story : PARA VIDHYA
Writer : NAINA11STER
the honest review
परा विद्या
शिमला का मशहूर इलाका मशबोरा की एक सोसायटी में कौतूहल का माहौल था। ग्रीनरी नाम की सोसायटी में पुलिस चहल कदमी करती बड़ी तेजी से तीसरी मंजिल की ओर बढ़ रही थी, जिसके एक फ्लैट में रह रहे पति-पत्नी का कत्ल कर दिया गया था। सोसायटी की भीड़ को हटाते हुए पुलिस की टीम के साथ पुलिस अधीक्षक माथुर मौके पर पहुंचे और वहां का मुआयना करने लगे। पुलिस अधीक्षक थोड़ी देर मुआयना करने के बाद, मशोबरा चौकी के सर्कल इंस्पेक्टर कालिका को ढूंढने लगे। कालिका को मौके पर ना पाकर साहब बहुत गुस्से में आ गए |
badhiya start liya hai but ye pure hindi font ki jagah agar hinglish use karte to aur maza aata
kyunki tumne sudh hindi me English name use kiye hai jese ग्रीनरी society isko English me padhne me hi maja aata hai
mathur to bada gussa ho riya hai bhai
:read:
कुछ ही समय पश्चात कालिका सोसाइटी में पहुंची। जैसे ही वह अपने स्कूटी से उतरी, वहां के भीड़ का आकर्षण कालिका ही थी। और हो भी क्यों ना, बला की खूबसूरत लड़की जो सर से लेकर पाऊं तक सजि थी। उसके श्वेत से बदन पर लिपटी लाल साड़ी जो नाभि के नीचे कमर पर बंधी थी, उसके शरीर के मनमोहक आकार में चार चांद लगा रही थी। काले घने खुले हुए गेसूवें, जिसकी कुछ लड़ियां जब उसके माथे से हो कर गाल को टकराती, ऐसा लगता मानो दिल में ज्वार भटा उठ गया हो।
wah wah itni bhari Hindi :wow:
agar esi hi sari police wali hongi to to crime badh bhi sakta hai ya kam ho sakta hai
kon esi ladki ko dekhna nahi chahega
जैसे ही कलिका स्पॉट पर पहुंची, उसे देख कर माथुर और भी गुस्से में आ गए। "नाटक चल रहा है क्या यहां या मिस वर्ल्ड या मिस यूनिवर्स के प्रतियोगिता में हिस्सा लेने आई हो".... कालिका धीमे-धीमे बड़बड़ाने लगी "चिर-शांति, चिर-शांति"। कालिका का इतना बोलना था और माथुर का मन बिल्कुल शांत हो गया।…
idhar kalika ka कलिका hogya (isi liye hinglish is best
)
oh bhai ye chir shanti boli merko laga ki mathur ka pehla name shanti hai aur marne ki baat kar rahi hai but yaha to iske shabdo ne jadu kar diya matlab para vidhya iske pas hai ya fir ye uske against hai jiske pass para vidhya hai
not bad man abhi tak to bandh k rakhe ho story me
कालिका:- सर आज मैंने हाफ डे लीव लिया हुआ था। कल बताई तो थी लड़के वाले देखने आ रहे है।
"इट्स ओके" कहते हुए माथुर साहब उसे कुछ समझा कर वहां से चले गए। उनके जाने के बाद कालिका अपनी ड्यूटी में लग गई। पुलिस की पूरी टुकड़ी एक-एक सुराग को ढूंढ़ने में लग गई और कालिका एक-एक कर के सब के बयान दर्ज करने लगी। पूछताछ के दौरान कुछ चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आए।
mathur itna bada police wala hoke kese bhul jayega ki uska koi inspector chhuti pe hai
:read:
सोसायटी के लोगों के बयान दर्ज करने के क्रम में मिथलेश नाम का एक युवक काफी क्रोधित हो कर खून का इल्ज़ाम वहां के एमएलए पर लगा रहा था। उसके अनुसार बीती रात एमएलए का झगड़ा इन दोनों पति-पत्नी के साथ हुआ था।
ab ye mithlesh kon hai
koi side character hai to itni chhoti story me bhi uska name add kar diya :wow:
aur agar hero hai to dekhte hai aage kya karta hai
wese agar wo MLA k uper inzham laga raha hai to fir usse zyada puchhtachh honi chahiye thi na
aur kalila ko MLA se Milne jana chahiye ya fir mathur ko batana chahiye ki koi local MLA par inzam laga raha hai
dekhte hai kya hota hai :read:
वहां की सारी फॉर्मेलिटी पूरी करने के बाद कालिका अपने घर लौट आईं। जब वो घर लौटी तबतक लड़के वाले जा चुके थे। देखा-सुनी के बीच में उठ कर जाने से उसकी मां सोभा काफी गुस्से में थी और कालिका के आते ही उस पर चिल्लाने लगी।
कालिका मुस्कुराती हुई केवल इतना ही कही… "धात्री जाने दो ना, वैसे भी वो लड़का मुझे पसंद नहीं था"।
"छह रिश्ते पहले ही ठुकरा चुकी है और अब ये सांतवा, पता नहीं कब तुझे कोई पसंद आएगा"
"ये सब बाद में देखेंगे, पहले ये देखो"… कालिका कत्ल कि तस्वीर अपने मां के पास रख दी। तस्वीरें देखते-देखते सोभा के चेहरे की रंगत उड़ने लगी.... पंजे से पूरा बदन उधेरा हुआ, गले पर बड़े-बड़े दातों के निशान।अस्चर्य से फटी आखें जब ये तस्वीरें देख रही थी तो मुख से अनायास ही निकल गया "एक अल्पसर का हमला"।
ye kalika to ghar chali aayi
iska matlab ya to isne mithlesh ka bayan andekha kar diya ya fir usne apni report me likh k formality khatam kar di
ab ye dhatri (धात्री) kon hai
mom ka dusra nam धात्री hota hai kya
ya fir nick name hai
iski ma itna kyun react kar rahi hai
agar kalika ghar se nikli hai to wo itna to bolke gayi hongi na ki kuchh emergency aayi hai and all
alpsar अल्पसर
oh to agar kalika ki mom bhi esi bato ko janti hai to isko bhi ye para vidhya ka pata hai ya fir usse judi kuchh bate
:read:
कालिका:- जी हाँ धात्री एक अल्पसर का हमला।
सोभा:- मुझे गुरु जी से मिलने तुरंत ही जाना होगा। तबतक तुम पता लगाओ की ये किसने किया। किन्तु संभलकर।
to ye अल्पसर apna villan lag raha hai
:read:
हिमाचल के शांत और घने जंगलों वाला ये क्षेत्र अपने अंदर कई राज समेट हैं, उन्हीं में से एक था यहां का मग्स समुदाय। जादूगरों का यह समुदाय हिमाचल के मूल निवासी थे जो अपने कई पीढ़ियों से यहां रह रहे थे।इनके हिसाब से समाज 2 वर्गों में बंटा हुआ है.. एक जादू करने वाले जिसे मग्स कहते है और दूसरा आम इंसान जिसे श्रेष्ठ कहते है।
सोभा एक ऊंचे कुल कि मग्स थी, जो मुख्यरूप से मग्स के द्वारा कि जाने वाली गतिविधियों पर नजर बनाए रखती थी। इनका मुख्य कार्य अपने क्षेत्र में मग्स कानून को बनाए रखना तथा शक्ति के खोज में भटके हुए मग्स को सही रास्ता दिखाना। और जो सही रास्ते पर ना आए उन्हें दंड देना। मग्स में कुछ भटकी प्रजाति भी थी जिन्हे विकृत बुलाते थे। इनके नाम के पीछे अल्प भी लगाया जाता था क्योंकि इनका शरीर आंशिक रूप से किसी जानवर में बदल जाता था जो इनके वास्तविक स्वभाव को दर्शाता था जैसे कि अल्पशेर, अल्पशियार। और इन्हीं विकृत में सबसे ऊपर था अल्पसर, जो खुद को मग्स समुदाय में सबसे शक्तिशाली मानते थे।
:wow: to idhar pura ek shamuday hai jo magic wagera janta tha jiske pas powers thi
mags word ko agar thoda idhar describe karte to maja aata
esa word ek to pehli bar suna hai aur yaha to wahi word bar bar aane wala hai
us word ka meaning thik se pata na hone k karan thodi confusion ho rahi
filhal to apun usko magic user esa meaning manke chalte hai
to sobha yaha pe magic users me sabse top hierarchy me hai :wahwah:
agar ye bhatki huyi prajati hai usko vikrut bulate hai ye bar man sakte hai ki ese logo ko ek nam de diya gaya hai
but agar uske nam ke pichhe alp अल्प lagta hai to fir idhar tum aage kyun likh rahe ho
warna alpsher ki jagah sheralp hota
sentence shayad galat :type: kar diya hai
but yaar main bat yaha ye pata na chali ki ye alp bante kese hai
sirf bhatke huye magic users ko ye bimari hoti hai ya fir wo apni shaktiyon ko sahi se use nai kar pate is bajah se uska ye hal hota hai ya fir ye paida hi ese hote hai ?
