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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192

Mastmalang

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Itna kuch likh kar post karne ke baad bhi man nahi bhara na mitra, samajh sakta hu. Insaan ko jitna milta hai wo kam hi lagta hai. Agar main ye kahu ki aapne apni sameeksha me jo likha hai wo kaha tak jayaz hai to shayad aap sahi tarike se jawaab nahi de paaoge kyoki aapko bhi pata hai ki aapne sirf khana purti hi ki hai comment kar ke. Jis din dil se kahani ki sameeksha karoge to uska prabhaav khud ko bhi alag hi nazar aayega....bilkul SANJU ( V. R. ) Bhaiya aur Death Kiñg bhai ki tarah. Well ise dil par mat lena....bas gaur zarur karna :dost:
Dekho bhai Ab Har koi sanju Bhai Ya death king ki Tarah tho Samiksha kar nahi Sakta.
Lekin iska Matlab Ye tho nahi ki hame aapki story pasand nahi hai.
Mana ki mere comment chota ho Sakta hai mager bhai Har koi ek jaisa Samiksha bhi kaha kar pata hai.
Ho Sakta hai ki hum aapki ummidon par khare na utre ho mager hum aapke mehnat ke kadardan Tho hai hi.
Ummid karta hun ki aap Hamari bhavnaon ko samjhen Hamare Chhote comment ka bura Na Mane
 

Ajju Landwalia

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Wo safedposh kahani ka koi new character nahi hai dost, wo wahi hai jiske under me do kaale naqabposh kaam kar rahe the. Ek ko to usi ne maar diya tha lekin ek abhi bhi zinda hai aur uske kahne par kaam kar raha hai. Haal hi me wo kala nakabposh tab dekha gaya tha jab vaibhav Sheela se puchtaanch kar raha tha aur fir usne Sheela ko jaan se maar diya tha..remember?? :huh:
Jagan ke sath baaki kaun hai iska jald hi pata chalega next update me :declare:

Bilkul yaad he Bhai, ye safed aur kaale kapde walo ne Vaibhav ki zindagi me tufaan la rakha he
 

Luckyloda

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Yahi baat main bhi kah sakta hu bro ki jab aap comment kiya karo to kahani ke bare me thodi vistrat sameeksha kiya karo. Bahut hi shandar update likh dene bas se waisa hi feel hota hai jaise kisi bahut hi bhookhe insaan ke saamne khane ke naam par bas roti ka ek tukda de diya gaya ho... :D

Well shukriya bhai....koshish karuga aage se aisi galti na ho :dost:
Bhai main aap jaisa likhne ki kala nahi janta ....


Ye 1 ishwar dwara di gyi vishesh aashirwad hai jo kuch hi sobhagyasali ko milta hai jisme aap 1 ho....



Main chahta hu ki bhut ache se review de pau.. par mere pass shabd nahi hote....


Aur jyada main isley nahi likh pata kahi kuch acha likhne k chakkar m kuch aisa na likh jaye Jisse koi hurt ho... isliye shaadar update likhne hi Kaam chala leta hu.... waise main khud lagbhag 2011 se Iss forum se juda hua 1 silent sa reader hu.... aur aapne kabhi mujhe gaur bhi nahi kiya hoga.....

Par main bas chupchaap padh k nice update likh k Kaam chala leta hu...


Sorry bro
 

Death Kiñg

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विभोर और अजीत से जैसा वैभव ने कहा था, उसी के अनुरूप उन दोनों ने कुसुम से माफी मांग ली है। कुसुम... वो अभी अपराधबोध के चंगुल में फंसी दिखाई दे रही है, परंतु उसकी चिंताओं में से एक चिंता बिलकुल व्यर्थ ही है। सर्वप्रथम, उसका ये सोचना की उस दिन उसकी सहेलियों संग जिस सुख का आंनद वो ले रही थी, वो अपराध था, तो ये कुसुम का भोलापन और नादानी है। इस आयु में लड़का हो या लड़की, शरीर में आ रहे बदलावों से ग्रसित होकर हस्तमैथुन आदि, कोई अपराध नहीं, कुसुम का अपनी सहेलियों के साथ लेस्बियन सेक्स करना भी गलत नहीं था। हां, ये उसकी मूर्खता अवश्य थी की तब कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था। तो उसका ऐसा सोचना की वो गंदी हो गई है, या कुछ और, बेबुनियाद विचार हैं जो उसके मासूम और नादान हृदय से उपजे हैं।

परंतु, जिस चीज़ को लेकर मैं भी कुसुम को दोषी मानता हूं वो वैभव की चाय में नामर्द बनाने की दवा मिलाने वाली घटना। सर्वप्रथम, तो यही प्रश्न खड़ा होता है की क्या सबूत था कुसुम के पास कि जो दवाई उसके कमीने भाई उसे चाय में मिलाने के लिए कह रहें हैं, वो नामर्द बनाने की ही है। बिलकुल संभव था की वो ज़हर हो सकता था, तो कुसुम क्या वैभव को ज़हर ही दे देती? हालांकि, इतना जिगरा नहीं था विभोर और अजीत में परंतु फिर भी कुसुम का ये कार्य मूर्खतापूर्ण ही था। उसके कृत्य में स्वार्थ भी झलकता है, कहना अच्छा नहीं लगता परंतु कुसुम ने एक तरह से अपनी छवि बचाने के लिए उसे जान से ज़्यादा प्यार करने वाले वैभव की जान ही दांव पर लगा दी थी। यदि, वैभव नामर्द बन जाता उस दवा के प्रभाव से तो मैं दावे से कह सकता हूं की वो खुदकुशी कर लेता।

कुसुम को भी अपनी गलती समझ आ गई है और साथ ही उसने विभोर – अजीत को भी माफ कर दिया है। ऊपरी तौर पर ही सही परंतु जो कुछ उन दोनों ने कुसुम के हृदय के साथ किया था, उसके पश्चात इतना ही बहुत है। जब तक विभोर – अजीत ये साबित नहीं कर देते की वो बदल चुके हैं, मुझे नहीं लगता की कुसुम उन्हें मन से माफ करेगी। अब प्रतीक्षा है तो कुसुम और वैभव की वार्ता की। कुसुम अभी इस बात से भी अनभिज्ञ है की वैभव को इस सत्य के बारे में पूर्ण ज्ञान है भी या नहीं। देखना होगा की ये जानकर की वैभव उसकी और उसकी सहेलियों के बारे में सब जानता है, कुसुम कैसे बर्ताव करेगी। आशा है की वो खुद को संभाल पाए। बहरहाल, ज़रा ये कुसुम की सहेलियों पर भी थोड़ी वैभव नामक रोशनी डालना, शुभम भाई.. :D

एक और बात सामने आ चुकी है की वैभव ने अपने ठरकीपन की दुकान रागिनी के मायके में भी खोल रखी है... अपनी मां से रागिनी के मायके जाने की बात सुनकर जो प्रथम विचार उसके मन में उत्पन्न हुआ था उससे यही लगता है की, या तो वैभव ने वहां भी झंडे गाड़े हुए हैं या फिर ऐसा करने की उसकी मंशा है। चाहे वो किता भी परिवर्तित क्यों न हो गया हो, उसके चरित्र से ये भाग कभी अलग नहीं होने वाला, कम से कम तब तक तो बिलकुल नहीं जब तक उसे सच्चे प्रेम का एहसास नहीं हो जाता।

रागिनी के मायके के बारे में कुछ रोचक बातें भी सामने आईं। उसके पिता चल – फिर नहीं सकते, घुटने उम्र के कारण खराब हैं या किसी ने तोड़ दिए थे..? एक भाई गायब है रागिनी का और दूसरे को विवाह के दस साल बाद पुत्र प्राप्ति हुई हैं। कहीं न कहीं ये जानकारी पुनः रागिनी पर ही संदेह बढ़ा रहीं हैं। उसके भाई के गायब होने के पीछे क्या सत्य था, ये सामने आने पर ही कुछ कहा जा सकता है, परंतु जो भी हो, अभिनव का बहुत गंदा कटने वाला है यदि रागिनी षड्यंत्रकारी हुई तो। लौड़ों का शादी से पहले कटता है इसका शादी के बाद कटेगा.. :lol:

जगन पर वैभव का संदेह उचित ही था, वो साहूकारों के बगीचे में उस सफेदपोश से मिल रहा था, उनके साथ ही एक और व्यक्ति भी था, जिसकी जानकारी छुपाकर लेखक साहब ने उचित नहीं किया :angryno:... वो दोनों लट्ठ लिए खड़े युवक शर्तिया चेतन और सुनील ही होंगे, मेरे ख्याल में उन्हें ही ये कार्य सौंपा होगा वैभव ने। रोचक रहेगा देखना की वो तीसरा प्राणी कौन था, मुंशी, या शायद उसके घर का कोई सदस्य..? या कहीं अनुराधा की मां ही तो नहीं!

खैर, अब वैभव जल्द ही रागिनी के मायके की तरफ निकलने वाला है। पूरे आसार हैं की उसके पीछे से कुछ न कुछ गडबड तो होगी ही। यदि वैभव गांव में नहीं होगा तो शायद रूपचंद्र भी अपने बिल से बाहर मिलेगा, अनुराधा पर दोबारा नज़र डालने की हिम्मत होगी नहीं उसमें, पर कुत्ते की पूंछ है अगला, तो कौन जाने वो क्या करेगा। रूपा को मिलने के लिए इशारा भी तो किया था वैभव ने जब सुबह के समय वो उसके घर पहुंचा था, शायद अनुराधा के साथ हुई घटना के कारण उसका मन बदल गया हो...

