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Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

आप सबको ये कहानी कैसी लग रही है.????

  • लाजवाब है,,,

    Votes: 185 90.7%
  • ठीक ठाक है,,,

    Votes: 11 5.4%
  • बेकार,,,

    Votes: 8 3.9%

  • Total voters
    204
  • Poll closed .
एक नया संसार
अपडेट.......《 63 》


अब तक,,,,,,,,
शिवा की इस बात पर कमिश्नर बुरी तरह हैरान रह गया। किन्तु अपराधी जब खुद ही अपना गुनाह कबूल कर रहा था तो भला उन्हें क्या आपत्ति हो सकती थी? कमिश्नर ने अपने साथ आए एक एसआई को इशारा किया। एसआई ने शिवा के हाॅथ से रिवाल्वर को रुमाल में लपेट कर लिया और फिर उसके दोनो हाॅथों में हॅथकड़ी डाल दी।

मैं दौड़ते हुए रितू दीदी के पास आया था। रितू दीदी को आदित्य अपनी गोंद में लिए बैठा था। रितू दीदी की साॅसें अभी चल रही थी। पवन अभय चाचा के पास चला गया था। जहाॅ पर प्रतिमा अभय की हालत को देख कर रो रही थी। अभय चाचा की हालत भी काफी ख़राब थी। उनका पूरा जिस्म उनके खून से नहाया हुआ था। प्रतिमा बार बार एक ही बात कह रही थी कि मुझे मर जाने दिया होता। मुझ पापिन को क्यों बचाया तुमने?

पुलिस सायरन की आवाज़ सुन कर इमारत के अंदर से बाॅकी सब लोग भी आ गए थे। यहाॅ का मंज़र देख कर सबकी चीख़ें निकल गई थी। माॅ ने जब मुझे सही सलामत देखा तो मुझे खुद से छुपका लिया और मेरे चेहरे पर हर जगह चूमने चाटने लगीं। मैने उन्हें खुद से अलग किया और बताया कि रितू दीदी व अभय चाचा को गोली लगी है। उन्हें जल्द ही हास्पिटल ले जाना पड़ेगा। मेरी बात सुन कर सब लोग रितू दीदी व अभय चाचा के पास आ गए।

रितू दीदी व अभय चाचा की हालत बहुत ख़राब थी। सब लोग रो रहे थे। मैं और पवन दौड़ते हुए कुछ ही दूरी पर खड़ी कई सारी गाड़ियों की तरफ गए। उनमें से एक गाड़ी को स्टार्ट कर मैं फौरन ही उसे इस तरफ ले आया। आदित्य ने रितू दीदी को उठा कर जल्दी से टाटा सफारी में बड़े एहतियात से बिठाया। रितू दीदी के बैठते ही नैना बुआ भी उनके पास आकर बैठ गईं। आदित्य भाग कर गया और दूसरी गाड़ी ले आया। उस गाड़ी में अभय चाचा को फौरन लेटाया गया। उसमें करुणा चाची व रुक्मिणी चाची बैठ गईं। दूसरी अन्य गाड़ियों में बाॅकी सब लोग भी बैठ गए। इसके बाद हम सब तेज़ी से गुनगुन की तरफ बढ़ चले।
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अब आगे,,,,,,,

ऑधी तूफान बने हम सब आख़िर हास्पिटल पहुॅच ही गए। जल्दी जल्दी हमने रितू दीदी व अभय चाचा को स्ट्रेचर पर लिटा कर हास्पिटल के अंदर ले गए। कुछ ही देर में उन दोनो को ओटी के अंदर ले जाया गया। उन्हें अंदर ले जाते ही ओटी का दरवाज़ा बंद हो गया और हम सब बाहर ही चिंता व परेशानी की हालत में खड़े रह गए।

हम सब बेहद दुखी थे और भगवान से उन दोनो को सलामत रखने की मिन्नतें कर रहे थे। करुणा चाची के ऑसू बंद ही नहीं हो रहे थे। कमिश्नर साहब ने पहले ही फोन करके यहाॅ पर डाक्टरों को बता दिया था ताकि यहाॅ पर किसी प्रकार की परेशानी न हो सके और जल्द ही उनका इलाज़ शुरू हो जाए।

बड़ी माॅ हम सब से अलग एक तरफ गुमसुम सी खड़ी थीं। उनकी माॅग का सिंदूर मिटा हुआ था तथा हाॅथ की चूड़ियाॅ भी कुछ टूटी हुई थीं। मतलब साफ था कि पति की मौत के बाद उन्होंने खुद को विधवा बना लिया था। इस वक्त उनके चेहरे पर संसार भर की वीरानी थी। ऑखों में सूनापन था।

अधर्म पर धर्म की तथा बुराई पर अच्छाई की जीत तो हो चुकी थी किन्तु इस जीत में सच्चाई की राह पर चलने वाले दो ब्यक्ति जीवन और मृत्यु के बीच लटके हुए थे। मैं रितू दीदी के लिए सबसे ज्यादा दुखी था। मेरी ऑखों के सामने रह रह कर उनकी सुंदर छवि चमक उठती थी। उनके साथ बिताए हुए हर लम्हें याद आ रहे थे। रितू दीदी ने शुरू से लेकर अब तक मेरा कितना साथ दिया था ये बताने की आवश्यकता नहीं है। अगर मैं ये कहूॅ तो ज़रा भी ग़लत न होगा कि इस जीत का सारा श्रेय ही उनको जाता है। उन्होंने क़दम क़दम पर मुझे सम्हाला था और मेरी रक्षा की थी। यूॅ तो मैं जीवन भर उनका ऋणी ही बन चुका था किन्तु एक ये भी सच्चाई थी कि मैं उन्हें किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था। मैं बचपन से ही उन्हें बेहद पसंद करता था और उनके लिए कुछ भी कर गुज़रने की चाहत रखता था। अब तक तो नहीं पर अब लग रहा था कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो मैं एक पल भी जी नहीं पाऊॅगा।

आदित्य मेरे पास आया और मुझसे बोला कि मैं खुद को सम्हालूॅ और सबको भी सम्हालूॅ। वो खुद भी बेहद दुखी था। उसने हम सबको अपना ही मान लिया था। उसने मुझे समझाया कि मैं खुद को मजबूत करूॅ वरना सब इस सबसे दुखी होते रहेंगे। आदित्य की बात सुन कर मैने खुद को सम्हाला और फिर सबको वहीं एक तरफ लम्बी सी बेंच में बैठ जाने के लिए कहा। मेरे ज़ोर देने पर आख़िर सब लोग बैठ ही गए। मेरी नज़र दूर एक तरफ खड़ी बड़ी माॅ पर पड़ी तो मैं उनके पास चला गया।

बड़ी माॅ कहीं खोई हुई सी खड़ी एकटक शून्य को घूरे जा रही थीं। मैं उनके पास जा कर उनके कंधे पर हाॅथ रखा तो जैसे उनकी तंद्रा टूटी। उन्होंने मेरी तरफ अजीब भाव से देखा और फिर बिना कुछ बोले फिर से शून्य में देखने लगीं। मैने बड़ी माॅ से भी बैठ जाने के लिए कहा तो वो मेरे साथ ही दूसरी साइड की बेंच की तरफ आईं और बैठ गईं। उनके पास ही मैं भी बैठ गया। हलाॅकि मेरे उनके पास बैठ जाने से सामने ही बेंच पर बैठे सब लोग मुझे घूर कर देखने लगे थे मगर मैने उनके घूरने की कोई परवाह नहीं की।

मेरे मन में बड़ी माॅ की उस वक्त की बातें गूॅज रही थी जब उन्होंने मुझे फोन किया था। इतना तो मुझे पता था कि हर इंसान को एक दिन अपने गुनाहों का एहसास होता है। वक्त और हालात इंसान को ऐसी जगह ला कर खड़ा कर देते हैं जब उसे शिद्दत से अपने गुनाहों का एहसास होने लगता है। वही हाल बड़ी माॅ का भी था। एक ये भी सच्चाई थी कि उन्होंने अपने पति से ऑख बंद करके तथा बिना कुछ सोचे समझे बेपनाह प्रेम किया था। जिसका सबूत ये था कि उन्होंने अजय सिंह के हर गुनाह में उसका खुशी खुशी साथ दिया था। उन्होंने कभी भी अपने पति से ये नहीं कहा कि वो ग़लत कर रहा है और वो ग़लत में उसका साथ नहीं देंगी। इंसान जब बार बार गुनाह करने लगता है तब उसका ज़मीर ख़ामोश होकर बैठ जाता है। या फिर इंसान ज़बरदस्ती अपने ज़मीर का करुण क्रंदन दबाता चला जाता है। मगर अंत तो हर चीज़ का एक दिन होता ही है। फिर चाहे वो जिस रूप में हो। ख़ैर, मेरे मन में बड़ी माॅ से फोन पर हुई वो सब बातें चल रही थीं।

बड़ी माॅ से फोन पर पहले तो मैने कठोरतापूर्ण ही बातें की थी किन्तु जब उन्होंने अभय चाचा की असलियत और अपने पति से उनके द्वारा फोन पर हुई बातों के बारे में बताया तो पहले तो मैं हॅसा था, क्योंकि मुझे लगा कि बड़ी माॅ मुझसे कोई चाल चलने का सोच रही हैं जिसमें वो अभय चाचा के खिलाफ ऐसी बातें बता कर मेरे मन में चाचा के प्रति शंका या दरार जैसा माहौल बनाना चाहती हैं। मगर उनकी बातों ने जल्द ही मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि भला उन्हें ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी? दूसरी बात उन्होंने मुझसे कुछ ऐसी बातें भी कीं जिन बातों की मैं उनसे उम्मींद ही नहीं कर सकता था।

काफी समय तक हम सब ऐसे ही बैठे रहे थे। हम सबकी साॅसें हमारे हलक में अटकी हुई थी।
ना चाहते हुए भी मन में ऐसे भी ख़याल आ जाते जिनके तहत हमारे जिस्म का रोयाॅ रोयाॅ तक काॅप जाता था। आख़िर लम्बे इन्तज़ार के बाद ओटी के ऊपर लगा लाल बल्ब बुझा और फिर दरवाजा खुला। दरवाज़ा खुलते ही हम सब एक साथ ही खड़े होकर डाक्टर के पास तेज़ी से पहुॅचे।

"डाक्टर साहब।" सबसे पहले माॅ गौरी ने ही ब्याकुल भाव से पूछा___"मेरा बेटा और बेटी कैसी है अब? वो दोनो ठीक तो हैं न? जल्दी बताइये डाक्टर साहब। वो दोनो ठीक तो है न?"

गौरी माॅ की ब्याकुलता को देख कर डाक्टर तुरंत कुछ न बोला। ये देख कर हम सब पलक झपकते ही घबरा गए। एक साथ हम सब डाक्टर पर चढ़ दौड़े। करुणा चाची बुरी तरह रोने लगी थी। उन्हें इस तरह रोते देख दिव्या भी रोने लगी थी। हम सब को इस तरह ब्यथित देख डाक्टर के चेहरे के भाव बदले।

"आप सबको इस तरह।" डाक्टर ने कहा___"दुखी होने की ज़रूरत नहीं है। वो दोनो ही अब खतरे से बाहर हैं। हमने उनके शरीर से बुलेट निकाल दी है। फिलहाल वो खतरे से बाहर हैं किन्तु खून ज्यादा बह जाने से उनकी हालत अभी बेहतर नहीं है। ख़ैर अभी तो वो दोनो बेहोश हैं। इस लिए आप लोग उनसे बात नहीं कर सकते हैं।"

डाक्टर की बात सुन कर हम सबके निस्तेज पड़ चुके चेहरों पर जैसे नई ताज़गी सी आ गई। हम सब एक दूसरे की तरफ देख देख कर एक दूसरे से कहने लगे कि सब ठीक है। डाक्टर कुछ और भी बातें बता कर चला गया। उसके जाते ही हम सबने ईश्वर का लाख लाख धन्यवाद किया। गौरी माॅ को अचानक ही जाने क्या हुआ कि वो पलटी और गैलरी में एक तरफ को लगभग दौड़ते हुई गईं। हम सब उन्हें इस तरह जाते देख चौंके तथा साथ ही हम सब भी उनके पीछे की तरफ तेज़ी से बढ़ चले।

कुछ ही देर में हम सब जिस जगह उनका पीछा करते हुए पहुॅचे उस जगह का दृष्य देख कर हम सबकी ऑखें नम हो गईं। दरअसल वो गणेश जी का एक छोटा सा मंदिर था। जिसके सामने अपने दोनो हाॅथ जोड़े बैठी गौरी माॅ नज़र आईं हमें। हम सब भी उनके पास जाकर गणेश जी के सामने अपने अपने हाॅथ जोड़ कर खड़े हो गए। गणेश जी की मूर्ति के सामने खड़े हो कर हम सबने उनकी स्तुति की और उनकी इस कृपा के लिए हम सबने उन्हें सच्चे दिल से धन्यवाद दिया।

जैसा कि डाक्टर ने बताया था कि अभी रितू दीदी व अभय चाचा बेहोश हैं। अतः हम सब उनके होश में आने की प्रतीक्षा करने लगे थे। ख़ैर दिन ढल चुका था। मुझे पता था कि इस सबके चक्कर में किसी ने सुबह से कुछ खाया भी नहीं था। अतः मैंने आदित्य व पवन को साथ लिया और पास के ही एक होटेल से सबके लिए खाने पीने का प्रबंध किया। मेरे और आदित्य के ज़ोर देने पर आख़िर सबको थोड़ा बहुत खाना ही पड़ा। हलाॅकि इसके लिए कोई तैयार नहीं था क्योंकि आज हमारे परिवार के एक बड़े सदस्य की मौत हो चुकी थी तथा दूसरा अपने पिता के कत्ल के इल्ज़ाम में गिरफ्तार हो चुका था। निश्चय ही उसे या तो फाॅसी की सज़ा होगी या फिर ऊम्र कैद।

वो दोनो बुरे ही सही किन्तु उनसे खून का रिश्ता तो था ही। फार्महाउस पर कदाचित अभी भी अजय सिंह का मृत शरीर पड़ा होगा। हम सब तो रितू दीदी व अभय चाचू को लेकर हास्पिटल आ गए थे। उसके बाद वहाॅ पर अजय सिंह की लाश यूॅ ही लावारिश ही पड़ी रह गई होगी। या फिर ऐसा हुआ होगा कि कमिश्नर ने इस पर कोई कानूनी प्रक्रिया की होगी। जिसके तहत वो अजय सिंह की लाश का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्डम के लिए ले गए होंगे। इस बारे में हमें कोई जानकारी अभी तक मिली नहीं थी, बल्कि ये महज हम सबका ख़याल ही था।
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उस वक्त रात के दस बज रहे थे जब हास्पिटल की एक नर्स ने आ कर हमें बताया कि रितू दीदी व अभय चाचू को होश आ गया है। हम सब नर्स की ये बात सुन कर बेहद खुश हुए और फिर फौरन ही हम सब उस कमरे में पहुॅचे जहाॅ पर रितू दीदी व अभय चाचू को शिफ्ट किया गया था। हम सबने उन दोनो को सही सलामत देखा तो जान में जान आई। करुणा चाची अभय के पास जा कर रोने लगी थी। ये देख कर माॅ ने उन्हें समझाया कि अब उसे रोना नहीं चाहिए बल्कि खुश होना चाहिए कि ईश्वर ने सब कुछ ठीक कर दिया है।

मैं रितू दीदी के पास ही बैठ गया था और एकटक उनके चेहरे की तरफ देख रहा था। वो खुद भी मुझे देखे जा रही थी। उनकी ऑखों में खुशी के ऑसू थे तथा होंठ कुछ कहने के लिए काॅपे जा रहे थे। ये देख कर मैने उन्हें इशारे से ही शान्त रहने को कहा और फिर झुक कर उनके माथे पर चूम लिया। मेरे ऐसा करते ही उनकी ऑखें बंद हो गईं। ऐसे जैसे कि मेरे ऐसा करने से उन्हें कितना सुकून मिला हो। नीलम, सोनम दीदी, आशा दीदी, निधी व दिव्या पास ही चारो तरफ से घेरे खड़ी थीं।

यहाॅ पर मुझे एक चीज़ बहुत अजीब लग रही थी और वो था बड़ी माॅ का बिहैवियर। वो हम सबसे अलग दूर खड़ी थीं। दूर से ही वो अपनी बेटी रितू को देख रही थी। उनकी ऑखों में ऑसू थे। उनसे कोई बात नहीं कर रहा था और ना ही वो किसी से बात करने की कोई कोशिश कर रही थीं। उन्होंने तो जैसे खुद को हम सबसे अलग समझ लिया था।

उस रात हम सब हास्पिटल में ही रहे। दूसरे दिन डाक्टर से मिले तो डाक्टर ने कुछ दिन बेड रेस्ट के लिए यहीं रहने का कहा। इस बीच कमिश्नर साहब भी हमसे मिलने आए और सबका हाल अहवाल लिया। रितू दीदी से वो बड़े प्यार से मिले तथा उन्हें ये भी कहा कि उन्हें उन पर नाज़ है। कमिश्नर साहब ने बताया कि अजय सिंह की डेड बाॅडी पोस्टमार्डम के बाद आज दोपहर तक मिल जाएगी। ताकि हम उनका अंतिम संस्कार कर सकें।

अभय चाचा के बार बार ज़ोर देने पर माॅ इस बात पर राज़ी हुई कि वो बाॅकी सबको लेकर गाॅव जाएॅ। अभय चाचा ने बड़ी माॅ से भी आग्रह किया कि वो सबके साथ गाॅव जाएॅ। मैने नैना बुआ आदि को पवन के साथ ही हवेली जाने का कह दिया। जबकि मैं और आदित्य रितू दीदी व अभय चाचा के पास ही रुकना चाहते थे।

आख़िर बहुत समझाने बुझाने के बाद सब जाने के लिए राज़ी हुए। हास्पिटल से बाहर आकर मैने सबको गाड़ियों में बैठा दिया। मैने केशव जी को फोन करके बुला लिया था। सारी घटना के बारे में जान कर पहले तो वो हैरान हुए उसके बाद खुश भी हुए। मैने उनके कुछ आदमियों को माॅ लोगों के साथ हल्दीपुर जाने के लिए उनसे कहा। केशव जी मेरी बात तुरंत मान गए और फिर उन्होंने सीघ्र ही अपने आदमियों बुला लिया।

करुणा चाची जाने को तैयार ही नहीं हो रही थी। मैने बड़ी मुश्किल से उन्हें समझाया और कहा कि वो किसी बात की फिक्र न करें। ख़ैर उन सबके जाने के बाद मैने कमिश्नर साहब से शिवा के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने शिवा से बात की थी कि वो चाहे तो कानून से छूट सकता है। किन्तु शिवा अपनी बात पर अडिग है। उसका कहना है कि वो इस जीवन से मुक्ति चाहता है। उसमें अब इतनी हिम्मत नहीं है कि वो वापस सबके बीच रह सके। सारी ज़िंदगी वो सबके सामने शर्म से गड़ा रहेगा और चैन से जी नहीं पाएगा। शिवा के न मानने पर ही कमिश्नर साहब ने केस फाइल किया। अपने बाप की चिता को आग देने के लिए उसे यहाॅ लाया जाएगा उसके बाद पुलिस उसे वापस जेल में बंद कर देगी। अदालत का फैसला क्या होगा इसका पता चलते ही उस पर कानूनी कार्यवाही होगी।

कमिश्नर साहब के जाने के बाद मैं और आदित्य वापस रितू दीदी व अभय चाचा के पास आ गए। अभय चाचा ने मुझसे कहा कि मैं इस सबके बारे में अपनी बड़ी बुआ यानी सौम्या बुआ को भी बता दूॅ और यहाॅ बुला लूॅ। फोन पर सारी बातें बताना उचित नहीं था। चाचा की बात सुन कर मैने बुआ को फोन लगाया। थोड़ी ही देर में दूसरी तरफ से बुआ की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैने उन्हें अपना परिचय दिया और जल्द से जल्द हल्दीपुर आने को कहा। मेरे इस तरह बुलाने पर वो चिंतित होकर पूछने लगीं कि बात क्या है? उनके पूछने पर मैने बस यही कहा कि आप बस आ जाइये।

शाम होते होते कमिश्नर साहब की मौजूदगी में शिवा ने अपने बाप अजय सिंह की चिता को अग्नि दे दी। हल्दीपुर ही नहीं बल्कि आस पास के गाॅव में भी ये ख़बर जंगल की आग की तरह फैल गई थी कि ठाकुर गजेन्द्र सिंह बघेल का बड़ा बेटा अब इस दुनियाॅ में नहीं रहा। शमशान पर लोगों की भारी भीड़ जमा थी। आदित्य को रितू दीदी व अभय चाचू के पास छोड़ कर मैं भी गाॅव आ गया था।

सौम्या बुआ आ चुकी थी। यहाॅ आ कर जब उन्हें अपने भाई की मौत का पता चला तो वो दहाड़ें मार मार कर रोने लगी थी। किन्तु बड़ी माॅ ने उन्हें सम्हाल लिया था और कठोर भाव से ये भी कहा कि ऐसे इंसान के मरने का शोक मत करो जिसने अपने जीवन में किसी के साथ कोई अच्छा काम ही न किया हो। बड़ी माॅ की ऐसी बातें सुन कर सौम्या बुआ हतप्रभ रह गई थीं। उन्हें थोड़ी बहुत पता तो था किन्तु सारी असलियत से वो अंजान थीं।

सारी क्रिया संपन्न होते ही सब अपने अपने घर चले गए। इधर हवेली में हर तरफ एक भयावह सा सन्नाटा फैला हुआ था। हवेली के नौकर चाकर सब संजीदा थे। सौम्या बुआ के साथ उनके पति भी आए थे। मैने उनसे सब का ख़याल रखने का कहा और जीप लेकर वापस गुनगुन आ गया। ऐसे ही एक हप्ता गुज़र गया। मैं और आदित्य डाक्टर की परमीशन से रितू दीदी व अभय चाचा को हास्पिटल से घर ले आए। दोनो की हालत अभी नाज़ुक ही थी। इस लिए उनकी देख रेख के लिए सब मौजूद थे।

तेरवीं के दिन ब्राम्हणों को भोज कराया गया। सभी नात रिश्तेदार आए हुए थे। सबकी ज़ुबान पर बस एक ही बात थी कि ठाकुर खानदान में ये अचानक क्या हो गया है? हलाॅकि इतना तो सब समझते थे कि ठाकुर खानदान में कुछ सालों से ग्रहण सा लगा हुआ था। दबी ज़मान में तो लोग ये भी कहते थे कि अजय सिंह ने घर की खुशियों में खुद आग लगाई थी। ख़ैर, एक दिन कमिश्नर साहब का फोन आया उन्होंने बताया कि अदालत ने शिवा को ऊम्र कैद की सज़ा सुनाई है। ये जान कर हम सबको बहुत अजीब लगा था। शिवा ने अपनी मर्ज़ी से अपने इस अंजाम का चुनाव किया था, जबकि वो चाहता तो बड़े आराम से वो कत्ल के इल्ज़ाम से बरी हो जाता। बल्कि अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि उस पर कत्ल जैसा कोई इल्ज़ान लगता ही नहीं। मेरे ज़हन में उससे अंतिम मुलाक़ात की वो सब बातें घूम रहीं थी। मैं समझ सकता था कि वह एकदम से जुनूनी हो चुका था। उसकी सोच ऐसी हो चुकी थी कि उसे कोई समझा नहीं सकता था।

अजय सिंह की मौत के बारे में मैने जगदीश ओबराय को पहले ही सब कुछ बता दिया था। वो ये जान कर आश्चर्यचकित थे कि अभय चाचा ने इतना बड़ा धोखा किया था हमारे साथ। तेरवीं के दिन जगदीश ओबराय हमारे गाॅव आए थे। एक दो दिन रुक कर वो वापस मुम्बई चले गए थे। साथ ही हम सबको समझाया बुझाया भी था कि अब हम सब एक नये सिरे से जीवन पथ पर आगे बढ़ें। जाते समय वो थोड़ा मायूस लगे मुझे तो मैने और माॅ ने उनसे पूॅछ ही लिया कि क्या बात है? हमारे पूछने पर उन्होंने बस इतना ही कहा कि वो अकेले मुम्बई में रह नहीं पाएॅगे। उनकी बातों को हम बखूबी समझते थे। इस लिए उन्हें तसल्ली दी कि वो फिक्र न करें। माॅ ने कहा कि राज और गुड़िया की तो पढ़ाई ही चल रही है अभी। इस लिए वो बहुत जल्द मुम्बई आ जाएॅगे।

जैसा कि आप सबको पता है कि हवेली में तीनों भाइयों का बराबर हिस्सा था तथा हवेली बनाई भी इस तरह गई थी कि सबको बराबर बराबर मिल सके। अतः हवेली में आते ही हम सब अपने अपने हिस्सों में रहने लगे थे। किन्तु इसमें नई बात ये थी कि हम सबका खाना पीना एक ही रसोई में बनने लगा था। रितू दीदी व अभय चाचा की सेहत में काफी सुधार हो गया था। रितू दीदी हमारे हिस्से पर ही एक कमरे में रह रही थीं। बड़ी माॅ(प्रतिमा) अपने हिस्से पर अकेली रहती थी। वो किसी से कोई बात नहीं करती थी और ना ही किसी के सामने आती थी। सारा दिन और रात वो अपने कमरे में ही रहती। रितू दीदी व नीलम उनसे कोई बात नहीं करती थीं। हलाॅकि ऐसा नहीं होना चाहिए था मगर कदाचित दिलो दिमाग़ से वो सब बातें अभी निकली नहीं थी। इस लिए उनसे कोई बात करना ज़रूरी नहीं समझता था। हलाॅकि मैं आदित्य व पवन उनसे बात करते थे और उनके लिए दोनो टाइम का खाना व चाय नास्ता मैं ही लेकर उनके पास जाता था और तब तक उनके पास रहता जब तक कि वो खा नहीं लेती थी।

