• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Thriller 100 - Encounter !!!! Journey Of An Innocent Girl (Completed)

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
52,994
173
Note For My Lovely Readers


Pyare mitro ye halki fulki kahani main bilkul apne aur aapke manoranjan ke liye likh raha hun, jo ki meri erotica fantasy hai, jise main shabdon ke jariye aap sab tak pahunchane ja raha hun... Ab sabhi readers kriya dhyan den... Write ke sath chhota sa interview by nain11ster..

Kahani kis mode me likhi ja rahi hai... Jaisa ki tital hai... Journey of an innocent girl.. to kahani first person mode me likhi ja rahi hai, jo ek ladki ke hi ird-gird ghumegi...

Total Chepter :- 100 (ye 100 update nahi hai, 100 chepter hai. isliye koi confusion na rahe)

Update chhapne ki prakriya:- Hafte me 4 update confirm.. jyada aa gaya to samjh lijiyega mood achha hai.. :D

Kahani me Romance:- naa ke barabar

Kahani me family drama:- bus intro aur scene banane ke liye..

Kahani me thrill:- naa ke barabar

Kahani me erotica:- sari kayanat milkar usi disha ke ore le jaynge..

Kahani ka motive:- purani baten yaad aa gayi... Xforum par koi motive ke sath story padhta hai kya.. just joking... Sex aur samaj ka najariya bus yahi hai motive .. lekin complete fictional bus har chepter ke part ko aap khud se juda hua mehsus karenge..

Readers se apekshayen... Kriya comment dekar hausla badhate rahe...

Aisi kahani likhne ka matlab... Let's the reader decide .. maine kya likha...

Anth me kuch kahna chahenge... Uprokt batayi gayi sari baten asmanjas wali hain, isliye unpar jyada tavojjo na den. :D

Isi ke sath main khud se kiye gaye sawal jawab ko samapt karta hun... Ummid hai aap sab sath banaye rakhenge... Pahli baar puri kahani ko reveal kar diya hun.... Bus jo log padhe.. apna vichar jaroor dete jayen..

Dhanywaad
jab yaad aaye tab de dena bandhu
 

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
52,994
173
Kahani Devnagri aur Hinglish dono me post hai. Kripya apne suwidha anusar bhasan chunne ke liye index dekhe...


कहानी देवनागरी तथा हिंग्लिश दोनो में लिखी है। अपनी सुविधा अनुसार इंडेक्स से भाषा का चयन कर ले।
joh bhai ne likhi vahi priye
kyaa
devnagri
kyaa
hinglish
sarvatr bash sabd rash
 

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
52,994
173
1. प्रारंभिक जीवन





जिसकी हाथ कि सफाई पकड़ी गई वो चोर और जो बच गया वो कलाकार। शायद हर जगह की बस यही कहानी चल रही है। जिंदगी की शुरवात दौड़ की कहानी शुरू करने से पहले मै अपना परिचय दे दूं। जब मै पैदा हुई तब मेरे मामा ने मेरा नाम मेनका रख दिया।


हां आप सही सोच रहे है, इतिहास में मेनका का अहम स्थान है, जिसने अपने रूप और कौमार्य से विश्वमित्रा की तप को भंग किया था और दोनो के मिलन से जो बच्चा पैदा हुआ उसने तत्काल आर्यावर्त साम्राज्य का गठन किया था। लेकिन मेरा नाम इन तथ्यों को ध्यान में रखकर नहीं रखा गया था, बल्कि मेरे सबसे बड़े वाले भईया का नाम महेश और उससे छोटे वाले भईया का नाम मनीष था, इसलिए मेरा नाम "म" अक्षर से रख दिया गया। महेश, मनीष और मेनका।


मै भी एक मेनका ही थी। रूपवान, गुणवान, 2 भाइयों की इकलौती बहन और अपने घर की सबसे नटखट सदस्य। मेरे पैदा होने के 10 साल बाद मेरे सबसे बड़े भाई महेश की शादी हो गई।


मेरी बड़ी भाभी सोभा जबसे ब्याह कर आयी, घर में गृह क्लेश शुरू हो गया। देखने में तो काफी खूबसूरत थी, शायद इसी बात का घमंड था और चेहरे पर कभी हंसी नहीं रही। दूर से ही देखकर कोई भी उसे चंठ समझ ले।


खैर धीरे-धीरे हम सब भी उसकी आदतों में रम गए। जब तक घर में उसकी किट-किट ना शुरू हो, तबतक ऐसा लगता था कि आज दिन शुरू ही नहीं हुआ। जब वो मायके जाती थी, तो ऐसा लगता था घर में केवल चिड़िया ही चहक रहे है और किसी इंसान की आवाज ही नहीं आ रही।


उसके 2 सालो बाद मेरे मनीष भईया की भी शादी हो गई। रूपा भाभी जब शुरू-शुरू घर में आयी थी, तब वो काफी अच्छी थी। संस्कारी और आज्ञाकारी बहू की परिभाषा। लेकिन कहते है ना खरबूज को देखकर खरबूज अपना रंग बदल लेता है, वहीं किस्सा मेरे घर में भी हो गया।


फिर तो देवरानी और जेठानी का रिश्ता ने ऐसा रंग जमाया की पूरे गांव वाले आए दिन तमाशा देखा करते थे। भिड़ कान लगाए दोनो के द्वंद को सुनती और मेरे पिताजी अनूप मिश्रा के बहुओं की चर्चा पूरे गांव का हॉट टॉपिक बनकर रह जाता।


जब दोनो भाइयों में झगड़े बढ़ने लगे तब पिताजी ने खेत और पैसे देकर बड़े भईया को घर के लिए नहर के पास वाली जमीन दे दिया, और हम सब छोटे भईया के साथ यहीं अपने पहले के मकान में रहने लगे। लेकिन वो कहते है ना विवाद जब किसी स्त्री का लगाया हो तो कभी थमता ही नहीं।


मेरी भाभी सोभा अक्सर मेरे बड़े भैया महेश को उकसाया करती थे और वो आकर यहां कभी-कभी पिताजी और छोटे भईया से जमीन के लिए झगड़ा किया करते थे। मेरे पिताजी एक सुलझे हुए व्यक्ति थे। ना जाने कितने लोगो ने उनकी सलाह से अपनी जिंदगी सवार ली, लेकिन पिताजी खुद के ही चिरागों को समझा नहीं पाए।


जब बंटवारा हो रहा था तब उन्होंने जमीन के 4 हिस्से कर दिया था। सबसे बड़ा भू भाग मिला था मेरे छोटे भैया को। तकरीबन 40 एकड़ जमीन और 8 आम के बगीचे। वो इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने घर की जिम्मेदारी उठाई थी। वहीं मेरे बड़े भैया को 30 एकड़ जमीन और 8 बगीचे उन्हें भी मिले थे।


5 एकड़ की जमीन पिताजी ने खुद अपने पास रखा था और हाईवे से लगा हुआ 10 एकड़ की जमीन मेरे शादी के लिए अलग कर लिया था। शादी के वक़्त जो भाई खर्च उठाएगा, उसे वो जमीन मिलेगी। वरना वो जमीन बेचकर मेरी शादी की जानी थी। बस इसी बात को लेकर महीने, 2 महीने में विवाद हो जाया करता था।


खैर ये सब कहानी घर-घर की चलती ही रहती है, लेकिन इन सब में मेरी कहानी भी आगे बढ़ रही थी। पारिवारिक क्लेश को मुझसे लगभग दूर ही रखा जाता था और घर में एक बेटी हो ऐसी सभी की वर्षों कि ख्वाहिश थी, इसलिए मुझे लाड़-प्यार भी सबसे उतना ही मिलता रहा।


लेकिन उफ्फ ये बंदिशे, भाभी के भाइयों से हंसकर बात करने पर भाव्हें तन जाती थी। अकेले अपने सड़क के मोड़ के आगे गई तो सवाल खड़े हो जाया करते थे। एक स्कूल था तो वहां भी मेरे साथ गांव के कई चचरे भाई हुआ करते थे, जिनके रहते किसी कि हिम्मत नहीं होती मुझसे बात करने की।


कुल मिलाकर जो भी हंसना खेलना और बोलना है, वो अपने परिवार के बीच ही। धीरे-धीरे उम्र भी बढ़ने लगी और दुनियादारी की कुछ-कुछ बातो का अल्प ज्ञान भी शुरू होने लगा। वैसे तो मै ज्यादातर अपने कमरे के बाहर तक नहीं निकलती थी, लेकिन कभी- जब मेरी रातों की नींद खुलती और मै पानी पीने के लिए अंधेरे में किचेन के ओर जाती, तो कभी-कभी मुझे चूड़ियों के जोड़-जोड़ से खन-खन कि आवाज़ आया करती थी।


मै डर के मारे वापस अपने बिस्तर में घुस जाती और सुबह जब मै ये बात अपनी भाभी को बताती की हमारे घर में चुड़ैल है और उसके चूड़ियों के खनकने की आवाज मैंने अपने कानो से सुनी, तो वो जोड़-जोड़ से हसने लगती थी।


खैर जिंदगी मासूमियत में कट रही, थी जिसमे बहुत से बातो का तो मुझे ज्ञान भी नहीं था। दसवीं की परीक्षा हो गई थी और आगे कि पढ़ाई के लिए हमे हमे गांव से 8-10 किलोमीटर दूर, एक छोटे से बाजार के पास जाना था। मै बहुत खुश थी क्योंकि मेरे सारे बॉडीगार्ड भाई, सहर पढ़ने निकल गए थे। केवल नकुल बचा था जो मेरे फिफ्थ जेनरेशन कजिन का बेटा था और गांव के रिश्ते में मेरा भतीजा लगाता, पर हम दोनों एक ही उम्र के थे। चूंकि हम दोनों बिल्कुल पड़ोसी थे इसलिए काफी क्लोज थे।


गांव में अक्सर ऐसा उम्र का गैप हो जाते है,, जो 3-4 पीढ़ी नीचे आने के बाद चाचा-भतीजे के उम्र एक समान होती है। अब मुझे ही देख लीजिए, मै अपने बड़े भाई से 12 साल की छोटी हूं और दूसरे भाई से 8 साल की।


मेरे बड़े भाई के बच्चे जब तक जवान होंगे तबतक मेरा बच्चा मेरे गोद में होगा। और मेरे भाई के पोते पोती और मेरे बच्चे की उम्र में बहुत ज्यादा होगा तो 5 साल का अंतर। सहर की बात अलग होती है, जहां 2 जेनरेशन बाद तो किसी को पता भी नहीं होता कि कौन किसके रिश्ते में क्या लगता है और चौथा जेनरेशन आने तक तो शायद आपस मै शादियां भी हो जाएं। लेकिन गांव की बात अलग होती है। पीढ़ी दर पीढ़ी सब एक ही जगह रह जाते है।


