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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 10.0%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.6%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 74 38.9%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 23.2%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.3%

  • Total voters
    190

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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मामी - भांजे के रिश्ते मे मजाक सम्भव है , यह मैने भी कहा था लेकिन मामा - भांजे के रिश्ते मे मजाक और वह भी सेक्सुअल सम्बंधित नही होता ।
लेकिन मैने यह भी कहा कि फिर भी मामा - भांजे के बीच ऐसा मजाक सम्भव हो सकता है अगर दोनो की उम्र लगभग एक समान हो और दोनो के बीच फ्रेंडशिप जैसा रिश्ता हो ।
होता है, हां उम्र और व्यवहार वाली बात है, लेकिन ये तो लगभग हर रिश्ते में होता है, भले ही हम आप उसे मजाक वाला रिश्ता बोल लें।
 
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जरूर शुभम भाई भविष्य मे होने वाली रागिनी भाभी और उनके देवर - कम - पति वैभव के साथ होने वाले सुहागरात सीन्स लिखने का रिहर्सल कर रहे थे ।

लेकिन यह और भी अच्छा तब बनता जब यह सब सीन्स वैभव के सपनो के थ्रू दर्शाया जाता और इस सीन्स के किरदार रागिनी भाभी और देवर - कम - पति वैभव रहे होते ।

चलो फिर भी आखिरकार शुभम भाई ने एक सेक्सुअल सीन्स और वो भी इरोटिक मसाज के ऊपर लिखना तो शुरू किया ! मुझे नही लगता है ऐसी परिस्थिति मे कोई भी मर्द खुद को काबू मे रख पायेगा । या तो मर्द ऐसी परिस्थिति पैदा ही नही होने देगा और संयोग से बन भी गया तो ऐसे मौके को भुनाने की कोशिश नही करेगा ।

बहुत ही बेहतरीन अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

Sanju@

Well-Known Member
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अध्याय - 161
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"मैं अब रहूंगी बेटा।" सरोज काकी ने दृढ़ता से कहा____"अपनी बेटी रूपा को उसी तरह तुमसे विवाह कर के विदा करूंगी जैसे मैं अनुराधा को करती।"

कुछ देर और सरोज काकी से बातें हुईं उसके बाद मैं वहां से चल पड़ा। थोड़े ही समय में मैं भुवन से मिलने अपने खेतों पर पहुंच गया। भुवन खेतों पर ही था। मैं उससे मिला और उसे बरात में चलने का निमंत्रण भी दिया। भुवन इस बात से बड़ा खुश हुआ। उसके बाद मैं हवेली निकल गया।



अब आगे....


वक्त बड़ा जल्दी जल्दी गुज़र रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसको कुछ ज़्यादा ही जल्दी थी रागिनी का अपने होने वाले पति वैभव से मिलन करवाने की। अभी कुछ दिन पहले ही उसके घर वाले वैभव का तिलक चढ़ाने रुद्रपुर गए थे और अब हल्दी की रस्म होने लगी थी। अब बस कुछ ही दिनों बाद घर में बरात आने वाली थी। सच में समय बड़ी तेज़ गति से गुज़र रहा था।

पूरे घर में खुशी का माहौल छाया हुआ था। सभी सगे संबंधी आ गए थे। सुबह से ही हर कोई भाग दौड़ करते हुए अपने अपने काम में लग गया था। गांव की औरतें आंगन में बैठी ढोलक बजा रहीं थी, गीत गा रहीं थी। संगीत की धुन में सब लड़कियां मिल कर नाच रहीं थीं।

वहीं एक तरफ रागिनी को हल्दी लगाई जा रही थी। हल्दी लगाने वालों की जैसे कतार सी लगी हुई थी। हर कोई उतावला सा दिख रहा था। उसकी भाभियां, उसकी बहनें, गांव की कुछ भाभियां और उसकी सहेली शालिनी। सब गाते हुए उसको हल्दी लगा रहीं थी।

रागिनी के गोरे बदन पर एक मात्र कपड़ा था जोकि उसका कुर्ता ही था जिसकी बाहें उसके कंधों से कटी हुईं थी। नीचे उसने सलवार नहीं पहनी थी लेकिन हां कच्छी ज़रूर पहन रखी थी। उसकी भाभियां जान बूझ कर उसके बदन के ऐसे ऐसे हिस्से पर हल्दी मल रहीं थी जहां पर उनके हाथों की छुवन और मसलन से रागिनी शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी। वो ऐसी जगहों पर हाथ लगाने से विरोध भी कर रही थी लेकिन कोई उसकी सुन ही नहीं रहा था। बार बार उसके कुर्ते के अंदर हाथ डाल दिया जाता। फिर उसके पेट, उसकी जांघें, उसकी पिंडलियां, उसके पैर, उसकी पीठ और उसके गले व सीने से होते हुए उसकी ठोस छातियों में भी ज़ोर लगा लगा कर हल्दी मली जाती। रागिनी कभी आह कर उठती तो कभी उसकी सिसकियां निकल जाती तो कभी चीख ही निकल जाती। शर्म के मारे उसका चेहरा हल्दी लगे होने बाद भी सुर्ख पड़ा हुआ नज़र आ रहा था। कुछ समय बाद बाकी सब चली गईं लेकिन शालिनी, वंदना और सुषमा उसके पास ही बैठी उसे हल्दी लगाती रहीं।

"क्यों मेरी बेटी को इतना परेशान किए जा रही हो तुम लोग?" सुलोचना देवी बरामदे में किसी काम से आईं तो उन्होंने रागिनी की हालत देख कर जैसे उन तीनों को डांटा____"कुछ तो शर्म करो। हल्दी लगाने का ये कौन सा तरीका है?"

"ये अवसर रोज़ रोज़ नहीं आता चाची।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"पिछली बार मेरी हसरत पूरी नहीं हो पाई थी लेकिन इस बार सारी ख़्वाहिश पूरी करूंगी मैं। आप जाइए यहां से। हमें हमारा काम करने दीजिए।"

"ठीक है तुम अपनी ख़्वाहिश पूरी करो।" सुलोचना देवी ने कहा____"लेकिन बेटी थोड़ा दूसरों का भी तो ख़याल करो। क्या सोचेंगे सब?"

"चिंता मत कीजिए चाची।" शालिनी ने कहा___"यहां अब कोई नहीं आने वाला। जिनको शुरू में रागिनी को हल्दी लगाना था वो लगा चुकी हैं। अब सिर्फ मैं और ये भाभियां ही हैं। बाकी बाहर वालों पर नज़र रखने के लिए मैंने कामिनी को बोल रखा है।"

सुलोचना देवी कुछ न बोलीं। वो बस रागिनी के शर्म से लाल पड़े चेहरे को देखती रहीं। रागिनी भी उन्हीं को देख रही थी। उसकी आंखों में एक याचना थी। जैसे कह रही हो कि इन बेशर्मों से उसकी जान बचा लीजिए। सुलोचना देवी को रागिनी की इस हालत पर बड़ी दया आई। वो जानतीं थी कि रागिनी इन मामलों में बहुत शर्म करती है लेकिन वो ये भी जानती थीं कि आज का दिन खुशी का दिन है। किसी को भी नाखुश करना ठीक नहीं था। वैसे भी सब उसके घर की ही तो थीं।

"इन्हें अपने मन की कर लेने दे बेटी।" फिर उन्होंने रागिनी को बड़े प्यार से देखते हुए कहा____"ये सब तेरी खुशियों से खुश हैं इस लिए आज के दिन तू भी किसी बात की शर्म न कर और इस खुशी को दिल से महसूस कर।"

ये कह कर सुलोचना देवी चली गईं। उनके जाने के बाद शालिनी जो उनके जाने की प्रतीक्षा ही कर थी वो फिर से शुरू हो गई। उसने बड़े से कटोरे से हाथ में हल्दी ली और वंदना भाभी को इशारा किया। वंदना ने मुस्कुराते हुए झट से रागिनी का कुर्ता पकड़ कर एकदम से उठा दिया। इधर जैसे ही कुर्ता उठा शालिनी ने हल्दी लिया हाथ झट से रागिनी के कुर्ते में घुसा दिया और उसकी सुडोल छातियों पर हल्दी मलने लगी। जैसे ही रागिनी को ये पता चला उसकी एकदम से चीख निकल गई।

"ऐसे मत चीख मेरी लाडो।" शालिनी ने हंसते हुए कहा____"ये तो कुछ भी नहीं है। सुहागरात को जब जीजा जी तेरी इन छातियों को मसलेंगे तब क्या करेगी तू? क्या तब भी तू ऐसे ही चीखेगी और हवेली में रहने वालों को पता लगवा देगी कि तेरे पतिदेव तेरे साथ क्या कर रहे हैं?"

"चुप कर कमीनी वरना मुंह तोड़ दूंगी तेरा।" रागिनी ने एक हाथ से उसके बाजू में ज़ोर से मारते हुए कहा____"कैसी बेशर्म हो गई है तू। जो मुंह में आता है बोल देती है।"

"मार ले जितना मारना है मुझे।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन मैं तो आज तेरे साथ ऐसे ही मज़े लूंगी, क्यों वंदना भाभी?"

"हां शालिनी।" वंदना ने जैसे उसका साथ देते हुए कहा____"आज तो पूरा मज़ा लेना है रागिनी से। आज हम दोनों मिल कर इसकी सारी शर्म दूर कर देंगे ताकि सुहागरात को इसे अपने पति से कोई शर्म महसूस न हो।"

"हाय राम! भाभी आप भी इस कलमुही का साथ दे रही हैं?" रागिनी ने आश्चर्य से आंखें फैला कर वंदना को देखा____"कम से कम आप तो मुझ पर रहम कीजिए।"

"रागिनी सही कह रही हैं दीदी।" बलवीर सिंह की पत्नी सुषमा ने वंदना से मुस्कुराते हुए कहा____"हमें रागिनी पर रहम करना चाहिए। मेरा मतलब है कि इनकी छातियों पर हल्दी लगा कर छातियों को नहीं मसलना चाहिए। आख़िर वहां पर हाथ लगाने का हक़ तो हमारे जीजा जी का है। शायद इसी लिए हमारी ननद रानी को भी हमारा इनकी छातियों पर हाथ लगाना पसंद नहीं आ रहा है।"

"अरे! हां ये तो तुमने सही कहा सुषमा।" वंदना ने हैरानी से उसकी तरफ देखा____"अब समझ आया कि मेरी लाडो क्यों इतना गुस्सा कर रहीं हैं।"

रागिनी ये सुन कर और भी बुरी तरह शर्मा गई। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्या करे जिसके चलते उसे ये सब न सुनना पड़े। ऐसा नहीं था कि उसे इन सबकी बातों से सचमुच का गुस्सा आ रहा था बल्कि सच ये था कि उसको ज़रूरत से ज़्यादा शर्म आ रही थी।

"बात तो आपने सच कही भाभी।" शालिनी ने कहा____"मुझे भी मज़ा लेने के चक्कर में ये ख़याल नहीं रहा था कि वहां पर हाथ लगाने का हक़ तो हमारे जीजा जी का है।" कहने के साथ ही शालिनी ने रागिनी से कहा____"अगर ऐसी ही बात थी तो तूने बताया क्यों नहीं हमें? यार सच में ग़लती हो गई ये तो।"

"तू ना चुप ही रह अब।" रागिनी को कुछ न सुझा तो झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोल पड़ी____"और अब मुझे हाथ मत लगाना। मुझे नहीं लगवानी अब हल्दी वल्दी। जाओ सब यहां से।"

"अरे! गुस्सा क्यों होती है?" शालिनी ने हल्दी लिया हाथ उसके गाल पर मलते हुए कहा____"अभी तो और भी जगह बाकी है जहां हल्दी लगानी है।"

"तू ऐसे नहीं मानेगी ना रुक तू।" कहने के साथ ही रागिनी ने बिजली की सी तेज़ी से कटोरे से हल्दी ली और झपट कर शालिनी के ब्लाउज में हाथ डाल कर उसकी बड़ी बड़ी छातियों को हल्दी लगाते हुए मसलने लगी।

अब चीखने चिल्लाने की बारी शालिनी की थी। वो सच में इतना ज़ोर से चिल्लाई कि आंगन में गीत गा रही औरतें एकदम से चौंक कर इधर देखने लगीं। शालिनी को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसकी इतनी संस्कारी सहेली इतना बड़ा दुस्साहस कर बैठेगी। उधर वंदना और सुषमा भी चकित भाव से रागिनी को देखने लगीं थी।

"अब बोल कमीनी।" रागिनी बदस्तूर उसकी छातियों को मसलते हुए बोली____"बता अब कैसा लग रहा है तुझे? बहुत देर से तेरा नाटक देख रही थी मैं। अब बताती हूं तुझे।"

"वंदना भाभी बचाइए मुझे।" शालिनी चिल्लाई____"कृपया बचाइए इससे। इस पर भूत सवार हो गया है लगता है। रागिनी छोड़ दे, ना कर ऐसा।"

"क्यों न करूं?" रागिनी ने अचानक ही उसकी एक छाती को ज़ोर से मसल दिया जिससे शालिनी और जोरों से चीख पड़ी, उधर रागिनी ने कहा____"अभी तक तू जो कर रही थी वो क्या सही कर रही थी तू, हां बता ज़रा?"

"माफ़ कर दे मुझे।" शालिनी उससे छूटने का प्रयास करते हुए बोली____"मैं तो बस हल्दी लगा रही थी तुझे।"

"हां तो मैं भी अब हल्दी ही लगा रही हूं तुझे।" रागिनी ने कहा____"तू भी अब वैसे ही लगवा जैसे मुझे लगा रही थी तू।"

इससे पहले कि आंगन में बैठी गीत गा रही औरतें इस तरफ आतीं वंदना और सुषमा ने हस्ताक्षेप किया और किसी तरह रागिनी को समझा बुझा कर शालिनी से छुड़वाया। दोनों ही बुरी तरह हांफने लगीं थी।

"तेरे अंदर कोई भूत आ गया था क्या?" शालिनी ने अपनी उखड़ी सांसों को काबू में करने का प्रयास करते हुए रागिनी से कहा____"ऐसा कैसे कर सकती थी तू? पागल तो नहीं हो गई थी?"

"तुम सब मेरी शर्म दूर कर रही थी ना?" रागिनी ने हांफते हुए कहा____"तो ऐसा कर के मैं भी अपनी शर्म ही दूर कर रही थी। अब बता कैसा लगा तुझे?"

"कैसा लगा की बच्ची।" शालिनी ने अपने सीने पर लगी हल्दी को देखते हुए कहा____"पूरा ब्लाउज ख़राब कर दिया मेरा। अब घर कैसे जाऊंगी मैं?"

"सबको दिखाते हुए जाना।" रागिनी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"लोगों को पता तो चलेगा कि तू हल्दी लगवा रही थी किसी से।"

"रुक जा बेटा।" शालिनी ने जैसे धमकी देते हुए कहा____"इसका बदला ले कर रहूंगी मैं। जिस दिन जीजा जी बरात ले कर आएंगे उस दिन उनसे ही शिकायत करूंगी तेरी।"

"हां कर देना।" रागिनी के चेहरे पर शर्म की हल्की लाली उभर आई____"मैं क्या डरती हूं किसी से।"

"हां ये बात तो मैं मानती हूं रागिनी।" सहसा वंदना ने मुस्कुराते हुए कहा____"तुम अपने होने वाले पति से नहीं बल्कि वो खुद ही तुमसे डरते हैं।"

"अच्छा क्या सच में?" सुषमा पूछे बगैर न रह सकी____"क्या सच में जीजा जी रागिनी से डरते हैं?"

"और नहीं तो क्या?" वंदना ने कहा____"पिछली बार जब आए थे तो मैंने इन दोनों की बातें सुनी थी।"

"भाभी नहीं।" रागिनी एकदम से हड़बड़ा गई, फिर मिन्नत सी करते हुए बोली____"कृपया उन बातों को किसी को मत बताइए ना। आपने मुझसे वादा किया था कि आप किसी से नहीं कहेंगी।"

"अच्छा ठीक है नहीं कहती।" वंदना ने रागिनी की मासूम सी शक्ल देखी तो उसे उस पर तरस सा आ गया____"लेकिन ये तो सच ही है ना कि हमारे होने वाले जीजा जी मेरी प्यारी ननद रानी से डरते हैं।"

"ऐसा कुछ नहीं है।" रागिनी ने शर्म से नज़रें चुराते हुए कहा____"आप ऐसे ही झूठ मूठ मत बोलिए।"

"हां तो तू ही बता दे ना कि सच क्या है?" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"वो डरते हैं या तुझसे बेपनाह प्यार करते हैं?"

"मुझे नहीं पता।" रागिनी शर्म से सिमट सी गई____"अच्छा अब अगर हल्दी वाला काम हो गया हो तो मैं नहा लूं। अंदर बहुत अजीब सा महसूस हो रहा है।"

"अंदर??" शालिनी हौले से चौंकी____"अंदर कहां अजीब सा महसूस हो रहा है तुझे। नीचे या ऊपर?"

"तू न अब पिटेगी मुझसे।" रागिनी ने उसको घूरते हुए कहा____"बहुत ज़्यादा मत बोल।"

"लो मैं कहां ज़्यादा बोल रही हूं?" शालिनी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा____"पूछ ही तो रही हूं कि नीचे अजीब सा महसूस हो रहा है या ऊपर?"

"शालिनी मत तंग करो मेरी लाडो को।" वंदना को रागिनी पर बहुत ज़्यादा स्नेह आ रहा था इस लिए उसने उसके चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा____"बड़ी मुद्दत के बाद तो मेरी ननद रानी के चेहरे पर खुशियों के रंग नज़र आए हैं।"

वंदना की इस बात से सहसा माहौल गंभीर सा होता नज़र आया किंतु जल्दी ही शालिनी ने इस माहौल को अपने मज़ाक से दूर कर दिया। थोड़ी देर और इधर उधर का हंसी मज़ाक हुआ उसके बाद सुलोचना देवी के आवाज़ देने पर वंदना उठ कर उनके पास चली गईं। इधर शालिनी और सुषमा रागिनी को ले कर चल पड़ीं

✮✮✮✮

हवेली के बड़े से आंगन में एक जगह तंबू बनाया गया था जिसके नीचे मैं एक छोटे से सिंघासन पर बैठा था। मेरे जिस्म पर इस वक्त मात्र कच्छा ही था, बाकी पूरा बलिष्ट जिस्म बेपर्दा था। तीन तरफ के बरामदे में औरतें बैठी गीत गा रहीं थी। कुछ गांव की औरतें थीं कुछ दूसरे गांव की जो पिता जी के मित्रों के घर से आई हुईं थी। बड़े से आंगन में दोनों तरफ मेरी बहनें और मेरी मामियां नाच रहीं थी। पूरा वातावरण संगीत, ढोल नगाड़े और नाच गाने से गूंज रहा था और गूंजता भी क्यों नहीं...आज हल्दी की रस्म जो थी।

आंगन के बीच लगे तंबू के नीचे मैं सिंघासन पर बैठा था और एक एक कर के सब मुझे हल्दी लगा रहे थे। मां, मेनका चाची, निर्मला काकी, महेंद्र सिंह की पत्नी सुभद्रा देवी, ज्ञानेंद्र सिंह की पत्नी माया देवी, अर्जुन सिंह की पत्नी रुक्मणि देवी, संजय सिंह की पत्नी अरुणा देवी सबने एक एक कर के मुझे हल्दी लगाई। उसके बाद सभी मामियों ने मुझे हल्दी लगाया। कुसुम ने खुशी से चहकते हुए मुझे हल्दी लगाई। मामी की दोनों बेटियां सुमन और सुषमा ने भी लगाई।

छोटे मामा की पत्नी यानि रोहिणी मामी जब मुझे हल्दी लगाने आईं तो मैं उन्हें देख मुस्कुराने लगा। पहले तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया और शायद उन्हें याद भी नहीं था किंतु जब मैं उन्हें देखते हुए अनवरत मुस्कुराता ही रहा तो मानों एकदम से उन्हें उस रात का किस्सा याद आ गया जिसके चलते एकदम से उनके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई और वो नज़रें चुराते हुए मुझे हल्दी लगाने लगीं। गुलाबी होठों पर शर्म मिश्रित मुस्कान थी जिसे वो छुपा नहीं पा रहीं थी।

"क्या हुआ मामी?" मैं उनकी हालत पर मज़ा लेने का सोच कर पूछा____"अब तो आपके चेहरे पर अलग ही नूर दिखने लगा है। मामा की परेशानी दूर हो गई है क्या?"

"चुप करो।" वो एकदम से झेंप सी गईं____"बहुत बदमाश हो गए हो तुम।"

"अब ये क्या बात हुई मेरी प्यारी मामी?" मैंने उन्हें छेड़ा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके चलते आप मुझे बदमाश कहने लगीं?"

