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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
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अध्याय - 161
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"मैं अब रहूंगी बेटा।" सरोज काकी ने दृढ़ता से कहा____"अपनी बेटी रूपा को उसी तरह तुमसे विवाह कर के विदा करूंगी जैसे मैं अनुराधा को करती।"

कुछ देर और सरोज काकी से बातें हुईं उसके बाद मैं वहां से चल पड़ा। थोड़े ही समय में मैं भुवन से मिलने अपने खेतों पर पहुंच गया। भुवन खेतों पर ही था। मैं उससे मिला और उसे बरात में चलने का निमंत्रण भी दिया। भुवन इस बात से बड़ा खुश हुआ। उसके बाद मैं हवेली निकल गया।



अब आगे....


वक्त बड़ा जल्दी जल्दी गुज़र रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसको कुछ ज़्यादा ही जल्दी थी रागिनी का अपने होने वाले पति वैभव से मिलन करवाने की। अभी कुछ दिन पहले ही उसके घर वाले वैभव का तिलक चढ़ाने रुद्रपुर गए थे और अब हल्दी की रस्म होने लगी थी। अब बस कुछ ही दिनों बाद घर में बरात आने वाली थी। सच में समय बड़ी तेज़ गति से गुज़र रहा था।

पूरे घर में खुशी का माहौल छाया हुआ था। सभी सगे संबंधी आ गए थे। सुबह से ही हर कोई भाग दौड़ करते हुए अपने अपने काम में लग गया था। गांव की औरतें आंगन में बैठी ढोलक बजा रहीं थी, गीत गा रहीं थी। संगीत की धुन में सब लड़कियां मिल कर नाच रहीं थीं।

वहीं एक तरफ रागिनी को हल्दी लगाई जा रही थी। हल्दी लगाने वालों की जैसे कतार सी लगी हुई थी। हर कोई उतावला सा दिख रहा था। उसकी भाभियां, उसकी बहनें, गांव की कुछ भाभियां और उसकी सहेली शालिनी। सब गाते हुए उसको हल्दी लगा रहीं थी।

रागिनी के गोरे बदन पर एक मात्र कपड़ा था जोकि उसका कुर्ता ही था जिसकी बाहें उसके कंधों से कटी हुईं थी। नीचे उसने सलवार नहीं पहनी थी लेकिन हां कच्छी ज़रूर पहन रखी थी। उसकी भाभियां जान बूझ कर उसके बदन के ऐसे ऐसे हिस्से पर हल्दी मल रहीं थी जहां पर उनके हाथों की छुवन और मसलन से रागिनी शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी। वो ऐसी जगहों पर हाथ लगाने से विरोध भी कर रही थी लेकिन कोई उसकी सुन ही नहीं रहा था। बार बार उसके कुर्ते के अंदर हाथ डाल दिया जाता। फिर उसके पेट, उसकी जांघें, उसकी पिंडलियां, उसके पैर, उसकी पीठ और उसके गले व सीने से होते हुए उसकी ठोस छातियों में भी ज़ोर लगा लगा कर हल्दी मली जाती। रागिनी कभी आह कर उठती तो कभी उसकी सिसकियां निकल जाती तो कभी चीख ही निकल जाती। शर्म के मारे उसका चेहरा हल्दी लगे होने बाद भी सुर्ख पड़ा हुआ नज़र आ रहा था। कुछ समय बाद बाकी सब चली गईं लेकिन शालिनी, वंदना और सुषमा उसके पास ही बैठी उसे हल्दी लगाती रहीं।

"क्यों मेरी बेटी को इतना परेशान किए जा रही हो तुम लोग?" सुलोचना देवी बरामदे में किसी काम से आईं तो उन्होंने रागिनी की हालत देख कर जैसे उन तीनों को डांटा____"कुछ तो शर्म करो। हल्दी लगाने का ये कौन सा तरीका है?"

"ये अवसर रोज़ रोज़ नहीं आता चाची।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"पिछली बार मेरी हसरत पूरी नहीं हो पाई थी लेकिन इस बार सारी ख़्वाहिश पूरी करूंगी मैं। आप जाइए यहां से। हमें हमारा काम करने दीजिए।"

"ठीक है तुम अपनी ख़्वाहिश पूरी करो।" सुलोचना देवी ने कहा____"लेकिन बेटी थोड़ा दूसरों का भी तो ख़याल करो। क्या सोचेंगे सब?"

"चिंता मत कीजिए चाची।" शालिनी ने कहा___"यहां अब कोई नहीं आने वाला। जिनको शुरू में रागिनी को हल्दी लगाना था वो लगा चुकी हैं। अब सिर्फ मैं और ये भाभियां ही हैं। बाकी बाहर वालों पर नज़र रखने के लिए मैंने कामिनी को बोल रखा है।"

सुलोचना देवी कुछ न बोलीं। वो बस रागिनी के शर्म से लाल पड़े चेहरे को देखती रहीं। रागिनी भी उन्हीं को देख रही थी। उसकी आंखों में एक याचना थी। जैसे कह रही हो कि इन बेशर्मों से उसकी जान बचा लीजिए। सुलोचना देवी को रागिनी की इस हालत पर बड़ी दया आई। वो जानतीं थी कि रागिनी इन मामलों में बहुत शर्म करती है लेकिन वो ये भी जानती थीं कि आज का दिन खुशी का दिन है। किसी को भी नाखुश करना ठीक नहीं था। वैसे भी सब उसके घर की ही तो थीं।

"इन्हें अपने मन की कर लेने दे बेटी।" फिर उन्होंने रागिनी को बड़े प्यार से देखते हुए कहा____"ये सब तेरी खुशियों से खुश हैं इस लिए आज के दिन तू भी किसी बात की शर्म न कर और इस खुशी को दिल से महसूस कर।"

ये कह कर सुलोचना देवी चली गईं। उनके जाने के बाद शालिनी जो उनके जाने की प्रतीक्षा ही कर थी वो फिर से शुरू हो गई। उसने बड़े से कटोरे से हाथ में हल्दी ली और वंदना भाभी को इशारा किया। वंदना ने मुस्कुराते हुए झट से रागिनी का कुर्ता पकड़ कर एकदम से उठा दिया। इधर जैसे ही कुर्ता उठा शालिनी ने हल्दी लिया हाथ झट से रागिनी के कुर्ते में घुसा दिया और उसकी सुडोल छातियों पर हल्दी मलने लगी। जैसे ही रागिनी को ये पता चला उसकी एकदम से चीख निकल गई।

"ऐसे मत चीख मेरी लाडो।" शालिनी ने हंसते हुए कहा____"ये तो कुछ भी नहीं है। सुहागरात को जब जीजा जी तेरी इन छातियों को मसलेंगे तब क्या करेगी तू? क्या तब भी तू ऐसे ही चीखेगी और हवेली में रहने वालों को पता लगवा देगी कि तेरे पतिदेव तेरे साथ क्या कर रहे हैं?"

"चुप कर कमीनी वरना मुंह तोड़ दूंगी तेरा।" रागिनी ने एक हाथ से उसके बाजू में ज़ोर से मारते हुए कहा____"कैसी बेशर्म हो गई है तू। जो मुंह में आता है बोल देती है।"

"मार ले जितना मारना है मुझे।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन मैं तो आज तेरे साथ ऐसे ही मज़े लूंगी, क्यों वंदना भाभी?"

"हां शालिनी।" वंदना ने जैसे उसका साथ देते हुए कहा____"आज तो पूरा मज़ा लेना है रागिनी से। आज हम दोनों मिल कर इसकी सारी शर्म दूर कर देंगे ताकि सुहागरात को इसे अपने पति से कोई शर्म महसूस न हो।"

"हाय राम! भाभी आप भी इस कलमुही का साथ दे रही हैं?" रागिनी ने आश्चर्य से आंखें फैला कर वंदना को देखा____"कम से कम आप तो मुझ पर रहम कीजिए।"

"रागिनी सही कह रही हैं दीदी।" बलवीर सिंह की पत्नी सुषमा ने वंदना से मुस्कुराते हुए कहा____"हमें रागिनी पर रहम करना चाहिए। मेरा मतलब है कि इनकी छातियों पर हल्दी लगा कर छातियों को नहीं मसलना चाहिए। आख़िर वहां पर हाथ लगाने का हक़ तो हमारे जीजा जी का है। शायद इसी लिए हमारी ननद रानी को भी हमारा इनकी छातियों पर हाथ लगाना पसंद नहीं आ रहा है।"

"अरे! हां ये तो तुमने सही कहा सुषमा।" वंदना ने हैरानी से उसकी तरफ देखा____"अब समझ आया कि मेरी लाडो क्यों इतना गुस्सा कर रहीं हैं।"

रागिनी ये सुन कर और भी बुरी तरह शर्मा गई। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्या करे जिसके चलते उसे ये सब न सुनना पड़े। ऐसा नहीं था कि उसे इन सबकी बातों से सचमुच का गुस्सा आ रहा था बल्कि सच ये था कि उसको ज़रूरत से ज़्यादा शर्म आ रही थी।

"बात तो आपने सच कही भाभी।" शालिनी ने कहा____"मुझे भी मज़ा लेने के चक्कर में ये ख़याल नहीं रहा था कि वहां पर हाथ लगाने का हक़ तो हमारे जीजा जी का है।" कहने के साथ ही शालिनी ने रागिनी से कहा____"अगर ऐसी ही बात थी तो तूने बताया क्यों नहीं हमें? यार सच में ग़लती हो गई ये तो।"

"तू ना चुप ही रह अब।" रागिनी को कुछ न सुझा तो झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोल पड़ी____"और अब मुझे हाथ मत लगाना। मुझे नहीं लगवानी अब हल्दी वल्दी। जाओ सब यहां से।"

"अरे! गुस्सा क्यों होती है?" शालिनी ने हल्दी लिया हाथ उसके गाल पर मलते हुए कहा____"अभी तो और भी जगह बाकी है जहां हल्दी लगानी है।"

"तू ऐसे नहीं मानेगी ना रुक तू।" कहने के साथ ही रागिनी ने बिजली की सी तेज़ी से कटोरे से हल्दी ली और झपट कर शालिनी के ब्लाउज में हाथ डाल कर उसकी बड़ी बड़ी छातियों को हल्दी लगाते हुए मसलने लगी।

अब चीखने चिल्लाने की बारी शालिनी की थी। वो सच में इतना ज़ोर से चिल्लाई कि आंगन में गीत गा रही औरतें एकदम से चौंक कर इधर देखने लगीं। शालिनी को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसकी इतनी संस्कारी सहेली इतना बड़ा दुस्साहस कर बैठेगी। उधर वंदना और सुषमा भी चकित भाव से रागिनी को देखने लगीं थी।

"अब बोल कमीनी।" रागिनी बदस्तूर उसकी छातियों को मसलते हुए बोली____"बता अब कैसा लग रहा है तुझे? बहुत देर से तेरा नाटक देख रही थी मैं। अब बताती हूं तुझे।"

"वंदना भाभी बचाइए मुझे।" शालिनी चिल्लाई____"कृपया बचाइए इससे। इस पर भूत सवार हो गया है लगता है। रागिनी छोड़ दे, ना कर ऐसा।"

"क्यों न करूं?" रागिनी ने अचानक ही उसकी एक छाती को ज़ोर से मसल दिया जिससे शालिनी और जोरों से चीख पड़ी, उधर रागिनी ने कहा____"अभी तक तू जो कर रही थी वो क्या सही कर रही थी तू, हां बता ज़रा?"

"माफ़ कर दे मुझे।" शालिनी उससे छूटने का प्रयास करते हुए बोली____"मैं तो बस हल्दी लगा रही थी तुझे।"

"हां तो मैं भी अब हल्दी ही लगा रही हूं तुझे।" रागिनी ने कहा____"तू भी अब वैसे ही लगवा जैसे मुझे लगा रही थी तू।"

इससे पहले कि आंगन में बैठी गीत गा रही औरतें इस तरफ आतीं वंदना और सुषमा ने हस्ताक्षेप किया और किसी तरह रागिनी को समझा बुझा कर शालिनी से छुड़वाया। दोनों ही बुरी तरह हांफने लगीं थी।

"तेरे अंदर कोई भूत आ गया था क्या?" शालिनी ने अपनी उखड़ी सांसों को काबू में करने का प्रयास करते हुए रागिनी से कहा____"ऐसा कैसे कर सकती थी तू? पागल तो नहीं हो गई थी?"

"तुम सब मेरी शर्म दूर कर रही थी ना?" रागिनी ने हांफते हुए कहा____"तो ऐसा कर के मैं भी अपनी शर्म ही दूर कर रही थी। अब बता कैसा लगा तुझे?"

"कैसा लगा की बच्ची।" शालिनी ने अपने सीने पर लगी हल्दी को देखते हुए कहा____"पूरा ब्लाउज ख़राब कर दिया मेरा। अब घर कैसे जाऊंगी मैं?"

"सबको दिखाते हुए जाना।" रागिनी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"लोगों को पता तो चलेगा कि तू हल्दी लगवा रही थी किसी से।"

"रुक जा बेटा।" शालिनी ने जैसे धमकी देते हुए कहा____"इसका बदला ले कर रहूंगी मैं। जिस दिन जीजा जी बरात ले कर आएंगे उस दिन उनसे ही शिकायत करूंगी तेरी।"

"हां कर देना।" रागिनी के चेहरे पर शर्म की हल्की लाली उभर आई____"मैं क्या डरती हूं किसी से।"

"हां ये बात तो मैं मानती हूं रागिनी।" सहसा वंदना ने मुस्कुराते हुए कहा____"तुम अपने होने वाले पति से नहीं बल्कि वो खुद ही तुमसे डरते हैं।"

"अच्छा क्या सच में?" सुषमा पूछे बगैर न रह सकी____"क्या सच में जीजा जी रागिनी से डरते हैं?"

"और नहीं तो क्या?" वंदना ने कहा____"पिछली बार जब आए थे तो मैंने इन दोनों की बातें सुनी थी।"

"भाभी नहीं।" रागिनी एकदम से हड़बड़ा गई, फिर मिन्नत सी करते हुए बोली____"कृपया उन बातों को किसी को मत बताइए ना। आपने मुझसे वादा किया था कि आप किसी से नहीं कहेंगी।"

"अच्छा ठीक है नहीं कहती।" वंदना ने रागिनी की मासूम सी शक्ल देखी तो उसे उस पर तरस सा आ गया____"लेकिन ये तो सच ही है ना कि हमारे होने वाले जीजा जी मेरी प्यारी ननद रानी से डरते हैं।"

"ऐसा कुछ नहीं है।" रागिनी ने शर्म से नज़रें चुराते हुए कहा____"आप ऐसे ही झूठ मूठ मत बोलिए।"

"हां तो तू ही बता दे ना कि सच क्या है?" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"वो डरते हैं या तुझसे बेपनाह प्यार करते हैं?"

"मुझे नहीं पता।" रागिनी शर्म से सिमट सी गई____"अच्छा अब अगर हल्दी वाला काम हो गया हो तो मैं नहा लूं। अंदर बहुत अजीब सा महसूस हो रहा है।"

"अंदर??" शालिनी हौले से चौंकी____"अंदर कहां अजीब सा महसूस हो रहा है तुझे। नीचे या ऊपर?"

"तू न अब पिटेगी मुझसे।" रागिनी ने उसको घूरते हुए कहा____"बहुत ज़्यादा मत बोल।"

"लो मैं कहां ज़्यादा बोल रही हूं?" शालिनी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा____"पूछ ही तो रही हूं कि नीचे अजीब सा महसूस हो रहा है या ऊपर?"

"शालिनी मत तंग करो मेरी लाडो को।" वंदना को रागिनी पर बहुत ज़्यादा स्नेह आ रहा था इस लिए उसने उसके चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा____"बड़ी मुद्दत के बाद तो मेरी ननद रानी के चेहरे पर खुशियों के रंग नज़र आए हैं।"

वंदना की इस बात से सहसा माहौल गंभीर सा होता नज़र आया किंतु जल्दी ही शालिनी ने इस माहौल को अपने मज़ाक से दूर कर दिया। थोड़ी देर और इधर उधर का हंसी मज़ाक हुआ उसके बाद सुलोचना देवी के आवाज़ देने पर वंदना उठ कर उनके पास चली गईं। इधर शालिनी और सुषमा रागिनी को ले कर चल पड़ीं

✮✮✮✮

हवेली के बड़े से आंगन में एक जगह तंबू बनाया गया था जिसके नीचे मैं एक छोटे से सिंघासन पर बैठा था। मेरे जिस्म पर इस वक्त मात्र कच्छा ही था, बाकी पूरा बलिष्ट जिस्म बेपर्दा था। तीन तरफ के बरामदे में औरतें बैठी गीत गा रहीं थी। कुछ गांव की औरतें थीं कुछ दूसरे गांव की जो पिता जी के मित्रों के घर से आई हुईं थी। बड़े से आंगन में दोनों तरफ मेरी बहनें और मेरी मामियां नाच रहीं थी। पूरा वातावरण संगीत, ढोल नगाड़े और नाच गाने से गूंज रहा था और गूंजता भी क्यों नहीं...आज हल्दी की रस्म जो थी।

आंगन के बीच लगे तंबू के नीचे मैं सिंघासन पर बैठा था और एक एक कर के सब मुझे हल्दी लगा रहे थे। मां, मेनका चाची, निर्मला काकी, महेंद्र सिंह की पत्नी सुभद्रा देवी, ज्ञानेंद्र सिंह की पत्नी माया देवी, अर्जुन सिंह की पत्नी रुक्मणि देवी, संजय सिंह की पत्नी अरुणा देवी सबने एक एक कर के मुझे हल्दी लगाई। उसके बाद सभी मामियों ने मुझे हल्दी लगाया। कुसुम ने खुशी से चहकते हुए मुझे हल्दी लगाई। मामी की दोनों बेटियां सुमन और सुषमा ने भी लगाई।

छोटे मामा की पत्नी यानि रोहिणी मामी जब मुझे हल्दी लगाने आईं तो मैं उन्हें देख मुस्कुराने लगा। पहले तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया और शायद उन्हें याद भी नहीं था किंतु जब मैं उन्हें देखते हुए अनवरत मुस्कुराता ही रहा तो मानों एकदम से उन्हें उस रात का किस्सा याद आ गया जिसके चलते एकदम से उनके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई और वो नज़रें चुराते हुए मुझे हल्दी लगाने लगीं। गुलाबी होठों पर शर्म मिश्रित मुस्कान थी जिसे वो छुपा नहीं पा रहीं थी।

"क्या हुआ मामी?" मैं उनकी हालत पर मज़ा लेने का सोच कर पूछा____"अब तो आपके चेहरे पर अलग ही नूर दिखने लगा है। मामा की परेशानी दूर हो गई है क्या?"

"चुप करो।" वो एकदम से झेंप सी गईं____"बहुत बदमाश हो गए हो तुम।"

"अब ये क्या बात हुई मेरी प्यारी मामी?" मैंने उन्हें छेड़ा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके चलते आप मुझे बदमाश कहने लगीं?"

"अब तुम मेरा मुंह न खोलवाओ।" मामी ने अपनी शर्म को छुपाते हुए मुस्कुरा कर कहा____"तुम दोनों मामा भांजे की बदमाशी समझ गई हूं मैं।"

"ये आप क्या कह रही हैं मामी?" मैंने इधर उधर नज़र घुमा कर उनसे कहा____"खुल कर बताइए ना कि आप क्या समझ गईं हैं?"

"तुम्हें शर्म नहीं आती लेकिन मुझे तो आती है ना?" मामी ने हल्दी लगे हाथ से मेरे दाहिने गाल पर थोड़ा जोर से ठेला। स्पष्ट था कि उन्होंने एक तरह से मुझे इस तरीके से चपत लगाई थी, बोलीं____"मुझे उस रात ही समझ जाना चाहिए था कि तुम दोनों मामा भांजे कौन सी खिचड़ी पका रहे थे।"

"लो जी, अब ये क्या बात हुई भला?" मैं मन ही मन हंसा____"मैं मासूम भला कौन सी खिचड़ी पका सकता हूं? मैं तो बस मामा की परेशानी दूर करना चाहता था और इसी लिए आपको उनके पास भेजा था। क्या उस रात उन्होंने आपको परेशान किया था?"