ye uper wale sawal to confuse karte hai bhai
hope ki aage tumne bataya ho ki kese alp alp bante hai kese wo adhe janwar bante hai :read:
अल्पसर का यूं सहरी क्षेत्र में हमला करना काफी चिंता का विषय था इसलिए सोभा तुरंत ही गुरु जी से मिलने के लिए रवाना हो गई। इधर कालिका ने सारा दिन हर सुराग के पीछे भागती रही ताकि किसी भी तरह से कातिल का पता चल सके। थका देने वाला दिन था, कालिका बिस्तर पर जाते ही सो गई। सुबह जब उसकी आंख खुली तब चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी, शायद किसी हसीन सपने से अभी-अभी जागी थी।
ye apni heroin bhi kamal ki hai bhai idhar sabse takakwar alp hamla kar raha hai aur isko hasin sapne aa rahe hai
:read:
उठते ही फिर से वही ड्यूटी और पुलिस चौकी। कालिका पोस्टपार्टम रिपोर्ट लेने सीधा डॉक्टर से मिलने चली गई। डॉक्टर से मिलकर कई बातों का खुलासा हुआ जिसके मुख्य बिंदु थे…. दोनों दंपत्ति के रक्त में सांप का जहर पाया गया जिस वजह से दोनों परालाइज्ड हो गए। उन के शरीर पर पंजों से वार कर से पूरे शरीर को उधेड़ कर रख दिया गया। सभी वाइटल ऑर्गन डैमेज और नतीजा मौत। बदन पर जो डीएनए सैंपल मिले है वो किसी इंसान के थे।
idhar mujhe kuchh sentence me gad badi lag rahi hai dekh lena bhai
khun me zaher shanp ka milta hai aur panjo se sharir ko bigad k rakh diya jata hai aur vital organs damage ho chuke hai but marne wale ki body ke uper DNA to insan ka mila
ab ya to kisi insan ko markar uska DNA ya for jo bhi ho khun baal and all use kiya gaya hai
ya fir ye alp insan ka DNA copy kar sakte hai apni takat se ya fir in magic users aur aam insan ka DNA me koi fark nai hota
कालिका पूरी रिपोर्ट लेकर सीधा पुलिस अधीक्षक के ऑफिस पहुंची। वहां माथुर ने इसे किसी साइको किलर का केस मानकर, ये केस स्पेशल टीम को सौंप दिए और कालिका को अपने स्तर से छानबीन जारी रखने कहा।
थाने में बैठ कर कालिका कत्ल के बारे में सोच ही रही थी कि एक और कांड कि सूचना आने लगी। किसी ज्वेलरी शॉप का तला तोड़ कर लाखों के जेवरात कोई चुरा ले गया था। कालिका अपनी टीम के साथ पहुंचकर तुरंत जाँच शुरू कर दी। पूछताछ के सिलसिले में कलिका शॉप ओनर से मिलने गयी जहां एक मिनट के इंतज़ार के बाद शॉप ओनर अपनी जगह पर आ कर बैठ गया।
कालिका उसे सामने बैठते देख, उसे एक नजर देखी…. और एक बार जब नजर पड़ी तो वो उसके चेहरे को बड़े गौर से देखती रही।
"किसी का किया किसी और पर थोपा गया। भरी सभा में इतनी बेज्जती हुई कि उसे अपना घर और सहर छोड़कर जाना पड़ा। और विडम्बना देखिए मैडम अब भी पहचान ना पाई"
कालिका एकदम से हैरान होती हुई… "अरे संदीप तुम"
संदीप बेल बजा कर एक लड़के को बुलाया और उसे ये कहकर शिकायत वापस लेने कह दिया "कि कहीं इस बार भी कोई निर्दोष कालिका मैडम के हत्थे ना चढ़ जाए"… अब आलम ये रहा की कालिका, संदीप से सीधे-सीधे बात कर रही थी और संदीप अपने स्टाफ को जवाब देता वो भी उल्टे और शब्दों में इतने ताने भरे की दिल में छेद कर जाए। कालिका बेज्जती सी महसूस करने लगी और उठ कर वहां से चली गई। लौटते वक़्त कालिका के दिमाग में बस संदीप के ताने ही चल रहे थे और याद आ रही थी 8 साल पहले की वो छोटी सी घटना ।
कालिका इस वक़्त कॉलेज में थी और संदीप वहां का सीनियर हुआ करता था। दोनों के बीच की कहानी इतनी सी थी कि कालिका की सहेली को किसी ने बुरी तरह रैगिंग कर दी और नाम उछल आया संदीप का। कालिका बिना सच का पता लगाए अपनी पूरी पलटन के साथ रात भर में, पूरे सहर में उसके बड़े बड़े पोस्टर लगवा दी … "सहर के सब से बड़े सेठ अमृत लाल का बेटा अपनी दुल्हनिया ढूंढ़ने के लिए जगह-जगह मुंह मार रहा है। संभालो अपने लौंडे को"
संदीप के पिताजी को कौन नहीं जानता था, इस बेइज्जती के बाद संदीप को सहर छोड़ना पड़ गया। कुछ दिनों बाद सब को सच का पाता चला, लेकिन जब फेक न्यूज फैलाना होता है तो बड़े-बड़े होर्डिंग लग जाते हैं किंतु जब सच सामने आता है तो कोई छोटा माफीनामा भी नहीं डालता। वैसे कालिका को जब सच पता चला, तब उस वक़्त उसे कोई फर्क नहीं पड़ा था, पछतावा तो दूर की बात थी। लेकिन अपने कर्मा से कौन बच पाया है। जो पछतावा तब नहीं हुआ वो अब हो रहा था। उस केबिन में बिताए 5 मिनट और संदीप द्वारा दिए गए ताने कालिका को किसी तीर की तरह चुभ रहे थे।
आत्मग्लानि और पछतावा के कारण कालिका किसी ना किसी बहाने संदीप से मिल रही थी, अपने किए की माफी भी मांग रही थी, किन्तु इतना पुराना ज़ख्म केवल माफी से कहां ठीक होने वाला था। लेकिन कालिका भी कहां हार मानने वाली थी। वो लगातार मानती रही, संदीप लगातार बेरुखी दिखाता रहा। कालिका कुछ भी कहती वो चिढ़ कर उल्टा ही जवाब देता और होता ये की उसका चिढ़ा हुआ चेहरा देख कर कालिका उसे थोड़ा और चिढ़ा दिया करती थी। गुस्से में जब वो फुफकार मार कर इधर-उधर देखता और किसी तरह अपने गुस्से को काबू करने की कोशिश करता तो ये नजारा देख कर कालिका मुस्कुरा देती।
chalo case ka to thik hai police wale ese hi kam karte hai
lekin bich me hai konsa flashback chalne laga
aur ragging me nam thodi uchhlega :jiski ragging huyi usko to pata hi hoga na ki kisne uski ragging ki hai
to kya ab esa lag raha hai ki sandip is hero of the story
yaar sach kahu to abhi tak story kisi ek side me nai gayi
kafi sari side banadi hai tumne
murder case
magic
alpsar
MLA connection
psycho killer
aur chori ka case
aur last me ye inka flash back aur kalika ka uske pichhe lagna
i hope ki tum story ki end tak sare sawal k jawab clear kar doge
kyunki me ye to nai man lunga ki kalika ki mom ne alpsar ka hamla esa bol diya to wo usi ka hai
kyunki jo jo scene tumne create kiye hai wo sab khatam bhi to hone chahiye na
MLA un logo se kyun jagad raha hai
ya fir ye alpsar MLA k sath mila hai kya
i hope ki aage pata chal jaye sab :read:
इतना हट इतना जिद देखकर, कालिका ने एक दिन संदीप को अगवा ही कर लिया और उसे अगवा करके जंगल में ले आयी। संदीप वही अपना चिड़चिड़ापन दिखाते कहने लगा… "व्हाट्स दी हैल, आर यू मैड"
कालिका उसका ऐसा चिढ़ा हुआ चेहरा देख कर ही हसने लगी और उसे ऐसे हंसते देख संदीप चिढ़ कर जीप से उतरा और पॉकेट से सिगरेट निकाल कर जला लिया।
कालिका:- सॉरी मुझे हंसना नहीं चाहिए था, पर क्या करूं तुम्हारा चिढ़ा हुआ लाल टमाटर जैसा चेहरा देख कर हंसी आ गई।
"लाल टमाटर" सुन कर संदीप को भी इतनी तेज हंसी आयी की उसके मुंह से सिगरेट दूर जा गिरा…. "16 रुपया बर्बाद"
"इतने बड़े सेठ हो कर एक सिगरेट गिरने का अफसोस कर रहे, कंजूस कहीं के"
"हुह.. कोई मुफ्त में 16 रुपए देता है क्या, कमाने पड़ते हैं। वैसे मैं तुम से बात ही क्यों कर रहा"
"बस भी करो संदीप, एक ही बात के लिए कितना कसूरवार महसूस करवाए जा रहे हो। तुम्हारा चिढ़ना तो एन्जॉय कर लेती हूं पर तुम्हारे ताने चुभते हैं। अब भूल भी जाओ पुरानी बातों को"
कालिका की बात सुन कर संदीप का चेहरा छोटा पर गया और इत्तू सा मुंह बना कर शुरू किया अपना राग …. "कहना आसान होता है भूल जाओ"….
कालिका अपना सिर पीट लेती है… "इसकी तो, रीपिटेड कैसेट..... जब देखो इसके चैनल पर एक ही गाना बजता "
कालिका तेजी से संदीप के पास पहुंची, उसका कॉलर पकर कर उसके चेहरे को झुका दी… खुद अपनी ऐरियों को ऊपर कर, होंट के बचे फासले को मिटाती हुई, छोटी पर जहरीली चुम्बन दे कर वो पीछे हट गई। उस जहरीली चुम्बन का असर ऐसा था कि संदीप के तन बदन में सुरसुरी दौड़ गई। वो कुछ कह पाता उससे पहले ही कालिका जीप उठा कर निकाल ली और जाते-जाते कहती गई…
"एक पुराना कांड है और दूसरा ये अभी का नया कांड। पदयात्रा करते आओ और तय कर लेना मुझसे किस कांड पर झगड़ा करने वाले हो। मैं चली"….
