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Thriller 100 - Encounter !!!! Journey Of An Innocent Girl (Completed)

nain11ster

Prime
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चौथी घटना:- आखरी भाग






मै और नकुल लौट रहे थे. लता की कुछ बातें मेरे दिमाग में थी, बाकी दिमाग में कचरा भरने की ना तो कभी आदत थी और ना रहेगी… मै कुछ सोचती हुई नकुल से पूछने लगी…. "नकुल मै गांव अकेली क्यों नहीं घूम सकती?"..


नकुल:- किसने ऐसा तुमसे कहा कि तुम गांव अकेली नहीं घूम सकती..


मै:- सबने ही तो कहा है…


नकुल:- अच्छा कुणाल और किशोर (छोटे भईया मनीष के बच्चे) अकेले गांव घूम सकते है क्या? या फिर केशव और साक्षी (बड़े भैया महेश के बच्चे)..


मै:- ओह ऐसी बात है क्या !!! अच्छा और कोई बात नहीं है ना… खा मेरी कसम.


नकुल कुछ देर सोचते हुए… "नहीं और कोई बात नहीं है"..


मै:- फिर तू बोलने में वक़्त क्यों लिया…


नकुल:- बस कुछ सोच रहा था…


मै:- बता ना मुझे, जरूर मेरे अकेले बाहर घूमने को लेकर कुछ सोच रहा होगा…


नकुल:- जी नहीं मै बस ये सोच रहा था कि अकेले गांव में घूमने कहां जा सकती हो… हां चाय की टपरी है चौपाल पर वहीं जा सकती हो.


मै:- आ हा हा हा हा हा… आ हा हा हा हा हा.. नकुल मेरा हाथ पकड़ मैं हंसते हंसते कहीं गाड़ी से बाहर ना गिर जाऊं…


नकुल:- पागल, गांव घूमने तुम अकेली भी जा सकती हो. कभी अकेली गई नहीं ना इसलिए किसी को साथ लेकर चलने की तुम्हे आदत हो गई है, बस इतनी सी बात है… इस क्षेत्र में पड़ने वाले 8 गांव में सब अपने ही तो लोग है. अपने 6 घर में इतने फंक्शन्स हुए है, ऊपर से सावन के मेले में पूरे परिवार के साथ हमरा मंदिर इतना आना जाना होता है कि तुम भले किसी को जानो या ना जानो, सब तुम्हे जानते होंगे… फिर भी किसी को साथ लेकर चलना कोई गलत थोड़े ना है मेनका...

मै भी बाजार किराने का सामान लेने जाता हूं तो किसी दोस्त को लेकर जाता हूं.. आज तक किसी को अकेले घूमती देखी हो, शायद ही किसी को देखी होगी. क्योंकि घूमने के लिए भी कंपनी चाहिए और दुर्भाग्यवश हमारे पड़ोस में तुम्हे कंपनी देने वाला कोई नहीं, सिवाय मेरे. इसलिए मै तुम्हारे साथ चलता हूं… मुझे लगा तुम जैसी होसियार लड़की इतनी बात समझती होगी, मुझे नहीं पता था कि अब तक तुम ये बात नहीं समझती…


मै:- हां मै जानती थी ये सब, वो तो बस मै तुम्हारे विचार जानने को इकछुक थी कि तुम्हारी क्या राय है इसपर.. मुझे लगा कहोगे लड़की का अकेले निकालना सुरक्षित नहीं…


नकुल:- मेनका जहां असुरक्षित लगेगा वहां तो सब कहेंगे ना.. अच्छा एक बात बताओ कभी सुनी हो गांव में किसी लड़की के साथ छेड़खानी हुई हो..


मै:- नहीं ऐसा तो कभी नहीं सुना..


नकुल:- फिर गांव में तुम्हारा अकेले घूमना हम कैसे असुरक्षित मान ले. हम यहां अपने लोगो के बीच है.. ये सहर थोड़े है की चार मजनू सिटी बजाते चल रहे है और लोग अपने काम में लगे है.. यहां पति पत्नी भी सड़क पर साथ चलते है तो सलीखे से चलते है… ताकि छेड़खानी का केस समझकर कोई टांग हाथ ना तोड़ दे..


मै:- ओह समझ गई… मतलब मै कार से अकेली मंदिर आ सकती हूं..


नकुल:- इतनी भी दूर अकेली जाने की ख्वाइश ना कर, की चिंता में हमारे प्राण सुख जाए..


मै:- अच्छा और जब शादी करके जाऊंगी तब… फिर तो ये जगह, जिन लोगों के बीच पली बढ़ी, वो सब कहीं गुम हो जाएगा…


नकुल:- इतनी दूर की बात सोचकर परेशान मत कर… बाकी दिमाग की सारी शंका दूर हुई या कुछ अब भी दिमाग में घूम रहा है..


मै:- नाह ! अब कुछ नहीं.. और थैंक्स.. तू तो मेरी सहेली है.. बहुत दिनों से जिस बात का जवाब नहीं मिल रहा था, उसका जवाब बातो-बातो में मिल गया..


नकुल:- मुझे भी तो बता, या केवल अपने सवाल के जवाब चाहिए होते है..


मै:- नहीं रे गधे बस अब सब कुछ अच्छा लग रहा है… हर कोई अपने दोस्त के साथ कंपनी में घूमते है… वो नीतू पूनम के साथ. लता, मधु के साथ. मां छोटी भाभी के साथ. मेरे पापा, तेरे पापा के साथ. वैसे ही मै तुम्हारे साथ.. तू मेरा भतीजे के साथ मेरी सहेली भी.. मै तो शुरू से अकली घूम रही, बस आज ये बात क्लियर हुआ है..


नकुल:- हां लेकिन लोगो के पास बोल मत देना की ये मेरी सहेली है, वरना लोग कुछ और ही सोच लेंगे… वैसे देखा जाए तो मै, तेरे अलावा केवल नंदू चाचा और शशांक के साथ ही कहीं बाहर जाता हूं.. शशांक अब है नहीं और नंदू चाचा और नीलेश एक दूसरे में संपूर्ण है, आज कल तो दोनो के दोस्ती के किस्से गांव से लेकर सहर में मशहूर है. पिछले 2 महीने में दोनो ने मिलकर 40 लाख का प्रोफिट बनाया है.


मै:- अच्छा है ना अपने परिवार के लोग आगे बढ़ रहे है. तेरी ममेरी बहन कि किस्मत में ताला लगा है जो इतना कमाने वाले अच्छे लड़के को ना कर दी…


नकुल:- पापा को तो वो दूसरा लड़का ज्यादा पसंद है मेनका. मां भी नहीं चाहती की रिश्तेदारी में शादी हो, बाकी डिटेल तो वहीं लोग जाने…


मै:- वैसे तेरी संगीता दीदी है बहुत मस्त, ना इस बात की टेंशन की दूसरे उसके बारे में सोच रहे ना ही ताका झांकी की आदत, पड़ोस में क्या हो रहा…


नकुल:- हम सहर में रहते तो लाइफ ही कुछ और रहती.. वहां कम से लोगो को इतनी फुर्सत तो नहीं होती की किसके घर में क्या हो रहा है.... और यहां तो कोई यदि छींक दे, तो सड़क कर चलते लोग पूछ लेते है… "अरे फालना बाबू, मैंने सुना आज आपको छींक आयी. एक बार आयी थी या 2 बार. ये शर्दी वाली छींक थी या अचानक आ गई. अचानक अगर एक बार छींक आए तो बनता काम बिगाड़ जाता है.. छींकने से पहले कोई बड़ा काम तो नहीं ठान लिए थे"…


नकुल बोले जा रहा था और मै हंसे जा रही थी.. मै किसी तरह अपनी हंसी रोकती उसे कहने लगी कि बस भाई बस, छींक के पीछे इतने सारे सवाल तुझसे कौन कर गया… मेरी बात सुनकर वो भी हसने लगा… तकरीबन 11 बजे तक हम दोनों ही घर पर थे.


भाभी बिल्कुल तैयार बैठी हुई थी, शायद भईया का इंतजार कर रही हो. पूछने पर पता चला कि दोनो सहर जा रहे है. उनके जाने की वजह क्या पूछ बैठी, एक के बाद एक काम कि लिस्ट लंबी होती जा रही थी… तभी नकुल बीच में कहने लगा… "एक काम क्यों नहीं करते, मेनका दीदी को किराने के समान की लिस्ट दे दो, वो किराने का सामान ले आएगी, आप लोग यहां से सीधा सहर निकलो.."..


मां:- हां नकुल ये सही कह रहा है, मेनका और नकुल किराने का सामान ले आते हैं, तुम दोनो सहर निकल जाओ…


नकुल:- नहीं मै भी सहर जा रहा हूं संगीता दीदी को लेकर.. मै तो केवल मेनका दीदी की बात कर रहा था…


मां और भाभी दोनो एक साथ नकुल को घूरती हुई…. "तू पागल हो गया है क्या?"..


नकुल:- क्या हो गया सो…


मां:- वो इतनी दूर अकेली कैसी जा सकती है…


नकुल:- दादी आप जा सकती है अकेले…


मां:- मै चली तो जाऊं, लेकिन मुझसे इतना काम नहीं होगा.. फिर यहां का काम कौन देखेगा..


नकुल:- अभी की बात नहीं कर रहा की अभी जा सकती हो या नहीं.. वैसे बाजार तक अकेली जा सकती हो, सामान लाने..


मां:- जाती है थी, अब थोड़ी अवस्था हो गई, वरना आगे भी जाते ही रहती..


नकुल:- और चाची तुम..


भाभी:- मै क्यों नहीं जा सकती अकेले, जब ये सहर में टेंडर का काम देखते है और बाबूजी कटाई का, तो मै या मां जी ही तो जाया करते थे बाजार..


नकुल:- तो जब मैंने मेनका दीदी का नाम लिया तो ऐसे उछलकर मुझे क्यों कहने लगी… "पागल हो गया है क्या?"


"कौन पागल हो गया"… बाबूजी और मनीष भईया एक साथ दरवाजे से अंदर आए और बाबूजी ने नकुल से पूछा…


नकुल:- यहां मेरे अलावा और कोई पागल आपको नजर आ रहा है क्या दादा..


पापा:- मनीष इसे भी साथ में सहर लिए जा, रांची के बस में चढ़ा देना और ड्राइवर को बोलना पागलखाने छोड़ आने…


मै:- हां सब हाथ धोकर पर जाओ इसके पीछे..


मनीष भईया:- वैसे भतीजा लाल किस बात को लेकर सभा का आयोजन कर रहे..


