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कॉटेज के अंदर तो जैसे जश्न का माहोल था। उसी रात शेर माटुका और उसके झुंड को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ हो जैसे... शोधक बच्ची, चाहकीली, जिसका इलाज आर्यमणि ने किया, उसको भी एहसास हुआ था... जंगल के और भी जानवर, जिन–जिन ने अमेया को गर्भ में स्पर्श किया था, सब को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ था और सब के सब रात में ही अमेया से मिलने पहुंच गये।
बेजुबान जीव अपने आंखों से भावना व्यक्त कर रहे थे। वहीं शोधक बच्ची भी हवा में करतब दिखाते आर्यमणि के कॉटेज को ही पूरा कुंडली मारकर घेर चुकी थी और उसका विशाल सिर कॉटेज के ऊपर था। या यूं भी कह सकते थे की कॉटेज अब गुफा बन गयी थी।
ऊपर शोधक बच्ची का सर तो नजर नहीं आ रहा था लेकिन खिड़की से उसका धर जरूर दिख रहा था। आर्यमणि के बहुत समझाने के बाद शोधक बच्ची चाहकीली और माटुका शेर का झुंड वहां से गया। 7 दिन पूरे हो गये थे और आर्यमणि पूरी विधि से पूजा करने के बाद अमेया के गले में पत्थर जारित छोटा एमुलेट धारण करवा रहा था। काफी अनूठा पल था... आमेया प्यारी सी मुस्कान के साथ पहली बार गले से प्यारा सा आवाज निकाली। जिसे सुनकर सब हंसते हुए उसे गोद में लेकर झूमने लगे...
कुछ दिन पूर्व
किसी सुदूर और वीरान टापू पर कुछ लोगों की मुलाकात हो रही थी। 8–10 लोग उन्हें घेरे खड़े थे और बीच में 5 लोग बैठे थे... मीटिंग निमेषदर्थ ने बुलवाई थी। विवियन एक औपचारिक परिचय देते हुये...
"निमेषदर्थ, ये हमारे समुदाय की सबसे शक्तिशाली स्त्री माया है। काफी दूर दूसरे ग्रह से आयी है। माया ये है राजकुमार निमेषदर्थ और उसकी बहन राजकुमारी हिमा। ये दोनो महासागर के राजा विजयदर्थ के प्रथम पुत्र और पुत्री है।”
“हमारे बीच दूसरी दुनिया की रानी मधुमक्खी रानी चींची बैठी हुई है। पिछले कुछ वक्त से ये भी हमारी तरह आर्यमणि का शिकर करना चाहती थी। उसके पैक को वेमपायर के साथ उलझाने की कोशिश भी की, लेकिन बात नहीं बनी। पृथ्वी पर हम सबकी एक मात्र बाधा आर्यमणि है, जिसके वजह से हम अपना साम्राज्य फैला नही पा रहे।
निमेषदर्थ:– हम्मम... लगता है उस आर्यमणि ने तुम सबको कुछ ज्यादा ही दर्द दिया है। ठीक है मैं तुम्हे आर्यमणि और उसके लोगों को मारने का मौका दूंगा।
रानी मधुमक्खी चिंची..... “उस आर्यमणि ने तुम्हारे साथ क्या किया, जो तुम उसे मारना चाहते हो?”
निमेषदर्थ:– वह मेरे साथ क्या करेगा, कुछ भी नही। मुझे तो बस उसकी शक्तियां चाहिए, जो उसके खून से मुझे मिल जायेगा। चूंकि मेरे पिता का हाथ आर्यमणि के सर पर है, इसलिए मैं या मेरे लोग उसे मार नही सकते, इसलिए तुम लोगों को बुलवाया है।
माया:– बिलकुल सही लोगों से संपर्क किया है। एक बार वो मेरे किरणों के घेरे में फंस गया, फिर मेरे पास वह हथियार भी आ गया है, जिस से आर्यमणि को उसका मंत्र शक्ति भी बचा नही सकती।
निमेषदर्थ, अपनी जगह से खड़ा होकर पूरे जोश के साथ..... “इस बार गलत जगह पर है आर्यमणि। तुम्हे यदि विश्वास है कि तुम्हारे गोल घेरे में फंसकर आर्यमणि निश्चित रूप से मरेगा, तो ऐसा ही होगा। वादा रहा”...
माया, निमेषदर्थ के आकर्षक बदन को घूरती..... “तुम बहुत आकर्षक हो राजकुमार.. साथ काम करने में मजा आयेगा”...
निमेषदर्थ:– तुम भी कमाल की दिखती हो माया। तुम्हारे पास जलपड़ी बनने जितनी सौंदर्य है।
माया:– ऐसी बात है क्या... फिर जब तुम राजा बनना तब मुझे अपनी रानी बनने का प्रस्ताव भेजना... अब जरा काम की बात हो जाये... तुम पूरा जाल बिछाकर आर्यमणि को जहां कहूंगी वहां ले आओगे, आगे का काम मेरा रहा।
निमेषदर्थ:– मैं जाल तो बिछा दूंगा लेकिन आर्यमणि जहां रहता है उस जगह पर मैं नही घुस सकता। उसका पूरा इलाका मंत्रो से बंधा है और बिना उसकी इजाजत मेरे पिताजी भी नही घुस सकते। ऐसे में रानी मधुमक्खी चिंची की जरूरत पड़ेगी। उस पर किसी भी प्रकार का मंत्र काम नही करेगा।
रानी चिंचि:– तुम योजना बनाओ निमेषदर्थ बाकी मैं कहीं भी घुस सकती हूं। ऊपर से अब मैं इस दुनिया के वातावरण के अनुकूल हो गयी हूं, अतः मुझे कहीं जाने के लिये किसी शरीर की भी आवश्यकता नहीं।
माया:– तो तय रहा की तुम दोनो मिलकर आर्यमणि को जाल में फसाओगे और मैं उसके प्राण निकाल लूंगी। लेकिन एक बात ध्यान रहे आर्यमणि मर गया तब वो मेरे किसी काम का नही। मुझे वो अनंत कीर्ति की किताब चाहिए..
निमेषदर्थ:– तुम मुझे आर्यमणि दे दो मैं तुम्हे वो किताब दे दूंगा..
मधुमक्खी रानी चिंची..... “आर्यमणि तो पहले से तुम्हारे इलाके में है। बस उसके प्राण ले लो। इसमें मैं तुम सबकी पूरी मदद करूंगी।
विजयदर्थ की प्रथम पुत्री हिमा..... “इस दूसरे ग्रह वाशी नायजो की दुश्मनी तो समझ में आती है। लेकिन रानी चिंचि आर्यमणि से तुम्हारी क्या दुश्मनी? तुम तो इनसे (नायजो) भी कहीं ज्यादा शक्तिशाली हो, फिर आर्यमणि को अब तक मार क्यों नही पायी?
मधुमक्खी रानी चिंचि:– समस्त ब्रह्माण्ड में इकलौता वो भेड़िया ही है जो मेरे मृत्यु का राज जनता है। उसे पता नही था कि मैं इस दुनिया में आ चुकी हूं। और मैं चाहती भी नही की उसे पता चले। यदि वो मेरे पीछे पड़ गया तो मेरी मौत निश्चित है।
माया:– आह आर्यमणि… ये चीज क्या है... इतना सुना इसके बारे में की मुझे ब्रह्मांड का एक हिस्सा लांघकर पृथ्वी आना पड़ा...
निमेषदर्थ:– ये उतना भी खास नही था, जिसकी वजह से तुम्हे इतनी दूर आना पड़ता... बस हम सबकी मुलाकात नही हुई थी, इसलिए ये अब तक जिंदा बचा है।
माया:– जब वो खास नही फिर तुम्हे हमारी क्या जरूरत.. तुम्हे उस आर्यमणि की क्या जरूरत...
निमेषदर्थ:– उसके ब्लड में कमाल की हीलिंग है। उसके क्ला में कमाल की शक्तियां है। मैं बस एक्सपेरिमेंट करके उसके ब्लड और क्ला को कृत्रिम रूप से बनाने की चाहत रखता हूं...
माया:– खैर, मुझे कोई मतलब नहीं की तुम्हे उस आर्यमणि से क्या चाहिए... मुझे बस एक बात जाननी जरूरी है... पहला वो अनंत कीर्ति की किताब मुझे कैसे मिलेगी... क्योंकि जैसा की हम सबको पता है... तुम्हारे लोग या कोई भी बिना इजाजत के उसके दायरे में नहीं घुस सकता.. और जबसे तुम्हारी सौतेली बहन महाति ने उस पर जानलेवा हमला किया, तबसे तो उसने अपने पूरे पैक को सुरक्षा मंत्र से बांध लिया है...
निमेषदर्थ:– “हर बीमारी का इलाज होता है। जहां के घेरे में हम नही जा सकते वहां रानी चिंचि और बाज जा सकता है। वो बाज उनके नवजात शिशु को उठा सकता है... उसके पीछे आर्यमणि और उसका पैक व्याकुल होकर मंत्र के सुरक्षित घेरे से बाहर आ सकता है।”
“व्याकुल होने की परिस्थिति में वो अपने शरीर का सुरक्षा घेरा बनाना भूल सकता है। यह भी हो सकता है कि जब वो लोग अपने कॉटेज के बाहर हो तो अनंत कीर्ति की किताब कोई बाज अपने पंजे में दबा ले... होने को तो बहुत कुछ हो सकता है।”...
माया:– फिर तुम दोनो (निमेषदर्थ और चिंची) को मेरी क्या जरूरत? निमेषदर्थ तुम्हारे लोग एक बार तो आर्यमणि को लगभग मार ही चुके थे। बस उसके साथियों ने बचा लिया। इस बार सबको समाप्त कर देना।
माया की बात सुनकर रानी मधुमक्खी चिंची हंसने लगी। हंसी तो निमेषदर्थ और उसकी बहन हिमा की भी निकल गयी। निमेषदर्थ अपनी हंसी रोकते.... “अब मैं समझ सकता हूं कि क्यों तुम नायजो इतने शक्तिशाली और सुदृढ़ होते हुये भी वुल्फ के एक पैक को समाप्त नहीं कर पाये। अक्ल की ही कमी है जो तुमलोग अपने दुश्मन को समझ नही सके और तुम्हारे हर हमले के बाद वो आर्यमणि तुम सबको और करीब से जानने लगा।”
“मीटिंग के शुरवात से ही पूरी योजना बता रहा हूं, तब भी अंत में आते–आते वही बेवकूफी वाला सवाल कि तुम्हारी क्या जरूरत है। जबकि 4 बार तो खुद गला फाड़कर बोल चुकी हो कि हम आर्यमणि को तुम्हारे गोल घेरे तक लेकर आये और आगे का काम तुम कर दोगी।”
“रानी चिंचि पहले ही बता चुकी थी कि आर्यमणि को पता नही की वह दूसरी दुनिया से इस दुनिया में आ चुकी है। ऊपर से उसका पैक। सब इतने सुनियोजित ढंग से काम करते है कि इनपर किया गया रैंडम हमला भी हमला करने वालों पर भारी पड़ जाते है। तभी तो रानी चिंचि खुद अकेले आर्यमणि से नही भिड़ सकती थी, इसलिए उसका मामला वेमपायर प्रजाति से फंसा दी।”
“रही बात मेरी, तो काश मैं आर्यमणि को मार सकता। ये बात कुछ देर पहले भी बताया था अब भी बता रहा हूं, आर्यमणि के सर पर मेरे पिता का हाथ है। मैं क्या जलीय कोई जीव तक उसे हाथ नही लगा सकता, सिवाय एक प्रजाति के जिसकी चर्चा नही हो तो ज्यादा बेहतर है। ऊपर से इस अलौकिक भेड़िए की शारीरिक बदलाव।”
“पहली बार जब महाती ने आर्यमणि को घायल किया, उसके बाद तो उसके पूरे पैक ने हमारे हर अंदुरिनी वार का इम्यून विकसित कर लिया। और ये इम्यून केवल एक बड़े से समुद्री जीव के इलाज से उन लोगों ने पा लिया। उसके बाद तो तुम सोच भी नही सकते की उन्होंने कितने प्रकार के समुद्री जीव का इलाज कर दिया। मुझे तो लगता है इन भेड़ियों के पास उस प्रजाति के विष का भी तोड़ होगा जो हमारी दुनिया के मालिक कहलाते है।”
“जैसे तुम नायजो वाले के नजरों वार को देखा और महसूस किया जा सकता है, उसके विपरीत हमारे नजरों के वार को महसूस तक नही कर सकते। मैने अपने सबसे काबिल सिपाहियों के समूह से एक साथ उसके पूरे पैक पर नजरों का हमला करवाया, लेकिन उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ा। उल्टा उस आर्यमणि को मेरे पिताजी पर शक हो गया”...
माया:– अभी–अभी तो तुमने कहा था तुम्हारे नजरों के वार किसी को पता नही चलता...
निमेषदर्थ:– हां लेकिन भेड़िए का खून बता देता है कि उसके शरीर में टॉक्सिक गया है...
माया:– तो तुम्हे आर्यमणि जिंदा चाहिए या केवल उसका खून...
निमेषदर्थ:– ए पागल, केवल खून लेकर उसे जिंदा छोड़ दिया तो क्या वो हमे जिंदा छोड़ेगा? इस काम को हमे मिलकर अंजाम देना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा की आर्यमणि मारा गया। वरना वो यदि जिंदा बच गया तो अभी सिर्फ अल्फा पैक को हमने देखा है बाद में सात्विक आश्रम के अनुयाई के साथ वो लड़ने आयेगा। और विश्वास मानो आर्यमणि जैसे नायक के साथ जब सात्त्विक आश्रम के 100 अनुयाई भी खड़े हो तो जिसे मारने का सोचकर आये होंगे, उनकी मृत्यु अटल होगी
माया:– अब इतनी भी क्या समीक्षा करना। इस काम को हम तीनो मिलकर अंजाम देंगे और अपने–अपने लक्ष्य में कामयाब रहेंगे।
निमेषदर्थ:– फिर ये एहसान रहेगा तुम दोनो का... उसके खून का लाभ तुम सबको भी मिलेगा...
माया:– ये तो एक और अच्छी बात हो गयी। मैं आर्यमणि को मारने के लिये मैं बेचैन हो रही हूं। कब शुरू करना है..
निमेषदर्थ:– अभी आराम से यहीं रहते है... आइलैंड से सही वक्त की सूचना आ जाने दो... अभी तो आर्यमणि की बेटी के जन्म के कारण पूरा आइलैंड भरा हुआ है.. सबकी मौजूदगी में ये काम करने गये तो मेरे पिताजी से हम सबको भिड़ना पड़ जायेगा। इसलिए जोश को शांत रखो।
ये गिद्ध अपने शिकार पर शिकंजा कसने को तैयार थे, बस सही वक्त का इंतजार कर रहे थे। और इन सब से बेखबर, आर्यमणि और उसका पैक अपनी खुशियों में गुम था। सात दिन बाद अमेया पहली बार उस कॉटेज से बाहर आ रही थी। आर्यमणि अपने गोद में अपनी नन्ही गुड़िया को लिटाए जैसे ही बाहर आया... शेर माटुका और उसका पूरा झुंड दौड़कर घेर लिया…
आर्यमणि नीचे बैठकर अमेया को बीच में रखा। शेर का पूरा झुंड उसे देखकर दहाड़ लगा रहा था। अपने मुंह को अमेया के पास ले जाकर उसे प्यार से स्पर्श कर रहे थे। थोड़ी ही देर बाद विजयदर्थ भी अपने सभी लोगों के साथ पहुंचा... आते ही आमेया को अपनी गोद में उठाकर जैसे ही अपने सीने से लगाया, गहरी श्वास खींचते सुकून भरी स्वांस छोड़ा। आंख मूंदकर कुछ देर तक अपने सीने से लगाने के बाद विजयदर्थ ने गले से एक हार निकालकर अमेया को पहना दिया...
उसकी बेटी महाती आश्चर्य से अपने पिता को देखती... "ये तो दुर्लभ पत्थर वाली हार है न पिताजी... आपने इसे"..
विजयदर्थ, अमेया को महाती के हाथ में देते... "इसे सीने से लगाओ, फिर अपनी बात कहना”... जैसे ही महाती ने उसे सीने से लगाया, उसकी मुस्कान चेहरे पर फैल गयी। अपने पिता की तरह उसने भी अमेया को कुछ देर तक सीने से लगाये रखी। बाद में वह भी अपने गले का एक दुर्लभ हार निकालकर अमेया के गले में डाल दी”...
आर्यमणि:– अरे अमेया इतने सारे हार का क्या करेगी...
विजयदर्थ:– अमेया योग्य है इसलिए इसके गले में है... इसकी धड़कन कमाल की है। मैने कुछ पल में जो खुद में सुकून महसूस किया उसका वर्णन नही कर सकता। ऐसे सुकून पाने के लिये ना जाने हमारे पूर्वज कितने यज्ञ और हवन करवाते थे। मैने खुद कितने यज्ञ करवाए हैं।
अलबेली अजीब सा चेहरा बनाती... "यह कोई इतनी बड़ी वजह तो नही हुई की दुर्लभ पत्थर से लाद दे मेरी बच्ची को”...
