Sanju@
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Amazing update☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 07
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अब तक,,,,,
पिता जी से मैंने जिस तरीके से बातें की थी वैसी बातें संसार का कोई भी बेटा अपने पिता से नहीं कर सकता था। इंसान के दिल को तो ज़रा सी बातें भी चोट पहुंचा देती हैं जबकि मैंने तो पिता जी से ऐसी बातें की थी जो यकीनन उनके दिल को ही नहीं बल्कि उनकी आत्मा तक को घायल कर गईं होंगी। सारी ज़िन्दगी मैंने गलतियां की थी और यही सोचता था कि मैं जो कुछ भी कर रहा हूं वो सब अच्छा ही है किन्तु जब एक ग़लती मेरे पिता जी से हुई तो मैंने क्या किया?? उनकी एक ग़लती के लिए मैंने घर के हर सदस्य से नाता तोड़ लिया और उनके प्रति अपने दिल में गुस्सा और नफ़रत भर कर यही सोचता रहा कि एक दिन मैं उन सबकी इज्ज़त को मिट्टी में मिला दूंगा। भला ये कैसा न्याय था? मैं खुद जो कुछ करूं वो सब सही माना जाए और कोई दूसरा अगर कुछ करे तो वो दुनिया का सबसे ग़लत मान लिया जाए?
जाने कितनी ही देर तक मैं इस तरह के विचारों के चक्रव्यूह में फंसा रहा उसके बाद गहरी सांस ले कर उठा और मुरारी काका के घर की तरफ चल दिया। मुझे याद आया कि जगन ने उस वक़्त अपने भाई का अंतिम संस्कार करने की बात कही थी। मुरारी काका जैसे इंसान के अंतिम संस्कार पर मुझे भी जाना चाहिए था। आख़िर बड़े़ उपकार थे उनके मुझ पर।
अब आगे,,,,,
मैं मुरारी काका के घर से थोड़ी दूर ही था कि मुझे बाएं तरफ काफी सारे लोग दिखाई दिए। मैं समझ गया कि वो सब लोग मुरारी काका की अर्थी ले कर उस जगह पर उनका अंतिम संस्कार करने आये हैं। ये देख कर मैं भी उसी तरफ मुड़ कर चल दिया। थोड़ी ही देर में मैं उन लोगों के पास पहुंच गया। मुरारी काका के गांव के कुछ लोग मुरारी काका के खेतों से कुछ दूरी पर ही लकड़ी की चिता तैयार कर चुके थे और अब उस चिता पर मुरारी काका के शव को रखने जा रहे थे। सरोज काकी और अनुराधा एक कोने में खड़ी ये सब देख कर अपने आंसू बहा रहीं थी।
मुझे देख कर वहां मौजूद लोगों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की अलबत्ता जगन ने ज़रूर मुझे घूर कर देखा था। ख़ैर अंतिम संस्कार की सारी विधियां निपट जाने के बाद मुरारी काका की चिता को मुरारी काका के बेटे के द्वारा आग लगवा दिया गया। देखते ही देखते आग ने अपना उग्र रूप दिखाना शुरू कर दिया और मुरारी काका की चिता के चारो तरफ फैलने लगी।
मुरारी काका के गांव के कुछ और लोग भी आते दिखाई दिए जिनके हाथो में तुलसी की सूखी लकड़ियां थी। यहाँ जो लोग मौजूद थे उनके हाथों में भी तुलसी की सूखी लकड़ियां थी। असल में तुलसी की ये सूखी लकड़ियां मरने वाले की जलती चिता पर अर्पण कर के लोग दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। हर आदमी अपनी स्वेच्छा और क्षमता अनुसार तुलसी की छोटी बड़ी लकड़ियां घर से ले कर आता है और फिर तुलसी की सात लकड़ियां जोड़ कर जलती चिता पर दूर से फेंक कर अर्पण कर देता है। मेरे पास तुलसी की लकड़ी नहीं थी इस लिए मैंने कुछ ही दूरी पर दिख रहे आम के पेड़ से सूखी लकड़ी तोड़ी और उससे सात लड़की तोड़ कर बनाया। यहाँ ये मान्यता है कि अगर किसी के पास तुलसी की लकड़ी नहीं है तो वो आम की सात लकड़ियां बना कर भी जलती चिता पर अर्पण कर सकता है। जब सब गांव वालों ने जलती चिता को सत लकड़ियां दे दी तो मैंने भी आगे बढ़ कर आम की उन सात लकड़ियों को एक साथ जलती चिता पर उछाल दिया और फिर मुरारी काका के जलते शव को प्रणाम किया। मन ही मन मैंने भगवान से उनकी आत्मा की शान्ति के लिए दुआ भी की।