नकुल:- अकेली दादी बाजार से किराना का समान ला सकती है. अकेली चाची भी जा सकती है लेकिन दीदी अकेले नहीं जा सकती… इस सवाल के लिए मै पागल घोषित हो गया…


पापा:- हम्मम ! कुछ चीजें होती है, जो जितना पर्दे के दायरे में रहे, उतनी अच्छी लगती है नकुल. तुम्हारी दादी या चाची का जाना बस उस वक़्त की मजबूरी हो सकती है, लेकिन हमारी कभी इक्छा नहीं रही दिल से.. क्या समझे..




नकुल:- हां दादा आप सही कहे. हम तो अपने ओर से घर के लेडीज को पूरा सहुलियत ही देते है. घर में उन्हें कैसे रहना चाहिए, कैसे बात करना चाहिए, किससे कितना बात करना चाहिए.. कोई बाहरी यदि घर में बैठा हो तो कितना उनके सामने आना चाहिए, कितना नहीं… इतना कुछ शुरू से सीखाने के बाद उन्हें बाहर अकेले भेजने में चिंता ही बनी रहती है. चिंता इस बात की नहीं होती की हमने जो सिखाया वो हमारी घर की लेडीज बाहर कर रही होगी की नहीं… भरोसा दूसरे का नहीं होता, की उनकी नजर और नजरिया कैसा है, फिर दिल में एक अनचाहे बदनामी का डर…

फिर कहानी आगे बढ़ती है. स्वाभाविक सी बात है जितने प्यार से और जितने संस्कारो के साथ अपनी लाडली बेटी को पाला, उसी के अनुसार उसके जीने का तरीका और सोचने का नजरिया भी होगा. फिर एक दिन बाजार के हाईवे के पास वाले 10 एकड़ जमीन, जो बेटी की शादी के लिए रखे है, उसका हम वैल्यू निकालने बैठेंगे.. ओह तकरीबन 6 से 8 करोड़ की वैल्यू आती है. ओह, इतने दहेज में एक आईएएस (IAS), आईपीएस (IPS), या उच्च सरकारी पद वाला दामाद मिल सकता है. लेकिन वो लड़के बड़ी मुश्किल से गांव की लड़की को देखने के लिए राजी होते हैं. और जब लड़की देखकर जाता है, तो शादी से इंकार देता है, क्योंकि उसे पता है हमारी लड़की को वो अपने किसी पार्टी फंक्शन में ले जाएगा, तो वो वहां के माहौल से मैच नहीं कर पाएगी…

1 से 2 करोड़ दहेज में कोई बड़ा बिज़नेस मैन भी मिल सकता है, लेकिन क्या करे उसके साथ भी वही समस्या है, गांव की लड़की है, सहर में उसे हर चीज सीखना होगा, लेकिन फिर भी जिस जगह में पली है और जिस माहौल में ढली है उसका असर तो कुछ ना कुछ रह ही जाना है…

तो कहानी का अंतिम भाग में ये बचता है कि अंत में अपनी तरह का ही एक जमींदार फैमिली खोज दो. लेकिन क्या फायदा जो अच्छे लड़के होते है वो सहर में नौकरी कर रहे होते है और जो कतई आवारा होते है वो गांव में बचे रहे जाते है.. मै ऐसा नहीं कह रहा की सभी आवारा होते है, लेकिन लड़की की शादी की बात अब मां बाप अकेले थोड़े तय करते है, लड़का अच्छा है, लड़का अच्छा है ऐसा कहने वाले बहुत से रिश्तेदार तो रिश्ता ना होने पर तो मुंह भी फुला लेते है..

अब बेचारे मां बाप 4 बुरा लड़का छांटने के बाद आपस में ही विचार करते है, लड़की की उम्र निकली जा रही. एक ओर मां बाप ये सोच रहे होते है और दूसरी ओर हवा भी बहना शुरू हो जातो है… "सुना फलाने के बेटे को देखने गए थे, राजा परिवार है उसका, इतना सुखी संपन्न. दादा उसके खूंटे में हाथी को बांधकर पालते थे. ऐसे घर में रिश्ता थोड़े ना होना था, छांट दिया होगा लड़के वालों ने"

अब ये उड़ती-उड़ती खबर मिल गई की गांव वाले कह रहे है कि अच्छा घर परिवार नहीं मिलेगा. लो जी हो गया फोकस शिफ्ट. अब घराना देखो पहले. ऐसा घर होना चाहिए कि 5 बीघा खेत और बिक जाए तो गम नहीं, लेकिन खानदान ऐसा खोजना जहां एक नहीं 2 हाथी को खूंटे से बांध कर पालते थे…

घराना मिल गया शानदार और लड़का काम चलाऊ. फिर यही निकलता है शादी के वक़्त, "अब क्या कर सकते है आज कल हर लड़के की यही कहानी होती है, थोड़ा बहुत तो सब मनचले होते है." "दारू शराब क्या हम नहीं पीते.. शादी के बाद सुधार जाएगा"….

बस खुद के विश्वास के भरोसे की शादी के बाद लड़का सुधार जाएगा, हम अपने घर की लाडली को पूरे रिस्क के साथ ऐसे लड़के से बांध देते है.. आगे सोचते रहो सुधरा की नहीं सुधरा, क्योंकि हमने जिस माहौल में अपनी लड़की को पाला है, फिर वो कभी कहने नहीं आएगी की मुझे ऐसे लड़के के गले क्यों बांध दिया.

सबसे मज़ेदार तो अब आएगा.. पति को सुधारने के लिए यदि लड़की ने जोड़ जबरदस्ती की, तो पहले तो उसे थप्पड़ पड़ेंगे और तब भी ना लड़की मानी और उस लड़के को आगे भी सुधारने कि कोशिश करती रही, तो बड़ा प्यारा सा खबर मिलेगा, "लड़की का किसी के साथ पहले से चक्कर था. शादी के बाद भी गांव में किसी से चक्कर है"… फिर बचपन से हमारे अनुसार दिए संस्कार में पली अपनी लाडली बेटी से ये पूछते भी देर नहीं लगती… "हमारे परवरिश में कौन सी कमी रह गई थी जो तूने हमारी नाक कटवा दी."

अब पति के लात्तम-जूते से वो ढीट हो गई, तो ऐसे सिचुएशन में शाशिकला आंटी की तरह बन जाती है, जिसका नाम लेकर आज भी गांव वाले अपशब्द बोल देते है. या फिर नीरू आंटी वाली कहानी होगी, रात को सोएगी और जिल्लत की वो अपनी जिंदगी को कहेगी, सर अब बस.. लेकिन यहां भी शशिकला जैसा ही हाल होगा है. लोग नीरू जैसे लड़की के मरने के बाद भी कहेंगे, लड़की में ही दोष था और पूरी उम्र उसके खानदान को घसीटते रहेंगे"..

कमाल है ना मेनका दीदी जैसी साफ सुथरी माहौल में पली लड़की को ऐसा कुछ झेलना परता है. जबकि कुछ नाम मै परिवार के सामने नहीं गिना सकता जिसकी परवरिश किन माहौल में हुई थी और उसकी जिंदगी कैसी कट रही..

आप लोग ये नहीं समझिए की मै आपको मेनका दीदी का ग़लत गार्डियन कह रहा. लेकिन कम से कम उन्हें खुद से खड़ा तो होने दो. खुद से माहौल को इतना तो परखने दो की वो इतना तो मुंह खोल सके कि आपको कह सके "पापा ये लड़का पसंद नहीं". रिश्ते की बात करने सहर से आए अपने पसंदीदा लड़के को सिर्फ इस वजह से ना खो दे, क्योंकि देखा सुनी के वक़्त मेनका दीदी एक शब्द ना वो लड़के से बात कर पाए, और ना आपसे कह पाए, पापा ये लड़का पसंद था, लेकिन अफ़सोस की किसी लड़के से बात करते वक़्त मेरा मुंह ही नहीं खुलता.

कल को वो सहर का अच्छा लड़का, मेनका दीदी के हाव-भाव और बातचीत से ये ना कहे कि.. "नहीं ये तो गांव की है"… खैर आप लोग बेटी को पालते ही है शादी के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए, इसलिए शादी कि बात पर समझाया. वरना हम से भी थोड़ा पिछड़े गांव के है राजवीर चाचा और उनकी बेटी प्राची दीदी से आप हॉस्पिटल में मिल चुके हैं। शायद दिल से पहली आवाज़ यही आएगी होगी की कितनी संस्कारी है ये लड़की, जबकि वो शाम के 7 बजे तक वहां हमसे हॉस्पिटल में मिली, बेझिझक उन्होंने सब से बात किया. दुकान में ना जाने कितने अंजान लोगो से बेझिझक बात करती होंगी उसकी बात ही छोड़ दीजिए. गांव आयी तो बिल्कुल गांव के माहौल में और किसी कलेक्टर से बात करना हो तो बिल्कुल अलग अंदाज में.

एक बात और, वो जहां से पढ़ी है ना, बिहार के कई जिले का एक भी स्टूडेंट उस इंस्टीट्यूट की सीढ़ियां नहीं चढ़ा होगा. अपने खुद के शॉप को देखती है और प्राची दीदी के बारे में बाकी की डिटेल मुझे देने कि जरूरत नहीं… चलता हूं मै, शायद दादा को कुछ और ज्यादा पर्दे की जरूरत ना पड़ने लगे. क्योंकि कल से तो नंदू चाचा की मां ने कहना भी शुरू कर दिया है, "मेनका अब जवान लगने लगी है, उसपर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है"… अब ये बात दादी भी सुन ही लेगी फिर उन्हें भी मेनका दीदी जवान लगने लगेगी.. उसके बाद फिर पूरे खानदान को… अब छोटा हूं तो दादा की इतनी तो मदद कर ही सकता हूं कि पर्दे के कपड़े का पूरा थान खरीदकर ले आऊं.



नाह ! ये लड़का गंगा में खड़ा होकर भी का देता की इसने ये बात खुद से सोचकर बोली है, तो भी मै मान नहीं सकती थी. बचपन से साथ रही हूं, ये भी जानती हुं ये कितना धूर्त है, लेकिन इतनी सफाई से इतनी गहराई की बात करना तो इससे संभव नहीं. फिर कैसे कैसे कैसे.…. खैर अभी इसपर सोचने से पहले घर के लोगो को देख लूं..