"और नहीं तो क्या?" मामी का चेहरा कुछ ज़्यादा ही शर्म से लाल पड़ गया। नज़रें चुराते हुए बोलीं____"उन्होंने मुझे बहुत ज़्यादा परेशान किया और ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है।"

"हे भगवान!" मैंने जैसे आश्चर्य ज़ाहिर किया____"मैंने तो अच्छा ही सोचा था। ख़ैर ये तो बताइए कि मामा ने आपको किस बात से परेशान किया था? सुबह उनसे पूछा था लेकिन उन्होंने मुझे कुछ बताया ही नहीं था। आप ही बताइए ना कि आख़िर उस रात क्या हुआ था?"

"सच में बहुत बदमाश हो तुम।" मामी ने मुझे घूरते हुए किंतु मुस्कुरा कर कहा____"और बेशर्म भी। अपनी मामी से ऐसी बातें करते हुए ज़रा भी शर्म नहीं आती तुम्हें।"

"पर मैंने तो ऐसा कुछ आपसे कहा ही नहीं जिसमें मुझे शर्म करनी चाहिए।" मैंने अंजान बनने का दिखावा करते हुए कहा____"मैं तो बस आपसे पूछ रहा हूं कि उस रात क्या हुआ था?"

"क्या सच में तुम नहीं जानते?" मामी ने इस बार मुझे उलझनपूर्ण भाव से देखा।

"अगर जानता तो आपसे पूछता ही क्यों?" मैंने मासूम सी शक्ल बना कर कहा____"बताइए ना कि क्या हुआ उस रात?"

"कुछ नहीं हुआ था।" मामी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"और अगर कुछ हुआ भी था तो तुम्हारे बताने लायक नहीं है। अब चुपचाप हल्दी लगवाओ, बातें न करो।"

उसके बाद मामी ने मुझे हल्दी लगाई और फिर वो मुस्कुराते हुए चलीं गईं। मैं भी ये सोचते हुए मुस्कुराता रहा कि मामी भी कमाल ही हैं। ख़ैर ऐसे ही कार्यक्रम चलता रहा।

✮✮✮✮

रूपचंद्र के घर में नात रिश्तेदारों का आना शुरू हो गया था। हर रोज़ कोई न कोई आ ही रहा था। साहूकारों के चारो भाईयों के ससुराल वाले, बेटियों के ससुराल वाले। शिव शंकर की बड़ी बेटी नंदिनी का विवाह पहले ही हो चुका था वो भी अपने पति के साथ आ गई थी। मणि शंकर की नव विवाहिता बेटियां आरती और रेखा तो पहले से ही यहीं थी इस लिए उनके ससुराल से दोनों के पति आए हुए थे जो आपस में भाई ही थे।

मणि शंकर के बड़े बेटे चंद्रभान की ससुराल से यानि रूपा की भाभी कुमुद के मायके से उसके भैया भाभी आ गए थे। दूसरी तरफ हरि शंकर के बड़े बेटे और रूपचंद्र के बड़े भाई यानि मानिकचंद्र की ससुराल से उसकी पत्नी नीलम के भैया भाभी कल आने वाले थे। कहने का मतलब ये कि हर रोज़ कोई न कोई मेहमान आ रहा था। हर कोई अपने साथ कुछ न कुछ ले कर आ रहा था। यही सब लोग कुछ समय पहले तब जमा हुए थे जब मणि शंकर की दोनों बेटियों का विवाह हुआ था।

घर काफी बड़ा था इस लिए मेहमानों के रहने की कोई दिक्कत नहीं थी। गौरी शंकर और रूपचंद्र जो अब तक अकेले ही सब कुछ सम्हाल रहे थे उनकी मदद के लिए अब काफी सारे लोग हो गए थे। घर की साफ सफाई और पोताई तो कुछ समय पहले ही हुई थी लेकिन रूपा के विवाह के लिए उसे फिर से पोताया जा रहा था। घर में काफी चहल पहल हो गई थी। इस घर में औरतें और बहू बेटियां तो पहले से ही ज़्यादा थीं लेकिन नात रिश्तेदारों से भी आ गईं थी जिसके चलते और भी भीड़ जमा हो गई थी।

सबको पता था कि रूपा का विवाह इसी गांव के दादा ठाकुर के बेटे वैभव सिंह से होने वाला है। सबको ये भी पता लग चुका था कि रूपा अपने होने वाली पति की दूसरी पत्नी बनने वाली है और उसकी पहली पत्नी दादा ठाकुर की अपनी ही विधवा बहू होगी। इतना ही नहीं सबको ये भी पता लग चुका था कि आज हवेली में रूपा के होने वाले पति की हल्दी की रस्म है। हर कोई इस बात के बारे में अपनी अपनी समझ से चर्चा कर रहा था। गौरी शंकर और रूपचंद्र से जब भी कोई इस बारे में कुछ कहता अथवा पूछता तो वो बड़े तरीके से सबको बताते और समझाते भी जिसके चलते सब उनकी बातों से सहमत हो जाते। आख़िर इतना तो सबको पता ही था कि कुछ समय पहले इन लोगों ने दादा ठोकर के परिवार के साथ क्या किया था।

घर के अंदर रूपा के कमरे में अलग ही नज़ारा था। ढेर सारी औरतें और लड़कियों ने उसे घेर रखा था और तरह तरह की बातों के द्वारा वो रूपा की हालत ख़राब किए हुए थीं। कमरे में हंसी ठिठोली गूंज रही थी।

सबकी सर्व सम्मति से ये तय हुआ था कि अगले हप्ते रूपा की हल्दी वाली रस्म होगी। हालाकि सबको इतनी खुशी थी कि समय से पहले ही घर में रूपा की बड़ी भाभी यानि कुमुद उसको हल्दी और आटे का उपटन लगाने लगीं थी ताकि रूपा के बदन पर अलग ही निखार आ जाए।

घर के अंदर बाकी औरतें ऐसी ऐसी चीज़ें बनाने में लगी हुईं थी जो विवाह के समय बनाई जाती हैं। मसलन, आटे की, बेसन की और मैदे की चीज़ें पूरियां और गोली वगैरह। कुछ औरतें अनाज बीनने में लगीं हुईं थी। कुछ काम करते हुए गाना भी गाए जा रही थीं। एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था।



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सूर्य पश्चिम दिशा में उतरने लगा था। आसमान में लालिमा छा गई थी और शाम घिरने लगी थी। आसमान में उड़ते पंक्षी खुशी से मानों गाना गाते हुए अपने अपने घोंसलों की तरफ लौट रहे थे। घर के पीछे अमरूद के पेड़ के पास बैठी रागिनी जाने किन ख़यालों में खोई हुई थी। कुछ दूर कुएं के पास उसकी छोटी बहन कामिनी कपड़े धो रही थी। इस वक्त पीछे के इस हिस्से में दोनों बहनों के सिवा कोई न था किंतु हां घर के अंदर ज़रूर लोगों की भीड़ थी जिनके बोलने की आवाज़ें यहां तक आ रहीं थी।

आज रागिनी का चेहरा अलग ही नज़र आ रहा था। हल्दी का उपटन तो कई दिन पहले से ही लगाया जा रहा था किंतु आज विशेष रूप से हल्दी की रस्म हुई थी जिसके चलते उसका पूरा बदन ही अलग तरह से चमक रहा था। खूबसूरत चेहरे पर चांद जैसी चमक तो थी ही किंतु उसमें हल्की लालिमा भी विद्यमान थी। शायद ख़यालों में वो कुछ ऐसा सोच रही थी जिसके चलते उसके चेहरे पर लालिमा छाई हुई थी।

"तू यहां है और मैं तुझे तेरे कमरे में ढूंढने गई थी?" शालिनी ने उसके क़रीब आते हुए उससे कहा____"यहां बैठी किसके ख़यालों में गुम है तू और ये क्या तूने स्वेटर भी नहीं पहन रखा? क्या ठंड नहीं लग रही तुझे?"

शालिनी की बातों से रागिनी चौंकते हुए ख़यालों की दुनिया से बाहर आई और उसको देखने लगी। उधर कामिनी जो कपड़े धो रही थी वो भी इस तरफ देखने लगी थी।

"अच्छा हुआ दीदी कि आप आ गईं।" कामिनी ने हौले से मुस्कुराते हुए कहा____"वरना मेरी दीदी जाने कब तक इसी तरह जीजा जी के ख़यालों में खोई रहतीं।"

"देख ले तेरी बहन भी सब समझती है।" शालिनी ने रागिनी को छेड़ा____"अब तू कहेगी कि वो भी तुझे छेड़ने लगी जबकि इसमें किसी की कोई ग़लती नहीं है। तू खुद ही सबको मौका दे देती है छेड़ने का।"

"हां और तू तो कुछ ज़्यादा ही मौका तलाशती रहती है मुझे छेड़ने का।" रागिनी पहले तो शरमाई किंतु फिर उसे घूरते हुए बोली____"ख़ैर बड़ा जल्दी आ गई तू। अपने घर में तेरा मन नहीं लगता क्या? या फिर जीजा जी के बिना अकेले रहा नहीं जाता तुझसे? लगता है बहुत याद आती है तुझे उनकी।"

"आती तो है।" शालिनी ने थोड़ा धीरे से कहा____लेकिन उतना नहीं जितना तुझे अपने होने वाले पतिदेव की आती है। जब भी तेरे पास आती हूं तुझे उनके ख़यालों में ही खोया हुआ पाती हूं। मुझे भी तो बता दे कि आख़िर कैसे कैसे ख़याल आते हैं तुझे? विवाह के बाद क्या क्या करने का सोच लिया है तूने?"

"तू ना सच में बहुत अजीब हो गई है।" रागिनी ने कहा____"पहले तो ऐसी नहीं थी तू। जीजा जी के साथ रहने से कुछ ज़्यादा ही बदल गई है तू।"

"हर लड़की बदल जाती है यार।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"इसमें नई बात क्या है। ख़ैर तू ये सब छोड़ और ये बता कि वैभव जी के बारे में सोच कर किस तरह के ख़याल बुनने लगी है तू?"

"ऐसा कुछ नहीं है।" रागिनी ने हल्की शर्म के साथ कहा____"और अगर है भी तो क्यों बताऊं तुझे? क्या तूने कभी मुझे अपने और जीजा जी के बारे में बताया है कि तू उनके बारे में कैसे कैसे ख़याल बुनती थी?"

"अच्छा तो अब तू झूठ भी बोलने लगी है?" शालिनी ने हैरानी से उसे देखा____"तूने जो पूछा था मैंने बिना संकोच के तुझे सब बताया था?"

"अच्छा।" रागिनी ने उसे गौर से देखा____"ठीक है तो अपनी सुहागरात के बारे में बता मुझे।"

"आय हाय!" शालिनी के सुर्ख होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई____"तो मेरी सहेली को मेरी सुहागरात का किस्सा जानना है। ठीक है, मैं तुझे बिना संकोच के एक एक बात बता दूंगी लेकिन मेरी भी एक शर्त है। उसके बाद तू भी अपनी सुहागरात का एक एक किस्सा मुझे बताएगी, बोल मंज़ूर है?"

"ना बाबा ना।" रागिनी एक ही पल में मानों धराशाई हो गई____"मुझसे नहीं बताया जाएगा। मैं तेरी तरह बेशर्म नहीं हूं।"

"तो फिर मुझसे मेरी सुहागरात के बारे में क्यों पूछ रही है?" शालिनी ने कहा।

"वो तो मैंने ऐसे ही कह दिया था।" रागिनी ने कहा___"तुझे नहीं बताना तो मत बता, वैसे भी मैं ऐसी बातें सुनने की तलबगार भी नहीं हूं।"

"हां हां जानती हूं कि तू बहुत ज़्यादा शरीफ़ और सती सावित्री है।" शालिनी ने कहा____"अब ये सब छोड़ और जा के पहले स्वेटर पहन ले। कहीं ऐसा न हो कि तुझे सर्दी हो जाए और तेरी नाक बहने लगे। ऐसे में बेचारे मेरे जीजा जी कैसे तेरे साथ सुहागरात मनाएंगे?"

"कमीनी धीरे बोल कामिनी सुन लेगी।" रागिनी ने कपड़े धो रही कामिनी की तरफ देख कर उससे कहा____"कुछ तो शर्म किया कर और ये तू एक ही बात पर क्यों अटकी हुई है?"

"क्या करूं यार?" शालिनी ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"माहौल ही उस अकेली बात पर अटके रहने का है। सुहागरात नाम की चीज़ ही इतनी आकर्षक है कि ऐसे समय में बार बार उसी का ख़याल आता है। ख़ास कर तब तो और भी ज़्यादा जब मेरी बहुत ज़्यादा शर्म करने वाली सहेली की होने वाली हो।"

रागिनी ने घूर कर देखा उसे। फिर उसने कामिनी को आवाज़ दे कर उससे अपनी स्वेटर मंगवाई। कामिनी जब चली गई तो उसने कहा____"अब बकवास बंद कर और ये बता यहां किस लिए आई थी?"

"क्या तुझे मेरा आना अच्छा नहीं लगता?" शालिनी ने मासूम सी शक्ल बना कर उसे देखा।

"अच्छा लगता है।" रागिनी ने कहा____"लेकिन तेरा हर वक्त मुझे छेड़ना अच्छा नहीं लगता।"

"क्यों भला?" शालिनी ने भौंहें ऊपर की____"क्या मेरे छेड़ने से तेरे अंदर गुदगुदी नहीं होती?"

"क्यों होगी भला?" रागिनी ने कहा____"बल्कि मुझे तो तेरे इस तरह छेड़ने पर तुझ पर गुस्सा ही आता है। मन करता है तेरा सिर फोड़ दूं।"

"अब तो तू सरासर झूठ बोल रही है।" शालिनी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा____"मैं मान ही नहीं सकती कि मेरे छेड़ने पर तुझे अपने अंदर मीठा मीठा एहसास नहीं होता होगा। सच यही है कि तुझे भी बहुत आनंद आता है लेकिन खुल कर बताने में लाज आती है तुझे। कह दे भला कि मेरी ये बातें सच नहीं है?"

रागिनी बगले झांकने लगी। वो फ़ौरन कुछ बोल ना सकी थी। या फिर उसे कुछ सूझा ही नहीं था कि क्या कहे? तभी कामिनी उसका स्वेटर ले कर आ गई जिससे उसने थोड़ी राहत की सांस ली और उससे स्वेटर ले कर पहनने लगी। कामिनी वापस कुएं के पास जा कर कपड़े धोने लगी।

"वैसे मैं ये भी सोचती हूं कि वैभव जी की किस्मत कितनी अच्छी है।" शालिनी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"मतलब कि पहले वो तुझे ब्याह कर ले जाएंगे और फिर कुछ दिनों के बाद उस रूपा को भी ब्याह कर अपनी हवेली ले जाएंगे। उसके बाद कमरे में पलंग पर उनके एक तरफ तू लेटेगी और दूसरी तरफ रूपा। उफ्फ! दोनों तरफ से उनकी दोनों बीवियां उनसे चिपकेंगी और वो किसी महाराजा की तरह आनंद उठाएंगे। काश! ये मंज़र देखने के लिए मैं भी वहां रहूं तो मज़ा ही आ जाए।"

"हाय राम! कैसी कैसी बातें सोचती है तू?" रागिनी ने आश्चर्य और शर्म से उसको देखते हुए कहा____"क्या सच में तुझे ऐसी बातें करते हुए शर्म नहीं आती?"

"अरे! शर्म क्यों आएगी?" शालिनी ने उसके दोनों कन्धों को पकड़ कर कहा___"तुझसे ही तो बोल रही हूं और तुझसे ऐसा बोलने में कैसी शर्म? तू तो मेरी सहेली है, मेरी जान है।"

"लेकिन मुझे आश्चर्य हो रहा है कि तेरे जैसी निर्लज्ज मेरी सहेली है।" रागिनी ने उसे घूरते हुए कहा____"कैसे कर लेती है ऐसी गन्दी बातें?"

"ये सब छोड़।" शालिनी ने कहा____"और ये बता कि क्या सच में विवाह के बाद ऐसा ही मंज़र होगा हवेली के तेरे कमरे में?"

"हे भगवान! फिर से वही बात।" रागिनी के चेहरे पर हैरानी उभर आई____"मत कर ना ऐसी बातें। कह तो तेरे आगे हाथ जोड़ लूं, पैरों में गिर जाऊं।"

"अरे! मैं तो तेरी शर्म दूर कर रही हूं यार।" शालिनी ने बड़े स्नेह से कहा____"ताकि विवाह के बाद जब तेरी सुहागरात हो तो उस समय तुझे ज़्यादा शर्म न आए। सच कहती हूं मैं तुझे उन पलों के लिए तैयार कर रही हूं।"

"हां तो मत कर।" रागिनी ने गहरी सांस ली____"तू ऐसी बातों से मेरी शर्म नहीं बल्कि हालत ख़राब कर रही है। तुझे अंदाज़ा भी नहीं है कि तेरी ऐसी बातों से मुझे कितना अजीब महसूस होता है।"

"हां मैं समझ सकती हूं यार।" शालिनी ने कहा____"मैं समझ सकती हूं कि तेरे जैसी स्वभाव वाली लड़की का शुरू से ही इस रिश्ते के बारे में सोच सोच कर अब तक क्या हाल हुआ होगा। मैं सब समझती हूं रागिनी लेकिन तू भी इस बात से इंकार नहीं कर सकती कि आने वाले समय में जो कुछ होने वाला है उसका सामना तुझे करना ही पड़ेगा। उससे तू भाग नहीं सकती है।"

"हां जानती हूं मैं।" रागिनी ने अपने कंधों से शालिनी के हाथों को हटाते हुए कहा____"और सच कहूं तो जब भी उस आने वाले पल के बारे में ख़याल आता है तो समूचे बदन में सर्द लहर दौड़ जाती है। मैं मानती हूं कि इस रिश्ते को मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया है और अब उनसे विवाह भी होने वाला है मेरा लेकिन विवाह के बाद जो होगा उसके बारे में सोच कर ही कांप जाती हूं मैं। मुझे समझ नहीं आता कि कैसे मैं उन पलों में खुद को सामान्य रख पाऊंगी और उनका साथ दे पाऊंगी? अगर अपने अंदर का सच बयान करूं तो वो यही है कि उस वक्त शायद मैं पीछे ही हट जाऊंगी। उनको अपने पास नहीं आने दूंगी।"

"ये....ये तू क्या कह रही है रागिनी?" शालिनी के चेहरे पर मानों आश्चर्य नाच उठा। फिर एकदम चिंतित भाव से कहा उसने____"ऐसा ग़ज़ब मत करना यार। उन हसीन पलों में अगर तू पीछे हटेगी अथवा उन्हें अपने क़रीब नहीं आने देगी तो खुद ही सोच कि ऐसे में उनको कैसा लगेगा? क्या उन्हें तकलीफ़ नहीं होगी? क्या वो ये नहीं सोच बैठेंगे कि तू अभी भी शायद उनको अपना देवर ही मानती है?"

