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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
475
819
93
Bhai bhut achaa lik rahe ho bas ek request hai jab vaibhav bhabhi ki first night ho to bilkul detail me romantic aur erotic ho bass ekdam maja aa jaye aisa update likhna baki aap acha to likhte hi ho keep it up
 

Napster

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अध्याय - 159
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"आय हाय! समय नहीं है तेरे पास।" शालिनी ने आंखें फैलाई____"ज़्यादा बातें न कर मेरे सामने। मुझे पता है कि आज कल तू खाली बैठी जीजा जी के हसीन ख़यालों में ही खोई रहती है, बात करती है।"

उसकी बात सुन कर रागिनी झूठा गुस्सा दिखाते हुए उसे मारने के लिए दौड़ी तो शालिनी हंसते हुए भाग ली। उसके जाने के बाद रागिनी भी मंद मंद मुस्कुराते हुए घर के अंदर चली गई।



अब आगे....


अगले दो दिनों के भीतर ही हवेली में नात रिश्तेदार आ गए। मेरे ननिहाल वाले और चाची के मायके से भी आ गए। मेरे ननिहाल से नाना नानी और बड़े मामा मामी को छोड़ कर सभी आ गए जिनमें उनके बच्चे भी थे। उधर चाची के मायके से उनके बड़े भैया भाभी आए। उनके मझले भाई अवधराज नहीं आए। ऐसा शायद इस लिए कि जगताप चाचा को जो ज्ञान उन्होंने दिया था उसके चलते अब वो यहां किसी को अपना मुंह नहीं दिखाना चाहते थे। किंतु अपने बच्चों को ज़रूर भेज दिया था।

हवेली में एकदम भीड़ सी जमा हो गई थी। अंदर इंसान ही इंसान नज़र आने लगे थे। पिता जी के कहने पर मैंने सबके रहने की उचित व्यवस्था की जोकि इतनी बड़ी हवेली में कोई मुश्किल काम नहीं था। नीचे ऊपर के बहुत से कमरे खाली ही रहते थे। सबके आ जाने से एक अलग ही रौनक और चहल पहल नज़र आने लगी थी।

मेरे मझले मामा यानि अवधेश सिंह राणा और छोटे मामा यानि अमर सिंह राणा बैठक में पिता जी के पास बैठे हुए थे। मझले मामा का बेटा महेश सिंह राणा जोकि शादी शुदा था वो भी बैठक में ही था। इसके साथ ही चाची के बड़े भाई हेमराज सिंह भी बैठे हुए थे। उनकी पत्नी सुजाता अंदर मां लोगों के पास थीं। अमर मामा के लड़के लड़कियां भी अंदर ही थे।

छोटे मामा की दोनों बेटियां यानि सुमन और सुषमा जोकि उमर में कुसुम से क़रीब एक डेढ़ साल छोटी थीं वो अंदर कुसुम के साथ थीं और उनका छोटा किंतु इकलौता भाई विजय मां लोगों के पास बैठा हुआ था। मैं जब छोटा था तो अपने ननिहाल अक्सर जाया करता था और ज़्यादा समय तक वहीं रहता था लेकिन फिर जैसे जैसे बड़ा हुआ और मुझमें बदलाव आया तो मैंने वहां जाना कम कर दिया था।

मुझे भीड़ भाड़ वाला माहौल ज़्यादा पसंद नहीं था इस लिए मैं सबकी व्यवस्था करने के बाद चुपचाप अपने कमरे में पहुंच गया था। एकाएक ही हालात के बदलने से मेरे अंदर अजीब सा एहसास होने लगा था। बार बार यही ख़याल उभर आता कि अब बस कुछ ही दिनों में मेरा विवाह हो जाएगा और मैं भी शादी शुदा हो जाऊंगा। लोगों के एक ही बीवी होती है जबकि मेरी दो हो जाएंगी। एक तरफ रूपा और दूसरी तरफ रागिनी...हां अब तो भाभी को मुझे उनके नाम से पुकारना होगा। इस एहसास के साथ ही मेरे अंदर अजीब सी सिहरन दौड़ गई। पलक झपकते ही भाभी का खूबसूरत चेहरा आंखों के सामने उजागर हो गया।

उफ्फ! कितनी सुंदर हैं वो। जब भैया जीवित थे तब वो सुहागन थीं और सुहागन के रूप में उनकी सुंदरता देखते ही बनती थी। मैं यूं ही तो नहीं उनके सम्मोहन में फंस जाता था। मैंने अपने ख़यालों में फिर से उन्हें सुहागन के रूप में सजा हुआ देखा तो मेरे अंदर फिर से अजीब सी सिहरन दौड़ गई। बिजली की तरह ज़हन में ख़याल भी उभर आया कि सुंदरता की यही मूरत अब मेरी पत्नी बनने वाली है। विवाह के बाद मुझे उनके साथ पति की तरह ही पेश आना होगा। मैं सोचने लगा कि क्या मैं सहजता से ऐसा कर पाऊंगा? आख़िर वो अब तक मेरी भाभी थीं और उमर में भी मुझसे बड़ी थीं। आख़िर कैसे एक पति के रूप में मैं उनके साथ पेश आ पाऊंगा? रूपा के मामले में मुझे कोई फ़िक्र नहीं थी क्योंकि उसके मामले में मैं पहले से ही पूरी तरह सहज था। उसके साथ मैं पहले भी वो सब कुछ कर चुका था जो शादी के बाद पति पत्नी करते हैं लेकिन भाभी के बारे में तो मैंने कभी इस तरह की कोई कल्पना ही नहीं की थी। भाभी के रिश्ते में उनसे थोड़ा बहुत हंसी मज़ाक कर लेता था लेकिन उसमें भी मैं हमारे बीच की मर्यादा का सबसे ज़्यादा ख़याल रखता था।

मैं जैसे जैसे इस सबके बारे में सोचता जा रहा था वैसे वैसे मेरे अंदर बेचैनी और घबराहट सी पैदा होती का रही थी। मैं चाह कर भी खुद को सामान्य नहीं कर पा रहा था। ऐसा नहीं था कि मैं भाभी को अब अपनी पत्नी की नज़र से देखने और सोचने नहीं लगा था लेकिन जहां बात इसके आगे की आती थी वहां की बातें सोच कर मेरे जिस्म में सिहरन दौड़ने लगती थी और बड़ा अजीब सा लगने लगता था।

"क्या हाल है मेरे दूल्हे राजा?" अचानक कमरे में गूंज उठी किसी की आवाज़ से मैं उछल ही पड़ा। आंखें खोल कर देखा तो मेरे छोटे मामा अमर सिंह कमरे में दाख़िल हो कर मुझे ही देख रहे थे। चेहरे पर खुशी और होठों पर गहरी मुस्कान लिए जैसे वो मुझे चिढ़ाते से नज़र आए। छोटे मामा से मेरी खूब पटती थी।

"अरे! मामा ये आप हैं?" मैंने उठते हुए कहा____"अचानक से आपकी आवाज़ सुन कर मैं चौंक ही पड़ा था। आइए बैठिए।"

"वो तो मैं बैठूंगा ही।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर आ कर पलंग के किनारे पर बैठ गए। कुछ पलों तक मुझे ध्यान से देखते रहे फिर बोले____"अच्छा तो यहां अपने कमरे में अकेले पड़ा तू खुद को तैयार करने में जुटा हुआ है।"

"क...क्या मतलब है आपका?" मैं समझ तो गया लेकिन फिर भी अंजान बनते हुए पूछा।

"बेटा अच्छी तरह जानता हूं तुझे।" मामा ने घूरते हुए कहा____"मेरे सामने अंजान बनने की कोशिश मत कर। मुझे पता है कि तू आने वाले दिनों के लिए खुद को तैयार का रहा है। वैसे अच्छा ही है, तैयार करना भी चाहिए। आदमी जब एक बीवी के लिए खुद को तैयार करने की कोशिश करता है तो तेरे जीवन में तो दो दो बीवियां होंगी। ऐसे में तेरा खुद को तैयार करना उचित ही है। ख़ैर तो अब तक कितना तैयार कर लिया है तूने खुद को?"

"ऐसा कुछ नहीं है मामा।" मैंने अपनी झेंप को जबरन छुपाने की कोशिश करते हुए कहा____"क्या आपको सच में लगता है कि आपके भांजे को किसी बात के लिए तैयार करने की ज़रूरत है? आप तो जानते हैं कि औरतों के मामले में मैं बहुत आगे रहा हूं।"

"बिल्कुल जानता हूं भांजे और मानता भी हूं कि इस मामल में तू बहुत आगे रहा है।" मामा ने कहा____"लेकिन बेटा तुझे ये भी समझना चाहिए कि आम औरतों में और खुद की बीवी में धरती आसमान का फ़र्क होता है। आम औरतों के साथ तू कैसा भी बर्ताव कर के अपनी जान छुड़ा सकता है लेकिन अपनी बीवी से किसी कीमत पर जान नहीं छुड़ा सकता। इसी लिए कहता हूं कि इस मामले में तेरी बयानबाज़ी से कुछ नहीं हो सकता।"

"आप तो मुझे बेवजह डरा रहे हैं मामा।" मैंने अपने अंदर झुरझुरी सी महसूस की____"मैं भला क्यों अपनी बीवियों से जान छुड़ाने का सोचूंगा? बल्कि मैं तो खुद ही ये चाहूंगा कि वो मुझसे दूर न हों।"

"अच्छा ऐसा है क्या?" मामा ने आंखें फैला कर कहा____"फिर तो ये बड़ी अच्छी बात है। कम से कम इसी बहाने अब तू भी सही रास्ते पर आ जाएगा। सच कहूं तो मुझे बहुत खुशी हुई थी ये जान कर कि तेरा ब्याह होने वाला है लेकिन ये जान कर थोड़ी हैरानी भी हुई थी कि तेरा एक नहीं दो दो लड़कियों से ब्याह होने वाला है। तेरे नाना को भी बड़ी हैरानी हुई थी लेकिन फिर जब उन्होंने मामले की गंभीरता को समझा तो फिर वो यही कहने लगे कि ये अच्छा ही हो रहा है। इस तरह से कम से कम रागिनी बहू का जीवन भी फिर से संवर जाएगा। अन्यथा विधवा के रूप में बाकी का सारा जीवन गुज़ारना उसके लिए यकीनन हद से ज़्यादा कठिन होता।"

"ये सब तो ठीक है मामा।" मैंने थोड़ा बेचैन भाव से कहा____"लेकिन सच कहूं तो भाभी से विवाह होने की बात से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होता है। जिस दिन से मुझे इस बारे में पता चला है उसी दिन से जाने क्या क्या सोचते हुए खुद को समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि आगे जो भी होगा उसका मैं सहजता से सामना कर लूंगा। मगर सच तो ये है कि अब तक मैं भाभी के लिए खुद को पूरी तरह से तैयार नहीं कर पाया हूं।"

"हां समझ सकता हूं।" मामा ने कहा____"लेकिन अब तो तुझे इसके लिए खुद को तैयार करना ही पड़ेगा। वैसे मैं तो यही कहूंगा कि तुझे इस बारे में ज़्यादा सोचना नहीं चाहिए। असल में कभी कभी ऐसा होता है कि हमें मौजूदा समय में किसी समस्या को सुलझाने का तरीका समझ में नहीं आता लेकिन जब वैसा समय आ जाता है तो सब कुछ बहुत ही सहजता से हो जाता है। इस लिए तू ये सब वक्त पर छोड़ दे। ये सोच कर कि जो होगा देखा जाएगा।"

"हम्म्म्म शायद आप सही कह रहे हैं।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"और वैसे भी इसके अलावा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है। ख़ैर आप अपनी सुनाएं, मामी के साथ कैसी कट रही है जिंदगी?"

"क्या बताऊं भांजे?" मामा ने सहसा गहरी सांस ली____"बस यूं समझ ले कि किसी तरह कट ही रही है।"

"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" मैं एकदम से चौंका____"सब ठीक तो है ना?"

"क्या ख़ाक ठीक है यार।" मामा ने जैसे खीझते हुए कहा____"साला बच्चे बड़े हो जाते हैं तो हम मर्दों को जाने कैसे कैसे समझौते करने पड़ते हैं। तेरी मामी को बहुत समझाता हूं लेकिन वो मूर्ख कुछ समझती ही नहीं है। मैंने बहुत सी ऐसी औरतों को देखा है जो ज़्यादा उमर हो जाने के बाद भी संभोग सुख का मज़ा लेती रहती हैं और एक तेरी मामी है कि साली अभी से खुद को बुड्ढी कहने लगी है।"

"फिर तो ये आपके लिए बड़ी भारी समस्या हो गई है।" मैंने चकित भाव से कहा____"ख़ैर अब आप क्या करेंगे?"

"करूंगा नहीं बल्कि करने लगा हूं भांजे।" मामा ने कहा____"तू ही बता कि ऐसे में मैं इसके अलावा करता ही क्या कि अपनी भूख मिटाने के लिए बाहर किसी औरत के पास जाऊं? तेरी मामी को भी कहा था कि अगर वो इस बारे में मेरा साथ नहीं देगी तो मुझे बाहर किसी दूसरी औरत के साथ ये सब करना पड़ेगा।"

"तो क्या ये सुनने के बाद भी मामी को समझ नहीं आया?" मैंने हैरानी से पूछा।

"पहले तो गुस्सा हो रही थी।" मामा ने कहा____"कह रही थी कि मेरे अंदर ये कैसी गर्मी चढ़ी है कि मैं इतने बडे बड़े बच्चों का बाप हो जाने के बाद भी ये सब करने पर तुला हुआ हूं? मैंने उसे समझाया कि ये तो उसके लिए अच्छी बात है कि मैं अब भी उसे संभोग का सुख देना चाहता हूं वरना ऐसी भी औरतें हैं जो अपने पति से संभोग सुख पाने के लिए तरसती हैं और फिर वो मज़बूरी में ग़ैर मर्दों से संबंध बना लेती हैं।"

"फिर क्या कहा मामी ने?" मैंने उत्सकुता से पूछा।

"दो तीन दिनों तक बात ही नहीं की उसने।" मामा ने बताया____"मैं भी गुस्सा हो गया था इस लिए मैंने भी उसे मनाने का नहीं सोचा। जब उसे ही कुछ समझ नहीं आ रहा था तो मैंने भी सोच लिया कि अब उससे इस सबकी उम्मीद रखना ही बेकार है। उसके बाद मैंने वही किया जो करने का मैंने मन बना लिया था। तुझे तो पता ही है कि हमारे खेतों में काम करने वाली ऐसी औरतों की कमी नहीं है। मैंने उन्हीं में से एक को इशारा किया और फिर उसके साथ मज़ा किया। तब से यही चल रहा है।"

"और मामी को भी ये सब पता है?" मैंने बेयकीनी से पूछा।

"हां, मैंने बता दिया था उसको।" मामा ने कहा____"जब वो अपने से ही मुझसे बोलने लगी तो मैंने एक दिन उसे सब कुछ बता दिया। ये भी कहा कि अगर वो अब भी मेरे बारे में सोचेगी तो मैं बाहर की औरतों के साथ ये सब करना बंद कर दूंगा।"

"तो फिर क्या कहा मामी ने?" मैंने बड़ी उत्सुकता से पूछा।

"अभी तो कुछ नहीं कहा।" मामा ने कहा____"लेकिन लगता है कि मान जाएगी। ऐसा मैं इस लिए कह रहा हूं क्योंकि दो दिन पहले जब इस बारे में मैंने उसे बताया था तब उसने यही कहा था कि मैं बाहर ये सब करना बंद कर दूं।"

"इसका मतलब ये दो दिन पहले की बात है।" मैंने कहा____"और मामी के ऐसा कहने का शायद मतलब भी यही है कि वो अब आपका कहना मानेंगी।"

"लगता तो यही है।" मामा ने कहा____"लेकिन दो दिन से अभी तक उसने अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की है।"

"हो सकता है कि वो खुद पहल करने में शर्म महसूस करती हों।" मैंने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"एक काम कीजिए, आज रात आप यहीं पर हवेली के किसी कमरे में एक साथ सोइए। मैं आप दोनों के लिए ऐसी व्यवस्था कर दूंगा। उसके बाद कमरे में आप और मामी जम के मज़ा कीजिएगा।"

"योजना तो बढ़िया है तेरी।" मामा ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"लेकिन यहां पर अगर किसी को पता चल गया तो क्या सोचेंगे सब हम दोनों के बारे में?"

"किसी के सोचने की फ़िक्र क्यों करते हैं आप?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"सबको पता है कि मामी आपकी अपनी ज़ायदाद हैं। उनके साथ ये सब करना किसी के लिए कोई बड़ी बात कैसे हो जाएगी?"

"हां तू सही कह रहा है।" मामा का चेहरा चमक उठा था____"तो फिर ठीक है भांजे। तू आज रात हमारे लिए बढ़िया सा इंतज़ाम कर दे। मैं भी आज तेरी मामी के साथ इतने समय की पूरी कसर निकालूंगा। साली बहुत मना करती थी ना तो अब बताऊंगा उसे।"

"अपने जज़्बातों पर काबू रखिए मामा।" मैंने हंसते हुए कहा____"जो भी करना बड़े एहतियात से और बड़े प्यार से करना। ये नहीं कि आपकी करतूतों से बाकी सबको भी पता चल जाए कि ठाकुर अमर सिंह अपनी बीवी की चीखें निकाल रहे हैं।"

"मर्द को मज़ा भी तो तभी आता है भांजे।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा____"जब औरत उसके द्वारा पेले जाने से हलक फाड़ कर चीखे। रहम की भीख मांगे।"

"चीखने तक तो ठीक है मामा।" मैंने कहा____"लेकिन रहम की भीख मांगने वाली स्थिति अच्छी नहीं होती। वो स्थिति पाशविक होती है जोकि मर्दों को शोभा नहीं देती।"

"अरे वाह!" मामा ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"ये तू कह रहा है? बड़ी हैरानी की बात है ये तो। मतलब कमाल ही हो गया। हद है, तू तो सच में देव मानुष बन गया है मेरे भांजे।"

"देव मानुष तो नहीं।" मैंने जैसे संशोधन किया____"लेकिन हां एक अच्छा इंसान ज़रूर बनना चाहता हूं। अपने उस अतीत को भूल जाना चाहता हूं जिसमें मैंने जाने कैसे कैसे कुकर्म किए थे।"

"चल अच्छी बात है।" मामा ने मेरा कंधा दबाते हुए कहा____"मैं तो पहले भी तुझसे कहा करता था कि ये सब छोड़ दे लेकिन तब शायद तू ऐसी मानसिकता में ही नहीं था कि तेरे समझ में कुछ आता। ख़ैर अच्छा हुआ कि अब तेरी सोच बदल गई है और तू अच्छा इंसान बनने का सोचने लगा है। उम्मीद करता हूं कि भविष्य में तू जीजा जी से भी बड़ा इंसान बन जाएगा।"

"नहीं मामा।" मैंने अधीरता से कहा____"मैं कभी भी पिता जी से बड़ा या उनके जैसा नहीं बन पाऊंगा। ऐसा इस लिए क्योंकि उनका नाम शुरू से ही हर मामले में साफ और बेदाग़ रहा है। उन्होंने शुरू से ही हर किसी के साथ अच्छा बर्ताव किया था और सबके दुख दूर करते आए हैं। मैंने तो अपने अब तक के जीवन में ऐसे कोई नेक काम किए ही नहीं हैं बल्कि जो भी किया है बुरा ही किया है। इस लिए उनके जैसा इस जन्म में तो बन ही नहीं सकता। किंतु हां ये कोशिश ज़रूर रहेगी कि अब से जो भी करूं वो अच्छा ही करूं।"

कुछ देर और मामा से बातें हुईं उसके बाद दोपहर के खाने का समय हो गया तो हम दोनों कमरे से बाहर निकल गए। मामा से बातें कर के मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।

✮✮✮✮

दोपहर को थोड़ी देर आराम करने के बाद पिता जी और मझले मामा एक साथ किसी काम से बाहर चले गए जबकि बाकी लोग बैठक में बातें करने लगे। मैं भी बैठक में बैठा था और सबकी बातें सुन रहा था। अंदर सभी औरतें और लड़कियां काम में लगीं हुईं थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी को भी एक पल के लिए फुर्सत नहीं थी। कुछ औरतें गेंहू चावल और दाल साफ कर रहीं थी। हवेली के मुलाजिम हवेली को चमकाने में लगे हुए थे, कुछ हवेली के बाहर चारो तरफ की सफाई में लगे हुए थे।

अमर मामा दो बार मुझसे पूछ चुके थे कि आज रात मैंने उनका और मामी का हसीन मिलन कराने के लिए व्यवस्था की है या नहीं? मैंने मुस्कुराते हुए यही कहा कि वो फ़िक्र न करें। बच्चे बड़े हो रहे थे उनके फिर भी उनका अपना बचपना जैसे अभी तक नहीं गया था। मैंने उनसे कह तो दिया था कि वो फ़िक्र न करें लेकिन मैं खुद नहीं जानता था कि मैं सब कुछ करूंगा कैसे? कमरे का इंतज़ाम तो मैं बड़ी आसानी से कर सकता था लेकिन भीड़ भाड़ के माहौल में मामी को उनके पास पहुंचाना जैसे टेढ़ी खीर थी।

बहरहाल शाम तक दुनिया जहान की बातें चलती रहीं उसके बाद अंदर से एक नौकरानी सबके लिए चाय ले कर आ गई। हम सबने चाय पी। इस बीच सबने ये इच्छा जताई कि कुछ देर के लिए गांव घूम लिया जाए। मर्दों के पास फिलहाल के लिए जैसे कोई काम ही नहीं था। उधर पिता जी अभी तक नहीं आए थे।

मामा लोग गांव घूमने चले गए जबकि मैं हवेली के अंदर चला गया। मुझे समय रहते मामा का काम करना था लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि कैसे करूं? मामी के पास जा कर उनसे खुल कर कुछ कह भी नहीं सकता था। यही सब सोचते हुए मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था कि तभी मेरे कमरे का दरवाज़ा खुला और कुसुम के साथ मामा की लड़कियां आ गईं।

"आप यहां हैं और हम आपको बैठक में ढूंढने गए थे।" कुसुम ने आते ही कहा____"चलिए उठिए आपको बड़ी मां बुला रहीं हैं।"

"आप यहां अकेले कमरे में क्या कर रहे हैं भैया?" सुमन ने मेरे क़रीब आ कर कहा____"हम सबके साथ क्यों नहीं बैठते हैं?"

