• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Thriller ♡ बेरहम इश्क़ ♡

kas1709

Well-Known Member
10,160
10,726
213
♡ बेरहम इश्क़ ♡
━━━━━━༻💔༺━━━━━━
भाग- ०१
━━━━━━━━━━━━





"अरे! आ गया तू।" टैक्सी की ड्राइविंग सीट पर बैठे लगभग तीस की उमर वाले व्यक्ति ने अपनी ही उमर के उस व्यक्ति को देख कर कहा जो अभी अभी टैक्सी का दरवाज़ा खोल कर अंदर उसके बगल वाली सीट पर बैठ गया था──"बड़ा टाइम लगा दिया तूने वापस आने में?"

"क्या बताऊं अरमान।" आगंतुक व्यक्ति ने हल्की मुस्कान होठों पर सजा कर कहा──"वापस आने का तो अभी भी दिल नहीं कर रहा था लेकिन तेरी वजह से आना पड़ा। वैसे मैंने तो तुझे बाहर ही कुछ देर इंतज़ार करने को कहा था पर तू जल्दी ही चला आया, क्यों भाई?"

"आज का दिन जहां तेरे लिए बेहद ख़ास था।" अरमान ने ठंडी सांस खींचते हुए कहा──"वहीं मेरे लिए बड़ा ही अजीब और बुरा था।"

"ये क्या कह रहा है तू?" आगंतुक चौंका──"कुछ ग़लत हुआ है क्या तेरे साथ?"

"आज तक अच्छा ही क्या हुआ है मेरे साथ?" अरमान ने कहा──"मेरे लिए इस संसार की जो सबसे बड़ी खुशी और कीमती दौलत थी वो तो नसीब ही नहीं हुई।"

"यार इमोशनल बातें मत कर।" आगंतुक ने बुरा सा मुंह बना कर कहा──"और साफ साफ बता हुआ क्या है?"

"बताया तो कि बड़ा अजीब भी हुआ है और बुरा भी।" अरमान ने कहा──"अजीब ये कि जिसे कई साल तलाश कर के थक गया था और आज भी उसे भूलने की कोशिश कर रहा हूं वो मेरे सामने आज अचानक प्रगट हो गई। उसके बाद बुरा ये हुआ कि उसने एक बार फिर से दिल को गहरी चोट दे दी।"

"आर यू टॉकिंग अबाउट प्रिया?" आगंतुक ने आश्चर्य से आंखें फैला कर अरमान को देखा──"ओह! माय गॉड। तेरी प्रिया से मुलाक़ात हुई?"

"हां विशाल।" अरमान ने गहरी सांस ली──"मैंने कभी एक्सपेक्ट नहीं किया था कि उससे इस तरह मुलाक़ात होगी।"

"पूरी बात बता।" विशाल ने जैसे उत्सुकता से पूछा──"कैसे मिली वो और तुम दोनों के बीच क्या बातें हुईं?"

"जब तू उस फाइव स्टार होटल के अंदर लाबी में अपनी पुरानी गर्लफ्रेंड से बात कर रहा था तो मैंने सोचा कि मेरा वहां पर मौजूद रहना ठीक नहीं है।" अरमान ने कहा──"इसी लिए मैंने तुझसे कहा था कि मैं बाहर जा रहा हूं लेकिन तूने मुझे होटल के बाहर इंतज़ार करने को कहा। मुझे पता था कि तुम दोनों कई सालों बाद मिले थे तो हाल चाल पूछने में समय ज़्यादा लग सकता है पर तूने बोला कि तू जल्दी ही बाहर आ जाएगा। मैंने सोचा ऐसा होगा तो नहीं लेकिन चलो थोड़ी देर इंतज़ार कर ही लेता हूं। बस, यही सोच के होटल के बाहर बिल्कुल गेट के पास ही आ कर खड़ा हो गया था। मुश्किल से दो ही मिनट गुज़रे रहे होंगे कि तभी पीछे से एक मधुर आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। किसी ने पीछे से अपनी मधुर आवाज़ में──'एक्सक्यूज़ मी' कहा था। आवाज़ क्योंकि जानी पहचानी सी लगी थी इस लिए मैं बिजली की स्पीड में पीछे की तरफ घूम गया था। अगले ही पल मेरी नज़र उस प्रिया पर पड़ी जिसे पिछले सात सालों से सिर्फ ख़्वाब में ही देखता आया था।"

"बड़े आश्चर्य की बात है।" विशाल तपाक से बोल पड़ा──"इतने सालों बाद वो एकदम से तेरे सामने कैसे प्रकट हो गई? सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या वो इसी शहर में थी?"

"नहीं, अगर वो इसी शहर में होती तो क्या मैं उसे ढूंढ नहीं लेता?" अरमान ने कहा──"ख़ैर, उसे देख कर उस वक्त मैं अपनी पलकें झपकाना ही भूल गया था। ऐसा फील हो रहा था जैसे मैं खुली आंखों से ही ख़्वाब देखने लगा हूं।"

"फिर?" विशाल ने उसी उत्सुकता से पूछा──"मेरा मतलब है कि क्या फिर तेरी उससे बातचीत हुई?"

"उसी की मधुर आवाज़ से मुझे होश आया था।" अरमान ने कहा──"फिर उसे देखते ही मेरे मुंह से उसका नाम निकल गया था जिसके चलते उसे पहले तो बड़ी हैरानी हुई लेकिन फिर मेरी आवाज़ से मुझे पहचान ग‌ई वो। पहचान लेने के बाद मेरे पास आई और फिर अजीब तरह से घूरने लगी मुझे। उसके बाद उसने जो कुछ कहा उसे सुन कर दिल छलनी छलनी हो गया था।"

"क्या कहा था उसने तुझे?" विशाल के चेहरे पर पलक झपकते ही कठोरता के भाव उभर आए──"मुझे बता अरमान, तेरा दिल दुखाने वाली उस प्रिया को ज़िंदा नहीं छोडूंगा मैं।"

"जाने दे।" अरमान ने कहा──"ऐसे व्यक्ति को कुछ कहने का क्या फ़ायदा जिसकी फितरत ही किसी का दिल दुखाना हो।"

"इसके बावजूद तू उस लड़की को भूल नहीं रहा?" विशाल ने इस बार नाराज़गी से कहा──"इतने पर भी तू ये उम्मीद लगाए बैठा है कि वो तुझे एक दिन वापस मिलेगी?"

"तुझे तो पता ही है कि उम्मीद पर ही ये दुनिया क़ायम है।" अरमान ने गहरी सांस ले कर कहा──"और मैं जो उम्मीद किए बैठा हूं वो एक दिन ज़रूर पूरी होगी। वैसे तेरी जानकारी के लिए बता दूं कि उसकी ख़्वाहिश पूरी हो गई है। मेरा मतलब है कि अब वो शादी शुदा है।"

"व्हाट???" विशाल बुरी तरह चौंका, फिर जल्दी ही खुद को सम्हाल कर बोला──"तो तू ये जानने के बाद भी कि वो शादी शुदा है उसे वापस पाने की उम्मीद कर रहा है?"

