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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Tri2010

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भाग:–170


आर्यमणि के मन में एक भ्रम जाल बना हुआ था, जिसमे आर्यमणि उलझा हुआ था। वह पूर्णतः मौन था किंतु मन के भीतर उसकी अपनी ही एक खुशियों की दुनिया थी, और सांसारिक जीवन का सुख वह महाती के साथ भोग रहा था। इन्ही चेतनाओं की दुनिया में एक दिन किसी लड़की ने दस्तक दी। ऐसी दस्तक जिसका इंतजार न जाने कबसे विजयदर्थ और महाती कर रहे थे।

दरअसल कैदियों के प्रदेश में ब्रह्मांड का एक प्रबल वीर योद्धा, निश्चल, अपने एक कमाल की साथी ओर्जा के साथ पहुंचा था। पहुंचा शब्द इसलिए क्योंकि कुछ दिन पहले उस योद्धा निश्चल के ग्रह से एक विमान उड़ी थी जो ब्लैक होल में फंस गयी। उस विमान पर निश्चल की बहन सेरिन और पूरा क्रू मेंबर साथ में थे। उसी विमान की तलाश में पीछे से निश्चल भी ब्लैक होल में घुसा और अपनी बहन की तरह वह भी कैदियों के प्रदेश में फंस गया।

वो पहले भी चर्चा हुई थी ना केकड़े की कहानी। यदि कैदियों के प्रदेश से कोई निकालना भी चाहे तो दूसरे कैदी उसका काम बिगाड़ देते है। ठीक वैसे ही निश्चल के साथ भी हुआ। निश्चल अपनी साथी ओर्जा की मदद से अपने विमान में घुसने की कोशिश कर रहा था, ताकि विजयदर्थ को कोई अनोखा भेंट देकर यहां से निकला जाए। ठीक उसी वक्त करोड़ों कैदी एक साथ आये और उस विशाल से विमान को ऐसा क्षतिग्रस्त किया की उसके अंदर की कोई भी वस्तु किसी काम की नही रह गयी थी।

यदि किसी के कैद से निकलने की उम्मीद को ही मार दे, फिर तो उस व्यक्ति का आवेशित होना जायज है। ऊपर से निश्चल एक “विगो सिग्मा, अनक्लासिफाइड अल्फा” था। ऐसा वीर योद्धा जो सदियों में एक बार पैदा होता है। जमीन पर उसकी गति और बेरहम खंजर का का खौफ पूरे ब्रह्मांड में स्थापित था।

उसके अलावा निश्चल के साथ सफर कर रही लड़की ओर्जा अपने प्लेनेट की एक भगोड़ी थी। और वह जिस प्लेनेट की भगोड़ी थी, वह प्लेनेट ही नही अपितु यूनिवर्स का एक पूरा हिस्सा ही रहस्यमई था, जिसपर एक अकेला शासक अष्टक अपने कोर प्लेनेट से सकड़ों ग्रहों पर राज करता था। और उन सभी सैकड़ों ग्रह पर कोई भी दूसरा समुदाय नही बल्कि अष्टक के वंशज ही रहते थे। अष्टक के वंशजों में एक से बढ़कर एक नगीने थे, जो अकेला चाह ले तो पूरे ग्रह पर कब्जा कर ले। उन्ही नागिनो में सबसे कीमती नगीना थी अर्सीमिया। अर्सीमिया के पास टेलीपैथी और दिमाग पर काबू पाने की ऐसी असीम शक्ति थी कि वह एक ही वक्त में अष्टक के असंख्य वंशज के दिमाग से जुड़ी रहती। इस प्रकार से बिना किसी भी ग्रह पर कोई शासक बनाए अष्टक एक ही जगह से सारा कंट्रोल अपने हाथ में रखता था।

अर्सीमिया ही वह धुरी थी जिसके वजह से असीम ताकत रखने वाले असंख्य लोग एक कमांड में काम करते थे। और अर्सीमिया ही वह वजह थी जिसके कारण अष्टक का साम्राज्य रहस्य बना हुआ था, क्योंकि कोई भी बाहरी उनके क्षेत्र में घुसे उस से पहले ही अर्सीमिया टेलीपैथी के जरिए उसके दिमाग में होती थी और नजदीकी सैन्य टुकड़ी उनका काम तमाम कर देती।

अर्सीमिया के पास दिमाग में घुसने की ऐसी शक्ति थी कि यदि वह कुछ लोगों के ऊपर ध्यान लगाये, तो वह अनंत और विशाल फैले ब्रह्मांड के एक छोड़ से दूसरे छोड़ तक टेलीपैथी कर सकती थी। वहीं अगर पूरे जन जाति के दिमाग में घुसना है तो वह एक वक्त में अनंत फैले ब्रह्मांड के 30 फीसदी हिस्से में बसने वाले हर प्राणी के दिमाग में एक साथ घुस भी सकती थी और ऐसा भूचाल मचाती की उसका दिमाग भी फाड़ सकती थी।

ओर्जा, अर्सीमिया की ही सबसे आखरी संतान थी और ठीक अर्सीमिया की तरह ही उसकी टेलीपैथी की शक्ति भी थी। हां साथ में उसे अपने पिता से विगो समुदाय की शक्ति भी मिली थी, जिसके बारे में ओर्जा को कोई ज्ञान नहीं था। ओर्जा जब अपने कोर प्लेनेट से भागी तब वह अपनी मां अर्सीमिया के दिमाग में घुसकर उसका दिमाग ऐसे खराब करके भागी थी कि वह कोमा में चली गयी। उसके बाद तो रहस्यमय अष्टक का टोटल कम्युनिकेशन लूल होने से उसका रहस्य ब्रह्मांड के दूसरे ग्रहों पर खुलना शुरू हो चुका था।

निश्चल और ओर्जा दोनो ही कमाल के थे। भागने के क्रम में ही ओर्जा, निश्चल से मिली और उसी के साथ सफर करते हुये महासागर की गहराइयों तक पहुंच गयी। दोनो ही विजयदर्थ के कैदी थे और निश्चल भेंट स्वरूप उसे अपनी हाई टेक्नोलॉजी के कुछ इक्विपमेंट अपने विमान से देने की सोच रहा था, ताकि इस बेकार की कैद से उसे आजादी मिले। परंतु दूसरे कैदियों ने पूरा मामला बिगाड़ दिया और निश्चल आवेश में आकर पूरी भिड़ से लड़ गया।

निश्चल पूरी भिड़ से तो लड़ गया किंतु जलीय तंत्र में वह किसी आम इंसान की तरह था, जो भीड़ के हाथों मार खा रहा था। तभी ओर्जा ने जो ही पूरी भिड़ के दिमाग में घुसकर उत्पात मचाया की फिर दोबारा किसी ने निश्चल और ओर्जा को छुआ तक नहीं। हां लेकिन निश्चल की हालत खराब थी और उसे इलाज की सख्त जरूरत थी।

ओर्जा अपनी शक्तियों से तुरंत विजयदर्थ को बुलायी। विजयदर्थ जब निश्चल की हालत देखा तब उसने तुरंत आर्यमणि को बुलवाया और निश्चल को हील करवा दिया। ओर्जा अब तक जितने बार भी आर्यमणि को देखी, तब मौन ही देखी थी। बस यहीं से उसे एक उम्मीद की किरण नजर आने लगी और वह टेलीपैथी के जरिए आर्यमणि से कनेक्ट हो गयी।

आर्यमणि के माश्तिस्क में उसकी पहली आवाज ऐसे गूंजी की आर्यमणि अपना सर पकड़ कर बैठ गया। महाती उस वक्त आर्यमणि के साथ ही थी और अचानक ही सर पकड़कर बैठे देख काफी चिंतित हो गयी। पल भर में ही वहां डॉक्टर्स की लाइन लगी थी, और हर किसी ने यही कहा की आर्यमणि को कुछ नही हुआ है।

वहीं दिमाग के अंदर गूंजे ओर्जा की आवाज ने आर्यमणि के दिमागी दुनिया को हिला दिया था। आर्यमणि को यही लगता रहा की कोई खतरा है, जो उसके परिवार के ओर तेजी से बढ़ रहा था। आर्यमणि, ओर्जा की आवाज लगातार सुनता रहा लेकिन हर बार उस आवाज को नजरंदाज ही किया। हर बार जब वह आवाज मस्तिष्क में गूंजती, आर्यमणि की चेतनाओं की दुनिया धुंधली पड़ जाती।

आंखों में ग्लिच पैदा होने लगा। हमेशा साथ रहने वाली रूही, कभी उसे रूही तो कभी महाती दिख रही थी। ओर्जा लगातार आर्यमणि के मस्तिष्क में गूंज रही थी और धीरे–धीरे उसके यादों का चक्र धूमिल होता जा रहा था। ओर्जा के संपर्क का यह चौथा दिन था, जब आर्यमणि की तंद्रा टूटी और वह वशीकरण मंत्र से पूर्णतः मुक्त था। मुक्त तो हो गया था लेकिन दिमाग की यादें पूर्णतः अस्त–व्यस्त हो चुकी थी। कल्पना और सच्चाई के बीच आर्यमणि का दिमाग जूझ रहा था।

कभी उसे अल्फा पैक की हत्या मात्र एक सपना लगता और सच्चाई यही समझ में आती की विजयदर्थ ने छल से पूरे अल्फा पैक को यहीं महासागर की गहराई में फंसा रखा है। तो कभी वह वियोग से रोने लगता। सारी सिद्धियां जैसे मन की चेतनाओं में कहीं गुम हो चुकी थी। महाती और अपने बच्चे अन्याश से कटा–कटा सा रहने लगा था। आर्यमणि को लग रहा था कि महाती से विवाह और उस विवाह से पैदा हुआ लड़का मात्र एक छल है, जो विजयदर्थ का किया धरा है। इस साजिश में उसकी बेटी महाती भी विजयदर्थ का साथ दे रही थी।

आर्यमणि की जबसे तंद्रा टूटी थी वह कुछ भी तय नहीं कर पा रहा था। इस बीच ओर्जा लगातार आर्यमणि के दिमाग के अंदर अपनी आवाज पहुंचाती रही, लेकिन आर्यमणि उसे नजरंदाज कर अपनी ही व्यथा में खोया रहा। ओर्जा के संपर्क करने का यह छठवां दिन था जब आर्यमणि अपनी समस्या को दरकिनार करते ओर्जा से बात किया... “हां ओर्जा मैं तुम्हे सुन सकता हूं।”...

ओर्जा:– शुक्र है ऊपरवाले का, आपने जवाब तो दिया। देखिए महान हीलर आर्यमणि हम यहां कैद में फंस गये है, और मेरे दोस्त का यहां से निकलना जरूरी है।

आर्यमणि, कुछ देर ओर्जा से बात करने के बाद उसे अपने दोस्त के साथ जीरो प्वाइंट के पंचायत स्थल तक आने कहा और खुद जाकर यात्रा को तैयारी करने लगा। आर्यमणि जब महल छोड़कर निकल रह था, तब महाती सामने से टकरा गयी... “मेरे जान की सवारी कहां जा रही है।”

आर्यमणि:– देखो महाती मैं कितनी बार कह चुका हूं कि मुझे जल लोक रोकने की यह घटिया सी चाल अब काम नही आयेगी। तुम्हे पता होना चाहिए की मैं वशीकरण से बाहर आ चुका हूं। और अब मैं वहां जा रहा हूं, जहां तुम लोगों ने मेरे पैक को कैद कर रखा है।

अपनी बात कहकर आर्यमणि वहां से चला गया। पीछे से महाती चिल्लाती रही की वो कई सारे यादों के बीच अब भी फंसे है, लेकिन सुनता कौन है। आर्यमणि एक सोधक जीव पर सवार हुआ और सीधा कैदियों की नगरी पहुंचा। कैदियों की नगरी में जिस स्थान पर विजयदर्थ फैसला किया करता था, वहां आर्यमणि पहुंचा। उस जगह पर एक स्त्री और एक पुरुष पहले से उसका इंतजार कर रहे थे।

विजयदर्थ के प्रति मन में घोर आक्रोश और ओर्जा के लिये उतना ही आभार लिये आर्यमणि उन दोनो के पास पहुंचा। चूंकि ओर्जा इकलौती ऐसी थी जो मन के अंदर बात कर सकती थी इसलिए वह अपना और अपने साथी का परिचय दी। उसने बताया की कैसे वो अपने साथी निश्चल के साथ पृथ्वी के लिये निकली थी और यहां आकर फंस गयी।

आर्यमणि अपने दोनो हाथ जोड़ते.... “संभवतः तुम दोनो का यहां फंसना नियति ही थी। मुझे यहां के राजा विजयदर्थ के तिलिस्म जाल से निकालने का धन्यवाद। साला ये झूठे और मक्कारों की दुनिया है और यहां के राजा को तो सही वक्त पर सजा दूंगा।"

आर्यमणि की बात सुनकर ओर्जा और निश्चल के बीच कुछ बात चीत हुई। शायद ओर्जा, निश्चल से अपने और आर्यमणि के बीच हुई बातों को बता रही थी। दोनो के बीच कुछ देर की बातचीत के बाद ओर्जा, आर्यमणि से पूछने लगी.... “तुम हो कौन और यहां कैसे फंस गये।”

आर्यमणि, ओर्जा की बात सुनकर मुस्कुराया और जवाब में बस इतना ही कहा.... “इस जलीय साम्राज्य में मेरा वजूद क्या है उसे न ही जानो तो अच्छा है। और मेरे यहां फंसे होने की लंबी कहानी है, किसी दिन दोनो फुरसत में मिलेंगे तब बताऊंगा।”...

एक बार फिर निश्चल, ओर्जा और आर्यमणि के बीच हुई बात को जानने की कोशिश करने लगा। इकलौती ओर्जा ही थी जो टेलीपैथी कम्यूनकेशन कर रही थी। बार–बार आर्यमणि की बात सुनकर निश्चल को समझाना उसे उबाऊ लगने लगा। इसलिए वह आर्यमणि और निश्चल के टेलीपैथी कम्युनिकेशन को ही जोड़ती.... “निश्चल अब तुम सीधा पूछ लो जो पूछना है।”

आर्यमणि:– मुझसे क्या बात करनी है, मैं सब जनता हूं। तुम्हारे जितने भी आदमी हैं, उन सबके नाम जुबान पर रखना और तब तक तुम उस राजा विजयदर्थ से कुछ मत कहना, जबतक मैं नहीं कहूं। बहुत कमीना है वो। उसकी बातों में उलझे तो यहां से किसी को निकलने नहीं देगा। ओर्जा अब तुम बुलाओ विजयदर्थ को, कहना तुमने उसका काम कर दिया।

ओर्जा ने ठीक वैसा ही किया जैसा आर्यमणि ने कहा था। विजयदर्थ वहां पहुंचते ही पूछने लगा की... “कौन सा काम तुम लोगों ने मेरे लिये किया है?”

आर्यमणि पीछे छिपा था। जैसे ही विजयदर्थ की बात समाप्त हुई, आर्यमणि चिंखते हुये ..... "विजयदर्थ दिल तो करता है तुम्हारी हरकत के लिये तुम्हें अभी चिरकर यहां के तिलिश्म को भंग कर दूं। बस हाथ बंधे हुये हैं। तुम्हारे भरोसे यहां के जीव और इंसान सुरक्षित है, इसलिए छोड़ रहा हूं।”

विजयदर्थ:- आर्यमणि मुझे क्षमा कर दो। मैने जो कुछ भी किया था, उसमे सिर्फ एक ही लोभ था, तुम्हे यहां रखना। लेकिन....

आर्यमणि:- मैं जब वादा कर चुका था कि यहां के समस्त जीवन को मैं यहां आकर ठीक करता रहूंगा, फिर मेरे साथ ही छल...

विजयदर्थ, अपने दोनों हाथ जोड़े।... "आप एक प्योर अल्फा है, पृथ्वी से ज्यादा जरूरीत यहां है... आप चाहो तो यहां का राजा बन जाओ। मेरी बेटी से शादी करके अपना नया जीवन शुरू कर लो और राजा बनकर यहां के पालनहार बनिए"

दरअसल महाती, राजा विजयदार्थ को पहले ही सारी घटना बता चुकी थी। वह विजयदर्थ को समझा चुकी थी कि आर्यमणि अपने यादों के बीच उलझ चुका है, वह जैसा कहे वैसा कर देने और अंत में आर्यमणि को लेकर योगियों के क्षेत्र में चले आने। यही वजह थी कि विजयदर्थ, आर्यमणि के कथानक अनुसार ही जवाब दे रहा था।

आर्यमणि:- बातों में न उलझाओ। तुम्हारे किये कि सजा मैं वापस आ कर तय करूंगा। अभी मैं, मेरे सभी साथी, ये लड़की ओर्जा, और इसके सभी साथी, यहां से निकलेंगे। बिना कोई एक शब्द बोले तुम ये अभी कर रहे हो। ओर्जा तुम केवल अपने साथियों का नाम बोलो। पहले वो लोग यहां से जायेंगे। फिर तुम दोनो के साथ मैं अपने पैक को लेकर निकलूंगा।

ओर्जा, आर्यमणि को हैरानी से देखती हुई.... “क्या तुमने अभी टेलीपैथी की है। मैने तो कोई बात ही नही की सब तुमने ही कह डाला।”

आर्यमणि:– हां मैं टेलीपैथी कर सकता हूं। बस मुझे इस विजयदर्थ से सीधी बात नही करनी थी। पर क्या करूं अपने पैक को देखने के लिये इतना व्याकुल हूं कि मुझसे रहा नही गया। अब तुम देर न करो और अपने साथियों के नाम बताओ।

आर्यमणि ने जैसा कहा ओर्जा ने ठीक वैसा ही किया। थोड़ी ही देर में उसके सभी साथी पृथ्वी के सतह पर थे। अंत में बच गये थे आर्यमणि, ओर्जा और निश्चल। आर्यमणि विजयदर्थ के ओर सवालिया नजरों से देखते... “मेरा पैक कहां है।”

विजयदर्थ:– मैं सबको एक साथ निकालता हूं। पृथ्वी की सतह पर सब मिल जायेंगे।

अपनी बात समाप्त कर विजयदर्थ ने फिर से अपने दंश को लहरा दिया। ओर्जा और निश्चल एक साथ पृथ्वी की सतह पर निकले, जबकि आर्यमणि को लेकर विजयदर्थ योगियों के क्षेत्र पहुंच गया। आर्यमणि की जब आंख खुली और खुद को योगियों के बीच पाया तब वह अपना सर पकड़कर बैठ गया। यादें एक दूसरे के ऊपर इस कदर परस्पर जुड़ रहे थे कि दिमाग की वास्तविक और काल्पनिक सोच की रेखा मिट चुकी थी।

आर्यमणि काफी मुश्किल दौड़ में था। उसे एक पल लगता की इन योगियों के साथ उसकी भिडंत हो चुकी है, तो अगले पल लगता की ये योगी मेरे स्वप्न में आये थे। मेरे साथ इन्होंने द्वंद किया और इनके एक गुरु पशुपतिनाथ जी ने अपना पूरा ज्ञान मेरे मस्तिष्क में डाला था। योगी समझ चुके थे कि आर्यमणि के साथ क्या हुआ था?

किसी तरह आर्यमणि को योगियों ने समझाया। उसे अपने बीच तीन माह की साधना पर बिठाया। 3 दिन तक तो आर्यमणि सामान्य रूप से साधना करता रहा, किंतु चौथे दिन से दिमाग की वास्तविक और काल्पनिक रेखा फिर से बनने लगी। धीरे–धीरे आर्यमणि अपने तप की गहराइयों में जाने लगा। दूसरे महीने की समाप्ति के बाद आर्यमणि योगी पशुपतिनाथ के ज्ञान की सिद्धियों को भी साधना शुरू कर चुका था।

तीन माह बाद आर्यमणि साधना पूर्ण कर अपनी आंखें खोला। आर्यमणि का दिमाग पूर्ण रूप से व्यवस्थित हो चुका था। उसे वशीकरण से पहले और उसके बाद का पूरा ज्ञान था। योगियों के समक्ष अपने हाथ जोड़कर उन्हे आभार व्यक्त करने लगा। योगियों ने न सिर्फ आर्यमणि का आभार स्वीकार किया बल्कि अपना क्षेत्र रक्षक भी घोषित कर दिया। आर्यमणि खुशी–खुशी वहां से विदा लेकर अंतर्ध्यान हो गया।
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भाग:–171


तीन माह बाद आर्यमणि साधना पूर्ण कर अपनी आंखें खोला। आर्यमणि का दिमाग पूर्ण रूप से व्यवस्थित हो चुका था। उसे वशीकरण से पहले और उसके बाद का पूरा ज्ञान था। योगियों के समक्ष अपने हाथ जोड़कर उन्हे आभार व्यक्त करने लगा। योगियों ने न सिर्फ आर्यमणि का आभार स्वीकार किया बल्कि अपना क्षेत्र रक्षक भी घोषित कर दिया। आर्यमणि खुशी–खुशी वहां से विदा लेकर अंतर्ध्यान हो गया।

आर्यमणि वहां से अंतर्ध्यान होकर सीधा राजधानी पहुंचा। भव्य से महल के द्वार पर आर्यमणि खड़ा था, और वहां के बनावट को बड़े ध्यान से देख रहा था.... “इतने ध्यान से क्या देख रहे हैं जमाई बाबू?”... पीछे से आर्यमणि की सास, यानी की महाती की मां ज्योत्सना पूछने लगी।

आर्यमणि, उनके पाऊं छूते..... “कुछ नही मां, इस भवन के अलौकिक बनावट को देख रहा था। इस महल में लगा हर पत्थर जैसे अपना इतिहास बता रहा हो।”...

ज्योत्सना:– हां ये बेजान से पत्थर अपनी कहानी हर पल बयान करते है। भले ही अपने पर्वत से अलग हो गये हो, पर हर पल अपनी गुण और विशेषता से यह जाहिर कर जाते है कि वह किस बड़े से साख का हिस्सा थे और इस दुनिया में क्या करने आये थे।

आर्यमणि:– हां आपने सही कहा मां... किस बड़ी साख का हिस्सा थे और दुनिया में क्या करने आये हैं।

ज्योत्सना:– लंबी साधना के बाद एक बार फिर बाल और दाढ़ी बढ़ आया है। मै मेक अप आर्टिस्ट को यहीं बुलवा दूं क्या?

आर्यमणि:– नही मां, मैं करवा लूंगा। आप किस हिचक में है वो बताईये?

ज्योत्सना:– तुम मन के अंदर की दुविधा को भांप जाते हो, क्यों? अब जब सीधे पूछ लिये हो तो मैं भी बिना बात को घुमाए कह देती हूं... पाप मेरे पति ने किया और सजा सभी रिश्तेदार भुगत रहे। घर से हर वर्ष एक लाश निकल रही है। हो सके तो इसे रोक लो..

आर्यमणि:– हम्मम आपने तो मुझे दुविधा में डाल दिया है मां। क्या जो आपके पति विजयदर्थ ने किया, उसके लिये मैं उन्हे क्षमा कर दूं?

ज्योत्सना:– मैने सुना है तुम भी एक बहुत बड़े साख, सात्त्विक आश्रम का हिस्सा हो। संसार के जिस हिस्से में रहते हो, अपने कर्म से सबको बता जाते हो की तुम किस बड़े साख के हिस्से हो और दुनिया में क्या करने आये हो। मै अपने पति के लिये माफी नही चाहती, बस वो लोग जो उनके श्राप के कारण मर रहे, उन्हे रोकना चाहती हूं।

आर्यमणि:– आप मेरी मां ही है। आपकी बात मैं टाल नही सकता। मै आपके पति को मार भी नही सकता क्योंकि मैं नही चाहता एक झटके में उसे मुक्ति मिले। ऐसे में आप बताएं मैं क्या करूं?

