Chutiyadr
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bhahut badiya bechari champa sab use pelne me hi lage hue hai
उसका नाम माया है...?bhahut badiya bechari champa sab use pelne me hi lage hue hai
उसका नाम माया है...?
Laptop par to offline hai.... Mein 6-7 sal se istemal kar raha hu.... Offlineबढ़िया चीज बताई आपने , क्या ये ऑफलाइन भी काम करता है ?
Galti se mistake hoi gawaउसका नाम माया है...?
Laptop par to offline hai.... Mein 6-7 sal se istemal kar raha hu.... Offline
हमारे डॉक्टर साहब आपके कहानी के पात्र की जगह अपनी कहानी के पात्र का नाम लिख दिए!
Thanks for suggestion champa ji .शुक्रिया Ironman,
मैं अंग्रेजी, हिंदी और बांग्ला में कहानियां लिखती हूं और आपने बिल्कुल सही फरमाया कि किसी भी भाषा में लिखी हुई कहानियां उसी भाषा की फोंट में पढ़ने का मजा ही कुछ और है... इसलिए मैं आपसे कुछ शेयर करना चाहती हूं|
आप भी देवनगरी में कहानियां लिख सकते हैं, इसके लिए आप एक वेबसाइट का इस्तेमाल कर सकते हैं जिसका इस्तेमाल मैं करती हूं| सबसे मजेदार बात यह है कि यहां आपको कोई सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करने की जरूरत नहीं है| आप ऑनलाइन ही इसका फायदा उठा सकते हैं| वह वेबसाइट है https://www.google.com/intl/sa/inputtools/try/
आप यहां रोमन में टाइप कर सकते हैं, और यह वेबसाइट उसे देवनगरी में बदल देगा जैसे कि आपने लिखा
Yeh meri hahani hai तो साईट में लिखा हुआ आएगा "यह मेरी कहानी है "
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Awesome updateअध्याय ३
माँठाकुराइन ने अपने दोनों पैरों के तलवों को उनके सामने एक मखमली फुज्जीदार रेशमी शाल तरह फैले हुए मेरे बालों पर रखा है और उसके बाद वह फिर पैर उठाकर पालती मारकर बैठ गई|
मैंने उसी झुकी हुई हालत में कहा, “छाया मौसी आप भी अपने पैर मेरे बालों पर रखिए उसके बाद ही मैं अपना सर उठाऊंगी|”
“अरी! अरी! पागल लड़की यह तू क्या कह रही? मैं भला तेरे बालों में अपना पैर क्यों रखूंगी?”, मौसी हिचकिचा रही थी|
मैने कहा “तो क्या हुआ मौसी? तुम तो मेरी मौसी हो, मेरी बड़ी हो| मुझे आशीर्वाद नहीं दोगी?”
मौसी अपने जोड़ों के दर्द से लड़ती हुई अपनी टांगों को बिस्तर से उतार कर मेरे बालों पर रखा फिर वह भी वापस पालती मारकर बैठ गई|
उनके चरणो की धूल कों अपने सर में लेकर जैसे ही मैं उठ कर बैठी, मेरा आंचल सरक गया| मैं वह तंग ब्लाउज पहन रखा था और मेरे अच्छी तरह से विकसित सुडौल स्तन और उनका विपाटन माँठाकुराइन और छाया मौसी के सामने बिल्कुल बेपर्दा हो गया.... यहाँ तक कि मेरे ब्लाउज में से मेरी चुचियाँ भी साफ उभर आई थी, वह भी उन दोनों एक ही झलक में पक्का साफ़ देख लिया होगा... हाय दैया!
मैंने जैसे-तैसे जल्दी-जल्दी अपना आंचल संभाला उसके बाद अपने बालों को गर्दन के पास इकट्ठा करके एक जुड़ा बना कर हाथ बँधे उन दोनों औरतों के सामने खड़ी हो गई| आखिर मैंने अपने बड़ों की पैरों की धुल को अपने माथे पर लिया था, ऐसे कैसे मैं अपने बाल यूँ ही खुले छोड़ दूँ?
