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चरम सुख प्राप्ति के बाद दोनो जैसे तृप्त हो गये हो। रूही आर्यमणि के ऊपर ही सुकून से लेट गई। दोनो की मध्यम चलती धड़कने एक दूसरे के होने का मधुर एहसास करवा रही थी। सुबह के 11 बज रहे होंगे, जब बिना दरवाजा खट–खटाए एक बार फिर ओजल, इवान और अलबेली अंदर घुस चुके थे। अंदर घुसते ही तीनो दरवाजे की ओर मुंह कर लिए.… "बॉस याद तो होना चाहिए था की एक चाबी हमे ये कहकर दिये थे कि दरवाजा मत खट–खटाना, रूही की नींद खुल सकती है।"…
रूही:– मुंह फेर कर जो तुम सब दरवाजे के ओर देख रहे, वहीं तुम्हारे दाएं बड़ा सा आईना लगा है। चलो बाहर निकलो और दरवाजा लगाते जाना। ..
कुछ देर बाद तीनो टीन वुल्फ की हंसी पूरे कमरे में गूंज रही थी और बेचारे दोनो शर्माए–शर्माए मुंह छिपा रहे थे... "दोनो बेशर्मों (ओजल और इवान), तुम्हारी बड़ी बहन हूं। कुछ तो लिहाज रखो"…
अलबेली:– एक बार मेरा पति लिहाज भी रख ले, लेकिन ये ओजल…
ओजल अपनी आंखें दिखाती.… "ओजल क्या? बेशर्म औरत..."
अलबेली, ओजल का बाल नोचती... "औरत किसे बोल रही है कामिनी"…
ओजल, छूटकर आर्यमणि के पीछे आती... "तू औरत और कुछ दिन बाद तेरा भी मटका टंगा होगा"…
अलबेली:– चुप हो जा वरना मैं तेरा मुंह नोच लूंगी...
ओजल:– हां तो मैं भी पिल्स की कहानी बता दूंगी...
अलबेली बिलकुल शांत आंखों से जैसे मिन्नत कर रही हो। ओजल खी–खी–खी करती आर्यमणि के ऊपर लद गई और अपनी ललाट ऊपर करती... "आ गई काबू में बेलगाम"..
आर्यमणि:– अब तुम सब ये बकवास बंद करो। ओजल क्या तुम मुझे बताओगी की यहां मैं अपने खानदान को कौन सा सरप्राइज़ दे दूं?
ओजल:– क्या खूब याद दिलाया है... आओ मेरे साथ..
सभी एक साथ... "लेकिन कहां"..
ओजल:– बस चलो.. बिना किसी सवाल के...
सभी टैक्सी में ओजल के साथ निकले। ओजल उन्हे एक सी–पोर्ट पर ले आयी। पोर्ट को देखकर आर्यमणि कहने लगा.… "तुम्हे कैसे पता की हम यहां से अपना समुद्री सफर शुरू करेंगे"…
ओजल:– सरप्राइज़ ये नही की आप यहां से सफर शुरू करेंगे। सरप्राइज़ ये है की यहां से हम सब साथ निकलेंगे...
आर्यमणि, अपनी जगह खड़ा होते... "कोई 2 चमाट लगाओ इसे... इसे सरप्राइज़ नही शॉक देना कहते है।"..
ओजल:– पूरी बात जाने बिना समीक्षा करने की आदत छोड़ दो जीजू और कोई भी अब एक शब्द नही कहेगा..
सभी चुपचाप ओजल के साथ चल दिये। ओजल बोट के बीच से एक शानदार क्रूज के सामने खड़ी होकर... "चलो अंदर"..
कोई भी बिना कोई सवाल किए क्रूज पर चढ़ गया। ओजल उसे क्रूज घूमती.… "अपस्यु गुरुजी के ओर से तुम सबका वेडिंग गिफ्ट"…
सभी आश्चर्य से... "क्या?"..
ओजल:– देखा हो गये ना सरप्राइज़... जाओ घूम लो अपना क्रूज... बाकी की डिटेल मैं होटल में दूंगी...
करीब 2 घंटे बाद सब बाहर आये। अलबेली और इवान तो खुशी से ओजल को उठाकर हवा में उछाल रहे थे।… "ओजल, क्रूज पर 2 जेट भी है"…
ओजल:– हां, वो इमरजेंसी के लिये है। किसी समान की जरूरत हो तो जेट उड़ाए और पास के किसी शहर में पहुंच गये।
आर्यमणि:– हां लेकिन ये जेट उड़ेगा कैसे...
ओजल:– वो सब आपकी यादों में है बॉस, बस जब जेट उड़ाने की तीव्र इक्छा हो तब उड़ा लेना। और दूसरा जेट हमारा है। कुछ दिन तक सबके साथ समुद्री सफर करने के बाद उसी जेट से भारत के लिये उड़ान भरेंगे।
अलबेली:– हां और ये जेट उड़ाने का तरीका भी ओजल के दिमाग में होगा...
ओजल:– जी नहीं, 2 पायलट साथ चलेंगे... अब तुम भी चलो यहां से।
अलबेली:– तेरी भाभी हुई मैं, इज्जत से बात कर वरना तेरा रहना मुश्किल कर दूंगी..
ओजल:– हवा आने दे झल्ली... और जाकर अपने पति को संभाल...
तीनो की कमाल की नोकझोंक शुरू थी। हालाकि द्वंद तो अलबेली और ओजल के बीच था, लेकिन पक्षपात की लपटे इवान को घेर लेती... कभी बीवी का पक्ष लेने का इल्जाम, तो कभी बहन का...
23 और 24 दिसंबर तक बड़ा सा परिवार लॉस एंजिल्स शहर का लुफ्त उठाते रहे। वैसे भी क्रिसमस के समय था, पूरे शहर में ही जलसा हो रहा हो था। इस दौरान परिवार के सभी सदस्य लॉस एंजिल्स आने का कारण पूछते रहे लेकिन आर्यमणि उन्हे 25 दिसंबर तक रुकने कहा...
25 दिसंबर की शाम, सभी सी–पोर्ट पर थे। यहां भी जैसे मेला लगा हो। आज तो कई सारे बड़े–बड़े शानदार क्रूज समुद्र में तारे की तरह टिमटिमा रहे थे। ओजल ने कॉल किया और एक छोटी सी बोट उनके पास आकर खड़ी हुई...
भूमि, ओजल का कान पकड़ती.… "हमे कैसिनो में जुआ खिलवाने और नंगी लड़कियों का नाच दिखाने का सरप्राइज़ है.…"
ओजल:– आव... आई कान छोड़ो... पहले देखो फिर कहना...
केशव:– मैं क्या कह रहा था, तुम लोग अपना प्रोग्राम करो, मैं जरा यहां क्रिसमस का लुफ्त उठा लूं..
जया, केशव के कान खींचती... "ज्यादा नैन सुख मत लो.. और ओजल खबरदार जो हमे किसी बकवास जगह लेकर गई तो"...
छोटी सी बहस के साथ ही सभी बोट में बैठ गये। जया और भूमि तो बोट के बीच में बैठी क्योंकि लहरों पर बोट जब ऊपर उठ जाती तब इनके प्राण हलख से निकलने लगते थे। कुछ ही देर में चमचमाते क्रूज के बीच से होते हुए ये लोग अपने क्रूज पर पहुंचे। क्रूज पर चढ़ने से पहले ही एक बार फिर बहस का दौड़ शुरू हो चुका था।
क्रूज के ऊपर पहला कदम और माला लिये क्रूज के क्रू सबका स्वागत करने लगे। जैसे ही सभी अंदर आये.. ओजल ग्लास से टोस्ट करती... "आप सबका हंस क्रूज पर स्वागत है। आप सबका अपना और बॉस के घोटाले के पैसे से ली गई शिप"…
जैसे ही यह बात कान में गई, आर्यमणि ओजल के कान में फुसफुसाते.… "ये क्या बक रही हो"..
ओजल सबको दोनो हाथ दिखाती.… "आप लोग यहां के शानदार पकवान और मजेदार वाइन का लुफ्त लीजिए, जबतक हम कुछ डिस्कस कर लेते हैं। वहां से दोनो एक किनारे पहुंचे। आर्यमणि अब भी ओजल को सवालिया नजरों से देख रहा था।
"अरे जीजू ऐसे खतरनाक लुक मत दो। आपसे बिना पूछे हमने आपके 100 मिलियन इस शिप पर खर्च कर दिये।"..
आर्यमणि:– क्या???????
ओजल:– अरे चील मारो... यदि अपने पैसे वापस चाहिए हो तो जब किनारे आना तो ये शिप हैंडओवर कर देना। 800 मिलियन की शिप 100 मिलियन में मिल रही फिर भी ऐसे रिएक्शन दे रहे। और यहां के जितने क्रू है उन्हे हमने हायर किया है। सबको अच्छी मोटी रकम सालाना देना है इसलिए आप जबतक चाहो समुद्री सफर का मजा ले सकते हो...
आर्यमणि:– 800 मिलियन डॉलर की शिप। अपस्यु पागल तो न हो गया। मुझसे 100 मिलियन लिये तो फिर बाकी के 700 मिलियन कहां से आये?
ओजल:– 400 मिलियन का तो हमें एफबीआई डायस्काउंट मिल गया था। बचे 300 मिलियन तो वो पैसे गुरु अपस्यु ने हवाला से लूटा था। वो सोच ही रहे थे कि उन पैसों का क्या करे, इतने में आपके महासागर में उतरने की कहानी सामने आ गयी।
आर्यमणि:– छोटे तो बड़ा दिलदार निकला। उस से कहना अपना काम आराम से खत्म करके एलियन के विषय पर ध्यान दे। उन्हे कैसे भागाना है, उसका पूरा ग्राउंड तैयार रखे। मै लौटकर सीधा उसी पर काम करूंगा।
ओजल:– “जब यहां गुरु जी की बातें उठी ही है तो मैं उनका संदेश दे दूं…. ये पूरा क्रूज हाई टेक है, किसी भी प्रकार की घुसपैठ हुई तो तुरंत सूचना मिल जायेगी। उसके अलावा कई सारे रक्षक मंत्र और पुराने पत्थर यहां रखे गये है जो काली शक्तियों को अंदर क्या इसके आस पास के दायरे से भी दूर रखेंगे... एक रबर बैंड सबके लिये है, इमरजेंसी के वक्त बस उसे थोडा सा घिसना है और जान बचाकर तब तक टाइम पास करना है, जबतक की मदद नही आ जाती। उन्होंने शख्त हिदायत दी है कि जिस दुश्मन को जानते नही, उनसे बिना बैकअप लड़ाई मोल न ले। ये आपके लिये नही बल्कि आपके साथ वालों की सुरक्षा के लिये जरूरी है।”
“आचार्य जी ने अपना संदेश होने वाली प्यारी सी बिटिया के लिये भेजा है। उन्होंने उनका नामकरण भी किया है... उन्होंने कहा है, होने वाली बिटिया काफी भाग्यशाली रहेगी और 4 शुभ योग में उसका जन्म होगा।”
आर्यमणि:– नाम क्या रखा है आचार्य जी ने...
ओजल:– अमेया... ओह हां आचार्य जी ने यह भी कहा था की जरूरी नही यही नाम हो। ये नामकरण उनकी ओर से एक सुझाव मात्र है...
आर्यमणि:– नही अच्छा नाम है। बताओ उन्हे ये तक पता है कि मेरी बेटी होने वाली है... मेरी लाडली.. और तुम उनके साथ क्या कर रही हो?
ओजल:– एक साधना में हूं... आचार्य जी ने कहा है जबतक साधना पूर्ण न हो किसी से जिक्र नहीं करने..
आर्यमणि:– बाप रे तुम्हारी भाषा तो काफी जटिल हो गयी है...
और दोनो हंसते हुए सभी के साथ हो लिये। इनका क्रूज लॉस एंजेलिस के समुद्र से उत्तरी प्रशांत महासागर की ओर बढ़ने लगा। करीब 4 दिन के लुभावना सफर और समुद्र के लहरों के बीच से ओजल पूरे परिवार को लेकर उड़ान भर चुकी थी। घर के सभी लोग संतुष्ट थे और उन्हें आर्यमणि के सफर की कोई चिंता नहीं थी।
इनका क्रूज अब उत्तरी प्रशांत महासागर से दक्षिणी प्रशांत महासागर की ओर चल दिया। एक ओर अलबेली और इवान थे, जिनका रोमांस इतना लंबा चल रहा था की पिछले 10 दिनों से कमरे के बाहर ही नहीं आये। वहीं रूही और आर्यमणि किनारे बैठकर घंटो महासागर की लहरों का लुफ्त उठाते और सतह पर तैरने वाले पानी के जीव को देखते रहते।
ढलती शाम और महासागर की लहरें जीवन को नया रोमांच दे रही थी। रूही, आर्यमणि के सीने पर अपना सर टिकाए डूबते सूरज को देखती हुई... "दिल में सुकून सा है। मैं बहुत खुश हूं आर्य"…
आर्यमणि, रूही के होटों पर प्यार से चुम्बन लेते... "मैं बता नही सकता... बस ऐसा लगता है की.. ऐसा लगता है"..
"कैसा लगता है आर्या"..
"ऐसा लगता है.. सारी उम्र तुम्हारे साथ ऐसे ही सुहाने सफर पर बीत जाये"..
"और हमारी बेटी... वो क्या इस संसार को जानेगी ही नही"…
"तुम भी ना... मतलब ठीक है वो संसार को जानेगी.. बस तुम सदा मेरे साथ रहो। प्यार आता है तुम्हे देखकर जो रुकता ही नही, बढ़ता ही चला जाता है"…
रूही, आर्यमणि के होटों को चूमती... "हां ऐसा ही मुझे भी लगता है"…
शहर की भीड़ से दूर। हर लड़ाई से दूर। प्यार की कस्ती में सवार दोनो चले जा रहे थे। हर शाम का लुफ्त उठाते। चलते हुए 16 दिन बीत चुके थे। क्रूज अब दक्षिणी प्रशांत महासागर में चल रही थी। ऐसी ही एक शाम प्यारी सी महफिल लगी थी। चारो समुद्र की लहरों का लुफ्त उठा रहे थे तभी उनके बीच डॉक्टर कृष्णन पहुंचते... "सर हम कहां जा रहे है। किसी से भी पूछो तो सब आपको पूछने बोलता। हम कब जमीन पर उतरेगा.. कब लोगों का इलाज करेगा"…
आर्यमणि:– कृष्णन तुम रूही का इलाज तो कर रहे न..
कृष्णन:– सार, हमको गरीब लोगों का सेवा करना है। अपने मां, अप्पा, चिनप्पा को दिखाना, मैं कितना मेहनत कर रहा।
रूही:– डॉक्टर साहब आपकी शादी हो गयी है?..