महाती:– ये तुम्हारी नही बल्कि हम सबकी बच्ची है और अपने बच्ची को मैं कुछ भी दे सकती हूं। इसके लिये किसी वजह की जरूरत नहीं।
फिर तो जैसे हर जलीय मानव अमेया को गोद में उठाने को बेताब हो गये हो। आर्यमणि और रूही ने भी किसी को निराश नहीं किया। वहीं अलबेली और इवान बड़े–बड़े बॉक्स लाकर रख दिया... हर कोई उसी में अपना भेंट डाल देता...
सुबह से शाम हो गयी लेकिन अब भी बहुत से लोग लाइन लगाए खड़े थे... शाम ढलते ही आर्यमणि सबसे माफी मांगते सबके साथ पर्वत पर चल दिया... वहां सोधक बच्ची चहकीली महासागर के किनारे लेटी थी। मात्र उसका सिर पानी के बाहर था... आर्यमणि और रूही जोड़ से आवाज लगाए.… चाहकिली... चाहकिली…"
वो अपना मुंह दूसरी ओर घुमा ली। फिर माटुक शेर बाहर आया और रूही को धक्के मारने लगा.. रूही, अमेया को दोनो हथेली में थामकर ऊपर आकाश में की और माटुका ने तेज दहाड़ लगाया... माटुका की दहाड़ पर चहकिली अपना सिर वापस घुमाई और जैसे ही उसने अमेया को देखा... बिलकुल लहराती खुद को हवा में ऊपर उछाल ली। एक तो सकड़ों मीटर जितना लंबा शरीर ऊपर से वो हवा में 2–3 किलोमीटर ऊपर तक छलांग लगा दी।
खुशी ऐसी की संभाले नहीं संभल रहा था। चाहकीली उछलती चहकती अपना बड़ा सा सर ठीक अमेया के सामने ले आयी… जैसे कोई इंसान अपने सिर को हिलाकर बच्चे को हंसाने की कोशिश करता है ठीक वैसे ही चहकिली कर रही थी। तभी एक बार फिर अमेया की किलकारी सबने सुनी। चहकीली तो खुशी से एक बार फिर हवा में छलांग लगाकर छप से पानी ने गिड़ी।
चहकीली अपने छोटे 3–4 फिट के पंख को खोलती अपने सिर से इशारा करने लगी। किसी को समझ में नहीं आया। उसने एक बार फिर अपना सिर हिलाकर इशारा किया लेकिन किसी को कुछ समझ में ही नही आया। तब मटुका अपने सिर से चारो को धकेला... "अच्छा चाहकिली हम सबको अपने ऊपर बैठने कह रही है।"…
आर्यमणि, चहकिली की खुशी को देखते सवार हो गया। उसके साथ बाकी सब लोग भी सवार हो गये। जैसे ही वो लोग सवार हुये, चहकिली ने अपने पंख में सबको मानो लॉक कर दिया हो। रूही ने अमेया को चहकिली के ऊपर रख दी। इस वक्त जैसे कोई सांप सीधा रहता है चाहकिली भी ठीक वैसे ही थी। जैसे ही उसने अपने पंख पर अमेया को महसूस की अपना गर्दन मोड़कर पीछे करती बड़े प्यार से देखने लगी और पंख से उसे दुलार करने लगी।
आर्यमणि:– चहकिली अब चहकना मत वरना हमारा कचूमर बन जायेगा...
चहकिली बड़ा सा मुंह खोलकर हंसती हुई महासागर के ओर चल दी। रूही, इवान और अलबेली का तो कलेजा धक–धक करने लगा। आर्यमणि उन्हे हौसला देते बस शांत रहने का इशारा किया और ये गोता खाकर सभी पानी के अंदर... रूही पूरी तरह से परेशान होकर छटपटाने लगी। वह अपनी बच्ची को देखने लगी.… "तुमलोग कितना परेशान हो रहे... मेरी बहना को देखो कैसे हंस रही है।"…
रूही, अलबेली और इवान, यह आवाज सुनकर चौंक गये। उन्हे लग रहा था की उनका दम घुट जायेगा, लेकिन मुंह और नाक से घुसता हुआ पानी कान के पीछे से निकल रहा था और वहीं से श्वांस भी ले रहे थे। तीनो मुंह खोलकर कुछ बोलने की कोशिश कर रहे थे लेकिन किसी की आवाज नही निकल रही थी... "अरे शांत हो जाओ और आर्यमणि चाचू से पूछो कैसे बात करना है।"..
रूही, अलबेली और इवान, यह आवाज सुनकर चौंक गये। उन्हे लग रहा था की उनका दम घुट जायेगा, लेकिन मुंह और नाक से घुसता हुआ पानी कान के पीछे से निकल रहा था और वहीं से श्वांस भी ले रहे थे। तीनो मुंह खोलकर कुछ बोलने की कोशिश कर रहे थे लेकिन किसी की आवाज नही निकल रही थी... "अरे शांत हो जाओ और आर्यमणि चाचू से पूछो कैसे बात करना है।"..
तीनो ही आर्यमणि के ओर देखकर फिर से मुंह खोले और हाथ से सवालिया इशारा करने लगे... "अरे जो भी कहना है अपने मन में कहो... पानी में ऐसे ही बात होगी। और ये आवाज चहकिली की है। इसके दर्द के साथ हमने इसकी भाषा को भी अपने अंदर समा लिया था।"
रूही:– चहकिली पानी में मेरी बच्ची को मत रखो। अभी वो मात्र 7 दिन की ही तो है...
चहकिली:– अरे वो बड़बोली महाती ने आप सबको अब ठीक वैसा प्राणी बना दिया जैसा हम सब है। समझिए अब आप सब भी पानी के इंसान हुये। अब भला मछली के बच्चे को पानी से कैसा खतरा होगा...
रूही:– लेकिन मेरी अमेया..
चहकिली:– मतलब मैं अपनी प्यारी बहन को तकलीफ पहुंचाऊंगी... ये तो मेरी प्यारी है... आप देखो तो कितनी खुश है वो... उसकी चहकती किलकारी मेरे कानो में आ रही है... आप सब भी शांत रहो तो सुन सकते है..
सभी शांत हो गये। और जब शांत हुए तब वो सब भी अमेया की आवाज सुन सकते थे। सबके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। सभी अमेया को ही देख रहे थे।
आर्यमणि:– चहकिली हम जा कहां रहे हैं?
चहकिली:– बहुत लंबा सफर होने वाला है इसलिए बस अपने आस पास के मनमोहक नजरों का मजा लीजिए और ये हम आ गये है शार्क की बस्ती में...
"शार्क"… ”शार्क”… ”शार्क”… रूही, अलबेली, इवान तीनो एक साथ चौंकते हुए कहने लगे...
आर्यमणि:– इनसे हमें कोई खतरा अलबेली...
चहकिली:– आप भूल रहे है कि आप लोग एक सोधक के साथ है। आपको विजयदर्थ और उसकी सेना से खतरा नही, फिर तो उनके सामने इनका कोई वजूद ही नही। आप खुदको पानी का इंसान मानिए.. जो आप वहां ऊपर कर सकते है वही यहां भी... इसलिए चिंता को मरिए गोली...
अलबेली:– चहकिली, विजयदर्थ भी जब तुम्हारा कुछ नही बिगाड सकता फिर तुम्हारी प्रजाति आज खतरे में क्यों है...
चहकिली:– मैं तो बच्ची हूं.. अभी तो मेरा पहला चक्र का शुरवात ही हुआ है, इसलिए इस विषय पर कुछ कह नही सकते। वैसे भी मैं सिर्फ आप लोगों से ही बात कर पा रही हूं, यहां के मानव से तो बात भी नहीं होता। अभी यहां रुक कर शार्क को देखना है क्या?
अलबेली:– देख ही रही हूं... और देख कर फट भी रही है...
चहकिली:– रुको मैं इनकी फाड़ती हूं...
अपनी बात कहती चाहकील ने एक तेज आवाज लगाई... इस बार वाकई चहकिली ने अपना मुंह खोला था। आवाज तो कुछ नही आयी, लेकिन पानी में ऐसा तरंग उत्पन्न हुआ कि सभी शार्क दुबक गई। चहकिली इधर लहराती, उधर बलखाती पानी के अंदर काफी तेजी से चल रही थी।
चहकिली:– आप सब अब घुसने जा रहे हैं बच्चों के शहर..
"बच्चों के शहर"… सबने लगभग एक साथ कहा..
चहकिली:– जी हां सही सुना, बच्चों के शहर... यहां के जीव इतने छोटे ऊपर से इतने पारदर्शी होते है कि दिखे ही न। एक क्या जब ये 100 की झुंड में रहते हैं तो भी नही दिखते। केवल जब ये लोग अपना मुंह खोलते हैं, तभी दिखते है।
आर्यमणि:– मुंह खोलने से दिख जाते है।
चहकिली:– अरे इतने सवाल क्यों पूछ रहे, पहुंच तो गये उनके शहर। खुद ही देख लो.…
अलबेली:– हां लेकिन यहां क्या देखना है??? कुछ दिख रहा है... क्यायायायायाया..
"अमेयायायायायाया…."… रूही की जोरदार चींख , जो मुंह से आवाज बनकर तो नही निकला, लेकिन उसकी प्रतिक्रिया ही कुछ ऐसी थी.…
आर्यमणि तो रूही से भी ज्यादा व्याकुल... उसने अपना पंजा ठीक वैसा ही रखा, जैसा भूमि के अंदर घुसकर भूमि से जड़ों के रेशों को निकालने के लिये करता था... हुआ ये कि जैसे ही ये लोग बच्चों के शहर पहुंचे, ठीक उसी वक्त अमेया, चहकिली के पंख से छूट गई और बड़ी तेजी से वो तैरती हुई कहीं गायब हो गयी.…
सबकी चींख एक साथ निकल गयी। और इधर आर्यमणि तो बौखलाकर जैसे पानी को कमांड देने की कोशिश कर रहा हो। हालांकि आर्यमणि के ऐसा करने से कुछ हुआ तो नही सिवाय पानी में कुछ क्रिस्टल जैसा पैदा होने के, लेकिन फिर भी आर्यमणि कोशिश कर रहा था। अभी सदमे से उबर नहीं पाए थे, अब सब के सब हैरानी से आश्चर्य में पड़े हुए थे...
अमेया, एक पल बाएं तो अगले पल पल गायब। नजर घुमाकर देखे तो कब वो बाएं से दाएं पहुंची, कोई इल्म नहीं। हां लेकिन सब इसलिए शांत थे, क्योंकि अमेया की किलकारी उन सबके मस्तिष्क में गूंज रही थी। ऐसी प्यारी हंसी की सबका मन मोह रही थी।
रूही:– चहकिली जान निकाल दिया तुमने। ऐसा कोई करता है क्या?
चहकिली:– माफ कर दो मुझे। ये नन्हे जीव बड़े शरारती हैं। इनपर किसी का जोड़ नही चलता। मेरे पंख खोलकर अमेया को ले गये। वैसे चिंता जैसी बात होती तो क्या मैं इस ओर अमेया को लेकर आती?
आर्यमणि:– अब बहुत हुआ चहकिली, उन्हे कहो अभी मेरी बच्ची को यहां लेकर आये...
चहकिली:– वो आपको सुन सकते है।
आर्यमणि:– कौन?
तभी सामने सिल्वर रंग के करोड़ों दांत चमकने लगे। सबने जब गौर से देखा तब पाया की धुएं के रंग के कोई बहुत ही छोटा जीव है, जो दिखने में हु–बहु उजले रंग का घोस्ट इमोजी की तरह दिख रहा था। एक इंच का पूरा आकार। नीचे छोटा सा पूंछ और ऊपर का बदन गोल आकार का। और एक इंच के आकार वाले छोटे से जीव के मुंह में ऊपर और नीचे आधे इंच के दांत रहे होंगे। दिखने में बिलकुल चांदी के रंग का और चमकता हुआ। मुंह में करीब 30 दांत होंगे जो बिलकुल नुकीले और धारदार थे। दांत इतने नुकीले और धारदार थे की मोटे से मोटे मेटल के परत को फाड़ कर रख दे।
हवा में करोड़ों ऐसे दांत एक साथ ऊपर से लेकर नीचे तक चमक रहे थे। उन चमकते दांत के ठीक मध्य से उन जीवों का 1000 का झुंड अमेया को उन तक पहुंचा रहा था। सभी कोई जितने हैरान उतने ही ज्यादा प्रसन्न भी थे। अमेया के प्रति इन छोटे जीव का प्रेम देखकर सभी खुश हो गये। उस माहोल में इकलौता आर्यमणि ही था जिनसे ये छोटे पिद्दी जैसे जीव बात कर रहे थे। आर्यमणि उनकी बात समझ भी रहा था और सबको समझा भी रहा था।
चलने से पहले आर्यमणि और उसके पैक ने उन सब जीवों को एक साथ हील किया। मेटल टूट के शारीरिक जितने भी दर्द थे उन्हें महसूस किया। और जब वहां से इनका कारवां आगे बढ़ने लगा तब आर्यमणि इन्हे "मेटल टूथ" नाम देता चला।
महासागर के अंदर एक अलग ही दुनिया बसती थी। यहां रंग बिरंगे मछलियों और अन्य जलीय जीव जिनके बारे में पढ़ते हैं, उनके अलावा भी कई सारी दुर्लभ प्रजातियां थी, जिनका इल्म पृथ्वी पर रहने वाले किसी भी प्रकार के शोधकर्ता के पास नही था। चहकिली कई प्रकार के जीवों के बस्ती से गुजरी।… फिर वो 6 पाऊं वाले स्तनपाई जीव हो जो दिखने में चींटी की तरह थे, लेकिन उनका आकार हाथी जितना बड़ा था। या फिर तल के नीचे घोंसला बनाकर रहने वाले सूंढ वाले जीव हो, जिनका शरीर तो नही दिखता लेकिन तल के नीचे से गोल गड्ढा बनाकर अपने सूंढ जरूर बाहर निकले रहते थे।
भ्रमण करते हुये ये लोग पहुंच चुके थे, पाताल लोक के दरवाजे पर। 5 फन वाला सांप का का विशाल देश, जो महासागर के अपने हिस्से से कहीं जाते ही नही थे और कोई इनके क्षेत्र में घुस जाए ऐसा संभव नही था। जैसा की चहकिली ने यात्रा के दौरान वर्णन किया। ऐसे अलौकिक शेषनागों के दरवाजे तक आकर भला उन्हे देखे बिना कैसे जा सकते थे।
शेषनाग की सीमा के अंदर तो नही जा सकते थे इसलिए सीमा पर ही खड़े होकर उन्हें देखने लगे। काफी रंग बिरंगे और मनमोहक जीव थे। आर्यमणि को उन्हे करीब से जानने की जिज्ञासा हुई। अनायास ही उसके कदम आगे बढ़ गये किंतु वह सीमा के अंदर प्रवेश करता, उस से पहले ही कई सारे 5 फन वाले नाग कतार लगाकर अपना फन फैला लिया। सभी एक कतार में अपने फन से ना का इशारा करते हुये आर्यमणि को अंदर आने से रोकने लगे...
रूही, आर्यमणि को खींचती हुई उसे पीछे हटने कही। वहीं अपनी दूसरी हथेली से सांप के ओर इशारा करती... "हम बस आपको देख रहे थे। आपके क्षेत्र में दखल अंदाजी करने का जरा भी इरादा नहीं था"…
इधर रूही जैसे ही अपना पंजा दिखाकर बात करने लगी, सांप अपने फन घुमाकर जैसे एक दूसरे को घूर रहे थे। अचानक ही उस माहोल में सांपों की अजीब सी फुंफकार गूंजने लगी। अलबेली और इवान, आर्यमणि और रूही को पीछे खिंचते... "चलो यहां से, ये जगह काफी खतरनाक लग रही"…
इवान अपनी बात समाप्त भी नही किया था इतने में ही दरवाजा घेरे सांपों ने बीच से ऐसे रास्ता खोला जैसे सबको अंदर बुला रहे हो। उफ्फ आंखों के आगे क्या हैरतंगेज नजारा था..... ऐसा लग रहा था जैसे कई किलोमीटर भूमि पर किसी ने खेती किया है। चारो ओर फसल लहलहा रही थी और ठीक मध्य से फसलों को काटकर एक छोटा सा रास्ता बना दिया गया था। यहां का नजारा भी ठीक ऐसा ही था। बस फसल की जगह सांप के फन लहरा रहे थे, जिनकी बिंदी जैसी नीली आंखें चमक रही थी...
