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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.3%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 23.0%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.2%

  • Total voters
    191

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,748
115,340
354
अध्याय - 60
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....

"मैं पूरी कोशिश करूंगा मालिक।" शेरा ने कहा____"मैं अभी इसी समय कुछ आदमियों को ले कर चंदनपुर के लिए निकल जाऊंगा।"
"अगर वहां के हालात काबू से बाहर समझ में आएं तो फ़ौरन किसी के द्वारा हमें सूचना भेजवा देना।" दादा ठाकुर ने कहा____"चंदनपुर का सफ़र लंबा है इस लिए तुम हरिया के अस्तबल से घोड़े ले लेना।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर शेरा ने सिर हिलाया और फिर उन्हें प्रणाम किया। दादा ठाकुर ने उसे विजयी होने का आशीर्वाद दिया और फिर दरवाज़े से बाहर निकल गए। दादा ठाकुर के जाने के बाद शेरा ने फ़ौरन ही अपने कपड़े पहने और कपड़ों की जेब में रिवॉल्वर के साथ दूसरी पोटली डालने के बाद घर से बाहर निकल गया।


अब आगे....


सुबह सुबह ही दादा ठाकुर, अभिनव और जगताप हवेली के बाहर तरफ बने उस कमरे में पहुंचे जहां पर काले नकाबपोश को रखा गया था। काले नकाबपोश की हालत बेहद ख़राब थी। उसका एक हाथ शेरा ने तोड़ दिया था जिसके चलते वो बुरी तरह सूझ गया था और दर्द से काले नकाबपोश का बुरा हाल था। रात भर दर्द से तड़पता रहा था वो।

"वैसे तो तुमने जो किया है उसके लिए तुम्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ मौत की ही सज़ा मिलनी चाहिए।" दादा ठाकुर ने अपनी भारी आवाज़ में उससे कहा____"लेकिन अगर तुम हमें उस सफ़ेदपोश व्यक्ति के बारे में सब कुछ सच सच बता देते हो तो न केवल तुम्हें माफ़ कर दिया जाएगा बल्कि तुम्हारे इस टूटे हुए हाथ का बेहतर इलाज़ भी करवा दिया जाएगा।"

"मुझे प्रलोभन देने का कोई फ़ायदा नहीं होगा दादा ठाकुर।" काले नकाबपोश ने दर्द में भी मुस्कुराते हुए कहा____"क्योंकि मुझे उस रहस्यमय आदमी के बारे में कुछ भी पता नहीं है। हां इतना ज़रूर बता सकता हूं कि कुछ महीने पहले उससे मुलाक़ात हुई थी। मेरे साथ मेरा एक साथी भी था। हम दोनों ही शहर में कई तरह के जुर्म करते थे जिसके लिए पुलिस हमें खोज रही थी। पुलिस से बचने के लिए हमने शहर छोड़ दिया और शहर के नज़दीक ही जो गांव था वहां आ गए छुपने के लिए। मैं नहीं जानता कि उस रहस्यमय आदमी को हमारे बारे में कैसे पता चला था लेकिन एक दिन अचानक ही वो हमारे सामने अपने उसी सफ़ेद लिबास और नक़ाब में आ गया और हम दोनों से अपने अधीन काम करने को कहा। हम दोनों ने कभी किसी के लिए या किसी के आदेश पर काम नहीं किया था इस लिए जब उस रहस्यमय आदमी ने हमें अपने अधीन काम करने को कहा तो हमने साफ़ इंकार कर दिया। उसके बाद उसने हमें ढेर सारा धन देने का लालच दिया और ये भी कहा कि हम दोनों कभी भी पुलिस के हाथ नहीं लगेंगे। उसकी इस बात से हमने सोचा कि सौदा बुरा नहीं है क्योंकि हर तरह से हमारा ही फ़ायदा था लेकिन किसी अजनबी के अधीन काम करने से हमें संकोच हो रहा था। इस लिए हमने भी उससे एक बचकानी सी शर्त रखी कि हम दोनों उसके अधीन तभी काम करेंगे जब वो हम दोनों में से किसी एक के साथ मुकाबला कर के हमें हरा देगा। हम दोनों ने सोचा था कि उसे हरा कर पहले उसका नक़ाब उतार कर देखेंगे कि वो कौन है और ऐसा कौन सा काम करवाना चाहता है हमसे। ख़ैर हमारी शर्त पर वो बिना एक पल की भी देरी किए तैयार हो गया। उससे मुकाबला करने के लिए मैं ही तैयार हुआ था क्योंकि मेरा दूसरा साथी उस समय थोड़ा बीमार था। हमारे बीच मुकाबला शुरू हुआ तो कुछ ही देर में मुझे समझ आ गया कि वो किसी भी मामले में मुझसे कमज़ोर नहीं है बल्कि मुझसे बीस ही है। नतीजा ये निकला कि जब मैं उससे मुकाबले में हार गया तो शर्त के अनुसार हम दोनों उसके अधीन काम करने के लिए राज़ी हो गए। उसके बाद उसने हमें बताया कि हमें कौन सा काम किस तरीके से करना है। ये भी कहा कि हमारा भेद और हमारा चेहरा कोई देख न सके इसके लिए हमें हमेशा काले नकाबपोश के रूप में ही रहना होगा। हम दोनों के मन में कई बार ये ख़्याल आया था कि उसके बारे में पता करें मगर हिम्मत नहीं हुई क्योंकि उस मुक़ाबले के बाद ही उसने हम दोनों को सख़्ती से समझा दिया था कि अगर हम लोगों ने उसका भेद जानने का सोचा तो ये हमारे लिए अच्छा नहीं होगा क्योंकि उस सूरत में हमें अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। हमने भी सोच लिया कि क्यों ऐसा काम करना जिसमें जान जाने का जोख़िम हो अतः वही करते गए जो करने के लिए वो हमें हुकुम देता था।"

"सबसे पहले उसने तुम्हें क्या काम सौंपा था?" दादा ठाकुर ने पूछा।
"हम दोनों को उसने यही काम दिया था कि वैभव सिंह नाम के लड़के को या तो पकड़ के लाओ या फिर उसे ख़त्म कर दो।" काले नकाबपोश ने कहा____"उसने हमें बता दिया था कि वैभव सिंह कौन है और कहां रहता है? उसके आदेश पर हम दोनों सबसे पहले उस लड़के को ज़िंदा पकड़ने के काम में लगे मगर जल्द ही हमें महसूस हुआ कि उस लड़के को पकड़ना आसान नहीं है क्योंकि हमें ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कि कुछ अज्ञात लोग अक्सर उसकी सुरक्षा के लिए आस पास मौजूद रहते हैं। हमने कई बार उसे रास्ते में घेरना चाहा लेकिन नाकाम रहे। हम दोनों समझ चुके थे कि उस लड़के को ज़िंदा पकड़ पाना हमारे बस का नहीं है इस लिए हमने उसको जान से ख़त्म करने का प्रयास शुरू कर दिया मगर यहां भी हमें नाकामी ही मिली क्योंकि हमारी ही तरह भेस वाला एक काला नकाबपोश उसकी सुरक्षा के लिए जाने कहां से आ गया था। हमने बहुत कोशिश की उस नकाबपोश को मारने की मगर कामयाब नहीं हुए। हर बार की हमारी इस नाकामी से वो सफ़ेदपोश आदमी हम पर बहुत गुस्सा हुआ। एक रात उसी गुस्से से उसने मेरे साथी को जान से मार दिया। मैं अकेला पड़ गया और पहली बार मुझे एहसास हुआ कि उस सफ़ेदपोश के लिए काम करने की हमने कितनी बड़ी भूल की थी। वो कितना ताकतवर था ये मैं अच्छी तरह जानता था मगर अब उसकी मर्ज़ी के बिना मैं कुछ नहीं कर सकता था। एक दिन मुझे पता चला कि मेरे समान से मेरी कुछ ऐसी चीज़ें गायब हैं जिसके चलते बड़ी आसानी से मुझे पुलिस के हवाले किया जा सकता था। मैं समझ गया कि ये सब उस सफ़ेदपोश ने ही किया होगा लेकिन उससे पूछने की हिम्मत न हुई थी मेरी। मैं अब पूरी तरह से उसके रहमो करम पर था। मुझे हर हाल में अब वही करना था जो वो करने को कहता। अभी कुछ दिन पहले उसने आदेश दिया था कि मुझे एक औरत को ख़त्म करना है और अगर मैं ऐसा करने में नाकाम रहा तो वो मुझे भी मेरे साथी की तरह जान से मार देगा।"

"मुरारी की हत्या में किसका हाथ था?" दादा ठाकुर ने उससे घूरते हुए पूछा_____"क्या उसकी हत्या करने का आदेश उसी सफ़ेदपोश ने तुम्हें दिया था?"
"नहीं।" काले नकाबपोश ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा_____"मैं किसी मुरारी को नहीं जानता और ना ही उस सफ़ेदपोश आदमी ने मुझे ऐसे किसी आदमी को हत्या करने का आदेश दिया था। हम दोनों का काम सिर्फ़ वैभव सिंह को पकड़ना या फिर उसे ख़त्म करना था जोकि हम आज तक नहीं कर पाए।"

"सफ़ेदपोश से तुम्हारी मुलाक़ात कैसे होती है?" सहसा अभिनव ने पूछा____"क्या तुम दोनों का कोई निश्चित स्थान है मिलने का या फिर कोई ऐसा तरीका जिससे तुम आसानी से उससे मिल सकते हो?"

"शुरू में एक दो बार मैंने उसका पीछा किया था।" काले नकाबपोश ने कहा____"किंतु पता नहीं कर पाया कि वो कहां से आता है और फिर कैसे गायब हो जाता है? हमारे द्वारा अपना पीछा किए जाने का उसे पता चल गया था इस लिए जब वो अगली बार हमसे मिला तो उसने गुस्से में हम दोनों से यही कहा था कि अब अगर हमने दुबारा उसका पीछा करने की कोशिश की तो इस बार हम जान से हाथ धो बैठेंगे। हमने भी सोचा क्यों ऐसा काम करना जिसमें अपनी ही जान जाने का ख़तरा हो। ख़ैर दिन भर तो हम सादे कपड़ों में दूसरे गांवों में ही घूमते रहते थे या फिर अपने एक कमरे में सोते रहते थे और फिर शाम ढलते ही काले नकाबपोश बन कर निकल पड़ते थे। सफ़ेदपोश से हमारी मुलाक़ात ज़्यादातर इस गांव से बाहर पूर्व में एक बरगद के पेड़ के पास होती थी या फिर आपके आमों वाले बाग़ में। मिलने का दिन और समय वही निर्धारित कर देता था। अगर हम अपनी मर्ज़ी से उससे मिलना चाहें तो ये संभव ही नहीं था।"

"तांत्रिक की हत्या किसने की थी?" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए पूछा____"क्या उसकी हत्या करने का आदेश उस सफ़ेदपोश ने तुम्हें दिया था?"
"मैं किसी तांत्रिक को नहीं जानता।" काले नकाबपोश ने कहा____"और ना ही उस सफ़ेदपोश ने मुझे ऐसा कोई आदेश दिया था। हम दोनों को दिन में कोई भी ऐसा वैसा काम करने की मनाही थी जिसके चलते हम लोगों की नज़र में आ जाएं या फिर हालात बिगड़ जाएं।"

"क्या तुम्हें पता है कि तुम दोनों के अलावा।" जगताप ने शख़्त भाव से पूछा____"उस सफ़ेदपोश से और कौन कौन मिलता है या ये कहें कि वो सफ़ेदपोश और किस किस को तुम्हारी तरह अपना मोहरा बना रखा है?"

"सिर्फ़ एक के बारे में जानता हूं मैं।" काले नकाबपोश ने कहा____"और वो एक पुलिस वाला है। कल शाम को ही सफ़ेदपोश के साथ मैं उसके घर पर था।"
"सफ़ेदपोश ने दारोगा को अपने जाल में कैसे फंसाया?" जगताप ने हैरानी और गुस्से से पूछा____"क्या दरोगा भी उससे मिला हुआ है?"

"सफ़ेदपोश के आदेश पर मैंने एक हफ्ता पहले उस पुलिस वाले की मां का अपहरण किया था।" काले नकाबपोश ने कहा____"दरोगा को जब उस सफ़ेदपोश आदमी के द्वारा पता चला कि उसकी मां सफ़ेदपोश के कब्जे में है तो उसने मजबूरी में वही करना स्वीकार किया जो सफ़ेदपोश ने उससे करने को कहा।"

"दरोगा को क्या करने के लिए कहा था उस सफ़ेदपोश आदमी ने?" दादा ठाकुर ने पूछा।
"क्या आपको नहीं पता?" काले नकाबपोश ने हल्की मुस्कान के साथ उल्टा सवाल किया तो अभिनव और जगताप दोनों ही हैरानी से दादा ठाकुर की तरफ देखने लगे जबकि काले नकाबपोश ने आगे कहा____"आप तो मिले थे न दरोगा से और उसने आपको सब कुछ बताया भी था न?"

"ये क्या कह रहा है भैया?" जगताप ने हैरानी से दादा ठाकुर की तरफ देखते हुए कहा____"क्या आपको पता है ये सब?"
"हां लेकिन हमें भी कल ही पता चला है।" दादा ठाकुर ने कहा_____"ख़ैर दरोगा ने जो कुछ हमें बताया था वो सब तो कदाचित उस सफ़ेदपोश के द्वारा रटाया हुआ ही बताया था जबकि हम ये जानना चाहते हैं कि असल में वो सफ़ेदपोश दरोगा से क्या करवाया था और हमसे वो सब कहने को क्यों कहा जो दरोगा ने हमें बताया था?"

