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Thriller 100 - Encounter !!!! Journey Of An Innocent Girl (Completed)

nain11ster

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चौथी घटना:- भाग 1





आह जिंदगी भी क्या खुशनुमा होती है जब आप कुछ बोझ से खुद को निश्चिंत पाते हो. खैर जिंदगी में एक ही वक़्त में केवल एक काम होते रहे, ये तो संभव नहीं और खासकर भारत के पढ़ने वाले छात्र छात्राओं में. पढ़ाई कर रहे है तो आप केवल पढ़ाई नहीं करते, साथ में अन्य कामों को भी करना पड़ता है. कुछ काम जो आपकी जिम्मेदारी होती है, उनसे मुंह नहीं मोड़ सकते और कुछ जो अनचाहे काम आ जाते है, जिसमें आप ना चाहते हुए भी शामिल हो जाते है…


बहरहाल एक लंबे समय से चले आ रहे बोझ जैसे अब उतर सा गया था. भाभी के साथ संबंध पहले कि तरह ही मजबूत और बेहतर भी था, और अब तो हम दोनों ने मिलकर योजना भी बनानी शुरू कर दी थी कि बड़े भैया महेश और बड़ी भाभी सोभा को यहां पास में ही बसाना है…


वो क्या है ना हमारे मिश्रा टोला का ये खानदानी कल्चर, मुझे आज तक कभी समझ में नहीं आया.. मेरे पड़ोस में तो खैर नकुल के पापा रघुवीर थे जो 5th जेनरेशन में थे और नकुल को मिलाकर ये उनका तीसरा जेनरेशन था, जिसमे माता पिता को केवल इकलौती संतान थी. वैसे देखा जाए तो नकुल के पूर्वज अपने ननिहाल में बसे थे.


कहने का अर्थ ये है कि जब नकुल के दादा के दादा का जमाना था तब उन्हें एक बेटा और एक बेटी हुई थी. उन्होंने अपनी बेटी को अपने पास बसा लिया और बेटा अलग होकर दूसरे गांव में बसा था. और तभी जो बेटी हमारे पड़ोस में बसी थी, उसके तीसरे जेनरेशन में नकुल है…


हमारे यहां तो बहुत प्रचलित कहावत भी है, बेटी पास में बसी हो तो वो फरिक ही कहलाती है. नकुल का तो पुरा समेटा हुआ परिवार था. जिसमे नकुल भी अकेला संतान था. हालांकि देखा जाए तो नकुल के पास सबसे ज्यादा संपत्ति होनी चाहिए थी, लेकिन नकुल के दादा ने लगभग पूरी संपत्ति को ऐसे बर्बाद करके चले गए, की उनका कर्ज समेटते समेटते नकुल के पापा रघुवीर भईया की कमर ही टूट गई. एक जेनरेशन पहले जो राजा थे अब उनके पास मात्र 8 एकड़ की खेत रह गई थी, पर किसी भी वक़्त रघुवीर भईया ने हौसला नहीं हारा.


तो केवल नकुल के परिवार को छोड़ दिया जाए, तो मेरे ही परिवार को देख लीजिए. मेरे पापा और बड़े पापा में जब बंटवारा हुआ तो मेरे बड़े पापा मंदिर के पास वाले गांव में शिफ्ट कर गए. मेरे बड़े भईया, यानी महेश भईया नहर के पास शिफ्ट कर गए.


नकुल के घर के बाजू में वो बबलू भईया का घर, जो हमारे थर्ड जेनरेशन से थे उनके पापा यहां पर बसे थे, तो उनका एक भाई नहर के पास मकान बनाए है, तो दूसरा मंदिर के पास वाले गांव में, जहां हमारे अन्य फरिक बसते है. देखा जाए तो 2 सगे भाई आस पास में कभी नहीं बसे…


कारन वही था कि 2 सगे भाई एक हो भी जाए, लेकिन उनकी पत्नी के बीच गृह क्लेश ऐसा होता है कि लोग गृह क्लेश में बर्बाद हो जाए. बस अब मुझे इस मिथ को तोड़ना था. खैर ये एक धीमा प्रोसेस था, जिसे वक़्त के साथ सुलझाया जाना था, जिसपर मैंने और छोटी भाभी ने मिलकर काम शुरू कर दिया था..


ये तो थी मेरी पढ़ाई के अलावा खुद के हाथ में लीया गया एक काम जिम्मा, जिसमे अब मेरी इक्छा थी कि मेरी बड़ी भाभी यहीं पड़ोस में बसे. पढ़ाई की बात करे तो मेरे लिए कॉलेज की छुट्टियां ना जाने कब से चल रही थी. गोली कांड के बाद, भाभी के गांव वापस लौटने पर मेरा कॉलेज जाना पुरा अनियमित हो गया था. ऊपर से जब भाभी डेढ़ महीने नहीं थी, तब उस बीच भी कॉलेज जाने का एक भी दिन मौका नहीं मिला, बस किसी तरह परीक्षा देने चली गई थी..


वैसे मुझे कॉलेज जाने में अब कोई दिलचस्पी रह भी नहीं गई थी, क्योंकि ऑनलाइन ट्यूशन और सीए एंट्रेंस एग्जाम के मटेरियल में ही मै इतना उलझी रहती, की कॉलेज जाना अब समय की बरबादी लगने लगा था.. ऊपर से मेरे पास इतना खाली वक़्त था कि मै 11th का पूरा कोर्स आधे साल में ही समाप्त कर चुकी थी. कॉलेज में जो भी पढ़ाया जाना था वो मेरा पहले से पढ़ा हुए था.


लेकिन जो लोग नियमित रूप से कॉलेज जाते थे, निश्चित तौर पर उनके छुट्टियों का दौर चल रहा था. इसी बीच एक सुबह लता का कॉल मेरे पास आया और बीते दिनों में कॉलेज ना आने की वजह पूछने लगी. मैं बहुत ज्यादा बताने मै रुचि नहीं रखती की मै क्या कर रही हूं, इसलिए कारन मां का घर में अकेला रहना ही बताया.


थोड़ी देर बातो के दौरान उसके कॉल करने का कारन मुझे पता चल गया. लड़की का आज जन्मदिन था और कुछ समय के लिए वो अपना वक़्त दोस्तो के साथ बिताना चाहती थी, इसलिए अपने गांव की कुछ सखियों के साथ मुझे भी उसने निमंत्रण दिया…


मै अब क्या कह देती, 5 मिनट बाद वापस कॉल करती हूं, ऐसा कहकर मै मां के पास आ गई. उनको मैंने सारी बातें बताई. मां ने तो साफ कह दिया तुम्हारी बस परिचित है, कोई खास दोस्त है नहीं, इसलिए नकुल के साथ जाओ, 10 मिनट बाद वापस चली आना. कहना तो मां का भी सही था, थी तो परिचित ही. ना उसका दिल टूटे और ना ही मेरा ज्यादा समय बर्बाद हो.


मै तैयार होकर नकुल के घर पहुंची, और सामने दरवाजे पर ही खड़ी एक अनजान लड़की मुझे रोकती.. "कौन हो तुम, और किससे मिलना है"..


मै उसे ऊपर से लेकर नीचे तक देखी. दिखने में तो किसी हेरोइन से कम ना लग रही थी, ऊपर से चाल ढाल और टॉप-लोअर बता रहा था कि ये गांव की तो नहीं थी. मैंने ऊपर से नीचे तक उसे एक बार देखी… "जी मै मेनका हूं".. इतना ही कही उससे, अभी आगे का परिचय भी नहीं दी थी.. "ओह मेनका, वो विश्वामित्र की तपस्या भंग करने वाली मेनका"..


मै:- जी मै उनका अवतार नहीं हूं, मै तो बस नकुल के पास जा रही थी…


लड़की:- नकुल से तुम्हारा क्या काम...


मै:- मुझे ऐसा क्यों लगा रहा है कि आप सब जानकर भी मेरी खिंचाई कर रही है… वैसे इतना नजदीक रहकर किसी से बात नहीं कीजिएगा, वरना सबको पता चल जाएगा आप स्मोक करती है.… बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या करती है, बस यहां के चुग्लिखोर गैंग को बात करने के लिए एक टॉपिक मिल जाएगा. अब आपको ऐतराज ना हो तो मै मिल लूं नकुल से..


लड़की:- मै संगीता हूं, नकुल की ममेरी बहन. जब तुमने नाम बताया तभी मै समझ गई तुम कौन हो. बस सोची थोड़ा खिंचाई ही करके देख ले.


मै:- नमस्ते संगीता दी, लड़का पसंद आ गया..


संगीता:- प्लीज मुझे दीदी मत बुलाओ, और तुम्हे कैसे पता की मै यहां लड़का देखने आयी हूं…


मै:- गांव है ये, यहां खबर इंटरनेट से जल्दी वियराल हो जाती है… वैसे आप बाहर क्या कर रही है..


संगीता मुझे आंख मारती… "कोना ढूंढने आयी थी, सिगरेट कहां सुलगाना सुरक्षित होगा, वैसे पीछे बगीचा मस्त जगह है, लेकिन उधर ही एक औरत मेरी सास बनने कि इक्छा से, मेरे मम्मी पापा को कन्विंस करने की कोशिश कर रही है.. वो सबसे आखरी वाला घर उन्हीं का है…


मै:- ओह माखन काका, हमारे परिवार के लोग लच्छेदार बातें ज्यादा करते है संगीता जी, दिल से कोशिश करेंगे तो राजी कर ही लेंगे, लेकिन उन्हें क्या पता वो गलत जगह कोशिश कर रहे है..


संगीता:- हीहीहीहीही… मेरे स्मोक के आदत से पकड़ी ना की, मै गांव में शादी नहीं करना चाहती..


मै:- हां उसी से पकड़ी, मुझे नहीं लगता कि किसी को आप हां भी कहने वाली है..


संगीता:- नहीं, एक लड़के की प्रोफाइल जच गई है. दिन बाद वो आ रहे है देखने, लड़का देखने और सुनने में काफी शानदार है, बिल्कुल जोड़ी मेड फॉर ईच अदर वाली. यहां मेरे फूफा (नीलेश के पापा) को वो लड़का भी बहुत पसंद है, इनफैक्ट इस लड़के (नीलेश) से ज्यादा वो पसंद है और लड़का भी बैंगलोर में जॉब करता है तो इनकार करने की कोई वजह नहीं बनती…


मै:- बेस्ट ऑफ लक फिर तो.. अब तो मुझे अंदर जाने दीजिए..


संगीता:- ओह हां.. जाओ नकुल उन्हीं के बीच बैठा है..


"काफी हसमुख स्वभाव की है... लेकिन यें भी है यदि यहां माखन चाचा के घर की बहू बनती, फिर तो इनके पास देवरों की कमी नहीं रहती.. मै जब ये सोच रही थी कि खुद में हंसी आ गई.. जब मै वहां पहुंची लोग बात चीत में लगे हुए थे..
 

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चौथी घटना:- भाग 2









माखन चाचा अपने बेटे नीलेश की तारीफ में पुरा बुर्ज खलीफा बाना रहे थे और मेरा भतीजा नकुल, जिसके रिश्ते में नीलेश दूर का चाचा लग रहा था, उसे अपने नजदीक का जीजाजी बनाने की जैसे ठान लिया हो. माखन चाचा शुरू करते और नकुल पकड़ कर खींच देता..


बातों के दौरान नकुल ने मुझे एक बार देखा और अनदेखा करके फिर से बात करने लगा. मैंने आश्चर्य से अपनी आखें बड़ी करके उसे घुरनी लगी, लेकिन कुत्ता पलट कर देखा तक नहीं, भाव खा रहा था.. सोच रही थी चली ही जाऊं, फिर बाद में इसे बताऊंगी. इतने में ही भाभी (नकुल की मां) ने मुझे पकड़ लिया, और आने का कारन पूछने लगी.


मैंने भी गुस्से में कह दिया… "मंदिर के पास एक दोस्त से मिलने जाना था, लेकिन मुझे लगता नहीं कि नकुल सर के पास आज वक़्त नहीं… शायद चाचा के रिश्ता तय करने में व्यस्त है, इसलिए देखकर मुंह फेर लिया"..


नकुल:- खुद जब बिज़ी रहती हो दीदी तब कुछ नहीं, मुझे तो वैसे याद ना किया होगा, कोई काम परा है तभी आयी हो..