कृष्णन, शर्माते हुये... "नही मैम"
रूही:– कृष्णन वो अपने क्रू की इंजीनियर है न, एवलिन, उस से तुम्हारी बात चलाऊं...
कृष्णन जैसे खाब में खोया हो और मन के अंदर उसी अमेरिकन बाला की तस्वीर घूम रही हो। याद करके ही वो हिल गया... "क्या सच में मैडम ऐसा संभव है"..
रूही:– हां बिलकुल... जाओ बात तो करो...
कृष्णन वहां से चला गया और सभी लोग उसकी हालत देख हसने लगे। 2–3 दिन बाद अचानक ही गहमा गहमी होने लगी। आर्यमणि और बाकी सब लोग लॉबी में पहुंचे, जहां सभी क्रू मेंबर इकट्ठा थे। सभी हंस रहे थे और बीच में कृष्णन खड़ा था जिसे एवलिन भर–भर कर खड़ी खोटी सुना रही थी।... "हाउ डेयर यू, यू फक्किंग मॉरोन..इत्यादि इत्यादि... और बेचारा कृष्णन चुपचाप सुन रहा था। इसी बीच उसकी नजर आर्यमणि पर गयी... "मिस्टर आर्यमणि डॉक्टर कृष्णन को समझा लीजिए, दोबारा मुझसे फालतू की बात किया तो मैं उसे पानी में फेंक दूंगी"…
आर्यमणि, कृष्णन को लेकर अपने साथ आया... "क्या हो गया वो ऐसे भड़क क्यों गयी?"..
कृष्णन:– सर मैने तो केवल इतना कहा था की मुझसे शादी करेगी तो इलाज फ्री होता रहेगा..
आर्यमणि:– कृष्णन लव परपोजल देना था, न की बिजनेस एग्रीमेंट। वो लड़की 5 मिलियन यूएसडी सालाना कमाने वाली है और आप उसे फ्री इलाज का झांसा दे रहे थे....
कृष्णन:– तो मुझे क्या करना चाहिए..
आर्यमणि:– कोई मस्त रोमांटिक मूवी देखिए और कोशिश जारी रखिए...
डॉक्टर कृष्णन लग गया दूसरी ड्यूटी और तभी मिली आर्यमणि को राहत की बूटी। वरना तो दिन में 4 बार परेशान कर देता। कारवां आगे बढ़ते हुए प्रशांत महासागर और अंटार्टिका महासागर के बीच था। कैप्टन ने आकर आर्यमणि को तात्कालिक स्तिथि से अवगत करवाया।
आर्यमणि नेविगेशन मैप पर एक जगह प्वाइंट किया जो वर्तमान जगह से दक्षिण के ओर 1200 नॉटिकल माइल की दूरी पर था। कैप्टन उस प्वाइंट को ध्यान से देखते... "सर उस ओर कोई जहाज आज तक नही गया। हमे पता भी नही की वहां टापु है भी या नही"…
आर्यमणि:– कैप्टन आपकी बात में झूट की बू आ रही है। जो सच है वो न बताकर आप बात घुमा रहे हैं।
कैप्टन:– सर मेरे ख्याल से आप उस जगह न ही जाए तो बेहतर है। जिस प्वाइंट की बात आप कर रहे हैं, वो इनगल्फ आइलैंड है। बस यूं समझ लीजिए की आपने जहां पॉइंट किया है उस जगह पर जाने वाला कोई जहाज लौटा ही नही। और किसी भी प्रकार की सुनी सुनाई जानकारी पर यकीन करने वाले नही।
आर्यमणि:– बातें सुनी सुनाई हो या तथ्य से परिपूर्ण तुम तो सुनाओ।
कैप्टन:– तो सुनिए... जिस जगह को आपने पॉइंट किया है उसके 2 मिल के दायरे में महासागर का मिजाज ऐसा हो जाता है कि जहाज और उसके लोग कब काल की गाल में समा गये पता भी नही चलता। यदि पहली बढ़ा पार भी कर लिये तब आपका सामना होगा बड़े–बड़े काल जीवों का। ये इतने बड़े होते है कि पल भर में शिप को तबाह कर डूबा देते हैं।
आर्यमणि:– हां खतरनाक जगह तो है, लेकिन मैं उन्ही रहस्यों को खोज पर जा रहा हूं। यदि आपको ज्यादा डर लग रहा है तो मुझे ये जहाज चलाना सीखा दीजिए और आप अपने क्रू के साथ जेट से जहां मर्जी वहां जा सकते है।
कैप्टन:– ठीक है सर मैं क्रू मीटिंग बुलवा लेता हूं।
क्रू मीटिंग बुलाई गयी। 16 क्रू मेंबर में से 4 ने आइलैंड न जाने के पक्ष में वोट दिया और 12 जाने के लिये बहुत एक्साइटेड थे। अंत में यही फैसला हुआ की वो सभी चल रहे है। लगभग 8 दिन बाद क्रूज आइलैंड के समुद्री सीमा क्षेत्र के पास पहुंच चुकी थी। यदि सुनी सुनाई बात पर यकीन करे तो कुछ दूर आगे से पानी का वह क्षेत्र शुरू हो रहा था, जहां महासागर का मिजाज बदल जाता है।
चूंकि रात हो चुकी थी और आगे किस प्रकार की चुनौती मिलेगी उसका कोई अंदाजा नहीं था। इसलिए कप्तान ने रात भर विश्राम करने का फैसला लिया। क्रूज के इंजन को बिलकुल धीमा कर आगे बढ़ रहे थे। देर रात हुई होगी। 2 लोग नेविगेशन रूम में थे बाकी के क्रू आराम कर रहे थे। तभी नेविगेशन रूम में अचानक ही धुवां भर गया और वो दोनो क्रू मेंबर बेहोश।
कैप्टन के साथ समय बिताते हुये इवान को इंजन धीमा और तेज करने तो आ ही चुका था। इवान ने भी इंजन को तेज कर दिया। क्रूज अब काफी तेज गति से आगे भाग रही थी। अल्फा ने यही कोई 4 नॉटिकल माइल का सफर तय किया होगा, तभी आंखों ने वह हैरान करने वाला नजारा भी देखा जो हृदय की गति को ही रोक दे। कितना भी मजबूत दिलवाला क्यों न हो, जिसे अपने मृत्यु तक का भय नही, उनमें भी मृत्यु का भय डाल दे।
कुछ दूर आगे लगभग 1000 मीटर से जायदा गहराई का इतना बड़ा भंवर बना हुआ था जिसमे बड़े–बड़े 10 जहाज एक साथ दम तोड़ दे। और नजरें ऊपर जब गयी तो आगे और पीछे से एक साथ इतनी ऊंची लहर की दीवार दिख रही थी, जिसने महासागर के पानी को सीधा आकाश से ही मिला दिया था। दम साधे अपनी श्वांस रोककर पूरा अल्फा पैक ही हैरान थे।
कुछ दूर आगे लगभग 1000 मीटर से जायदा गहराई का इतना बड़ा भंवर बना हुआ था जिसमे बड़े–बड़े 10 जहाज एक साथ दम तोड़ दे। और नजरें ऊपर जब गयी तो आगे और पीछे से एक साथ इतनी ऊंची लहर की दीवार दिख रही थी, जिसने महासागर के पानी को सीधा आकाश से ही मिला दिया था। दम साधे अपनी श्वांस रोककर पूरा अल्फा पैक ही हैरान थे।
ऐसा भयावाह नजारा था जिसे देखकर सभी के रौंगटे खड़े हो गये। रूही, इवान और अलबेली एक दूसरे के हाथ इस कदर मजबूती से थामे थे, मानो भयभीत करने वाले इस मंजर में एक दूसरे को हिम्मत दे रहे थे। वहीं आर्यमणि अपनी छाती चौड़ी किये क्रूज के छत पर खड़ा था। एक फिसलंदार सतह जो इतनी हिलती थी की उसपर पाऊं ही न जमा पाये, खड़े होना तो दूर की बात थी।
आर्यमणि ने क्रूज ठीक आगे निगलने वाले भंवर को देखा। उस भंवर के आगे खड़ा आसमान को छूते लहर को देखा। सिर्फ इतना ही नहीं मौत अपनी पूर्ण चपेट में लेने के लिये पीछे भी खड़ी थी। पीछे भी एक लहर आसमान को छू रही थी। आर्यमणि फिर भी निर्भीक खड़ा रहा। अपने एमुलेट को हाथ में थामकर इतनी तेज दहाड़ लगाया की उसके दहाड़ की भीषण कंपन में दोनो लहरें इस कदर गायब हो गयी मानो उसका अस्तित्व कभी था ही नही।
आर्यमणि दहाड़ लगाने के ठीक बाद छत से एक लंबी दौड़ लगाया और हवा में कई फिट ऊंचा छलांग लगा चुका था। रूही, अलबेली और इवान की नजर जब आर्यमणि पर गयी तीनो की ही श्वास पतली होने लगी। भीषण महासागर में बने भंवर के ऊपर उन्हे कण के बराबर का एक इंसान ही दिखा। समुद्री तूफान और भंवर के ठीक ऊपर हवा में था आर्यमणि। तेजी से नीचे गिड़कर आर्यमणि भंवर की गहराई में था। बड़ा सा गोल भंवर के ठीक बीच आर्यमणि फंसा था और गिरने के साथ ही उसने अपने अंदर की वह दहाड़ निकाली की भंवर की गहराई पूरे महासागर में फैल गयी।
कहां गया भंवर और उसके एक किलोमीटर की गहराई कुछ पता ही नही चला। बस क्रूज ने इतना तेज झटका खाया की रूही, अलबेली और इवान मुंह के बल गिर गये। सारी बाधाओं को ध्वस्त करने के बाद क्रूज एक बार फिर अपनी गति से आगे बढ़ी। लेकिन महासागर के इस हिस्से में जैसे पग–पग पर बाधायें बिछी हुई थी। आगे बढ़ते ही इतना तेज तूफान आया की उस तूफान ने पूरे क्रूज को ही सीधा खड़ा कर दिया। तिलिस्म सिर्फ इतना ही नहीं था, बल्कि तूफानी हवा ने जैसे ही क्रूज को खड़ा किया, वह पानी में डूबा नही बल्कि उसके नीचे का पूरा पानी ही गायब था।
महासागर जो कई किलोमीटर गहरी थी, उसका पानी गायब होते ही कई किलोमीटर की खाई बना चुकी थी और उस खाई में क्रूज बड़ी तेजी से गिड़ी। किंतु कई तरह के अभिमंत्रित मंत्र से बंधा यह क्रूज महासागर की गहराई में टकराने से पहले ही पानी के सतह पर एक बार फिर तैर रहा था। एक पल में गिर रहे थे अगले पल तैर रहे थे। जितनी भी तिलिस्मी बाधा थी, उन्हे काटते हुये क्रूज तेजी से आसानी से आगे बढ़ रही थी, बस अल्फा पैक कभी ऊपर तो कभी नीचे की दीवारों से टकरा रहे थे।
भोर हो रही थी। सूर्य अपनी लालिमा बिखेर रही थी। दूर–दूर तक दिख रहा महासागर शांत था। वहीं दूर महासागर के बीच ऊंचे पहाड़ जंगलों से घिरा एक टापू भी दिख रहा था। अल्फा पैक ने सभी बेहोश पड़े क्रू मेंबर के शरीर को हील करने के बाद उन्हे बिस्तर पर लिटा दिया। सारा काम समाप्त कर पूरा अल्फा पैक डेक पर आराम से बैठकर उगते सूरज का लुफ्त उठा रहे थे।
एक–एक करके सारे क्रू मेंबर जाग रहे थे और टापू को देखकर उतने ही खुश। कैप्टन भी वह अजूबा टापू देख रहा था, जिसकी कहानी बताने आज तक कोई जहाजी वापस नहीं लौटा। जागते ही उसने सबसे पहले अपने सिस्टम को ही चेक किया। लेकिन आश्चर्य तब हो गया जब रात के वक्त जिस जगह पर कैप्टन ने विश्राम करने का सोचा, उस से कुछ दूर आगे की फुटेज के बाद कुछ था ही नही। कितने नॉटिकल माइल क्रूज चल चुकी थी उसका भी ब्योरा नहीं। संपर्क प्रणाली तो सुचारू रूप से काम कर रही थी, लेकिन किसी भी पोर्ट पर संपर्क नही हो पा रहा था।
कप्तान, आर्यमणि के पास आकर अपनी कुर्सी लगाते.... “सर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आपने सबको बेहोश करके महासागर का वह इलाका पार कर लिया, जहां महासागर प्रचंड हो जाता है। नेविगेशन कर रहे 2 सेलर अपने केबिन में मुझे सोए हुये मिले जिन्हे रात की कोई बात याद नही।”...
आर्यमणि:– कप्तान साहब आपको क्या लगता है, रात को क्या हुआ होगा?
कैप्टन:– बस उसी का तो अनुभव लेना था। उन रास्तों पर क्या हुआ था, उसकी तो कल्पना भी नहीं कर सकता।
आर्यमणि:– कुछ बातों की जिज्ञासा न हो तो ही बेहतर है। आप और पूरा क्रू मेरे साथ है इसलिए इस आइलैंड पर सब सुरक्षित है। आगे का संभालिये, देखिये हम इनगल्फ आइलैंड पहुंच चुके।
कैप्टन अपने केबिन में घुसे। वहां से सभी क्रू मेंबर को जरूरी दिशा निर्देश देने लगे। शिप के क्रू मेंबर शिप को उसकी सही जगह लगाने लगे, जबतक आर्यमणि जेट के पास पहुंचा।… "देखे इसे चलाया कैसे जा सकता है।"..
आर्यमणि ध्यान लगाने लगा। धीरे–धीरे यादों की गहराई में और वहां जेट उड़ाने के पहले दिन से लेकर आखरी दिन तक की याद थी। मुस्कुराते हुए आर्यमणि की आंखें खुली और जेट से वो आइलैंड के चक्कर लगाने लगा। तकरीबन 45 किलोमीटर में यह आइलैंड फैला था जिसमे विशाल जंगल और पहाड़ थे। क्षेत्रफल को लेकर आर्यमणि के मन में दुविधा जरूर हुई लेकिन इस बात को फिलहाल नजरंदाज करते अपने तंबू लगाने की जगह को उसने मार्क कर दिया। एक चक्कर काटने के बाद जेट क्रूज पर लैंड हो चुकी थी और आर्यमणि सीधा कैप्टन के पास पहुंचा।
कप्तान:– सर आपने कभी बताया नही की आप एक पायलट भी है।
आर्यमणि:– तुम कहो तो तुम्हे भी पायलट बना दे।
कप्तान:– फिर कभी सर... अभी हमारे लिये क्या ऑर्डर है..