ऐसे ही समय गुज़र रहा था। धीरे धीरे सब नार्मल हो रहे थे। किन्तु एक चीज़ ऐसी थी जिसने मुझे दुखी किया हुआ था और वो था गुड़िया(निधी) का मेरे प्रति बर्ताव। इतना कुछ होने के बाद और इतने दिन गुज़र जाने के बाद मैने ये देखा था कि उसने मुझसे कोई बात नहीं की थी और ना ही मेरे सामने आने की कोई ख़ता की थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि अपने दिल की इस धड़कन को कैसे मनाऊॅ? मेरे मन में कई बार ये विचार आया कि मैं उसके पास जाऊॅ और उससे बातें करूॅ। उससे पूछूॅ कि ऐसा क्या हो गया है कि उसने मुझसे बात करने की तो बात दूर बल्कि मेरे सामने आना भी बंद कर रखा है? मगर मैं चाह कर भी ऐसा कर नहीं पा रहा था क्योंकि गुड़िया के पास हर समय आशा दीदी बनी रहती थी। अपनी इस बेबसी को मैं किसी के सामने ज़ाहिर भी नहीं कर सकता था।
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ऐसे ही कुछ दिन और गुज़र गए। नीलम तो अब लगभग पूरी तरह ठीक ही हो गई थी। उसकी पीठ का ज़ख्म भी अब ठीक हो चला था। मैं नीलम को अक्सर छेंड़ता रहता था, जिसके जवाब में वो बस मुस्कुरा कर रह जाती थी। मैं उसकी इस प्रतिक्रया से हैरान भी होता और मायूस भी। हैरान इस लिए क्योंकि वो मेरे छेंड़ने पर जवाब में खुद भी मुझे छेंड़ने का कोई उपक्रम नहीं करती थी बल्कि सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाती थी। जबकि मायूस इस लिए क्योंकि मैं उससे यही उम्मींद करता था कि वो भी मुझें छेंड़े अथवा मुझसे लड़े झगड़े। मगर जब वो ऐसा न करती तो मैं बस मायूस ही हो जाता था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि नीलम ऐसा क्यों कर रही थी। मैं महसूस कर रहा था कि नीलम कुछ दिनों से बड़ी अजीब अजीब सी बातें करती थी। उसकी बातों में सबसे ज्यादा इसी बात पर ज़ोर होता था कि मैं रितू दीदी का हमेशा ख़याल रखूॅ और उन्हें कभी दुखी न होने दूॅ।

एक दिन सुबह के लगभग आठ बजे सोनम दीदी व नीलम अपने अपने हाॅथों में छोटा सा बैग लिए तथा तैयार होकर हम सबके बीच आईं और माॅ(गौरी) से कहा कि वो मुम्बई जा रही हैं। कारण ये था कि उनके काॅलेज की पढ़ाई का नुकसान हो रहा था। बात पढ़ाई की थी इस लिए किसी ने उन दोनो को जाने से मना नहीं किया। जाते वक्त नीलम मेरे गले लग मुझसे मिली और एक पुनः उसने रितू दीदी का तथा सबका ख़याल रखने का कहा और फिर मेरी तरफ अजीब भाव से देखने के बाद वह पलट कर सोनम दीदी के साथ हवेली से बाहर निकल गई।

नीलम के जाने से मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा कुछ छूटा जा रहा है। नीलम की ऑखों में ऑसू के क़तरे थे। जिन्हें उसने बड़ी सफाई से पोंछ लिया था। दूसरे दिन रुक्मिणी चाची ने हम सबसे अपने घर जाने को कहा। माॅ ने उनसे कहा भी मगर वो नहीं मानी। अतः उन्हें उनके सामान के साथ उनके घर भेज दिया गया। माॅ ने उनसे कहा था कि उनका जब भी दिल करे वो यहाॅ आती रहें।

हम सब अब फिर से एक साथ हो गए थे। इस बात से गाॅव के लोग भी काफी खुश थे। दिन भर किसी न किसी का आना जाना लगा ही रहता था हवेली पर। अभय चाचा व मैं उन सबसे मिलते और दुनियाॅ जहान की बातें होतीं। बड़ी माॅ का रवैया वही था यानी वो अपने कमरे से बाहर नहीं निकलती थीं। पवन लोगों के जाने के बाद मुझे लगा कि अब गुड़िया से बात करने का मौका मिलेगा मगर मेरी उम्मीदों पर पानी फिर गया। क्योंकि आशा दीदी के जाने के बाद गुड़िया का सारा समय उनके घर पर ही गुज़रता था और रात में भी वो उनके घर पर ही सो जाती थी। हवेली में अगर वो आती भी तो दिव्या व रितू दीदी के पास ही रहती। कहने का मतलब ये कि वो खुद को अकेली रखती ही नहीं थी। कदाचित उसे अंदेशा था कि मैं उससे मिलने की तथा उससे बात करने की कोशिश करूॅगा। गुड़िया के इस रवैये से मेरा दिल बहुत दुखी होने लगा था। एक नये संसार का ये रूप देख कर मैं ज़रा भी खुश नहीं था।

मेरा ज्यादातर समय या तो रितू दीदी के पास रहने से या फिर आदित्य के साथ ही गुज़र रहा था। एक दिन अभय चाचा ने कहा कि जब तक उनका स्वास्थ सही नहीं हो जाता मैं खेतों की तरफ का हाल चाल देख लिया करूॅ। चाचा की इस बात से मैं और आदित्य खेतों पर गए और वहाॅ पर सब मजदूरों से मिला। खेतों पर काम कर रहे सभी मजदूर मुझे वहाॅ पर इस तरह देख कर बेहद खुश हो गए थे। सबकी ऑखों में खुशी के ऑसू थे। सब एक ही बात कह रहे थे कि हम अपने जिन मालिक को(मेरे पिता जी) देवता की तरह मानते थे उनके जाने के बाद हम सब बेहद दुखी थे। अजय सिंह ने तो हमेशा हम पर ज़ुल्म ही किया था। किन्तु अब वो फिर से खुश हो गए थे। अपने असल मालिक की औलाद को देख कर वो खुश थे और चाहते थे कि अब वैसा कोई बुरा समय न आए।

एक दिन सुबह जब मैं बड़ी माॅ के लिए चाय नास्ता देने उनके कमरे में गया तो कमरे में बड़ी माॅ कहीं भी नज़र न आईं। उनकी तरफ का सारा हिस्सा छान मारा मैने मगर बड़ी माॅ का कहीं पर भी कोई नामो निशान न मिला। इस बात से मैं भचक्का रह गया। मुझे अच्छी तरह याद था कि जब मैं रात में उनके पास उन्हें खाना खिलाने आया था तब वो अपने कमरे में ही थीं। मैने अपने हाॅथ से उन्हें खाना खिलाया था। हर रोज़ की तरह ही मेरे द्वारा खाना खिलाते समय उनकी ऑखें छलक पड़तीं थी। मैं उन्हें समझाता और कहता कि जो कुछ हुआ उसे भूल जाइये। मेरे दिल में उनके लिए कोई भी बुरा विचार नहीं है।

मैं कमरे को बड़े ध्यान से देख रहा था, इस उम्मीद में कि शायद कोई ऐसा सुराग़ मिल जाए जिससे मुझे पता सके कि बड़ी माॅ कहाॅ गई हो सकती हैं। मगर लाख सिर खपाने के बाद भी मुझे कुछ न मिला। थक हार कर मैं कमरे से ही क्यों बल्कि उनके हिस्से से ही बाहर आ गया। अपनी तरफ डायनिंग हाल में आकर मैने अभय चाचा से बड़ी माॅ के बारे में सब कुछ बताया। मेरी बात सुन कर अभय चाचा और बाॅकी सब भी हैरान रह गए। इस सबसे हम सब ये तो समझ ही गए थे कि बड़ी माॅ शायद हवेली छोंड़ कर कहीं चली गई हैं। उनके जाने की वजह का भी हमें पता था। इस लिए हमने फैसला किया कि बड़ी माॅ की खोज की जाए।

नास्ता पानी करने के बाद मैं आदित्य अभय चाचा बड़ी माॅ की खोज में हवेली से निकल पड़े। अपने साथ कुछ आदमियों को लेकर हम निकले। अभय चाचा अलग गाड़ी में कुछ आदमियों के साथ अलग दिशा में चले जबकि मैं और आदित्य दूसरी गाड़ी में कुछ आदमियों के साथ दूसरी दिशा में। हमने आस पास के सभी गाॅवों में तथा शहर गुनगुन में भी सारा दिन बड़ी माॅ की तलाश में भटकते रहे मगर कहीं भी बड़ी माॅ का पता न चला। रात हो चली थी अतः हम लोग वापस हवेली आ गए। हवेली आ कर हमने सबको बताया कि बड़ी माॅ का कहीं भी पता नहीं चल सका। इस बात से सब बेहद चिंतित व परेशान हो गए।

नीलम तो मुम्बई जा चुकी थी, उसे इस बात का पता ही नहीं था। रितू दीदी को मैने बताया तो उन्होंने कोई जवाब न दिया। उनके चेहरे पर कोई भाव न आया था। बस एकटक शून्य में घूरती रह गई थी। उस रात हम सब ना तो ठीक से खा पी सके और ना ही सो सके। दूसरे दिन फिर से बड़ी माॅ की तलाश शुरू हुई मगर कोई फायदा न हुआ। हमने इस बारे में पुलिश कमिश्नर से भी बात की और उनसे कहा कि बड़ी माॅ की तलाश करें।

चौथे दिन सुबह हम सब नास्ता करने बैठे हुए थे। नास्ते के बाद एक ही काम था और वो था बड़ी माॅ की तलाश करना। नास्ता करते समय ही बाहर मुख्य द्वार को किसी ने बाहर से खटखटाया। दिव्या ने जाकर दरवाज़ा खोला तो बाहर एक आदमी खड़ा था। उसकी पोशाक से ही लग रहा था कि वो पोस्टमैन है। दरवाजा खुलते ही उसने दिव्या के हाॅथ में एक लिफाफा दिया और फिर चला गया।

दिव्या उससे लिफाफा लेकर दरवाज़ा बंद किया और वापस डायनिंग हाल में आ गई। हम लोगों के पास आते ही दिव्य ने वो लिफाफा अभय चाचा को पकड़ा दिया। अभय चाचा ने लिफाफे को उलट कर देखा तो उसमें मेरा नाम लिखा हुआ था। ये देख कर अभय चाचा ने लिफाफा मेरी तरफ सरका दिया।

"ये तुम्हारे नाम पर आया है राज।" अभय चाचा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा___"देखो तो क्या है इसमें?"
"जी अभी देखता हूॅ चाचा जी।" मैने कहने के साथ ही टेबल से लिफाफा उठा लिया और फिर उसे एक तरफ से काट कर खोलने लगा। लिफाफे में एक तरफ मेरा नाम व पता लिखा हुआ था तथा दूसरी तरफ भेजने वाले के नाम में "नारायण रस्तोगी" तथा उसका पता लिखा हुआ था।

लिफाफे के अंदर तह किया हुआ कोई काग़ज था। मैने उसे निकाला और फिर उस तह किये हुए काग़ज को खोल कर देखा। काग़ज में पूरे पेज पर किसी की हैण्डराइटिंग से लिखा हुआ कोई मजमून था। मजमून का पहला वाक्य पढ़ कर ही मैं चौंका। मैने लिफाफे को उलट कर भेजने वाले का नाम पुनः पढ़ा। मुझे समझ न आया कि ये नारायण रस्तोगी कौन है और इसने मेरे नाम ऐसा कोई ख़त क्यों लिखा है? जबकि मेरी समझ में इस नाम के किसी भी ब्यक्ति से मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं था। मुझे हैरान व चौंकते हुए देख अभय चाचा ने पूछ ही लिया कि क्या बात है? मैने उन्हें बताया लिफाफा भेजने वाले को तो मैं जानता ही नहीं हूॅ फिर इसने मेरे नाम पर ये लिफाफा क्यों भेजा हो सकता हैं? अभय चाचा ने पूछा कि ख़त में क्या लिखा है उसने? उनके पूछने पर मैंने ख़त में लिखे मजमून को सबको सुनाते हुए पढ़ने लगा। खत में लिखा मजमून कुछ इस प्रकार था।


मेरे सबसे अच्छे बेटे राज!
सबसे पहले तो यही कहूॅगी कि तू वाकई में एक देवता जैसे इंसान का नेकदिल बेटा है और मुझे इस बात की खुशी भी है कि तू अच्छे संस्कारों वाला एक सच्चा इंसान है। ईश्वर करे तू इसी तरह नेकदिल बना रहे और सबके लिए प्यार व सम्मान रखे। जिस वक्त तुम मेरे द्वारा लिखे ख़त के इस मजमून को पढ़ रहे होगे उस वक्त मैं इस हवेली से बहुत दूर जा चुकी होऊॅगी। मुझे खोजने की कोशिश मत करना बेटे क्योंकि अब मेरे अंदर इतनी हिम्मत व साहस नहीं रहा कि मैं तुम सबके बीच सामान्य भाव से रह सकूॅ। जीवन में जिसके लिए सबके साथ बुरा किया उसने खुद कभी मेरी कद्र नहीं की। मेरी बेटियाॅ मुझे देखना भी गवाॅरा नहीं करती हैं, और करे भी क्यों? ख़ैर, मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है बेटे। दिल से बस यही दुवा व कामना है कि वो जीवन में सदा सुखी रहें।
मेरा जीवन पापों से भरा पड़ा है। मैने ऐसे ऐसे कर्म किये हैं जिनके बारे में सोच कर ही अब खुद से घृणा होती है। मुझमें अब इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं किसी को अपना मुह भी दिखा सकूॅ। आत्मग्लानी, शर्म व अपमान का बोझ इतना ज्यादा है कि इसके साथ अब एक पल भी जीना मुश्किल लग रहा है। बार बार ज़हन में ये विचार आता है कि खुदखुशी कर लूॅ और इस पापी जीवन को खत्म कर दूॅ मगर मैं ऐसा भी नहीं करना चाहती। क्योंकि जीवन को खत्म करने से ईश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा। मुझे इस सबका प्रयाश्चित करना होगा बेटे, बग़ैर प्रयाश्चित के भगवान भी मुझे अपने पास फटकने नहीं देगा। इस लिए बहुत सोच समझ कर मैने ये फैसला किया है कि मैं तुम सबसे कहीं दूर चली जाऊॅ और अपने पापों का प्रयाश्चित करूॅ। तुम सबके बीच रह कर मैं ठीक से प्रयाश्चित नहीं कर सकती थी।
ज़मीन जायदाद के सारे काग़जात मैने अपनी आलमारी में रख दिये हैं बेटा। वकील को मैने सब कुछ बता भी दिया है और समझा भी दिया है। अब इस सारी ज़मीन जायदाद के सिर्फ दो ही हिस्से होंगे। पहला तुम्हारा और दूसरा अभय का। मैने अपने हिस्से का सबकुछ तुम्हारे नाम कर दिया है। कुछ हिस्सा अभय के बेटे के नाम भी कर दिया है। इसे लेने से इंकार मत करना बेटे, बस ये समझ लेना कि एक माॅ ने अपने बेटे को दिया है। मुझे पता है कि तुम्हारे अंदर मेरे प्रति वैसा ही आदर सम्मान है जैसा कि तुम्हारा अपनी माॅ के प्रति है। ख़ैर, इसी आलमारी में वो कागजात भी हैं जो तुम्हारे दादा दादी से संबंधित हैं। उन्हें तुम देख लेना और अपने दादा दादी के बारे में जान लेना।
अंत में बस यही कहूॅगी बेटे कि सबका ख़याल रखना। अब तुम ही इस खानदान के असली कर्ताधर्ता हो। मुझे यकीन है कि तुम अपनी सूझ बूझ व समझदारी से परिवार के हर सदस्य को एक साथ रखोगे और उन्हें सदा खुश रखोगे। अपनी माॅ का विशेष ख़याल रखना बेटे, उस अभागिन ने बहुत दुख सहे हैं। हमारे द्वारा इतना कुछ करने के बाद भी उस देवी ने कभी अपने मन में हमारे प्रति बुरा नहीं सोचा। मैं किसी से अपने किये की माफ़ी नहीं माग सकती क्योंकि मुझे खुद पता है कि मेरा अपराध क्षमा के योग्य नहीं है।
मेरी बेटियों से कहना कि उनकी माॅ ने कभी भी दिल से नहीं चाहा कि उनके साथ कभी ग़लत हो। मैं जहाॅ भी रहूॅगी मेरे दिल में उनके लिए बेपनाह प्यार व दुवाएॅ ही रहेंगी। मुझे तलाश करने की कोशिश मत करना। अब उस घर में मेरे वापस आने की कोई वजह नहीं है और मैं उस जगह अब आना भी नहीं चाहती। मैंने अपना रास्ता तथा अपना मुकाम चुन लिया है बेटे। इस लिए मुझे मेरे हाल पर छोंड़ दो। यही मेरी तुमसे विनती है। ईश्वर तुम्हें सदा सुखी रखे तथा हर दिन हर पल नई खुशी व नई कामयाबी अता करे।
अच्छा अब अलविदा बेटे।
तुम्हारी बड़ी माॅ!
प्रतिमा।


ख़त के इस मजमून को पढ़ कर हम सबकी साॅसें मानों थम सी गई थी। ख़त पढ़ते समय ही पता चला कि ये ख़त तो दरअसल बड़ी माॅ का ही था। जिसे उन्होंने फर्ज़ी नाम व पते से भेजा था मुझे। काफी देर तक हम सब किसी गहन सोच में डूबे बैठे रहे।

"बड़ी भाभी के इस ख़त से।" सहसा अभय चाचा ने इस गहन सन्नाटे को चीरते हुए कहा____"ये बात ज़ाहिर होती है कि अब हम चाह कर भी उन्हें तलाश नहीं कर सकते। क्योंकि ये तो उन्हें भी पता ही होगा कि हम उन्हें खोजने की कोशिश करेंगे। इस लिए अब उनकी पूरी कोशिश यही रहेगी कि हम उन्हें किसी भी सूरत में खोज न पाएॅ। कहने का मतलब ये कि संभव है कि उन्होंने खुद को किसी ऐसी जगह छुपा लिया हो जिस जगह पर हम में से कोई पहुॅच ही न पाए।"

"सच कहा आपने।" मैने कहा___"ख़त में लिखी उनकी बातें यही दर्शाती हैं। किन्तु सवाल ये है कि अगर उन्होंने ख़त के माध्यम से ऐसा कहा है तो क्या हमें सच में उन्हें नहीं खोजना चाहिए?"

"हर्गिज़ नहीं।" अभय चाचा ने कहा___"कम से कम हम में से कोई भी ऐसा नहीं चाह सकता कि बड़ी भाभी हमसे दूर कहीं अज्ञात जगह पर रहें। बल्कि हम सब यही चाहते हैं कि सब कुछ भुला कर हम सब एक साथ नये सिरे से जीवन की शुरुआत करें। हवेली को छोंड़ कर चले जाना ये उनकी मानसिकता की बात थी। उन्हें लगता है कि उन्होंने हम सबके साथ बहुत बुरा किया है इस लिए अब उनका हमारे साथ रहने का कोई हक़ नहीं है। सच तो ये है कि हवेली छोंड़ कर चले जाने की वजह उनका अपराध बोझ है। इसी अपराध बोझ के चलते उनके मन में ऐसा करने का विचार आया है।"

"बात चाहे जो भी हो।" सहसा इस बीच माॅ ने गंभीर भाव से कहा___"उनका इस तरह हवेली से चले जाना बिलकुल भी अच्छी बात नहीं है। उन्हें तलाश करो और सम्मान पूर्वक उन्हें वापस यहाॅ लाओ। हम सब उन्हें वैसा ही आदर सम्मान देंगे जैसा उन्हें मिलना चाहिए। उन्हें वापस यहाॅ पर लाना ज़रूरी है वरना कल को यही गाॅव वाले हमारे बारे में तरह तरह की बातें बनाना शुरू कर देंगे। वो कहेंगे कि अपना हक़ मिलते ही हमने उन्हें हवेली से वैसे ही बेदखल कर दिया जैसे कभी उन्होंने हमें किया था। आख़िर उनमें और हम में फर्क़ ही क्या रह गया? इस लिए सारे काम को दरकिनार करके सिर्फ उन्हें खोज कर यहाॅ वापस लाने का का ही काम करो।"

"आप फिक्र मत कीजिए भाभी।" अभय चाचा ने कहा___"हम एड़ी से चोंटी तक का ज़ोर लगा देंगे बड़ी भाभी की तलाश करने में। हम उन्हें ज़रूर वापस लाएॅगे और उनका आदर सम्मान भी करेंगे।"

"ठीक है फिर।" माॅ ने कहने के साथ ही मेरी तरफ देखा___"बेटा तू तब तक यहीं रहेगा जब तक कि तुम्हारी बड़ी माॅ वापस इस हवेली पर नहीं आ जातीं। मैं जानती हूॅ कि तुम दोनो की पढ़ाई का नुकसान होगा किन्तु इसके बावजूद तुझे अभय के साथ मिल कर अपनी बड़ी माॅ की तलाश करना है।"

"ठीक है माॅ।" मैने कहा___"जैसा आप कहेंगी वैसा ही होगा। मैं जगदीश अंकल को फोन करके बता दूॅगा कि मैं और गुड़िया अभी वहाॅ नहीं आ सकते।"
"पर मुझे अपनी पढ़ाई का नुकसान नहीं करना है माॅ।" सहसा तभी गुड़िया(निधी) कह उठी___"बड़ी माॅ को तलाश करने का काम मुझे तो करना नहीं है। अतः मेरा यहाॅ रुकने का कोई मतलब नहीं है। पवन भइया को भी कंपनी में काम करने के लिए जाना ही है मुम्बई। मैने आशा दीदी से बात की है वो मेरे साथ मुम्बई जाने को तैयार हैं। इस लिए मैं कल ही यहाॅ से जा रही हूॅ।"

गुड़िया की इस बात से हम सब एकदम से उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे थे। किसी और का तो मुझे नहीं पता किन्तु उसकी इस बात से मैं ज़रूर स्तब्ध रह गया था और फिर एकाएक ही मेरे दिल में बड़ा तेज़ दर्द हुआ। अंदर एक हूक सी उठी जिसने पलक झपकते ही मेरी ऑखों में ऑसुओं को तैरा दिया। मैं खुद को और अपने अंदर अचानक ही उत्पन्न हो चुके भीषण जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से सम्हाला। अपने ऑसुओं को ऑखों में ही जज़्ब कर लिया मैने।

"ये तू क्या कह रही है गुड़िया?" तभी माॅ की कठोर आवाज़ गूॅजी___"तूने मुझे बताए बिना ही ये फैंसला ले लिया कि तुझे मुम्बई जाना है। मुझे तुझसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।"

"मैं आपको इस बारे में बताने ही वाली थी माॅ।" निधी ने नज़रें चुराते हुए किन्तु मासूम भाव से कहा___"और वैसे भी इसमे इतना सोचने की क्या बात है? बड़ी माॅ की खोज करने मुझे तो जाना नहीं है, बल्कि ये काम तो चाचा जी लोगों का ही है। दूसरी बात अब मेरे यहाॅ रहने का फायदा भी क्या है, बल्कि नुकसान ही है। आज एक महीना होने को है स्कूल से छुट्टी लिए हुए। इस लिए अब मैं नहीं चाहती कि मेरी पढ़ाई का और भी ज्यादा नुकसान हो।"

"बात तो तुम्हारी सही है गुड़िया।" अभय चाचा ने कहने के साथ ही माॅ(गौरी) की तरफ देखा___"भाभी अब जो होना था वो तो हो ही चुका है। आज महीना होने को आया उस सबको गुज़रे हुए। धीरे धीरे आगे भी सब कुछ ठीक ही हो जाएगा। रही बात बड़ी भाभी को खोजने की तो वो मैं राज और आदित्य करेंगे ही। गुड़िया के यहाॅ रुकने से उसकी पढ़ाई का नुकसान ही है। इस लिए ये अगर जा रही है तो इसे आप जाने दीजिए। आप तो जानती ही हैं कि मुम्बई में भी जगदीश भाई साहब अकेले ही हैं। वो आप लोगों के न रहने से वहाॅ पर बिलकुल भी अच्छा महसूस नहीं कर रहे होंगे। इस लिए गुड़िया पवन और आशा जब उनके पास पहुॅच जाएॅगे तो उनका भी मन लगेगा वहाॅ।"

अभय चाचा की इस बात से माॅ ने तुरंत कुछ नहीं कहा। किन्तु वो अजीब भाव से निधी को देखती ज़रूर रहीं। ऐसी ही कुछ और बातों के बाद यही फैंसला हुआ कि निधी कल पवन व आशा के साथ मुम्बई चली जाएगी। इस बीच सवाल ये भी उठा कि पवन व आशा के चले जाने से रुक्मिणी यहाॅ पर अकेली कैसे रहेंगी? इस सवाल का हल ये निकाला गया कि पवन और आशा के जाने के बाद रुक्मिणी यहाॅ हवेली में हमारे साथ ही रहेंगी।

नास्ता पानी करने के बाद मैं, आदित्य व अभय चाचा बड़ी माॅ की तलाश में हवेली से निकल पड़े। अभय चाचा का स्वास्थ पहले से बेहतर था। हलाॅकि मैंने उन्हें अभी चलना फिरने से मना किया था किन्तु वो नहीं मान रहे थे। इस लिए हमने भी ज्यादा फिर कुछ नहीं कहा। दूसरे दिन निधी पवन व आशा के साथ मुम्बई के लिए निकल गई। गुनगुन रेलवे स्टेशन उनको छोंड़ने के लिए मैं और आदित्य गए थे। इस बीच मेरा दिलो दिमाग़ बेहद दुखी व उदास था। गुड़िया के बर्ताव ने मुझे इतनी पीड़ा पहुॅचाई थी कि इतनी पीड़ा अब तक किसी भी चीज़ से न हुई थी मुझे। मगर बिना कोई शिकवा किये मैं ख़ामोशी से ये सब सह रहा था। मैं इस बात से चकित था कि मेरी सबसे प्यारी बहन जो मेरी जान थी उसने दो महीने से मेरी तरफ देखा तक नहीं था बात करने की तो बात ही दूर थी।

