Vikashkumar
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Niceमेरा सादर नमस्कार आप सभी से । एक नया कहानी लिखने जा रहा हूँ उमीद है आप सभी को बेहद पसंद आये । पहले तो बात दू की मेरे लिए हिंदी टायपिंग करना थोड़ा मुश्किल है । इसलिये लिखते वक़्त थोड़ा टाइम लगेगा।
कहनी इंकास्ट थीम पर बेस है । कहानी में पारिवारिक रोमान्स होगा ज़्यादातर । जिसमें भोरपुर सेक्स होगा ज़ाज़बाद के साथ । कहानी पूरी तरह से काल्पनिक होगा । आशा है किसी को किसी प्रकर की शिकायत अबसर ना हो ।और लिखीत सब्द मेरे बोहोत सी गलतिया होगी इसलिये पहले ही माफी मांग के रखता हूँ।
आज की विकसीत दुनिया मे बड़ी तेजी से विकाश हो रहा है । जैसे कोई नई टेक्नोलॉजी बाजार में प्रदान होता है ठीक अगले ही दिन उसकी कॉपी पेस्ट सारों तरफ देखा जाता है । थोग भी टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से बड़ी तरक्की पा रहा है। सब्जीया भी आज काल टेक्नोलॉजी के द्वारा बनाया जाने लगा है । हर चीज़ में टेक्नोलॉजी की उपसर ऐसे में कोई टेक्नोलॉजी का अच्छाई के निबारण करता है कोई बुराई के लिए ।
आज काल के हर छोटे बड़े गाओ शहर जैसा लगने लगा है । हर तरह की सुविधा जो आ गयी है । जिसके पास कम पैसा है वास् वही थोरा पीछे रह जाते है । लोगो के ज़ाज़बाद धीरे धीरे कम होते जा रहे है। एक दूसरे की प्रति आत्मीयता खत्म होते जा रहे है । एक दूसरे के लिए किसी के पास फुरसत ही नही है ।
वैसे में कोई बन्दा बाइक से कही जा रहा है अगर रास्ते मे कोई दोस्त या कोई खास सड़क पे मिल जाये और सामने वाला बोले भाई तेरे से बेहद जरुरी बात करनी है तो बोलता है भाई वॉचआप कर दियो में चलता हूँ। हर जगह पे टेक्नोलॉजी घुस जाते है।
लेकीन आज भी कुछ गाओ ऐसे है जो अपनी परम्परा अपनी सांस्कृतिक आज तक भूले नही है। भले ही ज़रूरत मंद की टेक्नोलॉजी का ब्याबहार करते हो लेक़िन लेकिन अपनी पूर्बजों की रीति रिवाज परम्परा भूले नही आज भी सच्चें मन से पालन हार है। वरना आज काल तो कागजों पे अपना नाम लिख के शदी कर लेते है और नाम के लिए वास् एक माला।
और ऐसे ही गाँव मे हमरा हीरो रेहता है जिसमे उस गाँव के मिट्टि उस गाँव की प्रकृतिक खुसबू उसके रोगों में कोन कोंन बसता है। अपने मात्र भूमी से इतना प्यार है कि लाख कशिश के बाद भी अपनी आत्मा अपनी गांव में छोड आता है।
Goodअपडेट–४रहीनाथ और शिवांश दोनो शहर के बिग बाजार पोहोच गए और घर के रेसन पानी से लेकर गाय भैंसों के लिय दाना भी ले लिया और सारा सामान टेम्पो पे घर पोहोछा दिया ।
गर्मी में दोनो बाजार कर के थक गए तो दोनो गन्ने की जूस पीने बैठ गए ।
"शिवा बेटा अब आगे क्या पढ़ाई करना चाहते हो" रघुनाथ गन्ने का जूस पीते हुए पूछा
"बापू मुझे और पढ़ना नहीं है । जितना पढ़ना था पढ़ लिया अब आपके साथ काम करूंगा "
"नही बेटा । वो जमाना गया अब बिना उच्चो शिक्षा के बिना नौकरी मिलना मुश्किल ही । और में भला तूझे अपने साथ क्यू मजदूरी करवाऊंगा । तेरे अम्मा मेरा सपना ही की तू पढ़ लिख कर इंसान बनेगा । बड़ी नौकरी करेगा हमारा नाम रोशन करेगा"
"लेकिन बापू खचरा बेहद होगा । ऊपर से गांव में कोई कालेज भी तो नहीं है ।"
"खर्चे की शिंता मत कर । इसी शहर में सरकारी कालेज है। बाइक से आना जाना करना । आधे घंटे की हो रास्ता है।"