आर्यमणि:– जैसा की आपको बताया गया है की ये सफर लंबा होने वाला है। इसलिए जबतक मेरा यहां काम खत्म नहीं हो जाता तबतक मैं यहां रुकने वाला हूं। टापू के एक मैदानी भाग के मैने मार्क कर दिया है जहां मैं सबके रहने का इंतजाम करता हूं। अभी के लिये आप अपने क्रू के साथ क्रूज में ही रहिए, और हमारे भीकल्स को किनारे उतारने का इंतजाम कीजिये। बाकी कोई इमरजेंसी हो तो वाकी से संपर्क कीजिएगा...
कप्तान, आर्यमणि के कहे अनुसार करने लगा। जिप लाइन जोड़ दी गई। मजबूत वायर जो 100 टन से ऊपर का वजन संभाल सकती थी। कार्गो पैकिंग में 2 मिनी–ट्रक थी, जो चारो ओर से चौड़ी पट्टियों में लिपटी थी। एक मजबूत एडवांस्ड मिलिट्री जीप के साथ पहाड़ी और जंगल में इस्तमाल होने वाली 3 बाइक थी।
हुक के सहारे फसाकर सभी गाड़ियों को किनारे तक पहुंचाया गया। क्रू मेंबर वहीं क्रूज में ही रुके बाकी गाड़ियों के साथ आर्यमणि चल पड़ा। किनारे से तकरीबन 6 किलोमीटर अंदर मार्क की हुई जगह पर सब पहुंचे। यह इस आइलैंड का मैदानी भाग था जहां 5–6 फीट का जंगली झाड़ उगा हुआ था।
बड़े–बड़े टूल बॉक्स जरूरत के कई समान लोड किये दोनो ट्रक को उस जगह तक पहुंचाया गया। अलबेली और इवान उस जगह के चारो ओर के झाड़ को साफ करने लगे, वहीं आर्यमणि बड़ी सी आड़ी लेकर जंगल में घुसा। वहां आर्यमणि सबसे बूढ़ा पेड़ ढूंढने लगा जिसकी स्वयं मृत्यु की इक्छा हो। 4 ऐसे मोटे वृक्ष मिल गए। आर्यमणि उन वृक्षों को काटना शुरू किया। शाम तक में 2 वृक्ष काट कर छोटे छोटे टुकड़ों में विभाजित कर चुका था।
आज का दिन खत्म हो रहा था, इसलिए आर्यमणि ने अपना काम रोक दिया। इधर अलबेली और इवान ने मिलकर मैदानी भाग के बड़े–बड़े झाड़ को साफ कर चुके थे, जहां इनका टेंट लगता। इन तीनों के अलावा रूही भी अपना काम कर रही थी। वह जंगल से कुछ खाने के लिए ढूंढ लाई। हां एक बात जो चारो के साथ हो रही थी, उस जगह कई तरह के जानवर थे, जो इनको देखकर रास्ता बदल लेते।
इवान और अलबेली का काम भी खत्म हो गया था। उन्होंने तो झाड़ के 8–10 पहाड़ खड़े कर दिये, जिन्हे सूखने के बाद इस्तमाल में लाया जाता। दोनो ने मिलकर लगभग 500 मीटर के इलाके को साफ कर चुके थे। देखने मे वह जगह काफी खूबसूरत लग रही थी। बीच में ही टेंट लग चुके थे और रूही आग पर तरह–तरह के खाने पका रही थी। इनके खाने में, जंगल से मिले कुछ बीज, नए तरह के फल और कुछ हरी पत्तियां थी।
पत्ती का सूप किसी आनंदमय भोजन से कम नही था। उसके अलावा उबले बीज स्वाद में काफी करवा था लेकिन फिर भी पोषण के लिए खा लिये। अगली सुबह से फिर इनका काम शुरू हो गया। कटे हुए पेड़ को छिलना उनसे चौड़े तख्ते निकलना। ये बात तो चारो को माननी पड़ी की लकड़ी छिलना और उनसे पल्ले निकलना बड़ा टेढ़ा काम था। लकड़ी के 2 मोटे सिल्ले को बर्बाद करने के बाद, तब कहीं जाकर समझ में आया की ढंग का पल्ला कैसे निकालते हैं। वो तो वहां 3 साल पढ़ी एक सिविल इंजीनियर रूही थी, जिसने अपने मजदूरों का मार्गदर्शन किया, तब जाकर सही से काम होना शुरू हुआ था। हां लेकिन अंत में वीडियो ट्यूटोरियल का सहारा लेना पड़ा था वो अलग बात थी।
काम करते हुये सबको 5 दिन हो चुके थे। लकड़ी के सैकड़ों पल्ले निकल चुके थे। छटे दिन से आर्यमणि लकड़ी के पल्ले निकालने का काम कर रहा था, इधर अलबेली और इवान कॉटेज के फाउंडेशन का काम कर रहे थे। ये लोग अपने काम में लगे हुये थे, जब एक घायल शेर उस मैदानी भाग में पहुंच गया।
धारियों को देखकर पता चल रहा था की ये कोई माउंटेन लायन है। शेर घायल जरूर था लेकिन जैसे ही चारो को देखा तेज दहाड़ लगा दिया। आर्यमणि उसके आंखों में झांका और वो शेर शांत होकर बैठ गया। चारो उसके पास पहुंचे। पेट के पास कटा हुआ था जिसका जख्म अंदर तक था। आर्यमणि फर्स्ट एड कीट निकाला। जख्म के हिस्से को चीरकर वहां का सारा मवाद निकाला और पट्टियां लगाकर उसे हील करने लगा। जैसे–जैसे शेर का दर्द गायब हो रहा था, सुकून से वो अपनी आंखें मूंदेने लगा। आर्यमणि जब अपना काम करके हटा, शेर फुर्ती से उठ खड़ा हुआ और अपनी खुशी की दहाड़ लगाकर वहां से भाग गया।
सभी लोग वापस से काम पर लौट गये। यूं तो रूही भी काम करना चाहती थी, पर उसकी परिस्थिति को देखते उसे बस खाना बनाना और झड़ने से पानी लाने का काम दिया गया था। 15 दिनों में वहां 5 बड़े से कॉटेज तैयार थे। प्राइवेसी के लिये कई पार्टीशन किये गये थे। मूलभूत सुविधा के साथ कॉटेज रहने के लिये तैयार था।
15 दिन बाद पूरे क्रू मेंबर को टापू पर बुलाया गया। जब वो लोग मैदानी भाग में आये जहां कॉटेज बना हुआ था, वो जगह देखकर दंग थे। पूरे रास्ते पर चलने के लिए पत्थर बिछा हुआ था। इलाके में बड़ी सी फेंसिंग की गई थी। इसी के साथ 5 कॉटेज एक निश्चित दूरी पर थे। कॉटेज के चारो ओर बागवानी के लिए जमीन छोड़ी गई थी और बाकी जगह पर पत्थर को खूबसूरती से बिछाकर फ्लोर बनाया गया था।
जगह इतनी खूबसूरत थी कि सबको पसंद आना ही था। क्रूज से घर की जरूरतों के सारे सामान लाये गये। हां लेकिन न तो आर्यमणि और न ही किसी को भी ये पता था की क्रू मेंबर अपने साथ हंटिंग का सामान भी लाये थे। और तो और किसी भी खूबसूरत सी दिखने वाली जगह पर जब रहने जाओ, तब पता चलता है कि वहां रहना कितना मुश्किल होता है।
जिस दिन सभी क्रू मेंबर को रहने बुलाया गया उसी शाम आर्यमणि ने बुलेट फायरिंग सुनी। फायरिंग जहां से हुई, वहां अलबेली और इवान तुरंत पहुंचे और लोगों शिकार करने से रोकने लगे। इस चक्कर में क्रूज के सिक्योरिटी गार्ड और इवान के बीच बहस भी हो गयी। बहस इतनी बढ़ गयी की सिक्योरिटी गार्ड अपने हाथ का राइफल इवान के ऊपर तान दिया। अलबेली तैश में आ गयी। उसने राइफल की नली को पकड़कर हवा में कर दी और खींचकर उस सिक्योरिटी गार्ड को तमाचा मारती.... “मजा आया... यदि और शिकार करने का भूत सवार हो तो बता देना, थप्पड़ मार–मार कर सबके गाल की चमड़ी निकाल दूंगी।”...
अलबेली के एक्शन पर बाकी के तीन सिक्योरिटी गार्ड अपने रिएक्शन देते उसके ओर लपके और वो तीनो भी इवान के हाथ का कड़क थप्पड़ खाकर शांत हो गये.... “मेरी बीवी ने बोल दिया न शिकार नही तो मतलब नहीं। हमसे उलझने की सोचना भी मत वरना गाल के साथ–साथ पूरे शरीर की चमड़ी उतार दूंगा।”...
इस एक छोटे से वार्निंग के बाद सबके दिमाग ठिकाने आ गये, लेकिन मन में भड़ास तो आ ही गयी थी। ऊपर से जब क्रू मेंबर के सामने उस जंगल की पत्तियों के सूप, उबले बीज और कसैला स्वाद वाला फल दिया गया, सबने खाने से इंकार कर दिया। उन्हे तो बस नमक मिर्च डालकर भुना मांस ही खाना था।
पहले ही रात में भयंकर गहमा–गहमी हो गयी। अगली सुबह तो और भी ज्यादा माहौल खराब हो गया, जब पानी के लिये इन्हें 5 किलोमीटर अंदर झरने तक जाना पड़ा। उसमे भी वो लोग झड़ने का पानी नहीं पीना चाहते थे। कुल मिलाकर एक दिन पहले उन्हे रहने बुलाया और अगले दिन ही सभा लग गयी, जहां पूरा क्रू वापस जाने की मांग करने लगे।
अब कर भी क्या सकते थे, अगली सुबह ही वो लोग मिनीजेट से न्यूजीलैंड रवाना होते। रात को चुपके से आर्यमणि भ्रमण पर निकला और क्रूज चलाने से लेकर नेविगेशन करना सब सीख गया। वहीं इंजन विभाग वाला काम रूही को दे दिया गया और वो क्रूज इंजन के बारे में पूरी जानकारी लेकर निकली। इलेक्ट्रिक इंजन और इलेक्ट्रिसिटी को देखने वाले जितने टेक्नीशियन थे, उनका काम इवान और अलबेली सीखकर निकले। अंत में सबने अपने ज्ञान को एक दूसरे से साझा किया और हंसते हुये सोने चल दिये।
अगली सुबह सबको लेकर मिनिजेट उड़ चला। उस आइलैंड के सबसे नजदीकी देश न्यूजीलैंड ही था, जहां उन सबको छोड़कर आर्यमणि वापस उस आइलैंड पर आ गया। न्यूजीलैंड गया तो रूही की डिमांड पर कई सारे चीजें लेकर भी आया। इतना सामान की पूरा जेट सामानो से भड़ा था। हां लेकिन केवल रूही के जरूरत का ही समान नही था, बल्कि कई और जरूरत की चीजें भी थी।
अब चूंकि 5 कॉटेज की जरूरत नही थी इसलिए आर्यमणि ने 2 कॉटेज को ही डिवेलप करने का सोचा। वैसे मसाला आ जाने के बाद खाने का जायका कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था। इस आइलैंड पर करने को बहुत कुछ था। सुबह 4 बजे सब जागकर ध्यान करते। जिसमे आर्यमणि को छोड़कर किसी को मजा नही आता। आर्यमणि जैसे ही ध्यान में जाता बाकी सभी सोने चले जाते।
फिर होता मंत्र उच्चारण। जिसे सब मना कर चुके थे, लेकिन आर्यमणि सबको जबरदस्ती मंत्र उच्चारण करने कहता। साथ ही साथ रूही के पेट पर प्यार से हाथ फेरते अपने होने वाले बच्चे को भी वो बहुत कुछ सिखाया करता था। दिन के समय चारो जंगल में निकलते। ये चारो का सबसे प्यारा काम था। जो दर्द में दिखे उनका दर्द दूर करना। फिर चाहे वो पेड़ हो या कोई शाकहारी या मांसहारी जानवर।
बड़े से फेंसिंग के अंदर उन्होंने भेड़ पालना शुरू किया। भेड़ के आ जाने से खाने पीने का मजा ही अलग हो गया। क्योंकि दूध की अब कोई कमी नही थी। हां लेकिन भेड़ का दूध पीकर रात को भेड़िए पागल हो जाते थे और सहवास के दौरान दोनो (आर्यमणि और इवान) इतने जोश में होते की रात को पूरा थक कर ही सोते थे।
जिस माउंटेन लायन की जान इन लोगों ने बचाई थी वह अक्सर इनके फेंस के पास दिख जाता। लायन के आते ही पालतू भेड़ में डर का माहोल पैदा हो जाता, लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ की शेर ने इन भेड़ पर हमला किया हो। फेंस के आगे धीरे–धीरे हर घायल जानवर का ठिकाना हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे वहां के जानवरों के लिये कोई डॉक्टर पहुंचा हो।
दिन बहुत शानदार कट रहे थे। जिस उद्देश्य से आर्यमणि आइलैंड पहुंचा था उसे पूरा करने में लगा हुआ था। अपने साथ–साथ अल्फा पैक को भी एक स्तर ऊंचा प्रशिक्षित कर रहा था। हफ्ते में एक दिन एमुलेट परीक्षण भी करते। जितने प्रकार के पत्थर लगे हुये थे उनके अच्छे और बुरे प्रभावों का मूल्यांकन भी जारी था। सब कुछ अपनी जगह पर बिलकुल सही तरीके से आगे बढ़ रहा था।
किंतु जिस जिज्ञासा में आर्यमणि यहां आया था, वो अब तक पूरा नहीं हुआ था। आर्यमणि जब अपने बचपन से दादा जी की यादें ले रहा था, तब उसे एक पुराना किस्सा याद आया जो आर्यमणि को काफी आकर्षित करती थी... जलपड़िया। आर्यमणि के दादा जी अक्सर इसी आइलैंड का जिक्र करते, जिसके तट पर जलपड़ियां आती थी। आर्यमणि रोज रात को एक बार समुद्र किनारे जाता और निराश होकर लौट आता।
अल्फा पैक को आये लगभग 2 महीने बीत चुके थे। रूही लगभग 3 मंथ की प्रेगनेंट थी। अब उसका पेट बाहर आने लगा था। आर्यमणि, अलबेली और इवान तीनो ही उसका पूरा ख्याल रखते थे। एक दिन आर्यमणि ने खुद ही कहा की, यदि तीनो (रूही, इवान और अलबेली) चाहे तो मछली या फिर भेड़ का मांस खा सकते है। अजीब सी हंसी के साथ रूही भी प्रतिक्रिया देती हुई भेंड़ के विषय में कहने लगी... "जिसे पाला हो उसे ही खाने कह रहे। वैसे भी अब तो कभी ख्यालों में भी नॉन वेज नही आता।"…
आर्यमणि मुस्कुराते हुये रूही के बात का अभिवादन किया। इसी बीच एक दिन सभी बैठे थे, तभी रूही, अलबेली से उसके प्रेगनेंसी के बारे में पूछने लगी। अलबेली शर्माती हुई... "क्या तुम भी भाभी" कहने लगी.. फिर तो रूही का जो ही छेड़ना शुरू हुआ... "रात को तो पूरा कॉटेज हिलता रहता है, फिर भी रिजल्ट नही आया"..
