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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Tri2010

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भाग:–123


आर्यमणि:– तो जैसे की तुम सब अपने आंखों के आगे २ पुतले देख रहे हो, वह महज दो पुतले नही बल्कि 2 रॉयल ब्लड है। तुम सब पहले उन्हे देख और सुन लो, उसके बाद बात करेंगे...

आर्यमणि अपनी बात कहकर आंखों से मात्र इशारा किया और अगले ही पल जड़ें खुलने लगी। जड़ें नीचे से खुलना शुरू हुई और हर कोई नंगे बदन को खुलते देख रहा था। जड़ें जब खुलकर घुटने के ऊपर पहुंची तब तेजस और नित्या दोनो घुटने पर आ चुके थे। कमर के थोड़े ऊपर तक खुली तो धर को जमीन तक झुका चुके थे। और जब चेहरा खुला तो सर को मिट्टी में रगड़ रहे थे। अपने हाथों से खुदका बाल नोच रहे थे। सबसे आखरी में दोनो का मुंह खोला गया।

जैसे ही मुंह खुला भयावाह चींख चारो ओर गूंजने लगी। चिल्लाते हुये पागलों की तरह दौड़ रहे थे। दौड़ते–दौड़ते जमीन पर फरफराती मछली की भांति उछल रहे थे। खुद के सर को इतना तेज जमीन पर मार रहे थे कि मिट्टी को धंसा चुके थे। दर्द हावी था और गला फाड़ चींख में बस गिड़गिड़ाते हुये मौत की भीख मांग रहे थे।

हालांकि तेजस और नित्या पूर्ण रूप से आजाद थे और एक दूसरे को मार सकते थे, लेकिन पल–पल मौत मेहसूस करवाती दर्द मे दिमाग कितना काम करे। और जो लोग वीडियो देख रहे थे, वो लोग अपने समुदाय के 2 रॉयल ब्लड का यह हाल देखकर खौफ के साए में चले गये। आर्यमणि का एक बार फिर इशारा हुआ और देखते ही देखते दोनो वापस जड़ों के बीच पूर्ण रूप से कैद हो चुके थे। कैद होने क्रम में ही दोनो का चेहरा फोकस करके दिखाया गया, जिसे देखकर सबका मुंह खुला रह गया। पहले सिर्फ रॉयल ब्लड समझ रहे थे लेकिन जब पहचान हुई फिर तो..... पहचान होने के बाद तो देख रहे सभी नायजो अपना सर पकड़कर बैठ गये।

आर्यमणि:– तो देखा तुम सबने कैसे मौत की भीख मांगी जाती है। मुझसे लड़ने आने वालों को सिर्फ इतना ही कहूंगा, मैं तुम्हारे अंदर वो दर्द और भय डाल दूंगा, जिसे मेहसूस कर खुद ही मौत की भीख मांगोगे... मुझे अब आखरी में 2 बातें कहनी है... पहली बात ये की क्या मैं इन्हे जिंदा छोड़ दूं?

आर्यमणि अपनी बात कहकर, जयदेव, सुकेश और पलक का माइक ऑन किया। ये तीनों भी अब एक दूसरे को देख सकते थे। जैसे ही माइक ऑन हुआ चिल्लाते हुये केवल धमकी ही मिल रही थी...

रूही:– ओ खजूर लोग हमारा वक्त बर्बाद मत करो। जिंदा छोड़ दूं, या मार दूं...

पलक:– उन्हे जिंदा छोड़ दो...

रूही:– ठीक है इन्हे छोड़कर हम जा रहे। बाकी डिटेल जान तुम बता दो...

आर्यमणि:– पहले दूसरी बात कह देता हूं। पलक कल तुम अपने कुछ साथी के साथ मुझसे वुल्फ हाउस मिलने आ सकती हो। हां लेकिन उस इकलाफ को लाना मत भूलना...

पलक:– बिलकुल आर्यमणि मैं वहां पहुंच जाऊंगी। कोई समय निर्धारित किये हो?

आर्यमणि:– आज रात ही हम वहां पहुंच जायेंगे, उसके बाद तुम कभी भी आ सकती हो। खुद ही आना किसी दूसरे को अपनी जगह मत भेजना। वैसे तुमने वुल्फ हाउस का पता नही पूछा... लगता है पहले से सब पता किये बैठी हो।

पलक:– हां वो तो तुम्हे भी पता है कि मुझे पता है कि वुल्फ हाउस का पता क्या है। अब ये बताओ, तेजस दादा और अजूरी (नित्या का प्रवर्तित नाम) को जिंदा छोड़ रहे या नही ..

पलक की बात पर आर्यमणि जोर से हंसते.... “यहां कोई इंसानी शिकारी नही जो तुम प्रहरी के पुरानी भगोड़ी और वर्धराज कुलकर्णी पर जिस वेयरवोल्फ नित्या को भगाने का इल्जाम लगा, उसे तुम अजुरि पुकारो। तेजस और नित्या ब्लैक फॉरेस्ट के हिस्से में एक पड़ने वाले एक शहर एन्ज में है। मैने धीमा जहर दिया है जो अपने शिकार को 8 घंटे से पहले नही मारता। अभी जहर दिये मात्र आधा घंटा हो रहा है। बचा सकती हो तो बचा लेना...

आर्यमणि अपनी बात कहकर वीडियो ऑफ कर दिया। वीडियो ऑफ करने के बाद तेजस और नित्या के चेहरे को खोल दिया गया। दोनो के दर्द से बिलबिलाये चेहरे देखने लायक थे।

आर्यमणि:– देखो तुम तो अपने लिये मुझसे मौत मांग रहे थे, लेकिन मैने तुम्हारे समुदाय को खबर कर दिया है। वो लोग शायद तुम्हे बचा ले....

उन्हे चिल्लाते और गिड़गिड़ाते छोड़ पूरा अल्फा पैक निकल आया। कुछ देर में वापस से उनका मुंह बंद हो गया। संन्यासी शिवम्, ओजल और इवान के साथ पहले से वुल्फ हाउस में थे। रात के तकरीबन 10 बजे पूरा वुल्फ पैक भी पहुंच गया। सब के सब लगभग 60 किलोमीटर की रेस लगाकर आ रहे थे। हां एक निशांत था, जो दौड़ नही रहा था, बल्कि आर्यमणि उसे कंधे पर उठाये दौड़ रहा था। रात में किसी से किसी भी प्रकार की बात नही हुई। सभी आराम करने चल दिये।

दूसरी ओर पलक को खबर लगते ही वह भी निकल चुकी थी। उसकी पूरी पलटन ही वुल्फ हाउस के नजदीकी टाउन में थी। नित्या का रोल अब भारती को अदा करना था, इसलिए पूरे 1200 एलियन उसी के कमांड में थे। महा की 400 की टुकड़ी ब्लैक फॉरेस्ट से लगे किसी दूसरे शहर में थी जहां से वुल्फ हाउस 40–45 किलोमीटर पर था।

पलक और उसके 30 विश्ववासनीय लोग प्राइवेट एयरोप्लेन से निकले। 7.३0 बजे तक पलक एन्ज शहर में थी। थोड़ी सी छानबीन के बाद उन्हें एक वीरान सी जगह पर तेजस और नित्या भी मिल गये। पलक और उसके अपने लोगों के अलावा वहां कई सारे वाहन और भी पहुंचे, जिनमे तकरीबन 200 प्रथम श्रेणी के नायजो थे जो सब के सब रॉयल ब्लड के थे। उन सबको लीड भारती ही कर रही थी।

पलक:– भारती तुम यहां क्यों आयी हो?

भारती:– तुम ये मिशन लीड कर रही हो, तो वहीं तक रहो। बाकी अभी तुम्हारी इतनी हैसियत न हुई की मुझसे सवाल करो... रांझे रुके क्यों हो जाकर मेरी बहन और तेजस को छुड़ाकर लाओ...

पलक थोड़ा शॉक होती.... “नित्या तुम्हारी बहन है???”

भारती:– अपनी सगी बहन। बाप भी एक और इंसानी मां की कोख भी एक। समझी क्या?

पलक, अपने लोगों को लेकर किनारे खड़ी होती.... “तुम करो, कोई मदद की जरूरत हो तो याद कर लेना”

भारती उसकी बात पर ध्यान न देकर सामने देखने लगी। वह एलियन रांझे 40–50 लोगों को लेकर पहुंचा और जड़ों को काटकर हटाने लगा। अतिहतन काटकर हटाता रहा। हटाता रहा... हटाता रहा... देखते, देखते लोगों की आंखें पथरा गयी। शाम के 7.30 से देर रात 12 बज गया, लेकिन जड़ था की खत्म होने का नाम ही नही ले रहा था। जैसे शाम 7.30 बजे पुतला खड़ा था, ठीक वैसे ही 12 बजे तक वो पुतला खड़ा था।

भारती और बाकी के लोग वहां जमीन पर ही आसान लगाकर बैठ गये। जब भारती से बर्दास्त न हुआ तब वह कॉल लगाई। यह कॉल सीधा विशपर प्लेनेट के राजा से कनेक्ट हुआ। भारती संछिप्त में उसे पूरी जानकारी दे चुकी थी।

राजा:– नजदीक से दिखाओ मुझे उन जड़ों को... हम्मम... ये बेल की जड़ें है जो पृथ्वी से निकल रही। किसी मंत्र के वश में है। वो जो आश्रम का गुरु था, वो नित्या और तेजस को मारना चाहता था क्या?

भारती:– पता नही...

राजा:– पलक है क्या वहां?

भारती:– हां यहीं है ..

पलक:– बोलिये राजा करेनाराय जी...

राजा:– पलक क्या वो जो आश्रम का गुरु था, वो दोनो को मारना चाहता था?

पलक:– नही... बिल्कुल नही...

भारती:– तुम्हारा एक्स बॉयफ्रेंड था न, इसलिए उसे अच्छा दिखा रही..

पलक:– जिस हिसाब से दोनो चिंख कर अपने मौत को पुकार रहे थे, विश्वास मानो यदि आर्यमणि उन्हे मार देता तो मैं उसे अच्छा कह सकती थी। खैर अब तक तुम जिंदा रहने और मरने का फर्क नहीं जानती इसलिए इतनी जुबान खुल रही है। राजा करेनाराय जी वो दोनो को नही मरेगा, ये पक्का है।

राजा करेनाराय:– तो फिर इंतजार करो उसका तिलिस्म अपने आप टूटेगा...

उनलोगो ने राजा की बात मानकर कुछ देर इंतजार किया। रात के तकरीबन 1 बजे जड़े अपने आप जमीन में गयी और वहां मौजुद हर किसी का हाथ अपने कान पर। नित्या और तेजस की वो भयावाह चींख और अपने ही हाथों से अपना बाल नोचना। पिछले 7 घंटों से दोनो मौत को भयभीत करने वाले दर्द को झेल रहे थे।

भारती भागकर नित्या के पास पहुंची जबकि पलक तेजस के पास। दोनो के साथ एक जैसा व्यवहार हुआ। तेजस और नित्या, पलक और भारती को धक्का देकर बिलखते और चिल्लाते हुए अपने आंखों से लेजर चलाने लगे। कभी लेजर चलते तो कभी अपना सर जमीन पर पटक रहे थे... “मार दो, मार दो, कोई तो मार दो”..

भयवाह मंजर था। भारती को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वो हसरत भरी नजरों से पलक को देखती.... “कुछ तो करो”..

पलक:– इन्हे तगड़ा बेहोश करो और नजदीकी साइंस लैब जल्दी लेकर पहुंचो। वहीं इसका उपचार होगा...

तेजस और नित्या को तुरंत ही बेहोश किया गया। दोनो जब बेहोश हुये उसके बाद तो ऐसा लगा मानो चारो ओर का माहोल पूर्णतः शांत होकर खुशियां बिखेड़ रहा हो।

भारती:– पलक तुम्हारे साथ मैं भी आर्यमणि से मिलने जाऊंगी.... कल के कल वो मेरे हाथों से मरेगा...

पलक:– भारती लेकिन सब पहले से तय हो चुका था न...

भारती:– तय वय को रहने दो और मैं अपने लोगों के साथ अंदर जाऊंगी... तुम्हारा मन हो तो भी, न मन हो तो भी...

पलक:– ठीक है पहले तुम अपने लोगों को लेकर जाना... काम न बना तो पीछे से मैं आऊंगी....

सभी बातें तय हो तो गयी लेकिन तेजस और नित्या के चक्कर में रात काफी हो गयी थी। इसलिए कल की मुलाकात से पहले एक अच्छी नींद सबको चाहिए थी।

8 मार्च की सुबह वोल्फ हाउस के बहुत बड़े से हॉल के बहुत बड़े से डायनिंग टेबल पर पूरा वुल्फ पैक बैठा हुआ था। किचन ओजल और रूही देख रही थी बाकी सब आराम से टेक लगाये थे। चाय–काफी के साथ गरम नाश्ता परोसा जा रहा था।

संन्यासी शिवम:– गुरुदेव आपको क्या लगता है। पहले बात चीत होगी फिर युद्ध या पहले युद्ध होगा और युद्ध में हारने की परिस्थिति में बातचीत करने आयेंगे...

ओजल:– इतनी मेहनत से बनाया है, क्या आप सब पहले इसे खायेंगे...

ओजल की इस तुकबंदी पर सब हंसने लगे। हंसी मजाक के बीच सुबह के नाश्ते से लेकर दोपहर के खाने तक सब बड़े से हॉल के डायनिंग टेबल पर चलता रहा। सभी की हंसी मजाक चल रही थी, इसी बीच स्क्रीन पर चल रही हलचल को देख अलबेली.... “लगता है मेहमान आ गये। दादा, बहुत खा लिया है अब आराम करने की इच्छा हो रही। उनसे कहो 2 घंटे बाद आये।”

आर्यमणि, स्क्रीन को देखते... “ऐसा क्या?”... उधर पलक बहुत सारे भीर के साथ वुल्फ हाउस के दहलीज की सीमा तक पहुंच चुकी थी। सीमा पर बड़ा सा बोर्ड टंगा था, जिसपर खतरा लिखा हुआ था। खतरे के उस बोर्ड के पास पलक चारो ओर घूमकर देख भी रही थी और कानो पर अपने हाथ इस प्रकार रखी थी मानो बात करने के लिये फोन उठाया है।

पलक शायद बात करने का इशारा कर रही थी, और तभी एक ड्रोन उसके कदमों में आकर रुका। पलक एक बार ड्रोन को देखी और उसमे रखा फोन उठाकर... “हेलो, क्या हम आ सकते है?”

आर्यमणि जम्हाई लेते.... “अभी–अभी दिन का खाना हुआ है। वैसे भी रात को चौकीदारी करते–करते सुबह हो गयी थी, इसलिए 2 घंटे बाद आना। अभी हम सब आराम करने जा रहे।”

पलक गुस्से से.... “तुम हमारे सब्र का इम्तिहान ले रहे?”

भारती:– क्या कह रहा है?

पलक:– 2 घंटे बाद आने कह रहा है।

भारती पूरे तैश में आती.... “मेरे शिकारियों, इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि जमीन पर कोई भी ट्रैप नही है। ना ही कोई ट्रैप वायर, न कोई बिजली और न ही गड्ढे खोदकर कोई डेथ ट्रैप बनाया गया। महल तक सीधा दौड़ लगा दो...

“नही रुको... सुनो”.... पलक कहती रही लेकिन कोई न सुना। 200 फर्स्ट और सेकंड लाइन सुपीरियर शिकारी एक साथ दौड़ लगा चुके थे। सीमा से कुछ दूर अंदर जाकर जैसे ही वो जंगल में ओझल हुये ठीक उसी वक्त आंखों के सामने बहुत सारे पेड़ चरमरा कर जमीन में घुस गये और कुछ देर पहले जहां बड़े–बड़े पेड़ खड़े थे, वहां के कुछ हिस्सों से पेड़ों का नामो निशान गायब था और उसकी जगह मैदान दिख रहा था जिसपर घास उगे थे, लेकिन कहीं कोई शिकारी नजर नहीं आ रहा था।...

“हेल्लो... हेल्लो”... पलक के फोन से आवाज आ रही थी। पलक फोन उठाती.... “मेरे शिकारी कहां गायब हो गये?”

आर्यमणि:– और बिना इजाजत अंदर घुसो। सभी शिकारी सुरक्षित है, लेकिन अब यदि बिना इजाजत अंदर घुसे तब न तो वो शिकारी सुरक्षित रहेंगे और न ही जबरदस्ती घुसने वाला...

पलक:– और मै जबरदस्ती आऊं तब?

आर्यमणि:–अब तुम्हे थोड़े न असुरक्षित रखेंगे। तुम्हे अंदर लेंगे बाकी के सभी लोग असुरक्षित। इसलिए बात मानो और 2 घंटे इंतजार करो।

पलक गुस्से का घूंट पीती... “क्या यही तुम्हारी मेहमाननवाजी है? कल तो खुद ही कहे थे किसी भी समय आने, अब आज क्या हो गया?”

रूही:– हां कह तो वो सही रही है बॉस। कल तुमने ही किसी भी वक्त आने के लिये कहा था।

आर्यमणि:–हम्मम, माफ करना पलक, मैं जरा नींद में था। ठीक है, तुम अपने कुछ साथियों के साथ आ सकती हो। हां और वो लड़का तो जरूर साथ होना चाहिए, क्या नाम था उसका...

पलक:– नाम था नही, नाम है एकलाफ। हां वो मेरे साथ ही है। कुछ लोग मतलब कितने लोग के साथ आऊं?

आर्यमणि:– तुम्हारा रूतवा तो देख रहा हूं, बड़ी अधिकारी हो गयी हो। तुम्हारी सुरक्षा के लिये इतने सारे लोग। देखो 4–5 लोगों के साथ आ जाओ। मैने तुम्हे बुलाया है तो इस बात के लिये सुनिश्चित रहो की तुम्हे यहां कोई खतरा नहीं। हां लेकिन तुम्हारे साथ जो दूसरे आयेंगे, वो अपनी जुबान और हरकत के लिये खुद जिम्मेदार होंगे। ये बात समझा देना।

पलक, भारती से.... “वो 4–5 लोगों के साथ ही बुला रहा है भारती। क्या करना है?

भारती, पलक के हाथ से मोबाइल छिनती..... “सुन बे चूहे, तुझे छिपकर मारने में मजा आता है। यहां जाल बिछाकर क्या तू खुद को शेर समझ रहा, दम है तो मुझे अंदर आने दे, फिर देख मैं तेरा क्या हाल करती हूं??

आर्यमणि:– अब तुम कौन हो?

भारती:– मैं उसी नित्या की बहन हूं, जिसे कल तुमने मार डाला...

आर्यमणि:– नित्या मर गयी। लानत है तुम लोगों पर, उसकी जान न बचा पाये। अच्छा बहन की मौत का बदला। हम यहां 7 लोग है। ये बताओ तुम वीर प्रजाति के लोग हो, कितने लोगों के साथ मुझसे बदला लेने आओगी?

भारती इस से पहले कुछ कहती, पलक माइक को कवर करती..... “बहुत चालाक है वो। तुम्हे उकसा कर कम लोगों के साथ अंदर बुलाना चाह रहा।”

भारती:– हम्म्म.. ठीक है देखती जाओ फिर। सुन ओ कीड़े, यहां नित्या के 500 सगे संबंधी है जो तुम्हे मारकर अपना बदला लेना चाहते है। साथ में तेजस के भी सगे संबंधी है। तो अब बता कितनो को बदला लेने अंदर बुला रहा। मैं तो अकेले ही आउंगी। बदला लेने वालों की संख्या सुनकर तेरी फटी तो नही न?

आर्यमणि:– कितनी फटी है वो भी चेक कर लेंगे। बदला लेने वाले लोग एक कतार बनाकर अंदर आना शुरू कर दो। बात करने वाले अभी पीछे खड़े रहेंगे...

भारती, फोन लाइन काटती... “भार में गया सुरंग से जाना, अब तो सीधा सामने से घुसेंगे।”
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Tri2010

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भाग:–124


भारती, फोन लाइन काटती... “भार में गया सुरंग से जाना, अब तो सीधा सामने से घुसेंगे।”

पलक:– ये भूल कर रही हो। वह पहले से तैयारी करके बैठा है। अभी–अभी उसने हमारे 200 शिकारी को गायब कर दिया। हमारा एक भी बग अब तक ये पता नही लगा पाया की आखिर उसने महल में और उसके आस–पास कैसा ट्रैप बिछा रखा है?

भारती:– तुम अब भी नही समझ पायी की कैसा ट्रैप है तो तुम बेवकूफ हो। जो वेयरवोल्फ कमाल के हिलर हो और कभी किसी इंसान को जाने–अनजाने में अपनी बाइट से अपने जैसा वेयरवोल्फ न बनाया हो, वह पेड़–पौधों तक हील कर सकते हैं। इसके बदले उन्हें एक अनोखी शक्ति मिलती है, अपने क्ला से वो कहीं भी जड़ों को निकाल सकते है। लोगों को उन जड़ों में फसा सकते है। और ये आर्यमणि तो खुद को प्योर अल्फा कहता है, इसका मतलब समझती हो?

पलक:– क्या?

भारती:– “इसके काटने या नाखून से छीलने पर भी कोई वेयरवॉल्फ नही बनेगा। इसके पैक के जितने भी लोगों ने ब्लड ओथ लिया होगा, उन सब में ये गुण पाये जायेंगे। लेकिन ये लोग एक बात नही जानते की मैं निजी तौर पर ऐसे ही एक वेयरवोल्फ से निपट चुकी हूं, नाम था अल्फा हीलर फेहरीन।”

“इन्हे क्या पता कैसे मैने अकेले ही फहरीन को धूल चटाकर उसके पैक को खत्म की थी। इन चूतियो को क्या पता की फेहरिन जैसे मेरे पाऊं को चाटकर जिंदा छोड़ने की भीख मांगी थी, और मैने मौत दिया था। बस अफसोस की उसके बच्चे नही मिले, जिसके लिये वो गिड़गिड़ाई थी, वरना उसे तड़पाने में और भी ज्यादा मजा आता। इन चूजों (अल्फा पैक) को अपने नई शक्ति पर कूदने दो। जब मेरे शिकारी उनके जड़ों के तिलिस्म को तोड़ेंगे तब उन्हे पता चलेगा...