काफी देर तक मैं और बाकी लोग वहां पर रहे और फिर वहां से अपने अपने घरों की तरफ चल दिए। जगन और उसके कुछ ख़ास चाहने वाले वहीं रह गए थे। जगन के कहने पर सरोज काकी भी अपने दोनों बच्चों को ले कर चल दी थी।
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि कल तक जिस मुरारी काका से मैं मिलता रहा था और हमारे बीच अच्छा खासा सम्बन्ध बन गया था आज वही इंसान इस दुनिया में नहीं है। मेरे ज़हन में हज़ारो सवाल थे जिनका जवाब मुझे खोजना था। आख़िर किसने मुरारी काका की इस तरह से हत्या की होगी और क्यों की होगी? मुरारी काका बहुत ही सीधे सादे और साधारण इंसान थे। उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी। वो देशी शराब ज़रूर पीते थे मगर गांव में किसी से भी उनका मन मुटाव नहीं था।
मैं समझ नहीं पा रहा था कि ऐसे इंसान की हत्या कोई क्यों करेगा? क्या किसी ने महज अपने शौक के लिए मुरारी की हत्या की थी या उनकी हत्या करने के पीछे कोई ऐसी वजह थी जिसके बारे में फिलहाल मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था? मुरारी काका के जाने के बाद उनकी बीवी और उनके दोनों बच्चे जैसे अनाथ हो गए थे। अनुराधा तो जवान थी और मुरारी काका उसका ब्याह करना चाहते थे किन्तु उसका भाई अभी छोटा था। मुरारी काका को अनुराधा के बाद दो बच्चे और हुए थे जो छोटी उम्र में ही ईश्वर को प्यारे हो गए थे।
मुरारी काका के इस तरह चले जाने से सरोज काकी के लिए अपना घर चलाना यकीनन मुश्किल हो जाना था। हालांकि मुरारी काका का छोटा भाई जगन ज़रूर था किन्तु वो अपने परिवार के साथ साथ सरोज काकी के परिवार की देख भाल नहीं कर सकता था। जगन को दो बेटियां और एक बेटा था। उसकी दोनों बेटियां बड़ी थी जो कुछ सालों बाद ब्याह के योग्य हो जाएंगी। लड़की ज़ात पलक झपकते ही ब्याह के योग्य हो जाती है और पिता अगर सक्षम न हो तो उसके लिए अपनी बेटियों का ब्याह करना एक चुनौती के साथ साथ चिंता का सबब बन भी जाता है।
सारे रास्ते मैं यही सब सोचता रहा और फिर झोपड़े में पहुंच कर मैंने अपने कपड़े उतारे और उन्हें पानी से धोया। नहा धो कर और दूसरे कपड़े पहन कर मैं झोपड़े के अंदर आ कर बैठ गया। मुरारी काका की हत्या के बाद से मैं एक सूनापन सा महसूस करने लगा था। मेरे ज़हन में ख़याल उभरे कि ये कैसा समय था कि एक तरफ मुरारी काका की इस तरह अकस्मात हत्या हो जाती है और दूसरी तरफ मेरे परिवार के लोग मुझे वापस घर ले जाने के लिए मेरे पास आते हैं। माँ ने तो साफ कह दिया था कि आज अगर मैं शाम को घर नहीं गया तो मैं उनका मरा हुआ मुँह देखूंगा।
मैं गहरी सोच में डूब गया था और ये सोचने लगा था कि ये दोनों बातें क्या महज एक इत्तेफ़ाक़ हैं या इसके पीछे कोई ख़ास वजह थी? मेरे परिवार वाले इस समय ही मेरे पास क्यों आये जब मेरे ताल्लुकात मुरारी काका से इस क़दर हो गए थे? पहले भाभी फिर पिता जी और फिर माँ और बड़ा भाई। ऐसे समय पर ही क्यों आये जब मुरारी काका की हत्या हुई? चार महीने हो गए मुझे यहाँ आये हुए किन्तु आज से पहले मेरे घर का कोई सदस्य मुझे देखने नहीं आया था तो फिर ऐसे समय पर ही क्यों आये ये लोग?