"हां ठीक है उससे मै अब पहले जैसी नहीं मिल रही थी, लेकिन मै तो कभी नहीं कहने गई की 5 महीने पहले जब सहर से लौटी थी, तब नीतू के चक्कर में कैसे इग्नोर किया था.. नहीं जाना अब इसके साथ".. उसकी बात सुनकर मेरा चेहरा उतर गया था और मै भाभी (नकुल की मां) से हाथ छुड़ाकर जबरदस्ती मुस्कुराती हुई कहने लगी… "शायद नाराज है मुझसे, मै बाद में आती हूं"…


बाकी सब दर्शक से हो गए उसके बाद, क्योंकि नकुल को दूर से ही समझ में आ गया कि मेरे अंदर की भावना क्या थी और मै अब वहां रुक नहीं सकती थी, क्योंकि मुझे रोना था. दूसरो का पता नहीं लेकिन जब कोई अपना मुझसे ऐसे बिहेव करे तो मुझे रोना आ जाता है…


नकुल की मां भी ये समझ गई इसलिए मुझे लेकर वो सीधा अपने बेडरूम में चली आयी. कुछ देर रोकर मै भी चुप हो गई और कुछ देर डांट खाकर नकुल के भी अक्ल ठिकाने आ गया… कुछ देर बाद नकुल तैयार होकर बाहर खड़ा था और हम दोनों लता के घर जाने के लिए निकल गए.


मै इसके साथ थी, तो इस आशिक़ को अपनी मसूका के दीदार करने का मौका भी मिल गया. मुझसे बिना पूछे ही सीधा गाड़ी ले जाकर नीतू के घर पर रोक दिया, और मेरे ओर देखने लगा. मुझे इतना तेज गुस्सा आया की एक हाथ उसके सर पर दे मारी.. "कुत्ता कहीं का".. और बस इतना कहकर मै नीचे उतर गई.


बेचारे की किस्मत, कॉलेज बंद होने के कारन नीतू से आमने-सामने की मुलाकात नहीं हो पा रही थी, और आज मेरे बहाने आया भी तो दीदार-ए-यार शायद किस्मत में लिखा नहीं था. नीतू अपने किसी दोस्त के साथ घंटे भर पहले वही छोटी सी बाजार में राशन का सारा सामान लेने गई थी. उसका उतरा चेहरा देखकर मुझे बहुत हंसी आयी. बड़ी मुश्किल से मै वहां पर हंसी दबा ली, लेकिन जैसे ही बोलेरो में बैठी, मै हंसती हुई लोटपोट हो गई…


नकुल हुंह करता हुआ गाड़ी चलाने लगा. मैं उसकी एक तस्वीर खींचकर दिखती… "देख ले खुद को, ये रहा तू. ठीक से तो मुछ भी नहीं आयी है रे नकुल, अभी चेहरे पर रोए ही हैं, क्यों उसके पीछे है. 3 साल में वो शादी कर लेगी, और जब तक तू शादी लायक होगा, उसके 4-5 साल के बच्चे हो जाएंगे."..


नकुल:- हुंह !


मै:- मत सुन मेरी. जनता है मै तेरी हर बात मान लेती हुं, लेकिन तू मेरी एक बात भी नहीं सुनता..


नकुल:- नहीं सुनता तो अभी साथ नहीं चलता…


मै:- इसे बात सुनना कहते है गधे.. इसे अपनी दीदी का काम करना कहते है… खैर छोड़, अभी लड़कपन है..


नकुल:- हां और तू दादी हो गई ना…


मै:- दादी नहीं भी हुई तो क्या हुआ, मुझ पर तो शासन तू भी करता है.. बाहर क्या कर रही हो, सबसे बात करने की जरूरत नहीं.. बोल शासन नहीं करता क्या?


नकुल:- वो तो बस तुम्हारी फ़िक्र रहती है..


मै:- तो मैंने कब बुरा माना.. मुझे भी तुम्हारी फिक्र होती है. लेकिन तुम लड़के हो ना.. वो मर्द वाली फीलिंग.. हटाओ यार इन लड़कियों को या घर की लेडीज को, दिमाग ही कितना होगा, जो बाहर का ज्ञान हो. यदि तुझे लेकर मै किसी लड़के घर जाऊं तो नकुल?


नकुल:- सॉरी, अब ऐसा नहीं करूंगा..


मै:- मज़ाक कर रही थी पागल, ऐसे मुंह क्यों लटकाए है…


मेरी बात पर वो कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया, शायद कुछ सोच रहा हो. कुछ ही देर में हम मंदिर के पास थे और लता मुझे लेने के लिए आ रही थी. पूरी सजी धजी और तैयार होकर आ रही थी. काफी प्यारी दिख रही थी..


वो जैसे ही मेरे पास पहुंची…. "एक छोटी सी समस्या है मेनका".. वहां केवल लड़कियां ही है, और तुम्हारा भतीजा वहां"..…


मै:- हद है लता, ये बात पहले बताना था ना…


लता:- फिर तो तुम मना कर देती..


मै:- अब भी माना ही कर रही हूं, मै इसे पागलों कि तरह बाहर छोड़कर तुम्हारे साथ जाऊं, ये हो ही नहीं सकता.. चल नकुल..


नकुल:- दीदी वो आपको इतने प्यार से इन्वाइट करने आयी है, तुम जाओ. यहां मै जबतक बांध किनारे वाले खेत देख आता हूं..


मै:- वो तू बाद में आकर देख लेना.. लता ऐसा नहीं होता है, वो मेरे साथ आया है, मै उसे बाहर खड़ा छोड़ ही नहीं सकती… ऐसा संभव ही नहीं..


नकुल:- दीदी चुपचाप जाओ… मै कह रहा हूं ना कोई बात नहीं है.. या फिर बहस करनी है..


मै:- लेकिन नकुल..


नकुल:- क्या दीदी, मै क्या विदेश में हूं, या किसी नई जगह पर. इस गांव में तो रोज ही आना होता है. अब जाओ भी, और ज्यादा सोचो मत…


मै:- हम्मम ! ठीक है मै तुम्हे फोन करती हूं..


मेरी सच में जाने की इक्छा नहीं हो रही थी. मै लता के साथ चल भी रही थी और 1-2 बार मुड़कर नकुल को देख भी रही थी.. "वो बच्चा नहीं है मेनका, क्यों परेशान हो रही है"…


मै:- तुम्हारे भैया के साथ मै ऐसा करती तो तुम्हे कैसा लगता..


लता:- इकलौती तुम ही हो जिसे बॉडीगार्ड के साथ आना पड़ता है वरना इस गांव से उस गांव तो मै अकेली आ जा सकती हूं, और मेरी तरह कई और लड़कियां भी, फिर इधर से हो या उधर से… एक बस तुझे ही डर लगता है कोई उठा ना ले.


मै:- मतलब यहां मेरा ही ब्रेन वाश किया जा रहा है..


लता:- ब्रेन वाश नहीं है ये मेनका.. सच्चाई है. इस पूरे इलाके में किसी मजनू की इतनी हिम्मत नहीं की जबरदस्ती छेड़ छाड़ कर ले. बाकी किसी कि मर्जी है तो वो तो उसके लिए रात के अंधेरे में भी निकल सकती है… कुवें की मेंढक क्यों बनी परी है…


मै:- गांव के बारे में मेरा ज्ञान बढ़ाने का शुक्रिया, लेकिन जब घर का कोई मेरे साथ होता है तो दिल को सुकून रहता है…


लता:- हां जानती हूं डरपोक कहीं की.. वरना अकेली चलेगी कम, और हर आवाज़ पर तेरा कलेजा ऊपर नीचे होता रहेगा, मेरे पीछे तो नहीं परा…


मै:- हा हा हा हा हा.. लवली जोक, चल अब.. वैसे सारी लड़कियां मिलकर करने क्या वाली हो..


लता:- अब तो चली ही आयी, खुद ही देख लो…


ओ तेरी, ये पड़ोस का गांव था या कोई टीन मॉडल शूटिंग, पता नहीं चल रहा था. नीचे किसी ने शॉर्ट स्कर्ट डाल रखे थे, तो कोई शॉर्ट्स में थी. ऊपर के लिए छोटे वस्त्र का जुगाड ना लगा तो केवल ब्रा में ही थी, वो भी शहर की स्टाइलिश कप वाली ब्रा थी, जिसमें स्तन बिल्कुल गोल और उसके ऊपर का खुला हिस्सा काफी आकर्षक दिखता था.


उन्हें देखकर ही मेरी आखें बड़ी हो गई… "ये कौन अबला लड़की हमारे बीच आ गई."… लता के गांव की दोस्त मधु थी. हमसे 1 साल सीनियर हमारे ही कॉलेज में. वो मेरे चेहरे के भाव को पढ़ती हुई पूछने लगी…


मै:- मै बिल्कुल भी अबला नहीं हूं मधु, बस यहां का माहौल काफी प्रेरणा वाला है उसी का जायजा अपनी फटी आखों से ले रही थी.


लता:- आखें तो इसके भतीजे की फटी रह जाती अगर वो यहां आ जाता…..


मधु:- वही नकुल ना, जो उस नीतू के चक्कर में है… अच्छा लड़का है, आ भी जाता तो शर्मता ही, बाकियों की तरह तो नहीं है..


भले ही झूठ हो, लेकिन आप जिसे चाहते है, कोई ऐसे कॉम्प्लीमेंट दे जिसमे एक लड़की खुद ब्रा में हो और सामने वाले के लिए ऐसा कह दे, फिर तो चेहरे पर मुस्कान और प्राउड वाली फीलिंग आनी लाजमी है. मै भी अंदर से प्राउड फील कर रही थी लेकिन फिर भी कहने कहीं….. "मै सामने हूं इसलिए उसकी तारीफ करके मुझे ही उल्लू बना लो"..


मधु:- तुम ज्यादा मेरे साथ रही नहीं ना मेनका इसलिए. जो सही है, मै सीधा मुंह पर कहती हूं, फिर मुझे किसी का डर भी नहीं होता. मै तो तुम्हारे भतीजे को जानती भी नहीं थी, लेकिन नीतू के साथ उसे देखी थी कॉलेज के पीछे स्टाफ क्वार्टर के ओर… नीतू उसके साथ ऐसे थी कि कोई दूसरा गांव का लड़का होता ना तो पुरा मज़ा लेकर आया होता… मगर वो कुछ देर रुका और चला गया, जबकि नीतू के शक्ल पर लिखा था वो पूरी तरह तैयार होकर आयी थी.. मैंने ये बात लता को बताई, तब उसी ने फिर तुम्हारे और नकुल के बारे में बताया था…


तभी एक और लता की सहेली रिंकी…. "तो तू क्या करने गई थी उस कोपचे में, ये तो बता दे…"


मधु:- तू अपने भतार के बारे में बताती है… जो मै बता दूं.. वैसे एक बॉयफ्रेंड मेरा भी है… कुता टाइप.. अकेली क्या थी, उसका हाथ सीधा मलाई पर..


रिंकी:- तू भी तो तैयार होकर मज़े ही लेने गई होगी, वो भी फिर तुझे पुरा मज़ा देकर मलाई की घोटाई करके फुला रहा है..


मधु:- कुछ भी मत बोल, अब लड़के के साथ अकेले में इतना तो सोचकर ही जाना होगा कि वो हाथ लगा सकता है.. लेकिन मज़ा लेने दू इतनी भी बेवकूफ नहीं… प्यार करती हूं इसलिए थोड़ी नादानी सह लेती हूं, और वो भी मुझे फोर्स नहीं करता.. बस 2 साल और, फिर हम शादी कर लेंगे…


गांव काफी तरक्की में था ये मुझे आज पता चल रहा था. मै बात को बदलती… "जन्म दिन की मुबारकबाद लता.. ये ले तेरा गिफ्ट"..


लता:- ये क्या पेन ड्राइव टाइप की चीज दे रही.. कहीं इसमें अंग्रेजी वाली वीडियो तो नहीं…


रिंकी… "अन्नःह्हहहहहहहहहहहहहहहहहहह, उफ्फफफफफफफफफफफफफ, आह्हहहहहहहहहहहहहहहहहहह.. कम ऑन फ़्क मी हर्डर..... आह्हहहहहहहहहहहहहहहहहहह…"..


उसके एक्सप्रेशन और मधु को पकड़ कर उसके एरोटिक एक्शन देखकर हम सब जोड़-जोड़ से हसने लगे. मधु भी कहां कम थी, वो भी उसके छोटे-छोटे दोनो स्तन को पूरी ताकत से जकड़ते… "आजा कूतिया आज तुझे मै जन्नत ही दिखाती हूं"..


