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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.3%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 23.0%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.2%

  • Total voters
    191

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
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159
अध्याय - 60
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....

"मैं पूरी कोशिश करूंगा मालिक।" शेरा ने कहा____"मैं अभी इसी समय कुछ आदमियों को ले कर चंदनपुर के लिए निकल जाऊंगा।"
"अगर वहां के हालात काबू से बाहर समझ में आएं तो फ़ौरन किसी के द्वारा हमें सूचना भेजवा देना।" दादा ठाकुर ने कहा____"चंदनपुर का सफ़र लंबा है इस लिए तुम हरिया के अस्तबल से घोड़े ले लेना।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर शेरा ने सिर हिलाया और फिर उन्हें प्रणाम किया। दादा ठाकुर ने उसे विजयी होने का आशीर्वाद दिया और फिर दरवाज़े से बाहर निकल गए। दादा ठाकुर के जाने के बाद शेरा ने फ़ौरन ही अपने कपड़े पहने और कपड़ों की जेब में रिवॉल्वर के साथ दूसरी पोटली डालने के बाद घर से बाहर निकल गया।


अब आगे....


सुबह सुबह ही दादा ठाकुर, अभिनव और जगताप हवेली के बाहर तरफ बने उस कमरे में पहुंचे जहां पर काले नकाबपोश को रखा गया था। काले नकाबपोश की हालत बेहद ख़राब थी। उसका एक हाथ शेरा ने तोड़ दिया था जिसके चलते वो बुरी तरह सूझ गया था और दर्द से काले नकाबपोश का बुरा हाल था। रात भर दर्द से तड़पता रहा था वो।

"वैसे तो तुमने जो किया है उसके लिए तुम्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ मौत की ही सज़ा मिलनी चाहिए।" दादा ठाकुर ने अपनी भारी आवाज़ में उससे कहा____"लेकिन अगर तुम हमें उस सफ़ेदपोश व्यक्ति के बारे में सब कुछ सच सच बता देते हो तो न केवल तुम्हें माफ़ कर दिया जाएगा बल्कि तुम्हारे इस टूटे हुए हाथ का बेहतर इलाज़ भी करवा दिया जाएगा।"

"मुझे प्रलोभन देने का कोई फ़ायदा नहीं होगा दादा ठाकुर।" काले नकाबपोश ने दर्द में भी मुस्कुराते हुए कहा____"क्योंकि मुझे उस रहस्यमय आदमी के बारे में कुछ भी पता नहीं है। हां इतना ज़रूर बता सकता हूं कि कुछ महीने पहले उससे मुलाक़ात हुई थी। मेरे साथ मेरा एक साथी भी था। हम दोनों ही शहर में कई तरह के जुर्म करते थे जिसके लिए पुलिस हमें खोज रही थी। पुलिस से बचने के लिए हमने शहर छोड़ दिया और शहर के नज़दीक ही जो गांव था वहां आ गए छुपने के लिए। मैं नहीं जानता कि उस रहस्यमय आदमी को हमारे बारे में कैसे पता चला था लेकिन एक दिन अचानक ही वो हमारे सामने अपने उसी सफ़ेद लिबास और नक़ाब में आ गया और हम दोनों से अपने अधीन काम करने को कहा। हम दोनों ने कभी किसी के लिए या किसी के आदेश पर काम नहीं किया था इस लिए जब उस रहस्यमय आदमी ने हमें अपने अधीन काम करने को कहा तो हमने साफ़ इंकार कर दिया। उसके बाद उसने हमें ढेर सारा धन देने का लालच दिया और ये भी कहा कि हम दोनों कभी भी पुलिस के हाथ नहीं लगेंगे। उसकी इस बात से हमने सोचा कि सौदा बुरा नहीं है क्योंकि हर तरह से हमारा ही फ़ायदा था लेकिन किसी अजनबी के अधीन काम करने से हमें संकोच हो रहा था। इस लिए हमने भी उससे एक बचकानी सी शर्त रखी कि हम दोनों उसके अधीन तभी काम करेंगे जब वो हम दोनों में से किसी एक के साथ मुकाबला कर के हमें हरा देगा। हम दोनों ने सोचा था कि उसे हरा कर पहले उसका नक़ाब उतार कर देखेंगे कि वो कौन है और ऐसा कौन सा काम करवाना चाहता है हमसे। ख़ैर हमारी शर्त पर वो बिना एक पल की भी देरी किए तैयार हो गया। उससे मुकाबला करने के लिए मैं ही तैयार हुआ था क्योंकि मेरा दूसरा साथी उस समय थोड़ा बीमार था। हमारे बीच मुकाबला शुरू हुआ तो कुछ ही देर में मुझे समझ आ गया कि वो किसी भी मामले में मुझसे कमज़ोर नहीं है बल्कि मुझसे बीस ही है। नतीजा ये निकला कि जब मैं उससे मुकाबले में हार गया तो शर्त के अनुसार हम दोनों उसके अधीन काम करने के लिए राज़ी हो गए। उसके बाद उसने हमें बताया कि हमें कौन सा काम किस तरीके से करना है। ये भी कहा कि हमारा भेद और हमारा चेहरा कोई देख न सके इसके लिए हमें हमेशा काले नकाबपोश के रूप में ही रहना होगा। हम दोनों के मन में कई बार ये ख़्याल आया था कि उसके बारे में पता करें मगर हिम्मत नहीं हुई क्योंकि उस मुक़ाबले के बाद ही उसने हम दोनों को सख़्ती से समझा दिया था कि अगर हम लोगों ने उसका भेद जानने का सोचा तो ये हमारे लिए अच्छा नहीं होगा क्योंकि उस सूरत में हमें अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। हमने भी सोच लिया कि क्यों ऐसा काम करना जिसमें जान जाने का जोख़िम हो अतः वही करते गए जो करने के लिए वो हमें हुकुम देता था।"

"सबसे पहले उसने तुम्हें क्या काम सौंपा था?" दादा ठाकुर ने पूछा।
"हम दोनों को उसने यही काम दिया था कि वैभव सिंह नाम के लड़के को या तो पकड़ के लाओ या फिर उसे ख़त्म कर दो।" काले नकाबपोश ने कहा____"उसने हमें बता दिया था कि वैभव सिंह कौन है और कहां रहता है? उसके आदेश पर हम दोनों सबसे पहले उस लड़के को ज़िंदा पकड़ने के काम में लगे मगर जल्द ही हमें महसूस हुआ कि उस लड़के को पकड़ना आसान नहीं है क्योंकि हमें ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कि कुछ अज्ञात लोग अक्सर उसकी सुरक्षा के लिए आस पास मौजूद रहते हैं। हमने कई बार उसे रास्ते में घेरना चाहा लेकिन नाकाम रहे। हम दोनों समझ चुके थे कि उस लड़के को ज़िंदा पकड़ पाना हमारे बस का नहीं है इस लिए हमने उसको जान से ख़त्म करने का प्रयास शुरू कर दिया मगर यहां भी हमें नाकामी ही मिली क्योंकि हमारी ही तरह भेस वाला एक काला नकाबपोश उसकी सुरक्षा के लिए जाने कहां से आ गया था। हमने बहुत कोशिश की उस नकाबपोश को मारने की मगर कामयाब नहीं हुए। हर बार की हमारी इस नाकामी से वो सफ़ेदपोश आदमी हम पर बहुत गुस्सा हुआ। एक रात उसी गुस्से से उसने मेरे साथी को जान से मार दिया। मैं अकेला पड़ गया और पहली बार मुझे एहसास हुआ कि उस सफ़ेदपोश के लिए काम करने की हमने कितनी बड़ी भूल की थी। वो कितना ताकतवर था ये मैं अच्छी तरह जानता था मगर अब उसकी मर्ज़ी के बिना मैं कुछ नहीं कर सकता था। एक दिन मुझे पता चला कि मेरे समान से मेरी कुछ ऐसी चीज़ें गायब हैं जिसके चलते बड़ी आसानी से मुझे पुलिस के हवाले किया जा सकता था। मैं समझ गया कि ये सब उस सफ़ेदपोश ने ही किया होगा लेकिन उससे पूछने की हिम्मत न हुई थी मेरी। मैं अब पूरी तरह से उसके रहमो करम पर था। मुझे हर हाल में अब वही करना था जो वो करने को कहता। अभी कुछ दिन पहले उसने आदेश दिया था कि मुझे एक औरत को ख़त्म करना है और अगर मैं ऐसा करने में नाकाम रहा तो वो मुझे भी मेरे साथी की तरह जान से मार देगा।"

"मुरारी की हत्या में किसका हाथ था?" दादा ठाकुर ने उससे घूरते हुए पूछा_____"क्या उसकी हत्या करने का आदेश उसी सफ़ेदपोश ने तुम्हें दिया था?"
"नहीं।" काले नकाबपोश ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा_____"मैं किसी मुरारी को नहीं जानता और ना ही उस सफ़ेदपोश आदमी ने मुझे ऐसे किसी आदमी को हत्या करने का आदेश दिया था। हम दोनों का काम सिर्फ़ वैभव सिंह को पकड़ना या फिर उसे ख़त्म करना था जोकि हम आज तक नहीं कर पाए।"

"सफ़ेदपोश से तुम्हारी मुलाक़ात कैसे होती है?" सहसा अभिनव ने पूछा____"क्या तुम दोनों का कोई निश्चित स्थान है मिलने का या फिर कोई ऐसा तरीका जिससे तुम आसानी से उससे मिल सकते हो?"

"शुरू में एक दो बार मैंने उसका पीछा किया था।" काले नकाबपोश ने कहा____"किंतु पता नहीं कर पाया कि वो कहां से आता है और फिर कैसे गायब हो जाता है? हमारे द्वारा अपना पीछा किए जाने का उसे पता चल गया था इस लिए जब वो अगली बार हमसे मिला तो उसने गुस्से में हम दोनों से यही कहा था कि अब अगर हमने दुबारा उसका पीछा करने की कोशिश की तो इस बार हम जान से हाथ धो बैठेंगे। हमने भी सोचा क्यों ऐसा काम करना जिसमें अपनी ही जान जाने का ख़तरा हो। ख़ैर दिन भर तो हम सादे कपड़ों में दूसरे गांवों में ही घूमते रहते थे या फिर अपने एक कमरे में सोते रहते थे और फिर शाम ढलते ही काले नकाबपोश बन कर निकल पड़ते थे। सफ़ेदपोश से हमारी मुलाक़ात ज़्यादातर इस गांव से बाहर पूर्व में एक बरगद के पेड़ के पास होती थी या फिर आपके आमों वाले बाग़ में। मिलने का दिन और समय वही निर्धारित कर देता था। अगर हम अपनी मर्ज़ी से उससे मिलना चाहें तो ये संभव ही नहीं था।"

"तांत्रिक की हत्या किसने की थी?" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए पूछा____"क्या उसकी हत्या करने का आदेश उस सफ़ेदपोश ने तुम्हें दिया था?"
"मैं किसी तांत्रिक को नहीं जानता।" काले नकाबपोश ने कहा____"और ना ही उस सफ़ेदपोश ने मुझे ऐसा कोई आदेश दिया था। हम दोनों को दिन में कोई भी ऐसा वैसा काम करने की मनाही थी जिसके चलते हम लोगों की नज़र में आ जाएं या फिर हालात बिगड़ जाएं।"

"क्या तुम्हें पता है कि तुम दोनों के अलावा।" जगताप ने शख़्त भाव से पूछा____"उस सफ़ेदपोश से और कौन कौन मिलता है या ये कहें कि वो सफ़ेदपोश और किस किस को तुम्हारी तरह अपना मोहरा बना रखा है?"

"सिर्फ़ एक के बारे में जानता हूं मैं।" काले नकाबपोश ने कहा____"और वो एक पुलिस वाला है। कल शाम को ही सफ़ेदपोश के साथ मैं उसके घर पर था।"
"सफ़ेदपोश ने दारोगा को अपने जाल में कैसे फंसाया?" जगताप ने हैरानी और गुस्से से पूछा____"क्या दरोगा भी उससे मिला हुआ है?"

"सफ़ेदपोश के आदेश पर मैंने एक हफ्ता पहले उस पुलिस वाले की मां का अपहरण किया था।" काले नकाबपोश ने कहा____"दरोगा को जब उस सफ़ेदपोश आदमी के द्वारा पता चला कि उसकी मां सफ़ेदपोश के कब्जे में है तो उसने मजबूरी में वही करना स्वीकार किया जो सफ़ेदपोश ने उससे करने को कहा।"

"दरोगा को क्या करने के लिए कहा था उस सफ़ेदपोश आदमी ने?" दादा ठाकुर ने पूछा।
"क्या आपको नहीं पता?" काले नकाबपोश ने हल्की मुस्कान के साथ उल्टा सवाल किया तो अभिनव और जगताप दोनों ही हैरानी से दादा ठाकुर की तरफ देखने लगे जबकि काले नकाबपोश ने आगे कहा____"आप तो मिले थे न दरोगा से और उसने आपको सब कुछ बताया भी था न?"

"ये क्या कह रहा है भैया?" जगताप ने हैरानी से दादा ठाकुर की तरफ देखते हुए कहा____"क्या आपको पता है ये सब?"
"हां लेकिन हमें भी कल ही पता चला है।" दादा ठाकुर ने कहा_____"ख़ैर दरोगा ने जो कुछ हमें बताया था वो सब तो कदाचित उस सफ़ेदपोश के द्वारा रटाया हुआ ही बताया था जबकि हम ये जानना चाहते हैं कि असल में वो सफ़ेदपोश दरोगा से क्या करवाया था और हमसे वो सब कहने को क्यों कहा जो दरोगा ने हमें बताया था?"

"इस बारे में मुझे कुछ भी पता नहीं है।" काले नकाबपोश ने कहा____"उस सफ़ेदपोश आदमी से हमें कुछ भी पूछने की इजाज़त नहीं थी और ना ही वो हमें कभी कुछ बताना ज़रूरी समझता था।"

"अगर तुम सच में जीवित रहना चाहते हो।" दादा ठाकुर ने सर्द लहजे में कहा____"तो अब वही करो जो हम कहें वरना जिस तरह से तुमने हमारे बेटे को जान से मारने की कोशिश की है उसके लिए तुम्हें फ़ौरन ही मौत की सज़ा दे दी जाएगी।"

"मौत तो अब दोनों तरफ से मिलनी है मुझे।" काले नकाबपोश ने फीकी मुस्कान में कहा____"सफ़ेदपोश को जब पता चलेगा कि मैं आपके हाथ लग चुका हूं तो वो मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेगा और इधर यदि मैं आपके आदेश पर कोई काम नहीं करुंगा तो आप भी मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे।"

"अगर तुम हमारे कहने पर उस सफ़ेदपोश को पकड़वाने में सफल हुए।" दादा ठाकुर ने कहा____"तो यकीन मानो तुम्हें एक नई ज़िंदगी दान में मिल जाएगी। रही बात उस सफ़ेदपोश की तो जब वो हमारी पकड़ में आ जाएगा तब वो तुम्हारे साथ कुछ भी बुरा नहीं कर पाएगा।"

"आपको उस सफ़ेदपोश की ताक़त का अंदाज़ा नहीं है अभी।" काले नकाबपोश ने कहा____"मेरे जैसे छटे हुए बदमाश को उसने कुछ ही देर में पस्त कर दिया था। वो इतना कमज़ोर नहीं है कि इतनी आसानी से आपकी पकड़ में आ जाएगा।"

"वो हम देख लेंगे।" दादा ठाकुर ने कहा____"तुम्हें ये सब सोचने की ज़रूरत नहीं है। तुम सिर्फ़ ये बताओ कि क्या तुम उसे पकड़वाने में हमारी मदद करोगे?"
"टूटे हुए हाथ से भला मैं क्या कर सकूंगा?" काले नकाबपोश ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"दर्द से मेरा बुरा हाल है। ऐसे हाल में तो कुछ नहीं कर सकता मैं।"

"हां हम समझ सकते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस लिए हम तुम्हारे दर्द को दूर करने में लिए तुम्हें दवा दे देंगे लेकिन तुम्हारे टूटे हुए हाथ का इलाज़ तभी करवाएंगे जब तुम उस सफ़ेदपोश को पकड़वाने में सफल होगे।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर काले नकाबपोश ने हां में सिर हिलाया। उसके बाद दादा ठाकुर अभिनव और जगताप तीनों ही कमरे से बाहर चले गए। दादा ठाकुर ने जगताप को काले नकाबपोश के लिए दर्द की दवा लाने का आदेश दिया जिस पर जगताप जो हुकुम भैया कह कर एक तरफ को बढ़ता चला गया। दादा ठाकुर अपने बड़े बेटे अभिनव के साथ हवेली के अंदर बैठक में आ गए। बैठक में दादा ठाकुर एकदम से किसी सोच में डूबे हुए नज़र आने लगे थे।


✮✮✮✮

चंदनपुर में भी सुबह हो चुकी थी।
मैं वीरेंद्र और वीर सिंह के साथ दिशा मैदान के लिए गया हुआ था। मेरे साथ आए आदमी भी सुबह दिशा मैदान के लिए गए हुए थे। मैं वीरेंद्र और वीर के साथ चलते हुए नदी के पास आ गया था। मुझे याद आया कि पिछली शाम इसी नदी के पास मैंने जमुना के साथ संभोग किया था। इस बात के याद आते ही मुझे अजीब सा लगने लगा। आम तौर पर ऐसी बातों से मेरे अंदर खुशी के एहसास जागृत हो जाते थे किंतु ये पहली दफा था जब मुझे अपने इस कार्य से अब किसी खुशी का एहसास नहीं बल्कि ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मैंने कोई गुनाह कर दिया है। वीरेंद्र और वीर दुनिया जहान की बातें कर रहे थे लेकिन मैं एकदम से ख़ामोश हो गया था। ख़ैर नदी के पास पहुंचते ही हम तीनों अलग अलग दिशा में बढ़ चले।

नदी के किनारे कुछ दूरी पर पेड़ पौधे और झाड़ियां थीं। मैं शौच क्रिया के लिए वहीं बैठ गया। मन एकदम से विचलित सा हो गया था। बार बार अनुराधा का ख़्याल आ रहा था। किसी तरह मैंने अपने ज़हन से उसके ख़्याल निकाले और फिर शौच के बाद अपनी जगह से उठ कर चल दिया। मैंने आस पास निगाह घुमाई तो वीरेंद्र और वीर कहीं नज़र ना आए। मैं समझ गया कि वो दोनों अभी भी बैठे हग रहे होंगे। आसमान में काले बादल दिख रहे थे। ऐसा लगता था जैसे कुछ ही समय में बरसात हो सकती थी। मैं चलते हुए अनायास ही उस जगह पर आ गया जहां पर पिछली शाम मैंने जमुना के साथ संभोग किया था। एक बार फिर से मेरा मन विचलित सा होने लगा।

अभी मैं विचलित हो कर कुछ सोचने ही लगा था कि सहसा मुझे अपने आस पास कुछ अजीब सा महसूस हुआ। यूं तो ठंडी ठंडी हवा चल रही थी जिससे पेड़ों के पत्ते सर्र सर्र की आवाज़ कर रहे थे किंतु पत्तों के सरसराने की आवाज़ के बावजूद कुछ अजीब सा महसूस होने लगा था मुझे। अभी मैं इस एहसास के साथ इधर उधर देखने ही लगा था कि सहसा एक तरफ से कोई बिजली की तरह आया और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता कोई चीज़ बड़ी तेज़ी से मेरे पेट की तरफ लपकी। मैं बुरी तरह घबरा कर चीख ही पड़ा था कि तभी वातावरण में धांय की तेज़ आवाज़ गूंजी और साथ ही एक इंसानी चीख भी। सब कुछ बड़ी तेज़ी से और हैरतअंगेज तरीके से हुआ था। कुछ पलों के लिए तो मैं सकते में ही आ गया था किंतु जैसे ही मुझे होश आया तो मेरी नज़र अपने से थोड़ी ही दूर पड़े एक आदमी पर पड़ी। उसकी छाती के थोड़ा नीचे गोली लगी थी जिसके चलते बड़ी तेज़ी से उस जगह से खून बहते हुए नीचे ज़मीन पर गिरता जा रहा था। सिर पर पगड़ी बांधे क़रीब पैंतीस से चालीस के बीच की उमर का आदमी था वो जो अब ज़िंदा नहीं लग रहा था।

मैं बदहवास सा आंखें फाड़े उस आदमी को देखे ही जा रहा था कि अचानक मैं कुछ आवाज़ों को सुन कर चौंक पड़ा। मेरे पीछे तरफ से वीरेंद्र और वीर चिल्लाते हुए मेरी तरफ भागे चले आ रहे थे। दूसरी तरफ कई सारी लट्ठ की आपस में टकराने की आवाज़ें गूंजने लगीं थी। मैंने फ़ौरन ही आवाज़ की दिशा में देखा तो क़रीब सात आठ आदमी मुझसे क़रीब पंद्रह बीस क़दम की दूरी पर एक दूसरे पर लाठियां भांज रहे थे। उन लोगों को इस तरह एक दूसरे से लड़ते देख मुझे समझ ना आया कि अचानक से ये क्या होने लगा है?

"वैभव महाराज आप ठीक तो हैं ना?" वीरेंद्र और वीर मेरे पास आते ही चिंतित भाव से पूछ बैठे____"गोली चलने की आवाज़ सुन कर हमारे तो होश ही उड़ गए थे और...और ये आदमी कौन है? लगता है गोली इसी को लगी है तभी बेजान सा पड़ा हुआ है।"

"ये सब कैसे हुआ महाराज?" वीर ने हैरानी और चिंता में पूछा____"और वो कौन लोग हैं जो इस तरह आपस में लड़ रहे हैं?"
"पहले मुझे भी कुछ समझ में नहीं आया था वीर भैया।" मैंने गंभीर भाव से कहा____"किंतु अब सब समझ गया हूं। ये आदमी जो मरा हुआ पड़ा है ये मुझे चाकू के द्वारा जान से मारने वाला था। अगर सही वक्त पर इसे गोली नहीं लगती तो यकीनन इसकी जगह मेरी लाश ज़मीन पर पड़ी होती।"

"लेकिन क्यों महाराज?" वीरेंद्र ने भारी उलझन और हैरानी के साथ कहा____"आख़िर ये आदमी आपको क्यों मारना चाहता था और ये लोग कौन हैं जो इस तरह आपस में लड़ रहे हैं? आख़िर क्या चक्कर है ये?"

