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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–२



एसीपी और डीएम, दोनो ही अधिकारी लगभग 4 साल से यहां कार्यरत थे। इससे पहले दोनो एक साथ सिक्किम के अन्य इलाकों में भी थे। राकेश नाईक तब से केशव कुलकर्णी के पीछे था जब से वो एसपी था। 6 महीने के अंतर में दोनो का तबादला लगभग एक ही जगह पर हो जाता था। हां लेकिन एक बात जो जग जाहिर थी, कुलकर्णी जी की कभी भी नाईक के साथ नहीं बनी, जबकि उन दोनों को छोड़कर पूरे परिवार में बनती थी।


आर्यमणि और निशांत दोनो लगभग एक ही उम्र के थे और बचपन के साथी। ट्रांसफर और सुदूर इलाकों में जाने की वजह से दोनो दोस्तो के पढ़ाई पर थोड़ा असर तो पड़ा था, लेकिन घर के माहौल के कारण दोनो ही लड़के पढ़ाई में अच्छे थे। आर्यमणि जैसे ही साइकिल लगाकर अपने घर में घुसने लगा, उसकी मां जया कुलकर्णी दरवाजे पर ही उसका रास्ता रोके… "फिर आज जंगल के रास्ते वापस आए?"..


आर्यमणि, छोटी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते… "सही समय पर पहुंच गए इसलिए जान बच गई।"..


जया:- और मेरी जान अटक गई। कितनी बार बोली हूं कि मत ऐसे किया कर। पुलिस है, प्रशाशन है, इतने सारे लोग है, लेकिन तू है कि जबतक अपने पापा की डांट ना सुन ले, तबतक तेरा खाना नहीं पचता। मै तुझसे कुछ कह रही हूं आर्य। हद है जब कुछ कहो तो कमरे में जाकर पैक हो जाता है।


आर्यमणि अपनी मां की बात को सुनते-सुनते अपने कमरे में पहुंच गया था और आराम से दरवाजा लगा लिया। रात के वक़्त वो जैसे ही सबके साथ खाने के लिए बैठा…. "मै कल ही तुम्हे नागपुर भेज रहा हूं।".. केशव पहला निवाला लेते हुए आर्यमणि से कहा…


जया:- अभी तो 11th में गया है। हमने 12th के बाद इंजीनियरिंग के लिए प्लान किया था...


केशव:- नहीं अब वहीं पढ़ेगा। इंजिनियरिंग में एडमिशन हुआ तो ठीक, वरना नागपुर से डिग्री कंप्लीट करके अपनी आगे की जिंदगी देखेगा। और ये फाइनल है। सुना तुमने आर्य।


आर्यमणि:- 12th तक इंतजार कर लीजिए पापा, फिर नागपुर में ही एडमिशन लूंगा।


केशव:- क्यों अभी जाने में क्या हर्ज है?


आर्यमणि:- मै पहले 12th तो कर लूं...


केशव:- हां तो कल से तुम कार से जाओगे और कार से आओगे।


आर्यमणि:- पापा आप ओवर रिएक्ट कर रहे है। इस बारे में हम पहले भी बात कर चुके है।


आर्यमणि अपनी बात कहकर खाने लगा और केशव गुस्से में लगातार बोले जा रहा था। उसे शांत करवाने के चक्कर में बेचारी जया पति और बेटे के बीच में पिसती जा रही थी। आर्यमणि अपनी छोटी सी बात समाप्त कर आराम से खाकर अपने कमरे में चला गया।


रात के तकरीबन 12 बजे आर्यमणि के खिकड़ी पर दस्तक हुआ। आर्यमणि अपना पीछे का दरवाजा खोला और निशांत अंदर…. "यार उस वक़्त तूने सस्पेंस में ही छोड़ दिया। बता ना क्या तूने सच में वहां शूहोत्र को देखा।".. आर्यमणि ने हां में सर हिलाकर उसे जवाब दिया।


निशांत:- सुन, कल सीएम ने एक छोटी सी पार्टी रखी है। लगता है शूहोत्र लोपचे उसी उसी पार्टी के लिए आया हो। कुछ दिन पहले आकर अपना पैतृक घर देखने चला गया हो, जहां कभी उसका बचपन बीता था।


आर्यमणि:- नहीं, उसकी आखें अजीब थी। वहां ताज़ा खुदाई हुई थी। वो 6 साल बाद जर्मनी से यहां क्या करने आया होगा?


निशांत:- मैत्री को फोन क्यों नहीं लगा लेता?


आर्यमणि:- कुछ तो अजीब है निशांत, मैत्री 6 महीने से कोई मेल नहीं की। जबकि आखरी बार जब उससे बात हुई थी तब वो अपने इंडिया आने के बारे में बता रही थी। वो तो नहीं आयी लेकिन शूहोत्र आ गया। कल सब सीएम की पार्टी में जाएंगे ना?


निशांत:- तू कहीं जंगल जाने के बारे में तो नहीं सोच रहा।


आर्यमणि:- हां ..


निशांत:- वो सब तो ठीक है लेकिन मेरी पागल दीदी का क्या करेंगे, वो तो कल घर पर ही रहेगी। मेरा बाप तो आज ही मुझे कालापानी भेजने वाला था, मम्मी और क्लासेज ने बचा लिया। कल कहीं मेरी दीदी को भनक भी लगी और मेरे बाप से जाकर चुगली कर दी, फिर तो अपना यहां से टिकट कट जाएगा।


आर्यमणि:- मैं शाम 7 बजे निकल जाऊंगा। साथ आना हो तो मुझे जंगल के रास्ते पर 7 बजे मिल जाना। चित्रा को वैसे बेहोश भी कर सकते हो।


निशांत:- कल लगता है तूने सुली पर चढाने का इंतजाम कर दिया है। अच्छा सुन उस दिव्या मैडम से मेहनताना नहीं लिया यार। कल दिन मे उसके होटल से भी हो आते है।


आर्यमणि:- हम्मम !


निशांत:- मै जा रहा हूं, सुबह मिलता हूं।


निशांत और चित्रा 2 मिनट के छोटे बड़े, और दोनो ही एक दूसरे से झगड़ते रहते। बस इन दोनों के शांत रहने की कड़ी आर्यमणि था, क्योंकि आर्यमणि दोनो का ही खास दोस्त था। अगली सुबह चित्रा सीधा आर्यमणि से मिलने पहुंची। हॉल में उसे ना देखकर सीधा उसके कमरे में घुस गई। आर्यमणि अपने बिस्तर पर लेटा फिजिक्स की किताब को खोले हुए था। चित्रा गुस्से में तमतमाती... "कल के तुम्हारे कारनामे की वीडियो देखी, तुम्हे जारा भी अक्ल है कि नहीं।"..


आर्यमणि:- सॉरी चित्रा, जरा सी देरी होती तो उस लेडी की जान चली गई होती...


चित्रा:- दोनो क्यों जंगल से आते हो? घर के लोग इतना मना करते हैं फिर भी नहीं सुनते?


आर्यमणि:- तुम कल रात छिपकर हमारी बातें सुन रही थी?


चित्रा:- हां सुनी भी और शख्त हिदायत भी दे रही हूं... आज जंगल मत जाना। देखो आर्य, अगर आज तुमने वहां जाने की सोची भी तो मै तुमसे कभी बात नही करूंगी।


आर्यमणि:- ज्यादा स्ट्रेस ना लो। मैंने मन बना लिया है और मै जाऊंगा ही।


चित्रा:- पागलपन की हद है ये तो, आज पूर्णिमा है और तुम जानते हो आज की रात लोमड़ी कितनी आक्रमक होती है।


आर्यमणि:- हां मै जानता हूं और उसकी पूरी तैयारी मैंने कर रखी है। अब तुम जाओ यहां से और मुझे परेशान नहीं करो।


चित्रा:- ठीक है फिर ऐसी बात है तो मै तुम्हारे आज जंगल जाने की बात सबको बता ही देती हूं।


आर्यमणि:- ठीक है नहीं जाऊंगा। अब जाओ यहां से।


चित्रा:- मुझे भरोसा नहीं, खाओ मेरी कसम।


आर्यमणि:- आज शाम 7 बजे मै तुम्हारे पास रहूंगा। खुश.. अब जाओ यहां से।


चित्रा, बाहर निकलती… "मै इंतजार करूंगी तुम्हारा आर्य।"..


सुबह के लगभग 11 बजे। दिन की हल्की खिली धूप में दोनो दोस्त अपने साइकिल उठाए, शहर के सड़कों से होते हुए होटल पहुंच गए, जहां दिव्या अपने हसबैंड के साथ ट्रिप पर आयी थी। कमरे की बेल बजी और दरवाजा खुलते ही... दिव्या उन दोनों को देखकर पहचान गई… "तुम वही हो ना जिसने कल मेरी जान बचाई थी।"…. दिव्या दोनो को अंदर लेती हुई दरवाजा बंद कि और बैठने के लिए कहने लगी।


निशांत:- आप तो कल काफी सदमे में थी, इसलिए मजबूरी में मुझे आपको बेहोश करना पड़ा। अभी कैसी है आप?


दिव्या:- कैसी लग रही हूं?


निशांत, खुश होते हुए…. "बिल्कुल मस्त लग रही है।"


आर्यमणि:- कल जंगल के उस इलाके में आप क्या करने गई थी? और वहां तक पहुंची कैसे?


दिव्या:- "हमारा पूरा ग्रुप टूर गाइड के साथ कंचनजंगा के ओर जा रहे थे। तभी सड़क पर कई सारे जंगली जानवर आ गए। उन्हें देखकर ड्राइवर ने गाड़ी बंद कर दिया और हम सबको बिल्कुल ख़ामोश रहने के लिए कहा। इतने में ही एक जानवर धराम से कार के बोनट पर कूद गया और मेरी चींख निकल गई।"

"जैसे ही मै चिंखी जानवर हमारी गाड़ी पर हमला कर दिए। मै डर के मारे सड़क पर भागने के बदले उल्टा जंगल के अंदर ही भाग गई। जब मै जंगल में थोड़ी दूर अंदर गई तभी एक लोमड़ी आकर मुझ से टकरा गई, और मै नीचे जमीन में गिर गई।"

"मेरे तो प्राण हलख में आ गए। जब मै हिम्मत करके नजर उठाई तो दूर 2 जानवर लड़ रहे थे। कोहरे के करण साफ तो नहीं दिख रहा था, लेकिन हो ना हो मुझे कौन खाएगा उसकी लड़ाई जारी थी। मेरे पास अच्छा मौका था और मैंने दौर लगा दिया। दौड़ती गई दौड़ती गई, ये भी नहीं पता था कि कहां दौर रही हूं। इतने हरा भरा जंगल था कि मै तो सीधा खाई में ही आगे पाऊं बढ़ा दी। वो तो अच्छा हुए की एक टाहनी में मेरा कॉलर फस गया और मै किसी तरह पेड़ की निचली साखा पर जाकर बैठ गई।"


आर्यमणि:- हम्मम!


निशांत:- तुम्हारे पति और वो टूर गाइड कहां है।


दिव्या:- मेरे हबी का हाथ फ्रैक्चर हो गया और वो अभी हॉस्पिटल में ही है। एक हफ्ते में डिस्चार्ज मिलेगा। घर संदेश भेज दिया है, उनके डिस्चार्ज होते ही हम लौट जाएंगे। तुम दोनो को दिल से आभार। यदि तुम ना होते तो वो अजगर मुझे निगल चुका होता। देखो मै भी ना.. तुम दोनो बैठो मै तुम्हारे लिए कॉफी बुलवाती हूं। और हां प्लीज तुम दोनो मेरे हब्बी से जरूर मिलने चलना, तुम्हे देखकर वो खुश हो जाएंगे।


निशांत:- मैडम, रुकिए मै यहां कॉफी पीने नहीं आया हूं। बल्कि कल की मेहनत का भुगतान लेने आया हूं।


दिव्या:- मतलब मै समझी नहीं। क्या तुम कहना चाह रहे हो, जान बचाने के बदले तुम्हे पैसे चाहिए?...


निशांत:- नहीं पैसे नहीं अपनी मेहनत का भुगतान। देखिए मैडम आप इतना जो धन्यवाद कह रही है उस से अच्छा है मेरे लिए कुछ करके अपने एहसान उतार दीजिए और यहां के वादियों लुफ्त उठाइए।


दिव्या, निशांत को खा जाने वाली नज़रों से घूरती हुई…. "कहना क्या चाहते हो, साफ साफ कहो।"


आर्यमणि:- वो कहना चाहता है, उसने आपकी जान बचाई बदले में आप कपड़े उतारकर उसे मज़े करने दीजिए और एहसान का बदला चुका दीजिए।


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या निशांत को एक थप्पड़ लगाती हुई…. "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा सोचने की। खुद को देखो, शक्ल पर मूंछ तक ठीक से नहीं आयि है और अपनी से बड़ी औरत के साथ ऐसा करने का ख्याल, छी... कौन सी गंदगी मे पले हो। मैं तो तुम्हें अच्छा लड़का समझती थी, लेकिन तुम दोनो तो कमिने निकले।"


आर्यमणि:- दुनिया में कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता। हम आपके काम आए बदले में आपको हम अपना काम करने कह रहे हैं। आप नहीं कर सकती तो हंसकर माना कर दीजिए, हमे जज मत कीजिए।


दिव्या:- तुम दोनो पागल हो क्या? तुम समझ भी रहे हो तुम लोग क्या कह रहे हो? यदि मेरी जान नहीं बचाई होती तो अब तक धक्के मार कर बाहर निकाल चुकी होती।


आर्यमणि:- रुकिए !!! आराम से 2 मिनट जरा सही—गलत पर बात कर लेते है फिर हम चले जाएंगे। मुझे तुम में कोई इंट्रेस्ट नहीं इसलिए तुम मेरे सवालों का जवाब शांति से देना, तुम्हारी जान बचाने का मेंहतना।


दिव्या:- हम्मम। ठीक है..


आर्यमणि:- तुम्हारे जगह तुम्हारा पति होता और हमारी जगह कोई लड़की। और वो लड़की ये प्रस्ताव रखती तो क्या तुम्हारे पति का भी यही जवाब होता।


दिव्या, चिढ़कर… "पता नहीं।"..


आर्यमणि:- जिस पति के लिए तुम वफादार हो, यदि कल तुम मर जाती तो क्या वो दूसरी शादी नहीं करेगा या किसी दूसरी औरत के पास नहीं जायेगा?


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या कुछ सोच में पड़ गई। तभी उसने आखरी सवाल पूछ लिया… "क्या तुम्हे यकीन है, तुम्हारी गैर हाजरी में यदि तुम्हारे पति को यही ऑफर कोई लड़की देती, तो वो मना कर पाता?"..


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या ने कोई जवाब नहीं दिया। वो केवल अपने सोच में ही डूबी रही, इधर निशांत खड़ा होकर दिव्या को एक थप्पड़ मारते…

"थप्पड़ का बदला थप्पड़। कन्विंस करके हम किसी के साथ कुछ नहीं करते। ये हमारे वसूलों के खिलाफ है। बस तुमने हमे अच्छे और बुरे के तराजू में तौला इसलिए इतना आइना दिखाना पड़ा, वरना हंसकर केवल इतना कह देती सॉरी मुझेस नहीं हो पाएगा, मेरी अंतर आत्मा नहीं मानेगी। अपनी वफादारी खुद के लिए रखो, किसी दूसरे के लिए नहीं। बाय—बाय मैडम।"…


निशांत बाहर निकलते ही… "हमने कुछ ज्यादा तो नहीं सुना दिया आर्य।"..


आर्यमणि:- जाने भी दे शाम पर फोकस करते है।


शाम के लगभग 6 बजे सिविल लाइन से जैसे अधिकारियों का पूरा काफिला ही निकल रहा हो। उन लोगो के जाते ही आर्यमणि और निशांत भी अपनी तैयारियों में लग गए, साथ मे चित्रा पर भी नजर दिए हुए थे। 6.30 बजे के करीब आर्यमणि, चित्रा के कमरे में पहुंचा। चित्रा आराम से बिस्तर पर टेक लगाए अपना मोबाइल देख रही थी।


जैसे ही किसी के आने की आहट हुई, चित्रा मोबाइल के होम स्क्रीन बटन दबाई और हथेली को चेहरे पर फिरा कर अपने भाव छिपाने लगी…. "क्या मिलता है तुम्हे इरॉटिका पढ़कर, कितनी बार मना किया हूं।".. आर्यमणि भी चित्रा के हाव भाव समझते पूछने लगा...


चित्रा:- सॉरी वो घर पर कोई नहीं था तो.. मुझे ध्यान ही नहीं रहा तुम्हारा।


आर्यमणि:- हम्मम ! तुम्हारे चेहरे पर कुछ लगा है।


चित्रा:- कहां..


आर्यमणि:- लेफ्ट में थोड़ा ऊपर..


चित्रा:- कहां .. यहां..


"रुको मै ही साफ कर देता हूं।".. कहते हुए आर्यमणि ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बड़ी सफाई से क्लोरोफॉर्म सुंघाकर चित्रा को बेहोश कर दिया। उसे बेहोश करने के बाद आर्यमणि, निशांत के साथ निकला। दोनो साइकिल लेकर जंगल वाले रास्ते पर चल दिए।


कुछ दूर आगे चलने के बाद दोनो एक मालवाहक टेंपो के पास रुक गए, जहां उस टेंपो का मालिक पिंटो खड़ा था… "तुम दोनो छोकड़ा लोग आज क्यूं रिस्क ले रहा है मैन। पूर्णिमा की रात जंगल जाना खतरनाक है। हमने तुमको गाड़ी दिया यदि तुम्हारे फादर को खबर लगी तो वो मेरी जान निकाल लेंगे।"


निशांत अपनी साइकिल टेंपो में रखते हुए… "पिंटो रात को यहां से अपनी ट्रक ले जाना, हम वापस लौटने से पहले कॉल कर देंगे।"..


आर्यमणि टेंपो चलाने लगा, और निशांत पीछे जाकर खड़ा हो गया। जंगल के थोड़ा अंदर घुसते ही… "आर्य रोक यहां।"… टेंपो जैसे ही रुकी निशांत ने पेड़ की डाल से ताजा मांस का एक टुकड़ा बांध दिया। ना ज्यादा ऊपर ना ज्यादा नीचे। ऐसे ही करते हुए निशांत ने लगभग 50 टुकड़े जंगल के अलग-अलग इलाकों मे बांधने के बाद सीधा लोपचे के पुराने कॉटेज के पास पहुंचे।


आर्यमणि टार्च लेकर आगे बढ़ा और निशांत उसके पीछे-पीछे। दोनो कॉटेज के पीछे एक जगह पर खड़े हो गए और वहां की मिट्टी को खोदना शुरू किया।…. "हां यार ये तो ताजी खुदाई है।"… दोनो जल्दी-जल्दी खोदने लगे तभी आर्यमणि ने हाथ के इशारे से काम रोकने कहा… काम रोकते ही, वहां का पूरा माहोल शांत और किसी इंसान की बिलकुल धीमी आवाज सुनाई देने लगी। कॉटेज के खंडहर से बहुत ही धीमे किसी के दर्द भरी कर्रहट सुनाई दे रही थी। आवाज सुनकर दोनो एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे।
दोनो लड़के जितने दिलफेंक है उतने ही समझदार भी। दिव्य के साथ जिस तरह दोनो ने व्यवहार किया वो इनकी मैच्योरिटी को दिखाता है और साहस तो दोनो में कूट कूट कर भरा है। सुंदर अपडेट
 

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भाग:–३



आर्यमणि टार्च लेकर आगे बढ़ा और निशांत उसके पीछे-पीछे। दोनो कॉटेज के पीछे एक जगह पर खड़े हो गए और वहां की मिट्टी को खोदना शुरू किया।…. "हां यार ये तो ताजी खुदाई है।"… दोनो जल्दी-जल्दी खोदने लगे तभी आर्यमणि ने हाथ के इशारे से काम रोकने कहा… काम रोकते ही, वहां का पूरा माहोल शांत और किसी इंसान की बिलकुल धीमी आवाज सुनाई देने लगी। कॉटेज के खंडहर से बहुत ही धीमे किसी के दर्द भरी कर्रहट सुनाई दे रही थी। आवाज सुनकर दोनो एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे।


"आर्य तू खोद मैं खंडहर में देखता हूं।".. निशांत अपनी बात कहकर कॉटेज के ओर चल दिया, इधर बस 1 मिनट की खुदाई के बाद ही अंदर जो दफन था वो आंखों के सामने था... गहरा सदमा जैसे दफन था। गहरा आश्चर्य सा दफन था जैसे। आर्यमणि ने एक झलक मात्र तो देखा था और सदमे से वो चित गिड़ा। आर्यमणि को गहरा सदमा लगा। वह बेसुध होकर जमीन पर गिर गया और मुंह से बस मैत्री ही निकला.…


अंदर मैत्री की लाश थी, वो भी आधी। कमर के नीचे का पूरा हिस्सा गायब था और सीने पर वही लॉकेट रखा हुआ था जो मैत्री हमेशा पहना करती थी। आर्यमणि हैरानी से मैत्री को देखते हुए उसका चेहरे पर हाथ फेरने लगा। हाथ फेरने के क्रम में उसने वो लॉकेट जैसे ही अपने हाथ में लिया… कुछ अजीब सा नजारा आर्यमणि की आखों ने देखा। बिल्कुल सोच से परे। इससे पहले की आर्यमणि कुछ और सोचता, निशांत अंदर खंडहर से चिल्लाने लगा। आर्यमणि लॉकेट वापस रखकर गड्ढे को भड़ दिया और निशांत के पास पहुंचा।


आर्यमणि खंडहर में जैसे ही पहुंचा, वहां का नजारा भी बहुत अजीब था। एक बड़ा सा सरिया शूहोत्र के सीने में घुसा हुआ था। शूहोत्र की आंख हल्की खुली हुई और मुंह से दबी हुई दर्द भरी चींख निकल रही थी। शायद अपने दर्द पर काबू पाने की कोशिश कर रहा था। आर्यमणि शूहोत्र के सर पर हाथ रखते हुए निशांत को देखने लगा… "यार, इसे कौन यहां सुलाकर चला गया।"


दूसरी ओर निशांत अपना पूरा बैग खोल चुका था। आर्यमणि ने तुरंत शूहोत्र का ब्लड प्रेशर चेक किया… "निशांत ब्लड प्रेशर बढ़ा है, टैबलेट निकाल।"… ब्लड प्रेशर कम करने की टैबलेट निकालकर.… शूहोत्र इसे अपने जीभ के नीचे रखो, हम ये सरिया निकालने वाले है।" ..


शूहोत्र सहमति में अपना सर हिला दिया। टैबलेट उसके जीभ के नीचे डालकर, दोनो कुछ देर रुके फिर निशांत सुहोत्र का सर अपने हाथ से पकड़कर… "हम सरिया निकालने वाले है, तुम तैयार हो।"


जैसे ही शूहोत्र ने सहमति में सिर हिलाया, आर्यमणि और निशांत की नजरे भी एक दूसरे से सहमति बना रही थी। आर्यमणि शूहोत्र के मुंह में कपड़े का टुकड़ा पुरा ठूंसकर, निशांत को इशारा किया। निशांत पुरा जोड़ लगाकर सरिया को खींचने लगा। सरिया नीचे से जमीन के अंदर घुसे होने के कारण धीरे–धीरे निकल रहा था और इसी के साथ शूहोत्र की पीड़ा भी अपने चरम पर थी। ऐसा लग रहा था दर्द से उसकी आंख बाहर निकल आएगी।


शूहोत्र चिंख़ने के लिए पुरा गला फाड़ रहा था लेकिन मुंह में कपड़ा और कपड़े के बीच में आर्यमणि के हाथ होने के कारण, उसकी चींख गले में ही अटकी हुई थी। तभी अचानक शूहोत्र की आखें बिल्कुल पीली हो गई, कपड़े के बीच में घुसा हुआ आर्यमणि का टेढ़ा किया हुआ हाथ में ऐसा लगा जैसे किसी ने काफी नुकीली कील घुसाकर हथेली फाड़ दी हो।


सरिया निकालने के साथ ही शूहोत्र बेहोश हो गया और आर्यमणि तेज चिंख्ते हुए अपनी कलाई झटका और अपना हाथ शूहोत्र के मुंह से बाहर निकाला। आर्यमणि ने जैसे ही हाथ झटका खून कि बूंद निशांत के चेहरे पर गई… "आर्य तुझे चोट कैसे लगी।"..


आर्यमणि शांत रहने का इशारा करते हुए, टॉर्च की रौशनी को कलाई से ढक दिया…. "शूहोत्र को कोई मारने आया है, टॉर्च बंद कर।"…


तभी शूहोत्र आर्यमणि को खींचकर, उसका कान अपने होंठ के पास लाते…. "अभी समझने का वक़्त नहीं, यहां पुलिस बुलाओ, वरना तुम दोनो नहीं बचोगे। ये लोग प्रोफेशनल है, और अब तक पूरे जंगल में ट्रैप वायर बिछा चुके होंगे।"..


आर्यमणि:- निशांत ये लोग प्रोफेशनल है और जंगल में पुरा ट्रापवायर लगा है।


निशांत:- वायरलेस कर दे क्या?


