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Thriller 100 - Encounter !!!! Journey Of An Innocent Girl (Completed)

nain11ster

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अध्याय 11 भाग:- 3 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)






मै सब लोगो से मिलकर निकल गई. 11 बजे के आसपास मै और नकुल मासी के सहर मे थे. एक तो बस के 4 घंटे का उबाऊ सफर, ऊपर से ये भादो महीने की मूसलाधार बारिश. किसी बस स्टैंड पर रुकना तो जैसे सजा हो जाता है. इतनी गंदगी और मक्खियां भिंभनती है, कि मिजाज खराब हो जाए...


"क्या करे नकुल, बारिश तो बहुत तेज हो रही है".. मै उतरा सा मुंह बनाकर पूछने लगी. नकुल भी जान रहा था कि मै ऐसे क्यों पूछ रही हूं. वो मुझसे पूछने लगा मौसा या मौसी को सूचना तो है ना कि हम 7 बजे की बस से निकले है.


हम दोनों बात कर ही रहे थे कि तभी हमे लगा कोई जोर लगाकर हमे पुकार रहा है.. "मेनका, नकुल"..


मौसी और मौसा दोनो दूर नजर आ रहे थे और हाथ के इशारे से हमे अपने पास बुला रहे थे... "ये मेंटल लोग कभी नहीं सुधरने वाले... गाड़ी है पास में तो ये ना की हमारे पास आ जाए, तो उल्टा भींगकर हमे आने बोल रहे…. फोन करके उन्हे बुलाओ ना.. मौसा तो एक बाद सुधर भी जाएंगे, पर मै अपनी इस मासी का क्या करूं. कभी-कभी तो शक होता की ये मेरी मां की अपनी बहन है या सौतेली"..


नकुल:- मासी से पूछकर आऊं क्या, दादी की अपनी बहन है या सौतेली..


मै:- जा अभी जा नालायक और पूछ कर आ.. जा ना खड़ा क्यों है.. और उनको यहां लेकर आने भी बोल देना.....


नकुल:- अब यहां की गंदगी का गुस्सा मुझ पर क्यों उतार रही हो...


"तू ऐसे नहीं मानेगा, जा अब पूछ भी लेना और उनको कहना कार यहां आकर लगा दे"… नकुल का मोबाइल उसके हाथ से लेकर मै उसे पानी में धकेलती हुई कहने लगी... अपनी आंख सिकोड़ कर वो मुझे एक बार घूरा. उसके चेहरे की बनावट देखकर मै हसने लगी और नकुल अपने बाल को पीछे समेटते हुए मासी के कार के पास चल दिया...


कुछ देर उनके बीच बातचीत हुई, फिर वो लोग कार को घूमाकर उस ओर ले आए जहां मै खड़ी थी.… कार का गेट खोलकर जैसे ही मै पीछे की सीट पर बैठने लगी... "मेनका संस्कार भुल गई क्या, मै बैठी हूं, तेरे मौसा बैठे है, कोई प्रमाण नहीं, सीधा जाकर पीछे बैठ रही है.."


मै:- ओ मेरी भोली मासी, कार के दरवाजे के बाहर खड़े होकर प्रणाम करूंगी तो मै भिंग जाऊंगी... घर चलो दंडवत प्रणाम करूंगी..


कविता मासी:- मेनका, नकुल को रोक.. वो भिंगा है, कार की सीट भिग जाएगी...


मै:- हां तो क्या हुआ मासी, सीट कवर गंदे हो गए है.. गीला हो जाने दो मै अच्छे से साफ करके, सूखा के कार में सीट कवर चढ़ा दूंगी. तू क्या हमारी बात सुन रहा है, अंदर आ ना..


नकुल:- नहीं, सोच रहा हूं मासी से वो बात यहीं कार के बाहर खड़े हो कर पूछूं या अंदर बैठकर..


मासी:- कौन सी बात..


मै:- वही की कार को वहां से घूमाकर मेरे पास लाने, और मेरे पास से वापस सड़क के ओर घूमाने मे, कार का कितना पेट्रोल जल गया. और तू होशियार चंद, जल्दी बैठ...


मासी मुझे घूरती हुई... "आते ही नाटक शुरू. यहां अंदर कार लाने की मनाही है.. ट्रैफिक रूल्स हमारी सुरक्षा और सुहौलियत के लिए होते है.. उन्हे फॉलो करना चाहिए...


शायद परिचय की जरूरत ना परे. मिलिए मेरी प्यारी कविता मासी और सौरव मौसा जी से. हमारे परिवार के ये अनमोल रत्न है, जिंदगी जीने का अपना ही अंदाज. मासी की एक बड़ी बेटी है अनुराधा, जो मासी के घर की जान थी, 2 साल पहले उनकी शादी हो गई. उसके बाद मुझसे साल भर छोटे उनके जुड़वा बच्चे थे, एक गौरी जो अपनी ही दुनिया में रहती थी और जरूरत से ज्यादा कभी मुंह ही नहीं खोलती. दूसरा उसका भाई मैक्स, जो कभी घर पर टिकता ही नहीं था.


वैसे उसका नाम तो मासी ने मिहिर रख दिया था, सास बहू की सीरियल से कुछ ज्यादा ही प्रेरित होकर, लेकिन उसका बेटा जब 5th क्लास में गया तो खुद ही अपना फैंसी नाम रखा और घर वालों को भी यही नाम पुकारने पर मजबूर कर दिया. वैसे आपको भी उसके नाम से प्यार हो ही जाएगा जब पुरा नाम बोलेंगे.. मैक्स झा...


सबसे पहले तो दरवाजे पर ही मै मौसा और मासी को पाऊं छूकर प्रणाम की, वरना पता चलता गुस्सा होकर कहीं मां को ना फोन लगा देती. वैसे तो मेरी मां और मासी के जन्म के बीच 9 साल का अंतर है, लेकिन दोनो बहन के बीच का अटूट प्रेम इतना है कि, एक बहन की शिकायत पर दूसरी बहन अपने बच्चे को पहले चप्पल से मारेगी, फिर पूछेगी भी नहीं की ऐसा क्यों किया. सीधा बोलेगी दोबारा शिकायत नहीं आनी चाहिए... बहुत ही खतरनाक टाइप वाला प्रेम है.


मै और नकुल घर के अंदर पहुंचे. हमारे आने की खबर जब गौरी पास पहुंची तो 2 मिनट के लिए वो अपने कमरे से बाहर आयी, 2-4 लाइन की बात हुई और वो वापस अपने कमरे में. ऐसा नहीं था कि गौरी कम बोलती थी तो मेरे पास नहीं रहती या मुझसे बात नहीं करती थी. चूंकि मेरे साथ नकुल था, इसलिए उस जगह से वो कटना ही सही समझी... सदा की तरह मैक्स इस भारी बरसात मे भी कहीं गायब ही था, पूछने पर पता चला कि वो स्टडी करने अपने दोस्त के पास गया है.


मासी ने मुझे अनुराधा दीदी वाला कमरा दे दिया और नकुल को ऊपर वाला गेस्ट रूम. हम दोनों अपने अपने कमरे ने सैटल हो गए. अभी साढ़े ग्यारह बज रहे थे, और सुबह नाश्ता ना करके निकलने के कारन मुझे भुख काफी तेज लग रही थी.


शायद मेरे जैसा हाल नकुल का भी था, इसलिए कुछ देर इंतजार के बाद जब मासी ने मुझे खाने का निमंत्रण नहीं दिया, तो खाना मांगने खुद ही पहुंच गई. मेरे ही साथ नकुल भी पहुंचा. मैंने खाना तो मांगा लेकिन पता चला अभी कम से कम घंटे भर और लगेंगे. मै और नकुल मासी से कहने लगे, घर में कुछ खाने लायक परा हो तो वही दे दो तबतक के लिए. मासी गुस्सा करती हुई कहने लगी, अभी चटर-पटर खाएगी तो खाने में क्या खाएगी, एक घंटे रुक जा...


मै और नकुल मासी से खाना देने की जिद कर रहे थे, इतने में गौरी बाहर निकली... "शोध बताते है कि एक निश्चित समय तक खाना ना खाने से, डायबिटीज नहीं होता. इन्फ्लेमेशन कम किया जा सकता है जिस कारन से भविष्य में होने वाले रूमतोइड आर्थराइटिस, हार्ट डीसिस और अन्य रोगों से बचा जा सकता है. हृदय में ब्लड सर्कुलेशन को भी सही करता है, जिससे ब्लड प्रेशर नॉर्मल रहता है, उसी के साथ कोलेस्ट्रॉल भी मेंटेन करता है."...


हम इतने भूखे थे कि कुछ भी खाने को तैयार थे और ये महारानी थी कि खाना ना खाने के फायदे गिना रही थी. मै और नकुल तो एक दूसरे का मुंह ही देख रहे थे. तभी उसने आंखो के इशारे से पूछा, गौरी का पागलपन कुछ ज्यादा ही बढ़ा हुआ लगता है"… मै भी अपने चेहरे और आंखो के एक्सप्रेशन से जवाब देने लगी… "अभी 10-12 दिन और यहां रहना है".. और फिर हम दोनो ही मायूस नजरो से किचेन को देखने लगे...


फिर तो मायूस होकर किचेन के दरवाजे से हम दोनों ही मेरे कमरे में आ गए. खाना का वक्त एक्सटेंड होते-होते डेढ़ (1.30pm) बज गए. हम दोनों बुआ भतीजा खाने के इंतजार मे और बुलवा अब तक नहीं आया... "मेनका भूख से मेरे पेट मे दर्द होने लगा है"..


मै:- लगता है मेरा छट्ठा सोमवार का व्रत चल रहा हो जैसे. नकुल जब व्रत मे रहती हूं तब उतनी भूख नहीं लगती, आज क्यों इतनी भूख लग रही..


नकुल:- अनुराधा दीदी को कॉल लगाओ ना.. उनको बोलो कुछ दिन के लिए यहां चले आए, वरना हम दोनों भी इन जैसे कहीं ना हो जाए..


मै:- मती मारी गई थी जो मैंने पापा से कहा कि मासी के घर जाना है... यहां सबके साथ आने मे ही फायदा था. खाने को तरसा दी..


मै जैसे ही अपनी बात समाप्त की, हम दोनों के नाक तक खाने की खुशबू पहुंची. मै उत्सुकता से नकुल को देखने लगी और नकुल उतने ही ज्यादा उत्सुकता से मेरी शक्ल देख रहा था.. हम दोनों चिल्लाते हुए डाइनिंग टेबल के ओर भागे... "मटन.…"


मै आते ही चिल्लाते हुए कहने लगी... "मासी तुम सुपर्ब हो, आह इतने भूख के बाद ऐसे खाने का तो मज़ा ही आ जाएगा"..


नकुल:- दीदी मै प्लेट में चावल निकालता हूं, और तुम मटन निकलो..


मासी:- जी नहीं.. तुम दोनो पहले हाथ धोकर आओ, फिर सबको आ जाने दो, एक साथ खाएंगे..


हम दोनों ही अपना सर हां मे हिलाकर जल्दी से हाथ धोकर वापस पहुंचे. तभी फिर मासी कहने लगी... "केवल पानी से हाथ धो आये, जाओ हैंडवास से अच्छी तरह से हाथ धो पहले"..


"अांह, इसकी तो.. मेंटल कहीं की"… हम दोनों वापस से उठकर गए और हैंडवाश से अच्छी तरह से हाथ धोकर चेयर पर बैठ गए. मटन की खुशबू हम दोनों को ही दीवाना बना रही थी. 1 मिनट... 3 मिनट... 5 मिनट... 10.. मिनट.. 15 मिनट... "दीदी ये खाना लगाकर भुल गए क्या, हमे खाना भी खाना है"..


मै:- नकुल यहां सब पागल है. तू एक काम कर, एक ही प्लेट मे चावल और मटन निकाल ले, हम जल्दी से ऊपर जाते है और खाकर प्लेट नीचे आराम से साफ करके रख देंगे..


नकुल मेरी बात पर अमल करते उठा और प्लेट में चावल लेकर जैसे ही मटन कि हांडी का ढक्कन खोला... "अरे यार, कंजूसी की अति है.. दीदी यहां आओ".. मै जब वहां जाकर देखी तो कुल 6 पीस थे हांडी मे और पुरा ग्रेवी... "भाई ये तो 6 लोगों के लिए 6 पीस मटन लेकर आए है"..


नकुल:- हां तो 3 तेरे 3 मेरे.. ये लोग ग्रेवी खाएंगे.. चल ऊपर..


एक ही प्लेट मे चावल और मटन लेकर हम दोनों ऊपर के कमरे में चले गए और जल्दी,-जल्दी खाकर नीचे आ गए. मै नकुल को बाहर चारो ओर नजर रखने का बोलकर, जल्दी से किचेन मे घुसी. प्लेट को साफ करके, पोछकर और सुखाकर रख दिया.


बाहर आकर डाइनिंग टेबल का जायजा लिया और भागकर मै अपने कमरे में आ गई. मै और नकुल आराम से आपस में बात करते हुए मासी के बुलाने का इंतजार करने लगे. तकरीबन ढाई बजे (2.30 pm) मासी ने हम दोनों को आवाज देकर बाहर बुलाई..