बहुत ही खूबसूरत अध्याय था शुभम भाई। अब लगता है की कहानी की कुछ कड़ियां जल्द ही जुड़ने लगेंगी। जगन, वो तीसरा शख्स और रागिनी का मायका, अवश्य कुछ ही समय बाद, वैभव के हाथ एक मज़बूत सुराग लग सकता है। आशा है की इस बार वो कोई मूर्खता नहीं करेगा, जैसा उसने शीला के समय किया था।

प्रतीक्षा अगली कड़ी की...
 

Napster

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अध्याय - 50
━━━━━━༻♥༺━━━━━━


अब तक....


"फिर तो हमें जल्द ही अपने कुछ भरोसे के आदमियों को उन पर नज़र रखने के काम पर लगा देना चाहिए पिता जी।" मैंने जोशपूर्ण भाव से कहा____"हमारे पास फिलहाल अपने असल दुश्मन तक पहुंचने का कोई रास्ता या सुराग़ नहीं है तो अगर इस तरह में हमारे हाथ कुछ लग जाता है तो ये बड़ी बात ही होगी।"

कुछ देर और इस संबंध में पिता जी से हमारी बातें हुईं उसके बाद हम दोनों भाई बैठक से चले गए। एक तरफ जहां मैं इस मामले से गंभीर सोच में डूब गया था वहीं दूसरी तरफ इस बात से खुश भी था कि मेरे बड़े भैया अब मेरे साथ थे और ऐसे मामले में वो भी हमारे साथ क़दम से क़दम मिला कर चल रहे थे।


अब आगे....


दोपहर का खाना खाने के बाद मैं और बड़े भैया एक साथ ही ऊपर अपने अपने कमरे की तरफ चले थे। जैसे ही हम दोनों ऊपर पहुंचे तो पीछे से विभोर के पुकारने पर हम दोनों ही ठिठक कर पलटे। हमने देखा विभोर और अजीत सीढ़ियां चढ़ते हुए ऊपर ही आ रहे थे। ये पहली बार था जब उनमें से किसी ने मुझे पुकारा था। ख़ैर जल्दी ही वो दोनों ऊपर हमारे पास आ कर खड़े हो गए। दोनों हमसे नज़रें चुरा रहे थे।

"क्या बात है?" मैंने दोनों की तरफ बारी बारी से देखते हुए सामान्य भाव से पूछा____"कोई काम है मुझसे?"
"ज...जी भैया वो मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं।" विभोर ने झिझकते हुए धीमें स्वर में कहा तो मैंने कहा____"जो भी कहना है बेझिझक कहो और हां, मेरे सामने तुम्हें शर्मिंदा होने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं चाहता हूं कि जो बीत गया है उसे भूल जाओ और एक नए सिरे से किंतु साफ़ नीयत के साथ अपने जीवन की शुरुआत करो। ख़ैर, अब बोलो क्या कहना चाहते हो मुझसे?"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" विभोर ने दुखी भाव से कहा____"मैंने आपके साथ क्या क्या बुरा नहीं किया लेकिन इसके बाद भी आप मुझसे इतने अच्छे से बात कर रहे हैं और सब कुछ भूल जाने को कह रहे हैं। पता नहीं वो कौन सी मनहूस घड़ी थी जब मेरे मन में आपके प्रति ईर्ष्या का भाव पैदा हो गया था, उसके बाद तो जैसे मुझे किसी बात का होश ही नहीं रह गया था।"

"भूल जाओ वो सब बातें।" मैंने विभोर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा____"हर इंसान से ग़लतियां होती हैं। तुमने तो शायद पहली बार ही ऐसी ग़लती की थी जबकि मैंने तो न जाने कितनी ग़लतियां की हैं। ख़ैर अच्छी बात ये होनी चाहिए कि इंसान ऐसी ग़लतियां दुबारा न करे और कुछ ऐसा कर के दिखाए जिससे लोग उसकी वाह वाही करने लगें।"

"अब से हम दोनों ऐसा ही काम करेंगे वैभव भैया।" अजीत ने कहा____"अब से हम दोनों वही करेंगे जिससे आपका और हमारे खानदान का नाम ऊंचा हो। अब से हम किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देंगे, लेकिन उससे पहले हम अपनी बहन से माफ़ी मांगना चाहते हैं।"

"हां भैया।" विभोर ने कहा____"हमने अपनी मासूम सी बहन का बहुत दिल दुखाया है। अब जबकि हमें अपनी ग़लतियों का एहसास हुआ है तो ये भी एहसास हो रहा है कि हमने उसके साथ कितनी बड़ी ज़्यादती की है। ऊपर वाला हम जैसे भाई किसी बहन को न दे।"

"मुझे खुशी हुई कि तुम दोनों को अपनी ग़लतियों का एहसास हो गया है।" बड़े भैया ने कहा____"लेकिन सिर्फ एहसास होने बस से इंसान अच्छा नहीं बन जाता बल्कि उसके लिए उसे प्रायश्चित करना होता है और ऐसे कर्म करने पड़ते हैं जिससे कि उस इंसान की अंतरात्मा खुश हो जाए जिसका उसने दिल दुखाया होता है। ख़ैर अब तुम जाओ और कुसुम से अपने किए की माफ़ी मांग लो। वैसे मुझे यकीन है कि वो तुम दोनों को बड़ी सहजता से माफ़ कर देगी क्योंकि हमारी बहन का दिल बहुत ही विशाल है।"

बड़े भैया के ऐसा कहने पर विभोर और अजीत ने अपनी अपनी आंखों के आंसू पोंछे और कुसुम के कमरे की तरफ बढ़ गए। उनके जाने के बाद हम दोनों एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा उठे। मैंने कुछ सोचते हुए भैया को एक अहम काम सौंपा और खुद वापस सीढ़ियों की तरफ बढ़ चला।


[][][][][]

मैं हवेली से निकल कर अपनी बुलेट से हाथी दरवाज़े के पास ही पहुंचा था कि मुझे मुंशी चंद्रकांत एक आदमी के साथ मिल गया। मुझे देखते ही दोनों ने सलाम किया। मैंने कई दिनों बाद आज मुंशी को देखा था जिसके चलते मेरे मन में कई सारे सवाल खड़े हो गए थे।

"आज कल तो आप इर्द का चांद हो गए हैं मुंशी जी।" मैंने मोटर साईकिल उसके क़रीब ही खड़े कर के कहा____"काफ़ी दिन से आप कहीं नज़र ही नहीं आए।"

"मैं अपने बेटे के साथ उसकी ससुराल गया हुआ था छोटे ठाकुर।" मुंशी ने अपनी खीसें निपोरते हुए कहा____"ठाकुर साहब की इजाज़त ले कर ही गया था। असल में बात ये थी कि मेरी समधन काफी बीमार थीं तो उन्हीं का हाल चाल देखने गया था। वैसे गया तो मैं एक दिन के लिए ही था क्योंकि यहां काम ही इतना था कि मुझे ज़्यादा समय तक कहीं रुकने की फुर्सत ही नहीं थी किंतु वहां से जल्दी वापस आ ही नहीं पाया। समधन ने ज़बरदस्ती रोके रखा ये कह कर कि कभी आते नहीं हैं तो कम से कम एक दो दिन तो सेवा करने का मौका मिलना ही चाहिए। बड़ी मुश्किल से वहां से छूटा तो एक दिन के लिए अपनी ससुराल चला गया। असल में कोमल बिटिया काफी समय से वहीं थी तो सोचा उसको भी घर ले आऊं। अभी घंटा भर पहले ही हम सब घर पहुंचे थे। थोड़ी देर आराम करने के बाद सीधा हवेली चला आया। डर रहा हूं कि कहीं ठाकुर साहब मेरे इस तरह अवकाश करने से नाराज़ ना हो गए हों।"

"चलिए कोई बात नहीं मुंशी जी।" मैं मन ही मन ये सोच कर थोड़ा खुश हो गया था कि मुंशी अपनी बेटी कोमल को उसकी ननिहाल से घर ले आया है, किंतु प्रत्यक्ष में बोला_____"जाइए पिता जी हवेली में ही हैं। मैं किसी काम से बाहर जा रहा हूं।"

मुंशी से विदा ले कर मैं आगे बढ़ चला। मैं सोच रहा था कि क्या मुंशी सच बोल रहा था अथवा झूठ? क्या वो सच में इतने दिनों से अपने बेटे के साथ उसकी ससुराल में था या किसी और ही काम से गायब था? वैसे अभी तक मुंशी या उसके बेटे ने ऐसा कोई भी काम नहीं किया था जिसके चलते उन दोनों बाप बेटे पर शक किया जाए किंतु हालात ऐसे थे कि किसी पर भी अब भरोसा करने लायक नहीं रह गया था।

