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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40;
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Kaafi unique tha.... Par ye kya... Update itna Chhota??? 🥹 Sirf sapna? Ajay ko jagte hue thoda sa dikha dete...

Anyways... Aaj ye jaanane ko mila ki adarsh krishnika ka matlab black body hota h.... 😁😁

Basically... Ajay ko aisa lga jese use chaaro or se kheech jaa rha ho... Nd wo jaise black body me tha.. hr taraf darkness... Koi ujala nhi... Na ujala jaa sakta h na hi nikal sakta h... Aur wo apni marzi k khilaf khichta chala jaa rha tha... Mujhe chaadar ka thoda samjh ni aaya...

Example me chaadar ka use tha... Like chaadar par wo fel rha tha... Something like that... 😅 I tried my best to imagine it... I think aisa hi kuchh ho rha tha uske saath... Nd then suddenly ek raushni aayi... Sab kuchh reset hone lga...

Mujhe aisa bhi lg rha ki ajay k saath past me kuchh bohut memorable cheeze hui h??? Kuchh meethi meethi yaade?? Jinhe wo khona nhi chaahta?? Nd unka aag par lgna... Nd ajay ka unhe bachana?? To main definitely ye dekh paa rhi hu..

Interesting... Very interesting... Bas update chhota tha... Yahi shikayat h meri... 😁 Shayad sirf dream dikhaane k liye ye update tha..
Kaash thoda aur lamba hota... Anyways... Keep writing... 💯

आपकी बातों के उत्तर अगले अपडेट में हैं - इसलिए कुछ नहीं लिखूँगा!
लेकिन आप इतना विस्तार से अपने विचार जो लिखती हैं, पढ़ कर आनंद आ जाता है।
बहुत बहुत धन्यवाद :)
साथ में बनी रहें।
 

avsji

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अपडेट 28


स्कॉच पीते पीते अशोक जी ने अजय से और भी कई बातें पूछीं,

“बेटे, एक बात बताओ?”

“जी पापा?”

“माया बेटी को बच्चे कितने हुए थे?”

“दो,” अजय ने कहा, “लेकिन पापा, अब चूँकि उनकी शादी कमल से होने वाली है, तो जाहिर से बात है कि बच्चे भी बदल जाएँगे...”

“बहुत अच्छी बात है... एक बच्चा हो, या दो या तीन... दोनों खूब प्यार से रहें, दोनों का रिश्ता हर पल मज़बूत हो, बस यही चाहिए!”

“हाँ पापा... कमल और दीदी दोनों ही अब खुश लगते हैं। अच्छा साथी होने का बहुत फ़ायदा है,” अजय बोला।

“हम्म...” उन्होंने सोचते हुए कहा, “बात तो सही है। अच्छा बेटे, एक बात बताओ - तुम्हारे कोई बच्चे हुए थे?”

“नहीं पापा,” अजय ने सकुचाते हुए कहा, “रागिनी प्रेग्नेंट तो हुई थी, लेकिन उसने बच्चा अबॉर्ट कर दिया था।”

“आई ऍम सो सॉरी बेटे,”

“कोई बात नहीं पापा... ऐसा सोच लीजिए कि वो सब हुआ ही नहीं। हुआ भी है तो किसी और टाइमलाइन में...” अजय ने एक गहरी साँस भरी, “मैं भी अब अपनी ज़िन्दगी को एक नए सिरे से जीना चाहता हूँ,”

“अच्छी लड़की से शादी करना इस बार,” अशोक जी बोले।

अजय मुस्कुराया।

“नहीं बेटे, सच में। लोग रिश्ता ढूँढ़ते अधिकतर यही देखते हैं कि लड़का लड़की देखने में कैसे हैं, क्या करते हैं, कितना कमाते हैं... जाति बिरादरी... इन सभी बातों का रिश्ते में मोल ही क्या है? असली बात है वैल्यूज़... क्वालिटीज़... एक दूसरे के लिए लव... रिस्पेक्ट...”

अजय कुछ बोला नहीं... बस शून्य को निहारते हुए चुपचाप धीरे धीरे स्कॉच का सिप लेता रहा।

“रूचि प्यारी लड़की है,” अशोक जी ने धीरे से कहा।

“हम्म?”

“मैंने कहा रूचि प्यारी लड़की है। मुझे भी पसंद है और तुम्हारी माँ को भी!”

“हा हा हा... पापा, आप भी न!”

“क्यों क्या हो गया?” अशोक जी ने उसको छेड़ा, “अच्छी नहीं है?”

“बहुत अच्छी है पापा,” अजय बोला, “लेकिन छोटी है न,”

“क्यों? क्या ऐज है उसकी?” उन्होंने उसको कुरेदा, “अट्ठारह की तो है न? बढ़िया है - दोनों हम उम्र हो!”

“हा हा हा! पापा, आप न...”

“क्यों? जब प्रशांत हुआ था, तब भाभी बीस की भी नहीं हुई थीं... तुम्हारी माँ ट्वेंटी थ्री की थीं तुम्हारे पैदा होने के समय... माया बेटी खुद ट्वेंटी थ्री की होने वाली है... और पैट्रिशिया बिटिया ट्वेंटी फोर की है।”

“पापा अभी उसके पढ़ने लिखने की उम्र है,”

“प्रेम होना, प्रेम में पड़ना... यह बातें उम्र की मोहताज नहीं होतीं बेटे। जब अच्छी लड़की मिले, तब उसको भगवान का प्रसाद समझ कर पूरे दिल से स्वीकार कर लो,”

“पापा, मैं तीस का हूँ,”

“हूँ नहीं, थे!” अशोक जी ने उसको करेक्ट किया, “तुम्हारे अंदर समझ एक तीस साल के आदमी की है, लेकिन हो तुम अभी भी टीनएजर!”

अजय ने कुछ कहा नहीं।

अशोक जी की बात सही थी। उसने एक गहरी साँस भरी और स्कॉच का आखिरी घूँट भी पी लिया।



*



अशोक जी की बात और अजय की उम्मीद सही साबित हो रही थी।

कमल और माया का रिश्ता प्रतिदिन और प्रगाढ़ हो रहा था। कमल का एक-तरफ़ा प्यार अब दो-तरफ़ा हो गया था। माया भी कमल को बहुत चाहने लगी थी। कमल के प्रेम ने उसके जीवन में एक अलग ही तरीक़े की बहार ला दी थी। ऐसा नहीं है कि कमल से मिलने से पहले उसको प्रेम की कोई कमी महसूस हुई हो। पापा और माँ ने बहुत प्रेम दिया था उसको... और पिछले कुछ महीनों से उसके ‘बाबू’ ने भी।

लेकिन प्रेमी वाला प्यार अलग ही होता है।

उस बरसात की रात में अपने पहले चुम्बन के बाद से माया को अपरिचित सी, लेकिन बहुत ही कोमल भावनाएँ महसूस होतीं। वो समझती थी उन भावनाओं को... वो अच्छी तरह जानती थी कि सेक्स क्या होता है! नटों के बेड़े में सेक्स की क्रिया के बारे में किसी को न पता हो, हो ही नहीं सकता। जब आप खानाबदोश समाज में रहते हैं, जब एक एक इंच की जगह बहुमूल्य होती है, तब बच्चों में भोलापन शेष नहीं रह जाता। माया कोई अपवाद नहीं थी। लेकिन, वो तो पापा मम्मी की कृपा हुई थी उस पर, कि उसका भोलापन भंग होने के बाद भी वापस आ गया था। इस परिवार में रहने के बाद वो सब कुछ भूल सी गई थी। उसकी माँ के मरने के बाद उसके साथ कुछ भी हो सकता था, लेकिन अशोक जी और प्रियंका जी ईश्वर बन कर आ गए उसको बचाने... फिर किरण जी भी!

तो उसको पता था सेक्स के बारे में। लेकिन वो ज्ञान केवल शारीरिक स्तर पर ही था। सेक्स एक कोमल, आत्मीय और प्रेममय क्रिया हो सकती है, वो उसको पापा मम्मी और ताऊ जी और माँ के कारण ही समझ में आया। उनकी छाया में वो न केवल सुरक्षित ही रही बल्कि उसके मन में कोमल मानवीय भावनाएँ अच्छे से पल्लवित हुईं। अब उनके पुष्पित होने का समय आ गया था।

कमल का संग पा कर वो अपने सुनहरे भविष्य की कल्पना के ताने बाने बुनने लगी थी - कैसा होगा उन दोनों का जीवन, कितने बच्चे होंगे उनके, उनको कैसे पालना है, इत्यादि! सबसे सुनहरी बातें उसके मन में अपने ससुराल को ले कर उठतीं। ससुराल भी कैसा अद्भुत मिला था उसको! उसके होने वाले सास ससुर उससे कितना प्रेम करते थे। उसको कभी कभी अपनी ही किस्मत से डर लगने लगता... कि कहीं ये सारी खुशियाँ चली न जाएँ! लेकिन जब वो बिना डरे कमल से प्रेम करती, तो ख़ुशियाँ कई कई गुणा बढ़ जातीं। इसलिए उसने उस डर का त्याग कर के, पूरे मनोयोग से कमल के साथ ही अपने जीवन को विलीन कर देने की ठानी, और उस काम से सफ़ल भी रही।

जब साथी अच्छा होता है तो रास्ता भटकना मुश्किल हो जाता है। माया को ‘इम्प्रेस’ करने के लिए कमल ने पढ़ाई लिखाई में अपनी कोशिशें और तेज़ कर दीं थीं। ऐसा नहीं है कि रातोंरात वो बहुत तेज़ हो गया था। लेकिन प्रयास और श्रम में जो कोताही वो अक्सर बरतता रहा था, अब वो बेहद कम हो गई थीं। अनावश्यक समय का व्यय नहीं करता था वो अब। सुबह जल्दी उठता, एक-डेढ़ घंटा पढ़ाई करता, फिर घर से कॉलेज, कॉलेज से घर, उसके बाद माया के साथ गुणवत्तापूर्ण समय व्यतीत करना, उसको वापस घर छोड़ने आना, रात में दो घण्टे फिर अपनी पढ़ाई करना... बस यही उसका काम था अब! सप्ताहांत में भी वो और अजय साथ बैठ कर पढ़ाई करते। पिछले कुछ समय में रूचि भी जुड़ गई थी उन दोनों की इस साझी पढ़ाई में! उसके अंदर ऐसे सकारात्मक परिवर्तन देख कर उसके माँ बाप भी बहुत खुश थे। वो जानते थे कि ये सभी बदलाव उसमें माया के कारण ही आए थे, इसलिए माया और कमल के मेल को ले कर अगर उनके मन में कोई छोटा सा भी संशय रहा हो, तो अब वो शेष नहीं था।

उधर माया अपने होने वाले ‘परिवार’ के साथ एक होने की पूरी कोशिश कर रही थी। किरण जी और अशोक जी भी उसको प्रोत्साहित करते कि वो जितना संभव था, अपनी होने वाली ससुराल में अपना समय व्यतीत करे, उनको जानने और समझने की कोशिश करे। उनके तौर तरीके सीखे। माया किशोर जी और सरिता जी के साथ प्रतिदिन रामायण के कुछ श्लोकों का पाठ करती। ठीक है कि वो स्वयं केवल बारहवीं पास थी और वो भी प्राइवेट से, लेकिन इस प्रयास से उसका संस्कृत ज्ञान और तार्किक क्षमता बढ़ने लगा था।

महाग्रंथ रामायण, दरअसल एक महाकाव्य है, जिसमें कम से कम चौबीस सहस्त्र (हज़ार) श्लोक हैं। उसमें सीखने जानने को इतना कुछ है कि क्या कहें! ये तीनों, और कभी कभी कमल भी, हर दिन केवल दो दर्ज़न श्लोकों का का ही पाठ करते, और उन पर चर्चा कर पाते थे। इस गति से पूरी रामायण का पाठ करने में लगभग तीन साल लग जाने थे। रामायण के बाद महाभारत और श्रीमद्भगवदगीता जैसे महाग्रन्थ और भी थे!

वैसे भी जल्दी भी किसको ही थी!

यह एक ऐसी सुन्दर सी परंपरा चल निकली थी, जिसका आनंद अब पूरा राणा परिवार उठाने लगा था। इस नई परंपरा के चलते घर के सभी सदस्यों के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आने लगे थे। टीवी पर अनावश्यक समय व्यय होना समाप्त हो गया था। केवल दूरदर्शन पर समाचार देखने और कभी कभी क्रिकेट मैच देखने में ही टीवी का उपयोग होता था अब। समय पर भोजन खाना भी शुरू हो गया था - पूरा परिवार साथ ही बैठ कर खाता।

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अपडेट 29


कमल और माया का ‘रोमांस’ बहुत क्यूट और मासूम सा था।

कमल के साथ उसका सम्बन्ध इतना कोमल सा था, कि क्या कहें! वो उससे उम्र में थोड़ी बड़ी थी। उस कारण से और साथ ही ‘बहू’ होने के कारण, किशोर और सरिता जी की उससे अपेक्षाएँ भी अधिक थीं। अच्छी स्त्री एक कुशल कुम्हार की तरह होती है - वो परिवार को किसी भी आकार में परिवर्तित कर सकती है। तो हाँ - अपेक्षाएँ अधिक भी थीं और माया उन अपेक्षाओं पर खरी भी उतर रही थी।

माया दोनों को ही बहुत पसंद थी, लेकिन उनके मन में एक संशय था कि इतनी जल्दी माया को पा कर कमल कहीं बिगड़ने न लगे। लेकिन वो संशय निराधार निकला। इस बात से वो दोनों बहुत प्रसन्न थे। मतलब माया न तो स्वयं बहक रही थी और न ही उनके एकलौते सुपुत्र को बहका रही थी। लेकिन दोनों को एक दूसरे से प्रेम है, वो यह बात भी समझते थे। और यह बात भी कि दोनों ही बच्चे सीधे सादे हैं। लिहाज़ा, दोनों को अकेले में कुछ समय बिताने को मिले, उसके लिए अक्सर सरिता जी ही उनको रामायण पाठ के बाद अपने सामने से दफ़ा कर देते, कि जा कर कुछ समय साथ में बिताओ।

इस सुझाव पर माया अक्सर झिझकती। कैसे वो चली जाए यूँ ही कमल के सामने? इसलिए वो सरिता जी के ही साथ रह जाती - कभी रसोई में या कभी कहीं और। और घर परिवार की कोई बात ले कर बैठ जाती। लेकिन सरिता जी समझती थीं कि एक जवान जोड़े के लिए अंतरंगता की अहमियत और आवश्यकता।

एक ऐसे ही दिन,

“बहू,”

“जी माँ?”