"उनमें से कुछ लोग शायद इस मरे हुए आदमी के साथी हैं।" मैंने संभावना ब्यक्त करते हुए कहा____"और इसके साथियों से जो लोग लड़ रहे हैं वो मेरी सुरक्षा करने वाले लोग हैं। ख़ैर मैं ये चाहता हूं कि इस बारे में आप घर में किसी को कुछ भी न बताएं। मैं नहीं चाहता कि खुशी के माहौल में एकदम से सनसनी फ़ैल जाए।"

"ये कैसी बातें कर रहे हैं महाराज?" वीरेंद्र ने चकित भाव से कहा____"इतनी बड़ी बात हो गई है और आप चाहते हैं कि हम इस बारे में घर में किसी को कुछ न बताएं?"

"मेरी आपसे विनती है वीरेंद्र भैया।" मैंने गंभीर भाव से ही कहा____"इस बारे में आप किसी को कुछ नहीं बताएंगे, ख़ास कर भाभी को तो बिलकुल भी नहीं। बाकी आप फ़िक्र मत कीजिए। पिता जी ने मेरी सुरक्षा के लिए आदमी भेज दिए हैं।"

मैंने किसी तरह वीरेंद्र और वीर को समझा बुझा कर इस बात के लिए मना लिया कि वो इस बारे में किसी को कुछ न बताएं। उधर देखते ही देखते कुछ ही देर में कुछ लोग ज़मीन पर लहू लुहान पड़े नज़र आने लगे। मैंने देखा उन लोगों से वो आदमी भी भिड़े हुए थे जो मेरे साथ गांव से आए थे। कुछ ही देर में लट्ठबाजी बंद हो गई। वातावरण में अब सिर्फ़ उन लोगों की दर्द से कराहने की आवाज़ें गूंज रहीं थी जो शायद मेरे दुश्मन थे और मुझे जान से मारने के इरादे से आए थे।

"कौन हो तुम लोग?" मैं फ़ौरन ही एक आदमी के पास पहुंच कर तथा उसका गिरेबान पकड़ कर गुर्राते हुए पूछा____"और मुझ पर इस तरह जानलेवा हमला करने के लिए किसने भेजा था?"

मेरे पूछने पर वो आदमी कुछ न बोला, बस दर्द से कराहता ही रहा। थोड़ी थोड़ी दूरी पर करीब पांच आदमी अधमरी हालत में पड़े थे। मैंने दो तीन लोगों से अपना वही सवाल दोहराया लेकिन किसी के मुख से कोई जवाब न निकला। मैं ये तो समझ चुका था कि मुझ पर जानलेवा हमला करने वाले ये लोग मेरे दुश्मन के ही आदमी थे किंतु अब मेरे लिए ये जानना ज़रूरी था कि असल में मेरा दुश्मन है कौन? मेरे पूछने पर जब किसी ने भी कोई जवाब नहीं दिया तो मेरे अंदर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। मैं बिजली की तेज़ी से उस आदमी के पास आया जिसकी जान गोली लगने से गई थी। उसके पास ही उसका चाकू पड़ा हुआ था। मैंने उसके चाकू को उठा लिया और फिर से उन लोगों के पास पहुंच गया।

"तुम लोग अगर ये सोचते हो कि मेरे पूछने पर सच नहीं बताओगे।" मैंने सर्द लहजे में सबकी तरफ बारी बारी से देखते हुए कहा____"तो जान लो कि अब तुम लोगों की हालत बहुत भयानक होने वाली है। ठाकुर वैभव सिंह को जान से मारने की कोशिश करने वाला इस धरती पर ज़िंदा रहने का हक़ खो देता है। अब तुम लोग गा गा कर बताओगे कि तुम लोगों को किसने यहां भेजा था।"

मैं एक आदमी की तरफ़ बढ़ा। मुझे अपनी तरफ बढ़ता देख उस ब्यक्ति ने थरथराते हुए एकदम से अपने जबड़े भींच लिए। ऐसा लगा जैसे वो खुद को तैयार कर चुका था कि वो किसी भी हालत में मुझे सच नहीं बताएगा। इस बात का एहसास होते ही मेरे अंदर का गुस्सा और भी बढ़ गया। मैं उसके क़रीब बैठा और चाकू को उसके कान की जड़ में रखा। मेरी मंशा का आभास होते ही उस आदमी के चेहरे पर दहशत के भाव उभर आए और इससे पहले कि वो कुछ कह पाता या कुछ कर पाता मैंने एक झटके में उसके कान को उसकी कनपटी से अलग कर दिया। फिज़ा में उसकी हृदयविदारक चीखें गूंजने लगीं। बुरी तरह तड़पने लगा था वो।

"ये तो अभी शुरुआत है।" मैंने उसके कटे हुए कान को उसकी आंखों के सामने लहराते हुए कहा____"तुम सबके जिस्मों का एक एक अंग एक एक कर के ऐसे ही अलग करुंगा मैं। तुम सब जब तड़पोगे तो एक अलग ही तरह का आनंद आएगा।"

"तुम कुछ भी कर लो।" उस आदमी ने दर्द को सहते हुए कहा____"लेकिन हम में से कोई भी तुम्हें कुछ नहीं बताएगा।"
"ठीक है फिर।" मैं सहसा दरिंदगी भरे भाव से मुस्कुराया____"हम भी देखते हैं कि तुम लोगों में कितना दम है।"

"छोटे ठाकुर।" सहसा मेरे पीछे से आवाज़ आई तो मैं पलटा। मेरी नज़र एक हट्टे कट्टे आदमी पर पड़ी। उसने मेरी तरफ देखते हुए आगे कहा____"इन लोगों को आप मुझे सम्हालने दीजिए। यहां पर ये सब करना ठीक नहीं है। मालिक ने मुझे हुकुम दिया है कि इन लोगों को मैं जीवित पकड़ कर लाऊं। अगर आपने इन्हें इस तरह से तड़पा तड़पा कर मार दिया तो मैं मालिक को क्या जवाब दूंगा?"

"ठीक है।" मैंने कहा____"तुम इन सबको ले जाओ लेकिन सिर्फ़ ये मेरे पास ही रहेगा। इसने मुझे चुनौती दी है कि ये मेरे किसी भी प्रयास में नहीं बताएगा कि इसे किसने भेजा है।"

शेरा ने मेरी बात सुन कर हां में सिर हिलाया और फिर अपने आदमियों को इशारा किया। कुछ ही देर में शेरा ने सब को बेहोश कर दिया और फिर उन सबको कंधों पर लाद कर एक तरफ को बढ़ते चले गए। उन लोगों के जाने के बाद मैं एक बार फिर से उस आदमी के पास बैठा। वीरेंद्र और वीर मेरे पास ही आ गए थे। वो दोनों कुछ सहमे हुए से थे। शायद ऐसा मंज़र दोनों ने कभी नहीं देखा था।

"वैभव महाराज ये सब क्या हो रहा है?" वीरेंद्र ने घबराए हुए अंदाज से कहा____"और आप इस आदमी के साथ अब क्या करने वाले हैं?"
"कुछ ऐसा जिसे आप दोनों देख नहीं पाएंगे।" मैंने जहरीली मुस्कान के साथ कहा____"इस लिए बेहतर होगा कि आप दोनों यहां से चले जाएं।"

"नहीं, हरगिज़ नहीं।" वीर ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"हम आपको अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे। आपसे बस इतनी ही विनती है कि जो भी करना है सोच समझ कर कीजिए क्योंकि अगर गांव का कोई आदमी इस तरफ आ गया और उसने ये सब देख लिया तो बात फैल जाएगी।"

मैंने वीर की बात को अनसुना किया और उस आदमी की तरफ देखा जो अभी भी दर्द से कराह रहा था। मेरे एक हाथ में अभी भी उसका कटा हुआ कान था और दूसरे हाथ में चाकू। मैंने उसके कटे हुए कान को ज़मीन पर फेंका और चाकू को उसके दूसरे कान की तरफ बढ़ाया। मेरे ऐसा करते ही वो एक बार फिर से दहशतजदा हो गया। घबराहट और खौफ के मारे उसका बुरा हाल हो गया था।

"शुरू में जब तुझे देखा था तो लगा था कि कहीं तो तुझे देखा है।" मैंने चाकू को उसके दूसरे कान की जड़ में रखते हुए कहा____"अब याद आया कि कहां देखा था और ये भी याद आ गया कि तू किस गांव का है। तू हमारे पास के गांव कुंदनपुर का है न? तुझे मेरे बारे में तो सब पता ही होगा कि मैं कौन हूं, क्या हूं और क्या क्या कर सकता हूं, है ना?"

मेरी बातें सुन कर वो आदमी पहले से कहीं ज़्यादा भयभीत नज़र आने लगा। चेहरा इस तरह पसीने में नहाया हुआ था जैसे पानी से धोया हो। उसके चेहरे के भावों को समझते हुए मैंने कहा____"तूने जो कुछ किया है उसके लिए अब तेरे पूरे खानदान को सज़ा भुगतनी होगी। मुझ पर जानलेवा हमला करने का जो दुस्साहस तूने किया है उसके लिए अब तेरे बीवी बच्चों को मेरे क़हर का शिकार बनना होगा।"

"नहीं नहीं।" मेरी बात सुनते ही वो आदमी बुरी तरह घबरा कर बोल पड़ा_____"भगवान के लिए मेरे घर वालों के साथ कुछ मत कीजिएगा। मैंने जो कुछ किया है वो मजबूरी में किया है, कृपया मुझे माफ़ कर दीजिए।"

"ज़रूर माफ़ कर सकता हूं तुझे।" मैंने सर्द लहजे में कहा____"मगर तब जब तू ये बताएगा कि तुझे किसने मजबूर किया है और किसने मुझ पर इस तरह से हमला करने का हुकुम दिया है?"

"अगर मैंने आपको इस बारे में कुछ भी बताया।" उस आदमी ने इस बार दुखी भाव से कहा____"तो वो लोग मेरे बीवी बच्चों को जान से मार देंगे।"

"बुरे काम का बुरा फल ही मिलता है।" मैंने कहा____"तू अब ऐसी हालत में है कि तुझे दोनों तरफ से बुरा फल ही मिलना है लेकिन ये भी संभव हो सकता है कि अगर तू मुझे सच बता देगा तो शायद उतना बुरा न हो जितने की तुझे उम्मीद है। चल बता, किसने भेजा था तुम लोगों को यहां?"

"कल रात आपके गांव का एक साहूकार आया था मेरे घर।" उस आदमी ने दर्द को सहते हुए कहा____"उस साहूकार का नाम गौरी शंकर है। उसी ने मुझसे कहा कि मुझे कुछ आदमियों के साथ सुबह सूरज निकलने से पहले ही चंदनपुर जाना है और वहां पर आपको ख़त्म करना है। मैंने जब ऐसा करने से इंकार किया तो उसने कहा कि अगर मैंने ऐसा कर दिया तो वो मेरा सारा कर्ज़ माफ़ कर देगा और अगर मैंने ऐसा नहीं किया अथवा इस बारे में किसी को भी कुछ बताया तो वो मेरे बीवी बच्चों को जान से मार देगा। मैं क्या करता छोटे ठाकुर? अपने बीवी बच्चों की जान बचाने के चक्कर में मैंने मजबूर हो कर ये क़दम उठाना ही बेहतर समझा।"

"वो साहूकार मणि शंकर का छोटा भाई गौरी शंकर ही था न?" मैंने संदिग्ध भाव से पूछा____"क्या तूने अच्छे से देखा है उसे?"
"मैं सच कह रहा हूं छोटे ठाकुर।" उस आदमी ने कहा____"वो गौरी शंकर ही था। भला उस इंसान को मैं पहचानने में कैसे ग़लती कर सकता हूं जिससे मैंने कर्ज़ लिया था और जिसके घर के आवारा लड़के हमारे गांव में आ कर गांव की बहू बेटियों को ख़राब करते हैं?"

"अगर तू ये सब पहले ही बता देता तो तुझे अपने इस कान से हाथ नहीं धोना पड़ता।" मैंने कहा____"ख़ैर अब मैं तुझे जान से नहीं मारूंगा। तूने ये सब बता कर अच्छा काम किया है। तेरे बीवी बच्चों की सुरक्षा की पूरी कोशिश की जाएगी लेकिन तू इस हालत में वापस गांव नहीं जा सकता। तेरा यहीं पर इलाज़ किया जाएगा और तू कुछ समय तक यहीं रहेगा। उन लोगों को यही लगना चाहिए कि तू मेरे द्वारा मारा गया होगा।"

मैंने वीरेंद्र और वीर को उस आदमी के इलाज़ की जिम्मेदारी सौंपी। वो दोनों ये सब सुन कर बुरी तरह हैरान तो थे लेकिन ये देख कर खुश भी हो गए थे कि मैंने उस आदमी के साथ आगे कुछ भी बुरा नहीं किया। ख़ैर मेरे कहने पर वीर ने अभी उस आदमी को सहारा दे कर उठाया ही था कि तभी मेरे साथ आए मेरे आदमी भी आ गए। उन्होंने बताया कि वो दूर दूर तक देख आए हैं लेकिन इनके अलावा और कोई भी नज़र नहीं आया। मैंने अपने दो आदमियों को वीर भैया के साथ भेजा और ये भी कहा कि अब से उस आदमी के साथ ही रहें और उस पर नज़र रखे रहें।



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Finally sab mohre khul ke saamne aa rahe he ,abtak mohre he shamil the is khel me ,par ab hathi ghode oont tak dikh rahe he, par Wajir ka pata nahi hai aur raaja ki baat na he kare to behtar he :hide:
 
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ASR

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TheBlackBlood मित्र ये क्या आप पुनः कहानी शुरू कर दिये पता ही नहीं चला... कई महीनों के बाद इस वैभव रूपी रहस्य रोमांचक सफर के हम भी एक साथी रहे हैं, हम सब को भी ये यात्रा पर आपके साथ चलने का पूरा हक है 😍.. 🤢

ख़ैर अब तो इन्तेज़ार खत्म हो गया है.. सारे अध्याय बहुत ही रोचक रहे.. वैभव की सोच अनुरूप साहूकारों की नीयत साफ झलक रही है वो एक सोची समझी साजिश के तहत ही ठाकुरों से दोस्ती किए हैं..

रुपा ने अपनी दोस्ती प्यार को पूरा निभाया है इस से अनजाने मे उस ने दादा ठाकुर के मन मे जगह बना ली है..

वैभव का पुराना खिलंदड़ापन अच्छा लगा परंतु अनुराधा के ख्याल से उसमे सुधारने की कोशिश करने की ईच्छा को जगा दिया है 😍..
अखिरकार काला नकाबपोश पकडा गया.. अभी भी सफेदपोश का रहस्य छुपा हुआ है वो ठाकुरों के बाग से कैसे गायब हो जाता है, ये एक अप्रत्याशित सा रहस्य है..
परस्थितियों के अनुसार तो ये साहूकारों से कोई अलग ही लगता है 😍..
वैभव को बचा लिया व शेरा ने कई कामों को अंजाम दिया है.. अंततः साहूकारों की मंशा की जानकारी अब खुल कर सामने आयी है.. ये सब क्यों है ये अब पता चल जाएगा..
देखते हैं अब ठाकुर, वैभव क्या करते हैं... 😍

एक बार पुनः कहानी को शुरू करने के लिए धन्यवाद 🎶 💞 🤗
वैसे एक बात और है जब से HalfbludPrince 90 दिन की छुट्टी पर गए हैं सोच रहे थे कि ईन दिनों को कैसे गुजरेंगे परंतु आप ने अपनी कहानी से इसे एक हद तुक दूर कर दिया है...
 
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Sanju@

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अध्याय - 56
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अब तक....


सुषमा मेरी कोई बात सुने बिना ही चली गई। शायद वो समझ गई थी कि जितना वो मुझसे इस बारे में बातें करेगी उतना वो खुद ही फंसती जाएगी। या फिर ये भी संभव था कि दिशा मैदान के लिए जाना उसके लिए ज़रूरी हो गया था। ख़ैर, मैं उसकी हालत को सोच कर मन ही मन मुस्कुराया और फिर बाहर की तरफ चल पड़ा। अभी दरवाज़े पर ही पहुंचा था कि सामने से मुझे सुषमा की ननद कंचन इधर ही आती हुई दिखी। उसे आता देख मेरे होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई और मैं पलट कर इस बार दरवाज़े के बगल से दीवार की ओट में छिप गया।

अब आगे....



मैं दीवार के ओट में छुपा देख रहा था कि कंचन तेज़ कदमों से चली आ रही थी। शाम का अंधेरा घिरने लगा था इस लिए उसका क़यामत ढाता हुस्न ज़्यादा साफ़ नहीं दिख रहा था। उसे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि उसके घर में इस वक्त मेरे अलावा कोई नहीं है। ख़ैर जल्दी ही वो अंदर दाखिल हुई। बिना इधर उधर देखे वो सीधा अंदर ही बढ़ती चली गई। कुछ ही पलों में उसकी आवाज़ मुझे सुनाई दी। वो सुषमा को भौजी कह कर पुकार रही थी। दो तीन बार पुकारने के बाद उसका पुकारना बंद हो गया। मेरे मन में ये जानने की उत्सुकता बढ़ गई कि अंदर वो क्या करने लगी होगी अकेले घर में?

मैं दबे पांव अंदर की तरफ बढ़ चला। बाहर बैठक में और अंदर आंगन में लालटेन जल रही थी, बाकी बाहर बरोठ में अंधेरा था। अंदर वाले बरोठ में जब मैं पहुंचा तो आंगन में जल रही लालटेन का हल्का प्रकाश महसूस हुआ। मैंने दीवार की ओट से छुप कर अंदर आंगन की तरफ देखा, कंचन कहीं नज़र ना आई। मेरे दिल की धड़कनें थोड़ा तेज़ हो गईं थी लेकिन फिर भी मैं दबे पांव आगे बढ़ा और जल्दी ही आंगन वाली दीवार के पास आ गया। मैंने आंगन के पूरे हिस्से में निगाह घुमाई और अगले ही पल मेरी नज़र आंगन के एक कोने में ठहर गई।

अपनी भाभी सुषमा की तरह कंचन भी अपने कपड़े उतारे पूरी नंगी खड़ी दूसरे कपड़े पहनने की तैयारी कर रही थी। लालटेन की रोशनी में उसका जिस्म ऊपर से नीचे तक एकदम साफ़ नज़र आ रहा था। उसे इस हालत में देख कर मेरे अंदर ज़बरदस्त हलचल मच गई। पहले सुषमा और अब उसकी ननद कंचन। मैं समझ गया कि वो भी दिशा मैदान जाने के लिए कपड़े बदल रही है। ये औरतों का रोज सुबह शाम का नियम था। दिशा मैदान जाने के लिए दूसरे कपड़े पहनते थे सब।

कंचन के सीने पर मध्यम आकार के उभार एकदम ठोस और तने हुए दिख रहे थे। उन उभारों के बीच भूरे रंग के चूचक बहुत ही सुंदर नज़र आ रहे थे। मेरा मन किया कि अभी जाऊं और उन चूचकों को मुंह में भर कर चूसना शुरू कर दूं लेकिन फिर किसी तरह मैंने खुद को रोका। ऐसा करना यकीनन ख़तरनाक हो सकता था, क्योंकि ये उसके साथ ज़बरदस्ती कहलाता। कंचन का पेट तक का हिस्सा मुझे साफ़ दिख रहा था किंतु उसके नीचे का हिस्सा उसके उस दूसरे कपड़े की वजह से छिपा हुआ था जिसे वो पहनने वाली थी। उसे इस हालत में देख कर मेरे अंदर का खून उबाल मारने लगा और मेरी टांगों के बीच कच्छे में छुपा मेरा लंड आधे से ज़्यादा सिर उठा चुका था। दिल की धड़कनें धाड़ धाड़ बजती महसूस हो रहीं थी।

मैं जानता था कि कंचन को फंसाने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलने वाला था लेकिन मैं ये भी जानता था कि अगर मैंने कुछ भी उल्टी सीधी हरकत की तो भारी गड़बड़ हो जाएगी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं? उधर कंचन अपने दूसरे कुर्ते को सीधा करने में लगी हुई थी। जल्द ही वो कपड़े पहन कर दिशा मैदान के लिए निकल जाने वाली थी। मेरा ज़हन बड़ी तेज़ी से कोई उपाय सोचने में लगा हुआ था लेकिन हड़बड़ी में कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। अचानक मैंने एक फ़ैसला किया, मैंने सोच लिया कि अब जो होगा देखा जाएगा। मैं ऐसा सुनहरा मौका गंवाना नहीं चाहता था।

आंखें बंद कर के मैंने दो तीन गहरी गहरी सांसें ली और पलट कर चार पांच क़दम पीछे आया। उसके बाद सामान्य अंदाज़ में भाभी भाभी पुकारते हुए मैं एकदम से आंगन में आ गया। उधर मेरे द्वारा भाभी भाभी पुकारने पर कंचन बुरी तरह हड़बड़ा गई और साथ ही घबरा भी गई। वो मादरजाद नंगी खड़ी थी। हम दोनों की नज़रें जैसे ही एक दूसरे से मिलीं तो मानो वक्त ठहर गया। मैंने तो ख़ैर बुरी तरह चकित हो जाने का नाटक किया लेकिन कंचन भौचक्की सी खड़ी रह गई। अचानक उसे अपनी हालत का एहसास हुआ। उसने बुरी तरह हड़बड़ा कर उसी कुर्ते को अपने सीने पर छुपा लिया जिसे वो सीधा कर के पहनने वाली थी।

"ह....हाय राम।" फिर वो बुरी तरह से शरमाते हुए बड़ी मुश्किल से बोली_____"आप यहां क्या कर रहे हैं जीजा जी? जाइए यहां से।"
"म...मैं तो यहां भाभी से मिलने आया था।" मैंने बुरी तरह हकलाने का नाटक किया____"मुझे क्या पता था कि यहां ग़ज़ब का सौंदर्य दर्शन हो जाएगा।"

"हे भगवान! कितने ख़राब हैं आप?" कंचन झल्लाहट में दबी आवाज़ से मानों चीखी____"जाइए आप यहां से। आपको शर्म नहीं आती किसी लड़की को इस तरह देखते हुए?"