मुंशी की बहू रजनी का रूपचंद्र से जिस्मानी संबंध था और ये मेरे लिए बड़ी ही हैरानी तथा सोचने की बात थी कि दोनों के बीच ऐसा संबंध कब और किन परिस्थितियों में बना होगा? रजनी से मेरे भी संबंध थे और रजनी से ही बस क्यों बल्कि उसकी सास प्रभा से भी थे लेकिन जाने क्यों मेरा दिल अब रजनी पर भरोसा करने से इंकार कर रहा था। क्या वो रूपचंद्र के साथ मिल कर मेरे साथ कोई खेल खेल रही थी या फिर रूपचंद्र से उसका संबंध सिर्फ़ मज़े लेने तक ही सीमित था? वैसे पहली बार जब मैंने उसे छुप कर रूपचंद्र के साथ संबंध बनाते देखा था तब वो जिस तरह से रूपचंद्र को अपनी बातों से जला रही थी उससे तो यही लगता था कि वो मन से रूपचंद्र के साथ नहीं है। रूपचंद्र से जिस्मानी संबंध बनाना ज़रूर उसकी मजबूरी ही होगी। रूपचंद्र इस मामले में कितना कमीना था ये मुझसे बेहतर भला कौन जानता था? मैं इस बारे में जितना सोच रहा था उतना ही मुझे लगता जा रहा था कि रजनी मजबूरी में ही रूपचंद्र के साथ जिस्मानी संबंध बनाए हुए होगी। हालाकि औरत का भेद तो ऊपर वाला भी नहीं जान सकता लेकिन रजनी मेरे साथ कोई खेल खेल रही थी ये बात मुझे हजम नहीं हो रही थी।

जल्दी ही मैं साहूकारों के घर के सामने पहुंच गया। सड़क के किनारे ही एक पीपल का पेड़ था जिसमें पक्का चबूतरा बना हुआ था किंतु इस वक्त वो खाली था। कड़ाके की धूप थी इस लिए दोपहर में कोई घर से बाहर नहीं निकल सकता था। मैंने कुछ पल सोचा और साहूकारों के घर की तरफ बुलेट को मोड़ दी। लोहे का गेट खुला हुआ था इस लिए मैं फ़ौरन ही लंबे चौड़े लॉन से होते हुए उनके मुख्य द्वार पर पहुंच गया। बुलेट की तेज़ आवाज़ जैसे ही बंद हुई तो दरवाज़ा खुला और जिस शख्सियत पर मेरी नज़र पड़ी उसे तो बस देखता ही रह गया।

दरवाज़े के बीचों बीच दोनों पल्लों को पकड़े रूपचंद्र की बहन रूपा खड़ी थी। उसके गोरे बदन पर हल्के सुर्ख रंग का लिबास था जिसमें वो बेहद खूबसूरत दिख रही थी। चांद की तरह खिला हुआ चेहरा मुझे देखते ही हल्का गुलाबी सा पड़ गया था। कुछ पलों के लिए यूं लगा जैसे वक्त अपनी जगह पर ठहर गया हो। मैं उसे देख कर हल्के से मुस्कुराया तो जैसे उसकी तंद्रा टूटी और वो एकदम से हड़बड़ा गई। मैं उसे यूं हड़बड़ा गया देख कर हल्के से हंसा और फिर उसी की तरफ बढ़ा। मुझे अपनी तरफ बढ़ता देख उसके चेहरे पर एकदम से घबराहट के भाव उभर आए, तभी अंदर से किसी की आवाज़ आई।

"अगर किस्मत में ऐसे ही हर रोज़ इस चांद का दीदार होना लिख जाए।" मैंने रूपा के क़रीब पहुंचते ही किसी गए गुज़रे हुए आशिक़ों की तरह आहें भरते हुए कहा____"तो बंदा दुनिया के हर ज़ुल्मो सितम को सह कर भी हुस्न वालों की दहलीज़ पर दौड़ता हुआ आएगा। क़सम से तुम्हें देखने के बाद अब अगर मौत भी आ जाए तो ग़म न होगा।"

"अच्छा जी ऐसा है क्या?" रूपा ने बहुत ही धीमें स्वर में किंतु शर्माते हुए कहा तो मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा_____"कोई शक है क्या?"

"कौन आया है रूपा?" अंदर से एक बार फिर किसी औरत की आवाज़ आई तो हम दोनों ही हड़बड़ा गए और मैं उससे थोड़ा दूर खड़ा हो गया।
"हवेली से कोई आया है मां।" रूपा ने मेरी तरफ देखते हुए किंतु मुस्कुराते हुए कहा____"लगता है रास्ता भटक गया है।"

"ये तो ज़ुल्म है यार।" मैंने धीमें स्वर में कहा____"जान बूझ कर अजनबी बना दिया मुझे जबकि होना तो ये चाहिए था कि चीख चीख कर सबको बताती कि एक दीवाना आया है तुम्हारा।"

"हां, ताकि मेरे घर वाले मेरे जिस्म की बोटी बोटी कर के चील कौवों को खिला दें।" रूपा ने आंखें दिखाते हुए किंतु मुस्कुरा कर कहा____"बड़े आए एक दीवाना आया है बोलवाने वाले... हुह!"

"आज शाम को मंदिर में मिलो।" मैंने अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को काबू करते हुए कहा तो उसने आंखें सिकोड़ते हुए कहा____"क्यों...क्यों मिलूं भला?"
"अपनी देवी के दर्शन करने हैं मुझे।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा_____"और दर्शन के साथ साथ देवी की पूजा भी करनी है। उसके बाद अगर देवी मेरी पूजा से प्रसन्न हो जाए तो वो मुझे मीठा मीठा प्रसाद भी दे सकती है।"

रूपा अभी कुछ बोलने ही वाली थी कि तभी अंदर से आती हुई एक औरत दिखी जिससे मैं थोड़ा और दूर खड़ा हो गया। मैंने रूपा को भी इशारा कर दिया कि उसके पीछे कोई आ रहा है। कुछ ही पलों में अंदर से आने वाली औरत रूपा के पास पहुंच गई। शायद वही उसकी मां ललिता थी। उन्हें देख कर मैंने बड़े आदर भाव से हाथ जोड़ कर उन्हें प्रणाम किया जिस पर उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे आशीर्वाद दिया।

"बाहर क्यों खड़े हो वैभव बेटा अंदर आओ ना।" रूपा की मां ललिता देवी ने बड़े प्रेम भाव से कहा____"ये लड़की भी ना, एक भी अक्ल नहीं है इसमें। देखो तो घर आए मेहमान को अंदर आने के लिए भी नहीं कहा। जाने कब अक्ल आएगी इसे?"

"मैं मेहमान नहीं हूं काकी।" मैंने नम्र भाव से कहा____"मैं तो आपका बेटा हूं और ये घर भी तो मेरा ही है। क्या इतना जल्दी मुझे पराया कर दिया आपने?"

"अरे! नहीं नहीं बेटा।" ललिता देवी एकदम से हड़बड़ा गईं, फिर सम्हल कर बोलीं____"ऐसी तो कोई बात नहीं है। तुमने सच कहा ये तुम्हारा ही घर है और तुम मेरे बेटे ही हो। अब चलो बातें छोड़ो और अंदर आओ।"

"माफ़ करना काकी।" मैंने कहा____"अभी अंदर नहीं आऊंगा। असल में किसी काम से जा रहा था तो सोचा काका लोगों से मिल कर उनका आशीर्वाद ले लूं और सबका हाल चाल भी पूंछ लूं लेकिन लगता है कि काका लोग अंदर हैं नहीं?"

"हां तुमने सही कहा बेटा।" ललिता देवी ने कहा____"असल में घर के सभी मर्द और बच्चे हमारी जेठानी की लड़की आरती के लिए एक जगह लड़का देखने गए हुए हैं। सब कुछ ठीक ठाक रहा तो रिश्ता पक्का हो जाएगा और फिर जल्दी ही ब्याह के लिए लग्न भी बन जाएगी।"

"अरे वाह! ये तो बहुत ही खुशी की बात है काकी।" मैंने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"जल्द ही इस घर में शहनाईयां बजेंगी। मैं तो कहता हूं काकी कि घर की सभी लड़कियों का ब्याह कर के जल्द से जल्द उनकी छुट्टी कर दो आप और मेरे भाईयों का ब्याह कर के नई नई बहुएं ले आओ।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" रूपा अपनी मां के सामने ही एकदम से बोल पड़ी____"हम लड़कियां क्या अपने मां बाप के लिए बोझ बनी हुई हैं जो वो जल्दी से हमारा ब्याह कर के इस घर से हमारी छुट्टी कर दें?"

"देखिए ऐसा है कि दुनिया के कोई भी माता पिता अपनी लड़कियों से ये नहीं कहते कि उनकी लड़कियां उनके लिए बोझ हैं।" मैंने रूपा को छेड़ने के इरादे से मुस्कुराते हुए कहा____"जबकि सच तो यही होता है कि लड़कियां सच में अपने माता पिता के लिए बोझ ही होती हैं। मैं सही कह रहा हूं ना काकी?"

