• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
23,612
80,684
259
Last edited:

Tri2010

Well-Known Member
2,007
1,894
143
भाग:–180


छोटे से शहर के बड़े से जंगल और पहाड़ों के बीच बड़ा हुआ आर्यमणि के जीवन का सफर उसे ब्रह्मांड की सैर पर ले जाएगा यह तो कभी आर्यमणि ने भी नही सोचा होगा। एक सच तो यह भी है कि आर्यमणि गंगटोक से निकलने के बाद बंजारों की जिंदगी व्यतीत कर रहा था, जिसका कोई एक ठिकाना नहीं और पूरा जहां ही उसका घर हो जैसे।

अपने सफर के दौरान उसने कई सारे हैरतंगेज नजारे देखे। चौकाने वाले जीव–जंतुओं तथा प्राणियों से मिला। वास्तविकता तो यह भी थी कि आर्यमणि खुद भी किसी हैरतंगेज अजूबा से कम नही था। जिंदगी के सफर में कई सारे बाधाए आयी। बाधाए जब भी आयी अपने साथ नया रोमांच और नई चुनौतियां लायी। किंतु इन सबके बीच जो नही होना चाहिए था वह घटना घट चुकी थी। आर्यमणि के प्राण जिस पूरे पैक में बसता था, उसे ही मौत की आगोश में सुला दिया गया।

आर्यमणि के अल्फा पैक को कोई भी ऐरा–गैरा मारकर तो नही गया था। अलबत्ता ताकतवर से ताकतवर दुश्मन में इतनी क्षमता कहां थी जो अकेले अल्फा पैक का शिकार कर ले। अल्फा पैक के शिकार के लिये तो अलग–अलग समुदाय के कई सारे धूर्त और ताकतवर एक साथ योजनाबद्ध तरीके से साथ आये और अल्फा पैक का शिकर किया था। आर्यमणि भी लगभग मर ही चुका था लेकिन एक विशालकाय समुद्री जीव चाहकीली ने उसकी जान बचा ली। अब चाहकिली ने उसकी जान बचाई या फिर उसके ग्रहों की दशा ही ऐसी थी कि मौत को भी सामने से कह दे.... “रुक जा भाई, तू मेरे प्राण लेने फिर कभी और आ जाना।”..

इसमें कोई संशय नहीं की आर्यमणि किस्मत का धनी था किंतु उस सुबह शायद अल्फा पैक के बाकी सदस्य की किस्मत उतनी अच्छी नहीं थी तभी तो आर्यमणि को तन्हा छोड़ सभी मृत्यु की आगोश में लेट गये। जिन्होंने ने भी आर्यमणि से उसके पैक को छीना था, उन्होंने आर्यमणि के अंदर गहरी छाप छोड़ गया था। अब वक्त आर्यमणि का था और वह भी अपने लोगों के साथ बैठकर हर किसी को सजा देने की पूरी तैयारी कर रहा था।

“यदि मैं महासागर के अंदर इतना समय न बीताता तो यह नतीजा नही होता। तांत्रिक आध्यात इतने इत्मीनान से मेरे सुरक्षा मंत्र को तोड़ न रहा होता। वह अपनी मालकिन के इशारे पर हमारे लिये जाल न बुन रहा होता। आज मेरी रूही मेरे पास होती। अलबेली और इवान मेरे पास होते। जरूर मेरे ही किसी बुरे कर्मों का फल उन तीनो ने भुगता है।”

ऋषि शिवम्:– गुरु आर्यमणि आप ऐसे हताश न हो। कभी–कभी हम रचायता के खेल के आगे बेबस हो जातें है। खुद को हौसला दीजिए क्योंकि हमारा कोई भी दुश्मन कमजोर नही। न तो अध्यात और उसके तांत्रिक की फौज कमजोर है। न ही विपरीत दुनिया में फसी अकेली महाजनिका कमजोर है, जिसके पास अब अल्फा पैक के तीन अलौकिक सदस्य है, जिसमे ना जाने किसकी आत्म बसी हो। न ही वो नयजो कमजोर है, जो 4 ग्रहों की फौज लिये हमारे इंतजार में है। इसलिए अपनी भावनाओं को आज ही पूरा बाहर निकाल दीजिए क्योंकि आगे अपने किसी भी दुश्मन को रत्ती भर भी मौका नही देना है।

आर्यमणि अपने आंख साफ करते..... “मेरे मन में सवाल आया कैसे? कैसे महाजनिका परदे के पीछे से खेल रच सकती है? वो यदि हमारी दुनिया में लौटती तो अनंत कीर्ति पुस्तक पर दस्तक जरूर होती। महाजनिका विपरीत दुनिया मे ही है, परंतु वहां से मूल दुनिया में किसी भी विधि से किसी से संपर्क नही किया जा सकता था, जबतक की दोनो दुनिया के बीच कोई छोटी सी संपर्क प्रणाली न स्थापित हो।”

“फिर दिमाग में ओशुन का ख्याल आया, जो विपरीत दुनिया से आयी मधुमक्खी रानी की होस्ट बनी थी। मुझे समझ में आ गया की छोटे से रास्ते के जरिए विपरीत दुनिया और मूल दुनिया के बीच संपर्क किया जा रहा है। उन्ही छोटे रास्ते से महाजनिका ने अपना खंजर भी इस दुनिया में भेजा होगा। वो छोटा रास्ता जब तक खुला है, रानी मधुमक्खी न सिर्फ महाजनिका और आध्यात के बीच संपर्क करवाती रहेगी, बल्कि वह मधुमक्खी विपरीत दुनिया अपनी पूरी फौज भी ला रही होगी।”

ऋषि शिवम:– महाजनिका से जब युद्ध हुआ था तब वो काफी कमजोर थी। लेकिन फिर भी उसके मार्गदर्शन में अध्यात मानो पागलों की तरह हम पर कहर बरसा रहा था। आध्यात को हमने पकड़ा भी, लेकिन अकेला वो 22 संन्यासियों को चकमा दे गया। गुरु अपस्यु और आचार्य जी तक को छल गया। दोनों का संपर्क प्रणाली तोड़ना होगा, वरना पिछले 4 सालों में महाजनिका ने विपरीत दुनिया से कैसी काली शक्तियों को हासिल करी होगी और कितना कुछ आध्यात को सीखा चुकी होगी, उसका आकलन तो आध्यात से जब सामना होगा तभी पता चलेगा। लेकिन यदि संपर्क बना रहा तो युद्ध के दौरान महाजनिका सही दाव बताती रहेगी और हमारे लिये मुश्किलें बढ़ जाएगी।

आर्यमणि:– आप बिलकुल सही निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। लेकिन अभी उनके बीच का संपर्क तोड़कर नायजो के ग्रह जाने पर आध्यात समझ जायेगा की उसका खेल हमारे समझ में आ चुका हुई। उसे काफी समय मिल जायेगा। वह दिमाग वाला है। हमसे पहले भी हार चुका है इसलिए वो युद्ध लड़ने के बदले खुद को छिपाकर महाजानिका को विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाने के बाद ही हमसे भिड़ने आयेगा। और विश्वास मानिए तांत्रिक महासभा और महाजनिका जब साथ होंगे तब हम उन्हे नही हरा पाएंगे। इसलिए अभी आध्यात को उसके हाल पर छोड़ते हैं। पहले उन नजयजों से निपटकर वापस आते है।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव क्या आप इतने आश्वस्त हो गये कि पहले से युद्ध का नतीजा निकाल रहे।

आर्यमणि:– हां ये भी सही कहा आपने... पहले मैं नायजो के चकव्यूह से सुरक्षित बाहर तो आ जाऊं। यदि नही लौटा तो अपस्यु, तांत्रिक का काम तमाम कर देगा। इसमें उसकी मदद विशेष–स्त्री जीविषा कर देगी।

ऋषि शिवम्:– गुरुदेव पृथ्वी से पूर्ण प्रशिक्षित सेना लेकर चलिए। हमारे पास निश्चल की विमान है। महा जैसी सेना नायक है। ओर्जा जैसी शक्ति का साथ है। कुशल रणनीति से हम नायजो की विशाल सेना से तो क्या, किसी से भी युद्ध में जीत सकते है।

आर्यमणि:– और ब्रह्म ज्ञान वाले ऋषि कहां रहेंगे?

संन्यासी शिवम्:– सात्विक गांव की जिम्मेदारी मुझ पर है। मै अपने उत्तरदायित्व से मुंह नही मोड़ सकता। बहुत से शिष्यों को प्रशिक्षित करना है। 38 नवजात को शुद्ध ज्ञान के ओर प्रेरित करना है। उन मासूमों की जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है।

आर्यमणि:– शिवम सर, आपके बिना तो अल्फा पैक अधूरा है।

ऋषि शिवम्:– गुरु आर्य मेरे ऊपर पूरे गांव का उत्तरदायित्व है। क्या मैं वो जिम्मेदारी को भुलकर यात्रा पर निकल जाऊं?

आर्यमणि:– नही आपका गांव में होना ज्यादा जरूरी है। बाकी कभी जरूरत लगी तो बुलावा भेज देंगे।

ऋषि शिवम:– मैं चाहूंगा ऐसी नौबत न आये। अब मैं आपसे एक छोटी सी विनती करता हूं। आप जल साधना के योगियों की टोली के गुरुदेव को कुछ दिन गांव में आकर हमें मार्गदर्शन करने कहिए। बहुत से ज्ञान विलुप्त हो चुके है, जिन्हे हम वापस से संजो ले।

आर्यमणि:– बिलकुल शिवम सर.. कल तक योगी वशुकीनाथ जी गांव पहुंच जायेंगे।

आर्यमणि की हामी सुन ऋषि शिवम प्रसन्न हो गये। आर्यमणि से गले मिलकर वह क्रूज से अंतर्ध्यान हो गये और वहां आर्यमणि अकेला रह गया। आर्यमणि ने क्रूज को ऑटो पायलट मोड पर डालकर वहां से अंतर्ध्यान होकर सीधा योगियों के क्षेत्र पहुंचा। वहां के गुरु वशुकीनाथ जी से पूरी बात बताकर सात्त्विक गांव चलने के लिये राजी कर लिया।

योगी वाशुकीनाथ उसी क्षण सात्विक गांव के लिये अंतर्ध्यान हो गये और आर्यमणि वापस क्रूज पर चला आया। क्रूज पर आने के बाद आर्यमणि एक बार फिर अल्फा पैक पर ध्यान केंद्रित किया, और अपने दिमाग के हर ज्ञान को शुरू से पलटने लगा। उधर महा, पलक के साथ मिलकर अगले 2 दिनो तक पृथ्वी पर रह रहे हर एलियन को गुरियन प्लेनेट भेजने का प्रबंध कर चुकी थी।

कई स्थानों पर बड़े–बड़े अदृश्य वाहन पहुंचते रहे और अलग–अलग जगहों से सबको निकालकर ले जा रहे थे। तकरीबन 40 हजार बड़े–बड़े विमान पृथ्वी पर पहुंचे और सबको 3 दिनो में गुरियन प्लेनेट पर पहुंचा चुके थे। अगले 2 दिनो में समुद्र के कैदियों को ले जाया गया, जिनकी संख्या तकरीबन 5 करोड़ थी। इन सभी कैदियों के लिये गुरियन प्लेनेट के चार बहुत बड़े शहर को ही खाली करवा दिया गया था।

करेनाराय के बड़े से शानदार और आलीशान महल में महफिल लगी हुई थी। माया, निमेषदर्थ, हिमा, करेनाराय, गुरियन प्लेनेट का असली राजा बॉयनॉय, विषपर प्लेनेट का असली मुखिया मसेदश क्वॉस, सेनापति बिरजोली और पृथ्वी नायजो के मुख्य चेहरे पाठक, देसाई और भारद्वाज परिवार के लोग मुख्य आकर्षण के केंद्र में थे।

बड़ी सी महफिल में सबसे पहले सेनापति बिरजोली ने ही बोलना शुरू किया..... “क्या हम पृथ्वी हार गये क्या शासक?”

शासक मसेदश क्वॉस:– क्या वाकई तुम्हे ऐसा लगता है। मुझे तो नही लगता। किसी को कुछ कहना है क्या?

निमेषदर्थ:– एक आर्यमणि के जिंदा होने की खबर क्या मिली, तुम्हारा पूरा समुदाय मूतते हुये पृथ्वी छोड़ दिया। फिर भी इतनी अकड़ राजा...

शासक मसेदश क्वॉस:– राजकुमार तुम कुछ ज्यादा नही बोल रहे। एक पूरे ग्रह के कर्ता–धर्ता के सामने तुम क्या बोल रहे तुम्हे समझ में भी आ रहा है?