रूही, इवान और अलबेली, तीनो ही आर्यमणि को देखने लगे। आर्यमणि मुस्कुराते हुए अपना पहला कदम आगे बढ़ाया। इस बार कोई रास्ता नही रोक रहा था। आर्यमणि अपने दाएं–बाएं फन फैलाए शेषनाग को देखते बढ़ रहा था और पीछे–पीछे उसका पूरा पैक... रास्ते के सबसे आखरी में काली वीराना खाली मैदान था, जिसके ठीक मध्य में कुछ चमक रहा था, पर उसे भेड़िए की नजर से भी देख पाना सम्भव नही था।
उस काले वीराने रण में ले जाने के लिये 7 फन वाला सांप आगे आया। ये बाकी 5 फन वाले सांपो से अलग था। सुनहरा रंग और उसका बदन इतना चमक रहा था कि आस–पास के तल को देखा जा सकता था। वह सांप आगे–आगे चला और उसके पीछे आर्यमणि और उसका पूरा पैक।
ठीक मध्य में जब वो पहुंचे, उन्हे एक मानव दिखा। उस मानव के नीचे का हिस्सा सांप के पूंछ जैसा था और कमर के ऊपर पेट से लेकर सिर तक, इंसानी रूप। अर्ध–शर्प अर्ध–इंसान दिखने वाला वो आदमी एक आसान पर विराजमान था। चेहरा पर तेज और होटों पर मुस्कान थी। वहीं उसके नाग वाला हिस्सा बिलकुल काले ग्रेनाइट पत्थर जैसा दिख रहा था, बिलकुल चमकता और शख्त… उनके आस पास, उन्ही की तरह अर्ध–शर्प अर्ध–इंसान दिखने वाली अप्सराएं थी।
वह आदमी अपना परिचय देते... "मेरा नाम नभीमन है। मै शेषनाग का वंशज हूं और सम्पूर्ण पाताल लोक का शासक, अपने राज्य में तुम्हारा स्वागत करता हूं।"…
आर्यमणि:– आप पाताल लोक के शासक है, फिर वो विजयदर्थ...
नभीमन:– विजय पूरे महासागर को देखता है और मैं पूरे पाताल लोक को...
अलबेली:– दोनो में अंतर क्या है महाराज?
नभीमन:– यहां रहकर खुद जान लो। मैं तुम सबको पाताल लोक में रहने का आमंत्रण देता हूं।
आर्यमणि:– देखिए नभीमन जी हम पृथ्वी पर ही अच्छे हैं।
नभीमन के पास खड़ी अप्सराएं फुफकार मारती, अपना आधा धर लहराकर अल्फा पैक के ठीक सामने। सभी का गुस्से से लाल चेहरा अल्फा पैक देख सकते थे.… "इन्हे नाम से पुकाड़ने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?"
नभीमन:– सेविकाओं पीछे आओ… न तो मैं इनका राजा हूं और न ही ये मेरे अधीन है। माफ करना तुमलोग.. आम तौर पर ये सभी सुंदरियां शांत रहती है। खैर वो सब जाने दो और मुझे ये बताओ, तुम सब अपने जमीन से इतने नीचे कैसे आ गये...
रूही:– शोधक प्रजाति की एक बच्ची है, चहकिली... वही हमे घूमाने ले आयी…
नभीमन, अपने दोनो हाथ से नमन करते... "वो गहरे महासागर के जीव नही बल्कि ये लोग तो मां समान है। सम्पूर्ण जलीय जीव के पोषणकर्ता... गहरे तल के कचरे को अपने अंदर समाकर, पोषक तत्व बदले में देने वाली.. कोई संशय नहीं की वो तुम्हे यहां क्यों लेकर आयी…
आर्यमणि:– क्यों लेकर आयी…
तभी कहीं बहुत दूर से चहकिली की आवाज आयी… "आप हमारे महाराज का थोड़ा दर्द ले लीजिए... वह बहुत पीड़ा में है।"…
रूही:– मुझे लगा की आपने अपने दिव्य दृष्टि से मुझमें कुछ खास देखा होगा, लेकिन यहां तो चहकिली ने चुगली कर दी थी। वैसे क्या आपके पास कोई ऐसी अलौकिक शक्ति नही जिस से आप स्वयं को ठीक कर सके?
इवान:– हां आपके पास तो बहुत सी दिव्य शक्तियां होनी चाहिए...
नभीमन:– दिव्य शक्ति !!!! हाहाहाहाहा… न जाने कितने ही इंसानों ने ऐसी शक्तियों के तलाश में कितनी जिंदगियां तबाह कर डाली। पाताल के गर्भ की कई शक्तियों को तो तपस्वी मनुष्य अपने साथ ले गये। और अंत में क्या हुआ... स्वयं ईश्वर को अवतार लेकर उन शक्तियों को नष्ट करना पड़ा... हम तो अकींचन साधु है, जिसके पास अब कुछ नही बचा। हां थोड़ी बहुत मणि की शक्ति है, लेकिन अब वो भी धूमिल होती जा रही है। मणि अब इतना कमजोर हो गया है कि मैं अब हमेशा पीड़ा में ही रहता हूं...
आर्यमणि:– चहकिली मुझे यहां तक लेकर आयी है, इसकी जरूर कोई वजह रही होगी। मैं आपकी कैसे मदद कर सकता हूं?
नभीमन:– कई हजार वर्ष पूर्व मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी थी। मैं ताकत की चाहत में भटक गया था और गुरु वशिष्ठ के रक्षक मणि को उनके गांव के गर्भ गृह से चुरा लाया। रक्षक मणि ने मुझे अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में मदद तो की, लेकिन मैं कभी चैन से जी नही पाया। मैं चाहता हूं वो मणि तुम उसके सही जगह तक पहुंचा दो...
आर्यमणि:– और वो सही जगह कहां है?..
नभीमन:– चहकिली को पता है...
आर्यमणि:– हम्मम... ठीक है। यादि आपकी पीड़ा इस से दूर होती है तो मैं तैयार हूं...
आर्यमणि की बात सुनकर नभीमन का चेहरे पर मुस्कान फैल गई। एक विजयि कुटिल मुस्कान जो नभीमन के चेहरे पर साफ झलक रही थी। नभीमन की हंसी तब तक बनी रही जबतक एक छोटी सी पोटली लिये, उसकी एक दासी आर्यमणि के पास नही पहुंच गयी।
वह दासी आर्यमणि के ओर पोटली बढ़ा दी और नभीमन किसी प्राचीन भाषा में एक मंत्र बोलकर, आर्यमणि को 5 बार उस मंत्र को पहले दोहराने कहा और बाद में वो पोटली लेने.… आर्यमणि भी 5 बार उस मंत्र को दोहराकर पोटली जैसे ही अपने हाथ में लिया, चारो ओर से उसे फन फैलाए सापों ने घेर लिया।
Nagloke ke bi darshan karva diye tane to nainu bhaya.chal bhai jab tak tum apne agyaatwaas mai ho tab tak pure update padh leta hu.akhiri update pahuchne tak to.wapis aa hi jaoge
Mind-blowing update bhai
वह दासी आर्यमणि के ओर पोटली बढ़ा दी और नभीमन किसी प्राचीन भाषा में एक मंत्र बोलकर, आर्यमणि को 5 बार उस मंत्र को पहले दोहराने कहा और बाद में वो पोटली लेने.… आर्यमणि भी 5 बार उस मंत्र को दोहराकर पोटली जैसे ही अपने हाथ में लिया, चारो ओर से उसे फन फैलाए सापों ने घेर लिया।
आर्यमणि:– हे शेषनाग वंशज नभीमन, हमे इस तरह से घेरने का मतलब।
नभीमन:– क्षमा करना, मैं एक और छल तो नही करना चाहता था, किंतु मैं विवश हूं। पाताल लोक की अनंत जिंदगी का तुम सब आनंद लो। मै न जाने कितने वर्षों से यहां के बाहर झांका तक नही परंतु श्राप का तुम्हारे ऊपर स्थानांतरण से अब मैं यहां की कैद से मुक्त हूं।
आर्यमणि:– तो क्या आप अपनी मुक्ति के लिये हम चारो के साथ अन्याय कर देंगे?
नभीमन:– एक बार मुझे ब्रह्मांड घूमकर वापस आने दो फिर मैं तुम्हे श्राप मुक्त कर दूंगा। मै वचन देता हूं।
आर्यमणि:– तुम्हारे भूत काल से लेकर वर्तमान तक, इन सब की जम्मेदारी मैं उठता हूं, यही अर्थ था ना उस 5 बार बोले मंत्र का...
रक्षक पत्थर लेने से पहले जो मंत्र आर्यमणि ने कहा था, उसी को रूपांतरित करके सुना दिया। जैसे ही आर्यमणि ने अपने शब्द कहे, नभीमन की आंखें फैल गई। वह मूर्छित होकर गिड़ गया। जैसे ही नभीमन मूर्छित होकर गिड़ा, अल्फा पैक के ऊपर चारो ओर से तरह–तरह के वार शुरू हो गये। कोई शर्प अग्नि छोड़ रहा था तो कोई विषैला जहर। हमला करने के अनगिनत तरीके वो शार्प जीव दिखा रहे थे, लेकिन कोई भी वार अल्फा पैक को छू नही पा रही थी।
सभी शर्प जीव आश्चर्य में थे। इतने भीषण हमले से तो एक पूरी क्षेत्र की आबादी ऐसे गायब होती जैसे पहले कभी अस्तित्व ही नही था, लेकिन ये चारो अपनी जगह खड़े थे। ये कमाल आर्यमणि का नही बल्कि नाभिमन का था। उसने अपनी जिम्मेदारी और साथ में रक्षक पत्थर दोनो आर्यमणि को सौंप चुका था। अब न तो नाभिमन पाताल लोक का राजा रह गया था और न ही उसका चोरी वाला रक्षक पत्थर उसके पास रहा। खुद की झोली खाली करके नाभिमन ने आर्यमणि को वह शक्तियां दे चुका था जिस वजह से पाताल लोक के हमले उसपर बेअसर था।
आर्यमणि अट्टहास से परिपूर्ण हंसी हंसते.… “तुम सब मूर्ख हो क्या? अब से मैं तुम्हारा राजा हूं। अभी–अभी तो नभीमन अपनी सारी जिम्मेदारी मुझ पर सौंप कर पता न बेहोश हुआ या मर गया।
नभीमन का भाई और पाताल लोक का सेनापति अभिमन.... “तू छलिया साधक हमारा राजा कभी नहीं बन सकता। तुझे हम अपनी सिद्धियों की शक्तियों से नही हरा सकते तो क्या, लेकिन भूल मत तू हमारे क्षेत्र में है और हम तुझे बाहुबल से परास्त कर देंगे।”
अभीमन अपनी बात कहकर जैसे ही हुंकार भरा, चारो सांपों के नीचे ढक गये। तभी उस माहोल में तेज गरज होने लगी। यह गरज इतनी ऊंची थी कि पूरा पाताल लोक दहल गया। और जब प्योर अल्फा के पैक ने टॉक्सिक रेंगते पंजों से हमला शुरू किया, तब उन जहरीले सपों को भी जहर दे रहे थे। वुल्फ पैक के पंजे, 5 फन वाले नाग के शरीर पर जहां भी लगता उस जगह पर पंजों के निशान छप जाते और वह सांप बेहोश होकर नीचे।
हर गुजरते पल के साथ अभीमन को अपने बाहुबल प्रयोग करने का अफसोस सा होने लगा। हजारों की झुंड में सांप कूदकर आते और उतनी ही तेजी के साथ पंजों का शिकार हो जाते। तभी पाताल लोक की भूमि पर रूही ने अपना पूरा पंजा ही थप से मार दिया। अनंत जड़ों के रेशे एक साथ निकले जो सांपों को इस कदर जकड़े की उनके प्राण हलख से बाहर आने को बेताब हो गये.…
नभीमन वहां किसी तरस उठ खड़ा हुआ और आर्यमणि के सामने हाथ जोड़ते... "सब रोक दीजिए। ये लोग बस अपने राजा को मूर्छित देख आवेश में आ गये थे।”
माहोल बिलकुल शांत हो गया था। जो शांप जहां थे, अपनी जगह पर रेशे में लिपटे थे। आर्यमणि, नभीमन के लिये जड़ों का आसन बनाया और दोनो सामने बैठ गये।.... “हे साधक आपको मेरे विषय में सब पहले से ज्ञात था।”...
आर्यमणि:– मैं सात्विक आश्रम के दोषियों के बारे में पढ़ रहा था और वहां सबसे पहला नाम तुम्हारा ही था।
नभीमन:– “हां, तुमने सही पढ़ा था। हजारों वर्ष पूर्व की ये कहानी है। मै अपने जवानी के दिनो मे था और नई–नई ताजपोशी हुई थी। पूरे ब्रह्मांड पर विजय पाने की इच्छा से निकला था। मुझे शक्ति का केंद्र स्थापित करना था। इसलिए हमने सबसे पहले उस ग्रह पर अपना साम्राज्य फैलाना ज्यादा उत्तम समझा जहां से हम अपनी शक्ति, तादात और नई सिद्धियों को बढ़ा सकते थे।”
“शक्ति स्वरूप एक ग्रह मिला नाम था जोरेन। ज़ोरेन ग्रह पर सभी ग्रहों के मिलन का प्रभाव सबसे अत्यधिक था। उस ग्रह पर ग्रहों के मिलन का प्रभाव इतना ज्यादा था कि वहां पैदा लेने वाला हर जीव अपनी इच्छा अनुसार अपने कोशिकाओं को पुनर्वयवस्थित कर किसी का भी आकार ले सकते थे। मेरा ये अर्ध–शर्प, अर्ध–इंसानी रूप वहीं की देन थी। ज़ोरेन ग्रह, पर जब हम पहुंचे तब वहां कोई सभ्यता ही नही थी। कुछ भटकते जीव थे जो किसी भी आकार के बन जाते थे।”
“वहां मुझे कोई युद्ध ही नही करना पड़ा। आराम से मैने वहां अपना समुदाय बसाया, नाम था निलभूत। बड़ा से क्षेत्र में भूमिगत शहर बसाया और शासन को चलाने के लिये एक महल। आखरी जहर, को वहां के गर्भ गृह में पहुंचाया, ताकि वह सबसे मजबूत शक्ति खंड हो, और वहीं से मैं पूरी शासन व्यवस्था देख सकूं। आखरी जहर के बारे में शायद तुम पहली बार सुन रहे होगे क्योंकि ये इतनी गोपनीय थी कि आज तक किसी महान महर्षि तक को इसका ज्ञान न हुआ। आखरी जहर का एक कतरा काफी है, मिलों फैले 10 लाख लोगों को मारने के लिये।”
“महल में शक्ति खंड का निर्माण के साथ ही मैंने अपने तीनो नागदंश को भी स्थापित किया। हमारे यहां जब राजा की ताजपोशी होते है तब उसे कुल 4 नागदंश मिलते है। बिना 4 नागदंश के कोई राजा नही बन सकता, यही नियम है। प्रत्येक नागदंश में बराबर शक्तियां होती है। एक नागदश राजा का, दूसरा नागदंश राजा के मुख्य सलाहकार का। एक नगदंश सेनापति का और एक नगदंश रानी का। चूंकि उस वक्त मेरी कोई रानी नहीं थी। न ही किसी को मैने मुख्य सलाहकार और सेनापति नियुक्त किया था। इसलिए तीनो नागदंश वहां स्थापित करने के बाद गर्भ गृह के ऊपर देवी का मंदिर और अंधेरा कमरा बनवाया ताकि मै पूरा केंद्र स्थापित कर सकूं। मै पूर्ण केंद्र की स्थापना कर चुका था और यहां से मुझे अपनी विजयी यात्रा की शुरवात करनी थी।”
“चूंकि मै पाताल लोक से काफी दूर निकल आया था और मणि की शक्ति कमजोर पड़ने के कारण युद्ध के लिये नही जा सकता था, इसलिए वापस पाताल लोक आना पड़ा। पाताल लोक की मणि ही इकलौती ऐसी चीज थी जिसे विस्थापित नही किया जा सकता था। किंतु हमारे खोजियों ने इसका भी कारगर उपाय ढूंढ निकाला था, रक्षक पत्थर। लाल रंग का यह रक्षक पत्थर अनोखा था। इस रक्षक पत्थर में मणि की शक्ति को कैद करके ब्रह्मांड के किसी भी कोने में ले जाया जा सकता था।”
“फिर क्या था, बल और अलौकिक सिद्धियों के दम पर मैने सात्त्विक गांव के गर्भ गृह से, रक्षक पत्थर को निकाल लाया। मुझे नही पता था कि वहां रक्षक पत्थर में जीवन के अनुकूल जीने योग्य जलवायु को संरक्षित करके रखा गया था, जो उस गांव में जीने का अनुकूल माहौल देता था। मै महर्षि गुरु वशिष्ठ के नाक के नीचे से पत्थर उठा तो लाया, किंतु पीछे ये देखना भूल गया की एक ही पल में उस गांव का वातावरण असीम ठंड वाला हो चुका था।”
“जबतक कुछ किया जाता वहां ठंड से 30 बच्चों की मृत्यु हो चुकी थी। महर्षि वशिष्ठ अत्यंत क्रोधित थे। वह पाताल लोक तक आये। न तो मुझे कुछ कहे न ही मृत्यु दण्ड दिया। बस पूरे नाग लोग को “कर्तव्य निर्वहन क्षेत्र विशेष” श्राप देकर चले गये। न तो वापस लौटे न ही किसी प्रकार का कोई समय अवधि दिया। बस तब से हम सब पाताल लोक में कैद होकर रह गये।”
“पाताल लोक के बड़े से भू–भाग पर अनंत अलौकिक जीव बसते थे। वह अलौकिक जीव को पालने हेतु बहुत से ऋषि अपने अनुयायियों को वहां भेजा करते थे। मैने पूरा भू–भाग पाताल लोक में विलीन करके केवल उतना ही क्षेत्र ऊपर रहने दिया जिसमे जलीय जीव प्रजनन कर सके, लेकिन फिर भी कोई ऋषि पाताल लोक के दरवाजे पर नही पहुंचा।”
“मेरी विडंबना तो देखो। 4 दंश जब तक मैं अपने उत्तराधिकारी को न दे दूं, तब तक कोई दूसरा राजा नही बन सकता। और मैं तो 3 दंश दूर ग्रह पर छोड़ आया जहां से मैं क्या कोई भी नाग वापस नहीं ला सकता। मैने गलती की और मेरी गलती की सजा पूरा नाग लोक उठा रहा है। मुझ जैसे पापी राजा से इनको छुटकारा नही मिल रहा।”
“मैने वैसे छल से तुम्हे फसाया जरूर था पर मैं यहां से सीधा ज़ोरेन की सीमा में जाता और अपना नाग दंश वापस लेकर चला आता। फिर मैं नए उत्तराधिकारी के हाथ ने ये पूरा पाताल लोक सौंपकर कुछ वर्ष तक अलौकिक जीव की सेवा करने के उपरांत इच्छा मृत्यु ले लेता।
आर्यमणि:– मैं तुम्हारा श्राप तो मिटा नहीं सकता, क्योंकि महर्षि वशिष्ठ ने 8 जिंदगी को साक्षी रखकर वह श्राप दिया था, जिनमे से अब एक भी जीवित नहीं है। इसलिए कोई भी नाग अब नाग लोक नही छोड़ सकता। लेकिन हां 3 दिन के सिद्धि योजन से मैं उस नियम में फेर बदल जरूर कर सकता हूं जो अगले राजा बनने में बाधक है।
नभीमन:– क्या ऐसा कोई उपाय है?