"अब तुम मेरा मुंह न खोलवाओ।" मामी ने अपनी शर्म को छुपाते हुए मुस्कुरा कर कहा____"तुम दोनों मामा भांजे की बदमाशी समझ गई हूं मैं।"

"ये आप क्या कह रही हैं मामी?" मैंने इधर उधर नज़र घुमा कर उनसे कहा____"खुल कर बताइए ना कि आप क्या समझ गईं हैं?"

"तुम्हें शर्म नहीं आती लेकिन मुझे तो आती है ना?" मामी ने हल्दी लगे हाथ से मेरे दाहिने गाल पर थोड़ा जोर से ठेला। स्पष्ट था कि उन्होंने एक तरह से मुझे इस तरीके से चपत लगाई थी, बोलीं____"मुझे उस रात ही समझ जाना चाहिए था कि तुम दोनों मामा भांजे कौन सी खिचड़ी पका रहे थे।"

"लो जी, अब ये क्या बात हुई भला?" मैं मन ही मन हंसा____"मैं मासूम भला कौन सी खिचड़ी पका सकता हूं? मैं तो बस मामा की परेशानी दूर करना चाहता था और इसी लिए आपको उनके पास भेजा था। क्या उस रात उन्होंने आपको परेशान किया था?"

"और नहीं तो क्या?" मामी का चेहरा कुछ ज़्यादा ही शर्म से लाल पड़ गया। नज़रें चुराते हुए बोलीं____"उन्होंने मुझे बहुत ज़्यादा परेशान किया और ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है।"

"हे भगवान!" मैंने जैसे आश्चर्य ज़ाहिर किया____"मैंने तो अच्छा ही सोचा था। ख़ैर ये तो बताइए कि मामा ने आपको किस बात से परेशान किया था? सुबह उनसे पूछा था लेकिन उन्होंने मुझे कुछ बताया ही नहीं था। आप ही बताइए ना कि आख़िर उस रात क्या हुआ था?"

"सच में बहुत बदमाश हो तुम।" मामी ने मुझे घूरते हुए किंतु मुस्कुरा कर कहा____"और बेशर्म भी। अपनी मामी से ऐसी बातें करते हुए ज़रा भी शर्म नहीं आती तुम्हें।"

"पर मैंने तो ऐसा कुछ आपसे कहा ही नहीं जिसमें मुझे शर्म करनी चाहिए।" मैंने अंजान बनने का दिखावा करते हुए कहा____"मैं तो बस आपसे पूछ रहा हूं कि उस रात क्या हुआ था?"

"क्या सच में तुम नहीं जानते?" मामी ने इस बार मुझे उलझनपूर्ण भाव से देखा।

"अगर जानता तो आपसे पूछता ही क्यों?" मैंने मासूम सी शक्ल बना कर कहा____"बताइए ना कि क्या हुआ उस रात?"

"कुछ नहीं हुआ था।" मामी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"और अगर कुछ हुआ भी था तो तुम्हारे बताने लायक नहीं है। अब चुपचाप हल्दी लगवाओ, बातें न करो।"

उसके बाद मामी ने मुझे हल्दी लगाई और फिर वो मुस्कुराते हुए चलीं गईं। मैं भी ये सोचते हुए मुस्कुराता रहा कि मामी भी कमाल ही हैं। ख़ैर ऐसे ही कार्यक्रम चलता रहा।

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रूपचंद्र के घर में नात रिश्तेदारों का आना शुरू हो गया था। हर रोज़ कोई न कोई आ ही रहा था। साहूकारों के चारो भाईयों के ससुराल वाले, बेटियों के ससुराल वाले। शिव शंकर की बड़ी बेटी नंदिनी का विवाह पहले ही हो चुका था वो भी अपने पति के साथ आ गई थी। मणि शंकर की नव विवाहिता बेटियां आरती और रेखा तो पहले से ही यहीं थी इस लिए उनके ससुराल से दोनों के पति आए हुए थे जो आपस में भाई ही थे।

मणि शंकर के बड़े बेटे चंद्रभान की ससुराल से यानि रूपा की भाभी कुमुद के मायके से उसके भैया भाभी आ गए थे। दूसरी तरफ हरि शंकर के बड़े बेटे और रूपचंद्र के बड़े भाई यानि मानिकचंद्र की ससुराल से उसकी पत्नी नीलम के भैया भाभी कल आने वाले थे। कहने का मतलब ये कि हर रोज़ कोई न कोई मेहमान आ रहा था। हर कोई अपने साथ कुछ न कुछ ले कर आ रहा था। यही सब लोग कुछ समय पहले तब जमा हुए थे जब मणि शंकर की दोनों बेटियों का विवाह हुआ था।

घर काफी बड़ा था इस लिए मेहमानों के रहने की कोई दिक्कत नहीं थी। गौरी शंकर और रूपचंद्र जो अब तक अकेले ही सब कुछ सम्हाल रहे थे उनकी मदद के लिए अब काफी सारे लोग हो गए थे। घर की साफ सफाई और पोताई तो कुछ समय पहले ही हुई थी लेकिन रूपा के विवाह के लिए उसे फिर से पोताया जा रहा था। घर में काफी चहल पहल हो गई थी। इस घर में औरतें और बहू बेटियां तो पहले से ही ज़्यादा थीं लेकिन नात रिश्तेदारों से भी आ गईं थी जिसके चलते और भी भीड़ जमा हो गई थी।

सबको पता था कि रूपा का विवाह इसी गांव के दादा ठाकुर के बेटे वैभव सिंह से होने वाला है। सबको ये भी पता लग चुका था कि रूपा अपने होने वाली पति की दूसरी पत्नी बनने वाली है और उसकी पहली पत्नी दादा ठाकुर की अपनी ही विधवा बहू होगी। इतना ही नहीं सबको ये भी पता लग चुका था कि आज हवेली में रूपा के होने वाले पति की हल्दी की रस्म है। हर कोई इस बात के बारे में अपनी अपनी समझ से चर्चा कर रहा था। गौरी शंकर और रूपचंद्र से जब भी कोई इस बारे में कुछ कहता अथवा पूछता तो वो बड़े तरीके से सबको बताते और समझाते भी जिसके चलते सब उनकी बातों से सहमत हो जाते। आख़िर इतना तो सबको पता ही था कि कुछ समय पहले इन लोगों ने दादा ठोकर के परिवार के साथ क्या किया था।

घर के अंदर रूपा के कमरे में अलग ही नज़ारा था। ढेर सारी औरतें और लड़कियों ने उसे घेर रखा था और तरह तरह की बातों के द्वारा वो रूपा की हालत ख़राब किए हुए थीं। कमरे में हंसी ठिठोली गूंज रही थी।

सबकी सर्व सम्मति से ये तय हुआ था कि अगले हप्ते रूपा की हल्दी वाली रस्म होगी। हालाकि सबको इतनी खुशी थी कि समय से पहले ही घर में रूपा की बड़ी भाभी यानि कुमुद उसको हल्दी और आटे का उपटन लगाने लगीं थी ताकि रूपा के बदन पर अलग ही निखार आ जाए।

घर के अंदर बाकी औरतें ऐसी ऐसी चीज़ें बनाने में लगी हुईं थी जो विवाह के समय बनाई जाती हैं। मसलन, आटे की, बेसन की और मैदे की चीज़ें पूरियां और गोली वगैरह। कुछ औरतें अनाज बीनने में लगीं हुईं थी। कुछ काम करते हुए गाना भी गाए जा रही थीं। एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था।




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अध्याय - 162
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सूर्य पश्चिम दिशा में उतरने लगा था। आसमान में लालिमा छा गई थी और शाम घिरने लगी थी। आसमान में उड़ते पंक्षी खुशी से मानों गाना गाते हुए अपने अपने घोंसलों की तरफ लौट रहे थे। घर के पीछे अमरूद के पेड़ के पास बैठी रागिनी जाने किन ख़यालों में खोई हुई थी। कुछ दूर कुएं के पास उसकी छोटी बहन कामिनी कपड़े धो रही थी। इस वक्त पीछे के इस हिस्से में दोनों बहनों के सिवा कोई न था किंतु हां घर के अंदर ज़रूर लोगों की भीड़ थी जिनके बोलने की आवाज़ें यहां तक आ रहीं थी।

आज रागिनी का चेहरा अलग ही नज़र आ रहा था। हल्दी का उपटन तो कई दिन पहले से ही लगाया जा रहा था किंतु आज विशेष रूप से हल्दी की रस्म हुई थी जिसके चलते उसका पूरा बदन ही अलग तरह से चमक रहा था। खूबसूरत चेहरे पर चांद जैसी चमक तो थी ही किंतु उसमें हल्की लालिमा भी विद्यमान थी। शायद ख़यालों में वो कुछ ऐसा सोच रही थी जिसके चलते उसके चेहरे पर लालिमा छाई हुई थी।

"तू यहां है और मैं तुझे तेरे कमरे में ढूंढने गई थी?" शालिनी ने उसके क़रीब आते हुए उससे कहा____"यहां बैठी किसके ख़यालों में गुम है तू और ये क्या तूने स्वेटर भी नहीं पहन रखा? क्या ठंड नहीं लग रही तुझे?"

शालिनी की बातों से रागिनी चौंकते हुए ख़यालों की दुनिया से बाहर आई और उसको देखने लगी। उधर कामिनी जो कपड़े धो रही थी वो भी इस तरफ देखने लगी थी।

"अच्छा हुआ दीदी कि आप आ गईं।" कामिनी ने हौले से मुस्कुराते हुए कहा____"वरना मेरी दीदी जाने कब तक इसी तरह जीजा जी के ख़यालों में खोई रहतीं।"

"देख ले तेरी बहन भी सब समझती है।" शालिनी ने रागिनी को छेड़ा____"अब तू कहेगी कि वो भी तुझे छेड़ने लगी जबकि इसमें किसी की कोई ग़लती नहीं है। तू खुद ही सबको मौका दे देती है छेड़ने का।"

"हां और तू तो कुछ ज़्यादा ही मौका तलाशती रहती है मुझे छेड़ने का।" रागिनी पहले तो शरमाई किंतु फिर उसे घूरते हुए बोली____"ख़ैर बड़ा जल्दी आ गई तू। अपने घर में तेरा मन नहीं लगता क्या? या फिर जीजा जी के बिना अकेले रहा नहीं जाता तुझसे? लगता है बहुत याद आती है तुझे उनकी।"

"आती तो है।" शालिनी ने थोड़ा धीरे से कहा____लेकिन उतना नहीं जितना तुझे अपने होने वाले पतिदेव की आती है। जब भी तेरे पास आती हूं तुझे उनके ख़यालों में ही खोया हुआ पाती हूं। मुझे भी तो बता दे कि आख़िर कैसे कैसे ख़याल आते हैं तुझे? विवाह के बाद क्या क्या करने का सोच लिया है तूने?"

"तू ना सच में बहुत अजीब हो गई है।" रागिनी ने कहा____"पहले तो ऐसी नहीं थी तू। जीजा जी के साथ रहने से कुछ ज़्यादा ही बदल गई है तू।"

"हर लड़की बदल जाती है यार।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"इसमें नई बात क्या है। ख़ैर तू ये सब छोड़ और ये बता कि वैभव जी के बारे में सोच कर किस तरह के ख़याल बुनने लगी है तू?"

"ऐसा कुछ नहीं है।" रागिनी ने हल्की शर्म के साथ कहा____"और अगर है भी तो क्यों बताऊं तुझे? क्या तूने कभी मुझे अपने और जीजा जी के बारे में बताया है कि तू उनके बारे में कैसे कैसे ख़याल बुनती थी?"

"अच्छा तो अब तू झूठ भी बोलने लगी है?" शालिनी ने हैरानी से उसे देखा____"तूने जो पूछा था मैंने बिना संकोच के तुझे सब बताया था?"

"अच्छा।" रागिनी ने उसे गौर से देखा____"ठीक है तो अपनी सुहागरात के बारे में बता मुझे।"

"आय हाय!" शालिनी के सुर्ख होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई____"तो मेरी सहेली को मेरी सुहागरात का किस्सा जानना है। ठीक है, मैं तुझे बिना संकोच के एक एक बात बता दूंगी लेकिन मेरी भी एक शर्त है। उसके बाद तू भी अपनी सुहागरात का एक एक किस्सा मुझे बताएगी, बोल मंज़ूर है?"

"ना बाबा ना।" रागिनी एक ही पल में मानों धराशाई हो गई____"मुझसे नहीं बताया जाएगा। मैं तेरी तरह बेशर्म नहीं हूं।"

"तो फिर मुझसे मेरी सुहागरात के बारे में क्यों पूछ रही है?" शालिनी ने कहा।

"वो तो मैंने ऐसे ही कह दिया था।" रागिनी ने कहा___"तुझे नहीं बताना तो मत बता, वैसे भी मैं ऐसी बातें सुनने की तलबगार भी नहीं हूं।"

"हां हां जानती हूं कि तू बहुत ज़्यादा शरीफ़ और सती सावित्री है।" शालिनी ने कहा____"अब ये सब छोड़ और जा के पहले स्वेटर पहन ले। कहीं ऐसा न हो कि तुझे सर्दी हो जाए और तेरी नाक बहने लगे। ऐसे में बेचारे मेरे जीजा जी कैसे तेरे साथ सुहागरात मनाएंगे?"

"कमीनी धीरे बोल कामिनी सुन लेगी।" रागिनी ने कपड़े धो रही कामिनी की तरफ देख कर उससे कहा____"कुछ तो शर्म किया कर और ये तू एक ही बात पर क्यों अटकी हुई है?"

"क्या करूं यार?" शालिनी ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"माहौल ही उस अकेली बात पर अटके रहने का है। सुहागरात नाम की चीज़ ही इतनी आकर्षक है कि ऐसे समय में बार बार उसी का ख़याल आता है। ख़ास कर तब तो और भी ज़्यादा जब मेरी बहुत ज़्यादा शर्म करने वाली सहेली की होने वाली हो।"

रागिनी ने घूर कर देखा उसे। फिर उसने कामिनी को आवाज़ दे कर उससे अपनी स्वेटर मंगवाई। कामिनी जब चली गई तो उसने कहा____"अब बकवास बंद कर और ये बता यहां किस लिए आई थी?"

"क्या तुझे मेरा आना अच्छा नहीं लगता?" शालिनी ने मासूम सी शक्ल बना कर उसे देखा।

"अच्छा लगता है।" रागिनी ने कहा____"लेकिन तेरा हर वक्त मुझे छेड़ना अच्छा नहीं लगता।"

"क्यों भला?" शालिनी ने भौंहें ऊपर की____"क्या मेरे छेड़ने से तेरे अंदर गुदगुदी नहीं होती?"

"क्यों होगी भला?" रागिनी ने कहा____"बल्कि मुझे तो तेरे इस तरह छेड़ने पर तुझ पर गुस्सा ही आता है। मन करता है तेरा सिर फोड़ दूं।"

"अब तो तू सरासर झूठ बोल रही है।" शालिनी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा____"मैं मान ही नहीं सकती कि मेरे छेड़ने पर तुझे अपने अंदर मीठा मीठा एहसास नहीं होता होगा। सच यही है कि तुझे भी बहुत आनंद आता है लेकिन खुल कर बताने में लाज आती है तुझे। कह दे भला कि मेरी ये बातें सच नहीं है?"

रागिनी बगले झांकने लगी। वो फ़ौरन कुछ बोल ना सकी थी। या फिर उसे कुछ सूझा ही नहीं था कि क्या कहे? तभी कामिनी उसका स्वेटर ले कर आ गई जिससे उसने थोड़ी राहत की सांस ली और उससे स्वेटर ले कर पहनने लगी। कामिनी वापस कुएं के पास जा कर कपड़े धोने लगी।

"वैसे मैं ये भी सोचती हूं कि वैभव जी की किस्मत कितनी अच्छी है।" शालिनी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"मतलब कि पहले वो तुझे ब्याह कर ले जाएंगे और फिर कुछ दिनों के बाद उस रूपा को भी ब्याह कर अपनी हवेली ले जाएंगे। उसके बाद कमरे में पलंग पर उनके एक तरफ तू लेटेगी और दूसरी तरफ रूपा। उफ्फ! दोनों तरफ से उनकी दोनों बीवियां उनसे चिपकेंगी और वो किसी महाराजा की तरह आनंद उठाएंगे। काश! ये मंज़र देखने के लिए मैं भी वहां रहूं तो मज़ा ही आ जाए।"

"हाय राम! कैसी कैसी बातें सोचती है तू?" रागिनी ने आश्चर्य और शर्म से उसको देखते हुए कहा____"क्या सच में तुझे ऐसी बातें करते हुए शर्म नहीं आती?"

"अरे! शर्म क्यों आएगी?" शालिनी ने उसके दोनों कन्धों को पकड़ कर कहा___"तुझसे ही तो बोल रही हूं और तुझसे ऐसा बोलने में कैसी शर्म? तू तो मेरी सहेली है, मेरी जान है।"

"लेकिन मुझे आश्चर्य हो रहा है कि तेरे जैसी निर्लज्ज मेरी सहेली है।" रागिनी ने उसे घूरते हुए कहा____"कैसे कर लेती है ऐसी गन्दी बातें?"

"ये सब छोड़।" शालिनी ने कहा____"और ये बता कि क्या सच में विवाह के बाद ऐसा ही मंज़र होगा हवेली के तेरे कमरे में?"

"हे भगवान! फिर से वही बात।" रागिनी के चेहरे पर हैरानी उभर आई____"मत कर ना ऐसी बातें। कह तो तेरे आगे हाथ जोड़ लूं, पैरों में गिर जाऊं।"

"अरे! मैं तो तेरी शर्म दूर कर रही हूं यार।" शालिनी ने बड़े स्नेह से कहा____"ताकि विवाह के बाद जब तेरी सुहागरात हो तो उस समय तुझे ज़्यादा शर्म न आए। सच कहती हूं मैं तुझे उन पलों के लिए तैयार कर रही हूं।"

"हां तो मत कर।" रागिनी ने गहरी सांस ली____"तू ऐसी बातों से मेरी शर्म नहीं बल्कि हालत ख़राब कर रही है। तुझे अंदाज़ा भी नहीं है कि तेरी ऐसी बातों से मुझे कितना अजीब महसूस होता है।"

"हां मैं समझ सकती हूं यार।" शालिनी ने कहा____"मैं समझ सकती हूं कि तेरे जैसी स्वभाव वाली लड़की का शुरू से ही इस रिश्ते के बारे में सोच सोच कर अब तक क्या हाल हुआ होगा। मैं सब समझती हूं रागिनी लेकिन तू भी इस बात से इंकार नहीं कर सकती कि आने वाले समय में जो कुछ होने वाला है उसका सामना तुझे करना ही पड़ेगा। उससे तू भाग नहीं सकती है।"

"हां जानती हूं मैं।" रागिनी ने अपने कंधों से शालिनी के हाथों को हटाते हुए कहा____"और सच कहूं तो जब भी उस आने वाले पल के बारे में ख़याल आता है तो समूचे बदन में सर्द लहर दौड़ जाती है। मैं मानती हूं कि इस रिश्ते को मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया है और अब उनसे विवाह भी होने वाला है मेरा लेकिन विवाह के बाद जो होगा उसके बारे में सोच कर ही कांप जाती हूं मैं। मुझे समझ नहीं आता कि कैसे मैं उन पलों में खुद को सामान्य रख पाऊंगी और उनका साथ दे पाऊंगी? अगर अपने अंदर का सच बयान करूं तो वो यही है कि उस वक्त शायद मैं पीछे ही हट जाऊंगी। उनको अपने पास नहीं आने दूंगी।"

"ये....ये तू क्या कह रही है रागिनी?" शालिनी के चेहरे पर मानों आश्चर्य नाच उठा। फिर एकदम चिंतित भाव से कहा उसने____"ऐसा ग़ज़ब मत करना यार। उन हसीन पलों में अगर तू पीछे हटेगी अथवा उन्हें अपने क़रीब नहीं आने देगी तो खुद ही सोच कि ऐसे में उनको कैसा लगेगा? क्या उन्हें तकलीफ़ नहीं होगी? क्या वो ये नहीं सोच बैठेंगे कि तू अभी भी शायद उनको अपना देवर ही मानती है?"