खैर हमे कॉलेज के लिए घर से 6-7 किलोमीटर दूर जाना था। मै और नकुल दोनो तैयार थे कॉलेज जाने के लिए, वो घर में आते ही चिल्लाने लगा.. "मेनका दीदी, जल्दी करो।".. हालांकि बाहर वो मुझे दीदी नहीं कहता था लेकिन यदि सबके सामने मुझे दीदी ना कहे तो उसे जूते परते।


आज मै नकुल के साथ अपने नए कॉलेज में जा रही थी, एक नई जिंदगी की शुरवात करने। गांव के पास का कॉलेज था तो लगभग हर कोई हमारे परिवार के लोगों को जनता था। ऐसा हो भी क्यों ना, आखिर कॉलेज के पास की सारी जमीन हमारी ही फरिक (फरिक यही पीढ़ियों में अलग हुए किसी ना किसी परिवार की) की थी, जिसे किसी ने आज तक बेचा नहीं था।


कॉलेज का पहला दिन और मै पहली बार गंदी नजरो का सामना कर रही थी। आज तक कभी ऐसे माहौल में नहीं रही और ना ही कभी घर के बाहर अकेली गई, इसलिए नजरो का ऐसा घिनौनापन कभी मुझे नजर ही नहीं आया। मेरी नजरो से बस 1, 2 नजरे टकराई और मै नकुल का हाथ जोड़ से पकड़ कर नीचे जमीन में देखकर चलने लगी।


नकुल को भी आस-पास के माहौल का इल्म था, इसलिए वो भी चुप चाप मेरे साथ चल रहा था। हम दोनों क्लास का पता करने के लिए ऑफिस आ गए। वहां का किरानी, चपरासी और ऑफिस में कई क्रमचारी हमे पहचानते थे। त्योहार में हमारे घर कई बार तो कुछ लोग आ भी चुके थे। उसी में से एक चपरासी थे मुन्ना काका, जो पिछला टोला में रहते थे।


मुन्ना काका हमे देखकर खुश होते हुए कहने लगे… "बाबू साहब का फोन आ गया था। मेनका बिटिया तुम्हारा क्लास उधर बाएं ओर से है, तुम रुको यही मेरे साथ चलना। नकुल बिटवा तुम्हारा विज्ञान कि सखा उधर दाएं ओर है। तुम उधर चले तो जाओगे ना।"


नकुल "हां" में सर हिलाते हुए कहने लगा… "मुन्ना काका इसके क्लास के लड़को को अच्छे से समझा देना, वरना हम जब समझाने पर आएंगे तब क्लास में केवल लड़कियां ही बचेगी।"


मुन्ना:- हा हम समझा देंगे आप चिंता मत करो, इसलिए तो मेनका बिटिया को अपने साथ लिए जा रहे है।


इन सब बातो में मेरी कोई प्रतिक्रिया नहीं थी, मै तो बस केवल जमीन को ताक रही थी। एक बड़े से लंबे धमकी के बाद मुन्ना मेरे क्लास से चला गया और मै एक बेंच पर बैठ गई। मेरे पड़ोस वाली लड़की मुझे घूरती हुई पूछने लगी… "ऐ तेरे पापा जमींदार है क्या, जो ये इतना बोलकर गया।"


मै बस हां में अपना सर हिला दी। वो मेरे ओर हंस कर देखती हुई कहने लगी, "तेरे जवानी पर तो ताला लग गया है।"… कुछ अजीब सी बातें थी, जिसे सुनकर मै उसे सवालिया नजरो से देखने लगी।


वो मुझे देखकर हंसती हुई कहने लगी… "मेरा नाम नीतू है, और तुम्हारा नाम।"..


"मेनका".. धीमे से मैंने बोल दिया.. वो फिर से पूछने लगी। इस बार थोड़ी ऊंची आवाज में मैंने अपना नाम बता दिया। चलती क्लास के बीच धीमे-धीमे पता नही वो कैसी-कैसी बातें कर रही थी। नीतू की बातें सुनने में मुझे काफी अजीब लग रही थी और पहली क्लास के बाद ही मैंने तय किया कि इसके पास नहीं बैठना।


मैं सोच तो ली लेकिन डर ये भी था कि कहीं इसके जैसे सब हो गए तो। मै बस इसी उधेड़बुन में थी कि दूसरी क्लास शुरू हो गई और धीमे-धीमे उसकी बातें भी। मै बिना कोई प्रतिक्रिया दिए बस "हां हूं" कर रही थी और सोच रही थी… "इससे कहीं बेहतर तो मेरे स्कूल का माहौल था। सब भाई बहन के बीच कम से कम खुलकर हंस बोल सकती थी। यहां तो लग रहा था कि अनजानों के बीच मेरे मुंह पर ताला ही लग गया है।"
manka raani fir vahi kahani
fash gai bulbul jaal me
behtreen shuruwaat sang kaafila shuru kiya bhiya ji ne adbhut mitr
 

aman rathore

Enigma ke pankhe
4,853
20,197
158
तीसरी घटना:- भाग 2










मै:- दीदी आप ये मुझे बता रही हो मै तो कबसे अपनी इस बेवकूफी पर खुद को कोस रही थी.. अब वो पागल आदमी नंगा नहा रहा था, छोटा सा दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुआ और उससे एक रात पहले की मै पूरी थकी हुई थी… जाकर सो गई.. इस बात को लेकर जो पागलों वाले खयालात पाल ले उसे क्या ही कहें. पता ना ऐसे खयालात के बीजारोपण कहां से होता होगा इनके दिमाग में… बाद में तो मैंने किचेन में बुलाकर अकेले में पुछ रही थी.. फिर तो ना जाने वो क्या-क्या सोच चुका होगा.. और हां उस वक़्त मै जम गई थी, इसलिए मै कुछ कर नहीं पाती, दिमाग सुन्न पर गया था मेरा और शरीर बेजान हो गया था..


प्राची:- ये सब काल चक्र का दोष है बलिके.. कहीं कोई ऐसी घटना हुई होगी जिसका जिक्र किसी ने अपने कहानी और पोर्न फिल्मों में किया होगा, इसलिए तो उसकी सोच वहां तक गई थी.. बेबी अपना देश अमेरिका से भी आगे है सेक्स के मामले में. इस मुद्दे पर बहस करना ही बेकार है कि कौन सही कौन गलत.. बस अपना दामन बचाकर चलो रे बाबा.. जिसकी जैसी आग भड़की है वो शांत करता रहे, हमे क्या..


मै:- सच कह रही हो दीदी.. लड़कियां भी कम नहीं होती है..


प्राची:- ए मार खाएगी अब… जिन बातों में मैचुरिटी नहीं, उसके तरफ ध्यान नहीं देते.. ये विषय आकर्षित करता है, खासकर तुम जैसे टीनएजर्स को.. दूर रहो इससे.. जितना दूर रहेगी इन बातो से उतना काम में फोकस करेगी… और जल्दी से 12th पास होकर दिल्ली पहुंच… तेरे सीए की तैयारी वहीं से…


मै:- सपने मत दिखाओ दीदी.. ऐसा कभी नहीं होगा..


प्राची:- मुझे भी ऐसा ही लगता था जब मै 11th में थी, फिर पढ़ाई करती रही, डिस्ट्रिक्ट टॉपर हुई. बाद में पापा के अक्ल के थोड़े पर्दे खुले, कुछ रिस्तेदारो ने सिफारिश कि और मै ग्रेजुएशन करने दिल्ली पहुंच गई.. वहां से 3 साल ग्रेजुएशन और उसके लगे हाथ आईआईएम के इंट्रेस भी निकाल ली.. जब पास हुई तो नौकरी करने की इच्छा नहीं हुई क्योंकि मेरे पापा के पास इतने तो पैसे थे कि उनसे मांगकर मै कुछ बिज़नेस कर सकू. सो एक शॉप दिल्ली में डाल दी जिसके प्रोफिट के पैसे से मै पापा की पूंजी को धीरे-धीरे ब्याज सहित वापस लौटा रही हूं.. और वहां का प्रोफिट देखकर पापा ने यहां भी वैसा ही सेटअप डालने कह दिया.. ये थी सिम्पल सी मेरी जिंदगी…


मै:- मुझे तो लगा आप 20-21 साल की हो..


प्राची:- किसी को नहीं बताएगी तो मै अपनी उम्र बता सकती हूं..


मै:- मै गेस करूं..


प्राची:- हां कर..


मै:- कितने साल हुए बिजनेस किए वो बता दी केवल..


प्राची:- 1 साल..


मै:- एम्म.. 15+2+3+2+2… ओह माय गॉड आप 24 साल के लगभग की है..


प्राची:- जी नहीं 23 साल.. मैंने अपना 10th चौदह की उम्र में पास कर लिया था… वैसे कैलकुलेशन मस्त है तुम्हारी सीए सर.. मेरी कंपनी का ऑडिट फ्री में कर देना..


मै:- आप अपने पापा के पैसे व्याज सहित लौटा रही है, मुझसे खाक फ्री में काम करवायेंगी .. वैसे मुझे नाचने का मौका कब मिल रहा है..


प्राची:- जब भी मौका मिलेगा, महीने दिन तू मेरे साथ रहेगी… एक छोटी बहन की कमी सी खल रही थी, जो हमदर्द हो हम राज हो.. और जिससे मै हर तरह की बातें बिना सोचे कर सकूं …. तुम मिल गई ये मेरी खुश किस्मती.. चल अब कुछ ज्ञान की बातें और नाड़ी शक्ति कि बातें करते है..


मै:- जरूरी है क्या..


प्राची:- बहुत जरूरी है.. तेरे बैग में कुछ-कुछ समान है.. वैसे पढ़कर तो इस्तमाल कर सकती थी लेकिन सोचा खुद से ही बता दू… उसमें एक लेशन है जो तू नियमित रूप से लगाएगी..


मै:- ठीक लगा लिया..


प्राची:- पूरी तो बात सुन ले हरबरी एक्सप्रेस.. उसे तुम्हे अपने बूब्स पर लगाने है, जो साइज बढ़ता है और शेप में रखता है…


मै:- क्या ??? छीछीछी दीदी मैं ना लगाऊंगी, ठीक है ये चिपके हुए… बिना कुछ में तो लोग कमेंट कर देते है…


प्राची:- मार डालूंगी गवार… अच्छे नहीं लगते उल्लू.. बी ए वूमेन वाली फीलिंग भी तो आनी चाहिए.. और अभी नाटक करेगी तो मै वीडियो कॉल करके अप्लाई करवाऊंगी. डर मत ये अपने मन से नहीं दे रही. मेरी एक दोस्त डॉक्टर है, उसे जब तुम्हारी तस्वीर दिखाई तब उसने कहा इसके बूब्स साइज बहुत मैक्सिमम 30 भी मुश्किल से पहुंचेगा. कम से कम 34 तो होने चाहिए.. इसलिए बोल रही अब कोई बहस नहीं..