ट्रेन में तीनो को बेठा कर मैं और आदित्य वापस हल्दीपुर लौट आए। मेरा मन बेहद दुखी था। आदित्य ने मुझसे पूछा भी कि क्या बात है मगर मैने उसे ज्यादा कुछ नहीं बताया बस यही कहा कि बड़ी माॅ और गुड़िया के जाने की वजह से कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। एक हप्ते पहले आदित्य बड़ा खुश था जब रितू दीदी ने उसकी कलाई पर राखी बाॅधी थी। उसके दोनो हाॅथों में ढेर सारी राखियाॅ बाॅधी थी दीदी ने। जिसे देख कर आदित्य खुद को रोने से रोंक नहीं पाया था। उसके इस तरह रोने पर माॅ आदि सब लोग पहले तो चौंके फिर जब रितू दीदी ने सबको आदित्य की बहन प्रतीक्षा की कहानी बताई तो सब दुखी हो गए थे। सबने आदित्य को इस बात के लिए सांत्वना दी। माॅ ने तो ये तक कह दिया कि आज से वो मेरा बड़ा बेटा है और इस घर का सदस्य है। आदित्य ये सुन कर खुशी से रो पड़ा था। मेरी सभी बहनों ने राखी बाॅधी थी। गुड़िया ने भी मुझे राखी बाॅधा था किन्तु उसका बर्ताव वही था। उसके इस रूखे बर्ताव से सब चकित भी थे। माॅ ने तो पूछ भी लिया था कि ये सब क्या है मगर उसने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया था।

हवेली आ कर मैं अपने कमरे में चला गया था। जबकि आदित्य अभय चाचा के पास ही बैठ गया था। सारा दिन मेरा मन दुखी व उदास रहा। जब किसी तरह भी सुकून न मिला तो उठ कर रितू दीदी के पास चला गया। मुझे अपने पास आया देख कर रितू दीदी मुस्कुरा उठीं। उनको भी पता चल गया था गुड़िया वापस मुम्बई चली गई है। मेरे चेहरे के भाव देख कर ही वो समझ गईं कि मैं गड़िया के जाने की वजह से उदास हूॅ।

मुझे यूॅ मायूस व उदास देख कर उन्होंने मुस्कुरा कर अपनी बाहें फैला दी। मैं उनकी फैली हुई बाहों के दरमियां हल्के से अपना सिर रख दिया। मेरे सिर रखते ही उन्होंने बड़े स्नेह भाव से मेरे सिर पर हाॅथ फेरना शुरू कर दिया। अभी मैं रितू दीदी की बाहों के बीच छुपका ही था कि तभी नैना बुआ भी आ गईं और बेड पर मेरे पास ही बैठ गईं।

"क्या बात है मेरा बेटा उदास है?" नैना बुआ ने मेरे सिर के बालों पर उॅगलियाॅ फेरते हुए कहा____"पर यूॅ उदास रहने से क्या होगा राज? अगर कोई बात है तो उसे आपस में सलझा लेना होता है।"

"सुलझाने के लिए मौका भी तो देना चाहिए न बुआ।" मैंने दीदी की बाहों से उठते हुए कहा___"खुद ही किसी बात का फैंसला ले लेना कहाॅ की समझदारी है? उसे ज़रा भी एहसास नहीं है उसके इस रवैये से मुझ पर आज दो महीने से क्या गुज़र रही है।"

"ये हाल तो उसका भी होगा राज।" रितू दीदी ने कहा___"वो तेरी लाडली है। ज़िद्दी भी है, इस लिए वो चाहती होगी कि पहल तू करे।"
"किस बात की पहल दीदी?" मैने अजीब भाव से उनकी तरफ देखा।
"मुझे लगता है कि ये बात तू खुद समझता है।" रितू दीदी ने एकटक मेरी तरफ देखते हुए कहा___"इस लिए पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है।"

मैं उनकी इस बात से उनकी तरफ ख़ामोशी से देखता रहा। नैना बुआ को समझ न आया कि किस बारे में रितू दीदी ने ऐसा कहा था। इधर मैं खुद भी हैरान था कि आख़िर रितू दीदी के ये कहने का क्या मतलब था? मैने रितू दीदी की तरफ देखा तो उनके होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी। फिर जाने क्या सोच कर उनके मुख से निकलता चला गया।


कौन समझाए हमें के आख़िर ये बला क्या है।
दर्द में भी मुस्कुराऊॅ मैं, तो फिर सज़ा क्या है।।

हम जिस बात को लबों से कह नहीं सकते,
कोई उस बात को न समझे, इससे बुरा क्या है।।

रात दिन कुछ भी अच्छा नहीं लगता हमको,
इलाही ख़ैर हो, खुदा जाने ये माज़रा क्या है।।

समंदर में डूब कर भी हमारी तिश्नगी न जाए,
इस दुनियाॅ में इससे बढ़ कर बद्दुवा क्या है।।

अपनी तो बस एक ही आरज़ू है के किसी रोज़,
वो खुद आ कर कहे के बता तेरी रज़ा क्या है।।


रितू दीदी के मुख से निकली इस अजीबो ग़रीब सी ग़ज़ल को सुन कर मैं और नैना बुआ हैरान रह गए। दिलो दिमाग़ में इक हलचल सी तो हुई किन्तु समझ में न आया कि रितू दीदी ने इस ग़ज़ल के माध्यम से क्या कहना चाहा था?

रात में खाना पीना करके हम सब सो गए। दूसरे दिन नास्ता पानी करने के बाद मैं और आदित्य अभय चाचा के साथ फिर से बड़ी माॅ की खोज में निकल गए। ऐसे ही हर दिन होता रहा। किन्तु कहीं भी बड़ी माॅ के बारे में कोई पता न चल सका। हम सब इस बात से बेहद चिंतित व परेशान थे और सबसे ज्यादा हैरान भी थे कि बड़ी माॅ ने आख़िर ऐसी कौन सी जगह पर खुद को छुपा लिया था जहाॅ पर हम पहुॅच नहीं पा रहे थे। उनकी तलाश में ऐसे ही एक महीना गुज़र गया। इस बीच हमने सभी नात रिश्तेदारों को भी बता दिया था उनके बारे में। बड़ी माॅ के पिता जी यानी जगमोहन सिंह भी अपनी बेटी के बारे में सब कुछ जान कर बेहद दुखी हुए थे। किन्तु होनी तो हो चुकी थी। वो खुद भी अपनी बेटी के लापता हो जाने पर दुखी थे।

एक दिन अभय चाचा के कहने पर मैने रितू दीदी की मौजूदगी में बड़ी माॅ के कमरे में रखी आलमारी को खोला और उसमें से सारे काग़जात निकाले। उन काग़जातों में ज़मीन और जायदाद के दो हिस्से थे। तीसरा हिस्सा यानी कि अजय सिंह के हिस्से की ज़मीन व जायदाद तथा दौलत में से लगभग पछत्तर पर्शैन्ट हिस्सा मेरे नाम कर दिया गया था जबकि बाॅकी का पच्चीस पर्शेन्ट अभय चाचा के बेटे शगुन के नाम पर था। उसी आलमारी में कुछ और भी काग़जात थे जो दादा दादी के बारे में थे। उनमें ये जानकारी थी कि दादा दादी को कहाॅ पर रखा गया है?

सारे काग़जातों को देख कर मैने रितू दीदी से तथा अभय चाचा से बात की। मैने उनसे कहा कि मुझे उनके हिस्से का कुछ भी नहीं चाहिए बल्कि उनके हिस्से का सब कुछ रितू दीदी व नीलम के नाम कर दिया जाए। मेरी इस बात से अभय चाचा भी सहमत थे। जबकि रितू दीदी ने साफ कह दिया कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए। मगर मैं ज़मीन जायदाद पर कोई ऐसी बात नहीं बनाना चाहता था जिससे भविष्य में किसी तरह का विवाद होने का चान्स बन जाए।

एक दिन हम सब दादा दादी से मिलने शिमला गए। शिमला में ही किसी प्राइवेट जगह पर उन्हें रखा था बड़े पापा ने। शिमला में हम सब दादा दादी से मिले। वो दोनो अभी भी कोमा में ही थे। उन्हें इस हाल में देख कर हम सब बेहद दुखी हो गए थे। डाक्टर ने बताया कि पिछले महीने उनकी बाॅडी पर कुछ मूवमेंट महसूस की गई थी। किन्तु उसके बाद फिर से वैसी ही हालत हो गई थी। डाक्टर ने कहा कि तीन सालों में ये पहली बार था जब पिछले महीने ऐसा महसूस हुआ था। उम्मीद है कि शायद उनके जिस्म में फिर कभी कोई मूवमेन्ट हो।

हमने डाक्टर से दादा दादी को साथ ले जाने के लिए कहा तो डाक्टर ने हमसे कहा कि घर ले जाने का कोई फायदा नहीं है, बल्कि वो अगर यहीं पर रहेंगे तो ज्यादा बेहतर होगा। क्योंकि यहाॅ पर उनकी देख भाल के लिए तथा किसी भी तरह की मूवमेन्ट का पता चलते ही डाक्टर उस बात को बेहतर तरीके से सम्हालेंगे।

डाक्टर की बात सुन कर माॅ ने कहा कि वो माॅ बाबू जी को साथ ही ले जाएॅगी। वो खुद उनकी बेहतर तरीके से देख भाल करेंगी। उन्होंने डाक्टर से ये कहा कि वो किसी क़ाबिल नर्स को हमारे साथ ही रहने के लिए भेज दें। काफी समझाने बुझाने और बहस के बाद यही फैंसला हुआ कि हम दादा दादी को अपने साथ ही ले जाएॅगे। डाक्टर अब क्या कर सकता था? इस लिए उसने हमारे साथ एक क़ाबिल नर्स को भेज दिया। शाम होने से पहले ही हम दादा दादी को लेकर हल्दीपुर आ गए थे।

