार को अशोक जी ने अजय से कहा,

“बेटे,”

“जी पापा?”

“उस दिन तुमको मन कर रहा था, लेकिन आज मेरा मन हो रहा है कि हम दोनों बाप बेटा बैठ कर साथ में स्कॉच पियें...”

“आई वुड लव इट पापा,”

“यू मेक इट...” उन्होंने सुझाया।

“ग्लेनफ़िडिक?”

अशोक जी ने हाँ में सर हिला कर कहा, “यस... एटीन ऑर ट्वेंटी वन, यू डिसाइड...”

“ओके पापा!”

“और, जैसा मैंने तुम्हारा पेग बनाया था लास्ट टाइम, वैसा ही बनाना अपने लिए,” उन्होंने मुस्कुराते हुए उसको हिदायद दी।

“यस सर,”

कह कर अजय दोनों के लिए ड्रिंक्स बनाने लगा। कुछ देर में वो एक ट्रे में दोनों के लिए स्कॉच के ग्लास ले आया। एक अशोक जी को दिया और दूसरा स्वयं ले कर उनके सामने बैठ गया।

“चियर्स बेटे,”

“चियर्स पापा!”

इन दस हफ़्तों में पापा के साथ उसके सम्बन्ध बहुत अच्छे बन गए थे। दोनों साथ में बहुत सारे काम करते - बातें, कसरतें, इन्वेस्टमेंट और बिज़नेस की बातें, इत्यादि!

दो चुस्की लगा कर अशोक जी ने कहा,

“अब बताओ बेटे, क्या बात है?”

“बात पापा?” अजय ने उनकी बात न समझते हुए कहा।

उन्होंने एक गहरी साँस भरी, “बेटे, पिछले दो ढाई महीनों से देख रहा हूँ कि तुम्हारे अंदर बहुत से चेंजेस आ गए हैं। नो, आई ऍम नॉट कम्प्लेनिंग! तुम्हारे अंदर सारे चेंजेस बहुत ही पॉजिटिव हैं... लेकिन चेंजेस हैं।”

“पापा...”

“बेटे, झूठ न बोलना! ... तुम मुझसे झूठ नहीं कहते, सो डोंट स्टार्ट! लेकिन छुपाना भी कुछ नहीं,”

“लेकिन पापा, आपको क्यों...”

“क्यों लगता है कि तू बदल रहा है?” उन्होंने पूछा।

अजय ने नर्वस हो कर ‘हाँ’ में सर हिलाया।

वो वात्सल्य भाव से मुस्कुराए, “बाप हूँ तेरा! ये सेन्स केवल माँओं में ही नहीं होता... बाप में भी होता है।” फिर एक गहरी सांस ले कर आगे बोले, “मुझे आज भी याद है... तूने मुझे हीरक पटेल से कोई भी डील न करने को कहा था।”

अजय नर्वस होते हुए कसमसाया।

“आज मिला था वो।” अशोक जी दो क्षण रुक कर बोले, “तू सही कह रहा था... शार्क है वो। ऊपर से मीठी मीठी बातें कर रहा था, लेकिन उसकी आँखों में लालच दिखता है।”

“कहाँ मिला वो आपको पापा?”

“अशोक होटल में,” - अशोक होटल दिल्ली का एक पाँच सितारा लक्ज़री होटल है - अशोक जी बोले, “एक समिट था वहाँ,”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“वो सब ठीक है... लेकिन तुझे उसके बारे में पता कैसे चला? वो तो बस तीन दिन पहले ही इस समिट के लिए आया है कीनिया से इंडिया... उसके पहले तीन साल पहले ही उसकी इण्डिया ट्रिप लगी थी,”

अजय चुप रहा।

“केवल यही बात नहीं है... तू माया से जिस तरह बातें करता है... उसके लिए जो पहला प्रोपोज़ल आया था तूने उसको जैसे मना किया, उसकी शादी कमल से तय करवाई... और अब प्रशांत के लिए पैट्रिशिया...” वो थोड़ा रुके, “बात क्या है बेटे? अपने बाप से छुपाएगा अब?”

“नहीं पापा,” अजय ने एक गहरी साँस भरी और एक ही बार में पूरा पेग गटक गया, “... मैं आपको सब कुछ बताऊँ, उसके लिए मुझे एक और पेग चाहिए... स्ट्रांगर!”

अशोक जी को अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन आँखों के इशारे से उन्होंने उसको दूसरे पेग की अनुमति दे दी।

कोई पाँच मिनट दोनों मौन रहे। वो अपना पेग ले कर वापस आया और अपने सोफ़े पर बैठा।

एक सिप ले कर बोला, “पापा, पता नहीं आप मेरी बातों का कितना यकीन करेंगे... इवन आई डोंट फुल्ली ट्रस्ट एंड बिलीव इट माइसेल्फ...”