हिमा:– हां मेरा भाई सोच समझ कर ही बोल रहा है। तुम लोगों के साथ देने के चक्कर में आज हम किसी दर के नही रहे। थाली में पड़ोसकर शिकार दिया था, फिर भी उसे मार नही पाये।

सेनापति बिरजोली:– यदि पिछली गलती निकालते रहे, तब आगे का कैसे सोचेंगे। मानता हूं वह आर्यमणि पृथ्वी पर हमसे कुछ ज्यादा ही भारी निकला। मै ये भी मानता हूं कि उस इकलौते भेड़िए का खौफ ऐसा था कि उसके जिंदा होने की खबर से ही हमारा पूरा समुदाय पृथ्वी छोड़कर भाग आया। लेकिन आने वाले वक्त ने हमें एक मौका दिया है। वह भेड़िया, उस दगाबाज पलक के साथ गुरियन प्लेनेट आ रहा है।

निमेषदर्थ:– यहां उसे मार तो पाओगे न? या ये प्लेनेट भी छोड़कर भाग जाओगे?

गुरियन प्लेनेट का असली राजा बॉयनॉय..... “तुम अपने कैदियों को सम्मोहित कर लो, मैं तुम्हे बदले में जीत दे दूंगा।”

निमेशदर्थ:– कुछ लोगों को मारने के लिये तुम्हे 5 करोड़ की फौज चाहिए?

बॉयनॉय:– फौज तो हमे चाहिए लेकिन उस भेड़िए को मारने के लिये नही, बल्कि एक वीरान प्लेनेट “हिस्सक” पर नायजो की नई हाइब्रिड आबादी बसाने के लिये 5 करोड़ की फौज चाहिए।

निमेष:– 5 करोड़ लड़के तो ऐसे मांग रहे, जैसे 5 करोड़ लड़की उस प्लेनेट पर सुखी बैठी है।

बॉयनॉय:– 5 नही 15 करोड़ लड़कियां सुख रही है। हमे 5 साल में वहां 45 करोड़ हाइब्रिड चाहिए।

निमेशदर्थ:– यदि मैने उन 5 करोड़ कैदियों को सम्मोहित नही किया और तुम्हारी वो लड़कियां कुछ दिन संभोग नही करेगी, तो क्या तुम अपनी जमीन पर आर्यमणि को नही हरा पाओगे?

मसेदश क्वॉस:– हां कह सकते हो। क्योंकि हम अपना जारी काम रोक नही सकते। उस भेड़िए के आने का कार्यक्रम कुछ दिन पहले बना था, जबकि हम हाइब्रिड बसाने के काम को कई वर्षों से अंजाम दे रहे थे। तुम्हारे कैद में कई ग्रह के लोग थे, वरना हमारे 10 करोड़ सैनिक कई ग्रह पर फैल जाते और वहां से 5 से 10 करोड़ पुरुषों को पकड़ लाते।

अब या तो तुम हमारा काम कर दो तो हम अपने सैनिक यहां लगा दे। या फिर हम अपने सैनिकों को आबादी बसाने वाले मुहिम पर लगाकर, आर्यमणि के खिलाफ आम नायजो को हथियार पकड़ाकर लड़ाई के मैदान में उतार दे। फिर नतीजा जो हो उस से अभी हमें कोई सरोकार नहीं। बाद में जब हमारे सैनिक लौटेंगे तब हम पृथ्वी पर हमला कर उस भेड़िया समेत पूरी पृथ्वी को ही वीरान कर देंगे।

निमेषदर्थ:– इसे कहते है ना दृढ़ संकल्प। तो ठीक है, उन 5 करोड़ कैदियों को जहां ले जाना है ले जाओ, बदले में आर्यमणि की लाश गिड़ा देना।

सेनापति बिरजोली:– क्या उस लड़ाई का हिस्सा तुम नही होना चाहते?

निमेषदर्थ:– मैं तो उस लड़ाई का हिस्सा बन जाता लेकिन माया के पीछे जिसका दिमाग था, विवियन वो क्यों नही इस लड़ाई का हिस्सा बन रहा है? वह तो पृथ्वी से लौटा भी नही...

शासक मसेदश क्वॉस और विवियन का पिता..... “मेरा बेटा यदि पृथ्वी पर रुका है तब वह जरूर अपने समुदाय के लिये कुछ अच्छा करने की योजना से ही रुका होगा। वरना इस वक्त वो हमारी महफिल में होता। ये मैं क्या बोल गया? तुम्हे कैसे पता की माया बस मुखौटा थी, असली खेल विवियन खेल रहा था?

निमेषदर्थ:– क्या बात है पूरा भांडा फोड़ने के बाद आखिर में राज खुलने की चिंता हुई। घबराओ मत तुम्हे देखने के बाद ही सारी कहानी समझ में आ गयी थी। तुम्हारी और विवियन की शक्ल जो इतनी मिलती है।

उस महफिल में सबसे बेगाना करेनाराय ही था। यूं तो बेचारे को गुरियन प्लेनेट के असली राजा बॉयनॉय के बाद दूसरा स्थान मिला था परंतु यहां उसकी कोई औकाद ही नही थी। उसके मन में बस एक ही बात घूम रही थी.... “वक्त–वक्त की बात है।”

पहले आर्यमणि को मारने की विस्तृत चर्चा। फिर कुछ इधर–उधर की चर्चा। फिर जाम से जाम टकराए और अंत में नाच गाने के साथ पूरी महफिल झूमी। सबके अपने–अपने प्लान थे। गुरियन प्लेनेट पर नायजो के बड़े–बड़े नायक अपनी योजना बना रहे थे। वहीं अल्फा अल्फा पैक भी युद्ध के लिये कमर कस रही थी।

नायजो से उसी की धरती पर लोहा लेने की पूरी तैयारी चल रही थी। पलक, 2 दिनो तक महा के साथ महासागर की गहराइयों में काम करने के बाद वापस नागपुर लौट आयी थी। कुछ नए और कुछ पुराने लोगों के साथ अल्फा पैक, और पलक की कोर टीम, नागपुर स्थित भूमि के घर इकट्ठा हुये थे।

आर्यमणि:– “हम बस चंद लोग है और हमारा सामना 4 ग्रहों के एक जुट ताकत से होने वाला है। एक आखरी जंग उन नायजो के साथ जो अनैतिक तरीकों से ग्रहों पर कब्जा करते है। एक आखरी लड़ाई उस दुश्मनों से जिसने मेरी रूही, अलबेली और इवान को मुझसे दूर कर दिया। एक आखरी लड़ाई अपने सात्त्विक आश्रम के वर्चस्व स्थापित करने की, जिसे ये नायजो वाले तबाह करते आ रहे थे।”

“वैसे एक बात मैं अभी बता दूं कि मैं जितनी बार इनसे भिड़ा हूं, हर बार इनके पास कुछ न कुछ नया तिलिस्म जरूर रहा है। ऊपर से हम पृथ्वी से कई लाख किलोमीटर दूर उनकी जमीन पर होंगे, जहां हमें कोई मदद नहीं मिलने वाली है। आगे बढ़ने से पहले हम पलक को सुनेगे की हमे वहां और किन–किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।”

इधर आर्यमणि अपनी बात समाप्त किया और उधर एक कराड़ा थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा.... “तूने सोचा भी कैसे की इस बार मुझे छोड़कर भाग जायेगा। मुझे भी दूसरे ग्रह पर घूमने जाना है।”... भूमि, आर्यमणि को एक थप्पड़ लगाती उस सभा में ग्रैंड एंट्री मारी।

अभी एक थप्पड़ की गूंज समाप्त नहीं हुई थी कि तभी आर्यमणि की मां जया भी उसे एक थप्पड़ चिपकाती.... “इसी दिन के लिये बेटे को जन्म दी थी कि वह अकेला घूमने भाग जाये और सालों तक अपनी शक्ल न दिखाए। मुझे भी तीर्थ पर लेकर चल।”..

आर्यमणि:– मां वहां कौन सा तीर्थ होगा...

जैसे ही आर्यमणि चुप हुआ उसके पापा केशव एक थप्पड़ लगाते.... “तीर्थ नही होगा तो वहां तीर्थ स्थल बना। ईश्वर तो हर जगह मौजूद है।”

आर्यमणि:– अभी दरवाजे से एक–एक करके सभी आ गये ना, या और भी कोई बचा है?

पहले चित्रा, फिर माधव भी वहां आ धमके और चित्रा ने भी आते हुये एक चिपका ही दिया।

आर्यमणि:– आप सभी हमारे साथ चल रहे हैं। अब जरा शांति से बैठ जाइये। पलक तुम शुरू हो जाओ...

चित्रा:– हां बोलने का पहला मौका तो पुराने प्यार को ही मिलेगा न...

महा, बिलकुल चौंकती हुई.... “पुराना प्यार???”..

भूमि:– लो पूरी दुनिया को पता है पर इस बेचारी को पता ही नही...

महा, आर्यमणि को सवालिया नजरों से घूरती.... “क्यों जी पूरे दुनिया को पता है, सिर्फ मुझे ही नही पता?”

केशव:– मैं तो निशांत के गर्लफ्रेंड को देख रहा। पूरे जोरदार गर्लफ्रेंड ढूंढा है।

पलक:– गर्लफ्रेंड के किस्से तो आर्य के होने चाहिए न। और ये चित्रा जो मेरे बारे में मुंह फाड़ रही है, अपनी भी तो बता। पहले तो तुम्ही दोनो गर्लफ्रेंड–ब्वॉयफ्रेंड के रिलेशन में थे।

पूरा परिवार ही एक साथ.... “क्या?”..

माधव, रोनी सी सूरत बनाते.... “क्या मेरी बीवी का टांका आर्य से भिड़ा था और मुझे बताई तक नही।”

आर्यमणि:– मैं सोने जा रहा हूं। तुम लोगों की हंसी ठिठोली बंद हो जाये तो बता देना।

पलक:– या तो सब ध्यान से सुन लो या फिर रूही से मिलने के लिये तैयार हो जाओ।

भूमि:– रूही की याद तो आती है पर अभी मेरा बच्चा छोटा है इसलिए मैं नही मिलना चाहती।

एक–एक करके सब शांत हो गये। माहौल बिलकुल खामोश था। आर्यमणि ने इशारा किया और पलक बोलना शुरू की.... “यदि हम गुरियन प्लेनेट पर हारते है तो समझ लो हम पृथ्वी हार गये।”
Nice update
 

Tri2010

Well-Known Member
2,007
1,894
143
भाग:–181


एक–एक करके सब शांत हो गये। माहौल बिलकुल खामोश था। आर्यमणि ने इशारा किया और पलक बोलना शुरू की.... “यदि हम गुरियन प्लेनेट पर हारते है तो समझ लो हम पृथ्वी हार गये।”

भूमि:– हम नही भी थे तब भी ये एलियन पृथ्वी पर थे। हमारे हारने या जितने का कोई फर्क नही पड़ता। खुद को ब्रह्मांड के रखवाला बताने से अच्छा है कि लड़ाई की वजह और लड़ाई का मुख्य लक्ष्य क्या है वो बताओ?