"में सोचूंगा इस बारे मे बापू"
"कोई सोचने की जरूरत नही है मैने कह दिया ना । बास रिजल्ट आते ही तेरा कालेज में दाखिला करा देंगे"।
इधर चमेली घर में पोछा लगा रही थी । लेकीन आज उसका मन उदास थी किसी बात पे गहरी सोच में थी । नागेश्वरी जब चमेली के पॉश से गुजर रही थी तो चमेली की फीका चेहरा देख के पूछ ली "क्या हया तूझे ऐसे क्यू मुंह लटकाए काम कर रही ही । तबियत खराब ही तो जा के अरम कर ना"
"नही अम्मा जी में ठीक हूं बास ऐसे ही"
"रघु से किसी बात पे जगरा हुए ही क्या" माहेश्वरी उसके पास बैठ के बोली
"नही अम्मा। अम्मा एक बात पूछूं"
"हां पूछ ।"
" अम्मा शिवा के विश बर्ष होते ही जेठजी और भावी उसको लेने आएंगे ना" चमेली बड़ी दुख के साथ पूछी
अपनी बहु की सवाल सुन के नागेश्वरी भी मायूस हो गई । कुछ देर छुप रह के बोली " उनकी अमनत ही । कोइ भला अपनी अमानत को ऐसे ही छोर देगा क्या । लेने तो आयेगा ही"
"अम्मा में अपने बेटे के बिना नहीं रह पाऊंगी "
"इसलिए कहा था ज्यादा सीने में भर के लड़ प्यार मत कर । असली मां बाप तो रोहिनी और शंकर है इस बात को कैसे जुठलाएगी । और वो लोग भी कब से तड़प रहे ही अपने बेटे के बिना । बदकिस्मती देखो चेहरा तक देखने को नसीब नही हया आज तक ।" नागेश्वरी के आखें पानिया गई ।
"उनलोगो को भी यही गांवों में रहने को बोल देना "
" शंकर माना करने के बावजूद जगरा कर के शहर चला गया अच्छी ज़िंदगी के लिए । भला अब यह क्यू रहेगा । अभी से आदत डाल लो शिवा के बिना जीने की बाद में काम आएगा । मेरी तो एक पेड़ कबर पे ही है ।"
दादी और अम्मा की बातें शोभा दीवार में चुप के कान लगा के चुन रही थी । उसे भी पता थी सब बातें । वो रूवानी सी हो के नागेश्वरी के आगे आ के बोलने लगी ।" में शिवा को ले के जाने नही दूंगी । मैने भी उसको पाला है"
नागेश्वरी शोभा को हसने के लिए बोली। " तूझे वैसे भी शादी कर के अपनी सुसराल जाना ही । तू क्यू खमखा रो रही ही।"
शोभा गुच्चे में बोली " में कोई शादी वाडी नही करूंगी " और पेड़ पटक के चली गई ।
lajwaab storie lagi broअपडेट–११
यहां रोहिनी परेशान हो के खुदसे बड़बड़ाए जा रही " पता नही इस लड़की ने अब क्या कर दिया हे । कितना भी समझाओ समझती नही । हे भगवान प्लीज मेरी बेटी को थोड़ा सतबुद्धि दे । अब तो उसके बाहर जाते ही दर लगा रहता हे की कोई मुसीबत खरी कर ना आई हो " और उसकी नजर दीवार पे टांगे बड़े से फोटो फ्रेम में पड़ी
जिसमे वो अपने बेटे को गोद के लिए हुए हे और बगल में शंकर सुप्रिया को गोद में लिए हुए हे । वो उस फोटो के पास चली जाती हे और फोटो पे अपने बेटे के मासूम चेहरे के ऊपर छुने लगती है । और उसके आंखों से धरा धर आसूं निकलने लगते हे । और सुबक सुबक के बोलती हे " मेरा बच्चा । अब रहा नही जाता बच जल्दी से आ के अपनी मां की छीने में लग जा "
कुछ देर बाद शंकर और सुप्रिया दोनो घर पोहोछ जाते हे लेकीन दोनो घर में घुसते ही सोक जाते हे । क्यो की रोहिनी हाथ में चढ़ी ले के बैठी थी । शंकर भी सुप्रिया से गुस्सा होने का नाटक चालू करता है । और बोला गुस्से से " चलो जाओ अंदर कमरे में । आज से तेरा स्कूल कॉलेज घूमना फिरना सब बंद । आज के बाद कमरे से एक कदम भी बाहर पेड़ मत रखना बरना "
