❤ कोयल ❤
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समाज - हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है और समाजिक प्राणी होने के कारण हम इस समाज से चाहकर भी कभी अलग नहीं हो सकते. समाज ने हमारे लिए कुछ नियम-कानून और तौर-तरीके बनाये हैं जिन्हें संस्कारों का लीबास पहनाकर हमें एक बंधन में बाँध रखा हैं. जिस किसी ने भी इन बंधनों को तोड़ने की कोशिश की है, समाज ने उसे किसी सड़े हुए अंग की तरह काट फेंका है. इसी समाज के डर से माता-पिता अपने बच्चों पर सख्ती करते हैं और उनपर झूठे संस्कारों का बोझ डाल देते है. इस बोझ तले कई बार उनके सपने और इच्छाएँ सिसक-सिसक कर दम तोड़ देती है. पर कुछ इसके बावजूद भी, समाज की नज़रों से दूर, जीने की नयी राह धूंड ही लेते है जो शायद दुनिया की नज़रों में किसी पाप से कम नहीं होती है.
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सुबह के ७ बज रहे थे. सूरज की मध्यम किरणें खिड़की से होते हुए बिस्तर पर पड़ रही थी. खिड़की पर दो पंछी अपने पंख फडफडाते हुए चिचियाँ रहे थे. पंछियों का चिचियाँना सुनकर उसकी आँखे खुल गई और वो बैठकर पंछियों को निहारने लगी. उसका नाम कोयल था. कोयल २३ वर्ष की थी और बी.ए का ये उसका अंतिम साल था. कोयल की शादी कुछ महीनो पहले ही तय हो चुकी थी. लड़के का नाम रवि था और वो भी अच्छे घराने से था. फिलहाल रवि देश से बाहर था इसलिए कोयल से उसकी बात न के बराबर होती थी.
पंछियों को निहारते हुए कोयल के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. अपनी दूध सी गोरी कलाइयों को घुमाते हुए कोयल आँखे बंद किये अंगडाई लेती है, फिर धीरे से बिस्तर से उतरकर सीधे पीछे वाली दीवार पर लटकते बड़े से आईने की तरफ चल देती है. कोयल अपने आप को आईने में निहारने लगती है. काले घने लम्बे बाल, जो कमर से थोडा निचे तक थे, बड़ी कजरारी आँखे, जिसमे शराब सा नशा हो, और वो गोरा दूध सा बदन, मानो संगेमरमर की कोई मूरत. घुटनों से लम्बी मैक्सी पहने कोयल आईने के सामने अपने हुस्न को निहारते हुए मुस्कुरा देती है. तभी एक तेज़ आवाज़ गूंजती है, "कोयल.....!! कोयल.....!! उठा जा बेटी, ७ बज गए है".
ये आवाज़ कोयल की माँ उषा देवी की थी. उषा देवी, उम्र ४३, एक सरकारी स्कूल में भूगोल की शिक्षिका थी. एक शिक्षिका होने की वजह से उषा देवी ने हमेशा से ही शिक्षा और संस्कार को अधिक महत्व दिया था और ये उसीका का परिणाम था की घर के बच्चे पढ़ाई में अव्वल और संस्कारी थे. वो कुछ मामलो में भले ही काफी कठोर थी पर अपने बच्चों की परवरिश उसने एक आदर्श माँ के रूप में की थी. और शायद यही वजह थी की समाज में उषा देवी की बहुत इज्ज़त थी.
"हाँ मम्मी....मैं उठ गई हूँ......आ रही हूँ निचे....!!". कोयल पास वाले बिस्तर की और बढती है और धीमे स्वर में कहती है, "उठिए महाराज...! ७ बज गए हैं.....!"
"उम्म्म....!! सोने दो ना दीदी....प्लीज...बस २ मिनट और....!". ये बबलू था, कोयल का छोटा भाई. बबलू, उम्र १९ , १२वीं कक्षा का क्षात्र. बबलू कोयल की तरह ही पढ़ने में तेज़ था. कुछ साल पहले दोनों एक ही स्कूल में साथ पढ़ते थे. फिर कोयल का दाखिला कॉलेज में हो गया और बबलू उसी स्कूल में आगे की पढ़ाई करने लगा. एक वक़्त था जब स्कूल में हर उम्र के लड़के बबलू से दोस्ती करना चाहते थे. वजह, उसकी खुबसूरत दीदी - कोयल. पर जब से कोयल स्कूल छोड़कर कॉलेज जाने लगी थी, बबलू के दोस्त भी गिनती मात्र के रह गए थे. बबलू की सबसे बड़ी कमजोरी थी - लडकियाँ. नहीं नहीं...गलत मत समझीए. यहाँ कमजोरी का मतलब 'डर' से है. बबलू को लड़कियों से बहुत डर लगता था. शायद इसलिए क्यूंकि बचपन से ही बबलू को घर में सीखाया गया था की एक संस्कारी लड़का सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान देता है और लड़कियों से हमेशा दूर रहता है. अब बबलू को उस 'संस्कार' की आदत पड़ चुकी थी.
"१ मिनट भी नहीं बबलू. चुपचाप बिस्तर से उठ जा नहीं तो मैं तेरी शिकायत मम्मी से कर दूंगी". कोयल की ये धमकी हमेशा ही काम करती थी. कमरे से बाहर निकलकर कोयल सीधे किचन में जाती है जहाँ उषा देवी हर सुबह की तरह आज भी जल्दबाजी में खाना बना रही थी.
कोयल: लाइए मम्मी....मैं आपकी मदद कर देती हूँ....
उषा: आ गई बेटी....जरा सब्जी देख, कहीं जल ना जाए. और बबलू भी उठ गया ना?
कोयल: हाँ मम्मी....उठ गया है....बस आ रहा होगा....
"और तुम्हारा कॉलेज कैसा चल रहा है बेटा?". ये आलोक कुमार हैं, कोयल के पिता. उम्र ४७ साल. आलोक कुमार एक छोटी-मोटी कंपनी में क्लर्क थे. अपनी पत्नी उषा देवी की तरह वो भी एक आदर्श पिता के रूप में जाने जाते थे और समाज में उनका भी काफी सम्मान था. वो भले ही पुराने ख्यालात के थे पर उन्होंने कभी बेटा और बेटी में फर्क नहीं किया क्यूंकि जो नियम कोयल के लिए थे वही बबलू के लिए भी थे.