"मैं ये सब सोच चुकी हूं शालिनी।" रागिनी ने गंभीरता से कहा____"और फिर खुद को यही समझाती हूं कि मुझे ऐसा करने का सोचना भी नहीं चाहिए। भला इसमें उनका या मेरा क्या दोष है कि हमारा आपस में इस तरह का रिश्ता बन गया है? ये सब तो नियति में ही लिखा था।"

"अगर तू सच में ऐसा सोचती है तो फिर तुझे बाकी कुछ भी नहीं सोचना चाहिए।" शालिनी ने कहा____"और ना ही उन पलों में ऐसी वैसी हरकत करने का सोचना चाहिए। तुझे अपने दिलो दिमाग़ में सिर्फ ये बात बैठा के रखनी चाहिए कि उनसे तेरा पहली बार ही विवाह हुआ है। इसके पहले तेरा उनसे कोई भी दूसरा रिश्ता नहीं था। एक बात और, तू उमर में उनसे बड़ी है, तेरा रिश्ता भी उनसे बड़ा रहा है इस लिए अगर तू ऐसा करेगी तो वो भी ऐसा ही सोचेंगे और आगे कुछ भी नहीं हो सकेगा उनसे। इस लिए मैं तुझसे यही कहूंगी कि सब कुछ अच्छा चल रहा है तो आगे भी सब कुछ अच्छा ही चलने देना। ना तू बीच चौराहे पर रुकना और ना ही उन्हें रुकने के बारे में सोचने देना।"

"ऊपर वाला ही जाने उस वक्त मुझसे क्या हो सकेगा और क्या नहीं।" रागिनी ने अधीरता से कहा।

"ऊपर वाला भी उसी के साथ होता है रागिनी जो बिना झिझक के और बिना रुके अपने कर्तव्य पथ पर चलते हैं।" शालिनी ने कहा____"तेरे जीवन में ऊपर वाले ने इतना अच्छा समय ला दिया है तो अब ये तेरी भी ज़िम्मेदारी है कि तू ऊपर वाले की दी हुई इस सौगात को पूरे मन से स्वीकार करे और पूरे आत्म विश्वास के साथ हर चुनौती को पार करती चली जाए।"

"मैं पूरी कोशिश करूंगी शालिनी।" रागिनी ने अधीरता से कहा____"बाकी जो मेरी किस्मत में लिखा होगा वही होगा।"

"तू चिंता मत कर।" शालिनी ने फिर से उसके कंधों पर अपने हाथ रखे____"मुझे पूरा भरोसा है कि आगे सब कुछ अच्छा ही होगा। मुझे वैभव जी पर भी भरोसा है कि वो तुझे ऐसे किसी भी धर्म संकट में फंसने नहीं देंगे बल्कि तेरे मनोभावों को समझते हुए वही करेंगे जिसमें तेरी खुशी होगी और जो तेरे हित में होगा।"

कुछ देर और दोनों के बीच बातें हुईं उसके बाद शालिनी के कहने पर रागिनी उसके साथ ही अंदर की तरफ चली गई। कामिनी धुले हुए कपड़ों को वहीं बंधी डोरी पर डाल रही थी। कुछ बातें उसके कानों में भी पहुंचीं थी।

✮✮✮✮

मैंने मेनका चाची को इशारा कर के उन्हें कमरे में आने को कहा और खुद उनके कमरे की तरफ बढ़ चला। शाम हो चुकी थी। सबको चाय दी गई थी। इतने लोग थे कि बड़े से बर्तन में चाय बनाई गई थी। बहरहाल, कुछ ही देर में चाची मेरी तरफ आती नज़र आईं। मैं दरवाज़े के पास ही खड़ा हुआ था। अचानक मुझे कुसुम दिखी तो मैंने उसको भी आवाज़ दे कर अपने पास बुलाया। वो खुशी से उछलती हुई जल्दी ही मेरे पास आ गई और मुझे सवालिया नज़रों से देखने लगी।

चाची ने दरवाज़ा खोला तो उनके पीछे मैं और कुसुम कमरे में दाख़िल हो गए। इत्तेफ़ाक से बिजली गुल नहीं थी इस लिए कमरे में बल्ब का पीला प्रकाश फैला हुआ था। चाची अपने पलंग पर जा कर बैठ गईं। मैंने कुसुम को भी उनके पास बैठ जाने को कहा और खुद वहीं उनके पास ही कुर्सी को खिसका कर बैठ गया।

"क्या बात है वैभव बेटा?" चाची ने बड़े स्नेह से मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"तुमने किसी ख़ास वजह से मुझे यहां आने का इशारा किया था क्या?"

"हां चाची।" मैंने कहा____"असल में आपसे एक ज़रूरी बात करनी थी। उम्मीद करता हूं कि आप मेरी बात ज़रूर मानेंगी और सिर्फ आप ही नहीं कुसुम भी।"

"बिल्कुल मानूंगी बेटा।" मेनका चाची ने उसी स्नेह के साथ कहा____"बताओ ऐसी क्या बात है?"

"आप तो जानती हैं कि कल विभोर और अजीत विदेश से यहां आ जाएंगे।" मैंने थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"मैं आप दोनों से ये कहना चाहता हूं कि उन्हें इस बारे में पता नहीं चलना चाहिए कि आपने या चाचा ने क्या किया था।"

"ऐसा क्यों कहते हो वैभव?" चाची ने सहसा अधीर हो कर कहा____"उनसे इतनी बड़ी बात छुपाने को क्यों कह रहे हो तुम? मैं तो यही चाहती हूं कि उनको भी अपने माता पिता के घिनौने सच का पता चले।"

"नहीं चाची, कृपया ऐसा मत कीजिएगा।" मैंने कहा____"जो गुज़र गया उसे भूल जाने में ही सबकी भलाई है। वो दोनों विदेश में अच्छे मन से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं तो उन्हें पूरे मन से पढ़ने दीजिए। अगर उन्हें इस बात का पता चला तो वो दोनों जाने क्या क्या सोच कर दुखी हो जाएंगे। इससे उनकी पढ़ाई लिखाई पर गहरा असर पड़ जाएगा। मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता कि मेरे वो दोनों छोटे भाई हम सबके बीच खुद के बारे में उल्टा सीधा सोचने लगें। मेरी आपसे हाथ जोड़ कर विनती है चाची कि आप उन्हें इस बारे में कुछ मत बताइएगा।"

"तुम कहते हो तो नहीं बताऊंगी।" मेनका चाची ने अधीरता से कहा____"लेकिन अगर उन्हें किसी और से इस बात का पता चल गया तो?"

"उन्हें किसी से कुछ पता नहीं चलेगा चाची।" मैंने दृढ़ता से कहा____"वैसे भी इस बारे में बाहर के लोगों को कुछ पता नहीं है और जिन एक दो लोगों को पता है उन्हें पिता जी ने समझा दिया है कि इस बारे में वो विभोर और अजीत को भनक तक न लगने दें।"

"चलो मान लिया कि उन्हें मौजूदा समय में इस बारे में किसी से पता नहीं चलेगा।" चाची ने कहा____"लेकिन कभी न कभी तो उन्हें इस बारे में पता चल ही जाएगा ना। अगर उन्हें किसी और से पता चला तो वो ये सोच कर दुखी हो जाएंगे कि उनकी मां ने इस बारे में खुद उन्हें क्यों नहीं बताया?"

"वैसे तो ये मुमकिन नहीं है चाची।" मैंने कहा____"लेकिन दुर्भाग्य से अगर कभी उन्हें पता चल भी गया तो वो आज के मुकाबले इतना दुखदाई नहीं होगा। इस वक्त ज़रूरी यही है कि उन्हें इस बारे में कुछ भी पता नहीं चलना चाहिए ताकि वो साफ मन से अपनी पढ़ाई कर सकें।"

"भैया सही कह रहे हैं मां।" कुसुम ने मासूमियत से कहा____"विभोर भैया और अजीत को इस समय इस बारे में नहीं बताना चाहिए। मैं तो कभी नहीं बताऊंगी उनको, आप भी कभी मत बताना।"

"ठीक है वैभव।" चाची ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"वैसे तो कभी न कभी उनको पता चल ही जाएगा किंतु मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं कि इस समय उन्हें ये घिनौना सच बताना ठीक नहीं है।"

"तो फिर मुझे वचन दीजिए चाची कि आप मेरे छोटे भाइयों को इस बारे में कभी कुछ नहीं बताएंगी।" मैंने कहा____"आप वैसा ही करेंगी जिसमें उन दोनों का भविष्य उज्ज्वल बने।"

"क्या वचन देने की ज़रूरत है वैभव?" मेनका चाची ने अधीरता से मेरी तरफ देखा।

"वैसे तो ज़रूरत नहीं है चाची।" मैंने कहा____"लेकिन मेरी तसल्ली के लिए मुझे आपसे इस बात का वचन चाहिए। मैं ये कभी नहीं चाहूंगा कि मेरी प्यारी चाची और मेरे दोनों प्यारे भाई भविष्य में कभी भी दुखी हों।"

"ओह! वैभव, मेरे अच्छे बेटे।" चाची ने मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में ले कर अपनी तरफ खींचा और फिर बड़े स्नेह से मेरे माथे को चूम लिया____"क्यों मुझ जैसी चाची को इतना मानते हो? क्यों मुझे इतना मान सम्मान देते हो?"

"क्योंकि आपका ये बेटा ऐसा ही है।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए प्यार से कहा____"आपका ये बेटा अपनी सबसे सुंदर चाची से बहुत प्यार करता है और चाहता है कि उसकी प्यारी चाची हमेशा खुश रहें।"

मेरी बात सुन कर चाची की आंखें छलक पड़ी। एक झटके से पलंग से उठी और फिर झपट कर मुझे अपने सीने से छुपका लिया। ये देख कुसुम की भी आंखें छलक पड़ीं। वो भी झट से आई और एक तरफ से मुझसे चिपक गई।

"काश! विधाता ने मेरी और तुम्हारे चाचा की बुद्धि न हर ली होती।" चाची ने सिसकते हुए कहा____"तो हम दोनों से इतना बड़ा अपराध न होता।"

"ये सब सोच कर खुद को दुखी मत कीजिए चाची।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"आप जानती हैं ना कि मैं अपनी प्यारी सी चाची को ना तो दुखी होते देख सकता हूं और ना ही आंसू बहाते हुए।"

"हमने जो किया है उसका दुख एक नासूर बन कर सारी उमर मुझे तड़पाएगा मेरे बेटे।" चाची ने रुंधे गले से कहा____"मैं कितना भी चाहूं इससे बच नहीं सकूंगी। हमेशा ये सोच कर मुझे तकलीफ़ होगी कि मैंने अपने देवता समान जेठ जी और देवी समान अपनी दीदी के प्यार, स्नेह और भरोसे को तोड़ा है।"

"शांत हो जाइए चाची।" मैंने उठ कर उनके चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर कहा____"मैंने आपसे कहा है ना कि मैं अपनी प्यारी सी चाची को दुखी और आंसू बहाते नहीं देख सकता। इस लिए ये सब मत सोचिए। क्या आप अपने बेटे के विवाह जैसे खुशी के अवसर पर इस तरह खुद को दुखी रखेंगी? क्या आप चाहती हैं कि आपका बेटा खुशी के इस अवसर पर अपनी प्यारी सी चाची को दुखी देख खुद भी दुखी हो जाए?"

"नहीं नहीं।" चाची की आंखें छलक पड़ीं। मानों तड़प कर बोलीं____"मैं ऐसा कभी नहीं चाह सकती मेरे बेटे। मैं तो यही चाहती हूं कि मेरे सबसे अच्छे बेटे को दुनिया भर की खुशियां मिल जाएं। मैं अब नहीं रोऊंगी। इस खुशी के मौके पर तुम्हें दुखी नहीं करूंगी।"

"ये हुई न बात। मेरी सबसे प्यारी चाची।" मैंने झुक कर चाची के माथे पर चूम लिया____"चलिए अब, बाहर आपके बिना कहीं कोई काम न बिगड़ जाए। आप तो जानती हैं कि मां को आपके सहारे की कितनी ज़रूरत है।"

आख़िर मेरी बातों से चाची के चेहरे पर से दुख के भाव मिटे और फिर वो मुस्कुराते हुए पलंग से नीचे उतर आईं। कुसुम मुझे भाव विभोर सी देखे जा रही थी। उसकी आंखें भरी हुई थी। ख़ैर कुछ ही पलों में हम तीनों कमरे से बाहर आ गए। चाची और कुसुम अपने अपने काम में लग गईं जबकि मैं खुशी मन से ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ता चला गया।




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Sweet update
Ragini or Vaibhav ki suhagrat mein halat hogi dono k Dil ki yeh dekhne wala drishya hoga
 

S M H R

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Dosto, iske aage do update aur hain. Baaki ke update delete kar diye hain maine kyoki aap sabko vaibhav aur ragini ka suhagrat wala scene chahiye tha. Is liye maine uske aage ke update fir se likhne ka man banaya hai. But time ki kami ke chalte update aane me time lag sakta hai. Lekin iska matlab ye nahi hai ki ye story February me complete nahi hogi...

Story February me hi complete hogi... :check:

Sath banaye rakhe, enjoy kare aur apne vichaar byakt karte rahe... :declare:
Thanks request ko manne k liye ap apna time Bhai lekin shugraat ka seen bahut jaruri hai iss kahani ki situation ko dekhte hue
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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एक और अनावश्यक प्रकरण
 

Sanju@

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अध्याय - 157
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"होने को तो कुछ भी हो सकता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन हमें यकीन है कि वो ऐसी गिरी हुई हरकत करने का नहीं सोच सकते। बाकी जिसकी किस्मत में जो लिखा है वो तो हो के ही रहेगा।"

थोड़ी देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद सुगंधा देवी उठ कर कमरे से बाहर चली गईं। इधर दादा ठाकुर पलंग पर अधलेटी अवस्था में बैठे ख़ामोशी से जाने क्या सोचने लगे थे।



अब आगे....


वक्त हमेशा की तरह अपनी रफ़्तार से चलता रहा। दिन इसी तरह गुज़रने लगे। दो दिन बाद पिता जी चंदनपुर गए और वहां पर वो ख़ास तौर पर रागिनी भाभी से मिले। हालाकि वीरेंद्र सिंह ने अपने घर वालों को बता दिया था लेकिन इसके बावजूद पिता जी जब चंदनपुर गए तो वो खुद भी भाभी से मिले। हर कोई हैरान था और ये सोच कर खुश भी था कि इतने बड़े इंसान होने के बाद भी वो ग़लत होने पर किसी के सामने झुकने पर झिझक नहीं करते हैं और ना ही माफ़ी मांगने में शर्म महसूस करते हैं।

रागिनी भाभी के लिए वो पल बहुत ही अद्भुत और बहुत ही ज़्यादा संवेदनशील बन गया था जब पिता जी उनके सामने अपनी बात कहते हुए उनसे माफ़ी मांग रहे थे। भाभी ये सब सहन न कर सकीं थी और ये सोच कर रो पड़ीं थी कि उसके ससुर उससे माफ़ी मांगने इतनी दूर उसके पास आए थे। इतना तो वो पहले से ही जानतीं थी कि उनके सास ससुर कितने अच्छे थे और कितने महान थे लेकिन अपनी बहू की खुशियों का ख़याल वो इस हद तक भी करेंगे इसका आभास आज हुआ था उन्हें। ऐसी महान शख्सियत को अपने से माफ़ी मांगते देख वो अंदर तक हिल गईं थी और साथ ही बुरी तरह तड़प उठीं थी। उनकी छोटी बहन कामिनी उनके साथ ही थी इस लिए उन्होंने उससे कहलवाया कि वो ऐसा न करें। उसकी नज़र में उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया है, बल्कि ये उनका सौभाग्य है कि उन्हें उनके जैसे पिता ससुर के रूप में मिले हैं जो उनकी खुशियों का इतना ख़याल रखते हैं।

बहरहाल, इस सबके बाद वहां पर ये चर्चा शुरू हुई कि जल्द ही विवाह करने के लिए पुरोहित जी से शुभ मुहूर्त की लग्न बनवाई जाए और फिर ये विवाह संपन्न किया जाए। सारा दिन पिता जी वहीं पर रुके रहे और इसी संबंध में बातें करते रहे उसके बाद वो शाम को वापस रुद्रपुर आ गए।

हवेली में उन्होंने मां को सब कुछ बताया और फिर जल्दी ही पुरोहित जी से मिलने की बात कही। मां इस सबसे बहुत खुश थीं। हवेली में एक बार फिर से खुशियों की झलक दिखने लगी थी। हर किसी के चेहरे पर एक अलग ही चमक दिखने लगी थी।

मुझे भी मां से सब कुछ पता चल चुका था। मैं समझ चुका था कि अब भाभी के साथ मेरा विवाह होना बिल्कुल तय हो चुका है। इस बात के एहसास से मेरे अंदर एक अलग ही एहसास जागने लगे थे। मैं अब भाभी को एक पत्नी की नज़र से सोचने लगा था। ये अलग बात है कि उनको पत्नी के रूप में सोचने से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होता था। मैं सोचने पर मज़बूर हो जाता था कि उस समय क्या होगा जब भाभी को मैं विवाह के पश्चात अपनी पत्नी बना कर हवेली ले आऊंगा? आख़िर कैसे मैं एक पति के रूप में उनसे इस रिश्ते को आगे बढ़ा पाऊंगा? क्या भाभी मेरी पत्नी बनने के बाद मेरे साथ जीवन का सफ़र सहजता से आगे बढ़ा सकेंगी? क्या मैं पूर्ण रूप से उनके साथ वो सब कर पाऊंगा जो एक पति पत्नी के बीच होता है और जिससे एक नई पीढ़ी का जन्म होता है?

ये सारे सवाल ऐसे थे जिनके सोचने से बड़ी अजीब सी अनुभूति होने लगी थी। सीने में मौजूद दिल की धड़कनें घबराहट के चलते एकाएक धाड़ धाड़ कर के बजने लगतीं थी।

वहीं दूसरी तरफ, मैं रूपा के बारे में भी सोचने लगता था लेकिन उसके बारे में मुझे इस तरह की असहजता अथवा इस तरह की घबराहट नहीं महसूस होती थी क्योंकि उसके साथ मैं वो सब पहले भी कई बार कर चुका था जो विवाह के बाद पति पत्नी के बीच होता है। लेकिन हां अब उसके प्रति मेरे दिल में प्रेम ज़रूर पैदा हो चुका था जिसके चलते अब मैं उसे एक अलग ही नज़र से देखने लगा था। उसके प्रति भी मेरे दिल में वैसा ही आदर सम्मान था जैसा भाभी के प्रति था।

ऐसे ही एक महीना गुज़र गया। विद्यालय और अस्पताल का निर्माण कार्य अब लगभग अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच गया था। रूपचंद्र कुछ दिनों से कम ही आता था क्योंकि उसके घर में विवाह की तैयारियां जोरों से चल रहीं थी। अतः यहां की देख रेख अब मैं ही कर रहा था। पिता जी भी अपनी तरफ से गौरी शंकर की यथोचित सहायता कर रहे थे।

आख़िर वो दिन आ ही गया जब रूपचंद्र के घर बरात आई और मणि शंकर की बेटियों का विवाह हुआ। इस विवाह में हवेली से पिता जी मुंशी किशोरी लाल के साथ तो गए ही किंतु साथ में मां, मेनका चाची, निर्मला काकी, कुसुम और कजरी भी गईं। थोड़े समय के लिए मैं भी गया लेकिन फिर मैं वापस आ गया था।

साहूकार मणि शंकर की बेटियों का बहुत ही विधिवत तरीके से विवाह संपन्न हुआ। नात रिश्तेदार तो भारी संख्या में थे ही किंतु आस पास के गांवों के उसके जानने वाले भी थे। महेंद्र सिंह और अर्जुन सिंह भी आए हुए थे। सुबह दोनों बेटियों की विदाई हुई। बेटियों ने अपने करुण रुदन से सबकी आंखें छलका दी थी। बहरहाल विवाह संपन्न हुआ और धीरे धीरे सब लोग अपने अपने घरों को लौट गए।

एक दिन महेंद्र सिंह हवेली में आए और पिता जी से बोले कि वो मेनका चाची से रिश्ते की बात करने आए हैं। इत्तेफ़ाक से मैं भी उस वक्त बैठक में ही था। मुझे महेंद्र सिंह से रिश्ते की बात सुन कर थोड़ी हैरानी हुई। उधर पिता जी ने मुझसे कहा कि मैं अंदर जा कर मेनका चाची को बैठक में ले कर आऊं। उनके हुकुम पर मैंने ऐसा ही किया। मेनका चाची को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर बात क्या है?

चाची जब बैठक में आईं तो उन्होंने सिर पर घूंघट कर लिया था। बैठक में पिता जी और किशोरी लाल के साथ महेंद्र सिंह को बैठा देख उनके चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए।

"हमारे मित्र महेंद्र सिंह जी तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं बहू।" पिता जी ने मेनका चाची से मुखातिब हो कर सामान्य भाव से कहा____"हम चाहते हैं कि तुम इत्मीनान से इनकी बातें सुन लो। उसके बाद तुम्हें जो ठीक लगे जवाब दे देना।"

मेनका चाची पिता जी की ये बात सुन कर मुख से तो कुछ न बोलीं लेकिन कुछ पलों तक उन्हें देखने के बाद महेंद्र सिंह की तरफ देखने लगीं। महेंद्र सिंह समझ गए कि वो उन्हें इस लिए देखने लगीं हैं क्योंकि वो जानना चाहती हैं कि वो उनसे क्या कहना चाहते हैं?

