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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192

Game888

Hum hai rahi pyar ke
3,000
6,081
143
☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 32
----------☆☆☆----------




अब तक,,,,,,

अपनी दोनों हथेलियों में तेल को अच्छी तरह मिलाने के बाद चाची आगे बढ़ीं और झुक कर मेरे सीने पर दोनों हथेलियों को रखा। मेरे सीने पर घुंघराले बाल उगे हुए थे जो यकीनन चाची को अपनी हथेलियों पर महसूस हुए होंगे। चाची ने एक नज़र मेरी तरफ देखा। मेरी नज़र उनकी नज़र से मिली तो उनके गुलाबी होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई। मेरे दिलो-दिमाग़ में न चाहते हुए भी एक अजीब तरह की हलचल शुरू हो गई। चाची का खूबसूरत चेहरा अब मेरी आँखों के सामने ही था और न चाहते हुए भी इतने पास होने की वजह से मेरी नज़र उनके चेहरे पर बार बार पड़ रही थी। मेरे मन में न चाहते हुए भी ये ख़्याल उभर आता था कि चाची इस उम्र में भी कितनी सुन्दर और जवान लगती हैं। हालांकि पहले भी कई बार चाची ने मेरी इस तरह से मालिश की थी किन्तु इस तरीके से मैं कभी भी उनके बारे में ग़लत सोचने पर मजबूर नहीं हुआ था। इसकी वजह शायद ये हो सकती है कि तब आए दिन मेरे अंदर की गर्मी कहीं न कहीं किसी न किसी की चूत के ऊपर निकल जाती थी और मेरा मन शांत रहता था लेकिन इस बार ऐसा नहीं था। मुंशी की बहू रजनी को पेले हुए मुझे काफी समय हो गया था। किसी औरत का जिस्म जब मेरे इतने पास मुझे इस रूप में दिख रहा था तो मेरे जज़्बात मेरे काबू से बाहर होते नज़र आ रहे थे। मैं एकदम से परेशान सा हो गया। मैं नहीं चाहता था कि चाची के बारे में मैं ज़रा सा भी ग़लत सोचूं और साथ ही ये भी नहीं चाहता था कि उनके जिस्म के किसी हिस्से को देख कर मेरे अंदर हवस वाली गर्मी बढ़ने लगे जिसकी वजह से मेरी टांगों के दरमियान मौजूद मेरा लंड अपनी औक़ात से बाहर होने लगे।

अब आगे,,,,,


कमरे में एकदम से ख़ामोशी छा गई थी। न चाची कुछ बोल रहीं थी और ना ही मैं। मैं तो ख़ैर कुछ बोलने की हालत में ही नहीं रह गया था क्योंकि अब आलम ये था कि मेरे लाख प्रयासों के बावजूद मेरा मन बार बार चाची के बारे में ग़लत सोचने लगा था जिससे अब मैं बेहद चिंतित और परेशान हो गया था। मुझे डर था कि चाची के बारे में ग़लत सोचने की वजह से मेरा लंड तौलिए के अंदर अपनी औक़ात में आ कर कुछ इस तरीके से न खड़ा हो जाए कि चाची की नज़र उस पर पड़ जाए। उसके बाद क्या होगा ये तो भगवान ही जानता था। अभी तक तो मेरे अपने यही जानते थे कि मैं भले ही चाहे जैसा भी था लेकिन मेरी नीयत मेरे अपने परिवार की स्त्रियों पर ख़राब नहीं हो सकती। किन्तु अब मैं ये सोच सोच कर घबराने लगा था कि इस वक़्त अगर मेरा लंड तौलिए के अंदर अपनी पूरी औक़ात में आ कर खड़ा हो गया तो दादा ठाकुर के द्वारा मेरी गांड फटने में ज़रा भी विलम्ब नहीं होगा।

उधर चाची मेरे मनोभावों से बेख़बर मेरे सीने पर और मेरे पेट पर मालिश करने में लगी हुईं थी। मैं आँखें बंद किए हुए दो काम एक साथ कर रहा था। एक तो भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि आज वो मुझे नपुंसक ही बना दे ताकि मेरा लंड खड़ा ही न हो पाए और दूसरी ये कि चाची खुद ही किसी काम का बहाना बना कर यहाँ से चली जाएं। क्योंकि अगर मैं उन्हें इतने पर ही रोक देता और जाने के लिए कह देता तो वो मुझसे सवाल करने लगतीं कि क्या हुआ...अभी तो दोनों पैरों की भी मालिश करनी है। भला मैं उन्हें कैसे बताता कि अब मुझे मालिश की नहीं बल्कि उनके यहाँ पर रुकने की चिंता है?

रागिनी भाभी की तरफ भी मैं आकर्षित होता था लेकिन मेनका चाची की तरफ आज मैं पहली बार ही आकर्षित हो रहा था और वो भी इस क़दर कि मेरी हालत ख़राब हो चली थी। जब मैं समझ गया कि भगवान मेरी दो में से एक भी प्रार्थना स्वीकार नहीं करने वाला तो मैंने मजबूरन चाची से कहा कि अब वो मेरे पैरों की मालिश कर दें और फिर वो जाएं यहाँ से। हालांकि मैंने ऐसा इस अंदाज़ से कहा था कि चाची के चेहरे पर सोचने वाले भाव न उभर पाएं।

"अब तुम्हें भी शादी कर लेनी चाहिए वैभव।" मेरे एक पैर में तेल की मालिश करते हुए चाची ने अचानक मुझे देखते हुए ये कहा तो मैंने चौंक कर उनकी तरफ देखा और मेरा ये देखना जैसे मुझ पर ही भारी पड़ गया। चाची इस तरीके से मेरी तरफ मुँह कर के थोड़ा झुकी हुईं थी कि जैसे ही मैंने उनकी तरफ देखा तो मेरी नज़र पहले तो उनके चेहरे पर ही पड़ी किन्तु फिर उनके ब्लाउज से झाँक रहे उनके बड़े बड़े उभारों पर जा कर ठहर गई। ब्लाउज से उनकी बड़ी बड़ी छातियों की गोलाइयाँ स्पष्ट दिख रहीं थी। दोनों गोलाइयों के बीच की लम्बी दरार की वजह से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उस दरार के अगल बगल मौजूद दोनों पर्वत शिखर एक दूसरे से चिपके हुए हैं। पलक झपकते ही मेरी हालत और भी ख़राब होने लगी। मेरी धड़कनें अनायास ही बढ़ ग‌ईं। माथे पर पसीने की बूंदें झिलमिलाती महसूस हुई। जिस बात से मैं डर रहा था वही होता जा रहा था। उधर मेरे लंड में बड़ी तेज़ी से चींटियां रेंगती हुई सी महसूस होने लगीं थी। बिजली की तरह मेरे ज़हन में ये ख़याल उभरा कि अगर इस कम्बख्त लौड़े ने अपना सिर उठाया तो इसके सिर उठाने की वजह से आज ज़रूर मेरी गांड फाड़ दी जाएगी।