मै:- मै तो कहती हूं ज़ीरो ही करवा दो.. इसी के वजह से ज्यादा टेंशन है दीदी…


प्राची:- पागल कहीं की टेंशन इसकी वजह से नहीं होगी, वो दिमाग की गन्दगी की वजह से होती है, जिसमें अकेले लड़को का दोष नहीं होता.. इसलिए सट उप..


मै:- हां ठीक है समझ गई.. अब आगे..


प्राची:- बैग ने हेयर रिमूवर है, नियमित रूप से सफाई रखना. वेजिना के अंदर या उसके एरिया में पानी या साबुन से मत साफ करना, उसके लिए वी केयर है. खत्म हो जाए तो उसे मंगवा लिया करना. पानी या साबुन के इस्तमाल से वेजायनल पीएच बैलेंस नहीं रहता जिससे हमें कठिनाई का सामना करना पड़ता है. समझ गई ना…


मै:- येस बॉस..


प्राची:- मेकअप किट है, जब भी बाहर जाना तो हल्का मेकअप करके निकालना, ऐसे झल्ली के तरह जो कहीं भी चली जाती है वो मत करना.. समझी..


मै:- लेकिन दीदी असली खूबसूरती तो सादगी में होती है.. गांव के कॉलेज में मेकअप करके जाऊंगी तो प्रोबलम नहीं होगी..


प्राची:- अरे हल्का मेकअप रे बाबा जो मै भी किए रहती हूं, कहां तुझे मै हेरोइन बनकर जाने कह रही हूं…


मै:- आप ये सब 11th में करती थी..


प्राची:- मेरी कोई बड़ी बहन नहीं थी समझाने वाली, लेकिन तेरी है.. इसलिए तुझे करना होगा..


मै:- ठीक है कर लीया समझो.. आगे बताओ…


प्राची:- तेरे लिए एक लैपटॉप लिया है, और बहुत सारी एसेसरीज, घर में रहेगा तो खुद से सीख जाएगी.. और मैंने यहां के केवल वाले से कह दिया है कि वो वाईफाई की लाइन तेरे गांव तक बिछा दे, लेकिन उसका कहना है कि गांव में प्रोफिट नहीं होगा बस यहां फसी हूं.. हाई स्पीड इंटरनेट हो ना तो फिर हम वीडियो कॉल किया करेंगे, वो भी लैपटॉप के स्क्रीन पर..


मै:- वाईफाई हमरे गांव तक आ सकता है क्या?


प्राची:- कस्टमर होंगे तो क्यों नहीं..


मै:- कितने कस्टमर चाहिए..


प्राची:- 40 तक हो जाएंगे तो वो लगा देगा..


मै:- हाई स्पीड इंटरनेट के सब भूखे है दीदी, 40 क्या 200 कस्टमर हो जाएंगे उसके.. आप ये नंबर लो, मेरे मुखिया चाचा का नंबर है.. उसको बोलना इनसे बात कर लेने.. काम हो जाएगा.. अगर काम ना हुआ ना तो मै 10 दिन बाद गांव में रहूंगी.. तब कह देना.. मै खुद जाऊंगी चाचा से बात करने..


प्राची:- ले तो हो गई समस्या सॉल्व.. लैपटॉप ले वाईफाई इंटरनेट लगाओ.. और लैपटॉप चलाना सीखो…


मै:- दीदी पर मै सीखूंगी कैसे…


प्राची:- एक हैंडसम मुंडा है, उसको कह दूंगी तुम्हे ऑनलाइन सिखाएगा..


मै:- ओह हो, तो अब टीनएजर का ध्यान भटकाने कि साजिश कौन कर रहा है.


प्राची:- ऐसे ध्यान का क्या फायदा जो किसी अजनबी से बात मात्र करने पर भटक जाए बेबी. बस ये जो तुम्हारी हिचक है ना लड़को को लेकर वो तोड़नी है समझी… हर कोई बुरा नहीं होता और हर कोई अच्छा नहीं होता, बस हमे खुद पर भरोसा और जीने का तरीका आना चाहिए.. गोट माय पॉइंट…


मै:- आज इतनी बातें दीदी, मतलब लगता है वापस जाने वाली हो ना दिल्ली..


प्राची:- हां आज शाम को निकलूंगी, सो सोली.. ज्यादा बोर कर दी क्या?


मै:- हिहीही .. दीदी बोर नहीं की बस कभी-कभी किसी का जाना अखर जाता है. पहले 1 दिन को छोड़ दिया जाए तो मुझे लगा ही नहीं की आप मेरी बड़ी बहन ना हो…


प्राची:- हां पहले दिन लग जाता तो तू मुझे फोन ना दे देती आईडी बनाने के लिए, जी बहाने मारकर गई थी अपने भईया के कमरे…


मै:- हो.. मतलब आपको सब पता था..


प्राची:- पता भी था और मै खुश भी थी. बहुत समझदारी वाला निर्णय था वो. तुमने फोन दे दिया होता तो मै तुम्हे बेवकूफ समझती. बस लगा की तुम्हे पासवर्ड के बारे में पता नहीं कि उसकी अहमियत क्या है, इसलिए समझना परा था..


काफी लंबी बातें होने के बाद हम दोनों वहां से सीधा प्राची के शॉप पहुंचे जिसके 4th फ्लोर पर उनका एक सिनेमा हॉल बना हुआ था. सच कहूं तो इतनी बड़ी उम्र में मैंने आज तक कभी सिनेमा हॉल की सीढ़ियां नहीं चढ़ी थी, जब मैंने यह बात प्राची को बताई तो कहने लगी, अपना ही थियेटर है, जब दिल करे यहां आकर अकेले भी सिनेमा देख सकती हो.


पॉपकॉर्न खाते हुए हम मूवी देखने लगे. सुबह से लेकर 5 बजे शाम तक मै प्राची के साथ ही रही. उन्होंने मुझे घर पर मुझे ड्रॉप किया और मां से मिलकर दिल्ली के लिए निकल गई. लेकिन जाते-जाते मुझे बहुत कुछ सीखा गई..


मै शायद सामान्य दिख तो रही थी लेकिन अंदर की पिरा दिखा नहीं पा रही थी.. सब कुछ समझ तो रही थी कि जो भी घटना हुआ उसमे मेरी कोई गलती नहीं थी, लेकिन फिर भी मै खुद को समझा नहीं पा रही थी. उस वाक्ए के बाद ऐसा एक दिन भी नहीं गया जब दिल के दर्द नासूर ना हुए हो, लेकिन किसी से कह कर भी क्या कर सकती थी, ना तो घुटन कम होती और ना ही बोझ उतरता.. बस इन लम्हों में मेरी भावना और मेरे नजरिए को समझती बस प्राची दीदी मुझे जीने का तरीका और काम में फोकस करना सीखा गई…


22 दिन बाद भाभी को डिस्चार्ज किया गया. बहुत सारे बंदिशों के साथ उनकी पूरी देखभाल करनी थी. मुझे इन दोनो भाई बहन ने नासूर से जख्म दिए थे, एक पर मरहम लगाने का वक़्त आ रहा था. मै भाभी के साथ वापस गांव लौट रही थी.. मै बिल्कुल पूरे धैर्य के साथ अपने बाड़ी आने का इंतजार कर रही थी, घर का माहौल बिल्कुल शांत होने का..


बहरहाल एक लंबे अवकाश के बाद समय था कॉलेज जाना का और सुबह-सुबह नकुल पहुंच चुका था. हम दोनों सवार हो गए और चल दिए नीतू को लेने, लेकिन नकुल के चेहरा देखकर ऐसा लगा मानो वो कोई जबरदस्ती का बोझ ढो रहा हो… "बात क्या है, तू मुझे देखकर खुश ना हुआ"..


नकुल:- कैसी बात कर रही हो, कुछ भी अपने मन से हां..


मै:- सुन मुझे ड्राइविंग सीखनी है..


नकुल:- ठीक है आज शाम से शुरू कर दूंगा..


मै:- क्या हुआ ऐसे उखड़ा हुआ क्यों है, नीतू से झगड़ा हो गया है क्या?


नकुल:- झगड़ा नहीं हुआ बस बेतुकी जिद लेकर बैठी है, इसलिए दिमाग खराब हो गया है..


मै:- बाप को रेंज रोवर दे रहा है तो उसने कहीं स्कूटी तो नहीं मांग ली..


नकुल:- हाहाहाहा.. वेरी फनी.. वो बात नहीं है.. छोड़ उसे जाने दो.. तुम ठीक हो ना.


मै:- हां मै ठीक हूं, क्यों ऐसे क्यों पूछ रहा..


नकुल:- बस ऐसे ही, लगा पूछना चाहिए.. ले बाहर ही खड़ी है आज तो तेरे इंतजार में…


गाड़ी नीतू के घर के पास थी और वो बाहर में खड़ी थी. गाड़ी के रुकते ही वो बैठ गई, और मुझसे बातें करने लगी. हम तीनो ही बात करते हुए कॉलेज पहुंच गए. ऐसा लग रहा था जैसे दोनो को मेरा साथ आना पसंद नहीं था. शायद इसी को बदलाव कहते है, हर उम्र के साथ की अपनी एक सीमा होती है.


लड़का प्यार की उम्र तक पहुंच गया था इसलिए उसे भी अकेला छोड़ने का वक़्त आ गया था, ताकि उसे ये ना लगे कि उसकी अपनी जिंदगी ही नहीं. रिश्ते की गहराई वहीं रहेगी, चाहत भी वही होगी, बस उसे मेरे जिम्मेदारी से थोड़ा आज़ाद कर दू, ताकि वो भी अपनी जिंदगी जी ले..


इन्हीं सब बातो को सचती हुई मै बहुत दिनों के बाद कॉलेज में थी. लगभग 20-25 दिनों में मैंने अपने अंदर बहुत से बदलाव को देखा था, लेकिन कॉलेज का वातावरण अभी भी पहले जैसा ही था, वहीं गंदी नजर, और वहीं गंदी जुबान, बस लोग बदल गए थे..


नीतू ने भी अपना बेंच पार्टनर बदल लिया था और अब मुझे भी नए बदलाव के ओर रुख करना था. क्लास की पीछे की बेंच जो सदैव खाली रहती है, उसी एक बेंच पर मै जाकर आराम से बैठ गई. पहली क्लास अभी शुरू ही हुई थी कि तभी एक उड़ता हुए कागज का टुकड़ा मेरे बेंच पर आया..


लगता है मुन्ना काका के दिए वार्निग का असर खत्म हो गया था, या लड़के ढीट हो गए थे पता नहीं. इसका जवाब तो मुझे अब पेपर खोलने से ही मिलने वाला था. मैंने वो पेपर उठा लिया और खोलकर देखने लगी..… "आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं जी, मेरे साथ दोस्ती करेंगी"….


ठीक है, लड़की अच्छी लगी तो बेचारे को बात करने का मन किया होगा. मै साथ रहूं उसकी ऐसी इक्छा भी होगी. लेकिन फिलहाल ना तो मुझे किसी से भी दोस्ती की इक्छा है और ना ही इस पत्री को देखकर मुस्कुराने या दाए बाएं देखकर किसी बात को बढ़ावा देने.