एक तरफ मुरारी काका का छोटा भाई जगन मुझे अपने भाई का हत्यारा बोल रहा था और दूसरी तरफ पिछली रात एक अंजान और रहस्यमयी शख्स मुझे धक्का दे कर गायब हो जाता है तो वहीं दूसरे दिन पिता जी मुझसे मिलने आ जाते हैं। पिता जी के जाने के बाद आज माँ बड़े भाई के साथ आ गईं थी। ये सब बातें इतनी सीधी और स्वाभाविक नहीं हो सकतीं थी। कहीं न कहीं इन सब बातों के पीछे कोई न कोई ख़ास बात ज़रूर थी जिसका मुझे इल्म नहीं हो रहा था।
मेरे ज़हन में कई सारे सवाल थे जिनका जवाब मुझे चाहिए था। एक सीधे सादे इंसान की हत्या कोई क्यों करेगा? पिछली रात मुझे धक्का देने वाला वो रहस्यमयी शख्स कौन था? क्या मुरारी काका की हत्या से उसका कोई सम्बन्ध था? चार महीने बाद ऐसे वक़्त पर ही मेरे घर के लोग मुझसे मिलने क्यों आये थे? क्या ठाकुर प्रताप सिंह ने मुरारी की हत्या करवाई होगी किन्तु उनकी बातें और फिर माँ की बातें मेरे ज़हन में आते ही मुझे मेरा ये विचार ग़लत लगने लगता था।
मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि जगन ने मुझ पर मुरारी काका की हत्या का आरोप लगाया था और जिस वजह से लगाया था वो हालांकि बचकाना तो था किन्तु सोचने वाली बात थी कि वो ये कैसे सोच सकता था कि मैं महज इतनी सी बात पर उसके भाई की हत्या कर दूँगा? दूसरी बात जगन को किसने बताया कि कल रात मैं मुरारी के घर गया था? क्या सरोज काकी ने बताया होगा उसे? पर सरोज काकी ने उससे ये तो नहीं कहा होगा कि मैंने ही उसके मरद की हत्या की है। मतलब ये जगन के अपने ख़याल थे कि मैंने ही उसके भाई की हत्या की है।
क्या जगन खुद अपने भाई की हत्या नहीं कर सकता? मेरे ज़हन में अचानक से ये ख़याल उभरा तो मैं इस बारे में गहराई से सोचने लगा किन्तु मुझे कहीं से भी ये नहीं लगा कि जगन अपने भाई की हत्या कर सकता है। क्योंकि दोनों भाईयों के बीच कोई बैर जैसी भावना नहीं थी। अगर ऐसी कोई बात होती तो मुरारी काका मुझसे इस बारे में ज़रूर बताते। मैंने इन चार महीनों में कभी भी दोनों भाईयों के बीच ऐसी कोई बात होती नहीं देखी थी जिससे कि मैं शक भी कर सकता कि जगन अपने भाई की हत्या कर सकता है।
मुरारी काका की हत्या मेरे लिए एक न सुलझने वाली गुत्थी की तरह हो गई थी और इस बारे में सोचते सोचते मेरा सिर फटने लगा था। अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि मुझे अपने झोपड़े के बाहर किसी की हलचल सुनाई दी। मैंने ठीक से ध्यान लगा कर सुना तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई चल कर मेरे झोपड़े की तरफ ही आ रहा हो। मैं एकदम से सतर्क हो गया। सतर्क इस लिए हो गया क्योंकि पिछली रात एक रहस्यमयी शख़्स ने मुझे ज़ोर का धक्का दिया था इस लिए हो सकता था कि इस वक़्त वो मुझे यहाँ अकेले देख कर मेरे पास किसी ग़लत इरादे से आया हो। मैं फ़ौरन ही उठा और झोपड़े के अंदर ही एक कोने में रखे लट्ठ को हाथ में ले कर झोपड़े से बाहर आ गया।