बेचारी वो रिंकी बिल्कुल सिहर गई. मानो किसी ने उसके निप्पल उखाड़ने के इरादे से खींच ली हो. उसके आखों में पानी आ गया, और वो दौड़कर बाथरूम में घुस गई… "एक ही पकड़ में उंगली करने भाग गई"… मधु उसे पीछे से छेड़ती हुई कहने लगी..


लता:- पागल कहीं की तू बौरा जाती है. इतना तेज चिमटी काटने की क्या जरूरत थी, वो रोने लगी. तू ना कभी कभी ओवर कर देती है…


मधु:- मुझसे लिपटा चिपटी पहले वहीं करने आयी थी, मै नहीं गई थी…


लता:- हां तो कोई तुझसे मज़ाक करे तो तू ऐसे उसे रुला देगी, ऊपर से गलती मानने के बदले चढ़ रही है…


मधु:- सबको खाली मेरी ही गलती दिखती है.. वो तो दूध की धुली है ना.. जानती भी है कल मै झुककर काम कर रही थी, तो पीछे ऐसा चमाट मारी थी कि उसके 5 उंगलियों के छाप उखाड़ आएं थे..


लता:- दिखवाई किससे थी जो पता चला 5 उंगलियों के छाप थे.. पहले तो ये बता..


लता की बात सुनकर तो मधु भी हंस हंस कर पागल हो गई. खैर काफी फनी माहौल था यहां का. ये तीनों यानी कि रिंकी, मधु और लता जब फुरसत हुई तब तीनों ही मुझे घूरती… "ये किस तरह का पेन ड्राइव है, जिसमें अटैच करने वाला कुछ है ही नहीं"..


मुझे पता था लता के घर में कंप्यूटर लगा हुआ है इसलिए मै भी एक ब्लूटूथ माईक उठा लाई थी उसके लिए.. ऑनलाइन मुझे 400 रुपए 1 मिला था, उपयोगी समझकर मैंने भी 5 मंगवा लिए थे.. हां पर ब्लूटूथ की ज्यादा रेंज नहीं थी, केवल 20 मीटर का रेंज था.


जैसे ही मैंने लता को इसके बारे में बताया, वहां खड़ी तीनों की आखें बड़ी हो गई. लता अपने साथ मुझे एक कमरे में ले गई, वहां अपने पलंग के नीचे वो एक लंबा बैग निकली. अपने खिड़की के बराबर एक स्टैंड लगाई और उसके ऊपर टेलीस्कोप फिट कर दी…


मुझे लगा था गांव में इकलौती मै ही पागल हूं, जो किसी आस पड़ोस की बात सुनने के लिए ब्लूटूथ माईक खरीद ली. हां इरादे तो ऐसे ही थे, बस हिम्मत नहीं हुई कभी किसी की जासूसी करने की. जब आप इंटरनेट की दुनिया में होते है तो ऐसे छोटे बड़े पागलपन चलते रहते है.


मेरे पागलपन छोटे थे, लेकिन इसके पागलपन तो कुछ ज्यादा ही बड़े थे. ये तो दूसरे के घर में ताका झांकी का समान खरीद रखी थी, वो अलग बात है कि इसका पुरा फायदा तो ऊंचाई पर से देखने में होता, नीचे ग्राउंड फ्लोर से बस आकाश के तारे ही अच्छे से देखे जा सकते थे…


पूछने पर पता चला कि वो भी ऑनलाइन मग्वाई थी 3 महीने पहले. तभी मधु, मुझे टेलीस्कोप से, सामने एक दूर खड़ी सैकॉर्पायो के आस पास देखने कहीं.. हां वो स्कॉर्पियो खिड़की से भी दिख रही थी, लेकिन माचिस के डिब्बे जैसी बिल्कुल छोटी…
 

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चौथी घटना:- भाग 3







मै टेलीस्कोप से वहां देखने लगी… अंदर से 4 मर्द मुंह बांधे निकल रहे थे, और उनके पीछे 2 लड़की मुंह बांधे थी. सभी लोग स्कॉर्पियो में बैठे और वहां से निकल गए. मुझे शक हुआ कि 4 लड़को में मै 2 को जानती हूं, क्योंकि पहनावा और चाल ढाल अपनी कहानी बयां कर रही थी, लेकिन हर किसी की अपनी निजी जिंदगी है और मुझे क्या लेना देना वहां से…


सभी एक छोटे से कच्चे घर से निकल रहे थे… गाड़ी के जाते ही वहां पास में बैठा 4 लड़का, जो उस कच्चे मकान के आसपास फैले थे, वो भी उठकर वहां से चले गए.…


मै टेलीस्कोप से हट गयी और उनसे कहने लगी… "कोई अपने परिवार के साथ कहीं जा रहा था, इसमें मुझे क्यों दिखा रही थी"…


लता:- इसे तो कुछ भी पता नहीं, छोड़ जाने दे..




इधर एक घंटे पहले…


पीछे सुनसान पड़े उस झोपड़ी में पहले 2 लड़कियां और 2 लड़के पहुंचे. जैसे ही वो दोनो पहुंचे आस पास निगरानी देने के लिए 4 लड़के खड़े हो गए… जैसे ही वो चारो अंदर पहुंचे… दोनो लड़के दोनो लड़कियों को गले लगाकर चूमने लगे…


"आह ! नीलेश, मै नकुल की दोस्त हूं"… नीलेश उसका गला को चूमते… "उसमे दोस्ती जैसा क्या है नीतू, मै तुम्हे खुश रखूंगा, रानी बनाकर रखूंगा"..


"नहीं मै केवल नीतू के साथ आयी थी, उसने कहा बस किसी से मिलना है, प्लीज मेरे साथ ऐसा मत करो, प्लीज.. किसी को पता चल गया तो मै बदनाम हो जाऊंगी".. नीतू के साथ आयी दूसरी लड़की पूनम ने कहा…


नीलेश के साथ पहुंचा उसका सबसे करीबी दोस्त और ठीक उसके पास के मकान में रहने वाला उसका भाई नंदू, पूनम की हल्की उभरी चूची को हल्के-हल्के दबाते हुए… "किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.. आज से तू मेरी रानी है और नीतू नीलेश की, दोनो को किसी बात की कमी ना हो इसलिए 1-1 लाख कल ही तो तुम्हारे खाते मै जमा करवा दिए है, नीतू ने तो तुम्हे बताया ही होगा. मुझसे डर क्यों रही हो."


पूनम:- आप मुझसे बहुत बड़े है, मै अभी बहुत छोटी हूं, प्लीज ऐसा मत करो.. मुझे पैसे की क्या जरूरत.. मैं उसे वापस कर दूंगी..


इधर नीतू नीलेश के चंगुल से छूटती… "मै जा रही हूं निलेश, नकुल को पता चलेगा तो ना जाने क्या हो जाएगा"..


नीलेश:- ठीक है मै तुम्हे फोर्स नहीं करूंगा, बस 2 मिनट मेरी बात सुन लो, आओ..


नीलेश उसे अपने साथ कच्चे मकाम के एक छोटे से कमरे में ले गया, जहां लकड़ी की एक चौकी रखी हुई थी और उसपर बिस्तर बिछा हुआ था… इधर नीलेश का भाई नंदू भी ठीक वैसे ही बहला फुसलाकर पूनम को भी दूसरे कमरे में ले आया…


नीलेश जैसे ही कमरे में पहुंचा, नीतू के गले को चूमते हुए…. "तुम्हे इतना सोचने कि जरूरत नहीं है नीतू, वैसे भी वो तुमसे शादी थोड़े ना करता"..


"आह, नहीं प्लीज मुझे जाने दो. मै ऐसी लड़की नहीं हूं. नकुल मुझे अच्छा लगता है क्योंकि आज तक कभी उसने मुझे छूने की कोशिश नहीं की. उसके साथ.. आह नहीं, प्लीज हाथ मत लगाओ मुझे"..


नीलेश उसके गले को चूमते हुए धीरे-धीरे उसके चूची को सहलाने लगा. नीतू विरोध तो कर रही थी, लेकिन इस विरोधाभास के बावजूद भी नीलेश लगातार उसके चूची को प्यार से मसल रहा था और उसके गले को चूम रहा था.


नीतू के श्वांस धीरे-धीरे चढ़ने लगी और वो खामोशी से बैठकर तेज-तेज श्वंस ले रही थी.... नीलेश अपने अनुभव का परिचय देते हुए, उसके सीने से उसका दुपट्टा हटाकर उसके सीने के खुले भाग को चूमते हुए, धीरे-धीरे अपने जीभ चलाने लगा..


नीतू गहरी अंगड़ाई लेती, बिस्तर को अपनी मुट्ठी में भींच कर दोनो हाथ से चादर को दबोच ली… नीलेश धीरे-धीरे उसके खुले सीने को चूमते और चाटते हुए, अपना एक हाथ उसके चूची पर रखकर गोल-गोल घुमाते हुए मसलने लगा. उसका दूसरा हाथ धीरे से नीचे जाते हुए, उसके दोनो पाऊं के बीच में जबरदस्ती घुसने की कोशिश करने लगा… "नहीं प्लीज नीलेश, वहां मत टच करो.. मै अभी तक कुंवारी हो"..


नीलेश पूरी जीभ से, उसके गर्दन से लेकर नीचे सीने के क्लीवेज लाइन तक चाटते हुए…. "बस जो हो रहा है होने दो, मज़ा लो तुम भी"… उसकी बात सुनकर नीतू ख़ामोश हो गई, लेकिन अपने दोनो जांघे दबोची रही… नीलेश दोनो पाऊं के बीच जबरदस्ती अपने हाथ डालकर उसकी चूत को ऊपर से ही रगड़ने लगा…


नीतू के पाऊं जैसे कांप गए हो. उसकी निप्पल अकड़ गई थी और दोनो जांघ की मजबूत जकड़ ढीली पड़ने लगी. हां और ना के विरोधाभास में फसी नीतू के पाऊं कांपने लगे थे और बदन जलने लगा था… उसे मानो मेहसूस हो रहा था कि अंदर भूचाल मचा है.


नीलेश ने कब उसका कुर्ता ऊपर करके, उसके ब्रा को उसके चूची पर से समेट कर ऊपर गले तक ले गया, उसे पता भी नहीं चला. अचानक ही नीतू को होश आया और अपने हाथो से वो अपने उम्र से थोड़ा ज्यादा विकसित चूची को अपने हाथ से ढकने कि कोशिश करने लगी… बिल्कुल मस्त और सीने से गोल लगे चूची को देखकर नीलेश के आखों में चमक आ गई..


वो पीछे मुड़कर दरवाजे पर एक बार देखा, शायद वक़्त दिन का था और ज्यादा देर यहां किसी लड़की के साथ रहना खतरनाक साबित हो सकता था, इसलिए वो देर ना करते तुरंत ही थोड़ा जोर लगाकर उसके हाथ को चूची से हटाकर उसे लिटा दिया और बड़ी-बारी से उसके छोटे-छोटे निप्पल को मुंह में लेकर चूसने लगा..


नीतू तेज-तेज आह्हहहहहहहहहहहहहहह भरती अपने दातों तले होंठ को दबा रही थी और सर दाएं बाएं करती, अपने हाथ को बिस्तर पर पटक रही थी.. उसके चूत की लहर पूरे पाऊं में दौड़ने लगी और हिलते पाऊं से तेज-तेज पायल की आवाज आ रही थी.. नीलेश उसे चूची को चूसते हुए नीचे आने हाथ ले गया और उसके सलवार के नाड़े को खोलने लगा. नीतू उसका हाथ बीच में ही पकड़ ली लेकिन दोनो को ही पता था ये मात्र एक झीझक है..


जल्द ही निलेश ने उसके सलवार का नारा खोल दिया और पैंटी सहित उसका सलवार को खींचकर घुटने में ले आया. नीतू के हाथ स्वताः ही उसके चूत के ऊपर चले गए और दोनो पाऊं के बीच में वो पूरे जोड़ से अपने खजाने को छिपाने कि कोशिश कर रही थी....


लेकिन ताला कैसा भी हो, चोर किसी ना किसी विधि से तिजोरी खोलकर खजाना लूट ही लेता है. नीलेश ने एक बार फिर ऊपर के ओर रुख किया और उसकी चूची को अपने मुंह में लेकर, उसे पूरा भिगोते हुए जोर-जोर से चूसने लगा, दूसरो चूची को मुट्ठी में भरकर उसे मसलते हुए, धीरे-धीरे अंगूठे से उसके निप्पल को घूमाने लगा..


