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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–68







धीरे धीरे करके एक छोटा सा आशियाना तैयार हो गया। सुबह ट्रेनिंग और तीनों टीन वूल्फ के झगड़ो की आवाज गूंजती। ड्राइविंग स्कूल में तीनों का एडमिशन भी हो गया और वहां के संचालक द्वार क्लीन चिट यानी की ड्राइविंग लाइसेंस मिलने पर तीनों के लिये अपनी-अपनी गाडियां।


इसी बीच इन तीनों के एडमिशन का भी टेस्ट हुआ। टेस्ट रिजल्ट देखकर प्रिंसिपल बोलने लगे, तीनों को हम ग्रेड 12th का टेस्ट लेंगे, इसके बाद बताएंगे। 12th ग्रेड का टेस्ट होने से पहले तीनों को हिदायत मिल गयी की पेपर के 3 सवाल छोड़ दे। फाइनली टेस्ट हुआ रिजल्ट आया और तीनों का 12th ग्रेड में एडमिशन। आर्यमणि के जेब से 3000 डॉलर निकल गये। 20 दिन बाद आकर क्लास शुरू करने को कह दिया गया। बाहर निकलकर पांचों हंसते हुए विलियम बाबा की जय कर रहे थे। लगभग एक रूटीन कि लाइफ, जिसमें सुबह की मजबूत ट्रेनिंग, उसके बाद कोई काम नहीं जिसे जहां जाना है जाओ घूमना है घूमो, फिर शाम को ओजल, इवान और अलबेली की ड्राइविंग स्कूल।


स्कूल का पहला दिन। अलबेली और ओजल ने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही स्कूल कैंपस था। लड़के–लड़कियां घास पर लेटे बातें कर रहे है। कुछ लड़के सपोर्ट टीम के कपड़ों में घूम रहे थे। कैंपस में कई लव बर्डस भी घूम रहे थे, तो कुछ पढ़ाकू टाइप भी थे। ओजल और अलबेली को हंसी तब आ गयी जब कुछ लड़कियां अपने पैंटी का प्रदर्शन करती, केवल अपने पिछवाड़े को ढकने जितना छोटा मिनी–स्कर्ट पहन कर ग्रुप में फुदक रही थी। चीयर गिर्ल्स…


इवान की इन सब पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी, वो बस दोनो के साथ था। 3 टीन वुल्फ जिनकी देह दशा बिल्कुल अलग। लंबी कद-काठी के साथ-साथ शरीर की आकर्षक संरचना। चेहरे की बनावट और आकर्षण ऐसा की नजर भर देखने पर मजबूर कर दे। तीनों गये प्रिंसिपल ऑफिस और वहां से अपने-अपने क्लास का पता करके क्लास में। कुछ क्लास तीनों के साथ में थे, और 1–2 क्लास अलग–अलग। बीच में बहुत सारे खाली परियड्स।


वो कहते है ना सब कुछ फिल्मी हो जाये तो बात ही क्या थी फिर। लड़के और लड़कियों के ग्रुप द्वारा तंग करना, टांग खिंचना और कमेंट पास करने जैसा कुछ नहीं था। यहां के स्टूडेंट्स जो भी करते आपस के ग्रुप में ही करते और अपनी ही दुनिया में मस्त रहते, कौन आया कौन गया उनसे कोई मतलब नहीं। सब कुछ जैसे सामान्य रूप से चल रहा था। तीनों टीन वुल्फ को उनका काम मिल चुका था। एक आर्यमणि और रूही थे जिनके काम की कोई खबर नहीं थी। मेयर बात तो बड़ी–बड़ी कर रहा था, लेकिन एक महीना से ऊपर हो गया, न तो गोल्ड ब्रिक फैक्ट्री की परमिशन मिली थी और ना ही उसके फैक्ट्री का कोई काम आगे बढ़ा था। ऊपर से बेसमेंट में रखा सोना किसी सर दर्द से कम नहीं था।


रूही:– बॉस ये मेयर कहीं सिर्फ ग्रीन कार्ड दिलाने का 50 हजार यूएस डॉलर तो न ले लिया।


आर्यमणि:– 50 कहां कुल 70 हजार यूएसडी खर्च हुये हैं रूही।


रूही:– मैं जरा इस मेयर के घर की सिक्योरिटी ब्रिज को समझती हूं। आज रात विजिट मारते हैं।


आर्यमणि:– हम्मम… अच्छा प्लान है।


देर रात का वक्त मेयर अपने बेडरूम में सोया था। सुरक्षा के लिहाज से अति–सुरक्षित घर। आर्यमणि और रूही सभी सुरक्षा प्रणाली को भेदकर दबे पाऊं दोनो (आर्यमणि और रूही) मेयर के बेडरूम में पहुंच चुके थे। मेयर मस्त किसी खूबसूरत महिला के साथ सो रहा था। रूही ने उसे इंजेक्शन लगाया और आर्यमणि ने उसके गर्दन में पंजा। 5 मिनट के बाद दोनो सड़क पर थे।


रूही:– क्या हुआ बॉस, ऐसा क्या देख लिया जो मुस्कुराए जा रहे।


आर्यमणि:– मेयर की बीवी और बच्चे बाहर गये है। मेयर यहां मस्त अपने स्टाफ के साथ सोया था।


रूही, भद्दा सा मुंह बनाते... "मर्द हो न इसलिए दूसरे मर्द की चीटिंग पर ऐसे मुस्कुरा रहे हो"


आर्यमणि:– गलत समझ रही हो। मैं तो ये सोच रहा था की यदि मेयर की बीवी को इस बार का पता चल जाये तो..


रूही:– उसे कैसे पता चलेगा..


आर्यमणि, अपना फोन दिखाते... "शायद पता चल भी चुका हो।"


रूही, हंसती हुई... "बॉस शरारती आप भी कम नही। मियां बीवी के झगड़े में बेचारे बच्चे पीस जायेंगे।"


आर्यमणि:– वो तो वैसे भी पीसने वाले थे। मेयर अपनी बीवी को मरवाना चाहता है।


रूही:– क्या?


आर्यमणि:– हां सही सुना तुमने। मेयर एक बड़े झोल में फसा हुआ है। देश के एक नामचीन नेता से गलत डील कर लिया। उसे तकरीबन 50 मिलियन चुकाने है और उसकी बीवी उसे एक रुपया नही दे रही।


रूही:– उसका इतना बड़ा बिजनेस है, फिर अपनी बीवी से पैसे क्यों मांगेगा...


आर्यमणि:– क्योंकि पूरा बिजनेस इसकी बीवी का है। अपने बीवी के वजह से ही वह मेयर भी बना है। करप्शन से कुछ पैसे तो जोड़े है लेकिन 50 मिलियन से बहुत दूर है। पहले ये पूरे पैसे मुझसे ही लेता लेकिन गोल्ड डिस्ट्रीब्यूशन का लाइसेंस ये बनवा नही पाया। फेडरल में अर्जी डाली तो थी इसने, लेकिन अगले ही दिन इसके बाप लोग पहुंच गये और फॉर्म इसके मुंह पर मारकर इतना ही कहा कि… "ये धंधा उनका है। अगली बार फॉर्म के जगह बॉम्ब फोड़कर जायेगा।"


मेयर ने उसे मेरे साथ बहुत भिड़ाने की कोशिश किया लेकिन उसने एक ही बात कही.… "यदि ऐसा था तो तू उसे गोली मारकर फोन करता, न की इसका फॉर्म तेरे ऑफिस से आता। मैं उसे बिलकुल नहीं जानता लेकिन इतना जानता हूं कि तू मर गया तो वो क्या कोई दूसरा भी इस धंधे को शुरू करने का सोचकर जब तुझ जैसे के साथ मिले तो उसका काम न हो।"… अब उस बेचारे ने मेरा काम किया नही, इसलिए मुझसे 50 मिलियन कैसे निकलवाता।


रूही:– हलवा है क्या जो हम 50 मिलियन दे देते..


आर्यमणि:– बड़े आराम से। इधर हम प्रोजेक्ट के लिये अपना सफेद पैसा दिखाते उधर कोर्ट में तलाक की अर्जी लगती। कोर्ट जुर्माने में हमारी आधी संपत्ति हमारे पेपर वाले जीवन साथी को दे देती। वहीं से ये मेयर अपना पैसा रिकवर करने वाला था।


रूही:– साला बईमान, अच्छा किया बॉस... ठूकने दो चुतीये को। लेकिन बॉस अपने तो 50 हजार यूएसडी गये न।


आर्यमणि:– ऐसे कैसे चले गये... उसके दिमाग से बैंक डिटेल निकाल लिया हूं। 4 मिलियन यूएसडी का मामला है और तुम जानती हो की बिना फसे कैसे पैसे ट्रांसफर करने है।


रूही:– कैसे करना है मतलब... हम दोनो तो साथ में ही होंगे न...


आर्यमणि:– नही.. मैं वेगस जाऊंगा और तुम तीनो को लेकर यूएसए के बाहर किसी रिमोट लोकेशन से मेयर के पैसे उड़ाओगी।


रूही, आंखें फाड़कर आर्यमणि को घूरती.… "बॉस वेगास.. जिस्म और जूए का शौक कबसे"…


आर्यमणि:– ए पागल सोने की डील करने जा रहा हूं। मेयर के उस बाप से मिलने जिसने मेरा डिस्ट्रीब्यूशन प्लांट लगने नही दिया।


रूही:– हम्मम !! ठीक है वीकेंड पर निकलते है। और कोई काम...


आर्यमणि:– अभी घर पर आराम से चलते है। आज एक नजर अपने इन्वेस्टमेंट पर भी मार लेते है।


दोनो देर रात घर पहुंचे। तीनों टीन वुल्फ मस्त नींद में सोये हुये थे। आर्यमणि और रूही लैपटॉप लेकर बैठे और अपने शेयर मार्केट के पैसों पर नजर देने लगे। दोनो अपने पैसे का ग्राफ ऊपर बढ़ता देख खुशी से एक दूसरे को गले लगाते.… "वूहू.. बॉस कुल मिलाकर हम 20% से ग्रो कर गये।"


आर्यमणि:– एक साथ सारे पैसे निकाल लो..


रूही:– लेकिन क्यों बॉस... मात्र २ कंपनी ही तो लॉस में है। बाकी सभी तो अच्छे ग्रोथ में है।


आर्यमणि:– 16 दिसंबर है आज... 9 दिन है अभी क्रिसमस में। अब वक्त है कंपनी बदलने का। रिटेल मार्केट में अभी काफी उछाल देखने मिलेगा, इसलिए सारा पैसा वहां लगा दो। 24 नवंबर को हम सारा पैसा निकाल लेंगे। जहां तक मेरी कैलकुलेशन कहती है, हम अगले 7–8 दिन में 30% और प्रॉफिट बनायेंगे।


रूही:– मैं क्या सोच रही थी 120 मिलियन यूएसडी को यहीं लगे रहने देते हैं। 24 दिसंबर तक 10 से 15% तक का प्रॉफिट यहां से आ जायेगा। हम 150 मिलियन और मार्केट में इन्वेस्ट कर देते है।


आर्यमणि:– हां ये ज्यादा बेहतर विकल्प है। वैसे "अस्त्र लिमिटेड" के शेयर मार्केट में आये या नही..


रूही:– अभी नही...


आर्यमणि:– नजर बनाये रखना क्योंकि उसके एक भी शेयर किसी दूसरे को नहीं लेने दे सकते।


रूही:– ऐसा क्या खास है आपकी कंपनी में...


आर्यमणि:– तुम नही जानती... अगर आज 1 रुपया से उसका शेयर शुरू होगा तो 5 साल बाद उसका शेयर अपने पीक पर होगा जो अनुमानित 10 हजार होगा। यानी एक शेर की कीमत अपने पहले दिन से 10000 गुणा ज्यादा की कीमत। इतना प्रॉफिट हमे किसी और में नही मिलने वाला। ऊपर से एक साथ हम इतने पैसे लगायेंगे की अपनी कम्पनी की तरक्की में और चार चांद लग जायेगा।


रूही:– ठीक है बॉस उसे सेंसेक्स पर रजिस्टर तो हो जाने दो पहले...