मन के ख्याल को मै विराम देती सबके चेहरे देखने लगी. भाभी और भैया के चेहरे पर तो साफ लिखा था कि जैसे वो गांव के आवारा की कहानी इन्ही दोनो के लिए कही गई है. नकुल ने जो 2 नाम लिए थे, शशिकला और नीरू, दोनो ही हमारे आगे टोल की 2 खास दोस्त थी, बिल्कुल प्यारी और मासूम. उन्हें भी मेरी तरह ही बड़ा किया गया था. दोनो की बहुत ही भव्य शादी हुई थी, ऐसा जो लोग कई वर्षों तक याद करे.


और शादी के बाद की कहानी नकुल बता दिया. शशिकला के केस में उसने बस इतना किया की पहले तो गांव से बाहर भागी, फिर पहला केस फाइल कर दी थी पति पर और डाइवोर्स लिया, फिर दूसरा केस अपने घरवालों पर. और दोनो जगह से कानूनन लड़कर अपना पूरा हक ली. फिर शशिकला पूरी सम्पत्ति को बेचकर कहां शिफ्ट हुई किसी को पता नहीं.. आखरी जो सुनी थी, वो मैंगलोर में है.


पापा घर के मुखिया की कुर्सी पर बैठे थे. उनके आते ही भाभी सर पर पल्लू डाले मां के साथ अपने कमरे का बाहर किसी समीक्षक कि तरह बैठी थी. और मेरे मनीष भईया, वो सबके चेहरे की भावना को पढ़ने वाले ऐसे समीक्षक थे, जो भेंर चाल चलने का इरादा बनाए थे. हवा जिस ओर रुख करेगी, उस ओर वो भी. वैसे शशिकला और नीरू के तरह, एक आवारा की कहानी तो इस घर में भी थी, बस मामला बढ़ने के बदले मेरी भाभी भी भईया के नक्शे पर चलने का फैसला ले लिया…


मै अपने मन में बहुत सी बातों की समीक्षा कर रही थी, तभी नकुल दरवाजे से चिल्लाया… "दादू, ये है बेड़ियां तोड़ने वाला काला चश्मा, और ये रहा कुछ पर्दा, दोनो में से जो मेनका दीदी के लिए सही लगे, उठा लो"..


ये गधा आज करना क्या चाह रहा था, लगता है या तो आज वाह-वाही बटोरेगा या जूते खाकर जाएगा. शांत तो उसकी जिंदगी आज के दिन नहीं रह सकती… तभी मेरे पापा खड़े हो गए और नकुल को घूरते हुए उसे एक थप्पड़ लगा दिए.. "आव बेचारा… इसकी तो, ये तो ब्लूटूथ पर किसी से चिपका था. कुत्ता कहीं का, इसे बाद में बताती हूं"..


पापा ने जैसी ही नकुल को थप्पड़ मारा, पहले तो मेरे दिल से निकला "बेचारा".... लेकिन थप्पड़ पड़ने के बाद जिस तरह से नकुल ने एक बार अपने बाए देखा, मेरी नजर भी उस ओर चली गई, पता चला भाई साहब ऑनलाइन प्रवचन को यहां बस बोल रहे थे. आवाज इसकी और सारांश किसी और का. वैसे जो उसके कान से छोटकु पिद्दी सा गिरा था, मेरा प्यारा ब्लूटूथ था. सॉरी ब्लूटूथ कहना थोड़ा जाहिल वाला हो जाएगा, वो था जेबीएल का एयरडोप. इसको बोली थी तेरे लिए नया मंगवा दिया है मेरा मत ले, लेकिन ये कब लेकर गया मुझे पता भी नहीं चला..


अच्छा हुआ इसे थप्पड़ पड़ा, चलो पापा बहुत घुर लिए नकुल को, आ भी जाओ और डाल दो पर्दा मेरे ऊपर. ऊप्स ! मेरे लिए थोड़ा मुश्किल हो गया ये पल, शायद इतनी खुश थी कि आखों से आशु आ गए, लेकिन मेरे आशु ना दिखे इसके लिए पापा ने वो काला चस्मा खुद अपने हाथो से मेरे आखों पर डाल दिए, किन्तु खुद के आशु नहीं छिपा पाए….


"नकुल ने जो भी बताया बिल्कुल सही बताया. हम सब अंत में यही करते है. लड़की पर शुरू से ही अपनी ख्वाहिशें थोप देते है, ना तो भावना दिखती है और ना ही कभी दिखते है अपनी बच्ची के अरमान. मैंने अपनी बेटी को ऐसे हालातो के लिए नहीं पाला की कोई उसे रुला सके. बस ये लड़का हमे थोड़ा देर से समझाया कि हम गलत पर्दे तले अपनी बच्ची को पाल रहे थे… मेनका तुमने हम पर भरोसा किया अब हम तुमपर करेंगे. जिम्मेदारी और जवाबदेही बस इतना ही याद रखना"…


पापा बहुत ज्यादा नहीं बोले, उनके इतना बोलकर जाने के बाद, किसी और ने भी कुछ नहीं बोला. बस सबके चेहरे पर हसी थी और मै नकुल को देख रही थी. भले ही वो ब्लूटूथ लगाकर नीतू से ही सारा ज्ञान क्यों ना ले रहा हो, लेकिन बात को सामने रखने के लिए जो हिम्मत और बात करने का जो टोन चाहिए था, उसे नकुल से बेहतर शायद ही कोई कर सकता था…


नकुल से मुझे बहुत सी बातें करनी थी, लेकिन शायद वो सच कह रहा था कि उसे संगीता को लेकर सहर जाना है. चुपके से उसने वो एयरडोप उठाया और वहां से चला गया, और मै मन ही मन उसे धन्यवाद कहती अपने कमरे में चली आयी…
 

nain11ster

Prime
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par ye neetu to chud gayi 🤣🤣. wo waha par kya karne gayi thi 🤔🤔.. aur seal todne ke 1 lakh mile ..par menka neetu ki chaal nahi pehechan paayi kya 🤔🤔..
par dono ladkiya paise ke liye chudai karne gayi thi kya ??

aur chaku ka darr dikhake poonam ko chod diya ..aur lagta hai aage bhi dono un ladko se ya collector se chudti rahengi ..
neetu ko maja aaya 😁😁par usko bura nahi laga ki 2 logo ne usko bhoga 🤔🤔..

aur nakul se pyar nahi karti sirf dosti hai to sahi hi hai par agar nakul ko pata chal gaya to usko bura nahi lagega 🤔🤔..
Menka nitu ko nahi pahchan payi kyonki Nilesh aur Nandu ko bachpan se dekhne ke baad bhi use matr ek snaka tha Leon bhai... Fir nitu se to kewal class shuru hine ke shurwati dino me mili thi...

Baki nitu aur poonam ke liye piche gaye sawal ko pahuncha diya hai ki use bura kaga ki nahi ki jana tha Japan pahunch gaye chin wale ghatne me bhi .. sex me wahi kissa ho gaya...sex hina tha chini se pahunch gaya American :D
 

DARK WOLFKING

Supreme
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nice aur jhatkaa dene wala update ..pehle nakul ne menka ko sab achche se samjhaya akeli bahar jaane ke baare me 🤩🤩..

par jab gharwalo ko itna bhashan de raha tha to laga kitna jyada samajhdaar hai nakul 😍😍 aur jab thappad padne par bluetooth gira to pata chala ki ye to dusre ki baat sunke waha sabko bhashan de raha tha 🤣🤣🤣🤣..

shashikala ka matter bata diya ki usne pati ko talakh diya aur gharwalo se apna hissa liya par neeru ne kya kiya tha ??? ..

aur ye nakul ko kaun itna sab bata raha tha ???? ..
 

DARK WOLFKING

Supreme
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ab kaala chashma pehna diya hai menka ko dekhte hai kitna akeli bahar ghumti hai bindhast hokar 😁😁😁..
par nakul ne aazadi to dilwa di menka ko 🤩..
 
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Raj_Singh

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चौथी घटना:- आखरी भाग






मै और नकुल लौट रहे थे. लता की कुछ बातें मेरे दिमाग में थी, बाकी दिमाग में कचरा भरने की ना तो कभी आदत थी और ना रहेगी… मै कुछ सोचती हुई नकुल से पूछने लगी…. "नकुल मै गांव अकेली क्यों नहीं घूम सकती?"..


नकुल:- किसने ऐसा तुमसे कहा कि तुम गांव अकेली नहीं घूम सकती..


मै:- सबने ही तो कहा है…


नकुल:- अच्छा कुणाल और किशोर (छोटे भईया मनीष के बच्चे) अकेले गांव घूम सकते है क्या? या फिर केशव और साक्षी (बड़े भैया महेश के बच्चे)..


मै:- ओह ऐसी बात है क्या !!! अच्छा और कोई बात नहीं है ना… खा मेरी कसम.


नकुल कुछ देर सोचते हुए… "नहीं और कोई बात नहीं है"..


मै:- फिर तू बोलने में वक़्त क्यों लिया…


नकुल:- बस कुछ सोच रहा था…


मै:- बता ना मुझे, जरूर मेरे अकेले बाहर घूमने को लेकर कुछ सोच रहा होगा…


नकुल:- जी नहीं मै बस ये सोच रहा था कि अकेले गांव में घूमने कहां जा सकती हो… हां चाय की टपरी है चौपाल पर वहीं जा सकती हो.


मै:- आ हा हा हा हा हा… आ हा हा हा हा हा.. नकुल मेरा हाथ पकड़ मैं हंसते हंसते कहीं गाड़ी से बाहर ना गिर जाऊं…


नकुल:- पागल, गांव घूमने तुम अकेली भी जा सकती हो. कभी अकेली गई नहीं ना इसलिए किसी को साथ लेकर चलने की तुम्हे आदत हो गई है, बस इतनी सी बात है… इस क्षेत्र में पड़ने वाले 8 गांव में सब अपने ही तो लोग है. अपने 6 घर में इतने फंक्शन्स हुए है, ऊपर से सावन के मेले में पूरे परिवार के साथ हमरा मंदिर इतना आना जाना होता है कि तुम भले किसी को जानो या ना जानो, सब तुम्हे जानते होंगे… फिर भी किसी को साथ लेकर चलना कोई गलत थोड़े ना है मेनका...

