Sanju@
Well-Known Member
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बहुत ही बेहतरीन अपडेट है☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 05
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अब तक,,,,,
सुबह मेरी आँख कुछ लोगों के द्वारा शोर शराबा करने की वजह से खुली। पहले तो मुझे कुछ समझ न आया मगर जब कुछ लोगों की बातें मेरे कानों में पहुंची तो मेरे पैरों के नीचे की ज़मीन ही हिल गई। चार महीनों में ऐसा पहली बार हुआ था कि मेरे आस पास इतने सारे लोगों का शोर मुझे सुनाई दे रहा था। मैं फ़ौरन ही उठा और लकड़ी के बने उस दरवाज़े को खोल कर झोपड़े से बाहर आ गया।
बाहर आ कर देखा तो क़रीब बीस आदमी हाथों में लट्ठ लिए खड़े थे और ज़ोर ज़ोर से बोल रहे थे। उन आदमियों में से कुछ आदमी मेरे गांव के भी थे और कुछ मुरारी के गांव के। मैं जैसे ही बाहर आया तो उन सबकी नज़र मुझ पर पड़ी और वो तेज़ी से मेरी तरफ बढ़े। कुछ लोगों की आंखों में भयानक गुस्सा मैंने साफ़ देखा।
अब आगे,,,,,
"ये सब क्या है?" मैंने अपनी तरफ बढ़े चले आ रहे आदमियों को देखते हुए ऊंची आवाज़ में किन्तु अंजान बनते हुए कहा____"आज तुम लोग यहाँ पर क्यों जमा हो रखे हो?"
"देखो तो।" मेरी तरफ बढ़ रहे आदमियों में से एक ने दूसरे से कहा____"देखो तो कैसे भोला बन रहा है ये। इतना बड़ा काण्ड करने के बाद भी कहता है कि हम लोग यहाँ क्यों जमा हो रखे हैं?"
"अब इसे हम बताएंगे कि इसने जो किया है उसका अंजाम क्या होता है।" दूसरे आदमी ने अपने लट्ठ को हवा में उठाते हुए कहा____"बड़े ठाकुर का बेटा है तो क्या ये किसी की जान ले लेगा?"
"मारो इसे।" तीसरा आदमी ज़ोर से चीखा____"और इतना मारो कि इसके जिस्म से इसके प्राण निकल जाएं।"
"देखो तुम लोग अपनी हद पार कर रहे हो।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"तुम लोग जो समझ कर यहाँ मेरी जान लेने आये हो वैसा कुछ नहीं किया है मैंने।"
"तुम्हीं ने मेरे भाई मुरारी की बेरहमी से हत्या की है।" एक आदमी मेरे एकदम पास आते हुए ज़ोर से चीखा_____"तुम्हारे अलावा कल रात कोई नहीं गया था वहां। तुमने ही मेरे भाई की हत्या की है और अब हम तुम्हें भी ज़िंदा नहीं छोडेंगे।"
"मैं भला मुरारी काका की हत्या क्यों करुगा?" मैं अंदर से तो बेहद हैरान था कि मुरारी काका की हत्या हो गई है किन्तु अब इस बात से भी हैरान था कि उसकी हत्या का आरोप ये लोग मुझ पर लगा रहे थे इस लिए बोला____"आख़िर मेरी उनसे दुश्मनी ही क्या थी? तुम सब जानते हो कि चार महीने पहले मेरे बाप ने मुझे घर और गांव से निष्कासित कर दिया था। उसके बाद से मैं यहाँ सबसे अलग हो कर अकेले रह रहा हूं। ऐसे बुरे वक़्त में जब किसी ने भी मेरी कोई मदद नहीं की थी तब मुरारी काका ने ही मेरी मदद की थी। वो न होते तो मैं कब का भूखों मर जाता। जो इंसान मेरे लिए फ़रिश्ते जैसा है उसकी हत्या मैं क्यों करुंगा?"