पलक अपने मन में सोचती..... “हरामजादी अपनी बहन को तो जड़ों के बीच से निकाल नही पायी, यहां डींगे हांकती है। जा तू फसने, तुझे भी तेरी बहन जैसी मौत मिले”.... “क्या हुआ किस सोच में पड़ गयी।”.... पलक अपने विचार में इस कदर खो गयी की वह भारती की बात पर कुछ बोली ही नही। भारती ने जब उसे टोका तब अपने विचारों के सागर से बाहर आती..... “मैं तो ख्यालों में थी कि कैसे आर्यमणि तुम्हारे सामने गिड़गिड़ा रहा है।”

भारती:– पहले उस कमीने आर्यमणि को धूल चटा दूं, फिर तुम भी उसका गिड़गिड़ाना देख लेना। चलो अब हम चलते हैं।

भारती का एक इशारा हुआ। आधे घंटे में तो जैसे वहां जन सैलाब आ गया था। 400 महा की टीम और 200 नायजो को छोड़कर 800 की टुकड़ी के साथ भारती कूच कर गयी। सभी प्रथम श्रेणी के नायजो भारती के साथ चल रहे थे। भारती हर कदम चलती अपने लोगों में जोश का अंगार भरती उनका हौसला बुलंद कर रही थी।

वहीं अल्फा पैक आराम से अपने डायनिंग टेबल पर अंगूर खाते उन्हे आते हुये देख रहा था।..... “जे मायला... इन्हे सुरंग के अंदर दबाने की योजना अब सपना हो गया।”

आर्यमणि:– अलबेली, खुद पर भरोसा करो और दुश्मन को कभी भी...

अलबेली:– कमजोर नही समझना चाहिए... चलो मेरे होने वाले सैयां (इवान), और मेरी ननद (ओजल) इन्हे पैक किया जाये।

आर्यमणि:– नही, बाहर किसी को पैक मत करना। सब अंदर आते जायेंगे और पैक होते जायेंगे। पैकिंग का काम रूही, संन्यासी शिवम सर और निशांत देखेंगे... तुम तीनो दरवाजे की भिड़ को पीछे ट्रांसफर करोगे..

ओजल, छोटा सा मुंह बनाती.... “जीजाजी नही... कितना हम दौड़ते रहेंगे।”

रूही:– ओ जीजाजी की प्यारी समझदार साली, किसने कहा पैक लोगों को कंधे पर उठाकर दौड़ लगाओ।

अलबेली:– फिर कैसे करेंगे...

रूही:– जड़ों में लपेटो और उन्हे सीधा वुल्फ हाउस के पीछे पटको...

इवान:– नाना.. हम तीनो मिलकर जड़ों का स्कैलेटर बनायेंगे।(वह सीढ़ी जो मशीन के दम पर अपने आप चलती है।) आओ पैक हो और स्केलेटर से ट्रांसफर होते जाओ।

अलबेली:– पर बनायेंगे कैसे... गोल घूमने वाले बॉल–बेयरिंग कहां से लाओगे..

ओजल:– वो भी हम जड़ों का बना लेंगे, सोचो तो क्या नही हो सकता...

अलबेली:– हां तो ठीक है शुरू कर दो...

तीनो ने मिलकर जड़ों को कमांड दिया। दिमाग में चित्रण किया और दिमाग का चित्रण धरातल पर नजर आने लगा। 5 फिट चौड़ा और 600 मीटर लंबा स्कैलेटर तैयार था, जो बड़े से हॉल से होते हुये नीचे के विभिन्न हिस्सों से गुजरते, पीछे जंगल तक जा रहा था। पीछे का हिस्सा, वुल्फ हाउस से तकरीबन 4 किलोमीटर दूरी तक, सब आर्यमणि की निजी संपत्ति थी। हां जंगल विभाग की केवल एक शर्त थी, जंगल का स्वरूप बदले नही।

आर्यमणि ने जंगल का स्वरूप नही बदला। पीछे का पूरा इलाका तो जंगल ही था, लेकिन वुल्फ हाउस की निजी संपत्ति की सीमा पर चारो ओर से 40 फिट की ऊंची–ऊंची झाड़ की दीवार बन गयी थी। एक मात्र आगे का हिस्से से ही वुल्फ हाउस में सीधा प्रवेश कर सकते थे। पिछले हिस्सें को शायद आर्यमणि ने इसलिए भी घेर दिया था ताकि स्थानीय लोग वहां चल रहे गतिविधि को देख ना पाये। खासकर उस जंगल के रेंजर मैक्स और उसकी टीम।

वुल्फ हाउस की दहलीज जहां पर खतरा लिखा था, उस से तकरीबन 400 मीटर अंदर वुल्फ हाउस का प्रांगण शुरू होता था। वोल्फ हाउस किसी महल से कम नही था जो 4000 स्क्वायर मीटर में बना था। जैसे ही वुल्फ हाउस के प्रांगण में घुसे सभी नायजो फैल गये। घर में चारो ओर से घुसने के लिये पूरी भिड़ कई दिशा में बंट गयी। सामने से केवल भारती और उसके 200 प्रथम श्रेणी के गुर्गे प्रवेश करते। प्रवेश द्वार पर खड़ी होकर भारती ने हुंकार भरा... “आगे बढ़ो और सबको तबाह कर डालो, बस मारना मत किसी को।”

भारती की हुंकार और 16 फिट चौड़ा उस मुख्य दरवाजे से सभी नायजो घुसने लगे। भारती जब प्रवेश द्वार पर पहुंची थी, तब आंखों के सामने ही बड़े से हॉल में पूरा अल्फा पैक अंगूर खाते नजर आ रहा था। भारती का इशारा होते ही नायजो चिल्लाते हुये ऐसे भिड़ लगाकर दौड़े की भारती को हॉल के अंदर का दिखना बंद हो गया।

जो नायजो चिल्लाते और चंघारते प्रवेश द्वार के अंदर घुस रहे थे, उनका चिल्लाना पल भर में शांत हो जाता। जिस प्रकार टीवी के एक विज्ञापन में ऑल–आउट नामक प्रोडक्ट को चपाक–चपाक मच्छर पकड़े दिखाते है, ठीक उसी प्रकार नायजो की भी वो प्लास्टिक अपने सिंकांगे में ऐसा सिकोड़ लेती की उनकी हड्डियां तक कड़कड़ाकर सिकोड़ने पर मजबूर हो जाती।

हां वो अलग बात थी कि जो नियम नाक पर लागू होते थे... अर्थात वह प्लास्टिक जब सिकोड़ना शुरू करेगी और नाक पर कोई सतह न होने की वजह से वह प्लास्टिक सिकोडकर नाक के छेद के आकार से टूट जायेगी और उसके बाहरी और भीतरी दीवार से जाकर चिपकेगी। ठीक उसी प्रकार से मुंह पर भी हुआ। नाक से स्वांस लेने के अलावा मुंह से चीख भी निकल रही थी। चीख जो हड्डियां कड़कने, अपने सभी मांशपेशियों को पूरी तरह से सिकुड़ जाने और खुद को कैद में जानकर एक अनजाने भय में निकल रही थी।

हो यह रहा था की एक साथ 10 लोग अंदर घुसते। घुसते वक्त युद्ध की ललकार और गुस्से की चींख होती और घुसते ही चीख दर्द और भय में तब्दील हो जाती। 10 के दर्द से चीखने की संख्या हर पल बढ़ रही थी, क्योंकि एलियन हॉल में लगातार प्रवेश कर रहे थे और प्रवेश करने के साथ ही चिपक रहे थे।

आर्यमणि:– छोटे यह बताना भूल गया की इनका मुंह भी पैक नही होता। अल्फा पैक के सभी वोल्फ, पैक हुये समान का मुंह तुम सब मैनुअल पैक करो। बाकी निशांत और शिवम् सर उन सबको पैक करेंगे...

रूही:– हुंह... और तुम डायनिंग टेबल पर टांग पर टांग चढ़ाकर गपागप अंगूर खाते रहो।

आर्यमणि:– जल्दी जल्दी काम करो... उसके बाद का इनाम सुनकर यदि तुम खुश ना हुई तो फिर कहना...

रूही:– मैं खुश ना हुई न आर्य तो तुम सोच लेना... चलो बच्चों मालिक का हुकुम बजा दे..

अब भीड़ आ रही थी और पैक होकर खामोशी से स्कैलेटर पर लोड होकर पीछे डंपिंग ग्राउंड में फेंका जा रहा था।

घर के दाएं, बाएं और पीछे से जो लोग घुसने की कोशिश कर रहे थे, वो सब एक कमांड में ही पैक होकर जमीन पर गिरे थे।.... “आर्य घर के दाएं, बाएं और पीछे के इलाकों पर पैकेज बिछ गये है। जाओ उन्हे बिनकर (पकड़कर) डंपिंग ग्राउंड में फेंक देना। ओह हां और सबके मुंह भी पैक कर देना। अभी तो भीड़ की ललकार में उस औरत (भारती) को समझ में न आ रहा की दाएं, बाएं और पिछे से उसके लोग चिल्ला रहे। लेकिन कुछ ही देर में सब जान जाएंगे।”

“ऐसे कैसे जान जायेंगे”.... निशांत की बात का जवाब देते आर्यमणि सीधा होकर बैठा और अपने लैपटॉप की स्क्रीन को एक बार देखकर अपनी आंखें मूंद लिया। देखते ही देखते जमीन पर पैक होकर पड़े सभी 600 नायजो का मुंह पैक हो चुका था और अगले 5 सेकंड में सभी नायजो को जड़ों में लपेट कर डंपिंग ग्राउंड पर फेंक दिया गया।

वहां का सीन कुछ ऐसा था.... भारती सामने से 200 लोगों को लेकर वुल्फ हाउस के प्रवेश द्वार पर पहुंची और बाकी के 600 लोग दाएं, बाएं और पिछे से घुसने की कोशिश करने वाले थे। जिस पल भारती प्रवेश द्वार के सामने पहुंची, ठीक उसी पल एक छोटे से कमांड पर घर के चारो ओर फैले नायजो पैक हो चुके थे। प्रवेश द्वार से 200 नायजो चिल्लाते हुऐ अंदर प्रवेश कर रहे थे और पैक होकर सीधा स्कैलेटर पर लोड हो जाते।

मात्र 10 सेकंड का यह पूरा मामला बना, जब आर्यमणि ने बिना वक्त गवाए बाहर की भिड़ को एक साथ डंपिंग ग्राउंड पर फेंक दिया। वहीं घर के अंदर घुस रहे लोग स्कैलेटर पर लोड होकर डंपिंग ग्राउंड तक पहुंच रहे थे। 16 फिट चौड़ा दरवाजे से आखिर 200 लोगों को अंदर घुसने में समय ही कितना लगेगा... एक मिनट, या उस से भी कम।

भीर जब छंटी तब चिल्लाने की आवाज भी घटती चली गयी और बड़े से हॉल में जब भारती ने देखा तब वहां भीर का नामो–निशान तक नही। बस दरवाजे पर मुट्ठी भर लोग होंगे जो एक बार चिल्लाए और अंदर का नजारा देखकर उनकी चीख मूंह में ही रह गयी। परिस्थिति को देखते हुये वो लोग उल्टे पांव दौड़ना शुरू कर दिये। उन भागते लोगों में भारती भी थी। सभी के पाऊं में जड़ फसा। सब के सब मुंह के बल गिरे और अगले ही पल घर के अंदर। जड़ें उन्हे खींचते हुये जैसे ही हॉल के अंदर लेकर आयी, हॉल के प्रवेश द्वार से लेकर आर्यमणि तक पहुंचने के बीच सभी प्लास्टिक में पैक थे। इधर खुन्नस खाये अल्फा टीम के सदस्य बिना वक्त गवाए उन्होंने भी सबके मुंह को चिपका दिया।

आर्यमणि:– अब ये क्या है... इन लोगों को तो पैक न करते। और तुम सब में इतनी तेजी कहां से आ गयी की मुझ तक पहुंचने से पहले सबका मुंह पैक कर दिये।

रूही:– जिसे तुम तेजी कह रहे, उसे खुन्नस कहते हैं।

आर्यमणि:– पर खुन्नस किस बात का...

रूही:– तुम्हारा टांग पर टांग..

आर्यमणि:– बस रे, काम खत्म करने दो पहले। वैसे मैंने एक ऑडियो को हेड फोन लगाकर सुना था, क्या तुम में से कोई उसे सुनना चाहेगा...

अलबेली:– बॉस जितना लहराकर आप अपनी बात खत्म करते हो, उतने देर में 100 कुत्ते पैक होकर डंपिंग ग्राउंड पहुंच चुके होते हैं। जल्दी सुनाओ वरना आगे का काम देखो...

आर्यमणि मुस्कुराकर वह ऑडियो सबके सामने चला दिया, जिसे अब से कुछ देर पहले भारती बड़े शान से कह रही थी। फेहरीन के मृत्यु के विषय की बात... उसे सुनने के बाद फिर कहां अल्फा पैक रुकने वाला था। फेस रिकॉग्नाइजेशन से सिर्फ भारती को खोजा गया और बाकियों को डंपिंग ग्राउंड में फेंका गया।

डायनिंग टेबल की एक कुर्सी पर भारती को बिठाकर, उसके चेहरे के प्लास्टिक को रूही ने अपने पंजे से नोच डाला। भारती कुछ कहने के लिये मुंह खोली ही थी, लेकिन कुछ कह पाती उस से पहले ही रूही ने ऐसा तमाचा जड़ा की उसके दांत बाहर आ गये। हां रूही भी अपने हथेली में टॉक्सिक भरकर भारती को मारी थी, लेकिन भारती के शरीर में अब भी एक्सपेरिमेंट दौड़ रहा था इसलिए उसपर इस थप्पड़ का कोई असर न हुआ।

फिर ओजल और इवान भी पीछे क्यों रहते। वो भी थप्पड़ पर थप्पड़ जड़ रहे थे। कुछ देर तक भारती ने थप्पड़ खाया किंतु वह भी अब बिना किसी बात की प्रवाह किये जवाबी हमला बोल दी। बंदूक के गोली समान उसके आंखों से लेजर निकल रहे थे और घर के जिस हिस्से में लगते वहां बड़ा सा धमाका हो जाता।

भारती:– मेरे आंखों की किरणे तुम में से किसी को लग क्यों नही रही...

अलबेली, इस बार उसे एक थप्पड़ मारती..... “तुझे हम निशांत भैया के भ्रम जाल के बारे में विस्तृत जानकारी तो नही दे सकते, लेकिन दर्द और गुस्से से गुजर रहे मेरे दोस्त तुम्हे दर्द नही दे पा रहे, और तू कई बाप की मिश्रित औलाद जो ये समझ रही की तुझे कुछ नही हो सकता, उसका भ्रम मैं हटा दे रही हूं।”

अलबेली अपनी बात कहकर अपने पूरे पंजे को उसके गाल पर रख दी। अलबेली को ऐसा करते देख, रूही, ओजल और इवान को भी समझ में आया की इस भारती पर तो अब तक कुछ असर ही नही किया होगा। बस फिर क्या था, सबने हाथ लगा दिया और एक्सपेरिमेंट के आखरी बूंद तक को खुद में समा लिये। हालांकि भारती को तो समझ में नहीं आ रहा था कि ये लोग कर क्या रहे है, इसलिए वो अपना काम बदस्तूर जारी रखे हुई थी। आंखों से गोली मारना, जिसका असर वुल्फ पैक पर तो नही हो रहा था, हां लेकिन नए ताजा रेनोवेट हुये वुल्फ हाउस पर जरूर हो रहा था। बूम की आवाज के साथ विस्फोट होता और जहां विस्फोट होता वहां का इलाका काला पर जाता।

बस कुछ देर की बात थी। उसके बाद जब रूही का जन्नतेदार थप्पड़ पड़ा, फिर तो भारती का दिमाग सुन्न पड़ गया और आंखों से लेजर चलाना तो जैसे भूल चुकी थी। फिर थप्पड़ रुके कहां। मार–मार कर गाल सुजा दिये। इतना थप्पड़ पड़े की गाल की चमरी गायब हो चुकी थी और गाल के दोनो ओर का जबड़ा दिखने लगा था। दर्द इतना की वो बेचारी बेहोश हो गयी। उसकी आंख जब खुली तब दर्द गायब थे और गाल की हल्की चमरी बन गई थी.... आर्यमणि सबको रुकने का इशारा करते.... “हां जी, धीरेन स्वामी की पत्नी और विश्वा देसाई की छोटी लड़की भारती, क्या डींगे हांक रही थी”...

भारती:– द द द देखो आर्यमणि...

आर्यमणि:– जुबान लड़खड़ा रहे है बड़बोली... तू जड़ को गला सकती है, फिर ये प्लास्टिक नही गला पा रही? क्या बोली थी, अकेले ही तूने फेरहिन का शिकर किया, उस से अपने पाऊं चटवाए, जिंदगी का भीख मंगवाया। उसके नवजात बच्चे मिल जाते तो तुझे और मजा आता। तो ले मिल ओजल और इवान से। ये वही नवजात है जिसे तू ढूंढ रही थी। और शायद तूने रूही को पहचाना नहीं, ये फेहरीन की बड़ी बेटी...

रूही:– आर्य, ये औरत मुझे चाहिए...

आर्यमणि:– क्या करोगी? इसे जान से मरोगी क्या?

रूही:– नही बस खेलना है... जबतक तुम पलक से बात करोगे, तब तक मैं खेलूंगी और फिर इसका भी अंत सबके जैसा होगा..

आर्यमणि:– बहुत खूब। इसे दिखाओ की मौत कितना सुकून भरा होता है और जिंदगी कितनी मुश्किल... तुम सब जाओ और खेलो। निशांत और संन्यासी शिवम् सर आप दोनो भी डंपिंग ग्राउंड ही जाइए। यहां मैं और अलबेली जबतक पलक से मुलाकात कर ले।

रूही अपने क्ला को सीधा भारती के पीठ पर घुसाई और अपने क्ला में फसाकर ही भारती को उठा ली और उठाकर ले गयी डंपिंग ग्राउंड के पास। भारती जब अपनी खुली आंखों से डंपिंग ग्राउंड का नजारा देखी तो स्तब्ध रह गयी। उसके सभी लोग पैक होकर बड़े से भूभाग में ढेर की तरह लगे थे। ढेर इतना ऊंचा की सर ऊंचा करके देखना पड़े। यह नजारा देखकर ही उसकी आंखें फैल गयी। वह गिड़गिड़ान लगी। ओजल उसे धक्का देकर मुंह के बल जमीन पर गिराने के बाद, अपना पाऊं उसके मुंह के सामने ले जाते... “चाटकर भीख मांग अपनी जिंदगी की... चल चाट”...

ओजल की आवाज बिलकुल आर्यमणि के आवाज़ से मैच कर रही थी, जो भय की परिचायक थी। उसकी आवाज सुनकर ही भारती उसका पाऊं चाटने लगी। सामने से दो और पाऊं पहुंच गये.... भारती उन सबको चाटती रही और कहती रही.... “मुझे माफ कर दो, मुझे जाने दो। मैं पृथ्वी छोड़कर किसी अन्य ग्रह पर चली जाऊंगी।”...
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भाग:–125


ओजल की आवाज बिलकुल आर्यमणि के आवाज़ से मैच कर रही थी, जो भय की परिचायक थी। उसकी आवाज सुनकर ही भारती उसका पाऊं चाटने लगी। सामने से दो और पाऊं पहुंच गये.... भारती उन सबको चाटती रही और कहती रही.... “मुझे माफ कर दो, मुझे जाने दो। मैं पृथ्वी छोड़कर किसी अन्य ग्रह पर चली जाऊंगी

एक बार गिड़गिड़ाती और लात खाकर उसका चेहरा दूसरे पाऊं तक पहुंचता। दूसरे से लात खाकर तीसरे और तीसरे से लात खाकर पहले के पास। लात खाती रही और गिड़गिड़ाती रही। फिर अचानक ही जैसे भारती को कुछ याद आया हो और उसने फिर से अपने आंखों से लेजर चला दिया। लेजर किसी के पाऊं में तो नही लगा, लेकिन इसके विस्फोट से सभी उड़ गये। रूही, ओजल और इवान के साथ खुद भारती भी उस धमाके से उड़ी और कहीं दूर जाकर गिरी।

धमाके के कारण उसका प्लास्टिक भी फट गया जिसमे से भारती बड़ी आसानी से निकल गयी। निशांत और संन्यासी शिवम भी उसी जगह मौजूद थे जिसे आर्यमणि ने खुद भेजा था। भारती समझ चुकी थी कि किसी भ्रम जाल के कारण उसका लेजर इन सबको नही लग रहा, लेकिन ये लोग निशाने के आसपास ही रहते है इसलिए धमाके में उड़े। फिर तो भारती की तेज नजर और अल्फा पैक का पाऊं था। किरणे जमीन पर गिरती और धमाके के कारण वुल्फ पैक 10 फिट हवा में।

धमाका चुकी बड़े से इलाके को कवर कर रहा था, इसलिए भ्रम जाल उन्हे धमाके की चपेट से नही बचा पा रहा था। फिर उन सब ने सुरक्षा मंत्र का प्रयोग किया। सुरक्षा मंत्र के प्रयोग से खुद को घायल होने से तो बचा रहे थे, किंतु हवा में उछलकर गिरने से सबकी हड्डियां चटक रही थी।

भारती फिर रुकी ही नही। वह लगातार हमले करती रही और बीच–बीच में शिकारियों के ढेर पर भी विस्फोट कर देती। कुछ प्रलोक सिधार जाते तो कुछ लोग अपना प्लास्टिक निकलने ने कामयाब हो रहे थे। देखते ही देखते वोल्फ पैक घिरने लगा था। तरह–तरह के हमले उनके पाऊं पर चारो ओर से होने लगे थे।

कुछ नायजो केवल अपने साथी को ही छुड़ाने लगे हुये थे। भारती की अट्टहास भरी हंसी चारो ओर गूंजने लगी... “तू बदजात कीड़े, इतनी हिम्मत की मुझसे उलझो। आज इसी जगह पर तुम सबकी लाश गिरेगी”...

रूही जो पिछले 10 मिनट से हो रहे हमले और अपनी मां के कातिल को खुला देख रही थी, वह अंदर ही अंदर बिलबिला रही थी। फिर गूंजी एक दहाड़... शायद यह किसी फर्स्ट अल्फा की दहाड़ से कम नही थी.... “अल्फा पैक... आज इनके रूहों को भी चलो दिखा दे कि जिंदगी कितना दर्द देती है। सभी को एक साथ कांटों की सेज पर सुलाओ।”.... रूही भी चिल्लाती हुई कह गई क्या करना है। ओजल, संन्यासी शिवम के ओर देखते.... “संत जी हम बड़े से सुरक्षा घेरे में लो”...