"वो इस लिए मेरी प्यारी बहना क्योंकि तेरे इस भैया को भीड़ भाड़ में रहना पसंद नहीं है।" मैंने बड़े स्नेह से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"ख़ैर ये बता यहां तुम दोनों को अच्छा लग रहा है ना?"

"हां भैया।" सुषमा ने खुशी से कहा____"हमें यहां बहुत अच्छा लग रहा है। कुसुम दीदी से हमने बहुत सारी बातें की। दोनों बुआ से बातें की और हां छोटी बुआ के यहां से जो उनके भैया भाभी आए हैं उनसे भी बातें की।"

"ओह! तुम दोनों ने तो सबसे बातें कर ली और सबसे जान पहचान कर ली।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"और अपने इस भैया से बातें करने का अब ध्यान आया है तुम दोनों को, हां?"

"वो हम लोग सबके पास बैठे बातें कर रहे थे न इस लिए आपसे मिलने का समय ही नहीं मिला हमें।" सुमन ने मासूमियत से कहा____"पर अब तो हम अपने भैया के पास आ ही गए ना?"

"चलो अच्छा किया।" मैंने कहा____"अच्छा अब तुम लोग जाओ। मैं भी जा कर देखता हूं कि मां ने किस लिए बुलाया है मुझे?"

थोड़ी ही देर में हम सब नीचे आ गए। मैं मां से मिला और पूछा कि किस लिए मुझे बुलाया है उन्होंने तो मां ने कहा कि मेरी मामियां मुझे पूछ रहीं थी इस लिए बुलाया। ख़ैर मैं दोनों मामियों से मिला। बड़ी मामी ने तो कुशलता ही पूछी किंतु छोटी मामी थोड़ा मज़ाकिया अंदाज़ से मुझे छेड़ने लगीं। सबके सामने मैं शर्माने लगा तो सब हंसने लगीं। कुछ देर बाद मैंने छोटी मामी से कहा कि मुझे उनसे ज़रूरी बात करनी है इस लिए क्या वो रात में मेरे कमरे में आ सकती हैं? मामी मेरी इस बात से राज़ी हो गईं। मैं मन ही मन ये सोच कर खुश हो गया कि चलो काम बन गया।

बहरहाल समय गुज़रा और रात हो गई। पिता जी आ गए थे। हम सब उनके साथ खाना खाने बैठे। आज काफी समय बाद हवेली में इस तरह की रौनक देखने को मिल रही थी। सब खुश थे, इसी हंसी खुशी में खाना ख़त्म हुआ और फिर सब बैठक में आ गए। बैठक में थोड़ी देर इस बारे में चर्चा हुई कि कल क्या क्या करना है उसके बाद सब सोने चले गए। मैं पहले ही अपने कमरे में पहुंच गया था। थोड़ी ही देर में छोटे मामा आ गए।

"अरे! भांजे तूने कुछ किया है या नहीं?" उन्होंने आते ही अपने मतलब की बात पूछी____"देख अब तो सोने का समय भी हो गया है और तूने अब तक अपनी मामी को मेरे पास नहीं भेजा।"

"फ़िक्र मत कीजिए मामा।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने मामी को अपने कमरे में बुलाया है। वो आएंगी तो उन्हें किसी बहाने आपके पास भेज दूंगा। थोड़ा सबर कीजिए, आप तो ऐसे उतावले हो रहे हैं जैसे ये सब आप पहली बार करने वाले हैं।"

"अरे! पहली बार नहीं है मानता हूं।" मामा ने खिसियाते हुए कहा____"लेकिन साला लगता तो यही है कि तेरी मामी को पहली बार ही भोगने को मिलेगा। मुझे लगता है कि ऐसा इस लिए लग रहा है क्योंकि काफी समय हो गया उसके साथ मज़ा किए।"

"हां हां समझ गया मैं।" मैंने हल्के से हंसते हुए कहा____"अब आप जाइए। मामी खा पी कर ही आएंगी तब तक आपको इंतज़ार करना पड़ेगा।"

"अब तो इंतज़ार ही करना पड़ेगा भांजे।" मामा ने गहरी सांस ली____"बस तू बीच में धोखा मत करवा देना।"

मामा की इस बात पर मैं हंसा, जबकि वो बाहर निकल गए। मैंने ऊपर ही उनके लिए एक कमरे की व्यवस्था कर दी थी। अब बस इन्तज़ार था मामी के आने का। अगर वो मेरे कमरे में आएंगी तभी कुछ हो सकता था।




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बहुत ही सुंदर लाजवाब और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
 

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अध्याय - 160
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मामा मामी के चक्कर में मैं ना तो रूपा के बारे में सोच पा रहा था और ना ही रागिनी भाभी के बारे में। ज़हन में बस यही चल रहा था कि क्या मामी मेरे कमरे में आएंगी? उनका मेरे कमरे में आना इस लिए भी थोड़ा मुश्किल था क्योंकि औरतें जब सबके पास बैठ कर बातें करने में मशगूल हो जाती हैं तो फिर उन्हें बाकी किसी चीज़ का होश ही नहीं रहता है। दूसरी बात ये भी हो सकती थी कि रात के इस वक्त शायद वो सच में ही न आएं।

बहरहाल, मैं इंतज़ार ही कर सकता था। मुझे ये सोच कर भी हंसी आ रही थी कि मामा बेचारे मन में जाने कैसे कैसे ख़याली पुलाव बनाते हुए अपनी बीवी के आने की प्रतिक्षा कर रहे होंगे। अगर आज वो नहीं आईं तो यकीनन सुबह मुझे उनके गुस्से का शिकार हो जाना पड़ेगा।

क़रीब एक घंटे बाद मेरे कमरे में दस्तक हुई। रात के क़रीब ग्यारह बज रहे थे। आम दिनों की अपेक्षा ये समय ज़्यादा ही था किंतु शादी ब्याह वाले माहौल में थोड़ी देर सवेर हो ही जाती थी। खैर, दत्सक हुई तो मैं समझ गया कि ज़रूर मामी ही आई होंगी। मामी के आने के एहसास से अचानक ही मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं।

इससे पहले कि उन्हें दुबारा दस्तक देनी पड़ती मैं फ़ौरन ही दरवाज़े के पास पहुंचा और दरवाज़ा खोल दिया। बाहर सचमुच मामी ही खड़ी थीं। सुर्ख साड़ी में इस वक्त वो ग़ज़ब ही ढा रहीं थी। तीन तीन बच्चों की मां होने के बाद भी रोहिणी मामी भरपूर जवान नज़र आती थीं।

"माफ़ करना वैभव आने में देर हो गई मुझे।" मुझ पर नज़र पड़ते ही उन्होंने अपनी मधुर आवाज़ में कहा____"असल में खाना पीना करने के बाद बर्तन धुलवाने में व्यस्त हो गई थी मैं। अभी जब काम से फारिग हुई तो एकदम से याद आया कि तुमने कोई ज़रूरी बात करने के लिए मुझे बुलाया था।"

"कोई बात नहीं मामी।" मैं दरवाज़े से एक तरफ हटते हुए बोला____"आप अंदर आ जाइए।"

मेरे कहने पर मामी कमरे में आ गईं। इधर मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि अब कैसे मामी को मामा तक पहुंचाऊं?

"अब बताओ वैभव।" मैं सोच ही रहा था कि तभी मेरे कानों में मामी की आवाज़ पड़ी____"मुझसे कौन सी ज़रूरी बात करनी थी तुम्हें?"

"वो आपको मुझे मामा के बारे में कुछ बताना था।" मैंने खुद को सम्हालते हुए बड़ी हिम्मत जुटा कर कहा____"आज मामा मुझसे मिले तो मैंने देखा कि वो बहुत परेशान थे। मेरे पूछने पर भी मुझे कुछ नहीं बताया। फिर मैंने सोचा कि इस बारे में आपसे पूछूंगा। मैं आपसे जानना चाहता हूं मामी कि मेरे मामा आख़िर किस बात से इतना परेशान हैं? आख़िर ऐसी कौन सी बात थी जिसे वो मुझको भी नहीं बता सके?"

मामी मेरी ये बातें सुन कर फ़ौरन कुछ ना बोल सकीं। उनके चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे। इधर मेरी धड़कनें धाड़ धाड़ कर के बजे जा रहीं थी। मैं खुल कर इस बारे में उनसे कुछ कह नहीं सकता था इस लिए मैंने इस तरह से उनसे बात की ताकि वो इस बात से शर्मिंदगी न महसूस करें कि मुझे उनके बीच की इतनी बड़ी बात पता है। आख़िर हमारे बीच रिश्ता ही ऐसा था जिसके चलते मुझे मर्यादा का ख़याल रखना था।

"क्या हुआ मामी?" मामी जब सोचो में ही गुम रहीं तो मैंने चिंता ज़ाहिर करते हुए उन्हें सोचो से बाहर खींचा____"आप एकदम से क्या सोचने लगीं? मुझे बताइए मामी कि आख़िर बात क्या है? मेरे मामा आख़िर किस बात से इतना ज़्यादा परेशान हैं?"

"कोई बड़ी बात नहीं है वैभव।" मामी ने थोड़ी झिझक और थोड़ा गंभीरता से कहा____"तुम उनके लिए इतनी चिंता मत करो।"

"ऐसे कैसे चिंता न करूं मामी?" मैंने फिक्रमंदी से कहा____"वो मेरे मामा हैं। मैं भला ये कैसे सहन कर लूंगा कि मेरे मामा किसी बात से परेशान रहें? मैं जानना चाहता हूं कि आख़िर उन्हें हुआ क्या है? आपको तो पता ही होगा तो बताइए ना मुझे?"

"वो असल में बात ये है वैभव कि मुझे भी इस बारे में ठीक से पता नहीं है।" मामी ने नज़रें चुराते हुए कहा____"वो कई दिनों से परेशान हैं और मैंने उनसे पूछा भी था लेकिन उन्होंने ठीक से कुछ नहीं बताया।"

"ऐसा कैसे हो सकता है मामी?" मैंने हैरानी ज़ाहिर की____"आप उनकी पत्नी हैं, आपको तो उनसे पूछना ही चाहिए था। उनकी परेशानी के बारे में जान कर आपको उनकी परेशानी भी दूर करनी चाहिए थी।"

"हां मैं समझती हूं वैभव।" मामी ने कहा____"मैं भी चाहती हूं कि उनकी परेशानी दूर हो जाए।"

"अगर आप सच में ऐसा चाहती हैं तो आपको इस बारे में बिल्कुल भी देर नहीं करनी चाहिए।" मैंने अच्छा मौका जान कर कहा____"वो आपके पति हैं और आप उनकी पत्नी इस लिए आप दोनों को एक दूसरे से अपनी अपनी परेशानी बतानी चाहिए और फिर उसको दूर करने का भी प्रयास करना चाहिए।"

"हां ये तो तुम सही कह रहे हो।" मामी ने कहा____"तुम्हारे विवाह के बाद जब हम वापस घर जाएंगे तो मैं उनसे उनकी परेशानी के बारे में ज़ोर दे कर पूछूंगी।"

"मेरा विवाह होने में अभी काफी समय है मामी।" मैंने कहा____"क्या इतने समय तक मामा को परेशानी की हालत में रखना ठीक होगा? मेरा ख़याल है कि बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा, इस लिए आपको जल्द से जल्द उनकी परेशानी दूर करने का क़दम उठाना चाहिए।"

"हां लेकिन यहां मैं उनसे कैसे बात कर सकूंगी वैभव?" मामी ने जैसे अपनी समस्या ज़ाहिर की____"तुम्हें तो पता ही है कि यहां इतने लोगों के रहते मैं इस बारे में उनसे बात नहीं कर पाऊंगी और ये उचित भी नहीं होगा।"

"बात जब समस्या वाली हो मामी तो इंसान को ना तो उचित अनुचित के बारे में सोचना चाहिए और ना ही लोगों की परवाह करनी चाहिए।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"इंसान को सिर्फ ये सोचना चाहिए कि उसकी समस्या का जल्द से जल्द निदान हो जाए। वैसे इस समय भी कोई समस्या वाली बात नहीं है। इत्तेफ़ाक से मैंने मामा के सोने का इंतज़ाम यहीं ऊपर ही एक कमरे में कर दिया था। आप एक काम कीजिए, इसी समय उनके पास जाइए और उनसे उनकी परेशानी जान कर उनकी परेशानी को दूर करने का प्रयास कीजिए।"

"ये...ये तुम क्या कह रहे हो वैभव?" मामी ने एकदम से घबराहट जैसे अंदाज़ से मेरी तरफ देखा____"यहां सबके बीच इस तरह मैं उनसे कैसे मिल सकती हूं। लोगों को पता चला तो सब क्या सोचेंगे इस बारे में?"

"फिर से वही बात।" मैंने कहा____"आप फिर लोगों के बारे में सोचने लगीं? जबकि आपको किसी की परवाह न करते हुए सिर्फ अपनी समस्याओं को दूर करने के बारे में सोचना चाहिए। वैसे भी यहां किसी को कुछ पता नहीं चलने वाला। सब दिन भर के थके हुए हैं, बिस्तर में पहुंचते ही घोड़े बेंच कर सो गए होंगे। आप बेझिझक हो कर मामा के पास जाइए और मेरे बारे में तो आपको कुछ सोचने की ज़रूरत ही नहीं है क्योंकि मैं समझता हूं कि इस समय आपके लिए यही उचित है।"

मामी मुझे अपलक देखने लगीं। जैसे कुछ समझने की कोशिश कर रहीं हों। मैंने सोचा कि अगर उन्होंने इस बारे में ज़्यादा दिमाग़ लगाया तो इसी समय समझ जाएंगी कि मुझे सब कुछ पता है और इसी के चलते मैं उनको मामा के पास जाने के लिए ज़ोर दे रहा हूं। ज़ाहिर है इस बात को समझते ही उन्हें मेरे सामने शर्मिंदगी भी होगी जोकि इस वक्त मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता था।

बहरहाल मामी ने थोड़ी सी ना नुकुर की लेकिन मैंने किसी तरह उन्हें समझा बुझा कर मामा के कमरे में जाने के लिए मना ही लिया और खुद उन्हें ले कर मामा के कमरे के पास पहुंच गया। मामी मेरी वजह से बहुत ज़्यादा असहज महसूस कर रहीं थी। चेहरे पर लाज की सुर्खी भी छा गई थी। मैंने दरवाज़े पर दस्तक दी और फिर चुपचाप पलट कर अपने कमरे में आ गया। इस बीच मैंने दरवाज़ा खुलने की हल्की आवाज़ सुन ली थी। ज़ाहिर है दरवाज़े के बाहर अपनी पत्नी को खड़ा देख मामा उन्हें अंदर बुला ही लेंगे। अब इतना तो वो कर ही सकते थे।

✮✮✮✮

अगली सुबह मामा नीचे बरामदे में कुर्सी पर बैठे चाय पी रहे थे। उनके चेहरे पर खुशी की चमक दिख रही थी। कुछ दूरी पर मां चाची मामी और बाकी लड़कियां बैठी काम कर रहीं थी। मामा चाय पीते हुए बार बार मामी को देख रहे थे। मैंने जब ये देखा तो मुस्कुरा उठा।

"क्या हाल है मामा।" मैं उनके पास पहुंचते ही उनसे मुस्कुराते हुए पूछा____"इस हवेली में कल की रात कैसी गुज़री आपकी?"

मेरी बात सुनते ही मामा पहले तो सकपकाए फिर एकदम से मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और धीरे से कहा____"एकदम ज़बरदस्त भांजे।"

उधर मेरी आवाज़ रोहिणी मामी के कानों में भी पड़ चुकी थी जिसके चलते उन्होंने एक झटके से गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा। इत्तेफ़ाक से मेरी नज़र भी उनकी तरफ घूम गई। मेरी और मामी की नज़र मिली। घूंघट तो किया हुआ था उन्होंने लेकिन घूंघट का पल्लू इस वक्त सिर्फ उनके सिर को ढंके हुए था। मुझसे नज़र मिलते ही उनके चेहरे पर लाज और शर्म की लाली छा गई और उन्होंने शर्मा कर झट से अपना चेहरा वापस घुमा लिया। मेरे लिए ये समझ लेना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था कि उनको पता चल गया है कि ये सारा किया धरा मेरा ही था, बल्कि ये कहना चाहिए कि ये सारी योजना ही मामा भांजे की थी।

"फिर तो अच्छी बात है मामा।" मैंने अपनी आवाज़ को सामान्य से थोड़ा ऊंचा करते हुए कहा ताकि मामी भी सुन सकें____"उम्मीद करता हूं अब से हर रोज़ इसी तरह आपकी रात ज़बरदस्त गुज़रेगी।"

"तू मेरा सबसे अच्छा भांजा है वैभव।" मामा कुछ ज़्यादा ही खुश थे इस लिए अपनी खुशी को ज़ाहिर करते हुए बोले____"और मुझे हमेशा तुझ पर नाज़ रहेगा।"

"अरे! ऐसा क्यों कहते हैं मामा?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके चलते आपको हमेशा मुझ पर नाज़ रहेगा?"

"अरे! तेरी ही वजह से तो सबको खुशियां मिली हैं।" मामा ने अपनी बात एक बहाने के रूप में कही____"वरना सबके सब खुशियों के लिए तरस ही रहे थे।"

मैंने देखा, मामी ने गर्दन घुमा कर फिर से हमारी तरफ देखा। एक बार फिर से इत्तेफ़ाकन मेरी नज़र उनसे टकरा गई और उन्होंने एकदम से शर्मा कर अपना चेहरा वापस घुमा लिया। मैं समझ गया कि इस वक्त मामी अंदर ही अंदर बुरी तरह शर्मा रही हैं और शायद वो ये सोच कर भी चकित होंगी कि हम दोनों मामा भांजे कैसे इस तरह की बातें बहाने बहाने से कर रहे हैं।

"वैसे तो इसमें मेरा कोई विशेष योगदान नहीं है मामा।" मैंने उसी मुस्कान के साथ कहा____"पर यदि आप इसके लिए मुझे ही श्रेय दे रहे हैं तो मैं आपको बता दूं कि बदले में मुझे भी आपको कुछ देना होगा। सिर्फ बातें कह देने से काम नहीं चलेगा।"

"अरे! तू बता ना भांजे कि बदले में तुझे क्या चाहिए?" मामा ने एकदम से सीना चौड़ा करते हुए कहा____"तेरा ये मामा तुझे वचन देता है कि तू जो मांगेगा मैं तुझे दूंगा।"

"अच्छा क्या सच में?" मैंने ग़ौर से उनकी तरफ देखा।

"अरे! क्या तुझे अपने मामा पर भरोसा नहीं है भांजे?" मामा ने इस तरह की शक्ल बना कर कहा जैसे मैंने उनकी तौहीन कर दी हो।

"नहीं ऐसी तो बात नहीं है मामा।" मैंने एक नज़र मामी पर डालने के बाद कहा____"मैं तो बस ये कहना चाहता था कि वचन देने से पहले आपको अच्छी तरह सोच लेना चाहिए था कि मैं जो मांगूंगा आप वो दे भी सकेंगे या नहीं?"

"देख भांजे।" मामा ने जैसे निर्णायक भाव से कहा____"अब तो मैं तुझे वचन दे चुका हूं इस लिए अब कुछ सोचने विचारने का सवाल ही पैदा नहीं होता। तू बस बेझिझक हो के मांग जो तुझे चाहिए।"

मैंने देखा मामी चकित भाव से हमारी तरफ ही देखने लगीं थी। मैं उन्हें देख मुस्कुराया और फिर मामा से कहा____"ठीक है मामा, लेकिन मैं अपने लिए आपसे कुछ नहीं मागूंगा। मैं तो सिर्फ इतना ही चाहता हूं कि जैसे कल की रात आपके लिए अच्छी गुज़री है वैसी ही हर रात आपकी गुज़रे।"

"अरे! तू तो सच में मेरा कमाल का भांजा है वैभव।" मामा पहले तो हैरान हुए फिर खुशी से मुस्कुराते हुए बोले____"अपने लिए कुछ नहीं मांगा बल्कि मेरी खुशी की चाहत रखी।"

"क्यों न रखूं मामा।" मैंने एक बार फिर से मामी की तरफ एक नज़र डाली, फिर कहा____"आप मेरे सबसे अच्छे वाले मामा हैं और मुझे पता है कि खुशियों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत आपको है। रही मेरी बात तो, आप तो अच्छी तरह जानते हैं कि मुझे मौजूदा समय में किसी से कुछ मांगने की ज़रूरत ही नहीं है।"

"तुम दोनों मामा भांजे किस बारे में बातें कर रहे हो?" अचानक मां ने गर्दन घुमा कर हमारी तरफ देखते हुए पूछा तो मैं और मामा एकदम से हड़बड़ा गए। उधर मामी के चेहरे का भी रंग उड़ता नज़र आया। मां की बात सुन कर मामा ने जल्दी से खुद को सम्हाला और संतुलित भाव से कहा____"अरे! ये हमारी आपस की बातें हैं दीदी, आप नहीं समझेंगी।"

"अच्छा।" मां के माथे पर शिकन उभरी___"ऐसी भला कौन सी बातें कर रहे हो तुम दोनों जिन्हें मैं समझ ही नहीं सकती, हां?"