कोयल: ठीक चल रहा है पापा. अगले महीने से फाइनल प्रिप्रेशन की छुट्टियाँ भी शुरू हो जायेंगी.
आलोक: अच्छे से पढ़ाई करना बेटा. हम सभी को तुमसे बहुत उम्मीदे हैं.
कोयल: आप चिंता मत करिये पापा. हर बार की तरह इस बार भी मेरे अच्छे नंबर ही आएंगे.
उषा: क्यूँ नहीं आयेंगे अच्छे नंबर? ये क्या बाकी लड़कियों की तरह कॉलेज में टाइम पास करने जाती है?
कोयल: मम्मी....! मेरी तरह बहुत सी लडकियां कॉलेज में सिर्फ पढ़ाई करने ही जाती हैं.
उषा: मैं अच्छे से समझती हूँ की आजकल के कॉलेजो में क्या होता है और मैं ये भी जानती हूँ की मेरी कोयल सबसे अलग है. मैं तो बस ये कह रही हूँ की तेरे फाइनल एग्जाम आने वाले है तो थोडा अपनी सहेलियों पर कम ध्यान दिया कर.
कोयल: (इस बात पर कोयल बड़े प्यार से उषा से लिपट जाती है) हाँ बाबा समझ गई. ध्यान रखूंगी इस बात का.
उषा: (मुस्कुराकर प्यार से कोयल के गाल पर थाप मारते हुए) हाँ हाँ...बहुत हो गया लाड़-प्यार. अब जरा सब्जी पर ध्यान दे...
कोयल सब्जी को चलाने लगती है और तभी बबलू भी वहाँ आ जाता है. बबलू को देख कर उषा कहती है,"उठ गया बेटा? चल अब जल्दी से फ्रेश हो जा. कोयल...तू भी ब्रश कर ले. आज मैं और तेरे पापा थोडा जल्दी निकलेंगे. रास्ते में कुछ काम है"
बबलू सीधा बाथरूम में घुस जाता है और कोयल भी पास वाले बेसिन पर जा कर ब्रश करने लगती है. रोज की तरह उषा देवी भी अपने और आलोक के लिए नाश्ता लेकर डाइनिंग टेबल पर बैठ जाती है. दोनों नाश्ता करने लगते है. नाश्ता खत्म कर उषा और आलोक भी काम पर निकल जाते है.
कुछ समय बाद कोयल भी अपने और बबलू के लिए नाश्ता निकालती है और डाइनिंग टेबल पर बैठ जाती है. "बबलू....!! नाश्ता करने आजा". कोयल के बुलाने पर बबलू भी आकर बैठ जाता है और चुपचाप नज़रे झुका कर नाश्ता करने लगता है. कोयल बबलू को देखती है और कहती है.
कोयल: एक बात बता बबलू. पहले तो तेरे बहुत सारे दोस्त थे फिर अचानक क्या हो गया?
कोयल के इस सवाल पर बबलू पायल की और देखने लगता है. वो अच्छे से जानता था की पहले उसके बहुत सारे दोस्त क्यूँ थे और अब क्यूँ नहीं है. पहले कोयल भी उसके ही स्कूल में थी और अब नहीं.
बबलू: क्यूंकि अब मैं पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने लगा हूँ.
बबलू उठता है और अपनी प्लेट किचन में रखते हुए कहता है, "आप जल्दी से नाहा लो दीदी, फिर मुझे भी नहाना है." कोयल भी नाश्ता खत्म करके प्लेट किचन में रखती है और कपडे लेने गैलरी में जाती है. यहाँ बबलू ड्राइंग रूम के टेबल पर अपना बैग ठीक करने लगता है. तभी उसके कानो में कोयल की आवाज़ पड़ती है. "बबलू आज फिर तुने यहाँ से कपडे हटा दिए?"
दीदी की बात पर बबलू थोडा सकपका जाता है और फिर जवाब देता है.
बबलू: हाँ दीदी....वो कल रात ही मैंने सारे कपडे कमरे के सोफे पर डाल दिए थे.
कोयल रूम में जाते हुए कहती है, "तुझे कहा था ना की कपड़ों को रात में बाहर ही रहने दिया कर, अच्छे से सुख जाते है". कोयल के कमरे में जाते ही सोनू की नज़रे झट से गैलरी की तरफ घूम जाती है.
वहाँ कमरे में कोयल कपड़ो के ढेर में से अपनी ब्रा और पैंटी ले कर फिर से गैलरी में जाती है. गैलरी में जाते ही उसकी नज़र टॉवेल पर पड़ती है जो ज़मीन पर गिरा था और उसका एक कोना पास गिरे पानी से भीग चूका था. कोयल एक हाथ अपने सर पर मारते हुए कहती है, "ये टॉवेल भी ना हर वक़्त पानी में गिरता रहता है". टॉवेल को उठाकर वो झटकती है और फिर से गैलरी में टांग देती है. बाथरूम में जाते हुए कोयल बबलू से कहती है, "बबलू, मैं जब आवाज़ दूंगी तो बाहर से मुझे टॉवेल ला देना". ये कहकर वो बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर देती है.
कुछ देर बाद कोयल का नहाना हो जाता है और वो बबलू को आवाज़ देती है तो बबलू टॉवेल ले कर आता है और दरवाज़ा खटखटाता है. कोयल दरवाज़े को थोडा खोलकर हाथ बाहर निकालती है और टॉवेल ले लेती है. ये आज पहली बार नहीं हुआ था की कोयल का टॉवेल निचे गिर कर भीग गया था और बबलू उसे कोयल को दे रहा था. ऐसा अक्सर हुआ करता था. कोयल के बाहर आते ही बबलू भी नहाने चला जाता है. दोनों भाई-बहन तैयार हो कर घर में ताला लगा कर अपने-अपने रास्ते निकल पड़ते है. जहाँ बबलू अपनी साइकिल पर स्कूल के रास्ते निकल पड़ता है वहीँ कोयल अपनी स्कूटी पर कॉलेज के लिए निकल पड़ती है. इसी अनुसूची का पालन इनका परिवार कई सालों से कर रहा था.