"लो कर लो बात।" मैंने पूरी ढिठाई से कहा____"मैं थोड़ी ना नंगा खड़ा हूं जो मुझे शर्म आएगी? शर्म तो आपको आनी चाहिए सरकार जो मुझ जैसे भोले भाले लड़के के सामने अपना ये ख़ूबसूरत बदन दिखा रही हैं।"

"भगवान के लिए चले जाइए यहां से।" कंचन ने इस बार मिन्नतें की____"मुझे आपके सामने इस हालत में बहुत शर्म आ रही है।"
"ठीक है आप कहती हैं तो चला जाता हूं।" मैंने उसको ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा____"वैसे अब मुझसे कुछ छुपाने लायक तो रहा नहीं।"

"हे भगवान! क्या आपने सब देख लिया?" कंचन ने इस तरह कहा जैसे उसके प्राण ही निकल गए हों।
"मैं क्या करता भला?" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"आप सब कुछ खोले खड़ी थीं तो नज़र पड़ ही गई। अगर मुझे पहले से पता होता तो यहां आंगन में आता ही नहीं बल्कि छुप कर आपके ख़ूबसूरत बदन का जी भर के दीदार करता।"

"हाय राम!" कंचन आश्चर्य से आंखें फाड़ कर बोली____"कितने बेशर्म हैं आप? जा कर दीदी से शिकायत करूंगी आपकी।"
"ज़रूर कीजिएगा सरकार।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा_____"इतना ख़ूबसूरत नज़ारा देखने के बाद तो अब मैं सूली पर भी चढ़ जाऊंगा।"

कंचन का चेहरा शर्म से पानी पानी हुआ जा रहा था। वो कुर्ते को अपने सीने पर ऐसे कस के चिपकाए हुए थी मानो उसे डर हो कि कहीं वो उसके चिकने बदन से फिसल न जाए। अपनी समझ में उसने खुद को उस कुर्ते से पूरा छुपा लिया था जबकि सच तो ये था कि कुर्ते से अपने उभारों को छुपाने के चक्कर में उसकी नाभि से नीचे तक का पूरा हिस्सा बेपर्दा हो गया था। वो क्योंकि मेरी तरफ ही मुड़ कर खड़ी थी इस लिए लालटेन की रोशनी में मुझे मस्त गुदाज़ जांघों के बीच हल्के बालों से घिरी उसकी योनि साफ़ झलकती दिख रही थी। उसे इस बात का ध्यान ही नहीं रह गया था कि उसकी सबसे ज़्यादा अनमोल चीज़ तो मेरे सामने ही बेपर्दा है।

"मुझे और शर्मिंदा मत कीजिए?" कंचन ने बेबस भाव से कहा____"कृपया चले जाइए न यहां से। अगर कोई आ गया तो भारी मुसीबत हो जाएगी।"

"ठीक है जा रहा हूं।" मैंने इस बार थोड़ा संजीदा भाव से कहा____"और हां, आपको शर्मिंदा होने की कोई ज़रूरत नहीं है। इसमें आपकी कोई ग़लती नहीं है। जो कुछ हुआ वो बस इत्तेफ़ाक़ से हुआ है। वैसे एक बात कहूं, आप बिना कपड़ों में बहुत ही ख़ूबसूरत दिखती हैं। ख़ास कर आपकी राजकुमारी।"

इतना कह कर मैं पलटा और तेज़ी से बाहर निकल गया। मैं जानता था कि मेरी आख़िरी बात ने कंचन को बुरी तरह चौंका दिया होगा। वो जब अपने बदन के निचले हिस्से को बेपर्दा देखेगी तो उसका और भी शर्म से बुरा हाल हो जाएगा। अब इस घर में रुकना ठीक नहीं था इस लिए मैं घर से बाहर ही आ गया।

हर तरफ अंधेरा फ़ैल गया था। रागिनी भाभी के घर जाने का मेरा कोई इरादा नहीं था इस लिए मैं उस तरफ चल पड़ा जहां कुछ मिलने की उम्मीद थी। एक मोड़ से मुड़ कर मैं कुछ ही देर में एक घर के पास पहुंच गया। घर के सामने जो खाली जगह थी वहां एक तरफ मवेशी बंधे हुए थे जिनको एक आदमी भूसा डाल रहा था। घर के बाहर दीवार से सट कर ही चबूतरा बना हुआ था जिसमें लालटेन रखी हुई थी। द्वार के सामने कुछ ही दूरी पर एक चारपाई रखी हुई थी। मैं आगे बढ़ा और जा कर उस चारपाई पर बैठ गया।

"कैसे हैं राघव भैया?" मैंने भूसा डाल रहे आदमी को आवाज़ लगाते हुए कहा तो उसने फ़ौरन ही पलट कर मेरी तरफ देखा और मुझ पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे पर चमक उभर आई।

"अरे! वैभव महाराज आप यहां?" वो फ़ौरन ही भूसे की झाल को वहीं छोड़ कर भागता हुआ आया और मेरे पैर छूते हुए बोला____"धन्य भाग हमारे जो आपके दर्शन हो गए।"

"आज दोपहर ही आया हूं।" मैंने कहा____"साले साहब ने संदेशा भेजा था तो भाभी को ले कर आना पड़ा।"
"ये तो बहुत ही अच्छा हुआ जो आप यहां आ गए।" राघव भारी खुश हो गया था, बोला____"क़सम से आंखें तरस गईं थी आपको देखने के लिए।"

राघव सिंह इसी गांव का था और मेरी उससे काफ़ी अच्छी बनती थी। मुझसे उमर में दो तीन साल बड़ा था लेकिन मेरी ही तरह औरतबाज था वो। उससे मेरी इतनी गहरी दोस्ती हो गई थी कि कई बार हमने एक साथ ही एक दो औरतों को पेला था। ख़ैर मेरे कहने पर राघव ने पहले मवेशियों को भूसा डाला उसके बाद वो हाथ पैर धो कर अंदर चला गया। कुछ ही देर में मैंने देखा अंदर से एक लड़की उसके साथ बाहर आई। लड़की के हाथ में एक थाली थी। वो लड़की राघव की बहन जमुना थी। पिछली बार जब मैने उसे देखा था तो वो थोड़ा दुबली पतली थी किंतु अब उसका जिस्म भरा भरा दिख रहा था और उसके सीने के उभार भी अच्छे खासे दिख रहे थे। मुझ पर नज़र पड़ते ही उसने मुस्कुराते हुए नमस्ते किया।

जमुना ने घागरा चोली पहन रखा था इस लिए झुक कर जैसे ही उसने थाली मेरी तरफ बढ़ाई तो चोली के बड़े गले से उसकी आधे से ज़्यादा चूचियां दिखने लगीं। मेरी नज़र मानों उसके गोलों पर ही चिपक गई। जमुना भी समझ गई कि मैं उसकी चूचियों को देख रहा हूं इस लिए उसने मुस्कुराते हुए धीमें से कहा____"पहले थाली का प्रसाद खा लीजिए जीजा जी, उसके बाद अंदर का प्रसाद खाने का सोचिएगा।"

जमुना की बात सुन कर मैं पहले तो हल्के से हड़बड़ाया और फिर मुस्कुराते हुए थाली में रखी कटोरी को उठा लिया। राघव उसके पीछे कुछ ही दूरी पर खड़ा था। मैंने कटोरी लिया तो जमुना सीधी खड़ी हो गई और फिर मुस्कुराते हुए अंदर जाने लगी तो राघव ने उसे लोटा गिलास में पानी लाने को कहा।

जमुना के जाने के बाद राघव चबूतरे में बैठ गया। हम दोनों इधर उधर की बातें करने लगे। कुछ देर में जमुना लोटा गिलास में पानी ले कर आई और राघव से कहा कि भौजी बुला रही हैं। जमुना की बात सुन कर राघव मुझसे अभी आया महाराज बोल कर अंदर चला गया।

"क्या बात है सरकार, आप तो गज़ब का माल लगने लगी हैं।" मैंने जमुना के सीने के उभारों को देखते हुए कहा____"कभी हमें भी चखने का मौका दीजिए।"
"धत्त।" जमुना बड़ी अदा से बोली____"हम ऐसे वैसे नहीं हैं जीजा जी इस लिए होश में रह कर बात कीजिए।"

"आपको देखने के बाद अब हम होश में रहे कहां सरकार?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"आपके इस हुस्न ने तो हमारे अंदर के हर पुर्जे को हिला दिया है।"
"अच्छा जी ऐसा है क्या?" जमुना ने मुस्कुराते हुए कहा____"फिर तो आपके पुर्जों को जल्दी ही ठीक करना पड़ेगा हमें, है ना?"

"ये भी कोई पूछने की बात है क्या?" मैं जमुना की बेबाकी पर मन ही मन हैरान था मगर उसकी मंशा समझते हुए बोला____"अगर आप हमारे पुर्जों को ठीक करेंगी तो ये हमारा सौभाग्य होगा।"

"अगर ऐसी बात है तो ठीक है।" जमुना ने एक बार अंदर की तरफ निगाह डालते हुए कहा____"हम दिशा मैदान के लिए जा रहे हैं। आप भी कुछ देर में नदी तरफ आ जाइएगा। हम वहीं आपके पुर्जों को ठीक करेंगे।"

जमुना अपना निचला होठ दांतों से दबा कर मुस्कुराई और फिर अपनी गोल गोल गांड को मटकाते हुए अंदर चली गई। सच कहूं तो मुझे उससे ऐसी बातों की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। मुझे समझते देर न लगी कि राघव की ये बहन खेली खाई लौंडिया है। काफी समय हो गया था किसी लड़की को पेले हुए तो सोचा चलो यही सही। ज़हन में कंचन और सुषमा का ख़्याल तो आया लेकिन उनकी तरफ से कुछ मिलने की उम्मीद अगर थी भी तो अभी उसमें समय लगना था।

राघव आया तो हम दोनों फिर से बातों में लग गए। कुछ ही देर में जमुना हाथ में एक लोटा लिए बाहर आई और अपने भाई राघव से नज़र बचा कर मुझे आंखों से इशारा करते हुए चली गई। मेरी धड़कनें ये सोच कर थोड़ा तेज़ हो गईं कि ये तो साली सच में ही चुदने को तैयार है। कुछ देर तक मैं राघव से बातें करता रहा और फिर उससे कल मिलने का कह कर मैं उठ कर चल दिया। सड़क पर आ कर मैं रुका और पलट कर राघव की तरफ देखा। वो मेरे जाते ही चारपाई पर लेट गया था। शायद दिन भर की मेहनत से थका हुआ था वो। उसे लेटा देख मैं फ़ौरन ही उस तरफ बढ़ चला जिधर जमुना गई थी।

गांव के उत्तर में एक नदी थी इस लिए मैं तेज़ी से उसी तरफ बढ़ता चला जा रहा था। अंधेरा हो चुका था इस लिए दूर का साफ़ साफ़ दिख नहीं रहा था। शुक्र था कि गगन में आधे से थोड़ा कम चांद था जिसकी वजह से कुछ कुछ दिख रहा था। मन में कई तरह के ख़्याल बुनते हुए मैं जल्दी ही नदी के पास पहुंच गया। आम तौर पर गांव के लोग नदी की तरफ दिन में ही दिशा मैदान के लिए आते थे। आज कल तो वैसे भी खेत खलिहान खाली पड़े थे इस लिए जिसका जहां मन करता था रात के अंधेरे में वहीं हगने बैठ जाते थे। नदी के पास पेड़ पौधे और झाड़ियां थी इस लिए अंधेरे में कोई इस तरफ नहीं आता था।

नदी के पास आ कर मैं जमुना को इधर उधर देखने लगा। सहसा दाएं तरफ से हल्की आवाज़ आई तो मैं उस तरफ बढ़ चला। कुछ ही पलों में एक पेड़ के पीछे खड़ी जमुना मुझे मिल गई। मुझे देख कर वो मुस्कुराई और फिर जाने क्या सोच कर शर्माने लगी। अब क्योंकि हम दोनों ही जानते थे कि हम यहां किस लिए आए थे तो देर करने का सवाल ही नहीं था। मैं तो वैसे भी देर नहीं करना चाहता था।

"तो शुरू करें सरकार?" मैंने उसके कंधों को पकड़ कर उससे कहा तो उसने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और फिर कहा____"आप हमें ऐसी वैसी समझ रहे होंगे न?"
"उससे क्या फ़र्क पड़ता है?" मैंने उसकी आंखों में देखा।

"नहीं, फ़र्क पड़ता है जीजा जी।" जमुना ने धीमी आवाज़ में कहा____"हम सच में ऐसी वैसी नहीं हैं। पिछली बार जब आपको देखा था तो आप हमें बहुत अच्छे लगे थे। फिर जब आपके बारे में हमें पता चला तो सोचने लगे कि क्या सच में आप ऐसे होंगे? मन में आपको परखने की ख़्वाइश पैदा हो गई थी लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि हम बर्बाद ही हो गए।"

"क्या मतलब?" मैं उसकी आख़िरी बात सुन कर चौंका।
"कुछ महीने पहले हमारी बड़ी दीदी के घर वाले आए थे।" जमुना ने सिर झुकाते हुए कहा____"उन्होंने हमें अपने जाल में फांस लिया और फिर हमारे साथ वो सब कर डाला जो शादी के बाद मिया बीवी करते हैं। हम नादान और नासमझ थे। जीजा जी हमारे लिए नए नए कपड़े लाए थे जिससे हम बहुत खुश थे और उसी खुशी की वजह से हम समझ न पाए कि वो हमारे साथ क्या क्या करते जा रहे थे। उनके छूने से उस वक्त हमें अच्छा लग रहा था और फिर धीरे धीरे बात आगे तक बढ़ती चली गई। उन्होंने हमें एक लड़की से औरत बना दिया। दर्द में हम बहुत रोए थे मगर किसी से कह नहीं सकते थे क्योंकि उन्होंने हमें अच्छी तरह समझाया कि ऐसा करने से हमारी बदनामी तो होगी ही साथ ही कोई हमसे ब्याह भी नहीं करेगा। उसके बाद कुछ समय तक सब ठीक रहा लेकिन एक दिन जीजा जी के यहां से हमारा बुलावा आ गया। असल में दीदी को बच्चा होना था तो वो घर के कामों के लिए हमें भेज देने को बोले थे। राघव भैया हमें उनके यहां भेज आए। वहां जाने के बाद दूसरी रात ही वो हमारे पास आ गए और हमारे साथ वो सब करने लगे तो हमने उन्हें रोका मगर वो कहने लगे कि अगर हमने उन्हें वो सब नहीं करने दिया तो वो सबको बता देंगे। बस अपनी बदनामी के डर से हम भी मजबूर हो गए और उन्होंने उस रात हमारे साथ कई बार वो सब किया। उसके बाद तो जब तक हम दीदी के यहां रहे तब तक वो हमारे साथ वही सब करते रहे। दीदी के यहां से जब हम यहां अपने घर आए तो हमें जल्दी ही महसूस हुआ कि हमें उसकी ज़रूरत है। शायद हम इसके आदि हो गए थे। हमें समझ ना आया कि हम क्या करें? किसी तरह समय गुज़रा। फिर भैया का ब्याह हुआ और भौजी आ गई। हम जानते थे कि बंद कमरे में भैया और भौजी क्या करते हैं। उन्हें चुपके से देखते तो हमारे अंदर और भी वो सब करने की इच्छा बढ़ गई। एक दिन हमने देखा कि गांव का एक लड़का हमें ग़लत इशारे कर रहा था। हम समझ गए कि वो हमसे क्या चाहता है। हमें भी उसी की ज़रूरत थी इस लिए हमने भी उसे मुस्कुरा कर देखा। उसी शाम को यहीं पर उस लड़के से हम मिले और फिर हमारे बीच वो सब हुआ। अब तो आदत पड़ गई है जीजा जी लेकिन यकीन मानिए उस लड़के के अलावा हमने और किसी के साथ ऐसा नहीं किया।"

"छोड़ो इस बात को।" मैंने उसके चेहरे को हथेलियों में ले कर कहा____"जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ उसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं थी लेकिन हां ये ग़लती ज़रूर है कि तुम गांव के किसी लड़के के साथ ये सब करती हो। मान लो किसी दिन उस लड़के ने गांव में किसी और को ये सब बता दिया तो क्या होगा? गांव समाज के बीच तुम्हारी और तुम्हारे घर परिवार की इज्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी। इस लिए बेहतर ये है कि फ़ौरन ही ब्याह कर लो। मैं कल ही तुम्हारे भाई राघव से इस बारे में बात करूंगा।"

जमुना मेरी आंखों में देख रही थी। मैंने झुक कर उसके होठों को चूमा और फिर उसके होठों को मुंह में भर कर मज़े से चूसने लगा। जमुना पूरा साथ दे रही थी। मैं चोली के ऊपर से ही उसके ठोस उभारों को मुट्ठी में ले कर मसलने लगा था जिससे उसके मुंह से सिसकारियां निकलने लगीं थी।

मैंने चोली के अंदर हाथ डाला और उसकी एक चूची को पकड़ कर थोड़ा ज़ोर से दबाया तो जमुना सिसकी लेते हुए मचल उठी। वो पूरे जोश में आ चुकी थी और मेरी पीठ पर अपने हाथ चला रही थी। कुछ देर उसके होठों को चूमने चूसने के बाद मैंने उसे घुमा दिया जिससे उसकी पीठ मेरी तरफ आ गई। मैंने जल्दी जल्दी उसकी चोली की डोरी को छोरा और फिर उसे उसके जिस्म से उतार दिया। जमुना अब ऊपर से पूरी तरह नंगी हो गई थी। मैंने पीछे से दोनों हाथ बढ़ा कर उसकी नंगी चूचियों को मुट्ठी में भर कर मसलना शुरू कर दिया। जमुना सिसकियां भरते हुए अपने चूतड़ों को मेरे लंड पर घिसने लगी जिससे मेरा शख़्त लंड और भी बुरी तरह से अकड़ गया।

मैंने जमुना को अपनी तरफ घुमाया और उसकी एक चूची को मुंह में भर लिया। जमुना के मुंह से आनन्द में डूबी सिसकी निकल गई। वो मेरे सिर को अपनी चूची पर दबाने लगी। मैंने अच्छी तरह बारी बारी से उसकी दोनों चूचियों को मुंह में ले कर चूसा और फिर एक हाथ सरका कर घाघरे में डाल दिया। जमुना ने कच्छी पहन रखी थी। उसकी योनि वाला हिस्सा बुरी तरह धधक रहा था। मैंने कच्छी के अंदर हाथ डाल कर उसकी योनि को छुआ तो मेरी उंगली में उसका कामरस लग गया। जमुना पूरी तरह गरम हो गई थी। मैंने बीच वाली उंगली को उसकी योनि के अंदर डाला तो जमुना ने अपनी टांगों को भींच लिया और साथ ही उसके मुख से सिसकी निकल गई। उसने झटके से अपना एक हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख लिया और उसे दबाने लगी।

मेरे पास ज़्यादा समय नहीं था इस लिए मैंने फ़ौरन ही अपना पैंट खोला और कच्छे से अपने लंड को निकाल कर जमुना के हाथ में पकड़ा दिया। जमुना को जैसे ही मेरे लंड की लंबाई और मोटाई का अंदाज़ा हुआ तो उसे झटका लगा।

"य...ये तो बहुत बड़ा और मोटा है जीजा जी।" जमुना ने हकलाते हुए कहा____"आह! कितना गरम है ये। मेरी योनि को तो फाड़ ही देगा ये।"

मैं उसकी बात पर मुस्कुराया, उधर जमुना बड़े प्यार से मेरे लंड को सहलाने लगी थी। उसके कोमल हाथों के स्पर्श से मेरा लंड और भी झटके खाने लगा था। जमुना एकदम से नीचे उकड़ू हो कर बैठ गई और मेरे लंड को पकड़ कर अपने चेहरे को आगे कर उसे चूम लिया। मैंने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा। मुझे उम्मीद नहीं थी कि वो ऐसा भी कर सकती है लेकिन फिर याद आया कि शायद उसके जीजा ने उससे ये सब करवाया होगा इस लिए उसे ये सब भी पता था। ख़ैर एक दो बार चूमने के बाद जमुना ने अपना मुंह खोला और मेरे लंड को मुंह में भर लिया। उसके गर्म मुख में मेरा लंड गया तो मेरे समूचे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ गई। वो मेरे लंड के सुपाड़े को बड़े अच्छे तरीके से चूस रही थी। पलक झपकते ही मैं मज़े के सातवें आसमान में पहुंच गया।

मैंने जमुना को अपनी कच्छी उतारने को कहा तो उसने खड़े हो कर अपनी कच्छी उतारी। मैंने उसे घुमा दिया जिससे उसकी गांड मेरी तरफ हो गई। उसके बाद मैंने उसे पेड़ का सहारा ले कर झुक जाने को कहा तो वो झुक गई। मैंने उसके घाघरे को उसकी कमर तक चढ़ा कर एक हाथ से अपने लंड को उसकी कामरस बहा रही योनि में टिकाया और अपनी कमर को आगे की तरफ धकेल दिया।

"आह! जीजा जी।" लंड जैसे ही उसकी योनि में घुसा तो उसने आह भरी। मेरा लंड एक तिहाई ही उसकी योनि में घुसा था और फिर अगले ही पल मैंने ज़ोर का धक्का लगा दिया जिससे जमुना के मुख से हल्की दर्द भरी आह निकल गई। उसने पेड़ को दोनों हाथों से थाम लिया था।