"क्योंकि तुम उसकी बेटी को अपनी हवश का शिकार बनाना चाहते थे।" उस आदमी ने चीखते हुए कहा जो मुरारी का भाई जगन था____"मैं जानता हूं कि बड़े ठाकुर का ये सपूत गांव की किसी भी लड़की या औरत को अपना शिकार बनाने से नहीं चूकता। बड़े ठाकुर ने तुम्हे गांव से निकाल दिया था इस लिए तुम अपनी हवश के लिए किसी लड़की या औरत का शिकार बनाने के लिए तड़पने लगे और जब मेरा भाई ऐसे वक़्त में तुम्हारी मदद करने आया तो तुमने उसी की बेटी को अपना शिकार बनाने का सोच लिया। मैं अपनी भतीजी को अच्छी तरह जानता हूं। वो ऐसी वैसी लड़की नहीं है और ये बात तुम भी समझ गए थे इसी लिए जब तुम्हारी दाल किसी भी तरह से नहीं गली तो तुमने मेरे भाई की ये सोच कर हत्या कर दी कि अब कोई तुम्हारे रास्ते में नहीं आएगा मगर तुम भूल गए कि तुम्हारे रास्ते की दीवार बन कर मुरारी का भाई भी खड़ा हो सकता है।"
"तुम पता नहीं ये क्या बकवास पेले जा रहे हो जगन काका।" मैंने इस बार गुस्से में कहा____"मैं ये मानता हूं कि चार महीने पहले तक मैं ऐसा इंसान था जो अपनी हवश के लिए किसी लड़की या औरत को अपना शिकार बनाता था मगर जब से यहाँ आया हूं तब से मैं वैसा नहीं रहा। भगवान जानता है कि मैंने मुरारी की बेटी को कभी ग़लत नज़र से नहीं देखा। मैं इतना भी गिरा हुआ नहीं हूं कि जो मुझे अपने घर में दो वक़्त की रोटी दें उन्हीं के घर को बर्बाद कर दूं।"
मुरारी के छोटे भाई का नाम जगन सिंह था और वो भी अपने भाई मुरारी की तरह ही खेती बाड़ी करता था। मुरारी की हत्या के बाद वो अपने गांव के कुछ आदमियों को ले कर सुबह सुबह ही मेरे झोपड़े पर आ गया था। मुरारी की हत्या की ख़बर जंगल के आग की तरह फैलती हुई मेरे गांव तक भी पहुंच गई थी। पिता जी को जब इस ख़बर के बारे में पता चला होगा तो उन्होंने अपने कुछ आदमियों को यहाँ भेज दिया होगा। हालांकि ऐसा मेरा सिर्फ अनुमान ही था।
इधर मैं जगन को समझा रहा था कि मैंने मुरारी की हत्या नहीं की है मगर वो मानने को तैयार ही नहीं था किन्तु बाकी लोग मेरी बातें सुन कर सोच में ज़रूर पड़ गए थे और यही वजह थी कि उन लोगों का गुस्सा ठंडा हो गया था। जाते जाते जगन मुझे धमकी दे कर गया था कि अब अगर मैंने मुरारी के घर में क़दम भी रखा तो वो मुझे जान से मार देगा।
जगन के साथ उसके आदमी चले गए थे और उनके जाने के बाद मेरे गांव के लोग भी बिना मुझसे कुछ बोले चले गए। मैं ये सोच कर बेहद परेशान हो गया था कि जब मैंने मुरारी की हत्या की ही नहीं है तो उसकी हत्या का आरोप मेरे सिर पर क्यों लगा रहा था जगन?
जगन से मेरी एक दो बार मुलाकात हुई थी और वो मुझे अपने बड़े भाई मुरारी की तरह ही भला आदमी लगता था। हालांकि वो गांव में अपने बीवी बच्चों के साथ रहता था किन्तु मुरारी के यहाँ उसका आना जाना था और आना जाना हो भी क्यों न? दोनों भाईयों के बीच कोई दुश्मनी नहीं थी बल्कि काफी अच्छा ताल मेल था दोनों के बीच।
मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि रात में सोने के बाद जब सुबह मेरी आँख खुलेगी तो मुझे इतना बड़ा झटका लगेगा। मैं समझ नहीं पा रहा था कि मुरारी की हत्या किसने की होगी और क्यों की होगी? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुरारी मेरी मदद करता था तो मेरे बाप ने उसे मरवा दिया हो। तभी मुझे याद आया कि कल रात जब मैं खा पी कर मुरारी के घर से चला था तो रास्ते में किसी ने मुझे ज़ोर का धक्का मारा था। मैंने उस ब्यक्ति को खोजा भी था मगर ना तो वो खुद मिला था मुझे और ना ही उसका कोई निशान मिला था मुझे। इतना तो मैं भी समझ रहा था कि मुरारी की हत्या रात में ही किसी वक़्त की गई थी मगर सवाल था कि किसने की थी उसकी हत्या? क्या उसी ब्यक्ति ने जिसने रास्ते में मुझे धक्का दिया था? आख़िर कौन था वो रहस्यमयी ब्यक्ति? क्या वो मेरे बाप का कोई आदमी था?
