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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
अजित और विभोर को कुसुम ने माफ कर दिया
रागिनी भाभी को मायके ले जाने के नाम से वैभव मन ही मन खुष हो गया और वहा के खुबसुरत चेहरे उसके आँखो के सामने आ गये लेकीन यहा के हालात भी जो आजकल बराबर नहीं है खैर
सावकारोंके बगीचे में जगन, सफेद लिबास वाला नकाबपोश और तिसरा कौन ये सोचने के लिये मजबूर कर दिये आपने
देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Shukriya mitra, Vaibhav ka apni bhabhi ke sath uske maayke jane se kahani ko ek alag disha milegi. Kuch romance bhi dekhne ko mil sakta hai. ;)
Bagiche me teesra byakti kaun hai iska pata jald chalega bro :approve:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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बेहतरीन कहानी, सस्पेन्स, साजिश और इमोशन से भरपूर, कल ही इस कहानी का मालूम चला एक लेखक की कहानी पर, उन्होंने लिंक दिया था, आपकी कहानी इतनी गजब की है कि कल जब पढ़ना शुरू की, तो आज अभी सब अपडेट पढ़कर ही सांस में सांस आयी लेकिन रहस्य अभी भी बरकरार है, आपकी लेखनशैली की जितनी तारीफ की जाए वो कम है।
हर रंग आपकी कहानी में मौजूद है, एक बाप बेटे का टकराव, फिर प्यार, भाई भाई का प्यार और ईष्या, भाई बहन का प्यार, दो लव स्टोरी एक समय मे जो चल रही है रूपा और अनुराधा।
Sabse pahle to aapka swagat hai mohtarma is kahani me. Ummid hai ab se sath bana rahega aur kahani ke prati aap apne vichaaro se mujhe awgat karaati rahengi. :hug:
Maine jab ye kahani shuru ki thi to adultery prefix ke sath shuru ki thi aur uska concept bhi ab pahle se alag tha. Bole to ek sadharan si love story type...lekin apne andar thrill suspense aur mystery wale keede ko daba nahi saka. Yahi vajah thi is kahani ki roop Rekha aaj aisi ban gayi hai. Well jo hota hai achhe ke liye hota hai so let's see what happens next.... :D
लास्ट अनुराधा का व्यवहार समझ नही आया, उसने अपने आप को बिल्कुल इन्नोसेंट और दबंग दोनों तरह की लड़की दिखाया, कि वो वैभव की बातो में नही फसेंगी, वो ये कैसे भूल गयी कि इसी वैभव की वजह से वो ये बात बोलने लायक खड़ी है नही तो रूपचंद अभी तक उसकी माँ की ही अनुमति से उसे रंडी बना चुका होता, मै एक खुद एक लड़की हु लेकिन कई बार ऐसी कहानी या सीरियल में इन लडकियो को सोचकर ही नफरत होती है कि कोई गुंडा उनको डराकर चाहे कुछ भी करवा लें लेकिन अपने चाहने वालो के सामने ऐसे रियेक्ट करेगी कि पूछो ही मत।
Anuradha ke is byohaar ko is tareeke se samajhiye ki jaise kisi cheez ki value tab tak nahi hoti jab tak wo uske paas rahti hai aur jab wo cheez door ho jati to insaan ko uski ahmiyat ka pata chalta hai. Yaha par Anuradha ke sath same condition hai...dusri baat sab kuch jaante boojhte huye bhi wo is sach ko ignore nahi kar pa rahi ki vaibhav ka charitra kaisa raha hai. Use pata hai ki ye wahi vaibhav hai jisne uski maa tak ko nahi baksa. Insaani ki saari achhaaiya uske chhote se bure kaam par bhaari pad jaati hain. So agar Anuradha ne aisa kiya hai to ye unnatural nahi hai...
दूसरी कुसुम माना कि जिस वक्त की ये कहानी है इस समय मे लेस्बियन या दूसरा कोई भी सेक्स उसको दबाने मजूबर करने के लिए काफी था जब तक पैसों की बात होती , लेकिन उसे उसकी सहेलियों के साथ सेक्स करवाने को मजबूर किया उसके कमरे में नोकरानी खुद उसके भाइयो के साथ सेक्स कर रही थी, तो वो उसके किये गए कार्य से कमतर बुरे थे, वो खुद को गलत मान रही थी लेकिन जिनके दबाव में है वो भी दूध के धुले नही थे, वो वैभव को विस्वास में लेकर सब बता सकती थी लेकिन उसने अपनी करनी छुपाने के लिए वैभव की जिंगदी से खेलना ठीक समझा,
Kusum jaisi nadaan ladki ke sath jab ye sab hua to wo is sabse behad ghabra gayi thi. Use baaki kisi baat ki chinta nahi thi, chinta thi to sirf is baat ki ke agar uski karni ke bare me uske sabse achhe wale bhaiya ko pata chala to wo uske bare me kitna kuch galat sochenge. Use har gunaah kar Lena swikaar tha lekin vaibhav ko sach ka pata chal jaye ye swikaar nahi tha. Ek apraadh ke chalte wo kayi apraadh karti chali gayi....jiska use bhaari dukh tha par kya kare. Well dekhiye aage kya hota hai..
तीसरी रजनी जोकि शुरुवात में लगी कि वैभव की रखेल टाइप है लेकिन उसने अपना अलग रंग दिखाया, वहा भी वैभव ढील दी रहा
Agar sab sahi hote to kahani likhi hi kyo jaati. Duniya achhe bure logo se bhari padi hai. Ham sabhi se achhe hone ki ummid karte hain lekin aisa ho hi nahi sakta. Rajni kya kar rahi aur kyo kar rahi hai is par abhi charcha hona baaki hai. :approve:
चाची का किरदार भी और रूपा का भी अभी खुलकर सामने नही आया है,
Kahani me jis tarah ke halaat bane huye hain usme ek hi samay par sabke bare me pata laga lena impossible hai. Sabse badi problem ye hai ki ye jo kuch bhi ho raha hai aur jo koi bhi ye khel khel raha hai uske bare me koi suraag nahi hai. Agar suraag hota to sab kuch ek jhatke me thik ho jata. Well rahasya aur romanch ka khel chaalu hai, dekhiye kab iska aakhiri samay aata hai :D
अभी आने वाले अपडेट में देखना मजेदार होगा कि जो वैभव खुद को भाभी से दूर रख रहा था कि वो बहक न जाये अब वो भाभी के साथ उसके मायके में रहने वाला है कैसे खुद को काबू में करेगा ,
Ab ye to wakt hi batayega, well bahut bahut shukriya is Khubsurat sameeksha ke liye :hug:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Bored Cabin Fever GIF
Still Waiting Office Tv GIF by The Office
Over It Reaction GIF
Jald hi dost :five:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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अध्याय - 52
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अब तक....

"ये क्या कह रहे हो तुम?" बड़े भैया बीच में ही मेरी बात काट कर बोल पड़े____"क्या तुम्हारे उन ख़ास ख़बरियों ने उस सफ़ेदपोश आदमी का पीछा नहीं किया?"
"किया था।" मैंने कहा____"लेकिन उससे पहले ये सुनिए कि बगीचे में सफ़ेदपोश और उस जगन के अलावा और कौन था?"


अब आगे.....

"जगन के अलावा और कौन था वहां?" बड़े भैया ने उत्सुकता पूर्ण भाव से पूछा। पिता जी के चेहरे पर भी जानने की वही उत्सुकता दिख रही थी।

"सुनील और चेतन।" मैंने बारी बारी से पिता जी और बड़े भैया की तरफ देखते हुए कहा____"मेरे वही दोस्त जो बचपन से ही हर काम में मेरे साथ रहे हैं और मेरे ही टुकड़ों पर पलते भी रहे हैं।"

"य...ये क्या कह रहा है तू??" पिता जी तो चौंके ही थे किंतु बड़े भैया तो उछल ही पड़े थे, बोले____"ए..ऐसा कैसे हो सकता है वैभव? मेरा मतलब है कि वो दोनों तेरे साथ कोई विश्वासघात कैसे कर सकते हैं?"

"इतना हैरान मत होइए भैया।" मैंने कहा____"पिछले कुछ समय से अपने और पराए लोगों ने जो कुछ भी हमारे साथ किया है वो क्या ऐसा नहीं था जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी?"

"ये सब छोड़ो।" पिता जी ने कहा____"और मुख्य बात बताओ। तुम्हारे उन दो ख़बरियों ने इस बारे में क्या क्या जानकारी दी है तुम्हें?"