"भांजे अब क्या करें यार?" मामा एकदम से चिंतित हो कर मेरी तरफ देख बोले____"दीदी को क्या जवाब दूं? तू ही जल्दी से कुछ सोच और बता उन्हें।"

"क्या हुआ कुछ बोल क्यों नहीं रहा तू?" मां ने मामा की तरफ ध्यान से देखते हुए पूछा और फिर मेरी तरफ देखने लगीं।

"क्या मां आप भी अपना काम छोड़ कर हम मामा भांजे की बातों पर ध्यान देने लगीं।" मैंने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा____"हम तो बस ऐसे ही बातें कर रहे हैं, है ना मामा?"

"ह...हां हां और नहीं तो क्या?" मामा एकदम से हकलाते हुए बोल पड़े____"हम तो ऐसे ही समय बिताने के लिए बातें कर रहे हैं दीदी। आप मन लगा कर अपना काम कीजिए ना।"

मैंने देखा मामी हमारी तरफ देखते हुए मुस्कुराए जा रहीं थी। इधर मामा की बात सुन कर मां ने हम दोनों को बारी बारी से घूर कर देखा और फिर पलट कर सबके साथ काम में लग गईं। कहने की ज़रूरत नहीं कि हम दोनों मामा भांजे ने राहत की लंबी सांस ली।

"तूने फंसवा दिया था हम दोनों को।" फिर मामा ने धीरे से मुझसे कहा____"क्या ज़रूरत थी ऊंची आवाज़ में बातें करने की। अच्छा हुआ कि दीदी को समझ नहीं आया वरना हम दोनों की ख़ैर नहीं थी।"

"सही कह रहे हैं आप।" मैंने कहा____"बाल बाल बचे। मैं तो बस मामी को सुनाने के चक्कर में थोड़ा ऊंची आवाज़ में बोल रहा था। मुझे नहीं पता था कि मां भी हमारी बातें सुनने लगेंगी। वैसे क्या लगता है आपको, उन्हें हमारी बातें समझ आ गई होंगी?"

"क्या पता।" मामा ने कंधे उचकाए____"लेकिन अब इतना पता है कि हमें अब यहां से खिसक लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो तेरी मामी नाराज़ हो जाए और फिर वो मुझे अपने पास आने ही न दे। अगर एसा हुआ तो समझ ही सकता है कि तेरी दुआएं और चाहतें मिट्टी में ही मिल जाएंगी।"

मैंने मुस्कुराते हुए हां में सिर हिलाया। उसके बाद हम दोनों ही अपना अपना चाय का खाली प्याला वहीं छोड़ कर बाहर की तरफ खिसक लिए। मामी मुस्कुराते हुए हमें जाता देख रहीं थी।

बाहर बैठक में बाकी सब बैठे हुए थे और आज के कार्यक्रम की रणनीति बना रहे थे। मामा भी उनके बीच जा कर बैठ गए जबकि मैं हवेली से बाहर निकल गया। कई दिनों से मैं हवेली में ही था और इस वजह से मुझे घुटन सी होने लगी थी। वैसे तो मां चाची और मामी लोगों ने भी मुझसे कहा था कि अब से मैं हवेली में ही रहूं लेकिन मेरा मन अब थोड़ा ऊब चुका था। मैं बाहर की खुली हवा लेना चाहता था इस लिए मोटर साईकिल में बैठ कर चल दिया।

✮✮✮✮

मेरी मोटर साईकिल सीधा उस जगह पर पहुंच कर रुकी जहां पर अनुराधा का विदाई स्थल था। आज वातारण में थोड़ा कोहरे जैसी धुंध छाई हुई थी जिसकी वजह से धूप के ताप का बिल्कुल भी एहसास नहीं हो रहा था। मैंने अपने बदन पर ऊन का स्वेटर पहन रखा था।

अनुराधा के विदाई स्थल के पास पहुंच कर मैं घुटनों के बल कच्ची ज़मीन पर बैठ गया। इस जगह आने से एक अलग ही अनुभूति होती थी। कुछ समय के लिए जैसे मैं सब कुछ भूल जाता था। बंद पलकों में अनुराधा के साथ बिताए हुए लम्हों की तस्वीरें देखते हुए मैं बस उन्हीं में खो जाता था। उसके बाद सामने देखते हुए उससे काफी देर तक अपने दिल की बातें करता रहता। मैं उसको सब कुछ बताता था कि आज मेरे साथ क्या क्या हुआ और आगे क्या होने वाला है। फिर एकाएक मेरा मन उससे ये कहते हुए भारी हो जाता कि काश! तुम जीवित अवस्था में मेरे पास होती तो मुझे अलग ही खुशी होती। ऊपर बैठे विधाता से उसे वापस करने की मिन्नतें करता और अनुराधा से ये कहते हुए माफियां मांगता कि मेरे कुकर्मों की वजह से आज वो इस दुनियां में नहीं है।

कुछ समय बाद मैं उठा और वहीं से सरोज काकी के घर चल पड़ा। आज कई दिनों बाद मैं उसके घर आया था। मुझे आया देख वो बड़ा खुश हुई। मैंने पहले ही उसको बता दिया था कि भाभी के साथ मेरा विवाह होने वाला है और फिर रूपा के साथ भी।

"कल मेरी बेटी रूपा भी यहां अपनी एक बहन के साथ आई थी।" सरोज काकी ने कहा____"मुझसे कह रही थी कि अब वो विवाह होने तक मेरे पास नहीं आ पाएगी। इस लिए मैं अनूप के साथ ही उसके घर पर रहूं।"

"हां तो इसमें ग़लत क्या है काकी?" मैंने अधीरता से कहा____"तुम्हें उसके विवाह तक उसके घर पर ही रहना चाहिए।"

"हां मैं समझती हूं।" सरोज काकी ने कहा____"लेकिन थोड़ा संकोच होता है, ये सोच कर कि मैं एक मामूली से किसान की औरत हूं और वो बड़े लोग हैं।"

"छोटे बड़े जैसी कोई बात नहीं है काकी।" मैंने कहा____"अगर होती तो अब तक जो कुछ हुआ है वो न हुआ होता। क्या तुमने कभी महसूस किया है कि मैंने या मेरे घर वालों ने तुम्हें छोटा होने का एहसास कराया है अथवा रूपा और उसके घर वालों ने ऐसा कभी किया है?"

"मैं मानती हूं कि ऐसा तुम में से किसी ने नहीं किया वैभव।" सरोज काकी ने कहा____"और सच कहूं तो इसके लिए मैं खुद को बहुत सौभाग्यशाली समझती हूं लेकिन कहीं न कहीं मुझे अपनी स्थिति का एहसास तो होता ही है कि मैं एक छोटी हैसियत वाली हूं और मुझे अपनी हद में रहना चाहिए।"

"ऐसा कह कर तुम हम सबकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रही हो काकी।" मैंने संजीदा हो कर कहा____"हम में से किसी ने भी कभी तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ नहीं सोचा है। जहां प्रेम होता है वहां हैसियत वाली बात ही नहीं होती। अनुराधा से मिलने से पहले मैं हैसियत के बारे में सोच भी सकता था लेकिन उससे मिलने के बाद और उससे प्रेम होने के बाद मेरे दिलो दिमाग़ से हैसियत संबंधित बातों का वजूद ही मिट चुका है। अगर ऐसा न होता तो अनुराधा की मौत के बाद मैं उसे अपनी दुल्हन बना कर विदा न करता। आज भी मैं उसको अपनी पहली पत्नी ही मानता हूं और उस नाते तुम मेरी सास हो, अनूप मेरा साला है। क्या अब भी तुम्हें लगता है कि इसमें हैसियत की बात है? क्या अब भी तुम्हें लगता है कि तुम हम में से किसी से छोटी हो?"

"मुझे माफ़ कर दो वैभव।" सरोज काकी की आंखें भर आईं____"मैं यही समझ बैठी थी कि मेरी बेटी अनू के जाने के बाद तुमने ये रिश्ता मिटा दिया होगा।"

"नहीं, मैं ऐसा कभी नहीं कर सकता काकी।" मैंने गंभीरता से कहा____"और ना ही कभी करूंगा। मेरा प्रेम अनुराधा के गुज़र जाने से मिट जाने वाला नहीं है। मैंने तो उसके गुज़र जाने पर ही उसको अपनी पत्नी बनाया था तो अब ये रिश्ता मरते दम तक क़ायम रहेगा। तुम ही इस रिश्ते को ना मानो तो अलग बात है।"

"नहीं नहीं।" सरोज काकी जैसे तड़प उठी____"ऐसा मत कहो। ये सच है कि अभी तक मैं इस रिश्ते को महत्व नहीं दे रही थी लेकिन तुम्हारी ये बातें सुन कर मुझे एहसास हो गया है कि मैं ग़लत थी। मेरा यकीन करो बेटा, अब से मैं भी तुमको अपना दामाद ही मानूंगी और जीवन भर मानूंगी।"

"अगर तुम सच में ऐसा मानती हो।" मैंने कहा____"तो फिर अपने दामाद की बातें भी मानों काकी। रूपा ने तुम्हें अपनी मां कहा है और तुमने भी उसको अनुराधा की तरह अपनी बेटी माना है तो फिर इस रिश्ते को पूरी ईमानदारी से और पूरी निष्ठा से निभाओ। अगर उसके घर वाले चाहते हैं कि विवाह तक तुम उनके साथ ही रहो तो तुम्हें खुशी खुशी वहीं रहना चाहिए।"

"मैं अब रहूंगी बेटा।" सरोज काकी ने दृढ़ता से कहा____"अपनी बेटी रूपा को उसी तरह तुमसे विवाह कर के विदा करूंगी जैसे मैं अनुराधा को करती।"

कुछ देर और सरोज काकी से बातें हुईं उसके बाद मैं वहां से चल पड़ा। थोड़े ही समय में मैं भुवन से मिलने अपने खेतों पर पहुंच गया। भुवन खेतों पर ही था। मैं उससे मिला और उसे बरात में चलने का निमंत्रण भी दिया। भुवन इस बात से बड़ा खुश हुआ। उसके बाद मैं हवेली निकल गया।




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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
वैभव और उसके छोटे मामा के बीच का संवाद जो मामी को सुनाया बडा ही मस्त हैं
वैभव और सरोज काकी के बीच की बातें रुपा का बडप्पन दर्शाता हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
सावकार के घर में शहनाई बज के उनके दोनों बेटीयों की शादी राजी खुशी से संपन्न हो गई सभी ने सहभागी हो कर अपना अपना योगदान दिया
महेंद्रसिगं कुसुम का हाथ मांगने के लिये हवेली में आने पर मेनका ने जो वर्ताव किया वो गलत फहमी सुगंधादेवी ने समझाने के बाद शर्मिंदगी महसुस कर माफी मांग कर सब निर्णय दादा ठाकुर को लेने का कह गयी
वैभव से विवाह पक्का होने के बाद रागिणी खुश रहने से वंदना भाभी और खास कर कामिनी वैभव का बदला रुप देख कर संतुष्ट हो गई
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
वैभव का विवाह रागिणी और रुपा से होने की तारीख भी पक्की हो गई और ये भी तय हो गया की पहले वैभव और रागिणी का विवाह होगा और बाद मे रुपा का
तीनों परिवार विवाह की तयारी में जुट गये
रुपचंद्र का रुपा से मिल कर उससे बात करना और शादी के बारें में बताना रुपा का शर्माना बडा ही मस्त
शालिनी का रागिणी को छेडना और रागिणी का शर्माना और झुटमुट का गुस्सा होना साथ ही साथ रुपा के लिये उसके मन में आदरयुक्त प्रेम बहुत ही गजब हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
Bhai bhut achaa lik rahe ho bas ek request hai jab vaibhav bhabhi ki first night ho to bilkul detail me romantic aur erotic ho bass ekdam maja aa jaye aisa update likhna baki aap acha to likhte hi ho keep it up
बहुत ही सुंदर लाजवाब और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
वैभव और उसके छोटे मामा के बीच का संवाद जो मामी को सुनाया बडा ही मस्त हैं
वैभव और सरोज काकी के बीच की बातें रुपा का बडप्पन दर्शाता हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
Daily 2 updates ki aadat se hogai bhai, bar bar check karte rahna padra......
Koi baat nahi Shubham Bhai,

Take your time...........Intezar rahega
Thanks all...
Next update ready ho chuka hai... :declare:
 

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अध्याय - 161
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"मैं अब रहूंगी बेटा।" सरोज काकी ने दृढ़ता से कहा____"अपनी बेटी रूपा को उसी तरह तुमसे विवाह कर के विदा करूंगी जैसे मैं अनुराधा को करती।"

कुछ देर और सरोज काकी से बातें हुईं उसके बाद मैं वहां से चल पड़ा। थोड़े ही समय में मैं भुवन से मिलने अपने खेतों पर पहुंच गया। भुवन खेतों पर ही था। मैं उससे मिला और उसे बरात में चलने का निमंत्रण भी दिया। भुवन इस बात से बड़ा खुश हुआ। उसके बाद मैं हवेली निकल गया।



अब आगे....


वक्त बड़ा जल्दी जल्दी गुज़र रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसको कुछ ज़्यादा ही जल्दी थी रागिनी का अपने होने वाले पति वैभव से मिलन करवाने की। अभी कुछ दिन पहले ही उसके घर वाले वैभव का तिलक चढ़ाने रुद्रपुर गए थे और अब हल्दी की रस्म होने लगी थी। अब बस कुछ ही दिनों बाद घर में बरात आने वाली थी। सच में समय बड़ी तेज़ गति से गुज़र रहा था।

पूरे घर में खुशी का माहौल छाया हुआ था। सभी सगे संबंधी आ गए थे। सुबह से ही हर कोई भाग दौड़ करते हुए अपने अपने काम में लग गया था। गांव की औरतें आंगन में बैठी ढोलक बजा रहीं थी, गीत गा रहीं थी। संगीत की धुन में सब लड़कियां मिल कर नाच रहीं थीं।

वहीं एक तरफ रागिनी को हल्दी लगाई जा रही थी। हल्दी लगाने वालों की जैसे कतार सी लगी हुई थी। हर कोई उतावला सा दिख रहा था। उसकी भाभियां, उसकी बहनें, गांव की कुछ भाभियां और उसकी सहेली शालिनी। सब गाते हुए उसको हल्दी लगा रहीं थी।

रागिनी के गोरे बदन पर एक मात्र कपड़ा था जोकि उसका कुर्ता ही था जिसकी बाहें उसके कंधों से कटी हुईं थी। नीचे उसने सलवार नहीं पहनी थी लेकिन हां कच्छी ज़रूर पहन रखी थी। उसकी भाभियां जान बूझ कर उसके बदन के ऐसे ऐसे हिस्से पर हल्दी मल रहीं थी जहां पर उनके हाथों की छुवन और मसलन से रागिनी शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी। वो ऐसी जगहों पर हाथ लगाने से विरोध भी कर रही थी लेकिन कोई उसकी सुन ही नहीं रहा था। बार बार उसके कुर्ते के अंदर हाथ डाल दिया जाता। फिर उसके पेट, उसकी जांघें, उसकी पिंडलियां, उसके पैर, उसकी पीठ और उसके गले व सीने से होते हुए उसकी ठोस छातियों में भी ज़ोर लगा लगा कर हल्दी मली जाती। रागिनी कभी आह कर उठती तो कभी उसकी सिसकियां निकल जाती तो कभी चीख ही निकल जाती। शर्म के मारे उसका चेहरा हल्दी लगे होने बाद भी सुर्ख पड़ा हुआ नज़र आ रहा था। कुछ समय बाद बाकी सब चली गईं लेकिन शालिनी, वंदना और सुषमा उसके पास ही बैठी उसे हल्दी लगाती रहीं।

"क्यों मेरी बेटी को इतना परेशान किए जा रही हो तुम लोग?" सुलोचना देवी बरामदे में किसी काम से आईं तो उन्होंने रागिनी की हालत देख कर जैसे उन तीनों को डांटा____"कुछ तो शर्म करो। हल्दी लगाने का ये कौन सा तरीका है?"

"ये अवसर रोज़ रोज़ नहीं आता चाची।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"पिछली बार मेरी हसरत पूरी नहीं हो पाई थी लेकिन इस बार सारी ख़्वाहिश पूरी करूंगी मैं। आप जाइए यहां से। हमें हमारा काम करने दीजिए।"

"ठीक है तुम अपनी ख़्वाहिश पूरी करो।" सुलोचना देवी ने कहा____"लेकिन बेटी थोड़ा दूसरों का भी तो ख़याल करो। क्या सोचेंगे सब?"

"चिंता मत कीजिए चाची।" शालिनी ने कहा___"यहां अब कोई नहीं आने वाला। जिनको शुरू में रागिनी को हल्दी लगाना था वो लगा चुकी हैं। अब सिर्फ मैं और ये भाभियां ही हैं। बाकी बाहर वालों पर नज़र रखने के लिए मैंने कामिनी को बोल रखा है।"

सुलोचना देवी कुछ न बोलीं। वो बस रागिनी के शर्म से लाल पड़े चेहरे को देखती रहीं। रागिनी भी उन्हीं को देख रही थी। उसकी आंखों में एक याचना थी। जैसे कह रही हो कि इन बेशर्मों से उसकी जान बचा लीजिए। सुलोचना देवी को रागिनी की इस हालत पर बड़ी दया आई। वो जानतीं थी कि रागिनी इन मामलों में बहुत शर्म करती है लेकिन वो ये भी जानती थीं कि आज का दिन खुशी का दिन है। किसी को भी नाखुश करना ठीक नहीं था। वैसे भी सब उसके घर की ही तो थीं।

"इन्हें अपने मन की कर लेने दे बेटी।" फिर उन्होंने रागिनी को बड़े प्यार से देखते हुए कहा____"ये सब तेरी खुशियों से खुश हैं इस लिए आज के दिन तू भी किसी बात की शर्म न कर और इस खुशी को दिल से महसूस कर।"

ये कह कर सुलोचना देवी चली गईं। उनके जाने के बाद शालिनी जो उनके जाने की प्रतीक्षा ही कर थी वो फिर से शुरू हो गई। उसने बड़े से कटोरे से हाथ में हल्दी ली और वंदना भाभी को इशारा किया। वंदना ने मुस्कुराते हुए झट से रागिनी का कुर्ता पकड़ कर एकदम से उठा दिया। इधर जैसे ही कुर्ता उठा शालिनी ने हल्दी लिया हाथ झट से रागिनी के कुर्ते में घुसा दिया और उसकी सुडोल छातियों पर हल्दी मलने लगी। जैसे ही रागिनी को ये पता चला उसकी एकदम से चीख निकल गई।

"ऐसे मत चीख मेरी लाडो।" शालिनी ने हंसते हुए कहा____"ये तो कुछ भी नहीं है। सुहागरात को जब जीजा जी तेरी इन छातियों को मसलेंगे तब क्या करेगी तू? क्या तब भी तू ऐसे ही चीखेगी और हवेली में रहने वालों को पता लगवा देगी कि तेरे पतिदेव तेरे साथ क्या कर रहे हैं?"

"चुप कर कमीनी वरना मुंह तोड़ दूंगी तेरा।" रागिनी ने एक हाथ से उसके बाजू में ज़ोर से मारते हुए कहा____"कैसी बेशर्म हो गई है तू। जो मुंह में आता है बोल देती है।"

"मार ले जितना मारना है मुझे।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन मैं तो आज तेरे साथ ऐसे ही मज़े लूंगी, क्यों वंदना भाभी?"

"हां शालिनी।" वंदना ने जैसे उसका साथ देते हुए कहा____"आज तो पूरा मज़ा लेना है रागिनी से। आज हम दोनों मिल कर इसकी सारी शर्म दूर कर देंगे ताकि सुहागरात को इसे अपने पति से कोई शर्म महसूस न हो।"

"हाय राम! भाभी आप भी इस कलमुही का साथ दे रही हैं?" रागिनी ने आश्चर्य से आंखें फैला कर वंदना को देखा____"कम से कम आप तो मुझ पर रहम कीजिए।"

"रागिनी सही कह रही हैं दीदी।" बलवीर सिंह की पत्नी सुषमा ने वंदना से मुस्कुराते हुए कहा____"हमें रागिनी पर रहम करना चाहिए। मेरा मतलब है कि इनकी छातियों पर हल्दी लगा कर छातियों को नहीं मसलना चाहिए। आख़िर वहां पर हाथ लगाने का हक़ तो हमारे जीजा जी का है। शायद इसी लिए हमारी ननद रानी को भी हमारा इनकी छातियों पर हाथ लगाना पसंद नहीं आ रहा है।"

"अरे! हां ये तो तुमने सही कहा सुषमा।" वंदना ने हैरानी से उसकी तरफ देखा____"अब समझ आया कि मेरी लाडो क्यों इतना गुस्सा कर रहीं हैं।"

रागिनी ये सुन कर और भी बुरी तरह शर्मा गई। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्या करे जिसके चलते उसे ये सब न सुनना पड़े। ऐसा नहीं था कि उसे इन सबकी बातों से सचमुच का गुस्सा आ रहा था बल्कि सच ये था कि उसको ज़रूरत से ज़्यादा शर्म आ रही थी।

"बात तो आपने सच कही भाभी।" शालिनी ने कहा____"मुझे भी मज़ा लेने के चक्कर में ये ख़याल नहीं रहा था कि वहां पर हाथ लगाने का हक़ तो हमारे जीजा जी का है।" कहने के साथ ही शालिनी ने रागिनी से कहा____"अगर ऐसी ही बात थी तो तूने बताया क्यों नहीं हमें? यार सच में ग़लती हो गई ये तो।"

"तू ना चुप ही रह अब।" रागिनी को कुछ न सुझा तो झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोल पड़ी____"और अब मुझे हाथ मत लगाना। मुझे नहीं लगवानी अब हल्दी वल्दी। जाओ सब यहां से।"

"अरे! गुस्सा क्यों होती है?" शालिनी ने हल्दी लिया हाथ उसके गाल पर मलते हुए कहा____"अभी तो और भी जगह बाकी है जहां हल्दी लगानी है।"

"तू ऐसे नहीं मानेगी ना रुक तू।" कहने के साथ ही रागिनी ने बिजली की सी तेज़ी से कटोरे से हल्दी ली और झपट कर शालिनी के ब्लाउज में हाथ डाल कर उसकी बड़ी बड़ी छातियों को हल्दी लगाते हुए मसलने लगी।

अब चीखने चिल्लाने की बारी शालिनी की थी। वो सच में इतना ज़ोर से चिल्लाई कि आंगन में गीत गा रही औरतें एकदम से चौंक कर इधर देखने लगीं। शालिनी को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसकी इतनी संस्कारी सहेली इतना बड़ा दुस्साहस कर बैठेगी। उधर वंदना और सुषमा भी चकित भाव से रागिनी को देखने लगीं थी।

"अब बोल कमीनी।" रागिनी बदस्तूर उसकी छातियों को मसलते हुए बोली____"बता अब कैसा लग रहा है तुझे? बहुत देर से तेरा नाटक देख रही थी मैं। अब बताती हूं तुझे।"

"वंदना भाभी बचाइए मुझे।" शालिनी चिल्लाई____"कृपया बचाइए इससे। इस पर भूत सवार हो गया है लगता है। रागिनी छोड़ दे, ना कर ऐसा।"

"क्यों न करूं?" रागिनी ने अचानक ही उसकी एक छाती को ज़ोर से मसल दिया जिससे शालिनी और जोरों से चीख पड़ी, उधर रागिनी ने कहा____"अभी तक तू जो कर रही थी वो क्या सही कर रही थी तू, हां बता ज़रा?"