“अरे जाओ, ज़रा देख लो कमल को।” सरिता जी ने कहा, “वो पढ़ाई कर रहा है, या नहीं!”

यह बात सुन कर माया शर्मा गई।

वो जानती थी कि उसकी होने वाली सास की मंशा क्या थी। वो भी चाहती थी कि जा कर अपने कमल से लिपट जाए, लेकिन बहू की मर्यादा के कारण वो अपनी इस इच्छा को पूरा होने की सम्भावना पर भी खुश नहीं हो पा रही थी।

“पढ़ ही रहे होने, माँ!” माया ने बहाना किया, “मैं वहाँ क्या करूँगी? आपकी मदद कर देती हूँ, रसोई में!”

“अरे रसोई में क्या मदद करनी है रे?” वो बोलीं, “तू कुछ खाती ही नहीं है... और तेरे चक्कर में हमारा भी फल फ्रूट ही चल रहा है ज़्यादातर!”

दरअसल भोजन के संग विभिन्न प्रकार के सलाद खाने की लत माया ने ही लगवाई थी इस परिवार को। विभिन्न दलहनों और अंकुरित अनाजों के संग वो स्वादिष्ट सलाद बनाती। उसके चक्कर में मीठा खाना कुछ कम हो गया था इनका।

“... तो फिर कुछ ख़ास नहीं रह जाता बनाने को,” वो कह रही थीं, “जा, जा कर देख ले उसको। किसी जगह उसको ज़रुरत पड़े, तो मदद कर दे उसकी... पढ़ा दे...”

“उनको मैं क्या पढ़ाऊँगी माँ!” माया ने शर्म सा सकुचाते हुए कहा, “इनको तो अधिक आता है,”

“कैसी बुद्धू लड़की है!” सरिता जी ने सर पीटते हुए कहा, “यहाँ इसको एक बिंदास सास मिली है, जो इसको उसके होने वाले हस्बैंड के पास भेजने की कोशिश करती है, और एक ये है! मूरख पूरी!”

उनकी बात पर माया शर्म से हँसने लगी।

“सुन, एक ख़ास बात... और वो बात तू पल्ले बाँध ले ठीक से,” सरिता जी ने उसको शरारत से समझाया, “तू न, कमल की चाबी है!”

सरिता जी की बात सुनते ही उसको फिर से हँसी आ गई,

“अरे सुन न पहले पूरा, तू उसकी चाबी है और वो तेरा छल्ला। ... दोनों को अब साथ ही रहना है।”

माया ने शर्म से अपना सर झुका लिया।

“तुम दोनों बहुत प्यारे बच्चे हो... और हम जानते हैं कि तुम दोनों अपनी हदें पार नहीं करते हो,” सरिता जी ने माया के गाल को सहलाते हुए कहा, “लेकिन थोड़ा रोमांस तो होना चाहिए न तुम दोनों के बीच? हम्म?”

“माँ!” माया शरमा गई।

“क्या माँ? उस रात छत पर उसके सामने नंगू नंगू थी, तब कुछ नहीं! तब तो नहीं आ रही थी शरम!”

इस बात पर माया ने अपनी हथेलियों में अपना चेहरा छुपा लिया। उसकी इस प्यारी सी हरकत को देख कर सरिता जी ने उसको अपने सीने में भींच लिया।

“देख बच्चे, तुम दोनों जवान हो, और जवानी में जोश बहुत होता है। अगर हम तुमको मना करेंगे, तो तुम दोनों छुप छुप कर सब कुछ कर लोगे... ऐसे में, हमारे सुपरविशन में तुम दोनों रोमांस कर ले रहे हो, तो कोई गलत बात नहीं है!”

माया शर्म से सर झुकाए माँ के सीने में चिपकी हुई थी।

“फेरे नहीं पड़े हैं, तो पड़वा देंगे। पूजा पाठ नहीं हुआ है, करवा लेंगे! ये बातें ज़रूरी हैं, लेकिन जो सबसे बड़ी बात है वो यह है कि तुम दोनों के बीच सच्ची मोहब्बत है और एक दूसरे के परिवारों के लिए रिस्पेक्ट है! यह हम सबको पता है।” सरिता जी ने समझाया, “इसलिए रोमांस खूब करो। अपना प्यार खूब बढ़ाओ और उसको उम्र भर बनाए रखना। ठीक है बच्चे?”

“जी माँ,”

“और हाँ, तू उससे बड़ी है... तो उसकी गार्जियन तू ही है।”

माया अभी भी माँ के सीने से चिपकी हुई थी। उनकी बात सुन कर वो हँसने लगी।

“बहू?”

“जी माँ?”

“कमल तुझे खुश तो रखता है न? तुझे खूब प्यार तो करता है न?”

इस प्रश्न पर माया सरिता जी के सीने में और भी सिमट गई।

“बोल न?”

“बहुत माँ... बहुत खुश रखते हैं ये...”

“और प्यार?”

“बहुत प्यार करते हैं माँ! आप सभी बहुत प्यार करते हैं,”

“अरे क्यों न करेंगे? तू है ही इतनी प्यारी सी... तेरे आने से हमारी भी किस्मत खुलने लगी है!”

“माँ?” माया को समझ नहीं आया, “मेरे आने से ऐसा क्या हो गया?”

सरिता जी ने बात बदलते हुए कहा, “दीदी बताती हैं कि तू अभी भी उनका दूध पीती है?”

माया फिर से सकुचा गई। ऐसी बातें कैसे स्वीकार कर ले वो?

“अरे इसमें शर्माने वाली क्या बात है?” उन्होंने माया को अपने से थोड़ा अलग करते हुए कहा - अभी भी उसने अपना चेहरा अपनी हथेलियों में छुपा रखा था।

“बच्चों के साथ साथ ये तो माँ की भी किस्मत होती है कि वो अपने बच्चों को इस तरह से अपना प्यार दे सके।”

माया ने कुछ नहीं कहा, बस उसी अवस्था में सरिता जी से थोड़ा अलग, लेकिन फिर भी उनसे सट कर खड़ी रही।

“बहू?” दो क्षणों के बाद वो बोलीं, “ये देख, मैं तुझे क्या दे रही हूँ,”

जब उसने अपनी हथेलियाँ हटा कर आँखें खोलीं, तो देखा कि माँ अपनी ब्लाउज़ के बटन खोल रही थीं। पाँच क्षणों में ही उनके दोनों स्तन स्वतंत्र हो कर उसके सामने थे।

“माँ... ये... आप...”

सरिता जी ने केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया, “बोलने पर ही पिएगी?”

अचानक से ही माया के मन से सारी हिचक निकल गई। यह ऐसी अद्भुत सी बात थी, जिसकी कल्पना वो स्वप्न में भी नहीं कर सकती थी। कमल के संग होना एक अविश्वसनीय उपलब्धि थी उसके लिए। ईश्वरीय अनुकम्पा! लेकिन अपनी सासू माँ का स्तनपान! ये तो स्वयं ईश्वर के प्रेम, उनकी ममता की वर्षा है! उसने तुरंत ही माँ का एक चूचक मुँह में ले लिया। थोड़ी देर चूसा, लेकिन दूध नहीं था।

उसकी इस निराशा का निवारण भी तुरंत ही आ गया,

“चिंता न कर,” सरिता जी दबी हुई, लेकिन बहुत ही वात्सल्यपूर्ण आवाज़ में बोलीं, “तुझे भाभी भाभी कह कर बुलाने वाले का बंदोबस्त हो गया है!”

“क्या!?” माया प्रसन्नता से चौंक गई, “क्या सच में माँ?”

सरिता जी ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“ओह वॉव माँ! बहुत बहुत बधाई हो माँ,” माया ने चहकते हुए कहा, और पूछा, “कौन सा महीना है?”

“एक महीना हो गया है...”

“अमेज़िंग! आपको पता भी है कि आपने कितनी अच्छी न्यूज़ दी है माँ,” वो अभी भी चहक रही थी, “मैं अभ्भी बताती हूँ सबको!”

“हा हा हा, हाँ हाँ... लेकिन अभी नहीं! खाने पर!” सरिता जी ने कहा, “उसके पहले नहीं। ठीक है?”

“ठीक है माँ... ओह माँ! अब तो आई लव यू और भी अधिक,” कह कर माया वापस उनके स्तन से जा लगी।

“हा हा हा हा... तेरे पापा और मेरी एक इच्छा थी हमेशा से... कि एक और बच्चा हो जाय... अब देख, तेरे आते ही वो इच्छा भी पूरी हो रही है,”

“माँ यू आर द बेस्ट!”

“हा हा हा... मस्का मत लगा। उसके बिना भी तुझे सब मिलेगा।” कह कर उन्होंने माया को अपने दूसरे स्तन से लगा लिया।

माया दूसरा चूचक भी पीने लगी।

इन स्तनों में शीघ्र ही दूध आने लगेगा... और शीघ्र ही माँ जैसी सास मिलेंगीं! कैसी अद्भुत किस्मत है उसकी!

ऐसा माया ने सोचा।

“देख बेटे, हम दो एक दिनों में अशोक भाई साहब से कहने वाले हैं कि नवम्बर में तुम दोनों की शादी कर दें... अब और इंतज़ार करना सही नहीं है। अब तू हमको चाहिए ही चाहिए,”

“लेकिन ये अभी पढ़ रहे हैं माँ,”

“तो पढ़ता रहे। किसने रोका है?” फिर उसका एक गाल सहला कर, “तू उसके साथ रहेगी, तो उसका फोकस और बढ़ेगा। ... मुझे पता है ये बात। तेरा बहुत ही अच्छा प्रभाव है कमल पर,”

“माँ,”

“हाँ, और क्या! देख न - कितना अच्छा हो गया है वो पढ़ने में। अपने पापा के साथ उनके बिज़नेस में भी इंटरेस्ट दिखाने लगा है अब तो। उनके साथ बैठ कर बिज़नेस की बातें सीखता है वो अब... और फिर मैं हूँ ही यहाँ... उसको और पढ़ना है तो पढ़े! उसको क्या ही करना है? ... तेरे बच्चे होंगे, तो उनको मैं पाल लूँगी।”

सरिता जी ने ‘मैं’ पर ज़ोर दिया।

बच्चों का नाम सुन कर माया ने दाँत दबा कर शर्माने वाला भाव दिखाया।

“हाँ शर्मा ले, जितना भी शर्माना है। ... और सुन, माँ तो अब मैं बनने ही वाली हूँ, लेकिन मुझे जल्दी से दादी माँ भी बनना है अब। ... तेरी शादी के साल भर में... बहुत अधिक तो डेढ़ साल के अंदर अंदर! उससे अधिक नहीं। समझी?”

“बाप रे!”

“हाँ, बाप रे! इसीलिए तुम दोनों को अभी रोमांस करने का मौका दे रही हूँ! शादी के बाद में कोई बहाना नहीं चाहिए हमको।” सरिता जी आनंद से बोलीं, “मैं तो तेरे बच्चे को भी अपना दूध पिलाऊँगी!”

“मतलब मेरा पत्ता कट?”

“नहीं रे!” सरिता जी थोड़ा भावुक हो गईं, “ऐसे कैसे? तेरे कारण ही तो हुआ है सब... जैसे तेरे आने से किरण दीदी और प्रियंका दीदी - दोनों जनी की कोख फिर से भर गई, वैसे ही तेरे आने से मेरी भी... तेरा तो पहला हक़ है।”

“माँ,” माया भी भावुक हो गई, “मैं कितनी लकी हूँ... दो दो माँओं का ऐसा अनूठा प्यार मिल रहा है मुझे!”

“हम लकी हैं बेटे, हम!” वो संतोष से मुस्कुराती हुई बोलीं, “अब जा, कमल के पास जा। थोड़ा साथ में समय बिता लो दोनों... मैं बुला लूँगी फुर्सत से! ठीक है?”

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अपडेट 30


अब माँ का आदेश हो ही गया तो उसको कमल के साथ एकांत में होना ही पड़ता।

वैसे माया को इस बात से कोई परहेज़ नहीं थी। एक प्रेमी के रूप में कमल हठी या ज़िद्दी नहीं था। उसके अंदर माया के लिए व्यापक सम्मान था। उसके संस्कार पुख़्ता थे, इतना तो स्पष्ट था। लेकिन एकांत मिलने पर दोनों को अंतरंग होने के अवसर भी मिल जाते। कमल के चुम्बन कोमल होते... ऐसे चुम्बन जो उसको अंदर तक पिघला देते... उसके तार अंदर तक झनझना देते। यहाँ तक भी ठीक था। लेकिन कभी कभी जब दोनों की अंतरंगता उग्र हो जाती तो कमल उसको तेजी से निर्वस्त्र भी कर देता। उसको माया के चूचकों को चूमना और पीना बहुत भला लगता। किसको नहीं लगता? बस इसी बात से माया को थोड़ा डर लगता। वो जैसे तैसे स्वयं पर नियंत्रण रखती, और उस कारण से कमल अपने आप पर। लेकिन अगर किसी दिन यह नियंत्रण टूट गया, तो?