मेनका चाची के सीने के उस हिस्से से साड़ी का वो हिस्सा हट गया था जो इसके पहले उनके उभारों के ऊपर था। अभी मैं अपने ज़हन में चल रहे झंझावात से जूझ ही रहा था कि तभी मैं चाची की आवाज़ सुन कर हड़बड़ा गया।

"क्या हुआ वैभव?" मुझे कहीं खोए हुए देख मेनका चाची ने पूछा था____"किन ख़यालों में गुम हो तुम? कहीं ऐसा तो नहीं कि मैंने तुम्हें शादी कर लेने की बात कही तो तुम अपने मन में किसी सुन्दर लड़की की सूरत बनाने लग गए हो?"

"न..नहीं तो।" मैंने हड़बड़ाते हुए कहा____"ऐसी तो कोई बात नहीं है चाची। मैं भला क्यों अपने ज़हन में किसी लड़की की सूरत बनाने लगा?"
"अच्छा, अगर सूरत नहीं बना रहे थे तो कहां गुम हो गए थे अभी?" चाची ने मुस्कुराते हुए कहा तो मेरी नज़र एक बार फिर से न चाहते हुए भी ब्लाउज से झाँक रहे उनके उभारों पर पड़ गई किन्तु मैंने जल्दी ही वहां से नज़र हटा कर चाची से कहा____"कहीं भी तो नहीं चाची। वो तो मैं ऐसे ही आपके द्वारा की जा रही मालिश की वजह से सुकून महसूस कर रहा था।"

"ये मालिश के सुकून की बात छोड़ो।" चाची ने कहा____"मैं ये कह रही हूं कि अब तुम्हें भी शादी कर लेनी चाहिए।"
"ऐसा क्यों कह रही हैं आप?" मैं मन ही मन ये सोच कर थोड़ा घबरा सा गया कि कहीं चाची ने मेरी मनोदशा को ताड़ तो नहीं लिया, बोला_____"अभी तो मेरी खेलने कूदने की उमर है चाची। अभी से शादी के बंधन में क्यों फंसा देना चाहती हैं आप?"

"हो सकता है कि तुम्हें मेरी बात बुरी लगे।" चाची ने मेरी तरफ देखते हुए थोड़ा संजीदगी से कहा____"किन्तु तुम भी इतना समझते ही होंगे कि जिनकी खेलने कूदने की उमर होती है वो किसी की बहू बेटियों को अपने नीचे सुलाने वाले काम नहीं करते।"

मेनका चाची की इस बात को सुन कर मैं कुछ बोल न सका बल्कि उनसे नज़रें चुराते हुए इधर उधर देखने लगा। उनके कहने का मतलब मैं बखूबी समझ गया था और मैं चाहता तो अपने तरीके से उन्हें इस बात का जवाब भी दे सकता था किन्तु मैं ये सोच कर कुछ न बोला था कि मेरे कुछ बोलने से कहीं बात ज़्यादा न बढ़ जाए।

"ऐसा नहीं है कि तुम जो करते हो वो कोई और नहीं करता।" मुझे ख़ामोश देख चाची ने कहा____"आज के युग में सब ऐसे काम करते हैं। कुछ लोग इस तरीके से ऐसे काम करते हैं कि किसी दूसरे को उनके ऐसे काम की भनक भी नहीं लगती और कुछ लोग इतने हिम्मत वाले होते हैं कि वो ऐसे काम करते हुए इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं करते कि उनके द्वारा किए जा रहे ऐसे काम के बारे में जब लोगों को पता चलेगा तो वो लोग उसके और उसके घर परिवार के बारे में क्या सोचेंगे? ख़ैर छोड़ो इस बात को और ये बताओ कि शादी करने का विचार है कि नहीं?"

"शादी तो एक दिन करनी ही पड़ेगी चाची।" मैंने गहरी सांस ली____"कहते हैं शादी ब्याह और जीवन मरण इंसान के हाथ में नहीं होता बल्कि ईश्वर के हाथ में होता है। इस लिए जब वो चाहेगा तब हो जाएगी शादी।"

"मैं तो ये सोच रही थी कि जल्दी से एक और बहू आ जाएगी इस हवेली मे।" चाची ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"और तुम्हें भी बीवी के साथ साथ एक मालिश करने वाली मिल जाएगी।"

"क्या चाची आप भी कैसी बातें करती हैं?" मैंने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा____"आज के युग में भला ऐसी कौन सी बीवी है जो अपने पति को परमेश्वर मान कर उसकी इतनी सेवा करती है? नहीं चाची, जिस औरत से बीवी का रिश्ता हो उससे मालिश या किसी सेवा की उम्मीद तो हर्गिज़ भी नहीं करनी चाहिए। सच्चे दिल से मालिश या तो माँ करती है या फिर आप जैसी प्यार करने वाली चाची।"

"फिर से मस्का लगाया तुमने।" चाची ने आंखें चौड़ी करके कहा____"लेकिन एक बात अब तुम भी मेरी सुन लो कि अब से मैं तुम्हारी कोई मालिश वालिश नहीं करने वाली। अब तो तुम्हारी धरम पत्नी ही तुम्हारी मालिश करेगी।"

"ये तो ग़लत बात है चाची।" मैंने मासूम सी शकल बनाते हुए कहा तो चाची ने कहा____"कोई ग़लत बात नहीं है। चलो हो गई तुम्हारी मालिश। तुम्हारी मालिश करते करते अब मेरी खुद की कमर दिखने लगी है। इसी लिए कह रही हूं कि शादी कर लो अब।"

"कोई बात नहीं चाची।" मैंने उठते हुए कहा____"अगर सच में आपकी कमर दुखने लगी है तो चलिए मैं आपके कमर की मालिश कर देता हूं। अब अपनी प्यारी चाची के लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकता?"