पलक:– ये बताना मेरा काम नही, आर्य बतायेगा। मुझे ये बताना है कि उस ग्रह पर हमारा सामना किन हालातों से हो सकता है।

भूमि:– ठीक है वही बताओ। लेकिन प्वाइंट टू पॉइंट बताना, बिना कोई मिर्च मसाला डाले।

पलक:– “जिस समुदाय से हम लड़ने जा रहे वह ब्रह्मांड का बहुत पुराना समुदाय है। नायजो जहां भी होते है, वहां जंगलों की कोई कमी नही रहती। ये तो सभी जानते है कि नायजो के आंख से लेजर निकलता है और उन लेजर के साथ कोई भीषणकारी कण भी निकलते है, लेकिन ये कोई नही जानता की नायजो अपने पत्थरों के साथ उस से भी कहीं ज्यादा खतरनाक होते है। हमारे यहां के सिद्ध पुरुष जो काम मंत्रों से कर सकते हैं, नायजो वह सारे काम अपने पत्थरों से कर सकता है।”

“दूसरा इनका सबसे बड़ा हथियार बनेगा, इनके जंगलों के काल जीव। ये लोग अपने जंगल में ब्रह्मांड के कई खतरनाक काल जीव को रखते हैं, इनमे ड्रैगन सबसे खतरनाक है। एक व्यस्क ड्रैगन का आकार 20 मीटर से लेकर 50 मीटर तक हो सकता है। ड्रैगन के मुंह से मौत निकलती है। किसी के मुंह से भस्म करने वाला आग तो किसी के मुंह से जमा देने वाला बर्फ निकलता है। इसके अलावा बिजली, जहरीले गैस इत्यादि भी निकलते है। इनके पास जो ड्रैगन होते हैं वह बात भी कर सकते है और किसी कुशल सैनिक की तरह एक चेन कमांड में लड़ भी सकते हैं।”

“ड्रैगन के अलावा जो हमारा सामना होगा वह है दैत्य। दरअसल नायजो समुदाय इसे जंगल के रक्षक कहते है, किंतु ये रक्षक दिखने में बिलकुल दैत्य की तरह लगते है। हर दैत्य का आकार इंसान जैसा होता है, लेकिन उनका शरीर बना होता है आग से। उनका शरीर बना होता है पानी से। उनका शरीर बना होता है हवा से। उनका शरीर बना होता है कीचड़ से।”

“कहने का अर्थ है इन दैत्यों की शक्ति ही उनका शरीर होता है। जिस दैत्य की शक्ति आग होगी, उसका शरीर ही पूरा आग का बना होता है। ये दैत्य जमीन के बड़े से हिस्से को पलक झपकते ही आग का दरिया बना सकते हैं। कीचड़ का दरिया बना सकते है। जिस दैत्य की जो भी शक्ति हो, वह दैत्य पलक झपकते ही जमीन के बड़े से भू–भाग को उसने तब्दील कर सकते हैं और इन्हें मारेंगे कैसे इसकी जानकारी मेरे पास नही है।”

“इनके अलावा नायजो अपने पत्थर की मदद से गोल घेरा बनाते हैं। मौत का घेरा। इस घेरे में यदि फंस गये और निकलने का उपाय नहीं जानते है, फिर मौत निश्चित है। पर इस गोल घेरे को बहुत आसानी से तोड़ा जा सकता है। यह घेरे कभी दिखने वाले किरणों से बनते है तो कभी किरणे अदृश्य होती है।”

“हम उनकी जमीन पर होंगे तो यही मानकर चलते हैं की किरणे अदृश्य होंगी। ज्यादा कुछ नही करना है, बस एक छोटा सा रिफ्लेक्टर भी उन किरणों पर पड़ गया, तो उनका घेरा टूट जायेगा। अब मैंने रिफ्लेक्टर कहा तो कोई यह न समझे की आईना को रख देने से काम बन जायेगा। यह घेरे काफी खतरनाक किरणों के बने होते है, इसलिए कोई कठोर रिफ्लेक्टर चाहिए। उम्दा किस्म का हीरा एक बेहतर विकल्प है, यह न सिर्फ घेरे के किरणों को रिफ्लेक्ट करके घेरा तोड़ सकता है। बल्कि यदि किसी हाई प्रेशर झेलने वाले मेटल के ढाल के ऊपर यदि हीरे को किसी विधि आईने की तरह चिपका दिया जाये, तो हम उनकी नजरों की किरणों को रिफ्लेक्ट करवाकर, उन्ही पर हमला करवा सकते है। हां लेकिन हर नायजो के हाथ से बिजली, आंधी, तूफान और आग भी निकलता है। ये लोग तो हवा से तीर और भाले भी निकाल लेते है, उनको रिफ्लेक्ट नही किया जा सकता।”

“इन सबके अलावा जो सबसे दुख देने वाला है, वह है हाईबर मेटल। ऐसा मेटल जिसे किसी भी विधि भेद नहीं सकते। इसे तोड़ा नही जा सकता, काटा नही जा सकता। इन मेटल को मनचाहा आकर देने के लिये इनके पास खास मसीने है। एक बार हाईबर मेटल से कोई भी सांचा बना दिये फिर उसके ऊपर से ट्रेन गुजार दो या रोड रोलर चढ़ा दो, हाइबर मेटल को एक मिलीमीटर चिपका नही सकते। हाइवर मेटल के बाहरी दीवार पर भीषण आग लगा दो उसके अंदर कुछ भी असर नही होगा। युद्ध में ये लोग हाइबर मेटल के बने सूट का प्रयोग करते हैं जिनका हम कुछ नही बिगाड़ सकते। और हुर्रीयेंट प्लेनेट पर हायबर मेटल की प्रचुर मात्रा उपलब्ध है, जिसका प्रयोग सेना की टुकड़ी करती है।”

“ओह हां एक और बात तो रह ही गयी। ये लोग पेड़–पौधों को जलाकर जो धुवां करते है, उन धुवें के संपर्क में आने वाले इंसान के शरीर में कुछ भी बदलाव हो सकता है। वह मानसिक रोगी बन सकता है। अपनी आंसिक या पूरी यादाश्त खो सकता है। धुवां इनका वो हथियार है, जिस से ये लोग कुछ भी कर सकते हैं। और धुवां भी ऐसा जो दिखाई ही नही दे।”

“मेरे ओर से शायद मैने लगभग जानकारी साझा कर दी है। कुछ छूट गया होगा तो मैं याद आते ही बता दूंगी।”

ओजल:– विवरण तो काफी खतरनाक था। हमे कुशल सैन्य मदद की आवश्यकता होगी, जिन्हे नायजो की हर बारीकियां पता हो। बिना सैन्य मदद के हम जीत नही सकते...

महा:– करेनाराय मेरे कैदियों के प्रदेश से 5 करोड़ कैदियों को अपने प्लेनेट ले गया है। उनमें से 20 लाख मेरे कमांड वाले सबसे कुशल सैनिक है। बस उनके हथियार लेकर गुरियन प्लेनेट तक जाना होगा।

पलक:– जहां तक मुझे पता है, जल सैनिक थल पर हस्तछेप नही कर सकते। थल पर तो जलीय सैनिक किसी खरगोश की तरह होंगे, जिन्हे कोई भी मात दे दे...

महा:– हां ये बात तो सत्य है और मैने ही तुम्हे बताया था। पर मेरे कमांड में जलीय सैनिक स्थल पर भी उतने ही खतरनाक होंगे, जितने जल में रहते है।

आर्यमणि:– “उम्मीद है सभी अपने दुश्मनों से परिचित हो गये होंगे। एक बात सब ध्यान रखेंगे, ये नायजो वाले कभी भी अपने नए हथियार या तिलिस्म से चौंका सकते है, इसलिए हम सब किसी भी परिस्थिति के लिये तैयार रहेंगे। अब आते है भूमि दीदी के सवाल पर। तो हमारा गुरियन प्लेनेट जाने का मकसद तो सबको बता ही दिया था। सात्त्विक आश्रम पर लगातार साजिश करने वालों को ऐसा सबक सिखाना की वह दोबारा फिर कभी सात्त्विक आश्रम को याद करे तो पेसाब निकल आये।”

“पृथ्वी पर उनके द्वारा मचाए आतंक का पूरा जवाब देना, ताकि दोबारा फिर कभी पृथ्वी पर अपनी नजर नही डाले। अंत में रूही, अलबेली और इवान को हमसे दूर करने की साजिश रचने वाले मुख्य साजिशकर्ता माया, विवियन और उसके पिता मसेदश क्वॉस को उसके किये सजा देना। मुख्य साजिशकर्ता में निमेष और उसकी बहन हिमा भी वहां है, उन्हे भी उनके किये की सजा देना है। हां लेकिन उन सबको गुरियन प्लेनेट पर सजा नही देंगे। बल्कि सबको खींचकर पृथ्वी पर लाना है, और उन सबको यहां पृथ्वी पर सजा देंगे।”

भूमि:– मतलब लड़ाई 2 हिस्सों में होगी क्योंकि रूही को मारने वालों में वो मधुमक्खी की रानी भी तो है जो ओशुन का शरीर लिये घूम रही। वो जो तूने अभी एक नाम लिया था न मदरचोद स्क्वाड (मसेदश क्वॉस) उसका बेटा विवियन भी तो गुरियन प्लेनेट पर नही है।

आर्यमणि:– क्या है दीदी कैसी आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग कर रही।

भूमि:– अरे... उसने नाम ही अब ऐसा मदरचोद रख लिया है तो मैं क्या करूं। तू आगे की बात कर बस...

आर्यमणि:– हां शायद एक के बाद एक युद्ध लड़ना पड़े। लेकिन अभी कुछ कह नही सकते की गुरियन प्लेनेट पर सभी साजिसकर्ता एक साथ मिलेंगे या 2 टुकड़ियों में विभाजित रहेंगे। सबके सामने पूरी बातें बता दी गयी है। जो भी हथियार चुनने है चुन लीजिए। कुछ नया और अलग तरह का हथियार दिमाग में है, तो उसे बताइए। कोशिश करेंगे उस हथियार को बना देने की। जितना वक्त चाहिए उतना वक्त लीजिए। पूरी तैयारी होने के बाद ही हम सब उड़ान भरेंगे।

सभा समाप्त हो रही थी। सब लोग छोटे–छोटे ग्रुप में बंटकर आपस में चर्चा कर रहे थे। पूरी चर्चा भूमि के घर पर ही हो रही थी। आर्यमणि घर के दूसरे हिस्से में चला आया। वह कुछ सोच ही रहा था कि वहां ऋषि शिवम और अपस्यु ठीक सामने आकर खड़े हो गये। आर्यमणि, अपस्यु को देख अपनी बाहें खोलते.... “अति व्यस्त मानस आज हमारे दर पर?”..

अपस्यु:– क्या बड़े जूते भींगो कर मार रहे। खैर अभी मेरे पास वक्त नहीं इन बातों का, कभी और चर्चा कर लेना। अभी मुझे दुनिया का सबसे बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट की जरूरत है, जो दिमाग का ऑपरेशन कर सके।

आर्यमणि:– किसे क्या हो गया?

अपस्यु:– जीविषा को तो जानते ही हो। उसका और उसके पति निश्चल के दिमाग का ऑपरेशन होना है। मेरे लोग ऑपरेशन कर तो रहे है लेकिन मुझे नही लगता की वो लोग सफलतापूर्वक दिमाग के उस हिस्से में घुस सकते हैं, जहां से किसी धुएं के जरिए आंशिक यादों को दिमाग से हटा दिया जाये। ओह हां दरअसल 2 नही 3 ऑपरेशन होने है। निश्चल की बहन सेरिन भी है।

आर्यमणि:– निश्चल वही अंतरिक्ष यात्री न जिसके साथ ओर्जा सफर कर रही थी।

अपस्यु:– हां वही है।

आर्यमणि:– अच्छे समय पर आये हो। मुझे कुछ दिनों के लिये एक अंतरिक्ष यान चाहिए, जिसमे 100–200 लोगों को लेकर यात्रा की जा सके।

अपस्यु:– कुछ मतलब कितने दिन...

आर्यमणि:– बहुत जल्द आऊंगा...

अपस्यु:– हां जल्दी ही आना क्योंकि मैं अगले 3–4 महीने व्यस्त रहूंगा। मठ और सात्विक गांव से बाहर न निकल सकूं। ऐसे में यहां का सारा काम तुम्हे ही देखना होगा।

आर्यमणि:– कहे तो मैं निशांत, ओजल और ओर्जा को यहीं छोड़ जाऊं?

अपस्यु:– बड़े जबतक तुम लौट नही आते, कुछ दिनों के लिये मैं डेविल ग्रुप को अंडरग्राउंड ही रखूंगा। वैसे भी ओर्जा का तुम्हारे साथ होना ज्यादा जरूरी है। उसे ध्यान लगाने में निपुण कर देना। रही बात अंतरिक्ष यान की तो वो हो जायेगा।

“गुरु अपस्यु आपके तो दर्शन होना ही दुर्लभ हो गये है।”... पीछे से पलक टोकती हुई कहने लगी...

अपस्यु:– पलक मैं मिलना तो चाहता था, पर पृथ्वी के रायते ऐसे है कि उसे ही समेट नही पा रहा। कई प्रकार के एलियन और पृथ्वी के सारे विलेन मिलकर अलाइंस बनाए हुये है। वो तो अच्छा हुआ बड़े जाग गया और रातों रात हमारे ऊपर से नायजो का सर दर्द घट गया।

आर्यमणि:– क्या नायजो वाले कुछ और लोगों से हाथ मिलाए हुये थे।

अपस्यु:– तुम चिंता न करो बड़े। जिन लोगों के साथ नायजो वाले काम कर रहे थे, वो सब पृथ्वी पर ही है। वैसे 2 समुदाय को उकसाकर तो तुम्ही ने एलायंस में लाया था.... एक नायजो और दूसरा वो वेमपायर। अपने राजकुमारी के खूनी की तलाश में सबके नाक में दम कर रखा है।

आर्यमणि:– लौटकर आने दे, फिर उन वेमपायर को अच्छा सबक सिखाऊंगा। फिलहाल ऑपरेशन के लिये चले।

अपस्यु:– ऋषि शिवम जी, क्या आप हमारी गैरहाजरी में यहां के लोगों की जरूरतों के समान की लिस्ट तैयार कर लेंगे क्या?

