घटना 2:- आखरी भाग…
तकरीबन 6 बजे हम दोनों ही हॉस्पिटल पहुंचे. ऐसा लगा ही नहीं की वो किसी अनजान से मिल रही है. बातो में उतनी ही शालीनता और लोगो के लिए आदर और सम्मान भी. कोई हिचक नहीं की किसी गैर मर्द से बात कर रही है या किसी अपने से. कोई डर नहीं की अकेली घूम रही है, जबकि शाम ढल चुकी थी और अंधेरा हो चुका था. बस मै खुद पर भरोसा रखने वाली एक लड़की के साथ शाम के 6 बजे तक थी, जिसके पास हम से भी ज्यादा मजबूत परिवार था, लेकिन उसे जीने के लिए परिवार की बैसाखी की नहीं अपितु उनके प्यार भरोसे और साथ की जरूरत थी.
शाम के 7 बजे वो चली गई. इधर महेश भईया भी भाभी और बच्चो को लेकर चले गए. मां और पिताजी भी वहीं से मामा के यहां वापस लौट गए, अपने अधूरे काम को पूरा करके वापस आने के लिए. वहां मै, मनीष भईया, अनुज और छोटी भाभी की मां और मनीष भईया के 2 बच्चे रह गए.
साढ़े 7 बजे के करीब मनीष भईया अपने छोटे साले अनुज को मुझे, कुणाल और किशोर (भईया के बच्चे) के साथ घर चले जाने के लिए बोल दिए और खाना लेकर वापस हॉस्पिटल आ जाने. जबतक मै खाना बनाती कुणाल और किशोर को भाभी की मां और अनुज देख लेते, उसके बाद तो मै दोनो को खिलाकर अपने पास ही सुला लेती, उसकी कोई समस्या नहीं थी.
हम सब निकल गए, और भईया भाभी कर पास रुके हुए थे. रास्ते में बड़ा ही अजीब घटना हो गई. अनुज अपनी कार एक दारू की दुकान के पास रोककर वहां से शराब की 2 बॉटल खरीदकर डिक्की में डाला, और वापस ड्राइव करते हुए घर पहुंच गया.
वापस आकर मै खाना बनाने लगी, कुणाल और किशोर अपनी नानी के पास खेल रहा था, तभी अनुज किचेन में आ गया. कमर में तौलिया लपेटे, ऊपर बनियान, एक हाथ में शराब की एक छोटी बॉटल, दूसरे हाथ में गलास और गलास के अंदर रखा हुआ था सिगरेट का एक डब्बा…
अनुज:- मेनका कुछ फ्राय है क्या किचेन में…
मै एकदम से चौंक कर पीछे मुड़ी. वो किचेन में जब आया तो मै मुड़कर एक झलक उसे देख चुकी थी, फिर वापस अपने काम में लग गई. लेकिन जब वो मुझसे कुछ कह रहा था, तो उसके श्वांस मेरे गर्दन से टकरा रही थी.
मैं झटक कर पीछे मुड़ी तो मात्र इंच भर का फासला था. वो मेरे बिल्कुल करीब खड़ा था और मुझसे चिपकने की कोशिश कर रहा था. नजर उठाकर जाब उसके चेहरे को देखि, तो उसके चेहरे पर अजीब ही घिनौनी हंसी थी, जिसमे से उसके कमीनापन की पूरी झलक बाहर आ रही थी.
मै:- अनुज जी आप जरा पीछे हटेंगे, मुझे बहुत परेशानी हो रही है..
अनुज:- अब रिश्ता ही ऐसा है कि तुम्हे नहीं छेड़ेंगे तो किसे छेड़ेंगे…
मैं:- अनुज जी थोड़ी दूर रहकर छेड़ छाड़ करेंगे क्या? वो क्या है ना मुझे जल्दी से खाना भी बनना है, ये देखिए आ गया मेरा लाडला, इसे भी तो खिलाना है… चल आ जा इधर कुणाल, जल्दी आ.. क्या हुआ अनुज जी, अपने भांजे के सामने शर्म आ गई क्या छेड़ छाड़ करने में..