आर्यमणि:– हां ऐसा एक उपाय है भी और जो सबसे जरूर चीज चाहिए होती है नाग मणि, वह भी हमारे पास है।
नभीमन:– तो क्या कृपाण की नागमणि सात्त्विक आश्रम के पास है?
आर्यमणि:– ये कृपाण कौन है...
नाभिम:– इक्छाधारी नाग का प्रथम साधक। वह इंसान जिसने साधना से ईश्वर को प्रसन्न किया और बदले में उसे इच्छाधारी नाग का वर मिला था। वैसे तो हर इच्छाधारी नाग के पास अपना मणि होती है, किंतु वह काल्पनिक मणि होता है जो इक्छाधारी नाग के विघटन के साथ ही समाप्त हो जाता है। यदि सात्त्विक आश्रम के पास मणि है तो वह कृपाण की ही मणि होगी।
आर्यमणि:– ऐसा क्यों? किसी दूसरे इक्छाधारी नाग की मणि क्यों नही हो सकती?
नाभिमन का भाई अभिमन.... “भैया इसे कुछ मत बताना, जब तक की ये हमे न बता दे की आपका श्राप इसपर स्थानांतरित क्यों नही हुआ?
आर्यमणि:– क्यों वो श्राप मुझ पर स्थानांतरित करने पर लगे हो। तुम में से कोई भी ये श्राप लेलो....
नाभीमन:– पूरा नाग लोक की प्रजाति ही शापित है, तो किसका श्राप किस पर स्थानांतरित कर दूं। और अभिमन तुम अब भी नही समझे। ये सात्विक आश्रम के गुरु है। सात्विक आश्रम की कोई संपत्ति जब वापस से उनके गुरु के हाथ में गयी, तो वो चोरी कैसे हुई। इसलिए श्राप इन पर स्थानांतरित नही हुआ।
अभिमन:– माफ करना गुरुदेव। हम सब अपनी व्यथा में एक बार फिर भूल कर गये। हमे समझना चाहिए था इस दरवाजे तक कोई मामूली इंसान थोड़े ना आ सकता है। बस नर–भेड़िया ने हमे दुविधा में डाल दिया था। हमे लगा एक भेड़िया कहां से सिद्ध प्राप्त करेगा। और यदि सिद्ध प्राप्त भी हो तो कहां सात्विक आश्रम से जुड़ा होगा।
आर्यमणि:– अब मेरे भी सवाल का जवाब दे दो। किसी दूसरे इक्छाधारी नाग की मणि क्यों नही हो सकती...
नभीमन:– क्योंकि मणि के बिना इक्छाधारी नाग इक्छाधरी नही रह जायेगा। 2 दिन उन्हे नागमणि नही मिला, तब वो या तो नाग बन जाते हैं या इंसान। दोनो ही सूरत में वो इक्छाधारी नही रहते और मणि विलुप्त।
आर्यमणि:– और वो कृपाण की मणि।
नभीमन:– वह मणि पाताल लोक के मणि जैसा ही है। बस वह बहुत छोटे प्रारूप में है और यहां उस मणि का पूर्ण विकसित रूप है। गुरुदेव उस मणि का राज न खुलने पाए वरना पृथ्वी पर कई मुर्दे उस मणि को लेने के लिये जमीन से बाहर आ जायेंगे। और वह मणि ऐसा है की मुर्दों को भी मौत दे दे।
आर्यमणि:– ये बात मैं ध्यान रखूंगा। वैसे हमने बहुत सी जानकारी साझा कर ली। अब उस काम को भी कर ले, जिस से पाताल लोक अपना नया राजा देखेगा।
नभीमन:– हां वो काम आप कीजिए जबतक एक जिज्ञासा जो मेरे दरवाजे पर खड़ी है, क्या मैं आपके साथियों के साथ उसे भी पाताल लोक की सैर करवा दूं।
आर्यमणि, दूर नजर दिया। पता चला पाताल लोक का दरवाजा हर जगह से दिखता है। आर्यमणि इसके जवाब में रूही के ओर देखा। रूही मुस्कुराकर हां में जवाब दी और चाहकीली को अंदर बुलाया गया। राजा नाभिमन ने भी जब पहली बार अमेया को गोद में लिया, उन्होंने लगभग एक घंटे तक अपनी आंखें ही नही खोली, और जब आंखें खोली तब चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी।
नभीमन:– इस शांति वाहक देवीतुल्य का नाम क्या है।
रूही:– अमेया...
नभिमन:– मेरे हजारों वर्षों की अशांति को इसने थोड़े से समय में ही दूर कर दिया। मृत्यु के उपरांत जो सुकून प्राप्त होती है, ठीक वैसा ही सुकून था। अभिमन एक बार तुम भी देवीतुल्य अमेय को हृदय से लगाकर देखो...
अपने भाई के कहने पर अभिमन ने भी अमेया को सीने से लगाया। वह भी आश्चर्य में था। उसने वो सुकून को पाया जो उसे जीवन में पहले कभी नहीं मिली थी और न ही कभी ऐसे सुकून की कल्पना उसने किया था। फिर तो सभी शेषनाग एक श्रेणी में बंध गये और जैसे ही नभीमन ने अपनी प्रजा में एक साथ सकून को बांटा, पूरी प्रजा ही गदगद हो चुकी थी।
बड़े धूम से और बड़ा सा काफिला अल्फा पैक को पाताल लोक घूमाने निकला। पौराणिक अलौकिक जीव जैसे बारासिंघा, गरुड़, नील गाय, एकश्रिंगी श्वेत अश्व, कामधेनु गाय, ऐरावत हाथी, अनोखे पंछियों को देखने का मिला। वहीं पाताल लोक के एक हिस्से से गुजरते हुये सबको भयानक काल जीव भी दिख रहे थे। सोच से परे उनका आकार और देखने में उतने ही डरावने। लगभग 40 ऐसी भीषणकारी प्रजाति पाताल लोक में निवास करती थी, जिसे उग्र देख प्राण वैसे ही छूट जाये।
3 दिनो तक आर्यमणि अपने योजन में लगा रहा और इन 3 दिनो में अल्फा पैक ने पाताल लोक का पूरा लुफ्त उठाया। लौटते वक्त तो अलबेली ने पूछ भी लिया की क्या हमने पाताल लोक पूरा घूम लिया? इसपर नभीमन ने हंसते हुये बताया... “पाताल लोक अनंत है, इसकी कोई सीमा नहीं। यह अलौकिक रूप से ब्रह्मांड के कई हिस्सों से जुड़ा है, लेकिन यह पूरा भू–भाग सदैव धरातल के नीचे होता है और इसके कुल 6 दरवाजे है, जो 6 अलग–अलग हिस्सों में है। हर 6 दरवाजे पर हजारों किलोमीटर का ऊपरी भू–भाग होता है, जहां पाताल लोक के जीव अक्सर विचरते है। यहां आम या खास किसी के भी आने की अनुमति नही, केवल सिद्ध प्राप्त ही इन क्षेत्रों में आ सकते है।”
जानकारी पाकर अलबेली के साथ–साथ पूरा अल्फा पैक चकित हो गया। खैर 3 दिन बाद आर्यमणि पूर्ण योजन कर चुका था और बाकी सब भी लौट आये। जाने से पहले अभिमन ने अमेया को गुप्त वर दिया और कहने लगे... “अमेया मेरी स्वघोषित पुत्री है, जिसे जल और पाताल लोक में कोई छू नही सकता।”... इसी घोषणा के साथ अल्फा पैक के सभी सदस्यों को नाभीमन और उसकी असंख्य नाग ने अपनी स्वेक्षा अपना लोग माना, और भेंट स्वरूप अपनी छवि सबने साझा किया। छोटी से भेंट थी जिसके चलते अब अल्फा पैक पाताल लोक कभी भी आ सकते थे। इस भेंट को स्वीकार कर अल्फा पैक आगे बढ़ा।
आर्यमणि के पाताल लोक छोड़ने से पहले नभिमन ने वादा किया की वह अपने पूरे समुदाय के साथ योजन पर बैठेगा, और चाहे जितने दिन लग जाये, टापू का पूरा भू भाग ऊपर कर देगा। वहां बसने वाले जीव फिर से अपनी जमीन पर होंगे न की पाताल में।
आर्यमणि धन्यवाद कहते हुये निकला। सभी ज्यों ही पाताल लोक के दरवाजे के बाहर आये, चहकिली शर्मिंदगी से अपना सर नीचे झुकाती... "मुझे सच में नही पता था कि महाराज आप लोगों को फसाने के लिये बुला रहे थे।"
रूही प्यार से चहकिली के बदन पर स्पर्श करती... "तुम क्यों उदास हुई, देखो अमेया भी बिलकुल शांत हो गयी"..
अलबेली:– तुम बहुत अच्छी हो चहकिली और अच्छे लोगो का फायदा अक्सर धूर्त लोग उठा लेते है। तुम अफसोस करना छोड़ दो...
थोड़ी बहुत बात चीत और ढेर सारा दिलासा देने के बाद, तब कही जाकर चहकिली चहकना शुरू की। महासागर की अनंत गहराई का सफर जारी रखते, ये लोग विजयदर्थ की राज्य सीमा में पहुंच गये। वुल्फ पैक प्रवेश द्वार पर खड़ा था और सामने का नजारा देख उनका मुंह खुला रह गया। दिमाग में एक ही बात आ रही थी, "क्या कोई विकसित देश यहां के 10% जितना भी विकसित है...
थोड़ी बहुत बातचीत और ढेर सारा दिलासा देने के बाद, तब कही जाकर चहकिली चहकना शुरू की। महासागर की अनंत गहराई का सफर जारी रखते, ये लोग विजयदर्थ की राज्य सीमा में पहुंच गये। वुल्फ पैक प्रवेश द्वार पर खड़ा था और सामने का नजारा देख उनका मुंह खुला रह गया। दिमाग में एक ही बात आ रही थी, "क्या कोई विकसित देश यहां के 10% जितना भी विकसित है...
दो पहाड़ों के बीच से ही भव्य प्रवेश द्वार बना दिया गया था। श्वेत रंग के दो पहाड़ पर पूरी हरी भरी वनस्पति के साथ कई रंग बिरंगे पुष्प लगे थे, जिनके ऊपर लाइटिंग का इतना सुंदर काम किया गया था कि मन प्रफुल्लित हो जाए।
प्रवेश द्वार के दोनो ओर कई सुरक्षाकर्मी अपने हाथ में चमकीले धातु के हथियार के साथ तैनात थे। आर्यमणि और उसका पैक प्रवेश द्वार का नजारा देख रहा था, इसी बीच दोनो विशाल पर्वत पर अल्फा पैक पैक की तस्वीर फ्लैश होने लगी। दोनो किनारे खड़े सुरक्षाकर्मी अपना सिर झुकाकर उसका स्वागत करने लगे। सामने से महाती अपने कुछ सखियों के साथ खुद प्रवेश द्वार पर पहुंची.…. "दुनिया के सबसे बड़ी हीलर फैमिली का हमारे राष्ट्र में स्वागत है। आप सब अपने कदम आगे बढ़ाए"…
जैसे ही महाती अपनी बात समाप्त कर आर्यमणि को साथ चलने का न्योता दी, उनके ऊपर पुष्प की बारिश होने लगी। ऐसा भव्य स्वागत था की चारो (आर्यमणि, रूही, इवान और अलबेली) का मन प्रफुल्लित हो उठा। कुछ दूर आगे चले होंगे की उनके लिये शानदार सवारी भी आ गयी। यह कोई हाईटेक एयरक्राफ्ट लग रहा था, जो कार से थोड़ा बड़ा था। पानी को काटकर तेजी से आगे बढ़ने के लिए शायद यह आकर दिया गया था। अलबेली और इवान दोनो एक साथ सवार होते.… "आप लोग मेहमान नवाजी का मजा लीजिए। हम दोनो यहां अकेले घूमेंगे"…
इतना कहकर अलबेली और इवान निकल गये। रूही और आर्यमणि भी एक साथ सवार हो गये। वहीं महाती के जिद करने पर अमेया को उसके साथ जाने दिया। आर्यमणि और रूही महासागर के इस देश को बड़े ध्यान से देख रहे थे। आधुनिकता और टेक्नोलॉजी के मामले में ये लोग पृथ्वी से 500 साल आगे होंगे। शहरों की व्यवस्था और इनकी तेज रफ्तार जिंदगी कमाल की थी। यहां तो इन लोगों ने पानी पर ही सड़क बना दिया था। ऐसा लग रहा था पानी में सीसे का सड़क तैर रहा हो।
सड़क किनारे लगे बाजार, भीड़ भाड़ वाला इलाका और इनकी ऊंची–ऊंची इमारतें और इन इमारतों की लाइटिंग.. ऐसा लग रहा था पानी के अंदर किसी स्वप्न नगरी में पहुंच गये थे। चारो ओर भ्रमण करते रात हो गयी थी। महाती ने बीच में ही अपना कारवां रोककर एक आलीशान घर में सबके रुकने का प्रबंध करवाया। इवान और अलबेली भी शहर के दूसरे हिस्से में थे, जिनकी जानकारी महाती को थी। उनके भी रुकने का उतना ही शानदार व्यवस्था किया गया था।
अगली सुबह तो शहर की पूरी भिड़ जैसे अल्फा पैक के दरवाजे पर खड़ी थी। भले ही आर्यमणि, रूही और अलबेली, इवान शहर के अलग–अलग हिस्सों में थे, किंतु दोनो ही जगहों पर लोगों का उतना ही हुजूम लगा था। कई सड़कें जाम थी और लोग अल्फा पैक से हील करने का आग्रह कर रहे थे। शायद एक प्रयोग को सफल होते हुये अल्फा पैक देखना चाहते थे, इसलिए ये भिड़ इकट्ठा हुई थी।
आर्यमणि, इवान और अलबेली से मन के भीतर के संवादों से संपर्क करते.... “क्या तुम्हारे पास भी लोगों का हुजूम है?”..
अलबेली:– दादा मैं 2 किलोमीटर ऊपर से देख रही हूं, ऐसा लगता है पूरा शहर ही हमारे पास आने के लिये व्याकुल है।
आर्यमणि:– एमुलेट का प्रयोग करो और जड़ों जितना दूर फैलाने का कमांड दे सकती हो दो...
उधर से अलबेली और इवान, इधर से आर्यमणि और रूही। चारो ने जब ध्यान लगाकर जड़ों में ढकना शुरू किया फिर 300 किलोमीटर के क्षेत्रफल में बसे पूरे शहर को ही जड़ों से ढककर, शहर के जर्रे–जर्रे को हील कर चुके थे। इतना टॉक्सिक सबने समेटा की हर किसी का बदन नीला पर चुका था।
लगभग आधा दिन लगा था। आधे दिन के बाद जो बड़े–बड़े बैनर में शहर के विभिन्न इलाकों की तस्वीर आ रही थी, हर कोई अल्फा पैक के लिये अपना सर झुका रहा था। शहर के लोगो ने अल्फा पैक के लिये भव्य मनोरंजन का भी प्रबंध करवाया। कारवां एक शहर से दूसरा और दूसरे शहर से तीसरे शहर पहुंचा और हर शहर की वही कहानी रहती।
अंत में आर्यमणि को महाती से आग्रह करना पड़ा की सफर यहीं समाप्त करते है। महाती को भी लगा की लोग कुछ ज्यादा ही आर्यमणि को परेशान करने लगे है, इसलिए वह आखरी पड़ाव राजधानी तक चलने के लिये कहने लगी। अगली सुबह फिर इनका काफिला बढ़ा। आधा दिन सफर तय करने के बाद ये लोग सीधा राजधानी पहुंचे। राजधानी के बीचों बीच एक भव्य महल बना हुआ था। महल इतना जीवंत बनाया गया था कि मानो नजरों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हो। अदभुत और रोमांचक दृश्य.…
महल के द्वार पर अप्सराएं खड़ी होकर इनका स्वागत कर रही थी। पूरे साम्राज्य का सर्वे सर्वा विजयदर्थ, अपने प्रथम पुत्र निमेषदर्थ के साथ खुद स्वागत के लिये आगे खड़ा था। पूरे जोश के साथ स्वागत करते आर्यमणि और रूही को महल में लाया गया। आर्यमणि और रूही महल में बने कमाल की चित्रकारी को बस देखते ही रह गये। इसी बीच अप्सरा से भी ज्यादा सुंदर 5–6 जलपड़ी आर्यमणि से आकर लिपट गयी। उसपर भी उन जल पड़ियों की हालत... सभी ऊपर से नंगी हालत में थे, जिनके स्तन आर्यमणि के बदन से चिपके थे।
विजादर्थ हंसते हुये कहने लगा... "महल के मनोरंजन का आनंद लीजिए आर्यमणि"…
विजयदर्थ अपनी बात पूरी किया ही था कि अगले पल वह हवा में। रूही उसका गला दबोच कर हवा में उठा ली और उन अर्ध नग्न अप्सराओं को घूरती.… "मेरे पति से दूर रह वरना यहां पूरा ही समशान बना दूंगी। और तुम्हे भी बहुत मजा आ रहा था न चिपकने में... टापू पर वापस चलो फिर मैं तुम्हे बताती हूं"..