“ट्राई मी बेटे,”

“पापा, मैं फ़्यूचर से आया हूँ,”

“व्हाट?” अशोक जी के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे उनको लगा हो कि उनका बेटा उनको मूर्ख बना रहा है।

“पापा पहले सुन तो लीजिए,”

“हाँ बोलो, बट दिस इस सो हिलेरियस...”

अजय ने उनकी बात नज़रअंदाज़ करी और फिर एक गहरी साँस ले कर उनको मुंबई पुणे द्रुतमार्ग पर हुई घटना से उल्टे क्रम में सभी बातें बताना शुरू करीं। प्रजापति जी के साथ हुई घटना, रागिनी नाम की लड़की से उसका ब्याह, झूठे केस, उससे सम्बन्ध विच्छेद, संपत्ति का बिकना, ग़रीबी के दिन, और फिर जेल में बिताये तीन साल, उसके पश्चात गरिमामय जीवन जीने के लिए रोज़ रोज़ जूझना...

“एक मिनट,” अशोक जी बोले, “मुंबई पुणे एक्सप्रेसवे जैसा कुछ नहीं है,”

“आई नो! अभी नहीं है, लेकिन पाँच छः साल में हो जाएगा पापा,”

नर्वस होने की बारी अब अशोक जी की थी।

“जब ये सब हो रहा था, तब मैं कहाँ था?” उन्होंने सर्द आवाज़ में पूछा।

अजय की आँखों से आँसू आ गए, “आप नहीं थे पापा...” उसकी आवाज़ भर आई, “आप नहीं थे।”

“कहाँ था मैं बेटे?” वो समझ तो गए, लेकिन फिर भी जानना चाहते थे।

“इस हीरक पटेल ने आपको आपके बिज़नेस में भारी नुक़सान पहुँचाया था पापा... सामने तो आपका दोस्त बना रहा, लेकिन समझिये कि उसने आपकी पीठ में छूरा घोंपा है। आपके आधे बिज़नेस उसका कब्ज़ा हो गया था। आपके ऊपर सारे उधार छोड़ दिए, और सारा मलाई माल ले कर चल दिया।”

अशोक जी अभी भी उत्तर की प्रतीक्षा में थे।

अब अजय को वो बातें बतानी पड़ीं, जो वो बताना नहीं चाहता था, “उसके कारण आपको बहुत धक्का लगा पापा... यू हैड हार्ट अटैक...”

वो बात पूरी नहीं कर पाया।

तीन चार मिनट दोनों मौन रहे। फिर अशोक जी ही बोले,

“कब हुआ?” उनकी आवाज़ भी बैठ गई थी।

उनके बेटे और भाभी के साथ इतना कुछ हो गया, जान कर वो भी दुःखी हो गए थे।

“जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था,” उसने गहरी साँस ली, “वैसे शायद कुछ न होता, लेकिन आपको डॉक्टर की लापरवाही के कारण गलत मेडिकेशन दे दिया गया... उसके कारण आपको एलर्जिक रिएक्शन हो गया।”

“किस ऑर्गन में इंफेक्शन हुआ?”

“रेस्पिरेटरी... मुझे ठीक से नहीं मालूम, लेकिन आपको और माँ को फिर से पूरा हेल्थ चेक करवाना चाहिए। स्पेसिफ़िक फॉर एलर्जीस...”

“हम्म...”

“वानप्रस्थ अस्पताल में कोई अजिंक्य देशपाण्डे डॉक्टर आएगा,”

“अभी नहीं आया है?”

अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।

“लेकिन बेटे, अगर मुझे मरना लिखा है, तो मर तो जाऊँगा न?”

“आई डोंट बिलीव इट पापा,” अजय ने दृढ़ता से कहा, “अगर चीज़ें बदल ही न सकतीं, तो प्रजापति जी मुझे वापस भेजते ही क्यों? उससे क्या हासिल होता?”

अशोक जी ने समझते हुए सर हिलाया।

“और देखिए न, माया दीदी की लाइफ भी तो बदल रही है! उस मुकेश के साथ उनकी शादी नहीं हो रही है न अब,”

“तू उस बात पर भी सही था बेटे,” अशोक जी बोले, “मैंने पता लगवाया था। तेरे चतुर्वेदी अंकल ने पता किया था कि मुकेश और उसका परिवार ठीक नहीं है।”

“आपने यह बात मुझे नहीं बताई,” इतनी देर में अजय पहली बार मुस्कुराया।

“कोई ज़रुरत ही नहीं थी बेटे,” अशोक जी भी मुस्कुराए, “कमल और माया दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं... यह तो मैं भी बता सकता हूँ! राणा साहब के परिवार में अपनी बिटिया जा रही है, यही दिखा रहा है कि ईश्वर की हम पर बड़ी दया है।”

“जी पापा, मेरी पिछली लाइफ में कमल ने कभी बताया ही नहीं कि उसको दीदी इतनी पसंद हैं!”