लेकिन अगर माँ की इच्छा पूरी हो गई, तो दो ही महीनों में वो और कमल, एक हो जाएंगे - सदा के लिए!

जब माया कमल के कमरे में पहुँची तो जैसे वो उसी का इंतज़ार कर रहा था। उसने लपक कर माया को अपनी बाहों में थाम लिया और उसके होंठों का एक आवेशपूर्ण चुम्बन लेने लगा। जब वो आवेश थोड़ा कम हुआ तो,

“आपको हमारे पास आने में डर लगता है?” उसने पूछा।

माया ने शर्म से मुस्कुरा कर ‘न’ में सर हिलाया।

“तो फिर?”

“तो फिर क्या?”

“तो फिर आप हमारे पास क्यों नहीं आतीं?” कमल ने माया की कमर थामे हुए पूछा।

“आती तो हूँ... अभी भी तो आपके ही पास हूँ,”

“माँ ने जबरदस्ती कर के भेजा होगा,”

माया मुस्कुराई, “... हाँ, उन्होंने जबरदस्ती कर के भेजा तो है, लेकिन ऐसा नहीं है कि हम आपके पास नहीं आना चाहते...”

“तो बिना कहे ही क्यों नहीं आतीं?”

“माँ पापा के सामने ऐसे कैसे... शर्म आती है हमको!”

“अच्छा जी?” कह कर कमल उसके कुर्ते के बटन खोलने लगा, “और जब हमारी शादी हो जायेगी, तब?”

“तब?” माया ने कमल को छेड़ते हुए कहा, “क्या तब?” वो बोली, “... और आप हमारे कुर्ते के बटन क्यों खोल रहे हैं?”

“दूसरे प्रश्न का उत्तर है कि कई दिनों से आपको वैसे नहीं देखा... इसलिए,” कमल ने ‘वैसे’ शब्द पर ज़ोर दिया; उसने बटन खोलना रोका नहीं, “और पहले प्रश्न का क्लैरीफिकेशन है, जबा हमारी शादी हो जायेगी, तब नहीं आएगी शर्म आपको?”

“आएगी... लेकिन कम,” माया ने फुसफुसाते हुए बताया।

“अच्छा जी?” कमल उसका कुर्ता उतारते हुए बोला।

इस समय केवल काले रंग की ब्रा और शलवार पहने हुए माया बहुत सुन्दर लग रही थी - सुडौल, छरहरी काया और साँवला रंग! अति सुन्दर! कितना नियंत्रण करना पड़ता था कमल को अपने ऊपर! वो तो माया थी कि उसको यूँ सम्हाल लेती थी, लेकिन अगर कोई और लड़की होती, तो अब तक दोनों का कई कई बार मिलन हो चुका होता।

“कैसी किस्मत है हमारी,” वो मंत्रमुग्ध सा हो कर बोला, “कि आप हमारी हो गई हैं!”

“एक बात कहूँ?” माया ने कुछ सोचते हुए कहा।

“कहिए?”

“किस्मत हमारी अच्छी है - पहले तो माँ पापा जैसे माँ बाप मिले हमको... और बाबू जैसा वीरन! और अब उनके पुण्यों के कारण आप मिले हैं। आप... माँ जी और पापा जी!” माया की बातों में सच्चाई थी, “हमने तो सोचा भी नहीं था कि ऐसा कुछ होगा हमारी लाइफ में,”

“अच्छी बात है! हम सभी की किस्मत अच्छी है,” कह कर कमल ने माया के दोनों स्तनों के बीच में चूम लिया।

माया के शरीर में सिहरन दौड़ गई। लेकिन फिर भी उसने स्वयं पर नियंत्रण रखे हुए कहा,

“आपको एक गुड न्यूज़ सुनाएँ?”

“अरे! अभी से कहाँ गुड न्यूज़?” कमल ने उसको छेड़ते हुए कहा, “अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई,”

“आप न! बदमाशी ही सूझती रहती है आपको!” माया ने नकली नाराज़गी दिखाई।

“अरे सॉरी सॉरी! बताइये ने,”

माया वापस चहकती हुई बोली, “माँ जी अभी बता रही थीं, कि हमको भाभी कह कर बुलाने वाला एक नन्हा मेहमान आ रहा है,”

“व्हाट?”

“हाँ... आपका छोटा भाई या छोटी बहन...”

“क्या सच में?”

“हाँ... क्यों? आपको अच्छा नहीं लगा जान कर?”

“बहुत अच्छा लगा! इट इस जस्ट दैट माँ और पापा बहुत समय से ट्राई कर रहे थे और अब तो उन्होंने गिवअप भी कर दिया था!” कमल ने बड़े ही भक्ति-भाव से माया के हाथों को चूमते हुए कहा, “आप सच में हमारा गुड लक बन कर आ रही हैं,”

“ओह्हो! ऐसा कुछ नहीं है,” माया ने शर्मिंदा होते हुए कहा, “आप तो नाहक ही...”

“ऐसा है!” कमल बोला, और फिर उसने माया के पैर छू कर अपने हाथों को चूम लिया।

“ये क्या कर रहे हैं आप?”

“वही, जो करना चाहिए।”

“हनी, हस्बैंड अपनी वाइफ के पैर नहीं छूते! उससे दोष होता है... पाप लगता है वाइफ को!”

“लेकिन आप हमसे बड़ी हैं... हम आपकी बहुत रिस्पेक्ट करते हैं।”

“तब भी! ... और हम भी आपकी बहुत रिस्पेक्ट करते हैं,” माया ने समझाया, “हम आपसे बड़ी हों, तब भी हम आपकी वाइफ ही रहेंगे।”

“आपके मुँह से ये सुन कर बहुत अच्छा लगता है,”

माया के चेहरे पर एक चौड़ी मुस्कान आ जाती है और वो कमल के होंठों को चूम लेती है।

“आप जानती हैं,” कमल ने काली ब्रा के कोमल कपों से ढँके उसके स्तनों को सहलाते हुए कहा, “कि माँ ने कल हमसे क्या कहा?”

माया ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया।

“उन्होंने कहा,” अब वो उसकी ब्रा के हुक खोल रहा था, “कि अभी तेरे पास मौका है... बहू को ठीक से जान समझ ले,”

उसने माया की ब्रा उतार कर उसके स्तनों को सहलाया।

एक पल में उसके दोनों चूचक उत्तेजनावश कड़े हो गए।

माया शर्म के मारे कुछ कह न सकी।

“कुछ कहिये न?” जब माया ने कुछ नहीं कहा, तो कमल बोला।

माया ने धीमे से कहा, “और माँ ने हमसे कहा कि आप ठीक से पढ़ाई कर रहे हैं या नहीं, हम वो देखें... आपकी गार्जियन बन के,”

“पढ़ाई ही तो कर रहा हूँ और वो भी बहुत ठीक से कर रहा हूँ... आपकी पढ़ाई!” कमल ने शरारत भरे लहज़े में कहा, और उसकी शलवार का नाड़ा खोलने लगा।

नाड़ा थोड़ा ढीला होते ही शलवार उसकी कमर से सरक कर ज़मीन पर आ गिरी।

“आप न,” माया ने काँपती हुई आवाज़ में कहा, “सच में बहुत बदमाश होते जा रहे हैं,”

“बदमाश? अभी कहाँ? बदमाशी तो शादी के बाद होगी,” वो बोला।

“ये बदमाशी नहीं है?”

“नहीं मेरी जान?” उसकी चड्ढी उतारते हुए कमल बोला, “... मैं तो बस आपको जानने की कोशिश कर रहा हूँ!”

माया शायद कुछ और बोलती, लेकिन वो जो बोलने वाली थी, वो शब्द एक मीठी आह में तब्दील हो गए क्योंकि कमल ने उसका एक चूचक अपने मुँह में ले लिया। कुछ पलों बाद वो उसको अपनी गोद में उठा कर बिस्तर पर बैठ गया और उसके स्तनों का आस्वादन करने में लीन हो गया। कुछ देर तक माया को इस तरह से प्यार कर के जब वो और माया दोनों ही अघा गए, तब वो उससे अलग हुआ।

“तो क्या जाना आपने?” जब माया थोड़ा संयत हो गई, तो उसने कमल से पूछा।

कमल की शरारतें उसको बहुत भातीं। जब वो उसको निर्वस्त्र कर के उससे लिपट जाता तो उसको लगता कि कमल से बेहतर वस्त्र उसके लिए हो ही नहीं सकता। अपने स्तनों पर उसके होंठों की छुवन गज़ब की कामुक लगती उसको।

“आज एक और चैप्टर पढ़ना है,” कमल ने उसके प्रश्न को नज़रअंदाज़ कर दिया।

“कौन सा?”

“आप पहले हमारी गोदी में अपने पाँव इधर उधर कर के बैठ जाइए,” कमल ने निर्देश दिया, “फिर बताते हैं!”

“धत्त,”

“अरे क्यों धत्त,” कमल ने उसको छेड़ते हुए कहा और खुद से ही उसको उठा कर अपनी गोद में व्यवस्थित करने लगा।

ऐसे बैठे हुए ही उसने माया को अपनी बाहों में उठा लिया था। उसका बाहुबल देख कर माया और भी निहाल हो गई। पति बलवान हो, हैंडसम हो, प्यार करने वाला हो, और अच्छे बर्ताव वाला हो, तो कोई भी लड़की स्वयं को धन्य मानेगी।

“माँ का आदेश है कि हम बहू को ठीक से जान समझ लें... तो बस वही कर रहे हैं!” वो बोला।

माया उस बरसाती रात को पहली बार हुई घटना को मिला कर अब तक तीन बार कमल के सामने नग्न हो चुकी थी, लेकिन कमल के सामने इस तरह से उसकी योनि का प्रदर्शन पहले कभी नहीं हुआ था। आज से पहले वो या तो कमल के सामने खड़ी रहती थी, या फिर उसकी गोद में इस तरह से लेटती थी कि इसकी योनि के दोनों होंठ आपस से सटे रहते थे। वैसे भी, घुँघराले श्रोणिकुंतलों से ढँकी योनि में क्या ही दिख जाता? कमल ने भी कोई ज़िद नहीं करी थी।

लेकिन इस समय उसकी दोनों टाँगें कमल के इर्द गिर्द थीं, लिहाज़ा उसकी साँवली योनि के दोनों होंठ अलग हो गए थे, उसकी योनि पुष्प की पंखुड़ियाँ बाहर आ गई थीं, और उसके अंदर एक सँकरी सी गुलाबी सुरंग दिखाई दे रही थी। अपनी योनि की ऐसी प्रदर्शनी के कारण माया भी उत्तेजित हो गई थी। उसकी योनि से भी काम-रस निकलने लगा था।

कमल के सामने एक आश्चर्यजनक सत्य दिखाई दे रहा था!

कॉलेज में दोस्तों के मुँह से उसने योनि के बारे में सुना बहुत था। कॉलेज में स्मगल कर के लाई गई डेबोनेयर मैगज़ीन में भी योनि के बारे में कई लेख पढ़ चुका था वो। लेकिन उसको इतने डिटेल में और इतने करीब से देखा उसने आज पहली बार था। अभूतपूर्व! यही वो स्थान था जहाँ जुड़ कर एक दिन वो और माया एक हो जाएँगे! लेकिन उस सँकरे से अंग में इतनी जगह ही नहीं थी कि उसकी तर्जनी भी ठीक से अंदर जा सके! फिर उसका लिंग कैसे अंदर जाएगा? ख़ैर, सभी का होता है, तो उसका भी हो जाएगा! ... वहाँ तक भी ठीक है, लेकिन इसी जगह से उसकी संतानें भी आयेंगीं!

कैसी अद्भुत सी बात है न!

प्रकृति सच में अद्भुत होती है।

ख़ैर, वो जब होगा, तब होगा। फिलहाल तो अपनी प्रियतमा का सबसे कोमल अंग देख कर कमल से रहा नहीं गया। शायद उत्सुकता रही हो, या शायद उत्तेजना! लेकिन उसने माया के चूतड़ों को थाम कर थोड़ा ऊपर उठाया और स्वयं थोड़ा झुक कर उसने माया की योनि को चूम लिया। माया का स्वाद थोड़ा नमकीन, थोड़ा अम्लीय था... लेकिन उसमें एक तरह की मिठास भी थी। उसकी महक भी थोड़ी मस्की थी।

माया की योनि को चूमना, कमल के लिए अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक लगी।

यह लड़की ‘अपनी’ है - यह बोध बड़ा अद्भुत होता है।

कमल के होंठों का स्पर्श अपनी योनि पर पड़ते ही माया के पूरे शरीर में करंट दौड़ गया। यही वो कदम था, जिसके बारे में वो डरती आई थी। इस समय वो पूरी तरह से कमल के रहमोकरम पर थी। वो उसको रोकने में पूरी तरह से अक्षम थी। अगर इस समय कमल उसके साथ सेक्स करना चाहता, तो वो उसको रोक न पाती। उसकी बाहों में उसका थरथराता हुआ शरीर कमल के अगले प्रहार की प्रतीक्षा करने लगा।

लेकिन,

“थैंक यू सो मच मेरी जान,” कुछ समय उसकी योनि का आस्वादन करने के बाद कमल बोला, उसकी आवाज़ बहुत अस्थिर और उत्तेजना के कारण थोड़ी कर्कश हो गई थी, “आप के साथ बिताए हुए आज के ये हसीन पल हम हमेशा याद रखेंगे,”

माया मुस्कुराई।

उसका आत्मनियंत्रण वापस आने लगा।

“हमको आपने मोहब्बत है,” उसने कमल से कहा, “आप जानते हैं न ये बात?”