"इस बारे में मुझे कुछ भी पता नहीं है।" काले नकाबपोश ने कहा____"उस सफ़ेदपोश आदमी से हमें कुछ भी पूछने की इजाज़त नहीं थी और ना ही वो हमें कभी कुछ बताना ज़रूरी समझता था।"

"अगर तुम सच में जीवित रहना चाहते हो।" दादा ठाकुर ने सर्द लहजे में कहा____"तो अब वही करो जो हम कहें वरना जिस तरह से तुमने हमारे बेटे को जान से मारने की कोशिश की है उसके लिए तुम्हें फ़ौरन ही मौत की सज़ा दे दी जाएगी।"

"मौत तो अब दोनों तरफ से मिलनी है मुझे।" काले नकाबपोश ने फीकी मुस्कान में कहा____"सफ़ेदपोश को जब पता चलेगा कि मैं आपके हाथ लग चुका हूं तो वो मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेगा और इधर यदि मैं आपके आदेश पर कोई काम नहीं करुंगा तो आप भी मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे।"

"अगर तुम हमारे कहने पर उस सफ़ेदपोश को पकड़वाने में सफल हुए।" दादा ठाकुर ने कहा____"तो यकीन मानो तुम्हें एक नई ज़िंदगी दान में मिल जाएगी। रही बात उस सफ़ेदपोश की तो जब वो हमारी पकड़ में आ जाएगा तब वो तुम्हारे साथ कुछ भी बुरा नहीं कर पाएगा।"

"आपको उस सफ़ेदपोश की ताक़त का अंदाज़ा नहीं है अभी।" काले नकाबपोश ने कहा____"मेरे जैसे छटे हुए बदमाश को उसने कुछ ही देर में पस्त कर दिया था। वो इतना कमज़ोर नहीं है कि इतनी आसानी से आपकी पकड़ में आ जाएगा।"

"वो हम देख लेंगे।" दादा ठाकुर ने कहा____"तुम्हें ये सब सोचने की ज़रूरत नहीं है। तुम सिर्फ़ ये बताओ कि क्या तुम उसे पकड़वाने में हमारी मदद करोगे?"
"टूटे हुए हाथ से भला मैं क्या कर सकूंगा?" काले नकाबपोश ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"दर्द से मेरा बुरा हाल है। ऐसे हाल में तो कुछ नहीं कर सकता मैं।"

"हां हम समझ सकते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस लिए हम तुम्हारे दर्द को दूर करने में लिए तुम्हें दवा दे देंगे लेकिन तुम्हारे टूटे हुए हाथ का इलाज़ तभी करवाएंगे जब तुम उस सफ़ेदपोश को पकड़वाने में सफल होगे।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर काले नकाबपोश ने हां में सिर हिलाया। उसके बाद दादा ठाकुर अभिनव और जगताप तीनों ही कमरे से बाहर चले गए। दादा ठाकुर ने जगताप को काले नकाबपोश के लिए दर्द की दवा लाने का आदेश दिया जिस पर जगताप जो हुकुम भैया कह कर एक तरफ को बढ़ता चला गया। दादा ठाकुर अपने बड़े बेटे अभिनव के साथ हवेली के अंदर बैठक में आ गए। बैठक में दादा ठाकुर एकदम से किसी सोच में डूबे हुए नज़र आने लगे थे।

✮✮✮✮

चंदनपुर में भी सुबह हो चुकी थी।
मैं वीरेंद्र और वीर सिंह के साथ दिशा मैदान के लिए गया हुआ था। मेरे साथ आए आदमी भी सुबह दिशा मैदान के लिए गए हुए थे। मैं वीरेंद्र और वीर के साथ चलते हुए नदी के पास आ गया था। मुझे याद आया कि पिछली शाम इसी नदी के पास मैंने जमुना के साथ संभोग किया था। इस बात के याद आते ही मुझे अजीब सा लगने लगा। आम तौर पर ऐसी बातों से मेरे अंदर खुशी के एहसास जागृत हो जाते थे किंतु ये पहली दफा था जब मुझे अपने इस कार्य से अब किसी खुशी का एहसास नहीं बल्कि ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मैंने कोई गुनाह कर दिया है। वीरेंद्र और वीर दुनिया जहान की बातें कर रहे थे लेकिन मैं एकदम से ख़ामोश हो गया था। ख़ैर नदी के पास पहुंचते ही हम तीनों अलग अलग दिशा में बढ़ चले।

नदी के किनारे कुछ दूरी पर पेड़ पौधे और झाड़ियां थीं। मैं शौच क्रिया के लिए वहीं बैठ गया। मन एकदम से विचलित सा हो गया था। बार बार अनुराधा का ख़्याल आ रहा था। किसी तरह मैंने अपने ज़हन से उसके ख़्याल निकाले और फिर शौच के बाद अपनी जगह से उठ कर चल दिया। मैंने आस पास निगाह घुमाई तो वीरेंद्र और वीर कहीं नज़र ना आए। मैं समझ गया कि वो दोनों अभी भी बैठे हग रहे होंगे। आसमान में काले बादल दिख रहे थे। ऐसा लगता था जैसे कुछ ही समय में बरसात हो सकती थी। मैं चलते हुए अनायास ही उस जगह पर आ गया जहां पर पिछली शाम मैंने जमुना के साथ संभोग किया था। एक बार फिर से मेरा मन विचलित सा होने लगा।

अभी मैं विचलित हो कर कुछ सोचने ही लगा था कि सहसा मुझे अपने आस पास कुछ अजीब सा महसूस हुआ। यूं तो ठंडी ठंडी हवा चल रही थी जिससे पेड़ों के पत्ते सर्र सर्र की आवाज़ कर रहे थे किंतु पत्तों के सरसराने की आवाज़ के बावजूद कुछ अजीब सा महसूस होने लगा था मुझे। अभी मैं इस एहसास के साथ इधर उधर देखने ही लगा था कि सहसा एक तरफ से कोई बिजली की तरह आया और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता कोई चीज़ बड़ी तेज़ी से मेरे पेट की तरफ लपकी। मैं बुरी तरह घबरा कर चीख ही पड़ा था कि तभी वातावरण में धांय की तेज़ आवाज़ गूंजी और साथ ही एक इंसानी चीख भी। सब कुछ बड़ी तेज़ी से और हैरतअंगेज तरीके से हुआ था। कुछ पलों के लिए तो मैं सकते में ही आ गया था किंतु जैसे ही मुझे होश आया तो मेरी नज़र अपने से थोड़ी ही दूर पड़े एक आदमी पर पड़ी। उसकी छाती के थोड़ा नीचे गोली लगी थी जिसके चलते बड़ी तेज़ी से उस जगह से खून बहते हुए नीचे ज़मीन पर गिरता जा रहा था। सिर पर पगड़ी बांधे क़रीब पैंतीस से चालीस के बीच की उमर का आदमी था वो जो अब ज़िंदा नहीं लग रहा था।

मैं बदहवास सा आंखें फाड़े उस आदमी को देखे ही जा रहा था कि अचानक मैं कुछ आवाज़ों को सुन कर चौंक पड़ा। मेरे पीछे तरफ से वीरेंद्र और वीर चिल्लाते हुए मेरी तरफ भागे चले आ रहे थे। दूसरी तरफ कई सारी लट्ठ की आपस में टकराने की आवाज़ें गूंजने लगीं थी। मैंने फ़ौरन ही आवाज़ की दिशा में देखा तो क़रीब सात आठ आदमी मुझसे क़रीब पंद्रह बीस क़दम की दूरी पर एक दूसरे पर लाठियां भांज रहे थे। उन लोगों को इस तरह एक दूसरे से लड़ते देख मुझे समझ ना आया कि अचानक से ये क्या होने लगा है?

"वैभव महाराज आप ठीक तो हैं ना?" वीरेंद्र और वीर मेरे पास आते ही चिंतित भाव से पूछ बैठे____"गोली चलने की आवाज़ सुन कर हमारे तो होश ही उड़ गए थे और...और ये आदमी कौन है? लगता है गोली इसी को लगी है तभी बेजान सा पड़ा हुआ है।"

"ये सब कैसे हुआ महाराज?" वीर ने हैरानी और चिंता में पूछा____"और वो कौन लोग हैं जो इस तरह आपस में लड़ रहे हैं?"
"पहले मुझे भी कुछ समझ में नहीं आया था वीर भैया।" मैंने गंभीर भाव से कहा____"किंतु अब सब समझ गया हूं। ये आदमी जो मरा हुआ पड़ा है ये मुझे चाकू के द्वारा जान से मारने वाला था। अगर सही वक्त पर इसे गोली नहीं लगती तो यकीनन इसकी जगह मेरी लाश ज़मीन पर पड़ी होती।"

"लेकिन क्यों महाराज?" वीरेंद्र ने भारी उलझन और हैरानी के साथ कहा____"आख़िर ये आदमी आपको क्यों मारना चाहता था और ये लोग कौन हैं जो इस तरह आपस में लड़ रहे हैं? आख़िर क्या चक्कर है ये?"

"उनमें से कुछ लोग शायद इस मरे हुए आदमी के साथी हैं।" मैंने संभावना ब्यक्त करते हुए कहा____"और इसके साथियों से जो लोग लड़ रहे हैं वो मेरी सुरक्षा करने वाले लोग हैं। ख़ैर मैं ये चाहता हूं कि इस बारे में आप घर में किसी को कुछ भी न बताएं। मैं नहीं चाहता कि खुशी के माहौल में एकदम से सनसनी फ़ैल जाए।"

"ये कैसी बातें कर रहे हैं महाराज?" वीरेंद्र ने चकित भाव से कहा____"इतनी बड़ी बात हो गई है और आप चाहते हैं कि हम इस बारे में घर में किसी को कुछ न बताएं?"

"मेरी आपसे विनती है वीरेंद्र भैया।" मैंने गंभीर भाव से ही कहा____"इस बारे में आप किसी को कुछ नहीं बताएंगे, ख़ास कर भाभी को तो बिलकुल भी नहीं। बाकी आप फ़िक्र मत कीजिए। पिता जी ने मेरी सुरक्षा के लिए आदमी भेज दिए हैं।"

मैंने किसी तरह वीरेंद्र और वीर को समझा बुझा कर इस बात के लिए मना लिया कि वो इस बारे में किसी को कुछ न बताएं। उधर देखते ही देखते कुछ ही देर में कुछ लोग ज़मीन पर लहू लुहान पड़े नज़र आने लगे। मैंने देखा उन लोगों से वो आदमी भी भिड़े हुए थे जो मेरे साथ गांव से आए थे। कुछ ही देर में लट्ठबाजी बंद हो गई। वातावरण में अब सिर्फ़ उन लोगों की दर्द से कराहने की आवाज़ें गूंज रहीं थी जो शायद मेरे दुश्मन थे और मुझे जान से मारने के इरादे से आए थे।

"कौन हो तुम लोग?" मैं फ़ौरन ही एक आदमी के पास पहुंच कर तथा उसका गिरेबान पकड़ कर गुर्राते हुए पूछा____"और मुझ पर इस तरह जानलेवा हमला करने के लिए किसने भेजा था?"

मेरे पूछने पर वो आदमी कुछ न बोला, बस दर्द से कराहता ही रहा। थोड़ी थोड़ी दूरी पर करीब पांच आदमी अधमरी हालत में पड़े थे। मैंने दो तीन लोगों से अपना वही सवाल दोहराया लेकिन किसी के मुख से कोई जवाब न निकला। मैं ये तो समझ चुका था कि मुझ पर जानलेवा हमला करने वाले ये लोग मेरे दुश्मन के ही आदमी थे किंतु अब मेरे लिए ये जानना ज़रूरी था कि असल में मेरा दुश्मन है कौन? मेरे पूछने पर जब किसी ने भी कोई जवाब नहीं दिया तो मेरे अंदर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। मैं बिजली की तेज़ी से उस आदमी के पास आया जिसकी जान गोली लगने से गई थी। उसके पास ही उसका चाकू पड़ा हुआ था। मैंने उसके चाकू को उठा लिया और फिर से उन लोगों के पास पहुंच गया।

"तुम लोग अगर ये सोचते हो कि मेरे पूछने पर सच नहीं बताओगे।" मैंने सर्द लहजे में सबकी तरफ बारी बारी से देखते हुए कहा____"तो जान लो कि अब तुम लोगों की हालत बहुत भयानक होने वाली है। ठाकुर वैभव सिंह को जान से मारने की कोशिश करने वाला इस धरती पर ज़िंदा रहने का हक़ खो देता है। अब तुम लोग गा गा कर बताओगे कि तुम लोगों को किसने यहां भेजा था।"

मैं एक आदमी की तरफ़ बढ़ा। मुझे अपनी तरफ बढ़ता देख उस ब्यक्ति ने थरथराते हुए एकदम से अपने जबड़े भींच लिए। ऐसा लगा जैसे वो खुद को तैयार कर चुका था कि वो किसी भी हालत में मुझे सच नहीं बताएगा। इस बात का एहसास होते ही मेरे अंदर का गुस्सा और भी बढ़ गया। मैं उसके क़रीब बैठा और चाकू को उसके कान की जड़ में रखा। मेरी मंशा का आभास होते ही उस आदमी के चेहरे पर दहशत के भाव उभर आए और इससे पहले कि वो कुछ कह पाता या कुछ कर पाता मैंने एक झटके में उसके कान को उसकी कनपटी से अलग कर दिया। फिज़ा में उसकी हृदयविदारक चीखें गूंजने लगीं। बुरी तरह तड़पने लगा था वो।

"ये तो अभी शुरुआत है।" मैंने उसके कटे हुए कान को उसकी आंखों के सामने लहराते हुए कहा____"तुम सबके जिस्मों का एक एक अंग एक एक कर के ऐसे ही अलग करुंगा मैं। तुम सब जब तड़पोगे तो एक अलग ही तरह का आनंद आएगा।"

"तुम कुछ भी कर लो।" उस आदमी ने दर्द को सहते हुए कहा____"लेकिन हम में से कोई भी तुम्हें कुछ नहीं बताएगा।"
"ठीक है फिर।" मैं सहसा दरिंदगी भरे भाव से मुस्कुराया____"हम भी देखते हैं कि तुम लोगों में कितना दम है।"

"छोटे ठाकुर।" सहसा मेरे पीछे से आवाज़ आई तो मैं पलटा। मेरी नज़र एक हट्टे कट्टे आदमी पर पड़ी। उसने मेरी तरफ देखते हुए आगे कहा____"इन लोगों को आप मुझे सम्हालने दीजिए। यहां पर ये सब करना ठीक नहीं है। मालिक ने मुझे हुकुम दिया है कि इन लोगों को मैं जीवित पकड़ कर लाऊं। अगर आपने इन्हें इस तरह से तड़पा तड़पा कर मार दिया तो मैं मालिक को क्या जवाब दूंगा?"