खाना लगा, प्लेट में चावल सजी और जब मटन कि हांडी मे करछुल घुमाया गया तो वहां ग्रेवी के अलावा कुछ भी नहीं था. मासी मौसा को घूरती हुई... "आपने मटन खाया है"..


मौसा:- पागल हो क्या मै तो अभी आया हूं..


मासी:- गौरी क्या तुमने..


गौरी:- मांस एक ऐसा भोजन है..


मासी:- ऐसा भोजन है जो 24 घंटे से 36 घंटे तक शरीर में पचता रहता है.. तो क्या पचने के लिए तुमने अपने शरीर में डाल ली....


गौरी:- नहीं.. मैंने नहीं खाया, आपके बुलाने पर ही मै आयी हूं...


मासी:- मेनका, नकुल क्या तुमने खाया है..


मौसा:- मेनका, नकुल तुम दोनो चलो मेरे साथ, हम बाहर खाने जा रहे है. तबतक तुम सोचती रहो मटन गया कहां...


मासी:- खाने के टेबल पर नाटक मत कीजिए.. मै रात वाले मटन के पीस ला देती हूं...


हमे की, रात वाला लाओ या दिन वाला.. जल्दी लाओ खाकर हम डाकर लेते हुए सोने चले... मासी रात के खाने वाला मटन ले आयी. रात के हिस्से में भी 1 पीस मटन ही था. हम खाते गए और तारीफ करते गए.. खा पीकर हम दोनों ऊपर वाले रूम मे ही चले गए.. हमरे पीछे पीछे मौसा जी भी पहुंचे... "तुम दोनो को कविता की बात का बुरा तो नहीं लगा"..


मै:- नहीं मौसा जी बिल्कुल नहीं..


मौसा:- क्या बताऊं मै, इसको बदलते-बदलते मै ही बदल गया, लेकिन ये है कि बदलने का नाम नहीं लेती. सॉरी बच्चों, तुम लोग इतनी दूर से आए और खाने के तबके पर ऐसा हो गया....


नकुल:- मौसा कुछ दिन के लिए अनुराधा दीदी को बुला दो यहां, वरना हम तो बोर है जाएंगे..


मौसा:- चिंता मत करो, मैंने पहले ही कॉल कर दिया है, वो शाम तक आ जाएगी.. और तुम्हारी मासी के लिए मै अभी से एडवांस माफी मांग लेता हूं. इसके कारन लोगो ने हमारे यहां आना छोड़ दिया है. इसको तो शर्म भी नहीं आती की लोगों का स्वागत कैसे होता है. ये तो अपने दामाद तक को नहीं छोड़ती..
 

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अध्याय 11 भाग:- 4 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)






मै:- जाने दो मौसा जी.. आप दुखी ना हो.. कुछ भी हो, आप तो रहोगे मेरे मौसा ही और वो मेरी प्यारी मासी...


मौसा:- हां होगी तो तुम भी अपनी मासी की ही. चाहे वो कुछ भी कहे और कुछ भी करे.. मै थोड़े ना प्यारे मौसा हो सकता हूं..


मै:- आप तो बेस्ट हो मौसा जी.. आप से ज्यादा जिंदादिल इंसान तो हमारे परिवार में नहीं..


मौसा:- हा हा हा हा, थैंक्स बेटा. ठीक है मै जा रहा हूं. ये एक कार की चाभी है, मन ना लगे तो मेरे पास चले आना..


मै:- ठीक है मौसा जी आ जाऊंगी...


मौसा जी के जाने के बाद हम दोनों उन्हीं की बात करने लगे. उनके लिए मुंह से बस "बेचारे" ही निकलता था. खैर मासी को जो भी करना हो लेकिन हम दोनों बुआ भतीजे ने तो पुरा दबाकर खाया था. इसलिए मै नकुल को उसके कमरे में छोड़कर, सीधा अपने कमरे में आ गई और चैन की नींद लेने के लिए आराम से बिस्तर पर लेट गई.


वैसे मटन के लिए पागलपन की कहानी सिर्फ इतनी सी थी कि हमारे पूरे खानदान में बस मुझ जैसे कुछ ही नमूने है, जो मटन खा लेते है. बाकी सभी सुध रूप से बिल्कुल नहीं खाने वाले है, और पता चल जाए तो प्राण खींच लेने वाले हैं. वैसे मुझे ये खाने की आदत अपने बड़ी भाभी सोभा से लगी थी और मुझसे नकुल को. हम तीनो के अलावा मनीष भैया चोरी छुपे खा लेते थे.


वैसे मासी के केस में मै सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगी कि वो बस थोड़ी सी स्ट्रिक्ट और हैल्थ कंसियस है. हर काम में वो रूटीन पसंद करती है और उनके साथ बहुत ज्यादा मज़ाक दूसरो के लिए हानिकारक हो सकता है.


बहरहाल मै तो चादर तानकर सो गई. 4 बजे के लगभग मेरे चेहरे पर किसी का हाथ फिर रहा था, आंख खोली तो मासी मेरे करीब बैठी हुई थी... मै मुस्कुराती हुई उन्हे देखी और उनके गोद में सर डाल दी. मासी मेरे सर को हल्का-हल्का मालिश करती... "मेनका ये क्या है, तुम्हे पता है ना ज्यादा मांस खाना अच्छी बात नहीं"..


मै:- भूख लगी थी तो मै क्या करती मासी..


मासी:- हम्मम ! दीदी कैसी है वहां और जीजाजी..


मै:- सब मस्त है और कुछ दिनों मे सपरिवार मिलने आ रहे है..


मासी:- अच्छा है फिर तो. तू बता पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही.. अगले साल 12th का एग्जाम देगी ना..


मै:- हां मासी, आप कैसी हो मासी और मैक्स कब तक आएगा..


मासी:- वो मेडिकल की तैयारी कर रहा है, तो सुबह से शाम तक अपने दोस्तो के साथ ही पढ़ता है. 4 लड़को का ग्रुप है जो ग्रुप स्टडी करते है..


मै:- अच्छा है मासी फिर तो, चलो परिवार में कोई तो डॉक्टर होगा..


मासी:- और तू नेता बनेगी... क्या जरूरत थी तुझे किसी से झगड़ा करने की..


मै:- मासी सच्ची मै झगड़ा नहीं करने गई थी..


मासी:- हम्मम ! दूर रहा कर बेटा मै तो इतना ही कहूंगी...वो सब अब जाने दे और बता क्या सब प्लांनिंग है...



मै:- पहले बताओ मुझे क्या दिलाओगी, फिर मै प्लांनिंग बताउंगी..


मासी मुस्कुराती हुई... "तेरे मौसा ने तनिष्क का काम भी ले लिया. उसके लिए जब अलग से शोरूम बाना था तो घूमने गई थी. क्या प्यारी चूड़ियां देखी थी, मेरे दिल में बस गई है वो चूड़ियां.. वही लेंगे"..


मै:- सच मे मासी.. चलो ना अभी लेते है.. प्लीज, प्लीज, प्लीज..


मासी:- अनु को आ जाने दे, फिर सब चलते है.. एक को तो दिन दुनिया और चीजों से मतलब ही नहीं है.. तुम दोनो को एक साथ खरीद दूंगी..


मै मासी के गाल चूमती... "आप बेस्ट हो मासी.. वैसे एक बात कहूं?"


मासी:- क्या बेटा..


मै:- मै जब आया करूं तो ये खाने की रूटीन को थोड़ा दूर रखा करो.. भूख से तरपा देती है आप..


मासी:- सब मानसिक परिस्थिति है बस, बाकी शरीर को तंदुरुस्त रखने के लिए 100-200 ग्राम अन्न से जितनी शारीरिक ग्रोथ लाया जा सकता है, उतना भर पेट भोजन में नहीं. बेटा कोई इतना ज्यादा खा लेता है कि उसे ज्यादा खाने से बीमारी हो जाती है और कोई ना खाने की वजह से तरह-तरह की बीमारियों से जूझता है. खाना शरीर के आवश्यकता अनुसार होना चाहिए, ना की भर पेट भोजन ठूंस ठूंस कर खाया जाए समझी..


मै:- मै भी कहां सर पत्थर पर पटक रही थी. अब खाने के बीच ऐसे इमोशनल फैक्ट्स लेकर आओगी तो निवाला हलख से नीचे भी नहीं जाएगा...


मासी:- मै ही बेवकूफ हूं जो सच्चाई बताती हूं. तुम सब के लिए तो मै पागल से ज्यादा कुछ नहीं. वो तू अनु से कहती है .. मनेटल मासी..


मै:- ओह हो, और प्यारी मासी कहती हूं वो तो आपके कानो तक नहीं पहुंचा होगा..


मासी:- हां वो भी पहुंचता है लेकिन वो बात ज्यादा चुभती है...


मै अपने दोनो कान पकड़ती.… "सॉरी मासी"..


मासी:- हां मै ये कान पकड़ना और सॉरी पहली बार नहीं सुन रही..


मै:- अब छोड़ो भी मासी.. अच्छा मासी ये बताओ ना हम 10 दिन के लिए है, मुझे कहां कहां ले जाओगी..


मासी:- तू बता तेरी क्या इक्छा है, वहीं करेंगे..


मै:- मासी पक्का ना मेरी इक्छा अनुसार करोगी..


मासी:- कब नहीं की हूं वो बताओ..


मै:- हां सो तो है मासी.. तो मासी आज रात आप क्लासिकल डांस करो ना..


मासी:- लेकिन मेनका तुमने अभी तो कहीं घूमने जाने की बात की थी ना?


मै:- बात आगे बढ़ते ही अपनी इक्छा बताने वाला पार्ट ही ध्यान में रहा. मासी प्लीज, अभी तो कही थी मेरे इक्छा अनुसार सब होगा...


मासी:- हट बदमाश, ये नहीं कुछ और बोल.. अब प्रैक्टिस छूट गई है तो डांस के बाद बहुत परेशानी होती है..


"ओह हो तो मासी और भांजी में प्यार बरस रहा है, और मुझे यहां कोई देखने वाला नहीं"… अनुराधा दीदी रूम के अंदर आती हुई कहने लगी..


मै उछलकर बिस्तर से नीचे आकर, इधर से 2 ठुमके लगाई और उधर से अनुराधा दीदी दो ठुमके लगाती हुई मेरे पास पहुंची. हम दोनों की वहीं कान फाड़ हूटिंग... "मेमनी, इस बार तेरी मै अच्छे से खबर लेती हूं, पहले अपनी मां से मिल लूं , वरना कभी भी लेक्चर लग जाएगा"..


मासी:- हां मिल ली मै तुमसे भी.. दोनो बात करो, मै कुछ काम खत्म कर लेती हूं..


मै हड़बड़ी मे दीदी के पुर्स और बैग खोलकर चेक करने लगी. अनु दीदी मुझे रोकती... "रुक रुक रुक, अब मेरे कौन से सामान पर कब्जा करने वाली है"..


मै:- अरे कोई सामान नहीं ले रही दीदी, जीजू को खोज रही हूं, कौन से बैग में पैक करके लाई हो..


अनु:- हा हा हा.. नाइस व्हाट्स एप जोक.. सुनकर बिल्कुल भी मज़ा नहीं आया..


मै:- तो मज़े की खबर देती हूं ना.. मासी हम दोनों को आज तनिष्क की चूड़ियां दिलवाने वाली है..


अनु:- क्या सच में..


मै:- हां दीदी सच्ची.. जाओ ना जल्दी से तैयार होकर आओ ना, चलते है चूड़ियां लेने..


अनु:- तू तो गहने जेवर के नाम से इतनी बावड़ी हो जाती है.. अभी तो आयी हूं, थोड़ा रेस्ट करने दे.. फिर आराम से चलते है..


मै:- दीदी आकर भी तो आराम कर सकती हो ना.. कौन सा आप विदेश से आ रही हो.. घंटे भर की जर्नी से तो आ रही..


अनु:- पागल रुक जा, मम्मी अभी कुछ काम करने गई है.. उन्हे बोलने तो दे तैयार होने, फिर ना तैयार होंगे..


मै:- मासी तो 2 मिनट में तैयार हो जाएगी, आपको ही तैयार होने में समय लगेगा..


अनु:- तू मेरी फिक्र छोड़ और ये बता आते-आते कौन सा कांड कर दी, जो पापा, मम्मी पर गरमाए थे..


मै:- इस बार पता ना मासी को कहां से ज्ञान मिल गया था, जितने आदमी उतने पीस मीट बनाई थी.. मैंने और नकुल ने चुपके से सबका हिस्सा चट कर दिया..


अनु:- तू भी ना बिना शरारत किए बाज नहीं आएगी.. तेरी जगह यदि और कोई होता ना, तो मम्मी अब तक कॉल लगा चुकी होती.. तू चल जारा मेरे साथ, गौरी रूठी है मुझसे, जरा उसे भी मना लूं..


मै:- अब क्यों रूठ गई वो..


अनु:- लाडली है ना थोड़ा रूठती है तो मन लगा रहता है.. चल जरा उसके साथ छेड़छाड़ करते है..


मै:- बिल्कुल दीदी मै तो आपका ही इंतजार कर रही थी.. मुझे भूख लगी थी. मै मासी से खाना मांग रही थी और वो ज्ञानचंद मुझे और नकुल को भूखे रहने के फायदे गिनवा गई..