ज्योत्सना:– मेरे पति जिस कारण से इतने धूर्त हो चुके है, उनसे वो करण ही छीन लो। इस से बड़ी सजा क्या होगी। उन्हे राजा के पद से हटाकर राजधानी से निष्काशित कर दो।

आर्यमणि:– इसके लिये तो पहले नए राजा की घोषणा करनी होगी और माफ कीजिएगा विजयदर्थ के एक भी बच्चे उस लायक नही।

ज्योत्सना:– क्यों महाती भी नही है क्या?

आर्यमणि:– हम दोनो का विवाह होना नियति थी। जो हो गया उसे मैं बदल तो नही सकता, किंतु जब महाती की नियति मुझसे जुड़ चुकी है फिर आगे उसके किस्मत में ताज नही। आपके पास और कोई विकल्प है अन्यथा मैं विजयदर्थ को उसके श्राप के साथ छोड़ जाऊंगा। इस से बेहतरीन सजा तो मैं भी नही दे सकता था।

ज्योत्सना:– मेरे पास विकल्पों की कमी नही है। मै बिना किसी पक्षपात के सिंहासन के योग्य के नाम बताऊंगी। पहला सबसे योग्य नाम महाती ही थी। किंतु यदि वह सिंहासन का भार नहीं लेती तब दूसरा सबसे योग्य नाम यजुरेश्वर है। बौने के राज घराने का कुल दीपक। चूंकि विजयदर्थ और उसके पीछे की तीन पीढ़ियों ने अपने स्वार्थी स्वभाव के कारण राज सिंहासन के योग्यता के लिये इतनी लंबी–चौड़ी रेखा खींच चुके है कि बौनो के समुदाय ने खुद को सिंहासन के लायक ही समझना छोड़ दिया।

आर्यमणि:– हम्मम, यजुरेश्वर... ठीक है मैं इस इंसान की छानबीन करने के बाद बताता हूं। अभी आपकी आज्ञा हो तो मैं जरा अपने बच्चे से मिल लूं.....

ज्योत्सना:– मैं भी अपने नाती के पास ही जा रही थी... चलो साथ चलते है।

आर्यमणि और उसकी सास दोनो साथ में ही महाती से मिलने पहुंच गये। आर्यमणि को देख महाती प्यारी सी मुस्कान बिखेरते.... “आप कब लौटे पतिदेव”...

आर्यमणि अपना ध्यान अपने बच्चे पर लगाते... “अभी थोड़े समय पहले ही पहुंचा हूं।”

ज्योत्सना दोनो के बीच से अपनी नाती को हटाते.... “तुम दोनो आराम से बातें करो जबतक मैं इस सैतान को घुमाकर लाती हूं।”..

ज्योत्सना के जाते ही उस कमरे में बिलकुल खामोशी पसर गयी। न तो आर्यमणि को कुछ समझ में आ रहा था कि क्या कहे और न ही महाती अपने संकोच से बाहर निकल पा रही थी। कुछ देर दोनो ही खामोशी से नीचे तल को देखते रहे। महाती किसी तरह संकोच वश धीमी सी आवाज में कही.... “सुनिए”..

आर्यमणि, अपनी नजरे जहां जमाए था वहीं जमाए रखा। महाती की आवाज सुनकर बिना उसे देखे.... “हां..”..

महाती:– अब क्या मुझसे इतनी नफरत हो गयी कि मेरे ओर देखे बिना ही बात करेंगे...

आर्यमणि, फिर भी बिना महाती को देखे जवाब दिया.... “तो क्या मुझे नफरत नहीं होनी चाहिए। तुम मेरी मानसिक मनोस्थिति जानती थी, फिर भी मुझसे विवाह की।”..

महाती:– शायद मैं आपके नफरत के ही लायक हूं। ठीक है आपका जो भी निर्णय होगा वह मैं खुशी–खुशी स्वीकार लूंगी...

आर्यमणि:– वैदिक मंत्र पढ़े गये थे। 5 योगियों ने मिलकर हमारा विवाह तय किया था, इसे न स्वीकारने की हिम्मत मुझमें नहीं। थोड़ा वक्त दो मुझे...

महाती २ कदम आगे आकर आर्यमणि का हाथ थामते.... “आप मेरे हृदय में भगवान की तरह थे। आपसे शादी का निर्णय लेना आसान नही था। एक ओर दिल गुदगुदा रहा था तो दूसरे ओर आपके सम्मोहन में होना उतना ही खटक रहा था। मै शादी से साफ इंकार कर चुकी थी, परंतु नियति कुछ और ही थी। आपके साथ इतना लंबा वक्त बिता। आपके साथ इतने प्यार भरे पल संजोए। मै शायद भूल भी चुकी थी कि आपका सम्मोहन जब टूटेगा तब क्या होगा? शायद मैं आज के वक्त की कल्पना नहीं करना चाहती थी। और आज देखिए शादी के इतने साल बाद मेरे पति ही मेरे लिये अंजान हो गये।”...

आर्यमणि:– मैं तुम्हारे लिये अंजान नही हूं महा। बस सम्मोहन टूटने के बाद तुम मेरे लिये अंजान सी हो गयी हो। ये शादी मुझे स्वीकार है, बस थोड़ा वक्त दो।

महा:– यदि आपकी शादी आपके माता पिता की मर्जी से हुई होती। वही परंपरागत शादी जिसमे लड़का और लड़की अंजान रहते है तो क्या आप ऐसी बातें करते? जब शादी स्वीकार है तो मुझे भी स्वीकार कीजिए। जब मेरे करीब ही रहना नहीं पसंद करेंगे, जब मुझे देखेंगे ही नही, तो मैं कैसे आपको पसंद आ सकती हूं?

आर्यमणि:– तुम जिस दिन मेरी दुविधा समझोगी... खैर उस दिन शायद तुम मेरी दुविधा समझो ही नही। मै क्या कहूं कुछ समझ में ही नही आ रहा।

महाती एक कदम और आगे लेती अपना सर आर्यमणि के सीने से टिकाती..... “मैं जानती हूं आपके हृदय में रूही दीदी है, जिस वजह से आपको ये सब धोखा लग रहा है। आप इतना नही सोचिए। पहले भी आपने मुझमें रूही दीदी को देखा था, आगे भी मुझे उसी नजर से देखते रहिए। आपके पग–पग मैं साथ निभाती रहूंगी। आपके जीवन में स्त्री प्रेम की जगह को पूरा भर दूंगी।”

आर्यमणि, अपनी नजरे नीची कर महाती से नजरें मिलाते..... “महा तुम्हारा प्रेम–भाव अतुलनीय है। लेकिन कुछ वर्ष शायद तुम्हे मुझसे दूर रहना पड़े।”

महाती:– ऐसे अपनेपन से बात करते अच्छे लगते हैं जी। आप मेरी और अन्यंस की चिंता नही कीजिए। दीदी (रूही) और परिवार के हर खून का बदला आप ऐसे लेना की दोबारा कोई हमारे परिवार को आंख उठा कर न देख सके। लेकिन उन सब से पहले घर की बड़ी बेटी को ढूंढ लाओ। अमेया को मैं अपने आंचल तले बड़ी करूंगी।

आर्यमणि:– हम्म्म ठीक है, काम शुरू करने से पहले अमेया तुम्हारे पास होगी। मै आज तुम्हारे और अन्यांस के साथ पूरा समय बिताऊंगा। उसके बाद कल मैं पहले नाग लोक की भूमि पर जाऊंगा, उसके बाद कहीं और।

महाती खुशी से आर्यमणि को चूम ली। उसकी आंखों में आंसू थे और बहते आंसुओं के साथ वह कहने लगी..... “आप मेरी खुशी का अंदाजा नहीं लगा सकते। मां अम्बे की कृपा है जो आपने मुझसे मुंह न मोड़ा”..

आर्यमणि:– पूरे वैदिक मंत्रों के बीच 5 तपस्वी ने हमारा विवाह करवाया था। तुम्हे छोड़ने का अर्थ होता अपना धर्म को छोड़ देना।

महाती पूरी खुश थी। अपनी खुशी में वो मात्र राजधानी ही नही, बल्कि समस्त महासागर में चल रहे काम से सबको छुट्टी दे दी। कैदियों के प्रदेश से लगभग 10 लाख कैदियों को उनके ग्रह पर छोड़ दिया गया। अगले एक दिन तक दोनो साथ रहे और एक दूसरे के साथ काफी प्यारा वक्त बिताया। इस पूरे एक दिन में आर्यमणि, विजयदर्थ को भी सजा देने का ठान चुका था।

यूं तो विजयदर्थ के संदेश पूरे दिन मिलते रहे किंतु आर्यमणि उस से मिलना नही चाहता था। महासागर को छोड़ने से पहले विजयदर्थ और आर्यमणि आमने–सामने थे और पूरी सभा लगी हुई थी। सभा में महाती के अलावा विजयदर्थ के बचे हुये 3 बेटे और एक बेटी भी मौजूद थी। उन सबकी मौजूदगी में आर्यमणि ने साफ–साफ शब्दों में कह दिया....

“यदि विजयदर्थ बौने समुदाय के यजुरेश्वर को राजा बनाते है तथा उसके राजा बनने के उपरांत वह अपनी कुल धन संपत्ति छोड़, अपने परिवार के साथ राजधानी छोड़कर किसी अन्य जगह साधारण नागरिक का जीवन शुरू करते है। तो ही मैं विजयदर्थ को उसके किये के लिये माफ करूंगा।”..

एक राजा से उसकी गद्दी छीन ली। एक राज परिवार से उसकी कुल धन संपत्ति छीनकर, उसे आम लोगों की तरह गुमनामी में जीने की सजा दे डाली। ये तो विजयदर्थ के लिये हर वर्ष अपनो के लाश देखने से भी बड़ी सजा थी। किंतु जुबान तो जुबान होती है, जो विजयदर्थ ने योगियों को दिया था... “आर्यमणि जो भी सजा देगा मंजूर होगा।”... और दिल पर पत्थर रखकर विजयदर्थ और उसके पूरे परिवार ने इस प्रस्ताव पर सहमति जता दिया।

विदा लेने पहले आर्यमणि एक बार अपने बच्चे अन्यांस को गोद में लिया और महाती से कुछ औपचारिक बाते की। नागलोक के भू–भाग पर जाने के लिये उसकी सवारी भी पहुंच चुकी थी, जिसे आर्यमणि वर्षों बाद देख रहा था। चहकीली नजरों के सामने थी और पहले के मुकाबले उसका शरीर काफी विकसित भी हो चुका था। हां लेकिन शारीरिक विकास के साथ–साथ चहकीली की भावना भी पहले जैसी नहीं दिखी। वह बिलकुल खामोश और शांत थी।

आर्यमणि यूं तो तल पर ही खड़ा था, किंतु उसके उसके शरीर से उसकी आत्मा धुएं समान निकली जो चाहकीली के चेहरे के बराबर थी। चहकीली उस आत्मा को देख अपनी आंखे बड़ी करती.... “चाचू ये आप हो?”

आर्यमणि:– हां ये मैं ही हूं...

चहकीली:– पर आप ऐसे कैसे मेटल टूथ की तरह दिखने लगे। बिलकुल पारदर्शी और धुएं समान...

आर्यमणि:– मेरा दिखना छोड़ो और तुम अपनी बताओ। इतनी गुमसुम शक्ल क्यों बनाई हुई हो।

चहकीली:– हम जानवर है ना... और जानवरों की कोई भावना नहीं होती...

आर्यमणि:– ये बात न तुम मेरी रूही से कहना, जो अब भी उस आइलैंड पर इंतजार कर रही है।

चहकीली:– क्या आंटी की आत्मा? तो क्या वहां अलबेली और इवान भी मिलेंगे...

आर्यमणि:– नही उन दोनो को तो रूही ने स्वर्ग लोक भेज दिया और खुद यहीं रुक गयी ताकि अपनी और उन दोनो की अधूरी इच्छाएं पूरी करवा सके।

चहकीली:– आप झूठ बोल रहे हो ना चाचू...

आर्यमणि:– अभी तुम मेरे साथ चल रही हो ना, तो चलकर खुद ही देख लेना...

चहकीली:– मैं आपकी बातों में नही उलझती। वैसे चाचू एक बात पूछूं..

आर्यमणि:– हां पूछो..

चहकीली:– चाचू क्या आपका खून नही खौलता? चाचू आप रूही चाची को भूलकर महाती के साथ खुश कैसे हो सकते हो?

आर्यमणि:– “खुश दिखना और अंदर से खुश रहना 2 अलग–अलग बातें होती है। वैसे भी रूही और महाती में एक बात सामान है... वो दोनो ही मुझे बेहद चाहती है। इस बात से फर्क नही पड़ता की मैं क्या चाहता हूं। उनको जब खुशी देखता हूं तब मैं भी अंदर से खुश हो जाता हूं। फिर ये मलाल नहीं रहता की मेरी पसंद क्या थी।”

“चहकीली एक बात पता है, एकमात्र सत्य मृत्यु है। इसे खुशी–खुशी स्वीकार करना चाहिए। हां मानता हूं कि रूही, अलबेली और इवान की हत्या नही होनी चाहिए थी। किसी के दिमागी फितूर का शिकर मेरा परिवार हुआ। अतः उन्हें मैं दंड भी ऐसा दूंगा की उन्हे अपने जीवित रहने पर अफसोस होगा। बाकी मैं जब भी अपनी रूही, अलबेली और इवान को याद करूंगा तो मुस्कुराकर ही याद करूंगा। तुम भी अपनी मायूसी को तोड़ो।”

चहकीली:– केवल एक शर्त मैं मायूसी छोड़ सकती हूं। निमेषदर्थ को आप मेरे हवाले कर दीजिए...

आर्यमणि:– तुम्हे निमेष चाहिए था तो उस वक्त क्यों नही बोली जब मैं उसका पाऊं काट रहा था। उसी वक्त मैं तुम्हे निमेष को दे देता। जनता हूं तुम उसे मृत्यु ही देती लेकिन तुम्हारी खुशी के लिये इतना तो कर ही सकता था।

चहकीली:– बिलकुल नहीं... मै उसे मारना नही चाहती हूं...

आर्यमणि:– फिर तुम उसके साथ क्या करोगी? और ये क्यों भुल जाती हो, निमेष को सिर्फ महासागर से निष्काशित किया गया था, ना की उसकी सारी शक्तियों को छीनकर निष्कासित किया गया था। निमेष के पास अब भी उसके आंखों की जहरीली तरंगे और वो दंश है, जो थल पर भी उतना ही कारगर असर करते है। नमूना मैं नागलोक के भू–भाग पर देख चुका हूं।

चहकीली:– मुझे निमेष तो चाहिए लेकिन उसका मैं कुछ नही करूंगी, बल्कि सब तुम करोगे चाचू...

आर्यमणि:– मैं क्या करूंगा...

चहकीली:– उस निमेषदर्थ को शक्तिहीन कर दोगे। फिर मल निकासी के ऊपर जो मेरे पेट पर सर्जरी किये थे, उस जगह को चिड़कर, निमेषदर्थ को मल निकास नली के अंदर की दीवार से टांक देना। बस इतना कर देना...

आर्यमणि:– किसी दूसरे को सजा देने के लिये मैं तुम्हे दर्द दे दूं, ऐसा नहीं हो सकता...

चहकीली:– फिर मेरी उदासी कभी नही जायेगी। चाचू मेरे दिल का बोझ बस एक आपकी हां पर टिका है। मना मत करो ना...

मायूस सी उसकी आंखें थी और मासूम सा चेहरा। आर्यमणि, चहकीली के दिल की भावना को मेहसूस करते, उसके प्रस्ताव पर अपनी हामी भर दिया। चहकीली पुराने रंग में एक बार फिर चहकती हुई गुलाटी लगा दी और आर्यमणि को अपने पंख में लॉक करके नागलोक के भू–भाग पर चल दी।
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भाग:–172


मायूस सी उसकी आंखें थी और मासूम सा चेहरा। आर्यमणि, चहकीली के दिल की भावना को मेहसूस करते, उसके प्रस्ताव पर अपनी हामी भर दिया। चहकीली पुराने रंग में एक बार फिर चहकती हुई गुलाटी लगा दी और आर्यमणि को अपने पंख में लॉक करके नागलोक के भू–भाग पर चल दी।

नाग लोक के भू–भाग का पूरा रूप रेखा पहले से कहीं ज्यादा बदला हुआ था। हजारों किलोमीटर तक धरती ही धरती थी। बारहसिंगा, नीलगाय, गरुड़, यूनिकॉर्न, 4 फिट का लंबा बिच्छू, कई तरह के अलौकिक जीवों से वह जगह भरी पड़ी थी। आइलैंड पर पाऊं रखते ही आर्यमणि के आंखों से आंसू बहने लगे। उसके कदम ऐसे बोझिल हुये की वह लड़खड़ा कर गिर गया।

चाहकीली, आर्यमणि के पास पहुंचने के लिये तेजी दिखाई ही थी कि आर्यमणि उसे हाथ के इशारे से रोक दिया। काफी देर तक वह वहीं बैठा रोता रहा। रोते–रोते आर्यमणि चीखने लगा.... “क्यों भगवान क्यों... मेरी गलती की सजा मेरे पैक को क्यों? दुश्मनी मुझसे थी फिर उन्हे क्यों सजा मिली? जिंदगी बोझिल सी हो गयी है, घुट सी रही है। अंदर ही अंदर मैं जल रहा हूं। न जाने कब तक मैं अपने पाप तले दबा रहूंगा।”

आर्यमणि पूरा एक दिन तक पूर्ण वियोग में उसी जगह बैठा रहा। आंसू थे की रुकने का नाम ही नही ले रहे थे। तभी आर्यमणि के कंधे पर किसी का हाथ था और नजर उठाकर जब देखा तब महाती खड़ी थी..... “उठिए पतिदेव... आप कल से वियोग में है और जूनियर इवान भी कल से गुमसुम है।”...

आर्यमणि, नजर उठाकर महाती को देखा परंतु कुछ बोला नहीं। महाती आर्यमणि के मन में उठे सवाल को भांपति..... “ईश्वर ने आपसे एक इवान छीना तो इस जूनियर इवान को आपकी झोली में डाल दिया।”

“इवान... हां इवान... उसने अपना बचपन पूरा तहखाने में ही गुजारा था। मुश्किल से साल, डेढ़ साल ही तो हुये होंगे... अपनी खुशियों को समेट रहा था। ये जहां देख रहा था। दूर हो गया वह मुझेसे। हमारे पैक में एक वही था जो सबसे कम बोलता था। जिसने अपनी जिंदगी के मात्र 2 साल खुलकर जीया हो, उसे कैसे कोई सजा दे सकता है ?”..

“अलबेली... देखो उसका नाम लिया और मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी। जानती हो किन हालातों का उसने सामना किया था। दरिंदो की बस्ती में उसे हर रोज तरह–तरह की दरंदगी झेलनी पड़ती थी। ठीक से जवान भी नही हुई थी उस से पहले ही उसके जुड़वा भाई को अलबेली के आंखों के सामने मार दिया और अलबेली को नोचने वाले थे। तब मेरी रूही ने उसे किसी तरह बचाया।”..

“परिस्थिति कैसी भी थी कभी रूही ने अपनी व्यथा नही बताई। कभी अपने चेहरे पर दर्द नही लेकर आयी। तुम जानती हो सरदार खान की बस्ती में उसे जिसने चाहा, जब चाहा नोचा था। जिल्लत की जिंदगी वो बिता रही थी। मेरे साथ अभी तो खुशियां देखना शुरू ही किया था। दूर कर दिया सबको, छीन ली उनकी खुशियां।”

दिल का दर्द जुबान पर था और आंसू आंखों में। आर्यमणि बहते आंसू के साथ बस अपने दिल की बात कहता गया, कहता गया और कहता गया। न दिल के जज़्बात रुके और न ही आंसू। वियोग लगातार दूसरे दिन भी जारी रहा। जब आर्यमणि का वियोग कम न हुआ तब महाती ने अन्यांस का सहारा लिया।

गुमसुम सा चेहरा बनाए वह अपने पिता को रोते हुये देख रहा था। फिर उसके नन्हे हाथ बहते आंसुओं पर पड़े और उसकी मासूम आंखे एक टक नजरें बिछाए अपने पिता को देख रही थी। आर्यमणि उस कोमल स्पर्श से पिघल गया हो जैसे। नजर भर अपने बेटे को देखकर जैसे ही आर्यमणि ने अन्यांस बोला फिर तो उस मासूम की खिली सी हंसी जो किलकारी गूंजी, फिर तो सारे दर्द कहां गायब हो गये पता ही नही चला।

लहराकर, उछालकर, चूमकर, पूरा प्यार जताते हुये आर्यमणि उसे प्यार करता रहा। आर्यमणि जब वियोग से बाहर आया तब सवालिया नजरों से महाती को देखते.... “मैने तो तुम्हे कुछ साल इंतजार करने कहा था ना।”

महा:– आपने इंतजार करने तो कहा था पतिदेव, किंतु जब आप एक दिन मुझे नही दिखे तो मन बेचैन सा हो गया। फिर क्या था उठाया बोरिया बिस्तर और चली आयी।

आर्यमणि:– चली आयी। लेकिन तुम्हे पता कैसे था कि मैं यहां हूं?

महा:– ये हम जलपड़ियों का सबसे बड़ा रहस्य है जिसे आज तक कोई जलीय मानव जान न पाया। आप भी कभी नही जान पाओगे।

आर्यमणि:– क्यों अपने पति से भी नही साझा कर सकती...

महा:– जलीय मानव कह दी तो कहीं ये तो नही समझ रहे न की हम किसी के पास भी पहुंच सकते हैं। यदि ऐसा सोच रहे हैं तो गलत सोच रहे हैं। हमारे समुदाय की स्त्रियां केवल अपने पति के पास ही पहुंच सकती है और सबने ये रहस्य अपने पति से ही छिपा कर रखा है। क्या समझे पतिदेव...

आर्यमणि:– हां समझ गया, तुमसे चेतकर रहना होगा।

महाती:– चेतने की नौबत वाले काम सोचना भी मत पतिदेव। आपके लिये कुछ भी कर जायेंगे लेकिन यदि किसी और ख्याल दिल में भी आया तो पहले उसे चीड़ देंगे, बाद में आपके हाथ–पाऊं तोड़कर उम्र भर सेवा करेंगे।

आर्यमणि:– तुम कुछ ज्यादा ही गंभीर न हो गयी। खैर छोड़ो इन बातों को...

महाती:– माफ कीजिए पतिदेव। पर क्या करूं आपने बात ही ऐसी छेड़ी की मैं अपनी भावना कहने से खुद को रोक नहीं पायी। छोड़िए इन बातों को और उस बेचारे गुमसुम प्राणी के ओर भी थोड़ा ध्यान दे दीजिए।

महाती, आर्यमणि को गुमसुम पड़े मटुका और उसके झुंड को दिखाने लगी। आर्यमणि 2 दिनो से वियोग में था और देख भी न पाया की शेर माटुका और उसका पूरा परिवार वहीं पर गुमसुम पड़ा था। आर्यमणि दौड़कर बाहर आया। मटुका का सर अपने बाहों में भर लिया अपना सर मटुका के सर से टीका दिया। दोनो के आंखों के दोनो किनारे से आंसू की धारा बह रही थी। कुछ देर रोने के बाद आर्यमणि ने मटुका को समझाया की जो भी हुआ वह एक गहरी साजिश थी। बेचारा जानवर समझे तब न। वो तो बस रूही, अलबेली और इवान के जाने के शोक में न जाने कबसे थे।

रात के वक्त आर्यमणि और महाती दोनो कॉटेज में ही थे। जूनियर सो चुका था और महाती अपने हाथो में तेल लिये आर्यमणि के सर का मालिश कर रही थी। आर्यमणि काफी सुकून से आंखें मूंदे था।

“सुनिए न जी”... महाती बड़े धीमे से कही...

“हूं.....”

“आपने मुझे अपनी पत्नी स्वीकार किया न”..

“तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो महा”...

महा, अपनी मालिश को जारी रखती... “कुछ नही बस ऐसे ही पूछ रही थी।”...

“मन में कोई दूसरा ख्याल न लाओ महा। मुझ पर तुम्हारा पूरा हक है।”

छोटे से वार्तालाप के बाद फिर कोई बात नही हुई। आर्यमणि नींद की गहराइयों में सो चुका था। देर रात जूनियर के रोने की आवाज से आर्यमणि की नींद खुली। आर्यमणि जब ध्यान से देखा तब पता चला की वह जूनियर के रोने की आवाज नही थी, बल्कि महाती सुबक रही थी। आर्यमणि तुरंत बिस्तर से उतरकर महा के करीब आया और उसे उठाकर बिस्तर पर ले गया।

आर्यमणि, महा के आंसू पोंछते.... “ये सब क्या है महा? क्या हुआ जो ऐसे रो रही थी।”.... आर्यमणि के सवाल पर महा कुछ बोल ना पायी बस सुबकती हुई आर्यमणि के गले लग गयी और गले लगकर सुबकती रही।

आर्यमणि पहली बार महा के जज्बातों को मेहसूस कर रहा था। उसे समझते देर न लगी की क्यों महा सर की मालिश के वक्त उसे पत्नी के रूप में स्वीकारने वाले सवाल की और क्यों अभी वो सुबक रही थी। आर्यमणि, महा के पीठ को प्यार से सहलाते.... “तुम मेरी पत्नी हो महा, अपनी बात बेझिझक मुझसे कहो।”..

महा:– पत्नी होती तो मुझे स्वीकारते, ना की नकारते। मै जानती हूं आपके हृदय में रूही दीदी बसती है, उनके बराबर ना सही अपने हृदय में छोटा सा स्थान ही दे दो।

आर्यमणि, महा को खुद से अलग करते.... “अभी थोड़ा विचलित हूं। अभी थोड़ा वियोग में हूं। देखा जाये तो मेरे लिये रूही का दूर जाना अभी कल की ही बात है, क्योंकि उसके जाने के ठीक बाद मैं तो महासागर में ही अपने कई साल गुजार दिये। बस 2 दिनो से ही तो उसे याद कर रहा हूं।”..

महा अपना चेहरा साफ करती...... “ठीक है आपको जितना वक्त लेना है ले लो। मै भी पागल हूं, आपकी व्यथा को ठीक से समझ नही पायी। आप मुझे महा कहकर पुकारते हैं, वही मेरे लिये आपका प्यार है। कब से कान तरस गये थे कि आप कुछ तो अलग नाम से मुझे पुकारो।”..

आर्यमणि:– दिल छोटा न करो महा, तुम बहुत प्यारी हो, बस मुझे थोड़ा सा वक्त दे दो।

महा:– ले लीजिए जी, इत्मीनान से पूरा वक्त ले लीजिए। बस मुझे खुद से अलग नहीं कीजिएगा।

आर्यमणि:– मैने कब तुम्हे अलग किया?

महा:– मुझे और अपने बेटे को पीछे छोड़ आये और पूछते है कि कब अलग किया।

आर्यमणि:– मैं अब और अपनो को नही खो सकता था, इसलिए जब तक मैं अपने दुश्मनों को सही अंजाम तक पहुंचा न दूं, तब तक अकेला ही काम करूंगा।

महा:– आप ऐसा क्यों सोचते हो। अकेला कितना भी ताकतवर क्यों न हो, भिड़ के आगे दम तोड़ ही देता है। इसलिए तो असुर महाराज लंकाधिपति रावण के पास भी विशाल सेना थी। प्रभु श्री राम से भी बुद्धिमान और बलवान कोई हो सकता था क्या? फिर भी युद्ध के लिये उन्होंने सेना जुटाई थी। शक्ति संगठन में है, अकेला कभी भी शिकार हो जायेगा...

आर्यमणि:– युद्ध कौशल और रणनीति की शिक्षा तुम्हे किसने दी?

महा:– इस विषय की मैं शोधकर्ता हूं। आधुनिक और पौराणिक हर युद्ध नीति का बारीकी से अध्यन किया है। उनकी नीतियों की मजबूती और खामियां दोनो पता है। समस्त ब्रह्माण्ड के मानव प्रजाति हमारे कैदखाने में है। उनके पास से मैने बहुत कुछ सीखा है। आप मुझे खुद से दूर न करे। वैसे भी भेड़िया हमेशा अपने पैक के साथ शिकार करता है और मैं आपके पैक का हिस्सा हूं।

आर्यमणि:– अच्छा जी, मतलब अब मैं भेड़िया हो गया। मुझे एक जानवर कह रही हो।

महा:– अब जब आपने यह सोच ही लिया की मैने आपको जानवर कह कर संबोधित किया है, तो अंदर के जानवर को थोड़ा तो जगा लो पतिदेव। कम से कम आज की रात तो मुझे अच्छे से देख लो।

अचानक ही कॉटेज में पूरी रौशनी होने लगी। आर्यमणि, महा के ठुड्ढी को पकड़कर उसका चेहरा थोड़ा ऊपर किया। दोनो की नजरें एक दूसरे से उलझ रही थी.... “तुम्हे न देख पाना मेरी भूल हो सकती थी, पर तुम कमाल की दिखती हो। एक बार ध्यान से देख लो तो नजरें ठहर जाये। किसी कवि ने आज तक कभी जिस सौंदर्य की कल्पना नहीं की होगी, तुम वही हो। शब्द कम पर जाये इस एक रूप वर्णन में। जितनी अलौकिक सुंदर हो उतनी ही कमाल की तुम्हारी काया है। भला तुम्हे कैसे नजरंदाज कर सकता हूं।”..

महा, आर्यमणि के सीने में अपना सर छिपाती... “अब आगे कुछ न कहिए जी, मुझे लाज आ रही है। आपके मुंह से अपनी तारीफ सुन मेरा रोम–रोम गदगद हो गया है। थोड़ा नींद ले लीजिए। कल से हमे बहुत काम निपटाने है।”..

आर्यमणि:– हां कल से हमे बहुत से काम निपटाने है। मगर आज की रात तुम्हे पूरा तो देख लेने दो।

महा:– बोलिए नही, मुझे अंदर से कुछ–कुछ होता है।

“बोलूं नही फिर क्या करूं?”.... कहते हुये आर्यमणि ने सारी का पल्लू हटा दिया। अंधेरा कमरा और भी जगमग–जगमग रौशन हो गयी। महाती अंधेरा करने की गुजारिश करती रही, किंतु एक–एक करके उसके बदन से कपड़े निकलते रहे। महाती सुकुड़ती जा रही थी। आर्यमणि की आंखें फैलती जा रही थी। अद्भुत ये क्षण था। महा का खूबसूरत तराशा बदन। बदन की बनावट, उसकी कसावट, ओय होय, होय–होय। तहलका था तहलका।

महा कुछ कहना तो नही चाहती थी लेकिन आर्यमणि को घूरते देख बेचारी लाज तले मरी–मरी बोल ही दी..... “ए जी ऐसे क्या घूर रहे हो।”...

“तुम्हे अब तक ना देखने की गलती को सुधार रहा हूं महा।”..

“सुनिए न, आपकी ही पत्नी हूं। मेरा शरीर मेरी आत्मा मेरा रोम–रोम सब आपका ही है। लेकिन यूं एक बार में ही पूरा न देखो की मैं लाज से मार जाऊं।”..

“तो फिर कैसे देखूं?”

“अब देखना बंद भी करो। बचा हुआ फिर कभी देख लेना। रात खत्म हो जायेगी या फिर सैतान बीच में ही जाग गया तो जलती रह जाऊंगी। अब आ भी जाओ।”..

आर्यमणि इस प्यार भरी अर्जी पर अपनी भी मर्जी जताते आगे की प्रक्रिया शुरू कर दिया, जिसके लिये महा को निर्वस्त्र किया था। जैसे–जैसे रात सुरूर पर चढ़ता गया, वैसे–वैसे आर्यमणि हावी होता गया। आर्यमणि का हावी होना महाती के मजे के नए दरवाजे खोल रहा था। पहली बार संभोग करते वक्त नशा जैसा सुरूर सर चढ़ा था और रोम–रोम में उत्तेजना जैसे बह रही थी।

रात लंबी और यादगार होते जा रही थी। धक्के इतने तेज पड़ रहे थे कि पूरा शरीर थिरक रहा था। और अंत में जब दोनो की गाड़ी स्टेशन पर लगी दोनो हांफ भी रहे थे और आनंदमय मुस्कान भी ले रहे थे।

अगली सुबह काफी आनंदमय थी। मीठी अंगड़ाई के साथ महा की नींद खुली। नींद खुलते ही महा खुद की हालत को दुरुस्त की और किचन को पूरा खंगाल ली। किचन में सारा सामान था, सिवाय दूध के। ऐसा लगा जैसे महा ने हवा को कुछ इशारा किया हुआ तभी “किं, किं, कीं कीं” करते कई सारे छोटे–छोटे नुकीले दांत हवा में दिखने लगे।

जबतक महा पानी गरम करती, मेटल टूथ की टुकड़ी दूध भी वहां पहुंचा चुकी थी। आर्यमणि के लिये चाय, जूनियर के लिये नाश्ता तैयार करने के बाद महा आर्यमणि के लिये बेड–टी लेकर चल दी। महा ने आर्यमणि को उठाकर चाय दी और फटाफट तैयार होने कह दी और खुद जूनियर को खिलाने लगी। नाश्ता इत्यादि करने के बाद खिलती धूप में महा, आर्यमणि के साथ सफर पर निकलने के लिये तैयार थी।
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भाग:–173


जबतक महा पानी गरम करती, मेटल टूथ की टुकड़ी दूध भी वहां पहुंचा चुकी थी। आर्यमणि के लिये चाय, जूनियर के लिये नाश्ता तैयार करने के बाद महा आर्यमणि के लिये बेड–टी लेकर चल दी। महा ने आर्यमणि को उठाकर चाय दी और फटाफट तैयार होने कह दी और खुद जूनियर को खिलाने लगी। नाश्ता इत्यादि करने के बाद खिलती धूप में महा, आर्यमणि के साथ सफर पर निकलने के लिये तैयार थी।

आर्यमणि:– नही पहले अनंत कीर्ति की पुस्तक को तो साथ ले लूं।

महा:– लेकिन वो किताब तो वो चुड़ैल की बच्ची परिग्रही माया ले गयी थी ना।

आर्यमणि:– वो जो ले गयी है उसे बर्बादी का सामान कहते है। अनंत कीर्ति से मिलती–जुलती किताब। उस किताब में भी अनंत जानकारी थी और उसे कोई भी पढ़ सकता था। लेकिन वह किताब जो भी पढ़ेगा उसकी पूरी जानकारी अनंत कीर्ति की पुस्तक में अपने आप छपेगी। इसका मतलब जानती हो...

महा:– इसका मतलब हमारे पास उसकी जानकारी होगा जो बहरूपिया किताब को पढ़ रहा होगा।

आर्यमणि:– इतना ही नहीं, एक बार जिसकी कहानी अनंत कीर्ति की पुस्तक में छप गयी फिर वो पृथ्वी के जिस भू–भाग में छिपा रहे, उस स्थान का पता हमे अनंत कीर्ति की पुस्तक बता देगी।

महा:– पतिदेव कहीं वो महासागर में छिपे हो तब?

आर्यमणि:– मैं अनंत कीर्ति की पुस्तक को पूरे महासागर की सैर करवा दी है। अनंत कीर्ति की किताब वहां का पता भी बता देगी...

महा:– पतिदेव मैं समझी नहीं... अनंत कीर्ति की पुस्तक को आप महासागर के तल में लेकर घूमे तो वो किताब वहां छिपे किसी इंसान का पता कैसे बता सकती है?

आर्यमणि:– लंबा विवरण है। मै संछिप्त में समझता हूं। ये पुस्तक जिस वातावरण और इंसान के संपर्क में आती है, उसका ऊपरी विवरण स्वयं लिख लेती है। यदि कोई खास घटना हो जो किताब की अनुपस्थिति में हुआ हो, उसे मैं लिख देता हूं। अब यदि किसी चिन्हित इंसान की खोज कर रहे हो तो ये किताब उन सभी जगह को दर्शा देगा जहां से वो इंसान गुजरा था।

महा:– लेकिन पतिदेव ऐसा भी तो संभव हो सकता है कि यह पुस्तक उस जगह को कभी देखा ही न हो जहां कोई भगोड़ा छिपा हो।

आर्यमणि:– हां संभव है। लेकिन यदि वो भगोड़ा अंतर्ध्यान होकर भी किसी एक स्थान से दूसरे स्थान तक गया हो तो भी किताब उस आखरी स्थान को बता देगी जिसे किताब ने देखा था, या किताब में उस जगह के बारे में वर्णित किया था। जैसे की किताब यदि पाताल लोक के दरवाजे तक पहुंची थी और कोई पाताल लोक में छिपा हो तो किताब उसकी आखरी जानकारी पाताल लोक का दरवाजा दिखाएगी।

महा:– बहुत खूब। ये किताब वाकई अलौकिक है और इसे बनाने वाले तो उस से भी ज्यादा अलौकिक रहे होंगे। ठीक है पतिदेव यहां से प्रस्थान करते हैं।

आर्यमणि:– चाहकीली के साथ हम मानसरोवर झील तक चलेंगे। उसे कैलाश मार्ग मठ का पता मालूम है।

आर्यमणि कॉटेज के बाहर गया और भूमिगत स्थान से अनंत कीर्ति की किताब निकालकर आगे की यात्रा के लिये तैयार था। आर्यमणि और महा, जूनियर के साथ महासागर किनारे तक आये। एक छोटी सी ध्वनि और चाहकीली पानी के सतह से सैकड़ों मीटर ऊपर निकलकर छलांग लगाते छप से पानी में गिरी... “चाचू, तो तैयार हो चलने के लिये।”..

आर्यमणि:– हां बिलकुल चाहकीली... आज से अपना वक्त शुरू होता है। जिसने जो दिया है उसे लौटाने का वक्त आ गया है।

चाहकीली:– तो फिर चलो...

चाहकीली के पंख में सभी लॉक हुये और मात्र कुछ ही घंटों में मानसरोवर झील में थे। आर्यमणि, चाहकीली को छोड़ कैलाश मार्ग मठ में चल दिया। आर्यमणि मठ से जब कुछ दूरी पर था तभी उसे पूरा क्षेत्र बंधा हुआ दिखा।

“महा यहां कोई भी नही। इस पूरे क्षेत्र को बांधकर सब कहीं गये है।”...

“फिर हम कहां जाये पतिदेव।”..

“वहीं जहां सब गये है। अमेया भी वहीं मिलेगी। लगता है हम सही वक्त पर पहुंचे है। चाहकीली क्या तुम ठीक हमारे नीचे हो।”..

चाहकीली:– हां बिलकुल चाचू...

आर्यमणि:– ठीक है, तो फिर तैयार रहो। हिमालय के तल से होकर गुजरना है। उत्तरी हिमालय से हम पूर्वी हिमालय सफर करेंगे।

चाहकीली:– तो क्या अभी मैं जमीन फाड़कर ऊपर आऊं।

“बिलकुल नहीं” कहते हुये आर्यमणि ने अपना हाथ फैलाया और जड़ें उन्हे बर्फ के नीचे पानी तक लेकर पहुंच गयी। चाहकीली उन्हे देख आश्चर्य करती.... “ये कैसे किये चाचू। पहले तले से जड़ें ऊपर निकली और आपको लेकर नीचे चली आयी।”...

आर्यमणि:– बस कुछ करतब अब भी इन हाथों में बाकी है। अब चले क्या। और हां जहां कहूं बिलकुल धीमे हो जाओ, तो वहां धीमे हो जाना।

चाहकीली:– क्यों चाचू...

महा:– ओ बड़बोली, कुछ देख कर भी समझ लेना कितने सवाल पूछती है?

चाहकीली:– हां मैं बड़बोली... और खुद के जुबान पर तो ताला लगा रहता है ना। भूल मत मेरे साथ खेलकर ही बड़ी हुई थी।

महा:– चाहकीली चल अब, वरना मुझे भी तेरे बारे में वो पता है जिसे मैं चाहती नही की कोई जाने।

चाहकीली:– अब क्या बीती बातों को कुरेदना। मै चलती हूं ना। सभी लोग लॉक हो गये ना...

महा और आर्यमणि एक साथ... “हां हम लॉक हो गये है।”...

चाहकीली ने बढ़ाई रफ्तार और सबको लेकर उस क्षेत्र के आस–पास पहुंच गयी जो सात्त्विक आश्रम का गढ़ कहा जाता था। कंचनजंगा के पहाड़ियों के बीच अलौकिक गांव जिसे कभी उजाड़ दिया गया था किंतु तिनका–तिनका समेटकर एक बार फिर उस आशियाने को बसा दिया गया था।

सात्विक गांव की सीमा में पहुंचते ही आर्यमणि का तेज मंत्र उच्चारण शुरू हो चुका था। पानी के अंदर जड़ें चाहकीली को आगे के रास्ता बता रही थी। पहले जड़े आगे जाति फिर चाहकीली। धीरे–धीरे बढ़ते हुये तीनो गांव के सरोवर तक पहुंचे। भूतल के जल से जैसे–जैसे ये लोग सरोवर के सतह पर आ रहे थे, मंत्रो के मधुर उच्चारण साफ, और साफ ध्वनि में सुनाई दे रही थी। सरोवर के जल की सतह पर अचानक ही बड़ा विछोभ पैदा हुआ और वहां मौजूद सबकी आंखें बड़ी हो गयी।

जल की सतह पर चाहकीली का मात्र आंख और ऊपर का भाग ही सबको दिखा और इतने बड़े काल जीव की कल्पना कर सब सहम से गये। सब बड़े ध्यान से उसी जीव को देख रहे थे।

इसके पूर्व सात्विक आश्रम का पुर्रनिर्माण तब और भी ज्यादा तेज हो गया जब सात्विक गांव के खोये 2 अलौकिक धरोहर मिल चुके थे। सात्विक गांव का निर्माण के वक्त मूल आधारभूत पत्थरों में सबसे अलौकिक और सबसे उत्कृष्ट पत्थर, रक्षा पत्थर, आर्यमणि पाताल लोक से आचार्य जी के पास पहुंचा चुका था। शायद इस अलौकिक पत्थर की ही माया थी कि जैसे ही वह पत्थर आचार्य जी के पास पहुंची, ठीक उसके बाद हर किसी की वापसी होने लगी।

विशेष–स्त्री समुदाय, जिसे सात्विक आश्रम ने विलुप्त मान लिया था, उसका पूर्ण स्वरूप विष–जीविषा खुद ही सात्त्विक आश्रम को ढूंढती हुई पहुंची थी। जीविषा के पास गुरु वशुधर की आत्मा थी। गुरु वशुधर अपने वक्त के महान और ज्ञानी ऋषि थे, जिन्होंने कई कार्य संपन्न किये थे। हजार वर्ष पूर्व गुरु वशुधर कहीं गायब हो गये थे। जीविषा गुरु वशुधर के गायब होने के पीछे की कहानी और उनकी अतृप्त आत्मा को लेकर पहुंची थी, जिसे उसे मुक्त करवाना था। इस प्रकार से गांव को पूर्ण विकसित करने के सभी तत्व इकट्ठा हो चुके थे। बस कुछ अर्चने थी इसलिए अपस्यु ने कुछ वक्त के लिये योजन को टाल दिया था।

शायद यह एक प्रकार से अच्छा ही हुआ था क्योंकि आश्रम अपने एक गुरु के अनुपस्थिति में कैसे उस शक्ति खंड की स्थापना करवा सकता था। शायद उस शक्ति खंड ने ही यह पूरा चक्र रचा था, वरना आर्यमणि के वापस लौटने की उम्मीद ही सबने छोड़ दिया था। अचानक दिखे इतने विशालकाय जीव को सब बड़े ध्यान से देख रहे थे। तभी आचार्य जी और ऋषि शिवम् आगे आकर सबको मुस्कुराने कहे क्योंकि उन्हें आभाष हो चुका था कि कौन आया है.... “गुरुदेव आपने वापस लौटने का उत्तम वक्त चुना है। अब पानी से बाहर भी आ जाइए।”...

ऋषि शिवम सरोवर के निकट पहुंच कर कहने लगे। उनकी बात सुनकर आर्यमणि ने इशारा किया और चहकीली का भव्य शरीर धीरे–धीरे हवा में आने लगा। करीब 100 फिट हवा में ऊपर जाने के बाद जब शरीर थोड़ा और ऊपर आया तब वहां से आर्यमणि, महा को लेकर जमीन पर उतरा। आर्यमणि को देख अपस्यु दौड़ा चला आया। मजबूत भुजाओं से गले लगाते.... “बड़े एक सूचना तक नही। इतने भी क्या हम सब से मुंह मोड़ लिये थे।”...

आर्यमणि:– छोटे, योजन को बीच में नही छोड़ते। अभी कुछ दिनों तक यहां हूं। आराम से बात करते है।

अपस्यु:– हां सही कहे बड़े... बिना तुम्हारे शायद ये योजन अधूरा रह जाता।

कुछ औपचारिक बातों के बाद सभी योजन पर बैठ गये। लगातार 2 दिन तक मंत्र उच्चारण चलता रहा। हर पत्थर को केंद्र बिंदु से लाकर पूरे क्षेत्र में स्थापित किया गया। मंत्रो से पूरे जगह को बंधा गया। 2 दिनो तक कोई भी योजन से उठा ही नही। वहां बस योजन का हिस्सा नहीं थे, वो थी महा और अमेया।

महा जिस कुटिया में गयी वहीं अमेया भी थी। भला आर्यमणि के बच्चो की आंखें अलग कैसे हो सकती थी। सामान्य रूप से नीली आंखें और जब चमके तो लाल हो जाया करती थी। महा, व्याकुलता से अमेया को अपने सीने से लगाती.... “मेरी बच्ची कैसी है।”..

अमेया:– मैं आपकी बच्ची नही, अपनी मासी की बच्ची हूं। वो अभी यज्ञ में बैठी है।

महा:– अल्ले मेरी रानी बिटिया अपनी मां से इतनी नाराज। एक बात बताओ यहां सब यज्ञ में बैठे है तो तुम्हारा ख्याल कौन रखता है?

अमेया:– मैं इतनी बड़ी हो चुकी हूं कि खुद का ख्याल रख सकूं। ये बाबू कौन है?

महा:– ये तुम्हारा भाई है...

अमेया:– क्या सच में ये मेरा भाई है?

महा:– हां सच में ये तुम्हारा भाई है और मैं तुम्हारी मां।

अमेया:– फिर वो कौन है जो मुझसे काफी दूर चली गयी और फिर कभी लौटकर नहीं आयेगी। मासी कहती है वही मेरी मां थी।

महा, अमेया के मुंह से ये बात सुनकर पूरी तरह से स्तब्ध रह गयी। अमेया को खुद में समेटती.... “जो दूर गयी है, उन्होंने तुम्हे जन्म दिया है। और वो दूर किसी काम से गयी थी, जल्द ही लौटेंगी। जब तक वो लौट नही आती तब तक मैं तुम्हारी मां हूं। उन्होंने जाते वक्त तुम्हारे पिताजी से कहा था कि अमेया को मां का प्यार कभी खले नही, इसलिए जबतक मैं न लौटू अमेया को मां का प्यार मिलता रहे। सो मैं आ गयी।”..

अमेया:– क्या सच में मां। बिलकुल उसी तरह जैसे यशोदा मां थी।

महा:– हां मेरी राजकुमारी बिलकुल वैसा ही। मेरी राजकुमारी ने कुछ खाया की नही?

अमेया:– अभी मन नही है खाने का मां। बाद में खाऊंगी...

महा, फिर रुकी ही नही। महा ने हवा में ही संदेश देना शुरू कर दिया। मेटल टूथ का बड़ा सा समूह अपने रजत वर्ण (चांदी के रंग) वाले दांत फाड़े महा को सुन रहे थे। जैसे ही महा ने उन्हें काम पर लगाया, थोड़ी ही देर में विभिन्न प्रकार के फल उपलब्ध थे। साथ में दूध और अन्य खान सामग्री। महा जल्दी से दोनो बच्चो के लिये भोजन बनाई और फटाफट दोनो को एक साथ खिलाने लगी। महा के हाथ से निवाला खाकर अमेया काफी खुश हो गयी।

महा फिर खुद से दोनो बच्चो को अलग होने ही नही दी। अगले दो दिनों तक महा यज्ञ और बच्चो को देखती रही। 2 दिन बाद आखरी मंत्र के साथ योजन पूर्ण हुआ। जैसे ही योजन पूर्ण हुआ, ओजल और निशांत भागते हुये आर्यमणि के पास पहुंचे और तीनो बहते आंसुओं के साथ अपने मिलने की खुशी जाहिर करते रहे। बिना कुछ बोले बिना कुछ कहे न जाने कितने देर तक लगातार मौन रहे।

इस मौन मिलन में ओजल की बिलखती आवाज निकली.... “जीजू आपके रहते ये सब कैसे हो गया? कैसे हो गया जीजू?”

आर्यमणि, ओजल को खुद से अलग कर उसके आंसू पोंछते.... “आज तक मैं खुद से ये सवाल पूछ रहा हूं। मैने पूरे अल्फा पैक को तबाह कर दिया। शायद इस बोझ के साथ मुझे पूरा जीवन बिताना हो।”

आचार्य जी:– आर्यमणि किसी के बलिदानों को यदि बोझ समझेंगे तब उनकी आत्मा रोएगी। क्या रूही के जगह आप होते और मरणोपरांत यह आभाष होता कि चलो रूही बच गयी तो क्या आपको खुशी न होती? जैसा आप अभी कर रहे वैसे रूही कर रही होती तो क्या रूही की आत्मा रोती नही?

आर्यमणि:– आप शायद सही कह रहे है आचार्य जी। मेरे पैक की खुशी ही मेरी खुशी है। अल्फा पैक के अभी 4 सदस्य जीवित हैं और अल्फा पैक उसी मजबूती से सभी बाधाओं का सामना करेगा। जो साथी बिछड़ गये उन्हे हम हंसकर याद करेंगे...

निशांत:– नही अल्फा पैक केवल चार लोगों (आर्यमणि, निशांत, ओजल और ऋषि शिवम) का नही रहा। मैने एक सदस्य को जोड़ लिया है।

निशांत ने इशारे में दिखाया। आर्यमणि उसे देखते... “ये तो अंतरिक्ष यात्री ओर्जा है। ओर्जा तो पहले से अपने ग्रुप के साथ पृथ्वी आयी थी।”...

अपस्यु:– बड़ा पेंचीदा मामला है बड़े, आराम से तुम्हे समझाना होगा। फिलहाल इतना ही समझो की इसका साथी एक अंतरिक्ष यात्री था, जिसके साथ ओर्जा कुछ दिनों तक सफर कर रही थी। वैसे ओर्जा को तो मेरे पैक में होना चाहिए था, मतलब डेविल ग्रुप में। लेकिन पता न कैसे निशांत ने इसे पटा लिया।

आर्यमणि:– क्या तुम्हारा दिल्ली का काम मुसीबतों से भरा था और अब तक दोषियों को सजा नही दे पाये?

अपस्यु:– वो काम तो कबका समाप्त हो गया है। लेकिन अभी जिस परेशानी से जूझ रहे है वो कुछ और ही है। हमारी टीम थोड़ी कमजोर दिख रही थी। सोचा ओर्जा का साथ मिलेगा तो वो निशांत के साथ हो गयी।

महा, उस सभा के बीच में पहुंचती.... “पतिदेव पहले अमेया से मिलो तब तक मैं इन लोगों से अपना परिचय कर लूं।”...

ओजल, आश्चर्य से अपना मुंह फाड़े... “पतिदेव... जीजू आपने दूसरी शादी कर ली।”...

जीजू इस सवाल का जवाब तो देते लेकिन उपस्थित हो तब न। आर्यमणि, अमेया को लेकर अंतर्ध्यान हो चुका था। दोनो एक रेस्टोरेंट में थे और वहां आर्यमणि ने चॉकलेट केक ऑर्डर कर दिया। अमेया जितनी हैरान थी उतनी खुश भी। वहीं आर्यमणि, अमेया को देख उसके आंसू रुक ही नही रहे थे।
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भाग:–174


जीजू इस सवाल का जवाब तो देते लेकिन उपस्थित हो तब न। आर्यमणि, अमेया को लेकर अंतर्ध्यान हो चुका था। दोनो एक रेस्टोरेंट में थे और वहां आर्यमणि ने चॉकलेट केक ऑर्डर कर दिया। अमेया जितनी हैरान थी उतनी खुश भी। वहीं आर्यमणि, अमेया को देख उसके आंसू रुक ही नही रहे थे।

ढेर सारी जगह पर दोनो साथ घूमे। कई सारे झूलों पर दोनो साथ झूले। इस बीच ओर्जा, जिसकी टेलीपैथी दुनिया की सबसे कमाल की टेलीपैथी थी वह कोशिश करके देख ली, लेकिन आर्यमणि के दिमाग के आस पास भी कोई फटक न पाया। साथ में अमेया भी थी लेकिन अमेया के पास न तो कोई मंत्र, ना कोई तंत्र, न कोई हथियार और न ही कोई वार उसे छू सकती थी। उसका जन्म ही इतना अलौकिक था कि हर शक्ति निष्प्रभावित हो जाती थी। तभी तो जिस किसी ने अमेय को स्पर्श किया, ऐसी अलौकिक शांति खुद में मेहसूस करते थे जो उन्होंने जीवन में पहले कभी मेहसूस न किया हो।

पूरे एक दिन बाद आर्यमणि सीधा अंतर्ध्यान होकर सात्विक गांव पहुंचा। इस पल में सबसे बड़ा सवाल तो यही था कि कैसे आर्यमणि अन्यर्ध्यान होकर इस अलौकिक गांव तक पहुंच सकता था। तब आर्यमणि ने जादूगर महान की एक बात सबको याद दिलाई.... “मैं नर भेड़िया हूं और बहुत सी बाधाएं मेरे इस रूप के कारण अपने आप ही समाप्त हो जाती है। मै इस लोक में तो क्या दूसरी दुनिया में भी अंतर्ध्यान होकर जा सकता हूं, जिसे विपरीत या नकारात्मक शक्तियों की दुनिया भी कहते है।”

सुनकर ही सब आश्चर्य और खुशी, दोनो ही भाव दे रहे थे। वहीं बीते दिन बिना बताए गायब होने के लिये आर्यमणि ने माफी मांगा। अपनी सफाई में बस उसने इतना ही कहा की एक दिन सिर्फ पिता–पुत्री और दूसरा कोई नहीं। हर कोई आर्यमणि की भावना का मुस्कुराकर स्वागत किया।

आर्यमणि, ऋषि शिवम के लिये खुश था। काफी समय बाद इस धरती ने किसी ऋषि का उदय होते हुये देखा था। ऋषि शिवम् अपनी शिक्षा पूर्ण कर चुके थे। अपने तप से उन्होंने ब्रह्म ज्ञान को पा लिया था और एक बार फिर आर्यमणि के साथ सफर पर जाना चाहते थे। रूही, इवान और अलबेली के जाने का गम उन्हे भी काफी था। और उन सबसे बढ़कर ऋषि शिवम् को हत्याकांड वाले दिन की पूरी कहानी जाननी थी।

हत्याकांड वाले दिन की पूरी कहानी तो बहुत से लोगों को जाननी थी, लेकिन उस से भी ज्यादा सबको उन सालों का हिसाब चाहिए था जिनमे आर्यमणि नही था और न ही किसी से संपर्क किया। ओजल और निशांत दोनो ने पूछ–पूछ कर पागल बना रखा था। हत्याकांड वाले दिन की छोटी सी औपचारिक चर्चा के बाद आर्यमणि ने उन बीते सालों की व्यथा बयां कर दिया, जिनमे वो किसी से संपर्क नही कर पाया और महासागर में ही फंसा रहा।

आचार्य जी तो फूले न समा रहे थे जब उन्हे पता चला की आर्यमणि नागलोक की भूमि और जल योग में बैठे योगियों की सभा में अपनी साधना को सिद्ध कर आया था। हां लेकिन पूरी कहानी सुनाते–सुनाते आर्यमणि फिर से अपने पैक के खोने के गम में खो गया।

एक बार फिर सांत्वना का हाथ आर्यमणि के कंधे पर था। लेकिन इस बार महा नही थी, बल्कि आर्यमणि का पूरा परिवार था। उनके लिये तो आर्यमणि मर चुका था किंतु उसे प्रत्यक्ष सामने देख फिर उनके भी आंसू नहीं रुके। भूमि, जया और केशव, आर्यमणि को जीवित देखकर पूरे व्याकुलता से उससे मिल रहे थे।

कुछ दिनों तक आर्यमणि सब लोगों के बीच सात्त्विक गांव में ही रहा। कुछ दिन अलौकिक गांव में विश्राम के बाद आर्यमणि एक बार फिर अपनी यात्रा पर जाने के लिये तैयार था। जाने से पहले आर्यमणि आचार्य जी से मिला.... “शांत चेहरे के पीछे का रोष मैं मेहसूस कर सकता हूं।”...

आर्यमणि:– अपस्यु से कहिएगा कुछ दिन तक थोड़ा संभल कर काम करे। मै कुछ लोगों को उसके अंजाम तक पहुंचाने के बाद, उसका साथ दूंगा।

आचार्य जी:– उन तक संदेश पहुंच जायेगा। वैसे उन्होंने भी एक संदेश दिया है। गुरु अपस्यु चाहते है, यात्रा की शुरवात आप उनकी तय जगह से शुरू करे। इसके अलावा 2 दिन बाद पलक की शादी है, और गुरु अपस्यु ने कहा है आगे आपकी मर्जी।

आर्यमणि:– मन को असीम सुख देने वाला यह सूचना थी। अब आज्ञा चाहूंगा आचार्य जी।

आचार्य जी:– गुरु आर्यमणि आपके दोनो बच्चों की शिक्षा यहीं होगी और ये आग्रह नही आदेश है। इसके अलावा मुझे पता चला की शेषनाग लोक धरती फिर से पूर्ण विकसित हो कर अलौकिक जीवों का घर बन चुका है। वहां से मुझे एक जोड़े बारासिंघा, एक जोड़े नील गाय, एक जोड़ा कामधेनु गाय, एक जोड़ा ऐरावत हाथी, 4 जोड़े गरुड़, एक जोड़ा एकश्रींगी अश्व, कुछ सुंदर और मनमोहक पंछियों के जोड़े, कुछ सुंदर सकहारी जानवर आज ही अपने गांव ले आओ। इसके अलावा यहां के बगीचों में सुंदर पुष्प और जहरीले पौधों की कमी नही होनी चाहिए। सरोवर में मुझे पूरा जलीय तंत्र के जीव चाहिए। और गुरुदेव ध्यान रहे मीठे पानी का जलीय जीव लेकर आइयेगा।

आर्यमणि, अपने हाथ जोड़ते.... “सब आज ही हो जायेगा आचार्य जी, तभी मैं यहां से निकलूंगा। और कुछ...

आचार्य जी:– हां आप अपनी एक यात्रा पूरी कर आएं। उसके बाद गुरु अपस्यु की मदद के लिये जाने से पहले यहां 2000 कुटिया का निर्माण भी आपको ही करना है।

आर्यमणि:– हो जायेगा आचार्य जी। क्या अब मैं जा सकता हूं?

आचार्य जी:– बिलकुल गुरुदेव आप प्रस्थान करे। और हां एक भी दोषी को मुक्ति नही दीजिएगा गुरुदेव...

“ऐसा ही होगा आचार्य जी।”... इतना कहकर आर्यमणि आचार्य जी की कुटिया से निकल आया। वहां से निकलकर वह आगे कुछ करने जाता उस से पहले ही आर्यमणि से मिलने ऋषि शिवम पहुंच चुके थे। चेहरे पर मुस्कान और शरारती सवालिया नजर। उनके हाव–भाव देख आर्यमणि की हंसी निकल गयी।

आर्यमणि:– आप पीछा नहीं छोड़ते वाले ये मैं जानता हूं। लेकिन ऋषिवर आप तो मेरी दुविधा समझिए, यहां मैं कुछ नही कह सकता।

ऋषि शिवम्:– आपके अभिनय को नमन। खुद तो झूठ बोल ही रहे, ऊपर से आंसू भी निकाल रहे। कैसे गुरुदेव...

आर्यमणि:– कहानी थोड़ी अलग हो सकती है पर दिल का वियोग कोई अभिनय नही। वाकई में मैं दो राहों के बीच फंसा हूं। कुछ दिन और इसे चलने देते है।

ऋषि शिवम्:– मतलब कुछ दिनों तक मैं भी यह भूल जाऊं की 3 एमुलेट अब तक मेरे पास नही पहुंचे। जल्दी कीजिए गुरुदेव, सारे काम छोड़कर पहले इसे ही सुलझा दीजिए...

आर्यमणि:– आपको क्या लगता है, मैं क्या इस विषय में नही सोच रहा। पहले पूरे लोगों को उलझा लेने दीजिए। फिर आपके साथ एक चर्चा होगी उसके बाद निर्णय लेते है।

ऋषि शिवम:– हां इसलिए तो आपके साथ आ रहा हूं। मै तो इतना ही कहूंगा लापता होने के लिये 4 साल बहुत ज्यादा वक्त है, जो भी करना है जल्दी कीजिए।

आर्यमणि:– अब तो साथ चल ही रहे है। बिना देर लगाये सारा काम होगा। शिवम सर आप जब तक यात्रा पर निकलने वालों को समेटिए तब तक मैं आचार्य जी का काम कर देता हूं।

ऋषि शिवम ने यात्रा पर चलने वालों को समेटना शुरू किया और इधर आर्यमणि अंतर्ध्यान होकर सीधा शेषनाग क्षेत्र के जमीनी भू–भाग में पहुंचा। वहां के जंगलों से जानवरों और पंछियों को । इधर जबतक महा ने सरोवर को मीठे जलीय जीव से भर दिया। जाने से पहले आर्यमणि ने वहां के बगीचे को ठीक वैसे ही हरा–भरा कर दिया जैसा आचार्य जी चाहते थे।

आधे दिन में पूरा काम समाप्त करने के बाद आर्यमणि, कुछ नए और कुछ पुराने सदस्यो से सुसज्जित अल्फा पैक को लेकर निकला। जिसमे 2 वुल्फ (आर्यमणि और ओजल), 3 महान जादूगर (ओजल, निशांत और महा), अलौकिक शक्ति के साथ पैदा हुई 2 स्त्री, जो महान पराक्रमी थी (महा और ओर्जा), 2 सिद्ध प्राप्त तपस्वी, जिन्होंने कई मंत्र सिद्ध किये थे और जो टेलीपोर्टेशन कर सकते थे (आर्यमणि और ऋषि शिवम) और एक ब्रह्म ज्ञान प्राप्त ऋषि (शिवम) साथ चल रहे थे।

ओर्जा को छोड़कर सभी अंतर्ध्यान होकर नैनीताल के उस अग्नि कुंड वाली जगह पर पहुंचे, जहां वर्षो पहले गुरु निशि और उनके शिष्यों को जिंदा आग में झोंक दिया गया था। बड़ा सा कुंवानुमा गड्ढा आज भी वहां था। और चारो ओर धूल... आर्यमणि ने एक छोटा सा कमांड दिया और उस कुएं का गहरा तल धीरे–धीरे करके ऊपर आने लगा।

वह तल जमीन से 10 फिट ऊंचा गया और आंखों के सामने जंग लगे लोहे का गोल ढांचा था। उसी ढांचे के बीच एक छोटा सा दरवाजा भी था। दरवाजा जब खुला तब सबको कहना पड़ गया.... मानना होगा बाहर से देखो तो कितना पुराना लगता है, लेकिन अंदर की बनावट तो किसी पांच सितारे होटल की लिफ्ट की तरह थी।

खैर उस लिफ्ट से पूरा अल्फा पैक नीचे पहुंचा। 10 मीटर का छोटा सा गलियारा पार करने के बाद पूरा अल्फा पैक जैसे वाकई किसी पांच सितारा होटल के लॉबी में पहुंचे हो। उस लॉबी के पास लगे मार्किंग से आर्यमणि समझ गया की उसे कहां जाना था। पूरे पैक के साथ वह एक दरवाजे पर खड़ा था। दरवाजा जैसे ही खुला, एक व्यक्ति रेंगते हुये धीरे–धीरे बाहर आया।

“कहां तुम राजा की तरह जीने वाले, और देखो तो तुम्हारी क्या हालत बना दी गयी है। लगता है काफी तकलीफ में हो जीजा जी”....

“पानी... पानी... पानी”....

नीचे रेंगते हुये जयदेव पहुंचा था। पिछले 4 वर्षों से वो यहां का अंधियारा कैद झेल रहा था। इस जगह की जेल का उद्घाटन शायद जयदेव ने ही किया था। उसके बाद ही गुरु निशि के कत्ल में जिन इंसानों का सीधा हाथ था उन्हे यहां की जेल में लाया गया था। आजीवन अंधकार भोगने की सजा। खाना उतना ही जितना जीवित रह सके और पानी पूरे दिन में एक बार।

आर्यमणि तो फिर भी बात कर रहा था बाकियों ने तो अपने नाक दबाकर दूरियां बना ली थी। करे भी क्यों न, जयदेव के शरीर से गंदी सड़ी सी बास आ रही थी। जयदेव एक बार फिर अपना सर ऊपर करके पानी, पानी करने लगा। पीछे से सबके आवाज भी आने लगे.... “सरे हुये मल की बदबू कैसे बर्दास्त हो रही है आर्य।”...

तभी आर्यमणि भी चार कदम पीछे हटते.... "क्या यार जीजू... सारे अवांछित काम एक ही जगह करने पड़ रहे है क्या? रुको पहले तुम्हारे जगह और फिर तुम्हारी सफाई की व्यवस्था करवा दूं।”.... इतना कहकर आर्यमणि ने एक बार फिर कमांड दिया और जयदेव वापस से अपने अंधेरी कोठरी में।

पीछे से नाक पर हाथ दिये महा कहने लगी.... “पतिदेव जाओ आप भी स्नान कर लो। गंदा बास मार रहे हो।”...

आर्यमणि:– पर पहले मुझे एक बार गले लगाने की इच्छा हो रही है।

महा:– ठीक है लगा लीजिए गले फिर दोनो साथ नहाने जायेंगे...

आर्यमणि:– तुम पलटवार भी कर लेती हो महा। ठीक है आ रहा हूं मैं।

निशांत:– अबे भूल जा हम यहां है। अकेला क्यों जा रहा। जिसकी इतनी हॉट बीवी हो वो साथ नहाने से हिचकिचाते नही।

ओजल:– तभी एक दिन ओर्जा के पीछे–पीछे बाथरूम में घुसे थे और हवाई जहाज की तरह सीधा कीचड़ में लैंड किये।

निशांत:– नाना, वो तो तुम्हे भ्रम दिखा था। वो मैं नही था।

ओजल:– निशांत, मुझे तुम्हारा भ्रम भी दिखा था, और उसका नतीजा भी हम सबने देखा था। ओर्जा को इंप्रेस करने के चक्कर में जो तुमने होशियारी की थी ना। मारो, मुझे मारो, मुझे जरा भी चोट नही लग सकती।

महा:– इसे चोट क्यों नही लग सकती थी...

ओजल:– दीदी ये भ्रम पैदा करता है। आपको लगेगा पास ही खड़ा हो पर रहता कहीं और है।

महा:– काफी अनोखी शक्ति है, और उतने ही कमाल की भी। फिर क्या हुआ, ओर्जा, निशांत जी को मारने के प्रयास में थक गयी क्या?

ओजल :– नही दीदी... वो इतना तेज दौड़ी की लगभग वो गायब ही हो गयी। अपने टेलीपैथी के जरिए निशांत के दिमाग से जुड़ी और हवा में ऐसा मुक्का रखकर दी की ये तीन दिन तक बेहोश रहा।

निशांत:– कुछ भी हां...

ओजल:– शिवम सर देखो ये सच स्वीकार नहीं रहा।

निशांत:– मैं अकेला थोड़े ना हूं। इस लिस्ट में तो तुम दोनो का नाम भी है। आज तक दोनो कभी स्वीकार किये की एक दूसरे से प्यार करते हो।

जबतक इनकी बातें हो रही थी, आर्यमणि भी फ्रेश होकर आ गया। जैसे ही आया निशांत की बात सुनकर चौंकते हुये..... “क्या सच में शिवम् सर।”..

ओजल:– यात्रा शुरू होते ही उन्होंने मौन लिया है। वैसे सारी पंचायत यहीं कर लेनी है या जो करने आये थे वो कर ले।

ओजल की बात सुनकर आर्यमणि आगे का काम शुरू कर दिया। जयदेव एक बार फिर बाहर था। नहाने के वक्त लगता है खूब पानी पिया था, इसलिए अपने पैडों पर खड़ा होकर आ रहा था।.... “सुनो आर्य मुझे किस बात की सजा दे रहे। तुम्हे या तुम्हारे पैक को मारने की साजिश माया ने रची थी।”...

आर्यमणि:– ओजल कल पलक की शादी में वेडिंग गिफ्ट ले जाना है। जल्दी करो जब तक हम ऊपर जा रहे।

इधर आर्यमणि की बात समाप्त हुई उधर कल्पवृक्ष दंश के एक ही वार से जयदेव का फरफराता हुआ धर जमीन पर और सर हवा में। रुको जीजू मैं भी आयी। पलक की शादी का गिफ्ट तो ले लिया, लेकिन शादी में पहन के जाने लायक कपड़े कहां है।

आर्यमणि जमीन पर गिरे धर को ठिकाने लगाते...... “चलो फिर पहले शॉपिंग ही करते है।”..

ओजल:– शॉपिंग के लिये कहां चले...

आर्यमणि:– दिल्ली ही चलते है। वैसे भी आज तक मैं कभी दिल्ली नही गया...

निशांत:– हां यार आज तक मैं भी कभी राजधानी नही गया...

ओजल:– मैं तो कहीं गयी ही नही...

महा:– तो फिर चलो दिल्ली...

एक पूरा दिन ये लोग दिल्ली में शॉपिंग करते रहे। रात को इन सब ने अपस्यु की पत्नी ऐमी के पिता सिन्हा जी के यहां की मेहमाननवाजी भी स्वीकार किये, और भोर होने पर जब सिन्हा जी नाश्ते के लिये सबको उठाने पहुंचे तब सभी बिस्तर से गायब थे। दरअसल रात के खाने के बाद ही ये लोग अंतर्ध्यान होकर मालदीव पहुंच चुके थे। मालदीव के ही किसी आइलैंड पर पलक की शादी थी और दूल्हा किसी दूर ग्रह का निवासी था।

टापू पर हुये अल्फा पैक हत्याकांड को लगभग 4 साल हो गये थे। इन 4 सालों में बहुत से बदलाव भी आये थे। आम नायजो के बीच केवल पलक ही पलक छाई थी। उसका जलवा ऐसा था कि जहां भी होती किसी और का वजूद दिखता ही नही था। इसका एक कारण यह भी था कि पलक की तरह सोचने वाले काबिल नायजो की तादात इतनी हो चुकी थी कि किसी भी सिस्टम को चुनौती दे दे। जहां भी जाति हुजूम पीछे चला आता।
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Tri2010

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भाग:–175


टापू पर हुये अल्फा पैक हत्याकांड को लगभग 4 साल हो गये थे। इन 4 सालों में बहुत से बदलाव भी आये थे। आम नायजो के बीच केवल पलक ही पलक छाई थी। उसका जलवा ऐसा था कि जहां भी होती किसी और का वजूद दिखता ही नही था। इसका एक कारण यह भी था कि पलक की तरह सोचने वाले काबिल नायजो की तादात इतनी हो चुकी थी कि किसी भी सिस्टम को चुनौती दे दे। जहां भी जाति हुजूम पीछे चला आता।

आम नायजो के बीच पलक की बढ़ती लोकप्रियता को देखकर हाई–टेबल वाले चिंता में थे। ऊपर से पलक उन नायजो की भिड़ में ज्यादा रहती थी, जिन्होंने आज तक अपने शरीर पर एक भी एक्सपेरिमेंट न करवाया हो। नायजो नेताओं को पलक पर शक तो था लेकिन बिना सबूत के कुछ कर नही सकते थे, ऊपर से पलक का नेटवर्क।

पलक से जुड़े किसी भी आम सदस्य को ये लोग पूछ–ताछ के लिये जब भी उठाते, वहां पलक या उसके कोर 30 सदस्यों में से कोई एक पहुंच ही जाता। जब पता न लगा सके तब पलक की शादी अपने बीच के किसी नेता से करवाने को साजिश रचने लगे। पलक हर प्रस्ताव को ठुकराती रही। लगातार ठुकराती रही और अंत में विषपर प्लेनेट के राजकुमार और माया के भाई मायस्प का प्रस्ताव स्वीकार कर ली।

मायस्प और पलक की मुलाकात एक मीटिंग के दौरान हुई थी। यह मीटिंग भी तब शुरू हुई जब माया भारत पहुंची थी। उसी के कुछ दिन बाद अल्फा पैक के हत्या की खबर सुर्खियों में थी। पलक को ऐसा लगा जैसे उसके दौड़ रहे मुहिम पर किसी ने पूरा ब्रेक लगा दिया हो। कहां वो आर्यमणि के साथ मिलकर एक साल बाद पृथ्वी से नायजो के अस्तित्व को समाप्त करने वाली थी, और अब फिर से सब कुछ नए सिरे से प्लान करना था।

इसी दौरान पलक ने मायस्प से मेल जोल बढ़ा लिया और पलक को एक आशा की किरण दिखने लगी। इसके बाद दोनो का प्यार पूरा परवान चढ़ा। वैसे मायस्प की लोकप्रियता भी कम नही थी। पूरा समुदाय ही मायस्प पर नाज करता हो जैसे। 5 ग्रहों में बसने वाले दूसरे समुदाय के लोग जब नायजो के लिए खतरा बनते, और नायजो का हर लड़ाका हार जाता तब अंत में मायस्प को बुलाया जाता।

मायस्प और उसकी विशाल कुशल फौज किसी भी दुश्मन से चुटकियों में निपट लेते थे। खुद मायस्प कई सारी शक्तियों का वारिस था जिसमें कुछ अनुवांशिक गुण पिता से मिले थे और बहुत सारी शक्तियां खुद की अर्जित की हुई थी। हां लेकिन मायास्प की वीरता के किस्से और प्रत्यक्ष रूप से मायास्प को देखने के बाद पलक को कभी भी मायस्प के वीर गाथा के किस्सों पर यकीन ही नहीं हुआ। बस वो एक राजकुमार था और पलक के लिये उतना ही काफी था।

काफी ज्यादा हंगामे के बीच दोनो के शादी की तारीख तय हुई। चूंकि यह एक राजशाही शादी थी इसलिए शादी के इंतजामात भी उसी हिसाब से हुआ। मालदीव के टापू का खूबसूरत नजारा और प्रकृति की गोद में शादी के पूरे इंतजाम किए गये थे। नायजो अपनी आखरी शादी में भूमि, केशव और जया द्वारा दिये गये दर्द को भूले नहीं थे, इसलिए सुरक्षा का खास खयाल रखा गया था। हसीन वादियां थी और पलक अपने होने वाले पति मायस्प के साथ ढलते सूरज का लुफ्त उठा रही थी...

मायस्प:– काफी खूबसूरत दृश्य है। लेकिन हमारी शादी विषपर प्लैनेट से होनी चाहिए थी। वहां का नजारा ही अद्भुत होता...

पलक:– तुम्हारे सभी लोग पृथ्वी आ सकते है, लेकिन यहां के बहुत से ऐसे लोग है, जो तुम्हारे ग्रह जाने की तो दूर की बात है, उन्हे तो यह भी पता नही की दूसरे ग्रहों पर जीवन भी बसता है...

मायस्प:– अरे तो उनसे संबंध भी रखने कौन कह रहा... खुद को उनसे अलग करो... बस अपने काम के लिए यहां के प्रजाति का इस्तमाल करो...

पलक:– कुछ चीजें चाह कर भी नही हो पाती मायस्प..

मायस्प:– हां जैसे की वो जानवर आर्यमणि को तुम चाहकर भी भुला नहीं पाई...

पलक:– सच कहूं तो जितना उसे मारने को मैं व्याकुल थी, उतना ही उसके मरने का गम था। पिछले 4 सालों से एक ही ख्याल रोज आता है, काश उसे अपने हाथो से मारती...

मायस्प:– उसे न मार पाई न सही, उन लोगों को तो मार देती, जो तुम्हारे मां–बाप को मार गये... (उज्जवल और अक्षरा, जिसे भूमि, और आर्यमणि के माता–पिता ने मिलकर जला डाला था।)

पलक:– मैने उन्हे मारने का इरादा कब छोड़ा है? केवल ढूंढना बंद की हूं...

मायस्प:– मतलब...

पलक:– बदला तो उन लोगों को भी लेना है। कब तक छिपे रहेंगे?.. पृथ्वी पर शादी करने की एक वजह यह भी थी कि इस भीड़ में अपना बदला लेने, भूमि, जया और केशव जरूर आएंगे...

मायस्प:– बहुत शानदार... वरना मुझे तो लगा तुम भूल चुकी हो...

पलक:– कुछ बाते हम चाहकर भी नही भूल सकते... छोड़ो इन बातों को। तुमने वो वीडियो देख लिया न... बारात कैसे लेकर आनी है...

मायस्प उत्साहित होकर खड़ा हुआ। पलक के होटों को चूमकर वहीं नाग की तरह लहराते हुए... "मैं नगीन–नगीन, नागिन–नागिन, नागिन डांस नाचना"…

पलक खिल–खिलाकर हंस दी। दोनो शादी के पूर्व एक हसीन शाम का लुफ्त उठाकर अपने–अपने स्वीट्स में लौट आए। शादी का दिन था और लोग झूम रहे थे। राजशाही फौज इस बार कमान संभाली थी और चप्पे चप्पे पर उसके आदमी नजर दिये हुये थे। खुफिया तौर पर मेहमानों की जांच लगातार चल रही थी।

पलक को अंदेशा था कि इस शादी में भी हमला होगा, इसलिए उसने भी चप्पे–चप्पे पर अपने आदमियों को लगा रखी थी। मकसद सिर्फ इतना ही था कि यदि भूमि अपने लोगों के साथ पहुंची तो उसे सुरक्षित रास्ता देना, ताकि वो आसानी से अपना काम कर सके। मालदिव के एयरपोर्ट से लेकर टापू तक पलक के लोग नजर बनाए थे। किंतु भूमि अथवा उनके लोगों के होने की कोई खबर नही थी। अंत में पलक भी सुनिश्चित होकर तैयार होने के लिये चल दी।

रंगारंग कार्यक्रम से शादी के महफिल की शुरवात हुई। लड़के वाले जब भारतीय परंपरागत बारात लेकर निकले फिर तो वो लोग भी भूल गये की नायजो परंपरा क्या होती है। सब बिलकुल झूम रहे थे और बैंड बाजा के साथ तरह–तरह के करतब दिखा रहे थे। माया की बहन काया के साथ उसके पिता और विषपर प्लैनेट का मुखिया भी साथ चल रहे थे। सभी झूमते हुए दरवाजे तक पहुंचे। परंपरागत तरीके से सबका स्वागत हुआ। जयमाला स्टेज सजा हुआ था। दुल्हा और दुल्हन की क्या खूब जोड़ी थी। नीचे बड़े से मैदान में सभी आगंतुओं के बैठने की व्यवस्था थी। सबकुछ सही चल रहा था की तभी किनारे पर लगे बड़े–बड़े स्क्रीन पर बिन बुलाए मेहमान को दिखाया जाने लगा। हर किसी का ध्यान स्टेज से हटकर पीछे से आ रहे कुछ लोगों पर पड़ी...

हर किसी की आंखें फैल गई। पलक की नजरें भी उसी ओर गयी। जैसे ही उसकी नजर आर्यमणि से मिली, चेहरे पर अलग ही खुशी थी। मुंह से धीमे कुछ शब्द निकले और वह उठ खड़ी हुई। हर कोई मानो सामने से भूत को आते देख रहा था। और ऐसा मेहसूस भी क्यों न हो... ऐसे नजारे देखकर यही हाल होना था...

सबसे आगे आर्यमणि, उसके साथ महा, ओजल, निशांत और ऋषि शिवम थे। पीछे से भूमि, जया और केशव भी साथ आ रहे थे। इनके अलावा 5–6 संन्यासी और थे। सभी बिलकुल चकाचक तैयार होकर किसी हॉलीवुड स्टार की तरह शिरकत कर रहे थे।

माहौल में बड़बड़ाने की आवाज आने लगी। माया की बहन काया का एक इशारा हुआ और 4 बीस्ट वुल्फ एक साथ आर्यमणि के कारवां को चारो ओर से घेर लिये। आर्यमणि ने हाथ के इशारे से सबको 4 कदम पीछे हटने कहा। वहीं चारो बीस्ट वोल्फ बस अपने मालिक के इशारे का इंतजार कर रहे थे। इधर माया का इशारा हुआ और उधर चार दिशा से चारो बीस्ट वुल्फ आर्यमणि के ऊपर कूद गये।

मोटे धातु समान मजबूत पंजे। हीरे समान कठोर शरीर। वुल्फ और इंसानों का शिकर करके बने ये चारो बीस्ट वुल्फ अपना पूरा पंजा खोलकर आर्यमणि को गंजा करने के इरादे से हवा में कई मीटर ऊपर छलांग लगाकर आर्यमणि के ऊपर ही कूद रहे थे। शायद 4 सालों में आर्यमणि के खौफ को पूरी तरह से भूल चुके थे, या फिर ये चारो बीस्ट वोल्फ सुनी सुनाई बात पर यकीन न करते हो। तभी तो हमला करने कूद गये।

आर्यमणि के नब्ज में हाई टॉक्सिक के अलावा गति जैसे पूरे रफ्तार में बह रही हो। अचानक ही आर्यमणि के सर के ऊपर से उजले धुवांनुमा बड़ा शरीर बाहर आया। वह शरीर इतना विशाल था कि आर्यमणि का उजला धुवां वाला आधा शरीर ही ऊपर 200 फिट से ज्यादा ऊपर तक दिख रहा था। फिर तो जबतक वो चारो बीस्ट वोल्फ आर्यमणि के वास्तविक छोटे से शरीर पर अपने पंजे से प्राणघातक वार करते, उस से पहले ही हवा में उनके साथ कांड हो चुका था।

तभी सबके कानो में विस्फोट की आवाज आयी और आंखों के आगे हैरतंगेज नजारा। सभी बिस्ट वुल्फ पर हवा में ही आर्यमणि के उजले धुवां वाला 100 किलो का इतना तेज मुक्का पड़ा की उनके शरीर के चिथरे चारो ओर मैदान में फैले थे। आवाज विस्फोट जैसे हुआ और पीछे से खून और मांस के लोथरे कण स्वरूप हवा में उर रहे थे...

"देखो मैं ऐसे तैयार होकर लड़ने नही आया। वैसे भी शादी के माहौल में मातम न पसरे इसलिए मेरा रास्ता छोड़ दो"… आर्यमणि रुमाल से अपना हाथ साफ करते हुए अपनी बात कहा... तभी सुकेश भारद्वाज की आवाज आयी… "रास्ता छोड़ दो। आर्य है तो अपना भांजा ही। आखिर किसके परिवार में अन बन नही होती"…

आर्यमणि:– हां सही कहा मौसा जी। इसलिए तो तोहफे में मैं अपने प्यारे जीजा को लेकर आया हूं। आप भी तो अपने दामाद को कई सालो से नही देखे होंगे?

आर्यमणि अपनी बात कहकर बैग के अंदर हाथ डाला और वहां से जयदेव का कटा हुआ सर उछालकर स्टेज पर फेंकते... "जयदेव जीजू लगता है काफी रूठे हुए है... बात ही नही कर रहे।"… जयदेव का कटा हुआ सर देखकर हर नायजो का खून खौल गया... तभी वहां देवगिरी पाठक की आवाज गूंजी... "मार डालो इन सबको"…

देवगिरी की आवाज सुनकर 2 किनारे पर 2 लंबे कतार में नायजो सैनिक खड़े हो गये और खड़े होने के साथ ही अंधाधुन लेजर फायरिंग करने लगे। ठंडी बह रही हवाओं में गर्मी जैसे बढ़ गयी थी। आर्यमणि ने मात्र एक नजर महा और और ओजल को देखा। महा के कलाई पर बंधे एक छोटा सा त्रिशूल जैसे ही महा के हथेली में आयी, वह अपने पूर्ण आकार में थी। धातु का चमचमाता 5 फिट का त्रिशूल। महा त्रिशूल को अपने दोनो हाथों में थाम जैसे ही उसे हवा लहराई। वह तिलिस्मी त्रिशूल हवा में ही थी और उसके ऊपरी हिस्से से कई त्रिशूल निकलकर सीधा निशाने पर। एक किनारे से, एक कतार में खड़े होकर लेजर निकाल रही आंखों के सर हवा में थे और थरथराता, कांपता खून से लथपथ धर जमीन पर।

वहीं ओजल भी अपना कल्पवृक्ष दंश चला चुकी थी। ऐसा लगा जैसे ओजल ने दंश के निचले सिरे पर रबर लगा दिया हो। एक बार दंश उछाली तो दूसरी किनारे से कतार लगाकर लेजर किरणे छोड़ रहे सभी नायजो के गर्दन उसके धर से अलग थे। आर्यमणि पीछे अपने परिवार और संन्यासियों को देखते.... “कुछ ज्यादा हिंसा तो नही लग रहा न।”

एक संन्यासी:– गुरुदेव जर्मनी की हिंसा के मुकाबले बहुत कम। वहां तो सबको काट रहे थे, यहां वध कर रहे।

जाया:– बेटा मेरे लिये ये कुछ ज्यादा ही हो रहा है।

कोई एक और संन्यासी.... “हम सबको लेकर बाहर जाते है।”

इधर नायजो खेमे में जो आर्यमणि डर खत्म सा हो गया था, उसके आतंक देखकर सबके होश उड़ चुके थे। हजारों की भिड़ कुछ पल के लिये स्तब्ध हो गयी। नायजो आगे कुछ कदम उठाते, उस से पहले ही विषपर प्लैनेट का मुखिया सबको रोकते.… "तुम क्या चाहते हो लड़के"…

ओजल:– ओ भोंदू से शक्ल वाले मुखिया, अगली बार बात करने से पहले याद रहे की तुम सात्त्विक आश्रम के एक गुरु से बात कर रहे, जिसका नाम आर्यमणि है। तुम तमीज भूलोगे तो हमें भी तमीज सीखाने आता है...

मुखिया का अंगरक्षक.... “तुझे पता है तू किस से बात कर रही। तेरी पृथ्वी से कहीं बड़े भू भाग के ये मुखिया है। इनके बिना वहां पत्ता भी नही हिलता। सब मात्र कुछ करतब देखकर मौन हो गये क्या? इन बदतमिजों की टोली को उनकी औकाद दिखा दो।”

“मार डालो, मार डालो, मार डालो”.... नायजो की पूरी भिड़ एक साथ चिल्लाने लगी।

मुखिया अपने दोनो हाथ ऊपर करके सबको शांत रहने का इशारा किया.... “कुछ देखा, कुछ सुना। अभी मेरे एक इशारे पर हजारों की भिड़ कूद पड़ेगी। तुम शायद सैकड़ों को मार भी दो लेकिन उसके बाद।”

निशांत:– उसके बाद देखने के लिये यहां कोई जिंदा बचा भी होगा क्या? मुखिया अपने घर और सेना से काफी दूर हो। अपने लोगों को शांत करवा वरना अगली कोई लाश गिरेगी तो वो पहले तेरी ही गिरेगी...

मुखिया:– तुम्हारी जगह है इसलिए इतना बोलने की जुर्रत भी कर गये....

आर्यमणि:– शुक्र कर मेरी जगह है इसलिए इतना शांत भी हूं, वरना कहीं और होता तो अब तक एक भी जीवित नहीं होता। मुखिया अपने लोगों को शांत रख, वरना मेरे अंदर जो अशांति चल रही है, वह कहीं निकलकर बाहर आ गया तो विश्वास मान, मेरा आतंक देखकर भागने के लिये जितनी देर में तू अपना हाथ घुमाकर पोर्टल बनायेगा, उस से पहले मैं तुम्हारी लाश गिरा चुका रहूंगा। अपने लोगों को अनुशासन सिखा।

आर्यमणि अपनी बात समाप्त कर इशारा किया और पूरा अल्फा पैक नायजो की भिड़ के बीच से शिरकत करते हुए स्टेज पर जा पहुंचा। पलक खून भरी नजरो से आर्यमणि को देख रही थी.… "ये लड़की तुम्हे ऐसे क्यों घूर रही है आर्या"… महा सवालिया नजरों से पूछने लगी

आर्यमणि:– तुम खुद क्यों नही पूछ लेती महा..

महा:– पतिदेव मुझे इजाजत दे रहे या फिर मुझे ताने...

ओजल:– तुम दोनो का भी रोमांस इसी मौके पर जगा है। अभी दोनो रोमांस को दबा दो। पहले जरा पुराने हिसाब किताब कर ले...

आर्यमणि:– इन नायजो से क्या हिसाब किताब करना... इनके नाम में ही नाजायज है... यानी की जहां भी है गैर कानूनी तरीके से...

माया की बहन का काया:– भूल गया क्या, कैसे मेरी बहन ने सबको चीड़ दीया था... तू बच कैसे गया, यही बात दिमाग में है...

आर्यमणि:– हां सारी बातें याद है। कैसे पीछे से छिपकर आयी थी... अभी तू, तेरा ये बाप और सबको चिड़ने में मुझे कितना वक्त लगेगा उसका छोटा सा नमूना पहले ही देख चुकी हो। तुम्हारी बहन ने तो पीछे से चिड़ा था न, मै सिखाता हूं सामने से कैसे चिड़ते हैं।

विषपर का मुखिया जो शांति से सब कुछ समझ रहा था और अपने लोगों को रोक रखा था। वह पूर्ण आवेश में आते.... “जो भी मुझे इस हरमजादे आर्यमणि का सर लाकर देगा उसकी शादी मैं अपनी बेटी माया से करवा दूंगा।”...

मुखिया की बात पर पूरी भिड़ ही उग्र हो चुकी थी किंतु ऋषि शिवम और ओजल के एकजुटता वाले मंत्रों ने ऐसा असर किया की कोई अपनी जगह से हील नही पा रहा था। नजरों से लेजर किरणों का प्रयोग हो रहा था लेकिन वो किसी काम की थी नही। ओजल जोड़ से चींखी.... “बॉस इनकी जगह, इनका भिड़, और बेबस भी यही खड़े है। इन्हे सिखाओ की चिड़ते कैसे हैं।”

“बड़े मजे से सिखाऊंगा” कहते हुये आर्यमणि ने अपनी एक उंगली ऊपर की, और सिर्फ उसी उंगली का क्ला बाहर आ गया। फिर बड़े आराम से वो मायस्प के पास पहुंचा और अपना क्ला ठीक उसके सीने के बीच घुसा दिया। मुखिया चिंखा... "नही आर्यमणि"… काया चिल्लाई, पूरा नायजो समुदाय चिल्लाया, और उसके अगले ही पल सबके आंखों की लेजर चार गुना तेजी से निकलने लगी।
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Tri2010

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भाग:–176


“बड़े मजे से सिखाऊंगा” कहते हुये आर्यमणि ने अपनी एक उंगली ऊपर की, और सिर्फ उसी उंगली का क्ला बाहर आ गया। फिर बड़े आराम से वो मायस्प के पास पहुंचा और अपना क्ला ठीक उसके सीने के बीच घुसा दिया। मुखिया चिंखा... "नही आर्यमणि"… काया चिल्लाई, पूरा नायजो समुदाय चिल्लाया, और उसके अगले ही पल सबके आंखों की लेजर चार गुना तेजी से निकलने लगी

नजरों से मौत की रौशनी तो निकल रही थी लेकिन वह मात्र बेबसी के प्रमाण से ज्यादा कुछ नहीं था। आर्यमणि एक नजर बेबस भिड़ को देखकर मुस्कुराया। उसने आहिस्ते से अपना क्ला नीचे खींचा, दर्द भरी चींख मयास्प के मुंह से निकल गयी.… "आर्य तुम मेरी शादी में ऐसा नहीं कर सकते?"… पास खड़ी पलक चिल्लाई...

ओजल:– हमने तुम्हे नही बांधा ड्रामा क्वीन। जा बचा ले अपने दूल्हे को, हम बीच में नही आयेंगे...

पलक:– लड़कों के अकाल पड़े है क्या? खुद की वीर गाथा बहुत सुनाता था। जाने ये मैं क्यों बीच में आऊं। हां लेकिन बराबरी का मौका तो मिलना चाहिए।

काया:– कामिनी बदजात, इंसानों की हिमायती। यहां के अधिकारी कोई गलत शक नही कर रहे थे तुम पर।

पलक:– इंसानों की पैदाइश होकर इंसानों से ही इतनी नफरत। भूल गयी नायजो परिवार को जिनमे इतना जोश भरा रहता था कि एक ही खून होकर भी आपस में संबंध बनाते थे। और नतीजा ऐसा हुआ कि नायजो के सारे मर्द ही नपुंसक हो गये थे। समुदाय गुमान तब कहां था जब इंसानों के आगे टांग फैलाकर बीज डलवाती थी।

काया:– हरामजादी, कुतिया, जाकर इंसानों के बिस्तर गरम कर, अब हमें उसकी ज़रूरत नही। बस एक बार मुझे खोल दे, तेरी औकाद क्या है वो मैं बताऊंगी...

आर्यमणि, का चेहरा पूरा लाल। आंखों से अंगार जैसे बरस रहे हो.… "कोई बचा है मेरे पैक में जो इसको जवाब दे सके।”

महा:– पतिदेव मेरा खून खौल रहा है। कितनी घटिया बातें कर रही है। कान बंद करो, इसे तो मैं जवाब दूंगी...

आर्यमणि:– हां कान बंद कर लिया...

महा, ने कुछ बड़बड़ाया और महज चंद सेकेंड में वह काया, गंदगी में नहा चुकी थी। बदबू ऐसी की आस पास कैद खरे नायजो अपनी नाक सिकोड़ रहे थे।.... “सुनो तुम चिंदी जैसे दूर ग्रह के निवासी। तुम जैसे बदबूदार कीड़े मेरे कैद खाने में रोज ही ऐसे रेंगते है। जिस समुदाय में अपने परिवार के साथ ही संबंध बनाते हो, वो बदबूदार मल से ज्यादा कुछ नहीं। मेटल टूथ इसे अभी चाहकीली तक पहुंचा दो और चाहकीली से कहना इसे कैदखाने तक पहुंचा दे। वहां ये अपने मीनार के सभी कैदियों के मल को साफ करेगी।”...

महा का आदेश और अगले ही पल वह जमीन के अंदर ही घुस गयी, और सब मुंह ताकते रह गये। आर्यमणि भद्दा सा मुंह बनाते... “बस इस बात के लिये मेरे कान बंद करवा दी। टीम किसी को मजा आया क्या?”

निशांत:– अलबेली के मुकाबले तो एक परसेंट भी न था।

ओजल:– अलबेली जैसा कोई नहीं। फिर भी कोशिश अच्छी की दीदी।

महा:– मुझे बताना की अलबेली यहां कैसा जवाब देती। मै कोशिश करूंगी...

आर्यमणि:– कोशिश करने से वैसे जवाब कभी निकल ही नही सकता। वो तो नेचुरल टैलेंट था, क्यों टीम...