जैसे ही वो किचेन से गया मैंने राहत कि श्वांस ली. मुझे अब भी समझ में नहीं आ रहा था कि कल शाम तक कितना डिसेंट था ये, इसके साथ बाजार गई, मै कंफरटेबल फील कर रही थी, अचानक इस पागल को किस कीड़े ने काट लिया.
मै उसके इरादे भांप चुकी थी इसलिए मै खुद में ही अब ज्यादा सतर्क हो गई. मुझे पता था वो पीने गया है, नीचे आकर कोई बखेड़ा ना खड़ा कर दे इसलिए मैंने भी अपना फोन उठाया और मां को कॉल लगा दी. मामा के यहां तो वो पहले से थी. फिर तो स्पीकर ऑन करके मै सबसे बातें करती रही और खाना भी पका रही थी…
इसी बीच नशे में धुत्त अनुज किचेन में आया और कुछ बोलने लगा. उसकी आवाज शायद फोन में गई हो. मेरे मामा उस वक़्त लाइन पर थे जो जोर से पूछने लगे कौन है वहां मेनका.
"वो भाभी के भाई अनुज जी है मामा, खाना लेकर हॉस्पिटल जाएंगे"… जैसे ही मैंने इतना कहा अनुज हड़बड़ा कर सीधा हुआ और नमस्ते करने लगा. मैंने उसके जाने का इंतजाम पहले से कर रखा था. इशारों में ही उसे मैंने टिफिन दिखाया और वो चलता बाना.
थोड़ी देर बात करके में कॉल रख दी. सबका खाना लगाकर मैंने पहले कुणाल और किशोर को खिला दिया और दोनो को साथ लेकर मै अपने कमरे में चली आयी. थोड़ी देर उनके साथ लाड प्यार से वक़्त दिया और दोनो आराम से सो गए.
मै आंख मूंदकर आज हुई घटनाओं के बारे में सोच रही थी. दिन के अंत में अनुज के साथ हुई उस घटना ने मुझे थोड़ा हताश किया था. मै खुद में ही सोचने लगी कि क्या मुझसे कुछ ऐसी गलती हुई, जो अनुज आगे बढ़ने की हिम्मत कर गया, वरना जब वो मेरे साथ कल बाजार गया था तो मैं कफी सुरक्षित मेहसूस कर रही थी.
बात जो भी रही हो उसके आगे बढ़ने की, लेकिन मुझे लग गया कि अंजाने में मेरी किसी भुल ने इसके दिमाग की नशें हिला दी है और मेरे दिमाग में रह-रह कर बस यही ख्याल आ रहा था कि इस गधे की वजह से कोई बखेड़ा ना खड़ा जो जाए, मैंने भी मोबाइल उठाया और नकुल को फोन लगा दी..
मेरे सोने तक उसका फोन बिज़ी ही आता रहा. मैंने गुस्से में उसे मैसेज लिख दी… "कोई नहीं था यहां इसलिए सोची की जबतक मां पिताजी नहीं आते, 2 दिन के लिए बुला लूं, लेकिन भाड़ में जा तू"..
रात के 3 बजे नकुल मेरे दरवाजे पर खड़ा, वो मेरा दरवाजा पिट रहा था, मै जागकर उठी ही थी, कि तभी दरवाजे पर मुझे अनुज की आवाज सुनाई दी, जो नकुल से कुछ कह रहा था… मैं भागकर दरवाजे के पास पहुंची और छिपकर सुनने लगी..
अनुज:- तुम्हे शर्म आती गांव जाने का बहाना करके यहां होटल में रुक गए थे, और इतनी रात गए सोई जवान लड़की का दरवाजा पिट रहे.
नकुल:- मदरचोद तू चाचू का साला ना होता तो गान्ड में गोली मार देता. भोसरी वाले क्या बोल रहा है दीदी के बारे में मदरचोद.. रुक बताता हूं..
छोटी ही उम्र थी नाकुल की, और गुस्सा नाक पर. ऊपर से कोई उसके परिवार के बारे में कुछ बोल दे फिर तो सारी मर्यादा ही भुल जाता था. गुस्से में आकर वो कहीं कुछ कर ना दे, इस डर से मै बाहर निकल गई.. "क्या हुआ पागलों कि तरह क्यों शोर मचाए हुए हो"..
