S M H R
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Nice updateअध्याय - 161
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"मैं अब रहूंगी बेटा।" सरोज काकी ने दृढ़ता से कहा____"अपनी बेटी रूपा को उसी तरह तुमसे विवाह कर के विदा करूंगी जैसे मैं अनुराधा को करती।"
कुछ देर और सरोज काकी से बातें हुईं उसके बाद मैं वहां से चल पड़ा। थोड़े ही समय में मैं भुवन से मिलने अपने खेतों पर पहुंच गया। भुवन खेतों पर ही था। मैं उससे मिला और उसे बरात में चलने का निमंत्रण भी दिया। भुवन इस बात से बड़ा खुश हुआ। उसके बाद मैं हवेली निकल गया।
अब आगे....
वक्त बड़ा जल्दी जल्दी गुज़र रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसको कुछ ज़्यादा ही जल्दी थी रागिनी का अपने होने वाले पति वैभव से मिलन करवाने की। अभी कुछ दिन पहले ही उसके घर वाले वैभव का तिलक चढ़ाने रुद्रपुर गए थे और अब हल्दी की रस्म होने लगी थी। अब बस कुछ ही दिनों बाद घर में बरात आने वाली थी। सच में समय बड़ी तेज़ गति से गुज़र रहा था।
पूरे घर में खुशी का माहौल छाया हुआ था। सभी सगे संबंधी आ गए थे। सुबह से ही हर कोई भाग दौड़ करते हुए अपने अपने काम में लग गया था। गांव की औरतें आंगन में बैठी ढोलक बजा रहीं थी, गीत गा रहीं थी। संगीत की धुन में सब लड़कियां मिल कर नाच रहीं थीं।
वहीं एक तरफ रागिनी को हल्दी लगाई जा रही थी। हल्दी लगाने वालों की जैसे कतार सी लगी हुई थी। हर कोई उतावला सा दिख रहा था। उसकी भाभियां, उसकी बहनें, गांव की कुछ भाभियां और उसकी सहेली शालिनी। सब गाते हुए उसको हल्दी लगा रहीं थी।
रागिनी के गोरे बदन पर एक मात्र कपड़ा था जोकि उसका कुर्ता ही था जिसकी बाहें उसके कंधों से कटी हुईं थी। नीचे उसने सलवार नहीं पहनी थी लेकिन हां कच्छी ज़रूर पहन रखी थी। उसकी भाभियां जान बूझ कर उसके बदन के ऐसे ऐसे हिस्से पर हल्दी मल रहीं थी जहां पर उनके हाथों की छुवन और मसलन से रागिनी शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी। वो ऐसी जगहों पर हाथ लगाने से विरोध भी कर रही थी लेकिन कोई उसकी सुन ही नहीं रहा था। बार बार उसके कुर्ते के अंदर हाथ डाल दिया जाता। फिर उसके पेट, उसकी जांघें, उसकी पिंडलियां, उसके पैर, उसकी पीठ और उसके गले व सीने से होते हुए उसकी ठोस छातियों में भी ज़ोर लगा लगा कर हल्दी मली जाती। रागिनी कभी आह कर उठती तो कभी उसकी सिसकियां निकल जाती तो कभी चीख ही निकल जाती। शर्म के मारे उसका चेहरा हल्दी लगे होने बाद भी सुर्ख पड़ा हुआ नज़र आ रहा था। कुछ समय बाद बाकी सब चली गईं लेकिन शालिनी, वंदना और सुषमा उसके पास ही बैठी उसे हल्दी लगाती रहीं।
"क्यों मेरी बेटी को इतना परेशान किए जा रही हो तुम लोग?" सुलोचना देवी बरामदे में किसी काम से आईं तो उन्होंने रागिनी की हालत देख कर जैसे उन तीनों को डांटा____"कुछ तो शर्म करो। हल्दी लगाने का ये कौन सा तरीका है?"
