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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–70





नजारा अकल्पनीय था। आर्यमणि जितना तेज हो सकता था उतना तेज हमला करता और वह लड़का उस से भी तेज बचते हुये जवाबी हमला करता। तेजी के साथ लगातार पड़ते मुक्कों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। एक तो दम से मारा गया मुक्का उसमे भी बिजली की रफ्तार। आर्यमणि के जिस अंग पर मुक्का लगता वह हिस्सा 4 इंच तक धंस जाता। कुछ ही पल में आर्यमणि का पूरा बदन सूज चुका था। हांफते और बदहाली में वह पीछे हटा और खड़ा होकर अपने दर्द से उबरने की कोशिश करने लगा। शरीर में इतनी क्षति हुई थी कि अब वह हाथों से हील नही हो पा रहा था। आंख की रौशनी बिलकुल धुंधली हो गयी थी और दिमाग अब गहरी निद्रा में जाने के लिये तड़प रहा था। फिर भी आर्यमणि खुद को संभाले अपने नए दुश्मन को समझने की कोशिश कर रहा था, जो अपनी जगह से एक कदम भी इधर–उधर नही हुआ था।


खुद से उम्र में कहीं छोटे एक तिल्लिश्मी बालक को आर्यमणि ने एक बार और ध्यान से देखने की कोशिश की। लेकिन नजर इतनी साफ नही थी कि अब उस बालक का चेहरा अच्छे से देख पाये। फिर निकली आर्यमणि के मुंह से दिल दहला देने वाली आवाज। यूं तो इस आवाज का दायरा सीमित था, लेकिन सीमित दायरे में गूंजी ये आवाज किसी भयंकर तूफान से कम नही था।बवंडर सी आंधी जिस प्रकार आती है, आर्यमणि की दहाड़ ठीक वैसी ही बवंडर तूफान उठा रहा थे।


आर्यमणि अपना शेप पूर्ण रूप से बदल चुका था। हीरे की भांति चमकीला बदन, विशाल और कठोर। ऐसा लग रहा था चमरी के जगह सीसा रख दिया हो, जिसके नीचे पूरे बदन पर फैले रक्त नलिकाओं को देखा जा सकता था, जिसमे बिलकुल गहरे काला रंग का खून बह रहा था। आर्यमणि अपने विकराल रूम में आ चुका था। उसका बदन पूरी तरह से हील हो चुका था तथा अपनी दहाड़ से उठे बवंडर के बीच एक बार फिर आर्यमणि उस लड़के के सामने खड़ा था।


एक बार फिर मारने की कोशिश अपने चरम पर थी। आर्यमणि पूरी रफ्तार से हमला किया और नतीजा फिर से वही हुआ, काफी तेज रिफ्लेक्स और जवाबी मुक्का उतने ही रफ्तार से लगा। फिर से खेल शुरू हो चुका था, लेकिन इस बार उस लड़के का मुक्का जब भी पड़ता पहले के मुकाबले कमजोर होता। अब तक आर्यमणि उस लड़के को छू भी नहीं पाया था, लेकिन फिर भी इस बार वह लड़का धीमा पड़ता जा रहा था।


आर्यमणि ने हथेली से जितने भी दर्द लिये। जितने भी टॉक्सिक उसने आज तक समेटा था, सब के सब उसके रक्त कोशिकाओं में बह रहा था। जब भी वह लड़का आर्यमणि के बदन पर मुक्का चलाता, ऐसा लगता उसका मुक्का 4 इंच तेजाब में घुस गया हो। ऐसा तेजाब जिसका असर बाद में भी बना रहता। और यही वजह थी कि वह लड़का धीरे–धीरे कमजोर पड़ने लगा था। एक वक्त ऐसा भी आया जब मुक्का तो पड़ रहा था लेकिन अब मानो आर्यमणि के शरीर को मात्र स्पर्श जैसा महसूस हो रहा हो। हां उस लड़के के रिफ्लेक्स अब भी काफी तेज थे। आर्यमणि उसे छू नही पा रहा था लेकिन जवाबी मुक्का भी अब बेअसर सा दिख रहा था।


कुछ वक्त बिताने के बाद आर्यमणि के हाथ अब मौका आ चुका था। पूर्ण रूप से तैयार आर्यमणि ने पूरे दहाड़ के साथ एक तेज हमला किया। आर्यमणि के हमले से बचने के लिये वह लड़का मुक्के के दिशा से अपने शरीर को किनारे किया और जैसे ही अपना मुक्का चलाया, ठीक उसी वक्त आर्यमणि ने अपना दूसरा मुक्का उस लड़के के मुक्के पर ही दे मारा। लागातार टॉक्सिक से टकराने के कारण उस लड़के का मुक्का पहले ही धीमा पड़ गया था, और उसके पास इस बार आर्यमणि के मुक्के से बचने का कोई काट नही था।