आर्यमणि:- नहीं उन सबको खतरा हो सकता है। इसे लेकर हम छोटे रास्ते से जाएंगे। तुम बस शिकारी कुत्तों को भरमाने का इंतजाम करो।


निशांत:- समझो हो गया । तुम नीचे उतरने की व्यवस्था करो, मै इन शिकारी कुत्तों का इंतजाम करता हूं।


जंगल और यहां के शिकारियों से दोनो दोस्त काफी वाकिफ थे। इन्हे पता था कि जंगल के शिकारी, अपने शिकार के लिए शिकारी कुत्तों का इस्तमाल करते हैं जिसके सूंघने की क्षमता अद्भुत होती है।


इधर जबतक आर्यमणि ने छोटे रास्ते से जाने और 40 फिट नीचे खड़ी ढलान उतरने का इंतजाम किया, तबतक निशांत ने शिकारी कुत्तों के लिए जाल बुन दिया। कॉटेज से पीछे के ओर बढ़ने वाले पूरे रास्ते को, खून के अजीब गंध से भर दिया। जहां शूहोत्र को सरिया लगा था वहां पर भी खून को उड़ेल दिया, ताकि असली गंध शिकारी कुत्तों के नाक तक नहीं पहुंच पाए।


सब सेट हो गया था। जबतक ये दोनो शूहोत्र को लेकर निकलते, तबतक 20-25 टॉर्च की रौशनी उसी कॉटेज के ओर बढ़ रही थी। दोनो दोस्त ने उसे कंधे पर लादा और 40 फिट नीचे उतरकर, छोटे रास्ते से आगे बढ़ने लगे। खून की गंध ने उन छोटे रास्तों पर तो जैसे हलचल मचा रखा हो।


चारो ओर से आहट आने शुरू हो चुके थे। दोनो अपने साथ लाए छोटी सी मसाल जला लिए। वहां के जानवर आग और रौशनी देखकर कदम पीछे लेने लगे। लेकिन ये तो छोटे मोटे जानवर थे। रात का अंधेरा और इतना घने जंगल में जब खून कि बूंद गिरती हो तो भला शिकारी जानवरो को भनक क्यों ना लगे। देखते ही देखते तीनों को चारो ओर से लोमड़ीयां घेर चुकी थी। जैसे ही उनका पुरा झुंड ने तीनों को घेरा, लोमड़ियां तैयार हो चुकी थी हमला के लिए।


दर्द भरी आवाज़ में शूहोत्र कहने लगा…. "अंधेरा ही कर दो, और बढ़ते रहो। कोई जानवर हमला नहीं करेगा, ये मेरा वादा है। आगे एक किलोमीटर पर मेरी कार खड़ी है, जंगल से निकलकर सीधा एमजी हॉस्पिटल चलना।"


आर्यमणि ने विश्वास दिखाते हुए वहां अंधेरा कर दिया। निशांत और आर्यमणि दोनो को ऐसा लग रहा था मानो उसके साथ-साथ कई जानवर चल रहे है, लेकिन कोई हमला नहीं कर रहा।…. "कमाल है आर्य, पूर्णिमा की रात यहां की लोमड़ी आक्रमक नहीं है उल्टा हमारे साथ चल रही। ये ले एक और चमत्कार। कास कोहरे को छांटकर चांदनी की रौशनी आती तो मै देख पता कि यहां क्या हो रहा है?".. इधर शिकारियों का झुंड जैसे ही उस कॉटेज में पहुंचा, उनका मुखिया चिंखते हुए… "भाग गया वो कमीना। कैसे भी करके उसे ढूंढो। और खत्म कर दो।"


शिकारी कुत्तों को जैसे ही छोड़ा गया वो लोग दौड़ते हुए सीधा ट्रक पर पहुंच गए। वहां ट्रक को देखकर उनका मुखिया कहने लगा… "ओह तो हमारी जानकारी गलत थी, ये तो पूरी टीम के साथ आया है।"..


थोड़ी ही देर में वो लोग एमजी हॉस्पिटल में थे। शूहोत्र को इस हालत में देख तुरंत ही डॉक्टर इंड्रू गजमेर वहां पहुंची। शूहोत्र की हालत का जायजा लेकर उसे तुरंत ओटी में भेज दी और आर्यमणि के हाथ पर लगी पट्टी के नीचे बहते खून को देखती हुई कहने लगी…. "कव्या यहां आकर इस लड़के को अटेंड करो और इसकी चोट पर ड्रेसिंग करो।"… इंद्रू अपनी बात कहकर ओटी में निकल गई और काव्या, आर्यमणि को लेकर माइनर ओटी में चली आयी।


रात के तकरीबन 11.30 बज रहे थे। जैसे ही दोनो सिविल लाइन की सड़क से चलते हुए घर के ओर बढ़ रहे थे, सामने उनका रास्ता रोके चित्रा खड़ी थी…. "बाय आर्य, हम जा रहे हैं। यदि तुम मुझे बेहोश न करते तो शायद तुम्हे पता होता की पापा का ट्रांसफर हो चुका हैं। या फिर मेरे जाने का वैसे भी कोई अफसोस नहीं होता क्योंकि जब हम दोस्त ही नही तो फिर मेरे यहां रहने या ना रहने से तुम्हे क्या फक्र पड़ेगा। अब फिर कभी मैं जंगल के लिए नहीं रोकूंगी। तुम अपने मन मर्जी की करते रहो।"


चित्रा अपनी बात कहकर, निशांत का हाथ पकड़ी और वहां से सीधा अपने घर में चली गई। आर्यमणि थोड़ा मायूस जरूर हुआ सुनकर, लेकिन वो चुपचाप अपने घर चला आया। सुबह का पूरा माहौल ही कौतुहल से भरा हुआ था, जब पुलिस फोर्स एक सूचना के आधार पर जंगल पहुंची और वहां उन्हें ट्रक लगी मिली।


गंगटोक की हॉट न्यूज बनी हुई थी क्योंकि 2 आदमी के मरने कि खबर थी और मौके पर ट्रक मिली। और ट्रक में मिली आर्यमणि और निशांत की साइकिल। मामला ये नहीं था कि इनपर किसी भी तरह का खून करने का इल्ज़ाम था, बस मामला ये था कि इतनी रात को आखरी किसकी सूचना पर ये दोनो जंगल गए थे और पुलिस को क्यों नहीं इनफॉर्म किया?


आर्यमणि पूरी कहानी बनाते हुए कहा दिया… "निशांत जाने वाला था और उसकी जिद की वजह से वो जंगल गया था। जंगल जाकर उसे सिकारियों के होने का अनुभव हुआ और साथ में ये भी आभाष हुआ कि ये शिकारी पूरे जंगल में ट्रैप लगाए है, इसलिए रात को पुलिस को सूचित नहीं किया। ताकि कोई केजुअल्टी ना हो और खुद छोटे सस्ते से वापस आ गया।"..


जब क्रॉस वेरिफिकेशन हुआ तब आर्यमणि की सारी बातें सच निकली, केवल उसने शुहोत्र की पूरी कहानी को गायब कर दिया। लेकिन एक आश्चर्य की बात और हो गई जो आर्यमणि को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी… "पुलिस को कॉटेज के पास मैत्री की लाश क्यों नहीं मिली?"..


कुलकर्णी जी ने क्या क्लास लगाई आर्यमणि की। वो तो इतने आक्रोशित थे कि गुस्से में उन्होंने 4-5 चमेट भी लगा दिया। केशव और जया को तो सोचकर ही प्राण सूखे जा रहे थे कि कल रात कुछ भी उंच–नीच हो जाती तो आर्यमणि का क्या होता? दोनो ही दंपति अब तूल गए आर्यमणि को नागपुर भेजने।


आर्यमणि:- पापा, मम्मी, आप का गुस्सा सही लेकिन मै अभी गंगटोक छोड़कर नहीं जाऊंगा।


केशव, गुस्से में उसका गला पकड़कर दबाते हुए…. "क्यों नहीं जाएगा यहां से? या फिर हमे चिता पर लिटाने के बाद तुम्हे अक्ल आएगी, की हम तुम्हारे बिना जी नहीं सकते।"..


आर्यमणि:- हां मै जानता हूं आप मेरे बिना जी नहीं सकते और मै मैत्री के बिना। ये बात आप नहीं जानते थे क्या पापा? मैंने आपसे कहा भी था मुझे जर्मनी भेज दो, तब तो आपने मुझे नहीं भेजा। तब आपका स्वार्थ, आपका प्यार, आपका बेटे के प्रति जिम्मेदारी आ गई, फिर आज क्यों मुझे भेज रहे हो?


जया, एक थप्पड़ लगाती…. "अभी इतना बड़ा हो गया है तू.… अपने पापा से ऊंची आवाज में बातें कर रहा। एक लड़की के प्यार को हमारे भावनाओं से तुलना कर रहा। एक बात मै साफ-साफ कहे देती हूं आर्य, आज ही तू यहां से भूमि के पास जाएगा।


आर्यमणि:- एक थप्पड़ क्या 10 मार लो, लेकिन मै अभी यहां से कहीं नहीं जाऊंगा। आप दोनो को पता है मै कोई ज़िद्दी नहीं, और ना ही आप लोगों को दुखी देखना चाहता हूं। लेकिन कल रात जब मै जंगल गया तो पीछे कई सारे सवाल छूट गए। जबतक मै उन सवालों के जवाब नहीं ढूंढ लेता, मै कहीं नहीं जाऊंगा।


दोनो दंपत्ति बात कर ही रहे थे, तभी हॉस्पिटल से कॉल आ गया। आर्यमणि, के पास 2 गार्ड को तैनात करके केशव उनसे साफ कहता गया, "आर्य निकलने की कोशिश करे तो सीधा पाऊं मे गोली मार देना।"


अपनी बात कहकर केशव और जया सीधा हॉस्पिटल पहुंचे। डॉक्टर इंड्रू गजमेर केशव और जया को अपने साथ लिए गई, जहां सुहोत्र एडमिट था। शूहोत्र को देखकर दोनो दंपत्ति थोड़ा हैरान होते.… "तुम यहां क्या कर रहे हो"?


शूहोत्र:- कैसी बातें करते हो, तुम्हारे बेटे ने कुछ भी नहीं बताया क्या?


जया:- क्या नहीं बताया?


शूहोत्र:- मैत्री का कत्ल हो गया और कल रात जिन 2 की लाश मैंने गिराई वो शिकारी थे। बदले मे उसने मेरे सीने मे भी सरिया घुसा दिया था।


मैत्री के मरने की खबर से ही जया और केशव के होश उड़ गए। दोनो आर्यमणि की हालत का अब पूरा अंदाजा लगा सकते थे। उसके बदले व्यवहार के पीछे का कारण समझ में आ चुका था... जया, शुहोत्र को सवालिया नजरों से देखती... "भाग्यशाली रहे जो शिकारियों के हाथ से बच निकले.….


शूहोत्र:- हां लेकिन मैत्री उतनी भाग्यशाली नहीं थी। ओह हां, अभी तो तुम दोनो का बेटा पागल बना हुआ होगा ना, मैत्री के कातिलों को ढूंढने के लिए।


जया:- अपनी जुबान संभाल कर। मैत्री ना तो तुम लोगों जैसी थी और वो ना कभी हो सकती थी। उसके कत्ल का सुनकर हमारे अंदर भी वही चल रहा है जो तुम्हारे अंदर। लेकिन आर्य को दूर ही रखो.…



शूहोत्र:- दूर रखना है तो ध्यान से सुन लो, मुझे शिकारियों से बचाकर यहां से सुरक्षित निकालो। वरना मैं तो अब किसी विधि जर्मनी निकल ही जाऊंगा, लेकिन जाने से पहले आर्यमणि को वो ज्ञान देता चला जाऊंगा, जिसके शाये से तुम अपने बेटे को दूर रखना चाहते थे।


केशव:- तुम्हे कब निकालना है?


शूहोत्र:- काफी गहरा ज़ख्म मिला है मुझे भी, लेकिन 2 दिन बाद की फ्लाइट है और मैं निश्चित जाऊंगा।


जया:- जिसने भी मैत्री को मारा है, फिर चाहे जो कोई भी हो, मेरा वादा है उसे मैं देख लूंगी। हमारा पूरा परिवार जिन मामलों से दूर है, उसमे घसीटने की कोशिश भी मत करना।


शूहोत्र:- ऐसा होता तो तुम्हारे बेटे को कल ही सरी बातें पता चल जाती। मेरी बहन को मार डाला, मै यहां पड़ा हूं, लेकिन फिर भी तुम दोनो को मैंने बुलवाया। मैं जानता हूं मैं यहां कुछ नहीं कर सकता। इसलिए जो कर सकते हैं, उन तक अपनी आवाज पहुंचा रहा हूं। मैं यहां खुद नहीं आया, मैत्री के पीछे आया था। हां लेकिन यहां से जाने से पहले इतना ही कहूंगा, मैत्री की चाहत ने उसकी जान ली है। पिछले कई सालों से मैत्री भी अपने परिवार की नहीं थी।


केशव:- हम आर्य को लेकर बहुत परेशान थे शायद यही वजह थी कि तुम्हारा दर्द देख नहीं पाए। तुम हॉस्पिटल से निकलने से पहले मुझे एक बार बता देना।


शूहोत्र:- तुमने इतना कह दिया काफी है। जाओ आर्यमणि को संभालो।


भले ही आर्यमणि खुद को कितना भी सामान्य दिखाने की कोशिश कर ले, किंतु मैत्री की लाश देखने के बाद वह बिल्कुल भी सामान्य नहीं हो सकता। मैत्री की मौत की खबर सुनने के बाद दोनो दंपत्ति जैसे बेचैन हो गए हो। क्योंकि उन्हें पता था कि आर्यमणि को पता है कि मैत्री की लाश शिकारियों ने गिराई है और वो सुराग ढूंढ कर उसके पीछे जायेगा... आर्यमणि उन शिकारियों के पीछे, जिसके शाए से भी अब तक आर्यमणि को दूर रखा गया था।


दोनो दंपत्ति हड़बड़ी में घर पहुंचे, लेकिन पता चला आर्यमणि गायब है। दोनो भागते हुए जंगल पहुंचे। 400 पुलिसवालों ने लोपचे के पूरे खंडहर को छान मारा लेकिन वहां कुछ नहीं मिला।


इसके पूर्व आर्यमणि गार्ड्स की आंखों में धूल झोंककर सीधा जंगल पहुंचा। बहुत देर तक वो मैत्री के कत्ल की सुराग ढूंढने की कोशिश करता रहा। उसे बहुत ज्यादा जानकारी हाथ तो नहीं लगी, लेकिन मैत्री का बैग जरूर मिला, जिसमे उसकी कई सारे सामान के साथ एक डायरी थी, और हर पन्ने पर आर्यमणि के लिए कुछ ना कुछ था। और उसी बैग से आर्यमणि के हाथ कुछ ऐसा भी लगा जिसे वह नजरंदाज नहीं कर सकता था.…
रहस्य बढ़ता ही जा रहा है। एक तो निशांत का जाना उपर से मैत्री की हत्या, आर्यमणि के दिलोदिमाग हो अस्त व्यस्त करने के लिए काफी है। मगर उस लाकेट में ऐसा क्या था जो आर्यमणि को चकित कर गया। ये शिकारियों का क्या चक्कर है और केशव और जया किस राज को आर्यमणि से छुपा रहे है?
 