नकुल:- तुम अंदर जाओ, इस मदरचोद को..
नकुल गाली देकर आगे कुछ कहने ही जा रहा था, कि मैंने एक थप्पड़ नकुल को लगा दिया… वो अपना गाल पकड़े गुस्से से मुझे देखने लगा… "सॉरी बोल, अभी नालायक."
नकुल:- लेकिन मेनका..
मै:- कहां ना सॉरी बोल..
वो दांत पीसकर अनुज को सॉरी बोला और और मेरे ही कमरे में सीधा बिस्तर पर जाकर सो गया. अनुज फिर पीछे से बोलने लगा.. "अरे वो"..
मै:- अनुज जी उसको जाने दीजिए. 2 जेनरेशन में मै इकलौती बेटी हूं, इसलिए वहां के बसने वाले 6 घरों की मैं जान कहलाती हूं, और वो जो लेट गया हक से जाकर, वो मेरा लाडला है,.. खैर आप ना समझेगे.. आप मनीष भईया के साले हो सकते है, इस बात के लिए मनीष भईया शायद आपको कुछ ना कहे, लेकिन मेरे परिवार में केवल मनीष भईया नहीं है, ये बात आपको समझनी चाहिए.. जा कर सो जाइए, वैसे भी मैंने क्या गलती की थी, वो मै कल आपसे जान लूंगी, ताकि आगे से मै उन बातों का ध्यान रख सकूं…
पूरा तबीयत से उसे तो नहीं सुना पाई, लेकिन जितना भी सुनाया था, दिल को सुकून दे रहा था. नकुल के सर पर हाथ फेरकर मैंने उसे वहीं सोने दिया और खुद पास में लगे सोफे पर लेट गई. सुबह भईया मेरे कमरे में आकर मुझे उठाने लगे और बाकी तीनो को सोता छोड़ दिया..
वो जबतक बाथरूम गए तबतक मुझे चाय बनाकर लाने के लिए कहने लगे. थोड़ी देर में हम दोनों भाई बहन सोफे पर बैठे हुए थे और चाय की चुस्की के रहे थे… "ये गधा कब आया, और आना ही था तो गया ही क्यों था."..
मै:- रात को मैंने है इसे कॉल लगाया था, बोली मुझे यहां अकेले अच्छा नहीं लग रहा, पागल रात में ही चला आया.
मनीष भईया… सो तो है इसे बस पता भर चल जाए कि कोई मुसीबत में है ना वक़्त देखेगा ना जगह सीधा चला आएगा… अच्छा सुन पैसे सब खर्च हो गए या बचे हुए है..
मै:- बचे हुए है भईया.. क्या हुआ सो..
मनीष भईया:- कुछ नहीं, बस जरूरत लगे तो ले लेना. वैसे तुमने वो किस्सा मुझे अबतक बताया नहीं..
मै, थोड़ा चौंक गई.. भईया का चेहरा मैंने नॉर्मल ही पाया, लेकिन बीते दिनों में इतनी सारी एक के बाद एक घटनाएं हो गई थी कि ऐसे सवाल मेरे लिए शायद जानलेवा साबित ना हो जाए… "कौन सा किस्सा भईया?"
मनीष भईया:- वहीं वो राजवीर चाचा की बेटी के साथ तेरी दोस्ती कैसे हो गई. पापा तो दंग ही हो गए जब राजवीर चाचा का फोन गया था उनके पास. वो तेरी तारीफ करते हुए कहने लगे मुझे दुकान कर मिली थी बिटिया, काफी प्यारी है.
मै:- आप सब ना बड़े लोग के नाम पर खाली लट्टू हो जाते हो. ऐसे तो गांव के नुक्कड़ तक नहीं जाने देते, यहां अनजान के साथ घूमने जाने कह दिया..
मनीष भईया:- पागल है क्या, वो अनजान नहीं है. जानती भी है, उनको बस पता चल जाए कि कोई उनका परिचित मुसीबत में है तो हर संभव उनकी मदद करते है. तू जिस बड़े से दुकान में गई थी ना, उस दुकान के कारन दोनो बाप बेटी में तो जंग छिड़ी हुई है…
मै:- बाप बेटी में जंग.. तो अब तक काट नहीं दिया अपनी बेटी को..