झोपड़े से बाहर आ कर मैंने इधर उधर नज़र घुमाई तो देखा मेरी ही उम्र के दो लड़के मेरे पास आते दिखे। चार क़दम की दूरी पर ही थे वो और मैंने उन दोनों को अच्छी तरह पहचान लिया। वो मेरे ही गांव के थे और मेरे दोस्त थे। एक का नाम चेतन था और दूसरे का सुनील। उन दोनों को इस वक़्त यहाँ देख कर मेरी झांठें सुलग गईं।
"कैसा है वैभव?" दोनों मेरे पास आ गए तो उनमे से चेतन ने मुझसे कहा।
"महतारीचोद तमीज़ से बात कर समझा।" गुस्से में मैंने झपट कर चेतन का गिरहबान पकड़ कर गुर्राया था_____"अपनी औकात मत भूल तू। तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरा नाम लेने की?"
चेतन को मुझसे ऐसी उम्मीद सपने में भी नहीं थी। उसने तो ये सोचा था कि उन दोनों के आने से मैं खुश हो जाऊंगा और उन दोनों को अपने गले लगा लूंगा मगर उन दोनों को क्या पता था कि ठाकुर वैभव सिंह को अब दोस्तों से कितनी नफ़रत हो गई थी।
"ये तू क्या कर रहा है वैभव?" सुनील ने हैरत से आंखें फाड़ कर मुझसे ये कहा तो मैंने खींच कर एक लात उसके गुप्तांग पर जमा दिया जिससे उसकी चीख निकल गई और वो मारे दर्द के अपना गुप्तांग पकड़े दोहरा होता चला गया।
"भोसड़ीवाले।" फिर मैंने गुस्से में फुँकारते हुए उससे कहा____"दुबारा मेरा नाम लिया तो तेरी बहन को खड़े खड़े चोद दूंगा।" कहने के साथ ही मैं चेतन की तरफ पलटा____"अगर तुम दोनों अपनी सलामती चाहते हो तो अपना कान पूँछ दबा कर यहाँ से दफा हो जाओ।"
"हम तो तुझसे मिलने आये थे वैभव आआह्ह्ह्।" चेतन ने ये कहा ही था कि मैंने घुटने का वार उसके पेट में ज़ोर से किया तो उसकी चीख निकल गई।
"मादरचोद।" फिर मैंने उसके चेहरे पर घू़ंसा मारते हुए कहा____"बोला न कि मेरा नाम लेने की हिम्मत मत करना। तुम सालों को मैंने पालतू कुत्तों की तरह पाला था और तुम दोनों ने क्या किया? इन चार महीनों में कभी देखने तक नहीं आये मुझे। अगर मुझे पहले से पता होता कि मेरे पाले हुए कुत्ते इतने ज़्यादा बेवफ़ा निकलेंगे तो पहले ही तुम दोनों का खून कर देता।"
"हमे माफ़ कर दो वैभव।" सुनील ने हाथ जोड़ते हुए कहा____"हम आना तो चाहते थे लेकिन बड़े ठाकुर साहब के डर से नहीं आये कि कहीं वो हमें भी तुम्हारी तरह गांव से निष्कासित न कर दें।"