आर्यमणि:– हां ठीक है... चलो गुड नाईट..


दोनो सोने चल दिये। वीकेंड पर काम निपटाना था इसलिए सभी शुक्रवार की रात ही निकले। एक ओर रूही टीन वुल्फ के साथ कनाडा में नियाग्रा फॉल और टोरंटो देखने निकली, वहीं आर्यमणि लास वेगास निकला। अल्फा पैक संडे तक कनाडा में मजे करके लौट आती जबकि आर्यमणि गया और काम खत्म करके लौटा।



अल्फा पैक कनाडा टूर पर

वुल्फ कभी अकेला नहीं रहता, उनका शिकार हो जाता है। हर वुल्फ पैक की तरह अल्फा पैक भी भली भांति ये बात समझती थी, इसलिए 2 की टीम में ये लोग निकले थे। रूही और ओजल एक साथ थी, क्योंकि अलबेली का बड़बोलापन देखकर रूही ने ओजल को एडॉप्ट किया था, वहीं इवान और अलबेली आर्यमणि के हिस्से में थे।


टोरंटो लैंड करने के बाद रूही अपना काम करने एकांत की ऐसी जगह ढूंढने लगी जहां उसे कोई ढूंढ न पाये। इधर इवान और अलबेली दोनो टोरंटो शहर घूमने निकल गये। हां लेकिन सभी 2 किलोमीटर के दायरे में ही थे ताकि आराम से एक दूसरे को संदेश दे सके। शहर का माहौल और क्रिसमस का ऐसा समय था कि चारो ओर कपल ही कपल घूम रहे थे। हर उम्र के कपल दिख रहे थे जिनकी मस्ती दोनो के मन में जिज्ञासा पैदा कर रही थी। इवान से रहा न गया और वो अलबेली को हसरत भरी नजरों से देखते.… "क्या तू मेरी गर्लफ्रंड बनेगी"..


अलबेली:– क्या बात है, आखिर तूने पूछ ही लिया। कमर में हाथ डालकर चल ना। यहां आकर मुझे भी बड़ी इच्छा हो रही थी कि अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ घूमती। बड़ी संकोच में थी कि तुझसे पूछूं कैसे?


इवान, अलबेली के कमर में हाथ डालकर उसे जोड़ से खींच लिया। अलबेली झटका खा कर इवान से बिलकुल चिपक गयी। दोनो एक दूसरे के में चिपके बदन को अनुभव कर रहे थे। दोनो की नजरें एक दूसरे से टकराने लगी। तन बदन में झुर–झुरी सी पैदा हो रही थी। दोनो एक दूसरे को देखते हुये मचल गये।


अलबेली अपनी नजर हटाकर सामने देखती... "अब ऐसे खड़े–खड़े देखता रहेगा या अपनी गर्लफ्रेंड को घुमायेगा भी। इवान जैसे चीड़ निद्रा से जाग रहा हो। गुमसुम सा हां–हूं में जवाब दिया और अलबेली को खुद से चिपकाये घूमने लगा। एक तो दोनो टीनएजर ऊपर से पहली बार किसी के बदन से एक कपल की तरह चिपके थे। ये उमंग और उन्माद ही अजीब था। बदन में सुरुसुरी मादक एहसास जैसे फैल रही हो।


दोनो शाम तक एक दूसरे के साथ घूमते रहे। हल्का अंधेरा था और चारो ओर जगमग रौशनी जलने लगी। दोनो एक दूसरे के बदन से चिपके रौशनी को देखने में खो से गये। तभी इवान, अलबेली को कमर के नीचे से पकड़कर ऊपर उठा लिया और गोल–गोल घुमाने लगा। अलबेली भी खिलखिला कर हंसती हुई अपने दोनो बांह फैलाकर हसने लगी। अलबेली की खिली हंसी जैसे उसके कान में मिश्री घोल रही थी। इवान गोल घुमाना बंद करके अलबेली को धीरे–धीरे नीचे उतरने लगा।


बदन से बदन को स्पर्श करते जब अलबेली धीमे–धीमे नीचे आ रही थी तब दोनो के मन में न जाने कितनी ही अद्भुत तरंगे एक साथ जन्म ले रही थी। जब अलबेली के वक्ष, इवान के सीने से टकराते धीमे से नीचे हुये दोनो के अंदर से आह्ह्ह् निकल गयी। दोनो एक इंच के फासले से एक दूसरे से नजरें मिला रहे थे। इवान के अंदर से जैसे अरमान जागे हो और वह तेजी से अलबेली के होंठ को अपने होटों से स्पर्श करता सीधा हो गया। अलबेली के की आंखें बड़ी और चेहरे पर हल्की हंसी फैल गयी। कुछ देर तक अलबेली भी मौन खड़ी होकर देखती रही और फिर.…


अलबेली अपनी एडियां ऊंची करती इवान के गले में हाथ डाल दी और होंठ से होंठ लगाकर चुम्बन देने लगी। इवान भी अलबेली को बाहों में भरकर उतने ही कसीस के साथ चुम्बन देने लगा। दोनो अपने पहले चुम्बन से इतने उत्तेजित हो गये की उनका क्ला बाहर निकल आया। क्ला जैसे ही बाहर आया अलबेली का क्ला इवान के गर्दन में घुसा और इवान का क्ला अलबेली के कमर के ऊपर। दोनो झटके के साथ अलग हुये और एक दूसरे को देखकर हंसने लगे।


इवान:– मैं बता नही सकता मैं कैसा महसूस कर रहा हूं। आज से पहले कभी इतना जिंदा होने का एहसास मुझे कभी नही हुआ।


अलबेली:– हिहिहिहिही.. मैं तो बता नही सकती अंदर से कैसा महसूस हो रहा है। साला ये क्ला बीच में आ गया वरना होंठ छोड़ने की मेरी इच्छा ही नहीं हो रही थी।


इवान:– भैया सही कहते थे हमे पहले नियंत्रण सीखना चाहिए।


अलबेली छोटा सा मुंह बनाते... "अब क्या चुम्मा का नियंत्रण सीखने तू भैया के पास जायेगा।


इवान:– तेरी तो... मसखरी करती है...


इवान अपनी बात कहने के साथ ही अलबेली पर झपटा लेकिन अलबेली भी उतनी ही तेज, झटक कर किनारे हुई और ठेंगा दिखाते.… "जा जा.. भैया से ही नियंत्रण सिख कर आ।"…


अलबेली आगे और इवान पीछे.. दोनो हंसते हुये भाग रहे थे। भागते हुये दोनो किसी अंधेरी सी जगह में पहुंच गये। अलबेली आगे दौड़ रही थी और अचानक से झटका खा कर पीछे गिरी। अलबेली की बेइंतहां दर्द भरी चीख निकल गयी। इवान और तेज दौड़ते अलबेली को संभाला। ऐसा लगा जैसे वह तेज करेंट का झटका खायी हो। उसके मुंह से झाग निकल रहा था। इवान अपने शर्ट से अलबेली का मुंह पोंछते इधर–उधर देखने लगा। उसके आंखों से आंसू बह रहे थे और इवान लगातार अलबेली को जगाने की कोशिश करने लगा।


तभी वहां इवान को कुछ लोग दिखने लगे। हाथों में बंदूक, बड़ी सी कुल्हाड़ी और तरह–तरह के हथियार लिये... "बच्चे किस जंगल से भागकर हमारे इलाके में आये हो"… कुछ शिकारी इवान की नजरो के सामने थे, और बेहोश पड़ी अलबेली, इवान की गोद में। इवान की आंखों में अंगार और दिमाग में खून दौड़ने लगा। अलबेली को नीचे रखते तेजी से दौड़ लगाया और वह भी झटका खा कर अलबेली के पास ही बेहोश हो गया।


एक शिकारी:– करेंट हटाओ और दोनो को साफ कर दो।


उसकी बात सुनकर जैसे ही किसी एक शिकारी ने अपना पहला कदम आगे बढ़ाया, अचानक ही कोई उसके पास से तेज गुजरा और उसे अपने साथ लेकर गायब। यह इतना तेजी में हुआ की केवल उस शिकारी की चीख ही सुनाई दी। दूसरे शिकारी चारो ओर देखने लगे। इतने में फिर एक तेज दौड़ और झपट्टा मारकर एक और शिकारी को भी ले गये।


शिकारी:– सब लोग फैल जाओ, यहां और भी मेहमान आये हुये हैं।


शिकारी अपना हथियार लेकर चारो ओर फैल गये। २ शिकारियों ने अलबेली और इवान को माउंटेन एश के गोले में फसाकर वहां से चल दिये। २ शिकारी जिनको झपट्टा मारकर सबके बीच से उड़ा के गये, वह कभी दाएं से चिल्लाता तो कभी बाएं से। आवाज कभी पास से आती तो कभी बहुत दूर से। सभी शिकारी अपना बैक अप बुलाने लगे। इसके पूर्व रूही और ओजल इसी लोकेशन पर कुछ घंटे पहले पहुंचे थे। उन्हे मेयर का बैंक अकाउंट एक्सेस करना था और इस लोकेशन से अच्छी जगह कहीं और नहीं थी, क्योंकि इसके आस पास आधे किलोमीटर के इलाके में कोई कैमरा नही लगा था।


रूही यहां पहुंची और सीधा 4 मिलियन बेनामी खाते में ट्रांसफर करने के बाद लैपटॉप को वहीं कही छिपा दी। रूही जब अपना काम कर रही थी तब ओजल चारो ओर का मुआयना करने लगी। वह समझ गयी की किसके इलाके में है। रूही को धीमे से ठूस्की देती हुई कहने लगी.… "निकलो यहां से, शिकारी का इलाका है।"


रूही को जैसे ही पता चला वह झटपट वहां से हटी। रूही और ओजल ने दोनो (इवान और अलबेली) को सचेत करने कई बार पुकारा भी लेकिन दोनों में से किसी का जवाब ही नहीं आया। हां घूमते–घूमते दोनो एक बार नजर जरूर आये लेकिन इवान और अलबेली को देखकर दोनो (रूही और ओजल) समझ चुके थे कि क्यों उनकी पुकार पर कोई जवाब नही आया।
 
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भाग:–69







अलबेली और इवान को फुर्सत से घूमने छोड़ दिया गया और ये दोनो भी अपना घूमने लगे। अभी कुछ देर पहले अलबेली और इवान का जब क्ला बाहर आया तब वह शिकारियों की नजरों में आ गये। आते भी क्यों न शिकारी के इलाके में ही रोमांस कर रहे थे। बिजली का तेज झटका लगते ही अलबेली, रूही को आवाज लगा चुकी थी। रूही ने जैसे ही वह आवाज सुनी फिर तो सब कुछ छोड़कर आवाज के पास पहुंची। रूही और ओजल ने दो शिकारी को गायब कर दिया। बौखलाए शिकारी चारो ओर फैल चुके थे।


इधर थोड़ी देर के बाद इवान और अलबेली को भी होश आ चुका था और शिकारियों की भनभनाहट सुनकर दोनो समझ चुके थे कि उनकी मदद आ चुकी है। इवान ने अलबेली की कलाई थाम ली और उसे हील करने लगा। अलबेली को जैसे राहत की श्वांस मिली हो। कुछ देर हील होने के बाद उसे जब होश आया तब वह इवान की हालत को अच्छे से समझ पायी। अलबेली बावरी की तरह इवान के पूरे मुंह को पोंछती, उसकी कलाई थामी और उसका दर्द लेने लगी। दोनो एक दूसरे की कलाई थाम, एक दूसरे का दर्द, एक दूसरे के आंखों में झांकते हुये ले रहे थे।… "ओ टोरंटो के लैला मजनू, मुझे सुन रहे हो।"…


अलबेली और इवान दोनो एक साथ.… "हां सुन रहे है।"..