"वो दोनों जगन पर नज़र रखे हुए थे।" मैंने गहरी सांस लेकर कहा____"कल शाम भी वो जगन के पीछे पीछे ही बड़ी सावधानी से हमारे बाग़ तक पहुंचे थे। अंधेरा हो गया था लेकिन ऐसा भी नहीं था कि वो दोनों कुछ ही दूरी पर पेड़ों के पास खड़े उन लोगों को देख नहीं सकते थे। उनके अनुसार, जगन जब वहां पहुंचा तो सुनील और चेतन पहले से ही वहां मौजूद थे। उन तीनों की आपस में क्या बातें हो रहीं थी ये वो दोनों सुन नहीं पा रहे थे। ख़ैर, कुछ ही देर बाद उन्होंने देखा कि दूसरी तरफ से एक ऐसा रहस्यमई आदमी आया जिसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था और उसका चेहरा सफ़ेद नक़ाब से ढका हुआ था। वो सफ़ेदपोश उन तीनों से कुछ कह रहा था जिसे वो तीनों ख़ामोशी से सुन रहे थे। क़रीब पंद्रह मिनट तक वो सफ़ेदपोश उनके बीच रहा और फिर वो जिस तरह आया था वैसे ही चला भी गया। मेरे दोनों आदमी इतना तो समझ ही चुके थे कि जगन के साथ साथ सुनील और चेतन भी महज मोहरे ही हैं जबकि असली खेल खेलने वाला तो वो सफ़ेदपोश था। इस लिए दोनों बड़ी होशियारी और सावधानी के साथ उस सफ़ेदपोश के पीछे लग गए मगर उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा। दोनों ने बताया कि उन्होंने उस सफ़ेदपोश को काफ़ी खोजा मगर वो तो जैसे किसी जादू की तरह ग़ायब ही हो गया था।"

"बड़े आश्चर्य की बात है।" बड़े भैया गहरी सांस ले कर बोले____"जो व्यक्ति अंधेरे में भी अपने सफ़ेद लिबास के चलते बखूबी दिखाई दे रहा था वो दो आदमियों की आंखों के सामने से बड़े ही चमत्कारिक ढंग से ग़ायब हो गया, यकीन नहीं होता। ख़ैर, सबसे ज़्यादा हैरानी की बात तो ये है कि तेरे अपने बचपन के दोस्त भी उस सफ़ेदपोश आदमी से मिले हुए हैं। आख़िर वो दोनों किसी ऐसे रहस्यमई आदमी के हाथ की कठपुतली कैसे बन सकते हैं जो उसके अपने दोस्त और उसके पूरे खानदान का शत्रु बना हुआ हो?"

"मैं खुद नहीं समझ पा रहा भैया कि वो दोनों उस सफ़ेदपोश आदमी से क्यों मिले हुए हैं?" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"जब से मुझे इस बारे में अपने उन दो ख़बरियों से पता चला है तभी से इस सबके बारे में सोच सोच कर परेशान हूं। जगन का तो समझ में आता है कि वो कई कारणों से उस सफ़ेदपोश आदमी का साथ दे सकता है लेकिन मेरे अपने बचपन के दोस्त भी ऐसा करेंगे इसकी तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था।"

"कोई तो ऐसी वजह ज़रूर होगी।" पिता जी ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा____"जिसके चलते तुम्हारे वो दोनों दोस्त उस सफ़ेदपोश आदमी का साथ दे रहे हैं। संभव है कि वो दोनों ऐसा किसी मजबूरी के चलते कर रहे हों। इंसान कोई भी काम दो सूरतों में ही करता है, या तो ख़ुशी से या फिर किसी मज़बूरी से। ये तो पक्की बात है कि उनकी तुमसे कोई दुश्मनी नहीं है तो ज़ाहिर है उनका उस सफ़ेदपोश आदमी का साथ देते हुए तुम्हारे खिलाफ़ कुछ भी करना मजबूरी ही हो सकती है। अब हमें बड़ी होशियारी और सतर्कता से उनसे मिलना होगा और इस सबके बारे में पूछना होगा।"

"ये काम मैं ही बेहतर तरीके से कर सकता था।" मैंने पिता जी की तरफ संजीदगी से देखते हुए कहा____"लेकिन अब ये संभव ही नहीं हो सकेगा क्योंकि आपके हुकुम पर मुझे आज और अभी भाभी को लेकर चंदनपुर जाना होगा।"

"हां हम समझते हैं।" पिता जी ने कहा____"लेकिन रागिनी बहू को ले कर तुम्हारा चंदनपुर जाना ज़रूरी है। रही बात तुम्हारे उन दोनों दोस्तों से इस बारे में मिल कर पूंछतांछ करने की तो उसकी फ़िक्र मत करो तुम। हम अपने तरीके से इस बारे में पता कर लेंगे।"

"आज मैंने ये पता करने की कोशिश की कि उस दिन हवेली में ऐसा कौन व्यक्ति रहा होगा जिसने रेखा को ज़हर खाने पर मज़बूर किया होगा?" बड़े भैया ने कहा____"मैंने अपने तरीके से हवेली की लगभग हर नौकरानी से पूछताछ की और साथ ही हवेली के बाहर सुरक्षा में लगे आदमियों से भी पूछा लेकिन हैरानी की बात है कि इस बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं है।"

"हमें तो इस बारे में कुछ और ही समझ में आ रहा है।" पिता जी ने कुछ सोचते हुए कहा____"हो सकता है कि हमारा सोचना ग़लत भी हो किंतु रेखा के मामले में हम जैसा सोच रहे हैं शायद वैसा न हो। कहने का मतलब ये कि ज़रूरी नहीं कि उसे ज़हर खाने पर मज़बूर करने वाला उस समय हवेली में ही रहा हो बल्कि ऐसा भी हो सकता है कि उसे पहले से ही ऐसा कुछ करने का निर्देश दिया गया रहा होगा। हवेली की दो नौकरानियों के अलावा बाकी सभी नौकरानियां सुबह सुबह ही अपने अपने घरों से हवेली में काम करने आती हैं और फिर दिन ढले ही यहां से अपने घर जाती हैं। रेखा और शीला दोनों ही नई नौकरानियां थी और वो दोनों सुबह यहां आने के बाद शाम को ही अपने अपने घर जाती थीं। ख़ैर, हमारे कहने का मतलब ये है कि अगर उसे ज़हर खाने पर मज़बूर करने वाला हवेली में उस वक्त नहीं था अथवा हमारी पूछताछ पर ऐसे किसी व्यक्ति का पता नहीं चल सका है तो संभव है कि रेखा को पहले से ही ऐसा कुछ करने का निर्देश दिया गया रहा होगा। जिस तरह के हालात बने हुए थे उस स्थिति में उसके आका ने पहले ही उसे ये निर्देश दे दिया होगा कि अगर उसे अपने पकड़े जाने का ज़रा भी अंदेशा हो तो वो फ़ौरन ही ज़हर खा कर अपनी जान दे दे। उस दिन सुबह जिस तरह से हम सब लाव लश्कर ले कर चलने वाले थे उस सबको रेखा ने शायद अपनी आंखों से देखा होगा। उसे लगा होगा कि हमें उसके और उसके आका के बारे में पता चल गया है। वो इस बात से बुरी तरह घबरा गई होगी और फिर अपने आका के निर्देश के अनुसार उसने फ़ौरन ही खुदकुशी करने का इरादा बना लिया होगा।"

"हां शायद ऐसा ही हुआ होगा।" बड़े भैया ने सिर हिलाते हुए कहा____"तो फिर इसका मतलब ये हुआ कि रेखा उस दिन हमारे लाव लश्कर को देख कर ग़लतफहमी का शिकार हो गई थी और उसी के चलते उसने ज़हर खा कर अपनी जान दे दी, मूर्ख औरत।"

"ये सिर्फ़ एक संभावना है।" पिता जी ने कहा____"जो कि ग़लत भी हो सकती है। हमें इस बारे में सिर्फ़ संभावना नहीं करनी है बल्कि सच का पता लगाना है। आज सुबह गांव वालों से हमने कहा भी है कि हम रेखा और शीला दोनों की ही मौत का पता लगाएंगे।"

"कैसे पता लगाएंगे पिता जी?" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"जबकि हम अच्छी तरह जानते हैं कि उन दोनों की मौत का असल सच क्या है। आप गांव वालों को वो सच इस लिए नहीं बताना चाहते क्योंकि उससे दुश्मन को हमारी मंशा का पता चल जाएगा लेकिन इसके चलते आज जो एक नई बात हुई है उस पर शायद आप ध्यान ही नहीं देना चाहते। हमारे इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि गांव के कुछ लोग हमारे प्रति अपने अंदर गुस्सा और घृणा के भाव लिए हमारी चौखट तक चले आए। मैंने अपनी आंखों से देखा था पिता जी कि उनमें से किसी की भी आंखों में हमारे प्रति लेश मात्र भी दहशत नहीं थी। उस वक्त जिस तरह से आप उनसे बात कर रहे थे उससे मुझे ऐसा आभास हो रहा था जैसे आप उनके ऐसे मुजरिम हैं जिनसे वो जैसे चाहें गरजते हुए बात कर सकते हैं। माफ़ कीजिए पिता जी लेकिन अगर आपकी जगह मैं होता तो उसी वक्त उन सबको उनकी औकात दिखा देता। एक पल भी नहीं लगता उन्हें आपके क़दमों में गिर कर गिड़गिड़ाते हुए अपनी अपनी जान की भीख मांगने में।"