"माफ़ कर दे मुझे।" शालिनी उससे छूटने का प्रयास करते हुए बोली____"मैं तो बस हल्दी लगा रही थी तुझे।"

"हां तो मैं भी अब हल्दी ही लगा रही हूं तुझे।" रागिनी ने कहा____"तू भी अब वैसे ही लगवा जैसे मुझे लगा रही थी तू।"

इससे पहले कि आंगन में बैठी गीत गा रही औरतें इस तरफ आतीं वंदना और सुषमा ने हस्ताक्षेप किया और किसी तरह रागिनी को समझा बुझा कर शालिनी से छुड़वाया। दोनों ही बुरी तरह हांफने लगीं थी।

"तेरे अंदर कोई भूत आ गया था क्या?" शालिनी ने अपनी उखड़ी सांसों को काबू में करने का प्रयास करते हुए रागिनी से कहा____"ऐसा कैसे कर सकती थी तू? पागल तो नहीं हो गई थी?"

"तुम सब मेरी शर्म दूर कर रही थी ना?" रागिनी ने हांफते हुए कहा____"तो ऐसा कर के मैं भी अपनी शर्म ही दूर कर रही थी। अब बता कैसा लगा तुझे?"

"कैसा लगा की बच्ची।" शालिनी ने अपने सीने पर लगी हल्दी को देखते हुए कहा____"पूरा ब्लाउज ख़राब कर दिया मेरा। अब घर कैसे जाऊंगी मैं?"

"सबको दिखाते हुए जाना।" रागिनी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"लोगों को पता तो चलेगा कि तू हल्दी लगवा रही थी किसी से।"

"रुक जा बेटा।" शालिनी ने जैसे धमकी देते हुए कहा____"इसका बदला ले कर रहूंगी मैं। जिस दिन जीजा जी बरात ले कर आएंगे उस दिन उनसे ही शिकायत करूंगी तेरी।"

"हां कर देना।" रागिनी के चेहरे पर शर्म की हल्की लाली उभर आई____"मैं क्या डरती हूं किसी से।"

"हां ये बात तो मैं मानती हूं रागिनी।" सहसा वंदना ने मुस्कुराते हुए कहा____"तुम अपने होने वाले पति से नहीं बल्कि वो खुद ही तुमसे डरते हैं।"

"अच्छा क्या सच में?" सुषमा पूछे बगैर न रह सकी____"क्या सच में जीजा जी रागिनी से डरते हैं?"

"और नहीं तो क्या?" वंदना ने कहा____"पिछली बार जब आए थे तो मैंने इन दोनों की बातें सुनी थी।"

"भाभी नहीं।" रागिनी एकदम से हड़बड़ा गई, फिर मिन्नत सी करते हुए बोली____"कृपया उन बातों को किसी को मत बताइए ना। आपने मुझसे वादा किया था कि आप किसी से नहीं कहेंगी।"

"अच्छा ठीक है नहीं कहती।" वंदना ने रागिनी की मासूम सी शक्ल देखी तो उसे उस पर तरस सा आ गया____"लेकिन ये तो सच ही है ना कि हमारे होने वाले जीजा जी मेरी प्यारी ननद रानी से डरते हैं।"

"ऐसा कुछ नहीं है।" रागिनी ने शर्म से नज़रें चुराते हुए कहा____"आप ऐसे ही झूठ मूठ मत बोलिए।"

"हां तो तू ही बता दे ना कि सच क्या है?" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"वो डरते हैं या तुझसे बेपनाह प्यार करते हैं?"

"मुझे नहीं पता।" रागिनी शर्म से सिमट सी गई____"अच्छा अब अगर हल्दी वाला काम हो गया हो तो मैं नहा लूं। अंदर बहुत अजीब सा महसूस हो रहा है।"

"अंदर??" शालिनी हौले से चौंकी____"अंदर कहां अजीब सा महसूस हो रहा है तुझे। नीचे या ऊपर?"

"तू न अब पिटेगी मुझसे।" रागिनी ने उसको घूरते हुए कहा____"बहुत ज़्यादा मत बोल।"

"लो मैं कहां ज़्यादा बोल रही हूं?" शालिनी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा____"पूछ ही तो रही हूं कि नीचे अजीब सा महसूस हो रहा है या ऊपर?"

"शालिनी मत तंग करो मेरी लाडो को।" वंदना को रागिनी पर बहुत ज़्यादा स्नेह आ रहा था इस लिए उसने उसके चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा____"बड़ी मुद्दत के बाद तो मेरी ननद रानी के चेहरे पर खुशियों के रंग नज़र आए हैं।"

वंदना की इस बात से सहसा माहौल गंभीर सा होता नज़र आया किंतु जल्दी ही शालिनी ने इस माहौल को अपने मज़ाक से दूर कर दिया। थोड़ी देर और इधर उधर का हंसी मज़ाक हुआ उसके बाद सुलोचना देवी के आवाज़ देने पर वंदना उठ कर उनके पास चली गईं। इधर शालिनी और सुषमा रागिनी को ले कर चल पड़ीं

✮✮✮✮

हवेली के बड़े से आंगन में एक जगह तंबू बनाया गया था जिसके नीचे मैं एक छोटे से सिंघासन पर बैठा था। मेरे जिस्म पर इस वक्त मात्र कच्छा ही था, बाकी पूरा बलिष्ट जिस्म बेपर्दा था। तीन तरफ के बरामदे में औरतें बैठी गीत गा रहीं थी। कुछ गांव की औरतें थीं कुछ दूसरे गांव की जो पिता जी के मित्रों के घर से आई हुईं थी। बड़े से आंगन में दोनों तरफ मेरी बहनें और मेरी मामियां नाच रहीं थी। पूरा वातावरण संगीत, ढोल नगाड़े और नाच गाने से गूंज रहा था और गूंजता भी क्यों नहीं...आज हल्दी की रस्म जो थी।

आंगन के बीच लगे तंबू के नीचे मैं सिंघासन पर बैठा था और एक एक कर के सब मुझे हल्दी लगा रहे थे। मां, मेनका चाची, निर्मला काकी, महेंद्र सिंह की पत्नी सुभद्रा देवी, ज्ञानेंद्र सिंह की पत्नी माया देवी, अर्जुन सिंह की पत्नी रुक्मणि देवी, संजय सिंह की पत्नी अरुणा देवी सबने एक एक कर के मुझे हल्दी लगाई। उसके बाद सभी मामियों ने मुझे हल्दी लगाया। कुसुम ने खुशी से चहकते हुए मुझे हल्दी लगाई। मामी की दोनों बेटियां सुमन और सुषमा ने भी लगाई।

छोटे मामा की पत्नी यानि रोहिणी मामी जब मुझे हल्दी लगाने आईं तो मैं उन्हें देख मुस्कुराने लगा। पहले तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया और शायद उन्हें याद भी नहीं था किंतु जब मैं उन्हें देखते हुए अनवरत मुस्कुराता ही रहा तो मानों एकदम से उन्हें उस रात का किस्सा याद आ गया जिसके चलते एकदम से उनके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई और वो नज़रें चुराते हुए मुझे हल्दी लगाने लगीं। गुलाबी होठों पर शर्म मिश्रित मुस्कान थी जिसे वो छुपा नहीं पा रहीं थी।

"क्या हुआ मामी?" मैं उनकी हालत पर मज़ा लेने का सोच कर पूछा____"अब तो आपके चेहरे पर अलग ही नूर दिखने लगा है। मामा की परेशानी दूर हो गई है क्या?"

"चुप करो।" वो एकदम से झेंप सी गईं____"बहुत बदमाश हो गए हो तुम।"

"अब ये क्या बात हुई मेरी प्यारी मामी?" मैंने उन्हें छेड़ा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके चलते आप मुझे बदमाश कहने लगीं?"

"अब तुम मेरा मुंह न खोलवाओ।" मामी ने अपनी शर्म को छुपाते हुए मुस्कुरा कर कहा____"तुम दोनों मामा भांजे की बदमाशी समझ गई हूं मैं।"

"ये आप क्या कह रही हैं मामी?" मैंने इधर उधर नज़र घुमा कर उनसे कहा____"खुल कर बताइए ना कि आप क्या समझ गईं हैं?"

"तुम्हें शर्म नहीं आती लेकिन मुझे तो आती है ना?" मामी ने हल्दी लगे हाथ से मेरे दाहिने गाल पर थोड़ा जोर से ठेला। स्पष्ट था कि उन्होंने एक तरह से मुझे इस तरीके से चपत लगाई थी, बोलीं____"मुझे उस रात ही समझ जाना चाहिए था कि तुम दोनों मामा भांजे कौन सी खिचड़ी पका रहे थे।"

"लो जी, अब ये क्या बात हुई भला?" मैं मन ही मन हंसा____"मैं मासूम भला कौन सी खिचड़ी पका सकता हूं? मैं तो बस मामा की परेशानी दूर करना चाहता था और इसी लिए आपको उनके पास भेजा था। क्या उस रात उन्होंने आपको परेशान किया था?"

"और नहीं तो क्या?" मामी का चेहरा कुछ ज़्यादा ही शर्म से लाल पड़ गया। नज़रें चुराते हुए बोलीं____"उन्होंने मुझे बहुत ज़्यादा परेशान किया और ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है।"

"हे भगवान!" मैंने जैसे आश्चर्य ज़ाहिर किया____"मैंने तो अच्छा ही सोचा था। ख़ैर ये तो बताइए कि मामा ने आपको किस बात से परेशान किया था? सुबह उनसे पूछा था लेकिन उन्होंने मुझे कुछ बताया ही नहीं था। आप ही बताइए ना कि आख़िर उस रात क्या हुआ था?"

"सच में बहुत बदमाश हो तुम।" मामी ने मुझे घूरते हुए किंतु मुस्कुरा कर कहा____"और बेशर्म भी। अपनी मामी से ऐसी बातें करते हुए ज़रा भी शर्म नहीं आती तुम्हें।"

"पर मैंने तो ऐसा कुछ आपसे कहा ही नहीं जिसमें मुझे शर्म करनी चाहिए।" मैंने अंजान बनने का दिखावा करते हुए कहा____"मैं तो बस आपसे पूछ रहा हूं कि उस रात क्या हुआ था?"

"क्या सच में तुम नहीं जानते?" मामी ने इस बार मुझे उलझनपूर्ण भाव से देखा।

"अगर जानता तो आपसे पूछता ही क्यों?" मैंने मासूम सी शक्ल बना कर कहा____"बताइए ना कि क्या हुआ उस रात?"

"कुछ नहीं हुआ था।" मामी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"और अगर कुछ हुआ भी था तो तुम्हारे बताने लायक नहीं है। अब चुपचाप हल्दी लगवाओ, बातें न करो।"

उसके बाद मामी ने मुझे हल्दी लगाई और फिर वो मुस्कुराते हुए चलीं गईं। मैं भी ये सोचते हुए मुस्कुराता रहा कि मामी भी कमाल ही हैं। ख़ैर ऐसे ही कार्यक्रम चलता रहा।

✮✮✮✮

रूपचंद्र के घर में नात रिश्तेदारों का आना शुरू हो गया था। हर रोज़ कोई न कोई आ ही रहा था। साहूकारों के चारो भाईयों के ससुराल वाले, बेटियों के ससुराल वाले। शिव शंकर की बड़ी बेटी नंदिनी का विवाह पहले ही हो चुका था वो भी अपने पति के साथ आ गई थी। मणि शंकर की नव विवाहिता बेटियां आरती और रेखा तो पहले से ही यहीं थी इस लिए उनके ससुराल से दोनों के पति आए हुए थे जो आपस में भाई ही थे।

मणि शंकर के बड़े बेटे चंद्रभान की ससुराल से यानि रूपा की भाभी कुमुद के मायके से उसके भैया भाभी आ गए थे। दूसरी तरफ हरि शंकर के बड़े बेटे और रूपचंद्र के बड़े भाई यानि मानिकचंद्र की ससुराल से उसकी पत्नी नीलम के भैया भाभी कल आने वाले थे। कहने का मतलब ये कि हर रोज़ कोई न कोई मेहमान आ रहा था। हर कोई अपने साथ कुछ न कुछ ले कर आ रहा था। यही सब लोग कुछ समय पहले तब जमा हुए थे जब मणि शंकर की दोनों बेटियों का विवाह हुआ था।

घर काफी बड़ा था इस लिए मेहमानों के रहने की कोई दिक्कत नहीं थी। गौरी शंकर और रूपचंद्र जो अब तक अकेले ही सब कुछ सम्हाल रहे थे उनकी मदद के लिए अब काफी सारे लोग हो गए थे। घर की साफ सफाई और पोताई तो कुछ समय पहले ही हुई थी लेकिन रूपा के विवाह के लिए उसे फिर से पोताया जा रहा था। घर में काफी चहल पहल हो गई थी। इस घर में औरतें और बहू बेटियां तो पहले से ही ज़्यादा थीं लेकिन नात रिश्तेदारों से भी आ गईं थी जिसके चलते और भी भीड़ जमा हो गई थी।

सबको पता था कि रूपा का विवाह इसी गांव के दादा ठाकुर के बेटे वैभव सिंह से होने वाला है। सबको ये भी पता लग चुका था कि रूपा अपने होने वाली पति की दूसरी पत्नी बनने वाली है और उसकी पहली पत्नी दादा ठाकुर की अपनी ही विधवा बहू होगी। इतना ही नहीं सबको ये भी पता लग चुका था कि आज हवेली में रूपा के होने वाले पति की हल्दी की रस्म है। हर कोई इस बात के बारे में अपनी अपनी समझ से चर्चा कर रहा था। गौरी शंकर और रूपचंद्र से जब भी कोई इस बारे में कुछ कहता अथवा पूछता तो वो बड़े तरीके से सबको बताते और समझाते भी जिसके चलते सब उनकी बातों से सहमत हो जाते। आख़िर इतना तो सबको पता ही था कि कुछ समय पहले इन लोगों ने दादा ठोकर के परिवार के साथ क्या किया था।

घर के अंदर रूपा के कमरे में अलग ही नज़ारा था। ढेर सारी औरतें और लड़कियों ने उसे घेर रखा था और तरह तरह की बातों के द्वारा वो रूपा की हालत ख़राब किए हुए थीं। कमरे में हंसी ठिठोली गूंज रही थी।

सबकी सर्व सम्मति से ये तय हुआ था कि अगले हप्ते रूपा की हल्दी वाली रस्म होगी। हालाकि सबको इतनी खुशी थी कि समय से पहले ही घर में रूपा की बड़ी भाभी यानि कुमुद उसको हल्दी और आटे का उपटन लगाने लगीं थी ताकि रूपा के बदन पर अलग ही निखार आ जाए।

घर के अंदर बाकी औरतें ऐसी ऐसी चीज़ें बनाने में लगी हुईं थी जो विवाह के समय बनाई जाती हैं। मसलन, आटे की, बेसन की और मैदे की चीज़ें पूरियां और गोली वगैरह। कुछ औरतें अनाज बीनने में लगीं हुईं थी। कुछ काम करते हुए गाना भी गाए जा रही थीं। एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था।




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बहुत ही जबरदस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
रागिणी को आखिर हल्दी लग ही गयी लेकीन वहा शालिनी और रागिणी के बीच जो हुआ वो बडा ही मस्त वाकया हैं
वैभव को हल्दी लग ही गयी वहा भी वैभव ने छोटी मामी को रात की बात करके जो छेडा वो बडा ही मजेदार हैं
सावकारों के घर में भी रुपा के हल्दी की तयारी जोरशोर हो रही हैं
खैर देखते हैं आगे
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
116,951
354
अध्याय - 164
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सरला ने लपक कर मेरे लंड को मुंह में भर लिया और मेरा वीर्य पीने लगी। आनंद की चरम सीमा में पहुंचने के बाद मैं एकदम शांत पड़ गया। उधर सरला सारा वीर्य गटकने के बाद अब मेरे लंड को चाट रही थी। बड़ी की कौमुक और चुदक्कड़ औरत थी शायद।


अब आगे....


तीन दिन मानों पंख लगा कर उड़ गए और विवाह का दिन आ गया। हवेली किसी दुल्हन की तरह सजी हुई थी। पिता जी मानों सब कुछ भूल कर इस पल को जी लेना चाहते थे। तभी तो ठीक उसी तरह हवेली को सजवाया था जैसे बड़े भैया के विवाह के समय सजवाया था। थोड़ा भावुक से नज़र आ रहे थे वो, कदाचित बड़े बेटे का इसी तरह विवाह करना याद आ गया था उन्हें। मां का भी यही हाल था लेकिन वो किसी तरह अपने जज़्बातों को काबू में रखे हुए थीं।

एक तरफ मुझे सजाया जा रहा था। अमर मामा मुझे सजता देख बड़ा खुश थे। हर कोई खुश था। मेरी बहनें पहले से ही सज धज कर तैयार थीं और मेरे पास ही बैठी हुईं थी। कुसुम का बस चलता तो वो खुशी के मारे उछलने कूदने लगती लेकिन जाने कैसे खुद को रोक रखा उसने? विभोर और अजीत भी सज धज कर तैयार थे। दोनों के चेहरे खुशी से चमक रहे थे। हवेली के अंदर औरतें गीत गा रहीं थी।

हवेली के बाहर पहले से ही ढोल नगाड़े बज रहे थे। बारात में जाने के लिए काफी लोग जमा हो गए थे। पिता जी को पहले से ही पता था कि लोग ज़्यादा होंगे इस लिए शहर से उन्होंने एक बस गाड़ी बुला लिया था। मेरे लिए यानि दूल्हे के लिए एक चमचमाती एंबेसडर कार आ गई थी। हमारे पास पहले से ही चार जीपें थी। महेंद्र सिंह की दो जीपें थी, अर्जुन भी अपनी दो जीपें ले आए थे। वहीं अवधेश मामा और अमर मामा की जीपें भी थी। हवेली के विशाल मैदान में वाहन ही वाहन दिख रहे थे। पिता जी ने बारात में चलने के लिए रूपचंद्र और गौरी शंकर को भी निमंत्रण दिया था इस लिए वो भी आ गए थे। उनके घर से फूलवती और सुनैना देवी भी इस वक्त हवेली में मौजूद थी और सबके साथ गीत गा रहीं थी।

आख़िर शाम होने से पहले ही मुझे दूल्हा बना कर अंदर से बाहर लाया जाने लगा। औरतें गीत गा रहीं थी और धीरे धीरे मुझे बाहर ला रहीं थी। मैं आज दूल्हा बना हुआ था। मुझे इस तरह सजाया गया था कि जैसे ही मैं बाहर आया सबके सब मुझे ही देखते रह गए। अचानक ही वातावरण बंदूकों के तेज़ धमाकों से गूंजने लगा। सबसे पहले महेंद्र सिंह ने अपनी बंदूक की नाल ऊपर कर के मानों सलामी। उनके बाद ज्ञानेंद्र सिंह, अर्जुन सिंह, संजय सिंह। पिता जी की बंदूक बड़े मामा ले रखे थे इस लिए उन्होंने एक के बाद एक फायर किया। ढोल नगाड़ों का शोर कुछ और ज़्यादा होने लगा। रूपचंद्र मुझे देखते ही मेरे पास भाग कर आया। मुझे देख वो बड़ा खुश हुआ।

अमर मामा ने मुझे कार में बैठाया। मां और मेनका चाची मेरी आरती उतार कर मुझे तिलक करने लगीं। एकाएक फिर से वातावरण में शोर उठा। मैंने देखा कार के सामने अमर मामा नाचने लगे थे। ये देख एक एक कर के बाकी लोग भी नाचने लगे। थोड़ी देर बाद जब वो रुके तो मेरी मामियां नाचने लगीं। कुसुम, सुमन और सुषमा भी नाचने लगीं।

"भाभी श्री बेटे का विवाह होने जा रहा है आज।" सहसा महेंद्र सिंह मां के पास आ कर बोले____"इस शुभ अवसर पर आपको भी खुशी से नाचना चाहिए।"

"हां जी क्यों नहीं।" मां ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन आपको भी हमारे साथ नाचना होगा।"

"अरे! ये भी कोई कहने की बात है भला।" महेंद्र सिंह ने हंसते हुए कहा____"हम तो वैसे भी अपने मित्र के साथ नाचने का सोच चुके थे। आपके साथ नाचना तो हमारे लिए बड़े सौभाग्य की बात है।"

"अच्छा जी ऐसा है क्या?" मां मुस्कुराईं___"तो फिर चलिए। हम भी तो देखें कि आप हमारे साथ कितना उछलते हैं।"

सबने मां और महेंद्र सिंह की बातें सुन ली थी। इस लिए सब उन्हें ही देखने लगे थे। अर्जुन सिंह तेज़ी से आए और गाना बजाने वालों को रोक कर अच्छा सा गाना बजाने को कहा। फिर क्या था वो बजाने लगे। इधर जैसे ही गाना बजना शुरू हुआ तो मां आगे बढ़ीं और नाचने लगीं। उन्हें नाचता देख सभी औरतें लड़कियां आंखें फाड़ कर उन्हें देखने लगीं। महेंद्र सिंह मुस्कुराते हुए आगे बढ़े और मां के साथ वो भी नाचने लगे। ये देख अर्जुन सिंह वगैरह सब के सब खुशी से चीखने लगे। ज्ञानेंद्र सिंह आज अपने बड़े भाई साहब को इस तरह नाचते देख पहले तो हैरान हुआ फिर खुशी से तालियां बजाने लगा। पलक झपकते ही सबको पता चल गया कि हवेली की बड़ी ठकुराईन और महेंद्र सिंह नाच रहे हैं। इस लिए सब के सब उस जगह की तरफ भागते हुए आए।

मां और महेंद्र सिंह नाचने में लगे हुए थे। मां का तो ख़ैर समझ में भी आ रहा था लेकिन महेंद्र सिंह ऐसे ही उछल रहे थे। उन्हें ताल अथवा रिदम से कोई मतलब नहीं था। सहसा उनकी नज़र मेनका चाची पर पड़ी तो नाचते हुए एकाएक वो उनकी तरफ बढ़ चले। मेनका चाची ये देख चौंकी।

"मझली ठकुराईन आप इस तरह चुपचाप क्यों खड़ी हैं?" फिर उन्होंने चाची से कहा____"आप तो वैभव की चाची हैं। आपको भी तो इस खुशी के अवसर पर नाचना चाहिए, आइए न।"

मेनका चाची उनकी बात सुन कर घबरा सी गईं। घूंघट किए वो पिता जी की तरफ देखने लगीं। उनके पीछे खड़ी औरतें उन्हें पीछे से धकेलने लगीं और कहने कि आप भी नाचिए मझली ठकुराईन। पिता जी ने शायद इशारा कर दिया था इस लिए चाची ने पलट कर महेंद्र सिंह की तरफ देखा।

"आइए न ठकुराईन।" महेंद्र सिंह ने बड़े प्रेम भाव से कहा____"हमसे अब शर्माने की ज़रूरत नहीं है। हम तो वैसे भी आने वाले समय में एक नए रिश्ते में बंध जाएंगे। क्या आपको अभी भी हमारा प्रस्ताव मंज़ूर नहीं है?"