कमल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। उसके होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान थी।

“तो फिर थोड़ा और वेट कर लीजिए... नवंबर में हम आपके हो जाएँगे... पूरी तरह से!”

“नवम्बर में?” कमल आश्चर्यपूर्वक प्रसन्नता में बोला, “सच में?”

माया ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया, “माँ जी और पापा जी बात करने वाले हैं घर पे,”

“ओह गॉड! एक और गुड न्यूज़!” कमल ने फुसफुसाते हुए कहा और माया के होंठों पर ताबड़तोड़ चुम्बन देने लगा।

कुछ देर चुम्बनों के आदान प्रदान के बाद माया बोली, “अब हम आपकी गोदी से उतर जाएँ?”

कमल ने मुस्कुराते हुए, बहुत सम्हाल कर माया को अपनी गोदी से उतार कर बिस्तर पर लिटा दिया।

“आपको हमारे बारे में कुछ जानना है?” कुछ देर माया को निहारने के बाद उसने कहा।

माया ने ‘न’ में सर हिलाया और मुस्कुराती हुई बोली, “जिस दिन हमारी शादी होगी न आपसे, उस दिन हम आपको पूरी तरह से जान लेंगे,”

“कहाँ से आता है आपमें इतना कण्ट्रोल?” कमल से रहा नहीं गया।

“आपके लिए हमारी मोहब्बत से आता है,” माया ने प्यार से कमल का गाल सहलाया, “मम्मी पापा के लिए रिस्पेक्ट से आता है। और... आप हमारे हस्बैंड हैं, लेकिन आपकी गार्जियन तो हम ही हैं,”

“हा हा हा! हाँ, सच है! एंड आई ऍम थैंकफुल फ़ॉर इट!”

“अच्छा, तो क्या जाना आपने आज... हमारे बारे में?” कुछ देर कमल की बाहों के आराम को महसूस करने के बाद उसने पूछा।

“यही,” कमल ने मुस्कुराते हुए कहा, “कि आपका स्वाद बहुत अच्छा है!”

“हा हा हा... आप सच में बदमाश होते जा रहे हैं,” माया ने शर्म हँसते हुए कमल पर इल्ज़ाम लगाया।

ऐसे नग्न लेटे हुए हँसने पर उसके ठोस और मुलायम स्तन हल्के से हिले। उस दृश्य को देख कर कमल का दिल हिल गया। लेकिन वो समझ रहा था कि जब तक शादी नहीं हो जाती, कुछ नहीं हो सकता।

“अच्छा, ये बताईए कि अगले हफ़्ते आपका कोई टेस्ट या एग्जाम है?” माया ने उसका कामुक मूड तोड़ने की गरज से पूछा।

“हाँ, इंग्लिश और फिजिक्स का!” कमल ने बताया, “हाँ, लेकिन उसकी पूरी तैयारी है मेरी!”

“पक्का न?”

कमल ने विश्वास के साथ ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“गुड,” माया ने उसके माथे पर से बालों को थोड़ा सरकाते हुए कहा।

कमल बोला, “आपको डिसअप्पॉइंट नहीं कर सकता न!”

“थैंक यू हनी,” माया ने उसकी बात पर कहा, “अगर हमारे कारण आपको कोई नुकसान हो, तो हमको अच्छा नहीं लगेगा...”

“नहीं हो सकता कोई नुक़सान... आप हमारी स्ट्रेंथ हैं! जितनी हमें आपसे मोहब्बत है, उतनी ही आपकी रिस्पेक्ट भी!”

“आई लव यू,”

“आई लव यू सो मच!”

इसके साथ ही दोनों एक और निस्सीम चुम्बन में लिप्त हो गए।

**
 

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अपडेट 31


कमल की बाहों में माया को इतना आराम और सुकून आ रहा था, कि वो उसकी बाहों में ही लगभग सो गई। कमल भी।

दोनों की उथली सी नींद तब टूटी जब सरिता जी की आवाज़ आई,

“बच्चों उठ जाओ और जल्दी से नीचे आ जाओ,”

उनकी आवाज़ सुन कर माया हड़बड़ा कर उठी।

अपने सामने माँ जी को बैठा हुआ देख कर वो अचकचा गई। समझ नहीं आया कि वो क्या प्रतिक्रिया दे। यह दूसरी बार था जब सरिता जी ने उसको यूँ पूर्ण नग्न देखा था। वो कर भी क्या सकती थी? दोनों स्पून पोजीशन में लेटे हुए थे - वो सामने और कमल उसके पीछे! कमल का एक हाथ उसके बाएँ स्तन पर था और दायाँ स्तन पूर्ण रूप से प्रदर्शित था... साथ ही बचा हुआ पूरा शरीर!

“माँ?”

“हाँ बेटा?”

तब तक कमल भी जागने लगा था।

“माँ... हम... बस...” माया ने सफ़ाई देने की कोशिश करी कि वो दोनों ऐसा वैसा कुछ भी नहीं कर रहे थे।

“पता है,” सरिता जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “आ जाओ जल्दी से,”

पाँच मिनट में माया ने अपने कपड़े पहने, और कमल के संग नीचे आ गई।

“अरे माँ? पापा?” बैठक में किरण जी और अशोक जी को देख कर माया हैरान रह गई, “आप लोग?”

“क्यों दीदी?” अजय की आवाज़ पीछे से आई, “हम लोग तुम्हारी ससुराल में नहीं आ सकते?”

“बाबू?” माया चकित सी सभी से मिल रही थी, “आप सभी ऐसे? अचानक से?”

“भाई साहब ने फ़ोन कर के कहा कि एक ज़रूरी बात करनी है,” किरण जी बोलीं, “तो हम आ गए!”

“दीदी, साथ में डिनर करने को बुलाया था आप सभी को,” सरिता जी ने हँसते हुए कहा, “ज़रूरी बात करने नहीं!”

“बहन जी,” अशोक जी भी हँसी में शामिल हो गए और बोले, “जब लड़के वालों का बुलावा आता है तो सब बातें ज़रूरी होती हैं!”

“भैया, आप भी न!”

“चलिए, जल्दी से छुट्टी पा लेते हैं,” किशोर जी बोले, “देखिए भाई साहब, हमको नहीं लगता कि हम लोग इसके इक्कीस का होने तक का इंतज़ार कर सकते हैं।”

किशोर जी की बात शुरू होते ही अजय मुस्कुराने लगता है। वो समझ जाता है कि क्या बात होने जा रही है।

“इसलिए, इसी नवम्बर में माया बिटिया को हम अपनी बहू बना लेना चाहते हैं, विधिवत!” उन्होंने एक साँस में अपनी बात पूरी कर दी, “अब आप बताईए कि आपको इस बात से कोई दिक्कत है, या कोई परेशानी है?”

“भाई साहब, हमको क्या परेशानी हो सकती है?” अशोक जी बोले - वो भी समझ रहे थे कि ऐसा होना लग तो रहा ही था, “माया अब आपकी बेटी है। जो निर्णय आप लेंगे, वो हमको स्वीकार है।”

“बढ़िया, तो फिर तय रहा।” सरिता जी ने तपाक से कहा।

उनकी प्रसन्नता भरी अधीरता देख कर सभी हँसने लगे। लेकिन कमल और माया शरम के मारे बगलें झाँकने लगे।

“तो हम कल ही अपने पंडित जी से मिल कर नवम्बर में एक बढ़िया तारीख़ निकलवा लेते हैं,” किशोर जी बोले, “आपको ठीक लगता है?”

अशोक जी बोले, “समय थोड़ा कम है, लेकिन हो जाएगा!”

“अरे भाई साहब, आप अकेले थोड़े ही हैं। ये दोनों अब हमारे बच्चे हैं। केवल आप पर शादी करवाने का सारा बोझ नहीं डालेंगे हम। ... मैं तो कहता हूँ कि शादी यहाँ, इस घर में हो।”

“नहीं भाई साहब... ऐसा नहीं हो सकता। माया हमारी एकलौती बेटी है। ... बारात हमारे घर आएगी और उसकी विदाई उसके मायके से ही होगी।”

“ठीक है, लेकिन मिल बाँट कर सब कर लेंगे।”

“वो ठीक है। ... राणा भाई साहब, हमारा बेटा भी शादी के लायक है...”

“कौन? प्रशांत? हाँ, कैसा है वो?”

“अच्छा है... उसको भी एक लड़की पसंद है। तो सोच रहे थे कि उन दोनों की शादी भी इन्ही दोनों के साथ हो जाए... या थोड़ा आगे पीछे?”

“क्या भाई साहब! इतनी बढ़िया खबर छुपा कर रखी हुई थी इतने समय से! कौन है लड़की?”

अगले पंद्रह बीस मिनट तक प्रशांत और पैट्रिशिया के बारे में बातें होती रहीं।

अंत में यही निर्णय लिया गया कि साथ ही में दोनों शादियाँ करवाना बढ़िया रहेगा। वहीं से बारी बारी से पैट्रिशिया और प्रशांत से फ़ोन पर बात करी गई और फिर सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि पहले माया और कमल की शादी होगी और फिर अगले या फिर उसके अगले दिन प्रशांत और पैट्रिशिया की। दिसंबर के दूसरे सप्ताह में हॉगवर्ट्स में एक्साम्स होते, इसलिए नवम्बर के दूसरे या तीसरे सप्ताह में शादी करवाना ठीक रहता। प्रशांत और पैट्रिशिया भी भारत आ कर कुछ दिन यहाँ बिता लेते और बहन की शादी में शरीक़ भी हो लेते। फिर वापस जा कर क्रिसमस के त्यौहार का आनंद भी उठा सकते पैट्रिशिया के परिवार के साथ।

इस निर्णय के बाद सभी ने दूसरे को बधाइयाँ दीं। अजय ने कमल को गले से लगा कर बधाई दी और अपनी माया दीदी को गले से लगा कर और चूम कर। दोनों समधी और समधनें भी गले मिले।

“इतना आनंद आया आज,” सरिता जी बोलीं, “चलिए भैया... दीदी... बच्चों... अब खाना खाते हैं!”

“एक मिनट माँ,” माया बोली, “सबसे बड़ी ख़ुशख़बरी आपने बताई ही नहीं!”

“अरे, कौन सी?” किरण जी ने उत्सुकतावश पूछा।

“बाद में,” सरिता जी ने फुसफुसाते हुए कहा।

“कोई बाद वाद में नहीं!” माया ने छोटी बच्ची के जैसे ज़िद करते हुए कहा, “माँ... पापा... पापा जी... बाबू... (कमल को उसने देखा, लेकिन सम्बोधित नहीं किया) एक बहुत ही अच्छी ख़ुशख़बरी है... माँ फिर से माँ बनने वाली हैं!”

“क्या?”

सभी एक साथ चौंके! कमल और किशोर जी को छोड़ कर।

“बहुत बहुत अच्छी खबर है भाई ये तो,” किरण जी ने सबसे पहले कहा, “बहुत बहुत बधाई हो सरिता।”

“हाँ बहन जी, भाई साहब,” अशोक जी भी बोले, “क्या सुन्दर सी ख़बर पता चली! बहुत बहुत बधाइयाँ!”

“कौन सा महीना है सरिता?”

“बस... अभी अभी!” सरिता जी ने शरमाते हुए, धीमे से कहा, “पहला ही,”

“माया बिटिया के आते ही ख़ुशियाँ आने लगीं!” किशोर जी बड़े जोश में और आनंद से बोले।

“हाँ, इसीलिए तो हम चाहते हैं कि इन दोनों की शादी जल्दी हो जाए!” सरिता जी बोलीं, “केवल माँ ही नहीं, दादी माँ भी बनना है अब तो जल्दी से!”

“हा हा हा हा... वो तो ये दोनों बच्चे देख समझ लेंगे भाग्यवान,” किशोर जी ने ठहाके लगा कर कहा, “हमारा काम तो बस इन दोनों को एक करवाने का है!”

उनकी बात पर सभी ठहाके लगाने लगे - बस माया और कमल को छोड़ कर। माया शर्म के मारे सरिता जी के सीने में छुप गई। कमल क्या करता - बस खिसियाया हुआ सा खड़ा रहा।

“भाई साहब, दीदी, एक विनती है...” सरिता जी ने माया के सर को प्यार से सहलाते हुए कहा, “अगले सप्ताह से नवरात्रि शुरू है... तो अगर बिटिया यहीं रह जाए दस दिन... मतलब कोई जबरदस्ती नहीं है। आप नहीं भी भेजना चाहेंगे, तो हम समझेंगे।”

“अरे नहीं नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है,” किरण जी बोलीं, “अब तो हम बस आपकी अमानत को अपने पास रखे हुए हैं। माया बिटिया का मन करे, तो यहीं रहे। हमको कोई ऑब्जेक्शन नहीं है! क्यों बेटे? जो तू कहे, वैसा ही होगा।”

“माँ, आप लोग जैसा ठीक समझें,” माया ने कोमलता से कहा।

“हाँ हाँ,” इस बार अजय ने उसकी टाँग खींची, “मन में तो लड्डू फूट रहे होंगे दीदी, लेकिन ऊपर ऊपर से ये कह रही हो!”