मस्ती की लहर में नीतू ने एक बार फिर अपनी आंखें मूंद ली.. नीलेश का एक हाथ धीरे-धीरे नीचे उसके चूत कि ओर जाने लगा.. विरोध वो जताकर भी कुछ नहीं कर पा रही थी और जैसे ही उसके छोटी सी चूत के फांक पर नीलेश की उंगली परी, नीतू पूरी गनगना गई. नीचे से उसके चूतड़ जैसे हल्का-हलका हिलना शुरू हो गए थे..


नीलेश लगातार उसके छोटी सी चूत के फांक को अपने कठोर उंगली से रगड़ते हुए उसके श्वांस को बेकाबू कर रहा था… नीतू के मुंह से बस .. "आह्हहहहहहहहहहहहहहहहहहह, उफ्फफफफफफफफफफफफफ" की दबी सी आवाज निकल रही थी और उसके दोनो हाथ नीलेश की कलाई को पकड़े मानो मिन्नतें कर रही हो...… छोड़ दो मेरी चूत रगड़ना, मेरे अंदर क्या हो रहा है मुझे पता नहीं.. ये बेचैनी कहीं जान ना ले ले"..


नीलेश को समझ में आ गया लौंडिया तैयार है तभी उसने दरवाजे के ओर इशारा किया और इधर वो चूत के अंदर अपनी एक उंगली डालकर हौले-हौले इतने प्यार से ऊपर नीचे करने लगा कि वासना में नीतू की आखें लाल हो गई. नीलेश चूत पर उंगली करते हुये उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए..


नीतू अपना सिना ऊपर उठती अपनी चूची को हवा में पुरा तान दी और दोनो हाथ उसके सर पर डालकर उसके होंठ को पागलों की तरह काटने लगी.. तभी नीतू को आभाश हुआ कि उस जगह पर उन दोनों के अलावा भी कोई और मौजूद है..


लेकिन उसके होंठ को नीलेश ने अपने मुंह में जकड़ रखा था और इतने में ही उसके दोनो पाऊं हवा में थे. सलवार और पैंटी घुटनों में ही था और बीच से उसके गीली चूत पर कोई अपना लंड घीसने लगा.. नीतू हवा में ही अपने पाऊं जोड़-जोड़ से हिलाने लगी. नीतू अपने हाथ को झटककर छुटने की कोशिश करने लगी, लेकिन तबतक घिसता हुए लंड, गप से उसकी गीली सी छोटी चूत में आधा घुस गया. चूत इतनी छोटी थी कि दीवार से उसके घुसते लंड को वो मेहसूस कर सकती थी.


नीतू पूरी तरह से तिलमिला गई. किसी तरह छूटना चाहती थी, लेकिन नीलेश उसके होंठ दबा कर उसके सर को नीचे किए हुए था और दोनो हाथ को जकड़े थे… "आववववववव.. नहींईईईईईईई" जैसे आवाज़ घूट कर अंदर ही रह गई, तभी एक और जोड़ का झटका लगा और उसके छोटी सी चूत में पुरा लंड घुस गया.


नीतू छटपटा कर अपने सर दाएं बाएं करने की कोशिश करने लगी. वो दर्द से छटपटाती हुई किसी तरह छुटने की कोशिश कर रही थी, लेकिन शिकार को दबोचा जा रहा था, और वो कुछ कर नहीं सकती थी… नीतू के सलवार का नाड़ा लटककर उसके चूतड़ पर लहरा रहा था. दोनो पाऊं के बीच उसकी चूत के फांक झांक रही थी. और कोई उसके चूत के अंदर दबा के पुरा लंड पेलकर, अब जोर-जोर से झटके मारना शुरू कर चुका था.


नीतू लगातार कसमसा रही थी, लेकिन जिस तरह से नीलेश ने उसके वासना की आग भड़काई थी, उसकी छोटी सी चूत के द्वार खुलने के लिए बेकरार हो गए थे… कुछ ही देर के मर्दाना झटको में नीतू को मज़ा मिलना शुरू हो चुका था. नीतू का विरोध में कसमसाने बिल्कुल मादक एहसास में बदल गया. उसकि कमर नीचे से अपने आप ही हिलने लगी.


जैसे ही उसके कमर हिलने लगे, लंड अंदर घुसाया लड़का गिरीश, नीलेश का शर्ट खींचकर उसके ऊपर से हटने कहा… जैसे ही नीलेश ने नीतू को छोड़ा वो तेज-तेज श्वांस लेती अपनी छाती ऊपर नीचे करने लगी. धक्के के साथ थिरकते उसके गोल चूची देखकर नीलेश अपना लंड निकलकर हिलाने लगा…


नीतू, मादक सिसकारी की आवाज धीमे-धीमे अपने होंठ से निकाल रही थी, लेकिन अपनी आखें बिल्कुल मूंदे थी और देखना नहीं चाहती थी कि कौन उसे भोग रहा. वो तो बस कमर हिलाकर चूत में घुसते लंड का पूरा मज़ा अपनी दबी सी आवाज में ले रही थी…


अब तो उस लड़के गिरीश के भी झटके तेज होते जा रहे थे.. हाचक कर वो ऐसे चोद रहा था मानो वर्षों बाद उसके अरमान पूरे हो रहे हो. चूत कि कसावट को गिरीश भी मेहसूस करके, चूत को पूरी रफ्तार से रौंद रहा था… नीतू और गिरीश दोनो पसीने पसीने हुए जा रहे थे… तभी जोड़ की आवाज करती नीतू ने बिस्तर को अपनी मुट्ठी में दबोच ली, इधर गिरीश भी उसके टांग पर अपनी पकड़ पुरा मजबूत बनाते हुए और जोर-जोर से झटके मारते हुए पुरा लंड चूत के अंदर घुसेड़ कर अटका दिया.


गिरीश का कमर ठुमुक-ठुमुक करते जोड़-जोड़ से हिलने लगा. और वो अपना कमर हिला-हिला कर, पुरा वीर्य नीतू की चूत में गिराकर, अपना लटका हुआ लंड बाहर निकाल लिया.. इधर नीलेश भी अपने लंड को मुठिया रहा था और वो भी चरम पर था. जोड़ की पिचकारी उसने भी छोड़ दी. उसका गरम वीर्य कुछ नीचे तो कुछ बूंद नीतू के चूची पर गिर गया.


नीतू थकी सी हालत में बैठकर अपने चूत को चादर से साफ करके, अपने बदन को साफ की. तेजी के साथ अपने कपड़े को ठीक करती कभी वो नीलेश को तो कभी उसके साथ खड़े लड़के गिरीश को देख रही थी.


गिरीश आगे बढ़कर उसके छोटे से चेहरे के होंठ को चूमते हुए… अपने हैंड बैग से नोट की एक पूरी गड्डी, उसके बैग में डाल दिया. लगभग 1 लाख रुपए थे… "सुन इतने में सहर में कमाल की रण्डी मिल जाती, वो भी 5 रातों के लिए. चुपचाप रख ले, ये तेरी चूत खोलने को कीमत है. जबतक तेरे चूत फ़ैल नहीं जाता तब तक तुम्हे अच्छी कीमत देता रहूंगा.. बस चुपचाप ऐसे ही मज़ा लिया कर और मज़ा दिया कर"…


नीतू खामोशी से उसकी बात सुनकर हा में अपना सर हिला दी और धीमे आवाज़ में कहने लगी… "सब अंदर डाल दिए, मै प्रेगनेंट हो गई तो"..


नीलेश:- अभी जब तुझे वापस बाजार छोड़ने जाएंगे तो गोली दिला दूंगा. अब चिंता मत कर और बस मज़े ले जवानी के. वैसे भी वो नकुल तेरे फ्री में ही मज़े लेता ना… चूत खुलने के 2 लाख मिल रहे अब क्या चाहिए. आगे भी अच्छी कीमत मिलती रहेगी… तेरी उम्र ही ऐसी है कि कोई भी पागल हो जाए…


नीतू उसकी बात सुनकर कुछ नहीं बोली और अपने दोस्त के बारे में पूछने लगी… उसकी दोस्त पूनम, जो लगभग उसी वक़्त दूसरे कमरे में गई थी. वो जैसे ही अंदर गई भागकर कोने में जाकर दुबक गई. बिल्कुल छोटी सी लड़की, गोल मुंह, और प्यार सी सूरत वाली सुंदर लड़की. जिसके बदन पर उभार आने शुरू ही हुए थे, अपने से 7-8 साल बड़े लड़के नंदू की मनसा को जानकर वो रोती हुई बस मिन्नते करती दुबक गई..


फिर उस कमरे में जो चाकू के जोड़ पर आत्मसमर्पण करवाया गया, उसके पहले तो धमकी मिली की कपड़े उतार ले खुद से, वरना कपड़े फट जाएंगे और तुम्हे यहीं छोड़कर चले जाएंगे…


दुबली-पतली एक डरी-सहमी सी लड़की, जिसके अंग अभी ठीक पूर्ण विकसित होना भी शुरू नहीं हुए थे. फिर बहते आशुं के बीच जो कहानी लिखी गई, उसका जिक्र करना शायद सोभनिय नहीं होगा. पूनम बिल्कुल गुमसुम, पहले से बाहर आकर कोने में चुपचाप बैठी हुई थी.. उसे कमरे तक में लेकर तो नंदू गया था, लेकिन छटपटाती चिड़िया के मज़े लूटे एक 52 वर्षीय अधिकारी ने, जो डिस्ट्रिक्ट डेप्युटी कलेक्टर था और जिसके हाथ में विकास भवन के टेंडर की इतनी फाइल्स थी कि जिन्हे नंदू और नीलेश अब एक-एक करके अपने नाम करवाता.


डीडीसी (डिस्ट्रिक्ट डेप्युटी कलेक्टर) इतना बौराया था कि वो तो पूनम को एक हफ्ते अपने पास रखने के 10 लाख तक दे रहा था, लेकिन नीलेश ने माना कर दिया. मना तो कर लिया लेकिन साथ में ये जरूर आश्वासन दिया कि 10 बार की ये आप की ही अमानत है. नीलेश ने पूनम के बैग में भी एक लाख की गद्दी डाल दी और दोनो से कहने लगा..


"पहले सुभ आरम्भ के 2 लाख कम नहीं होते. आगे और भी मिलेंगे इसलिए दोनो चुपचाप मज़े लो. किसी ने अपनी जुबान खोली ना कूतिया, तो वो रात को सोएगी जरूर, लेकिन सुबह गांव के चौपाल पर नगी मिलेगी"…


नीतू और पूनम दोनो ही खामोशी से सब सुन रही . नीतू ने पहले पूनम का हुलिया ठीक किया, फिर बाद में खुद के बाल और चेहरा ठीक किए. सभी अपने चेहरे पर पर्दा डाले बाहर निकल अाए और बाहर आकर स्कॉर्पियो में बैठकर छोटे से बाजार के ओर निकल गए, जहां जाने के लिए नीतू अपने दोस्त के साथ घर से निकली थी.. जाना था जापान पहुंच गई चीन, इसलिए अब नीतू और उसकी सहेली को वापस जापान छोड़ा जा रहा था…


उस छोटे से बाजार के थोड़ा सा आगे जाकर सुनसान सड़क पर स्कॉर्पियो को रोक दिया गया, जिसमें से पहले नीतू और पूनम बड़ी तेजी में निकली और वहीं से कच्चा रास्ता पकड़कर घूमकर बाजार चली आयी. उसके कुछ दूर आगे जाकर नंदू, गिरीश और नीलेश उतर गये. वो सभी सड़क के किनारे लगी अपनी एक गाड़ी में बैठकर वापस गांव आ गये.




लता के घर में…


मैंने जब देखा तब वो लोग जा रहे थे. मास्क सबके चेहरे पर लगा था लेकिन 2 की चाल ढाल मुझे पूरे तरह से पता थी. दोनो नीलेश और नंदू है, ऐसी मुझे शंका हुई लेकिन मुझे की करना था. मैंने भी लता को बता दिया कि कोई अपने परिवार के साथ जा रहा है, इसमें मुझे क्या करना है..


इसपर मधु मुझे लता से ही कहने लगी… "इसे लगता है कुछ भी पता नहीं. एक लड़का तो गिरीश है, हमारे ही गांव का, वो तो हम जानते है. ये बाकी के कौन लोग है"… गिरीश, ये नाम भी चौंकाने वाला था मेरे लिए, क्योंकि गिरीश हमारे ही थर्ड जेनरेशन से था और लता के गांव के मुखिया प्रवीण मिश्रा का छोटा बेटा. हमारे परिवार से इनके परिवार का बहुत ज्यादा कोई मेल मिलाप नहीं था, बस जानते थे..


वहां अब गिरीश हो या फिर बबलू भईया या गांव का कोई भी, ये उनका निजी मामला था. मै आराम से उस कमरे से बाहर निकल गई. तभी जिज्ञासावश लता मुझसे पूछने लगी कि क्या ये ब्लूटूथ डिवाइस उस कच्चे मकान तक का रेंज दे सकती है…


मैंने फिर उन्हें प्रोडक्ट मैनुअल दिखाते हुए कहा कि ये इन बिलट बैटरी के साथ 6 घंटा का बैकअप देती है और इसका रंज 20 मीटर है… वो भी बिना बाधा के. फिर उन्होंने पूछा ये बाधा क्या होती है. मैंने उन्हें फिर समझाया जैसे सीसे की दीवार यार फिर आम दीवार भी इसके रेंज को प्रभावित करती है, बाकी जब इस्तमाल करोगी तो समझ जाओगी…


मुझे आए लगभग आधे घंटे हो गए थे.. और ज्यादा रुकना मुझे उचित नहीं लगा क्योंकि नकुल को दरवाजे के बाहर छोड़ आयी थी, जो की मुझे अंदर से अच्छा मेहसूस नहीं करवा रहा था. मैंने फिर नकुल को कॉल लगाकर मंदिर आने कह दिया और खुद लता के साथ वहां से निकल गई..


मेरे पहुंचने से पहले ही नकुल वहां इंतजार जर रहा था… मैंने लता से विदा ली और नकुल के साथ वापस घर निकल गई…
 

Rahul

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Shukriya rahul bhai
abhi pura nahi padha bhai ji sach bolta hun time nahi mil raha meko choti si zindgi me pareshani bahut hai lekin mai kal isko pura padh lunga ok
 
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nain11ster

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abhi pura nahi padha bhai ji sach bolta hun time nahi mil raha meko choti si zindgi me pareshani bahut hai lekin mai kal isko pura padh lunga ok
जी ओक सर ।।। और आप भी सीरियस लेंगे मेरी बातों को तब तो मुझे पोस्ट रिप्लाइ सोचकर करना पड़ेगा.. इसलिए मज़ाक को सरियस ना ले।। स्माइल प्लीज
 

aman rathore

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चौथी घटना:- भाग 1





आह जिंदगी भी क्या खुशनुमा होती है जब आप कुछ बोझ से खुद को निश्चिंत पाते हो. खैर जिंदगी में एक ही वक़्त में केवल एक काम होते रहे, ये तो संभव नहीं और खासकर भारत के पढ़ने वाले छात्र छात्राओं में. पढ़ाई कर रहे है तो आप केवल पढ़ाई नहीं करते, साथ में अन्य कामों को भी करना पड़ता है. कुछ काम जो आपकी जिम्मेदारी होती है, उनसे मुंह नहीं मोड़ सकते और कुछ जो अनचाहे काम आ जाते है, जिसमें आप ना चाहते हुए भी शामिल हो जाते है…


बहरहाल एक लंबे समय से चले आ रहे बोझ जैसे अब उतर सा गया था. भाभी के साथ संबंध पहले कि तरह ही मजबूत और बेहतर भी था, और अब तो हम दोनों ने मिलकर योजना भी बनानी शुरू कर दी थी कि बड़े भैया महेश और बड़ी भाभी सोभा को यहां पास में ही बसाना है…


वो क्या है ना हमारे मिश्रा टोला का ये खानदानी कल्चर, मुझे आज तक कभी समझ में नहीं आया.. मेरे पड़ोस में तो खैर नकुल के पापा रघुवीर थे जो 5th जेनरेशन में थे और नकुल को मिलाकर ये उनका तीसरा जेनरेशन था, जिसमे माता पिता को केवल इकलौती संतान थी. वैसे देखा जाए तो नकुल के पूर्वज अपने ननिहाल में बसे थे.


कहने का अर्थ ये है कि जब नकुल के दादा के दादा का जमाना था तब उन्हें एक बेटा और एक बेटी हुई थी. उन्होंने अपनी बेटी को अपने पास बसा लिया और बेटा अलग होकर दूसरे गांव में बसा था. और तभी जो बेटी हमारे पड़ोस में बसी थी, उसके तीसरे जेनरेशन में नकुल है…


हमारे यहां तो बहुत प्रचलित कहावत भी है, बेटी पास में बसी हो तो वो फरिक ही कहलाती है. नकुल का तो पुरा समेटा हुआ परिवार था. जिसमे नकुल भी अकेला संतान था. हालांकि देखा जाए तो नकुल के पास सबसे ज्यादा संपत्ति होनी चाहिए थी, लेकिन नकुल के दादा ने लगभग पूरी संपत्ति को ऐसे बर्बाद करके चले गए, की उनका कर्ज समेटते समेटते नकुल के पापा रघुवीर भईया की कमर ही टूट गई. एक जेनरेशन पहले जो राजा थे अब उनके पास मात्र 8 एकड़ की खेत रह गई थी, पर किसी भी वक़्त रघुवीर भईया ने हौसला नहीं हारा.


तो केवल नकुल के परिवार को छोड़ दिया जाए, तो मेरे ही परिवार को देख लीजिए. मेरे पापा और बड़े पापा में जब बंटवारा हुआ तो मेरे बड़े पापा मंदिर के पास वाले गांव में शिफ्ट कर गए. मेरे बड़े भईया, यानी महेश भईया नहर के पास शिफ्ट कर गए.


नकुल के घर के बाजू में वो बबलू भईया का घर, जो हमारे थर्ड जेनरेशन से थे उनके पापा यहां पर बसे थे, तो उनका एक भाई नहर के पास मकान बनाए है, तो दूसरा मंदिर के पास वाले गांव में, जहां हमारे अन्य फरिक बसते है. देखा जाए तो 2 सगे भाई आस पास में कभी नहीं बसे…


कारन वही था कि 2 सगे भाई एक हो भी जाए, लेकिन उनकी पत्नी के बीच गृह क्लेश ऐसा होता है कि लोग गृह क्लेश में बर्बाद हो जाए. बस अब मुझे इस मिथ को तोड़ना था. खैर ये एक धीमा प्रोसेस था, जिसे वक़्त के साथ सुलझाया जाना था, जिसपर मैंने और छोटी भाभी ने मिलकर काम शुरू कर दिया था..


ये तो थी मेरी पढ़ाई के अलावा खुद के हाथ में लीया गया एक काम जिम्मा, जिसमे अब मेरी इक्छा थी कि मेरी बड़ी भाभी यहीं पड़ोस में बसे. पढ़ाई की बात करे तो मेरे लिए कॉलेज की छुट्टियां ना जाने कब से चल रही थी. गोली कांड के बाद, भाभी के गांव वापस लौटने पर मेरा कॉलेज जाना पुरा अनियमित हो गया था. ऊपर से जब भाभी डेढ़ महीने नहीं थी, तब उस बीच भी कॉलेज जाने का एक भी दिन मौका नहीं मिला, बस किसी तरह परीक्षा देने चली गई थी..


वैसे मुझे कॉलेज जाने में अब कोई दिलचस्पी रह भी नहीं गई थी, क्योंकि ऑनलाइन ट्यूशन और सीए एंट्रेंस एग्जाम के मटेरियल में ही मै इतना उलझी रहती, की कॉलेज जाना अब समय की बरबादी लगने लगा था.. ऊपर से मेरे पास इतना खाली वक़्त था कि मै 11th का पूरा कोर्स आधे साल में ही समाप्त कर चुकी थी. कॉलेज में जो भी पढ़ाया जाना था वो मेरा पहले से पढ़ा हुए था.


लेकिन जो लोग नियमित रूप से कॉलेज जाते थे, निश्चित तौर पर उनके छुट्टियों का दौर चल रहा था. इसी बीच एक सुबह लता का कॉल मेरे पास आया और बीते दिनों में कॉलेज ना आने की वजह पूछने लगी. मैं बहुत ज्यादा बताने मै रुचि नहीं रखती की मै क्या कर रही हूं, इसलिए कारन मां का घर में अकेला रहना ही बताया.


थोड़ी देर बातो के दौरान उसके कॉल करने का कारन मुझे पता चल गया. लड़की का आज जन्मदिन था और कुछ समय के लिए वो अपना वक़्त दोस्तो के साथ बिताना चाहती थी, इसलिए अपने गांव की कुछ सखियों के साथ मुझे भी उसने निमंत्रण दिया…


मै अब क्या कह देती, 5 मिनट बाद वापस कॉल करती हूं, ऐसा कहकर मै मां के पास आ गई. उनको मैंने सारी बातें बताई. मां ने तो साफ कह दिया तुम्हारी बस परिचित है, कोई खास दोस्त है नहीं, इसलिए नकुल के साथ जाओ, 10 मिनट बाद वापस चली आना. कहना तो मां का भी सही था, थी तो परिचित ही. ना उसका दिल टूटे और ना ही मेरा ज्यादा समय बर्बाद हो.


मै तैयार होकर नकुल के घर पहुंची, और सामने दरवाजे पर ही खड़ी एक अनजान लड़की मुझे रोकती.. "कौन हो तुम, और किससे मिलना है"..


मै उसे ऊपर से लेकर नीचे तक देखी. दिखने में तो किसी हेरोइन से कम ना लग रही थी, ऊपर से चाल ढाल और टॉप-लोअर बता रहा था कि ये गांव की तो नहीं थी. मैंने ऊपर से नीचे तक उसे एक बार देखी… "जी मै मेनका हूं".. इतना ही कही उससे, अभी आगे का परिचय भी नहीं दी थी.. "ओह मेनका, वो विश्वामित्र की तपस्या भंग करने वाली मेनका"..


मै:- जी मै उनका अवतार नहीं हूं, मै तो बस नकुल के पास जा रही थी…


लड़की:- नकुल से तुम्हारा क्या काम...


मै:- मुझे ऐसा क्यों लगा रहा है कि आप सब जानकर भी मेरी खिंचाई कर रही है… वैसे इतना नजदीक रहकर किसी से बात नहीं कीजिएगा, वरना सबको पता चल जाएगा आप स्मोक करती है.… बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या करती है, बस यहां के चुग्लिखोर गैंग को बात करने के लिए एक टॉपिक मिल जाएगा. अब आपको ऐतराज ना हो तो मै मिल लूं नकुल से..


लड़की:- मै संगीता हूं, नकुल की ममेरी बहन. जब तुमने नाम बताया तभी मै समझ गई तुम कौन हो. बस सोची थोड़ा खिंचाई ही करके देख ले.


मै:- नमस्ते संगीता दी, लड़का पसंद आ गया..


संगीता:- प्लीज मुझे दीदी मत बुलाओ, और तुम्हे कैसे पता की मै यहां लड़का देखने आयी हूं…


मै:- गांव है ये, यहां खबर इंटरनेट से जल्दी वियराल हो जाती है… वैसे आप बाहर क्या कर रही है..


संगीता मुझे आंख मारती… "कोना ढूंढने आयी थी, सिगरेट कहां सुलगाना सुरक्षित होगा, वैसे पीछे बगीचा मस्त जगह है, लेकिन उधर ही एक औरत मेरी सास बनने कि इक्छा से, मेरे मम्मी पापा को कन्विंस करने की कोशिश कर रही है.. वो सबसे आखरी वाला घर उन्हीं का है…


मै:- ओह माखन काका, हमारे परिवार के लोग लच्छेदार बातें ज्यादा करते है संगीता जी, दिल से कोशिश करेंगे तो राजी कर ही लेंगे, लेकिन उन्हें क्या पता वो गलत जगह कोशिश कर रहे है..


संगीता:- हीहीहीहीही… मेरे स्मोक के आदत से पकड़ी ना की, मै गांव में शादी नहीं करना चाहती..


मै:- हां उसी से पकड़ी, मुझे नहीं लगता कि किसी को आप हां भी कहने वाली है..


संगीता:- नहीं, एक लड़के की प्रोफाइल जच गई है. दिन बाद वो आ रहे है देखने, लड़का देखने और सुनने में काफी शानदार है, बिल्कुल जोड़ी मेड फॉर ईच अदर वाली. यहां मेरे फूफा (नीलेश के पापा) को वो लड़का भी बहुत पसंद है, इनफैक्ट इस लड़के (नीलेश) से ज्यादा वो पसंद है और लड़का भी बैंगलोर में जॉब करता है तो इनकार करने की कोई वजह नहीं बनती…


मै:- बेस्ट ऑफ लक फिर तो.. अब तो मुझे अंदर जाने दीजिए..