"ये अवसर रोज़ रोज़ नहीं आता चाची।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"पिछली बार मेरी हसरत पूरी नहीं हो पाई थी लेकिन इस बार सारी ख़्वाहिश पूरी करूंगी मैं। आप जाइए यहां से। हमें हमारा काम करने दीजिए।"
"ठीक है तुम अपनी ख़्वाहिश पूरी करो।" सुलोचना देवी ने कहा____"लेकिन बेटी थोड़ा दूसरों का भी तो ख़याल करो। क्या सोचेंगे सब?"
"चिंता मत कीजिए चाची।" शालिनी ने कहा___"यहां अब कोई नहीं आने वाला। जिनको शुरू में रागिनी को हल्दी लगाना था वो लगा चुकी हैं। अब सिर्फ मैं और ये भाभियां ही हैं। बाकी बाहर वालों पर नज़र रखने के लिए मैंने कामिनी को बोल रखा है।"
सुलोचना देवी कुछ न बोलीं। वो बस रागिनी के शर्म से लाल पड़े चेहरे को देखती रहीं। रागिनी भी उन्हीं को देख रही थी। उसकी आंखों में एक याचना थी। जैसे कह रही हो कि इन बेशर्मों से उसकी जान बचा लीजिए। सुलोचना देवी को रागिनी की इस हालत पर बड़ी दया आई। वो जानतीं थी कि रागिनी इन मामलों में बहुत शर्म करती है लेकिन वो ये भी जानती थीं कि आज का दिन खुशी का दिन है। किसी को भी नाखुश करना ठीक नहीं था। वैसे भी सब उसके घर की ही तो थीं।
"इन्हें अपने मन की कर लेने दे बेटी।" फिर उन्होंने रागिनी को बड़े प्यार से देखते हुए कहा____"ये सब तेरी खुशियों से खुश हैं इस लिए आज के दिन तू भी किसी बात की शर्म न कर और इस खुशी को दिल से महसूस कर।"
ये कह कर सुलोचना देवी चली गईं। उनके जाने के बाद शालिनी जो उनके जाने की प्रतीक्षा ही कर थी वो फिर से शुरू हो गई। उसने बड़े से कटोरे से हाथ में हल्दी ली और वंदना भाभी को इशारा किया। वंदना ने मुस्कुराते हुए झट से रागिनी का कुर्ता पकड़ कर एकदम से उठा दिया। इधर जैसे ही कुर्ता उठा शालिनी ने हल्दी लिया हाथ झट से रागिनी के कुर्ते में घुसा दिया और उसकी सुडोल छातियों पर हल्दी मलने लगी। जैसे ही रागिनी को ये पता चला उसकी एकदम से चीख निकल गई।
"ऐसे मत चीख मेरी लाडो।" शालिनी ने हंसते हुए कहा____"ये तो कुछ भी नहीं है। सुहागरात को जब जीजा जी तेरी इन छातियों को मसलेंगे तब क्या करेगी तू? क्या तब भी तू ऐसे ही चीखेगी और हवेली में रहने वालों को पता लगवा देगी कि तेरे पतिदेव तेरे साथ क्या कर रहे हैं?"
"चुप कर कमीनी वरना मुंह तोड़ दूंगी तेरा।" रागिनी ने एक हाथ से उसके बाजू में ज़ोर से मारते हुए कहा____"कैसी बेशर्म हो गई है तू। जो मुंह में आता है बोल देती है।"
"मार ले जितना मारना है मुझे।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन मैं तो आज तेरे साथ ऐसे ही मज़े लूंगी, क्यों वंदना भाभी?"