ओजल:– वहां की पोजिशन बताओ..


इवान:– हमारे सामने माउंटेन एश का घेरा है। आस–पास भ्रमित करने वाली गंध है। शायद शिकारियों ने जाल फैलाया है।


अलबेली:– कुल 6 लोग यहां है। मैं उन सबकी भावना मेहसूस कर सकती हूं। उनकी धड़कन सुन सकती हूं। सभी हम पर ही निशाना लगाये है।


रूही:– अभी मजा चखाते है। ओजल शिकारियों को ही माउंटेन ऐश की लाइन पर फेंक दे। चल जल्दी कर...


रूही और अलबेली जो अपने साथ एक–एक शिकारी को लिये घूम रही थी। बड़ी ही तेजी के साथ वहां से गुजरी और दोनो शिकारी को दूर से ही माउंटेन ऐश की लाइन पर फेंक दी। जैसे ही २ शिकारी अलबेली और इवान के पास गिरे, माउंटेन ऐश की लाइन तहस नहस हो गयी।


जैसे ही 2 शिकारी वहां गिरे घात लगाये सारे शिकारी चौकन्ना और फिर तो अंधाधुन फायरिंग शुरू हो गयी। अंधेरे में शिकारियों को लगा वेयरवोल्फ ने माउंटेन ऐश की लाइन तोड़ने के लिये कुछ फेंका है। फ्रैक्शन सेकंड में ही अलबेली और इवान सारे खतरे को भांप चुके थे। उसने अपने साथ दोनो शिकारी को उठाया और वहां से भाग कर खुद को सुरक्षित किया। दोनो शिकारी कर्राहते हुये इवान और अलबेली को ही देख रहे थे।


इवान ने अलबेली को इशारा किया और दोनो शिकारियों का दर्द खींचने लगे.… "क्या देख रहे हो शिकारी। हमारी दुश्मनी तो चलती रहेगी लेकिन इस दुश्मनी में किसी की जान चली गयी तो बहुत बुरा होगा। रूही दीदी, ओजल क्या हम निकले। यहां सब साफ है।"..


रूही:– हां निकलो... हम भी इनके इलाके के बॉर्डर पर ही है।


इधर रूही ने हामी भरी और पूरा अल्फा पैक वहां से निकल गया। शिकारियों की नजरों में आने के बाद रूही वहां रुकना ठीक नही समझी इसलिए सबके साथ रविवार तक पूरा एंजॉय करने कनाडा के दूसरे शहर चली आयी।



आर्यमणि.. लॉस वेगस के सफर पर


शुक्रवार की रात आर्यमणि वेगस के लिये निकला। रात के करीब 9.30 बजे वह वेगस पहुंचा। एक बड़े से कैसिनो में घुसकर वहां वेटर को 100 डॉलर थमाते... "पार्केंसन कहां मिलेगा"..


वेटर, इशारा करते.… कोने से आखरी गेट के पीछे लेकिन वहां तुम जा नही सकते...


आर्यमणि वेटर को बिना जवाब दिये उधर चला गया। गेट के रास्ते पर खड़े अत्याधुनिक हथियार लिये बैल जैसे पहलवान गार्ड उसका रास्ता रोकते... "क्लब उधर है। यहां नही आ सकते।"


आर्यमणि:– पार्केंसन से कहो कैलिफोर्निया में गोल्ड ब्रिक की फैक्ट्री डालने वाला आर्यमणि आया है।


गार्ड ने आर्यमणि को वहीं खड़े रहने कहा और एक गार्ड अंदर घुसा। कुछ मिनट बाद वह दरवाजा खोलकर आर्यमणि को अंदर बुलाया... आर्यमणि जैसे ही अंदर गया दरवाजा बंद। एक बड़ा सा हॉल जिसके कोने–कोने पर सूट बूट में बॉडीगार्ड खड़े थे। दरवाजे के ठीक सामने एक बड़ा सा डेस्क था जिसके पीछे लगे एक आलीशान कुर्सी पर बैठकर पार्केंसन सिगार पी रहा था। सामने कुछ लोग बैठे थे जो आर्यमणि के अंदर आते ही बाहर चले गये।


पार्केंसन ने आर्यमणि को हाथ के इशारे से बुलाया। जैसे ही आर्यमणि उसके डेस्क के पास पहुंचा 2 लोगों ने उसे धर दबोचा और उसके चेहरे के बाएं हिस्से को डेस्क से चिपकाकर कनपट्टी पर बंदूक तान दिये। आर्यमणि बिना हिले–डुले आराम से डेस्क पर चेहरा टिकाये था। पार्केंसन, आर्यमणि के गाल पर थपथपाते... "बड़ी हिम्मत है तुझमें। मेयर ने तेरे बारे में बताया। मैने सोचा तू बच्चा है, धंधा करने की चाहत थी इसलिए तूने एक अच्छा धंधा चुन लिया, कोई बुराई नही थी इसमें। बस गलती मेयर से हुई जो तुझे अच्छे से समझाया नही। मुझे लगा मेयर को समझा दिया है तो वो तुझे समझा देगा लेकिन लगता नही की तू ठीक से समझा है। तुम सब जरा अच्छे से इसे समझाओ"


जैसे ही पार्केंसन ने मारने का ऑर्डर दिया 2 लोग हवा में उड़ते हुये जाकर दीवार से टकरा गये। आर्यमणि को गन प्वाइंट पर लिये दोनो गार्ड हवा में उड़ रहे थे। आर्यमणि ने दोनो को अपने एक–एक हाथ से दबोचकर ऐसे फेका जैसे 2 हल्के सब्जी के झोले को पीछे हवा में फेंकते है। आर्यमणि का यह एक्शन देखकर दूसरे बॉडीगार्ड हरकत में आ गये... इसी बीच आर्यमणि अपनी भारी आवाज से सबको पहचान करवाते.… "लगता है मैने ठीक से अपना परिचय नही करवाया वरना इतनी परेशानी नही होती। मुझे लगता है कुछ देर बैठकर बात करने के बाद हम किसी नतीजे पर पहुंच सकते हैं।"


आर्यमणि जबतक अपनी भारी आवाज में बात कर रहा था, पार्केंसन के बॉडीगार्ड उसे घेर चुके थे। पार्केंसन सबको रिलैक्स करते आर्यमणि को बैठने का इशारा किया... "देखो लड़के जब बात से काम हो जाये तो हम भी हथियार बीच में नही लाते। मुझे बताओ तुम इतनी दूर क्यों आये हो?"


आर्यमणि:– मुझे ब्रिक फैक्ट्री लगाने या सोने का डिस्ट्रीब्यूटर बनने में कोई दिलचस्पी नहीं..


पार्केंसन:– इंट्रेस्टिंग... आगे बताओ..


आर्यमणि:– मेरे पास कुछ गोल्ड है, और मैं किसी भी माफिया या नेता को उसमें एक जरा हिस्सा नही देना चाहता। जैसे तुम्हे अपने धंधे से प्यार है और किसी दूसरे को हिस्सा नही देना चाहते, ठीक वैसे ही।


पार्केंसन:– ओह तो ये बात है। अपने गोल्ड में से किसी को हिस्सा नही देना इसलिए तुमने गोल्ड डिस्ट्रीब्यूटर बनने का सोचा। लेकिन डिस्ट्रीब्यूटर ही क्यों.. क्या बहुत ज्यादा गोल्ड है?


आर्यमणि:– तुम्हारे सोच से भी ज्यादा...


पार्केंसन:– हम्मम... बताओ कैसे मदद करूं?


आर्यमणि:– कोई बीच का रास्ता निकालते है। मेरा काम निकलने तक ही मुझे गोल्ड से जुड़े कामों ने इंटरेस्ट है। और तुम तो जानते ही होगे की ब्लैक से व्हाइट करने में कितना मेहनत लगता है।


पार्केंसन:– बीच का रास्ता... ठीक है यदि 1 मेट्रिक टन तक गोल्ड हुआ तो तुम्हारे गोल्ड डिस्ट्रीब्यूशन प्राइस से 20% नीचे लूंगा। यदि 10 मेट्रिक टन तक हुआ तो 30% नीचे के प्राइस में। उस से ज्यादा है तो 10 मेट्रिक टन इस साल और फिर अगले साल...


आर्यमणि:– डील को लॉक करते है।


पार्केंसन:– कितना माल है..


आर्यमणि:– 5 मैट्रिक टन..


पार्केंसन, अपने एक आदमी को बुलाया सब कैलकुलेशन करने के बाद... "145 मिलियन (उस वक्त मजूदा रेट के हिसाब से) होते है। मेरा 30% काट कर तुम्हारे 101.5 मिलियन। माल कहां है उसकी लोकेशन बताओ। चेक करवाकर लोड होने के बाद पैसे ट्रांसफर कर देता हूं।"


आर्यमणि:– इतना सारा माल पीछे में कोई देखने गया। कहीं कोई चोरी हो गयी तो?


पार्केंसन:– उसकी चिंता तुम मत करो... तुम्हे चिंता इस बात की होनी चाहिए की कहीं तुम गलत हुये तो...


आर्यमणि उसकी बात सुनकर मुस्कुराने लगा। आर्यमणि अपने घर का सभी सिक्योरिटी ब्रिज हटाया। पार्केंसन के कुछ लोग बेसमेंट में घुसे। उन्होंने कुछ रिम उठाकर पहले सोने की गुणवत्ता चेक किया, फिर कुछ रिम का वजन लिया। सब कुछ सुनिश्चित होने के बाद जैसे ही अनलोगों ने कैलिफोर्निया से संदेश भेजा, वैसे ही यहां आर्यमणि के दिये अकाउंट में पैसे ट्रांसफर हो गये।


आर्यमणि जिज्ञासावश पार्केंसन से पूछ ही लिया.… "न कोई बारगेन, न ही पूछे की माल कहां से आया। न ही डील में कोई गलत मनसा। मुझे तो लगा था यहां मुझे बहुत टाइम लगने वाला है।"…


पार्केंसन:– "हाहहा... तुम्हारे सवाल में ही जवाब है। ज्यादा से ज्यादा मैं पूरा बैमानी कर लेता। तुम्हे मारने की कोशिश करता... इस से क्या हो जाता... इन सब में मेरे 1 घंटे लगते। तुम्हारे घर से माल चोरी करने और फिर उसे पुलिस से बचाने में दिमाग खपाना पड़ता सो अलग। 4–5 घंटे की माथापच्ची के बाद मैं 145 मिलियन कमा लेता। पर अभी..."