"बिल्कुल।" अरमान ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा──"अब तक मुझे इस बात पर शक था कि मेरी ख़्वाहिश कभी पूरी होगी भी या नहीं लेकिन अब पूरा यकीन हो गया है कि वो मुझे ज़रूर वापस मिलेगी।"

"कैसी बकवास कर रहा है तू?" विशाल ने जैसे झुंझला कर कहा──"जब वो शादी शुदा है तो भला वो कैसे तुझे वापस मिल जाएगी? उसको अगर तेरे जीवन में आना ही होता तो सात साल पहले तेरे सच्चे प्यार को वो ठोकर मार कर नहीं चली जाती।"

"जो पहले नहीं हो सका वो अब ज़रूर होगा विशाल।" अरमान ने अजीब भाव से कहा──"उसने मुझे इस लिए ठुकराया था क्योंकि मैं मिडिल क्लास फैमिली से बिलॉन्ग करता था, जबकि उसे अपने शौक पूरे करने के लिए कोई रईसजादा चाहिए था। एक ऐसा पति चाहिए था जो उसकी हर इच्छा पूरी करे और उसे रानी बना कर रखे।"

"तो क्या अब उसे ऐसा ही कोई रईसजादा पति के रूप में मिला हुआ है?" विशाल ने आंखें फैला कर पूछा।

"हां, कम से कम उसकी नज़र में तो वो ऐसा ही है।" अरमान ने कहा──"आज जब वो मुझे होटल के बाहर मिली थी तो मुझसे वैसे ही लहजे में बात कर रही थी जैसे उस समय किया था जब वो मुझसे हमेशा के लिए जुदा हो रही थी। तुझे पता है उसने सबसे पहले मुझसे क्या कहा? उसने कहा──'तुम्हारी हैसियत आज भी फाइव स्टार होटल को बस दूर से ही देखने की है, जबकि वो जब चाहे इस फाइव स्टार होटल के अंदर जा कर यहां के मंहगे मंहगे पकवान या कुछ भी खा पी सकती है। और ऐसा वो इस लिए कर सकती है क्योंकि उसका पति एक बहुत बड़ी कंपनी में ऊंची पोस्ट पर काम करता है। उसके पास किसी चीज़ की कमी नहीं है।"

"तूने उससे पूछा नहीं कि अब तक कहां ग़ायब थी वो?" विशाल ने कठोरता से कहा──"तूने उससे पूछा नहीं कि आज अचानक से वो तेरे सामने कैसे प्रगट हो गई है, जबकि तूने उसे खोजने में धरती आसमान एक कर दिया था?"

"तुझे पता ही है कि आज से सवा सात साल पहले जब उसने मुझसे रिश्ता तोड़ा था तो उसका मग़रूर बाप अपना घर बार बेच कर तथा उसे ले कर यहां से कहीं और चला गया था।" अरमान ने कहा──"मैंने अपनी तरफ से ये पता करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी कि उसका बाप उसे ले कर किस जगह गया है? ख़ैर आज उसने बताया कि आज से चार साल पहले उसकी शादी एक ऐसे व्यक्ति से हुई जो घर से तो थोड़ा अमीर था ही किंतु एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पोस्ट पर भी था।"

"एक मिनट।" विशाल ने बीच में ही टोकते हुए कहा──"उसकी शादी किसी पैसे वाले व्यक्ति से कैसे हो गई होगी जबकि उसके खुद के बाप की इतनी हैसियत नहीं थी कि वो किसी पैसे वाले घर में अपनी लड़की की शादी कर सके?"

"असल में जिस व्यक्ति से प्रिया की शादी हुई है वो पहले से ही शादी शुदा था और उसको एक चौदह साल की बेटी थी।" अरमान ने बताया──"उसकी बीवी क्योंकि किसी गंभीर बीमारी के चलते ईश्वर को प्यारी हो गई थी तो उसने प्रिया से शादी करने में कोई आना कानी नहीं की थी। प्रिया के अनुसार उस व्यक्ति को प्रिया बहुत पसंद आ गई थी इस लिए उसने उसके बाप से प्रिया का हाथ मांग लिया था। प्रिया को भी इस रिश्ते से इंकार नहीं था। इंकार होता भी कैसे? आख़िर उसकी चाहत तो यही थी कि किसी पैसे वाले घर में उसकी शादी हो जिससे वो हर तरह का शौक पूरा कर सके और हर सुख भोग सके। उसे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ा कि वो आदमी उमर में उससे कितना बड़ा है अथवा वो पहले से ही एक चौदह साल की बेटी का बाप है।"

"ओह! तो ये बात है।" विशाल ने कहने के साथ ही एक सिगरेट जलाई और फिर धुंआ उड़ाते हुए बोला──"चलो ये तो समझ आ गया कि प्रिया की लाइफ ऐसे बदली लेकिन अभी ये जानना बाकी है कि वो इतने सालों बाद आज अचानक उसी शहर में कैसे नज़र आ गई जिस शहर में उसके अतीत के रूप में तू मौजूद है?"

"मेरे पूछने पर उसने बताया कि एक महीना पहले उसके पति को इस शहर में मौजूद एक बहुत बड़ी कंपनी से जॉब का ऑफर आया था।" अरमान ने कहा───"उसके पति ने कंपनी को पहले अपनी टर्म्स एंड कंडीसन बताई और साथ ही कंपनी का मुआयना किया। जब उसे सब कुछ ठीक लगा तो उसने अपनी पहले वाली कंपनी में स्टीफा दे कर यहां की कंपनी ज्वॉइन कर ली। अभी पिछले हफ़्ते ही वो अपने पति के साथ इस शहर में शिफ्ट हुई है।"

"इंट्रेस्टिंग।" विशाल ने कहा──"तो क्या तुमने उससे ये भी पूछा कि उसका पति यहां किस कंपनी में ज्वॉइन हुआ है?"

"पूछने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी।" अरमान ने कहा──"वो इतना गुरूर में थी कि खुद ही सब कुछ बताती चली गई। उसने बताया कि उसका पति इस शहर की सबसे बड़ी कंपनी──पैराडाइज स्टील्स एण्ड पॉवर लिमिटेड में ऊंची पोस्ट पर है।

"ओह! आई सी।" विशाल के होठों पर सहसा हल्की सी मुस्कान उभर आई──"फिर तो भाई उसका यूं आसमान में उड़ना जायज़ है और साथ ही तुझे नीचा दिखाते हुए तेरा दिल दुखाना भी।"

उसकी इस बात पर अरमान कुछ न बोला।
उसके चेहरे पर कई तरह के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे।
उसने सीट पर ही रखे सिगरेट के पैकेट को उठाया और उससे एक सिगरेट निकाल कर जला ली।
विशाल अपनी दो उंगलियों के बीच सुलगती सिगरेट लिए उसी को देख रहा था।

"तो अब क्या सोच रहा है?" फिर उसने अरमान से पूछा──"तूने कहा कि तू इस सबके बावजूद उसे वापस हासिल करेगा लेकिन कैसे? आख़िर क्या सोचा है इस बारे में? कहीं तू....?"

"उसको जब चाहा तो चाहत की इंतहां कर दी हमने।" अरमान ने सिगरेट का गाढ़ा धुआं उड़ाते हुए अजीब भाव से कहा──"अब उसी चाहत में उसको हासिल करने की इंतहां करेंगे।"

"आख़िर क्या करने वाला है तू?" विशाल सम्हल कर बैठते हुए बोला──"कुछ ग़लत करने का तो नहीं सोच लिया है तूने?"