“कोई लड्डू वड्डू नहीं,” सरिता जी ने कमल को आँखें दिखाते हुए कहा, “पूजा पाठ का समय है। हम चाहते हैं कि बिटिया के साथ ये शुभ त्यौहार मनाया जाए! वैसे भी इसको दीपावली में यहाँ रहने की ज़िद नहीं कर पाएँगे न! इसलिए...”

“हाँ बहन जी,” अशोक जी ने कहा, “माया बिटिया यहीं रह जाय। हमको कोई ऑब्जेक्शन नहीं है।”

“बहुत अच्छा!”

रात्रि भोजन बड़े आनंद से बीता।


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अपडेट 28


स्कॉच पीते पीते अशोक जी ने अजय से और भी कई बातें पूछीं,

“बेटे, एक बात बताओ?”

“जी पापा?”

“माया बेटी को बच्चे कितने हुए थे?”

“दो,” अजय ने कहा, “लेकिन पापा, अब चूँकि उनकी शादी कमल से होने वाली है, तो जाहिर से बात है कि बच्चे भी बदल जाएँगे...”

“बहुत अच्छी बात है... एक बच्चा हो, या दो या तीन... दोनों खूब प्यार से रहें, दोनों का रिश्ता हर पल मज़बूत हो, बस यही चाहिए!”

“हाँ पापा... कमल और दीदी दोनों ही अब खुश लगते हैं। अच्छा साथी होने का बहुत फ़ायदा है,” अजय बोला।

“हम्म...” उन्होंने सोचते हुए कहा, “बात तो सही है। अच्छा बेटे, एक बात बताओ - तुम्हारे कोई बच्चे हुए थे?”

“नहीं पापा,” अजय ने सकुचाते हुए कहा, “रागिनी प्रेग्नेंट तो हुई थी, लेकिन उसने बच्चा अबॉर्ट कर दिया था।”

“आई ऍम सो सॉरी बेटे,”

“कोई बात नहीं पापा... ऐसा सोच लीजिए कि वो सब हुआ ही नहीं। हुआ भी है तो किसी और टाइमलाइन में...” अजय ने एक गहरी साँस भरी, “मैं भी अब अपनी ज़िन्दगी को एक नए सिरे से जीना चाहता हूँ,”

“अच्छी लड़की से शादी करना इस बार,” अशोक जी बोले।

अजय मुस्कुराया।

“नहीं बेटे, सच में। लोग रिश्ता ढूँढ़ते अधिकतर यही देखते हैं कि लड़का लड़की देखने में कैसे हैं, क्या करते हैं, कितना कमाते हैं... जाति बिरादरी... इन सभी बातों का रिश्ते में मोल ही क्या है? असली बात है वैल्यूज़... क्वालिटीज़... एक दूसरे के लिए लव... रिस्पेक्ट...”

अजय कुछ बोला नहीं... बस शून्य को निहारते हुए चुपचाप धीरे धीरे स्कॉच का सिप लेता रहा।

“रूचि प्यारी लड़की है,” अशोक जी ने धीरे से कहा।

“हम्म?”

“मैंने कहा रूचि प्यारी लड़की है। मुझे भी पसंद है और तुम्हारी माँ को भी!”

“हा हा हा... पापा, आप भी न!”

“क्यों क्या हो गया?” अशोक जी ने उसको छेड़ा, “अच्छी नहीं है?”

“बहुत अच्छी है पापा,” अजय बोला, “लेकिन छोटी है न,”

“क्यों? क्या ऐज है उसकी?” उन्होंने उसको कुरेदा, “अट्ठारह की तो है न? बढ़िया है - दोनों हम उम्र हो!”

“हा हा हा! पापा, आप न...”

“क्यों? जब प्रशांत हुआ था, तब भाभी बीस की भी नहीं हुई थीं... तुम्हारी माँ ट्वेंटी थ्री की थीं तुम्हारे पैदा होने के समय... माया बेटी खुद ट्वेंटी थ्री की होने वाली है... और पैट्रिशिया बिटिया ट्वेंटी फोर की है।”

“पापा अभी उसके पढ़ने लिखने की उम्र है,”

“प्रेम होना, प्रेम में पड़ना... यह बातें उम्र की मोहताज नहीं होतीं बेटे। जब अच्छी लड़की मिले, तब उसको भगवान का प्रसाद समझ कर पूरे दिल से स्वीकार कर लो,”

“पापा, मैं तीस का हूँ,”

“हूँ नहीं, थे!” अशोक जी ने उसको करेक्ट किया, “तुम्हारे अंदर समझ एक तीस साल के आदमी की है, लेकिन हो तुम अभी भी टीनएजर!”

अजय ने कुछ कहा नहीं।

अशोक जी की बात सही थी। उसने एक गहरी साँस भरी और स्कॉच का आखिरी घूँट भी पी लिया।



*



अशोक जी की बात और अजय की उम्मीद सही साबित हो रही थी।

कमल और माया का रिश्ता प्रतिदिन और प्रगाढ़ हो रहा था। कमल का एक-तरफ़ा प्यार अब दो-तरफ़ा हो गया था। माया भी कमल को बहुत चाहने लगी थी। कमल के प्रेम ने उसके जीवन में एक अलग ही तरीक़े की बहार ला दी थी। ऐसा नहीं है कि कमल से मिलने से पहले उसको प्रेम की कोई कमी महसूस हुई हो। पापा और माँ ने बहुत प्रेम दिया था उसको... और पिछले कुछ महीनों से उसके ‘बाबू’ ने भी।

लेकिन प्रेमी वाला प्यार अलग ही होता है।

उस बरसात की रात में अपने पहले चुम्बन के बाद से माया को अपरिचित सी, लेकिन बहुत ही कोमल भावनाएँ महसूस होतीं। वो समझती थी उन भावनाओं को... वो अच्छी तरह जानती थी कि सेक्स क्या होता है! नटों के बेड़े में सेक्स की क्रिया के बारे में किसी को न पता हो, हो ही नहीं सकता। जब आप खानाबदोश समाज में रहते हैं, जब एक एक इंच की जगह बहुमूल्य होती है, तब बच्चों में भोलापन शेष नहीं रह जाता। माया कोई अपवाद नहीं थी। लेकिन, वो तो पापा मम्मी की कृपा हुई थी उस पर, कि उसका भोलापन भंग होने के बाद भी वापस आ गया था। इस परिवार में रहने के बाद वो सब कुछ भूल सी गई थी। उसकी माँ के मरने के बाद उसके साथ कुछ भी हो सकता था, लेकिन अशोक जी और प्रियंका जी ईश्वर बन कर आ गए उसको बचाने... फिर किरण जी भी!

तो उसको पता था सेक्स के बारे में। लेकिन वो ज्ञान केवल शारीरिक स्तर पर ही था। सेक्स एक कोमल, आत्मीय और प्रेममय क्रिया हो सकती है, वो उसको पापा मम्मी और ताऊ जी और माँ के कारण ही समझ में आया। उनकी छाया में वो न केवल सुरक्षित ही रही बल्कि उसके मन में कोमल मानवीय भावनाएँ अच्छे से पल्लवित हुईं। अब उनके पुष्पित होने का समय आ गया था।

कमल का संग पा कर वो अपने सुनहरे भविष्य की कल्पना के ताने बाने बुनने लगी थी - कैसा होगा उन दोनों का जीवन, कितने बच्चे होंगे उनके, उनको कैसे पालना है, इत्यादि! सबसे सुनहरी बातें उसके मन में अपने ससुराल को ले कर उठतीं। ससुराल भी कैसा अद्भुत मिला था उसको! उसके होने वाले सास ससुर उससे कितना प्रेम करते थे। उसको कभी कभी अपनी ही किस्मत से डर लगने लगता... कि कहीं ये सारी खुशियाँ चली न जाएँ! लेकिन जब वो बिना डरे कमल से प्रेम करती, तो ख़ुशियाँ कई कई गुणा बढ़ जातीं। इसलिए उसने उस डर का त्याग कर के, पूरे मनोयोग से कमल के साथ ही अपने जीवन को विलीन कर देने की ठानी, और उस काम से सफ़ल भी रही।

जब साथी अच्छा होता है तो रास्ता भटकना मुश्किल हो जाता है। माया को ‘इम्प्रेस’ करने के लिए कमल ने पढ़ाई लिखाई में अपनी कोशिशें और तेज़ कर दीं थीं। ऐसा नहीं है कि रातोंरात वो बहुत तेज़ हो गया था। लेकिन प्रयास और श्रम में जो कोताही वो अक्सर बरतता रहा था, अब वो बेहद कम हो गई थीं। अनावश्यक समय का व्यय नहीं करता था वो अब। सुबह जल्दी उठता, एक-डेढ़ घंटा पढ़ाई करता, फिर घर से कॉलेज, कॉलेज से घर, उसके बाद माया के साथ गुणवत्तापूर्ण समय व्यतीत करना, उसको वापस घर छोड़ने आना, रात में दो घण्टे फिर अपनी पढ़ाई करना... बस यही उसका काम था अब! सप्ताहांत में भी वो और अजय साथ बैठ कर पढ़ाई करते। पिछले कुछ समय में रूचि भी जुड़ गई थी उन दोनों की इस साझी पढ़ाई में! उसके अंदर ऐसे सकारात्मक परिवर्तन देख कर उसके माँ बाप भी बहुत खुश थे। वो जानते थे कि ये सभी बदलाव उसमें माया के कारण ही आए थे, इसलिए माया और कमल के मेल को ले कर अगर उनके मन में कोई छोटा सा भी संशय रहा हो, तो अब वो शेष नहीं था।

उधर माया अपने होने वाले ‘परिवार’ के साथ एक होने की पूरी कोशिश कर रही थी। किरण जी और अशोक जी भी उसको प्रोत्साहित करते कि वो जितना संभव था, अपनी होने वाली ससुराल में अपना समय व्यतीत करे, उनको जानने और समझने की कोशिश करे। उनके तौर तरीके सीखे। माया किशोर जी और सरिता जी के साथ प्रतिदिन रामायण के कुछ श्लोकों का पाठ करती। ठीक है कि वो स्वयं केवल बारहवीं पास थी और वो भी प्राइवेट से, लेकिन इस प्रयास से उसका संस्कृत ज्ञान और तार्किक क्षमता बढ़ने लगा था।

महाग्रंथ रामायण, दरअसल एक महाकाव्य है, जिसमें कम से कम चौबीस सहस्त्र (हज़ार) श्लोक हैं। उसमें सीखने जानने को इतना कुछ है कि क्या कहें! ये तीनों, और कभी कभी कमल भी, हर दिन केवल दो दर्ज़न श्लोकों का का ही पाठ करते, और उन पर चर्चा कर पाते थे। इस गति से पूरी रामायण का पाठ करने में लगभग तीन साल लग जाने थे। रामायण के बाद महाभारत और श्रीमद्भगवदगीता जैसे महाग्रन्थ और भी थे!

वैसे भी जल्दी भी किसको ही थी!

यह एक ऐसी सुन्दर सी परंपरा चल निकली थी, जिसका आनंद अब पूरा राणा परिवार उठाने लगा था। इस नई परंपरा के चलते घर के सभी सदस्यों के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आने लगे थे। टीवी पर अनावश्यक समय व्यय होना समाप्त हो गया था। केवल दूरदर्शन पर समाचार देखने और कभी कभी क्रिकेट मैच देखने में ही टीवी का उपयोग होता था अब। समय पर भोजन खाना भी शुरू हो गया था - पूरा परिवार साथ ही बैठ कर खाता।

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Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....
Nice and lovely update....
 

parkas

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अपडेट 29


कमल और माया का ‘रोमांस’ बहुत क्यूट और मासूम सा था।

कमल के साथ उसका सम्बन्ध इतना कोमल सा था, कि क्या कहें! वो उससे उम्र में थोड़ी बड़ी थी। उस कारण से और साथ ही ‘बहू’ होने के कारण, किशोर और सरिता जी की उससे अपेक्षाएँ भी अधिक थीं। अच्छी स्त्री एक कुशल कुम्हार की तरह होती है - वो परिवार को किसी भी आकार में परिवर्तित कर सकती है। तो हाँ - अपेक्षाएँ अधिक भी थीं और माया उन अपेक्षाओं पर खरी भी उतर रही थी।

माया दोनों को ही बहुत पसंद थी, लेकिन उनके मन में एक संशय था कि इतनी जल्दी माया को पा कर कमल कहीं बिगड़ने न लगे। लेकिन वो संशय निराधार निकला। इस बात से वो दोनों बहुत प्रसन्न थे। मतलब माया न तो स्वयं बहक रही थी और न ही उनके एकलौते सुपुत्र को बहका रही थी। लेकिन दोनों को एक दूसरे से प्रेम है, वो यह बात भी समझते थे। और यह बात भी कि दोनों ही बच्चे सीधे सादे हैं। लिहाज़ा, दोनों को अकेले में कुछ समय बिताने को मिले, उसके लिए अक्सर सरिता जी ही उनको रामायण पाठ के बाद अपने सामने से दफ़ा कर देते, कि जा कर कुछ समय साथ में बिताओ।

इस सुझाव पर माया अक्सर झिझकती। कैसे वो चली जाए यूँ ही कमल के सामने? इसलिए वो सरिता जी के ही साथ रह जाती - कभी रसोई में या कभी कहीं और। और घर परिवार की कोई बात ले कर बैठ जाती। लेकिन सरिता जी समझती थीं कि एक जवान जोड़े के लिए अंतरंगता की अहमियत और आवश्यकता।

एक ऐसे ही दिन,

“बहू,”

“जी माँ?”

“अरे जाओ, ज़रा देख लो कमल को।” सरिता जी ने कहा, “वो पढ़ाई कर रहा है, या नहीं!”