“अरी वाह, छाया!”, माँठाकुराइन ने मुझे काफ़ी देर नख से शीख तक निहारने के बाद बोली, “आज बहुत दिनों के बाद मैंने किसी लड़की के अध्-गीले बालों पर अपने पैर रखे हैं, मुझे बहुत अच्छा लगा…. यह लड़की तो गाँव के तौर तरीकों और तहज़ीबों से पूरी तरह वाकिफ़ लगती है... अच्छे संस्कार हैं इसके... मैं तो न जाने कब से ऐसी ही एक लड़की की तलाश में हूं जिससे मैं अपने पास अपनी रखैल (नौकरानी) बनाकर रखूं… कौन है यह? पहले तो तूने इस लड़की ज़िक्र नहीं किया था... फिर कौन है यह लड़की?”
छाया मौसी जैसे थोड़ा सोच में पड गई| उन्हे अपने जीवन की कुछ पुरानी बातें जो याद आ गई... उसने अपनी नज़रें माँठाकुराइन के चेहरे से हटा कर कमरे एक कोने में देखने लगी, जैसे की शायद अपनी पिछली ज़िंदगी की यादों के कुछ पन्नों पलट रहीं हों, फिर वह बोली, “हाँ, माँठाकुराइन, आपने सही कहा, मैं आप तो जानती ही हैं... शादी के कुछ ही दिनों बाद पति की मौत हो गई थी... फिर क्या था? ससुरालवालों ने मुझे घर से निकल दिया, सिर्फ़ अठारह साल की थी मैं तब| मेरे मयके के गाँववालों ने भी मुझे घर में नही रहने दिया, उनका मानना थी की मैं शादी के बाद ही अपने पति को खा गई... शायद मैं इस दुनियाँ में अपशकुन बन कर आई हूँ... उस वक़्त अगर आप की सिफारिश की वजह से दुर्गापुरवाले बक्शी बाबू और उनकी पत्नी नें मुझे सहारा नही दिया होता; तो मैं ना जाने किस हाल में होती... आप तो जानती ही है कि यह उन्ही का घर है... उन्होने मुझे यहाँ बतौर नौकरानी के हिसाब से रहने को दिया...”
इतना कहते- कहते छाया मौसी की आँखों में आँसू आ गये| मैने अपना आंचल ठीक करके, उसके एक कोने से छाया मौसी के आँसू पोंछे और उनके एक कंधे पर अपना सिर रख कर और दूसरे हाथ से उनका पीठ सहला- सहला उन्हे दिलासा देती रही|
“यह बातें तो मैं जानती हूँ, छाया...”, माँठाकुराइन नें बड़े प्यार से मेरे चेहरे और बालों में हाथ फेरा और जैसे उन्होंने फिर से पुछा, “लेकिन तू ने अभी तक यह नही बताया कि आख़िर यह लड़की है कौन?... मैं जानती हूँ की बक्शी बाबू तेरे उपर बहुत मेहेरबान भी थे और यह लड़की तेरी बेटी की उम्र की तो ज़रूर है”, माँठाकुराइन के चेहरे पर एक टेढ़ी सी मुस्कान खिल उठी...