"हां शालिनी।" वंदना ने जैसे उसका साथ देते हुए कहा____"आज तो पूरा मज़ा लेना है रागिनी से। आज हम दोनों मिल कर इसकी सारी शर्म दूर कर देंगे ताकि सुहागरात को इसे अपने पति से कोई शर्म महसूस न हो।"
"हाय राम! भाभी आप भी इस कलमुही का साथ दे रही हैं?" रागिनी ने आश्चर्य से आंखें फैला कर वंदना को देखा____"कम से कम आप तो मुझ पर रहम कीजिए।"
"रागिनी सही कह रही हैं दीदी।" बलवीर सिंह की पत्नी सुषमा ने वंदना से मुस्कुराते हुए कहा____"हमें रागिनी पर रहम करना चाहिए। मेरा मतलब है कि इनकी छातियों पर हल्दी लगा कर छातियों को नहीं मसलना चाहिए। आख़िर वहां पर हाथ लगाने का हक़ तो हमारे जीजा जी का है। शायद इसी लिए हमारी ननद रानी को भी हमारा इनकी छातियों पर हाथ लगाना पसंद नहीं आ रहा है।"
"अरे! हां ये तो तुमने सही कहा सुषमा।" वंदना ने हैरानी से उसकी तरफ देखा____"अब समझ आया कि मेरी लाडो क्यों इतना गुस्सा कर रहीं हैं।"
रागिनी ये सुन कर और भी बुरी तरह शर्मा गई। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्या करे जिसके चलते उसे ये सब न सुनना पड़े। ऐसा नहीं था कि उसे इन सबकी बातों से सचमुच का गुस्सा आ रहा था बल्कि सच ये था कि उसको ज़रूरत से ज़्यादा शर्म आ रही थी।
"बात तो आपने सच कही भाभी।" शालिनी ने कहा____"मुझे भी मज़ा लेने के चक्कर में ये ख़याल नहीं रहा था कि वहां पर हाथ लगाने का हक़ तो हमारे जीजा जी का है।" कहने के साथ ही शालिनी ने रागिनी से कहा____"अगर ऐसी ही बात थी तो तूने बताया क्यों नहीं हमें? यार सच में ग़लती हो गई ये तो।"
"तू ना चुप ही रह अब।" रागिनी को कुछ न सुझा तो झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोल पड़ी____"और अब मुझे हाथ मत लगाना। मुझे नहीं लगवानी अब हल्दी वल्दी। जाओ सब यहां से।"
"अरे! गुस्सा क्यों होती है?" शालिनी ने हल्दी लिया हाथ उसके गाल पर मलते हुए कहा____"अभी तो और भी जगह बाकी है जहां हल्दी लगानी है।"
"तू ऐसे नहीं मानेगी ना रुक तू।" कहने के साथ ही रागिनी ने बिजली की सी तेज़ी से कटोरे से हल्दी ली और झपट कर शालिनी के ब्लाउज में हाथ डाल कर उसकी बड़ी बड़ी छातियों को हल्दी लगाते हुए मसलने लगी।
अब चीखने चिल्लाने की बारी शालिनी की थी। वो सच में इतना ज़ोर से चिल्लाई कि आंगन में गीत गा रही औरतें एकदम से चौंक कर इधर देखने लगीं। शालिनी को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसकी इतनी संस्कारी सहेली इतना बड़ा दुस्साहस कर बैठेगी। उधर वंदना और सुषमा भी चकित भाव से रागिनी को देखने लगीं थी।
"अब बोल कमीनी।" रागिनी बदस्तूर उसकी छातियों को मसलते हुए बोली____"बता अब कैसा लग रहा है तुझे? बहुत देर से तेरा नाटक देख रही थी मैं। अब बताती हूं तुझे।"
"वंदना भाभी बचाइए मुझे।" शालिनी चिल्लाई____"कृपया बचाइए इससे। इस पर भूत सवार हो गया है लगता है। रागिनी छोड़ दे, ना कर ऐसा।"
"क्यों न करूं?" रागिनी ने अचानक ही उसकी एक छाती को ज़ोर से मसल दिया जिससे शालिनी और जोरों से चीख पड़ी, उधर रागिनी ने कहा____"अभी तक तू जो कर रही थी वो क्या सही कर रही थी तू, हां बता ज़रा?"
