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अपडेट –१८
शादी को चार दिन रह गए थे मात्र । शादी के कामों का दबाव नागेश्वरी के शिर पे पर गए थे । कुछ करीबी रिश्तेदार भी अपने परिवार के साथ आ गए थे । शिवांश के घर मे अब हर वक्त मच्छी बाजार की तरह चोर रहता । कोई किसी को इधर से बुला कोई किसी को उधर से । कोई आदेश दे रहा हे कोई कर रहा हे कोई सुन रहा हे कोई गप्पे लड़ा रहा हे ।
इसी भाग दौर मे नागेश्वरि अपने पोते पे ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रही थी । वैसे तो उनकी मनसूबा कुछ और था लेकिन कुछ और हो गया ।
शिवांश सभी मेहमानों को बेहद अच्छे से सटकर कर रहा था सभी उसका मीठे बोल से तारीफ कर रहे थे । ये सुन कर रघुनाथ नागेश्वरि और चमेली की दिल गोद गोद हो रही थी ।
घर में सारे कमरे मेहमान से भरे पड़े थे । इसी का फायदा उठाते हुऐ नागेश्वरि रोसोइ में दो खटिया लगा दिया ये बोल के की वो और उसका पोता सोएगा ।
जैसा मनसूबा था वैसा ही हो रहा था और जब रात के खाने के बाद डकार मार के सोने गए तो नागेश्वरी अपने पोते को इसरे से बुलाते हुए रसोई के दरवाजे की कुंडी अच्छे से लगा दिया ।
शिवांश हास के बोला ।" बस करो दादी आज कल बर्तन चुराने वाले चोर नही रहा । "
" बर्तन के लिए नही ये तुम्हारे लिए । कोई तुम्हे चुरा के ले गया तो में जीते जी मर जाऊंगी " नागेश्वरि अपने पोते के गाल खींच के बोली
" मुझे । में क्या कोई छोटा बच्चा हूं जो कोई भी अचानी से उठा के ले जायेगा "
" ले के भी जा सकता हे कोई भरषा नही हे जिस तरह तू लोगो के दिल जीत लिया हे कोई तुझे पाने के चक्कर में तुझे उठा लिया तो "
" उफ हो दादी आप भी ना कुछ भी सोचते रहते हो । चलो मुझे नींद आ रही है "
खटिया तो लगाए थे एक इस दीवार के पास और एक इस दीवार के पास लेकिन नागेश्वरि पोते के दो फीट चौड़ाई खटिया पे लेट गई "
" दादी गर्मी में मार जाऊंगा । यहां पंखा नही है । उधर जा के सोए ना "
" नही । मुझे तेरे साथ ही सोना है इसलिए तो यहां ले के आया तुझे नही तो आंगन में ही सो जाती तेरे अम्मा के साथ "
" अच्छा एक काम करता हूं । में दोनो खिड़की खोल देता हूं बाहर से ठंडी हवा आयेगी "
" नही रहने दे " नागेश्वरी अपने पोते को बाहों में भर के मन में बोली " मेरा अनाड़ी पोता अगर किसी ने हम दोनो ऐसे लिपटे हुऐ देख लिया ना बबल मैच जायेगा । तूझे तो कुछ समझ ही मेही आता हे ।"
गर्मी बेहद थे । रोचोई भी ज्यादा बड़ा नहीं था । कूची देर में दोनो पसीने पसीने हो गए । लेकिन दादी पोता एक दूसरे को बाहों में से अलग मेही हुए । माहेश्वरी की जिस्म पोते के बाहों में समाते ही थर थराते हुऐ मचल उठी । अपनी भारी चाटी पोते के चौड़े चाटे में धसने के एहसास से ही उसकी बदन रिंगने लगी । मदहोशी से अपने पोते को देखने लगी ।
शिवांश को अभी भी दादी मझकिया अंदाज लग रहा था और वो भी हमेशा की तरफ मझाकिया अंदाज में ही वास्तिकता को स्मरण कर रहा था ।
" दादी । कुछ दिनों से आप बदली हुई लग रही हो । ऐसा हरकत कर रही हो जैसे आप मेरी गर्लफ्रेंड हो " शिवांश मुस्कुरा के बोला
" हां मुझे वोही समझो न । कहा तो था मुझे तेरे दादाजी की बेहद याद आ रही हे । इसलिए तुम्हारे प्यार पाना चाहता हूं "
" अच्छा ये बात हे । में हूं भूल ही गया था । "
माहेश्वरी गर्मी में पसीने से भीग गई थी । उसकी ब्लाउज बगल से पीठ से और छाती के ऊपर के हिस्से गीले हो चुकी थी । उसने इसी शल से उसने ऊंह कर के अंगराई लेते हुए बोली " उफ यह गर्मी मर जाऊंगी री " और अपने पल्लू नीचे गिरा के ब्लाउज के चार हुक में से तीन हुक खोल दिए । जिसकी वजह से उसकी वाक्स ब्रा से बहार आने को उछल रहे थे और उसकी गोरी चाटी पसीने की बूंद से और बहती धर से चमक रही थी । और अपनी बालों को खोल के फैलते हुए बड़ी अदाह से मचलते हुए शिवांश के टी–शर्ट निकल दी ये बोल के की " चलो निकल दो इसे नही तो गर्मी में मर जाओगे "