माँठाकुराइन इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि मैं अपने पिता और छाया मौसी के अवैध संबंध की निशानी हूँ| मैंने उनकी इस बात का बुरा नहीं माना, क्योंकि ऐसी बातें मैं पहले भी सुन चुकी हूं| लोग सोचते थे की छाया मौसी मेरे पिताजी की रखैल थी|
अब असलियत का तो मुझे नहीं पता लेकिन मैंने इस बारे में इतना सुन रखा था कि अब मुझे इन बातों का कोई असर ही नहीं होता था| छाया मौसी ने अभी तक कुछ नहीं बोला था, वह बस सिसकियाँ भर रही थी... लेकिन माँठाकुराइन मुद्दे पर अड़ी रहीं और बोलीं, “पर यह लड़की तेरी पैदा की हुई तो नही लगती है, बहुत ही सुंदर है यह, हाँ मेरे हिसाब से इसका रूप-रंग अभी और भी निखरेगा, लेकिन कौन है यह?... पड़ौस की रहनेवाली? या फिर इसे तू किसी पेड़ से तोड़ कर लाई है... आख़िर अगर तू अपना सारा कुछ बेच भी देगी तो भी इस तरह की लड़की को किसी गुलाम बाजार से खरीद के घर में अपनी रखैल बनाकर रखने के पैसे नहीं जुटा पाएगी तू… ऐसी खूबसूरत सी हूर को कहीं से उठा के तो नही ले कर आई?... आ- हा- हा- हा”, इतना कह कर माँठाकुराइन ठहाका मार कर हंस पड़ी…
यह सुन कर मैं थोड़ा चौंक सी गई, की माँठाकुराइन यह क्या कह रहीं हैं? लेनिक फिर मैने सोचा कि शायद माँठाकुराइन मज़ाक कर रही थीं, छाया मौसी का मिज़ाज ठीक करने के लिए, लेकिन वह मेरी तारीफ़ भी तो कर रही थी… और वैसे भी आख़िर किस लड़की को माँठाकुराइन जैसी एक प्रसिद्ध और सम्मानित औरत के मूह से अपनी तारीफ सुनना अच्छा नही लगेगा?
माँठाकुराइन ने गौर किया कि मैं अपनी ही तारीफ सुनकर शर्म से लाल हो रही थी...
अब छाया मौसी भी थोड़ा मुस्कुराके बोली, “हा- हा- हा... नही, नही यह बक्शीजी की ही बेटी है| बक्शीजी तो वैसे भी कारोबार के सिलसिले में गाँव से दूर शहर में रहा करते थे, यहाँ इस गाँव के इस तीन कमरों के दो मंज़िला मकान में बक्शी जी की विधवा माँ और उनकी बीवी के साथ मैं रह रही थी..." फिर उन्होंने मेरे उद्देश में कहा, "यह भी मेरी तरह अभागन है, माँठाकुराइन| बक्शीजी की माँ को तो एक दिन परलोक सिधारना ही था... बेचारी बुढ़िया चल बसी एक दिन... उसके बाद उसके बाद इसकी मां- बेचारी को न जाने कौन सी बीमारी हुई थी- वह भी चल बसी… अपनी बीवी की भी मौत के बाद बक्शीजी भी जैसे बेसुध से हो गये थे... वह इसे मेरी देख रेख में ही छोड़ कर शहर में अपना कारोबार सम्भलने लगे... पहले तो वह हर महीने गाँव का चक्कर लगते थे, पर धीरे-धीरे उनका यहाँ आना जाना जैसे रुक सा गया... लेकिन महीने के महीने घर चलाने के और इसकी देख रेख के पैसे वह बराबर भेजते रहते हैं... तीन साल की भी नही थी यह जब इसकी माँ भी चल बसी थी... तबसे मैं ने ही इसे पाल पोस कर बड़ा किया है...”
एक बार फिर मैने गौर किया कि माँठाकुराइन मुझे न ज़ाने किस इरादे से घुरे जा रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि उनकी नज़रें जैसे मेरे पुरे बदन को छु -छु कर परख रही थी... फिर वह मुस्कुराके बोली, “मैने ठीक ही समझा था, मैं इसको एक झलक देख कर ही समझ गई थी कि यह लड़की ज़रूर एक अच्छे और ऊँचे जात की है…”
"हां माँठाकुराइन! पर क्या करूं मुझे मैं तो अपने जोड़ों के दर्द से लाचार हूं, कुछ काम ही नहीं कर पाती कहां मैं इस लड़की की देखभाल करूंगी और कहा यह मेरे लिए रखैल की तरह खट-खट के मर रही है... एक दासी- एक बांदी बस आप यूँ समझ लो कि यह एक रखैल की तरह की तरह घर के सारे काम कर रही है यह...."
माँठाकुराइन सीधे मेरी आँखों में न जाने क्या देख रही थी? मैने अपनी नज़रें झुका ली|
फिर माँठाकुराइन ने मुझ से कहा, “ज़रा पास आ तो री छोरी…”
क्रमश: