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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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354
Bhut shandaar update.....


Kahani ko Dobara se shuru dekh k bhut Acha laga...


Ummid h ki ab ye kahani puri hogi....



Aur ham aapse aise hi shandaar kahani ki ummid rakhte h
Shukriya bhai,
Sabka response achha milta raha to zarur puri hogi :dost:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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बहुत ही सुंदर और लाज़वाब अपडेट है
मुंशी के घर से रजनी के साथ होली खेलकर आने पर चाचा मिल जाते है जिनके साथ हवेली आने के बाद कुसुम की दो सहेलियों से होली खेलता है मां से पता चलता है कि भाभी नाराज हैं देखते भाभी क्या बोलती हैं देवर भाभी में होली खेली जाती हैं या नहीं
Shukriya bhai
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अपनी भाभी में मिलने जाने पर भाभी उसे ताने मरती है की उसे किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता है की कोई जीए या मारे गुरु के अनुसार वैभव के बड़े भाई की मौत जल्दी ही होने वाली है और वो किसी बिमारी के वजह से होगी क्योंकि कोई गुरू को भगवान से भी ऊपर का दर्जा देता है कोई इनको फालतू की बाते मानता है
सबको अपने कर्मों के हिसाब से फल मिलता है
वैभव अपने मन की बात भाभी को बता देता ह की वो उनसे क्यू दूर रहता है
मन हमेशा चंचल है और ये सातत्व सत्य है । जिसने मन पर नियंत्रण कर लिया वो मानव नहीं बल्कि महात्मा हो जाता है ।उसने अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर लिया है
मन में यदि किसी प्रकार की गलत भावनाएं पनपती है इसका मतलब ये नहीं हुआ कि उसने कोई ग़लत कर्म कर दिया
भाभी ने जो बातें कही वो सब अच्छी थी । पर ये देखकर बहुत बुरा लगा कि वो किस मानसिक स्थिति से जुझ रही है ।
पर ये देखकर बहुत ही बढ़िया लगा कि वो वैभव को अपना छोटा भाई मानती है ।
देखते अब ये जानकर वैभव क्या करता है अपने भाई और भाभी के साथ होली मनाता है या कुछ और करता है
Shukriya bhai
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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अध्याय - 39
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अब तक....

बाहर आ कर मैं बुलेट में बैठ गया और रूपचंद्र से पूछा कि मेरे साथ घर चलेगा या उसका कहीं और जाने का इरादा है? मेरी बात सुन कर रूपचंद्र मुस्कुराते हुए बोला दोस्त अब तो घर ही जाऊंगा। उसके बाद मैं और रूपचन्द्र बुलेट से चल पड़े। थोड़ी ही दूरी पर उसका घर था इस लिए वो उतर गया और बाद में मिलने का बोल कर ख़ुशी ख़ुशी चला गया। मैं रास्ते में सोच रहा था कि अब रूपचंद्र मुझसे खुल गया है तो यकीनन अब वो ज़्यादातर मेरे साथ ही रहना पसंद करेगा। अगर ऐसा हुआ तो एक तरह से वो मेरी निगरानी में ही रहेगा। धीरे धीरे मैं इन सभी भाइयों से इसी तरह घुल मिल जाना चाहता था ताकि इनके मन से मेरे प्रति हर तरह का ख़याल निकल जाए। ये सब करने के बाद मैं अपने उस कार्य को आगे बढ़ाना चाहता था जिसके बारे में मैंने काफी पहले सोच लिया था।

अब आगे....

हवेली पहुंचा तो बैठक में अपनी ऊँची कुर्सी पर बैठे पिता जी मुझे नज़र आए। उनके अलावा बैठक में जगताप चाचा और मुंशी चंद्रकांत भी बैठे थे। मुझ पर नज़र पड़ते ही पिता जी ने मुझे अपने पास आने का इशारा किया। मैं उनके पास जा कर पहले उनके पाँव छुए और फिर जगताप चाचा के। दोनों ने खुश हो कर मुझे आशीर्वाद दिया।

"अब आप जाइए मुंशी जी।" पिता जी ने मुंशी की तरफ देखते हुए कहा____"कल पंचायत के लिए हम सुबह ही निकलेंगे। हमने फैसला किया है कि कल सुबह वैभव हमारे साथ जाएगा और आप जगताप के साथ जा कर उस मसले को सुलझाएं।"

"जैसी हुकुम की इच्छा।" मुंशी ने अदब से सिर झुकाते हुए कहा और फिर उठ कर बैठक से बाहर निकल गया।
"तो कैसा रहा साहूकारों के घर में हमारे प्यारे भतीजे का स्वागत सत्कार?" जगताप चाचा ने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा____"वैसे सुना है बहुत वाह वाही कर रहे थे वो लोग तुम्हारी।"

"इस बारे में जानने के लिए हम भी बड़े उत्सुक हैं जागताप।" पिता जी ने कहा____"तुमने जिस तरह हमें इसकी वाह वाही वाली बातें बताई थी उससे हमें हैरानी हुई थी। वैसे तो हमने इसे ख़ास तौर पर समझा बुझा कर वहां भेजा था लेकिन अंदर ही अंदर हम इसके उग्र स्वभाव के चलते चिंतित भी थे कि ये कहीं वहां पर कोई बवाल न कर बैठे।"

"आप बेवजह ही चिंता कर रहे थे बड़े भइया।" जगताप चाचा ने मुस्कुराते हुए कहा____"आप अभी भी मेरे भतीजे को नासमझ और गैरजिम्मेदार समझ रहे हैं जबकि मुझे इस पर पूरा यकीन था कि ये वहां पर ऐसा कुछ भी नहीं करेगा जिससे किसी तरह का बवाल हो सके। ख़ैर उड़ती हुई ख़बर तो यही थी कि हमारे वैभव ने उन सभी साहूकारों का दिल जीत लिया है लेकिन हम अपने भतीजे के मुख से सुनना चाहते हैं कि इसने वहां क्या क्या किया अथवा इसके साथ वहां पर क्या क्या हुआ?"

मैंने देखा पिता जी के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी और ये मैंने पहली बार ही देखी थी। वो मेरी तरफ ही देख रहे थे। चेहरे पर ख़ुशी के भाव थे। मैंने देर न करते हुए वहां का सारा किस्सा उन्हें संक्षेप में बता दिया जिसे सुन कर पिता जी और जगताप चाचा हैरानी से मेरी तरफ देखने लगे थे। मैं समझ सकता था कि साहूकारों की तरह उन्हें भी मेरे बदले हुए चरित्र को हजम करना इतना आसान नहीं था।

"अगर तुम्हारी बातें सच है।" पिता जी ने कहा____"और तुमने वाकई में वहां धैर्य और नम्र स्वभाव का परिचय दिया है तो ये यकीनन अच्छी बात है। हम आगे भी तुमसे यही उम्मीद करते हैं।"

"आज मैं बहुत खुश हूं बड़े भइया।" जगताप चाचा ने ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"आज मेरा सबसे प्यारा और सबसे बहादुर भतीजा उसी रूप में अपना कार्य कर के लौटा है जिस रूप में और जैसे कार्य की मैं हमेशा इससे उम्मीद करता था।"

"अब तक मैंने जो कुछ भी किया है।" मैंने नम्र भाव से कहा____"उसके लिए मैं आप दोनों से माफ़ी मांगता हूं और यकीन दिलाता हूं कि आगे भी मैं वैसा ही कार्य करुगा जैसे ही आप दोनों मुझसे उम्मीद करते हैं।"

दोनों मेरी बात सुन कर ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे। हालांकि पिता जी अपनी ख़ुशी को छुपाने की पूरी कोशिश कर रहे थे लेकिन वो उनके छुपाए न छुप रही थी। ख़ैर पिता जी ने मुझे कल सुबह जल्दी तैयार हो कर चलने की बात कही तो मैंने हाँ में सर हिलाया अंदर चला गया।

अंदर माँ और मेनका चाची से मुलाक़ात हुई। थोड़ी देर उन दोनों से बातें करने के बाद मैं सीढ़ियों से ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ चला। सीढ़ियों से जैसे ही मैं ऊपर पहुंचा तो मुझे बड़े भैया आते हुए दिखे। उन्हें देखते ही मुझे उस दिन का किस्सा याद आ गया जब उन्होंने मुझे थप्पड़ मारा था। मैं सोचने लगा कि आख़िर ऐसा कैसे किया होगा उन्होंने?

"अरे! वैभव आ गया तू?" बड़े भैया मेरे क़रीब पहुंचते ही बोले____"मैंने सुना कि तू साहूकारों के घर गया था? कैसा रहा वहां सब?"

"प्रणाम बड़े भइया!" मैं उनके बदले हुए ब्योहार और प्रसन्न चेहरे को देख कर मन ही मन हैरान हुआ था लेकिन ज़ाहिर नहीं होने दिया।
"हमेशा खुश रह।" उन्होंने मेरे बाएं कंधे को अपने हाथ द्वारा हल्के से थपकाते हुए कहा____"अभी तेरी भाभी से पता चला कि तुझे मणि शंकर काका अपने घर ले गए थे तेरा स्वागत सत्कार करने के लिए। कसम से वैभव इस बात से मैं बेहद खुश हूं लेकिन अब ये जानने को उत्सुक भी हूं कि वहां पर सब कैसा रहा?"