उफ्फ क्या अदा थी, दीवाना बना गई। ऐसा दौड़ शुरू हो रहा था जब देखने को दिल ललचा जाए। बात करने को मन व्याकुल हो जाए और एक बार जो मुस्कुरा दे तो दिल में बाहर छा जाए। अब तो मिलने के बहाने पैदे किए जाने लगे। दोनों के लिए एक पल कि मुलाकात भी बड़ी मीठी होती थी। होटों पर मुस्कान और चेहरे से झलकती खुशी।
रातें अब फोन कॉल पर बित रही थी। जब दोनों अपरिपक्व उम्र में थे तब कभी भी, किसी से, फोन पर दिलकश और लुभावनी बातें नहीं हुई, किंतु आज पूरी-पूरी रात इन्हीं सब बातों में गुजर रही थी।
प्यार अपने पूरे परवान पर था। अपने प्रियसी को बाहों में भरने का एहसास और अपने प्रेमी द्वारा बदन का स्पर्श दोनों में एक अलग ही रोमांच पैदा कर रहा था। मन में फुट रही तम्मनाएं और तेज धड़कनों के साथ, एक दूसरे को आलिंगन में भर कर चूमना और चूमते हुए एक दूसरे के बदन को स्पर्श करने की अनुभूति, तन और मन को एक अलग ही उड़ानों पर ले जाती।
एक दूसरे को स्पर्श करना और उस स्पर्श में बदन का टूट कर बाहों में जा गिरना। फिर प्यार के एक अलग आनंद में जब एक दूसरे के कपड़े, एक-एक कर चूमते हुए निकालना, बदन को उस प्यार के एहसास में डुबो देती जिसमें प्यार की अनंत उन्माद ऐसे उत्पन्न होती, जो बदन को एक अलग ही एहसास में झुलसा देती। फिर तो नजरों से नजरें मिलती और समर्पण की भावना छा जाति।
उन अनुभवों के साथ तन का मिलन होना जिसमें बदन पर स्पर्श मात्र से ही सिहरन का एहसास हो, और रोमांच से खड़े रौंगटे, बदन पर साफ देखे जा सकते थे। फिर डूब कर उस मिलन कि अनुभूति करना और उस अनुभूति में डूब कर अपने चरम पर पहुंचने का अनुभव जिसमें चरम पर पहुंचते-पहुंचते, बदन पर चूमने और काटने से बने वो लाल निशान प्यार की कहानी बयां कर जाती थी।
डूब कर प्यार करना और प्यार में डूब जाना बस यही चल रहा था। कभी चूमते-चूमते शरारत में कालिका के योवन को अपने हाथों से निचोड़ देना, जिसकी गवाही उसके छाती के ऊपर के कपड़ों कि सिलवटें दे जाती, तो कभी-कभी शरारत में संदीप के होटों को इस कदर काट लेना कि सुजे होंठ की कहानी किसी को पता ना चल जाए इसलिए चेहरा छिपा कर घूमना।
प्यार का नशा भी अजीब होता है.. जब प्यार होता है तो सारी दुनिया प्यारी लगने लगती है। बातों में मिठास और काम करने के तरीके में नजाकत अपने आप ही आ जाती है।
yaar ye ek naya angle laye ho tum
tumne itne restricted word me bahot kuchh kar liya hai story me agar end tak sab sawal aur sab side ko tum sahi samja paye to man jaunga ki tum bahot hi bade writer ho
warna me kahunga ki story ka plot achha hai ispe long story likho to bahot hit jayegi
एक तरफ प्यार अपने परवान पर था तो दूसरी तरफ इनकी अपनी-अपनी ज़िन्दगी। सोभा, लगभग एक महीने बाद लौट चुकी थीं। लौटने के तुरंत बाद ही कालिका से कुछ बातें साझा करना चाहती थी, किंतु कालिका के हाव-भाव देख कर उसे समझते देर ना लगी की कालिका किस दुनिया में खोई है। और ऐसा ही कुछ संदीप के घरवाले उसके हाव-भाव से समझ रहे थे। दोनों के रवैए को देखकर इनके घरवाले मन बना चुके थे कि अब इनकी जल्द शादी करवा देनी चाहिए। इसी क्रम में सोभा अपनी बेटी को बिठा कर उससे साफ-साफ शब्दों में पूछ लेती है "कि वो किसके ख्यालों में डूबी है"?
और जवाब सुन कर तो मानो जैसे उसपर बॉम्ब गिर गया हो। आश्चर्य से मुंह बस खुला रह गया…"क्या, एक श्रेष्ठ से प्यार"। किंतु कहानी केवल कालिका के घर में ही नहीं फसी थी, बल्कि संदीप के घर में भी बॉम्ब फूटा था… संदीप से उसके प्रेम कहानी के बारे में पूछने पर जब कालिका का नाम निकल कर आया तब उसके सभी घरवालों के मुंह खुले के खुले रह गए… " क्या…. वो पुलिसवाली, जिसने तुम्हारा पोस्टर लगवाया था"
:wahwah: ek baat samaj nai aayi agar sobha ko lagta hai ki kalika ek shresht se pyar nai kar sakti to fir ye batao ki pehle jo ladka dekhne aaya tha in total 7 ladke aaye the wo sab kya inki tarah magic user hi the
agar the to fir ye uch kul ki ladki ko pasand kyun nai kiya gaya
kyunki shobha agar uch kul ki hai to fir kalika bhi huyi na
thik hai ghar walo ka naraj hona jahir si bat hai
but murder case ko chhodkar thriller ko chhod kar ye romance me kese ghush gaye
dekhte hai aage dono me kya hota hai :read:
फिर क्या था कहानी का पेंच ऐसा उलझा की दोनों के घरवाले अपने-अपने बच्चे से नाराज़ हो गए। घर में तू-तू मैं-मैं का माहौल शुरू हो गया। एक तरफ संदीप और कालिका अरे हुए थे तो दूसरी ओर इमोशनल ड्रामा से ले कर घर से निकल जाने कि धमकियां भी मिल रही थी। लेकिन इन सबके बीच दोनों का मिलना-जुलना और प्यार कभी कम ना हुआ। 10 दिनों के लगातार ड्रामे के बाद दोनों परिवार उनकी शादी की बात को लेकर राजी हुए। फिर वक़्त आया दोनों परिवारों के लोगों के मिलने का।