"हां बेटा, बहुत हद तक तुम्हारी ये बात सही है।" ललिता देवी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"लड़कियां उन माता पिता के लिए यकीनन बोझ जैसी ही होती हैं जो अपनी लड़कियों का ब्याह कर पाने में समर्थ नहीं होते। जिनके घर में खाने के लिए दो वक्त की रोटी नहीं होती और अपनी जवान बेटियों के तन को ढंकने के लिए कपड़े नहीं होते। ऐसे माता पिता के लिए लड़कियां न चाहते हुए भी बोझ सी ही लगने लगती हैं।"

जाने क्यों मुझे ऐसा लगा जैसे इस मामले की बात शुरू हो जाने से माहौल थोड़ा संजीदा सा हो गया है इस लिए मैंने काकी से बाद में आने का कह कर उन्हें प्रणाम किया और उनसे विदा ले कर वापस चल पड़ा। काकी से नज़र बचा कर मैंने एक बार फिर से रूपा को आज शाम मंदिर में मिलने का इशारा कर दिया था। मुझे यकीन था रूपा मुझसे मिलने के लिए मंदिर ज़रूर आएगी।

एक बार फिर से मैं बुलेट में बैठ कर आगे बढ़ चला। मुंशी के घर के पास पहुंच कर मैंने एक नज़र उस तरफ देखा और फिर आगे बढ़ गया। काफी समय से मैं अपने नए निर्माण हो रहे मकान की तरफ नहीं जा पाया था। इस लिए मैं तेज़ रफ़्तार में उस तरफ बढ़ता चला जा रहा था। जिस तरफ मेरा मकान बन रहा था वहां पर जाने के लिए मुख्य सड़क से बाएं तरफ मुड़ना होता था। कुछ दूरी से बंजर ज़मीन शुरू हो जाती थी। पथरीली ज़मीन पर कई तरह के पेड़ पौधे भी थे। हालाकि पथरीली ज़मीन का क्षेत्रफल ज़्यादा नही था। यूं तो मुरारी काका के गांव की तरफ जाने के लिए मुख्य सड़क थी किंतु एक पगडंडी वाला रास्ता भी मुरारी के गांव की तरफ जाता था जो कि वहीं से हो कर गुज़रता था जिस तरफ मेरा नया मकान बन रहा था।

कुछ ही देर में मैं उस जगह पहुंच गया जहां पर मेरा मकान बन रहा था। मकान भुवन की निगरानी में बन रहा था इस लिए वो वहीं मौजूद था। मुझे देखते ही उसने मुझे सलाम किया और मकान के कार्य के बारे में सब कुछ बताने लगा।

"शहर से जिन लोगों को बुलाया था वो अपना काम कर रहे हैं ना?" मैंने भुवन की तरफ देखते हुए पूछा तो उसने कहा____"हां छोटे ठाकुर, आपके कहे अनुसार वो लोग रात में बड़ी सावधानी से अपना काम कर रहे हैं और इस बात का पता मेरे और आपके अलावा किसी और को बिल्कुल भी नहीं है। यहां तक कि यहां के इन मजदूरों और मिस्त्रियों को भी इस बात का आभास नहीं हुआ कि इसी मकान के नीचे गुप्त रूप से कोई तहखाना भी बनाया जा रहा है।"

"किसी को इस बात का आभास होना भी नहीं चाहिए भुवन।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"यहां तक कि दादा ठाकुर तथा जगताप चाचा को भी नहीं। यूं समझो कि इस बात को तुम्हें हमेशा हमेशा के लिए अपने सीने में ही राज़ बना के दफ़न कर लेना है।"

"जी मैं समझ गया छोटे ठाकुर।" भुवन ने सिर हिलाते हुए कहा____"मैं अपना सिर कटा दूंगा लेकिन इस बारे में किसी को भी पता नहीं लगने दूंगा।"
"बहुत बढ़िया।" मैंने भुवन के कंधे को अपने हाथ से थपथपाते हुए कहा____"ख़ैर, और भी कुछ ऐसा है जो तुम्हें बताना चाहिए मुझे?"

"पिछले एक हफ्ते से तो हवेली का कोई भी सदस्य इस तरफ नहीं आया है।" भुवन ने कहा____"लेकिन दो दिन पहले आपके दो मित्र यहां आए थे और यहां के बारे में पूछ रहे थे। ये भी पूछा कि आप आज कल कहां गायब रहते हैं?"

"मेरे तो दो ही मित्र ऐसे हैं जो बचपन से मेरे साथ रहे हैं।" मैंने भुवन की तरफ देखते हुए किंतु सोचने वाले भाव से कहा____"चेतन और सुनील। क्या यही दोनों आए थे यहां?"
"हां हां छोटे ठाकुर।" भुवन एकदम से बोल पड़ा____"दोनों एक दूसरे का यही नाम ले रहे थे।"

भुवन से मैंने कुछ देर और बात की उसके बाद उसे सतर्क रहने का बोल कर मुरारी काका के घर की तरफ चल पड़ा। मैं सोच रहा था कि चेतन और सुनील यहां किस लिए आए होंगे और मेरे बारे में क्यों पूछ रहे थे? अगर उन्हें मुझसे मिलना ही था तो वो सीधा हवेली ही आ सकते थे। उन दोनों का तो हमेशा से ही हवेली में आना जाना रहा है। हालाकि इधर जब मुझे तड़ीपार कर दिया गया था तब वो कभी मुझसे मिलने इस जगह पर नहीं आए थे। ख़ैर मुझे याद आया कि मैंने उन दोनों को जासूसी करने का काम सौंपा था किंतु तब से ले कर अब तक में वो दोनों मुझसे मिले ही नहीं थे। दोनों मेरे बचपन के मित्र थे और हमने साथ में जाने क्या क्या कांड किए थे लेकिन अब हमारे बीच वैसा जुड़ाव नहीं रह गया था। एकदम से मुझे लगने लगा कि कहीं वो दोनों भी किसी फ़िराक में तो नहीं हैं? काफी दिनों से मेरी उन दोनों से मुलाक़ात नहीं हुई थी। मैं तो ख़ैर क‌ई सारे झमेलों में फंसा हुआ था लेकिन वो भला किस झमेले में फंसे हुए थे कि एक बार भी मुझसे मिलने हवेली नहीं आए। ये सब सोचते सोचते मुझे आभास होने लगा कि दाल में कुछ तो काला ज़रूर है। दोनों की गांड तोड़नी पड़ेगी अब, तभी सच सामने आएगा।

सोचते विचारते मैं मुरारी काका के घर पहुंच गया। बुलेट का इंजन बंद कर के जैसे ही मैं दरवाज़े के पास आया तो दरवाज़ा खुला। आज का दिन कदाचित बहुत ही बढ़िया था। उधर साहूकार के घर का दरवाज़ा जब खुला था तो एक खूबसूरत चेहरा नज़र आया था और अब मुरारी के घर का दरवाज़ा खुला तो अनुराधा की हल्की सांवली सूरत नज़र आ गई। एक ऐसी सूरत जिसमें दुनिया जहान की मासूमियत, भोलापन और सादगी कूट कूट कर भरी हुई थी। मुझे देखते ही उसके चेहरे पर एक ख़ास तरह की चमक के साथ साथ हल्की शर्म की लाली भी उभर आई थी।

"कैसी हो ठकुराईन?" मैंने मुस्कुराते हुए उसे छेड़ने के इरादे से धीमी आवाज़ में कहा तो वो एकदम शर्म से सिमट गई। गुलाबी होठों पर थिरक रही मुस्कान पलक झपकते ही गहरी पड़ गई। उसने बड़ी मुश्किल से नज़र उठा कर मेरी तरफ देखा और फिर धीमें स्वर में कहा____"आप क्यों बार बार मुझे ठकुराईन कहते हैं?"

"क्यों न कहूं?" मैंने उसे और छेड़ा____"आख़िर तुम हो तो ठकुराईन ही। अगर तुम्हें मेरे द्वारा ठकुराईन कहने पर ज़रा सा भी एतराज़ होता तो तुम्हारे होठों पर इस तरह मुस्कान न उभर आती।"

"तो क्या चाहते हैं आप कि मैं आपके द्वारा ठकुराईन कहने पर आप पर गुस्सा हुआ करूं?" अनुराधा ने अपनी मुस्कान को छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा था।

"क्यों नहीं।" मैंने उसकी गहरी आंखों में देखा____"तुम्हें मुझ पर गुस्सा होने का पूरा हक़ है। तुम मेरी डंडे से पिटाई भी कर सकती हो।"

"धत्त! ये क्या कह रहे हैं आप?" अनुराधा मेरी बात सुन कर बुरी तरह चौंकी थी, फिर शर्माते हुए बोली____"मैं भला कैसे आपकी पिटाई कर सकती हूं?"
"क्यों नहीं कर सकती?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"अगर मैं कोई ग़लती करता हूं तो तुम्हें पूरा हक़ है मेरी पिटाई करने का।"

"न जी न।" अनुराधा शरमा कर दरवाज़े से एक तरफ हट गई, फिर अपनी मुस्कुराहट को दबाते हुए बोली____"मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकती।"
"काकी नहीं है क्या अंदर?" मैंने अंदर आंगन की तरफ नज़र डालते हुए पूछा तो अनुराधा ने ना में सिर हिला दिया।

मैं ये जान कर बेहद खुश हुआ कि सरोज काकी घर में नहीं है। वो दरवाज़े से हट गई थी, ज़ाहिर है वो चाहती थी कि मैं घर के अंदर आऊं वरना वो शुरू में ही मुझे बता देती और अपने बर्ताव से ये भी ज़ाहिर कर देती कि उसकी मां के न होने पर मैं अंदर न आऊं। ख़ैर, मैं अंदर आया तो अनुराधा ने बिना कुछ कहे दरवाज़ा बंद कर दिया।

"अच्छा तो इसी लिए तुम इतना बेझिझक हो कर मुझसे बातें कर रही थी।" मैंने आंगन के पार बरामदे में रखी खटिया पर बैठते हुए कहा____"और मुझ अकेले लड़के को छेड़ रही थी। आने दो काकी को, मैं काकी को बताऊंगा कि कैसे तुम मुझ मासूम को अकेला देख कर मुझे छेड़ रही थी।"

"हाय राम! कितना झूठ बोलते हैं आप।" अनुराधा बुरी तरह चकित हो कर बोली____"मैंने कब छेड़ा आपको और ये क्या कहा आपने कि आप मासूम हैं? भला कहां से मासूम लगते हैं आप?"