मैं बड़े भैया के चेहरे पर छाई ख़ुशी को देख कर हैरान था। समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या चक्कर है? कभी तो वो मुझसे इतना गुस्सा होते थे कि मुझे थप्पड़ तक मार देते थे और कभी वो मुझ पर इतना खुश होते थे कि लगता ही नहीं था कि उन्होंने कभी मुझ पर गुस्सा किया होगा।

"क्या हुआ?" मुझे सोच में डूबा देख वो बोल पड़े_____"क्या सोचने लगा तू? वहां सब ठीक तो था न मेरे भाई?"
"हां भइया।" मैंने सम्हल कर और नम्र भाव से उन्हें जवाब दिया____"आपके आशीर्वाद से वहां सब कुछ बढ़िया ही रहा और अब उन सबके मन में मेरे लिए कोई भी बैर भाव नहीं है। साहूकारों के सभी लड़के भी अब मुझसे अच्छी तरह घुल मिल गए हैं और मुझे अपना भाई और दोस्त समझने लगे हैं।"

"क्या सच में?" बड़े भैया ने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा____"अगर ऐसा है तो ये बहुत ही ज़्यादा ख़ुशी की बात है वैभव। मेरे लिए तो सबसे बड़ी ख़ुशी की बात ये है कि मेरा भाई अब बदल गया है और अब अच्छे काम करने लगा है। आ मेरे गले लग जा।"

कहने के साथ ही उन्होंने मुझे खींच कर अपने गले से लगा लिया। मैं उनके इस बर्ताव से जहां एक तरफ बुरी तरह हैरान था वहीं खुश भी हुआ कि उन्होंने मुझे ख़ुशी से अपने गले लगाया। मन ही मन मैंने भगवान से यही दुआ की कि हम दोनों भाइयो के बीच हमेशा ऐसा ही प्रेम बनाए रखे और ये भी कि मेरे भैया के बारे में कुल गुरु ने जो भविष्यवाणी की है वो ग़लत हो जाए।

"मुझे जब तेरी भाभी ने इस बारे में बताया।" बड़े भैया ने मुझे खुद से अलग कर के कहा____"तो मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था लेकिन फिर मुझे होली वाला दिन आया कि कैसे तू अपने से बड़ों का आशीर्वाद ले रहा था और कैसे मेरे साथ ख़ुशी ख़ुशी भांग वाला शरबत पी रहा था। मैं जानता हूं मेरे भाई कि मैंने शायद कभी भी तुझे वैसा प्यार और स्नेह नहीं दिया जैसा एक बड़े भाई को देना चाहिए लेकिन अब से ऐसा नहीं होगा। अब से मैं तुझे दुखी नहीं होने दूंगा। जितने समय का मेरा जीवन बचा है उतने दिन मैं तेरे साथ हंसी ख़ुशी रहना चाहता हूं। तेरे साथ वो सब कुछ करना चाहता हूं जो बड़े भाई के रूप में मैंने अब तक नहीं किया था।"

"मुझे भाभी ने आपके बारे में सब कुछ बता दिया है भइया।" मैंने थोड़ा दुखी भाव से कहा____"और मुझे इस बात से बहुत तकलीफ़ हो रही है कि मेरे जान से भी ज़्यादा प्यारे बड़े भैया के बारे में कुल गुरु ने ऐसी घटिया भविष्यवाणी की। आप उस गुरु की बातों पर विश्वास मत कीजिए भैया। उस धूर्त की भविष्यवाणी झूठी है। आपको कुछ नहीं होगा, आप हमेशा हमारे साथ ही रहेंगे। मुझे अपने बड़े भैया का हमेशा साथ चाहिए। मैं अपनी भाभी की खुशियां उजड़ने नहीं दूंगा।"

"नियति के लेख को कोई नहीं मिटा सकता छोटे।" बड़े भैया ने मेरे चेहरे को प्यार से सहला कर और साथ ही फीकी सी मुस्कान में कहा____"हम सारी दुनिया से लड़ सकते हैं लेकिन अपने नसीब और अपने प्रारब्ध से नहीं लड़ सकते। सच तो यही है कि बहुत जल्द मुझे तुम सबको छोड़ कर इस दुनिया से रुखसत होना पड़ेगा।"

"नहीं नहीं।" मेरी आँखें छलक पड़ीं। भावावेश में आ कर मैंने एक झटके में बड़े भैया को सीने से लगा लिया, बोला_____"ऐसा मत कहिए भैया। भगवान के लिए आप हमें छोड़ कर जाने की बात मत कीजिए। मैं आपको कहीं जाने भी नहीं दूंगा। अगर किसी ने आपको मुझसे छीनने की कोशिश की तो मैं सारी दुनिया को आग लगा दूंगा।"

"पगलपन की बातें मत कर छोटे।" बड़े भैया ने लरज़ते स्वर में मेरी पीठ को सहलाते हुए कहा____"मुझे ख़ुशी है कि तू मुझे इतना प्यार करता है लेकिन ये भी सच ही है कि तेरा ये प्यार ज़्यादा दिनों तक नसीब नहीं है मुझे। तुझसे एक बात कहना चाहता हूं, तू मेरी बात को समझने की कोशिश करना मेरे भाई। अपनी भाभी का हमेशा ख़याल रखना। उसके चेहरे पर कभी दुःख के बादलों को मंडराने न देना। वो किसी को अपने दुःख दर्द नहीं दिखाती बल्कि अंदर ही अंदर उस दुःख दर्द में जलती रहती है। ये मेरी बदकिस्मती है कि मैं उसे इस हाल में छोड़ कर चला जाऊंगा वरना जी तो यही चाहता है कि उसे संसार की हर वो खुशियां दूं जिससे कि उसके चेहरे का नूर कभी फीका न पड़ सके। तुझसे मेरी बस यही विनती है मेरे भाई कि तू अपनी भाभी का हमेशा ख़याल रखना।"

"ऐसा मत कहिए भइया।" मैं और भी ज़ोरों से फफक कर रो पड़ा____"भाभी का ख़याल आप ही रखेंगे और हमेशा रखेंगे। मैंने कहा न कि आपको कुछ नहीं होगा। आप हमेशा हमारे साथ ही रहेंगे।"

"भावनाओ में मत बह मेरे भाई।" बड़े भैया ने मुझसे अलग हो कर मेरी आँखों के आंसू पोंछते हुए कहा____"सच को किसी भी तरह से नाकारा नहीं जा सकता। तू मुझे वचन दे कि तू मेरे बाद अपनी भाभी का ख़याल रखेगा और उसे कभी भी दुखी नहीं होने देगा। मुझे वचन दे मेरे भाई।"

भैया ने अपनी हथेली मेरे आगे कर दी थी और मैं बेबस व लाचार सा दुखी भाव से उनकी उस हथेली को देखे जा रहा था। दिलो दिमाग़ में एकदम से बवंडर सा चल पड़ा था जो मुझे बुरी तरह हिलाए जा रहा था। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे वक़्त में क्या करूं और क्या कहूं?

"धीरज से काम ले मेरे भाई।" भैया ने मेरी मनोदशा को महसूस करते हुए अधीरता से कहा____"अब सब कुछ तुझे ही सम्हालना होगा। पिता जी के बाद उनकी बागडोर भी तुझे ही सम्हालनी होगी और सच कहूं तो मैं खुद भी हमेशा यही चाहता था कि पिता जी के बाद तू ही उनकी बागडोर सम्हाले क्योंकि दादा ठाकुर बनने के लायक मैं कभी नहीं था। हमेशा मेरी आँखों के सामने तू ही दादा ठाकुर के रूप में नज़र आ जाता था और यकीन मान मैं तुझे उस रूप में देख कर बेहद खुश होता था। दुआ करता था कि कितना जल्दी वो दिन आए जब तू दादा ठाकुर बने और तेरे दादा ठाकुर बन जाने के बाद भी तेरा बड़ा भाई होने नाते मैं तुझ पर अपना रौब जमाऊं। तू जब खिसिया जाता तो मुझे बहुत मज़ा आता।"

"बस कीजिए भइया।" मैं बुरी तरह तड़प कर रो पड़ा____"मैं ये अब और नहीं सुन सकता।"
"चल ठीक है।" बड़े भैया ने फिर से मेरे चेहरे को प्यार से सहलाया और कहा____"अब मुझे वचन दे कि अपनी भाभी का ख़याल हमेशा रखेगा तू।"

माहौल बहुत ही ग़मगीन था। मुझे भैया के लिए बहुत दुःख हो रहा था। मेरा बस नहीं चल रहा था वरना मैं एक पल में सब कुछ ठीक कर देता। फिर भी मैंने मन ही मन फैसला किया कि कुछ तो करना ही होगा मुझे। मैंने बड़े भैया की हथेली पर अपनी हथेली रखी और उन्हें वचन दिया कि मैं भाभी का हमेशा ख़याल रखूंगा। भैया अपनी नम आँखों को पोंछते हुए चले गए और मैं दुखी मन से अपने कमरे की तरफ चला ही था कि बगल में जो राहदारी थी वहां दीवार से चिपकी खड़ी भाभी नज़र आईं मुझे। शायद वो छुप कर हमारी बातें सुन रहीं थी। उनका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था। उनकी ये हालत देख कर मैं एकदम से तड़प उठा। उधर वो मुझे देखते ही हड़बड़ाईं और जल्दी से अपनी साड़ी के छोर से अपने आंसुओं को पोंछने लगीं। मैं अभी उनसे कुछ कहने ही वाला था कि वो पलट कर वापस अपने कमरे में चली गईं।

भाभी को ऐसे जाते देख पहले तो मेरा मन किया कि मैं उनके पास जाऊं और उन्हें सांत्वना दूं लेकिन फिर ये सोच कर नहीं गया कि उन्हें इस वक़्त अकेले रहने देना ही उचित होगा। मैं भारी मन से चलते हुए अपने कमरे में दाखिल हुआ। नज़र बेड पर सोई पड़ी कुसुम और चंद्रभान की छोटी सी बच्ची पर पड़ी। वो बच्ची कुसुम से छुपकी सो रही थी और कुसुम भी गहरी नींद में थी। मैं सोचने लगा कि वो बच्ची उतने समय से मेरे यहाँ थी और अभी तक उसके घर वालों ने उसकी ख़बर तक नहीं ली या फिर ये कहें कि उस बच्ची को अपने लोगों की याद ही नहीं आई। दोनों को गहरी नींद में सोता देख मैंने उन्हें जगाना सही नहीं समझा इस लिए पलट कर बाहर आया और दरवाज़ा बंद कर के वापस चल दिया।

भाभी के कमरे के पास वाली राहदारी के पास पहुंच कर मैं रुका। ज़हन में ख़याल उभरा कि क्या भाभी के पास जाऊं या फिर नीचे चला जाऊं? मैं सोच ही रहा था कि सहसा मेरे ज़हन में एक ख़याल उभरा। मैं सीढ़ियों से उतरते हुए नीचे पहुंचा। माँ से पिता जी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वो अपने कमरे में आराम कर रहे हैं। मैं जानता था कि ये समय पिता जी के आराम का ही होता था इस लिए मैंने उनके आराम पर ख़लल डालना सही नहीं समझा। मुझे याद आया कि कल सुबह मुझे उनके साथ पंचायत पर जाना है। मैं उनके पास जिस मकसद से आया था उसके लिए मुझे कल का ही समय सही लगा। ये सोच कर मैं वापस माँ के ही पास बैठ गया।