"इसका मतलब तो यही हुआ न कि तुम दोनों ने सिर्फ अपने बारे में ही सोचा।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"क्या यही थी तुम दोनों की दोस्ती? थू है तुम दोनों पर। अभी के अभी यहाँ से दफा हो जाओ वरना तुम दोनों की इतनी बार गांड मारुंगा कि हगना मुश्किल हो जाएगा।"
"माफ़ कर दे यार।" चेतन बोला____"अब आ तो गए हैं ना हम दोनों।"
"तेरी माँ को चोदूं मादरचोद।" मैंने चेतन को एक और घूंसा जड़ते हुए कहा____"यहां आ कर क्या मुझ पर एहसान किया है तूने? कान खोल कर सुन लो तुम दोनों। आज के बाद तुम दोनों कभी मुझे अपनी शकल न दिखाना वरना घर में घुस कर तुम दोनों की माँ बहन को चोदूंगा। अब दफा हो जाओ यहाँ से।"
दोनों ने पहली बार मुझे इतने गुस्से में देखा था और उन्हें ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि मैं दोनों पर इतना ज़्यादा क्रोधित हो जाऊंगा। दोनों बुरी तरह सहम गए थे और जब मैंने ये कहा तो दुबारा उन दोनों में बोलने की हिम्मत न हुई।
चेतन और सुनील जा चुके थे। पता नहीं क्यों उन दोनों को देख कर इतना गुस्सा आ गया था मुझे? शायद इस लिए कि इन चार महीनों में मुझे पता चल गया था कि कौन मेरा चाहने वाला था और कौन नहीं। सच कहूं तो अब दोस्ती जैसे शब्द से नफ़रत ही हो गई थी मुझे।
दोनों के जाने के बाद मैं कुछ देर तक दोस्तों के बारे में ही सोचता रहा। दोपहर से ज़्यादा का समय हो गया था और अब मुझे भूख लग रही थी। आज से पहले मैं या तो मुरारी के घर में खाना खा लेता था या फिर जंगल में जा कर उसी नदी से मछलियाँ पकड़ कर और फिर उन्हें भून कर अपनी भूख मिटा लेता था। मुरारी काका की हत्या हो जाने से मैं मुरारी काका के घर खाना खाने के लिए नहीं जा सकता था। हालांकि मैं अगर जाता तो सरोज काकी अनुराधा से बनवा कर ज़रूर मुझे खाना देती मगर ऐसे वक़्त में मुझे खुद उसके यहाँ खाना खाने के लिए जाना ठीक नहीं लग रहा था। इस लिए मैं उठा और जंगल की तरफ बढ़ गया।
रास्ते में मैं सोच रहा था कि अब ऐसे वक़्त में मुझे क्या करना चाहिए? यहाँ पर मैं दो वजहों से रुका हुआ था। एक तो बंज़र ज़मीन पर फसल उगा कर मैं अपने बाप को दिखाना चाहता था और दूसरे मुरारी काका की वजह से क्योंकि उनसे मेरे अच्छे ताल्लुक बन गए थे। हालांकि एक वजह और भी थी और वो ये कि सरोज काकी से मुझे शारीरिक सुख मिलता था और कहीं न कहीं ये बात भी सच ही थी कि मैं उसकी बेटी अनुराधा को भी हासिल करना चाहता था।
मैं अक्सर सोचता था कि मैं अनुराधा के साथ शख्ती से पेश क्यों नहीं आ पाता? चार महीने पहले तक तो ऐसा था कि मैं जिस लड़की या औरत को चाह लेता था उसे किसी न किसी तरह हासिल कर ही लेता था और फिर उसे भोगता था मगर अनुराधा के मामले में मेरी कठोरता जाने कहां गायब हो जाती थी और उसके लिए एक कोमल भावना आ जाती थी। यही वजह थी कि चार महीने गुज़र जाने के बाद भी मेरे और अनुराधा के बीच की दूरी वैसी की वैसी ही बनी हुई थी जैसे चार महीने पहले बनी हुई थी।
आज शाम को मुझे घर भी जाना था क्योकि मैं माँ को बोल चुका था कि मैं शाम को आऊंगा मगर सच कहूं तो घर जाने की अब ज़रा भी हसरत नहीं थी मुझे। मुरारी काका और उसके घर से एक लगाव सा हो गया था मुझे। उसके घर में अनुराधा के हाथ का बना खाना मैं अक्सर ही खाता रहता था। चूल्हे में उसके हाथ की बनी सोंधी सोंधी रोटियां और आलू भांटा का भरता एक अलग ही स्वाद की अनुभूति कराता था। अनुराधा का चोर नज़रों से मुझे देखना और फिर जब हमारी नज़रें आपस में मिल जातीं तो उसका हड़बड़ा कर अपनी नज़रें हटा लेना। जब वो हलके से मुस्कुराती थी तो उसके दोनों गालों पर हलके से गड्ढे पड़ जाते थे। मैं जानता था कि घर लौटने के बाद फिर मैं मुरारी काका के घर इस तरह नहीं जा पाऊंगा और अनुराधा जैसी बेदाग़ चीज़ मेरे हाथ से निकल जाएगी।
मुझे याद आया कि कल रात मुरारी काका मुझसे अपनी बेटी का हाथ थामने की बात कह रहे थे। कल रात वो देशी शराब के नशे में थे और शराब के नशे में अक्सर इंसान सच ही बोलता है तो क्या मुरारी काका सच में यही चाहते थे कि मैं उनकी बेटी का हाथ हमेशा के लिए थाम लूं? क्या मुझे सच में मुरारी काका की इस इच्छा को मान लेना चाहिए? अनुराधा में कोई कमी नहीं थी। उसकी मासूमियत और उसकी सादगी उसका सबसे बड़ा गहना थी। उसके मासूम चेहरे को देख कर कभी कभी मेरे ज़हन में ये ख़याल भी आ जाता था कि उसके लिए कितना ग़लत सोचता हूं मैं। दुनिया में क्या लड़कियों और औरतों की कमी है जो मैं उस मासूम को दाग़दार करने की हसरत पाले बैठा हूं? ये ख़याल भी एक वजह थी कि मैं अनुराधा के क़रीब ग़लत इरादे से जा नहीं जा पाता था।
मुरारी काका एक ग़रीब इंसान थे और मैं एक बड़े और उच्च कुल का नालायक चिराग़। अब तो मुझे घर वापस लौटना ही था क्योकि माँ ने धमकी दी थी कि अगर शाम तक मैं घर नहीं गया तो मुझे उनका मरा हुआ मुँह देखना पड़ेगा। इस लिए जब मैं घर चला जाऊंगा तो मैं एक बार फिर से बड़े बाप का बेटा बन जाऊंगा और मुमकिन है कि मेरे माता पिता अनुराधा के साथ मेरा ये रिश्ता पसंद न करें। ऐसे में मैं कैसे मुरारी काका की इच्छा को पूरा कर पाऊंगा। हालांकि सबसे बड़ा सवाल तो अभी यही था कि क्या मैं खुद ये चाहता हूं कि अनुराधा का हाथ मैं हमेशा के लिए थाम लूं? मुझे एहसास हुआ कि ये सब इतना आसान नहीं था क्योंकि इसमें मेरे पिता जी के मान सम्मान का सवाल था और उनसे ज़्यादा मेरा सवाल था कि मैं खुद क्या चाहता हूं?