जमुना की योनि पहले से ही चुदी हुई थी लेकिन इसके बावजूद मुझे थोड़ा कम खुली हुई महसूस हुई। मैंने जमुना की कमर को दोनों हाथों से पकड़ा और ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा। जमुना मेरे धक्के लगाने से जल्दी ही गनगना गई। शान्त वातावरण में उसकी मादक सिसकारियां गूंजने लगीं थी। मुझे जमुना को इस तरह झुका कर चोदने में बहुत मज़ा आ रहा था।

"आह! जीजा जी और ज़ोर से चोदिए मुझे।" जमुना आहें भरते हुए बोली____"मैं झड़ने वाली हूं। हाय! कितना मज़ा आ रहा है मुझे। मैं आसमान में उड़ी जा रही हूं जीजा जी। कृपया सम्हालिए मुझे....आह...।"

जमुना झटके खाते हुए झड़ने लगी थी। उसका समूचा बदन कांपने लगा था। उसका गरम गरम कामरस जैसे ही मेरे लंड को भिगोया तो मेरे जिस्म में सनसनी फ़ैल गई। आनंद की लहर ने फ़ौरन ही मुझे चरम पर पहुंचा दिया और इससे पहले कि मैं जमुना की योनि में झड़ जाता मैंने फ़ौरन ही अपने लंड को उसकी योनि से निकाल लिया। उधर जमुना जल्दी से पलटी और बैठ कर मेरे लंड को पकड़ लिया। मेरा लंड उसके कामरस में नहाया हुआ था जिसे जल्दी ही उसने अपने मुंह में भर कर चूसना चाटना शुरू कर दिया। मैंने जमुना के सिर को पकड़ा और उसके मुंह को ही योनि समझ कर धक्के लगाते हुए चोदने लगा। जमुना मेरे इस कार्य से थोड़ा हड़बड़ाई मगर उसने लंड को अपने मुंह से नहीं निकाला। जल्दी ही उसकी चुसाई से मेरा जिस्म झटके खाने लगा और मेरे लंड से वीर्य की धार उसके मुंह में ही छूटने लगी। वीर्य की अंतिम बूंद निकल जाने के बाद ही मैंने जमुना के सिर को छोड़ा और फिर शांत सा पड़ गया। उधर जमुना मेरे वीर्य को मजबूरी में पी जाने के बाद खांसने लगी थी।

"आपने तो जान ही निकाल दी मेरी।" जमुना ने अपनी उखड़ी हुई सांसों को काबू करते हुए कहा____"एक पल को ऐसा लगा जैसे अब तो मर ही गई मैं।"
"क्या करें सरकार?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"आपने चुसाई ही इस तरीके से की कि मैं होश खो बैठा था।"

"सही सुना था आपके बारे में।" जमुना ने कहा____"आप तो सच में कमाल के हैं जीजा जी। मन करता है एक बार और आपसे चुदवा लूं लेकिन घर जाना भी ज़रूरी है। अगर देर हो गई तो आफ़त हो जाएगी।"

हम दोनों ने जल्दी जल्दी अपने बचे हुए कपड़े पहने। जमुना को एक बार और चोदने का मन था मेरा लेकिन उसका घर जाना ज़रूरी था इस लिए उसकी चूचियों को जी भर के मसलने के बाद मैंने उसे जाने दिया। उसके जाने के कुछ देर बाद मैं भी घर की तरफ चल पड़ा। आज काफ़ी समय बाद किसी लड़की को पेलने का मौका मिला था। जमुना को चोदने के बाद मैं काफी खुश था।


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वापसी के लिए धन्यवाद भाई
वैभव अपने पूरे रंग में लग रहा है दोनो ननद भौजाई के पीछे पड़ गया है लेकिन इन दोनो से पहले जमुना का नंबर लग गया जमुना ने अपनी पूरी स्टोरी और केसे शुरुआत हुई वो बता दिया
 

Sanju@

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अध्याय - 57
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अब तक....

"सही सुना था आपके बारे में।" जमुना ने कहा____"आप तो सच में कमाल के हैं जीजा जी। मन करता है एक बार और आपसे चुदवा लूं लेकिन घर जाना भी ज़रूरी है। अगर देर हो गई तो आफ़त हो जाएगी।"

हम दोनों ने जल्दी जल्दी अपने बचे हुए कपड़े पहने। जमुना को एक बार और चोदने का मन था मेरा लेकिन उसका घर जाना ज़रूरी था इस लिए उसकी चूचियों को जी भर के मसलने के बाद मैंने उसे जाने दिया। उसके जाने के कुछ देर बाद मैं भी घर की तरफ चल पड़ा। आज काफ़ी समय बाद किसी लड़की को पेलने का मौका मिला था। जमुना को चोदने के बाद मैं काफी खुश था।


अब आगे....


शाम का अंधेरा फ़ैल चुका था। मणि शंकर की बेटी रूपा अपने पुराने आमों के बाग़ में नित्य क्रिया करने के लिए आई हुई थी। बाग़ से क़रीब दो सौ मीटर की दूरी पर ही उसका घर था। बाग़ के किनारे ही वो बैठ गई थी क्योंकि अंदर घने पेड़ों की वजह से अंधेरा ज़्यादा था और उसे अंदर जाने में डर भी लग रहा था। आम तौर पर वो अपनी बाकी बहनों के साथ ही आती थी लेकिन आज उसे कई बार यहां आना पड़ा था और इसकी वजह ये थी कि उसका पेट ख़राब था। उसके एक तरफ खाली खेत थे जिसके पार उसका घर चांद की हल्की रोशनी में नज़र आ रहा था। वो बैठी ही हुई थी कि सहसा उसे कुछ आवाज़ें सुनाई देने लगीं जिससे रूपा की धड़कनें तेज़ हो गईं। उसके अंदर ये सोच कर घबराहट भर गई कि कौन हो सकता है? आवाज़ें लगातार आने लगीं थी। ऐसा लगता था जैसे एक से ज़्यादा लोग ज़मीन पर चल रहे हों। बाग़ की ज़मीन पर क्योंकि पेड़ों के सूखे पत्ते पड़े हुए थे इस लिए चलने से आवाज़ हो रही थी। रूपा ने महसूस किया कि चलने की आवाज़ें उससे थोड़ी ही दूरी पर अचानक से बंद हो गईं हैं।

रूपा जो नित्य क्रिया करने के लिए बैठी हुई थी उसका डर के मारे सब कुछ अपनी जगह पर रुक गया। आवाज़ों से साफ़ था कि कई लोग थे इस लिए रूपा को समझ ना आया कि इस वक्त कौन आया होगा यहां? उसने बड़ी सावधानी से पानी के द्वारा शौच किया और अपनी कच्छी को ऊपर सरका कर कुर्ते को नीचे कर लिया। सलवार उसने पहना ही नहीं था, कदाचित इस लिए कि अंधेरे में कौन देखेगा और वैसे भी उसे हगने के लिए अपने बाग़ में ही तो आना था।

खाली हो गए लोटे को उसने उठाया और दबे पांव उस तरफ़ बढ़ी जिस तरफ से आवाज़ें आनी बंद हो गईं थी। उसे डर भी लग रहा था लेकिन उत्सुकतावश वो बड़ी सावधानी से उस तरफ़ बढ़ती ही चली गई। इस बात का उसने ख़ास ख़्याल रखा कि सूखे पत्तों पर पांव रखने से ज़्यादा तेज़ आवाज़ न होने पाए। अभी वो क़रीब पांच सात क़दम ही आगे गई थी कि सहसा उसके कानों में किसी की आवाज़ सुनाई दी। रूपा एक दो क़दम और आगे बढ़ी और एक पेड़ के पीछे छिप गई। पेड़ की ओट से उसने देखा कि उससे क़रीब आठ दस क़दम की दूरी पर अंधेरे में तीन इंसानी साए खड़े थे। तीनों एक दूसरे से दूरी बना कर खड़े हुए थे किंतु तीनों का ही मुंह एक दूसरे की तरफ था। रूपा को समझ ना आया कि वो तीनों कौन हैं और उसके आमों के बाग़ में क्या करने आए हैं?

"मामला हद से ज़्यादा बिगड़ गया है।" उन तीनों में से एक की आवाज़ रूपा के कानों तक पहुंची____"जो सोचा था वो नहीं हुआ बल्कि सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया है।"

पेड़ के पीछे छुपी रूपा एकदम से चौंकी। उसके दिल की धड़कनें एकदम ज़ोरों से चलने लगीं थी। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ, इस लिए उसने फिर से अपने कान खड़े कर आवाज़ को सुनने की कोशिश करने लगी।

"अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हम सबका भेद खुल जाएगा।" एक दूसरे साए की आवाज़ रूपा के कानों में पड़ी____"और हमारी गर्दनें दादा ठाकुर की मुट्ठी में क़ैद हो जाएंगी।"

"मेरा ख़्याल ये है कि अब हमें खुल कर अपने काम को अंजाम देना चाहिए।" तीसरे साए की आवाज़____"और कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे हवेली में रहने वालों का कलेजा दहल जाए।"

"मेरे एक आदमी ने बताया कि दादा ठाकुर ने अपने बेटे वैभव को अपनी बहू के साथ उसके मायके भेज दिया है।" पहले साए की आवाज़____"ये हमारे लिए एक सुनहरा अवसर है दादा ठाकुर के उस सपूत को अपने रास्ते से हटाने का और दादा ठाकुर की कमर को तोड़ देने का भी।"

"ये तो एकदम सही कहा आपने।" तीसरे साए की आवाज़ में खुशी झलक रही थी, बोला____"चंदनपुर में जा कर बड़ी आसानी से उस पर प्राण घातक हमला किया जा सकता है। अगर हमने सच में उस हरामजादे को ख़त्म कर दिया तो समझो दादा ठाकुर गहरे सदमे में चला जाएगा और ये भी सच ही जानिए कि अपने बेटे के मौत के ग़म में वो बुरी तरह से टूट जाएगा। उस सूरत में उसको बर्बाद करना और हवेली को नेस्तनाबूत करना बेहद आसान हो जाएगा।"

"बात तो ठीक है तुम्हारी।" पहले साए की भारी आवाज़____"लेकिन ये मत भूलो कि उस हवेली में जगताप भी है जो दादा ठाकुर से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है। उसके दोनों बेटे तो नकारा और निकम्मे ही हैं लेकिन सुना है कि वैभव का बड़ा भाई भी आज कल अपने छोटे भाई के नक्शे क़दम पर चलने लगा है। कमबख़्त तंत्र मंत्र के प्रभाव से जल्दी मर जाता तो आज कहानी ही अलग होती।"

"जो नहीं हो पाया उसके बारे में हम क्या ही कर सकते हैं।" दूसरे साए ने कहा____"दादा ठाकुर के मन में जगताप के लिए जो शक के बीज हमने डाले थे उसका भी कुछ ख़ास असर नहीं हुआ। लगता है दादा ठाकुर को कुछ ज़्यादा ही अपने भाई पर भरोसा है।"

"किसी पर अगर एक बार शक हो जाए।" पहले वाले साए ने कहा____"तो वो धीरे धीरे भरोसे की जड़ों को खोखला करना शुरू कर देता है। दादा ठाकुर को भले ही अपने भाई पर लाख भरोसा होगा लेकिन मौजूदा समय में जो हालात हैं उससे कहीं न कहीं उसके मन में अपने भाई के बारे में शक तो हो ही गया होगा। अब देखना ये है कि इसका कब और क्या असर दिखता है?"

"हमारे पास इंतज़ार करने का ही तो समय नहीं है।" दूसरे साए ने कहा____"अब तक की अपनी नाकामियों के बाद अब हमें कोई ऐसा क़दम उठाना होगा जिससे हमारे दुश्मन का कलेजा दहल जाए। मैं उसके उस सपोले को अब और ज़्यादा दिनों तक ज़िंदा नहीं देखना चाहता।"

"फ़िक्र मत करो।" पहले साए ने कहा____"अगर हम यहां कामयाब नहीं हुए तो चंदनपुर में उसके उस सपोले को ख़त्म करने में ज़रूर कामयाब होंगे। कल ही मैं अपने कुछ आदमियों को उसका खात्मा करने के लिए चंदनपुर भेजूंगा।"

"मैं भी आपके आदमियों के साथ जाऊंगा।" तीसरे साए ने कहा____"मैं उस हरामजादे को अपने हाथों बद से बदतर मौत देना चाहता हूं। तभी मेरे कलेजे को ठंडक मिलेगी।"

"नहीं, तुम वहां नहीं जाओगे।" पहले साए ने सख़्ती से कहा____"वो बहुत ख़तरनाक लड़का है। अगर ज़रा भी बात बिगड़ गई तो अंजाम अच्छा नहीं हो सकता। इस लिए तुम यहीं रहोगे और उसके बदले दादा ठाकुर के बड़े लड़के का शिकार करोगे। मुझे पूरी उम्मीद है कि उसे तुम बड़ी आसानी से काबू में कर लोगे और उसका राम नाम भी सत्य कर दोगे।"

"ये इतना आसान नहीं है।" दूसरे साए ने कहा____"दादा ठाकुर ने आज कल अपने परिवार के हर सदस्य पर शख़्त निगरानी और पहरा लगा दिया है। जिस दिन गांव वाले रेखा और शीला की मौत का इंसाफ़ मांगने हवेली गए थे और जो कुछ दादा ठाकुर से कहा था उससे दादा ठाकुर तो शान्त है लेकिन उसका भाई जगताप बुरी तरह खार खाया हुआ है। इस लिए मेरी सलाह यही है कि यहां पर अभी किसी पर भी हाथ डालना सही नहीं होगा लेकिन हां चंदनपुर जा कर वैभव को ख़त्म करने का विचार ज़्यादा बेहतर है।"

वैभव को ख़त्म करने वाली बातें सुन कर रूपा का दिमाग़ मानों सुन्न सा पड़ गया था। दिलो दिमाग़ में आंधियां सी चलने लगीं थी। उसके बाद उसे कुछ भी सुनने का होश नहीं रह गया था। उसे पता ही नहीं चला कि कब वो तीनों साए वहां से चले गए। किसी पक्षी की आवाज़ से उसे होश आया तो वो चौंकी और हड़बड़ा कर उसने उस तरफ देखा जहां वो तीनों साए खड़े थे किंतु अब वहां किसी को न देख वो एकदम से घबरा गई। चारो तरफ अंधेरे में उसने निगाह घुमाई मगर कहीं कोई नज़र न आया। बाग़ में हर तरफ सन्नाटा फ़ैला हुआ था।

रूपा पलट कर वहां से दबे पांव चल पड़ी। खेतों में बनी पगडंडी पर आ कर वो तेज़ क़दमों से अपने घर की तरफ बढ़ चली थी। पहले वाले साए की आवाज़ अभी भी उसके कानों में गूंज रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है। उसके दिल में जहां एक तरफ हल्का दर्द सा जाग उठा था वहीं दूसरी तरफ ज़हन में एक द्वंद सा भी छिड़ गया था।


✮✮✮✮

धनंजय नाम का दरोगा अपने कमरे में रखी चारपाई पर बैठा गहरी सोच में डूबा हुआ था। उसे ये सोच कर पछतावा हो रहा था कि उसने दादा ठाकुर को अपनी मां के अपहरण हो जाने की बात बता दी थी जोकि उसे किसी भी कीमत पर नहीं बताना चाहिए था। ऐसे में अगर उस सफ़ेदपोश ने गुस्से में आ कर उसकी मां के साथ बुरा कर दिया तो वो खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाएगा। धनंजय को समझ नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करे? अभी वो ये सब सोच ही रहा था कि तभी बाहर हुई अजीब सी आवाज़ और आहट से वो चौंका। ज़हन में बिजली की तरह ख़्याल उभरा कि क्या सफ़ेदपोश आया होगा? ये सोच कर वो फ़ौरन ही चारपाई से उठा और तेज़ी से दरवाज़े की तरफ बढ़ा।

दरवाज़ा खोल कर उसने बाहर देखा। बाहर अंधेरा था किंतु चांद की हल्की रोशनी भी थी जिससे धुंधला धुंधला दिख रहा था। धनंजय ने इधर उधर नज़र घुमाई और फिर एकदम से उसकी निगाह एक जगह पर ठहर गई। बाएं तरफ कुछ ही दूरी पर उसे कुछ पड़ा हुआ नज़र आया। एक अंजानी आशंका से धनंजय की धड़कनें तेज़ हो गईं। वो फ़ौरन ही उस तरफ बढ़ा। कुछ पलों में जब वो उस पड़ी हुई चीज़ के पास पहुंचा तो देखा कोई औरत औंधे मुंह ज़मीन पर पड़ी हुई थी।

धनंजय के आशंकित ज़हन में बिजली की तरह सवाल उभरा कहीं ये उसकी मां तो नहीं? उसने झट से उस औरत को पलटा और जैसे ही नज़र औरत के चेहरे पर पड़ी तो उसके सिर पर एक झटके में आसमान गिर पड़ा। वो उसकी मां ही थी। धनंजय एकदम पागलों की तरह अपनी मां को हिलाते डुलाते हुए आवाज़ लगाने लगा लेकिन उसकी मां के द्वारा उसे कोई प्रतिक्रिया होती महसूस नहीं हुई। उसने जल्दी से नब्ज़ टटोली और अगले कुछ ही पलों में उसे ये जान कर ज़बरदस्त झटका लगा कि उसकी मां की नब्ज़ का कहीं पता नहीं है। दरोगा एकदम से बौखला गया, वो कभी अपनी मां की नब्ज़ को टटोलता तो कभी उसकी धड़कनें सुनने की कोशिश करता। जल्द ही उसे पता चल गया कि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं है। धनंजय का जी चाहा कि वो पूरी शक्ति से दहाड़ें मार कर रोना शुरू कर दे। आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। अपनी मां के बेजान जिस्म से लिपट कर वो फूट फूट कर रो पड़ा।

जाने कितनी ही देर तक धनंजय अपनी मां को सीने से लगाए रोता रहा और उससे कहता रहा कि वो उसे छोड़ कर न जाए लेकिन दुनिया से जाने वाला भला कहां उसे कोई जवाब देता? दिलो दिमाग़ में आंधियां चल रहीं थी। तभी एक तरफ उसे किसी चीज़ की आहट सुनाई दी तो उसने गर्दन घुमा कर उस तरफ देखा। उसके मकान के पास ही अंधेरे में सफ़ेदपोश खड़ा था। धनंजय उसे देख कर पहले तो हड़बड़ाया किंतु अगले ही पल गुस्से से आग बबूला हो गया। अपनी मां को ज़मीन पर लेटा कर वो एक झटके से खड़ा हुआ और फिर किसी आंधी तूफ़ान की तरह उस सफ़ेदपोश की तरफ लपका। सफ़ेदपोश को शायद उससे ऐसे किसी कृत्य की उम्मीद नहीं थी इस लिए इससे पहले कि वो सम्हल पाता धनंजय उस पर जंप लगा कर उसे लिए ज़मीन पर गिरा। सफ़ेदपोश के सीने में सवार हो कर उसने दोनों हाथों से उसकी गर्दन को दबोच लिया।

"हरामजादे तूने मेरी मां को जान से ही मार डाला।" धनंजय गुस्से में मानों चीखते हुए बोला____"अब मैं तुझे भी जान से मार दूंगा।"

सफ़ेदपोश बुरी तरह छटपटाते हुए उससे अपनी गर्दन छुड़ाने का प्रयास कर रहा था लेकिन धनंजय की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो उसके हाथों को हिला भी नहीं पा रहा था। प्रतिपल उसकी सांसें लुप्त होती जा रहीं थी। सफ़ेद नक़ाब में छुपा उसका चेहरा पसीने से तरबतर हो गया था। नक़ाब से झांकती उसकी आंखें बाहर को निकली आ रहीं थी।

"आज मैं तुझे ज़िंदा नहीं छोडूंगा कमीने।" धनंजय गुस्से में पगलाया हुआ गुर्राया____"तूने मेरी मां की जान ले कर अच्छा नहीं किया है। तुझे इसका हिसाब अपनी जान दे कर ही चुकाना होगा। बहुत खेल खेल रहा था न तू, अब तेरा किस्सा ही ख़त्म कर दूंगा मैं।"

दरोगा प्रतिपल अपना दबाव उसकी गर्दन पर बढ़ाता जा रहा था और उधर सफ़ेदपोश को सांस लेने में मुश्किल होने लगी थी। उसका दम घुटने लगा था, जिसकी वजह से वो बुरी तरह अपने हाथ पांव पटक रहा था। तभी सहसा चमत्कार हुआ। वातावरण में दरोगा की घुटी घुटी सी चीख गूंजी और उसका जिस्म हवा में लहराते हुए दूर जा कर गिरा। वो जल्दी ही सम्हल कर उठा तो देखा नीम अंधेरे में उसे काला नकाबपोश नज़र आया। वो समझ गया कि उसी ने अपने पांव की ठोकर से उसे दूर उछाला था। सफ़ेदपोश अब तक खड़ा हो चुका था और बुरी तरह खांस रहा था।

काले नकाबपोश को देख कर धनंजय का गुस्सा और भी बढ़ गया। वो तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा किंतु जल्दी ही उसे ठिठक जाना पड़ा क्योंकि काले नकाबपोश के हाथ में एकदम से उसे लट्ठ नज़र आ गया था। लट्ठ को देख कर धनंजय कुछ पलों के लिए ही रुका था लेकिन अगले ही पल वो फिर से उसकी तरफ तेज़ क़दमों से बढ़ चला।

"अगर अपनी बहन को भी अपनी मां की तरह बेजान लाश के रूप में देखना चाहता है तो बेशक आ कर मुझसे मुकाबला कर।" काले नकाबपोश ने शख़्त भाव से कहा तो दरोगा एकदम से अपनी जगह पर रुक गया।

"अगर मेरी बहन को तुम दोनों ने हाथ भी लगाया तो ये तुम दोनों के लिए अच्छा नहीं होगा।" धनंजय ने गुस्से से गुर्राते हुए कहा____"अगर असली मर्द की औलाद है तो मर्द की तरह अपने दम पर मुझसे मुकाबला कर।"

"अच्छा ऐसा है क्या?" काले नकाबपोश ने इस बार अजीब भाव से कहा____"लगता है दो दो हाथ करने के लिए कुछ ज़्यादा ही मरे जा रहे हो तुम।" काले नकाबपोश ने कहने के साथ ही सहसा सफेदपोश की तरफ देखा____"आपका हुकुम हो तो इसकी ख़्वाइश पूरी कर दूं?"