आर्यमणि:– छोटे तू पूरी मीटिंग सुन रहा था क्या?

अपस्यु:– नही आखरी का हिस्सा। अब चले क्या? इस वक्त ऑपरेशन थिएटर में कोई डॉक्टर नही है।

आर्यमणि:– रुक 2 मिनट... महा.. महा..

महा, बाहर आती.... “जी कहिए..”

आर्यमणि:– महा इस से मिलो, ये है गुरु अपस्यु। मेरा छोटा भाई..

महा:– देवर जी कैसे है?

अपस्यु:– भाभी अभी कई उलझनों में हूं, वरना आपको देख तो मुर्दों में जान आ जाये। आपकी तारीफ करते मैं साल गुजार दूं।

महा:– बड़े मजाकिया है।

आर्यमणि:– महा मैं चाहता हूं अपस्यु को भी महासागर से कोई खतरा न हो। यदि नियम बाधित न करे तो क्या तुम मेरे लिये इतना कर सकती हो?

महा, अपस्यु के नजदीक पहुंचकर उसके दोनो कानो के पीछे चिड़कर 2 कदम पीछे हटती... “लीजिए हो गया।”

फिर आर्यमणि, अपस्यु के नजदीक पहुंचा और अपना क्ला अपस्यु के गर्दन के पीछे लगाकर कुछ पल आंखे मूंद लिया..... “लो हो गया। चाहकीली अब तुम्हारी आवाज भी सुन सकती है। वहां के साइंस लैब में सेल बॉडी सब्सटेंस के कई जार तैयार है। पानी के किसी भी हिस्से से चाहकीली को आवाज लगा देना।”

अपस्यु:– तुम कमाल के हो बड़े। अब चले क्या?

महा:– कहां जा रहे है...

महा जबतक अपने सवाल पूरा करती उस से पहले ही आर्यमणि अंतर्ध्यान होकर निश्चल, जीविषा और सेरीन के पास पहुंच चुका था। आर्यमणि बारीकी से तीनो के दिमाग की पूरी जांच करने के बाद, अपस्यु से ब्रेन सर्जरी के एक्सपर्ट टीम को अंदर भेजने के लिये कहा। यूं तो अपस्यु चाहता था आर्यमणि ही ऑपरेट करे, लेकिन आर्यमणि साफ इंकार कर दिया। उसका कहना था सर्जरी वाले कामों में अनुभव की ज्यादा आवश्यकता पड़ती है। खासकर जब बात ब्रेन सर्जरी की हो रही हो।

वहां डॉक्टर आकाश अपनी टीम के साथ पहले से ही थे। कुछ वक्त का ब्रेक उन्होंने लिया था। डॉक्टर आकाश की पूरी टीम जैसे ही ऑपरेशन थिएटर में पहुंची, अपस्यु उनसे एक औपचारिक परिचय करवाकर, आर्यमणि के कहे अनुसार सर्जरी परफॉर्म करने कहा। डॉक्टर आकाश ने लेकिन पहले आर्यमणि से केस पर डिस्कस करना उचित समझा। आर्यमणि ने दिमाग के किस हिस्से में क्या परिवर्तन हुआ है और कहां से किस छोटी चीज को हटाना है वह पूरा का पूरा वर्णन कर दिया।

डॉक्टर आकाश जब आर्यमणि की बातों से पूर्ण रूप से सहमत हो गये, तब उन्होंने ठीक वैसा ही किया जैसा आर्यमणि ने बताया था। काम हो जाने के बाद आर्यमणि वहां से अंतर्ध्यान हो गया और सीधा भूमि के घर पहुंचा। वहां चारो ओर डिस्कशन का माहौल जारी था। तरह–तरह के हथियार के बारे में लोग ऋषि शिवम से डिस्कस कर रहे थे।

उनकी डिस्कशन लगभग पूरी हो चुकी थी। सबसे ज्यादा डिमांड तो भूमि के ओर से ही आया था। भूमि मतलब वहां सभी सामान्य से इंसानों की नेता। जो भूमि की डिमांड वही जया, केशव, चित्रा और माधव की भी डिमांड थी। पीछे से पलक ने भी कह दिया... “जब ऐसे खुराफाती हथियार बना ही रहे हो तो एक, दो एक्स्ट्रा बनवा लेना।”....

तैयारियां फिर तो जोड़ों पर होने लगी। आर्यमणि अंतर्ध्यान होकर एक बार फिर अंटार्टिका महादेश में था। आर्यमणि अंटार्टिका, बिग फूट के देश में बने अपने दोस्त पैट्रिक को याद किया और पैट्रिक ऊपर सतह पर पहुंच चुका था।

आर्यमणि को देखकर पैट्रिक खुश होते.... “आइए, आइए गुरुदेव... आज हमारी गली का रास्ता कैसे भुल गये।“..

आर्यमणि अपने पास रखे वर्ष 1820 की 2 वाइन की बॉटल पैट्रिक के पास रखते.... “मेरे नजर पर तुम्हारे 2 पुराने प्यार (2 वाइन बॉटल) चढ़ गये, वही ले आया हूं।”...

पैट्रिक दोनो बॉटल को अपने सीने से लगाते..... “आह, इसे देखकर तो ऐसा लगा जैसे स्वर्ग को सीने में समेट लिया हूं। इसके बदले में क्या सेवा करूं?”
Interesting update
 

Tri2010

Well-Known Member
2,007
1,894
143
भाग:–182


आर्यमणि:– ज्यादा कुछ नही, मुझे मजबूत धातु के बने एक लाख ढाल चाहिए, जिसके सामने का भाग पर 1 सेंटीमीटर मोटा हीरे की परत चढ़ी हो।

पैट्रिक, अपने हाथ में रखे दोनो बॉटल वापस करते.... “तुम्हे पॉलिसी पता है। हम कोई भी पत्थर बाहर नही निकालते।”

आर्यमणि:– मुझे बस मजबूत रिफ्लेक्टर चाहिए जो खरनाक और घातक लेजर की किरणों को रिफ्लेक्ट करवा सके। मेरे पास और कोई विकल्प नहीं है।

पैट्रिक:– क्या वाकई में सीरियस हो?

आर्यमणि:– तुम्हे क्या लगा, मैं मजाक में मूड में इतनी दूर आया हूं?

पैट्रिक:– नही, ऑटोमेटिक राइफल के युग में कोई ढाल बनवाए तो मजाक ही लगेगा न। यदि लेजर राइफल को भी मात देना हो तो लेजर प्रूफ जैकेट बनवाएगा न की ढाल।

आर्यमणि:– और यदि किसी किरणों का ऐसा घेरा हो जिन्हे तोड़ न पाए, वहां तो रिफ्लेक्टर चाहिए न।

पैट्रिक:– आर्य ऐसे घेरा तो एक ही समुदाय बनाता है, जो पृथ्वी पर छिपकर रहता है। अंटार्टिका का कुछ हिस्सा उन्ही लोगों के पास है। हमारे सिपाही इसलिए तो हार जाते है, क्योंकि वो किरणों का ऐसा घेरा बनाते है, जिनमे जाने के बाद हमारे सभी सिपाही बेबस हो जाते है। उसके बाद उनका क्या होता है पता नही।

आर्यमणि कुछ सोचते हुये..... “मतलब वो इलाका मैं जीत लूं तो वहां का सारा पत्थर मेरा हुआ न?”

पैट्रिक:– “भेड़िया राजा मैं तुम्हारे अंदर पत्थरों की दीवानगी को मेहसूस कर सकता हूं। छोड़ दो इन पत्थरों की दीवानगी को। ये तुम्हे ले डूबेगा। फिर कोई ज्योतिष, कोई भी सिद्धि प्राप्त साधु तुम्हे बर्बाद होने से नही बचा पायेगा। ये पत्थर तुम्हारे ग्रहों की दिशा पल भर में बदलकर तुम्हारे सौभाग्य को दुर्भाग्य में बदल देंगे। तुमने अपने एमुलेट में पहले से ऐसे कई पत्थर लगा रखा है, जिन्हे धारण करने से तुम्हे कभी भी नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऊपर से पत्थरों की इतनी लालच की तुम अपने पास पत्थरों का एक पूरा क्षेत्र रखना चाहते हो।”

“कोई नही, हां तुम वो क्षेत्र जीत लिये तो वह तुम्हारा क्षेत्र हुआ। जाओ जीत लो और जो करना है करो। लेकिन याद रखना किसी दिन जब ये पत्थर तुम पर नकारात्मक प्रभाव डालेंगे तब पत्थर धारण करने के लिये तुम्हारे पास गला नही बचा होगा। ”

आर्यमणि:– तुम कहना क्या चाह रहे हो दोस्त? मैने जो पत्थर धारण किया है वह गलत है?

पैट्रिक:– “हां गलत है। पत्थर को हम लोग एक जीवंत वस्तु मानते है, जो उसके धारण करने वाले किसी भी इंसान के आत्मा से जुड़ जाती है। यूं समझ लो की किसी निष्क्रिय जीवित वस्तु को खुद से जोड़कर उसमे जान डाल दिये हो। फिर तो पत्थर की अपनी भावना होती है। ये भावना उसके धारक के लिये कभी सकारात्मक तो कभी नकारात्मक हो सकती है। अब इसमें कोई ऐसी युक्ति नही जो यह तय कर पाये की पत्थर का हमेशा सकारात्मक प्रभाव ही दिखाए। ये मनमौजी होते है।”

“इनके प्रभाव 99% सकारात्मक ही रहता है। लेकिन मेरे दोस्त जब वो 1% का नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा ना तब तुम्हे ऐसे फेरे में डाल देगा की तुम घनचक्कर बने फिरोगे। हालत कुछ ऐसी होगी की सामने के दरवाजे से आसानी से निकल सकते हो। लेकिन फिर भी दिमाग में खुराफात आयेगा और तुम किसी दीवार को तोड़कर बाहर निकलने की इच्छा रखोगे।”

“जब तुम वो दीवार तोड़ने जाओगे तब पूरा घर ही गिर जायेगा। तुम जीवित रहोगे लेकिन घर के मलवे के नीचे कहीं दबे। वहां से किसी तरह बाहर भी निकल आये तो पता चलेगा की तुम्हारा वो घर अब बेगाना हो गया है। जिंदगी चलती रहेगी। वह पत्थर वापस से अपना सकारात्मक प्रभाव भी दिखाना शुरू करेगा लेकिन जो एक प्रतिशत वाला नकारात्मक प्रभाव पड़ा था न उसी में तुम्हारी जिंदगी पिसती रहेगी।”

आर्यमणि:– यदि ऐसी बात थी तो मुझे आचार्य जी या फिर जल साधना पर बैठे योगियों ने क्यों नही आगाह किया?

पैट्रिक:– “उनसे ट्रक का इंजन भी ठीक करवा लेते। कम्यूटर असेंबल भी करवा लेते। यार साधना में बैठे लोगों को पत्थर का ज्ञान कबसे होने लगा। वह तो बस पत्थर को देखकर उनके अंदर के गुण को भांप सकते हैं, लेकिन हम पहाड़ में रहने वाले लोगों की तरह उन्हे पत्थर का ज्ञान कहां से होगा।”

“अब खुद को ही देख लो। एमुलेट में कई तरह के पत्थर को साथ लेकर घूम रहे, बिना इस बात को जाने की कई प्रकार के पत्थर को तो साथ में भी नही रख सकते। तुम्हारे एमुलेट के एनर्जी स्टोन छोड़कर बाकी सभी पत्थर को निकालकर कहीं स्थापित कर दो। वह पत्थर अपने मूल प्रभाव से कम से कम 4 लोगों का भला तो करेगा ना।”

आर्यमणि, अपना एमुलेट निकालकर उसमे लगा सभी पत्थर पैट्रिक के हाथ में देते..... “लो ये सारे पत्थर मैने तुम्हे ही दिया। करते रहो भला। हां पर मुझे ये बताओ की मेरा एनर्जी स्टोन घातक क्यों नही?”