"हम में और तुम में यही अंतर बर्खुरदार।" पिता जी ने कहा____"हम गांव और समाज के लोगों के अंदर अपने प्रति डर अथवा ख़ौफ नहीं डालना चाहते हैं बल्कि उनके अंदर अपने प्रति इज्ज़त और सम्मान की ऐसी भावना डालना चाहते हैं जिसकी वजह से वो हर परिस्थिति में हमारा आदर करें और हमारे लिए खुशी खुशी अपना बलिदान देने के लिए भी तैयार रहें। तुम में हमें हमेशा हमारे पिता श्री यानि बड़े दादा ठाकुर की छवि दिखती है। वही गुरूर, वही गुस्सा, वही मनमौजीपन और वैसी ही फितरत जिसके तहत हर किसी को तुच्छ समझना और हर किसी को बेवजह ही अपने गुस्से के द्वारा ख़ाक में मिला देना। तुम हमेशा उन्हीं के जैसा बर्ताव करते आए हो। तुम सिर्फ़ यही चाहते हो कि गांव और समाज के लोगों के अंदर तुम्हारा वैसा ही ख़ौफ हो जैसा उनका होता था। हमें समझ में नहीं आता कि ऐसी सोच रखने वाला इंसान ये क्यों नहीं समझता कि ऐसा करने से लोग उससे डरते भले ही हैं लेकिन उसके प्रति उनके दिल में सच्चा प्रेम भाव कभी नहीं रहता। उसके द्वारा बेरहमी दिखाने से लोग भले ही उससे रहम की भीख मांगें लेकिन अंदर ही अंदर वो हमेशा उसे बददुआ ही देते हैं।"

"मैं ये मानता हूं पिता जी कि मैंने हमेशा अपनी मर्ज़ी से ही अपना हर काम किया है।" मैंने गंभीरता से कहा____"और ये भी मानता हूं कि मैंने हमेशा वही किया है जिसके चलते आपका नाम ख़राब हुआ है लेकिन बड़े दादा ठाकुर की तरह मैंने कभी किसी मजलूम को नहीं सताया और ना ही किसी के अंदर कभी ख़ौफ भरने का सोचा है। मैं नहीं जानता कि आपको ऐसा क्यों लगता है कि मैं बड़े दादा ठाकुर के जैसी सोच रखता हूं या उनके जैसा ही बर्ताव करता हूं।"

"मैं वैभव की बातों से सहमत हूं पिता जी।" बड़े भैया ने झिझकते हुए कहा____"वो थोड़ा गुस्सैल स्वभाव का ज़रूर है लेकिन मैंने भी देखा है कि अपने गुस्से के चलते इसने किसी के साथ ऐसा कुछ भी बुरा नहीं किया है जैसा कि बड़े दादा ठाकुर करते थे।"

बड़े भैया ने पहली बार पिता जी के सामने मेरा पक्ष लिया था और ये देख कर मुझे बेहद खुशी हुई थी। पिता जी उनकी बात सुन कर कुछ देर तक ख़ामोशी से उनकी तरफ देखते रहे। मैंने देखा उनके होठों पर बहुत ही बारीक मुस्कान एक पल के लिए उभरी थी और फिर फ़ौरन ही ग़ायब भी हो गई थी।

"वैसे मैं ये सोच रहा हूं कि क्या जगन ने ही अपने बड़े भाई मुरारी की हत्या की होगी?" मैंने एकदम से छा गई ख़ामोशी को चीरते हुए कहा____"सोचा जाए तो उसके पास अपने भाई की हत्या करने की काफ़ी माकूल वजह है। यानि अपने भाई की ज़मीन जायदाद को हड़प लेना। मेरा ख़्याल है कि ऐसी मानसिकता उसके अंदर पहले से ही रही होगी किंतु इतना बड़ा क़दम उठाने से वो डरता रहा होगा लेकिन जब उसे सफ़ेदपोश आदमी का बेहतर सहयोग प्राप्त हुआ तो उसने अपने मंसूबों को परवान चढ़ाने में देरी नहीं की।"

"हमें भी ऐसा ही लगता है।" पिता जी ने कहा____"उस सफ़ेदपोश को शायद जगन के मंसूबों का पता रहा होगा तभी उसने उसे पूरा सहयोग करने का प्रलोभन दिया होगा। उसने जगन को ये भी कहा होगा कि उसके द्वारा मुरारी की हत्या कर देने से उस पर कभी कोई आंच नहीं आएगी। जगन को भला इसके बेहतर मौका और इसके सिवा क्या चाहिए था।"

"यहां पर सवाल ये उठता है कि क्या जगन के ज़हन में।" बड़े भैया ने कहा____"ये ख़्याल नहीं आया होगा कि जो रहस्यमय व्यक्ति उसका इस तरह से साथ देने का दावा कर रहा है वो उस सबके लिए एक दिन उसे फंसा भी सकता है? जगन अपने ही भाई की हत्या किसी ऐसे व्यक्ति के भरोसे कैसे कर देने का सोच सकता है जिसके बारे में वो ख़ुद ही न जानता हो?"

"बात तर्क़ संगत है।" पिता जी ने कहा____"यकीनन वो इतना बड़ा जोख़िम किसी अज्ञात व्यक्ति के भरोसे नहीं उठा सकता था लेकिन संभव है कि भाई के ज़मीन जायदाद के लालच ने उसके ज़हन को कुछ सोचने ही न दिया हो। ये भी हो सकता है कि उस सफ़ेदपोश ने उसे अपनी तरफ से थोड़ा बहुत धन का लालच भी दिया हो।"

"बेशक ऐसा हो सकता है।" बड़े भैया ने कहा____"पर सवाल है किस लिए? उसे भला जगन द्वारा उसके ही भाई की हत्या करा देने से क्या लाभ हो सकता था?"

"क्या ये लाभ जैसी बात नहीं थी कि मुरारी की हत्या हो जाने के बाद उसका इल्ज़ाम तुम्हारे छोटे भाई के ऊपर लग गया था?" पिता जी ने जैसे बड़े भैया को याद दिलाते हुए कहा_____"उस सफ़ेदपोश का ये सब करवाने का सिर्फ़ एक ही मकसद था____हम सबका नाम ख़राब करना। दूर दूर तक इस बात को फैला देना कि जो दादा ठाकुर आस पास के दस गांवों का फैसला करता है उसका अपना ही बेटा किसी ग़रीब व्यक्ति की इस तरह से हत्या भी करता फिरता है। अगर वाकई में जगन ने ही अपने भाई की हत्या की है तो समझ लो कि उस सफ़ेदपोश ने एक तरह से एक तीर से दो शिकार किए थे। एक तरफ जगन का फ़ायदा हुआ और दूसरी तरफ ख़ुद उस सफ़ेदपोश का फ़ायदा हुआ।"

"अगर ये सब संभावनाएं सच हुईं तो समझिए मुरारी की हत्या का रहस्य सुलझ गया।" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"लेकिन अब मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि वो सफ़ेदपोश आदमी मेरे दोस्तों के द्वारा अपना कौन सा उल्लू सीधा करना चाहता है?"

"वो दोनों तुम्हारे दोस्त हैं।" पिता जी ने कहा____"और उन्हें तुम्हारे हर क्रिया कलाप के बारे में बेहतर तरीके से पता है। संभव है कि वो सफ़ेदपोश आदमी उनके द्वारा इसी संबंध में अपना कोई काम करवा रहा हो।"

"मामला गंभीर है पिता जी।" मैंने चिंतित भाव से कहा____"सुनील और चेतन से इस बारे में पूछताछ करना बेहद ज़रूरी है।"
"जल्दबाजी में उठाया गया क़दम नुकसानदेय भी हो सकता है।" पिता जी ने कहा____"इस लिए बेहतर है कि हम पहले उन दोनों पर गुप्त रूप से नज़र रखवाएं। हम नहीं चाहते कि हमारी किसी ग़लती की वजह से उनकी जान को कोई ख़तरा हो जाए।"

पिता जी की बात सुन कर अभी मैं कुछ बोलने ही वाला था कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई और बाहर से मां की आवाज़ आई। वो मुझे डांटते हुए कह रहीं थी कि मैं अभी तक तैयार हो कर क्यों नहीं आया? मां की ये बात पिता जी और बड़े भैया ने भी सुनी। इस लिए पिता जी पलंग से नीचे उतर गए और मुझसे कहा कि मैं भाभी को साथ ले कर चंदनपुर जाऊं और यहां के बारे में कोई फ़िक्र न करूं।

