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Fantasy ♥माया♥ (Maya)

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naag.champa

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Aisa lag raha hai yeh maathakurian Tantrik hai aur koi siddi ke liye Maya ko use karegi. Chaya ka interest abhi clear nahi lag raha hai woh sayad confuse hai .
Abhi shuruwat hai story ki mein kuch jaada dimaagh laga raha hun.
Last teeno update aache the, Hindi aapki mother tounge nahi hai phir bhi aapne Hindi language me story likhkar kai acche writers fail kar diye .
keep it up.

आपके समर्थन और प्रोत्साहन के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, covid2020
giphy.gif
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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102,762
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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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लगता है उपडेट 6 और 7 डिलीट हो गए हैं।
काल 6,7 और 8 पोस्ट कर दूंगी।
Ok.
Naye update ka intzar rahega
 

naag.champa

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अध्याय ६


जब मुझे होश आया तब मैंने देखा कि मैं जमीन पर ही पड़ी हुई हूं, मेरी गर्दन एक तरफ लुढ़की हुई है और मेरे खुले हुए मुंह से टपकते हुए लार से मेरे चेहरे का एक हिस्सा बिलकुल गीला हो गया था| मेरे सिर के बाल बिल्कुल उसी तरह खुले और फैले हुए थे… जिन पर माँठाकुराइन अपना आसान लगा कर बैठी थी|

उसके बाद मैने देखा माँठाकुराइन और छाया मौसी कमरे की एक तरफ बैठी हुईं हैं| मोमबत्तियां तभी भी जल रही थी लेकिन उनका आकर काफ़ी छोटा हो गया था| मोम गल कर फैल गई थी|

मोमबत्ती से बने उस त्रिकोण के अंदर, जहां पहले छाया मौसी बैठी हुई थी, अब वहां वह लोटा रखा हुआ था और अभी भी छाया मौसी सिर्फ जांघिया पहने हुए ही बैठी थी; पर माँठाकुराइन ने अपने बदन पर एक साड़ी लपेट ली थी और वह छाया मौसी को बड़े प्यार से खाना खिला रही थी|

“यह देख, छाया! देखा मैंने कहा था ना कि हमारी रखैल को थोड़ी ही देर में होश आ जाएगा?” मुझे धीरे-धीरे जागते देखकर के माँठाकुराइन बोली|

मेरा सर दर्द से फटा जा रहा था... मुझे बहुत तेज प्यास भी लग रही थी| शायद माँठाकुराइन यह बात भाँप गई और उन्होंने गिलास में थोड़ी सी शराब डाली और उसमें थोड़ा सा पानी मिलाया और बोली, “अपने चेहरे से मुँह से टपकी हुई लार को पोंछ ले लड़की... उसके बाद थोड़ा सा पी भी ले... इससे तेरे सर का दर्द गायब हो जाएगा…”

मैं किसी तरह उठकर डगमगाते हुए उनके पास गई और आदत अनुसार अपने बालों को गर्दन के पीछे इकट्ठा करके एक जुड़ा बांधने को हुई; तभी माँठाकुराइन ने मुझे रोका, “अरी नहीं-नहीं लड़की! भूल गई मैंने तुझसे कहा था ना कि जब तक मैं ना कहूं, तुझे अपने बालों को बांधने की इजाजत नहीं है? और फिलहाल तू नंगी ही रहेगी चल अब हमारे सामने उकडूँ होकर बैठ जा और गटागट थोड़ी सी शराब पी लें.... नशा कर ले… उसके बाद मैं अपने हाथों से तेरे को खाना खिलाऊंगी...”

फिर वह छाया मौसी से बोली, “अभी तो इसे तेरी मालिश करनी है| तेरे सो जाने के बाद मैं भी इस से इसके नरम नरम हाथों से अपनी मालिश करवाऊंगी...”

मैं उनके सामने उकडूँ हो कर बैठ कर, छोटे छोटे घूँट ले ले कर धीरे धीरे शराब पी रही थी|

माँठाकुराइन बड़े प्यार से मेरे बालों को सहलाती रही... मेरे स्तनों पर हाथ फेरती रही... उन्हें हल्के हल्के दबा दबा कर देखती रही फिर उन्होंने कहा, “बहुत अच्छे बड़े- बड़े से दुद्दु हैं इसके… बिल्कुल तने-तने से...”