पैट्रिक:– क्योंकि इस पत्थर की उत्पत्ति पानी की गहराइयों में हुये बड़े टकराव के कारण हुई थी, इसलिए इसका संबंध ग्रहों की दिशा पर निर्भर नही करता वरन धारक के मानसिक मनोस्थिति पर निर्भर करता है। जैसा इसका धारक होगा वैसे ही इस पत्थर की भावना भी होगी।

आर्यमणि:– पैट्रिक तो क्या वजह थी कि पत्थर का जानकार, उन हिस्सों में जीत हासिल नही कर पाया, जहां पत्थरों के प्रयोग से ही उन्हें हराया जाता है?

आर्यमणि अंटार्टिका के उस हिस्से की चर्चा करते हुये ताना दिया जहां कोई दूसरा समुदाय या यूं कहे तो नायजो का कब्जा था।

पैट्रिक:– उन कमीनो (नायजो) के पास धुएं की एक बहुत असीम ताकत है। उसने हमारे जल को दूषित कर दिया था, जिसका नतीजा तो तुम देख ही चुके थे। 30 वर्षों से हम कितनी बड़ी आबादी को कोमा में झेल रहे थे। ऐसा नहीं है कि सिर्फ हम ही पत्थरों के जानकर है। मेरे ख्याल से हमारे दुश्मनों का ज्ञान भी काफी अतुलनीय है।

आर्यमणि:– अच्छा ये बताओ की पत्थरों का जब प्रयोग किया जाता होगा तो तुम उन पत्थरों से किया गया हर काम पता कर सकते हो?

पैट्रिक:– इसमें क्या सर्विलेंस सिस्टम लगा है जो सब कुछ बता दे। हां लेकिन पत्थर अपने पीछे निशान छोड़ते है तो उसके जरिए किसी भी पत्थर का आखरी प्रभाव का पता लगाया जा सकता है। आर्य अब सही बात बताओगे की तुम्हे इतनी सारी रिफ्लेक्टर ढाल क्यों चाहिए? आज तुम पत्थरों के विषय में इतनी गहराई से क्यों पूछ–ताछ कर रहे?

आर्यमणि:– सब बताऊंगा लेकिन पहले चलो वो क्षेत्र जीत आते है, जहां कुछ बेकार से लोग कब्जा जमाए बैठे है।

पैट्रिक:– पागल हो क्या? मुझे सेना को ले जाने के लिये अनुमति चाहिए होगी।

आर्यमणि:– और मैं ये कहूं की ये काम सिर्फ हम दोनो कर लेंगे तो...

पैट्रिक:– तो मैं तुम्हे पागल समझूंगा। अब सच बताओ भी आर्य...

आर्यमणि क्यों सुने। उसे तो उस क्षेत्र में कब्जा चाहिए था जहां पत्थर के इतने भंडार थे कि जितने चाहो उतने रिफ्लेक्टर ढाल बना लो। ऊपर से नायजो अब भी पृथ्वी पर थे, भला आर्यमणि ये कैसे बर्दास्त कर सकता था। वैसे तो पैट्रिक नही जाना चाहता था लेकिन आर्यमणि ने उसे जड़ों में पैक किया। जड़ों में पैक करने के बाद उस जड़ों के बड़े से गोलाकार गेंद को हवा में ऊपर उठाया और तेज चिल्लाते हुये कहने लगा... “तुम बस दिशा सोचो और हवा के सफर का आनंद लो।”

पैट्रिक:– आर्य किसी ने तुमसे आज तक कहा है कि तुम पूरे पागल हो।

जैसे ही पैट्रिक ने आर्यमणि को पागल कहा जड़ों की गेंद हवा में कई फिट ऊंचा गया और तेजी से नीचे आया। जमीन से जब एक इंच दूर था तभी वो जड़ों का गेंद एक बार फिर हवा में स्थिर हो गया। पैट्रिक अपना आंख मूंद चुका था। उसकी धड़कने तेज हो चली थी और मन के भीतर पूरा अंधेरा छा चुका था।

पैट्रिक अपनी आंख खोलकर जब खुद को सुरक्षित पाया तब बिना कुछ बोले उस दिशा को देखने लगा जहां उन्हें जाना था। वह गोला हवा में तेजी से आगे बढ़ा और उसके पीछे–पीछे आर्यमणि भी चला। सुबह से शाम ढल गयी और शाम से रात। रात के बाद भोर और फिर चढ़ते दिन के साथ वह गोला रुका। आर्यमणि ने जड़ों को खोल दिया और पैट्रिक नीचे बर्फ पर...

पैट्रिक:– दौड़ते हुये 2200 किलोमीटर का सफर तय कर गये। यही है सीमा इलाका। इसके 100 मीटर आगे जाते ही हम गोल घेरे में फसे होंगे।

आर्यमणि, मंद–मंद मुस्कुराते हुये अपने कदम आगे बढ़ा दिया। पैट्रिक को यकीन नही हो रहा था कि आर्यमणि जान का खतरा उठाने को तैयार है। आर्यमणि बड़े आराम से उस क्षेत्र में दाखिल हुआ। जैसे ही वह सीमा के उस पार पहुंचा, नायजो के गोल घेरे उसके पाऊं में थे।

आर्यमणि ने छोटा सा कमांड दिया और पाऊं के नीचे से जड़ें निकली और आर्यमणि को खींचकर नीचे पानी में ले गयी। गोल घेरे की किरणे पानी के कुछ नीचे तक असरदार तो थी लेकिन जैसे ही ऊपर से सतह पर पुनः एक बार बर्फ की हल्की परत जमी, पानी के नीचे गोल घेरे का असर खत्म हो गया।

आर्यमणि पानी के अंदर से ही उस क्षेत्र के मध्य हिस्से में पहुंचा जहां आंखों के सामने कई नायजो अपने काम में लगे थे। आर्यमणि बर्फ फाड़कर एकदम से उनके बीच खड़ा होते.... “क्यों बे नजायजो, जब मैंने पृथ्वी से तुम्हारे सभी सगे संबंधी को भागा दिया फिर तुम लोग कैसे अब तक यहां काम कर रहे।”..

एक नायजो:– तू पागल तो नहीं जो यहां चला आया। तू जानता भी है ये किसका क्षेत्र है?

आर्यमणि ने जैसे हवा को ही अपना हाथ बना लिया हो। बिना अपनी जगह से हिले नजरों का इशारा किया और एक कराड़ा तमाचा उस बोलने वाले के गाल पर पड़ा..... “किसी ने तमीज सिखाया की नही। पहले अपना परिचय दो। उसके बाद यहां की भिड़ में तुम्हारा क्या ओहदा है वो बताओ, फिर तब कहीं जाकर धमकी दो।”...

जैसे ही उस नाजयो को थप्पड़ पड़ा, उसके होश ठिकाने आ गये। वह नाजयो अपना परिचय देते.... “मेरा नाम मनडाले है। और यहां का कर्ता धर्ता मैं ही हूं। मै नही जानता की तुम कौन हो लेकिन जो भी हो गलत जगह पर खड़े हो।”..

आर्यमणि:– हां जगह तो पूरी गलत लग रही है लेकिन तुम सबके लिये। पृथ्वी से नायजो के दिन पूरे हुये, अब या तो तुम्हारे पास विमान हो तो गुरियन प्लेनेट भाग जाओ या फिर तुम्हारी आत्मा को तुम्हारे शरीर से जुदा कर देते हैं।

मनडाले:– इस इंसान को अभी मारो और सब काम पर लग जाओ...

जैसे ही मनडाले ने हुक्म दिया लेजर की किरणे चल पड़ी। आर्यमणि वायु विघ्न मंत्र का प्रयोग तो किया लेकिन मंत्र जैसे किसी काम के न रहे हो। लेजर की किरणे आर्यमणि से टकराई। वो तो आर्यमणि था जिसके शरीर का हर नब्ज हर टॉक्सिक को सोखने के लिये सक्षम था, वरना उसकी जगह कोई दूसरा होता तो जरूर जान चली गयी होती।

आर्यमणि ने हाथों से इशारे किये परंतु वहां कोई जड़ नही निकला। आर्यमणि किस जगह पहुंचा था और ये किस प्रकार के तिलस्मी नायजो थे, वह समझ से पड़े था। खैर आर्यमणि की अपनी शक्ति थी और उसी के साथ वह आगे बढ़ा। न कोई मंत्र ना कोई जड़ बस रौंगटे खड़े करने वाली दहाड़ थी और पंजों में पूरा टॉक्सिक बह रहा था।

आर्यमणि तेजी से बढ़ते हुये मनडाले के करीब पहुंचा और टॉक्सिक क्ला के एक तेज वार से उसका सर हवा में उछाल दिया। अपने मुखिया का कटा सर देख वहां के नायजो जैसे पागल हो चुके थे। वहां खड़ा हर नायजो चिल्लाने लगा और उस जगह के कोने–कोने से विंडिगो सुपरनैचुरल निकलने लगे।

देखते ही देखते उनकी तादाद बढ़ती ही जा रही। उनकी तादात इतनी थी कि पाऊं रखने तक का जगह न रहा। विंडीगो लागातार हमला कर रहे थे और जवाब में आर्यमणि भी उन पर हमला कर रहा था। एक साथ कई सारे विंडिगो आर्यमणि के शरीर पर कूदते और हाई–टॉक्सिक का झटका जैसे आर्यमणि के पूरे शरीर पर रेंग रहा हो। वह झटका खाकर विंडिगो पूरी तरह से शांत होकर जमीन पर बिछ जाते।

जितने मर रहे थे उस से ज्यादा बाहर निकल रहे थे। तभी आर्यमणि के कानो में आवाज गूंजी। आवाज जो इतनी जानी पहचानी थी कि वह आंख मूंदकर खुद की आत्मा को हवा की दिशा में विस्थापित कर दिया। आत्मा हवा की दिशा में विस्थापित तो हुई लेकिन जैसे–जैसे वह हवा के पीछे जा रही थी, पूरा मनहुसियत के नजारे दिखा रही थी। आत्मा आवाज की दिशा में काफी तेज चलती गयी और जब आवाज निकालने वाले के पास पहुंचा आर्यमणि एक बार फिर वियोग में था।

इधर आर्यमणि ने जैसे ही आंख मूंदा, उसका शरीर स्थिर हो गया। हाई टॉक्सिक पूरे बदन में फैलाने के कारण जो भी विंडिगो आर्यमणि के शरीर से टकराते उसका हृदय टॉक्सिक की चपेट में आने के कारण बंद हो जाता। हां लेकिन विंडिगो कूदने के साथ ही अपना पंजा चला देता और आर्यमणि के शरीर से उसका मांस तक निचोड़ लेता।

आर्यमणि जहां खड़ा था वहां चारो ओर विंडिगो की इतनी लाशों का ढेर बन गया की आर्यमणि का पूरा शरीर ही उस ढेर ने छिपने लगा था। विंडीगो ठीक से हमला न कर पाने की स्थिति में 2000 विंडिगो को केवल वहां से लाश हटाने के काम में लगाया गया और हर सेकंड आर्यमणि के ऊपर तकरीबन 500 क्ला बदन को नोच रहे थे।

महा कहीं दूर बैठी थी जब उसे आभाष हुआ की आर्यमणि की जान खतरे में है और उसके अगले ही पल महा अपने पति के नजदीक थी। हैरतअंगेज नजारा था। महा के ऊपर भी हमला होता उस से पहले ही महा अपने कलाई पर बंधे छोटे से धनुष को जैसे ही अपने हथेली में ली वह पूरा आकर में आ गया और बिना कोई वक्त गवाए महा ने धनुष को नमन कर उसके धागे को खींच दिया।

जैसे ही धागा को खींचा गया असंख्य तीर हवा में गोल–गोल चक्कर काटते हुये हर विंडिगो के सीने में घुसकर ह्रदय को चीड़ देते और वह मरकर नीचे गिर जाते। हां लेकिन जो आगे हुआ वह महा को भी अचरज में डाल गया। उस जगह में कौन सा और कैसा तिलिस्म था वह महा को भी नही पता। लेकिन विंडिगो की जितनी लाशें गिरी थी उसके दोगुना विंडिगो कोने–कोने से निकल रहे थे।
Action update
 

Tri2010

Well-Known Member
2,007
1,894
143
भाग:–183


महा कहीं दूर बैठी थी जब उसे आभाष हुआ की आर्यमणि की जान खतरे में है और उसके अगले ही पल महा अपने पति के नजदीक थी। हैरतअंगेज नजारा था। महा के ऊपर भी हमला होता उस से पहले ही महा अपने कलाई पर बंधे छोटे से धनुष को जैसे ही अपने हथेली में ली वह पूरा आकर में आ गया और बिना कोई वक्त गवाए महा ने धनुष को नमन कर उसके धागे को खींच दिया।