मुरारी की हत्या के बारे में सुन कर मैं उसके घर जाना चाहता था मगर जगन ने मुझे धमकी दी थी कि अगर मैं उसके घर गया तो वो मुझे जान से मार देगा। मेरी आँखों के सामने सहसा मुरारी का चेहरा उभर आया। शुरू से ले कर अब तक का उसके साथ गुज़रा हुआ हर लम्हा याद आने लगा मुझे। एक वही था जिसने ऐसे वक़्त में मेरी इतनी मदद की थी और इतना ही नहीं अपने घर ले जा कर मुझे खाना भी खिलाता था। क्या ऐसे इंसान की मौत की वजह सिर्फ और सिर्फ मैं था? क्या उसकी हत्या किसी ने मेरी मदद करने की वजह से की थी? मुरारी के बारे में सोचते सोचते मेरी आँखें भर आईं। मैंने मन ही मन ईश्वर से पूछा कि ऐसा क्यों किया उस नेक इंसान के साथ?
झोपड़े के बाहर माटी के चबूतरे में बैठा मैं मुरारी के ही बारे में सोच रहा था। मुरारी की हत्या से मैं बुरी तरह हिल गया था और ये सोचने पर मजबूर भी हो गया था कि उसकी हत्या किस वजह से और किसने की होगी? आख़िर किसी की मुरारी से ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती थी जिसके तहत उसकी इस तरह से हत्या कर दी गई थी?
मुझे एहसास हुआ कि मुरारी की इस अकस्मात हत्या से मैं बुरी तरह घिर गया हूं। मुरारी का भाई जगन और उसके गांव वाले सब मुझे ही मुरारी का हत्यारा कह रहे थे जबकि ये तो मैं ही जानता था कि मैं मुरारी की हत्या करने के बारे में सोच भी नहीं सकता था। मुझे एहसास हुआ कि एकाएक ही मैं कई सारी मुश्किलों में पड़ गया था।
मेरे ज़हन में ये भी ख़याल उभर रहे थे कि मुमकिन है कि मुरारी की हत्या मेरे बाप ने करवाई हो। मुरारी का मेरी इस तरह से मदद करना उसे शुरू से ही पसंद न रहा हो और जब उसके सब्र का बांध टूट गया तो उसने अपने आदमियों के द्वारा इस तरह से उसकी हत्या करवा दी हो कि उसकी हत्या का सारा इल्ज़ाम मेरे ही सिर पर आ जाए। इन ख़यालों से मैं फिर ये भी सोचता कि क्या मेरा बाप सच में ऐसा कर सकता है? क्या वो इस तरह से मुझे ऐसी मुश्किल में डालने का सोच सकता है? मैं ये तो मानता था कि मेरा बाप अपनी बदनामी को नहीं सह सकता किन्तु मेरा दिल इस बात को मानने से कतरा रहा था कि कोई बाप अपने बेटे को इतने संगीन अपराध में फंसा देगा। अब सोचने वाली बात थी कि अगर मेरे बाप ने मुरारी की हत्या नहीं करवाई थी तो किसने की उसकी हत्या और क्यों की?
मुरारी की इस प्रकार हुई हत्या से क्या उसकी बीवी और उसके बच्चे भी यही समझ रहे होंगे कि मैंने ही मुरारी की हत्या की है? मेरा दिल कह रहा था कि वो मेरे बारे में ऐसा नहीं सोच सकते थे क्योकि इतना तो वो भी सोचेंगे कि मैं भला मुरारी की हत्या क्यों करुंगा? दूसरी बात अगर वो ऐसा सोचते तो यकीनन वो मेरे पास आते और मेरा गिरेहबान पकड़ कर मुझसे पूछते कि मैंने ऐसा क्यों किया है? मतलब साफ़ था कि वो मेरे बारे में ऐसा नहीं सोच रहे थे या फिर ऐसा हो सकता था कि मुरारी के भाई जगन ने उन्हें मेरे पास आने ही न दिया हो। मुझे मेरा ये विचार ज़्यादा सही लगा और अब मुझे लग रहा था कि मुझे मुरारी के घर जा कर सरोज से मिलना चाहिए। आख़िर इतना तो मुझे भी पता होना चाहिए कि सरोज और उसकी बेटी अनुराधा मेरे बारे में क्या सोचती हैं?
जगन की धमकी के बावजूद मैंने फैसला कर लिया कि मैं मुरारी के घर जाउंगा। मैं सरोज से चीख चीख कर कहूंगा कि मैंने उसके पति की हत्या नहीं की है बल्कि कोई और ही है जिसने उसके पति की हत्या कर के उसका सारा इल्ज़ाम मुझ पर थोप दिया है।
अपने अंजाम की परवाह किये बिना मैं अपने झोपड़े से मुरारी के घर की तरफ चल दिया। मैं जानता था कि इस वक़्त उसके घर में उसके गांव वाले भी मौजूद होंगे और खुद जगन भी होगा जो मुझे वहां पर देखते ही मुझे जान से मारने की कोशिश करेगा। मुझे अपने अंजाम की अब कोई परवाह नहीं थी बल्कि मैं तो अब ये फैसला कर चूका था कि खुद पर लगे इस हत्या के इल्ज़ाम को अपने सर से हटाऊंगा और ये भी पता करुंगा कि मुरारी की हत्या कर के किसने मुझे फंसाया है?
झोपड़े से निकल कर मैं अभी कुछ दूर ही बढ़ा था कि मुझे अपने दाहिने तरफ से एक बग्घी आती हुई दिखी। मैं दूर से ही उस बग्घी में बैठे अपने बाप को पहचान गया था। अपने बाप को बग्घी में बैठ कर अपनी तरफ आते देख मेरे अंदर की नफ़रत उबाल मारने लगी और मेरी मुट्ठिया कस गईं। चार महीने बाद ये दूसरा अवसर था जब मेरे घर का कोई सदस्य मेरी तरफ आ रहा था। पहले भाभी आईं थी और अब खुद मेरा बाप आ रहा था। अपने बाप को देख कर मेरे मन में एक ही सवाल उभरा कि जिसने खुद मुझे घर गांव से निष्कासित किया था और जिसने पूरे गांव वालों को भी ये हुकुम दिया था कि कोई मुझसे किसी भी तरह का राब्ता न रखे वरना उसे भी मेरी तरह घर गांव से निकाल दिया जायेगा तो ऐसा फैसला सुनाने वाला खुद क्यों अपने कानून को तोड़ कर मेरे पास आ रहा था?
मेरे बाप की बग्घी अभी थोड़ी दूर ही थी और मैं कुछ पलों के लिए अपनी जगह पर रुक गया था किन्तु फिर मैं उस तरफ से अपनी नज़र हटा कर फिर से आगे बढ़ चला। अभी मैं कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि मेरे कानो में मुंशी चंद्रकांत की आवाज़ पड़ी। वो मुझे रुकने को कह रहा था मगर मैंने उसकी आवाज़ को अनसुना कर दिया। जब मैं न रुका तो वो तेज़ तेज़ आवाज़ें लगाते हुए मुझे रुकने को बोलने लगा। मेरे धमनियों में मेरे बाप का ही खून दौड़ रहा था जो मुंशी जैसे ऐरे गैरे की आवाज़ को नज़रअंदाज़ कर के आगे बढ़ा ही जा रहा था। असल में मैं चाहता था कि मेरा बाप खुद मुझे आवाज़ लगा कर रुकने को कहे। पता नहीं क्यों पर मैं चाहता था कि मेरा बाप खुद झुके और मुझे रुकने को कहे।
कहते हैं ना कि इंसान अपनी औलाद के आगे हार जाता है और मुझ जैसी औलाद हो तो हारने में ज़रा भी विलम्ब नहीं होता। अब ये मेरी बेशर्मी थी या खूबी इससे मुझे कोई मतलब नहीं था। जब मैं मुंशी की आवाज़ों पर नहीं रुका तो आख़िर मजबूरन मेरे बाप को खुद आवाज़ लगानी पड़ी और मैं यही तो चाहता था। अपने बाप की आवाज़ सुन कर मैं रुक गया और गर्दन घुमा कर उस तरफ देखा। बग्घी अब मेरे पास ही आ गई थी। आज चार महीने बाद मैं अपने बाप की सूरत देख रहा था। जिन आँखों में देखने की किसी में भी हिम्मत नहीं होती थी उन आँखों से मैं बराबर अपनी आँखें मिलाये खड़ा था।
"छोटे ठाकुर।" बग्घी में मेरे आप के नीचे बैठे मुंशी ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए कहा____"मैं कितनी देर से आपको आवाज़ें लगा रहा था और आप थे कि सुन ही नहीं रहे थे।"
"मैं तलवे चाटने वाले कुत्तों की नहीं सुनता।" मैंने शख़्त भाव से जब ये कहा तो मुंशी एकदम से हड़बड़ा गया।
"इतना कुछ होने के बाद भी तुम्हारी अकड़ नहीं गई?" ठाकुर प्रताप सिंह ने थोड़ा शख़्त भाव से कहा____"ख़ैर, कहा जा रहे थे?"