"रहने दो तुम।" चाची ने कमर से अपनी साड़ी के पल्लू को निकालते हुए कहा____"मुझे तुम अपना ये झूठ मूठ का प्यार न दिखाओ। वैसे भी कहीं ऐसा न हो कि मेरी मालिश करने के बाद तुम फिर से ये न कहने लगो कि मैं बहुत थक गया हूं, इस लिए चाची मेरी मालिश कर दो। अब क्या मैं रात भर तुम्हारी मालिश ही करती रहूंगी? बड़े आए अपनी प्यारी चाची की मालिश करने वाले...हुंह...बात करते हैं।"

"अरे! मैं ऐसा कुछ नहीं कहूंगा चाची।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"अगर सच में आपकी कमर दुखने लगी है तो चलिए मैं आपकी मालिश कर देता हूं। इतने में थोड़ी न मैं थक जाऊंगा मैं।"

"अच्छा।" चाची ने कटोरी उठाते हुए कहा____"तो फिर तुमसे अपनी मालिश मैं तब करवाउंगी जब तुम मेरी मालिश करते हुए पूरी तरह थक जाने वाले होगे।"
"अब ये क्या बात हुई चाची।" मैंने नासमझने वाले भाव से कहा____"कहीं आप ये सोच कर तो नहीं डर गई हैं कि एक हट्टा कट्टा इंसान जब आपकी कमर की मालिश करेगा तो उसके द्वारा मामूली सा ज़ोर देने पर ही आपकी नाज़ुक कमर टूट जाएगी?"

"मैं इतनी भी नाज़ुक नहीं हूं बेटा।" चाची ने हाथ को लहरा कर कहा____"जितना कि तुम समझते हो। ठाकुर की बेटी हूं। बचपन से घी दूध खाया पिया ही नहीं है बल्कि उसमें नहाया भी है।"

"ओह! तो छुपी रुस्तम हैं आप।" मैंने मुस्कुरा कर कहा तो चाची ने मुस्कुराते हुए कहा____"अपने चाचा जी को तो देखा ही होगा तुमने। मेरे सामने कभी शेर बनने की कोशिश नहीं की उन्होंने, बल्कि हमेशा भीगी बिल्ली ही बने रहते हैं।"

"ऐसी कोई बात नहीं है चाची।" मैंने राज़दाराना अंदाज़ में कहा____"बल्कि वो आपके सामने इस लिए भीगी बिल्ली बने रहते हैं क्योंकि वो आपको बहुत प्यार करते हैं...लैला मजनू जैसा प्यार और आप ये समझती हैं कि वो आपके डर की वजह से भीगी बिल्ली बने रहते हैं। आप भी हद करती हैं चाची।"

"तुम क्या मुझे बेवकूफ समझते हो?" भाभी ने हंसते हुए कहा तो मैंने कहा____"हर्गिज़ नहीं चाची, बल्कि मैं तो ये समझता हूं कि आप मेरी सबसे प्यारी चाची हैं। काश! आप जैसी एक और हसीन लड़की होती तो मैं उसी से ब्याह कर लेता।"

"रूको मैं अभी जा कर दीदी को बताती हूं कि तुम मुझे क्या क्या कह कर छेड़ते रहते हो।" चाची ने आँखें दिखाते हुए ये कहा तो मैंने हड़बड़ा कर कहा____"क्या चाची आप तो हर वक़्त मेरी पिटाई करवाने पर ही तुली रहती हैं। जाइए मुझे आपसे कोई बात नहीं करना।"

मैं किसी छोटे से बच्चे की तरह मुँह फुला कर दूसरी तरफ फिर गया तो चाची ने मुस्कुराते हुए मेरे चेहरे को अपनी तरफ घुमाया और फिर कहा____"अरे! मैं तो मज़ाक कर रही थी। क्या ऐसा हो सकता है कि मैं तुम्हारी पिटाई करवाने का सोचूं भी? चलो अब मुस्कुराओ। फिर मुझे जाना भी है यहाँ से। बहुत काम पड़ा है करने को।"

चाची की बात सुन कर मैं मुस्कुरा दिया तो उन्होंने झुक कर मेरे माथे पर हल्के से चूमा और फिर मुस्कुराते हुए कमरे से चली गईं। चाची के जाने के बाद मैं फिर से पलंग पर लेट गया और ये सोचने लगा कि कितना बुरा हूं मैं जो अपनी चाची के बारे में उस वक़्त कितना ग़लत सोचने लगा था, जबकि चाची तो मुझे बहुत प्यार करती हैं।


☆☆☆

मेनका चाची को गए हुए अभी कुछ ही समय हुआ था कि तभी मेरे कमरे में कुसुम आई। कमरे का दरवाज़ा क्योंकि खुला हुआ था इस लिए मेरी नज़र कुसुम पर पड़ गई थी। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मौजूदा हालात में कुसुम इस तरह ख़ुद ही मेरे कमरे में आ जाएगी किन्तु उसके यूं आ जाने पर मुझे थोड़ी हैरानी हुई। मैंने ध्यान से उसके चेहरे की तरफ देखा तो पता चला कि उसकी साँसें थोड़ी उखड़ी हुई हैं। ये जान कर मैं मन ही मन चौंका।

"भैया आपको ताऊ जी ने बुलाया है।" कुसुम ने अपनी उखड़ी साँसों को सम्हालते हुए कहा____"जल्दी चलिए, वो आपका इंतज़ार कर रहे हैं।"
"क्या हुआ है?" उसकी बात सुन कर मेरे माथे पर सोचने वाले भाव उभरे____"और तू इतना हांफ क्यों रही है?"