मेनका चाची बोली तो कुछ न लेकिन आगे ज़रूर बढ़ कर आ गईं। ये देख महेंद्र सिंह खुश हो गए। मां थोड़ी देर के लिए रुक गईं थी। शायद नाचने से उनकी सांसें फूल गईं थी। उधर जैसे ही चाची आगे आईं तो अर्जुन सिंह ने दूसरा गाना बजाने का हुकुम दिया। जैसे ही दूसरा गाना बजा महेंद्र सिंह ने खुद ही नाचना शुरू कर दिया। मैं कार में बैठा ये सब देख रहा था। सबको इस तरह नाचते देख मुझे भी अच्छा लग रहा था।

महेंद्र सिंह को नाचता देख चाची भी नाचने लगीं। ये देख विभोर और अजीत खुशी से झूम उठे। वो दोनों भी अपनी मां के साथ नाचने लगे। मैंने देखा मेनका चाची सच में बहुत अच्छा नाच रहीं थी। महेंद्र सिंह ने फिर से मां को बुला लिया तो मां भी आगे बढ़ कर नाचने लगीं। पिता जी दूर से ये सब देख रहे थे। उनके चेहरे पर भी खुशी के भाव थे। सहसा महेंद्र सिंह पलटे और जा कर पिता जी का हाथ पकड़ लिया।

"ठाकुर साहब।" फिर वो बोले____"आप भी आइए न। इस शुभ अवसर पर आज आपको भी नाचना पड़ेगा। कृपया इंकार मत कीजिएगा।"

पिता जी सच में इंकार नहीं कर सके। उन्होंने मुस्कुराते हुए हां कहा और फिर उन्होंने अर्जुन सिंह और संजय सिंह को भी बुला लिया। वो दोनों भी हंसते हुए आ गए। उसके बाद शुरू हुआ ठुमकना। ये देख हर कोई ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा। एक बार फिर से वातावरण में बंदूकें गरज उठीं।

जीवन में आज पहली लोग दादा ठाकुर को नाचते हुए देख रहे थे। उनके लिए जैसे ये पल बड़ा ही अद्भुत था। देखते ही देखते मामा लोग और बाकी लोग भी नाच में शामिल हो गए। शेरा, भुवन और रूपचंद्र भी नाचने लगे। सच में अद्भुत नज़ारा दिखने लगा था।

आख़िर कुछ देर बाद सबका नाचना बंद हुआ। पिता जी ने कहा कि अब चलना चाहिए, आगे देवी मां के मंदिर में अभी पूजा भी करनी है। उनके कहने पर सब बाराती लोग वाहनों में बैठने लगे। कुछ ही देर में काफ़िला हाथी दरवाज़े की तरफ बढ़ चला। सभी औरतें भी गीत गाते हुए आने लगीं।

थोड़ी ही देर में हम सब मंदिर पहुंच गए। मामा जी के कहने पर मैं कार से उतरा और जूते उतार कर मंदिर की तरफ बढ़ चला। मंदिर में पूजा की मैंने, नारियल तोड़ा। थोड़ी देर वहां भी नाच गाना हुआ उसके बाद फिर से बारात चल पड़ी। कुसुम के साथ सुमन और सुषमा मेरी कार में मेरे साथ ही बैठ गईं थी। उनके साथ अमर मामा भी थे। सभी औरतें मंदिर से ही वापस हवेली लौट गईं जबकि हम सब चंदनपुर के लिए चल पड़े थे।

✮✮✮✮

चंदनपुर में भी कम रौनक नहीं थी। पूरा घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था। घर के बाहर बड़े से मैदान में चारो तरफ चांदनी लगी हुई थी। चाचा ससुर का घर बगल से ही था इस लिए दोनों घरों के बीच जो लकड़ी की बाउंड्री होती थी उसे हटा कर चौगान को एक कर दिया गया था ताकि ना तो इधर से उधर आने जाने में समस्या हो और ना ही बारातियों को बैठने के लिए जगह कम पड़े। हर जगह चांदनी लगी हुई थी। मैदान अच्छे से साफ कर दिया गया था।

वीरेंद्र सिंह, बलवीर सिंह और वीर सिंह तीनों भागे भागे फिर रहे थे। उनकी ससुराल से आए लोग भी कामों में लगे हुए थे। सबको समझा दिया गया था कि बारात के आते ही क्या क्या करना है और कैसे कैसे करना है। सबसे पहले बारातियों का अच्छे से स्वागत करना है। जल पान, नाश्ता वगैरह देना है। ये सारी बातें कल से ही समझाई जा रहीं थी।

घर के अंदर आंगन में मंडप था जहां पर विवाह होना था। ढेर सारी औरतें अलग अलग कामों में लगी हुईं थी। एक तरफ बरातियों के लिए तरह तरह के पकवान बनाए जा रहे थे।

वहीं एक कमरे में रागिनी पलंग पर मेंहदी लगाए बैठी थी। उसके चारो तरफ लड़कियों की भीड़ थी। उन सबकी मुखिया मानों शालिनी थी। गांव की कुछ और लड़कियां आ गईं थी। सब रागिनी को चारो तरफ से घेरे हुए थीं और हंसी ठिठोली कर के रागिनी का बोलना बंद किए हुए थीं।

कामिनी बीच बीच में बाहर से आती और अपनी दीदी पर एक भरपूर नज़र डाल कर चली जाती। अपनी बड़ी बहन के लिए आज वो बहुत खुश थी। हमेशा शांत और गंभीर रहने वाली लड़की इन कुछ महीनों में बहुत बदल गई थी।

ऐसे ही हंसी खुशी वक्त गुज़रता रहा और शाम घिर गई। अंदर बाहर हर जगह बल्ब लगे हुए थे जो शाम होते ही जनरेटर के द्वारा रोशन हो उठे। रंग बिरंगी चांदनी बल्बों के रोशन हो जाने से जगमग जगमग करने लगी।

"क्या सोच रही हो रागिनी?" शालिनी ने पूछा____"देख अब तो बारात के आने समय भी होने लगा है। कुछ ही देर में तेरे दूल्हे राजा आ जाएंगे। आज रात तू उनकी पत्नी बन जाएगी और कल सुबह वो तुझे अपने साथ ले जाएंगे। उसके बाद वहां हवेली के उनके कमरे में तू उनके साथ....।"

"चुप कर बेशर्म।" रागिनी झट से बोल पड़ी____"जब देखो यही चलता रहता है तेरे मन में।"

"चल मान लिया कि मेरे मन में चलता रहता है लेकिन।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन अब तो तेरे मन में भी चलने ही लगा होगा। मुझे यकीन है सुहागरात के बारे में सोच सोच कर ही खुशी के लड्डू फूट रहे होंगे तेरे मन में।"

"मुझे अपनी तरह मत समझ तू।" रागिनी पहले तो शरमाई फिर घूरते हुए बोली____"मैं तेरे जैसी नहीं हूं जो हर वक्त एक ही बात सोचती रहूं।"

"अच्छा, ऐसे माहौल में इसके अलावा भी क्या कोई कुछ और सोचता है?" शालिनी ने कहा____"बड़ी आई शरीफ़जादी। सब समझती हूं मैं। तू जितना शरीफ बन रही है ना उतनी है नहीं।"

"तुझे जो समझना है समझ।" रागिनी ने बुरा सा मुंह बनाया____"तुझे समझाना ही बेकार है।"

"अच्छा छोड़ गुस्सा न कर।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"और ये बता कि तूने साफ सफ़ाई तो कर ली है ना?"

"स...साफ सफ़ाई?" रागिनी को जैसे समझ ना आया____"कैसी साफ सफ़ाई?"

"अरे! अंदर की साफ सफ़ाई।" शालिनी की मुस्कान गहरी हो गई____"मेरा मतलब है कि अपने जंगल की साफ सफ़ाई कर ली है ना तूने? पता चले जीजा जी जंगल में भटक जाएं और बाहर ही ना निकल पाएं।"

रागिनी को पहले तो समझ ना आया लेकिन फिर एकदम से उसके दिमाग़ की बत्ती जली। उसे बड़ा तेज़ झटका लगा। उसने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर शालिनी को देखा।

"कुत्ती कमीनी।" फिर वो थोड़ा गुस्से से बोली____"क्या बकवास कर रही है ये?"

"अरे! ये बकवास नहीं है मेरी लाडो।" शालिनी हंसते हुए बोली____"बल्कि मैं तो तेरी अच्छी सहेली होने के नाते तुझे याद दिला रही हूं कि तूने अपनी सारी तैयारी कर ली है कि नहीं।"

"तू ना सच में बहुत बेशर्म हो गई है।" रागिनी ने उसे घूरते हुए कहा____"अब अपनी बकवास बंद कर और जा अपने घर।"

"अरे! मुझे क्यों भगा रही है?" शालिनी चौंकी____"कहीं अकेले में कुछ करने का तो नहीं सोच लिया है तूने?"

"कुछ भी मत बोल।" रागिनी ने कहा____"मैं अकेले में भला क्या करूंगी? वो तो मैं तुझे जाने को इस लिए कह रही हूं कि घर जा कर तू भी खुद को तैयार कर ले। उसके बाद क्या पता तुझे जाने का मौका मिले या न मिले।"

"तू मेरी चिंता मत कर।" शालिनी ने कहा____"सविता आने वाली है। उसके आते ही चली जाऊंगी।"

✮✮✮✮

उस वक्त शाम के क़रीब साढ़े सात बज रहे थे जब बारात चंदनपुर पहुंची। बारात के रुकने की व्यवस्था घर से कुछ ही दूरी पर कर दी गई थी अतः बारात वहीं पहुंच कर रुकी। वीरेंद्र सिंह और बलवीर सिंह फ़ौरन ही पहुंच गए सबको उचित जगह पर बैठाने के लिए। जनवासे में भी अच्छा खासा इंतज़ाम था।

बलवीर और वीरेंद्र दोनों ही सबको बैठाने के बाद जल पान करवाने लगे। मैं भी एक जगह बैठ गया था। मेरे पास मेरी बहनें थीं, अमर मामा थे, भुवन था और रूपचंद्र भी था। बड़े मामा का लड़का थोड़ी दूरी पर बैठा था। वो उमर में मुझसे काफी बड़ा था इस लिए उससे ज़्यादा मैं घुला मिला नहीं था। हालाकि वो मुझे छोटा भाई मान कर बहुत स्नेह देता था।

ख़ैर कुछ समय रुकने के बाद हम सब वहां से वीरेंद्र सिंह के घर की तरफ चल पड़े। मैं और मेरी बहनें फिर से कार में बैठ गए। कार के आगे बैंड बाजा वाले चलने लगे। मामा का लड़का रूपचंद्र के साथ मिल कर आतिशबाजियां करते हुए आगे आगे चलने लगा। बैंड बाजा वालों के बीच कई लोग नाचने भी लगे थे। इस चक्कर में चलने की रफ़्तार धीमी हो गई।

"वो देखिए भैया।" कार की पिछली सीट में बैठी कुसुम एकदम से बोल पड़ी____"लगता है भाभी का घर वहां पर है। देखिए कितना जगमग जगमग दिख रहा है वहां।"

कुसुम की खुशी और उत्साह में कही गई ये बात सुन कर मैं बरबस ही मुस्कुरा उठा। मेरी निगाह भी उस तरफ चली गई जहां पर कुसुम ने इशारा किया था। सचमुच रागिनी भाभी का घर काफी जगमग कर रहा था। मुझे याद आया कि इसी तरह बड़े भैया के विवाह के समय भी जगमग जगमग हो रहा था।

एकाएक ही भैया का ख़याल आ गया मुझे। आंखों के सामने उनका चेहरा उभर आया। मेरे अंदर अजीब सी अनुभूति हुई। मन में ख़याल उभरा कि ये ऊपर वाले का कैसा विचित्र खेल है कि जो मेरे बड़े भैया की पत्नी थीं आज मैं उन्हें ही अपनी पत्नी बनाने आया हूं। मन थोड़ा सा बोझिल हो गया। मैंने मन ही मन भैया से इसके लिए माफ़ी मांगी।

कुछ ही देर में आख़िर हम सब वीरेंद्र सिंह के घर पहुंच गए। वहां पहले से ही द्वार पर हमारे स्वागत के लिए सब घर वाले खड़े थे। मेरी कार चौगान के बाहर ही फूलों के द्वारा बनाए गए दरवाज़े के पास जा कर रुक गई थी। बाकी बाराती लोग आगे बढ़े। वहां स्वागत में खड़े लोग फूल माला पहना कर सबका स्वागत करने लगे। बलभद्र जी ने सबसे पहले पिता जी के गले में फूल माला डाल कर उनका स्वागत किया और तिलक लगाया। उनके बाद महेंद्र सिंह, मामा लोग आदि का इसी तरह स्वागत हुआ।

कुछ समय बाद भाभी के पिता यानि वीरभद्र सिंह हाथों में आरती की थाली लिए मेरे पास आए। अमर मामा ने कार का दरवाज़ा खोल दिया तो उन्होंने मेरी आरती उतार कर तिलक लगाया। मामा ने मुझे कार से बाहर आने का इशारा किया तो मैं चुपचाप आ गया। मेरे पीछे पीछे मेरी बहनें भी उतर आईं।

जब बड़े भैया का विवाह हुआ था तब इसी तरह वीरभद्र जी उन्हें लेने आए थे और फिर उन्हें अपनी गोद में उठा कर उस जगह तक ले गए थे जहां पर द्वारचार होना था।

"मेरी दिली इच्छा तो यही है महाराज कि आपको अपनी गोद में उठा कर ले चलूं।" फिर उन्होंने मेरी तरफ देखते हुए भारी गले से कहा____"किंतु बात के चलते पांव में ताक़त नहीं है। इस लिए मुझे माफ़ करना महाराज, मैं आपको गोद में उठा कर नहीं ले जा सकूंगा। आपको अपने पैरों पर ही चल कर आना होगा।"

"कोई बात नहीं समधी जी।" अमर मामा प्रेम भाव से बोल पड़े____"कोई ज़रूरी नहीं कि गोद में दामाद को उठा कर ले जाने पर ही आपका प्रेम भाव दिखेगा। वो तो कैसे भी दिख सकता है। आप इस बात के लिए चिंतित न हों, मेरा भांजा अपने पैरों पर चल कर ही जाएगा।"

वीरभद्र जी ने कृतज्ञता से मामा को देखा और फिर हाथ जोड़ कर मुझे चलने को कहा तो मैं चल पड़ा। कुछ ही पलों में मैं उस जगह पर आ गया जहां पर द्वारचार और पूजा होनी थी। ढेर सारी औरतें और लड़कियां सिर पर कलशा लिए गाना गाने लगीं थी।

बहरहाल बड़े ही विधिवत तरीके से द्वारचार हुआ। कलशा ली हुई औरतों और लड़कियों को पिता जी ने उनका नेग दिया। उसके बाद मामा मुझे वापस ले गए। अगली विधि लड़की के चढ़ाव की थी जो घर के अंदर आंगन में मंडप के नीचे होती थी। तब तक यहां बारातियों का खाना पीना होता था। चढ़ाव के बाद दूल्हा अंदर जाता था और विवाह की शुभ लग्न में दुल्हन के साथ पूरे रीति रिवाज से दोनों का विवाह होता था।

बहरहाल द्वारचार के बाद बारातियों का खाना पीना शुरू हो गया था। उधर घर के अंदर मंडप के नीचे रागिनी भाभी का चढ़ाव होने लगा था। पिता जी, मामा लोग और महेंद्र सिंह सब वहीं बैठे थे। सबकी नज़रें भाभी पर टिकीं थी। रागिनी भाभी सिर झुकाए बैठी थीं। पंडित अपने मंत्र पढ़ रहे थे। नाउ और पंडित अलग अलग रीति रिवाज तथा विधि के अनुसार अपना काम कर रहे थे। पिता जी अपनी होने वाली बहू के लिए गहने लाए थे जिन्हें उन्होंने सौंप दिया था। आंगन में भारी मात्रा में बैठी औरतें एक साथ गाना गा रहीं थी।

चढ़ाव संपन्न हुआ तो बधू को उठा कर अंदर ले जाया गया। अब इसके बाद उस समय का इंतज़ार था जब विवाह के प्रारंभ होने का शुभ मुहूर्त आता। तब तक पिता जी और बाकी लोगों ने भी वीरभद्र जी के कहने पर खाना खाया।

विवाह का शुभ मुहूर्त कुछ ही देर में आ गया तो मुझे अंदर मंडप में ले जाया गया। मेरी धड़कनें एकाएक ही बढ़ चलीं थी। मेरे मन में ख़याल उभरा कि अब मैं एक पति के रूप में अपनी भाभी के साथ मंडप में बैठने वाला हूं। इसके बाद से मेरा उनसे पुराना रिश्ता हमेशा हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। ज़ाहिर है इसके साथ ही उस रिश्ते के सारे एहसास और सारी मर्यादाएं भी समाप्त हो जाएंगी। उन सबकी जगह एक नया रिश्ता बन जाएगा और फिर उस नए रिश्ते के साथ ही नए एहसास और नए विचारों का जन्म हो जाएगा। ये सब सोचते ही मेरे समूचे जिस्म में एक अजीब सी सर्द लहर दौड़ गई। मुझे पता ही न चला कि कब मैं अंदर मंडप में आ गया। चौंका तब जब मामा ने मुझे हौले से पुकार कर बैठने को कहा।

मेरे आते ही आंगन में बैठी औरतों का गीत एक अलग ही तरह से गूंजने लगा। घर के बाहर बैंड बाजा वाले अपना काम किए जा रहे थे और अंदर औरतें मीठे मीठे गीत गाने में मगन थीं।

मेरे आसन पर बैठते ही दोनों तरफ के पंडित जी शुरू हो गए। उनके कहे अनुसार मैं क्रियाएं करने लगा। रागिनी भाभी को अभी बुलाया नहीं गया था। शायद थोड़ी पूजा के बाद ही उनका आगमन होना था। मेरा मन बार बार उनकी तरफ ही चला जाता था और मैं ये सोचने लगता था कि जब वो आएंगी और मेरे बगल से बैठ जाएंगी तब कैसा महसूस होगा मुझे? क्या उनका भी इस समय मेरे जैसा ही हाल होगा?