अलबेली:– रिजल्ट अभी नही आयेगा... इतनी जल्दी बच्चा क्यों, अभी मेरी उम्र ही क्या है...
रूही:– हां ये तो सही है... नही लेकिन फिर भी... लास्ट मोमेंट पर करते क्या हो..
अलबेली चिढ़ती हुई.… "मेरे मुंह पर छींटे उड़ा देता है। आज कल बॉस भी तो यही करते होंगे। क्योंकि अंदरूनी मामले पर तो प्रतिबंध लगा हुआ होगा न"..
रूही:– कहां रे… बर्दास्त ही नही होता.. अंदर डाले बिना मानते ही नही..
अलबेली:– वो नही मानते या तुमसे ही बर्दास्त नही होता...
दोनो के बीच शीत युद्ध तब तक चलता रहा जब तक की वहां इवान और आर्यमणि नही आ गया। दोनो पहुंचते ही कहने लगे... "आज छोटी बोट में समुद्र घूमने चलेंगे"…
अलबेली:– नही बोट बहुत ही ऊपर उछाल मारती है, भाभी को परेशानी होगी...
रूही:– अरे दिल छोटा न करो... हम क्रूज लेकर चलते हैं न.. वहीं बीच में तुम लोग थोड़ा बोट से भी घूम लेना..
इवान:– ग्रेट आइडिया दीदी। और आज रात क्रूज में ही बिताएंगे..
सब लोगों की सहमति हो गयी... क्रूज का लंगर उठाया गया। इंजन स्टार्ट और चल पड़े सब तफरी पर। 20 नॉटिकल माइल की दूरी तय करने बाद क्रूज को धीमा कर दिया गया और छोटी बोट पानी में उतारी गई। आर्यमणि और इवान बोट में सवार होकर वहीं घूमने लगे। उनके बोट के साथ साथ कई डॉल्फिन उछलती हुई तैर रही थी। काफी खूबसूरत नजारा था। रूही और अलबेली दोनो क्रूज के किनारे पर बैठकर यह खूबसूरत दृश्य देख रही थी। दिन ढलने को आया था। सूरज की लालिमा चारो ओर के नजारे को और भी खूबसूरत बना रही थी। रूही हाथ के इशारे से दोनो को वापस बुलाने लगी।
लौटते ही आर्यमणि ने क्रूज को वापस आइलैंड की ओर घुमाया और सबके साथ आकर डूबते सूरज को देखने का रोमांच लेने लगा। लेकिन उनके इस रोमांच में आसमानी चीते यानी की बाज ने आकर खलल डाल दिया। पता नही कहां से और कितनी तेजी में आये, लेकिन जब वो आये तो आसमान को ढक दिया। आमुमन बाज अकेले ही शिकार करते है लेकिन यहां तो, 1 नही, 10 नही, 100 नही, 1000 नही, लगभग 10000 से भी ज्यादा की संख्या में बाज थे।
बाज काफी तेजी से उड़ते हुए आइलैंड के ओर बढ़ रहे थे। उनकी इतनी तादात देखकर, आर्यमणि ने सबको खुले से हटने का इशारा किया। ये लोग डेक एरिया से हटकर जैसे ही अंदर घुसकर दरवाजा बंद किये, दरवाजे पर ही कई बाज हमला करने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था कि आर्यमणि और उसका पैक मुख्य शिकार नही थे, इसलिए कुछ देर की नाकाम कोशिश के बाद वो सब वापस झुंड में चले गये.…
"बाप रे हम वेयरवुल्फ को भी भयभीत कर गये ये बाज। मेरा कलेजा तो अब भी धक–धक कर रहा है"… रूही पानी का घूंट लेती हुई कहने लगी...
अलबेली:– बॉस हमे खतरे का आभाष नही हुआ लेकिन आप कैसे भांप गये...
आर्यमणि:– पता नही... बाज की इतनी संख्या देखकर अंदर से भय जैसा लगा... लेकिन ये बाज इतनी संख्या में आइलैंड पर जा क्यों रहे थे? क्या ये हम पर हमला करते...
इवान:– बाज अकेला शिकारी होता है। जितनी इनकी संख्या थी उस हिसाब तो ये आइलैंड का पूरा जंगल साफ कर देंगे...
आर्यमणि:– हां लेकिन सोचने वाली बात तो ये भी है कि उस जंगल में तो बाज को बहुत सारे शिकर मिलेंगे। यदि शिकारी पक्षी और शिकार के बीच में कोई रोड़ा डालने आये, फिर तो बाज पहले रोड़ा डालने वाले निपटेगा। यहां तो बाज इतनी ज्यादा संख्या में है कि एक शिकार के पीछे कई बाज एक–दूसरे से लड़ ले।
अलबेली:– बॉस क्या लगता है, क्या हो सकता है? किसी प्रकार का तिलिस्म तो नही?
आर्यमणि क्रूज के 360⁰ एंगल कैमरे को बाज के उड़ने की दिशा में करते... "ये बाज हमारे जंगल या मैदानी भाग में नही रुक रहे बल्कि पहाड़ के उस पार का जो इलाका है.. आइलैंड का दूसरा हिस्सा उस ओर जा रहे”...
अलबेली:– वहां ऐसा कौन सा शिकार होगा जो इतने बाज एक साथ जा रहे... कोई जंग तो नही हो रही.. बाज और किसी अन्य जीव में..
आर्यमणि:– ये तो वहीं जाकर पता चलेगा...
रूही:– वहां जाने की सोचना भी मत… समझे तुम.. आज इस क्रूज से कोई बाहर नहीं जायेगा... जंजीरों में आर्यमणि को जकड़ दो...
आर्यमणि:– सर पर आग लेकर जाऊंगा.. कुछ नही होगा..
रूही:– हां तो जब इतना विश्वास है तो मैं भी साथ चलूंगी...
"मैं भी" "मैं भी"… साथ में इवान और अलबेली भी कहने लगे...
क्रूज को सही जगह लगाकर, सभी लंगर गिड़ा दिये। चारो तेजी से अपने आशियाने के ओर भागे और सीधे अपने–अपने बाइक निकाल लिये। सभी जंगल को लांघकर पहाड़ तक पहुंचे और पहाड़ के संकड़े रास्ते से ऊपर चढ़ने लगे। कुछ दूर आगे बढ़े थे, तभी सामने शेर आ गया। ऐसे खड़ा था मानो रास्ता रोक रहा हो। आर्यमणि एक्सीलरेटर दबाकर जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ता, शेर अपना पंजा उठाकर मानो पीछे जाने कह रहा था।
आर्यमणि बाइक से नीचे उतरकर, शेर के सामने आया, और नीचे बैठ कर उस से नजरे मिलाने लगा। ऐसा लगा मानो शेर उस ओर जाने से मना कर रहा था। आर्यमणि भी सवालिया नजरों से शेर को ऐसे देखा मानो पूछने की कोशिश कर रहा हो क्यों... शेर आर्यमणि का रास्ता छोड़ पहाड़ के बीच से चढ़ाई वाले रास्ते पर जाने लगा। आर्यमणि रुक कर समझने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी शेर रुककर एक बार पीछे मुड़ा और आर्यमणि को देखकर दहाड़ा।
आर्यमणि:– बाइक यहीं खड़ी कर दो, और मशाल लेकर शेर के पीछे चलो...
अलबेली:– बॉस लेकिन दीदी इस हालत में चढ़ाई कैसे करेगी...
आर्यमणि, रूही को अपने गोद में उठाते... "अब ठीक है ना"…
सभी शेर के पीछे चल दिए। 2 पहाड़ियों के बीच से यह छोटा रास्ता था जो तकरीबन 1500 से 1600 फिट ऊपर तक जाता था। काफी उबर–खाबर और हल्की स्लोपिंग वाला रास्ता था, जो चढ़ने में काफी आसान था।
तकरीबन 500 फिट चढ़ने के बाद चट्टानों के बीच शेर का पूरा एक झुंड बैठा हुआ था। जैसे ही अपने इलाके में उन्हे वेयरवुल्फ की गंध लगी, सभी उठ खड़े हुए। तभी वो शेर आर्यमणि के साथ खड़ा हुआ जो ठीक सामने वाले शेर के झुंड के सामने था।
आर्यमणि के साथ खड़े होकर वह शेर गुर्राया, और पूरा झुंड ही शांत हो गया। एक बार फिर वह शेर आगे बढ़ा, मानो अपने पीछे आने कह रहा हो। सभी उसके पीछे चल दिये। वह शेर उन्ही चट्टानों के बीच बनी एक गुफा में घुसा। उस गुफा में एक शेरनी लेटी हुई थी। आंखों के नीचे से जैसे आंसू निकल रहे हो और आस पास 2–3 शेर के बच्चे बार–बार उसके पेट में अपना सर घुसाकर उसे उठाने की कोशिश कर रहे थे।
रूही उस शेरनी के पास पहुंचकर जैसे ही उसके पेट पर हाथ दी, वह शेरनी तेज गुर्राई... "आर्य, बहुत दर्द में है।".. रूही अपनी बात कहकर उसका दर्द अपनी हथेली में समेटने लगी। आर्यमणि उसके पास पहुंचकर देखा। गर्दन के पास बड़ा सा जख्म था। आर्यमणि ने तुरंत इवान को बैग के साथ गरम पानी लाने के लिए भी बोल दिया।
सारा सामान आ जाने के बाद आर्यमणि ने उस शेरनी का उपचार शुरू कर दिया। लगभग 15 मिनट लगे होंगे, उसके घाव को चिड़कर मवाद निकलने और पट्टियां लगाकर हील करने में। 15 मिनट बाद वो शेरनी उठ खड़ी हुई। पहले तो वो अपने बच्चे से लाड़ प्यार जताई फिर रूही के सामने आकर, उसके पेट में अपना सर इतने प्यार से छू, मानो उसके पेट को स्पर्श कर रही हो।..
आर्यमणि:– रूही पेट से अपना कपड़े ऊपर करो..
आर्यमणि की बात मानकर जैसे ही रूही ने कपड़ा ऊपर किया, वह शेरनी अपने पूरे पंजे से रूही के पेट को स्पर्श की। उस वक्त उस शेरनी के चेहरे के भाव ऐसे थे, मानो वो गर्भ में पल रहे बच्चे को महसूस कर मुस्कुरा रही हो। उसे अपने अंतरात्मा से आशीर्वाद दे रही थी। और जब वो शेरनी अपना पंजा हटाई, उसके अगले ही पल इवान, अलबेली और आर्यमणि को देखकर गरजने लगी... "चलो रे सब, लगता है ये शेरनी रूही के साथ कुछ प्राइवेट बातें करेंगी"…
तीनो बाहर निकल गये और चारो ओर के माहौल का जायजा लेने लगे... "बॉस वो बाज का झुंड ठीक पहाड़ी के उस पार ही होगा न"…
आर्यमणि:– हां इवान होना तो चाहिए... चलो देखा जाए की वहां हो क्या रहा है...
तीनो पहाड़ के ऊपर जैसे ही चढ़ने लगे, वह शेर एक बार फिर इनके साथ हो लिया। तीनो पहाड़ी की चोटी तक पहुंच चुके थे, जहां से उस पार का पूरा इलाका दिख रहा था। लेकिन जैसे ही तीनो ने उस पार जाने वाली ढलान पर पाऊं रखा, एक बार फिर वो शेर उनका रास्ता रोके खड़ा था.…
आर्यमणि:– लगता है ये किसी प्रकार का बॉर्डर है.. दाएं–बाएं जाकर देखो वो बाज का झुंड कहीं दिख रहा है क्या? ..
तीनो अलग–अलग हो गये... कुछ देर बाद अलबेली... "ये क्या बला है... दोनो यहां आओ।" आर्यमणि और इवान तुरंत ही अलबेली के पास पहुंचे और नीचे का नजारा देख दंग रह गये... "आखिर ये क्या बला है।"… सबके मुंह से यही निकल रहा था।
आंखों के आगे यकीन न होने वाला दृश्य था। ऐसा जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। एक भयानक काल जीव, जिसकी आंखें ही केवल इंसान से 4 गुणी बड़ी थी। उसका शरीर तो गोल था लेकिन वो गोलाई लगभग 5 मीटर में फैली होगी और उसकी लंबाई कम से कम 300 से 400 मीटर की तो रही ही होगी। ऐसा लग रहा था मानो 6–7 ट्रेन को एक साथ गोल लपेट दिया गया हो।
यहां यही सिर्फ इकलौता हैरान करने वाला मंजर नही था। नीचे आर्यमणि को वो भी दिखा जिसकी तलाश उसे यहां तक खींच लाई थी, जलपड़ियां। और वहां केवल जलपडियां ही नही थी बल्कि उनके साथ जलपड़ा का भी झुंड था। वो भी 5 या 10 का झुंड नही बल्कि वो सैकड़ों के तादात में थे। और उन सब जलपाड़ियों के बीच संगमरमर सा सफ़ेद और गठीला बदन वाला आदमी भी खड़ा था। उसका बदन मानो चमकते उजले पत्थर की तरह दिख रहा था और हर मसल्स पूरे आकार में।
वह आदमी अपने हाथ का इशारा मात्र करता और बाज के झुंड से सैडकों बाज अलग होकर उस बड़े से विशाल जीव के शरीर पर बैठकर, उसकी चमड़ी को भेद रहे थे। जहां भी बाज का झुंड बैठता, वहां 1,2 जलपड़ी जाकर खड़ी हो जाती। ऐसे ही कर के उस बड़े से जीव के बदन के अलग–अलग हिस्से पर बाज बैठा था और वहां 2–3 जलपड़ियां थी...
इवान:– साला यहां कोई हॉलीवुड फिल्म की शूटिंग तो नही चल रही। एक विशाल काल जीव कल्पना से पड़े। आकर्षक और मनमोहनी जलपाड़ियां जिसके बदन पर जरूरी अंग को थोड़ा सा ढकने मात्र के कपड़े पहने है। उनके बीच मस्कुलर बदन का एक आदमी जिसके शरीर के हर कट को गिना जा सकता था। और वो आदमी अलौकिक शक्तियों का मालिक जो बाज को कंट्रोल कर रहा है...
अलबेली:– इवान तुम्हारी इतनी बकवास में एक ही काम की चीज है। वो आदमी बाज को कंट्रोल कर रहा है। हां लेकिन वो बाज को कंट्रोल क्यों कर रहा और क्या मकसद हो सकता है उस जीव के शरीर पर बाज को बिठाने का?
