अपडेट 27
एक शनिवार को अशोक जी ने अजय से कहा,
“बेटे,”
“जी पापा?”
“उस दिन तुमको मन कर रहा था, लेकिन आज मेरा मन हो रहा है कि हम दोनों बाप बेटा बैठ कर साथ में स्कॉच पियें...”
“आई वुड लव इट पापा,”
“यू मेक इट...” उन्होंने सुझाया।
“ग्लेनफ़िडिक?”
अशोक जी ने हाँ में सर हिला कर कहा, “यस... एटीन ऑर ट्वेंटी वन, यू डिसाइड...”
“ओके पापा!”
“और, जैसा मैंने तुम्हारा पेग बनाया था लास्ट टाइम, वैसा ही बनाना अपने लिए,” उन्होंने मुस्कुराते हुए उसको हिदायद दी।
“यस सर,”
कह कर अजय दोनों के लिए ड्रिंक्स बनाने लगा। कुछ देर में वो एक ट्रे में दोनों के लिए स्कॉच के ग्लास ले आया। एक अशोक जी को दिया और दूसरा स्वयं ले कर उनके सामने बैठ गया।
“चियर्स बेटे,”
“चियर्स पापा!”
इन दस हफ़्तों में पापा के साथ उसके सम्बन्ध बहुत अच्छे बन गए थे। दोनों साथ में बहुत सारे काम करते - बातें, कसरतें, इन्वेस्टमेंट और बिज़नेस की बातें, इत्यादि!
दो चुस्की लगा कर अशोक जी ने कहा,
“अब बताओ बेटे, क्या बात है?”
“बात पापा?” अजय ने उनकी बात न समझते हुए कहा।
उन्होंने एक गहरी साँस भरी, “बेटे, पिछले दो ढाई महीनों से देख रहा हूँ कि तुम्हारे अंदर बहुत से चेंजेस आ गए हैं। नो, आई ऍम नॉट कम्प्लेनिंग! तुम्हारे अंदर सारे चेंजेस बहुत ही पॉजिटिव हैं... लेकिन चेंजेस हैं।”
“पापा...”
“बेटे, झूठ न बोलना! ... तुम मुझसे झूठ नहीं कहते, सो डोंट स्टार्ट! लेकिन छुपाना भी कुछ नहीं,”
“लेकिन पापा, आपको क्यों...”
“क्यों लगता है कि तू बदल रहा है?” उन्होंने पूछा।
अजय ने नर्वस हो कर ‘हाँ’ में सर हिलाया।
वो वात्सल्य भाव से मुस्कुराए, “बाप हूँ तेरा! ये सेन्स केवल माँओं में ही नहीं होता... बाप में भी होता है।” फिर एक गहरी सांस ले कर आगे बोले, “मुझे आज भी याद है... तूने मुझे हीरक पटेल से कोई भी डील न करने को कहा था।”
अजय नर्वस होते हुए कसमसाया।
“आज मिला था वो।” अशोक जी दो क्षण रुक कर बोले, “तू सही कह रहा था... शार्क है वो। ऊपर से मीठी मीठी बातें कर रहा था, लेकिन उसकी आँखों में लालच दिखता है।”
“कहाँ मिला वो आपको पापा?”
“अशोक होटल में,” - अशोक होटल दिल्ली का एक पाँच सितारा लक्ज़री होटल है - अशोक जी बोले, “एक समिट था वहाँ,”
अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“वो सब ठीक है... लेकिन तुझे उसके बारे में पता कैसे चला? वो तो बस तीन दिन पहले ही इस समिट के लिए आया है कीनिया से इंडिया... उसके पहले तीन साल पहले ही उसकी इण्डिया ट्रिप लगी थी,”
अजय चुप रहा।
“केवल यही बात नहीं है... तू माया से जिस तरह बातें करता है... उसके लिए जो पहला प्रोपोज़ल आया था तूने उसको जैसे मना किया, उसकी शादी कमल से तय करवाई... और अब प्रशांत के लिए पैट्रिशिया...” वो थोड़ा रुके, “बात क्या है बेटे? अपने बाप से छुपाएगा अब?”
“नहीं पापा,” अजय ने एक गहरी साँस भरी और एक ही बार में पूरा पेग गटक गया, “... मैं आपको सब कुछ बताऊँ, उसके लिए मुझे एक और पेग चाहिए... स्ट्रांगर!”
अशोक जी को अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन आँखों के इशारे से उन्होंने उसको दूसरे पेग की अनुमति दे दी।
कोई पाँच मिनट दोनों मौन रहे। वो अपना पेग ले कर वापस आया और अपने सोफ़े पर बैठा।
एक सिप ले कर बोला, “पापा, पता नहीं आप मेरी बातों का कितना यकीन करेंगे... इवन आई डोंट फुल्ली ट्रस्ट एंड बिलीव इट माइसेल्फ...”