शाम के ५ बज रहे थे. उमा देवी स्कूल से बहुत पहले ही आ चुकी थी. रोज की तरह कोयल भी घर आकर स्कूटी आँगन में खड़ी करके अन्दर आती है. कोयल को देखकर उषा भी उसके लिए कप में चाय निकाल देती है. अपने कमरे में जा कर कोयल बैग एक तरफ रखती है और राहत की साँस लेते हुए बिस्तर पर बैठ जाती है. अपनी थकान दूर करने के लिए कोयल बिस्तर पर जैसे ही लेटती है, उसकी नज़र सामने बबलू के बिस्तर के निचे से लटकते हुए किसी लाल कपडे पर पड़ती है. कोयल गौर से उस लाल कपडे को देखती है. न जाने क्यूँ वो लाल कपडा उसे जाना-पहचाना सा लगता है. धीरे से उठकर कोयल बबलू के बिस्तर के पास जाती है. गद्दा उठाते ही जैसे ही उसकी नज़र उस लाल कपडे पर पड़ती है, उसके पैरो तले ज़मीन खिसक जाती है. वो लाल कपडा और कुछ नहीं बल्कि कोयल की लाल पैन्टी थी. कोयल इतनी भी भोली नहीं थी की किसी जवान लड़के के बिस्तर के नीचे पैन्टी होने का मतलब भी ना समझ सके. हैरानी की बात तो ये थी की वो जवान लड़का और कोई नहीं बल्कि उसका अपना सगा छोटा भाई था.
कोयल सुन्न हो कर अपनी लाल पैन्टी को देखे जा रही थी. वो समझ चुकी थी की उसकी पैन्टी का वहां होना किस तरफ इशारा कर रहा था. उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की उसका भाई बबलू कभी कुछ ऐसा भी कर सकता है. कोयल की बड़ी-बड़ी आखों में आंसुओं का सैलाब सा आने लगता है जिसे वो किसी तरह रोकने की कोशिश करने लगती है. पुरानी यादें उसकी आँखों के सामने किसी छायाचित्र की तरह चलने लगती है. उसे याद आता है की कैसे उसने पहली बार बबलू को अपनी गोद में लिया था. उसकी वो किलकारियां, वो मासूमियत भरी मुस्कान. उसके साथ बिताया हुआ वो बचपन, वो लड़ना-झगड़ना, मम्मी की मार से बचने के लिए उसका दौड़कर आना और उससे लिपट जाना. हर रक्षाबंधन में बबलू का उसके हिस्से की चाकलेट खा जाना, सब कुछ. ऐसी ही कई यादों ने कोयल की आँखों में रुके हुए आंसुओं के सैलाब का बाँध तोड़ दिया. उसकी आँखों से आँसुओं के धारा बहने लगी. रोते हुए कंपकंपाते ओंठों से कोयल का दर्द निकल पड़ा. "ये तुने क्या कर दिया बबलू.....ये तुने क्या कर दिया....!". कोयल दौड़कर अपने बिस्तर पर गिर जाती है और चेहरा तकये में छुपाये हुए रोने लगती है. बबलू ने भाई-बहन के पवित्र रिश्ते पर कालिख पोती थी और कोयल का विश्वास छिन्न-भिन्न कर दिया था. इसके लिए कोयल शायद उसे कभी माफ़ नहीं करेगी.
कोयल के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. तभी उसके कानों में उषा की आवाज़ सुनाई पड़ती है जो उसे चाय पीने बुला रही थी. कोयल अपने आंसू पोंछकर खड़ी होती है. ये बात वो पापा और मम्मी को नहीं बता सकती थी. वो ये कभी सहन नहीं कर पाते. अपना मुहँ अच्छे से धोकर वो कमरे से बाहर चली जाती है. कोयल इस बात को एक राज़ की तरह अपने सीने में दफ़न करने का फैसला कर चुकी थी पर वो ये भी जानती थी अब उसका और बबलू का रिश्ता पहले जैसा कभी नहीं हो पायेगा.
शाम से ले कर रात तक कोयल ने घर में किसी से भी ज्यादा बात नहीं की. बबलू से तो उसने नज़रे तक नहीं मिलाई थी. कोई सवाल ना करे इसलिए अपने हाथ में किताब खोलकर रखी हुई थी. पर उसके दिमाग में तो वही बात घूम रही थी. रात होने पर कोयल अपने बिस्तर पर आकर लेट गई और दूसरी तरफ घूमकर सोने की कोशिश करने लगी. कुछ देर बाद बबलू भी कमरे में आया और दीदी को पढता न देखकर उसे आशचर्य हुआ. "दीदी आज आप पढ़ नहीं रही हो?", जिसका कोयल ने कोई जवाब नहीं दिया. कोई जवाब न पाकर बबलू को थोडा अजीब सा लगा और वो बत्ती बुझा कर अपने बिस्तर पर लेट गया. उधर कोयल भी सोने की कोशिश करने लगी पर उसके आँखों में नींद कहाँ थी. आज जो हुआ था वो उसे भुला नहीं पा रही थी.
धीरे-धीरे रात ने खामोशी और सन्नाटे की चादर ओढ़ ली. कोयल की आँखों में भी अब नींद आने लगी थी. तभी उसे लगा की एक परछाई उसकी तरफ बढ़ रही है और उसकी आँखे खुल गई. वो दूसरी तरफ आँखे खोले लेटी हुई थी. उसका दिल जोरो से धडकने लगा था. बबलू का ख़याल आते ही उसकी साँसे और तेज़ हो गई. "हे भगवान...!! ये बबलू तो नहीं है?", और उसने अपनी आँखे भींच ली. "दीदी...आप सो गई क्या?". ये बबलू की आवाज़ थी जो बेहद ही धीमे स्वर में कोयल से पूछ रहा था. कोयल चुपचाप बिस्तर पर लेटी हुई थी, अपनी आँखे बंद किये हुए, बिना किसी हलचल के. "दीदी...सो गई क्या?". कोयल ने इस बार भी कोई जवाब नहीं दिया. वो दूसरी तरफ घूमें हुए चुपचाप लेटी हुई थी. तभी कोयल के कंधे पर बबलू हाथ रख देता है. कोयल की धड़कने मानो रुक सी जाती है. उसका दिमाग सुन्न हो जाता है. वो वैसे ही निश्चल हो कर पड़ी रहती है. बबलू का हाथ धीरे से कंधे से फिसलता हुआ कोयल के वक्ष पर चला जाता है. वक्षों पर हल्का सा एक दबाव दे कर बबलू के हाथ कोयल के शरीर से अलग हो जाते है. कोयल के ओंठ कंपकंपाने लगते है. उसे ये भी एहसास होता है की बबलू अपने बिस्तर पर जा चूका है. उसका दिल जोरो से धड़क रहा था. अभी-अभी बबलू ने जो किया था उससे कोयल के शरीर में अजीब सी सिरहन होने लगी थी. उसके शरीर को आज पहली बार किसीने इस तरह से छुआ था. अपने हाथ को कोयल वक्ष के उस हिस्से पर रखती है जहाँ कुछ देर पहले बबलू ने स्पर्श किया था. उस वक़्त कोयल पर कई तरह की भावनाएँ हावी होने की कोशिश कर रही थी जिसे वो खुद समझ नहीं पा रही थी. अचानक उसकी आँखों से आंसू बह पड़ते है. अंत में किस भावना की विजय हुई थी ये कोयल की आँखों से बहते आंसू बता रहे थे.