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भाग:–4




इसके पूर्व आर्यमणि गार्ड्स की आंखों में धूल झोंककर सीधा जंगल पहुंचा। बहुत देर तक वो मैत्री के कत्ल की सुराग ढूंढने की कोशिश करता रहा। उसे बहुत ज्यादा जानकारी हाथ तो नहीं लगी, लेकिन मैत्री का बैग जरूर मिला, जिसमे उसकी कई सारे सामान के साथ एक डायरी थी, और हर पन्ने पर आर्यमणि के लिए कुछ ना कुछ था। और उसी बैग से आर्यमणि के हाथ कुछ ऐसा भी लगा जिसे वह नजरंदाज नहीं कर सकता था.…


पूरे गंगटोक में मैत्री और आर्यमणि के बीच के भावनात्मक जुड़ाव को सब जानते थे। यूं तो आर्यमणि बहुत ही सीमित बात करता था, लेकिन जिस दिन मैत्री यहां से जर्मनी गई थी, आर्यमणि ने 3 महीने बाद अपने माता-पिता से बात किया था, और सिर्फ एक ही बात… "उसे भी जर्मनी भेज दे।"..


मैत्री की वो डायरी पुराने दर्द को कुरेद गई। मैत्री ने जैसे पन्नो पर अरमान लिखे थे... "एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."


कुछ दिन बाद...


आर्यमणि श्रीलंका के एक बीच पर था। मैत्री के बैग पर श्रीलंका के होटल का टैग लगा था, जिसके पीछे आर्यमणि यहां तक पहुंचा था। दिल के दर्द अंदर से नासूर थे, बस एक सुराग की जरूरत थी। सुरागों की तलाश में आर्यमणि श्रीलंका पहुंच तो गया लेकिन यहां उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।


3 दिन बेकार बिताने के बाद चौथे दिन आर्यमणि के होटल कमरे के बाहर शुहोत्र खड़ा था। आर्यमणि बिना कोई भाव दिए कमरे का दरवाजा पूरा खोल दिया और शूहोत्र अंदर। अंदर आते ही शुहोत्र कुछ–कुछ बोलने लगा। वह जो भी बात कर रहा था, उसमे आर्यमणि की रुचि एक जरा भी नहीं थी। बहुत देर तक उसकी बातें बर्दास्त करने के बाद, जब आर्यमणि से नही रहा गया, तब वह शुहोत्र का कॉलर पकड़कर.… "लंगड़ा लोपचे की कहानी यदि भूल गए हो तो मैं तुम्हारा दूसरा टांग तोड़कर उन यादों को फिर से ताजा कर दूं क्या?"…


शुहोत्र:– तुम्हारी उम्र और तुम्हारी बातें कभी मैच ही नहीं करती। और उस से भी ज्यादा तुम्हारी फाइट... इतनी छोटी उम्र में इतना सब कर कैसे लेते हो..


आर्यमणि:– सुनो लोपचे, यदि जान बचाने के बदले मेरे बाप की तरह तुम भी मेरे फिक्रमंद बनते रहे और मुझे घर लौटने की सलाह देते रहे, तो कसम से मैं ही तुम्हारी जान निकाल लूंगा। यदि मैत्री के कातिलों के बारे में कुछ पता है तो बताओ, वरना दरवाजे से बाहर हो जाओ..


शुहोत्र:– मैत्री के कातिलों की यदि तलाश होती फिर तुम यहां नही, बल्कि नागपुर में होते। क्यों उसके कातिलों को ढूंढने का ढोंग कर रहे?


आर्यमणि:– अब तेरा नया चुतियापा शुरू हो गया...


शुहोत्र:– क्यों खुद को बहला रहे हो आर्य। तुम्हारा दिल भी जनता है कि मैत्री को किसने मारा...


आर्यमणि:–शुहोत्र बेहतर होगा अब तुम मुझे अकेला छोड़ दो... इस से पहले की मैं अपना आपा खो दूं, भागो यहां से...


शुहोत्र:– तुम मुझसे नफरत कर सकते हो लेकिन मैत्री मेरी बहन थी और मैं उसका भाई, ये बात तुम मत भूलना। तुमसे बात करने की एक ही वजह है, और वो है मैत्री की कुछ इच्छाएं, जिस वजह से तुम्हे सुन रहा हूं, वरना जान तो मैं भी ले सकता हूं।


आर्यमणि बिना कुछ बोले पूरा दरवाजा खोल दिया और हाथ के इशारे से शुहोत्र को जाने के लिए कहने लगा। शुहोत्र दरवाजे से बाहर कदम रखते.… "मैत्री की डायरी में मैने ही श्रीलंका का टैग लगाया था। उसके अरमान उस डायरी के कई पन्ने पर लिखे है। यदि मैत्री की एक अधूरी इच्छा पूरी करनी हो तो कमरा संख्या २०२१ में चले आना।


शुहोत्र अपनी बात कह कर निकल गया। आर्यमणि झटके से दरवाजा बंद करके सोफे पर बैठा और मैत्री की डायरी को सीने से लगाकर, रोते हुए मैत्री, मैत्री चिल्लाने लगा। डायरी के कई ऐसे पन्ने थे, जिसपर मैत्री के मायूस अरमान लिखे थे... "तुम यहां क्यों नहीं... हम भारत में नही रह सकते, कम से कम तुम तो यहां आ सकते हो। अपने पलकों में सजा लूंगी, तुम सीने में कहीं छिपा लूंगी। यहां हम सुकून से एक दूसरे के साथ रहेंगे। एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."


डायरी में लिखे चंद लाइंस आर्यमणि को बार–बार याद आ रहे थे। अंत में आंसुओं को पोंछ कर आर्यमणि शुहोत्र के साथ सफर करने चल दिया। चल दिया मैत्री के उस घर, जहां मैत्री उसे अपने परिवार के साथ देखना चाहती थी।


सुहोत्र और आर्यमणि फ्लाइट में थे.... शूहोत्र आर्यमणि को देखकर… "एक भावनाहीन लड़के के अंदर की भावना को भी देख लिया आर्यमणि। जिस हिसाब से तुम्हारे बारे में लोगों ने बताया, मुझे लगा तुम मैत्री को भुल चुके होगे? लेकिन मैं गलत था।और वो लोग भी जो ये कहते थे कि तुम मैत्री को कबका भूल चुके होगे। इतनी छोटी उम्र में कितना प्यार करते थे उससे।"..


आर्यमणि:- अब इन बातों का क्या फायदा, बस वो जहां रहे हंसती रहे।


शूहोत्र:- उस रात तुम जंगल में क्यों आए थे?


आर्यमणि अपने आखों पर पर्दा डालकर बिना कोई जवाब दिए हुए सो गया। उसे देखकर शूहोत्र खुद से ही कहने लगा…. "जर्मनी में ये सरदर्द देने वाला है।"


जर्मनी का फ्रेबुर्ग शहर, जहां का ब्लैक फॉरेस्ट इलाका अपनी पर्वत श्रृंखला और बड़े–बड़े घने जंगलों के लिए मशहूर है। रोमन जब पहली बार यहां आए थे तब इन जंगलों में दिन के समय में भी सूरज की रौशनी नहीं पहुंचती थी और चारो ओर अंधेरा ही रहता था। तभी से यहां का नाम ब्लैक फॉरेस्ट पर गया।


शूहोत्र जब आर्यमणि को लेकर उस क्षेत्र की ओर बढ़ने लगा, वहां का चारो ओर का नजारा बिल्कुल जाना पहचाना सा लग रहा था। फ्रेबूर्ग शहर के सबसे शांत क्षेत्र में था शूहोत्र का निवास स्थान, जहां दूर-दूर तक कोई दूसरा मकान नहीं था। मकान से तकरीबन 100 मीटर की दूरी से शुरू हो जाता था जंगल का इलाका।


शूहोत्र के लौटने की खबर तो पहले से थी, लेकिन उस बंगलो में रहने वाले लोगों को जारा भी अंदाजा नहीं था कि वो अपने साथ एक मेहमान लेकर आएगा। अजीब सा वह बंगलो था, जिसका नाम वुल्फ हाउस था। दरवाजे से अंदर जाते ही एक बहुत बड़ा हाल था,लगभग 1000 फिट का। पूरे हॉल को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे यहां पर्याप्त रौशनी नहीं है। हल्का अंधेरा सा, जैसे कोई शैतान को पूजने की जगह हो। अजीब सी बू चारो ओर फैली थी। और एक बड़ा सा डायनिंग टेबल जिसपर बैठकर आराम से 80–90 लोग खाना खा सकते थे।



तकरीबन 60–70 लोग थे उस हॉल में जब आर्यमणि वहां पहुंचा। सभी मांस पर पागल कुत्ते की तरह झरप कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने अजनबी को देखा सब सीधे होकर बैठ गए। वहां मौजूद हर कोई आर्यमणि को ही देख रहा था। उन्ही लोगों में से एक कमसिन, बला की खूबसूरत, नीले आंखों वालि लड़की आर्यमणि के नजदीक जाकर उसके गर्दन की खुशबू लेने लगी…. "उफ्फ ! ये तो दीवाना बना रहा है मुझे।"..


शूहोत्र उस लड़की को धक्का देकर पीछे धकेलते हुए… "रोज, जाकर अपनी जगह पर बैठ जाओ।"..


रोज, उसे घूरती हुई जाकर अपनी जगह पर बैठ गई…. शूहोत्र आर्य से.… "सॉरी आर्य वो मेरी कजिन रोज थी, बाद में तुम्हे मै सबसे परिचय करवाता हूं। अभी तुम थक गए होगे जाकर आराम करो।".. शूहोत्र, आर्य अपने साथ बाहर लेकर आया और गेस्ट रूम के अंदर उसे भेजकर खुद बंगलो में आ गया।


शूहोत्र के पिता जीतन लोपचे, सुहोत्र को अपनी आंखें दिखाते…. "किसे साथ लाना चाहिए किसे नहीं, ये बात भी मुझे सीखानी होगी क्या? पहले ही इस लड़के की वजह से हम बहुत कुछ झेल चुके है।"


शूहोत्र:- इस लड़के की वजह से हमने कुछ नहीं झेला है पापा। हम अपनी गलतियों का दोष किसी और पर नहीं दे सकते। आपकी जिद की वजह से लोपचे कॉटेज की घटना हुई थी और आपके बेवजह रुल की वजह से मैत्री मारी गई। मैं भी लगभग मरा ही हुआ था, यदि आर्य सही वक़्त पर नहीं आया होता।


उस घर की मुखिया और जीतन कि दूर की रिश्तेदार… ईडन, शूहोत्र की आखों में झांककर देखती हुई…. "वो लड़का तुम्हारा बिटा है।"..


शूहोत्र, अपनी नजरें चुराते…. "मुझे बचाने के क्रम में गलती से उसके हथेली पर पूरी बाइट दे दिया, और वो लड़का पूरी बाइट झेल गया, मरा नहीं।"..


रोज:- ओह तभी उससे मिश्रित खून की बू आ रही थी। बहुत आकर्षक खुशबू थी वैसे।


शूहोत्र:- क्या यहां किसी को मैत्री के जाने का गम नहीं है?


ईडन:- तुम नियम भुल रहे हो। मैत्री से पहले ही कही थी, अकेली वो जिंदा नहीं रह सकती, मारी जाएगी। उसी ने हमसे कहा था यहां रोज-रोज मरने से अच्छा है कि एक बार में ही मर जाऊं। उसने अपनी मौत खुद चुनी, और तुम खुशकिस्मत हो जो बिना अपने पैक के बच गए। आज रात जाने वाले के लिए जश्न होगा और हम अपने नए सदस्य का स्वागत करेंगे।


ईडन के को सुनने के बाद शूहोत्र की फिर हिम्मत नहीं हुई कुछ बोलने कि। शूहोत्र चुपचाप अपने कमरे में चला गया और अपनी बहन के साथ ली गई तस्वीरों को भींगे आंख देखने लगा।


रात का वक़्त होगा। हॉल में पार्टी जैसा माहौल था और कई घबराए से मासूम जानवर जैसे कि खरगोश, हिरण, जंगली सूअर बंधे हुए थे। मैत्री की बड़ी सी एक तस्वीर लगी थी और तस्वीर के नीचे टेबल पर एक बड़ा सा नाद रखा हुआ था। आर्यमणि जैसे ही हॉल में पहुंचा, वहां का अजीब माहौल देखकर वो अंदाज़ा लगा पा रहा था कि वो किन लोगों के बीच है।


एक लड़की आर्यमणि के करीब आकर खड़ी होती हुई… "तुम आर्य हो ना।"..


आर्यमणि उसे गौर से देखने लगा… लगभग न बताने लायक कमसिन उम्र। आकर्षक बदन जिसपर ना चाहते हुए भी ध्यान खींचा चला जाए। उसे देखने का अजीब ही कसिस थी। नीली आखें, ब्लोंड बाल, और चेहरा इतना चमकता हुआ कि रौशनी टकराकर वापस चली जाए। आर्यमणि खुद पर काबू पाकर गहरी श्वांस लिया… "तुम व्हाइट फॉक्स यानी कि ओशुन हो ना।"..