शुप्रिय छोटा मुंह बना के कमरे की तरफ जाने लगता हे लें आज दोनो बाप बेटी बकरे की तरह हलाल होने वाला था । रोहिनी शुप्रियां के पिछे भागते हुए चढ़ी से मारने लगी ।" बोहोत हो गई तेरी बदमासी अब रोक लगाने ही होगा । आज बताती हूं तुझे में क्या चीज़ हूं "
शुप्रिया चिल्लाते हुए तेज भाग के चढ़ी चढ़ते हुए अपने कमरे में घुस के रोहिनी के मुंह पे दरवाजा बंद कर के किसी तरह जान बचा ली ।
रोहिनी दरवाजा पीट पीट के गुस्सा निकल रही थी । और जब उसे लगा कि अब शुप्रिया दरवाजा नही खोलेगी तो नीचे आए । उसका गुस्सा आज सातवे आसमान पर था । अचानक अपने पति शंकर के ऊपर चीज़ फेकने लगी " आप भी कुछ कम नहीं हे । आपकी ही हद से ज्यादा लाड प्यार की वजह हे महारानी बिगड़ गई हे । "
शंकर चिल्लाते हुए खुद को बचाते हुए बाहर भागने लगा " अरे मार गया री । आउच लग गई मां । बचाओ कोई " शंकर अपना भारी पेट हिलाते हुए किसी तरह जान बचा के भगा ।
रोहिनी एक दम काली माता की तरह लग रही थी जैसे उसके शरीर में आदि मां की शक्ति आ गई हे । चीजों तोड़ फोड़ करने लगी । और गुस्से हैंह हैंह कर के हाफने लगी ।
और पूरे हाल में घूमते हुए नौकरों को बोली ।" खबर दर अगर आज से किसी ने दोनो बाप बेटी को खाना दिया तो । उसके में हाथ काट दुंगी । बोहोत हो गया अब मुझसे झेला नही जाता । इस लड़की ने मकड़ी की तरह खा गईं हे मुझे । सुन बेटी अगर कमरे से बाहर निकला तो तेरी सच में जान ले लूंगी में"
शुप्रिया आज बेहद दर गई अपनी मां को इतने गुस्से में देख के । मन में कहने लगी " बेटा आज तो में गई । मदर इंडिया आज हिटलर बन गई । आज तो पापा को भी नही छोरा उनको भी पटका । पता नही पापा कहा भाग गए
और अपनी पापा को फोन लगाता है ।
" हेल्लो बेटा । क्या हुए "
"पापा आप कहा हो "
" मत पूछ बेटा । दोरते दोरते पाण्डे अंकल के यह आ गया "
" पापा लगता हे आज तो एटम बॉम में बड़ा धमाका कर दिया "
" हां बेटी । आज तो मुझे भी पड़ी । बेटा तू अपनाखायल रखना । जब तक एटम बॉम रख में नही मिटा जाता में नही आऊंगा "
" लेकिन पापा मेरा क्या होगा"
" बेटा जिंदगी मे पहली बार बोलता हूं अब में तेरी कोई मदद नहीं कर पाऊंगा । वरना पक्का मेरा गर्दन कटा जायेगा "
" पापा"
शंकर फोन काट चुका था । सुप्रिया सोचने लगी अब मेरा क्या होगा पापा तो जान बचा के निकल लिए।
Lagta hai dadi hi pote ki sexguru bane giअपडेट –१२
ईधर सब शादी की तैयारी में लगे हुए थे । शिवांश तो कुछ ज्यादा ही फुर्ती दिखा के काम कर रहा था । वो हर सुबह रोज की काम निपटा के लकरिया काटता था ताकि शादी के भोज के लिए कोई कमी न हो ।
एक दिन नागेश्वरी पोरोसी के कीर्तन पे गई शाम को । वोहा उसने एक बुधिया मिली जो ७५(75) की उम्र थी । नागेश्वरी की उस बुढ़िया से पुरानी जान पहचान ही थी और रिश्ते में भी लगता था । नागेश्वरी उसे काकी बुलाती थी । दोनो बाकी औरतों के साथ कीर्तन गए रहे थे । लेकिन दोनो में बातों के सिलसिले से कीर्तन गाना ही भुल गए ।
" सुना है पोती का होने वाला पति शहर में मास्टर हे " बुधिया पूछ रही थी ।
" हा काकी । आप बताओ कैसे हो आपके पोते का तो दुसरा बच्चा हुए है । आप तो फिर से परदादी बन गई हो" नागेश्वरी बोली
"हा क्या करें । पोता कंडोमिया पहनना भुल गया था । इसलिए फिर से बन गई पर दादी " बुढ़िया बोहोत नॉटी थी