बड़ी माॅ की तलाश ज़ारी थी। किन्तु अब इस तलाश में फर्क़ ये था कि हमने अपने आदमियों को चारो तरफ उनकी तलाश में लगा दिया था। पुलिस खुद भी उनकी तलाश में लगी हुई थी। अभय चाचा के कहने पर मैं भी अब अपनी पढ़ाई को आगे ज़ारी रखने के लिए मुम्बई जाने को तैयार हो गया था। मैं तो अपनी तरफ से यही कोशिश कर रहा था कि ये जो एक नया संसार बनाया था उसमे हर कोई सुखी रहे, मगर आने वाला समय इस नये संसार के लिए क्या क्या नई सौगात लाएगा इसके बारे में ऊपर बैठे ईश्वर के सिवा किसी को कुछ पता नहीं था।


~~~~~~~~~~समाप्त~~~~~~~~~~~~~

दोस्तो, आप सबके सामने इस कहानी का आख़िरी अपडेट हाज़िर है। उम्मीद करता हूॅ कि आप सबको पसंद आएगा।

हमेशा की तरह आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा।
दोस्त आपकी ये कहानी मेरी पसंदीदा कहानियों में से एक हे और मेने इसे अपने फोल्डर में संजो कर रखा हुआ हे क्या इसका दूसरा पार्ट भी हे क्या
 

drx prince

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विराज ने अपनी माॅ की इस बात को जब सुना तो उसने अपना एक हाथ फैला दिया। गौरी ने जब ये देखा तो वो भी अपने बेटे के चौड़े सीने से जा लगी। कुछ देर यू ही सब एक दूसरे से गले मिले रहे फिर सब अलग हुए।

"अब हमें चलना चाहिए बेटा।" गौरी ने गंभीर भाव से कहा__"ज्यादा देर यहाॅ पर रुकना अब ठीक नहीं है।"
"पर माॅ, ।" विराज अपनी बात भी न पूरी कर पाया था कि गौरी ने उसकी बात को काटते हुए कहा__"अभी यहां से चलो बेटा। अभी सही समय नहीं है ये किसी चीज़ के लिए। यहाॅ हम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्योकि यहा उनकी ताकत ज्यादा है। पुलिस प्रसासन भी उनका ही कहना मानेंगे इस लिए कह रही हूं कि यहां रह कर कुछ भी करना ठीक नहीं है। मैं जानती हूं कि तुम्हारे अंदर प्रतिशोध की आग है और जब तक वो आग तुम्हारे अंदर रहेगी तुम चैन से जी नही सकोगे। इस लिए अब मैं तुम्हें किसी बात के लिए रोकूॅगी नहीं, हाॅ इतना जरूर कहूॅगी कि जो कुछ भी करना ये ध्यान में रख कर ही करना कि तुम्हारे बिना हम माॅ बेटी का क्या होगा?"

"आप दोनो की सुरक्षा मेरी पहली प्राथमिकता होगी माॅ।" विराज को जैसे उसकी मन की मुराद मिल गई थी। अंदर ही अंदर कुछ भी करने की आज़ादी के एहसास को महसूस करके ही वह खुश हो गया था किन्तु प्रत्यक्ष में बोला__"अब वह होगा माॅ जिससे आपको अपने इस बेटे पर गर्व होगा। चलिए अब चलते हैं यहाॅ से।"

इसके बाद तीनों ही चल पड़े वहाॅ से। सामान ज्यादा कुछ था नहीं। पैदल चलते हुए लगभग बीस मिनट में तीनो मेन रोड के उस जगह पहुॅचे जहाॅ से बस मिलती थी। हलाकि ये जगह उनके गाॅव के पास की नहीं थी किन्तु गौरी ने ही घूम कर इधर से आने को कहा था। शायद उसके मन में इस बात का अंदेशा था कि अगर शिवा की पिटाई का पता उसके घर वालों को हो गया होगा तो वो लोग उसे ढूॅढ़ते हुए आ भी सकते थे।

हलाकि ये गौरी के मन का वहम ही साबित हुआ। क्योकि अभी तक कोई भी उन्हें ढंढ़ने नहीं आया था जबकि वो बस में सवार हो कर शहर के लिए निकल भी चुके थे। कदाचित शिवा की हालत के बारे में अब तक किसी को पता न चला था। वरना अब तक वो शहर के लिए निकल न पाते। मगर गौरी के मन में उन लोगों के आ जाने का ये डर तब तक बना ही रहा जब तक कि ट्रेन में बैठ कर मुम्बई के लिए निकल न गए थे। जबकि विराज और निधि ऐसे वर्ताव कर रहे थे जैसे उन्हें इस सबका कोई भय ही न था।

ट्रेन जब स्टेशन से बहुत दूर निकल गई तब जा कर गौरी के मन से थोड़ा भय कम हुआ और वह भी सामान्य हो गई। दिलो दिमाग मे विचारों का बवंडर सा चल रहा था। कैसा समय आ गया था उनके जीवन में जिसकी शायद उन्होंने स्वप्न में भी कल्पना न की थी। अपने ही घर से बेदखल कर दिया गया था उन्हें और आज ये आलम था कि उन्हें अपनी जान तथा इज्जत बचाने के लिए भी बहुत दूर कहीं छिप जाने पर बिवस होना पड़ रहा था। गौरी विचारों के सागर में गोते लगा रही थी। उसका चेहरा बेहद ही विचलित और उदास हो उठा था। आखों में आसू तैरने लगे थे। विराज अपनी माॅ को ही देखे जा रहा था। उसे एहसास था कि उसकी माॅ के दिलो दिमाग मे इस समय क्या चल रहा है। उसके माता पिता हमेशा ही उसके लिए एक आदर्श थे। वह अपनी माॅ और बहन को एक पल के लिए भी विचलित या उदास नहीं देख सकता था। उसकी बहन निधि उसकी एक बाह थामे उसके कंधे में अपना सिर टिकाए बैठी थी। आज उसे अपने बड़े भाई पर पहले से कहीं ज्यादा स्नेह और प्यार आ रहा था। उसे लग रहा था कि उसके भइया के रहते अब दुनिया की कोई बला उन पर अपना असर नहीं दिखा सकती थी।

विराज का चेहरा एकाएक पत्थर की तरह शख्त हो गया। मन ही मन उसने शायद कोई संकल्प सा ले लिया था। आखों में खून सा उतरता हुआ नजर आया। नथुने फूलने पिचकने लग गए थे। सहसा गौरी की नजर अपने बेटे पर पड़ी। बेटे की हालत का अंदाजा होते ही उसकी आखें भर आईं। उसने शीघ्रता से विराज को अपने सीने में छुपा लिया। माॅ का ह्रदय ममता के विसाल सागर से भरा होता है जिसकी ठंडक से तुरंत ही विराज शान्त हो गया। 'फिक्र मत कीजिए माॅ अब ऐसा तांडव होगा कि हमारा बुरा करने वालों की रूह काॅप जाएगी।' विराज ने मन ही मन कहा और अपनी आखें बंद कर ली।


दोस्तो अपडेट हाज़िर है....
Nice update
 

drx prince

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"ऐसा कैसे हो सकता है?"अजय सिंह गुर्राया__"वो लोग ट्रेन से कैसे गायब हो गए? तुम उन्हें ढूॅढ़ो और शीघ्र हमारे पास लेकर आओ वरना ठीक नहीं होगा समझे?"
"-----------------"
"अरे जाएगे कहाॅ?" अजय ने कहा__"ठीक से ढूॅढ़ो उन्हें।" कहने के साथ ही अजय ने फोन काट दिया।
"क्या हुआ?" प्रतिमा ने पूछा__"किससे बात कर रहे थे आप?"
"डीसीपी अशोक पाठक से।" अजय ने बताया__"उसका कहना है कि विराज अपनी माॅ और बहन सहित ट्रेन से गायब हैं।"

"क् क्या...???" प्रतिमा और शिवा एक साथ उछल पड़े___"ऐसा कैसे हो सकता है भला? वो सब मुम्बई के लिए ही निकले थे।"
"हो सकता है कि वो लोग ट्रेन में बैठे ही न हों।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा__"कदाचित उन्हे ये अंदेशा रहा हो कि उनकी करतूत का पता चलते ही उन्हे पकड़ने के लिए आप उनके पीछे पुलिस को या अपने आदमियों को लगा देंगे। इस लिए वो ट्रेन से सफर करना बेहतर न समझे हों।"

"ऐसा नहीं है।" अजय ने कहा__"क्योकि विराज ने तत्काल रिज़र्वेशन की तीन टिकटें ली थीं। रेलवे कर्मचारियों के पास इसका सबूत है कि उन्होने तत्काल रिजर्वेशन की तीन टिकटें ली थी मुम्बई के लिए।"

"तो फिर वो कहाॅ गायब हो गए?" शिवा ने कहा__"उन्हे ये जमीन खा गई या आसमान निगल गया?
"चिंता मत करो।" अजय सिंह ने कहा__"हम उन्हें जरूर ढूंढ् लेंगे।"



अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,
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drx prince

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अपडेट.............. 《 06 》

अब तक,,,,,,

"ऐसा नहीं है।" अजय ने कहा__"क्योकि विराज ने तत्काल रिज़र्वेशन की तीन टिकटें ली थीं। रेलवे कर्मचारियों के पास इसका सबूत है कि उन्होने तत्काल रिजर्वेशन की तीन टिकटें ली थी मुम्बई के लिए।"

"तो फिर वो कहाॅ गायब हो गए?" शिवा ने कहा__"उन्हे ये जमीन खा गई या आसमान निगल गया?
"चिंता मत करो।" अजय सिंह ने कहा__"हम उन्हें जरूर ढूंढ् लेंगे।"


अब आगे,,,,,,,

उधर विराज अपनी माॅ और बहन को ट्रेन से उतार कर अब बस पकड़ चुका था। उसका खयाल था कि बस से वह किसी अन्य शहर जाएगा और फिर वहाॅ से किसी दूसरी ट्रेन से मुम्बई जाएगा।

"तुम हमें ट्रेन से उतार कर बस में क्यों लाए बेटा?" माॅ गौरी ने सबसे पहले यही सवाल पूछा था।
"ट्रेन में जाने से खतरा था माॅ।" विराज ने कहा__"बड़े पापा ने हमें पकड़ने के लिए अपने आदमी भेजे थे जो सभी जगह चेक कर रहे थे।"
"क् क्या..???" गौरी बुरी तरह चौंकी___"पर तुम्हें कैसे पता?"

"मुझे इस बात का पहले से अंदेशा था माॅ।" विराज ने कहा__"इस लिए मैंने अपने एक दोस्त को बड़े पापा की हर गतिविधि की खबर रखने के लिए कह दिया था फोन के जरिए। जब हम लोग ट्रेन मे बैठ कर चले थे तब तक ठीक था। आप जानती है ट्रेन वहा से निकलने के बाद एक जगह रुक गई थी और फिर छ: घंटे रुकी रही। क्योंकि उसमें कोई तकनीकी खराबी थी। मेरे दोस्त का फोन शाम को आया था उसने बताया कि बड़े पापा ने हमे ढूढ़ने के लिए हर जगह अपने आदमी भेज दिये हैं। मुझे पता था ट्रेन मे उनके आदमी हमे बड़ी आसानी से ढूढ़ लेंगे क्योकि उन्हे रेल कर्मचारियो से हमारे बारे में पता चल जाता और हम पकड़े जाते। इस लिए मैंने आप सबको ट्रेन से उतार कर किसी अन्य तरीके से मुम्बई ले जाने का सोचा।"

"आपने बहुत अच्छा किया भइया।"निधि ने कहा__"अब वो हमें नही ढूढ़ पाएंगे।"
"इतना लम्बा चक्कर लगाने का यही मतलब है कि वो हमें उस रूट पर ढूढ़ेगे जबकि हम यहा हैं।" विराज ने कहा__"मैं अकेला होता तो ये सब नही करता बल्कि खुल कर उन सबका मुकाबला करता मगर आप लोगों की सुरक्षा जरूरी थी।"

"अभी मुकाबला करने का समय नही है बेटा।" गौरी ने कहा__"जब सही समय होगा तब मैं खुद तुझे नही रोकूॅगी।"
"आप बस देखती जाओ माॅ।" विराज ने कहा__"कि अब क्या करता हूॅ मैं?"

"हाॅ भइया आप उन्हें छोंड़ना नहीं।" निधि ने कहा__"बहुत गंदे लोग हैं वो सब। हमे बहुत दुख दिया है उन्होने।"
"फिक्र मत कर मेरी गुड़िया।" विराज ने कहा__"मैं उन सबसे चुन चुन कर हिसाब लूॅगा।"

ऐसी ही बातें करते हुए ये लोग दूसरे दिन मुम्बई पहुॅच गए। विराज उन दोनो को सुरक्षित अपने फ्लैट पर ले गया। ये फ्लैट उसे कम्पनी द्वारा मिला था जिसमें दो कमरे एक ड्राइंग रूम एक डायनिंग रूम एक लेट्रिन बाथरूम तथा एक किचेन था। पीछे की तरफ बड़ी सी बालकनी थी। कुल मिलाकर इन सबके लिए इतना पर्याप्त था रहने के लिए।

विराज चूॅकि यहाॅ अकेला ही रहता था इस लिए वो साफ सफाई से ज्यादा मतलब नही रखता था। हलाॅकि सफाई वाली आती थी लेकिन वो सफाई नही करवाता था ऐसे ही रहता था। फ्लैट की गंदी हालत देख कर दोनो माॅ बेटी ने पहले फ्लैट की साफ सफाई की। विराज ने कहा भी कि सफर की थकान है तो पहले आराम कीजिए, सफाई का काम वह कल करवा देगा जब सफाई वाली बाई आएगी तो लेकिन माॅ बेटी न मानी और खुद ही साफ सफाई में लग गईं।

इस बीच विराज मार्केट निकल गया था किराना का सामान लाने के लिए। हलाकि कंपनी से रहने खाने का सब मिलता था लेकिन विराज बाहर ही होटल मे खाना खाता था। फ्लैट में गैस सिलेंडर और चूल्हा वगैरा सब था किन्तु राशन नही था। दो कमरों मे से एक कमरे में ही एक बेड था। किचेन बड़ा था जिसमें एक फ्रिज़ भी था। ड्राइंग रूम मे एक बड़ा सा एल सी डी टीवी भी था।

लगभग दो घंटे बाद विराज मार्केट से लौटा। उसने देखा कि फ्लैट की काया ही पलट गई है। हर चीज अपनी जगह ब्यवस्थित तरीके से रखी गई थी। विराज को इस तरह हर जगह आॅखें फाड़े देखता देख निधि ने कहा__"न आप खुद का खयाल रखते हैं और न ही किसी और चीज का। लेकिन अब ऐसा नही होगा, अब हम आ गए हैं तो आपका अच्छे से खयाल रखेंगे।"

"ओहो क्या बात है।"विराज मुस्कुराया__"हमारी गुड़िया तो बड़ी हो गई लगती है।"
"हाॅ तो?" निधि विराज के बगल से सट कर खड़ी हो गई__"देखिए आपके कंधे तक बड़ी हो गई हूॅ।"

"हाॅ हाॅ तू तो मेरी भी अम्मा हो गई है न।" गौरी ने कहा__"धेले भर की तो अकल है नहीं और बड़ी बड़ी बाते करने लगी है।"
"देखिए भइया जब देखो माॅ मुझे डाॅटती ही रहती हैं।"निधी ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा।

"मत डाॅटा कीजिए माॅ गुड़िया को।" विराज ने निधि को अपने सीने से लगाते हुए कहा__"ये जैसी भी है मेरी जान है ये।"
"सुन लिया न माॅ आपने?" निधि ने विराज के सीने से सिर उठा कर अपनी माॅ गौरी की तरफ देख कर कहा__"मैं भइया की जान हूॅ और हाॅ...भइया भी मेरी जान हैं...हाॅ नहीं तो।"

"अच्छा ठीक है बाबा।" गौरी ने हॅस कर कहा__"अब भाई को छोंड़ और जा जाकर नहा ले, फिर मुझे भी नहाना है और खाना भी बनाना है।"
"मैं खाना बाहर से ही ले आया हूॅ माॅ।" विराज ने कहा__"आप लोग खा पी कर आराम कीजिए कल से यहीं खाना पीना बनाना।"

"अब ले आया है तो चल कोई बात नहीं।" गौरी ने कहा__"लेकिन आज के बाद बाहर का खाना पीना बंद। ठीक है न??"

"जैसा आप कहें माॅ।" विराज ने कहा और सारा सामान अंदर किचन में रख दिया।

गौरी के कहने पर निधि नहाने चली गई। जबकि विराज वहीं ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठ गया। अचानक ही उसके चेहरे पर गंभीरता के भाव गर्दिश करने लगे थे। गौरी किचेन में सामान सेट कर रही थी।

विराज के मोबाइल पर किसी का काॅल आया। उसने मोबाईल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देखा तो होठों पर एक अजीब सी मुस्कान उभर आई।

"मैं आ गया हूॅ।" विराज ने कहा__"और अब मैं तैयार हूॅ उस काम के लिए, बोलो कहाॅ मिलना है?""
"__________________"
"ठीक है फिर।" विराज ने कहा और फोन काट दिया। 'अजय सिंह बघेल अब अपनी बरबादी के दिन गिनने शुरू कर दे क्योकि अब विराज दि ग्रेट का क़हर तुम पर और तुमसे जुड़ी हर चीज़ पर टूटेगा'



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drx prince

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"ब बेटे।" गौरी बुरी तरह रोते हुए अपने बेटे के चौड़े सीने से जा लगी। उसने कस कर विराज को जकड़ा हुआ था। विराज ने भी माॅ को छुपका लिया फिर बोला__"नहीं माॅ, अब आप रोएंगी नहीं। रोने धोने वाला वक्त गुज़र गया। अब तो रुलाने वाला वक्त शुरू होगा।"

"कितनी नासमझ थी मैं।" गौरी ने विराज के सीने से लगे हुए ही गंभीरता से कहा__"मैं जिस बेटे को छोटा और अबोध समझ रही थी तथा ये भी कि वो बहुत मासूम है नासमझ है अभी, मगर वो तो अपनी छोटी सी ऊम्र में भी कहीं ज्यादा समझदार और जिम्मेदार हो गया है। मैंने सब कुछ अपने बेटे से छुपाया, सिर्फ इस लिए कि मैं अपने बेटे को खो देने से डरती थी।"

"आप एक माॅ हैं माॅ।" विराज ने कहा__"और आपने जो कुछ भी किया अपनी ममता से मजबूर हो कर किया। इस लिए इसके लिए मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है। लेकिन हाॅ एक शिकायत जरूर है।"
"अच्छा।" गौरी ने विराज के सीने से अपना सिर अलग किया तथा ऊपर बेटे के की आखों मे प्यार से देखते हुए कहा__"ऐसी क्या शिकायत है मेरे बेटे को मुझसे, जरा मुझे भी तो पता चले।"

"शिकायत यही है कि।" विराज ने कहा__"आप हर पल खुद को दुखी रखती हैं और अपनी आॅखों पर तरस खाने की बजाय उन्हें रुलाती रहती हैं। ये हर्गिज़ भी अच्छी बात नहीं है।"

"अब से ऐसा नहीं होगा।" गौरी ने मुस्कुराते हुए कहा__"अब मैं न तो खुद को दुखी रखूॅगी और न ही अपनी आखों को रुलाऊॅगी। अब ठीक है न?"
"यही बात आप मेरी कसम खा कर कहिए।" विराज ने कहने के साथ ही माॅ गौरी का दाहिना हाॅथ पकड़ कर अपने सिर पर रखा।

"न नहीं नहीं।" गौरी ने विराज के सिर से तुरंत ही अपना हाॅथ खींच लिया__"मैं इसके लिए तुम्हारी कसम नहीं खा सकती मेरे लाल। तुम तो जानते हो एक माॅ अपने बच्चों के लिए कितना संवेदनशील होती है। उसका ममता से भरा हुआ ह्रदय इतना कोमल और कमजोर होता है कि अपने बच्चों के लिए एक पल में पिघल जाता है। सीने में पल भर में भावना का ऐसा तूफान उठ पड़ता है कि उसे रोंकना मुश्किल हो जाता है, और आंखें तो जैसे इस इंतजार में ही रहती हैं कि कब वो छलक पड़ें।"

विराज माॅ की बात सुन कर मुस्करा उठा। माॅ के सुंदर चहरे और नील सी झीली आखों में खुद के लिए बेशुमार स्नेह व प्यार देखता रहा और हौले से झुक कर पहले उन आखों को फिर माॅ के माॅथे को प्यार से चूॅम लिया।

"क्या बात है?" गौरी विराज के इस कार्य पर मुस्कुराई तथा अपनी आखों की दोनो भौहों को ऊपर नीचे करके कहा__"आज अपनी इस बूढ़ी माॅ पर बड़ा प्यार आ रहा है मेरे बेटे को।"
"प्यार तो हमेशा से था माॅ।" विराज ने कहा__"और हमेशा रहेगा भी। मगर आपने खुद को बूढ़ी क्यों कहा?"

"अरे पगले! अब मैं बूढ़ी हूॅ तो बूढ़ी ही कहूॅगी न खुद को।" गौरी ने हॅस कर कहा।
"नहीं माॅ।" विराह कह उठा__"आप बूढ़ी बिलकुल भी नहीं हैं। आप तो गुड़िया की बड़ी बहन लगती हैं। आप खुद देख लीजिए।" कहने के साथ ही विराज ने माॅ गौरी को कमरे में एक तरफ दीवार से सटे एक बड़े से आदम कद आईने के सामने ला कर खड़ा कर दिया।

"ये ये सब क्या कर रहा है बेटा?" गौरी हॅसते हुए बोली, उसने सामने लगे आईने में खुद को देखा। उसके पीछे ही विराज उसे उसके दोनो कंधों से पकड़े हुए खड़ा था।

"अब गौर से देखिए माॅ।" विराज ने आईने में अपनी माॅ को देखते हुए मुस्कुरा कर कहा__"देखिए अपने आपको। आप अब भी मेरी माॅ नहीं बल्कि मेरी बड़ी बहन लगती हैं न?"
"हे भगवान!" गौरी ने हॅसते हुए कहा__"तुम्हें मैं तुम्हारी बड़ी बहन लगती हूॅ? कोई और सुने तो क्या कहे?"

"मुझे किसी से क्या मतलब?" विराज ने कहा__"जो सच है वो बोल रहा हूॅ। गुड़िया आपकी ही फोटो काॅपी है माॅ। मतलब आप जब गुड़िया की उमर में रहीं होंगी तब आप बिलकुल गुड़िया जैसी ही दिखती रही होंगी।"

"हाॅ तुम्हारी ये बात तो सच है बेटे कि गुड़िया मुझ पर ही गई है।" गौरी ने कहा__"सब कोई यही कहता था कि गुड़िया की शक्लो सूरत मुझसे मिलती जुलती है। लेकिन मैं उसके जैसी अल्हड़ और मुहफट नहीं थी।"

"वो अभी बच्ची हैं माॅ।"विराज ने कहा__"उसमें अभी बहुत बचपना है। उसे यूॅ ही हॅसने खेलने दीजिए, वो ऐसे ही अच्छी लगती हैं।"
"उसकी उमर में मैंने जिम्मेदारी और समझदारी से रहना सीख लिया था बेटा।" गौरी ने सहसा गंभीर होकर कहा__"अब वो बच्ची नहीं रही, भले ही दिल और दिमाग से वह बच्ची बनी रहे। मगर,,,,,"

"वैसे दिख नहीं रही वो।" विराज ने कहा__"कहाॅ है वह?"
"ऊपर छत पर गई थी कपड़े डालने।" गौरी ने कहा।
"कोई हमें याद करे और हम तुरंत उसके सामने न आएं ऐसा कभी हो सकता है क्या?" सहसा कमरे के दरवाजे से अंदर आते हुए निधि ने कहा__"वैसे किस लिए याद किया गया है हमें? जल्दी बताया जाए क्योंकि हम बहुत बिजी हैं, हमें अभी कपड़े डालने जाना है ऊपर छत पर।"

"इस लड़की का क्या करूॅ मैं?" गौरी ने अपना माथा पीट लिया।
"बस प्यार कीजिए माॅ प्यार।" निधि ने
अपने दोनो हाॅथों को इधर उधर घुमाते हुए कहा__"हम आपके बच्चे हैं, हमें बस प्यार कीजिए।"

"तू रुक अभी तुझे बताती हूॅ मैं।" गौरी उसे मारने के लिए निधि की तरफ लपकी, जबकि निधि जिसे पहले ही पता था कि क्या होगा इस लिए वह तुरंत ही विराज के पीछे जा छुपी और बोली__"भईया बचाइए मुझे नहीं तो माॅ मारेंगी मुझे। मैं आपकी जान हूॅ न? अब बचाइये अपनी जान को, हाॅ नहीं तो।"

"रुक जाइए माॅ।" विराज ने माॅ को रोंक लिया__"मत मारिए इसे। आपने देखा न इसके आते ही वातावरण कितना खुशनुमा हो जाता है।"
"हाॅ माॅ।" निधि तुरंत बोल पडी__"मेरी बात ही अलग है। आप समझती ही नहीं हैं जबकि भइया मुझे अच्छे से समझते हैं, हाॅ नहीं तो।"

"तेरे भइया ने ही तुझे बिगाड़ रखा है।" गौरी ने कहा__"अब जा कपड़े डाल कर आ जल्दी।"
"आपकी जान का इतना बड़ा अपमान।" निधि ने पीछे से विराज की तरफ अपना सिर करते हुए कहा__"बड़े दुख की बात है कि आप कुछ नहीं कर सकते मगर, हम चुप नहीं रहेंगे एक दिन इस बात का बदला जरूर लेंगे, देख लीजियेगा, हाॅ नहीं तो।"

"क्या बड़बड़ा रही है तू?" गौरी ने आखें दिखाते हुए कहा।
"कुछ नही माॅ।" निधि ने जल्दी से कहा__"वो भइया को हनुमान चालीसा का रोजाना पाठ करने को कह रही थी।"

"वो क्यों भला?" गौरी के माॅथे पर बल पड़ता चला गया। जबकि निधि की इस बात से विराज की हॅसी छूट गई। वो ठहाके लगा कर जोर जोर से हॅसने लगा था। निधि अपनी हॅसी को बड़ी मुश्किल से रोंके इस तरह मुॅह बनाए खड़ी थी जैसे वो महामूर्ख हो। इधर विराज के इस प्रकार हॅसने से गौरी को कुछ समझ न आया कि उसका बेटा किस बात इतना हॅसे जा रहा है?



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आशा करता हूॅ कि आप सबको पसंद आएगा,,,,,,,,
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drx prince

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"डैड मुझे इसके आगे की पढ़ाई मुम्बई से करना है।"नीलम ने बड़ी मासूमियत से कहा था__"मेरी सब दोस्त भी वहीं जा रही हैं।"
"अरे बेटा।" अजय सिंह चौंका था__"मगर यहाॅ क्या परेशानी है भला? यहाॅ भी तो पास के शहर में बहुत अच्छा काॅलेज है?"

"यहाॅ के काॅलेजों में कितनी अच्छी शिक्षा मिलती है ये तो आप भी अच्छी तरह जानते हैं डैड।" नीलम ने कहा__"मुझे अपनी डाक्टरी की बेहतर पढ़ाई के लिए बेहतर शिक्षा की आवश्यकता है।"
"अच्छी बात है बेटी।" अजय सिंह ने कहा__"लेकिन मुम्बई से अच्छा तो तुम्हारे लिए दिल्ली रहेगा। क्योकि दिल्ली में तुम्हारी बड़ी बुआ भी है। तुम अपनी सौम्या बुआ के साथ रह कर वहाॅ बेहतर पढ़ाई कर सकती हो।"

"नहीं डैड।" नीलम ने बुरा सा मुह बनाया__"मैं मुम्बई में अपनी मौसी के यहाॅ रह कर पढ़ाई करूॅगी। आप तो जानते हैं कि मौसी की बड़ी बेटी अंजली दीदी आजकल मुम्बई में ही एक बड़े हास्पिटल में एज अ डाक्टर काम करती हैं। उनके पास रहूॅगी तो उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को भी मिलेगा।"

"ये सही कह रही है डैड।" रितु ने कहा__"अंजली दीदी के पास रह कर इसे अपनी पढ़ाई के लिए काफी कुछ जानने समझने को भी मिल जाएगा। आप इसे बड़ी मौसी के पास ही जाने दीजिए।"

"ठीक है बेटी।" अजय सिंह ने कहा__"तुम्हारी भी यही राय है तो नीलम अब मुम्बई ही जाएगी।"
"ओह थैंक्यू सो मच डैड एण्ड।" नीलम ने खुश हो कर अजय सिंह से कहने के बाद रितू की तरफ पलट कर कहा__"एण्ड थैंक्स यू टू दीदी।"

"कौन कहाॅ जा रहा है डैड?" बाहर से ड्राइंग रूम में आते हुए शिवा ने कहा।
"तुम्हारी नीलम दीदी मुम्बई जा रही है अपनी बड़ी मौसी पूनम के पास।" अजय सिंह ने कहा__"ये वहीं रह कर अपनी डाक्टरी की पढ़ाई करेगी।"