मै भी बाजार किराने का सामान लेने जाता हूं तो किसी दोस्त को लेकर जाता हूं.. आज तक किसी को अकेले घूमती देखी हो, शायद ही किसी को देखी होगी. क्योंकि घूमने के लिए भी कंपनी चाहिए और दुर्भाग्यवश हमारे पड़ोस में तुम्हे कंपनी देने वाला कोई नहीं, सिवाय मेरे. इसलिए मै तुम्हारे साथ चलता हूं… मुझे लगा तुम जैसी होसियार लड़की इतनी बात समझती होगी, मुझे नहीं पता था कि अब तक तुम ये बात नहीं समझती…


मै:- हां मै जानती थी ये सब, वो तो बस मै तुम्हारे विचार जानने को इकछुक थी कि तुम्हारी क्या राय है इसपर.. मुझे लगा कहोगे लड़की का अकेले निकालना सुरक्षित नहीं…


नकुल:- मेनका जहां असुरक्षित लगेगा वहां तो सब कहेंगे ना.. अच्छा एक बात बताओ कभी सुनी हो गांव में किसी लड़की के साथ छेड़खानी हुई हो..


मै:- नहीं ऐसा तो कभी नहीं सुना..


नकुल:- फिर गांव में तुम्हारा अकेले घूमना हम कैसे असुरक्षित मान ले. हम यहां अपने लोगो के बीच है.. ये सहर थोड़े है की चार मजनू सिटी बजाते चल रहे है और लोग अपने काम में लगे है.. यहां पति पत्नी भी सड़क पर साथ चलते है तो सलीखे से चलते है… ताकि छेड़खानी का केस समझकर कोई टांग हाथ ना तोड़ दे..


मै:- ओह समझ गई… मतलब मै कार से अकेली मंदिर आ सकती हूं..


नकुल:- इतनी भी दूर अकेली जाने की ख्वाइश ना कर, की चिंता में हमारे प्राण सुख जाए..


मै:- अच्छा और जब शादी करके जाऊंगी तब… फिर तो ये जगह, जिन लोगों के बीच पली बढ़ी, वो सब कहीं गुम हो जाएगा…


नकुल:- इतनी दूर की बात सोचकर परेशान मत कर… बाकी दिमाग की सारी शंका दूर हुई या कुछ अब भी दिमाग में घूम रहा है..


मै:- नाह ! अब कुछ नहीं.. और थैंक्स.. तू तो मेरी सहेली है.. बहुत दिनों से जिस बात का जवाब नहीं मिल रहा था, उसका जवाब बातो-बातो में मिल गया..


नकुल:- मुझे भी तो बता, या केवल अपने सवाल के जवाब चाहिए होते है..


मै:- नहीं रे गधे बस अब सब कुछ अच्छा लग रहा है… हर कोई अपने दोस्त के साथ कंपनी में घूमते है… वो नीतू पूनम के साथ. लता, मधु के साथ. मां छोटी भाभी के साथ. मेरे पापा, तेरे पापा के साथ. वैसे ही मै तुम्हारे साथ.. तू मेरा भतीजे के साथ मेरी सहेली भी.. मै तो शुरू से अकली घूम रही, बस आज ये बात क्लियर हुआ है..


नकुल:- हां लेकिन लोगो के पास बोल मत देना की ये मेरी सहेली है, वरना लोग कुछ और ही सोच लेंगे… वैसे देखा जाए तो मै, तेरे अलावा केवल नंदू चाचा और शशांक के साथ ही कहीं बाहर जाता हूं.. शशांक अब है नहीं और नंदू चाचा और नीलेश एक दूसरे में संपूर्ण है, आज कल तो दोनो के दोस्ती के किस्से गांव से लेकर सहर में मशहूर है. पिछले 2 महीने में दोनो ने मिलकर 40 लाख का प्रोफिट बनाया है.


मै:- अच्छा है ना अपने परिवार के लोग आगे बढ़ रहे है. तेरी ममेरी बहन कि किस्मत में ताला लगा है जो इतना कमाने वाले अच्छे लड़के को ना कर दी…


नकुल:- पापा को तो वो दूसरा लड़का ज्यादा पसंद है मेनका. मां भी नहीं चाहती की रिश्तेदारी में शादी हो, बाकी डिटेल तो वहीं लोग जाने…


मै:- वैसे तेरी संगीता दीदी है बहुत मस्त, ना इस बात की टेंशन की दूसरे उसके बारे में सोच रहे ना ही ताका झांकी की आदत, पड़ोस में क्या हो रहा…


नकुल:- हम सहर में रहते तो लाइफ ही कुछ और रहती.. वहां कम से लोगो को इतनी फुर्सत तो नहीं होती की किसके घर में क्या हो रहा है.... और यहां तो कोई यदि छींक दे, तो सड़क कर चलते लोग पूछ लेते है… "अरे फालना बाबू, मैंने सुना आज आपको छींक आयी. एक बार आयी थी या 2 बार. ये शर्दी वाली छींक थी या अचानक आ गई. अचानक अगर एक बार छींक आए तो बनता काम बिगाड़ जाता है.. छींकने से पहले कोई बड़ा काम तो नहीं ठान लिए थे"…


नकुल बोले जा रहा था और मै हंसे जा रही थी.. मै किसी तरह अपनी हंसी रोकती उसे कहने लगी कि बस भाई बस, छींक के पीछे इतने सारे सवाल तुझसे कौन कर गया… मेरी बात सुनकर वो भी हसने लगा… तकरीबन 11 बजे तक हम दोनों ही घर पर थे.


भाभी बिल्कुल तैयार बैठी हुई थी, शायद भईया का इंतजार कर रही हो. पूछने पर पता चला कि दोनो सहर जा रहे है. उनके जाने की वजह क्या पूछ बैठी, एक के बाद एक काम कि लिस्ट लंबी होती जा रही थी… तभी नकुल बीच में कहने लगा… "एक काम क्यों नहीं करते, मेनका दीदी को किराने के समान की लिस्ट दे दो, वो किराने का सामान ले आएगी, आप लोग यहां से सीधा सहर निकलो.."..


मां:- हां नकुल ये सही कह रहा है, मेनका और नकुल किराने का सामान ले आते हैं, तुम दोनो सहर निकल जाओ…


नकुल:- नहीं मै भी सहर जा रहा हूं संगीता दीदी को लेकर.. मै तो केवल मेनका दीदी की बात कर रहा था…


मां और भाभी दोनो एक साथ नकुल को घूरती हुई…. "तू पागल हो गया है क्या?"..


नकुल:- क्या हो गया सो…


मां:- वो इतनी दूर अकेली कैसी जा सकती है…


नकुल:- दादी आप जा सकती है अकेले…


मां:- मै चली तो जाऊं, लेकिन मुझसे इतना काम नहीं होगा.. फिर यहां का काम कौन देखेगा..


नकुल:- अभी की बात नहीं कर रहा की अभी जा सकती हो या नहीं.. वैसे बाजार तक अकेली जा सकती हो, सामान लाने..


मां:- जाती है थी, अब थोड़ी अवस्था हो गई, वरना आगे भी जाते ही रहती..


नकुल:- और चाची तुम..


भाभी:- मै क्यों नहीं जा सकती अकेले, जब ये सहर में टेंडर का काम देखते है और बाबूजी कटाई का, तो मै या मां जी ही तो जाया करते थे बाजार..


नकुल:- तो जब मैंने मेनका दीदी का नाम लिया तो ऐसे उछलकर मुझे क्यों कहने लगी… "पागल हो गया है क्या?"


"कौन पागल हो गया"… बाबूजी और मनीष भईया एक साथ दरवाजे से अंदर आए और बाबूजी ने नकुल से पूछा…


नकुल:- यहां मेरे अलावा और कोई पागल आपको नजर आ रहा है क्या दादा..


पापा:- मनीष इसे भी साथ में सहर लिए जा, रांची के बस में चढ़ा देना और ड्राइवर को बोलना पागलखाने छोड़ आने…


मै:- हां सब हाथ धोकर पर जाओ इसके पीछे..


मनीष भईया:- वैसे भतीजा लाल किस बात को लेकर सभा का आयोजन कर रहे..


नकुल:- अकेली दादी बाजार से किराना का समान ला सकती है. अकेली चाची भी जा सकती है लेकिन दीदी अकेले नहीं जा सकती… इस सवाल के लिए मै पागल घोषित हो गया…


पापा:- हम्मम ! कुछ चीजें होती है, जो जितना पर्दे के दायरे में रहे, उतनी अच्छी लगती है नकुल. तुम्हारी दादी या चाची का जाना बस उस वक़्त की मजबूरी हो सकती है, लेकिन हमारी कभी इक्छा नहीं रही दिल से.. क्या समझे..




नकुल:- हां दादा आप सही कहे. हम तो अपने ओर से घर के लेडीज को पूरा सहुलियत ही देते है. घर में उन्हें कैसे रहना चाहिए, कैसे बात करना चाहिए, किससे कितना बात करना चाहिए.. कोई बाहरी यदि घर में बैठा हो तो कितना उनके सामने आना चाहिए, कितना नहीं… इतना कुछ शुरू से सीखाने के बाद उन्हें बाहर अकेले भेजने में चिंता ही बनी रहती है. चिंता इस बात की नहीं होती की हमने जो सिखाया वो हमारी घर की लेडीज बाहर कर रही होगी की नहीं… भरोसा दूसरे का नहीं होता, की उनकी नजर और नजरिया कैसा है, फिर दिल में एक अनचाहे बदनामी का डर…

फिर कहानी आगे बढ़ती है. स्वाभाविक सी बात है जितने प्यार से और जितने संस्कारो के साथ अपनी लाडली बेटी को पाला, उसी के अनुसार उसके जीने का तरीका और सोचने का नजरिया भी होगा. फिर एक दिन बाजार के हाईवे के पास वाले 10 एकड़ जमीन, जो बेटी की शादी के लिए रखे है, उसका हम वैल्यू निकालने बैठेंगे.. ओह तकरीबन 6 से 8 करोड़ की वैल्यू आती है. ओह, इतने दहेज में एक आईएएस (IAS), आईपीएस (IPS), या उच्च सरकारी पद वाला दामाद मिल सकता है. लेकिन वो लड़के बड़ी मुश्किल से गांव की लड़की को देखने के लिए राजी होते हैं. और जब लड़की देखकर जाता है, तो शादी से इंकार देता है, क्योंकि उसे पता है हमारी लड़की को वो अपने किसी पार्टी फंक्शन में ले जाएगा, तो वो वहां के माहौल से मैच नहीं कर पाएगी…

1 से 2 करोड़ दहेज में कोई बड़ा बिज़नेस मैन भी मिल सकता है, लेकिन क्या करे उसके साथ भी वही समस्या है, गांव की लड़की है, सहर में उसे हर चीज सीखना होगा, लेकिन फिर भी जिस जगह में पली है और जिस माहौल में ढली है उसका असर तो कुछ ना कुछ रह ही जाना है…

तो कहानी का अंतिम भाग में ये बचता है कि अंत में अपनी तरह का ही एक जमींदार फैमिली खोज दो. लेकिन क्या फायदा जो अच्छे लड़के होते है वो सहर में नौकरी कर रहे होते है और जो कतई आवारा होते है वो गांव में बचे रहे जाते है.. मै ऐसा नहीं कह रहा की सभी आवारा होते है, लेकिन लड़की की शादी की बात अब मां बाप अकेले थोड़े तय करते है, लड़का अच्छा है, लड़का अच्छा है ऐसा कहने वाले बहुत से रिश्तेदार तो रिश्ता ना होने पर तो मुंह भी फुला लेते है..