अनु:- ऐसा क्या.. चल जरा हम दोनों भी उसे कुछ ज्ञान की घुट्टी पिला दे..


मै और अनु दीदी दोनो उसके कमरे में दाखिल हुए.. दरवाजा खुला वो मुड़कर देखी और फिर अपने मोबाइल में यूट्यूब पर कोई ज्ञान वर्धक चैनल देखने लगी.. मै और अनु दीदी दोनो एक साथ गाते... "एक लड़की बाग में, बैठे-बैठे रो रही, उसकी सखी कोई नहीं’, उठो सहेली उट्ठो, अपने आंसू पोंछो, चार गोला घूमो, नई सहेली ढूंढो."


गौरी हम दोनों को देखकर ऐसा मुंह बनाई मानो कह रही हो, अब मै बच्ची नहीं रही. बस इतनी सी प्रतिक्रिया के बाद वो फिर से अपने मोबाइल में घुस गई. वो उल्टी लेटकर वीडियो देख रही थी. सर के ओर से मै गई और पाऊं के ओर से अनु दीदी, हम दोनों के उसके हाथ पाऊं पकड़े और बिस्तर से उतारकर झुलाने लगे.. "रुको, क्या चाहिए वो बताओ.. मै सीधा उसे कर देती हूं"..


अनुराधा:- पहले तुम्हे झुलाना है, वो क्या है ना बच्ची को बिना झुलाए उसका मन ना लगेगा..


गौरी:- मन लग रहा है अब बताओ भी मुझे क्या करना है..


हम दोनों उसे बिस्तर पर बिठाते... "ये बता मै जब मौसी से खाना मांग रही थी तब तू भूखे रहने पर क्या ज्ञान पेल कर गई थी"


गौरी:- ये कैसी स्लैंग लैंग्वेज इस्तमाल कर रही हो तुम. पढ़ लिख कर यही सीखा है क्या?


अनु:- ओय भाषा संरक्षक, पहले ये बताओ पेलना का मतलब तुम क्या समझी और ये स्लैंग कैसे हो गया...


गौरी:- ठीक है मै मम्मी को यहां बुला लेती हूं, और उनसे ही क्लियर कर लूंगी की उस वर्ड का मतलब क्या है और वो अभद्र भाषा की श्रेणी में आता है या नहीं..


हम दोनों... "हां ठीक है तुम सही हम गलत"..


गौरी:- वो तो मै शुरू से जानती थी, यहां आने का कारन..


अनु:- बहन के पास किसी कारन से आएंगे क्या?


गौरी:- एक-एक करके आती तो ये बात मान लेती. मै कोई बच्ची नहीं जो ये ना समझूं की तुम दोनो मुझे तंग करने आयी हो..


मै:- हम दोनों की ऐसी किस्मत कहां की तुम्हे तंग कर सके.. ना गुस्सा से चिढ़ती हो और ना ही प्यार से हंसती हो.. चौबीसों घंटे एक ही एक्सप्रेशन तुम्हारे चेहरे पर रहता है..


गौरी:- तुम गलत हो मेनका.. हसने वाली बात होगी तो हंस ही लूंगी.. और रही बात चिढ़ने की या गुस्सा होने की, तो तुम दोनो मेरी बहन हो, तुम दोनो पर कभी चिढ़ आएगी ही नहीं..


अनु दीदी अपने दोनो हाथ जोड़ती... "जी गुरुमाता, तो मै ये मान लूं कि तुम मुझसे रूठी नहीं हो"..


गौरी:- वो तो मै रूठी ही रहूंगी, उसमे कोई कंप्रोमाइज नहीं हो सकता..


मै:- हां पर रूठी क्यों है..


अनु:- क्योंकि मै इसे कुछ गिफ्ट्स कर रही थी, इसने कहा कि उसके बदले मुझे पैसे दे दो.. लेकिन मैंने जबरदस्ती वो गिफ्ट दे दी.. तब से रूठी हुई है..


मै:- वैसे गिफ्ट क्या कि थी?


अनु:- स्कूटी..


मै:- हद है इस बात पर भी कोई रूठ जाता है क्या?


गौरी:- हां मै रूठ जाती हूं ना... मुझे स्कूटी नहीं चाहिए थी, बदले मे 50 हजार ही दे देती..


अनु:- पूछ इससे 50 हजार का करेगी क्या? मै अभी इसे 1 लाख दे दूंगी..


मै:- पूछना क्या है, वही चैरिटी ही करेगी... किसी समाज कल्याण मे दान..


अनु:- हां वही तो.. स्कूटी गिफ्ट की, ये न कि खुशी से लेले और फुरफ़ुर करती रहे पुरा सहर में…


गौरी:- जब स्कूटी खरीद के पैसे ही वेस्ट करने थे, तो समाज कल्याण मे दान करने में क्या बुराई थी..


अनु:- रुक अभी इसे बताती हूं.. मेनका फोन लगा और नकुल को बुलाओ..


मै:- ठीक है मै बुला रही..


अनु:- बुला क्या रही.. जल्दी बोल ना आए..


मै:- गौरी मै सच मे बुला रही...


गौरी:- बहन के साथ यही करने की इक्छा है तो सौक से करो. ज्यादा से ज्यादा मै तुम दोनो के वजह से रो लूंगी.. लेकिन चिंता मत करो मै अपने आंसू नहीं दिखाने वाली..


अनु:- तू उसे क्या सुन रही है .. बुला अभी नकुल को...


तभी हम दोनों के कान में नकुल की आवाज सुनाई दी. वो "दीदी दीदी" करते दरवाजे के बाहर था. गौरी जैसे ही नकुल की आवाज सुनी, हम दोनों के हाथ जोड़ती... "अच्छा मै सब बात मनुगी, बस उसे मत बुलाओ"….


अनु:- अब आयी ना लाइन पर.. नकुल तू ऊपर इंतजार कर हम अभी आते है..


गौरी:- दोनो ब्लैकमेलर हो.. हमेशा अपनी बात किसी ना किसी तरह मनवा लेती हो..


हम दोनों उसे बीच में लेकर उसके गाल से गाल चिपकाती... "और एक तुम हो हम कितने भी कर ले, तुम हमारे साथ घुल मिल नहीं सकती"..


गौरी:- गलत बात... बस आप लोग जैसा करती है, वैसा मै नहीं करती. इस बात को लेकर आप ऐसा नहीं कह सकती...


बात तो गौरी की भी सही थी जैसा वो अपने हिसाब से जीती थी और हम दोनों (मै और अनुराधा दीदी) अपने हिसाब से. हम तीनो ही बैठकर बात कर रहे थे तभी मैंने कहा... "नकुल अकेला है उसे भी यहीं बुला लूं क्या?"
 

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अध्याय 11 भाग:- 5 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)






इस बात पर जैसे ही कोई प्रतिक्रिया आता, उससे पहले ही मासी चली आयी और बाजार चलने के लिए कहने लगी. बारिश लगभग समाप्त हो चुकी थी. हम सब तैयार होकर बाजार निकले. बेचारी गौरी, वो चाहती नहीं थी नकुल के साथ जाए लेकिन हमारी जिद के वजह से वो साथ मे बैठ गई.


गौरी को देखकर मै और अनु दीदी अंदर ही अंदर हंसे जा रहे थे और बस तमाशा शुरू होने का इंतजार ही कर रहे थे. नकुल ड्राइविंग सीट पर बैठ था. मै मासी को लेकर पीछे बैठ गई और अनुराधा दीदी जल्दी से पीछे घुस गई. बेचारी गौरी कुछ देर तक कार के बाहर ही खड़ी रही.


मासी की एक फटकार और वो चुपचाप कार के अंदर. जैसे ही नकुल ने कार स्टार्ट किया... "तो गौरी कौन से पिछड़ों के उत्थान करने में लगी हो"..


गौरी:- मम्मी इससे कह दो मै इससे बात नहीं करना चाहती..


मासी:- मुझे उसके सवाल मे कुछ भी बुराई तो नहीं दिख रही. ऊपर से तुम्हारे इंट्रेस्ट का विषय है फिर तो तुम्हे परेशानी नहीं होनी चाहिए ना..


नकुल:- छोड़ो मासी, समोसे मे लाल चटनी खाने से शायद गौरी इरिटेट हो गई होगी, अभी बाजार से हरी चटनी के साथ समोसा खिला देंगे, तो सब सही हो जाएगा...


अब हो गया शुरू, मै और अनुराधा दीदी तो फिर भी हसी दबा लिए, लेकिन मासी की हंसी छूट गई और गौरी चिल्लाती हुई मासी से कहने लगी... "अब भी ये मेरा विषय है क्या?"


मासी:- गौरी चिल्लाते नहीं.. उसे कहा हरी पुदीने की चटनी से तुम्हारा दिमाग ठंडा रहेगा..


नकुल:- मासी लेकिन मै तो हरी मिर्च की चटनी की बात कर रहा था..


गौरी:- बोलते रहो मुझे क्या? वैसे भी मै क्यों इरिटेट हो जाऊं.. मैंने तो बस उस बाबा को एक बार ट्राय किया था..


नकुल:- फायदा मिला था गौरी, तभी तो हर एक्जाम के पहले ट्राय की थी ना..


मै:- नकुल बस बहुत हुआ, उतना ही इरिटेट करो जितना अच्छा लगे.. अब तुम पहले चटनी से शुरू करोगे.. फिर उसके फेवरेट लव चार्जर बाबा पर पहुंच जाओगे... इंसान वाली इंसानियत सिखाओगे.. ये सब गलत है हां..


(विश्वास करने वालों लोगों की भावनाओ को मै ठेस नहीं पहुंचाना और ना ही मै उनका मज़ाक उड़ा रहा हूं.. यह मात्र करेक्टर के बीच विश्वास करने और ना करने पर मज़ाक चल रहा है. फिर भी यदि बुरा लगा हो तो क्षमा कीजिएगा)


मासी:- बस बहुत हुआ, अब और नहीं. नकुल और मेनका बस..


मासी ने जैसे ही हम दोनों को चुप रहने कही, गौरी की मुस्कुराहट मै पीछे से मेहसूस कर सकती थी. बात को मै भी बदलती हुई कहने लगी... "मासी मुझे भाई से मिलना है, चलो ना उसे भी साथ ले लेते है"..


अनुराधा:- मां कुछ घंटे की स्टडी वो मेनका के लिए ड्रॉप कर ही सकता है..


हम तीनो बात कर ही रहे थे कि तभी कार किनारे करके नकुल ने रोक दिया और मुझे ड्राइव करने के लिए कहने लगा. उसकी बात सुनकर तो मासी और बाकी दोनो बहने चौंककर आश्चर्य से कहने लगे, कि मै कैसे कार ड्राइव कर सकती हूं. किसी को तबतक यकीन नहीं हुआ जबतक मै ड्राइव करके दिखा नहीं दी.


मै ड्राइव करती हुई मासी से पूछने लगी कि मैक्स अभी कहां है, कार वहीं ले लेते हैं. इधर जबतक नकुल मोबाइल मे लगातार घुसा हुआ था. मासी मुझे रास्ता बताती गई और मै उसके ग्रुप स्टडी करने की जगह पर कार ले ली. मासी ने मुझे एक घर के पास कार रोकने के लिए कहा और खुद नीचे उतरकर देखने गई. लेकिन बाहर ही मुख्य द्वार पर ताला लटका था. पता चला हम उसे यहां ढूंढ रहे है और वो घर चला गया...


हम वापस शॉपिंग पर चल दिए और मासी उसे घर से शॉप पर ही बुला ली. कुछ ही देर में हम शॉप पर थे. हमे देखकर मौसा जी पहले तो खुश हो गए, लेकिन बाद में उनके माथे से पसीना आने लगा, उतने मे ही सामने से अनुराधा दीदी के पति मनोज जीजू भी कहते हुए चले आ रहे थे... "पापा आप उठकर क्यों.. क्यों.. चले आए. मम्मी जी आप कब आयी"… इतना कहते-कहते उनके माथे से भी पसीने आने लगे..


अब मुझे इस पसीने की कहानी के पीछे नहीं जाना था, मै तो जीजू से मिलने चल दी. तभी मासी मुझे रोकती हुई कहने लगी… मेनका कल हम चूड़ियां लेंगे, अभी चलो कहीं और चलना है"…


मौसा और जीजू का चेहरा देखने लायक था, वो दोनो अनुराधा दीदी से कुछ बात करने लगे और अनुराधा दीदी उनकी हालत पर हंस रही थी. मौसी आगे बाहर निकली पीछे से अनु दीदी और मै निकले. मै सवालिया नजरो से उन्हे देखती हुई पूछने लगी अभी यहां हुआ क्या..


अनु दीदी ने मुझे फुसफुसाते हुए बताया कि ससुर जमाई बैठक में थे, उन्हे मम्मी के आने की उम्मीद नहीं थी और वो यहां पहुंच गई. मै फिर उन्हे सवालिया नज़रों से देखते... "साथ बैठक मतलब पीने वाली बैठक ही ना"..