आर्यमणि:– अब मैंने क्या कर दिया... मैं तो दीवारों पर बनी कलाकारी देख रहा था, इसी बीच अचानक ही ये आकर मुझसे चिपक गयी... मेरी क्या गलती है?
आर्यमणि अपनी बात समाप्त ही किया था की चारो ओर से उन्हे सैनिक घेरने लगे। हथियारबंद लोगों को अपने करीब आते देख दोनो अपने नंगे पाऊं को ही वहां के सतह पर मार दिये। महल के सतह से उनके पाऊं टकराते ही जो जहां था, वहीं जड़ों में जकड़ गया। रूही वापस से आर्यमणि को घूरती.… “नंगी लड़कियां आकर तुमसे चिपक गयी, फिर भी तुम तस्वीर देखते रह गये... कमाल ही कर दिया जानू”.. कहते हुए रूही अपने दूसरे हाथ से घुसा चलाकर आर्यमणि की नाक तोड़ दी।
"अरे तुम मिया–बीवी के झगड़े में मेरे प्राण चले जायेंगे। रूही मेरा गला छोड़ दो दम घुट रहा है"… विजयदर्थ मिन्नतें करते हुये कहने लगा...
रूही:– आखिर क्या सोचकर नंगी लड़कियों को मेरे पति के ऊपर छोड़ा। तुम्हे तो पहले जान से मारूंगी...
रूही पूरे तैश में थी। किसी तरह समझा बुझा कर रूही के चंगुल से विजयदर्थ को छुड़ाया गया। मजाल था उसके बाद एक भी लड़की उस महल में दिखी हो। इस छोटे से अल्प विराम के बाद सभी लोग आराम से बैठे। कुछ माहोल ठंडा हुआ, तब रूही को थोड़ा खराब लगा की एक पूरे साम्राज्य के मुखिया का गला इस प्रकार से पकड़ ली और वो हंसकर बस मिन्नत करता रहा।
रूही:– मुझे माफ कर दीजियेगा... वो मैं आवेश में आकर कुछ ज्यादा ही रिएक्ट कर गयी थी।
विजयदर्थ:– तुम सब मेरे परिवार जैसे हो। मै तो चाहता हूं आर्यमणि यहीं रहे। चाहे तो इस पूरे साम्राज्य की बागडोर संभाल ले।
आर्यमणि:– मुझे माफ कीजिए राजा साहब। आपकी दुनिया बहुत अनोखी और उतनी ही प्यारी है। भले ही रूही ने आपका गला दबोचकर उठा लिया हो, किंतु मुझे यह भी ज्ञात है कि आपके पास कई सिद्धियां है और बाहुबल तो कमाल का। आप अलौकिक अस्त्रों और शास्त्रों के मालिक है और आपका उत्तराधिकारी भी वही सब पायेगा। किंतु मैं इस दुनिया का नही इसलिए यहां मेरा दिल न लगेगा। हां लेकिन वादा रहा यहां आकर सबको मैं हील करता रहूंगा।
विजयदर्थ:– आपका इतना ही कहना काफी है। चलिए भोजन ग्रहण किया जाये...
एक रात की मेहमाननवाजी स्वीकारने के बाद एक बार फिर इन लोगों ने घूमना शुरू किया। राजधानी वाकई में कमाल की जगह थी। एक महादेश के बराबर तो इकलौती इनकी राजधानी थी। पूरे 4 दिन तक राजधानी घूमने के बाद सबसे आखरी में पहुंचे शोधक प्रजाति के गढ़ में।
शोधक प्रजाति के गढ़ में पहुंचना ही अपने आप में रोमांचित करने वाला दृश्य था। ऐसा लग रहा था चलती–फिरती पहाड़ियों के देश में चले आये थे। चहकिली को तो किसी तरह पूरा देख भी लिया था, लेकिन इनके व्यस्क को पूरा देख पाना संभव नही था। उनका आकार तो चहकिली के आकार से भी 10 गुना ज्यादा बड़ा था। नए उपचार पद्धति विकसित करने के बाद तो जैसे इन प्रजाति में जान आ गयी थी। चहकिली ने जैसे ही आर्यमणि और उसके पैक से सबका परिचय करवाया, हर कोई आर्यमणि को देखने के लिये व्याकुल हो गया। आलम ये था कि अल्फा पैक को जैसे इनलोगो ने किसी मजबूत पर्वतों के बीच घेर रखे हो। एक देखकर जाता तो दूसरा उसकी जगह ले लेते...
सबसे आखरी में चहकिली के अभिभावक ही पहुंचे थे। उनको इस बात इल्म नहीं था कि आर्यमणि और उसका पूरा पैक शोधक प्रजाति की बात समझ सकते हैं। वो तो अपनी बच्ची और अपने प्रजाति के जान बचाने वालों को धन्यवाद कह रहे थे। आर्यमणि, उनकी भावनात्मक बात सुनकर... "आपकी सेवा करना हमारे लिए सौभाग्य था। आप इतने भावुक ना हो।…"
सोधक अभिवावक.… "क्या तुम मेरी बात समझ सकते हो"…
आर्यमणि:– हां मैं आपकी बात समझ सकता हूं। मेरा नाम आर्यमणि है। मेरे साथ मेरी पत्नी रूही और 7 दिन की बेटी आमेया है।
शोधक:– मेरा नाम शावल है और अमेया 7 नही बल्कि 28 दिन की हो चुकी है...
रूही:– यहां आकर तो हम अपने दिन गिनती करना भूल गये। मुझे याद भी नहीं की ये कौन सा साल चल रहा..
शावल:– बहुत ही अलौकिक और प्यारी बच्ची है। क्या मैं इसे कुछ देर अपने पंख पर रख सकता हूं?
रूही:– हां बिलकुल... चहकिली इसे अपनी बहन मानती है, तो ये आप सबकी भी बच्ची हुई न...
शावल अपने छोटे से 5 फिट वाले पंख में अमेया को संभाल कर रखते, उसे प्यार से स्पर्श करने लगा। उसकी किलकारी एक बार फिर गूंज गयी जो न सिर्फ आर्यमणि और रूही को सुनाई दी, बल्कि ये किलकारी सुनकर तो एक बार फिर शोधक प्रजाति हरकत में आ गये। अमेया पानी के बिलकुल मध्य में थी और चारो ओर से शोधक जीव उसे घेरे प्यार से स्पर्श करते रहे...
शावल:– आह दिल खुश हो गया आर्यमणि… अब मैं समझ सकता हूं कि क्यों थल वासी को महाती ने जलवाशी होने का पूर्ण गुण दिया।
आर्यमणि:– वैसे यदि आप मेरी कुछ दुविधा दूर कर सके तो बड़ा एहसान होगा। बहुत सी बातें हैं जिनकी मैं समीक्षा नही कर पा रहा। मैं खुद भी किसी जानकार से अपनी शंका का समाधान ढूंढ रहा था...
शावल:– यूं तो मुझे गहरे महासागर के राज नही बताना चाहिए। लेकिन तुम्हारी सेवा भावना देखते हुये मैं हर संभव मदद करूंगा। हां लेकिन याद रहे, जो भी बातें तुम जानो उसे कभी जाहिर मत होने देना...
आर्यमणि:– ऐसा ही होगा... क्या आप मुझे बता सकते हैं कि विजयदर्थ क्यों आप सबका इलाज नहीं ढूंढ पाया, जबकि उसके शोधकर्ता मुझसे कहीं ज्यादा काबिल थे?
शावल:– “कभी–कभी ईर्ष्या में बड़ी ताकत होती है। विजय यूं तो थोड़ा स्वार्थी है, लेकिन उसका स्वार्थ केवल अपने जलीय साम्राज्य का हित है। जबकि उसका बेटा निमेषदर्थ पूर्ण रूप से स्वार्थी है जो केवल शक्ति का भूखा है। वह न सिर्फ शक्ति का भूखा है बल्कि जलीय जीव को हमेशा निचले स्तर का समझता है।”
“पूरे विज्ञान अनुसंधान की बागडोर निमेषदर्थ के हाथ में है और हर काबिल सोधकर्ता से केवल शक्ति बढ़ाने के उपाय खोज करवाता है। अब जब सभी काबिल शोधकर्ता को एक ही काम में लगाओगे तो नतीजा ऐसा ही होता है। ऐसा नही था कि विजय को निमेषदर्थ के बारे में पता नही, लेकिन उस बेचारे के हाथ बंधे है। एक तो पुत्र मोह दूसरा जब भी विजय सोधक प्रजाति की गिरती हालत को देखकर इलाज करने कहे, तो इलाज करने के बदले उन्हें मार ही दिया करता था और साफ शब्दों में कह देता उसका इलाज संभव नहीं। चाहकीली को भी तो मरने के लिये छोड़ दिया था।
आर्यमणि:– फिर राजा विजयदार्थ, अपने बेटे को विज्ञान प्रमुख के ओहदे से हटा क्यों नही देते?
शावल:– कोई चारा नही। निमेषदर्थ क्या गलत कर रहा है वो सबको पता है, पर कोई प्रमाण नहीं। कैसे साबित कर सकते है कि शोधक जीव के विषय में जान बूझकर सोध नही करना चाहते। इसलिए तो कहा ईर्ष्या... जब तुमने मेरी बच्ची चहकीली का इलाज कर दिया, तब विजय को भी मौका मिल गया इस अवसर को भुनाने का। उन्होंने भी महाती को तुम्हारा शागिर्द बनाकर भेज दिया। अब यदि महाती आगे निकल जाती तब तो विजय, निमेषदर्थ को सीधा उसके ओहदे से हटा देते, इसलिए काबिल लोगों की टीम को सीखने भेजा, ताकि निमेषदर्थ यह कह सके की आर्यमणि एक काबिल शोधकर्ता है जिसके मार्गदर्शन में हमारी टीम ने सोधक जीव का इलाज ढूंढ निकाला।
आर्यमणि:– आपने कहा ईर्ष्या, तो क्या निमेषदर्थ और महाती के बीच कुछ चल रहा है क्या?
शावल:– हां गहरी शत्रुता चल रही है। विजय के 10 बेटे और 2 बेटियां एक तरफ और अकेली महाती दूसरी तरफ। महाती विजय की तीसरी पत्नी की इकलौती संतान है जो 13 बच्चों में सबसे योग्य है। सभी भाई–बहन के साथ जब उसकी शिक्षा चल रही थी, उस वक्त वही अव्वल रहा करती थी। यूं तो पिता के लिये सब बच्चे बराबर थे किंतु एक राजा के नजर में महाती सबसे चहेती हुई जा रही थी।
यही से सबकी दुश्मनी शुरू हुई। ऐसा नही था की महाती को यह दुश्मनी समझ में नही आयी किंतु वह अकेली थी और सब उसके खिलाफ। शिक्षा पूर्ण करने के बाद जब शासन में सबकी भागीदारी का आवंटन हुआ तब महाती के जिम्मे कैदियों का प्रदेश मिला। ऐसी जगह की जिम्मेदारी जहां नकारा बच्चों को सजा के तौर पर भेज दिया करते थे। वहीं निमेषदर्थ ने बड़ी चालाकी से शासन के मुख्य प्रबंधन का काम लिया। विज्ञान के अपने कबजे में रखा और बाकी भाई–बहिनों को शासन के प्रमुख ओहदे दिलवाये।
शावल:– यही से सबकी दुश्मनी शुरू हुई। ऐसा नही था की महाती को यह दुश्मनी समझ में नही आयी किंतु वह अकेली थी और सब उसके खिलाफ। शिक्षा पूर्ण करने के बाद जब शासन में सबकी भागीदारी का आवंटन हुआ तब महाती के जिम्मे कैदियों का प्रदेश मिला। ऐसी जगह की जिम्मेदारी जहां नकारा बच्चों को सजा के तौर पर भेज दिया करते थे। वहीं निमेषदर्थ ने बड़ी चालाकी से शासन के मुख्य प्रबंधन का काम लिया। विज्ञान के अपने कबजे में रखा और बाकी भाई–बहिनों को शासन के प्रमुख ओहदे दिलवाये।
आर्यमणि:– साले कीड़े... दूसरों की तरक्की से जलने वाले। खुद की क्षमता विकसित नही किये तो दूसरे प्रतिभावान को ही दबा दो।
शावल:– “बिलकुल सही कहे। पर कहते है ना प्रतिभा को कितना भी दबा दो, उसकी झलक दिखती रहती है। पूरे महासागर तंत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिये हर 5 वर्षों पर योगियों द्वारा शास्त्रों का आवंटन होता है। 100 अलौकिक दंश हर योग्य युवाओं में बांटा जाता था। हर दंश की शक्ति अपार होती है और हथियारखाने में लाखो मजदूर काम करके 5 साल में ये 100 दंश तैयार कर पाते है। दंश जिसे भी मिलता है, उसकी आत्मा दंश से जुड़ जाती है और उसके मरने के साथ ही दंश का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।”
“दंश के अलावा 2 ऐसे अस्त्र है, जो आवंटन के लिये हर 5 वर्षों पर निकाले जाते है, किंतु सदियों में किसी एक को मिलता था वह अस्त्र। दिव्य त्रिशूल और दिव्य धनुष। माना जाता है कि महासागर की उत्पत्ति के साथ ही उन दो अस्त्रों का उदय हुआ था। जिसे भी यह दिव्य शस्त्र मिला, उन्होंने कई यशस्वी कार्य किये थे। इकलौता दिव्य अस्त्र धारक में ही वह शक्ति होती है जो किसी स्थल वासी को जलीय जीवन का वर दे सकता था। जहां दंश अपने मालिक के आत्मा से जुड़ने के बाद समाप्ति के ओर चला जाता है, वहीं ये दिव्य शस्त्र उसके धारक की आत्मा से जुड़ता तो जरूर है, किंतु उसके मरणोपरांत गायब होकर वहीं पहुंच जाता है, जहां से इसे निकला जाता है। योगियों ने लगभग 10 चक्र (330 वर्ष) बाद महाती के योग्यता को मेहसूस कर उसे दिव्य धनुष और त्रिशूल सौंप दिया।”
एक बार जब दिव्य अस्त्र महाती को मिल गया, फिर कौन भाई–बहन उसका क्या बिगाड़ लेता। दिव्य अस्त्र मिलते ही महाती प्रबंधन की मुखिया बनी और धीरे–धीरे सभी अयोग्य अधिकारी को उसके औहदे से बर्खास्त करती चली गयी। हालांकि महाती के लिये कभी ये आसन नही रहा। एक राजा के पुत्र अथवा पुत्री को उसके पद से हटाने के क्रम में 1000 बाधाएं सामने आ जाती। किंतु महाती भी डटी रही। वक्त लगा परंतु लंबे समय तक लड़कर, हर बाधा को पार कर, हर अयोग्य को हटाती चली गयी। अब तुम समझ ही सकते हो महाती और निमेषदर्थ के बीच किस हद की दुश्मनी होगी।”
आर्यमणि:– महाती और निमेष की दुश्मनी समझ में आ गयी। अब तक सोधक प्रजाति का इलाज क्यों नही ढूंढ पाये थे, वो भी समझ में आ गया। अब मेरी एक और दुविधा दूर कर दीजिए।
आर्यमणि:– कैदियों के प्रदेश से विजयदर्थ किसी को जाने क्यों नही देना चाहता? हर रोज अंतरिक्ष के कितने विमान यहां आते होंगे? आखिर विजयदर्थ का मकसद क्या है...