संगीता:- ओह हां.. जाओ नकुल उन्हीं के बीच बैठा है..


"काफी हसमुख स्वभाव की है... लेकिन यें भी है यदि यहां माखन चाचा के घर की बहू बनती, फिर तो इनके पास देवरों की कमी नहीं रहती.. मै जब ये सोच रही थी कि खुद में हंसी आ गई.. जब मै वहां पहुंची लोग बात चीत में लगे हुए थे..
:superb: :good: amazing update hai nain bhai,
behad hi shandaar aur lajawab update hai bhai
 

aman rathore

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चौथी घटना:- भाग 3







मै टेलीस्कोप से वहां देखने लगी… अंदर से 4 मर्द मुंह बांधे निकल रहे थे, और उनके पीछे 2 लड़की मुंह बांधे थी. सभी लोग स्कॉर्पियो में बैठे और वहां से निकल गए. मुझे शक हुआ कि 4 लड़को में मै 2 को जानती हूं, क्योंकि पहनावा और चाल ढाल अपनी कहानी बयां कर रही थी, लेकिन हर किसी की अपनी निजी जिंदगी है और मुझे क्या लेना देना वहां से…


सभी एक छोटे से कच्चे घर से निकल रहे थे… गाड़ी के जाते ही वहां पास में बैठा 4 लड़का, जो उस कच्चे मकान के आसपास फैले थे, वो भी उठकर वहां से चले गए.…


मै टेलीस्कोप से हट गयी और उनसे कहने लगी… "कोई अपने परिवार के साथ कहीं जा रहा था, इसमें मुझे क्यों दिखा रही थी"…


लता:- इसे तो कुछ भी पता नहीं, छोड़ जाने दे..




इधर एक घंटे पहले…


पीछे सुनसान पड़े उस झोपड़ी में पहले 2 लड़कियां और 2 लड़के पहुंचे. जैसे ही वो दोनो पहुंचे आस पास निगरानी देने के लिए 4 लड़के खड़े हो गए… जैसे ही वो चारो अंदर पहुंचे… दोनो लड़के दोनो लड़कियों को गले लगाकर चूमने लगे…


"आह ! नीलेश, मै नकुल की दोस्त हूं"… नीलेश उसका गला को चूमते… "उसमे दोस्ती जैसा क्या है नीतू, मै तुम्हे खुश रखूंगा, रानी बनाकर रखूंगा"..


"नहीं मै केवल नीतू के साथ आयी थी, उसने कहा बस किसी से मिलना है, प्लीज मेरे साथ ऐसा मत करो, प्लीज.. किसी को पता चल गया तो मै बदनाम हो जाऊंगी".. नीतू के साथ आयी दूसरी लड़की पूनम ने कहा…


नीलेश के साथ पहुंचा उसका सबसे करीबी दोस्त और ठीक उसके पास के मकान में रहने वाला उसका भाई नंदू, पूनम की हल्की उभरी चूची को हल्के-हल्के दबाते हुए… "किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.. आज से तू मेरी रानी है और नीतू नीलेश की, दोनो को किसी बात की कमी ना हो इसलिए 1-1 लाख कल ही तो तुम्हारे खाते मै जमा करवा दिए है, नीतू ने तो तुम्हे बताया ही होगा. मुझसे डर क्यों रही हो."


पूनम:- आप मुझसे बहुत बड़े है, मै अभी बहुत छोटी हूं, प्लीज ऐसा मत करो.. मुझे पैसे की क्या जरूरत.. मैं उसे वापस कर दूंगी..


इधर नीतू नीलेश के चंगुल से छूटती… "मै जा रही हूं निलेश, नकुल को पता चलेगा तो ना जाने क्या हो जाएगा"..


नीलेश:- ठीक है मै तुम्हे फोर्स नहीं करूंगा, बस 2 मिनट मेरी बात सुन लो, आओ..


नीलेश उसे अपने साथ कच्चे मकाम के एक छोटे से कमरे में ले गया, जहां लकड़ी की एक चौकी रखी हुई थी और उसपर बिस्तर बिछा हुआ था… इधर नीलेश का भाई नंदू भी ठीक वैसे ही बहला फुसलाकर पूनम को भी दूसरे कमरे में ले आया…


नीलेश जैसे ही कमरे में पहुंचा, नीतू के गले को चूमते हुए…. "तुम्हे इतना सोचने कि जरूरत नहीं है नीतू, वैसे भी वो तुमसे शादी थोड़े ना करता"..


"आह, नहीं प्लीज मुझे जाने दो. मै ऐसी लड़की नहीं हूं. नकुल मुझे अच्छा लगता है क्योंकि आज तक कभी उसने मुझे छूने की कोशिश नहीं की. उसके साथ.. आह नहीं, प्लीज हाथ मत लगाओ मुझे"..


नीलेश उसके गले को चूमते हुए धीरे-धीरे उसके चूची को सहलाने लगा. नीतू विरोध तो कर रही थी, लेकिन इस विरोधाभास के बावजूद भी नीलेश लगातार उसके चूची को प्यार से मसल रहा था और उसके गले को चूम रहा था.


नीतू के श्वांस धीरे-धीरे चढ़ने लगी और वो खामोशी से बैठकर तेज-तेज श्वंस ले रही थी.... नीलेश अपने अनुभव का परिचय देते हुए, उसके सीने से उसका दुपट्टा हटाकर उसके सीने के खुले भाग को चूमते हुए, धीरे-धीरे अपने जीभ चलाने लगा..


नीतू गहरी अंगड़ाई लेती, बिस्तर को अपनी मुट्ठी में भींच कर दोनो हाथ से चादर को दबोच ली… नीलेश धीरे-धीरे उसके खुले सीने को चूमते और चाटते हुए, अपना एक हाथ उसके चूची पर रखकर गोल-गोल घुमाते हुए मसलने लगा. उसका दूसरा हाथ धीरे से नीचे जाते हुए, उसके दोनो पाऊं के बीच में जबरदस्ती घुसने की कोशिश करने लगा… "नहीं प्लीज नीलेश, वहां मत टच करो.. मै अभी तक कुंवारी हो"..


नीलेश पूरी जीभ से, उसके गर्दन से लेकर नीचे सीने के क्लीवेज लाइन तक चाटते हुए…. "बस जो हो रहा है होने दो, मज़ा लो तुम भी"… उसकी बात सुनकर नीतू ख़ामोश हो गई, लेकिन अपने दोनो जांघे दबोची रही… नीलेश दोनो पाऊं के बीच जबरदस्ती अपने हाथ डालकर उसकी चूत को ऊपर से ही रगड़ने लगा…


नीतू के पाऊं जैसे कांप गए हो. उसकी निप्पल अकड़ गई थी और दोनो जांघ की मजबूत जकड़ ढीली पड़ने लगी. हां और ना के विरोधाभास में फसी नीतू के पाऊं कांपने लगे थे और बदन जलने लगा था… उसे मानो मेहसूस हो रहा था कि अंदर भूचाल मचा है.


नीलेश ने कब उसका कुर्ता ऊपर करके, उसके ब्रा को उसके चूची पर से समेट कर ऊपर गले तक ले गया, उसे पता भी नहीं चला. अचानक ही नीतू को होश आया और अपने हाथो से वो अपने उम्र से थोड़ा ज्यादा विकसित चूची को अपने हाथ से ढकने कि कोशिश करने लगी… बिल्कुल मस्त और सीने से गोल लगे चूची को देखकर नीलेश के आखों में चमक आ गई..


वो पीछे मुड़कर दरवाजे पर एक बार देखा, शायद वक़्त दिन का था और ज्यादा देर यहां किसी लड़की के साथ रहना खतरनाक साबित हो सकता था, इसलिए वो देर ना करते तुरंत ही थोड़ा जोर लगाकर उसके हाथ को चूची से हटाकर उसे लिटा दिया और बड़ी-बारी से उसके छोटे-छोटे निप्पल को मुंह में लेकर चूसने लगा..


नीतू तेज-तेज आह्हहहहहहहहहहहहहहह भरती अपने दातों तले होंठ को दबा रही थी और सर दाएं बाएं करती, अपने हाथ को बिस्तर पर पटक रही थी.. उसके चूत की लहर पूरे पाऊं में दौड़ने लगी और हिलते पाऊं से तेज-तेज पायल की आवाज आ रही थी.. नीलेश उसे चूची को चूसते हुए नीचे आने हाथ ले गया और उसके सलवार के नाड़े को खोलने लगा. नीतू उसका हाथ बीच में ही पकड़ ली लेकिन दोनो को ही पता था ये मात्र एक झीझक है..


जल्द ही निलेश ने उसके सलवार का नारा खोल दिया और पैंटी सहित उसका सलवार को खींचकर घुटने में ले आया. नीतू के हाथ स्वताः ही उसके चूत के ऊपर चले गए और दोनो पाऊं के बीच में वो पूरे जोड़ से अपने खजाने को छिपाने कि कोशिश कर रही थी....


लेकिन ताला कैसा भी हो, चोर किसी ना किसी विधि से तिजोरी खोलकर खजाना लूट ही लेता है. नीलेश ने एक बार फिर ऊपर के ओर रुख किया और उसकी चूची को अपने मुंह में लेकर, उसे पूरा भिगोते हुए जोर-जोर से चूसने लगा, दूसरो चूची को मुट्ठी में भरकर उसे मसलते हुए, धीरे-धीरे अंगूठे से उसके निप्पल को घूमाने लगा..


मस्ती की लहर में नीतू ने एक बार फिर अपनी आंखें मूंद ली.. नीलेश का एक हाथ धीरे-धीरे नीचे उसके चूत कि ओर जाने लगा.. विरोध वो जताकर भी कुछ नहीं कर पा रही थी और जैसे ही उसके छोटी सी चूत के फांक पर नीलेश की उंगली परी, नीतू पूरी गनगना गई. नीचे से उसके चूतड़ जैसे हल्का-हलका हिलना शुरू हो गए थे..


नीलेश लगातार उसके छोटी सी चूत के फांक को अपने कठोर उंगली से रगड़ते हुए उसके श्वांस को बेकाबू कर रहा था… नीतू के मुंह से बस .. "आह्हहहहहहहहहहहहहहहहहहह, उफ्फफफफफफफफफफफफफ" की दबी सी आवाज निकल रही थी और उसके दोनो हाथ नीलेश की कलाई को पकड़े मानो मिन्नतें कर रही हो...… छोड़ दो मेरी चूत रगड़ना, मेरे अंदर क्या हो रहा है मुझे पता नहीं.. ये बेचैनी कहीं जान ना ले ले"..


नीलेश को समझ में आ गया लौंडिया तैयार है तभी उसने दरवाजे के ओर इशारा किया और इधर वो चूत के अंदर अपनी एक उंगली डालकर हौले-हौले इतने प्यार से ऊपर नीचे करने लगा कि वासना में नीतू की आखें लाल हो गई. नीलेश चूत पर उंगली करते हुये उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए..


नीतू अपना सिना ऊपर उठती अपनी चूची को हवा में पुरा तान दी और दोनो हाथ उसके सर पर डालकर उसके होंठ को पागलों की तरह काटने लगी.. तभी नीतू को आभाश हुआ कि उस जगह पर उन दोनों के अलावा भी कोई और मौजूद है..


लेकिन उसके होंठ को नीलेश ने अपने मुंह में जकड़ रखा था और इतने में ही उसके दोनो पाऊं हवा में थे. सलवार और पैंटी घुटनों में ही था और बीच से उसके गीली चूत पर कोई अपना लंड घीसने लगा.. नीतू हवा में ही अपने पाऊं जोड़-जोड़ से हिलाने लगी. नीतू अपने हाथ को झटककर छुटने की कोशिश करने लगी, लेकिन तबतक घिसता हुए लंड, गप से उसकी गीली सी छोटी चूत में आधा घुस गया. चूत इतनी छोटी थी कि दीवार से उसके घुसते लंड को वो मेहसूस कर सकती थी.


नीतू पूरी तरह से तिलमिला गई. किसी तरह छूटना चाहती थी, लेकिन नीलेश उसके होंठ दबा कर उसके सर को नीचे किए हुए था और दोनो हाथ को जकड़े थे… "आववववववव.. नहींईईईईईईई" जैसे आवाज़ घूट कर अंदर ही रह गई, तभी एक और जोड़ का झटका लगा और उसके छोटी सी चूत में पुरा लंड घुस गया.