आर्यमणि:– वो बाज से इलाज करवा रहा है।
दोनो एक साथ.… "क्या?"
आर्यमणि:– हां वो बाज से इलाज करवा रहा है। उस काल जीव के पेट में तेज पीड़ा है, शायद कुछ ऐसा खा लिया जो पचा नहीं और पेट में कहीं फसा है, जो मल द्वारा भी नही निकला। जिस कारण से उस जीव की पूरी लाइन ब्लॉक हो गई है। अंदर शायद काफी ज्यादा इन्फेक्शन भी हो.. वह काल जीव काफी ज्यादा इंफेक्टेड है..
इवान:– बॉस इतनी समीक्षा...
आर्यमणि:– बाज का एक झुंड उसके पेट में छेद कर चुका था। उसके अंदर से निकली जहरीली हवा के संपर्क मात्र से सभी मारे गये... और वो जीव थोड़ी राहत महसूस कर रहा था...
आर्यमणि बड़े ध्यान से सबकुछ होते देख रहा था, तभी उसकी नजरे किसी से उलझी। बड़ी तीखी नजर थी, नजर मिलने मात्र से ही दिमाग जैसे अंदर से जलने लगा हो। आर्यमणि विचलित होकर वहां से हटा। वह 5 कदम पीछे आया कि नीचे धम्म से गिड़ गया। अलबेली और इवान तुरंत आर्यमणि को संभालने पहुंचे, तभी उन्हे एहसास हुआ की आर्यमणि बहुत तकलीफ में है। ये बात शायद रूही ने भी महसूस किया, वो भी तुरंत वहां पहुंच चुकी थी।
तीनो आर्यमणि को उठाकर गुफा में ले आये और उसके हाथ को थाम आर्यमणि का दर्द खींचने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था जैस दर्द में कोई गिरावट ही नही हो रही है, बल्कि वक्त के साथ वो और भी बढ़ता जा रहा था। रूही के आंखों मे आंशु आ चले... "क्या हुआ आर्य को.. अचानक ऐसा क्या हुआ जो इनके शरीर का दर्द बढ़ता ही जा रहा है?"…
तीनो आर्यमणि को उठाकर गुफा में ले आये और उसके हाथ को थाम आर्यमणि का दर्द खींचने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था जैस दर्द में कोई गिरावट ही नही हो रही है, बल्कि वक्त के साथ वो और भी बढ़ता जा रहा था। रूही के आंखों मे आंशु आ चले... "क्या हुआ आर्य को.. अचानक ऐसा क्या हुआ जो इनके शरीर का दर्द बढ़ता ही जा रहा है?"…
इवान:– ये जरूर उन पानी में रहने वाले रहशमयी इंसानों का काम होगा.. मैं अभी जाकर उनको लेकर आता हूं..
अलबेली:– पहले बॉस का दर्द लेते रहो... उन्हे बाद ने देखेंगे...
हील करते रहने के बावजूद भी आर्यमणि के बढ़ते दर्द के कारण तीनो का ही दिमाग काम करना बंद कर चुका था। तभी वहां वो शेर आया। अपने मुंह में वो कुछ अलग प्रकार की जंगली घास दबाकर लाया था। आते ही घास उनके पास रखकर दहाड़ने लगा.… इवान उसकी हरकतों पर गौर किया और तुरंत ही वो घास उठाकर... "अलबेली बॉस का मुंह खोलो"..
अलबेली ने आर्य का मुंह खोला। इवान घास को समेटा और मसल कर उसका रस आर्यमणि के मुंह में गिराने की कोशिश करने लगा। लेकिन घास से उतना रस नही निकल रहा था जो बूंद बनकर मुंह में टपक सके। रूही तुरंत घर पर पानी गिरती... "अब इसका रस निकालो"..
इवान भी तेजी से घास को निचोड़ने लगा। पानी उस घास के ऊपर से होते हुए आर्यमणि के में पहुंचने लगा। घास पूरी तरह से निचोड़ा जा चुका था। पानी के साथ घर के रस की कुछ मात्रा आर्यमणि के शरीर में गया.. कुछ देर बाद ही आर्यमणि का दर्द धीरे–धीरे कम होने लगा।
अलबेली:– ये काम कर रहा है... इवान जाओ इस किस्म के और घास ले आओ... जहां हमने बाइक खड़ी की थी उस क्षेत्र की ये घास है शायद, मैने देखा था"…
रूही:– इवान तुम घास ले आओ हम आर्यमणि को लेकर कॉटेज पहुंचते है।
इवान:– मैं बॉस को उठाकर ले जाता हूं... तुम दोनो घास लेकर पहुंचो…
थोड़ी ही देर में सब अपने घर में थे। आर्यमणि को लगातार उस घास का रस पानी में मिलाकर पिलाया जा रहा था। दर्द समाप्त हो चुका था और उसकी श्वांस भी सामान्य हो गयी थी। देर रात रूही ने इवान और अलबेली को आराम करने भेज दिया। खुद आर्यमणि के बाजू में टेक लगाकर बैठ गयी और उसके हाथ को थामकर मायूसी से आर्यमणि के चेहरे को एक टक देख रही थी।
आर्यमणि सुकून से अब नींद की गहराइयों में था। काफी देर तक चैन की नींद लेने के बाद आर्यमणि विचलित होकर आंखे खोला और जोर–जोर से रूही–रूही कहते हुये रोने लगा... रूही पास में ही टेक लगाए सो रही थी, आर्यमणि के चिल्लाने से उसकी भी नींद खुल गयी। वह आर्यमणि को हिलाती हुई कहने लगी... "यहीं हूं मैं जान, कहीं नही गयी, यहीं हूं"..
जैसे ही आर्यमणि के कान में रूही की आवाज सुनाई पड़ी, व्याकुलता से वो रूही के बदन को छू कर तसल्ली कर रहा था, उसे चूम रहा था... "अरे, ये क्या कर रहे हो... कहीं मन में कोई नटखट तमन्ना तो नही जाग गयी"..
"ओह भगवान... शुक्र है.. रूही.. रूही... तुम साथ हो न रूही"..
"में यहीं तुम्हारे पास हूं आर्य"… रूही धीरे, धीरे प्यार से आर्यमणि के सर पर हाथ फेरती कहने लगी। आर्य रूही के गोद में सर रखकर उसके हथेली को अपने हथेली में थामकर, आंखे मूंद लिया। दोनो के बीच गहरी खामोशी थी, लेकिन एक दूसरे को महसूस कर सकते थे...
"रूही... रूही"…
"हां जान मैं तुम्हारे पास ही हूं।"…
"तुम मेरे साथ ही रहना रूही, मुझे छोड़कर कहीं मत जाना"…
"मैं तुम्हारे पास ही हूं जान, कोई बुरा सपना देखा क्या"..
"मौत से भी बुरा सपना था रूही.. मुझे लगा मैंने तुम्हे खो दिया"…
"अरे रो क्यों रहे हो मेरे वीर राजा... तुम बहुत तकलीफ में थे, इसलिए कोई बुरा सपना आया होगा। सब ठीक है"..
"हां काफी बुरा सपना था।… मैं यहां आया कैसे?"
रूही सड़ककर नीचे आयी। आर्यमणि का सर अपने सीने से लगाकर उसके पीठ पर अपनी हाथ फेरती... "सो जाओ जान। तुम्हारी तबियत ठीक नहीं थी। सो जाओ ताकि खुद को हील कर सको"..
आर्यमणि भी खुद में सुकून महसूस करते, रूही में सिमट गया और उसका हाथ थामकर गहरी नींद में सो गया। सुबह जब उसकी नींद खुली, खुद को रूही के करीब पाया। थोड़ा ऊपर होकर वह तकिए पर अपना सर दिया और करवट लेटकर सुकून से सोती हुई रूही को देखने लगा।
रूही का चेहरा काफी मनमोहक लग रहा था। देखते ही दिल में प्यार जैसे उमर सा गया हो। हाथ स्वतः ही उसके चेहरे पर चलने लगे। प्यार से उसके चेहरे पर हाथ फेरते, आर्यमणि सुकून से रूही को देख रहा था। इसी बीच रूही ने भी अपनी आखें खोल दी। अपनी ओर यूं प्यार से आर्यमणि को देखते देख, मुस्कुराती हुई अपनी बांह आर्यमणि के गले में डालकर प्यार से होंठ, उसके होंठ से लगा दी।
होंठ का ये स्पर्श इतना प्यारा था कि दोनो एक दूसरे के होंठ को स्पर्श करते, प्यार से चूमने लगे। धीरे–धीरे श्वान्स तेज और चुम्बन गहरा होता चला गया। शरीर में जैसे नई ऊर्जा का संचार हो रहा हो। दोनो काफी मदहोश होकर एक दूसरे को चूम रहे थे। दोनो ही करवट लेते थे। रूही आर्यमणि के गले में हाथ डाली थी और आर्यमणि रूही के गले में, और दोनो एक दूसरे में जैसे खोए से थे।
रूही होंठ को चूमती हुई अपने हाथ नीचे ले जाकर आर्यमणि के पैंट के अंदर डाल दी। आर्यमणि अपना सर पीछे करके चुम्बन तोड़ने की कोशिश करने लगा। लेकिन रूही उसके सिर के बाल को मुट्ठी में दबोचती, उसके होंठ को और भी ज्यादा जोर से अपने होटों से जकड़ ली और दूसरे हाथ से वो लिंग को प्यार से सहला रही थी।
आर्यमणि भी पूरा खोकर रूही को चूमने लगा। चूमते हुए आर्यमणि अपने हाथ नीचे ले गया और अपने पैंट को नीचे सरकाकर उतार दिया। अपना पैंट निकलने के बाद रूही के गाउन को कमर तक लाया और उसके पेंटी को खिसकाकर नीचे घुटनों तक कर दिया। पेंटी घुटनो तक आते ही रूही ने उसे अपने पाऊं से निकाल दिया।
एक दूसरे को पूरा लस्टी किस्स करते हुए, रूही आर्यमणि के लिंग के साथ खेल रही थी और आर्यमणि उसके योनि के साथ। कुछ देर बाद रूही ने खुद ही चुम्बन तोड़ दिया और आर्यमणि की आंखों में झांकती… "थोड़ा प्यार से अपने प्यार को महसूस करवाओ जान"..
आर्यमणि एक छोटा सा चुम्बन लेकर रूही को चित लिटाया। रूही चित होते ही अपने घुटने को हल्का मोड़कर दोनो पाऊं खोल दी। आर्यमणि, रूही के बीच आकर, बैठ गया और उसके कमर को अपने दोनो हाथ से थोड़ा ऊपर उठाकर लिंग को बड़े प्यार से योनि के अंदर डालकर, धीरे धीरे अपना कमर हिलाने लगा। आर्यमणि, रूही के दोनो पाऊं के बीच बिठाकर उसे बड़े प्यार से संभोग का आनंद दे रहा था। दोनो की नजरे एक दूसरे से मिल रही थी और दोनो ही प्यार से मुस्कुराते हुए संभोग कर रहे थे।
रूही अपने पीठ को थोड़ा ऊपर करती, अपने गाउन को नीचे सरका कर लेट गई और अपने सुडोल स्तन पर आर्यमणि की दोनो हथेली रखकर हवा में उसे एक चुम्मा भेजी। आर्यमणि हंसते हुए उसके स्तनों पर प्यार से अपनी पकड़ बनाया और प्यार से स्तन को दबाते हुए लिंग को अंदर बाहर करने लगा... दोनो ही अपने स्लो सेक्स का पूरा मजा उठा रहे थे। अचानक ही रूही ने बिस्तर को अपने मुट्ठी में भींच लिया और अपने चरम सुख का आनंद लेने लगी... चरम सुख का आनंद लेने के बाद...
"जान कितनी देर और"…..
"उफ्फ अभी तो खेल शुरू हुआ है".. ..
"यहां मेरे पास आ जाओ, आगे का खेल हाथ का है। अब मैं ऐसे चित नही लेटी रह सकती"….
आर्यमणि रूही की भावना को समझते हुए लिंग को योनि से निकालकर हटा और ऊपर उसके चेहरे के करीब आकर घुटने पर बैठ गया। रूही अपने दोनो हाथ से लिंग को दबोचकर जोर–जोर से हिलाने लगी। आर्यमणि अपनी आंखें मूंद इस हस्त मैथुन का मजा लेने लगा। कुछ देर के बाद उसे अपने गरम लिंग पर गिला–गिला महसूस होने लगा। रूही लिंग का ऊपरी हिस्सा अपने मुंह में लेकर चूसती हुई पीछे से दोनो हाथ की पकड़ बनाए थी और मुख और हस्त मैथुन एक साथ दे रही थी। थोड़ी ही देर में आर्य का बदन भी अकड़ने लगा। रूही तुरंत लिंग को मुंह से बाहर निकालती पिचकारी का निशाना कहीं और की.. और आर्यमणि झटके खाता हुआ अपना जोरदार पिचकारी मार दिया।…
खाली होने के बाद वह भी रूही के पास लेट गया और प्यार से रूही के बदन पर हाथ फेरते... "कल विचलित करने वाली शाम थी रूही।"..
"उस शेर ने बड़ी मदद की जान। उसे पता था की तुम्हे क्या हुआ है। उसी ने जंगली घास में से कुछ खास प्रकार के घास को लेकर आया था, वरना हम तुम्हारा दर्द जितना कम करने की कोशिश करते, वह उतना ही बढ़ रहा था"..
"मेरी नजर एक जलपड़ी से टकराई थी। उसकी नजर इतनी तीखी थी कि उसके एक नजर देखने मात्र से मेरे सर में ढोल बजने लगे थे। उसके बाद तो ऐसा हुआ मानो मेरे सर की सभी नशे गलना शुरू कर दी थी"…
"कामिनी बहुत ताकतवर लग रही.. केवल नजर उठाकर देखने से जान चली जाए... तुम्हे भी क्या जरूरत थी नैन मटक्का करने की। मतलब बीवी अब कभी–कभी देती है तो बाहर मुंह मरोगे"…
"अच्छा इसलिए आज सुबह–सुबह ये कार्यक्रम रखी थी"..
रूही, आर्यमणि को खींचकर एक तमाचा देती... "जब आंख खुली तब जलपड़ी के साथ अपने नैन–मट्टका की रास लीला बताते, फिर देखते कौन सा कार्यक्रम हो रहा होता। वो तो इतना प्यार आ रहा था कि उसमे बह गयी। साले बेवफा वुल्फ, तुम्हारे नीचे तो आग लगी होगी ना, इसलिए हर किसी को लाइन देते फिर रहे"..
"पागल कहीं की कुछ भी बोलती है"… कहते हुए आर्यमणि ने रूही के सर को अपने सीने से लगा लिया"..