“ट्राई मी बेटे,”
“पापा, मैं फ़्यूचर से आया हूँ,”
“व्हाट?” अशोक जी के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे उनको लगा हो कि उनका बेटा उनको मूर्ख बना रहा है।
“पापा पहले सुन तो लीजिए,”
“हाँ बोलो, बट दिस इस सो हिलेरियस...”
अजय ने उनकी बात नज़रअंदाज़ करी और फिर एक गहरी साँस ले कर उनको मुंबई पुणे द्रुतमार्ग पर हुई घटना से उल्टे क्रम में सभी बातें बताना शुरू करीं। प्रजापति जी के साथ हुई घटना, रागिनी नाम की लड़की से उसका ब्याह, झूठे केस, उससे सम्बन्ध विच्छेद, संपत्ति का बिकना, ग़रीबी के दिन, और फिर जेल में बिताये तीन साल, उसके पश्चात गरिमामय जीवन जीने के लिए रोज़ रोज़ जूझना...
“एक मिनट,” अशोक जी बोले, “मुंबई पुणे एक्सप्रेसवे जैसा कुछ नहीं है,”
“आई नो! अभी नहीं है, लेकिन पाँच छः साल में हो जाएगा पापा,”
नर्वस होने की बारी अब अशोक जी की थी।
“जब ये सब हो रहा था, तब मैं कहाँ था?” उन्होंने सर्द आवाज़ में पूछा।
अजय की आँखों से आँसू आ गए, “आप नहीं थे पापा...” उसकी आवाज़ भर आई, “आप नहीं थे।”
“कहाँ था मैं बेटे?” वो समझ तो गए, लेकिन फिर भी जानना चाहते थे।
“इस हीरक पटेल ने आपको आपके बिज़नेस में भारी नुक़सान पहुँचाया था पापा... सामने तो आपका दोस्त बना रहा, लेकिन समझिये कि उसने आपकी पीठ में छूरा घोंपा है। आपके आधे बिज़नेस उसका कब्ज़ा हो गया था। आपके ऊपर सारे उधार छोड़ दिए, और सारा मलाई माल ले कर चल दिया।”
अशोक जी अभी भी उत्तर की प्रतीक्षा में थे।
अब अजय को वो बातें बतानी पड़ीं, जो वो बताना नहीं चाहता था, “उसके कारण आपको बहुत धक्का लगा पापा... यू हैड हार्ट अटैक...”
वो बात पूरी नहीं कर पाया।
तीन चार मिनट दोनों मौन रहे। फिर अशोक जी ही बोले,
“कब हुआ?” उनकी आवाज़ भी बैठ गई थी।
उनके बेटे और भाभी के साथ इतना कुछ हो गया, जान कर वो भी दुःखी हो गए थे।
“जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था,” उसने गहरी साँस ली, “वैसे शायद कुछ न होता, लेकिन आपको डॉक्टर की लापरवाही के कारण गलत मेडिकेशन दे दिया गया... उसके कारण आपको एलर्जिक रिएक्शन हो गया।”
“किस ऑर्गन में इंफेक्शन हुआ?”
“रेस्पिरेटरी... मुझे ठीक से नहीं मालूम, लेकिन आपको और माँ को फिर से पूरा हेल्थ चेक करवाना चाहिए। स्पेसिफ़िक फॉर एलर्जीस...”
“हम्म...”
“वानप्रस्थ अस्पताल में कोई अजिंक्य देशपाण्डे डॉक्टर आएगा,”
“अभी नहीं आया है?”
अजय ने ‘न’ में सर हिलाया।
“लेकिन बेटे, अगर मुझे मरना लिखा है, तो मर तो जाऊँगा न?”
“आई डोंट बिलीव इट पापा,” अजय ने दृढ़ता से कहा, “अगर चीज़ें बदल ही न सकतीं, तो प्रजापति जी मुझे वापस भेजते ही क्यों? उससे क्या हासिल होता?”
अशोक जी ने समझते हुए सर हिलाया।
“और देखिए न, माया दीदी की लाइफ भी तो बदल रही है! उस मुकेश के साथ उनकी शादी नहीं हो रही है न अब,”
“तू उस बात पर भी सही था बेटे,” अशोक जी बोले, “मैंने पता लगवाया था। तेरे चतुर्वेदी अंकल ने पता किया था कि मुकेश और उसका परिवार ठीक नहीं है।”
“आपने यह बात मुझे नहीं बताई,” इतनी देर में अजय पहली बार मुस्कुराया।
“कोई ज़रुरत ही नहीं थी बेटे,” अशोक जी भी मुस्कुराए, “कमल और माया दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं... यह तो मैं भी बता सकता हूँ! राणा साहब के परिवार में अपनी बिटिया जा रही है, यही दिखा रहा है कि ईश्वर की हम पर बड़ी दया है।”
“जी पापा, मेरी पिछली लाइफ में कमल ने कभी बताया ही नहीं कि उसको दीदी इतनी पसंद हैं!”