मैं भी गुस्से का भाव अपने चेहरे पर लायि और क्लास में ध्यान देने लगी. 2 लगातार क्लास के बाद एक अल्प विराम मिला था. मैंने नकुल के पास ना जाकर आज कॉलेज ही देखने लगी. देखने के क्रम में मुझे पहली बार पता चला कि कॉलेज में पुस्तकालय भी है.


चलो अब मुझे टाइम पास का भी जरिया मिल गया. मै पुस्तकालय तो गई लेकिन वहां की हालत पुस्तकालय जैसी नहीं थी. लकड़ी के सिरण की बदबू, चारो ओर धूल और अंदर चस्मा लगाए एक बूढ़ा. पास में ही 4-5 लकड़ी की कुर्सियां रखी हुई थी और बीच में पुस्तक रखने के लिए एक गोल मेज रखा हुआ था और इन सब पर भी धूल चढ़ी हुई थी.


मुझे लगा कम से कम लाइब्रेरी तो साफ सुथरी हो, इस विषय में बात करने के लिए मै प्रिंसिपल सर के पास पहुंच गई. मैंने लाइब्रेरी के विषय में बातचीत करके वहां की हालत जानने की कोशिश की. पता चला कॉलेज में लाइब्रेरी के लिए कभी पैसे ही नहीं आए. कॉलेज के शुरवात में ही जो खर्च हुए सो हुए, उसके बाद तो कोई झांकने भी नहीं गया.


मेरी जिज्ञासा हुई तो मैंने कंप्यूटर के बारे में भी पूछ लिया की क्या कोई ऐसा कमरा बाना हुआ था. इस पर प्रिंसिपल सर ने कुछ बोला ही नहीं, केवल इतना मुझ से कह गए कि यदि स्टूडेंट मिलकर कोशिश कर ले तो लाइब्रेरी की हालत सुधर सकती है… प्रिंसिपल की ये बात सुनकर मुझे थोड़ा अच्छा लगा, कम से कम एक रास्ता तो बता गए.


मेरे कॉलेज का खाली वक़्त कट चुका था. मै जब लौट रही थी तब कॉलेज प्रबंधन के लोग जिस ओर रहते है उस ओर से मुझे नीतू आती हुई नजर आयी. कॉलेज के उस हिस्से में छात्र नहीं जाते है, और ऐसे जगह से उसके आने का अर्थ था कि नकुल भी होगा ही उधर, जो घूमकर अपने क्लास के ओर गया होगा. लेकिन इन सब बातो से मुझे क्या, मै बस एक नजर दी और क्लास वापस आ गई.


मै जब वापस आकर अपने बेंच पर बैठी, तो इस वक़्त 2 मुरे हुए कागज के टुकड़े मेरे बेंच पर रखे थे. मुझे लगा ये जिस हाल में है उन्हें उसी हाल में छोड़ना बेहतर है, एक खोलकर देखी तो 2 पेपर बेंच पर परे है, 2 पेपर खोलकर देखी, तो पता चलेगा पुरा क्लास पेपर से भर जाएगा..


क्लास खत्म हुआ और वापस गांव के ओर चल दिए. मुझे नीतू और नकुल के बीच नहीं पड़ना था, इसलिए मैंने कान में इयर पीसेस लगाए और टिककर मस्त गाना सुनने लगी. बीच में नकुल ने 1,2 बार चिल्ला कर कुछ कहा भी, उसे अनदेखा करके मै अपने गाना सुनने पर फोकस करती रही.


मै जब घर लौटी तो घर पर मनीष भईया परिवार के कुछ लोगों के साथ सभा कर रहे थे. शायद अठजाम यज्ञ की बात चल रही थी, और मेरा यहां कोई काम नहीं था, तभी पीछे से मां ने मुझे भाभी के पास बैठने बोल दिया…


मैं उनके कमरे में आयी, शायद किशोर, भाभी को तंग कर रहा था, इसलिए मां ने मुझे यहां भेज दिया.. भाभी ने जैसे ही मुझे देखा, वो मुस्कुराती हुई कहने लगी… "मेमनी, पहले से ज्यादा सुंदर दिखने लगी है"..


मै:- अभी तबीयत कैसी है..


भाभी:- तुमने ही जिंदा बचाया और तुम ही मार रही हो मेनका. होश में आने के बाद बस एक बार मिली मुझसे, जब इतनी ही नफरत थी तो बचाया क्यों?


मै:- सब अपने स्वार्थ में अंधे हो गए होते तो कुणाल और किशोर को कौन देखता. भाभी इसपर बात करना जरूरी है क्या, अपनी जिंदगी देखो और अपना काम में ध्यान दो, मै भी अपने काम मे पुरा फोकस की हुए हूं..


भाभी:- हम्मम !!! जैसा तुम चाहो..


इतनी सी बात होने के बाद फिर दोबारा बता ना हो इसलिए मैंने अपनी नजर भाभी से टकराने ही नहीं दी. क्या ही करूं, बहुत प्यार करती हूं उन्हें और उनकी मायूस आखों को देखती रही तो शायद पिघल ना जाऊं. बस यही वजह है कि जितना हो सके मै कम से कम ही उनके सामने आऊं.


बहरहाल अठजाम की तैयारी पूरी हो चुकी थी. अगले कुछ दिनों तक मै पहले कॉलेज फिर हवन यज्ञ, और अन्य कामों में इतनी ज्यादा व्यस्त हो गई की किसी भी बात पर सोचने का वक़्त ही नहीं था. धीरे-धीरे जिंदगी सामान्य रूप से आगे बढ़ने लगी.


बदलाव ही नियम है और मै हो रहे बदलाव को स्वीकार करती हुई आगे बढ़ रही थी. नीतू गई तो उसके जगह लता ने के लिया. थोड़ी शांत और अच्छे स्वभाव की थी और उस क्लास के उन बची लड़की में से थी जिसकी दोस्ती किसी लड़के से नहीं थी.


नकुल आज कल कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गया था, शायद नीतू के बाद का बचा वक़्त वो अपने पिताजी के रेंज रोवर पर लगाए हुए था. एक ओर नीतू पर थोड़ा फिजूल खर्च कर रहा था तो मैंने भी यह सोचकर करने दिया कि कमाता है तो 2-3 हजार अपनी गर्लफ्रैंड्स पर खर्च कर रहा है..


ड्राइविंग सीखने के लिए मैंने तीसरे घर के बबलू भईया को पकड़ लिया. इनकी तारीफ मै बस इतना ही कहना चाहूंगी कि बको ध्यनाम थे ये. किसी भी काम को जब हाथ में लेते तो किसी भूत की तरह रात में भी करते थे और जबतक पुरा ना हो जाए तब तक चैन से सोते नहीं..


परिवार में कोई भी इन्हे सबसे आखरी में ही याद करता था, क्योंकि यदि किसी ने कोई काम कह दिया और उसे करने के क्रम में वो सदस्य थोड़ा भी ढिलाई कर दे, फिर तो आधे घंटे बबलू भईया की सुनते रहो.. 20 दिन उन्होंने मुझे सिखाया.. और इक्कीसवां दिन मै सड़क पर गाड़ी चला रही थी.. हां लेकिन ये भी सही है कि मैंने इनसे 8 बार डांट भी खाया था, और 3 बार तो इतना ज्यादा बोल गए की मै रोने भी लगी थी..


बात जो भी हो लेकिन फाइनली मै ड्राइविंग अच्छे से सीख चुकी थी और मैंने इसका टेस्ट अपने परिवार के लोग को भी दिया था. ड्राइविंग सीखने के साथ ही अब मुझे नकुल के साथ आने और जाने की भी जरूरत नहीं थी, लेकिन इस बात के लिए कोई राजी नहीं होता, ये भी मुझे पता था इसलिए मैंने इस मामले में ज्यादा उंगली नहीं की..


वक़्त सामान्य रूप से बीत रहा था. देखते ही देखते हमारा हॉफ ईयरली परीक्षा शुरू भी हो गया और खत्म भी. उस बीच 10 दिनों की छुट्टी भी हो गई कॉलेज से. एक दिन पुरा घर ही खाली था, केवल मै और भाभी थी, कुणाल और किशोर भी नहीं था..
:superb: :good: :perfect: awesome update hai nain bhai,
behad hi shandaar, lajawab aur amazing update hai bhai,
prachi didi ne jaane se pahle menka ko bahot kuchh sikha diya hai,
vahin idhar gaon mein menka ab ek baar phir se akeli par gayi hai,
Ab dekhte hain ki aage kya hota hai,
Waiting for next update
 
9,884
41,306
218
दूसरी घटना:- भाग 3




अनुज भाभी का सबसे छोटा वाला भाई थे जिसकी शादी 3 साल पहले हुई थी और उनकी बीवी अपने पहले डिलीवरी के लिए मायके गई हुई थी. 1 हफ्ते बाद की उसके बच्चे की डिलीवरी थी और उस बेचारे को भी मजबूरी में यहां आना परा.


अमूमन हमारी बहुत ही कम बात हुई थी, लेकिन इस वक़्त साथ थे तो कुछ-कुछ बातें हो रही थी. हम तकरीबन 1 घंटे बाद शॉपिंग करके लौट आए. मैंने उन्हें धन्यवाद कहा और सबको चाय के लिए पूछने लगी. बस फिर कुछ इधर और कुछ उधर के काम सब चलते रहे और रात में तकरीबन 9 बजे मुझे फुरसत मिली.


फुरसत से मै पहली बार अपनी फोन को देख रही थी. मेरे लिए इस वक़्त तो ये किसी मासूक से कम नहीं था, जिसे जानने के लिए मै काफी उत्साहित थी. लो ये तो पहले चरण में ही पुरा मूड ऑफ हो गया.. इन आईफोन वालों ने ये क्या आईडी की पंचायत पाल रखी थी.


रात के 9 से ऊपर का समय हो गया था इसलिए प्राची दीदी को मैंने कॉल ना लगाकर अपने डब्बे वाले मोबाइल से संदेश भेज दिया.. 2 मिनट बाद ही उनका फोन मेरे पास आया... ना हाई, ना हेल्लो मुझे कॉल लगाकर वो हंसे जा रही थी..


मै:- हेल्लो .. हेल्लो..


प्राची:- सॉरी सॉरी.. तुम्हारा एसएमएस इतना इतना फनी था कि मै पिछले 2 मिनट से हंस रही हूं. अच्छा छोड़ो वो, तुम्हारे पास ईमेल अकाउंट है..


मै:- एक ईमेल अकाउंट कॉलेज में दी हूं वो वाला है बस..


प्राची:- तुमने बनाया था वो अकाउंट..


मै:- नहीं वो सब भईया देखते है.. मुझे इन सब चीज का आइडिया नहीं है.


प्राची:- हम्मम ! कंप्यूटर, लैपटॉप, इन सब में से कुछ चलाई हो..