"वो मैं भागते हुए आपको बुलाने आई हूं ना।" कुसुम ने कहा____"इस लिए मेरी साँसें थोड़ी भारी हो गई हैं। आप जल्दी से चलिए। ताऊ जी कहीं जाने के लिए तैयार खड़े हैं। मुझसे कहा कि मैं जल्दी से आपको बुला लाऊं।"

"अच्छा ठीक है।" मैं कुछ सोचते हुए जल्दी से उठा_____"तू चल मैं कपड़े पहन कर आता हूं थोड़ी देर में।"
"जल्दी आइएगा।" कुसुम ने कहा____"कहीं ऐसा न हो कि आपकी वजह से मुझे भी डांट पड़ जाए।"

कुसुम इतना कह कर वापस चली गई और मैं ये सोचने लगा कि आख़िर पिता जी ने मुझे इतना जल्दी आने को क्यों कहा होगा? आख़िर ऐसी कौन सी बात हो गई होगी जिसके लिए उन्होंने मुझे बुलाया था? शाम घिर चुकी थी और रात का अँधेरा फैलने लगा था। कुसुम के अनुसार पिता जी कहीं जाने के लिए तैयार खड़े हैं, इसका मतलब इस वक़्त वो मुझे भी अपने साथ ले जाना चाहते हैं किन्तु सवाल है कि कहां और किस लिए?

मैंने मेनका चाची से कुछ देर पहले ही अपने बदन की मालिश करवाई थी इस लिए मेरे पूरे बदन पर अभी भी तेल की चिपचिपाहट थी। मेरा कहीं जाने का बिलकुल भी मन नहीं था किन्तु पिता जी ने बुलाया था तो अब उनके साथ जाना मेरी मज़बूरी थी। ख़ैर फिर से नहाने का मेरे पास समय नहीं था इस लिए तौलिए से ही मैंने अपने बदन को अच्छे से पोंछा ताकि तेल की चिपचिपाहट दूर हो जाए। उसके बाद मैंने कपड़े पहने और कमरे से बाहर आ गया। थोड़ी ही देर में मैं नीचे पहुंच गया।

"पिता जी आपने बुलाया मुझे?" मैंने बाहर बैठक में पहुंचते ही पिता जी से पूछा तो उन्होंने कहा____"जीप की चाभी लो और फ़ौरन हमारे साथ चलो।"
"जी..।" मैंने कहा और पास ही दीवार पर दिख रही एक कील पर से मैंने जीप की चाभी ली और बाहर निकल गया। बाहर आ कर मैंने जीप निकाली और मुख्य दरवाज़े के पास आया तो पिता जी दरवाज़े से निकले और सीढ़ियां उतर कर नीचे आए।

पिता जी जब जीप में मेरे बगल से बैठ गए तो उनके ही निर्देश पर मैंने जीप को आगे बढ़ा दिया। मेरे ज़हन में अभी भी ये सवाल बना हुआ था कि पिता जी मुझे कहां ले कर जा रहे हैं?

"कुछ देर पहले दरोगा ने अपने एक हवलदार के द्वारा हमें ख़बर भेजवाई थी कि मुरारी के गांव के पास उसे एक आदमी की लाश मिली है।" रास्ते में पिता जी ने ये कहा तो मैंने बुरी तरह चौंक कर उनकी तरफ देखा, जबकि उन्होंने शांत भाव से आगे कहा____"दरोगा ने हवलदार के हाथों हमें एक पत्र भेजा था। दरोगा को शक है कि उस लाश का सम्बन्ध मुरारी की हत्या से हो सकता है।"

"ऐसा कैसे हो सकता है?" मैंने चकित भाव से कहा____"भला किसी की लाश मिलने से दरोगा को ये शक कैसे हो सकता है कि उसका सम्बन्ध मुरारी काका की हत्या से हो सकता है? क्या उसे लाश के पास से ऐसा कोई सबूत मिला है जिसने उसे ये बताया हो कि उसका सम्बन्ध किससे है?"

"इस बारे में तो उसने कुछ नहीं लिखा था।" पिता जी ने कहा____"किन्तु मुरारी के गांव के पास किसी की लाश का मिलना कोई मामूली बात नहीं है बल्कि गहराई से सोचने वाली बात है कि वो लाश किसकी हो सकती है और उसकी हत्या किसी ने किस वजह से की होगी?"

"हत्या???" मैंने चौंक कर पिता जी की तरफ देखा____"ये आप क्या कह रहे हैं? अभी आप कह रहे थे कि किसी की लाश मिली है और अब कह रहे हैं कि उसकी हत्या किसी ने किस वजह से की होगी? भला आपको या दरोगा को ये कैसे पता चल गया कि जिसकी लाश मिली है उसकी किसी ने हत्या की है?"

"बेवकूफों जैसी बातें मत करो।" पिता जी ने थोड़े शख़्त भाव से कहा____"कोई लाश अगर सुनसान जगह पर लहूलुहान हालत में मिलती है तो उसका एक ही मतलब होता है कि किसी ने किसी को बुरी तरह से मार कर उसकी हत्या कर दी है। हवलदार से जब हमने पूछा तो उसने यही बताया कि जिस आदमी की लाश मिली है उसे देख कर यही लगता है कि किसी ने उसे बुरी तरह से मारा था और शायद बुरी तरह मारने से ही उस आदमी की जान चली गई है।"

"अगर ऐसा ही है।" मैंने लम्बी सांस छोड़ते हुए कहा____"फिर तो ज़ाहिर ही है कि किसी ने उस आदमी की हत्या ही की है लेकिन सवाल ये है कि उस लाश के मिलने से दरोगा ये कैसे कह सकता है कि उसका सम्बन्ध मुरारी काका की हत्या वाले मामले से हो सकता है? ऐसा भी तो हो सकता है कि इस वाली हत्या का मामला कुछ और ही हो।"

"बिल्कुल हो सकता है।" पिता जी ने कहा____"किन्तु जाने क्यों हमें ये लगता है कि उस लाश का सम्बन्ध किसी और से नहीं बल्कि मुरारी की हत्या वाले मामले से ही है।"
"फिर तो उस दरोगा को भी यही लगा होगा।" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"और शायद यही वजह थी कि लाश मिलते ही उसने उस लाश के बारे में आप तक ख़बर पहुंचाई।"

"ज़ाहिर सी बात है।" पिता जी ने अपने कन्धों को उचका कर कहा____"ख़ैर अभी तो ये सिर्फ सम्भावनाएं ही हैं। सच का पता तो लाश की जांच पड़ताल और उस आदमी की हत्या की छान बीन से ही चलेगा।"