जैसे ही धागा को खींचा गया असंख्य तीर हवा में गोल–गोल चक्कर काटते हुये हर विंडिगो के सीने में घुसकर ह्रदय को चीड़ देते और वह मरकर नीचे गिर जाते। हां लेकिन जो आगे हुआ वह महा को भी अचरज में डाल गया। उस जगह में कौन सा और कैसा तिलिस्म था वह महा को भी नही पता। लेकिन विंडिगो की जितनी लाशें गिरी थी उसके दोगुना विंडिगो कोने–कोने से निकल रहे थे।

इस से पहले की वह हमला करते महा ने एक बार फिर धनुष की डोर को खींच दिया और देखते ही देखते बाहर निकले सारे विंडिगो पूर्ण रूप से निकलने से पहले ही मर चुके थे। परंतु यह जगह वाकई में जैसे जान लेने के लिये बनाई गयी थी। जितने मरे फिर से उसका 2 गुना खड़ा हो गया। यह आखरी हमला था जो महा अपने धनुष से कर सकती थी। उसने धनुष को एक बार फिर नमन किया और इस बार जब धागा खींची तब सभी विंडिगो उस जगह की दीवार से ऐसे चिपके थे मानो विंडिगो का पंडाल बना दिया हो। एक के ऊपर एक, किसी के कंधे में तीर लगा हुआ था तो किसी के पाऊं में और सभी जाकर दीवार से चिपके हुये थे।

शायद महा का दिमाग काम कर गया था। इस बार किसी भी विंडिगो को नही मारी तो उनकी जगह कोई और आया भी नही। पूरी जगह अजीब से चींखों से गूंज रही थी। कुछ देर बाद जब आर्यमणि की आंख खुली तब वह मंद–मंद मुस्कुरा रहा था।। आर्यमणि का मुस्कुराना महा के लिये किसी तेजाब से कम न था, जो पल में ही अंतरमन को जला दिया। कुछ बोली तो नही लेकिन अगले ही पल पाऊं के नीचे की बर्फ पूरी धंस गयी और दोनो पानी के अंदर थे।

पानी के अंदर जब काफी गहराइयों में दोनो पहुंचे तब आर्यमणि ने महा को ऊपर देखने के लिये कहा। जब महा ऊपर देखी तब उसके लिये आज का एक और अचंभा सामने था.... “पतिदेव ये क्या मकरजाल प्रतिबिंब पानी में दिख रहा। ऐसा लग रहा है प्रतिबिंब पानी के एक किलोमीटर अंदर तक घुसा है। ये कैसे संभव है?”

आर्यमणि:– किसकी रचना है ये। तुम जो देख रही हो वो कोई मकर जाल नही है बल्कि इंसानी दिमाग का ढांचा तुम्हे दिख रहा है। ये ढांचा कोई प्रतिबिंब नही बल्कि विपरीत दुनिया में बनी ढांचा है जिसकी रूप रेखा पानी में दिख रही है।

महा:– पतिदेव मैं समझी नहीं। इतना बड़ा इंसानी दिमाग किसका है? ये विपरीत दुनिया क्या है? और वो मेरे हुये शरीर वाले जीव कौन थे? आप उन जीवों के बीच फंसे थे फिर भी कहां ध्यान लगाकर गुम हो गये थे?

आर्यमणि:– अरे रुको–रुको इतने सारे सवाल एक साथ पूछ ली। ऊपर जो तुमने देखा था वो विंडिगो सुपरनैचुरल थे। और ये जो मस्तिस्क की रचना तुम देख रही हो, वह मूल दुनिया जिसमे हम रहते हैं, वह आईने का एक भाग है जिसका प्रतिबिंब विपरीत दुनिया है। उसी विपरीत दुनिया में यह मस्तिष्क बना हुआ है जिसका रूप रेखा पानी के अंदर दिख रही है। हो ना हो हम जिस जगह खड़े थे वह भी किसी मस्तिष्क संरचना में खड़े थे जहां मेरी बहुत सी सिद्धि काम न आयी।

महा:– पर ये इतनी बड़ी मस्तिष्क की रचना यहां क्यों बनाई हुई है?

आर्यमणि:– इसे बाद में समझते हैं, फिलहाल हम ऊपर सतह पर जायेंगे। और ये तुम्हे कौन सी सिद्धि मिली है कि तुम मेरे पीछे कहीं भी चली आती हो।

महा, आर्यमणि को आंखे दिखाती..... “पतिदेव ऐसे नही बात किजिए जैसे मैं आपके गले पड़ी हूं। मुझे जब–जब आभाष होगा आप खतरे में है, मैं बिना कुछ सोचे आपके पास पहुंच जाऊंगी”...

बात करते हुये दोनो सतह पर पहुंच चुके थे। पैट्रिक वहीं सीमा पर बैठा आर्यमणि का इंतजार कर रहा था। आर्यमणि के साथ महा को आते देख.... “गये थे एक आ रहे हो दो। ये कैसा चमत्कार है?”..

आर्यमणि:– इसे चमत्कार नही प्यार कहते है पैट्रिक।

पैट्रिक:– तुम्हे जिंदा देख खुशी हुई। तुम दोनो का प्यार लंबा चले। तो हो गया? जो करने गये थे उसमे कामयाबी मिल गयी?

आर्यमणि:– सोचा तो था कामयाब रहूंगा लेकिन जिन दुश्मनों से लड़ने का सोचकर गया था, वो लोग वहां नही थे, बल्कि वहां तो अलग ही रायता फैला है।

पैट्रिक:– कैसा रायता?

आर्यमणि:– फिर कभी विस्तार से समझाऊंगा। अभी हमे यहां से चलना चाहिए।

इस बार जाने का सबसे तेज मध्यम लिया। तीनो ही अंतर्ध्यान होकर उसी पॉइंट पर पहुंचे जहां आर्यमणि और पैट्रिक मिले थे। यूं तो पैट्रिक विस्तार से इस अंतर्ध्यान की सिद्धि के बारे में सुनना चाहता था किंतु आर्यमणि उसे संछिप्त विवरण करने के बाद वापस से अपने 1 लाख ढाल के विषय में बात करने लगा।

पैट्रिक आर्यमणि की बात मानकर एक लाख ढाल बनाने के लिये राजी हो गया। बदले में केवल उसने अपनी कीमत में तरह–तरह के पेड़ पूरे प्रदेश में मांग लिया, जो वह बर्फ के नीचे की भूमि पर कृत्रिम तरीके से बड़ा नही कर सकते थे। आर्यमणि पहले तो न नुकुड़ किया बाद में महा के समझाने पर आर्यमणि ने बिग फूट के पूरे प्रदेश में कई दुर्लभ पेड़ एक बार में उगा दिया। पैट्रिक तो आर्यमणि को उसी वक्त नमन कर लिया।

एक लाख ढाल की डिलेवरी 8 दिन बाद की थी। हां लेकिन जब आर्यमणि, पैट्रिक से विदा ले रहा था तब पैट्रिक ने उसे एक छोटा सा यंत्र दिया। यह यंत्र पत्थर के 2 मानकों पर काम करता था। पहला कोई पत्थर यदि ग्रहों की दिशा को बदल सकता है, तब यह यंत्र सूचित कर देती। दूसरा मानक था पत्थर का नकारात्मक सूचक। आर्यमणि अपना तोहफा उठाया और महा के साथ अंतर्ध्यान हो गया।

एक बार फिर आर्यमणि लंबी सी महफिल में था, जहां उसने सबको खुशखबरी देते हुये बता दिया की एक लाख रिफ्लेक्टर ढाल 8 दिन में मिल जायेगा। जब तक इन 8 दिनो में भूमि के मन मुताबिक हथियार को तैयार करना था। खैर हथियार का प्रोडक्शन शुरू करने में कोई परेशानी थी नही। उसे तो गैर कानूनी तरीके से अपने ही एम्यूनेशन फैक्ट्री में करवा लिया जाता।सबसे बड़ी चुनौती थी वैसा हथियार डिजाइन करने से लेकर तैयार करके सफल परीक्षण कर लेना।

आर्यमणि अपने हाथ खड़े कर चुका था, क्योंकि वह इसका एक्सपर्ट नही था। माधव और चित्रा ने हथियार डिजाइन करने की जिम्मेदारी उठाई। हथियार का परफेक्ट ढांचा तैयार करने की जिम्मेदारी महा ने उठा लिया।जरूरत एक आईटी प्रोफेशनल की थी, जो हथियार में मनचाहा कमांड सेट कर सके। आर्यमणि के लिये यह कोई बड़ा काम नही था, एक कमाल के आईटी प्रोफेशनल को आर्यमणि जानता था, जो इस वक्त लगभग अंडरग्राउंड थी। बिना कोई देर किये आर्यमणि उन सबके बीच अपस्यु की पत्नी ऐमी को ले आया।

हालांकि ऐमी पुराने अल्फा पैक से काफी घुली मिली थी, लेकिन अभी के माहौल में वह केवल पलक को जानती थी, जिसके साथ वह एक साल के करीब रही थी। आर्यमणि ऐमी को उन सबके बीच बिठा दिया। लगभग सारा काम बांटकर आर्यमणि एक शांत कमरे में पहुंचा और वहां से ध्यान लगाना शुरू किया।

आर्यमणि जब ध्यान लगाना शुरू किया। आज उसे पता था कि वह कहां से ध्यान लगाना शुरू करेगा। आर्यमणि पूर्ण ध्यान में खोया था। देखते–देखते वह अनंत गहराई में गया। वहां से फिर अंटार्टिका के उस मस्तिष्क संरचना में पहुंचा जहां से उसे रूही की आवाज सुनाई दी थी।

अनंत गहराइयों के नीचे काले अंधेरे सायों के बीच बसी एक दुनिया। चारो ओर का ऐसा माहौल मानो मनहुसियत ने चारो ओर अपना डेरा जमा लिया हो। खंडहर और पहाड़ों की दुनिया। चिलचिलाते धूप में बड़े–बड़े शिकारी चिड़िया आकाश में मंडराते। कुल मिलाकर विचलित करने वाली जगह। चारो ओर की पूरी झलक लेने के बाद आर्यमणि को पता था कि उसे कहां जाना है।

आर्यमणि उसी क्षण अंतर्ध्यान होकर सीधा पाताल लोक के भू–भाग पहुंचा। नभीमन अपना उत्तराधिकारी चुनने के बाद अपनी सेवा यहां के जीव जंतु को दे रहा था। आर्यमणि को एक दम से सामने प्रकट होते देख नाभिमन मुस्कुराते हुये उसका स्वागत किया.... “आओ गुरुदेव आओ। मेरी याद खींच लायी या किसी काम से आये हो?”..

आर्यमणि:– एक जरूरी काम करना था और उसी दौरान आपकी याद आ गयी।

नाभीमन:– बहुत खूब तो ऐसी क्या बात हो गयी जो हमारी याद तुम्हे इतनी दूर खींच लायी...

आर्यमणि:– मेरा पैक, जो इसी भू–भाग से कहीं खो गया था?

नाभिमन:– जहां तक मुझे पता है कि तुम्हारा पैक समाप्त हो गया था। अब ये मत कहना की इस पूरे भू–भाग पर तुमने मायाजाल फैलाया था।

आर्यमणि:– पूर्व महाराज आप जिसे मायाजाल समझ रहे है, वह एक सम्पूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार था। उसे मैने नही बल्कि इस क्षेत्र का एक प्रतिबंधित तांत्रिक ने वह मायाजाल फैलाया था।

नाभिमन:– हां उस प्रतिबंधित तांत्रिक के दादा–परदादा को मैं जानता था। उसकी तांत्रिक महासभा को मेरे पिताजी ने ही तो प्रतिबंधित किया था। जो मै नही जानता हूं वो बताओ। ये सम्पूर्ण मायाजाल सिद्ध द्वार क्या है?