"इश्क़ और जंग में सब जायज़ है माय डियर फ्रेंड।" अरमान ने कहा───"बट यू डोंट वरी, मैं कोई भी काम ज़बरदस्ती नहीं करूंगा। अच्छा अब चलता हूं...।"

[][][][][]

"आंटी मेरे शूज़ कहां हैं? आपने कल उन्हें धुला था ना?" कॉलेज की यूनिफॉर्म पहने एक लड़की ने किचन की तरफ मुंह कर के आवाज़ दी──"जल्दी बताइए मुझे कॉलेज जाने के लिए लेट हो जाएगा।"

"तुम्हारे रूम में ही आलमारी के पास रख दिया था बेटा।" किचन से प्रिया ने थोड़ी ऊंची आवाज़ में बताया।

किचन में प्रिया अपने पति अशोक और अपनी सौतेली बेटी अंकिता के लिए ब्रेक फ़ास्ट तैयार कर रही थी।
प्रिया को रोज़ रोज़ किचन में खुद ही खाना बनाने में बड़ा गुस्सा आता था।

इसके पहले जिस जगह वो अपने पति के साथ रह रही थी वहां पर खाना बनाने के लिए एक नौकरानी थी। जबकि यहां पर उसे खुद ही सारे काम करने पड़ रहे थे।

उसने अशोक से कई बार कहा था कि घर के काम के लिए किसी नौकरानी का इंतज़ाम कर दें लेकिन अशोक काम की वजह से हर रोज़ टाल मटोल कर रहा था।

कंपनी जाते समय वो यही कहता कि आज इस बारे में किसी से बात करेगा लेकिन फिर वो भूल जाता था।
उसका पति अशोक लगभग पचास की उमर का व्यक्ति था।
यूं तो वो दिखने में अच्छा खासा था और रौबदार भी था लेकिन शरीर थोड़ा भारी हो गया था।
पेट थोड़ा से ज़्यादा बाहर निकल आया था।
सिर के बाल भी धीरे धीरे ग़ायब से होते नज़र आने लगे थे।
स्वभाव से वो शांत था।
अपनी बेटी अंकिता और दूसरी पत्नी प्रिया से वो बहुत प्यार करता था।

शांत स्वभाव होने के चलते प्रिया हमेशा उस पर हावी रहती थी और जो चाहती थी वो उससे करवाती रहती थी।
अशोक भी ये सोच कर कुछ नहीं बोलता था कि कम उमर की बीवी को नाराज़ करने से कहीं वो उसे छोड़ कर चली ना जाए।
वैसे भी पिछले साढ़े चार सालों से वो प्रिया की हर आदत से वाक़िफ हो गया था।

वैसे तो वो अपने इस छोटे से परिवार से बेहद खुश था लेकिन दो बातें अक्सर उसे उदास कर देती थीं।
एक तो ये कि उसके हज़ारों बार कहने पर भी उसकी बेटी अंकिता उसकी दूसरी बीवी को मां अथवा मॉम नहीं कहती थी बल्कि आंटी ही कहती थी और दूसरी ये कि औलाद के रूप में उसकी सिर्फ बेटी ही थी।
वो प्रिया से एक बेटा चाहता था लेकिन साढ़े चार साल शादी के हो जाने के बाद भी उसे प्रिया से कोई औलाद नहीं हो पाई थी।

वो जानता था कि प्रिया अभी भरपूर जवान है और वो पचास का हो चुका है।
वो सोचता था कि औलाद न होने वाली समस्या यकीनन उसी में होगी, क्योंकि संभव है कि पचास का हो जाने की वजह से वो प्रिया को प्रेग्नेंट न कर पा रहा होगा।
हालाकि प्रिया को इस बात से कोई शिकायत नहीं थी।
उसने कभी ये चाहत नहीं की थी कि उसको कोई बच्चा हो।
वो अंकिता को अपनी सगी बेटी की तरह ही मानती थी और उसे एक मां का प्यार दुलार देने की कोशिश करती रहती थी।

हां ये बात उसे भी थोड़ी तकलीफ़ देती थी कि अंकिता उसे मां नहीं बल्कि आंटी कहती है।

"आंटी, ब्रेक फ़ास्ट रेडी हुआ क्या?" अंकिता ने शूज़ पहने किचन के दरवाज़े के पास आ कर प्रिया से पूछा।

"हां बेटा रेडी हो गया है।" प्रिया ने पलट कर कहा──"तुम जा कर डायनिंग टेबल पर बैठो। तब तक मैं तुम्हारे लिए थाली में ब्रेक फ़ास्ट लगाती हूं।"

"ओके आंटी।"

"तुम्हारे डैड तैयार हुए क्या?"

"आई डोंट नो आंटी।" अंकिता ने कहा──"मेबी, रेडी हो रहे होंगे।"

थोड़ी ही देर में प्रिया ने ब्रेक फ़ास्ट अंकिता को सर्व कर दिया।
फिर वो अपने कमरे की तरफ बढ़ चली।
उसके मन में बार बार एक नौकरानी रखने का ख़याल आ रहा था।
वो इस बारे में अशोक को फिर से याद दिला देना चाहती थी।

"अरे! बस रेडी हो गया बेबी।" अशोक ने जैसे ही उसे कमरे में दाख़िल होते देखा तो झट से बोला──"और हां, मुझे याद है कि मुझे किसी से नौकरानी के बारे में चर्चा करनी है। डोंट वरी, आज मैं इस बात को बिल्कुल भी नहीं भूलूंगा।"

"आप भूलें या ना भूलें इससे मुझे कोई मतलब नहीं है।" प्रिया ने उखड़े हुए लहजे से कहा──"मैं सिर्फ इतना जानती हूं कि आज शाम को आप एक मेड ले कर ही यहां आएंगे और अगर ऐसा नहीं हुआ तो सोच लीजिए मैं क्या क़दम उठाऊंगी।"

"अरे! ये क्या कह रही हो तुम?" अशोक ने एकदम से चौंक कर कहा──"देखो तुम प्लीज़ कोई भी ऐसा वैसा क़दम नहीं उठाना। आई प्रॉमिस कि आज शाम को मैं अपने साथ एक मेड ले कर ही आऊंगा। चलो अब एक प्यारी सी मुस्कान अपने इन गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों पर सजाओ।"

प्रिया ने अशोक को पहले तो घूर कर देखा फिर अपने चेहरे को सामान्य कर के होठों पर मुस्कान सजा ली।

"ये हुई न बात।" अशोक उसके क़रीब आ कर उसे कंधों से पकड़ कर बोला──"यू नो, जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था तब तुम्हारी इसी मुस्कान को देख कर तुम पर मर मिटा था। यकीन मानो, आज भी तुम पर वैसे ही मिटा हुआ हूं। जब से तुम मेरी ज़िंदगी में आई हो तब से मेरी लाइफ खुशियों से भर गई है। मैं भी इसी कोशिश में लगा रहता हूं कि तुम्हें हर प्रकार की खुशियां दूं। एक पल के लिए भी तुम्हें कोई तकलीफ़ ना होने दूं। तभी तो तुम्हारी हर आरज़ू को झट से पूरा करने में लग जाता हूं।"

"चलिए अब बातें न बनाइए।" प्रिया ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा──"ब्रेक फ़ास्ट रेडी कर दिया है मैंने।"

"अच्छा सुनो ना।" अशोक ने थोड़ा धीमें से कहा──"अपने इन गुलाबी होठों की एक पप्पी दो ना।"

"नो, बिल्कुल नहीं।" प्रिया ने उससे दूर हट कर कहा──"पप्पी शप्पी तब तक नहीं मिलेगी जब तक आप कोई मेड ले कर नहीं आएंगे।"