"माफ़ कर दे मुझे।" शालिनी उससे छूटने का प्रयास करते हुए बोली____"मैं तो बस हल्दी लगा रही थी तुझे।"
"हां तो मैं भी अब हल्दी ही लगा रही हूं तुझे।" रागिनी ने कहा____"तू भी अब वैसे ही लगवा जैसे मुझे लगा रही थी तू।"
इससे पहले कि आंगन में बैठी गीत गा रही औरतें इस तरफ आतीं वंदना और सुषमा ने हस्ताक्षेप किया और किसी तरह रागिनी को समझा बुझा कर शालिनी से छुड़वाया। दोनों ही बुरी तरह हांफने लगीं थी।
"तेरे अंदर कोई भूत आ गया था क्या?" शालिनी ने अपनी उखड़ी सांसों को काबू में करने का प्रयास करते हुए रागिनी से कहा____"ऐसा कैसे कर सकती थी तू? पागल तो नहीं हो गई थी?"
"तुम सब मेरी शर्म दूर कर रही थी ना?" रागिनी ने हांफते हुए कहा____"तो ऐसा कर के मैं भी अपनी शर्म ही दूर कर रही थी। अब बता कैसा लगा तुझे?"
"कैसा लगा की बच्ची।" शालिनी ने अपने सीने पर लगी हल्दी को देखते हुए कहा____"पूरा ब्लाउज ख़राब कर दिया मेरा। अब घर कैसे जाऊंगी मैं?"
"सबको दिखाते हुए जाना।" रागिनी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"लोगों को पता तो चलेगा कि तू हल्दी लगवा रही थी किसी से।"
"रुक जा बेटा।" शालिनी ने जैसे धमकी देते हुए कहा____"इसका बदला ले कर रहूंगी मैं। जिस दिन जीजा जी बरात ले कर आएंगे उस दिन उनसे ही शिकायत करूंगी तेरी।"
"हां कर देना।" रागिनी के चेहरे पर शर्म की हल्की लाली उभर आई____"मैं क्या डरती हूं किसी से।"
"हां ये बात तो मैं मानती हूं रागिनी।" सहसा वंदना ने मुस्कुराते हुए कहा____"तुम अपने होने वाले पति से नहीं बल्कि वो खुद ही तुमसे डरते हैं।"
"अच्छा क्या सच में?" सुषमा पूछे बगैर न रह सकी____"क्या सच में जीजा जी रागिनी से डरते हैं?"
"और नहीं तो क्या?" वंदना ने कहा____"पिछली बार जब आए थे तो मैंने इन दोनों की बातें सुनी थी।"
"भाभी नहीं।" रागिनी एकदम से हड़बड़ा गई, फिर मिन्नत सी करते हुए बोली____"कृपया उन बातों को किसी को मत बताइए ना। आपने मुझसे वादा किया था कि आप किसी से नहीं कहेंगी।"
"अच्छा ठीक है नहीं कहती।" वंदना ने रागिनी की मासूम सी शक्ल देखी तो उसे उस पर तरस सा आ गया____"लेकिन ये तो सच ही है ना कि हमारे होने वाले जीजा जी मेरी प्यारी ननद रानी से डरते हैं।"
"ऐसा कुछ नहीं है।" रागिनी ने शर्म से नज़रें चुराते हुए कहा____"आप ऐसे ही झूठ मूठ मत बोलिए।"
"हां तो तू ही बता दे ना कि सच क्या है?" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"वो डरते हैं या तुझसे बेपनाह प्यार करते हैं?"
"मुझे नहीं पता।" रागिनी शर्म से सिमट सी गई____"अच्छा अब अगर हल्दी वाला काम हो गया हो तो मैं नहा लूं। अंदर बहुत अजीब सा महसूस हो रहा है।"
"अंदर??" शालिनी हौले से चौंकी____"अंदर कहां अजीब सा महसूस हो रहा है तुझे। नीचे या ऊपर?"