शावल:– हर रोज तो अंतरिक्षयान यहां नही आता, लेकिन जिस दिन भी यहां अंतरिक्ष से यान आना शुरू होता है, फिर एक साथ 20–30 यान तक आ जाते है। रही बात कैदियों को क्यों नही जाने देता तो उसके पीछे का कारण बहुत ही साधारण है। जो लोग यहां फंसे है, ब्लैक होल में घुसने के कारण उनकी मृत्यु लगभग तय थी। वो तो विजयदर्थ ने अपने दिव्य अस्त्रों से एक रास्ता महासागर में तिलिस्मी रास्ता खोल दिया था, इसलिए वो लोग सुरक्षित जिंदा बचकर यहां पहुंच जाते है।”
“जैसा की मैं पहले भी बताया था स्वार्थ। विजयदर्थ महासागर के हित में पूर्ण रूप से स्वार्थी हो सकता है। ये फसे हुये कैदी महासागर के अनंत कामों को अंजाम देते है। इसलिए विजादर्थ कभी भी कैदियों को बाहर नही जाने देता।
आर्यमणि:– तो क्या विजयदर्थ अपने स्वार्थ के लिये किसी को मार भी सकता है?
शावल:– स्वार्थ के कारण मारना... कोई मरता हुआ इंसान भी ये बात कहे तो मैं न मानू। विजय ऐसा नहीं कर सकता...
आर्यमणि:– ऐसा हो चुका है। जब हमारी पहली मुलाकात थी तब मुझ पर 5 लोगों ने अपने नजरों से हमला किया था।
शावल:– तो फिर तुम्हारी नजदीकियां महाती और विजय से किसी को देखी नही गयी होगी। तुमसे मिलने से पहले ही ये दोनो तुम्हारे कायल हो चुके थे। और तुम कड़ियों को जोड़ना चाहो तो जोड़ लो की कौन तुम्हे सोधक जीव के ऊपर किसी भी प्रकार के सोध करने से रोकना चाहेगा।
आर्यमणि:– ओह अब पूरा माजरा समझ में आ गया। उस कांड के पीछे निमेषदर्थ था और मै समझा विजयदर्थ है।
शावल:– हां अब सही समझे हो। उस धूर्त से जरा बचकर रहना। तुम्हारे ऊपर विजय का हाथ होने से वो भले तुम्हे न कुछ कर पाये, लेकिन सक्षम लोगों को वह टापू तक ला भी सकता है और बिना कोई सबूत छोड़े अपना काम करवाकर उन्हे वापस भी भेज सकता है।
आर्यमणि:– कुल मिलाकर अब ये जगह छोड़ने में ही ज्यादा भलाई है।
शावल:– पृथ्वी के किस हिस्से में जाना है हमसे कह दो, हम तुम्हे वहां छोड़ आते है।
आर्यमणि:– नही मैं यहां से सीधा नही जा सकता। पहले टापू पर जाकर सारा सामान समेटूंगा और अपने क्रूज को लेकर वापस जाऊंगा। एक काम हो सकता है, आप रूही, अलबेली और इवान को आश्रम तक छोड़ सकते हैं।
रूही:– मैं क्यों जाऊं... मैं तो क्रूज पर तुम्हारे साथ आऊंगी... एक काम करते है, अलबेली और इवान को भेज देते है।…
आर्यमणि:– हां, पर वो दोनो है कहां... अभी तक विजयदर्थ की राजधानी ही घूम रहे होंगे?
रूही:– हां तो सब साथ ही क्रूज से चलते है।
आर्यमणि:– आपसे मिलकर अच्छा लगा शावल। मेरे पास कुछ है जो आश्रम तक पहुंचाना जरूरी है। चहकिली वो पता जानती है। क्या वो मेरा सामान वहां तक पहुंचा देगी...
चहकिली:– अरे आप मुझे समान दो चाचू, मैं जानती हूं उसे कहां पहुंचाना है...
आर्यमणि:– चहकिली जरा संभल कर ले जाना... जब तक वो रक्षक पत्थर शुद्ध नही किया जाता, तब तक उसे छूना काफी खतरनाक हो सकता है...
चहकिली:– आप चिंता मत करो। जैसा देंगे ठीक वैसे ही पहुंचा दूंगी.…
आर्यमणि:– बहुत–बहुत धन्यवाद चहकिली। मैं शावल जी के साथ सतह तक चला जाऊंगा तुम इसे लेकर अभी चली जाओ। मैं नही चाहता कोई भी शापित वस्तु ज्यादा देर किसी के पास रहे...
चहकिली हामी भरती आर्यमणि से पत्थर ली और अपने मुंह में दबाकर मानसरोवर झील के उदगम स्थान के ओर बढ़ चली। वहीं रूही और आर्यमणि शावल पर सवार होकर वापस विजयदर्थ के महल पहुंचे। वहां पहुंचकर पता चला की इवान और अलबेली तो पहले ही सतह पर जा चुके है। यह खबर मिलते ही आर्यमणि भी वहां से निकला।
महासागर मंथन में उन्हे तकरीबन 28 दिन लग गये थे। इस बीच पूरे संसार और दुनिया जहां से बेखबर आर्यमणि एक नई और रोमांचित दुनिया का लुफ्त उठा रहा था। सतह पर जब वो लोग पहुंचे तब रात का वक्त था।
काली अंधेरी अमावस्या की वो रात थी। आर्यमणि के सतह पर आते ही तेज बिजली और तूफानी बारिश ने उसका स्वागत किया। रूही अपने आंचल से अमेया को ढकती हुई तेजी से कॉटेज के ओर बढ़ी। शावल से बिदाई लेकर पीछे से आर्यमणि भी चल दिया।
पंछियों के मधुर चहक से आर्यमणि की नींद खुल गई। बाहर हल्का अंधेरा था, पास में रूही और अमेया गहरी नींद में सो रही थी। आर्यमणि दोनो के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बाहर हॉल वाले हिस्से में चला आया। आर्यमणि अनंत कीर्ति की पुस्तक को उठाकर अपने महासागर और पाताल लोक का अनुभव, और वहां मिले जीव के बारे में विस्तार पूर्वक लिखने लगा।
लिखते हुए काफी वक्त हो गया था। बाहर हल्का हल्की रोशनी हो रही थी। रात भर घनघोर बारिश के बाद जमीन जैसे तृप्त हो चुकी थी। चारो ओर हरियाली प्रतीत हो रही थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आर्यमणि जिस टापू पर था दरअसल वो मात्र छोटा सा टापू न होकर एक बड़ा भू भाग था जो नागलोक के अधीन था। यह जगह तरह–तरह के नायब जीवों का घर हुआ करता था।
टापू की तरह दिख रहा यह भू–भाग क्यों पूरा नही दिख रहा था, वह कारण तो समझ में आ चुका था। पर पाताल लोक से निकलते समय नाभिमन ने पूरा भू–भाग वापस बाहर लाने का वादा किया था। आर्यमणि को इक्छा हुई की चलकर वह एक बार इस जगह का भ्रमण कर ले। देख तो आये की नभीमन ने पूरे भू–भाग को ऊपर किया या नहीं। इवान के साथ भ्रमण पर निकलने की सोचकर वह इवान के कॉटेज के दरवाजे पर पहुंचा... बाहर से कुछ देर आवाज लगाने के बाद आर्यमणि कॉटेज में दाखिल हुआ।
सोचा तो था इवान के साथ पूरा क्षेत्र भ्रमण करने की, परंतु अलबेली और इवान दोनो ही अपने कॉटेज में नही थे। वहीं कल रात इतनी तूफानी बारिश हो रही थी कि आर्यमणि और रूही सीधे अपने कॉटेज में चले गये, अलबेली और इवान के बारे में कोई जानकारी ही नहीं लिया। आर्यमणि को थोड़ी चिंता सताने लगी... पैक के मुखिया ने "वूऊऊऊऊ" का तेज वुल्फ साउंड दिया...
जवाबी प्रतिक्रिया ने 3 वुल्फ साउंड वापस सुनाई दिये। एक तो पास में ही खड़ी रूही ने वुल्फ साउंड लगाया और 2 वुल्फ साउंड पहाड़ों के ओर से आ रहे थे। रूही कॉटेज के बाहर आती... "क्या हुआ आर्य.. ऐसे बुलावा क्यों दे रहे। क्या पैक के मुखिया होने का एहसास करवा रहे?"..
आर्यमणि:– अरे नही, अलबेली और इवान कॉटेज में कहीं दिखे नही, इसलिए थोड़ी चिंता होने लगी...
रूही, हंसती हुई.… "तुम्हारा ढीला तूफान रात को ही इंडोर खत्म हो गया था। दोनो अभी गरम खून वाले हैं... उनका तूफान आउटडोर में कहीं चालू होगा... क्यों परेशान कर रहे।"
आर्यमणि, रूही के ओर लपकते.… "क्या बोली रे, ढीला तूफान"….
रूही, अमेया को तेजी से बरामदे के पालने में रखी और कॉटेज गोल–गोल चक्कर लगाने लगी। रूही के खीखीखीखी की आवाज चारो ओर गूंज रही थी.… "क्या हुआ आर्य, ढीले तूफान के साथ–साथ अब तुम भी पूरा ढीला पड़ चुके। कहां पहले एक छलांग में पकड़ लेते... अभी तो बिलकुल बूढ़े घोड़े की तरह हो गये"…
"तेरी तो... मुझे ही उकसा रही हो"…. इतना कहने के साथ ही आर्यमणि ने रूही को घर दबोचा। कॉटेज के पीछे की दीवार पर एक जोड़दार धम्म की आवाज हुई। रूही का सीना दीवार से चिपका था और आर्यमणि ठीक उसे पीछे से दबोचे। दोनो काफी तेज हाँफ रहे थे। दोनो अपने श्वांस सामान्य करने की कोशिश में जुटे थे की तभी एक जोड़दार चूरररररररर की आवाज आयी।
आर्यमणि पीठ पर पंजा डालकर पीछे से पूरे कपड़े को ही फाड़ दिया.… "हिहिही.. काफी जोश में हो जान। रुको तो यहां नही... कमरे में चलते है।"…
"आज तो यहीं आउटडोर तूफान आने वाला है।"… कहते हुए आर्यमणि ने अपनी एक उंगली को जैसे ही ऊपर किया उस उंगली का धारदार क्ला बाहर और अगले ही पल रूही के नीचे पहने कपड़े भी फटकर 2 हिस्सों में.… "ओय मेरे जंगली सैय्यां, यहां नही... कुछ तो शर्म करो"…
आर्यमणि, तेजी में नीचे से नग्न होते, अपना हाथ रूही के गर्दन पर डाल दिया। जैसे किसी मुर्गी की चोंच को जमीन में चिपका दिया जाता है, आर्यमणि ने ठीक वैसे ही पीछे से रूही के गर्दन पर हाथ डाला और आगे से उसका चेहरा कॉटेज की दीवार में चिपक गया... और अगले ही पल रूही का चेहरा कॉटेज की दीवार से चिपके ही इतना तेज घर्षण करते ऊपर हुआ की रूही की तेज चीख निकल गई.…
"आव… माआआआआआ, जंगली पूरा चेहरा छिल गया... उफ्फ आर्य... अपनी बीवी की कोई ऐसे लेता है..."
आर्यमणि लगातार तेज–तेज धक्का मार रहा था। कॉटेज के लकड़ी की पूरी दीवार... खट–पिट खट–पिट कर रही थी। लिंग जब तेजी के साथ योनि की पूरी गहराई में उतरता तब आर्यमणि के जांघ और रूही के नितंब से टकराता... थप–थप, थप–थप… की तेज आवाज करता...
माहोल में लगातार "खट–पिट, खट–पिट" और "थप–थप, थप–थप" की तेज आवाज गूंज रही थी। इसी आवाज के साथ रूही भी खुलकर अपनी आवाज निकालती… "आह्हहहहहहहहहहहहह, आर्य... बहुत दिन हो गए तुम्हे ऐसे जोश में करते.… उफ्फफफफफफफफ.. मेरी जान.. रुकना मत मजा आ रहा"…
दोनो हांफ रहे थे। रूही लगातार सिसकारियां भरती आर्यमणि के अंदर पूरा जोश भर रही थी। इसी बीच दोनो के चिंघारने की आवाज उस पूरे मोहोल में गूंजने लगे... आवाज और भी तेज होती गयी... लिंग राजधानी की रफ्तार में अंदर बाहर होने लगा... और फिर अंत में ज्वालामुखी का लावा दोनो के अंगों से फूटते ही, दोनो ही दीवार से टेक लगाकर हाफने लगे...
रूही, हंसती हुई पलट कर आर्यमणि के ओर देखती... "आज हुआ क्या था"…
आर्यमणि, रूही के होंठ पर प्यार से पप्पी लेते.… "बस 2–3 महीने का गैप था, वही पूरा कर रहा हूं। (रूही के गर्भवती होने के सातवे महीने से कल रात तक का वक्त)
दोनो की नजरें मिल रही थी। एक दूसरे को प्यार से देखकर मुस्कुरा रहे थे। तभी अचानक जैसे दोनो के दिल में तेज पीड़ा उठी हो और अगले ही क्षण दर्द में डूबा वुल्फ साउंड आर्यमणि और रूही के कानो में पड़ रहा था... आर्यमणि, रूही को कंधे से हिलाकर मानो होश में रहने कह रहा हो…. "रूही तुम अमेया को लेकर अंदर जाओ। कुछ भी हो तुम कॉटेज के बाहर मत आना"…
"लेकिन आर्य"…. रूही ने इतना ही कहा, और अगले ही पल आर्यमणि की तेज दहाड़ उन फिजाओं में गूंज गयी। यह आर्यमणि की गुस्से से भरी प्रतिक्रिया थी जिसके जवाब में रूही बस अपना सिर नीचे कर उसकी बात मान ली। आर्यमणि तेज दहाड़ने के साथ ही दर्द और वियोग वाली आवाज के ओर चल दिया।
"लेकिन आर्य"…. रूही ने इतना ही कहा, और अगले ही पल आर्यमणि की तेज दहाड़ उन फिजाओं में गूंज गयी। यह आर्यमणि की गुस्से से भरी प्रतिक्रिया थी जिसके जवाब में रूही बस अपना सिर नीचे कर उसकी बात मान ली। आर्यमणि तेज दहाड़ने के साथ ही दर्द और वियोग वाली आवाज के ओर चल दिया।
इसके पूर्व पूरी कहानी तब जाकर फंस गई जब विजयदर्थ ने अपनी पहली संतान निमेषदर्थ को आर्यमणि के बारे में पता लगाने कहा। जैसे–जैसे वह आर्यमणि को जानता गया, आर्यमणि की शक्तियों के ओर आकर्षित होता गया। हालांकि यह इतनी भी बड़ी वजह नही थी कि निमेषदर्थ, आर्यमणि के दुश्मनों से हाथ मिला ले।
लेकिन फिर उसे गर्भ में पल रही आर्यमणि की बेटी अमेया के बारे में पता चला। जैसा की अंदाजा लगाया जा रहा था अमेया अपने माता–पिता के गुण वाली अलौकिक बालिका होगी, जिसे सौभाग्य प्राप्त होगा। अर्थात यह बालिका जिस किसी के पक्ष में होगी, जीत उसके कदमों में। फिर क्या था, महासागर का राजा बनने का सपना एक बार फिर जोड़ पकड़ लिया। जो सिंहासन महाती के हाथों में जाती दिख रही थी, उसे अपने ओर करने की मुहिम ने निमेषदर्थ को यह कदम उठाने के लिये मजबूर कर गया।
निमेषदर्थ और नायजो समुदाय की माया तो पहले ही सभी योजना बना चुके थे। उन्हे बस सही मौके पर सही दाव खेलना था। हां लेकिन निमेषदर्थ की वास्तविक मनसा जो माया को नही पता थी, वो थी अमेया... प्राथमिकता की सूची में आर्यमणि तो दूसरे स्थान पर था, किंतु अमेया प्रथम निशाना थी। हालांकि निमेषदर्थ अपने बाज से अमेया का अपहरण तो करवा चुका होता, लेकिन बीच में आर्यमणि और उसका पूरा पैक था, जिसे मारे बिना यह कार्य संभव नही था और निमेषदर्थ अकेले अल्फा पैक को मार नही सकता था।
अमेया के जन्म दिन पर ही निमेषदर्थ और माया के बीच समझौता हो चुका था। समझौते के बाद निमेषदर्थ अपनी काली नजर कॉटेज के आस–पास गड़ाए था। 7 दिन इंतजार के बाद निमेषदर्थ अमेया की एक झलक पाया। उसी सातवें दिन जलीय मानव प्रजाति ने अमेया को गोद में भी लिया था। उसी भीड़ का हिस्सा निमेषदर्थ भी था। वह जब आमेया को गोद में लिया ऐसा सुकून में था कि जैसे वह शून्य काल में पूरे राहत से लेटा हो।
निमेषदर्थ सबकी नजरों से बचाकर, अमेया के गले मे लटके 2–3 पत्थरों के बीच एक सम्मोहन पत्थर डाल दिया। निमेषदर्थ इसी सम्मोहन के सहारे ही बाज के झुंड से अमेया को शांतिपूर्वक अगवा कर सकता था। पूरा जाल बिछाया जा चुका था, बस सही मौके का इंतजार था। हालांकि महासागर के अंदर यात्रा के दौरान आर्यमणि, निमेषदर्थ को अच्छे से समझ चुका था और नए दुश्मन से भिड़ने के बदले उसने जगह ही छोड़ने का मन बना लिया था। टापू से बस एक दिन में पूरा काम समेटकर निकलने की पूरी तैयारी भी हो चुकी थी परंतु किस्मत....