हवा का रुख एक बार फिर पलट गया। हवा की बड़ी सी दीवार बनी, जिसके ऊपर एक साथ बहुत सारे विस्फोट हो गये। भारती हवा के इस सुरक्षा घेरे को देखकर हंसती हुई.... “जब हम आंखों से लेजर चला रहे थे, तब हमारे सुपीरियर शिकारी स्टैंड बाय में थे। शायद पहली बार अपने रॉयल ब्लड की शक्ति देख रहे हो। तुझे क्या लगता है हवा को जैसा हमने नियंत्रण करना सीखा है, उसके आग तेरा ये जाल काम करेगा। बेवकूफ भेड़िए, देख कैसे टूटता है ये तेरा सुरक्षा घेरा... सभी एक साथ हवा का हमला करेंगे।”...

इधर भारती ने हुकुम दिया उधर पूरा डंप ग्राउंड दर्द की चीख पुकार में डूब गया। बड़बोलेपन की आदत ने आज भारती को डूबा दिया। हवा के बड़े सुरक्षा घेरे के अंदर पहुंचते ही, सभी वुल्फ ने अपनी आंखें मूंद ली। वही ओजल अपना दंश निकालकर सामने के ओर की, जिसे सबने पकड़ रखा था। दंश जैसे कोई एम्प्लीफायर हो। जैसे ही पूरे वुल्फ पैक ने कमांड दिया, जड़ों के रेशे मोटे नुकीले कांटेदार बन गये और सभी खड़े नायजो के शरीर में ऐसे घुसे की वो लोग कांटों की चिता पर लेटे थे और उनके मुख से दर्द की चीख और पुकार निकल रही थी।

ये सारा काम उतने ही वक्त में हुआ जितने वक्त में भारती ने अपना डायलॉग मारा। इधर भारती ने हमला करने का ऑर्डर दिया, उधर उसके मुंह से ही मौत ही चीख निकल गयी। रूही, ओजल और इवान यहां पर भी नही रुके। वो तीनो जानते थे की लकड़ी घुसे होने के कारण उनका बदन उस जगह को कभी हील न कर पायेगा। दर्द के ऊपर महा दर्द देते तीनो ने ही अपने हाथ को जड़ों के ऊपर रख दिये और उन जड़ों से कैस्टर ऑयल के फूल का जहर हर किसी के बदन में उतार दिया।

वहां के दर्द, चीख और गिड़गिगाना सुनकर तो जंगल के जानवर तक भयभीत हो होकर आस–पास के जगह को छोड़ दिया। ओजल और इवान ने मिलकर लगभग 200 नायजो के मुंह को बंद करके उन्हे पूरा जड़ों ने लेपेटकर वापस डंपिंग ग्राउंड में छोड़ दिया, जबकि अकेली भारती को सीधा किसी पुतले की तरह खड़ा कर दिये। भारती हालांकि खुद को जड़ों से छुड़ा तो सकती थी, लेकिन ये मामूली जड़े नही थी। ये कांटो की लपेट थी जो बदन में घुसने के साथ ही प्राण को हलख तक खींच लाये थे और अगले 2 मिनट में वह मौत के सबसे खरनाक दर्द को मेहसूस करने लगी थी। भारती के दर्द और गिड़गिड़ाने की आवाज चारो ओर गूंज रही थी और अल्फा पैक वहीं डंपिंग ग्राउंड में कुर्सी लगाकर भारती के दर्द भरे आवाज को सुनकर सुकून महसूस कर रहा था।

वोल्फ हाउस के अंदर केवल अलबेली और आर्यमणि थे। बाकी सभी डंपिंग ग्राउंड में थे... “दादा जबतक वो लोग खेलने गये है, पलक को बुलाकर बात–चित वाला काम खत्म कर लो”..

आर्यमणि:– नेकी और पूछ–पूछ.. चलो बुला लेते है।

पलक को कॉल किया गया। पलक अपने चार चमचे के अलावा महा को भी साथ ली और 5 मिनट में सभी वुल्फ हाउस में थे। वोल्फ हाउस के अंदर सभी अपना स्थान ग्रहण किये।

आर्यमणि:– ये एकलाफ कौन है जो मुझे बिना जाने गंदी और भद्दी गालियां दे रहा था।

एकलाफ:– अपनी जगह बुलाकर ज्यादा होशियार बन रहा है। दम है तो हमारी जगह आकर ऐसे अकड़कर बात कर...

आर्यमणि:– अच्छा तो वो तू है... अलबेली तुम्हारा एक्सपर्ट कॉमेंट...

अलबेली:– ये चमन चिंदी... घूर–घूर–चिस्तिका के लू–चिस्तीका की नूडल जैसी देन... ये इतना अकड़ रहा था कि आपको गाली दे, तू इधर आ बे...

पलक, गुस्से से अपनी लाल आंखें दिखाती... “तुम बात करने यहां बुलाए हो या उकसाने”...

आर्यमणि:– इतना कमजोर दिमाग कब से हो गया। तुम ही कही थी ना ये सबके सामने गाली देगा... क्या हुआ इसके औकाद की, हमारा जलवा देखकर घट गया क्या?

एकलाफ:– एक बाप की औलाद है तो फेयर फाइट करके दिखा...

अलबेली:– पृथ्वी क्या पूरे ब्रह्मांड में सभी एक बाप की ही औलाद होते है। उसमे भी भारत में लगभग सभी को अपने बाप का नाम पता होता है। और जिन्हे नहीं पता होता है उसमे से एक नाम है एकलाफ। किसका बीज है उसके बारे में उसकी मां तक कन्फर्म नही कर सकती, क्योंकि उस बेचारी को तो पता ही नही होता की उसके पति के वेश में कौन बहरूपिया बीज डालकर चला गया। तभी तो तू घूर–घूर–चिस्तिका के लू–चिस्तीका की नूडल जैसी पैदाइश निकला है।

एकलाफ, गुस्से में कुर्सी के दोनो हैंडरेस्ट उखाड़ कर तेज चिल्लाती... “दो कौड़ी की जानवर”... गुस्से में चिल्लाकर अभी एकलाफ ने मुंह से पूरी बात निकाली भी नही थी कि अलबेली काफी तेज मूव करती उसके पास पहुंची और एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर लगाकर वापस आर्यमणि के पास। एकलाफ की आवाज मुंह में ही घुस गयी। प्रतिक्रिया में पलक के साथ–साथ उसके तीन और चमचे, सुरैया, ट्रिस्कस और पारस भी गुस्से में खड़े थे।

महा:– सगळेच वेडे झाले आहेत (सब पागल हो गये है।)। यहां क्या ऐसे ही चुतियापा करना है?

आर्यमणि:– झूठे प्रहरियों को उनकी ओकाद दिखा रहे।

महा:– मांझे..

अलबेली:– मतलब प्रहरी संस्था सात्विक आश्रम का अभिन्न अंग है जिसकी देख रख सात्विक आश्रम के गुरु करते थे। इसलिए अब सात्विक आश्रम के गुरु चाहते है कि प्रहरी संस्था के तात्कालिक सदस्यों को निकालकर, नए रूप से सदस्यों को भर्ती करेंगे जो सात्त्विक आश्रम के प्रारूप के अनुसार होगा।

महा:– अब ये सात्विक आश्रम कहां है।

अलबेली:– इस चुतिये को तो अपने धरोहर का नाम नहीं पता, इतिहास घंटा जानेगा।

महा:– तुम एक वेयरवोल्फ होकर...

आर्यमणि:– महा आगे कुछ बोलने से पहले जुबान संभालकर.....

महा:– तो पहले अपने पैक को शांत करवाओ... कुछ भी बकवास करते है। यहां क्यों बुलाए हो उसपर सीधा–सीधा बात करते है...

सबके बीच इतनी ही बातें हुई थी की हॉल में भयानक चिल्ल्हाट ही आवाज गूंजने लगी। सबके कान खड़े और हृदय में कम्पन हो गया हो जैसे।....... “हमारे साथ आये लोगों के साथ तुम क्या कर रहे हो आर्य”... महा उस जगह के चारो ओर देखते हुये कहने लगा...

आर्यमणि:– जो लोग लड़ने आये थे वो यदि हमारी चीख निकाल रहे होते तो क्या तुम ऐसे ही पूछते...

महा:– पुलिस किसी क्रिमिनल को पीटकर उसकी चीख निकलवाए उसे जायज कहते है। वहीं क्रिमिनल यदि पुलिसवालों की चीख निकलवाए तो उसे गुंडागर्दी और नाजायज कहते हैं।

आर्यमणि:– बात तो तुम्हारी सही है महा लेकिन यहां थोड़ा सा अंतर है। अंतर ये है की जिसे तुम पुलिस समझ रहे वो बहरूपिया पुलिस है। और जो उन्हें पीट रहे है, वो एक सच्चा सोल्जर है। खैर अब तो तुम महफिल में बैठ ही गये तो सब जानकर ही उठोगे...

पलक अपनी जगह से खड़ी होती..... “यहां बहरूपिया कौन है और कौन असली सोल्जर ये कुछ ही क्षण में पता चल जायेगा। तुम्हे लगता है उन धैर्य खोये हुये भिड़ को मारकर अथवा यहां जाल बिछाकर खुद को सुरक्षित समझते हो। तुम्हे क्या लगता है, मुझे ये पता नही की तुम्हारे लोग उसी रात असली ओजल और इवान को मेरे कैद से निकाल कर ले गये, जिस दिन बहरूपिए मेरे पास पहुंचे थे। तुम्हे क्या लगता है, मैं जो तुमसे कही थी कि जिस दिन मिलूंगी तुम्हारे सीने से दिल चीरकर निकाल लूंगी, क्या मैं भूल गयी। क्या तुम्हे वाकई लगता है कि तुम यहां जीत गये। तो फिर चलो शुरू करते है।”

आर्यमणि और अलबेली दोनो एक दूसरे की सूरत देखने लगे। मानो आपस में ही कह रहे हो.... “लगता है चूक हो गयी।”.... और वाकई चूक हो चुकी थी। श्वान्स के द्वार कुछ तो शरीर के अंदर गया था जो हाथ तक हिलाने नही दे रहा था। हवा में ऐसा क्या छोड़ा गया जो बाकियों पर असर नही हुआ लेकिन आर्यमणि और अलबेली दोनो स्थूल से पड़ गये थे।

बस 2 सेकंड और बीता, उसके बाद तो आर्यमणि के पास खड़ी अलबली धराम से जमीन पर गिर गयी। शरीर इतना अकड़ा हुआ था कि अलबेली जब गिरी तो उसकी एक हड्डी तक नही मुड़ी।

पलक:– एकलाफ अपने थप्पड़ का बदला इस लड़की के जान बाहर निकालकर लो।

आर्यमणि की आंखें फैल गयी, जैसे वो अलबेली के लिये रहम की भीख मांग रहा था। पलक कुटिल मुस्कान अपने चेहरे पर लाती, अपनी ललाट उठाकर.... “क्यों निकल गयी हेंकड़ी। एकलाफ खड़े क्यों हो, कमर पर ऐसा तलवार चलाओ की ये लड़की 2 हिस्सों में बंट जाये।

एकलाफ अपने कमर का बेल्ट निकाला। बेल्ट न कहकर तलवार कहना गलत नही होगा। उसकी बनावट ही कुछ ऐसी थी कि सीधा करके उसके 2 जोड़ के बीच जैसे ही हुक फसाया गया, स्टील के चौड़े, चौड़े हिस्से एक साथ मिलकर तलवार का निर्माण कर गये। एकलाफ तलवार लेकर आगे बढ़ा ही था कि बीच में महा आते.... “देखो ये तुमलोग गलत कर रहे हो। हमे यहां बातचीत के लिये बुलाया गया था।”

पलक:– हां तो आर्यमणि से बात चीत हो जायेगी। बाकी के लोग उतने जरूरी नही। महा रास्ते से हट जाओ अन्यथा हम तुम्हे मारकर भी अपना काम कर सकते हैं।

महा:– ये तुम गलत कर रही हो... अभी बहुत सी नई बातें सामने आयी थी, और तुम बात–चित का जरिया बंद कर रही हो।

एकलाफ:– कोई इस चुतिये को हटाएगा, ताकि मैं इस बड़बोले जानवर को काट सकूं...

महा, चिढ़कर वहां से हटा। महा के हटते ही एकलाफ ने तलवार चलाया। तलवार चलाया लेकिन तलवार सुरक्षा मंत्र के ऊपर लगा। ऐसा लगा जैसे तलवार हवा से टकराई हो। “हवा से खुद की सुरक्षा कर रही हो। तुम्हे पता नही क्या ये हवा हमारी गुलाम है।”... एकलाफ चिल्लाते हुये कहने लगा...

पलक:– रुको जरा, ये कहां जायेंगे। पहले उन लोगों का भी इलाज कर दे जो बाहर हमारे 1000 लोगों को या तो मार चुके या मार डालेंगे। स्टैंड बाय टीम वुल्फ हाउस के पीछे जाओ और सबको काट कर अपने जितने लोग बच सकते है बचा लो।

एकलाफ:– मैं रुकूं या फिर इस बदजात हरामजादी को मार डालूं,जिसने मुझे क्या कुछ नही सुनाया?

पलक:– हां उसे मार देना लेकिन उस से पहले इस कमीने आर्यमणि के मुंह पर गाली दो। बहुत घमंड है ना इसे अपनी प्लानिंग पर... दिखाओ की हमारी औकाद क्या है।

एकलाफ:– बड़े शौक से तुम लोग जरा अपना कान बंद कर लो।

सबने अपने कान बंद किये। एकलाफ पहले तो जमीन पर थूका, उसके बाद जैसे ही मुंह खोला, बड़ा सा विस्फोट छोटे से दायरे में हुआ और, आर्यमणि और अलबेली दोनो कितने नीचे गड्ढे में गये वो ऊपर से बता पाना मुश्किल था, क्योंकि गड्ढा इतना नीचे था कि ऊपर से केवल अंधेरा ही नजर आ रहा था।

पलक के सारे चमचे जो फर्स्ट लाइन सुपीरियर शिकारी थे, वो सभी गड्ढे के पास पहुंचकर अपने हाथों से हवा का बवंडर उठाते, उनमें से तीर, भला, बिजली और आग को पूरा उस गड्ढे में झोंक दिया। ऐसा लगा जैसे आग का तूफान ही बड़ी तेजी से नीचे कई 100 फिट गड्ढे में गया और धधकता वो बवंडर लगातार जलता ही रहा।

पलक:– अरे नही.... हटो, हटो सब वहां से... आर्य को नही मारना था।

एकलाफ:– सॉरी पलक, लेकिन अब तो उसका तंदूर बन गया होगा।

पलक, पूरे गुस्से में.... “तुम चारो को मैं बाद में देखती हूं। घर के पीछे निकली टीम में से कुछ लोग हॉल में जल्दी आओ, और रस्सियां भीं लेकर आना... जल्दी करो।”

सुरैया (नाशिक में मिले चार चमचों में से एक चमची).... “पलक क्या तुम नीचे जाने वाली हो?”...

पलक:– हां बेवकूफों... तुम चारो ने सब गड़बड़ कर दिया। देखना होगा ये प्योर अल्फा इतना तापमान झेल पाया या नही। काश उसमे थोड़ी भी जान बाकी हो...

जबतक पलक के सामने उसके 6 विश्वशनीय लोग आकार खड़े हो गये.... “यहां के लिये क्या ऑर्डर है।”

पलक:– 2 आदमी पानी के सप्लाई लाइन को उस गड्ढे में डालो। और 2 आदमी रस्सी को हुक में डालकर फसाओ, मुझे उस गड्ढे के तल तक उतरना है।

पलक की टीम का हेड सोलस:– मैम आप यहीं रहिए, मैं नीचे जाता हूं..

पलक:– नही मुझे जाना है। जितना कही उतना करो....

सोलस:– आपकी ये बचकानी कमी कब दूर होगी। आंखों के सामने जो दुश्मन इतना गहरा गड्ढा कर सकता है, वह कहीं और से निकलने की योजना बनाने के बाद ही गड्ढा किया होगा। और तो और वो इस गड्ढे को उतनी ही तेजी से भर भी सकता है।
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Tri2010

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भाग:–126


सोलस:– आपकी ये बचकानी कमी कब दूर होगी। आंखों के सामने जो दुश्मन इतना गहरा गड्ढा कर सकता है, वह कहीं और से निकलने की योजना बनाने के बाद ही गड्ढा किया होगा। और तो और वो इस गड्ढे को उतनी ही तेजी से भर भी सकता है।

पलक:– माफ करना सोलस... लेकिन हम उसे भागने नही दे सकते...

सोलस:– वुल्फ अपने पैक के बिना जायेगा कहां। ऊपर से 36 घंटे के लिये आपने उसे पैरालाइज किया है, खुद से तो भाग सकता नही। तो जरूर अपने पैक में से किसी को मदद के लिये बुलायेगा। पीछे चलिए, असली खेल वहीं से होगा। हमारे सैकड़ों लोग जिन्हे हम बचा सकते है, बचा भी लेंगे...

एकलाफ:– ये सोलस तो आम सा एक सदस्य है, फिर तुम इसकी क्यों सुन रही?

पलक:– क्योंकि ये मुझे सुनाने के काबिल है और मेरे मुंह पर सुनाने की हिम्मत रखता है, इसलिए सुन रही हुं। सबको धैर्य से सुनती हूं इसलिए बहुत से नतीजों पर पहुंचती हूं। सोलस डायनिंग टेबल पर रखा लैपटॉप उठाओ और इसे खोलकर अंदर की जानकारी लो। आर्य भाग गया है, हमारे हाथ न लगा। पता न कब बाजी पलट दे, कम से कम उसका ट्रैपर हम इस्तमाल कर पाये तो हाथ से निकली बाजी भी वापिस आ जायेगी...

सोलस:– जैसा आप कहें मैम.. अब चलिए वरना हम अपने बहुत से लोगों को खो देंगे...

पलक काफी तेजी में निकल ही रही थी कि तभी महा.... “मैं और मेरी टीम क्या करे पलक?”...

पलक:– तुम तो यहां बात–चित के लिये आये थे, बात हो जाये तो चले जाना। यदि बात न हो पाये तो आर्यमणि को लापता घोषित कर देना। हां लेकिन कुछ भी करना पर पीछे मत आना, वरना तुम अपने और अपने टीम की हानी के लिये स्वयं जिम्मेदार रहोगे...

महा:– जैसा आप कहो मैम....

पलक चल दी डंपिंग ग्राउंड पर जहां भारती के साथ सैकड़ों नयजो कांटों की चिता पर लेटे थे और मौत को भी भयभीत करने वाली खौफनाक आवाज केवल भारती निकाल रही थी, बाकी सबके मुंह बंधे थे। पलक की टीम पहले ही वहां पहुंच चुकी थी और पहुंचकर कांटों में फसे लोगों को निकालने की कोशिश करने में जुटी थी।

तेजस और नित्या की तरह ये लोग भी कैद थे। पलक समझ गयी की जो लोग मृत्यु सैल्य पर लेटे हैं, उनका कुछ नही हो सकता.... “तुम लोग बेकार कोशिश कर रहे हो। इन्हे जो जहर दिया गया है वह 8 घंटे बाद किसी को मौत के घाट उतरेगा और जिस जोड़ों में ये फसे है, वो 7 घंटे बाद खुलेगा। कोई अपना है तो उन्हे आखरी बार देख लो और बाकियों को छुड़ा लो। सोलस इनका वुल्फ पैक कहां है? यहां तो कोई भी नजर नहीं आ रहा?

सोलस:– हां मैं भी वही देख रहा हूं। अभी कुछ देर पहले तो यहां थे, अभी कहां चले गये?

पलक:– लैपटॉप देखो तुम... कही थी ना बाजी पलटने वाली बात... वो बाजी पलटने गये है?

सोलस:– मतलब..

पलक:– आर्यमणि के पैरालिसिस को हटाने का उपाय ढूंढने...

सोलस:– इसकी जानकारी उसे नही मिल सकती...

पलक:– इतना विश्वास सेहत के लिये हानिकारक है। तुम लैपटॉप पर काम करो.. उसका पूरा ट्रैप अपने कब्जे में होना चाहिए...

सोलस:– लैपटॉप तो ऑन ही है और स्क्रीन को देखो तो समझ में आ जायेगा की कैसा ट्रैप है।

पलक:– क्या ये लैपटॉप ही मुख्य सर्वर है या ये मात्र इस लैपटॉप से ऑपरेट करते है।

सोलस:– नही ये ऑपरेटिंग लैपटॉप है। सर्वर कहीं और है...

पालक:– कहां है सर्वर... पता करो और पूरा सॉफ्टवेयर अपने कब्जे में लो.. और कोई मुझे बतायेगा, ले लोग गये कहां...

सोलस:– गये कहीं भी हो, बाजी पलटने के लिये वापस जरूर आयेंगे... जैसा आप चाहती थी,जर्मनी में जहां भी मुलाकात हो वो जगह आपके अनुकूल हो... तो ये जगह आपके अनुकूल बन गयी है।

पलक:– तुम कमाल के हो सोलस। जीत के बाद हम कुछ दिन साथ बिताएंगे... लेकिन उस से पहले इस जगह को पूर्णतः अपने अनुकूल बनाओ और मुझे एक शानदार जीत दो... चलो, चलो सभी काम पर लग जाओ...

इसके पूर्व आर्यमणि और अलबेली जब मीटिंग हॉल में थे, तभी दोनो अपने शरीर के अंदर चल रहे रिएक्शंस को भांप चुके थे। पर अफसोस इतना वक्त नहीं मिला की उसपर कुछ कर सकते। कुछ करने या सोचने से पहले ही दोनो पैरालाइज हो चुके थे। बदन भी अजीब तरह से अकड़ गया था। अलबेली जब गिरी तो किसी लोहे की मूर्ति की तरह गिरी।

अलबेली जिस पल नीचे गिरी, आर्यमणि का दिमाग सी कुछ पल के लिये सुन्न पड़ गया। बिलकुल खाली और ब्लैंक होना जिसे कहते हैं। अलबेली की मृत्यु का सदमा जैसे रोम–रोम में दौड़ गया हो। हां लेकिन अगले ही पल सुकून भी था, क्योंकि एकलाफ, अलबेली को काटने के लिये तलवार निकाल रहा था।

आर्यमणि अपने मन के संवाद में.... “बेटा ठीक है?”