"आपसे मतलब?" मैंने अकड़ दिखाते हुए दो टूक भाव से कहा____"मेरी मर्ज़ी है। मैं जहां चाहूं अपनी मर्ज़ी से जा सकता हूं मगर चिंता मत करिये इस जन्म में मैं उस गांव में हरगिज़ नहीं जाऊंगा जिस गांव से चार महीने पहले मुझे निकाल दिया गया था।"
"ईश्वर जानता है कि हमने तुम्हें हर वो चीज़ दी थी जिसकी तुमने ख़्वाइश की थी।" ठाकुर प्रताप सिंह ने शांत लहजे में कहा____"हम आज तक समझ नहीं पाए कि हमने ऐसा क्या कर दिया था जिसके लिए तुमने हमारी इज्ज़त को उछालने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी? तुमने कभी ठंडे दिमाग़ से सोचा ही नहीं कि तुम जो करते थे वो कितना ग़लत था?"
"क्या यही सुनाने आये हैं यहाँ?" मैंने लापरवाही से कहा___"और अगर यही सुनाने आये हैं तो जान लीजिये कि मुझे आपका ये भाषण सुनने की ज़रा सी भी ख़्वाइश नहीं है।"
"क्या तुमने कभी ये सोचा है?" ठाकुर प्रताप सिंह ने पहले की भाँति ही शांत लहजे में कहा____"कि तुम्हारे इस रवैये से तुम्हारे माता पिता के दिल पर क्या गुज़रती है? हमने हमेशा तुम में अपनी छवि देखी थी और हमेशा यही सोचा था कि हमारे बाद हमारी बागडोर तुम ही सम्हाल सकोगे। तुम्हारे बड़े भाई में हमने कभी ऐसी खूबी नहीं देखी। हालांकि उससे हमें कभी कोई शिकायत नहीं रही है। उसने कभी भी तुम्हारी तरह हमें शर्मिंदा नहीं किया और ना ही गांव समाज में हमारी इज्ज़त पर दाग़ लगाया है मगर इसके बावजूद उसमे वो बात नहीं दिखी हमें जिससे की हम ये सोच सकें कि हमारे बाद वो हमारी बागडोर सम्हाल सकता है। तुमसे हमने बहुत सारी उम्मीदें लगा रही थी मगर तुमने हमेशा हमारी उम्मीदों पर पानी ही फेरा है।"
"इन बड़ी बड़ी बातों से आप इस बात पर पर्दा नहीं डाल सकते कि आपने क्या किया है।" मैंने कठोर भाव से कहा____"आपने अपनी ही औलाद को यहाँ मरने के लिए छोड़ दिया और ये ख़्वाहिश रखी कि आपके ऐसा करने से मैं खुश हो जाऊंगा मगर आपको ज़रा भी अंदाज़ा नहीं है कि आपके ऐसा करने से मेरे अंदर आपके प्रति कितनी नफ़रत भर चुकी है। ठाकुर प्रताप सिंह आप सिर पटक मर जाइये मगर मेरे दिल में आपके लिए अब कोई जगह नहीं हो सकती। आज चार महीने हो गए और मुझे जन्म देने वालों ने एक पल के लिए भी यहाँ आ कर ये देखने की कोशिश नहीं की कि मैं यहाँ ज़िंदा बचा हूं या भूखों मर गया हूं? जाइये ठाकुर साहब जाइये... मैं अब आपका बेटा नहीं रहा। मैं आप सबके लिए मर चुका हूं।"
पता नहीं क्या हो गया था इस वक़्त मुझे? मैं ऐसे अल्फ़ाज़ में और ऐसे लहजे में अपने बाप से बातें कर रहा था जिसके बारे में शायद कोई बाप सोच भी नहीं सकता था। मेरी बातें सुन कर मेरा बाप मुझे इस तरह देखता रह गया था जैसे मैं कोई अजूबा था। उनके नीचे बैठे मुंशी की तो आश्चर्य से आँखें ही फटी पड़ी थी।
"छोटे ठाकुर।" फिर मुंशी ने हकलाते हुए पड़ा____"ये आपने अच्छा नहीं किया। आपको अपने ही पिता जी से इस तरह बातें नहीं करनी चाहिए थी।"
"मैंने कहा था न मुंशी।" मैंने मुंशी चंद्रकांत की तरफ क़हर भरी नज़रों से देखते हुए कहा____"कि मैं तलवे चाटने वाले कुत्तों की नहीं सुनता। इस लिए अपनी जुबान बंद रख तू और ले जा यहाँ से अपने ठाकुर साहब को।"
"आज तुमने हमारा बहुत दिल दुखाया है लड़के।" ठाकुर प्रताप सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"हम ये मानते हैं कि हमने तुम्हें ऐसी सज़ा दे कर अच्छा नहीं किया था किन्तु उस समय तुमने काम ही ऐसा किया था कि हम अपना आप खो बैठे थे और फिर गुस्से में हमने वैसा फैसला सुना दिया था। बाद में हमें भी एहसास हुआ था कि हमने वैसा फैसला सुना कर बिल्कुल भी ठीक नहीं किया था किन्तु फैसला सुनाने के बाद फिर कुछ नहीं हो सकता था। अगर हम ऐसा करने के बाद फिर से पंचायत बुला कर