सफ़ेदपोश ने उसे सिर हिला कर इजाज़त दे दी। इजाज़त मिलते ही काले नकाबपोश ने लट्ठ को एक तरफ रखा और फिर दरोगा को मुकाबला करने का इशारा किया। दरोगा उसका इशारा पा कर गुस्से में तिलमिला उठा। वो तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा। इससे पहले कि वो उस नकाबपोश पर कोई प्रहार कर पाता काले नकाबपोश ने झुक कर उसे दोनों हाथों से सिर से ऊपर तक उठा लिया और कच्ची ज़मीन पर पूरी ताक़त से पटक दिया। वातावरण में दरोगा की दर्द में डूबी चीख गूंज उठी। ज़मीन पर शायद छोटे छोटे कुछ पत्थर पड़े हुए थे जो उसके गिरते ही उसकी पीठ पर गड़ गए थे और उसे भारी दर्द हुआ था। वो दर्द को बर्दास्त करते हुए जल्दी ही उठा लेकिन तभी उसकी पीठ पर काले नकाबपोश की लात का ज़ोरदार प्रहार हुआ जिसके चलते वो एक बार फिर से ज़मीन की धूल को चाटता नज़र आया।

उसके बाद तो दरोगा को सम्हलने तक का मौका न मिला। काला नकाबपोश लात घूंसों से उसको मारता ही चला गया और फिज़ा में दरोगा की दर्द में डूबी चीखें ही गूंजती रही। उसकी नाक और मुंह से खून निकलने लगा था। पूरा जिस्म पके हुए फोड़े की तरह दर्द करने लगा था। उसमें अब कुछ भी करने की हिम्मत न रह गई थी।

"रुक जाओ।" सहसा सफ़ेदपोश की अजीब सी आवाज़ गूंजी____"इतना काफ़ी है इसे ये समझने के लिए कि तुम असली मर्द ही हो जो अपने दम पर इससे बखूबी मुकाबला कर सकता है।"

सफ़ेदपोश के कहने पर काला नकाबपोश रुक गया। सफ़ेदपोश चल कर दरोगा के पास आया। दरोगा ज़मीन में पड़ा हुआ था इस लिए वो उसके समीप ही ज़मीन पर उकडू हो कर बैठा और फिर अपनी अजीब सी आवाज़ में बोला____"अपनी मां की मौत के तुम खुद ज़िम्मेदार हो दरोगा। हमने तुम्हें दादा ठाकुर से सच बताने से मना किया था लेकिन फिर भी तुमने उसे सब कुछ बता दिया। इसका अंजाम तो तुम्हें अपनी मां की मौत के रूप में भुगतना ही था। ख़ैर, अब अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी बहन सही सलामत रहे तो यहां से गधे के सींग की तरह गायब हो जाओ।"

सफ़ेदपोश की ये बात सुन कर दरोगा कुछ न बोला। दर्द को सहते हुए वो बस गहरी गहरी सांसें ले रहा था। इधर सफ़ेदपोश कुछ पलों तक उसे देखता रहा और फिर बोला_____"अगर दादा ठाकुर दुबारा तुमसे मिलने आए तो उससे यही कहना कि तुम्हारी मां तुम्हें सही सलामत मिल गई है और अब तुम यहां से इस मामले से खुद को अलग कर के जा रहे हो। अपनी मां की लाश को या तो कहीं दफना दो या फिर रातों रात इसे ले कर शहर चले जाओ और वहीं उसका अंतिम संस्कार कर देना। अगर हमें पता चला कि इसके बावजूद तुम इस मामले में दिलचस्पी ले रहे हो तो इसके अंजाम में जो होगा उसके ज़िम्मेदार तुम खुद ही होगे।"

सफ़ेदपोश इतना कहने बाद उठा और काले नकाबपोश को कुछ इशारा कर एक तरफ को बढ़ गया। जल्दी ही वो दोनों नीम अंधेरे में कहीं गायब हो गए। ज़मीन पर पड़ा दरोगा कुछ देर तक इस सबके बारे में सोचता रहा और फिर किसी तरह उठ कर अपनी मां की लाश के पास आया। मां की बेजान लाश को देख कर सहसा उसकी आंखें फिर से छलक पड़ीं। उसने फिर से मां को अपने सीने से लगा लिया और फूट फूट कर रोने लगा।


✮✮✮✮

शेरा काफी देर से सफ़ेदपोश और काले नकाबपोश का पीछा कर रह था। इस वक्त वो सादे कपड़ों में तो था लेकिन उसके कपड़े ऐसे बिलकुल भी नहीं थे कि रात के हल्के अंधेरे में आसानी से किसी की नज़र उस पर पड़ जाए। हथियार के नाम पर उसके हाथ में एक बड़ा सा लट्ठ था। धनंजय दरोगा के मकान के बाहर जो कुछ हुआ था उसे उसने अपनी आंखों से देखा था। उसके बाद जब दोनों नकाबपोश वहां से चल दिए तो वो भी उनके पीछे लग गया था। पीछा करते हुए वो दादा ठाकुर के बाग़ में आ गया था। बाग में घने पेड़ पौधे थे जिसकी वजह से वहां पर अंधेरा ज़्यादा था। फिर भी वो एक निश्चित फांसला बना कर उन दोनों के पीछे लगा हुआ था। सहसा उसने देखा दोनों नकाबपोश अलग अलग दिशा में मुड़ कर चल दिए।

शेरा को समझ ना आया कि सबसे पहले वो किसके पीछे जाए। वो जानता था कि सफ़ेदपोश इसके पहले भी एक बार उसकी आंखों के सामने से गायब हो चुका था और यही हाल काले नकाबपोश का भी हुआ था। नकाबपोश का उसने दो तीन बार पीछा किया था लेकिन पता नहीं कैसे वो उसे चकमा दे जाता था या फिर उसकी आंखों से ओझल हो जाता था?

शेरा ने फ़ौरन ही फ़ैसला किया और सफ़ेदपोश के पीछे लग गया। आज वो हर हाल में उसे पकड़ लेना चाहता था। उसने देखा था कि दरोगा ने बड़ी आसानी से उसे दबोच लिया था। ज़ाहिर था कि सफ़ेदपोश कोई ऐसा आदमी था जो काले नकाबपोश से कम ताक़तवर और लड़ने के दांव पेंच जानता था। शेरा ने देखा सफ़ेदपोश बाग़ के अंदर की तरफ तेज़ी से बढ़ा चला जा रहा था। कभी कभी वो किसी न किसी पेड़ की ओट में हो जाता था जिसकी वजह से वो उसे दिखाई देना बंद हो जाता था। सहसा वो शेरा की आंखों से ओझल हो गया।

शेरा ने साफ़ देखा था कि वो एक पेड़ की ओट में हुआ था और फिर उसके बाद वो उसे दुबारा नज़र नहीं आया। शेरा एकदम से बौखला गया और तेज़ी से आगे बढ़ते हुए उस पेड़ के पास पहुंचा लेकिन सफ़ेदपोश उसे दूर दूर तक कहीं नज़र न आया। शेरा को बड़ी हैरानी हुई कि आख़िर वो अचानक से गायब कैसे हो गया? क्या वो कोई जादू जानता था या फिर वो कोई भूत था जो एकदम से गायब हो गया? शेरा ने काफी देर तक आस पास का मुआयना किया लेकिन सफ़ेदपोश की कहीं झलक तक न मिली उसे। हताश हो कर वो वापस उस दिशा की तरफ तेज़ी से बढ़ चला जिधर काला नकाबपोश गया था।

कुछ ही देर में शेरा बाग़ से निकल कर उस जगह पर आ गया जहां दादा ठाकुर का बाग़ वाला मकान बना हुआ था। शेरा के ज़हन में ख़्याल उभरा कि क्या काला नकाबपोश इस मकान में आया होगा? क्या वो रात के अंधेरे में इस मकान में ही छुपता होगा? उसे याद आया कि पिछली बार उससे यहीं पर उसका सामना हुआ था और फिर अचानक से वो बाग़ की तरफ भाग गया था। उसके बाद कुछ ही देर में उसे बाग़ के अंदर किसी नारी की चीख सुनाई दी थी। जब उसने वहां जा कर देखा था तो वैभव किसी औरत के पास बैठा था। शीला नाम की औरत को उस काले नकाबपोश ने गला रेत कर मार डाला था।

शेरा ने ये सब सोच कर पूरी सतर्कता से मकान की छानबीन करने का सोचा। पहले उसने मकान के चारो तरफ का अच्छे से मुआयना किया, उसके बाद वो मकान के मुख्य दरवाज़े पर आया तो देखा दरवाज़े की कुंडी खुली हुई थी। शेरा समझ गया कि काला नकाबपोश अंदर ही गया होगा। उसने बड़ी सावधानी से दरवाज़े को अंदर की तरफ धकेला। दरवाज़ा आधा खोल कर उसने अंदर देखा, अंदर सियाह अंधेरा था।

शेरा अंदर दाखिल हुआ और ख़ामोशी से बारीक से बारीक आहट या आवाज़ को सुनने की कोशिश करने लगा मगर काफी देर की कोशिश में भी उसे कोई आहट अथवा आवाज़ सुनाई नहीं दी। उसने पलट कर दरवाज़ा बंद किया और फिर अपने काले कुर्ते की जेब से माचिस निकाल कर उसे जलाया। माचिस की तीली जैसे ही जली तो हर तरफ रोशनी फेल गई। उस रोशनी में उसे आस पास कोई नज़र ना आया। हाथ में जलती तीली लिए वो आगे बढ़ा और एक कमरे के पास पहुंचा। तीली जल कर बुझने लगी तो उसने फ़ौरन ही उसे फेंक कर दूसरी तीली जलाई और कमरे का दरवाज़ा खोल कर अंदर देखा। कमरे में कुछ समान के अलावा कुछ न दिखा उसे। उसने कई तीलियां जला जला कर सभी कमरों में देखा मगर उसे काला नकाबपोश कहीं नज़र ना आया। उसे समझ ना आया कि अगर नकाबपोश यहां नहीं आया तो गया कहां?

शेरा मकान से बाहर आ कर सोचने लगा कि अब वो उस काले नकाबपोश को कहां खोजे? सहसा उसे कुछ याद आया तो वो मकान के पीछे की तरफ बढ़ चला। जल्दी ही वो मकान के पिछले हिस्से में पहुंच गया। मकान के पिछले हिस्से में ट्रैक्टर की एक पुरानी और टूटी हुई ट्रॉली खड़ी हुई थी जिसके दोनों पहिए ज़मीन पर क़रीब आधा फुट धंसे हुए थे। ट्राली खस्ता हालत में थी और उसका उपयोग कई सालों से नहीं हुआ था। उसकी ऊपर की दीवारें जंग लगने से कुछ टूटी हुई भी थीं। शेरा ने धड़कते दिल से ट्राली में देखने का सोच कर अपने हाथ को ट्राली की दीवार पर रखा और अपना एक पैर ट्राली के पहिए पर रख कर उस पर चढ़ कर खड़ा हो गया।

अभी वो ट्राली के अंदर देखने ही वाला था कि अचानक उसके जबड़े पर किसी का ज़बरदस्त घूंसा पड़ा जिससे दर्द से चीखते हुए वो नीचे कच्ची ज़मीन पर जा गिरा। पीठ के बल गिरने से उसे दर्द तो हुआ लेकिन वो फ़ौरन ही उठा। तभी ट्राली से उसके पास ही कोई कूद कर आया। उसने फ़ौरन ही पास पड़े अपने लट्ठ को उठाया और नज़र उठा कर देखा। उससे क़रीब चार क़दम की दूरी पर काला नकाबपोश हाथ में लट्ठ लिए खड़ा था।

"कौन हो तुम?" काला नकाबपोश गुर्राया____"और यहां मरने के लिए क्यों आए हो?"
"कमाल है दोस्त।" शेरा ने मुस्कुरा कर कहा____"अपनी बिरादरी वाले को ही नहीं पहचान पाए तुम?"

"क्या मतलब??" काला नकाबपोश उसकी बात सुन कर चौंका।
"तुम्हारी तरह इस वक्त अगर मैं भी काले नक़ाब में होता।" शेरा ने कहा____"तो शायद तुम्हें मुझको पहचानने में देर न लगती।"

"अच्छा तो तुम वही हो?" काला नकाबपोश हैरानी भरे भाव से बोला____"जिससे मेरा पहले कई बार आमना सामना हो चुका है।"
"हां, और हर बार तुम मुझे अपनी पीठ दिखा कर भाग खड़े हुए हो।" शेरा ने मुस्कुराते हुए कहा____"ऐसा शायद इस लिए कि तुम मेरा सामना कर पाने में खुद को कमज़ोर समझते हो।"

"बहुत बड़ी ग़लतफहमी के शिकार हो तुम।" काले नकाबपोश ने शख़्त भाव से उसे घूरते हुए कहा____"जो ये समझते हो कि मैं तुम्हारा सामना करने से कतराता हूं और तुम्हें पीठ दिखा कर भाग जाता हूं।"

"तो फिर देर किस बात की दोस्त?" शेरा ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"अगर सच में तुम मेरा सामना करने की कूवत रखते हो तो इस बार तरीके से मुकाबला हो ही जाए। शायद मुझे भी पता चल जाए कि तुम्हारे बारे में मेरे ख़्याल सही हैं या फिर मेरा ऐसा सोचना महज एक भ्रम है।"

नीम अंधेरे में काले नकाबपोश के होठों पर मुस्कान उभर आई, बोला____"अगर तुम्हें मरने का कुछ ज़्यादा ही शौक चढ़ गया है तो आज तुम्हें विधाता भी मुझसे नहीं बचा सकेगा। अभी तक तो मैं तुम्हें इस लिए छोड़ कर चला जाता था क्योंकि मेरा मकसद तुम्हें मारना नहीं बल्कि कुछ और ही होता था।"

कहने के साथ ही काला नकाबपोश हमला करने के लिए तैयार होता नज़र आया। शेरा उससे कई बार मुकाबला कर चुका था इस लिए उसे अच्छी तरह पता था कि वो किसी भी मामले में उससे कमज़ोर नहीं है। जल्दी ही दोनों आमने सामने लट्ठ लिए भिड़ने को तैयार हो गए।

काले नकाबपोश ने लट्ठ को तेज़ी से घुमा कर शेरा पर वार किया किंतु शेरा पहले से ही उसके किसी भी हमले के लिए तैयार था इस लिए फौरन ही लट्ठ से उसके वार को रोका और उसी पल उसने अपनी दाहिनी लात चला दी। लात का ज़बरदस्त प्रहार काले नकाबपोश के पेट में लगा जिससे उसके हलक से हिचकी सी निकली और वो दर्द से झुक गया। उधर वो जैसे ही झुका शेरा ने लट्ठ का वार उसकी पीठ पर किया। प्रहार तेज़ था जिसके चलते काला नकाबपोश चीखते हुए भरभरा कर मुंह के बल ज़मीन पर गिरा। इससे पहले कि वो संभल पाता शेरा ने उसकी पीठ पर पूरी ताक़त से लात जमा दी। वातावरण में काले नकाबपोश की घुटी घुटी चीख गूंज उठी। शेरा ने उसे सम्हलने का मौका नहीं दिया और लात घूंसों की बरसात कर दी उस पर।

काले नकाबपोश के हाथ में सहसा शेरा की टांग आ गई जिसे पकड़ कर उसने पूरी ताक़त से उछाल दिया। शेरा उछलते हुए दूर ज़मीन पर गिरा। इधर काला नकाबपोश फ़ौरन लट्ठ ले कर उठा। इससे पहले कि शेरा सम्हल पाता उसने अपनी टांग चला दी जो शेरा के पेट के बगल से लगी। शेरा बुरी तरह दर्द से बिलबिला उठा। बात अगर सिर्फ़ इतनी ही होती तो शायद वो सम्हल भी जाता लेकिन काला नकाबपोश रुका ही नहीं बल्कि एक के बाद एक लातों का वार शेरा के पेट और छाती पर करता ही चला गया। कुछ देर पहले यही हाल शेरा कर रहा था और काला नकाबपोश दर्द से बिलबिला रहा था। शेरा ने सहसा काले नकाबपोश का पांव पकड़ लिया और उसके जैसे ही उसे उछाल कर दूर गिरा दिया। पेट और छाती में उसे बड़ा तेज़ दर्द हो रहा था जिसे सहते हुए वो तेज़ी से उठा। पास ही पड़े लट्ठ को ले कर वो तेज़ी से काले नकाबपोश के पास पहुंचा।

काला नकाबपोश सम्हल कर खड़ा हो चुका था। शेरा ने जैसे ही लट्ठ का वॉर किया उसने अपने लट्ठ से उसके वार को रोका। उसके बाद वातावरण में लट्ठ के टकराने की आवाज़ें गूंजनें लगीं। दोनों बड़ी दक्षता से एक दूसरे पर वार करते जा रहे थे और उसी दक्षता से एक दूसरे का वार रोकते भी जा रहे थे। अचानक शेरा की लट्ठ बीच से टूट गई और साथ ही काले नकाबपोश का अगला वार उसके बाजू में लगा। शेरा दर्द से बिलबिलाया किंतु जल्द ही सम्हला। काले नकाबपोश ने घुमा कर लट्ठ कर वार शेरा के सिर पर किया। शुक्र था शेरा ने ऐन वक्त पर देख लिया था वर्ना उसकी खोपड़ी लट्ठ लगने से निश्चित ही फूट जाती। शेरा ने झुक कर उसके वार को रोका और साथ ही एक लात काले नकाबपोश की कमर पर लगा दी जिससे नकाबपोश लहरा कर ज़मीन पर गिर गया। उसके हाथ से लट्ठ निकल गया था। शेरा ने उछल कर अपनी कोहनी का वार नकाबपोश की छाती पर किया जिससे नकाबपोश की चीख निकल गई। एकदम से उसकी आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया। शेरा ने उसे सम्हलने का मौका नहीं दिया। उसने काले नकाबपोश का दाहिना हाथ पकड़ा और पूरी ताक़त से उल्टा कर के अपनी तरफ खींच लिया। फिज़ा में कड़कड़ की आवाज़ हुई और साथ ही नकाबपोश की दर्दनाक चीख भी गूंज उठी। शेरा ने उसका दाहिना हाथ तोड़ दिया था।

काला नकाबपोश ज़मीन पर पड़ा दर्द से छटपटा रहा था। अपने टूटे हाथ को दूसरे हाथ से पकड़े वो तड़प रहा था। ये देख शेरा ने उसका कालर पकड़ा और गुर्राते हुए कहा____"मैं चाहूं तो इसी वक्त तेरी जीवन लीला समाप्त कर दूं लेकिन तुझे ज़िंदा रहना होगा और फिर बताना होगा कि जिस सफ़ेदपोश के इशारे पर तू ये सब कर रहा है वो असल में है कौन?"

"मुझसे कुछ नहीं जान पाओगे तुम।" काले नकाबपोश ने दर्द से कराहते हुए कहा____"क्योंकि मुझे उसके बारे में कुछ भी पता नहीं है। मैंने उसका चेहरा कभी नहीं देखा।"

"इसके बावजूद तुझे उसके बारे में बहुत कुछ पता है।" शेरा ने कहा____"तेरे द्वारा ही उसे पकडूंगा मैं।"
"मेरा मुकाबला तो कर लिया तुमने।" काले नकाबपोश ने दर्द में भी मुस्कुरा कर कहा____"लेकिन उसका मुकाबला नहीं कर पाओगे। वो तुम जैसों को एक पल में धूल में मिला देने की क्षमता रखता है।"

"हां देखा है मैंने।" शेरा ने कहा____"कुछ देर पहले अपनी आंखों से देखा था कि कैसे उस दरोगा ने उसे दबोच रखा था और वो उससे खुद को छुड़ाने के लिए छटपटा रहा था। अगर तूने दरोगा को ठोकर नहीं मारी होती तो जल्द ही तेरे उस सफ़ेदपोश का काम तमाम हो जाना था।"

"अच्छा तो तुमने वो सब देखा है?" काला नकाबपोश बुरी तरह चौंका था फिर बोला____"ख़ैर उस वक्त तो मैं भी उसको उस हालत में देख कर आश्चर्य चकित हुआ था लेकिन फिर मुझे याद आया कि वो वही था जिसने पहली मुलाक़ात में मुझे बड़ी आसानी से हरा दिया था। उसके बाद ही मैंने उसके लिए काम करना मंजूर किया था।"

शेरा को लगा काला नकाबपोश बेवजह ही सफ़ेदपोश का गुणगान कर रहा है इस लिए समय को बर्बाद न करते हुए उसने उसकी कनपटी के ख़ास हिस्से पर वार किया जिसका नतीजा ये हुआ कि काला नकाबपोश जल्द ही बेहोशी की गर्त में डूबता चला गया। उसके बाद शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लादा और एक तरफ को बढ़ता चला गया।


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बेहतरीन अपडेट
लगता है रूपा ने तीन साए में से एक साए की आवाज पहचान ली है और वो तीनो दादा ठाकुर के साथ अब तक किया है उनके बारे में बात कर रहे थे साथ ही वैभव को मारने का प्लान भी बना रहे थे ये बात रूपा को पता चल गई है अब देखते हैं रूपा क्या करती हैं???
दरोगा की मां को मार दिया है दरोगा ने सफेद नकाबपोश को धूल चटा दी लेकिन वहा पर काले नकाबपोश ने आकर सारा खेल बिगाड़ दिया साथ में दरोगा की बहन को मारने की धमकी दे दी है अब लगता है दरोगा गांव छोड़कर ही चला जायेगा लेकिन उस नकाबपोश को केसे मालूम हुआ कि दादा ठाकुर को उसने सच्चाई बताई है????
खैर शेरा ने अपनी बहादुरी दिखते हुए काले नकाबपोश को पकड़ लिया है लगता है अब कुछ राज खुल सकते हैं
 

Sanju@

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अध्याय - 58
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अब तक....