दीदी हां मे अपना सर हिला दी और मेरी हंसी छूट गई. मौसी ने मैक्स को भी आने से मना कर दिया और कुछ देर बाजार घूमकर हम सब वापस घर पहुंच गए. मै आते ही सीधा मैक्स के कमरे में घुस गई जहां वो बैठकर स्टडी कर रहा था. मेरे पीछे-पीछे हड़बड़ी मे नकुल भी घुसा... "ओय आराम से आ ना ऐसे धक्का मुक्की करके क्यों जा रहा है"…


मैक्स:- दीदी मै बाद में मिलूं क्या, अभी थोड़ी देर स्टडी कर लूं.


मै बेमन से उसे ठीक है भाई कहती हुई वहां से निकल गई, लेकिन मेरे साथ नकुल बाहर नहीं निकला. मै अभी दरवाजे के पर्दे से बाहर निकली ही थी कि मुझे कुछ अंदर खुसुर फुसुर सुनाई दी. मुझे दाल मे कुछ काला होने का अंदेशा मिलने लगा.


"मैक्स ने मुझे बाहर कर दिया लेकिन नकुल से बात कर रहा है, कमाल है ये भी".. मै सोच ही रही थी कि तभी अनु दीदी वहां पहुंच गई और मै उनके साथ निकल गई. फिर हम तीनो बहन का मस्ती मज़ाक चलता रहा. लेकिन अभी के परिवेश में असली मज़ा तो रात के वक्त आना था, जब मौसा जी और मनोज जीजू घर पहुंचते...


जैसे ही दोनो घर पहुंचे, मासी का गुस्सा सातवे आसमान पर और दोनो की जो ही क्लास लगाई, बेचारे बस अपना सर झुकाए खड़े थे. मासी के डांटने का कोटा पूरा होने और हम सब के खाने के बाद, मै मनोज जीजू को लेकर अनु दीदी के कमरे में चली आयी.. मनोज जीजू मुझे देखकर आज कुछ ज्यादा ही मज़ाक के मूड से थे..


मासी के नज़रों से ओझल होते ही वो मेरी ओर देखकर कुटिल मुस्कान हंसते.. "लॉलीपॉप लागेलू"..


मै:- छी जीजाजी, ये कैसा कॉम्प्लीमेंट दे रहे है..


जीजू:- इतनी हॉट साली को देखकर ऐसे ही कॉम्प्लीमेंट निकालता है..


मै:- क्या छिछोड़ी लाइन मार रहे हो जीजू..


जीजू:- तो डिसेंट शब्द तुम ही बता दो, जिससे पट जाओ..


मै अपने दोनो हाथ हिलाती... "जीजाजी पटाना और आप... खुद से तो आप किसी को पटा नहीं पाओगे. अच्छा है जो ये ख्याल आपको शादी के वक्त नहीं आया, और आप अनु दीदी को पटाने का नहीं सोचे. वरना सारी उम्र चक्कर काट काटकर घनचक्कर बन जाते. वो तो शुक्र मनाइए की रिश्ता आया था, और शादी तय हो गई..


जीजू:- ये तो बेइज्जती करना हुआ साली साहिबा..


मै:- जीजू अब जिसकी खूबसूरत साली होगी उसे थोड़ा तो सहना ही पड़ेगा...


जीजू:- तुम हो तो लगता भी है कि मेरी कोई साली है वरना एक गौरी है.. पता नहीं उसके दिमाग में क्या चलता है, मुझसे बात ही नहीं करती, क्या मै इतना बुरा हूं...


मै:- जीजू आप भी ना कितना सोचते है. 10th मे वो बेचारी अभी पढ़ रही है समझदारी ही कितनी होगी. वैसे भी मै बात करूं या वो, समझिए हम दोनों एक ही है. अब मूड ठीक कीजिए..


जीजू हंसते हुए... "तुम बहनों का प्यार देखता हूं तो कभी-कभी सोचता हूं कि मै इकलौता क्यों पैदा लिया. मेरे भी भाई बहन होते तो मै भी उनसे इतना ही लगाव रखता. मै तो कल ही तुम्हारे गांव आ रहा था, लेकिन पापा (मौसा जी) ने मना कर दिया. कहने लगे वहां से फोन आया था किसी को चिंता करने की जरूरत नहीं है."


मै:- हां पापा ने बताया था आप और मौसा जी 18 गाड़ियों के साथ आने की प्लांनिंग मे जुटे थे...


जीजू:- अब बात मेरी प्यारी साली कि हो रही हो तो 18 क्या 1800 गाडियां लेकर पहुंच जाते. कोई बड़ी बात है क्या... और सुनाओ कल की क्या प्लांनिंग है मेरे साथ..


मै, थोड़ी नाराजगी दिखाते... "आप के चक्कर में आज मेरी चूड़ियां रह गई, आप तो कल के बारे में मत ही पूछो.."


जीजू:- बस इतनी सी बात, सुबह ही चूड़ियां लेते है, उसके बाद का बताओ..


मै:- जी नहीं, मेरी मासी ने मेरे लिए चूड़ियां देखी है और मै उन्ही के साथ जाऊंगी..


जीजू:- मेनका मम्मी जी का एक क्लासिकल डांस का प्रोग्राम बनाओ ना..


मै:- आप ही कह दो, क्यों मुझे फंसा रहे हो..


जीजू:- वो तुम्हे थोड़े ना डांट सकती है, इसलिए कह रहा.. बाकी हम सब को तो वो कब लपेट ले पता ही नहीं चलता...


मै:- आपको भी क्या जरूरत हो जाती है यहां आकर पीने की. मासी को कितना दुख होता है आपको पता भी है.. उनकी खुशी के लिए 2-4 दिन शराब से दूर ही हो गए तो क्या चला जाएगा...


"क्या बात हो रही है जीजा साली मे"… अनु दीदी हमे ज्वाइन करती हुई पूछने लगी..


जीजू:- मेनका मुझसे कह रही है, 2-4 दिन यहां शराब से दूर क्यों नहीं रहते..


अनुराधा:- हीहिहिही.. ये तो कभी कभार वाले है मेनका, पापा ही जबरदस्ती कसम देकर बिठा लेते है...


मै:- अब इसपर क्या कह सकते है.. बेचारे मेरे मौसा जी..


मेरी बात सुनकर सभी जोर-जोर से हसने लगे. काफी दिनों बाद सब इकट्ठा हुए थे बात करते-करते कब रात के 12 बज गए पता ही नहीं चला. काफी देर तक बातें चलती रही. 12 बजते ही मासी भी पहुंच गई, और सभा को भंग करती सबको सोने जाने के लिए कहने लगी...


अनु दीदी पूरी प्लांनिंग को बदलती जीजू को उसी कमरे में छोड़ दिया और हम दोनों बहन गौरी के कमरे में आ गए. वैसे तो वो सो चुकी थी और मासी भी हमे वहां जाने से मना कर रही थी, लेकिन जब हम दोनों साथ में हो तो मासी को भी सर झुकना ही परता है.


जबरदस्ती रूम खुलवाकर, रात के 3 बजे तक हमने गौरी को जगाए रखा. मेरे लिए तो एक लंबा दिन था जो रात के तकरीबन 3 बजे खत्म हुई. मासी के यहां इतने ड्रामे चलते है कि दिन बीतने में वक्त ही नहीं लगता..


शाम को हम सब चूड़ी की शॉपिंग करने शॉप पहुंचे.. मासी पहले से ही हमारे लिए तनिष्क की शानदार चूड़ियां देख रखी थी. मै और अनु दीदी तो चूड़ियां देखकर ही "हाय कितनी प्यारी है" कहने लगे. उत्सुकता मे हम वहीं पहनकर अपने हाथ देख रहे थे.


रूबी और डायमंड की कंबो वाली चूड़ियां थी, जिसे देखकर ही हम दोनों का दिल उन चूड़ियों पर आ गया. फिर तो मै और अनु दीदी मासी को बीच में लेकर अपना अपना प्यार जाहिर करने लगे... मनोज जीजू उस दिन हमारे साथ घूमने के बाद अपने सहर निकल गए.


अगले 8-9 कैसे बीते वहां, पता ही नहीं चला. फिर पहुंच गया मेरा पूरा परिवार. पापा गांव का काम पूरा समेटकर पहुंच गए. हां पापा के आने के बाद एक बात जो मौसा जी के साथ अच्छी होती, वो ये कि वो खुलकर पीते थे और घर में पीते थे. पापा के सामने मासी फिर कुछ बोल नहीं पाती थी.


पुरा परिवार 2-3 दिन रुककर वहीं से वाराणसी के लिए निकल गए. पापा अपने साथ अपनी झिझक भी लेकर वाराणसी निकल रहे थे. वो बस यही सोच रहे थे कि इतने सालों के बाद अपने बड़े भाई का सामना कैसे करेंगे. अजित भैया हमारे जेनरेशन के सबसे बड़े लड़के थे, और पापा उसके छोटे चाचा. आप सोच ही सकते है उनके साथ मेरे पापा का कितना लगाव रहा होगा..


पापा की असहजता केवल मै ही नहीं, बल्कि पुरा परिवार मेहसूस कर रहा था. वहीं दूसरी ओर जब मैंने बड़े पापा को सबके वाराणसी आने की सूचना दी, 2 मिनट तक उन्होंने कुछ जवाब ही नहीं दिया. फिर विलाप मे डूबे स्वर के साथ उन्होंने इतना ही कहा, पहुंचकर फोन करना..


पापा और बड़े पापा कर बीच की सारी घटनाएं मेरे जन्म के वक्त की थी, इसलिए मुझे जो भी जानकारी मिली थी, वो मां से ही मिली थी और बड़े पापा का फोन नंबर मैंने पापा के मोबाइल से चुराया था..


बड़े पापा और अजित भैया दोनो ही हमे लेने स्टेशन पहुंचे थे. हर कोई उन्हे देखकर मुस्कुरा रहा था, लेकिन पापा और बड़े पापा एक दूसरे को देखकर ठहर गए थे. पापा ने जैसे ही अपना एक कदम आगे बढ़ाया, वो लड़खड़ा गए. महेश भैया ने उन्हे हड़बड़ा कर थामा और बड़े पापा दौड़कर अपने छोटे भाई यानी मेरे पापा के पास पहुंच गए..


वास्तविकता तो ये थी कि मेरे पापा अपने अहम के कारन अपने अंदर इतना आत्मग्लानि मेहसूस कर रहे थे, कि वो बड़े पापा के लगभग पाऊं मे आकर माफी मांगने लगे. जब बड़े पापा के घर में हम रात के माहौल में थे, तब हमे भी अपनी भाभियों का दर्द पता चला.. जिस दिन से उनका गांव छूटा था, तब से लेकर आज तक एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब वो दोनो इस बात को सोचकर अफ़सोस ना की हो... कि उनकी वजह से उनका मायका से लेकर ससुराल और सारे रिश्तेदार छूट गए. पापा से ज्यादा आत्मग्लानि तो मेरे बड़े पापा की दोनो बहुओं को था."


खैर माहौल कुछ घंटों तक इमोशनल ही रहा, फिर पूर्ण पारिवारिक माहौल ऐसा जमा की वहां हंसी और ठहाको कि आवाज गूंज रही थी. हां वो बात अलग थी कि एक दिन के बाद फिर तो मेरे दोनो चचेरे भाई और भाभी इतना बिज़ी हो गए की उनसे बात कर पाना संभव ही नहीं था..


बड़े पापा और बड़ी मां थी, वो हमे लेकर फिर यूपी के कई सारे जगहों पर गए. उनके साथ हम काशी से लेकर हरिद्वार तक गए. मथुरा, वृंदावन और संगम स्नान किया. सबसे मनमोहक तो हरिद्वार और वाराणसी की शाम की आरती थी, जिसे देख मन इतना प्रसन्न हो जाता, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता. हम लोग लगभग 5 दिन वाराणसी सहर मे रहे होंगे और पांचो दिन गंगा घाट की आरती देखी.


लगभग 15 दिन पापा अपने पूरे परिवार के साथ अपने बड़े भाई और भाभी के घर बिताया. आखरी दिन सुबह से ही लंबा डिस्कशन चल रहा था, एक ओर मेरे पापा थे, जो मुझे नकुल के साथ बंगलौर भेज रहे थे, तो दूसरे ओर मेरे दोनो भाई थे, जो यह कह रहे थे कि अभी इनकी उम्र नहीं अकेले कहीं जाने की.


लंबी चर्चा हुई, फिर नकुल ने संगीता दीदी को कॉल लगा दिया. संगीता दीदी ने उन्हे आश्वस्त किया कि वहां आप लोग एयरपोर्ट पर छोड़ दीजिए, यहां मै पिक कर लूंगी. लौटते वक्त पटना से गांव तक मेनका, नकुल के साथ तो जा ही सकती है. यदि वहां भी कोई समस्या हो तो आप मे से कोई पहुंच जाइयेगा पटना, उन्हे लेने..


संगीता दीदी कि बात सुनकर मनीष और महेश भैया दोनो कहने लगे.…. बात केवल आने जाने की नहीं है, उतना बड़ा सहर और महीने दिन तक मेनका का वहां होना.… पापा ने दोनो भाई की बात कटते हुए कहने लगे... "संगीता तो वहां अकेली जॉब करती है, वहीं से उसने पढ़ाई भी की थी. फिक्र होना चाहिए लेकिन फिक्र मे अंधे ना हो जाओ"..