"आधे घंटे में एक नौजवान दोस्त बना लिया। 43.5 मिलियन की कमाई कर लिया और सबसे जरूरी चीज। अगली बार हम 5 मिनिट में फोन पर डील करेंगे और 10 मिलियन ही कमाई मानो उस डील से होगा। तो सोच लो बचे साढ़े 3 घंटे में मैं तुमसे कितना कमा लूंगा। फिगर 100 मिलियन से कहीं ज्यादा होगा।"


आर्यमणि:– बिजनेस में कमाल का डेडीकेशन है।


पार्केंसन उसे 8–10 कार्ड थमाते... "10 मिलियन + के प्रॉफिट का जो भी डील हो, सीधा मुझे कॉल करना वरना इन सब कार्ड में से किसी भी पार्क को फोन करके डील सेट कर लेना।


आर्यमणि:– ये आपके सभी स्टाफ का नाम पार्क ही है।


पार्केंसन:– हां... मैं भी एक पार्क ही हूं। किसी भी नंबर के पार्क (जैसे की पार्क–1, पार्क–2) को पुकारो, उसके गैर हाजरी में कोई न कोई आ ही जाता है। काम में काफी सहूलियत होती है। पार्क–2 आर्यमणि का ड्रिंक आज मेरी तरफ से। इसके होस्ट तुम हुये हमारे मेहमान को किसी बात की शिकायत नही होनी चाहिए।


आर्यमणि ने पार्केंसन को शुक्रिया कहा और वहां से सीधा एयरपोर्ट चला आया। रात 12.30 की फ्लाइट थी और आर्यमणि 2 बजे तक कैलिफोर्निया एयरपोर्ट के बाहर टैक्सी में था। घर लौटने के क्रम में उसके टैक्सी का टायर पंक्चर हो गया। टैक्सी वाले ने माफी मांग लिया और आगे कुछ और व्यवस्था देख लेने कह दिया।


घर पास में ही था आर्यमणि पद यात्रा करते हुये निकला। कुछ दूर आगे बढ़ा होगा की स्ट्रीट लाइट बुझने लगी। देखते ही देखते पूरी सड़क पर अंधेरा पसर गया। आर्यमणि को खतरे का आभास तो हो रहा था लेकिन आस पास किसी के होने के संकेत नही मिल रहे थे। आर्यमणि समझ चुका था की खतरा उसके पीछे पहुंच गयी है। वह तेज दौड़ लगाया और सीधा अपने कॉटेज के पीछे वाले जंगल में रुका।


जंगल में जब वह पहुंचा उसके कुछ देर बाद ही पत्तों की खर–खराहट की आवाज आने लगी। आर्यमणि किसी की मौजूदगी को मेहसूस तो नही कर सकता था लेकिन जिस प्रकार से पाऊं के नीचे पत्ते मसल रहे थे, उसे लग गया की कोई तो है।


आर्यमणि:– प्रहरी का नया तिलिस्मी योद्धा... अकेले ही मुझसे लड़ने चला आया।


तभी आर्यमणि के सामने एक टीनएजर लड़का खड़ा हो गया। आर्यमणि उसे बड़े ध्यान से देखते... "तुम तो अभी काफी छोटे हो, प्रहरी ने तुम्हे अकेले ही भेज दिया"..


लड़का:– हां ऐसा ही समझो। अब वहीं खड़े रहकर टाइम पास करोगे या लड़ना भी है...


आर्यमणि अपने जूते निकलकर, अपने अंगूठे को ही हल्का जमीन में धसा दिया। देखते ही देखते जमीन से जड़ों के रेशे निकलने लगे जो उस लड़के के पाऊं से लिपट गये। वह लड़का अपनी जगह से हिल भी नहीं सकता था। आर्यमणि उसे फिर एक बार चेतावनी देते... "लड़के अपनी पहचान बताओ। आखिर कौन सी प्रजाति के हो तुम लोग, जो खुद को अपेक्स सुपरनैचुरल कहते हो।"


लड़का, आर्यमणि की बात का कोई जवाब न देकर अपने कमर में लटके कई खंजरों में से एक खंजर को निकाला और काफी तेजी से आर्यमणि के ओर फेंका। आर्यमणि सामने से खतरे को आते देख बिजली की गति से खतरे के सामने से हटा। लेकिन जब आर्यमणि खड़ा हुआ, उसके कंधे से खून की धार बह रही थी। आर्यमणि काफी आश्चर्य में पड़ गया। आंख मूंदकर वह समझने की कोशिश करने लगा की अभी हुआ क्या? आर्यमणि के दिमाग में जैसे सब कुछ स्लो मोशन में चल रहा हो।


तभी उसे झटका सा लगा हो जैसे। उस लड़के ने एक खंजर के पीछे दूसरा खंजर इस तेजी से फेंका की उसके खतरा भांपने की सेंस तक धोखा खा गयी। और क्या सटीक गणना था। खतरा भांप कर बिजली की तरह हटने के क्रम में ही उसे दूसरा खंजर लग गया। आर्यमणि अपने कंधे से खंजर को निकालते... "ये खंजर मुझे मार नही सकती, लेकिन तू आज जरूर मारेगा।"


आर्यमणि अपनी बात कहते हुये तेज दौड़ लगा दिया। वह जब दौड़ रहा था, आस–पास के पत्ते किसी बवंडर में फंस कर उड़ने वाले पत्तों को तरह कई फिट ऊपर उठे। अपनी तेज दहाड़ के साथ आर्यमणि 10 फिट ऊंचा छलांग लगा चुका था और उसका मुक्का उस लड़के के सीने को फाड़कर बाहर निकलने के लिये तैयार। लेकिन ना जाने आज सीक्रेट प्रहरी के किस हथियार से पाला पड़ा था। आर्यमणि 10 फिट ऊंचा छलांग लगाकर अपने मुक्के से उसके सीने को निशाना बनाये था, लेकिन ऐसा लगा जैसे आर्यमणि ने किसी स्प्रिंग पर हमला किया हो। झट से उस लड़के ने अपने शरीर को आर्यमणि के हमले की जगह से ठीक पीछे किया, जबकि पाऊं उसके अपनी जगह पर जमे थे।


आर्यमणि ने शॉट मिस किया और वह हवा में ही उस लड़के से आगे बढ़ गया। वह लड़का भी आर्यमणि को जैसे कोई फुटबॉल समझ लिया हो... एक लात उठाया और पूरे स्टाइल से पेट पर ऐसे जमाया की आर्यमणि की 2 पसलियां टूट गयी और वह खुद काफी दूर एक पेड़ से जाकर टकराया। हमला इतना तेज और घातक था की आर्यमणि के आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा।


आर्यमणि इतनी बुरी तरह टूटा था कि उसकी खुद की हीलिंग क्षमता ने जवाब दे दिया था। हाथ लगाकर जब वह खुद को हील करने लगा तब हाथों की नब्जों ने जैसे दर्द खींचने से मना कर दिया हो। वह लड़का अब भी अपनी जगह खड़ा था। आर्यमणि काफी धीमे ही सही लेकिन खुद को हील होता मेहसूस कर रहा था। जब थोड़ा होश आया तब यह भी ख्याल आया की वह लड़का तो जड़ों की रेशों से निकल चुका है।


आर्यमणि खुद में थोड़ा हिम्मत भरते, अपने क्ला को पसलियों के बीच घुसाया और 2 नाखूनों के बीच टूटी पसली को पकड़कर उसे सीधा करते उन पसलियों को हील करने की कोशिश किया। आर्यमणि के खुद की थोड़ी हीलिंग और उंगलियों से जी तोड़ हील करने का जज्बे ने आर्यमणि को राहत दिलवाया और उसकी पसली हील हो गयी l एक पसली हील होने के बाद दूसरी और फिर खुद को हील करना...


काफी वक्त लगा खुद को पूरा हील करने में लेकिन आर्यमणि पूर्ण रूप से तैयार था। इस बीच वह लड़का बिना कोई प्रतिक्रिया दिये अपनी जगह खड़ा रहा। आर्यमणि तेजी से उसके करीब पहुंचा और अपनी गति का प्रयोग करके, उस पर क्ला से हमला करने लगा। आर्यमणि हमला तो कर रहा था, किंतु पहले ही पंच से उसे पता चल गया की वह हवा में ही मरता रह जायेगा। क्या गजब की उसके बचने की क्षमता थी। किसी भीं गति और कितना ही नजदीक से आर्यमणि हमला करे, वह लड़का किसी स्प्रिंग की तरह लचीलापन दिखाते, किसी भी दिशा में झुक जाता और उतने ही तेजी से अपना मुक्का चला चुका होता।


नजारा अकल्पनीय था। आर्यमणि जितना तेज हो सकता था उतना तेज हमला करता और वह लड़का उस से भी तेज बचते हुये जवाबी हमला करता। तेजी के साथ लगातार पड़ते मुक्कों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। एक तो दम से मारा गया मुक्का उसमे भी बिजली की रफ्तार। आर्यमणि के जिस अंग पर मुक्का लगता वह हिस्सा 4 इंच तक धंस जाता। कुछ ही पल में आर्यमणि का पूरा बदन सूज चुका था। हांफते और बदहाली में वह पीछे हटा और खड़ा होकर अपने दर्द से उबरने की कोशिश करने लगा। शरीर में इतनी क्षति हुई थी कि अब वह हाथों से हील नही हो पा रहा था। आंख की रौशनी बिलकुल धुंधली हो गयी थी और दिमाग अब गहरी निद्रा में जाने के लिये तड़प रहा था। फिर भी आर्यमणि खुद को संभाले अपने नए दुश्मन को समझने की कोशिश कर रहा था, जो अपनी जगह से एक कदम भी इधर–उधर नही हुआ था।
 
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nain11ster

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अलबेली आई यानी मां का रखा हुआ नाम जिसे मां ने बिल्कुल सोच समझकर रखा और अलबेली बिल्कुल नाम अनुसार व्यवहार करती हैं। मस्ती में सराबोर चुलबुली और अपनी बातों से हमेशा माहौल को हसमुख बनाकर रखती हैं।

ज्ञान जिस पर अलबेली इवान ओजल का अधिकार था लेकिन ज्ञान तो मिला नहीं बस कुरूरता और हैवानियत देखने और झेलने को मिला इसलिए मौके के दस्तूर का पूरा पूरा फायदा उठाते हुए आर्यमणि के यादें ग्रहण करने की शक्ति की मदद से आपने अपने पसंदीदा विषय का ज्ञान बिना समय की बर्बादी के हासिल करना चाहते थे लेकिन यहां रूही ने अपने परिपक्व होने का परिचय दिया और आर्यमणि को समझाया की अपने शक्तियों का इस तरह गलत इस्तेमाल करना ठीक नहीं है।

रूही के तर्क को कटते हुए ओजल इवान और अलबेली ने जो तक दिया वह तर्क संगत था। जिस पर उनका अधिकार था कुछ स्वार्थी लोगो ने अपने स्वार्थसिद्धि के लिए तीनों को उससे दूर रखा। तीनों के तर्क की काट रूही के पास नहीं थी इसलिए उसे अनुमति देना पड़ा। अनुमति तो दिया लेकिन साथ में पहली और अखरी की चेतावनी भी दे दिया।

Mr कूपर जीव विज्ञान में मास्टरी के साथ ठरक पाने में भी पीएचडी कर रखा हैं। बाथरूम में ही सीसीटीवी कैमरा लगा रखा हैं खैर ठरकी के मस्तिष्क में गोच्छितो (एकत्रित) ज्ञान को बिना एक यूएसडी खर्च किए ले लिया और प्रोगात्मक विधि द्वारा सभी ने आपने अपने अंदर समाहित कर लिया लेकिन उस क्रिया के लिया ओजल को कुछ पल की पीढ़ा सहना पड़ा। देखते है अगले भाग में क्या होता है।
Mr cooper vanaspati vigyaan arthat botony ke professor the bigul bhai... Current Tak pahunchne ki badhai ho... Baki waqt hi alfa pack ka chal raha hai... Dekhte hain kitne waqt aur masti ke bache hai :D
 

nain11ster

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दोनों ही अपडेट्स ला जवाब हैं
यह कुपर को जो घेर कर खड़े थे वह सात आठ मिनट के लिए या सत्तर अस्सी मिनट के लिए यह थोड़ा समझा दीजियेगा
बाकी ग्रीन कार्ड वाला झोल और मेयर से मिलकर अपना बिजनैस सेट अप प्लान बहुत ही भयंकर था
खैर पलक को फलक गिरा दिए और अभी रूही हीरोइन वाली भूमिका में आ रही है l
खैर कहानी आपकी है
रचना आपकी है तो चरित्र चित्रण और संयोजन में आपका ही इख्तियार है
फिलहाल के जबरदस्त था
Abhi kuch der pahle main charcha kar raha tha... Just forget the 2 name.. jinke review kafi attractive hote hain... One I forget u and next Destiny ... You both guys have perfect sence of articulate your post...