मै:- कभी जरूरत ही नहीं हुई..


प्राची:- जरूरत तो हमे पीरियड्स की भी नहीं थी, फिर भी हर महीने झेलते है ना..


मै:- वो तो भगवान का दिया है ना दीदी, अब मर्जी हो की ना हो, भुगतना तो परेगा ना.


प्राची:- हां ये भी सही है.. अच्छा ये बताओ यहां कितने दिनों के लिए हो..


मै:- एक हफ्ते तो हूं मै यहां, या उससे ज्यादा भी वक़्त लग सकता है..


प्राची:- ठीक है कल चलना मेरे साथ मेरे पहचान एक कंप्यूटर वाले है, वो तुम्हे 1 हफ्ते में बेसिक सीखा देगा..


मै:- लेकिन मै कंप्यूटर का बेसिक सीखकर क्या करूंगी..


प्राची:- क्या जवाब दूं मै तुम्हारे सवाल का. छोड़ो, कल शॉप आ जाना, वहां एक आईडी क्रिएट करके मै तुम्हे सब बता दूंगी. और हां लंच टाइम में आना…


मैंने उनकी बात पर हां कहा और फोन रख दी. वैसे तो मै रात के 8 से 8.30 के बीच सो जाती हूं, लेकिन यहां तो साढ़े 9 बजने जा रहे थे. मेरी आखें और शरीर जवाब देने लगी थी, फिर भी मै फोन के साथ छेड़-छाड़ किए जा रही थी. कब नींद पर गई पता भी नहीं चला.


मैं बहुत गहरी नींद में थी जब सुबह-सुबह बड़ी भाभी आकर जगा गई, और जाते-जाते सबके लिए रोटी पकाने कह गई थी. मन तो उठने का बिल्कुल नहीं था, लेकिन फिर भी उठना परा. आखें मिजती मै अपने कमरे के बाथरूम में गई, और लौटकर किचेन. पता नहीं कौन सी चिर निद्रा लगी थी, आखें खुलने का नाम ही ना ले.


किचेन में केवल नल लगा हुआ था लेकिन पानी नहीं आता था. आटा गूंथने के लिए साफ पानी तो रखा था, लेकिन अन्य कामों के लिए पानी नहीं रखा हुआ था. मैं लाख आवाज़ देती रही बड़ी भाभी एक बाल्टी पानी ला दो, लेकिन मजाल है जो एक बार में सुने और तीसरी बार ने कर्राहते हुए कहने लगी उनकी पीठ कर कमर में तेज दर्द है…


मैंने फिर दोबारा नहीं कहा और बाल्टी उठाकर कॉमन बाथरूम में चल दि. यहां केवल मेरे कमरे का काम फिनिश हुआ था इसलिए वहीं के बाथरूम में पानी आता था, बाकियों के लिए कॉमन बाथरूम था, जिसमें पनी तो आता था, लेकिन दरवाजा अभी नहीं लगे था. फिहाल काम चलाऊ पर्दा लगा हुआ था, जिसको बाकी का लोग इस्तमाल करते थे…


मैंने पर्दा हटाया, और झट से पीछे होकर सीधा किचेन में चली आयी. बेवकूफ कहीं का, यदि दरवाजा नहीं लगा किसी बाथरूम में तो कम से कम ऊपर कुछ कपड़े ही डाल देता, और खुली बाथरूम में पूरे नंगे होकर कौन नहाता है, जबकि सिवाय मेरे रूम के किसी भी रूम का जब बाथरूम चालू ना हो. ऐसा लग रहा था सारे पागल मेरे नसीब में ही कुंडली मार लिए है. छोटी भाभी के भाई अनुज की हरकत से मैं पूरी तरह चिढी हुई थी…


मैं जल्दी से अपना काम खत्म करे के सीधा अपने रूम में चली गई और दरवाजा बंद करके वापस सो गई. मा, भईया, पिताजी.. सब एक-एक करके मुझे जागने आते रहे, लेकिन मैंने सबको मना कर दिया, और बोल दिया नींद बहुत आ रही है.


पता नहीं मै कितनी देर तक सोई, लेकिन फिर से किसी ने दरवाजा पीटा, मैं चिढ़कर आखें मिजती दरवाजा खोली और आधी जम्हाई ले ही रही थी कि… "दीदी आप"… मेरे दरवाजे पर प्राची दीदी खड़ी थी.


वो अंदर आकर बेड पर बैठती… "फटाफट तैयार हो जाओ, हम घूमने जा रहे है."


मै:- क्या ?


प्राची:- इतना चौंक क्यों रही हो, घूमने जाने के लिए ही तो कह रही..


मै:- हां वो तो समझी, लेकिन ना आप मुझे जानती है और ना ही मै आपको. ऊपर से मेरी भाभी हॉस्पिटल में है और मै तो उनके पास जा रही हूं.


प्राची:- ये भी जानती हूं, लेकिन बीच के 2 घंटे, मैंने तुम्हारा पापा से मांग लिए..


मै:- मतलब मै समझी नहीं..


तभी प्राची दीदी ने पापा को कॉल लगाया और फोन स्पीकर पर डाल दी. पापा ने जो उधर से कहा, मुझे बस इतना ही लगा कि अरे यार अच्छा खासा सो रही थी, ये कहां फंसा दिया. दरअसल राजवीर की बेटी प्राची, 12th के बाद से दिल्ली में रही, यहां बस 1 मंथ के लिए अपना बिजनेस सेटअप डालने आयी थी, फिर वापस लौटकर दिल्ली.. इसी बीच इनको मै कल दिख गई, 2 बार इनसे बातचीत हुई और अभी ये मेरे दरवाजे पर थी, वो भी मेरे पापा से पहले ही पूछकर आयी थी कि मुझे घुमाने ले जा रही.


कहा भी किसने तो राजवीर सिंह की बेटी ने. वो राजवीर सिंग जो पैसे और संपत्ति में हमसे 20 गुना बड़ा होगा, या शायद मै ही कम आंक रही कुछ कह नहीं सकते. हमारे पूर्वजों ने गांव में जमीन अर्जा था, तो उनके पूर्वजों ने सहर में. अब आप समझ ही सकते है, जहां हमारी 10 एकड़ की खेत होगी वहां इनका 4000 स्क्वेयर फीट का जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा. और जहां तक मै जानती हूं, शहर में इनकी लगभग 2 एकड़ की जमीन तो ऐसे बाउंड्री करवाकर प्रति परी हुई है. अब भला ऐसे लोगो के यहां की लड़की जब खुद से संपर्क करे, तो मजाल है मेरे पिताजी मना कर सकते थे. और ये भी मेंम साहब पहुंच गई..


मै:- दीदी इसे जबरदस्ती करना कहते है. मानाकी पापा ने जाने कह दिया, लेकिन मेरा भी तो मन होना चाहिए ना..


प्राची:- तुम्हे वो एप्पल की आईडी बनाने थी ना, उसके लिए तो 2 घंटे निकालकर आती ही ना मेरे पास..


मै:- एप्पल की आईडी, वो क्या होता है?


प्राची:- अरे वही आईडी जो तुम्हारे फोन के लिए चाहिए.. ये एप्पल का फोन है और इसे चलाने के लिए एप्पल की आईडी चाहिए.. भले ही पैसे जो भी लगे लेकिन ये दुनिया का सबसे सुरक्षित फोन है..


मै:- ओह ! मतलब इसे यदि मै टेबल पर रख दूं और कोई दूसरा उठाने आया तो इसमें से जोर-जोर से अलार्म बजने लगेगा.. ऐसा कुछ..


प्राची:- मुझे क्या पता, तुम्हे तो जबरदस्ती मै घुमाने ले जा रही हूं ना. एक दिन पहले मिले है, और मै अगले दिन तुम्हारे घर में आ गई, तुम्हे परेशान करने…


मै:- ठीक है चलती हूं दीदी. वैसे देखकर लगा नहीं था कि आपमें ताने देने वाला कोई गुण होगा, लेकिन मैं गलत थी..


प्राची:- हीहीहीहीहीही… जानती हो तुम जिस तरह से अनजान बनकर हर सवाल पूछती हो, उसका कोई आधा सवाल भी पूछ ले तो मै उस इंसान को दूर से देखकर ही नमस्ते कर लू.


मै अपने कपड़े समेटकर बाथरूम के ओर बढ़ती… "दीदी मुझे कुछ देर समय लगेगा."


प्राची:- कोई बात नहीं, तबतक मै तुम्हारी आईडी क्रिएट कर देती हूं, कहां है फोन.


मै:- फोन तो भईया के कमरे में है, मै 2 मिनट में आकर देती हूं.


मैं बिना बाल गीले किए बिना फटाफट स्नान की और बाहर आ गई. 10 मिनट में में तैयार होकर अपना बैग हाथ में ले ली..


मै:- चले दीदी…


प्राची:- फोन तो ले आओ..


"ओह हां" करके मै भईया के कमरे में गई, और अपने चोर पॉकेट से फोन हाथ में लेकर वापस अपने कमरे में आ गई. फिर सिम लगाने से लेकर आईडी बनाने तक का सारा काम मेरे आखों के सामने हुआ. पासवर्ड वायग्रा सब निजी होता है, यह बात मुझे प्राची दीदी ने अच्छे से समझाया, और जब पासवर्ड डालने की बारी आई तब उसने फोन मुझे ही पकड़ा दिया.


तकरीबन 1 घंटे प्राची दीदी वहां रही थी, लेकिन मुझे पता नहीं था कि हम दोनों की बात कोई तीसरा छिपकर सुन रहा है. सुबह अनुज के साथ हुई दुर्घटना के बाद मै रूम में क्या पुरा दिन रही, इस मामले ने नया रंग ही ले लिया था जिसकी भनक से मै पूरी तरह अनजान थी.


खैर मै और प्राची दीदी जैसे ही घूमने निकले, वहां तभी पीछे से अनुज ने रोकते हुए पूछ लिया, कहां जा रही हो. मैंने भी उसे अपने घूमने जाने के बारे में बता दिया. अनुज भी हमारे साथ जाने की इक्छा जताने लगा लेकिन प्राची दीदी उसे साफ मना कर दी, और सॉरी बॉस कहकर वहां से निकल गईं.


हम दोनों जैसे ही प्राची दीदी के कार में बैठे… "मुझे माफ़ कर देना, मै तुम्हे अपने साथ जबरदस्ती ले आयी."..


मै:- आपको ड्राइव करनी आती है..


प्राची:- हां आती है.. तुमने सीखी है कि नहीं.. ओह सॉरी जबाव तो शायद वही होगा, "लेकिन मै ड्राइविंग सीख कर करूंगी क्या?"


मै:- ओह तो ये बात है, कल मैंने आपसे ये सब कहा इसलिए आप उसका बदला लेने आयी है..