शेरा को लगा काला नकाबपोश बेवजह ही सफ़ेदपोश का गुणगान कर रहा है इस लिए समय को बर्बाद न करते हुए उसने उसकी कनपटी के ख़ास हिस्से पर वार किया जिसका नतीजा ये हुआ कि काला नकाबपोश जल्द ही बेहोशी की गर्त में डूबता चला गया। उसके बाद शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लादा और एक तरफ को बढ़ता चला गया।

अब आगे....

रूपा अपने कमरे में पलंग पर लेटी गहरी सोच में डूबी हुई थी। बार बार उसके कानों में बाग़ में मौजूद उस पहले साए की बातें गूंज उठती थीं जिसकी वजह से वो गहन सोच के साथ साथ गहन चिंता में भी पड़ गई थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस आवाज़ को उसने सुना था वो उसका कोई अपना था। वो अच्छी तरह जान गई थी कि वो आवाज़ किसकी थी लेकिन उसने जो कुछ कहा था उस पर उसे यकीन नहीं हो रहा था। उसे तो अब यही लगता था कि दादा ठाकुर से हमारे रिश्ते अच्छे हो गए हैं और इस वजह से वो वैभव के सपने फिर से देखने लगी थी। वो वैभव से बेहद प्रेम करती थी और इसका सबूत यही था कि उसने अपना सब कुछ वैभव को सौंप दिया था।

रूपा को पता चल गया था कि उसके प्रियतम वैभव की जान को ख़तरा है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अपने प्रियतम की जान को कैसे महफूज़ करे? उसका बस चलता तो वो इसी वक्त चंदनपुर जा कर वैभव को इस बारे में सब कुछ बता देती और उससे कहती कि वो अपनी सुरक्षा का हर तरह से ख़्याल करे। सहसा उसे वैभव की वो बातें याद आईं जो उसने पिछली मुलाक़ात में उससे मंदिर में कही थीं। उस वक्त रूपा को उसकी बातों पर ज़रा भी यकीन नहीं हुआ था और यही वजह थी कि उसने कभी ये जानने और समझने की कोशिश नहीं की थी कि उसके घर वाले संबंध सुधार लेने के बाद भी दादा ठाकुर और उनके परिवार के बारे में कैसे ख़्याल रखते हैं? आज जब उसने बाग़ में वो सब सुना तो जैसे उसके पैरों तले से ज़मीन ही खिसक गई थी। वो सोचने पर मजबूर हो गई कि क्या सच में उसके घर वाले कुत्ते की दुम ही हैं जो कभी सीधे नहीं हो सकते?

जब से दोनों खानदान के बीच संबंधों में सुधार हुआ था तब से वो वैभव के साथ अपने जीवन के हसीन सपने देखने लगी थी। वो जानती थी कि उसकी तरह वैभव के दिल में उसके प्रति प्रेम के जज़्बात नहीं हैं लेकिन वो ये भी जानती थी कि बाकी लड़कियों की तरह वैभव उसके बारे में नहीं सोचता। अगर वो उसे प्रेम नहीं करता है तो उसे बाकी लड़कियों की तरह अपनी हवस मिटाने का साधन भी नहीं समझता है। कहने का मतलब ये कि कहीं न कहीं वैभव के दिल में उसके प्रति एक सम्मान की भावना ज़रूर है।

अभी रूपा ये सब सोच ही रही थी कि सहसा उसे किसी के आने का आभास हुआ। वो फ़ौरन ही पलंग पर सीधा लेट गई और अपने चेहरे के भावों को छुपाने का प्रयास करने लगी। कुछ ही पलों में उसके कमरे में उसकी एकमात्र भाभी कुमुद दाखिल हुई। कुमुद उसके ताऊ मणि शंकर की बहू और चंद्रभान की बीवी थी।

"अब कैसी तबियत है मेरी प्यारी ननदरानी की?" कुमुद ने पलंग के किनारे बैठ कर उससे मुस्कुरा कर पूछा____"चूर्ण का कोई फ़ायदा हुआ कि नहीं?"
"अभी तो एक बार दिशा मैदान हो के आई हूं भौजी।" रूपा ने कहा____"देखती हूं अब क्या समझ में आता है।"

"फ़िक्र मत करो।" कुमुद ने रूपा के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहा____"चूर्ण का ज़रूर फ़ायदा होगा और मुझे यकीन है अब तुम्हें शौच के लिए नहीं जाना पड़ेगा।"

"यही बेहतर होगा भौजी।" रूपा ने कहा____"वरना रात में आपको भी मेरे साथ तकलीफ़ उठानी पड़ जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो आपका मज़ा भी ख़राब हो जाएगा।"
"कोई बात नहीं।" रूपा के कहने का मतलब समझते ही कुमुद ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"अपनी प्यारी ननदरानी के लिए आज के मज़े की कुर्बानी दे दूंगी मैं। तुम्हारे भैया कहीं भागे थोड़े न जा रहे हैं।"

कुमुद की बात सुन कर रूपा के होठों पर मुस्कान उभर आई। इस घर में कुमुद का सबसे ज़्यादा रूपा से ही गहरा दोस्ताना था। दोनों ननद भाभी कम और सहेलियां ज़्यादा थीं। अपनी हर बात एक दूसरे से साझा करतीं थीं दोनों। कुमुद को रूपा और वैभव के संबंधों का पहले शक हुआ था और फिर जब उसने ज़ोर दे कर रूपा से इस बारे में पूछा तो रूपा ने कबूल कर लिया था कि हां वो वैभव से प्रेम करती है और वो अपना सब कुछ वैभव को सौंप चुकी है। कुमुद को ये जान कर बेहद आश्चर्य हुआ था लेकिन वो उसके प्रेम भाव को भी बखूबी समझती थी। एक अच्छी सहेली की तरह वो उसे सलाह भी देती थी कि वैभव जैसे लड़के से प्रेम करना तो ठीक है लेकिन वो उस लड़के के सपने न देखे क्योंकि उसके घर वाले कभी भी उसका रिश्ता उस लड़के से नहीं करना चाहेंगे। दूर दूर तक के लोग जानते हैं कि दादा ठाकुर का छोटा बेटा कैसे चरित्र का लड़का है। कुमुद के समझाने पर रूपा को अक्सर थोड़ा तकलीफ़ होती थी। वो जानती थी कि कुमुद ग़लत नहीं कहती थी, वो खुद भी वैभव के चरित्र से परिचित थी लेकिन अब इसका क्या किया जाए कि इसके बावजूद वो वैभव से प्रेम करती थी और उसी के सपने देखने पर मजबूर थी।

"क्या हुआ?" रूपा को कहीं खोया हुआ देख कुमुद ने कहा____"क्या फिर से उस लड़के के ख़्यालों में खो गई?"
"मुझे आपसे एक सहायता चाहिए भौजी।" रूपा ने सहसा गंभीर भाव से कहा____"कृपया मना मत कीजिएगा।"

"बात क्या है रूपा?" कुमुद ने उसकी गंभीरता को भांपते हुए पूछा____"कोई परेशानी है क्या?"
"हां भौजी।" रूपा एकदम से उठ कर बैठ गई, फिर गंभीर भाव से बोली____"बहुत बड़ी परेशानी और चिंता की बात हो गई है। इसी लिए तो कह रही हूं कि मुझे आपसे एक सहायता चाहिए।"

"आख़िर बात क्या है?" कुमुद के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं____"ऐसी क्या बात हो गई है जिसकी वजह से तुम मुझसे सहायता मांग रही हो? मुझे सब कुछ बताओ रूपा। आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते अचानक से तुम इतना चिंतित हो गई हो?"

"पहले मेरी क़सम खाइए भौजी।" रूपा ने झट से कुमुद का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया, फिर बोली____"पहले मेरी क़सम खाइए कि मैं आपको जो कुछ भी बताऊंगी उसके बारे में आप इस घर में किसी को कुछ भी नहीं बताएंगी।"

"तुम मेरी ननद ही नहीं बल्कि सहेली भी हो रूपा।" कुमुद ने कहा____"तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम कभी भी एक दूसरे के राज़ किसी से नहीं बताते। फिर क़सम देने की क्या ज़रूरत है तुम्हें? क्या तुम्हें अपनी भौजी पर यकीन नहीं है?"

"खुद से भी ज़्यादा यकीन है भौजी।" रूपा ने बेचैन भाव से कहा____"लेकिन फिर भी आप एक बार मेरी क़सम खा लीजिए। मेरी बात को अन्यथा मत लीजिए भौजी।"

"अच्छा ठीक है।" कुमुद ने कहा____"मैं अपनी सबसे प्यारी ननद और सबसे प्यारी सहेली की क़सम खा कर कहती हूं कि तुम मुझे जो कुछ भी बताओगी उसके बारे में मैं कभी भी किसी से ज़िक्र नहीं करूंगी। तुम्हारा हर राज़ मेरे सीने में मरते दम तक दफ़न रहेगा। अब बताओ कि आख़िर बात क्या है?"

"वैभव की जान को ख़तरा है भौजी।" रूपा ने दुखी भाव से कहा____"अभी कुछ देर पहले जब मैं दिशा मैदान के लिए गई थी तब मैंने बाग़ में कुछ लोगों से इस बारे में सुना था।"

"य...ये क्या कह रही हो तुम?" कुमुद ने हैरत से आंखें फैला कर कहा____"भला बाग़ में ऐसे वो कौन लोग थे जो वैभव के बारे में ऐसी बातें कर रहे थे?"
"आप सुनेंगी तो आपको यकीन नहीं होगा भौजी।" रूपा ने आहत भाव से कहा____"मुझे ख़ुद अभी तक यकीन नहीं हो रहा है।"

"पर वो लोग थे कौन रूपा?" कुमुद ने उलझनपूर्ण भाव से पूछा____"जिन्होंने वैभव के बारे में ऐसा कुछ कहा जिसे सुन कर तुम ये सब कह रही हो। मुझे पूरी बात बताओ।"

रूपा ने कुमुद को सब कुछ बता दिया। जिसे सुन कर कुमुद भी गहरे ख़्यालों में खोई हुई नज़र आने लगी। उधर सब कुछ बताने के बाद रूपा ने कहा_____"आपको पता है वैभव को ख़त्म करने के लिए कहने वाला कौन था? वो व्यक्ति कोई और नहीं आपके ही ससुर थे यानि मेरे ताऊ जी। मैंने अच्छी तरह उनकी आवाज़ को सुना था भौजी। वो ताऊ जी ही थे।"

कुमुद को रूपा के मुख से अपने ससुर के बारे में ये जान कर ज़बरदस्त झटका लगा। एकदम से उससे कुछ कहते न बन पड़ा था। चेहरे पर ऐसे भाव उभर आए थे जैसे वो इस बात को यकीन करने की कोशिश कर रही हो।

"बाकी दो लोग कौन थे मैं नहीं जानती भौजी।" कुमुद को गहरी सोच में डूबा देख रूपा ने कहा____"उन दोनों की आवाज़ मेरे लिए बिल्कुल ही अंजानी थी लेकिन ताऊ जी की आवाज़ को पहचानने में मुझसे कोई ग़लती नहीं हुई है।"

"ऐसा कैसे हो सकता है रूपा?" कुमुद ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"अब तो हवेली वालों से हमारे संबंध अच्छे हो गए हैं ना? ससुर जी ने तो खुद ही अच्छे संबंध बनाने की पहल की थी तो फिर वो खुद ही ऐसा कैसे कर सकते हैं?"

"यही तो समझ में नहीं आ रहा भौजी।" रूपा ने चिंतित भाव से कहा____"अगर ताऊ जी ने खुद पहल कर के हवेली वालों से अपने संबंध सुधारे थे तो अब वो ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसका तो यही मतलब हो सकता है ना कि संबंध सुधारने का उन्होंने सिर्फ़ दिखावा किया था जबकि आज भी वो हवेली वालों को अपना दुश्मन समझते हैं। यही बात कुछ समय पहले वैभव ने भी मुझसे कही थी भौजी।"

"क्या मतलब?" कुमुद ने चौंकते हुए पूछा____"क्या कहा था वैभव ने?"
"उसे भी यही लगता है कि हमारे घर वालों ने उससे संबंध सुधार लेने का सिर्फ़ दिखावा किया है जबकि ऐसा करने के पीछे यकीनन हमारी कोई चाल है।" रूपा ने कहा____"वैभव ने मुझसे कहा भी था कि अगर वो ग़लत कह रहा है तो मैं खुद इस बारे में पता कर सकती हूं। उस दिन मुझे उसकी बातों पर यकीन नहीं हुआ था इस लिए मैंने कभी इसके बारे में पता लगाने का नहीं सोचा था लेकिन अभी शाम को जो कुछ मैंने सुना उससे मैं सोचने पर मजबूर हो गई हूं।"

"अगर सच यही है।" कुमुद ने गंभीरता से कहा____"तो यकीनन ये बहुत ही गंभीर बात है रूपा। मुझे समझ नहीं आ रहा कि ससुर जी ऐसा क्यों कर रहे हैं? आख़िर हवेली वालों से उनकी क्या दुश्मनी है जिसकी वजह से वो ऐसा कर रहे हैं? इस घर में मुझे आए हुए डेढ़ दो साल हो गए हैं लेकिन मैंने कभी किसी के मुख से दोनों खानदानों के बीच की दुश्मनी का असल कारण नहीं सुना। ये ज़रूर सुनती आई हूं कि तुम्हारे भाई लोगों का उस लड़के से कभी न कभी लड़ाई झगड़ा होता ही रहता है। जब संबंध अच्छे बने तो ससुर जी खुद ही उस लड़के को हमारे घर ले कर आए थे। मैंने सुना था कि वो घर बुला कर उस लड़के का सम्मान करना चाहते थे। उस दिन जब वैभव आया था तो मैंने देखा था कि वो सबसे कितने अच्छे तरीके से मिल रहा था और अपने से बड़ों के पैर छू कर आशीर्वाद ले रहा था। मेरी गुड़िया को तो वो अपने साथ हवेली ही ले गया था। अब सोचने वाली बात है कि अगर ससुर जी खुद उस लड़के को सम्मान देने के लिए यहां ले कर आए थे तो अब उसी लड़के को ख़त्म करने का कैसे सोच सकते हैं?"

"ज़ाहिर है वैभव को अपने घर ला कर उसे सम्मान देना महज दिखावा ही था।" रूपा ने कहा____"जबकि उनके मन में तो वैभव के प्रति नफ़रत की ही भावना थी। ये भी निश्चित ही समझिए कि अगर ताऊजी ऐसी मानसिकता रखते हैं तो ऐसी ही मानसिकता उनके सभी भाई भी रखते ही होंगे। भला वो अपने बड़े भाई साहब के खिलाफ़ कैसे जा सकते हैं? कहने का मतलब ये कि वो सब हवेली वालों से नफ़रत करते हैं और उन सबका एक ही मकसद होगा____'हवेली के हर सदस्य का खात्मा कर देना।"

रूपा की बातें सुन कर कुमुद हैरत से देखती रह गई उसे। उसके ज़हन में विचारों की आंधियां सी चलने लगीं थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके घर वालों का सच ऐसा भी हो सकता है।

"मुझे आपकी सहायता चाहिए भौजी।" रूपा ने चिंतित भाव से कहा____"मुझे किसी भी तरह वैभव को इस संकट से बचाना है।"
"पर तुम कर भी क्या सकोगी रूपा?" कुमुद ने बेचैन भाव से कहा____"तुमने बताया कि वैभव अपनी भाभी को ले कर चंदनपुर गया हुआ है तो तुम भला कैसे उसे इस संकट से बचाओगी? क्या तुम रातों रात चंदनपुर जाने का सोच रही हो?"

"नहीं भौजी।" रूपा ने कहा____"चंदनपुर तो मैं किसी भी कीमत पर नहीं जा सकती क्योंकि ये मेरे लिए संभव ही नहीं हो सकेगा लेकिन हवेली तो जा ही सकती हूं।"

"ह...हवेली??" कुमुद ने हैरानी से रूपा को देखा।
"हां भौजी।" रूपा ने कहा____"आपकी सहायता से मैं हवेली ज़रूर जा सकती हूं और वहां पर दादा ठाकुर को इस बारे में सब कुछ बता सकती हूं। वो ज़रूर वैभव को इस संकट से बचाने के लिए कुछ न कुछ कर लेंगे।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है।" कुमुद ने सोचने वाले भाव से कहा____"लेकिन तुम हवेली कैसे जा पाओगी? सबसे पहले तो तुम्हारा इस घर से बाहर निकलना ही मुश्किल है और अगर मान लो किसी तरह हवेली पहुंच भी गई तो वहां रात के इस वक्त कैसे हवेली में प्रवेश कर पाओगी?"

"मेरे पास एक उपाय है भौजी।" रूपा के चेहरे पर सहसा चमक उभर आई थी, बोली____"घर में सबको पता है कि मेरा पेट ख़राब है जिसके चलते मुझे बार बार दिशा मैदान के लिए जाना पड़ता है। तो उपाय ये है कि मैं आपके साथ दिशा मैदान जाने के लिए घर से बाहर जाऊंगी। उसके बाद बाहर से सीधा हवेली चली जाऊंगी। वैसे भी घर में कोई ये कल्पना ही नहीं कर सकता कि मैं ऐसे किसी काम के लिए सबकी चोरी से हवेली जा सकती हूं।"

"वाह! रूपा क्या मस्त उपाय खोजा है तुमने।" कुमुद के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई, अतः मुस्कुराते हुए बोली____"आज मैं पूरी तरह से मान गई कि तुम सच में वैभव से बेहद प्रेम करती हो वरना अपने ही परिवार के खिलाफ़ जा कर ऐसी बात हवेली में जा कर बताने का कभी न सोचती।"

"मुझे इस बात को बताने की कोई खुशी नहीं है भौजी।" रूपा ने उदास भाव से कहा____"क्योंकि हवेली में दादा ठाकुर को जब मेरे द्वारा इस बात का पता चलेगा तो ज़ाहिर है कि उसके बाद मेरे अपने घर वाले भी संकट में घिर जाएंगे। वैभव की जान बचाने के चक्कर में मैं अपनों को ही संकट में डाल दूंगी और ये बात सोच कर ही मुझे अपने आपसे घृणा हो रही है।"

"मैं मानती हूं कि ऐसा करने से तुम अपने ही घर वालों को संकट में डाल दोगी।" कुमुद ने कहा____"लेकिन इसका भी एक सटीक उपाय है मेरी प्यारी ननदरानी।"
"क्या सच में?" रूपा के मुरझाए चेहरे पर सहसा खुशी की चमक फिर से उभर आई____"क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मेरे ऐसा करने के बाद भी मेरे घर वालों पर कोई संकट न आए?"

"हां रूपा।" कुमुद ने कहा____"उपाय ये है कि तुम दादा ठाकुर से इस बारे में बताने से पहले ये आश्वासन ले लो कि वो हमारे घर वालों पर किसी भी तरह का कोई संकट नहीं आने देंगे। अगर वो आश्वासन दे देते हैं तो ज़ाहिर है कि तुम्हारे द्वारा ये सब बताने पर भी वो हमारे घर वालों के लिए ख़तरा नहीं बनेंगे।"

"और अगर वो न माने तो?" रूपा ने संदिग्ध भाव से पूछा____"अगर वो गुस्से में आ कर सच में हमारे घर वालों के लिए ख़तरा बन गए तो?"

"नहीं, ऐसा नहीं होगा।" कुमुद ने मानों पूरे विश्वास के साथ कहा____"डेढ़ दो सालों में इतना तो मैं भी जान गई हूं कि दादा ठाकुर किस तरह के इंसान हैं। मुझे यकीन है कि जब तुम सब कुछ बताने के बाद हमारे परिवार पर संकट न आने के लिए उनसे कहोगी तो वो तुम्हें निराश नहीं करेंगे। आख़िर वो ये कैसे भूल जाएंगे कि तुमने अपने परिवार के खिलाफ़ जा कर उनके बेटे के जीवन को बचाने का प्रयास किया है? मुझे पूरा यकीन है रूपा कि वो हमारे लिए कोई भी ख़तरा नहीं बनेंगे।"

"अगर आपको उन पर यकीन है।" रूपा ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"तो फिर हम दोनों दिशा मैदान के लिए चलते हैं। अब एक पल का भी देर करना ठीक नहीं है।"

"रुको, एक उपाय और है रूपा।" कुमुद ने कुछ सोचते हुए कहा____"एक ऐसा उपाय जिससे किसी बात की चिंता करने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी।"
"क्या मतलब??" रूपा के माथे पर उलझन के भाव उभर____"भला इस तरह का क्या उपाय हो सकता है भौजी?"