पिता जी और बड़े भैया दोनों ही कमरे से चले गए तो मैं फ़ौरन ही अपने कपड़े उतार कर दूसरे कपड़े पहनने लगा। इस बीच कमरे में मेरे कुछ कपड़ों को एक थैले में डालते हुए मां जाने क्या क्या सुनाए जा रहीं थी मुझे। ख़ैर कुछ ही देर में मैं थैला लिए उनके साथ ही कमरे से बाहर निकला।

रागिनी भाभी तैयार हो कर नीचे ही मेरा इंतज़ार कर रहीं थी। मेरे आते ही भाभी ने अपने से बड़ों का आशीर्वाद लिया और फिर चल पड़ीं। एक थैला उनका भी था इस लिए मैं उनका और अपना थैला लिए बाहर आया। बाहर अभिनव भैया ने जीप को मुख्य दरवाज़े के सामने लगा दिया था। पिता जी ने मुझे कुछ ज़रूरी दिशा निर्देश दिए उसके बाद मैंने उनका आशीर्वाद ले कर जीप में अपना और भाभी का थैला रखा। बड़े भैया जीप से उतर आए थे। भाभी चुपचाप जा कर जीप में बैठ गईं। मैंने बड़े भैया के भी पैर छुए तो उन्होंने एकदम से मुझे अपने गले से लगा लिया और मुझे अपना ख़्याल रखने के लिए कहा।

कुछ ही देर में मैं भाभी को लिए जीप से निकल पड़ा। हमारे साथ कुछ आदमियों को भी जाना था इस लिए एक दूसरी जीप में वो लोग भी हमारे पीछे चल पड़े थे। वो सब दिखने में भले ही सामान्य नज़र आ रहे थे लेकिन मैं बखूबी जानता था कि वो सब हर तरह के ख़तरे से निपटने के लिए तैयार थे। रागिनी भाभी मेरे बगल से ही बैठी हुईं थी। उनके चेहरे पर एक अलग ही ख़ुशी की चमक दिख रही थी। ये पहला अवसर था जब मैं भाभी को ले कर कहीं जा रहा था और वो मेरे साथ जीप में अकेली थीं। सुर्ख साड़ी में वो बहुत ही खूबसूरत दिख रहीं थी। मैं चुपके से उनकी नज़र बचा कर उन्हें देखने पर मानों मजबूर हो जाता था।

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मुझे हवेली से निकले क़रीब आधा घंटा ही हुआ था कि जगताप चाचा हवेली में दाखिल हुए। जगताप चाचा को पिता जी ने रेखा और शीला के हत्यारे का पता लगाने का काम सौंपा था और साथ ही इस बात का भी कि सरजू कलुआ और रंगा सुबह जिस सुर में बात कर रहे थे उसके पीछे की असल वजह क्या थी। पिता जी बैठक में ही बड़े भैया के साथ बैठे हुए थे और हालातों के बारे में अपनी कुछ रणनीति बना रहे थे। जगताप चाचा आए तो वो भी उनके पास ही बैठक में रखी एक कुर्सी पर बैठ गए।

"तुम्हारे चेहरे के भाव ज़ाहिर कर रहे हैं कि हमने जो काम तुम्हें सौंपा था वो काम तुमने बखूबी कर लिया है।" पिता जी ने जगताप चाचा की तरफ देखते हुए कहा_____"ख़ैर हम तुमसे सब कुछ जानने के लिए उत्सुक हैं।"

"आपने सही अंदाज़ा लगाया भैया।" जगताप चाचा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"मुझे कामयाबी तो मिली है लेकिन पूरी तरह से नहीं।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" पिता जी के माथे पर सहसा सिलवटें उभर आईं____"पूरी तरह से कामयाबी नहीं मिली है से क्या मतलब है तुम्हारा?"

"बात दरअसल ये है भैया कि आपके हुकुम पर मैं इस सबका पता लगाने के लिए गया।" जगताप चाचा ने लंबी सांस लेते हुए कहा____"सबसे पहले तो मैं रेखा और शीला के पतियों से मिला और उनसे इस सबके बारे में विस्तार से बातें की और ये भी कहा कि क्या उन्हें लगता है कि उनकी बीवियों को हम बेवजह ही मौत घाट उतार देंगे? उन्हें समझाने के लिए और उनको संतुष्ट करने के लिए मुझे उन दोनों को सच बताना पड़ा भैया। मैंने उन्हें बताया कि उनकी बीवियां असल में हमारे किसी दुश्मन के इशारे पर काम कर रहीं थी और जब हमें इस बात का पता चला तो हम बस उनसे बात करना चाहते थे लेकिन उससे पहले ही उन दोनों की मौत हो गई। मैंने उन्हें बताया कि उनकी बीवियां किसी अज्ञात आदमी के द्वारा इस हद तक मज़बूर कर दी गईं थी कि वो दोनों उसके इशारे पर कुछ भी कर सकती थीं। मेरे द्वारा सच बताए जाने पर शीला और रेखा के पति बुरी तरह चकित हो गए थे। मैंने उन्हें समझाया कि इस बारे में उन्हें हमने सबके सामने इसी लिए नहीं बताया था क्योंकि इससे हमारे दुश्मन को भी पता लग जाता। जबकि हम तो ये चाहते हैं कि हमारा दुश्मन भ्रम में ही रहे और हम किसी तरह जाल बिछा कर उसे पकड़ लें। फिर मैंने उनसे सरजू कलुआ और रंगा के बारे में पूछा कि क्या वो तीनों उसके यहां आए थे तो दोनों ने बताया कि पिछली रात वो तीनों घंटों उनके यहां बैठे रहे थे और इस घटना के बारे में जाने क्या क्या उनके दिमाग़ में भरते जा रहे थे। मैंने उन्हें समझाया कि उन तीनों की बातों में न फंसे क्योंकि वो तीनों भी हमारे दुश्मन के आदमी हो सकते हैं। आख़िर मेरे समझाने बुझाने पर देवधर और मंगल मान भी गए और उन्हें सच का पता भी चल गया।"

"चलो ये तो अच्छा हुआ।" पिता जी ने कहा____"उसके बाद फिर क्या तुम उन तीनों से भी मिले?"
"उनसे मिलता तो ज़रूरी ही था भैया।" जगताप चाचा ने कहा____"आख़िर उन्हीं से तो ये पता चलता कि सुबह उतने सारे लोगों में से सिर्फ़ उन तीनों को ही ऐसी कौन सी खुजली हो रही थी जिसके चलते वो हमसे ऊंचे स्वर में बात करने की हिमाकत किए थे?"

"ह्म्म्म।" पिता जी ने हल्के से हुंकार भरी____"तो क्या पता चला इस बारे में उनसे?"
"अपने साथ यहां से दो आदमियों को ले कर गया था मैं।" जगताप चाचा ने कहना शुरू किया____"ऐसा इस लिए क्योंकि मुझे पूरा अंदेशा था कि वो लोग आसानी से मिलेंगे नहीं और अगर मिले भी तो आसानी से हाथ नहीं आएंगे। मैं सरजू के घर गया और अपने दोनों आदमियों को अलग अलग कलुआ और रंगा के घर भेजा। उन्हें हुकुम था कि वो उन दोनों को हर हाल में उन्हें ले कर सरजू के घर आएं और फिर ऐसा ही हुआ। तीनों जब मेरे सामने इकट्ठा हुए तो तीनों ही एकदम से घबरा गए थे। उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि मैं और मेरे आदमियों ने किस लिए उन तीनों को इकट्ठा किया है। ख़ैर, उसके बाद मैंने तीनों से पूछताछ शुरू की। शुरू में तो वो तीनों इधर उधर की ही हांकते रहे लेकिन जब तीनों की कुटाई हुई तो जल्दी ही रट्टू तोते की तरह सब कुछ बताना शुरू कर दिया। उनके अनुसार, दो दिन पहले उन्हें सफ़ेद लिबास पहने एक रहस्यमई आदमी रात के अंधेरे में मिला था। उस सफ़ेदपोश आदमी के साथ दो लोग और थे जिनका चेहरा अंधेरे में नज़र नहीं आ रहा था। उस सफ़ेदपोश ने ही उन्हें बताया था कि कैसे उन तीनों को गांव वालों को इकट्ठा करना है और फिर कैसे शीला और रेखा की मौत के बारे में हवेली जा कर दादा ठाकुर के सामने पूरी निडरता से सवाल जवाब करना है। सफ़ेदपोश ने उन तीनों को धमकी दी थी कि अगर उन्होंने उसके कहे अनुसार ऐसा नहीं किया तो वो उसके परिवार वालों को जान से मार देगा। कहने का मतलब ये कि सरजू कलुआ और रंगा ने वो सब उस सफ़ेदपोश आदमी के मज़बूर करने पर किया था।"