"बोलती रहो।" मैं मन ही मन हंसते हुए बोला____"सब कुछ बताऊंगा काकी को। ये भी कि तुम मुझे मासूम मानने से साफ़ इंकार कर रही थी।"

"अगर आप ऐसी बातें करेंगे तो मैं आपसे कोई बात नहीं करूंगी।" अनुराधा के चेहरे पर इस बार मैंने घबराहट के भाव देखे। शायद वो मेरी इस बात को सच मान बैठी थी कि मैं काकी को सब कुछ बता दूंगा।

"कमाल है।" मैंने उसके मासूम से चेहरे पर छा गई घबराहट को देखते हुए कहा____"कैसी ठकुराईन हो तुम जो मेरी इतनी सी बात पर इस क़दर घबरा गई?"

"मैं कोई ठकुराईन वकुराईन नहीं हूं समझे आप?" अनुराधा ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"और हां अब मुझे आपसे कोई बात नहीं करना। आप जाइए यहां से, वैसे भी अगर मां आ गई और उसने मुझे आपके साथ यूं अकेले में देख लिया तो मेरी ख़ैर नहीं होगी।"

"ओह! तो मेरी अनुराधा रूठ गई है मुझसे?" जाने कैसे मेरे मुख से मेरी अनुराधा निकल गया, जिसका आभास होते ही मेरी धड़कनें एकदम से तेज़ हो गईं और मैं अनुराधा की तरफ देखने लगा। यही हाल अनुराधा का भी हुआ था। वो आंखें फाड़े मेरी तरफ देखने लगी थी, किंतु जल्दी ही सम्हली और फिर बोली____"ये क्या कह रहे हैं आप? मैं आपकी अनुराधा कैसे हो गई?"

"पता नहीं कैसे मेरे मुख से निकल गया?" मैंने अपनी घबराहट को दबाने का प्रयास करते हुए कहा____"वैसे क्या तुम्हें मेरी अनुराधा कह देने पर एतराज़ है?"

"हां बिलकुल एतराज़ है मुझे।" अनुराधा के चेहरे पर अजीब से भाव उभर आए थे____"मैं सिर्फ़ अपने माता पिता की अनुराधा हूं किसी और की नहीं। अगर आप ये समझते हैं कि आप बाकी लड़कियों की तरह मुझे भी अपने जाल में फंसा लेंगे तो ये आपकी सबसे बड़ी भूल है छोटे ठाकुर।"

मैं अनुराधा के चेहरे पर मौजूद भावों को देख कर एकदम से हैरान रह गया था। मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि वो मेरी इस बात से इस हद तक बिदक जाएगी। मुझे समझ न आया कि जो अनुराधा मुझे देखते ही शर्माने और मुस्कुराने लगती थी वो मेरी इतनी सी बात से इस तरह कैसे बर्ताव कर सकती थी? वैसे सच कहूं तो हैरान मैं खुद भी अपने आप पर हुआ था कि यूं अचानक से कैसे मेरे मुख से मेरी अनुराधा जैसा संबोधन निकल गया था मगर अब जब निकल ही गया था तो मैं भला क्या ही कर सकता था?

"अब जल्दी से कोई डंडा खोज कर लाओ।" फिर मैंने बात को एक अलग ही दिशा में मोड़ने की गरज से कहा____"और उस डंडे से मेरी पिटाई करना शुरू कर दो।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" अनुराधा मेरी बात सुन कर मानो उलझ गई तो मैंने उसे समझाते हुए कहा____"सही तो कह रहा हूं मैं। कुछ देर पहले मैंने तुमसे कहा था ना कि अगर मैं कोई ग़लती करता हूं तो तुम्हें मेरी पिटाई करने का पूरा हक़ है। अब क्योंकि मैंने ग़लती की है तो इसके लिए तुम्हें डंडे से मेरी पिटाई करनी चाहिए।"

"बातें मत बनाइए।" अनुराधा ने कहा____"सब समझती हूं मैं। अगर आपके मन में मेरे प्रति यही सब है तो चले जाइए यहां से। अनुराधा वो लड़की हर्गिज़ नहीं है जो आपके जाल में फंस जाएगी। हम ग़रीब ज़रूर हैं छोटे ठाकुर लेकिन अपनी जान से भी ज्यादा हमें अपनी इज्ज़त प्यारी है।"

"तो फिर ये भी जान लो अनुराधा कि तुम्हारी इज्ज़त मुझे भी खुद अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी है।" अनुराधा की बातें सुन कर जाने क्यों मेरे दिल में एक टीस सी उभर आई थी, बोला____"मैं खुद मिट्टी में मिल जाना पसंद करूंगा लेकिन तुम्हारी इज्ज़त पर किसी भी कीमत पर दाग़ नहीं लगा सकता और ना ही किसी के द्वारा लगने दे सकता हूं। मैं जानता हूं कि मेरा चरित्र ही ऐसा है कि किसी को भी मेरी किसी सच्चाई पर यकीन नही हो सकता लेकिन एक बात तुम अच्छी तरह समझ लो अनुराधा कि मैं चाहे सारी दुनिया को दाग़दार कर दूं लेकिन तुम पर दाग़ लगाने की कल्पना भी नहीं कर सकता। मैं तुम्हें कई बार बता चुका हूं कि तुम वो लड़की हो जिसने मेरे मुकम्मल वजूद को बदल दिया है और मुझे खुशी है कि तुमने मेरा कायाकल्प कर दिया है। तुमसे हसी मज़ाक करता हूं तो एक अलग ही तरह का एहसास होता है। मेरे मन में अगर ग़लती से भी तुम्हारे प्रति कोई ग़लत ख़्याल आ जाता है तो मैं अपने आपको कोसने लगता हूं। ख़ैर, मैं तुम्हें कोई सफाई नहीं देना चाहता। अगर तुम्हें लगता है कि मेरे यहां आने का सिर्फ़ यही एक मकसद है कि मैं तुम्हें भी बाकी लड़कियों की तरह अपने जाल में फंसाना चाहता हूं तो ठीक है। मैं तुम्हें वचन देता हूं कि ठाकुर वैभव सिंह आज के बाद तुम्हारे इस घर की दहलीज़ पर अपने क़दम नहीं रखेगा। तुम्हारे साथ जो चंद खूबसूरत लम्हें मैंने बिताए हैं वो जीवन भर मेरे लिए एक अनमोल याद की तरह रहेंगे। ये भी वचन देता हूं कि इस घर के किसी भी सदस्य पर किसी के द्वारा कोई आंच नहीं आने दूंगा। चलता हूं अब, ऊपर वाला तुम्हें हमेशा खुश रखे।"

मैं ये सब बोलने के बाद एक झटके से चारपाई से उठा और अनुराधा की तरफ देखे बिना ही तेज़ कदमों के द्वारा आंगन से होते हुए घर से बाहर निकल गया। इस वक्त मेरे अंदर एक आंधी सी चल रही थी। दिल में सागर की लहरों की तरह जज़्बात मानों बेकाबू हो कर हिलोरे मार रहे थे। मैं अपनी बुलेट पर बैठा और उसे स्टार्ट कर तेज़ी से आगे बढ़ गया। जैसे जैसे अनुराधा का घर पीछे छूटता जा रहा था वैसे वैसे मुझे ऐसा महसूस हो रहा था मानो मेरा एक खूबसूरत संसार मुझसे बहुत दूर होता जा रहा है। दिलो दिमाग़ पर मचलते तूफान को बड़ी मुश्किल से दबाते हुए मैं आगे बढ़ा चला जा रहा था।

जिस तरफ मेरे नए बन रहे मकान के लिए रास्ता जा रहा था उस तरफ न जा कर मैं हवेली जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ चला। कच्चा पगडंडी वाला रास्ता था जिसके दोनों तरफ कुछ बड़े बड़े पेड़ थे। मैं जैसे ही उन पेड़ों के थोड़ा पास पहुंचा तो एकदम से दो आदमी उन पेड़ों से निकल कर सड़क के किनारे खड़े हो गए। दोनों के हाथ में मजबूत लट्ठ मौजूद था।


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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
 

ASannd123

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Bhai, Index reader bhaiyo ki sahuliyat ke liye hai taaki unhe update khojne me problem na ho. Halaaki isse ek nuksaan ye bhi hota hai ki log update padhne ke baad bina koi pratikriya diye chup chaap nikal jaate hain. Well iske liye koi kya hi kar sakta hai :dazed:

Bhai apne ko samajh nahi aaya ki last me kya likha hai aur kisko update dene ke liye bol rahe rahe ho :hmm2:
https://xforum.live/threads/lll-love-life-luck-tragedy-of-life.33596/post-2623205

Ye bhaisa 1 sall se update nhi de rhey na hi reply


Ager aap bura na maney tho ap ess story ko complete krdo please
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अब तक....

जिस तरफ मेरे नए बन रहे मकान के लिए रास्ता जा रहा था उस तरफ न जा कर मैं हवेली जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ चला। कच्चा पगडंडी वाला रास्ता था जिसके दोनों तरफ कुछ बड़े बड़े पेड़ थे। मैं जैसे ही उन पेड़ों के थोड़ा पास पहुंचा तो एकदम से दो आदमी उन पेड़ों से निकल कर सड़क के किनारे खड़े हो गए। दोनों के हाथ में मजबूत लट्ठ मौजूद था।

अब आगे.....