मां और मेनका चाची कुर्सियों पर बैठी थीं और कुछ नौकरानियाँ उनके निर्देश पर कपड़े में कुछ आकृतियां बना रहीं थी। मैं जब कुर्सी पर बैठ गया तो माँ ने उन नौकरानियों को कहा कि वो यहाँ से दूसरी जगह जा कर अपना काम करें। माँ के कहने पर सब उठीं और अपना अपना सामान समेट कर चली गईं। मैं समझ गया कि माँ ने मेरी वजह से उनसे ऐसा कहा था।

"क्या बात है।" मेनका चाची ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा____"आज कल तो हमारे बेटे की बड़ी तारीफें होने लगी हैं। गांव के साहूकार हमारे बेटे को इज़्ज़त सम्मान देने के लिए खुद लेने आते हैं।"

"आपके बेटे में कोई तो ख़ास बात होगी ही चाची जिसके लिए वो लोग ऐसा कर रहे हैं।" मैंने भी मुस्कुरा कर चाची से कहा____"पर लगता है हमारी प्यारी चाची को उनके द्वारा अपने बेटे को यूं इज्ज़त सम्मान देना पसंद नहीं आया।"

"अरे! ये क्या कह रहे हो तुम?" मेनका चाची ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"भला मुझे अपने बेटे के लिए ये सब करना पसंद क्यों नहीं आएगा? तुम क्या जानो वैभव कि इस सबसे हमें कितनी ख़ुशी हुई है। तुम्हारे चाचा तो इतने खुश थे कि दीदी से कहने लगे कि इस ख़ुशी में हम एक बहुत बड़ा उत्सव करेंगे और आस पास के सभी गांव वालों को भोजन कराएंगे।"

"मेनका सही कह रही है बेटा।" माँ ने कहा_____"अभी कुछ ही देर पहले जगताप हमारे पास आए थे। जब उन्होंने तुम्हारे मुख से वहां का सारा किस्सा सुना तो वो सीधा हमारे पास आए और ख़ुशी ख़ुशी कहने लगे कि मेरे भतीजे ने बहुत बड़ा काम किया है और इस ख़ुशी में हम बहुत बड़ा उत्सव करेंगे।"

मैं माँ की बात सुन कर सोचने लगा कि जगताप चाचा सच में मुझे कितना प्यार करते हैं। वैसे ये सच ही था कि वो मुझे बचपन से ही बहुत मानते थे। माँ से उनके बारे में ऐसी बात सुन कर मुझे भी अंदर ही अंदर बेहद ख़ुशी महसूस हुई। मन में ख़याल उभरा अभी तक कौन सी दुनिया में खोया था मैं और क्यों खोया था मैं?

"हम सब अभी से उस बड़े उत्सव की तैयारी शुरू करने वाले हैं।" मेनका चाची ने ख़ुशी से चहकते हुए कहा____"कल जब दादा ठाकुर पंचायत से लौट कर हवेली आएंगे तो उनसे इसके बारे में बात करेंगे।"

"नहीं चाची।" मैंने एकदम से संजीदा हो कर कहा____"हवेली में ऐसा कोई उत्सव नहीं होगा और ना ही आप में से कोई पिता जी से इस बारे में बात करेगा।"
"अरे! ये क्या कह रहा है तू?" माँ ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा____"क्यों नहीं होगा उत्सव भला? तू नहीं जानता बेटा कि इस सबसे हमें कितनी ख़ुशी मिली है। गांव के साहूकारों से हमारे सम्बन्ध अच्छे हो गए हैं। हम चाहते हैं कि उस उत्सव में वो लोग भी हमारे साथ मिल कर इस ख़ुशी का आनंद लें।"

"मेरी नज़र में मैंने अभी ऐसा कोई भी बड़ा काम नहीं किया है मां।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"जिसके लिए इतने बड़े उत्सव का आयोजन किया जाए। हो सकता है कि ये सब आप लोगों के लिए ख़ुशी की बात हो लेकिन मेरे लिए नहीं है।"

"व...वैभव आख़िर बात क्या है" मेनका चाची ने हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"अचानक से तुम इतने गंभीर क्यों हो गए? अगर कोई बात है तो साफ़ साफ़ बताओ हमें।"

"ऐसी कोई बात नहीं है चाची।" मैं भला उन्हें कैसे बताता कि मैं अपने बड़े भैया की वजह से ऐसा कोई उत्सव नहीं होने देना चाहता था? मैं भला कैसे ऐसे उत्सव से खुश होता जबकि मेरे भैया और भाभी के जीवन में इतने बड़े दुःख के बादल छाए हुए थे।

"कुछ तो बात ज़रूर है बेटा।" माँ ने सहसा चिंतित भाव से कहा____"मुझे बता, आख़िर क्या छुपा रहा है हमसे?"
"कुछ नहीं मां।" मैं सहसा ये सोच कर अंदर ही अंदर घबरा गया कि मैंने ये कैसा माहौल बना दिया है, सम्हल कर बोला____"मैं बस इतना कहना चाहता हूं कि अभी मैंने इतना बड़ा कोई भी काम नहीं है। अभी तो मुझे बहुत कुछ समझना है और बहुत कुछ करना है। जिस दिन वाकई में कोई बड़ा काम करुंगा उस दिन ख़ुशी ख़ुशी उत्सव मना लेना लेकिन अभी नहीं। "

मैं जानता था कि अब अगर और मैं उनके पास रुका तो वो दोनों मुझसे पूछती ही रहेंगी इस लिए मैं उठा और वापस अपने कमरे की तरफ बढ़ चला। मैं अंदर से एकदम दुखी सा हो गया था। आज बड़े भैया ने जिस तरह से मुझसे बातें की थी उसने मुझे हिला कर रख दिया था। मैं ये सहन नहीं कर सकता था कि मेरे बड़े भैया हम सबको इस तरह छोड़ कर चले जाएंगे। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं? आख़िर कैसे मैं उनके जीवन को बचाऊं? एक तरफ भाभी थीं जो अंदर ही अंदर अपने पति के बारे में ये सब सोच सोच कर दुखी थीं और उनकी बिवसता ये थी कि वो अपना दुःख किसी को दिखा नहीं सकती थीं। मेरे सामने इतना कुछ मौजूद था जिसे मैं समेटने में सफल नहीं हो पा रहा था।

अपने कमरे में पहुंचा तो देखा कुसुम जग गई थी और किसी सोच में डूबी हुई नज़र आ रही थी। उसके कानों में दरवाज़ा खुलने की आवाज़ तक न पड़ी थी। ज़ाहिर है वो किसी गहरे ख़यालो में गुम थी। उसके मासूम से चेहरे पर कई तरह के भाव उभरते हुए दिख रहे थे। मुझे याद आया कि वो भी अपने सीने में कोई ऐसी बात छुपाए हुए थी जो उसे अंदर ही अंदर दुखी किए हुए थी। अपनी लाड़ली बहन के उदास चेहरे को देख कर मेरे दिल में एक टीस सी उभरी। मैं सोचने लगा कि कैसा भाई हूं मैं जो अपनी मासूम बहन का दुःख भी दूर नहीं कर पा रहा? बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को सम्हाला और आगे बढ़ा।

"अब अगर मैं तेरा नाम सोचन देवी रख दूं तो कैसा रहेगा?" उसके सिरहाने पास बैठ कर मैंने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा तो वो एकदम से चौंकी और फिर हड़बड़ा कर उठ बैठी।

"भ...भइया???" फिर वो खुद को सम्हालते हुए बोली_____"आप कब आए?"
"मुझे आए हुए तो ज़माना गुज़र गया।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन मैं ये समझने की कोशिश कर रहा था कि अपनी इस बहन का नया नाम सोचन देवी रखूं कि नहीं?"

"क्..क्या कहा आपने?" कुसुम ने आँखें फैलाते हुए कहा____"आप मेरा इतना गन्दा नाम कैसे रख सकते हैं? जाइए मुझे आपसे कोई बात नहीं करना।"

"यानि कि मुझे तेरा ये नया नाम नहीं रखना चाहिए।" उसके रूठ जाने पर मैंने उसे उसके कन्धों से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया और फिर प्यार से बोला____"पर भला ये कहां का इन्साफ़ हुआ कि मेरी प्यारी बहन ने अपने इस भाई का एक नाम सोचन देव रख दिया है?"

"वो तो आप पर जंचता है इस लिए रख दिया है मैंने।" कुसुम ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा____"आप जब देखो तब कहीं न कहीं खोए ही रहते थे इस लिए मैंने आपका वो नाम रख दिया था। वैसे भैया क्या आप मुझे नहीं बताएँगे कि इतना क्या सोचते रहते थे आप कि मुझे मजबूर हो कर आपका नाम सोचन देव रखना पड़ा?"

"सच बताऊं या झूठ?" मैंने उसकी मासूमियत से भरी आँखों में देखते हुए पूछा तो उसने मासूमियत से ही जवाब दिया____"झूठ क्यों बताएँगे? एकदम सच्चा वाला सच बताइए मुझे।"

"ठीक है फिर।" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"असल में मैं हमेशा ये सोचता रहता हूं कि ऐसी क्या बात हो सकती है जिसने मेरी मासूम सी बहन को इतना गंभीर बना दिया है और तो और उसे इतना बेबस भी कर दिया है कि वो अपने दिल की बात अपने इस भाई से बता भी नहीं सकती?"