एक सम्पूर्ण जोरदार मुक्का ही तो पड़ा था और वह कहावत सच होती नजर आने लगी... "100 चोट सोनार की, एक चोट लोहार की"…. ठीक उसी प्रकार आर्यमणि के एक जोरदार मुक्के ने उस लड़के को हक्का बक्का कर दिया। वो तो शुक्र था कि उस लड़के ने ना तो सामने से मुक्का में मुक्का भिड़ाया था और न ही आर्यमणि का जब मुक्का उसके कलाई के आस–पास वाले हिस्से में लगा, तो उस हिस्से के ठीक पीछे कोई दीवार या कोई ऐसी चीज रखी हो जो रोकने का काम करे। यदि आर्यमणि के मुक्के और किसी दीवार के बीच उस बालक का वो कलाई का हिस्सा आ गया होता, तब फिर सबूत न रहता की उस हाथ में पहले कभी कलाई या उसके नीचे का पंजा भी था।


आर्यमणि का मुक्का पड़ा और उस लड़के का हाथ इतनी तेजी से हवा में लहराया की उसके कंधे तक उखड़ गये। हवा में लहराने से उसकी सारे नशे खींच चुकी थी। दवाब के कारण उसके ऊपरी हाथ में कितने फ्रैक्चर आये होंगे ये तो उस लड़के का दर्द ही बता रहा होगा लेकिन जिस हिस्से में आर्यमणि का मुक्का लगा वह पूरा हिस्सा झूल रहा था। दर्द और पीड़ा से वह लड़का अंदर ही अंदर पागल हो चुका था। एक हाथ ने पूरा काम करना बंद कर दिया था, लेकिन जज्बा तो उसका भी कम नही था। बिना दर्द का इजहार किये वह लड़का अब भी अपने जगह पर ही खड़ा था। न तो वह अपनी जगह से हिला और न ही लड़ाई रोकने के इरादे से था।


आर्यमणि हमला करना बंद करके 2 कदम पीछे हुआ... "जितना वक्त लेना है, लेकर खुद को ठीक करो।"..


वह लड़का अपने कमर से एक खंजर निकालते.... "तुम्हारी तरह खुद को मैं ठीक नही कर सकता लेकिन तैयार हूं।"… इतना कहकर उस लड़के ने आर्यमणि को आने का इशारा किया। फिर से वही तेज–तेज हमले का सिलसिला शुरू हो गया। अब वह लड़का खंजर थाम ले या बंदूक। उसके दोनो हाथ के मुक्के ने आर्यमणि के बदन का इतना टॉक्सिक छू लिया था कि अब वह काम करने से तो रहा। मात्र एक पंच का तो मामला था, आर्यमणि जाते ही एक मुक्का घूमाकर दे दिया। उस लड़के का दूसरा हाथ भी पूरा बेकार हो चुका था।


एक बार फिर आर्यमणि अपना कदम पीछे लिया। 2 कदम नहीं बल्कि पूरी दूरी बनाकर अब उसकी हालत का जायजा ले रहा था और उस लड़के को भी पूरा वक्त दिया, जैसे की उसने पहले आर्यमणि को दिया था। वह लड़का दर्द में भी मुस्कुराया। दोनो हाथ में तो जान बचा नही था, लेकिन फिर भी आंखों के इशारे से लड़ने के लिये बुला रहा था। आर्यमणि अपना कदम आगे बढ़ाते…. "जैसे तुम्हार मर्जी"…कहने के साथ ही अपनी नब्ज को काटकर तेज फूंक लगा दिया।


अंदर की फूंक बहुत ज्यादा तेज तो नही लेकिन तेज तूफान उठ चुका था। खून की बूंदें छींटों की तरह बिखर रही थी। तूफान के साथ उड़ते छींटे किसी घातक अम्लीय वर्षा से कम न था। लेकिन उस लड़के का रिफ्लेक्स.… आती हुई छींटों को भी वह किसी हथियार के रूप में देख रहा था। किंतु वह लड़का भी क्या करे? यह एक दिशा से चलने वाला कोई मुक्का नही था, जो अपने रिफ्लेक्स से वह लड़का खुद को मुक्के की दिशा से किनारे कर लेता। चाहु दिशा से आर्यमणि का रक्त बारिश चल रहा था। कुछ छींटों से तो बच गया, लेकिन शरीर के जिस हिस्से पर खून की बूंद गिरी, वह बूंद कपड़े समेत शरीर तक में छेद कर देता। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने उस लड़के के पूरे बदन में ही छेद–छेद करने का इरादा बना लिया था।



बड़े आराम से आर्यमणि अपना एक–एक कदम आगे बढ़ाते हुये, अपने फूंक को सामने की निश्चित दिशा देते बढ़ रहा था। आर्यमणि उस लड़के के नजदीक पहुंचकर फूंकना बंद किया और अपनी कलाई को पकड़ कर हील किया। आर्यमणि पहली बार उस लड़के के भावना को मेहसूस कर रहा था। असहनीय पीड़ा जो उसकी जान ले रही थी। अब कहां इतना दम बचा की खुद को बचा सके। हां किंतु आर्यमणि उसे अपने तेज हथौड़े वाला मुक्के का स्वाद चखाता, उस से पहले ही वह लड़का बेहोश होकर धम्म से गिर गया।