मनीष भईया.. हाहाहा हा.. मै समझ रहा हूं तेरे ताने.. पूरी बात सुन पहले. राजवीर चाचा ने बहला फुसला कर अपनी बेटी को यहां के लिए भी उसके दिल्ली के शॉप जैसे इन्वेस्टमेंट प्लान करने के लिए कहे, और वादा किया कि वो उसके बिजनेस में इंटरफेयर नहीं करेंगे. लेकिन जब यहां दुकान तैयार हो गयी तो अपनी बेटी के जानकारी के बगैर, अपने गांव के लड़को को नौकरी दे दी..
वहीं प्राची का कहना है कि जो जिस लायक है उसको वैसा काम देना चाहिए, सोशल सर्विस जाकर गांव में करे, गरीबों में पैसे बांटे. बस इसी बात को लेकर जंग छिड़ी है.. प्राची स्टाफ की बदली चाहती है और राजवीर चाचा होने नहीं देते.. इस बात को लेकर प्राची पूरी खफा हो गई. पहले प्राची दिल्ली कभी-कभी जाने का प्लान बनाई थी, लेकिन अब वो परमानेंट दिल्ली जा रही है और यहां का बिज़नेस देखने वो कभी-कभी आएगी..
मै:- सीखो कुछ कैसे अपनी बेटियो को आगे बढ़ा रहे है.. लेकिन आप लोग कभी गांव से बाहर निकलेंगे तब ना..
मनीष भईया:- सुनो मेनका मेरी बीवी अभी हॉस्पिटल में है और वो बहुत तकलीफ़ में है. तू वादा कर, वो जबतक ठीक नहीं हो जाती मुझे ताने नहीं देगी..
मै:- और उसके बाद..
मनीष भईया:- उसके बाद या उसके पहले भी, तुझे कोई रोक पाया है क्या? वो देख रही है नमूना जो लेटा है, उसको इसलिए परिवार के सभी लोग टांग नहीं खिंचते की उसके जैसा किसी दूसरे ने कोई काम खराब ना किया हो. बल्कि तुझे डांट नहीं सकते इसलिए नकुल को सब मेनका मानकर अपनी भड़ास निकाल लेते है.
मैं:- हाहाहाहा, मतलब वो मेरे साथ रहने कि सजा पता है. अच्छी बात पता चली. लेकिन इन सब बातों में कहीं भी ऐसा नहीं दिखा कि आप मेरे ताने नहीं सुनना चाहते. बस छोटी सी रिक्वेस्ट कर गए, की ताने मत दे, सुनने कि हालात में नहीं हूं.. लेकिन मेरे ताने रोकने वाले जज्बात निकल कर अब तक सामने नहीं आए..
मनीष:- मैं सोच ही रहा था, तेरी ब्लैकमेलिंग अब तक शुरू क्यों नहीं हुई..
मै:- मुझे कंप्यूटर और ड्राइविंग सीखनी है.. मंजूर हो तो आगे बात करो, वरना नहीं कर सकती, इस बात पर 100 तरह के कारन जानने में मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं..
मनीष:- नहीं वो बात नहीं है, कंप्यूटर मत सीख अभी, सुन ले पुरा पहले तब बीच में बोलना.. पूरे खानदान को ना कंप्यूटर वालों से बहुत सारा काम परते रहता है, कई बार इमरजेंसी में कंप्यूटर वाले की दुकान में घंटो खड़े रहकर, काम करवाना पड़ता है. ऐसे में यदि तू कंप्यूटर सीख लेगि ना, तो सब तुझे दिन भर परेशान किए रहेंगे..
मै:- हद है भईया… मेरे लिए सब परेशान हो सकते है, तो क्या उनको इतना भी हक नहीं. और कंप्यूटर इतना जरूर है तो पहले बताना था ना, अब तक तो सीख भी गई होती… चलो मतलब ये घर की जरूरत है तो कंप्यूटर सीख जाऊंगी, अब बताओ ड्राइविंग का क्या?