"क क्या..???" शिवा उछल पड़ा__"नीलम दीदी मुम्बई जाएंगी? नहीं डैड आप इन्हें मुम्बई कैसे भेज सकते हैं? जबकि आप जानते हैं कि हमारा सबसे बड़ा दुश्मन विराज मुम्बई में ही है।"

"अरे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता बेटे।" अजय सिंह ने कहा__"और उससे डरने की भी कोई जरूरत नहीं है। और वैसे भी उसे क्या पता चलेगा कि नीलम कहाॅ है? वो तो किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धो रहा होगा। उसे इस काम से फुर्सत ही कहाॅ मिलेगी कि वो नीलम को खोजेगा?"

"हा हा हा आप सच कहते हैं डैड।" शिवा ठहाका लगा कर जोरों से हॅसते हुए कहा__"वो यकीनन किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट ही धो रहा होगा।"
"ख़ैर छोंड़ो।" अजय सिंह ने नीलम की तरफ देख कर कहा__"तो तुम्हें कब जाना है मुम्बई?"

"मैं तो कल ही जाने का सोच रही हूॅ डैड।" नीलम ने कहा__"मैंने सारी तैयारी भी कर ली है।"
"चलो ठीक है।" अजय सिंह ने कहा__"मैं तुम्हारे लिए ट्रेन की टिकट का बोल देता हूॅ।"

"जी डैड।" नीलम ने कहा और ऊपर अपने कमरे की तरफ पलट कर चली गई।
"तू भी कुछ करेगा कि ऐसे ही आवारागर्दी करता इधर उधर घूमता रहेगा?" सहसा किचेन से आती हुई प्रतिमा ने कहा__"सीख कुछ इनसे। ऐसे कब तक चलेगा?"

"इतना ज्यादा पढ़ लिख कर क्या करना है माॅम?" शिवा ने बेशर्मी से खीसें निपोरते हुए कहा__"डैड की दौलत काफी है मेरे उज्वल भविष्य के लिए। मैंने सही कहा न डैड?" अंतिम वाक्य उसने अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा था।

"बात तो तुम्हारी ठीक है शहज़ादे।" अजय सिंह पहले मुस्कुराया फिर थोड़ा गंभीर हो कर बोला__"लेकिन जीवन में उच्च शिक्षा का होना भी बहुत जरूरी होता है। माना कि मैने तुम्हारे लिए बहुत सारी दौलत बना कर जोड़ दी है लेकिन ये दौलत कब तक तुम्हारे लिए बची रहेगी? दौलत कभी किसी के पास टिकी नहीं रहती। उसको बनाए रखने के लिए काम करके उसे कमाना भी जरूरी है। आज जितना हम उसे खर्च करते हैं उससे कहीं ज्यादा उसे प्राप्त करना भी जरूरी है।"

"ओह डैड आप तो बेकार का लेक्चर देने लगे मुझे।" शिवा ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा__"इतना तो मुझे भी पता है कि दौलत को पाने के लिए काम करना भी जरूरी है और अच्छे काम के लिए अच्छी शिक्षा का होना जरूरी है। तो डैड, मैं पढ़ तो रहा हूॅ न?"

"जिस तरह की तुम पढ़ाई कर रहे हो न।" प्रतिमा ने तीखे लहजे में कहा__"उसका पता है मुझे।"
"ओह माॅम अब आप भी डैड की तरह लेक्चर मत देने लग जाना।" शिवा ने कहा।

"ये लेक्चर तुम्हारे भले के लिए ही दिया जा रहा है बेटे।" अजय सिंह ने कहा__"इस पर ग़ौर करो और अमल भी करो।"
"जी डैड कर तो रहा हूॅ न?" शिवा ने कहा और सोफे से उठ कर अपने कमरे की तरफ चला गया। किन्तु वह ये न देख सका कि उसके पैन्ट की बाॅई पाॅकेट से उसकी कौन सी चीज़ गिर कर सोफे पर रह गई थी।

अजय सिंह और प्रतिमा की नज़रें एक साथ उस चीज़ पर पड़ीं। और उस चीज़ को पहचानते ही दोनो अपनी अपनी जगह बैठे उछल पड़े। प्रतिमा ने अपना हाॅथ आगे बढ़ा कर उस चीज को उठा लिया। वो कण्डोम का पैकिट था। पैकिट खुला हुआ था मतलब उसमे मौजूद कण्डोमों में से कुछ का इस्तेमाल हो चुका था। प्रतिमा ने अपने पति अजय सिंह की तरफ अजीब भाव से देखा।

"ये है आपके शहजादे की पढ़ाई।" प्रतिमा के लहजे में कठोरता थी बोली__"और ये सब सिर्फ आपके लाड प्यार का नतीजा है।"
"इस उमर में ये नेचुरल बात है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"क्या तुम भूल गई कि हम दोनों ने खुद शादी के पहले इसका कितना इस्तेमाल किया था?"

"हाॅ मगर तब आप नौकरी पेशा थे।" प्रतिमा के चेहरे पर कुछ पल के लिए शर्म की लाली छाई थी किन्तु उसने शीघ्र ही खुद को नाॅर्मल करते हुए कहा था__"लेकिन शिवा अभी पढ़ रहा है। अगर इसी तरह चलता रहा तो वो क्या कर पाएगा भविश्य में?"

"तुम बेवजह छोटी सी बात को इतना तूल दे रही हो यार।" अजय सिंह ने कहा__"मुझे तुमसे ज्यादा चिंता है उसके भविश्य की, अगर नहीं होती तो ये सब नहीं करता। और अब इस बारे में कोई बात नही होगी समझी न?"

प्रतिमा कुछ न बोली। इसके साथ ही ड्राइंग रूम में सन्नाटा छा गया। कुछ देर की ख़ामोशी के बाद अजय सिंह ने कहा__"अब यूॅ मुह न फुलाओ मेरी जान, आज रात तुम्हें खुश कर दूॅगा चिन्ता मत करो।"

"क्या सच में?" प्रतिमा के चेहरे पर खुशी छलक पड़ी__"लेकिन दो राउण्ड से पहले नहीं सोने दूॅगी मैं आपको ये सोच लेना।"
"ठीक है मेरी जान।" अजय सिंह मुस्कुराया__"एक एक राउण्ड तुम्हारे आगे पीछे से अच्छे से लूॅगा।"

"अच्छा जी?" प्रतिमा मुस्कुराई__"आप तो जब देखो मेरे पिछवाड़े के पीछे ही पड़े रहते हो।"
"औरत को पीछे से रगड़ रगड़ कर ही ठोंकने में हम मर्दों को मज़ा आता है डियर।" अजय सिंह ने कहा__"और तुम्हारे पिछवाड़े की तो बात ही अलग है यार।"

"और किसके किसके पिछवाड़े की बात अलग है?" प्रतिमा ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा__"ज़रा ये भी तो बताइए।"
"तुम अच्छी तरह जानती हो मेरी जान।" अजय सिंह के चेहरे पर अजीब से भाव थे__"फिर क्यों पूॅछ रही हो?"

"बताने में हर्ज़ ही क्या है?" प्रतिमा हॅसी__"बता ही दीजिए।"
"तुम्हारे बाद अगर किसी और के पिछवाड़े में अलग बात है तो वो है हमारी बड़ी बेटी रितू। हाय क्या पिछवाड़ा है ज़ालिम का बिलकुल तुम्हारी तरह ही है उसका पिछवाड़ा।"

"अपनी ही बेटी पर नीयत बुरी है आपकी?" प्रतिमा ने कहने के साथ ही मैक्सी के ऊपर से अपने एक हाॅथ से अपनी चूॅत को बुरी तरह मसला फिर बोली__"मगर ये जान लीजिए कि रितू का पिछवाड़ा इतनी आसानी से मिलने वाला नही है आपको।"

"यही तो रोना है यार।" अजय सिंह आह सी भरते हुए बोला__"तुमको मेरी ख्वाहिश का पता है फिर भी अब तक कुछ नहीं किया।"
"चिंता मत कीजिए।" प्रतिमा ने कहा__"आपके लिए एक नई चूॅत और एक नए पिछवाड़े का इंतजाम कर दिया है मैंने।"

"क् क्या सच में..???"अजय सिंह खुशी से झूम उठा__"ओह डियर आखिर तुमने कर ही दिया। मगर, ये तो बताओ किसकी चूत और पिछवाड़े का इंतजाम किया है तुमने?"
"अभी थोड़ी कसर बाॅकी है जनाब।" प्रतिमा ने कहा__"मगर मुझे यकीन है कि एक दो दिन में काम हो जाएगा आपका।"

"काश! गौरी को हासिल कर पाता मैं।" अजय सिंह बोला__"उस पर तो मेरी तब से नज़र थी जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी। एक झलक उसके जिस्म की देखी थी मैंने। एक दम दूध सा गोरा रंग था उसका और बनावट ऐसी कि उसके सामने कुदरत की हर कृति फीकी पड़ जाए।"

"कम से कम मेरे सामने उसकी खूबसूरती का बखान मत किया कीजिए आप।" प्रतिमा ने तीखे भाव से कहा__"आपको कितनी बार ये कहा है मैने। फिर भी आप उस हरामजादी की तारीफ करके मेरा खून जलाने से बाज नहीं आते हैं।"

"क्या करूॅ मेरी जान?" अजय सिंह कह उठा__"तुम्हारे बाद मुझे अगर किसी से प्यार हुआ है तो वो थी गौरी। मैं चाहता तो कब का उसकी खूबसूरती का रसपान कर लेता किन्तु मैने ऐसा नही किया। मैं उसे प्यार से हासिल करना चाहता था। तभी तो मैंने ये सब किया, उसको इतने दुख दिए और उसके लिए सारे रास्ते बंद कर दिए। मगर फिर भी कुछ हासिल नहीं हुआ और अब होगा भी कि नहीं क्या कहा जा सकता है?"

"आपने तो उन लोगों की खोज में अपने आदमी लगाए थे न?" प्रतिमा ने कहा__"उन लोगों ने क्या रिपोर्ट दी उनके बारे में?"
"मेरे आदमी खाली हाॅथ वापस आ गए थे।" अजय सिंह के चेहरे पर कठोरता के भाव उजागर हुए__"वो हरामी की औलाद विराज बड़ा ही चतुर व चालाक निकला। उसने अपनी माॅ और बहन को किसी दूसरे शहर के रूट से उन्हें मुम्बई ले जाने में कामयाब हो गया था।"

"शायद उसे अंदेशा था कि आप उन्हें पकड़ने के लिए अपने आदमियों को भेजेंगे।" प्रतिमा ने सोचपूर्ण भाव से कहा।
"हाॅ यही बात रही होगी।" अजय सिंह बोला__"वर्ना वो ऐसा काम क्यों करता? मगर कब तक मुझसे छिपा कर रखेगा वो अपनी माॅ और बहन को? मैं चैन से बैठा नहीं हूॅ प्रतिमा, बल्कि आज भी मेरे आदमी उनकी खोज में मुम्बई की खाक़ छान रहे हैं।"

"ये आपने अच्छा किया है।" प्रतिमा ने सहसा आवेशयुक्त स्वर में कहा था__"जब आपके आदमी उन सबको पकड़ कर यहा लाएंगे तो मैं अपने हाॅथों से उस कुत्ते को गोली मारूंगी जिसने उस दिन मेरे बेटे का वो हाल किया था।"

"तुम्हारी ये इच्छा जरूर पूरी होगी डियर।" अजय सिंह ने भभकते लहजे में कहा__"और अब मैं भी गौरी को बीच चौराहे पर रगड़ रगड़ कर ठोंकूॅगा। अब बात प्यार की नहीं रह गई बल्कि अब प्रतिशोध की है। मेरे उस प्रण की है जो मैंने वर्षों पहले लिया था।"

"किस प्रण की बात कर रहे हैं डैड?" रितू ऊपर से सीढ़िया उतरते हुए पूछी।
"कुछ नहीं बेटी बस ऐसे ही बात कर रहे थे हम लोग।" प्रतिमा ने जल्दी से बात को टालने की गरज से कहा। जबकि अजय सिंह अपनी बड़ी बेटी को एकटक देखे जा रहा था।

रितू नहा धो कर तथा एक दम फ्रेस होकर आई थी। इस वक्त उसके गोरे किन्तु मादकता से भरे जिस्म पर एक दम टाइट फिटिंग वाले कपड़े थे। जिसमें उसकी भरपूर जवानी साफ उभरी हुई नजर आ रही थी। अजय सिंह मंत्रमुग्ध सा उसे देखे जा रहा था। उसकी आखों में हवस और वासना के कीड़े गिजबिजाने लगे थे। अपने पति को अपनी ही बेटी की तरफ यूं हवस भरी नज़रों से देखते देख प्रतिमा ने तुरंत ही उसे खुद की हालत को सम्हाल लेने की गरज से कहा__"आपको आज पिता जी और माता जी से मिलने जाना था न?"

अजय सिंह प्रतिमा के इस वाक्य को सुन कर चौंका तथा तुरंत ही वास्तविक माहौल में लौटते हुए कहा__"हाॅ जाना तो है। क्या तुम साथ नहीं चलोगी?"
"नहीं आप हो आइए।" प्रतिमा ने कहा__"पिछली बार गई थी उनसे मिलने आपके साथ। उनसे मिलने का कोई फायदा तो है नहीं। न वो कुछ बोलते हैं और न ही हिलते डुलते हैं फिर क्या फायदा उनसे मिलने का?"

"डैड क्या कुछ संभावना है कि कब तक दादा दादी ठीक होंगे?" रितू ने पूछा।
"बेटा डाॅ. की तरफ से यही कहना है कि कुछ कहा नहीं जा सकता इस बारे में।" अजय सिंह बोला__"याददास्त का मामला होता ही ऐसा है।"

"डैड आपके दोस्त कमिश्नर अंकल तो अब तक पता नहीं लगा पाए कि दादा दादी की कार को किसने और क्यों टक्कर मारी थी?" रितू ने सहसा तीखे भाव से कहा__"आज दो साल हो गए इस बात को और पुलिस के हाॅथ कोई छोटा सा सुराग तक नहीं लगा। बड़ा गुस्सा आता है मुझे अपने देश की इस निकम्मी पुलिस पर। आज अगर मैं होती पुलिस डिपार्टमेन्ट में तो इस केस को कब का क्लियर करके मुजरिमों को जेल की सलाखों के पीछे पहुॅचा दिया होता। लेकिन कोई बात नहीं डैड...जल्द ही इस निकम्मी पुलिस के बीच मुझ जैसी एक तेज़ तर्रार पुलिस आफिसर इन्ट्री करेगी। फिर मैं खुद इस केस पर काम करूॅगी, और केस को पूरा साल्व करूॅगी।"

रितू की ये बातें सुनकर अजय सिंह और प्रतिमा को साॅप सा सूॅघ गया। चेहरे पर घबराहट के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे। किन्तु जल्द ही उन दोनों ने खुद को सम्हाला।

"मतलब मेरे लाख मना करने और समझाने पर भी तुमने पुलिस फोर्स ज्वाइन करने का अपना इरादा नहीं बदला?" अजय सिंह ने नाराज़गी भरे स्वर में कहा__"तुम जानती हो बेटी कि मुझे तुम्हारा पुलिस फोर्स ज्वाइन करने का फैसला बिलकुल भी पसंद नहीं है। तुम्हें कोई ज़रूरत नहीं थी कोई नौकरी करने की, भला क्या कमी की है हमने तुम्हें कुछ देने में?"

"ये नौकरी मैं किसी चीज़ के अभाव में नहीं कर रही हूॅ डैड।" रितू ने शान्त भाव से कहा__"आप जानते हैं कि पुलिस आफिसर बनना मेरा एक ख्वाब था। पुलिस आफिसर बन कर मैं उन लोगों का वजूद मिटाना चाहती हूं जो इस देश और समाज के लिए अभिशाप हैं।"

"तुम ये भूल रही हो बेटी कि तुम एक लड़की हो, एक औरत ज़ात जिसे खुद कदम कदम पर किसी मर्द के द्वारा मजबूत सुरक्षा की आवश्यकता होती है।" प्रतिमा ने समझाने वाले भाव से कहा__"और पुलिस फोर्स तो ऐसी है कि इसमें रोज़ एक से बढ़ कर एक खतरनाक अपराधियों का सामना करना पड़ता है जिसका मुकाबला करना तुम्हारे लिए बेहद मुश्किल है।"

"आप मुझे एक आम लड़की समझकर कमजोर समझती हैं माॅम जबकि रितू सिंह बघेल कोई आम लड़की नहीं है।" रितू के चेहरे पर कठोरता थी__"बल्कि मैं मिस्टर अजय सिंह बघेल की शेरनी बेटी हूॅ। और मुझसे टकराने में किसी अपराधी को हजार बार सोचना पड़ेगा। आप जानती हैं न माॅम कि मैंने मासल आर्ट्स में ब्लैक बैल्ट हासिल किया है। क्योंकि मुझे पता है कि एक आम लड़की पुलिस में किसी अपराधी का सामना नहीं कर सकती। इसी लिए मैंने किसी भी तरह के अपराधियों से डॅटकर कर मुकाबला करने के लिए मासल आर्ट्स की ट्रेनिंग ली थी।"

अजय सिंह और प्रतिमा दोनों जानते थे कि रितू अपने कदम अब वापस नहीं करेगी। इस लिए चुप रह गए किन्तु अंदर से ये सोच सोच कर घबरा भी रहे थे कि अगर रितू ने पुलिस आफिसर के रूप में अपने दादा दादी के एक्सीडेंट वाला केस अपने हाॅथ में लिया तो क्या होगा?????"



दोस्तो आपके सामने अपडेट हाज़िर है....आपकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,,
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drx prince

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"मैं उस हरामजादे को छोंड़ूॅगा नहीं सक्सेना।" अजय सिंह ने एकाएक गुस्से में बोला__"उसको ढूॅढ़ कर उसे ऐसी मौत दूॅगा कि उसकी रूह फिर दुबारा ऐसे किसी शरीर को धारण नहीं करेगी। मुझे अपने नुकसान का कोई ग़म नहीं है सक्सेना,ये करोड़ों का नुकसान मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता। मगर मेरी इज्ज़त को शहर भर में यूॅ दाग़दार करके उसने ये अच्छा नहीं किया। उसे इसकी कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ेगी।"

"उसके साथ ऐसा होना भी चाहिए अजय सिंह।" सक्सेना ने एक सिगरेट सुलगाई और फिर एक गहरा कस लेकर उसका धुआॅ ऊपर की तरफ उछालने के बाद कहा__"वैसे क्या लगता है तुम्हें, ये किसका काम हो सकता है?"

"ये तो पक्की बात है सक्सेना कि वो दोनों विदेशी नहीं थे।" अजय सिंह बोला__"बल्कि वो दोनों हमारे ही देश के और हमारे ही शहर के कोई पहचान वाले ही थे।"
"ये बात तुम इतने विश्वास और दावे के साथ कैसे कह सकते हो अजय सिंह?" सक्सेना हल्के से चौंका था फिर बोला__"जबकि तुम्हारे पास इस बात का कोई छोटा सा सबूत तक नहीं है।"

"ग़लती मेरी भी है सक्सेना।" अजय सिंह ने कहा__"एक महीने पहले जब उनसे हमें ये टेंडर मिला था तब हमें ये अंदाज़ा नहीं था, बल्कि हम सोच भी नहीं सकते थे कि हम इन लोगों द्वारा किसी साजिश का शिकार होने जा रहे हैं। हम तो खुश थे कि हमारे कपड़ों की खासियत से प्रभावित होकर कोई विदेशी हमसे डील कर रहा है और इतनी ज्यादा मात्रा में हमसे कपड़े की माॅग कर रहा है। उस समय दिलो दिमाग में यही था कि अब हमारा संबंध विदेशी लोगों से हो रहा है जिससे निकट भविश्य में हमारे कारोबार को और भी फायदा होगा। किसी साजिश का हम सोच ही नहीं सके थे क्योकि उन लोगों का सब कुछ परफेक्ट था। और वैसे भी हमें इससे क्या लेना देना था कि वो कितनी बड़ी कंपनी के मालिक थे, हमें तो उनकी डील से मतलब था जिसके लिए हमे करोड़ों का मुनाफ़ा होने वाला था।"

"वो सब तो ठीक है अजय।" सक्सेना बीच में ही अजय की बात काट कर कह उठा__"मगर तुम कह रहे हो कि वो विदेशी नहीं थे ये बात तुम दावे के साथ कैसे कह सकते हो?"

"मैं बताते हुए वहीं आ रहा था सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"ख़ैर अब जबकि ये सब हो गया उससे यही समझ आता है कि ये काम किसी फाॅरेनर का नहीं है। क्योंकि आज तक हमारा किसी भी तरह का लेन देन किसी विदेशी से नहीं हुआ और जब कोई लेन देन ही नहीं हुआ किसी विदेशी से तो किसी तरह की रंजिश के तहत किसी फाॅरेनर का ये सब करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। अब सोचने वाली बात है कि जब हमारा किसी विदेशी से कोई ब्यौसायिक संबंध ही नहीं था तो कोई विदेशी किस वजह से हमारे साथ इतनी बड़ी साजिश करके हमें धोखा देगा अथवा हमारा इतना बड़ा नुकसान करेगा?"

"तुम्हारा तर्क बिलकुल दुरुस्त है अजय।" सक्सेना सोचपूर्ण भाव के साथ बोला__"फिर तो यकीनन ये काम किसी ऐसे ब्यक्ति का है जो तुम्हें अच्छी तरह जानता भी है और तुम्हारा बुरा भी चाहता है। कौन हो सकता है ऐसा ब्यक्ति?"

"यही तो सोच रहा हूॅ सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"मगर जेहन में ऐसे किसी ब्यक्ति का चेहरा नहीं आ रहा।"
"ये काम तुम्हारे किसी कम्पटीटर का ही हो सकता है।" सक्सेना ने कहा__"ये एक ब्यौसायिक मामला है अजय। ब्यौसाय से जुड़े तुम्हारे किसी कम्पटीटर ने ही इस काम को अंजाम दिया हो सकता है, जिनके बारे में फिलहाल तुम ठीक से सोच नहीं पा रहे हो। इस लिए अच्छी तरह सोचो कि ये किसने किया हो सकता है?"

"मुझे तो कुछ और ही लगता है सक्सेना।" अजय सिंह ने सोचपूर्ण भाव से कहा__"ये काम मेरे किसी कम्पटीटर का भी नहीं है क्योकि इन सबसे मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" सक्सेना चौंका__"अगर ये सब तुम्हारे किसी कम्पटीटर का नहीं है तो फिर किसका है? कहीं तुम इन सबके लिए मुझे तो नहीं जिम्मेदार ठहरा रहे हो?"

"हाॅ ये भी हो सकता है सक्सेना।" अजय सिंह ने सपाट लहजे में कहा__"इस सब में सबसे पहले उॅगली तो तुम पर ही उठेगी। आख़िरकार तुम मेरे बिजनेस पाटनर हो"

"क्या मेरे बारे में तुम ऐसा सोचते हो कि मैं अपने घनिष्ठ मित्र के साथ ऐसा नीच काम करूॅगा?" सक्सेना ने कहा__"तुम मेरे बारे में अच्छी तरह जानते हो अजय कि मैं ऐसा किसी के भी साथ नहीं कर सकता। मेरी फितरत इस तरह किसी को धोखा देने की नहीं है।"

"रुपये पैसे के लिए कोई भी ब्यक्ति किसी के भी साथ कुछ भी कर सकता है सक्सेना।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा__"मैं तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं लगा रहा लेकिन इस तरह का सवाल तो खड़ा होगा ही। कानून का कोई भी नुमाइंदा तुमसे ये सवाल कर सकता है कि तुम अचानक ही अजय सिंह से पार्टनशिप तोड़ कर तथा अपना हिसाब किताब करके हमेशा के लिए विदेश क्यों जा रहे हो जबकि हाल ही में अजय सिंह के साथ ऐसा संगीन वाक्या हो गया?"

"तुम तो मुझ पर साफ साफ इल्जाम लगाते हुए कानून के लपेटे में डालने की बात कर रहे हो अजय सिंह।" सक्सेना दुखी भाव से बोला__"जबकि भगवान जानता है कि मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया।"

"भगवान तो सबके विषय में सब जानता है सक्सेना।" अजय सिंह ने कहा__"लेकिन इंसान नहीं जानता। इंसान तो वही जानता है जो उसे या तो नज़र आता है या फिर जो समझ आता है। आज जो हालात बने हैं उससे साफ तौर पर यही समझ आता है कि ये सब तुम्हारे अलावा दूसरा कौन और क्यों कर सकता है भला?"

अरविन्द सक्सेना मूर्खों की तरह देखता रह गया अजय सिंह को। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कि वह अभी अपने सिर के बाल नोंचने लगेगा।

"मुझे समझ नहीं आ रहा अजय सिंह कि मैं तुम्हें कैसे इस बात का यकीन दिलाऊॅ?" सक्सेना असहाय भाव से बोला__"कि ये सब मैं करने के बारे में सोच तक नहीं सकता। तुम जानते हो हम दोनो ऐसे हैं कि एक दूसरे का सब कुछ जानते हैं। हम दोनों के संबंध तो ऐसे हैं कि हम अपनी अपनी बीवियों को भी आपस में बाॅट लेते हैं। क्या कोई इतना भी घनिष्ठ मित्र हो सकता है किसी का? जिसके साथ ऐसे संबंध हों वो भला अपने दोस्त का इतना बड़ा अहित कैसे कर देगा यार?"

"तुम तो यार एक दम से सीरियस ही हो गए सक्सेना।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा__"मैं तो बस एक तर्कसंगत बात कह रहा था कि इस वाक्ये के बाद किसी भी ब्यक्ति के मन में सबसे पहले यही विचार उठेगा जो अभी मैने तर्क के द्वारा कहा था।"

"तुम मुझे जान से मार दो अजय सिंह मुझे ज़रा भी फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन ऐसे इल्जाम लगा कर मारोगे तो मैं मर कर भी कहीं चैन नहीं पाऊॅगा।" सक्सेना ने कहा।

"छोड़ो इस बात को और ये बताओ कि विदेश कब जा रहे हो?" अजय सिंह ने पूछा।
"दो दिन बाद।" सक्सेना ने कहा__"कल तक यहाॅ के सारे करोबार का रुपया मेरे एकाउंट में आ जाएगा और परसों यहाॅ से निकल जाऊॅगा। लेकिन.....।"

"लेकिन..??" अजय सिंह ने पूछा।
"लेकिन उससे पहले मैं चाहता हूॅ कि।" सक्सेना ने कहा__"हम लोगों का एक शानदार प्रोग्राम हो जाए।"

"जाने से पहले मेरी बीवी के मजे लेना चाहते हो।" अजय सिंह हॅसा।
"हाॅ तो बदले में तुम्हें भी तो मेरी बीवी से मजे लेना है।" सक्सेना ने भी हॅसते हुए कहा__"और वैसे भी मेरी बीवी तो रात दिन तुम्हारा ही नाम जपती रहती है। पता नहीं क्या जादू कर दिया है तुमने? साली मुझे बड़ी मुश्किल से हाॅथ लगाने देती है।"

"अच्छा ऐसा क्या?" अजय सिंह जोरों से हॅसा।
"हाॅ यार।" सक्सेना बोला__"और पता है विदेश जाने के लिए तो मान ही नहीं रही थी वो। जब मैने उसे ये कहा कि तुम हर महीने हमसे मिलने तथा मस्ती करने आओगे तब कहीं जाकर मानी थी वो।"

"मतलब कि अब मुझे हर महीने तुम्हारे पास इस सबके लिए आना पड़ेगा?"अजय सिंह मुस्कुराया।
"हाॅ बिलकुल।" सक्सेना ने कहा__"और वो भी भाभी जी के साथ।"

"सोचना पड़ेगा सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"और वैसे भी अभी मेरे पास सिर्फ एक ही अहम काम है, और वो है उन लोगों का पता लगाना जिनकी वजह से आज मुझे करोड़ों का नुकसान हुआ है तथा मेरी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ी हैं।"

"हाॅ ये तो है।" सक्सेना ने कहा__"अगर कभी मेरी ज़रूरत पड़े तो बेझिझक याद करना अजय, तुम्हारे एक बार के कहने पर मैं तुम्हारे पास आ जाऊॅगा।"

"ठीक है सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"कल तक मैं तुम्हारा हिसाब किताब करके तुम्हारे एकाउंट में पैसे डाल दूॅगा।"