प्राची:- प्रिया प्राची दीदी, नमस्ते. यदि आप को इस वक़्त मै परेशान कर रही हूं, तो मुझे क्षमा कर दे. यघपी मै यह बात भाली भांति समझ सकती हूं, कि रात में किसी अनजान का संदेश आना, वो भी अपने निजी समय में किसी काम के सिलसिले वाला, तो यकीनन यह एक क्रोधित करने वाला कार्य है. किन्तु पहली बार फोन मेरे हाथ में है और इसे जानने की तीव्र जिज्ञासा में मै यह भुल कर रही हूं. अतः यदि आपको परेशान की हूं तो मुझे क्षमा कीजिएगा और अब जब आप परेशान हो ही गई है, तो अपनी छोटी बहन की परेशानी को दूर करने के उपाय अवश्य बता दीजिएगा. मेनका मिश्रा, आप के भव्या दुकान की एक ग्राहक..


मै:- ये तो मेरा भेजा मैसेज है..


प्राची:- बस इसे पढ़ने के बाद मैंने आज आधे दिन की छुट्टी ली और तुम्हारे साथ हूं. मैंने तुम्हारे मैसेज से तुम्हारा नाम हटा दिया था और अपने सोशल अकाउंट कर शेयर किया. तुम्हे पता है तुम्हारा ये मैसेज मेरे प्रोफाइल पर अब तक का सबसे ज्यादा लाइक किया जाने वाला पोस्ट है..


मै:- लेकिन दीदी..


प्राची:- हां जानती हूं अब क्या कहना है तुम्हे.. ये सोशल साइट है क्या?


मै:- वो तो जानती हूं, आज कल हर गंवार जिस जगह पहुंचकर होशियार बाना हुआ है, उसी की बात कर रही है आप.. मै वो नहीं कह रही. मै तो बस ये जानना चाह रही हूं कि बस एक मैसेज ही तो की थी. उसके लिए आप मेरे साथ घूमने का प्लान बना ली..


प्राची:- मेरी जान यदि कोई लड़का ये मैसेज करके मुझे प्रपोज किए होता तो मै पापा को भेजकर उससे शादी तय करवा लेटी, तुमसे तो सिर्फ घूमने की बात कर रही हूं.


प्राची दीदी की बात सुनकर मुझे बहुत ही ज्यादा अजीब लगा. एक साधारण सा संदेश भेजा था, उसमे इसे ऐसा क्या दिख गया कि यदि भेजने वाला लड़का होता तो उससे शादी कर लेती… मुझे भी उनके ख्याल जानने की इक्छा होने लगी कि आखिर उस संदेश में ऐसा क्या खास था..


मै:- दीदी नॉर्मल तो मैसेज था, उसके लिए आप इतना सब कुछ कैसे सोच ली…


प्राची:- पागल ये नॉर्मल मैसेज है.. अगर ये तुम्हारा नॉर्मल तरीका है किसी को रिस्पॉन्ड करने का तो मेरे साथ काम करो, तुम सोच भी नहीं सकती की 6 महीने में तुम कहां से कहां होगी..


मै:- दीदी मै साधारण सी लड़की हूं, आप क्यों इतना बात घुमा रही है. जारा राज से पर्दा भी उठा दो, वरना आपके बातो से उठता सस्पेंस कहीं मेरी जान ना ले ले..


प्राची:- हीहीहीही.. तुम्हारी जान इतनी भी सस्ती नहीं. सुनो जो तुमने अंजाने में अपना साधारण सा संदेश भेजा, उसे कहते है किसी को अपना काम करने पर मजबूर कर देना. मै 9 बजे रात तो क्या बल्कि शाम 7 बजे के बाद किसी कॉस्टमर के ना तो कॉल और ना ही मैसेज को रिस्पॉन्ड करती हूं.. तुमने जो भी लिखा सही लिखा, वो मेरा निजी वक़्त था और मैं गुस्सा भी होती हूं ऐसे लोगो से. खासकर लौड़ों की बात करे तो, जिसे प्रोडक्ट हेल्प के लिए अपना नंबर देती हूं और साले ठरकी मुझे ही पटाने लग जाते है.

कल रात अचानक से तुम्हारा मैसेज आया. रोज ही आते है मेरे ऑफिसियल नंबर पर, मै ध्यान नहीं देती. कल रात थोड़ा फ्री थी और मन में टाइम पास की इक्छा जाग रही थी, इसलिए मै भी किसी बकरे की तलाश में उस फोन के कॉल लॉग और मैसेज देख रही थी. तभी तुम्हारा मैसेज आया.. जिसके पहले पार्ट गुस्से को पूरा वैसे ही पिघला रहा था जैसे फ्रिजर से बटर को निकालकर किसी गरम तवे पर रखा गया हो. उसके ठीक नीचे उसका पुरा एक्सप्लेन.. फिर आगे अपनी सिचुएशन तुमने बयान किया कि किन हालात में तुमने ये मैसेज किया और जो तुम्हारे संदेश का सबसे हाईलाइट प्वाइंट रहा.. जब आप परेशान हो ही गई हो तो कम से कम मेरा काम ही कर दो.. जबकि लोग लिखते हो सके तो मेरे प्रॉब्लम को जल्द से जल्द शॉर्ट आउट कीजिए…

आह क्या बताऊं कैसा लगा वो पढ़कर.. ऐसा लगा जैसे आईआईएम से पासआउट कोई बिजनेस मैनेजमेंट का गुरु, अपना संदेश लिख रहा हो, जो पहली बार में ही अपनी बातो से किसी भी कंपनी के एमडी को चीत कर दे.. तभी मैंने फैसला किया कि एक दिन तुम्हे देना तो चाहिए. तुम्हारे मैसेज से तुम्हे जानने की जिज्ञासा बढ़ गई.


मै:- दीदी बस इतना ही आता है उससे ज्यादा कोई टैलेंट नहीं है. वैसे आप का बहुत बहुत धन्यवाद सब बताने के लिए, वरना मै समझ ही नहीं पा रही थी कि आखिर आपको हुआ क्या है जो 2 बजे दिन तक मेरे दरवाजे पर आ पहुंची....


प्राची:- मै टैलेंट की कद्र करती हूं, और तुमसे बात करने के बाद तो पुरा यकीन हो गया की तुम में प्रतिभा को कोई कमी नहीं है. मैंने अपना पर्सनल नंबर तुम्हारे मोबाइल में सेव कर दिया है, कभी भी मेरे साथ काम करने की इक्छा हो एक कॉल कर लेना. फिलहाल अभी बहुत छोटी हो, इसलिए अपने पढ़ाई पर ध्यान दो और कोई हेल्प चाहिए हो तो समझना एक बड़ी बहन तुम्हारी दिल्ली में रहती है, जो किसी भी वक़्त तुम्हे मदद कर सकती है.


मै:- दीदी एक बात बोलूं..


प्राची:- चिल यार, दीदी ही समझो, और बेझिझक बोलो, जैसे अपने घर के किसी सदस्य से बात करती हो..


मै:- दीदी आप की ड्रेसिंग सेंस काफी अच्छी है, और कपड़ों के सलेक्शन भी..


प्राची:- थैंक यू, मेनका. तो चलो चलकर पहले कुछ शॉपिंग ही की जाए.


मै:- नाह! आप मुझे घुमाने लाई है ना तो वहीं कीजिए.. आपके साथ थोड़ा खुलकर घूम भी लूंगी…


मेरे दरवाजे पर जबसे प्राची दीदी की दस्तक हुई, बस यूं लग रहा था कोई अनजान गले पड़ी है. जबसे जाना की प्राची दीदी मेरे साथ क्यों घूमने चली आयी, तब जाकर मै कहीं निश्चिंत हुई. प्राची दीदी के साथ अच्छा लगने लगा, तो मै भी थोड़ी बहुत खुल चुकी थी. हां मै एक बात निश्चित तौर पर कह सकती थी कि मै सच में किसी अच्छे इंसान से मिल रही थी.
बेहतरीन अपडेट था ये नैन भाई ।

मेनका का मासुमियत से भरा हुआ मैसेज । पढ़कर उस पर प्यार ही आयेगा ।
और प्राची से सोशल मीडिया के सन्दर्भ में बातों बातों में जो उसने कहा - " आज कल हर गंवार जिस जगह पहुंचकर होशियार बना हुआ है " - सौ प्रतिशत सच है ।

प्राची एक अच्छी लड़की लगती है । उसका मेनका के साथ जुगलबंदी आगे चलकर और भी देखने को मिलेगा ।
 
  • Like
Reactions: Iron Man and SKYESH
9,884
41,306
218
घटना 2:- आखरी भाग…







तकरीबन 6 बजे हम दोनों ही हॉस्पिटल पहुंचे. ऐसा लगा ही नहीं की वो किसी अनजान से मिल रही है. बातो में उतनी ही शालीनता और लोगो के लिए आदर और सम्मान भी. कोई हिचक नहीं की किसी गैर मर्द से बात कर रही है या किसी अपने से. कोई डर नहीं की अकेली घूम रही है, जबकि शाम ढल चुकी थी और अंधेरा हो चुका था. बस मै खुद पर भरोसा रखने वाली एक लड़की के साथ शाम के 6 बजे तक थी, जिसके पास हम से भी ज्यादा मजबूत परिवार था, लेकिन उसे जीने के लिए परिवार की बैसाखी की नहीं अपितु उनके प्यार भरोसे और साथ की जरूरत थी.


शाम के 7 बजे वो चली गई. इधर महेश भईया भी भाभी और बच्चो को लेकर चले गए. मां और पिताजी भी वहीं से मामा के यहां वापस लौट गए, अपने अधूरे काम को पूरा करके वापस आने के लिए. वहां मै, मनीष भईया, अनुज और छोटी भाभी की मां और मनीष भईया के 2 बच्चे रह गए.


साढ़े 7 बजे के करीब मनीष भईया अपने छोटे साले अनुज को मुझे, कुणाल और किशोर (भईया के बच्चे) के साथ घर चले जाने के लिए बोल दिए और खाना लेकर वापस हॉस्पिटल आ जाने. जबतक मै खाना बनाती कुणाल और किशोर को भाभी की मां और अनुज देख लेते, उसके बाद तो मै दोनो को खिलाकर अपने पास ही सुला लेती, उसकी कोई समस्या नहीं थी.


हम सब निकल गए, और भईया भाभी कर पास रुके हुए थे. रास्ते में बड़ा ही अजीब घटना हो गई. अनुज अपनी कार एक दारू की दुकान के पास रोककर वहां से शराब की 2 बॉटल खरीदकर डिक्की में डाला, और वापस ड्राइव करते हुए घर पहुंच गया.


वापस आकर मै खाना बनाने लगी, कुणाल और किशोर अपनी नानी के पास खेल रहा था, तभी अनुज किचेन में आ गया. कमर में तौलिया लपेटे, ऊपर बनियान, एक हाथ में शराब की एक छोटी बॉटल, दूसरे हाथ में गलास और गलास के अंदर रखा हुआ था सिगरेट का एक डब्बा…


अनुज:- मेनका कुछ फ्राय है क्या किचेन में…


मै एकदम से चौंक कर पीछे मुड़ी. वो किचेन में जब आया तो मै मुड़कर एक झलक उसे देख चुकी थी, फिर वापस अपने काम में लग गई. लेकिन जब वो मुझसे कुछ कह रहा था, तो उसके श्वांस मेरे गर्दन से टकरा रही थी.