अपना फैसला बदलते तो लोग क्या कहते हमें? यही कहते न कि ठाकुर ने अपने बेटे के लिए अपना फैसला बदल दिया? लोग कहते कि अगर यही फैसला हमने किसी और के लिए सुनाया होता तो क्या हम अपना फैसला बदल देते? हम तुम्हारे अपराधी हैं और हमें पूरी तरह से एहसास है कि हमने तुम्हें घर गांव से निष्कासित करके ग़लत किया था लेकिन यकीन मानो तुम्हें अपने से दूर कर के हम भी कभी खुश नहीं रहे। तुम्हारे सामने भी सिर्फ इसी लिए नहीं आये कि गांव के लोग तरह तरह की बातें करने लगेंगे? वो यही कहेंगे कि हमने खुद ही अपने फैसले का पालन नहीं किया और पुत्र मोह में तुम्हारे पास पहुंच गए? गलतियां हर इंसान से होती है बेटे। इस धरती पर कोई भगवान नहीं है जिससे कभी कोई ग़लती हो ही नहीं सकती। ख़ैर छोड़ो ये सब बातें, और हां तुम्हें पूरा हक़ है हमसे नफ़रत करने का। हम तो यहाँ सिर्फ इस लिए आये हैं क्योंकि हम नहीं चाहते कि तुम किसी और मुसीबत में पड़ जाओ। हमें भी मुरारी की हत्या के बारे में पता चल गया है और हमें यकीन है कि तुमने उसकी हत्या नहीं की है।"
"चार महीनों से मैं जिन मुसीबतों को झेल रहा हूं।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"उससे इतना तो सक्षम हो ही गया हूं कि अब हर तरह की मुसीबतों का सामना खुद ही कर सकूं। इस लिए मेरे लिए फ़िक्र करने की आपको कोई ज़रूरत नहीं है।"
"एक बात और भी है जो हम तुम्हें खुद बताने आये हैं।" ठाकुर प्रताप सिंह ने मेरी बातों को जैसे नज़रअंदाज़ करते हुए कहा____"और वो ये कि सभी गांव वालों का कहना है कि हम तुम्हें अपने इस फैसले से आज़ाद करके वापस बुला लें। इस लिए कल सभी गांव वालों के सामने पंचायत बैठेगी और उस पंचायत में सबकी रज़ामंदी से ये फैसला होगा कि तुम पर से सारी पाबंदियां हटा कर तुम्हें वापस बुला लिया जाए।"
"अगर आप ये सोचते हैं कि आपकी इस बात से मैं खुश हो जाऊंगा।" मैंने सपाट लहजे में कहा_____"तो ग़लत सोचते हैं आप। मैं पहले ही बता चूका हूं कि अब इस जन्म में मैं उस गांव में हरगिज़ नहीं जाऊंगा जिस गांव से आपने मेरा हुक्का पानी बंद कर के निकाल दिया था। अब यही मेरा घर है और यही मेरी कर्म भूमि है। जब तक साँसें चलेंगी यहीं रहूंगा और फिर इसी धरती की गोद में हमेशा के लिए सो जाऊंगा।"
"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।" कहने के साथ ही ठाकुर प्रताप सिंह ने मुंशी से कहा_____"चलिए मुंशी जी अब हम यहाँ एक पल के लिए भी नहीं रुकना चाहते।"
"पर ठाकुर साहब??" मुंशी ने कुछ कहना ही चाहा था कि मेरे बाप ने हाथ उठा कर उसे चुप करा दिया।
उसके बाद मेरे बाप की बग्घी वापस मुड़ी और जिधर से आई थी उधर ही चली गई। अपने बाप की हसरतों को अपने पैरों तले कुचल कर मुझे एक अजीब सी शान्ति मिली थी। मैं खुद भी जानता था कि मेरे बाप से मेरी आज की ये मुलाक़ात उस तरीके से तो बिलकुल भी ठीक नहीं थी जिस तरीके से मैं उनसे पेश आया था किन्तु ग़लत ही सही मगर इससे मुझे आत्मिक सुकून ज़रूर मिला था।
ठाकुर प्रताप सिंह के जाते ही मैं भी मुरारी के घर की तरफ बढ़ चला। सारे रास्ते मैं अपने बाप से हुई बातों के बारे में सोचता रहा और मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब मुरारी के घर के सामने पहुंच गया। मेरा ध्यान तो तब टूटा जब अचानक से ही किसी ने आ कर मेरा गिरेहबान पकड़ कर ज़ोर से चिल्लाया। मैंने हड़बड़ा कर सामने देखा तो पाया कि मेरा गिरेहबान पकड़ कर चिल्लाने वाला कोई और नहीं बल्कि मुरारी का भाई जगन था।
"तेरी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की?" जगन मेरा गिरेहबान पकड़े गुस्से में चीखा____"मैंने तुझसे कहा था न कि अगर तूने मेरे भाई के घर में क़दम भी रखा तो तुझे जान से मार दूंगा?"