निमेषदर्थ को पहला मौका तब मिल गया, जब अलबेली और इवान, आर्यमणि से अलग होकर महासागर घूमने निकले। वहीं दोनो (अलबेली और इवान) की मुलाकात निमेषदर्थ से हो गयी। पौराणिक वस्तु और महासागर के योगियों को दिखाने के बहाने, निमेषदर्थ, अलबेली और इवान को योगियों की ऐसी भूमि पर लेकर गया, जहां उसके शरीर की रक्षा कर रहा सुरक्षा मंत्र खुद व खुद निरस्त हो गया। दोबारा अलबेली और इवान के शरीर को बांधने के लिये आर्यमणि था नही, जिसका नतीजा यह हुआ की दोनो निमेषदर्थ के सम्मोहन में थे।
निमेषदर्थ का पहला दाव पूरे निशाने पर लगा। अलबेली और इवान पूर्णतः सम्मोहन में थे। अब बस उनके जरिए पूरे अल्फा पैक को लपेटना था। सुबह जैसे ही आर्यमणि ने वुल्फ कॉलिंग साउंड से अलबेली और इवान को आवाज लगाया, निमेषदर्थ और माया की योजना शुरू हो गयी। पहाड़ियों के ऊपर किसी को रोक के रखने के लिए बड़े–बड़े मौत के घेरे बनाए जा चुके थे।
घेरा केवल माया और विवियन जैसे नायजो ने ही नही बनाया, अपितु मधुमक्खी की रानी चिची ने भी अपना योगदान दिया। पहले ही अल्फा पैक के पास उन किरणों के घेरे से निकलने का कोई तोड़ नही था, ऊपर से चीचि का सहयोगी घेरा। मौत के बड़े–बड़े घेरे तैयार थे। आर्यमणि की आवाज सुनते ही आगे की योजना शुरू हो गयी। पहले से सम्मोहित अलबेली और इवान, निमेषदर्थ के मात्र एक इशारे से खुद ही मौत के घेरे में आ गये। अलबेली और इवान को मौत के एक अदृश्य घेरे के अंदर फसाकर यातनाएं दी जाने लगी। जैसे ही आर्यमणि और रूही के कानो में इनके वियोग की आवाज पहुंची, रूही अमेया के पास गयी और आर्यमणि दौड़ते हुए आवाज की ओर...
रक्षा मंत्र का उच्चारण करते आर्यमणि पूरी रफ्तार के साथ आगे बढ़ा। पहाड़ियों के दक्षिण भाग से आवाज आ रही थी। पहले के मुकाबले अभी ये जगह काफी बदली हुई नजर आ रही थी। शायद नभीमन पूरे भू–भाग को सतह पर ला चुका था। पहाड़ के दक्षिणी हिस्से से आर्यमणि बिलकुल अनजान था, किंतु वो हवा को परख रहा था। हवा में फैली गंध को महसूस कर रहा था।
इसी बीच एक बार मानो आर्यमणि की धड़कन थम गयी हो, उसके प्राण शरीर से निकल गया हो। ऐसा लगा जैसे ब्लड पैक का कोई वुल्फ मृत्यु के करीब पहुंच चुका हो। प्राण निकलने जैसा महसूस कर ही रहा था कि इतने में वियोग में तड़पती अलबेली की चिंखे कानो में सुनाई देने लगी। आर्यमणि भागकर वहां पहुंचा, और आंखों के आगे का नजारा देखकर मानो पागल हो गया हो। इवान का शरीर 2 हिस्सों में चीड़ दिया गया था। रक्त भूमि पर फैला हुआ था। वहीं कुछ दूर खड़ी अलबेली बस रो रही थी, किंतु हिल भी नहीं पा रही थी।
आर्यमणि तेज वुल्फ साउंड निकालते चारो ओर देखने लगा। इतने में उसके कान में रूही की दूर से आती आवाज सुनाई दी.… "मेरी बच्ची.… आर्य... वो बाज... वो बाज.. अपनी बच्ची को ले जा रहा"…
एक ओर इवान की लाश, और पास में बेबस अलबेली। दूर–दूर तक दुश्मन नजर नहीं आ रहा था। दिमाग कुछ काम करता उस से पहले ही रूही की आवाज कान में थी और नजर जब आकाश में गई तब एक बाज अमेया को हवा में उड़ाकर लिये जा रहा था। आर्यमणि होश हवास खोये, उस बाज के पीछे दौड़ लगा दिया। दूर से रूही की चिल्लाती आवाज भी आ रही थी, वह भी बाज के पीछे दौड़ लगा रही थी।
बाज कई फिट हवा में था और अचानक ही उसने अमेया को नीचे छोड़ दिया। ऊंचाई से अपनी बच्ची को नीचे गिड़ते देख रूही चक्कड़ खा कर गिर गयी। वहीं आर्यमणि के नजरों के सामने अमेया गिरी। आर्यमणि से तकरीबन 500 फिट की दूरी रही होगी और अपनी बच्ची को बचाने के लिए आर्यमणि ने एक छलांग में पूरे 500 फिट की दूरी तय करके ठीक अमेया के नीचे अपने दोनो पंजे फैलाए था.…
ऊप्स… अमेया नीचे तो गिड़ी किंतु जमीन पर आने से पहले ही वो किसी दूसरे बाज के चंगुल में फसी थी। वो बाज काफी तेजी से अमेया को ले उड़ा। आर्यमणि भी उसके पीछे जाने को तैयार, लेकिन अफसोस वह मौत के घेरे में फंस चुका था। ये किस तरह का जाल था और इस जाल से कैसे बचे आर्यमणि को कुछ पता नही, ऊपर से दिमाग ने तो जैसे काम करना बंद कर दिया था...
अलबेली, आर्यमणि से कुछ दूरी पर फंसी हुई थी। हां लेकिन वियोग के वक्त जब सम्मोहन टूटा, तब सबसे पहले उसने हाथ में लगे बैंड को रब करने लगी, जिसका ट्रांसमिशन सिग्नल अपस्यु और उसकी पूरी टीम के पास पहुंच रहा था। उनके पास भी जैसे ही यह ट्रांसमिशन सिग्नल पहुंचा, वो लोग भी निकल चुके थे, लेकिन शायद नियति लिखी जा चुकी थी.…
आर्यमणि हील नही पा रहा था और खुद की बेबसी पर वो क्ला अपने गालों में ही घुसाकड़ उसे नोच रहा था। इसी बीच राहत तब हुई जब बाज, अमेया को लेकर वापस आर्यमणि के ओर चला आ रहा था। इधर सामने से बाज आ रहा था तो पीछे से रूही दौड़ती हुई आ रही थी। अलबेली और आर्यमणि दोनो चिल्लाते हुये उसे आगे नहीं आने कह रहे थे, लेकिन एक मां को सुध कहां थी। वो तो खतरे में फंसी अपनी बच्ची को देख रही थी। और अंत में नतीजा वही हुआ जो अलबेली और आर्यमणि का था। रूही भी एक घेरे में कैद हो चुकी थी।
आर्यमणि, रूही, अलबेली तीनो ही 15 फिट की दूरी पर थे और लगभग अलबेली से उतने ही दूरी पर इवान का पार्थिव शरीर 2 हिस्सों में बंटा था। रूही की नजर जब इवान के मासूम चेहरे पर गई, उसकी हलख से चींख निकली। माहौल समझ से पड़े था। दिमाग को जैसे सुन्न कर दिया गया हो। सामने अपने परिवार में से किसी एक की लाश और सर पर नवजात बच्ची खतरे में।
तभी सामने से एक जाना पहचाना चेहरा निमेषदर्थ और उसके साथ एक अनजान लड़की, नयजो समुदाय की माया, चली आ रही थी। उसे देखकर ही आर्यमणि का गुस्सा फूट पड़ा.… "विनायक की कसम आज तेरे गर्दन को अपने पंजों से चिड़कर तुझे मरूंगा"…
आर्यमणि चिंखते हुए कहा और अगले ही पल माया अपने पीठ से वही दिव्य खंजर निकाली जो रीछ स्त्री महाजानिका के पास थी। ऐसा खंजर जो किसी मंत्र के घेरे से बंधे, सुरक्षित इंसान को मंत्र समेत चीड़ सकती थी। माया खंजर निकालकर अलबेली का गला एक ही वार में धर से अलग करती.… "लो तुम्हारे एक आदमी (इवान) को मारने के लिये तुम निमेष का गला चिड़ते, इसलिए मैंने तुम्हारे एक साथी के साथ वही कर दिया"..
आर्यमणि पूरा हक्का–बक्का... जुबान ने जैसे साथ छोड़ दिया हो। पूरे बदन से जैसे जान ही निकल चुकी थी। रूही ने जब ये मंजर देखा, ऐसा लगा जैसे सिर घूम गया हो। वह चीखना और चिल्लाना चाह रही थी लेकिन वियोग ने जैसे उसकी आवाज को हलख में ही कैद कर लिया हो... पूरे दर्द और कर्राहट भरे शब्दों में किसी तरह आवाज निकला.… "अलबेलीईईईईईईई"..
जैसे ही रूही की सिसकी भरी आवाज में अलबेली निकला, उसके अगले ही पल खंजर सिर के बीच से घुसा और रूही को 2 टुकड़े में विभाजित करता बाहर आया... उस खंजर ने रूही के तड़प को अंत दे दिया किंतु आर्यमणि बौखलाहट से पागल हो चुका था। आर्यमणि की दहाड़ भयावाह थी। उसके गुस्से और वियोग की चीख मिलो सुनी जा सकती थी। आर्यमणि चींखते–चिल्लाते अपनी जगह से बाहर निकलने के लिये पागल हुआ जा रहा था लेकिन बाहर आना तो दूर की बात है, हील भी नही पा रहा था.… पूरी कोशिश करके देख लिया और अंत में बेबस होकर.… "मुझे भी मार ही दो, अब तक जिंदा क्यों रखे हो"…
निमेषदर्थ की गोद में अमेया थी, जिसे पुचकारते हुये वह आर्यमणि को देखा.… "बड़ी प्यारी है ये... वैसे तुम्हे भी जिंदा रखने का कोई इरादा नहीं.. लेकिन उस से पहले एक काम कर लूं... माया जरा आर्यमणि का खून मुझे इस डिब्बे में दो। फिर ये शिकार भी तुम्हारा"..
माया:– बड़े शौक से राजकुमार...
माया अपनी बात कहती आगे बढ़ी और खंजर की नोक को सीधा आर्यमणि के हृदय में उतारकर अपने कलाई को थोड़ा नीचे कर दी। रक्त की धार खंजर पर फैलती हुई नीचे कलाईयों तक आने लगी। निमेषदर्थ एक जार लगाकर सारा खून एकत्रित करने लगा... जार जब भर गया... "माया मेरा काम हो गया, इसे मार दो"…
माया:– और ये आर्यमणि की वारिश… बच्ची अलौकिक है, कल को हमसे बदला लेने आयी तो...
निमेषदर्थ:– इस घटना का कोई सबूत होगा तब न ये बदला लेगी। उल्टा आज से मैं इसका बाप हूं और ये मेरे दुश्मनों से बदला लेगी...
माया, खंजर को हवा में ऊपर करती.… "फिर तो आश्रम के इस गुरु को मारकर एक बार फिर आश्रम की कहानी को उसी गर्त में भेज देते है, जहां इसके पूर्व गुरु निशि को हमने भिजवाया था। आगे के 10–15 साल बाद कोई इस जैसा पैदा होगा, और तब एक बार और हम मजेदार खेल खेलेंगे... तुम भी दर्द से मुक्ति पाओ आर्यमणि"… अपनी बात खत्म करती माया ने खंजर को झटके से मारा... और खंजर सीधा आर्यमणि के सर के बीचों बीच।
भयानक तूफान सा उठा था। एक ही पल में पूरी जगह जलनिमग्न हो गयी। जिस पहाड़ पर यह भीषण हत्याकांड चल रही थी, वह पहाड़ बीच से ढह गयी। ऐसा लग रहा था, दो पहाड़ के बीच गहरी खाई सी बन गयी हो। निमेषदर्थ, चिचि और माया तीनो ही महासागर में उठे सुनामी जैसे तूफान में कहां गायब हुये पता ही नही चला। निमेषदर्थ के हाथ से अमेया कहां छूटी उसे पता भी नही चला। तूफान जब शांत हुआ तब उसी के साथ पूरा माहौल भी शांत था और अल्फा पैक के मिटने के सबूत भी पूरी तरह से गायब।
भयानक तूफान सा उठा था। एक ही पल में पूरी जगह जलनिमग्न हो गयी। जिस पहाड़ पर यह भीषण हत्याकांड चल रही थी, वह पहाड़ बीच से ढह गयी। ऐसा लग रहा था, दो पहाड़ के बीच गहरी खाई सी बन गयी हो। निमेषदर्थ, चिचि और माया तीनो ही महासागर में उठे सुनामी जैसे तूफान में कहां गायब हुये पता ही नही चला। निमेषदर्थ के हाथ से अमेया कहां छूटी उसे पता भी नही चला। तूफान जब शांत हुआ तब उसी के साथ पूरा माहौल भी शांत था और अल्फा पैक के मिटने के सबूत भी पूरी तरह से गायब।
घनघोर अंधेरे के बीच तकरीबन 100 योगी और संन्यासी उस बड़े से भू–भाग की छानबीन करने पहुंच चुके थे। पहले की भांति महज 40 या 45 किलोमीटर का यह टापू नही रह गया था, बल्कि पूरा एक महाद्वीप था। यादि किसी के पास उच्च स्तर की सिद्धियां न हो, फिर इस महाद्वीप में पहुंचना नामुमकिन था। क्योंकि पूरा भू–भाग का मार्ग एक तिलिस्मी जाल था, जो महासागर की गहराइयों से होकर जाता था। पहले की तरह अब ये टापू नही रह गया, जो महासागर के इस हिस्से में सफर करते हुये आसानी से दिख जाये...
आपातकालीन संदेश मिलते ही, महज कुछ घंटे में अपस्यु अपनी पूरी टीम के साथ वहां पहुंच चुका था। अपस्यु आते ही सबसे पहले कॉटेज गया और वहां के चारो ओर का मुआयना करने के बाद सर्च टीम के साथ निकल गया। छानबीन करते हुए एक टीम उसी जगह के आस पास पहुंच गयी, जहां आर्यमणि और उसके पूरे पैक के साथ यह निर्मम घटना हुई थी। हालांकि कुछ घंटे पहले और अब में बहुत अंतर था। दक्षिणी हिस्से के जिस पहाड़ी पर कांड हुआ था, वहां अब बड़ा सा झरना था। घटनास्थल के 200 मीटर के दायरे वाले पहाड़ को ही पूरा महासागर में घुसा दिया गया था। देखने से ऐसा लग रहा था जैसे 2 बड़े पर्वत के बीच कोई बड़ा सा झील हो।
खोजी दस्ते में ओजल और निशांत भी थे, जो वहां के हवा को महसूस कर सकते थे। ओजल यूं तो पूरे रास्ते रोती हुई ही आयी थी। ब्लड पैक से जुड़े होने के कारण यहां हुई घटना को वह दूर से महसूस कर चुकी थी। बस मन में एक छोटी सी आस बंधी थी, जो इस घटनास्थल पर पहुंचकर वो भी समाप्त हो गयी। वहां अल्फा पैक का एक भी सदस्य मौजूद नहीं था। ओजल वहीं बैठकर, बिलख–बिलख कर रोने लगी।
मौके पर अपस्यु भी पहुंचा। हवा को वह भी महसूस कर सकता था। अपनों को खोने का क्या गम होता है, अपस्यु भली भांति समझता था। कोई दिलाशा, कोई भी बात अपनों को खोने के गम से उबार नही सकती थी, इकलौता वक्त ही होता है, जो किसी तरह जीना सिखा देता है। ओजल के लिये बहुत कठिन वक्त था। लगभग 6 दिन तक अल्फा पैक की लाश ढूंढने की प्रक्रिया चलती रही, लेकिन किसी के भी पार्थिव शरीर का कहीं कोई निशान तक नही था।
संन्यासी शिवम् अपने कुछ शिष्यों के साथ वहीं आवाहन पर बैठे थे। सातवे दिन विचलित होकर सबसे पहले विजयदर्थ उनके पास पहुंचा.... “हे संन्यासी तुम कौन हो और क्यों इतने कठिन योजन पर बैठे हो। जानते भी हो, मैंने यदि तुम्हारी बात न सुनी तो तुम और योजन पर बैठे जितने भी संन्यासी है सब मर जायेंगे।”
संन्यासी शिवम्:– हे महासागर नरेश, मुझे विश्वास है कि आप मेरी बार सुनेगे। मेरा मन विचलित है। मेरे गुरु अपने परिवार के साथ यहां पहुंचे थे किंतु उनका कोई पता नहीं। उनके साथ एक नवजात शिशु भी है।
विजयदर्थ:– आर्य और उसका पैक। क्या हुआ है उनके साथ...