थोड़ी देर तक बाप बेटों में बहस का दौर चलता रहा. अंत में होते-होते फाइनल हुआ की मै नकुल के साथ जाऊंगी. वैसे मुझे साथ ले जाने की नकुल को उतनी खुशी नहीं थी, जितना टेंशन उसने मुझे ले जाकर मोल लिया था. सक्त हिदायत उसे मिली थी, कि वो एक पल के लिए भी मुझे अकेला ना छोड़े.


इसी करार के साथ पहले मै और नकुल ने अपनी हवाई उड़ान भरी और बाद में हर कोई घर के लिए रवाना हुआ. मेरे और नकुल की ये पहली फ्लाइट जर्नी थी, इससे पहले हम कभी फ्लाइट से नहीं गए थे. हम दोनों काफी एक्साइटेड फील कर रहे थे.. एयरपोर्ट के बाहर ही संगीता मेरा इंतजार कर रही थी, हमे देखकर वो मुस्कुराती हुई कहने लगी, वेलकम टू बंगलौर.
 

nain11ster

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zabardast update ..menka se rakhi bandhi liyakat ne aur ek car aur dedh karod rupiya gift diya 😁..
par nakul uski baato ko samajh gaya ki usne apne saare dushmano ko raste se hata diya .
waise liyakat sahi game khela isme koi dohray nahi hai ..
Ye politics hai hi uncha game jahan lashon ko sidhi banakar log upar chadh jate hain
 
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nain11ster

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nice update ..menka ne sabki bolti band kar di apne dil ki baat batakar 😅..
aur ye papa ne apne bhai ko kisliye ghar se nikala tha 🤔🤔.aur panchayat ne kya faisla liya tha 🤔..
nakul ko mobile milte milte reh gaya 😁😁..
menka aur nakul ab bengalore jayenge kuch din ke liye ..kyunki menka ko sab shabasi dene nahi aaye aur menka shayad bhatak jaaye isliye mishra ji ne menka ko bahar bhejne ka faisla kiya hai ..

Inke bade papa ka explain to kiya hua hai adhyay 6 aur 7 me.. kaise bhagode shadi ki wajah se aur inter cast marriage ko support karne ke karan Anoop Mishra ke bade bhai ko punchayat ne gaanv se nikal diya tha..

Baki banglore ka safar to ab shuru ho gaya hai...
 
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nain11ster

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:superb: :good: :perfect: awesome update hai nain bhai,
Behad hi shandaar aur lajawab update hai bhai,
aaj to menka ki chandi hone ke baad bhi nakul ke drishtikon se nuksaan hi hua hai,
Ab apni memani to baat karne mein bhi sabki ustad hoti ja rahi hai,
Ab dekhte hain ki aage kya hota hai
Haan Nakul ko lagta hai itne bade fayde ke liye menka ko aur bhi jyada paise milne chahiye the Khair .. menka ki learning dhire dhire upgrade ho rahi hai.. naye naye rang me wo rangti ja rahi .. baki aage dekhiye kya hota hai
 
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aman rathore

Enigma ke pankhe
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अध्याय 11 भाग:- 3 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)






मै सब लोगो से मिलकर निकल गई. 11 बजे के आसपास मै और नकुल मासी के सहर मे थे. एक तो बस के 4 घंटे का उबाऊ सफर, ऊपर से ये भादो महीने की मूसलाधार बारिश. किसी बस स्टैंड पर रुकना तो जैसे सजा हो जाता है. इतनी गंदगी और मक्खियां भिंभनती है, कि मिजाज खराब हो जाए...


"क्या करे नकुल, बारिश तो बहुत तेज हो रही है".. मै उतरा सा मुंह बनाकर पूछने लगी. नकुल भी जान रहा था कि मै ऐसे क्यों पूछ रही हूं. वो मुझसे पूछने लगा मौसा या मौसी को सूचना तो है ना कि हम 7 बजे की बस से निकले है.


हम दोनों बात कर ही रहे थे कि तभी हमे लगा कोई जोर लगाकर हमे पुकार रहा है.. "मेनका, नकुल"..


मौसी और मौसा दोनो दूर नजर आ रहे थे और हाथ के इशारे से हमे अपने पास बुला रहे थे... "ये मेंटल लोग कभी नहीं सुधरने वाले... गाड़ी है पास में तो ये ना की हमारे पास आ जाए, तो उल्टा भींगकर हमे आने बोल रहे…. फोन करके उन्हे बुलाओ ना.. मौसा तो एक बाद सुधर भी जाएंगे, पर मै अपनी इस मासी का क्या करूं. कभी-कभी तो शक होता की ये मेरी मां की अपनी बहन है या सौतेली"..


नकुल:- मासी से पूछकर आऊं क्या, दादी की अपनी बहन है या सौतेली..


मै:- जा अभी जा नालायक और पूछ कर आ.. जा ना खड़ा क्यों है.. और उनको यहां लेकर आने भी बोल देना.....


नकुल:- अब यहां की गंदगी का गुस्सा मुझ पर क्यों उतार रही हो...


"तू ऐसे नहीं मानेगा, जा अब पूछ भी लेना और उनको कहना कार यहां आकर लगा दे"… नकुल का मोबाइल उसके हाथ से लेकर मै उसे पानी में धकेलती हुई कहने लगी... अपनी आंख सिकोड़ कर वो मुझे एक बार घूरा. उसके चेहरे की बनावट देखकर मै हसने लगी और नकुल अपने बाल को पीछे समेटते हुए मासी के कार के पास चल दिया...


कुछ देर उनके बीच बातचीत हुई, फिर वो लोग कार को घूमाकर उस ओर ले आए जहां मै खड़ी थी.… कार का गेट खोलकर जैसे ही मै पीछे की सीट पर बैठने लगी... "मेनका संस्कार भुल गई क्या, मै बैठी हूं, तेरे मौसा बैठे है, कोई प्रमाण नहीं, सीधा जाकर पीछे बैठ रही है.."


मै:- ओ मेरी भोली मासी, कार के दरवाजे के बाहर खड़े होकर प्रणाम करूंगी तो मै भिंग जाऊंगी... घर चलो दंडवत प्रणाम करूंगी..


कविता मासी:- मेनका, नकुल को रोक.. वो भिंगा है, कार की सीट भिग जाएगी...


मै:- हां तो क्या हुआ मासी, सीट कवर गंदे हो गए है.. गीला हो जाने दो मै अच्छे से साफ करके, सूखा के कार में सीट कवर चढ़ा दूंगी. तू क्या हमारी बात सुन रहा है, अंदर आ ना..


नकुल:- नहीं, सोच रहा हूं मासी से वो बात यहीं कार के बाहर खड़े हो कर पूछूं या अंदर बैठकर..


मासी:- कौन सी बात..


मै:- वही की कार को वहां से घूमाकर मेरे पास लाने, और मेरे पास से वापस सड़क के ओर घूमाने मे, कार का कितना पेट्रोल जल गया. और तू होशियार चंद, जल्दी बैठ...


मासी मुझे घूरती हुई... "आते ही नाटक शुरू. यहां अंदर कार लाने की मनाही है.. ट्रैफिक रूल्स हमारी सुरक्षा और सुहौलियत के लिए होते है.. उन्हे फॉलो करना चाहिए...


शायद परिचय की जरूरत ना परे. मिलिए मेरी प्यारी कविता मासी और सौरव मौसा जी से. हमारे परिवार के ये अनमोल रत्न है, जिंदगी जीने का अपना ही अंदाज. मासी की एक बड़ी बेटी है अनुराधा, जो मासी के घर की जान थी, 2 साल पहले उनकी शादी हो गई. उसके बाद मुझसे साल भर छोटे उनके जुड़वा बच्चे थे, एक गौरी जो अपनी ही दुनिया में रहती थी और जरूरत से ज्यादा कभी मुंह ही नहीं खोलती. दूसरा उसका भाई मैक्स, जो कभी घर पर टिकता ही नहीं था.


वैसे उसका नाम तो मासी ने मिहिर रख दिया था, सास बहू की सीरियल से कुछ ज्यादा ही प्रेरित होकर, लेकिन उसका बेटा जब 5th क्लास में गया तो खुद ही अपना फैंसी नाम रखा और घर वालों को भी यही नाम पुकारने पर मजबूर कर दिया. वैसे आपको भी उसके नाम से प्यार हो ही जाएगा जब पुरा नाम बोलेंगे.. मैक्स झा...


सबसे पहले तो दरवाजे पर ही मै मौसा और मासी को पाऊं छूकर प्रणाम की, वरना पता चलता गुस्सा होकर कहीं मां को ना फोन लगा देती. वैसे तो मेरी मां और मासी के जन्म के बीच 9 साल का अंतर है, लेकिन दोनो बहन के बीच का अटूट प्रेम इतना है कि, एक बहन की शिकायत पर दूसरी बहन अपने बच्चे को पहले चप्पल से मारेगी, फिर पूछेगी भी नहीं की ऐसा क्यों किया. सीधा बोलेगी दोबारा शिकायत नहीं आनी चाहिए... बहुत ही खतरनाक टाइप वाला प्रेम है.


मै और नकुल घर के अंदर पहुंचे. हमारे आने की खबर जब गौरी पास पहुंची तो 2 मिनट के लिए वो अपने कमरे से बाहर आयी, 2-4 लाइन की बात हुई और वो वापस अपने कमरे में. ऐसा नहीं था कि गौरी कम बोलती थी तो मेरे पास नहीं रहती या मुझसे बात नहीं करती थी. चूंकि मेरे साथ नकुल था, इसलिए उस जगह से वो कटना ही सही समझी... सदा की तरह मैक्स इस भारी बरसात मे भी कहीं गायब ही था, पूछने पर पता चला कि वो स्टडी करने अपने दोस्त के पास गया है.


मासी ने मुझे अनुराधा दीदी वाला कमरा दे दिया और नकुल को ऊपर वाला गेस्ट रूम. हम दोनों अपने अपने कमरे ने सैटल हो गए. अभी साढ़े ग्यारह बज रहे थे, और सुबह नाश्ता ना करके निकलने के कारन मुझे भुख काफी तेज लग रही थी.


शायद मेरे जैसा हाल नकुल का भी था, इसलिए कुछ देर इंतजार के बाद जब मासी ने मुझे खाने का निमंत्रण नहीं दिया, तो खाना मांगने खुद ही पहुंच गई. मेरे ही साथ नकुल भी पहुंचा. मैंने खाना तो मांगा लेकिन पता चला अभी कम से कम घंटे भर और लगेंगे. मै और नकुल मासी से कहने लगे, घर में कुछ खाने लायक परा हो तो वही दे दो तबतक के लिए. मासी गुस्सा करती हुई कहने लगी, अभी चटर-पटर खाएगी तो खाने में क्या खाएगी, एक घंटे रुक जा...


मै और नकुल मासी से खाना देने की जिद कर रहे थे, इतने में गौरी बाहर निकली... "शोध बताते है कि एक निश्चित समय तक खाना ना खाने से, डायबिटीज नहीं होता. इन्फ्लेमेशन कम किया जा सकता है जिस कारन से भविष्य में होने वाले रूमतोइड आर्थराइटिस, हार्ट डीसिस और अन्य रोगों से बचा जा सकता है. हृदय में ब्लड सर्कुलेशन को भी सही करता है, जिससे ब्लड प्रेशर नॉर्मल रहता है, उसी के साथ कोलेस्ट्रॉल भी मेंटेन करता है."...


हम इतने भूखे थे कि कुछ भी खाने को तैयार थे और ये महारानी थी कि खाना ना खाने के फायदे गिना रही थी. मै और नकुल तो एक दूसरे का मुंह ही देख रहे थे. तभी उसने आंखो के इशारे से पूछा, गौरी का पागलपन कुछ ज्यादा ही बढ़ा हुआ लगता है"… मै भी अपने चेहरे और आंखो के एक्सप्रेशन से जवाब देने लगी… "अभी 10-12 दिन और यहां रहना है".. और फिर हम दोनो ही मायूस नजरो से किचेन को देखने लगे...


फिर तो मायूस होकर किचेन के दरवाजे से हम दोनों ही मेरे कमरे में आ गए. खाना का वक्त एक्सटेंड होते-होते डेढ़ (1.30pm) बज गए. हम दोनों बुआ भतीजा खाने के इंतजार मे और बुलवा अब तक नहीं आया... "मेनका भूख से मेरे पेट मे दर्द होने लगा है"..


मै:- लगता है मेरा छट्ठा सोमवार का व्रत चल रहा हो जैसे. नकुल जब व्रत मे रहती हूं तब उतनी भूख नहीं लगती, आज क्यों इतनी भूख लग रही..


नकुल:- अनुराधा दीदी को कॉल लगाओ ना.. उनको बोलो कुछ दिन के लिए यहां चले आए, वरना हम दोनों भी इन जैसे कहीं ना हो जाए..


मै:- मती मारी गई थी जो मैंने पापा से कहा कि मासी के घर जाना है... यहां सबके साथ आने मे ही फायदा था. खाने को तरसा दी..