"वैसे तो हमने ठाकुर साहब से अपनी बात कह दी थी।" महेंद्र सिंह ने जैसे भूमिका बनाते हुए कहा____"लेकिन ठाकुर साहब का कहना था कि इस बारे में हम आपसे भी बात करें। इस लिए आज हम आपसे ही बात करने आए हैं।"

महेंद्र सिंह की इस बात से चाची चुप ही रहीं। उनके चेहरे पर उत्सुकता के भाव नुमायां हो रहे थे। उधर महेंद्र सिंह कुछ पलों तक शांत रहे। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो अपनी बात कहने के लिए खुद को अच्छे से तैयार कर रहे हों।

"असल में हम आपके पास एक प्रस्ताव ले कर आए हैं।" फिर उन्होंने चाची की तरफ देखते हुए कहा____"हम अपने बेटे राघवेंद्र के लिए आपसे आपकी बेटी कुसुम का हाथ मांगने आए हैं। हमारी दिली ख़्वाईश है कि हम ठाकुर साहब से अपनी मित्रता को रिश्तेदारी के अटूट एवं हसीन बंधन में बदल लें। क्या आपको हमारा ये प्रस्ताव स्वीकार है मझली ठकुराईन?"

मेनका चाची तो चौंकी ही लेकिन मैं भी हैरानी से महेंद्र सिंह की तरफ देखने लगा था। उधर पिता जी चुपचाप अपने सिंहासन पर बैठे थे। बैठक में एकदम से सन्नाटा सा छा गया था।

"आप चुप क्यों हैं ठकुराईन?" चाची को कुछ न बोलते देख महेंद्र सिंह ने व्याकुलता से कहा____"हम आपसे जवाब की उम्मीद किए बैठे हैं। एक बात और, आपको इस बारे में किसी भी तरह का संकोच करने की ज़रूरत नहीं है। यकीन मानिए हमें आपके द्वारा हमारे प्रस्ताव को ठुकरा देने पर बिल्कुल भी बुरा नहीं लगेगा।"

"मैं चुप इस लिए हूं क्योंकि मैं ये सोच कर चकित हूं कि इस बारे में आपने मुझसे बात करना क्यों ज़रूरी समझा?" मेनका चाची कहने साथ ही पिता जी से मुखातिब हुईं____"जेठ जी, क्या अभी भी आपने मुझे माफ़ नहीं किया है? क्या सच में आपने मुझे पराया समझ लिया है और इस लिए आप मेरे और मेरी बेटी के बारे में खुद कोई फ़ैसला नहीं करना चाहते हैं?"

"तुम ग़लत समझ रही हो बहू।" पिता जी ने कहा____"हमने किसी को भी पराया नहीं समझा है बल्कि अभी भी हम सबको अपना ही समझते हैं। रही बात किसी का फ़ैसला करने की तो बात ये है कि हम नहीं चाहते कि हमारे किसी फ़ैसले से बाद में किसी को कोई आपत्ति हो जाए अथवा कोई नाखुश हो जाए। कुसुम तुम्हारी बेटी है इस लिए उसके जीवन का फ़ैसला करने का हक़ सिर्फ तुम्हें है। अगर हमारा भाई जगताप ज़िंदा होता तो शायद हमें इस बारे में कोई फ़ैसला करने में संकोच नहीं होता।"

मेनका चाची कुछ देर तक पिता जी को देखती रहीं। घूंघट किए होने से नज़र तो नहीं आ रहा था लेकिन ये समझा जा सकता था कि पिता जी की बातों से उन्हें तकलीफ़ हुई थी।

"ठीक है, अगर आप इसी तरह से सज़ा देना चाहते हैं तो मुझे भी आपकी सज़ा मंजूर है जेठ जी।" कहने के साथ ही चाची महेंद्र सिंह से बोलीं____"आप इस बारे में मुझसे जवाब सुनने चाहते हैं ना तो सुनिए, मैं आपके इस प्रस्ताव को ना ही स्वीकार करती हूं और ना ही ठुकराती हूं। अगर आप सच में अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलना चाहते हैं तो इस बारे में जेठ जी से ही बात कीजिए। मुझे कुछ नहीं कहना अब।"

कहने के साथ ही मेनका चाची पलटीं और बिना किसी की कोई बात सुने बैठक से चलीं गई। हम सब भौचक्के से बैठे रह गए। किसी को समझ ही नहीं आया कि ये क्या था?

"माफ़ करना मित्र।" ख़ामोशी को चीरते हुए पिता जी ने कहा____"आपको ऐसी अजीब स्थिति में फंस जाना पड़ा।"

"हम समझ सकते हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"सच कहें तो हमें मझली ठकुराईन से इसी तरह के जवाब की उम्मीद थी। उनकी बातों से स्पष्ट हो चुका है कि वो क्या चाहती हैं। यानि वो चाहती हैं कि इस बारे में आप ही फ़ैसला करें।"

"हमारी स्थिति से आप अच्छी तरह वाक़िफ हैं मित्र।" पिता जी ने कहा____"समझ ही सकते हैं कि इस बारे में कोई भी फ़ैसला करना हमारे लिए कितना मुश्किल है।"

"बिल्कुल समझते हैं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"लेकिन ये भी समझते हैं कि आपको किसी न किसी नतीजे पर तो पहुंचना ही पड़ेगा। हम इस वक्त आपको किसी परेशानी में डालना उचित नहीं समझते हैं इस लिए आप थोड़ा समय लीजिए और सोचिए कि वास्तव में आपको क्या करना चाहिए? हम फिर किसी दिन आपसे मुलाक़ात करने आ जाएंगे। अच्छा अब हमें जाने की इजाज़त दीजिए।"

पिता जी ने भारी मन सिर हिलाया और उठ कर खड़े हो गए। महेंद्र सिंह कुछ ही देर में अपनी जीप में बैठ कर चले गए। इधर मैंने महसूस किया कि मामला थोड़ा गंभीर और संजीदा सा हो गया है। मैं इस बात से भी थोड़ा हैरान था कि महेंद्र सिंह के सामने चाची ने ऐसी बातें क्यों की? क्या उन्हें इस बात का बिल्कुल भी एहसास नहीं था कि उनकी ऐसी बातों से महेंद्र सिंह के मन में क्या संदेश गया होगा?

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अंदर मेनका चाची मां के पास बैठी सिसक रहीं थी। मां को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते मेनका चाची यूं अचानक से सिसकने लगीं हैं। इतना तो वो भी जानती थीं कि मैं उन्हें ले कर बैठक में गया था लेकिन बैठक में क्या हुआ ये उन्हें पता नहीं था।

"अब कुछ बताओगी भी कि हुआ क्या है?" मां ने चाची से पूछा____"तुम तो वैभव के साथ बैठक में ग‌ई थी ना?"

"मैं तो समझी थी कि आपने और जेठ जी ने मुझे माफ़ कर दिया है।" मेनका चाची ने दुखी भाव से कहा____"लेकिन सच तो यही है कि आप दोनों ने मुझे अभी भी माफ़ नहीं किया है।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" मां के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे____"भला ऐसा कैसे कह सकती हो तुम कि हमने तुम्हें माफ़ नहीं किया है?"

"अगर आप दोनों ने सच में मुझे माफ़ कर दिया होता।" चाची ने कहा____"तो आज जेठ जी मुझसे ऐसी बातें नहीं कहते। वो मुझे और मेरी बेटी को पराया समझने लगे हैं दीदी।"

"तुम होश में तो हो?" मां हैरत से आंखें फैला कर जैसे चीख ही पड़ीं____"ये कैसी ऊटपटांग बातें कर रही हो तुम? तुम्हारे जेठ जी ने भला ऐसा क्या कह दिया है तुमसे जिससे तुम ऐसा समझ रही हो?"

"आपको पता है बैठक में मुझे किस लिए बुलाया गया था?" चाची ने पूर्व की भांति ही दुखी लहजे में कहा____"असल में वहां पर महेंद्र सिंह जी बैठे हुए थे जो अपने बेटे का विवाह प्रस्ताव ले कर आए थे। शायद उन्होंने पहले जेठ जी से इस बारे में बता की थी लेकिन जेठ जी ने ये कह दिया रहा होगा कि वो इस बारे में कोई फ़ैसला नहीं करेंगे बल्कि मैं करूंगी। यानि उनके कहने का मतलब ये है कि वो मेरी बेटी के बारे में कोई फ़ैसला नहीं कर सकते।"

"हां तो इसमें क्या हो गया?" मां ने कहा____"कुसुम तुम्हारी बेटी है तो उसके बारे में कोई भी फ़ैसला करने का हक़ सबसे पहले तुम्हारा ही है। क्या तुम सिर्फ इतनी सी बात पर ये समझ बैठी हो कि हमने तुम्हें माफ़ नहीं किया है?"

"आज से पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ न दीदी कि जेठ जी ने किसी के बारे में कोई फ़ैसला खुद से न किया रहा हो।" मेनका चाची ने कहा____"फिर अब क्यों वो मेरी बेटी का फ़ैसला खुद नहीं कर सकते? क्यों उन्होंने ये कहा कि कुसुम मेरी बेटी है तो उसके बारे में मुझे ही फ़ैसला करना होगा? अभी तक तो मुझसे ज़्यादा आप दोनों ही मेरे बच्चों को अपना समझते रहे हैं, फिर अब क्यों ये ज़ाहिर कर रहे हैं कि आप दोनों का उन पर कोई हक़ नहीं है?"

"तुम बेवजह ये सब सोच कर खुद को हल्कान कर रही हो मेनका।" मां ने कहा____"हमने ना पहले तुम में से किसी को ग़ैर समझा था और ना ही अब समझते हैं। रही बात कुसुम के बारे में निर्णय लेने की तो ये सच है कि तुम उसकी मां हो इस लिए तुमसे पूछना और तुम्हारी राय लेना हर तरह से उचित है। अगर तुम्हारे जेठ जी ऐसा कुछ कह भी दिए हैं तो तुम्हें इस बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए।"

मां की बात सुन कर मेनका चाची नम आंखों से अपलक उन्हें देखती रहीं। उनके चेहरे पर पीड़ा के भाव थे। रोने से उनकी आंखें हल्का सुर्ख हो गईं थी।

"देखो मेनका सच हमेशा सच ही होता है।" मां ने फिर से कहा____"उसे किसी भी तरह से झुठलाया नहीं जा सकता। माना कि हम तुम्हारे बच्चों को हमेशा तुमसे कहीं ज़्यादा प्यार और स्नेह देते आए हैं लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं हो जाएगा कि वो तुम्हारे नहीं बल्कि असल में हमारे बच्चे कहलाएंगे। तुमने उन्हें जन्म दिया है तो वो हर सूरत में तुम्हारे बच्चे ही कहलाएंगे। भविष्य में कभी भी अगर उनके बारे में कोई बात आएगी तो सबसे पहले तुमसे भी तुम्हारी राय अथवा इच्छा पूछी जाएगी, क्योंकि मां होने के नाते ये तुम्हारा हक़ भी है और हर तरह से जायज़ भी है। इस लिए तुम बेवजह ये सब सोच कर खुद को दुखी मत करो।"

"हे भगवान!" मेनका चाची को एकदम से जैसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ____"इसका मतलब मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई है। मैंने अपनी नासमझी में जेठ जी पर आरोप लगा दिया और ना जाने क्या कुछ कह दिया। कितनी बुरी हूं मैं, मैंने अपने देवता समान जेठ जी को फिर से दुख पहुंचा दिया।"

"शांत हो जाओ।" मां ने उन्हें सम्हालते हुए कहा____"तुमने अंजाने में भूल की है इस लिए मैं तुम्हें दोषी नहीं मानती।"

"नहीं दीदी।" मेनका चाची ने झट से उठ कर कहा____"मुझसे ग़लती हुई है और मैं अभी जा कर जेठ जी से अपनी ग़लती की माफ़ी मांगूंगी।"

इससे पहले कि मां कुछ कहतीं मेनका चाची पलट कर तेज़ी से बाहर बैठक की तरफ बढ़ चलीं। कुछ ही देर में वो बैठक में दाख़िल हुईं। मैं पिता जी और किशोरी लाल अभी भी वहीं सोचो में गुम बैठे हुए थे। चाची को फिर से आया देख हम सबकी तंद्रा टूटी।

"मुझे माफ़ कर दीजिए जेठ जी।" उधर चाची ने घुटनों के बल बैठ कर पिता जी से कहा____"मैंने आपकी बातों को ग़लत समझ लिया था। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ था जैसे आपने मुझे अभी तक माफ़ नहीं किया है और मेरे साथ साथ मेरे बच्चों को भी पराया समझ लिया है। कृपया मेरी नासमझी और मेरी भूल के लिए माफ़ कर दीजिए मुझे।"

"कोई बात नहीं बहू।" पिता जी ने थोड़ी गंभीरता से कहा____"हम समझ सकते हैं कि तुमसे अंजाने में ये ग़लती हुई है। ख़ैर हम तो सिर्फ यही चाहते थे कि अपनी बेटी के संबंध में तुम्हें जो सही लगे उस बारे में अपनी राय हमारे सामने ज़ाहिर कर दो।"

"मेरी राय आपकी राय से जुदा नहीं हो सकती जेठ जी।" मेनका चाची ने कहा____"कुसुम को मुझसे ज़्यादा आपने अपनी बेटी माना है इस लिए उसके बारे में आप जो भी फ़ैसला लेंगे मुझे वो स्वीकार ही होगा।"

"ठीक है।" पिता जी ने कहा____"अगर तुम्हें महेंद्र सिंह जी का ये विवाह प्रस्ताव स्वीकार है तो हम उन्हें इस बारे में बता देंगे। ख़ैर अब तुम जाओ।"

मेनका चाची वापस चली गईं। इधर मैं काफी देर से इस संबंध के बारे में सोचे जा रहा था। मुझे पहली बार एहसास हुआ था कि मेरी लाडली बहन सच में अब बड़ी हो गई है, तभी तो उसके विवाह के संबंध में इस तरह की बातें होने लगीं हैं।

महेंद्र सिंह के बेटे राघवेंद्र सिंह को मैं अच्छी तरह जानता था। अपने माता पिता की वो भले ही इकलौती औलाद था लेकिन उसके माता पिता ने लाड़ प्यार दे कर बिगाड़ा नहीं था। महेंद्र सिंह वैसे भी थोड़ा सख़्त मिज़ाज इंसान हैं। ज्ञानेंद्र सिंह भी अपने बड़े भाई की तरह ही सख़्त मिज़ाज हैं। ज़ाहिर हैं ऐसे में राघवेंद्र का ग़लत रास्ते में जाना संभव ही नहीं था। कई बार मेरी उससे भेंट हुई थी और मैंने यही अनुभव किया था कि वो एक अच्छा लड़का है। कुसुम का उसके साथ अगर विवाह होगा तो यकीनन ये अच्छा ही होगा। वैसे भी महेंद्र सिंह का खानदान आज के समय में काफी संपन्न है और बड़े बड़े लोगों के बीच उनका उठना बैठना भी है।

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रागिनी आज कल थोड़ा खुश नज़र आने लगी थी। इसके पहले जहां वो उदास और गंभीर रहा करती थी वहीं अब उसका चेहरा खिला खिला रहने लगा था। उसके चेहरे की चमक देख घर का हर सदस्य भी खुश था और साथ ही ये समझ चुका था कि अब वो अपने देवर को यानि वैभव को एक पति के रिश्ते से सोचने लगी है।

रागिनी की भाभी वंदना अपनी ननद को यूं खुश देख खुद भी खुश थी और अब कुछ ज़्यादा ही उसे छेड़ने लगी थी। अपनी भाभी के द्वारा इस तरह से छेड़े जाने से रागिनी शर्म से पानी पानी हो जाती थी। उसका ऐसा हाल तब भी नहीं हुआ करता था जब उसका अभिनव से पहली बार विवाह होना था। उसके इस तरह अत्यधिक शर्माने की वजह शायद ये हो सकती थी कि अब जिसके साथ उसका विवाह हो रहा था वो अब से पहले उसका देवर था और अब पति बनने वाला था। दो तरह के रिश्तों का एहसास उसे कुछ ज़्यादा ही शर्माने पर मज़बूर कर देता था।

दूसरी तरफ उसकी छोटी बहन कामिनी भी अपनी बड़ी बहन के लिए खुश थी। आज कल उसके मन में बहुत कुछ चलने लगा था। उसमें अजब सा परिवर्तन आ गया था। पहले वो जब भी वैभव के बारे में सोचती थी तो उसके मन में वैभव के प्रति गुस्सा और नफ़रत जैसे भाव उभर आते थे लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया था। वैभव का इस तरह से बदल जाना उसे हैरान तो करता ही था किंतु वो इस बात से खुश भी थी कि अब वो एक अच्छा इंसान बन गया है। इस वजह से वो उसकी बड़ी बहन से एक सभ्य इंसानों की तरह बर्ताव करेगा और उसकी खुशियों का ख़याल भी रखेगा। एक समय था जब उसके घर वाले उसका विवाह वैभव से करने की चर्चा किया करते थे। जब उसे इस बात का पता चला था तो उसने अपनी मां से स्पष्ट शब्दों में बोल दिया था कि वो वैभव जैसे चरित्रहीन लड़के से किसी कीमत पर विवाह नहीं करेगी। उसकी इस बात से फिर कभी उसके घर वालों ने वैभव के साथ उसका विवाह करने का ज़िक्र नहीं किया था। बहरहाल समय गुज़रा और अब वो उसी वैभव के बदले स्वभाव से खुश और संतुष्ट सी हो गई थी। यही वजह थी कि दोनों बार जब वैभव उसके घर आया था तो उसने खुद जा कर वैभव से बातें की थी। वो खुद परखना चाहती थी कि क्या वैभव सच में एक अच्छा इंसान बन गया है?




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अध्याय - 158
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दोपहर का वक्त था।
हवेली की बैठक में पिता जी तो बैठे ही थे किंतु उनके साथ किशोरी लाल, गौरी शंकर, रूपचंद्र और वीरेंद्र सिंह भी बैठे हुए थे। वीरेंद्र सिंह को पिता जी ने संदेशा भिजवा कर बुलाया था।

"हमने आप सबको यहां पर इस लिए बुलवाया है ताकि हम सब एक दूसरे के समक्ष अपनी अपनी बात रखें और उस पर विचार कर सकें।" पिता जी ने थोड़े गंभीर भाव से कहा_____"अब जबकि हमारी बहू भी वैभव से विवाह करने को राज़ी हो गई है तो हम चाहते हैं कि जल्द से जल्द ये विवाह संबंध भी हो जाए।" कहने के साथ ही पिता जी गौरी शंकर से मुखातिब हुए____"हम तुमसे जानना चाहते हैं गौरी शंकर कि इस बारे में तुम्हारा क्या कहना है? हमारा मतलब है कि वैभव की बरात सबसे पहले तुम्हारे घर में आए या फिर चंदनपुर जाए? हमारे लिए तुम्हारी भतीजी भी उतनी ही अहमियत रखती है जितना कि हमारी बहू रागिनी। हम ये कभी नहीं भूल सकते हैं कि तुम्हारी भतीजी के बदौलत ही हमारे बेटे को नया जीवन मिला है। हम ये भी नहीं भूल सकते कि तुम्हारी भतीजी ने अपने प्रेम के द्वारा वैभव को किस हद तक सम्हाला है। इस लिए तुम जैसा चाहोगे हम वैसा ही करेंगे।"

"आपने मेरी भतीजी के विषय में इतनी बड़ी बात कह दी यही बड़ी बात है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने अधीरता से कहा____"यकीन मानिए आपकी इन बातों से मुझे अंदर से बेहद खुशी महसूस हो रही है। मुझे भी इस बात का एहसास है कि मेरी भतीजी की वजह से ही आज मैं और मेरा पूरा परिवार आपकी नज़र में दया के पात्र बने हैं वरना हम भी समझते हैं कि जो कुछ हमने आपके साथ किया था उसके चलते हमारा पतन हो जाना निश्चित ही था।"

"जो गुज़र गया उसके बारे में अब कुछ भी मत कहो गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"हम उस सबको कभी याद नहीं करना चाहते। अब तो सिर्फ यही चाहते हैं कि आगे जो भी हो अच्छा ही हो। ख़ैर इस वक्त हम तुमसे यही जानना चाहते हैं कि तुम क्या चाहते हो? क्या तुम ये चाहते हो कि वैभव की बरात सबसे पहले तुम्हारे द्वार पर आए या फिर चंदनपुर जाए?"