उफ्फ क्या मीटिंग थी…. लड़केवालों को लड़की पसंद नहीं, लड़कीवालों को लड़का पसंद नहीं.. फिर तो केवल जहर ही उगल रहे थे दोनों परिवार। कुत्ते-बिल्लियों कि भांति, भरी सभा में ही लड़ने लगे। लेकिन इस तूफानी माहौल में भी दोनों कोने में बैठकर इश्क़ फ़रमा रहे थे। एक ही कुर्सी पर दोनों बैठे, एक ही आइसक्रीम के कप से एक दूसरे को आइसक्रीम खिलाते हुए…
"तुम्हे क्या लगता है कालिका और कितनी देर लड़ेंगे"……
"लड़ने दो जितनी देर तक लड़े तुम अंगूठी तो लाए हो ना"…
संदीप गालों को चूमते… "अंगूठी तो लाया हूं पर तुम्हारी चमक के आगे आज इस हीरे की चमक भी फीकी पर गई। हाय.. आज तो तुम घायल कर रही हो"…
"बेशर्म कहीं के सब के सामने ऐसे कोई चूमता है क्या"
"सब के सामने हूं इसलिए संयम में हूं … अकेले होता तो क्या केवल गाल चूमता"
"आ हां .. तो और क्या-क्या चूमते"
"वो तो जब अकेले होते तो ना"
"तो चले अकेले में, दिखा ही दो"
"हट पागल… तुम भी ना"
"मैं भी ना क्या?… क्या केवल मुझे देखकर तुम्हे ही उत्तेजना महसूस होगी, मै तुम्हे देख कर उत्तेजित नहीं हो सकती क्या?… या एक लड़का और लड़की के रिश्ते में केवल उत्तेजित होने का अधिकार लड़के को ही है"
"कृपया इस विषय पर आप मेरी क्लास बाद में ले लेना.. फिलहाल चलकर उधर सँभालते हैं"
kya rasleela chal rhi hai bhai
gharwale razi hogye the to wapis kyun jagadne lage
unko ladka aur ladki respectively pasand nai the to milne ko hi razi kyun huwe
अब दोनों पहुंच चुके थे बीच मैदान में। फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ… लगभग ½-1 घंटे की माथापच्ची के बाद दोनों परिवार इनके एंगेजमेंट के लिए मान गए। मान तो गए लेकिन खुन्नस कम नहीं हुई। और इसी खुन्नस की वजह से माहौल ऐसा हो गया कि कालिका और संदीप एक दूसरे को अंगूठी पहना रहे थे। कालिका का परिवार बाएं दीवार को तो संदीप का परिवार दाएं दीवार को देख रहे थे।
अगली सुबह फिर बुरी खबर लेकरआई। इस बार घटना न्यू शिमला थाना क्षेत्र की थी जहां रह रहे एक विवाहित युगल को ठीक वैसा ही कत्ल किया गया जैसे ग्रीनरी सोसायटी में हुआ था। कालिका इस कत्ल से काफी आहत थी, क्योंकि उसके पास वक़्त तो था लेकिन उसने इस केस पर कुछ किया नहीं… इसी बीच संदीप का फोन आने लगा। कालिका का जरा भी मन नहीं था बात करने का इसलिए वो फोन उठा कर संदीप को मना कर दी
chalo bhai ek side to tumne band kar di
par yaar ye samaj nai aaya ki sandip ne use maaf kese kiya
implied hi sabkuchh mene 15 uypdate apne man me alag chhap liye hai bhai is bat ko clear karne k liye
:wah dusra murder bhi
sahi me agar wo apne kam pe bhi dhyan deti to shayad ye murder na hota
kyunki usko pata tha ki wo janti hai ki shayad koi alp une mar raha hai
wese itne dino me shoba ne kalika ko jo wo ek mahine k liye gayi thi uske bare me nai bataya
wo to kuchh bat karne wali thi na :?;
aur wo naraz thi to jab sandip se milne razi huyi tab batani chahiye thi na
aur kya alp jo logo ko shehri ilake me mar rahe the usse badhke uski narazgi thi
kyunki shobha to apni mags jati me ek unche hode pe thi na
:read:
अभी वो संदीप को माना कर ही रही थी और सामने से मिथलेश पहुंच गया। कालिका उसे देखती ही कहने लगी… "मिथलेश बाद में आना, अभी मैं व्यस्त हूं"
"मैडम 45 दिन में ये दूसरा बड़ा मर्डर हो गया और आप ना जाने कहां व्यस्त है"
"मिथलेश मै इस केस को ले कर पहले ही परेशान हू, प्लीज़ तुम मेरा दिमाग मत खाओ"
"मैडम आप इतनी ही चिंतित होती तो अब तक वो कातिल पकड़ा जाता और दूसरी वारदात को अंजाम भी नहीं दे पाता"
"मैं तुम्हे ध्यान से सुन रही हूं। रखो अपनी बात"....
"मैडम पहला केस अर्जुन और संगीता, दूसरा केस अभय और रागनी। और ये वहीं लोग हैं जो जमीन अधिग्रहण को लेकर एमएलए के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे"
"ठीक है मिथलेश तुम जाओ मै इसकी तह तक छानबीन करती हूं। और हां तुम जरा संभलकर रहना"
जब कालिका मिथलेश को सुन रही थी तब भी बार-बार संदीप का कॉल आ रहा था और इस बात से खफा हो कर कालिका, संदीप को उल्टा-सीधा सुना दी। सुनाने के बाद वो कुछ दिनों कि छुट्टी लेकर, अपने साधना कि जगह पहुंची और वहां जा कर ध्यान में लीन हो गई।