पिता जी की इस बात पर मैंने इस बार कुछ नहीं कहा किन्तु मेरे ज़हन में बड़ी तेज़ी से विचारों का आवा गवन चालू हो गया था कि वो लाश किसकी होगी और मुरारी काका के गांव के पास दरोगा को उस हालत में क्यों मिली होगी? अगर सच में उस आदमी की हत्या की गई होगी तो ये बेहद सोचने वाली बात होगी कि ऐसा कौन कर सकता है और क्यों किया होगा? मुरारी काका की हत्या वाले रहस्य से अभी पर्दा उठा भी नहीं था कि एक और आदमी की रहस्यमय तरीके से हत्या हो गई थी। हालांकि मुरारी काका की हत्या की तरह इस हत्या से भी मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था किन्तु रह रह कर मेरे ज़हन में ये ख़याल उभर रहा था कि कहीं इस हत्या में भी मेरा नाम न आ जाए।

अंधेरा पूरी तरह से हो चुका था। जीप की हेडलाइट जल रही थी जिसके प्रकाश की मदद से आगे बढ़ते हुए हम उस जगह पर पहुंच गए जहां पर दरोगा ने अपने हवलदार के द्वारा पिता जी को घटना स्थल का पता बताया था। जीप के रुकते ही पिता जी जीप से नीचे उतरे, उनके साथ मैं भी जीप के इंजन को बंद कर के नीचे उतर आया। जीप की हेडलाइट को मैंने जलाए ही रखा था क्योंकि अँधेरे में ठीक से कुछ दिखाई नहीं देता।

दरोग़ा के साथ तीन पुलिस वाले थे। इस जगह से मुरारी काका का गांव मुश्किल से एक किलो मीटर की दूरी पर था। लाश के सम्बन्ध में अभी किसी को कुछ पता नहीं चला था किन्तु ये भी सच था कि देर सवेर इस सनसनीखेज काण्ड की ख़बर दूर दूर तक फ़ैल जाने वाली थी।

ये एक ऐसी जगह थी जहां पर खेत नहीं थे बल्कि बंज़र ज़मीन थी जिसमें कहीं कहीं पेड़ पौधे थे और पथरीला मैदान था। जिस जगह पर मेरा नया मकान बन रहा था वो इस जगह के बाईं तरफ क़रीब दो सौ गज की दूरी पर था। यहाँ से मुख्य सड़क थोड़ी दूर थी किन्तु मुरारी काका के गांव जाने के लिए एक छोटा रास्ता जिसे पगडण्डी कहते हैं वो इसी जगह से हो कर जाता था।

पिता जी के साथ मैं भी उस जगह पहुंचा जहां पर दरोगा अपने तीन पुलिस वालों के साथ खड़ा शायद हमारे ही आने की प्रतीक्षा कर रहा था। पिता जी जैसे ही दरोगा के पास पहुंचे तो दरोगा ने सबसे पहले पिता जी को अदब से सलाम किया उसके बाद हाथ के इशारे से उन्हें लाश की तरफ देखने के लिए कहा।

पिता जी के साथ साथ मैंने भी लाश की तरफ देखा। लाश किसी आदमी की ही थी जिसकी उम्र यही कोई पैंतीस के आस पास रही होगी। लाश के जिस्म पर जो कपड़े थे उन्हें देख कर मैं बुरी तरह चौंका और साथ ही पिता जी की तरफ भी जल्दी से देखा। पिता जी के चेहरे पर भी चौंकने वाले भाव नुमायां हुए थे किन्तु उन्होंने फ़ौरन ही अपने चेहरे के भावों को ग़ायब कर लिया था। लाश के बदन पर काले कपड़े थे जो एक दो जगह से फटे हुए थे और खून से भी सन गए थे। सिर फट गया था जहां से भारी मात्रा में खून बहा था और उसी ख़ून से आदमी का चेहरा भी नहाया हुआ था। ख़ून से नहाए होने की वजह से चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था।

"क्या आप जानते हैं इसे?" दरोगा ने पिता जी की तरफ देखते हुए पूछा तो पिता जी ने गर्दन घुमा कर दरोगा से कहा____"इसका चेहरा खून में नहाया हुआ है इस लिए इसे पहचानना संभव नहीं है। वैसे तुम्हें इस लाश के बारे में कैसे पता चला?"

"बस इसे इत्तेफ़ाक़ ही समझिए।" दरोगा ने अजीब भाव से कहा और फिर उसने उन तीनों पुलिस वालों से मुखातिब हो कर कहा____"तुम लोग इस लाश को सम्हाल कर जीप में डालो और पोस्ट मोर्टेम के लिए शहर ले जाओ। मैं ठाकुर साहब से ज़रूरी पूंछतांछ के लिए यहीं रुकूंगा।"

दरोग़ा के कहने पर तीनों पुलिस वाले अपने काम पर लग ग‌ए। कुछ ही देर में उन लोगों ने लाश को एक बड़ी सी पन्नी में लपेट कर पुलिस की जीप में रखा और फिर दरोगा और पिता जी को सलाम कर के चले गए।