ओशुन, मुस्कुराकर अपने हाथ उसके ओर बढ़ती…. "पहचान गए मुझे। मैत्री ने तुम्हारे बारे में मुझे बताया था। उसकी चॉइस पर मुझे अब जलन हो रही है।"


आर्यमणि:- तुमने यहां सम्मोहन किया है क्या? मै खुद में बेबस सा मेहसूस कर रहा हूं। तुम्हे वासना भरी नजरो से देखने से खुद को रोक नहीं पा रहा।


ओशुन:- अभी तो ठीक से मैत्री की अंतिम विदाई भी नहीं हुई और तुम अपने लवर के बेस्ट फ्रेंड के बारे में ऐसे विचार पाल रहे हो।


आर्यमणि उसकी बात सुनकर वहां से थोड़ा दूर किनारे में अलग आकर खड़ा हो गया और सामने के रश्मों को देखने लगा। जैसे ही ईडन वहां पहुंची माहौल में सरगर्मी बढ़ गई। जाम के गलास को टोस्ट करते हुए ईडन कहने लगी… "हमारे बीच हमारी एक साथी नहीं रही, जाने वाले को हम खुशी-खुशी अंतिम विदाई देंगे।" ईडन ने आन्नाउंसमेंट किया और सबसे पहले मैत्री के पिता उसकी तस्वीर के सामने खड़े हो गए। अपने हथेली को चीरकर कुछ देर तक खून को नादी में गिरने दिया उसके बाद अपनी हथेली ईडन के ओर बढ़ा दिया।..


उफ्फ ये मंजर। जिसे आज तक पौराणिक कथाओं में सुना था। जिसके अस्तित्व लगभग ना के बराबर आर्यमणि ने मान लिया था। शक तो उसे उस रात से था जबसे उसने मैत्री का वो लॉकेट हटाया और उसका शरीर भेड़िया जैसे दिखने लगा। सुहोत्र का मुंह बंद करने के क्रम में, नुकीले दांत अंदर हथेली फाड़ कर घुस जाना, और छोटे रास्ते से लौटते वक़्त शूहोत्र का उन लोमड़ी को कंट्रोल करके रखना, जो खून की प्यासी थी।


किन्तु अब तक जो भी हुआ उसे आर्यमणि एक दिमागी उपज मानकर ही खुद को समझता रहा था। उसे लग रहा था कि वो कुछ ज्यादा ही वेयरवुल्फ की कहानियों के बारे में सोच रहा है। लेकिन जितन का हाथ जैसे ही ईडन के चेहरे के पास गया, ईडन की आखें काली से लाल हो गई। उसके शरीर में बदलाव आने लगा और अपने हाइट से 4 फिट लंबी हो गई।


हाथ किसी भेड़िए के पंजे में तब्दील हो गए। दो बड़ी–बड़ी नुकीली दातों के के बीच में कई सारे छोटे–छोटे नुकीली दांत, अपना बड़ा सा मुंह फाड़कर हथेली का कटा हुआ हिस्सा उसने मुंह में लिया और जैसे ही चूसना शुरू कि, जीतन की तेज चिंख नकल गई। उसकी भी आंखे लाल हो गई, बड़े–बड़े नाखूनों वाले पंजे आ गए, और वो बड़ी ही बेचैनी के साथ चिल्ला रहा था।


थोड़ी देर खून चूसने के बाद जैसे ही ईडन ने जीतन का हाथ छोड़ा वो लड़खड़ाकर नीचे गिरने लगा। लोगो ने उसे सहारा देकर बिठाया। ऐसे ही एक-एक करके सबने किया, पहले नादी में खून गिराया फिर खून चूसने दिया। यहां का अजीब खूनी खेल देखकर आर्यमणि को अजीब लगने लगा, और वो समारोह को छोड़कर बाहर जाने लगा।


वह गेट के ओर 2 कदम बढ़ाया ही था कि तेजी के साथ ओशुन उसके करीब पहुंचती…. "समारोह छोड़कर जाने का अर्थ होगा ईडन का अपमान। मत जाओ यहां से।"


आर्यमणि:- क्या मै यहां एक कैदी हूं?


ओशुन:- नहीं, यहां कोई कैदी नहीं, बस नियम से बंधे एक सदस्य हो। तुम्हे यदि यहां का माहौल अच्छा नहीं लग रहा तो मूझपर कन्सन्ट्रेट करो। और हां मेरे स्किन से एक अरोमा निकलती है जो आकर्षित करती है, इसलिए खुद में गिल्ट फील मत करना।


आर्यमणि:- हम्मम ! यहां और कितनी देर तक रश्में होगी।


ओशुन:- तुम आखरी होगे, उसके बाद जश्न होगा।..


आर्यमणि:- क्या मै भी तुम लोगों में से एक हूं।


ओशुन, उसे देखकर मुस्कुराती हुई…. "तुम्हे पता है इस हॉल में बैठे हर सदस्य, यहां तक कि मैत्री के मां बाप भी उसके मरने का जश्न मना रहे है। यहां केवल 2 लोग हैं और तुम्हे शामिल कर लिया जाए तो 3, जिसे मैत्री के जाने का गहरा सदमा है। पहला शूहोत्र, दूसरी मै, और तीसरे तुम।"


आर्यमणि:- ऐसा क्यों?


ओशुन:- क्योंकि मैत्री यहां सबसे खास थी, और यही वजह थी कि तुम्हारा साथ होना उसके पापा को जरा भी पसंद नहीं था। लेकिन फिर भी मैत्री ने तुम्हे चुना था, इसका मतलब साफ है कि तुम हम जैसे नहीं हो, बल्कि कुछ खास हो। लेकिन क्या है ना, अकेला वुल्फ कितना भी खास क्यों ना हो, शिकार बन ही जाता है। जबतक अपने पैक के साथ हो तबतक ज़िन्दगी है।


आर्यमणि:- हम्मम !


तभी माहौल में ईडन कि आवाज़ गूंजी। वह तालियों से अपने दल में सामिल हुए नए सदस्य का स्वागत करने के लिए कहने लगी। ओशुन उसका हाथ थामकर खुद लेकर पहुंची। जैसे ही उसके हथेली से वो पट्टी हटाई गई, कमाल हो चुका था। जख्म ऐसे गायब थे जैसे वो पहले कभी थे ही नहीं।


ओशुन ने चाकू से हथेली का वो हिस्सा काट दिया जहां शूहोत्र ने उसे काटा था। कुछ बूंद खून नीचे टपकाने के बाद, आर्यमणि से कहने लगी…. "अपने कपड़े निकलो"..


आर्यमणि उसकी बात सुनकर अपने सारे कपड़े निकाल दिया। पीछे से वहां मौजूद कई लड़कियां उसे देखकर हूटिंग करने लगी। तरह-तरह के कमेंट पास होने लगे। ईडन अपने हाथ उठाकर सबको ख़ामोश रहने का इशारा की। फिर ईडन एक नजर ओशुन को देखी और ओशुन खून से भरी नाद आर्यमणि के ऊपर उरेल दी।


रक्त स्नान हो रहा हो जैसे। रक्त में सराबोर करने के बाद ऒशुन ने आर्य का हाथ ऊपर, ईडन के मुंह के ओर बढ़ा दी। जैसे ही ईडन ने खून चूसना शुरू किया, आर्यमणि को लगा उसकी नसें फट जायेगी और खून नशों के बाहर बहने लगेगा। काफी दर्द भरि चींख उसके मुंह से निकली और उसकी आखें बंद हो गई।
तो अब आर्यमणि werewolf में बदलने वाला है। क्या होगा जब केशव और जया को इसका पता चलेगा। ऐसा क्या है आर्यमणि में की मैत्री के बाप ने दोनो को अलग कर दिया था?
 

Xabhi

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:congrats: bhaya... akhir kar fantasy ke betaj Badshah ne Aryamani ki suruvat kr hi di pr aapki ek behtreen pathika Naina ji to lapta hai forum se kya unke bina utna hi maza aane vala hai ya unki jagah ham rihanna ji ko bulaye...
Aapki Story Aaj se suru padhna... :reading:
 

Xabhi

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Welcome To My Fantasy World....


Meri Nayi Fantasy Series Me Aapka Swagat Hai.... Supernatural World aur Wolf Fantasy Par Yah Series Aadharit Hai, Jahan Aapki Mulakat Kayi Tarah Ke Supernatural Fantasy Jiv Se Hogi....

7 August Se Kahani Ki Shuruaat Hogi. Kahani Me Kisi Bhi Orakar Ka Sujhav Dene Ke Liye Aap Swatantr Hai. Aap'ke Sujhav Ka Intzar Rahega.

Ummid Hai Iss Kahani Ko Bhi Aap Sabka Utna Hi Sath Aur Utna Hi Pyar Mile...


Dhanywaad....



Prastut Hone Wali Kahani Ki Kuch Jhalkiyan....


Scene:-1
जंगल का इलाका। कोहरा इतना गहरा की दिन को भी सांझ में बदल दे। दिन के वक़्त का माहौल भी इतना शांत की एक छोटी सी आहट भयभीत कर दे। यदि दिल कमजोर हो तो इन जंगली इलाकों से अकेले ना गुजरे।


हिमालय की ऊंचाई पर बसा एक शहर गंगटोक, जहां प्रकृति सौंदर्य के साथ-साथ वहां के विभिन्न इलाकों में भय के ऐसे मंजर भी होते है, जिसके देखने मात्र से प्राण हलख में आ जाए। दूर तक फैले जंगलों में कोहरा घना ऐसे मानो कोई अनहोनी होने का संकेत दे रहा हो।

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Scene:-2
आर्यमनी, बिना उसकी बातों पर ध्यान दिए हुए रस्सी के हुक को पेड़ से फसाने लगा। इधर जबतक निशांत ड्रोन कैमरा से दिव्य की वर्तमान परिस्थिति का जायजा लेने लगा। लगभग 12 फिट नीचे वो एक पेड़ की साखा पर बैठी हुई थी। निशांत ने फिर उसके आसपास का जायजा लिया।… "ओ ओ.… जल्दी कर आर्य, एक बड़ा शिकारी मैडम के ओर बढ़ रहा है।"..


आर्यमणि, निशांत की बात सुनकर मॉनिटर स्क्रीन को जैसे ही देखा, एक बड़ा अजगर दिव्या की ओर बढ़ रहा था। आर्यमणि रस्सी का दूसरा सिरा पकड़कर तुरंत ही खाई में उतरने के लिए आगे बढ़ गया। निशांत ड्रोन की सहायता से आर्यमणि को दिशा देते हुए दिव्या तक पहुंचा दिया। दिव्या यूं तो उस डाल पर सुरक्षित थी, लेकिन कितनी देर वहां और जीवित रहती ये तो उसे भी पता नहीं था।


किसी इंसान को अपने आसपास देखकर दिव्या के डर को भी थोड़ी राहत मिली। लेकिन अगले ही पल उसकी श्वांस फुल गई दम घुटने लगा, और मुंह ऐसे खुल गया मानो प्राण मुंह के रास्ते ही निकलने वाले हो। जबतक आर्यमणि दिव्या के पास पहुंचता, अजगर उसकी आखों के सामने ही दिव्या को कुंडली में जकड़ना शुरू कर चुका था। अजगर अपना फन दिव्या के चेहरे के ऊपर ले गया और एक ही बार में इतना बड़ा मुंह खोला, जिसमे दिव्या के सर से लेकर ऊपर का धर तक अजगर के मुंह में समा जाए।


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Scene:-3
नीरज और विनीत ने कल शाम 10 लड़को के साथ पिटने गया था लेकिन आज 40 लड़के लेकर आया था, यह सोचकर कि कॉलेज का माहौल है और पाता नहीं शायद 10-15 दोस्त निशांत भी लेकर आए। जैसे ही नम्रता को पुष्टि हो गई 40 लड़के है, उसके 60 लोग पहले से ही कैंटीन के आसपास जाकर फ़ैल गए।


पहला क्लास खत्म होने के बाद पलक अपने बैग का चैन खोली और नजरे बस प्रतीक्षा कर रही थी कि कब ये लोग आए। ज्यादा इंतजार भी नहीं करना पड़ा था और कैंटीन आने वाले रास्ते पर ही दूर से वो दिख गये।


पलक तेजी से दौड़ लगती अपने बैग से 1 मीटर की चाबुक निकल ली। जिसके चमड़े के ऊपर कांटेदार पतली तार लगी हुई थी। नीरज और विनीत कुछ कह पाते उससे पहले ही पलक ने आधे मीटर की दूरी से चाबुक चलना शुरू कर दिया।


जब वो चाबुक चला रही थी, देखने वाले स्टूडेंट ने अपने दातों तले उंगलियां दबा ली। सटाक की आवाज के साथ चाबुक पड़ते और अंदर का मांस लेकर निकल आते। पलक ने तबीयत से नीरज और वीनित को चाबुक मारना शुरू कर दिया था।


नीरज और वीनीत हर चाबुक पड़ने के बाद छिलमिलाते हुए दर्द भारी चींख निकालते और मदद के लिए अपने दोस्तो को गुहार लगाते। लेकिन चाबुक का दर्द इतना अशहनिया था कि नीरज और विनीत को पता ही नहीं चला कि जब उन्हें पलक के हाथ का पहला हंटर लग रहा था, ठीक उसी वक़्त उसके पीछे नम्रता के भेजे सभी लोगो ने नीरज के साथ आए मार करने वाले स्टूडेंट को तोड़ दिया था।


पलक दोनो को उसके औक़ाद अनुसार हंटर मारकर, हंटर को वापस बैग में रखी। पलक की नजर साफ देख पा रही थी कि जब वो हंटर चला रही थी कैसे कॉलेज का एक समूह उसे घुरे जा रहा था। पलक अपना काम खत्म करके नीरज और विनीत के पास पहुंची और उसके मुंह पर अपना लात रखती हुई कहने लगी… "अगली बार हमारे आसपास भी नजर आए तो फिर से मारूंगी।".


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Ye hunter vali hmare forum me kisko Bolte hai 🤔 ...are ha...💡 Sayad Indian princess ko Bolte hai...
( are nhi vo to koi BDSM Queen thi sayad)

Vaise ye hmara man to bahut ho rha hai ye kahne ko ki ye chabuk vali hmare khate me likh do...
Prolog Bolte hai ya prolong yaad nhi jo bhi hai aapne badhiya kya jhakkash diya hai...
 