अब बेचारे मां बाप 4 बुरा लड़का छांटने के बाद आपस में ही विचार करते है, लड़की की उम्र निकली जा रही. एक ओर मां बाप ये सोच रहे होते है और दूसरी ओर हवा भी बहना शुरू हो जातो है… "सुना फलाने के बेटे को देखने गए थे, राजा परिवार है उसका, इतना सुखी संपन्न. दादा उसके खूंटे में हाथी को बांधकर पालते थे. ऐसे घर में रिश्ता थोड़े ना होना था, छांट दिया होगा लड़के वालों ने"

अब ये उड़ती-उड़ती खबर मिल गई की गांव वाले कह रहे है कि अच्छा घर परिवार नहीं मिलेगा. लो जी हो गया फोकस शिफ्ट. अब घराना देखो पहले. ऐसा घर होना चाहिए कि 5 बीघा खेत और बिक जाए तो गम नहीं, लेकिन खानदान ऐसा खोजना जहां एक नहीं 2 हाथी को खूंटे से बांध कर पालते थे…

घराना मिल गया शानदार और लड़का काम चलाऊ. फिर यही निकलता है शादी के वक़्त, "अब क्या कर सकते है आज कल हर लड़के की यही कहानी होती है, थोड़ा बहुत तो सब मनचले होते है." "दारू शराब क्या हम नहीं पीते.. शादी के बाद सुधार जाएगा"….

बस खुद के विश्वास के भरोसे की शादी के बाद लड़का सुधार जाएगा, हम अपने घर की लाडली को पूरे रिस्क के साथ ऐसे लड़के से बांध देते है.. आगे सोचते रहो सुधरा की नहीं सुधरा, क्योंकि हमने जिस माहौल में अपनी लड़की को पाला है, फिर वो कभी कहने नहीं आएगी की मुझे ऐसे लड़के के गले क्यों बांध दिया.

सबसे मज़ेदार तो अब आएगा.. पति को सुधारने के लिए यदि लड़की ने जोड़ जबरदस्ती की, तो पहले तो उसे थप्पड़ पड़ेंगे और तब भी ना लड़की मानी और उस लड़के को आगे भी सुधारने कि कोशिश करती रही, तो बड़ा प्यारा सा खबर मिलेगा, "लड़की का किसी के साथ पहले से चक्कर था. शादी के बाद भी गांव में किसी से चक्कर है"… फिर बचपन से हमारे अनुसार दिए संस्कार में पली अपनी लाडली बेटी से ये पूछते भी देर नहीं लगती… "हमारे परवरिश में कौन सी कमी रह गई थी जो तूने हमारी नाक कटवा दी."

अब पति के लात्तम-जूते से वो ढीट हो गई, तो ऐसे सिचुएशन में शाशिकला आंटी की तरह बन जाती है, जिसका नाम लेकर आज भी गांव वाले अपशब्द बोल देते है. या फिर नीरू आंटी वाली कहानी होगी, रात को सोएगी और जिल्लत की वो अपनी जिंदगी को कहेगी, सर अब बस.. लेकिन यहां भी शशिकला जैसा ही हाल होगा है. लोग नीरू जैसे लड़की के मरने के बाद भी कहेंगे, लड़की में ही दोष था और पूरी उम्र उसके खानदान को घसीटते रहेंगे"..

कमाल है ना मेनका दीदी जैसी साफ सुथरी माहौल में पली लड़की को ऐसा कुछ झेलना परता है. जबकि कुछ नाम मै परिवार के सामने नहीं गिना सकता जिसकी परवरिश किन माहौल में हुई थी और उसकी जिंदगी कैसी कट रही..

आप लोग ये नहीं समझिए की मै आपको मेनका दीदी का ग़लत गार्डियन कह रहा. लेकिन कम से कम उन्हें खुद से खड़ा तो होने दो. खुद से माहौल को इतना तो परखने दो की वो इतना तो मुंह खोल सके कि आपको कह सके "पापा ये लड़का पसंद नहीं". रिश्ते की बात करने सहर से आए अपने पसंदीदा लड़के को सिर्फ इस वजह से ना खो दे, क्योंकि देखा सुनी के वक़्त मेनका दीदी एक शब्द ना वो लड़के से बात कर पाए, और ना आपसे कह पाए, पापा ये लड़का पसंद था, लेकिन अफ़सोस की किसी लड़के से बात करते वक़्त मेरा मुंह ही नहीं खुलता.

कल को वो सहर का अच्छा लड़का, मेनका दीदी के हाव-भाव और बातचीत से ये ना कहे कि.. "नहीं ये तो गांव की है"… खैर आप लोग बेटी को पालते ही है शादी के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए, इसलिए शादी कि बात पर समझाया. वरना हम से भी थोड़ा पिछड़े गांव के है राजवीर चाचा और उनकी बेटी प्राची दीदी से आप हॉस्पिटल में मिल चुके हैं। शायद दिल से पहली आवाज़ यही आएगी होगी की कितनी संस्कारी है ये लड़की, जबकि वो शाम के 7 बजे तक वहां हमसे हॉस्पिटल में मिली, बेझिझक उन्होंने सब से बात किया. दुकान में ना जाने कितने अंजान लोगो से बेझिझक बात करती होंगी उसकी बात ही छोड़ दीजिए. गांव आयी तो बिल्कुल गांव के माहौल में और किसी कलेक्टर से बात करना हो तो बिल्कुल अलग अंदाज में.

एक बात और, वो जहां से पढ़ी है ना, बिहार के कई जिले का एक भी स्टूडेंट उस इंस्टीट्यूट की सीढ़ियां नहीं चढ़ा होगा. अपने खुद के शॉप को देखती है और प्राची दीदी के बारे में बाकी की डिटेल मुझे देने कि जरूरत नहीं… चलता हूं मै, शायद दादा को कुछ और ज्यादा पर्दे की जरूरत ना पड़ने लगे. क्योंकि कल से तो नंदू चाचा की मां ने कहना भी शुरू कर दिया है, "मेनका अब जवान लगने लगी है, उसपर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है"… अब ये बात दादी भी सुन ही लेगी फिर उन्हें भी मेनका दीदी जवान लगने लगेगी.. उसके बाद फिर पूरे खानदान को… अब छोटा हूं तो दादा की इतनी तो मदद कर ही सकता हूं कि पर्दे के कपड़े का पूरा थान खरीदकर ले आऊं.



नाह ! ये लड़का गंगा में खड़ा होकर भी का देता की इसने ये बात खुद से सोचकर बोली है, तो भी मै मान नहीं सकती थी. बचपन से साथ रही हूं, ये भी जानती हुं ये कितना धूर्त है, लेकिन इतनी सफाई से इतनी गहराई की बात करना तो इससे संभव नहीं. फिर कैसे कैसे कैसे.…. खैर अभी इसपर सोचने से पहले घर के लोगो को देख लूं..


मन के ख्याल को मै विराम देती सबके चेहरे देखने लगी. भाभी और भैया के चेहरे पर तो साफ लिखा था कि जैसे वो गांव के आवारा की कहानी इन्ही दोनो के लिए कही गई है. नकुल ने जो 2 नाम लिए थे, शशिकला और नीरू, दोनो ही हमारे आगे टोल की 2 खास दोस्त थी, बिल्कुल प्यारी और मासूम. उन्हें भी मेरी तरह ही बड़ा किया गया था. दोनो की बहुत ही भव्य शादी हुई थी, ऐसा जो लोग कई वर्षों तक याद करे.


और शादी के बाद की कहानी नकुल बता दिया. शशिकला के केस में उसने बस इतना किया की पहले तो गांव से बाहर भागी, फिर पहला केस फाइल कर दी थी पति पर और डाइवोर्स लिया, फिर दूसरा केस अपने घरवालों पर. और दोनो जगह से कानूनन लड़कर अपना पूरा हक ली. फिर शशिकला पूरी सम्पत्ति को बेचकर कहां शिफ्ट हुई किसी को पता नहीं.. आखरी जो सुनी थी, वो मैंगलोर में है.


पापा घर के मुखिया की कुर्सी पर बैठे थे. उनके आते ही भाभी सर पर पल्लू डाले मां के साथ अपने कमरे का बाहर किसी समीक्षक कि तरह बैठी थी. और मेरे मनीष भईया, वो सबके चेहरे की भावना को पढ़ने वाले ऐसे समीक्षक थे, जो भेंर चाल चलने का इरादा बनाए थे. हवा जिस ओर रुख करेगी, उस ओर वो भी. वैसे शशिकला और नीरू के तरह, एक आवारा की कहानी तो इस घर में भी थी, बस मामला बढ़ने के बदले मेरी भाभी भी भईया के नक्शे पर चलने का फैसला ले लिया…


मै अपने मन में बहुत सी बातों की समीक्षा कर रही थी, तभी नकुल दरवाजे से चिल्लाया… "दादू, ये है बेड़ियां तोड़ने वाला काला चश्मा, और ये रहा कुछ पर्दा, दोनो में से जो मेनका दीदी के लिए सही लगे, उठा लो"..


ये गधा आज करना क्या चाह रहा था, लगता है या तो आज वाह-वाही बटोरेगा या जूते खाकर जाएगा. शांत तो उसकी जिंदगी आज के दिन नहीं रह सकती… तभी मेरे पापा खड़े हो गए और नकुल को घूरते हुए उसे एक थप्पड़ लगा दिए.. "आव बेचारा… इसकी तो, ये तो ब्लूटूथ पर किसी से चिपका था. कुत्ता कहीं का, इसे बाद में बताती हूं"..


पापा ने जैसी ही नकुल को थप्पड़ मारा, पहले तो मेरे दिल से निकला "बेचारा".... लेकिन थप्पड़ पड़ने के बाद जिस तरह से नकुल ने एक बार अपने बाए देखा, मेरी नजर भी उस ओर चली गई, पता चला भाई साहब ऑनलाइन प्रवचन को यहां बस बोल रहे थे. आवाज इसकी और सारांश किसी और का. वैसे जो उसके कान से छोटकु पिद्दी सा गिरा था, मेरा प्यारा ब्लूटूथ था. सॉरी ब्लूटूथ कहना थोड़ा जाहिल वाला हो जाएगा, वो था जेबीएल का एयरडोप. इसको बोली थी तेरे लिए नया मंगवा दिया है मेरा मत ले, लेकिन ये कब लेकर गया मुझे पता भी नहीं चला..