"जाओ जी.. मुझे बहलाओ मत। प्यार मुझसे ही करते हो ये पता है, लेकिन अपनी आग ठंडी करने के लिए हमेशा व्याकुल रहते हो"
"अरे कैसे ये पागलों जैसी बातें कर रही हो। ऐसा तो मेरे ख्यालों में भी नही था"…
"अच्छा ठीक है मान लिया.. अब उठो और जाकर काम देखो। साथ में मेरे लिए कुछ खाने को लाओ.. तुम्हारी बीवी और बच्ची दोनो को भूख लग रही है।"..
"बस 10 मिनट दो, अभी सब व्यवस्था करता हूं।"…
दोनो बिस्तर से उठे। आर्यमणि कपड़े ठीक करके बाहर आया और रूही बाथरूम में। आर्यमणि जैसे ही बाहर आया दूसरी ओर से अलबेली और इवान उनके पास पहुंचे। अलबेली खाना लेकर अंदर गयी और इवान आर्यमणि से उसका हाल पूछने लगा...
कल की हैरतंगेज घटना सबके जहन में थी। सबसे ज्यादा तकलीफ तो आर्यमणि ने ही झेला था। अगले 2 दिनों तक कोई कहीं नही गया। रूही सबको पकड़कर एक जगह बांधे रखी। हंसी मजाक और काम काज में ही दिन गुजर गये। हालांकि रूही तो तीसरे दिन भी पकड़कर ही रखती, लेकिन सुबह–सुबह वो शेर आर्यमणि के फेंस के आगे गस्त लगाने लगा...
चारो निकलकर जैसे ही उस शेर को देखने आये, वह शेर तेज गुर्राता हुए उन्हें देखा और फिर जंगल के ओर जाने लगा... "लगता है फिर कहीं ले जाना चाहता है"… रूही अपनी बात कहती शेर के पीछे चल दी। आर्यमणि, इवान और अलबेली भी उसके पीछे चले।
सभी लोग चोटी पर पहुंच चुके थे। आज न सिर्फ वो शेर बल्कि उसका पूरा समूह ही पर्वत की चोटी पर था। उस शेर के वहां पहुंचते ही पूरा समूह पर्वत के उस पार जाने लगा। किसी को कुछ समझ में नही आ रहा था कि यहां हो क्या रहा है? कुछ दिन पहले जो शेर उस पार जाने से रोक रहा था, वो आज खुद लेकर जा रहा था।
रूही के लिये यह पहली बार था इसलिए वह कुछ भी सोच नही रही थी। लेकिन उसकी नजर जब उस कल्पना से पड़े, बड़े और विशाल जीव पर पड़ी, रूही बिलकुल हैरानी के साथ कदम बढ़ा रही थी। शेर का पूरा समूह उस जीव के मुंह के पास आकर रुका। चारो अपनी गर्दन ऊपर आसमान में करके भी उसके मुंह के ऊपर के अंतिम हिस्सा को नही देख पा रहे थे।
अलबेली तो हंसती हुई कह भी दी... "आज ये शेर हम सबको निगलवाने वाला है"..
चारो वहीं फैलकर उस विशालकाय जीव को देखने लगे। शेर का पूरा झुंड उसके चेहरे के सामने जाकर, अपना पंजा उसके मुंह पर मारने लगे... ऐसा करते देख इवान के मुंह से भी निकल गया... "कहीं ये साले शेर अपने बलिदान के साथ हमारी भी बली तो नही लेने वाले"… आंखों के आगे न समझ में आने वाला काम हो रहा था।
इतने में ही उस जानवर में जैसे हलचल हुई हो। शेर के पंजे की प्रतिक्रिया में वो विशालकाय जीव बस नाक से तेज हवा निकाला और अपने सिर को एक करवट से दूसरे करवट ले गया। हां उस जीव के लिये तो अपना सिर मात्र इधर से उधर घूमाना था, लेकिन चारो को ऐसा लगा जैसे एक पूरी इमारत ने करवट ली हो। माजरा अब भी समझ से पड़े था।
तभी शेर का पूरा झुंड अल्फा पैक के पीछे आया और अपने सिर से धक्का देते मानो उस जीव के करीब ले जाने की कोशिश कर रहा था। एक बार चारो की नजरे मिली। आपसी सहमति हुई और चारो उस जीव के करीब जाकर उन्हें देखने लगे। जितना हिस्सा नजर के सामने था, उसे बड़े ध्यान से देखने लगे।
तभी जैसे उन्हे शेर ने धक्का मारा हो... "अरे यार ये शेर हमसे कुछ ज्यादा उम्मीद तो नही लगाए बैठे"… आर्यमणि ने कहते हुये उस जीव को छू लिया। काफी कोमल और मुलायम त्वचा थी। आर्यमणि उसके त्वचा पर हाथ फेरते उसके दर्द का आकलन करने के लिये उसका थोड़ा सा दर्द अपनी नब्ज में उतारा..
आर्यमणि को ऐसा लगा जैसे 100 पेड़ को वो एक साथ हील कर रहा हो। एक पल में ही उसका पूरा बदन नीला पड़ गया और झटके से उसने अपने हाथ हटा लिये। इधर उस जीव को जैसे छानिक राहत मिली हो, उसकी श्वांस तेज चलने लगी...
आर्यमणि:– लगता है इसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिए मजबूरी में इसे छोड़कर चले गये...
रूही:– और लगता है ये जीव अक्सर किनारे पर आता है, शेर का झुंड से काफी गहरा नाता है। चलो आर्य इस कमाल के जीव को बचाने की एक कोशिश कर ही लिया जाए।
“मुझे कुछ वक्त दो। सोचने दो इसके लिये क्या किया जा सकता है।” अपनी बात कहते आर्यमणि वहीं बैठकर ध्यान लगाने लगा।
तीनो आर्यमणि को उठाकर गुफा में ले आये और उसके हाथ को थाम आर्यमणि का दर्द खींचने लगे। लेकिन ऐसा लग रहा था जैस दर्द में कोई गिरावट ही नही हो रही है, बल्कि वक्त के साथ वो और भी बढ़ता जा रहा था। रूही के आंखों मे आंशु आ चले... "क्या हुआ आर्य को.. अचानक ऐसा क्या हुआ जो इनके शरीर का दर्द बढ़ता ही जा रहा है?"…
इवान:– ये जरूर उन पानी में रहने वाले रहशमयी इंसानों का काम होगा.. मैं अभी जाकर उनको लेकर आता हूं..
अलबेली:– पहले बॉस का दर्द लेते रहो... उन्हे बाद ने देखेंगे...
हील करते रहने के बावजूद भी आर्यमणि के बढ़ते दर्द के कारण तीनो का ही दिमाग काम करना बंद कर चुका था। तभी वहां वो शेर आया। अपने मुंह में वो कुछ अलग प्रकार की जंगली घास दबाकर लाया था। आते ही घास उनके पास रखकर दहाड़ने लगा.… इवान उसकी हरकतों पर गौर किया और तुरंत ही वो घास उठाकर... "अलबेली बॉस का मुंह खोलो"..
अलबेली ने आर्य का मुंह खोला। इवान घास को समेटा और मसल कर उसका रस आर्यमणि के मुंह में गिराने की कोशिश करने लगा। लेकिन घास से उतना रस नही निकल रहा था जो बूंद बनकर मुंह में टपक सके। रूही तुरंत घर पर पानी गिरती... "अब इसका रस निकालो"..
इवान भी तेजी से घास को निचोड़ने लगा। पानी उस घास के ऊपर से होते हुए आर्यमणि के में पहुंचने लगा। घास पूरी तरह से निचोड़ा जा चुका था। पानी के साथ घर के रस की कुछ मात्रा आर्यमणि के शरीर में गया.. कुछ देर बाद ही आर्यमणि का दर्द धीरे–धीरे कम होने लगा।
अलबेली:– ये काम कर रहा है... इवान जाओ इस किस्म के और घास ले आओ... जहां हमने बाइक खड़ी की थी उस क्षेत्र की ये घास है शायद, मैने देखा था"…
रूही:– इवान तुम घास ले आओ हम आर्यमणि को लेकर कॉटेज पहुंचते है।
इवान:– मैं बॉस को उठाकर ले जाता हूं... तुम दोनो घास लेकर पहुंचो…
थोड़ी ही देर में सब अपने घर में थे। आर्यमणि को लगातार उस घास का रस पानी में मिलाकर पिलाया जा रहा था। दर्द समाप्त हो चुका था और उसकी श्वांस भी सामान्य हो गयी थी। देर रात रूही ने इवान और अलबेली को आराम करने भेज दिया। खुद आर्यमणि के बाजू में टेक लगाकर बैठ गयी और उसके हाथ को थामकर मायूसी से आर्यमणि के चेहरे को एक टक देख रही थी।
आर्यमणि सुकून से अब नींद की गहराइयों में था। काफी देर तक चैन की नींद लेने के बाद आर्यमणि विचलित होकर आंखे खोला और जोर–जोर से रूही–रूही कहते हुये रोने लगा... रूही पास में ही टेक लगाए सो रही थी, आर्यमणि के चिल्लाने से उसकी भी नींद खुल गयी। वह आर्यमणि को हिलाती हुई कहने लगी... "यहीं हूं मैं जान, कहीं नही गयी, यहीं हूं"..
जैसे ही आर्यमणि के कान में रूही की आवाज सुनाई पड़ी, व्याकुलता से वो रूही के बदन को छू कर तसल्ली कर रहा था, उसे चूम रहा था... "अरे, ये क्या कर रहे हो... कहीं मन में कोई नटखट तमन्ना तो नही जाग गयी"..
"ओह भगवान... शुक्र है.. रूही.. रूही... तुम साथ हो न रूही"..
"में यहीं तुम्हारे पास हूं आर्य"… रूही धीरे, धीरे प्यार से आर्यमणि के सर पर हाथ फेरती कहने लगी। आर्य रूही के गोद में सर रखकर उसके हथेली को अपने हथेली में थामकर, आंखे मूंद लिया। दोनो के बीच गहरी खामोशी थी, लेकिन एक दूसरे को महसूस कर सकते थे...
"रूही... रूही"…
"हां जान मैं तुम्हारे पास ही हूं।"…
"तुम मेरे साथ ही रहना रूही, मुझे छोड़कर कहीं मत जाना"…
"मैं तुम्हारे पास ही हूं जान, कोई बुरा सपना देखा क्या"..
"मौत से भी बुरा सपना था रूही.. मुझे लगा मैंने तुम्हे खो दिया"…
"अरे रो क्यों रहे हो मेरे वीर राजा... तुम बहुत तकलीफ में थे, इसलिए कोई बुरा सपना आया होगा। सब ठीक है"..
"हां काफी बुरा सपना था।… मैं यहां आया कैसे?"
रूही सड़ककर नीचे आयी। आर्यमणि का सर अपने सीने से लगाकर उसके पीठ पर अपनी हाथ फेरती... "सो जाओ जान। तुम्हारी तबियत ठीक नहीं थी। सो जाओ ताकि खुद को हील कर सको"..
आर्यमणि भी खुद में सुकून महसूस करते, रूही में सिमट गया और उसका हाथ थामकर गहरी नींद में सो गया। सुबह जब उसकी नींद खुली, खुद को रूही के करीब पाया। थोड़ा ऊपर होकर वह तकिए पर अपना सर दिया और करवट लेटकर सुकून से सोती हुई रूही को देखने लगा।
रूही का चेहरा काफी मनमोहक लग रहा था। देखते ही दिल में प्यार जैसे उमर सा गया हो। हाथ स्वतः ही उसके चेहरे पर चलने लगे। प्यार से उसके चेहरे पर हाथ फेरते, आर्यमणि सुकून से रूही को देख रहा था। इसी बीच रूही ने भी अपनी आखें खोल दी। अपनी ओर यूं प्यार से आर्यमणि को देखते देख, मुस्कुराती हुई अपनी बांह आर्यमणि के गले में डालकर प्यार से होंठ, उसके होंठ से लगा दी।
होंठ का ये स्पर्श इतना प्यारा था कि दोनो एक दूसरे के होंठ को स्पर्श करते, प्यार से चूमने लगे। धीरे–धीरे श्वान्स तेज और चुम्बन गहरा होता चला गया। शरीर में जैसे नई ऊर्जा का संचार हो रहा हो। दोनो काफी मदहोश होकर एक दूसरे को चूम रहे थे। दोनो ही करवट लेते थे। रूही आर्यमणि के गले में हाथ डाली थी और आर्यमणि रूही के गले में, और दोनो एक दूसरे में जैसे खोए से थे।
रूही होंठ को चूमती हुई अपने हाथ नीचे ले जाकर आर्यमणि के पैंट के अंदर डाल दी। आर्यमणि अपना सर पीछे करके चुम्बन तोड़ने की कोशिश करने लगा। लेकिन रूही उसके सिर के बाल को मुट्ठी में दबोचती, उसके होंठ को और भी ज्यादा जोर से अपने होटों से जकड़ ली और दूसरे हाथ से वो लिंग को प्यार से सहला रही थी।
आर्यमणि भी पूरा खोकर रूही को चूमने लगा। चूमते हुए आर्यमणि अपने हाथ नीचे ले गया और अपने पैंट को नीचे सरकाकर उतार दिया। अपना पैंट निकलने के बाद रूही के गाउन को कमर तक लाया और उसके पेंटी को खिसकाकर नीचे घुटनों तक कर दिया। पेंटी घुटनो तक आते ही रूही ने उसे अपने पाऊं से निकाल दिया।
एक दूसरे को पूरा लस्टी किस्स करते हुए, रूही आर्यमणि के लिंग के साथ खेल रही थी और आर्यमणि उसके योनि के साथ। कुछ देर बाद रूही ने खुद ही चुम्बन तोड़ दिया और आर्यमणि की आंखों में झांकती… "थोड़ा प्यार से अपने प्यार को महसूस करवाओ जान"..
आर्यमणि एक छोटा सा चुम्बन लेकर रूही को चित लिटाया। रूही चित होते ही अपने घुटने को हल्का मोड़कर दोनो पाऊं खोल दी। आर्यमणि, रूही के बीच आकर, बैठ गया और उसके कमर को अपने दोनो हाथ से थोड़ा ऊपर उठाकर लिंग को बड़े प्यार से योनि के अंदर डालकर, धीरे धीरे अपना कमर हिलाने लगा। आर्यमणि, रूही के दोनो पाऊं के बीच बिठाकर उसे बड़े प्यार से संभोग का आनंद दे रहा था। दोनो की नजरे एक दूसरे से मिल रही थी और दोनो ही प्यार से मुस्कुराते हुए संभोग कर रहे थे।
रूही अपने पीठ को थोड़ा ऊपर करती, अपने गाउन को नीचे सरका कर लेट गई और अपने सुडोल स्तन पर आर्यमणि की दोनो हथेली रखकर हवा में उसे एक चुम्मा भेजी। आर्यमणि हंसते हुए उसके स्तनों पर प्यार से अपनी पकड़ बनाया और प्यार से स्तन को दबाते हुए लिंग को अंदर बाहर करने लगा... दोनो ही अपने स्लो सेक्स का पूरा मजा उठा रहे थे। अचानक ही रूही ने बिस्तर को अपने मुट्ठी में भींच लिया और अपने चरम सुख का आनंद लेने लगी... चरम सुख का आनंद लेने के बाद...
