सर्वप्रथम तो आपको बहुत धन्यवाद की आपने बारीकी से रिव्यू किया..और अच्छा किया.
जी, कहीं न कहीं मेरे मन में दो कहानी पोस्ट करने का विचार पनप रहा था जो अंततः फलीभूत हुआ
आप लोगों के उत्साहवर्धन से.
अब आते हैं आपके इस विचार पर की कहानी का अंत सुखद या दुःखद, कुछ होना चाहिए था. अर्थात या तो शैली पूर्णतया स्वस्थ हो जाती या फिर मृत. यानि की एक 'निश्चितता' होनी चाहिए थी... राइट??
पर.... (
यहाँ 'पर' शब्द पर ध्यान दीजिएगा...)
पर क्या हो यदि कहानी की कोई '
निश्चितता' ही न हो?? हर कहानी, चाहे वो किसी भी श्रेणी / वर्ग की हो, क्या हमेशा उसका एक '
निश्चित' अंत संभव है? क्या हमेशा हर प्रश्न का
एक ही निश्चित उत्तर संभव है? और यदि है, तो कैसा होगा की प्रश्न तो बड़ा तार्किक व सटीक है... पर उसका उत्तर नहीं है.. और यदि उत्तर है भी... तो उत्तर को सही तरह से देने का माध्यम या उपाय नहीं है.
क्या व कैसा हो यदि किसी प्रश्न का
आधार या स्वयं उत्तर ही 'आशा एवं अपेक्षा' हो?
मैंने यही करने का प्रयास किया है... शैली किसी चीज़ के वशीभूत है और वो सरलता या शीघ्रता से ठीक नहीं होने वाली; किंतु मैं स्वयं और सुधीर ने उसके ठीक हो जाने की '
आशा' नहीं छोड़ी है... और '
आशा' है की प्रिय पाठकगण भी ऐसी ही '
आशा' करेंगे.
एकबार फिर से आपके बहुमूल्य समय एवं सुंदर विश्लेषण के लिए आपका हृदय की गहराईयों से बहुत बहुत धन्यवाद.