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Lib am

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भाग:–8

साथ में ये तीसरा दिन था कॉलेज का, जब पलक ने यह सवाल दोनो से पूछ ही लिया… सवाल सुनकर दोनो हंसने लगे। पलक दोनो का चेहरा देखती हुई… "क्या हुआ, कुछ गलत पूछ ली क्या?"


चित्रा:- नहीं कुछ गलत नहीं पूछी। निशांत पलक को इसका जवाब दे…


निशांत:- बस कभी ये ख्याल ही नहीं रहता की हम किसी पुलिस अधिकारी के बच्चे है। यहां तो स्टूडेंट है और हर स्टूडेंट की तरह हमारे भी एक परेंट है।


क्लास, पढ़ाई और भागती हुई ज़िन्दगी, यूं तो निशांत और चित्रा के पास ध्यान भटकाने के कई सारे साधन मिल चुके थे, लेकिन किसी ना किसी बातों से हर वक़्त आर्यमणि की यादें ताज़ा हो ही जाती थी। कॉलेज आकर दोनो भाई बहन के चेहरे के भाव बदले थे लेकिन अंदर की भावना नहीं।


गंगटोक से आए लगभग 3 साल से ऊपर हो गए थे और इतने लंबे वक्त में एक छोटी सी खबर नहीं आर्यमणि कि। कॉलेज शुरू हुए 2 महीने हो गए थे। 2 क्लास के बीच में इतना गैप था कि कम से 1 घंटा तो इनका कैंटीन में जरूर बिता करता था। चित्रा, पलक और निशांत तीनों बैठे थे.…


चित्रा:- अभी देखना हम लोग को सरप्राइज देते हुए आर्य सामने से आएगा।


निशांत:- पिछले 10 दिन से तू यहीं बोल रही है। अब कहेगी नहीं आज मेरी स्ट्रॉन्ग वाली फीलिंग कह रही है।


पलक:- वो देखो तुम्हारा दोस्त आर्य आ गया।


चित्रा और निशांत दोनो एक साथ सामने देखते… "क्या यार पलक, इसे भावनाओ के साथ खेलना कहते है। निशांत उस माधव को बुला जरा।"


ऊपर वाले की फैक्टरी में बाना विचित्र रचना। उम्र 18-19 साल लगभग, हाइट 5 फिट 9 इंच, वजह 38 किलो। निशांत उसे आवाज़ लगाते… "ए माधव इधर आ।"..


माधव ने एक नजर टेबल पर डाली और फिर अपनी नजरें नीची करते चुपचाप जाने लगा…. "क्या यार माधव नाराज है क्या"… माधव ने अब भी नजरदांज किया।


चित्रा:- माधव यहां आओ वरना हम तुम्हारे बाबूजी को फोन अभिए लगा देंगे हां।


माधव, उन तीनों के पास बैठते…. "काहे आपलोग हमको तंग करते है। हमे जाने दीजिए ना।"..


चित्रा:- सुन ना माधव, मझे फिजिक्स और मैथमेटिक्स में हेल्प कर दे ना।


माधव:- देखिए भगवान ने हमको कुरूप बनाया है, कोई बॉडी पर्सनैलिटी नहीं दी है, इसका ये मतलब नहीं कि आप सब हमरा मज़ाक उड़ाए।


चित्रा:- अबे ओय घोंचू, तेरा कब मज़ाक उड़ाये बे।


माधव:- कल यहीं पास वाला टेबल पर बैठे थे। अपने क्लास की वो निधि और उसके दोस्तों ने आप लोगो की तरह ही बुलाया था। और हम बस रोए नहीं, भरी महफिल में ऐसा मज़ाक बनाया। कल वो थी आज आप है।


निशांत:- मज़ाक तो हम भी तुम्हारा बनाते माधव। आखिर कांड ही ऐसे किए थे। प्रेम पत्री दिए मेरी बहन को, हां।


माधव:- सॉरी खाली दोस्ती का लेटर था। पहले कभी इतनी सुंदर लड़की से बात नहीं किए थे। जिससे भी करने कि कोशिश किए, सबने खाली मज़ाक ही उड़ाया। चित्रा से 2-4 बार बात हुई थी सब्जेक्ट को लेकर, तो हम सोचे कहीं हमसे दोस्ती कर ले। अकेले रहते है ना, इसलिए फील होता है। हमारा तो रूममेट भी हमसे बात नहीं करता।


चित्रा:- दोस्ती में तो कोई हर्ज नहीं है माधव, लेकिन मै करूंगी मज़ाक और तुम हो जाओगे सीरियस, और किसी भोले इंसान का दिल नहीं दुखाना चाहती, इसलिए जवाब नहीं दी, वरना तुम तो हीरा हो माधव हीरा। फिजिक्स और मैथमेटिक्स में क्या पकड़ है तुम्हारी।


माधव:- हमारे बाबूजी कहते थे, पाऊं उतना ही पसारना चाहिए जितनी चादर हो। हम तो बिलो एवरेज से भी एक पायदान नीचे है और आप तो मिस वर्ल्ड है।


निशांत:- आज से तुम हमारे दोस्त। हम तुमसे मज़ाक करेंगे और तुम हम सब से मज़ाक करना लेकिन कोई तुम्हे बेइज्जत करे तो हमसे शेयर करना, फिर उनका ग्रुप बेज्जत्ती की कहानी हम लिखेंगे। समझे बुरबक..


माधव:- हां समझ गए। इसी खुशी में आज की काफी मेरी तरफ से।


निशांत:- तू तो बड़ा दिलदार निकला चल पिला, पिला…


कॉलेज आते हुए सभी को लगभग महीनो बीत गए थे। 2 क्लास के बीच में इनके पास लगभग 1 घंटे का गैप होता था जहां चित्रा, निशांत, पलक और माधव कैंटीन में बैठकर बातें किया करते थे।


ऐसे ही एक दिन चारो बैठे हुए थे, तभी एक लड़का उनके बीच आ बैठा।… "मैंने कॉलेज में पुरा सर्वे किया, कैंटीन का बेहतरीन खूबसूरत टेबल यही है। लेकिन इन 2 खूबसूरत तितलियों के साथ 2 बेकार जैसे लोग बैठे रहते है, ये किसी को भी समझ में नहीं आता।"..


माधव:- समझिएगा भी नहीं, ये आउट ऑफ स्लैब्स वाला सवाल है।


चित्रा:- तुम्हे क्या चाहिए मिस्टर, किसपर ट्राय करने आए हो। आए तो हो, लेकिन अपना नाम भी नहीं बताए।


लड़का:- मेरा नाम नीरज है, और पलक मुझे बहुत अच्छी लगती है। सिर्फ दोस्ती करने आया हूं।


पलक, अपना हाथ बढाती…. "नीरज जी हमारी दोस्ती हो गई, अब क्या हमे परेशान करना बंद करेंगे।"


तभी वहां पर एक और लड़का पहुंच गया… "अरे नीरज तूने तो 2 मिनट में दोस्ती भी कर ली, मुझे भी चित्रा से दोस्ती करवा दे कसम से कितनी हॉट है।"..


चित्रा:- तुम भी अपना परिचय दे ही दो।


लड़का:- मै हूं विनीत, हम दोनों सेकंड ईयर में है।


चित्रा भी अपनी हाथ बढ़ाती… "तुम से भी दोस्ती हो गई विनीत अब खुश"


दोनो ही लड़के ठीक चित्रा और पलक के बाजू में अपना टेबल लगाते हुए उससे चिपक कर बैठ गए।…. "ओ ओ !! चित्रा, पलक, लगता है हम सबको यहां से चलना चाहिए। पहले दिन में ही काफी गहरी दोस्ती बनाने के इरादे से आए है।"… माधव कहते हुए खड़ा हो गया।


निशांत:- माधव सही कह रहा है, चलो चलते है।


चित्रा और पलक भी दोनो के बात से सहमत होती खड़ी हो गई। दोनो लड़कियां जैसे ही खड़ी हुई, उन दोनों लड़को ने उसका हाथ पकड़ लिया।… "देखिए सर, आपने दोस्ती कहीं करने, हमने कर ली। लेकिन जबरदस्ती हाथ पकड़ना गलत है। हाथ छोड़िए।"..


दोनो लड़को ने हाथ छोड़ दिया। चित्रा और पलक वहां से जाने लगी। पीछे से वो लड़का नीरज कहने लगा… "अब तो दोस्ती हो गई है, आज नहीं तो कल हाथ थाम ही लेंगे।"..


कुछ दिन और बीते, चारो ने नीरज और विनीत की हरकतों को लगभग अनदेखा ही किया। जबदस्ती कुछ देर के लिए आते, फालतू की बकवास करते और चले जाते। कभी चारो मिलकर उन्हें छिल देते तो कभी चारो कुछ मिनट में ही इरिटेट होकर वहां से उठकर चले आते। लेकिन उस दिन ये लड़के अपने और 4 दोस्तो के साथ आए थे और आते ही सीधा चित्रा और पलक को परपोज कर दिया।


पलक:- सॉरी, मेरी ऐसी कोई फीलिंग नहीं है।

चित्रा:- और मेरी भी।


विनीत जिसने चित्रा को परपोज किया था… "इस डेढ़ पसली वाले कुत्ते (माधव) के साथ तो तुम ना जाने क्या-क्या करती होगी, जब तुम्हे ये पसंद आ सकता है फिर मै क्यों नही?"


उसकी बात सुनकर निशांत और माधव आगे बढ़े ही थे कि पलक…. "तुम दोनो ध्यान मत दो, चलो चलते है यहां से।"..


"साली कामिनी हमे इनकार करेगी, तुझसे तो हां करवाकर रहूंगा"… पीछे से नीरज ने कहा।


चित्रा और पलक आगे जा रही थी, माधव और निशांत पीछे–पीछे। दोनो ने एक दूसरे को देखकर सहमति बनाई और पीछे की ओर मुड़ गए। माधव ने टेबल पर परा हुआ कप उठाया और सीधा नीरज के कनपटी पर दे मारा। कप के इतने टुकड़े उसके सर में घुसे की ब्लीडिंग शुरू हो गई।


वहीं निशांत, विनीत के मुंह पर ऐसा पंच मारा कि उसके नाक और मुंह से खून बहने लगा। वो भी अपने 4 दोस्तो के साथ आया था। उन चारो ने निशांत पर ध्यान दिया और माधव को भुल गए। माधव भी इस लड़ाई में चार चांद लगाते हुए टेबल पर परे बचे हुए कप किसी के गाल पर मार कर ऐसा फोड़ा की उसका जबड़ा हिल गया तो किसी के सर पर कप तोड़कर उसका सर फोड़ डाला।


जैसे ही 2 लड़के निशांत के पास से हटे, निशांत को भी पाऊं चलाने का मौका मिल गया। जिसने पूरी उम्र जंगल और पहाड़ों में गुजरी हो, स्वाभाविक है उसके हाथ और पाऊं में उतना ही बल होगा। निशांत ने जब मारना शुरू किया, फिर तो जबतक वो सब भाग नहीं गए तबतक मारता रहा।


सभी लड़के टूटी-फूटी हालत में कैंटीन से निकल रहे थे। जाते-जाते कहते गए, सेकंड ईयर से पंगा लेकर तुमने गलत किया है… "कुत्ते के पिल्ले दोबारा कभी सामने आया तो फोर्थ ईयर वाले तुम्हे नहीं बचा पाएंगे।"


पलक और चित्रा दोनो किनारे खड़ी होकर ये सब देख रही थी। दोनो को ही यहां उनको मारने में कुछ गलत नहीं लगा बस ये लड़ाई आगे ना बढ़े इस बारे में सोच रही थी। चारो ने बाकी के क्लास अटेंड किए और जाते वक़्त पलक कहने लगी… "मै क्या सोच रही थी, 4-5 दिन कॉलेज ड्रॉप कर देते है, जबतक मौसा जी (निशांत और चित्रा के पापा) और दादा (राजदीप) मुंबई की मीटिंग खत्म करके चले आएंगे।"


चित्रा:- दादा या पापा नहीं पढ़ते है इस कॉलेज में, तुम चिंता नहीं करो, माधव तो हर रोज अपने गांव में मार खाता था और निशांत को लड़कियों के सैंडल ने इतना मजबूत बना दिया है कि दोनो की कल कुटाई भी हो गई, तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ेगा।


माधव:- ऐसे दोस्त से अच्छा तो उ दुश्मन होंगे जो हमारे बल के हिसाब से रणनीति बाना रहे होंगे। कोई कमी ना छोड़ी बेज्जाती में।


निशांत:- सही कहा माधव। चल चलकर कल इनकी कुटाई की प्लांनिंग हम भी करते है।


माधव:- प्लांनिंग क्या करना है उ आकाश और सुरेश दोनो है ना, जो क्लास में पलक और चित्रा को ही देखते रहते है, उनको उकसा देंगे। हीरो बनने का अच्छा मौका है साला खुद ही 8-10 हॉस्टल के लड़के लेकर चले आएंगे।


माधव की बात सुनकर चित्रा और पलक दोनो ही हसने लगी… "बहुत बड़े वाले कमिने हो दोनो। चलो अब क्लास अटेंड करते है।"..