आर्यमणि पूर्ण विस्तार से इस पर चर्चा करने के बाद अपनी मनसा जाहिर करते हुये कहने लगा.... “आपके पाताल लोक में एक बहुत बड़ा पंछी है। उसके पंख के बीच में जगह–जगह छेद है। अपने चंगुल में वह हाथी को भी दबोच ले। उन्ही पंछियों का जहां बसेरा है, वहीं मेरा पैक है। उन्हे तो खो ही चुका हूं, कम से कम उनके शरीर से दुष्ट आत्मा के मुक्त करवाकर उनका अंतिम संस्कार ही कर दूं”

नाभीमन:– “आर्य तुम विपरीत दुनिया जाने की बात कर रहे हो। पर इसमें मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता। वो पंछी विपरीत दुनिया से पाताल लोक लाये जरूर गये थे, लेकिन जिन्होंने ये काम किया उन्होंने कभी किसी से इस बात की चर्चा नही की कैसे इन्हे विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाया गया था।”

“जहां तक मुझे पता है इन 2 दुनिया के बीच केवल वो महाजनिका ही थी जो टेलीपोर्ट कर सकती थी, जिसका राज भी तुमने खोल दिया। या तो तुम उसी की तरह कोई द्वार खोल लो या फिर कोई और उपाय ढूंढो। हम्म... उपाय... उपाय... उपाय”

आर्यमणि:– क्या हुआ आप यूं उपाय पर क्यों अटक गये?

नभीमन:– शायद मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं।एक काम करो जबतक तुम गुरुयन प्लेनेट से लौटो तब तक मैं विपरीत दुनिया में जाने के उपाय ढूंढता हूं?

आर्यमणि:– क्या कोई ऐसा उपाय है क्या?

नभीमन:– हां उपाय तो है, परंतु उसके लिये कुछ जरूरत के दुर्लभ समान लगेंगे, जिसे ढूंढने में काफी वक्त लगेगा। और कुछ जानकार लोगों को भी अपहरण कर यहां लाना होगा। तब कहीं जाकर उम्मीद है कि मैं तुम्हे विपरीत दुनिया में जाने का एक सरल उपाय बता सकूं।

आर्यमणि:– “जानते हो आप, अभी जितनी अमेया मुझे प्यारी है, उस से कहीं ज्यादा मुझे अलबेली और इवान प्यारे थे। दोनो ही मेरे बच्चे समान थे। कैसा लगेगा जब कोई अपने बच्चे को अपने आंखों के सामने मरते देखे। अपनी प्यारी पत्नी को अपने आंखों के सामने मरते देखे। बदले की आग में जल रहा हो पर उस से ज्यादा अभागा कौन होगा जो अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार तो नही कर पाया।”

“और कितना मैं अपनी बेबसी की कहानी बताऊं। सबसे घोर विडंबना तो यह है कि मेरी रूही, इवान और अलबेली के शरीर में किसी दुष्ट आत्मा का वाश है। जब भी मैं ये बात सोचता हूं मेरा खून खौल जाता है। मेरा बस चले तो मैं अभी अपने परिवार के शरीर से हर दुष्ट आत्मा को बाहर निकाल उनके शरीर का दाह–संस्कार करूंगा। ऐसे में एक उम्मीद की किरण दिखी और आप चाहते है कि मैं पहले सारा जहां घूम आऊं और बाद में अपने परिवार के पास पहुंचूं।”

नाभिम:– “पूरी श्रृष्टि अपने नियम अनुसार चलती है। जल्दबाजी में हम कुछ भी नही कर सकते आर्य। तुम पहले भी देख चुके हो की यदि विपरीत दुनिया का द्वार इंच इतना भी खुला रह गया तो वहां से कितनी तबाही मूल दुनिया में आ सकती है। मुझे पहले कभी विपरीत दुनिया का ख्याल तक नही आया इसलिए अब तक वहां जाने के रास्तों के विषय में कभी खोज नही किया।”

“आज तुम्हारी वजह जानकर समझ में आया की तुम्हारा वहां जाना कितना जरूरी है। इसलिए दिमाग में आये उस उपाय पर पूरे शोध करने का विचार कर रहा हूं। यदि मुझे तुम्हारी भावना का आभाष न होता तो मैं साफ मना कर चुका होता। आर्य मुझ पर दवाब न बनाओ। तुम अपना काम करके लौटो जबतक मैं उपाय पर काम करता हूं।”

आर्यमणि:– हम्मम... आप सही है। मुझे धैर्य रखना होगा। ठीक है आप उपाय पर काम कीजिए, जब तक मैं उन नलायकों पर नकेल कस आता हूं जो न जाने कितने वर्षों से पृथ्वी को मात्र अपना प्रजनन स्थान समझ रखा था और यहां पर बसने वालों को महज कीड़े–मकोड़ों से ज्यादा न कुछ समझा।
Amazing update
 

Tri2010

Well-Known Member
2,007
1,894
143
भाग:–184


नभीमन:– तुम यशस्वी रहो। आर्य एक मेरी भी गुजारिश है। जितनी भावना तुम्हे अपने परिवार के लिये उतनी ही भावना मुझे अपने साम्राज्य के खोए गौरव का है, जिसका दोषी मैं ही था। तुम मेरी बात समझ रहे हो ना...

आर्यमणि:– हां मैं समझ रहा हूं महाराज। मेरा वादा है आपसे की आपके साम्राज्य के गौरव को वापस लाने की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं। तब तक आप भी धैर्य बनाए रखिए और देह त्याग नही कीजिएगा...

नभीमन:– तुमने बोल दिया तो अब मैं युगों तक इंतजार करता रहूंगा। बस वो मेरा आखरी दिन होगा जब मैं नाग दंश को वापस अपने साम्राज्य में आते देखूंगा।

नभीमन अपनी बात कहते भावना विभोर हो गया। आर्यमणि ने उसके आंसू पोछे। दोनो के बीच थोड़ी और औपचारिक बातें हुई। अपने पिटारे नभीमन ने आर्यमणि को कुछ और उपहार दिये। आर्यमणि उन उपहारों को देख खुश हो गया। आर्यमणि वहां से वापस न लौटकर सीधा महासागर के तल में योगियों के प्रदेश पहुंचा। एक बार फिर ध्यान पर बैठने से पहले अल्फा पैक तक सूचना पहुंचा दिया की जब चलने के लिये तैयार हो जाओ, सूचना कर देना। आर्यमणि वहां अपनी साधना पर बैठा और इधर अल्फा पैक के सदस्य गुरियन प्लेनेट पर जाने की तैयारी में जोड़ों से जुट गये।

अल्फा पैक और सहयोगी दिन रात एक करके कई तरह के हथियार पर काम कर रहे थे। महा एक कुशल रणनीतिज्ञ थी जिसने हथियारों के हिसाब से अपने सेना की सजावट की योजना बना चुकी थी। हथियार डिजाइन करने से लेकर ऑटोमेटिक कमांड सेट करने में लगभग 8 दिन लग गये। बृहत पैमाने पर उन हथियारों को बनाने में अगला 5 दिन लग गया। चौदवे दिन सभी उड़ान भरने के लिये तैयार थे।

इसी बीच महा, पैट्रिक से एक लाख रिफ्लेक्टर ढाल की डिलेवरी ले चुकी थी। पैट्रिक एक कदम आगे बढ़कर अपनी दोस्ती निभाते, न सिर्फ एक करोड़ रिफ्लेक्टर ढाल दिया बल्कि लेजर तथा अन्य भीषण किरणों से बचने के लिये उसने 4 लाख बुलेट प्रूफ और लेजर प्रूफ सूट भी भेंट स्वरूप दे दिया। पूछने पर पता चला की सेना के लिये उनके पास ऐसे सूट की कोई कमी नही थी।

वहीं चैत्र मास में 11 दिन तक आर्यमणि ने देवी दुर्गा की साधना की थी। अपनी साधना से उठने के बाद उसने देवी दुर्गा की चरणों से गीली मिट्टी का विशाल भंडार उठाया और अंतर्ध्यान होकर सीधा नाग–लोक के भू–भाग पहुंचा। वहां उसने शेर माटुका और उसके परिवार से मिलकर इशारों में उसने अपनी योजना समझा दिया।

शेर माटुका सर झुकाकर पहले तो मिट्टी के सामने मानो नमन किया हो फिर ऊंची और लंबी दहाड़ के साथ उसने आर्यमणि के साथ जैसे युद्ध लड़ने की घोषणा कर दिया हो। शेर मटुका को लेकर आर्यमणि अंतर्ध्यान होकर सीधा एक बड़े से अंतरिक्ष विमान में पहुंचा। आर्यमणि पहली बार किसी अंतरिक्ष विमान में था। जगह मांग के हिसाब से भी कहीं ज्यादा बड़ी थी। इतनी बड़ी की आराम से उसपर 10 हजार लाख सैनिक सवार हो जाते।

आर्यमणि साधना पर बैठने से पहले ही अपस्यु से संपर्क कर चुका था। आर्यमणि ने जैसा बताया था बिलकुल एक हिस्सा उसी हिसाब से कर दिया गया था। पूर्णतः शुद्ध, पूर्णतः अभिमंत्रित और हवन–यज्ञ के पूर्ण समान के साथ। आर्यमणि जैसे ही उस हिस्से में पहुंचा, सही दिशा और सही स्थान का चुनाव करके अपने साथ लाये मिट्टी को वहां रख दिया।

उस स्थान पर पहले से ही देवी दुर्गा की एक सुंदर प्रतिमा स्थापित थी, जिसके चरणों में बैठकर आर्यमणि उन मिट्टी से छोटे–छोटे शेर का निर्माण करने लगा। 11 दिन की साधना और 2 दिन तक मिट्टी के शेर के निर्माण करने के बाद आर्यमणि भी चौदहवे दिन उड़ान भरने के लिये तैयार था।

सुबह–सुबह ही पूरा अल्फा पैक और उनके सहयोगियों को लेकर ऋषि शिवम उस विमान तक पहुंच चुके थे। आर्यमणि खुद बाहर आकर सबका स्वागत किया और सुबह के 9 बजे उनका विमान उड़ान भर चुकी थी। विमान को कैसे चलाना है उसका प्रशिक्षण पिछले 13 दिनो से चल रहा था। महा के कुशल पायलट 4 दिन में ही विमान उड़ाने की पूरी बारीकियों को एलियन से सिख चुके थे और एक साथ 21 विमान ढाई लाख सैनिक, तरह–तरह के हथियार और विस्फोटक के साथ उड़ान भर चुकी थी।

अंतरिक्ष की सीमा में घुसते ही पूरा अल्फा पैक अपने सभी सहयोगियों के साथ बड़े से राउंड टेबल पर बैठा था। सभी आपस में बात कर रहे थे। कुछ लोग पहली बार किसी युद्ध में हिस्सा ले रहे थे इसलिए उत्साहित भी उतना ज्यादा थे। सबके उत्साह और आपस के बातचीत को शांत करते हुये आर्यमणि उन सबके बीच बैठा।

आर्यमणि:– हम किस प्रकार के दुश्मन और किन हालातों का सामना करने जा रहे हैं, उसपर पहले ही चर्चा हो चुकी है। अभी हम इसलिए बैठे हैं ताकि एक जो सबसे ज्यादा परेशान करने वाला उनका हथियार है, हाइबर मेटल से बने आर्मर, उन्हे कैसे भेदा जाये। उम्मीद है इस पर कोई न कोई नतीजा निकल आया होगा।

पलक:– मेरे पास कुछ हाइबर धातु थे, उन पर हर किसी ने प्रयोग करके देख लिया। यहां तक की उसे सात्त्विक आश्रम भी ले गये लेकिन वहां से भी परिणाम वही निकला, इस धातु को किसी भी विधि तोड़ा नही जा सकता।

आर्यमणि:– और मंत्रों का असर। यदि कोई व्यक्ति आर्मर पहना हो तो क्या मंत्र उन पर असर करेगी?

ओजल:– नही बॉस, यदि आर्मर के पीछे कोई छिपा है तो मंत्र उसपर असर नही करती। हां लेकिन शरीर का जो भाग हाइबर मेटल के बाहर होगा उन पर मंत्र असर तो करेगी किंतु कुछ हाइबर मेटल के कारण बेअसर हो जायेगी।

आर्यमणि:– क्या ये धातु अपने आप अभिमंत्रित हो जाती है, जिसपर किसी भी प्रकार का मंत्र का काट अपने आप मिल जाता है।

ओजल:– हां ऐसा ही कुछ समझ लीजिए। यह धातु अपने आप में अलौकिक है। महाभारत में कर्ण के कवच का उल्लेख मिलता है, जिसे सूर्यदेव ने दिया था, वह कवच इसी धातु की बनी हुई थी। यह हाइबर धातु सदियों से सूर्यदेव की अग्नि में तपकर तैयार होता है, इसलिए इसका स्वरूप ऐसा है।

महा:– क्या मैं वरुण देवता को नमन कर एक बार इस धातु को नष्ट करने की कोशिश करूं क्या?