"ठीक है।" मैंने कहा____"तुम इन सबको ले जाओ लेकिन सिर्फ़ ये मेरे पास ही रहेगा। इसने मुझे चुनौती दी है कि ये मेरे किसी भी प्रयास में नहीं बताएगा कि इसे किसने भेजा है।"

शेरा ने मेरी बात सुन कर हां में सिर हिलाया और फिर अपने आदमियों को इशारा किया। कुछ ही देर में शेरा ने सब को बेहोश कर दिया और फिर उन सबको कंधों पर लाद कर एक तरफ को बढ़ते चले गए। उन लोगों के जाने के बाद मैं एक बार फिर से उस आदमी के पास बैठा। वीरेंद्र और वीर मेरे पास ही आ गए थे। वो दोनों कुछ सहमे हुए से थे। शायद ऐसा मंज़र दोनों ने कभी नहीं देखा था।

"वैभव महाराज ये सब क्या हो रहा है?" वीरेंद्र ने घबराए हुए अंदाज से कहा____"और आप इस आदमी के साथ अब क्या करने वाले हैं?"
"कुछ ऐसा जिसे आप दोनों देख नहीं पाएंगे।" मैंने जहरीली मुस्कान के साथ कहा____"इस लिए बेहतर होगा कि आप दोनों यहां से चले जाएं।"

"नहीं, हरगिज़ नहीं।" वीर ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"हम आपको अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे। आपसे बस इतनी ही विनती है कि जो भी करना है सोच समझ कर कीजिए क्योंकि अगर गांव का कोई आदमी इस तरफ आ गया और उसने ये सब देख लिया तो बात फैल जाएगी।"

मैंने वीर की बात को अनसुना किया और उस आदमी की तरफ देखा जो अभी भी दर्द से कराह रहा था। मेरे एक हाथ में अभी भी उसका कटा हुआ कान था और दूसरे हाथ में चाकू। मैंने उसके कटे हुए कान को ज़मीन पर फेंका और चाकू को उसके दूसरे कान की तरफ बढ़ाया। मेरे ऐसा करते ही वो एक बार फिर से दहशतजदा हो गया। घबराहट और खौफ के मारे उसका बुरा हाल हो गया था।

"शुरू में जब तुझे देखा था तो लगा था कि कहीं तो तुझे देखा है।" मैंने चाकू को उसके दूसरे कान की जड़ में रखते हुए कहा____"अब याद आया कि कहां देखा था और ये भी याद आ गया कि तू किस गांव का है। तू हमारे पास के गांव कुंदनपुर का है न? तुझे मेरे बारे में तो सब पता ही होगा कि मैं कौन हूं, क्या हूं और क्या क्या कर सकता हूं, है ना?"

मेरी बातें सुन कर वो आदमी पहले से कहीं ज़्यादा भयभीत नज़र आने लगा। चेहरा इस तरह पसीने में नहाया हुआ था जैसे पानी से धोया हो। उसके चेहरे के भावों को समझते हुए मैंने कहा____"तूने जो कुछ किया है उसके लिए अब तेरे पूरे खानदान को सज़ा भुगतनी होगी। मुझ पर जानलेवा हमला करने का जो दुस्साहस तूने किया है उसके लिए अब तेरे बीवी बच्चों को मेरे क़हर का शिकार बनना होगा।"

"नहीं नहीं।" मेरी बात सुनते ही वो आदमी बुरी तरह घबरा कर बोल पड़ा_____"भगवान के लिए मेरे घर वालों के साथ कुछ मत कीजिएगा। मैंने जो कुछ किया है वो मजबूरी में किया है, कृपया मुझे माफ़ कर दीजिए।"

"ज़रूर माफ़ कर सकता हूं तुझे।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"मगर तब जब तू ये बताएगा कि तुझे किसने मजबूर किया है और किसने मुझ पर इस तरह से हमला करने का हुकुम दिया है?"

"अगर मैंने आपको इस बारे में कुछ भी बताया।" उस आदमी ने इस बार दुखी भाव से कहा____"तो वो लोग मेरे बीवी बच्चों को जान से मार देंगे।"

"बुरे काम का बुरा फल ही मिलता है।" मैंने कहा____"तू अब ऐसी हालत में है कि तुझे दोनों तरफ से बुरा फल ही मिलना है लेकिन ये भी संभव हो सकता है कि अगर तू मुझे सच बता देगा तो शायद उतना बुरा न हो जितने की तुझे उम्मीद है। चल बता, किसने भेजा था तुम लोगों को यहां?"

"कल रात आपके गांव का एक साहूकार आया था मेरे घर।" उस आदमी ने दर्द को सहते हुए कहा____"उस साहूकार का नाम गौरी शंकर है। उसी ने मुझसे कहा कि मुझे कुछ आदमियों के साथ सुबह सूरज निकलने से पहले ही चंदनपुर जाना है और वहां पर आपको ख़त्म करना है। मैंने जब ऐसा करने से इंकार किया तो उसने कहा कि अगर मैंने ऐसा कर दिया तो वो मेरा सारा कर्ज़ माफ़ कर देगा और अगर मैंने ऐसा नहीं किया अथवा इस बारे में किसी को भी कुछ बताया तो वो मेरे बीवी बच्चों को जान से मार देगा। मैं क्या करता छोटे ठाकुर? अपने बीवी बच्चों की जान बचाने के चक्कर में मैंने मजबूर हो कर ये क़दम उठाना ही बेहतर समझा।"

"वो साहूकार मणि शंकर का छोटा भाई गौरी शंकर ही था न?" मैंने संदिग्ध भाव से पूछा____"क्या तूने अच्छे से देखा है उसे?"
"मैं सच कह रहा हूं छोटे ठाकुर।" उस आदमी ने कहा____"वो गौरी शंकर ही था। भला उस इंसान को मैं पहचानने में कैसे ग़लती कर सकता हूं जिससे मैंने कर्ज़ लिया था और जिसके घर के आवारा लड़के हमारे गांव में आ कर गांव की बहू बेटियों को ख़राब करते हैं?"

"अगर तू ये सब पहले ही बता देता तो तुझे अपने इस कान से हाथ नहीं धोना पड़ता।" मैंने कहा____"ख़ैर अब मैं तुझे जान से नहीं मारूंगा। तूने ये सब बता कर अच्छा काम किया है। तेरे बीवी बच्चों की सुरक्षा की पूरी कोशिश की जाएगी लेकिन तू इस हालत में वापस गांव नहीं जा सकता। तेरा यहीं पर इलाज़ किया जाएगा और तू कुछ समय तक यहीं रहेगा। उन लोगों को यही लगना चाहिए कि तू मेरे द्वारा मारा गया होगा।"

मैंने वीरेंद्र और वीर को उस आदमी के इलाज़ की जिम्मेदारी सौंपी। वो दोनों ये सब सुन कर बुरी तरह हैरान तो थे लेकिन ये देख कर खुश भी हो गए थे कि मैंने उस आदमी के साथ आगे कुछ भी बुरा नहीं किया। ख़ैर मेरे कहने पर वीर ने अभी उस आदमी को सहारा दे कर उठाया ही था कि तभी मेरे साथ आए मेरे आदमी भी आ गए। उन्होंने बताया कि वो दूर दूर तक देख आए हैं लेकिन इनके अलावा और कोई भी नज़र नहीं आया। मैंने अपने दो आदमियों को वीर भैया के साथ भेजा और ये भी कहा कि अब से उस आदमी के साथ ही रहें और उस पर नज़र रखे रहें।



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agmr66608

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🙏🙏🙏🙏। मस्त। जो सोचा जा रहा था वही हो रहा है। बहुत सुंदर। अब शायद उस साहूकार का घर का सब औरोतों का बारी है । देखने के लिए बेताब है। किसी भी कीमत पर उन लोगो को छोडना नहीं है।
 

Ajju Landwalia

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अध्याय - 60
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अब तक....

"मैं पूरी कोशिश करूंगा मालिक।" शेरा ने कहा____"मैं अभी इसी समय कुछ आदमियों को ले कर चंदनपुर के लिए निकल जाऊंगा।"
"अगर वहां के हालात काबू से बाहर समझ में आएं तो फ़ौरन किसी के द्वारा हमें सूचना भेजवा देना।" दादा ठाकुर ने कहा____"चंदनपुर का सफ़र लंबा है इस लिए तुम हरिया के अस्तबल से घोड़े ले लेना।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर शेरा ने सिर हिलाया और फिर उन्हें प्रणाम किया। दादा ठाकुर ने उसे विजयी होने का आशीर्वाद दिया और फिर दरवाज़े से बाहर निकल गए। दादा ठाकुर के जाने के बाद शेरा ने फ़ौरन ही अपने कपड़े पहने और कपड़ों की जेब में रिवॉल्वर के साथ दूसरी पोटली डालने के बाद घर से बाहर निकल गया।


अब आगे....


सुबह सुबह ही दादा ठाकुर, अभिनव और जगताप हवेली के बाहर तरफ बने उस कमरे में पहुंचे जहां पर काले नकाबपोश को रखा गया था। काले नकाबपोश की हालत बेहद ख़राब थी। उसका एक हाथ शेरा ने तोड़ दिया था जिसके चलते वो बुरी तरह सूझ गया था और दर्द से काले नकाबपोश का बुरा हाल था। रात भर दर्द से तड़पता रहा था वो।

"वैसे तो तुमने जो किया है उसके लिए तुम्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ मौत की ही सज़ा मिलनी चाहिए।" दादा ठाकुर ने अपनी भारी आवाज़ में उससे कहा____"लेकिन अगर तुम हमें उस सफ़ेदपोश व्यक्ति के बारे में सब कुछ सच सच बता देते हो तो न केवल तुम्हें माफ़ कर दिया जाएगा बल्कि तुम्हारे इस टूटे हुए हाथ का बेहतर इलाज़ भी करवा दिया जाएगा।"

"मुझे प्रलोभन देने का कोई फ़ायदा नहीं होगा दादा ठाकुर।" काले नकाबपोश ने दर्द में भी मुस्कुराते हुए कहा____"क्योंकि मुझे उस रहस्यमय आदमी के बारे में कुछ भी पता नहीं है। हां इतना ज़रूर बता सकता हूं कि कुछ महीने पहले उससे मुलाक़ात हुई थी। मेरे साथ मेरा एक साथी भी था। हम दोनों ही शहर में कई तरह के जुर्म करते थे जिसके लिए पुलिस हमें खोज रही थी। पुलिस से बचने के लिए हमने शहर छोड़ दिया और शहर के नज़दीक ही जो गांव था वहां आ गए छुपने के लिए। मैं नहीं जानता कि उस रहस्यमय आदमी को हमारे बारे में कैसे पता चला था लेकिन एक दिन अचानक ही वो हमारे सामने अपने उसी सफ़ेद लिबास और नक़ाब में आ गया और हम दोनों से अपने अधीन काम करने को कहा। हम दोनों ने कभी किसी के लिए या किसी के आदेश पर काम नहीं किया था इस लिए जब उस रहस्यमय आदमी ने हमें अपने अधीन काम करने को कहा तो हमने साफ़ इंकार कर दिया। उसके बाद उसने हमें ढेर सारा धन देने का लालच दिया और ये भी कहा कि हम दोनों कभी भी पुलिस के हाथ नहीं लगेंगे। उसकी इस बात से हमने सोचा कि सौदा बुरा नहीं है क्योंकि हर तरह से हमारा ही फ़ायदा था लेकिन किसी अजनबी के अधीन काम करने से हमें संकोच हो रहा था। इस लिए हमने भी उससे एक बचकानी सी शर्त रखी कि हम दोनों उसके अधीन तभी काम करेंगे जब वो हम दोनों में से किसी एक के साथ मुकाबला कर के हमें हरा देगा। हम दोनों ने सोचा था कि उसे हरा कर पहले उसका नक़ाब उतार कर देखेंगे कि वो कौन है और ऐसा कौन सा काम करवाना चाहता है हमसे। ख़ैर हमारी शर्त पर वो बिना एक पल की भी देरी किए तैयार हो गया। उससे मुकाबला करने के लिए मैं ही तैयार हुआ था क्योंकि मेरा दूसरा साथी उस समय थोड़ा बीमार था। हमारे बीच मुकाबला शुरू हुआ तो कुछ ही देर में मुझे समझ आ गया कि वो किसी भी मामले में मुझसे कमज़ोर नहीं है बल्कि मुझसे बीस ही है। नतीजा ये निकला कि जब मैं उससे मुकाबले में हार गया तो शर्त के अनुसार हम दोनों उसके अधीन काम करने के लिए राज़ी हो गए। उसके बाद उसने हमें बताया कि हमें कौन सा काम किस तरीके से करना है। ये भी कहा कि हमारा भेद और हमारा चेहरा कोई देख न सके इसके लिए हमें हमेशा काले नकाबपोश के रूप में ही रहना होगा। हम दोनों के मन में कई बार ये ख़्याल आया था कि उसके बारे में पता करें मगर हिम्मत नहीं हुई क्योंकि उस मुक़ाबले के बाद ही उसने हम दोनों को सख़्ती से समझा दिया था कि अगर हम लोगों ने उसका भेद जानने का सोचा तो ये हमारे लिए अच्छा नहीं होगा क्योंकि उस सूरत में हमें अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। हमने भी सोच लिया कि क्यों ऐसा काम करना जिसमें जान जाने का जोख़िम हो अतः वही करते गए जो करने के लिए वो हमें हुकुम देता था।"