जंगल के अंदर उस नदी में पहुंच कर मैंने कुछ मछलियाँ पकड़ी और उन्हें वहीं भून कर खाया। अब कुछ राहत महसूस हो रही थी मुझे। मैं जंगल से निकल कर वापस झोपड़े पर आ गया। मेरी फसल जल कर ख़ाक हो गई थी और अब मेरे यहाँ रुकने की कोई वजह भी नहीं रह गई थी। शाम को घर लौटना मेरी मज़बूरी बन गई थी वरना मैं तो घर जाना ही नहीं चाहता था। असल में मैं ये चाहता था कि इस समय मैं जिन परिस्थितियों में था उससे बाहर निकल आऊं और ऐसा तभी हो सकता था जब मैं मुरारी काका के हत्यारे का पता लगा लूं और जगन के साथ साथ उसके गांव वालों को भी दिखा दूं कि मैं मुरारी काका का हत्यारा नहीं था।
इस वक़्त मुरारी काका के घर जाना उचित नहीं था क्योंकि उनके घर में इस वक़्त मातम सा छाया होगा। हालांकि मेरे वहां जाने से सरोज काकी या अनुराधा को कोई समस्या नहीं होनी थी किन्तु मैं नहीं चाहता था कि अगर जगन वहां पर हो और उसने मुझसे कुछ उल्टा सीधा बोला तो मेरे द्वारा कोई बवाल मच जाए। इस लिए मैंने सोचा कि एक दो दिन बाद जाऊंगा क्योंकि तब तक घर का माहौल कुछ ठीक हो जाएगा। दूसरी बात मुझे सरोज काकी से ये भी बताना होगा कि अब से मैं झोपड़े में नहीं रहूंगा बल्कि अपने घर पर ही रहूंगा।
झोपड़े में पड़ा मैं सोच रहा था कि जगन के रिपोर्ट लिखवाने पर भी थाने से दरोगा नहीं आया था जबकि हत्या जैसे मामले में दरोगा को फ़ौरन ही आना चाहिए था और मुरारी की हत्या के मामले को अपने हाथ में ले कर उसकी छानबीन शुरू कर देनी चाहिए थी मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। मुरारी काका की लाश को दोपहर तक घर में ही रखा गया था उसके बाद उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया था। मतलब साफ़ था कि हत्यारे ने दरोगा को घूंस दे कर हत्या के इस मामले को दबा दिया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा कौन ब्यक्ति हो सकता है जिसकी पहुंच पुलिस के दरोगा तक है और वो हत्या जैसे गंभीर मामले को भी दबा देने की कूवत रखता है?
मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर मुझे मुरारी के हत्यारे का पता लगाना है तो मुझे खुद पुलिस के दरोगा की तरह इस मामले की छानबीन करनी होगी। आख़िर मुझे भी तो इस हत्या से अपने ऊपर लगे इल्ज़ाम को हटाना था। इस ख़याल के साथ ही मैं एक झटके में उठा और झोपड़े से बाहर निकल आया। बाहर आ कर मैंने झोपड़े के पास ही रखे अपने लट्ठ को उठाया और मुरारी काका के घर की तरफ चल पड़ा। मैंने सोच लिया था कि हत्या के इस मामले की मैं खुद बारीकी से जांच करुंगा।
मुरारी काका के घर के सामने पेड़ के नीचे बने एक चबूतरे पर कुछ लोग बैठे बातें कर रहे थे। उन लोगों के साथ मुरारी काका का छोटा भाई जगन भी था। मुझे देख कर सब के सब चुप हो गए और चबूतरे से उतर कर ज़मीन पर खड़े हो गए। जगन की नज़र मुझ पर पड़ी तो उसने घूर कर देखा मुझे।
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देखते है इन सभी सवालों के जवाब कब और कैसे मिलते हैं वैभव को मुरारी काका की हत्या क्यू की बेचारी अनुराधा का क्या होगा वह घर जायेगा या नही