आर्यमणि, अजीब सी नजरों से घूरते.... “हां–हां कर लो कोशिश।”

महा:– ऐ जी ऐसे हीन नजरों से घुरकर क्यों कह रहे?

आर्यमणि:– पहले तुम अपना काम तो कर लो, फिर मैं अपनी नजरों का कारण भी बताता हूं।

महा ने अपने सर के जुड़े से एक छोटा सा पिन निकाली। जैसे ही उस छोटे से पिन को अपने हथेली पर रखी वह बड़ा सा दंश में तब्दील हो गया। महा के इस कारनामे पर ओजल बिना कहे रह नही पायी..... “दीदी कितने गुप्त हथियार अपने बदन में छिपा रखी हो?”.... ओजल के इस सवाल पर महा प्यारी सी मुस्कान के साथ उसे देखी और पाने काम में लग गयी।

वरुण देव को नमन करने के बाद महा ने अपना दंश चलाया। दंश हाइबर मेटल पर चला और अलार्म विमान का बजने लगा। दरअसल दंश से निकला कण हाइबर मेटल से टकराकर ऊपर के ओर विस्थापित हो गयी और सीधा जाकर विमान के छत से टकरा गयी। टकराने के साथ ही छोटा सा विस्फोट हुआ और विमान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गया।

क्षति तो क्षति थी। इंजीनियर्स ने विमान का मुआयना किया और उसे ठीक करके चले गये। वहीं महा पूरी सभा से माफी मांगी। प्रयोग करने के लिये अलग से एक बड़े कमरे का निर्माण किया गया। महा एक बार फिर तैयार थी। बिना रुके फिर कोशिश चलती रही। अल्फा पैक और उनके सहायकों के लिये यह पहला मौका था जब वह महासागर के योद्धा को उसका दंश इस्तमाल करते हुये देख रहे थे।

दंश से लगातार घातक प्रहार होते रहे। ऐसे–ऐसे प्रहार जिसे देख सब आश्चर्यचकित थे। किंतु एक भी प्रहार सफलतापूर्वक उस हाइबर मेटल को भेद नहीं पायी। महा अफसोस भरी नजरों से सबके ओर देखती..... “बताए पतिदेव आपने उस वक्त मुझे औछी नजरों से क्यों देखा था?”

आर्यमणि:– यह आश्चर्य था.... किसी वस्तु पर यदि सूर्य देव का आशीर्वाद है तो उसे तुम वरुणदेव की माया से नष्ट कर सकती हो। क्या सूर्य देव और वरुण देव के बीच कोई स्पर्धा चल रही थी?

आर्यमणि अपनी बात समाप्त कर उस मेटल के साथ कुछ प्रयोग करना चाहा। प्रयोग करने के लिये सबसे पहले पलक को बुलाया गया। हाईवर मेटल के पीछे आर्यमणि खड़ा हो गया और पलक को मेटल के ऊपर बिजली प्रवाहित करने के लिये कहा। पलक ने नपा तुला बिजली की धारा को प्रवाह किया।

हाइबर मेटल अपना चौकाने वाले गुण दिखा रहा था। हाइबर मेटल में किसी लकड़ी की भांति गुण थे। इसपर पड़ने वाला बिजली का प्रवाह फैलता ही नही था। किसी ढीठ की तरह यह हायबर मेटल आर्यमणि के लिये सरदर्द सा बन गया था। आलम यह था की हाइबर मेटल का कोई तोड़ नही निकला और मन में कसक लिये सभी अधूरी तैयारी के साथ आगे बढ़ने लगे।

खैर इस बाधा से सभी अपना ध्यान हटाकर अंतरिक्ष के सफर का लुफ्त उठाने लगे। अब यहां देखने को तो पेड़, खेत या रास्ता तो था नही, सभी लोग अंतरिक्ष में तैर रहे बड़े–बड़े पहाड़नुमा उल्का पिंड को ही देख रहे थे। तकरीबन 4 दिन के सफर के बाद सभी विमान ‘लोका एयर स्टेशन’ पर रुके। अंतरिक्ष का यह मध्य हिस्सा था, जहां से 2 दिन के सफर के बाद सफर की मंजिल थी।

लोका एयर स्टेशन पर एक दिन के विश्राम के बाद अंतरिक्ष के मध्य हिस्से से विमान पश्चिमी हिस्से में बढ़ चली, जहां नायज़ो समुदाय के 2 ग्रह गुरियन और सिलफर प्लेनेट बसे थे। अंतरिक्ष के उसी क्षेत्र में एक वीरान ग्रह भी बसता था, जिसपर नायजो का आबादी बढ़ाओ क्रायक्रम की शुरवात हुई थी। आबादी बढ़ाने वाले 4–5 ग्रहों में से एक ग्रह यह भी था।

इस ग्रह पर पिछले सकड़ों वर्षों से नयजो काम कर रहे थे। यहां उन्होंने जीवन को अनुकूल बनाया। वीरान से इस ग्रह को पूरा जंगलों से ढक दिया। जीवन बसने के अनुकूल सभी पारिस्थिक तंत्र को स्थापित करने के बाद नायजो सकडों वर्ष तक केवल प्रतीक्षा में रहे। मौसम के चक्र को पूरा विकसित होने दिया। ग्रीन हाउस गैस को खुद से विकसित होने के लिये छोड़ दिया गया। जब यह सुनिश्चित हो गया की अब यहां की प्रकृति पूर्ण रूप से जीवन संजोने योग्य हो चुकी है तब कहीं जाकर नायजो समुदाय ने अपने लोग यहां भेजे।

नई अल्फा पैक और उसके सहायक सभी वीरान से इस टापू पर रुके जिसका नाम करेभू था। करेभु ग्रह पर यूं तो कई करोड़ नायजो स्त्रियां प्रजनन के लिये पहले से पहुंच चुकी थी। ग्रह पर सुरक्षा इंतजाम भी काफी थे। किंतु वो सब इंतजाम बस उन खास हिस्सों में थे, जहां पर आबादी बसी हुई थी।

जंगल के बहुत सारे हिस्सों में भी कई अजीब तरह के दैत्य और खूंखार जानवरों से भरा पड़ा था। किंतु पूरा पारिस्थितिक तंत्र को सुचारू रूप से काम करने के लिये ग्रह के एक बड़े से हिस्से में रेगिस्तान और बंजर पहाड़ियों की श्रृंखला को छोड़ दिया गया था, जहां वीरान से इस टापू पर बसने वाले खतरनाक कीड़े और जानवर, सिकुड़ी सी इस जगह में रहने के लिये विवश थे।

आर्यमणि का काफिला भी उन्ही क्षेत्रों में उतरा। हां लेकिन उनके उतरने से लेकर रहने तक का पूरा इंतजाम पहले से कर दिया गया था। इस जगह पर लैंड करने से पहले आर्यमणि इस ग्रह को एक झलक देख चुका था और इसकी एक झलक ने ही उसका मन मोह लिया था।

विमान जमीन पर उतरा। उसकी सीढियां नीचे तक आयी। आर्यमणि सबसे आगे और उनके पीछे नई अल्फा टीम और उनके सहायक कतार में उतरने के लिये खड़े हो गये। आर्यमणि जैसे ही विमान से बाहर आया दोनो बांह फैलाए एक अनजाना चेहरा उनका स्वागत कर रहा था। आर्यमणि के ठीक पीछे उसकी पत्नी और महासागर की राजकुमारी महा थी। जिसकी एक झलक मिलते ही उस अनजान शक्स के पीछे खड़े लाखो की भीड़ एक साथ आवाज लगाकर महा की जय जयकार करने लगे।

महा, आर्यमणि के पीछे खड़े रहकर ही अपने दोनो हाथ ऊपर उठाती सबको शांत होकर अपने जगह बैठने का इशारा कर दी। महा का इस गर्मजोशी से स्वागत करने वाले और कोई नही बल्कि महा के कुशल सैनिक थे, जिनकी संख्या 5 लाख थी। यूं तो महा ने सैनिकों की संख्या कुछ और रखी थी परंतु महासागर के महाराज और महा के पिता विजयदर्थ ने अपने मन मुताबिक 5 लाख सैनिक को भेज दिया था।

आर्यमणि अपना गर्दन थोड़ा पीछे घुमाकर महा को घूरते..... “सारी वाह वाही अपने लिये बटोर ली। मैं तुम्हारा पति हूं इन लोगों को पता है ना?”

महा, प्यारी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाती..... “पतिदेव मेरे साथी जो मेरा सम्मान कर रहे है उसे मैने कमाया है। आपको भी वो सम्मान कामना होगा। महज मेरे पति होने से ये लोग सम्मान नही करने वाले।”..

बातें करते हुये जब तक दोनो बाहर चले आये थे। आर्यमणि और महा के ठीक पीछे ओजल और निशांत थे। बाकी सभी को एक इशारा मिला और वो लोग विमान से नीचे नही उतरे। इधर वो अनजाना चेहरे वाला शक्स महा की बातों का समर्थन करते हुये कहने लगा.... “बहुत खूब कहा है आपने।”

महा:– आप कौन...

जैसे ही महा का यह सवाल आया वह आदमी अपने चेहरे को अजीब ही तरह से बदला। ऐसा लगा जैसे चेहरे का पूरा सिस्टम ही ऊपर–नीचे हो गया और वह शक्स कोई और नही बल्कि गुरियन ग्रह का मुखौटे वाला राजा करेनाराय था। आर्यमणि उसे देखकर थोड़ा सा हैरान होते या फिर हैरान होने का नाटक करते.... “करेनाराय तुम!!!!”

करेनाराय:– हां भेड़िया राजा। मैने सोचा आप जैसे महान भेड़िया राजा के स्वागत में मैं नही खड़ा रहा फिर थू है मेरी ज़िंदगी पर।

आर्यमणि:– हां लेकिन ऐसे रूप बदल कर आने की क्या आवश्यकता थी?

करेनाराय:– गुरियन प्लेनेट का असली शासक मसेदश क्वॉस और उसका चमचा सेनापति बिरजोली चप्पे चप्पे पर नजर रखे है। उन्हे पता है कि आपलोग पहले मुझसे मिलेंगे और उसके बाद विषपर प्लेनेट पर हमला करेंगे। इसलिए आपकी रणनीतियों को समझने कर लिये उन लोगों ने चप्पे–चप्पे पर नजर बनाए हुये है।

आर्यमणि:– तो क्या मैं यहीं से सीधा विषपर प्लेनेट निकल जाऊं?

करेनाराय:– अब किसी को मरने का इतना ही शौक है तो उन्हें मैं बिलकुल नहीं रोकूंगा। लेकिन क्या आप अपने सेना के बिना ही चले जायेंगे?

आर्यमणि:– मैं क्यों सेना के बिना चला जाऊं? मैं यहां से निकलता हूं, और तुम गुरियन प्लेनेट पहुंचकर मेरे सेना को विषपर प्लेनेट के लिये रवाना कर दो।

करेनाराय:– पूरे 5 करोड़ खूंखार लोगों को जो कैदियों के प्रदेश से भेजे थे, उन्हे मैने प्रशिक्षित कर दिया है। किंतु नायजो के पास बहुत सी ऐसी कलाएं है, जिनका तोड़ मुझे आपको बताना है। उस जानकारी को अब तक मैने उन 5 कड़ोड़ सैनिकों के साथ साझा नही किया। सोचा जब सब साथ होंगे तभी बताऊंगा। उम्मीद है पलक ने बहुत सी बातें बताई होगी। पलक ने आपसे तरह–तरह के हमले का वर्णन किया होगा। किंतु उन हमलों से न सिर्फ बचने के कारगर उपाय बल्कि पलटवार, और घातक कैसे हो उसकी पूरी जानकारी मेरे पास है।

करेनाराय की बात को सुनकर आर्यमणि खामोशी से खड़े होकर उसे एक टक देखे जा जा रहा था। करेनाराय अपनी ललाट ऊपर कर सवालिया नजरों से आर्यमणि को देख भी रहा था और उसके जवाब की प्रतीक्षा भी कर रहा था। लेकिन करेनाराय की प्रतीक्षा काफी लंबी हो गयी और आर्यमणि चुप चाप उसे एक टक देखे जा रहा था। करेनाराय से रहा नही गया और जिज्ञासावश उसने पूछ लिया.... “भेड़िया राजा कुछ तो कहो?”
Awesome update
 

Tri2010

Well-Known Member
2,007
1,894
143
Waiting for update
 

RAAZ

Well-Known Member
2,431
6,425
158
Aa bhi jao ab yaar saal bhar Wale log bhi aane Lage ab to forum per apni story puri karne ke liye.
 
Last edited:
Top