कुसुम अपने कमरे में पलंग पर लेटी बार बार अपनी आंखें बंद कर के सोने का प्रयास कर रही थी किंतु हर बार बंद पलकों में कुछ ऐसे दृश्य और कुछ ऐसी बातें उभर आतीं कि वो झट से अपनी आंखें खोल देने पर बिवस हो जाती थी। ऐसा सिर्फ़ आज ही नहीं हो रहा था बल्कि ऐसा तो उसके साथ जाने कब से हो रहा था। पिछले कुछ महीनों से दिन में कभी भी आसानी से उसकी आंख नहीं लगती थी और यही हाल रातों का भी था। पिछले कुछ महीनों से वो जो करने पर मजबूर थी उसकी वजह से वो अंदर ही अंदर बेहद दुखी थी और उस सबकी वजह से उसे एक पल के लिए भी शांति नहीं मिलती थी।

दो दिन पहले तक उसे सिर्फ़ इसी बात का दुख असहनीय पीड़ा देता था कि उसका जो भाई उसे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार और स्नेह देता है वो उसी को चाय में नामर्द बनाने वाली दवा मिला कर पिलाने पर मजबूर है। हर वक्त उसके ज़हन में बस एक ही ख़्याल आता था कि वो ये जो कुछ भी कर रही है वो निहायत ही ग़लत है। माना कि वो अपनी इज्ज़त और मर्यादा को छुपाने के लिए वो सब कर रही थी लेकिन इसके बावजूद उसे यही लगता था कि उसके इतने अच्छे भाई का जीवन उसके अपने जीवन और उसकी अपनी इज्ज़त मर्यादा से कहीं ज़्यादा अनमोल है। वो अक्सर ये सोच कर अकेले में रोती थी कि वैभव भैया उस पर कितना भरोसा करते हैं, यानि अगर वो चाय में ज़हर मिला कर भी उन्हें पीने को देगी तो वो खुशी से पी लेंगे।अपने भाई के साथ वो हर रोज़ कितना बड़ा विश्वासघात करती है। ये ऐसी बातें थीं जिन्हें सोच सोच कर कुसुम तकिए में अपना मुंह छुपाए घंटों रोती रहती और अपने भाई से अपने किए की माफ़ियां मांगती रहती। कभी कभी उसके मन में एकदम से ख़्याल उभर आता कि अपने भाई से इतना बड़ा विश्वासघात करने के बाद अब उसे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। इस ख़्याल के चलते कई बार उसने खुदकुशी करने का मन बनाया लेकिन फिर ये सोच कर वो खुदकुशी भी नहीं कर पाई कि अगर उसने ऐसा किया तो उसका भाई उसे कभी माफ़ नहीं करेगा। उसके यूं मर जाने पर उसके भाई को बहुत दुख होगा और वो भला कैसे ये चाह सकती है कि उसकी वजह से उसके वैभव भैया को ज़रा सा भी कोई दुख हो?

एक समय था जब पूरी हवेली में कुसुम की हंसी और उसकी शरारतें गूंजती थीं। कोई कितना ही उदास क्यों न हो लेकिन कुसुम का सामना होते ही उस व्यक्ति के होठों पर मुस्कान उभर आती थी। विभोर उमर में उससे बड़ा था लेकिन अजीत छोटा था इसके बावजूद वो दोनों भाई उसे सताते रहते थे लेकिन सिर्फ़ वैभव का प्यार और स्नेह ही उसे इतना काफ़ी लगता था जिसकी वजह से वो कभी किसी भी बात पर अपने होठों की मुस्कान और शरारतें करना नहीं छोड़ती थी। वो जानती थी कि वैभव उसका वो भाई है जो उसके लिए दुनिया के कोने कोने से खुशियां खोज कर ला सकता है और ऐसा होता भी था। हवेली में वैभव के रहते किसी की मजाल नहीं होती थी कि कोई कुसुम से ऊंची आवाज़ में बात कर ले। वैभव के रहते कुसुम खुद एक शेरनी बन जाती थी। उसे ऐसा लगने लगता था जैसे हवेली में अब सिर्फ़ उसी का राज हो गया है। अपने बाप की भी ना सुनने वाला वैभव उसकी हर बात सुनता था और उसकी हर ख़्वाइश को पूरा करता था, फिर उसके लिए चाहे उसे खुद दादा ठाकुर से ही क्यों न टकरा जाना पड़े। ये सब देख कर जगताप अक्सर कहता था कि जिस दिन उसकी बेटी ब्याह होने के बाद हवेली से चली जाएगी तब क्या होगा वैभव का? कैसे रह पाएगा वो अपनी लाडली बहन कुसुम के बिना और खुद कुसुम कैसे अपने ससुराल में रह पाएगी अपने वैभव भैया के बिना?

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" जाने किस दृश्य को देख कर सहसा कुसुम की आंखों से आसूं छलक पड़े और वो रूंधे गले से किंतु धीमें स्वर में बोल पड़ी_____"आपकी इस बहन में इतनी हिम्मत नहीं है कि वो आपके सामने अपनी मजबूरी का सच बता सके। मैं जानती हूं कि आपको शायद बहुत कुछ पता चल गया है लेकिन इसके बावजूद आपने मुझसे कोई गिला शिकवा नहीं किया। उस दिन आप मुझसे जिनके लिए सज़ा मिलने की बात कह रहे थे न, मैं तभी समझ गई थी कि शायद आपको सब पता चल गया है। मैं जानती हूं कि आप उन लोगों को कड़ी से कड़ी सज़ा देना चाहते थे जिन्होंने आपकी बहन का दिल दुखाया है लेकिन भला मैं ये कैसे ऐसा चाह सकती थी? वो भी तो मेरे भाई ही हैं। भला कैसे कोई बहन अपने भाइयों को सबके सामने इस तरह से जलील होते या सज़ा पाते देख सकती थी? उन्होंने मेरा दिल दुखाया, मेरी आत्मा तक को छलनी किया, इसके बावजूद मैं उन्हें माफ़ कर देना चाहती हूं। मैं उनकी तरह नहीं हूं और मुझे यकीन है कि आप भी मुझसे ऐसी ही उम्मीद करते होंगे।"

पलंग पर तकिए में अपना मुंह छुपाए कुसुम रोते हुए जाने क्या क्या बड़बड़ाए जा रही थी। रोने से उसकी आंखें सुर्ख पड़ गईं थी और गोरा चेहरा भी। दोपहर में जब सब लोग खाना खा रहे थे तो कुसुम खाना परोसने के लिए रसोई से बाहर नहीं आई थी। अपने से उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ती थी कि वो अपने उस भाई का सामना करे जो भाई उसे दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार और स्नेह करता है। एक दो बार वैभव के कमरे में उसे जाना पड़ा था लेकिन वो भी उसकी मजबूरी ही थी।

"शीला ने आपको सब कुछ बता दिया होगा न?" कुसुम के जहन में सहसा बिजली सी कौंधी तो वो बेहद दुखी भाव से बड़बड़ाई____"वो सब भी ना जो मैं किसी भी कीमत पर आपको जानने नहीं देना चाहती थी? आप सोच रहे होंगे न कि आपकी बहन कितनी गंदी है और उसके मन में कैसे कैसे गंदे विचार हैं? नहीं नहीं, भगवान के लिए ऐसा मत सोचिएगा भैया। आपकी बहन गंदी नहीं है। वो तो उस दिन मेरी सखियां खेल खेल में पता नहीं वो सब क्या करने लगीं थी। सब उनका ही दोष है भैया, मेरा यकीन कीजिए। मुझे नहीं पता था कि वो इतनी गन्दी हैं वरना मैं उनके साथ कोई खेल ही नहीं खेलती।"

कुसुम की आंखें लगातार आंसू बहाए जा रहीं थी। वो खुद से ही बड़बड़ा रही थी किंतु उसे एहसास यही हो रहा था मानों वो अपने भैया वैभव को ही ये सब बता रही हो जिसके चलते उसे बेहद शर्म भी आ रही थी।

"आप अपनी इस बहन से नाराज़ मत होना भैया।" कुसुम के दिल में सहसा एक हूक सी उठी जिसके चलते वो एकदम से फफक कर रो पड़ी____"और ना ही अपनी इस बहन के बारे में ग़लत सोचना। मैं आपकी वही छोटी और मासूम बहन हूं जिसे आप अपनी जान समझते हैं। बस एक बार अपनी इस बहन को माफ़ कर दीजिए न।"

अभी कुसुम ये सब बड़बड़ाते हुए रो ही रही थी कि तभी कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई जिसके चलते वो बुरी तरह हड़बड़ा गई। पलंग पर झट से वो उठ कर बैठ गई और जल्दी जल्दी अपने आंसू पोंछने लगी। चेहरे पर घबराहट के भाव उभर आए थे। धड़कते दिल से वो कमरे के दरवाज़े को घूरने लगी थी। तभी दस्तक फिर से हुई और साथ ही बाहर से विभोर ने आवाज़ भी दी जिसे सुन कर कुसुम के चेहरे का मानों रंग ही उड़ गया। उससे जवाब में कुछ बोलते न बन पड़ा। बाहर से विभोर ने उसे आवाज़ दे कर दरवाज़ा खोलने के लिए कहा था। कुसुम की सांसें जैसे कुछ पलों के लिए रुक ही गईं थी लेकिन फिर जल्दी ही उसने खुद को सम्हाला और अपने दुपट्टे से जल्दी जल्दी अपने हुलिए को ठीक किया। तत्पश्चात वो पलंग से नीचे उतरी और फिर जा कर उसने दरवाज़ा खोला। दरवाज़े के बाहर अपने दोनों भाईयों को खड़े देख उसके चेहरे पर सहसा एक अजीब सी शख़्ती उभर आई।