"मैं ये सब सोच चुकी हूं शालिनी।" रागिनी ने गंभीरता से कहा____"और फिर खुद को यही समझाती हूं कि मुझे ऐसा करने का सोचना भी नहीं चाहिए। भला इसमें उनका या मेरा क्या दोष है कि हमारा आपस में इस तरह का रिश्ता बन गया है? ये सब तो नियति में ही लिखा था।"

"अगर तू सच में ऐसा सोचती है तो फिर तुझे बाकी कुछ भी नहीं सोचना चाहिए।" शालिनी ने कहा____"और ना ही उन पलों में ऐसी वैसी हरकत करने का सोचना चाहिए। तुझे अपने दिलो दिमाग़ में सिर्फ ये बात बैठा के रखनी चाहिए कि उनसे तेरा पहली बार ही विवाह हुआ है। इसके पहले तेरा उनसे कोई भी दूसरा रिश्ता नहीं था। एक बात और, तू उमर में उनसे बड़ी है, तेरा रिश्ता भी उनसे बड़ा रहा है इस लिए अगर तू ऐसा करेगी तो वो भी ऐसा ही सोचेंगे और आगे कुछ भी नहीं हो सकेगा उनसे। इस लिए मैं तुझसे यही कहूंगी कि सब कुछ अच्छा चल रहा है तो आगे भी सब कुछ अच्छा ही चलने देना। ना तू बीच चौराहे पर रुकना और ना ही उन्हें रुकने के बारे में सोचने देना।"

"ऊपर वाला ही जाने उस वक्त मुझसे क्या हो सकेगा और क्या नहीं।" रागिनी ने अधीरता से कहा।

"ऊपर वाला भी उसी के साथ होता है रागिनी जो बिना झिझक के और बिना रुके अपने कर्तव्य पथ पर चलते हैं।" शालिनी ने कहा____"तेरे जीवन में ऊपर वाले ने इतना अच्छा समय ला दिया है तो अब ये तेरी भी ज़िम्मेदारी है कि तू ऊपर वाले की दी हुई इस सौगात को पूरे मन से स्वीकार करे और पूरे आत्म विश्वास के साथ हर चुनौती को पार करती चली जाए।"

"मैं पूरी कोशिश करूंगी शालिनी।" रागिनी ने अधीरता से कहा____"बाकी जो मेरी किस्मत में लिखा होगा वही होगा।"

"तू चिंता मत कर।" शालिनी ने फिर से उसके कंधों पर अपने हाथ रखे____"मुझे पूरा भरोसा है कि आगे सब कुछ अच्छा ही होगा। मुझे वैभव जी पर भी भरोसा है कि वो तुझे ऐसे किसी भी धर्म संकट में फंसने नहीं देंगे बल्कि तेरे मनोभावों को समझते हुए वही करेंगे जिसमें तेरी खुशी होगी और जो तेरे हित में होगा।"

कुछ देर और दोनों के बीच बातें हुईं उसके बाद शालिनी के कहने पर रागिनी उसके साथ ही अंदर की तरफ चली गई। कामिनी धुले हुए कपड़ों को वहीं बंधी डोरी पर डाल रही थी। कुछ बातें उसके कानों में भी पहुंचीं थी।

✮✮✮✮

मैंने मेनका चाची को इशारा कर के उन्हें कमरे में आने को कहा और खुद उनके कमरे की तरफ बढ़ चला। शाम हो चुकी थी। सबको चाय दी गई थी। इतने लोग थे कि बड़े से बर्तन में चाय बनाई गई थी। बहरहाल, कुछ ही देर में चाची मेरी तरफ आती नज़र आईं। मैं दरवाज़े के पास ही खड़ा हुआ था। अचानक मुझे कुसुम दिखी तो मैंने उसको भी आवाज़ दे कर अपने पास बुलाया। वो खुशी से उछलती हुई जल्दी ही मेरे पास आ गई और मुझे सवालिया नज़रों से देखने लगी।

चाची ने दरवाज़ा खोला तो उनके पीछे मैं और कुसुम कमरे में दाख़िल हो गए। इत्तेफ़ाक से बिजली गुल नहीं थी इस लिए कमरे में बल्ब का पीला प्रकाश फैला हुआ था। चाची अपने पलंग पर जा कर बैठ गईं। मैंने कुसुम को भी उनके पास बैठ जाने को कहा और खुद वहीं उनके पास ही कुर्सी को खिसका कर बैठ गया।

"क्या बात है वैभव बेटा?" चाची ने बड़े स्नेह से मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"तुमने किसी ख़ास वजह से मुझे यहां आने का इशारा किया था क्या?"

"हां चाची।" मैंने कहा____"असल में आपसे एक ज़रूरी बात करनी थी। उम्मीद करता हूं कि आप मेरी बात ज़रूर मानेंगी और सिर्फ आप ही नहीं कुसुम भी।"

"बिल्कुल मानूंगी बेटा।" मेनका चाची ने उसी स्नेह के साथ कहा____"बताओ ऐसी क्या बात है?"

"आप तो जानती हैं कि कल विभोर और अजीत विदेश से यहां आ जाएंगे।" मैंने थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"मैं आप दोनों से ये कहना चाहता हूं कि उन्हें इस बारे में पता नहीं चलना चाहिए कि आपने या चाचा ने क्या किया था।"

"ऐसा क्यों कहते हो वैभव?" चाची ने सहसा अधीर हो कर कहा____"उनसे इतनी बड़ी बात छुपाने को क्यों कह रहे हो तुम? मैं तो यही चाहती हूं कि उनको भी अपने माता पिता के घिनौने सच का पता चले।"

"नहीं चाची, कृपया ऐसा मत कीजिएगा।" मैंने कहा____"जो गुज़र गया उसे भूल जाने में ही सबकी भलाई है। वो दोनों विदेश में अच्छे मन से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं तो उन्हें पूरे मन से पढ़ने दीजिए। अगर उन्हें इस बात का पता चला तो वो दोनों जाने क्या क्या सोच कर दुखी हो जाएंगे। इससे उनकी पढ़ाई लिखाई पर गहरा असर पड़ जाएगा। मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता कि मेरे वो दोनों छोटे भाई हम सबके बीच खुद के बारे में उल्टा सीधा सोचने लगें। मेरी आपसे हाथ जोड़ कर विनती है चाची कि आप उन्हें इस बारे में कुछ मत बताइएगा।"

"तुम कहते हो तो नहीं बताऊंगी।" मेनका चाची ने अधीरता से कहा____"लेकिन अगर उन्हें किसी और से इस बात का पता चल गया तो?"

"उन्हें किसी से कुछ पता नहीं चलेगा चाची।" मैंने दृढ़ता से कहा____"वैसे भी इस बारे में बाहर के लोगों को कुछ पता नहीं है और जिन एक दो लोगों को पता है उन्हें पिता जी ने समझा दिया है कि इस बारे में वो विभोर और अजीत को भनक तक न लगने दें।"

"चलो मान लिया कि उन्हें मौजूदा समय में इस बारे में किसी से पता नहीं चलेगा।" चाची ने कहा____"लेकिन कभी न कभी तो उन्हें इस बारे में पता चल ही जाएगा ना। अगर उन्हें किसी और से पता चला तो वो ये सोच कर दुखी हो जाएंगे कि उनकी मां ने इस बारे में खुद उन्हें क्यों नहीं बताया?"

"वैसे तो ये मुमकिन नहीं है चाची।" मैंने कहा____"लेकिन दुर्भाग्य से अगर कभी उन्हें पता चल भी गया तो वो आज के मुकाबले इतना दुखदाई नहीं होगा। इस वक्त ज़रूरी यही है कि उन्हें इस बारे में कुछ भी पता नहीं चलना चाहिए ताकि वो साफ मन से अपनी पढ़ाई कर सकें।"

"भैया सही कह रहे हैं मां।" कुसुम ने मासूमियत से कहा____"विभोर भैया और अजीत को इस समय इस बारे में नहीं बताना चाहिए। मैं तो कभी नहीं बताऊंगी उनको, आप भी कभी मत बताना।"

"ठीक है वैभव।" चाची ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"वैसे तो कभी न कभी उनको पता चल ही जाएगा किंतु मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं कि इस समय उन्हें ये घिनौना सच बताना ठीक नहीं है।"

"तो फिर मुझे वचन दीजिए चाची कि आप मेरे छोटे भाइयों को इस बारे में कभी कुछ नहीं बताएंगी।" मैंने कहा____"आप वैसा ही करेंगी जिसमें उन दोनों का भविष्य उज्ज्वल बने।"

"क्या वचन देने की ज़रूरत है वैभव?" मेनका चाची ने अधीरता से मेरी तरफ देखा।

"वैसे तो ज़रूरत नहीं है चाची।" मैंने कहा____"लेकिन मेरी तसल्ली के लिए मुझे आपसे इस बात का वचन चाहिए। मैं ये कभी नहीं चाहूंगा कि मेरी प्यारी चाची और मेरे दोनों प्यारे भाई भविष्य में कभी भी दुखी हों।"

"ओह! वैभव, मेरे अच्छे बेटे।" चाची ने मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में ले कर अपनी तरफ खींचा और फिर बड़े स्नेह से मेरे माथे को चूम लिया____"क्यों मुझ जैसी चाची को इतना मानते हो? क्यों मुझे इतना मान सम्मान देते हो?"

"क्योंकि आपका ये बेटा ऐसा ही है।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए प्यार से कहा____"आपका ये बेटा अपनी सबसे सुंदर चाची से बहुत प्यार करता है और चाहता है कि उसकी प्यारी चाची हमेशा खुश रहें।"

मेरी बात सुन कर चाची की आंखें छलक पड़ी। एक झटके से पलंग से उठी और फिर झपट कर मुझे अपने सीने से छुपका लिया। ये देख कुसुम की भी आंखें छलक पड़ीं। वो भी झट से आई और एक तरफ से मुझसे चिपक गई।

"काश! विधाता ने मेरी और तुम्हारे चाचा की बुद्धि न हर ली होती।" चाची ने सिसकते हुए कहा____"तो हम दोनों से इतना बड़ा अपराध न होता।"

"ये सब सोच कर खुद को दुखी मत कीजिए चाची।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"आप जानती हैं ना कि मैं अपनी प्यारी सी चाची को ना तो दुखी होते देख सकता हूं और ना ही आंसू बहाते हुए।"

"हमने जो किया है उसका दुख एक नासूर बन कर सारी उमर मुझे तड़पाएगा मेरे बेटे।" चाची ने रुंधे गले से कहा____"मैं कितना भी चाहूं इससे बच नहीं सकूंगी। हमेशा ये सोच कर मुझे तकलीफ़ होगी कि मैंने अपने देवता समान जेठ जी और देवी समान अपनी दीदी के प्यार, स्नेह और भरोसे को तोड़ा है।"

"शांत हो जाइए चाची।" मैंने उठ कर उनके चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर कहा____"मैंने आपसे कहा है ना कि मैं अपनी प्यारी सी चाची को दुखी और आंसू बहाते नहीं देख सकता। इस लिए ये सब मत सोचिए। क्या आप अपने बेटे के विवाह जैसे खुशी के अवसर पर इस तरह खुद को दुखी रखेंगी? क्या आप चाहती हैं कि आपका बेटा खुशी के इस अवसर पर अपनी प्यारी सी चाची को दुखी देख खुद भी दुखी हो जाए?"

"नहीं नहीं।" चाची की आंखें छलक पड़ीं। मानों तड़प कर बोलीं____"मैं ऐसा कभी नहीं चाह सकती मेरे बेटे। मैं तो यही चाहती हूं कि मेरे सबसे अच्छे बेटे को दुनिया भर की खुशियां मिल जाएं। मैं अब नहीं रोऊंगी। इस खुशी के मौके पर तुम्हें दुखी नहीं करूंगी।"

"ये हुई न बात। मेरी सबसे प्यारी चाची।" मैंने झुक कर चाची के माथे पर चूम लिया____"चलिए अब, बाहर आपके बिना कहीं कोई काम न बिगड़ जाए। आप तो जानती हैं कि मां को आपके सहारे की कितनी ज़रूरत है।"

आख़िर मेरी बातों से चाची के चेहरे पर से दुख के भाव मिटे और फिर वो मुस्कुराते हुए पलंग से नीचे उतर आईं। कुसुम मुझे भाव विभोर सी देखे जा रही थी। उसकी आंखें भरी हुई थी। ख़ैर कुछ ही पलों में हम तीनों कमरे से बाहर आ गए। चाची और कुसुम अपने अपने काम में लग गईं जबकि मैं खुशी मन से ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ता चला गया।




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दोनो अपडेट बहुत ही शानदार और मजेदार अपडेट है हल्दी की रस्म में रागिनी के साथ छेड़छाड़ वाला चित्रण बहुत ही मजेदार था हल्दी की रस्म में भाभियों द्वारा मस्ती मजाक और छेड़छाड़ लड़के और लड़की दोनो के साथ की जाती हैं
वैभव को समझ आ गया की सफेद नकाबपोश का सच कभी बाहर नहीं आना चाहिए इसलिए उसने मेनका और कुसुम से वादा ले लिया की वे ये बात अजीत और विभोर को भी नही बताए जो बिल्कुल सही है
 

Sanju@

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अध्याय - 163
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आख़िर मेरी बातों से चाची के चेहरे पर से दुख के भाव मिटे और फिर वो मुस्कुराते हुए पलंग से नीचे उतर आईं। कुसुम मुझे भाव विभोर सी देखे जा रही थी। उसकी आंखें भरी हुई थी। ख़ैर कुछ ही पलों में हम तीनों कमरे से बाहर आ गए। चाची और कुसुम अपने अपने काम में लग गईं जबकि मैं खुशी मन से ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ता चला गया।


अब आगे....


अगले दिन दोपहर को विभोर और अजीत हवेली आ गए। पिता जी ने उन्हें शहर से ले आने के लिए शेरा के साथ अमर मामा को भेजा था। दोनों जब हवेली पहुंचे तो मां और पिता जी ने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया। जाने क्या सोच कर पिता जी की आंखें नम हो गईं। उनसे मिलने के बाद वो अपनी मां से मिले। चाची की आंखों में आंसुओं का समंदर मानों हिलोरें ले रहा था। बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को सम्हाला और दोनों को खुद से छुपका लिया। कुसुम, विभोर से उमर में दस महीने छोटी थी जबकि अजीत से वो साल भर बड़ी थी। विभोर ने उसके चेहरे को प्यार और स्नेह से सहलाया और अजीत ने उसके पांव छुए। सब उन्हें देख कर बड़ा खुश थे।

विदेश की आबो हवा में रहने से दोनों अलग ही नज़र आ रहे थे। दोनों जब मेरा पांव छूने के लिए झुके तो मैंने बीच में ही रोक कर उन्हें अपने सीने से लगा लिया। ये देख मेनका चाची की आंखों से आंसू कतरा छलक ही पड़ा। साफ दिख रहा था कि वो अपने अंदर मचल रहे गुबार को बहुत मुश्किल से रोके हुए हैं। मैंने अपने दोनों छोटे भाइयों को खुद से अलग किया और फिर हाल चाल पूछ कर आराम करने को कहा।

दोपहर को खाना पीना करने के बाद मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था कि तभी मेनका चाची कमरे में आ गईं। मैं उन्हें देख उठ कर बैठ गया।

"क्या बात है चाची?" मैंने उनसे पूछा____"मुझसे कोई काम था क्या?"

"नहीं ऐसी बात नहीं है वैभव।" चाची ने कहा____"मैं यहां तुमसे ये कहने आई हूं कि अभी थोड़ी देर में सरला (हवेली की नौकरानी) यहां आएगी। वो तुम्हारे पूरे बदन की मालिश करेगी इस लिए तुम अपने कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ मालिश करवाने के लिए।"

"पर मालिश करने की क्या ज़रूरत है चाची?" मैंने उनसे पूछा।

"अरे! ज़रूरत क्यों नहीं है?" चाची ने मेरे पास आ कर कहा____"मेरे सबसे अच्छे बेटे का विवाह होने वाला है। उसकी सेहत का हर तरह से ख़याल रखना ज़रूरी है। अब तुम ज़्यादा कुछ मत सोचो और अपने सारे कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ। मैं तो खुद ही तुम्हारी मालिश करना चाहती थी लेकिन दीदी ही नहीं मानी। कहने लगीं कि मालिश का काम नौकरानी कर देगी और मुझे उनके कामों में मेरी सहायता चाहिए।"

"हां तो ग़लत क्या कहा उन्होंने?" मैंने कहा____"आपके बिना हवेली में ढंग से कोई काम हो भी नहीं सकेगा और ये बात वो भी जानती हैं। तभी तो वो आपको ऐसा कह रहीं थी। ख़ैर ये सब छोड़िए और ये बताइए कि विभोर और अजीत से उनका हाल चाल पूछा आपने?"

"अभी तो वो दोनों सो रहे हैं।" चाची ने अधीरता से कहा____"शायद लंबे सफ़र के चलते थके हुए थे। शाम को जब उठेंगे तो पूछूंगी। वैसे सच कहूं तो उन्हें देख कर मन में सिर्फ एक ही ख़याल आता है कि उन दोनों से कैसे पूरे मन से बात कर सकूंगी? बार बार मन में वही सब उभर आता है और हृदय दुख से भर जाता है।"

"आपको अपनी भावनाओं को काबू में रखना होगा चाची।" मैंने कहा____"उन्हें आपके चेहरे पर ऐसे भाव नहीं दिखने चाहिए जिससे उन्हें ये लगे कि आप अंदर से दुखी हैं। ऐसे में आप भी जानती हैं कि वो भी दुखी हो जाएंगे और आपसे आपके दुख का कारण पूछने लगेंगे जोकि आप हर्गिज़ नहीं बता सकतीं हैं।"

"अभी तक उन्हें देखने को बहुत मन करता था वैभव।" चाची ने दुखी हो कर कहा____"लेकिन अब जब वो आंखों के सामने आ गए हैं तो उनसे मिलने से घबराने लगी हूं। समझ में नहीं आता कि कैसे दोनों के सामने खुद को सामान्य रख पाऊंगी मैं?"

"मैं आपके अंदर का हाल समझता हूं चाची।" मैंने कहा____"लेकिन ये भी सच है कि आपको उनसे मिलना तो पड़ेगा ही। आख़िर वो आपके बेटे हैं। माता पिता तो हर हाल में अपने बच्चों को खुश ही रखते हैं तो आपको भी उनसे खुशी से मिलना होगा और उन्हें अपना प्यार व स्नेह देना होगा।"

मेरी बात सुन कर चाची कुछ कहने ही वाली थीं कि तभी कमरे के बाहर से किसी के आने की पदचाप सुनाई पड़ी।

"लगता है सरला आ गई है।" चाची ने कहा____"तुम उससे अच्छे से मालिश करवाओ। मैं अब जा रही हूं, बाकी चिंता मत करो। किसी न किसी तरह मैं खुद को सम्हाल ही लूंगी।"

इतना कह कर मेनका चाची पलट कर कमरे से निकल गईं। उनके जाते ही कमरे में सरला दाख़िल हुई। उसके एक हाथ में मोटी सी चादर थी और दूसरे में एक कटोरी जिसमें तेल भरा हुआ था। सरला तीस साल की एक शादी शुदा औरत थी। रंग गेहुंआ था और जिस्म गठीला। उसे देखते ही मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। दो ही पलों में मेरी आंखों ने उसके समूचे बदन का मुआयना कर लिया। पहले वाला वैभव पूरी तरह से अभी ख़त्म नहीं हुआ था।

"छोटे कुंवर।" तभी सरला ने कहा____"मालकिन ने मुझे आपकी मालिश करने भेजा है। आप अपने कपड़े उतार लीजिए।"

"क्या सारे कपड़े उतारने पड़ेंगे मुझे?" मैंने उसे देखते हुए पूछा तो उसने कहा____"जी छोटे कुंवर। मालकिन ने कहा है कि आपके पूरे बदन की मालिश करनी है।"

"पूरे बदन की?" मैंने थोड़ी उलझन में उसकी तरफ देखा____"मतलब क्या मुझे अपना कच्छा भी उतारना पड़ेगा?"

सरला मेरी इस बात से थोड़ा शरमा गई। नज़रें चुराते हुए हुए बोली____"हाय राम! ये आप क्या कह रहे हैं छोटे कुंवर?"

"अरे! मैं तो तुम्हारी बात सुनने के बाद ही पूछ रहा हूं तुमसे।" मैंने कहा____"तुमने कहा कि पूरे बदन की मालिश करनी है। इसका तो यही मतलब हुआ कि मुझे अपने बाकी कपड़ों के साथ साथ अपना कच्छा भी उतार देना होगा। तभी तो पूरे बदन की मालिश होगी। भला उस जगह को क्यों छोड़ दोगी तुम?"