अच्छा हुआ इसे थप्पड़ पड़ा, चलो पापा बहुत घुर लिए नकुल को, आ भी जाओ और डाल दो पर्दा मेरे ऊपर. ऊप्स ! मेरे लिए थोड़ा मुश्किल हो गया ये पल, शायद इतनी खुश थी कि आखों से आशु आ गए, लेकिन मेरे आशु ना दिखे इसके लिए पापा ने वो काला चस्मा खुद अपने हाथो से मेरे आखों पर डाल दिए, किन्तु खुद के आशु नहीं छिपा पाए….


"नकुल ने जो भी बताया बिल्कुल सही बताया. हम सब अंत में यही करते है. लड़की पर शुरू से ही अपनी ख्वाहिशें थोप देते है, ना तो भावना दिखती है और ना ही कभी दिखते है अपनी बच्ची के अरमान. मैंने अपनी बेटी को ऐसे हालातो के लिए नहीं पाला की कोई उसे रुला सके. बस ये लड़का हमे थोड़ा देर से समझाया कि हम गलत पर्दे तले अपनी बच्ची को पाल रहे थे… मेनका तुमने हम पर भरोसा किया अब हम तुमपर करेंगे. जिम्मेदारी और जवाबदेही बस इतना ही याद रखना"…


पापा बहुत ज्यादा नहीं बोले, उनके इतना बोलकर जाने के बाद, किसी और ने भी कुछ नहीं बोला. बस सबके चेहरे पर हसी थी और मै नकुल को देख रही थी. भले ही वो ब्लूटूथ लगाकर नीतू से ही सारा ज्ञान क्यों ना ले रहा हो, लेकिन बात को सामने रखने के लिए जो हिम्मत और बात करने का जो टोन चाहिए था, उसे नकुल से बेहतर शायद ही कोई कर सकता था…


नकुल से मुझे बहुत सी बातें करनी थी, लेकिन शायद वो सच कह रहा था कि उसे संगीता को लेकर सहर जाना है. चुपके से उसने वो एयरडोप उठाया और वहां से चला गया, और मै मन ही मन उसे धन्यवाद कहती अपने कमरे में चली आयी…

Nakul ne Aakhir MENKA ko kahi bhi AKALE Ghume-Firne hi AAZADI Dilwa hi di. :hinthint2:

Aazadi to NEETU aur PUNAM ke Ghar walo ne bhi di thi, Saheli ke sath kahi bhi aane jane ki,
to Us AAZADI se kya hua, NEETU Paiso ke liye CHUDTE rahne ko Taiyar ho gayi aur PUNAM sirf Saheli ke sath jane ke karan Na Chahte hue bhi RAPE ka Sikar ho gayi aur ab aage bhi CHUDTI Rahegi. :fuck1:
 

aman rathore

Enigma ke pankhe
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चौथी घटना:- आखरी भाग






मै और नकुल लौट रहे थे. लता की कुछ बातें मेरे दिमाग में थी, बाकी दिमाग में कचरा भरने की ना तो कभी आदत थी और ना रहेगी… मै कुछ सोचती हुई नकुल से पूछने लगी…. "नकुल मै गांव अकेली क्यों नहीं घूम सकती?"..


नकुल:- किसने ऐसा तुमसे कहा कि तुम गांव अकेली नहीं घूम सकती..


मै:- सबने ही तो कहा है…


नकुल:- अच्छा कुणाल और किशोर (छोटे भईया मनीष के बच्चे) अकेले गांव घूम सकते है क्या? या फिर केशव और साक्षी (बड़े भैया महेश के बच्चे)..


मै:- ओह ऐसी बात है क्या !!! अच्छा और कोई बात नहीं है ना… खा मेरी कसम.


नकुल कुछ देर सोचते हुए… "नहीं और कोई बात नहीं है"..


मै:- फिर तू बोलने में वक़्त क्यों लिया…


नकुल:- बस कुछ सोच रहा था…


मै:- बता ना मुझे, जरूर मेरे अकेले बाहर घूमने को लेकर कुछ सोच रहा होगा…


नकुल:- जी नहीं मै बस ये सोच रहा था कि अकेले गांव में घूमने कहां जा सकती हो… हां चाय की टपरी है चौपाल पर वहीं जा सकती हो.


मै:- आ हा हा हा हा हा… आ हा हा हा हा हा.. नकुल मेरा हाथ पकड़ मैं हंसते हंसते कहीं गाड़ी से बाहर ना गिर जाऊं…


नकुल:- पागल, गांव घूमने तुम अकेली भी जा सकती हो. कभी अकेली गई नहीं ना इसलिए किसी को साथ लेकर चलने की तुम्हे आदत हो गई है, बस इतनी सी बात है… इस क्षेत्र में पड़ने वाले 8 गांव में सब अपने ही तो लोग है. अपने 6 घर में इतने फंक्शन्स हुए है, ऊपर से सावन के मेले में पूरे परिवार के साथ हमरा मंदिर इतना आना जाना होता है कि तुम भले किसी को जानो या ना जानो, सब तुम्हे जानते होंगे… फिर भी किसी को साथ लेकर चलना कोई गलत थोड़े ना है मेनका...

मै भी बाजार किराने का सामान लेने जाता हूं तो किसी दोस्त को लेकर जाता हूं.. आज तक किसी को अकेले घूमती देखी हो, शायद ही किसी को देखी होगी. क्योंकि घूमने के लिए भी कंपनी चाहिए और दुर्भाग्यवश हमारे पड़ोस में तुम्हे कंपनी देने वाला कोई नहीं, सिवाय मेरे. इसलिए मै तुम्हारे साथ चलता हूं… मुझे लगा तुम जैसी होसियार लड़की इतनी बात समझती होगी, मुझे नहीं पता था कि अब तक तुम ये बात नहीं समझती…


मै:- हां मै जानती थी ये सब, वो तो बस मै तुम्हारे विचार जानने को इकछुक थी कि तुम्हारी क्या राय है इसपर.. मुझे लगा कहोगे लड़की का अकेले निकालना सुरक्षित नहीं…


नकुल:- मेनका जहां असुरक्षित लगेगा वहां तो सब कहेंगे ना.. अच्छा एक बात बताओ कभी सुनी हो गांव में किसी लड़की के साथ छेड़खानी हुई हो..


मै:- नहीं ऐसा तो कभी नहीं सुना..


नकुल:- फिर गांव में तुम्हारा अकेले घूमना हम कैसे असुरक्षित मान ले. हम यहां अपने लोगो के बीच है.. ये सहर थोड़े है की चार मजनू सिटी बजाते चल रहे है और लोग अपने काम में लगे है.. यहां पति पत्नी भी सड़क पर साथ चलते है तो सलीखे से चलते है… ताकि छेड़खानी का केस समझकर कोई टांग हाथ ना तोड़ दे..


मै:- ओह समझ गई… मतलब मै कार से अकेली मंदिर आ सकती हूं..


नकुल:- इतनी भी दूर अकेली जाने की ख्वाइश ना कर, की चिंता में हमारे प्राण सुख जाए..


मै:- अच्छा और जब शादी करके जाऊंगी तब… फिर तो ये जगह, जिन लोगों के बीच पली बढ़ी, वो सब कहीं गुम हो जाएगा…


नकुल:- इतनी दूर की बात सोचकर परेशान मत कर… बाकी दिमाग की सारी शंका दूर हुई या कुछ अब भी दिमाग में घूम रहा है..


मै:- नाह ! अब कुछ नहीं.. और थैंक्स.. तू तो मेरी सहेली है.. बहुत दिनों से जिस बात का जवाब नहीं मिल रहा था, उसका जवाब बातो-बातो में मिल गया..


नकुल:- मुझे भी तो बता, या केवल अपने सवाल के जवाब चाहिए होते है..


मै:- नहीं रे गधे बस अब सब कुछ अच्छा लग रहा है… हर कोई अपने दोस्त के साथ कंपनी में घूमते है… वो नीतू पूनम के साथ. लता, मधु के साथ. मां छोटी भाभी के साथ. मेरे पापा, तेरे पापा के साथ. वैसे ही मै तुम्हारे साथ.. तू मेरा भतीजे के साथ मेरी सहेली भी.. मै तो शुरू से अकली घूम रही, बस आज ये बात क्लियर हुआ है..


नकुल:- हां लेकिन लोगो के पास बोल मत देना की ये मेरी सहेली है, वरना लोग कुछ और ही सोच लेंगे… वैसे देखा जाए तो मै, तेरे अलावा केवल नंदू चाचा और शशांक के साथ ही कहीं बाहर जाता हूं.. शशांक अब है नहीं और नंदू चाचा और नीलेश एक दूसरे में संपूर्ण है, आज कल तो दोनो के दोस्ती के किस्से गांव से लेकर सहर में मशहूर है. पिछले 2 महीने में दोनो ने मिलकर 40 लाख का प्रोफिट बनाया है.


मै:- अच्छा है ना अपने परिवार के लोग आगे बढ़ रहे है. तेरी ममेरी बहन कि किस्मत में ताला लगा है जो इतना कमाने वाले अच्छे लड़के को ना कर दी…


नकुल:- पापा को तो वो दूसरा लड़का ज्यादा पसंद है मेनका. मां भी नहीं चाहती की रिश्तेदारी में शादी हो, बाकी डिटेल तो वहीं लोग जाने…


मै:- वैसे तेरी संगीता दीदी है बहुत मस्त, ना इस बात की टेंशन की दूसरे उसके बारे में सोच रहे ना ही ताका झांकी की आदत, पड़ोस में क्या हो रहा…


नकुल:- हम सहर में रहते तो लाइफ ही कुछ और रहती.. वहां कम से लोगो को इतनी फुर्सत तो नहीं होती की किसके घर में क्या हो रहा है.... और यहां तो कोई यदि छींक दे, तो सड़क कर चलते लोग पूछ लेते है… "अरे फालना बाबू, मैंने सुना आज आपको छींक आयी. एक बार आयी थी या 2 बार. ये शर्दी वाली छींक थी या अचानक आ गई. अचानक अगर एक बार छींक आए तो बनता काम बिगाड़ जाता है.. छींकने से पहले कोई बड़ा काम तो नहीं ठान लिए थे"…


नकुल बोले जा रहा था और मै हंसे जा रही थी.. मै किसी तरह अपनी हंसी रोकती उसे कहने लगी कि बस भाई बस, छींक के पीछे इतने सारे सवाल तुझसे कौन कर गया… मेरी बात सुनकर वो भी हसने लगा… तकरीबन 11 बजे तक हम दोनों ही घर पर थे.