Kair Wo 70-80 minut hi tha kala nag bhai... Wo kya hai na filter coffee ke liye thoda waqt dena padta hai... Next ye hum sab ki story hai... Plot ke hisab se sabki kismat likhi ja chuki hai kala bhai... Ruhi me kya burai hai yadi wo arya ke sath hoti hai to
 

nain11ster

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सुबह सुबह एक छोटा सा अंग्रेजो के खुल्लम खुल्ला सो किया दिख गया दो टीनेज आपस में ही लड़ बैठे इवान को क्या पता नया जगह नया परिवेश और अलग ही रीत तो गलती से रिमोट का बटन दावा और शो शुरू हों गया।

यह एक बात सबसे खाश रहा की आर्य अपने पैक के सभी सदस्यों के लिए बॉस बनकर नहीं अपितु एक अभिभक बनकर सभी सभी का ध्यान रख रहा है खासकर टिनेज सदस्य का, सभी के लिए हर वो काम कर रहा है जो उनके लिए जरूरी है। खुद पर नियंत्रण रखने की ट्रेनिग खुद दे रहा है और खुद की ट्रेनिंग भी कर रहा हैं।

निकोल से मिलने गया लेकिन उसकी बीबी के बेइज्जत कर दिया अजीब परिवेश है कुछ और पूछा ही नहीं सीधा काम का ही पूछा खैर जैसा व्यवहार निकोल की पत्नी ने किया बिल्कुल वैसा ही व्यवहार आर्यमणि ने दोनों पति पत्नी के साथ किया इसी को कहते है जैसे को तैसा लौटा देना।

अब आर्य स्वर्ण आभूषण की दुकान खोलने का विचार त्याग दिया और स्वर्ण खुदाई करने का व्यापार करने का मन बना लिया। जिसकी जानकारी मेयर से भेट के वक्त उसे दे दिया। अब देखते है अपना हीरो स्वर्ण खुदाई के व्यापार में कैसे झंडा गड़ता हैं?
Nude scene dikh gaya aur kya.... Isme itna vishes tippni jaisa kuch na tha... Ise muh se ugalwana kahte hai jo baat pahle se pata hai... :D

Bus agla update paison ka hi hai... Usi par hum turant chalte hain... Aur dekhte hain plan ke aage kya hua?
 

andyking302

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भाग:–65





नागपुर शहर...

नागपुर शहर में एसपी प्रभार बदलने के कुछ दिन बाद कमिश्नर प्रभार भी बदल गया था। जिस दिन निशांत ने केस जीता उसी दिन उसके पापा राकेश नाईक ने नागपुर की पैतृक संपत्ति, एक पूरा ऑफिशियल बिल्डिंग ही चित्रा और निशांत के नाम लिख चुके थे। हालांकि राकेश नाईक को सुप्रीम कोर्ट के जीत की खबर तो पहले से थी। साथ में जो वकील केस लड़ रहा था उसे देखकर राकेश समझ चुका था कि एक दिन से ज्यादा ये केस नही चलने वाला। निशांत का वकील पहले दिन ही डिग्री ले लेगा। इसलिये वहीं पास के रजिस्टार ऑफिस में राकेश ने पहले ही सारी प्रक्रिया पूरी कर रखी थी, बस चित्रा और निशांत के सिग्नेचर की देरी थी। केस जितने के बाद वो फॉर्मुलिटी भी पूरी हो गयी।


राकेश, उज्जवल और अक्षरा को देख अपनी छाती चौड़ी किये पेपर लेकर कोर्ट रूम के बाहर ही खड़ा था। जैसे ही निशांत और चित्रा बाहर निकले, राकेश उसके हाथ में पेपर थमाते... "दोनो इसपर सिग्नेचर कर दो।" फिर उज्जवल और अक्षरा से...


"तुम्हारे एक कहे पर मैं उनसे नफरत (कुलकर्णी परिवार) करता रहा जिसके बच्चे को आगे तुमने दामाद बनाने का फैसला कर लिया। और जब वो बच्चा नादानी में कुछ अच्छा और कुछ बुरा कर गया, तब सबके सामने तो भरी सभा में उसे बधाई दी, लेकिन पीठ पीछे उसके प्रोजेक्ट को हथियाने चाहते थे। आर्यमणि अपने दोस्तों के लिये इतना मरता था कि पूरा प्रोजेक्ट उनके नाम कर गया और तुम लोगों से ये भी देखा न गया। पूरा गवर्नमेंट को ही मैनेज करने के बाद भी क्या हासिल कर लिये? तुमसे तो अच्छा केशव और जया थे, जिसने उस रात की पूरी बात बता दी और तुमने मुझे ऐसे किनारा किया जैसे मैं कोई था ही नहीं। जाओ खुश रहो तुम लोग।"…


उस रात की घटना से शायद राकेश आज भी आहत था। हो भी क्यों न। दगाबाजी तो राकेश के साथ हुई ही थी। सब लोग एक हो गये और आर्यमणि के दिल में राकेश के लिये कभी इज्जत आयी ही नही। राकेश भी अपना पूरा भड़ास निकाल दिया, जिसका नतीजा उसे ट्रांसफर से भुगतना पड़ा। जाने से पहले राकेश ने सिविल लाइन के पास ही 2 फ्लैट खरीद लिया। एक फ्लैट चित्रा और निशांत के लिये तो दूसरा फ्लैट माधव के नाम। अपने बेटे और बेटी दोनों को एक लग्जरियस कार खरीद कर गिफ्ट कर दिया। जाने से पहले उसने केशव और जया से माफी भी मांगी और अपने बच्चे को उन्ही के भरोसे छोड़कर नागपुर से निकल गया। राकेश के जाने के अगले दिन ही निशांत भी वर्ल्ड टूर के लिये फ्लाइट ले चुका था।


आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट का काम शुरू हो चुका था। नागपुर के प्राइम लोकेशन पर एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग, जो की चित्रा और निशांत का ही था, उसका पूरा एक फ्लोर "अस्त्र लिमिटेड" का ऑफिस था। एमडी के ऑफिस में चित्रा और माधव साथ बैठकर पिज्जा का एक स्लाइस मुंह में लेती.… "एंकी एक बात बताओ"..


माधव:– हां..


चित्रा:– बाबूजी को अपने प्रोजेक्ट के बारे में बता दिये की नही...


माधव:– अभी पहले मैन्युफैक्चर यूनिट बनकर पूरा तैयार हो जाये। उसके बाद जब प्रोजेक्ट पर काम शुरू होगा तब बतायेंगे।


चित्रा:– हम्मम और क्या बताओगे..


माधव:– ये भी बताऊंगा की हमारी शुरवाती सैलरी 1 लाख रुपया महीना होगी और कंपनी के प्रॉफिट में २० टका हिस्सा भी।


चित्रा:– और भी कुछ जो उन्हें बताना चाहो..


माधव:– और क्या बताऊंगा?


चित्रा:– और कुछ नही बताओगे...


माधव:– और क्या बताना है?


चित्रा:– फाइन.. बैठकर यहां पिज्जा खाओ मैं नया ब्वॉयफ्रेंड ढूंढ लूंगी...


माधव:– अरे.. अरे.. अरे.. भारी भूल हो गयी। चित्रा सुनो.. सुनो तो...


चित्रा:– गो टू हेल एंकी... पीछे मत आना..


"एक तरफ बाबूजी दूसरी तरह ये चित्रा... अरे रुक तो जाओ। तुम सुनी, हम अभी ही बाबूजी को फोन घुमा दे रहे हैं।"… माधव चिल्लाते हुये चित्रा के पीछे भागा..


"तुमसे ना हो पायेगा फट्टू... दम है तो अभी लगाकर दिखाओ"….


"अरे रुको तो... देखो रिंग हो रहा है"… जबतक माधव खड़ा होकर फोन की घंटी सुनता.… "हेल्लो"… फोन के दूसरे ओर से बाबूजी की कड़कती आवाज...


चित्रा ने भी उस आवाज को सुना... आवाज सुनते ही वो पलट गयी, जब तक उधर से बाबूजी ३ बार हेल्लो चिल्ला चुके थे.…


माधव:– हां बाबूजी प्रणाम..


बाबूजी:– हां खुश रहा.. सब कुशल मंगल..


माधव:– हां बाबूजी सब बढ़िया। इ बार भी हम टॉप किये है बाबूजी..


बाबूजी:– कौनो आईआईटी में टॉप नही किये। सरकारी नौकरी के लिये कंपीटेशन की तयारी करे के पड़ी। टॉप करे से कोनो सरकारी नौकरी वाला न बन जएबे।


माधव चुप, चित्रा मुंह से बुदबुदाती... "फट्टू कहीं के"… उधर से कोई जवाब न सुनकर... "ठीक है बेटा अच्छे से तैयारी कर। हम फोन रख रहे है।"..


माधव:– बाबूजी तनिक रुकिये..


बाबूजी:– हां बोला..


माधव:– वो बाबूजी.. हम..


बाबूजी:– हिचकिचा काहे रहे हो। पैसा कम पड़ गया..


माधव:– नही बाबूजी ऊ बात नही है..


चित्रा जोर से चिल्लाते.… "आपके बेटा अनके माधव सिंह को चित्रा नाईक यानी की मुझसे प्यार हो गया गया है। बहु का प्रणाम स्वीकार कीजिये बाबूजी और जल्दी से हमारा रिश्ता तय कर दीजिये।"…


माधव की सिट्टी–पिट्टी गुम। उधर से बाबूजी चिल्लाते... "फोन रख कपूत, तू खेतिये लायक है। कुछ दिन में पहुंचते है।"…


कॉल डिस्कनेक्ट और माधव टुकुर–टुकुर फोन को देखने लगा। माधव की हालत देख, चित्रा हंस रही थी। बेचारा माधव उसके तो अभी से पाऊं कांपने लगे थे। दोनो अपने ही धुन में थे, कि तभी वहां का स्टाफ एक चिट्ठी लेकर पहुंच गया। सरकारी चिट्ठी थी, जिसमे पहले तो "अस्त्र लिमिटेड" को उसके प्रोजेक्ट के लिये धन्यवाद कहा गया। साथ ही साथ उन्हे डीआरडीओ (DRDO) आने का न्योता भी मिला था, जहां वो अपने प्रोजेक्ट का छोटा प्रारूप सेट करके उत्पादन दिखा सके।


जैसा की "अस्त्र लिमिटेड" के प्रोजेक्ट में वर्णित था कि उनके उत्पादन, लगभग 40 से 50 फीसदी की कम कीमत पर भारत सरकार को गन, ऑटोमेटिक राइफल और ऑपरेशन में इस्तमाल होने वाले खास राइफल मुहैया करवायेगी जिसकी गुणवत्ता तत्काल इस्तमाल हो रहे हथियार के बराबर या उस से उच्च स्तर की होगी। यदि इस छोटे से प्रारूप में वो सफल होते है तब 10 गुणा और बड़े पैमाने पर इस प्रोजेक्ट को शुरू किया जायेगा, ताकि हथियारों के लिये विदेशी बाजार पर निर्भर रहना न पड़े। चिट्ठी में यह भी साफ लिखा था कि.…


"हम समझते है, छोटे प्रारूप से उत्पादन की कीमत बढ़ेगी। लेकिन हमारी एक्सपर्ट टीम वहां होगी जो छोटे से मॉडल से तय कर लेगी की बड़े पैमाने पर जब उत्पादन शुरू होगा तो कितने प्रतिसत कम खर्च पर बनेगी। यदि आपका प्रोजेक्ट सफल होता है, तब आपके "गन एंड ऑटोमेटिक राइफल रिसर्च यूनिट" पर भी विचार करेंगे, जो हथियार की गुणवत्ता को और भी ज्यादा बढ़ा सके और बदलते वक्त के साथ नए तकनीक के हथियार मुहैया करवा सके। अपनी टीम के साथ विचार–विमर्श करके एक समय तय कर ले और डीआरडीओ (DRDO) पहुंचे। हमारी सुभकमना आपके साथ है।"


चिट्ठी देखकर तो माधव और चित्रा दोनो उछल पड़े। चित्रा ने तुरंत ही वह चिट्ठी निशांत को मेल कर दी। आधे घंटे बाद निशांत ने जवाब में लिखा, 92 दिन के बाद का कोई भी समय तय कर ले। चित्रा ने भी तुरंत सरकारी विभाग को जवाबी पत्री भेज दी, जिसमे 3 महीने के बाद की एक तारीख तय कर दी।


खुशी की बात थी इसलिए चित्रा, माधव के साथ सीधा कलेक्टर आवास पहुंची, जहां आर्यमणि के परिवार के साथ भूमि भी सेटल थी। चित्रा की खुशी देखते हुये भूमि पूछे बिना रह नहीं पायी.… "क्या हुआ चित्रा, इस अस्थिपंजर ने अपने बाबूजी से तेरे बारे में बात कर लिया क्या, जो इतनी चहक रही?"