संन्यासी शिवम:– आप जवाब दीजिए। आपने भरोसा दिलाया था कि गुरु आर्यमणि और उसके परिवार को कोई छू भी नहीं सकता।
विजयदर्थ:– संन्यासी पहले बताए कि हुआ क्या है? आपको भी पता है कि मैं स्थल के मामले में कुछ नही कर सकता।
संन्यासी शिवम्:– आपने ही आश्वाशन दिया था न... इस भूमि पर कोई बाहरी नही आ सकता।
विजयदर्थ:– मैने आश्वाशन दिया था, लेकिन फिर भी मेरी जानकारी के बगैर आप और आपके सभी लोग यहां पहुंच गये ना। बिना किसी सिद्ध प्राप्त इंसान की मदद से यहां कोई बाहरी नही आ सकता।
संन्यासी शिवम्:– और यदि कोई आपके घर का मिला हो?
विजयदर्थ:– मेरे घर का भी कोई चाह ले तो भी बिना किसी सिद्ध पुरुष की मदद से यहां कोई बाहरी नही आ सकता क्योंकि ये पूरा क्षेत्र नागलोक का है ना की ये महासागर का कोई टापू है। अब आप पहले मुझे बताएंगे की आर्य और उसके परिवार के साथ हुआ क्या है? अमेया कहां है? नाभीमन महाराज कहां हो? महाराज कहां हो?
नभीमन, वहां आते... “ये संन्यासी मुझे कबसे बुला रहा था मैं नही आया। क्या तुम्हे पता नही की मैं किसी इंसान के सामने नहीं आता।
विजयदर्थ:– महाराज आप अभी अपने नियम थोड़े किनारे रखिए। यहां आर्य और उसका पूरा परिवार गायब है। अमेया का कोई पता नहीं चल रहा।
नभीमन:– गुरुवर गायब हैं। ऐसा कैसे हो सकता है?
नभीमन अपनी आंख मूंदकर वहीं भूमि पर बैठ गया। आधे घंटे तक उसका फन चारो ओर घूमता रहा। आधे घंटे बाद नाभिमन अपनी आंखें खोलते.... “अमेया कहीं सुरक्षित है। यहां 3 लाशें गिरी थी चौथा मरने की कगार पर है। एक समुद्री मानव के साथ 7 परिग्रही, 1 रीछ स्त्री महाजानिका का साधक भी था। उसी साधक ने रीछ स्त्री के दिव्य खंजर को एक परिग्रही के हाथ में दिया था। सभी हत्याएं उसी खंजर से हुई थी। अलौकिक माया का प्रयोग भी किया गया था और शून्य काल का अंतर्ध्यान भी हुआ है।
सन्यासी शिवम्:– हे पाताल लोक के शासक साफ शब्दों में गुरु आर्यमणि और उनके परिवार के बारे में बताइये।
नभीमन:– मैं बिते कल में इस से ज्यादा नही देख सकता। ऐसा लग रहा था पूरे भू–भाग पर किसी ने मायाजाल फैलाया था। जरूर ये तांत्रिक अध्यात का काम होगा। वह यहां आया होगा और अपना जाल फैलाकर अंतर्ध्यान हुआ होगा।
विजयदर्थ:– महाराज वो सब तो समझे किंतु आर्य और उसका परिवार...
नभीमन:– मेरा दिल भारी हो रहा है। शायद 4 में से 3 की मृत्यु हो चुकी है और कोई एक जीवन और मृत्यु के बीच में है। इस से ज्यादा अभी मैं कुछ नही कह सकता...
काफी देर तक वहां मंथन होता रहा। अपस्यु अपने लोगों के साथ भी पहुंचा। उसने भी पूरी बात सुनी लेकिन कोई एक ऐसी बात नहीं थी जो दिल को संतुष्ट कर सके। न तो लाश मिल रहे थे न ही अल्फा पैक के कोई भी निशान। सातवे दिन सभी मायूस होकर वापस लौट आये।
टापू पर हुये कुरूर नरसंहार के 2 दिन बाद... मुंबई के एक गुप्त स्थान पर मनमोहक जश्न का माहोल चल रहा था। जिस्म की नुमाइश करती थिरकती हुई कमसिन और जवान लड़कियां। मंहगी जाम को अपने अदाओं से परोसती हुई दिलकश औरतें। और हाथो में जाम लहराते तात्कालिक प्रहरी के आला हुक्मरान। आर्यमणि और उसके पैक के सफाया के बाद, जिस्म और शराब का पूरा मनोरंजन चल रहा था। आज से कुछ वर्ष पूर्व और उसके कुछ वर्ष पूर्व भी, ऐसा ही जश्न का माहोल था, क्योंकि उस वक्त भी इन्होंने आर्यमणि की तरह सात्त्विक आश्रम के गुरुओं का शिकार करवाया था। हां लेकिन जितना नाक में दम आर्यमणि ने किया, उतना किसी से नहीं किया था।
प्रहरी में अपेक्स सुपरनैचुरल का राज था, जिनमे ज्यादातर नायजो समुदाय के लोग थे, जो किसी दूर, दूसरे ग्रह से पृथ्वी पर आये थे। ब्रह्मांड में जितने भी ग्रहों पर नायजो समुदाय के विषय में जानकारी थी, वह कुछ इस प्रकार थी..... “यह समुदाय काफी विकसित है और प्रकृति प्रेमी भी। आंखों से इनकी दिव्य रौशनी निकलती है जो इनके मस्तिष्क के अधीन होती है... अर्थात अगर नायज़ो समुदाय वाले किसी को घायल करने की सोच रहे तो आंखों की रौशनी केवल घायल करेगी... यदि मन में चल रहा हो की केवल डराना है, तब आंखों की रौशनी से केवल भय पैदा होगा।” बस यही इतनी जानकारी हर किसी के पास थी। दूर ग्रह से आये ये नायजो समुदाय वाले और क्या कर सकते थे, यह पूरा किसी को नही पता था, सिवाय अल्फा पैक के, जिन्होंने इन्हे काफी करीब से जाना था।
पुराने पन्नों को यदि पलटा जाए तब इतिहास में एक बहुत ही धूर्त साधक था, शूर्पमारीच। शूर्पमारीच जब अपनी नई सिद्धियों के लिये नायजो समुदाय के पास पहुंचा था, तब एक संधि हुई थी। नायजो समुदाय वालों ने शूर्पमारीच को जड़ी–बूटी के धुएं का ऐसा प्रयोग बताया था, जिसके माध्यम से वह किसी के दिमाग की यादों को जितना चाहे उतना मिटा सकता था। इसके अलावा किसी भी सिद्ध प्राप्त इंसान हो या अलौकिक जन्म लिया अवतार, उन्हे एक जगह बांधकर विवश करने की पूर्ण विधि नायजो समुदाय ने सिखाकर उसे इन कलाओं में निपुण किया था। बदले में नायजो ने अपनी गंभीर समस्या का इलाज मांगा था।
नायजो समुदाय उस दौड़ में विलुप्त की कगार पर खड़ा था। नर और मादा के मिलन से एक भी बच्चा पैदा नहीं हो रहा था। तब शूर्पमारीच ने नायजो समुदाय को ब्रह्मांड के 5 हिस्सों में बसाया था.… विषपर, हुर्रियंट, शिल्फर, गुरियन और पृथ्वी... यह सभी ग्रह विशाल फैले ब्रह्मांड के 5 हिस्से में थे। नायजो को इन सभी ग्रहों पर बसाने के उपरांत, चुपके से अन्य समुदाय के स्त्री और पुरुष को पकड़कर लाते और उनसे नए पीढ़ी पैदा करने की तैयारी करते।
शूर्पमारीच और नायजो का संधि साथ–साथ चल रही थी। शूर्पमारीच को सब सीखने में लगभग 3 वर्ष लगे, और इतने वक्त में कई बच्चों का जन्म हुआ। हां लेकिन सभी नवजात में नायजो के अनुवांशिक गुण नही आये। जिनमे भी नायजो समुदाय के गुण नही आये उनका जीवन आगे नही बढ़ा। बस यही एक भूल जो नायजो समुदाय पृथ्वी पर कर गये, नवजातों की हत्या। यह खबर पहले किसी राजदरबार में पहुंची और जब वो लोग इन तिलस्मी नायजो समुदाय से निपट नही पाए फिर योगियों और साधुओं की मदद मांगी।
उसी दौर से सात्त्विक आश्रम और नायजो के बीच जंग छिड़ी हुई थी। हां लेकिन सही मायनो में नायजो समुदाय की जीत तब हुई, जब धूर्त शूर्पमारीच ने पूरे सात्त्विक आश्रम को ही बर्बाद कर दिया। फिर तो जैसे पृथ्वी पर नायजो समुदाय का एकाधिकार हो चुका था। हालांकि शूर्पमारीच एक ऐसा रहस्य था, जिनसे नायजो समुदाय भी खौफ खाता था। ऐसा नही था कि सात्त्विक आश्रम कमजोर था या उन्हे हरा पाना आसान था। किंतु शूर्पमारीच के पास जितनी सिद्धि प्राप्त थी, उतना ही वो धूर्त भी था। खैर उन दिनों शूर्पमारीच और सात्त्विक आश्रम के द्वंद में सबसे ज्यादा फायदा नायजो वालों ने ही उठाया था।
शूर्पमारीच की अहम जानकारी उस अनंत कीर्ति के पुस्तक में भी थी। सात्विक आश्रम और शूर्पमारीच के प्रथम द्वंद में, शूर्पमारीच को लगभग समाप्त करने के बाद उस वक्त के तात्कालिक गुरु वशिष्ठ ने ही अनंत कीर्ति की पुस्तक का निर्माण किया था। पुस्तक के निर्माण के साथ ही प्रहरी समाज भी बना था, जिसका मुखिया उस पुस्तक में, विकृत जीव का विवरण और उन्हे कैसे रोका या समाप्त किया जाए, उसे वर्णित करते थे। प्रहरी समुदाय पर शुरू से नायजो समुदाय की पैनी नजर थी। जैसे ही सात्त्विक आश्रम बर्बाद हुआ, सबसे पहले प्रहरी समुदाय ही निशाना बना।
बहरहाल अतीत के पन्नो से लेकर तात्कालिक वर्तमान परिस्थिति में एक बात सामान्य थी, नायजो समुदाय पृथ्वी छोड़कर नही जाना चाहते थे। इसका प्रमुख कारण यह भी था कि यहां की नई पीढ़ी पहले से ज्यादा कुशल और उनका दीमाग उतना ही विकसित होता था। वर्तमान समय में जश्न में डूबा दूर ग्रह वाशी यह सुनिश्चित कर बैठा था कि उसने सात्त्विक आश्रम के होने वाले गुरु आर्यमणि की लीला समाप्त कर दी थी। अब वापस उस आश्रम को फलने फूलने में वक्त लगेगा.….
उसी महफिल के एक कोने में पलक भी थी, जो आर्यमणि और अल्फा पैक की खबर सुनकर कभी सदमे में रहती तो कभी उसे सब भ्रम लगता। शायद आर्यमणि नही मर सकता ऐसा उसे अंदर से यकीन था, लेकिन माया और विवियन का विश्वास देख पलक के अंदर का विश्वास डोल रहा था। पलक खुद में क्या महसूस कर रही थी, इस बात को तो वो खुद भी समझ नही पा रही थी। इसी बीच सुकेश भारद्वाज पलक के करीब पहुंचते.… "क्या हुआ तुम आज बुझी–बुझी सी हो? कहां गया पलक का जोश?"
पलक:– काका मुझे एक आखरी बार आर्यमणि से मिलना था। जब वो मर रहा होता तब उस से नजरें मिलानी थी..
सुकेश:– विवियन जैसे मारक के हाथ से आर्यमणि और उसका पैक बच चुका था। उसके शिकार के लिए माया को खुद आना पड़ा था। वहां तुम्हारा न होना ही अच्छा था। वरना आर्यमणि को जरा भी भनक लगती तब वह फिर बचकर भाग जाता...
"क्या बातें हो रही है"…. दूर ग्रह से आया एक परिग्रही जो रिश्ते में माया का भाई और पलक को दिल से पसंद करने वाला, मायस्प, ने पूछ लिया... पलक फिकी मुस्कान देती मायस्प के साथ उस पार्टी से निकल गयी। मायस्प के साथ चलते हुये भी बुझे मन में एक ही ख्याल चल रहा था... "हे ईश्वर, हे विनायक आर्यमणि और उसके पैक को सुरक्षित रखना”...
शायद पलक ये मानने से इंकार कर चुकी थी कि अल्फा पैक के साथ कोई घटना भी हो सकती थी। लेकिन इन सबमें सबसे बुरा हाल तो कहीं और ही था। सबसे पहले खबर भूमि को मिली। भूमि, पिछले कुछ वक्त से क्या कर रही थी, उसे होश ही नहीं, और जब होश आया फिर... दरअसल आर्यमणि के भागते ही भूमि के पति और नायजो समुदाय का एक होनहार मुखिया जयदेव ने भूमि को अपने बस में कर लिया था। संन्यासियों के संपर्क में आने के पूर्व ही जयदेव यह कांड कर चुका था।
भूमि को सम्मोहित कर अपने वश में करने के बाद ही नायजो को भूमि, आर्यमणि और कुलकर्णी परिवार के बीच की सारी बातें पता चली। नायजो का एक प्रमुख चेहरा सुकेश और मीनाक्षी भारद्वाज तब सकते में आ गये, जब उन्हे पता चला उसकी खुद की बेटी भूमि को उनपर शक है। भूमि के जरिए ही नायजो समुदाय को टर्की की शादी का पता चला था।
मुंबई में जश्न समाप्त करने के बाद जयदेव सीधा नागपुर पहुंचा। सबसे पहले तो उसने भूमि का सम्मोहन हटाया। जबतक भूमि सम्मोहित थी, तबतक उसे होश कहां की वो क्या कर रही थी, लेकिन जब सम्मोहन हटा तब सम्मोहित होने के दौरान भूमि ने जो भी की थी, हर वाक्या मानो सीने में नासूर जख्म बनकर उभर रहा था। खुद से घृणा होने लगी थी। भूमि, जयदेव का कॉलर पकड़कर उसे खींचकर लगातार थप्पड़ लगाती रही और जयदेव हर थप्पड़ के बाद जोड़ से हंसकर भूमि की चिढ को और बढ़ा रहा था।
अचानक ही जयदेव ने भूमि के पेट पर एक लात जमा दिया। काफी तेज लात लगी और भूमि कर्राहती हुई नीचे बैठ गयी। जयदेव भूमि का बाल पकड़कर, उसके चेहरे को ऊपर करते.… "तुझे बड़ा शौक था न जानने की... बहुत चूल मची हुई थी कि क्यों सुकेश और मीनाक्षी भारद्वाज को एक छींक तक नही आती? आखिर सरदार खान के बस्ती में ये लोग करने क्या जाते थे? क्यों ये लोग वेयरवुल्फ को बीस्ट वुल्फ बना रहे थे? तुझे ही शौक था न, नागपुर प्रहरी समूह अलग कर के हर बात पता लगाना की... तो नतीजा भुगतने को क्यों तैयार न थी? क्यों तुझे यह इल्म न हुआ की हम तुम्हारी पहुंच से कहीं ऊपर है? हम आसमान जितना ऊपर है और तुम सब एक कीड़े। तु जिस राह पर चल रही थी उसका एक छोटा सा परिणाम भुगतने पर इतना दर्द। हर किसी के दिल में यह एहसास रहे कि हमारे पीछे आने वालों का क्या अंजाम होता है... चल तेरे दर्द पर एक और छोटा सा घाव देता हूं... आर्यमणि और उसके पूरे पैक का सफाया हो गया है... उसे भी हमारे बारे में जानने की कुछ ज्यादा ही चूल मची हुई थी"…
जयदेव अपनी बात कहकर भूमि को 2 थप्पड़ लगाया और उस घर से निकल गया। भूमि पहले से हताश थी, ऊपर से आर्यमणि की खबर। भूमि पूर्ण रूप से टूट चुकी थी। बिलख–बिलख कर बस रोती रही। आर्यमणि की खबर उसके माता–पिता तक भी पहुंची। हर कोई जैसे सदमे में चला गया था। बहुत बुरा दौर से सभी गुजर रहे थे।
किसी अपने के खोने का गम नासूर होता है। सदमे से लोग उबर नहीं पाते। इकलौता वक्त होता है जो जीना सिखा देता है। आर्यमणि की मौसेरी बहन भूमि, पिता केशव कुलकर्णी और माता जया कुलकर्णी पर तो जैसे बिजली गिर गया था। कमजोर तो खैर ये तीनों भी नही थे। यादि मुकाबला खुद के जैसे सामान्य इंसानों से होता, फिर तो तीनो ही काफी थे लेकिन भूमि, जया और केशव को भी पता नही था कि किनसे उलझे थे...
आर्यमणि के गम में ऐसे बौखलाए थे कि तीनो ने मिलकर सुकेश, मीनाक्षी, उज्जवल, अक्षरा, जयदेव समेत 20 लोगों के मारने की पूरी प्लानिंग कर चुके थे। तय यह हुआ था कि सबको एक ही वक्त पर मारेंगे... और वह वक्त था, चित्रा और माधव कि शादी। शादी के पूर्व निशांत भी नागपुर पहुंचा किंतु उसने आर्यमणि के विषय में चित्रा को कुछ नही बताया। वहीं न सिर्फ चित्रा बल्कि उसकी मां निलंजना और पिता राकेश नाईक भी पूछते रहे। हर सवाल के जवाब में निशांत बस इतना ही कहता कि जबसे आर्य की शादी हुई है, कोई खबर नही की कहां घूम रहा है।