नागेश्वरी हसने लगी मुंह पे हाथ रख के
"मेरी छोर अपनी बता। तेरा पोता कैसा है "
" अरे मेरा पोता । एक दम बड़हिया है एक दम तंदुरुस्त हे । भैंसों का दूध पी के पहलवान बन गया हे " नागेश्वरी गर्व से जवाब देती हे।
"अरे दूर से तो पिटल लोटा भी अच्छा ही दिखता । लेकीन इसके अंदर पानी ही की नही ये तो नही दिखता है ना । और बदकिस्मती से कही छेद न निकल जाए "
" क्या मतलब है काकी आपका । में कुछ समझी नही" माहेश्वरी कुछ समझ नही पाई
" कोई दोनो से में इसी फिराक मे थी की इस बारे में तुझसे बाते करूं । लेकिन क्या करू अब उम्र हो गई हैं खटिए से उठ नही पता ना"
" में अभी भी नही समझी काकी । जरा खुल के बताइए ना" नागेश्वरी भ्रमित हो गई थी
" अरे तेरे पोते के बारे में बात कर रही हूं । दिखने मे तो घोड़े जैसा हो गया हे लेकिन अन्दर घोड़े जैसा ज्वाला ही भी के नही "
" मतलब" नागेश्वरी अब चिढ़ रही थी काकी की उलटी सीधी बातों मे
" तू भी एक नम्बर की गाढ़ी हे । पता है इस उम्र में लड़के क्या क्या गुल खिलाता है ।"
" अरे नही नही । मेरा पोता ऐसा नही है । वो तो बेहद भला है । बेहद नेक दिल का पोता हे मेरा "
" भला हे इसलिए तो बोल रही हूं । पता है तेरे पोते से कितनी चारी लड़किया लाइन मरती है । लेकिन तेरा पोता किसी को घास नही डालती । लड़कियों के नाम से ही चिढ़ जाता हे । मेरा छोटा वाला पोता सुधीर अब तक बजाने कितने कली को फूल बना चुका है । तेरे पोते का ही दोस्त है । सुना है तेरा पोता लड़की देखते ही भाग जाता है । ये भी बताते हे तेरे पोते के अंदर वो वाली बात नही है । लड़कियों को देख के उसे कुछ अनुभब ही नही होता हे ।"
" अरे नही ये आप कैसी बातें करते हे । मेरा पोता लड़कियों से दूर भागता है इसलिए की वो शुशील और संस्कारी लड़का हे उसे मैंने पाल पोच के बड़ा किया हे" नागेश्वरी गुस्सा हो गई
" लगता हे तेरे आखों पे पोते के मासूमियत ने पट्टी बंधी हे । देख नागेश्वरी लौंडा कितना भी शरीफ ज्यादा हो खाली लोटा काम नही चलता । अरे काल को अगर उसकी शादी हो गए और अगले ही दिन उसकी लुगाई भाग गई और तेरे पोता नामर्द हे बोल के धिंदोरा पिटेगी तब क्या होगा । सारी मान मर्यादा मिट्टी में मिल जायेगा । इसलिए समय रहते अपने पोते की ज़िंदगी बचा ले "
जिस तरह बुढ़िया बोल रही नागेश्वरी भी आखिर में दर गई । और ना चाहते हुए भी उसका मन विचलित हो गया ये सोच के अगर शिवा सच में नामर्द निकला तो । वो वोही दर के पसीने पसीने हो गए । और उसे एक पल भी रुका नही गया और किसी को बिना बताए घर चली आई ।
Keep writing ✍अपडेट–६रात को खाना खा के सब अपने अपने कमरे में चले गए । लेकीन रघुनाथ का मन आज कुछ ज्यादा ही मचल रहा था । वो अपनी पत्नी चमेली के साथ बिस्तर में गुफ्तगू कर रहा था । और चमेली के मोनचोल कमर पर हाथ फिरा रहा था ।
चमेली अपने पति को मुस्कुराती हुई माना कर रही थी ।" हटो जी । मुझे नींद आ रही ही है आज बेहद काम किया ही मैने "
"इसलिए तो थकान दूर कर रहा हूं पगली । श्वर्ण बूटी से शरण ले के आया हूं देखना आज तुझे जन्नत की सैर करवा दूंगा ।" रघुनाथ दिल में शरारत लिए अपने पत्नी को बेहला रहा था ।