"जान कितनी देर और"…..
"उफ्फ अभी तो खेल शुरू हुआ है".. ..
"यहां मेरे पास आ जाओ, आगे का खेल हाथ का है। अब मैं ऐसे चित नही लेटी रह सकती"….
आर्यमणि रूही की भावना को समझते हुए लिंग को योनि से निकालकर हटा और ऊपर उसके चेहरे के करीब आकर घुटने पर बैठ गया। रूही अपने दोनो हाथ से लिंग को दबोचकर जोर–जोर से हिलाने लगी। आर्यमणि अपनी आंखें मूंद इस हस्त मैथुन का मजा लेने लगा। कुछ देर के बाद उसे अपने गरम लिंग पर गिला–गिला महसूस होने लगा। रूही लिंग का ऊपरी हिस्सा अपने मुंह में लेकर चूसती हुई पीछे से दोनो हाथ की पकड़ बनाए थी और मुख और हस्त मैथुन एक साथ दे रही थी। थोड़ी ही देर में आर्य का बदन भी अकड़ने लगा। रूही तुरंत लिंग को मुंह से बाहर निकालती पिचकारी का निशाना कहीं और की.. और आर्यमणि झटके खाता हुआ अपना जोरदार पिचकारी मार दिया।…
खाली होने के बाद वह भी रूही के पास लेट गया और प्यार से रूही के बदन पर हाथ फेरते... "कल विचलित करने वाली शाम थी रूही।"..
"उस शेर ने बड़ी मदद की जान। उसे पता था की तुम्हे क्या हुआ है। उसी ने जंगली घास में से कुछ खास प्रकार के घास को लेकर आया था, वरना हम तुम्हारा दर्द जितना कम करने की कोशिश करते, वह उतना ही बढ़ रहा था"..
"मेरी नजर एक जलपड़ी से टकराई थी। उसकी नजर इतनी तीखी थी कि उसके एक नजर देखने मात्र से मेरे सर में ढोल बजने लगे थे। उसके बाद तो ऐसा हुआ मानो मेरे सर की सभी नशे गलना शुरू कर दी थी"…
"कामिनी बहुत ताकतवर लग रही.. केवल नजर उठाकर देखने से जान चली जाए... तुम्हे भी क्या जरूरत थी नैन मटक्का करने की। मतलब बीवी अब कभी–कभी देती है तो बाहर मुंह मरोगे"…
"अच्छा इसलिए आज सुबह–सुबह ये कार्यक्रम रखी थी"..
रूही, आर्यमणि को खींचकर एक तमाचा देती... "जब आंख खुली तब जलपड़ी के साथ अपने नैन–मट्टका की रास लीला बताते, फिर देखते कौन सा कार्यक्रम हो रहा होता। वो तो इतना प्यार आ रहा था कि उसमे बह गयी। साले बेवफा वुल्फ, तुम्हारे नीचे तो आग लगी होगी ना, इसलिए हर किसी को लाइन देते फिर रहे"..
"पागल कहीं की कुछ भी बोलती है"… कहते हुए आर्यमणि ने रूही के सर को अपने सीने से लगा लिया"..
"जाओ जी.. मुझे बहलाओ मत। प्यार मुझसे ही करते हो ये पता है, लेकिन अपनी आग ठंडी करने के लिए हमेशा व्याकुल रहते हो"
"अरे कैसे ये पागलों जैसी बातें कर रही हो। ऐसा तो मेरे ख्यालों में भी नही था"…
"अच्छा ठीक है मान लिया.. अब उठो और जाकर काम देखो। साथ में मेरे लिए कुछ खाने को लाओ.. तुम्हारी बीवी और बच्ची दोनो को भूख लग रही है।"..
"बस 10 मिनट दो, अभी सब व्यवस्था करता हूं।"…
दोनो बिस्तर से उठे। आर्यमणि कपड़े ठीक करके बाहर आया और रूही बाथरूम में। आर्यमणि जैसे ही बाहर आया दूसरी ओर से अलबेली और इवान उनके पास पहुंचे। अलबेली खाना लेकर अंदर गयी और इवान आर्यमणि से उसका हाल पूछने लगा...
कल की हैरतंगेज घटना सबके जहन में थी। सबसे ज्यादा तकलीफ तो आर्यमणि ने ही झेला था। अगले 2 दिनों तक कोई कहीं नही गया। रूही सबको पकड़कर एक जगह बांधे रखी। हंसी मजाक और काम काज में ही दिन गुजर गये। हालांकि रूही तो तीसरे दिन भी पकड़कर ही रखती, लेकिन सुबह–सुबह वो शेर आर्यमणि के फेंस के आगे गस्त लगाने लगा...
चारो निकलकर जैसे ही उस शेर को देखने आये, वह शेर तेज गुर्राता हुए उन्हें देखा और फिर जंगल के ओर जाने लगा... "लगता है फिर कहीं ले जाना चाहता है"… रूही अपनी बात कहती शेर के पीछे चल दी। आर्यमणि, इवान और अलबेली भी उसके पीछे चले।
सभी लोग चोटी पर पहुंच चुके थे। आज न सिर्फ वो शेर बल्कि उसका पूरा समूह ही पर्वत की चोटी पर था। उस शेर के वहां पहुंचते ही पूरा समूह पर्वत के उस पार जाने लगा। किसी को कुछ समझ में नही आ रहा था कि यहां हो क्या रहा है? कुछ दिन पहले जो शेर उस पार जाने से रोक रहा था, वो आज खुद लेकर जा रहा था।
रूही के लिये यह पहली बार था इसलिए वह कुछ भी सोच नही रही थी। लेकिन उसकी नजर जब उस कल्पना से पड़े, बड़े और विशाल जीव पर पड़ी, रूही बिलकुल हैरानी के साथ कदम बढ़ा रही थी। शेर का पूरा समूह उस जीव के मुंह के पास आकर रुका। चारो अपनी गर्दन ऊपर आसमान में करके भी उसके मुंह के ऊपर के अंतिम हिस्सा को नही देख पा रहे थे।
अलबेली तो हंसती हुई कह भी दी... "आज ये शेर हम सबको निगलवाने वाला है"..
चारो वहीं फैलकर उस विशालकाय जीव को देखने लगे। शेर का पूरा झुंड उसके चेहरे के सामने जाकर, अपना पंजा उसके मुंह पर मारने लगे... ऐसा करते देख इवान के मुंह से भी निकल गया... "कहीं ये साले शेर अपने बलिदान के साथ हमारी भी बली तो नही लेने वाले"… आंखों के आगे न समझ में आने वाला काम हो रहा था।
इतने में ही उस जानवर में जैसे हलचल हुई हो। शेर के पंजे की प्रतिक्रिया में वो विशालकाय जीव बस नाक से तेज हवा निकाला और अपने सिर को एक करवट से दूसरे करवट ले गया। हां उस जीव के लिये तो अपना सिर मात्र इधर से उधर घूमाना था, लेकिन चारो को ऐसा लगा जैसे एक पूरी इमारत ने करवट ली हो। माजरा अब भी समझ से पड़े था।
तभी शेर का पूरा झुंड अल्फा पैक के पीछे आया और अपने सिर से धक्का देते मानो उस जीव के करीब ले जाने की कोशिश कर रहा था। एक बार चारो की नजरे मिली। आपसी सहमति हुई और चारो उस जीव के करीब जाकर उन्हें देखने लगे। जितना हिस्सा नजर के सामने था, उसे बड़े ध्यान से देखने लगे।
तभी जैसे उन्हे शेर ने धक्का मारा हो... "अरे यार ये शेर हमसे कुछ ज्यादा उम्मीद तो नही लगाए बैठे"… आर्यमणि ने कहते हुये उस जीव को छू लिया। काफी कोमल और मुलायम त्वचा थी। आर्यमणि उसके त्वचा पर हाथ फेरते उसके दर्द का आकलन करने के लिये उसका थोड़ा सा दर्द अपनी नब्ज में उतारा..
आर्यमणि को ऐसा लगा जैसे 100 पेड़ को वो एक साथ हील कर रहा हो। एक पल में ही उसका पूरा बदन नीला पड़ गया और झटके से उसने अपने हाथ हटा लिये। इधर उस जीव को जैसे छानिक राहत मिली हो, उसकी श्वांस तेज चलने लगी...
आर्यमणि:– लगता है इसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिए मजबूरी में इसे छोड़कर चले गये...
रूही:– और लगता है ये जीव अक्सर किनारे पर आता है, शेर का झुंड से काफी गहरा नाता है। चलो आर्य इस कमाल के जीव को बचाने की एक कोशिश कर ही लिया जाए।
“मुझे कुछ वक्त दो। सोचने दो इसके लिये क्या किया जा सकता है।” अपनी बात कहते आर्यमणि वहीं बैठकर ध्यान लगाने लगा।
“मुझे कुछ वक्त दो। सोचने दो इसके लिये क्या किया जा सकता है।” अपनी बात कहते आर्यमणि वहीं बैठकर ध्यान लगाने लगा।
आर्यमणि शुरू से पूरे घटनाक्रम पर नजर दिया और आंख खोलते ही.… "तुम सब घास काटने वाली मशीन, वाटर पंप मोटर, और पाइप ले आओ। साथ में पानी गरम करने की व्यवस्था, और आड़ी भी लेकर आना। जबतक मैं इसकी जांच करता हूं... ओह हां साथ में बायोहेजार्ड सूट लाना मत भूलना"..
रूही, इवान और अलबेली समान लाने निकल गये। आर्यमणि आगे से पीछे तक उस विशालकाय जीव के बदन के 2 चक्कर लगाया और पूरी बारीकी से जांच कर लिया। तीसरी बार जांच के लिये आर्यमणि को उस जीव के ऊपर चढ़ना पड़ा। पूरी जांच करने के बाद वो सीधा क्रूज लेने निकला और क्रूज को घुमाकर समुद्र के उस तट तक लेकर आया, जिसके किनारे वह विशालकाय जीव पड़ा था।
जब रूही, इवान और अलबेली वापस लौटे तो वहां आर्यमणि नही था। करीब आधा घंटा इंतजार करने के बाद उन्हें आर्यमणि तो नही लेकिन क्रूज जरूर दिख गया। आर्यमणि नीचे आकर सबको एक वाकी देते... "इवान, अलबेली वो जो घास मुझे खिलाए थे, जितनी हो सके काटकर ले आओ।"..