अलबेली:– दादा मैं सुरक्षित हूं, बस शरीर बेजान लग रहा। अपनी उंगली तक हिला नही पा रही।

आर्यमणि:– बाद में बात करते है। अभी सुरक्षा मंत्र का मजबूत घेरा बनाओ और वायु विघ्न मंत्र का जाप करती रहो। इन कमीनो के पास वायु की वह शक्ति है, जो सुरक्षा चक्र को तोड़ देगी।

अलबेली:– दादा ये क्या सीधा मारने की योजन बनाकर आयी थी?

आर्यमणि:– जो जैसे करेंगे, उनको वैसा ही लौटाएंगे... बेटा बातें बाद में तुम मंत्र जपना शुरू करो...

अलबेली अपने मन में मंत्र जाप करने लगी वहीं आर्यमणि रूही से संपर्क करते.... “रूही एक समस्या हो गयी है और विस्तार से बताने का वक्त नहीं। जितना कहूं उतना करो..

रूही:– हां जान, बोलो...

आर्यमणि:– मन के अंदर ध्यान लगाओ और अपने पास की जमीन से जड़ों को कमांड दो कम से कम 200 फिट नीचे जाये। वहां से उन जड़ों को, हॉल में जहां मैं बैठा था, वहां के आसपास 3 मीटर के गोल हिस्से में फैलाकर भेजो। मुझे और अलबेली को खींचकर नीचे के गड्ढे को मत भरना। हम जैसे ही वहां पहुंचे, संन्यासी शिवम सर हम सबको लेकर अंतर्ध्यान होने के लिये तैयार रहे।

रूही:– बस एक ही सवाल है, अंतर्ध्यान होकर किस जगह जायेंगे...

आर्यमणि:– कैलाश मठ, आचार्य जी के पास...

फिर कोई बात नही हुई। गंध से अल्फा पैक को खबर लग चुकी थी कि उनके आस–पास बहुत सारे लोग आ रहे है। रूही ने मामला बताया और ध्यान लगा दी। निशांत सबको शांत रहने का इशारा करते, भ्रम जाल पूरा फैला दिया, जिसमे अल्फा पैक अलग–अलग जगह पर खड़े होकर अपने दुश्मनों को देख रहे, जबकि सब साथ में खड़े थे।

इधर रूही ने आर्यमणि और अलबेली को खींचा और उधर संन्यासी शिवम् सबको टेलीपोर्ट करके कैलाश मठ ले गये। आर्यमणि और अलबेली को ऐसे अकड़े देख सबको आश्चर्य हो रहा था। संन्यासी शिवम और आचार्य जी कुछ परीक्षण करने के बाद....

“कुछ दुर्लभ जड़ी–बूटी को श्वान के माध्यम से शरीर में पहुंचाया गया है, जिस वजह से ये दोनो पैरालाइज हैं।”

आर्यमणि, रूही से कहा और रूही आचार्य जी से पूछने लगी.... “आचार्य जी वहां बहुत सारे लोग थे लेकिन इसका असर केवल आर्य और अलबेली पर ही क्यों हुआ?”

आचार्य जी:– इसका एक ही निष्कर्ष निकलता है। वहां जितने भी लोग होंगे वो लोग इस जड़ी बूटी का तोड़ अपने शरीर में पहले से लेकर पहुंचे होंगे। इसलिए उन पर कोई असर नहीं किया। लेकिन एक बात जो मेरे समझ में नहीं आयी, उन लोगों को गुरुदेव या अलबेली के शरीर की इतनी जानकारी कैसे, जो तेजी से हील करने वाले को इतनी मात्रा दे गयी की वो पैरालाइज कर जाये।

रूही:– मैं समझी नहीं आचार्य जी। क्या हमारा हीलिंग सिस्टम इस जहर को हील करने के लिये सक्षम है।

आचार्य जी:– जिसने भी ये जहर दिया है उसे भी पता था कि तुम सबका शरीर इस जहर की एक निश्चित मात्रा को हिल कर लेगा। यही नहीं वह निश्चित मात्र किसी सामान्य इंसान के मुकाबले 1000 गुणा ज्यादा दिया जाये तभी तुम लोग पैरालाइज होगे। इतनी ज्यादा मात्रा देने के बारे में सोचना तभी संभव है, जबतक उसने पहले कोई परीक्षण किया हो..

रूही:– मतलब कोई एक ग्राम जड़ी बूटी को सूंघे तब वो पैरालाइज होगा। लेकिन यदि हमें पैरालाइज करना हो तो मात्रा 1 किलो देना होगा। इतना तो कोई सपने में भी नही सोच सकता। लेकिन आचार्य जी इतनी मात्रा को हवा में उड़ाने की गंध आर्य और अलबेली को क्यों नही हुई...

आचार्य जी:– क्योंकि तुमने एक ग्राम का उधारहन दिया, जबकि ऐसी चीजें आधे मिलीग्राम या एक चौथाई मिलीग्राम में ही काम कर जाति है या उस से भी कम में। मेरे ख्याल से 0.10 मिलीग्राम में एक सामान्य इंसान पैरालाइज करता होगा। गुरुदेव और अलबेली के लिये वह मात्रा 100 मिलीग्राम से 1000 मिलीग्राम के बीच होगी। यानी की 1 ग्राम का दसवां हिस्सा से लेकर एक ग्राम के बीच। इतनी मात्र तो हवा में बड़ी आसानी से फैला सकते है।

रूही:– लेकिन कैसे... हाथ में पाउडर डालकर उड़ाते तो हम सुरक्षा मंत्र का प्रयोग कर लेते...

आचार्य जी:– भूलो मत की जो समुदाय हवा में पाये जाने वाले कण से तीर और भाला बना ले, वो हवा में 100 मिलीग्राम तो क्या तुम जितनी मात्रा बोली हो ना... उसका भी 100 गुना ज्यादा ले लो। यानी की वो लोग एक क्विंटल हवा में घोल देंगे तब भी पता न चलने देंगे। हां लेकिन ऐसा करेंगे नही... क्योंकि इतनी मात्रा का तोड़ वो लोग पहले से लेकर नही घूम सकते। इसलिए पैरालाइज करने वाला जहर दिये निश्चित मात्र में ही होंगे, ताकि उतना डोज के हिसाब से वो लोग अपने बदन के अंदर उसका तोड़ पहले से ले सके।

ओजल:– बॉस के हालत की जिम्मेदार मैं और इवान हैं। हम दोनो 3 दिन के लिये पलक के पास कैद थे।

रूही:– “बहुत शातिर है। वह तुम दोनो (ओजल और इवान) को इसलिए नहीं पकड़ी थी कि हमारे प्लान की इनफॉर्मेशन निकाल सके। बल्कि पूछ–ताछ के वक्त ही वो लोग दवा की निश्चित मात्रा का पता लगा रहे होंगे। इस हिसाब से उन्होंने केवल एक दावा का परीक्षण किया हो, ऐसा मान नही सकती। उन्होंने पहले दिन ही सारा एक्सपेरिमेंट कर लिया होगा। उसके बाद तो महज औपचारिकता बची होगी, कब आर्य तुम्हे छुड़ाए, या वहीं रहने दे, उनका काम तो हो चुका था। पूरे मामले पर कैसा कवर भी चढ़ाया। तुम दोनो (ओजल और इवान) के बहरूपिए को भेज दी। ताकि हमारी सोच किसी और ही दिशा में रहे... पलक, पलक, पलक... इतनी शातिर... हां”

ओह हां यह महत्वपूर्ण बात तो रह गयी थी। जिस दिन बहरूपिया ओजल और इवान जर्मनी पहुंचे थे, उसी दिन असली ओजल और इवान को छुड़ा लिया गया था। उन्हे छुड़ाना कोई बड़ी बात नही थी। अंतर्ध्यान होकर सीधा अड्डे पर पहुंचे। पहले नकली वाले को अपने साथ गायब करके असली वाले के पास ले आये। फिर वहां नकली वाले को फंसाकर असली वाले को लेकर अंतर्ध्यान हो गये।

इतना करने के पीछे एक ही मकसद था कि पलक खुद को एक कदम आगे की सोचते रहे। उसे शुरू से लगता रहे की नकली ओजल और इवान अल्फा पैक के साथ है, और असली पलक के गुप्त स्थान के तहखाने में। लेकिन अब पूरे अल्फा पैक को समझ में आ रहा था कि पलक को असली और नकली से घंटा फर्क नही पड़ना था। उसे जो करना था वो कर चुकी थी।

आर्यमणि:– अभी इतनी समीक्षा क्यों... आचार्य जी से कहो जल्द से जल्द मुझे ठीक करे।

रूही:– आचार्य जी मेरी जान कह रहे है कि आप आराम से उनका उपचार करे, हम खतरे से बहुत दूर आ चुके है।

आचार्य जी:– मैं टेलीपैथी सुन सकता हूं...

रूही:– मतलब...

आचार्य जी:– मतलब मन के अंदर चल रही बात को सुन सकता हूं। लेकिन मुझे जिनसे पूछना चाहिए उनसे पूछता हूं... निशांत, शिवम् क्या करे?

निशांत:– आचार्य जी, आर्य अभी एक अनजाने खतरे से बचकर आया है। हमे नही पता की पलक क्या योजना बनाकर आयी है, और वो कितनी खतरनाक हो सकती है...

संन्यासी शिवम्:– हां तो आज के बाद फिर कभी पलक को जानने का मौका भी नहीं मिलेगा। और सबसे अहम बात, अचानक निकलने के क्रम में हमने अपनी बहुत सी चीजें और जानकारी वुल्फ हाउस में छोड़ दिया है। वोल्फ हाउस में वो लोग जितनी देर छानबीन करेंगे, हमारे बारे में उतना ज्यादा जानेंगे। हमे बिना देर किये जाना चाहिए। आचार्य जी, आयुर्वेदाचार्य को मैं ले आता हूं,जबतक आप यहां मौजूद सभी संन्यासियों को सूचना दीजिए कि उन्हें तुरंत निकलना होगा।

रूही:– शिवम् सर ज्यादा लोग मतलब ज्यादा खतरा...

संन्यासी शिवम मुस्कुराते हुये.... “फिर तुम्हे यहीं रुकना चाहिए।

रूही:– अरे माफ कीजिए सर...

संन्यासी शिवम्:– मैं जब तक आता हूं, तब तक गुरुदेव और अलबेली के मस्तिष्क को हील कीजिए। ध्यान रहे 2 मिनट हील करना है और 1 मिनट का रेस्ट। निशांत ये ध्यान रखना आपकी जिम्मेदारी है।

संन्यासी शिवम् और्वेदाचार्य को लाने के लिये अंतर्ध्यान हो गये। वहीं रूही, ओजल और इवान आर्यमणि और अलबेली का माथा थामे उसे हील करने लगे। जैसे ही 2 मिनट हुआ, निशांत ने तीनो का हाथ हटाया। जबतक हील कर रहे थे तब तक तो पता नही चला लेकिन हाथ हटाते ही तीनो का सर चक्करघिन्नी की तरह नाचने लगा.... “कमिनी वो पलक हील करने के बारे में भी सोच रही होगी। किसी तरह उनसे छिपकर हम आर्य को हील करे और हम भी आर्य की तरह पड़े रहे।”...

निशांत, आर्यमणि के चेहरे पर हाथ फेरते.... “कोई इतनी होशियार महज एक साल में नही हो सकती। ये लड़की पैदाइशी होशियार और सबसे टेढ़ा काम हाथ में लेने वाली लगती है। और आर्य उसके नाक के नीचे से उसे उल्लू बनाकर निकला था। उसके कलेजे में आग तो लगेगी ही। पर दोस्त तूने भी कभी जिक्र नहीं किया की पलक जो दिख रही वो मात्र कवर है।”

रूही:– देवर जी क्या बड़बड़ा रहे हो...

निशांत:– चूहे बिल्ली के खेल में जज नही कर पा रहा की कौन बेहतर है।

रूही:– हमसे साझा करो, शायद मदद कर सके। नही भी कर पाये तो कम से कम 2 बेहतर खिलाड़ी का तो पता चलेगा...

निशांत:– “खिलाड़ी है पलक और आर्य.... आर्य जनता था कि उसे आखरी समय में कोई सरप्राइज जरूर मिलेगा, इसलिए पूरी टीम को 2 हिस्से में बांट दिया। खुद पलक से मिला जबकि हमे दूर रखा। मेरा दिमाग कहता है कि पलक इस वक्त वुल्फ हाउस में ही होगी। जैसे उसे पहले से पता हो की आर्य उसके चंगुल से भागेगा ही।”

“वो बैठकर वुल्फ हाउस में हमारा इंतजार कर रही है, इस उम्मीद में कि उसने जो जहर आर्य को दिया है, उस से किसी न किसी विधि से आर्य पार पा जायेगा। ना पलक आर्य को अभी मारने का सोच रही, और न ही आर्य पलक को अभी मारने का सोच रहा। दोनो बस हर संभावना को देखते हुये जैसे एक दूसरे को परख रहे हो...

रूही:– परख रहे हो का मतलब...शादी करेगी क्या मेरे पति से। उसकी लाश मैं ही गिराऊंगी...

निशांत:– अभी अपने गुस्से को काबू रखिए। हमने नायजो के बारे में जितनी भी जानकारी जुटाई है, वह अधूरी लग रही है। अभी एक ही विनती है आवेश में नही आइएगा... वरना सबकी जान खतरे में पड़ जायेगी..

रूही:– देवर जी मैं अपने और अपने बच्चों की जिम्मेदारी लेती हूं... किसी को भी आवेश में आने नही दूंगी...

लगभग 1 घंटे लग गये। संन्यासी शिवम किसी को लेकर आ रहे थे। इधर जबतक 2 मिनट का हील और एक मिनट का आराम चल रहा था। आयुर्वेदाचार्य जी आर्यमणि और अलबेली के नब्ज को देखे। फिर कुछ औषधि को दोनो के नाक में पूरा ठूंसकर छोड़ दिये। 10 सेकंड बीते होंगे जब आर्यमणि और अलबेली का चेहरा लाल होने लगा। 10 सेकंड और बीते तब माथे पर सिकन आने लगी। और पूरे 30 सेकंड बाद अलबेली और आर्यमणि खांसते हुये उठकर बैठ गये। दोनो को उठकर बैठे देख रूही, ओजल और इवान ऐसे झपटकर गले लगे की पांचों जमीन पर ही बिछ गये।
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भाग:–127


लगभग 1 घंटे लग गये। संन्यासी शिवम किसी को लेकर आ रहे थे। इधर जबतक 2 मिनट का हील और एक मिनट का आराम चल रहा था। आयुर्वेदाचार्य जी आर्यमणि और अलबेली के नब्ज को देखे। फिर कुछ औषधि को दोनो के नाक में पूरा ठूंसकर छोड़ दिये। 10 सेकंड बीते होंगे जब आर्यमणि और अलबेली का चेहरा लाल होने लगा। 10 सेकंड और बीते तब माथे पर सिकन आने लगी। और पूरे 30 सेकंड बाद अलबेली और आर्यमणि खांसते हुये उठकर बैठ गये। दोनो को उठकर बैठे देख रूही, ओजल और इवान ऐसे झपटकर गले लगे की पांचों जमीन पर ही बिछ गये।

कुछ देर के मिलाप के बाद सभी उठकर बैठे। आर्यमणि तो शास्त्री जी के पाऊं छूने वाला था किन्तु शास्त्री जी आर्यमणि को अपने से दूर करते.... “गुरुदेव, ये क्या कर रहे थे।”...

आर्यमणि:– बस आपके ज्ञान को नमन कर रहा था।

शास्त्री जी:– मैं ज्ञानी होता तो गुरु निशि जीवित होते। आपका यहां आने का निर्णय बिलकुल उचित था। और शिवम् का एक बीती घटना याद दिलाना...

आर्यमणि:– कौन सी घटना शास्त्री जी...

शास्त्री जी:– गुरु निशि की जिस दिन मृत्यु हुई थी, उस से कुछ दिन पूर्व उन्हे एक सांप ने काटा था। सांप का जहर तो मैने निकाल दिया लेकिन 3 दिनो तक वह अकड़े रहे थे। हर जड़ी बूटी और हर तरह की औषधि का प्रयोग कर लिया किंतु गुरु निशि उठे नही। उसी के कुछ दिनों बाद गुरु निशि को किसी इंसान ने जलते भट्टी में फेंक दिया। शव परीक्षण तक करने का मौका नही मिला, वरना कई सारे सवाल के जवाब मिल जाते। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण तो एक ही सवाल है, कैसे कोई आम सा इंसान गुरु निशि को छू भी सकता था। दोनो ही अवसर पर एक समान सी बात हुई थी...

आर्यमणि:– इस समान बात का नाम पलक है, जो गुरु निशि के कुछ वर्ष की शिष्या रही थी और उनके मृत्यु के कुछ दिन पूर्व पलक अपनी एक साथी से मिलने पहुंची थी।

शास्त्री जी:– हां शिवम ने मुझे उस लड़की के बारे में बताया।

आर्यमणि:– शास्त्री जी तब जो नही कर पाये वो आज कैसे हो गया? हम दोनो को खड़ा कैसे कर दिये?

शास्त्री जी:– तब मेरे पास संजीवनी बूटी नही थी, जो समस्त ब्रह्माण्ड के किसी भी जहर को पल भर में काट दे। किंतु गुरुदेव अपस्यु की खोज के कारण आज हमारे पास संजीवनी बूटी है। मैने संजीवनी बूटी की औषधि तैयार कर दी है, जो लोग वापस जा रहे है उसका सेवन कर ले। ये अगले कुछ दिनों तक किसी भी प्रकार के जहर से आप सबकी रक्षा करेगा।

आर्यमणि:– इतने दुर्लभ जड़ी बूटी का इतना प्रयोग कर लिये। कभी अचानक जरूरत पड़ गयी तो?

शास्त्री जी:– अभी थोड़े और भंडार है। बाकी गुरु अपस्यु से आप स्थान की जानकारी लेकर हमारे भंडार को पुनः भर सकते है।

आर्यमणि:– आपका आभार शास्त्री जी। मैं छोटे से पूछकर संजीवनी बूटी का पूरा भंडार भर दूंगा... अब आज्ञा चाहूंगा... संन्यासी शिवम् सर चलने के लिये तैयार है..

संन्यासी शिवम्:– बिलकुल गुरुदेव..

पूरा अल्फा पैक के साथ 12 और संन्यासी जुड़ चुके थे। आर्यमणि ने वुल्फ हाउस के अंदर टेलीपोर्ट होकर पहुंचने का स्थान सोचा और संन्यासी शिवम् सबको लेकर वहां पहुंच गये थे।

शाम होने को आयी थी। वोल्फ हाउस के बड़े से हॉल के बड़े से डायनिंग टेबल पर पलक बैठी हुई थी। हॉल के बाएं किनारे से बड़ा सा खाली स्थान था, उसी जगह सभी नायजो का भोजन पकाया जा रहा था। लगभग 1000 नायजो वुल्फ हाउस के चप्पे, चप्पे पर फैले हुये थे। लगभग 200 नायजो रूही, ओजल और इवान के गुस्से का शिकर हो चुके थे। ये सभी डंपिंग ग्राउंड में कांटों की चिता पर लेटे थे और उनके शरीर में कैस्टर ऑयल फ्लावर का जहर उतार दिया गया था। भारती को छोड़कर लगभग एलियन का शरीर प्रयोगसाला वाला था, किंतु दर्द किसी का कम न था। इसका मुख्य कारण यह भी था कि स्थाई रूप से घुसे कांटे बदन के उस हिस्से को हील नही होने दे रहे थे और सारा जहर उन्ही काटों के मध्यम से जा रहा था। अब शरीर में एक मोटा कांटा थोड़े ना घुसा था, एक के शरीर में लगभग 200 से 300 मोटे–मोटे कांटे घुसे थे।

महा वुल्फ हाउस की सीमा पर खतरे के निशान के बाहर अपने 400 लोगों के साथ टेंट में था। वो भी तब तक नही जाना चाह रहा था, जबतक पलक इस जगह को छोड़ नही देती। महा भी यहां चल रहे न समझ मे आने वाली चीजों को समझने की कोशिश में लगा हुआ था।

पलक डायनिग टेबल के चारो ओर बैठे अपने 20 लोगों को घूर रही थी.... “किस बात के कंप्यूटर एक्सपर्ट हो तुम लोग, 2 घंटे में अब तक सर्वर का पता न चला। सारे कैमरा यहां से देख सकते है। पर किसी को हैक नही कर सकते..दूसरे हैकर होता और उसे ऐसे खुला लैपटॉप मिल जाता तो वो आधे घंटे में रिजल्ट दे देता।”

सोलस:– अपना जो मुख्य कंप्यूटर एक्सपर्ट था वो तो सामान ढूंढने गयी टीम के साथ था। जिसे उस आर्यमणि ने जलाकर मार डाला..

पलक:– ओह हो.. तभी मैं कहूं की वो आवाज नहीं सुनी, “और कोई काम मेरी सुपर क्रश”... क्या उसे मार डाला?

सोलस:– हां मार डाला होगा। 220 में से आर्यमणि ने एक को छोड़ा, अब वो मोनक तो न हो सकता।

पलक:– हां सही कहे। लेकिन जब वो गया तभी कोई नया रिक्रूटमेंट क्यों नही किये?

सोलस:– किया था, नाम था जुल। अपने नियम को ताख पर रखकर किया था। एक एक्सपेरिमेंट वाले को बहाल किया था। जिस दिन मोनक निकला उसके अगले दिन ही बहांल किया और उसके अगले दिन ही वो भी समान ढूंढने के मिशन पर चला गया।

पलक:– ये जर्मनी है, कोई हैकर को जल्दी ढूंढकर लाओ। पहले ही बता देते तो 2 घंटे बर्बाद नही होते...

सोलस:– महा की टीम में एक लड़का है, वो बहुत बड़ा हैकर है, 10 मिनट में सारा काम कर देगा...

पलक:– बुलाओ उसे जल्दी... रुके क्यों हो?