"हम दोनों तुझसे माफ़ी मांगने आए हैं कुसुम।" विभोर ने अपनी नज़रें झुका कर दुखी भाव से कहा____"हम जानते हैं कि हमने तुझसे जो काम करवा के अपराध किया है उसके लिए हमें कोई माफ़ी नहीं मिलनी चाहिए फिर भी अपने गुनाहों के लिए तुझसे माफ़ी मांगने आए हैं।"

विभोर की ये बातें सुन कर कुसुम को मानों बिजली की तरह झटका लगा। वो हैरत से आंखें फाड़े अपने बड़े भाई विभोर को देखने लगी थी। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। उसे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि उसके अपने भाई किसी दिन उससे माफ़ी भी मांग सकते हैं।

"हां दीदी।" विभोर के थोड़ा पीछे खड़ा अजीत भी अपने बड़े भाई के जैसे बोल पड़ा____"हम अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हैं। वैभव भैया से ईर्ष्या करने के चलते पता नहीं हम क्या क्या कर बैठे जिसका कभी हमें आभास ही नहीं हुआ। ईर्ष्या और नफ़रत में अंधे हो कर हमने अपनी ही बहन को ऐसे काम के लिए मजबूर किया जो हर तरह से ग़लत था। हमें तो भाई कहलाने का भी हक़ नहीं रहा दीदी। हो सके तो हमें माफ़ कर दीजिए।"

कुसुम को एकदम से ऐसा लगा जैसे वो खुली आंखों से अचानक ही सपना देखने लगी है। उसने तेज़ी से अपने सिर को झटका। उसके लिए अपने भाइयों द्वारा कही गई ये सब बातें किसी बड़े झटके से कम नहीं थी। उसकी आंखों के सामने क़रीब दो क़दम की दूरी पर उसके दोनों भाई खड़े थे जिनके सिर अपराध बोध के चलते झुके हुए थे। कुसुम को समझ न आया कि वो उन दोनों की बातों पर क्या प्रतिक्रिया दे अथवा क्या जवाब दे?

"माफ़ी मुझसे नहीं।" फिर उसने किसी तरह खुद को सम्हाला और सपाट लहजे में कहा____"बल्कि उस इंसान से मांगिए जिनके साथ आप दोनों ने मुझसे बुरा करवाया है।"

"वैभव भैया से हमने माफ़ी मांग ली है और उन्होंने हम दोनों को माफ़ भी कर दिया है।" विभोर ने इस बार संजीदा भाव से कहा____"वो बहुत अच्छे हैं, उनका दिल बहुत विशाल है।"

"आपको पता है दीदी।" अजीत ने कहा____"पिता जी तो हमें जान से ही मार देना चाहते थे लेकिन ताऊ जी ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया। उसके बाद ताऊ जी ने भी हमें उस सबके लिए माफ़ कर दिया। हमने भी अब प्रण कर लिया है कि अब से हम दोनों ऐसा काम करेंगे जो हमारे साथ साथ हमारे समूचे खानदान के लिए बेहतर हो।"

"हमें सच में अपने किए पर बहुत पछतावा हो रहा है कुसुम।" कुसुम को कुछ न बोलता देख विभोर ने गंभीरता से कहा____"और अपने आपसे घृणा हो रही है। मन करता है किसी सूखे कुएं में कूद कर अपनी जान दे दें।"

"अगर वैभव भैया ने आप दोनों को माफ़ कर दिया है तो समझ लीजिए कि मैंने भी माफ़ कर दिया।" कुसुम ने पहले जैसे ही सपाट लहजे में कहा____"अब आप दोनों जाइए यहां से।"

"तेरा चेहरा और लहजा बता रहा है कि तूने दिल से हमें माफ़ नहीं किया है।" विभोर ने कुसुम की तरफ देखते हुए कहा____"बस एक बार माफ़ कर दे मेरी बहन। मैं समझ सकता हूं कि जो कुछ हमने तुझसे करवाया है वो सब भूलना इतना आसान नहीं है तेरे लिए।"

"मैं उस बारे में कोई बात नहीं करना चाहती।" कुसुम ने इस बार थोड़ा कठोरता से कहा____"ऊपर वाले से बस यही विनती करती हूं कि वो आप दोनों को सद्बुद्धि दे ताकि आज के बाद कभी आप दोनों के मन में ऐसा कुछ भी करने का ख़्याल न आए।"

कहते हुए कुसुम की आंखें अनायास ही छलक पड़ीं। विभोर और अजीत ने उसकी बातें सुन कर एक बार फिर से अपना सिर झुका लिया। कुछ पल दोनों खड़े रहे उसके बाद दोनों ने हाथ जोड़ कर फिर से कुसुम से माफ़ी मांगी और फिर चुप चाप चले गए। उनके जाते ही कुसुम ने दरवाज़ा बंद कर दिया। उसके बाद वो भाग कर पलंग पर आई और पहले की ही भांति तकिए में अपना चेहरा छुपा कर सिसकने लगी।

"आपने इतना कुछ हो जाने के बाद भी मेरी बात का मान रखा।" वो फिर से बड़बड़ा उठी____"आप सच में मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं और मैं आपकी गंदी बहन हूं।"

कहने के साथ ही कुसुम की आंखें एक बार फिर से बरसने लगीं। कमरे में उसके सिसकने की धीमी आवाज़ें गूंजने लगीं थी। इस बार उसे अपने जज़्बातों को सम्हालना भारी मुश्किल लग रहा था।

[][][][][][]

"तुम दोनों यहां क्या कर रहे हो?" मैंने बुलेट को उन दोनों के पास ही रोक कर कहा____"मैंने मना किया था न कि यूं खुले में कहीं मत घूमना?"

"माफ़ कीजिए छोटे ठाकुर।" उनमें से एक ने हाथ जोड़ते हुए कहा____"हम दोनों तो शाम के अंधेरे में ही आपके पास हवेली आते लेकिन जब हमने देखा कि आप इस तरफ ही आ रहे हैं तो हम दोनों भी आपके पीछे आ गए। दूसरी बात ये भी थी कि आपको एक ज़रूरी बात बतानी थी। हमने सोचा कि अंधेरा होने की प्रतीक्षा क्यों करें? जिस तरह के हालात बने हुए हैं उससे तो एक एक बात का पता जल्दी से लगना ज़रूरी है न छोटे ठाकुर।"

"अरे! तुम दोनों की जान से बढ़ कर कोई भी चीज़ ज़रूरी नहीं है।" मैंने उस आदमी से कहा____"मैं ये हर्गिज़ नहीं चाह सकता कि मेरी वजह से तुम दोनों पर ज़रा भी कोई आंच आए। ख़ैर, बताओ क्या ख़बर लाए हो?"

मेरे पूछने पर दोनों ने सबसे पहले इधर उधर निगाह घुमाई और फिर ख़बर के बारे में बताना शुरू कर दिया। सारी बातें सुनने के बाद मैं सोच में पड़ गया। अंदेशा तो मुझे था लेकिन ऐसा भी कुछ होगा इसकी ज़रा भी कल्पना नहीं की थी मैंने। ख़ैर, मैंने पैंट की जेब से कुछ पैसे निकाले और उन दोनों को पकड़ाया और ये भी कहा कि अपना ख़्याल सबसे पहले रखें।

एक बार फिर से मेरी बुलेट कच्ची पगडंडी पर दौड़ने लगी। ज़हन में बार बार उन दोनों आदमियों की बातें ही गूंज रहीं थी। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है। ख़ैर, जल्दी ही मैं अपने गांव की आबादी में दाखिल हो गया। सबसे पहले मुंशी चंद्रकांत का ही मकान पड़ता था। मैं जैसे ही मुंशी के घर के सामने आया तो देखा मुंशी की बीवी प्रभा अपने घर के दरवाज़े के बाहर खड़ी गांव की किसी औरत से बातें कर रही थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही वो दूसरी औरत से नज़र बचा कर हल्के से मुस्कुराई। मेरा फिलहाल उसके घर जाने का कोई इरादा नहीं था इस लिए उसकी मुस्कान का जवाब मुस्कान से ही देते हुए मैं आगे निकल गया।

साहूकारों के सामने से होते हुए मैं कुछ ही देर में हवेली पहुंच गया। बुलेट को एक तरफ खड़ी कर के मैं हवेली के अंदर दाखिल हो गया। बैठक में पिता जी के साथ कुछ लोग बैठे हुए थे जिन्हें मैं पहचानता नहीं था। ज़ाहिर है वो लोग मेरे गांव के नहीं थे। मैंने कुछ पल रुक कर पिता जी की तरफ देखा तो उन्होंने मुझे अंदर जाने का इशारा किया। मैं फ़ौरन ही अंदर चला आया। अंदर आया तो मां से मुलाक़ात हो गई।

"अच्छा हुआ कि तू आ गया।" मां ने कहा____"मैं तेरी ही राह देख रही थी।"
"क्या हुआ मां?" मैं ने फिक्रमंदी से पूछा____"कोई बात हो गई है क्या?"

"नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।" मां ने सामान्य भाव से कहा____"असल में तेरी भाभी के मायके से एक संदेशा आया है। तेरी भाभी के भाई को वर्षों बाद संतान के रूप में एक बेटा हुआ है इस लिए उन्होंने संदेशा भेजा है कि हम उनकी बहन को कुछ दिन के लिए वहां भेज दें।"

"ये तो बड़ी खुशी की बात है मां।" मैं कुछ सोच कर मन ही मन खुश हो गया था किंतु प्रत्यक्ष में सामान्य सी खुशी ज़ाहिर करते हुए बोला____"साले साहब को पहली संतान के रूप में बेटा हुआ है तो ज़ाहिर है धूम धड़ाका तो करेंगे ही लेकिन भाभी को लेने वो खुद भी तो आ सकते थे?"