मेरी बात सुन कर सरला का चेहरा शर्म से लाल हो गया। मंद मंद मुस्कुराते हुए उसने बड़ी मुश्किल से कहा____"अगर आप कहेंगे तो मैं हर जगह की मालिश कर दूंगी।"

"अच्छा क्या सच में?" मैंने हैरानी से उसे देखा।

"आप अपने कपड़े उतार लीजिए।" उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा और कमरे के फर्श पर हाथ में ली हुई मोटी चादर को बिछाने लगी।

मैं कुछ पलों तक उलझन में पड़ा उसे देखता रहा फिर अपने कपड़े उतारने लगा। जल्दी ही मैंने अपने कपड़े उतार दिए। अब मैं सिर्फ कच्छे में था। ठंड का मौसम था इस लिए थोड़ी थोड़ी ठंड लगने लगी थी मुझे। सरला ने कनखियों से मेरी तरफ देखा और फिर अपनी साड़ी के पल्लू को निकाल कर उसे कमर में खोंसने लगी।

"अब आप यहां पर लेट जाइए छोटे कुंवर।" उसने पलंग से एक तकिया ले कर उसको चादर के सिरहाने पर रखते हुए कहा____"अ...और ये क्या आपने अपना कच्छा नहीं उतारा? क्या आपको अपने बदन के हर हिस्से की मालिश नहीं करवानी है?"

"मुझे कोई समस्या नहीं है।" मैंने कहा____"वो तो मैंने इस लिए नहीं उतारा क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम्हें असहज महसूस हो।"

"कहते तो आप ठीक हैं।" उसने कहा____"लेकिन मैं आपकी अच्छे से मालिश करूंगी। आख़िर आपका विवाह होने वाला है। खुशी के ऐसे अवसर पर आपको पूरी तरह से हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी ही है।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"क्या तुम ये सोचती हो कि मैं अभी हष्ट पुष्ट नहीं हूं?"

"अरे! ये क्या बातें कर रहा है भांजे?" अमर मामा कमरे में आते ही बोले____"जब ये कह रही है कि हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी है तो तुझे मान लेना चाहिए।"

"मामा आप यहां?" मैं मामा को देखते ही चौंक पड़ा।

"तुझे ढूंढ रहा था।" मामा ने कहा____"दीदी ने बताया कि तू अपने कमरे में मालिश करवा रहा है तो यहीं चला आया। मैं भी देखना चाहता था कि मेरा भांजा किस तरीके से अपनी मालिश करवाता है?"

सरला, मामा के आ जाने से और उनकी बातों से बहुत ज़्यादा असहज हो गई।

"तो देख लिया आपने?" मैंने पूछा____"या अभी और देखना है?"

"हां देख लिया और समझ भी लिया।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा_____"अब अगर मैं देखने बैठ जाऊंगा तो तू अच्छे से मालिश नहीं करवा सकेगा इस लिए चलता हूं मैं।" कहने के साथ ही मामा सरला से बोले____"और तुम, मेरे भांजे की अच्छे से मालिश करना। किसी भी तरह की कसर बाकी मत रखना, समझ गई न तुम?"

सरला ने शर्माते हुए हां में सिर हिलाया। उधर मामा ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा____"और तू भी ज़्यादा नाटक मत करना, समझ गया ना?"

उनकी बात पर मैं मुस्कुरा उठा। वो जब चले गए तो सरला ने मानों राहत की सांस ली। उसके बाद उसने कमरे की खिड़की खोली और जा कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। ये देख मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि कहीं ये सच में तो मुझे पूरा नंगा नहीं करने वाली है?

मैं उसी को देखे जा रहा था। उसने अपनी साड़ी को निकाल कर एक तरफ रखा और फिर पेटीकोट को अपने घुटनों तक उठा कर बाकी का हिस्सा कमर में खोंस लिया। ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी छातियां मानों ब्लाउज फाड़ने को तैयार थीं। उसका गदराया हुआ बदन मेरे अंदर तूफ़ान सा पैदा करने लगा।

"ऐसे मत देखिए छोटे कुंवर मुझे शर्म आ रही है?" सहसा सरला की आवाज़ से मैं चौंका____"ऐसे में कैसे मैं आपकी अच्छे से मालिश कर पाऊंगी?"

"तुम ऐसे हाल में मालिश करोगी मेरी?" मैंने उसे देखते हुए पूछा।

"और नहीं तो क्या?" उसने कहा____"साड़ी पहने पहने मालिश करूंगी तो ठीक से नहीं कर पाऊंगी और मेरी साड़ी में तेल भी लग जाएगा।"

बात तो उसने उचित ही कही थी इस लिए मैंने ज़्यादा कुछ न कहा किंतु ये ज़रूर सोचने लगा कि क्या सच में सरला मेरे पूरे बदन की मालिश करेगी?

बहरहाल सरला ने कटोरी को उठाया और मेरे पैरों के पास बगल से बैठ गई। वो अब मेरे इतना पास थी कि मेरी निगाह एक ही पल में ब्लाउज से झांकती उसकी छातियों पर जम गईं। सच में काफी बड़ी और ठोस नज़र आ रहीं थी उसकी छातियां। मेरे पूरे बदन में सनसनी सी दौड़ने लगी। धड़कनें तो पहले ही तेज़ तेज़ चल रहीं थी। मैंने फ़ौरन ही उससे नज़र हटा ली और खुद पर नियंत्रण रखने के लिए आंखें बंद कर ली।

पहले तो सरला आराम से ही तेल लगा रही थी किंतु जल्दी ही उसने ज़ोर लगा कर मालिश करना शुरू कर दिया। मुझे अच्छा तो लग ही रहा था किंतु मज़ा भी आ रहा था। तेल से चिपचिपी हथेलियां जब मेरी जांघों के अंतिम छोर तक आती तो मेरे अंडकोशों में झनझनाहट होने लगती। पूरे बदन में मज़े की लहर दौड़ जाती।

"कैसा लग रहा है छोटे कुंवर?" सहसा उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैंने आंखें खोल कर उसे देखा।

उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। वो घुटनों के बल झुकी सी थी जिससे मेरी नज़र जल्द ही उसके ब्लाउज से आधे से ज़्यादा झांकती छातियों पर जा कर जम गई। वो ज़ोर लगा कर नीचे से ऊपर आती तो उसकी छातियों में लहर सी पैदा हो जाती। फ़ौरन ही वो ताड़ गई कि मैं उसकी छातियां देख रहा हूं। उसे शर्म तो आई लेकिन उसने न तो कुछ कहा और ना ही अपनी छातियों को छुपाने का उपक्रम किया। बल्कि वो उसी तरह मालिश करते हुए मुझे देखती रही।

"क्या हुआ कुंवर जी?" जब मैं बिना कोई जवाब दिए उसकी छातियों को ही देखता रहा तो उसने फिर कहा____"आपने जवाब नहीं दिया?"

"ओह! हां तुमने कुछ कहा क्या?" मैं एकदम से हड़बड़ा सा गया तो इस बार वो खिलखिला कर हंस पड़ी। उसके हंसने पर मैं थोड़ा झेंप गया।

"मैं आपसे पूछ रही थी कि मेरे मालिश करने से आपको कैसा लग रहा है?" फिर उसने कहा।

"अच्छा लग रहा है।" मैंने कहा____"बस ऐसे ही करती रहो।"

वो मुस्कुराई और पलट कर कटोरी को उठा लिया। कटोरी से ढेर सारा तेल उसने मेरी जांघ पर डाला और उसे अपनी हथेली से फैला कर फिर से मालिश करने लगी। सहसा मेरी नज़र मेरे कच्छे पर पड़ी तो मैं चौंक गया। मेरा लंड अपने पूरे अवतार में खड़ा था और कच्छे को तंबू बनाए हुए था। ज़ाहिर है सरला भी ये देख चुकी होगी। मुझे बड़ा अजीब लगा और थोड़ी शर्मिंदगी भी हुई।

"क्या अब मैं उल्टा लेट जाऊं?" मैंने अपने लंड के उठान को छुपाने के लिए उससे पूछा।

"अभी नहीं छोटे कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"अभी तो पैरों के बाद आपके पेट और सीने की मालिश करूंगी मैं। उसके बाद ही आपको उल्टा लेटना होगा।"

"ठीक है जल्दी करो फिर।" मैं अब असहज सा महसूस करने लगा था। अभी तक मुझे अपने लंड का ख़याल ही नहीं रहा था। वो साला बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैंने देखा सरला बार बार मेरे लंड को घूरने लगती थी।

आख़िर कुछ देर में जब पैरों की मालिश हो गई तो वो तेल ले कर ऊपर की तरफ आई। ना चाहते हुए भी मेरी निगाह उस पर ठहर गई। दिल की धड़कनें और भी तेज़ हो गई। उसका पेट कमर नाभि सब साफ दिख रही थी मुझे।

"आपके मामा जी कह गए हैं कि मैं आपकी मालिश करने में कोई कसर बाकी ना रखूं।" फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा____"इस लिए अब मैं वैसी ही मालिश करूंगी और हां आप भी विरोध मत कीजिएगा।"

"कैसी मालिश करेगी तुम?" मैंने आशंकित भाव से उसे देखा।

"बस देखते जाइए।" उसने गहरी मुस्कान से कहा____"आप भी क्या याद करेंगे कि सरला ने कितनी ज़बरदस्त मालिश की थी आपकी।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" मैंने उत्सुकता से कहा____"मैं भी तो देखूं तुम आज कैसे मालिश करती हो मेरी।"

"ठीक है।" सरला के चेहरे पर एकाएक चमक उभर आई____"लेकिन आपको भी मेरी एक बात माननी होगी। मैं जो भी करूं आप करने देंगे और सिर्फ मालिश का आनंद लेंगे।"

"ठीक है।" मैं मुस्कुराया____"मैं तुम्हें किसी बात के लिए नहीं रोकूंगा।"

सरला मेरी बात सुन कर खुश हो गई। उसने कटोरी से मेरे सीने पर तेल डाला और उसे हथेली से फैलाने लगी। जल्दी ही वो मेरे पूरे सीने और पेट पर तेल फैला कर मालिश करने लगी। मैं बस उसको देखता रहा। मैंने पहली बार गौर किया कि वो नौकरानी ज़रूर थी लेकिन बदन से क़हर ढा रही थी। तभी मैं चौंका। वो मेरे कच्छे को पकड़ कर नीचे खिसकाने लगी।

"ये क्या कर रही हो?" मैंने झट से उसे रोका।

"आपने तो कहा था कि आप मुझे नहीं रोकेंगे?" उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____फिर अब क्यों रोक रहे हैं? देखिए, कच्छा नहीं उतारूंगी तो तेल लग जाएगा इसमें और वैसे भी पूरे बदन की मालिश करनी है ना तो इसे उतारना ही पड़ेगा।"

मेरे ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि कहीं आज ये मेरा ईमान न डगमगा दे। मुझसे ऐसी ग़लती न करवा दे जो न करने का मैंने भाभी को वचन दिया था। फिर सहसा मुझे ख़याल आया कि ये तो मेरे ऊपर निर्भर करता है कि मैं खुद पर काबू रख सकता हूं या नहीं।

मेरी इजाज़त मिलते ही सरला ने खुशी से मेरा कच्छा उतार कर मेरी टांगों से अलग कर दिया। कच्छे के उतरते ही मेरा लंड उछल कर छत की तरफ तन गया।

"हाय राम! ये....ये इतना बड़ा क्या है।" सरला की मानों चीख निकल गई।

"तुम तो ऐसे चीख उठी हो जैसे ये तुम्हारे अंदर ही घुस गया हो।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

"हाय राम! छोटे कुंवर ये क्या कह रहे हैं?" सरला एकदम से चौंकी____"ना जी ना। ये मेरे अंदर घुस गया तो मैं तो जीवित ही ना बचूंगी।"

"फ़िक्र मत करो।" मैंने कहा____"ये तुम्हारे अंदर वैसे भी नहीं घुसेगा। अब चलो मालिश शुरू करो। मैं भी तो देखूं कि तुम कैसी मालिश करती हो आज।"

सरला आश्चर्य से अभी भी मेरे लंड को ही घूरे जा रही थी। फिर जैसे उसे होश आया तो उसके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई। उधर मेरा लंड बार बार ठुमक रहा था। मेरी शर्म और झिझक अब ख़त्म हो चुकी थी।

"अब तो मैं पक्का आपकी वैसी ही मालिश करूंगी छोटे कुंवर।" फिर उसने खुशी से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"जैसा मैं कह रही थी। अब बस आप मेरा कमाल देखिए।"

कहने के साथ ही सरला अपना ब्लाउज खोलने लगी। ये देख मैं चौंका लेकिन मैंने उसे रोका नहीं। अब मैं भी देखना चाहता था कि वो क्या करने वाली है। जल्दी ही उसने अपने बदन से ब्लाउज निकाल कर एक तरफ रख दिया। उसकी छातियां सच में बड़ी और ठोस थीं। कुंवारी लड़की की तरह तनी हुईं थी। मेरा ईमान फिर से डोलने लगा। पूरे जिस्म में झुरझुरी होने लगी। उधर ब्लाउज एक तरफ रखने के बाद वो खड़ी हुई और अपना पेटीकोट खोलने लगी।

मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं क्या वो मुझसे चुदने का सोच ली‌‌ है? नहीं नहीं, ऐसा मैं कभी नहीं होने दे सकता।

"ये क्या कर रही हो तुम?" मैंने उसे रोका____"अपने कपड़े क्यों उतार रही हो तुम?"

"फ़िक्र मत कीजिए कुंवर।" उसने कहा____"मैं आपके साथ वो नहीं करूंगी और कपड़े इस लिए उतार रही हूं ताकि मालिश करते समय मेरे इन कपड़ों पर तेल न लग जाए।"

मैंने राहत की सांस ली लेकिन अब ये सोचने लगा कि क्या ये नंगी हो कर मेरी मालिश करेगी? सरला ने पेटीकोट उतार कर उसे भी एक तरफ रख दिया। पेटीकोट के अंदर उसने कुछ नहीं पहना था। मोटी मोटी जांघों के बीच बालों से भरी उसकी चूत पर मेरी नज़र पड़ी तो एक बार फिर से मेरे पूरे जिस्म में सनसनी फ़ैल गई।

उधर जैसे ही सरला को एहसास हुआ कि मैं उसे देख रहा हूं तो उसने जल्दी से अपनी योनि छुपा ली। उसके चहरे पर शर्म की लाली उभर आई लेकिन हैरानी की बात थी कि वो इसके बाद भी पूरी नंगी हो गई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर अब ये क्या करने वाली है?

"छोटे कुंवर, अपनी आंखें बंद कर लीजिए ना।" सरला ने कहा____"आप मुझे इस तरह देखेंगे तो मुझे बहुत शर्म आएगी और मैं पूरे मन से आपकी मालिश नहीं कर पाऊंगी।"

मुझे भी लगा कि यही ठीक रहेगा। मैं भी उसे नहीं देखना चाहता था क्योंकि इस हालत में देखने से मेरा अपना बुरा हाल होने लगा था। मैंने आंखें बंद कर ली तो वो मेरे क़रीब आई। कुछ देर तक पता नहीं वो क्या करती रही लेकिन फिर अचानक ही मुझे अपने ऊपर कुछ महसूस हुआ। वो तेल था जो मेरे सीने से होते हुए पेट पर आया और फिर उसकी धार मेरे लंड पर पड़ने लगी। मेरे पूरे जिस्म में आनंद की लहर दौड़ पड़ी। थोड़ी ही देर में सरला के हाथ उस तेल को मेरे पूरे बदन में फैलाने लगे।

मैं उस वक्त चौंक उठा जब सरला के हाथों ने मेरे लंड को पकड़ लिया। सरला के चिपचिपे हाथ मेरे लंड को हौले हौले सहलाते हुए उस पर तेल मलने लगे। आज काफी समय बाद किसी औरत का हाथ मेरे लंड पर पहुंचा था। आनंद की तरंगें पूरे बदन में दौड़ने लगीं थी। मैं सरला को रोकना चाहता था लेकिन मज़ा भी आ रहा था इस लिए रोक नहीं रहा था। उधर सरला बड़े आराम से मेरे लंड को तेल से भिंगो कर उसकी मालिश करने लगी थी। पहले तो वो एक हाथ से कर रही थी लेकिन अब दोनों हाथों से जैसे उसे मसलने लगी थी। मेरा लंड बुरी तरह अकड़ गया था।

"ये...ये क्या कर रही हो तुम?" आनंद से अपनी पलकें बंद किए मैंने उससे कहा।

"चुपचाप लेटे रहिए कुंवर।" सरला ने भारी आवाज़ में कहा____"ये तो अभी शुरुआत है। आगे आगे देखिए क्या होता है। आप बस मालिश का आनंद लीजिए।"

सरला की बातों से मेरे पूरे बदन में झुरझुरी हुई। उसकी आवाज़ से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसकी सांसें भारी हो चलीं थी। कुछ देर तक वो इसी तरह मेरे लंड को तेल लगा लगा कर मसलती रही फिर एकदम से उसके हाथ हट गए। मैंने राहत की सांस ली। एकाएक मैं ये महसूस कर के चौंका कि मेरी दोनों जांघों पर कोई बहुत ही मुलायम चीज़ रख गई है। मैंने उत्सुकता के चलते आंखें खोल कर देखा तो हैरान रह गया।

सरला पूरी तरह नंगी थी। मेरी तरफ मुंह कर के वो मेरी जांघों पर बैठ गई थी। उसके दोनों पैर अलग अलग तरफ फ़ैल से गए थे। जांघों के बीच बालों से भरी चूत भी फैल गई थी जिससे उसके अंदर का गुलाबी हिस्सा थोड़ा थोड़ा नज़र आने लगा था। तभी सरला ने कटोरा उठाया। उसका ध्यान मेरी तरफ नहीं था। कटोरे में भरे तेल को उसने अपने सीने पर उड़ेलना शुरू कर दिया। कटोरे का तेल बड़ी तेज़ी से उसकी छातियों को भिगोता हुआ नीचे तरफ आया। कुछ नीचे मेरे लंड पर गिरा। सरला थोड़ा सा आगे सरक आई जिससे तेल मेरे पेट पर गिरने लगा।

सरला ने कटोरा एक तरफ रखा और फिर जल्दी जल्दी तेल को अपनी छातियों पर और पेट पर मलने लगी। उसके बाद वो आहिस्ता से मेरे ऊपर झुकने लगी। मैं उसकी इस क्रिया को चकित भाव देखे जा रहा था। कुछ ही पलों में वो मेरे ऊपर लेट सी गई। उसकी छातियां मेरे सीने में धंस गई। उसकी नाभि के नीचे मेरा लंड दब गया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ गई।

"ये क्या कर रही हो?" मैं भौचक्का सा बोल पड़ा तो उसने मेरी तरफ देखा।

हम दोनों की नज़रें मिलीं। वो मुस्कुरा उठी। अपने दोनों हाथ मेरे आजू बाजू जमा कर वो अपने बदन को मेरे बदन पर रगड़ने लगी। उसकी बड़ी बड़ी और ठोस छातियां मेरे जिस्म में रगड़ खाते हुए नीचे की तरफ जा कर मेरे लंड पर ठहर गईं। मेरा लंड उसकी दोनों छातियों के बीच फंस गया। सरला से मुझे ऐसे करतब की उम्मीद नहीं थी। तभी वो मेरे चेहरे की तरफ सरकने लगी। मेरा लंड उसकी छातियों का दबाव सहते हुए उसके पेट की तरफ जाने लगा। इधर उसकी छातियां मेरे सीने पर आईं उधर मेरा लंड उसकी नाभि के नीचे पहुंच कर उसकी चूत के बालों पर जा टकराया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ रहीं थी।

"कैसा लग रहा है कुंवर।" सरला मेरे चेहरे के एकदम पास आ कर मानों नशे में बोली____"आपको अच्छा तो लग रहा है ना?"

"तुम अच्छे की बात करती हो।" मैं मज़े के तरंग में बोला____"मुझे तो अत्यधिक मज़ा आ रहा है सरला। मुझे नहीं पता था कि तुम्हें ये कला भी आती है। कहां से सीखा है ये?"