थोड़ी देर बाद महा अपने कुछ साथियों के साथ वुल्फ हाउस के हॉल में पहुंचा। उन सबको एक साथ आते देख पलक.... “महा मुझे यहां भिड़ नही चाहिए। बस कंप्यूटर एक्सपर्ट को कुछ देर के लिये छोड़ दो”..

महा:– तुम्हे तो पता ही है, मेरे टीममेट मेरी जिम्मेदारी है। उसमे भी टेक्निकल टीम जो लड़ाई के लिये कभी प्रशिक्षित नही किये गये हो, उनके जान की तो और भी जिम्मेदारी आ जाती है।

एकलाफ, सबके बीच महा को एक कराड़ा झांपड़ मारते.... “मदरचोद, रण्डी का बच्चा, कबसे तेरा चुदुर, चुदूर सुन रहा हूं। सुन बे चुतिये, हमसे यदि जान का खतरा है तो जितनी जल्दी हो सके ये दुनिया छोड़ दे। क्योंकि हम मारने का सोच ले तो जान बच नहीं सकती...

पलक चिल्लाती हुई... “एकलाफ ये क्या तरीका है। जाओ बैठो... तुम दिल पर न लेना महा। वो क्या है ना संस्कार, समझदारी और न जाने किन–किन बंदिशों ने मुझे बांध रखा है। पता नही कैसे लेकिन एकलाफ मेरे दिल की उफनती भावना को समझ जाता है और मेरे दिल को जो सुकून दे, वैसी बात कर देता है। उम्मीद है तुम दिल पर न लोगे। अपने साथी से कहो उस भगोड़े आर्यमणि के कंप्यूटर को हैक करके मुझे सर्वर तक पहुंचाए। मैं नही चाहती की कोई दूर से बैठ कर मेरे हाथ में आया ट्रैपर वापस से आर्यमणि के हाथ में देदे।”

महा अपने हैकर को मुंडी हिलाकर इशारा किया और वो कम्प्यूटर के पास बैठकर कुछ खिटिर–पिटीर करने लगा। उसके हाथ तो जैसे राजधानी ट्रेन बनते जा रहे हो। क्या टाइपिंग स्पीड पकड़ा था। 2 मिनट तक लैपटॉप के बटन को पूरी तरह से उधेरने के बाद.... “सर्वर लोकेशन जर्मनी का ही है। बस 2 मिनिट में सर्वर तक पहुंच जायेंगे”...

पलक:– जितना मैं कंप्यूटर के बारे में जानती हूं, यदि इस सिस्टम से कोई सॉफ्टवेयर ऑपरेट होता है तो लीगली इस सिस्टम से सर्वर का पता तो लगा ही सकते है ना...

हैकर:– नही... हम सर्वर का ऊपरी हिस्सा जैसे की सॉफ्टवेयर डेवलपर नेम, सर्वर डिटेल मिलता है। हां इतनी सुविधा भी काफी है वक्त बचाने के लिये। वरना दूसरे सिस्टम पर होते तो पहले इस सिस्टम को हैक करके ये सब जानकारी निकालनी होती। खैर ये हम पहुंच गये सर्वर सिस्टम तक...

“गधे ये नही करना था न। अपना लैपटॉप इस्तमाल करते तो हैक भी कर लेते। मेरा ही सिस्टम से मेरे ही सॉफ्टवेयर के मास्टर कंप्यूटर तक पहुंचने को कोशिश कर रहे। मेरी सुभकमना...”

कंप्यूटर की स्क्रीन देखकर वो लड़का बोलते बोलते चुप हो गया। पलक जिग्यासावश पूछने लगी, "हो गया क्या?" तब वह लड़का सिस्टम को पलक के ओर घुमा दिया जहां संदेश के बीच में उल्टी गिनती चल रही थी... “6, 5, 4, 3, 2, 1, 0... और बूम”... छोटे धमाके से पहले कंप्यूटर ब्लास्ट हुआ और उसी के साथ वुल्फ हाउस की बत्ती गुल। पूरा वुल्फ हाउस अंधेरा... और उसी अंधेरे से निकली खौफनाक दहाड़।

दहाड़ जो दिल बिठा दे। दहाड़ जो हृदय की गति बढ़ा दे। दहाड़ जो दुश्मन के हौसले को पस्त कर दे। आर्यमणि के गले से मौत की दहाड़ निकल रही थी। उसी दहाड़ के बीच में छोटे से भोंपू पर पलक की आवाज़ गूंजी... “कोर टीम तैयार... सब अपनी टुकड़ी में इस भेड़िए को दिखा दो की बॉस कौन है।”..

अभी दरवाजे से आवाज आ रही थी। जैसे ही पलक ने बोलना बंद किया, अल्फा पैक की दहाड़ सेकंड फ्लोर से आने लगी... चारो ओर आ रही वुल्फ की आवाज से पूरा वुल्फ हाउस थर्रा गया। और उन्ही आवाजों के बीच से एक एलियन की चीख निकली और वो शांत... “ये जो मरा उसके शरीर पर कोई एक्सोरिमेंट नही हुआ था, पलक के कोर टीम का एक बंदा गया।”...

आर्यमणि जैसे ही चुप हुआ मानो एलियन के बीच से चार आंधी दौड़ी, और चार चीख एक साथ निकलकर चुप... “ये चारो भी एक्सपेरिमेंट किये नही थे, लगता है कोर टीम गया”...

आर्यमणि चुप तो रूही बोली। रूही चुप हुई तो फिर से एक बार शायं–शायं करते वुल्फ कई एलियन के पास से गुजर रहे थे, कभी वो इधर पलटते तो कभी वो उधर...

पलक:– ओह हो शुरवाती जीत पर इतना इतराना... लाइट...

जैसे ही पलक लाइट बोली, चारो ओर जगमग–जगमग रौशनी। बड़े से हॉल के बीच के हिस्से में पूरा अल्फा पैक खड़ा था। जैसे ही सभी दिखे पूरे एलियन ने सबको घेर लिया.... “क्या हुआ भेड़ियों, जड़ नही निकल रहा क्या... ओह बेचारे जानते ही नहीं की हमने जड़ों के न निकलने का इंतजाम कर दिया है। हाथ में मोबाइल या कंप्यूटर भी नही जो ट्रैप कर सको... अब क्या करोगे वेयरवोल्फ के राजा। सभी एक साथ हमला करेंगे, केवल आर्यमणि को घायल करना बाकियों को सुला दो।”

जैसे ही हमले का आदेश हुआ, पहले तो पूरे हॉल में ही पाउडर का जैसे होली खेल रहे हो।कई प्रकार के जहरीली पाउडर को हवा में छोड़ा गया। पूरा हॉल धुवां जैसा हो गया और संपूर्ण शांति। तभी उस शांति को चीरती आर्यमणि की तेज दहाड़... दहाड़ इतनी आंधियों वाली थी की बचाव में सब नायजो अपने हाथ से हवा की आंधी उठाकर बचने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन आर्यमणि के आंधी में एक ही अंजाम होना था, सभी धम्म–धम्म की आवाज के साथ दीवार से टकरा रहे थे। आंखों के लेजर भी बीच में चले लेकिन 12 संन्यासी के साथ संन्यासी शिवम् और निशांत का वायु विघ्न मंत्र जाप ऐसा था कि हवा का बवंडर, उस से निकला बिजली, आग, तीर, भला या फिर आंखों से निकल रही किरणे किसी को छू भी नहीं पा रही थी।

“क्या हुआ पलक मैडम, बादल, बिजली, बरसात सब फेल हो गये। तुम्हारा पैरालाइज पाउडर कोई काम न आया। नायजो का जड़ी–बूटी विज्ञान भी फेल। आंखों की जिस शक्ति के गुमान पर खुद को सर्व–शक्तिमान समझ रहे थे, वो भी गया। चलो फिर मुकाबला बाहुबल से करते है। चलो आजमा ले भुजाओं की ताकत। अल्फा पैक दिखा दो इन्हे की दरिंदगी क्या होती है। आज मौत भी खौफ खा जाये वो हाल करो। टूट पड़ो।”

सबसे पहले ओजल ही तैयार हुई। कदमों को पूरा जमाई, हाथ में कल्पवृक्ष दंश और आंधी समान दौड़ती हुई जब दंश की मणि से रास्ते में आने वाले एलियन को काटना शुरू की फिर तो वो 2 टुकड़े में बंट कर अपने–अपने टुकड़ों को बस हील ही कर रहे थे। पीछे से पूरा वुल्फ पैक ओजल को जोश दिलाते मौत की दहाड़ निकाल रहा था।

फिर तो अल्फा पैक के बचे सदस्य भी कूद गये... हर कोई अपना शेप शिफ्ट किये, अपने पंजों में मौत भरे... आंखों से लेजर चला रहे एलियन के पास पहुंचते। एक अल्फा पर सैकड़ों लोग लेजर चला रहे होते। 2 वोल्फ एक एलियन को पकड़ते। एक वुल्फ उस एलियन के गले में अपने दोनो पंजे के क्ला को घुसाता, तो दूसरा ठीक उस क्ला के ऊपर अपने दोनो पंजे के क्ला को घुसकर पूरा गर्दन विपरीत दिशा में खींच लेते। नतीजा एक के हाथ में धर होता और दूसरे के हाथ में सर। सर को ऊपर हवा में उछालकर जोर से चिल्लाते... “अब हील होकर दिखा”...

बर्बरता का खेल जारी था। हर 10 सेकंड में 2 सर हवा में होते। सब एलियन प्रहरी से सर्टिफाइड वोल्फ हंटर भी थे। नही कुछ समझ में आया तो वोक्फबेन का धुआं छोड़े। स्टन रॉड का प्रयोग भी किया। लेकिन आज तो सब बेकार था जैसे। अल्फा पैक लगातार एलियन को काटते जा रहे थे। उनकी बर्बरता देख सभी एलियन पूर्णतः खौफजदा थे। उसपर से जब एक बार फिर आर्यमणि की तेज और लंबी मौत की दहाड़ निकली, फिर तो पलक भी गीला कर चुकी थी, बाकियों के तो पीले भी हो चुके थे।

सब के सब एलियन दरवाजे के ओर भागे। लेकिन दरवाजा मंत्र की चपेट में था और पूर्णतः सील.... "अल्फा पैक... काम जल्दी खत्म करो, हमे घूमने भी जाना है।”... अपनी बात समाप्त कर आर्यमणि ने फिर से एक बार दहाड़ लगाई। सामने जो एलियन दिखा उसे गर्दन से पकड़कर उठाया और सीने में हाथ डालकर उसके धड़कते दिल को खींचकर बाहर निकालते.... “अब तक वो टॉक्सिक नही बना जो अल्फा पैक के हाथ को गला दे। अल्फा पैक... इन सबके सीने में हाथ डालकर इनके दिल निकाल लो”

“जब तुम लोग मर ही रहे तो हौसले क्यों पस्त है। एक के मुकाबले सैकड़ों हो। एक–एक को पकड़ कर हावी हो जाओ। उन्हे आंख से नही मार सकते तो अपने साथ लाये खंजर, चाकू ही घोप डालो। मारो और तब तक मारते रहो जबतक मर न जाये। क्ला से जबतक एक को फाड़ते है तब तक 100 चाकू घुसा दो।”... पलक भी चिल्लाई..

उसका चिल्लाना सुनकर भागते नायजो के कदम ठहर गये। सभी में थोड़ा जोश आया और खंजर, चाकू बाहर। हुआ वही जैसा पलक ने सुझाव दिया। जबतक एक का सीना चिड़कर दिल निकालते, तब–तक 20 चाकू घुस चुके होते। यह तिलिस्मी हमला नही था, बल्कि खंजर चाकू का हमला था। वोल्फ पैक की न सिर्फ दर्द भरी चीख निकली, बल्कि उनकी चीख से मौत की बू भी आने लगी। फिर 20 चाकू कब मल्टीपल होकर 50, 100, 200 हुये, किसी को पता भी नही चला। महज एक मिनट में तो चाकू से बदन गोद चुके होते। नतीजे जल्दी सामने आये और पलक के पक्ष में थे। खून इतना बह गया था कि रूही, अलबेली और इवान जमीन पर बिछ चुके थे और उनके ऊपर एलियन का झुंड, दे चाकू पर चाकू गोद रहे थे।

आंधी सी फिर वो एक दौड़ थी। अब तक जो चमत्कारिक रूप किसी भिड़ ने नही देखा, वो रूप था। चमकता बदन, श्वेत खाल और जब दौड़े तो आंधी के समान लगे। भगवान नारायण ने नर–सिंह अवतार की आराधना में जन्म लिया बालक जैसे उन्ही की अनुकंपा से अलौकिक नर–भेड़िया के अवतार में जन्म लिया हो। इस बार दहाड़ नही निकली। आंधी समान आर्यमणि दौड़ रहा था। जिस भिड़ को दौड़ते हुये धक्का देता, ऐसा लगता ट्रेन ने किसी भिड़ को धक्का दिया हो। विस्फोट के साथ वो तीतर–बितर होते और आर्यमणि नीचे पड़े अपने साथी को उठाकर तेजी से बेसमेंट में छोड़ आता, जो हॉल के ठीक नीचे बना था और जहां से सारे संन्यासी मंत्र पढ़ रहे थे।
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भाग:–128


आंधी सी फिर वो एक दौड़ थी। अब तक जो चमत्कारिक रूप किसी भिड़ ने नही देखा, वो रूप था। चमकता बदन, श्वेत खाल और जब दौड़े तो आंधी के समान लगे। भगवान नारायण ने नर–सिंह अवतार की आराधना में जन्म लिया बालक जैसे उन्ही की अनुकंपा से अलौकिक नर–भेड़िया के अवतार में जन्म लिया हो। इस बार दहाड़ नही निकली। आंधी समान आर्यमणि दौड़ रहा था। जिस भिड़ को दौड़ते हुये धक्का देता, ऐसा लगता ट्रेन ने किसी भिड़ को धक्का दिया हो। विस्फोट के साथ वो तीतर–बितर होते और आर्यमणि नीचे पड़े अपने साथी को उठाकर तेजी से बेसमेंट में छोड़ आता, जो हॉल के ठीक नीचे बना था और जहां से सारे संन्यासी मंत्र पढ़ रहे थे।

एकमात्र अल्फा पैक की सदस्य ओजल खड़ी थी। बिना कोई शेप शिफ्ट किये और बिना किसी एलियन पावर को इस्तमाल किये। साल भर के कठिन अभ्यास और निशांत द्वारा सिखाए गये नए पैंतरे के दम पर ओजल लाठी, तलवार, और छोटी कुल्हाड़ी बड़े ही सफाई से और उतना ही तेज चला लेती थी। आज हाथ में वो सब हथियार तो नही थे लेकिन ओजल अपने कल्पवृक्ष दंश को ही छोटी कुल्हाड़ी समझकर नायजो पर चला रही थी।

क्या गतिमान और संतुलित होकर चला रही थी।घेर चुकी भिड़ और भिड़ में चाकू लिये बढ़ते हाथ जबतक हमला करते, तब तक तो ओजल कितनो के हाथ काटकर हवा में उड़ा चुकी होती। हां पीछे वाले परेशान जरूर कर रहे थे। पीछे से 2–3 चाकू ओजल को जरूर लगते लेकिन उतने ही वक्त में वह तेजी से गोल घूमकर पीछे के 4–5 लोगों के हाथ, पाऊं और गला, जो मणि के संपर्क में आ जाये काटकर आगे बढ़ जाती।

वहीं आर्यमणि रूही, इवान और अलबेली को सुरक्षित करने के बाद, अपनी जगह खड़ा होकर एक बार पूरे हॉल को देखा। नजर भर पूरी तस्वीर अपने जहन में उतारा। इस दौरान उसपर हमले होते रहे। भिड़ की ताकत रंग ला चुकी थी। अल्फा पैक के 3 सदस्य गंभीर अवस्था में पहुंच चुके थे। ओजल भी टिकी थी लेकिन चाकू के लगातार घाव से वह भी अब काफी धीमे पर चुकी थी। आर्यमणि गहरी श्वास लेते एक बार इस भीर की ताकत को समझा। हमले उसपर भी हो रहे थे चाकू उसे भी लग रहे थे। रक्त उसका भी गिर रहा था लेकिन भुजाओं में मौत और पाऊं में तूफान छिपा रखा था जैसे।

इस बार मौत की दहाड़ नही गूंजी बल्कि मौत की आंधी सी उठी। पास में खड़े होकर जितने भी भी नायजो चाकू से हमला कर रहे थे, उसे आर्यमणि ने एक बार देखा। देखने के बाद अपना मुक्का बनाया और जो ही मुक्का पड़ना शुरू हुआ। मुक्का सीने पर लगता तो ठीक उसके पीछे का हिस्सा एक फिट पीछे तक खिसक कर चला जाता। धाएं.... धाएं... ढिशुम... ढिशुम... बात जब बाहुबल की थी, फिर वहां आर्यमणि से बड़ा गुंडा कोई न था, जो अपने मुक्के की ताकत से उस शरीर को भी घायल करके दिखा रहा था, जिसके अंदर चाकू घुसा दो तो वह चाकू गल जाये।

आर्यमणि समझ चुका था कि उसके पास वक्त कम और भिड़ ज्यादा। सीने के अंदर हाथ डालकर जितने वक्त में दिल निकलेगा, उतने वक्त में वह 10 को लिटा चुका होगा। और हो भी कुछ ऐसा ही रहा था। टॉक्सिक में डूबा उसका मुक्का इतना तेज पड़ता की जहां पड़ता वहां का अंग भंग होना निश्चित था। किसी के कंधे पर मुक्का पड़ता तो उसका कंधा शरीर छोड़ अलग हो जाता। वहीं किसी के सीने पर मुक्का पड़ता तो उसके सीने की हड्डी पाउडर बन जाती और अंदर की धड़कन जैसे थम सी जाती।

पाऊं इतने तेज थे कि जब वह अपना कंधा भिड़ाते दौड़ रहा था, जितने एलियन आर्यमणि के कंधे से टकराए वह गोली के भांति जाकर दीवार से ठीक वैसे ही चिपक गये, जैसे केक को दीवार पर मारकर चिपकाया जा सकता था। फचाक की आवाज के साथ एलियन के शारीर के चिथरे उड़ जाते।

जिस जगह रुक जाता वहां खड़े अपने दुश्मनों पर ऐसा मुक्का बरसता की अंग भंग होकर या तो शरीर से झूल जाते या फिर उसके अवशेष हवा में उड़ रहे होते। चीख और पुकार से वह हॉल पूरा गूंज रहा था। किंतु आर्यमणि की नजर केवल हॉल पर ही नही थी, बल्कि वह ऊपर के मंजिल पर भी देख रहा था जहां बहुत से नायजो अब भी थे।

आर्यमणि कंधा भिड़ाते हुये जब एक बार दौड़ लगाया तो हवा में उड़ते लोग नजर आ रहे थे और उन उड़ते लोगों के भीड़ में सबसे ऊपर आर्यमणि था, जो तेज दौड़ते हुये जमीन से कई फिट ऊपर हवा में छलांग लगाकर तीसरी मंजिल पर लैंड किया। फिर खेल शुरू हुआ वुल्फ हाउस पेस्ट कंट्रोल। कीड़ों मकोड़ों की तरह फैले नायजो को समेटकर हटाना था। तीसरी मंजिल के गलियारे से लेकर कई कमरों में फैले थे ये नायजो। आर्यमणि पेस्ट कंट्रोल शुरू करता उस से पहले ही हॉल से रूही की तेज दहाड़ के बाद उसकी आवाज भी गूंजी.... “जान नीचे का हॉल अब हम खाली करते है, ऊपर का तुम देख लो”...

आर्यमणि अपने सामने आये एक नायजो का बाल पकड़ कर उसके सीने में अपना क्ला घुसा दिया और उसके सीने से दिल बाहर निकालकर नीचे हॉल में रूही के ओर फेंकते... “ये लो दिल”...

वह दिल ठीक रूही के कदमों में आकर गिरा। रूही उसे देखकर भद्दा सा मुंह बनाई और सामने से चले आ रहे भीर पर एक हाथ से तलवार तो दूसरे हाथ से कुल्हाड़ी चलाने लगी। वार इतना खरनाक तो नही थे, लेकिन भीर को दूर रखने के लिये काफी थे। इस से ओजल को पूरी मदद मिल रही थी। वह थोड़ा रुक कर अपने सीने में श्वास को समेटी... थोड़ा खुद से हील हुई, थोड़ा इवान ने कर दिया और ओजल एक बार फिर पूरी जोश के साथ हमला बोल चुकी थी।

तीसरे माले से जो नायजो किसी तरह वुल्फ हाउस से निकलने का रास्ता ढूंढ रहे थे, उनको निकलने का रास्ता मिल चुका था, आर्यमणि। ना रहम किया और न रुका। कुरूरता का ऐसा खौफनाक मंजर वह अपने हाथों से दिखाता चला गया की खुद को एपेक्स सुपरनेचुरल कहने वाले लोग, खून और मांस के चीथरे देखकर आम इंसानों की तरह उल्टियां करने लगे। मौत के भय से कांपते हुये पेसाब करने लगे थे। आर्यमणि में उन्हे स्वयं यमराज दिख रहा था, जिसमे इस वक्त रत्ती भर भी दया नही थी।

नायजो झुंड में थे और आर्यमणि जहां भी पहुंचता वहां से झुंड में गिड़गिड़ाने की ही आवाज आती.... “कोई तो बचाओ... नहीईईईई... आआआआअ... भगवान के लिये छोड़ दो”..... लेकिन मौत तो निश्चित थी और आर्यमणि इस सत्य से सबको अवगत करवा रहा था।

फिर न काम आया वो एक्सपेरिमेंट की हीलिंग, और न ही आंखों और हाथ की शक्तियों का गुमान। टॉक्सिक के आग में जलता हुआ आर्यमणि का लाल मुक्का सबको पड़ता रहा और शरीर के जिस हिस्से में उसका मुक्का पड़ता शरीर को फाड़कर रख देता। वहीं हॉल में स्वयं मौत की देवी घूम रही हो जैसे। हाथों में कल्पवृक्ष दंश लिये अपने तीन साथियों के साथ। ये तीन साथी ओजल को भिड़ से दूर रखे हुये थे और ओजल एक छलांग लगाकर जब नीचे आती तो नायजो का शरीर 2 हिस्सों में बंटकर अपने आधे टुकड़े को हील कर रहा होता।

मौत और चीख से चारो ओर का माहोल गूंज उठा था। संख्या बड़ी तेजी से घट रही थी। नायजो की 1000 की संख्या देखते–देखते लगभग 500 की हो चुकी थी। रक्त से पूरी जमीन लाल हो चुकी थी। शरीर के हिस्से चारो ओर बिखरे पड़े थे। वुल्फ हाउस ही जैसे कुरुर हो चला था।

फिर अचानक ही वहां चारो ओर शांती पसर गया। जैसे युद्ध विराम की घोषणा की गयी हो। बचे हुये नायजो, कटे हुये नायजो, घायल पड़े नायजो, नायजो जिस स्वरूप में थे, वह निशांत के सिंगल कमांड से पैक हो चुके थे। आर्यमणि जो तीसरी मंजिल से दूसरी मंजिल पर पहुंचा था। वह अब पैक हुये नाजयो को हॉल में फेंक रहा था। 10 मिनट में पूरा वुल्फ पैक हॉल में इकट्ठा था। आर्यमणि जैसे ही पहुंचा, रूही को भींचकर अपने सीने से लगाते....