"सबसे पहले उसने तुम्हें क्या काम सौंपा था?" दादा ठाकुर ने पूछा।
"हम दोनों को उसने यही काम दिया था कि वैभव सिंह नाम के लड़के को या तो पकड़ के लाओ या फिर उसे ख़त्म कर दो।" काले नकाबपोश ने कहा____"उसने हमें बता दिया था कि वैभव सिंह कौन है और कहां रहता है? उसके आदेश पर हम दोनों सबसे पहले उस लड़के को ज़िंदा पकड़ने के काम में लगे मगर जल्द ही हमें महसूस हुआ कि उस लड़के को पकड़ना आसान नहीं है क्योंकि हमें ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कि कुछ अज्ञात लोग अक्सर उसकी सुरक्षा के लिए आस पास मौजूद रहते हैं। हमने कई बार उसे रास्ते में घेरना चाहा लेकिन नाकाम रहे। हम दोनों समझ चुके थे कि उस लड़के को ज़िंदा पकड़ पाना हमारे बस का नहीं है इस लिए हमने उसको जान से ख़त्म करने का प्रयास शुरू कर दिया मगर यहां भी हमें नाकामी ही मिली क्योंकि हमारी ही तरह भेस वाला एक काला नकाबपोश उसकी सुरक्षा के लिए जाने कहां से आ गया था। हमने बहुत कोशिश की उस नकाबपोश को मारने की मगर कामयाब नहीं हुए। हर बार की हमारी इस नाकामी से वो सफ़ेदपोश आदमी हम पर बहुत गुस्सा हुआ। एक रात उसी गुस्से से उसने मेरे साथी को जान से मार दिया। मैं अकेला पड़ गया और पहली बार मुझे एहसास हुआ कि उस सफ़ेदपोश के लिए काम करने की हमने कितनी बड़ी भूल की थी। वो कितना ताकतवर था ये मैं अच्छी तरह जानता था मगर अब उसकी मर्ज़ी के बिना मैं कुछ नहीं कर सकता था। एक दिन मुझे पता चला कि मेरे समान से मेरी कुछ ऐसी चीज़ें गायब हैं जिसके चलते बड़ी आसानी से मुझे पुलिस के हवाले किया जा सकता था। मैं समझ गया कि ये सब उस सफ़ेदपोश ने ही किया होगा लेकिन उससे पूछने की हिम्मत न हुई थी मेरी। मैं अब पूरी तरह से उसके रहमो करम पर था। मुझे हर हाल में अब वही करना था जो वो करने को कहता। अभी कुछ दिन पहले उसने आदेश दिया था कि मुझे एक औरत को ख़त्म करना है और अगर मैं ऐसा करने में नाकाम रहा तो वो मुझे भी मेरे साथी की तरह जान से मार देगा।"

"मुरारी की हत्या में किसका हाथ था?" दादा ठाकुर ने उससे घूरते हुए पूछा_____"क्या उसकी हत्या करने का आदेश उसी सफ़ेदपोश ने तुम्हें दिया था?"
"नहीं।" काले नकाबपोश ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा_____"मैं किसी मुरारी को नहीं जानता और ना ही उस सफ़ेदपोश आदमी ने मुझे ऐसे किसी आदमी को हत्या करने का आदेश दिया था। हम दोनों का काम सिर्फ़ वैभव सिंह को पकड़ना या फिर उसे ख़त्म करना था जोकि हम आज तक नहीं कर पाए।"

"सफ़ेदपोश से तुम्हारी मुलाक़ात कैसे होती है?" सहसा अभिनव ने पूछा____"क्या तुम दोनों का कोई निश्चित स्थान है मिलने का या फिर कोई ऐसा तरीका जिससे तुम आसानी से उससे मिल सकते हो?"

"शुरू में एक दो बार मैंने उसका पीछा किया था।" काले नकाबपोश ने कहा____"किंतु पता नहीं कर पाया कि वो कहां से आता है और फिर कैसे गायब हो जाता है? हमारे द्वारा अपना पीछा किए जाने का उसे पता चल गया था इस लिए जब वो अगली बार हमसे मिला तो उसने गुस्से में हम दोनों से यही कहा था कि अब अगर हमने दुबारा उसका पीछा करने की कोशिश की तो इस बार हम जान से हाथ धो बैठेंगे। हमने भी सोचा क्यों ऐसा काम करना जिसमें अपनी ही जान जाने का ख़तरा हो। ख़ैर दिन भर तो हम सादे कपड़ों में दूसरे गांवों में ही घूमते रहते थे या फिर अपने एक कमरे में सोते रहते थे और फिर शाम ढलते ही काले नकाबपोश बन कर निकल पड़ते थे। सफ़ेदपोश से हमारी मुलाक़ात ज़्यादातर इस गांव से बाहर पूर्व में एक बरगद के पेड़ के पास होती थी या फिर आपके आमों वाले बाग़ में। मिलने का दिन और समय वही निर्धारित कर देता था। अगर हम अपनी मर्ज़ी से उससे मिलना चाहें तो ये संभव ही नहीं था।"

"तांत्रिक की हत्या किसने की थी?" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए पूछा____"क्या उसकी हत्या करने का आदेश उस सफ़ेदपोश ने तुम्हें दिया था?"
"मैं किसी तांत्रिक को नहीं जानता।" काले नकाबपोश ने कहा____"और ना ही उस सफ़ेदपोश ने मुझे ऐसा कोई आदेश दिया था। हम दोनों को दिन में कोई भी ऐसा वैसा काम करने की मनाही थी जिसके चलते हम लोगों की नज़र में आ जाएं या फिर हालात बिगड़ जाएं।"

"क्या तुम्हें पता है कि तुम दोनों के अलावा।" जगताप ने शख़्त भाव से पूछा____"उस सफ़ेदपोश से और कौन कौन मिलता है या ये कहें कि वो सफ़ेदपोश और किस किस को तुम्हारी तरह अपना मोहरा बना रखा है?"

"सिर्फ़ एक के बारे में जानता हूं मैं।" काले नकाबपोश ने कहा____"और वो एक पुलिस वाला है। कल शाम को ही सफ़ेदपोश के साथ मैं उसके घर पर था।"
"सफ़ेदपोश ने दारोगा को अपने जाल में कैसे फंसाया?" जगताप ने हैरानी और गुस्से से पूछा____"क्या दरोगा भी उससे मिला हुआ है?"

"सफ़ेदपोश के आदेश पर मैंने एक हफ्ता पहले उस पुलिस वाले की मां का अपहरण किया था।" काले नकाबपोश ने कहा____"दरोगा को जब उस सफ़ेदपोश आदमी के द्वारा पता चला कि उसकी मां सफ़ेदपोश के कब्जे में है तो उसने मजबूरी में वही करना स्वीकार किया जो सफ़ेदपोश ने उससे करने को कहा।"

"दरोगा को क्या करने के लिए कहा था उस सफ़ेदपोश आदमी ने?" दादा ठाकुर ने पूछा।
"क्या आपको नहीं पता?" काले नकाबपोश ने हल्की मुस्कान के साथ उल्टा सवाल किया तो अभिनव और जगताप दोनों ही हैरानी से दादा ठाकुर की तरफ देखने लगे जबकि काले नकाबपोश ने आगे कहा____"आप तो मिले थे न दरोगा से और उसने आपको सब कुछ बताया भी था न?"

"ये क्या कह रहा है भैया?" जगताप ने हैरानी से दादा ठाकुर की तरफ देखते हुए कहा____"क्या आपको पता है ये सब?"
"हां लेकिन हमें भी कल ही पता चला है।" दादा ठाकुर ने कहा_____"ख़ैर दरोगा ने जो कुछ हमें बताया था वो सब तो कदाचित उस सफ़ेदपोश के द्वारा रटाया हुआ ही बताया था जबकि हम ये जानना चाहते हैं कि असल में वो सफ़ेदपोश दरोगा से क्या करवाया था और हमसे वो सब कहने को क्यों कहा जो दरोगा ने हमें बताया था?"

"इस बारे में मुझे कुछ भी पता नहीं है।" काले नकाबपोश ने कहा____"उस सफ़ेदपोश आदमी से हमें कुछ भी पूछने की इजाज़त नहीं थी और ना ही वो हमें कभी कुछ बताना ज़रूरी समझता था।"

"अगर तुम सच में जीवित रहना चाहते हो।" दादा ठाकुर ने सर्द लहजे में कहा____"तो अब वही करो जो हम कहें वरना जिस तरह से तुमने हमारे बेटे को जान से मारने की कोशिश की है उसके लिए तुम्हें फ़ौरन ही मौत की सज़ा दे दी जाएगी।"

"मौत तो अब दोनों तरफ से मिलनी है मुझे।" काले नकाबपोश ने फीकी मुस्कान में कहा____"सफ़ेदपोश को जब पता चलेगा कि मैं आपके हाथ लग चुका हूं तो वो मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेगा और इधर यदि मैं आपके आदेश पर कोई काम नहीं करुंगा तो आप भी मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे।"

"अगर तुम हमारे कहने पर उस सफ़ेदपोश को पकड़वाने में सफल हुए।" दादा ठाकुर ने कहा____"तो यकीन मानो तुम्हें एक नई ज़िंदगी दान में मिल जाएगी। रही बात उस सफ़ेदपोश की तो जब वो हमारी पकड़ में आ जाएगा तब वो तुम्हारे साथ कुछ भी बुरा नहीं कर पाएगा।"

"आपको उस सफ़ेदपोश की ताक़त का अंदाज़ा नहीं है अभी।" काले नकाबपोश ने कहा____"मेरे जैसे छटे हुए बदमाश को उसने कुछ ही देर में पस्त कर दिया था। वो इतना कमज़ोर नहीं है कि इतनी आसानी से आपकी पकड़ में आ जाएगा।"

"वो हम देख लेंगे।" दादा ठाकुर ने कहा____"तुम्हें ये सब सोचने की ज़रूरत नहीं है। तुम सिर्फ़ ये बताओ कि क्या तुम उसे पकड़वाने में हमारी मदद करोगे?"
"टूटे हुए हाथ से भला मैं क्या कर सकूंगा?" काले नकाबपोश ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"दर्द से मेरा बुरा हाल है। ऐसे हाल में तो कुछ नहीं कर सकता मैं।"

"हां हम समझ सकते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस लिए हम तुम्हारे दर्द को दूर करने में लिए तुम्हें दवा दे देंगे लेकिन तुम्हारे टूटे हुए हाथ का इलाज़ तभी करवाएंगे जब तुम उस सफ़ेदपोश को पकड़वाने में सफल होगे।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर काले नकाबपोश ने हां में सिर हिलाया। उसके बाद दादा ठाकुर अभिनव और जगताप तीनों ही कमरे से बाहर चले गए। दादा ठाकुर ने जगताप को काले नकाबपोश के लिए दर्द की दवा लाने का आदेश दिया जिस पर जगताप जो हुकुम भैया कह कर एक तरफ को बढ़ता चला गया। दादा ठाकुर अपने बड़े बेटे अभिनव के साथ हवेली के अंदर बैठक में आ गए। बैठक में दादा ठाकुर एकदम से किसी सोच में डूबे हुए नज़र आने लगे थे।


✮✮✮✮

चंदनपुर में भी सुबह हो चुकी थी।
मैं वीरेंद्र और वीर सिंह के साथ दिशा मैदान के लिए गया हुआ था। मेरे साथ आए आदमी भी सुबह दिशा मैदान के लिए गए हुए थे। मैं वीरेंद्र और वीर के साथ चलते हुए नदी के पास आ गया था। मुझे याद आया कि पिछली शाम इसी नदी के पास मैंने जमुना के साथ संभोग किया था। इस बात के याद आते ही मुझे अजीब सा लगने लगा। आम तौर पर ऐसी बातों से मेरे अंदर खुशी के एहसास जागृत हो जाते थे किंतु ये पहली दफा था जब मुझे अपने इस कार्य से अब किसी खुशी का एहसास नहीं बल्कि ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मैंने कोई गुनाह कर दिया है। वीरेंद्र और वीर दुनिया जहान की बातें कर रहे थे लेकिन मैं एकदम से ख़ामोश हो गया था। ख़ैर नदी के पास पहुंचते ही हम तीनों अलग अलग दिशा में बढ़ चले।