मै जैसे ही अपनी बात समाप्त की, हम दोनों के नाक तक खाने की खुशबू पहुंची. मै उत्सुकता से नकुल को देखने लगी और नकुल उतने ही ज्यादा उत्सुकता से मेरी शक्ल देख रहा था.. हम दोनों चिल्लाते हुए डाइनिंग टेबल के ओर भागे... "मटन.…"


मै आते ही चिल्लाते हुए कहने लगी... "मासी तुम सुपर्ब हो, आह इतने भूख के बाद ऐसे खाने का तो मज़ा ही आ जाएगा"..


नकुल:- दीदी मै प्लेट में चावल निकालता हूं, और तुम मटन निकलो..


मासी:- जी नहीं.. तुम दोनो पहले हाथ धोकर आओ, फिर सबको आ जाने दो, एक साथ खाएंगे..


हम दोनों ही अपना सर हां मे हिलाकर जल्दी से हाथ धोकर वापस पहुंचे. तभी फिर मासी कहने लगी... "केवल पानी से हाथ धो आये, जाओ हैंडवास से अच्छी तरह से हाथ धो पहले"..


"अांह, इसकी तो.. मेंटल कहीं की"… हम दोनों वापस से उठकर गए और हैंडवाश से अच्छी तरह से हाथ धोकर चेयर पर बैठ गए. मटन की खुशबू हम दोनों को ही दीवाना बना रही थी. 1 मिनट... 3 मिनट... 5 मिनट... 10.. मिनट.. 15 मिनट... "दीदी ये खाना लगाकर भुल गए क्या, हमे खाना भी खाना है"..


मै:- नकुल यहां सब पागल है. तू एक काम कर, एक ही प्लेट मे चावल और मटन निकाल ले, हम जल्दी से ऊपर जाते है और खाकर प्लेट नीचे आराम से साफ करके रख देंगे..


नकुल मेरी बात पर अमल करते उठा और प्लेट में चावल लेकर जैसे ही मटन कि हांडी का ढक्कन खोला... "अरे यार, कंजूसी की अति है.. दीदी यहां आओ".. मै जब वहां जाकर देखी तो कुल 6 पीस थे हांडी मे और पुरा ग्रेवी... "भाई ये तो 6 लोगों के लिए 6 पीस मटन लेकर आए है"..


नकुल:- हां तो 3 तेरे 3 मेरे.. ये लोग ग्रेवी खाएंगे.. चल ऊपर..


एक ही प्लेट मे चावल और मटन लेकर हम दोनों ऊपर के कमरे में चले गए और जल्दी,-जल्दी खाकर नीचे आ गए. मै नकुल को बाहर चारो ओर नजर रखने का बोलकर, जल्दी से किचेन मे घुसी. प्लेट को साफ करके, पोछकर और सुखाकर रख दिया.


बाहर आकर डाइनिंग टेबल का जायजा लिया और भागकर मै अपने कमरे में आ गई. मै और नकुल आराम से आपस में बात करते हुए मासी के बुलाने का इंतजार करने लगे. तकरीबन ढाई बजे (2.30 pm) मासी ने हम दोनों को आवाज देकर बाहर बुलाई..


खाना लगा, प्लेट में चावल सजी और जब मटन कि हांडी मे करछुल घुमाया गया तो वहां ग्रेवी के अलावा कुछ भी नहीं था. मासी मौसा को घूरती हुई... "आपने मटन खाया है"..


मौसा:- पागल हो क्या मै तो अभी आया हूं..


मासी:- गौरी क्या तुमने..


गौरी:- मांस एक ऐसा भोजन है..


मासी:- ऐसा भोजन है जो 24 घंटे से 36 घंटे तक शरीर में पचता रहता है.. तो क्या पचने के लिए तुमने अपने शरीर में डाल ली....


गौरी:- नहीं.. मैंने नहीं खाया, आपके बुलाने पर ही मै आयी हूं...


मासी:- मेनका, नकुल क्या तुमने खाया है..


मौसा:- मेनका, नकुल तुम दोनो चलो मेरे साथ, हम बाहर खाने जा रहे है. तबतक तुम सोचती रहो मटन गया कहां...


मासी:- खाने के टेबल पर नाटक मत कीजिए.. मै रात वाले मटन के पीस ला देती हूं...


हमे की, रात वाला लाओ या दिन वाला.. जल्दी लाओ खाकर हम डाकर लेते हुए सोने चले... मासी रात के खाने वाला मटन ले आयी. रात के हिस्से में भी 1 पीस मटन ही था. हम खाते गए और तारीफ करते गए.. खा पीकर हम दोनों ऊपर वाले रूम मे ही चले गए.. हमरे पीछे पीछे मौसा जी भी पहुंचे... "तुम दोनो को कविता की बात का बुरा तो नहीं लगा"..


मै:- नहीं मौसा जी बिल्कुल नहीं..


मौसा:- क्या बताऊं मै, इसको बदलते-बदलते मै ही बदल गया, लेकिन ये है कि बदलने का नाम नहीं लेती. सॉरी बच्चों, तुम लोग इतनी दूर से आए और खाने के तबके पर ऐसा हो गया....


नकुल:- मौसा कुछ दिन के लिए अनुराधा दीदी को बुला दो यहां, वरना हम तो बोर है जाएंगे..


मौसा:- चिंता मत करो, मैंने पहले ही कॉल कर दिया है, वो शाम तक आ जाएगी.. और तुम्हारी मासी के लिए मै अभी से एडवांस माफी मांग लेता हूं. इसके कारन लोगो ने हमारे यहां आना छोड़ दिया है. इसको तो शर्म भी नहीं आती की लोगों का स्वागत कैसे होता है. ये तो अपने दामाद तक को नहीं छोड़ती..
:superb: :good: amazing update hai nain bhai,
Behad hi shandaar aur lajawab update hai bhai,
ye menka ki mausi ka ghar to poora pagalkhana hi hai,
aur gauri ke to kya hi kahne,ye to chalti firti encyclopaedia lagti hai,
Ab dekhte hain ki aage kya hota hai,
 
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अध्याय 11 भाग:- 3 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)






मै सब लोगो से मिलकर निकल गई. 11 बजे के आसपास मै और नकुल मासी के सहर मे थे. एक तो बस के 4 घंटे का उबाऊ सफर, ऊपर से ये भादो महीने की मूसलाधार बारिश. किसी बस स्टैंड पर रुकना तो जैसे सजा हो जाता है. इतनी गंदगी और मक्खियां भिंभनती है, कि मिजाज खराब हो जाए...


"क्या करे नकुल, बारिश तो बहुत तेज हो रही है".. मै उतरा सा मुंह बनाकर पूछने लगी. नकुल भी जान रहा था कि मै ऐसे क्यों पूछ रही हूं. वो मुझसे पूछने लगा मौसा या मौसी को सूचना तो है ना कि हम 7 बजे की बस से निकले है.


हम दोनों बात कर ही रहे थे कि तभी हमे लगा कोई जोर लगाकर हमे पुकार रहा है.. "मेनका, नकुल"..


मौसी और मौसा दोनो दूर नजर आ रहे थे और हाथ के इशारे से हमे अपने पास बुला रहे थे... "ये मेंटल लोग कभी नहीं सुधरने वाले... गाड़ी है पास में तो ये ना की हमारे पास आ जाए, तो उल्टा भींगकर हमे आने बोल रहे…. फोन करके उन्हे बुलाओ ना.. मौसा तो एक बाद सुधर भी जाएंगे, पर मै अपनी इस मासी का क्या करूं. कभी-कभी तो शक होता की ये मेरी मां की अपनी बहन है या सौतेली"..


नकुल:- मासी से पूछकर आऊं क्या, दादी की अपनी बहन है या सौतेली..


मै:- जा अभी जा नालायक और पूछ कर आ.. जा ना खड़ा क्यों है.. और उनको यहां लेकर आने भी बोल देना.....


नकुल:- अब यहां की गंदगी का गुस्सा मुझ पर क्यों उतार रही हो...


"तू ऐसे नहीं मानेगा, जा अब पूछ भी लेना और उनको कहना कार यहां आकर लगा दे"… नकुल का मोबाइल उसके हाथ से लेकर मै उसे पानी में धकेलती हुई कहने लगी... अपनी आंख सिकोड़ कर वो मुझे एक बार घूरा. उसके चेहरे की बनावट देखकर मै हसने लगी और नकुल अपने बाल को पीछे समेटते हुए मासी के कार के पास चल दिया...


कुछ देर उनके बीच बातचीत हुई, फिर वो लोग कार को घूमाकर उस ओर ले आए जहां मै खड़ी थी.… कार का गेट खोलकर जैसे ही मै पीछे की सीट पर बैठने लगी... "मेनका संस्कार भुल गई क्या, मै बैठी हूं, तेरे मौसा बैठे है, कोई प्रमाण नहीं, सीधा जाकर पीछे बैठ रही है.."


मै:- ओ मेरी भोली मासी, कार के दरवाजे के बाहर खड़े होकर प्रणाम करूंगी तो मै भिंग जाऊंगी... घर चलो दंडवत प्रणाम करूंगी..


कविता मासी:- मेनका, नकुल को रोक.. वो भिंगा है, कार की सीट भिग जाएगी...


मै:- हां तो क्या हुआ मासी, सीट कवर गंदे हो गए है.. गीला हो जाने दो मै अच्छे से साफ करके, सूखा के कार में सीट कवर चढ़ा दूंगी. तू क्या हमारी बात सुन रहा है, अंदर आ ना..


नकुल:- नहीं, सोच रहा हूं मासी से वो बात यहीं कार के बाहर खड़े हो कर पूछूं या अंदर बैठकर..


मासी:- कौन सी बात..


मै:- वही की कार को वहां से घूमाकर मेरे पास लाने, और मेरे पास से वापस सड़क के ओर घूमाने मे, कार का कितना पेट्रोल जल गया. और तू होशियार चंद, जल्दी बैठ...


मासी मुझे घूरती हुई... "आते ही नाटक शुरू. यहां अंदर कार लाने की मनाही है.. ट्रैफिक रूल्स हमारी सुरक्षा और सुहौलियत के लिए होते है.. उन्हे फॉलो करना चाहिए...


शायद परिचय की जरूरत ना परे. मिलिए मेरी प्यारी कविता मासी और सौरव मौसा जी से. हमारे परिवार के ये अनमोल रत्न है, जिंदगी जीने का अपना ही अंदाज. मासी की एक बड़ी बेटी है अनुराधा, जो मासी के घर की जान थी, 2 साल पहले उनकी शादी हो गई. उसके बाद मुझसे साल भर छोटे उनके जुड़वा बच्चे थे, एक गौरी जो अपनी ही दुनिया में रहती थी और जरूरत से ज्यादा कभी मुंह ही नहीं खोलती. दूसरा उसका भाई मैक्स, जो कभी घर पर टिकता ही नहीं था.


वैसे उसका नाम तो मासी ने मिहिर रख दिया था, सास बहू की सीरियल से कुछ ज्यादा ही प्रेरित होकर, लेकिन उसका बेटा जब 5th क्लास में गया तो खुद ही अपना फैंसी नाम रखा और घर वालों को भी यही नाम पुकारने पर मजबूर कर दिया. वैसे आपको भी उसके नाम से प्यार हो ही जाएगा जब पुरा नाम बोलेंगे.. मैक्स झा...


सबसे पहले तो दरवाजे पर ही मै मौसा और मासी को पाऊं छूकर प्रणाम की, वरना पता चलता गुस्सा होकर कहीं मां को ना फोन लगा देती. वैसे तो मेरी मां और मासी के जन्म के बीच 9 साल का अंतर है, लेकिन दोनो बहन के बीच का अटूट प्रेम इतना है कि, एक बहन की शिकायत पर दूसरी बहन अपने बच्चे को पहले चप्पल से मारेगी, फिर पूछेगी भी नहीं की ऐसा क्यों किया. सीधा बोलेगी दोबारा शिकायत नहीं आनी चाहिए... बहुत ही खतरनाक टाइप वाला प्रेम है.


मै और नकुल घर के अंदर पहुंचे. हमारे आने की खबर जब गौरी पास पहुंची तो 2 मिनट के लिए वो अपने कमरे से बाहर आयी, 2-4 लाइन की बात हुई और वो वापस अपने कमरे में. ऐसा नहीं था कि गौरी कम बोलती थी तो मेरे पास नहीं रहती या मुझसे बात नहीं करती थी. चूंकि मेरे साथ नकुल था, इसलिए उस जगह से वो कटना ही सही समझी... सदा की तरह मैक्स इस भारी बरसात मे भी कहीं गायब ही था, पूछने पर पता चला कि वो स्टडी करने अपने दोस्त के पास गया है.


मासी ने मुझे अनुराधा दीदी वाला कमरा दे दिया और नकुल को ऊपर वाला गेस्ट रूम. हम दोनों अपने अपने कमरे ने सैटल हो गए. अभी साढ़े ग्यारह बज रहे थे, और सुबह नाश्ता ना करके निकलने के कारन मुझे भुख काफी तेज लग रही थी.