मेरी बात सुन कर एकदम से कुसुम के चेहरे पर घबराहट के भाव उभर आए। उसका खिला हुआ चेहरा एकदम से बुझ सा गया। वो मुझसे नज़रें चुराने लगी। मैं उसी को देख रहा था। उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ थरथराए जा रहे थे।

"क्या हुआ?" मैंने उसे उसके कन्धों से पकड़ कर प्यार से ही पूछा____"मेरी बात सुन कर तेरा खिला हुआ चेहरा क्यों उतर गया? आख़िर ऐसी क्या बात है जो तुझे इतना परेशान कर देती है? तू जानती है न कि तेरा ये भाई तुझे किसी भी कीमत पर उदास नहीं देख सकता। तू जब शरारत से मुस्कुराती है तो लगता है जैसे हर तरफ खुशियों की बहार आ गई है और जब तू ऐसे उदास हो जाती है तो लगता है जैसे इस दुनिया में अब कुछ भी नहीं रहा।"

"भ...भइया।" कुसुम बुरी तरह फफक कर रोते हुए मुझसे लिपट गई। मैंने भी उसे अपने सीने से छुपका लिया और उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगा। उसे यूं रोता देख मेरी आँखें भी भर आईं। दिल में एक हूक सी उठी जिसे मैंने बड़ी मुश्किल से दबाया।

"क्या तुझे अपने इस भाई पर ज़रा भी भरोसा नहीं है?" मैंने उसे खुद से छुपकाए हुए ही कहा____"क्या तुझे लगता है कि तेरा ये भाई तेरा दुःख दूर करने में असमर्थ है? तू जानती है न कि मैं तेरे एक इशारे पर सारी दुनिया को आग लगा सकता हूं।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भइया।" मेरी बातें सुन कर कुसुम और भी ज़्यादा सिसक उठी____"मैं आपको तकलीफ़ नहीं देना चाहती। मैं जानती हूं कि आप मेरे लिए दुनिया का कोई भी काम कर सकते हैं लेकिन मैं क्या करूं भैया? मैं आपको कुछ भी नहीं बता सकती। मुझे माफ़ कर दीजिए।"

"अच्छा चल ठीक है।" मैंने उसे खुद से अलग किया और उसके आंसुओं को पोंछते हुए कहा____"तू रो मत। तू जानती है न कि मैं तेरी आँखों में आंसू नहीं देख सकता। चल अब शांत हो जा।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भइया।" कुसुम ने मेरी तरफ देखते हुए दुखी भाव से कहा। उसकी आँखें फिर से छलक पड़ीं थी जिन्हें मैंने अपने हाथों से पोंछा और फिर कहा_____"तुझे किसी बात के लिए मुझसे माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है और हाँ मैं वादा करता हूं कि अब तुझसे इस बारे में कुछ भी नहीं पूछूंगा। मैं बस ये चाहता हूं कि तू हमेशा खुश रहे और अपनी शरारतों से अपने इस भाई को परेशान करती रहे।"

कुसुम की आँखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। बड़ी मुश्किल से मैंने उसे समझा बुझा कर शांत किया। सहसा मेरी नज़र दरवाज़े पर खड़ी मेनका चाची पर पड़ी। जब उन्होंने देखा कि मैं उन्हें देखने लगा हूं तो उन्होंने जल्दी से अपनी आँखों के आंसू पोंछे और फिर मुस्कुराती हुई कमरे के अंदर हमारे पास आ ग‌ईं।

"मैं नहीं जानती कि ऐसी कौन सी बात है जिसे तुम कुसुम से पूछ रहे थे।" फिर उन्होंने उसी मुस्कान में कहा____"और ये तुम्हें बताने की जगह इस तरह रोने लगी थी लेकिन ये देख कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई कि तुम इसे आज भी उतना ही मानते हो जितना पांच महीने पहले मानते थे।"

"सारी दुनिया से नफ़रत कर सकता हूं चाची।" मैंने कुसुम के चेहरे को प्यार से सहला कर कहा____"लेकिन अपनी इस बहना से कभी नाराज़ नहीं हो सकता और ना ही इसे कभी दुखी देख सकता हूं। ये मेरी जान है, मेरा गुरूर है, मेरी शान है।"

कुसुम मेरी बात सुन कर फिर से मुझसे छुपक गई। उसकी आँखें फिर से भर आईं थी। मेनका चाची ने मेरे चेहरे को प्यार से सहलाया और कहा____"इस हवेली में एक तुम ही हो जो इसे इतना मानते हो। इसके बाकी भाई तो हमेशा इसे डांटते ही रहते हैं।"

"कोई मेरे सामने इसे डांट के दिखाए भला।" मैंने कहा____"मैं डाटने वाले का मुँह तोड़ दूंगा।"
"जिस तरह तुम इसे स्नेह करते हो।" मेनका चाची ने कहा____"मैं सोचती हूं कि जिस दिन ये ब्याह कर अपने ससुराल जाएगी तब क्या करोगे तुम?"

"समाज के बनाए नियमों का किसी तरह पालन तो करना ही पड़ेगा चाची।" मैंने गंभीरता से कहा____"पर इतना ज़रूर समझ लीजिए कि जिस दिन ये अपने भाई को छोड़ कर अपने ससुराल जाएगी उस दिन मेरा दिल टुकड़ों में बिखर जाएगा। इस हवेली में गूंजने वाली इसकी हंसी और इसकी शरारतें कहीं खो जाएंगी।"

कहते कहते सहसा मेरी आवाज़ भर्रा गई और मुझसे आगे कुछ बोला न गया। आँखों ने बगावत कर दी थी। मेरी बातें सुन कर जहां कुसुम रोते हुए मुझसे फिर से लिपट गई थी वहीं चाची ने मुझे खुद से छुपका लिया था। माहौल एकदम से ग़मगीन सा हो गया था।

"ताता बुआ त्यों लो लही है?" अचानक हम तीनों ही उस बच्ची की इस बात से चौंके। वो जग गई थी और अब बेड पर उठ कर बैठ गई थी। उसने कुसुम को रोते देखा तो मुझसे पूछ लिया था।

"अरे! मेरी प्यारी गुड़िया जग गई क्या?" कुसुम मुझसे अलग हुई तो मैंने उस बच्ची को उठा कर अपनी गोद में बैठाते हुए उससे पूछा तो वो बड़ी मासूमियत से मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुरा उठी।

"आप तहां तले द‌ए थे ताता?" उसने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"मैंने बुआ थे पूथा आपके बाले में तो बुआ ने तहा आप मेले लिए लद्दू लेने द‌ए हैं।"
"तो क्या अभी तक तुमने लड्डू नहीं खाया गुड़िया?" मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए पूछा जिसका जवाब उसने मुस्कुराते हुए दिया____"मैंने तो बूत थाले लद्दू थाए ताता औल आपतो पता है बुआ ने मुधे मिथाई भी थिलाइ।"

"अरे वाह!" मैंने उसके गालों को सहलाते हुए कहा____"फिर तो हमारी गुड़िया का पेट भर गया होगा।"
"हां ताता।" उसने मासूमियत से कहा____"पल मुधे औल लद्दू थाने हैं।"

मेनका चाची और कुसुम उस बच्ची की बातों से मुस्कुरा रहीं थी। उस बच्ची की वजह से माहौल सामान्य और खुशनुमा सा हो गया था। मैंने कुसुम से कहा कि वो गुड़िया के लिए लड्डू ले आए। थोड़ी ही देर में कुसुम लड्डू और मिठाई ले कर आ गई और उसे दे दिया। बच्ची लड्डू और मिठाई देख कर बेहद खुश हुई और एक लड्डू उठा कर खाने लगी।

मेनका चाची और कुसुम कुछ देर बाद चली गईं। वो बच्ची लड्डू खाने में ब्यस्त थी और मैं ये सोचने में कि विभोर और अजीत के पास कुसुम की आख़िर ऐसी कौन सी कमज़ोरी है जिसके बल पर वो लोग कुसुम को मेरे खिलाफ़ मोहरा बनाए हुए हैं? आख़िर ऐसी क्या बात हो सकती है जिसके चलते कुसुम उनकी बात मानने के लिए इस हद तक मजबूर है कि वो अपने उस भाई को भी कुछ नहीं बता रही जो उसे दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार और स्नेह देता है? मैंने फैसला किया कि सबसे पहला काम मुझे इसी सच का पता लगाना होगा।

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Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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Sab kuch alag baa mughe to sirf update ka last line hi dikha ab vaibhav kusum ke bare me soch raha h aasha h ki jald hi wo iski sachhai ka pata laga lega .... Bahar uske kitne bhi dushman ho but family walo ko dard ho to maza nahi aata....
 

Sanju@

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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 23
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अब तक,,,,,

"मैं तो ये कह रहा था कि।" मैंने कहा____"अगर बड़े भैया यहाँ आ गए और उन्होंने मुझे आपके साथ रंग खेलते हुए देख लिया तो कहीं वो गुस्सा न हो जाएं।"
"आज वो यहाँ नहीं आएंगे वैभव।" भाभी ने कहा____"आज वो साहूकारों के लड़कों के साथ होली का आनंद ले रहे होंगे। तुम रुको, मैं रंग ले कर बस थोड़ी ही देर में आ जाऊंगी।"

इतना कहने के बाद भाभी मेरी बात सुने बिना ही कमरे से बाहर निकल ग‌ईं। उनके जाने के बाद मैं कमरे में बुत की तरह खड़ा रह गया। आज भाभी के द्वारा मुझे एक ऐसे सच का पता चला था जिसके बारे में मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। मेरे बड़े भैया के बारे में कुल गुरु ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये तक़दीर का कैसा खेल था कि वो मेरे भाई को इस तरह दुनियां से उठा लेने वाली थी और एक सुहागन को भरी जवानी में ही विधवा बना देने का इरादा किए बैठी थी मगर मैंने भी सोच लिया था कि मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। मैं गुरु जी की इस भविष्यवाणी को ग़लत कर के रहूंगा।


अब आगे,,,,,,



भाभी के कमरे में खड़ा मैं अभी ये सब सोच ही रहा था कि तभी कुसुम एकदम से किसी आंधी तूफ़ान की तरह कमरे में दाखिल हुई जिससे मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा। उसकी साँसें थोड़ी तेज़ से चल रहीं थी। मैं समझ गया कि ये भागते हुए यहाँ आई है किन्तु क्यों आई है ये मुझे समझ न आया। उसके चेहरे पर और कपड़ों पर रंग लगा हुआ था।

"क्या हुआ?" मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा____"आँधी तूफ़ान बनी कहां घूम रही है तू?"
"अपनी सहेलियों के चक्कर में।" उसने अपनी फूली हुई साँसों को काबू करते हुए कहा____"मैं ये तो भूल ही गई कि मैंने अपने सबसे अच्छे भैया को तो रंग लगाया ही नहीं। अभी नीचे भाभी ने जब मुझसे पूछा कि रंग कहां रखा है तो मैंने उन्हें बताया और फिर एकदम से मैंने सोचा कि भाभी रंग के बारे में मुझसे क्यों पूछ रही हैं? वो तो नाराज़ हो कर अपने कमरे में बंद थीं, तब मुझे याद आया और फिर मैंने सोचा कि हो सकता है आप भाभी कमरे में उनसे मिलने गए हों और आपने उनकी नाराज़गी दूर कर दी हो। उसके बाद उन्होंने सोचा होगा कि आज होली का त्यौहार है तो उन्हें अपने देवर को रंग लगाना चाहिए इस लिए वो मुझसे रंग के बारे में पूछ रहीं थी। बस फिर मुझे भी याद आया कि मैंने तो अभी तक आपको रंग लगाया ही नहीं। इस लिए भागते हुए चली आई यहां।"

"इतनी सी बात को कम शब्दों में नहीं बता सकती थी तू?" कुसुम की बात जब पूरी हुई तो मैंने आँखें दिखाते हुए उससे कहा____"इतना घुमा फिरा कर बताने की क्या ज़रूरत थी?"
"अब आप बाकी भाइयों की तरह मुझे डांतिए मत।" कुसुम ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा____"इससे पहले कि भाभी यहाँ आ जाएं मुझे आपको रंग लगाना है और आप इसके लिए मना नहीं करेंगे।"

"अच्छा ठीक है।" मैंने कहा____"जल्दी से रंग लगा ले और जा यहाँ से।"
"जल्दी से जाने को क्यों कह रहे हैं मुझे?" कुसुम ने आँखें निकालते हुए कहा____"और हां ये बताइए कि मेरी सहेलियों को रंग लगाया कि नहीं आपने?"