"आज पक्का ले कर आऊंगा बेबी।" अशोक ने कहा──"आज यहां से जाते ही सबसे पहला काम यही करूंगा। मेरा यकीन करो, आज एक मेड ले कर ही आऊंगा अपने साथ। प्लीज़ अब तो खुश हो जाओ मेरी जान और अपने गुलाबी होठों को चूम लेने दो।"

अशोक जिस तरह से मिन्नतें कर रहा था और जिस प्यार से कर रहा था उससे प्रिया इंकार नहीं कर सकी।
वो जानती थी कि उसके पति ने आज तक उसकी किसी भी बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया है।

बहरहाल, वो आगे बढ़ी और अपने चेहरे को अशोक के सामने ऐसे तरीके से पेश किया कि अशोक बड़े आराम से उसके होठों को चूम सके।

कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था इस लिए अशोक ने पहले खुले दरवाज़े से बाहर की तरफ निगाह डाली।
असल में वो नहीं चाहता था कि उसकी बेटी अंकिता ये सब देख ले।
हालाकि अठारह साल की अंकिता अब इस बात से अंजान नहीं थी कि पति पत्नी के बीच किस तरह से प्यार मोहब्बत का आदान प्रदान होता है।
लेकिन शांत स्वभाव और मान मर्यादा का ख़याल रखने वाला अशोक इन सब बातों में थोड़ा परहेज़ रखता था।

बेफिक्र होने के बाद वो आगे बढ़ा और प्रिया के चेहरे को अपनी हथेलियों में ले कर बहुत ही आहिस्ता से उसके गुलाबी होठों को चूम लिया।

"बस बस इतना काफी है।" प्रिया ने खुद को उससे दूर किया और कहा──"अब चलिए वरना ब्रेक फ़ास्ट ठंडा हो जाएगा।"

मुस्कुराता हुआ अशोक उसके पीछे पीछे ही कमरे से बाहर आ गया।
जहां एक तरफ प्रिया उसके लिए ब्रेक फ़ास्ट लगाने किचन में चली गई वहीं दूसरी तरफ वो डायनिंग टेबल के पास आ कर एक कुर्सी पर बैठ गया।
उसके बाएं साइड वाली कुर्सी पर उसकी बेटी अंकिता ब्रेक फ़ास्ट कर रही थी।

"गुड मॉर्निंग डैड।"

"मॉर्निंग माय प्रिंसेस।" अशोक ने प्यार से अपनी बेटी को देखा──"बाय दि वे, कैसा लग रहा है कॉलेज में? किसी से दोस्ती हुई या नहीं?"

"नाट बैड डैड।" अंकिता ने कहा──"स्टार्टिंग में एक दो दिन अजीब फील हो रहा था बट नाऊ ऑल गुड। मेरी दो तीन गर्ल्स से दोस्ती हो गई है।"

"ओह! दैट्स ग्रेट।" अशोक ने कहा──"ये तो बहुत अच्छी बात है। वैसे मुझे यकीन है कि मेरी प्रिंसेस ने जिन लड़कियों से दोस्ती की है वो मेरी प्रिंसेस की ही तरह पढ़ाई में स्मार्ट होंगी और सिर्फ पढ़ाई पर ही फोकस रखती होंगी, राइट?"

"यस डैड।" अंकिता ने कहा──"मैं फालतू लोगों से दोस्ती ही नहीं करती।"

"वैरी गुड।"

"ये लीजिए।" तभी प्रिया ने टेबल पर ब्रेक फ़ास्ट की प्लेट रखते हुए कहा──"अब चुपचाप ब्रेक फ़ास्ट कीजिए और हां, आज अंकिता को आप कॉलेज छोड़ दीजिएगा।"

"क्यों?" अशोक चौंका──"बस नहीं आएगी क्या आज?"

"आएगी।" प्रिया ने कहा──"और ये बस में भी जा सकती है लेकिन बात ये है कि किसी ज़रूरी काम से इसके कॉलेज में आपको बुलाया गया है। तो जब आपको इसके कॉलेज जाना ही है तो अपने साथ ही कार में लेते जाइएगा इसे।"

"मुझे भला किस काम से बुलाया गया है इसके कॉलेज में?" अशोक ने कहने के साथ ही अंकिता की तरफ देखा──"बेटा तुमने बताया नहीं मुझे?"

"सॉरी डैड।" अंकिता ने कहा──"आपको बताना भूल गई थी बट आंटी को बता दिया था।"

"ओके फाईन।" अशोक ने कहा──"लेकिन तुम्हारे कॉलेज में किस काम से जाना है मुझे?"

"पता नहीं डैड।" अंकिता ने अपने कंधे उचकाए──"मुझसे प्रिंसिपल मैम ने कहा तो मैंने आ कर आंटी को बता दिया।"

"हां तो क्या?" प्रिया ने कहा──"आप चले जाइए। जो भी बात होगी वहां जाने से आपको ख़ुद ही पता चल जाएगी।"

अशोक ने इसके बाद कुछ नहीं कहा।
दोनों बाप बेटी ने ख़ामोशी से ब्रेक फ़ास्ट किया और फिर थोड़ी देर में दोनों कार से निकल गए। पीछे फ़्लैट में प्रिया अकेली घर के बाकी कामों में जुट गई थी।
क्रमशः....
Nice update....
 
  • Like
Reactions: TheBlackBlood
10,293
43,197
258
एक और अधूरे स्टोरी के लिए हार्दिक अभिनंदन शुभम सर :congrats:
फर्स्ट अपडेट पढ़कर लगता है कहानी सामाजिक मेलोड्रामा है पर आगे चलकर शायद थ्रिल और सस्पेंस का गठजोड़ भी देखने को मिले ।
वैसे प्रिया मैडम ने ऐसा भी किसी अमीर लड़के से शादी नही की है जिस का दम्भ वह अरमान के सामने कर रही थी । एक सर्वेंट तक रही रख पाए इतने वर्षों तक फिर किस बात का अमीर !
एक चीज यह भी नजर आ रहा है कि प्रिया मैडम हमारे हीरो अरमान से सच्चे मन से मोहब्बत की ही नही । वह सिर्फ अपना फ्यूचर सेट करना चाहती थी इसलिए अपने से भी डबल उम्र वाले और एक विधुर व्यक्ति से शादी कर ली ।
इस लिए अरमान का प्रिया के इर्द-गिर्द मंडराने से किसी का भी भला नही होने वाला । बेहतर है वो प्रिया की सौतेली पुत्री अंकिता पर डोरे डाले ! जब ताजा भोजन उपलब्ध है तो बासी भोजन पर दिमाग क्यों खपाना !
और खबरदार जो आप ने या आप के हीरो ने प्रिया पर बुरी नजर डाली , खासकर मर्डर वगैरह तो हरगिज भी मत करवा देना !
I can't see a damsel in distress . :D