चित्रा:– ससुर जी भी ट्रेन की टिकिट बनावा रहे होंगे.. एंकी बोल नही पा रहा था, इसलिए मैंने खुद बात कर ली।


आर्यमणि की मां जया.… "चलो अच्छा हुआ। वैसे भी निलंजना (चित्रा की मां) तेरी जिम्मेदारी मुझ पर ही सौंप गयी है। आने दे इसके बाबूजी को भी, देखते हैं कितना खूंखार है।"..


भूमि:– मासी केवल 10 लाख नेट और एक ललकी बुलेट ही तो एंकी के बाबूजी को ऑफर करनी है, उसी में तो सब सेट है।


चित्रा:– क्या भूमि दीदी आप भी एंकी के पीछे पड़ गयी।


जया:– मेरी कोई बेटी नही इसलिए चित्रा को मै अपनी बेटी की तरह विदा करूंगी। 10 लाख तो मैं केवल इसके कपड़ो पर खर्च कर दूं।


चित्रा:– अहो थांबा... प्रत्येकजण खूप उत्साही आहे. माझे पण ऐक.. (ओह रुको ... हर कोई कितना उत्साहित है। मेरी भी सुनो)


भूमि और जया एक साथ... "बोला"..


चित्रा, चिट्ठी उनके हाथ में देती... "सब खुद ही पढ़ लो"..


उस चिट्ठी को पढ़ने के बाद तो जैसे सभी जोश में आ गये। उनकी कामयाबी के लिये जया और भूमि बधाई देने लगी। चित्रा थोड़ी मायूस होती... "आर्य का प्रोजेक्ट था ये। और ये सफलता भी उसी की है।"..


"कौन सी सफलता"… पीछे से जयदेव भी वहां पहुंच गया..


चित्रा:– जयदेव जीजू, आर्य के "आर्म्स & एम्यूनेशन" प्रोजेक्ट की सफलता की बात कर रहे थे...


जयदेव:– कौन वो हमारे प्रहरी समुदाय वाला प्रोजेक्ट..


भूमि:– तुम्हे अभी झगड़ा करना है क्या जयदेव? प्रहरी का पैसा लगा है बस... यदि ज्यादा दिल में दर्द हो रहा है तो बोलो, पैसे वापस करवा देती हूं।


जयदेव:– मुझे नही ये बात अपने बाबूजी को समझाओ...


भूमि:– अब आर्य किताब लेकर चला गया उसका गुस्सा तुम लोग किसी से भी निकाल रहे। जब बाबा के दिल में इतना ही दर्द था तो क्यों प्रहरी सभा में आर्यमणि की वाह–वाही करवाये। अनंत कीर्ति किताब का चोर बना देते।


जयदेव, अपने दोनो हाथ जोड़ते... "मुझे माफ करो, और अपना गुस्सा शांत करो। गुस्सा, होने वाले बच्चे के लिये खतरनाक होगा।"


भूमि:– हां और बच्चे का बाप कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गया है। जयदेव तुम्हारी कमी अखड़ती है। जब से मैं प्रेगनेंट हुई हूं, तुमने तो खुद को और भी ज्यादा वयस्त कर लिया है।


जया, हैरानी के साथ खड़ी होती.… "तुम लोग जरा शांत रहो।"…


हर कोई शांत हो गया। जया बड़े ध्यान से मुख्य दरवाजे को देख रही थी। बड़े गौर से देखने के बाद एक चिमटी उठायी और दीवार पर लगे एक छोटे काले धब्बे को उस चिमटी से निकालती.… "ये करोड़ों वायरस का समूह, काफी खरनाक है।"


चित्रा:– क्या आप भी ना आंटी...


जया:– तुम लोगों को कुछ भी पता नही... खैर छोड़ो ये बातें.. जयदेव बाबू ये तो सच है कि आप भूमि को समय नहीं दे रहे...


जयदेव:– जब आप है मासी तो मुझे कोई चिंता नहीं। वैसे आर्य की कोई खबर...


जया बड़े ही उदास मन से... "पता न मेरे बेटे को किसकी नजर लगी है। पहले मैत्री के कारण हमसे कटा–काटा रहता था। उस गम से उबरने के बाद कुछ दिन तो हुये थे, जब वो हमारे साथ था। लेकिन तभी पता न कहां गायब हो गया। वापस लौटकर जब आया तब उसने जाहिर किया की वो हमे कितना चाहता है। उसकी हंसी कुछ दिन तो देखी थी, कि फिर से गायब। जयदेव कहीं से भी मेरे बेटे को ढूंढ लाओ। केशव तो लगभग हर एंबेसी में आर्य की तस्वीर भिजवा चुके हैं, लेकिन वहां से भी कोई जवाब नही आया।"


भूमि:– चिंता मत करो मासी, जहां भी होगा सुरक्षित होगा और जल्द ही लौटेगा...


जयदेव:– अच्छा चलता हूं मैं। आर्य की कोई खबर मिली तो जरूर बताऊंगा...


जयदेव वहां से वापस सुकेश के घर लौटा। वहां सुकेश, उज्जवल, तेजस, मीनाक्षी, अक्षरा सब बैठे हुये थे। जयदेव के पहुंचते ही... "क्या खबर है?"


जयदेव:– हमारा वशीकरण वाले जीव को जया ने चिमटे से पकड़ लिया।


सभी एक साथ चौंकते हुये... "क्या???"


जयदेव:– हां बिलकुल... ऊपर से जया के घर के सभी स्टाफ बिलकुल नए थे। हमारा एक भी आदमी वहां नही था। गैजेट वैग्रह सब बंद है। यहां तक की चित्रा और उसके ब्वॉयफ्रेंड के अपार्टमेंट में जो हमने आस–पास लोग रखे थे, वह भी गायब है। चित्रा के पास नया ड्राइवर है। उसके ब्वॉयफ्रेंड के पास नया ड्राइवर। केशव के डीएम ऑफ़िस में भी सारे नए स्टाफ है। हमने अपने जितने लोग लगाये थे सब के सब उन लोगों के आस–पास से गायब हो चुके है।


मीनाक्षी:– हां लेकिन जया ने चिमटी से अपना वशीकरण जीव कैसे पकड़ लिया?


जयदेव:– मैने उन्हे हवा में छोड़ा था, लेकिन वो सब जाकर बाहरी दीवार से चिपक गये। पतले पेन के छोटे से डॉट जितने थे, उसे भी जया ने पकड़ लिया।


अक्षरा:– जरूर ये कुलकर्णी परिवार और भूमि हमारे बारे में सब जानते है। वर्धराज जाने से पहले कुछ सिद्धियां इन्हे भी सीखा गया होगा इसलिए अपने बचने के उपाय पहले से कर रखे है।


जयदेव:– और चित्रा का क्या? उसने कैसे हमारे लोगों को हटाया...


अक्षरा:– हां तो वो भी साथ में मिली है। सबके साथ उसे भी मार दो।


जयदेव:– "उन्हे नही मार पायेंगे क्योंकि बीच में कोई तीसरा है। रीछ स्त्री जब ऐडियाना का मकबरा खोल रही थी, तब हमे लगा था कि आर्यमणि ने हमारा काम बिगड़ा है। लेकिन वो काम किसी सिद्ध पुरुष का था। पूरे जगह को ही उसने अपने सिद्धियों से बांध दिया था। आर्यमणि पर नित्या ने हमले भी किये, लेकिन वह घायल तक नही हुआ।"

"ऐसा ही कुछ नागपुर में उस रात भी हुआ था। आर्यमणि तो रात 11.30 बजे तक सरदार खान को लेकर निकल गया। स्वामी, सुकेश के घर से चोरी करने के बाद उल्टे रास्ते के जंगल कैसे पहुंचा? जो हमला आर्यमणि पर होना चाहिए था वह हमला स्वामी पर हो गया। सबसे अचरज तो इस बात का है कि जादूगर महान का दंश (सुकेश के घर से चोरी हुआ एक नायाब दंश, जिसके सहारे स्वामी को थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी से जीतते हुये दिखाया गया था) जो कभी हमसे सक्रिय नही हुआ, वह स्वामी के हाथ में सक्रिय था और उसके बाद वह दंश कहां गायब हुआ किसी को नहीं पता। वह दंश तो चोरी के समान के साथ भी नही गया फिर वो गया कहां? हमारा लूट का माल हवा निगल गयी या जमीन खा गयी कुछ पता ही नही चल रहा। तुम लोगों को नही लगता की बीच में कोई है जो अपना खेल रच रहा।


जयदेव अपने हिसाब से आकलन कर रहा था। उसे न तो आर्यमणि के ताकतों के बारे में पता था और न ही आर्यमणि के एक्जिट पॉइंट के बारे में कोई भी ज्ञान। वेयरवॉल्फ यादें देख सकते हैं, ये पता था। लेकिन यादों के साथ छेड़–छाड़ और दिमाग में अपनी कल्पना के कुछ अलग तस्वीर डाल देना, ऐसा कोई वुल्फ नही कर सकता था। इसलिए यादों के साथ छेड़–छाड़ हुई है, ऐसा कोई भी सीक्रेट प्रहरी सपने में भी नही सोच सकता था।



जयदेव बस अपनी समीक्षा दे रहा था कि क्यों वो लोग पिछड़ रहे है? उसकी बातें सुनने के बाद सुकेश कुछ सोचते हुये.… "सतपुरा के जंगल वाले कांड में पलक ने भी ऐसी ही आसंका जताई थी।"


जयदेव:– हां बिलकुल... उसी ने हमारा ध्यान इस पहलू पर खींचा था, वरना हम आर्यमणि के ऊपर ही ध्यान केंद्रित किये रहते...


मीनाक्षी:– तो क्या लगता है, कौन इसके पीछे हो सकता है?


जयदेव, कुटिल मुस्कान अपने चेहरे पर लाते.… "और कौन, वही हमारा पुराना दुश्मन... शायद आश्रम फिर से सक्रिय हो गया है और परदे के पीछे से वही कहानी रच रहा। जहां भी हमारा मामला फंसता है, फिर वह आर्यमणि हो या स्वामी या फिर जया, वहां बीच में ये चला आता है और हमारे कमजोर दुश्मन को भी ऐसे सामने रखता है जैसे वो हमारे लिये खतरा हो।"


उज्जवल:– इस से आश्रम वालों को क्या फायदा होगा?