"आपको इस बारे में मुझसे कुछ भी पूछने की ज़रूरत नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"आप अपने मन से जैसा भी करेंगे हम उसी से खुश और संतुष्ट हो जाएंगे।"

"नहीं गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"इस बारे में तुम्हें बिल्कुल भी संकोच करने की अथवा कुछ भी सोचने की ज़रूरत नहीं है। तुम जैसा चाहोगे हम वैसा ही करेंगे और ये हम सच्चे दिल से कह रहे हैं।"

"अगर आप मेरे मुख से ही सुनना चाहते हैं तो ठीक है।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ली____"ये सच है कि हर मां बाप की तरह मेरी भी तमन्ना यही थी कि वैभव की बरात सबसे पहले मेरे ही द्वार पर आए। वैभव का जब अनुराधा के साथ ब्याह होने की बात पता चली थी तो मुझे या मेरे परिवार को उसके साथ वैभव का ब्याह होने में कोई आपत्ति नहीं थी किंतु हां इच्छा यही थी कि वैभव की बरात सबसे पहले मेरी ही चौखट पर आए। यही इच्छा रागिनी बहू के साथ वैभव का विवाह होने पर भी हुई थी लेकिन मैं ये भी समझता हूं कि ऐसा उचित नहीं होगा। रागिनी बहू पहले भी आपकी बहू थीं और अब भी होने वाली बहू ही हैं। वो उमर में भी मेरी भतीजी से बड़ी हैं। ऐसे में अगर उनका विवाह मेरी भतीजी के बाद होगा तो ये हर तरह से अनुचित लगेगा। इस लिए मेरा कहना यही है कि आप वैभव की बरात ले कर सबसे पहले चंदनपुर ही जाएं और रागिनी बिटिया के साथ वैभव का विवाह कर के उन्हें यहां ले आएं। उसके कुछ समय बाद आप वैभव की बरात ले कर हमारे घर आ जाइएगा।"

"इस बारे में तुम्हारा क्या कहना है वीरेंद्र सिंह?" पिता जी ने वीरेंद्र सिंह की तरफ देखते हुए पूछा।

"आप सब मुझसे बड़े हैं और उचित अनुचित के बारे में भी मुझसे ज़्यादा जानते हैं।" वीरेंद्र सिंह ने शालीनता से कहा____"इस लिए मैं इस बारे में आप लोगों के सामने कुछ भी कहना उचित नहीं समझता हूं। बस इतना ही कहूंगा कि आप सबका जो भी फ़ैसला होगा वो मुझे तहे दिल से मंज़ूर होगा।"

"मेरा तो यही कहना है ठाकुर साहब कि इस बारे में आपको अब कुछ भी सोचने की ज़रूरत नहीं है।" गौरी शंकर ने कहा____"मैं आपसे कह चुका हूं कि आप सबसे पहले चंदनपुर ही वैभव की बरात ले कर जाइए। सबसे पहले रागिनी बिटिया का विवाह होना ही हर तरह से उचित है।"

"किशोरी लाल जी।" पिता जी ने मुंशी किशोरी लाल की तरफ देखा____"आपका क्या कहना है इस बारे में?"

"मैं गौरी शंकर जी की बातों से पूरी तरह सहमत हूं ठाकुर साहब।" किशोरी लाल ने कहा____"इन्होंने ये बात बिल्कुल उचित कही है कि रागिनी बहू का विवाह सबसे पहले होना चाहिए। उमर में बड़ी होने के चलते अगर उनका विवाह रूपा बिटिया के बाद होगा तो उचित नहीं लगेगा। छोटी बड़ी हो जाएंगी और बड़ी छोटी हो जाएंगी। लोगों को जब इस बारे में पता चलेगा तो वो भी ऐसी ही बातें करेंगे। इस लिए मैं गौरी शंकर जी की बातों से सहमत हूं।"

"ठीक है।" पिता जी ने एक लंबी सांस लेने के बाद कहा____"अगर आप सबका यही विचार है तो फिर ऐसा ही करते हैं। पुरोहित जी से मिल कर जल्द ही हम दोनों बहुओं के विवाह की लग्न बनवाएंगे। हम चाहते हैं कि इस हवेली में जल्द से जल्द हमारी दोनों बहुएं आ जाएं जिससे इस हवेली में और हमारे परिवार में फिर से रौनक आ जाए।"

कुछ देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद सभा समाप्त हो गई। गौरी शंकर और रूपचंद्र चले गए, जबकि वीरेंद्र सिंह बैठक में ही बैठे रहे। वीरेंद्र सिंह को जल्द ही जाना था इस लिए पिता जी के कहने पर उसने थोड़ी देर आराम किया और फिर खुशी मन से चले गए।

✮✮✮✮

गौरी शंकर और रूपचंद्र ने अपने घर पहुंच कर सबको ये बताया कि हवेली में दादा ठाकुर से क्या बातें हुईं हैं। सबके चेहरों पर खुशी के भाव उभर आए। किसी को भी इस बात से आपत्ति नहीं हुई कि वैभव की बरात सबसे पहले उनके यहां न आ कर चंदनपुर जाएगी। शायद सबको लगता था कि सबसे पहले रागिनी का ही वैभव के साथ विवाह होना चाहिए। जल्दी ही ये ख़बर रूपा के कानों तक पहुंच गई जिसके चलते उसके चेहरे पर भी खुशी के भाव उभर आए। उसकी दोनों भाभियां उसे छेड़ने लगीं जिससे वो शर्माने लगी। फूलवती की वो दोनों बेटियां भी अपनी ससुराल से आ गईं थी जिनका कुछ समय पहले विवाह हुआ था। वो दोनों भी रूपा को छेड़ने में लग गईं थी।

घर में एकदम से ही ख़ुशी का माहौल छा गया था। रूपा को उसकी भाभियों ने और उसकी बहनों ने बताया कि वैभव का विवाह सबसे पहले उसकी भाभी रागिनी से होगा, उसके बाद उससे। रूपा को पहले से ही इस बात का अंदेशा था और वो खुद भी चाहती थी कि पहले उसकी रागिनी दीदी ही वैभव की पत्नी बनें।

बहरहाल, जल्द ही विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं। एक बार फिर से सब अपने अपने काम पर लग गए। घर के सबसे बड़े बुजुर्ग यानि चंद्रमणि को बताया गया कि आख़िर वो दिन जल्द ही आने वाला है जब उनके घर की बेटी दादा ठाकुर की बहू बन कर हवेली जाएगी। चंद्रमणि इस बात से बेहद खुश हुए। उन्होंने गौरी शंकर और बाकी सबसे यही कहा कि सब कुछ अच्छे से करना। हर बात का ख़याल रखना, किसी भी तरह की ग़लती न हो।

"कैसी है मेरी प्यारी बहन?" रूपा के कमरे में दाख़िल होते ही रूपचंद्र ने अपनी बहन से बड़े प्यार से पूछा____"तुझे किसी ने खुशी वाली ख़बर दी कि नहीं?"

रूपचंद्र की इस बात से रूपा शर्माते हुए मुस्कुरा उठी। रूपचंद्र समझ गया कि उसे पता चल चुका है। वो चल कर उसके पास आया और पलंग के किनारे पर बैठ गया।

"वैसे एक बात कहूं।" फिर उसने रूपा की तरफ देखते हुए कहा____"विवाह तेरा होने वाला है और इसकी खुशी सबसे ज़्यादा मुझे हो रही है। मुझे इस बात की खुशी हो रही है कि मेरी बहन की तपस्या पूरी होने वाली है। मेरी बहन ने इस संबंध के चलते जितना कुछ सहा है आख़िर अब उसका पूरी तरह से अंत हो जाएगा और उसकी जगह उसे ढेर सारी खुशियां मिल जाएंगी।"

रूपा को समझ ना आया कि क्या कहे? बड़े भाई के सामने उसे शर्म आ रही थी। हालाकि उसकी बातों से उसके ज़हन में वो सारी बातें भी ताज़ा हो गईं थी जो उसने अब तक सहा था। उस सबके याद आते ही उसके चेहरे पर कुछ पलों के लिए गंभीरता के भाव उभर आए थे।

"मैं अक्सर ये बात बड़ी गहराई से सोचा करता हूं कि ये जो कुछ भी हुआ है उसके पीछे आख़िर असल वजह क्या थी?" रूपचंद्र ने थोड़े गंभीर भाव से कहा____"क्या इसकी वजह सिर्फ ये थी कि अंततः ऐसा समय आ जाए जब हम सबके दिलो दिमाग़ में दादा ठाकुर और उनके परिवार वालों के प्रति सचमुच का मान सम्मान और प्रेम भाव पैदा हो जाए? क्या इसकी वजह ये थी कि अंततः तेरे प्रेम के चलते दोनों ही परिवारों का कायाकल्प हो जाए? क्या इसकी वजह सिर्फ ये थी कि अंततः प्रेम की ही वजह से वैभव का इस तरह से हृदय परिवर्तन हो जाए और वो एक अच्छा इंसान बन जाए? और क्या इसकी वजह ये भी थी कि अंततः मैं अपनी बहन को समझने लगूं और फिर मैं भी सबके बारे में सच्चे दिल से अच्छा ही सोचने लगूं? अगर वाकई में यही वजह थी तो इस सबके बीच उन्हें क्यों इस दुनिया से गुज़र जाना पड़ा जो हमारे अपने थे? इस सबके बीच उन्हें क्यों गुज़र जाना पड़ा जो निर्दोष थे? मैं अक्सर ये सोचता हूं रूपा लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं सूझता। ख़ैर जाने दे, खुशी के इस मौके पर बीती बातों को याद कर के खुद को क्यों दुखी करना।"

"मैं ये सब तो नहीं जानती भैया।" रूपा ने थोड़ी झिझक के साथ कहा____"लेकिन बड़े बुजुर्गों से सुना है कि एक नया अध्याय तभी शुरू होता है जब उसके पहले का अध्याय समाप्त हो जाता है। जैसे प्रलय के बाद नए सिरे से सृष्टि का निर्माण होता है, ये भी शायद वैसा ही है।"

"हां शायद ऐसा ही होगा।" रूपचंद्र ने सिर हिला कर कहा____"ख़ैर छोड़ इन बातों को। अगर ये सच में नए सिरे से एक नया अध्याय शुरू करने जैसा ही है तो मैं खुशी से इस नए अध्याय का हिस्सा बनना चाहता हूं। अब से मेरी यही कोशिश रहेगी कि अपने जीवन में जो भी करूं अच्छा ही करूं। बाकी ऊपर वाले की इच्छा। अच्छा अब तू आराम कर, मैं चलता हूं।"

कहने के साथ ही रूपचंद्र उठा और कमरे से बाहर चला गया। उसके जान के बाद रूपा पलंग पर लेट गई और जाने किन ख़यालों में खो गई।

✮✮✮✮

दूसरे दिन पिता जी पुरोहित जी से मिले। उनके साथ गौरी शंकर भी था। पिता जी ने पुरोहित जी को विवाह की लग्न देखने की गुज़ारिश की तो वो अपने काम पर लग गए। वो अपने पत्रे में काफी देर तक देखते रहे। उसके बाद उन्होंने बताया कि आज से पंद्रह दिन बाद का दिन विवाह के लिए शुभ है। पिता जी ने उनसे पूछा कि और कौन सा दिन शुभ है तो पुरोहित जी ने पत्रे में देखने के बाद बताया कि उसके बाद बीसवां दिन शुभ है। पिता जी ने उन दोनों दिनों की लग्न बनाने को कह दिया।

कुछ समय बाद जब लग्न बन गई तो पिता जी और गौरी शंकर पुरोहित जी से इजाज़त ले कर वापस आ गए। पिता जी ने गौरी शंकर से कहा कि आज से बीसवें दिन वो बरात ले कर उसके घर आएंगे इस लिए वो विवाह की तैयारियां शुरू कर दें। गौरी शंकर ने खुशी से सिर हिलाया और अपने घर चला गया।

इधर हवेली में पिता जी ने सबको बता दिया कि लग्न बन गई है इस लिए विवाह की तैयारियां शुरू कर दी जाएं। मां के पूछने पर उन्होंने बताया कि आज से पंद्रहवें दिन यहां से बरात प्रस्थान करेगी चंदनपुर के लिए। मां ने कहा कि ऐसे शुभ अवसर पर मेनका चाची के दोनों बेटों को भी यहां होना चाहिए इस लिए उनको भी समय से पहले बुला लिया जाए।

समय क्योंकि ज़्यादा नहीं था इस लिए फ़ौरन ही सब लोग काम पर लग गए। पिता जी ने अपने एक मुलाजिम के हाथों लग्न की एक चिट्ठी चंदनपुर भी भिजवा दी। उसके बाद शुरू हुआ नात रिश्तेदारों को और अपने घनिष्ट मित्रों को निमंत्रण देने का कार्य।

मैं निर्माण कार्य वाली जगह पर था। रूपचंद्र ने आ कर बताया कि विवाह की लग्न बन गई है इस लिए अब मुझे हवेली पर ही रहना चाहिए और अपनी सेहत का ख़याल रखना चाहिए। उसकी ये बात सुन कर मेरे दिल की धड़कनें एकदम से बढ़ गईं। मन में एकाएक जाने कैसे कैसे ख़याल आने लगे जो मुझे रोमांचित भी कर रहे थे और थोड़ा अधीर भी कर रहे थे। रूपचंद्र के ज़ोर देने पर मुझे हवेली लौटना ही पड़ा। सच में वो मेरा पक्का साला बन गया था।

✮✮✮✮

"अरे वाह! विवाह की लग्न बन गई है और पंद्रहवें दिन तेरा विवाह हो जाएगा?" शालिनी ने मुस्कुराते हुए रागिनी को छेड़ा____"यानि मेरी प्यारी रागिनी अब जल्द से जल्द दुल्हन बन कर वैभव जीजा जी के पास पहुंच जाएगी और....और फिर रात को सुहागरात भी मनाएगी।"

"धत्त, कुछ भी बोलती है।" रागिनी बुरी तरह शर्मा गई____"शर्म नहीं आती तुझे ऐसा बोलने में?"

"लो अब इसमें शर्म कैसी भला?" शालिनी ने आंखें नचाते हुए कहा____"विवाह के बाद सुहागरात तो होती ही है और तेरे नसीब में तो दो दो बार सुहागरात का सुख लिखा है। हाय! कैसी हसीन रात होगी वो जब जीजा जी मेरी नाज़ुक सी सहेली के नाज़ुक से बदन पर से एक एक कर के कपड़े उतारेंगे और फिर उसके पूरे बदन को चूमेंगे, सहलाएंगे और फिर ज़ोर से मसलेंगे भी। उफ्फ! कितना मज़ा आएगा ना रागिनी?"

"हे भगवान! शालिनी चुप कर ना।" रागिनी उसकी बातें सुन कर शर्म से पानी पानी हो गई____"कैसे बेशर्म हो कर ये सब बोले जा रही है तू?"

"अरे! तो क्या हो गया मेरी लाडो?" शालिनी ने एकदम से उसके दोनों हाथ पकड़ लिए, फिर बोली_____"तू मेरी सहेली है। तुझसे मैं कुछ भी बोल सकती हूं और तू भी इतना शर्मा मत। तू भी मेरे साथ इन सब बातों का लुत्फ़ उठा।"

"मुझे कोई लुत्फ़ नहीं उठाना।" रागिनी ने उसको घूरते हुए कहा____"मैं तेरी तरह बेशर्म नहीं हूं।"

"बेशर्म तो तुझे बनना ही पड़ेगा अब।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"जब सुहागरात को जीजा जी तेरे बदन से सारे कपड़े निकाल कर तुझे पूरा नंगा कर देंगे तब क्या करेगी तू? जब वो तुझे हौले हौले प्यार करेंगे तब क्या करेगी तू? मुझे यकीन है तब तू शर्म नहीं करेगी बल्कि जीजा जी के साथ पूरी बेशर्मी से मज़ा करेगी।"

"सच में बहुत बेशर्म हो गई है तू।" रागिनी के समूचे जिस्म में झुरझुरी दौड़ गई, बुरी तरह लजाते हुए बोली____"देख अब इस बारे में कुछ मत बोलना। मैं सुन नहीं सकती, मुझे बहुत शर्म आती है। पता नहीं क्या हो गया है तुझे? शादी से पहले तो तू इतनी बेशर्म नहीं थी।"

"शादी के बाद ही तो इंसान में बदलाव आता है रागिनी।" शालिनी ने कहा____"मैं हैरान हूं कि तू शादी के बाद भी नहीं बदली क्यों? नई नवेली कुंवारी दुल्हन की तरह आज भी शर्माती है।"

"हां मैं शर्माती हूं क्योंकि मुझे शर्म आती है।" रागिनी ने कहा____"मैं तेरी तरह हर बात खुल कर नहीं बोल सकती।"

"अच्छा ये तो बता कि अब तो तू वैभव जीजा जी को पति की नज़र से ही सोचने लगी है ना?" शालिनी ने गौर से उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"या अभी भी उनको देवर ही समझती है?"

"पहले वाला रिश्ता इतना जल्दी कैसे भूल जाऊंगी भला?" रागिनी ने थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"जब भी उनके बारे में सोचती हूं तो सबसे पहले यही ख़याल आता है कि वो मेरे देवर थे? तू शायद अंदाज़ा भी नहीं लगा सकती कि इस ख़याल के आते ही मेरा समूचा बदन कैसे कांप उठता है? शायद ही कोई ऐसा होगा जो इस रिश्ते के बारे में अब तक मुझसे ज़्यादा सोच चुका होगा? जब तक आंखें खुली रहती हैं तब तक मन में ख़यालों का तूफ़ान चलता रहता है। मैं अब तक हर उस बात की कल्पना कर चुकी हूं जो इस रिश्ते के बाद मेरे जीवन में होने वाला है।"

"हां मैं समझ सकती हूं यार।" शालिनी ने कहा____"मैं समझ सकती हूं कि तूने इस बारे में अब तक क्या क्या नहीं सोचा होगा। सच में तेरे लिए इस रिश्ते को स्वीकार करना बिल्कुल भी आसान नहीं रहा होगा। ख़ैर जाने दे, अब तो सब ठीक हो गया है ना तो अब सिर्फ ये सोच कि तुझे अपनी आने वाली ज़िंदगी को कैसे खुशहाल बनाना है? मैं तुझे यही सलाह दूंगी कि विवाह के बाद ऐसी बातें बिल्कुल भी मत सोचना जिससे कि तेरे जीवन में और तेरी खुशियों में उसका असर पड़े। नियति ने तुझे नए सिरे से जीवन जीने का अवसर दिया है तो तू इसको उसी हिसाब से और उसी सोच के साथ जी। तेरे होने वाले पति तेरी खुशियों के लिए अगर कुछ भी कर सकते हैं तो तेरी भी यही कोशिश होनी चाहिए कि तू भी उन्हें कभी निराश न करे और हर क़दम पर उनका साथ दे।"

"हम्म्म्म।" रागिनी ने कहा____"सोचा तो यही है बाकी देखती हूं क्या होता है?"