चारो क्लास अटेंड करने चल दिए। शाम का वक्त था जब पहले खबर निशांत के पास गई। निशांत से चित्रा और चित्रा से पलक तक खबर पहुंची। तीनों ही सिटी हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में पहुंचे।… "अरे निशांत आ गए। सालों ने रणनीति बदल दी रे। सालों ने मुझे हॉस्टल में ही धो दिए। कुत्ते की तरह मरा।"


निशांत:- कुछ टूटा फूटा तो नहीं है ना।


माधव:- हाथ ही तोड़ दिया सालो ने।


दोनो बात कर ही रहे थे तभी माधव को जनरल वार्ड से उठाकर प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया। पलक और चित्रा भी उसके पीछे गई। कुछ देर मिलने के बाद तीनों वहां से निकल गए।


पलक के सीने में अलग आग लगी थी। चित्रा के सीने में अलग और निशांत के सीने में अलग, और तीनों अलग-अलग आग लिए, अलग-अलग निकले और एक ही बंगलो पर आगे–पीछे पहुंचे।…. सबसे पहले निशांत पहुंचा।


ये बंगलो आर्यमणि की मौसेरी बहन भूमि का ससुराल था। भूमि की मां मीनाक्षी और आर्यमणि की मां जया दोनो अपनी सगी बहन थी। वहीं भूमि के बाबा सुकेश भारद्वाज और पलक के बाबा उज्जवल भारद्वाज दोनो अपने चचेरे भाई थे। भूमि के परिवार का लगाव आर्यमणि के परिवार के साथ अलग ही लेवल का था, ये सबको पता था। उसमे भी भूमि, आर्य को अपने बच्चे जैसा मानती थी। यही वजह थी कि चित्रा और निशांत भी भूमि के काफी क्लोज थे।


बंगलो में भूमि, पलक की बड़ी बहन नम्रता के साथ थी और कुछ बातें कर रही थी। तभी वहां निशांत पहुंच गया। निशांत को देखते ही भूमि… "अरे मेरे छोटे बॉयफ्रेंड, अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने में इतनी देर लगा दी।"..


नम्रता:- दीदी आप निशांत को जानती हो।


भूमि:- क्यों तेरी मां तुम लोगों को कहीं नहीं भेजती तो क्या मेरी भी अाई कहीं नहीं भेजे। बस 2 लोगों का दिमाग खराब है, एक तेरी अाई और दूसरा इसका बाप, बाकी सब मस्त है।


निशांत:- दीदी कॉलेज में एक लफड़ा हुआ है और मुझे 50-60 लोगों को टूटी-फूटी हालत में हॉस्पिटल भेजना है।


निशांत अपनी बात खत्म किया ही था कि पीछे से चित्रा भी पहुंच गई। निशांत को वहां देखकर चित्रा उससे पूछने लगी क्या वो माधव के लिए आया है? निशांत ने उसे हां में जवाब दिया। कॉलेज के लफड़े के लिए केवल निशांत आता तो भूमि कॉम्प्रोमाइज का रास्ता अपनाती क्योंकि लड़कों के बीच लड़ाई होना आम बात थी, लेकिन चित्रा का आना, भूमि के लिए चिंता का विषय था।


भूमि ने दोनो भाई बहन को बिठाकर पूरी कहानी सुनी। पूरी कहानी सुनने के बाद… "हम्मम ! गलत किया है उन लड़को ने, बहुत गलत"..


भूमि इतना कह ही रही थी कि तभी पीछे से पलक भी वहां पहुंच गई। पलक को देखकर नम्रता और भूमि दोनो आश्चर्य करती हुई…. "पलक और यहां"..


चित्रा और निशांत दोनो एक साथ… "वो भी इसी मुद्दे के लिए आयी है।"..


पलक आते ही… "शायद हर किसी के दिल में आग लगी है।"


भूमि को यूं तो तीनों से बहुत सी बातें करने थी, लेकिन तीनों ही उसके सामने बच्चे थे और इनके परेशानी को देखते हुए, भूमि ने सिर्फ इतना पूछा… "पलक तुम क्या चाहती हो।"


पलक:- सबको तोड़ना है, सिवाय नीरज और विनीत के। क्योंकि उनकी चमरी मै अपने हाथो से कल उधेड़ दूंगी।


भूमि:- नम्रता ये काम मै तुम्हे दे रही हूं। सुनो स्टूडेंट है तो थोड़ा हिसाब से तोड़ना 2-3 महीने में पढ़ाई करने लगे ऐसा।


नम्रता:- मज़ा आएगा दीदी।


अगले दिन पलक ने अपना बैग खुद तैयार किया। नम्रता तो पहले ही अपने लोगो को भेज चुकी थी, जो पलक के कैंटीन आने से पहले पता लगा कर रखते की कौन सा ग्रुप पलक, चित्रा और निशांत को मारने वाले है, ताकि तोड़ते वक़्त कोई कन्फ्यूजन ना हो।


नीरज और विनीत ने कल शाम 10 लड़को के साथ पिटने गया था, लेकिन आज 40 लड़के लेकर आया था, यह सोचकर कि कॉलेज का माहौल है और पाता नहीं शायद 10-15 दोस्त निशांत भी लेकर आए। जैसे ही नम्रता को पुष्टि हो गई 40 लड़के है, उसके 60 लोग पहले से ही कैंटीन के आसपास जाकर फ़ैल गए।


पहला क्लास खत्म होने के बाद पलक अपने बैग का चैन खोली और नजरे बस प्रतीक्षा कर रही थी कि कब ये लोग आए। ज्यादा इंतजार भी नहीं करना पड़ा था और कैंटीन आने वाले रास्ते पर ही दूर से वो दिख गये।


पलक तेजी से दौड़ लगती अपने बैग से 1 मीटर की चाबुक निकल ली। जिसके चमड़े के ऊपर कांटेदार पतली तार लगी हुई थी। नीरज और विनीत कुछ कह पाते उससे पहले ही पलक ने आधे मीटर की दूरी से चाबुक चलना शुरू कर दिया।


जब वो चाबुक चला रही थी, देखने वाले स्टूडेंट ने अपने दातों तले उंगलियां दबा ली। सटाक की आवाज के साथ चाबुक पड़ते और अंदर का मांस लेकर निकल आते। पलक ने तबीयत से नीरज और वीनित को चाबुक मारना शुरू कर दिया था।


नीरज और वीनीत हर चाबुक पड़ने के बाद छिलमिलाते हुए दर्द भारी चींख निकालते और मदद के लिए अपने दोस्तो को गुहार लगाते। लेकिन चाबुक का दर्द इतना अशहनिया था कि नीरज और विनीत को पता ही नहीं चला कि जब उन्हें पलक के हाथ का पहला हंटर लग रहा था, ठीक उसी वक़्त उसके पीछे नम्रता के भेजे सभी लोगो ने नीरज के साथ आए मार करने वाले स्टूडेंट को तोड़ दिया था।


पलक दोनो को उसके औक़ाद अनुसार हंटर मारकर, हंटर को वापस बैग में रखी। पलक की नजर साफ देख पा रही थी कि जब वो हंटर चला रही थी, कैसे कॉलेज का एक समूह उसे घुरे जा रहा था। पलक अपना काम खत्म करके नीरज और विनीत के पास पहुंची और उसके मुंह पर अपना लात रखती हुई कहने लगी… "अगली बार हमारे आसपास भी नजर आए तो फिर से मारूंगी।"..


निशांत, पलक के पास पहुंचते…. "एक को तो छोड़ देती, मै ठुकाई कर देता, कम से कम इसी बहाने कोई लड़की तो इंप्रेस हो जाती।"..


पलक:- कल तुम्हे वो सीएस वाली लड़की हरप्रीत बड़े गौर से देख रही थी। तुमने ध्यान नहीं दिया। निशांत खुशी से उसके दोनो गाल खिंचते… "यू आर सो स्वीट। तुम्हे कोई पसंद हो तो बताना मै हेल्प कर दूंगा।"


चित्रा:- ये तो गया काम से अब हफ्तों तक दिखेगा नहीं।


चित्रा और पलक बातें करती वहां से जा ही रही थी कि तभी वहां प्रिंसिपल अपनी पूरी टीम के साथ पहुंच गए। प्रिंसीपल जैसे ही वहां पहुंचा, पीछे से नम्रता और भूमि भी वहां पहुंच गई।


भूमि प्रिंसिपल को देखते हुए कहने लगी…. "क्या देख रहे हो मसूद, ये हमारी नेक्स्ट जेनरेशन है। तुम कुछ सोचकर तो नहीं आए थे इनके पास।"..


मसूद:- भूमि ये कॉलेज है। छोटे मोटे झगड़े तक तो ठीक है लेकिन आज जो इस कैंपस में हुआ…


भूमि:- पलक, चित्रा तुम दोनो जाओ। जो भी हुआ उसमे उन लौडों की गलती थी। उनके गार्डियन को संदेश भेज दो, उनके बच्चे ग्रुप बनाकर बाहर लड़को की पिटाई करते है, जिसका नतीजा ये हुआ है कि यहां के लोकल लोग कॉलेज में घुसकर मार कर रहे है। पुलिस कार्यवाही होती तो मजबूरन उन्हें रस्टीकेट करना पड़ता इसलिए कोई एक्शन नहीं ले पाए।


मसूद:- हम्मम ! ठीक है ऐसा ही होगा। भूमि वो सरदार ने तेजस से कुछ कहा था, उसपर तुम लोगों का क्या विचार बना।


भूमि:- मसूद हम दोनों ही बंधे है। अगर सरदार चाहता है तो हम मदद के लिए आएंगे। लेकिन सोच लो तुम दूसरे के इलाके में घुसोगे, फिर वो तुम्हारे इलाके में घुसेंगे और यदि आम लोग परेशान हुए तो हम तुम दोनो के इलाके में घुसेंगे। जो भी फैसला हो बता देना।


मसूद:- ठीक है मै सरदार से बात करता हूं।


भूमि प्रिंसिपल से बात करके वहां से निकल गई। दोनो लड़कियां भी आराम से बैठकर कॉफी पीने लगी।…
वाह पलक तो बहुत ही छुपी रूतम निकली, एक दम हसीना हंटर वाली बन गई और अच्छी खातिरदारी करदी। मगर ये आर्यमणि अभी भी ईडन और उसके साथियों का गुलाम बना हुआ है या फिर उसने वाहन से निकलने का कोई तरीका ढूंढ लिया है?
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Scene:-4
एक सेकंड ईयर का स्टूडेंट भागता हुआ कैंटीन में आया… "सुपर सीनियर (4th ईयर स्टूडेंट) आए है और एक स्टूडेंट को पकड़ रखा है। लगता है उसकी आज बैंड बजाने वाले है।"..


वो लड़का हल्ला करता हुआ सबको बता गया और कैंटीन से 5 कॉफी और सिगरेट लेकर चलता बना।… "इन सुपर सीनियर की रैगिंग क्या अलग होती है।"… पलक, निशांत और चित्रा से पूछने लगी।


निशांत:- पता नहीं। वैसे हमे तो सेकंड ईयर वालो का दर्द झेला नहीं गया था, ये तो फाइनल ईयर वाले है।


माधव:- चलकर देख लेते है फिर, ये सुपर सीनियर कैसे रैगिंग लेते है।


चित्रा:- चलो चलकर देखते है, इसी बहाने कुछ टाइमपास भी हो जाएगा।


पलक:- कैसे हो तुमलोग। कोई किसी को परेशान करेगा और तुम लोग उसे देखोगे।


निशांत:- शायद उन सुपर सीनियर्स के जाने के बाद उसे किसी कंधे कि जरूरत पड़े। ये भी तो हो सकता है ना पलक। मानवीय भावना से तुम भी क्यों नहीं चलती।


पलक:- हम्मम ! ये भी सही है। चलो चलते है।


चित्रा:- वैसे पलक ने उसे अपना कांधा दे दिया तब तो बेचारे के सारे गम दूर हो जाएंगे।


सभी बात करते हुए पहुंचे गए फर्स्ट ईयर के एरिया में, और जैसे ही नजर गई उस लडके पर… हाइट 6 फिट के करीब। आकर्षक गठीला बदन बिल्कुल किसी प्रोफेशनल एथलीट की तरह। रंग गोरा, चेहरा नजरें टिका देनेने वाली। और जब फॉर्मल के ऊपर आखों पर सन ग्लासेस लगाए था, किलर से कम नहीं लग रहा था। पलक उसे नजर भर देखने लगी।


चित्रा:- मारो, इसे खूब मारो.. इतना मारो कि होश ठिकाने आ जाए


निशांत:- बस अच्छे से इसकी ठुकाई हो जाए तो दिल खुश हो जाए।


पलक हैरानी से उन दोनों का चेहरा देखने लगी। ये सभी सुपर सीनियर्स के ठीक पीछे खड़े थे और नज़रों के सामने आर्यमणि।…. "इसने अपनी बॉडी पर काम किया है ना। पहले से कुछ पतला नजर आ रहा है ना निशांत।"..


निशांत:- ऐसा लग रहा है बदन के एक्स्ट्रा चर्बी को छीलकर आया हो जैसे।


इधर सुपर सीनियर्स छोटे से लॉन में लगे पत्थर की बनी बेंच पर बैठे थे और आर्यमणि ठीक उसके सामने। छोटा सा इंट्रो तो हो गया था। उसे खड़े रहने बोलकर सभी कॉफी पीने लगे थे। इसी बीच आर्यमणि ने अपने दोस्तो को देखा और अपना चस्मा निकालकर सीने में खोंस लिया।… "इसकी आखें नीली कबसे हो गई, कॉन्टैक्ट लेंस तो नहीं लिया।"..


निशांत:- इसपर पक्का यूएस की गलत हवा लगी है चित्रा। ये तो यहां की लड़कियों को दीवाना बनाने आया है। कमिने ने मेरे बारे में भी नहीं सोचा। अब मेरा क्या होगा।


हरप्रीत निशांत को एक लात मारती… "तुम्हारी छिछोड़ी हरकतें कभी बंद नहीं होगी ना।"


पलक इतनी डिटेल सुनने के बाद थोड़ी हैरान होती… "क्या यही आर्य है।"..