जयदेव:– वही जो कभी छिपकर हमने किया था। दुश्मन के बारे में पूरा जानना। कमजोर और मजबूत पक्ष को परखना। वह हमे इन छोटे लोगों से भिड़ाना चाहता है। ताकि पहले हम छोटे हमले से इन लोगों को मार सके। छोटे हमले जैसे आज मैंने वशीकरण जीव पूरे उस समूह पर छोड़ा था, जो आर्यमणि के करीबी थे। वह जीव खुली आंखों से पकड़ में आ गया। इतनी सिद्धि केवल आश्रम वालों के पास ही हो सकती है। अब वो लोग ये सोच रहे होंगे की, हमलोग जया को सीक्रेट प्रहरी के लिये खतरा समझ रहे और इसलिए हम जया को मारने का प्रयास करेंगे। यदि मारने गये तब जया तो नही मरेगी, लेकिन हमारा एक और दाव उन आश्रम वालों के नजर में होगा।


कुछ लोग तो वाकई में उलझते है। लेकिन कुछ खुद से उड़ता तीर अपने पिछवाड़े में ले लेते हैं। आर्यमणि उस रात नागपुर से सबके दिमाग को इस कदर खाली करके भागा था कि सीक्रेट प्रहरी के दिमाग का फ्यूज ही उड़ गया। पलक की एक सही समीक्षा के ऊपर अपने नए समीकरण को जोड़कर जयदेव एंड कंपनी अब कुछ अलग या यूं कह लें की बिलकुल ही अलग दिशा में सोच को आगे ले जा रहे थे।


जहां तक बात जया की थी। तो जयदेव ने न तो कोई वशीकरण जीव छोड़ा था और न ही सबके बीच चल रही बात को रोक कर जया ने चिमटी से उस वशीकरण जीव को मुख्य दरवाजे से निकाला था। बल्कि ये पूरी घटना जयदेव के दिमाग की इतनी गहरी उपज थी कि जयदेव अपने मस्तिष्क भ्रम को पूर्ण सत्य मान लिया। और ये हो भी क्यों न... दिमाग में लगातार जब एक ही प्रकार की थ्योरी रात दिन घूमती रहेगी तो दिमाग भी अपने विजन से उस थ्योरी को प्रूफ कर ही देगा। सत्य और कल्पना का मायाजाल, जहां दिमाग की माया नजरों के सामने वह दृश्य दिखा देती है जिसे हम पहले से स्वीकार कर सच मान चुके होते है। जैसे की जयदेव के साथ हो रहा था। उसने आश्रम को सबसे बड़ा खतरा मान लिया था इसलिए दिमाग वही दिखा रहा था जो वह पहले से सत्य मान बैठा था।


आश्रम का सक्रिय होना सुनकर ही सीक्रेट प्रहरी के बीच हाहाकार मचा था। ऊपर से सुकेश के घर की चोरी ने और भी ज्यादा अपंग बना दिया था, क्योंकि सिद्ध पुरुष से निपटने और प्राणघाती चोट देने वाले सारे हथियार तो उन्ही चोरी के समान में थे। सभी लोग आगे क्या करना है उसपर विचार विमर्श कर ही रहे थे कि बहुत दिन बाद एक खुश खबरी इनके हाथ लगी थी। बीते 45–50 दिनो में पहली बार इतने खुश थे कि मुंह से हूटिंग अपने आप ही निकल रही थी। इतने दिनो में पहली बार कोई ढंग की खबर हाथ लगी थी। खबर मिल चुकी थी कि जो बॉक्स लूट कर ले गये थे, उन्हे खोला जा चुका है और अब उसका लोकेशन भी पता चल चुका है।
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andyking302

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भाग:–66





लगभग २ महीने बाद… बर्कले, कार्लीफिर्निया, यू.एस.ए


शांत सा माहौल, पशु पक्षियों की आवाज और एक प्यारा सा 2 फ्लोर का कॉटेज, जो शानदार तरीके 4000 स्क्वायर फुट में बाना हुआ था। 2 कमरा, किचेन, लिविंग रूम और हॉल नीचे। ऊपर 3 कमरे और एक्सरसाइज करने के लिए बड़ा सा क्षेत्र। साइड से बड़ा सा गराज जिसमे 4-5 गाड़ियों के रखने कि जगह थी। उसी के नीचे एक बेसमेंट जिसे अपनी जरूरतों के हिसाब से इस्तमाल कर सकते थे, वहां सोने की रिम को रख दिया गया था। आगे बड़ा सा लॉन और पार्किंग स्पेस, उसी के साथ किनारे से कई खड़े बृक्ष की फेंसिंग। 200 मीटर के दायरे में कोई घर नहीं। और पीछे पुरा जंगल और पहाड़, जहां बहुत कम ही लोग जाया करते थे।…


"सो कैसा है ये तुम्हारा घर"… आर्य ने सबसे पूछा।


अलबेली:- कभी नागपुर से कोल्हापुर नहीं गयी और 2 महीने में दुनिया घुमाकर यहां तक पहुंचा दिये बॉस… वूहू.. लेकिन बॉस ये मेरा नाम मर्करी काहे रख दिये, बल्ब की जगह मुझे ही जलाओगे क्या?


उसकी बात सुनते ही सभी हसने लगे… "अरे ये फेक नाम है, तुझे यहां तेरे अपने नाम से ही पुकरेंगे। ड्रामा क्वीन अलबेली, और स्कूल के लिए जो नाम होगा वो है केली"..


ओजल:- केला की बहन केली।


अलबेली:- अब सब मुझे ऐसे ही नाम दो। लेकिन मुझे अलबेली ही बुलाना। आई ने रखा था, सुनने में अच्छा लगता है।


आर्यमणि:- अब शांति से सब सुनेगे। ये भारत नहीं है कि किसी के भी फटे में घुस गये। यहां लोग दावत पर भी जाते है तो अपने घर से खाना उठा कर ले जाते है। इसलिए जो तुमसे बात करने आये उसी से बात करना।


इवान:- कैसे बात करूं, मराठी या हिंदी में।


अलबेली:- तू गूंगा बनकर बात कर। मै भी वही करने वाली हूं। हमारे बीच तो ये रूही और बॉस ही है इंजिनियरिंग वाले।


आर्यमणि:- 2–4 लाइन बोलना अलग बात है लेकिन यहां रहने के हिसाब से तो ये भाषा मुझे भी नही आती। परेशानी तो है लेकिन इसका एक हल भी है। रूही अपने पास वुल्फबेन कितना बचा है।


रूही:- नहीं खुद से सीख लेंगे आर्य, ये चीटिंग है।


इवान:- हां तो रूही को खुद से सीखने दो, हमे पंजा फाड़ गर्दन का ज्ञान भी चलेगा।


आर्यमणि:- अब पैक की मेजोरिटी कह रही है रूही मान जाओ। भाषा सीखे बिना कैसे काम बनेगा। चलो अंग्रेजी का टीचर ढूंढा जाये।


रूही:- मै कह रही हूं ये चीटिंग है, और मै कहीं नहीं जाने वाली। मेरा दिल गवारा नहीं कर रहा। किसी की मेमोरी से उसकी स्टडी चुराना और फिर दूसरे के मेमोरी में डालना।


अलबेली:- कौन सा हम रोज-रोज करेंगे। केवल आज ही तो करेंगे इसके बाद नहीं।


रूही:- ये प्रकृति के नियम के खिलाफ है। प्योर अल्फा की शक्ति का नाजायज फायदा ले रहे हो आर्य।


आर्यमणि:- हम्मम ! बात तो तुम सही कह रही हो रूही। लेकिन कभी-कभी हमे आउट ऑफ द वे जाकर काम करना पड़ता है। मै वादा करता हूं, ये हम पहला और आखरी ऐसा काम करेंगे जो वाकई में हमे नहीं करना चाहिए था।


बाकी सब भी रूही और आर्यमणि के हाथ के ऊपर हाथ रखते… "हम भी वादा करते है।"..


रूही:- हां ठीक है समझ गयी.. लेकिन ये आखरी बार होगा। चलो चलते है।


ओजल:– जब सब राजी हो ही गये है, तो मैं चाहूंगी कि मुझे किसी कंप्यूटर जीनियस का ज्ञान मिले।


इवान:– फिर मुझे केमिस्ट्री का ज्ञान चाहिए।


अलबेली:– अंग्रेजी के बदला ये क्या सब सीख रहे है। इवान मुझे भी कुछ अच्छा बता...


रूही:– ये कुछ ज्यादा नही हो रहा...


इवान:– ये ज्यादा उनसे क्यों नही पूछते जिन्होंने हमें अंधेरे में फेंक दिया। वैसे हम है तो इंसान ही, फिर इंसानियत के लिये कुछ सीख रहे इसमें बुराई क्या है?


रूही:– वाह!!! सोच अच्छा करने की और रास्ता ही गलत चुन रहे, फिर अच्छे बुरे में अंतर कैसे करोगे।


ओजल, रूही के कंधे से लटकती... "तुम क्यों हो दीदी। इसके बाद जैसा तुम कहोगी हम आंख मूंद कर कर लेंगे।अच्छा और बुरे का अंतर आप हमसे बेहतर जानती हो। अलबेली तू फिजिक्स ले"


रूही:– वाह!!! अभी तक मैने तो हां–हूं भी नही किया और अपनी बात कहने के बाद सीधा आगे के कार्यक्रम में लग गये।


अलबेली:– ओ दीदी, लोगों ने हमारे साथ बेईमानी करके हमें वक्त से पीछे धकेल दिया। आज थोड़ा हम बेईमानी करके आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे। अब मान भी जाओ...


रूही:– ठीक है चूंकि ये आखरी बार है इसलिए अपने मन के विषय ले लो। बॉस पूरी की पूरी पढ़ाई दिमाग में डाल देना इतना आसान होगा क्या? अभी तक तो तुम केवल कुछ यादें ही डाले हो किसी के दिमाग में, उसका भी डेटा ना लिया की यादें डालने के बाद दिमाग की क्या हालत होती होगी। ऐसे में इतनी सारी यादें एक साथ डालना, क्या यह सुरक्षित होगा?


आर्यमणि:– मुझे नही पता, लेकिन इसका भी उपाय है। मैं इस पर पहले सोध कर लूंगा।


रूही:– हां ये ठीक रहेगा। तो साेध कैसे करे।


आर्यमणि:– अपने पसंदीदा विषय वनस्पति विज्ञान से..


रूही:– ठीक है चलो कोशिश करते हैं।


वहीं से एक टैक्सी बुक हुई। वुल्फबेन का एक इंजेक्शन लिया उन लोगों ने और चल दिए इंटरनेट के पते पर, जहां वनस्पति विज्ञान के महान सोधकर्ता रहते थे। मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में जैसे ही घुसने लगे, गार्ड उसे रोकते… "यहां क्या काम है।" (परिवर्तित भाषा)


आर्यमणि:- वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर विलियम कूपर से मिलना है।


गार्ड:- सर से मिलने का अपॉइंटमेंट है।


आर्यमणि, 10 डॉलर का एक नोट दिखाते… "मेरे पास ये है, मीटिंग हो पायेगी क्या।"


गार्ड:- मुझे नहीं पता वो अभी है भी या नहीं।


आर्यमणि, 10 डॉलर के 2 नोट दिखाते… "अब"


गार्ड:- पूछना पड़ेगा।


आर्यमणि, 3 नोट निकालकर…. "इसके बाद चला जाऊंगा।"..


गार्ड, 30 डॉलर झटपट खींचते.… "50 डॉलर कूपर सर के असिस्टेंट के लिए और सर से मिलना किस उद्देश्य से आये हो।


आर्यमणि, 50 डॉलर बढ़ाते… "उनसे वनस्पति विज्ञान सीखनी है। जो भी उनकी फीस है, अभी पुरा एडवांस दे दूंगा। लेकिन पहले एक डेमो क्लास लेंगे।"..


गार्ड उसे अपने पीछे आने कहा। सभी पीछे-पीछे चल दिये। गार्ड ने सामने से असिस्टेंट को 50 डॉलर थमाया और मामला समझाया। असिस्टेंट ने पांचों को एक झलक देखा और अंदर जाकर कुछ देर बाद वापस आया।… "तुम लोग मेरे साथ आओ।"..


सभी अंदर के एक वेटिंग एरिया में आकर बैठ गये। कुछ देर बाद विलियम मास्टर साहब आये। थोड़ी बहुत पूछताछ के बाद पांचों को एक छोटे से क्लास में ले गये। रूही चोर नजर से चारो ओर देखी और आर्यमणि के कान में कहने लगी… "यहां तो 2 सीसी टीवी कैमरे लगा हुआ है।"..