शादी को चार दिन रह गए थे मात्र । शादी के कामों का दबाव नागेश्वरी के शिर पे पर गए थे । कुछ करीबी रिश्तेदार भी अपने परिवार के साथ आ गए थे । शिवांश के घर मे अब हर वक्त मच्छी बाजार की तरह चोर रहता । कोई किसी को इधर से बुला कोई किसी को उधर से । कोई आदेश दे रहा हे कोई कर रहा हे कोई सुन रहा हे कोई गप्पे लड़ा रहा हे ।
इसी भाग दौर मे नागेश्वरि अपने पोते पे ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रही थी । वैसे तो उनकी मनसूबा कुछ और था लेकिन कुछ और हो गया ।
शिवांश सभी मेहमानों को बेहद अच्छे से सटकर कर रहा था सभी उसका मीठे बोल से तारीफ कर रहे थे । ये सुन कर रघुनाथ नागेश्वरि और चमेली की दिल गोद गोद हो रही थी ।
घर में सारे कमरे मेहमान से भरे पड़े थे । इसी का फायदा उठाते हुऐ नागेश्वरि रोसोइ में दो खटिया लगा दिया ये बोल के की वो और उसका पोता सोएगा ।
जैसा मनसूबा था वैसा ही हो रहा था और जब रात के खाने के बाद डकार मार के सोने गए तो नागेश्वरी अपने पोते को इसरे से बुलाते हुए रसोई के दरवाजे की कुंडी अच्छे से लगा दिया ।
शिवांश हास के बोला ।" बस करो दादी आज कल बर्तन चुराने वाले चोर नही रहा । "
" बर्तन के लिए नही ये तुम्हारे लिए । कोई तुम्हे चुरा के ले गया तो में जीते जी मर जाऊंगी " नागेश्वरि अपने पोते के गाल खींच के बोली
" मुझे । में क्या कोई छोटा बच्चा हूं जो कोई भी अचानी से उठा के ले जायेगा "
" ले के भी जा सकता हे कोई भरषा नही हे जिस तरह तू लोगो के दिल जीत लिया हे कोई तुझे पाने के चक्कर में तुझे उठा लिया तो "
" उफ हो दादी आप भी ना कुछ भी सोचते रहते हो । चलो मुझे नींद आ रही है "
खटिया तो लगाए थे एक इस दीवार के पास और एक इस दीवार के पास लेकिन नागेश्वरि पोते के दो फीट चौड़ाई खटिया पे लेट गई "
" दादी गर्मी में मार जाऊंगा । यहां पंखा नही है । उधर जा के सोए ना "
" नही । मुझे तेरे साथ ही सोना है इसलिए तो यहां ले के आया तुझे नही तो आंगन में ही सो जाती तेरे अम्मा के साथ "
" अच्छा एक काम करता हूं । में दोनो खिड़की खोल देता हूं बाहर से ठंडी हवा आयेगी "
" नही रहने दे " नागेश्वरी अपने पोते को बाहों में भर के मन में बोली " मेरा अनाड़ी पोता अगर किसी ने हम दोनो ऐसे लिपटे हुऐ देख लिया ना बबल मैच जायेगा । तूझे तो कुछ समझ ही मेही आता हे ।"
गर्मी बेहद थे । रोचोई भी ज्यादा बड़ा नहीं था । कूची देर में दोनो पसीने पसीने हो गए । लेकिन दादी पोता एक दूसरे को बाहों में से अलग मेही हुए । माहेश्वरी की जिस्म पोते के बाहों में समाते ही थर थराते हुऐ मचल उठी । अपनी भारी चाटी पोते के चौड़े चाटे में धसने के एहसास से ही उसकी बदन रिंगने लगी । मदहोशी से अपने पोते को देखने लगी ।
शिवांश को अभी भी दादी मझकिया अंदाज लग रहा था और वो भी हमेशा की तरफ मझाकिया अंदाज में ही वास्तिकता को स्मरण कर रहा था ।
" दादी । कुछ दिनों से आप बदली हुई लग रही हो । ऐसा हरकत कर रही हो जैसे आप मेरी गर्लफ्रेंड हो " शिवांश मुस्कुरा के बोला
" हां मुझे वोही समझो न । कहा तो था मुझे तेरे दादाजी की बेहद याद आ रही हे । इसलिए तुम्हारे प्यार पाना चाहता हूं "
" अच्छा ये बात हे । में हूं भूल ही गया था । "
माहेश्वरी गर्मी में पसीने से भीग गई थी । उसकी ब्लाउज बगल से पीठ से और छाती के ऊपर के हिस्से गीले हो चुकी थी । उसने इसी शल से उसने ऊंह कर के अंगराई लेते हुए बोली " उफ यह गर्मी मर जाऊंगी री " और अपने पल्लू नीचे गिरा के ब्लाउज के चार हुक में से तीन हुक खोल दिए । जिसकी वजह से उसकी वाक्स ब्रा से बहार आने को उछल रहे थे और उसकी गोरी चाटी पसीने की बूंद से और बहती धर से चमक रही थी । और अपनी बालों को खोल के फैलते हुए बड़ी अदाह से मचलते हुए शिवांश के टी–शर्ट निकल दी ये बोल के की " चलो निकल दो इसे नही तो गर्मी में मर जाओगे "