"अब बताओ असल बात क्या है?" तीनों पुलिस वालों के जाने के बाद पिता जी ने दरोगा से कहा____"और ये सब कैसे हुआ?"
"असल में जब आपने पिछले दिन मुझे ये बताया था कि छोटे ठाकुर(वैभव सिंह) के साथ आज कल अजीब सी घटनाएं हो रही हैं।" दरोगा ने कहा____"जिनमें किसी ने इन्हें नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश की गई थी तो मैंने अपने तरीके से इस सबका पता लगाने का सोचा। कल रात भी मैं इस क्षेत्र में देर रात तक भटकता रहा था लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा था। आज शाम होने के बाद भी मैं यही सोच कर इस तरफ आ रहा था कि अचानक ही मेरे कानों में एक तरफ से ऐसी आवाज़ आई जैसे कोई दर्द से चीखा हो। मैंने आवाज़ सुनते ही अपने कान खड़े कर दिए और फिर जल्दी ही मुझे पता चल गया कि आवाज़ किस तरफ से आई थी। मैं फ़ौरन ही आवाज़ की दिशा की तरफ भाग चला। कुछ ही देर में जब मैं भागते हुए एक जगह आया तो मेरी नज़र अँधेरे में दो सायों पर पड़ी। एक साया तो मुझे कुछ हद तक साफ़ ही दिखा क्योंकि उसके जिस्म पर सफ़ेद कपड़े थे किन्तु दूसरा साया काले कपड़ों में था। मैंने देखा और सुना कि काला साया उस सफ़ेद कपड़े वाले से दर्द में गिड़गिड़ाते हुए बोला कि बस एक आख़िरी मौका और दे दीजिए, उसके बाद भी अगर मैं नाकाम हो गया तो बेशक मेरी जान ले लीजिएगा। काले साए द्वारा इस तरह गिड़गिड़ा कर कहने से भी शायद उस सफ़ेद कपड़े वाले पर कोई असर न हुआ था तभी तो उसने हाथ में लिए हुए लट्ठ को उठा कर बड़ी तेज़ी से उस काले साए के सिर पर मार दिया था जिससे वो वहीं ढेर होता चला गया।"

"अगर ये सब तुम्हारी आँखों के सामने ही हो रहा था।" पिता जी ने थोड़े नाराज़ लहजे में कहा____"तो तुमने आगे बढ़ कर इस सबको रोका क्यों नहीं?"
"मैं इस सबको रोकने के लिए तेज़ी से आगे बढ़ा ही था ठाकुर साहब लेकिन।" दरोगा ने पैंट को घुटने तक ऊपर उठा कर अपनी दाहिनी टांग को दिखाते हुए कहा____"लेकिन तभी मेरा पैर ज़मीन पर पड़े एक पत्थर से टकरा गया जिससे मैं भरभरा कर औंधे मुँह ज़मीन पर जा गिरा। जल्दबाज़ी में वो पत्थर मुझे दिखा ही नहीं था और अँधेरा भी था। मैं औंधे मुँह गिरा तो मेरा दाहिना घुटना किसी दूसरे पत्थर से टकरा गया जिससे मेरे मुख से दर्द भरी कराह निकल गई। उस सफ़ेद साए ने शायद मेरी कराह सुन ली थी इसी लिए तो वो वहां से उड़न छू हो कर ऐसे गायब हुआ कि फिर मुझे बहुत खोजने पर भी नहीं मिला। थक हार कर जब मैं वापस आया तो देखा काले कपड़े वाले साए ने दम तोड़ दिया था। उसका सिर लट्ठ के प्रहार से फट गया था जिससे बहुत ही ज़्यादा खून बह रहा था। उसके बाद मैं वापस आपके द्वारा मिले कमरे में गया और मोटर साइकिल से शहर निकल गया। मुझे डर था कि मेरे पीछे वो सफ़ेद कपड़े वाला आदमी उस लाश को कहीं ग़ायब न कर दे किन्तु शुक्र था कि ऐसा नहीं हुआ। शहर से मैं जल्दी ही तीन पुलिस वालों को ले कर यहाँ आया और आपको भी इस सबकी ख़बर भेजवाई।"

"वो सफ़ेद कपड़े वाला भाग कर किस तरफ गया था?" दरोगा की बातें सुनने के बाद सहसा मैंने उससे पूछा तो दरोगा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"वो आपके गांव की तरफ ही भागता हुआ गया था छोटे ठाकुर और फिर अँधेरे में गायब हो गया था। ज़ाहिर है कि वो आपके ही गांव का कोई आदमी था। काले कपड़े वाला ये आदमी जिस तरह गिड़गिड़ाते हुए उससे दूसरा मौका देने की बात कह रहा था उससे यही लगता है कि सफ़ेद कपड़े वाले ने इसे कोई ऐसा काम दिया था जिसमें उसे हर हाल में सफल होना चाहिए था किन्तु वो सफल नहीं हो पाया और आख़िर में इस असफलता के लिए उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।"

दरोगा की इस बात से न पिता जी कुछ बोले और ना ही मैं। असल में उसकी इस बात से हम दोनों ही सोच में पड़ गए थे। मेरे ज़हन में तो बस एक ही सवाल खलबली सा मचाए हुए था कि जिस काले कपड़े वाले की लाश मिली है कहीं ये वही तो नहीं जो एक और दूसरे काले साए के साथ उस शाम बगीचे में मुझे मारने आया था? उस शाम बगीचे में चाँद की चांदनी थी जिसके प्रकाश में मैंने देखा था कि उन दोनों के जिस्म पर इसी तरह का काला कपड़ा लिपटा हुआ था और चेहरा भी काले कपड़े से ढंका हुआ था। अब सवाल ये था कि अगर ये वही था तो दूसरा वाला वो साया कहां है और जिस किसी ने भी इन दोनों को मुझे मारने के लिए भेजा रहा होगा तो उसने उस दूसरे वाले को भी जान से क्यों नहीं मार दिया? आख़िर दोनों एक ही तो काम कर रहे थे यानी कि मुझे मारने का काम, तो अगर ये वाला काला साया अपने काम में नाकाम हुआ है तो वो दूसरा वाला भी तो नाकाम ही कहलाया गया न, फिर उसकी लाश इस वाले साए के पास क्यों नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी भी हत्या कर दी गई हो किसी दूसरी जगह पर या फिर मैं बेवजह ही ये समझ रहा हूं कि ये साया वही है जो उस शाम मुझे बगीचे में मिला था। मेरा दिमाग़ जैसे चकरा सा गया था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर ये चक्कर क्या है?

"तुम्हारे लिए आज ये बेहतर मौका था।" मैं सोचो में ही गुम था कि तभी मेरे कानों में पिता जी का वाक्य पड़ा तो मैंने उनकी तरफ देखा, जबकि उन्होंने दरोगा से आगे कहा____"जिसे तुमने गंवा दिया। ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता। आज अगर ये काले कपड़े वाला उस सफ़ेद कपड़े वाले के साथ तुम्हारी पकड़ में आ जाता तो हमें बहुत कुछ पता चल सकता था। हमें पता चल जाता कि वो सफ़ेद कपड़े वाला कौन था और वो इस आदमी के द्वारा ये सब क्यों करवा रहा था?"

"माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" दरोगा ने खेद प्रकट करते हुए कहा____"ये मेरा दुर्भाग्य ही था जो मैं ऐन वक़्त पर पत्थर से टकरा कर ज़मीन पर गिर गया था जिसकी वजह से मैं उस सफ़ेद कपड़े वाले तक पहुंचने में नाकाम रहा।"

"हमें पूरा यकीन है कि मुरारी की हत्या में उस सफ़ेद कपड़े वाले का ही हाथ है।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"आज अगर वो तुम्हारी पकड़ में आ जाता तो पलक झपकते ही सब कुछ हमारे सामने आ जाता। ख़ैर अब भला क्या हो सकता है?"

"आप बिलकुल सही कह रहे हैं ठाकुर साहब।" दरोगा ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"अगर वो पकड़ में आ जाता तो कई सारी चीज़ों से पर्दा उठ जाता। ख़ैर एक चीज़ तो अच्छी ही हुई है और वो ये कि अभी तक तो हम अंदाज़े से चल रहे थे किन्तु इस सबके बाद इतना तो साफ़ हो गया है कि कोई तो ज़रूर है जो कोई बड़ा खेल खेल रहा है आपके परिवार के साथ।"

"अभी जिस आदमी की लाश हमने देखी है उसके जिस्म पर वैसे ही काले कपड़े थे जैसे कि हमने तुम्हें बताया था।" पिता जी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"इसका मतलब यही हुआ कि ये वही है जिसने काले कपड़ों में छुप कर हमारे इस बेटे को मारने की कोशिश की थी किन्तु इसके अनुसार वो दो लोग थे, जबकि यहाँ पर तो एक ही मिला हमें। अब सवाल है कि दूसरा कहां है? उसकी लाश भी तो हमें मिलनी चाहिए।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" दरोगा ने चौंकते हुए कहा____"किस दूसरे की लाश के बारे में बात कर रहे हैं आप?"
"तुम भी हद करते हो दरोगा।" पिता जी ने कहा____"क्या तुम खुद को मूर्ख साबित करना चाहते हो जबकि हमें लगा था कि तुम सब कुछ समझ गए होगे।"

"जी???" दरोगा एकदम से चकरा गया।
"जिस आदमी की लाश मिली है हम उसके दूसरे साथी की बात कर रहे हैं।" पिता जी ने अपने शब्दों पर ज़ोर देते हुए कहा____"इतना तो अब ज़ाहिर हो चुका है कि ये वही काले कपड़ों वाला साया है जो हमारे इस बेटे को मारने के लिए कुछ दिन पहले बगीचे में मिला था लेकिन उस दिन ये अकेला नहीं था बल्कि इसके साथ एक दूसरा साया भी था। तुम्हारे अनुसार अगर इसके मालिक ने इसे इस लिए जान से मार दिया है कि ये अपने काम में नाकाम हुआ था तो ज़ाहिर है कि इसके दूसरे साथी को भी इसके मालिक ने जान से मार दिया होगा। हम उसी की बात कर रहे हैं।"

"ओह! हॉ।" दरोगा को जैसे अब सारी बात समझ में आई थी, बोला____"अगर ये वही है तो यकीनन इसके दूसरे साथी की भी लाश हमें मिलनी चाहिए। इस तरफ तो मेरा ध्यान ही नहीं गया था।"
"इस पूरे क्षेत्र को बारीकी से छान मारो दरोगा।" पिता जी ने जैसे हुकुम सा देते हुए कहा____"हमे यकीन है कि इसके दूसरे साथी की भी हत्या कर दी गई होगी और उसकी लाश यहीं कहीं होनी चाहिए।"

"ऐसा भी तो हो सकता है कि इसके मालिक ने इसके दूसरे साथी को मार कर किसी ऐसी जगह पर छुपा दिया हो जहां पर हमें उसकी लाश मिले ही न।" दरोगा ने तर्क देते हुए कहा____"इसकी लाश तो हमें इस लिए मिल गई क्योंकि सफ़ेद कपड़े वाले ने मुझे देख लिया था और उसको फ़ौरन ही इसे लावारिश छोड़ कर भाग जाना पड़ा था।"

"होने को तो कुछ भी हो सकता है दरोगा।" पिता जी ने कहा____"ऐसा भी हो सकता है कि सफेद कपड़े वाले ने इसके दूसरे साथी के साथ कुछ न किया हो और वो अभी भी ज़िंदा ही हो। सफेद कपड़े वाले के द्वारा इसके दूसरे साथी को भी जान से मार देने की बात भी हम सिर्फ इसी आधार पर कह रहे हैं क्योंकि उसने इन दोनों को ही एक काम सौंपा था जिसमें ये दोनों नाकाम हुए हैं और उसी नाकामी के लिए इन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। ख़ैर बात जो भी हो किन्तु अपनी तसल्ली के लिए हमें ये तो पता करना ही पड़ेगा न कि इसका दूसरा साथी कहां है।"

"जी मैं समझ गया ठाकुर साहब।" दरोगा ने सिर हिलाते हुए कहा____"रात के इस अँधेरे में उसके दूसरे साथी को या उसकी लाश को खोजना मुश्किल तो है लेकिन मैं कोशिश करुंगा उसे खोजने की, नहीं तो फिर दिन के उजाले में मैं इस पूरे क्षेत्र का बड़ी बारीकी से निरीक्षण करुंगा। अगर सफेद कपड़े वाले ने इसके दूसरे साथी को भी इसी की तरह जान से मार दिया होगा तो यकीनन कहीं न कहीं उसके निशान मौजूद ही होंगे और अगर वो अभी ज़िंदा है तो ज़ाहिर है कि उसके निशान मिलना संभव नहीं होगा, बल्कि उस सूरत में उसे ढूंढना टेढ़ी खीर जैसा ही होगा।"

थोड़ी देर और दरोगा से इस सम्बन्ध में बातें हुईं उसके बाद पिता जी के कहने पर मैं उनके पीछे हमारी जीप की तरफ बढ़ गया जबकि दरोगा वहीं खड़ा रहा।