“तुझे भी तो पसंद नहीं थी,”

“हाँ पापा, नहीं थी। लेकिन मैंने देखा कि कैसे वो बेचारी उस मुकेश से छुप कर हमसे मिलने आती थीं। दीदी ने हमारा साथ कभी नहीं छोड़ा। कमल ने हमारा साथ नहीं छोड़ा। राणा अंकल और आंटी जी ने तो हमको अपने घर आ कर रहने को कहा भी था... लेकिन आपका बेटा ऐसा नहीं है कि वो अपने बूते पर अपनी माँ को दो जून का खाना न खिला सके।”

कहते कहते अजय को फिर से अपने संघर्ष की बातें याद आ गईं। आँसुओं की बड़ी बड़ी बूँदें उसकी आँखों से टपक पड़ीं।

“मेरा बेटा,”

“हाँ पापा, आपका बेटा हूँ! आपकी सारी क्वालिटीज़ हैं मेरे अंदर,” उसने मुस्कुराने की कोशिश करी।

फिर जैसे उसको कुछ याद आया हो, “मनोहर भैया भी साथ थे! वफ़ादारी के चक्कर में छोटी मोटी नौकरी कर रहे थे वो जेल के पास,”

“ओह बेटे,”

“पापा,” अजय ने जैसे उनको समझाने की गरज़ से कहा, “आप ऐसे न सोचिए! वो सब नहीं होगा अब। ... हमारे सामने दूसरी मुश्किलें आएँगी, लेकिन वो मुश्किलें नहीं...”

दोनों फिर से कुछ देर मौन हो गए।

“माँ को पता है ये सब?” अंततः अशोक जी ने ही चुप्पी तोड़ी।

“नहीं। मैंने उनको एक चिट्ठी में लिख कर कुछ इंस्ट्रक्शंस दिये थे, आपके हास्पिटलाइज़ेशन को ले कर... लेकिन यहाँ डॉक्टर या हॉस्पिटल नहीं, उस एलर्जी को अवॉयड करना है... इस पटेल को अवॉयड करना है,”

“ठीक है, हम चारों इसी वीक फुल सीरियस चेकअप करवाते हैं।”

“ठीक है पापा,”

“ओह बेटे, इतना बड़ा बोझ लिए घूम रहे हो इतने दिनों से!”

“कोई बोझ नहीं है पापा। फॅमिली बोझ नहीं होती... आप सभी को खुश देखता हूँ, तो इट आल फील्स वर्थ इट,”

“हाँ बेटे, ख़ुशियाँ तो बहुत हैं! ... सब तेरे कारण ही हो रहा है!”

“क्या पापा! हा हा हा!”

“अच्छा बेटे एक बात बता, तब माया की शादी कब हुई थी?”

“इसी साल... नवम्बर में पापा!”

“तो क्या कहते हो? इस बार इन दोनों के लिए वेट करें? कमल अभी भी पढ़ रहा है न,”

“पर्सनली, मैं तो चाहूँगा कि दोनों की शादी जल्दी ही हो जाए... अगर शुभ मुहूर्त नवम्बर में हैं तो नवम्बर में ही। शादी तय हो गई है, दोनों एडल्ट भी हैं, तो फालतू के कारणों से शादी जैसी इम्पोर्टेन्ट चीज़ रुकनी नहीं चाहिए।”

“हम्म,”

“लेकिन वो आप और माँ बताइए... और दीदी,”

“एक्चुअली, कल दिन में ऑफिस में, राणा साहब का कॉल आया था। उन्होंने अपनी इच्छा बताई है कि दोनों को क्यों न इसी नवंबर में ब्याह दें,”

“बहुत बढ़िया है फिर तो!” अजय बोला, “आपने माँ से बात करी?”

“अभी नहीं... लेकिन आज पूछता हूँ भाभी से,”

“परफेक्ट!”

“और प्रशांत का क्या करें?”

“मैं तो कहता हूँ कि दोनों की साथ ही में शादी करवा देते हैं पापा, खर्चा बचेगा!”

“हा हा हा हा!” इस बात पर आज की शाम अशोक जी पहली बार दिल खोल कर हँसने लगे।

दिल पर से एक भार हट गया, ऐसा महसूस हो रहा था उनको।

“पापा,” अजय ने शरारत से पूछा, “एक और पेग?”

“हा हा हा... मेरी आड़ में खुद पीना चाहता है बदमाश!” वो आनंद से बोले, “चल ठीक है! एक और!”

“चियर्स पापा,”

“चियर्स बेटे,”

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Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 
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