आर्यमणि:- वाशरूम का पूछो उससे है की नहीं, और चेक करके आओ वहां कोई कैमरा तो नहीं लगा। साले के शक्ल पर ही ठरकी लिखा है।


रूही, आर्यमणि की बात सुनकर हसने लगी। वो जाकर अपने एनिमल इंस्टिंक्ट से चारो ओर का जायजा लेने लगी, आर्यमणि का शक सही था। उस छोटे बाथरूम में तो 3 कैमरा लगा था। रूही वापस आकर सारा ब्योरा आर्यमणि के कानो में दी, और कहने लगी… "अब क्या करेंगे।"…


आर्यमणि सबको खड़े हो जाने का इशारा किया और इशारों में समझा दिया इसे घेरकर अपना काम करना है। पांचों खड़े हो गये। विलियम कूपर को चारो ओर से घेर लिया गया। अचानक से पांचों को यूं गोल घेरे देख विलियम घबराकर उठने की कोशिश कर ही रहा था कि इतने में एक इंजेक्शन उसे लग गया और आर्यमणि के बड़े–बड़े नाखून उसके गर्दन में।"..


लगभग 70–80 मिनट की प्रक्रिया और उसके बाद आर्यमणि ने उसे हील कर दिया। सब लोग वापस आकर बैठ गये। विलियम की आखें खुलते ही आश्चर्य से वो देखते… "तुम सब यहां थे ना।"..


आर्यमणि:- आपने ही तो बुलाया था।


वो कॉफ्यूज होकर अपना सर खुजाने लगा। 45 मिनट का डेमो क्लास था, घड़ी देखा तो 1 घंटा से ऊपर हो गया था। कूपर चेहरे से काफी कन्फ्यूज दिख रहा था। पूरे अल्फा पैक को एक नजर बड़े ध्यान से देखते... "क्या तुम्हारा डेमो क्लास खत्म हो गया?"


आर्यमणि:– हां बिलकुल मिस्टर कूपर...


कूपर:– तो आगे के क्लास के बारे में क्या सोचा है?


आर्यमणि:- मिस्टर कूपर आप बहुत हाई क्लास पढ़ाते है और हम बेसिक वाले है। रहने दीजिये और अपने एक क्लास की फीस बताईये।


विलियम थोड़ा चिढ़ते हुए… "500 डॉलर।"


आर्यमणि:- पागल हो गया है क्या? मुझे रसीद दो बाकी मैं लीगल में देख लूंगा।


विलियम तुरंत अपने सुर बदलते… "50 डॉलर दो, और यदि क्लास शुरू करना हो तो उसके लिये एडवांस 1000 डॉलर लगेंगे, तुम सभी के महीने दिन की फीस।


आर्यमणि उसे 50 डॉलर देकर वहां से बाहर आया। जैसे ही अल्फा पैक बाहर आया कान फाड़ हूटिंग करने लगे। आवाज इतनी तेज थी कि मामला थाने पहुंच गया और पांचों को पुलिस ने पहली हिदायत देकर छोड़ दिया। खुश तो काफी थे। वहीं से पूरा अल्फा पैक शॉपिंग के लिये निकल गया। शॉपिंग तो ऐसे कर रहे थे जैसे पूरे शॉपिंग मॉल को लूट लेंगे। अत्याधुनिक जिम सेटअप, कपड़े, ज्वेलरी, टीवी, वाशिंग मशीन, घर के जरूरतों के ढेर सारे उपकरण, लैपटॉप, मोबाइल, ग्रॉसरी के समान। जो भी जरूरत का दिखता गया सब उठाते चले गये। एक शाम की शॉपिंग पर उन लोगों ने 50 हजार डॉलर उड़ा दिये।


अब जहां रहते है, वहां के कुछ नियम भी होंगे। शॉपिंग मॉल के मैनेजर ने आर्यमणि को इंश्योरेंस पॉलिसी समझाकर हर कीमती सामान का इंसोरेंस कर दिया। इसके अलावा घर की सुरक्षा के मद्दे नजर 5000 यूएसडी का अलार्म सिक्योरिटी सिस्टम को इंस्टॉल करने का सुझाव देने लगा। आर्यमणि को लग गया की ये बंदा काम का है। उसने भी तुरंत अपने बिजली, गैस, पानी इत्यादि के कनेक्शन की बात कर ली। मैनेजर ने भी वहीं बैठे–बैठे मात्र एक फोन कॉल पर सारा काम करवा दिया।


आर्यमणि भी खुश। कौन सा अपने पैसा लग रहा था, इंसोरेंस, सिक्योरिटी इत्यादि, इत्यादि जो भी मैनेजर ने सुझाव दिया आर्यमणि उसे खरीद लिया। 50 हजार यूएसडी शॉपिंग मॉल में और 30 हजार यूएसडी मैनेजर के सजेशन पर आर्यमणि ने खर्च कर डाले। इधर आर्यमणि ने मैनेजर के कहे अनुसार समान खरीदा। उधर मॉल के मैनेजर ने उन लोगों का समान फ्री डेलिवरी भी करवाया और इलेक्ट्रॉनिक सामान को उसके घर में लगाने के लिये इलेक्ट्रीशियन और टेक्नीशियन दोनो को साथ ही भेज दिया। साथ में अन्य टेक्नीशियन भी थे जो अन्य जरूरी चीजों को घर में फिट करते।


शाम तक इन लोगों का घर कंप्लीट हो चुका था जहां जिम, टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन, केबल, वाईफाई, हाई सिक्योरिटी अलार्म, गैस कनेक्शन, पानी कनेक्शन, इत्यादि, इत्यादि लग चुके थे। सभी लोग आराम से फुर्सत में बैठे। लिविंग रूम में क्राउच लग गया था। पांचों वहीं बैठकर आराम से पिज्जा का लुफ्त उठाते.… "बॉस अब एक्सपेरिमेंट हो जाये क्या?"


आर्यमणि:– ठीक है पहले रूही से ही शुरू करते हैं।


रूही:– नाना, कुछ गड़बड़ हो गयी तो मैं मेंटल हो जाऊंगी। पहले अलबेली पर ट्राय करो।


अलबेली:– नाना, ओजल ने इसके लिये सबसे ज्यादा मेहनत की है। ओजल को पहला मौका मिलना चाहिए।


ओजल:– मुझे कोई ऐतराज नहीं। अब जब मैं जोखिम उठा रही हूं तो ज्ञान के भंडार को दिमाग में संरक्षित करने के संदर्भ में मेरी कुछ इच्छा है। यदि ये प्रयोग सफल हुआ तब वह करेंगे। और मैं पूछ नही रही हूं। बॉस मैं रिस्क ले रही तो मेरी बात मानोगे या नही।


आर्यमणि हां में अपना सर हिलाया और गर्दन के पीछे अपने क्ला घुसाकर आंख मूंद लिया। पहला खेप ज्ञान का उसने अंदर डाला। विलियम कूपर से जितना फिल्टर ज्ञान लिया था, उसका 1% अंदर डाल दिया। एक मिनट बाद दोनो में अपनी आंखें खोल ली। हर कोई ओजल को बड़े ध्यान से देख रहा था। ओजल कुछ पल मौन रहने के बाद.… "क्या हुआ ऐसे घूर क्यों रहे हो?"


सब लोग ध्यान मुद्रा से विश्राम की स्थिति में आते... "तू ठीक तो है न। दिमाग के पुर्जे अपने जगह पर"…. अलबेली मजाकिया अंदाज में पूछी... ओजल उसकी बातों को दरकिनार करती... "वहां से डिक्शनरी उठाओ और मैं जो बोल रही उसे मैच करके देखो।"… अपनी बात कह कर ओजल ने मशरूम को अपने हाथ में लेकर... "इसे एगारिकस बिस्पोरस कहते है।"


अलबेली चौंकती हुई... "क्या एंगा रिंगा विस्फोटस, ये कैसा नाम है "


आर्यमणि:– अलबेली कुछ देर बस चुप चाप देखो... ओजल बहुत बढ़िया। कुछ और बताओ...


ओजल फिर वनस्पति विज्ञान के बारे में कुछ–कुछ बताने लगी। आर्यमणि उसे बीच में ही रोकते वापस क्ला उसके गर्दन में घुसाया और इस बार 30% यादें डाल दीया। ओजल इस बार आंख तक नही खोल पा रही थी। उसके सर में जैसे फुल वॉल्यूम पर डीजे बज रहा हो। उसे आंख खोलने में भी परेशानी हो रही थी। आर्यमणि समझ गया की एक साथ इतनी ज्यादा याद दिमाग झेल नहीं पायेगा, इसलिए उसने तुरंत अपना क्ला अंदर डाला और 5 फीसदी याद को ओजल के दिमाग से हटा दिया। हां लेकिन 25% यादें भी ओजल को उतनी ही तकलीफ दे रही थी। आर्यमणि ऐसे ही 5% और कम किया। लेकिन ओजल के लिये फिर भी कोई राहत नहीं। कुल 10% पर जब आया तब जाकर ओजल पूरी तरह से होश में आयी और उसका व्यवहार भी सामान्य था।


आर्यमणि समझ चुका था कि एक बार कितनी यादों को दिमाग में डालना है। हां लेकिन दोबारा याद को अंदर डालने के लिये दिमाग कितने देर में तैयार होता है, यह समझना अभी बाकी था। आर्यमणि पहले एक घंटा से शुरू किया। यानी की एक घंटे बाद आर्यमणि, ओजल के दिमाग में कुछ डाला, लेकिन एक घंटे बाद भी वही समस्या हुई। एक घंटा का समय अंतराल 2 घंटा हुआ, फिर 3 घंटा। 21 घंटे बाद जब आर्यमणि ने ओजल के दिमाग में वापस कुछ याद डाला तब जाकर कोई समस्या नहीं था। आर्यमणि ने इस बार एक साथ 15% यादें डाल दिया। 15% याद ओजल ने बड़े आसानी से अपने अंदर समेट लिया।



आर्यमणि ने फिर एक पैमाना तय कर लिया। उसे समझ में आ चुका था कि वुल्फ ब्रेन होने के कारण हर बार याद समेटने की क्षमता बढ़ जाती है। साथ ही साथ २ याद डालने के बीच में समय अंतराल भी कम लगता है। जैसे पहले 21 घंटा था तो अगली बार मात्र 15 घंटे लगे। परीक्षण सफल रहा और अगले 4 दिन में विलियम कूपर का पूरा ज्ञान हर किसी में साझा हो चुका था। इसी के साथ ओजल ने अपनी शर्त भी रख दी। उसे कंप्यूटर साइंस के अलावा अंग्रेजी भाषा पर भी पूरा कमांड चाहिए, इसलिए किसी इंग्लिश के विद्वान का ज्ञान भी उसे चाहिए। और जो अलग–अलग विषय सबने चुने है, वो सारे विषय हर कोई एक दूसरे से साझा करेगा।


अब चुकी ओजल के शर्त पर सबने हामी भरी थी और किसी को कहीं से कोई बुराई नजर नही आ रही थी, इसलिए सब राजी हो गये। न सिर्फ कैलिफोर्निया से बल्कि अमेरिका के दूसरे शहरों से भी विद्वान को ढूंढा गया और बड़े ही चतुराई से सबका ज्ञान अपने अंदर समेट लिया गया। जैसे कंप्यूटर साइंस और जीव विज्ञान के लिये न्यूयॉर्क के 1 विद्वान प्रोफेसर और एक विद्वान डॉक्टर को पकड़ा, तो वाणिज्य शस्त्र और अंग्रेजी के लिये वॉशिंगटन डीसी पहुंच गये। ऐसे ही करके पांचों ने पहले विलियम कूपर का दिमाग अपने रिसर्च के लिये इस्तमाल किया। उसके बाद ओजल की अंग्रेजी और कंप्यूटर साइंस, आर्यमणि का जीव विज्ञान, रूही का वाणिज्य शास्त्र, इवान की केमिस्ट्री और अलबेली की फिजिक्स के लिये विद्वानों को ढूंढा गया। उनके अध्यन को उनके दिमाग से चुराया गया और उसके बाद मे हर किसी के पास हर विषय को साझा कर दिया गया।
शानदार जबरदस्त भाई लाजवाब update bhai jann superree duperrere update

Peheile bar dekha shiksha ni chori hote huve sahi hey guru
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