माँठाकुराइन ने अपनी झोली से एक उस्तरा निकाला और बोलीं, “मैं उस्तरे से अपनी इस रखैल के झाँटों (जघन के बालों) की सफाई करूंगी| देखा नहीं कैसा जंगल सा बना हुआ है इसके दो टांगों के बीच में? मुझे तो इसका भग (योनांग) भी दिखाई नहीं दे रहा… और अभी तो मैंने इसकी जवानी का स्वाद भी नहीं चखा| काफी दिन हो गए मुझे अकेले रहते रहते… मैं अपनी मालिश करवाऊंगी इससे... खूब प्यार करूंगी इसको... जी भरके भोगुंगी इसकी ज़वानी को... इस खिलती हुई कली को मैं एक सुंदर सा फूल बना दूंगी और यकीन मान छाया उसके बाद यह सिर्फ तेरी ही होकर रह जाएगी| बस जब जब मैं तेरे पास आऊं… बस रात भर के लिए इस लड़की को मेरे पास छोड़ देना... “, माँठाकुराइन मेरे दो टांगों के बीच के हिस्से में हाथ फेरती हुई- मुस्कुराती हुई बोलीं|

मेरे सर का दर्द ठीक हो गया था मैं थोड़ा चंगा भी महसूस कर रही थी| लेकिन मुझे नशा चढ़ता जा रहा था, माँठाकुराइन की बातें न जाने क्यों मुझे अच्छी लग रही थी|

मेरे बदन में एक अजीब सी सिहरन सी जाग रही थी और मेरा मन में पता नहीं क्यों एक अजीब सा यौन एहसास भरता जा रहा था|

क्रमश:


 
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naag.champa

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अध्याय ७


हम सब खाना खा चुके थे| मुझे पूरी तरह से नशा चढ़ गया था... बहुत हल्का हल्का महसूस हो रहा था मुझे... मेरे पेट के निचले हिस्से में मुझे हल्की हल्की गुदगुदी सी महसूस भी हो रही थी, मानो सैकड़ों तितलियाँ उड़ती फिर रही हों… दोनों टांगों के बीच का हिस्सा गीला- गीला सा महसूस हो रहा था.... मैं बीच-बीच में बिना किसी बात के खिलखिलाकर हंस भी दे रही थी...

शायद यह माँठाकुराइन को और यहां तक की छाया मौसी को भी अच्छा लग रहा था|

मैं अपनी सारी लाज शर्म हया में बिल्कुल भूल चुकी थी...

इतने में माँठाकुराइन ने अपने झोले में से उस्तरा निकाला और फिर मुझे धीरे-धीरे लिटा कर के मेरी दोनों टांगो को फैला कर बड़ी सावधानी से मेरे उस्तरे से झाँटों (जघन के बालों) की सफाई कर दी थी... वह चाहती थीं कि मेरा भग (योनांग) कोरा- गंजा रहे -एकदम सॉफ सुथरा और अछूता- बिल्कुल मेरी कौमार्य की तरह| उन्होंने अपनी साड़ी के आंचल से मेरे दोनों टांगों के बीच का हिस्सा साफ किया फिर अपने हाथों से जमीन पर बिखरे हुए झांटो को इकट्ठा करके एक कपडे की पुड़िया में अच्छी तरह लपेट कर धागे से बांधा और उसे चूम कर अपने झोले में रख लिया|

छाया मौसी भी माँठाकुराइन के साथ बैठ के शराब पी रही थी, उनको भी नशा चढ़ गया था| लेकिन आखिरकार उन्होंने माँठाकुराइन से पूछ ही लिया, “माँठाकुराइन, यह आप क्या कर रही हैं?”

माँठाकुराइन बोली, “कुछ नहीं, बस इसकी झांटे संभाल के रख रही हूं| पहले इसको कुछ देर के लिए अपने वश में करने के लिए मैंने उसके माथे पर भस्मी का तिलक लगाया था लेकिन उसका असर ज्यादा देर तक नहीं रहता और अब, जब तक इसकी झांटे मेरे पास रहेंगी यह पूरी तरह मेरे वश में रहेगी और तेरी दासी- तेरी बाँदी- तेरी रखैल बन कर रहेगी... तू जो चाहे उसके साथ कर सकेगी”

मैं जो चाहे माया के साथ कर सकती हूं? मतलब, जैसा जैसा आप कर सकती हैं क्या मैं बिल्कुल वैसा वैसा कर पाऊंगी... यानी कि आपकी तरह?... मेरा मतलब है कि जैसा कि आपका... आपके अंदर एक खास शक्ति है... एक खास काबिलियत है... बिल्कुल वैसा ही?”