"हमें लगा ही था कि उन तीनों के ऐसे ब्यौहार के पीछे ज़रूर ऐसी ही कोई बात होगी।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"ख़ैर, तुमने बताया कि सफ़ेदपोश ने उन तीनों को ऐसा करने के लिए दो दिन पहले कहा था, यानि जिस दिन रेखा और शीला की मौत हुई थी। ज़ाहिर है उस सफ़ेदपोश ने इस मामले को बड़ी होशियारी से हमारे खिलाफ़ एक हथियार के रूप में स्तेमाल किया है। एक बार फिर से उसने वही हथकंडा अपनाया है यानि हमें और हमारी शाख को धूल में मिलाने वाला हथकंडा। यही हथकंडा उसने मुरारी की हत्या के समय अपनाया था, वैभव के सिर मुरारी की हत्या का आरोप लगवा कर।"

"हमें ये तो पता चल गया पिता जी कि सरजू कलुआ और रंगा के उस ब्यौहार की वजह क्या थी।" अभिनव भैया ने कहा____"लेकिन इस सबके बाद भी अगर हम ये कहें कि कोई फ़ायदा नहीं हुआ है तो ग़लत न होगा। हमारा दुश्मन इतना शातिर है कि वो अपने खिलाफ़ ऐसा कोई भी सुराग़ नहीं छोड़ रहा जिसके चलते हम उस तक पहुंच सकें। वो अपने फ़ायदे के लिए जिस किसी को भी मोहरा बनाता है उसे पकड़ लेने के बाद भी हमें कोई फ़ायदा नहीं होता।"

"इसकी वजह ये है कि वो अपने हर प्यादे से अपनी शक्ल छुपा कर ही मिलता है।" पिता जी ने सोचने वाले भाव से कहा____"इतना तो वो भी समझता है कि उसका कोई न कोई प्यादा देर सवेर हमारे हाथ लगेगा ही और तब हम उसके उस प्यादे से उसके बारे में पता करने की पूरी कोशिश करेंगे। ज़ाहिर है अगर उसके प्यादे को उसके बारे में पता होगा तो हमें उसी प्यादे से उसके बारे में सब कुछ जान लेने में देर नहीं लगेगी। यही सब सोच कर वो हमेशा अपने प्यादों से अपनी शक्ल छुपा कर ही मिलता है।"

"फिर तो हमारे लिए उस तक पहुंच पाना लगभग असम्भव बात ही है भैया।" जगताप चाचा ने गहरी सांस ले कर कहा____"वो हमेशा हमसे दो क्या बल्कि चार क़दम आगे की सोच कर चलता है और हमें हर बार नाकामी का ही स्वाद चखना पड़ता है।"

"किसी भी इंसान के सितारे हमेशा गर्दिश में नहीं रहते जगताप।" पिता जी ने हल्की मुस्कान में कहा____एक दिन हर इंसान का बुरा वक्त आता है। हमें यकीन है कि उस सफ़ेदपोश का भी बुरा वक्त जल्द ही आएगा।"

कुछ देर और इस संबंध में भी बातें हुईं उसके बाद सब अपने अपने काम पर चले गए। दादा ठाकुर अकेले ही बैठक में बैठे हुए थे। उनके चेहरे पर कई तरह के विचारों का आवा गमन चालू था। सहसा जाने क्या सोच कर वो मुस्कुराए और फिर उठ कर हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गए।

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दोस्तो, कहानी का अगला अध्याय - 52 पोस्ट कर दिया है। आशा है आप सभी को पसंद आएगा। आप सबकी समीक्षा अथवा विचारों का इंतज़ार रहेगा... :love:
 

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अध्याय - 52
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अब तक....

"ये क्या कह रहे हो तुम?" बड़े भैया बीच में ही मेरी बात काट कर बोल पड़े____"क्या तुम्हारे उन ख़ास ख़बरियों ने उस सफ़ेदपोश आदमी का पीछा नहीं किया?"
"किया था।" मैंने कहा____"लेकिन उससे पहले ये सुनिए कि बगीचे में सफ़ेदपोश और उस जगन के अलावा और कौन था?"


अब आगे.....

"जगन के अलावा और कौन था वहां?" बड़े भैया ने उत्सुकता पूर्ण भाव से पूछा। पिता जी के चेहरे पर भी जानने की वही उत्सुकता दिख रही थी।

"सुनील और चेतन।" मैंने बारी बारी से पिता जी और बड़े भैया की तरफ देखते हुए कहा____"मेरे वही दोस्त जो बचपन से ही हर काम में मेरे साथ रहे हैं और मेरे ही टुकड़ों पर पलते भी रहे हैं।"

"य...ये क्या कह रहा है तू??" पिता जी तो चौंके ही थे किंतु बड़े भैया तो उछल ही पड़े थे, बोले____"ए..ऐसा कैसे हो सकता है वैभव? मेरा मतलब है कि वो दोनों तेरे साथ कोई विश्वासघात कैसे कर सकते हैं?"

"इतना हैरान मत होइए भैया।" मैंने कहा____"पिछले कुछ समय से अपने और पराए लोगों ने जो कुछ भी हमारे साथ किया है वो क्या ऐसा नहीं था जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी?"

"ये सब छोड़ो।" पिता जी ने कहा____"और मुख्य बात बताओ। तुम्हारे उन दो ख़बरियों ने इस बारे में क्या क्या जानकारी दी है तुम्हें?"

"वो दोनों जगन पर नज़र रखे हुए थे।" मैंने गहरी सांस लेकर कहा____"कल शाम भी वो जगन के पीछे पीछे ही बड़ी सावधानी से हमारे बाग़ तक पहुंचे थे। अंधेरा हो गया था लेकिन ऐसा भी नहीं था कि वो दोनों कुछ ही दूरी पर पेड़ों के पास खड़े उन लोगों को देख नहीं सकते थे। उनके अनुसार, जगन जब वहां पहुंचा तो सुनील और चेतन पहले से ही वहां मौजूद थे। उन तीनों की आपस में क्या बातें हो रहीं थी ये वो दोनों सुन नहीं पा रहे थे। ख़ैर, कुछ ही देर बाद उन्होंने देखा कि दूसरी तरफ से एक ऐसा रहस्यमई आदमी आया जिसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था और उसका चेहरा सफ़ेद नक़ाब से ढका हुआ था। वो सफ़ेदपोश उन तीनों से कुछ कह रहा था जिसे वो तीनों ख़ामोशी से सुन रहे थे। क़रीब पंद्रह मिनट तक वो सफ़ेदपोश उनके बीच रहा और फिर वो जिस तरह आया था वैसे ही चला भी गया। मेरे दोनों आदमी इतना तो समझ ही चुके थे कि जगन के साथ साथ सुनील और चेतन भी महज मोहरे ही हैं जबकि असली खेल खेलने वाला तो वो सफ़ेदपोश था। इस लिए दोनों बड़ी होशियारी और सावधानी के साथ उस सफ़ेदपोश के पीछे लग गए मगर उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा। दोनों ने बताया कि उन्होंने उस सफ़ेदपोश को काफ़ी खोजा मगर वो तो जैसे किसी जादू की तरह ग़ायब ही हो गया था।"

"बड़े आश्चर्य की बात है।" बड़े भैया गहरी सांस ले कर बोले____"जो व्यक्ति अंधेरे में भी अपने सफ़ेद लिबास के चलते बखूबी दिखाई दे रहा था वो दो आदमियों की आंखों के सामने से बड़े ही चमत्कारिक ढंग से ग़ायब हो गया, यकीन नहीं होता। ख़ैर, सबसे ज़्यादा हैरानी की बात तो ये है कि तेरे अपने बचपन के दोस्त भी उस सफ़ेदपोश आदमी से मिले हुए हैं। आख़िर वो दोनों किसी ऐसे रहस्यमई आदमी के हाथ की कठपुतली कैसे बन सकते हैं जो उसके अपने दोस्त और उसके पूरे खानदान का शत्रु बना हुआ हो?"