यह बात सुन कर माया शर्मा गई।

वो जानती थी कि उसकी होने वाली सास की मंशा क्या थी। वो भी चाहती थी कि जा कर अपने कमल से लिपट जाए, लेकिन बहू की मर्यादा के कारण वो अपनी इस इच्छा को पूरा होने की सम्भावना पर भी खुश नहीं हो पा रही थी।

“पढ़ ही रहे होने, माँ!” माया ने बहाना किया, “मैं वहाँ क्या करूँगी? आपकी मदद कर देती हूँ, रसोई में!”

“अरे रसोई में क्या मदद करनी है रे?” वो बोलीं, “तू कुछ खाती ही नहीं है... और तेरे चक्कर में हमारा भी फल फ्रूट ही चल रहा है ज़्यादातर!”

दरअसल भोजन के संग विभिन्न प्रकार के सलाद खाने की लत माया ने ही लगवाई थी इस परिवार को। विभिन्न दलहनों और अंकुरित अनाजों के संग वो स्वादिष्ट सलाद बनाती। उसके चक्कर में मीठा खाना कुछ कम हो गया था इनका।

“... तो फिर कुछ ख़ास नहीं रह जाता बनाने को,” वो कह रही थीं, “जा, जा कर देख ले उसको। किसी जगह उसको ज़रुरत पड़े, तो मदद कर दे उसकी... पढ़ा दे...”

“उनको मैं क्या पढ़ाऊँगी माँ!” माया ने शर्म सा सकुचाते हुए कहा, “इनको तो अधिक आता है,”

“कैसी बुद्धू लड़की है!” सरिता जी ने सर पीटते हुए कहा, “यहाँ इसको एक बिंदास सास मिली है, जो इसको उसके होने वाले हस्बैंड के पास भेजने की कोशिश करती है, और एक ये है! मूरख पूरी!”

उनकी बात पर माया शर्म से हँसने लगी।

“सुन, एक ख़ास बात... और वो बात तू पल्ले बाँध ले ठीक से,” सरिता जी ने उसको शरारत से समझाया, “तू न, कमल की चाबी है!”

सरिता जी की बात सुनते ही उसको फिर से हँसी आ गई,

“अरे सुन न पहले पूरा, तू उसकी चाबी है और वो तेरा छल्ला। ... दोनों को अब साथ ही रहना है।”

माया ने शर्म से अपना सर झुका लिया।

“तुम दोनों बहुत प्यारे बच्चे हो... और हम जानते हैं कि तुम दोनों अपनी हदें पार नहीं करते हो,” सरिता जी ने माया के गाल को सहलाते हुए कहा, “लेकिन थोड़ा रोमांस तो होना चाहिए न तुम दोनों के बीच? हम्म?”

“माँ!” माया शरमा गई।

“क्या माँ? उस रात छत पर उसके सामने नंगू नंगू थी, तब कुछ नहीं! तब तो नहीं आ रही थी शरम!”

इस बात पर माया ने अपनी हथेलियों में अपना चेहरा छुपा लिया। उसकी इस प्यारी सी हरकत को देख कर सरिता जी ने उसको अपने सीने में भींच लिया।

“देख बच्चे, तुम दोनों जवान हो, और जवानी में जोश बहुत होता है। अगर हम तुमको मना करेंगे, तो तुम दोनों छुप छुप कर सब कुछ कर लोगे... ऐसे में, हमारे सुपरविशन में तुम दोनों रोमांस कर ले रहे हो, तो कोई गलत बात नहीं है!”

माया शर्म से सर झुकाए माँ के सीने में चिपकी हुई थी।

“फेरे नहीं पड़े हैं, तो पड़वा देंगे। पूजा पाठ नहीं हुआ है, करवा लेंगे! ये बातें ज़रूरी हैं, लेकिन जो सबसे बड़ी बात है वो यह है कि तुम दोनों के बीच सच्ची मोहब्बत है और एक दूसरे के परिवारों के लिए रिस्पेक्ट है! यह हम सबको पता है।” सरिता जी ने समझाया, “इसलिए रोमांस खूब करो। अपना प्यार खूब बढ़ाओ और उसको उम्र भर बनाए रखना। ठीक है बच्चे?”

“जी माँ,”

“और हाँ, तू उससे बड़ी है... तो उसकी गार्जियन तू ही है।”

माया अभी भी माँ के सीने से चिपकी हुई थी। उनकी बात सुन कर वो हँसने लगी।

“बहू?”

“जी माँ?”

“कमल तुझे खुश तो रखता है न? तुझे खूब प्यार तो करता है न?”

इस प्रश्न पर माया सरिता जी के सीने में और भी सिमट गई।

“बोल न?”

“बहुत माँ... बहुत खुश रखते हैं ये...”

“और प्यार?”

“बहुत प्यार करते हैं माँ! आप सभी बहुत प्यार करते हैं,”

“अरे क्यों न करेंगे? तू है ही इतनी प्यारी सी... तेरे आने से हमारी भी किस्मत खुलने लगी है!”

“माँ?” माया को समझ नहीं आया, “मेरे आने से ऐसा क्या हो गया?”

सरिता जी ने बात बदलते हुए कहा, “दीदी बताती हैं कि तू अभी भी उनका दूध पीती है?”

माया फिर से सकुचा गई। ऐसी बातें कैसे स्वीकार कर ले वो?

“अरे इसमें शर्माने वाली क्या बात है?” उन्होंने माया को अपने से थोड़ा अलग करते हुए कहा - अभी भी उसने अपना चेहरा अपनी हथेलियों में छुपा रखा था।

“बच्चों के साथ साथ ये तो माँ की भी किस्मत होती है कि वो अपने बच्चों को इस तरह से अपना प्यार दे सके।”

माया ने कुछ नहीं कहा, बस उसी अवस्था में सरिता जी से थोड़ा अलग, लेकिन फिर भी उनसे सट कर खड़ी रही।

“बहू?” दो क्षणों के बाद वो बोलीं, “ये देख, मैं तुझे क्या दे रही हूँ,”

जब उसने अपनी हथेलियाँ हटा कर आँखें खोलीं, तो देखा कि माँ अपनी ब्लाउज़ के बटन खोल रही थीं। पाँच क्षणों में ही उनके दोनों स्तन स्वतंत्र हो कर उसके सामने थे।

“माँ... ये... आप...”

सरिता जी ने केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया, “बोलने पर ही पिएगी?”

अचानक से ही माया के मन से सारी हिचक निकल गई। यह ऐसी अद्भुत सी बात थी, जिसकी कल्पना वो स्वप्न में भी नहीं कर सकती थी। कमल के संग होना एक अविश्वसनीय उपलब्धि थी उसके लिए। ईश्वरीय अनुकम्पा! लेकिन अपनी सासू माँ का स्तनपान! ये तो स्वयं ईश्वर के प्रेम, उनकी ममता की वर्षा है! उसने तुरंत ही माँ का एक चूचक मुँह में ले लिया। थोड़ी देर चूसा, लेकिन दूध नहीं था।

उसकी इस निराशा का निवारण भी तुरंत ही आ गया,

“चिंता न कर,” सरिता जी दबी हुई, लेकिन बहुत ही वात्सल्यपूर्ण आवाज़ में बोलीं, “तुझे भाभी भाभी कह कर बुलाने वाले का बंदोबस्त हो गया है!”

“क्या!?” माया प्रसन्नता से चौंक गई, “क्या सच में माँ?”

सरिता जी ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“ओह वॉव माँ! बहुत बहुत बधाई हो माँ,” माया ने चहकते हुए कहा, और पूछा, “कौन सा महीना है?”

“एक महीना हो गया है...”

“अमेज़िंग! आपको पता भी है कि आपने कितनी अच्छी न्यूज़ दी है माँ,” वो अभी भी चहक रही थी, “मैं अभ्भी बताती हूँ सबको!”

“हा हा हा, हाँ हाँ... लेकिन अभी नहीं! खाने पर!” सरिता जी ने कहा, “उसके पहले नहीं। ठीक है?”

“ठीक है माँ... ओह माँ! अब तो आई लव यू और भी अधिक,” कह कर माया वापस उनके स्तन से जा लगी।

“हा हा हा हा... तेरे पापा और मेरी एक इच्छा थी हमेशा से... कि एक और बच्चा हो जाय... अब देख, तेरे आते ही वो इच्छा भी पूरी हो रही है,”

“माँ यू आर द बेस्ट!”

“हा हा हा... मस्का मत लगा। उसके बिना भी तुझे सब मिलेगा।” कह कर उन्होंने माया को अपने दूसरे स्तन से लगा लिया।

माया दूसरा चूचक भी पीने लगी।

इन स्तनों में शीघ्र ही दूध आने लगेगा... और शीघ्र ही माँ जैसी सास मिलेंगीं! कैसी अद्भुत किस्मत है उसकी!

ऐसा माया ने सोचा।

“देख बेटे, हम दो एक दिनों में अशोक भाई साहब से कहने वाले हैं कि नवम्बर में तुम दोनों की शादी कर दें... अब और इंतज़ार करना सही नहीं है। अब तू हमको चाहिए ही चाहिए,”

“लेकिन ये अभी पढ़ रहे हैं माँ,”

“तो पढ़ता रहे। किसने रोका है?” फिर उसका एक गाल सहला कर, “तू उसके साथ रहेगी, तो उसका फोकस और बढ़ेगा। ... मुझे पता है ये बात। तेरा बहुत ही अच्छा प्रभाव है कमल पर,”

“माँ,”

“हाँ, और क्या! देख न - कितना अच्छा हो गया है वो पढ़ने में। अपने पापा के साथ उनके बिज़नेस में भी इंटरेस्ट दिखाने लगा है अब तो। उनके साथ बैठ कर बिज़नेस की बातें सीखता है वो अब... और फिर मैं हूँ ही यहाँ... उसको और पढ़ना है तो पढ़े! उसको क्या ही करना है? ... तेरे बच्चे होंगे, तो उनको मैं पाल लूँगी।”

सरिता जी ने ‘मैं’ पर ज़ोर दिया।

बच्चों का नाम सुन कर माया ने दाँत दबा कर शर्माने वाला भाव दिखाया।

“हाँ शर्मा ले, जितना भी शर्माना है। ... और सुन, माँ तो अब मैं बनने ही वाली हूँ, लेकिन मुझे जल्दी से दादी माँ भी बनना है अब। ... तेरी शादी के साल भर में... बहुत अधिक तो डेढ़ साल के अंदर अंदर! उससे अधिक नहीं। समझी?”

“बाप रे!”

“हाँ, बाप रे! इसीलिए तुम दोनों को अभी रोमांस करने का मौका दे रही हूँ! शादी के बाद में कोई बहाना नहीं चाहिए हमको।” सरिता जी आनंद से बोलीं, “मैं तो तेरे बच्चे को भी अपना दूध पिलाऊँगी!”

“मतलब मेरा पत्ता कट?”

“नहीं रे!” सरिता जी थोड़ा भावुक हो गईं, “ऐसे कैसे? तेरे कारण ही तो हुआ है सब... जैसे तेरे आने से किरण दीदी और प्रियंका दीदी - दोनों जनी की कोख फिर से भर गई, वैसे ही तेरे आने से मेरी भी... तेरा तो पहला हक़ है।”

“माँ,” माया भी भावुक हो गई, “मैं कितनी लकी हूँ... दो दो माँओं का ऐसा अनूठा प्यार मिल रहा है मुझे!”

“हम लकी हैं बेटे, हम!” वो संतोष से मुस्कुराती हुई बोलीं, “अब जा, कमल के पास जा। थोड़ा साथ में समय बिता लो दोनों... मैं बुला लूँगी फुर्सत से! ठीक है?”

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Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 

Ajju Landwalia

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अपडेट 31


कमल की बाहों में माया को इतना आराम और सुकून आ रहा था, कि वो उसकी बाहों में ही लगभग सो गई। कमल भी।

दोनों की उथली सी नींद तब टूटी जब सरिता जी की आवाज़ आई,

“बच्चों उठ जाओ और जल्दी से नीचे आ जाओ,”

उनकी आवाज़ सुन कर माया हड़बड़ा कर उठी।

अपने सामने माँ जी को बैठा हुआ देख कर वो अचकचा गई। समझ नहीं आया कि वो क्या प्रतिक्रिया दे। यह दूसरी बार था जब सरिता जी ने उसको यूँ पूर्ण नग्न देखा था। वो कर भी क्या सकती थी? दोनों स्पून पोजीशन में लेटे हुए थे - वो सामने और कमल उसके पीछे! कमल का एक हाथ उसके बाएँ स्तन पर था और दायाँ स्तन पूर्ण रूप से प्रदर्शित था... साथ ही बचा हुआ पूरा शरीर!

“माँ?”

“हाँ बेटा?”

तब तक कमल भी जागने लगा था।

“माँ... हम... बस...” माया ने सफ़ाई देने की कोशिश करी कि वो दोनों ऐसा वैसा कुछ भी नहीं कर रहे थे।

“पता है,” सरिता जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “आ जाओ जल्दी से,”

पाँच मिनट में माया ने अपने कपड़े पहने, और कमल के संग नीचे आ गई।

“अरे माँ? पापा?” बैठक में किरण जी और अशोक जी को देख कर माया हैरान रह गई, “आप लोग?”

“क्यों दीदी?” अजय की आवाज़ पीछे से आई, “हम लोग तुम्हारी ससुराल में नहीं आ सकते?”

“बाबू?” माया चकित सी सभी से मिल रही थी, “आप सभी ऐसे? अचानक से?”