कुछ समय बाद आख़िर उन्हें भी बुलाया गया। थोड़ी ही देर में वो अंदर से आती दिखीं। ना चाहते हुए भी मेरी गर्दन घूम गई और मेरी नज़रें उन पर जा टिकीं। कई सारी लड़कियों से घिरी वो सोलह श्रृंगार किए धीरे धीरे चली आ रहीं थी। मैं अपलक उस सुंदरता की मूरत को देखता ही रह गया। तभी किसी ने मुझे मानों नींद से जगाया तो मैं एकदम से हड़बड़ा गया। पलट कर देखा तो रूपचंद्र मेरे पास ही बैठा मुस्करा रहा था।

"कम से कम सबके सामने तो दीदी को ऐसे न घूरो।" उसने धीमें से कहा____"वरना लोग सोचेंगे कि दूल्हा तो बड़ा बेशर्म है।"

मैं रूपचंद्र की इस बात से बुरी तरह झेंप गया। मुझे शर्मिंदगी भी महसूस हुई। मन ही मन सोचा कि सच ही तो कह रहा है वो। अगर मैं ऐसे ही अपलक उन्हें घूरता रहूंगा तो सच में लोग मुझे बेशर्म समझ बैठेंगे। वैसे भी ज़्यादातर लोगों को तो पता ही है कि मैं कैसे चरित्र का इंसान रहा हूं। बात अगर किसी और की होती तो शायद इतना कोई न सोचता मगर यहां बात उनकी है जिनसे मेरा देवर भाभी का रिश्ता था।

मेरी धड़कनें उस वक्त थम सी गईं जब उन सारी लड़कियों ने भाभी को ला कर मेरे बगल से बैठा दिया। उफ्फ! कितना अद्भुत एहसास था वो। अगर रूपा एक अद्भुत लड़की है तो इस वक्त रागिनी भाभी भी मेरे लिए अद्भुत ही लगने लगीं थी। मेरे बगल से उनके बैठ जाने से बड़ा अद्भुत एहसास होने लगा था मुझे। मेरा जी चाहा कि अपनी गर्दन को हल्का सा मोड़ कर उन्हें फिर से एक नज़र देख लूं मगर चाह कर भी मैं ऐसा करने की हिम्मत न जुटा सका। धाड़ धाड़ बजती धड़कनों की धमक किसी हथौड़े की तरह कानों में पड़ती सी महसूस हो रहीं थी। मेरे अंदर एक अजीब सी हलचल मच गई थी। मैंने खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाल कर सामान्य होने की कोशिश की।

एक तरफ औरतों के मधुर गीत तो दूसरी तरफ पंडितों के मंत्रोच्चार वातावरण में अलग ही नाद का आभास कराने लगे। बड़े भैया के विवाह के समय मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था क्योंकि मैं लड़कियां ताड़ने में व्यस्त हो गया था लेकिन आज पता चल रहा था कि विवाह में कितनी सारी विधियां और कितने सारे रीति रिवाज़ होते हैं। रात आधी गुज़र गई थी किंतु विवाह अभी तक संपन्न न हुआ था। जाने कैसी कैसी विधियां और रस्में होती चली जा रहीं थी।

भाभी के पीछे ही उनकी छोटी बहन कामिनी और उनकी सहेली शालिनी बैठी हुई थी। बीच बीच में वो भाभी की चुनरी को ठीक करने लग जाती थीं। उनके पीछे औरतें बनरा बियाह जैसे गीत गाने में मशगूल थीं। उनके गाने ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। इधर मेरी तरफ थोड़ी पीछे कुसुम, सुमन और सुषमा बैठी सारी क्रियाएं देख रहीं थी। थोड़ी दूरी पर विभोर और अजीत भी बैठे हुए थे। रूपचंद्र उठ कर अमर मामा के पास चला गया था। अमर मामा औरतों के पास ही बैठे हुए थे और उनके गीतों का आनंद ले रहे थे।

रात भर जाने कैसी कैसी विधियां और रस्में हुईं। मैं और भाभी ख़ामोशी से पंडित के निर्देशों पर अपना कार्य एक साथ करते रहे।

उस वक्त सुबह होने लगी थी जब वीरेंद्र लावा परसने की रस्म के लिए आया। उसके हाथ में एक सूपा था और सूपे में कुछ चीज़ें पड़ीं थी। पंडित जी के निर्देशानुसार भाभी मेरे आगे खड़ी हो गईं और मैं उनके पीछे। उनके दोनों हाथ आगे की तरफ अंजुली की शक्ल में जुड़ गए थे। इधर पीछे से मुझे उनके हाथों की अंजुली के नीचे अपने हाथों की अंजुली बना कर रखनी थी। ख़ैर लावा परसना शुरू हुआ। वीरेंद्र सूपे से चीजें उठा कर भाभी की अंजुली में डालता, इधर भाभी पंडित के कहने पर अपनी अंजुली को नीचे की तरफ से खोल कर सारी चीज़ें मेरी अंजुली में गिरा देतीं और फिर मैं नीचे गिरा देता। यही प्रक्रिया काफी देर तक चलती रही। पीछे से मेरा पूरा जिस्म भाभी से सटा हुआ था और इस स्थिति में मुझे बड़ा अजीब भी लग रहा था। ख़ैर क्या कर सकता था, ये विधि अथवा रस्म ही ऐसी थी।

वीरभद्र जी ने कन्यादान वगैरह किया। फेरे हुए, सिंदूर चढ़ाया, मंगलसूत्र पहनाया मैंने। पंडित जी ने पति पत्नी के सात वचन बता कर हमसे क़बूल करवाया। सातों वचन क़बूल करने के बाद भाभी को मेरे बाएं तरफ बैठा दिया गया। यानि अब वो पूर्ण रूप से मेरी पत्नी बन चुकीं थी।

सुबह का उजाला होने लगा था। पांव पूजने की रस्म शुरू हो गई। पीतल की एक बड़ी सी परात में पीला पीला गाढ़ा सा थोड़ा पानी भरा हुआ था। उसके बीच आटे की गोलाकार मोटी सी लोई पड़ी थी, बीच में कुछ था उसके। बहरहाल, एक एक कर के सभी घर वाले हम दोनों का पांव पूजने आने लगे। अपने साथ कोई न कोई वस्तु भेंट अथवा दान करने के लिए भी लाते। तिलक लगाते, पांव पूजते, उपहार देते और फिर प्रणाम करके चले जाते। ऐसे ही सूरज निकलने तक चलता रहा।

विवाह संपन्न हुआ तो रागिनी को अंदर ले जाया गया। अमर मामा जब मुझे ले जाने लगे तो मैने देखा मेरे जूते ग़ायब हैं। विवाह के समय सालियां अपने जीजा के जूते चुराती थीं और वापस तभी करती थीं जब नेग के रूप में उनकी मनचाही मांग पूरी की जाती थी।

मैं समझ चुका था कि मेरे जूते कामिनी ने ही चुराए होंगे और अब वो मेरे जूते तभी लौटाएगी जब मैं उसकी मनचाही मांग पूरी करूंगा। कुसुम को शायद इस रस्म का पता था इस लिए वो अब मुझे देख मुस्कुराने लगी थी।

"भांजे कब तक चुपचाप खड़ा रहेगा?" अमर मामा ने मुझसे कहा____"अपने जूते मांग अपनी साली से।"

"क्या हुआ जीजा जी?" शालिनी भागती हुई आई और मुस्कुराते हुए बोली____"कुछ खो गया है क्या आपका?"

"अरे! आप भी यहीं हैं?" मैं शालिनी को देख चौंक सा गया था____"सारी रात कहां ग़ायब थीं आप?"

"मैं तो आपके बिल्कुल पास ही बैठी थी?" उसने मुस्कुराते हुए कहा____"अपनी सहेली रागिनी के ठीक पीछे। शायद आपने देखा ही नहीं।"

"हां शायद।" मैं हल्के से मुस्कुराया।

"देखते भी कैसे जनाब।" शालिनी ने मानों मुझे छेड़ा____"आप तो बस अपनी दुल्हन को ही देखने में व्यस्त थे। किसी और को तो तब देखते जब उसके जैसा कोई होता आस पास।"

"ऐसा कुछ नहीं है।" मैं थोड़ा झेंप गया____"ख़ैर ये तो बताइए कि मेरे जूते कौन ले गया है? मुझे जाना है यहां से। रात भर बैठा रहा हूं, सुबह की क्रिया के लिए जाना है अब।"

"अच्छा जी, ज़्यादा परेशानी वाली बात तो नहीं है ना?" शालिनी मुस्कुराई____"रही बात जूतों की तो वो कामिनी चुरा के ले गई है।"

"उनको बुलाइए।" मैंने कहा____"और कहिए कि मेरे जूते दे दें। चोरी करना अच्छी बात नहीं होती है।"

"दुनिया में यही एक रस्म है जीजा जी।" शालिनी ने कहा____"जिसमें चोरी करना बहुत अच्छा माना जाता है। ख़ैर अगर आपको अपने जूते वापस चाहिए तो मनचाहा नेग देना पड़ेगा आपको।"

"ठीक है।" मैंने कहा____"कामिनी को बुलाइए, उन्हें नेग दिया जाएगा।"

शालिनी ने खड़े खड़े ही कामिनी को आवाज़ दे कर बुला लिया। वो भागते हुए आई और मुझे मुस्कुराते हुए देखने लगी।

"क्या हुआ दीदी?" फिर उसने शालिनी से कहा____"किस लिए बुलाया है आपने मुझे?"

"जीजा जी अपने जूते मांग रहे हैं।" शालिनी ने उसे बताया____"और बदले में तुझे तेरा नेग भी देने को कह रहे हैं। अब तू बेझिझक हो के मांग ले इनसे जो तुझे चाहिए।"

"हां मांग लीजिए सरकार।" मैं मुस्कुराया____"आप तो वैसे भी मेरी पहली मोहब्बत हैं। आपके लिए तो जां हाज़िर है।"

"ज़्यादा फ़िज़ूल की बातें मत कीजिए।" कामिनी ने झूठी नाराज़गी दिखाई____"मुझे नेग के रूप में आपसे और तो कुछ नहीं चाहिए लेकिन हां एक वचन ज़रूर चाहिए। क्या आप दे सकते हैं?"

"बिल्कुल दे सकता हूं।" मैंने दृढ़ता से कहा____"आपने पहली बार मुझसे कुछ मांगा है तो यकीन मानिए मैं आपकी मांग ज़रूर पूरी करूंगा। कहिए कैसा वचन चाहिए आपको?"

"यही कि आप मेरी दीदी को हमेशा खुश रखेंगे।" कामिनी ने सहसा गंभीर हो कर कहा____"उन्हें कभी दुखी नहीं होने देंगे और बहुत सारा प्यार देंगे उनको। मुझे अपने नेग के रूप में आपसे इन्हीं बातों का वचन चाहिए।"

मैं देखता रह गया कामिनी को और मैं ही क्या बल्कि अमर मामा, कुसुम, सुमन, सुषमा, रूपचंद्र और यहां तक कि खुद शालिनी भी। मुझे कामिनी से ऐसी उम्मीद हर्गिज़ नहीं थी। अवाक् सा देखता रह गया था मैं।

"क्या हुआ जीजा जी?" जब मैं उसे देखता ही रहा तो वो जैसे मुझे होश में लाई____"क्या आप मुझे मेरा ऐसा नेग नहीं देंगे?"

"आपको मुझसे इस तरह का नेग मांगने की ज़रूरत नहीं थी कामिनी।" मैंने कहा____"क्योंकि मैं तो वैसे भी अपनी तरफ से यही करने वाला था लेकिन फिर भी अगर आप इन बातों का मुझसे वचन ही चाहती हैं तो ठीक है। मैं आपको वचन देता हूं कि मैं हमेशा आपकी दीदी को खुश रखूंगा। उन्हें कभी दुखी नहीं करूंगा और सच्चे दिल से उनसे प्रेम करूंगा।"

मेरा इतना कहना था कि कामिनी का चेहरा खुशी से चमक उठा लेकिन आंखें नम हो गईं उसकी। वो फ़ौरन ही पलटी और भागती हुई अंदर की तरफ चली गई। कुछ ही पलों में जब वो आई तो उसके हाथ में मेरे जूते थे। उसने जूतों को मेरे पैरों के पास रख दिया।

"ये रहे आपके जूते।" फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा____"पहन लीजिए और ख़ुशी से जाइए।"

"आप बहुत अच्छी लड़की हैं कामिनी।" मैंने उससे कहा____"मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वो आपको हमेशा खुश रखे और आपको पति के रूप में एक ऐसा व्यक्ति मिले जो आपको अथाह प्रेम करे।"

"तुमने भले ही अपने जीजा से नेग के रूप में ये वचन लिया है बेटी।" अमर मामा ने अधीरता से कहा____"लेकिन तुम्हारी बातें हृदय को छू गई हैं। ऐसे शुभ अवसर पर हर रस्म और हर नेग का अपना महत्व होता है। अतः अपने भांजे की तरफ से मैं अपनी खुशी से तुम्हें ये कुछ रुपए देना चाहता हूं। इसे अन्यथा मत लेना बेटी, ये बस एक अच्छी लड़की के प्रति सच्ची भावना को ब्यक्त करने जैसा है।"

कहने के साथ ही मामा ने अपने पैंट की जेब से पचास के नोटों की एक गड्डी निकाल कर कामिनी की तरफ बढ़ा दिया। कामिनी थोड़ा झिझकी लेकिन फिर उसने हाथ बढ़ा कर वो गड्डी ले ली।

"आपने मुझे बेटी कहा और सच्ची भावना से दिया है।" फिर उसने कहा____"इस लिए मैं इन्हें आपसे न ले कर आपकी भावनाओं को आहत नहीं करूंगी।"

उसके बाद मैंने अपने जूते पहने और सबके साथ बाहर की तरफ चल पड़ा। कुछ ही समय में विदाई का कार्यक्रम शुरू हो जाने वाला था।

"मुझे तो लगा था कि तू अपने जीजा जी से बहुत कुछ मांगेगी।" शालिनी ने कामिनी से कहा____"लेकिन तूने तो ऐसी चीज़ मांग ली जिसके बारे में शायद ही किसी ने कल्पना की होगी। वैसे सच कहती हूं तूने जीजा जी से नेग में इस तरह का वचन मांग कर बहुत ही अद्भुत कार्य किया है। इससे ये भी पता चलता है कि तू अपनी दीदी को कितना चाहती है और उसकी कितनी फ़िक्र करती है। मुझे तुझ पर नाज़ है छोटी। ख़ैर चल आ जा, रागिनी को विदाई के लिए तैयार भी करना है।"

कामिनी उसके साथ खुशी खुशी अंदर की तरफ चली दी। विदाई के लिए हर कोई जल्दी जल्दी काम में लग गया था। पांव पूजन में बहुत सारा उपहार मिल गया था जिसे उठा कर बाहर रखा जा रहा था।


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अध्याय - 161
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"मैं अब रहूंगी बेटा।" सरोज काकी ने दृढ़ता से कहा____"अपनी बेटी रूपा को उसी तरह तुमसे विवाह कर के विदा करूंगी जैसे मैं अनुराधा को करती।"

कुछ देर और सरोज काकी से बातें हुईं उसके बाद मैं वहां से चल पड़ा। थोड़े ही समय में मैं भुवन से मिलने अपने खेतों पर पहुंच गया। भुवन खेतों पर ही था। मैं उससे मिला और उसे बरात में चलने का निमंत्रण भी दिया। भुवन इस बात से बड़ा खुश हुआ। उसके बाद मैं हवेली निकल गया।



अब आगे....


वक्त बड़ा जल्दी जल्दी गुज़र रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसको कुछ ज़्यादा ही जल्दी थी रागिनी का अपने होने वाले पति वैभव से मिलन करवाने की। अभी कुछ दिन पहले ही उसके घर वाले वैभव का तिलक चढ़ाने रुद्रपुर गए थे और अब हल्दी की रस्म होने लगी थी। अब बस कुछ ही दिनों बाद घर में बरात आने वाली थी। सच में समय बड़ी तेज़ गति से गुज़र रहा था।

पूरे घर में खुशी का माहौल छाया हुआ था। सभी सगे संबंधी आ गए थे। सुबह से ही हर कोई भाग दौड़ करते हुए अपने अपने काम में लग गया था। गांव की औरतें आंगन में बैठी ढोलक बजा रहीं थी, गीत गा रहीं थी। संगीत की धुन में सब लड़कियां मिल कर नाच रहीं थीं।

वहीं एक तरफ रागिनी को हल्दी लगाई जा रही थी। हल्दी लगाने वालों की जैसे कतार सी लगी हुई थी। हर कोई उतावला सा दिख रहा था। उसकी भाभियां, उसकी बहनें, गांव की कुछ भाभियां और उसकी सहेली शालिनी। सब गाते हुए उसको हल्दी लगा रहीं थी।

रागिनी के गोरे बदन पर एक मात्र कपड़ा था जोकि उसका कुर्ता ही था जिसकी बाहें उसके कंधों से कटी हुईं थी। नीचे उसने सलवार नहीं पहनी थी लेकिन हां कच्छी ज़रूर पहन रखी थी। उसकी भाभियां जान बूझ कर उसके बदन के ऐसे ऐसे हिस्से पर हल्दी मल रहीं थी जहां पर उनके हाथों की छुवन और मसलन से रागिनी शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी। वो ऐसी जगहों पर हाथ लगाने से विरोध भी कर रही थी लेकिन कोई उसकी सुन ही नहीं रहा था। बार बार उसके कुर्ते के अंदर हाथ डाल दिया जाता। फिर उसके पेट, उसकी जांघें, उसकी पिंडलियां, उसके पैर, उसकी पीठ और उसके गले व सीने से होते हुए उसकी ठोस छातियों में भी ज़ोर लगा लगा कर हल्दी मली जाती। रागिनी कभी आह कर उठती तो कभी उसकी सिसकियां निकल जाती तो कभी चीख ही निकल जाती। शर्म के मारे उसका चेहरा हल्दी लगे होने बाद भी सुर्ख पड़ा हुआ नज़र आ रहा था। कुछ समय बाद बाकी सब चली गईं लेकिन शालिनी, वंदना और सुषमा उसके पास ही बैठी उसे हल्दी लगाती रहीं।

"क्यों मेरी बेटी को इतना परेशान किए जा रही हो तुम लोग?" सुलोचना देवी बरामदे में किसी काम से आईं तो उन्होंने रागिनी की हालत देख कर जैसे उन तीनों को डांटा____"कुछ तो शर्म करो। हल्दी लगाने का ये कौन सा तरीका है?"

"ये अवसर रोज़ रोज़ नहीं आता चाची।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"पिछली बार मेरी हसरत पूरी नहीं हो पाई थी लेकिन इस बार सारी ख़्वाहिश पूरी करूंगी मैं। आप जाइए यहां से। हमें हमारा काम करने दीजिए।"

"ठीक है तुम अपनी ख़्वाहिश पूरी करो।" सुलोचना देवी ने कहा____"लेकिन बेटी थोड़ा दूसरों का भी तो ख़याल करो। क्या सोचेंगे सब?"

"चिंता मत कीजिए चाची।" शालिनी ने कहा___"यहां अब कोई नहीं आने वाला। जिनको शुरू में रागिनी को हल्दी लगाना था वो लगा चुकी हैं। अब सिर्फ मैं और ये भाभियां ही हैं। बाकी बाहर वालों पर नज़र रखने के लिए मैंने कामिनी को बोल रखा है।"

सुलोचना देवी कुछ न बोलीं। वो बस रागिनी के शर्म से लाल पड़े चेहरे को देखती रहीं। रागिनी भी उन्हीं को देख रही थी। उसकी आंखों में एक याचना थी। जैसे कह रही हो कि इन बेशर्मों से उसकी जान बचा लीजिए। सुलोचना देवी को रागिनी की इस हालत पर बड़ी दया आई। वो जानतीं थी कि रागिनी इन मामलों में बहुत शर्म करती है लेकिन वो ये भी जानती थीं कि आज का दिन खुशी का दिन है। किसी को भी नाखुश करना ठीक नहीं था। वैसे भी सब उसके घर की ही तो थीं।

"इन्हें अपने मन की कर लेने दे बेटी।" फिर उन्होंने रागिनी को बड़े प्यार से देखते हुए कहा____"ये सब तेरी खुशियों से खुश हैं इस लिए आज के दिन तू भी किसी बात की शर्म न कर और इस खुशी को दिल से महसूस कर।"

ये कह कर सुलोचना देवी चली गईं। उनके जाने के बाद शालिनी जो उनके जाने की प्रतीक्षा ही कर थी वो फिर से शुरू हो गई। उसने बड़े से कटोरे से हाथ में हल्दी ली और वंदना भाभी को इशारा किया। वंदना ने मुस्कुराते हुए झट से रागिनी का कुर्ता पकड़ कर एकदम से उठा दिया। इधर जैसे ही कुर्ता उठा शालिनी ने हल्दी लिया हाथ झट से रागिनी के कुर्ते में घुसा दिया और उसकी सुडोल छातियों पर हल्दी मलने लगी। जैसे ही रागिनी को ये पता चला उसकी एकदम से चीख निकल गई।

"ऐसे मत चीख मेरी लाडो।" शालिनी ने हंसते हुए कहा____"ये तो कुछ भी नहीं है। सुहागरात को जब जीजा जी तेरी इन छातियों को मसलेंगे तब क्या करेगी तू? क्या तब भी तू ऐसे ही चीखेगी और हवेली में रहने वालों को पता लगवा देगी कि तेरे पतिदेव तेरे साथ क्या कर रहे हैं?"

"चुप कर कमीनी वरना मुंह तोड़ दूंगी तेरा।" रागिनी ने एक हाथ से उसके बाजू में ज़ोर से मारते हुए कहा____"कैसी बेशर्म हो गई है तू। जो मुंह में आता है बोल देती है।"

"मार ले जितना मारना है मुझे।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन मैं तो आज तेरे साथ ऐसे ही मज़े लूंगी, क्यों वंदना भाभी?"