"बड़ा सीधा सा उपाय है मेरी प्यारी लाडो।" कुमुद ने मुस्कुराते हुए कहा____"और वो ये कि हम दादा ठाकुर को ये नहीं बताएंगे कि वैभव को ख़त्म करने के लिए किसने कहा है। कहने का मतलब ये कि तुम उनसे सिर्फ यही बताना कि तुमने हमारे बाग में कुछ लोगों को ऐसी बातें करते सुना था जिसमें वो लोग चंदनपुर जा कर वैभव को जान से मारने को कह रहे थे। दादा ठाकुर अगर ये पूछेंगे कि तुम उस वक्त बाग में क्या कर रही थी तो बोल देना कि तुम्हारा पेट ख़राब था इस लिए तुम वहां पर दिशा मैदान के लिए गई थी और उसी समय तुमने ये सब सुना था।"

"ये उपाय तो सच में कमाल का है भौजी।" रूपा के चेहरे पर खुशी के भाव उभर आए____"यानि मुझे ताऊ जी के बारे में दादा ठाकुर से बताने की ज़रूरत ही नहीं है और जब ताऊ जी का ज़िक्र ही नहीं होगा तो दादा ठाकुर से हमारे परिवार को कोई ख़तरा भी नहीं होगा। वाह! भौजी क्या उपाय बताया है आपने।"

"ऐसा करने से एक तरह से हम अपने परिवार वालों के साथ गद्दारी भी नहीं करेंगे रूपा।" कुमुद ने कहा____"और उन्हें दादा ठाकुर के क़हर से भी बचा लेंगे। वैभव से तुम प्रेम करती हो तो उसके लिए ऐसा कर के तुम उसके प्रति अपनी वफ़ा भी साबित कर लोगी। इससे कम से कम तुम्हारे दिलो दिमाग़ में कोई अपराध बोझ तो नहीं रहेगा।"

"सही कहा भौजी।" रूपा एकदम कुमुद के लिपट कर बोली____"आप ने सच में मुझे एक बड़े धर्म संकट से बचा लिया है। आप मेरी सबसे अच्छी भौजी हैं।"
"सिर्फ़ भौजी नहीं मेरी प्यारी ननदरानी।" कुमुद ने प्यार से रूपा की पीठ को सहलाते हुए कहा___"बल्कि तुम्हारी सहेली भी। तुम्हें मैं ननद से ज़्यादा अपनी सहेली मानती हूं।"

"हां मेरी प्यारी सहेली।" रूपा ने हल्के से हंसते हुए कहा____"अब चलिए, हमें जल्द से जल्द ये काम करना है। देर करना ठीक नहीं है।"

रूपा की बात सुन कर कुमुद मुस्कुराई और फिर रूपा के दाएं गाल को प्यार से सहला कर पलंग से उठ गई। उसके बाद उसने रूपा को चलने का इशारा किया और खुद कमरे से बाहर निकल गई। रूपा को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके दिलो दिमाग़ में जो अब तक भारी बोझ पड़ा हुआ था वो पलक झपकते ही गायब हो गया है। हवेली जाने के ख़्याल ने उसे एकदम से रोमांचित सा कर दिया था। आज पहली बार वो हवेली जाने वाली थी और पहली बार वो कोई ऐसा काम करने वाली थी जिसके बारे में उसके घर वाले कल्पना भी नहीं कर सकते थे।


✮✮✮✮

"क्या बात है?" बैठक में बैठे दादा ठाकुर ने हैरानी भरे भाव से अभिनव को देखते हुए कहा____"उनसे कुछ पता चला है क्या?"

"अभी तो कुछ पता नहीं चला है पिता जी।" अभिनव ने कहा____"हमारे आदमी वैभव के दोनों दोस्तों और जगन पर बराबर नज़र रखे हुए हैं। अभी मैं उनसे ही मिल कर आ रहा हूं। हमारे आदमियों के अनुसार वो तीनों सामान्य दिनों की तरह ही अपने अपने काम में लगे हुए थे। सुबह से अब तक वो लोग अपने अपने घरों से बाहर तो गए थे लेकिन किसी ऐसे आदमी से नहीं मिले जिसे सफ़ेदपोश अथवा काला नकाबपोश कहा जा सके। वैसे भी सफ़ेदपोश और काला नकाबपोश उन लोगों से रात के अंधेरे में ही मिलता है। दिन में शायद इस लिए नहीं मिलता होगा क्योंकि इससे उनका भेद खुल जाने का ख़तरा रहता होगा।"

"मेरा खयाल तो ये है भैया कि हम सीधे उन तीनों को पकड़ लेते हैं।" जगताप ने कहा____"माना कि वो लोग सफ़ेदपोश अथवा काले नकाबपोश के बारे में कुछ न बता पाएंगे लेकिन इतना तो ज़रूर बता सकते हैं कि उन लोगों ने आख़िर किस वजह से हमारे खिलाफ़ जा कर सफ़ेदपोश से मिल गए और उसके इशारे पर चलने लगे?"

"जगन का तो समझ में आता है चाचा जी कि उसने अपने बड़े भाई की ज़मीन हड़पने के लिए ये सब किया होगा।" अभिनव ने कहा____"लेकिन सुनील और चेतन किस वजह से उस सफेदपोश के सुर में चलने लगे ये सोचने वाली बात है। संभव है कि इसके पीछे उनकी कोई मजबूरी रही होगी लेकिन ये पता करना ज़रूरी है कि दोनों ने सफ़ेदपोश के कहने पर क्या किया है? रही बात उन लोगों को सीधे पकड़ लेने की तो ऐसा करना ख़तरनाक भी हो सकता है क्योंकि अगर वो लोग किसी मजबूरी में सफ़ेदपोश का साथ दे रहे हैं तो ज़ाहिर है कि हमारे द्वारा उन्हें पकड़ लेने से उनकी या उनके परिवार वालों की जान को ख़तरा हो जाएगा।"

"हम अभिनव की बातों से सहमत हैं जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम किसी भी मामले को जानने के लिए किसी निर्दोष की जान को ख़तरे में नहीं डाल सकते। बेशक हमारा उनसे बहुत कुछ जानना ज़रूरी है लेकिन इस तरीके से नहीं कि हमारी किसी ग़लती की वजह से उन पर या उनके परिवार पर संकट आ जाए। जहां अब तक हमने इंतज़ार किया है वहीं थोड़ा इंतज़ार और सही।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर जगताप अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी एक दरबान अंदर आया और उसने दादा ठाकुर से कहा कि एक आदमी आया है और उनसे शीघ्र मिलना चाहता है। दरबान की बात सुन कर दादा ठाकुर ने कुछ पल सोचा और फिर दरबान से कहा ठीक है उसे अंदर भेज दो। दरबान के जाने के कुछ ही देर बाद जो शख़्स बैठक में आया। उसे देख दादा ठाकुर हल्के से चौंके। आने वाला शख़्स कोई और नहीं बल्कि शेरा था। दादा ठाकुर को समझते देर न लगी कि शेरा को उन्होंने जो काम दिया था उसमें वो कामयाब हो कर ही लौटा है। अगर वो कामयाब न हुआ होता तो वो अपनी शक्ल न दिखाता। दादा ठाकुर इस बात से अंदर ही अंदर खुश हो गए और साथ ही उनकी धड़कनें भी थोड़ा तेज़ हो गईं।

"प्रणाम मालिक।" शेरा ने हाथ जोड़ कर दादा ठाकुर को प्रणाम किया और फिर जगताप को भी।
"क्या बात है?" दादा ठाकुर ने शेरा की तरफ देखते हुए कहा____"इस वक्त तुम यहां? सब ठीक तो है न?"

"जी मालिक सब ठीक है।" शेरा ने अदब से कहा____"आपको एक ख़बर देने आया हूं। अगर आप मुनासिब समझें तो अर्ज़ करूं?"
"ज़रूरत नहीं है।" दादा ठाकुर कहने के साथ ही एक झटके में अपने सिंहासन से उठे, फिर बोले____"हम जानते हैं तुम क्या कहना चाहते हो। बस ये बताओ कहां हैं वो?"

शेरा ने जवाब देने से पहले बैठक में बैठे अभिनव और जगताप को देखा और फिर कहा____"माफ़ कीजिए मालिक लेकिन एक ही हाथ लगा है। मैं उसे अपने साथ ही ले कर आया हूं।"

शेरा की बात सुन कर दादा ठाकुर मन ही मन थोड़ा चौंके और फिर पलट कर बारी बारी से अपने बेटे अभिनव और छोटे भाई जगताप को देखा। उसके बाद कुछ सोचते हुए उन्होंने जगताप से कहा____"एक अच्छी ख़बर है जगताप।"

"कैसी ख़बर भैया?" जगताप ने उलझन भरे भाव से कहा____"और ये शेरा किसके हाथ लगने की बात कर रहा है?"
"हमने शेरा को एक बेहद ही महत्वपूर्ण काम सौंपा था" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें ये तो उम्मीद थी कि ये हमारे द्वारा दिए गए काम को यकीनन सफलतापूर्वक अंजाम देगा लेकिन ये उम्मीद नहीं थी कि ये इतना जल्दी अपना काम कर लेगा। ख़ैर बात ये है कि शेरा के हाथ सफ़ेदपोश अथवा काले नकाबपोश में से कोई एक लग गया है और ये उसे अपने साथ ही ले कर आया है।"

"क...क्या??" जगताप से पहले अभिनव आश्चर्य से बोल पड़ा____"मेरा मतलब है कि क्या आप सच कह रहे हैं पिता जी?"
"बिलकुल।" दादा ठाकुर ने ख़ास भाव से कहा____"शेरा ने उनमें से किसी एक को पकड़ लिया है और उसे अपने साथ यहां ले आया है।" कहने के साथ ही दादा ठाकुर शेरा से मुखातिब हुए____"तुमने बहुत अच्छा काम किया है शेरा। तुम हमारी उम्मीद पर बिलकुल खरे उतरे। ख़ैर ये बताओ कि उनमें से कौन तुम्हारे हाथ लगा है?"

"मैं तो सफ़ेदपोश को ही पकड़ने के लिए उसके पीछे गया था मालिक।" शेरा ने कहा___"लेकिन बाग़ में अचानक से वो गायब हो गया। मैंने उसे बहुत खोजा लेकिन उसका कहीं पता नहीं चल सका। उसके बाद मैं काले नकाबपोश को खोजने लगा और आख़िर वो मुझे मिल ही गया। उसको अपने कब्जे में लेने के लिए मुझे उसके साथ काफी ज़ोरदार मुकाबला करना पड़ा जिसका नतीजा ये निकला कि आख़िर में मैंने उसे अपने कब्जे में ले ही लिया।"

"ये तो सच में बड़े आश्चर्य और कमाल की बात हुई भैया।" जगताप ने खुशी से कहा____"शेरा के हाथ उस सफ़ेदपोश का खास आदमी लग गया है। अब हम उसके द्वारा पलक झपकते ही सफ़ेदपोश तक पहुंच सकते हैं। उसके बाद हमें ये जानने में देर नहीं लगेगी कि हमारे साथ इस तरह का खेल खेलने वाला वो सफ़ेदपोश कौन है? बस एक बार वो मेरे हाथ लग जाए उसके बाद तो मैं उसकी वो हालत करूंगा कि दुबारा जन्म लेने से भी इंकार करेगा।"

"बेशक ऐसा ही होगा जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन तब तक हमें पूरे होशो हवास में रहना होगा। ख़ैर तुम शेरा के साथ जाओ और उस काले नकाबपोश को हवेली के किसी कमरे में बंद कर दो। हम सुबह उससे पूछताछ करेंगे।"

"सुबह क्यों भैया?" जगताप ने कहा____"हमें तो अभी उससे पूछताछ करनी चाहिए। उससे सफ़ेदपोश के बारे में सब कुछ जान कर जल्द से जल्द उस सफ़ेदपोश को खोजना चाहिए।"

"इतना बेसब्र मत हो जगताप।" दादा ठाकुर ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"धीरज से काम लो। हम जानते हैं कि तुम जल्द से जल्द हमारे दुश्मन को खोज कर उसको नेस्तनाबूत कर देना चाहते हो लेकिन इतना बेसब्र होना ठीक नहीं है। अब तो वो काला नकाबपोश हमारे हाथ लग ही गया है इस लिए सुबह हम सब उससे तसल्ली से पूछताछ करेंगे।"

"ठीक है भैया।" जगताप ने कहा____"जैसा आपको ठीक लगे।"
"हम तुम्हारे इस काम से बेहद खुश हैं शेरा।" दादा ठाकुर ने शेरा से कहा____"इसका इनाम ज़रूर मिलेगा तुम्हें?"
"माफ़ कीजिए मालिक।" शेरा ने हाथ जोड़ कर कहा____"आपके द्वारा इनाम लेने में मुझे तभी खुशी होगी जब उस सफ़ेदपोश को भी पकड़ कर आपके सामने ले आऊंगा।"

शेरा की बात सुन कर दादा ठाकुर मुस्कुराए और आगे बढ़ कर शेरा के बाएं कंधे पर अपना हाथ रख कर हल्के से दबाया। उसके बाद उन्होंने जगताप को शेरा के साथ जाने को कहा। जगताप और शेरा बैठक से बाहर आए। हवेली के एक तरफ दीवार के सहारे और दो दरबानों की निगरानी में काला नकाबपोश बेहोश पड़ा हुआ था। जगताप के कहने पर शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लाद लिया और फिर वो जगताप के पीछे पीछे हवेली के उत्तर दिशा की तरफ बढ़ता चला गया। जल्दी ही वो हवेली के एक तरफ बने एक सीलनयुक्त कमरे में पहुंच गया।

जगताप के कहने पर शेरा ने उस काले नकाबपोश को उस खाली कमरे में एक तरफ डाल दिया। काले नकाबपोश के चेहरे पर अभी भी काला नक़ाब था जिसे जगताप ने एक झटके से उतार दिया। कमरे में एक तरफ लालटेन का प्रकाश था इस लिए उस प्रकाश में जगताप ने उस आदमी को देखा। काला नकाबपोश उसे इस गांव का नहीं लग रहा था। जगताप की नज़र उसके एक हाथ पर पड़ी जो टूटा हुआ था। उसने पलट कर शेरा की तरफ देखा तो शेरा ने बताया कि मुकाबले में उसी ने उसका हाथ तोड़ा है, तभी तो वो उसके हाथ लगा था। ख़ैर, जगताप और शेरा कमरे से बाहर आ गए। जगताप के कहने पर एक दरबान ने उस कमरे के दरवाज़े की कुंडी बंद कर उसमें ताला लगा दिया।


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रूपा ने वैभव के लिए अपने प्यार का सबूत दे दिया रूपा अपने प्यार को बचाने लिए अपनी भाभी कुमुद के साथ दादा ठाकुर से मिलने जाने वाली है वो भी घर वालो के खिलाफ जाकर क्या रूपा अपने ताऊ की साजिश को नाकाम कर पाएगी
शेरा उस काले नकाबपोश को लेकर दादा ठाकुर के पास आ गए हैं देखते हैं उस काले नकाबपोश से क्या पता चलता है या नहीं
 

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अध्याय - 59
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अब तक....

जगताप के कहने पर शेरा ने उस काले नकाबपोश को उस खाली कमरे में एक तरफ डाल दिया। काले नकाबपोश के चेहरे पर अभी भी काला नक़ाब था जिसे जगताप ने एक झटके से उतार दिया। कमरे में एक तरफ लालटेन का प्रकाश था इस लिए उस प्रकाश में जगताप ने उस आदमी को देखा। काला नकाबपोश उसे इस गांव का नहीं लग रहा था। जगताप की नज़र उसके एक हाथ पर पड़ी जो टूटा हुआ था। उसने पलट कर शेरा की तरफ देखा तो शेरा ने बताया कि मुकाबले में उसी ने उसका हाथ तोड़ा है, तभी तो वो उसके हाथ लगा था। ख़ैर, जगताप और शेरा कमरे से बाहर आ गए। जगताप के कहने पर एक दरबान ने उस कमरे के दरवाज़े की कुंडी बंद कर उसमें ताला लगा दिया।

अब आगे....

उस वक्त शाम के क़रीब नौ बजने वाले थे। रूपा अपनी भाभी कुमुद के साथ अपने घर से दिशा मैदान जाने के लिए निकली थी। यूं तो आसमान में आधे से कम चांद था जिसकी वजह से हल्की रोशनी थी किंतु आसमान में काले बादलों ने डेरा जमाना शुरू कर दिया था। ऐसा लगता था जैसे रात के किसी प्रहर बारिश हो सकती थी। काले बादलों ने उस आधे से कम चांद को ढंक रखा था जिसकी वजह से उसकी रोशनी धरती पर नहीं पहुंच पा रही थी। रूपा और कुमुद पर मानों काले बादलों ने मेहरबानी कर रखी थी। घर के पीछे आने के बाद वो दोनों लंबा चक्कर लगाते हुए सीधा हवेली पहुंच गईं थी। कुमुद ने साड़ी से घूंघट किया हुआ था और रूपा ने अपने दुपट्टे को मुंह में लपेट लिया था ताकि रास्ते में अगर कोई मिले भी तो वो उन दोनों को पहचान न सके। दोनों ने अपने अपने लोटे को घर के पीछे ही एक जगह छिपा दिया था।

ननद भौजाई दोनों ही पहली बार हवेली आईं थी। दादा ठाकुर की हवेली के बारे में सुना बहुत था दोनों ने लेकिन कभी यहां आने का कोई अवसर नहीं मिला था। दोनों की धड़कनें बढ़ी हुईं थी। कुमुद कई बार रूपा को बोल चुकी थी कि कहीं हम किसी के द्वारा पकड़े न जाएं इस लिए वापस घर लौट चलते हैं लेकिन रूपा ने तो जैसे ठान लिया था कि अब तो वो हवेली जा कर दादा ठाकुर को सब कुछ बता कर ही रहेगी।

हवेली के हाथी दरवाज़े के पास पहुंच कर दोनों ही रुक गईं। हल्के अंधेरे में उन्हें हाथी दरवाज़े के पार दूर हवेली बनी हुई नज़र आई जो अंधेरे में बड़ी ही अजीब और भयावह सी नज़र आ रही थी। कुछ देर तक दोनों इधर उधर देखती रहीं उसके बाद आगे बढ़ चलीं। दोनों की धड़कनें पहले से और भी ज़्यादा तेज़ हो गईं। अभी दोनों ने हाथी दरवाज़े को पार ही किया था कि सहसा एक तेज़ मर्दाना आवाज़ को सुन कर दोनों के होश उड़ गए। घबराहट के मारे पलक झपकते ही दोनों का बुरा हाल हो गया।

"कौन हो तुम दोनों?" सहसा एक आदमी अंधेरे में दोनों के सामने किसी जिन्न की तरह नमूदार हो कर कड़क आवाज़ में बोला____"और इस वक्त कहां जा रही हो?"

"ज...जी वो हमें दादा ठाकुर से मिलना है।" कुमुद से पहले रूपा ने हिम्मत जुटा कर धीमें स्वर में कहा।
"दादा ठाकुर से??" वो आदमी जोकि हवेली का दरबान था चौंकते हुए दोनों को देखा____"तुम दोनों को भला उनसे क्या काम है?"

"देखिए हमारा उनसे मिलना बहुत ही ज़रूरी है।" रूपा ने अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को काबू करते हुए कहा____"आप कृपया हमें दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए।"
"अरे! ऐसे कैसे भला?" दरबान ने हाथ झटकते हुए संदिग्ध भाव से कहा____"पहले तुम दोनों ये बताओ कि कौन हो और रात के इस वक्त अंधेरे में कहां से आई हो?"

"देखिए आप समझ नहीं रहे हैं।" कुमुद ने सहसा आगे बढ़ कर कहा____"आपके लिए ये जानना ज़रूरी नहीं है कि हम कौंन है और कहां से आए हैं, बल्कि ज़रूरी ये है कि आप हमें जल्द से जल्द दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए।"

"आप हमें ग़लत मत समझिए।" रूपा ने कहा____"असल में बात कुछ ऐसी है कि हम सिर्फ़ दादा ठाकुर को ही बता सकते हैं। कृपा कर के आप या तो हमें दादा ठाकुर के पास पहुंचा दीजिए या फिर आप ख़ुद ही जा कर दादा ठाकुर को बता दीजिए कि कोई उनसे मिलने आया है।"

दरबान दोनों की बात सुन कर सोच में पड़ गया। रात के इस वक्त दो औरतों का हवेली में आना उसके लिए हैरानी की बात थी किंतु आज कल जो हालात थे उसका उसे भी थोड़ा बहुत पता था इस लिए उसने सोचा कि एक बार दादा ठाकुर को इस बारे में सूचित ज़रूर करना चाहिए।

"ठीक है।" फिर उसने थोड़ा नम्र भाव से कहा___"तुम दोनों यहीं रुको। मैं दादा ठाकुर को तुम दोनों के बारे में सूचित करता हूं। अगर उन्होंने तुम दोनों को बुलाया तो मैं तुम दोनों को अंदर उनके पास ले चलूंगा।"

दरबान की बात सुन कर दोनों ने हां में सिर हिलाया। उसके बाद दरबान दोनों को यहीं रुकने का बोल कर तेज़ कदमों के साथ हवेली की तरफ बढ़ता चला गया। इधर कुमुद और रूपा अंधेरे में इधर उधर देखने लगीं थी। उन्हें डर भी लग रहा था कि कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए अथवा वो दोनों किसी ऐसे आदमी के द्वारा न पकड़ी जाएं जो उन्हें पहचानता हो। दूसरा डर इस बात का भी था कि अगर दोनों को घर लौटने में ज़्यादा देर हो गई तो वो दोनों घर वालों को क्या जवाब देंगी?

ख़ैर कुछ ही देर में दरबान लगभग दौड़ता हुआ आया और हांफते हुए दोनों से अंदर चलने को कहा। दरबान के द्वारा अंदर चलने की बात सुन कर दोनों ने राहत की लंबी सांस ली और फिर दरबान के पीछे पीछे हवेली की तरफ बढ़ चलीं। कुछ ही समय में दोनों उस दरबान के साथ हवेली के अंदर बैठक में पहुंच गईं। दोनों के दिल बुरी तरह धड़क रहे थे। दरबान उन दोनों को बैठक में छोड़ कर बाहर चला गया था। बैठक में इस वक्त कोई नहीं था। दोनों अपनी घबराहट को काबू करने का प्रयास करते हुए बैठक की दीवारों को देखने लगीं थी। तभी सहसा किसी के आने की आहट से दोनों चौंकीं और फ़ौरन ही पलट कर पीछे देखा। नज़र एक ऐसी शख्सियत पर पड़ी जिनके लंबे चौड़े और हट्टे कट्टे बदन पर सफ़ेद कुर्ता पजामा था। कुर्ते के ऊपर उन्होंने एक साल ओढ़ रखा था। चेहरे पर रौब और तेज़ का मिला जुला संगम था। बड़ी बड़ी मूंछें और क़रीब तीन अंगुल की दाढ़ी जिनके बाल आधे से थोड़ा कम सफ़ेद नज़र आ रहे थे।

"कौन हैं आप दोनों?" दादा ठाकुर ने अपने सिंहासन पर बैठने के बाद बड़े नम्र भाव से दोनों की तरफ देखते हुए पूछा____"और रात के इस वक्त हमसे क्यों मिलना चाहती थीं?"