लगभग 1 घंटे के ध्यान के बाद कालिका ने अपनी आंखें खोली। आखें खोलते ही सबसे पहले उसने सम्मोहन मंत्र का उच्चारण किया और अपने एक अंश को पूरे इलाके में भ्रमण के लिए भेज दी। 2 ऐसे मामले सामने आए जहां कालिका का अंश आगे बढ़ नहीं पाया, बाकी जगहों के सम्मोहन को समाप्त करता हुआ उसका अंश वापस चला आया।
जादूगरी द्वंद छिड़ चुकी थी। जिन 2 मगस के सम्मोहन मंत्र को कालिका भेद ना पायी उन दोनों को पता था कि कालिका का अगला हथियार क्या होगा… अचल अस्त्र, एक ऐसा मंत्र जो एक बार जादू कि जगह पहुंच गया तो वो पता लगा कर ही लौटेगा कि किसने जादू किया।
मगस की दुनिया में सब को पता था कि कालिका की क्या हस्ती है। उसके अचल अस्त्र को रोक पाना अच्छे-अच्छे जादूगरों के बस की बात नहीं, फिर चाहे 10 जादूगर एक साथ मिल कर भी "क्षम्य" मंत्र का प्रयोग क्यों ना करे।
कालिका ने केवल एक कोशिश की और अपने अचल अस्त्र का प्रयोग किया। अचल अस्त्र क्षम्य मंत्र के जाल में उलझ कर रह गया। एक कुटिल हसी कालिका के चेहरे पर थी और वहां से उठ कर वो अपने रास्ते चल पड़ी।
abhi kalika ka attitude merko samaj nai aa raha itni chhoti si story me kitni bar jagda karenge be
chalo to mante hai ki kalika bahot hi powerful hai
toi fit ye aam logo k bich police ki job kyun kar rahi hai
kalika ka achal ashtra koi rok nai sakta tha to jo usne use kiya wo koi kshmya mantra k jaal me ulaj kese gaya? kya koi aur powerful force bhi hai kalika k samne
aur apna astra jaal me ulaj gaya to bhi ye muskura kyun rahi hai
ya fir likhne me gadbad ki hai
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सोभा अपने सभी अनुयाई को बुला कर हालिया हुए घटनाओं पर चर्चा कर आगे कि रणनीति तय कर रही थी। तय ये हुआ कि हर जादूगर अपने चारो ओर "दिशा शांति" मंत्र का प्रयोग करेगा, जो आनेवाले खतरे से सब को आगाह करता है। सभा को वो संबोधित कर ही रही थी कि उसके पास एक संदेश पहुंचा। संदेश पढ़ते ही सभा को जल्दी समाप्त वो अंधेरे जंगलों के ओर निकाल गयी।अंधेरी रात में घने जंगलों के बीच सोभा कुछ मंत्र जाप कर रही थी, तभी वहां एक जीप आकर रुकी…
माथुर:- कालिका को शक हो गया है।
"बेवकूफ, अब बात शक कि तो रही ही नहीं। अब बात शक्ति प्रदर्शन की है। क्योंकि कालिका जानती है कि उसका अचल अस्त्र कोई साधारण जादूगर नहीं तोड़ सकता"
"अब हम क्या करे"
"एक बार कदम बढ़ा लिया तो पीछे नहीं ले सकते। अब द्वंद होगा"
तो ठीक है मैं अपने लोगों को इक्ताला कर देता हूं"
"माथुर ध्यान रखना, मेरी बेटी इन सब से दूर ही रहे"
"जी आप निश्चिंत रहें"
ab ye ek aur twist
dekh bhai story me jawab mile na mile lekin ye sawal jarur mil rahe hai
pehli bat to matur aur sobha ki chal hai to kalika ko kyun bich me ghasit rahe hai
aur agar esa hai ki kuchh karna hai to kalika ko apne sath kyun nai shamil kiya
aur aakhir esi kya bat hai jo ye log unko mar rahe hai
aur to aur kalika ko in sab me dal kar shobha apni beti ko in sabse dur rakhna bhi chahiti hai
kya kalika sobha ki beti nai hai
uski beti koi aur hai
:read:
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संदीप के चेहरे से हसी ने मानो साथ छोड़ दिया हो। पहले-पहल तो उसने ये सोचा कि कालिका को कॉल कर के परेशान किया जाए और शायद सफल भी हो गया। उसे लगा कि अब थोड़ा रूठना-मानना होगा और फिर प्यार भारी बातें। किंतु 3 दिन हो गए थे उसका कहीं कोई पता नहीं। संदीप इन तीन दिनों में हर संभव जगह कोशिश कर के देख लिया, किंतु कालिका के बारे में कुछ पता नहीं चला। कहते हैं जुदाई का एक लम्हा कई साल बराबर होता है यहां तो कालिका का 3 दिनों से कुछ अता पाता नहीं था। अपने विरह के गम भुलाने के लिए संदीप उसी जगह पहुंच गया जहां कालिका उसे अगवा कर लाई थी।
wahi jagah jaha shayad kalika apne dhyan me bethti hai
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इधर कलिका अपने पथ पर अग्रसर थी। ऊंचे ऊंचे पर्वतों के बीच खड़ा वृक्षों का घनघोर जंगल, जिसके अंदर रहते थे विकृत मग्स। रास्ते में कालिका को अप्लसियार और अल्पशेर के 2 समूह मिले जो नतमस्तक हो गए उसकी शक्तियों के आगे। किंतु जंगल के जिस भाग में कालिका जा रही थी वहां जाने से सबने माना किया क्योंकि वहां अल्पसर की पूरी समुदाय थी। लेकिन कालिका भी दृढ़ निश्चय करके निकली थी। दूसरे दिन शंध्या का समय था जब कालिका उस जंगल के मध्य में थी। यूं तो शाम का वक्त था लेकिन उस जगह पर इतना अंधेरा था की खुद का हाथ ना दिखे। कालिका को किसी बड़े खतरे कि अनुभूति होने लगी….