नीतू छटपटा कर अपने सर दाएं बाएं करने की कोशिश करने लगी. वो दर्द से छटपटाती हुई किसी तरह छुटने की कोशिश कर रही थी, लेकिन शिकार को दबोचा जा रहा था, और वो कुछ कर नहीं सकती थी… नीतू के सलवार का नाड़ा लटककर उसके चूतड़ पर लहरा रहा था. दोनो पाऊं के बीच उसकी चूत के फांक झांक रही थी. और कोई उसके चूत के अंदर दबा के पुरा लंड पेलकर, अब जोर-जोर से झटके मारना शुरू कर चुका था.


नीतू लगातार कसमसा रही थी, लेकिन जिस तरह से नीलेश ने उसके वासना की आग भड़काई थी, उसकी छोटी सी चूत के द्वार खुलने के लिए बेकरार हो गए थे… कुछ ही देर के मर्दाना झटको में नीतू को मज़ा मिलना शुरू हो चुका था. नीतू का विरोध में कसमसाने बिल्कुल मादक एहसास में बदल गया. उसकि कमर नीचे से अपने आप ही हिलने लगी.


जैसे ही उसके कमर हिलने लगे, लंड अंदर घुसाया लड़का गिरीश, नीलेश का शर्ट खींचकर उसके ऊपर से हटने कहा… जैसे ही नीलेश ने नीतू को छोड़ा वो तेज-तेज श्वांस लेती अपनी छाती ऊपर नीचे करने लगी. धक्के के साथ थिरकते उसके गोल चूची देखकर नीलेश अपना लंड निकलकर हिलाने लगा…


नीतू, मादक सिसकारी की आवाज धीमे-धीमे अपने होंठ से निकाल रही थी, लेकिन अपनी आखें बिल्कुल मूंदे थी और देखना नहीं चाहती थी कि कौन उसे भोग रहा. वो तो बस कमर हिलाकर चूत में घुसते लंड का पूरा मज़ा अपनी दबी सी आवाज में ले रही थी…


अब तो उस लड़के गिरीश के भी झटके तेज होते जा रहे थे.. हाचक कर वो ऐसे चोद रहा था मानो वर्षों बाद उसके अरमान पूरे हो रहे हो. चूत कि कसावट को गिरीश भी मेहसूस करके, चूत को पूरी रफ्तार से रौंद रहा था… नीतू और गिरीश दोनो पसीने पसीने हुए जा रहे थे… तभी जोड़ की आवाज करती नीतू ने बिस्तर को अपनी मुट्ठी में दबोच ली, इधर गिरीश भी उसके टांग पर अपनी पकड़ पुरा मजबूत बनाते हुए और जोर-जोर से झटके मारते हुए पुरा लंड चूत के अंदर घुसेड़ कर अटका दिया.


गिरीश का कमर ठुमुक-ठुमुक करते जोड़-जोड़ से हिलने लगा. और वो अपना कमर हिला-हिला कर, पुरा वीर्य नीतू की चूत में गिराकर, अपना लटका हुआ लंड बाहर निकाल लिया.. इधर नीलेश भी अपने लंड को मुठिया रहा था और वो भी चरम पर था. जोड़ की पिचकारी उसने भी छोड़ दी. उसका गरम वीर्य कुछ नीचे तो कुछ बूंद नीतू के चूची पर गिर गया.


नीतू थकी सी हालत में बैठकर अपने चूत को चादर से साफ करके, अपने बदन को साफ की. तेजी के साथ अपने कपड़े को ठीक करती कभी वो नीलेश को तो कभी उसके साथ खड़े लड़के गिरीश को देख रही थी.


गिरीश आगे बढ़कर उसके छोटे से चेहरे के होंठ को चूमते हुए… अपने हैंड बैग से नोट की एक पूरी गड्डी, उसके बैग में डाल दिया. लगभग 1 लाख रुपए थे… "सुन इतने में सहर में कमाल की रण्डी मिल जाती, वो भी 5 रातों के लिए. चुपचाप रख ले, ये तेरी चूत खोलने को कीमत है. जबतक तेरे चूत फ़ैल नहीं जाता तब तक तुम्हे अच्छी कीमत देता रहूंगा.. बस चुपचाप ऐसे ही मज़ा लिया कर और मज़ा दिया कर"…


नीतू खामोशी से उसकी बात सुनकर हा में अपना सर हिला दी और धीमे आवाज़ में कहने लगी… "सब अंदर डाल दिए, मै प्रेगनेंट हो गई तो"..


नीलेश:- अभी जब तुझे वापस बाजार छोड़ने जाएंगे तो गोली दिला दूंगा. अब चिंता मत कर और बस मज़े ले जवानी के. वैसे भी वो नकुल तेरे फ्री में ही मज़े लेता ना… चूत खुलने के 2 लाख मिल रहे अब क्या चाहिए. आगे भी अच्छी कीमत मिलती रहेगी… तेरी उम्र ही ऐसी है कि कोई भी पागल हो जाए…


नीतू उसकी बात सुनकर कुछ नहीं बोली और अपने दोस्त के बारे में पूछने लगी… उसकी दोस्त पूनम, जो लगभग उसी वक़्त दूसरे कमरे में गई थी. वो जैसे ही अंदर गई भागकर कोने में जाकर दुबक गई. बिल्कुल छोटी सी लड़की, गोल मुंह, और प्यार सी सूरत वाली सुंदर लड़की. जिसके बदन पर उभार आने शुरू ही हुए थे, अपने से 7-8 साल बड़े लड़के नंदू की मनसा को जानकर वो रोती हुई बस मिन्नते करती दुबक गई..


फिर उस कमरे में जो चाकू के जोड़ पर आत्मसमर्पण करवाया गया, उसके पहले तो धमकी मिली की कपड़े उतार ले खुद से, वरना कपड़े फट जाएंगे और तुम्हे यहीं छोड़कर चले जाएंगे…


दुबली-पतली एक डरी-सहमी सी लड़की, जिसके अंग अभी ठीक पूर्ण विकसित होना भी शुरू नहीं हुए थे. फिर बहते आशुं के बीच जो कहानी लिखी गई, उसका जिक्र करना शायद सोभनिय नहीं होगा. पूनम बिल्कुल गुमसुम, पहले से बाहर आकर कोने में चुपचाप बैठी हुई थी.. उसे कमरे तक में लेकर तो नंदू गया था, लेकिन छटपटाती चिड़िया के मज़े लूटे एक 52 वर्षीय अधिकारी ने, जो डिस्ट्रिक्ट डेप्युटी कलेक्टर था और जिसके हाथ में विकास भवन के टेंडर की इतनी फाइल्स थी कि जिन्हे नंदू और नीलेश अब एक-एक करके अपने नाम करवाता.


डीडीसी (डिस्ट्रिक्ट डेप्युटी कलेक्टर) इतना बौराया था कि वो तो पूनम को एक हफ्ते अपने पास रखने के 10 लाख तक दे रहा था, लेकिन नीलेश ने माना कर दिया. मना तो कर लिया लेकिन साथ में ये जरूर आश्वासन दिया कि 10 बार की ये आप की ही अमानत है. नीलेश ने पूनम के बैग में भी एक लाख की गद्दी डाल दी और दोनो से कहने लगा..


"पहले सुभ आरम्भ के 2 लाख कम नहीं होते. आगे और भी मिलेंगे इसलिए दोनो चुपचाप मज़े लो. किसी ने अपनी जुबान खोली ना कूतिया, तो वो रात को सोएगी जरूर, लेकिन सुबह गांव के चौपाल पर नगी मिलेगी"…


नीतू और पूनम दोनो ही खामोशी से सब सुन रही . नीतू ने पहले पूनम का हुलिया ठीक किया, फिर बाद में खुद के बाल और चेहरा ठीक किए. सभी अपने चेहरे पर पर्दा डाले बाहर निकल अाए और बाहर आकर स्कॉर्पियो में बैठकर छोटे से बाजार के ओर निकल गए, जहां जाने के लिए नीतू अपने दोस्त के साथ घर से निकली थी.. जाना था जापान पहुंच गई चीन, इसलिए अब नीतू और उसकी सहेली को वापस जापान छोड़ा जा रहा था…


उस छोटे से बाजार के थोड़ा सा आगे जाकर सुनसान सड़क पर स्कॉर्पियो को रोक दिया गया, जिसमें से पहले नीतू और पूनम बड़ी तेजी में निकली और वहीं से कच्चा रास्ता पकड़कर घूमकर बाजार चली आयी. उसके कुछ दूर आगे जाकर नंदू, गिरीश और नीलेश उतर गये. वो सभी सड़क के किनारे लगी अपनी एक गाड़ी में बैठकर वापस गांव आ गये.




लता के घर में…


मैंने जब देखा तब वो लोग जा रहे थे. मास्क सबके चेहरे पर लगा था लेकिन 2 की चाल ढाल मुझे पूरे तरह से पता थी. दोनो नीलेश और नंदू है, ऐसी मुझे शंका हुई लेकिन मुझे की करना था. मैंने भी लता को बता दिया कि कोई अपने परिवार के साथ जा रहा है, इसमें मुझे क्या करना है..


इसपर मधु मुझे लता से ही कहने लगी… "इसे लगता है कुछ भी पता नहीं. एक लड़का तो गिरीश है, हमारे ही गांव का, वो तो हम जानते है. ये बाकी के कौन लोग है"… गिरीश, ये नाम भी चौंकाने वाला था मेरे लिए, क्योंकि गिरीश हमारे ही थर्ड जेनरेशन से था और लता के गांव के मुखिया प्रवीण मिश्रा का छोटा बेटा. हमारे परिवार से इनके परिवार का बहुत ज्यादा कोई मेल मिलाप नहीं था, बस जानते थे..


वहां अब गिरीश हो या फिर बबलू भईया या गांव का कोई भी, ये उनका निजी मामला था. मै आराम से उस कमरे से बाहर निकल गई. तभी जिज्ञासावश लता मुझसे पूछने लगी कि क्या ये ब्लूटूथ डिवाइस उस कच्चे मकान तक का रेंज दे सकती है…


मैंने फिर उन्हें प्रोडक्ट मैनुअल दिखाते हुए कहा कि ये इन बिलट बैटरी के साथ 6 घंटा का बैकअप देती है और इसका रंज 20 मीटर है… वो भी बिना बाधा के. फिर उन्होंने पूछा ये बाधा क्या होती है. मैंने उन्हें फिर समझाया जैसे सीसे की दीवार यार फिर आम दीवार भी इसके रेंज को प्रभावित करती है, बाकी जब इस्तमाल करोगी तो समझ जाओगी…


मुझे आए लगभग आधे घंटे हो गए थे.. और ज्यादा रुकना मुझे उचित नहीं लगा क्योंकि नकुल को दरवाजे के बाहर छोड़ आयी थी, जो की मुझे अंदर से अच्छा मेहसूस नहीं करवा रहा था. मैंने फिर नकुल को कॉल लगाकर मंदिर आने कह दिया और खुद लता के साथ वहां से निकल गई..


मेरे पहुंचने से पहले ही नकुल वहां इंतजार जर रहा था… मैंने लता से विदा ली और नकुल के साथ वापस घर निकल गई…
:superb: :good: :perfect: awesome update hai nain bhai,
behad hi shandaar, lajawab aur amazing update hai bhai,
ye nitu aur poonam ke saath kya ho gaya :o ,
bechari ko jana tha japan lekin pahunch gayi chin,
Ab dekhte hain ki aage kya hota hai,
Waiting for next update
 
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Ji aapke aaklan ko bhi maine note kar liya hai... Bahut se logon ki pratikriya ko bhi... Chhoti si baat se apni baat rakhna chahunga...

11th me padhne wali ek ladki... Maturity level.. presence of mind aur uski chal rahi purn manodasha mai dikha raha hun ...

Bus use apni bhabhi se wo baat pata chali jo uske dil ka bojh utar gayi... Main kewal abhi menka ko janta hun... Isliye I am very sorry ... Kyonki yahan menka ko jitna pata hoga aur menka us baat ko jis hisab se react karegi aapko bus usi ka pata chalega...

11th ki ladki ko mai itna bhi mature nahi dikha sakta ki wo rupa bhabhi jaise strong charecter ki baat par soch me par jaye... Ek baat to jo tay hai... Menka rupa ko apni maa se badhkar manti hai..

Ummid hai mere najariye ke sath kahani dekhne ka ab alag hi maza hoga.. kisi ke man ki shanka ko dur karne ke liye main menka ko purn mature charecter nahi bana sakta ...