जगन ने जिस तरह से मेरा गिरेहबान पकड़ कर गुस्से में मुझसे ये कहा था उससे मेरी झांठें तक सुलग गईं थी। एक तो मैंने कुछ किया नहीं था ऊपर से ये कुछ ज़्यादा ही उछल रहा था। मैंने एक झटके में अपना गिरेहबान उससे छुड़ाया और उसके दुबले पतले जिस्म को दोनों हाथों से ऊपर उठा कर पूरी ताकत से ज़मीन पर पटक दिया। कच्ची किन्तु ठोस ज़मीन पर गिरते ही जगन की चीख निकल गई और वो दर्द से कराहने लगा।
"अपनी औका़त में रह समझा?" फिर मैंने गुस्से में उसका गिरेहबान पकड़ कर उठाते हुए कहा___"वरना जो मैंने किया ही नहीं है वो अब तेरे साथ कर दूंगा और तू मेरी झाँठ का बाल तक नहीं उखाड़ पाएगा । जब मैंने कह दिया कि मैंने मुरारी काका को नहीं मारा तो मान लेना चाहिए था ना कि नहीं मारा मैंने उन्हें। साले तुझसे ज़्यादा मुझे मुरारी काका की इस तरह से हुई हत्या का दुःख है और तू होता कौन है मुझ पर इल्ज़ाम लगाने वाला?"
मेरे गुस्से को देख कर जगन ढीला पड़ गया था। वैसे भी वो दस आदमियों के बल पर ही उस वक़्त इतना ताव में उछल रहा था वरना उसकी कोई औका़त नहीं थी कि ठाकुर प्रताप सिंह के खानदान के किसी भी सदस्य से वो ऊंची आवाज़ में बात कर सके। जगन को जब मैंने वहां मौजूद लोगों के सामने ही इस तरह उठा कर ज़मीन पर दे मारा था तो किसी ने चूं तक नहीं किया था। वो सब जानते थे कि आज मैं भले ही ऐसे हालात में था किन्तु मैं आज भी वही था जो पहले हुआ करता था।
मैंने जब देखा कि वहां मौजूद हर आदमी एकदम से चुप हो गया है तो मैंने जगन को धक्का दे कर अपने से दूर किया और मुरारी काका के घर के अंदर दाखिल हो गया। अंदर आया तो देखा सरोज काकी और अनुराधा एक कोने में बुत बनी बैठी हुई थीं। दोनों की आँखें रोने से लाल सुर्ख पड़ गईं थी। अनुराधा का छोटा भाई भी सरोज के पास ही दुबका बैठा हुआ था।
मुरारी काका की लाश को ज़मीन में ही अर्थी पर लिटा कर सफ़ेद कपडे़ से ढंक दिया गया था। उस लाश के चलते पूरे घर में मरघट जैसा सन्नाटा छाया हुआ था। सरोज काकी और अनुराधा के आँसू रो रो कर सूख चुके थे। हालांकि किसी किसी वक़्त वो दोनों फिर से हिचकियां ले कर रोने लगतीं थी। मैं ख़ामोशी से आगे बढ़ा और मुरारी काका की लाश के पास बैठ गया।
मैंने लाश से सफेद कपड़ा हटा कर देखा तो एक पल के मेरी रूह तक काँप गई। मुरारी काका की गर्दन आधे से ज़्यादा कटी हुई थी और वहां से अभी भी खून रिस रिस कर नीचे अर्थी पर गिर रहा था। हत्यारे ने मुरारी काका की गर्दन पर किसी तेज़ धार वाले हथियार से एक ही वार किया था जिससे उनकी गर्दन आधे से ज़्यादा कट गई थी। गर्दन का ये हाल देख कर कोई भी कह सकता था कि मुरारी काका को उस वक़्त तड़पने का मौका भी ना मिला होगा और गले पर वार होते ही उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई होगी।
मुरारी काका की इस निर्मम हत्या को देख कर मैं ये सोचने लगा था कि जिस किसी ने भी उनकी इस तरह से हत्या की थी वो बहुत ही बेरहम रहा होगा और ज़रा भी नहीं चाहता रहा होगा कि उसके वार से मुरारी काका बच जाएं। मैं सोचने लगा कि मुरारी काका जैसे साधारण इंसान का भला ऐसा कौन दुश्मन हो सकता है जिसने उनकी इतनी बेरहमी से हत्या कर दी थी?