पूरे जोड़ से उसने मंत्र उच्चारण किया … "प्रज्वलित"… और जिस जगह खड़ी थी वहां के भूमि पर अपना हाथ तेजी से मारी। देखते ही देखते चारो ओर शोले उठने लगे… और उन शोलो कि रौशनी में चारो ओर भूखी नजरें, नजर आने लगी। लगभग 60 लोग कालिका को घेरे खड़े थे।
"तुम्हारा ये मंत्र उच्चारण व्यर्थ है लड़की… ये तुम्हे बचा नहीं सकता"… उनमें से किसी एक ने कहा…..
"कौन है तू ए विकृत अपनी पहचान बता"... कालिका का रौद्रा रूप और तेज हुंकार सुन कर वहां के अल्पसर क्रोधित हो उठे। देखते ही देखते कई मानव अजीब से प्राणी का रूप ले लिया, जिसका सिर अजगर का और पंजे इतने बड़े की एक ही पंजे में सामने वाला मूर्छित।
उन अल्पसर ने हुंकार भरते हुए मंत्र पढ़ा और चारो ओर से हमले कि कोशिश शुरू हो गई। लेकिन कालिका तो जैसे आज कुछ ठान कर आई थी। उसने अपने शरीर को हवा में परिवर्तित किया और मंत्र पढ़ती हुई ऊपर गई और फिर तेजी से नीचे आते हुए उसने अपना हाथ फिर से भूमि पर दे मारी।
ऐसा लगा मानो जमीन में कोई बड़ा कंपन हुआ हो। सभी अल्पसर इसे महसूस कर सहम गए। कालिका लहूलुहान और घायल अवस्था में थी। खून में लथपथ कालिका पुनः हुंकार भरी… "विकृत ये आखरी बार है, अपनी पहचान बताओ वरना अग्नि और भूमि का आवाहन मैंने कर दिया।"
अल्पसर एक अभिमानी मग्स थे, कालिका की हुंकार पर एक बार फिर वो हमले के लिए तैयार हो गए। लेकिन उन सब को पीछे हटने का आदेश देते हुए एक व्यक्ति सामने आया… "मैं इनका मुखिया अग्रजन हूं। आप कौन हैं और आप के यहां आने का प्रयोजन क्या है"
कालिका की अट्टहास भरी आवाज़… "स्वयं काली को गुरु मान कर, विराल योग में, पंचभूत समर्पित शिक्षा प्राप्त करने वाली कालिका हूं मै। तुम्हे जब अपने अल्पसर होने पर इतना अभिमान है तो मुझे कितना होगा" पंचभूत समर्पित किसी मग्स की दहाड़ सुनकर सब के रोंगटे खड़े हो गए। अग्रजन के साथ-साथ पूरा समुदाय कालिका के आगे सिर झुका लिया। अग्रजन तुरंत ही कालिका के स्वागत में खास पेय का इंतजाम किया और फिर उसका सेवन करते-करते दोनों बात करने लगे।
"अग्रजन तुम्हारा समुदाय किसी पर भी ऐसे ही हमला कर देता है"
"सर्वा, कुछ तो हमारा अभिमान और बीते कुछ दिनों में हमारे समुदाय पर हुए हमलों ने हमे इतना आक्रोशित किया है"
"हम्म.. किसने हमला किया था"
"सर्वा किसने हमला किया वो तो नहीं पता किंतु हमलवर मग्स शिमला से आए थे। 2 बार तो हमने उनकी कोशिशें नाकाम कर दी, लेकिन 5 दिन पहले हुए हमले के बाद अब हम भी उनके क्षेत्र भेदने की तैयारी में हैं "
"तुम तो अल्पसर हो फिर हमले के लिए इतनी प्रतीक्षा क्यों"
"सर्वा, बाकी 2 हमले तो हमारे लिए ऐसे थे मानो हमारे बच्चे केवल अभ्यास मात्र कर रहे हो। किंतु आखरी टोली ने हमारा बहुत नुकसान किया। सभी उत्तम किस्म के मग्स का समूह था और अलग ही रणनीति का प्रयोग कर रहे थे"
"कैसी रणनीति"
"दिशा विघ्न से भ्रमित कर, हमारे एक एक अल्पसर पर 3-3 मग्स हमला कर रहे थे, और उन सब का मुखिया एक विशेष अल्पसर था"
"विशेष अल्पसर, मतलब"
"ऐसे अल्पसर जिनके माता पिता श्रेष्ठ हो और बच्चा अल्पसर। ऐसे अल्पसर को विशेष अल्पसर कहते है। हम समुदाय से बंधे हैं पर वो एक अल्पसर हो कर दूसरे अल्पसर समुदाय पर हमला कर रहा है। लगता है शिमला के मग्स ने भी उसकी गुलामी कबूल कर ली इसलिए उसके साथ मिल कर हम पर हमले कर रहे। किंतु वो भूल गए कि हमारा पूरा समुदाय अल्पसर है"
"अग्रजन तुम्हारे इस विशेष पेय का धन्यवाद। अब मेरी बात ध्यान से सुनो"… कालिका उसे कहीं भी हमला ना करने की हिदायत देती वहां से चलते बनी। कालिका अपने तय समय से लौट रही थी। लौट कर वो सबसे पहले एमएलए से मिली, जिसके मिलने का स्थान और समय सब पहले से तय था।
कालिका जब वहां पहुंची तो एमएलए राज किशोर और उसकी पत्नी वर्षा उसका पहले से इंतजार कर रही थी। कालिका आते ही वर्षा को एक सुरक्षा घेरा बनाने को बोली और राज का हाथ अपने हाथ में थाम कर कहने लगी… "पुकारो उसे"
एक अल्पसर को बुलाने के नाम से ही राज के माथे पर पसीना आने लगा और वो बात को टालने की कोशिश में कहने लगा…. "जो छिप कर हमले कर रहा है वो मेरे बुलाने से कैसे आएगा"
कालिका अपनी आखें दिखाती हुई उससे कहने लगी… "अपने फायदे के लिए तुमने एक विकृत को हमारे बीच पलने दिया और आज उसे बुलाने में तुम्हारी फट रही है"
"कालिका मुझे सच में नहीं पता था कि वो ऐसा कुछ करेगा। मेरा विश्वास करो। मैं तुम सब को उसके विषय में बताने ही वाला था"
"मूर्ख कहीं के, उसने तुम्हे 3 दिन पहले ही मार दिया होता। मेरे ही कारण तुम दोनों की जान बची है। अब पुकारो उसे"
इधर विरह की आग में झुलस रहा संदीप भी उसी जगह भटक रहा था जहां ये सब हो रहा था। संदीप की नजरें तो केवल कालिका और राज को ही देख सकी जो एक दूसरे का हाथ थामे थे… फिर दिमाग तो सुन्न होना ही था….