दोनो भाई बहन एक साथ… "हां यही आर्य है।"..


तभी सीनियर जो कॉफी पी रहे थे, अपनी आधी बची कॉफी आर्य के मुंह पर फेंकते… "अबे हम यहां बैठे है और तू मुस्कुराए जा रहा है।"


आर्यमणि:- सॉरी सर...


तभी एक सीनियर खड़ा हुआ और खींचकर एक तमाचा मरा। तमाचा इतना जोड़ का था कि आर्यमणि का उजला गाल लाल पर गया।… "कुत्ते के पिल्ले, झुककर, अदब से सर बोला कर। अच्छा तू सिगरेट पीता है।"


आर्यमणि:- टेक्निकल सवाल है सर जिसके जवाब पर थप्पड़ ही पड़ने है। वक़्त क्यों बर्बाद करना मारो।


उसे देखकर सभी हंसते हुए… "समझदार लड़का है।" सभी खड़े हो गए और एक के बाद एक उसके गाल पर निशान बनाते चले गए। उनकी इस हरकत को ना तो चित्रा बर्दास्त कर पाई और ना ही निशांत। उनके चेहरा देखकर ही आर्यमणि समझ गया कि अब ये दोनो यहां ना आ जाए इसलिए उसने इशारे से मानकर दिया।





Scene:-5
बात करते-करते बीच से एक गुप्त दरवाजा खुल गया। अंदर का गुप्त कमरा तो वाकई काफी रहस्यमय था। चारो ओर दीवार पर हथियार टंगे थे। चमचमाती रसियन, जर्मन और यूएस मेड अत्याधुनिक हथियार रखे थे। उसी के नीचे कई साइज के तलवार, भाला, बरछी, जंजीर और ना जाने क्या-क्या। कमरे की दीवार पर तरह-तरह के स्लोक लिखे हुए थे। आर्य चारो ओर का नजारा देखते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।


चलते-चलते दीदार उस पुस्तक के भी हुए जिसकी तलाश थी। आर्यमणि सबके पीछे ही खड़ा था और उस पुस्तक के अपने पास होने का अनुभव कर रहा था। वो आगे बढ़कर जैसे ही उस पुस्तक को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढाया… "नाह ! ऐसे नहीं। इसमें 25 अध्याय है और हर अध्याय को पढ़ने के लिए एक परीक्षा। कुल 25 परीक्षा देने होंगे तभी इस पुस्तक को हाथ लगा सकते हो, इसे पढ़ सकते हो। इसलिए तो इसके जानने की आयु भी हमने 25 वर्ष रखी है।






Scene:-6
रूही:- बॉस, 12 बज गए है, लोग हमारी तलाश में निकल रहे होंगे।


आर्यमणि:- एक का कॉल नहीं आया है अभी तक, मतलब अभी सब मामला समझने कि कोशिश ही कर रहे होंगे।


"मुझसे और इंतजार नहीं होता, आप तो हमे पकाये जा रहे हो। ये हुआ रावण दहन को तैयार। सब ताली बजाकर हैप्पी दशहरा कहो"… रूही जल्दी मे अपनी बात कही और सभी ने पेट्रोल पाइप में आग लगा दिया। अंदर ऐसा विस्फोट हुआ कि आर्यमणि के पूरे शरीर पर मांस के लोथरे थे। आर्यमणि का शरीर विस्फोट के संपर्क में आ चुका था और हालत कुछ फिल्मी सी हो गई थी। चेहरे की चमरी जल गई। कपड़ों में आग लगना और फिर बुझाया गया। आर्यमणि की हालत कुछ ऐसी थी.… आधा चेहरा जला। आधे जले कपड़े और पूरे शरीर पर मांस के लोथरे के साथ विस्फोट के काले मैल लगे थे।


आर्यमणि बदहाली से हालात में चारो को घूरने लगा। आर्यमणि को देखकर चारो हसने लगे। रात के तकरीबन सवा बारह (12.15am) बज रहे थे आर्यमणि के मोबाइल पर रिंग बजा… "शांत हो जाओ, और तुम सब भी सुनो।"… कहते हुए आर्यमणि ने फोन स्पीकर पर डाला..


"कहां हो अभी तुम आर्य।"… लड़की की गंभीर आवाज़..


आर्यमणि:- मिस्टर एक्स के चीथड़े उड़ा रहा था। तुम इतनी सीरियस क्यों हो?


लड़की, लगभग चिल्लाती हुई…. "मिस्टर एक्स तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं थी, तुम्हारे वॉयलेंस के कारण संतुलन बिगड़ चुका है। तुमने यह अच्छा नहीं किया।"


आर्यमणि:- मेरे साथ रहकर तुमने इतना नहीं जाना की मेरे डिक्शनरी में अच्छा या बुरा जैसा कोई शब्द नहीं होता।


लड़की:- अनंत कीर्ति की किताब कहां है।


आर्यमणि:- वो मुझसे खुलते-खुलते रह गई। जब मै खोल लूंगा तो किताब का सारांश पीडीएफ बनाकर मेल कर दूंगा।


लड़की:- तुमने अपना मकसद पाने के लिए मुझसे झूट बोला। तुमने मेरे साथ धोका किया है आर्य, तुम्हे इसकी कीमत चुकानी होगी।


आर्यमणि:- "मकसद, ओ बावड़ी लड़की, मिस्टर एक्स को मारना मेरा मकसद कहां से हो गया। उसके सपने क्या मुझे बचपन से आते थे? यहां आया और मुझे एक दरिंदे के बारे में पता चला, नरक का टिकिट काट दिया। ठीक वैसे ही एक दिन मै मौसा के घर, हॉल का टीवी इधर से उधर कर रहा था, पता नहीं क्या हो गया उस घर में। मौसा ने मुझे एक फैंटेसी बुक दिखा दी।"

"अब जिस पुस्तक का इतना शानदार इतिहास हो उसे पढ़ने के लिए दिल में बेईमानी आ गई बस। यहां धूम पार्ट 1 पार्ट 2 और पार्ट 3 की तरह कोई एक्शन सीरीज प्लान नहीं कर रहा था। लगता है तुम लोग किसी मकसद को साधने के लिए इतनी प्लांनिंग करते हो। योजना बनाना और सही वक्त के इंतजार करने जितना धैर्य नहीं। अब तो बात ईगो की है। मै यह किताब अपने पास रखूंगा। इस किताब की क्या कीमत चुकानी है, वो बता दो।"


लड़की:- तुम्हारे छाती चिड़कर सीने से दिल बाहर निकालना ही इसकी कीमत होगी आर्यमणि। तुमने मुझे धोका दिया है। कीमत तो चुकानी होगी, वो भी तुम्हे अपनी मौत से।


आर्यमणि:- "तुम्हे किताब जाने का गम है, या मिस्टर एक्स के मरने का। या इन दोनों के चक्कर में तुम्हारे परिवार ने मुझसे नाता तोड़ने कह दिया उसका गम है, मुझे नहीं पता। अब मैं ये किताब लेकर चला। वरना पहले मुझे लगा था, सरदार को मारकर जब मैं वापस आऊंगा तो तुम मुझे प्रहरी का गलेंटरी अवॉर्ड दिलवा दोगी। तुमने तो किताब चोर बना दिया। खैर, तुमने जो मुझे इस किताब तक पहुंचाने रिस्क लिया और मुझ पर भरोसा जताया उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया। मैं तुम्हारे भरोसे को टूटने नहीं दूंगा। एक दिन यह किताब खोलकर रहूंगा।"

"हमने मिस्टर एक्स को खत्म किया। तुम्हारे 10 प्रहरी को बचाया। शहर पर एक बड़ा हमला होने वाला था जिसे ये लोग जंगली कुत्तों का अटेक दिखाते, उस से नागपुर शहर को बचाया। बिना कोई सच्चाई जाने तुमने किताब चोर बना दिया। साला मेरा दिल तो चकनाचूर हो गया। मै चला, अब किसी को अपनी शक्ल ना दिखाऊंगा, तबतक जबतक मेरा दिल ना जुड़ जाए। और हां देवगिरी भाऊ को थैंक्स कह देना। उन्होंने जो मुझे अपनी कंपनी का 40% का हिस्सेदार बनाया था, वो हिस्सा मैंने ले लिया है। जहां भी रहूंगा उसके पैसे से लोक कल्याण करूंगा, उनसे कह देना। रूही मेरे दिल की फीलिंग जारा गाने बजाकर सुना दो।"


लड़की उधर से कुछ–कुछ कह रही थी लेकिन आर्यमणि ने अनसुना कर दिया। उपर से रूही ने… "ये दुनिया, ये महफिल, मेरे काम की नहीं" वाला गाना बजा दी।
Samajh me to jyada kuchh nhi aaya pr padh kr dil me khalbali machi huyi hai lagta hai aaj din me sona nasib nhi hone vala... Intjar hai mujhe 1st update padhne ka
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Scene:-7
सामने के बड़े से डायनिंग टेबल पर सभी अल्फा बैठे हुए थे और मुखिया की कुर्सी पर उनकी फर्स्ट अल्फा या शायद बीस्ट अल्फा बैठी हुई थी। मैं अपना चस्मा निकालकर ऊपर ओशुन के ओर देखा जो फिलहाल तो ठीक थी, लेकिन जैसे ही वहां से मैंने अपना एक कदम आगे बढ़ाया। जंजीर के खड़कने की आवाज आने लगी। जंजीर से लगा बेयरिंग घूमकर एक राउंड टाईट किया गया, और उसी के साथ ओशुन के के हाथ पाऊं भी अलग अलग दिशा में फ़ैल गए।


"पहले एक्शन देखकर बात करोगे या बात करने के बाद एक्शन दिखाऊं, मर्जी तुम लोगो की है। एक राउंड और घूमने का मतलब मै समझ जाऊंगा। ओह हां एक बात और मै बता दू, मेरे मार से तुम लोग हील नहीं होगे। नहीं विश्वास हो तो शूहोत्र लोपचे से पूछ लो जो आज-कल तुम लोगों के बीच लंगड़ा लोपचे के नाम से मशहूर है।"…


उनकी जगह, उनका घर, और मै अपनी छाती चौड़ी किए, उन्हें चुनौती दे रहा था। ईडन से ज्यादा तो उसके चेलों में आक्रोश भरा था। लाजमी भी है, फर्स्ट अल्फा खुश तो अल्फा बनने में कामयाबी मिलेगी। मै चारो ओर से घिर चुका, एक साथ चारो ओर से वुल्फ साउंड आने शुरू हो गए। कितने वुल्फ मुझे घेरे खड़े थे पता नहीं। लेकिन उन सब के कद के नीचे मै कहीं नजर नहीं आ रहा था। तभी वहां "खट खट खट" का साउंड हुआ और गुस्साए वुल्फ ने मेरा रास्ता छोड़ा…


"तुम्हारी हिम्मत की मै फैन हो गई। जिस जगह तुम्हारे खानदान प्रहरी के सारे शिकारी सर झुकाकर जाते है, वहां तुम इतने दिलेरी से बात कर रहे। ये तो कमाल हो गया।"..


मै:- ज्यादा बात करना और कहानी सुनने से मै बोर हो जाता हूं। ओशुन को छोड़ दो और उसे अपने ब्लड ओथ पैक तोड़कर जाने दो।


ईडन की अट्टहास भारी हंसी..… "ठीक है यही सही, पहले वो ओशुन फिर बाद में ये लड़का। लड़के को जान से मत मारना थोड़ी जान बाकी रहे, इस बात का ख्याल रखना।


जंजीर को एक राउंड और टाईट किया गया। मैंने ऊपर देखा और खुद से कहा.. "अब यही सही।".. सामने भिड़ लग चुकी थी और मैंने कमर से खंजर निकाल लिया। तभी वो लोग एक साथ हावी हो गए। मै भागकर निकलना तो चाहता था लेकिन मेरे शारीरिक क्षमता उनसे ज्यादा नहीं थी।


फिर से वूल्फ हाउस के दरिंदो के नाखून और दांत मेरे बदन को फ़ाड़ रहे थे। इस बार फाड़ने के साथ-साथ अपने घुसे दातों से मांस का हिस्सा भी फाड़ लेना चाहते थे। ऐसा लग रहा था मै एक लाश हूं जिसे चारो ओर से गिद्धों ने ढक रखा था और मांस नोचकर खा लेना चाह रहे थे।


वहीं दूसरी ओर ओशुन की चींख मेरे हृदय में भय पैदा कर रही था। मैं घुंटनो के बल फर्श पर हाथ टिकाए हुए था। ओशुन की आवाज फिर से मेरे कानो तक पहुंचीं। एक लम्बी और गहरी चींख। मैंने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया। अपनी ताकत को मेहसूस करने लगा। वुल्फ की वो तेज दहाड़ जो आज तक इस घर में नहीं गूंजी, मेरे गले से वो आवाज़ निकल रही थी।


मैंने अपने बदन पर लदे उन मजबूत मांशाहारियों को चिल्लाते हुए ऊपर की ओर धकेला और सब के सब बिखर गए। मेरे तेज और लंबी गूंज के कारन वहां मौजूद बीटा अपना सर नहीं उठा पा रहे थे। सभी अल्फा अपनी जगह खड़े होकर बस मुझे ही घुर रहे थे। हर कोई ये गणना करने की कोशिश कर रहा था कि मै कौन सा वेयरवुल्फ हूं। शरीर उजला, गहरी लाल आंखें और दहाड़ ऐसी के केवल फर्स्ट अल्फा ईडन ही मुझसे नजरे मिला पा रही थी।

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To Ye hai vo pure Alfa, bhai iski ankhe badi nasili hai yaar or body ke to kya hi kahne...
 
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