“तुझे भी तो पसंद नहीं थी,”
“हाँ पापा, नहीं थी। लेकिन मैंने देखा कि कैसे वो बेचारी उस मुकेश से छुप कर हमसे मिलने आती थीं। दीदी ने हमारा साथ कभी नहीं छोड़ा। कमल ने हमारा साथ नहीं छोड़ा। राणा अंकल और आंटी जी ने तो हमको अपने घर आ कर रहने को कहा भी था... लेकिन आपका बेटा ऐसा नहीं है कि वो अपने बूते पर अपनी माँ को दो जून का खाना न खिला सके।”
कहते कहते अजय को फिर से अपने संघर्ष की बातें याद आ गईं। आँसुओं की बड़ी बड़ी बूँदें उसकी आँखों से टपक पड़ीं।
“मेरा बेटा,”
“हाँ पापा, आपका बेटा हूँ! आपकी सारी क्वालिटीज़ हैं मेरे अंदर,” उसने मुस्कुराने की कोशिश करी।
फिर जैसे उसको कुछ याद आया हो, “मनोहर भैया भी साथ थे! वफ़ादारी के चक्कर में छोटी मोटी नौकरी कर रहे थे वो जेल के पास,”
“ओह बेटे,”
“पापा,” अजय ने जैसे उनको समझाने की गरज़ से कहा, “आप ऐसे न सोचिए! वो सब नहीं होगा अब। ... हमारे सामने दूसरी मुश्किलें आएँगी, लेकिन वो मुश्किलें नहीं...”
दोनों फिर से कुछ देर मौन हो गए।
“माँ को पता है ये सब?” अंततः अशोक जी ने ही चुप्पी तोड़ी।
“नहीं। मैंने उनको एक चिट्ठी में लिख कर कुछ इंस्ट्रक्शंस दिये थे, आपके हास्पिटलाइज़ेशन को ले कर... लेकिन यहाँ डॉक्टर या हॉस्पिटल नहीं, उस एलर्जी को अवॉयड करना है... इस पटेल को अवॉयड करना है,”
“ठीक है, हम चारों इसी वीक फुल सीरियस चेकअप करवाते हैं।”
“ठीक है पापा,”
“ओह बेटे, इतना बड़ा बोझ लिए घूम रहे हो इतने दिनों से!”
“कोई बोझ नहीं है पापा। फॅमिली बोझ नहीं होती... आप सभी को खुश देखता हूँ, तो इट आल फील्स वर्थ इट,”
“हाँ बेटे, ख़ुशियाँ तो बहुत हैं! ... सब तेरे कारण ही हो रहा है!”
“क्या पापा! हा हा हा!”
“अच्छा बेटे एक बात बता, तब माया की शादी कब हुई थी?”
“इसी साल... नवम्बर में पापा!”
“तो क्या कहते हो? इस बार इन दोनों के लिए वेट करें? कमल अभी भी पढ़ रहा है न,”
“पर्सनली, मैं तो चाहूँगा कि दोनों की शादी जल्दी ही हो जाए... अगर शुभ मुहूर्त नवम्बर में हैं तो नवम्बर में ही। शादी तय हो गई है, दोनों एडल्ट भी हैं, तो फालतू के कारणों से शादी जैसी इम्पोर्टेन्ट चीज़ रुकनी नहीं चाहिए।”
“हम्म,”
“लेकिन वो आप और माँ बताइए... और दीदी,”
“एक्चुअली, कल दिन में ऑफिस में, राणा साहब का कॉल आया था। उन्होंने अपनी इच्छा बताई है कि दोनों को क्यों न इसी नवंबर में ब्याह दें,”
“बहुत बढ़िया है फिर तो!” अजय बोला, “आपने माँ से बात करी?”
“अभी नहीं... लेकिन आज पूछता हूँ भाभी से,”
“परफेक्ट!”
“और प्रशांत का क्या करें?”
“मैं तो कहता हूँ कि दोनों की साथ ही में शादी करवा देते हैं पापा, खर्चा बचेगा!”
“हा हा हा हा!” इस बात पर आज की शाम अशोक जी पहली बार दिल खोल कर हँसने लगे।
दिल पर से एक भार हट गया, ऐसा महसूस हो रहा था उनको।
“पापा,” अजय ने शरारत से पूछा, “एक और पेग?”
“हा हा हा... मेरी आड़ में खुद पीना चाहता है बदमाश!” वो आनंद से बोले, “चल ठीक है! एक और!”
“चियर्स पापा,”
“चियर्स बेटे,”
**