मनीष:- मतलब ड्राइविंग सीखने के लिए इतना क्या पूछना, नकुल से सीख लेना. और कोई डिमांड..
मै:- नहीं, अब भाभी कैसी है अभी…
मनीष:- पहले से अच्छी है.. 8-10 दिन बाद बताएंगे, कब तक डिस्चार्ज करेंगे.. मै सोच रहा था कि यहां से डिस्चार्ज करके, उसे मायके छोड़ आऊं.. वहां मां के साथ रहेगी तो जल्दी ठीक हो जाएगी..
मै:- जैसा आपको उचित लगे भईया, वैसे एक बात बोलूं..
मनीष:- क्या?
मै:- आप और भाभी यहां सहर में क्यों नहीं शिफ्ट हो जाते, चारो बच्चो की पढ़ाई लिखाई भी अच्छी हो जाएगी और भाभी की मां यहां रहेगी तो देखभाल भी उनकी अच्छी होती रहेगी. फिर यहां सारी सुविधाएं भी है.
मनीष:- मां पिताजी अकेले हो जाएंगे.. बड़ी भाभी ठीक रहती तब तो ये कबका हो गया रहता, लेकिन क्या कर सकते है अब.. तू बता..
बताई थी ना मै, अपने परिवार के बीच काफी नटखट हूं, इसलिए मेरे हल्के-फुल्के और सटीक ताने सबको झेलने पर जाते है. परिवार में हर किसी से मेरी ऐसी ही बातें होती थी, थोड़े हंसी मज़ाक थोड़े सीरियस.
ये सब तो जीवन का एक हिस्सा है जो चलते रहता है, लेकिन अनुज की हरकत वैसी नहीं थी, जो मेरे जीवन का हिस्सा बने, और मुझसे गलती कहां हो गई ये मुझे जानना था. दिन के 3 बजे के करीब मुझे वो वक़्त भी मिल गया जब अनुज को मैंने खाने खाने किचेन के पास ही बुला लिया. इस वक़्त घर में मै बिल्कुल अकेला था और नकुल अपने दोनो भाई (कुणाल और किशोर) के साथ, उसे घुमाने चॉकलेट दिलवाने ले गया हुआ था..
मै, खाना परोसते… "अनुज जी कल शाम आप क्या करने की कोशिश में जुटे थे..
अनुज:- कुछ नहीं रात गई बात गई.. मै अपनी हरकतों पर शर्मिंदा हूं..
मै:- बहुत बेहूदगी वाली हरकत थी, शर्म आनी चाहिए आपको. अब मुझे जारा ये बता दो अनुज की जब पहले दिन बाजार जाते वक़्त इतने डिसेंट थे, फिर मेरी किस बात को लेकर तुम्हारे अंदर का जानवर जाग गया.. वो भी मुझ जैसी लड़की को देखकर?
अनुज:- बहुत बदमाश हो तुम मेनका, मुझे कबसे टीज किए जा रही हो..
मै उसकी बात का मतलब कुछ समझ पाती, उससे पहले ही वो खड़ा हो गया और एक दम से मुझे बाहों में भरकर, मेरे गले को चूमने लगा. मै तो बिल्कुल ही शुन्न पर गई. खुद में जितनी ताकत हो सकती थी, लगा दी.. लेकिन में किसी आशहाय की तरह उसके बाहों में परी छटपटा रही थी..
मै छुटने की जितनी कोशिश कर रही थी, अनुज उतनी ही मजबूती से मुझे खुद से चिपकाए हुए था, और अपना हाथ नीचे ले जाकर मेरे दोनो जांघों के बीच.. छी ये उसकी घटिया हरकत. मेरी आत्मा तक घूट रही थी वहां.
फिर कानो में गूंजी उसकी घिनौनी बात… "साली कूतिया, नहाते वक़्त मेरा लंड देखकर पूरे दिन दरवाजा लगाकर अपने चूत में उंगली कर रही है और खुद की आग शांत हो गई तो मुझे जलता छोड़ दिया.. आज तुझे फिर से लंड दिखाऊंगा और चूत कि गर्मी शांत करने का वो जन्नत का रास्ता भी. हाय तू बिल्कुल कोड़ी कली है जिसे मसलकर मै अब फुल बना दूंगा"….