"कहीं से नहीं सीखा कुंवर।" उसने कहा____"ये तो अचानक ही सूझ गया था मुझे।"

"यकीन नहीं होता।" मैंने कहा____"ख़ैर बहुत मज़ा आ रहा है। ऐसे ही करती रहो।"

सरला का चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल क़रीब था। उसके गुलाबी होंठ मेरे एकदम पास ही थे। मेरा जी तो किया कि लपक लूं लेकिन फिर मैंने इरादा बदल दिया। मैं अपने से कुछ भी नहीं करना चाहता था।

"खुद को मत रोकिए छोटे कुंवर।" सरला मेरी मंशा समझ कर बोल पड़ी____"आज इस मालिश का भरपूर आनंद लीजिए। मुझ पर भरोसा रखिए, मैं आपको बिल्कुल भी निराश नहीं करूंगी।"

"पर तुम्हें मुझसे निराश होना पड़ेगा।" मैंने दृढ़ता से कहा____"तुम जिस चीज़ के बारे में सोच रही हो वो नहीं हो सकेगा। मैं तुम्हें इतना करने दे रहा हूं यही बहुत बड़ी बात है।"

"ठीक है जैसी आपकी मर्ज़ी।" कहने के साथ ही सरला फिर से नीचे को सरकने लगी।

मेरा बुरा हाल होने लगा था। जी कर रहा था कि एक झटके से उठ जाऊं और सरला को नीचे पटक कर उसको बुरी तरह चोदना शुरू कर दूं। अपनी इस भावना को मैंने बड़ी बेदर्दी से कुचला और आंखें बंद कर ली। उधर सरला नीचे पहुंच कर मेरे लंड को अपनी दोनों छातियों के बीच फंसाया और फिर दोनों तरफ से अपनी छातियों का दबाद देते हुए मानों मुट्ठ मारने लगी। मेरे जिस्म में और भी ज़्यादा मज़े की तरंगें उठने लगीं।

कुछ देर तक सरला अपनी छातियों से मेरे लंड को मसलती रही उसके बाद वो फिर से ऊपर सरकने लगी। उसकी ठोस छातियां मेरे जिस्म से रगड़ खाते हुए ऊपर की तरफ आने लगीं। तेल लगा होने से बड़ा अजीब सा मज़ा आ रहा था।

तभी मैं चौंका। सरला की छातियां मेरे सीने से उठ कर अचानक मेरे चेहरे से टकराईं। तेल की चिपचिपाहट मेरे चेहरे पर लग गई और तेल की गंध मेरे नथुनों में समा गई। मैंने फ़ौरन अपनी आंखें खोली। सरला एकदम से मेरे ऊपर ही सवार नज़र आई। उसकी तेल में नहाई बड़ी बड़ी छातियां मेरे चेहरे को छू रहीं थी। सरला की ये हिम्मत देख मुझे हैरानी भी हुई और थोड़ा गुस्सा भी आया। यकीनन वो मुझे उकसा रही थी। यानि वो चाहती थी कि मैं अपना आपा खो दूं और फिर वही कर बैठूं जो मैं किसी भी कीमत पर नहीं करना चाहता था। मैंने अब तक सरला के जिस्म के नाज़ुक अंगों को हाथ तक नहीं लगाया था जबकि में अंदर का हाल तो अब ऐसा था कि उसको बुरी तरह रौंद डालने के लिए मन कर रहा था मेरा। मेरे हाथ उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को आटे की तरह गूंथ डालने को मचल रहे थे मगर मैं बेतहाशा सब्र किए हुए था। ये अलग बात है कि अपने अंदर मज़े की लहर को रोकना मेरे बस में नहीं था।

"कितनी भी कोशिश कर लो तुम।" मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा____"ठाकुर वैभव सिंह को मज़बूर नहीं कर पाओगी तुम। बेहतर होगा कि तुम सिर्फ अपने काम पर ध्यान दो।"

"क्या आप मुझे चुनौती दे रहे हैं कुंवर?" सरला ने भी मेरी आंखों में देखा____"इसका मतलब आप चाहते हैं कि मैं ऐसी कोशिश करती रहूं?"

"तुम अपनी सोच के अनुसार कुछ भी मतलब निकाल सकती हो।" मैं हल्के से मुस्कुराया____"बाकी मेरे कहने का मतलब ये नहीं है कि तुम कोई कोशिश करो। तुम मेरी मालिश करने आई हो तो सिर्फ वही करो। मुझसे चुदने का ख़याल ज़हन से निकाल दो क्योंकि वो मैं नहीं करूंगा और ना ही करने दूंगा। मैंने अपनी होने वाली बीवी को बहुत पहले वचन दिया था कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतरूंगा। ऐसा कोई काम नहीं करूंगा जिसके लिए मैं अब तक बदनाम रहा हूं।"

"वाह! कुंवर जी।" सरला मुस्कुराई____"आपकी ये बात सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इस स्थिति में भी आप खुद को रोके हुए हैं और आपको अपने वचन का ख़याल है। ये बहुत बड़ी बात है। मैं भी आपको अब मजबूर नहीं करूंगी बल्कि आपके वचन का सम्मान करते हुए सिर्फ आपकी मालिश करूंगी। अब मैं उन सबको बताऊंगी कि आप बदल गए हैं और एक अच्छे इंसान बन गए हैं जो कहती थीं कि आप इन मामलों में बहुत बदनाम हैं।"

"तुम्हें ये सब किसी से कहने की ज़रूरत नहीं है सरला।" मैंने कहा____"तुम बस अपना काम करो और खुशी खुशी जाओ यहां से।"

"ठीक है कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"वैसे आपसे एक विनती है।"

"कैसी विनती?"

"मेरे मालिश के चलते आपका ये मूसल।" उसने मेरे खड़े हुए लंड को देखते हुए कहा____"पूरी तरह से संभोग के लिए तैयार हो चुका है। इसके अंदर की आग को बाहर निकालना ज़रूरी है। क्या मैं आपको शांत कर दूं?"

"कैसे शांत करोगी?" मैंने पूछा।

"हाथ से ही करूंगी और कैसे?" वो हल्के से हंसी।

"ठीक है।" मैंने कहा____"तुम अपनी ये इच्छा पूरी कर सकती हो।"

सरला खुश हो गई। वो मेरे ऊपर से उठी और नंगी ही मेरे लंड के पास बैठ गई। तेल तो पहले से ही लगा हुआ था इस लिए वो लंड को पकड़ कर मुठियाने लगी।

"वैसे आपकी होने वाली दोनों पत्नियां बहुत भाग्यशाली हैं छोटे कुंवर।" फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"उनके नसीब में इतना बड़ा औजार जो मिलने वाला है। मुझे पूरा यकीन है कि इस मामले में वो हमेशा खुश रहेंगी।"

उसकी इस बात से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हुआ। पलक झपकते ही मेरी आंखों के सामने रूपा और रागिनी भाभी का चेहरा चमक उठा। रूपा से तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन रागिनी भाभी का सोच कर ही जिस्म में अजीब सा एहसास होने लगा।

"क्या मैं इसे चूम लूं कुंवर?" सरला की आवाज़ से मैं चौंका।

"ठीक है जो तुम्हें ठीक लगे कर लो।" मैंने कहा____"लेकिन जल्दी करो। मुझे बाहर भी जाना है।"

सरला फ़ौरन ही अपने काम में लग गई। वो कभी मुट्ठ मारती तो कभी झुक कर मेरे लंड को चूम लेती। फिर एकाएक ही उसने मेरे लंड को मुंह में भर लिया। उसके गरम मुख का जैसे ही एहसास हुआ तो मजे से मेरी आंखें बंद हो गईं। दोनों हाथों से लंड पकड़े वो उसे चूसे जा रही थी। मैं हैरान भी था उसकी इस हरकत से लेकिन मज़े में बोला कुछ नहीं।

मेरा बहुत मन कर रहा था कि सरला के सिर को थाम लूं और कमर उठा उठा कर उसके मुंह को ही चोदना शुरू कर दूं लेकिन मैंने अपनी इस इच्छा को बड़ी मुश्किल से रोका। हालाकि मज़े के चलते मेरी कमर खुद ही उठ जा रही थी। सरला कभी मेरे अंडकोशों को सहलाती तो कभी मुट्ठी मारते हुए लंड चूसने लगती। मेरा मज़े में बुरा हाल हुआ जा रहा था। अपनी इच्छाओं को दबा के रखना बड़ा ही मुश्किल होता जा रहा था। सरला किसी कुशल खिलाड़ी की तरह मेरा लंड चूसने में लगी हुई थी।

आख़िर दस मिनट बाद मुझे लगने लगा कि मेरी नशों में दौड़ता लहू बड़ी तेज़ी से मेरे अंडकोशों की तरफ भागता हुआ जा रहा है। सरला को भी शायद एहसास हो गया था। वो और तेज़ी से मुठ मारनी लगी।

"आह!" मेरे मुंह से मज़े में डूबी आह निकली और मुझे झटके लगने लगे।

सरला ने लपक कर मेरे लंड को मुंह में भर लिया और मेरा वीर्य पीने लगी। आनंद की चरम सीमा में पहुंचने के बाद मैं एकदम शांत पड़ गया। उधर सरला सारा वीर्य गटकने के बाद अब मेरे लंड को चाट रही थी। बड़ी की कौमुक और चुदक्कड़ औरत थी शायद।




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रागिनी रूपा और वैभव के सुहागरात के सीन की तैयारी शुरू हो गई है बेचारे वैभव के अरमान बहुत दिन से सोएं हुए थे कभी रूपा के साथ कभी रागिनी के साथ सुहागरात के सपने देख रहा था लेकिन उससे पहले सरला ने आकर जगा दिए ""वैभव के अरमान हिला हिला के सरला ने अपने मुंह में बहा लिए""😆😆😆😆
 
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Ajju Landwalia

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अध्याय - 163
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आख़िर मेरी बातों से चाची के चेहरे पर से दुख के भाव मिटे और फिर वो मुस्कुराते हुए पलंग से नीचे उतर आईं। कुसुम मुझे भाव विभोर सी देखे जा रही थी। उसकी आंखें भरी हुई थी। ख़ैर कुछ ही पलों में हम तीनों कमरे से बाहर आ गए। चाची और कुसुम अपने अपने काम में लग गईं जबकि मैं खुशी मन से ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ता चला गया।


अब आगे....


अगले दिन दोपहर को विभोर और अजीत हवेली आ गए। पिता जी ने उन्हें शहर से ले आने के लिए शेरा के साथ अमर मामा को भेजा था। दोनों जब हवेली पहुंचे तो मां और पिता जी ने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया। जाने क्या सोच कर पिता जी की आंखें नम हो गईं। उनसे मिलने के बाद वो अपनी मां से मिले। चाची की आंखों में आंसुओं का समंदर मानों हिलोरें ले रहा था। बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को सम्हाला और दोनों को खुद से छुपका लिया। कुसुम, विभोर से उमर में दस महीने छोटी थी जबकि अजीत से वो साल भर बड़ी थी। विभोर ने उसके चेहरे को प्यार और स्नेह से सहलाया और अजीत ने उसके पांव छुए। सब उन्हें देख कर बड़ा खुश थे।

विदेश की आबो हवा में रहने से दोनों अलग ही नज़र आ रहे थे। दोनों जब मेरा पांव छूने के लिए झुके तो मैंने बीच में ही रोक कर उन्हें अपने सीने से लगा लिया। ये देख मेनका चाची की आंखों से आंसू कतरा छलक ही पड़ा। साफ दिख रहा था कि वो अपने अंदर मचल रहे गुबार को बहुत मुश्किल से रोके हुए हैं। मैंने अपने दोनों छोटे भाइयों को खुद से अलग किया और फिर हाल चाल पूछ कर आराम करने को कहा।

दोपहर को खाना पीना करने के बाद मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था कि तभी मेनका चाची कमरे में आ गईं। मैं उन्हें देख उठ कर बैठ गया।

"क्या बात है चाची?" मैंने उनसे पूछा____"मुझसे कोई काम था क्या?"

"नहीं ऐसी बात नहीं है वैभव।" चाची ने कहा____"मैं यहां तुमसे ये कहने आई हूं कि अभी थोड़ी देर में सरला (हवेली की नौकरानी) यहां आएगी। वो तुम्हारे पूरे बदन की मालिश करेगी इस लिए तुम अपने कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ मालिश करवाने के लिए।"

"पर मालिश करने की क्या ज़रूरत है चाची?" मैंने उनसे पूछा।

"अरे! ज़रूरत क्यों नहीं है?" चाची ने मेरे पास आ कर कहा____"मेरे सबसे अच्छे बेटे का विवाह होने वाला है। उसकी सेहत का हर तरह से ख़याल रखना ज़रूरी है। अब तुम ज़्यादा कुछ मत सोचो और अपने सारे कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ। मैं तो खुद ही तुम्हारी मालिश करना चाहती थी लेकिन दीदी ही नहीं मानी। कहने लगीं कि मालिश का काम नौकरानी कर देगी और मुझे उनके कामों में मेरी सहायता चाहिए।"

"हां तो ग़लत क्या कहा उन्होंने?" मैंने कहा____"आपके बिना हवेली में ढंग से कोई काम हो भी नहीं सकेगा और ये बात वो भी जानती हैं। तभी तो वो आपको ऐसा कह रहीं थी। ख़ैर ये सब छोड़िए और ये बताइए कि विभोर और अजीत से उनका हाल चाल पूछा आपने?"

"अभी तो वो दोनों सो रहे हैं।" चाची ने अधीरता से कहा____"शायद लंबे सफ़र के चलते थके हुए थे। शाम को जब उठेंगे तो पूछूंगी। वैसे सच कहूं तो उन्हें देख कर मन में सिर्फ एक ही ख़याल आता है कि उन दोनों से कैसे पूरे मन से बात कर सकूंगी? बार बार मन में वही सब उभर आता है और हृदय दुख से भर जाता है।"

"आपको अपनी भावनाओं को काबू में रखना होगा चाची।" मैंने कहा____"उन्हें आपके चेहरे पर ऐसे भाव नहीं दिखने चाहिए जिससे उन्हें ये लगे कि आप अंदर से दुखी हैं। ऐसे में आप भी जानती हैं कि वो भी दुखी हो जाएंगे और आपसे आपके दुख का कारण पूछने लगेंगे जोकि आप हर्गिज़ नहीं बता सकतीं हैं।"

"अभी तक उन्हें देखने को बहुत मन करता था वैभव।" चाची ने दुखी हो कर कहा____"लेकिन अब जब वो आंखों के सामने आ गए हैं तो उनसे मिलने से घबराने लगी हूं। समझ में नहीं आता कि कैसे दोनों के सामने खुद को सामान्य रख पाऊंगी मैं?"

"मैं आपके अंदर का हाल समझता हूं चाची।" मैंने कहा____"लेकिन ये भी सच है कि आपको उनसे मिलना तो पड़ेगा ही। आख़िर वो आपके बेटे हैं। माता पिता तो हर हाल में अपने बच्चों को खुश ही रखते हैं तो आपको भी उनसे खुशी से मिलना होगा और उन्हें अपना प्यार व स्नेह देना होगा।"

मेरी बात सुन कर चाची कुछ कहने ही वाली थीं कि तभी कमरे के बाहर से किसी के आने की पदचाप सुनाई पड़ी।

"लगता है सरला आ गई है।" चाची ने कहा____"तुम उससे अच्छे से मालिश करवाओ। मैं अब जा रही हूं, बाकी चिंता मत करो। किसी न किसी तरह मैं खुद को सम्हाल ही लूंगी।"

इतना कह कर मेनका चाची पलट कर कमरे से निकल गईं। उनके जाते ही कमरे में सरला दाख़िल हुई। उसके एक हाथ में मोटी सी चादर थी और दूसरे में एक कटोरी जिसमें तेल भरा हुआ था। सरला तीस साल की एक शादी शुदा औरत थी। रंग गेहुंआ था और जिस्म गठीला। उसे देखते ही मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। दो ही पलों में मेरी आंखों ने उसके समूचे बदन का मुआयना कर लिया। पहले वाला वैभव पूरी तरह से अभी ख़त्म नहीं हुआ था।

"छोटे कुंवर।" तभी सरला ने कहा____"मालकिन ने मुझे आपकी मालिश करने भेजा है। आप अपने कपड़े उतार लीजिए।"

"क्या सारे कपड़े उतारने पड़ेंगे मुझे?" मैंने उसे देखते हुए पूछा तो उसने कहा____"जी छोटे कुंवर। मालकिन ने कहा है कि आपके पूरे बदन की मालिश करनी है।"

"पूरे बदन की?" मैंने थोड़ी उलझन में उसकी तरफ देखा____"मतलब क्या मुझे अपना कच्छा भी उतारना पड़ेगा?"

सरला मेरी इस बात से थोड़ा शरमा गई। नज़रें चुराते हुए हुए बोली____"हाय राम! ये आप क्या कह रहे हैं छोटे कुंवर?"

"अरे! मैं तो तुम्हारी बात सुनने के बाद ही पूछ रहा हूं तुमसे।" मैंने कहा____"तुमने कहा कि पूरे बदन की मालिश करनी है। इसका तो यही मतलब हुआ कि मुझे अपने बाकी कपड़ों के साथ साथ अपना कच्छा भी उतार देना होगा। तभी तो पूरे बदन की मालिश होगी। भला उस जगह को क्यों छोड़ दोगी तुम?"

मेरी बात सुन कर सरला का चेहरा शर्म से लाल हो गया। मंद मंद मुस्कुराते हुए उसने बड़ी मुश्किल से कहा____"अगर आप कहेंगे तो मैं हर जगह की मालिश कर दूंगी।"

"अच्छा क्या सच में?" मैंने हैरानी से उसे देखा।

"आप अपने कपड़े उतार लीजिए।" उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा और कमरे के फर्श पर हाथ में ली हुई मोटी चादर को बिछाने लगी।

मैं कुछ पलों तक उलझन में पड़ा उसे देखता रहा फिर अपने कपड़े उतारने लगा। जल्दी ही मैंने अपने कपड़े उतार दिए। अब मैं सिर्फ कच्छे में था। ठंड का मौसम था इस लिए थोड़ी थोड़ी ठंड लगने लगी थी मुझे। सरला ने कनखियों से मेरी तरफ देखा और फिर अपनी साड़ी के पल्लू को निकाल कर उसे कमर में खोंसने लगी।

"अब आप यहां पर लेट जाइए छोटे कुंवर।" उसने पलंग से एक तकिया ले कर उसको चादर के सिरहाने पर रखते हुए कहा____"अ...और ये क्या आपने अपना कच्छा नहीं उतारा? क्या आपको अपने बदन के हर हिस्से की मालिश नहीं करवानी है?"

"मुझे कोई समस्या नहीं है।" मैंने कहा____"वो तो मैंने इस लिए नहीं उतारा क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम्हें असहज महसूस हो।"

"कहते तो आप ठीक हैं।" उसने कहा____"लेकिन मैं आपकी अच्छे से मालिश करूंगी। आख़िर आपका विवाह होने वाला है। खुशी के ऐसे अवसर पर आपको पूरी तरह से हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी ही है।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"क्या तुम ये सोचती हो कि मैं अभी हष्ट पुष्ट नहीं हूं?"

"अरे! ये क्या बातें कर रहा है भांजे?" अमर मामा कमरे में आते ही बोले____"जब ये कह रही है कि हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी है तो तुझे मान लेना चाहिए।"

"मामा आप यहां?" मैं मामा को देखते ही चौंक पड़ा।

"तुझे ढूंढ रहा था।" मामा ने कहा____"दीदी ने बताया कि तू अपने कमरे में मालिश करवा रहा है तो यहीं चला आया। मैं भी देखना चाहता था कि मेरा भांजा किस तरीके से अपनी मालिश करवाता है?"

सरला, मामा के आ जाने से और उनकी बातों से बहुत ज़्यादा असहज हो गई।

"तो देख लिया आपने?" मैंने पूछा____"या अभी और देखना है?"

"हां देख लिया और समझ भी लिया।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा_____"अब अगर मैं देखने बैठ जाऊंगा तो तू अच्छे से मालिश नहीं करवा सकेगा इस लिए चलता हूं मैं।" कहने के साथ ही मामा सरला से बोले____"और तुम, मेरे भांजे की अच्छे से मालिश करना। किसी भी तरह की कसर बाकी मत रखना, समझ गई न तुम?"

सरला ने शर्माते हुए हां में सिर हिलाया। उधर मामा ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा____"और तू भी ज़्यादा नाटक मत करना, समझ गया ना?"

उनकी बात पर मैं मुस्कुरा उठा। वो जब चले गए तो सरला ने मानों राहत की सांस ली। उसके बाद उसने कमरे की खिड़की खोली और जा कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। ये देख मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि कहीं ये सच में तो मुझे पूरा नंगा नहीं करने वाली है?

मैं उसी को देखे जा रहा था। उसने अपनी साड़ी को निकाल कर एक तरफ रखा और फिर पेटीकोट को अपने घुटनों तक उठा कर बाकी का हिस्सा कमर में खोंस लिया। ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी छातियां मानों ब्लाउज फाड़ने को तैयार थीं। उसका गदराया हुआ बदन मेरे अंदर तूफ़ान सा पैदा करने लगा।

"ऐसे मत देखिए छोटे कुंवर मुझे शर्म आ रही है?" सहसा सरला की आवाज़ से मैं चौंका____"ऐसे में कैसे मैं आपकी अच्छे से मालिश कर पाऊंगी?"

"तुम ऐसे हाल में मालिश करोगी मेरी?" मैंने उसे देखते हुए पूछा।

"और नहीं तो क्या?" उसने कहा____"साड़ी पहने पहने मालिश करूंगी तो ठीक से नहीं कर पाऊंगी और मेरी साड़ी में तेल भी लग जाएगा।"

बात तो उसने उचित ही कही थी इस लिए मैंने ज़्यादा कुछ न कहा किंतु ये ज़रूर सोचने लगा कि क्या सच में सरला मेरे पूरे बदन की मालिश करेगी?