मैने मुरारी काका के चेहरे पर वापस कपड़ा डाला और उठ कर खड़ा हो गया। कुछ देर सोचने के बाद मैं पलटा और सरोज काकी की तरफ देखा। वो मुझे देख कर और भी ज़्यादा सिसकियां ले ले कर रोने लगी थी। यही हाल अनुराधा और उसके भाई का भी था।
"ये सब कैसे हुआ काकी?" मैंने गंभीर भाव से सरोज काकी से कहा____"कल रात तो मैंने खुद ही मुरारी काका को चारपाई पर लेटाया था और फिर खा पी कर यहाँ से जब गया था तब तक तो वो बिलकुल ठीक ही थे। फिर ये सब कब और कैसे हुआ?"
"हमें तो खुद ही नहीं पता चला कि उनके साथ ये सब कब हुआ था बेटा?" सरोज काकी ने सिसकते हुए कहा____"रात में तुम्हारे जाने के बाद मैंने एक बार उन्हें खाना खाने के लिए उठाने की कोशिश की थी मगर वो नशे में थे और गहरी नींद में सो गए थे इस लिए मेरे उठाने पर भी नहीं उठे। उसके बाद हम सबने खाना खाया और फिर सोने चले गए थे कमरे में। सुबह आँख खुली तो देखा वो अपनी चारपाई पर नहीं थे। मैंने सोचा शायद सुबह सुबह दिशा मैदान के लिए निकल गए होंगे। कुछ देर में मैं और अनुराधा भी दिशा मैदान के लिए घर से निकले। घर के पीछे की तरफ आये तो देखा वो घर के पीछे महुआ के पेड़ के पास खून से लथपथ पड़े थे। हम दोनों की तो डर के मारे चीखें ही निकल गई थी। बस उसके बाद तो बस रोना ही रह गया बेटा। सब कुछ लुट गया हमारा।"
कहने के साथ ही काकी हिचकियां ले कर रोने लगी थी। उसके साथ अनुराधा भी रोने लगी थी। इधर मैं ये सोच रहा था कि रात के उस वक़्त नशे की हालत में मुरारी काका घर के पीछे कैसे आएंगे होंगे? क्या वो खुद चल कर आये थे या फिर नशे ही हालत में उन्हें कोई और उठा कर घर के पीछे ले गया था? लेकिन सवाल ये है कि अगर कोई और ले गया था तो काकी या अनुराधा को इसका पता कैसे नहीं चला? सबसे बड़ी बात ये कि क्या उस वक़्त घर का दरवाज़ा अंदर से बंद नहीं था? मुरारी काका की हालत ऐसी नहीं थी कि वो खुद चल कर घर के पीछे तक जा सकें।
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वैभव अपने बाप से बहुत ज्यादा गुस्सा है जब ही वो अपने बाप से कड़वी और दिल को टेश पहुंचाने वाली बात कहता है मुरारी को किसने मार दिया । उस की किसी से क्या दुश्मनी थी ? मुरारी के भाई जगन का उस पर शक करना कोई गलत नहीं है क्योंकि मुरारी को वोही घर छोड़ कर आया था
पर ये भी सच है कि वैभव ने उसका खून नहीं किया है
अब बाद में देखेंगे कि आगे चलकर क्या होने वाला है तभी शायद कुछ कह सकें ।
ठाकुर साहब और वैभव का कन्वर्सेशन ..... मुरारी का मर्डर..... वैभव का उनके घर जाना....जगन के साथ उसकी बातों और तकरार ।