भाभी बिल्कुल तैयार बैठी हुई थी, शायद भईया का इंतजार कर रही हो. पूछने पर पता चला कि दोनो सहर जा रहे है. उनके जाने की वजह क्या पूछ बैठी, एक के बाद एक काम कि लिस्ट लंबी होती जा रही थी… तभी नकुल बीच में कहने लगा… "एक काम क्यों नहीं करते, मेनका दीदी को किराने के समान की लिस्ट दे दो, वो किराने का सामान ले आएगी, आप लोग यहां से सीधा सहर निकलो.."..


मां:- हां नकुल ये सही कह रहा है, मेनका और नकुल किराने का सामान ले आते हैं, तुम दोनो सहर निकल जाओ…


नकुल:- नहीं मै भी सहर जा रहा हूं संगीता दीदी को लेकर.. मै तो केवल मेनका दीदी की बात कर रहा था…


मां और भाभी दोनो एक साथ नकुल को घूरती हुई…. "तू पागल हो गया है क्या?"..


नकुल:- क्या हो गया सो…


मां:- वो इतनी दूर अकेली कैसी जा सकती है…


नकुल:- दादी आप जा सकती है अकेले…


मां:- मै चली तो जाऊं, लेकिन मुझसे इतना काम नहीं होगा.. फिर यहां का काम कौन देखेगा..


नकुल:- अभी की बात नहीं कर रहा की अभी जा सकती हो या नहीं.. वैसे बाजार तक अकेली जा सकती हो, सामान लाने..


मां:- जाती है थी, अब थोड़ी अवस्था हो गई, वरना आगे भी जाते ही रहती..


नकुल:- और चाची तुम..


भाभी:- मै क्यों नहीं जा सकती अकेले, जब ये सहर में टेंडर का काम देखते है और बाबूजी कटाई का, तो मै या मां जी ही तो जाया करते थे बाजार..


नकुल:- तो जब मैंने मेनका दीदी का नाम लिया तो ऐसे उछलकर मुझे क्यों कहने लगी… "पागल हो गया है क्या?"


"कौन पागल हो गया"… बाबूजी और मनीष भईया एक साथ दरवाजे से अंदर आए और बाबूजी ने नकुल से पूछा…


नकुल:- यहां मेरे अलावा और कोई पागल आपको नजर आ रहा है क्या दादा..


पापा:- मनीष इसे भी साथ में सहर लिए जा, रांची के बस में चढ़ा देना और ड्राइवर को बोलना पागलखाने छोड़ आने…


मै:- हां सब हाथ धोकर पर जाओ इसके पीछे..


मनीष भईया:- वैसे भतीजा लाल किस बात को लेकर सभा का आयोजन कर रहे..


नकुल:- अकेली दादी बाजार से किराना का समान ला सकती है. अकेली चाची भी जा सकती है लेकिन दीदी अकेले नहीं जा सकती… इस सवाल के लिए मै पागल घोषित हो गया…


पापा:- हम्मम ! कुछ चीजें होती है, जो जितना पर्दे के दायरे में रहे, उतनी अच्छी लगती है नकुल. तुम्हारी दादी या चाची का जाना बस उस वक़्त की मजबूरी हो सकती है, लेकिन हमारी कभी इक्छा नहीं रही दिल से.. क्या समझे..




नकुल:- हां दादा आप सही कहे. हम तो अपने ओर से घर के लेडीज को पूरा सहुलियत ही देते है. घर में उन्हें कैसे रहना चाहिए, कैसे बात करना चाहिए, किससे कितना बात करना चाहिए.. कोई बाहरी यदि घर में बैठा हो तो कितना उनके सामने आना चाहिए, कितना नहीं… इतना कुछ शुरू से सीखाने के बाद उन्हें बाहर अकेले भेजने में चिंता ही बनी रहती है. चिंता इस बात की नहीं होती की हमने जो सिखाया वो हमारी घर की लेडीज बाहर कर रही होगी की नहीं… भरोसा दूसरे का नहीं होता, की उनकी नजर और नजरिया कैसा है, फिर दिल में एक अनचाहे बदनामी का डर…

फिर कहानी आगे बढ़ती है. स्वाभाविक सी बात है जितने प्यार से और जितने संस्कारो के साथ अपनी लाडली बेटी को पाला, उसी के अनुसार उसके जीने का तरीका और सोचने का नजरिया भी होगा. फिर एक दिन बाजार के हाईवे के पास वाले 10 एकड़ जमीन, जो बेटी की शादी के लिए रखे है, उसका हम वैल्यू निकालने बैठेंगे.. ओह तकरीबन 6 से 8 करोड़ की वैल्यू आती है. ओह, इतने दहेज में एक आईएएस (IAS), आईपीएस (IPS), या उच्च सरकारी पद वाला दामाद मिल सकता है. लेकिन वो लड़के बड़ी मुश्किल से गांव की लड़की को देखने के लिए राजी होते हैं. और जब लड़की देखकर जाता है, तो शादी से इंकार देता है, क्योंकि उसे पता है हमारी लड़की को वो अपने किसी पार्टी फंक्शन में ले जाएगा, तो वो वहां के माहौल से मैच नहीं कर पाएगी…

1 से 2 करोड़ दहेज में कोई बड़ा बिज़नेस मैन भी मिल सकता है, लेकिन क्या करे उसके साथ भी वही समस्या है, गांव की लड़की है, सहर में उसे हर चीज सीखना होगा, लेकिन फिर भी जिस जगह में पली है और जिस माहौल में ढली है उसका असर तो कुछ ना कुछ रह ही जाना है…

तो कहानी का अंतिम भाग में ये बचता है कि अंत में अपनी तरह का ही एक जमींदार फैमिली खोज दो. लेकिन क्या फायदा जो अच्छे लड़के होते है वो सहर में नौकरी कर रहे होते है और जो कतई आवारा होते है वो गांव में बचे रहे जाते है.. मै ऐसा नहीं कह रहा की सभी आवारा होते है, लेकिन लड़की की शादी की बात अब मां बाप अकेले थोड़े तय करते है, लड़का अच्छा है, लड़का अच्छा है ऐसा कहने वाले बहुत से रिश्तेदार तो रिश्ता ना होने पर तो मुंह भी फुला लेते है..

अब बेचारे मां बाप 4 बुरा लड़का छांटने के बाद आपस में ही विचार करते है, लड़की की उम्र निकली जा रही. एक ओर मां बाप ये सोच रहे होते है और दूसरी ओर हवा भी बहना शुरू हो जातो है… "सुना फलाने के बेटे को देखने गए थे, राजा परिवार है उसका, इतना सुखी संपन्न. दादा उसके खूंटे में हाथी को बांधकर पालते थे. ऐसे घर में रिश्ता थोड़े ना होना था, छांट दिया होगा लड़के वालों ने"

अब ये उड़ती-उड़ती खबर मिल गई की गांव वाले कह रहे है कि अच्छा घर परिवार नहीं मिलेगा. लो जी हो गया फोकस शिफ्ट. अब घराना देखो पहले. ऐसा घर होना चाहिए कि 5 बीघा खेत और बिक जाए तो गम नहीं, लेकिन खानदान ऐसा खोजना जहां एक नहीं 2 हाथी को खूंटे से बांध कर पालते थे…

घराना मिल गया शानदार और लड़का काम चलाऊ. फिर यही निकलता है शादी के वक़्त, "अब क्या कर सकते है आज कल हर लड़के की यही कहानी होती है, थोड़ा बहुत तो सब मनचले होते है." "दारू शराब क्या हम नहीं पीते.. शादी के बाद सुधार जाएगा"….

बस खुद के विश्वास के भरोसे की शादी के बाद लड़का सुधार जाएगा, हम अपने घर की लाडली को पूरे रिस्क के साथ ऐसे लड़के से बांध देते है.. आगे सोचते रहो सुधरा की नहीं सुधरा, क्योंकि हमने जिस माहौल में अपनी लड़की को पाला है, फिर वो कभी कहने नहीं आएगी की मुझे ऐसे लड़के के गले क्यों बांध दिया.

सबसे मज़ेदार तो अब आएगा.. पति को सुधारने के लिए यदि लड़की ने जोड़ जबरदस्ती की, तो पहले तो उसे थप्पड़ पड़ेंगे और तब भी ना लड़की मानी और उस लड़के को आगे भी सुधारने कि कोशिश करती रही, तो बड़ा प्यारा सा खबर मिलेगा, "लड़की का किसी के साथ पहले से चक्कर था. शादी के बाद भी गांव में किसी से चक्कर है"… फिर बचपन से हमारे अनुसार दिए संस्कार में पली अपनी लाडली बेटी से ये पूछते भी देर नहीं लगती… "हमारे परवरिश में कौन सी कमी रह गई थी जो तूने हमारी नाक कटवा दी."

अब पति के लात्तम-जूते से वो ढीट हो गई, तो ऐसे सिचुएशन में शाशिकला आंटी की तरह बन जाती है, जिसका नाम लेकर आज भी गांव वाले अपशब्द बोल देते है. या फिर नीरू आंटी वाली कहानी होगी, रात को सोएगी और जिल्लत की वो अपनी जिंदगी को कहेगी, सर अब बस.. लेकिन यहां भी शशिकला जैसा ही हाल होगा है. लोग नीरू जैसे लड़की के मरने के बाद भी कहेंगे, लड़की में ही दोष था और पूरी उम्र उसके खानदान को घसीटते रहेंगे"..

कमाल है ना मेनका दीदी जैसी साफ सुथरी माहौल में पली लड़की को ऐसा कुछ झेलना परता है. जबकि कुछ नाम मै परिवार के सामने नहीं गिना सकता जिसकी परवरिश किन माहौल में हुई थी और उसकी जिंदगी कैसी कट रही..

आप लोग ये नहीं समझिए की मै आपको मेनका दीदी का ग़लत गार्डियन कह रहा. लेकिन कम से कम उन्हें खुद से खड़ा तो होने दो. खुद से माहौल को इतना तो परखने दो की वो इतना तो मुंह खोल सके कि आपको कह सके "पापा ये लड़का पसंद नहीं". रिश्ते की बात करने सहर से आए अपने पसंदीदा लड़के को सिर्फ इस वजह से ना खो दे, क्योंकि देखा सुनी के वक़्त मेनका दीदी एक शब्द ना वो लड़के से बात कर पाए, और ना आपसे कह पाए, पापा ये लड़का पसंद था, लेकिन अफ़सोस की किसी लड़के से बात करते वक़्त मेरा मुंह ही नहीं खुलता.