Is vishay me aap ki rai lena chahunga aap kitna sahmat hai .. aur kya mai kahani ko sahi soch ke sath likh raha hun
मैं समझ रहा हूं भाई । ये कहानी है मेनका की । मेनका के मेमोरेबल सौ घटनाओं की । ये सब कुछ मेनका के प्वाइंट आफ भिव से लिखा जा रहा है ।
लेकिन स्टोरी के नजरिए से... अगर कोई किरदार गलत काम करेगा तो उसे हम गलत ही कहेंगे न । और यदि कोई बढ़िया काम करेगा तो उसे हम सराहेंगे । जैसे कि नकुल का किरदार अभी तक सराहने लायक ही था और भाभी जी को सभी लोग बुरा ही कहेंगे ।

कहानी बहुत ही सुन्दर है । एक अलग तरह की स्टोरी है ये । एक देहाती लड़की जो ज्वाइंट फैमिली में रहती है.... जिसके पांच घरों का परिवार है.... ऐसे पृष्ठभूमि की लड़की किस तरह अपनी जिंदगी को जी रही है... उसके जीवन में कौन कौन सी मेमोरेबल घटनाएं घट रही है.... उसके जीवन में कौन कौन आ रहा है और किस किस के साथ कैसा सम्बन्ध बन रहा है.....इसे अब तक आपने बहुत ही सुन्दर तरीके से दिखाया है ।

आप ने जैसा इस कहानी के बारे में सोच रखा है वो आप अपनी कहानी के माध्यम से बिल्कुल सही पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है ।
हमारा कमेन्टस जो भी होगा वो कहानी के किरदारों पर होगा । और वो तो हमारा हक बनता है । :D
 

DARK WOLFKING

Supreme
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चौथी घटना:- भाग 1





आह जिंदगी भी क्या खुशनुमा होती है जब आप कुछ बोझ से खुद को निश्चिंत पाते हो. खैर जिंदगी में एक ही वक़्त में केवल एक काम होते रहे, ये तो संभव नहीं और खासकर भारत के पढ़ने वाले छात्र छात्राओं में. पढ़ाई कर रहे है तो आप केवल पढ़ाई नहीं करते, साथ में अन्य कामों को भी करना पड़ता है. कुछ काम जो आपकी जिम्मेदारी होती है, उनसे मुंह नहीं मोड़ सकते और कुछ जो अनचाहे काम आ जाते है, जिसमें आप ना चाहते हुए भी शामिल हो जाते है…


बहरहाल एक लंबे समय से चले आ रहे बोझ जैसे अब उतर सा गया था. भाभी के साथ संबंध पहले कि तरह ही मजबूत और बेहतर भी था, और अब तो हम दोनों ने मिलकर योजना भी बनानी शुरू कर दी थी कि बड़े भैया महेश और बड़ी भाभी सोभा को यहां पास में ही बसाना है…


वो क्या है ना हमारे मिश्रा टोला का ये खानदानी कल्चर, मुझे आज तक कभी समझ में नहीं आया.. मेरे पड़ोस में तो खैर नकुल के पापा रघुवीर थे जो 5th जेनरेशन में थे और नकुल को मिलाकर ये उनका तीसरा जेनरेशन था, जिसमे माता पिता को केवल इकलौती संतान थी. वैसे देखा जाए तो नकुल के पूर्वज अपने ननिहाल में बसे थे.


कहने का अर्थ ये है कि जब नकुल के दादा के दादा का जमाना था तब उन्हें एक बेटा और एक बेटी हुई थी. उन्होंने अपनी बेटी को अपने पास बसा लिया और बेटा अलग होकर दूसरे गांव में बसा था. और तभी जो बेटी हमारे पड़ोस में बसी थी, उसके तीसरे जेनरेशन में नकुल है…


हमारे यहां तो बहुत प्रचलित कहावत भी है, बेटी पास में बसी हो तो वो फरिक ही कहलाती है. नकुल का तो पुरा समेटा हुआ परिवार था. जिसमे नकुल भी अकेला संतान था. हालांकि देखा जाए तो नकुल के पास सबसे ज्यादा संपत्ति होनी चाहिए थी, लेकिन नकुल के दादा ने लगभग पूरी संपत्ति को ऐसे बर्बाद करके चले गए, की उनका कर्ज समेटते समेटते नकुल के पापा रघुवीर भईया की कमर ही टूट गई. एक जेनरेशन पहले जो राजा थे अब उनके पास मात्र 8 एकड़ की खेत रह गई थी, पर किसी भी वक़्त रघुवीर भईया ने हौसला नहीं हारा.


तो केवल नकुल के परिवार को छोड़ दिया जाए, तो मेरे ही परिवार को देख लीजिए. मेरे पापा और बड़े पापा में जब बंटवारा हुआ तो मेरे बड़े पापा मंदिर के पास वाले गांव में शिफ्ट कर गए. मेरे बड़े भईया, यानी महेश भईया नहर के पास शिफ्ट कर गए.


नकुल के घर के बाजू में वो बबलू भईया का घर, जो हमारे थर्ड जेनरेशन से थे उनके पापा यहां पर बसे थे, तो उनका एक भाई नहर के पास मकान बनाए है, तो दूसरा मंदिर के पास वाले गांव में, जहां हमारे अन्य फरिक बसते है. देखा जाए तो 2 सगे भाई आस पास में कभी नहीं बसे…


कारन वही था कि 2 सगे भाई एक हो भी जाए, लेकिन उनकी पत्नी के बीच गृह क्लेश ऐसा होता है कि लोग गृह क्लेश में बर्बाद हो जाए. बस अब मुझे इस मिथ को तोड़ना था. खैर ये एक धीमा प्रोसेस था, जिसे वक़्त के साथ सुलझाया जाना था, जिसपर मैंने और छोटी भाभी ने मिलकर काम शुरू कर दिया था..


ये तो थी मेरी पढ़ाई के अलावा खुद के हाथ में लीया गया एक काम जिम्मा, जिसमे अब मेरी इक्छा थी कि मेरी बड़ी भाभी यहीं पड़ोस में बसे. पढ़ाई की बात करे तो मेरे लिए कॉलेज की छुट्टियां ना जाने कब से चल रही थी. गोली कांड के बाद, भाभी के गांव वापस लौटने पर मेरा कॉलेज जाना पुरा अनियमित हो गया था. ऊपर से जब भाभी डेढ़ महीने नहीं थी, तब उस बीच भी कॉलेज जाने का एक भी दिन मौका नहीं मिला, बस किसी तरह परीक्षा देने चली गई थी..


वैसे मुझे कॉलेज जाने में अब कोई दिलचस्पी रह भी नहीं गई थी, क्योंकि ऑनलाइन ट्यूशन और सीए एंट्रेंस एग्जाम के मटेरियल में ही मै इतना उलझी रहती, की कॉलेज जाना अब समय की बरबादी लगने लगा था.. ऊपर से मेरे पास इतना खाली वक़्त था कि मै 11th का पूरा कोर्स आधे साल में ही समाप्त कर चुकी थी. कॉलेज में जो भी पढ़ाया जाना था वो मेरा पहले से पढ़ा हुए था.


लेकिन जो लोग नियमित रूप से कॉलेज जाते थे, निश्चित तौर पर उनके छुट्टियों का दौर चल रहा था. इसी बीच एक सुबह लता का कॉल मेरे पास आया और बीते दिनों में कॉलेज ना आने की वजह पूछने लगी. मैं बहुत ज्यादा बताने मै रुचि नहीं रखती की मै क्या कर रही हूं, इसलिए कारन मां का घर में अकेला रहना ही बताया.


थोड़ी देर बातो के दौरान उसके कॉल करने का कारन मुझे पता चल गया. लड़की का आज जन्मदिन था और कुछ समय के लिए वो अपना वक़्त दोस्तो के साथ बिताना चाहती थी, इसलिए अपने गांव की कुछ सखियों के साथ मुझे भी उसने निमंत्रण दिया…


मै अब क्या कह देती, 5 मिनट बाद वापस कॉल करती हूं, ऐसा कहकर मै मां के पास आ गई. उनको मैंने सारी बातें बताई. मां ने तो साफ कह दिया तुम्हारी बस परिचित है, कोई खास दोस्त है नहीं, इसलिए नकुल के साथ जाओ, 10 मिनट बाद वापस चली आना. कहना तो मां का भी सही था, थी तो परिचित ही. ना उसका दिल टूटे और ना ही मेरा ज्यादा समय बर्बाद हो.


मै तैयार होकर नकुल के घर पहुंची, और सामने दरवाजे पर ही खड़ी एक अनजान लड़की मुझे रोकती.. "कौन हो तुम, और किससे मिलना है"..


मै उसे ऊपर से लेकर नीचे तक देखी. दिखने में तो किसी हेरोइन से कम ना लग रही थी, ऊपर से चाल ढाल और टॉप-लोअर बता रहा था कि ये गांव की तो नहीं थी. मैंने ऊपर से नीचे तक उसे एक बार देखी… "जी मै मेनका हूं".. इतना ही कही उससे, अभी आगे का परिचय भी नहीं दी थी.. "ओह मेनका, वो विश्वामित्र की तपस्या भंग करने वाली मेनका"..


मै:- जी मै उनका अवतार नहीं हूं, मै तो बस नकुल के पास जा रही थी…


लड़की:- नकुल से तुम्हारा क्या काम...


मै:- मुझे ऐसा क्यों लगा रहा है कि आप सब जानकर भी मेरी खिंचाई कर रही है… वैसे इतना नजदीक रहकर किसी से बात नहीं कीजिएगा, वरना सबको पता चल जाएगा आप स्मोक करती है.… बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या करती है, बस यहां के चुग्लिखोर गैंग को बात करने के लिए एक टॉपिक मिल जाएगा. अब आपको ऐतराज ना हो तो मै मिल लूं नकुल से..


लड़की:- मै संगीता हूं, नकुल की ममेरी बहन. जब तुमने नाम बताया तभी मै समझ गई तुम कौन हो. बस सोची थोड़ा खिंचाई ही करके देख ले.


मै:- नमस्ते संगीता दी, लड़का पसंद आ गया..


संगीता:- प्लीज मुझे दीदी मत बुलाओ, और तुम्हे कैसे पता की मै यहां लड़का देखने आयी हूं…


मै:- गांव है ये, यहां खबर इंटरनेट से जल्दी वियराल हो जाती है… वैसे आप बाहर क्या कर रही है..


संगीता मुझे आंख मारती… "कोना ढूंढने आयी थी, सिगरेट कहां सुलगाना सुरक्षित होगा, वैसे पीछे बगीचा मस्त जगह है, लेकिन उधर ही एक औरत मेरी सास बनने कि इक्छा से, मेरे मम्मी पापा को कन्विंस करने की कोशिश कर रही है.. वो सबसे आखरी वाला घर उन्हीं का है…


मै:- ओह माखन काका, हमारे परिवार के लोग लच्छेदार बातें ज्यादा करते है संगीता जी, दिल से कोशिश करेंगे तो राजी कर ही लेंगे, लेकिन उन्हें क्या पता वो गलत जगह कोशिश कर रहे है..


संगीता:- हीहीहीहीही… मेरे स्मोक के आदत से पकड़ी ना की, मै गांव में शादी नहीं करना चाहती..


मै:- हां उसी से पकड़ी, मुझे नहीं लगता कि किसी को आप हां भी कहने वाली है..


संगीता:- नहीं, एक लड़के की प्रोफाइल जच गई है. दिन बाद वो आ रहे है देखने, लड़का देखने और सुनने में काफी शानदार है, बिल्कुल जोड़ी मेड फॉर ईच अदर वाली. यहां मेरे फूफा (नीलेश के पापा) को वो लड़का भी बहुत पसंद है, इनफैक्ट इस लड़के (नीलेश) से ज्यादा वो पसंद है और लड़का भी बैंगलोर में जॉब करता है तो इनकार करने की कोई वजह नहीं बनती…


मै:- बेस्ट ऑफ लक फिर तो.. अब तो मुझे अंदर जाने दीजिए..


संगीता:- ओह हां.. जाओ नकुल उन्हीं के बीच बैठा है..


"काफी हसमुख स्वभाव की है... लेकिन यें भी है यदि यहां माखन चाचा के घर की बहू बनती, फिर तो इनके पास देवरों की कमी नहीं रहती.. मै जब ये सोच रही थी कि खुद में हंसी आ गई.. जब मै वहां पहुंची लोग बात चीत में लगे हुए थे..
nice update ..
 
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