बहरहाल सरला ने कटोरी को उठाया और मेरे पैरों के पास बगल से बैठ गई। वो अब मेरे इतना पास थी कि मेरी निगाह एक ही पल में ब्लाउज से झांकती उसकी छातियों पर जम गईं। सच में काफी बड़ी और ठोस नज़र आ रहीं थी उसकी छातियां। मेरे पूरे बदन में सनसनी सी दौड़ने लगी। धड़कनें तो पहले ही तेज़ तेज़ चल रहीं थी। मैंने फ़ौरन ही उससे नज़र हटा ली और खुद पर नियंत्रण रखने के लिए आंखें बंद कर ली।

पहले तो सरला आराम से ही तेल लगा रही थी किंतु जल्दी ही उसने ज़ोर लगा कर मालिश करना शुरू कर दिया। मुझे अच्छा तो लग ही रहा था किंतु मज़ा भी आ रहा था। तेल से चिपचिपी हथेलियां जब मेरी जांघों के अंतिम छोर तक आती तो मेरे अंडकोशों में झनझनाहट होने लगती। पूरे बदन में मज़े की लहर दौड़ जाती।

"कैसा लग रहा है छोटे कुंवर?" सहसा उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैंने आंखें खोल कर उसे देखा।

उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। वो घुटनों के बल झुकी सी थी जिससे मेरी नज़र जल्द ही उसके ब्लाउज से आधे से ज़्यादा झांकती छातियों पर जा कर जम गई। वो ज़ोर लगा कर नीचे से ऊपर आती तो उसकी छातियों में लहर सी पैदा हो जाती। फ़ौरन ही वो ताड़ गई कि मैं उसकी छातियां देख रहा हूं। उसे शर्म तो आई लेकिन उसने न तो कुछ कहा और ना ही अपनी छातियों को छुपाने का उपक्रम किया। बल्कि वो उसी तरह मालिश करते हुए मुझे देखती रही।

"क्या हुआ कुंवर जी?" जब मैं बिना कोई जवाब दिए उसकी छातियों को ही देखता रहा तो उसने फिर कहा____"आपने जवाब नहीं दिया?"

"ओह! हां तुमने कुछ कहा क्या?" मैं एकदम से हड़बड़ा सा गया तो इस बार वो खिलखिला कर हंस पड़ी। उसके हंसने पर मैं थोड़ा झेंप गया।

"मैं आपसे पूछ रही थी कि मेरे मालिश करने से आपको कैसा लग रहा है?" फिर उसने कहा।

"अच्छा लग रहा है।" मैंने कहा____"बस ऐसे ही करती रहो।"

वो मुस्कुराई और पलट कर कटोरी को उठा लिया। कटोरी से ढेर सारा तेल उसने मेरी जांघ पर डाला और उसे अपनी हथेली से फैला कर फिर से मालिश करने लगी। सहसा मेरी नज़र मेरे कच्छे पर पड़ी तो मैं चौंक गया। मेरा लंड अपने पूरे अवतार में खड़ा था और कच्छे को तंबू बनाए हुए था। ज़ाहिर है सरला भी ये देख चुकी होगी। मुझे बड़ा अजीब लगा और थोड़ी शर्मिंदगी भी हुई।

"क्या अब मैं उल्टा लेट जाऊं?" मैंने अपने लंड के उठान को छुपाने के लिए उससे पूछा।

"अभी नहीं छोटे कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"अभी तो पैरों के बाद आपके पेट और सीने की मालिश करूंगी मैं। उसके बाद ही आपको उल्टा लेटना होगा।"

"ठीक है जल्दी करो फिर।" मैं अब असहज सा महसूस करने लगा था। अभी तक मुझे अपने लंड का ख़याल ही नहीं रहा था। वो साला बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैंने देखा सरला बार बार मेरे लंड को घूरने लगती थी।

आख़िर कुछ देर में जब पैरों की मालिश हो गई तो वो तेल ले कर ऊपर की तरफ आई। ना चाहते हुए भी मेरी निगाह उस पर ठहर गई। दिल की धड़कनें और भी तेज़ हो गई। उसका पेट कमर नाभि सब साफ दिख रही थी मुझे।

"आपके मामा जी कह गए हैं कि मैं आपकी मालिश करने में कोई कसर बाकी ना रखूं।" फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा____"इस लिए अब मैं वैसी ही मालिश करूंगी और हां आप भी विरोध मत कीजिएगा।"

"कैसी मालिश करेगी तुम?" मैंने आशंकित भाव से उसे देखा।

"बस देखते जाइए।" उसने गहरी मुस्कान से कहा____"आप भी क्या याद करेंगे कि सरला ने कितनी ज़बरदस्त मालिश की थी आपकी।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" मैंने उत्सुकता से कहा____"मैं भी तो देखूं तुम आज कैसे मालिश करती हो मेरी।"

"ठीक है।" सरला के चेहरे पर एकाएक चमक उभर आई____"लेकिन आपको भी मेरी एक बात माननी होगी। मैं जो भी करूं आप करने देंगे और सिर्फ मालिश का आनंद लेंगे।"

"ठीक है।" मैं मुस्कुराया____"मैं तुम्हें किसी बात के लिए नहीं रोकूंगा।"

सरला मेरी बात सुन कर खुश हो गई। उसने कटोरी से मेरे सीने पर तेल डाला और उसे हथेली से फैलाने लगी। जल्दी ही वो मेरे पूरे सीने और पेट पर तेल फैला कर मालिश करने लगी। मैं बस उसको देखता रहा। मैंने पहली बार गौर किया कि वो नौकरानी ज़रूर थी लेकिन बदन से क़हर ढा रही थी। तभी मैं चौंका। वो मेरे कच्छे को पकड़ कर नीचे खिसकाने लगी।

"ये क्या कर रही हो?" मैंने झट से उसे रोका।

"आपने तो कहा था कि आप मुझे नहीं रोकेंगे?" उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____फिर अब क्यों रोक रहे हैं? देखिए, कच्छा नहीं उतारूंगी तो तेल लग जाएगा इसमें और वैसे भी पूरे बदन की मालिश करनी है ना तो इसे उतारना ही पड़ेगा।"

मेरे ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि कहीं आज ये मेरा ईमान न डगमगा दे। मुझसे ऐसी ग़लती न करवा दे जो न करने का मैंने भाभी को वचन दिया था। फिर सहसा मुझे ख़याल आया कि ये तो मेरे ऊपर निर्भर करता है कि मैं खुद पर काबू रख सकता हूं या नहीं।

मेरी इजाज़त मिलते ही सरला ने खुशी से मेरा कच्छा उतार कर मेरी टांगों से अलग कर दिया। कच्छे के उतरते ही मेरा लंड उछल कर छत की तरफ तन गया।

"हाय राम! ये....ये इतना बड़ा क्या है।" सरला की मानों चीख निकल गई।

"तुम तो ऐसे चीख उठी हो जैसे ये तुम्हारे अंदर ही घुस गया हो।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

"हाय राम! छोटे कुंवर ये क्या कह रहे हैं?" सरला एकदम से चौंकी____"ना जी ना। ये मेरे अंदर घुस गया तो मैं तो जीवित ही ना बचूंगी।"

"फ़िक्र मत करो।" मैंने कहा____"ये तुम्हारे अंदर वैसे भी नहीं घुसेगा। अब चलो मालिश शुरू करो। मैं भी तो देखूं कि तुम कैसी मालिश करती हो आज।"

सरला आश्चर्य से अभी भी मेरे लंड को ही घूरे जा रही थी। फिर जैसे उसे होश आया तो उसके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई। उधर मेरा लंड बार बार ठुमक रहा था। मेरी शर्म और झिझक अब ख़त्म हो चुकी थी।

"अब तो मैं पक्का आपकी वैसी ही मालिश करूंगी छोटे कुंवर।" फिर उसने खुशी से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"जैसा मैं कह रही थी। अब बस आप मेरा कमाल देखिए।"

कहने के साथ ही सरला अपना ब्लाउज खोलने लगी। ये देख मैं चौंका लेकिन मैंने उसे रोका नहीं। अब मैं भी देखना चाहता था कि वो क्या करने वाली है। जल्दी ही उसने अपने बदन से ब्लाउज निकाल कर एक तरफ रख दिया। उसकी छातियां सच में बड़ी और ठोस थीं। कुंवारी लड़की की तरह तनी हुईं थी। मेरा ईमान फिर से डोलने लगा। पूरे जिस्म में झुरझुरी होने लगी। उधर ब्लाउज एक तरफ रखने के बाद वो खड़ी हुई और अपना पेटीकोट खोलने लगी।

मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं क्या वो मुझसे चुदने का सोच ली‌‌ है? नहीं नहीं, ऐसा मैं कभी नहीं होने दे सकता।

"ये क्या कर रही हो तुम?" मैंने उसे रोका____"अपने कपड़े क्यों उतार रही हो तुम?"

"फ़िक्र मत कीजिए कुंवर।" उसने कहा____"मैं आपके साथ वो नहीं करूंगी और कपड़े इस लिए उतार रही हूं ताकि मालिश करते समय मेरे इन कपड़ों पर तेल न लग जाए।"

मैंने राहत की सांस ली लेकिन अब ये सोचने लगा कि क्या ये नंगी हो कर मेरी मालिश करेगी? सरला ने पेटीकोट उतार कर उसे भी एक तरफ रख दिया। पेटीकोट के अंदर उसने कुछ नहीं पहना था। मोटी मोटी जांघों के बीच बालों से भरी उसकी चूत पर मेरी नज़र पड़ी तो एक बार फिर से मेरे पूरे जिस्म में सनसनी फ़ैल गई।

उधर जैसे ही सरला को एहसास हुआ कि मैं उसे देख रहा हूं तो उसने जल्दी से अपनी योनि छुपा ली। उसके चहरे पर शर्म की लाली उभर आई लेकिन हैरानी की बात थी कि वो इसके बाद भी पूरी नंगी हो गई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर अब ये क्या करने वाली है?

"छोटे कुंवर, अपनी आंखें बंद कर लीजिए ना।" सरला ने कहा____"आप मुझे इस तरह देखेंगे तो मुझे बहुत शर्म आएगी और मैं पूरे मन से आपकी मालिश नहीं कर पाऊंगी।"

मुझे भी लगा कि यही ठीक रहेगा। मैं भी उसे नहीं देखना चाहता था क्योंकि इस हालत में देखने से मेरा अपना बुरा हाल होने लगा था। मैंने आंखें बंद कर ली तो वो मेरे क़रीब आई। कुछ देर तक पता नहीं वो क्या करती रही लेकिन फिर अचानक ही मुझे अपने ऊपर कुछ महसूस हुआ। वो तेल था जो मेरे सीने से होते हुए पेट पर आया और फिर उसकी धार मेरे लंड पर पड़ने लगी। मेरे पूरे जिस्म में आनंद की लहर दौड़ पड़ी। थोड़ी ही देर में सरला के हाथ उस तेल को मेरे पूरे बदन में फैलाने लगे।

मैं उस वक्त चौंक उठा जब सरला के हाथों ने मेरे लंड को पकड़ लिया। सरला के चिपचिपे हाथ मेरे लंड को हौले हौले सहलाते हुए उस पर तेल मलने लगे। आज काफी समय बाद किसी औरत का हाथ मेरे लंड पर पहुंचा था। आनंद की तरंगें पूरे बदन में दौड़ने लगीं थी। मैं सरला को रोकना चाहता था लेकिन मज़ा भी आ रहा था इस लिए रोक नहीं रहा था। उधर सरला बड़े आराम से मेरे लंड को तेल से भिंगो कर उसकी मालिश करने लगी थी। पहले तो वो एक हाथ से कर रही थी लेकिन अब दोनों हाथों से जैसे उसे मसलने लगी थी। मेरा लंड बुरी तरह अकड़ गया था।

"ये...ये क्या कर रही हो तुम?" आनंद से अपनी पलकें बंद किए मैंने उससे कहा।

"चुपचाप लेटे रहिए कुंवर।" सरला ने भारी आवाज़ में कहा____"ये तो अभी शुरुआत है। आगे आगे देखिए क्या होता है। आप बस मालिश का आनंद लीजिए।"

सरला की बातों से मेरे पूरे बदन में झुरझुरी हुई। उसकी आवाज़ से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसकी सांसें भारी हो चलीं थी। कुछ देर तक वो इसी तरह मेरे लंड को तेल लगा लगा कर मसलती रही फिर एकदम से उसके हाथ हट गए। मैंने राहत की सांस ली। एकाएक मैं ये महसूस कर के चौंका कि मेरी दोनों जांघों पर कोई बहुत ही मुलायम चीज़ रख गई है। मैंने उत्सुकता के चलते आंखें खोल कर देखा तो हैरान रह गया।

सरला पूरी तरह नंगी थी। मेरी तरफ मुंह कर के वो मेरी जांघों पर बैठ गई थी। उसके दोनों पैर अलग अलग तरफ फ़ैल से गए थे। जांघों के बीच बालों से भरी चूत भी फैल गई थी जिससे उसके अंदर का गुलाबी हिस्सा थोड़ा थोड़ा नज़र आने लगा था। तभी सरला ने कटोरा उठाया। उसका ध्यान मेरी तरफ नहीं था। कटोरे में भरे तेल को उसने अपने सीने पर उड़ेलना शुरू कर दिया। कटोरे का तेल बड़ी तेज़ी से उसकी छातियों को भिगोता हुआ नीचे तरफ आया। कुछ नीचे मेरे लंड पर गिरा। सरला थोड़ा सा आगे सरक आई जिससे तेल मेरे पेट पर गिरने लगा।

सरला ने कटोरा एक तरफ रखा और फिर जल्दी जल्दी तेल को अपनी छातियों पर और पेट पर मलने लगी। उसके बाद वो आहिस्ता से मेरे ऊपर झुकने लगी। मैं उसकी इस क्रिया को चकित भाव देखे जा रहा था। कुछ ही पलों में वो मेरे ऊपर लेट सी गई। उसकी छातियां मेरे सीने में धंस गई। उसकी नाभि के नीचे मेरा लंड दब गया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ गई।

"ये क्या कर रही हो?" मैं भौचक्का सा बोल पड़ा तो उसने मेरी तरफ देखा।

हम दोनों की नज़रें मिलीं। वो मुस्कुरा उठी। अपने दोनों हाथ मेरे आजू बाजू जमा कर वो अपने बदन को मेरे बदन पर रगड़ने लगी। उसकी बड़ी बड़ी और ठोस छातियां मेरे जिस्म में रगड़ खाते हुए नीचे की तरफ जा कर मेरे लंड पर ठहर गईं। मेरा लंड उसकी दोनों छातियों के बीच फंस गया। सरला से मुझे ऐसे करतब की उम्मीद नहीं थी। तभी वो मेरे चेहरे की तरफ सरकने लगी। मेरा लंड उसकी छातियों का दबाव सहते हुए उसके पेट की तरफ जाने लगा। इधर उसकी छातियां मेरे सीने पर आईं उधर मेरा लंड उसकी नाभि के नीचे पहुंच कर उसकी चूत के बालों पर जा टकराया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ रहीं थी।

"कैसा लग रहा है कुंवर।" सरला मेरे चेहरे के एकदम पास आ कर मानों नशे में बोली____"आपको अच्छा तो लग रहा है ना?"

"तुम अच्छे की बात करती हो।" मैं मज़े के तरंग में बोला____"मुझे तो अत्यधिक मज़ा आ रहा है सरला। मुझे नहीं पता था कि तुम्हें ये कला भी आती है। कहां से सीखा है ये?"

"कहीं से नहीं सीखा कुंवर।" उसने कहा____"ये तो अचानक ही सूझ गया था मुझे।"

"यकीन नहीं होता।" मैंने कहा____"ख़ैर बहुत मज़ा आ रहा है। ऐसे ही करती रहो।"

सरला का चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल क़रीब था। उसके गुलाबी होंठ मेरे एकदम पास ही थे। मेरा जी तो किया कि लपक लूं लेकिन फिर मैंने इरादा बदल दिया। मैं अपने से कुछ भी नहीं करना चाहता था।

"खुद को मत रोकिए छोटे कुंवर।" सरला मेरी मंशा समझ कर बोल पड़ी____"आज इस मालिश का भरपूर आनंद लीजिए। मुझ पर भरोसा रखिए, मैं आपको बिल्कुल भी निराश नहीं करूंगी।"

"पर तुम्हें मुझसे निराश होना पड़ेगा।" मैंने दृढ़ता से कहा____"तुम जिस चीज़ के बारे में सोच रही हो वो नहीं हो सकेगा। मैं तुम्हें इतना करने दे रहा हूं यही बहुत बड़ी बात है।"

"ठीक है जैसी आपकी मर्ज़ी।" कहने के साथ ही सरला फिर से नीचे को सरकने लगी।

मेरा बुरा हाल होने लगा था। जी कर रहा था कि एक झटके से उठ जाऊं और सरला को नीचे पटक कर उसको बुरी तरह चोदना शुरू कर दूं। अपनी इस भावना को मैंने बड़ी बेदर्दी से कुचला और आंखें बंद कर ली। उधर सरला नीचे पहुंच कर मेरे लंड को अपनी दोनों छातियों के बीच फंसाया और फिर दोनों तरफ से अपनी छातियों का दबाद देते हुए मानों मुट्ठ मारने लगी। मेरे जिस्म में और भी ज़्यादा मज़े की तरंगें उठने लगीं।

कुछ देर तक सरला अपनी छातियों से मेरे लंड को मसलती रही उसके बाद वो फिर से ऊपर सरकने लगी। उसकी ठोस छातियां मेरे जिस्म से रगड़ खाते हुए ऊपर की तरफ आने लगीं। तेल लगा होने से बड़ा अजीब सा मज़ा आ रहा था।

तभी मैं चौंका। सरला की छातियां मेरे सीने से उठ कर अचानक मेरे चेहरे से टकराईं। तेल की चिपचिपाहट मेरे चेहरे पर लग गई और तेल की गंध मेरे नथुनों में समा गई। मैंने फ़ौरन अपनी आंखें खोली। सरला एकदम से मेरे ऊपर ही सवार नज़र आई। उसकी तेल में नहाई बड़ी बड़ी छातियां मेरे चेहरे को छू रहीं थी। सरला की ये हिम्मत देख मुझे हैरानी भी हुई और थोड़ा गुस्सा भी आया। यकीनन वो मुझे उकसा रही थी। यानि वो चाहती थी कि मैं अपना आपा खो दूं और फिर वही कर बैठूं जो मैं किसी भी कीमत पर नहीं करना चाहता था। मैंने अब तक सरला के जिस्म के नाज़ुक अंगों को हाथ तक नहीं लगाया था जबकि में अंदर का हाल तो अब ऐसा था कि उसको बुरी तरह रौंद डालने के लिए मन कर रहा था मेरा। मेरे हाथ उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को आटे की तरह गूंथ डालने को मचल रहे थे मगर मैं बेतहाशा सब्र किए हुए था। ये अलग बात है कि अपने अंदर मज़े की लहर को रोकना मेरे बस में नहीं था।

"कितनी भी कोशिश कर लो तुम।" मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा____"ठाकुर वैभव सिंह को मज़बूर नहीं कर पाओगी तुम। बेहतर होगा कि तुम सिर्फ अपने काम पर ध्यान दो।"

"क्या आप मुझे चुनौती दे रहे हैं कुंवर?" सरला ने भी मेरी आंखों में देखा____"इसका मतलब आप चाहते हैं कि मैं ऐसी कोशिश करती रहूं?"

"तुम अपनी सोच के अनुसार कुछ भी मतलब निकाल सकती हो।" मैं हल्के से मुस्कुराया____"बाकी मेरे कहने का मतलब ये नहीं है कि तुम कोई कोशिश करो। तुम मेरी मालिश करने आई हो तो सिर्फ वही करो। मुझसे चुदने का ख़याल ज़हन से निकाल दो क्योंकि वो मैं नहीं करूंगा और ना ही करने दूंगा। मैंने अपनी होने वाली बीवी को बहुत पहले वचन दिया था कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतरूंगा। ऐसा कोई काम नहीं करूंगा जिसके लिए मैं अब तक बदनाम रहा हूं।"

"वाह! कुंवर जी।" सरला मुस्कुराई____"आपकी ये बात सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इस स्थिति में भी आप खुद को रोके हुए हैं और आपको अपने वचन का ख़याल है। ये बहुत बड़ी बात है। मैं भी आपको अब मजबूर नहीं करूंगी बल्कि आपके वचन का सम्मान करते हुए सिर्फ आपकी मालिश करूंगी। अब मैं उन सबको बताऊंगी कि आप बदल गए हैं और एक अच्छे इंसान बन गए हैं जो कहती थीं कि आप इन मामलों में बहुत बदनाम हैं।"

"तुम्हें ये सब किसी से कहने की ज़रूरत नहीं है सरला।" मैंने कहा____"तुम बस अपना काम करो और खुशी खुशी जाओ यहां से।"

"ठीक है कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"वैसे आपसे एक विनती है।"

"कैसी विनती?"