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Interesting updates
 

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मेरी पारखी नजरों को मानिए शुभम भाई ! बहुत पहले डेथ किंग भाई की काबिलियत को पहचान गया था मैं ।
Ye to khule aam aur zabardasti credit lena hua bhaiya ji :D
कामदेव भाई बहुत कम शब्दों में रिव्यू देते हैं पर जो देते हैं वो गजब का होता है । उनके शब्द......माशा अल्लाह ! आउटस्टैंडिंग होता है ।
Agree! :approve:
नैना की क्या बात करें ! उनके जैसा नहीं देखा मैंने किसी को । मजाक मजाक में गहरी बातें कर जाती थी अपने रिव्यू
Chaar botal vodka, kaam mera roz ka :D
Sab vodka ka asar hai bhaiya ji, well jokes apart I agree Naina best reviewer hain, unka test aur andaz alag hai...I also miss her :sigh2:
अपडेट्स की बात करें -

वैभव सिंह खुद को बदलने की कोशिश तो कर रहा है पर लगता है बहुत समय लगेगा । जब तक उसकी सोच और करनी अच्छी नहीं होगी तब तक वो एक प्ले ब्वाय ही बना रहेगा । अनुराधा के साथ चिकनी चुपड़ी बातें सिर्फ उसके नजर में अपनी इमेज सुधारने को लेकर थी । मुझे नहीं लगता वो अनुराधा को अपना दिल दे बैठा है । अगर ऐसा होता तो तुरंत....उसके घर से निकलते ही , वो भुलकर भी एक लफंगे लड़के के साथ मिलकर थ्री सम नहीं कर रहा होता ।
Vaibhav se itna jaldi agar aap achhe hone ki ya pyaar me dhokha kha kar devdas ban jane jaisi ummid kar rahe hain to ye sarasar uski fitrat ki tauheen karna hua ;)
घर में हजार समस्याएं उसके सामने खड़ी है । भाई , भाभी , बहन , उसके पिताजी , उसके चचेरे भाई.... सभी के साथ कोई न कोई प्रोब्लम है लेकिन फिलहाल तो वो गुलछर्रे ही उड़ा रहा है ।

देखते हैं उसके अंदर तब्दीली कब तक आती है !
Shukar kijiye ki wo in sab jhamelo ke bare me ab itna sochna band kar diya hai warna aalu bhai ne to uska naam hi sochan dev rakh diya tha. Waise aane wale update me usko ek bada rahasya pata chalne wala hai :declare:

बहुत ही बेहतरीन अपडेट था शुभम भाई । राइटिंग स्किल के बारे में तो सभी जानते हैं कि वो गलत हो ही नहीं सकता ।
वैसे जो थ्री सम ( MMF ) हुआ उसके बारे में Shadow महोदय बढ़िया से विचार रख सकते थे । :D

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट अपडेट ।
Sab samajh raha hu aapki kaargujaari ko, ek kaam kijiye usko tag hi kar dijiye. Main bhi to dekhu ki aapki hasrato ko pura kar paata hai ki nahi :D
Well shukriya is Khubsurat sameeksha ke liye :hug:
 

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ये इंसानी कला साया वही लगता है जिससे वैभव सिंह मुरारी काका के मौत के दिन टकराया था ।
पर एक बात तो तय है कि वो वैभव का दुश्मन नहीं है क्युकी दो और काले साए आ जाते है उन्हे पहले वाले ने मार भगाया
लेकिन है कौन वो ? शारीरिक ताकत में वैभव से भी बीस ही दिखाई दे रहा है और अपनी पहचान भी उससे छुपा रहा है । तो ये नया कैरेक्टर कोन है ?
Wo ek rahasyamayi byakti hai bhai, uska pata aage chal kar pata chal jaayega, well shukriya bhai :hug:
 

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Fantastic updated
वैभव का सपने से कोई तो संबंध है क्यू कि ऐसा सपना पहले कभी नहीं आया
वैभव ने तो साहूकारों की लड़की रूपा को भी लपेट लिया देखते हैं ये रूपा भी कुछ काम आती हैं या नहीं
Sapna besabab hai ya uske pichhe koi reason iska pata kahani me aage chal kar hi lagega, well shukriya bhai
 

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बहुत ही शानदार अपडेट है । आखिरकार वैभव की फसल जलाने वाले का पता तो चल गया ।और ये साहुकारो के लड़के वैभव के पास ही पिटने के लिए क्यू आते है साले जो भी आता है वैभव की गांड़ में उंगली करता है और गांड़ मरवा कर चला जाता है अनुराधा ने वैभव से सब रूपचंद के कहने पर बोला है रूपचंद अपने कर्जे की वसूली करने आता है लेकिन वैभव उसकी गांड़ मार कर भगा देता है साला ये ठाकुर कितनी सफाई देगा रोज रोज देर सवेर मुरारी काका के हत्यारे का पता भी चल ही जाएगा । जगताप ठाकुर के साथ साहूकार का बेटा बग्गी में क्या कर रहा था
Sahukaaro ke ladke gaandu hain is liye baar baar vaibhav ke takraane ki bhool karte hain ;)
Well shukriya bhai
 

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होली खेलने मुंशी जी के घर पहुंच गया है वैभव । वहां रजनी के साथ खास होली की तैयारी हो ही रही थी कि पड़ोस की लड़की रानी अपनी भौजी के साथ वहां पहुंच गई । थोड़ा विध्न तो हुआ लेकिन वैभव के लिए आने वाले समय में बहुत कुछ मस्त मस्त होने वाला है । इन दो युवतियों के अलावा रजनी की ननद भी तो है जो आगे चलकर वैभव से चूदाई करवाएगी

देखते है किस तरह से और किन बातों से वो इन कन्याओं को अपना शिकार बनाता है ।
Shukriya bhai
 

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I think the three some sex was a plot device to sharply reverse the animosity between the protagonist and his minor rival. Not just for titillation.
Another Great Update.
Good going. Plz keep up.
You got it right, and it was important too :D
Well shukriya bhai
 

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TheBlackBlood मित्र एक सेक्स ब्रेक अच्छा लगा, इस से वैभव व रूपचंद मे एक तारामंतय बना है, देखे अब ये कैश कैसे होता है... रोचकता बनाये रखने के लिए 🤔......
Shukriya bhai, jald hi ek badlaav hone wala hai
 
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