किसी सड़कछाप गावर से भी ज्यादा उसकी गिरी भाषा सुनकर मुझे रोना आ गया और अगले ही पल मै किसी मूर्ति की तरह स्थूल पर गई, जब उसने मेरे सलवार का नाड़ा झटके में खोल दिया और अपने गंदे हाथ नीचे ले जाकर मेरी योनि के ऊपर रख दिया… मुझे बस यही ख्याल आ रहा था जब यही जिंदगी है तो मुझे मौत क्यों नहीं का गई"..
मेरे होंठ ख़ामोश थे मगर मेरे आखों से लगातार आशु आ रहे थे. वो किसी पागल कुत्ते की तरह मेरी योनि कर अपने हाथ घिस रहा था.. तभी नीचे से नकुल की आवाज अाई, जो कुणाल और किशोर के साथ मस्ती करते हुए घर में चला आ रहा था.
उसकी आवाज जैसे ही अनुज के कानो में गई वो झटके से दूर हुआ और अपने खाने की थाली को उठाकर कमरे में भाग आया… मै अपनी फटी सी हालत पर घुटती हुई, किसी तरह अपने सलवार को पाऊं से ऊपर की और उसे ठीक करके अपने कमरे की ओर बढ़ पाती, तभी वहां नकुल पहुंच गया..
मै किचेन के बीचों-बीच किसी बावड़ी की तरह खड़ी, अपने आशु बहा रही थी, और वो सामने से मुझे देख रहा था.. नकुल अपनी बड़ी सी आखें किए सवालिया नजरो से जैसे पूछने कि कोशिश कर रहा हो कि, क्या हो गया.. उसके चेहरे भाव इतने गुस्से वाले थे मानो किसी का वो खून कर दे इस वक़्त.. शायद उसे भी मेहसूस हो रहा हो, मेरे आत्मा में चोट लगी थी और जख्म गहरे थे.
जैसे ही नकुल मेरे नजदीक आया मै उसे पकड़ कर बस रोने लगी.. चिंख्कर और चिल्लाकर रोने लगी. वो मेरे सर को अपने सीने से लगाकर मेरे आंसू साफ करता रहा. उसे भी पता नहीं था कि मै रो क्यों रही हूं, लेकिन मेरे दर्द को मेहसूस कर वो भी वो रहा था. किसी तरह उसने मेरी मां को फोन मिला दिया और फोन स्पीकर पर डाल दिया..
मै बेसुध होकर रोने कि गलती कर चुकी थी, और नकुल मेरे दर्द को ना बर्दास्त कर पाया और उसे कुछ सूझ नहीं रहा था, इस नासमझी में उसने मेरी मां को फोन लगाकर गलती कर चुका था…. दूसरी ओर से मेरी हालात पर फिक्र कम और डर ज्यादा था,… कहीं किसी ने कुछ कर तो नहीं दिया.. एक अनहोनी की आशंका जो मेरे साथ कहीं हुई तो नहीं… जो वाकई में हुई थी बस किसी को पता नहीं था…
Haalki computer ya car chalana sikhna galat nahi par yeh baat menka ke dimag mein us kamini prashi ne daali hai toh is baat pe bhi ek baar hi sahi par soch jarur le woh..
So kothe wali roopa bai ka us dalal bhai anuj ne apna kaam kar hi diya... maybe iske Khandaan mein yahin hota hoga.. waise yeh anuj toh ghar ke naukar aur iski ma ki kheli gayi khel ka hi toh natiza hai
waise ek naukor ya anek se kabaddi kheli iski ma ne yeh toh roop bai ka baap bhi na jaane
.. lagta anuj ko bhi pata nahi hoga ki woh kitne naukoro ka beta hai
itni giri huyi paidaish chii chii aaaak tuuu
Khair I think sau baap ki ek aulad anuj ko aur jeene ka koi adhikar nahi hai behtar yahin hai ki menka nakul ke sath milke usko jaan se maar de aur nadi mein baha de..
Let's see aisa menka aur nakul karte hai ki nahi
Brilliant update with awesome writing skill nainu ji