"अच्छा ये बता कि तू अपनी होने वाली सौतन के बारे में क्या सोचती है?" शालिनी ने जैसे उत्सुकता से पूछा____"तेरे मुख से ही सुना था कि वो वैभव जी को बहुत प्रेम करती है और जिस समय वैभव जी अनुराधा नाम की लड़की की वजह से सदमे में चले गए थे तो उसने ही उन्हें उस हाल से बाहर निकाला था।"

"मैं उससे मिल चुकी हूं।" रागिनी ने अधीरता से कहा_____"उसके बारे में उन्होंने सब कुछ बताया था मुझे। सच में वो बहुत अच्छी लड़की है। उसका हृदय बहुत विशाल है। उसके जैसी अद्भुत लड़की शायद ही इस दुनिया में कहीं होगी। जब उसे अनुराधा के बारे में पता चला था तो उसने उसको भी अपना बना लिया था। अनुराधा की मौत के बाद उसने उन्हें तो सम्हाला ही लेकिन उनके साथ साथ अनुराधा की मां और उसके भाई को भी सम्हाला। बेटी बन कर अनुराधा की कमी दूर की उसने। उसके बाद जब उनके साथ मेरा विवाह होने की बात चली तो उसने मुझे भी अनुराधा की तरह अपना मान लिया। उसे इस बात से कोई आपत्ति नहीं हुई कि एक बार फिर से उसे समझौता करना पड़ेगा और अपने प्रेमी को मुझसे साझा करना पड़ेगा। उस पगली ने तो यहां तक कह दिया कि वो मुझे अपनी बड़ी दीदी मान कर मुझसे वैसा ही प्यार करेगी जैसा वो उनसे करती है। अब तुम ही बताओ शालिनी ऐसी नेकदिल लड़की के बारे में मैं कुछ उल्टा सीधा कैसे सोच सकती हूं? पहले भी कभी नहीं सोचा तो अब सोचने का सवाल ही नहीं है। ये तो नियति ने इस तरह का खेल रचा वरना सच कहती हूं उनके जीवन में सिर्फ और सिर्फ उस अद्भुत लड़की रूपा का ही हक़ है। ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूं कि मेरे हिस्से का प्यार भी उसे मिले। उसने बहुत कुछ सहा है इस लिए मैं चाहती हूं कि अब उसे कुछ भी न सहना पड़े बल्कि उसकी ज़िंदगी का हर पल खुशियों से ही भरा रहे।"

"ज़रूर ऐसा ही होगा रागिनी।" शालिनी ने रागिनी के दोनों कन्धों को पकड़ कर कहा____"तेरी बातें सुन कर मुझे यकीन हो गया है कि उस नेकदिल लड़की के जीवन में ऐसा ही होगा। तू भी उसको कभी सौतन मत समझना, बल्कि अपनी छोटी बहन समझना और उसका हमेशा ख़याल रखना।"

"वो तो मैं रखूंगी ही।" रागिनी ने कहा____"पहले भी यही सोचा था मैंने और अब भी यही सोचती हूं।"

"अच्छी बात है।" शालिनी ने कहा____"मुझे तो अब ये सब सोच कर एक अलग ही तरह की अनुभूति होती है यार। वैसे कमाल की बात है ना कि जीजा जी की किस्मत कितनी अच्छी है। मेरा मतलब है कि विवाह के बाद दो दो बीवियां उनके कमरे में पलंग पर उनके दोनों तरफ होंगी और वो दोनों को एक साथ प्यार करेंगे। हाय! कितना मज़ेदार होगा ना वो मंज़र?"

"ज़्यादा बकवास की तो गला दबा दूंगी तेरा।" रागिनी उसकी बात सुन कर फिर से शर्मा गई बोली____"जब देखो ऐसी ही बातें सोचती रहती है। चल अब जा यहां से, मुझे तुझसे अब कोई बात नहीं करना।"

"अरे! गुस्सा क्यों करती है मेरी लाडो?" शालिनी ने हल्के से हंसते हुए कहा____"मैं तो वही कह रही हूं जो भविष्य में होने वाला है।"

"तुझे बड़ा पता है भविष्य के बारे में।" रागिनी ने उसे घूर कर देखा____"तेरी जानकारी के लिए बता दूं कि ऐसा कुछ नहीं होगा। अब चुपचाप यहां से जा। मुझे भाभी के साथ काम करना है, तेरी तरह फ़ालतू की बातें करने का समय नहीं है मेरे पास।"

"आय हाय! समय नहीं है तेरे पास।" शालिनी ने आंखें फैलाई____"ज़्यादा बातें न कर मेरे सामने। मुझे पता है कि आज कल तू खाली बैठी जीजा जी के हसीन ख़यालों में ही खोई रहती है, बात करती है।"

उसकी बात सुन कर रागिनी झूठा गुस्सा दिखाते हुए उसे मारने के लिए दौड़ी तो शालिनी हंसते हुए भाग ली। उसके जाने के बाद रागिनी भी मंद मंद मुस्कुराते हुए घर के अंदर चली गई।




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दादा ठाकुर ने रागिनी से माफी मांग कर ये बता दिया है कि सच में वे एक महान शख्सियत है उनका हृदय बहुत ही विशाल है मेनका चाची को जो गलतफहमी हो गई थी सुगंधा देवी से उसे समझा कर दूर कर दिया है रागिनी और शालिनी के बीच का संवाद बहुत ही चटपटा और मजेदार था जो अक्सर दुल्हन के साथ होता है
 

Kuldipr99

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Nice update 👍 baibhav ki to bachelor party ho gayi malish ke dauran
Par apne aapko control me rakha ya badi baat hai
Aise samay me khud ko sanyamit rakhna hi asli pariksha hoti hai ek dedicated aadmi ke liye vaibhav apna wada yaad tha
Bahot badhiya
Keep going 💪
 

Sanju@

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"आय हाय! समय नहीं है तेरे पास।" शालिनी ने आंखें फैलाई____"ज़्यादा बातें न कर मेरे सामने। मुझे पता है कि आज कल तू खाली बैठी जीजा जी के हसीन ख़यालों में ही खोई रहती है, बात करती है।"

उसकी बात सुन कर रागिनी झूठा गुस्सा दिखाते हुए उसे मारने के लिए दौड़ी तो शालिनी हंसते हुए भाग ली। उसके जाने के बाद रागिनी भी मंद मंद मुस्कुराते हुए घर के अंदर चली गई।



अब आगे....


अगले दो दिनों के भीतर ही हवेली में नात रिश्तेदार आ गए। मेरे ननिहाल वाले और चाची के मायके से भी आ गए। मेरे ननिहाल से नाना नानी और बड़े मामा मामी को छोड़ कर सभी आ गए जिनमें उनके बच्चे भी थे। उधर चाची के मायके से उनके बड़े भैया भाभी आए। उनके मझले भाई अवधराज नहीं आए। ऐसा शायद इस लिए कि जगताप चाचा को जो ज्ञान उन्होंने दिया था उसके चलते अब वो यहां किसी को अपना मुंह नहीं दिखाना चाहते थे। किंतु अपने बच्चों को ज़रूर भेज दिया था।

हवेली में एकदम भीड़ सी जमा हो गई थी। अंदर इंसान ही इंसान नज़र आने लगे थे। पिता जी के कहने पर मैंने सबके रहने की उचित व्यवस्था की जोकि इतनी बड़ी हवेली में कोई मुश्किल काम नहीं था। नीचे ऊपर के बहुत से कमरे खाली ही रहते थे। सबके आ जाने से एक अलग ही रौनक और चहल पहल नज़र आने लगी थी।

मेरे मझले मामा यानि अवधेश सिंह राणा और छोटे मामा यानि अमर सिंह राणा बैठक में पिता जी के पास बैठे हुए थे। मझले मामा का बेटा महेश सिंह राणा जोकि शादी शुदा था वो भी बैठक में ही था। इसके साथ ही चाची के बड़े भाई हेमराज सिंह भी बैठे हुए थे। उनकी पत्नी सुजाता अंदर मां लोगों के पास थीं। अमर मामा के लड़के लड़कियां भी अंदर ही थे।

छोटे मामा की दोनों बेटियां यानि सुमन और सुषमा जोकि उमर में कुसुम से क़रीब एक डेढ़ साल छोटी थीं वो अंदर कुसुम के साथ थीं और उनका छोटा किंतु इकलौता भाई विजय मां लोगों के पास बैठा हुआ था। मैं जब छोटा था तो अपने ननिहाल अक्सर जाया करता था और ज़्यादा समय तक वहीं रहता था लेकिन फिर जैसे जैसे बड़ा हुआ और मुझमें बदलाव आया तो मैंने वहां जाना कम कर दिया था।

मुझे भीड़ भाड़ वाला माहौल ज़्यादा पसंद नहीं था इस लिए मैं सबकी व्यवस्था करने के बाद चुपचाप अपने कमरे में पहुंच गया था। एकाएक ही हालात के बदलने से मेरे अंदर अजीब सा एहसास होने लगा था। बार बार यही ख़याल उभर आता कि अब बस कुछ ही दिनों में मेरा विवाह हो जाएगा और मैं भी शादी शुदा हो जाऊंगा। लोगों के एक ही बीवी होती है जबकि मेरी दो हो जाएंगी। एक तरफ रूपा और दूसरी तरफ रागिनी...हां अब तो भाभी को मुझे उनके नाम से पुकारना होगा। इस एहसास के साथ ही मेरे अंदर अजीब सी सिहरन दौड़ गई। पलक झपकते ही भाभी का खूबसूरत चेहरा आंखों के सामने उजागर हो गया।

उफ्फ! कितनी सुंदर हैं वो। जब भैया जीवित थे तब वो सुहागन थीं और सुहागन के रूप में उनकी सुंदरता देखते ही बनती थी। मैं यूं ही तो नहीं उनके सम्मोहन में फंस जाता था। मैंने अपने ख़यालों में फिर से उन्हें सुहागन के रूप में सजा हुआ देखा तो मेरे अंदर फिर से अजीब सी सिहरन दौड़ गई। बिजली की तरह ज़हन में ख़याल भी उभर आया कि सुंदरता की यही मूरत अब मेरी पत्नी बनने वाली है। विवाह के बाद मुझे उनके साथ पति की तरह ही पेश आना होगा। मैं सोचने लगा कि क्या मैं सहजता से ऐसा कर पाऊंगा? आख़िर वो अब तक मेरी भाभी थीं और उमर में भी मुझसे बड़ी थीं। आख़िर कैसे एक पति के रूप में मैं उनके साथ पेश आ पाऊंगा? रूपा के मामले में मुझे कोई फ़िक्र नहीं थी क्योंकि उसके मामले में मैं पहले से ही पूरी तरह सहज था। उसके साथ मैं पहले भी वो सब कुछ कर चुका था जो शादी के बाद पति पत्नी करते हैं लेकिन भाभी के बारे में तो मैंने कभी इस तरह की कोई कल्पना ही नहीं की थी। भाभी के रिश्ते में उनसे थोड़ा बहुत हंसी मज़ाक कर लेता था लेकिन उसमें भी मैं हमारे बीच की मर्यादा का सबसे ज़्यादा ख़याल रखता था।

मैं जैसे जैसे इस सबके बारे में सोचता जा रहा था वैसे वैसे मेरे अंदर बेचैनी और घबराहट सी पैदा होती का रही थी। मैं चाह कर भी खुद को सामान्य नहीं कर पा रहा था। ऐसा नहीं था कि मैं भाभी को अब अपनी पत्नी की नज़र से देखने और सोचने नहीं लगा था लेकिन जहां बात इसके आगे की आती थी वहां की बातें सोच कर मेरे जिस्म में सिहरन दौड़ने लगती थी और बड़ा अजीब सा लगने लगता था।

"क्या हाल है मेरे दूल्हे राजा?" अचानक कमरे में गूंज उठी किसी की आवाज़ से मैं उछल ही पड़ा। आंखें खोल कर देखा तो मेरे छोटे मामा अमर सिंह कमरे में दाख़िल हो कर मुझे ही देख रहे थे। चेहरे पर खुशी और होठों पर गहरी मुस्कान लिए जैसे वो मुझे चिढ़ाते से नज़र आए। छोटे मामा से मेरी खूब पटती थी।

"अरे! मामा ये आप हैं?" मैंने उठते हुए कहा____"अचानक से आपकी आवाज़ सुन कर मैं चौंक ही पड़ा था। आइए बैठिए।"

"वो तो मैं बैठूंगा ही।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर आ कर पलंग के किनारे पर बैठ गए। कुछ पलों तक मुझे ध्यान से देखते रहे फिर बोले____"अच्छा तो यहां अपने कमरे में अकेले पड़ा तू खुद को तैयार करने में जुटा हुआ है।"

"क...क्या मतलब है आपका?" मैं समझ तो गया लेकिन फिर भी अंजान बनते हुए पूछा।

"बेटा अच्छी तरह जानता हूं तुझे।" मामा ने घूरते हुए कहा____"मेरे सामने अंजान बनने की कोशिश मत कर। मुझे पता है कि तू आने वाले दिनों के लिए खुद को तैयार का रहा है। वैसे अच्छा ही है, तैयार करना भी चाहिए। आदमी जब एक बीवी के लिए खुद को तैयार करने की कोशिश करता है तो तेरे जीवन में तो दो दो बीवियां होंगी। ऐसे में तेरा खुद को तैयार करना उचित ही है। ख़ैर तो अब तक कितना तैयार कर लिया है तूने खुद को?"

"ऐसा कुछ नहीं है मामा।" मैंने अपनी झेंप को जबरन छुपाने की कोशिश करते हुए कहा____"क्या आपको सच में लगता है कि आपके भांजे को किसी बात के लिए तैयार करने की ज़रूरत है? आप तो जानते हैं कि औरतों के मामले में मैं बहुत आगे रहा हूं।"

"बिल्कुल जानता हूं भांजे और मानता भी हूं कि इस मामल में तू बहुत आगे रहा है।" मामा ने कहा____"लेकिन बेटा तुझे ये भी समझना चाहिए कि आम औरतों में और खुद की बीवी में धरती आसमान का फ़र्क होता है। आम औरतों के साथ तू कैसा भी बर्ताव कर के अपनी जान छुड़ा सकता है लेकिन अपनी बीवी से किसी कीमत पर जान नहीं छुड़ा सकता। इसी लिए कहता हूं कि इस मामले में तेरी बयानबाज़ी से कुछ नहीं हो सकता।"

"आप तो मुझे बेवजह डरा रहे हैं मामा।" मैंने अपने अंदर झुरझुरी सी महसूस की____"मैं भला क्यों अपनी बीवियों से जान छुड़ाने का सोचूंगा? बल्कि मैं तो खुद ही ये चाहूंगा कि वो मुझसे दूर न हों।"

"अच्छा ऐसा है क्या?" मामा ने आंखें फैला कर कहा____"फिर तो ये बड़ी अच्छी बात है। कम से कम इसी बहाने अब तू भी सही रास्ते पर आ जाएगा। सच कहूं तो मुझे बहुत खुशी हुई थी ये जान कर कि तेरा ब्याह होने वाला है लेकिन ये जान कर थोड़ी हैरानी भी हुई थी कि तेरा एक नहीं दो दो लड़कियों से ब्याह होने वाला है। तेरे नाना को भी बड़ी हैरानी हुई थी लेकिन फिर जब उन्होंने मामले की गंभीरता को समझा तो फिर वो यही कहने लगे कि ये अच्छा ही हो रहा है। इस तरह से कम से कम रागिनी बहू का जीवन भी फिर से संवर जाएगा। अन्यथा विधवा के रूप में बाकी का सारा जीवन गुज़ारना उसके लिए यकीनन हद से ज़्यादा कठिन होता।"

"ये सब तो ठीक है मामा।" मैंने थोड़ा बेचैन भाव से कहा____"लेकिन सच कहूं तो भाभी से विवाह होने की बात से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होता है। जिस दिन से मुझे इस बारे में पता चला है उसी दिन से जाने क्या क्या सोचते हुए खुद को समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि आगे जो भी होगा उसका मैं सहजता से सामना कर लूंगा। मगर सच तो ये है कि अब तक मैं भाभी के लिए खुद को पूरी तरह से तैयार नहीं कर पाया हूं।"

"हां समझ सकता हूं।" मामा ने कहा____"लेकिन अब तो तुझे इसके लिए खुद को तैयार करना ही पड़ेगा। वैसे मैं तो यही कहूंगा कि तुझे इस बारे में ज़्यादा सोचना नहीं चाहिए। असल में कभी कभी ऐसा होता है कि हमें मौजूदा समय में किसी समस्या को सुलझाने का तरीका समझ में नहीं आता लेकिन जब वैसा समय आ जाता है तो सब कुछ बहुत ही सहजता से हो जाता है। इस लिए तू ये सब वक्त पर छोड़ दे। ये सोच कर कि जो होगा देखा जाएगा।"

"हम्म्म्म शायद आप सही कह रहे हैं।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"और वैसे भी इसके अलावा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है। ख़ैर आप अपनी सुनाएं, मामी के साथ कैसी कट रही है जिंदगी?"

"क्या बताऊं भांजे?" मामा ने सहसा गहरी सांस ली____"बस यूं समझ ले कि किसी तरह कट ही रही है।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" मैं एकदम से चौंका____"सब ठीक तो है ना?"

"क्या ख़ाक ठीक है यार।" मामा ने जैसे खीझते हुए कहा____"साला बच्चे बड़े हो जाते हैं तो हम मर्दों को जाने कैसे कैसे समझौते करने पड़ते हैं। तेरी मामी को बहुत समझाता हूं लेकिन वो मूर्ख कुछ समझती ही नहीं है। मैंने बहुत सी ऐसी औरतों को देखा है जो ज़्यादा उमर हो जाने के बाद भी संभोग सुख का मज़ा लेती रहती हैं और एक तेरी मामी है कि साली अभी से खुद को बुड्ढी कहने लगी है।"

"फिर तो ये आपके लिए बड़ी भारी समस्या हो गई है।" मैंने चकित भाव से कहा____"ख़ैर अब आप क्या करेंगे?"

"करूंगा नहीं बल्कि करने लगा हूं भांजे।" मामा ने कहा____"तू ही बता कि ऐसे में मैं इसके अलावा करता ही क्या कि अपनी भूख मिटाने के लिए बाहर किसी औरत के पास जाऊं? तेरी मामी को भी कहा था कि अगर वो इस बारे में मेरा साथ नहीं देगी तो मुझे बाहर किसी दूसरी औरत के साथ ये सब करना पड़ेगा।"

"तो क्या ये सुनने के बाद भी मामी को समझ नहीं आया?" मैंने हैरानी से पूछा।

"पहले तो गुस्सा हो रही थी।" मामा ने कहा____"कह रही थी कि मेरे अंदर ये कैसी गर्मी चढ़ी है कि मैं इतने बडे बड़े बच्चों का बाप हो जाने के बाद भी ये सब करने पर तुला हुआ हूं? मैंने उसे समझाया कि ये तो उसके लिए अच्छी बात है कि मैं अब भी उसे संभोग का सुख देना चाहता हूं वरना ऐसी भी औरतें हैं जो अपने पति से संभोग सुख पाने के लिए तरसती हैं और फिर वो मज़बूरी में ग़ैर मर्दों से संबंध बना लेती हैं।"

"फिर क्या कहा मामी ने?" मैंने उत्सकुता से पूछा।

"दो तीन दिनों तक बात ही नहीं की उसने।" मामा ने बताया____"मैं भी गुस्सा हो गया था इस लिए मैंने भी उसे मनाने का नहीं सोचा। जब उसे ही कुछ समझ नहीं आ रहा था तो मैंने भी सोच लिया कि अब उससे इस सबकी उम्मीद रखना ही बेकार है। उसके बाद मैंने वही किया जो करने का मैंने मन बना लिया था। तुझे तो पता ही है कि हमारे खेतों में काम करने वाली ऐसी औरतों की कमी नहीं है। मैंने उन्हीं में से एक को इशारा किया और फिर उसके साथ मज़ा किया। तब से यही चल रहा है।"

"और मामी को भी ये सब पता है?" मैंने बेयकीनी से पूछा।

"हां, मैंने बता दिया था उसको।" मामा ने कहा____"जब वो अपने से ही मुझसे बोलने लगी तो मैंने एक दिन उसे सब कुछ बता दिया। ये भी कहा कि अगर वो अब भी मेरे बारे में सोचेगी तो मैं बाहर की औरतों के साथ ये सब करना बंद कर दूंगा।"

"तो फिर क्या कहा मामी ने?" मैंने बड़ी उत्सुकता से पूछा।

"अभी तो कुछ नहीं कहा।" मामा ने कहा____"लेकिन लगता है कि मान जाएगी। ऐसा मैं इस लिए कह रहा हूं क्योंकि दो दिन पहले जब इस बारे में मैंने उसे बताया था तब उसने यही कहा था कि मैं बाहर ये सब करना बंद कर दूं।"

"इसका मतलब ये दो दिन पहले की बात है।" मैंने कहा____"और मामी के ऐसा कहने का शायद मतलब भी यही है कि वो अब आपका कहना मानेंगी।"

"लगता तो यही है।" मामा ने कहा____"लेकिन दो दिन से अभी तक उसने अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की है।"

"हो सकता है कि वो खुद पहल करने में शर्म महसूस करती हों।" मैंने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"एक काम कीजिए, आज रात आप यहीं पर हवेली के किसी कमरे में एक साथ सोइए। मैं आप दोनों के लिए ऐसी व्यवस्था कर दूंगा। उसके बाद कमरे में आप और मामी जम के मज़ा कीजिएगा।"

"योजना तो बढ़िया है तेरी।" मामा ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"लेकिन यहां पर अगर किसी को पता चल गया तो क्या सोचेंगे सब हम दोनों के बारे में?"