"वाह कालिका वाह, 3 रोज में मेरी हालत मरने जैसी हो गई और तुम यहां इश्क़ फरमा रही हो।अब ऐसे खड़ी क्यों हो, इसे भी चूम लो"… सामने संदीप को देख कर कालिका हैरान रह गई। लेकिन ये वक़्त कुछ भी समझने या समझाने का नहीं था।… "वर्षा, संदीप को अपने साथ लो और हमारे पीछे आ जाओ"…..
राज को पुकारते ना देख, कालिका की अट्टहास भड़ी हंसी उस माहौल में गुंजनी शुरू हो गई.. फिर गूंजी उसकी तेज आवाज… "आओ-आओ मिथलेश.. चलो अब आ भी जाओ… आज ये खेल खत्म करें"
कालिका की आवाज़ शांत होते ही माहौल भी पूरा शांत हो गया। इतना शांत की भूमि पर गिरते पत्ते की आवाज़ भी सुनी जा सकती थी। और थोड़े ही देर बाद वहां की हवाओं ने शोर मचाना शुरू कर दिया... आस पास चेहरे बनने शुरू हो गए... कई सारे चेहरे जो सुरक्षा घेरे को लांघ तो नहीं पा रहे थे किंतु उसके चारो ओर मंडरा रहे थे.. और फिर चेहरा दिखा मिथलेश का…
"हा हा हा … तुम्हारा सुरक्षा घेरा व्यर्थ है। तुम हमे रोक नहीं सकती। मैंने तुम्हे थोड़ा कम आंका उसके लिए मुझे माफ करना। वैसे मुझे आश्चर्य है कि तुम्हे मेरे बारे में पता कैसे चला। और तुम ने इस एमएलए को मेरी भ्रमित श्राप से मुक्त कैसे किया"
"माफ़ी मांगने का अवसर मिलेगा विकृत फिलहाल तुम्हारी ये आखरी इक्छा मान कर सब बताती हूँ । तुमने जब देखा कि मेरा सम्मोहन अंश 2 जगह से टकरा के वापस आ गया तो तुम्हे भी मेरी मां की तरह ही भ्रम हुआ कि, क्षम्य मंत्र के इस्तेमाल से तुम लोगों का पता नहीं लग सकता… बेवकूफ, उच्चारित मंत्र पता करने के 4 काट है… तुम ने तो पहले में ही सोच लिया कि मै हार गई… वो तो मुझे बस अपने कुछ सवालों के जवाब चाहिए थे इसलिए तू कुछ दिन और जी गया"
इतना कह कर कालिका अट्टहास भरी और अग्नि आवाहन करती भूमि पर एक हाथ मारी… चारो ओर तेज शोलों की लपटे जलने लगी। हवा में नजर आ रहे चेहरे इधर उधर भागने लगे।
अट्टहास भरी हंसी मिथलेश की भी … "सिर्फ इतना ही आता है".. वायु वेग से ऊपर गया और आसमान के ओर अपने दोनो हाथ किए… "अति मेघ गर्जन" और हाथ को कालिका के ऊपर..… बिजली का तेज प्रहार, सीधा सुरक्षा घेरा को भेद कर कालिका और बाकी सब के ऊपर… कालिका, राज और वर्षा तीनों अपने हाथ को गोल घुमा कर एक बड़ा सा मजबूत ढाल बनाया, फिर हाथ ऊपर के ओर करके बिजली को वापस भेजने लगे।
लेकिन कालिका के पास हाथ कम थे और मिथलेश के पास ज्यादा.. तीनों नीचे दबते जा रहे थे और उनके साथ संदीप भी नीचे बैठते जा रहा था। …. "यहां क्या हो रहा है पता नहीं, ऐसा लग रहा है जैसे मैं किसी पौराणिक कथा में पहुंच गया हूं जहां सभी पात्र जादूगर है। हम मरने वाले है क्या कालिका"… कालिका संदीप की ओर देखी और मुस्कुरा कर उसके होटों पर एक छोटा सा चुम्बन देती हुई बोली…. "किसी और दिन मारेंगे जानेमन, अभी तो ठीक से तुम्हारे साथ प्यार भी नहीं किया"…
अब तक सिर्फ खेल चल रहा था.. अब आई कालिका अपने रौद्र रूप में। मंत्रों का उच्चारण किया कड़कती बिजली को जमीन के अंदर घुसा दी। मंत्र जाप करते ही उसने अपने दोनो हाथ को गोल-गोल घुमा कर बड़ा सा बवंडर उठा दिया और छोड़ दिया आसमान में… इस बवंडर की चपेट में सभी आए .. तभी फिर से मिथलेश ने भी मंत्र उच्चारण करते अपना वार कालिका पर किया.. कालिका उस वार को झेल गई किंतु वो अंदर से थोड़ी घायल हो गई थी।
लड़ाई भीषण हो गई… मिथलेश और उसके साथी एक साथ वार कर रहे थे और कालिका सबके वार को झेलती, साथ में संदीप, राज और वर्षा को बचाती हुई पलटवार भी कर रही थी। २०० से ज्यादा लोग सब एक साथ हमला कर रहे थे और कालिका अकेली अपने परा विद्या का परिचय देती सबका सामना कर रही थी। किन्तु वो अकेली थी और घायल भी। लेकिन तभी वायु वेग के साथ सोभा और उसके सभी अनुयाई भी वहां सायं-सायं करते पहुंच गए। मिथलेश के हर एक आदमी के पीछे 2 आदमी पड़ गए... और सोभा जा कर कालिका के पास खड़ी हो गई।
"आप देर से आ रही हो धात्री"… सोभा अपनी बाएं ओर हमला करती.... "दिशा विघ्न में फसा दिया था .. मंत्र काट करते-करते समय लग गया"। …. "आपको पता है ना आप ने क्या किया है?"…. "उसपर बाद में बात करते हैं पहले ये बताओ, ये श्रेष्ठ यहां क्या कर रहा है"…..