"तू न अब पिटेगी मुझसे।" रागिनी ने उसको घूरते हुए कहा____"बहुत ज़्यादा मत बोल।"
"लो मैं कहां ज़्यादा बोल रही हूं?" शालिनी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा____"पूछ ही तो रही हूं कि नीचे अजीब सा महसूस हो रहा है या ऊपर?"
"शालिनी मत तंग करो मेरी लाडो को।" वंदना को रागिनी पर बहुत ज़्यादा स्नेह आ रहा था इस लिए उसने उसके चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा____"बड़ी मुद्दत के बाद तो मेरी ननद रानी के चेहरे पर खुशियों के रंग नज़र आए हैं।"
वंदना की इस बात से सहसा माहौल गंभीर सा होता नज़र आया किंतु जल्दी ही शालिनी ने इस माहौल को अपने मज़ाक से दूर कर दिया। थोड़ी देर और इधर उधर का हंसी मज़ाक हुआ उसके बाद सुलोचना देवी के आवाज़ देने पर वंदना उठ कर उनके पास चली गईं। इधर शालिनी और सुषमा रागिनी को ले कर चल पड़ीं
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हवेली के बड़े से आंगन में एक जगह तंबू बनाया गया था जिसके नीचे मैं एक छोटे से सिंघासन पर बैठा था। मेरे जिस्म पर इस वक्त मात्र कच्छा ही था, बाकी पूरा बलिष्ट जिस्म बेपर्दा था। तीन तरफ के बरामदे में औरतें बैठी गीत गा रहीं थी। कुछ गांव की औरतें थीं कुछ दूसरे गांव की जो पिता जी के मित्रों के घर से आई हुईं थी। बड़े से आंगन में दोनों तरफ मेरी बहनें और मेरी मामियां नाच रहीं थी। पूरा वातावरण संगीत, ढोल नगाड़े और नाच गाने से गूंज रहा था और गूंजता भी क्यों नहीं...आज हल्दी की रस्म जो थी।
आंगन के बीच लगे तंबू के नीचे मैं सिंघासन पर बैठा था और एक एक कर के सब मुझे हल्दी लगा रहे थे। मां, मेनका चाची, निर्मला काकी, महेंद्र सिंह की पत्नी सुभद्रा देवी, ज्ञानेंद्र सिंह की पत्नी माया देवी, अर्जुन सिंह की पत्नी रुक्मणि देवी, संजय सिंह की पत्नी अरुणा देवी सबने एक एक कर के मुझे हल्दी लगाई। उसके बाद सभी मामियों ने मुझे हल्दी लगाया। कुसुम ने खुशी से चहकते हुए मुझे हल्दी लगाई। मामी की दोनों बेटियां सुमन और सुषमा ने भी लगाई।
छोटे मामा की पत्नी यानि रोहिणी मामी जब मुझे हल्दी लगाने आईं तो मैं उन्हें देख मुस्कुराने लगा। पहले तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया और शायद उन्हें याद भी नहीं था किंतु जब मैं उन्हें देखते हुए अनवरत मुस्कुराता ही रहा तो मानों एकदम से उन्हें उस रात का किस्सा याद आ गया जिसके चलते एकदम से उनके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई और वो नज़रें चुराते हुए मुझे हल्दी लगाने लगीं। गुलाबी होठों पर शर्म मिश्रित मुस्कान थी जिसे वो छुपा नहीं पा रहीं थी।
"क्या हुआ मामी?" मैं उनकी हालत पर मज़ा लेने का सोच कर पूछा____"अब तो आपके चेहरे पर अलग ही नूर दिखने लगा है। मामा की परेशानी दूर हो गई है क्या?"