“तुम्हे घायल देख मेरे तो प्राण ही सुख गये थे”

“ये लोग हमें मारने ही आये थे जान, तो जान जाने का खतरा तो बना ही रहेगा न”...

“हां जितना सोचा था, उस से कहीं ज्यादा खतरनाक हो गया था।”

“छोड़ो, वो बीती बातें हो गयी, शाम को कुछ सरप्राइज़ देने वाले थे।”

“हां पर अभी काम पूरा कहां हुआ है?”

“हां तो चलो पहले काम खत्म करते है।”

दोनो एक दूसरे की आलिंगन से अलग हुये। आस पास के माहोल को देखकर थोड़ा मुस्कुराए.... “जल्दी, जल्दी, जल्दी... काम ख़त्म करो जल्दी। आर्य तुम क्या शादी में आये हो, जड़े निकल नही रही इसलिए पूरा कचरा उठाकर डंपिंग ग्राउंड में रखो।”

रूही इस बार डायनिंग टेबल पर बैठकर सबको हुक्म दे रही थी। बेसमेंट से संन्यासी की टोली ऊपर तो नही आये, लेकिन वुल्फ हाउस से उस जड़ी–बूटी के तिलिस्म का असर खत्म कर दिया, जो जड़ों को बाहर नही आने दे रही थे। जैसे ही तिलिस्म समाप्त हुआ, निशांत बेसमेट से बाहर आया। हॉल में जैसे ही कदम रखा, खुद में ही सोचने लगा, “मैं यहां आया ही क्यों?” कटे फटे लाश, बिखरी अंतरियां, शरीर के कटे–फटे अंग और खून ही खून चारो ओर था, जिसे अल्फा पैक समेट रहे थे। निशांत अपने मुंह पर हाथ रखा। किसी तरह अपने उबकियों को दबाते, आर्यमणि के पास पहुंचा।... “तू यहां क्यों आया, कुछ देर नीचे ही इंतजार कर”..

“सतह से जड़ को अब निकाल सकते हो”... निशांत मुंह पर हाथ रखे ही बोला।

आर्यमणि:– मुंह से हाथ हटाकर बोल ना, समझ नही आया...

निशांत जैसे ही मुंह से हाथ हटाया, उसके पास से इवान गुजरा जो अपने कंधे पर कटे–फटे लाश का बोझ उठाये था। जैसे ही उसके पास से गुजरा, किसी लाश की अंतरियां नीचे जमीन पर फैल गयी और यह देख निशांत की उलटी बाहर। निशांत वापस बेसमेंट के ओर भागते..... “सतह से जड़ अब निकाल सकते हो। जल्दी काम खत्म करो।”...

जैसे ही निशांत ने यह सूचना दिया। पूरे वुल्फ पैक जो जहां थे वहीं खड़े हो गये। ओजल तेजी दिखाती हुई कहने लगी..... “मैं पलक मैडम को अलग करके, चारो ओर खुशबू फैला दूंगी। किसी और नायजो को अलग करना है क्या?”..

आर्यमणि:– हां उसके चार चमचे हैं, उनमें से एक को। एक काम करो तुम रहने दो। अलबेली, बेटा अपने हिसाब से सबको छांटकर डायनिंग टेबल पर बिछा दो। और उसके बाद खुशबू फैला देना। बाकी सभी जल्दी से इस जगह को साफ करो।

अलबेली लैपटॉप पर सर्च मारी। उसे तो पलक के चार दोस्तों का पता ही था। उसके अलावा वह कुछ और फुटेज देखी। सोलस के साथ पलक के साथियों को भी सर्च में डाला। 30 और 50 के 2 टुकड़ियों के साथ पलक का गहरा नाता दिखा। उन दोनो टीम में से अलबेली को 50 लोग जिंदा और सुरक्षित मिल गये, जो हॉल में ही पड़े थे। उनमें से एक सोलस भी था। जबकि पलक के चार चमचे... एकलाफ, ट्रिसकस, पारस और सुरैया, ये चारो शायद मौत के खौफ से पहले मंजिल के किसी कमरे में खुद को बंद कर रखा था।

सबके लोकेशन मिलते ही अलबेली ने डायनिंग टेबल पर नायजो का भरमार लगा दिया। हां लेकिन उन्हें डायनिंग टेबल पर बिछाने से पहले उसने डायनिंग टेबल पर पहले जड़ों के सूखे झाड़ को चलाकर पूरे डायनिंग टेबल को साफ किया। उसके बाद उसपर खुसबूदार पुष्प के जड़ों से वहां खुशबू बिखेर दी।

एक काम पूरा करने के बाद अलबेली ने पूरे वुल्फ हाउस को ही जड़ों में ढक दिया। कुछ देर जड़ों में ढके रहे और जब जड़ें वोल्फ हाउस से गायब हुई, तब चारो बिलकुल चमचमाती सफाई और खुशबू फैली हुई थी। इधर आर्यमणि, रूही, ओजल और इवान ने मिलकर सभी मरे नायजो और जिंदा पैक नायजो को डंपिंग ग्राउंड तक पहुंचा दिया, जहां अब भी लगभग 200 नायजो कांटों की अर्थी पर कैस्टर ऑयल फ्लावर के जहर का दर्द झेल रहे थे।

सारा काम खत्म होते ही वुल्फ पैक जैसे ही रिलैक्स हुये... “ये डायनिंग टेबल पर क्या बिछा रखा है। इतने सारे नायजो”...

अलबेली:– हां ये सब पलक मैडम के क्लोज साथी है। चलो तुम सब भी जल्दी से साफ सुथरा होकर लौटो, जबतक मैं इन लोगों का जुगाड करती हूं।

अल्फा पैक अलबेली के सामने सर झुकाकर जैसे उसके हुक्म की तमिल किये हो और हंसते हुये कमरे में जा घुसे। आर्यमणि इधर उधर देखा और रूही के पीछे वो भी अंदर घुस गया। दरवाजे के एक बार बंद होने के आवाज पर जैसे ही दोबारा बंद हुआ, रूही झटके से मुड़ी...

आर्यमणि, उसे घूरती नजरों से देखते... “ऐसे रिएक्शन क्यों दे रही, जैसे पता ही न हो कि पीछे कौन आ रहा?”..

रूही:– आर्य, तूम कुछ ज्यादा ही मनचले न हो रहे...

आर्यमणि, रूही को भींचकर अपने गले लगाया और उसके नितम्बों को दोनो हाथ से निचोड़ते.... “अपनी बीवी के साथ मनचला हो रहा, किसी पड़ोसी के साथ नही।”...

रूही, आर्यमणि को धक्का देकर खुद से दूर की, और तेजी से बाथरूम में भागकर, अंदर से छिटकिनी लगाती... “तुम पड़ोसी के पास ही जाओ आर्य। मैं बाहर आकर बताती हूं। तुम्हे बड़े पड़ोसियों की याद आ रही है ना”

आर्यमणि, खुद से ही.... “अब बीवी के नखरे न सुनूं तो किसके”... खुद में सोचकर मुस्कुराया और बाथरूम के दरवाजे तक पहुंच गया। 2 बार दरवाजा खटखटाने के बाद भी जब रूही ने कोई जवाब न दिया.... “देखो जानेमन, दरवाजा नही खोली तो मैं तोड़ दूंगा। फिर बच्चों को जवाब देते रहना दरवाजा कैसे टूटा। खोलो भी... रूही... रूही.. रूही”..

रूही झटाक से दरवाजा खोलकर फटाक से आर्यमणि को अंदर खींची और उसके होंठ को चूमती.... “जानू, अब जाओ भी प्लीज। अभी का काम खत्म कर लो, फिर जितना चाहे रोमांस करते रहना, मैं न तो रोकूंगी, और न ही कोई नखरे होंगे।”

आर्यमणि, अपनी आंखें बड़ी करते.... “मुझे बाहर ही भेजना था तो अपने इस शानदार जहरीले बदन से कपड़े हटाकर क्यों अंदर खींची”... अपनी बात कहकर आर्यमणि अपने हाथों से रूही के नंगे बदन को स्पर्श करने लगा...

रूही हल्की गुदगुदी से मचलती.... “ईशशशशशशशश, आर्य मत करो बदन में आग लग रही और न जाने कब से मैं भी तड़प रही हूं। प्लीज अभी जाओ। जल्दी–जल्दी में मिलने का मजा खराब हो जायेगा। कही तो मेरे साथ जैसी फैंटेसी पूरी करनी चाहो कर लेना, पर अभी जाओ”...

आर्यमणि, पूरे जोश से रूही को चूमकर अलग होते.... “अपनी फैंटेसी... ये याद रखना”...

रूही, आर्यमणि को वापस से प्यार भरा चुम्बन लेकर, खुद में थोड़ा शर्माती हुई.... “हां बिलकुल, लेकिन अभी जाओ, प्लीज।”

आर्यमणि वहां से निकला और सीधे किसी दूसरे कमरे में घुसा। कमरे की हालत देखकर समझ गया की यहां तबियत से तलाशी हुई थी। आर्यमणि अपने मन में संवाद भेजते...

“अलबेली, पलक के अंदर बाहर पूरी तबियत से तलाशी लेने के बाद ही वहां से हटना।”..

इकलौती अलबेली थी जो हॉल में खड़ी थी। अपना काम पूरा करने के बाद एक नजर वो चारो ओर देखकर खुद को ही परफेक्ट कह रही थी। वह भी खुद की साफ सफाई के लिये निकलती ही, लेकिन उस से पहले ही आर्यमणि का संवाद अलबेली के दिमाग में गूंजने लगा। डायनिंग टेबल पर इकलौती बची पलक को एक बार घुरी और अगले ही पल पलक के बदन पर जड़ें रेंग रही थी। अलबेली ने कमांड दिया और पतले सुई समान कई सारे निडिल पलक के शरीर के अंदर घुस चुके थे। शरीर के बाहर हर हिस्से पर पूरा जड़ रेंग रहा था।

जड़ें जब पलक के ऊपर से हटी, वह प्लास्टिक के कैद से आजादी थी, लेकिन पूर्णतः नंगी.... पलक गुस्से से अलबेली को घुरी ही थी कि उसके अगले पल वह पुनः प्लास्टिक के सिकुड़े कैद में थी। अलबेली सामने खड़े जड़ों को खंगालने लगी, जिन्हे आदेश थे कि शारीरिक अंग के अलावा जितनी भी भौतिक वस्तु है, उन्हे खींच निकाले।

कपड़ों के ऊपर बेल्ट से बंधे जो हथियार निकले वो थे ही। लेकिन जब कपड़ों के नीचे का समान निकला तब जड़ों पर तराशे हुये पत्थरों की कमी नही थी। 5 वैसे ही स्टोन पलक के बदन की तलाशी से निकले, जैसे चोरी के समान में थे। आर्यमणि का एनर्जी फायर (स्टोन की वही माला जिसमे जादूगर कैद था) भी तलाशी में निकला। उसके अलावा पाउडर भरे कई सारे पतले–पतले पाउच थे।
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भाग:–129


कपड़ों के ऊपर बेल्ट से बंधे जो हथियार निकले वो थे ही। लेकिन जब कपड़ों के नीचे का समान निकला तब जड़ों पर तराशे हुये पत्थरों की कमी नही थी। 5 वैसे ही स्टोन पलक के बदन की तलाशी से निकले, जैसे चोरी के समान में थे। आर्यमणि का एनर्जी फायर (स्टोन की वही माला जिसमे जादूगर कैद था) भी तलाशी में निकला। उसके अलावा पाउडर भरे कई सारे पतले–पतले पाउच थे।

अलबेली समान का ढेर देखती.... “कपड़ों के नीचे चीजें छिपाने में ये माहिर चोरनी है।”...

सारे जप्त समान के साथ अलबेली भी खुद को साफ सुथरा करने निकल गयी। लगभग आधे घंटे बाद सभी हॉल में इकट्ठा हुये। संन्यासियों की टोली के साथ निशांत भी हॉल में पहुंचा। हर कोई हॉल की दीवारों को ही देख रहा था, जिसके चारो ओर 50 नायजो को अलबेली चिपकाकर गयी थी। 50 में से 20 को उसने ऐसे चिपकाया था जो अलग पद्धति से व्यवस्थित थे, दूर से ही देखने पर समझ में आ जाये की लैब लिखा हुआ है। कुर्सी पर पलक के चार चमचे मूर्त रूप में बैठे थे और डायनिंग टेबल के मध्य में पलक...

संन्यासी शिवम्:– यहां तो जिंदा लोगों से ही हॉल को सजा दिये। गुरुदेव ये है क्या?

आर्यमणि:– शिवम् सर ये मेरा किया नही है। अलबेली का किया है।

संन्यासी शिवम्:– माहोल देखकर लगता नही की युद्ध विराम हुआ है? चलिए अब इसे खत्म करते है।

“दोस्तों का स्वागत नही करोगे आर्यमणि”.... उस बड़े से हॉल में ब्लैक फॉरेस्ट का रेंजर मैक्स, अपनी पत्नी थिया और 20 साथियों के साथ शिरकत करते हुये अपनी बात कहा। अपनी बात तो कहा लेकिन जैसे ही चारो ओर दीवार पर नजर गयी, बंदूके तन चुकी थी.... “यहां क्या अराजकता फैला रखे हो आर्यमणि। ये जिंदा लोगों को तुमने झाड़ में फसाकर दीवार में क्यों चुनवा दिया?”

आर्यमणि:– मैक्स बहुत ही ज्यादा गलत वक्त पर आये हो। फिलहाल तुम आराम करो, तुमसे बाद में बात करते है।

आर्यमणि अपनी बात समाप्त किया और सभी लोग जहां खड़े थे, वहीं जड़ों के लपेटे में आ गये।... “सबको आज ही आना है। जल्दी काम खत्म करो आर्य।”... रूही चिढ़ती हुई कहने लगी।

आर्यमणि:– लो अलबेली भी आ गयी। अब बात शुरू कर सकते है। लेकिन उस से पहले क्या तुम में से कोई महा को यहां ले आयेगा... वो और उसके कुछ साथी अब भी बेसमेंट में है।

इवान:– मैं जाता हूं...

दरअसल हुआ ये था कि जब हॉल की रौशनी गयी और अंधेरा हुआ था, ठीक उसी वक्त अल्फा पैक ने दौड़ लगाया और भिड़ से सभी इंसानों को निकालकर बेसमेंट में ले गये थे। इवान महा को लेने चल दिया। वहीं आर्यमणि जैसे ही पलक को जड़ों और प्लास्टिक के कैद से आजाद करने की सोचा अलबेली उसे रोकते.... “दादा, प्लास्टिक के नीचे उसने कुछ नहीं पहना।”

रूही:– ये क्या कर दिया झल्ली...

अलबेली:– क्या कर दिया का क्या मतलब। ये तो अपने कपड़ों के अंदर खजाना छिपाए घूम रही थी। नही तलाशी लेती तो दादा का एनर्जी फायर भी गायब हो जाता।

आर्यमणि:– क्या, मेरा एनर्जी फायर इसके पास था?

अलबेली:– केवल वही नही था। अभी बोली तो कपड़ों के नीचे खजाना छिपाकर रखी थी..

रूही:– अब भी जड़ के नीचे खजाना ही छिपाकर घूम रही होगी। जा भागकर एक कपड़ा ले आ, वरना जड़ के हटते ही प्लास्टिक में लिपटे इसके कर्व को देखकर मेरे पति का नैन–सुख हो जायेगा...

आर्यमणि:– कैसी अपमानजनक बातें कर रही हो।

निशांत:– ये साइड टॉपिक छोड़ो और मुख्य मुद्दे पर आओ... जल्दी काम खत्म करो..

आर्यमणि:– ठीक है निशांत सर वही करते हैं। बाकी सब आराम से बैठ जाइए, यहां बस मैं और अलबेली ही बात करेंगे... पलक के चार चमचे को खोलो...

ओजल पलक के चमचों को प्लास्टिक के कैद से रिहा करने लगी। इसी बीच इवान के साथ महा भी हॉल में पहुंच गया और अलबेली भी कपड़े लेकर पहुंच गयी। पलक को जड़ों से निकलने के बाद पहले उसे कपड़ा पहनाया गया, बाद में उसके चेहरे और हाथ से प्लास्टिक को खुरच कर हटाया गया।

डायनिंग टेबल पर वापस से वही नजारा था। उतने ही लोग बात करने बैठे थे। बस अतरिक्त रूप से अल्फा पैक के बचे सदस्य और संन्यासियों की टोली थी। महा की नजर तो शुरू से संन्यासियों के ऊपर ही थी। जैसे ही उसे मौका मिला सबसे पहले वही अपनी जिज्ञासा रखते.... “आर्यमणि ये लोग”...

आर्यमणि:– कहा था न सात्विक आश्रम... ये उसी आश्रम के संन्यासी है। यहां प्रशिक्षित लोगों की भिड़ कुछ ज्यादा ही थी, इसलिए मदद करने बड़ी दूर से आ गये...

महा:– बड़ी दूर से कैसे इतनी जल्दी आ गये..

आर्यमणि:– ये बाद में जान जाओगे... तुम और तुम्हारे लोग सुरक्षित तो है न..

महा:– पता नही। मेरी टीम तो तुम्हारे खतरे के निशान के ठीक बाहर डेरा लगाये है। मैं पता नही कितनी देर से नीचे केवल चीख और पुकार ही सुन रहा था। और ये बड़बोले लोग अब क्यों नही बोल रहे....

आर्यमणि:– वो समझ गये है कि यहां मेरी इजाजत के बिना बोलने पर क्या अंजाम होगा...

पलक:– क्या अंजाम होगा हां...

पलक की बात सुनकर आर्यमणि मात्र अपनी नजर घुमाया। ओजल खड़ी हुई और दीवार से चिपके एक लैब एक्सपेरिमेंट नायजो का आधा धर जड़ से मुक्त करके, उसे बीच से काट दी।...

आर्यमणि:– ओजल अभी–अभी सफाई हुई थी, गंदगी मत करना...

ओजल:– ठीक है जीजाजी...

जीजा और साली के आंखों के इशारे में बेचारे मासूम से नायजो को तब उबकियां आ गयी जब अपने ही जैसे किसी एक के शरीर के अंदर का माल–पूंजी फ्लोर पर बहते देखा। पलक गुस्से में आर्यमणि को घूर रही थी...

आर्यमणि:– बिना इजाजत बोलने का यही नतीजा होगा। और किसी को बिना इजाजत कुछ बोलना है। मेरे दीवार पर 49 और नायजो टंगे है।

महा:– ये नायजो क्या है?

रूही:– क्या नही, कौन है... मेरे साथ आओ, तुम्हे अनंत कीर्ति के किताब से सारे जवाब मिल जायेंगे...

महा:– क्या??? अनंत कीर्ति की किताब खोल लिये। पर मैने सुना था उसकी परीक्षा तो पलक पास की थी???

रूही:– मेरे साथ आओ तुम्हारी सारी जिज्ञासा का जवाब मिल जायेगा...

रूही, महा को लेकर दूसरी मंजिल के एक खुफिया कमरे में ले गयी, जहां बहुत सारे सामान रखे थे। इधर मीटिंग हॉल में...

अलबेली:– दादा ये एकलाफ आपको गाली नही दे रहा। क्यों बे घूर–घूर–चिस्तिका के लू–चिस्तिका कुछ बोल क्यों नही रहा?

जैसे ही एकलाफ को बोलने का मौका मिला वो सीधा आर्यमणि के कदमों में बिछ्ते.... “भाव मुझे माफ कर दो। मेरी क्या मेरे समुदाय के राजा में हिम्मत नही जो आपको कुछ कह दे। भाव प्लीज मुझे जाने दो। आज तक ट्रेनिंग रूम के अलावा कुछ देखा ही नहीं। इसलिए बात करने का सलीका नही सीखा”..

अलबेली उसे बालों से पकड़कर खींचकर उठाती.... “जा पलक को एक थप्पड़ मारकर आ।”

एकलाफ:– ये कैसे हो सकता है?

अलबेली:– ओजल इसे भी ट्रीटमेंट दे...

एकलाफ पाऊं में गिड़कर... “रुक जाओ मैं जाता हूं।”.... वह उठा, वह गया, वह जैसे ही खींचकर मारने को हुआ, पलक डायनिंग टेबल पर रखा खंजर उठाकर उसके सीने में उतार दी। खून की धार बहने लगी और दर्द भरी आवाज चारो ओर गूंजने लगी।

अलबेली:– एक्सपेरिमेंट बॉडी पर ये खंजर, असर भी करेगा...

पलक:– मेरे समान की सबसे बेशकीमती चीज तो तुम यहीं छोड़ दी। देखती जाओ ये जीवित भी बचता है क्या?

आर्यमणि, कुछ सोचते... “अलबेली, खंजर निकालकर इधर लाओ और देखो कहीं गंभीर रूप से घायल है तो हील कर दो।

अलबेली जैसे ही उसके सीने से खंजर निकाली, एकलाफ के सीने से और तेज खून की धार बहने लगी और वह छटपटाकर जमीन पर फरफराने लगा। अलबेली उसे हील करती.... “दादा इसका तो आखरी वक्त चल रहा था।”

एकलाफ हील होकर जैसे ही उठा गुस्से में चिल्लाते... “हरामजादी मुझे मार रही थी।”.. थप्पड़ के लिये उसके हाथ उठे ही थे की....

आर्यमणि:– रुको... हां तो मिस पलक किसकी औकाद है, मेरे मुंह पर गाली देने की...