नदी के किनारे कुछ दूरी पर पेड़ पौधे और झाड़ियां थीं। मैं शौच क्रिया के लिए वहीं बैठ गया। मन एकदम से विचलित सा हो गया था। बार बार अनुराधा का ख़्याल आ रहा था। किसी तरह मैंने अपने ज़हन से उसके ख़्याल निकाले और फिर शौच के बाद अपनी जगह से उठ कर चल दिया। मैंने आस पास निगाह घुमाई तो वीरेंद्र और वीर कहीं नज़र ना आए। मैं समझ गया कि वो दोनों अभी भी बैठे हग रहे होंगे। आसमान में काले बादल दिख रहे थे। ऐसा लगता था जैसे कुछ ही समय में बरसात हो सकती थी। मैं चलते हुए अनायास ही उस जगह पर आ गया जहां पर पिछली शाम मैंने जमुना के साथ संभोग किया था। एक बार फिर से मेरा मन विचलित सा होने लगा।

अभी मैं विचलित हो कर कुछ सोचने ही लगा था कि सहसा मुझे अपने आस पास कुछ अजीब सा महसूस हुआ। यूं तो ठंडी ठंडी हवा चल रही थी जिससे पेड़ों के पत्ते सर्र सर्र की आवाज़ कर रहे थे किंतु पत्तों के सरसराने की आवाज़ के बावजूद कुछ अजीब सा महसूस होने लगा था मुझे। अभी मैं इस एहसास के साथ इधर उधर देखने ही लगा था कि सहसा एक तरफ से कोई बिजली की तरह आया और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता कोई चीज़ बड़ी तेज़ी से मेरे पेट की तरफ लपकी। मैं बुरी तरह घबरा कर चीख ही पड़ा था कि तभी वातावरण में धांय की तेज़ आवाज़ गूंजी और साथ ही एक इंसानी चीख भी। सब कुछ बड़ी तेज़ी से और हैरतअंगेज तरीके से हुआ था। कुछ पलों के लिए तो मैं सकते में ही आ गया था किंतु जैसे ही मुझे होश आया तो मेरी नज़र अपने से थोड़ी ही दूर पड़े एक आदमी पर पड़ी। उसकी छाती के थोड़ा नीचे गोली लगी थी जिसके चलते बड़ी तेज़ी से उस जगह से खून बहते हुए नीचे ज़मीन पर गिरता जा रहा था। सिर पर पगड़ी बांधे क़रीब पैंतीस से चालीस के बीच की उमर का आदमी था वो जो अब ज़िंदा नहीं लग रहा था।

मैं बदहवास सा आंखें फाड़े उस आदमी को देखे ही जा रहा था कि अचानक मैं कुछ आवाज़ों को सुन कर चौंक पड़ा। मेरे पीछे तरफ से वीरेंद्र और वीर चिल्लाते हुए मेरी तरफ भागे चले आ रहे थे। दूसरी तरफ कई सारी लट्ठ की आपस में टकराने की आवाज़ें गूंजने लगीं थी। मैंने फ़ौरन ही आवाज़ की दिशा में देखा तो क़रीब सात आठ आदमी मुझसे क़रीब पंद्रह बीस क़दम की दूरी पर एक दूसरे पर लाठियां भांज रहे थे। उन लोगों को इस तरह एक दूसरे से लड़ते देख मुझे समझ ना आया कि अचानक से ये क्या होने लगा है?

"वैभव महाराज आप ठीक तो हैं ना?" वीरेंद्र और वीर मेरे पास आते ही चिंतित भाव से पूछ बैठे____"गोली चलने की आवाज़ सुन कर हमारे तो होश ही उड़ गए थे और...और ये आदमी कौन है? लगता है गोली इसी को लगी है तभी बेजान सा पड़ा हुआ है।"

"ये सब कैसे हुआ महाराज?" वीर ने हैरानी और चिंता में पूछा____"और वो कौन लोग हैं जो इस तरह आपस में लड़ रहे हैं?"
"पहले मुझे भी कुछ समझ में नहीं आया था वीर भैया।" मैंने गंभीर भाव से कहा____"किंतु अब सब समझ गया हूं। ये आदमी जो मरा हुआ पड़ा है ये मुझे चाकू के द्वारा जान से मारने वाला था। अगर सही वक्त पर इसे गोली नहीं लगती तो यकीनन इसकी जगह मेरी लाश ज़मीन पर पड़ी होती।"

"लेकिन क्यों महाराज?" वीरेंद्र ने भारी उलझन और हैरानी के साथ कहा____"आख़िर ये आदमी आपको क्यों मारना चाहता था और ये लोग कौन हैं जो इस तरह आपस में लड़ रहे हैं? आख़िर क्या चक्कर है ये?"

"उनमें से कुछ लोग शायद इस मरे हुए आदमी के साथी हैं।" मैंने संभावना ब्यक्त करते हुए कहा____"और इसके साथियों से जो लोग लड़ रहे हैं वो मेरी सुरक्षा करने वाले लोग हैं। ख़ैर मैं ये चाहता हूं कि इस बारे में आप घर में किसी को कुछ भी न बताएं। मैं नहीं चाहता कि खुशी के माहौल में एकदम से सनसनी फ़ैल जाए।"

"ये कैसी बातें कर रहे हैं महाराज?" वीरेंद्र ने चकित भाव से कहा____"इतनी बड़ी बात हो गई है और आप चाहते हैं कि हम इस बारे में घर में किसी को कुछ न बताएं?"

"मेरी आपसे विनती है वीरेंद्र भैया।" मैंने गंभीर भाव से ही कहा____"इस बारे में आप किसी को कुछ नहीं बताएंगे, ख़ास कर भाभी को तो बिलकुल भी नहीं। बाकी आप फ़िक्र मत कीजिए। पिता जी ने मेरी सुरक्षा के लिए आदमी भेज दिए हैं।"

मैंने किसी तरह वीरेंद्र और वीर को समझा बुझा कर इस बात के लिए मना लिया कि वो इस बारे में किसी को कुछ न बताएं। उधर देखते ही देखते कुछ ही देर में कुछ लोग ज़मीन पर लहू लुहान पड़े नज़र आने लगे। मैंने देखा उन लोगों से वो आदमी भी भिड़े हुए थे जो मेरे साथ गांव से आए थे। कुछ ही देर में लट्ठबाजी बंद हो गई। वातावरण में अब सिर्फ़ उन लोगों की दर्द से कराहने की आवाज़ें गूंज रहीं थी जो शायद मेरे दुश्मन थे और मुझे जान से मारने के इरादे से आए थे।

"कौन हो तुम लोग?" मैं फ़ौरन ही एक आदमी के पास पहुंच कर तथा उसका गिरेबान पकड़ कर गुर्राते हुए पूछा____"और मुझ पर इस तरह जानलेवा हमला करने के लिए किसने भेजा था?"

मेरे पूछने पर वो आदमी कुछ न बोला, बस दर्द से कराहता ही रहा। थोड़ी थोड़ी दूरी पर करीब पांच आदमी अधमरी हालत में पड़े थे। मैंने दो तीन लोगों से अपना वही सवाल दोहराया लेकिन किसी के मुख से कोई जवाब न निकला। मैं ये तो समझ चुका था कि मुझ पर जानलेवा हमला करने वाले ये लोग मेरे दुश्मन के ही आदमी थे किंतु अब मेरे लिए ये जानना ज़रूरी था कि असल में मेरा दुश्मन है कौन? मेरे पूछने पर जब किसी ने भी कोई जवाब नहीं दिया तो मेरे अंदर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। मैं बिजली की तेज़ी से उस आदमी के पास आया जिसकी जान गोली लगने से गई थी। उसके पास ही उसका चाकू पड़ा हुआ था। मैंने उसके चाकू को उठा लिया और फिर से उन लोगों के पास पहुंच गया।

"तुम लोग अगर ये सोचते हो कि मेरे पूछने पर सच नहीं बताओगे।" मैंने सर्द लहजे में सबकी तरफ बारी बारी से देखते हुए कहा____"तो जान लो कि अब तुम लोगों की हालत बहुत भयानक होने वाली है। ठाकुर वैभव सिंह को जान से मारने की कोशिश करने वाला इस धरती पर ज़िंदा रहने का हक़ खो देता है। अब तुम लोग गा गा कर बताओगे कि तुम लोगों को किसने यहां भेजा था।"

मैं एक आदमी की तरफ़ बढ़ा। मुझे अपनी तरफ बढ़ता देख उस ब्यक्ति ने थरथराते हुए एकदम से अपने जबड़े भींच लिए। ऐसा लगा जैसे वो खुद को तैयार कर चुका था कि वो किसी भी हालत में मुझे सच नहीं बताएगा। इस बात का एहसास होते ही मेरे अंदर का गुस्सा और भी बढ़ गया। मैं उसके क़रीब बैठा और चाकू को उसके कान की जड़ में रखा। मेरी मंशा का आभास होते ही उस आदमी के चेहरे पर दहशत के भाव उभर आए और इससे पहले कि वो कुछ कह पाता या कुछ कर पाता मैंने एक झटके में उसके कान को उसकी कनपटी से अलग कर दिया। फिज़ा में उसकी हृदयविदारक चीखें गूंजने लगीं। बुरी तरह तड़पने लगा था वो।

"ये तो अभी शुरुआत है।" मैंने उसके कटे हुए कान को उसकी आंखों के सामने लहराते हुए कहा____"तुम सबके जिस्मों का एक एक अंग एक एक कर के ऐसे ही अलग करुंगा मैं। तुम सब जब तड़पोगे तो एक अलग ही तरह का आनंद आएगा।"

"तुम कुछ भी कर लो।" उस आदमी ने दर्द को सहते हुए कहा____"लेकिन हम में से कोई भी तुम्हें कुछ नहीं बताएगा।"
"ठीक है फिर।" मैं सहसा दरिंदगी भरे भाव से मुस्कुराया____"हम भी देखते हैं कि तुम लोगों में कितना दम है।"

"छोटे ठाकुर।" सहसा मेरे पीछे से आवाज़ आई तो मैं पलटा। मेरी नज़र एक हट्टे कट्टे आदमी पर पड़ी। उसने मेरी तरफ देखते हुए आगे कहा____"इन लोगों को आप मुझे सम्हालने दीजिए। यहां पर ये सब करना ठीक नहीं है। मालिक ने मुझे हुकुम दिया है कि इन लोगों को मैं जीवित पकड़ कर लाऊं। अगर आपने इन्हें इस तरह से तड़पा तड़पा कर मार दिया तो मैं मालिक को क्या जवाब दूंगा?"

"ठीक है।" मैंने कहा____"तुम इन सबको ले जाओ लेकिन सिर्फ़ ये मेरे पास ही रहेगा। इसने मुझे चुनौती दी है कि ये मेरे किसी भी प्रयास में नहीं बताएगा कि इसे किसने भेजा है।"

शेरा ने मेरी बात सुन कर हां में सिर हिलाया और फिर अपने आदमियों को इशारा किया। कुछ ही देर में शेरा ने सब को बेहोश कर दिया और फिर उन सबको कंधों पर लाद कर एक तरफ को बढ़ते चले गए। उन लोगों के जाने के बाद मैं एक बार फिर से उस आदमी के पास बैठा। वीरेंद्र और वीर मेरे पास ही आ गए थे। वो दोनों कुछ सहमे हुए से थे। शायद ऐसा मंज़र दोनों ने कभी नहीं देखा था।

"वैभव महाराज ये सब क्या हो रहा है?" वीरेंद्र ने घबराए हुए अंदाज से कहा____"और आप इस आदमी के साथ अब क्या करने वाले हैं?"
"कुछ ऐसा जिसे आप दोनों देख नहीं पाएंगे।" मैंने जहरीली मुस्कान के साथ कहा____"इस लिए बेहतर होगा कि आप दोनों यहां से चले जाएं।"

"नहीं, हरगिज़ नहीं।" वीर ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"हम आपको अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे। आपसे बस इतनी ही विनती है कि जो भी करना है सोच समझ कर कीजिए क्योंकि अगर गांव का कोई आदमी इस तरफ आ गया और उसने ये सब देख लिया तो बात फैल जाएगी।"

मैंने वीर की बात को अनसुना किया और उस आदमी की तरफ देखा जो अभी भी दर्द से कराह रहा था। मेरे एक हाथ में अभी भी उसका कटा हुआ कान था और दूसरे हाथ में चाकू। मैंने उसके कटे हुए कान को ज़मीन पर फेंका और चाकू को उसके दूसरे कान की तरफ बढ़ाया। मेरे ऐसा करते ही वो एक बार फिर से दहशतजदा हो गया। घबराहट और खौफ के मारे उसका बुरा हाल हो गया था।

"शुरू में जब तुझे देखा था तो लगा था कि कहीं तो तुझे देखा है।" मैंने चाकू को उसके दूसरे कान की जड़ में रखते हुए कहा____"अब याद आया कि कहां देखा था और ये भी याद आ गया कि तू किस गांव का है। तू हमारे पास के गांव कुंदनपुर का है न? तुझे मेरे बारे में तो सब पता ही होगा कि मैं कौन हूं, क्या हूं और क्या क्या कर सकता हूं, है ना?"

मेरी बातें सुन कर वो आदमी पहले से कहीं ज़्यादा भयभीत नज़र आने लगा। चेहरा इस तरह पसीने में नहाया हुआ था जैसे पानी से धोया हो। उसके चेहरे के भावों को समझते हुए मैंने कहा____"तूने जो कुछ किया है उसके लिए अब तेरे पूरे खानदान को सज़ा भुगतनी होगी। मुझ पर जानलेवा हमला करने का जो दुस्साहस तूने किया है उसके लिए अब तेरे बीवी बच्चों को मेरे क़हर का शिकार बनना होगा।"

"नहीं नहीं।" मेरी बात सुनते ही वो आदमी बुरी तरह घबरा कर बोल पड़ा_____"भगवान के लिए मेरे घर वालों के साथ कुछ मत कीजिएगा। मैंने जो कुछ किया है वो मजबूरी में किया है, कृपया मुझे माफ़ कर दीजिए।"

"ज़रूर माफ़ कर सकता हूं तुझे।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"मगर तब जब तू ये बताएगा कि तुझे किसने मजबूर किया है और किसने मुझ पर इस तरह से हमला करने का हुकुम दिया है?"