“हाँ, हाँ बिल्कुल ठीक! मैं तुझे किस लायक बना दूंगी| तूने इस लौंडिया को मुझे देख कर के, मेरे एहसानों का उधार तूने चुका दिया है| पर भूलना मत कि यह लौंडिया अब तेरे पास मेरी अमानत है... याद रखना कि यह लौंडिया अब मेरी चीज है, मेरी पालतू पुतली... जिंदा खिलौना| इसकी हर तरह से देखरेख करना अब तेरी जिम्मेदारी है| तू इसकी हर जरूरत पूरी करेगी... यहां तक कि ' वह' भी... ताकि जब जब मैं आऊं... तो यह लौंडिया मेरी हर ख्वाहिश पूरी करने के लिए बिलकुल तैयार हो... और जैसा कि मैंने कहा, इसके बदले जिंदगी भर यह तेरी दासी- बांदी- रखैल बन कर रहेगी, घर के सारे काम कर देगी झाड़ू- पोछा- बर्तन- चूल्हा- चौका सब कुछ..."

“पर माँठकुराइन, इसका बाप दो हर एक या दो महीने में यहां हम लोगों से मिलने आता है| हम लोगों का खर्चा पानी दे जाता है| वह अगर इसकी शादी की बात करेगा, तब मैं क्या करूंगी?”

यह सुनकर माँठकुराइन बोली, “उसकी चिंता तू मत कर, जब उसका बाप आ कर उसकी शादी की बात करेगा| तो तुम मुझे खबर कर देना| मैं उसके बाप का भी इंतजाम कर दूंगी, और हां जब इसका बाप आए, दूसरे दिखाने के लिए ही सही मेरी इस लौंडिया को अच्छी तरह कंघा छोटी करके कपड़े पहनने की इजाजत देना| अगर इसके बाप ने उसको नंगी देख लिया तो उसे शक हो जाएगा कि कुछ गड़बड़ है”

माँठकुराइन और छाया मौसी की बातें मुझे सुनाई तो दे रही थी, लेकिन मुझे समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था| मुझे तो सिर्फ एक अजीब सी सुकून का एहसास हो रहा था...

छाया मौसी को जोड़ों के दर्द की शिकायत काफी सालों से है और उस दौरान से ही मैं घर के सारे काम करती थी… उनका पूरा पूरा ख्याल रखती थी| शायद अब छाया मौसी को इसकी आदत पड़ गई थी इसलिए… शायद इसलिए… माँठाकुराइन की बातें सुनकर छाया मौसी मुक्सुराई- आखिरकार माँठकुराइन ने उनके लिए मुझ जैसी एक रखैल का इंतज़ाम जो कर दिया था |

माँठाकुराइन ने मुझसे कहा, “चल छोरी! बहुत हो गया लाड़-प्यार अब उठ जा एक चटाई लाकर के कमरे में बिछा दे| फिर मैं तुझे बताती हूं कि मेरे हुए मेरे जादू टोने और मंत्र फूँके हुए तेल से तेरी मौसी का कैसे मालिश करनी है...”

फिर माँठाकुराइन ने अपना मिट्टी का लोटा लाकर मेरे सामने रख दिया और उसमें जो बचा हुआ पानी रखा हुआ था, उसको मुझे पीला दिया। फिर अपनी झोली में से एक तेल की शीशी निकाल कर बोलीं, “चल री लड़की... यह तेल दोनों हाथों में मलले और धीरे-धीरे मौसी के जोड़ों की मालिश करती रह...”

माँठाकुराइन जैसे जैसे बोलती गई, वैसा वैसा मैं करती गई- कलाई... कंधा.. गर्दन... छाती- दुद्दु (स्तन)... कमर...

मेरे खुले हुए बालों का कुछ हिस्सा मेरे सामने से लटक रहा था और बार बार मौसी के बदन को सहला रहा था|

पता नहीं क्यों मौसी को मेरी बालो की छुअन मौसी बहुत अच्छा लग रहा था|

वह एक टक मेरी तरफ से देखे जा रही थी मेरे झूलते हुए खुले बाल.... मेरे डोलते हुए स्तन.. मेरा नंगे बदन का स्पर्श... न जाने क्यों उन्हें बहुत अच्छा लग रहा… यह बात उनकी अधखुली नशीली आंखों की चमक और होठों पर एक अजीब सी हलकी मुस्कुराहट से साफ जाहिर थी और सच मानो तो इस हालत में मुझे भी एक अजीब सा सुकून सा महसूस हो रहा था… ख़ास कर तब, जब वह मुझे देख- देख कर हल्का- हल्का मुस्कुरा रही थी और बीच- बीच में मेरे बालों को... गालों को... यहाँ तक के मेरे स्तनों को सहला- सहला कर मुझे प्यार भी कर रहीं थी...