"हां वो थोड़ा सा लगाया मैंने।" उसके एकदम से पूछने पर मैंने थोड़ा नरम भाव से कहा____"लेकिन फिर वो जल्दी ही कमरे से चली गईं थी।"
"ऐसा क्यों?" कुसुम ने सोचने वाले अंदाज़ से पूछा____"क्या उन्होंने आपको रंग नहीं लगाया?"

"मेरे चेहरे पर उन्हीं का लगाया हुआ तो रंग लगा है।" मैंने कहा____"तुझे दिख नहीं रहा क्या?"
"अरे! तो आप भड़क क्यों रहे हैं?" कुसुम ने फिर से बुरा सा मुँह बनाया____"वैसे मैं जा कर पूछूंगी उन दोनों से कि वो आपके कमरे से इतना जल्दी क्यों चली आईं थी?"

"अरे! इसमें पूछने वाली कौन सी बात है?" मैंने मन ही मन चौंकते हुए कहा____"उन्हें रंग लगाना था तो लगाया और फिर चली गईं। अब क्या वो सारा दिन मेरे कमरे में ही बैठी रहतीं?"
"हां ये भी सही कहा आपने।" कुसुम ने भोलेपन से कहा____"ख़ैर छोड़िए, मैं जल्दी से आपको रंग लगा देती हूं। आपको पता है अभी मेरी दो सहेलियां और आई हुईं हैं इस लिए मुझे उनके साथ भी रंग खेलना है।"

कुसुम की बात सुन कर मैंने इस बार कुछ नहीं कहा। मैं जानता था कि मैं उससे जितना बतवाऊंगा वो उतना ही बात करती रहेगी। इस लिए मैंने उसे रंग लगाने को कहा तो उसने अपने हाथ में ली हुई पानी से भरी हुई गिलास को एक तरफ रखा और फिर दूसरे हाथ में लिए हुए रंग को उसने पहले वाले हाथ में थोड़ा सा डाला। रंग डालने के बाद उसने गिलास से थोड़ा पानी अपनी हथेली में डाला और फिर उसे दोनों हाथों में मलते हुए मेरी तरफ बढ़ी। मैं चुप चाप खड़ा उसी को देख रहा था। जैसे ही वो मेरे क़रीब आई तो उसके होठों पर मुस्कान उभर आई। कुसुम अपने दोनों हाथों को बढ़ा कर मेरे दोनों गालों पर अपने कोमल कोमल हाथों से मुस्कुराते हुए रंग लगाने लगी।

हवेली में मैं किसी से भी रंग नहीं खेलता था किन्तु वो हर साल मुझे ऐसे ही रंग लगाती थी और खुश हो जाती थी। बाकी भाई तो उसे झिड़क देते थे इस लिए वो उनके पास रंग लगाने नहीं जाती थी। होली के दिन रंग खेलना उसे बहुत पसंद था तो मैं भी उसकी ख़ुशी के लिए रंग लगवा लेता था।

"हो गया?" उसने जब अच्छे से मेरे चेहरे पर रंग लगा लिया तो मैंने पूछा____"या अभी और लगाना है?"
"हां हो गया।" उसने मुस्कुराते हुए कहा____"चलिए अब आप भी मुझे रंग लगाइए और अपना बदला पूरा कीजिए। मुझे अभी अपनी उन सहेलियों को भी रंग लगाना है। कहीं वो दोनों चली न जाएं।"

उसकी बात सुन कर मैंने उसी से रंग लिया और उसके ही जैसे रंग में थोड़ा पानी मिला कर रंग को अपनी हथेली में मला और फिर प्यार से उसके दोनों गालों पर लगा दिया। इस वक़्त वो एकदम से छोटी सी बच्ची बनी हुई थी और मुझे उस पर बेहद प्यार आ रहा था। उसे रंग लगाने के बाद मैंने उसके माथे को चूमा और फिर कहा____"सदा खुश रह और ऐसे ही हंसती मुस्कुराती रह।"

"आप भी हमेशा खुश रहिए।" उसकी आवाज़ सहसा भारी हो गई____"और अपनी इस बहन को ऐसे ही प्यार करते रहिए।"
"ये तुझे कहने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने उसके चेहरे को एक हाथ से सहलाते हुए कहा___"सारी दुनिया चाहे तुझसे रूठ जाए लेकिन तेरा ये भाई तुझसे कभी नहीं रूठेगा। ख़ैर अब जा और अपनी सहेलियों के साथ रंग खेल।"

मेरे कहने पर कुसुम मुस्कुराती हुई पलटी और फिर अपना रंग और पानी का गिलास ले कर कमरे से बाहर चली गई। उसके जाने के बाद मैं कुसुम के बारे में सोचने ही लगा था कि तभी भाभी कमरे में आ ग‌ईं। उनके एक हाथ में कागज़ में लिपटा हुआ रंग था और दूसरे हाथ में पानी का मग्घा।

"तो लाडली बहन आई थी अपने भाई को रंग लगाने?" भाभी ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा तो मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा____"आप तो जानती हैं उसे। जब आपने उससे रंग के बारे में पूछा तब उसे याद आया कि उसने अभी अपने भाई को रंग लगाया ही नहीं है। इस लिए भागते हुए आई थी यहां।"

"तुम्हें शायद इस बात का इल्म न हो।" भाभी ने थोड़े संजीदा भाव से कहा____"लेकिन मैंने महसूस किया है कि पिछले कुछ महीनों से वो किसी किसी दिन बहुत ही गंभीर दिखती है। मुझे लगता है कि कुछ तो बात ज़रूर है उसके इस तरह गंभीर दिखने की। मैंने एक दो बार उससे पूछा भी था किन्तु उसने कुछ बताया नहीं। बस यही कहा कि तबीयत ख़राब है।"

"मुझे भी ऐसा ही लगता है।" मैंने कहा तो भाभी ने चौंक कर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"क्या मतलब? क्या तुम्हें भी इस बात का आभास हुआ है?"
"जिस दिन मैं हवेली आया था।" मैंने कहा____"उसी दिन उससे कुछ बातें की थी मैंने और उसी दिन उसने मुझसे कुछ ऐसी बातें की थी जिन बातों की कम से कम मैं उससे उम्मीद नहीं करता था।"

"ऐसी क्या बातें की थी उसने?" भाभी ने सोचने वाले भाव से पूछा____"और क्या तुमने उससे उस दिन पूछा नहीं था कुछ?"
"उसकी बातें दार्शनिकों वाली थी भाभी।" मैंने कहा____"लेकिन उसकी उन बातों में गहरी बात भी थी जिसने मुझे चौंका दिया था और जब मैंने उससे पूछा तो उसने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया था। उसके जाने के बाद मैंने सोचा था कि उसकी बातों के बारे में अपने तरीके से पता करुंगा लेकिन ऐसा अवसर ही नहीं आया क्योंकि मैं एक बार फिर से गुस्सा हो कर हवेली से चला गया था।"

"इस बारे में तुम्हें ठंडे दिमाग़ से विचार करने की ज़रूरत है वैभव।" भाभी ने कहा____"तुम्हें समझना होगा कि आज कल परिस्थितियां कैसी हो गई हैं लेकिन तुम तो हमेशा गुस्से में ही रहते हो।"

"मेरा ये गुस्सा बेवजह नहीं है भाभी।" मैंने गहरी सांस खींचते हुए कहा____"बल्कि इसके पीछे एक बड़ी वजह है।"
"तुम्हारा गुस्सा बेवजह ही है वैभव।" भाभी ने ज़ोर देते हुए कहा____"तुम बेवजह ही दादा ठाकुर से इतनी बेरुखी से बात करते हो। मैं तो ये सोच कर चकित हो जाती हू कि तुम उनसे ऐसे लहजे में कैसे बात लेते होगे?"

"वैभव सिंह ऐसे ही जियाले का नाम है भाभी।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"जो किसी से भी नहीं डरता और जिससे भी बात करता है बिल्कुल बेख़ौफ़ हो कर बात करता है। फिर भले ही उसके सामने दादा ठाकुर ही क्यों न हों।"

"अभी एक थप्पड़ लगाऊंगी तो सारा जियालापन निकल आएगा तुम्हारा।" भाभी ने हंसते हुए कहा____"बड़े आए बेख़ौफ़ हो कर बात करने वाले। अगर इतने ही बड़े जियाले हो तो अब तक मुझसे दूर क्यों भागते थे?"

"वो...वो तो मैं।" मैंने अटकते हुए कुछ कहना ही चाहा था कि भाभी ने मुझे बीच में ही टोकते हुए कहा____"बस बस बताने की ज़रूरत नहीं है। ख़ैर अब बातों में वक़्त जाया न करवाओ और मुझे अपने देवर को रंग लगाने दो।"

"जी ठीक है भाभी।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा तो भाभी ने कागज़ से रंग निकालते हुए कहा____"वैसे इस कमरे में आने से पहले किसके साथ रंग खेल कर आए थे? उस वक़्त मेरे पूछने पर जब तुमने कुसुम का नाम लिया तो मैंने यही समझा था कि तुमने कुसुम के साथ रंग खेला था लेकिन अभी जब कुसुम यहाँ तुम्हें रंग लगाने आई तब समझ आया कि उस वक़्त तुम कुसुम के साथ नहीं बल्कि किसी और के साथ रंग खेल कर आए थे। मैं सही कह रही हूं न?"