कुछ पल खामोशी... उसके बाद फिर एक बार आर्यमणि इतना तेज चिल्लाकर पूछा की पलक की घिग्घी बंध गयी। वह बिलकुल खामोश थी, और आर्यमणि को ये खामोशी खल गयी। उसने दोबारा ओजल की ओर देखा और वापस से नायजो की उबकियां शुरू। दीवार पर टंगा एक और लैब शरीर बेजान हो गया।

पलक:– प्लीज ये सब बंद करो... मेरा सर घूम रहा है।

आर्यमणि:– मेरा सवाल का जवाब तो ये नही था। ओजल मैडम अपने लोगों के कटे–फटे चिथरे देख विचलित हो रही है, इन्हे यूजर फ्रेंडली बनाओ...

ओजल:– कितने...

आर्यमणि:– 10..

ओजल ने एक बार में ही 10 लैब बॉडी को आजाद किया और एक–एक करके सबको बीच से काटते चली गयी। यह नजारा देख संन्यासियों की टोली भी विचलित हो गयी। पलक और उसके साथियों की तो उल्टियां निकल आयी।

शिवम्:– गुरुदेव कुछ ज्यादा ही हिंसात्मक हो गये है?

आर्यमणि:– शिवम् सर मुझे इस लड़की (पलक) ने अलबेली के मरने का दृश्य दिखाया था। मेरी आत्मा तक उस पल रो दी थी। वो पल कैस्टर ऑयल के फूल के जहर से भी ज्यादा दर्दनाक और खौफनाक था। मैं वर्णन नही कर सकता। मेरे दिमाग का एक हिस्सा काला पड़ गया है जो बिना हिंसा के जायेगा नही। आप पूरी टोली के साथ बेसमेंट में ही प्रतीक्षा करे।

शिवम्:– हां ये उत्तम विचार है।

संयासियों की पूरी टोली के साथ निशांत भी बेसमेंट में चला गया। हॉल का माहोल वापस से अपने यथावत परिस्थिति में आते... “अब शायद खुद के लोगों के कटे–फटे चिथरे देखने की आदत हो गयी हो। तो बताओ किसकी औकाद है, जो मेरे मुंह पर गाली दे सके।”

पलक:– किसी की नही...

आर्यमणि:– बस इतना ही कहना है।

पलक, आर्यमणि को गुस्से से देखती.... “और क्या सुनना पसंद है। तुम बहुत महान हो। मैं गलत थी। धोखेबाज हो तुम धोखेबाज”..

आर्यमणि:– कैसा धोखा.. क्या तुम मुझे धोखा नहीं दे रही थी? क्या तुम अंत तक मेरे विषय में जानने की कोशिश नही करती रही? क्या तुम मेरे साथ सिर्फ इसलिए नहीं हम बिस्तर हुई, ताकि वुल्फ शेप शिफ्ट का आखरी परीक्षण कर सको...

पलक:– हां शुरवात का सभी किया सत्य था, लेकिन बाद में मैं सिर्फ तुम्हारी होकर रह गयी और तुमने क्या किया? अनंत कीर्ति की किताब के साथ, प्रहरी के धरोहर को भी ले भागे...

तभी वहां महा पहुंचा और पलक के सामने अनंत कीर्ति की किताब रखते... “झूठ और भ्रम फैलाने वाले लोग, खुद को प्रहरी कहना बंद करो। आर्य इसे सामने क्यों बिठाकर रखे हो। इन हरामियों की असलियत सबके सामने आनी चाहिए।”

आर्यमणि:– महा आराम से बैठ जाओ... इतना आवेश अच्छा नही। अभी तो हमने इन्हे आजमाना शुरू किया है। पृथ्वी छोड़ने का एक मौका देंगे, नही माने फिर काल बरसेगा...

महा:– क्या कह रहे हो भाई। ये लोग तो परिवार को हो दूषित कर रहे। कौन किसका बाप है और कौन किसका बेटा तय कर पाना मुश्किल है। साला मैं किसी एलियन की औलाद हूं या इंसान का, समझ में नही आ रहा। खून खौल रहा है मेरा।

आर्यमणि:– उबलते खून को ठंडा करो। अभी तुम्हे प्रहरी के लिये बहुत कुछ करना है।

महा:– सिर्फ तुम बोल रहे इसलिए चुप हूं। पर इसे कह दो प्रहरी और उसकी संपत्ति को अपना कहना छोड़ दे...

पलक:– वो किताब हमारे पास थी, इसलिए हमारी है। उस लड़की (ओजल) के हाथ का दंश, एनर्जी स्टोन सब हमारी संपत्ति है।

आर्यमणि:– पृथ्वी पर जो भी समान है, वो यकीनन तुम्हारा नही। आगे बात कर ले... मतलब तुम मेरे प्यार में थी.. लेकिन मेरे प्यार में होने के बाद भी तो हाहाकार मचा रही थी..

रूही:– तुम दोनो क्या अपने पैच अप के लिये बैठे हो? आर्य तुम इसी बातचीत के लिये 2 महीने से उतावले थे। अब क्या 2 ब्याह एक साथ रचाओगे?

आर्यमणि:– एक मिनट जरा शांत भी रहो। मुझे जानने दो...

रूही:– हूंह... बड़े आये जानने वाले। ये भी लिपस्टिक, मेक अप पोत कर तुम्हे ही जनाने आयी है।

आर्यमणि मुड़कर रूही को घूरती नजर से देखा, रूही भी गुस्से में उसे घूरती.... “आगे देख लो, वही मेकअप करके आयी है। तू बताती क्यों नही जल्दी, आर्य के प्यार में हाहाकार कैसे मचाई... बेचारा सच सुनने के लिये मरा जा रहा है।”

पलक:– खुलकर पूछो आर्य, क्या पूछना चाह रहे...

रूही:– हां हां क्यों नही... सब खुल्लम खुल्ला ही करो बेशर्मों...

आर्यमणि फिर से घूरते.... “ये क्या बचपना है रूही।”

रूही:– मुझे मत घूरो.. उसी से खुल्लम खुल्ला पूछो...

आर्यमणि:– इसका दिमाग सटक गया है। हां तो मिस पलक इंसानी बच्चों के मांस नोचकर खाने वाली तुम, बच्चो के भोजन वाली पार्टी की मुख्य ऑर्गेनाइजर तो तुम ही हो?...

पलक:– छी, इतनी गिरी हुई नही की मैं किसी नवजात मासूम के साथ ऐसा करूं या इस प्रकार से होने दूं। मैं ऑर्गनाइजर सिर्फ इसलिए बनी ताकि उन मासूमों को कुछ न हो।मैने बच्चों के जगह बकरों का इस्तमाल किया।जड़ी बूटी के प्रयोग से उसका टेस्ट बस बदला था।

आर्यमणि:– सबूत दो..

पलक:– सबसे पहला सबूत तो तुम्हारा भांजा ही था। भूमि दीदी का बच्चा, जिसे जयदेव मरा हुआ घोषित करके पार्टी देना चाहता था। मैने बचाया उसे। यकीन न हो तो पूछ लो भूमि दीदी से, उनकी आंख जब खुली तो उनका बच्चा किसकी गोद में था।

अलबेली:– कहीं दादा को फसाने के लिये दूर का सोचकर तो उसे जिंदा नही छोड़ी...

पलक:– यदि परिवार को बीच में लाना होता न तो विश्वास मानो, आर्य यहां नही नाशिक में मेरे पाऊं पर गिड़गिड़ा रहा होता। बाकी नागपुर में मेरा भी एक बड़ा परिवार है, जिसकी जिम्मेदारी मैं उठा सकती हूं, किसी भगोड़े के रिमोट सपोर्ट की जरूरत नहीं...

आर्यमणि:– काम शैतान के और बातें साधुओं वाली...

पलक:– तुम कौन से दूध के धुले हो। तुम्हे क्या लगता है, मुझे पता नही था कि तुम एक प्योर अल्फा हो। तुम्हारे दादा की पूरी रिसर्च और दुर्लभ जीवों की पूरी सूची मेरे पास है। तुम्हे क्या लगा मेरे गर्दन पर क्ला घुसाओगे तो मुझे पता नही चलेगा। मैं न तो नायजो और न ही प्रहरी के लिये पता कर रही थी। मुझे एक प्योर अल्फा की जानकारी जुटानी थी सो मैं तुम्हारे साथ रहकर जुटा ली।

आर्यमणि:– और गुरु निशि.. उनके जिंदा जलाने के पीछे की क्या साजिश थी...

पलक:– “तुम्हे क्या लगता है... हां क्या लगता है तुम्हे... जो नायजो पैदा लिया वो हैवान है... वो शैतान है... तो फिर इंसानों के लिये क्या कहोगे, क्या सारे इंसान अच्छे होते है? या फिर सारे भेड़िए? संपूर्ण कुछ भी नही होता, जो एक ही राय बनाकर चल रहे हो। गुरु निशि को मैने ही पैरालाइज किया था। ताकि उपचार के दौरान उनके विश्वशनीय लोगों के बीच उन्हे खतरे से आगाह किया जा सके। तांत्रिक आध्यात और मेरा शैतान बाप जिसे तुम उज्जवल के नाम से जानते हो, वो कुछ मक्कार इंसानों के हाथों छोटे–छोटे बच्चो को जिंदा जलाने की योजना बना चुके थे।”

“मैं जब बहुत छोटी थी तब मुझे आश्रम भेजा गया था। मुझे कुछ पता नही की पीछे क्या चल रहा था। मैने आश्रम के तौर तरीके सीखे। मैने वहां दोस्त बनाए, सार्थक और प्रिया। मुझे आश्रम में रहना अच्छा लगता था, किंतु 2 साल बाद ही मुझे आश्रम से वापस ले आये।वक्त बिता पर बचपन के दोस्त के लिये भावनाएं नही बदलती। तुम्हे क्या पता नायजो के कुछ घिनौने रिवाज से कितनी नफरत है। सब मॉन्स्टर नही है, बस जो मेरी तरह सोचते है, वो दबे हुये है...

आर्यमणि:– और तुम क्या सोचती हो...
Excellent update
 

Tri2010

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भाग:–130




आर्यमणि:– और तुम क्या सोचती हो...


पलक:– भारतीय पारिवारिक वयवस्था के साथ प्रकृति की सेवा करना, जिसके लिये हम जन्म लिये है। जिन इंसानों ने हमारे अस्तित्व को बचाया, हमे खुद से फलने फूलने लायक बनाया, उनको उनकी दुनिया में छोड़कर हम जहां से हैं, वहां लौट जाये...


रूही:– चुप झूठी... तू तो अपने जड़ी बूटी के साथ हमे मारने आयी थी। हमारे पास जो समान है, उसे अपना धरोहर बता रही...


पलक:– “मारने आयी होती तो विश्वास मानो और न विश्वास हो तो अपने लवर से पूछ लेना। जितने वक्त में पैरालाइज होकर ये गायब हुआ, उतने वक्त में 2 बार मार चुकी होती। हां लेकिन अगली बार मकसद सिर्फ मारना होगा और लड़ाई आड़ पार की होगी। तुम्हारी नजर में मैं गलत और खुद को हीरो मानते हो। ठीक वैसा ही मेरे साथ भी है। सबका अपना–अपना पक्ष है।”

“आर्य को मारने का मौका मिला तो पीछे नहीं हटूंगी। क्योंकि इसने मुझे धोखा दिया। अपना मकसद साधने के लिये मेरा इस्तमाल किया। क्या–क्या सपने नही देखे थे मैने... आर्य के मामले में दिमाग को बिलकुल एक किनारे कर दिया। इसके भागने की वजह से 200 बच्चे खुन्नस में निगल लिये गये। समान के चोरी के शक में अब तक 700 इंसान बेवजह मारे जा चुके है। ये सब क्यों हुआ, सिर्फ इसके एकतरफा प्लान की वजह से। इसने अपना सोचा लेकिन अपने किये का परिणाम नही... वो पागल जयदेव कल भी 2 इंसानों की लाश इसलिए गिरा दिया, क्योंकि उसे शक था कि आर्यमणि की खोज, गलत दिशा है। समान इन्ही दोनो में से किसी के पास होगा।”


अलबेली:– दादा इसने तो कंफ्यूज कर दिया... दे दो एक मौका...


पलक:– तुम्हारे भीख के मोहताज नहीं जो मौका चाहिए होगा। यहां तक अपने मेहनत के दम पर हूं। इतने बड़े खेल में आज से नही कई सालो से अपने धैर्य के वजह से टिकी हूं। जब आर्य का उदय भी नही हुआ था, उस से पहले से सबको बचाती आ रही हूं। मैं अच्छी हूं या बुरी इस फिक्र में न रहो। मौका मिलने पर मैं आर्यमणि को छोड़ने वाली नही...


आर्यमणि:– महा तुम्हारा दिल क्या कहता है...


महा:– भाव पलक की बात और उसकी मजबूरी को देखते हुये मेरा दिल कहता है कि ये बस अपने सिस्टम के नीचे दबी है। बाकी तुम्हे भी एक बार यकीन कर लेना चाहिए...


आर्यमणि:– यकीन... क्या बताऊं मैं यकीन की कहानी.... ये वुल्फ हाउस गवाह है, मैने जिसपर यकीन किया, उसी ने मेरी मार ली थी। खैर फिर भी एक बार और यकीन कर लेता हूं। पलक तो तुम्हारा कहना है कि गुरु निशि को तुम बचा रही थी, फिर किसी और से मदद क्यों नही मांगी।


पलक:– मैने अपने दोनो दोस्त सार्थक और प्रिया को पूरी बात बताकर आश्रम को गुप्त रूप से आगाह करने कही थी। यही वजह भी था कि गुरु निशि के हर करीबी को इकट्ठा करने के लिये मैंने उन्हे पैरालाइज भी किया था। लेकिन 3 दिन बाद ही सबको आग की भट्टी में झोंक दिया गया। उस जगह कुछ शिष्य बच गये थे, जिन्होंने पहाड़ी के महादेव मंदिर पर शरण लिया था। उनमें से एक गुरु निशि का बहुत चहेता शिष्य था, नाम याद नही। उस से पूछना, वह अपनी मां की मौत देखकर बेहोश हो गया था। उसे मैने ही छिपाया था।


आर्यमणि:– इवान, संन्यासी शिवम के पास जाकर पलक की बात की पुष्टि करो... और पलक तुम, अभी जो यहां हुआ, उसे देखकर क्या कहोगी?


पलक:– मैं और मेरे जैसे चंद लोग इंसान और नायजो के बीच शांति स्थापित किये है। उन नायजो में किसी के पिता इंसान है, तो किसी माता... समान चोरी के शक में मरे हुये 700 लोग वही इंसान होंगे न, जो नायजो के संपर्क में है। परिवार में है... शक की सुई वहीं पर घूमेगी न... तुम भागे तो क्या शक भूमि दीदी पर नही होता, और भूमि दीदी की लाश गिर जाती तब तुम्हारा मन कैसा होता? ठीक उसी प्रकार से नायजो परिवार से जुड़े कई इंसानों को गायब कर दिया गया।”

“तुम्हे क्या लगता है, तुमने अपने परिवार और दोस्तों को सुरक्षित कर लिया तो उनके दोस्त सुरक्षित हो गये। तुम्हे बाहर लाने के लिये करना ही कितना पड़ता, चित्रा को फांस लेते। ठीक है चित्रा की सुरक्षा तुम कर लोगे, लेकिन माधव उसका क्या? चलो एक बार माधव का भी मान लिया की उसके सुरक्षा इंतजाम हो गये, लेकिन क्या माधव के मां–पिताजी सुरक्षित है? एक बार माधव के मां पिताजी की जान पर बन आयी मतलब तुम बाहर। वहां तुम्हारे भेजे संन्यासियों के अलावा बीच में मैं खड़ी थी मैं। मुझे यदि परिवार को बीच में लाकर खेल रचना होता न आर्य, तो तुम मेरे पाऊं में गिड़गिड़ाते। मानती हूं कि बहुत दिमाग वाले हो, लेकिन अभी भी तुम्हारे अंदर धैर्य की कमी है। और हां इंसान परखने का तजुर्बा भी उतना ही न्यूनतम है।”

“माफ करना कुछ ज्यादा आवेश में सवाल भूल गयी। तुमने अभी के बारे में पूछा न तो जवाब यही है, तुम्हारे कारण बहुतों ने अपनो को खोया है। उसी का पहला सबक सिखाने आयी थी। तुम जैसे बेवकूफ की मुझे जरूरत नहीं। कुछ सालों में मैं खुद ही इतनी सक्षम हो जाऊंगी की पृथ्वी से अपने जैसे नाजयो को समेटकर मूल ग्रह चली जाऊं और जो यहां रहना चाहते हैं उन्हें यहीं की मिट्टी में दफन करते जाऊं।”


आर्यमणि:– हां तो दुश्मनी मुझसे थी, मैं दोषी था, तो मुझे मारती न... अलबेली को जान से मारने की कोशिश...


पलक चिढ़कर आर्यमणि के ऊपर ही चढ़ती... “कब मारा था कम अक्ल। तुम दोनो को पैरालाइज ही की थी ना। तुम्हे तो मार भी देती, उसे कैसे मार सकती थी, जो सरदार खान के घिनौनी दुनिया से अभी–अभी निकली हो, और जीने का आनंद ले रही हो...


आर्यमणि:– तुम थोड़ा दूर हटो... अपनी बात पर पर्दा मत डालो... वो जो चुतिया एकलाफ का तलवार वाला एक्शन था....


पलक:– उस चुतिया को देखो। उसे क्या बाकी बेवकूफों के बारे में सोचो... जब उनके हाथ के हवा और आंख की शक्ति गयी, फिर क्या हाल था? कमर में खंजर खोसे थे, फिर भी बेवकूफों की तरह ऐसे असहाय दौर रहे थे जैसे कोई अबला नारी... तुम्हे लगता है वो चुतिया एकलाफ कमर में स्टील के छर्रा डालकर पहनने वाला बेल्ट की बनी तलवार से चमरी के 2 इंच भी घुसा सकता था। ये चुतिया लड़ेंगे... सामने से लड़ने जाये तो महा की 400 की टुकड़ी इनके 10000 को पानी पिला दे। बस अंतर सिर्फ वो बॉडी एक्सपेरिमेंट कर जाता है, जिनकी वजह से ये हरमजादे अकेला भारी पड़ जाते है। लेकिन कोई नही, हमारी रिसर्च जारी है, कुछ न कुछ तो ऐसा मुझे मिल ही जायेगा जो इनके खून को पानी कर दे। एक्सपेरिमेंट को हवा कर दे।


आर्यमणि:– अच्छा और तुम्हारी कोर टीम भी तो वही कर रही थी ना। क्या अलग सिखाया तुमने उसे...


पलक, कुछ देर तक आर्यमणि की आंखों में झांकती रही, फिर अपनी चुप्पी तोड़ते.... “मेरे कुल 30 लोगों की टीम है, जो इस वक्त तुम्हारे दीवार पर टंगी है। तुम्हे यदि जानना ही है कि मैं और मेरी टीम कितना सक्षम है तो सीधा पूछो ना, ऐसे सवाल क्यों घुमा रहे?”


रूही:– हां, हां पूछ लो, पूछ लो.. राजा रानी सब खेल इधर ही खेल लो...


पलक:– रूही बेकार में ही तुम दिल जला रही। मैं तब प्यार में थी, अब नही हूं। दिमाग ठंडा रखो और तुम मिस्टर आर्य नही समझ में आया कुछ भी क्या?


आर्यमणि:– हां कह सकती हो। तुम्हारे 30 लोग जिंदा है क्योंकि लड़ाई के वक्त वो लोग अपनी सुरक्षा कर रहे थे, न की हमला। तुम या तुम्हारे किसी भी साथी ने अब तक नायजो का पावर इस्तमाल नही किया। उस एक्सपेरिमेंट बॉडी एकलाफ को मारने के लिये तुम्हारे पास हथियार थे? मैं तुम्हारे यहां आने का मकसद नहीं समझ पा रहा?


पलक:– “सबसे पहला मकसद तो तुमसे बदला लेना था। तुम्हे सबक सिखाना था। चोरी के इल्जाम में बेवजह मरे लोग और खुन्नस में निगल लिये गये मासूमों का। और जो वेडिंग गिफ्ट राजदीप के लिये छोड़ गये थे उसका भी। (भाई के सुहागरात की पलंग पर हुई घटना) यहां आने का दूसरा अहम मकसद था, कुछ रॉयल ब्लड मेरे काम के आड़े आ रहे थे। उन सबको अपने रास्ते से साफ करना।”

“तुम्हे और अलबेली को पैरालाइज करने के बाद जब तुम्हारे आंखों में तड़प देखी, उसी ने मेरे दिल को असीम सुख दे दिया। मैं तुम्हे सबक सीखा चुकी थी। आज तक तुमने कभी ये मेहसूस नही किया था न की आंखों के सामने परिवार को कुछ हो तो कैसा लगता है, आज वो फील करवा दिया? उसके बाद तो बस कुछ घिनौने लोगों को मरते देखना था, तो मैं या मेरे लोग पागल है, जो लड़ाई का हिस्सा बने। तुम्हारी जगह और तुम तैयारी करके आये थे। तुम और तुम्हारा पैक ही बाहुबली रहो, लहराओ विजय का परचम। मैं और मेरी टीम 2 पाटन के बीच पिसने क्यों जाये?


आर्यमणि:– बहुत खूब। तुम तो सरप्राइज़ पर सरप्राइस दिये जा रही हो। एक बात बताओ तुम तो इन्ही के समुदाय की हो, फिर इतनी दुश्मनी क्यों?