ऐसी ही कुछ और औपचारिक बातों के बाद सक्सेना वहाॅ से चला गया। जबकि अजय सिंह ये न देख सका कि जाते समय सक्सेना के होठों पर कितनी जानदार मुस्कान थी?


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"मैं उस हरामजादे को छोंड़ूॅगा नहीं सक्सेना।" अजय सिंह ने एकाएक गुस्से में बोला__"उसको ढूॅढ़ कर उसे ऐसी मौत दूॅगा कि उसकी रूह फिर दुबारा ऐसे किसी शरीर को धारण नहीं करेगी। मुझे अपने नुकसान का कोई ग़म नहीं है सक्सेना,ये करोड़ों का नुकसान मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता। मगर मेरी इज्ज़त को शहर भर में यूॅ दाग़दार करके उसने ये अच्छा नहीं किया। उसे इसकी कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ेगी।"

"उसके साथ ऐसा होना भी चाहिए अजय सिंह।" सक्सेना ने एक सिगरेट सुलगाई और फिर एक गहरा कस लेकर उसका धुआॅ ऊपर की तरफ उछालने के बाद कहा__"वैसे क्या लगता है तुम्हें, ये किसका काम हो सकता है?"

"ये तो पक्की बात है सक्सेना कि वो दोनों विदेशी नहीं थे।" अजय सिंह बोला__"बल्कि वो दोनों हमारे ही देश के और हमारे ही शहर के कोई पहचान वाले ही थे।"
"ये बात तुम इतने विश्वास और दावे के साथ कैसे कह सकते हो अजय सिंह?" सक्सेना हल्के से चौंका था फिर बोला__"जबकि तुम्हारे पास इस बात का कोई छोटा सा सबूत तक नहीं है।"

"ग़लती मेरी भी है सक्सेना।" अजय सिंह ने कहा__"एक महीने पहले जब उनसे हमें ये टेंडर मिला था तब हमें ये अंदाज़ा नहीं था, बल्कि हम सोच भी नहीं सकते थे कि हम इन लोगों द्वारा किसी साजिश का शिकार होने जा रहे हैं। हम तो खुश थे कि हमारे कपड़ों की खासियत से प्रभावित होकर कोई विदेशी हमसे डील कर रहा है और इतनी ज्यादा मात्रा में हमसे कपड़े की माॅग कर रहा है। उस समय दिलो दिमाग में यही था कि अब हमारा संबंध विदेशी लोगों से हो रहा है जिससे निकट भविश्य में हमारे कारोबार को और भी फायदा होगा। किसी साजिश का हम सोच ही नहीं सके थे क्योकि उन लोगों का सब कुछ परफेक्ट था। और वैसे भी हमें इससे क्या लेना देना था कि वो कितनी बड़ी कंपनी के मालिक थे, हमें तो उनकी डील से मतलब था जिसके लिए हमे करोड़ों का मुनाफ़ा होने वाला था।"

"वो सब तो ठीक है अजय।" सक्सेना बीच में ही अजय की बात काट कर कह उठा__"मगर तुम कह रहे हो कि वो विदेशी नहीं थे ये बात तुम दावे के साथ कैसे कह सकते हो?"

"मैं बताते हुए वहीं आ रहा था सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"ख़ैर अब जबकि ये सब हो गया उससे यही समझ आता है कि ये काम किसी फाॅरेनर का नहीं है। क्योंकि आज तक हमारा किसी भी तरह का लेन देन किसी विदेशी से नहीं हुआ और जब कोई लेन देन ही नहीं हुआ किसी विदेशी से तो किसी तरह की रंजिश के तहत किसी फाॅरेनर का ये सब करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। अब सोचने वाली बात है कि जब हमारा किसी विदेशी से कोई ब्यौसायिक संबंध ही नहीं था तो कोई विदेशी किस वजह से हमारे साथ इतनी बड़ी साजिश करके हमें धोखा देगा अथवा हमारा इतना बड़ा नुकसान करेगा?"

"तुम्हारा तर्क बिलकुल दुरुस्त है अजय।" सक्सेना सोचपूर्ण भाव के साथ बोला__"फिर तो यकीनन ये काम किसी ऐसे ब्यक्ति का है जो तुम्हें अच्छी तरह जानता भी है और तुम्हारा बुरा भी चाहता है। कौन हो सकता है ऐसा ब्यक्ति?"

"यही तो सोच रहा हूॅ सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"मगर जेहन में ऐसे किसी ब्यक्ति का चेहरा नहीं आ रहा।"
"ये काम तुम्हारे किसी कम्पटीटर का ही हो सकता है।" सक्सेना ने कहा__"ये एक ब्यौसायिक मामला है अजय। ब्यौसाय से जुड़े तुम्हारे किसी कम्पटीटर ने ही इस काम को अंजाम दिया हो सकता है, जिनके बारे में फिलहाल तुम ठीक से सोच नहीं पा रहे हो। इस लिए अच्छी तरह सोचो कि ये किसने किया हो सकता है?"

"मुझे तो कुछ और ही लगता है सक्सेना।" अजय सिंह ने सोचपूर्ण भाव से कहा__"ये काम मेरे किसी कम्पटीटर का भी नहीं है क्योकि इन सबसे मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" सक्सेना चौंका__"अगर ये सब तुम्हारे किसी कम्पटीटर का नहीं है तो फिर किसका है? कहीं तुम इन सबके लिए मुझे तो नहीं जिम्मेदार ठहरा रहे हो?"

"हाॅ ये भी हो सकता है सक्सेना।" अजय सिंह ने सपाट लहजे में कहा__"इस सब में सबसे पहले उॅगली तो तुम पर ही उठेगी। आख़िरकार तुम मेरे बिजनेस पाटनर हो"

"क्या मेरे बारे में तुम ऐसा सोचते हो कि मैं अपने घनिष्ठ मित्र के साथ ऐसा नीच काम करूॅगा?" सक्सेना ने कहा__"तुम मेरे बारे में अच्छी तरह जानते हो अजय कि मैं ऐसा किसी के भी साथ नहीं कर सकता। मेरी फितरत इस तरह किसी को धोखा देने की नहीं है।"

"रुपये पैसे के लिए कोई भी ब्यक्ति किसी के भी साथ कुछ भी कर सकता है सक्सेना।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा__"मैं तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं लगा रहा लेकिन इस तरह का सवाल तो खड़ा होगा ही। कानून का कोई भी नुमाइंदा तुमसे ये सवाल कर सकता है कि तुम अचानक ही अजय सिंह से पार्टनशिप तोड़ कर तथा अपना हिसाब किताब करके हमेशा के लिए विदेश क्यों जा रहे हो जबकि हाल ही में अजय सिंह के साथ ऐसा संगीन वाक्या हो गया?"

"तुम तो मुझ पर साफ साफ इल्जाम लगाते हुए कानून के लपेटे में डालने की बात कर रहे हो अजय सिंह।" सक्सेना दुखी भाव से बोला__"जबकि भगवान जानता है कि मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया।"

"भगवान तो सबके विषय में सब जानता है सक्सेना।" अजय सिंह ने कहा__"लेकिन इंसान नहीं जानता। इंसान तो वही जानता है जो उसे या तो नज़र आता है या फिर जो समझ आता है। आज जो हालात बने हैं उससे साफ तौर पर यही समझ आता है कि ये सब तुम्हारे अलावा दूसरा कौन और क्यों कर सकता है भला?"

अरविन्द सक्सेना मूर्खों की तरह देखता रह गया अजय सिंह को। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कि वह अभी अपने सिर के बाल नोंचने लगेगा।

"मुझे समझ नहीं आ रहा अजय सिंह कि मैं तुम्हें कैसे इस बात का यकीन दिलाऊॅ?" सक्सेना असहाय भाव से बोला__"कि ये सब मैं करने के बारे में सोच तक नहीं सकता। तुम जानते हो हम दोनो ऐसे हैं कि एक दूसरे का सब कुछ जानते हैं। हम दोनों के संबंध तो ऐसे हैं कि हम अपनी अपनी बीवियों को भी आपस में बाॅट लेते हैं। क्या कोई इतना भी घनिष्ठ मित्र हो सकता है किसी का? जिसके साथ ऐसे संबंध हों वो भला अपने दोस्त का इतना बड़ा अहित कैसे कर देगा यार?"

"तुम तो यार एक दम से सीरियस ही हो गए सक्सेना।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा__"मैं तो बस एक तर्कसंगत बात कह रहा था कि इस वाक्ये के बाद किसी भी ब्यक्ति के मन में सबसे पहले यही विचार उठेगा जो अभी मैने तर्क के द्वारा कहा था।"

"तुम मुझे जान से मार दो अजय सिंह मुझे ज़रा भी फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन ऐसे इल्जाम लगा कर मारोगे तो मैं मर कर भी कहीं चैन नहीं पाऊॅगा।" सक्सेना ने कहा।

"छोड़ो इस बात को और ये बताओ कि विदेश कब जा रहे हो?" अजय सिंह ने पूछा।
"दो दिन बाद।" सक्सेना ने कहा__"कल तक यहाॅ के सारे करोबार का रुपया मेरे एकाउंट में आ जाएगा और परसों यहाॅ से निकल जाऊॅगा। लेकिन.....।"

"लेकिन..??" अजय सिंह ने पूछा।
"लेकिन उससे पहले मैं चाहता हूॅ कि।" सक्सेना ने कहा__"हम लोगों का एक शानदार प्रोग्राम हो जाए।"

"जाने से पहले मेरी बीवी के मजे लेना चाहते हो।" अजय सिंह हॅसा।
"हाॅ तो बदले में तुम्हें भी तो मेरी बीवी से मजे लेना है।" सक्सेना ने भी हॅसते हुए कहा__"और वैसे भी मेरी बीवी तो रात दिन तुम्हारा ही नाम जपती रहती है। पता नहीं क्या जादू कर दिया है तुमने? साली मुझे बड़ी मुश्किल से हाॅथ लगाने देती है।"

"अच्छा ऐसा क्या?" अजय सिंह जोरों से हॅसा।
"हाॅ यार।" सक्सेना बोला__"और पता है विदेश जाने के लिए तो मान ही नहीं रही थी वो। जब मैने उसे ये कहा कि तुम हर महीने हमसे मिलने तथा मस्ती करने आओगे तब कहीं जाकर मानी थी वो।"

"मतलब कि अब मुझे हर महीने तुम्हारे पास इस सबके लिए आना पड़ेगा?"अजय सिंह मुस्कुराया।
"हाॅ बिलकुल।" सक्सेना ने कहा__"और वो भी भाभी जी के साथ।"

"सोचना पड़ेगा सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"और वैसे भी अभी मेरे पास सिर्फ एक ही अहम काम है, और वो है उन लोगों का पता लगाना जिनकी वजह से आज मुझे करोड़ों का नुकसान हुआ है तथा मेरी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ी हैं।"

"हाॅ ये तो है।" सक्सेना ने कहा__"अगर कभी मेरी ज़रूरत पड़े तो बेझिझक याद करना अजय, तुम्हारे एक बार के कहने पर मैं तुम्हारे पास आ जाऊॅगा।"

"ठीक है सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"कल तक मैं तुम्हारा हिसाब किताब करके तुम्हारे एकाउंट में पैसे डाल दूॅगा।"

ऐसी ही कुछ और औपचारिक बातों के बाद सक्सेना वहाॅ से चला गया। जबकि अजय सिंह ये न देख सका कि जाते समय सक्सेना के होठों पर कितनी जानदार मुस्कान थी?


अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,
Nice update
अपडेट.............《 10 》

अब तक.....


"सोचना पड़ेगा सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"और वैसे भी अभी मेरे पास सिर्फ एक ही अहम काम है, और वो है उन लोगों का पता लगाना जिनकी वजह से आज मुझे करोड़ों का नुकसान हुआ है तथा मेरी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ी हैं।"

"हाॅ ये तो है।" सक्सेना ने कहा__"अगर कभी मेरी ज़रूरत पड़े तो बेझिझक याद करना अजय, तुम्हारे एक बार के कहने पर मैं तुम्हारे पास आ जाऊॅगा।"

"ठीक है सक्सेना।" अजय सिंह बोला__"कल तक मैं तुम्हारा हिसाब किताब करके तुम्हारे एकाउंट में पैसे डाल दूॅगा।"

ऐसी ही कुछ और औपचारिक बातों के बाद सक्सेना वहाॅ से चला गया। जबकि अजय सिंह ये न देख सका कि जाते समय सक्सेना के होठों पर कितनी जानदार मुस्कान थी?


अब आगे......

"ये सब क्या है डैड?" शिवा ड्राइंग रूम में दाखिल होते हुए तथा उत्तेजित से स्वर में बोला__"देखिए आज के अख़बार में क्या ख़बर छपी है?"
"क्या हुआ बेटे?" सोफे पर बैठे अजय सिंह ने सहसा चौंकते हुए पूॅछा__"कैसी ख़बर की बात कर रहे हो तुम?"

"आप खुद ही देख लीजिए डैड।" शिवा ने अपने हाॅथ में लिए अख़बार को अपने पिता की तरफ एक झटके से बढ़ाते हुए कहा__"देख लीजिए कि किस तरह अख़बार वालों ने आपकी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ाई हैं?"

अजय सिंह शिवा के हाॅथ से अख़बार लेने के बाद उस पर नज़रें दौड़ाई। अख़बार के फ्रंट पेज पर ही बड़े अच्छरों में छपी हेडलाइन को पढ़ कर उसके होश उड़ गए। अख़बार में छपी हेडलाइन कुछ इस प्रकार की थी।


"मशहूर बिजनेसमैन अजय सिंह किसी अग्यात शख्स द्वारा धोखे का शिकार"
हल्दीपुर(गुनगुन): शहर के मशहूर बिजनेसमैन अजय सिंह को किसी अग्यात ब्यक्ति द्वारा करोड़ों रुपये का चूना लगाने का संगीन मामला सामने आया है। प्राप्त सूत्रों के अनुसार ये जानकारी मिली है कि मशहूर बिजनेसमैन अजय सिंह किसी विदेशी ब्यक्ति के साथ पिछले महीने करोड़ों रुपये की डील की थी। उस डील के तहत अजय सिंह द्वारा विदेशी ब्यक्ति को करोड़ों रुपये के बेहतरीन कपड़ों के थान सौंपे जाने थे। किन्तु पिछले दिन ही शाम को अजय सिंह के पीए को ये पता चला कि उनका जिस विदेशी ब्यक्ति के साथ करोड़ों का सौदा हुआ था वो दरअसल सिरे से ही फर्ज़ी था। कहने का मतलब ये कि विदेशी ब्यक्ति ने करोड़ों के कपड़े तैयार करवाए और उन कपड़ों के थान को लेने की बजाय बिना कुछ बताए लापता हो गया। मिली जानकारी के अनुसार विदेशी ब्यक्ति ने खुद को दूसरे देश का मशहूर बिजनेसमैन बताया जिसके सबूत के तौर पर खुद अजय सिंह द्वारा उस विदेशी ब्यक्ति की कंपनी प्रोफाइल भी देखी गई थी। विश्वस्त सूत्रों द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार अजय सिंह को करोड़ों रूपये के धोखे का पता तब चला जब उनकी फैक्ट्री में तैयार कपड़ों का करोड़ों रुपये के थान जिनमें और भी बहुत सी चीज़ें शामिल थी डील के लिए तैयार था। किन्तु उस सब को लेने वाला विदेशी नदारद था। उसके साथ कंटैक्ट करने की सारी कोशिशें जब नाकाम हो गईं और जब दो दिन तक भी विदेशी डीलर का पता न चला तो तब अजय सिंह को समझ आया कि उनके साथ कोई गेम खेल गया। मगर अब हो भी क्या सकता था? मिली जानकारी के अनुसार अजय सिंह की फैक्ट्री से तैयार करोड़ों की थान का अब कोई लेनदार न होने की वजह से भारी नुकसान हुआ है। ये विचार करने योग्य बात है कि विदेशी बिजनेसमैन के साथ ब्यौसायिक संबंध बनाने के चक्कर में अजय सिंह जैसे पढ़े लिखे व सुलझे हुए बिजनेसमैन बिना सोचे समझे करोड़ों की डील करके खुद का नुकसान कर बैठे। कदाचित् बाहरी मुल्कों से ब्यौसायिक संबंध बनाने के लालच में ही इतने बड़े धोखे और नुकसान के भागीदार बन बैठे।

अख़बार में छपी इस ख़बर को पढ़कर अजय सिंह का दिमाग़ सुन्न सा पड़ गया था। उसे समझ नहीं आया कि ये बात अख़बार वालों को किसने बताया हो सकता है? काफी देर तक अजय सिंह के दिमाग के घोड़े इस बात की खोज में भटकते रहे।

"किस सोच में पड़ गए डैड?" सहसा शिवा ने पिता की तरफ गौर से देखते हुए कहा__"और ये सब आख़िर है क्या ? अख़बार में छपी इस ख़बर का क्या मतलब है डैड??


अजय सिंह को समझ न आया कि अपने बेटे को क्या जवाब दे। फिर पता नहीं जाने क्या सोच कर उसने अपना मोबाइल निकाला और किसी को फोन लगा कर मोबाइल कान से लगा लिया।

कुछ देर कानों में रिंग जाने की आवाज़ सुनाई देती रही फिर उधर से काल रिसीव की गई।

"ये सब क्या है दीनदयाल?" काल रिसीव होते ही अजय सिंह लगभग आवेश में बोला__"आज के अख़बार में हमारे संबंध में ये क्या बकवास छापा है अख़बार वालों ने??"
"--------------"उधर से जाने क्या कहा गया।
"हम कुछ नहीं सुनना चाहते।" अजय सिंह पूर्वत आवेश में ही बोला__"आख़िर इस बात की ख़बर अख़बार वालों को किसने दी?"
"_________________"
"अरे तो पता लगाओ दीनदयाल।" अजय सिंह ने कहा__"अख़बार वालों को क्या कोई ख़्वाब चमका है जो उन्हें इस बारे में ये सब पता चला?"

"_______________"
"वही तो कह रहे हैं हम दीन के दयाल।" अजय सिंह बोला__"अख़बार वालों को ये ख़बर देने वाला वही है जिसने इस साजिश को रच कर इसे अंजाम दिया है। तुम जल्द से जल्द पता लगाओ कि कौन है ये नामुराद जो हमारी इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ाने पर तुला हुआ है?"

"_______________"
"हम कुछ नहीं जानते दीनदयाल।" अजय सिंह इस बार गुर्राया__"24 घंटे के अंदर उस शख्स को ढूॅढ़ कर हमारे सामने हाज़िर करो। वर्ना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।"

इतना कहने के बाद अजय सिंह ने फोन काट कर मोबाइल को सोफे पर लगभग फेंक दिया था। इस वक्त अजय सिंह के चेहरे पर क्रोध और अपमान का मिला जुला भाव गर्दिश करता नज़र आ रहा था।

"क्या बात है डैड?" शिवा अपने पिता के चेहरे के भावों को गौर से देखते हुए बोला__"आप कुछ परेशान से लग रहे है?"
"अभी हम किसी से बात करने के मूड में नहीं हैं बेटे।" अजय सिंह ने अजीब लहजे मे कहा__"इस लिए तुम जाओ यहाॅ से, हमें कुछ देर अकेले में रहना है।"

शिवा पूछना तो बहुत कुछ चाहता था किन्तु अपने पिता का खराब मूड देख कर चुपचाप वहाॅ से अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।

"बेटे को तो टाल दिया आपने।" सहसा प्रतिमा ने ड्राइंगरूम में आते हुए कहा__"मगर मुझे इस तरह टाल नहीं सकते आप।"

"प्रतिमा प्लीज़।" अजय सिंह ने झ़ुझलाते हुए कहा__"मैं इस वक्त किसी से कोई बात नहीं करना चाहता।"
"ये तो कोई बात न हुई।" प्रतिमा ने कहा__"किसी बात को लेकर अगर आप परेशान हैं तो आपको देखकर हम सब भी परेशान हो जाएंगे। इस लिए जो भी बात है बता दीजिए कम से कम मन को शान्ति तो मिलेगी।"

अजय सिंह जानता था कि प्रतिमा बात को बिना जाने नहीं मानेगी, इस लिए उसने उसे सबकुछ बता देना ही बेहतर समझा। एक गहरी साॅस लेकर उसने प्रतिमा को सारी बातें बता दी जो पिछले महीने से अब तक उसके साथ हुआ था। सब कुछ जानने के बाद प्रतिमा भी गंभीर हो गई।

"लेकिन आप ये कैसे पता लगाएंगे कि किसने आपके साथ ये सब किया है?" प्रतिमा ने कहा__"जबकि आपके पास उसके बारे में कोई सबूत नहीं है। अगर आप ये समझते हैं कि उनके चेहरे की बिना पर उन्हें खोजेंगे तो तब भी आप उन्हें नहीं खोज पाएंगे।"

"तुम ऐसा कैसे कह सकती हो भला?" अजय सिंह चौंकते हुए बोला था।
"सीधी सी बात है।" प्रतिमा ने कहा__"वो जो भी थे आपसे या आपके पीए से हमेशा फाॅरेनर की वेशभूसा या शक्ल में ही मिले थे। मतलब साफ है कि वो लोग शुरू से ही आपसे या आपके पीए से अपनी असलियत छुपाना चाह रहे थे, ये भी कि आपको तथा आपके पीए को उनके बारे में ज़रा सा भी किसी प्रकार का शक न हो। आज ये आलम है कि वो अपने मकसद में उसी तरह कामयाब हो कर गायब हो गए जैसा उन्होंने कर गुज़रने का प्लान बनाया रहा होगा।"

अजय सिंह अपनी बीवी की इस बात को सुन कर अवाक् सा रह गया। प्रतिमा को इस तरह देखने लगा था वह जैसे प्रतिमा की गर्दन अपने धड़ से अलग हो कर हवा में कत्थक करने लगी हो।

"क्या मैंने कुछ ग़लत कहा डियर?" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"कभी कभी तुम्हारा दिमाग़ भी किसी सफल जासूस की तरह चलता है।" अजय सिंह बोला__"यकीनन तुम्हारा ये तर्क अपनी जगह एक दम दुरुस्त है। तुम्हारी बातों में वजन है, और अगर तुम्हारी इस बात के अनुसार सोचा जाए तो अब हमारे लिए ये बेहद मुश्किल काम है उन लोगों को ढूॅढ़ पाना।"

"वकालत की पढ़ाई आपने ही नहीं बल्कि मैंने भी की है जनाब।" प्रतिमा ने हॅस कर कहा__"ये अलग बात है कि मैंने इस पढ़ाई के बाद वकील बन कर किसी कोर्ट में किसी के पक्ष में वकालत नहीं की।"

"अच्छा ही किया न।" अजय सिंह ने भी हॅस कर कहा__"वर्ना बड़े बड़े वकीलों की छुट्टी हो जाती।"

"ऐसा आप कह सकते हैं।" प्रतिमा ने अर्थपूर्ण लहजे में कहा__"क्योंकि आपको ही अपनी छुट्टी हो जाने का अंदेशा हुआ नज़र आया है।"

"तुम ऐसा सोचती हो तो चलो ऐसा ही सही।" अजय सिंह बोला__"लेकिन इस बारे में अब तुम्हारा क्या खयाल है, मेरा मतलब कि अब हम कैसे उन लोगों का पता लगाएंगे?"

"सब कुछ बहुत सोच समझ कर पहले से ही प्लान बना लिया था उन लोगों ने।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा__"इस लिए इस बारे में पक्के तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता कि वो हमारे द्वारा पता कर ही लिए जाएंगे।"

अजय सिंह का खयाल भी यही था इस लिए कुछ बोला नहीं वह।जबकि,,,,

"वैसे आपका अपने उस भतीजे के बारे में क्या खयाल है?" प्रतिमा ने कहा__"हो सकता है ये सब उसी का किया धरा हो?"

"नहीं यार।" अजय सिंह कह उठा__"उससे इस सब की उम्मीद मैं नहीं करता। क्योंकि जिस तरह से सोच समझ कर तथा प्लान बना कर हमसे धोखा किया गया है वैसा करना विराज के बस का रोग़ नहीं है। वो साला तो किसी होटल या ढाबे में अपने साथ साथ अपनी माॅ बहन को भी कप प्लेट धोने के काम में लगा दिया होगा। इतना कुछ करने के लिए दिमाग़ चाहिए और फाॅरेनर लुक पाने के लिए ढेर सारा पैसा जो उसके पास होने का कोई चान्स ही नहीं है। तुम बेवजह ही इस सबके पीछे उसको ही जिम्मेदार ठहरा रही हो प्रतिमा।"

"हमें हर पहलू पर गौर करना चाहिए डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने कहा__"एक अच्छा इन्वेस्टिगेटर वही होता है जो हर पहलू के बारे में सोच विचार करे। ज़रा सोचिए...इस तरह की घटनाएं तभी से शुरू हुईं हैं जबसे विराज अपने साथ अपनी माॅ बहन को लेकर यहाॅ से मुम्बई गया है। इसके पहले आज तक कभी भी ऐसी कोई बात नहीं हुई। उसका हमारे बेटे को बुरी तरह मार पीटकर यहाॅ से जाना, ट्रेन से अपनी माॅ बहन सहित रहस्यमय तरीके से गायब हो जाना, और अब ये.....आपका किसी के द्वारा इस तरह धोखा खा कर नुकसान हो जाना। ये तो आपको भी पता है कि कोई दूसरा आपके साथ ऐसा नहीं कर सकता फिर बचता कौन है??"

अजय सिंह के दिलो दिमाग़ में अचानक ही मानो धमाके से होने लगे। प्रतिमा द्वारा कहा गया एक एक शब्द उसके मनमस्तिष्क पर गहरी चोंट कर रहा था। जबकि....

"वर्तमान समय में अगर कोई आपके खिलाफ खड़ा हो सकता है तो वो है विराज।" प्रतिमा गंभीरता से कह रही थी__"आपसे जिसे सबसे ज्यादा तक़लीफ है तो वो है विराज। बात भी सही है डियर हस्बैण्ड...हमने उनके साथ क्या क्या बुरा नहीं किया। हर दुख दिये उन्हें, यहां तक कि हमारी वजह से आज वो अपने ही घर से बेघर हैं। ख़ैर...इन सब बातों के कहने का मतलब यही है कि मौजूदा हालात में इस सबके पीछे अगर किसी पर सबसे ज्यादा उॅगली उठती है तो सिर्फ विराज पर।"

अजय सिंह के पास कहने के लिए जैसे कुछ था ही नहीं, जबकि उसकी खामोशी और उसके चेहरे पर तैरते हज़ारों भावों को बारीकी से परखते हुए प्रतिमा ने पुन: कहा__"आप हमेशा इस बात पर ज़ोर देते हैं कि विराज मुम्बई में किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धोता होगा और अब अपनी माॅ बहन को भी इसी काम में लगा दिया होगा। लेकिन क्या आपके पास अपकी इस बात का ठोस सबूत है? क्या आपने कभी अपनी आॅखों से देखा है कि विराज मुम्बई में किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धोने का काम करता है...नहीं न?? बल्कि ये सिर्फ आपकी अपनी सोच है जो ग़लत भी हो सकती है।"

"तुमने तो यार मेरा ब्रेन वाश ही कर दिया।" अजय सिंह गहरी साॅस ली, उसकी आॅखों में अपनी पत्नी के प्रति प्रसंसा के भाव थे__"यकीनन तुममें एक अच्छे इन्वेस्टिगेटर होने के गुण हैं। तो तुम्हारे मतानुसार ये सब जो कुछ हुआ है उसका जिम्मेदार सिर्फ विराज है?"

"मै ये नहीं कहती डियर हस्बैण्ड कि ये सब विराज ने ही किया है।" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा__"बल्कि मैं तो सिर्फ संभावना ब्यक्त कर रही हूॅ कि किसने क्या किया हो सकता है। पक्के तौर पर तो तभी कहा जाता है न जब हमारे पास किसी बात का ठोस व पुख्ता सबूत हो??"