"जी भाभी।" मैंने नज़रें झुकाते हुए कहा____"पर मैं उस वक़्त आपको बताने ही वाला था लेकिन आपने ही मेरी बात काट दी थी।"
"अच्छा तो चलो अब बता दो।" भाभी ने हाथ में रंग लेने के बाद उसमे पानी मिलाते हुए कहा____"आख़िर किसके साथ रंग खेल कर आए थे?"

"जाने दीजिए न भाभी।" मैंने बात को टालने की गरज़ से कहा____"मैं किसके साथ रंग खेल कर आया था इस बात को जानने की क्या ज़रूरत है?"
"अरे! ज़रूरत क्यों नहीं है?" भाभी ने अपनी भौंहों को चढ़ाते हुए कहा____"बल्कि मेरा तो ये जानने का हक़ है कि मेरा देवर किसके साथ रंग खेल कर यहाँ आया था? वैसे मुझे कुछ कुछ अंदाज़ा तो है किन्तु मैं तुम्हारे मुँह से जानना चाहती हूं। अब जल्दी से बताओ भी, इतना भाव मत खाओ?"

"वो..मैं अपने कमरे में गया तो कुछ ही देर में कुसुम भी वहां पहुंच गई थी।" मैंने झिझकते हुए कहा____"कुसुम के साथ उसकी दो सहेलियां भी थीं। कुसुम ने मुझे बताया कि उसकी वो सहेलियां मुझे रंग लगाना चाहती हैं। कुसुम की बात सुन कर मैंने इसके लिए इंकार नहीं किया।"

"मुझे लग ही रहा था कि ऐसी ही कोई बात होगी।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"आख़िर हमारे देवर जी लड़की ज़ात से इतना प्रेम जो करते हैं।"
"ऐसी कोई बात नहीं है भाभी।" मैंने एकदम से झेंपते हुए कहा____"वो तो बस मैंने उनकी ख़ुशी के लिए रंग लगवा लिया है।"

"अच्छा जी।" भाभी ने आँखें चौड़ी करते हुए कहा____"तुमने उनसे सिर्फ रंग लगवाया? उन्हें रंग नहीं लगाया??"
"वो तो मैंने भी लगाया भाभी।" मैंने इस बार हल्के से मुस्कुराते हुए कहा तो भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"वही तो, भला ऐसा कैसे हो सकता था कि दो सुन्दर लड़कियां हमारे देवर जी के पास उन्हें रंग लगाने आएं और ठाकुर वैभव सिंह उनसे रंग लगवाने के बाद खुद उन्हें भी रंग से सराबोर न करें? ख़ैर चलो अच्छी बात है, कम से कम तुम्हारी रंग खेलने की शुरुआत दो सुन्दर लड़कियों से तो हुई। एक हम ही थे जो कल से मुँह फुलाए यहाँ अपने कमरे में पड़े हुए थे और किसी ने हमारी ख़बर तक नहीं ली।"

भाभी की बातें सुन कर मैं कुछ न बोला बल्कि उन्हें बस देखता ही रहा। उधर भाभी ने रंग को अपने हाथों में अच्छी तरह मला और फिर मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा____"तुम्हारे चेहरे पर तो पहले से ही रंग लगा हुआ है वैभव, ऐसे में हमारा लगाया हुआ रंग भला कैसे चढ़ेगा?"

"आपका लगाया हुआ रंग तो सबसे ज़्यादा चढ़ेगा भाभी।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"क्योंकि इसमें आपका ढेर सारा प्यार और स्नेह शामिल है। आपका लगाया हुआ रंग मेरे चेहरे पर ही नहीं बल्कि मेरी आत्मा पर भी चढ़ जाएगा।"

"अगर ऐसी बात है।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा___"तब तो ये मेरे लिए सबसे अच्छी बात है वैभव। तुम्हारी इस बात में जो मर्म है वो ये जताता है कि तुम्हारे अंदर अपनी इस भाभी के प्रति इज्ज़त और सम्मान की भावना है और इस बात से मुझे बेहद ख़ुशी महसूस हो रही है।"

ये कह कर भाभी ने बड़े प्यार से मेरे चेहरे पर हल्के हाथों से रंग लगाना शुरू कर दिया। मैं ख़ामोशी से उनके मुस्कुराते हुए चेहरे को ही देखता जा रहा था। उनकी नज़रें मेरी नज़रों से ही मिली हुईं थी। मुझे एकदम से ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं उनकी गहरी आँखों में डूबने लगा हूं तो मैंने जल्दी ही खुद को सम्हाला और उनकी आँखों से अपनी नज़रें हटा ली।

"मैंने कहा न कि आज के दिन हर ख़ता माफ़ है वैभव।" मुझे नज़रें हटाता देख भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"इस लिए इस वक़्त अपनी भाभी से किसी भी बात के लिए झिझक या शर्म महसूस न करो। जैसे मैं बेझिझक हो कर अपने देवर को रंग लगा रही हूं वैसे ही तुम भी अपनी भाभी को रंग लगाना।"

"सोच लीजिए फिर।" मैंने फिर से उनकी आँखों में देखते हुए कहा____"बाद में ये मत कहिएगा कि मैंने कुछ ग़लत कर दिया है।"
"अरे! इसमें ग़लत करने जैसी कौन सी बात है भला?" भाभी ने अपने दोनों हाथ मेरे चेहरे से हटाते हुए कहा____"तुम्हें रंग ही तो लगाना है तो इसमें ग़लत क्या हो जाएगा?"

"मेरे रंग लगाने का तरीका ज़रा अलग है भाभी।" मैंने धड़कते हुए दिल से कहा____"और मेरा वो तरीका आपको बिल्कुल भी पसंद नहीं आएगा।"
"अजीब बात है।" भाभी ने मानो उलझ गए भाव से कहा___"क्या रंग लगाने के भी अलग अलग तरीके होते हैं? मैं तो पहली बार सुन रही हूं ऐसा। ख़ैर तुम बताओ कि तुम किस तरीके से रंग लगाते हो?"

"मेरा तरीका मत पूछिए भाभी।" मैंने बेचैन भाव से कहा___"अगर मैंने आपको अपने रंग लगाने का तरीका बताया तो आप मेरे बारे में ग़लत सोचने लगेंगी और हो सकता है कि आप मुझ पर गुस्सा भी हो जाएं।"

"तब तो मैं ज़रूर जानना चाहूंगी कि तुम किस तरीके से रंग लगाते हो?" भाभी ने मानो ज़िद करते हुए कहा____"चलो अब बताओ मुझे और हां चिंता मत करो, मैं तुम पर गुस्सा नहीं करुंगी।"

"वो भाभी बात ये है कि।" कुछ देर भाभी की तरफ देखते रहने के बाद मैंने धड़कते दिल से कहा____"एक तो मैं रंग खेलता नहीं हूं और अगर किसी लड़की या औरत के साथ रंग खेलता हूं तो मैं अपने तरीके के अनुसार लड़की या औरत के बदन के हर हिस्से पर रंग लगता हूं।"

"क्या????" मेरी बात सुन कर भाभी बुरी तरह उछल पड़ीं, फिर हैरत से आँखें फाड़े बोलीं____"हे भगवान! तो तुम इस तरीके से रंग लगाते हो? तुम तो बड़े ख़राब हो। भला इस तरह कौन किसी को रंग लगाता है?"

"कोई और लगाता हो या न लगाता हो भाभी लेकिन मैं तो ऐसे ही रंग लगता हूं।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"अब जबकि मैंने आपको अपना तरीका बता ही दिया है तो आपको मैं ये भी बता देता हूं कि कुसुम की जिन सहेलियों ने मेरे कमरे में आ कर मुझे रंग लगाया था उनको मैंने अपने इसी तरीके से रंग लगाया है।"

"हे भगवान!" भाभी आश्चर्य से आँखें फाड़ते हुए बोलीं____"तुम तो सच में बहुत गंदे हो। पर उन्होंने तुमसे इस तरीके से रंग कैसे लगवा लिया? क्या उन्हें तुम पर गुस्सा नहीं आया?"

"ग़ुस्सा क्यों आएगा भाभी?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"वो तो मेरे कमरे में आई ही इसी मकसद से थीं वरना आप ख़ुद सोचिए कि कोई शरीफ लड़की किसी मर्द के कमरे में उसे रंग लगाने क्यों आएगी और अगर आएगी भी तो इस तरीके से रंग लगवाने पर राज़ी कैसे हो जाएगी?"

"हां ये भी सही कहा तुमने।" भाभी ने ठंडी सांस खींचते हुए कहा___"इसका मतलब कुसुम की वो दोनों सहेलियां एक नंबर की चालू थीं। रुको मैं कुसुम से इस बारे में बात करुँगी और उसे समझाऊंगी कि ऐसी लड़कियों को अपनी सहेली न बनाए जिनका चरित्र इतना गिरा हुआ हो।"

"नहीं भाभी।" मैंने हड़बड़ा कर कहा____"आप कुसुम से इस बारे में कुछ मत कहना। क्योंकि ऐसे में वो समझ जाएगी कि आपको ये सब बातें मेरे द्वारा पता चली हैं और फिर वो मुझ पर ही नहीं बल्कि अपनी सहेलियों से भी गुस्सा हो जाएगी। आप इस बारे में उससे कुछ मत कहिएगा, मैं खुद ही कुसुम को अपने तरीके से समझा दूंगा।"

"ठीक है, अच्छे से समझा देना उसे।" भाभी ने चिंतित भाव से कहा____"ऐसी लड़कियों को सहेली बनाना उसके लिए उचित नहीं है। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि उन लड़कियों ने तुमसे इस तरह से रंग लगवा लिया है, लेकिन यकीन इस लिए कर रही हूं क्योंकि जानती हूं कि तुम्हारा जादू उन पर चल गया होगा। भगवान के लिए वैभव ये सब छोड़़ दो। ये सब अच्छी चीज़ें नहीं हैं। इससे हमारे खानदान का और ख़ुद तुम्हारा भी नाम बदनाम होता है।"

"ठीक है भाभी।" मैंने कहा____"कोशिश करुंगा कि आगे से ऐसा न करूं। ख़ैर अब आप जाइए और नहा धो लीजिए। मैं आपके लिए खाना ले कर आता हूं।"
"अरे! अभी तुम भी तो मुझे रंग लगाओगे।" भाभी ने जैसे मुझे याद दिलाते हुए कहा____"और हां अपने तरीके से मुझे रंग लगाने का सोचना भी मत वरना डंडे से पिटाई करुँगी तुम्हारी। अब चलो जल्दी से रंग लगाओ, उसके बाद ही नहाने जाऊंगी।"

भाभी की बात सुन कर मैं मुस्कुराया और फिर कागज़ से रंग ले कर मैंने उसमे थोड़ा पानी मिलाया और फिर दोनों हाथों में अच्छे से मलने के बाद मैं आगे बढ़ा। भाभी के सुन्दर चेहरे पर रंग लगाने का सोच कर ही सहसा मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं थी। भाभी मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रहीं थी। मैंने भाभी के चेहरे की तरफ अपने हाथ बढ़ाए और फिर हल्के हाथों से उनके बेहद ही कोमल गालों पर रंग लगाने लगा। भाभी की बड़ी बड़ी कजरारी आँखें मुझ पर ही गड़ी हुईं थी। उनको रंग लगाते लगाते एकदम से मेरा जी चाहा कि मैं उनके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों को झुक कर चूम लूं। अपने ज़हन में आए इस ख़याल से मेरी धड़कनें और भी तेज़ हो गईं किन्तु एकदम से मुझे ख़याल आया कि ये मैं क्या सोच रहा हूं?

मैं एक झटके से भाभी से दूर हुआ। भाभी मुझे अचानक से इस तरह दूर होते देख चौंकी और हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए बोलीं____"क्या हुआ वैभव? तुम एकदम से पीछे क्यों हट गए?"
"माफ़ करना भाभी।" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"पता नहीं क्या हो जाता है मुझे? मैं जब भी आपके क़रीब होता हूं तो मैं आपकी तरफ आकर्षित होने लगता हूं। मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी। मैं बहुत बुरा इंसान हूं।"

ये सब कहते कहते मैं एकदम से हताश सा हो गया था और इससे पहले कि वो मुझसे कुछ कहतीं मैं पलटा और तेज़ी से कमरे से निकल गया। मेरे पीछे भाभी अपनी जगह पर किंकर्तव्यविमूढ़ सी हालत में खड़ी रह गईं थी।

भाभी के कमरे से बाहर आ कर मैं सीधा अपने कमरे में आया और दरवाज़ा बंद कर के बिस्तर पर लेट गया। इस वक़्त मेरे दिलो दिमाग़ में आँधिया सी चल रहीं थी। मेरा दिल एकदम बेचैनी से भर गया था। भाभी से कही हुई अपनी ही बातें सोच सोच कर मैं अंदर ही अंदर एक आग में जलने लगा था। अभी तक तो ये था कि भाभी को मेरे अंदर की इन बातों का पता नहीं था इस लिए मुझे ज़्यादा चिंता नहीं होती थी किन्तु अब तो उन्हें सब पता चल गया था और अभी तो मैं साफ़ शब्दों में उनसे कह कर ही आया था कि मैं उनकी तरफ आकर्षित होने लगता हूं। मेरी बातें सुन कर यकीनन वो मेरे बारे में ग़लत ही सोचने लगी होंगी और ये भी ग़लत नहीं कि मेरी बातें सुन कर उन्हें मुझ पर बेहद गुस्सा भी आया होगा। मैं ऐसी ही बातों से तो हमेशा डरता था और यही वजह थी कि मैं हवेली में रुकता नहीं था। मैं ये हरगिज़ नहीं चाहता था कि इस हवेली की लक्ष्मी सामान बहू अपने देवर की हवस का शिकार हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो मैं अपने आपको कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा। मेरी सोच और मेरे मन पर मेरा कोई अख़्तियार नहीं था। अपने सामने मैंने हज़ारों बार यही सोचा था कि अपनी देवी सामान भाभी के बारे में ग़लत नहीं सोचूंगा मगर उनके सामने जाते ही पता नहीं क्या हो जाता था मुझे। मैं किसी सम्मोहन की तरह उनकी सुंदरता के मोह जाल में फंस जाता था। ये तो शुक्र था कि ऐसी स्थिति में हर बार मैंने खुद को सम्हाल लिया था।

बिस्तर पर लेटा हुआ मैं बेचैनी से करवटें बदल रहा था और जब मुझे किसी भी तरह से चैन न आया तो मैं उठा और कमरे से बाहर चला गया। नीचे आया तो देखा अभी भी आँगन में औरतों की भीड़ थी। हलांकि अब पहले जैसी भीड़ नहीं थी किन्तु चहल पहल अभी भी ज़्यादा ही थी। मैं बिना किसी की तरफ देखे सीधा गुसलखाने में घुस गया और ठंडे पानी से नहाना शुरू कर दिया। काफी देर तक मैं नहाता रहा और फिर सारे गीले कपड़े उतार कर मैंने एक तौलिया लपेट लिया।

गुसलखाने से निकल कर मैं फिर ऊपर अपने कमरे में आया और कपड़े पहन कर फिर से निकल गया। इस बार मेरे मन में हवेली से बाहर जाने का ख़याल था। हवेली से बाहर आया तो देखा बड़े से मैदान में अभी भी काफी लोगों की भीड़ थी और एक तरफ निचली जाति वाले फाग गाने में मस्त थे। अभी मैं ये सब देख ही रहा था कि तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा तो मैंने गर्दन घुमा कर देखा। मेरे पीछे तरफ जगताप चाचा जी खड़े नज़र आए।

"होली मुबारक हो वैभव बेटे।" चाचा जी ने बड़े प्यार से कहा और थाली से अबीर ले कर मेरे माथे पर लगा दिया। मैंने झुक कर उनके पैर छुए तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया।

"जाओ अपने पिता जी से भी आशीर्वाद ले लो।" चाचा जी ने कहा____"आज के दिन अपने मन में किसी भी प्रकार का मनमुटाव मत रखो। सबसे ख़ुशी ख़ुशी मिलो। जब तक किसी से मिलोगे नहीं तक लोगों के बारे में सही तरह से जानोगे कैसे? अभी तक तुमने अपनी नज़र से दुनियां और दुनियां वालों को देखा है, कभी इस दुनियां को दुनियां वालों की नज़र से भी देखो। हमें पूरा यकीन है कि तुम्हारा नज़रिया बदल जाएगा।"

जगताप चाचा जी की बातें सुन कर मैंने ख़ामोशी से सिर हिलाया और उनके हाथ से थाली ले कर मंच पर चढ़ गया। मंच में सिंघासन पर दादा ठाकुर बैठे हुए थे। मुझे मंच पर चढ़ता देख उन्होंने मेरी तरफ देखा। उनके अगल बगल शाहूकार मणिशंकर और हरिशंकर बैठे हुए थे, जो अब मेरी तरफ ही देखने लगे थे। यकीनन इस वक़्त मुझे मंच पर आया देख उन दोनों की धड़कनें तेज़ हो गईं होंगी। ख़ैर थाली लिए मैं पिता जी के पास पहुंचा।

"होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं पिता जी।" मैंने बड़े ही सम्मान भाव से कहा और चुटकी में अबीर ले कर उनके माथे पर लगा दिया। मेरी बात सुन कर उन्होंने पहले थाली से चुटकी में अबीर लिया और मेरे माथे पर लगाते हुए बोले___"तुम्हें भी होली का ये पर्व मुबारक हो। ईश्वर हमेशा तुम्हें खुश रखे और सद्बुद्धि दे।"

अगल बगल बैठे मणिशंकर और हरिशंकर हमारी तरफ ही देख रहे थे और इस वक़्त वो दोनों एकदम शांत ही थे। हलांकि उनकी आंखें हैरत से फटी पड़ी थीं। ख़ैर पिता जी की बात सुन कर मैं झुका और उनके पैरों में अपना सिर रख दिया। ऐसा पहली बार ही हुआ था कि मैंने उनके पैरों में इस तरह से अपना सिर रख दिया था। मैं खुद नहीं जानता था कि मैंने ऐसा क्यों किया था, बल्कि ये तो जैसे अपने आप ही हो गया था मुझसे। उधर पिता जी ने जब देखा कि मैंने उनके पैरों में अपना सिर रख दिया है तो उन्होंने मुझे बाजू से पकड़ कर उठाया और कहा____"आयुष्मान भव।"

मैंने देखा इस वक़्त दादा ठाकुर के चेहरे पर एक अलग ही तरह की चमक उभर आई थी। कदाचित इस लिए कि मैंने सबके सामने वो किया था जिसकी उन्हें ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। ख़ैर पिता जी के बाद मैंने मणिशंकर को भी अबीर लगाते हुए होली की मुबारकबाद दी और जब उसके पैरों को छूने लगा तो उसने जल्दी से मुझे पकड़ लिया और फिर हड़बड़ाए हुए भाव से बोला____"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है छोटे ठाकुर और हां आपको भी होली का ये त्यौहार मुबारक हो।"

मणिशंकर के बाद मैंने हरिशंकर को भी उसके जैसे ही अबीर लगाया और उसे होली की मुबारकबाद दी तो वो भी अपने बड़े भाई की तरह ही हड़बड़ा गया था। दोनों भाई मेरे द्वारा ऐसा किए जाने पर एकदम से चकित थे और मैं उन्हें चकित ही तो करना चाहता था। ख़ैर उसके बाद मैं पलटा तो देखा मंच के सामने काफी लोगों की नज़रें मुझ पर ही जमी हुई थीं। उन सबकी आँखों में हैरानी के भाव थे।

"ये बहुत अच्छा किया तुमने।" मंच से उतर कर जब मैं आया तो जगताप चाचा जी ने मुस्कुराते हुए कहा____"और यकीन मानो तुम्हारे ऐसा करने से दादा ठाकुर ही नहीं बल्कि हम सब भी बहुत खुश हो गए है। ये ऐसी चीज़ें हैं बेटे जो दुश्मन के दिल में भी अपने लिए ख़ास जगह बना देती हैं। हमें उम्मीद है कि हमारा सबसे लाडला भतीजा अब एक अच्छा इंसान बन कर दिखाएगा। हमेशा खुश रहो और ऐसे ही अच्छे संस्कारों के साथ अच्छे अच्छे काम करते रहो। अब जाओ और अपने बड़े भैया का भी आशीर्वाद ले लो।"

जगताप चाचा जी के कहने पर मैं थाली ले कर उस तरफ बढ़ चला जिस तरफ बड़े भैया साहूकारों के लड़कों के पास भांग के हल्के नशे में झूमते हुए बातें कर रहे थे। कुछ ही देर में मैं उनके पास पहुंच गया। मुझे आया देख साहूकारों के लड़के एकदम से पीछे हट गए। बड़े भैया की नज़र मुझ पर पड़ी तो उनके चेहरे पर अजीब से भाव उभर आए। उनके पास ही खड़े विभोर और अजीत भी थोड़ा सहम कर पीछे हट गए थे। मैंने थाली से चुटकी में अबीर लिया और बड़े भैया के माथे पर लगाते हुए उन्हें होली की मुबारकबाद दी और फिर झुक कर उनके पैर छुए।

"ये...ये क्या कर रहा है तू?" बड़े भैया भांग के हल्के शुरूर में थे और जब उन्होंने मुझे अपना पैर छूटे देखा तो वो एकदम से बौखलाए हुए लहजे में बोल पड़े थे।
"आपके पैर छू कर।" मैंने बड़े ही आदर भाव से कहा____"आपका आशीर्वाद ले रहा हूं बड़े भैया। क्या अपने इस नालायक भाई को आशीर्वाद नहीं देंगे?"