"चुप करो।" वो एकदम से झेंप सी गईं____"बहुत बदमाश हो गए हो तुम।"
"अब ये क्या बात हुई मेरी प्यारी मामी?" मैंने उन्हें छेड़ा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके चलते आप मुझे बदमाश कहने लगीं?"
"अब तुम मेरा मुंह न खोलवाओ।" मामी ने अपनी शर्म को छुपाते हुए मुस्कुरा कर कहा____"तुम दोनों मामा भांजे की बदमाशी समझ गई हूं मैं।"
"ये आप क्या कह रही हैं मामी?" मैंने इधर उधर नज़र घुमा कर उनसे कहा____"खुल कर बताइए ना कि आप क्या समझ गईं हैं?"
"तुम्हें शर्म नहीं आती लेकिन मुझे तो आती है ना?" मामी ने हल्दी लगे हाथ से मेरे दाहिने गाल पर थोड़ा जोर से ठेला। स्पष्ट था कि उन्होंने एक तरह से मुझे इस तरीके से चपत लगाई थी, बोलीं____"मुझे उस रात ही समझ जाना चाहिए था कि तुम दोनों मामा भांजे कौन सी खिचड़ी पका रहे थे।"
"लो जी, अब ये क्या बात हुई भला?" मैं मन ही मन हंसा____"मैं मासूम भला कौन सी खिचड़ी पका सकता हूं? मैं तो बस मामा की परेशानी दूर करना चाहता था और इसी लिए आपको उनके पास भेजा था। क्या उस रात उन्होंने आपको परेशान किया था?"
"और नहीं तो क्या?" मामी का चेहरा कुछ ज़्यादा ही शर्म से लाल पड़ गया। नज़रें चुराते हुए बोलीं____"उन्होंने मुझे बहुत ज़्यादा परेशान किया और ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है।"
"हे भगवान!" मैंने जैसे आश्चर्य ज़ाहिर किया____"मैंने तो अच्छा ही सोचा था। ख़ैर ये तो बताइए कि मामा ने आपको किस बात से परेशान किया था? सुबह उनसे पूछा था लेकिन उन्होंने मुझे कुछ बताया ही नहीं था। आप ही बताइए ना कि आख़िर उस रात क्या हुआ था?"
"सच में बहुत बदमाश हो तुम।" मामी ने मुझे घूरते हुए किंतु मुस्कुरा कर कहा____"और बेशर्म भी। अपनी मामी से ऐसी बातें करते हुए ज़रा भी शर्म नहीं आती तुम्हें।"
"पर मैंने तो ऐसा कुछ आपसे कहा ही नहीं जिसमें मुझे शर्म करनी चाहिए।" मैंने अंजान बनने का दिखावा करते हुए कहा____"मैं तो बस आपसे पूछ रहा हूं कि उस रात क्या हुआ था?"
"क्या सच में तुम नहीं जानते?" मामी ने इस बार मुझे उलझनपूर्ण भाव से देखा।
"अगर जानता तो आपसे पूछता ही क्यों?" मैंने मासूम सी शक्ल बना कर कहा____"बताइए ना कि क्या हुआ उस रात?"