दोनों बात करती हुई लगातार हमला भी कर रहीं थी। मिथलेश के पास सभी उत्तम जादूगर थे किन्तु सोभा और उसके अनुयाई आने के बाद सब लाचार से हो गए थे। अब तो हारने कि स्तिथि आ गई थी और हार होते देख मिथलेश और उसके लोग भागने लगे…
"धात्री आज इन में से एक भी बचना नहीं चाहिए.. तुम इन्हे संभालो मैं उस विकृत को संभालती हूं.. और हां साथ में अपने जमाई कि रक्षा भी करना"….
सोभा थोड़ा चिंता जताती हुई… "मैं और माथुर जाते हैं ना उसके पीछे"
कालिका हंसती हुई… "रहने दो जैसे वहां पहुंची थी आप अल्पसर की बस्ती में। वैसे आप के आने से पहले इन सबको मैं अकेली ही देख रही थी फिर अब तो ये अकेला है"।
इतना कह कर कालिका मिथलेश के पीछे उड़ चली… हमला दोनों ओर से होता रहा… दोनों मंत्र उच्चारण करते रहे और हवा में ही हमला चलता रहा। कभी तेज गरज होती तो कभी बादलों के बीच तेज बिजली… फिर कालिका ने मंत्र उच्चारित किया और सदमे की लहर मिथलेश के ऊपर छोड़ दी…
वो हवा से सीधा जमीन में जा गिरा। कालिका भी नीचे आई। मितलेश अल्पसर बनते हुए अपने पंजे से कालिका पर हमला किया.. कालिका ने उसका पंजा झटक दिया।उसने अपना सर्प दंत उसके हाथों पर इस्तमाल किया। कालिका पूरा दांत अंदर तक जाने दी फिर एक ही झटके में तोड़ दी।
लहूलुहान स्तिथि में वो पुनः मानव रूप में आया और अपने घुटने के बल बैठ कर दोनों हाथ जोड़ लिए… "तुम किस श्रेणी की मग्स हो.. अल्पसर के विष का भी कोई असर नहीं"
कालिका उसके समीप जा कर, उसका गर्दन पकड़ कर उल्टा घूमती हुई… "मैं कालिका हूं, स्वयं काली मेरी गुरु"… कालिका जब मिथलेश को दंड दे रही थी, ठीक उसी वक़्त सोभा और उसके सभी अनुयाई वहां पहुंच गए। एक अल्पसर को इस प्रकार मारते देख सभी की आखें आश्चर्य से फटी रह गई। सबको पता चल चुका था पंचभूत समर्पित एक मग्स उनके बीच है।
माहौल बिल्कुल शांत था और सभी एकदम खामोश। कालिका की नजरें बस संदीप को ढूंढ रही थी जो सोभा के पास खड़ा था। दोनों की नजरें मिलते ही कालिका दौड़ कर संदीप के पास पहुंच गई और व्याकुलता से उसे देखते हुए पूछने लगी.. "कहीं चोट तो नहीं लगी तुम्हे"… खुद घायल थी, पूरा बदन लहूलुहान नजर आ रहा था फिर भी व्याकुलता से उसकी आंखें नम थी और बार-बार संदीप के बदन को देख रही थी।
संदीप बस उसका प्यार देख भाव-विभोर हो गया और उसे अपने बाहों में भर लिया। तभी पीछे से कालिका के कंधे पर कोई हाथ थपथपा रहा था… "अभी तेरी मां यहीं है"…. कालिका जो संदीप में खोई थी वास्तविक स्तिथि में लौट आईं।
सोभा नम आंखों से अपने बेटी के ज़ख्म पर अपने हाथ फेरती हुई पूछती है… "तुम्हे सब पहले से ही पता था क्या"
कालिका थोड़ा मुस्कुराती हुई… "जब आप साल भर पहले मरे गुरु जी के पास जाओगी तो मुझे शक होगा ही ना। किंतु आप का अप्लसर समुदाय पर हमला करने सब को बड़े खतरे में डाल सकता था"…
"क्या करूं, 2 मग्स की हत्या हुई थी बदला तो लेना ही था ना.. तुझे कैसे पता कि हमारे खिलाफ साजिश हो रही है"..
"धात्री शक्ति का पास में होना और उन शक्तियों का सही उपयोग एक बहुत बड़ा सवाल है। 8 साल पहले मेरे पास शक्ति थी मैंने उसे संदीप के खिलाफ इस्तमाल किया बदले में पछतावा मिला। आप के पास शक्ति थी आप ने अल्पसर पर हमले करवाया, बदले में आप को बड़ा खतरा मिला। मिथलेश के पास शक्ति थी उसने पूरे समुदाय को लड़ाने की कोशिश की बदले में उसे मौत मिला। मुद्दा ये नहीं की हम क्या कर सकते है.. मुद्दा ये है कि योग्यता होने के बावजूद हमे क्या नहीं करना चाहिए"..…
abki bar to puri khatam karli kyunki sawal bahot ho rahe the
wese story ka ant romanchak banaya hai tumne thriller and all
but uska ending jese ekdum fatak se bana diya hai
shayad ho sakta hai ki word limit ki bajah se lekin mera manna hai ki ye story aur bhi bahot behtar ho sakti thi
MLA bhi mags se aur uski wife bhi
kafi sare mags rehte hai shresht k bich me fir bhi esa ho raha hai ki mags k sath shesht ki shadi me sobha ko achha nai lag raha
me ye bat kehna chahunga nain ki story bahot achhi banayi hai isko itne word me hi aur achhi likh sakte the kuchh chize hata k to kuchh ko mix karke
me cahunga ki tum ispe koi badi story likho kyunki ye plot esi chhoti story k liye nai bana hai
agar puri story dekhe to achhi thi but bich bich me jo kuchh masala dalne ki try kari hai na wo maza nai aaya
para vidhya ki story thi lekin samaj nai aaya ki ye vidhya kese milti hai
uske sath hi paida hote hai ya fir is shakti ko paya jata hai
mathur agar ek mags tha to usko alp ka hamla tha ye pata nai chala kya
story padhne me maja aaya lekin isne confusion bhi itna hi create kiya hai
rating i think 5.5/10 ye sirf story k plot ki mehnat k liye hai
story me tumne kafi jagah gadbad kar di hai aur ek point to mene is liye kata hai kyunki tumne pure hindi me prayas kiya hai lekin usme jo english shabdo ka use kiya hai na wo thoda ajib ahai aur pure hindi me kuchh kuchh jagah gadbad huyi hai
kafi sare sawal ese hi reh jate hai bhai
next time i hope ki tum isi story ko ek badi story banao to me jarur padhunga