"अगर मैंने आपको इस बारे में कुछ भी बताया।" उस आदमी ने इस बार दुखी भाव से कहा____"तो वो लोग मेरे बीवी बच्चों को जान से मार देंगे।"

"बुरे काम का बुरा फल ही मिलता है।" मैंने कहा____"तू अब ऐसी हालत में है कि तुझे दोनों तरफ से बुरा फल ही मिलना है लेकिन ये भी संभव हो सकता है कि अगर तू मुझे सच बता देगा तो शायद उतना बुरा न हो जितने की तुझे उम्मीद है। चल बता, किसने भेजा था तुम लोगों को यहां?"

"कल रात आपके गांव का एक साहूकार आया था मेरे घर।" उस आदमी ने दर्द को सहते हुए कहा____"उस साहूकार का नाम गौरी शंकर है। उसी ने मुझसे कहा कि मुझे कुछ आदमियों के साथ सुबह सूरज निकलने से पहले ही चंदनपुर जाना है और वहां पर आपको ख़त्म करना है। मैंने जब ऐसा करने से इंकार किया तो उसने कहा कि अगर मैंने ऐसा कर दिया तो वो मेरा सारा कर्ज़ माफ़ कर देगा और अगर मैंने ऐसा नहीं किया अथवा इस बारे में किसी को भी कुछ बताया तो वो मेरे बीवी बच्चों को जान से मार देगा। मैं क्या करता छोटे ठाकुर? अपने बीवी बच्चों की जान बचाने के चक्कर में मैंने मजबूर हो कर ये क़दम उठाना ही बेहतर समझा।"

"वो साहूकार मणि शंकर का छोटा भाई गौरी शंकर ही था न?" मैंने संदिग्ध भाव से पूछा____"क्या तूने अच्छे से देखा है उसे?"
"मैं सच कह रहा हूं छोटे ठाकुर।" उस आदमी ने कहा____"वो गौरी शंकर ही था। भला उस इंसान को मैं पहचानने में कैसे ग़लती कर सकता हूं जिससे मैंने कर्ज़ लिया था और जिसके घर के आवारा लड़के हमारे गांव में आ कर गांव की बहू बेटियों को ख़राब करते हैं?"

"अगर तू ये सब पहले ही बता देता तो तुझे अपने इस कान से हाथ नहीं धोना पड़ता।" मैंने कहा____"ख़ैर अब मैं तुझे जान से नहीं मारूंगा। तूने ये सब बता कर अच्छा काम किया है। तेरे बीवी बच्चों की सुरक्षा की पूरी कोशिश की जाएगी लेकिन तू इस हालत में वापस गांव नहीं जा सकता। तेरा यहीं पर इलाज़ किया जाएगा और तू कुछ समय तक यहीं रहेगा। उन लोगों को यही लगना चाहिए कि तू मेरे द्वारा मारा गया होगा।"

मैंने वीरेंद्र और वीर को उस आदमी के इलाज़ की जिम्मेदारी सौंपी। वो दोनों ये सब सुन कर बुरी तरह हैरान तो थे लेकिन ये देख कर खुश भी हो गए थे कि मैंने उस आदमी के साथ आगे कुछ भी बुरा नहीं किया। ख़ैर मेरे कहने पर वीर ने अभी उस आदमी को सहारा दे कर उठाया ही था कि तभी मेरे साथ आए मेरे आदमी भी आ गए। उन्होंने बताया कि वो दूर दूर तक देख आए हैं लेकिन इनके अलावा और कोई भी नज़र नहीं आया। मैंने अपने दो आदमियों को वीर भैया के साथ भेजा और ये भी कहा कि अब से उस आदमी के साथ ही रहें और उस पर नज़र रखे रहें।



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Behad Shandar update Shubham Bhai,

Vaibhav ko bhi pata lag hi gaya ki us par hamla Sahukar ne karwaya he..........

Ab asli khel shuru hoga......Vaibhav aur Dada Thakur ek ek ko tadpa tadpa kar marenge

keep posting Bhai
 

Rekha rani

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Superb update, action pack,
Kala nakab posh ne kuchh batein to batayi lekin baki se saf mna kr gya aur bhavishya me sath dene ka vada kiya,
Udhr vaibhav pr jaise ashnka thi rupa ki khabar thi subah hi hamla hua lekin bacha liya gaya,
Rupa ki khabar dena kam kr gya,
Ek aadmi se jo khabar mili usse vaibhav ko bhi malum chal gya hai ki usme sahukaro ka hath hain
Ab vaibhav aur dada thakur kya action lete hai aage, dekhna hoga
 

Suniya

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Game888

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दोस्तो, कहानी का अगला अध्याय - 60 पोस्ट कर दिया है। आशा है आप सभी को पसंद आएगा। आप सबकी समीक्षा अथवा विचारों का इंतज़ार रहेगा... :love:
Zabardast update
 

@09vk

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अध्याय - 60
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अब तक....

"मैं पूरी कोशिश करूंगा मालिक।" शेरा ने कहा____"मैं अभी इसी समय कुछ आदमियों को ले कर चंदनपुर के लिए निकल जाऊंगा।"
"अगर वहां के हालात काबू से बाहर समझ में आएं तो फ़ौरन किसी के द्वारा हमें सूचना भेजवा देना।" दादा ठाकुर ने कहा____"चंदनपुर का सफ़र लंबा है इस लिए तुम हरिया के अस्तबल से घोड़े ले लेना।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर शेरा ने सिर हिलाया और फिर उन्हें प्रणाम किया। दादा ठाकुर ने उसे विजयी होने का आशीर्वाद दिया और फिर दरवाज़े से बाहर निकल गए। दादा ठाकुर के जाने के बाद शेरा ने फ़ौरन ही अपने कपड़े पहने और कपड़ों की जेब में रिवॉल्वर के साथ दूसरी पोटली डालने के बाद घर से बाहर निकल गया।


अब आगे....


सुबह सुबह ही दादा ठाकुर, अभिनव और जगताप हवेली के बाहर तरफ बने उस कमरे में पहुंचे जहां पर काले नकाबपोश को रखा गया था। काले नकाबपोश की हालत बेहद ख़राब थी। उसका एक हाथ शेरा ने तोड़ दिया था जिसके चलते वो बुरी तरह सूझ गया था और दर्द से काले नकाबपोश का बुरा हाल था। रात भर दर्द से तड़पता रहा था वो।

"वैसे तो तुमने जो किया है उसके लिए तुम्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ मौत की ही सज़ा मिलनी चाहिए।" दादा ठाकुर ने अपनी भारी आवाज़ में उससे कहा____"लेकिन अगर तुम हमें उस सफ़ेदपोश व्यक्ति के बारे में सब कुछ सच सच बता देते हो तो न केवल तुम्हें माफ़ कर दिया जाएगा बल्कि तुम्हारे इस टूटे हुए हाथ का बेहतर इलाज़ भी करवा दिया जाएगा।"

"मुझे प्रलोभन देने का कोई फ़ायदा नहीं होगा दादा ठाकुर।" काले नकाबपोश ने दर्द में भी मुस्कुराते हुए कहा____"क्योंकि मुझे उस रहस्यमय आदमी के बारे में कुछ भी पता नहीं है। हां इतना ज़रूर बता सकता हूं कि कुछ महीने पहले उससे मुलाक़ात हुई थी। मेरे साथ मेरा एक साथी भी था। हम दोनों ही शहर में कई तरह के जुर्म करते थे जिसके लिए पुलिस हमें खोज रही थी। पुलिस से बचने के लिए हमने शहर छोड़ दिया और शहर के नज़दीक ही जो गांव था वहां आ गए छुपने के लिए। मैं नहीं जानता कि उस रहस्यमय आदमी को हमारे बारे में कैसे पता चला था लेकिन एक दिन अचानक ही वो हमारे सामने अपने उसी सफ़ेद लिबास और नक़ाब में आ गया और हम दोनों से अपने अधीन काम करने को कहा। हम दोनों ने कभी किसी के लिए या किसी के आदेश पर काम नहीं किया था इस लिए जब उस रहस्यमय आदमी ने हमें अपने अधीन काम करने को कहा तो हमने साफ़ इंकार कर दिया। उसके बाद उसने हमें ढेर सारा धन देने का लालच दिया और ये भी कहा कि हम दोनों कभी भी पुलिस के हाथ नहीं लगेंगे। उसकी इस बात से हमने सोचा कि सौदा बुरा नहीं है क्योंकि हर तरह से हमारा ही फ़ायदा था लेकिन किसी अजनबी के अधीन काम करने से हमें संकोच हो रहा था। इस लिए हमने भी उससे एक बचकानी सी शर्त रखी कि हम दोनों उसके अधीन तभी काम करेंगे जब वो हम दोनों में से किसी एक के साथ मुकाबला कर के हमें हरा देगा। हम दोनों ने सोचा था कि उसे हरा कर पहले उसका नक़ाब उतार कर देखेंगे कि वो कौन है और ऐसा कौन सा काम करवाना चाहता है हमसे। ख़ैर हमारी शर्त पर वो बिना एक पल की भी देरी किए तैयार हो गया। उससे मुकाबला करने के लिए मैं ही तैयार हुआ था क्योंकि मेरा दूसरा साथी उस समय थोड़ा बीमार था। हमारे बीच मुकाबला शुरू हुआ तो कुछ ही देर में मुझे समझ आ गया कि वो किसी भी मामले में मुझसे कमज़ोर नहीं है बल्कि मुझसे बीस ही है। नतीजा ये निकला कि जब मैं उससे मुकाबले में हार गया तो शर्त के अनुसार हम दोनों उसके अधीन काम करने के लिए राज़ी हो गए। उसके बाद उसने हमें बताया कि हमें कौन सा काम किस तरीके से करना है। ये भी कहा कि हमारा भेद और हमारा चेहरा कोई देख न सके इसके लिए हमें हमेशा काले नकाबपोश के रूप में ही रहना होगा। हम दोनों के मन में कई बार ये ख़्याल आया था कि उसके बारे में पता करें मगर हिम्मत नहीं हुई क्योंकि उस मुक़ाबले के बाद ही उसने हम दोनों को सख़्ती से समझा दिया था कि अगर हम लोगों ने उसका भेद जानने का सोचा तो ये हमारे लिए अच्छा नहीं होगा क्योंकि उस सूरत में हमें अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। हमने भी सोच लिया कि क्यों ऐसा काम करना जिसमें जान जाने का जोख़िम हो अतः वही करते गए जो करने के लिए वो हमें हुकुम देता था।"

"सबसे पहले उसने तुम्हें क्या काम सौंपा था?" दादा ठाकुर ने पूछा।
"हम दोनों को उसने यही काम दिया था कि वैभव सिंह नाम के लड़के को या तो पकड़ के लाओ या फिर उसे ख़त्म कर दो।" काले नकाबपोश ने कहा____"उसने हमें बता दिया था कि वैभव सिंह कौन है और कहां रहता है? उसके आदेश पर हम दोनों सबसे पहले उस लड़के को ज़िंदा पकड़ने के काम में लगे मगर जल्द ही हमें महसूस हुआ कि उस लड़के को पकड़ना आसान नहीं है क्योंकि हमें ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कि कुछ अज्ञात लोग अक्सर उसकी सुरक्षा के लिए आस पास मौजूद रहते हैं। हमने कई बार उसे रास्ते में घेरना चाहा लेकिन नाकाम रहे। हम दोनों समझ चुके थे कि उस लड़के को ज़िंदा पकड़ पाना हमारे बस का नहीं है इस लिए हमने उसको जान से ख़त्म करने का प्रयास शुरू कर दिया मगर यहां भी हमें नाकामी ही मिली क्योंकि हमारी ही तरह भेस वाला एक काला नकाबपोश उसकी सुरक्षा के लिए जाने कहां से आ गया था। हमने बहुत कोशिश की उस नकाबपोश को मारने की मगर कामयाब नहीं हुए। हर बार की हमारी इस नाकामी से वो सफ़ेदपोश आदमी हम पर बहुत गुस्सा हुआ। एक रात उसी गुस्से से उसने मेरे साथी को जान से मार दिया। मैं अकेला पड़ गया और पहली बार मुझे एहसास हुआ कि उस सफ़ेदपोश के लिए काम करने की हमने कितनी बड़ी भूल की थी। वो कितना ताकतवर था ये मैं अच्छी तरह जानता था मगर अब उसकी मर्ज़ी के बिना मैं कुछ नहीं कर सकता था। एक दिन मुझे पता चला कि मेरे समान से मेरी कुछ ऐसी चीज़ें गायब हैं जिसके चलते बड़ी आसानी से मुझे पुलिस के हवाले किया जा सकता था। मैं समझ गया कि ये सब उस सफ़ेदपोश ने ही किया होगा लेकिन उससे पूछने की हिम्मत न हुई थी मेरी। मैं अब पूरी तरह से उसके रहमो करम पर था। मुझे हर हाल में अब वही करना था जो वो करने को कहता। अभी कुछ दिन पहले उसने आदेश दिया था कि मुझे एक औरत को ख़त्म करना है और अगर मैं ऐसा करने में नाकाम रहा तो वो मुझे भी मेरे साथी की तरह जान से मार देगा।"

"मुरारी की हत्या में किसका हाथ था?" दादा ठाकुर ने उससे घूरते हुए पूछा_____"क्या उसकी हत्या करने का आदेश उसी सफ़ेदपोश ने तुम्हें दिया था?"
"नहीं।" काले नकाबपोश ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा_____"मैं किसी मुरारी को नहीं जानता और ना ही उस सफ़ेदपोश आदमी ने मुझे ऐसे किसी आदमी को हत्या करने का आदेश दिया था। हम दोनों का काम सिर्फ़ वैभव सिंह को पकड़ना या फिर उसे ख़त्म करना था जोकि हम आज तक नहीं कर पाए।"

"सफ़ेदपोश से तुम्हारी मुलाक़ात कैसे होती है?" सहसा अभिनव ने पूछा____"क्या तुम दोनों का कोई निश्चित स्थान है मिलने का या फिर कोई ऐसा तरीका जिससे तुम आसानी से उससे मिल सकते हो?"