शायद मेरे जैसा हाल नकुल का भी था, इसलिए कुछ देर इंतजार के बाद जब मासी ने मुझे खाने का निमंत्रण नहीं दिया, तो खाना मांगने खुद ही पहुंच गई. मेरे ही साथ नकुल भी पहुंचा. मैंने खाना तो मांगा लेकिन पता चला अभी कम से कम घंटे भर और लगेंगे. मै और नकुल मासी से कहने लगे, घर में कुछ खाने लायक परा हो तो वही दे दो तबतक के लिए. मासी गुस्सा करती हुई कहने लगी, अभी चटर-पटर खाएगी तो खाने में क्या खाएगी, एक घंटे रुक जा...


मै और नकुल मासी से खाना देने की जिद कर रहे थे, इतने में गौरी बाहर निकली... "शोध बताते है कि एक निश्चित समय तक खाना ना खाने से, डायबिटीज नहीं होता. इन्फ्लेमेशन कम किया जा सकता है जिस कारन से भविष्य में होने वाले रूमतोइड आर्थराइटिस, हार्ट डीसिस और अन्य रोगों से बचा जा सकता है. हृदय में ब्लड सर्कुलेशन को भी सही करता है, जिससे ब्लड प्रेशर नॉर्मल रहता है, उसी के साथ कोलेस्ट्रॉल भी मेंटेन करता है."...


हम इतने भूखे थे कि कुछ भी खाने को तैयार थे और ये महारानी थी कि खाना ना खाने के फायदे गिना रही थी. मै और नकुल तो एक दूसरे का मुंह ही देख रहे थे. तभी उसने आंखो के इशारे से पूछा, गौरी का पागलपन कुछ ज्यादा ही बढ़ा हुआ लगता है"… मै भी अपने चेहरे और आंखो के एक्सप्रेशन से जवाब देने लगी… "अभी 10-12 दिन और यहां रहना है".. और फिर हम दोनो ही मायूस नजरो से किचेन को देखने लगे...


फिर तो मायूस होकर किचेन के दरवाजे से हम दोनों ही मेरे कमरे में आ गए. खाना का वक्त एक्सटेंड होते-होते डेढ़ (1.30pm) बज गए. हम दोनों बुआ भतीजा खाने के इंतजार मे और बुलवा अब तक नहीं आया... "मेनका भूख से मेरे पेट मे दर्द होने लगा है"..


मै:- लगता है मेरा छट्ठा सोमवार का व्रत चल रहा हो जैसे. नकुल जब व्रत मे रहती हूं तब उतनी भूख नहीं लगती, आज क्यों इतनी भूख लग रही..


नकुल:- अनुराधा दीदी को कॉल लगाओ ना.. उनको बोलो कुछ दिन के लिए यहां चले आए, वरना हम दोनों भी इन जैसे कहीं ना हो जाए..


मै:- मती मारी गई थी जो मैंने पापा से कहा कि मासी के घर जाना है... यहां सबके साथ आने मे ही फायदा था. खाने को तरसा दी..


मै जैसे ही अपनी बात समाप्त की, हम दोनों के नाक तक खाने की खुशबू पहुंची. मै उत्सुकता से नकुल को देखने लगी और नकुल उतने ही ज्यादा उत्सुकता से मेरी शक्ल देख रहा था.. हम दोनों चिल्लाते हुए डाइनिंग टेबल के ओर भागे... "मटन.…"


मै आते ही चिल्लाते हुए कहने लगी... "मासी तुम सुपर्ब हो, आह इतने भूख के बाद ऐसे खाने का तो मज़ा ही आ जाएगा"..


नकुल:- दीदी मै प्लेट में चावल निकालता हूं, और तुम मटन निकलो..


मासी:- जी नहीं.. तुम दोनो पहले हाथ धोकर आओ, फिर सबको आ जाने दो, एक साथ खाएंगे..


हम दोनों ही अपना सर हां मे हिलाकर जल्दी से हाथ धोकर वापस पहुंचे. तभी फिर मासी कहने लगी... "केवल पानी से हाथ धो आये, जाओ हैंडवास से अच्छी तरह से हाथ धो पहले"..


"अांह, इसकी तो.. मेंटल कहीं की"… हम दोनों वापस से उठकर गए और हैंडवाश से अच्छी तरह से हाथ धोकर चेयर पर बैठ गए. मटन की खुशबू हम दोनों को ही दीवाना बना रही थी. 1 मिनट... 3 मिनट... 5 मिनट... 10.. मिनट.. 15 मिनट... "दीदी ये खाना लगाकर भुल गए क्या, हमे खाना भी खाना है"..


मै:- नकुल यहां सब पागल है. तू एक काम कर, एक ही प्लेट मे चावल और मटन निकाल ले, हम जल्दी से ऊपर जाते है और खाकर प्लेट नीचे आराम से साफ करके रख देंगे..


नकुल मेरी बात पर अमल करते उठा और प्लेट में चावल लेकर जैसे ही मटन कि हांडी का ढक्कन खोला... "अरे यार, कंजूसी की अति है.. दीदी यहां आओ".. मै जब वहां जाकर देखी तो कुल 6 पीस थे हांडी मे और पुरा ग्रेवी... "भाई ये तो 6 लोगों के लिए 6 पीस मटन लेकर आए है"..


नकुल:- हां तो 3 तेरे 3 मेरे.. ये लोग ग्रेवी खाएंगे.. चल ऊपर..


एक ही प्लेट मे चावल और मटन लेकर हम दोनों ऊपर के कमरे में चले गए और जल्दी,-जल्दी खाकर नीचे आ गए. मै नकुल को बाहर चारो ओर नजर रखने का बोलकर, जल्दी से किचेन मे घुसी. प्लेट को साफ करके, पोछकर और सुखाकर रख दिया.


बाहर आकर डाइनिंग टेबल का जायजा लिया और भागकर मै अपने कमरे में आ गई. मै और नकुल आराम से आपस में बात करते हुए मासी के बुलाने का इंतजार करने लगे. तकरीबन ढाई बजे (2.30 pm) मासी ने हम दोनों को आवाज देकर बाहर बुलाई..


खाना लगा, प्लेट में चावल सजी और जब मटन कि हांडी मे करछुल घुमाया गया तो वहां ग्रेवी के अलावा कुछ भी नहीं था. मासी मौसा को घूरती हुई... "आपने मटन खाया है"..


मौसा:- पागल हो क्या मै तो अभी आया हूं..


मासी:- गौरी क्या तुमने..


गौरी:- मांस एक ऐसा भोजन है..


मासी:- ऐसा भोजन है जो 24 घंटे से 36 घंटे तक शरीर में पचता रहता है.. तो क्या पचने के लिए तुमने अपने शरीर में डाल ली....


गौरी:- नहीं.. मैंने नहीं खाया, आपके बुलाने पर ही मै आयी हूं...


मासी:- मेनका, नकुल क्या तुमने खाया है..


मौसा:- मेनका, नकुल तुम दोनो चलो मेरे साथ, हम बाहर खाने जा रहे है. तबतक तुम सोचती रहो मटन गया कहां...


मासी:- खाने के टेबल पर नाटक मत कीजिए.. मै रात वाले मटन के पीस ला देती हूं...


हमे की, रात वाला लाओ या दिन वाला.. जल्दी लाओ खाकर हम डाकर लेते हुए सोने चले... मासी रात के खाने वाला मटन ले आयी. रात के हिस्से में भी 1 पीस मटन ही था. हम खाते गए और तारीफ करते गए.. खा पीकर हम दोनों ऊपर वाले रूम मे ही चले गए.. हमरे पीछे पीछे मौसा जी भी पहुंचे... "तुम दोनो को कविता की बात का बुरा तो नहीं लगा"..


मै:- नहीं मौसा जी बिल्कुल नहीं..


मौसा:- क्या बताऊं मै, इसको बदलते-बदलते मै ही बदल गया, लेकिन ये है कि बदलने का नाम नहीं लेती. सॉरी बच्चों, तुम लोग इतनी दूर से आए और खाने के तबके पर ऐसा हो गया....


नकुल:- मौसा कुछ दिन के लिए अनुराधा दीदी को बुला दो यहां, वरना हम तो बोर है जाएंगे..


मौसा:- चिंता मत करो, मैंने पहले ही कॉल कर दिया है, वो शाम तक आ जाएगी.. और तुम्हारी मासी के लिए मै अभी से एडवांस माफी मांग लेता हूं. इसके कारन लोगो ने हमारे यहां आना छोड़ दिया है. इसको तो शर्म भी नहीं आती की लोगों का स्वागत कैसे होता है. ये तो अपने दामाद तक को नहीं छोड़ती..
majedar update 🤣🤣🤣..mausi lagta hai bahut kanjush hai ..mehmano ke liye khana banaya wo bhi sirf ek ke liye ek piece ..
aur gauri bas science ka gyan pelte rehti hai 😅..
 

DARK WOLFKING

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अध्याय 11 भाग:- 4 (जिंगदी का पहला लंबा सफर)






मै:- जाने दो मौसा जी.. आप दुखी ना हो.. कुछ भी हो, आप तो रहोगे मेरे मौसा ही और वो मेरी प्यारी मासी...


मौसा:- हां होगी तो तुम भी अपनी मासी की ही. चाहे वो कुछ भी कहे और कुछ भी करे.. मै थोड़े ना प्यारे मौसा हो सकता हूं..


मै:- आप तो बेस्ट हो मौसा जी.. आप से ज्यादा जिंदादिल इंसान तो हमारे परिवार में नहीं..


मौसा:- हा हा हा हा, थैंक्स बेटा. ठीक है मै जा रहा हूं. ये एक कार की चाभी है, मन ना लगे तो मेरे पास चले आना..


मै:- ठीक है मौसा जी आ जाऊंगी...


मौसा जी के जाने के बाद हम दोनों उन्हीं की बात करने लगे. उनके लिए मुंह से बस "बेचारे" ही निकलता था. खैर मासी को जो भी करना हो लेकिन हम दोनों बुआ भतीजे ने तो पुरा दबाकर खाया था. इसलिए मै नकुल को उसके कमरे में छोड़कर, सीधा अपने कमरे में आ गई और चैन की नींद लेने के लिए आराम से बिस्तर पर लेट गई.


वैसे मटन के लिए पागलपन की कहानी सिर्फ इतनी सी थी कि हमारे पूरे खानदान में बस मुझ जैसे कुछ ही नमूने है, जो मटन खा लेते है. बाकी सभी सुध रूप से बिल्कुल नहीं खाने वाले है, और पता चल जाए तो प्राण खींच लेने वाले हैं. वैसे मुझे ये खाने की आदत अपने बड़ी भाभी सोभा से लगी थी और मुझसे नकुल को. हम तीनो के अलावा मनीष भैया चोरी छुपे खा लेते थे.


वैसे मासी के केस में मै सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगी कि वो बस थोड़ी सी स्ट्रिक्ट और हैल्थ कंसियस है. हर काम में वो रूटीन पसंद करती है और उनके साथ बहुत ज्यादा मज़ाक दूसरो के लिए हानिकारक हो सकता है.


बहरहाल मै तो चादर तानकर सो गई. 4 बजे के लगभग मेरे चेहरे पर किसी का हाथ फिर रहा था, आंख खोली तो मासी मेरे करीब बैठी हुई थी... मै मुस्कुराती हुई उन्हे देखी और उनके गोद में सर डाल दी. मासी मेरे सर को हल्का-हल्का मालिश करती... "मेनका ये क्या है, तुम्हे पता है ना ज्यादा मांस खाना अच्छी बात नहीं"..


मै:- भूख लगी थी तो मै क्या करती मासी..


मासी:- हम्मम ! दीदी कैसी है वहां और जीजाजी..


मै:- सब मस्त है और कुछ दिनों मे सपरिवार मिलने आ रहे है..


मासी:- अच्छा है फिर तो. तू बता पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही.. अगले साल 12th का एग्जाम देगी ना..


मै:- हां मासी, आप कैसी हो मासी और मैक्स कब तक आएगा..


मासी:- वो मेडिकल की तैयारी कर रहा है, तो सुबह से शाम तक अपने दोस्तो के साथ ही पढ़ता है. 4 लड़को का ग्रुप है जो ग्रुप स्टडी करते है..


मै:- अच्छा है मासी फिर तो, चलो परिवार में कोई तो डॉक्टर होगा..


मासी:- और तू नेता बनेगी... क्या जरूरत थी तुझे किसी से झगड़ा करने की..


मै:- मासी सच्ची मै झगड़ा नहीं करने गई थी..


मासी:- हम्मम ! दूर रहा कर बेटा मै तो इतना ही कहूंगी...वो सब अब जाने दे और बता क्या सब प्लांनिंग है...



मै:- पहले बताओ मुझे क्या दिलाओगी, फिर मै प्लांनिंग बताउंगी..


मासी मुस्कुराती हुई... "तेरे मौसा ने तनिष्क का काम भी ले लिया. उसके लिए जब अलग से शोरूम बाना था तो घूमने गई थी. क्या प्यारी चूड़ियां देखी थी, मेरे दिल में बस गई है वो चूड़ियां.. वही लेंगे"..


मै:- सच मे मासी.. चलो ना अभी लेते है.. प्लीज, प्लीज, प्लीज..


मासी:- अनु को आ जाने दे, फिर सब चलते है.. एक को तो दिन दुनिया और चीजों से मतलब ही नहीं है.. तुम दोनो को एक साथ खरीद दूंगी..