खुबसूरत अपडेट शुभम भाई ।
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
9,820
37,686
219
एक और अधूरे स्टोरी के लिए हार्दिक अभिनंदन शुभम सर :congrats:
फर्स्ट अपडेट पढ़कर लगता है कहानी सामाजिक मेलोड्रामा है पर आगे चलकर शायद थ्रिल और सस्पेंस का गठजोड़ भी देखने को मिले ।
वैसे प्रिया मैडम ने ऐसा भी किसी अमीर लड़के से शादी नही की है जिस का दम्भ वह अरमान के सामने कर रही थी । एक सर्वेंट तक रही रख पाए इतने वर्षों तक फिर किस बात का अमीर !
एक चीज यह भी नजर आ रहा है कि प्रिया मैडम हमारे हीरो अरमान से सच्चे मन से मोहब्बत की ही नही । वह सिर्फ अपना फ्यूचर सेट करना चाहती थी इसलिए अपने से भी डबल उम्र वाले और एक विधुर व्यक्ति से शादी कर ली ।
इस लिए अरमान का प्रिया के इर्द-गिर्द मंडराने से किसी का भी भला नही होने वाला । बेहतर है वो प्रिया की सौतेली पुत्री अंकिता पर डोरे डाले ! जब ताजा भोजन उपलब्ध है तो बासी भोजन पर दिमाग क्यों खपाना !
और खबरदार जो आप ने या आप के हीरो ने प्रिया पर बुरी नजर डाली , खासकर मर्डर वगैरह तो हरगिज भी मत करवा देना !
I can't see a damsel in distress . :D

खुबसूरत अपडेट शुभम भाई ।
संजू भाई! इस कहानी के कुछ अपडेट तो आ जाने दो तब देना ऐसे खतरनाक रिव्यू :D
 
Last edited:
10,293
43,197
258
संजू भाई! इस कहानी के कुछ अपडेट तो आ जाने दो तब देना ऐसे खतरनाक रिव्यू :D
शुभम साहब हर राइटर की बखिया उधेड़ते फिर रहे है तो फिर हम शुभम साहब को क्यों छोड़ दे ! :D
 

dhparikh

Well-Known Member
10,601
12,238
228
♡ बेरहम इश्क़ ♡
━━━━━━༻💔༺━━━━━━
भाग- ०१
━━━━━━━━━━━━





"अरे! आ गया तू।" टैक्सी की ड्राइविंग सीट पर बैठे लगभग तीस की उमर वाले व्यक्ति ने अपनी ही उमर के उस व्यक्ति को देख कर कहा जो अभी अभी टैक्सी का दरवाज़ा खोल कर अंदर उसके बगल वाली सीट पर बैठ गया था──"बड़ा टाइम लगा दिया तूने वापस आने में?"

"क्या बताऊं अरमान।" आगंतुक व्यक्ति ने हल्की मुस्कान होठों पर सजा कर कहा──"वापस आने का तो अभी भी दिल नहीं कर रहा था लेकिन तेरी वजह से आना पड़ा। वैसे मैंने तो तुझे बाहर ही कुछ देर इंतज़ार करने को कहा था पर तू जल्दी ही चला आया, क्यों भाई?"

"आज का दिन जहां तेरे लिए बेहद ख़ास था।" अरमान ने ठंडी सांस खींचते हुए कहा──"वहीं मेरे लिए बड़ा ही अजीब और बुरा था।"

"ये क्या कह रहा है तू?" आगंतुक चौंका──"कुछ ग़लत हुआ है क्या तेरे साथ?"

"आज तक अच्छा ही क्या हुआ है मेरे साथ?" अरमान ने कहा──"मेरे लिए इस संसार की जो सबसे बड़ी खुशी और कीमती दौलत थी वो तो नसीब ही नहीं हुई।"

"यार इमोशनल बातें मत कर।" आगंतुक ने बुरा सा मुंह बना कर कहा──"और साफ साफ बता हुआ क्या है?"

"बताया तो कि बड़ा अजीब भी हुआ है और बुरा भी।" अरमान ने कहा──"अजीब ये कि जिसे कई साल तलाश कर के थक गया था और आज भी उसे भूलने की कोशिश कर रहा हूं वो मेरे सामने आज अचानक प्रगट हो गई। उसके बाद बुरा ये हुआ कि उसने एक बार फिर से दिल को गहरी चोट दे दी।"

"आर यू टॉकिंग अबाउट प्रिया?" आगंतुक ने आश्चर्य से आंखें फैला कर अरमान को देखा──"ओह! माय गॉड। तेरी प्रिया से मुलाक़ात हुई?"

"हां विशाल।" अरमान ने गहरी सांस ली──"मैंने कभी एक्सपेक्ट नहीं किया था कि उससे इस तरह मुलाक़ात होगी।"

"पूरी बात बता।" विशाल ने जैसे उत्सुकता से पूछा──"कैसे मिली वो और तुम दोनों के बीच क्या बातें हुईं?"

"जब तू उस फाइव स्टार होटल के अंदर लाबी में अपनी पुरानी गर्लफ्रेंड से बात कर रहा था तो मैंने सोचा कि मेरा वहां पर मौजूद रहना ठीक नहीं है।" अरमान ने कहा──"इसी लिए मैंने तुझसे कहा था कि मैं बाहर जा रहा हूं लेकिन तूने मुझे होटल के बाहर इंतज़ार करने को कहा। मुझे पता था कि तुम दोनों कई सालों बाद मिले थे तो हाल चाल पूछने में समय ज़्यादा लग सकता है पर तूने बोला कि तू जल्दी ही बाहर आ जाएगा। मैंने सोचा ऐसा होगा तो नहीं लेकिन चलो थोड़ी देर इंतज़ार कर ही लेता हूं। बस, यही सोच के होटल के बाहर बिल्कुल गेट के पास ही आ कर खड़ा हो गया था। मुश्किल से दो ही मिनट गुज़रे रहे होंगे कि तभी पीछे से एक मधुर आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। किसी ने पीछे से अपनी मधुर आवाज़ में──'एक्सक्यूज़ मी' कहा था। आवाज़ क्योंकि जानी पहचानी सी लगी थी इस लिए मैं बिजली की स्पीड में पीछे की तरफ घूम गया था। अगले ही पल मेरी नज़र उस प्रिया पर पड़ी जिसे पिछले सात सालों से सिर्फ ख़्वाब में ही देखता आया था।"

"बड़े आश्चर्य की बात है।" विशाल तपाक से बोल पड़ा──"इतने सालों बाद वो एकदम से तेरे सामने कैसे प्रकट हो गई? सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या वो इसी शहर में थी?"

"नहीं, अगर वो इसी शहर में होती तो क्या मैं उसे ढूंढ नहीं लेता?" अरमान ने कहा──"ख़ैर, उसे देख कर उस वक्त मैं अपनी पलकें झपकाना ही भूल गया था। ऐसा फील हो रहा था जैसे मैं खुली आंखों से ही ख़्वाब देखने लगा हूं।"

"फिर?" विशाल ने उसी उत्सुकता से पूछा──"मेरा मतलब है कि क्या फिर तेरी उससे बातचीत हुई?"

"उसी की मधुर आवाज़ से मुझे होश आया था।" अरमान ने कहा──"फिर उसे देखते ही मेरे मुंह से उसका नाम निकल गया था जिसके चलते उसे पहले तो बड़ी हैरानी हुई लेकिन फिर मेरी आवाज़ से मुझे पहचान ग‌ई वो। पहचान लेने के बाद मेरे पास आई और फिर अजीब तरह से घूरने लगी मुझे। उसके बाद उसने जो कुछ कहा उसे सुन कर दिल छलनी छलनी हो गया था।"

"क्या कहा था उसने तुझे?" विशाल के चेहरे पर पलक झपकते ही कठोरता के भाव उभर आए──"मुझे बता अरमान, तेरा दिल दुखाने वाली उस प्रिया को ज़िंदा नहीं छोडूंगा मैं।"

"जाने दे।" अरमान ने कहा──"ऐसे व्यक्ति को कुछ कहने का क्या फ़ायदा जिसकी फितरत ही किसी का दिल दुखाना हो।"

"इसके बावजूद तू उस लड़की को भूल नहीं रहा?" विशाल ने इस बार नाराज़गी से कहा──"इतने पर भी तू ये उम्मीद लगाए बैठा है कि वो तुझे एक दिन वापस मिलेगी?"