ऐसी बात नहीं है कि से पहले मैंने छाया मौसी को छुआ ना हो लेकिन तब हालात कुछ और ही थे| मैं उनके बालों मे तेल लगा दिया करती थी... नहाने के बाद उनके के बालों में कंघी कर दिया करती थी चोटी या फिर जुडा बना दिया करती थी और अभी कुछ महीनों से तो जोड़ों के दर्द की वजह से छाया मुझसे ठीक तरह से अपने हाथ पैर नहीं हिला पाती थी इसलिए मैं उन्हें कपड़े बदलने में भी मदद किया करती थी... तब मैंने उनका नंगा सीना देखा था| मुझे याद है जब मैं बहुत छोटी थी तब एक बार मैंने छाया मौसी से पूछा था मौसी आपके कितने बड़े बड़े दूध है मेरे कब होंगे? तब उन्होंने कहा था जब तू बड़ी हो जाएगी तो तेरी भी होंगे...

अब मैं बड़ी हो गई थी... मेरे स्तनों का विकास भी अच्छी तरह से हुआ था... चलते वक्त हर कदम पर मेरा स्तनों का जोड़ा थिरकता था... बहुत अच्छे बड़े- बड़े से दुद्दु हैं अब तो मेरे… बिल्कुल तने-तने से... जैसा की माँठाकुराइन ने कहा था… मेरे पेट के निचले हिस्से में गुदगुदी बढ़ती ही जा रही थी…

मेरा चेहरा गरम हो रहा था.... हल्का हल्का पसीना आ रहा था... मेरी सांसे लंबी और गहरी होती जा रही थी मेरे स्तनों की चूचियां खड़ी होकर एकदम सख़्त हो चुकी थी और न जाने क्यों मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरी यौनांग के आस-पास का हिस्सा गीला व थोड़ा चिपचिपा सा लग रहा है…

मुझे शायद अपनी जिंदगी में पहली बार अपने अंदर यौन उत्तेजना का ऐसा ज्वार आता हुआ महसूस हो रहा था…

मैं इतनी बड़ी और समझदार तो हो चुकी थी कि यह समझ सकूँ कि आते जाते लोग मुझे घूर घूर कर क्यों देखते हैं… क्यों बैध जी मेरे बालों को छूते हैं और उसके बाद ही मेरी नज़रें बचा कर अपने दो टांगों के बीच के हिस्से को सहलाते हैं... क्यों लोगों की नजरें पहले मेरे चेहरे पर और उसके बाद मेरी छाती पर जाकर टिकती है... मैं तो यहां तक जान चुकी थी कि बंद कमरे के अंदर पति पत्नी आपस में क्या करते हैं... और हां, मैं यह जान गई थी कि कि सहवास किसे कहते हैं... बच्चे कैसे पैदा होते हैं... मेरी कुछ सहेलियां शादीशुदा थी, वह भी कुछ इस तरह की बातें किया करती थी, उन्हें सुन सुन कर मुझे बड़ा मजा आता था|

तब भी मेरे बदन में एक अजीब सी सिहरन से पैदा होती थी और पेट के निचले हिस्से में ऐसी ही थोड़ी-थोड़ी गुदगुदी सी महसूस होती थी|

लेकिन आज यह एहसास शायद कुछ ज्यादा ही मेरे उपर हावी हो रहा था...

लेकिन मेरी तो अभी शादी नहीं हुई और यहां?... यहां तो सिर्फ माँठाकुराइन, मेरी छाया मौसी और मैं ही हूं… और हम तीनो के तीनों औरतें ही हैं… अब मेरा क्या होगा? मेरे बदन में आग सी लग रही है… अगर इस पर सुकून की बरसात नहीं हुई, तो शायद मैं इसी आग में जल कर आज मर ही जाऊंगी…

मेरी आंखों के आगे बाजार में देखे हुए दो चार आदमियों के याद रहने वाले चेहरे... वैधजी... दुकान के वह लड़के... इन सब की तस्वीरें घूमने लगी... मैं जानती थी कि लोगों की नज़रें मुझ पर हैं…

मेरी जवानी का फल पक चुका है... मैं सुंदर हूं... और इस वक्त इस बरसात की इस रात में, मैं बिल्कुल नंगी हूं… मेरे अंदर एक प्यास भड़क रही है....