"आई एग्री विद यू माई डियर।" अजय ने मुस्कुराते हुए कहा__"तो हम अब इस थ्योरी के साथ चलेंगे कि ये सब विराज ने किया हो सकता है। लेकिन अब सवाल ये है कि...कैसे?? इतना कुछ वो कैसे कर सकता है भला जबकि इतना कुछ कर गुजरने की काबिलियत उसमे है ही नहीं इतना तो मुझे यकीन है?"

"आपका ये यकीन बेमतलब भी तो हो सकता है डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने तर्क किया__"क्योकि आपके पास अपने इस यकीन की भी ठोस वजह नहीं है ये मुझे पता है।"

"अब बस भी करो यार।" अजय सिंह ने बुरा सा मुॅह बनाया__"आज क्या मूॅग की दाल में भीमसेनी काजल मिला कर खाया है तुमने? मेरी हर बात की हर विचार की धज्जियाॅ उड़ाए जा रही हो तुम।"

"मेरा ऐसा करने का कोई इरादा नहीं था डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा मुस्कुराई__"मैने तो बस अपने विचार और तर्क पेश किये हैं, और अपने डियर हस्बैण्ड को सही राह की तरफ जाने का मार्ग बताने की कोशिश की है।"

अजय सिंह को प्रतिमा पर बेहद प्यार आया, और उसने आगे बढ़ कर अपनी पत्नी को अपनी बाॅहों मे भर लिया। कुछ पल उसकी आॅखों में झाॅकने के बाद उसने झुक कर प्रतिमा के रस भरे अधरों को अपने होठों के बीच भर कर उन्हें चूमने चूसने लगा।

प्रतिमा के जिस्म में आनंद की मीठी मीठी लहरें तैरने लगी। उसने भी अपने दोनो हाॅथ अजय सिंह के गले में डालकर इन होठों के चुंबन तथा चुसाई का भरपूर आनंद लेने लगी। वे दोनो भूल गये कि इस वक्त वे अपने बेडरूम में नहीं बल्कि ड्राइंगरूम में हैं जहाॅ पर किसी के भी द्वारा देख लिए जाने का खतरा था।

अजय सिंह बुरी तरह प्रतिमा के होठों को चूस रहा था। उसका बाॅया हाॅथ सरकते हुए सीथा प्रतिमा के दाॅएं बोबे पर आकर बड़े आकार के बोबे को सख्ती से अपनी मुट्ठी में भर कर मसलना शुरू कर दिया। अपनी चूॅची को इस तरह मसले जाने से प्रतिमा के मुॅह से एक दर्दयुक्त किन्तु आनंद से भरी हुई आह निकल गई जो अजय सिंह के होठों के बीच ही दब कर रह गई। ये दोनों जैसे सब कुछ भूल चुके थे, ये भी कि अपने कमरे से ड्राइंगरूम की तरफ आता हुआ उनका बेटा शिवा अपने माॅम डैड को इस हालत में देख कर भी वापस नहीं पलटा था बल्कि वहीं छुपकर इस नज़ारे का मज़ा लेने लगा था। उसके होठों पर बेशर्मी से भरी मुस्कान तैरने लगी थी तथा साथ ही अपने दाएॅ हाथ से पैन्ट के ऊपर से ही सही मगर अपने लौड़े को मसले भी जा रहा था।

........



दोस्तो आपके सामने अपडेट हाज़िर है,,,,,

आप सबकी बेक़रारी को देख कर मैंने आज अपडेट लिखने की कोशिश की, ये अलग बात है कि बार बार नींद की वजह से परेशान भी होना पड़ा। मगर आपके प्यार के लिए कुछ तो करना ही था आज।

आप सबकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा,,,,,
Nice update
 

drx prince

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अपडेट........... 《 11 》

अब तक,,,,,,,

अजय सिंह बुरी तरह प्रतिमा के होठों को चूस रहा था। उसका बाॅया हाॅथ सरकते हुए सीथा प्रतिमा के दाॅएं बोबे पर आकर बड़े आकार के बोबे को सख्ती से अपनी मुट्ठी में भर कर मसलना शुरू कर दिया। अपनी चूॅची को इस तरह मसले जाने से प्रतिमा के मुॅह से एक दर्दयुक्त किन्तु आनंद से भरी हुई आह निकल गई जो अजय सिंह के होठों के बीच ही दब कर रह गई। ये दोनों जैसे सब कुछ भूल चुके थे, ये भी कि अपने कमरे से ड्राइंगरूम की तरफ आता हुआ उनका बेटा शिवा अपने माॅम डैड को इस हालत में देख कर भी वापस नहीं पलटा था बल्कि वहीं छुपकर इस नज़ारे का मज़ा लेने लगा था। उसके होठों पर बेशर्मी से भरी मुस्कान तैरने लगी थी तथा साथ ही अपने दाएॅ हाथ से पैन्ट के ऊपर से ही सही मगर अपने लौड़े को मसले भी जा रहा था।


अब आगे,,,,,,,

"तुम दोनों ने बहुत ही बेहतर तरीके से इस काम को अंजाम दिया है मेरे बच्चो।" ड्राइंगरूम में सोफे पर बैठे जगदीश ओबराय ने मुस्कुराते हुए कहा__"अजय सिंह सोच भी नहीं सकता है कि उसके साथ ये खेल खेलने वाले वो दो फाॅरेनर कौन थे?"

"खेल ऐसा ही होगा अंकल जो किसी को समझ में ही न आए।" विराज ने प्रभावशाली स्वर में कहा__"और अजय सिंह के साथ अब वो होगा जो उसने सोचा भी न होगा।"

"मैं तो बेवजह ही तुम्हें इसके लिए किसी ऐक्टर या माॅडल का सजेशन दे रहा था बेटे।" जगदीश ने कहा__"मुझे लगता था कि इस काम के लिए एक ऐक्टर ही बेहतर हो सकता है क्योकि उन्हें हर तरह के किरदार निभाने का तरीका और अनुभव होता है। जबकि तुमने खुद ही इस काम को करने का ज़ोर दिया।"

"मेरे ज़ोर देने की वजह आप अच्छी तरह जानते हैं अंकल।" विराज ने कहा__"आप जानते हैं कि ये जंग मेरी है और इस जंग में मुझे ही हिस्सा लेकर इसे इसके अंजाम तक पहुचाना है। रही बात फाॅरेनर बन कर अजय सिंह से खेल खेलने की तो इसमें फाॅरेनर के रोल के लिए किसी ऐक्टर की ज़रूरत ही नहीं थी, हाॅ फाॅरेनर लुक की आवश्यकता ज़रूर थी तो उसके लिए आपने मेकअप आर्टिस्ट को बुलवाया ही था। उसने मुझे स्टीव जाॅनसन और गुड़िया(निधि) को एॅजिला जाॅनसन का मेकअप करके लुक दे दिया। उसके बाद आपने देखा ही कि कैसे हम दोनों भाई बहन ने अजय सिंह के साथ ये खेल खेला। मुझे गुड़िया(निधि) की फिक्र ज़रूर थी लेकिन उसने भी अपना एॅजिला जाॅनसन का रोल बेहतरीन तरीके से अदा किया। हलाकि मैं ये नहीं चाहता था कि एॅजिला जाॅनसन के रूप में मेरी पत्नी का किरदार गुड़िया निभाए क्योंकि वो मेरी बहन है, लेकिन गुड़िया की ही ज़िद थी कि ये किरदार वही निभाएगी। ख़ैर जो हुआ अच्छे तरीके से हो गया।"

"अजय सिंह उन दोनो फाॅरेनर को ढूॅढ़ने की जी तोड़ कोशिश कर रहा होगा।" जगदीश ने कहा__"मगर ढूॅढ़ नहीं पाएगा। ढूॅढ़ भी कैसे पाएगा, जबकि स्टीव जाॅनसन और एॅजिला जाॅनसन नाम के इन लोगों का कहीं कोई वजूद ही नहीं है। ये बात तो वो सोच ही नहीं सकता कि जिन दो फाॅरेनर से वह मिला था वो कोई और नहीं बल्कि उसके ही अपने हैं जिनके साथ उसने बुरा करने में कोई कसर नहीं छोंड़ी।"

"हर चीज़ का हिसाब लूॅगा अंकल हर चीज़ का।" विराज ने कहा__"ये तो अभी ट्रेलर है, अभी आगे खुलकर खेल होगा।"

"अरविन्द सक्सेना को इस खेल में कैसे शामिल किया तुमने?" जगदीश के मन में ये सवाल पहले से था__"वो तो अजय सिंह का ही बिजनेस पार्टनर है न?"

"सक्सेना को इस खेल में शामिल नहीं किया अंकल।" विराज जाने क्या सोच कर मुस्कुराया था बोला__"बल्कि उसे अजय सिंह से अलग हो जाने के लिए मजबूर किया था मैंने।"

"क्या मतलब?" जगदीश ने चौंकते हुए कहा__"और वह तुम्हारे द्वारा भला कैसे इस सबके लिए मजबूर हो गया??"

"किसी की कमज़ोर नस अगर आपके पास आ जाए तो आप उससे कुछ भी करा सकते हैं अंकल।" विराज ने कहा__"सक्सेना के साथ वही मामला हुआ है।"


"बात कुछ समझ में नहीं आई बेटे।" जगदीश ने उलझन भरे भाव से कहा__"ज़रा बात को स्पष्ट करके बताओ।"

"दरअसल बात ये है अंकल कि अजय सिंह और सक्सेना बिजनेस पार्टनर के अलावा भी बहुत कुछ हैं।" विराज ने कहा__"आप यूॅ समझिए कि ये दोनो हर चीज़ मिल बाॅटकर खाते पीते हैं। फिर वो चीज़ चाहे कितनी ही पर्शनल क्यों न हो। अगर स्पष्ट रूप से कहा जाए तो ये कि उन दोनों में उस तरह का संबंध है जिसे ये समाज अनैतिक करार देता है। ये दोनों अपनी खुशी और आनंद को पाने के लिए एक दूसरे की बीवियों के साथ जिस्मानी संबंध बनाते हैं।"

"क् क्या?????" जगदीश ओबराय ये बात सुनकर इस तरह उछला था जैसे कि जिस सोफे पर वह बैठा था वो अचानक ही गर्म शोलों में तब्दील हो गया हो, बोला__"ये तुम क्या कह रहे हो बेटे?"

"यही सच है अंकल।" विराज ने ज़ोर दे कर कहा__"अब आप समझ सकते हैं कि अजय सिंह किस हद तक कमीना इंसान है।"

जगदीश ओबराय मुह और आखें फाड़े देखता रह गया था विराज को। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अजय सिंह इस हद तक गिर सकता है। जबकि,,,,

"मेरे पास सक्सेना की यही कमज़ोरी थी अंकल।" विराज कह रहा था__"मैंने बड़ी मुश्किल से किसी के द्वारा सक्सेना के कुछ ऐसे फोटोग्राफ्स हाॅसिल कर लिए थे जिनमें सक्सेना की अपनी बीवी किसी गैर के साथ सेक्स कर रही थी और सक्सेना एक दूसरे आदमी द्वारा सेक्स(गाॅड मरवा रहा था) कर रहा था। इन फोटोग्राफ्स के आथार पर ही मैंने सक्सेना को मजबूर किया कि वो अजय सिंह से अलग हो जाए वर्ना उसके इन फोटोग्राफ्स को सार्वजनिक कर दिया जाएगा। फिर क्या था, सक्सेना को अजय सिंह से अलग होना पड़ा। अजय सिंह तो ये भी नहीं जानता कि सक्सेना के ही द्वारा अभी और क्या होने वाला है?"

"क्या मतलब?" जगदीश चौंका__"अभी और क्या करवा रहे हो तुम सक्सेना से?"
"आपको भी पता चल जाएगा अंकल।" विराज ने मुस्कुराते हुए कहा__"बस इंतज़ार कीजिए थोड़ा।"

"कम से कम मुझे बताने में तो तुम्हें कोई हर्ज़ नहीं होना चाहिए।" जगदीश ने हॅस कर कहा।
"इन बातों में मज़ा तभी आता है अंकल जब वो चीज़ हो जाए जो हम चाहते हैं।" विराज ने कहा__"और वैसे भी सस्पेन्स नाम की चीज़ कुछ समय तक तो रहना ही चाहिए।"

"तुम और तुम्हारी बातें।" जगदीश ने मुस्कुरा कर कहा__"इतना जल्दी समझ में कहाॅ आती हैं? ख़ैर तुम्हारे लिए एक ख़बर है हमारे पास।"

"कैसी ख़बर अंकल?" विराज ने पूॅछा।
"अजय सिंह की बड़ी बेटी रितू अब पुलिस आफिसर बन गई है।"

"ये तो अच्छी बात है न उनके लिए।" विराज ने कहा__"वैसे भी बहुत जल्द उन्हें नए पुलिस वालों से संबंध बनाना पड़ेगा जिससे उसके किसी काम में किसी तरह की रुकावट न हो सके।"

"जो भी हो।" जगदीश ने कहा__"मुझे पता चला है कि तुम्हारे दादा दादी का केस बहुत जल्द रितू अपने हाॅथ में लेने वाली है।"
"उससे कुछ नहीं होगा अंकल।" विराज के चेहरे पर गंभीरत थी__"अजय सिंह अपनी पहुॅच और पावर से इस केस को इसके अंजाम तक पहुॅचने ही नहीं देगा। रितू दीदी अपने सीनियर के आदेश के खिलाफ कुछ नहीं कर सकती।"

"देखते हैं क्या होता है?" जगदीश ने कहा__"ख़ैर छोंड़ो ये सब...अभी आफिस जा रहे हो क्या?"
"हाॅ कुछ ज़रूरी काम भी है।" विराज कुछ सोचते हुए बोला।

जगदीश ने बड़े गौर से विराज के चेहरे की तरफ देखा, जिसमें कभी कभी पीड़ा के भाव आते और लुप्त होते नज़र आ रहे थे। विराज ने जगदीश को जब इस तरह अपनी तरफ देखते पाया तो कह उठा__"ऐसे क्यों देख रहे हैं अंकल?"

"देख रहा हूॅ कि कितनी सफाई से तुम अपने उस दर्द को छुपा लेते हो जो तुम्हारे दिल में है।" जगदीश ने कहा__"वो दर्द पारिवार से संबंधित नहीं है वो तो किसी से बेपनाह मोहब्बत करने वाला है।"

"ऐसा कुछ नहीं है अंकल।" विराज ने नजरें चुरा कर कहा और एक झटके से सोफे से उठ कर खड़ा हो गया।

"आखें सब बयां कर देती हैं बेटे।" जगदीश ने कहा__"हमने बहुत दुनियाॅ देखी है, इतना तो हम महसूस कर सकते हैं कि सामने वाले के दिल में क्या है? और वैसे भी मोहब्बत एक ऐसी चीज़ होती है जो हर हाल में अपने होने का सबूत देती है।"

"पता नहीं आप क्या कह रहे हैं अंकल?" विराज ने कहा__"चलता हूॅ मैं।"

विराज वहाॅ से बाहर निकल गया, जबकि जगदीश वहीं बैठा रहा आॅखों में आॅसुओं के कतरे लिए।
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"आइये दीदी।" करुणा ने दरवाज़े से हटकर प्रतिमा को अंदर की तरफ आने का रास्ता देते हुए कहा__"मैं कल आपका इंतज़ार कर रही थी लेकिन आप आई ही नहीं।"

"हाॅ वो कमर में दर्द था तो नहीं आ पाई।" प्रतिमा ने कहा और अंदर की तरफ आ कर ड्राइंगरूम में रखे सोफे पर बैठ गई, फिर करुणा की तरफ देख कर कहा__"अगर कोई ज़रूरी काम था तो तुम ही आ जाती मेरे पास। अब इतना दूर भी तो नहीं है कि तुम आ न सको।"

(आप सब दोस्तों को तो पता ही होगा कि इन लोगों का घर कैसा है? ये घर नहीं बल्कि हवेली थी जो विराज के पिता विजय सिंह ने बनवाई थी। आपने पढ़ा होगा कि हवेली तीनो भाइयों के हिस्से को ध्यान में रख कर बनवाई गई थी। जैसे तीन दो मंजिला विशाल घर को आपस में जोड़ दिया गया हो।)

"आप तो जानती हैं दीदी कि इन्हें(अभय सिंह बघेल) मेरे कहीं आने जाने से तक़लीफ होती है।" करुणा ने कहा__"और वैसे भी घर का इतना सारा काम हो जाता है कि उसी में सारा समय निकल जाता है।"

"मैंने तो अभय से जाने कितनी बार कहा है कि घर के काम के लिए एक दो नौकरानी रखवा दो।" प्रतिमा ने कहा__"मगर न वो मेरी सुनते हैं और न ही अपने बड़े भाई अजय की सुनते हैं। आख़िर हम कोई ग़ैर नहीं अपने ही तो हैं। भला क्या ज़रूरत है अभय को स्कूल में पढ़ाने की? माना कि सरकारी नौकरी है मगर इस नौकरी मिलता क्या है? अपना परिवार भी ढंग से नहीं चला सकते इस नौकरी के रुपये पैसे से। अजय ने कितनी बार कहा है कि अभय बिजनेस में उनका हाॅथ बॅटाए जिससे रुपये पैसे की कोई कमी न आए। मगर,,,,,

"जाने दीजिए दीदी।" करुणा ने बेचैनी से पहलू बदला__"आप तो जानती हैं कि वो इस नौकरी और इस नौकरी से मिलने वाली तनख्वाह से खुश हैं। मैंने भी तो उन्हें बहुत समझाया है मगर वो हमेशा की तरह मेरी बात पर मुझे नसीहतें देने लगते हैं कि 'मैं एक शिक्षक हूॅ, गुरू हूॅ.....स्कूल में बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर उनका उज्वल भविश्य बनाना मेरा फर्ज़ है। स्कूल के बच्चे हमारे देश का भविश्य हैं। और भी न जाने क्या क्या भाषण देने लगते हैं।"

"हाॅ जानती हूॅ मुझे भी कभी कभी जब मैं उससे बात करूॅगी तो इसी तरह भाषण देने लगते हैं।" प्रतिमा ने कहा__"दिव्या तो अभी अभय के साथ ही स्कूल में होगी न?"

"जी वो तो शाम को उनके साथ ही आएगी।" करुणा ने कहा__"और सुनाइए क्या हो गया था आपकी कमर को??"
"मत पूॅछो करुणा।" प्रतिमा ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा__"कल तो सारा बदन टूट रहा था लेकिन....हाय मज़ा भी बहुत आया था।"

"मतलब भाई साहब ने कल आपकी हालत बिगाड़ दी।" करुणा मुस्कुराई।
"और नहीं तो क्या।" प्रतिमा ने कहा__"पूरे चार राउण्ड में बुरी तरह रगड़े हैं मुझे।"

"अच्छा तो है न।" करुणा ने एकाएक कुछ उदास भाव से कहा__"आपको शान्ति तो मिल जाती है।"
"अभय से उसके इलाज के संबंध में बात किया कि नहीं तुमने?" प्रतिमा ने पूॅछा।

"वो नहीं मानते हैं दीदी।" करुणा ने अजीब भाव से कहा__"कहते हैं कि अब ज़रूरत ही क्या है? दो बच्चे तो हो ही गए हैं हमारे। अब इलाज़ की कोई ज़रूरत नहीं है।"

दोस्तो बात दरअसल ये है कि दो साल पहले अभय सिंह अपनी मोटर साइकिल (बुलेट जो विराज के पिता ने खरीद कर दी थी) से स्कूल जा रहा था, पता नहीं उसका ध्यान कहाॅ था, उसे पता ही नहीं चला और मोटर साइकिल सड़क से नीचे उतर गई। अभय सिंह कुछ कर न सका क्योंकि तब तक देर हो चुकी थी। भारी भरकम बुलेट के साथ लुढ़कते हुए अभय सिंह नीचे पहुॅच गया। ज़मीन से काफी ऊॅची सड़क थी। इस छोटे से एक्सीडेन्ट में अभय सिंह को काफी चोंटें लगी तथा दाहिना हाॅथ भी टूट गया। ख़ैर ये सब तो इलाज़ में ठीक हो जाना था किन्तु दो दिन बाद जब अभय सिंह अपनी पत्नी करुणा के साथ संभोग करना चाहा तो उसका लिंग ही न खड़ा हुआ। करुणा ने कई तरह से लिंग को खड़ा करने की कोशिश की किन्तु कोई फायदा न हुआ। तब ये बात सामने आई कि एक्सीडेन्ट में अभय सिंह के प्राइवेट पार्ट में भी अंदरूनी चोंट लगी थी, अभय सिंह चूॅकि बेहोश हो गया था इस लिए उसे पता ही नहीं चला। ख़ैर अब समस्या हो गई कि अभय सिंह का लिंग ही नहीं खड़ा हो रहा, इस बात से अभय सिंह से ज्यादा करुणा परेशान हो गई। करुणा ने इसके लिए अभय सिंह को इलाज़ करवाने का कहा लेकिन लाज और शरम के कारण अभय सिंह इसके लिए तैयार ही न हुआ। करुणा ने उसे बहुत समझाया, ये तक कहा कि वो सेक्स के बिना कैसे रह पाएगी? इस पर अभय सिंह नाराज़ भी हुआ, और कहा कि दो बच्चे हो गए हैं। रही बात सेक्स की तो खुद पर काबू रखना सीखो, जीवन में सेक्स ही सब कुछ नहीं होता। अभय सिंह वैसे भी गुस्सैल स्वभाव का था इस लिए करुणा बेचारी मन मार रह गई। ये बात अभय के अलावा सिर्फ करुणा ही जानती थी, बाॅकी किसी को कुछ पता नहीं था। फिर ऐसे ही लगभग एक साल बाद बेध्यानी में ये राज़ की बात करुणा के मुख से प्रतिमा के सामने निकल गई। बाद में करुणा ने विनती करते हुए प्रतिमा से कहा भी कि ये बात वो किसी से न बताएं। औरतज़ात के पेट में कहाॅ देर तक कोई बात रह पाती है, नतीजतन उसने उसी दिन अजय सिंह से ये सब बता दिया। अजय सिंह ये जानकर हैरान हुआ कि उसका छोटा भाई अभय सिंह अब अपनी बीवी के साथ संभोग करने के काबिल नहीं रहा। किन्तु अगले ही पल उसे खुशी भी हुई इस बात से। वो जानता था कि करुणा अभी भरपूर जवानी में है और वो सेक्स के बिना रह नहीं पाएगी। हलाॅकि ये उसकी सोच ही थी, और इसी सोच के आधार पर वह जाने क्या क्या ख्वाब सजा बैठा। उसने प्रतिमा से इस बारे में बात की कि वह करुणा को उसके साथ संभोग के लिए तैयार करे। प्रतिमा अपने पति को अच्छी तरह जानती थी कि अजय सिंह औरत की चूत का कितना दिवाना है, अगर नहीं होता तो अपनी ही बेटी पर नीयत ख़राब नहीं करता। ख़ैर प्रतिमा तो खुद ही चाहती थी कि अभय व करुणा उनके साथ हर काम में शामिल हो जाएं। इस लिए उसने दूसरे दिन से ही करुणा से नज़दीकियाॅ बढ़ाना चालू कर दिया। करुणा किसी भी मामले में प्रतिमा से कम न थी। बल्कि ऊपर ही थी, प्रतिमा के मुकाबले वह अभी जवान ही थी। किन्तु स्वभाव से सरल व बहुत कम बोलने वाली औरत थी। अभय सिंह से उसने प्रेम विवाह किया था। अभय के अलावा किसी दूसरे मर्द के बारे में वह सोचना भी गुनाह मानती थी।

प्रतिमा पढ़ी लिखी तथा खेली खाई औरत थी, किसी को कैसे फॅसाना है ये उसे अच्छी तरह आता था। काम मुश्किल तो था लेकिन असंभव नहीं। मगर प्रतिमा की सारी कोशिशें बेकार गईं अर्थात् वह करुणा को इस सबके के लिए तैयार न सकी। दरअसल वह खुल कर ये तो कह नहीं सकती थी कि 'आओ और मेरे पति से संभोग कर लो।' इस लिए उसने उससे सेक्स से संबंधित अपनी लाइफ के बारे में बता बता कर ही करुणा के मन में सेक्स की फीलिंग्स भरने का प्रयास करती रही। वह अजय के साथ अपनी सेक्स लाइफ के बारे में खुल कर उससे बात करती थी। शुरू शुरू में तो करुणा ऐसी बातें सुनती ही नहीं थी कदाचित उसे प्रतिमा के मुख से ऐसी अश्लीलतापूर्ण बातों से बेहद शरम आती थी। इस लिए हर बार वह प्रतिमा के सामने हाॅथ जोड़ कर उससे ऐसी बातें न करने को कहने लगती थी, लेकिन प्रतिमा भला कहाॅ मानने वाली थी? वह तो उसके पास आती ही एक मकसद के साथ थी। ख़ैर धीरे धीरे करुणा को भी इन सब बातों को सुनने की आदत हो गई।

"ये तो कोई बात न हुई करुणा।" प्रतिमा कह रही थी__"आखिर कब तक ऐसा चलेगा? अभय को तुम्हारे बारे में कुछ तो सोचना चाहिए। उसे सोचना चाहिए कि अभी तुम्हारी उमर ही क्या हुई है? अभी तो तुम जवान हो, और शादीशुदा जवान औरत बिना सेक्स के कैसे रहेगी?"

"जाने दीजिए दीदी।" करुणा ने एक गहरी साॅस ली__"अब तो आदत हो गई है। अब इन बातों की तरफ ध्यान ही नहीं जाता मेरा। घर के काम और बच्चों में ही सब समय निकल जाता है।"

"और जब रात होती है तथा अभय के साथ एक ही बिस्तर पर लेटती हो तब क्या इस तरफ ध्यान नहीं जाता होगा?" प्रतिमा ने कहा__"जरूर जाता होगा छोटी, और ये सोच कर दुख भी होता होगा कि कुछ हो ही नहीं सकता।"

"ऐसा नहीं है दीदी।" करुणा ने भावहीन स्वर में कहा__"मैं तो इनके(अभय) साथ सोती ही नहीं। बल्कि मैं तो हमेशा अपने बेटे शगुन के साथ ही सोती हूॅ। आप तो जानती हैं वो दिमाग से डिस्टर्ब है, रात में उसे देखना पड़ता है वर्ना जागने के बाद वह कब किधर चला जाए पता ही नहीं चलता।"

"फिर भी करुणा।" प्रतिमा ने कहा__"मन को कितना भी बहला लो लेकिन जो तक़लीफ और दुख का कारण है उसका ख्याल तो आ ही जाता है। जवान औरत को अपनी सेक्स की गर्मी को बर्दास्त कर पाना ज़रा मुश्किल होता है।"

"किया भी क्या जा सकता है? करुणा ने सिर झुकाते हुए कहा__"इन्होंने तो जैसे कसम खा ली है कि इलाज़ नहीं करवाएंगे। क्या उनकी इच्छा नहीं होती होगी इसकी? मगर जैसे उन्होंने खुद की इच्छाओं को दबा लिया है वैसे ही मैने भी दबा लिया है।"

"हाय कैसे रह लेती हो तुम?" प्रतिमा ने कहने के साथ ही साड़ी के ऊपर से करुणा की नज़र में अपनी चूत को मसला__"मुझसे तो एक दिन भी बगैर लंड के नहीं रहा जाता। हर रात रगड़ रगड़ कर चुदवाना पड़ता है शिवा के डैड से। मौका मिलता है तो दिन में भी चुदवा लेती हूॅ। कसम से करुणा शिवा के डैड का लंड घोड़े जैसा है और जब तक उस घोड़े जैसे लंड से अपने आगे पीछे पेलवा नहीं लेती न तब तक चैन नहीं आता।"

"आपके मज़े हैं फिर तो।" करुणा ने हॅसते हुए कहा__"आपका भाग्य अच्छा है दीदी, जो आपको इतना कुछ मिल रहा है।"
"भाग्य बनाना पड़ता है छोटी।" प्रतिमा ने कहा__"तुमने अपना भाग्य खुद ही बिगाड़ रखा है तो कोई क्या कर सकता है?"

"मैंने कैसे अपना भाग्य बिगाड़ लिया भला?" करुणा के माॅथे पर अनायास ही बल पड़ता चला गया__"आप तो जानती हैं कि....ये,
"एक ही बात है।" प्रतिमा ने करुणा की बात को काटकर कहा__"वर्ना चार दिन की ज़िन्दगी में हर चीज़ का मज़ा लिया जा सकता है।"

"मतलब???" करुणा ने नासमझने वाले भाव से पूॅछा।
"अब अगर मैं कुछ कहूॅगी तो तुम्हें लगेगा कि ये मैं क्या ऊल जलूल बक रही हूॅ?" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा था।

"मैं ऐसा क्यों कहूॅगी दीदी?" करुणा ने हॅस कर कहा।
"तुम भी जानती होगी कि बड़े बड़े शहरों में कैसे लोग हर पल का आनंद लेते हैं?" प्रतिमा ने धड़कते दिल के साथ कहा__"वहाॅ शहरों में कोई औरत तुम्हारी तरह इस तरह नहीं बैठी नहीं रह जाती हैं बल्कि ऐसे हालात में भी अपने जिस्म की भूॅख को मिटाने के लिए रास्ता खोज लेती हैं।"

"क्या मतलब??" करुणा ने हैरानी से पूॅछा था__"किस तरह का रास्ता दीदी??"
"ज्यादा भोली न बनो तुम।" प्रतिमा ने कहने के साथ ही अजीब सा मुॅह बनाया फिर मुस्कुरा कर बोली__"तुम भी अच्छी तरह जानती हो कि मेरे कहने का क्या मतलब था?"