"किसी के सोचने की फ़िक्र क्यों करते हैं आप?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"सबको पता है कि मामी आपकी अपनी ज़ायदाद हैं। उनके साथ ये सब करना किसी के लिए कोई बड़ी बात कैसे हो जाएगी?"

"हां तू सही कह रहा है।" मामा का चेहरा चमक उठा था____"तो फिर ठीक है भांजे। तू आज रात हमारे लिए बढ़िया सा इंतज़ाम कर दे। मैं भी आज तेरी मामी के साथ इतने समय की पूरी कसर निकालूंगा। साली बहुत मना करती थी ना तो अब बताऊंगा उसे।"

"अपने जज़्बातों पर काबू रखिए मामा।" मैंने हंसते हुए कहा____"जो भी करना बड़े एहतियात से और बड़े प्यार से करना। ये नहीं कि आपकी करतूतों से बाकी सबको भी पता चल जाए कि ठाकुर अमर सिंह अपनी बीवी की चीखें निकाल रहे हैं।"

"मर्द को मज़ा भी तो तभी आता है भांजे।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा____"जब औरत उसके द्वारा पेले जाने से हलक फाड़ कर चीखे। रहम की भीख मांगे।"

"चीखने तक तो ठीक है मामा।" मैंने कहा____"लेकिन रहम की भीख मांगने वाली स्थिति अच्छी नहीं होती। वो स्थिति पाशविक होती है जोकि मर्दों को शोभा नहीं देती।"

"अरे वाह!" मामा ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"ये तू कह रहा है? बड़ी हैरानी की बात है ये तो। मतलब कमाल ही हो गया। हद है, तू तो सच में देव मानुष बन गया है मेरे भांजे।"

"देव मानुष तो नहीं।" मैंने जैसे संशोधन किया____"लेकिन हां एक अच्छा इंसान ज़रूर बनना चाहता हूं। अपने उस अतीत को भूल जाना चाहता हूं जिसमें मैंने जाने कैसे कैसे कुकर्म किए थे।"

"चल अच्छी बात है।" मामा ने मेरा कंधा दबाते हुए कहा____"मैं तो पहले भी तुझसे कहा करता था कि ये सब छोड़ दे लेकिन तब शायद तू ऐसी मानसिकता में ही नहीं था कि तेरे समझ में कुछ आता। ख़ैर अच्छा हुआ कि अब तेरी सोच बदल गई है और तू अच्छा इंसान बनने का सोचने लगा है। उम्मीद करता हूं कि भविष्य में तू जीजा जी से भी बड़ा इंसान बन जाएगा।"

"नहीं मामा।" मैंने अधीरता से कहा____"मैं कभी भी पिता जी से बड़ा या उनके जैसा नहीं बन पाऊंगा। ऐसा इस लिए क्योंकि उनका नाम शुरू से ही हर मामले में साफ और बेदाग़ रहा है। उन्होंने शुरू से ही हर किसी के साथ अच्छा बर्ताव किया था और सबके दुख दूर करते आए हैं। मैंने तो अपने अब तक के जीवन में ऐसे कोई नेक काम किए ही नहीं हैं बल्कि जो भी किया है बुरा ही किया है। इस लिए उनके जैसा इस जन्म में तो बन ही नहीं सकता। किंतु हां ये कोशिश ज़रूर रहेगी कि अब से जो भी करूं वो अच्छा ही करूं।"

कुछ देर और मामा से बातें हुईं उसके बाद दोपहर के खाने का समय हो गया तो हम दोनों कमरे से बाहर निकल गए। मामा से बातें कर के मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।

✮✮✮✮

दोपहर को थोड़ी देर आराम करने के बाद पिता जी और मझले मामा एक साथ किसी काम से बाहर चले गए जबकि बाकी लोग बैठक में बातें करने लगे। मैं भी बैठक में बैठा था और सबकी बातें सुन रहा था। अंदर सभी औरतें और लड़कियां काम में लगीं हुईं थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी को भी एक पल के लिए फुर्सत नहीं थी। कुछ औरतें गेंहू चावल और दाल साफ कर रहीं थी। हवेली के मुलाजिम हवेली को चमकाने में लगे हुए थे, कुछ हवेली के बाहर चारो तरफ की सफाई में लगे हुए थे।

अमर मामा दो बार मुझसे पूछ चुके थे कि आज रात मैंने उनका और मामी का हसीन मिलन कराने के लिए व्यवस्था की है या नहीं? मैंने मुस्कुराते हुए यही कहा कि वो फ़िक्र न करें। बच्चे बड़े हो रहे थे उनके फिर भी उनका अपना बचपना जैसे अभी तक नहीं गया था। मैंने उनसे कह तो दिया था कि वो फ़िक्र न करें लेकिन मैं खुद नहीं जानता था कि मैं सब कुछ करूंगा कैसे? कमरे का इंतज़ाम तो मैं बड़ी आसानी से कर सकता था लेकिन भीड़ भाड़ के माहौल में मामी को उनके पास पहुंचाना जैसे टेढ़ी खीर थी।

बहरहाल शाम तक दुनिया जहान की बातें चलती रहीं उसके बाद अंदर से एक नौकरानी सबके लिए चाय ले कर आ गई। हम सबने चाय पी। इस बीच सबने ये इच्छा जताई कि कुछ देर के लिए गांव घूम लिया जाए। मर्दों के पास फिलहाल के लिए जैसे कोई काम ही नहीं था। उधर पिता जी अभी तक नहीं आए थे।

मामा लोग गांव घूमने चले गए जबकि मैं हवेली के अंदर चला गया। मुझे समय रहते मामा का काम करना था लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि कैसे करूं? मामी के पास जा कर उनसे खुल कर कुछ कह भी नहीं सकता था। यही सब सोचते हुए मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था कि तभी मेरे कमरे का दरवाज़ा खुला और कुसुम के साथ मामा की लड़कियां आ गईं।

"आप यहां हैं और हम आपको बैठक में ढूंढने गए थे।" कुसुम ने आते ही कहा____"चलिए उठिए आपको बड़ी मां बुला रहीं हैं।"

"आप यहां अकेले कमरे में क्या कर रहे हैं भैया?" सुमन ने मेरे क़रीब आ कर कहा____"हम सबके साथ क्यों नहीं बैठते हैं?"

"वो इस लिए मेरी प्यारी बहना क्योंकि तेरे इस भैया को भीड़ भाड़ में रहना पसंद नहीं है।" मैंने बड़े स्नेह से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"ख़ैर ये बता यहां तुम दोनों को अच्छा लग रहा है ना?"

"हां भैया।" सुषमा ने खुशी से कहा____"हमें यहां बहुत अच्छा लग रहा है। कुसुम दीदी से हमने बहुत सारी बातें की। दोनों बुआ से बातें की और हां छोटी बुआ के यहां से जो उनके भैया भाभी आए हैं उनसे भी बातें की।"

"ओह! तुम दोनों ने तो सबसे बातें कर ली और सबसे जान पहचान कर ली।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"और अपने इस भैया से बातें करने का अब ध्यान आया है तुम दोनों को, हां?"

"वो हम लोग सबके पास बैठे बातें कर रहे थे न इस लिए आपसे मिलने का समय ही नहीं मिला हमें।" सुमन ने मासूमियत से कहा____"पर अब तो हम अपने भैया के पास आ ही गए ना?"

"चलो अच्छा किया।" मैंने कहा____"अच्छा अब तुम लोग जाओ। मैं भी जा कर देखता हूं कि मां ने किस लिए बुलाया है मुझे?"

थोड़ी ही देर में हम सब नीचे आ गए। मैं मां से मिला और पूछा कि किस लिए मुझे बुलाया है उन्होंने तो मां ने कहा कि मेरी मामियां मुझे पूछ रहीं थी इस लिए बुलाया। ख़ैर मैं दोनों मामियों से मिला। बड़ी मामी ने तो कुशलता ही पूछी किंतु छोटी मामी थोड़ा मज़ाकिया अंदाज़ से मुझे छेड़ने लगीं। सबके सामने मैं शर्माने लगा तो सब हंसने लगीं। कुछ देर बाद मैंने छोटी मामी से कहा कि मुझे उनसे ज़रूरी बात करनी है इस लिए क्या वो रात में मेरे कमरे में आ सकती हैं? मामी मेरी इस बात से राज़ी हो गईं। मैं मन ही मन ये सोच कर खुश हो गया कि चलो काम बन गया।

बहरहाल समय गुज़रा और रात हो गई। पिता जी आ गए थे। हम सब उनके साथ खाना खाने बैठे। आज काफी समय बाद हवेली में इस तरह की रौनक देखने को मिल रही थी। सब खुश थे, इसी हंसी खुशी में खाना ख़त्म हुआ और फिर सब बैठक में आ गए। बैठक में थोड़ी देर इस बारे में चर्चा हुई कि कल क्या क्या करना है उसके बाद सब सोने चले गए। मैं पहले ही अपने कमरे में पहुंच गया था। थोड़ी ही देर में छोटे मामा आ गए।

"अरे! भांजे तूने कुछ किया है या नहीं?" उन्होंने आते ही अपने मतलब की बात पूछी____"देख अब तो सोने का समय भी हो गया है और तूने अब तक अपनी मामी को मेरे पास नहीं भेजा।"

"फ़िक्र मत कीजिए मामा।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने मामी को अपने कमरे में बुलाया है। वो आएंगी तो उन्हें किसी बहाने आपके पास भेज दूंगा। थोड़ा सबर कीजिए, आप तो ऐसे उतावले हो रहे हैं जैसे ये सब आप पहली बार करने वाले हैं।"

"अरे! पहली बार नहीं है मानता हूं।" मामा ने खिसियाते हुए कहा____"लेकिन साला लगता तो यही है कि तेरी मामी को पहली बार ही भोगने को मिलेगा। मुझे लगता है कि ऐसा इस लिए लग रहा है क्योंकि काफी समय हो गया उसके साथ मज़ा किए।"

"हां हां समझ गया मैं।" मैंने हल्के से हंसते हुए कहा____"अब आप जाइए। मामी खा पी कर ही आएंगी तब तक आपको इंतज़ार करना पड़ेगा।"

"अब तो इंतज़ार ही करना पड़ेगा भांजे।" मामा ने गहरी सांस ली____"बस तू बीच में धोखा मत करवा देना।"

मामा की इस बात पर मैं हंसा, जबकि वो बाहर निकल गए। मैंने ऊपर ही उनके लिए एक कमरे की व्यवस्था कर दी थी। अब बस इन्तज़ार था मामी के आने का। अगर वो मेरे कमरे में आएंगी तभी कुछ हो सकता था।




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अध्याय - 160
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मामा मामी के चक्कर में मैं ना तो रूपा के बारे में सोच पा रहा था और ना ही रागिनी भाभी के बारे में। ज़हन में बस यही चल रहा था कि क्या मामी मेरे कमरे में आएंगी? उनका मेरे कमरे में आना इस लिए भी थोड़ा मुश्किल था क्योंकि औरतें जब सबके पास बैठ कर बातें करने में मशगूल हो जाती हैं तो फिर उन्हें बाकी किसी चीज़ का होश ही नहीं रहता है। दूसरी बात ये भी हो सकती थी कि रात के इस वक्त शायद वो सच में ही न आएं।

बहरहाल, मैं इंतज़ार ही कर सकता था। मुझे ये सोच कर भी हंसी आ रही थी कि मामा बेचारे मन में जाने कैसे कैसे ख़याली पुलाव बनाते हुए अपनी बीवी के आने की प्रतिक्षा कर रहे होंगे। अगर आज वो नहीं आईं तो यकीनन सुबह मुझे उनके गुस्से का शिकार हो जाना पड़ेगा।

क़रीब एक घंटे बाद मेरे कमरे में दस्तक हुई। रात के क़रीब ग्यारह बज रहे थे। आम दिनों की अपेक्षा ये समय ज़्यादा ही था किंतु शादी ब्याह वाले माहौल में थोड़ी देर सवेर हो ही जाती थी। खैर, दत्सक हुई तो मैं समझ गया कि ज़रूर मामी ही आई होंगी। मामी के आने के एहसास से अचानक ही मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं।

इससे पहले कि उन्हें दुबारा दस्तक देनी पड़ती मैं फ़ौरन ही दरवाज़े के पास पहुंचा और दरवाज़ा खोल दिया। बाहर सचमुच मामी ही खड़ी थीं। सुर्ख साड़ी में इस वक्त वो ग़ज़ब ही ढा रहीं थी। तीन तीन बच्चों की मां होने के बाद भी रोहिणी मामी भरपूर जवान नज़र आती थीं।

"माफ़ करना वैभव आने में देर हो गई मुझे।" मुझ पर नज़र पड़ते ही उन्होंने अपनी मधुर आवाज़ में कहा____"असल में खाना पीना करने के बाद बर्तन धुलवाने में व्यस्त हो गई थी मैं। अभी जब काम से फारिग हुई तो एकदम से याद आया कि तुमने कोई ज़रूरी बात करने के लिए मुझे बुलाया था।"

"कोई बात नहीं मामी।" मैं दरवाज़े से एक तरफ हटते हुए बोला____"आप अंदर आ जाइए।"

मेरे कहने पर मामी कमरे में आ गईं। इधर मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि अब कैसे मामी को मामा तक पहुंचाऊं?

"अब बताओ वैभव।" मैं सोच ही रहा था कि तभी मेरे कानों में मामी की आवाज़ पड़ी____"मुझसे कौन सी ज़रूरी बात करनी थी तुम्हें?"

"वो आपको मुझे मामा के बारे में कुछ बताना था।" मैंने खुद को सम्हालते हुए बड़ी हिम्मत जुटा कर कहा____"आज मामा मुझसे मिले तो मैंने देखा कि वो बहुत परेशान थे। मेरे पूछने पर भी मुझे कुछ नहीं बताया। फिर मैंने सोचा कि इस बारे में आपसे पूछूंगा। मैं आपसे जानना चाहता हूं मामी कि मेरे मामा आख़िर किस बात से इतना परेशान हैं? आख़िर ऐसी कौन सी बात थी जिसे वो मुझको भी नहीं बता सके?"

मामी मेरी ये बातें सुन कर फ़ौरन कुछ ना बोल सकीं। उनके चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे। इधर मेरी धड़कनें धाड़ धाड़ कर के बजे जा रहीं थी। मैं खुल कर इस बारे में उनसे कुछ कह नहीं सकता था इस लिए मैंने इस तरह से उनसे बात की ताकि वो इस बात से शर्मिंदगी न महसूस करें कि मुझे उनके बीच की इतनी बड़ी बात पता है। आख़िर हमारे बीच रिश्ता ही ऐसा था जिसके चलते मुझे मर्यादा का ख़याल रखना था।

"क्या हुआ मामी?" मामी जब सोचो में ही गुम रहीं तो मैंने चिंता ज़ाहिर करते हुए उन्हें सोचो से बाहर खींचा____"आप एकदम से क्या सोचने लगीं? मुझे बताइए मामी कि आख़िर बात क्या है? मेरे मामा आख़िर किस बात से इतना ज़्यादा परेशान हैं?"

"कोई बड़ी बात नहीं है वैभव।" मामी ने थोड़ी झिझक और थोड़ा गंभीरता से कहा____"तुम उनके लिए इतनी चिंता मत करो।"

"ऐसे कैसे चिंता न करूं मामी?" मैंने फिक्रमंदी से कहा____"वो मेरे मामा हैं। मैं भला ये कैसे सहन कर लूंगा कि मेरे मामा किसी बात से परेशान रहें? मैं जानना चाहता हूं कि आख़िर उन्हें हुआ क्या है? आपको तो पता ही होगा तो बताइए ना मुझे?"

"वो असल में बात ये है वैभव कि मुझे भी इस बारे में ठीक से पता नहीं है।" मामी ने नज़रें चुराते हुए कहा____"वो कई दिनों से परेशान हैं और मैंने उनसे पूछा भी था लेकिन उन्होंने ठीक से कुछ नहीं बताया।"

"ऐसा कैसे हो सकता है मामी?" मैंने हैरानी ज़ाहिर की____"आप उनकी पत्नी हैं, आपको तो उनसे पूछना ही चाहिए था। उनकी परेशानी के बारे में जान कर आपको उनकी परेशानी भी दूर करनी चाहिए थी।"

"हां मैं समझती हूं वैभव।" मामी ने कहा____"मैं भी चाहती हूं कि उनकी परेशानी दूर हो जाए।"

"अगर आप सच में ऐसा चाहती हैं तो आपको इस बारे में बिल्कुल भी देर नहीं करनी चाहिए।" मैंने अच्छा मौका जान कर कहा____"वो आपके पति हैं और आप उनकी पत्नी इस लिए आप दोनों को एक दूसरे से अपनी अपनी परेशानी बतानी चाहिए और फिर उसको दूर करने का भी प्रयास करना चाहिए।"

"हां ये तो तुम सही कह रहे हो।" मामी ने कहा____"तुम्हारे विवाह के बाद जब हम वापस घर जाएंगे तो मैं उनसे उनकी परेशानी के बारे में ज़ोर दे कर पूछूंगी।"

"मेरा विवाह होने में अभी काफी समय है मामी।" मैंने कहा____"क्या इतने समय तक मामा को परेशानी की हालत में रखना ठीक होगा? मेरा ख़याल है कि बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा, इस लिए आपको जल्द से जल्द उनकी परेशानी दूर करने का क़दम उठाना चाहिए।"

"हां लेकिन यहां मैं उनसे कैसे बात कर सकूंगी वैभव?" मामी ने जैसे अपनी समस्या ज़ाहिर की____"तुम्हें तो पता ही है कि यहां इतने लोगों के रहते मैं इस बारे में उनसे बात नहीं कर पाऊंगी और ये उचित भी नहीं होगा।"

"बात जब समस्या वाली हो मामी तो इंसान को ना तो उचित अनुचित के बारे में सोचना चाहिए और ना ही लोगों की परवाह करनी चाहिए।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"इंसान को सिर्फ ये सोचना चाहिए कि उसकी समस्या का जल्द से जल्द निदान हो जाए। वैसे इस समय भी कोई समस्या वाली बात नहीं है। इत्तेफ़ाक से मैंने मामा के सोने का इंतज़ाम यहीं ऊपर ही एक कमरे में कर दिया था। आप एक काम कीजिए, इसी समय उनके पास जाइए और उनसे उनकी परेशानी जान कर उनकी परेशानी को दूर करने का प्रयास कीजिए।"

"ये...ये तुम क्या कह रहे हो वैभव?" मामी ने एकदम से घबराहट जैसे अंदाज़ से मेरी तरफ देखा____"यहां सबके बीच इस तरह मैं उनसे कैसे मिल सकती हूं। लोगों को पता चला तो सब क्या सोचेंगे इस बारे में?"