दादा ठाकुर की आवाज़ से दोनों को होश आया तो दोनों हड़बड़ा गईं और फिर खुद को सम्हाले हुए आगे बढ़ कर एक एक कर के दोनों ने झुक कर दादा ठाकुर के पांव छुए। दादा ठाकुर दोनों को ये करते देख हल्के से चौंके किन्तु फिर सामान्य भाव से दोनों को आशीर्वाद दिया। कुमुद ने तो उनके सामने घूंघट कर रखा था लेकिन रूपा ने अपने चेहरे से दुपट्टा हटा लिया।

"मैं रूपा हूं दादा ठाकुर।" रूपा ने अपनी घबराहट को काबू करते हुए कहा____"मेरे पिता जी का नाम हरि शंकर है और ये मेरी भाभी कुमुद हैं।"
"हरि शंकर??" दादा ठाकुर एकदम से चौंके, फिर हैरानी से बोले___"अच्छा अच्छा, तुम साहूकार हरि शंकर की बेटी हो? हमें लग ही रहा था कि कहीं तो तुम्हें देखा है। ख़ैर, ये बताओ बेटी कि रात के इस वक्त इस तरह से यहां आने का क्या कारण है? अगर कोई बात थी तो सुबह दिन के उजाले में भी तुम आ सकती थी यहां।"

"सुबह दिन के उजाले में आती तो शायद देर हो जाती दादा ठाकुर।" रूपा ने बेचैन भाव से कहा____"इस लिए रात के इस वक्त यहां आना पड़ा हम दोनों को।"

"हम कुछ समझे नहीं बेटी।" दादा ठाकुर के चेहरे पर उलझन के भाव उभर आए थे, बोले____"आख़िर ऐसी क्या बात थी जिसके लिए तुम दोनों को रात के इस वक्त यहां आना पड़ा। एक बात और, तुम हमें दादा ठाकुर नहीं बल्कि ताऊ जी कह सकती हो। हम दादा ठाकुर दूसरों के लिए हैं, जबकि तुम तो हमारे घर परिवार जैसी ही हो। ख़ैर, अब बताओ बात क्या है?"

"वो बात ये है ताऊ जी कि आपके छोटे बेटे की जान को ख़तरा है।" रूपा ने अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को बड़ी मुश्किल से सम्हालते हुए कहा____"अगर हम सुबह आते तो बहुत देर हो जाती इस लिए हम आपको इस बारे में बताने के लिए फ़ौरन यहां चले आए।"

"हमारे बेटे की जान को ख़तरा है?" दादा ठाकुर बुरी तरह चौंके____"ये क्या कह रही हो बेटी?"
"मैं सच कह रही हूं ताऊ जी।" रूपा ने कहा।

"पर तुम्हें कैसे पता कि हमारे बेटे की जान को ख़तरा है?" दादा ठाकुर बुरी तरह हैरान थे कि रूपा जैसी लड़की को इतनी बड़ी बात कैसे पता चली? उसी हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए बोले____"हम तुमसे जानना चाहते हैं बेटी कि इतनी बड़ी बात तुम्हें कहां से और कैसे पता चली?"

रूपा ने एक बार कुमुद की तरफ देखा और फिर गहरी सांस ले कर सब कुछ दादा ठाकुर को बताना शुरू कर दिया। उसने ये नहीं बताया कि वैभव को ख़त्म करने के लिए कहने वाला खुद उसका ताऊ मणि शंकर था। सारी बातें सुनने के बाद दादा ठाकुर गहरी सोच में डूब गए। सबसे ज़्यादा उन्हें ये सोच कर हैरानी हो रही थी कि इतनी बड़ी बात को बताने के लिए साहूकार हरि शंकर की बेटी अपनी भाभी के साथ रात के वक्त हवेली आ गई थी।

"इतनी बड़ी बात बता कर तुमने हम पर बहुत बड़ा उपकार किया है बेटी।" दादा ठाकुर ने गंभीर भाव से कहा____"तुम्हारे इस उपकार का बदला हम अपनी जान दे कर भी नहीं चुका सकते। बस यही दुआ करते हैं कि ऊपर वाला तुम्हें हमेशा खुश रखे लेकिन बेटी इसके लिए तुम दोनों को खुद रात के इस वक्त यहां आने की क्या ज़रूरत थी? हमारा मतलब है कि ये बात तुम अपने पिता जी अथवा ताऊ जी को बताती। वो खुद हमारे पास आ कर हमसे ये सब बता सकते थे। इसके लिए तुम्हें खुद इतनी तकलीफ़ उठाने की क्या ज़रूरत थी?"

"मैंने उस वक्त जब ये सब सुना था तो मुझे समझ ही नहीं आया था कि क्या करूं?" दादा ठाकुर की बात सुन कर रूपा अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गई थी, किंतु फिर जल्दी ही खुद को सम्हाले हुए बोली____"मेरे साथ कुमुद भाभी भी थीं तो मैंने इन्हें बताया। हम दोनों ने निश्चय किया कि जितना समय हमें अपने घर वालों को ये सब बताने में लगेगा उतने में तो हम खुद ही यहां आ कर आपको सब कुछ बता सकते हैं।"

"ख़ैर जो भी किया तुम दोनों ने बहुत ही अच्छा किया है।" दादा ठाकुर ने कहा____"और इसके लिए हम तुम दोनों से बेहद प्रसन्न हैं। हम अपने बेटे की जान को बचाने के लिए जल्द ही कुछ न कुछ करेंगे। ये सब होने के बाद हम तुम्हारे पिता और ताऊ से भी मिलेंगे और उन्हें खुशी खुशी बताएंगे कि उनकी बहू और बेटी ने हम पर कितना बड़ा उपकार किया है।"

"नहीं नहीं ताऊ जी।" रूपा बुरी तरह घबरा गई, फिर खुद को सम्हाले हुए बोली____"आप ये सब बातें हमारे पिता जी को या ताऊ जी को बिलकुल भी मत बताइएगा।"

"अरे! ये कैसी बात कर रही हो बेटी?" दादा ठाकुर ने हैरानी से कहा____"तुम दोनों ने हम पर इतना बड़ा उपकार किया है और हम तुम्हारे इतने बड़े उपकार को तुम्हारे ही घर वालों को न बताएं ये तो बिल्कुल भी उचित नहीं है। आख़िर तुम्हारे पिता और ताऊ जी को भी तो पता चलना चाहिए कि उनकी तरह उनकी बहू बेटी भी हमारे प्रति वफ़ादार हैं और हमारे अच्छे के लिए सोचती हैं। तुम चिंता मत करो बेटी, देखना ये सब जान कर तुम्हारे घर वाले भी बहुत प्रसन्न हो जाएंगे।"

"नहीं ताऊ जी।" रूपा का मारे घबराहट के बुरा हाल हो गया था, किसी तरह बोली____"मैं आपसे विनती करती हूं कि आप इस बारे में मेरे घर वालों में से किसी को भी कुछ मत बताइएगा। मेरे घर वाले बहुत ज़्यादा पुराने विचारों वाले हैं। अगर उन्हें पता चला कि उनके घर की बेटी और बहू रात के वक्त उनकी गैर जानकारी में हवेली गईं थी तो वो हम पर बहुत ही ज़्यादा नाराज़ हो जाएंगे।"

"ऐसा कुछ भी नहीं होगा बेटी।" दादा ठाकुर ने मानो उसे आश्वासन दिया____"तुम दोनों को इस बारे में फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है। हम उन्हें समझाएंगे कि तुम दोनों ने रात के वक्त हवेली में आ कर कोई अपराध नहीं किया है बल्कि हवेली में रहने वाले दादा ठाकुर पर उपकार किया है। हमें यकीन है कि ये बात जान कर उन सबका सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा।"

"आप मुझे बेटी कह रहे हैं ना ताऊ जी।" रूपा ने इस बार अधीरता से कहा____"तो इस बेटी की बात मान लीजिए ना। आप हमारे घर वालों को इस बारे में कुछ भी नहीं बताएंगे, आपको हम दोनों की क़सम है ताऊ जी।"

"बड़ी हैरत की बात है।" दादा ठाकुर ने चकित भाव से कहा____"ख़ैर, अगर तुम ऐसा नहीं चाहती तो ठीक है हम इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताएंगे। तुमने हमें क़सम दे दी है तो हम तुम्हारी क़सम का मान रखेंगे।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद ताऊ जी।" रूपा ने कहने के साथ ही दादा ठाकुर के पैर छुए और फिर खड़े हो कर कहा____"अब हमें जाने की इजाज़त दीजिए। काफी देर हो गई है हमें।"

रूपा के बाद कुमुद ने भी दादा ठाकुर के पांव छुए और फिर दादा ठाकुर की इजाज़त ले कर हवेली से बाहर निकल गईं। दादा ठाकुर हवेली के मुख्य दरवाज़े तक उन्हें छोड़ने आए। कुछ ही देर में दोनों अंधेरे में गायब हो गईं। उनके जाने के बाद दादा ठाकुर गहरी सोच और चिंता में डूब गए। उनके ज़हन में ख़्याल उभरा कि वैभव की जान को ख़तरा है अतः उन्हें जल्द से जल्द कुछ करना होगा। रूपा के अनुसार वैभव को जान से मारने वाला सुबह ही चंदनपुर के लिए रवाना हो जाएगा। दादा ठाकुर के मन में सवाल उभरा कि ऐसा कौन हो सकता है जो उनके बेटे को जान से मारने के लिए सुबह ही चंदनपुर के लिए निकलने वाला है? क्या वो इसी गांव का है या फिर किसी दूसरे गांव का?

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"वैभव महाराज कहां चले गए थे आप?" मैं जैसे ही घर पहुंचा तो वीरेंद्र ने पूछा____"हमने सोचा एक साथ ही दिशा मैदान के लिए चलेंगे पर आप तो जाने कहां गायब हो गए थे?"

"जी वो गांव तरफ घूमने निकल गया था।" मैंने सामान्य भाव से कहा____"सोचा आप सब व्यस्त हैं तो अकेला ही घूम फिर आता हूं। वैसे आप फ़िक्र न करें, यहां से निकला तो राघव भैया मिल गए। उन्हीं से दरबार होने लगी तो समय का पता ही नहीं चला।"

"चलिए कोई बात नहीं।" वीरेंद्र ने कहा____"अगर आपको दिशा मैदान के लिए चलना हो तो चलिए मेरे साथ।"
"नहीं, अब तो सुबह ही जाऊंगा।" मैंने कहा____"आप फुर्सत हो आइए। मैं यहीं बाबू जी के पास बैठता हूं।"

वीरेंद्र सिर हिला कर निकल गया और मैं अंदर आ कर बैठक में भाभी के पिता जी के पास बैठ गया। बैठक में और भी कुछ लोग बैठे हुए थे जिनसे बाबू जी ने मेरा परिचय कराया। अब क्योंकि मैं भी दामाद ही था इस लिए सबने मेरे पांव छुए। मुझे अपने से बड़ों का इस तरह से पांव छूना अजीब लगता था लेकिन क्या करें उनका अपना धर्म था। सब मेरा और मेरे पिता जी का हाल चाल पूछते रहे उसके बाद गांव के लोग चले गए।

रात में हम सबने साथ ही भोजन किया। भाभी और भाभी की छोटी बहन कामिनी रसोई में थी जबकि वीरेंद्र की पत्नी अपने कमरे में अपने नन्हें से बच्चे के साथ थी। खाना परोसने का काम कंचन और मोहिनी कर रहीं थी। बड़े भैया के चाचा ससुर भी हम सबके साथ खाना खाने के लिए बैठे हुए थे। मैंने महसूस किया कि कंचन मुझसे नज़रें चुरा रही थी। ज़ाहिर था आज शाम को जो कुछ हमारे बीच हुआ था उससे उसका नज़रें चुराना लाज़मी था। मैं उसे पूरी तरह से नंगा देख चुका था और इस वजह से वो मेरे सामने शर्मा रही थी। आस पास सब लोग थे इस लिए उससे मैं कुछ कह नहीं सकता था वरना उसकी अच्छी खासी खिंचाई करता। ख़ैर जल्दी ही हम सब का खाना हो गया तो हम सब उठ गए।

गर्मी का मौसम था इस लिए घर के बाहर ही चारपाई लगा कर हम सबके सोने की व्यवस्था की गई। मेरे साथ जो आदमी आए थे उन सबको वीरेंद्र ने भोजन करवाया और उन लोगों को भी घर के बाहर ही अलग अलग चारपाई पर सोने की व्यवस्था कर दी। कुछ देर हम सब बातें करते रहे उसके बाद सोने के लिए लेट गए।

मुझे नींद नहीं आ रही थी। आंखों के सामने बार बार जमुना के साथ हुई चुदाई का दृश्य उजागर हो जाता था जिसके चलते मेरा रोम रोम रोमांच से भर जाता था। सुषमा और कंचन के नंगे जिस्म भी आंखों के सामने उजागर हो जाते थे। मैं सोचने लगा कि अब जब दोनों से दुबारा अकेले में मुलाक़ात होगी तो वो दोनों कैसा बर्ताव करेंगी? मैं इस बारे में सोच जी रहा था कि सहसा मुझे अनुराधा का ख़्याल आ गया।

अनुराधा का ख़्याल आया तो एकदम से मेरे दिलो दिमाग़ में अजीब से ख़्याल उभरने लगे। मैं सोचने लगा कि इस वक्त वो भी चारपाई पर लेटी होगी। मेरे मन में सवाल उभरा कि क्या वो भी मेरे बारे में सोचती होगी? मुझे याद आया कि उस दिन उसने कितनी बेरुखी से मुझसे बातें की थी और फिर मुझे वो सब कह कर उसके घर से चले जाना पड़ा था। क्या सच में अनुराधा को यही लगता है कि मैं बाकी लड़कियों की तरह ही उसे अपने जाल में फंसाना चाहता हूं? इस सवाल पर मैं विचार करने लगा। कुछ देर सोचने के बाद सहसा मुझे कुछ आभास हुआ। मैंने सोचा, अगर वो मेरे बारे में ऐसा सोचती है तो क्या ग़लत सोचती है? माना कि ये सिर्फ मैं जानता हूं कि मैं उसके बारे में कुछ भी ग़लत नहीं सोचता हूं लेकिन इस बात को भी तो नकारा नहीं जा सकता कि मेरा चरित्र पहले जैसा ही है।

एकदम से मुझे आभास हुआ कि मैं अपने उसी चरित्र की वजह से अभी कुछ घंटे पहले जमुना के साथ ग़लत काम कर के आया हूं और ये भी सच ही है कि जमुना के अलावा मैं सुषमा और कंचन को भी भोगने की हसरत पाले बैठा हूं। भला ये क्या बात हुई कि एक तरफ मैं अनुराधा की नज़र में अच्छा इंसान बनने का दिखावा कर रहा हूं वहीं दूसरी तरफ मैं अभी भी पहले की तरह हर लड़की और हर औरत को भोगने की ख़्वाइश रखे हुए हूं? इस बात के एहसास ने एकदम से मुझे सोचो के गहरे समुद्र में डुबा दिया। मैंने सोचा, अनुराधा ने अगर मुझसे वो सब कहा तो क्या ग़लत कहा था? मैं तो आज भी वैसा ही हूं जैसा हमेशा से था। फिर मैं अनुराधा से ये क्यों कहता हूं कि उसने मुझे मुकम्मल तौर पर बदल दिया है? क्या सच में मैं बदल गया हूं? नहीं, बिल्कुल नहीं बदला हूं मैं। अगर सच में बदल गया होता तो आज ना तो मैं सुषमा और कंचन को भोगने की इच्छा रखता और ना ही जमुना के साथ वो सब करता। इसका मतलब अनुराधा से मैंने अपने बदल जाने के बारे में जो कुछ कहा वो सब झूठ था। इस सबके बावजूद मैं ये ख़्वाइश रखता हूं कि अनुराधा मुझे समझे और वही करे जो मैं उससे चाहता हूं।

अचानक से मैंने महसूस किया कि मेरे दिलो दिमाग़ में आंधियां सी चलने लगीं हैं। एक अजीब सा द्वंद चलने लगा था मेरे अंदर जिसकी वजह से एकदम से मुझे अजीब सा लगने लगा। मैंने बेचैनी और बेबसी से चारपाई पर करवट बदली और ज़हन से इन सारी बातों को निकालने की कोशिश करने लगा मगर जल्दी ही आभास हुआ कि ये इतना आसान नहीं है। काफी देर तक मैं इन सारी बातों की वजह से परेशान और व्यथित रहा और फिर ना जाने कब मेरी आंख लग गई।

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"मालिक आप यहां?" शेरा ने दरवाज़ा खोला और जैसे ही उसकी नज़र बाहर खड़े दादा ठाकुर पर पड़ी तो आश्चर्य से बोल पड़ा था____"अगर मेरे लिए कोई हुकुम था तो किसी आदमी के द्वारा मुझे बोलवा लिया होता। आपने यहां आने का कष्ट क्यों किया मालिक?"

"कोई बात नहीं शेरा।" दादा ठाकुर ने दरवाज़े के अंदर दाख़िल होते हुए कहा____"वैसे भी बात ऐसी है कि उसके लिए हमारा खुद ही यहां आना ज़रूरी था।"

शेरा ने फटाफट चारपाई को सरका कर दादा ठाकुर के पास रखा तो दादा ठाकुर उस पर बैठ गए। ये पहला अवसर था जब दादा ठाकुर शेरा जैसे अपने किसी गुलाम के घर आए थे। दादा ठाकुर ने एक नज़र घर की दीवारों पर डाली और फिर शेरा की तरफ देखा।

"तुम्हें इसी वक्त चंदनपुर जाना होगा शेरा।" फिर उन्होंने गंभीर भाव से कहा____"अपने साथ कुछ आदमियों को भी ले जाना। असल में हमें अभी कुछ देर पहले ही पता चला है कि वैभव की जान को ख़तरा है। हम नहीं जानते कि वो कौन लोग हैं लेकिन इतना ज़रूर पता चला है कि वो सुबह ही चंदनपुर जाएंगे और वहां वैभव पर जानलेवा हमला करेंगे। तुम्हारा काम वैभव की जान को बचाना ही नहीं बल्कि उन लोगों को पकड़ना भी है जो वैभव को जान से मारने के इरादे से वहां पहुंचेंगे।"

"आप फ़िक्र मत कीजिए मालिक।" शेरा ने गर्मजोशी से कहा____"मेरे रहते छोटे ठाकुर को कोई छू भी नहीं सकेगा। मैं अपनी जान दे कर भी छोटे ठाकुर की रक्षा करूंगा और उन लोगों को पकडूंगा।"

"बहुत बढ़िया।" दादा ठाकुर ने शाल के अंदर से कुछ निकाल कर शेरा की तरफ बढ़ाते हुए कहा____"इसे अपने पास रखो और साथ में इस पोटली को भी लेकिन ध्यान रहे इसका स्तेमाल तभी करना जब बहुत ही ज़रूरी हो जाए।"

शेरा ने दादा ठाकुर के हाथ से कपड़े में लिपटी दोनों चीजें ले ली। शेरा ने एक चीज़ से कपड़ा हटाया तो देखा उसमें एक रिवॉल्वर था। दूसरी कपड़े की पोटली कुछ वजनी थी और उसमें से कुछ खनकने की आवाज़ भी आई। शेरा समझ गया कि उसमें रिवॉल्वर की गोलियां हैं।

"हमें पूरी उम्मीद है कि तुम अपना काम पूरी सफाई से और पूरी सफलता से करोगे।" दादा ठाकुर ने चारपाई से उठते हुए कहा____"कोशिश यही करना कि वो हमलावर ज़िंदा तुम्हारे हाथ लग जाएं।"

"मैं पूरी कोशिश करूंगा मालिक।" शेरा ने कहा____"मैं अभी इसी समय कुछ आदमियों को ले कर चांदपुर के लिए निकल जाऊंगा।"
"अगर वहां के हालात काबू से बाहर समझ में आएं तो फ़ौरन किसी के द्वारा हमें सूचना भेजवा देना।" दादा ठाकुर ने कहा____"चंदनपुर का सफ़र लंबा है इस लिए तुम हरिया के अस्तबल से घोड़े ले लेना।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर शेरा ने सिर हिलाया और फिर उन्हें प्रणाम किया। दादा ठाकुर ने उसे विजयी होने का आशीर्वाद दिया और फिर दरवाज़े से बाहर निकल गए। दादा ठाकुर के जाने के बाद शेरा ने फ़ौरन ही अपने कपड़े पहने और कपड़ों की जेब में रिवॉल्वर के साथ दूसरी पोटली डालने के बाद घर से बाहर निकल गया।


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रूपा और कुमुद ने रात में हवेली पहुंचकर दादा ठाकुर को वैभव पर होने वाले हमले के बारे में बता दिया लेकिन अपने ताऊ के बारे में नहीं बताया दादा ठाकुर इससे बहुत खुश हुए की रूपा और कुमुद ने रात में ये बात बता कर उपकार किया है और दादा ठाकुर ने कहा कि ये बात वो उसके पिता जी और ताऊ को भी बताएंगे लेकिन रूपा ने अपनी कसम देकर उनको न बताने के लिए कहा है
वही वैभव जुमना ने साथ रासलीला मनाकर बहुत खुश हैं रात को सोते हुए अनुराधा का ख्याल आता है और अपने चरित्र के बारे मे सोचता है और अनुराधा द्वारा कही बात सही लगती हैं वह उसमे कोई बदलाव नहीं देखता है दादा ठाकुर शेरा को वैभव की रक्षा के लिए भेज देते हैं देखते हैं अब क्या होगा
 

Iron Man

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