काश माँठाकुराइन एक औरत ना होकर एक आदमी होती…

क्रमश:


 
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naag.champa

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अध्याय ८


छाया मौसी सो चुकी थी| उनके बदन पर सिर्फ उनके जंघीए के सिवाय एक भी कपड़ा नहीं था... बाल भी खुले और अस्त व्यस्त थे... पर न जाने कितने दिनों बाद उनको उनको ऐसे चैन की नींद सोते हुए देख कर न जाने क्यों मेरे मन को भी थोड़ी शांति से मिल रही थी...

लेकिन इधर शायद मेरा अपना शरीर मेरे काबू से बाहर हो रहा था| मैं एक अजीब से आवेश में आकर के अब थोड़ा-थोड़ा कांपने लगी थी मेरा पूरा बदन पसीने से तर हो चुका था... मेरी आंखों की पुतलियां बड़ी बड़ी सी हो चुकी थी…

माँठाकुराइन मुझे देखते हुए शराब पी रही थी... फिर उन्होंने मुझसे कहा, “ले माया... जो बची खुची शराब है, इसको गटक जा...”, यह कहकर उन्होंने अपना जूठा गिलास मेरी तरफ बताया बढ़ाया...

मैंने तुरंत उनके हाथ से गिलास लिया और एक ही घूंट में बचा खुचा शराब पी गई... शायद मैं यह सोच रही थी की उनका दिया हुआ शराब पीने से शायद मेरे मन और मेरे बदन को थोड़ी शांति मिलेगी... लेकिन नही... मैं उठकर बाहर जाने लगी…

“कहां जा रही है?”, माँठाकुराइन ने मुझ से पूछा|

मैंने कहा, “थोड़ा बाहर जा रही थी...”

“क्यों?”

“मुझे बहुत जोर की पिशाब लगी है...”

“ठीक है, चल मैं तेरे साथ चलती हूं, तू नंगी है... तेरे बाल भी खुले हुए हैं; ऐसी हालत में तेरा अकेले बाहर जाना ठीक नहीं|”

यह कहकर माँठाकुराइन ने मेरे बालों को समेट कर मेरी गर्दन के पास अपने बाँये हाथ की मुठ्ठी मे एक पोनी टेल जैसे गुच्छे में करके पकड़ कर बड़े जतन के साथ मुझे कमरे से बाहर ले गई|

पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे बालों को इस तरह से पकड़कर माँठाकुराइन यह जताना चाहती है कि अब उसका मेरे ऊपर उनका पूरा का पूरा अधिकार है, वह जो चाहे मेरे साथ कर सकती है.... तब तक थोड़ी तेज़ बारिश रुक चुकी थी| ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी और उन हवाओं के झोंकों ने और बारिद के छींटों ने मानो मेरे बदन में कामना की इच्छा की आग को और भी भड़का दिया|

गुसलखाने में जब मैं पेशाब करने बैठी तब माँठाकुराइन ने मेरे बालों को सिरों के पास से अपने हाथों से उठाकर पकड़ के रखा था ताकि वह जमीन पर ना लगे| फिर वह बोली, “शर्मा मत लड़की, मूत दे… मैं तुझे मूतते हुए देखना चाहती हूं”

माँठाकुराइन जो कहा मैंने वही किया| उसके बाद मैंने अपने गुप्तांग को धोया और फिर खुटे से टाँगे गमछे से उसको पोछा फिर माँठाकुराइन ने वैसे ही मेरे बालों को मेरे बालों को गर्दन के पास पोनी टेल जैसे गुच्छे में पकड़कर मुझे दूसरे कमरे में ले गई|

मैं बहुत बेचैनी सी महसूस कर रही थी| इसलिए मैंने खुद ने उनसे पूछा, “माँठाकुराइन, आप मुझसे अपना मालिश नहीं करवाएँगी?”

कम से कम इसी बहाने मैं किसी गैर औरत के बदन को तो छू तो पाऊंगी... न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि उन को छूने से मेरे अंदर एक यौन कामना की जो आग भड़क रही है, वह शायद थोड़ी सी शांत होगी…

“हाँ री लौंडिया, मैं जरूर मालिश करवाउंगी... जरा मेरे पास तो आ मेरे”, यह कहकर माँठाकुराइन ने मेरे चेहरे को अपनी हथेली में लेकर मेरे होंटो को चूमा...मेरे पूरे बदन में मानो बिजली से तो दौड गई... एक पल के लिए मुझे बड़ा अजीब सा लगा... लेकिन मेरा मन मेरा बदन दोनों को ही जरूरत थी प्यार की बारिश की...