"तुझे तो पता ही है कि उम्मीद पर ही ये दुनिया क़ायम है।" अरमान ने गहरी सांस ले कर कहा──"और मैं जो उम्मीद किए बैठा हूं वो एक दिन ज़रूर पूरी होगी। वैसे तेरी जानकारी के लिए बता दूं कि उसकी ख़्वाहिश पूरी हो गई है। मेरा मतलब है कि अब वो शादी शुदा है।"

"व्हाट???" विशाल बुरी तरह चौंका, फिर जल्दी ही खुद को सम्हाल कर बोला──"तो तू ये जानने के बाद भी कि वो शादी शुदा है उसे वापस पाने की उम्मीद कर रहा है?"

"बिल्कुल।" अरमान ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा──"अब तक मुझे इस बात पर शक था कि मेरी ख़्वाहिश कभी पूरी होगी भी या नहीं लेकिन अब पूरा यकीन हो गया है कि वो मुझे ज़रूर वापस मिलेगी।"

"कैसी बकवास कर रहा है तू?" विशाल ने जैसे झुंझला कर कहा──"जब वो शादी शुदा है तो भला वो कैसे तुझे वापस मिल जाएगी? उसको अगर तेरे जीवन में आना ही होता तो सात साल पहले तेरे सच्चे प्यार को वो ठोकर मार कर नहीं चली जाती।"

"जो पहले नहीं हो सका वो अब ज़रूर होगा विशाल।" अरमान ने अजीब भाव से कहा──"उसने मुझे इस लिए ठुकराया था क्योंकि मैं मिडिल क्लास फैमिली से बिलॉन्ग करता था, जबकि उसे अपने शौक पूरे करने के लिए कोई रईसजादा चाहिए था। एक ऐसा पति चाहिए था जो उसकी हर इच्छा पूरी करे और उसे रानी बना कर रखे।"

"तो क्या अब उसे ऐसा ही कोई रईसजादा पति के रूप में मिला हुआ है?" विशाल ने आंखें फैला कर पूछा।

"हां, कम से कम उसकी नज़र में तो वो ऐसा ही है।" अरमान ने कहा──"आज जब वो मुझे होटल के बाहर मिली थी तो मुझसे वैसे ही लहजे में बात कर रही थी जैसे उस समय किया था जब वो मुझसे हमेशा के लिए जुदा हो रही थी। तुझे पता है उसने सबसे पहले मुझसे क्या कहा? उसने कहा──'तुम्हारी हैसियत आज भी फाइव स्टार होटल को बस दूर से ही देखने की है, जबकि वो जब चाहे इस फाइव स्टार होटल के अंदर जा कर यहां के मंहगे मंहगे पकवान या कुछ भी खा पी सकती है। और ऐसा वो इस लिए कर सकती है क्योंकि उसका पति एक बहुत बड़ी कंपनी में ऊंची पोस्ट पर काम करता है। उसके पास किसी चीज़ की कमी नहीं है।"

"तूने उससे पूछा नहीं कि अब तक कहां ग़ायब थी वो?" विशाल ने कठोरता से कहा──"तूने उससे पूछा नहीं कि आज अचानक से वो तेरे सामने कैसे प्रगट हो गई है, जबकि तूने उसे खोजने में धरती आसमान एक कर दिया था?"

"तुझे पता ही है कि आज से सवा सात साल पहले जब उसने मुझसे रिश्ता तोड़ा था तो उसका मग़रूर बाप अपना घर बार बेच कर तथा उसे ले कर यहां से कहीं और चला गया था।" अरमान ने कहा──"मैंने अपनी तरफ से ये पता करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी कि उसका बाप उसे ले कर किस जगह गया है? ख़ैर आज उसने बताया कि आज से चार साल पहले उसकी शादी एक ऐसे व्यक्ति से हुई जो घर से तो थोड़ा अमीर था ही किंतु एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पोस्ट पर भी था।"

"एक मिनट।" विशाल ने बीच में ही टोकते हुए कहा──"उसकी शादी किसी पैसे वाले व्यक्ति से कैसे हो गई होगी जबकि उसके खुद के बाप की इतनी हैसियत नहीं थी कि वो किसी पैसे वाले घर में अपनी लड़की की शादी कर सके?"

"असल में जिस व्यक्ति से प्रिया की शादी हुई है वो पहले से ही शादी शुदा था और उसको एक चौदह साल की बेटी थी।" अरमान ने बताया──"उसकी बीवी क्योंकि किसी गंभीर बीमारी के चलते ईश्वर को प्यारी हो गई थी तो उसने प्रिया से शादी करने में कोई आना कानी नहीं की थी। प्रिया के अनुसार उस व्यक्ति को प्रिया बहुत पसंद आ गई थी इस लिए उसने उसके बाप से प्रिया का हाथ मांग लिया था। प्रिया को भी इस रिश्ते से इंकार नहीं था। इंकार होता भी कैसे? आख़िर उसकी चाहत तो यही थी कि किसी पैसे वाले घर में उसकी शादी हो जिससे वो हर तरह का शौक पूरा कर सके और हर सुख भोग सके। उसे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ा कि वो आदमी उमर में उससे कितना बड़ा है अथवा वो पहले से ही एक चौदह साल की बेटी का बाप है।"

"ओह! तो ये बात है।" विशाल ने कहने के साथ ही एक सिगरेट जलाई और फिर धुंआ उड़ाते हुए बोला──"चलो ये तो समझ आ गया कि प्रिया की लाइफ ऐसे बदली लेकिन अभी ये जानना बाकी है कि वो इतने सालों बाद आज अचानक उसी शहर में कैसे नज़र आ गई जिस शहर में उसके अतीत के रूप में तू मौजूद है?"

"मेरे पूछने पर उसने बताया कि एक महीना पहले उसके पति को इस शहर में मौजूद एक बहुत बड़ी कंपनी से जॉब का ऑफर आया था।" अरमान ने कहा───"उसके पति ने कंपनी को पहले अपनी टर्म्स एंड कंडीसन बताई और साथ ही कंपनी का मुआयना किया। जब उसे सब कुछ ठीक लगा तो उसने अपनी पहले वाली कंपनी में स्टीफा दे कर यहां की कंपनी ज्वॉइन कर ली। अभी पिछले हफ़्ते ही वो अपने पति के साथ इस शहर में शिफ्ट हुई है।"

"इंट्रेस्टिंग।" विशाल ने कहा──"तो क्या तुमने उससे ये भी पूछा कि उसका पति यहां किस कंपनी में ज्वॉइन हुआ है?"

"पूछने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी।" अरमान ने कहा──"वो इतना गुरूर में थी कि खुद ही सब कुछ बताती चली गई। उसने बताया कि उसका पति इस शहर की सबसे बड़ी कंपनी──पैराडाइज स्टील्स एण्ड पॉवर लिमिटेड में ऊंची पोस्ट पर है।

"ओह! आई सी।" विशाल के होठों पर सहसा हल्की सी मुस्कान उभर आई──"फिर तो भाई उसका यूं आसमान में उड़ना जायज़ है और साथ ही तुझे नीचा दिखाते हुए तेरा दिल दुखाना भी।"

उसकी इस बात पर अरमान कुछ न बोला।
उसके चेहरे पर कई तरह के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे।
उसने सीट पर ही रखे सिगरेट के पैकेट को उठाया और उससे एक सिगरेट निकाल कर जला ली।
विशाल अपनी दो उंगलियों के बीच सुलगती सिगरेट लिए उसी को देख रहा था।

"तो अब क्या सोच रहा है?" फिर उसने अरमान से पूछा──"तूने कहा कि तू इस सबके बावजूद उसे वापस हासिल करेगा लेकिन कैसे? आख़िर क्या सोचा है इस बारे में? कहीं तू....?"

"उसको जब चाहा तो चाहत की इंतहां कर दी हमने।" अरमान ने सिगरेट का गाढ़ा धुआं उड़ाते हुए अजीब भाव से कहा──"अब उसी चाहत में उसको हासिल करने की इंतहां करेंगे।"

"आख़िर क्या करने वाला है तू?" विशाल सम्हल कर बैठते हुए बोला──"कुछ ग़लत करने का तो नहीं सोच लिया है तूने?"

"इश्क़ और जंग में सब जायज़ है माय डियर फ्रेंड।" अरमान ने कहा───"बट यू डोंट वरी, मैं कोई भी काम ज़बरदस्ती नहीं करूंगा। अच्छा अब चलता हूं...।"

[][][][][]

"आंटी मेरे शूज़ कहां हैं? आपने कल उन्हें धुला था ना?" कॉलेज की यूनिफॉर्म पहने एक लड़की ने किचन की तरफ मुंह कर के आवाज़ दी──"जल्दी बताइए मुझे कॉलेज जाने के लिए लेट हो जाएगा।"

"तुम्हारे रूम में ही आलमारी के पास रख दिया था बेटा।" किचन से प्रिया ने थोड़ी ऊंची आवाज़ में बताया।

किचन में प्रिया अपने पति अशोक और अपनी सौतेली बेटी अंकिता के लिए ब्रेक फ़ास्ट तैयार कर रही थी।
प्रिया को रोज़ रोज़ किचन में खुद ही खाना बनाने में बड़ा गुस्सा आता था।

इसके पहले जिस जगह वो अपने पति के साथ रह रही थी वहां पर खाना बनाने के लिए एक नौकरानी थी। जबकि यहां पर उसे खुद ही सारे काम करने पड़ रहे थे।

उसने अशोक से कई बार कहा था कि घर के काम के लिए किसी नौकरानी का इंतज़ाम कर दें लेकिन अशोक काम की वजह से हर रोज़ टाल मटोल कर रहा था।

कंपनी जाते समय वो यही कहता कि आज इस बारे में किसी से बात करेगा लेकिन फिर वो भूल जाता था।
उसका पति अशोक लगभग पचास की उमर का व्यक्ति था।
यूं तो वो दिखने में अच्छा खासा था और रौबदार भी था लेकिन शरीर थोड़ा भारी हो गया था।
पेट थोड़ा से ज़्यादा बाहर निकल आया था।
सिर के बाल भी धीरे धीरे ग़ायब से होते नज़र आने लगे थे।
स्वभाव से वो शांत था।
अपनी बेटी अंकिता और दूसरी पत्नी प्रिया से वो बहुत प्यार करता था।

शांत स्वभाव होने के चलते प्रिया हमेशा उस पर हावी रहती थी और जो चाहती थी वो उससे करवाती रहती थी।
अशोक भी ये सोच कर कुछ नहीं बोलता था कि कम उमर की बीवी को नाराज़ करने से कहीं वो उसे छोड़ कर चली ना जाए।
वैसे भी पिछले साढ़े चार सालों से वो प्रिया की हर आदत से वाक़िफ हो गया था।

वैसे तो वो अपने इस छोटे से परिवार से बेहद खुश था लेकिन दो बातें अक्सर उसे उदास कर देती थीं।
एक तो ये कि उसके हज़ारों बार कहने पर भी उसकी बेटी अंकिता उसकी दूसरी बीवी को मां अथवा मॉम नहीं कहती थी बल्कि आंटी ही कहती थी और दूसरी ये कि औलाद के रूप में उसकी सिर्फ बेटी ही थी।
वो प्रिया से एक बेटा चाहता था लेकिन साढ़े चार साल शादी के हो जाने के बाद भी उसे प्रिया से कोई औलाद नहीं हो पाई थी।

वो जानता था कि प्रिया अभी भरपूर जवान है और वो पचास का हो चुका है।
वो सोचता था कि औलाद न होने वाली समस्या यकीनन उसी में होगी, क्योंकि संभव है कि पचास का हो जाने की वजह से वो प्रिया को प्रेग्नेंट न कर पा रहा होगा।
हालाकि प्रिया को इस बात से कोई शिकायत नहीं थी।
उसने कभी ये चाहत नहीं की थी कि उसको कोई बच्चा हो।
वो अंकिता को अपनी सगी बेटी की तरह ही मानती थी और उसे एक मां का प्यार दुलार देने की कोशिश करती रहती थी।

हां ये बात उसे भी थोड़ी तकलीफ़ देती थी कि अंकिता उसे मां नहीं बल्कि आंटी कहती है।

"आंटी, ब्रेक फ़ास्ट रेडी हुआ क्या?" अंकिता ने शूज़ पहने किचन के दरवाज़े के पास आ कर प्रिया से पूछा।

"हां बेटा रेडी हो गया है।" प्रिया ने पलट कर कहा──"तुम जा कर डायनिंग टेबल पर बैठो। तब तक मैं तुम्हारे लिए थाली में ब्रेक फ़ास्ट लगाती हूं।"

"ओके आंटी।"

"तुम्हारे डैड तैयार हुए क्या?"

"आई डोंट नो आंटी।" अंकिता ने कहा──"मेबी, रेडी हो रहे होंगे।"

थोड़ी ही देर में प्रिया ने ब्रेक फ़ास्ट अंकिता को सर्व कर दिया।
फिर वो अपने कमरे की तरफ बढ़ चली।
उसके मन में बार बार एक नौकरानी रखने का ख़याल आ रहा था।
वो इस बारे में अशोक को फिर से याद दिला देना चाहती थी।

"अरे! बस रेडी हो गया बेबी।" अशोक ने जैसे ही उसे कमरे में दाख़िल होते देखा तो झट से बोला──"और हां, मुझे याद है कि मुझे किसी से नौकरानी के बारे में चर्चा करनी है। डोंट वरी, आज मैं इस बात को बिल्कुल भी नहीं भूलूंगा।"

"आप भूलें या ना भूलें इससे मुझे कोई मतलब नहीं है।" प्रिया ने उखड़े हुए लहजे से कहा──"मैं सिर्फ इतना जानती हूं कि आज शाम को आप एक मेड ले कर ही यहां आएंगे और अगर ऐसा नहीं हुआ तो सोच लीजिए मैं क्या क़दम उठाऊंगी।"

"अरे! ये क्या कह रही हो तुम?" अशोक ने एकदम से चौंक कर कहा──"देखो तुम प्लीज़ कोई भी ऐसा वैसा क़दम नहीं उठाना। आई प्रॉमिस कि आज शाम को मैं अपने साथ एक मेड ले कर ही आऊंगा। चलो अब एक प्यारी सी मुस्कान अपने इन गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों पर सजाओ।"

प्रिया ने अशोक को पहले तो घूर कर देखा फिर अपने चेहरे को सामान्य कर के होठों पर मुस्कान सजा ली।