कल को वो सहर का अच्छा लड़का, मेनका दीदी के हाव-भाव और बातचीत से ये ना कहे कि.. "नहीं ये तो गांव की है"… खैर आप लोग बेटी को पालते ही है शादी के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए, इसलिए शादी कि बात पर समझाया. वरना हम से भी थोड़ा पिछड़े गांव के है राजवीर चाचा और उनकी बेटी प्राची दीदी से आप हॉस्पिटल में मिल चुके हैं। शायद दिल से पहली आवाज़ यही आएगी होगी की कितनी संस्कारी है ये लड़की, जबकि वो शाम के 7 बजे तक वहां हमसे हॉस्पिटल में मिली, बेझिझक उन्होंने सब से बात किया. दुकान में ना जाने कितने अंजान लोगो से बेझिझक बात करती होंगी उसकी बात ही छोड़ दीजिए. गांव आयी तो बिल्कुल गांव के माहौल में और किसी कलेक्टर से बात करना हो तो बिल्कुल अलग अंदाज में.

एक बात और, वो जहां से पढ़ी है ना, बिहार के कई जिले का एक भी स्टूडेंट उस इंस्टीट्यूट की सीढ़ियां नहीं चढ़ा होगा. अपने खुद के शॉप को देखती है और प्राची दीदी के बारे में बाकी की डिटेल मुझे देने कि जरूरत नहीं… चलता हूं मै, शायद दादा को कुछ और ज्यादा पर्दे की जरूरत ना पड़ने लगे. क्योंकि कल से तो नंदू चाचा की मां ने कहना भी शुरू कर दिया है, "मेनका अब जवान लगने लगी है, उसपर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है"… अब ये बात दादी भी सुन ही लेगी फिर उन्हें भी मेनका दीदी जवान लगने लगेगी.. उसके बाद फिर पूरे खानदान को… अब छोटा हूं तो दादा की इतनी तो मदद कर ही सकता हूं कि पर्दे के कपड़े का पूरा थान खरीदकर ले आऊं.



नाह ! ये लड़का गंगा में खड़ा होकर भी का देता की इसने ये बात खुद से सोचकर बोली है, तो भी मै मान नहीं सकती थी. बचपन से साथ रही हूं, ये भी जानती हुं ये कितना धूर्त है, लेकिन इतनी सफाई से इतनी गहराई की बात करना तो इससे संभव नहीं. फिर कैसे कैसे कैसे.…. खैर अभी इसपर सोचने से पहले घर के लोगो को देख लूं..


मन के ख्याल को मै विराम देती सबके चेहरे देखने लगी. भाभी और भैया के चेहरे पर तो साफ लिखा था कि जैसे वो गांव के आवारा की कहानी इन्ही दोनो के लिए कही गई है. नकुल ने जो 2 नाम लिए थे, शशिकला और नीरू, दोनो ही हमारे आगे टोल की 2 खास दोस्त थी, बिल्कुल प्यारी और मासूम. उन्हें भी मेरी तरह ही बड़ा किया गया था. दोनो की बहुत ही भव्य शादी हुई थी, ऐसा जो लोग कई वर्षों तक याद करे.


और शादी के बाद की कहानी नकुल बता दिया. शशिकला के केस में उसने बस इतना किया की पहले तो गांव से बाहर भागी, फिर पहला केस फाइल कर दी थी पति पर और डाइवोर्स लिया, फिर दूसरा केस अपने घरवालों पर. और दोनो जगह से कानूनन लड़कर अपना पूरा हक ली. फिर शशिकला पूरी सम्पत्ति को बेचकर कहां शिफ्ट हुई किसी को पता नहीं.. आखरी जो सुनी थी, वो मैंगलोर में है.


पापा घर के मुखिया की कुर्सी पर बैठे थे. उनके आते ही भाभी सर पर पल्लू डाले मां के साथ अपने कमरे का बाहर किसी समीक्षक कि तरह बैठी थी. और मेरे मनीष भईया, वो सबके चेहरे की भावना को पढ़ने वाले ऐसे समीक्षक थे, जो भेंर चाल चलने का इरादा बनाए थे. हवा जिस ओर रुख करेगी, उस ओर वो भी. वैसे शशिकला और नीरू के तरह, एक आवारा की कहानी तो इस घर में भी थी, बस मामला बढ़ने के बदले मेरी भाभी भी भईया के नक्शे पर चलने का फैसला ले लिया…


मै अपने मन में बहुत सी बातों की समीक्षा कर रही थी, तभी नकुल दरवाजे से चिल्लाया… "दादू, ये है बेड़ियां तोड़ने वाला काला चश्मा, और ये रहा कुछ पर्दा, दोनो में से जो मेनका दीदी के लिए सही लगे, उठा लो"..


ये गधा आज करना क्या चाह रहा था, लगता है या तो आज वाह-वाही बटोरेगा या जूते खाकर जाएगा. शांत तो उसकी जिंदगी आज के दिन नहीं रह सकती… तभी मेरे पापा खड़े हो गए और नकुल को घूरते हुए उसे एक थप्पड़ लगा दिए.. "आव बेचारा… इसकी तो, ये तो ब्लूटूथ पर किसी से चिपका था. कुत्ता कहीं का, इसे बाद में बताती हूं"..


पापा ने जैसी ही नकुल को थप्पड़ मारा, पहले तो मेरे दिल से निकला "बेचारा".... लेकिन थप्पड़ पड़ने के बाद जिस तरह से नकुल ने एक बार अपने बाए देखा, मेरी नजर भी उस ओर चली गई, पता चला भाई साहब ऑनलाइन प्रवचन को यहां बस बोल रहे थे. आवाज इसकी और सारांश किसी और का. वैसे जो उसके कान से छोटकु पिद्दी सा गिरा था, मेरा प्यारा ब्लूटूथ था. सॉरी ब्लूटूथ कहना थोड़ा जाहिल वाला हो जाएगा, वो था जेबीएल का एयरडोप. इसको बोली थी तेरे लिए नया मंगवा दिया है मेरा मत ले, लेकिन ये कब लेकर गया मुझे पता भी नहीं चला..


अच्छा हुआ इसे थप्पड़ पड़ा, चलो पापा बहुत घुर लिए नकुल को, आ भी जाओ और डाल दो पर्दा मेरे ऊपर. ऊप्स ! मेरे लिए थोड़ा मुश्किल हो गया ये पल, शायद इतनी खुश थी कि आखों से आशु आ गए, लेकिन मेरे आशु ना दिखे इसके लिए पापा ने वो काला चस्मा खुद अपने हाथो से मेरे आखों पर डाल दिए, किन्तु खुद के आशु नहीं छिपा पाए….


"नकुल ने जो भी बताया बिल्कुल सही बताया. हम सब अंत में यही करते है. लड़की पर शुरू से ही अपनी ख्वाहिशें थोप देते है, ना तो भावना दिखती है और ना ही कभी दिखते है अपनी बच्ची के अरमान. मैंने अपनी बेटी को ऐसे हालातो के लिए नहीं पाला की कोई उसे रुला सके. बस ये लड़का हमे थोड़ा देर से समझाया कि हम गलत पर्दे तले अपनी बच्ची को पाल रहे थे… मेनका तुमने हम पर भरोसा किया अब हम तुमपर करेंगे. जिम्मेदारी और जवाबदेही बस इतना ही याद रखना"…


पापा बहुत ज्यादा नहीं बोले, उनके इतना बोलकर जाने के बाद, किसी और ने भी कुछ नहीं बोला. बस सबके चेहरे पर हसी थी और मै नकुल को देख रही थी. भले ही वो ब्लूटूथ लगाकर नीतू से ही सारा ज्ञान क्यों ना ले रहा हो, लेकिन बात को सामने रखने के लिए जो हिम्मत और बात करने का जो टोन चाहिए था, उसे नकुल से बेहतर शायद ही कोई कर सकता था…


नकुल से मुझे बहुत सी बातें करनी थी, लेकिन शायद वो सच कह रहा था कि उसे संगीता को लेकर सहर जाना है. चुपके से उसने वो एयरडोप उठाया और वहां से चला गया, और मै मन ही मन उसे धन्यवाद कहती अपने कमरे में चली आयी…
:superb: :good: :perfect: awesome update hai nain bhai,
Behad hi shandaar lajawab aur amazing update hai bhai,
aaj to nakul ne apne dumdaar speech se sabka dil hi jeet liya hai aur saath hi hamesha ki tarah thappad bhi kha liya hai,
Bhale hi shabd uske nahin the lekin present usne bahot hi shandaar andaaz mein kiya hai,
ab dekhte hain ki aage kya hota hai,
 

Rahul

Kingkong
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wonderfull update bhai ji
 
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मैंने पहले भी कहा था कि नकुल का कैरेक्टर मुझे बहुत अच्छा लगता है । इतनी बड़ी बात... इतनी गुढ़ बात....ऐसी बात जिसे आज भी हिन्दुस्तान की नब्बे फीसदी जनसंख्या...चाहे शहरों की हो या गांव की , समझ नहीं पाई है.... उसे बड़ी ही खूबसूरती से समझा दिया ।
लड़कियो की शादी.... एक बहुत ही सोच समझ कर किया जाने वाला फैसला होता है । हम सिर्फ नाम , जमीन और घराना देखकर लड़की की शादी तय कर देते हैं..... लड़का कैसा है ? क्या काम करता है ? उसका आचरण कैसा है ? इस पर कोई ज्यादा तवज्जो नहीं देता ।
अगर भगवान न करे ! कहीं लड़का नालायक निकल गया या लड़की बिधवा हो गई तो लड़की बेचारी क्या करेगी ! इसलिए लड़कियों को पढ़ाई लिखाई के साथ उसके आत्मविश्वास और बुद्धि की भी ज्ञान देना निहायत जरूरी है । जैसा कि शशिकला ने किया । शशिकला अपने रूढ़िवादी फेमिली और ससुराल से बहुत ही अच्छे तरीके से लड़कर अपनी फ्यूचर सुरक्षित की ।

बहुत ही ऊंचे स्तर का अपडेट था नैन भाई । ग्रेट ! आउटस्टैंडिंग !
 

Tinkuram

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Wakai above Everest. Superb Writing and great feelings with respect to the Women specially daughters. Lagta hai bluetooth per didi hee rahi hongi.
 
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