मै मासी के गाल चूमती... "आप बेस्ट हो मासी.. वैसे एक बात कहूं?"


मासी:- क्या बेटा..


मै:- मै जब आया करूं तो ये खाने की रूटीन को थोड़ा दूर रखा करो.. भूख से तरपा देती है आप..


मासी:- सब मानसिक परिस्थिति है बस, बाकी शरीर को तंदुरुस्त रखने के लिए 100-200 ग्राम अन्न से जितनी शारीरिक ग्रोथ लाया जा सकता है, उतना भर पेट भोजन में नहीं. बेटा कोई इतना ज्यादा खा लेता है कि उसे ज्यादा खाने से बीमारी हो जाती है और कोई ना खाने की वजह से तरह-तरह की बीमारियों से जूझता है. खाना शरीर के आवश्यकता अनुसार होना चाहिए, ना की भर पेट भोजन ठूंस ठूंस कर खाया जाए समझी..


मै:- मै भी कहां सर पत्थर पर पटक रही थी. अब खाने के बीच ऐसे इमोशनल फैक्ट्स लेकर आओगी तो निवाला हलख से नीचे भी नहीं जाएगा...


मासी:- मै ही बेवकूफ हूं जो सच्चाई बताती हूं. तुम सब के लिए तो मै पागल से ज्यादा कुछ नहीं. वो तू अनु से कहती है .. मनेटल मासी..


मै:- ओह हो, और प्यारी मासी कहती हूं वो तो आपके कानो तक नहीं पहुंचा होगा..


मासी:- हां वो भी पहुंचता है लेकिन वो बात ज्यादा चुभती है...


मै अपने दोनो कान पकड़ती.… "सॉरी मासी"..


मासी:- हां मै ये कान पकड़ना और सॉरी पहली बार नहीं सुन रही..


मै:- अब छोड़ो भी मासी.. अच्छा मासी ये बताओ ना हम 10 दिन के लिए है, मुझे कहां कहां ले जाओगी..


मासी:- तू बता तेरी क्या इक्छा है, वहीं करेंगे..


मै:- मासी पक्का ना मेरी इक्छा अनुसार करोगी..


मासी:- कब नहीं की हूं वो बताओ..


मै:- हां सो तो है मासी.. तो मासी आज रात आप क्लासिकल डांस करो ना..


मासी:- लेकिन मेनका तुमने अभी तो कहीं घूमने जाने की बात की थी ना?


मै:- बात आगे बढ़ते ही अपनी इक्छा बताने वाला पार्ट ही ध्यान में रहा. मासी प्लीज, अभी तो कही थी मेरे इक्छा अनुसार सब होगा...


मासी:- हट बदमाश, ये नहीं कुछ और बोल.. अब प्रैक्टिस छूट गई है तो डांस के बाद बहुत परेशानी होती है..


"ओह हो तो मासी और भांजी में प्यार बरस रहा है, और मुझे यहां कोई देखने वाला नहीं"… अनुराधा दीदी रूम के अंदर आती हुई कहने लगी..


मै उछलकर बिस्तर से नीचे आकर, इधर से 2 ठुमके लगाई और उधर से अनुराधा दीदी दो ठुमके लगाती हुई मेरे पास पहुंची. हम दोनों की वहीं कान फाड़ हूटिंग... "मेमनी, इस बार तेरी मै अच्छे से खबर लेती हूं, पहले अपनी मां से मिल लूं , वरना कभी भी लेक्चर लग जाएगा"..


मासी:- हां मिल ली मै तुमसे भी.. दोनो बात करो, मै कुछ काम खत्म कर लेती हूं..


मै हड़बड़ी मे दीदी के पुर्स और बैग खोलकर चेक करने लगी. अनु दीदी मुझे रोकती... "रुक रुक रुक, अब मेरे कौन से सामान पर कब्जा करने वाली है"..


मै:- अरे कोई सामान नहीं ले रही दीदी, जीजू को खोज रही हूं, कौन से बैग में पैक करके लाई हो..


अनु:- हा हा हा.. नाइस व्हाट्स एप जोक.. सुनकर बिल्कुल भी मज़ा नहीं आया..


मै:- तो मज़े की खबर देती हूं ना.. मासी हम दोनों को आज तनिष्क की चूड़ियां दिलवाने वाली है..


अनु:- क्या सच में..


मै:- हां दीदी सच्ची.. जाओ ना जल्दी से तैयार होकर आओ ना, चलते है चूड़ियां लेने..


अनु:- तू तो गहने जेवर के नाम से इतनी बावड़ी हो जाती है.. अभी तो आयी हूं, थोड़ा रेस्ट करने दे.. फिर आराम से चलते है..


मै:- दीदी आकर भी तो आराम कर सकती हो ना.. कौन सा आप विदेश से आ रही हो.. घंटे भर की जर्नी से तो आ रही..


अनु:- पागल रुक जा, मम्मी अभी कुछ काम करने गई है.. उन्हे बोलने तो दे तैयार होने, फिर ना तैयार होंगे..


मै:- मासी तो 2 मिनट में तैयार हो जाएगी, आपको ही तैयार होने में समय लगेगा..


अनु:- तू मेरी फिक्र छोड़ और ये बता आते-आते कौन सा कांड कर दी, जो पापा, मम्मी पर गरमाए थे..


मै:- इस बार पता ना मासी को कहां से ज्ञान मिल गया था, जितने आदमी उतने पीस मीट बनाई थी.. मैंने और नकुल ने चुपके से सबका हिस्सा चट कर दिया..


अनु:- तू भी ना बिना शरारत किए बाज नहीं आएगी.. तेरी जगह यदि और कोई होता ना, तो मम्मी अब तक कॉल लगा चुकी होती.. तू चल जारा मेरे साथ, गौरी रूठी है मुझसे, जरा उसे भी मना लूं..


मै:- अब क्यों रूठ गई वो..


अनु:- लाडली है ना थोड़ा रूठती है तो मन लगा रहता है.. चल जरा उसके साथ छेड़छाड़ करते है..


मै:- बिल्कुल दीदी मै तो आपका ही इंतजार कर रही थी.. मुझे भूख लगी थी. मै मासी से खाना मांग रही थी और वो ज्ञानचंद मुझे और नकुल को भूखे रहने के फायदे गिनवा गई..


अनु:- ऐसा क्या.. चल जरा हम दोनों भी उसे कुछ ज्ञान की घुट्टी पिला दे..


मै और अनु दीदी दोनो उसके कमरे में दाखिल हुए.. दरवाजा खुला वो मुड़कर देखी और फिर अपने मोबाइल में यूट्यूब पर कोई ज्ञान वर्धक चैनल देखने लगी.. मै और अनु दीदी दोनो एक साथ गाते... "एक लड़की बाग में, बैठे-बैठे रो रही, उसकी सखी कोई नहीं’, उठो सहेली उट्ठो, अपने आंसू पोंछो, चार गोला घूमो, नई सहेली ढूंढो."


गौरी हम दोनों को देखकर ऐसा मुंह बनाई मानो कह रही हो, अब मै बच्ची नहीं रही. बस इतनी सी प्रतिक्रिया के बाद वो फिर से अपने मोबाइल में घुस गई. वो उल्टी लेटकर वीडियो देख रही थी. सर के ओर से मै गई और पाऊं के ओर से अनु दीदी, हम दोनों के उसके हाथ पाऊं पकड़े और बिस्तर से उतारकर झुलाने लगे.. "रुको, क्या चाहिए वो बताओ.. मै सीधा उसे कर देती हूं"..


अनुराधा:- पहले तुम्हे झुलाना है, वो क्या है ना बच्ची को बिना झुलाए उसका मन ना लगेगा..


गौरी:- मन लग रहा है अब बताओ भी मुझे क्या करना है..


हम दोनों उसे बिस्तर पर बिठाते... "ये बता मै जब मौसी से खाना मांग रही थी तब तू भूखे रहने पर क्या ज्ञान पेल कर गई थी"


गौरी:- ये कैसी स्लैंग लैंग्वेज इस्तमाल कर रही हो तुम. पढ़ लिख कर यही सीखा है क्या?


अनु:- ओय भाषा संरक्षक, पहले ये बताओ पेलना का मतलब तुम क्या समझी और ये स्लैंग कैसे हो गया...


गौरी:- ठीक है मै मम्मी को यहां बुला लेती हूं, और उनसे ही क्लियर कर लूंगी की उस वर्ड का मतलब क्या है और वो अभद्र भाषा की श्रेणी में आता है या नहीं..


हम दोनों... "हां ठीक है तुम सही हम गलत"..


गौरी:- वो तो मै शुरू से जानती थी, यहां आने का कारन..


अनु:- बहन के पास किसी कारन से आएंगे क्या?


गौरी:- एक-एक करके आती तो ये बात मान लेती. मै कोई बच्ची नहीं जो ये ना समझूं की तुम दोनो मुझे तंग करने आयी हो..


मै:- हम दोनों की ऐसी किस्मत कहां की तुम्हे तंग कर सके.. ना गुस्सा से चिढ़ती हो और ना ही प्यार से हंसती हो.. चौबीसों घंटे एक ही एक्सप्रेशन तुम्हारे चेहरे पर रहता है..


गौरी:- तुम गलत हो मेनका.. हसने वाली बात होगी तो हंस ही लूंगी.. और रही बात चिढ़ने की या गुस्सा होने की, तो तुम दोनो मेरी बहन हो, तुम दोनो पर कभी चिढ़ आएगी ही नहीं..


अनु दीदी अपने दोनो हाथ जोड़ती... "जी गुरुमाता, तो मै ये मान लूं कि तुम मुझसे रूठी नहीं हो"..


गौरी:- वो तो मै रूठी ही रहूंगी, उसमे कोई कंप्रोमाइज नहीं हो सकता..


मै:- हां पर रूठी क्यों है..


अनु:- क्योंकि मै इसे कुछ गिफ्ट्स कर रही थी, इसने कहा कि उसके बदले मुझे पैसे दे दो.. लेकिन मैंने जबरदस्ती वो गिफ्ट दे दी.. तब से रूठी हुई है..


मै:- वैसे गिफ्ट क्या कि थी?


अनु:- स्कूटी..


मै:- हद है इस बात पर भी कोई रूठ जाता है क्या?


गौरी:- हां मै रूठ जाती हूं ना... मुझे स्कूटी नहीं चाहिए थी, बदले मे 50 हजार ही दे देती..


अनु:- पूछ इससे 50 हजार का करेगी क्या? मै अभी इसे 1 लाख दे दूंगी..


मै:- पूछना क्या है, वही चैरिटी ही करेगी... किसी समाज कल्याण मे दान..


अनु:- हां वही तो.. स्कूटी गिफ्ट की, ये न कि खुशी से लेले और फुरफ़ुर करती रहे पुरा सहर में…


गौरी:- जब स्कूटी खरीद के पैसे ही वेस्ट करने थे, तो समाज कल्याण मे दान करने में क्या बुराई थी..


अनु:- रुक अभी इसे बताती हूं.. मेनका फोन लगा और नकुल को बुलाओ..


मै:- ठीक है मै बुला रही..


अनु:- बुला क्या रही.. जल्दी बोल ना आए..


मै:- गौरी मै सच मे बुला रही...


गौरी:- बहन के साथ यही करने की इक्छा है तो सौक से करो. ज्यादा से ज्यादा मै तुम दोनो के वजह से रो लूंगी.. लेकिन चिंता मत करो मै अपने आंसू नहीं दिखाने वाली..


अनु:- तू उसे क्या सुन रही है .. बुला अभी नकुल को...


तभी हम दोनों के कान में नकुल की आवाज सुनाई दी. वो "दीदी दीदी" करते दरवाजे के बाहर था. गौरी जैसे ही नकुल की आवाज सुनी, हम दोनों के हाथ जोड़ती... "अच्छा मै सब बात मनुगी, बस उसे मत बुलाओ"….


अनु:- अब आयी ना लाइन पर.. नकुल तू ऊपर इंतजार कर हम अभी आते है..


गौरी:- दोनो ब्लैकमेलर हो.. हमेशा अपनी बात किसी ना किसी तरह मनवा लेती हो..


हम दोनों उसे बीच में लेकर उसके गाल से गाल चिपकाती... "और एक तुम हो हम कितने भी कर ले, तुम हमारे साथ घुल मिल नहीं सकती"..


गौरी:- गलत बात... बस आप लोग जैसा करती है, वैसा मै नहीं करती. इस बात को लेकर आप ऐसा नहीं कह सकती...


बात तो गौरी की भी सही थी जैसा वो अपने हिसाब से जीती थी और हम दोनों (मै और अनुराधा दीदी) अपने हिसाब से. हम तीनो ही बैठकर बात कर रहे थे तभी मैंने कहा... "नकुल अकेला है उसे भी यहीं बुला लूं क्या?"
nice update .ye menka kuch jyada hi sona kharidna pasand karti hai ,,ab mausi se bhi chudiya legi 😅..
gauri to ekdam alag type ki hai ,,scooty gift dene par naraj ho gayi ,wo paise samaj kalyan ke liye daan karna chahti thi ..
par ye nakul ko bulane ka sunkar maan kaise gayi gauri ??
 
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