पलक:– आर्य इतनी भीड़ को अटकाकर क्या बकवास ही करोगे या आगे भी कुछ करना है।

आर्यमणि:– आगे कुछ करूं उस से पहले अपनी टीम लेकर निकलो... हम कहां मीटिंग करेंगे...

पलक:– वहीं जहां से सबकी शुरवात हुई थी। नागपुर में ही मिलते है।

आर्यमणि:– ठीक है तुम अपने लोगों को लेकर निकलो। मै नागपुर में मिलता हूं। उम्मीद है तुम्हारे पास इन नजायजों को भगाने का कोई कारगर उपाय होगा वरना सबकी लाश इसी भूमि पर गिरेगी...

पलक:– कोई नही लाश भी गिरानी पड़ी तो भी चलेगा... मै हर परिस्थिति के लिये तैयार हूं। और हां आर्य... यहां दर्द और चींख का फिर से वही माहौल होना चाहिए, जिन्हे ये भूल चुके थे। कोई रहम नहीं... मार डालो सबको...

आर्यमणि:– ऐसा बना बनाया माहौल देने का शुक्रिया। शिवम सर पलक के लोगों को जरा नागपुर तक छोड़ आइये...

पलक स्टेज से उतर गयी। वह अपने लोगों को समेटने लगी। ऋषि शिवम, पलक के जिन साथियों को जानते थे उन्हे पहले भी कैद नही किया था। और वो लोग जिन्हे चिन्हित करते गये उन सब को भी छोड़ दिया गया। इधर आर्यमणि उस मायास्प को पहले हील किया बाद में उसे छोड़ते.... “देखूं कितना बड़ा तोप है तू।”...

जैसे ही वह मायस्प छूटा उसके अगले ही पल आर्यमणि के पाऊं के नीचे किरणों का घेरा था। आर्यमणि ने कुछ मंत्र पढ़े और उसके एमुलेट से रौशनी निकलने लगी जो प्रिज्म आकर में आर्यमणि के पूरे शरीर के घेरे थी। मायस्प हालांकि आर्यमणि को पहले ही घेरे में ले चुका था, इसलिए उसने अपना अगला रणनीति शुरू किया। गोल घेरे के चारो ओर 6 रॉड लगाने का।

मायस्प जोड़ से चिल्लाया.... “रॉड कहां है।”..

आर्यमणि एक कदम आगे बढ़कर वह घेरा पार किया और एक झन्नाटेदार थप्पड़ लगाते.... “तू रहने दे भाई रॉड हम ढूंढ लेते है। तुम तीनो (निशांत, महा और ओजल) ऐसा रॉड ढूंढो, जिसके सिरे पर पत्थर लगा हो। ओह हां महा जितने भी लोग यहां कैद है सब पर मेटल टूथ छोड़ दो और उनसे कहो इन सबके पास जो भी पत्थर है उन्हे इकट्ठा कर ले। मै जरा इस रॉयल बेबी की वीरता भी चेक कर लेता हूं।

मायस्प:– देखिए मैं कोई वीर नही। बस वीरों के समूह के साथ जाता था और उनके कारनामों को अपना बता दिया करता था।

आर्यमणि वापस से उसे एक झन्नाटेदार थप्पड़ मारा। इस थप्पड़ ने तो जैसे उसके होश उड़ा दिये हो। तुरंत ही उसने एक पोर्टल खोला और जैसे ही अपना पहला कदम उस पोर्टल में रखा आर्यमणि ने मात्र के इशारे किये और हवा को ही रस्सी बनाकर मायास्प के पाऊं में फसाया और खींच दिया। मुंह के बल गिड़ता, जमीन पर घिस्टाते, आर्यमणि के पाऊं में था। आर्यमणि, नीचे बैठकर उसके बालों पर हाथ फेरते..... “क्यों भाई मैदान छोड़कर क्यों भाग रहे थे। अब ये खेल उबाऊ लग रहा है। तू हार गया।”...

इतना कहकर आर्यमणि ने फिर से उसे मंत्रों के जाल में बांध दिया और बाल को मुट्ठी में दबोचकर उसे एक हाथ से ही किसी छिली मुर्गी की तरह उठा लिया। एक बार फिर आर्यमणि अपने एक उंगली के क्ला को बाहर किया और सीधा उसके सीने में घुसाकर थोड़ा सा चीड़ दिया। दर्द की खतरनाक चींख उसके मुंह से निकल गयी। तभी वहां लगे बड़े–बड़े स्क्रीन पर माया की तस्वीर आने लगी। बड़े से बुफर में उसकी आवाज गूंजी..... “सबके हाथ–पाऊं बांधकर एक अकेले मासूम को मारने में क्या वीरता है आर्यमणि।”

आर्यमणि:– तू अभी तक जिंदा है। मुझे लगा मेरे लौटने की खबर सुनकर कहीं आत्महत्या न कर ली हो।

माया:– तू इतना ही बड़ा वीर होता न तो मेरे लोगों को अपनी तिलिस्मी जाल में फसाकर एक मासूम की जान न ले रहा होता।

आर्यमणि:– तूने भी तो यही किया था न... अपने पर आयी तो बिलबिला रही है।"…

माया:– तुम्हारी दोषी मैं हूं, उसने क्या बिगाड़ा है...

आर्यमणि:– मैने किसी का क्या बिगाड़ा था? मेरे दादा वर्धराज ने क्या बिगाड़ा था? गुरु निशि ने क्या बिगाड़ा था? आश्रम के सैकड़ों शिष्य जिन्हे जिंदा जला दिया, उन्होंने क्या बिगाड़ा था? मेरी पत्नी वो तो उल्टा तुम्हारे जुल्मों का शिकार थी। उस निर्दोष ने किसी का क्या बिगाड़ा था? रूही की तरह वो चुलबुली प्यारी अलबेली, जिसके होने से ही चेहरे पर मुस्कान आ जाए। इवान उसने तो अभी दुनिया देखना शुरू ही किया था... क्या बिगाड़ा था इन सबने?... आंखों के सामने जब अपनो की मौत हो तब कैसा लगता है उसका मजा तुम भी ले लो...

मायस्प:– आज तू मुझे मार ले लेकिन मेरे लाखों शागिर्द तुझे ढूंढ निकालेंगे। उस दिन तू खुद को कोसेगा... तेरा सीना चिड़कर दिल बाहर निकाल लेंगे...

“मैने भावना वश अपने सुर क्या नीचे किये तुम तो धमकी देने लगे मेरे दोस्त।”.... आर्यमणि अपने घुसे क्ला को थोड़ा और अंदर घुसाया और पलक झपकते ही सीना चिड़कर मायस्प का धड़कता दिल अपने हथेली पर रखते... "क्या ऐसे ही तू मेरा दिल निकाल लेता... बोल ना भाई... अरे यार ये बोलता क्यों नही"…

आर्यमणि जोड़ से चिल्लाते हुए अपनी बात कह रहा था और दूसरी ओर का पूरा माहौल ही सकते में। आर्यमणि ने उस नायजो का सीना चीड़ दिया, जिसे चर्चाओं में सबसे शक्तिशाली माना जाता था। सबके मुंह खुले हुये थे। माया गुस्से में फुफकार मारती.... “सिर्फ तू ही नही, पृथ्वी से पूरी मानव सभ्यता को ही हम समाप्त कर देंगे।”

आर्यमणि:– बड़बोली कहीं की। यहां अगर होती तो तुझे चीड़ देता। फिर तेरा बदला धरा का धरा रह जाता। लगता है अभी तेरी अक्ल ठिकाने नही आयी है। रुक तुझे तमाशा दिखाता हूं।

ओजल, बड़ी तेजी से स्टेज तक पहुंचती.... “हमे काम पर लगाकर एक को टपका भी दिया। जीजू थोड़ी देर रुक नही सकते थे।”..

महा:– और स्क्रीन पर ये लड़की कौन है जो गुस्से में लग रही। चेहरे से तो ये भी उस काया की तरह घिनौनी दिख रही।

आर्यमणि:– हां ये है भी घिनौनी। निमेष के साथ उस दिन ये भी थी। खैर आगे का काम देखते है। सो, दूर ग्रह से पहुंचे घिनौने नायजो। पृथ्वी पर गैर कानूनी तरीके से उपस्थिति के लिये मैं तुम सबको यहीं चीड़ दूंगा। लेकिन मेरा दिल कर रहा है कि तुम में से कुछ को जाने दूं, जो मेरी कहानी अपने ग्रह पर सुना सके। तो बताओ कौन बनना चाहेगा वो खुशनसीब.... तुम सब की कोई एक उंगली काम कर रही है उसे बस सीधी कर लो। जिसे भी चुना जायेगा, वह खुशनसीब यहां से जिंदा जायेगा....

माया:– देखो आर्य ऐसा मत करो। तुम जो भी सोच रहे उसे अभी रोक दो। मै वादा करती हूं सबको लेकर पृथ्वी से चली जाऊंगी। लेकिन प्लीज इन्हे कुछ मत करो।

आर्यमणि:– तुम शो इंजॉय करो। आखरी में तुम्हारे काम की बात भी मैं करूंगा। ओजल किसी 2 उंगली उठाने वाले को उसकी कैद से आजाद करो।

मल्टीपल च्वाइस में से ओजल ने एक लड़का और एक लड़की को आजाद किया। आर्यमणि उन दोनो को जिंदा रहने की बधाई देते.... “अभी जिंदा रहने के लिये चुने गये हो। लेकिन जिंदा उसी शर्त पर रह सकते हो जब तुम इस मुखिया के सभी बच्चों की पहचान करवाओ।”

उन दोनो को मात्र एक मिनट का वक्त लगा और उन दोनो ने 4 लड़की, 6 लड़को को चिन्हित कर दिया।.… सभी चिन्हित भाई बहन को अलग छांट दिया गया। आर्यमणि खुद मुखिया बाप के पास पहुंचा...."क्यों भाई कोई फैमिली प्लानिंग नही किये थे क्या, जो इतनी निक्कमी संतान पैदा हो गयी"…

मुखिया अपना सर झटकने लगा। आर्यमणि उसका मुंह खोलते.... "बोलो, क्या कहना चाहते हो।”

मुखिया:– मेरा वादा है कल सुबह होने से पहले मैं तुम सबकी लाश गिरा दूंगा।

आर्यमणि:– अपनी तादात बढ़ाने में तुम सब हैवान बन चुके हो... आज कोई रहम नही होगी। महा मुझे इन भाई बहनों के मौत की चींख क्यों नही सुनाई दे रही। और तुम क्या कर रही हो ओजल, सबको कांटों की चिता का दर्द याद दिलाओ। केवल ये मुखिया और उन दो लोगों को छोड़ देना जिन्होंने हमारी मदद की है।

आर्यमणि के एक आदेश पर फिर से कल्पवृक्ष दंश और त्रिशूल तन गये। देखते ही देखते मंत्रो की कैद में फंसी नायजो की भिड़ कांटों की चिता पर लेटे थे। वही कांटों की चिता जिन्हे नाजयो वाले भूल चुके थे। वही कांटों की चिता जिसपर लेटने के बाद हर नायजो उस वक्त को कोसता की क्यों उसने बॉडी पर ऐसा एक्सपेरिमेंट करवाया जिस वजह से उनकी मौत नही हो सकती और बदन में घुसे 100 से भी ज्यादा मोटे कांटे दर्द का इम्तिहान लेने पर तुले होते।

खैर, ओजल ने सबको बेइंतहा दर्द की चिता पर लिटाकर उनका मुंह पैक कर चुकी थी। उसके अगले ही पल महा का तिलिस्मी त्रिशूल चला और मुखिया के आंखों के सामने उसके सभी बच्चों के सर उसके धर से अलग थे। न तो बोलने का कोई मौका दिया और न ही किसी को खुला छोड़ा। बस मौत के एक इशारे थे और उस इशारे पर मौत का तांडव।

केवल दूर बैठी माया और कैद में फंसी काया को छोड़कर मुखिया के सभी बच्चों की लाश गिर चुकी थी। कांटों की चिता पर लेटा हर नायजो डर के साए में था। हर किसी का मुंह तक बंधा था, वरना गिड़गिड़ाने की आवाज चारो ओर से आती। ओजल और महा दोनो एक साथ.... “और कोई आदेश बॉस।”

आर्यमणि:– महा तुम भी बॉस बोल रही।

महा:– पतिदेव काम के वक्त आपको बॉस बुलाना ज्यादा अच्छा लगता है।

ओजल:– हो गया तुम दोनो का, तो आगे का भी देख ले। इस पूरी भिड़ का करना क्या है।

आर्यमणि:– क्यों माया तुम्हारी बोलती क्यों बंद है बताओ क्या करूं मैं इस भिड़ का।

आर्यमणि की बात सुनकर माया कुछ न बोली सिवाय अपना कनेक्शन काटने के। वहीं खड़ा मुखिया भी लाचार सा दिखा। गिड़गिड़ाता रहा सबको छोड़ दो। लेकिन आर्यमणि के कान पर जूं तक न रेंगी। 2 अतिथि और फुदक रहे थे, सुकेश और मीनाक्षी। आर्यमणि उन्हे कांटों की चिता से उठाकर उनका मुंह खोल दिया.... “क्यों मेरे मौसा, मेरी मौसी... कुछ बोलने को नही है क्या?”...

मीनाक्षी:– क्या इस बात से तू इनकार कर सकता है कि मैने तुझे अपने बेटे की तरह नही चाहा?...

आंखों में थोड़े आंसू थे। दिल भारी था। तेज उसकी रफ्तार थी। दिमाग के एक हिस्से में मीनाक्षी के साथ बिताए अच्छी यादें थी तो दूसरे हिस्से की करवाहट। तेज दौड़ते आर्यमणि मीनाक्षी के पीछे जाकर उसके गर्दन को अपनी भुजाओं से दबोचा और दूसरे हाथ का क्ला निकला पूरा पंजा उसके सर में घुसा था। मीनाक्षी कसमसाती रही। खुद को छुड़ाने की जी तोड़ कोशिश करती रही। मीनाक्षी को छटपटाते देख सुकेश ने हमला बोल दिया। बादल, बिजली, आग पानी सब आर्यमणि के सामने थे बेकार। फिर भी मीनाक्षी को बचाने के लिये सुकेश अपनी बेकार कोशिश करता रहा। मीनाक्षी छटपटाती रही। आर्यमणि के आंख से आंसू बहते रहे।

जब कुछ काम न आया तब बेबस इंसानों की तरह सुकेश आर्यमणि के कदमों में गिड़ा था। रहम की भीख मांगता रहा। शायद दिल अभी उतना पत्थर का नही हुआ था, इसलिए तो आर्यमणि ने अपनी मजबूत पकड़ से मीनाक्षी को आजाद कर दिया। आजाद होते ही मीनाक्षी भी आर्यमणि के पाऊं में गिरी थी, और ये पूरा नजारा एलियन के सिक्योर चैनल से लाइव रिले हो रहा था, जिसे पृथ्वी पर बसा हर नायजो देख रहा था।
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भाग:–177


जब कुछ काम न आया तब बेबस इंसानों की तरह सुकेश आर्यमणि के कदमों में गिड़ा था। रहम की भीख मांगता रहा। शायद दिल अभी उतना पत्थर का नही हुआ था, इसलिए तो आर्यमणि ने अपनी मजबूत पकड़ से मीनाक्षी को आजाद कर दिया। आजाद होते ही मीनाक्षी भी आर्यमणि के पाऊं में गिरी थी, और ये पूरा नजारा एलियन के सिक्योर चैनल से लाइव रिले हो रहा था, जिसे पृथ्वी पर बसा हर नायजो देख रहा था।

आर्यमणि मुंह छिपाकर अपना आंशु पोंछा और भारी आवाज में कहने लगा.... “ये मेरी रूही, ओजल, इवान और अलबेली का दोषी है। ये महान अल्फा हीलर फेहरिन का दोषी है।

सरदार खान की गलियों के जुल्म मैं भुला नही। ओजल इन्हे भी बाकियों के साथ कांटों पर लिटा दो, और मुझे सुकून क्यों नही मिल रहा? इन सबकी चिंखे क्यों नही निकल रही?

आर्यमणि ने आदेश दिया और अगले ही पल सुकेश और मीनाक्षी भी बाकियों को तरह कांटेदार जड़ों की चिता पर लेटे थे। चीख और पुकार से वह जगह गूंज उठी थी। “मार दो, मुझे मार दो” ऐसी मिन्नतें चारो ओर से हो रही थी। एक मुखिया और 2 नायजो थे जो अब तक अपने पाऊं पर खड़े थे।

ओजल ने चींख का डोज और बढ़ा दिया। हर कांटे कैस्टर ऑयल के जहर से लिप्त थे और हर कोई गला फाड़ रहा था। ये पूरा नजारा एलियन के सिक्योर चैनल से रिले हो रहा था। कुछ देर के लिये आर्यमणि ने सबके मुंह में जड़ों को ठूंसकर पूरे माहौल को शांत कर दिया। उसके बाद लाइव स्क्रीन के सामने आकर साफ शब्दों में अपना संदेश दिया..... “तुम्हारे सारे नेता यहां किस हाल में मर रहे वो देख लो। हर एलियन का पंजीकरण लिस्ट पलक के पास है। उसकी टीम नागपुर से ऑपरेट कर रही है। जिसका नाम पुकारा जाये अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर सीधा इस प्लेनेट से रवाना हो जाना। बाकी पलक के पुकारने पर जो उपस्थित नही होगा उसे मैं सदा के लिये अनुपस्थित कर दूंगा। चलो सभा यहीं खत्म हुई।”

इतना कहकर आर्यमणि ने उनका लाइन डिस्कनेक्ट कर दिया और पलक से संपर्क किया। पलक और उसकी कोर टीम अंतर्ध्यान होकर पहले ही नागपुर प्रहरी वर्क स्टेशन पहुंच चुकी थी। पलक कनेक्ट होती.... “पूरा कहर का मंजर एक बार फिर सबको याद दिला दिये। आर्य तुमने तो कहा था कि हम बैठकर बात करेंगे, फिर अचानक ये फैसला कैसे ले लिये। 10 करोड़ पंजीकरण को क्या मैं 30 लोगों से देखूं। ऊपर से इतने सारे लोगों को बाहर निकालने के लिये विमान कहां है।”

आर्यमणि:– तुम्हे जितने लोग चाहिए और जिस कॉर्डिनेशन में चाहिए उतने लोग मिल जाएंगे। आराम से लिस्ट वेरिफिकेशन करो। 10 करोड़ नायजो के लिये मेरे पास उस से ज्यादा लोग है। बस जैसा ऋषि शिवम कहे वैसा मान लेना।

पलक:– साथ में ये भी कह दो की तुम्हारे पास 10 करोड़ विमान भी है।

आर्यमणि:– इतना विमान भी होता है क्या? खैर विमान की चिंता तुम क्यों करती हो, उसकी व्यवस्था कारेनाराय करेगा। यहां के पूरे आबादी को वो अपने प्लेनेट पर बसायेगा?

पलक:– भूल गये क्या, उसकी सबसे छोटी बीवी के साथ क्या किये थे?

आर्यमणि:– तुम कुछ भूल रही हो, यहां मैने किन लोगों को चिता पर लिटाया है, और एक जो जीवित मुखिया खड़ा है वह किस प्लेनेट का है।

पलक:– हां यार ये मैं कैसे भुल गयी। चलो फिर इन सबके साथ मैं भी पृथ्वी से चली। एक बात कहूं आर्य...

आर्यमणि उसे बीच में ही रोकते..... “तुम्हे मै खुद गुरियन प्लेनेट तक छोड़ आऊंगा। तुम इनके साथ नही जा रही। अब भावनाओ को काबू करो और करेनाराय से कॉन्टैक्ट करो।”...

बहुत ज्यादा इंतजार नही करना पड़ा। अगले एक मिनट में पलक, करेनाराय को स्क्रीन पर ला चुकी थी। जैसे ही वह स्क्रीन पर आया आंखों से शोले बरसा रहा था। हां जुबान बंद थी क्योंकि उसे पहली मुलाकात अच्छे से याद थी। तभी तो आज उसके स्क्रीन के पीछे अच्छी खासी भीड़ भी दिख रही थी।

कारेनाराय:– तुम जिंदा बच गये?

आर्यमणि:– इसे कहते है अनुशासन में बात करना। चल तुझे पहले मैं कुछ दिखाता हूं, फिर आगे बात करेंगे। ओजल....

इस बार जब ओजल नाम आया, निशांत जोर से चिल्लाते.... “कमीने हर बार ओजल, पैक में मेरा क्या एक ही रोल है। नही रहना मुझे अल्फा पैक में। मै अपस्यु का डेविल ग्रुप ही ज्वाइन कर लेता हूं।”..

आर्यमणि:– अरे माफ कर दे। तू ही ले आ उस नमूने को...

निशांत:– ये हुई न बात...

निशांत, विषपर प्लेनेट के मुखिया को स्क्रीन के सामने ले आया। जैसे ही स्क्रीन पर विषपर प्लेनेट का मुखिया आया, करेनाराय और उसके साथ सभी लोग सर झुकाते... “राजा बोजाज्स आप इनके साथ।”... अब वो राजा बोजाज्स हो या पोजाज्स, आर्यमणि सबके सामने उसे एक कराड़ा थप्पड़ मारते... “करेनाराय, एक बार फिर जरा अपने राजा का अभिवादन करो।”...

करेनाराय:– इस चूतिये को कहां से पकड़ लिये। ये मदरचोद मेरा सौभाग्य पत्थर लेने के लिये 5 बार मेरे गांड़ में डंडा कर चुका था। आर्य... माफ करना तुझे मैं आर्य पुकार सकता हूं ना..

आर्यमणि:– हां कह लो..

करेनाराय:– आर्य, मैने तेरा कुछ नही बिगाड़ा था और न ही इस चुतिया के किसी पचड़े में अपना कोई रोल है। हां मेरे ग्रह पर ये आबादी लाकर ठुस देता है, जिसे मैं स्वीकार करता हूं। इस मदरचोद के चमचे मेरे ग्रह से पृथ्वी नवजात का मांस खाने जाते और मदरचोद मेरा नाम खराब करते। दोस्त तूने मेरी बीवी को मारा वो मैं भूल जाऊंगा बस इसकी गांड़ मार लेना वहां। इस चुतिये के 2 लाख चमचों को तो मैं आज ही साफ कर दूंगा।

आर्यमणि:– कारेनाराय आज तुम्हारी भाषा अपने ही समुदाय के लोगों के लिये अलग है...

करेनाराय:– ये अकेला मदरचोद ही क्या पूरा नायजो है। खुद को शुद्ध खून कहने वाला ये ढीला लन्ड हवसी है।

आर्यमणि:– और तुम नही हो क्या?

करेनाराय:– तू बार बार मेरे पर क्यों आ जाता है। मैने केवल कुछ शादियां की थी। बीवी पुरानी हो गयी थी और नई वाली को पटाकर शादी किया था। कोई जबरदस्ती थोड़े ना किया था। अभी उसकी उम्र ही क्या थी। मार दिया तूने...

आर्यमणि:– अच्छा और वो जो आखरी वक्त कहा था, पृथ्वी के सारे मामले वही देखती है? तो क्या तेरी छोटी बीवी अजूर्म ने बच्चो को नही खाया था। इस मामले में मैने तो तेरा नाम भी सुना है...