"फिर से वही बात।" मैंने कहा____"आप फिर लोगों के बारे में सोचने लगीं? जबकि आपको किसी की परवाह न करते हुए सिर्फ अपनी समस्याओं को दूर करने के बारे में सोचना चाहिए। वैसे भी यहां किसी को कुछ पता नहीं चलने वाला। सब दिन भर के थके हुए हैं, बिस्तर में पहुंचते ही घोड़े बेंच कर सो गए होंगे। आप बेझिझक हो कर मामा के पास जाइए और मेरे बारे में तो आपको कुछ सोचने की ज़रूरत ही नहीं है क्योंकि मैं समझता हूं कि इस समय आपके लिए यही उचित है।"

मामी मुझे अपलक देखने लगीं। जैसे कुछ समझने की कोशिश कर रहीं हों। मैंने सोचा कि अगर उन्होंने इस बारे में ज़्यादा दिमाग़ लगाया तो इसी समय समझ जाएंगी कि मुझे सब कुछ पता है और इसी के चलते मैं उनको मामा के पास जाने के लिए ज़ोर दे रहा हूं। ज़ाहिर है इस बात को समझते ही उन्हें मेरे सामने शर्मिंदगी भी होगी जोकि इस वक्त मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता था।

बहरहाल मामी ने थोड़ी सी ना नुकुर की लेकिन मैंने किसी तरह उन्हें समझा बुझा कर मामा के कमरे में जाने के लिए मना ही लिया और खुद उन्हें ले कर मामा के कमरे के पास पहुंच गया। मामी मेरी वजह से बहुत ज़्यादा असहज महसूस कर रहीं थी। चेहरे पर लाज की सुर्खी भी छा गई थी। मैंने दरवाज़े पर दस्तक दी और फिर चुपचाप पलट कर अपने कमरे में आ गया। इस बीच मैंने दरवाज़ा खुलने की हल्की आवाज़ सुन ली थी। ज़ाहिर है दरवाज़े के बाहर अपनी पत्नी को खड़ा देख मामा उन्हें अंदर बुला ही लेंगे। अब इतना तो वो कर ही सकते थे।

✮✮✮✮

अगली सुबह मामा नीचे बरामदे में कुर्सी पर बैठे चाय पी रहे थे। उनके चेहरे पर खुशी की चमक दिख रही थी। कुछ दूरी पर मां चाची मामी और बाकी लड़कियां बैठी काम कर रहीं थी। मामा चाय पीते हुए बार बार मामी को देख रहे थे। मैंने जब ये देखा तो मुस्कुरा उठा।

"क्या हाल है मामा।" मैं उनके पास पहुंचते ही उनसे मुस्कुराते हुए पूछा____"इस हवेली में कल की रात कैसी गुज़री आपकी?"

मेरी बात सुनते ही मामा पहले तो सकपकाए फिर एकदम से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और धीरे से कहा____"एकदम ज़बरदस्त भांजे।"

उधर मेरी आवाज़ रोहिणी मामी के कानों में भी पड़ चुकी थी जिसके चलते उन्होंने एक झटके से गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा। इत्तेफ़ाक से मेरी नज़र भी उनकी तरफ घूम गई। मेरी और मामी की नज़र मिली। घूंघट तो किया हुआ था उन्होंने लेकिन घूंघट का पल्लू इस वक्त सिर्फ उनके सिर को ढंके हुए था। मुझसे नज़र मिलते ही उनके चेहरे पर लाज और शर्म की लाली छा गई और उन्होंने शर्मा कर झट से अपना चेहरा वापस घुमा लिया। मेरे लिए ये समझ लेना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था कि उनको पता चल गया है कि ये सारा किया धरा मेरा ही था, बल्कि ये कहना चाहिए कि ये सारी योजना ही मामा भांजे की थी।

"फिर तो अच्छी बात है मामा।" मैंने अपनी आवाज़ को सामान्य से थोड़ा ऊंचा करते हुए कहा ताकि मामी भी सुन सकें____"उम्मीद करता हूं अब से हर रोज़ इसी तरह आपकी रात ज़बरदस्त गुज़रेगी।"

"तू मेरा सबसे अच्छा भांजा है वैभव।" मामा कुछ ज़्यादा ही खुश थे इस लिए अपनी खुशी को ज़ाहिर करते हुए बोले____"और मुझे हमेशा तुझ पर नाज़ रहेगा।"

"अरे! ऐसा क्यों कहते हैं मामा?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके चलते आपको हमेशा मुझ पर नाज़ रहेगा?"

"अरे! तेरी ही वजह से तो सबको खुशियां मिली हैं।" मामा ने अपनी बात एक बहाने के रूप में कही____"वरना सबके सब खुशियों के लिए तरस ही रहे थे।"

मैंने देखा, मामी ने गर्दन घुमा कर फिर से हमारी तरफ देखा। एक बार फिर से इत्तेफ़ाकन मेरी नज़र उनसे टकरा गई और उन्होंने एकदम से शर्मा कर अपना चेहरा वापस घुमा लिया। मैं समझ गया कि इस वक्त मामी अंदर ही अंदर बुरी तरह शर्मा रही हैं और शायद वो ये सोच कर भी चकित होंगी कि हम दोनों मामा भांजे कैसे इस तरह की बातें बहाने बहाने से कर रहे हैं।

"वैसे तो इसमें मेरा कोई विशेष योगदान नहीं है मामा।" मैंने उसी मुस्कान के साथ कहा____"पर यदि आप इसके लिए मुझे ही श्रेय दे रहे हैं तो मैं आपको बता दूं कि बदले में मुझे भी आपको कुछ देना होगा। सिर्फ बातें कह देने से काम नहीं चलेगा।"

"अरे! तू बता ना भांजे कि बदले में तुझे क्या चाहिए?" मामा ने एकदम से सीना चौड़ा करते हुए कहा____"तेरा ये मामा तुझे वचन देता है कि तू जो मांगेगा मैं तुझे दूंगा।"

"अच्छा क्या सच में?" मैंने ग़ौर से उनकी तरफ देखा।

"अरे! क्या तुझे अपने मामा पर भरोसा नहीं है भांजे?" मामा ने इस तरह की शक्ल बना कर कहा जैसे मैंने उनकी तौहीन कर दी हो।

"नहीं ऐसी तो बात नहीं है मामा।" मैंने एक नज़र मामी पर डालने के बाद कहा____"मैं तो बस ये कहना चाहता था कि वचन देने से पहले आपको अच्छी तरह सोच लेना चाहिए था कि मैं जो मांगूंगा आप वो दे भी सकेंगे या नहीं?"

"देख भांजे।" मामा ने जैसे निर्णायक भाव से कहा____"अब तो मैं तुझे वचन दे चुका हूं इस लिए अब कुछ सोचने विचारने का सवाल ही पैदा नहीं होता। तू बस बेझिझक हो के मांग जो तुझे चाहिए।"

मैंने देखा मामी चकित भाव से हमारी तरफ ही देखने लगीं थी। मैं उन्हें देख मुस्कुराया और फिर मामा से कहा____"ठीक है मामा, लेकिन मैं अपने लिए आपसे कुछ नहीं मागूंगा। मैं तो सिर्फ इतना ही चाहता हूं कि जैसे कल की रात आपके लिए अच्छी गुज़री है वैसी ही हर रात आपकी गुज़रे।"

"अरे! तू तो सच में मेरा कमाल का भांजा है वैभव।" मामा पहले तो हैरान हुए फिर खुशी से मुस्कुराते हुए बोले____"अपने लिए कुछ नहीं मांगा बल्कि मेरी खुशी की चाहत रखी।"

"क्यों न रखूं मामा।" मैंने एक बार फिर से मामी की तरफ एक नज़र डाली, फिर कहा____"आप मेरे सबसे अच्छे वाले मामा हैं और मुझे पता है कि खुशियों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत आपको है। रही मेरी बात तो, आप तो अच्छी तरह जानते हैं कि मुझे मौजूदा समय में किसी से कुछ मांगने की ज़रूरत ही नहीं है।"

"तुम दोनों मामा भांजे किस बारे में बातें कर रहे हो?" अचानक मां ने गर्दन घुमा कर हमारी तरफ देखते हुए पूछा तो मैं और मामा एकदम से हड़बड़ा गए। उधर मामी के चेहरे का भी रंग उड़ता नज़र आया। मां की बात सुन कर मामा ने जल्दी से खुद को सम्हाला और संतुलित भाव से कहा____"अरे! ये हमारी आपस की बातें हैं दीदी, आप नहीं समझेंगी।"

"अच्छा।" मां के माथे पर शिकन उभरी___"ऐसी भला कौन सी बातें कर रहे हो तुम दोनों जिन्हें मैं समझ ही नहीं सकती, हां?"

"भांजे अब क्या करें यार?" मामा एकदम से चिंतित हो कर मेरी तरफ देख बोले____"दीदी को क्या जवाब दूं? तू ही जल्दी से कुछ सोच और बता उन्हें।"

"क्या हुआ कुछ बोल क्यों नहीं रहा तू?" मां ने मामा की तरफ ध्यान से देखते हुए पूछा और फिर मेरी तरफ देखने लगीं।

"क्या मां आप भी अपना काम छोड़ कर हम मामा भांजे की बातों पर ध्यान देने लगीं।" मैंने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा____"हम तो बस ऐसे ही बातें कर रहे हैं, है ना मामा?"

"ह...हां हां और नहीं तो क्या?" मामा एकदम से हकलाते हुए बोल पड़े____"हम तो ऐसे ही समय बिताने के लिए बातें कर रहे हैं दीदी। आप मन लगा कर अपना काम कीजिए ना।"

मैंने देखा मामी हमारी तरफ देखते हुए मुस्कुराए जा रहीं थी। इधर मामा की बात सुन कर मां ने हम दोनों को बारी बारी से घूर कर देखा और फिर पलट कर सबके साथ काम में लग गईं। कहने की ज़रूरत नहीं कि हम दोनों मामा भांजे ने राहत की लंबी सांस ली।

"तूने फंसवा दिया था हम दोनों को।" फिर मामा ने धीरे से मुझसे कहा____"क्या ज़रूरत थी ऊंची आवाज़ में बातें करने की। अच्छा हुआ कि दीदी को समझ नहीं आया वरना हम दोनों की ख़ैर नहीं थी।"

"सही कह रहे हैं आप।" मैंने कहा____"बाल बाल बचे। मैं तो बस मामी को सुनाने के चक्कर में थोड़ा ऊंची आवाज़ में बोल रहा था। मुझे नहीं पता था कि मां भी हमारी बातें सुनने लगेंगी। वैसे क्या लगता है आपको, उन्हें हमारी बातें समझ आ गई होंगी?"

"क्या पता।" मामा ने कंधे उचकाए____"लेकिन अब इतना पता है कि हमें अब यहां से खिसक लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो तेरी मामी नाराज़ हो जाए और फिर वो मुझे अपने पास आने ही न दे। अगर एसा हुआ तो समझ ही सकता है कि तेरी दुआएं और चाहतें मिट्टी में ही मिल जाएंगी।"

मैंने मुस्कुराते हुए हां में सिर हिलाया। उसके बाद हम दोनों ही अपना अपना चाय का खाली प्याला वहीं छोड़ कर बाहर की तरफ खिसक लिए। मामी मुस्कुराते हुए हमें जाता देख रहीं थी।

बाहर बैठक में बाकी सब बैठे हुए थे और आज के कार्यक्रम की रणनीति बना रहे थे। मामा भी उनके बीच जा कर बैठ गए जबकि मैं हवेली से बाहर निकल गया। कई दिनों से मैं हवेली में ही था और इस वजह से मुझे घुटन सी होने लगी थी। वैसे तो मां चाची और मामी लोगों ने भी मुझसे कहा था कि अब से मैं हवेली में ही रहूं लेकिन मेरा मन अब थोड़ा ऊब चुका था। मैं बाहर की खुली हवा लेना चाहता था इस लिए मोटर साईकिल में बैठ कर चल दिया।

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मेरी मोटर साईकिल सीधा उस जगह पर पहुंच कर रुकी जहां पर अनुराधा का विदाई स्थल था। आज वातारण में थोड़ा कोहरे जैसी धुंध छाई हुई थी जिसकी वजह से धूप के ताप का बिल्कुल भी एहसास नहीं हो रहा था। मैंने अपने बदन पर ऊन का स्वेटर पहन रखा था।

अनुराधा के विदाई स्थल के पास पहुंच कर मैं घुटनों के बल कच्ची ज़मीन पर बैठ गया। इस जगह आने से एक अलग ही अनुभूति होती थी। कुछ समय के लिए जैसे मैं सब कुछ भूल जाता था। बंद पलकों में अनुराधा के साथ बिताए हुए लम्हों की तस्वीरें देखते हुए मैं बस उन्हीं में खो जाता था। उसके बाद सामने देखते हुए उससे काफी देर तक अपने दिल की बातें करता रहता। मैं उसको सब कुछ बताता था कि आज मेरे साथ क्या क्या हुआ और आगे क्या होने वाला है। फिर एकाएक मेरा मन उससे ये कहते हुए भारी हो जाता कि काश! तुम जीवित अवस्था में मेरे पास होती तो मुझे अलग ही खुशी होती। ऊपर बैठे विधाता से उसे वापस करने की मिन्नतें करता और अनुराधा से ये कहते हुए माफियां मांगता कि मेरे कुकर्मों की वजह से आज वो इस दुनियां में नहीं है।

कुछ समय बाद मैं उठा और वहीं से सरोज काकी के घर चल पड़ा। आज कई दिनों बाद मैं उसके घर आया था। मुझे आया देख वो बड़ा खुश हुई। मैंने पहले ही उसको बता दिया था कि भाभी के साथ मेरा विवाह होने वाला है और फिर रूपा के साथ भी।

"कल मेरी बेटी रूपा भी यहां अपनी एक बहन के साथ आई थी।" सरोज काकी ने कहा____"मुझसे कह रही थी कि अब वो विवाह होने तक मेरे पास नहीं आ पाएगी। इस लिए मैं अनूप के साथ ही उसके घर पर रहूं।"

"हां तो इसमें ग़लत क्या है काकी?" मैंने अधीरता से कहा____"तुम्हें उसके विवाह तक उसके घर पर ही रहना चाहिए।"

"हां मैं समझती हूं।" सरोज काकी ने कहा____"लेकिन थोड़ा संकोच होता है, ये सोच कर कि मैं एक मामूली से किसान की औरत हूं और वो बड़े लोग हैं।"

"छोटे बड़े जैसी कोई बात नहीं है काकी।" मैंने कहा____"अगर होती तो अब तक जो कुछ हुआ है वो न हुआ होता। क्या तुमने कभी महसूस किया है कि मैंने या मेरे घर वालों ने तुम्हें छोटा होने का एहसास कराया है अथवा रूपा और उसके घर वालों ने ऐसा कभी किया है?"

"मैं मानती हूं कि ऐसा तुम में से किसी ने नहीं किया वैभव।" सरोज काकी ने कहा____"और सच कहूं तो इसके लिए मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली समझती हूं लेकिन कहीं न कहीं मुझे अपनी स्थिति का एहसास तो होता ही है कि मैं एक छोटी हैसियत वाली हूं और मुझे अपनी हद में रहना चाहिए।"

"ऐसा कह कर तुम हम सबकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रही हो काकी।" मैंने संजीदा हो कर कहा____"हम में से किसी ने भी कभी तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ नहीं सोचा है। जहां प्रेम होता है वहां हैसियत वाली बात ही नहीं होती। अनुराधा से मिलने से पहले मैं हैसियत के बारे में सोच भी सकता था लेकिन उससे मिलने के बाद और उससे प्रेम होने के बाद मेरे दिलो दिमाग़ से हैसियत संबंधित बातों का वजूद ही मिट चुका है। अगर ऐसा न होता तो अनुराधा की मौत के बाद मैं उसे अपनी दुल्हन बना कर विदा न करता। आज भी मैं उसको अपनी पहली पत्नी ही मानता हूं और उस नाते तुम मेरी सास हो, अनूप मेरा साला है। क्या अब भी तुम्हें लगता है कि इसमें हैसियत की बात है? क्या अब भी तुम्हें लगता है कि तुम हम में से किसी से छोटी हो?"

"मुझे माफ़ कर दो वैभव।" सरोज काकी की आंखें भर आईं____"मैं यही समझ बैठी थी कि मेरी बेटी अनू के जाने के बाद तुमने ये रिश्ता मिटा दिया होगा।"

"नहीं, मैं ऐसा कभी नहीं कर सकता काकी।" मैंने गंभीरता से कहा____"और ना ही कभी करूंगा। मेरा प्रेम अनुराधा के गुज़र जाने से मिट जाने वाला नहीं है। मैंने तो उसके गुज़र जाने पर ही उसको अपनी पत्नी बनाया था तो अब ये रिश्ता मरते दम तक क़ायम रहेगा। तुम ही इस रिश्ते को ना मानो तो अलग बात है।"

"नहीं नहीं।" सरोज काकी जैसे तड़प उठी____"ऐसा मत कहो। ये सच है कि अभी तक मैं इस रिश्ते को महत्व नहीं दे रही थी लेकिन तुम्हारी ये बातें सुन कर मुझे एहसास हो गया है कि मैं ग़लत थी। मेरा यकीन करो बेटा, अब से मैं भी तुमको अपना दामाद ही मानूंगी और जीवन भर मानूंगी।"

"अगर तुम सच में ऐसा मानती हो।" मैंने कहा____"तो फिर अपने दामाद की बातें भी मानों काकी। रूपा ने तुम्हें अपनी मां कहा है और तुमने भी उसको अनुराधा की तरह अपनी बेटी माना है तो फिर इस रिश्ते को पूरी ईमानदारी से और पूरी निष्ठा से निभाओ। अगर उसके घर वाले चाहते हैं कि विवाह तक तुम उनके साथ ही रहो तो तुम्हें खुशी खुशी वहीं रहना चाहिए।"

"मैं अब रहूंगी बेटा।" सरोज काकी ने दृढ़ता से कहा____"अपनी बेटी रूपा को उसी तरह तुमसे विवाह कर के विदा करूंगी जैसे मैं अनुराधा को करती।"

कुछ देर और सरोज काकी से बातें हुईं उसके बाद मैं वहां से चल पड़ा। थोड़े ही समय में मैं भुवन से मिलने अपने खेतों पर पहुंच गया। भुवन खेतों पर ही था। मैं उससे मिला और उसे बरात में चलने का निमंत्रण भी दिया। भुवन इस बात से बड़ा खुश हुआ। उसके बाद मैं हवेली निकल गया।




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बहुत ही मजेदार अपडेट था
मामा भांजे के बीच के बाते बड़े ही मजेदार थी दोनो की अच्छी तरह से पटती है दोनो ही रंगीले मिजाज के जो है
रूपा का सरोज और अनूप को शादी में अपने घर पर रहने के लिए बुलाना अच्छा निर्णय था ऐसे भी सरोज को रूपा ने अपनी मां माना है तो बेटी की शादी में मां तो होनी चाहिए साथ ही रूपा ने शायद कुछ ओर सोचा हो। सरोज के लिए यह घड़ी बहुत ही दुखदाई होने वाली है जब वह रूपा को दुल्हन के रूप में देखेगी तो अनुराधा की याद आयेगी और अपनी बेटी की याद में आसूं बहायेगी।उसने भी अपनी बेटी के लिए ये ही सपने देखे थे कि वह भी वैभव की दुल्हन बनकर उसके घर से विदा हो लेकिन भगवान को ये मंजूर नहीं था
 
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Ek time tha jab aapne hi aisa karne ka suggestion diya tha aur ab aap hi apne suggestion se mukar rahe hain....

ऐसा कब मैने सजेशन दिया था ? मैने सिर्फ यह कहा था कि अच्छा होता यदि रूपा की शादी सरोज के घर मे होती और उसकी डोली सरोज के आंगन से निकलती ।
शायद ये अनुराधा के प्रति वैभव और रूपा की सच्ची श्रद्धांजलि होती ।
 
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भाई शुभम आप सुहागरात जरूर लिखो, लेकिन कहानी में बदलाव मत करो।

दोनो अपडेट में रागिनी और शालिनी का संवाद और वैभव का मेनका से बहुत ही इमोशनल पार्ट था।

हालांकि हल्दी में शालिनी और रागिनी का मजाक भी जबरदस्त बनाया आपने। और हल्दी रस्म ही ऐसी चूल्हेबाजियों की है। वैभव की कोई भाभी नही है, मतलब है तो लेकिन अब वो ऐसी चूल्हेबाजी बाद में करेगी 😜, नही तो वैभव की हल्दी में भी कुछ धमाल होता।

खैर SANJU ( V. R. ) भैया, मामियों की बात है, तो मामी भांजे का रिश्ता भी कुछ मजाक का होता है। बाकी तो सबकी फितरत है कि किस रिश्ते को किस दिशा में ले जाय।

बढ़िया अपडेट भाई।
मामी - भांजे के रिश्ते मे मजाक सम्भव है , यह मैने भी कहा था लेकिन मामा - भांजे के रिश्ते मे मजाक और वह भी सेक्सुअल सम्बंधित नही होता ।
लेकिन मैने यह भी कहा कि फिर भी मामा - भांजे के बीच ऐसा मजाक सम्भव हो सकता है अगर दोनो की उम्र लगभग एक समान हो और दोनो के बीच फ्रेंडशिप जैसा रिश्ता हो ।
 
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