"शुरू में एक दो बार मैंने उसका पीछा किया था।" काले नकाबपोश ने कहा____"किंतु पता नहीं कर पाया कि वो कहां से आता है और फिर कैसे गायब हो जाता है? हमारे द्वारा अपना पीछा किए जाने का उसे पता चल गया था इस लिए जब वो अगली बार हमसे मिला तो उसने गुस्से में हम दोनों से यही कहा था कि अब अगर हमने दुबारा उसका पीछा करने की कोशिश की तो इस बार हम जान से हाथ धो बैठेंगे। हमने भी सोचा क्यों ऐसा काम करना जिसमें अपनी ही जान जाने का ख़तरा हो। ख़ैर दिन भर तो हम सादे कपड़ों में दूसरे गांवों में ही घूमते रहते थे या फिर अपने एक कमरे में सोते रहते थे और फिर शाम ढलते ही काले नकाबपोश बन कर निकल पड़ते थे। सफ़ेदपोश से हमारी मुलाक़ात ज़्यादातर इस गांव से बाहर पूर्व में एक बरगद के पेड़ के पास होती थी या फिर आपके आमों वाले बाग़ में। मिलने का दिन और समय वही निर्धारित कर देता था। अगर हम अपनी मर्ज़ी से उससे मिलना चाहें तो ये संभव ही नहीं था।"

"तांत्रिक की हत्या किसने की थी?" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए पूछा____"क्या उसकी हत्या करने का आदेश उस सफ़ेदपोश ने तुम्हें दिया था?"
"मैं किसी तांत्रिक को नहीं जानता।" काले नकाबपोश ने कहा____"और ना ही उस सफ़ेदपोश ने मुझे ऐसा कोई आदेश दिया था। हम दोनों को दिन में कोई भी ऐसा वैसा काम करने की मनाही थी जिसके चलते हम लोगों की नज़र में आ जाएं या फिर हालात बिगड़ जाएं।"

"क्या तुम्हें पता है कि तुम दोनों के अलावा।" जगताप ने शख़्त भाव से पूछा____"उस सफ़ेदपोश से और कौन कौन मिलता है या ये कहें कि वो सफ़ेदपोश और किस किस को तुम्हारी तरह अपना मोहरा बना रखा है?"

"सिर्फ़ एक के बारे में जानता हूं मैं।" काले नकाबपोश ने कहा____"और वो एक पुलिस वाला है। कल शाम को ही सफ़ेदपोश के साथ मैं उसके घर पर था।"
"सफ़ेदपोश ने दारोगा को अपने जाल में कैसे फंसाया?" जगताप ने हैरानी और गुस्से से पूछा____"क्या दरोगा भी उससे मिला हुआ है?"

"सफ़ेदपोश के आदेश पर मैंने एक हफ्ता पहले उस पुलिस वाले की मां का अपहरण किया था।" काले नकाबपोश ने कहा____"दरोगा को जब उस सफ़ेदपोश आदमी के द्वारा पता चला कि उसकी मां सफ़ेदपोश के कब्जे में है तो उसने मजबूरी में वही करना स्वीकार किया जो सफ़ेदपोश ने उससे करने को कहा।"

"दरोगा को क्या करने के लिए कहा था उस सफ़ेदपोश आदमी ने?" दादा ठाकुर ने पूछा।
"क्या आपको नहीं पता?" काले नकाबपोश ने हल्की मुस्कान के साथ उल्टा सवाल किया तो अभिनव और जगताप दोनों ही हैरानी से दादा ठाकुर की तरफ देखने लगे जबकि काले नकाबपोश ने आगे कहा____"आप तो मिले थे न दरोगा से और उसने आपको सब कुछ बताया भी था न?"

"ये क्या कह रहा है भैया?" जगताप ने हैरानी से दादा ठाकुर की तरफ देखते हुए कहा____"क्या आपको पता है ये सब?"
"हां लेकिन हमें भी कल ही पता चला है।" दादा ठाकुर ने कहा_____"ख़ैर दरोगा ने जो कुछ हमें बताया था वो सब तो कदाचित उस सफ़ेदपोश के द्वारा रटाया हुआ ही बताया था जबकि हम ये जानना चाहते हैं कि असल में वो सफ़ेदपोश दरोगा से क्या करवाया था और हमसे वो सब कहने को क्यों कहा जो दरोगा ने हमें बताया था?"

"इस बारे में मुझे कुछ भी पता नहीं है।" काले नकाबपोश ने कहा____"उस सफ़ेदपोश आदमी से हमें कुछ भी पूछने की इजाज़त नहीं थी और ना ही वो हमें कभी कुछ बताना ज़रूरी समझता था।"

"अगर तुम सच में जीवित रहना चाहते हो।" दादा ठाकुर ने सर्द लहजे में कहा____"तो अब वही करो जो हम कहें वरना जिस तरह से तुमने हमारे बेटे को जान से मारने की कोशिश की है उसके लिए तुम्हें फ़ौरन ही मौत की सज़ा दे दी जाएगी।"

"मौत तो अब दोनों तरफ से मिलनी है मुझे।" काले नकाबपोश ने फीकी मुस्कान में कहा____"सफ़ेदपोश को जब पता चलेगा कि मैं आपके हाथ लग चुका हूं तो वो मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेगा और इधर यदि मैं आपके आदेश पर कोई काम नहीं करुंगा तो आप भी मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे।"

"अगर तुम हमारे कहने पर उस सफ़ेदपोश को पकड़वाने में सफल हुए।" दादा ठाकुर ने कहा____"तो यकीन मानो तुम्हें एक नई ज़िंदगी दान में मिल जाएगी। रही बात उस सफ़ेदपोश की तो जब वो हमारी पकड़ में आ जाएगा तब वो तुम्हारे साथ कुछ भी बुरा नहीं कर पाएगा।"

"आपको उस सफ़ेदपोश की ताक़त का अंदाज़ा नहीं है अभी।" काले नकाबपोश ने कहा____"मेरे जैसे छटे हुए बदमाश को उसने कुछ ही देर में पस्त कर दिया था। वो इतना कमज़ोर नहीं है कि इतनी आसानी से आपकी पकड़ में आ जाएगा।"

"वो हम देख लेंगे।" दादा ठाकुर ने कहा____"तुम्हें ये सब सोचने की ज़रूरत नहीं है। तुम सिर्फ़ ये बताओ कि क्या तुम उसे पकड़वाने में हमारी मदद करोगे?"
"टूटे हुए हाथ से भला मैं क्या कर सकूंगा?" काले नकाबपोश ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"दर्द से मेरा बुरा हाल है। ऐसे हाल में तो कुछ नहीं कर सकता मैं।"

"हां हम समझ सकते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस लिए हम तुम्हारे दर्द को दूर करने में लिए तुम्हें दवा दे देंगे लेकिन तुम्हारे टूटे हुए हाथ का इलाज़ तभी करवाएंगे जब तुम उस सफ़ेदपोश को पकड़वाने में सफल होगे।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर काले नकाबपोश ने हां में सिर हिलाया। उसके बाद दादा ठाकुर अभिनव और जगताप तीनों ही कमरे से बाहर चले गए। दादा ठाकुर ने जगताप को काले नकाबपोश के लिए दर्द की दवा लाने का आदेश दिया जिस पर जगताप जो हुकुम भैया कह कर एक तरफ को बढ़ता चला गया। दादा ठाकुर अपने बड़े बेटे अभिनव के साथ हवेली के अंदर बैठक में आ गए। बैठक में दादा ठाकुर एकदम से किसी सोच में डूबे हुए नज़र आने लगे थे।


✮✮✮✮

चंदनपुर में भी सुबह हो चुकी थी।
मैं वीरेंद्र और वीर सिंह के साथ दिशा मैदान के लिए गया हुआ था। मेरे साथ आए आदमी भी सुबह दिशा मैदान के लिए गए हुए थे। मैं वीरेंद्र और वीर के साथ चलते हुए नदी के पास आ गया था। मुझे याद आया कि पिछली शाम इसी नदी के पास मैंने जमुना के साथ संभोग किया था। इस बात के याद आते ही मुझे अजीब सा लगने लगा। आम तौर पर ऐसी बातों से मेरे अंदर खुशी के एहसास जागृत हो जाते थे किंतु ये पहली दफा था जब मुझे अपने इस कार्य से अब किसी खुशी का एहसास नहीं बल्कि ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मैंने कोई गुनाह कर दिया है। वीरेंद्र और वीर दुनिया जहान की बातें कर रहे थे लेकिन मैं एकदम से ख़ामोश हो गया था। ख़ैर नदी के पास पहुंचते ही हम तीनों अलग अलग दिशा में बढ़ चले।

नदी के किनारे कुछ दूरी पर पेड़ पौधे और झाड़ियां थीं। मैं शौच क्रिया के लिए वहीं बैठ गया। मन एकदम से विचलित सा हो गया था। बार बार अनुराधा का ख़्याल आ रहा था। किसी तरह मैंने अपने ज़हन से उसके ख़्याल निकाले और फिर शौच के बाद अपनी जगह से उठ कर चल दिया। मैंने आस पास निगाह घुमाई तो वीरेंद्र और वीर कहीं नज़र ना आए। मैं समझ गया कि वो दोनों अभी भी बैठे हग रहे होंगे। आसमान में काले बादल दिख रहे थे। ऐसा लगता था जैसे कुछ ही समय में बरसात हो सकती थी। मैं चलते हुए अनायास ही उस जगह पर आ गया जहां पर पिछली शाम मैंने जमुना के साथ संभोग किया था। एक बार फिर से मेरा मन विचलित सा होने लगा।

अभी मैं विचलित हो कर कुछ सोचने ही लगा था कि सहसा मुझे अपने आस पास कुछ अजीब सा महसूस हुआ। यूं तो ठंडी ठंडी हवा चल रही थी जिससे पेड़ों के पत्ते सर्र सर्र की आवाज़ कर रहे थे किंतु पत्तों के सरसराने की आवाज़ के बावजूद कुछ अजीब सा महसूस होने लगा था मुझे। अभी मैं इस एहसास के साथ इधर उधर देखने ही लगा था कि सहसा एक तरफ से कोई बिजली की तरह आया और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता कोई चीज़ बड़ी तेज़ी से मेरे पेट की तरफ लपकी। मैं बुरी तरह घबरा कर चीख ही पड़ा था कि तभी वातावरण में धांय की तेज़ आवाज़ गूंजी और साथ ही एक इंसानी चीख भी। सब कुछ बड़ी तेज़ी से और हैरतअंगेज तरीके से हुआ था। कुछ पलों के लिए तो मैं सकते में ही आ गया था किंतु जैसे ही मुझे होश आया तो मेरी नज़र अपने से थोड़ी ही दूर पड़े एक आदमी पर पड़ी। उसकी छाती के थोड़ा नीचे गोली लगी थी जिसके चलते बड़ी तेज़ी से उस जगह से खून बहते हुए नीचे ज़मीन पर गिरता जा रहा था। सिर पर पगड़ी बांधे क़रीब पैंतीस से चालीस के बीच की उमर का आदमी था वो जो अब ज़िंदा नहीं लग रहा था।

मैं बदहवास सा आंखें फाड़े उस आदमी को देखे ही जा रहा था कि अचानक मैं कुछ आवाज़ों को सुन कर चौंक पड़ा। मेरे पीछे तरफ से वीरेंद्र और वीर चिल्लाते हुए मेरी तरफ भागे चले आ रहे थे। दूसरी तरफ कई सारी लट्ठ की आपस में टकराने की आवाज़ें गूंजने लगीं थी। मैंने फ़ौरन ही आवाज़ की दिशा में देखा तो क़रीब सात आठ आदमी मुझसे क़रीब पंद्रह बीस क़दम की दूरी पर एक दूसरे पर लाठियां भांज रहे थे। उन लोगों को इस तरह एक दूसरे से लड़ते देख मुझे समझ ना आया कि अचानक से ये क्या होने लगा है?

"वैभव महाराज आप ठीक तो हैं ना?" वीरेंद्र और वीर मेरे पास आते ही चिंतित भाव से पूछ बैठे____"गोली चलने की आवाज़ सुन कर हमारे तो होश ही उड़ गए थे और...और ये आदमी कौन है? लगता है गोली इसी को लगी है तभी बेजान सा पड़ा हुआ है।"

"ये सब कैसे हुआ महाराज?" वीर ने हैरानी और चिंता में पूछा____"और वो कौन लोग हैं जो इस तरह आपस में लड़ रहे हैं?"
"पहले मुझे भी कुछ समझ में नहीं आया था वीर भैया।" मैंने गंभीर भाव से कहा____"किंतु अब सब समझ गया हूं। ये आदमी जो मरा हुआ पड़ा है ये मुझे चाकू के द्वारा जान से मारने वाला था। अगर सही वक्त पर इसे गोली नहीं लगती तो यकीनन इसकी जगह मेरी लाश ज़मीन पर पड़ी होती।"

"लेकिन क्यों महाराज?" वीरेंद्र ने भारी उलझन और हैरानी के साथ कहा____"आख़िर ये आदमी आपको क्यों मारना चाहता था और ये लोग कौन हैं जो इस तरह आपस में लड़ रहे हैं? आख़िर क्या चक्कर है ये?"