"मेरे मालिश के चलते आपका ये मूसल।" उसने मेरे खड़े हुए लंड को देखते हुए कहा____"पूरी तरह से संभोग के लिए तैयार हो चुका है। इसके अंदर की आग को बाहर निकालना ज़रूरी है। क्या मैं आपको शांत कर दूं?"

"कैसे शांत करोगी?" मैंने पूछा।

"हाथ से ही करूंगी और कैसे?" वो हल्के से हंसी।

"ठीक है।" मैंने कहा____"तुम अपनी ये इच्छा पूरी कर सकती हो।"

सरला खुश हो गई। वो मेरे ऊपर से उठी और नंगी ही मेरे लंड के पास बैठ गई। तेल तो पहले से ही लगा हुआ था इस लिए वो लंड को पकड़ कर मुठियाने लगी।

"वैसे आपकी होने वाली दोनों पत्नियां बहुत भाग्यशाली हैं छोटे कुंवर।" फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"उनके नसीब में इतना बड़ा औजार जो मिलने वाला है। मुझे पूरा यकीन है कि इस मामले में वो हमेशा खुश रहेंगी।"

उसकी इस बात से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हुआ। पलक झपकते ही मेरी आंखों के सामने रूपा और रागिनी भाभी का चेहरा चमक उठा। रूपा से तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन रागिनी भाभी का सोच कर ही जिस्म में अजीब सा एहसास होने लगा।

"क्या मैं इसे चूम लूं कुंवर?" सरला की आवाज़ से मैं चौंका।

"ठीक है जो तुम्हें ठीक लगे कर लो।" मैंने कहा____"लेकिन जल्दी करो। मुझे बाहर भी जाना है।"

सरला फ़ौरन ही अपने काम में लग गई। वो कभी मुट्ठ मारती तो कभी झुक कर मेरे लंड को चूम लेती। फिर एकाएक ही उसने मेरे लंड को मुंह में भर लिया। उसके गरम मुख का जैसे ही एहसास हुआ तो मजे से मेरी आंखें बंद हो गईं। दोनों हाथों से लंड पकड़े वो उसे चूसे जा रही थी। मैं हैरान भी था उसकी इस हरकत से लेकिन मज़े में बोला कुछ नहीं।

मेरा बहुत मन कर रहा था कि सरला के सिर को थाम लूं और कमर उठा उठा कर उसके मुंह को ही चोदना शुरू कर दूं लेकिन मैंने अपनी इस इच्छा को बड़ी मुश्किल से रोका। हालाकि मज़े के चलते मेरी कमर खुद ही उठ जा रही थी। सरला कभी मेरे अंडकोशों को सहलाती तो कभी मुट्ठी मारते हुए लंड चूसने लगती। मेरा मज़े में बुरा हाल हुआ जा रहा था। अपनी इच्छाओं को दबा के रखना बड़ा ही मुश्किल होता जा रहा था। सरला किसी कुशल खिलाड़ी की तरह मेरा लंड चूसने में लगी हुई थी।

आख़िर दस मिनट बाद मुझे लगने लगा कि मेरी नशों में दौड़ता लहू बड़ी तेज़ी से मेरे अंडकोशों की तरफ भागता हुआ जा रहा है। सरला को भी शायद एहसास हो गया था। वो और तेज़ी से मुठ मारनी लगी।

"आह!" मेरे मुंह से मज़े में डूबी आह निकली और मुझे झटके लगने लगे।

सरला ने लपक कर मेरे लंड को मुंह में भर लिया और मेरा वीर्य पीने लगी। आनंद की चरम सीमा में पहुंचने के बाद मैं एकदम शांत पड़ गया। उधर सरला सारा वीर्य गटकने के बाद अब मेरे लंड को चाट रही थी। बड़ी की कौमुक और चुदक्कड़ औरत थी शायद।




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Wah TheBlackBlood Shubham Bhai,

Kya gazab ki hahakari update post ki he................sarla ne koi kasar na chhodi vaibhav ko sex ke liye razi karne ki...............lekin apna Vaibhav ab purane wala vaibhav na raha..............sakht launda he.............sarla ke sare vaar khali chale gaye............aakhir use chus aur hilakar vaibhav ko shant karna pada...............

Vaise pehle ye malish menka chachi karne aane wali thi..............achcha he nahi aayi..........

Keep posting Bhai
 

S M H R

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आख़िर मेरी बातों से चाची के चेहरे पर से दुख के भाव मिटे और फिर वो मुस्कुराते हुए पलंग से नीचे उतर आईं। कुसुम मुझे भाव विभोर सी देखे जा रही थी। उसकी आंखें भरी हुई थी। ख़ैर कुछ ही पलों में हम तीनों कमरे से बाहर आ गए। चाची और कुसुम अपने अपने काम में लग गईं जबकि मैं खुशी मन से ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ता चला गया।


अब आगे....


अगले दिन दोपहर को विभोर और अजीत हवेली आ गए। पिता जी ने उन्हें शहर से ले आने के लिए शेरा के साथ अमर मामा को भेजा था। दोनों जब हवेली पहुंचे तो मां और पिता जी ने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया। जाने क्या सोच कर पिता जी की आंखें नम हो गईं। उनसे मिलने के बाद वो अपनी मां से मिले। चाची की आंखों में आंसुओं का समंदर मानों हिलोरें ले रहा था। बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को सम्हाला और दोनों को खुद से छुपका लिया। कुसुम, विभोर से उमर में दस महीने छोटी थी जबकि अजीत से वो साल भर बड़ी थी। विभोर ने उसके चेहरे को प्यार और स्नेह से सहलाया और अजीत ने उसके पांव छुए। सब उन्हें देख कर बड़ा खुश थे।

विदेश की आबो हवा में रहने से दोनों अलग ही नज़र आ रहे थे। दोनों जब मेरा पांव छूने के लिए झुके तो मैंने बीच में ही रोक कर उन्हें अपने सीने से लगा लिया। ये देख मेनका चाची की आंखों से आंसू कतरा छलक ही पड़ा। साफ दिख रहा था कि वो अपने अंदर मचल रहे गुबार को बहुत मुश्किल से रोके हुए हैं। मैंने अपने दोनों छोटे भाइयों को खुद से अलग किया और फिर हाल चाल पूछ कर आराम करने को कहा।

दोपहर को खाना पीना करने के बाद मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था कि तभी मेनका चाची कमरे में आ गईं। मैं उन्हें देख उठ कर बैठ गया।

"क्या बात है चाची?" मैंने उनसे पूछा____"मुझसे कोई काम था क्या?"

"नहीं ऐसी बात नहीं है वैभव।" चाची ने कहा____"मैं यहां तुमसे ये कहने आई हूं कि अभी थोड़ी देर में सरला (हवेली की नौकरानी) यहां आएगी। वो तुम्हारे पूरे बदन की मालिश करेगी इस लिए तुम अपने कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ मालिश करवाने के लिए।"

"पर मालिश करने की क्या ज़रूरत है चाची?" मैंने उनसे पूछा।

"अरे! ज़रूरत क्यों नहीं है?" चाची ने मेरे पास आ कर कहा____"मेरे सबसे अच्छे बेटे का विवाह होने वाला है। उसकी सेहत का हर तरह से ख़याल रखना ज़रूरी है। अब तुम ज़्यादा कुछ मत सोचो और अपने सारे कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ। मैं तो खुद ही तुम्हारी मालिश करना चाहती थी लेकिन दीदी ही नहीं मानी। कहने लगीं कि मालिश का काम नौकरानी कर देगी और मुझे उनके कामों में मेरी सहायता चाहिए।"

"हां तो ग़लत क्या कहा उन्होंने?" मैंने कहा____"आपके बिना हवेली में ढंग से कोई काम हो भी नहीं सकेगा और ये बात वो भी जानती हैं। तभी तो वो आपको ऐसा कह रहीं थी। ख़ैर ये सब छोड़िए और ये बताइए कि विभोर और अजीत से उनका हाल चाल पूछा आपने?"

"अभी तो वो दोनों सो रहे हैं।" चाची ने अधीरता से कहा____"शायद लंबे सफ़र के चलते थके हुए थे। शाम को जब उठेंगे तो पूछूंगी। वैसे सच कहूं तो उन्हें देख कर मन में सिर्फ एक ही ख़याल आता है कि उन दोनों से कैसे पूरे मन से बात कर सकूंगी? बार बार मन में वही सब उभर आता है और हृदय दुख से भर जाता है।"

"आपको अपनी भावनाओं को काबू में रखना होगा चाची।" मैंने कहा____"उन्हें आपके चेहरे पर ऐसे भाव नहीं दिखने चाहिए जिससे उन्हें ये लगे कि आप अंदर से दुखी हैं। ऐसे में आप भी जानती हैं कि वो भी दुखी हो जाएंगे और आपसे आपके दुख का कारण पूछने लगेंगे जोकि आप हर्गिज़ नहीं बता सकतीं हैं।"

"अभी तक उन्हें देखने को बहुत मन करता था वैभव।" चाची ने दुखी हो कर कहा____"लेकिन अब जब वो आंखों के सामने आ गए हैं तो उनसे मिलने से घबराने लगी हूं। समझ में नहीं आता कि कैसे दोनों के सामने खुद को सामान्य रख पाऊंगी मैं?"

"मैं आपके अंदर का हाल समझता हूं चाची।" मैंने कहा____"लेकिन ये भी सच है कि आपको उनसे मिलना तो पड़ेगा ही। आख़िर वो आपके बेटे हैं। माता पिता तो हर हाल में अपने बच्चों को खुश ही रखते हैं तो आपको भी उनसे खुशी से मिलना होगा और उन्हें अपना प्यार व स्नेह देना होगा।"

मेरी बात सुन कर चाची कुछ कहने ही वाली थीं कि तभी कमरे के बाहर से किसी के आने की पदचाप सुनाई पड़ी।

"लगता है सरला आ गई है।" चाची ने कहा____"तुम उससे अच्छे से मालिश करवाओ। मैं अब जा रही हूं, बाकी चिंता मत करो। किसी न किसी तरह मैं खुद को सम्हाल ही लूंगी।"

इतना कह कर मेनका चाची पलट कर कमरे से निकल गईं। उनके जाते ही कमरे में सरला दाख़िल हुई। उसके एक हाथ में मोटी सी चादर थी और दूसरे में एक कटोरी जिसमें तेल भरा हुआ था। सरला तीस साल की एक शादी शुदा औरत थी। रंग गेहुंआ था और जिस्म गठीला। उसे देखते ही मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। दो ही पलों में मेरी आंखों ने उसके समूचे बदन का मुआयना कर लिया। पहले वाला वैभव पूरी तरह से अभी ख़त्म नहीं हुआ था।

"छोटे कुंवर।" तभी सरला ने कहा____"मालकिन ने मुझे आपकी मालिश करने भेजा है। आप अपने कपड़े उतार लीजिए।"

"क्या सारे कपड़े उतारने पड़ेंगे मुझे?" मैंने उसे देखते हुए पूछा तो उसने कहा____"जी छोटे कुंवर। मालकिन ने कहा है कि आपके पूरे बदन की मालिश करनी है।"

"पूरे बदन की?" मैंने थोड़ी उलझन में उसकी तरफ देखा____"मतलब क्या मुझे अपना कच्छा भी उतारना पड़ेगा?"

सरला मेरी इस बात से थोड़ा शरमा गई। नज़रें चुराते हुए हुए बोली____"हाय राम! ये आप क्या कह रहे हैं छोटे कुंवर?"

"अरे! मैं तो तुम्हारी बात सुनने के बाद ही पूछ रहा हूं तुमसे।" मैंने कहा____"तुमने कहा कि पूरे बदन की मालिश करनी है। इसका तो यही मतलब हुआ कि मुझे अपने बाकी कपड़ों के साथ साथ अपना कच्छा भी उतार देना होगा। तभी तो पूरे बदन की मालिश होगी। भला उस जगह को क्यों छोड़ दोगी तुम?"

मेरी बात सुन कर सरला का चेहरा शर्म से लाल हो गया। मंद मंद मुस्कुराते हुए उसने बड़ी मुश्किल से कहा____"अगर आप कहेंगे तो मैं हर जगह की मालिश कर दूंगी।"

"अच्छा क्या सच में?" मैंने हैरानी से उसे देखा।

"आप अपने कपड़े उतार लीजिए।" उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा और कमरे के फर्श पर हाथ में ली हुई मोटी चादर को बिछाने लगी।

मैं कुछ पलों तक उलझन में पड़ा उसे देखता रहा फिर अपने कपड़े उतारने लगा। जल्दी ही मैंने अपने कपड़े उतार दिए। अब मैं सिर्फ कच्छे में था। ठंड का मौसम था इस लिए थोड़ी थोड़ी ठंड लगने लगी थी मुझे। सरला ने कनखियों से मेरी तरफ देखा और फिर अपनी साड़ी के पल्लू को निकाल कर उसे कमर में खोंसने लगी।

"अब आप यहां पर लेट जाइए छोटे कुंवर।" उसने पलंग से एक तकिया ले कर उसको चादर के सिरहाने पर रखते हुए कहा____"अ...और ये क्या आपने अपना कच्छा नहीं उतारा? क्या आपको अपने बदन के हर हिस्से की मालिश नहीं करवानी है?"

"मुझे कोई समस्या नहीं है।" मैंने कहा____"वो तो मैंने इस लिए नहीं उतारा क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम्हें असहज महसूस हो।"

"कहते तो आप ठीक हैं।" उसने कहा____"लेकिन मैं आपकी अच्छे से मालिश करूंगी। आख़िर आपका विवाह होने वाला है। खुशी के ऐसे अवसर पर आपको पूरी तरह से हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी ही है।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"क्या तुम ये सोचती हो कि मैं अभी हष्ट पुष्ट नहीं हूं?"

"अरे! ये क्या बातें कर रहा है भांजे?" अमर मामा कमरे में आते ही बोले____"जब ये कह रही है कि हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी है तो तुझे मान लेना चाहिए।"

"मामा आप यहां?" मैं मामा को देखते ही चौंक पड़ा।

"तुझे ढूंढ रहा था।" मामा ने कहा____"दीदी ने बताया कि तू अपने कमरे में मालिश करवा रहा है तो यहीं चला आया। मैं भी देखना चाहता था कि मेरा भांजा किस तरीके से अपनी मालिश करवाता है?"

सरला, मामा के आ जाने से और उनकी बातों से बहुत ज़्यादा असहज हो गई।

"तो देख लिया आपने?" मैंने पूछा____"या अभी और देखना है?"

"हां देख लिया और समझ भी लिया।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा_____"अब अगर मैं देखने बैठ जाऊंगा तो तू अच्छे से मालिश नहीं करवा सकेगा इस लिए चलता हूं मैं।" कहने के साथ ही मामा सरला से बोले____"और तुम, मेरे भांजे की अच्छे से मालिश करना। किसी भी तरह की कसर बाकी मत रखना, समझ गई न तुम?"

सरला ने शर्माते हुए हां में सिर हिलाया। उधर मामा ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा____"और तू भी ज़्यादा नाटक मत करना, समझ गया ना?"

उनकी बात पर मैं मुस्कुरा उठा। वो जब चले गए तो सरला ने मानों राहत की सांस ली। उसके बाद उसने कमरे की खिड़की खोली और जा कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। ये देख मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि कहीं ये सच में तो मुझे पूरा नंगा नहीं करने वाली है?

मैं उसी को देखे जा रहा था। उसने अपनी साड़ी को निकाल कर एक तरफ रखा और फिर पेटीकोट को अपने घुटनों तक उठा कर बाकी का हिस्सा कमर में खोंस लिया। ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी छातियां मानों ब्लाउज फाड़ने को तैयार थीं। उसका गदराया हुआ बदन मेरे अंदर तूफ़ान सा पैदा करने लगा।

"ऐसे मत देखिए छोटे कुंवर मुझे शर्म आ रही है?" सहसा सरला की आवाज़ से मैं चौंका____"ऐसे में कैसे मैं आपकी अच्छे से मालिश कर पाऊंगी?"

"तुम ऐसे हाल में मालिश करोगी मेरी?" मैंने उसे देखते हुए पूछा।

"और नहीं तो क्या?" उसने कहा____"साड़ी पहने पहने मालिश करूंगी तो ठीक से नहीं कर पाऊंगी और मेरी साड़ी में तेल भी लग जाएगा।"

बात तो उसने उचित ही कही थी इस लिए मैंने ज़्यादा कुछ न कहा किंतु ये ज़रूर सोचने लगा कि क्या सच में सरला मेरे पूरे बदन की मालिश करेगी?

बहरहाल सरला ने कटोरी को उठाया और मेरे पैरों के पास बगल से बैठ गई। वो अब मेरे इतना पास थी कि मेरी निगाह एक ही पल में ब्लाउज से झांकती उसकी छातियों पर जम गईं। सच में काफी बड़ी और ठोस नज़र आ रहीं थी उसकी छातियां। मेरे पूरे बदन में सनसनी सी दौड़ने लगी। धड़कनें तो पहले ही तेज़ तेज़ चल रहीं थी। मैंने फ़ौरन ही उससे नज़र हटा ली और खुद पर नियंत्रण रखने के लिए आंखें बंद कर ली।

पहले तो सरला आराम से ही तेल लगा रही थी किंतु जल्दी ही उसने ज़ोर लगा कर मालिश करना शुरू कर दिया। मुझे अच्छा तो लग ही रहा था किंतु मज़ा भी आ रहा था। तेल से चिपचिपी हथेलियां जब मेरी जांघों के अंतिम छोर तक आती तो मेरे अंडकोशों में झनझनाहट होने लगती। पूरे बदन में मज़े की लहर दौड़ जाती।

"कैसा लग रहा है छोटे कुंवर?" सहसा उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैंने आंखें खोल कर उसे देखा।

उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। वो घुटनों के बल झुकी सी थी जिससे मेरी नज़र जल्द ही उसके ब्लाउज से आधे से ज़्यादा झांकती छातियों पर जा कर जम गई। वो ज़ोर लगा कर नीचे से ऊपर आती तो उसकी छातियों में लहर सी पैदा हो जाती। फ़ौरन ही वो ताड़ गई कि मैं उसकी छातियां देख रहा हूं। उसे शर्म तो आई लेकिन उसने न तो कुछ कहा और ना ही अपनी छातियों को छुपाने का उपक्रम किया। बल्कि वो उसी तरह मालिश करते हुए मुझे देखती रही।

"क्या हुआ कुंवर जी?" जब मैं बिना कोई जवाब दिए उसकी छातियों को ही देखता रहा तो उसने फिर कहा____"आपने जवाब नहीं दिया?"