पलक:– “वाकई ये सवाल पूछ रहे? इतना बचकाना सवाल की उम्मीद तुमसे नही थी आर्य। दो इंसानों में नफरत नहीं होती क्या, या दो इंसान में कोई गलत तो कोई सही नहीं होता क्या? इस सवाल का जवाब तुम २ रॉयल ब्लड ओजल और इवान से क्यों नही पूछते, जो तुम्हारे मौसा शुकेश के मौज मस्ती का नतीजा है। एक मन तो किया की जब इन दोनो को पकड़ ही लिया है, तुम्हे घुटने पर ला ही दूं। फिर दिल ने कहा नही यार, परिवार को बीच में लाकर सबक सिखाया तो क्या सिखाया? उसकी जगह, उसके लोग और सब कुछ उसका, वहां चलकर सबक सिखाओ तो वीरता है। और मैं वीर हूं क्योंकि जिन 2 नतीजों के लिये मैं यहां आयी थी उसका एक भाग पूरा हो गया.. दूसरा भाग डंपिंग ग्राउंड में है और वो भी जल्द ही पूरा हो जायेगा।”

“जानते हो आर्य मुझे आज भी वो वक्त याद है, मैं तब 8 साल की रही होंगी। पहली बार मैं विचलित एहसास से गुजर रही थी। मां का चेहरा तो वही था पर गोद वो न थी। छूती तो वो मुझे भी थी, लेकिन वो स्पर्श न रहा। जो दुलार, प्यार मेरी मां मुझे किया करती थी, 8 साल की उम्र के बाद मां का वो दुलार प्यार ना था, हां मां थी। मां का चेहरा रहा पर मां नही रही। इस बहरूपिया कुतिया अक्षरा और मेरा कमिना बाप, साला वो बाप भी कहां है, दोनो ने मिलकर पता नही मेरे मां के साथ क्या किया? क्यों न हो दुश्मनी? तुम्हे क्या पता कैसा लगता है अपने ही मां के कातिलों का चेहरा रोज देखना। उनसे हंसकर बात करना और आंखों के सामने ही किसी दूसरे बच्चे के साथ वही सब होते देखना, जो मेरे साथ हुआ था।”

“क्या इंसानी कोख से जन्मे तुम आर्यमणि एक प्योर अल्फा, क्या तुम्हे अपने मां से इमोशन नही? क्या जो मेरे साथ काम कर रहे है, उनको अपने मां या पिताजी से इमोशन न रहा होगा? नायजो से संबंध रखने वाले इंसान ही कितने बचते है, उसमे भी तुम्हारी (आर्य) वजह से जब 700 लोग आंखों के सामने महज कट ना गये, बल्कि भारती जैसे कितने ही नीच नरभक्छियो का भोजन बन जाए तब तुम्हारे लिये हमारे इमोशंस क्या होने चाहिए?”

वो रो रही थी। वो चीख रही थी। पहली बार दिल का बोझ बता रही थी। बात सच्ची थी। चोरी के शक में पलक के साथ काम करने वाले नायजो के कई परिवार के इंसान उनके आंखों के सामने कट गये, थालियों में पड़ोस दिये गये। पलक और उसके साथी बिलबिला गये। सारे पुराने काम छोड़कर बस आर्यमणि के पीछे लग गये।


पलक रोती–रोती बोली और बोलकर रोती रही। हिचकियों में कहने लगी... “मेरे आंखों के सामने मेरे लोगों को काट डाले, क्या तुम्हारे पापों का हिसाब नही होना चाहिए आर्य? आज तो बस तुम्हे एहसास करवाया है कि आंखों के सामने अपना कोई मरता है, तब कैसा लगता है? इसके बाद जब मैं तुमसे मिलूंगी तो तुम्हे जान से मारने के मकसद से मिलूंगी। बेशक तुम मुझे अभी मार दो, वरना तुम कितने भी अच्छे क्यों न हुये आर्य, मैं तुम्हे मार ही डालूंगी। दोनो में से कोई भी जीवित रहे इन नायजो को उसकी धरती पर भगा ही देगा लेकिन जीवित तो कोई एक ही रहेगा। आग लगी है मेरे सीने में आग।”


रोते हुये सर पर जैसे सुकून भरा हाथ पड़ा हो। पलक अपना सर ऊपर करती देखने लगी। संन्यासी शिवम उनके सामने खड़े थे। पलक उनको देख कुछ न बोली बस अपनी आंख साफ करने लगी.... “तुम बहुत समझदार हो। भावना से परिपूर्ण हो और पूरा आश्रम गुरु अपस्यु के जान बचाने के लिये तुम्हारा आभार व्यक्त करता है। लेकिन कुछ भी पूर्ण रूप से कभी भी आपके अनुकूल नही होता।”

“गुरुदेव जब नागपुर से भागे थे, तब उन्होंने किसी भी इंसान को नही फसाया था। चोरी का समान भी जो स्वामी से लिया गया था वह मात्र स्वामी जैसे कपटी इंसान को फसाने के लिये किया गया था। लेकिन उसके बाद उस समान को जितने भी कानूनी पतों हो कर गुजरा, वहां किसी न किसी संन्यासी का ही नाम अंकित किया गया था। हमने किसी भी नायजो परिवार के इंसान का नाम इस्तमाल नही किया। कुछ तो बीच मे गलतफहमी हुई है।”..
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Tri2010

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भाग:–131


“गुरुदेव जब नागपुर से भागे थे, तब उन्होंने किसी भी इंसान को नही फसाया था। चोरी का समान भी जो स्वामी से लिया गया था, वह मात्र स्वामी जैसे कपटी इंसान को फसाने के लिये किया गया था। लेकिन उसके बाद उस समान को जितने भी कानूनी पतों हो कर गुजरा, वहां किसी न किसी संन्यासी का ही नाम अंकित किया गया था। हमने किसी भी नायजो परिवार के इंसान का नाम इस्तमाल नही किया। कुछ तो बीच मे गलतफहमी हुई है।”..

पलक:– ऐसा कैसे कह सकते है? मेरा दोस्त श्रवण, उसके पिता मोहन जी, दोनो को अगले ही दिन मेरे आंखों के सामने तड़पा, तड़पा के मार डाला। उनसे पूछते रहे, बताओ चोरी का समान कहां है? श्रवण तो बस अमरावती से मुझसे मिलने आया था, और मिलकर चला गया। मेरा नालायक चाचा सुकेश कहता है, ताला तोड़ने में ये एक्सपर्ट है, सीसी टीवी से छिपकर इसने ही खुफिया रास्ते का ताला तोड़ा होगा। श्रवण और उसके पिता की क्या गलती थी?

आर्यमणि:– शिवम् सर ये गणना नही किये थे कि कमीने नायजो को जिनपर शक होगा, उन्हे मारेंगे... ये भूल तो हुई है।

संन्यासी शिवम्:– तुम्हारे दादा वर्धराज और लोपचे की दोस्ती नायजो को खटकती थी। तुम्हारे दादा जी और गुरु निशि दोनो को मारने का मन बना चुके थे। लोपचे के साथ मामला फसाकर उन्होंने ही न दोस्ती को दुश्मनी में बदली। तुम्हारे दादाजी और गुरु निशि को को मरवाया न। पलक ने सभी बातों का सही आकलन किया, सिवाय एक...

पलक:– क्या?

संन्यासी शिवम्:– तुमने नायजो इतिहास नही पलटा। इन लोगों के निशाने पर जो भी होता है, उन्हे किसी न किसी विधि फसाकर मार ही देते है। तुम्हे नही लगता की चोरी के मामले में जिन लोगों की जान गयी, वो कहीं दूर–दूर तक चोरी से संबंध नहीं रखते थे। फिर भी उन्हें उठाया गया। चोरी का तो एक बहाना मिल गया था, वरना चोरी नही भी हुई होती तो भी विकृत नायजो उन 700 इंसानों को मारकर उसकी जगह खुद ले लेते। उन्हे तो बस अपनी आबादी बढ़ानी है और परिवार के अंदर के कुछ इंसानों की जगह नायजो को बिठा देना था। सोचकर देखो, 700 अलग–अलग परिवार के लोगों को उठाया होगा, जिस परिवार में एक या 2 नायजो होंगे, बाकी सब इंसान...

पलक:– और वो 200 बच्चे जिन्हे खुन्नस में निगल लिये?

संन्यासी शिवम:– क्या वाकई वो खुन्नस रही होगी? क्या कोई भी अपराध इतना बड़ा हो सकता है कि उसके प्रतिशोध में नवजात को निगल लिया जाये। तुम्हे नही लगता की इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।

पलक:– हम्मम पूरी बात अब साफ हो गयी है। वो लोग उतने लोगों को मारते ही, क्योंकि उन्हे उन परिवारों में घुसना था। नवजात शिशु तो जैसे उन कमीनो के प्रिय भोजन हो, जो किसी भी अवसर पर उन्हे बच्चों को खाने का बहाना मिल जाता है। कोई नही 700 लोगो को मारने और 200 बच्चों के निगलने वाले लगभग सभी दोषी यहीं मौजूद थे। कुछ जो बचे है, वो तो बहुत मामलों में दोषी है, जायेंगे कहां, उनका हिसाब किताब तो ले ही लेंगे। लेकिन यहां अभी जो हुआ, ये आर्यमणि, ओजल को इशारा कर रहा और वो दीवार से मेरे साथियों को काट रहा... ये बर्बरता क्या है? बात करने बैठा है फिर सबको काट क्यों रहा है?

आर्यमणि:– पहली बात तो ये की तुम्हारे एक भी दोस्त नही मरे। फिर ये झूठ क्यों बोल रही। ऊपर से तुमने भी तो बात नही किया और सीधा हमे पैरालाइज कर दिया था। उसके बाद लोगों को चाकू से मारने के विचार तक दिये। रूही, इवान और अलबेली को तो चाकू मार–मार कर अधमरा कर चुके थे।

पलक:– भिड़ की ताकत का तुम लोग भी तो मजा लो। इतना डरवाना दहाड़े थे कि मेरी सूसू निकल गयी। इतना हैवान की तरह डरवानी दहाड़ कौन निकालता है? गॉडजिला की आत्मा समा गयी थी क्या?

आर्यमणि:– दहाड़ डरावनी थी और तुम्हारी गलती नही थी। बात करने जब आयी तब बात ही करना था न...

पलक:– फिर से वही सवाल... उन्हे (संन्यासी शिवम्) सुनने के बाद भी क्या मैं तुम्हे दोषी नही मानती। सोचना भी मत। इंसानों की मौत तुम्हारे प्लान के कारण नही हुई ये मान लिया। लेकिन शादी की रात जो तुमने किया उसका हिसाब अभी बाकी है। वैसे भी शुरवात में तो उन इंसानों के मौत के जिम्मेदार भी तो तुम्हे ही मान रही थी। तो मुझसे क्या उम्मीद करते हो की मैं बैठकर तुमसे बात करूंगी?

रूही:– पलक तुम सेवियर हो। तुम तोप हो। तुम तूफान हो। तुम अपने समुदाय की अच्छी नायजो हो। चलो–चलो अब सभा खत्म करो। जर्मनी की बातचीत यहीं खत्म होती है।

पलक:– “वाकई रूही, सभा खत्म। बातचीत तो एकतरफा हुआ। तुम्हे नही जानना की आर्य ने आज की मीटिंग क्यों रखी थी? चलो मेरा क्या है, नागपुर में मैं आर्य को फांस रही थी और आर्य मुझे। इसलिए हम दोनो ने एक दूसरे को कुछ भी नही बताया। चलो ये भी मान सकती हूं कि नागपुर में तुम नई जुड़ी थी, इसलिए अहम जानकारियां नही दी जा सकती थी, लेकिन आज यहां की मीटिंग”...

“सोचो रूही सोचो... नायजो की हजार की भिड़ को मारने के लिये यदि 8 मार्च की मीटिंग होती तो क्या 2 महीने पहले आर्य को सपना आया था कि मीटिंग की बात सुनकर इतने लोग आर्या को मारने आयेंगे। और यदि नायजो को मारना ही मकसद था तो बातचीत का प्रस्ताव क्यों? क्यों सबके सामने खुलकर आना? जैसे अमेरिका और अर्जेंटीना से नायजो को साफ किया वैसे ही चुपके से भारत में साफ करते रहते। कुछ तो वजह रही होगी जो ये मीटिंग के लिये आर्य मरा जा रहा था? या मैं ये मान लूं की बिस्तर पर इसे मेरी याद आ गयी, इसलिए इस मीटिंग का आयोजन किया गया? सोचकर देखो मेरी बात”...

"बात नही अब तो लात चलेगी, लात”... कहते हुये रूही ने अपना लात कुर्सी पर ऐसे जमाई की कुर्सी चकनाचूर और आर्य सीधा जाकर दीवार से टकराया। रूही तेजी भागकर आर्यमणि के पास पहुंची और उसका गला पकड़कर दीवार से चिपकाते हुये.... “जैसा की पलक ने अपने यहां होने का मकसद बताया, तुम्हारा क्या मकसद था जान।”

आर्यमणि:– बेबी, सोना, मेरी प्यारी, पहले नीचे तो उतारो दम घुट रहा है।

रूही:– आज के मीटिंग का मकसद क्या था?

महा:– पुराना प्यार जाग उठा...

रूही, एक लात आर्यमणि के दोनो पाऊं बीच की जगह से ठीक इंच भर नीचे की दीवार पर मारी। ऐसा मारी की दीवार घुस गया.... “पुराना प्यार या पुराना हवस जाग उठा था”...

आर्यमणि:– नही रूही, तुम कितना गन्दा सोचती हो। एक इंच भी ऊपर लात लगती तो मैं किसी काम का न रहता...

रूही:– क्या वाकई तुम्हारे अंडकोष हील न होंगे... चलो एक टेस्ट कर ही लेती हूं...

आर्यमणि, चिल्लाते हुये.... “रूही नही... पागल हो क्या जो ऐसे टेस्ट का नाम भी ले रही। नीचे उतारो सब बताता हूं।”

रूही:– क्यों 2 महीने से बताने का ख्याल नही आया? (आर्यमणि को नीचे उतारती)... या फिर हर योजना की तरह इस योजना में भी हम अल्फा पैक के जानने लायक कोई बात ही नही थी। हम तो पागल है, जिसे लक्ष्य का पता हो या ना हो, वो कोई जरूरी बात नही, बस मार–काट करते रहो...

रूही मायूस थी। आर्यमणि उसके कंधे पर हाथ रखते..... “नही ऐसी कोई बात नही थी। पहले कोई बहुत बड़ा योजना नही था, लेकिन जैसे–जैसे समय नजदीक आता चला गया, योजना में बदलाव होते चले गये”...

रूही:– कमाल है ना, और मुझे एक भी बदलाव का पता नही...

आर्यमणि:– रूही मैं तुम्हे सब विस्तार से बताता हूं...

रूही:– नही जानना मुझे कुछ भी। कुछ देर में तो वैसे भी जान जाऊंगी...

आर्यमणि:– मुझे माफ कर दो। अब से जो भी बात होगी वो सबसे पहले मैं तुम्हे बताऊंगा..

रूही:– जाओ अपना बचा काम खत्म करो। नही माफ कीजिए बॉस... जाइए आप अपना काम खत्म कीजिए... हम भूल गये की पैक के मुखिया आप हो...

आर्यमणि:– क्यों दिल छोटा कर रही। कहा तो माफ कर दो... और पैक का सिर्फ एक ही बॉस है... और वो कौन है...

आर्यमणि अपनी बात कहकर अल्फा पैक के ओर देखने लगा। सबने एक जैसा ही रिएक्शन दिया.... “हुंह..” और अपना मुंह फेर लिये। आर्यमणि को गलती समझ मे आ तो रहा था लेकिन बात कुछ ज्यादा ही हाथ से निकल गयी थी। आर्यमणि और निशांत के बीच कुछ इशारे हुये। थोड़ी टेलीपैथी हुई....

“दोस्त बता ना क्या करूं?”..

“पाऊं में गिड़कर, पाऊं पकड़ ले आर्य, शायद पिघल जाये।”

“ठीक है ये भी करके देख लेता हूं।”

कुछ दिमाग के बीच संवाद हुये। थोड़े नजरों के इशारे हुये और आर्यमणि दंडवत बिछ गया। रूही झटके से अपने पाऊं पीछे करती.... “जान ये क्या कर रहे?”

आर्यमणि:– माफी मांग रहा हूं। प्लीज माफ कर दो...

रूही:– क्या मेरे मुंह से बोल देने से मेरे दिल का दर्द हल्का हो जायेगा आर्य। हम एक पैक है। एक परिवार है। कुछ दिनों में हमारी शादी होने वाली है। क्या मैं उस लायक भी नहीं थी कि तुम कुछ हिस्सा ही बताकर कह देते, बाकी अभी मत जानो...

आर्यमणि:– बहुत बड़ी गलती हो गयी...

रूही:– पहले खड़े हो जाओ आर्य, इतने लोगों के बीच ऐसे पाऊं पड़ने से तुम्हारा गलत सही नही हो जायेगा। मेरे दिल में चुभा है, और मुझे नही लगता की तुम्हे इस बात का एहसास भी है। तुमसे तो मात्र एक गलती हुई है, जिसकी किसी भी विधि माफी चाहिए....

आर्यमणि:– मैं अब कुछ नही कहूंगा। तुम मुझे इतना बताओ की मैं क्या करूं जो तुम्हे अच्छा महसूस होगा...

रूही:– तुमसे वो भी न हो पायेगा...

आर्यमणि:– बोलकर देखो, नही होने वाला होगा तो भी करके दिखा दूंगा...

रूही:– पलक को जान से मार दो...

आर्यमणि:– रूही, किसी को जान से मारना... तुम समझ भी रही हो क्या मांग रही हो?

रूही:– ठीक है तो मुझे छोड़ दो... ये तो कर सकते हो ना...

आर्यमणि, अपने दोनो हाथ जोड़ते.... “मुझे माफ कर दो। मुझे बोलना नहीं आता। क्या कुछ है जो मैं तुम्हारे दिल के सुकून के लिये कर सकता हूं?

रूही:– तुम नही कर पाओगे...

आर्यमणि:– तुम्हारे दिल को थोड़ा कम ही सुकून दे, लेकिन मैं जो कर सकता हूं, उस लायक बता दो...

रूही:– हम सब बिना लक्ष्य के लड़े, तुम भी पलक के साथ उतने ही सीरियस होकर बिना किसी लक्ष्य के लड़ो...

पलक:– मुझसे क्यों भिड़वा रही है... मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा...

रूही:– मेरे दिल की भावना आहत की है... कुछ भी कहती लेकिन मेरा आर्य तुम्हे बिस्तर पर याद कर रहा था, ये नही कहना चाहिए था...

आर्यमणि, मुट्ठी बंद करके झट से अपना पंजा खोला। ऊसके पंजे से झट से क्ला खुल गये... “इसी ने अभी आग लगाया था। इसके मुंह तोड़ने में बड़ा मजा आयेगा।”

पलक:– सोच ही रही थी कि सभी मकसद पूरे हो गये, पर निजी तौर पर जो सीने में आग लगी थी वो बुझानी रह गयी। पूरी तैयारी के साथ आना आर्य, वरना मैं तो तुम्हारे अंग भंग करने को तैयार हूं।

आर्यमणि रूही को बैठने का इशारा करते... “कांटेदार जबूक चलेगी या खंजर”...

पलक, अपनी कुर्सी से उठकर बीच हॉल मे पहुंची और दोनो हाथ के इशारे से बुलाते... “कुछ भी चलाऊंगी पर तुम्हारी तरह मैदान के बाहर खड़े होकर जुबान तो नही चलाऊंगी”...

“ऐसा क्या”.... कहते हुये आर्यमणि अपनी जगह से खड़े–खड़े छलांग लगा दिया। अल्फा पैक एक साथ सिटी बजाते, बिलकुल जोश में आ गये। अपनी जगह से खड़े–खड़े जब आर्यमणि ने छलांग लगाया तब वह दूसरी मंजिल के ऊपर तक छलांग लगा चुका था जिसे देख अल्फा पैक जोश में आ गया। लेकिन ठीक उसी वक्त हॉल के दूसरे हिस्से पर जब नजर गयी तब आश्चर्य से सबके मुंह खुले और मुंह से “वोओओओओ” निकल रहा था।

पलक के हाथों के बस इशारे थे और वह हवा में जैसे उड़ रही थी। हवा के बवंडर उठाने की तकनीक के दम पर पलक अलग ही कारनामा कर चुकी थी। पलक तो जैसे हवा के रथ पर सवार थी। आर्यमणि दूसरी मंजिल तक की उछाल भरा और पलक ठीक उसके माथे के ऊपर। पहला हमला पलक ने ही किया। अपने दोनो हाथ के इशारे से पलक ने हवा का तेज बवंडर आर्यमणि पर छोड़ा। आर्यमणि उस बवंडर से बचने के लिये बस अपने फूंक से उस बवंडर को दिशा दे दिया।

तेज हवा का झोंका पलक के ओर बढ़ा और आर्यमणि एक फोर्स के विपरीत फोर्स लगाने के चक्कर में हवा की ऊंचाई से नीचे धराम से गिड़ा। वहीं पलक आर्यमणि के बचाव और जवाबी हमला देखकर मुंह से शानदार कहे बिना रह नही पायी। हालांकि वह गिड़ी नही बल्कि आर्यमणि के उठाये तूफान से बचने के बड़ी तेजी से उसके रास्ते से हटी।

“क्या हुआ आर्य, अपने पहले ही दाव में कही हड्डियां तो न तुड़वा लिये”..... पलक सामने खड़ी होकर हंसते हुये कहने लगी। आर्यमणि को यह हंसी खल गयी और उसी क्षण उसने तेज दौड़ लगा दिया। आर्यमणि ने बचने तक का मौका न दिया। अपने ओर बढ़े तूफान को पलक देख तो सकती थी, लेकिन वह जिस तेजी से आर्यमणि के रास्ते से हटी, उस से भी कहीं ज्यादा तेज आर्यमणि ने अपना रास्ता बदला था। ऐसा लग रहा था जैसे उसे पहले से पता हो की पलक अपनी जगह से कितना हट सकती है।

आर्यमणि, तेज दौड़ते हुये कंधे से टक्कर लगा चुका था। एक भीषण टक्कर जिसे कुछ देर पहले आर्यमणि ने नायजो के एक्सपेरिमेंट वाले बॉडी पर मारा था। जिस टक्कर का अनुभव करने के बाद उन नायजो के खून के धब्बे दीवारों पर थे और चिथरे शरीर यहां वहां बिखरे थे। पलक खतरे को भांप चुकी थी इसलिए बचने के लिये उसने आर्यमणि के ठीक सामने अपने दोनो हाथ से हवा का मजबूत बावंडर उठा दी।

पलक का हांथ आगे और हाथ में हवा का तेज तूफान। आर्यमणि का कंधा उसी हवा की मजबूत दीवार से भिड़ा और जैसे विस्फोट सा हुआ हो। पलक हवा का शील्ड लगाने के बावजूद भी इतना तेज धक्का खाकर दीवार से टकराई की उसकी हड्डियां चटक गयी.... “क्या हुआ छुई मुई, कहीं कोई हड्डी तो न छिटक गयी”
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