मैं झटक कर पीछे मुड़ी तो मात्र इंच भर का फासला था. वो मेरे बिल्कुल करीब खड़ा था और मुझसे चिपकने की कोशिश कर रहा था. नजर उठाकर जाब उसके चेहरे को देखि, तो उसके चेहरे पर अजीब ही घिनौनी हंसी थी, जिसमे से उसके कमीनापन की पूरी झलक बाहर आ रही थी.


मै:- अनुज जी आप जरा पीछे हटेंगे, मुझे बहुत परेशानी हो रही है..


अनुज:- अब रिश्ता ही ऐसा है कि तुम्हे नहीं छेड़ेंगे तो किसे छेड़ेंगे…


मैं:- अनुज जी थोड़ी दूर रहकर छेड़ छाड़ करेंगे क्या? वो क्या है ना मुझे जल्दी से खाना भी बनना है, ये देखिए आ गया मेरा लाडला, इसे भी तो खिलाना है… चल आ जा इधर कुणाल, जल्दी आ.. क्या हुआ अनुज जी, अपने भांजे के सामने शर्म आ गई क्या छेड़ छाड़ करने में..


जैसे ही वो किचेन से गया मैंने राहत कि श्वांस ली. मुझे अब भी समझ में नहीं आ रहा था कि कल शाम तक कितना डिसेंट था ये, इसके साथ बाजार गई, मै कंफरटेबल फील कर रही थी, अचानक इस पागल को किस कीड़े ने काट लिया.


मै उसके इरादे भांप चुकी थी इसलिए मै खुद में ही अब ज्यादा सतर्क हो गई. मुझे पता था वो पीने गया है, नीचे आकर कोई बखेड़ा ना खड़ा कर दे इसलिए मैंने भी अपना फोन उठाया और मां को कॉल लगा दी. मामा के यहां तो वो पहले से थी. फिर तो स्पीकर ऑन करके मै सबसे बातें करती रही और खाना भी पका रही थी…


इसी बीच नशे में धुत्त अनुज किचेन में आया और कुछ बोलने लगा. उसकी आवाज शायद फोन में गई हो. मेरे मामा उस वक़्त लाइन पर थे जो जोर से पूछने लगे कौन है वहां मेनका.


"वो भाभी के भाई अनुज जी है मामा, खाना लेकर हॉस्पिटल जाएंगे"… जैसे ही मैंने इतना कहा अनुज हड़बड़ा कर सीधा हुआ और नमस्ते करने लगा. मैंने उसके जाने का इंतजाम पहले से कर रखा था. इशारों में ही उसे मैंने टिफिन दिखाया और वो चलता बाना.


थोड़ी देर बात करके में कॉल रख दी. सबका खाना लगाकर मैंने पहले कुणाल और किशोर को खिला दिया और दोनो को साथ लेकर मै अपने कमरे में चली आयी. थोड़ी देर उनके साथ लाड प्यार से वक़्त दिया और दोनो आराम से सो गए.


मै आंख मूंदकर आज हुई घटनाओं के बारे में सोच रही थी. दिन के अंत में अनुज के साथ हुई उस घटना ने मुझे थोड़ा हताश किया था. मै खुद में ही सोचने लगी कि क्या मुझसे कुछ ऐसी गलती हुई, जो अनुज आगे बढ़ने की हिम्मत कर गया, वरना जब वो मेरे साथ कल बाजार गया था तो मैं कफी सुरक्षित मेहसूस कर रही थी.


बात जो भी रही हो उसके आगे बढ़ने की, लेकिन मुझे लग गया कि अंजाने में मेरी किसी भुल ने इसके दिमाग की नशें हिला दी है और मेरे दिमाग में रह-रह कर बस यही ख्याल आ रहा था कि इस गधे की वजह से कोई बखेड़ा ना खड़ा जो जाए, मैंने भी मोबाइल उठाया और नकुल को फोन लगा दी..


मेरे सोने तक उसका फोन बिज़ी ही आता रहा. मैंने गुस्से में उसे मैसेज लिख दी… "कोई नहीं था यहां इसलिए सोची की जबतक मां पिताजी नहीं आते, 2 दिन के लिए बुला लूं, लेकिन भाड़ में जा तू"..


रात के 3 बजे नकुल मेरे दरवाजे पर खड़ा, वो मेरा दरवाजा पिट रहा था, मै जागकर उठी ही थी, कि तभी दरवाजे पर मुझे अनुज की आवाज सुनाई दी, जो नकुल से कुछ कह रहा था… मैं भागकर दरवाजे के पास पहुंची और छिपकर सुनने लगी..


अनुज:- तुम्हे शर्म आती गांव जाने का बहाना करके यहां होटल में रुक गए थे, और इतनी रात गए सोई जवान लड़की का दरवाजा पिट रहे.


नकुल:- मदरचोद तू चाचू का साला ना होता तो गान्ड में गोली मार देता. भोसरी वाले क्या बोल रहा है दीदी के बारे में मदरचोद.. रुक बताता हूं..


छोटी ही उम्र थी नाकुल की, और गुस्सा नाक पर. ऊपर से कोई उसके परिवार के बारे में कुछ बोल दे फिर तो सारी मर्यादा ही भुल जाता था. गुस्से में आकर वो कहीं कुछ कर ना दे, इस डर से मै बाहर निकल गई.. "क्या हुआ पागलों कि तरह क्यों शोर मचाए हुए हो"..


नकुल:- तुम अंदर जाओ, इस मदरचोद को..


नकुल गाली देकर आगे कुछ कहने ही जा रहा था, कि मैंने एक थप्पड़ नकुल को लगा दिया… वो अपना गाल पकड़े गुस्से से मुझे देखने लगा… "सॉरी बोल, अभी नालायक."


नकुल:- लेकिन मेनका..

मै:- कहां ना सॉरी बोल..


वो दांत पीसकर अनुज को सॉरी बोला और और मेरे ही कमरे में सीधा बिस्तर पर जाकर सो गया. अनुज फिर पीछे से बोलने लगा.. "अरे वो"..


मै:- अनुज जी उसको जाने दीजिए. 2 जेनरेशन में मै इकलौती बेटी हूं, इसलिए वहां के बसने वाले 6 घरों की मैं जान कहलाती हूं, और वो जो लेट गया हक से जाकर, वो मेरा लाडला है,.. खैर आप ना समझेगे.. आप मनीष भईया के साले हो सकते है, इस बात के लिए मनीष भईया शायद आपको कुछ ना कहे, लेकिन मेरे परिवार में केवल मनीष भईया नहीं है, ये बात आपको समझनी चाहिए.. जा कर सो जाइए, वैसे भी मैंने क्या गलती की थी, वो मै कल आपसे जान लूंगी, ताकि आगे से मै उन बातों का ध्यान रख सकूं…


पूरा तबीयत से उसे तो नहीं सुना पाई, लेकिन जितना भी सुनाया था, दिल को सुकून दे रहा था. नकुल के सर पर हाथ फेरकर मैंने उसे वहीं सोने दिया और खुद पास में लगे सोफे पर लेट गई. सुबह भईया मेरे कमरे में आकर मुझे उठाने लगे और बाकी तीनो को सोता छोड़ दिया..


वो जबतक बाथरूम गए तबतक मुझे चाय बनाकर लाने के लिए कहने लगे. थोड़ी देर में हम दोनों भाई बहन सोफे पर बैठे हुए थे और चाय की चुस्की के रहे थे… "ये गधा कब आया, और आना ही था तो गया ही क्यों था."..


मै:- रात को मैंने है इसे कॉल लगाया था, बोली मुझे यहां अकेले अच्छा नहीं लग रहा, पागल रात में ही चला आया.


मनीष भईया… सो तो है इसे बस पता भर चल जाए कि कोई मुसीबत में है ना वक़्त देखेगा ना जगह सीधा चला आएगा… अच्छा सुन पैसे सब खर्च हो गए या बचे हुए है..


मै:- बचे हुए है भईया.. क्या हुआ सो..


मनीष भईया:- कुछ नहीं, बस जरूरत लगे तो ले लेना. वैसे तुमने वो किस्सा मुझे अबतक बताया नहीं..


मै, थोड़ा चौंक गई.. भईया का चेहरा मैंने नॉर्मल ही पाया, लेकिन बीते दिनों में इतनी सारी एक के बाद एक घटनाएं हो गई थी कि ऐसे सवाल मेरे लिए शायद जानलेवा साबित ना हो जाए… "कौन सा किस्सा भईया?"


मनीष भईया:- वहीं वो राजवीर चाचा की बेटी के साथ तेरी दोस्ती कैसे हो गई. पापा तो दंग ही हो गए जब राजवीर चाचा का फोन गया था उनके पास. वो तेरी तारीफ करते हुए कहने लगे मुझे दुकान कर मिली थी बिटिया, काफी प्यारी है.


मै:- आप सब ना बड़े लोग के नाम पर खाली लट्टू हो जाते हो. ऐसे तो गांव के नुक्कड़ तक नहीं जाने देते, यहां अनजान के साथ घूमने जाने कह दिया..


मनीष भईया:- पागल है क्या, वो अनजान नहीं है. जानती भी है, उनको बस पता चल जाए कि कोई उनका परिचित मुसीबत में है तो हर संभव उनकी मदद करते है. तू जिस बड़े से दुकान में गई थी ना, उस दुकान के कारन दोनो बाप बेटी में तो जंग छिड़ी हुई है…


मै:- बाप बेटी में जंग.. तो अब तक काट नहीं दिया अपनी बेटी को..


मनीष भईया.. हाहाहा हा.. मै समझ रहा हूं तेरे ताने.. पूरी बात सुन पहले. राजवीर चाचा ने बहला फुसला कर अपनी बेटी को यहां के लिए भी उसके दिल्ली के शॉप जैसे इन्वेस्टमेंट प्लान करने के लिए कहे, और वादा किया कि वो उसके बिजनेस में इंटरफेयर नहीं करेंगे. लेकिन जब यहां दुकान तैयार हो गयी तो अपनी बेटी के जानकारी के बगैर, अपने गांव के लड़को को नौकरी दे दी..

वहीं प्राची का कहना है कि जो जिस लायक है उसको वैसा काम देना चाहिए, सोशल सर्विस जाकर गांव में करे, गरीबों में पैसे बांटे. बस इसी बात को लेकर जंग छिड़ी है.. प्राची स्टाफ की बदली चाहती है और राजवीर चाचा होने नहीं देते.. इस बात को लेकर प्राची पूरी खफा हो गई. पहले प्राची दिल्ली कभी-कभी जाने का प्लान बनाई थी, लेकिन अब वो परमानेंट दिल्ली जा रही है और यहां का बिज़नेस देखने वो कभी-कभी आएगी..