"हां शालिनी।" वंदना ने जैसे उसका साथ देते हुए कहा____"आज तो पूरा मज़ा लेना है रागिनी से। आज हम दोनों मिल कर इसकी सारी शर्म दूर कर देंगे ताकि सुहागरात को इसे अपने पति से कोई शर्म महसूस न हो।"

"हाय राम! भाभी आप भी इस कलमुही का साथ दे रही हैं?" रागिनी ने आश्चर्य से आंखें फैला कर वंदना को देखा____"कम से कम आप तो मुझ पर रहम कीजिए।"

"रागिनी सही कह रही हैं दीदी।" बलवीर सिंह की पत्नी सुषमा ने वंदना से मुस्कुराते हुए कहा____"हमें रागिनी पर रहम करना चाहिए। मेरा मतलब है कि इनकी छातियों पर हल्दी लगा कर छातियों को नहीं मसलना चाहिए। आख़िर वहां पर हाथ लगाने का हक़ तो हमारे जीजा जी का है। शायद इसी लिए हमारी ननद रानी को भी हमारा इनकी छातियों पर हाथ लगाना पसंद नहीं आ रहा है।"

"अरे! हां ये तो तुमने सही कहा सुषमा।" वंदना ने हैरानी से उसकी तरफ देखा____"अब समझ आया कि मेरी लाडो क्यों इतना गुस्सा कर रहीं हैं।"

रागिनी ये सुन कर और भी बुरी तरह शर्मा गई। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्या करे जिसके चलते उसे ये सब न सुनना पड़े। ऐसा नहीं था कि उसे इन सबकी बातों से सचमुच का गुस्सा आ रहा था बल्कि सच ये था कि उसको ज़रूरत से ज़्यादा शर्म आ रही थी।

"बात तो आपने सच कही भाभी।" शालिनी ने कहा____"मुझे भी मज़ा लेने के चक्कर में ये ख़याल नहीं रहा था कि वहां पर हाथ लगाने का हक़ तो हमारे जीजा जी का है।" कहने के साथ ही शालिनी ने रागिनी से कहा____"अगर ऐसी ही बात थी तो तूने बताया क्यों नहीं हमें? यार सच में ग़लती हो गई ये तो।"

"तू ना चुप ही रह अब।" रागिनी को कुछ न सुझा तो झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोल पड़ी____"और अब मुझे हाथ मत लगाना। मुझे नहीं लगवानी अब हल्दी वल्दी। जाओ सब यहां से।"

"अरे! गुस्सा क्यों होती है?" शालिनी ने हल्दी लिया हाथ उसके गाल पर मलते हुए कहा____"अभी तो और भी जगह बाकी है जहां हल्दी लगानी है।"

"तू ऐसे नहीं मानेगी ना रुक तू।" कहने के साथ ही रागिनी ने बिजली की सी तेज़ी से कटोरे से हल्दी ली और झपट कर शालिनी के ब्लाउज में हाथ डाल कर उसकी बड़ी बड़ी छातियों को हल्दी लगाते हुए मसलने लगी।

अब चीखने चिल्लाने की बारी शालिनी की थी। वो सच में इतना ज़ोर से चिल्लाई कि आंगन में गीत गा रही औरतें एकदम से चौंक कर इधर देखने लगीं। शालिनी को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसकी इतनी संस्कारी सहेली इतना बड़ा दुस्साहस कर बैठेगी। उधर वंदना और सुषमा भी चकित भाव से रागिनी को देखने लगीं थी।

"अब बोल कमीनी।" रागिनी बदस्तूर उसकी छातियों को मसलते हुए बोली____"बता अब कैसा लग रहा है तुझे? बहुत देर से तेरा नाटक देख रही थी मैं। अब बताती हूं तुझे।"

"वंदना भाभी बचाइए मुझे।" शालिनी चिल्लाई____"कृपया बचाइए इससे। इस पर भूत सवार हो गया है लगता है। रागिनी छोड़ दे, ना कर ऐसा।"

"क्यों न करूं?" रागिनी ने अचानक ही उसकी एक छाती को ज़ोर से मसल दिया जिससे शालिनी और जोरों से चीख पड़ी, उधर रागिनी ने कहा____"अभी तक तू जो कर रही थी वो क्या सही कर रही थी तू, हां बता ज़रा?"

"माफ़ कर दे मुझे।" शालिनी उससे छूटने का प्रयास करते हुए बोली____"मैं तो बस हल्दी लगा रही थी तुझे।"

"हां तो मैं भी अब हल्दी ही लगा रही हूं तुझे।" रागिनी ने कहा____"तू भी अब वैसे ही लगवा जैसे मुझे लगा रही थी तू।"

इससे पहले कि आंगन में बैठी गीत गा रही औरतें इस तरफ आतीं वंदना और सुषमा ने हस्ताक्षेप किया और किसी तरह रागिनी को समझा बुझा कर शालिनी से छुड़वाया। दोनों ही बुरी तरह हांफने लगीं थी।

"तेरे अंदर कोई भूत आ गया था क्या?" शालिनी ने अपनी उखड़ी सांसों को काबू में करने का प्रयास करते हुए रागिनी से कहा____"ऐसा कैसे कर सकती थी तू? पागल तो नहीं हो गई थी?"

"तुम सब मेरी शर्म दूर कर रही थी ना?" रागिनी ने हांफते हुए कहा____"तो ऐसा कर के मैं भी अपनी शर्म ही दूर कर रही थी। अब बता कैसा लगा तुझे?"

"कैसा लगा की बच्ची।" शालिनी ने अपने सीने पर लगी हल्दी को देखते हुए कहा____"पूरा ब्लाउज ख़राब कर दिया मेरा। अब घर कैसे जाऊंगी मैं?"

"सबको दिखाते हुए जाना।" रागिनी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"लोगों को पता तो चलेगा कि तू हल्दी लगवा रही थी किसी से।"

"रुक जा बेटा।" शालिनी ने जैसे धमकी देते हुए कहा____"इसका बदला ले कर रहूंगी मैं। जिस दिन जीजा जी बरात ले कर आएंगे उस दिन उनसे ही शिकायत करूंगी तेरी।"

"हां कर देना।" रागिनी के चेहरे पर शर्म की हल्की लाली उभर आई____"मैं क्या डरती हूं किसी से।"

"हां ये बात तो मैं मानती हूं रागिनी।" सहसा वंदना ने मुस्कुराते हुए कहा____"तुम अपने होने वाले पति से नहीं बल्कि वो खुद ही तुमसे डरते हैं।"

"अच्छा क्या सच में?" सुषमा पूछे बगैर न रह सकी____"क्या सच में जीजा जी रागिनी से डरते हैं?"

"और नहीं तो क्या?" वंदना ने कहा____"पिछली बार जब आए थे तो मैंने इन दोनों की बातें सुनी थी।"

"भाभी नहीं।" रागिनी एकदम से हड़बड़ा गई, फिर मिन्नत सी करते हुए बोली____"कृपया उन बातों को किसी को मत बताइए ना। आपने मुझसे वादा किया था कि आप किसी से नहीं कहेंगी।"

"अच्छा ठीक है नहीं कहती।" वंदना ने रागिनी की मासूम सी शक्ल देखी तो उसे उस पर तरस सा आ गया____"लेकिन ये तो सच ही है ना कि हमारे होने वाले जीजा जी मेरी प्यारी ननद रानी से डरते हैं।"

"ऐसा कुछ नहीं है।" रागिनी ने शर्म से नज़रें चुराते हुए कहा____"आप ऐसे ही झूठ मूठ मत बोलिए।"

"हां तो तू ही बता दे ना कि सच क्या है?" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"वो डरते हैं या तुझसे बेपनाह प्यार करते हैं?"

"मुझे नहीं पता।" रागिनी शर्म से सिमट सी गई____"अच्छा अब अगर हल्दी वाला काम हो गया हो तो मैं नहा लूं। अंदर बहुत अजीब सा महसूस हो रहा है।"

"अंदर??" शालिनी हौले से चौंकी____"अंदर कहां अजीब सा महसूस हो रहा है तुझे। नीचे या ऊपर?"

"तू न अब पिटेगी मुझसे।" रागिनी ने उसको घूरते हुए कहा____"बहुत ज़्यादा मत बोल।"

"लो मैं कहां ज़्यादा बोल रही हूं?" शालिनी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा____"पूछ ही तो रही हूं कि नीचे अजीब सा महसूस हो रहा है या ऊपर?"

"शालिनी मत तंग करो मेरी लाडो को।" वंदना को रागिनी पर बहुत ज़्यादा स्नेह आ रहा था इस लिए उसने उसके चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा____"बड़ी मुद्दत के बाद तो मेरी ननद रानी के चेहरे पर खुशियों के रंग नज़र आए हैं।"

वंदना की इस बात से सहसा माहौल गंभीर सा होता नज़र आया किंतु जल्दी ही शालिनी ने इस माहौल को अपने मज़ाक से दूर कर दिया। थोड़ी देर और इधर उधर का हंसी मज़ाक हुआ उसके बाद सुलोचना देवी के आवाज़ देने पर वंदना उठ कर उनके पास चली गईं। इधर शालिनी और सुषमा रागिनी को ले कर चल पड़ीं

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हवेली के बड़े से आंगन में एक जगह तंबू बनाया गया था जिसके नीचे मैं एक छोटे से सिंघासन पर बैठा था। मेरे जिस्म पर इस वक्त मात्र कच्छा ही था, बाकी पूरा बलिष्ट जिस्म बेपर्दा था। तीन तरफ के बरामदे में औरतें बैठी गीत गा रहीं थी। कुछ गांव की औरतें थीं कुछ दूसरे गांव की जो पिता जी के मित्रों के घर से आई हुईं थी। बड़े से आंगन में दोनों तरफ मेरी बहनें और मेरी मामियां नाच रहीं थी। पूरा वातावरण संगीत, ढोल नगाड़े और नाच गाने से गूंज रहा था और गूंजता भी क्यों नहीं...आज हल्दी की रस्म जो थी।

आंगन के बीच लगे तंबू के नीचे मैं सिंघासन पर बैठा था और एक एक कर के सब मुझे हल्दी लगा रहे थे। मां, मेनका चाची, निर्मला काकी, महेंद्र सिंह की पत्नी सुभद्रा देवी, ज्ञानेंद्र सिंह की पत्नी माया देवी, अर्जुन सिंह की पत्नी रुक्मणि देवी, संजय सिंह की पत्नी अरुणा देवी सबने एक एक कर के मुझे हल्दी लगाई। उसके बाद सभी मामियों ने मुझे हल्दी लगाया। कुसुम ने खुशी से चहकते हुए मुझे हल्दी लगाई। मामी की दोनों बेटियां सुमन और सुषमा ने भी लगाई।

छोटे मामा की पत्नी यानि रोहिणी मामी जब मुझे हल्दी लगाने आईं तो मैं उन्हें देख मुस्कुराने लगा। पहले तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया और शायद उन्हें याद भी नहीं था किंतु जब मैं उन्हें देखते हुए अनवरत मुस्कुराता ही रहा तो मानों एकदम से उन्हें उस रात का किस्सा याद आ गया जिसके चलते एकदम से उनके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई और वो नज़रें चुराते हुए मुझे हल्दी लगाने लगीं। गुलाबी होठों पर शर्म मिश्रित मुस्कान थी जिसे वो छुपा नहीं पा रहीं थी।

"क्या हुआ मामी?" मैं उनकी हालत पर मज़ा लेने का सोच कर पूछा____"अब तो आपके चेहरे पर अलग ही नूर दिखने लगा है। मामा की परेशानी दूर हो गई है क्या?"

"चुप करो।" वो एकदम से झेंप सी गईं____"बहुत बदमाश हो गए हो तुम।"

"अब ये क्या बात हुई मेरी प्यारी मामी?" मैंने उन्हें छेड़ा____"मैंने भला ऐसा क्या कर दिया है जिसके चलते आप मुझे बदमाश कहने लगीं?"

"अब तुम मेरा मुंह न खोलवाओ।" मामी ने अपनी शर्म को छुपाते हुए मुस्कुरा कर कहा____"तुम दोनों मामा भांजे की बदमाशी समझ गई हूं मैं।"

"ये आप क्या कह रही हैं मामी?" मैंने इधर उधर नज़र घुमा कर उनसे कहा____"खुल कर बताइए ना कि आप क्या समझ गईं हैं?"

"तुम्हें शर्म नहीं आती लेकिन मुझे तो आती है ना?" मामी ने हल्दी लगे हाथ से मेरे दाहिने गाल पर थोड़ा जोर से ठेला। स्पष्ट था कि उन्होंने एक तरह से मुझे इस तरीके से चपत लगाई थी, बोलीं____"मुझे उस रात ही समझ जाना चाहिए था कि तुम दोनों मामा भांजे कौन सी खिचड़ी पका रहे थे।"

"लो जी, अब ये क्या बात हुई भला?" मैं मन ही मन हंसा____"मैं मासूम भला कौन सी खिचड़ी पका सकता हूं? मैं तो बस मामा की परेशानी दूर करना चाहता था और इसी लिए आपको उनके पास भेजा था। क्या उस रात उन्होंने आपको परेशान किया था?"

"और नहीं तो क्या?" मामी का चेहरा कुछ ज़्यादा ही शर्म से लाल पड़ गया। नज़रें चुराते हुए बोलीं____"उन्होंने मुझे बहुत ज़्यादा परेशान किया और ये सब तुम्हारी वजह से हुआ है।"

"हे भगवान!" मैंने जैसे आश्चर्य ज़ाहिर किया____"मैंने तो अच्छा ही सोचा था। ख़ैर ये तो बताइए कि मामा ने आपको किस बात से परेशान किया था? सुबह उनसे पूछा था लेकिन उन्होंने मुझे कुछ बताया ही नहीं था। आप ही बताइए ना कि आख़िर उस रात क्या हुआ था?"

"सच में बहुत बदमाश हो तुम।" मामी ने मुझे घूरते हुए किंतु मुस्कुरा कर कहा____"और बेशर्म भी। अपनी मामी से ऐसी बातें करते हुए ज़रा भी शर्म नहीं आती तुम्हें।"

"पर मैंने तो ऐसा कुछ आपसे कहा ही नहीं जिसमें मुझे शर्म करनी चाहिए।" मैंने अंजान बनने का दिखावा करते हुए कहा____"मैं तो बस आपसे पूछ रहा हूं कि उस रात क्या हुआ था?"

"क्या सच में तुम नहीं जानते?" मामी ने इस बार मुझे उलझनपूर्ण भाव से देखा।

"अगर जानता तो आपसे पूछता ही क्यों?" मैंने मासूम सी शक्ल बना कर कहा____"बताइए ना कि क्या हुआ उस रात?"

"कुछ नहीं हुआ था।" मामी ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा____"और अगर कुछ हुआ भी था तो तुम्हारे बताने लायक नहीं है। अब चुपचाप हल्दी लगवाओ, बातें न करो।"

उसके बाद मामी ने मुझे हल्दी लगाई और फिर वो मुस्कुराते हुए चलीं गईं। मैं भी ये सोचते हुए मुस्कुराता रहा कि मामी भी कमाल ही हैं। ख़ैर ऐसे ही कार्यक्रम चलता रहा।

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रूपचंद्र के घर में नात रिश्तेदारों का आना शुरू हो गया था। हर रोज़ कोई न कोई आ ही रहा था। साहूकारों के चारो भाईयों के ससुराल वाले, बेटियों के ससुराल वाले। शिव शंकर की बड़ी बेटी नंदिनी का विवाह पहले ही हो चुका था वो भी अपने पति के साथ आ गई थी। मणि शंकर की नव विवाहिता बेटियां आरती और रेखा तो पहले से ही यहीं थी इस लिए उनके ससुराल से दोनों के पति आए हुए थे जो आपस में भाई ही थे।

मणि शंकर के बड़े बेटे चंद्रभान की ससुराल से यानि रूपा की भाभी कुमुद के मायके से उसके भैया भाभी आ गए थे। दूसरी तरफ हरि शंकर के बड़े बेटे और रूपचंद्र के बड़े भाई यानि मानिकचंद्र की ससुराल से उसकी पत्नी नीलम के भैया भाभी कल आने वाले थे। कहने का मतलब ये कि हर रोज़ कोई न कोई मेहमान आ रहा था। हर कोई अपने साथ कुछ न कुछ ले कर आ रहा था। यही सब लोग कुछ समय पहले तब जमा हुए थे जब मणि शंकर की दोनों बेटियों का विवाह हुआ था।

घर काफी बड़ा था इस लिए मेहमानों के रहने की कोई दिक्कत नहीं थी। गौरी शंकर और रूपचंद्र जो अब तक अकेले ही सब कुछ सम्हाल रहे थे उनकी मदद के लिए अब काफी सारे लोग हो गए थे। घर की साफ सफाई और पोताई तो कुछ समय पहले ही हुई थी लेकिन रूपा के विवाह के लिए उसे फिर से पोताया जा रहा था। घर में काफी चहल पहल हो गई थी। इस घर में औरतें और बहू बेटियां तो पहले से ही ज़्यादा थीं लेकिन नात रिश्तेदारों से भी आ गईं थी जिसके चलते और भी भीड़ जमा हो गई थी।

सबको पता था कि रूपा का विवाह इसी गांव के दादा ठाकुर के बेटे वैभव सिंह से होने वाला है। सबको ये भी पता लग चुका था कि रूपा अपने होने वाली पति की दूसरी पत्नी बनने वाली है और उसकी पहली पत्नी दादा ठाकुर की अपनी ही विधवा बहू होगी। इतना ही नहीं सबको ये भी पता लग चुका था कि आज हवेली में रूपा के होने वाले पति की हल्दी की रस्म है। हर कोई इस बात के बारे में अपनी अपनी समझ से चर्चा कर रहा था। गौरी शंकर और रूपचंद्र से जब भी कोई इस बारे में कुछ कहता अथवा पूछता तो वो बड़े तरीके से सबको बताते और समझाते भी जिसके चलते सब उनकी बातों से सहमत हो जाते। आख़िर इतना तो सबको पता ही था कि कुछ समय पहले इन लोगों ने दादा ठोकर के परिवार के साथ क्या किया था।

घर के अंदर रूपा के कमरे में अलग ही नज़ारा था। ढेर सारी औरतें और लड़कियों ने उसे घेर रखा था और तरह तरह की बातों के द्वारा वो रूपा की हालत ख़राब किए हुए थीं। कमरे में हंसी ठिठोली गूंज रही थी।

सबकी सर्व सम्मति से ये तय हुआ था कि अगले हप्ते रूपा की हल्दी वाली रस्म होगी। हालाकि सबको इतनी खुशी थी कि समय से पहले ही घर में रूपा की बड़ी भाभी यानि कुमुद उसको हल्दी और आटे का उपटन लगाने लगीं थी ताकि रूपा के बदन पर अलग ही निखार आ जाए।

घर के अंदर बाकी औरतें ऐसी ऐसी चीज़ें बनाने में लगी हुईं थी जो विवाह के समय बनाई जाती हैं। मसलन, आटे की, बेसन की और मैदे की चीज़ें पूरियां और गोली वगैरह। कुछ औरतें अनाज बीनने में लगीं हुईं थी। कुछ काम करते हुए गाना भी गाए जा रही थीं। एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था।




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बहुत ही जबरदस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
रागिणी को आखिर हल्दी लग ही गयी लेकीन वहा शालिनी और रागिणी के बीच जो हुआ वो बडा ही मस्त वाकया हैं
वैभव को हल्दी लग ही गयी वहा भी वैभव ने छोटी मामी को रात की बात करके जो छेडा वो बडा ही मजेदार हैं
सावकारों के घर में भी रुपा के हल्दी की तयारी जोरशोर हो रही हैं
खैर देखते हैं आगे
अध्याय - 162
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सूर्य पश्चिम दिशा में उतरने लगा था। आसमान में लालिमा छा गई थी और शाम घिरने लगी थी। आसमान में उड़ते पंक्षी खुशी से मानों गाना गाते हुए अपने अपने घोंसलों की तरफ लौट रहे थे। घर के पीछे अमरूद के पेड़ के पास बैठी रागिनी जाने किन ख़यालों में खोई हुई थी। कुछ दूर कुएं के पास उसकी छोटी बहन कामिनी कपड़े धो रही थी। इस वक्त पीछे के इस हिस्से में दोनों बहनों के सिवा कोई न था किंतु हां घर के अंदर ज़रूर लोगों की भीड़ थी जिनके बोलने की आवाज़ें यहां तक आ रहीं थी।

आज रागिनी का चेहरा अलग ही नज़र आ रहा था। हल्दी का उपटन तो कई दिन पहले से ही लगाया जा रहा था किंतु आज विशेष रूप से हल्दी की रस्म हुई थी जिसके चलते उसका पूरा बदन ही अलग तरह से चमक रहा था। खूबसूरत चेहरे पर चांद जैसी चमक तो थी ही किंतु उसमें हल्की लालिमा भी विद्यमान थी। शायद ख़यालों में वो कुछ ऐसा सोच रही थी जिसके चलते उसके चेहरे पर लालिमा छाई हुई थी।

"तू यहां है और मैं तुझे तेरे कमरे में ढूंढने गई थी?" शालिनी ने उसके क़रीब आते हुए उससे कहा____"यहां बैठी किसके ख़यालों में गुम है तू और ये क्या तूने स्वेटर भी नहीं पहन रखा? क्या ठंड नहीं लग रही तुझे?"

शालिनी की बातों से रागिनी चौंकते हुए ख़यालों की दुनिया से बाहर आई और उसको देखने लगी। उधर कामिनी जो कपड़े धो रही थी वो भी इस तरफ देखने लगी थी।

"अच्छा हुआ दीदी कि आप आ गईं।" कामिनी ने हौले से मुस्कुराते हुए कहा____"वरना मेरी दीदी जाने कब तक इसी तरह जीजा जी के ख़यालों में खोई रहतीं।"

"देख ले तेरी बहन भी सब समझती है।" शालिनी ने रागिनी को छेड़ा____"अब तू कहेगी कि वो भी तुझे छेड़ने लगी जबकि इसमें किसी की कोई ग़लती नहीं है। तू खुद ही सबको मौका दे देती है छेड़ने का।"

"हां और तू तो कुछ ज़्यादा ही मौका तलाशती रहती है मुझे छेड़ने का।" रागिनी पहले तो शरमाई किंतु फिर उसे घूरते हुए बोली____"ख़ैर बड़ा जल्दी आ गई तू। अपने घर में तेरा मन नहीं लगता क्या? या फिर जीजा जी के बिना अकेले रहा नहीं जाता तुझसे? लगता है बहुत याद आती है तुझे उनकी।"

"आती तो है।" शालिनी ने थोड़ा धीरे से कहा____लेकिन उतना नहीं जितना तुझे अपने होने वाले पतिदेव की आती है। जब भी तेरे पास आती हूं तुझे उनके ख़यालों में ही खोया हुआ पाती हूं। मुझे भी तो बता दे कि आख़िर कैसे कैसे ख़याल आते हैं तुझे? विवाह के बाद क्या क्या करने का सोच लिया है तूने?"

"तू ना सच में बहुत अजीब हो गई है।" रागिनी ने कहा____"पहले तो ऐसी नहीं थी तू। जीजा जी के साथ रहने से कुछ ज़्यादा ही बदल गई है तू।"

"हर लड़की बदल जाती है यार।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"इसमें नई बात क्या है। ख़ैर तू ये सब छोड़ और ये बता कि वैभव जी के बारे में सोच कर किस तरह के ख़याल बुनने लगी है तू?"

"ऐसा कुछ नहीं है।" रागिनी ने हल्की शर्म के साथ कहा____"और अगर है भी तो क्यों बताऊं तुझे? क्या तूने कभी मुझे अपने और जीजा जी के बारे में बताया है कि तू उनके बारे में कैसे कैसे ख़याल बुनती थी?"

"अच्छा तो अब तू झूठ भी बोलने लगी है?" शालिनी ने हैरानी से उसे देखा____"तूने जो पूछा था मैंने बिना संकोच के तुझे सब बताया था?"

"अच्छा।" रागिनी ने उसे गौर से देखा____"ठीक है तो अपनी सुहागरात के बारे में बता मुझे।"

"आय हाय!" शालिनी के सुर्ख होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई____"तो मेरी सहेली को मेरी सुहागरात का किस्सा जानना है। ठीक है, मैं तुझे बिना संकोच के एक एक बात बता दूंगी लेकिन मेरी भी एक शर्त है। उसके बाद तू भी अपनी सुहागरात का एक एक किस्सा मुझे बताएगी, बोल मंज़ूर है?"

"ना बाबा ना।" रागिनी एक ही पल में मानों धराशाई हो गई____"मुझसे नहीं बताया जाएगा। मैं तेरी तरह बेशर्म नहीं हूं।"

"तो फिर मुझसे मेरी सुहागरात के बारे में क्यों पूछ रही है?" शालिनी ने कहा।

"वो तो मैंने ऐसे ही कह दिया था।" रागिनी ने कहा___"तुझे नहीं बताना तो मत बता, वैसे भी मैं ऐसी बातें सुनने की तलबगार भी नहीं हूं।"

"हां हां जानती हूं कि तू बहुत ज़्यादा शरीफ़ और सती सावित्री है।" शालिनी ने कहा____"अब ये सब छोड़ और जा के पहले स्वेटर पहन ले। कहीं ऐसा न हो कि तुझे सर्दी हो जाए और तेरी नाक बहने लगे। ऐसे में बेचारे मेरे जीजा जी कैसे तेरे साथ सुहागरात मनाएंगे?"

"कमीनी धीरे बोल कामिनी सुन लेगी।" रागिनी ने कपड़े धो रही कामिनी की तरफ देख कर उससे कहा____"कुछ तो शर्म किया कर और ये तू एक ही बात पर क्यों अटकी हुई है?"

"क्या करूं यार?" शालिनी ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"माहौल ही उस अकेली बात पर अटके रहने का है। सुहागरात नाम की चीज़ ही इतनी आकर्षक है कि ऐसे समय में बार बार उसी का ख़याल आता है। ख़ास कर तब तो और भी ज़्यादा जब मेरी बहुत ज़्यादा शर्म करने वाली सहेली की होने वाली हो।"

रागिनी ने घूर कर देखा उसे। फिर उसने कामिनी को आवाज़ दे कर उससे अपनी स्वेटर मंगवाई। कामिनी जब चली गई तो उसने कहा____"अब बकवास बंद कर और ये बता यहां किस लिए आई थी?"

"क्या तुझे मेरा आना अच्छा नहीं लगता?" शालिनी ने मासूम सी शक्ल बना कर उसे देखा।

"अच्छा लगता है।" रागिनी ने कहा____"लेकिन तेरा हर वक्त मुझे छेड़ना अच्छा नहीं लगता।"

"क्यों भला?" शालिनी ने भौंहें ऊपर की____"क्या मेरे छेड़ने से तेरे अंदर गुदगुदी नहीं होती?"

"क्यों होगी भला?" रागिनी ने कहा____"बल्कि मुझे तो तेरे इस तरह छेड़ने पर तुझ पर गुस्सा ही आता है। मन करता है तेरा सिर फोड़ दूं।"

"अब तो तू सरासर झूठ बोल रही है।" शालिनी ने बुरा सा मुंह बना कर कहा____"मैं मान ही नहीं सकती कि मेरे छेड़ने पर तुझे अपने अंदर मीठा मीठा एहसास नहीं होता होगा। सच यही है कि तुझे भी बहुत आनंद आता है लेकिन खुल कर बताने में लाज आती है तुझे। कह दे भला कि मेरी ये बातें सच नहीं है?"

रागिनी बगले झांकने लगी। वो फ़ौरन कुछ बोल ना सकी थी। या फिर उसे कुछ सूझा ही नहीं था कि क्या कहे? तभी कामिनी उसका स्वेटर ले कर आ गई जिससे उसने थोड़ी राहत की सांस ली और उससे स्वेटर ले कर पहनने लगी। कामिनी वापस कुएं के पास जा कर कपड़े धोने लगी।

"वैसे मैं ये भी सोचती हूं कि वैभव जी की किस्मत कितनी अच्छी है।" शालिनी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"मतलब कि पहले वो तुझे ब्याह कर ले जाएंगे और फिर कुछ दिनों के बाद उस रूपा को भी ब्याह कर अपनी हवेली ले जाएंगे। उसके बाद कमरे में पलंग पर उनके एक तरफ तू लेटेगी और दूसरी तरफ रूपा। उफ्फ! दोनों तरफ से उनकी दोनों बीवियां उनसे चिपकेंगी और वो किसी महाराजा की तरह आनंद उठाएंगे। काश! ये मंज़र देखने के लिए मैं भी वहां रहूं तो मज़ा ही आ जाए।"

"हाय राम! कैसी कैसी बातें सोचती है तू?" रागिनी ने आश्चर्य और शर्म से उसको देखते हुए कहा____"क्या सच में तुझे ऐसी बातें करते हुए शर्म नहीं आती?"

"अरे! शर्म क्यों आएगी?" शालिनी ने उसके दोनों कन्धों को पकड़ कर कहा___"तुझसे ही तो बोल रही हूं और तुझसे ऐसा बोलने में कैसी शर्म? तू तो मेरी सहेली है, मेरी जान है।"

"लेकिन मुझे आश्चर्य हो रहा है कि तेरे जैसी निर्लज्ज मेरी सहेली है।" रागिनी ने उसे घूरते हुए कहा____"कैसे कर लेती है ऐसी गन्दी बातें?"

"ये सब छोड़।" शालिनी ने कहा____"और ये बता कि क्या सच में विवाह के बाद ऐसा ही मंज़र होगा हवेली के तेरे कमरे में?"

"हे भगवान! फिर से वही बात।" रागिनी के चेहरे पर हैरानी उभर आई____"मत कर ना ऐसी बातें। कह तो तेरे आगे हाथ जोड़ लूं, पैरों में गिर जाऊं।"

"अरे! मैं तो तेरी शर्म दूर कर रही हूं यार।" शालिनी ने बड़े स्नेह से कहा____"ताकि विवाह के बाद जब तेरी सुहागरात हो तो उस समय तुझे ज़्यादा शर्म न आए। सच कहती हूं मैं तुझे उन पलों के लिए तैयार कर रही हूं।"

"हां तो मत कर।" रागिनी ने गहरी सांस ली____"तू ऐसी बातों से मेरी शर्म नहीं बल्कि हालत ख़राब कर रही है। तुझे अंदाज़ा भी नहीं है कि तेरी ऐसी बातों से मुझे कितना अजीब महसूस होता है।"

"हां मैं समझ सकती हूं यार।" शालिनी ने कहा____"मैं समझ सकती हूं कि तेरे जैसी स्वभाव वाली लड़की का शुरू से ही इस रिश्ते के बारे में सोच सोच कर अब तक क्या हाल हुआ होगा। मैं सब समझती हूं रागिनी लेकिन तू भी इस बात से इंकार नहीं कर सकती कि आने वाले समय में जो कुछ होने वाला है उसका सामना तुझे करना ही पड़ेगा। उससे तू भाग नहीं सकती है।"

"हां जानती हूं मैं।" रागिनी ने अपने कंधों से शालिनी के हाथों को हटाते हुए कहा____"और सच कहूं तो जब भी उस आने वाले पल के बारे में ख़याल आता है तो समूचे बदन में सर्द लहर दौड़ जाती है। मैं मानती हूं कि इस रिश्ते को मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया है और अब उनसे विवाह भी होने वाला है मेरा लेकिन विवाह के बाद जो होगा उसके बारे में सोच कर ही कांप जाती हूं मैं। मुझे समझ नहीं आता कि कैसे मैं उन पलों में खुद को सामान्य रख पाऊंगी और उनका साथ दे पाऊंगी? अगर अपने अंदर का सच बयान करूं तो वो यही है कि उस वक्त शायद मैं पीछे ही हट जाऊंगी। उनको अपने पास नहीं आने दूंगी।"

"ये....ये तू क्या कह रही है रागिनी?" शालिनी के चेहरे पर मानों आश्चर्य नाच उठा। फिर एकदम चिंतित भाव से कहा उसने____"ऐसा ग़ज़ब मत करना यार। उन हसीन पलों में अगर तू पीछे हटेगी अथवा उन्हें अपने क़रीब नहीं आने देगी तो खुद ही सोच कि ऐसे में उनको कैसा लगेगा? क्या उन्हें तकलीफ़ नहीं होगी? क्या वो ये नहीं सोच बैठेंगे कि तू अभी भी शायद उनको अपना देवर ही मानती है?"

"मैं ये सब सोच चुकी हूं शालिनी।" रागिनी ने गंभीरता से कहा____"और फिर खुद को यही समझाती हूं कि मुझे ऐसा करने का सोचना भी नहीं चाहिए। भला इसमें उनका या मेरा क्या दोष है कि हमारा आपस में इस तरह का रिश्ता बन गया है? ये सब तो नियति में ही लिखा था।"

"अगर तू सच में ऐसा सोचती है तो फिर तुझे बाकी कुछ भी नहीं सोचना चाहिए।" शालिनी ने कहा____"और ना ही उन पलों में ऐसी वैसी हरकत करने का सोचना चाहिए। तुझे अपने दिलो दिमाग़ में सिर्फ ये बात बैठा के रखनी चाहिए कि उनसे तेरा पहली बार ही विवाह हुआ है। इसके पहले तेरा उनसे कोई भी दूसरा रिश्ता नहीं था। एक बात और, तू उमर में उनसे बड़ी है, तेरा रिश्ता भी उनसे बड़ा रहा है इस लिए अगर तू ऐसा करेगी तो वो भी ऐसा ही सोचेंगे और आगे कुछ भी नहीं हो सकेगा उनसे। इस लिए मैं तुझसे यही कहूंगी कि सब कुछ अच्छा चल रहा है तो आगे भी सब कुछ अच्छा ही चलने देना। ना तू बीच चौराहे पर रुकना और ना ही उन्हें रुकने के बारे में सोचने देना।"

"ऊपर वाला ही जाने उस वक्त मुझसे क्या हो सकेगा और क्या नहीं।" रागिनी ने अधीरता से कहा।

"ऊपर वाला भी उसी के साथ होता है रागिनी जो बिना झिझक के और बिना रुके अपने कर्तव्य पथ पर चलते हैं।" शालिनी ने कहा____"तेरे जीवन में ऊपर वाले ने इतना अच्छा समय ला दिया है तो अब ये तेरी भी ज़िम्मेदारी है कि तू ऊपर वाले की दी हुई इस सौगात को पूरे मन से स्वीकार करे और पूरे आत्म विश्वास के साथ हर चुनौती को पार करती चली जाए।"

"मैं पूरी कोशिश करूंगी शालिनी।" रागिनी ने अधीरता से कहा____"बाकी जो मेरी किस्मत में लिखा होगा वही होगा।"

"तू चिंता मत कर।" शालिनी ने फिर से उसके कंधों पर अपने हाथ रखे____"मुझे पूरा भरोसा है कि आगे सब कुछ अच्छा ही होगा। मुझे वैभव जी पर भी भरोसा है कि वो तुझे ऐसे किसी भी धर्म संकट में फंसने नहीं देंगे बल्कि तेरे मनोभावों को समझते हुए वही करेंगे जिसमें तेरी खुशी होगी और जो तेरे हित में होगा।"

कुछ देर और दोनों के बीच बातें हुईं उसके बाद शालिनी के कहने पर रागिनी उसके साथ ही अंदर की तरफ चली गई। कामिनी धुले हुए कपड़ों को वहीं बंधी डोरी पर डाल रही थी। कुछ बातें उसके कानों में भी पहुंचीं थी।

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मैंने मेनका चाची को इशारा कर के उन्हें कमरे में आने को कहा और खुद उनके कमरे की तरफ बढ़ चला। शाम हो चुकी थी। सबको चाय दी गई थी। इतने लोग थे कि बड़े से बर्तन में चाय बनाई गई थी। बहरहाल, कुछ ही देर में चाची मेरी तरफ आती नज़र आईं। मैं दरवाज़े के पास ही खड़ा हुआ था। अचानक मुझे कुसुम दिखी तो मैंने उसको भी आवाज़ दे कर अपने पास बुलाया। वो खुशी से उछलती हुई जल्दी ही मेरे पास आ गई और मुझे सवालिया नज़रों से देखने लगी।

चाची ने दरवाज़ा खोला तो उनके पीछे मैं और कुसुम कमरे में दाख़िल हो गए। इत्तेफ़ाक से बिजली गुल नहीं थी इस लिए कमरे में बल्ब का पीला प्रकाश फैला हुआ था। चाची अपने पलंग पर जा कर बैठ गईं। मैंने कुसुम को भी उनके पास बैठ जाने को कहा और खुद वहीं उनके पास ही कुर्सी को खिसका कर बैठ गया।

"क्या बात है वैभव बेटा?" चाची ने बड़े स्नेह से मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"तुमने किसी ख़ास वजह से मुझे यहां आने का इशारा किया था क्या?"

"हां चाची।" मैंने कहा____"असल में आपसे एक ज़रूरी बात करनी थी। उम्मीद करता हूं कि आप मेरी बात ज़रूर मानेंगी और सिर्फ आप ही नहीं कुसुम भी।"

"बिल्कुल मानूंगी बेटा।" मेनका चाची ने उसी स्नेह के साथ कहा____"बताओ ऐसी क्या बात है?"

"आप तो जानती हैं कि कल विभोर और अजीत विदेश से यहां आ जाएंगे।" मैंने थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"मैं आप दोनों से ये कहना चाहता हूं कि उन्हें इस बारे में पता नहीं चलना चाहिए कि आपने या चाचा ने क्या किया था।"

"ऐसा क्यों कहते हो वैभव?" चाची ने सहसा अधीर हो कर कहा____"उनसे इतनी बड़ी बात छुपाने को क्यों कह रहे हो तुम? मैं तो यही चाहती हूं कि उनको भी अपने माता पिता के घिनौने सच का पता चले।"

"नहीं चाची, कृपया ऐसा मत कीजिएगा।" मैंने कहा____"जो गुज़र गया उसे भूल जाने में ही सबकी भलाई है। वो दोनों विदेश में अच्छे मन से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं तो उन्हें पूरे मन से पढ़ने दीजिए। अगर उन्हें इस बात का पता चला तो वो दोनों जाने क्या क्या सोच कर दुखी हो जाएंगे। इससे उनकी पढ़ाई लिखाई पर गहरा असर पड़ जाएगा। मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता कि मेरे वो दोनों छोटे भाई हम सबके बीच खुद के बारे में उल्टा सीधा सोचने लगें। मेरी आपसे हाथ जोड़ कर विनती है चाची कि आप उन्हें इस बारे में कुछ मत बताइएगा।"

"तुम कहते हो तो नहीं बताऊंगी।" मेनका चाची ने अधीरता से कहा____"लेकिन अगर उन्हें किसी और से इस बात का पता चल गया तो?"

"उन्हें किसी से कुछ पता नहीं चलेगा चाची।" मैंने दृढ़ता से कहा____"वैसे भी इस बारे में बाहर के लोगों को कुछ पता नहीं है और जिन एक दो लोगों को पता है उन्हें पिता जी ने समझा दिया है कि इस बारे में वो विभोर और अजीत को भनक तक न लगने दें।"

"चलो मान लिया कि उन्हें मौजूदा समय में इस बारे में किसी से पता नहीं चलेगा।" चाची ने कहा____"लेकिन कभी न कभी तो उन्हें इस बारे में पता चल ही जाएगा ना। अगर उन्हें किसी और से पता चला तो वो ये सोच कर दुखी हो जाएंगे कि उनकी मां ने इस बारे में खुद उन्हें क्यों नहीं बताया?"

"वैसे तो ये मुमकिन नहीं है चाची।" मैंने कहा____"लेकिन दुर्भाग्य से अगर कभी उन्हें पता चल भी गया तो वो आज के मुकाबले इतना दुखदाई नहीं होगा। इस वक्त ज़रूरी यही है कि उन्हें इस बारे में कुछ भी पता नहीं चलना चाहिए ताकि वो साफ मन से अपनी पढ़ाई कर सकें।"

"भैया सही कह रहे हैं मां।" कुसुम ने मासूमियत से कहा____"विभोर भैया और अजीत को इस समय इस बारे में नहीं बताना चाहिए। मैं तो कभी नहीं बताऊंगी उनको, आप भी कभी मत बताना।"

"ठीक है वैभव।" चाची ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"वैसे तो कभी न कभी उनको पता चल ही जाएगा किंतु मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं कि इस समय उन्हें ये घिनौना सच बताना ठीक नहीं है।"

"तो फिर मुझे वचन दीजिए चाची कि आप मेरे छोटे भाइयों को इस बारे में कभी कुछ नहीं बताएंगी।" मैंने कहा____"आप वैसा ही करेंगी जिसमें उन दोनों का भविष्य उज्ज्वल बने।"

"क्या वचन देने की ज़रूरत है वैभव?" मेनका चाची ने अधीरता से मेरी तरफ देखा।

"वैसे तो ज़रूरत नहीं है चाची।" मैंने कहा____"लेकिन मेरी तसल्ली के लिए मुझे आपसे इस बात का वचन चाहिए। मैं ये कभी नहीं चाहूंगा कि मेरी प्यारी चाची और मेरे दोनों प्यारे भाई भविष्य में कभी भी दुखी हों।"

"ओह! वैभव, मेरे अच्छे बेटे।" चाची ने मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में ले कर अपनी तरफ खींचा और फिर बड़े स्नेह से मेरे माथे को चूम लिया____"क्यों मुझ जैसी चाची को इतना मानते हो? क्यों मुझे इतना मान सम्मान देते हो?"

"क्योंकि आपका ये बेटा ऐसा ही है।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए प्यार से कहा____"आपका ये बेटा अपनी सबसे सुंदर चाची से बहुत प्यार करता है और चाहता है कि उसकी प्यारी चाची हमेशा खुश रहें।"

मेरी बात सुन कर चाची की आंखें छलक पड़ी। एक झटके से पलंग से उठी और फिर झपट कर मुझे अपने सीने से छुपका लिया। ये देख कुसुम की भी आंखें छलक पड़ीं। वो भी झट से आई और एक तरफ से मुझसे चिपक गई।

"काश! विधाता ने मेरी और तुम्हारे चाचा की बुद्धि न हर ली होती।" चाची ने सिसकते हुए कहा____"तो हम दोनों से इतना बड़ा अपराध न होता।"

"ये सब सोच कर खुद को दुखी मत कीजिए चाची।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"आप जानती हैं ना कि मैं अपनी प्यारी सी चाची को ना तो दुखी होते देख सकता हूं और ना ही आंसू बहाते हुए।"

"हमने जो किया है उसका दुख एक नासूर बन कर सारी उमर मुझे तड़पाएगा मेरे बेटे।" चाची ने रुंधे गले से कहा____"मैं कितना भी चाहूं इससे बच नहीं सकूंगी। हमेशा ये सोच कर मुझे तकलीफ़ होगी कि मैंने अपने देवता समान जेठ जी और देवी समान अपनी दीदी के प्यार, स्नेह और भरोसे को तोड़ा है।"

"शांत हो जाइए चाची।" मैंने उठ कर उनके चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर कहा____"मैंने आपसे कहा है ना कि मैं अपनी प्यारी सी चाची को दुखी और आंसू बहाते नहीं देख सकता। इस लिए ये सब मत सोचिए। क्या आप अपने बेटे के विवाह जैसे खुशी के अवसर पर इस तरह खुद को दुखी रखेंगी? क्या आप चाहती हैं कि आपका बेटा खुशी के इस अवसर पर अपनी प्यारी सी चाची को दुखी देख खुद भी दुखी हो जाए?"

"नहीं नहीं।" चाची की आंखें छलक पड़ीं। मानों तड़प कर बोलीं____"मैं ऐसा कभी नहीं चाह सकती मेरे बेटे। मैं तो यही चाहती हूं कि मेरे सबसे अच्छे बेटे को दुनिया भर की खुशियां मिल जाएं। मैं अब नहीं रोऊंगी। इस खुशी के मौके पर तुम्हें दुखी नहीं करूंगी।"

"ये हुई न बात। मेरी सबसे प्यारी चाची।" मैंने झुक कर चाची के माथे पर चूम लिया____"चलिए अब, बाहर आपके बिना कहीं कोई काम न बिगड़ जाए। आप तो जानती हैं कि मां को आपके सहारे की कितनी ज़रूरत है।"

आख़िर मेरी बातों से चाची के चेहरे पर से दुख के भाव मिटे और फिर वो मुस्कुराते हुए पलंग से नीचे उतर आईं। कुसुम मुझे भाव विभोर सी देखे जा रही थी। उसकी आंखें भरी हुई थी। ख़ैर कुछ ही पलों में हम तीनों कमरे से बाहर आ गए। चाची और कुसुम अपने अपने काम में लग गईं जबकि मैं खुशी मन से ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ता चला गया।




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बडा ही खुबसुरत और दमदार अपडेट है भाई मजा आ गया
 
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