“भाई साहब ने फ़ोन कर के कहा कि एक ज़रूरी बात करनी है,” किरण जी बोलीं, “तो हम आ गए!”

“दीदी, साथ में डिनर करने को बुलाया था आप सभी को,” सरिता जी ने हँसते हुए कहा, “ज़रूरी बात करने नहीं!”

“बहन जी,” अशोक जी भी हँसी में शामिल हो गए और बोले, “जब लड़के वालों का बुलावा आता है तो सब बातें ज़रूरी होती हैं!”

“भैया, आप भी न!”

“चलिए, जल्दी से छुट्टी पा लेते हैं,” किशोर जी बोले, “देखिए भाई साहब, हमको नहीं लगता कि हम लोग इसके इक्कीस का होने तक का इंतज़ार कर सकते हैं।”

किशोर जी की बात शुरू होते ही अजय मुस्कुराने लगता है। वो समझ जाता है कि क्या बात होने जा रही है।

“इसलिए, इसी नवम्बर में माया बिटिया को हम अपनी बहू बना लेना चाहते हैं, विधिवत!” उन्होंने एक साँस में अपनी बात पूरी कर दी, “अब आप बताईए कि आपको इस बात से कोई दिक्कत है, या कोई परेशानी है?”

“भाई साहब, हमको क्या परेशानी हो सकती है?” अशोक जी बोले - वो भी समझ रहे थे कि ऐसा होना लग तो रहा ही था, “माया अब आपकी बेटी है। जो निर्णय आप लेंगे, वो हमको स्वीकार है।”

“बढ़िया, तो फिर तय रहा।” सरिता जी ने तपाक से कहा।

उनकी प्रसन्नता भरी अधीरता देख कर सभी हँसने लगे। लेकिन कमल और माया शरम के मारे बगलें झाँकने लगे।

“तो हम कल ही अपने पंडित जी से मिल कर नवम्बर में एक बढ़िया तारीख़ निकलवा लेते हैं,” किशोर जी बोले, “आपको ठीक लगता है?”

अशोक जी बोले, “समय थोड़ा कम है, लेकिन हो जाएगा!”

“अरे भाई साहब, आप अकेले थोड़े ही हैं। ये दोनों अब हमारे बच्चे हैं। केवल आप पर शादी करवाने का सारा बोझ नहीं डालेंगे हम। ... मैं तो कहता हूँ कि शादी यहाँ, इस घर में हो।”

“नहीं भाई साहब... ऐसा नहीं हो सकता। माया हमारी एकलौती बेटी है। ... बारात हमारे घर आएगी और उसकी विदाई उसके मायके से ही होगी।”

“ठीक है, लेकिन मिल बाँट कर सब कर लेंगे।”

“वो ठीक है। ... राणा भाई साहब, हमारा बेटा भी शादी के लायक है...”

“कौन? प्रशांत? हाँ, कैसा है वो?”

“अच्छा है... उसको भी एक लड़की पसंद है। तो सोच रहे थे कि उन दोनों की शादी भी इन्ही दोनों के साथ हो जाए... या थोड़ा आगे पीछे?”

“क्या भाई साहब! इतनी बढ़िया खबर छुपा कर रखी हुई थी इतने समय से! कौन है लड़की?”

अगले पंद्रह बीस मिनट तक प्रशांत और पैट्रिशिया के बारे में बातें होती रहीं।

अंत में यही निर्णय लिया गया कि साथ ही में दोनों शादियाँ करवाना बढ़िया रहेगा। वहीं से बारी बारी से पैट्रिशिया और प्रशांत से फ़ोन पर बात करी गई और फिर सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि पहले माया और कमल की शादी होगी और फिर अगले या फिर उसके अगले दिन प्रशांत और पैट्रिशिया की। दिसंबर के दूसरे सप्ताह में हॉगवर्ट्स में एक्साम्स होते, इसलिए नवम्बर के दूसरे या तीसरे सप्ताह में शादी करवाना ठीक रहता। प्रशांत और पैट्रिशिया भी भारत आ कर कुछ दिन यहाँ बिता लेते और बहन की शादी में शरीक़ भी हो लेते। फिर वापस जा कर क्रिसमस के त्यौहार का आनंद भी उठा सकते पैट्रिशिया के परिवार के साथ।

इस निर्णय के बाद सभी ने दूसरे को बधाइयाँ दीं। अजय ने कमल को गले से लगा कर बधाई दी और अपनी माया दीदी को गले से लगा कर और चूम कर। दोनों समधी और समधनें भी गले मिले।

“इतना आनंद आया आज,” सरिता जी बोलीं, “चलिए भैया... दीदी... बच्चों... अब खाना खाते हैं!”

“एक मिनट माँ,” माया बोली, “सबसे बड़ी ख़ुशख़बरी आपने बताई ही नहीं!”

“अरे, कौन सी?” किरण जी ने उत्सुकतावश पूछा।

“बाद में,” सरिता जी ने फुसफुसाते हुए कहा।

“कोई बाद वाद में नहीं!” माया ने छोटी बच्ची के जैसे ज़िद करते हुए कहा, “माँ... पापा... पापा जी... बाबू... (कमल को उसने देखा, लेकिन सम्बोधित नहीं किया) एक बहुत ही अच्छी ख़ुशख़बरी है... माँ फिर से माँ बनने वाली हैं!”

“क्या?”

सभी एक साथ चौंके! कमल और किशोर जी को छोड़ कर।

“बहुत बहुत अच्छी खबर है भाई ये तो,” किरण जी ने सबसे पहले कहा, “बहुत बहुत बधाई हो सरिता।”

“हाँ बहन जी, भाई साहब,” अशोक जी भी बोले, “क्या सुन्दर सी ख़बर पता चली! बहुत बहुत बधाइयाँ!”

“कौन सा महीना है सरिता?”

“बस... अभी अभी!” सरिता जी ने शरमाते हुए, धीमे से कहा, “पहला ही,”

“माया बिटिया के आते ही ख़ुशियाँ आने लगीं!” किशोर जी बड़े जोश में और आनंद से बोले।

“हाँ, इसीलिए तो हम चाहते हैं कि इन दोनों की शादी जल्दी हो जाए!” सरिता जी बोलीं, “केवल माँ ही नहीं, दादी माँ भी बनना है अब तो जल्दी से!”

“हा हा हा हा... वो तो ये दोनों बच्चे देख समझ लेंगे भाग्यवान,” किशोर जी ने ठहाके लगा कर कहा, “हमारा काम तो बस इन दोनों को एक करवाने का है!”

उनकी बात पर सभी ठहाके लगाने लगे - बस माया और कमल को छोड़ कर। माया शर्म के मारे सरिता जी के सीने में छुप गई। कमल क्या करता - बस खिसियाया हुआ सा खड़ा रहा।

“भाई साहब, दीदी, एक विनती है...” सरिता जी ने माया के सर को प्यार से सहलाते हुए कहा, “अगले सप्ताह से नवरात्रि शुरू है... तो अगर बिटिया यहीं रह जाए दस दिन... मतलब कोई जबरदस्ती नहीं है। आप नहीं भी भेजना चाहेंगे, तो हम समझेंगे।”

“अरे नहीं नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है,” किरण जी बोलीं, “अब तो हम बस आपकी अमानत को अपने पास रखे हुए हैं। माया बिटिया का मन करे, तो यहीं रहे। हमको कोई ऑब्जेक्शन नहीं है! क्यों बेटे? जो तू कहे, वैसा ही होगा।”

“माँ, आप लोग जैसा ठीक समझें,” माया ने कोमलता से कहा।

“हाँ हाँ,” इस बार अजय ने उसकी टाँग खींची, “मन में तो लड्डू फूट रहे होंगे दीदी, लेकिन ऊपर ऊपर से ये कह रही हो!”

“कोई लड्डू वड्डू नहीं,” सरिता जी ने कमल को आँखें दिखाते हुए कहा, “पूजा पाठ का समय है। हम चाहते हैं कि बिटिया के साथ ये शुभ त्यौहार मनाया जाए! वैसे भी इसको दीपावली में यहाँ रहने की ज़िद नहीं कर पाएँगे न! इसलिए...”

“हाँ बहन जी,” अशोक जी ने कहा, “माया बिटिया यहीं रह जाय। हमको कोई ऑब्जेक्शन नहीं है।”

“बहुत अच्छा!”

रात्रि भोजन बड़े आनंद से बीता।


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Sabhi updates ek se badhkar ek avsji Bhai,

Har parivar me Dharam Grantho ke pathan ka chalan ab lagbhag khatam hi ho chuka he.............

Shayad hi aisa koi parivar bacha ho jaha par aisa hota ho..........

Maya aur Kamal me, maya mature hone ki vajah se har baar kamal ko behkane ya aage badhne se rok leti he............

Sarita aur Kishore ji ki mehnat rang layi...............Unke ghar par ek nanha mehmaan aane wala he..........

Gazab Bhai..................Keep rocking
 
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अब माँ का आदेश हो ही गया तो उसको कमल के साथ एकांत में होना ही पड़ता।

वैसे माया को इस बात से कोई परहेज़ नहीं थी। एक प्रेमी के रूप में कमल हठी या ज़िद्दी नहीं था। उसके अंदर माया के लिए व्यापक सम्मान था। उसके संस्कार पुख़्ता थे, इतना तो स्पष्ट था। लेकिन एकांत मिलने पर दोनों को अंतरंग होने के अवसर भी मिल जाते। कमल के चुम्बन कोमल होते... ऐसे चुम्बन जो उसको अंदर तक पिघला देते... उसके तार अंदर तक झनझना देते। यहाँ तक भी ठीक था। लेकिन कभी कभी जब दोनों की अंतरंगता उग्र हो जाती तो कमल उसको तेजी से निर्वस्त्र भी कर देता। उसको माया के चूचकों को चूमना और पीना बहुत भला लगता। किसको नहीं लगता? बस इसी बात से माया को थोड़ा डर लगता। वो जैसे तैसे स्वयं पर नियंत्रण रखती, और उस कारण से कमल अपने आप पर। लेकिन अगर किसी दिन यह नियंत्रण टूट गया, तो?

लेकिन अगर माँ की इच्छा पूरी हो गई, तो दो ही महीनों में वो और कमल, एक हो जाएंगे - सदा के लिए!

जब माया कमल के कमरे में पहुँची तो जैसे वो उसी का इंतज़ार कर रहा था। उसने लपक कर माया को अपनी बाहों में थाम लिया और उसके होंठों का एक आवेशपूर्ण चुम्बन लेने लगा। जब वो आवेश थोड़ा कम हुआ तो,

“आपको हमारे पास आने में डर लगता है?” उसने पूछा।

माया ने शर्म से मुस्कुरा कर ‘न’ में सर हिलाया।

“तो फिर?”

“तो फिर क्या?”

“तो फिर आप हमारे पास क्यों नहीं आतीं?” कमल ने माया की कमर थामे हुए पूछा।

“आती तो हूँ... अभी भी तो आपके ही पास हूँ,”

“माँ ने जबरदस्ती कर के भेजा होगा,”

माया मुस्कुराई, “... हाँ, उन्होंने जबरदस्ती कर के भेजा तो है, लेकिन ऐसा नहीं है कि हम आपके पास नहीं आना चाहते...”

“तो बिना कहे ही क्यों नहीं आतीं?”

“माँ पापा के सामने ऐसे कैसे... शर्म आती है हमको!”

“अच्छा जी?” कह कर कमल उसके कुर्ते के बटन खोलने लगा, “और जब हमारी शादी हो जायेगी, तब?”

“तब?” माया ने कमल को छेड़ते हुए कहा, “क्या तब?” वो बोली, “... और आप हमारे कुर्ते के बटन क्यों खोल रहे हैं?”

“दूसरे प्रश्न का उत्तर है कि कई दिनों से आपको वैसे नहीं देखा... इसलिए,” कमल ने ‘वैसे’ शब्द पर ज़ोर दिया; उसने बटन खोलना रोका नहीं, “और पहले प्रश्न का क्लैरीफिकेशन है, जबा हमारी शादी हो जायेगी, तब नहीं आएगी शर्म आपको?”

“आएगी... लेकिन कम,” माया ने फुसफुसाते हुए बताया।

“अच्छा जी?” कमल उसका कुर्ता उतारते हुए बोला।

इस समय केवल काले रंग की ब्रा और शलवार पहने हुए माया बहुत सुन्दर लग रही थी - सुडौल, छरहरी काया और साँवला रंग! अति सुन्दर! कितना नियंत्रण करना पड़ता था कमल को अपने ऊपर! वो तो माया थी कि उसको यूँ सम्हाल लेती थी, लेकिन अगर कोई और लड़की होती, तो अब तक दोनों का कई कई बार मिलन हो चुका होता।

“कैसी किस्मत है हमारी,” वो मंत्रमुग्ध सा हो कर बोला, “कि आप हमारी हो गई हैं!”

“एक बात कहूँ?” माया ने कुछ सोचते हुए कहा।

“कहिए?”

“किस्मत हमारी अच्छी है - पहले तो माँ पापा जैसे माँ बाप मिले हमको... और बाबू जैसा वीरन! और अब उनके पुण्यों के कारण आप मिले हैं। आप... माँ जी और पापा जी!” माया की बातों में सच्चाई थी, “हमने तो सोचा भी नहीं था कि ऐसा कुछ होगा हमारी लाइफ में,”

“अच्छी बात है! हम सभी की किस्मत अच्छी है,” कह कर कमल ने माया के दोनों स्तनों के बीच में चूम लिया।

माया के शरीर में सिहरन दौड़ गई। लेकिन फिर भी उसने स्वयं पर नियंत्रण रखे हुए कहा,

“आपको एक गुड न्यूज़ सुनाएँ?”