मै:- सीखो कुछ कैसे अपनी बेटियो को आगे बढ़ा रहे है.. लेकिन आप लोग कभी गांव से बाहर निकलेंगे तब ना..


मनीष भईया:- सुनो मेनका मेरी बीवी अभी हॉस्पिटल में है और वो बहुत तकलीफ़ में है. तू वादा कर, वो जबतक ठीक नहीं हो जाती मुझे ताने नहीं देगी..


मै:- और उसके बाद..


मनीष भईया:- उसके बाद या उसके पहले भी, तुझे कोई रोक पाया है क्या? वो देख रही है नमूना जो लेटा है, उसको इसलिए परिवार के सभी लोग टांग नहीं खिंचते की उसके जैसा किसी दूसरे ने कोई काम खराब ना किया हो. बल्कि तुझे डांट नहीं सकते इसलिए नकुल को सब मेनका मानकर अपनी भड़ास निकाल लेते है.


मैं:- हाहाहाहा, मतलब वो मेरे साथ रहने कि सजा पता है. अच्छी बात पता चली. लेकिन इन सब बातों में कहीं भी ऐसा नहीं दिखा कि आप मेरे ताने नहीं सुनना चाहते. बस छोटी सी रिक्वेस्ट कर गए, की ताने मत दे, सुनने कि हालात में नहीं हूं.. लेकिन मेरे ताने रोकने वाले जज्बात निकल कर अब तक सामने नहीं आए..


मनीष:- मैं सोच ही रहा था, तेरी ब्लैकमेलिंग अब तक शुरू क्यों नहीं हुई..


मै:- मुझे कंप्यूटर और ड्राइविंग सीखनी है.. मंजूर हो तो आगे बात करो, वरना नहीं कर सकती, इस बात पर 100 तरह के कारन जानने में मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं..


मनीष:- नहीं वो बात नहीं है, कंप्यूटर मत सीख अभी, सुन ले पुरा पहले तब बीच में बोलना.. पूरे खानदान को ना कंप्यूटर वालों से बहुत सारा काम परते रहता है, कई बार इमरजेंसी में कंप्यूटर वाले की दुकान में घंटो खड़े रहकर, काम करवाना पड़ता है. ऐसे में यदि तू कंप्यूटर सीख लेगि ना, तो सब तुझे दिन भर परेशान किए रहेंगे..


मै:- हद है भईया… मेरे लिए सब परेशान हो सकते है, तो क्या उनको इतना भी हक नहीं. और कंप्यूटर इतना जरूर है तो पहले बताना था ना, अब तक तो सीख भी गई होती… चलो मतलब ये घर की जरूरत है तो कंप्यूटर सीख जाऊंगी, अब बताओ ड्राइविंग का क्या?


मनीष:- मतलब ड्राइविंग सीखने के लिए इतना क्या पूछना, नकुल से सीख लेना. और कोई डिमांड..


मै:- नहीं, अब भाभी कैसी है अभी…


मनीष:- पहले से अच्छी है.. 8-10 दिन बाद बताएंगे, कब तक डिस्चार्ज करेंगे.. मै सोच रहा था कि यहां से डिस्चार्ज करके, उसे मायके छोड़ आऊं.. वहां मां के साथ रहेगी तो जल्दी ठीक हो जाएगी..


मै:- जैसा आपको उचित लगे भईया, वैसे एक बात बोलूं..


मनीष:- क्या?


मै:- आप और भाभी यहां सहर में क्यों नहीं शिफ्ट हो जाते, चारो बच्चो की पढ़ाई लिखाई भी अच्छी हो जाएगी और भाभी की मां यहां रहेगी तो देखभाल भी उनकी अच्छी होती रहेगी. फिर यहां सारी सुविधाएं भी है.


मनीष:- मां पिताजी अकेले हो जाएंगे.. बड़ी भाभी ठीक रहती तब तो ये कबका हो गया रहता, लेकिन क्या कर सकते है अब.. तू बता..


बताई थी ना मै, अपने परिवार के बीच काफी नटखट हूं, इसलिए मेरे हल्के-फुल्के और सटीक ताने सबको झेलने पर जाते है. परिवार में हर किसी से मेरी ऐसी ही बातें होती थी, थोड़े हंसी मज़ाक थोड़े सीरियस.


ये सब तो जीवन का एक हिस्सा है जो चलते रहता है, लेकिन अनुज की हरकत वैसी नहीं थी, जो मेरे जीवन का हिस्सा बने, और मुझसे गलती कहां हो गई ये मुझे जानना था. दिन के 3 बजे के करीब मुझे वो वक़्त भी मिल गया जब अनुज को मैंने खाने खाने किचेन के पास ही बुला लिया. इस वक़्त घर में मै बिल्कुल अकेला था और नकुल अपने दोनो भाई (कुणाल और किशोर) के साथ, उसे घुमाने चॉकलेट दिलवाने ले गया हुआ था..


मै, खाना परोसते… "अनुज जी कल शाम आप क्या करने की कोशिश में जुटे थे..


अनुज:- कुछ नहीं रात गई बात गई.. मै अपनी हरकतों पर शर्मिंदा हूं..


मै:- बहुत बेहूदगी वाली हरकत थी, शर्म आनी चाहिए आपको. अब मुझे जारा ये बता दो अनुज की जब पहले दिन बाजार जाते वक़्त इतने डिसेंट थे, फिर मेरी किस बात को लेकर तुम्हारे अंदर का जानवर जाग गया.. वो भी मुझ जैसी लड़की को देखकर?


अनुज:- बहुत बदमाश हो तुम मेनका, मुझे कबसे टीज किए जा रही हो..


मै उसकी बात का मतलब कुछ समझ पाती, उससे पहले ही वो खड़ा हो गया और एक दम से मुझे बाहों में भरकर, मेरे गले को चूमने लगा. मै तो बिल्कुल ही शुन्न पर गई. खुद में जितनी ताकत हो सकती थी, लगा दी.. लेकिन में किसी आशहाय की तरह उसके बाहों में परी छटपटा रही थी..


मै छुटने की जितनी कोशिश कर रही थी, अनुज उतनी ही मजबूती से मुझे खुद से चिपकाए हुए था, और अपना हाथ नीचे ले जाकर मेरे दोनो जांघों के बीच.. छी ये उसकी घटिया हरकत. मेरी आत्मा तक घूट रही थी वहां.


फिर कानो में गूंजी उसकी घिनौनी बात… "साली कूतिया, नहाते वक़्त मेरा लंड देखकर पूरे दिन दरवाजा लगाकर अपने चूत में उंगली कर रही है और खुद की आग शांत हो गई तो मुझे जलता छोड़ दिया.. आज तुझे फिर से लंड दिखाऊंगा और चूत कि गर्मी शांत करने का वो जन्नत का रास्ता भी. हाय तू बिल्कुल कोड़ी कली है जिसे मसलकर मै अब फुल बना दूंगा"….


किसी सड़कछाप गावर से भी ज्यादा उसकी गिरी भाषा सुनकर मुझे रोना आ गया और अगले ही पल मै किसी मूर्ति की तरह स्थूल पर गई, जब उसने मेरे सलवार का नाड़ा झटके में खोल दिया और अपने गंदे हाथ नीचे ले जाकर मेरी योनि के ऊपर रख दिया… मुझे बस यही ख्याल आ रहा था जब यही जिंदगी है तो मुझे मौत क्यों नहीं का गई"..


मेरे होंठ ख़ामोश थे मगर मेरे आखों से लगातार आशु आ रहे थे. वो किसी पागल कुत्ते की तरह मेरी योनि कर अपने हाथ घिस रहा था.. तभी नीचे से नकुल की आवाज अाई, जो कुणाल और किशोर के साथ मस्ती करते हुए घर में चला आ रहा था.


उसकी आवाज जैसे ही अनुज के कानो में गई वो झटके से दूर हुआ और अपने खाने की थाली को उठाकर कमरे में भाग आया… मै अपनी फटी सी हालत पर घुटती हुई, किसी तरह अपने सलवार को पाऊं से ऊपर की और उसे ठीक करके अपने कमरे की ओर बढ़ पाती, तभी वहां नकुल पहुंच गया..


मै किचेन के बीचों-बीच किसी बावड़ी की तरह खड़ी, अपने आशु बहा रही थी, और वो सामने से मुझे देख रहा था.. नकुल अपनी बड़ी सी आखें किए सवालिया नजरो से जैसे पूछने कि कोशिश कर रहा हो कि, क्या हो गया.. उसके चेहरे भाव इतने गुस्से वाले थे मानो किसी का वो खून कर दे इस वक़्त.. शायद उसे भी मेहसूस हो रहा हो, मेरे आत्मा में चोट लगी थी और जख्म गहरे थे.


जैसे ही नकुल मेरे नजदीक आया मै उसे पकड़ कर बस रोने लगी.. चिंख्कर और चिल्लाकर रोने लगी. वो मेरे सर को अपने सीने से लगाकर मेरे आंसू साफ करता रहा. उसे भी पता नहीं था कि मै रो क्यों रही हूं, लेकिन मेरे दर्द को मेहसूस कर वो भी वो रहा था. किसी तरह उसने मेरी मां को फोन मिला दिया और फोन स्पीकर पर डाल दिया..


मै बेसुध होकर रोने कि गलती कर चुकी थी, और नकुल मेरे दर्द को ना बर्दास्त कर पाया और उसे कुछ सूझ नहीं रहा था, इस नासमझी में उसने मेरी मां को फोन लगाकर गलती कर चुका था…. दूसरी ओर से मेरी हालात पर फिक्र कम और डर ज्यादा था,… कहीं किसी ने कुछ कर तो नहीं दिया.. एक अनहोनी की आशंका जो मेरे साथ कहीं हुई तो नहीं… जो वाकई में हुई थी बस किसी को पता नहीं था…
मेनका अच्छा बुरा सब समझती है लेकिन तत्काल डिसिजन लेने में उसे दिक्कत होती है । अनुप की नजरों और उसके बर्ताव से वो समझ गई थी कि ये आदमी लुज कैरेक्टर का है फिर भी उसने अपने मां बाप या भाई को उसके बारे में अवगत नहीं कराया । एक बार पहले भी अपनी भाभी के बारे में उनको न बता के गलती कर चुकी है ।
अगर सही मौके पर नकुल नहीं आया होता तो क्या होता !....उसकी इज्जत लुट गई होती । रात के वक्त नकुल को सोने के लिए बुलाई , वो उसकी अच्छी डिसिजन थी लेकिन अनुप के साथ अकेले रहना उसका खराब डिसिजन था ।

ऐसे मामलों में अपने गार्जियन से कुछ भी नहीं छुपानी चाहिए ।

एक और चमत्कारिक अपडेट था नैन भाई ।
 
Last edited:
  • Like
Reactions: Iron Man and SKYESH
Top