करेनाराय:– हां वो अजुर्मी ने घोर पाप तो किया था। लगता है प्रेम मोह में मैं इस बात को नजरंदाज कर गया। या फिर बहुत से मदरचोदो के फितरत में ही बच्चे खाना है इसलिए अब ये बातें आम सी लगती है। किंतु ये इतनी भी आम बात नही। मै पृथ्वी से इसी चक्कर के कारण पीछा छुड़ाया था। पर कोई मुझ पर ये उंगली नही उठा सकता की मैं या मेरे जितने भी अनुयाई है उनमें से किसी ने बच्चे को खाया था। मर्द हूं सीना तान कर सामने से लडूंगा। एक क्षत्रिय परिवार मेरा वंशज था और इंसान मेरे कुटुंब। भुला नहीं मैं अब तक इस बात को।

आर्यमणि:– बातें बहुत हो गयी। अब मैं काम की बात करने जा रहा हूं। पृथ्वी से पूरी नायजो आबादी को हटा रहा। लगभग 10 करोड़ आबादी है। उनके लिये विमान भेजो।

करेनाराय:– 10 करोड़ में से तो 8 करोड़ इन्ही हुर्रीयेंट और विषपर प्लेनेट के चमचे होंगे। इतनी बागी आबादी को मैं कंट्रोल कैसे करूंगा, जबकि इसके मुखिया को तो मैंने अभी–अभी बेज्जत कर दिया। ये मैने क्या कर दिया? अब ये हुर्रीयेंट और विषपर प्लेनेट वाले भी मेरे पीछे पड़ जायेंगे।

आर्यमणि:– क्षत्रिय परिवार का फट्टू राजा, तू खुद नही किसी दूसरे प्लेनेट से लड़ सकता है क्या? तुझे कितनी सैन्य सहायता चाहिए..

करेनाराय:– “दूसरे के सैनिक दूसरे के ही होते हैं जैसे ये विषपर का गलिच राजा बोजाज्स। 2 लाख सैनिकों को लगभग 70 साल पहले भेजा था। वह आज हमारे हर मामले में टांग उठाकर माथे पर मूतता है। पूरा शासन मैं देखता हूं लेकिन सैन्य मामले में उनकी न सुनो तो अपने बाप को फोन लगायेगा और वहां का एक चपरासी मुझे धमकाता है कि बात मान लो वरना राजा के कान में बात गयी तो मामला बिगड़ जायेगा।”

“ऐसे ही वाणिज्य हो या फिर अन्य कोई मामले। हर मामले को देखने के लिये इन लोगों ने अपने आदमियों को रखा है। हर किसी को घी से नहला दिया। मखमल के बिस्तर पर सुला दिया। हर सुख सुविधा को दिया फिर भी वफादारी नही बदली।”

आर्यमणि:– कारेनाराय बहुत दिमाग चाट रहा है। महा कैदियों की नगरी से इस लाइन को कनेक्ट करो और वहां तक करेनाराय की आवाज पहुंचाओ...

करेनाराय:– ये नवी लड़की कौन है आर्य... प्रिय मैं आपको नजरंदाज करने की गुस्ताखी कैसे कर सकता हूं? आप बस एक बार मुस्कुरा दे तो मैं अपना राज–पाट सब आपके हवाले कर दूं। इतनी सारी बाला की खूबसूरत महिलाओं से मिल चुका हूं। पर तुम्हारी काया की जो माया है...

ओजल:– बस कर ठरकी, जितनी तुम्हारे ग्रह की आबादी है, उस से कहीं ज्यादा तो ये कैदियों को पाल रही। जरा होश में...

महा:– पतिदेव कनेक्ट कर दी हूं। इस गधे से कह दो दोबारा मेरे लिये ऐसे शब्द कहेगा तो मैं इसे चीड़ दूंगी...

आर्यमणि:– कारेनाराय अगली बार जरा संभलकर। लो देख लो कैदियों को। ये सारे कैदी किसी वक्त के यूनिवर्स ट्रेवलर्स रहे थे। किसी कारणवश ये सब मरने वाले थे और उनकी जान यहां के राजा ने बचाई। बदले में ये लोग उनका काम करते है। तुम्हारी आवाज ये सुन सकते हैं। इन्हे भरोसा दो की तुम इन्हें घर और इज्जत से जीने की आजादी दोगे और बदले में ये तुम्हे अपनी वफादारी देंगे..... दो भरोसा और ले लो वफादारी...

करेनाराय:– ये तो खजाने का पता बता दिया भाई। जिस साम्राज्य के पास इतने कैदी है उनके पास सैनिक कितने होंगे। माफ करना कुछ गुस्ताखी हुई हो तो।

आर्यमणि:– तुम्हारी बकवास वो कैदी सुन रहे है। अपनी बात कहो कारेनाराय।

करेनाराय:– तुम सब ने बहुत ज्यादा कैद झेल लिये। मै वादा करता हूं कि तुम हमारे प्रदेश के स्वतंत्र नागरिक होगे, लेकिन बदले में तुम्हे शासन के प्रति जिम्मेदार और अनुशासित होना होगा। क्योंकि बिना कीमत आजादी नहीं मिलती। राष्ट्र हित में जो जरूरी काम है तुम्हे वही कहूंगा करने। न तो गलत काम करता हूं और न ही गलत काम करने कहूंगा। कहूंगा तो सिर्फ इतना ही की जो भी हमारे राष्ट्र के दुश्मन है और वो जो मुझे हराकर तुमसे एक बार फिर तुम्हारी आजादी छीनना चाहते है, उनके सर धर से अलग कर दो। बस तुम्हारी आजादी की इतनी सी जायज कीमत है। जो भी ये कीमत देना चाहते हो, वो तैयार हो जाये। जल्द ही सबको निकाल लूंगा।

आर्यमणि ने इशारा किया और लाइन डिस्कनेक्ट हो गयी। करेनाराय खुश होते..... “क्या बात है आर्य। साला पानी के अंदर के साम्राज्य में भी तेरा कॉन्टैक्ट। और ये इतने सारे एलियन वहां कैद कैसे हो गये।

आर्यमणि:– हर बात तुम्हे आज ही जाननी है क्या? 15 करोड़ लोगों को उठने के लिये विमान भेजो।

करेनाराय:– बस एक आखरी सवाल। इस घोंचू राजा बोजाज्स का क्या करने वाले हो?

आर्यमणि:– “ये हमारा कैदी होगा और इसकी बेटी माया को मैं एक दिन का वक्त दूंगा। उस एक दिन में वो जहां से मदद बुला सकती है बुला ले... उस माया और उसकी पूरी मदद को मैं एक साथ जमीन के नीचे गाड़ दूंगा ताकि कोई नायजो दोबारा पृथ्वी पर अपनी बुरी नजर न डाले।”

“जब ये सारा कांड खत्म हो जाएगा, फिर जैसा की मैने पलक से वादा किया था उसे खुद गुरीयन प्लेनेट तक छोड़कर आऊंगा, सो मैं 10 से 15 दिनो में तुमसे भी मिलने पहुंच रहा हूं।”

करेनाराय:– स्वागत है तुम्हारा भेड़िया राजा... तुम आओगे तो लगेगा सुदामा की कुटिया में भगवान कृष्ण पधारे है।

आर्यमणि:– चलो लाइन डियाकनेक्ट करता हूं, अभी बहुत से काम बाकी है।

करेनाराय का लाइन डिस्कनेक्ट हुआ और आर्यमणि ने सीधा माया से संपर्क किया.... “सबको मार डाले।”...

आर्यमणि:– सबको अभी मारा कहां है। अभी तो सब चिता पर लेटे है। देखो पीछे का नजारा...

माया:– दर्द की चिता। इस से अच्छा तो मार ही देते।

आर्यमणि:– मुझे मारने की ज़रूरत नही, 8 घंटे के बाद अपने आप मरना शुरू हो जायेंगे। तू अभी लोकाका आइलैंड पर ही है ना। जहां से भी मदद बुला सकती है बुला ले। तेरा बाप जिंदा है और एक दिन बाद, यानी कल को छोड़ परसो, जहां भी लड़ने की इच्छा हो बता देना। तेरे बाप को लेकर पहुंच जाऊंगा। हां पर तेरे बाप को जिंदा रखने की एक ही शर्त है, अपने दोस्तों को भी साथ लाना। किन्हें वो तो तुम्हे पता ही होगा।

माया:– तू मेरे बाप को रख ले। लोकका आइलैंड का भी सर्वनाश कर दे। मै और मेरे सभी दोस्त, दोस्तों हाई कहो आर्यमणि को...

स्क्रीन के सामने सभी कातिल लाइन लगाकर हाई करने लगे। माया उन सबका चेहरा दिखाने के बाद.... “हम सब विषपर आइलैंड जा रहे। अब मेरे बाप को मार दे या कैद में रख घंटा फर्क नही पड़ता। वैसे भी अपने परिवार में मैं अकेली बची इसलिए जा रही हूं अपना देश संभालने। तू रोज रात को अपनी नई बीवी के साथ घंटा हिलाकर सोचते रहना की मैं अपना बदला कैसे लूं।”
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भाग:–178


स्क्रीन के सामने सभी कातिल लाइन लगाकर हाई करने लगे। माया उन सबका चेहरा दिखाने के बाद.... “हम सब विषपर आइलैंड जा रहे। अब मेरे बाप को मार दे या कैद में रख घंटा फर्क नही पड़ता। वैसे भी अपने परिवार में मैं अकेली बची इसलिए जा रही हूं अपना देश संभालने। तू रोज रात को अपनी नई बीवी के साथ घंटा हिलाकर सोचते रहना की मैं अपना बदला कैसे लूं।”

इतना कहकर माया ने लाइन डिस्कनेक्ट कर दिया और आर्यमणि सोच में.... "ये एलियन पहले इतने चालाक तो नही थे, कोई इन्हे चालाकी की ट्रेनिंग दे रहा है क्या?”....

निशांत:– ये क्या था रे.... इसने तो पूरे प्लान की वाट लगा दी। क्यों बे चुतिया राजा, ऐसी बेगैरत औलाद...

राजा बोजाज्स:– एक बार मुझे विषपर की सीमा तक पहुंचा दो, उसके बाद तुम्हारे सारे दोषियों को मै तुन्हे सौंप दूंगा और वादा करता हूं पृथ्वी पर फिर कोई नायजो नही बसेगा...

निशांत:– चल इसे लेकर, अब ये जगह बोरिंग लगने लगी है।

आर्यमणि:– ओजल आग लगाओ सबको और यहां की कहानी सामेटो। 8 घंटों तक इन्हे देखने का धैर्य न रहा।

बिना वक्त गवाए ओजल पूरे मैदान में आग लगा चुकी थी। पूरा कारवां निकला। आर्यमणि अपने साथ उन लोगों को भी लेता गया जो इस शादी में आमंत्रित तो थे, लेकिन उन्हें ज्ञान नही था की वो किसी एलियन की शादी में शरीक हो रहे है। थे तो इंसान ही और उन सब के लिये ये सब पचा पाना काफी मुश्किल था। बाहर ही संन्यासियों के साथ परिवार के लोग भी थे, जो अंदर की भीषण हिंसा को देख नही पाए और बाहर आ गये थे।

आर्यमणि ने ओजल को इशारा किया और वह सबको लेकर बीच के ओर बढ़ने लगी। इधर आर्यमणि करीब 30 इंसानों को रोक हुये था। वो लोग कुछ हिम्मत करके आर्यमणि से खुलने की कोशिश कर रहे थे। थे तो सभी बड़े ओहदे वाले और पहुंच वाले लोग, लेकिन बिना बॉडीगार्ड और अपनी सुरक्षा के थर–थर कांप रहे थे।

आर्यमणि:– सुनो तुम सब... मुझे ये बताने की कोई जरूरत नहीं की कौन क्या है? और न ही दिमाग पर जोर डालो की यहां क्या हुआ? चुपचाप मेरे साथ चलो, तुम सबको मैं भारत छोड़ आऊंगा। कोई भारत के बाहर का है क्या यहां?

एक हाथ उठा और कांपते होटों से कहा.... “सर मैं साउथ कोरिया से हूं।”...

आर्यमणि:– ठीक है तुम्हे साउथ कोरिया छोड़ दूंगा। अब सब मुंह बंद करके चुपचाप चलेंगे...

सब बीच तक पहुंचे। बीच पर पहले से गहमा–गहमी। अचानक वहां क्रूज कहां से आ गया। गायब होकर जाने के बदले क्रूज से क्यों जाना। वैगराह वैगरह... आखिरकार सब क्रूज पर सवार हुये। जो 30 इंसान को आर्यमणि निकाला था, उन सबको ट्रेनिंग एरिया में पैक करके, सबको बेहोश कर दिया और उनकी यादें में फेर बदल कर दिया। दक्षिण कोरिया वाले को उसके बेडरूम तक छोड़ भी आया।

सारा काम समाप्त करने के बाद आर्य डेक पर आया, जहां सभी लोग बैठे हुये थे। आर्यमणि को सबसे पहले भूमि, केशव और जया ने ही पकड़ा। अब तक जिन बातों पर चर्चा नही हुई थी, उन्ही बातों पर चर्चा होने लगी। आर्यमणि जिंदा कैसे बचा और वो 4 साल तक कर क्या रहा था। आर्यमणि ने विस्तारपूर्वक सबके दुविधा को दूर किया।

आक्रोशित तो सभी थे, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बना की कैसे माया, निमेषदर्थ और हिमा को लेकर दूर भाग गयी? उन्हे इतनी आसानी जाने कैसे दिया? जब यह चर्चा चल रही थी तब चौथे साथी का भी नाम आया... योजना मे तो चार लोग थे, यहां भागे केवल 3 लोग है, ये चौथा कौन है?

आर्यमणि कुछ देर मौन रहकर बोलना शुरू किया..... “मैं निमेषदर्थ की यादों में था और वहां इनका चौथा साथी बी–वूमेन थी। बी–विमेन अपने मधुमक्खी के स्वरूप में नही थी बल्कि एक होस्ट बॉडी उसके पास थी।”..

सभी एक साथ.... “किसकी होस्ट बॉडी?”..

आर्यमणि:– ओशुन...

सब चौंकते हुये.... “क्या ओशुन?”..

आर्यमणि:– हां ओशुन... जिस दिन मैंने ओशुन को मैक्सिको में कैद से छुड़ाया था, वह बी–विमेन भी उसी दिन शायद ओशुन के शरीर में घुसी थी। वह लगातार हमारे आस–पास रही और मेरे खिलाफ साजिश रचती रही। आखिरकार वो कामयाब भी रही। वो पृथ्वी छोड़कर कहीं जा नही सकती। उसे हम बाद में देखते है। उसके पास मेरा एक साथी भी है... उसे भी तो सही सलामत वापस लाना है।

भूमि:– और अभी जो ये माया भागी है, उसका क्या? कल से तो पृथ्वी भी खाली हो जायेगी, फिर क्या कर लोगे। ये तुम्हारे मुंह पर नही बल्कि हमारे पूरे समाज के मुंह पर तमाचा मारकर भागे है।..

“दीदी बातें होती रहेगी, पहले आप लोग खाना खा लीजिए। ओजल बेटा तू साकाहारी वालों को अलग बिठाकर परोस।”... महा, खाना की थाली डॉक पर लगवाती हुई कहने लगी।

भूमि:– अरे कहां से इसे पकड़कर लाया है, हर वक्त खाने के पीछे पड़ी रहती है। महा, बस करो हम यहां कुछ जरूरी डिस्कस कर रहे।

महा:– सुनो जी आप ही मुखिया हो ना... चलो उठो और आपके खाने की व्यवस्था दूसरी तरफ की हूं, उधर जाकर बैठ जाओ। दीदी, आपको भूख लगी है इसलिए आप इतनी चिढ़ी हुई है। पहले खाना खा लो, फिर इत्मीनान से बात होगी। मां आप नॉन वेज लेती है या नही।

जया:– हां लेती हूं महा.. और तुम्हारे पापा भी लेते है।

महा:– और कोई है क्या नॉन–वेज वाले...

जया:– तुम हमारे साथ बैठ रही या आर्य के साथ।

महा:– पहले आप सबको खिला दूं, फिर मैं खा लूंगी। जबसे विवाह हुआ है मैं भी वेज हो गयी हूं।

भूमि:– वेज होकर नॉन–वेज परोस रही हो?

महा:– कोई आपत्ति नहीं है दीदी। आप खाओ न...

केशव:– सुन आर्य..

आर्यमणि:– हां पापा..

केशव:– तूने बेटा 3 गर्लफ्रेंड बनाई। 2 शादी भी रचाई लेकिन इस निशांत को क्या हुआ... अब भी सैंडल ही खा रहा है क्या?

निशांत:– सब आपकी मेहरबानी है अंकल... आपके ही गुरु ज्ञान ने मुझे अब तक अकेला रखा है।

ओर्जा:– ज्ञान के कारण अकेले रह गये, भला ये किस प्रकार का ज्ञान था?

“ये कौन”... “ये कौन”... “ये कौन”... केशव, जाया और भूमि तीनो ने ऋषि शिवम के साथ प्रकट हुई लड़की के विषय में पूछने लगे।

आर्यमणि:– सात्विक गांव के स्थापना के समय तो तीनो वहीं थे। फिर भी किसी को नही पता की ये कौन है?

तीनो ने एक जैसा प्रतिक्रिया और एक जैसा जवाब.... “नही पता।”..

आर्यमणि:– ओर्जा तुम ही अपना परिचय दो।

ओर्जा:– बाकी की लंबी कहानी है। संछिप्त में कहूं तो मैं निशांत की गर्लफ्रेंड हूं।

केशव:– गर्लफ्रेंड मतलब टाइम पास वाली गर्लफ्रेंड या कोई सीरियस कमिटमेंट है?

ओर्जा:– टाइम पास और सीरियस का मतलब मैं समझी नहीं। निशांत मेरी सच्ची चाहत है। उसी ने बताया की जबतक गठबंधन नहीं होता तब तक मैं इसकी गर्लफ्रेंड रहूंगी। और जब गठबंधन हो जायेगा तब पत्नी। लेकिन ये सीरियस और टाइम पास के बारे में कुछ नही बोला। बताओ ना निशांत...

महा:– खाते समय ज्यादा बोलते नही। इसलिए वो चुप है। वो पृथ्वी पर ऐसे ही लोग सीरियस और टाइम पास पूछ लेते है। तुम निशांत जी की भी सच्ची मोहब्बत हो, यकीन न हो तो उसके दिमाग में झांक लो...

ओर्जा:– सच्ची चाहत को कभी परखते नही वरना हमेशा अन–बन लगा रहता है। छोड़ो ये सब। मुझे भी कुछ खिलाओ... खाने की बड़ी अच्छी खुशबू आ रही...

महा, ओर्जा को अपने साथ ले गयी और दोनो साथ बैठकर आराम से खाने लगे। इधर जबतक दिमाग में झांकने के ऊपर चर्चा चलने लगी। ओर्जा, अल्फा पैक की आखरी सदस्य थी।

यदि ओर्जा के ओरिजिन की बात करे तो वो ब्रह्मांड के एक विलुप्त पराक्रमी समुदाय विगो समुदाय की थी। अपने उन्नत टेक्नोलॉजी और विकास ने इस कदर इस समुदाय को घमंड से चूर किया की स्वयं ही अपना विनाश कर बैठे। ब्रह्मांड में विगो का खौफ इतना था कि दूसरे ग्रह वासियों ने इनका क्लासिफिकेशन तक कर दिया था। विगो सेकंड क्लास, फर्स्ट क्लास, विगो फर्स्ट क्लास अल्फा, और सबसे आखरी में था विगो सिग्मा।

खैर जब विगो के ग्रह का विनाश हुआ तब कुछ विगो जीवित बच गये जो ब्रह्मांड के विभिन्न ग्रह पर किसी सरनार्थी की तरह रहते थे। बात करे यदि ओर्जा की तो वो डार्क यूनिवर्स के कोर प्लेनेट से आयी थी। ओर्जा किन हालातों में भागी और भागने के दौरान क्या उत्पात मचाकर भागी थी यह तो सब जानते थे। लेकिन ऐसा तो था नहीं की अष्टक चुप बैठता।

ओर्जा वैसे पृथ्वी पर तो पहुंच चुकी थी, लेकिन उसके पीछे 2 आफत हाथ धो कर पीछे पड़ी थी, जो डार्क यूनिवर्स से ओर्जा की तलाश में निकले थे... मेसा और हेला... यूं तो दोनो ओर्जा के सौतेले भाई बहन थे। एक ही मां से जन्मे पर पिता अलग–अलग। हेला और मेसा, अस्टक के वंशजों में 2 ऐसा नाम थे जो अस्टक के बाद साम्राज्य चलाने के लिये सक्षम थे।

हेला के अंदर विशेष प्रकार की शक्ति थी जिस वजह से उसका पूरा शरीर, शारीरिक संरचना के मूलभूत आधार यानी की कोशिकाओं में टूट जाती थी। असंख्य कोसिका हवा में विलीन होकर अपनी मर्जी से किसी भी दिशा में जा सकती थी। उसकी हर कोशिकाओं में हेला का पूर्ण दिमाग बसता था और कोई एक कोशिका भी किसी के शरीर में घुस गया फिर वह महज एक मिनट में अंदर, शरीर के पूरे सिस्टम को ही निगल कर बाहर निकलता था।

हेला के साथ आया मेसा भ्रम का स्वामी माना जाता था। वह एक ही वक्त में अपने 1000 शरीर को दिखा सकता था और उसका हर भ्रमित शरीर उतना ही क्षमतावान था, जितना मेसा। इसके अलावा मेसा का शरीर भी कोशिकाओं में टूट सकता था, किंतु वह हेला जितनी क्षमतावान नही थी। इसका ये अर्थ नही था कि उसकी कोशिकाएं तांडव नही मचा सकती थी।

2 जहरीले फन हेला और मेसा, अपने साथ अनोखी और विध्वंसक शक्तियों वाले 10 लाख वंशज फौज के साथ, ओर्जा को ढूंढने के लिये निकले थे। इन सभी पर ओर्जा को पकड़कर कोर प्लेनेट तक पहुंचाने की जिम्मेदारी थी और कोई बीच में आया तो उसके प्लेनेट को उजाड़कर ओर्जा को ले जाने का दम–खम रखते थे।

यात्रा के दौरान निश्चल और ओर्जा की दोस्ती भी हुई। वहीं निश्चल को पता भी चला की ओर्जा उसी की तरह एक विगो है। बस ओर्जा एक क्लासीफाइड विगो थी, जिसकी शक्तियों के बारे में सबको पहले से पता था। जबकि निश्चल एक अनक्लासिफाइड विगो था, जिसकी शक्तियों का पूर्ण आकलन किसी के पास नही था। वैसे विगो क्लासीफाइड हो या अनक्लासिफाइड, ब्रह्मांड के दूसरे ग्रह वाले विगो नाम सुनकर ही अपने कदम पीछे हटा लिया करते थे।

2 विगो एक साथ पृथ्वी तक तो पहुंचे लेकिन ओर्जा, निश्चल के समस्या और समाधान के बीच से खुद को किनारे कर ली और जा टकराई अपस्यु से। अपस्यु फिर उसे लेकर कैलाश मार्ग मठ पहुंचा। जहां उसकी टेलीपैथी की शक्तियों को ही नही निखारा गया, बल्कि उसकी शारीरिक और मानसिक शक्ति को पूर्ण विकसित भी किया गया।

ओर्जा इस से पहले कभी सांसारिक जीवन को देखी ही नही थी, इसलिए हर मजेदार चीज को समझने के लिये उतनी ही जिज्ञासु रहती थी। अल्फा पैक जब यात्रा पर निकल रही थी तब ओर्जा को आर्यमणि ने ही रोका था। ओर्जा कैसे खुद को छिपाकर रखे उसपर मंथन और टेस्ट दोनो ही चल रहा था।

जैसे ही ओर्जा का टेस्ट समाप्त हुआ, अपस्यु ने ऋषि शिवम् को बुला लिया। ऋषि शिवम को समझा दिया गया की क्यों ओर्जा को छिपाकर रखना है। पूरी कहानी और चल रहा माहौल की बारीकियां आर्यमणि तक पहुंच चुकी थी।

ओर्जा, अपस्यु के साथ रहती तो वहां न सिर्फ अपस्यु के साथ खतरा बना रहता, बल्कि जिस काम को पूरा करने के लिये कई खतरों को उठाया गया था, जीविषा और निश्चल की खोई यदास्त को दुरुस्त करना, वह काम बीच में ही अटक जाता। और यदि कहीं ये काम बीच में अटकता, फिर तो समस्त ब्रह्माण्ड विनाश की नई कहानी को उदय होते हुये देखता।

यही एक वजह भी रही थी कि जब ओर्जा और निश्चल एक साथ पृथ्वी पहुंचे, तब ओर्जा को निश्चल से अलग कर दिया गया था। एक तो निश्चल और जीविषा पहले से ही दुश्मनों के नजर में थे, ऊपर से अभी एक और नए दुश्मन को अपस्यु नही संभालना चाह रहा था, इसलिए निश्चल से दूर करने के बाद पहले 3 माह तक ओर्जा को कैलाश मठ में प्रशिक्षित किया गया। उसके बाद सात्विक गांव में छिपकर रहने कहा गया था।

आर्यमणि की झलक देखकर सबसे ज्यादा अपस्यु ही खुश हुआ था। जो वर्तमान परिस्थिति थी, उसमे अपस्यु को एक मजबूत और भरोसेमंद साथी की अति आवश्यकता थी। और आर्यमणि तो इन पैमानों से कहीं ज्यादा ऊपर था।

खैर क्रूज पर माहौल ही पूरा उबासी ले रहा था। महा के हाथ का मजेदार खाना खाने के बाद सबको बिस्तर की ही याद आयी। हर कोई महा की तारीफ करते नही थक रहे थे। खाना खाने के अल्प विराम के बाद एक बार फिर महफिल सजी और आगे की रणनीति तय होने लगी। भगोड़े दोषियों का क्या किया जाये और उसे कैसे पृथ्वी पर वापस लाकर सजा दी जाये, इसपर विस्तृत चर्चा शुरू हुई।

महा:– आप सबके बीच मैं सबसे नई हूं, फिर भी कुछ कहना चाहती हूं...