“अरे! अभी से कहाँ गुड न्यूज़?” कमल ने उसको छेड़ते हुए कहा, “अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई,”

“आप न! बदमाशी ही सूझती रहती है आपको!” माया ने नकली नाराज़गी दिखाई।

“अरे सॉरी सॉरी! बताइये ने,”

माया वापस चहकती हुई बोली, “माँ जी अभी बता रही थीं, कि हमको भाभी कह कर बुलाने वाला एक नन्हा मेहमान आ रहा है,”

“व्हाट?”

“हाँ... आपका छोटा भाई या छोटी बहन...”

“क्या सच में?”

“हाँ... क्यों? आपको अच्छा नहीं लगा जान कर?”

“बहुत अच्छा लगा! इट इस जस्ट दैट माँ और पापा बहुत समय से ट्राई कर रहे थे और अब तो उन्होंने गिवअप भी कर दिया था!” कमल ने बड़े ही भक्ति-भाव से माया के हाथों को चूमते हुए कहा, “आप सच में हमारा गुड लक बन कर आ रही हैं,”

“ओह्हो! ऐसा कुछ नहीं है,” माया ने शर्मिंदा होते हुए कहा, “आप तो नाहक ही...”

“ऐसा है!” कमल बोला, और फिर उसने माया के पैर छू कर अपने हाथों को चूम लिया।

“ये क्या कर रहे हैं आप?”

“वही, जो करना चाहिए।”

“हनी, हस्बैंड अपनी वाइफ के पैर नहीं छूते! उससे दोष होता है... पाप लगता है वाइफ को!”

“लेकिन आप हमसे बड़ी हैं... हम आपकी बहुत रिस्पेक्ट करते हैं।”

“तब भी! ... और हम भी आपकी बहुत रिस्पेक्ट करते हैं,” माया ने समझाया, “हम आपसे बड़ी हों, तब भी हम आपकी वाइफ ही रहेंगे।”

“आपके मुँह से ये सुन कर बहुत अच्छा लगता है,”

माया के चेहरे पर एक चौड़ी मुस्कान आ जाती है और वो कमल के होंठों को चूम लेती है।

“आप जानती हैं,” कमल ने काली ब्रा के कोमल कपों से ढँके उसके स्तनों को सहलाते हुए कहा, “कि माँ ने कल हमसे क्या कहा?”

माया ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया।

“उन्होंने कहा,” अब वो उसकी ब्रा के हुक खोल रहा था, “कि अभी तेरे पास मौका है... बहू को ठीक से जान समझ ले,”

उसने माया की ब्रा उतार कर उसके स्तनों को सहलाया।

एक पल में उसके दोनों चूचक उत्तेजनावश कड़े हो गए।

माया शर्म के मारे कुछ कह न सकी।

“कुछ कहिये न?” जब माया ने कुछ नहीं कहा, तो कमल बोला।

माया ने धीमे से कहा, “और माँ ने हमसे कहा कि आप ठीक से पढ़ाई कर रहे हैं या नहीं, हम वो देखें... आपकी गार्जियन बन के,”

“पढ़ाई ही तो कर रहा हूँ और वो भी बहुत ठीक से कर रहा हूँ... आपकी पढ़ाई!” कमल ने शरारत भरे लहज़े में कहा, और उसकी शलवार का नाड़ा खोलने लगा।

नाड़ा थोड़ा ढीला होते ही शलवार उसकी कमर से सरक कर ज़मीन पर आ गिरी।

“आप न,” माया ने काँपती हुई आवाज़ में कहा, “सच में बहुत बदमाश होते जा रहे हैं,”

“बदमाश? अभी कहाँ? बदमाशी तो शादी के बाद होगी,” वो बोला।

“ये बदमाशी नहीं है?”

“नहीं मेरी जान?” उसकी चड्ढी उतारते हुए कमल बोला, “... मैं तो बस आपको जानने की कोशिश कर रहा हूँ!”

माया शायद कुछ और बोलती, लेकिन वो जो बोलने वाली थी, वो शब्द एक मीठी आह में तब्दील हो गए क्योंकि कमल ने उसका एक चूचक अपने मुँह में ले लिया। कुछ पलों बाद वो उसको अपनी गोद में उठा कर बिस्तर पर बैठ गया और उसके स्तनों का आस्वादन करने में लीन हो गया। कुछ देर तक माया को इस तरह से प्यार कर के जब वो और माया दोनों ही अघा गए, तब वो उससे अलग हुआ।

“तो क्या जाना आपने?” जब माया थोड़ा संयत हो गई, तो उसने कमल से पूछा।

कमल की शरारतें उसको बहुत भातीं। जब वो उसको निर्वस्त्र कर के उससे लिपट जाता तो उसको लगता कि कमल से बेहतर वस्त्र उसके लिए हो ही नहीं सकता। अपने स्तनों पर उसके होंठों की छुवन गज़ब की कामुक लगती उसको।

“आज एक और चैप्टर पढ़ना है,” कमल ने उसके प्रश्न को नज़रअंदाज़ कर दिया।

“कौन सा?”

“आप पहले हमारी गोदी में अपने पाँव इधर उधर कर के बैठ जाइए,” कमल ने निर्देश दिया, “फिर बताते हैं!”

“धत्त,”

“अरे क्यों धत्त,” कमल ने उसको छेड़ते हुए कहा और खुद से ही उसको उठा कर अपनी गोद में व्यवस्थित करने लगा।

ऐसे बैठे हुए ही उसने माया को अपनी बाहों में उठा लिया था। उसका बाहुबल देख कर माया और भी निहाल हो गई। पति बलवान हो, हैंडसम हो, प्यार करने वाला हो, और अच्छे बर्ताव वाला हो, तो कोई भी लड़की स्वयं को धन्य मानेगी।

“माँ का आदेश है कि हम बहू को ठीक से जान समझ लें... तो बस वही कर रहे हैं!” वो बोला।

माया उस बरसाती रात को पहली बार हुई घटना को मिला कर अब तक तीन बार कमल के सामने नग्न हो चुकी थी, लेकिन कमल के सामने इस तरह से उसकी योनि का प्रदर्शन पहले कभी नहीं हुआ था। आज से पहले वो या तो कमल के सामने खड़ी रहती थी, या फिर उसकी गोद में इस तरह से लेटती थी कि इसकी योनि के दोनों होंठ आपस से सटे रहते थे। वैसे भी, घुँघराले श्रोणिकुंतलों से ढँकी योनि में क्या ही दिख जाता? कमल ने भी कोई ज़िद नहीं करी थी।

लेकिन इस समय उसकी दोनों टाँगें कमल के इर्द गिर्द थीं, लिहाज़ा उसकी साँवली योनि के दोनों होंठ अलग हो गए थे, उसकी योनि पुष्प की पंखुड़ियाँ बाहर आ गई थीं, और उसके अंदर एक सँकरी सी गुलाबी सुरंग दिखाई दे रही थी। अपनी योनि की ऐसी प्रदर्शनी के कारण माया भी उत्तेजित हो गई थी। उसकी योनि से भी काम-रस निकलने लगा था।

कमल के सामने एक आश्चर्यजनक सत्य दिखाई दे रहा था!

कॉलेज में दोस्तों के मुँह से उसने योनि के बारे में सुना बहुत था। कॉलेज में स्मगल कर के लाई गई डेबोनेयर मैगज़ीन में भी योनि के बारे में कई लेख पढ़ चुका था वो। लेकिन उसको इतने डिटेल में और इतने करीब से देखा उसने आज पहली बार था। अभूतपूर्व! यही वो स्थान था जहाँ जुड़ कर एक दिन वो और माया एक हो जाएँगे! लेकिन उस सँकरे से अंग में इतनी जगह ही नहीं थी कि उसकी तर्जनी भी ठीक से अंदर जा सके! फिर उसका लिंग कैसे अंदर जाएगा? ख़ैर, सभी का होता है, तो उसका भी हो जाएगा! ... वहाँ तक भी ठीक है, लेकिन इसी जगह से उसकी संतानें भी आयेंगीं!

कैसी अद्भुत सी बात है न!

प्रकृति सच में अद्भुत होती है।

ख़ैर, वो जब होगा, तब होगा। फिलहाल तो अपनी प्रियतमा का सबसे कोमल अंग देख कर कमल से रहा नहीं गया। शायद उत्सुकता रही हो, या शायद उत्तेजना! लेकिन उसने माया के चूतड़ों को थाम कर थोड़ा ऊपर उठाया और स्वयं थोड़ा झुक कर उसने माया की योनि को चूम लिया। माया का स्वाद थोड़ा नमकीन, थोड़ा अम्लीय था... लेकिन उसमें एक तरह की मिठास भी थी। उसकी महक भी थोड़ी मस्की थी।

माया की योनि को चूमना, कमल के लिए अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक लगी।

यह लड़की ‘अपनी’ है - यह बोध बड़ा अद्भुत होता है।

कमल के होंठों का स्पर्श अपनी योनि पर पड़ते ही माया के पूरे शरीर में करंट दौड़ गया। यही वो कदम था, जिसके बारे में वो डरती आई थी। इस समय वो पूरी तरह से कमल के रहमोकरम पर थी। वो उसको रोकने में पूरी तरह से अक्षम थी। अगर इस समय कमल उसके साथ सेक्स करना चाहता, तो वो उसको रोक न पाती। उसकी बाहों में उसका थरथराता हुआ शरीर कमल के अगले प्रहार की प्रतीक्षा करने लगा।

लेकिन,

“थैंक यू सो मच मेरी जान,” कुछ समय उसकी योनि का आस्वादन करने के बाद कमल बोला, उसकी आवाज़ बहुत अस्थिर और उत्तेजना के कारण थोड़ी कर्कश हो गई थी, “आप के साथ बिताए हुए आज के ये हसीन पल हम हमेशा याद रखेंगे,”

माया मुस्कुराई।

उसका आत्मनियंत्रण वापस आने लगा।

“हमको आपने मोहब्बत है,” उसने कमल से कहा, “आप जानते हैं न ये बात?”

कमल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। उसके होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान थी।

“तो फिर थोड़ा और वेट कर लीजिए... नवंबर में हम आपके हो जाएँगे... पूरी तरह से!”

“नवम्बर में?” कमल आश्चर्यपूर्वक प्रसन्नता में बोला, “सच में?”

माया ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया, “माँ जी और पापा जी बात करने वाले हैं घर पे,”

“ओह गॉड! एक और गुड न्यूज़!” कमल ने फुसफुसाते हुए कहा और माया के होंठों पर ताबड़तोड़ चुम्बन देने लगा।

कुछ देर चुम्बनों के आदान प्रदान के बाद माया बोली, “अब हम आपकी गोदी से उतर जाएँ?”

कमल ने मुस्कुराते हुए, बहुत सम्हाल कर माया को अपनी गोदी से उतार कर बिस्तर पर लिटा दिया।

“आपको हमारे बारे में कुछ जानना है?” कुछ देर माया को निहारने के बाद उसने कहा।

माया ने ‘न’ में सर हिलाया और मुस्कुराती हुई बोली, “जिस दिन हमारी शादी होगी न आपसे, उस दिन हम आपको पूरी तरह से जान लेंगे,”

“कहाँ से आता है आपमें इतना कण्ट्रोल?” कमल से रहा नहीं गया।

“आपके लिए हमारी मोहब्बत से आता है,” माया ने प्यार से कमल का गाल सहलाया, “मम्मी पापा के लिए रिस्पेक्ट से आता है। और... आप हमारे हस्बैंड हैं, लेकिन आपकी गार्जियन तो हम ही हैं,”

“हा हा हा! हाँ, सच है! एंड आई ऍम थैंकफुल फ़ॉर इट!”

“अच्छा, तो क्या जाना आपने आज... हमारे बारे में?” कुछ देर कमल की बाहों के आराम को महसूस करने के बाद उसने पूछा।

“यही,” कमल ने मुस्कुराते हुए कहा, “कि आपका स्वाद बहुत अच्छा है!”

“हा हा हा... आप सच में बदमाश होते जा रहे हैं,” माया ने शर्म हँसते हुए कमल पर इल्ज़ाम लगाया।

ऐसे नग्न लेटे हुए हँसने पर उसके ठोस और मुलायम स्तन हल्के से हिले। उस दृश्य को देख कर कमल का दिल हिल गया। लेकिन वो समझ रहा था कि जब तक शादी नहीं हो जाती, कुछ नहीं हो सकता।

“अच्छा, ये बताईए कि अगले हफ़्ते आपका कोई टेस्ट या एग्जाम है?” माया ने उसका कामुक मूड तोड़ने की गरज से पूछा।

“हाँ, इंग्लिश और फिजिक्स का!” कमल ने बताया, “हाँ, लेकिन उसकी पूरी तैयारी है मेरी!”

“पक्का न?”

कमल ने विश्वास के साथ ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“गुड,” माया ने उसके माथे पर से बालों को थोड़ा सरकाते हुए कहा।

कमल बोला, “आपको डिसअप्पॉइंट नहीं कर सकता न!”

“थैंक यू हनी,” माया ने उसकी बात पर कहा, “अगर हमारे कारण आपको कोई नुकसान हो, तो हमको अच्छा नहीं लगेगा...”

“नहीं हो सकता कोई नुक़सान... आप हमारी स्ट्रेंथ हैं! जितनी हमें आपसे मोहब्बत है, उतनी ही आपकी रिस्पेक्ट भी!”

“आई लव यू,”

“आई लव यू सो मच!”

इसके साथ ही दोनों एक और निस्सीम चुम्बन में लिप्त हो गए।

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Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai.....
Nice and lovely update.....
 
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