"कसम से दीदी मेरी कुछ समझ में नहीं आया कि आप क्या कह रही हैं?" करुणा ने कहा।
"जैसे लड़के लड़कियाॅ गर्लफ्रैण्ड ब्वायफ्रैण्ड बना कर शादी के पहले ही सब कुछ कर लेते हैं न।" प्रतिमा ने कहा__"उसी तरह शादीशुदा औरत मर्द भी करते हैं। फर्क ये है कि कोई खुशी खुशी करता है और कोई यही सब मजबूरी में करता है।"

"ओह! तो आप ये कहना चाहती हैं कि जैसे शहर के औरत मर्द शादी के बाद भी किसी को गर्लफ्रैण्ड व ब्वायफैण्ड बना कर सब कुछ करते हैं।" करुणा कह रहक थी__"वैसे ही उनकी तरह मुझे भी करना चाहिए?"

"तो इसमें ग़लत क्या है?" प्रतिमा ने कह दिया ये अलग बात है कि इसके साथ ही उसके दिल की धड़कन भयवश बढ़ गई थी।

"क्या???" करुणा ने बुरी तरह उछलते हुए कहा__"मतलब आप इस चीज़ को ग़लत नहीं मानती हैं??"
"बिलकुल।" प्रतिमा ने स्पष्ट लहजे में कहा__"हर इंसान की अपनी ज़रूरतें और चाहतें हैं, और ज़रूरतों तथा अपनी चाहतों को पूरा करना ग़लत नहीं हो सकता।"

"मतलब आप अगर मेरी जगह होतीं तो वो सब ज़रूर करतीं?" करुणा ने चकित भाव से कहा__"जो आज के समय में शहर वाले करते हैं?"

"बेशक।" प्रतिमा ने कहा__"जैसा कि मैने पहले ही बताया कि अपनी ज़रूरतों और चाहतों को पूरा करना कोई ग़लत नहीं है। जैसे मर्द अपनी खुशी के लिए हम पत्नियों के रहते हुए भी बाहरी औरत से जिस्मानी संबंध बना लेते हैं वैसे ही हम औरते किसी गैर मर्द से संबंध क्यों नहीं बना सकतीं? आख़िर इन सबके लिए हम औरतों पर ही पाबंदी क्यों? क्या हमारी इच्छाओं तथा ख्वाहिशों का कोई मोल नहीं?"

करुणा चकित थी प्रतिमा की बातें सुन कर। उसका मुॅह भाड़ की तरह खुला रह गया था।

"इतना हैरान न हो छोटी।" प्रतिमा कह रही थी__"आज के समय की यही सच्चाई है और यही माॅग भी है। ये सब बातें ऐसी नहीं हैं जिनके बारे में तुम्हें पता नहीं होगा।"

"हाॅ सुना तो मैंने भी है दीदी।" करुणा ने कहा__"मगर ये भी जानती हूॅ कि हर इंसान की अपनी अपनी सोच होती है, जिसे जो अच्छा लगता है वो वही करता है।"

"अपनी इच्छाओं का गला घोंट कर जीना कोई बुद्धिमानी नहीं है।" प्रतिमा ने एक लम्बी साॅस खींचते हुए कहा__"मर्द अगर हमारी ज़रूरत पूरी नहीं कर सकता तो ये उसकी ग़लती है। किसी चीज़ की कुर्बानी देना अच्छी बात है लेकिन इस तरह नहीं....अगर इलाज़ संभव है तो उसका इलाज़ करवाना ही चाहिए।"

करुणा भला क्या कहती? उसका दिमाग़ तो जैसे जाम हो गया था। प्रतिमा बड़े ग़ौर से करुणा को देखने लगी थी। उसने मन ही मन सोचा कि ऐसा क्या करूॅ कि ये शीशे में उतर जाए? कुछ समय तक जब कोई कुछ न बोला तो सहसा करुणा चौंकी, जाने किन खयालों में खो गई थी वह?

"आप बैठिए दीदी।" करुणा ने सहसा उठते हुए कहा__"मैं आपके लिए चाय बना कर लाती हूॅ।"
"अरे रहने दो छोटी।" प्रतिमा ने कहा__"मैं चाय पीकर आई थी।"

"तो क्या हुआ दीदी।" करुणा ने हॅस कर कहा__"मेरे हाॅथ की भी पी लीजिए चाय।"
"अच्छा ठीक है मगर एक शर्त पर।" प्रतिमा ने मुस्कुराकर कहा।

"शर्त???" करुणा चकराई__"कैसी शर्त दीदी?"
"यही कि चाय स्पेशल दूध की होनी चाहिए।" प्रतिमा ने कहा।
"दूध तो अच्छा ही है दीदी।" करुणा ने हॅस कर कहा__"ये(अभय) सुबह शाम भैंस का ताज़ा दूध ही लेकर आते हैं, उसमें पानी नहीं डालते।"

"ओफ्फो।" प्रतिमा ने बुरा सा मुह बना कर कहा__"भैंस का दूध स्पेशल कहाॅ हुआ?"
"हाॅ तो मेरे पास भैंस का ही दूध है।" करुणा ने कहा__"आप कहें तो दुकान से कोई दूसरा दूध मॅगवा दूॅ चाय के लिए।"

"अरे जब घर में ही स्पेशल दूध है तो दुकान से मॅगवाने की क्या ज़रूरत है?" प्रतिमा ने द्विअर्थी भाव से कहा।
"घर में तो भैंस का ही है।" करुणा ने भोलेपन से कहा__"आपको बताया तो था अभी।"

"अरे मैं तुम्हारे दूध की बात कर रही हूॅ छोटी।" प्रतिमा हॅसी__"तुम्हारे अपने दूध की।"
"मेरे अपने दू.....?" करुणा को जब समझ आया तो बुरी तरह झेंप गई वह। लाज और शरम की लाली चेहरे पर फैलती चली गई। फिर खुद को सम्हाल कर बोली__"क्या दीदी आप भी।"

"अरे ठीक ही तो कह रही हूॅ मैं।" प्रतिमा ने हॅसते हुए कहा__"तुम्हारे अपने दूध से स्पेशल कोई और दूध भला कहाॅ होगा?"
"इस तरह तो आपका भी दू....ध।" करुणा ने मुस्कुरा कर कहा__"स्पेशल हुआ न?"

"अरे मेरा दूध अब स्पेशल कहाॅ रहा मेरी प्यारी बहन।" प्रतिमा ने आह सी भरी।
"क्यों क्या हुआ आपके दू....ध को?" दूध शब्द पर करुणा की ज़ुबान लड़खड़ा जाती थी कदाचित ये सोच कर कि ये दूध वाली बात खुद के ही दूध की थी।

"क्या बताऊॅ छोटी?" प्रतिमा ने कहा__"मेरे दूध की तो हालत ही ख़राब रहती है।"
"ऐसा क्यों दीदी?" करुणा चकरा गई।
"क्योंकि रात भर शिवा के डैड मेरे दूध को बुरी तरह मसलते जो हैं।" प्रतिमा ने कहने के साथ ही अपने दोनों हाॅथों से अपने बड़े बड़े खरबूजों को पहले ज़ोर से मुट्ठियों में मसला फिर हल्के हल्के सहलाने लगी। ये देख कर करुणा बुरी तरह शरमा गई।

"देख न करुणा।" प्रतिमा ने अपने खरबूजों को दोनों हाॅथों से तौलते हुए कहा__"कैसे मसल मसल कर इतने बड़े बड़े कर दिये हैं वो।"
"आपके दिमाग में तो जब देखो तब यही सब बातें होती हैं।" कहने के साथ ही करुणा किचेन की तरफ बढ़ गई। उसके पीछे पीछे प्रतिमा भी चल दी।

"तुम्हारे भी दूध खरबूजे जैसे ही हैं करुणा।" प्रतिमा ने किचेन में पहुॅच कर तथा करुणा के सीने की तरफ गौर से देखते हुए कहा__"बस मसले कम गए हैं ये। जाने कब से अभय ने इन्हें देखा तक न होगा, है न छोटी??"

"अब बस भी कीजिए दीदी।" करुणा लाज व शरम से गड़ी जा रही थी।
"ओये होये।" प्रतिमा ने उसे पीछे से पकड़ कर अपनी बाहों में ले लिया तथा पीछे से ही अपने गालों को करुणा के गालों से रगड़ते हुए कहा__"देखो तो कैसे नई नवेली दुल्हन की तरह शरमा रही है। सच कहती हूॅ छोटी तुम्हें देखकर कोई नहीं कह सकता कि तुम दो बच्चों की माॅ हो।"

"अच्छा तो फिर चार बच्चों की माॅ कहेंगे।" करुणा ने शरारत से कहा।
"चार क्यों?" प्रतिमा ने कहने के साथ ही करुणा के पेट में चिहुॅटी काटी__"बल्कि दस कहेंगे। अब ठीक है न?"

"आआआआहहह दीदी।" चिहुॅटी काटने से करुणा एक दम से चीखते हुए उछल पड़ी थी बोली__"प्लीज दीदी चिहुॅटी मत काटिये न।"
"अच्छा तो फिर क्या काटूॅ?" प्रतिमा ने कहने के साथ ही अपने दाहिने हाॅथ की अॅगुली को करुणा के सपाट नंगे पेट में हौले हौले तथा गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया।

"उउउउफफफफफ दीदी।" करुणा ने कसमसाते हुए कहा__"ये क्या कर रही हैं आप?"
"तुम चाय बनाने पर ध्यान दो छोटी।" प्रतिमा ने उसी हालत में कहा__"मैं तो अपनी प्यारी बहन को लाड कर रही हूॅ।"

"ये लाड नहीं है दीदी।" करुणा ने बड़ी ही चतुराई से खुद को प्रतिमा के बाहुपाश से आज़ाद करते हुए कहा__"ये तो कुछ और ही लगता है। और अब आप मुझे तसल्ली से चाय बनाने दीजिए, कोई छेड़खानी नहीं करेंगी आप।"

"ठीक है।" प्रतिमा ने मन ही मन हज़ारों गालियाॅ दी उसे किन्तु प्रत्यक्ष में कहा__"तुम्हें तो मेरा यानी अपनी बड़ी बहन का प्यार भी कुछ और लगता है।"

"ऐसा नहीं है दीदी।" आप तो बेवजह ही नाराज़ हो रहीं हैं।"
"रहने दो।" प्रतिमा ने छोटे बच्चे की तरह तुनक कर कहा__"सब जानती हूॅ मैं।"

तब तक चाय बन चुकी थी। करुणा ने चाय को दो कप में डाला तथा एक कप करुणा को थमाया और एक कप खुद लेकर उसे धीरे धीरे पीने लगी। जबकि प्रतिमा के मन में यही चल रहा था कि 'आज फिर एक बार मेरी कोशिश बेकार रही।'



दोस्तों अपडेट हाज़िर है,,,,,,
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा........
Nice update
 

drx prince

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अपडेट............ 《 12 》

अब तक,,,,,,

"ठीक है।" प्रतिमा ने मन ही मन हज़ारों गालियाॅ दी उसे किन्तु प्रत्यक्ष में कहा__"तुम्हें तो मेरा यानी अपनी बड़ी बहन का प्यार भी कुछ और लगता है।"

"ऐसा नहीं है दीदी।" आप तो बेवजह ही नाराज़ हो रहीं हैं।"
"रहने दो।" प्रतिमा ने छोटे बच्चे की तरह तुनक कर कहा__"सब जानती हूॅ मैं।"

तब तक चाय बन चुकी थी। करुणा ने चाय को दो कप में डाला तथा एक कप करुणा को थमाया और एक कप खुद लेकर उसे धीरे धीरे पीने लगी। जबकि प्रतिमा के मन में यही चल रहा था कि 'आज फिर एक बार मेरी कोशिश बेकार रही।'


अब आगे,,,,,,,,



उधर मुम्बई में इस वक्त ड्राइंग रूम में रखे सोफों पर क्रमशः जगदीश ओबराय, विराज, गौरी तथा निधी आदि बैठे हुए थे।

"इस सब की क्या ज़रूरत है अंकल?" विराज ने कहा__"आप जानते हैं कि जीवन में मेरा सिर्फ एक ही मकसद है और वो है अजय सिंह का खात्मा। मैं अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए अब किसी भी प्रकार का ब्यवधान नहीं चाहता।"

"जगदीश भैया ठीक ही कह रहे हैं बेटे।" गौरी ने समझाने वाले लहजे से कहा__"उच्च शिक्षा का होना भी ज़रूरी है। इस लिए तुम अपनी पढ़ाई को भी पूरा करो। हम में से कोई तुम्हें ये नहीं कह रहा कि तुम अपने मकसद से पीछे हटो, बल्कि वो तो तुम्हारा अब प्रण बन गया है उसे तुम ज़रूर पूरा करो। लेकिन साथ साथ अपनी पढ़ाई भी करते रहोगे तो कुछ ग़लत नहीं हो जाएगा।"

"हाॅ भइया।" निधि ने विराज के दाहिने बाजू को मजबूती से पकड़ते हुए कहा__"माॅ और अंकल सही कह रहें हैं आपको अपनी पढ़ाई कान्टीन्यू रखनी चाहिए। और फिर हम दोनों साथ में ही काॅलेज जाया करेंगे। कालेज में अगर मुझे कोई छेड़े तो आप उसकी जम कर धुनाई भी किया करना बिलकुल फिल्म के हीरो की तरह, हाॅ नहीं तो।"

"गुड़िया ने भी कह दिया तो ठीक है अंकल मैं अपनी पढ़ाई जारी करता हूॅ।" विराज ने निधि के सिर पर प्यार से हाॅथ फेर कर कहा__"मैं कल ही किसी मेडिकल काॅलेज में एडमीशन करवा लेता हूॅ।"

"उसकी ज़रूरत नहीं है बेटे।" जगदीश ने हॅस कर कहा__"मैंने आलरेडी तुम्हारा एडमीशन एक बढ़िया से मेडिकल काॅलेज में करवा दिया है।"

"क् क्या???" विराज ने चौंकते हुए कहा।
"हाॅ बेटे।" जगदीश ने हॅस कर कहा__"मुझे पता था कि तुम्हें इसके लिए मानना ही पड़ेगा, इस लिए मैंने पहले ही तुम्हारा एडमीशन करवा दिया है। कल कालेज जा कर सबसे पहले प्रिंसिपल से मिल लेना। दरअसल एडमीशन तो मैंने करवा दिया है किन्तु फार्म वगैरा में साइन तो तुम्हारे ही लगेंगे न। इस लिए जा कर पहले ये सब क्लियर कर लेना। बाॅकी किसी चीज़ की फिक्र मत करना। यूॅ समझना कि अपना ही काॅलेज है।"

"शुक्रिया अंकल।" विराज एकाएक सहसा गंभीर हो गया__"आपने इतना कुछ हमारे लिए कर दिया है जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। आप हमारे जीवन में भगवान बन कर आए हैं वर्ना हर चीज़ से बेबस व लाचार हम आखिर क्या कर पाते?? ये मेरे ऊपर आपका कर्ज़ है जिसे मैं किसी भी जनम में उतार नहीं सकता।"

"ये सब कह कर तुमने मुझे पराया कर दिया बेटे।" जगदीश भावुक होकर बोला था__"जबकि मैं तुम सबको अपना परिवार ही मानने लगा हूॅ।"

"नहीं अंकल।" विराज सोफे से उठ कर तुरंत ही जगदीश के पैर पकड़ लिया, बोला__"मेरे कहने का मतलब वो नहीं था। आप पराए कैसे हो जाएंगे भला? आप हमारे लिए पराए हो भी नहीं सकते हैं। आप तो अपने व पराए से परे हैं अंकल। आप इस कलियुग के अद्वतीय इंसान हैं जिनके अंदर सिर्फ और सिर्फ नेकदिली और सच्चाई है।"

"ये सच है भैया।" गौरी की आॅखों में आॅसू थे, बोली__"आप हमारे लिए अपनों से भी बढ़ कर हैं, अपने कैसे होते हैं ये भी हमने देखा है मगर आप ग़ैर होकर भी अपने से बढ़ कर हैं। राज तो नासमझ है आप उसकी बात पर ये बिलकुल न समझें कि हम आपको पराया समझते हैं। बल्कि अगर दिल की सच्चाई बताऊॅ तो वो ये है कि अब आपके लिए अपनी जान तक कुर्बान करने का मन करने लगा है। हमारे ह्रदय में आपका स्थान बहुत ऊॅचा है भैया...बहुत ऊॅचा।"

"तुमने ये सब कह कर मुझे वो खुशी दी है बहन जो संसार भर की दौलत मिल जाने पर भी न होती।" जगदीश ने अपनी आॅखों में छलक आए आॅसुओं को पोंछते हुए कहा__"इसके पहले ऐसा लगता था जैसे ये संसार महज एक कब्रिस्तान है जहाॅ कोई इंसान तो क्या परिंदा तक नहीं है। कदाचित् सब कुछ खोकर और अकेलेपन में ऐसा ही महसूस होता है। मगर तुम सबके आ जाने से ये वीरान सा जीवन जैसे फिर से हरा भरा और खुशहाल हो गया है।"

"मैं तो आपको अपने भाई के रूप में पाकर धन्य ही हो गई हूॅ भैया।" गौरी ने कहा__"मेरा अपना कोई भाई न था, एक भाई के लिए तथा उसकी कमी से हमेशा दिल में दर्द रहा था। आपके मिलने से अब मन को त्रप्ति मिल गई है।"

"ये सब ईश्वर की ही कृपा है बहन।" जगदीश ने कहा__"वो जो भी करता है बहुत कुछ सोच कर ही करता है। इसके पहले कौन किसे जानता था किन्तु आज ऐसा है जैसे हम सब कभी गैर थे ही नहीं। सच कहता हूॅ बहन ईश्वर की इस इनायत से बहुत खुश हूॅ मैं।"

"अच्छा अब बहुत हो गया ये इमोशनल ड्रामा।" निधि ने भोलेपन से कहा__"कुछ खाने पीने की बात कीजिए न। मेरे पेट में पता नहीं कितने चूहे हैं जो काफी देर से उछल कूद कर रहे हैं। आप में से किसी को इसका खयाल ही नहीं है....जाओ नहीं बात करना किसी से अब, हाॅ नहीं तो।"

"चूहे तो मेरे पेट में भी कूद रहे हैं गुड़िया।" विराज ने अजीब सा मुह बना कर कहा__"मुझे भी किसी से बात नहीं करना अब, हाॅ नहीं तो।"

"क्या??????" निधि उछल पड़ी__"आपने मेरी नकल की? मतलब आपने मुझे चिढ़ाया? जाओ आपसे तो बिलकुल बात नहीं करनी, हाॅ नही तो।"

"ठीक है फिर।" विराज ने सोफे पर से उठते हुए कहा__"मैं अकेले ही चला जाता हूॅ आइसक्रीम खाने।"
"नननहीहीं।" निधि चीखी और उछल कर फौरन ही खड़ी हो गई__"आप अकेले आइसक्रीम खाने नहीं जा सकते मैं भी चलूॅगी आपके साथ और अगर आप अपने साथ मुझे न ले गए तो सोच लीजिएगा, हाॅ नहीं तो।"

"जो मुझसे बात नहीं करता मैं उसे अपने साथ कहीं नहीं लेकर जाता।" विराज ने अकड़ते हुए कहा__"तुम मुझसे बात नहीं कर रही तो तुम्हें अपने साथ लेकर क्यों जाऊॅ??"

"अरे मैं तो ऐसे ही कह रही थी।" निधि ने चापलूसी वाले अंदाज़ में कहा__"और वैसे भी मैं आपकी जान हूॅ न? आप अपनी जान के बिना कैसे चले जाएॅगे, हाॅ नहीं तो।"

"कोई कहीं नहीं जाएगा।" गौरी ने कहा__"चुप चाप बैठो दोनो, मैं खाना लेकर आती हूॅ।"
"नहीं नहीं।" निधि ने बच्चों की तरह कूदते हुए इंकार किया__"मुझे आइसक्रीम ही खाना है, हाॅ नहीं तो।"

"हा हा हा इन्हें जाने दो बहन।" जगदीश ने हॅसते हुए कहा__"जाओ बेटे, तुम गुड़िया को आइसक्रीम खिला कर आओ।"
"भैया आप नहीं जानते हैं।" गौरी ने जगदीश से कहा__"इसे आइसक्रीम की लत फिर से पड़ जाएगी। पहले ये बिना आइसक्रीम के एक दिन नहीं रहती थी। बड़ी मुश्किल से तो इसकी आइसक्रीम छूटी है।"

"एक दिन में कुछ नहीं होता।" जगदीश ने गौरी से कहने के बाद निधि की तरफ मुखातिब हो कर कहा__"और हाॅ बेटी, ज्यादा आइसक्रीम मत खाना। सेहत के लिए अच्छी नहीं होती।"

"जी अंकल।" कहने के साथ ही निधि ने विराज का बाजू पकड़ा और बाहर की तरफ खींचते हुए ले जाने लगी।
..................

दूसरे दिन विराज काॅलेज पहुॅचा। निधि उसके साथ ही थी। हलाॅकि ये उसका काॅलेज नहीं था किन्तु फिर भी उत्सुकतावश वह विराज के साथ ज़िद करके आई थी।

काॅलेज को देखकर दोनो भाई बहन चकित रह गए। विराज की आॅखों में जाने क्या सोच कर आॅसू आ गए जिसे उसने बड़ी ही सफाई से पोंछ लिया था। निधि तो कालेज की खूबसूरती में ही खोई हुई थी।

कुछ देर काॅलेज को देखने के बाद विराज निधि के साथ कालेज के अंदर गया। कालेज में थोड़ी देर इधर उधर घूमने के बाद निधि को विराज ने कालेज की कन्टीन में बैठा कर खुद प्रिंसिपल से मिलने उसके आफिस की तरफ बढ़ गया।

रास्ते में एक आदमी से उसने प्रिंसिपल का आफिस पूॅछा और आगे बढ़ गया। कुछ देर बाद ही वह प्रिंसिपल के आफिस में प्रिंसिपल के सामने खड़ा था। उसने अपना नाम बताया, हलाॅकि जगदीश ओबराय ने सबकुछ पहले ही सेट कर दिया था। इस लिए विराज को ज्यादा परेशानी नहीं हुई।

सारी फारमेलिटी पूरी करने के बाद तथा अपने कोर्स से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी लेने के बाद वह प्रिंसिपल के आफिस से बाहर आकर कालेज की कन्टीन की तरफ बढ़ गया। कन्टीन से निधि को साथ लेकर वह कालेज से बाहर आ गया।

"तो आख़िर आपको आपके पसंद का काॅलेज मिल ही गया न भइया?" रास्ते में बाइक पर पीछे बैठी निधि ने विराज से सट कर तथा विराज के कान के पास मुह ले जाकर बोली__"एक ऐसा काॅलेज जिसमें पढ़ने की कभी आपने तमन्ना की थी, और आज जब आपकी तमन्ना पूरी हुई तो आपकी आॅखों से आॅसू छलक पड़े। है न ?"

"न नहीं तो।" बाइक चला रहा विराज निधि की बात पर बुरी तरह चौंका था, बोला__"ऐसा कुछ नहीं है।"
"आप समझते हैं कि।" निधि ने कहा__"मुझे कुछ पता ही नहीं चला जबकि मैंने अपनी आॅखों से देखा भी और दिल से महसूस भी किया।"

"बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगी है गुड़िया।" विराज ने हॅस कर कहा__"ऐसी जैसे कि कोई सयाना हो जाने पर करता है।"
"हाॅ तो मैं बड़ी हो गई न।" निधि ने भोलेपन से कहा__"आपने देखा था न उस दिन? मैं आपके कंधे से थी, और अब कुछ दिन बाद आपके काॅन से भी हो जाऊॅगी..देख लीजिएगा, हाॅ नहीं तो।"

"हाॅ तू तो कुछ दिन में मेरे सिर के ऊपर से भी निकल जाएगी गुड़िया।" विराज ने हॅसते हुए कहा।
"मुझे ऐसा क्यों लगता है जैसे ये कह कर आपने मेरा मज़ाक उड़ा दिया है?" निधि ने सोचने वाले भाव से कहा__"और अगर ऐसा ही है तो बहुत गंदे हैं आप। जाइए नहीं बात करना अब आपसे, हाॅ नहीं तो।"

"अरे ये क्या बात हुई गुड़िया??" विराज बुरी तरह हड़बड़ा गया।
"बात मत कीजिए अब।" निधि जो अब तक विराज से चिपकी हुई थी अब पीछे हट गई, फिर बोली__"वैसे तो बड़ा कहते हैं कि मैं आपकी जान हूॅ, और अब अपनी ही जान का मज़ाक उड़ा रहे हैं, हाॅ नहीं तो।"

"अच्छा बाबा ग़लती हो गई।" विराज ने खेद भरे स्वर में कहा__"क्या अपने भइया को माफ़ नहीं करेगी गुड़िया??"
"अब आप माफ़ी मत माॅगिए।" निधि तुरंत ही खिसक कर विराज से फिर चिपक गई__"मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता।"

"तू सचमुच मेरी जान है गुड़िया।" विराज ने भावुक होकर कहा__"तेरी एक पल की भी बेरुखी मैं सह नहीं सकता। मुझसे अगर कोई ग़लती हो जाए तो तू मुझे उसकी सज़ा दे देना लेकिन न ही कभी मुझसे नाराज़ होना और न ही ये कहना कि मुझसे बात नहीं करना।"

"भइया...।" निधि की रुलाई फूट गई, उसने अपने दोनो हाॅथ विराज के दोनो साइड से निकाल कर विराज के पेट पर कस लिया। फिर बोली__"आपसे नाराज़ होकर या आपसे बात न करके क्या मैं भी एक पल रह पाउॅगी? अगर मैं आपकी जान हूॅ तो आप भी तो मेरी जान हैं भइया।"

"चल अब तू रो मत गुड़िया।" विराज ने माहौल को बदलने की गरज से कहा__"हम दुकान के पास आ गए हैं। यहां पर मुझे कुछ किताबें वगैरा लेनी हैं। तू बता तुझे क्या चाहिए?"
"मुझे न।" निधि ने खुशी से कहा__"मुझे न एक टच स्क्रीन वाला मोबाइल लेना है और हाॅ आप भी टच स्क्रीन वाला मोबाइल ले लीजिए। ये की-पैड को अब रिटायर कर दीजिए, हाॅ नहीं तो।"

"क्यों अच्छा तो है ये मोबाइल।" विराज ने कहा__"इसमें क्या खराबी है भला? तुझे पता है इसकी बैटरी हप्तों तक चलती है।"
"मैं कुछ नहीं जानती।" निधि ने कहा__"मैंने कह दिया है कि लेना है तो लेना है बस, हाॅ नहीं तो।"

"अब तो लेना ही पड़ेगा।" विराज ने मुस्कुरा कर कहा__"मेरी गुड़िया, मेरी जान ने कह दिया है तो।"
"हाॅ नहीं तो।" निधि खुश हो गई।
"चलो पहले मोबाइल ही ले लेते हैं।" विराज ने कहा__"उसके बाद किताबें खरीद लूॅगा।"

ये कह विराज ने बाइक को मोबाइल स्टोर की तरफ मोड़ लिया। लगभग पाॅच मिनट बाद ही वो दोनो मोबाइल स्टोर में थे।

"गुड़िया।" विराज ने धीरे से कहा__"किस कंपनी का लेना है मोबाइल और कितने रुपये वाला??"
"मैं क्या बताऊॅ?" निधि ने भी विराज की तरह धीरे से ही कहा__"मुझे इस बारे में तो वैसे भी कुछ नहीं पता।"

"फिर अब क्या करें??" विराज ने कहा__"ये तो कमाल ही हो गया गुड़िया। मोबाइल खरीदने आ गए हैं लेकिन हमें यही पता नहीं है कि कौन सी कंपनी का तथा कितने रुपये तक का मोबाइल लेना है?"
"दुकान वाले से पूॅछ लेते हैं न।" निधि ने बुद्धि दी__"उसे तो सब कुछ पता ही होगा।"

"अरे हाॅ गुड़िया।" विराज ने अपने सिर में हाॅथ की थपकी लगा कर कहा__"ये तो मैने सोचा ही नहीं था। अच्छा हुआ तुमने बता दिया वर्ना यहाॅ से वापस जाना पड़ता। है न???"
"अब ज्यादा ड्रामा मत कीजिए।" निधि ने हॅस कर कहा__"मुझे पता है आप बुद्धू बनने का नाटक कर रहे हैं।"

"मतलब तूने पकड़ लिया??" विराज मुस्कुराया।
"और नहीं तो क्या।" निधि हॅसी__"सरलाॅक होम्स एक ज़माने में हमसे जासूसी की ट्रेनिंग लेने आता था, हाॅ नहीं तो।"

"एक्सक्यूज़मी सर।" तभी सहसा उन लोगों के पास शोरूम का एक ब्यक्ति आकर बोला__"व्हाट कैन आई हेल्प यू??"
"हमें किसी अच्छी कंपनी का सबसे अच्छा मोबाइल या आईफोन दिखाइए।" विराज ने उस ब्यक्ति से कहा।

उस ब्यक्ति ने आज के चलन के हिसाब से कई तरह के मोबाइल लाकर टेबल पर रख दिया तथा उन डिब्बों पर लिखी बातों को बता बता कर मोबाइल फोन की खासियत बताने लगा। फिर उसने आईफोन के कुछ सेट दिखाने लगा।

लगभग आधे घंटे बाद दोनो ही शोरूम से बाहर निकले। उन दोनों के हाॅथ में एक एक मोबाइल था।

"भइया आप मुझे सिखा दीजियेगा कि कैसे चलाते हैं??" निधि ने रास्ते में कहा।
"ठीक है गुड़िया।" विराज ने कहा__"चल अभी किताबें भी लेना है।"
"वैसे आपका काॅलेग कब से शुरू होगा?" निधि ने पूॅछा।

"एक हप्ते बाद।" विराज ने कहा।
"भइया मुझे भी आपके साथ इसी काॅलेज में पढ़ना है।" निधि ने कहा।
"अगले साल से तू भी इसी कालेज में आ जाना।" विराज ने कहा।

ऐसी ही बातें करते हुए दोनो बहन भाई बाइक से घर पहुॅच गए। विराज अपने मन पसंद कालेज में पढ़ने से बेहद खुश था। मगर वह नहीं जानता था कि अब आगे क्या होने वाला था??????



दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,,,
Nice Update
 
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