वो दोनो अपने काम पर लग गये। इधर आर्यमणि, रूही को क्रूज में जाकर क्रेन ऑपरेट करने कहने लगा। रूही भी हामी भरती क्रूज पर गयी और आर्यमणि के इशारे का इंतजार करने लगी। आर्यमणि ने उस जीव के पेट पर करीब 600 मार्क किये थे। वह अपनी आड़ी लेकर उन्ही मार्क्स पर चल दिया।
आर्यमणि मार्क किये जगह पर भले ही 2 फिट लंबा–चौड़ा चीड़ रहा था, लेकिन उस जीव के बदन के हिसाब से मात्र छोटा सा छेद था। आर्यमणि ऐतिहातन वो बायोहजार्ड़ सूट पहने था, ताकि पेट के अंदर का गैस उसे कोई नुकसान न करे। पहला छेद जैसे ही हुआ, चारो ओर धुवां ही धुवां। धुवां छटते ही आर्यमणि पेट के अंदर किसी नुकीली धातु का कोना अपने आंखों से देख रहा था।
वाकी पर उसने रूही को इंस्ट्रक्शन दिया और क्रेन का हुक ठीक उस छेद के पास था। आर्यमणि उस छेद पर चढ़ा। पेट में अटकी उस नुकीली चीज को हुक से फसाया और ऊपर खींचने बोला। हुक के वायर पर जैसे काफी लोड पड़ रहा हो। रूही जब खींचना शुरू की, अंदर से बहुत बड़ा मेटल स्क्रैप निकला। वह इतना बड़ा था की उस छोटे से छेद को बड़ा करते हुये निकल रहा था। वह जीव दर्द से व्याकुल हो गया। दर्द से उसका पूरा बदन कांपने लगा।
वह जीव इतना बड़ा था कि उसके हिलने से क्रूज का क्रेन ही पूरा खींचने लगा। आर्यमणि तुरंत अपना ग्लॉब्स निकालकर उसके बदन पर हाथ लगाया। आर्यमणि अपने अंदर भीषण टॉक्सिक लेने लगा। दर्द से राहत मिलते ही वह जीव शांत हो गया और रूही तुरंत उस मेटल स्क्रैप को बाहर खींचकर निकाल दी। जैसे ही मेटल स्क्रैप उस जीव के पेट से बाहर निकला, आर्यमणि एक हाथ से उस जीव का दर्द खींचते, दूसरे हाथ से पेट के कटे हुये हिस्से को बिना किसी गलती के सिल दिया। तकरीबन 10 मिनट तक टॉक्सिक अंदर लेने के कारण आर्यमणि पूरी तरह से चकरा गया। उसे उल्टियां भी हुई। जहां था वहीं कुछ देर के लिये बैठ गया। एक मार्क का काम लगभग आधे घंटे में खत्म करने के बाद आर्यमणि दूसरे मार्क पर पहुंचा। वहां भी उतना ही मेहनत किया जितना पहले मार्क पर मेहनत लगी थी।
लगातार काम चलता रहा। शिफ्ट बदल–बदल कर काम हो रहा था। चिड़ने और हाथों से हील करने का मजा सबने लिया। हां लेकिन जो टॉक्सिक आर्यमणि अकेले लेता था, वो तीनो (रूही, अलबेली और इवान) मिलकर भी नही ले पा रहे थे। इवान और अलबेली पहले ही घास का बड़ा सा ढेर जमा कर चुके थे जिसे क्रेन के जरिए क्रूज के स्विमिंग पूल तक पहुंचा दिया गया था। स्विमिंग पूल का पूरा पानी लगातार गरम करके, उसमे घास डाल दिया गया था। एक बार जब घास पूरी तरह से उबल गयी, तब पाइप के जरिए उस जीव के शरीर में उबला पानी उतारा जाने लगा। वह जीव लगातार घास का सूप पी रहा था।
एक दिन में तकरीबन 20 से 25 मार्क को साफ किया गया। तकरीबन 3 दिन के बाद वो जीव अपनी अचेत अवस्था से थोड़ा होश में आया। वह अपनी आंखें खोल चुका था। श्वांस लेने में थोड़ी तकलीफ थी, लेकिन खुद में अच्छा महसूस कर रहा था। पहले 3 दिन तक तो काम धीमा चला, पर एक बार जब अनुभव हो गया फिर तो सर्जरी की रफ्तार भी उतनी ही तेजी से बढ़ी।
तकरीबन 14 दिन तक इलाज चलता रहा। पूरा अल्फा पैक ही अब तो उस जीव के टॉक्सिक और दर्द को लगातार झेलने का इम्यून पैदा कर चुके थे। सबसे आखरी मार्क उस जीव के मल–मूत्रसाय मार्ग के ठीक ऊपर था। आर्यमणि क्रेन संभाले था और अलबेली पूल में पड़ी उबली घास को निकालकर, नया ताजा घास डाल रही थी। नया घास डालने के बाद उसे उबालकर उस काल जीव के मुंह तक लाना था, जो पिछले कुछ दिनों से उस जीव का आहार था।
इवान और रूही ने मिलकर आखरी जगह छेद किया और क्रेन के हुक से मेटल स्क्रैप को फसा दीया। वह स्क्रैप जब निकलना शुरू हुआ फिर तो ये लोग भी देखकर हैरान थे। लगभग 2 मीटर ऊंचाई और 60 मीटर लंबा स्क्रैप था। अब तक जितने भी मेटल स्क्रैप निकले थे, उनसे कई गुणा बड़ा था। वह जीव भयंकर पीड़ा में। रूही और इवान ने जैसे ही हाथ लगाया समझ गये की वो लोग इस दर्द को ज्यादा देर तक झेल नही पाएंगे। बड़े से मेटल स्क्रैप निकालने दौरान उस काल जीव के पेट का सुराख फैलकर फटना शुरू ही हुआ था, अभी तो पूरा स्क्रैप निकालना बाकी था। फिर उसे सीलना भी था। वक्त की नजाकत को देखते हुए रूही, आर्यमणि को अपने पास बुला ली और क्रेन अलबेली को बोली संभालने।
आर्यमणि बिना देर किये उसके पास पहुंचा और अपना पंजा डालकर जब उसने दर्द लेना शुरू किया, तब जाकर रूही और इवान को भी राहत मिली। हां लेकिन ये तो अभी इलाज एक हिस्सा था, दूसरा हिस्सा धीरे–धीरे उस विशालकाय जीव के पेट से निकल रहा था। 5 फिट का छोटा छेद कब 2–3 मीटर में फैल गया, पता ही नही चला। तीनो पूरा जान लगाकर उस काल जीव का दर्द ले रहे थे और स्क्रैप के जल्दी से निकलने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन जैसे ही वो स्क्रैप निकला, उफ्फ काफी खतरनाक मंजर था।
2 मीटर ऊंचा और 60 मीटर लंबे मेटल स्क्रैप न जाने कितने दिनों से मल–मूत्र का रस्ता रोक रखा था। मेटल स्क्रैप के पीछे जितना भी मल, गंदगी इत्यादि जमा था, बाढ़ की तरह उनके ऊपर गिड़ा। गिड़ा मतलब ऐसा वैसा गिड़ा नही। 5 मीटर ऊंची वो मल और गंदगी की बाढ़ थी, जिसमे 10 मिनट तक तीनो डूबे रह गये। ऊपर अलबेली का हंस–हंस कर बुरा हाल था। बायोहजार्ड सूट के अंदर तो वो सुरक्षित थे। ऑक्सीजन सप्लाई भी पर्याप्त थी पर मल में दबे रहने के कारण तीनो का मन उल्टी जैसा करने लगा, क्योंकि हाथ तो तीनो के खुले हुये थे।
10 मिनट लगा उस कचरे को बहने में। थुल थुले से मल के बीच वो तीनो, उस जीव का दर्द भी भागा रहे थे और पेट ज्यादा देर तक खोले नही रह सकते थे, इसलिए सिल भी रहे थे। इधर अलबेली वाटर पंप को पहाड़ से निकलने वाले झील में डाली और क्रेन की मदद से उस जगह पानी डालकर साफ–सफाई भी कर रही थी। ..
खैर 14–15 दिन की सर्जरी के बाद, अगले 4 दिन तक उस जीव को खाने में उबला घास और पीने के लिए घास का सूप मिलता रहा। सारी ब्लॉक लाइन क्लियर हो गयी थी। वह जीव खुद में असीम सुख की अनुभूति कर रहा था। अगले 4 दिन में अल्फा पैक ने उस जीव को पूरा हील भी कर दिया और उसके टांके भी खोल दिये।
20 दिनों के बाद वो जीव पूरी तरह से स्वास्थ्य था। खुश इतना की नाच–नाच के करतब भी दिखा रहा था। वो अलग बात थी की उसके करतब देखने के लिए पूरा पैक पर्वत की चोटी पर बैठा था। उस जीव के नजरों के सामने चारो बैठे थे। वह जीव अपनी आंखों से जैसे आंसू बहा रहा हो। अपनी आंख वो चारो के करीब लाकर 2 बार अपनी पलके टिमटिमाया ..
उसे ऐसा करते देख चारो खुश हो गये। फिर से उस जीव ने अपना सिर पीछे किया और खुद को जैसे हवा में लहराया हो... हां लेकिन वो लहर आर्यमणि के सर के ऊपर इतनी ऊंची उठी की बस सामने उस जीव का मोटा शरीर ही नजर आया। ऊपर कितना ऊंचा गया, वो नजदीक से देख पाना संभव नही था। वह जीव ठीक इन चारो के सर के ऊपर था और अपनी गर्दन नीचे किये अल्फा पैक को वह देख रहा था। उस जीव के शरीर पर, गर्दन के नीचे से लेकर पूंछ तक, दोनो ओर छोटे छोटे पंख थे। करीब 3 फिट या 4 फिट के पंख रहे होंगे जो दूर से देखने पर उस जीव के शरीर पर रोएं जैसा लगता था।
वह जीव गर्दन नीचे किये अल्फा पैक को देख रहा था और बड़ी सावधानी से अपना एक पंख रूही के पेट के ओर बढ़ा रहा था। रूही यह देखकर खुश हो गयी और पेट के ऊपर से कपड़ा हटाकर पेट को खुला छोड़ दी। वह जीव अपनी गर्दन नीचे करके धीरे–धीरे अपना पंख बढ़ाकर पेट पर प्यार से टीका दिया। आर्यमणि, अलबेली, और इवान को तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई पहाड़ उनके सामने से धीरे–धीरे करीब आ रहा हो।
क्या हो जब आप कहीं पार्क में बैठे हो और 100, 150 मंजिली इमारत आपके 10 फिट के फासले से नजदीक आ रही हो। और ये जीव तो उस इमारत से भी कहीं ज्यादा ऊंचा था, जिसे करीब से कभी पूरा नहीं देखा जा सकता। किंतु यहां किसी को भी डर नही लग रहा था उल्टा सब खुश थे। सबसे ज्यादा खुश तो रूही थी, क्योंकि उस जीव का स्पर्श उतना ही अलौकिक था।
उस जीव ने कुछ देर तक अपना पंख रूही के पेट पर टिकाए रखा। फिर तो सबने वो कारनामा देखा। नजरों के सामने उस जीव के शरीर का जितना हिस्सा था, उसमें जैसे वाइब्रेशन हुआ हो और एक पल के लिए उसने पंख को पेट से हटा लिया। वापस से उसने पेट पर स्पर्श किया और फिर से उसका शरीर वाइब्रेट किया।
रूही:– अमेया पेट में हरकत कर रही है। ये जीव उसे महसूस कर सकता है...
लगातार 3–4 बार वाइब्रेट होने और स्पर्श करने की प्रक्रिया के बाद तो वो जीव खुशी से गुलाटी ही लगा दिया। वो अलग बात थी कि गुलाटी लगी नही और अपना भारी शरीर लेकर सीधा जमीन पर गिर गया। सर हिलाते वह जीव उठा और अपना मुंह रूही के पेट के करीब लाकर अपने जीभ के छोटे से प्वाइंट से रूही के पेट को स्पर्श करके वहां से खुशी–खुशी वापस समुद्र में लौट गया। हालांकि मकसद तो पेट को ही स्पर्श करना था, लेकिन अब जीभ ही इतनी बड़ी थी की चारो को गिला करके भाग गया...
इतने बड़े जीव की जान बचाना अपने आप में ही अनोखा अनुभव था। आर्यमणि ने पूरे घटनाक्रम को विस्तार से अनंत कीर्ति की पुस्तक में लिखा। जब वह पूरी घटना लिख रहा था, उसी दौरान आर्यमणि ने सोच लिया की इस किताब को कॉटेज में न रखकर साथ ले जाना ज्यादा बेहतर होगा। अनंत कीर्ति की पुस्तक खुद यहां के पूरे पारिस्थितिक तंत्र को वर्णित कर देगी।
अगली सुबह तो और भी ज्यादा विचित्र परिस्थिति थी। आर्यमणि क्रूज को आइलैंड के दूसरे छोड़ से उसी किनारे पर लगा रहा था जहां क्रूज शुरू से लगी हुई थी। किंतु उस विशालकाय जीव को ठीक करने के बाद से तो जैसे आर्यमणि के पास वाले समुद्री तट पर कई सारे समुद्री जीवों का आना जाना हो गया। सभी समुद्री जीवों के आकार सामान्य ही थे लेकिन देखने में काफी मनमोहक और प्यारे लग रहे थे। सभी पीड़ा लेकर उस तट पर पहुंचे थे और आर्यमणि उन सबको हील कर खुशी–खुशी वापस भेज दिया।
अब तो जैसे रोज ही समुद्र किनारे समुद्री जीवों का भिड़ लगा रहता। उन सबकी संख्या इतनी ज्यादा हुआ करती थी कि अल्फा पैक उन्हे समुद्री रेशों में जकड़ कर एक साथ हील कर दिया करते थे। कभी–कभी तो काफी ज्यादा पीड़ा में होने के कारण कई समुद्री जीव आर्यमणि के फेंस तक पहुंच जाते। चारो मिलकर हर किसी की तकलीफ दूर कर दिया करते थे। और जितना वो लोग इस काम को करते, उतना ही अंदर से आनंदमय महसूस करते।
हां लेकिन उस बड़े से काल जीव को स्वास्थ्य करने वाली घटना के बाद, उन चारो को रात में कॉटेज के आस–पास किसी के होने की गंध जरूर महसूस होती, लेकिन निकलकर देखते तो कोई नही मिलता। उस बड़े से जीव को हील किये महीना बीत चुका था। जिंदगी रोजमर्रा के काम के साथ बड़ी खुशी में कट रही थी। रूही का छटवा महीना चल रहा था। सब लोग अब विचार कर रहे थे कि 4 महीने के लिये न्यूजीलैंड चलना चाहिए। रूही के प्रसव से लेकर बच्चे के महीने दिन का होने तक डॉक्टर के ही देख–रेख़ में रूही को रखना था।
अंधेरा हो चला था। चारो कॉटेज के बाहर आग जला कर बैठे थे। इन्ही सब बातो पर चर्चा चल रही थी। सब न्यूजीलैंड जाने के लिये सहमति जता चुके थे, सिवाय रूही के। उसका कहना था कि आर्यमणि ही ये डिलीवरी करवा देगा। रूही की बात सुनकर तो खुद आर्यमणि का दिमाग ब्लॉक हो गया। यूं तो डॉक्टरों का ज्ञान चुराते वक्त प्रसव करवाने का मूलभूत ज्ञान तो आर्यमणि के पास था, किंतु अनुभव नहीं। और आर्यमणि जनता था डॉक्टरी पेशा ऐसा है जिसमे ज्ञान के साथ–साथ अनुभव भी उतना ही जरूरी होता है। आर्यमणि, रूही से साफ शब्दों में कह दिया... "इस मामले में तुम्हारी राय की जरूरत नही। जो जरूरी होगा हम वही करेंगे।"
आर्यमणि की बात सुनकर रूही भी थोड़ा उखड़ गयी। फिर क्या था दोनो के बीच कड़क लड़ाई शुरू। इन दोनो की लड़ाई मध्य में ही थी जहां आर्यमणि चिल्लाते हुए कह रहा था कि... "तुम्हारी मर्जी हो की नही हो, न्यूजीलैंड जाना होगा"…. वहीं रूही भी कड़क लहजे में सुना रही थी... "जबरदस्ती करके तो देखो, मैं यहां से कहीं नही जाऊंगी"
कोई निष्कर्ष नही निकल रहा था और जिस हिसाब से दोनो अड़े थे, निष्कर्ष निकलना भी नही था। दोनो की बहस बा–दस्तूर जारी थी। तभी वहां का माहोल जैसे कुछ अलग सा हो गया। समुद्र तट से काफी तेज तूफान उठा था। धूल और रेत के कण से आंखें बंद हो गयी। कुछ सेकंड का तूफान जब थमा, आर्यमणि अपने फेंस के आगे केवल लोगों को ही देख रहे थे। कॉटेज से 200 मीटर का इलाका उनका फेंस का इलाका था और उसके बाहर चारो ओर लोग ही लोग थे।
यहां कोई आम लोग आर्यमणि के फेंस को नही घेरे थे। बल्कि वहां समुद्रीय मानव प्रजाति खड़ी थी। एक जलपड़ी और उसके साथ एक समुद्री पुरुष जिसका बदन संगमरमर के पत्थर जैसा और शरीर का हर कट नजर आ रहा था। आर्यमणि सबको अपनी जगह बैठे रहने बोलकर खड़ा हो गया और फेंस की सीमा तक पहुंचा। वह बड़े ध्यान से सामने खरे मानव प्रजाति को देखते... "तुम सबका मुखिया कौन है?"…
आर्यमणि के सवाल पर भिड़ लगाये लोगों ने बीच से रास्ता दिया। सामने से एक बूढ़ा पुरुष और उसके साथ एक जलपड़ी चली आ रही थी। बूढ़ा वो इसलिए था, क्योंकि एक फिट की उसकी सफेद दाढ़ी हवा में लहरा रही थी। वरना उसका कद–काठी वहां मौजूद भीड़ में जितने भी पुरुष थे, उनसे लंबा और उतना ही बलिष्ठ दिख रहा था।
वहीं उसके साथ चली आ रही लड़की आज अपने दोनो पाऊं पर ही आ रही थी, लेकिन जब पहली बार दिखी थी, तब जलपड़ी के वेश में थी। कम वह लड़की भी नही थी। एक ही छोटे से उधारहण से उसका रूप वर्णन किया जा सकता था। स्वर्ग की अप्सराएं भी जिसके सामने बदसूरत सी दिखने लगे वह जलपड़ी मुखिया के साथ चली आ रही थी।