"मैं खुद नहीं समझ पा रहा भैया कि वो दोनों उस सफ़ेदपोश आदमी से क्यों मिले हुए हैं?" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"जब से मुझे इस बारे में अपने उन दो ख़बरियों से पता चला है तभी से इस सबके बारे में सोच सोच कर परेशान हूं। जगन का तो समझ में आता है कि वो कई कारणों से उस सफ़ेदपोश आदमी का साथ दे सकता है लेकिन मेरे अपने बचपन के दोस्त भी ऐसा करेंगे इसकी तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था।"

"कोई तो ऐसी वजह ज़रूर होगी।" पिता जी ने सोचने वाले अंदाज़ में कहा____"जिसके चलते तुम्हारे वो दोनों दोस्त उस सफ़ेदपोश आदमी का साथ दे रहे हैं। संभव है कि वो दोनों ऐसा किसी मजबूरी के चलते कर रहे हों। इंसान कोई भी काम दो सूरतों में ही करता है, या तो ख़ुशी से या फिर किसी मज़बूरी से। ये तो पक्की बात है कि उनकी तुमसे कोई दुश्मनी नहीं है तो ज़ाहिर है उनका उस सफ़ेदपोश आदमी का साथ देते हुए तुम्हारे खिलाफ़ कुछ भी करना मजबूरी ही हो सकती है। अब हमें बड़ी होशियारी और सतर्कता से उनसे मिलना होगा और इस सबके बारे में पूछना होगा।"

"ये काम मैं ही बेहतर तरीके से कर सकता था।" मैंने पिता जी की तरफ संजीदगी से देखते हुए कहा____"लेकिन अब ये संभव ही नहीं हो सकेगा क्योंकि आपके हुकुम पर मुझे आज और अभी भाभी को लेकर चंदनपुर जाना होगा।"

"हां हम समझते हैं।" पिता जी ने कहा____"लेकिन रागिनी बहू को ले कर तुम्हारा चंदनपुर जाना ज़रूरी है। रही बात तुम्हारे उन दोनों दोस्तों से इस बारे में मिल कर पूंछतांछ करने की तो उसकी फ़िक्र मत करो तुम। हम अपने तरीके से इस बारे में पता कर लेंगे।"

"आज मैंने ये पता करने की कोशिश की कि उस दिन हवेली में ऐसा कौन व्यक्ति रहा होगा जिसने रेखा को ज़हर खाने पर मज़बूर किया होगा?" बड़े भैया ने कहा____"मैंने अपने तरीके से हवेली की लगभग हर नौकरानी से पूछताछ की और साथ ही हवेली के बाहर सुरक्षा में लगे आदमियों से भी पूछा लेकिन हैरानी की बात है कि इस बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं है।"

"हमें तो इस बारे में कुछ और ही समझ में आ रहा है।" पिता जी ने कुछ सोचते हुए कहा____"हो सकता है कि हमारा सोचना ग़लत भी हो किंतु रेखा के मामले में हम जैसा सोच रहे हैं शायद वैसा न हो। कहने का मतलब ये कि ज़रूरी नहीं कि उसे ज़हर खाने पर मज़बूर करने वाला उस समय हवेली में ही रहा हो बल्कि ऐसा भी हो सकता है कि उसे पहले से ही ऐसा कुछ करने का निर्देश दिया गया रहा होगा। हवेली की दो नौकरानियों के अलावा बाकी सभी नौकरानियां सुबह सुबह ही अपने अपने घरों से हवेली में काम करने आती हैं और फिर दिन ढले ही यहां से अपने घर जाती हैं। रेखा और शीला दोनों ही नई नौकरानियां थी और वो दोनों सुबह यहां आने के बाद शाम को ही अपने अपने घर जाती थीं। ख़ैर, हमारे कहने का मतलब ये है कि अगर उसे ज़हर खाने पर मज़बूर करने वाला हवेली में उस वक्त नहीं था अथवा हमारी पूछताछ पर ऐसे किसी व्यक्ति का पता नहीं चल सका है तो संभव है कि रेखा को पहले से ही ऐसा कुछ करने का निर्देश दिया गया रहा होगा। जिस तरह के हालात बने हुए थे उस स्थिति में उसके आका ने पहले ही उसे ये निर्देश दे दिया होगा कि अगर उसे अपने पकड़े जाने का ज़रा भी अंदेशा हो तो वो फ़ौरन ही ज़हर खा कर अपनी जान दे दे। उस दिन सुबह जिस तरह से हम सब लाव लश्कर ले कर चलने वाले थे उस सबको रेखा ने शायद अपनी आंखों से देखा होगा। उसे लगा होगा कि हमें उसके और उसके आका के बारे में पता चल गया है। वो इस बात से बुरी तरह घबरा गई होगी और फिर अपने आका के निर्देश के अनुसार उसने फ़ौरन ही खुदकुशी करने का इरादा बना लिया होगा।"

"हां शायद ऐसा ही हुआ होगा।" बड़े भैया ने सिर हिलाते हुए कहा____"तो फिर इसका मतलब ये हुआ कि रेखा उस दिन हमारे लाव लश्कर को देख कर ग़लतफहमी का शिकार हो गई थी और उसी के चलते उसने ज़हर खा कर अपनी जान दे दी, मूर्ख औरत।"

"ये सिर्फ़ एक संभावना है।" पिता जी ने कहा____"जो कि ग़लत भी हो सकती है। हमें इस बारे में सिर्फ़ संभावना नहीं करनी है बल्कि सच का पता लगाना है। आज सुबह गांव वालों से हमने कहा भी है कि हम रेखा और शीला दोनों की ही मौत का पता लगाएंगे।"

"कैसे पता लगाएंगे पिता जी?" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"जबकि हम अच्छी तरह जानते हैं कि उन दोनों की मौत का असल सच क्या है। आप गांव वालों को वो सच इस लिए नहीं बताना चाहते क्योंकि उससे दुश्मन को हमारी मंशा का पता चल जाएगा लेकिन इसके चलते आज जो एक नई बात हुई है उस पर शायद आप ध्यान ही नहीं देना चाहते। हमारे इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि गांव के कुछ लोग हमारे प्रति अपने अंदर गुस्सा और घृणा के भाव लिए हमारी चौखट तक चले आए। मैंने अपनी आंखों से देखा था पिता जी कि उनमें से किसी की भी आंखों में हमारे प्रति लेश मात्र भी दहशत नहीं थी। उस वक्त जिस तरह से आप उनसे बात कर रहे थे उससे मुझे ऐसा आभास हो रहा था जैसे आप उनके ऐसे मुजरिम हैं जिनसे वो जैसे चाहें गरजते हुए बात कर सकते हैं। माफ़ कीजिए पिता जी लेकिन अगर आपकी जगह मैं होता तो उसी वक्त उन सबको उनकी औकात दिखा देता। एक पल भी नहीं लगता उन्हें आपके क़दमों में गिर कर गिड़गिड़ाते हुए अपनी अपनी जान की भीख मांगने में।"

"हम में और तुम में यही अंतर बर्खुरदार।" पिता जी ने कहा____"हम गांव और समाज के लोगों के अंदर अपने प्रति डर अथवा ख़ौफ नहीं डालना चाहते हैं बल्कि उनके अंदर अपने प्रति इज्ज़त और सम्मान की ऐसी भावना डालना चाहते हैं जिसकी वजह से वो हर परिस्थिति में हमारा आदर करें और हमारे लिए खुशी खुशी अपना बलिदान देने के लिए भी तैयार रहें। तुम में हमें हमेशा हमारे पिता श्री यानि बड़े दादा ठाकुर की छवि दिखती है। वही गुरूर, वही गुस्सा, वही मनमौजीपन और वैसी ही फितरत जिसके तहत हर किसी को तुच्छ समझना और हर किसी को बेवजह ही अपने गुस्से के द्वारा ख़ाक में मिला देना। तुम हमेशा उन्हीं के जैसा बर्ताव करते आए हो। तुम सिर्फ़ यही चाहते हो कि गांव और समाज के लोगों के अंदर तुम्हारा वैसा ही ख़ौफ हो जैसा उनका होता था। हमें समझ में नहीं आता कि ऐसी सोच रखने वाला इंसान ये क्यों नहीं समझता कि ऐसा करने से लोग उससे डरते भले ही हैं लेकिन उसके प्रति उनके दिल में सच्चा प्रेम भाव कभी नहीं रहता। उसके द्वारा बेरहमी दिखाने से लोग भले ही उससे रहम की भीख मांगें लेकिन अंदर ही अंदर वो हमेशा उसे बददुआ ही देते हैं।"

"मैं ये मानता हूं पिता जी कि मैंने हमेशा अपनी मर्ज़ी से ही अपना हर काम किया है।" मैंने गंभीरता से कहा____"और ये भी मानता हूं कि मैंने हमेशा वही किया है जिसके चलते आपका नाम ख़राब हुआ है लेकिन बड़े दादा ठाकुर की तरह मैंने कभी किसी मजलूम को नहीं सताया और ना ही किसी के अंदर कभी ख़ौफ भरने का सोचा है। मैं नहीं जानता कि आपको ऐसा क्यों लगता है कि मैं बड़े दादा ठाकुर के जैसी सोच रखता हूं या उनके जैसा ही बर्ताव करता हूं।"

"मैं वैभव की बातों से सहमत हूं पिता जी।" बड़े भैया ने झिझकते हुए कहा____"वो थोड़ा गुस्सैल स्वभाव का ज़रूर है लेकिन मैंने भी देखा है कि अपने गुस्से के चलते इसने किसी के साथ ऐसा कुछ भी बुरा नहीं किया है जैसा कि बड़े दादा ठाकुर करते थे।"

बड़े भैया ने पहली बार पिता जी के सामने मेरा पक्ष लिया था और ये देख कर मुझे बेहद खुशी हुई थी। पिता जी उनकी बात सुन कर कुछ देर तक ख़ामोशी से उनकी तरफ देखते रहे। मैंने देखा उनके होठों पर बहुत ही बारीक मुस्कान एक पल के लिए उभरी थी और फिर फ़ौरन ही ग़ायब भी हो गई थी।

"वैसे मैं ये सोच रहा हूं कि क्या जगन ने ही अपने बड़े भाई मुरारी की हत्या की होगी?" मैंने एकदम से छा गई ख़ामोशी को चीरते हुए कहा____"सोचा जाए तो उसके पास अपने भाई की हत्या करने की काफ़ी माकूल वजह है। यानि अपने भाई की ज़मीन जायदाद को हड़प लेना। मेरा ख़्याल है कि ऐसी मानसिकता उसके अंदर पहले से ही रही होगी किंतु इतना बड़ा क़दम उठाने से वो डरता रहा होगा लेकिन जब उसे सफ़ेदपोश आदमी का बेहतर सहयोग प्राप्त हुआ तो उसने अपने मंसूबों को परवान चढ़ाने में देरी नहीं की।"

"हमें भी ऐसा ही लगता है।" पिता जी ने कहा____"उस सफ़ेदपोश को शायद जगन के मंसूबों का पता रहा होगा तभी उसने उसे पूरा सहयोग करने का प्रलोभन दिया होगा। उसने जगन को ये भी कहा होगा कि उसके द्वारा मुरारी की हत्या कर देने से उस पर कभी कोई आंच नहीं आएगी। जगन को भला इसके बेहतर मौका और इसके सिवा क्या चाहिए था।"

"यहां पर सवाल ये उठता है कि क्या जगन के ज़हन में।" बड़े भैया ने कहा____"ये ख़्याल नहीं आया होगा कि जो रहस्यमय व्यक्ति उसका इस तरह से साथ देने का दावा कर रहा है वो उस सबके लिए एक दिन उसे फंसा भी सकता है? जगन अपने ही भाई की हत्या किसी ऐसे व्यक्ति के भरोसे कैसे कर देने का सोच सकता है जिसके बारे में वो ख़ुद ही न जानता हो?"

"बात तर्क़ संगत है।" पिता जी ने कहा____"यकीनन वो इतना बड़ा जोख़िम किसी अज्ञात व्यक्ति के भरोसे नहीं उठा सकता था लेकिन संभव है कि भाई के ज़मीन जायदाद के लालच ने उसके ज़हन को कुछ सोचने ही न दिया हो। ये भी हो सकता है कि उस सफ़ेदपोश ने उसे अपनी तरफ से थोड़ा बहुत धन का लालच भी दिया हो।"

"बेशक ऐसा हो सकता है।" बड़े भैया ने कहा____"पर सवाल है किस लिए? उसे भला जगन द्वारा उसके ही भाई की हत्या करा देने से क्या लाभ हो सकता था?"

"क्या ये लाभ जैसी बात नहीं थी कि मुरारी की हत्या हो जाने के बाद उसका इल्ज़ाम तुम्हारे छोटे भाई के ऊपर लग गया था?" पिता जी ने जैसे बड़े भैया को याद दिलाते हुए कहा_____"उस सफ़ेदपोश का ये सब करवाने का सिर्फ़ एक ही मकसद था____हम सबका नाम ख़राब करना। दूर दूर तक इस बात को फैला देना कि जो दादा ठाकुर आस पास के दस गांवों का फैसला करता है उसका अपना ही बेटा किसी ग़रीब व्यक्ति की इस तरह से हत्या भी करता फिरता है। अगर वाकई में जगन ने ही अपने भाई की हत्या की है तो समझ लो कि उस सफ़ेदपोश ने एक तरह से एक तीर से दो शिकार किए थे। एक तरफ जगन का फ़ायदा हुआ और दूसरी तरफ ख़ुद उस सफ़ेदपोश का फ़ायदा हुआ।"

"अगर ये सब संभावनाएं सच हुईं तो समझिए मुरारी की हत्या का रहस्य सुलझ गया।" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"लेकिन अब मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि वो सफ़ेदपोश आदमी मेरे दोस्तों के द्वारा अपना कौन सा उल्लू सीधा करना चाहता है?"

"वो दोनों तुम्हारे दोस्त हैं।" पिता जी ने कहा____"और उन्हें तुम्हारे हर क्रिया कलाप के बारे में बेहतर तरीके से पता है। संभव है कि वो सफ़ेदपोश आदमी उनके द्वारा इसी संबंध में अपना कोई काम करवा रहा हो।"

"मामला गंभीर है पिता जी।" मैंने चिंतित भाव से कहा____"सुनील और चेतन से इस बारे में पूछताछ करना बेहद ज़रूरी है।"
"जल्दबाजी में उठाया गया क़दम नुकसानदेय भी हो सकता है।" पिता जी ने कहा____"इस लिए बेहतर है कि हम पहले उन दोनों पर गुप्त रूप से नज़र रखवाएं। हम नहीं चाहते कि हमारी किसी ग़लती की वजह से उनकी जान को कोई ख़तरा हो जाए।"

पिता जी की बात सुन कर अभी मैं कुछ बोलने ही वाला था कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई और बाहर से मां की आवाज़ आई। वो मुझे डांटते हुए कह रहीं थी कि मैं अभी तक तैयार हो कर क्यों नहीं आया? मां की ये बात पिता जी और बड़े भैया ने भी सुनी। इस लिए पिता जी पलंग से नीचे उतर गए और मुझसे कहा कि मैं भाभी को साथ ले कर चंदनपुर जाऊं और यहां के बारे में कोई फ़िक्र न करूं।

पिता जी और बड़े भैया दोनों ही कमरे से चले गए तो मैं फ़ौरन ही अपने कपड़े उतार कर दूसरे कपड़े पहनने लगा। इस बीच कमरे में मेरे कुछ कपड़ों को एक थैले में डालते हुए मां जाने क्या क्या सुनाए जा रहीं थी मुझे। ख़ैर कुछ ही देर में मैं थैला लिए उनके साथ ही कमरे से बाहर निकला।

रागिनी भाभी तैयार हो कर नीचे ही मेरा इंतज़ार कर रहीं थी। मेरे आते ही भाभी ने अपने से बड़ों का आशीर्वाद लिया और फिर चल पड़ीं। एक थैला उनका भी था इस लिए मैं उनका और अपना थैला लिए बाहर आया। बाहर अभिनव भैया ने जीप को मुख्य दरवाज़े के सामने लगा दिया था। पिता जी ने मुझे कुछ ज़रूरी दिशा निर्देश दिए उसके बाद मैंने उनका आशीर्वाद ले कर जीप में अपना और भाभी का थैला रखा। बड़े भैया जीप से उतर आए थे। भाभी चुपचाप जा कर जीप में बैठ गईं। मैंने बड़े भैया के भी पैर छुए तो उन्होंने एकदम से मुझे अपने गले से लगा लिया और मुझे अपना ख़्याल रखने के लिए कहा।

कुछ ही देर में मैं भाभी को लिए जीप से निकल पड़ा। हमारे साथ कुछ आदमियों को भी जाना था इस लिए एक दूसरी जीप में वो लोग भी हमारे पीछे चल पड़े थे। वो सब दिखने में भले ही सामान्य नज़र आ रहे थे लेकिन मैं बखूबी जानता था कि वो सब हर तरह के ख़तरे से निपटने के लिए तैयार थे। रागिनी भाभी मेरे बगल से ही बैठी हुईं थी। उनके चेहरे पर एक अलग ही ख़ुशी की चमक दिख रही थी। ये पहला अवसर था जब मैं भाभी को ले कर कहीं जा रहा था और वो मेरे साथ जीप में अकेली थीं। सुर्ख साड़ी में वो बहुत ही खूबसूरत दिख रहीं थी। मैं चुपके से उनकी नज़र बचा कर उन्हें देखने पर मानों मजबूर हो जाता था।


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मुझे हवेली से निकले क़रीब आधा घंटा ही हुआ था कि जगताप चाचा हवेली में दाखिल हुए। जगताप चाचा को पिता जी ने रेखा और शीला के हत्यारे का पता लगाने का काम सौंपा था और साथ ही इस बात का भी कि सरजू कलुआ और रंगा सुबह जिस सुर में बात कर रहे थे उसके पीछे की असल वजह क्या थी। पिता जी बैठक में ही बड़े भैया के साथ बैठे हुए थे और हालातों के बारे में अपनी कुछ रणनीति बना रहे थे। जगताप चाचा आए तो वो भी उनके पास ही बैठक में रखी एक कुर्सी पर बैठ गए।

"तुम्हारे चेहरे के भाव ज़ाहिर कर रहे हैं कि हमने जो काम तुम्हें सौंपा था वो काम तुमने बखूबी कर लिया है।" पिता जी ने जगताप चाचा की तरफ देखते हुए कहा_____"ख़ैर हम तुमसे सब कुछ जानने के लिए उत्सुक हैं।"

"आपने सही अंदाज़ा लगाया भैया।" जगताप चाचा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"मुझे कामयाबी तो मिली है लेकिन पूरी तरह से नहीं।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" पिता जी के माथे पर सहसा सिलवटें उभर आईं____"पूरी तरह से कामयाबी नहीं मिली है से क्या मतलब है तुम्हारा?"