"ओह! हां तुमने कुछ कहा क्या?" मैं एकदम से हड़बड़ा सा गया तो इस बार वो खिलखिला कर हंस पड़ी। उसके हंसने पर मैं थोड़ा झेंप गया।

"मैं आपसे पूछ रही थी कि मेरे मालिश करने से आपको कैसा लग रहा है?" फिर उसने कहा।

"अच्छा लग रहा है।" मैंने कहा____"बस ऐसे ही करती रहो।"

वो मुस्कुराई और पलट कर कटोरी को उठा लिया। कटोरी से ढेर सारा तेल उसने मेरी जांघ पर डाला और उसे अपनी हथेली से फैला कर फिर से मालिश करने लगी। सहसा मेरी नज़र मेरे कच्छे पर पड़ी तो मैं चौंक गया। मेरा लंड अपने पूरे अवतार में खड़ा था और कच्छे को तंबू बनाए हुए था। ज़ाहिर है सरला भी ये देख चुकी होगी। मुझे बड़ा अजीब लगा और थोड़ी शर्मिंदगी भी हुई।

"क्या अब मैं उल्टा लेट जाऊं?" मैंने अपने लंड के उठान को छुपाने के लिए उससे पूछा।

"अभी नहीं छोटे कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"अभी तो पैरों के बाद आपके पेट और सीने की मालिश करूंगी मैं। उसके बाद ही आपको उल्टा लेटना होगा।"

"ठीक है जल्दी करो फिर।" मैं अब असहज सा महसूस करने लगा था। अभी तक मुझे अपने लंड का ख़याल ही नहीं रहा था। वो साला बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैंने देखा सरला बार बार मेरे लंड को घूरने लगती थी।

आख़िर कुछ देर में जब पैरों की मालिश हो गई तो वो तेल ले कर ऊपर की तरफ आई। ना चाहते हुए भी मेरी निगाह उस पर ठहर गई। दिल की धड़कनें और भी तेज़ हो गई। उसका पेट कमर नाभि सब साफ दिख रही थी मुझे।

"आपके मामा जी कह गए हैं कि मैं आपकी मालिश करने में कोई कसर बाकी ना रखूं।" फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा____"इस लिए अब मैं वैसी ही मालिश करूंगी और हां आप भी विरोध मत कीजिएगा।"

"कैसी मालिश करेगी तुम?" मैंने आशंकित भाव से उसे देखा।

"बस देखते जाइए।" उसने गहरी मुस्कान से कहा____"आप भी क्या याद करेंगे कि सरला ने कितनी ज़बरदस्त मालिश की थी आपकी।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" मैंने उत्सुकता से कहा____"मैं भी तो देखूं तुम आज कैसे मालिश करती हो मेरी।"

"ठीक है।" सरला के चेहरे पर एकाएक चमक उभर आई____"लेकिन आपको भी मेरी एक बात माननी होगी। मैं जो भी करूं आप करने देंगे और सिर्फ मालिश का आनंद लेंगे।"

"ठीक है।" मैं मुस्कुराया____"मैं तुम्हें किसी बात के लिए नहीं रोकूंगा।"

सरला मेरी बात सुन कर खुश हो गई। उसने कटोरी से मेरे सीने पर तेल डाला और उसे हथेली से फैलाने लगी। जल्दी ही वो मेरे पूरे सीने और पेट पर तेल फैला कर मालिश करने लगी। मैं बस उसको देखता रहा। मैंने पहली बार गौर किया कि वो नौकरानी ज़रूर थी लेकिन बदन से क़हर ढा रही थी। तभी मैं चौंका। वो मेरे कच्छे को पकड़ कर नीचे खिसकाने लगी।

"ये क्या कर रही हो?" मैंने झट से उसे रोका।

"आपने तो कहा था कि आप मुझे नहीं रोकेंगे?" उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____फिर अब क्यों रोक रहे हैं? देखिए, कच्छा नहीं उतारूंगी तो तेल लग जाएगा इसमें और वैसे भी पूरे बदन की मालिश करनी है ना तो इसे उतारना ही पड़ेगा।"

मेरे ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि कहीं आज ये मेरा ईमान न डगमगा दे। मुझसे ऐसी ग़लती न करवा दे जो न करने का मैंने भाभी को वचन दिया था। फिर सहसा मुझे ख़याल आया कि ये तो मेरे ऊपर निर्भर करता है कि मैं खुद पर काबू रख सकता हूं या नहीं।

मेरी इजाज़त मिलते ही सरला ने खुशी से मेरा कच्छा उतार कर मेरी टांगों से अलग कर दिया। कच्छे के उतरते ही मेरा लंड उछल कर छत की तरफ तन गया।

"हाय राम! ये....ये इतना बड़ा क्या है।" सरला की मानों चीख निकल गई।

"तुम तो ऐसे चीख उठी हो जैसे ये तुम्हारे अंदर ही घुस गया हो।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

"हाय राम! छोटे कुंवर ये क्या कह रहे हैं?" सरला एकदम से चौंकी____"ना जी ना। ये मेरे अंदर घुस गया तो मैं तो जीवित ही ना बचूंगी।"

"फ़िक्र मत करो।" मैंने कहा____"ये तुम्हारे अंदर वैसे भी नहीं घुसेगा। अब चलो मालिश शुरू करो। मैं भी तो देखूं कि तुम कैसी मालिश करती हो आज।"

सरला आश्चर्य से अभी भी मेरे लंड को ही घूरे जा रही थी। फिर जैसे उसे होश आया तो उसके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई। उधर मेरा लंड बार बार ठुमक रहा था। मेरी शर्म और झिझक अब ख़त्म हो चुकी थी।

"अब तो मैं पक्का आपकी वैसी ही मालिश करूंगी छोटे कुंवर।" फिर उसने खुशी से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"जैसा मैं कह रही थी। अब बस आप मेरा कमाल देखिए।"

कहने के साथ ही सरला अपना ब्लाउज खोलने लगी। ये देख मैं चौंका लेकिन मैंने उसे रोका नहीं। अब मैं भी देखना चाहता था कि वो क्या करने वाली है। जल्दी ही उसने अपने बदन से ब्लाउज निकाल कर एक तरफ रख दिया। उसकी छातियां सच में बड़ी और ठोस थीं। कुंवारी लड़की की तरह तनी हुईं थी। मेरा ईमान फिर से डोलने लगा। पूरे जिस्म में झुरझुरी होने लगी। उधर ब्लाउज एक तरफ रखने के बाद वो खड़ी हुई और अपना पेटीकोट खोलने लगी।

मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं क्या वो मुझसे चुदने का सोच ली‌‌ है? नहीं नहीं, ऐसा मैं कभी नहीं होने दे सकता।

"ये क्या कर रही हो तुम?" मैंने उसे रोका____"अपने कपड़े क्यों उतार रही हो तुम?"

"फ़िक्र मत कीजिए कुंवर।" उसने कहा____"मैं आपके साथ वो नहीं करूंगी और कपड़े इस लिए उतार रही हूं ताकि मालिश करते समय मेरे इन कपड़ों पर तेल न लग जाए।"

मैंने राहत की सांस ली लेकिन अब ये सोचने लगा कि क्या ये नंगी हो कर मेरी मालिश करेगी? सरला ने पेटीकोट उतार कर उसे भी एक तरफ रख दिया। पेटीकोट के अंदर उसने कुछ नहीं पहना था। मोटी मोटी जांघों के बीच बालों से भरी उसकी चूत पर मेरी नज़र पड़ी तो एक बार फिर से मेरे पूरे जिस्म में सनसनी फ़ैल गई।

उधर जैसे ही सरला को एहसास हुआ कि मैं उसे देख रहा हूं तो उसने जल्दी से अपनी योनि छुपा ली। उसके चहरे पर शर्म की लाली उभर आई लेकिन हैरानी की बात थी कि वो इसके बाद भी पूरी नंगी हो गई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर अब ये क्या करने वाली है?

"छोटे कुंवर, अपनी आंखें बंद कर लीजिए ना।" सरला ने कहा____"आप मुझे इस तरह देखेंगे तो मुझे बहुत शर्म आएगी और मैं पूरे मन से आपकी मालिश नहीं कर पाऊंगी।"

मुझे भी लगा कि यही ठीक रहेगा। मैं भी उसे नहीं देखना चाहता था क्योंकि इस हालत में देखने से मेरा अपना बुरा हाल होने लगा था। मैंने आंखें बंद कर ली तो वो मेरे क़रीब आई। कुछ देर तक पता नहीं वो क्या करती रही लेकिन फिर अचानक ही मुझे अपने ऊपर कुछ महसूस हुआ। वो तेल था जो मेरे सीने से होते हुए पेट पर आया और फिर उसकी धार मेरे लंड पर पड़ने लगी। मेरे पूरे जिस्म में आनंद की लहर दौड़ पड़ी। थोड़ी ही देर में सरला के हाथ उस तेल को मेरे पूरे बदन में फैलाने लगे।

मैं उस वक्त चौंक उठा जब सरला के हाथों ने मेरे लंड को पकड़ लिया। सरला के चिपचिपे हाथ मेरे लंड को हौले हौले सहलाते हुए उस पर तेल मलने लगे। आज काफी समय बाद किसी औरत का हाथ मेरे लंड पर पहुंचा था। आनंद की तरंगें पूरे बदन में दौड़ने लगीं थी। मैं सरला को रोकना चाहता था लेकिन मज़ा भी आ रहा था इस लिए रोक नहीं रहा था। उधर सरला बड़े आराम से मेरे लंड को तेल से भिंगो कर उसकी मालिश करने लगी थी। पहले तो वो एक हाथ से कर रही थी लेकिन अब दोनों हाथों से जैसे उसे मसलने लगी थी। मेरा लंड बुरी तरह अकड़ गया था।

"ये...ये क्या कर रही हो तुम?" आनंद से अपनी पलकें बंद किए मैंने उससे कहा।

"चुपचाप लेटे रहिए कुंवर।" सरला ने भारी आवाज़ में कहा____"ये तो अभी शुरुआत है। आगे आगे देखिए क्या होता है। आप बस मालिश का आनंद लीजिए।"

सरला की बातों से मेरे पूरे बदन में झुरझुरी हुई। उसकी आवाज़ से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसकी सांसें भारी हो चलीं थी। कुछ देर तक वो इसी तरह मेरे लंड को तेल लगा लगा कर मसलती रही फिर एकदम से उसके हाथ हट गए। मैंने राहत की सांस ली। एकाएक मैं ये महसूस कर के चौंका कि मेरी दोनों जांघों पर कोई बहुत ही मुलायम चीज़ रख गई है। मैंने उत्सुकता के चलते आंखें खोल कर देखा तो हैरान रह गया।

सरला पूरी तरह नंगी थी। मेरी तरफ मुंह कर के वो मेरी जांघों पर बैठ गई थी। उसके दोनों पैर अलग अलग तरफ फ़ैल से गए थे। जांघों के बीच बालों से भरी चूत भी फैल गई थी जिससे उसके अंदर का गुलाबी हिस्सा थोड़ा थोड़ा नज़र आने लगा था। तभी सरला ने कटोरा उठाया। उसका ध्यान मेरी तरफ नहीं था। कटोरे में भरे तेल को उसने अपने सीने पर उड़ेलना शुरू कर दिया। कटोरे का तेल बड़ी तेज़ी से उसकी छातियों को भिगोता हुआ नीचे तरफ आया। कुछ नीचे मेरे लंड पर गिरा। सरला थोड़ा सा आगे सरक आई जिससे तेल मेरे पेट पर गिरने लगा।

सरला ने कटोरा एक तरफ रखा और फिर जल्दी जल्दी तेल को अपनी छातियों पर और पेट पर मलने लगी। उसके बाद वो आहिस्ता से मेरे ऊपर झुकने लगी। मैं उसकी इस क्रिया को चकित भाव देखे जा रहा था। कुछ ही पलों में वो मेरे ऊपर लेट सी गई। उसकी छातियां मेरे सीने में धंस गई। उसकी नाभि के नीचे मेरा लंड दब गया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ गई।

"ये क्या कर रही हो?" मैं भौचक्का सा बोल पड़ा तो उसने मेरी तरफ देखा।

हम दोनों की नज़रें मिलीं। वो मुस्कुरा उठी। अपने दोनों हाथ मेरे आजू बाजू जमा कर वो अपने बदन को मेरे बदन पर रगड़ने लगी। उसकी बड़ी बड़ी और ठोस छातियां मेरे जिस्म में रगड़ खाते हुए नीचे की तरफ जा कर मेरे लंड पर ठहर गईं। मेरा लंड उसकी दोनों छातियों के बीच फंस गया। सरला से मुझे ऐसे करतब की उम्मीद नहीं थी। तभी वो मेरे चेहरे की तरफ सरकने लगी। मेरा लंड उसकी छातियों का दबाव सहते हुए उसके पेट की तरफ जाने लगा। इधर उसकी छातियां मेरे सीने पर आईं उधर मेरा लंड उसकी नाभि के नीचे पहुंच कर उसकी चूत के बालों पर जा टकराया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ रहीं थी।

"कैसा लग रहा है कुंवर।" सरला मेरे चेहरे के एकदम पास आ कर मानों नशे में बोली____"आपको अच्छा तो लग रहा है ना?"

"तुम अच्छे की बात करती हो।" मैं मज़े के तरंग में बोला____"मुझे तो अत्यधिक मज़ा आ रहा है सरला। मुझे नहीं पता था कि तुम्हें ये कला भी आती है। कहां से सीखा है ये?"

"कहीं से नहीं सीखा कुंवर।" उसने कहा____"ये तो अचानक ही सूझ गया था मुझे।"

"यकीन नहीं होता।" मैंने कहा____"ख़ैर बहुत मज़ा आ रहा है। ऐसे ही करती रहो।"

सरला का चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल क़रीब था। उसके गुलाबी होंठ मेरे एकदम पास ही थे। मेरा जी तो किया कि लपक लूं लेकिन फिर मैंने इरादा बदल दिया। मैं अपने से कुछ भी नहीं करना चाहता था।

"खुद को मत रोकिए छोटे कुंवर।" सरला मेरी मंशा समझ कर बोल पड़ी____"आज इस मालिश का भरपूर आनंद लीजिए। मुझ पर भरोसा रखिए, मैं आपको बिल्कुल भी निराश नहीं करूंगी।"

"पर तुम्हें मुझसे निराश होना पड़ेगा।" मैंने दृढ़ता से कहा____"तुम जिस चीज़ के बारे में सोच रही हो वो नहीं हो सकेगा। मैं तुम्हें इतना करने दे रहा हूं यही बहुत बड़ी बात है।"

"ठीक है जैसी आपकी मर्ज़ी।" कहने के साथ ही सरला फिर से नीचे को सरकने लगी।

मेरा बुरा हाल होने लगा था। जी कर रहा था कि एक झटके से उठ जाऊं और सरला को नीचे पटक कर उसको बुरी तरह चोदना शुरू कर दूं। अपनी इस भावना को मैंने बड़ी बेदर्दी से कुचला और आंखें बंद कर ली। उधर सरला नीचे पहुंच कर मेरे लंड को अपनी दोनों छातियों के बीच फंसाया और फिर दोनों तरफ से अपनी छातियों का दबाद देते हुए मानों मुट्ठ मारने लगी। मेरे जिस्म में और भी ज़्यादा मज़े की तरंगें उठने लगीं।

कुछ देर तक सरला अपनी छातियों से मेरे लंड को मसलती रही उसके बाद वो फिर से ऊपर सरकने लगी। उसकी ठोस छातियां मेरे जिस्म से रगड़ खाते हुए ऊपर की तरफ आने लगीं। तेल लगा होने से बड़ा अजीब सा मज़ा आ रहा था।

तभी मैं चौंका। सरला की छातियां मेरे सीने से उठ कर अचानक मेरे चेहरे से टकराईं। तेल की चिपचिपाहट मेरे चेहरे पर लग गई और तेल की गंध मेरे नथुनों में समा गई। मैंने फ़ौरन अपनी आंखें खोली। सरला एकदम से मेरे ऊपर ही सवार नज़र आई। उसकी तेल में नहाई बड़ी बड़ी छातियां मेरे चेहरे को छू रहीं थी। सरला की ये हिम्मत देख मुझे हैरानी भी हुई और थोड़ा गुस्सा भी आया। यकीनन वो मुझे उकसा रही थी। यानि वो चाहती थी कि मैं अपना आपा खो दूं और फिर वही कर बैठूं जो मैं किसी भी कीमत पर नहीं करना चाहता था। मैंने अब तक सरला के जिस्म के नाज़ुक अंगों को हाथ तक नहीं लगाया था जबकि में अंदर का हाल तो अब ऐसा था कि उसको बुरी तरह रौंद डालने के लिए मन कर रहा था मेरा। मेरे हाथ उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को आटे की तरह गूंथ डालने को मचल रहे थे मगर मैं बेतहाशा सब्र किए हुए था। ये अलग बात है कि अपने अंदर मज़े की लहर को रोकना मेरे बस में नहीं था।

"कितनी भी कोशिश कर लो तुम।" मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा____"ठाकुर वैभव सिंह को मज़बूर नहीं कर पाओगी तुम। बेहतर होगा कि तुम सिर्फ अपने काम पर ध्यान दो।"

"क्या आप मुझे चुनौती दे रहे हैं कुंवर?" सरला ने भी मेरी आंखों में देखा____"इसका मतलब आप चाहते हैं कि मैं ऐसी कोशिश करती रहूं?"

"तुम अपनी सोच के अनुसार कुछ भी मतलब निकाल सकती हो।" मैं हल्के से मुस्कुराया____"बाकी मेरे कहने का मतलब ये नहीं है कि तुम कोई कोशिश करो। तुम मेरी मालिश करने आई हो तो सिर्फ वही करो। मुझसे चुदने का ख़याल ज़हन से निकाल दो क्योंकि वो मैं नहीं करूंगा और ना ही करने दूंगा। मैंने अपनी होने वाली बीवी को बहुत पहले वचन दिया था कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतरूंगा। ऐसा कोई काम नहीं करूंगा जिसके लिए मैं अब तक बदनाम रहा हूं।"

"वाह! कुंवर जी।" सरला मुस्कुराई____"आपकी ये बात सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इस स्थिति में भी आप खुद को रोके हुए हैं और आपको अपने वचन का ख़याल है। ये बहुत बड़ी बात है। मैं भी आपको अब मजबूर नहीं करूंगी बल्कि आपके वचन का सम्मान करते हुए सिर्फ आपकी मालिश करूंगी। अब मैं उन सबको बताऊंगी कि आप बदल गए हैं और एक अच्छे इंसान बन गए हैं जो कहती थीं कि आप इन मामलों में बहुत बदनाम हैं।"

"तुम्हें ये सब किसी से कहने की ज़रूरत नहीं है सरला।" मैंने कहा____"तुम बस अपना काम करो और खुशी खुशी जाओ यहां से।"

"ठीक है कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"वैसे आपसे एक विनती है।"

"कैसी विनती?"

"मेरे मालिश के चलते आपका ये मूसल।" उसने मेरे खड़े हुए लंड को देखते हुए कहा____"पूरी तरह से संभोग के लिए तैयार हो चुका है। इसके अंदर की आग को बाहर निकालना ज़रूरी है। क्या मैं आपको शांत कर दूं?"

"कैसे शांत करोगी?" मैंने पूछा।

"हाथ से ही करूंगी और कैसे?" वो हल्के से हंसी।

"ठीक है।" मैंने कहा____"तुम अपनी ये इच्छा पूरी कर सकती हो।"

सरला खुश हो गई। वो मेरे ऊपर से उठी और नंगी ही मेरे लंड के पास बैठ गई। तेल तो पहले से ही लगा हुआ था इस लिए वो लंड को पकड़ कर मुठियाने लगी।

"वैसे आपकी होने वाली दोनों पत्नियां बहुत भाग्यशाली हैं छोटे कुंवर।" फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"उनके नसीब में इतना बड़ा औजार जो मिलने वाला है। मुझे पूरा यकीन है कि इस मामले में वो हमेशा खुश रहेंगी।"

उसकी इस बात से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हुआ। पलक झपकते ही मेरी आंखों के सामने रूपा और रागिनी भाभी का चेहरा चमक उठा। रूपा से तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन रागिनी भाभी का सोच कर ही जिस्म में अजीब सा एहसास होने लगा।

"क्या मैं इसे चूम लूं कुंवर?" सरला की आवाज़ से मैं चौंका।

"ठीक है जो तुम्हें ठीक लगे कर लो।" मैंने कहा____"लेकिन जल्दी करो। मुझे बाहर भी जाना है।"

सरला फ़ौरन ही अपने काम में लग गई। वो कभी मुट्ठ मारती तो कभी झुक कर मेरे लंड को चूम लेती। फिर एकाएक ही उसने मेरे लंड को मुंह में भर लिया। उसके गरम मुख का जैसे ही एहसास हुआ तो मजे से मेरी आंखें बंद हो गईं। दोनों हाथों से लंड पकड़े वो उसे चूसे जा रही थी। मैं हैरान भी था उसकी इस हरकत से लेकिन मज़े में बोला कुछ नहीं।

मेरा बहुत मन कर रहा था कि सरला के सिर को थाम लूं और कमर उठा उठा कर उसके मुंह को ही चोदना शुरू कर दूं लेकिन मैंने अपनी इस इच्छा को बड़ी मुश्किल से रोका। हालाकि मज़े के चलते मेरी कमर खुद ही उठ जा रही थी। सरला कभी मेरे अंडकोशों को सहलाती तो कभी मुट्ठी मारते हुए लंड चूसने लगती। मेरा मज़े में बुरा हाल हुआ जा रहा था। अपनी इच्छाओं को दबा के रखना बड़ा ही मुश्किल होता जा रहा था। सरला किसी कुशल खिलाड़ी की तरह मेरा लंड चूसने में लगी हुई थी।

आख़िर दस मिनट बाद मुझे लगने लगा कि मेरी नशों में दौड़ता लहू बड़ी तेज़ी से मेरे अंडकोशों की तरफ भागता हुआ जा रहा है। सरला को भी शायद एहसास हो गया था। वो और तेज़ी से मुठ मारनी लगी।

"आह!" मेरे मुंह से मज़े में डूबी आह निकली और मुझे झटके लगने लगे।

सरला ने लपक कर मेरे लंड को मुंह में भर लिया और मेरा वीर्य पीने लगी। आनंद की चरम सीमा में पहुंचने के बाद मैं एकदम शांत पड़ गया। उधर सरला सारा वीर्य गटकने के बाद अब मेरे लंड को चाट रही थी। बड़ी की कौमुक और चुदक्कड़ औरत थी शायद।



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