ओर्जा:– देखा जाये तो मैं सबसे ज्यादा नई हूं पर मुझे कुछ नही कहना...

निशांत:– क्यों नही कुछ कहना... जो भी ख्याल आ रहा हो, बेझिझक कहो...

ओर्जा:– मुझे तो बस सच्ची मोहब्बत की छाप चाहिए। जानू मुझसे कब गठबंधन कर रहे हो?

आर्यमणि:– निशांत एक काम क्यों नही करते, किसी कोपचे में जाकर तुम दोनो गठबंधन क्यूं नही कर लेते, जब तक हम अपना काम करते हैं।

निशांत:– चलो ओर्जा, यहां हमारी जोड़ी से बहुत लोग जल रहे है।

ओर्जा:– मैं क्यूं जाऊं, मुझे यहां बैठकर रणनीति सुननी है।

आर्यमणि:– जल्दी भाग फिर मैं काम की बात करूं। फालतू की बात में सबको उलझा रखा है।

निशांत:– हां मैं तो फालतू की बात कर रहा हूं, काम की बात तो तेरी बीवी करने वाली है ना... चलो ओर्जा यहां नही रुकना..

ओर्जा:– ना ना निशांत यहां रुकते है। महा तुम कहो...

महा:– गलती मेरी ही है जो मैं नए पुराने में फंसी। मै तो बस यह कहना चाह रही थी कि विषपर प्लेनेट का राजा इतनी आसानी से अपने चंगुल में कैसे आ गया? एक पूरे ग्रह का राजा इतना कमजोर...

आर्यमणि:– सारी बातें ध्यान में है महा। न सिर्फ विषपर प्लेनेट के राजा पर शक है, बल्कि करेनाराय पर भी शक है।

ओर्जा:– विषपर प्लेनेट का राजा मसेदश क्वॉस है। वह अपनी सेना तैयार कर रहा है। माया अभी रास्ते में है लेकिन वह विषपर प्लेनेट नही जा रही, बल्कि गुरियन प्लेनेट जा रही है। माया के साथ निमेष और हिमा दोनो है। मुख्य साजिशकर्ता विवियन एक राजकुमार है, जो मुख्य योजनाकर्ता था और हमेशा खुद को छिपा कर रखता है। विवियन इस वक्त पृथ्वी पर ही है, रानी मधुमक्खी चीची के साथ। वो खंजर जिस से सबकी हत्या हुई थी वह विवियन के पास ही है और वह किसी से खंजर के विषय में बात कर रहा है।

आर्यमणि:– ओर्जा क्या तुम अभी टेलीपैथी करना बंद करोगी...

ओर्जा:– मैं उन सबको देख सकती हूं। नायजो एक खतरनाक समुदाय है। गुरियन प्लेनेट पर आर्य के मौत की योजना बन रही है। निमेष माया से कह रहा है कि कैदियों की फौज को अकेला वो सम्मोहित कर लेगा।....... नही आर्यमणि नही... तुम मेरे सेंसेज कैसे ब्लॉक कर सकते हो?
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Tri2010

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भाग:–179


ओर्जा:– मैं उन सबको देख सकती हूं। नायजो एक खतरनाक समुदाय है। गुरियन प्लेनेट पर आर्य के मौत की योजना बन रही है। निमेष माया से कह रहा है कि कैदियों की फौज को अकेला वो सम्मोहित कर लेगा।....... नही आर्यमणि नही... तुम मेरे सेंसेज कैसे ब्लॉक कर सकते हो?

दरअसल बातों के दौरान ही ओर्जा अपने दिमागी तरंगों को पूरे फैलाते माया के उस विमान तक पहुंच गयी, जहां उसकी बात विषपर के वास्तविक राजा मसेदश क्वॉस से चल रही थी। उन्ही दोनो के वार्तालाप से पता चला था कि दरअसल विवियन असली राजकुमार है, जो खुद को छिपा कर रखे हुये था। ओर्जा अपनी दिमागी तरंगों से एक साथ सभी सभी जगह पर पहुंच चुकी थी और वो सबकी बातें सुन रही थी। ओर्जा ने जब आर्यमणि की बात नही मानी तब आर्यमणि ने उसके तरंगों को ही ब्लॉक कर दिया।

ओर्जा के गुस्से भरे भाव को आर्यमणि शांत करते..... “ओर्जा तुम्हारी दिमागी तरंगे कमाल की है। किंतु तुम जिस महल में रहती थी, वह जगह तुम्हारे दिमाग को उस नुकसान से बचाए रखती थी, जो तरंगों को ब्रह्मांड में फैलाने के कारण होती। लेकिन महल के बाहर तुम्हारे दिमाग पर इसका काफी असरदार प्रभाव पड़ता है। याद रहे बहुत ज्यादा जरूरी हो तभी अपनी टेलीपैथी की शक्ति का इस्तमाल करो। यदि टेलीपैथी इतनी ही आसान होती तो हम सब हर पल अपने दुश्मनों के दिमाग में ही रहते।

ओर्जा:– समझ गयी। लेकिन क्या मेरी मेहनत बरबाद गयी। क्या मैने एक भी काम की सूचना नही दी।

आर्यमणि:– ये सूचना तो काफी कमाल की थी। और जैसा की मुझे अंदेसा था, शायद वही होने वाला है।

ओर्जा:– क्या होने वाला है...

आर्यमणि:– अल्फा पैक एक पूरे प्लेनेट के विरुद्ध लड़ेगी। नायजो से लड़ना इतना आसान नहीं होगा और ये तिलिस्मी लोग बहुत जानकार होते है। खासकर इनका पत्थर और जड़ी–बूटियों का ज्ञान कमाल का है। मेरी जब भी इनसे टक्कर हुई है, पुराने हमलों के साथ–साथ कुछ नया और घातक हमला करते है।

ओजल:– हम जिंदा रहेंगे तभी हमारा बदला भी जिंदा रहेगा। चंद लोग कितने भी ताकतवर क्यों न हो, एक पूरे प्लेनेट से नही जीत सकते। जबकि 5 लोगों ने मिलकर हमारे 3 लोगों की जान पहले ले चुके है। बॉस आपकी भी जान लगभग जा ही चुकी थी।

महा:– उन्हे ऐसे तो नही छोड़ सकते है। अब जो होगा सो देखा जायेगा... यदि कोई नही भी गया तो भी मैं निमेष और हिमा के पीछे गुरियन प्लेनेट तक जाऊंगी।

ओजल:– सब पागल है यहां... पर लगता है, इस पागलपन में मजा आने वाला है।

आर्यमणि:– खतरा ज्यादा है और जीत की उम्मीद कम। जो छोड़कर जाना चाहते है वो अभी चले जाये। खासकर ओर्जा और निशांत तुम दोनो... अभी–अभी दोनो में प्यार हुआ है।

ओर्जा:– अभी–अभी प्यार हुआ से क्या मतलब है। निशांत साथ आना न चाहे तो भी मैं आऊंगी। वैसे भी विगो कभी पीछे हटते नही।

निशांत:– अरे आर्य ताने मार रहा था बस। उसे भी पता था कि हम साथ चल रहे है।

आर्यमणि:– नही मै सीरियस था। तुझे कितनी मेहनत के बाद एक कड़क लड़की मिली है, उसके साथ अभी दिन ही कितने बिताए होंगे।

निशांत:– ज्यादा मजा मत ले, पलक इंतजार में होगी। उसे बताएगा की कैसे नायजो को पृथ्वी से भेजेगा...

आर्यमणि:– शिवम सर आप महा के साथ पलक के पास जाइए। महा तुम्हे पता है ना क्या करना है?

महा:– बिलकुल पतिदेव, मुझे पता है।

ऋषि शिवम्:– लेकिन मुझे पता नही की मुझे क्या करना है?

आर्यमणि:– माफ कीजिए ऋषिवर, आप ही कहिए। आप जो कहेंगे वही होगा।

ऋषि शिवम्:– मैं पूरी अल्फा टीम को लिये जा रहा हूं। बाकी आप देख लीजिए..

आर्यमणि:– हम्मम ठीक है लिये जाइए... बाकी मैं देख लूंगा... ये भी सही है..

ऋषि शिवम सबको लेकर सीधा नागपुर अंतर्ध्यान हो गये। सभी लोगों को छोड़कर वह वापस क्रूज पर आये। आर्यमणि, ऋषि शिवम के देख मंद–मंद मुस्कुरा रहा था। ऋषि शिवम भी जवाब में मंद–मंद मुस्कुरा रहे थे।

ऋषि शिवम्:– आपके जीवन में 4 साल का बड़ा महत्व है ना। जब भी गायब हुये इतने ही वक्त के लिये गायब हुये और पीछे कई राज छोड़ गये।

आर्यमणि:– ऋषिवर विश्वास कीजिए इस बार नियति अपना खेल खेल गयी और जितनी बातें आपको राज दिख रही, इस समय वह मेरे लिये किसी घोर षड्यंत्र कम नही। सामने से तो निमेष, माया, और मधुमक्खी रानी चिची ही अल्फा पैक का शिकर कर रहे थे। साजिश भी इन्ही लोगों की थी। लेकिन अल्फा पैक का शिकर मात्र इनके मामूली सी साजिश में हो जाये असंभव था। साजिश के पीछे साजिश चल रही थी और अल्फा पैक गहरी षड्यंत्र का शिकर हो गया।

ऋषि शिवम्:– क्या था वह गहरा षड्यंत्र, और किसने रची थी ये षड्यंत्र?

आर्यमणि:– कभी “सम्पूर्ण मायाजाल सिद्धि द्वार” का नाम सुना है?

ऋषि शिवम्:– नाम से तो किसी प्रकार के भ्रम जाल फैलाने की पद्धति लगती है। अंदाजा ही लगाया है, बाकी इसके बारे में मुझे कोई जानकारी नही।

आर्यमणि:– सम्पूर्ण मायाजाल सिद्धि द्वार, को मैं भी आपके जितना ही मानता, लेकिन मेरे पास जादूगर महान की यादें थी और उन यादों में सम्पूर्ण मायाजाल सिद्धि द्वार का उल्लेख था। संपूर्ण मायाजाल सिद्धि द्वार क्या है और इसका प्रयोग कौन कर रहा था, उस पर चर्चा करने पहले मैं बता दूं कि यदि निमेष ने सबको नागलोक के भू–भाग पर सेफ पैसेज नही दिया होता, तो आज मेरा पूरा पैक मेरे साथ होता। नाग लोग की भूमि पर उसका आना पूर्ण प्रतिबंधित था।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव अब विषय पर आ भी जाइए। साजिश के पीछे षड्यंत्र करने वाला कौन था, और क्या था ये सम्पूर्ण मायाजाल सिद्धि द्वार, जिसने आप जैसे सशक्त योजना बनाने वाले को मात दे दिया?

आर्यमणि:– यह पूरा षड्यंत्र रीछ स्त्री महाजनिका और उसके सेवक तांत्रिक आध्यात ने रचा था। सम्पूर्ण मायाजाल, भ्रम और मायावी दृष्टि की वह मायाजाल है, जिसमे किसी जगह विशेष को ही पूरा का पूरा मायावी बना देता है। संपूर्ण मायाजाल के क्षेत्र में जैसे ही कोई कदम रखता है, उसकी पूरी जानकारी मायाजाल के रचना करने वाले तक पहुंचती है। वह मायाजाल में फसे जानवर तक के मन की बात को पढ़ सकता है और मन के भीतर कोई भी ख्याल डाल सकता है। यूं समझिए की बिना आपकी जानकारी के, बिना आपको किसी भी प्रकार से भ्रमित किये वह आपकी आत्मा तक पर काबू पा लेता है।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव तो क्या आत्मा योजन या फिर संपूर्ण चेतना से इसे काटा नही जा सकता था?

आर्यमणि:– सम्पूर्ण मायाजाल की रचना यदि हो गयी हो तो आप अपने पहले कदम रखते ही मायावी दुनिया में पहुंच जाते हैं। वहीं जब तक आप मायाजाल के क्षेत्र में पहला कदम नहीं डालेंगे, बाहर से देखने पर कुछ पता ही नही चलेगा। अब बताइए की इसका काट भी किसी के पास हो तो क्या वो इस सम्पूर्ण मायाजाल के सम्मोहन से खुद को बचा सकता है क्या?

ऋषि शिवम्:– फिर इस सम्पूर्ण मायाजाल से निकलने का तरीका? क्योंकि इस से निकलने का तरीका न मिला तो हमारे दुश्मन हम पर सदा हावी रहेंगे...

आर्यमणि:– जादूगर महान की याद से मुझे संपूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार का पता चला तो वहीं योगियों की सभा से मुझे इस मायाजाल से निकलने का तरीका मिला। योगियों के गुरु पशुपतिनाथ जी ने जब संसार का त्याग किया था, तब जाते–जाते मुझे अपना सारा ज्ञान देकर गये थे। उनका अपना एक विशेष सुरक्षा तकनीक थी जिसके अनुसार.... “आत्मा योजन की सिद्धि से आत्म के छोटे से टुकड़े को विभाजित कर चारो ओर का सुरक्षा जायजा करने खुला छोड़ दे। यह युक्ति तब भी करने है, जब कहीं अंतर्ध्यान हो रहे हो। जब आत्मा के छोटे से हिस्से पर काली तथा बुरी शक्तियां हावी होगी, तब उसके काट का उपाय सोचने तथा उन शक्तियों से बचने के उपाय पहले से होंगे।”

ऋषि शिवम्:– गुरुवर तो क्या ये उपाय आप अपने तक ही सीमित रखने वाले थे?

आर्यमणि:– अरे... आप तो आरोप लगा रहे है।

ऋषि शिवम्:– आरोप क्यों न लगाऊं गुरुदेव। सात्विक आश्रम एक तो पहले से ही सबके निशाने पर है। ऐसे में हमारे किसी भी पूर्व गुरु के दिमाग में सुरक्षा का ऐसा बेहतरीन उपाय दिमाग में नही आया। आपके पास न जाने कितने दिनों से यह जानकारी थी, फिर भी आपने साझा नही किया।

आर्यमणि अपने दोनो हाथ जोड़ते..... “ऋषिवर, अब माफ भी कर दीजिए। क्या आपको पता है अंतरिक्ष के ब्लैक होल में भी एक सम्पूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार की रचना की गयी थी। इसी की वजह से ब्लैक होल में फसा विमान सीधा महासागर के कैदियों के प्रदेश में पहुंच जाता है।”

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव बात को घुमाने की बेकार कोशिश थी। जाने दीजिए अब तो बता दिये सुरक्षा उपाय। आपकी नियत पर फिर कभी सवाल उठा लेंगे। वैसे अभी हम केवल सम्पूर्ण मायाजाल की बात कर रहे थे न? सिद्ध द्वार बाद में जुड़ेगा न?

आर्यमणि:– “हां एक बार सम्पूर्ण मायाजाल को समझा देता हूं, सिद्धि द्वार तो उसका मात्र एक परिणाम है, जिसके लिये सम्पूर्ण मायाजाल की रचना की जाती है। दरअसल आम भ्रम जाल या मायाजाल के पड़े सम्पूर्ण मायाजाल किसी द्वार को सिद्ध करने के लिये ही बनाया जाता है। 21 जीव बलि, जिसमें एक पुरुष और एक महिला की स्वेक्षा बलि अनिवार्य है। 21 पुष्प, 21 साधना पर बैठे लोग 21 क्षण के मंत्र जाप से संपूर्ण मायाजाल को सिद्ध करके, किसी जगह पर उसकी रचना करते है।”

“संपूर्ण मायाजाल की रचना के बाद आत्मा जागृत की जाती है। मृत्युलोक और मायालोक के बीच फंसी आत्मा को बुलाया जाता है। ऐसी आत्मा मायाजाल के अंदर कोई भी सुरक्षित मार्ग खोल सकती है जिसका स्वामित्व मायाजाल के मालिक के पास होगा, और वो अपने एक या एक से अधिक उत्तराधिकारी को सौंप सकते हैं। एक नर और एक मादा जिसकी स्वेक्षा से बलि दी गयी होगी, उन्ही शरीर मे वो आत्म प्रवेश करती है और उस शरीर को अपनाकर अपनी अधूरी इच्छाएं पूर्ण करती है।”

ऋषि शिवम्:– गुरुवर समूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार तो निजी कारणों से बनाया जाता है, फिर वहां अल्फा पैक क्यों फंसी? एमुलेट वापस नही आया, तो क्या रूही, इवान और अलबेली कहीं जिंदा है?

आर्यमणि:– “हां ऋषिवर आपने सही कहा की सम्पूर्ण मायाजाल निजी कारणों से बनाई जाती है। यह भी सही है कि इतना बड़ा योजन कोई अल्फा पैक को फसाने के लिये क्यों करेगा? यहीं तो सबसे बड़ा षड्यंत्र छिपा था। संपूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार का जो उल्लेख था, वह बस एक दुनिया के बीच के रास्ते को सिद्ध करने के लिये विधि थी। परंतु नाग लोक के भू–भाग पर दो दुनिया के बीच रास्ता खोला जाना था। षड्यंत्र महाजनिका रचा हुआ था। उसे धरातल पर लाया उसका सेवक तांत्रिक आध्यात।”

“महाजनिका का यदि इतिहास उलटेंगे तब पता चलेगा की वह मूल दुनिया से विपरीत दुनिया में टेलीपोर्ट कर सकती थी। किसी को ये नहीं पता था कि वह एकमात्र ऐसी साधिका थी जिसने सम्पूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार का निर्माण किया था। उसने अपने मंत्रो की शक्ति से वह कारनामा कर दिखाया, जिसे पाने के लिये काली शक्ति के उपासक कुछ भी कर सकते थे। उसने न सिर्फ सम्पूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार का निर्माण किया अपितु उसका सफलतापूर्वक परीक्षण भी कर चुकी थी।”

“महाजनिका को दो दुनिया के बीच रास्ता खोलने के लिये 4 खास इक्छाधारियों के बलि की जरूरत थी, जिनकी आत्माओं को दो दुनिया के द्वार के बीच फसाया जाता। पहले भी महाजनिका को श्राप जगाने के लिये जब 2 दुनिया का रस्ता खोला गया था, वहां भी खास इच्छाधारी मादा लोमड़ी का इस्तमाल किया गया था, ओशून। मैक्सिको में ओशुन की आत्मा को 2 दुनिया के बीच फसाकर एक बहुत ही छोटा सा द्वार खोला गया था, जहां से महाजनिका की आत्मा विपरीत दुनिया से उसके शरीर तक पहुंची थी।”

“महाजनिका जब हमसे बचकर भागी थी, तब किसी तरह वह विपरीत दुनिया तो पहुंच गयी। लेकिन वापस इस दुनिया में कहर बरसाने और अपने विनाश का एक मात्र हथियार नष्ट करने उसे मूल दुनिया में किसी तरह तो आना ही था। इसलिए उसने सम्पूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार की रचना की। कोई भी इच्छाधारी की आत्मा विपरीत दुनिया को नही खोल सकती इसलिए उसे खास इक्छाधारि की तलाश थी। चार खास इक्छाधारि। एक तो ओशुन ही हो जाती, लेकिन ओशुन को मारकर उसके शरीर पर मधुमक्खी की रानी ने कब्जा कर लिया। बचे थे अल्फा पैक के हम खास 5 वुल्फ जिसमे से ओजल तो आश्रम के साथ हो गयी। अब बचे थे हम 4। मै, रूही, इवान और अलबेली। मायाजाल में फसाकर वह 3 को निगल गयी। लेकिन महाजानिका को यदि दो दुनिया के द्वार खोलना है, तो वह या तो मेरे लिये एक बार फिर मायाजाल की रचना करेगी या फिर किसी अन्य खास इक्छाधारी की तलाश कर रही होगी।

ऋषि शिवम्:– जब उस दिन रूही, इवान और अलबेली की हत्या हो गयी, फिर उनका एमुलेट वापस क्यों नही आया?

आर्यमणि:– “क्योंकि वो तीनो अब भी जिंदा है। बस फर्क सिर्फ इतना है कि जिस रूही अलबेली और इवान को हम जानते थे, उनकी आत्मा तो कबकी उनके शरीर से निकल चुकी है। मरणोपरांत उनका शव कहीं नही मिला था, क्योंकि जिस वक्त उनकी लाश गिरी थी, ठीक उसी वक्त उनका शरीर विपरीत दुनिया में जा चुका था और उस पहाड़ी पर जो दिख रहा था, वह बस मायावी दृश्य थी। यदि मैं भी मर गया होता, तो मेरी भी लाश विपरीत दुनिया में खींच जाती और फिर महाजनिका दो दुनिया के बीच एक बार फिर अपने लिये सुरक्षित द्वार खोल चुकी होती।

“उन तीनो का शरीर विपरीत दुनिया में फसा है जिसमे किसी और की आत्मा बसती है। या तो चौथा लाश गिरेगी और सम्पूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार खुलने के बाद वो लोग (रूही, एवं और अलबेली का शरीर) विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में आयेंगे। या फिर उनके शरीर को वापस लाने मुझे खुद विपरीत दुनिया में जाऊंगा। विकल्प चाहे जो भी हो लेकिन जब तक तीनो के अंतिम संस्कार नही हो जाते, मेरी आत्मा को चैन नहीं मिलेगा।”

ऋषि शिवम्:– बहते आंसू को रोक लीजिए गुरुदेव। कुछ नवसिखियों के साजिश के पीछे जब इतना बड़ा षड्यंत्र चल रहा हो, फिर आप खुद को क्यों दोषी मानते है?

आर्यमणि:– “जो भी हुआ उसमे मेरे अनदेखापन को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। वो तांत्रिक आध्यत मेरे सारे सुरक्षा मंत्र को तोड़कर वहां अपना सम्पूर्ण योजन पूर्ण कर गया और मैं महासागर में गोते लगा रहा था।”

“यदि मैं महासागर के अंदर इतना समय न बीताता तो यह नतीजा नही होता। तांत्रिक आध्यात इतने इत्मीनान से मेरे सुरक्षा मंत्र को तोड़ न रहा होता। वह अपनी मालकिन के इशारे पर हमारे लिये जाल न बुन रहा होता। आज मेरी रूही मेरे पास होती। अलबेली और इवान मेरे पास होते। जरूर मेरे ही किसी बुरे कर्मों का फल उन तीनो ने भुगता है।”
Beautiful update
 
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