"बात दरअसल ये है भैया कि आपके हुकुम पर मैं इस सबका पता लगाने के लिए गया।" जगताप चाचा ने लंबी सांस लेते हुए कहा____"सबसे पहले तो मैं रेखा और शीला के पतियों से मिला और उनसे इस सबके बारे में विस्तार से बातें की और ये भी कहा कि क्या उन्हें लगता है कि उनकी बीवियों को हम बेवजह ही मौत घाट उतार देंगे? उन्हें समझाने के लिए और उनको संतुष्ट करने के लिए मुझे उन दोनों को सच बताना पड़ा भैया। मैंने उन्हें बताया कि उनकी बीवियां असल में हमारे किसी दुश्मन के इशारे पर काम कर रहीं थी और जब हमें इस बात का पता चला तो हम बस उनसे बात करना चाहते थे लेकिन उससे पहले ही उन दोनों की मौत हो गई। मैंने उन्हें बताया कि उनकी बीवियां किसी अज्ञात आदमी के द्वारा इस हद तक मज़बूर कर दी गईं थी कि वो दोनों उसके इशारे पर कुछ भी कर सकती थीं। मेरे द्वारा सच बताए जाने पर शीला और रेखा के पति बुरी तरह चकित हो गए थे। मैंने उन्हें समझाया कि इस बारे में उन्हें हमने सबके सामने इसी लिए नहीं बताया था क्योंकि इससे हमारे दुश्मन को भी पता लग जाता। जबकि हम तो ये चाहते हैं कि हमारा दुश्मन भ्रम में ही रहे और हम किसी तरह जाल बिछा कर उसे पकड़ लें। फिर मैंने उनसे सरजू कलुआ और रंगा के बारे में पूछा कि क्या वो तीनों उसके यहां आए थे तो दोनों ने बताया कि पिछली रात वो तीनों घंटों उनके यहां बैठे रहे थे और इस घटना के बारे में जाने क्या क्या उनके दिमाग़ में भरते जा रहे थे। मैंने उन्हें समझाया कि उन तीनों की बातों में न फंसे क्योंकि वो तीनों भी हमारे दुश्मन के आदमी हो सकते हैं। आख़िर मेरे समझाने बुझाने पर देवधर और मंगल मान भी गए और उन्हें सच का पता भी चल गया।"

"चलो ये तो अच्छा हुआ।" पिता जी ने कहा____"उसके बाद फिर क्या तुम उन तीनों से भी मिले?"
"उनसे मिलता तो ज़रूरी ही था भैया।" जगताप चाचा ने कहा____"आख़िर उन्हीं से तो ये पता चलता कि सुबह उतने सारे लोगों में से सिर्फ़ उन तीनों को ही ऐसी कौन सी खुजली हो रही थी जिसके चलते वो हमसे ऊंचे स्वर में बात करने की हिमाकत किए थे?"

"ह्म्म्म।" पिता जी ने हल्के से हुंकार भरी____"तो क्या पता चला इस बारे में उनसे?"
"अपने साथ यहां से दो आदमियों को ले कर गया था मैं।" जगताप चाचा ने कहना शुरू किया____"ऐसा इस लिए क्योंकि मुझे पूरा अंदेशा था कि वो लोग आसानी से मिलेंगे नहीं और अगर मिले भी तो आसानी से हाथ नहीं आएंगे। मैं सरजू के घर गया और अपने दोनों आदमियों को अलग अलग कलुआ और रंगा के घर भेजा। उन्हें हुकुम था कि वो उन दोनों को हर हाल में उन्हें ले कर सरजू के घर आएं और फिर ऐसा ही हुआ। तीनों जब मेरे सामने इकट्ठा हुए तो तीनों ही एकदम से घबरा गए थे। उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि मैं और मेरे आदमियों ने किस लिए उन तीनों को इकट्ठा किया है। ख़ैर, उसके बाद मैंने तीनों से पूछताछ शुरू की। शुरू में तो वो तीनों इधर उधर की ही हांकते रहे लेकिन जब तीनों की कुटाई हुई तो जल्दी ही रट्टू तोते की तरह सब कुछ बताना शुरू कर दिया। उनके अनुसार, दो दिन पहले उन्हें सफ़ेद लिबास पहने एक रहस्यमई आदमी रात के अंधेरे में मिला था। उस सफ़ेदपोश आदमी के साथ दो लोग और थे जिनका चेहरा अंधेरे में नज़र नहीं आ रहा था। उस सफ़ेदपोश ने ही उन्हें बताया था कि कैसे उन तीनों को गांव वालों को इकट्ठा करना है और फिर कैसे शीला और रेखा की मौत के बारे में हवेली जा कर दादा ठाकुर के सामने पूरी निडरता से सवाल जवाब करना है। सफ़ेदपोश ने उन तीनों को धमकी दी थी कि अगर उन्होंने उसके कहे अनुसार ऐसा नहीं किया तो वो उसके परिवार वालों को जान से मार देगा। कहने का मतलब ये कि सरजू कलुआ और रंगा ने वो सब उस सफ़ेदपोश आदमी के मज़बूर करने पर किया था।"

"हमें लगा ही था कि उन तीनों के ऐसे ब्यौहार के पीछे ज़रूर ऐसी ही कोई बात होगी।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"ख़ैर, तुमने बताया कि सफ़ेदपोश ने उन तीनों को ऐसा करने के लिए दो दिन पहले कहा था, यानि जिस दिन रेखा और शीला की मौत हुई थी। ज़ाहिर है उस सफ़ेदपोश ने इस मामले को बड़ी होशियारी से हमारे खिलाफ़ एक हथियार के रूप में स्तेमाल किया है। एक बार फिर से उसने वही हथकंडा अपनाया है यानि हमें और हमारी शाख को धूल में मिलाने वाला हथकंडा। यही हथकंडा उसने मुरारी की हत्या के समय अपनाया था, वैभव के सिर मुरारी की हत्या का आरोप लगवा कर।"

"हमें ये तो पता चल गया पिता जी कि सरजू कलुआ और रंगा के उस ब्यौहार की वजह क्या थी।" अभिनव भैया ने कहा____"लेकिन इस सबके बाद भी अगर हम ये कहें कि कोई फ़ायदा नहीं हुआ है तो ग़लत न होगा। हमारा दुश्मन इतना शातिर है कि वो अपने खिलाफ़ ऐसा कोई भी सुराग़ नहीं छोड़ रहा जिसके चलते हम उस तक पहुंच सकें। वो अपने फ़ायदे के लिए जिस किसी को भी मोहरा बनाता है उसे पकड़ लेने के बाद भी हमें कोई फ़ायदा नहीं होता।"

"इसकी वजह ये है कि वो अपने हर प्यादे से अपनी शक्ल छुपा कर ही मिलता है।" पिता जी ने सोचने वाले भाव से कहा____"इतना तो वो भी समझता है कि उसका कोई न कोई प्यादा देर सवेर हमारे हाथ लगेगा ही और तब हम उसके उस प्यादे से उसके बारे में पता करने की पूरी कोशिश करेंगे। ज़ाहिर है अगर उसके प्यादे को उसके बारे में पता होगा तो हमें उसी प्यादे से उसके बारे में सब कुछ जान लेने में देर नहीं लगेगी। यही सब सोच कर वो हमेशा अपने प्यादों से अपनी शक्ल छुपा कर ही मिलता है।"

"फिर तो हमारे लिए उस तक पहुंच पाना लगभग असम्भव बात ही है भैया।" जगताप चाचा ने गहरी सांस ले कर कहा____"वो हमेशा हमसे दो क्या बल्कि चार क़दम आगे की सोच कर चलता है और हमें हर बार नाकामी का ही स्वाद चखना पड़ता है।"

"किसी भी इंसान के सितारे हमेशा गर्दिश में नहीं रहते जगताप।" पिता जी ने हल्की मुस्कान में कहा____एक दिन हर इंसान का बुरा वक्त आता है। हमें यकीन है कि उस सफ़ेदपोश का भी बुरा वक्त जल्द ही आएगा।"

कुछ देर और इस संबंध में भी बातें हुईं उसके बाद सब अपने अपने काम पर चले गए। दादा ठाकुर अकेले ही बैठक में बैठे हुए थे। उनके चेहरे पर कई तरह के विचारों का आवा गमन चालू था। सहसा जाने क्या सोच कर वो मुस्कुराए और फिर उठ कर हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गए।


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