"नही जी आज वैसे ही बेहद थकान ही है। स्वर्ण बूटी की ताकत आजमा मुझे और बेहाल नही होना ही । वैसे भी सारी के साथ आपने ब्लाउज नही लाए । इसलिए सजा ही आपकी कुछ नही मिलेगा आज " चमेली नखरा दिखाने लगी
" अरे सारी के साथ तो ब्लाउज का कपड़ा फ्री में मिलता है ना "
"इस सारी में नही थी कोई ब्लाउज का कपड़ा । आपको देखना चाहिए था ना "
"लेकीन मुझे पता नही था । सारी तो आपके लाड साहब ने देख के ली ही मैंने तो बस बिल दिया ही । मेरी गलती थोरी ही गलती अपने लाडले की ना । तो मुझे क्यू सजा दे रही हो "
" मुझे कुछ नही पता । किसने देख के लिया हे मुझे ब्लाउज चाहिए तो चाहिए तब जा बे कुछ मिलेगा वरना चुप चाप सो जाओ "
लेकिन रघुनाथ आज कुछ ज्यादा ही उत्साहित था । वो कहा मानने वाला था दूध के साथ स्वर्ण बूटी का सुरन मिला के केसर के साथ गटक गया और जबदस्ती अपनी पत्नी के ऊपर चढ़ गया । चमेली ने पहले तो मना किया पहले लेकीन अपने पति प्यार को कैसे माना करती उसको भी रघुनाथ ने अपने बसना से गर्म कर दिया था । देर रात तक दोनो ने एक दूसरे को जिस्म से खेल के रगड़ के अपनी अपनी प्यास बुझा के गहरी नींद सो गए ।
हमेसा की तरह शिवांश सुबह ५ बजे उठ के दातुन मुंह में ले के खेत की तरफ गया और ताजगी के केलिए अकरण दूर करते हुए थोरी कसरत कर के नदी किनारे जड़ के आड़ में बैठ के पेट खाली करने लगा । और जब पेट सफा हो गया तो नदी में अपनी तशरीफ धोने लगा । लेकिन उसे किसी कि हसने की आवाज सुनाई दिया ।
वो जाट से पैंट ऊपर कर के इधर उधर देखने लगा । तो पाया की कूची दूर एक औरत गले तक डुबकी लगा के नहा रही थी और शिवांश को देख के हास रही थी । शिवांश शर्म के मारे अपनी पाटलुंग पकड़ के घोड़े की तरह दौर लगाया घर की तरफ ।
शिवांश शर्म के मारे परेशान था अब कैसे वो उस औरत का सामना करेगा । क्यों की वो उस औरत को अच्छे से पहचानता था । गांव की एक शादी शुदा औरत थी जिसका नाम सरला थी । शिवांश यही सोच रहा था की इतनी सुबह कोई नदी में नहाने जाता ही क्या । लेकीन आज के दिन उसको सरमिंडा होना ही लिखा था भाग्य में तो कोई क्या कर सकता ही भला ।
शिवांश सुबह कि घटना को इतनी गंभीरता से लिया की उसने सोचा की सरला अब तक साइड कोई औरतों को बता चुकी होंगी और अब वो दिन में बाहर नही निकलेगा ।
लेकिन जब दोपहर को उसका पिता उसे अंडे लेने को कहा दूकान से तो शिवांश ने सीधा माना कर दिया । रघुनाथ ने वजह पूछा तो शिवांश कोई जवाब नही दे रहा था ।
रघुनाथ ने फिर जोर दे पूछा तो शिवांश ने शर्माते हुए सुबह का घटना बता दिया । और बोला कि वो अब दिन में कभी बाहर नही निकेलगा । रघुनाथ अपने बेटे के भालेपन को देख के पेट पकड़ के हसने लगे । रघुनाथ को इतना हस्ते देख कर चमेली ने पूछा तो रघुनाथ ने उसे भी बता दिया तो चमेली भी हसने लगी । और फिर चमेली ने अपनी सांस को बता दी फिर दादी ने पोती को बता दी ऐसा करते हुए सब मिल के शिवांश के ऊपर हसने लगा ।
शिवांश शर्मिंदा हो के रोंदू सकल बना के कोने में बैठा रहा । इसे देख के चमेली ने बोली " अरे इसमें क्या है । गलती से देख लिया तो देख लिया । लड़का हो के शर्माता है । अरे इतना क्यू दिल पे ले रहा ही "
नागेश्वरी बोली ।" मुझे चटाते रेहतो ना हमेसा । इसलिए तुझे ऊपरवाले ने ऐसा सजा दिया ही । अब छुपा रह नाक घुसा के कही हा हा हां "