"अब अकेला आदमी क्या क्या करे?" मां ने कहा____"तुझे पता ही है कि तेरी भाभी का एक भाई उसके ब्याह के पहले ही कहीं चला गया था जो कि आज तक लौट कर नहीं आया। समधी जी तो घुटने के बात के चलते ज़्यादा चल फिर नहीं पाते। घर का सारा कार्यभार बेचारे वीरेंद्र के ही कंधों पर है। इसी लिए संदेशा भेजवाया है और तेरे पिता जी से विनती भी की है कि हम ही उनकी बहन रागिनी को वहां पहुंचा दें।"

"तो पिता जी ने क्या कहा?" मैंने धड़कते दिल के साथ पूछा।
"मुझसे कह रहे थे कि तू भेज आएगा अपनी भाभी को।" मां ने कहा____"और साथ में कुछ आदमियों को भी ले जाना। उनका कहना है कि ऐसे वक्त में काम का बोझ ज़्यादा हो जाता है तो मदद के लिए कुछ लोगों का वहां होना बेहद ज़रूरी है।"

"वो सब तो ठीक है मां।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"लेकिन भाभी को ले कर बड़े भैया भी तो जा सकते हैं, मैं ही क्यों?"
"वो तेरी तरह ढीठ और बेशर्म नहीं है।" मां ने आंखें दिखाते हुए कहा____"आज तक क्या कभी वो उसे अपने साथ ले कर गया है जो अब जाएगा? उसे अपनी बीवी को अपने साथ लाने ले जाने में शर्म आती है और ऐसा होना भी चाहिए। इस लिए तू ही अपनी भाभी को ले कर जाएगा।"

रागिनी भाभी के साथ उनके मायके जाने की बात से में एकदम खुश हो गया था। एक पल में जाने कितने ही खूबसूरत चेहरे आंखों के सामने उजागर हो गए थे लेकिन अगले ही पल मैं ये सोच कर मायूस हो गया कि आज कल जिस तरह के हालात हैं उसमें मेरा वहां जाना बिलकुल भी ठीक नहीं है।

"ठीक है मां।" मैंने बुझे मन से कहा___"मैं कल सुबह भाभी को उनके मायके भेज कर वापस आ जाऊंगा।"
"कल नहीं, आज और अभी जाना है तुझे।" मां ने ये कह कर मानों मेरे सिर पर बम्ब फोड़ा_____"और उसे वहां भेज कर वापस नहीं आ जाना है बल्कि वहां रह कर वीरेंद्र के कामों में उनका हाथ भी बंटाना है। जिस दिन बच्चे का नाम करण होगा उस दिन तेरे पिता जी भी यहां से जाएंगे।"

मां की बातें सुन कर मानो मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई थी। कोई और वक्त होता तो यकीनन मैं उनकी इन बातों से बेहद खुश हो गया होता लेकिन आज के वक्त में जो हालात थे उनकी वजह से मेरा इस तरह यहां से चले जाना बिलकुल भी उचित नहीं था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि पिता जी भला ऐसा हुकुम कैसे दे सकते थे? क्या उन्हें हालात की गंभीरता का ज़रा सा भी एहसास नहीं था?

"क्या हुआ, कहां खो गया?" मां ने मुझे हकीक़त की दुनिया में लाते हुए कहा____"जा, जा के जल्दी से तैयार हो जा। तब तक मैं देखती हूं कि रागिनी तैयार हुई कि नहीं।"

मैं भारी क़दमों से चलते हुए ऊपर अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। साला ये क्या चुटियापा हो गया था? मुझे ये सोच कर गुस्सा आ रहा था कि पिता जी मुझे भाभी के मायके में रहने का कैसे कह सकते थे? सहसा मुझे याद आया कि आज जिन दो आदमियों से मैं मिला था उन्होंने मुझे कैसी ख़बर दी थी और अब मैं उस ख़बर के चलते क्या क़दम उठाने वाला था लेकिन अब मेरे यहां से यूं अचानक चले जाने पर सब गड़बड़ हो जाएगा।

मैं अपने कमरे के पास पहुंचा तो देखा दरवाज़ा खुला हुआ था। ज़ाहिर है कोई मेरे कमरे में मौजूद था। ख़ैर, में कमरे में दाखिल हुआ तो देखा बड़े भैया बैठे हुए थे। मुझे देखते ही वो हल्के से मुस्कुराए और मुझे पलंग पर अपने पास ही बैठने का इशारा किया।

"तेरे चेहरे के भाव बता रहे हैं कि तू अंदर से काफी परेशान है।" बड़े भैया ने कहा____"शायद तुझे मां के द्वारा पता चल चुका है कि तुझे अपनी भाभी को ले कर उसके मायके जाना है।"

"भाभी को उनके मायके ले कर जाने की बात से मैं परेशान नहीं हूं भैया।" मैंने धीर गंभीर भाव से कहा____"बल्कि इस बात से परेशान हो गया हूं कि मुझे वहां पर एक दिन नहीं बल्कि कई दिनों तक रुकना होगा। आप अच्छी तरह जानते हैं कि हालात ऐसे हर्गिज़ नहीं हैं कि मैं इतने दिनों तक कहीं रुक सकूं। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि पिता जी ने मां से ऐसा क्यों कहा? क्या उन्हें वक्त और हालात की गंभीरता का ज़रा सा भी एहसास नहीं है?"

"हमें अच्छी तरह वक्त और हालात की गंभीरता का एहसास है बर्खुरदार।" दरवाज़े से अचानक आई पिता जी की भारी आवाज़ को सुन कर हम दोनों भाई चौंके और पिता जी को देख कर खड़े हो गए, जबकि पिता जी हमारे क़रीब आते हुए बोले____"हमें अच्छी तरह पता है कि ऐसे वक्त में हमें क्या करना चाहिए।"

मैं और बड़े भैया उनकी बातें सुन कर कुछ न बोले। उधर वो पलंग पर आ कर बैठ गए और हमें भी बैठने का इशारा किया। हम दोनों के बैठ जाने के बाद वो बोले____"सबसे पहली बात तो ये कि हालात चाहे जैसे भी हों लेकिन हमें सभी से अपने रिश्ते सही तरीके से निभाना चाहिए। तुम्हारा चंदनपुर जाना ज़रूरी है क्योंकि वहां जो कार्यक्रम होने वाला है उसकी व्यवस्था करना अकेले वीरेंद्र के बस का नहीं है। दस साल बाद वीरेंद्र को ऊपर वाले की दया से संतान के रूप में पहले पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है। ज़ाहिर है ये उसके लिए बहुत बड़ी खुशी की बात है और वो अपनी इस खुशी को बड़े उल्लास के साथ मनाना चाहता है और ये हमारा भी फर्ज़ बनता है कि हम उसकी खुशी को किसी भी तरह से फीका न पड़ने दें। यकीन मानो अगर यहां हालात ऐसे न होते तो हम सब आज ही वहां जाते। ख़ैर, तुम्हें यहां की चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। यहां के जो हालात हैं उन पर हमारी पैनी नज़र है और बड़े से बड़े ख़तरे का सामना करने के लिए हम हर तरह से तैयार हैं।"

"ठीक है पिता जी।" मैं भला अब क्या कहता____"आप कहते हैं तो ऐसा ही करूंगा मैं। ख़ैर, आज मुझे मेरे दो ख़ास आदमियों के द्वारा कुछ खास बातें पता चली हैं।"
"कैसी बातें?" पिता जी के साथ साथ बड़े भैया के भी माथे पर बल पड़ गया था।

"जगन पर किया गया हमारा शक एकदम सही साबित हुआ।" मैंने ख़ास भाव से कहा____"वो एक नंबर का कमीना इंसान निकला।"
"साफ़ साफ़ बताओ।" पिता जी के चेहरे पर उत्सुकता के भाव उभर आए थे____"क्या पता चला है तुम्हें उसके बारे में?"

"मुझे पक्का यकीन तो नहीं था।" मैंने कहा____"लेकिन तांत्रिक की हत्या हो जाने के बाद से संदेह होने लगा था उस पर। उस रात जब हमने आपस में इस सबके बारे में विचार विमर्श किया था तो दूसरे दिन ही मैंने उसकी निगरानी में अपने दो ख़ास आदमियों को लगा दिया था। आज उन्हीं दो आदमियों ने मुझे उससे संबंधित ख़बर दी है। उन दोनों आदमियों के अनुसार पिछली रात जगन साहूकारों के बगीचे में एक ऐसे रहस्यमय आदमी से मिला जिसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था और चेहरा भी सफ़ेद नक़ाब से ढंका हुआ था।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" बड़े भैया बीच में ही मेरी बात काट कर बोल पड़े____"क्या तुम्हारे उन ख़ास ख़बरियों ने उस सफ़ेदपोश आदमी का पीछा नहीं किया?"
"किया था।" मैंने कहा____"लेकिन उससे पहले ये सुनिए कि बगीचे में सफ़ेदपोश और उस जगन के अलावा और कौन था?"


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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
अजित और विभोर को कुसुम ने माफ कर दिया
रागिनी भाभी को मायके ले जाने के नाम से वैभव मन ही मन खुष हो गया और वहा के खुबसुरत चेहरे उसके आँखो के सामने आ गये लेकीन यहा के हालात भी जो आजकल बराबर नहीं है खैर
सावकारोंके बगीचे में जगन, सफेद लिबास वाला नकाबपोश और तिसरा कौन ये सोचने के लिये मजबूर कर दिये आपने
देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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