"कुछ नहीं हुआ था।" मामी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"और अगर कुछ हुआ भी था तो तुम्हारे बताने लायक नहीं है। अब चुपचाप हल्दी लगवाओ, बातें न करो।"
उसके बाद मामी ने मुझे हल्दी लगाई और फिर वो मुस्कुराते हुए चलीं गईं। मैं भी ये सोचते हुए मुस्कुराता रहा कि मामी भी कमाल ही हैं। ख़ैर ऐसे ही कार्यक्रम चलता रहा।
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रूपचंद्र के घर में नात रिश्तेदारों का आना शुरू हो गया था। हर रोज़ कोई न कोई आ ही रहा था। साहूकारों के चारो भाईयों के ससुराल वाले, बेटियों के ससुराल वाले। शिव शंकर की बड़ी बेटी नंदिनी का विवाह पहले ही हो चुका था वो भी अपने पति के साथ आ गई थी। मणि शंकर की नव विवाहिता बेटियां आरती और रेखा तो पहले से ही यहीं थी इस लिए उनके ससुराल से दोनों के पति आए हुए थे जो आपस में भाई ही थे।
मणि शंकर के बड़े बेटे चंद्रभान की ससुराल से यानि रूपा की भाभी कुमुद के मायके से उसके भैया भाभी आ गए थे। दूसरी तरफ हरि शंकर के बड़े बेटे और रूपचंद्र के बड़े भाई यानि मानिकचंद्र की ससुराल से उसकी पत्नी नीलम के भैया भाभी कल आने वाले थे। कहने का मतलब ये कि हर रोज़ कोई न कोई मेहमान आ रहा था। हर कोई अपने साथ कुछ न कुछ ले कर आ रहा था। यही सब लोग कुछ समय पहले तब जमा हुए थे जब मणि शंकर की दोनों बेटियों का विवाह हुआ था।
घर काफी बड़ा था इस लिए मेहमानों के रहने की कोई दिक्कत नहीं थी। गौरी शंकर और रूपचंद्र जो अब तक अकेले ही सब कुछ सम्हाल रहे थे उनकी मदद के लिए अब काफी सारे लोग हो गए थे। घर की साफ सफाई और पोताई तो कुछ समय पहले ही हुई थी लेकिन रूपा के विवाह के लिए उसे फिर से पोताया जा रहा था। घर में काफी चहल पहल हो गई थी। इस घर में औरतें और बहू बेटियां तो पहले से ही ज़्यादा थीं लेकिन नात रिश्तेदारों से भी आ गईं थी जिसके चलते और भी भीड़ जमा हो गई थी।
सबको पता था कि रूपा का विवाह इसी गांव के दादा ठाकुर के बेटे वैभव सिंह से होने वाला है। सबको ये भी पता लग चुका था कि रूपा अपने होने वाली पति की दूसरी पत्नी बनने वाली है और उसकी पहली पत्नी दादा ठाकुर की अपनी ही विधवा बहू होगी। इतना ही नहीं सबको ये भी पता लग चुका था कि आज हवेली में रूपा के होने वाले पति की हल्दी की रस्म है। हर कोई इस बात के बारे में अपनी अपनी समझ से चर्चा कर रहा था। गौरी शंकर और रूपचंद्र से जब भी कोई इस बारे में कुछ कहता अथवा पूछता तो वो बड़े तरीके से सबको बताते और समझाते भी जिसके चलते सब उनकी बातों से सहमत हो जाते। आख़िर इतना तो सबको पता ही था कि कुछ समय पहले इन लोगों ने दादा ठोकर के परिवार के साथ क्या किया था।
घर के अंदर रूपा के कमरे में अलग ही नज़ारा था। ढेर सारी औरतें और लड़कियों ने उसे घेर रखा था और तरह तरह की बातों के द्वारा वो रूपा की हालत ख़राब किए हुए थीं। कमरे में हंसी ठिठोली गूंज रही थी।
सबकी सर्व सम्मति से ये तय हुआ था कि अगले हप्ते रूपा की हल्दी वाली रस्म होगी। हालाकि सबको इतनी खुशी थी कि समय से पहले ही घर में रूपा की बड़ी भाभी यानि कुमुद उसको हल्दी और आटे का उपटन लगाने लगीं थी ताकि रूपा के बदन पर अलग ही निखार आ जाए।
घर के अंदर बाकी औरतें ऐसी ऐसी चीज़ें बनाने में लगी हुईं थी जो विवाह के समय बनाई जाती हैं। मसलन, आटे की, बेसन की और मैदे की चीज़ें पूरियां और गोली वगैरह। कुछ औरतें अनाज बीनने में लगीं हुईं थी। कुछ काम करते हुए गाना भी गाए जा रही थीं। एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था।
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