अगली सुबह कोयल सो कर उठी. रात की घटना उसे किसी भयानक सपने की तरह प्रतीत हो रही थी. बबलू को उठाकर वो कमरे से बाहर निकल जाती है. आलोक और उषा रोज की तरह अपने-अपने काम पर निकल जाते है. नाश्ता खत्म करके कोयल बबलू से कहती है.....
कोयल: तुने कपडे रात में अन्दर रख दिए हैं क्या?
बबलू: हाँ दीदी....
कोयल चुपचाप उठकर अपने कमरे की तरफ चल देती है. अपनी ब्रा और पैन्टी ले कर वो गैलरी में जाती है तो उसका टॉवेल फिर से पानी के पास गिरा होता है. टॉवेल को उठकर वो सूखने डाल देती है और सोनू से कहती है, "मैं नहाने जा रही हूँ. जब बोलूंगी तो टॉवेल दे देना". बाथरूम के अन्दर पहुँचकर कोयल दरवाज़ा लगा देती है. अब सारा किस्सा धीरे-धीरे उसकी समझ में आने लगा था. बबलू क्यूँ रात में ही सारे कपडे उठाकर अन्दर कर देता है. क्यूँ उसका टॉवेल रोज पानी के पास गिर जाता है. टॉवेल देते वक़्त क्यूँ बबलू की नज़रे अन्दर झाँकने की कोशिश करती है. इन सारे सवालों के जवाब कोयल को मिल चुके थे. नहाने के बाद कोयल ने बबलू को आवाज़ दी तो वो टॉवेल लेकर आ गया. कोयल ने दरवाज़ा खोला और झांकते हुए हाथ बढ़ा दिया. बबलू टॉवेल देते हुए देख रहा था. कोयल और बबलू की नज़रे आपस में मिलती है. कोयल उसकी आँखों में कुछ क्षण के लिए देखने लगती है मानो कह रही हो की 'संभाल अपने आप को बबलू...मैं तेरी दीदी हूँ'. टॉवेल ले कर कोयल दरवाज़ा बंद कर देती है. कुछ देर बाद तैयार होकर कोयल और बबलू भी अपने-अपने रास्ते निकल जाते है. कोयल अब भी अपने अन्दर उठती हुई अनेक भावनाओं से झुंझ रही थी.
कुछ दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा. रात में बबलू कोयल के शरीर को स्पर्श करता. कोयल कभी सिंहर जाती तो कभी रो पड़ती. टॉवेल लेते वक़्त कभी बबलू की आँखों में देखती रहती तो कभी गुस्से से दरवाज़ा बंद कर देती. समय के साथ-साथ अब कोयल में भी कुछ बदलाव आने लगे थे. बबलू के प्रति जो घृणा की भावना उसके अन्दर थी अब उसकी तीव्रता काफी हद तक कम हो चुकी थी. किसी रात बबलू उसके पास नहीं आता तो कोयल सोते हुए बबलू को निहारती रहती. अपने और बबलू के रिश्ते को नए आयाम से समझने की कोशिश करती.
इसी तरह कुछ और वक़्त बिता और वो समय भी आया जब कोयल का कॉलेज बंद हो गया. उसके अंतिम वर्ष की परीक्षा का समय निकट आ चूका था. ऐसे वक़्त एक दिन आलोक और उषा को कोयल की शादी की कुछ औपचारिकता पूर्ण करने लड़के वालों के घर जाना पड़ गया. बबलू भी स्कूल जा चूका था और घर में कोयल अकेली थी. यही वो समय था जब कोयल को अपने और बबलू के रिश्ते को समझने के लिए उसकी गहराई में गोता लगाने का मौका मिल गया. अपने कमरे में बैठकर वो सोचने लगी की आखिर क्या वजह थी की ये सब हुआ. शुरुवात उसने बबलू से की. बबलू, उसका छोटा भाई, जिसे बचपन से ही संस्कारों के बोझ तले दबा दिया गया था. जिसे हमेशा से ही लड़कियों से दूर रहने की शिक्षा दी गई थी. जहाँ बाकी लड़के उसकी नज़रों के सामने दूसरी लड़कियों के साथ खुल कर बातें किया करते थे वहीँ बबलू उन्हें देखकर भी अनदेखा कर दिया करता. क्या उसके मन में कभी ये बात नहीं आई की वो भी बाकियों की तरह लड़कियों से मिले, उसकी भी कोई गर्लफ्रेंड हो? १९ साल का जवान लड़का, भले ही कितना भी संस्कारी और पंडित हो पर शरीर की भी अपनी कुछ जरूरते होती है. ऐसे हालात में उसके नजदीक सिर्फ एक लड़की थी, वो कोयल थी, उसकी बड़ी बहन. माना की उसने पाप किया है पर क्या इस पाप का दोषी वो अकेला है? नहीं..!! इस पाप के हिस्सेदार ये समाज, हालात और उसके माता-पिता भी है.
बबलू ने ऐसा क्यूँ किया उसका जवाब शायद कोयल को मिल चूका था. पर उसका क्या? बदलाव तो उसमे भी आ चुके थे. ये क्यूँ हुआ? इसका जवाब भी शायद उसे मिल चूका था. कोयल के हालात बबलू के हालातों से भिन्न नहीं थे. बबलू की तरह वो भी कई सालों से संस्कारों के बोझ तले दबे हुए जी रही थी. बबलू और कोयल एक ही नाव में सवार थे. इतने दिनों तक कोयल ने बबलू को अपनी ही अदालत में एक मुजरिम की तरह कटघरे में खड़ा किये हुआ था. आज वो खुद बबलू की पैरवी कर उसे निर्दोष साबित कर चुकी थी. कोयल की अदालत से बबलू बाइज्ज़त बरी हो चूका था.