मेरी बात सुन कर बड़े भैया ग़ौर से मेरी तरफ देखने लगे। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में ये सोच कर एक दर्द सा उठने लगा था कि कुल गुरु ने भैया के बारे में ये भविष्यवाणी की थी कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। अभी मैं गुरु जी की भविष्यवाणी के बारे में सोचते हुए उन्हें देख ही रहा था कि उन्होंने एकदम से मुझे अपने गले से लगा लिया।

"वैभाव, मेरा भाई।" भैया ने मुझे गले से लगाए हुए कांपती हुई आवाज़ में कहा____"तुझे आशीर्वाद में ये भी नहीं कह सकता कि तुझे मेरी उम्र लग जाए। बस यही कहूंगा कि संसार की हर ख़ुशी मिले तुझे।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" उनकी बात सुन कर मैं मन ही मन चौंका था। इसका मतलब उन्हें अपने बारे में पता था। उनके इस तरह कहने से मेरी आँखों में आंसू भर आए, और फिर मैंने दुखी भाव से कहा____"मैंने हमेशा आपको दुःख दिए हैं।"
"आज की इस ख़ुशी में वो सारे दुःख नेस्तनाबूत हो गए वैभव।" बड़े भैया ने मेरी पीठ को सहलाते हुए करुण भाव से कहा____"चल आ जा। आज की इस ख़ुशी में तू भी भांग पी ले। हम दोनो अब खूब धूम मचाएंगे।"

बड़े भैया ने मुझे खुद से अलग किया। मैंने देखा उनकी आँखों में भी आंसू के कतरे थे जिन्हें उन्होंने अपनी रंगी हुई आस्तीन से पोंछ लिया। चारो तरफ खड़े लोग हैरानी से हम दोनों को देख रहे थे। साहूकारों के लड़कों का हाल भी वैसा ही था। भैया ने मेरा हाथ पकड़ा और खींच कर उस जगह ले आए जहां मटकों में भांग का शरबत भरा हुआ रखा था। मटके के पास एक आदमी खड़ा हुआ था जिसे भैया ने इशारा किया तो उसने एक गिलास भांग का शरबत उन्हें दिया। उस गिलास को भैया ने मुस्कुराते हुए मुझे देते हुए कहा ले वैभव इसे एक ही सांस में पी जा। मैंने मुस्कुराते हुए उनसे वो गिलास ले लिया। अभी मैं गिलास को अपने मुँह से लगाने ही चला था कि तभी वातावरण में चटाक्क्क्क की तेज़ आवाज़ गूँजी। हम सबने चौंक कर आवाज़ की दिशा में देखा। कुछ ही क़दम की दूरी पर जगताप चाचा जी अपने दोनों बेटों के पास खड़े थे। इस वक़्त उनके चेहरे पर गुस्सा नज़र आ रहा था।

"जिस लड़के ने किसी के सामने कभी झुकना पसंद नहीं किया।" चाचा जी गुस्से में दहाड़ते हुए विभोर से कह रहे थे____"आज उसने यहाँ सबके सामने झुक कर अपने से बड़ों का आशीर्वाद लिया और तुम दोनों ने क्या किया? हम उस दिन से तुम दोनों का तमाशा देख रहे हैं जिस दिन वो चार महीने की सज़ा काट कर हवेली आया था। तुम दोनों ने तो उससे ना तो कोई बात की और ना ही उसके पैर छुए। क्या यही संस्कार दिए हैं हमने?"

जगताप चाचा जी की बातें सुन कर मैं समझ गया कि वो अपने दोनों बेटों को इस बात के लिए डांट रहे हैं कि उन दोनों ने मेरे पैर नहीं छुए थे। हलांकि उन दोनों की इस धृष्टता के लिए मैं खुद ही उन्हें सबक सिखाना चाहता था किन्तु मौका ही नहीं मिला था मुझे। वैसे एक तरह से ये अच्छा ही हुआ कि ये काम ख़ुद जगताप चाचा जी ने कर दिया था वरना यदि मैं उन्हें कुछ कहता तो संभव था कि चाचा जी को इस बात पर बुरा लग जाता। हलांकि उनके बुरा लग जाने से मुझे घंटा कोई फ़र्क नहीं पड़ता किन्तु अब सोचता हूं कि जो हुआ अच्छा ही हुआ।

"जगताप क्या हो रहा है ये?" वातावरण में दादा ठाकुर की भारी आवाज़ गूँजी तो हम सबने उनकी तरफ देखा, जबकि उनकी ये बात सुन कर जगताप चाचा जी पलट कर उनसे बोले____"इन दोनों को इनके बुरे आचरण की सज़ा दे रहा हूं बड़े भैया। इन दोनों के अंदर इतनी भी तमीज़ नहीं है कि ये अपने बड़े भाई का सम्मान करें।"
"आज के दिन छोड़ दो उन्हें।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस बारे में अगले दिन बात होगी।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर चाचा जी ख़ामोश हो गए किन्तु पलट कर अपने दोनों बेटों की तरफ भयानक गुस्से से देखा ज़रुर। विभोर और अजीत डरे सहमे से गर्दन झुकाए खड़े थे। ख़ैर जगताप चाचा जी गुस्से में भन्नाए हुए चले गए। उनके जाने के बाद विभोर और अजीत मेरी तरफ आए।

"हमें माफ़ कर दीजिए भइया।" विभोर ने हाथ जोड़ कर और अपना सिर झुका कर धीमी आवाज़ में कहा____"हमसे बहुत बड़ी भूल हो गयी है।"
"कोई बात नहीं।" मैंने सपाट भाव से कहा____"सबसे भूल होती है। ख़ैर जाओ और होली का आनंद लो।"

मेरे कहने पर वो दोनों चले गए। वातावरण में फिर से पहले जैसा शोर गूंजने लगा। इधर मैंने बड़े भैया की तरफ देखते हुए भांग मिले शरबत को पीना शुरू कर दिया। गिलास खाली हुआ तो भैया ने एक गिलास और थमा दिया और मुस्कुराते हुए बोले____"एक और पी वैभव।"

"बस हो गया भइया।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे पता है इसका नशा कैसा होता है। अगर ये चढ़ गई तो मेरे लेने के देने पड़ जाएंगे।"
"अरे! इतने में नहीं चढ़ेगी वैभव।" भैया ने हंसते हुए कहा____"तुझे पता है इस गौरव ने तो चार गिलास पिया है और देख ले अभी तक होश में है।"

मैंने नज़र घुमा कर शाहूकार के लड़के गौरव की तरफ देखा तो उसने जल्दी से सहम कर अपनी नज़रें नीची कर ली। उसे इस तरह नज़रें नीची करते देख बड़े भैया हंसते हुए मुझसे बोले_____"इनके अंदर तेरी इतनी दहशत भरी हुई है कि ये बेचारे तुझसे नज़रें भी नहीं मिला सकते।" कहने के साथ ही बड़े भैया ने गौरव से कहा____"इधर आ। अब से तुझे मेरे इस छोटे भाई से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। अब से ये तुम लोगों को कुछ नहीं कहेगा लेकिन ये भी याद रखना कि अगर तुम लोगों ने आगे से इसे कुछ कहा तो फिर उसके जिम्मेदार तुम लोग ख़ुद ही होगे।"

बड़े भैया की बात सुन कर गौरव ने हां में सिर हिलाया और फिर वो हमारे पास आ गया। थोड़ी ही देर में गौरव मेरे सामने सहज महसूस करने लगा। मैं नज़र घुमा घुमा कर उसके भाई रूपचंद्र को खोज रहा था लेकिन वो मुझे कहीं नज़र नहीं आ रहा था। जब मैं जगताप चाचा जी के साथ यहाँ आया था तब मैंने उसे यहीं पर देखा था किन्तु इस वक़्त वो कहीं दिख नहीं रहा था। मेरे मन में ख़याल उभरा कि कहीं वो किसी फ़िराक में तो नहीं है?"


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होली के त्योहार में बैभव का ये बदला हुआ रूप देख कर जैसे गाँव के सभी लोग तथा साहूकर्रों के मुंह खुला रहा गया वैसे जो व्यक्ति अपने सामने दूसरों को कुछ नहीं समझता था वो भारी महफ़िल में अपने पिता ,चाचा और बड़े भाई से जैसे मिला कहीं न कहीं ये एक उल्लेखनीय दृश्य रहा इस कहानी में,अपडेट के सुरुआत में हुई बैभव और कुसुम के साथ हुई बातचीत और एक दूसरे को प्यार से रंग लगाना उनके बीच भाई बहन का निश्चल प्रेम दर्शाता है,मगर फिर बीच में कुसुम के आँख नम हो जाना क्या सिर्फ एक दूसरे के प्यार का एक तात्क्षणिक भावना ब्यक्त करने का था या फिर कुछ और है क्यूँ की अगले भाग के भाभी से बातचीत में हमे ये पता चलता है की सिर्फ बैभव को ही नहीं भाभी को भी कुसुम के आए दिन बातचीत में परिवर्तन दिख रहा है,फिर अंतिम भाग में रुपचन्द का भरे महफ़िल से अन्तर्धान रहना भी कहीं इसके साथ कड़ी न जोड़ती हो क्यूँ की बैभव ने एक बार अनुराधा के मामले में रुपचन्द से पटकनी खा चुका है,और कहीं ये भी इस बार ऐसे कोई फिराक में ना हो ये ना तो बैभव या फिर हमारे गले से इतने जल्दी गले से उतरेगा ये बात.. फिर देखते हैं अगले भाग में क्या होगा
 
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