माँठाकुराइन ने मुझसे कहा “जा लड़की उस कमरे से मेरा लोटा लेकर आ| उसमें मेरा बनाया हुआ तेल है... आज अच्छी तरह से मालिश करवाऊंगी मैं तेरे से... बड़े दिन हो गए अपने आप को थोड़ा खुश किए हुए, अच्छा हुआ मुझे आज तुझ जैसी सुंदर सी जवान लड़की मिल गई…”

जब मैं तेल का लोटा लेने दबे पांव उस कमरे में गई जहां छाया मौसी सो रही थी... मैंने देखा कि वह आराम से चैन की नींद सो रही है और हर जब मैं लोटा लेकर वापस माँठाकुराइन के कमरे में आई, तो मैने देखा उन्होने अपनी साड़ी उतार दी थी और खुद ब खुद एक चटाई बिछा कर उस पर बिल्कुल नंगी बैठी हुई थी, बस उन्होंने अपनी यौनंग को कपड़े से ढक रखा था|

मुझे लोटा लेकर आती देखकर वह चटाई पर लेट गई मैं भी जाकर उनके पास बैठकर फिर मैंने धीरे-धीरे उनके पैरों की उंगलियों पर मालिश करना शुरू किया|

न जाने क्यों मेरे मन में बार-बार यह बात घूम रही थी कि उनके शरीर की अच्छी तारह से मालिश करूँ| यह उनके किए ह जादू टोने कस असर था या फिर मेरी उत्सुकता... मालूम नही.. पर मैंने उनकी पैरों की उंगलियों से शुरू करके उनके तलवे, पैर, घुटने जांघों, कमर, छाती और फिर हाथों की मालिश करने लग गई...

और जब मैं उनके स्तानो पर हाथ फेरने लगी तब मैंने फिर से महसूस किया कि मेरे अंदर यौन उत्तेजना बढ़ती जा रही है...

इतने में माँठाकुराइन मेरे पर स्तनों को दबा दबा कर देख रही थी… मेरे खुले बालों को सहला रही थी… कभी कबार वह मेरे कुल्हों पर भी हाथ फेर रही थी… मानो मुझे प्यार कर रही हो… मुझे बहुत अच्छा लग रहा था|

फिर उन्होंने मुझसे कहा “चल लौंडिया, अब मेरे ऊपर लेट जा अपने दुद्दयों (स्तनों) से मेरे दुद्दयों को रगड़...”

मैं वैसा ही करने लगी... मैं उनके ऊपर लेट कर अपने स्तनों से उनके स्तनों को रगड़ने लगी दाएं बाएं दाएं बाएं… लेकिन अब माँठाकुराइन बेलगाम मुझे चूमने चाटने लगी…

मुझे इस तरह से प्यार करने के कुछ देर बाद उन्हें मुझसे से कहा, “मालिश करवाना तो एक बहाना था... जब से मैंने तुझे देखा है, मेरे अंदर एक प्यास सी भड़क रही है… अब मुझसे रहा नहीं जा रहा मुझे प्यास बुझा लेने दे...”, यह कहकर माँठाकुराइन ने मेरे चेहरे को अपनी हथेली में लेकर मेरे होंटो को चूमा... एक पल के लिए मुझे बड़ा अजीब सा लगा... लेकिन मेरा बदन को प्यार की बारिश की जरूरत थी...

मेरे मन में फिर ख्याल आया इस बार मैनें बोल ही दिया, “माँठाकुराइन काश इस वक्त आप औरत नहीं होती….”

“हा… हा… हा…”, यह सुनकर माँठाकुराइन हंस पड़ी और अपने सूखे होंठ उन्होंने अपनी जीभ से चाटा मानो वह मुझे चूमने के बाद उनके होठों पर लगा हुआ मेरा स्वाद चख रही थी... पता नहीं; लेकिन अब, इतनी देर बाद मैंने गौर किया कि उनकी जीभ बीच में से कटी हुई थी और दो भागों में बटी हुई थी बिल्कुल साँप के जीभ की तरह…

क्रमश:

 
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Yeh problem sabke saath huyi hai . New update ka bhi intzaar rahega naag.champaji
यहां तो मेरे अपडेट के साथ-साथ वोटिंग का पोल भी डिलीट हो गया है ... :verysad:
 
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