शाम होने पर बबलू स्कूल से घर आता है. कपडे बदलकर वो किचन में जाता है तो कोयल ने उसके लिए चाय बना रखी थी. अपनी दीदी के चेहरे पर कई दिनों बाद मुस्कान देख कर उसे अच्छा लगता है.
बबलू: बहुत दिनों बाद आपके चेहरे पर स्माइल देख रहा हूँ दीदी. शादी के बारें में सोच कर खुश तो नहीं हो रही हो आप?
कोयल: (मुस्कुराते हुए) अपनी शादी से हर लड़की खुश ही होती है. चल, छत पर चलकर चाय पीते है.
दोनों छत पर आ जाते है. आँगन में लगे बड़े से पेड़ की तरफ देखकर कोयल कहती है.
कोयल: पेड़ पर बैठे उस पंछी को देख रहा है बबलू?
बबलू: (पेड़ की तरफ देखकर) हाँ दीदी...वो तो कोयल है ना?
कोयल: हाँ...नर कोयल. कुछ ही दिनों में तू इसकी आवाज़ भी सुनेगा. ये आवाज़ दे कर मादा कोयल को बुलाएगा.
अपनी दीदी की बातें बबलू कुछ-कुछ समझने लगता है.
बबलू: हाँ दीदी...और शायद मेरी कोयल भी इसके साथ मुझसे हमेशा के लिए दूर चली जाएगी.
बबलू की बात सुनकर कोयल उसकी तरफ देखती है. बबलू की आँखों में आँसू देखकर उसका दिल भी पिघल जाता है. उसकी आँखों में भी आंसू आ जाते है. एक हाथ बबलू के गाल पर रखते हुए कोयल कहती है.
कोयल: लड़की पराया धन होती है. हर लड़की को एक दिन अपने घर से डोली में बैठकर जाना पड़ता है बबलू. यही जमाने की रीत है.
ये कहकर कोयल निचे चली जाती है. बबलू पेड़ पर बैठे उस नर कोयल को देखने लगता है जो एक दिन मादा कोयल को ले कर उड़ जायेगा.
दोनों भाई-बहन के बीच फिर से पहले की तरह हंसी-मजाक होता है, बातें होती है और रात में खाना खाकर दोनों कमरे में आ जाते है. कुछ देर पढ़ाई करने के बाद कोयल किताब बगल में रखकर लेट जाती है. बबलू भी बत्ती बुझकर अपने बिस्तर पर लेट जाता है. कुछ ही देर में कोयल की आँख लग जाती है. रात में अचानक उसे कुछ हलचल सी महसूस होती है. कनखियों से देखने पर उसे बबलू पास खड़ा दिखाई पड़ता है जिसका हाथ उसके सीने पर था. पता नहीं आज कोयल को बबलू की ये हरकत बुरी क्यूँ नहीं लग रही थी. बबलू जैसे ही अपने पंजों से कोयल के उभारों को हलके से दबाता है, कोयल तेज़ साँस लेते हुए अपना सीना उठा देती है. कोयल के बड़े उभार बबलू के पंजों में समा जाते है. बबलू अपने आप को रोक नहीं पाता है और अपनी दीदी के उबारों को पंजों में दबोच लेता है. बबलू दोनों हाथों से कोयल के बड़े और गोल उबारों को धीरे-धीरे मसलने लगता है और कोयल बिस्तर पर लेटे हुए बिना पानी की मछली की तरह तड़पने लगती है. तेज़ साँसे लेते हुए कोयल के मुहँ से सिसकारियाँ निकलने लगती है. "सीईई....!! उफ़...!! बबलू.....सीईईइ....!!". अपनी दीदी के मुहँ से निकलती ये आवाज़े बबलू को उत्साहित कर देती है. उसके सब्र का बाँध टूट जाता है और वो कोयल के सीने के बीच अपना चेहरा छुपा लेता है. "आह...!! दीदी...उफ़..!!"
कोयल आँखे बंद किये अपने हाथ से बबलू का सर पकड़कर अपने सीने पर दबा देती है. मदहोश होकर बबलू कोयल के सीने को मैक्सी के ऊपर से चूमने लगता है. एक हाथ से कोयल की मैक्सी के बटनों को खोलने की कोशिश करता है तो कोयल खोलने में उसकी मदद करती है. अलगे ही पल उसकी मैक्सी का उपरी भाग खुल जाता है और बबलू दीदी की ब्रा को सरकाकर एक वक्ष आजाद कर देता है. कोयल के नंगे वक्ष को हाथ से दबाकर बबलू निप्पल को जैसे ही अपने मुहँ में भरता है, कोयल की सिसकारी छुट जाती है. "सीईईईइ....!! बबलू....आह्ह्हह्ह.....!!". कोयल के वक्ष को बबलू किसी नवजात शिशु की तरह चूसने लगता है. कोयल पाप-पुण्य की सारी सीमायें भूलकर नरक की आग में उतरने के लिए तैयार हो जाती है. दुसरे हाथ से बबलू मैक्सी को निचे से ऊपर करता हुआ कोयल के पेट के ऊपर तक उठा देता है. कोयल के बदन को चूमता हुआ बबलू निचे की ओर उसके नंगे पेट को चूमता है और फिर उसकी नज़रे कोयल की पैन्टी पर पड़ती है जो उसकी गोरी मांसल जांघों के बीच सबसे कीमती खजाने को ढके हुए थी. कांपते हुए हाथों से बबलू पैन्टी को धीरे से निचे की ओर खींचता है. पैन्टी धीरे-धीरे घुटनों से निचे हो जाती है. बबलू की नज़रें जाँघों के बीच पड़ती है. छोटे और रेशमी घुंगराले बालों से ढकी कोयल की योनी पर उसकी नज़रे रुक जाती है. तभी कोयल के पैर धीरे से अलग होते है और बबलू की आँखों के सामने योनी का द्वार खुल जाता है. उसकी मादक खुशबू से बबलू अपने होशो-हवास खो बैठता है. वो झट से अपना सर कोयल की जाँघों के बीच घुसा देता है. उसकी जीभ कोयल की योनी का रसपान करने लगती है.
तभी कोयल उठ बैठती है. पीछे की ओर होते हुए कोयल मैक्सी से अपने अर्धनग्न शरीर को ढकते हुए कहती है....."नहीं बबलू....ये पाप है...ये महापाप है....". बबलू समझ नहीं पाता है की दीदी को अचानक क्या हो गया. "क..क्या हुआ दीदी....?". "नहीं बबलू...हम ये नहीं कर सकते....ये बहुत बड़ा पाप है बबलू...".
कोयल की आँखों से आँसू एक बार फिर से बहने लगते है. बबलू दीदी को समझाने के लिए जैसे ही कुछ कहने को होता है, कोयल उसे जाने कह देती है. "तू जा बबलू....तू जा यहाँ से...प्लीज तू जा....!!". अपनी दीदी को रोता देख बबलू की आँखों में भी आँसू आ जाते है. नम आँखों के साथ बबलू कमरे से बाहर चले जाता है. उधर कोयल भी अपने कपडे ठीक करके लेट जाती है और रोने लगती है. कोयल समझ चुकी थी की सालों के इस रिश्ते को एक पल में नहीं बदला जा सकता है. और जिस तरह से दोनों की परवरिश हुई थी, ये और भी ज्यादा मुश्किल था.
सुबह होती है और दोनों भाई-बहन के बीच एक बार फिर दूरियाँ बन जाती है. कोयल की शादी की सारी औपचारिकता पूर्ण कर, आलोक और उषा भी घर आ जाते है. पता चलता है की कोयल की परीक्षा के बाद ही उसकी शादी कर दी जाएगी. तारीख भी तय हो चुकी थी. इस खबर का स्वागत जहाँ कोयल ने मुस्कराहट के साथ दिया, वहीँ बबलू के चेहरे पर मायूसी थी. कोयल दीदी उससे अब हमेशा के लिए दूर चले जाने वाली थी. कोयल ने अपना ध्यान पढ़ाई में लगा दिया और कभी बबलू ने कोयल को छुने की हिम्मत नहीं की. दोनों के बीच एक न दिखने वाली दरार पड़ चुकी थी.
समय बीतता चला गया और आखिर वो दिन भी आ गया जब मंडप में कोयल के होने वाले पति, रवि ने उसकी मांग भरी. कोयल ने उसके साथ ७ फेरे भी लिए. अब कोयल की विदाई हो रही थी. सभी की आखों में आंसू थे, किसी के ज्यादा, किसी के कम. जब कोयल अंतिम बार अपनी माँ उषा के गले लगी तो मानो आँसुओं का सैलाब आ गया. उसके पिता आलोक, जो अब तक अपने आँसुओं पर काबू रखे हुए थे, उनकी इच्छाशक्ति ने भी जवाब दे दिया. उनकी आँखों से भी आँसू फुट पड़े. सभी से विदाई और अपने माता-पिता का आशीर्वाद लेकर कोयल के कदम बबलू के सामने थम से जाते है. दोनों बहती आँखों से एक दुसरे की ओर देखते हैं. अपनी गलतियों को भुलाकर भाई-बहन अंतिम बार गले लगते है. भीगी आँखों से कोयल बबलू से बस इतना ही कह पाती है, "मम्मी-पापा का ख्याल रखना बबलू....अब मैं चलती हूँ". बबलू के मुहँ से "आईएम सॉरी दीदी...", बस यही निकल पाता है. कोयल कार में बैठ जाती है और निकल पड़ती है. बबलू अपनी कोयल दीदी को जाते हुए देखता है. आज उसकी कोयल दीदी अपने पति के साथ हमेशा के लिए उस से दूर जा रही थी और उसके पास अपने भाई को देने के लिए आँसुओं के अलावा और कुछ नहीं था.
समय किसी के लिए नहीं रुकता. दिन, हफ्ते और फिर महीने बीत गए. बबलू की कोयल दीदी से बात नहीं हो पाई. कोयल का कॉल आता भी था तो वो ज्यादातर उषा या आलोक से ही बात किया करती थी. कोयल और बबलू दोनों ही अच्छे नंबरों से पास हो चुके थे. बस यही एक बार था जब कोयल ने कॉल पर बबलू को बधाई दी थी. बबलू दिल ही दिल में मान चूका था की वो हमेशा के लिए अपनी दीदी को खो चूका है. बबलू कोयल को भुला नहीं पा रहा था. कहते है जब आपकी सबसे प्यारी चीज़ आपसे दूर हो जाए तो इंसान एक तो उसके वियोग में अपने आप को बर्बाद कर लेता है या उसके अन्दर छुपा कोई हुनर उसे संभाल लेता है. बबलू ने लिखना शुरू कर दिया था. ज्यादातर समय वो पढ़ता रहता और खाली समय में लिखता. कुछ समय और बीत गया. फिर एक दिन बबलू को माँ से पता चला की कोयल १ दिन के लिए घर आ रही है. रवि को कुछ काम है इसलिए आलोक कोयल को लेने जायेंगे और अगली सुबह रवि कोयल को लेने आ जायेंगे. इस बात की बबलू को ख़ुशी तो हुई पर अब शायद वो थोडा समझदार भी हो गया था. वो अपनी सीमायें जान चूका था.
फिर एक दिन आलोक के साथ कोयल ने एक बार फिर से घर में कदम रखा. उषा उसे देखकर फूलो नहीं समां रही थी. बबलू जब कोयल के सामने आया तो कोयल उसके गले लग गई. प्यार से अपने हाथ को उसके गाल पर रखते हुए पूछा, "कैसा है मेरा बबलू...?". "अच्छा हूँ दीदी...आप कैसी हो...?", बबलू ने पूछा. "मैं भी अच्छी हूँ....", कोयल ने भी उत्तर दिया. घर में एक बार फिर से पहले जैसा माहोल था. सभी खुश नज़र आ रहे थे. बहुत वक़्त के बाद सभी ने एक साथ दोपहर का खाना खाया. उसके बाद उषा कोयल से बातों में लग गई. बबलू भी अपने कमरे में जा कर लिखने लगा.
शाम के ५ बज रहे थे. आलोक और उषा बाज़ार के लिए निकल पड़े क्यूंकि कल रवि आने वाला था और उन्हें घर के दामाद के लिए कुछ कपडे लेने थे. बबलू अब भी अपने कमरे में लिख रहा था. तभी कोयल उसके लिए चाय ले कर आती है.
कोयल: अरे वाह...!! तुने कब से लिखना शुरू कर दिया.
बबलू: (कोयल को देख कर मुस्कुराते हुए) बस दीदी....आपके जाने के बाद से ही. लिखने की कोशिश करता हूँ.
कोयल बबलू का नोटपैड हाथ में लेती है और गौर से देखती है. कुछ देर देखने के बाद चेहरे पर मुस्कान के साथ कहती है.
कोयल: कमाल है बबलू...!! तू तो बहुत अच्छा लिखता है. ऐसे ही लिख. कभी बंद मत करना. मेरे साथ छत पर चाय पिएगा?
बबलू: हाँ दीदी...चलिए....
दोनों छत पर आते है. कोयल सामने पेड़ की ओर देखती है.
कोयल: याद है बबलू...एक बार मैंने तुझे पेड़ पर नर कोयल दिखाया था.
बबलू: हाँ दीदी...याद है.
कोयल: देख...आज नर कोयल के साथ मादा कोयल भी है. दोनों की जोड़ी कितनी अच्छी लग रही है ना?
बबलू: (पेड़ की तरफ देखते हुए) हाँ दीदी...बहुत प्यारी जोड़ी लग रही है, बिलकुल आपकी और जीजू की तरह.
बबलू की बात सुनकर कोयल उसकी ओर देखती है. उसकी आँखों में आँसू आ जाते है. अपनी दीदी की आँखों में आंसू देखकर बबलू भी रो पड़ता है.
बबलू: क्या हुआ दी..दीदी...? आप रो क्यूँ रही हो? आप इस शादी से खुश नहीं हो ना?
कोयल: नहीं रे पागल. ऐसी बात नहीं है. तेरे जीजू बहुत अच्छे है. मुझसे बहुत प्यार करते है. घर में सभी बहुत अच्छे है.
बबलू: फिर..? फिर आप रो क्यूँ रही हो....?
कोयल: कुछ नहीं....बस ऐसे ही...चल अब निचे चलते है.
दोनों निचे आते है. कोयल कमरे में चली जाती है और बबलू उसके पीछे. कमरे में जाकर कोयल बिस्तर पर बैठ जाती है. अपनी साड़ी के पल्लू से आंसू पोचते हुए वो कहती है, "कुछ पुरानी बातें याद आ गई. बस इसलिए आँसू आ गए...". कोयल की बात सुनकर बबलू अपने आप को रोक नहीं पाता है और रोते हुए कोयल के पैरों में गिर जाता है. "आईएम सॉरी दीदी....मुझे माफ़ कर दो....मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई थी....". बबलू के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. कोयल भी रोते हुए अपना हाथ बबलू के सर पर रखती है. "जानता है बबलू. शादी के बाद मुझे अपने ससुराल में बहुत प्यार मिला. हर वो ख़ुशी मिली जो एक लड़की चाहती है. मेरे पति ने मुझे हर सुख दिया. जीवन और शरीर, दोनों का सुख. फिर भी पता नहीं मुझे एक कमी सी महसूस होती थी. मैं हमेशा सोचती रहती की क्या कमी है? एक अच्छा परिवार, एक पति जो मेरी हर जरुरत के साथ शरीर की जरुरत भी पूरी करता है पर फिर भी मैं अधुरा क्यूँ महसूस करती हूँ?. और एक दिन मुझे पता चला की वो क्या है जो मेरे अधूरे जीवन को पूरा कर सकता है". बबलू ने भरी आवाज़ में पूछा, "क्या दीदी..?". "तू बबलू...तू...", कोयल ने उत्तर दिया. जिसे सुनकर बबलू को विश्वास नहीं हो रहा था. "ये आप क्या बोल रही हो दीदी....? मैं..? कैसे...?". कोयल आगे कहने लगी, "हाँ बबलू...वो तू ही है. वो तूही था जिसने मेरे शरीर को पहली बार छुआ था, वो तूही था जिसके छूने से पहली बार मेरे बदन में सिरहन हुई थी, वो तू ही था बबलू जिसने पहली बार मुझे एक लड़की होने का एहसास दिलाया था. एक लड़की को उसका पति चाहे कितनी भी ख़ुशी, कितना भी प्यार क्यूँ ना देदे पर वो लड़की अपने पहले प्यार, उस पहले अहसास को कभी नहीं भुला पाती है. मेरा पहला प्यार तू ही था बबलू....मेरा पहला प्यार तू ही है". कोयल दीदी की बातें सुनकर बबलू फिर से रो पड़ता है और कोयल की कमर से लिपट जाता है. "आई लव यू दीदी...आई लव यू....!!". कोयल भी रोते हुए बबलू से लिपट जाती है. "आई लव यू टू बबलू...आई लव यू टू...!!".
दोनों भाई-बहन कुछ देर वैसे ही एक दुसरे से लिपटे रहते है फिर कोयल खड़ी होती है. आँसू और चेहरे पर मुस्कान लिए कोयल बबलू की आखों में देखती है. एक हाथ से वो अपना पल्लू निचे गिरा देती है और फिर धीरे-धीरे साड़ी खोलने लगती है. बबलू भी दीदी की आँखों में देखते हुए अपना टी-शर्ट उतार देता है और धीरे-धीरे शॉर्ट्स भी. कोयल अपना ब्लाउज और पेटीकोट उतार कर एक बार बबलू की तरफ देखती है और फिर सिर्फ ब्रा और पैन्टी पहने हुए दूसरी तरफ घूम जाती है. बबलू आगे बढ़कर कोयल की ब्रा का हुक खोल देता है और ब्रा सरककर निचे गिर जाती है. कोयल फिर एक बार बबलू की तरफ घुमती है और बबलू के ओंठों पर अपने ओंठ रख देती है. कोयल के बड़े और गोल वक्ष बबलू के सीने पर दब जाते है. दोनों किसी बिछड़े हुए प्रेमी की तरह एक दुसरे के ओंठों को चूसने लगते है. बबलू के हाथ कोयल के वक्षों को अपनी गिरफ्त में ले लेते है और कोयल आँखे बंद किये अपने शरीर को बबलू को सौंप देती है. बबलू कभी दीदी के ओंठों को पीता है तो कभी उसके वक्षों को.
कुछ ही देर में दोनों नंग्न अवस्था में बिस्तर पर लेटे हुए थे. जहाँ कोयल बिस्तर पर लेटे हुए बबलू को अपनी बाहों में जकड़ी हुई थी, वहीँ बबलू कोयल के ऊपर चढ़ कर अपने प्यार का इज़हार कर रहा था. कोयल के ओंठों को चूसते हुए जैसे ही बबलू ने अपने लिंग को कोयल की योनी के द्वार पर रखा, कोयल के पैर खुले और बबलू की कमर को अपने बंधन में बाँध लिया. एक झटका देते ही बबलू का लिंग कोयल की योनी में प्रवेश करता चला गया. कोयल की आँखे बंद हो गई और मुहँ खोले, "अह्ह्ह्हह....!!" की आवाज़ करते हुए उसका चेहरा ऊपर उठा गया. बबलू ने एक बार फिर अपने ओंठ कोयल के ओंठों पर रख दिए और चूसने लगा. बबलू की कमर की गति जो धीरे थी, अब गति पकड़ने लगी. उसका लिंग कोयल की योनी में जोरो से अन्दर-बाहर होने लगा. कोयल की बंद आँखों से आंसू बह पड़े जिसे बबलू ने निचे झुककर मुहँ से पी लिया. ये रिश्ता सबसे अलग था. इस रिश्ते में भाई-बहन का प्यार था तो प्रेमी-प्रेमिका के प्यार की गहराई भी थी.
बबलू अब अपनी चरम-सीमा पर पहुँच चूका था. उसकी कमर गति के साथ कोयल की जाँघों के बीच ऊपर-निचे हो रही थी. निचे कोयल भी अपनी योनी में तनाव महसूस कर रही थी. "दी...दीदी...मैं झड़ने वाला हूँ...आह....!!". ये कहकर जैसे ही बबलू ने कमर उठाकर अपने लिंग को योनी से बाहर निकलना चाहा, कोयल ने अपनी योनी को सिकोड़ कर बबलू के लिंग को जकड लिया और अपनी टांगो का बंधन बबलू की कमर पर और ज्यादा कस दिया. "अन्दर ही बबलू....अन्दर ही...". बबलू ने कुछ कहने के लिए मुहँ खोला तो कोयल ने उसके मुहँ पर ऊँगली रख दी. बबलू दीदी की आँखों में देखते हुए अपनी कमर की गति और बढ़ा दी और देखते ही देखते उसके लिंग ने योनी के अन्दर वीर्य छोड़ दिया. करहाते हुए बबलू अपनी कमर को हिलाता हुआ कोयल के शरीर पर गिर गया. कोयल ने किसी प्यासे को पानी पिलाकर तृप्त करने वाली संतुष्टी के एहसास के साथ बबलू को अपने शरीर में बाँध लिया. कुछ देर तक दोनों वैसे ही एक दुसरे पर निढ़ाल होकर पड़े रहे. फिर अपने होश संभालकर एक दुसरे की आँखों में देखा. दोनों की आँखों में अथाह प्यार और संतुष्टी थी. रात में सबके सोने के बाद एक बार फिर दोनों भाई-बहन प्यार के बंधन में बंधे. दोनों के बीच की दरार भर चुकी थी.
सुबह हुई और वो वक़्त भी आया जब कोयल रवि के साथ फिर एक बार इस घर को छोड़कर जाने को तैयार थी. आलोक और उषा से विदा लेकर वो बबलू के पास जाती है. दोनों की आँखों में आँसू तो थे पर चेहरे पर मुस्कान और एक दुसरे के लिए प्यार भी था.
"अपना और सबका ख्याल रखना. और हाँ...!! तू बहुत अच्छा लिखता है. लिखना बंद मत करना...", कोयल ने कहा. कोयल की आँखों में देखते हुए बबलू कहता है, "हाँ दीदी....ख्याल भी रखूँगा और लिखूंगा भी. पर दीदी....आप मुझे भूल तो नहीं जाओगी ना?". बबलू के इस सवाल पर गीली आँखों से, चेहरे पर मुस्कराहट लिए कोयल कहती है, "मैं कोयल हूँ बबलू और कोयल बहुत ख़ास पंछी होती है. तेरी दीदी कोयल है...! याद रखना बबलू....कोयल...!!". ये कहकर कोयल कार में बैठ जाती है. बबलू अपनी दीदी की कही बात का मतलब समझने की कोशिश करने लगता है. "दीदी क्या कहना चाह रही थी?", वो मन में सोचने लगता है. तभी कोयल की गाड़ी निकल पड़ती है और बबलू दौड़ता हुआ छत पर जाने लगता है. छत पर पहुँचकर वो दीदी की गाड़ी का इंतज़ार करने लगता है जो कुछ ही क्षण बाद सामने वाली सड़क से गुजरने वाली थी. तभी बबलू की नज़र सामने वाले पेड़ पर पड़ती है जहाँ कोयल का जोड़ा चोंच लड़ाते हुए बैठा था. कोयल के जोड़े को देखते हुए बबलू के मन में दीदी की कहीं बात फिर से गूंजने लगती है. 'मैं कोयल हूँ बबलू और कोयल बहुत ख़ास पंछी होती है. तेरी दीदी कोयल है...! याद रखना बबलू....कोयल...!!'. एक क्षण के लिए बबलू कुछ सोचता है और फिर उसके चेहरे पर मुस्कान छा जाती है. पेड़ पर बैठी मादा कोयल अंतिम बार नर कोयल से चोंच भिड़ा कर उड़ जाती है. तभी कोयल दीदी की गाड़ी भी सामने वाली सड़क से गुजरती है. खिड़की से हाथ निकालकर कोयल अंतिम बार बबलू से विदा लेती है. छत पर खड़ा बबलू मादा कोयल को आसमान में उड़ता हुआ देखता है और मुस्कुराता है. कोयल - वो पंछी जो नर कोयल के साथ प्रजलन करती है और फिर उड़ जाती है पराये पंछी के घोसले की तलाश में, जहाँ वो अपने अंडे देगी और वो पंछी उस अंडे को अपना मान कर उसका पालन-पोषण करेगा. और फिर जब प्रजलन का समय आएगा और नर कोयल उसे पुकारेगा वो उसकी पुकार सुनकर उडती हुई फिर उसके पास आ जाएगी.
कुछ ही देर में आसमान में उडती मादा कोयल और उसकी कोयल दीदी की गाड़ी, दोनों बबलू की आँखों से ओझल हो जाती है. चेहरे पर समाधान और संतुष्टी के भाव लिए बबलू अपने कमरे में आता है और कुर्सी पर बैठ जाता है. राइटिंग पैड खोलता है और अपनी नयी कहानी का शीर्षक लिखता है - "कोयल".
-समाप्त