"ये हुई न बात।" अशोक उसके क़रीब आ कर उसे कंधों से पकड़ कर बोला──"यू नो, जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था तब तुम्हारी इसी मुस्कान को देख कर तुम पर मर मिटा था। यकीन मानो, आज भी तुम पर वैसे ही मिटा हुआ हूं। जब से तुम मेरी ज़िंदगी में आई हो तब से मेरी लाइफ खुशियों से भर गई है। मैं भी इसी कोशिश में लगा रहता हूं कि तुम्हें हर प्रकार की खुशियां दूं। एक पल के लिए भी तुम्हें कोई तकलीफ़ ना होने दूं। तभी तो तुम्हारी हर आरज़ू को झट से पूरा करने में लग जाता हूं।"

"चलिए अब बातें न बनाइए।" प्रिया ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा──"ब्रेक फ़ास्ट रेडी कर दिया है मैंने।"

"अच्छा सुनो ना।" अशोक ने थोड़ा धीमें से कहा──"अपने इन गुलाबी होठों की एक पप्पी दो ना।"

"नो, बिल्कुल नहीं।" प्रिया ने उससे दूर हट कर कहा──"पप्पी शप्पी तब तक नहीं मिलेगी जब तक आप कोई मेड ले कर नहीं आएंगे।"

"आज पक्का ले कर आऊंगा बेबी।" अशोक ने कहा──"आज यहां से जाते ही सबसे पहला काम यही करूंगा। मेरा यकीन करो, आज एक मेड ले कर ही आऊंगा अपने साथ। प्लीज़ अब तो खुश हो जाओ मेरी जान और अपने गुलाबी होठों को चूम लेने दो।"

अशोक जिस तरह से मिन्नतें कर रहा था और जिस प्यार से कर रहा था उससे प्रिया इंकार नहीं कर सकी।
वो जानती थी कि उसके पति ने आज तक उसकी किसी भी बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया है।

बहरहाल, वो आगे बढ़ी और अपने चेहरे को अशोक के सामने ऐसे तरीके से पेश किया कि अशोक बड़े आराम से उसके होठों को चूम सके।

कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था इस लिए अशोक ने पहले खुले दरवाज़े से बाहर की तरफ निगाह डाली।
असल में वो नहीं चाहता था कि उसकी बेटी अंकिता ये सब देख ले।
हालाकि अठारह साल की अंकिता अब इस बात से अंजान नहीं थी कि पति पत्नी के बीच किस तरह से प्यार मोहब्बत का आदान प्रदान होता है।
लेकिन शांत स्वभाव और मान मर्यादा का ख़याल रखने वाला अशोक इन सब बातों में थोड़ा परहेज़ रखता था।

बेफिक्र होने के बाद वो आगे बढ़ा और प्रिया के चेहरे को अपनी हथेलियों में ले कर बहुत ही आहिस्ता से उसके गुलाबी होठों को चूम लिया।

"बस बस इतना काफी है।" प्रिया ने खुद को उससे दूर किया और कहा──"अब चलिए वरना ब्रेक फ़ास्ट ठंडा हो जाएगा।"

मुस्कुराता हुआ अशोक उसके पीछे पीछे ही कमरे से बाहर आ गया।
जहां एक तरफ प्रिया उसके लिए ब्रेक फ़ास्ट लगाने किचन में चली गई वहीं दूसरी तरफ वो डायनिंग टेबल के पास आ कर एक कुर्सी पर बैठ गया।
उसके बाएं साइड वाली कुर्सी पर उसकी बेटी अंकिता ब्रेक फ़ास्ट कर रही थी।

"गुड मॉर्निंग डैड।"

"मॉर्निंग माय प्रिंसेस।" अशोक ने प्यार से अपनी बेटी को देखा──"बाय दि वे, कैसा लग रहा है कॉलेज में? किसी से दोस्ती हुई या नहीं?"

"नाट बैड डैड।" अंकिता ने कहा──"स्टार्टिंग में एक दो दिन अजीब फील हो रहा था बट नाऊ ऑल गुड। मेरी दो तीन गर्ल्स से दोस्ती हो गई है।"

"ओह! दैट्स ग्रेट।" अशोक ने कहा──"ये तो बहुत अच्छी बात है। वैसे मुझे यकीन है कि मेरी प्रिंसेस ने जिन लड़कियों से दोस्ती की है वो मेरी प्रिंसेस की ही तरह पढ़ाई में स्मार्ट होंगी और सिर्फ पढ़ाई पर ही फोकस रखती होंगी, राइट?"

"यस डैड।" अंकिता ने कहा──"मैं फालतू लोगों से दोस्ती ही नहीं करती।"

"वैरी गुड।"

"ये लीजिए।" तभी प्रिया ने टेबल पर ब्रेक फ़ास्ट की प्लेट रखते हुए कहा──"अब चुपचाप ब्रेक फ़ास्ट कीजिए और हां, आज अंकिता को आप कॉलेज छोड़ दीजिएगा।"

"क्यों?" अशोक चौंका──"बस नहीं आएगी क्या आज?"

"आएगी।" प्रिया ने कहा──"और ये बस में भी जा सकती है लेकिन बात ये है कि किसी ज़रूरी काम से इसके कॉलेज में आपको बुलाया गया है। तो जब आपको इसके कॉलेज जाना ही है तो अपने साथ ही कार में लेते जाइएगा इसे।"

"मुझे भला किस काम से बुलाया गया है इसके कॉलेज में?" अशोक ने कहने के साथ ही अंकिता की तरफ देखा──"बेटा तुमने बताया नहीं मुझे?"

"सॉरी डैड।" अंकिता ने कहा──"आपको बताना भूल गई थी बट आंटी को बता दिया था।"

"ओके फाईन।" अशोक ने कहा──"लेकिन तुम्हारे कॉलेज में किस काम से जाना है मुझे?"

"पता नहीं डैड।" अंकिता ने अपने कंधे उचकाए──"मुझसे प्रिंसिपल मैम ने कहा तो मैंने आ कर आंटी को बता दिया।"

"हां तो क्या?" प्रिया ने कहा──"आप चले जाइए। जो भी बात होगी वहां जाने से आपको ख़ुद ही पता चल जाएगी।"

अशोक ने इसके बाद कुछ नहीं कहा।
दोनों बाप बेटी ने ख़ामोशी से ब्रेक फ़ास्ट किया और फिर थोड़ी देर में दोनों कार से निकल गए। पीछे फ़्लैट में प्रिया अकेली घर के बाकी कामों में जुट गई थी।
क्रमशः....
Nice update....
 
  • Like
Reactions: TheBlackBlood

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,808
117,453
354
Congratulations for new story
Thanks dear :hug:
शानदार शुरुआत है कहानी की,
प्रिया एक गोल्डीगर लड़की थी जिसने अरमान को पैसे के लिए छोड़ दिया और अब एक 18 वर्षीय सौतेली बेटी के साथ अपने बुजुर्ग होते पति के साथ रह रही है और शायद अब उसका पति अशोक अरमान की ही कंपनी में जॉब करने वापसी इस शहर में आया है
अरमान के अरमान जग गए है प्रिया को हासिल करने के
अब कैसे और क्या करता है अरमान
First update me hi aapko itna kuch pata chal gaya... :bow:

Is story ka title zarur zahen me rakhiyega, kyoki isme aapko kafi kuch aisa dikhega jo zyadatar logo ko pasand nahi aayega but agar aap hero ki mentality ko deeply samjhengi to realise bhi karengi ki waisa hona uske hisaab se natural tha. Anyway thanks for your valuable feedback/response..sath Bane rahiyega :dost:
 
Top