"उनमें से कुछ लोग शायद इस मरे हुए आदमी के साथी हैं।" मैंने संभावना ब्यक्त करते हुए कहा____"और इसके साथियों से जो लोग लड़ रहे हैं वो मेरी सुरक्षा करने वाले लोग हैं। ख़ैर मैं ये चाहता हूं कि इस बारे में आप घर में किसी को कुछ भी न बताएं। मैं नहीं चाहता कि खुशी के माहौल में एकदम से सनसनी फ़ैल जाए।"

"ये कैसी बातें कर रहे हैं महाराज?" वीरेंद्र ने चकित भाव से कहा____"इतनी बड़ी बात हो गई है और आप चाहते हैं कि हम इस बारे में घर में किसी को कुछ न बताएं?"

"मेरी आपसे विनती है वीरेंद्र भैया।" मैंने गंभीर भाव से ही कहा____"इस बारे में आप किसी को कुछ नहीं बताएंगे, ख़ास कर भाभी को तो बिलकुल भी नहीं। बाकी आप फ़िक्र मत कीजिए। पिता जी ने मेरी सुरक्षा के लिए आदमी भेज दिए हैं।"

मैंने किसी तरह वीरेंद्र और वीर को समझा बुझा कर इस बात के लिए मना लिया कि वो इस बारे में किसी को कुछ न बताएं। उधर देखते ही देखते कुछ ही देर में कुछ लोग ज़मीन पर लहू लुहान पड़े नज़र आने लगे। मैंने देखा उन लोगों से वो आदमी भी भिड़े हुए थे जो मेरे साथ गांव से आए थे। कुछ ही देर में लट्ठबाजी बंद हो गई। वातावरण में अब सिर्फ़ उन लोगों की दर्द से कराहने की आवाज़ें गूंज रहीं थी जो शायद मेरे दुश्मन थे और मुझे जान से मारने के इरादे से आए थे।

"कौन हो तुम लोग?" मैं फ़ौरन ही एक आदमी के पास पहुंच कर तथा उसका गिरेबान पकड़ कर गुर्राते हुए पूछा____"और मुझ पर इस तरह जानलेवा हमला करने के लिए किसने भेजा था?"

मेरे पूछने पर वो आदमी कुछ न बोला, बस दर्द से कराहता ही रहा। थोड़ी थोड़ी दूरी पर करीब पांच आदमी अधमरी हालत में पड़े थे। मैंने दो तीन लोगों से अपना वही सवाल दोहराया लेकिन किसी के मुख से कोई जवाब न निकला। मैं ये तो समझ चुका था कि मुझ पर जानलेवा हमला करने वाले ये लोग मेरे दुश्मन के ही आदमी थे किंतु अब मेरे लिए ये जानना ज़रूरी था कि असल में मेरा दुश्मन है कौन? मेरे पूछने पर जब किसी ने भी कोई जवाब नहीं दिया तो मेरे अंदर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। मैं बिजली की तेज़ी से उस आदमी के पास आया जिसकी जान गोली लगने से गई थी। उसके पास ही उसका चाकू पड़ा हुआ था। मैंने उसके चाकू को उठा लिया और फिर से उन लोगों के पास पहुंच गया।

"तुम लोग अगर ये सोचते हो कि मेरे पूछने पर सच नहीं बताओगे।" मैंने सर्द लहजे में सबकी तरफ बारी बारी से देखते हुए कहा____"तो जान लो कि अब तुम लोगों की हालत बहुत भयानक होने वाली है। ठाकुर वैभव सिंह को जान से मारने की कोशिश करने वाला इस धरती पर ज़िंदा रहने का हक़ खो देता है। अब तुम लोग गा गा कर बताओगे कि तुम लोगों को किसने यहां भेजा था।"

मैं एक आदमी की तरफ़ बढ़ा। मुझे अपनी तरफ बढ़ता देख उस ब्यक्ति ने थरथराते हुए एकदम से अपने जबड़े भींच लिए। ऐसा लगा जैसे वो खुद को तैयार कर चुका था कि वो किसी भी हालत में मुझे सच नहीं बताएगा। इस बात का एहसास होते ही मेरे अंदर का गुस्सा और भी बढ़ गया। मैं उसके क़रीब बैठा और चाकू को उसके कान की जड़ में रखा। मेरी मंशा का आभास होते ही उस आदमी के चेहरे पर दहशत के भाव उभर आए और इससे पहले कि वो कुछ कह पाता या कुछ कर पाता मैंने एक झटके में उसके कान को उसकी कनपटी से अलग कर दिया। फिज़ा में उसकी हृदयविदारक चीखें गूंजने लगीं। बुरी तरह तड़पने लगा था वो।

"ये तो अभी शुरुआत है।" मैंने उसके कटे हुए कान को उसकी आंखों के सामने लहराते हुए कहा____"तुम सबके जिस्मों का एक एक अंग एक एक कर के ऐसे ही अलग करुंगा मैं। तुम सब जब तड़पोगे तो एक अलग ही तरह का आनंद आएगा।"

"तुम कुछ भी कर लो।" उस आदमी ने दर्द को सहते हुए कहा____"लेकिन हम में से कोई भी तुम्हें कुछ नहीं बताएगा।"
"ठीक है फिर।" मैं सहसा दरिंदगी भरे भाव से मुस्कुराया____"हम भी देखते हैं कि तुम लोगों में कितना दम है।"

"छोटे ठाकुर।" सहसा मेरे पीछे से आवाज़ आई तो मैं पलटा। मेरी नज़र एक हट्टे कट्टे आदमी पर पड़ी। उसने मेरी तरफ देखते हुए आगे कहा____"इन लोगों को आप मुझे सम्हालने दीजिए। यहां पर ये सब करना ठीक नहीं है। मालिक ने मुझे हुकुम दिया है कि इन लोगों को मैं जीवित पकड़ कर लाऊं। अगर आपने इन्हें इस तरह से तड़पा तड़पा कर मार दिया तो मैं मालिक को क्या जवाब दूंगा?"

"ठीक है।" मैंने कहा____"तुम इन सबको ले जाओ लेकिन सिर्फ़ ये मेरे पास ही रहेगा। इसने मुझे चुनौती दी है कि ये मेरे किसी भी प्रयास में नहीं बताएगा कि इसे किसने भेजा है।"

शेरा ने मेरी बात सुन कर हां में सिर हिलाया और फिर अपने आदमियों को इशारा किया। कुछ ही देर में शेरा ने सब को बेहोश कर दिया और फिर उन सबको कंधों पर लाद कर एक तरफ को बढ़ते चले गए। उन लोगों के जाने के बाद मैं एक बार फिर से उस आदमी के पास बैठा। वीरेंद्र और वीर मेरे पास ही आ गए थे। वो दोनों कुछ सहमे हुए से थे। शायद ऐसा मंज़र दोनों ने कभी नहीं देखा था।

"वैभव महाराज ये सब क्या हो रहा है?" वीरेंद्र ने घबराए हुए अंदाज से कहा____"और आप इस आदमी के साथ अब क्या करने वाले हैं?"
"कुछ ऐसा जिसे आप दोनों देख नहीं पाएंगे।" मैंने जहरीली मुस्कान के साथ कहा____"इस लिए बेहतर होगा कि आप दोनों यहां से चले जाएं।"

"नहीं, हरगिज़ नहीं।" वीर ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"हम आपको अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे। आपसे बस इतनी ही विनती है कि जो भी करना है सोच समझ कर कीजिए क्योंकि अगर गांव का कोई आदमी इस तरफ आ गया और उसने ये सब देख लिया तो बात फैल जाएगी।"

मैंने वीर की बात को अनसुना किया और उस आदमी की तरफ देखा जो अभी भी दर्द से कराह रहा था। मेरे एक हाथ में अभी भी उसका कटा हुआ कान था और दूसरे हाथ में चाकू। मैंने उसके कटे हुए कान को ज़मीन पर फेंका और चाकू को उसके दूसरे कान की तरफ बढ़ाया। मेरे ऐसा करते ही वो एक बार फिर से दहशतजदा हो गया। घबराहट और खौफ के मारे उसका बुरा हाल हो गया था।

"शुरू में जब तुझे देखा था तो लगा था कि कहीं तो तुझे देखा है।" मैंने चाकू को उसके दूसरे कान की जड़ में रखते हुए कहा____"अब याद आया कि कहां देखा था और ये भी याद आ गया कि तू किस गांव का है। तू हमारे पास के गांव कुंदनपुर का है न? तुझे मेरे बारे में तो सब पता ही होगा कि मैं कौन हूं, क्या हूं और क्या क्या कर सकता हूं, है ना?"

मेरी बातें सुन कर वो आदमी पहले से कहीं ज़्यादा भयभीत नज़र आने लगा। चेहरा इस तरह पसीने में नहाया हुआ था जैसे पानी से धोया हो। उसके चेहरे के भावों को समझते हुए मैंने कहा____"तूने जो कुछ किया है उसके लिए अब तेरे पूरे खानदान को सज़ा भुगतनी होगी। मुझ पर जानलेवा हमला करने का जो दुस्साहस तूने किया है उसके लिए अब तेरे बीवी बच्चों को मेरे क़हर का शिकार बनना होगा।"

"नहीं नहीं।" मेरी बात सुनते ही वो आदमी बुरी तरह घबरा कर बोल पड़ा_____"भगवान के लिए मेरे घर वालों के साथ कुछ मत कीजिएगा। मैंने जो कुछ किया है वो मजबूरी में किया है, कृपया मुझे माफ़ कर दीजिए।"

"ज़रूर माफ़ कर सकता हूं तुझे।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"मगर तब जब तू ये बताएगा कि तुझे किसने मजबूर किया है और किसने मुझ पर इस तरह से हमला करने का हुकुम दिया है?"

"अगर मैंने आपको इस बारे में कुछ भी बताया।" उस आदमी ने इस बार दुखी भाव से कहा____"तो वो लोग मेरे बीवी बच्चों को जान से मार देंगे।"

"बुरे काम का बुरा फल ही मिलता है।" मैंने कहा____"तू अब ऐसी हालत में है कि तुझे दोनों तरफ से बुरा फल ही मिलना है लेकिन ये भी संभव हो सकता है कि अगर तू मुझे सच बता देगा तो शायद उतना बुरा न हो जितने की तुझे उम्मीद है। चल बता, किसने भेजा था तुम लोगों को यहां?"

"कल रात आपके गांव का एक साहूकार आया था मेरे घर।" उस आदमी ने दर्द को सहते हुए कहा____"उस साहूकार का नाम गौरी शंकर है। उसी ने मुझसे कहा कि मुझे कुछ आदमियों के साथ सुबह सूरज निकलने से पहले ही चंदनपुर जाना है और वहां पर आपको ख़त्म करना है। मैंने जब ऐसा करने से इंकार किया तो उसने कहा कि अगर मैंने ऐसा कर दिया तो वो मेरा सारा कर्ज़ माफ़ कर देगा और अगर मैंने ऐसा नहीं किया अथवा इस बारे में किसी को भी कुछ बताया तो वो मेरे बीवी बच्चों को जान से मार देगा। मैं क्या करता छोटे ठाकुर? अपने बीवी बच्चों की जान बचाने के चक्कर में मैंने मजबूर हो कर ये क़दम उठाना ही बेहतर समझा।"

"वो साहूकार मणि शंकर का छोटा भाई गौरी शंकर ही था न?" मैंने संदिग्ध भाव से पूछा____"क्या तूने अच्छे से देखा है उसे?"
"मैं सच कह रहा हूं छोटे ठाकुर।" उस आदमी ने कहा____"वो गौरी शंकर ही था। भला उस इंसान को मैं पहचानने में कैसे ग़लती कर सकता हूं जिससे मैंने कर्ज़ लिया था और जिसके घर के आवारा लड़के हमारे गांव में आ कर गांव की बहू बेटियों को ख़राब करते हैं?"

"अगर तू ये सब पहले ही बता देता तो तुझे अपने इस कान से हाथ नहीं धोना पड़ता।" मैंने कहा____"ख़ैर अब मैं तुझे जान से नहीं मारूंगा। तूने ये सब बता कर अच्छा काम किया है। तेरे बीवी बच्चों की सुरक्षा की पूरी कोशिश की जाएगी लेकिन तू इस हालत में वापस गांव नहीं जा सकता। तेरा यहीं पर इलाज़ किया जाएगा और तू कुछ समय तक यहीं रहेगा। उन लोगों को यही लगना चाहिए कि तू मेरे द्वारा मारा गया होगा।"

मैंने वीरेंद्र और वीर को उस आदमी के इलाज़ की जिम्मेदारी सौंपी। वो दोनों ये सब सुन कर बुरी तरह हैरान तो थे लेकिन ये देख कर खुश भी हो गए थे कि मैंने उस आदमी के साथ आगे कुछ भी बुरा नहीं किया। ख़ैर मेरे कहने पर वीर ने अभी उस आदमी को सहारा दे कर उठाया ही था कि तभी मेरे साथ आए मेरे आदमी भी आ गए। उन्होंने बताया कि वो दूर दूर तक देख आए हैं लेकिन इनके अलावा और कोई भी नज़र नहीं आया। मैंने अपने दो आदमियों को वीर भैया के साथ भेजा और ये भी कहा कि अब से उस आदमी के साथ ही रहें और उस पर नज़र रखे रहें।



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Nice one
 
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