आर्यमणि इस से पहले की आगे कुछ सोचता उसके पास 2 लोग और पहुंच चुके थे.… "आर्य इसे जल्दी से उठा, और कॉटेज लेकर चल"….. यह आवाज सुनकर आर्यमणि के चेहरे पर जैसे मुस्कान आ गयी हो। मुड़कर देखा तो न केवल वहां निशांत था, बल्कि संन्यासी शिवम भी थे। आर्यमणि के चेहरे की भावना बता रही थी की वह कितना खुश था। लेकिन इस से पहले की वह अपनी भावना जाहिर करता, निशांत दोबारा कह दिया... "गधे, भरत मिलाप बाद में करेंगे, पहले उस लड़के की जान बचाओ और कॉटेज चलो"…


आर्यमणि, उस लड़के को अपने गोद में उठाकर, उसके जख्म को हील करते कॉटेज के ओर कदम बढ़ा दिया... "ये मेरा कोई टेस्ट था क्या?"..


निशांत:– हां कह सकते हो लेकिन टेस्ट उस लड़के का भी था।


आर्यमणि:– क्या ये तुम लोगों में से एक है?


संन्यासी शिवम:– हां हम में से एक है और इसे रक्षक बनना था इसलिए अपना टेस्ट देने आया था।


आर्यमणि:– ये रक्षक क्या होता है?


संन्यासी शिवम:– साथ चलो, हमारे आचार्य जी आ चुके है वो सब बता देंगे...


सभी कॉटेज पहुंचे। कॉटेज में भरा पूरा माहोल था। मीटर जितनी सफेद दाढ़ी में एक वृद्ध व्यक्ति के साथ कुछ संन्यासी और योगी थे। एक प्यारी सी किशोरी भी थी, जो उस लड़के को मूर्छित देखते ही बेहोश हो गयी। शायद उसे किसी प्रकार का पैनिक अटैक आया था। संन्यासी शिवम के कहने पर आर्यमणि ने उस लड़की का भी उपचार कर दिया। दोनो किशोर गहरी निद्रा में थे। आर्यमणि दोनो को ऊपर लिटाकर नीचे सबके बीच आया।


आर्यमणि, अपने दोनो हाथ जोड़ते... "यहां चल क्या रहा है? वो लड़का कौन है जिसे मरना पसंद था लेकिन अपनी जमीन उसने छोड़ा नहीं। क्या आप लोग भी प्रहरी तो नही बनते जा रहे, जो इंसानों को ही हथियार बना रहे हो।


निशांत:– कोई भी बात समझ ले न पहले मेरे भाई..


आर्यमणि:– समझना क्या है यार... कभी किसी जानवर का दर्द लो और उसे सुकून में देखो। तुम्हारी अंतरात्मा तक खुश हो जायेगी। वो एहसास जब तुम बेजुबानों के आंखों में अपने प्रति आभार मेहसूस करते देखते हो। मुख से कुछ बोल नही सकते लेकिन अपने रोम–रोम से वह धन्यवाद कहते है। जान लेना आसान है, पर जान बचाने वाले से बढ़कर कोई नही...


निशांत:– मुझ पर हमला होते देख तुमने तो कई लोगों की कुरुरता से जान ले ली थी। जिसकी तू बात कर रहा है उसके आंखों के सामने उसकी मां को जिंदा आग की भट्टी में झोंक दिया। लोग यहां तक नही रुके। जिसके साथ पढ़ा था, हंसा, खेला, और पूरे साल जिनके साथ ही रहता था, उतने बड़े परिवार को एक साथ आग की भट्टी में झोंक दिया। उसे कैसा होना चाहिए? तूने उस लड़के की उम्र देखी न, अब तू ही तय कर ले की उसकी मानसिकता कैसी होनी चाहिए?


आर्यमणि कुछ देर खामोश रहने के बाद.… "तो क्या वो मेरे हाथ से मारा जाता तो उसका बदला पूरा हो जाता? या फिर मुझे कहते बदला लेने?


आचार्य जी:– "उसका नाम अपस्यु है। अपने गुरुकुल काल के दूसरे वर्ष में उसने अपनी सातवी इंद्री जागृत कर ली थी। पांचवे वर्ष में सारी इंद्रियों पर नियंत्रण पा चुका था। हर शास्त्र का ज्ञान। जितनी हम सिद्धियां जानते है उन पूर्ण सिद्धियों का ज्ञान। ये सब उसने गुरुकुल के पांचवे साल तक अर्जित कर लिया था। उसके और हमारे गुरु, गुरु निशी उसे एक रक्षक बनाना चाहते थे। उसका अस्त्र और शस्त्र का प्रशिक्षण शुरू ही होने वाला था कि उसकी जिंदगी ही पूरी बदल गयी।"

"जिस वक्त गुरु निशी की मृत्यु हुई, अपस्यु ही उनका प्रथम शिष्य थे। प्रथम शिष्य यानी गुरु के समतुल्य। अब इसे अपस्यु की किस्मत कहो या नियति, वह अचानक सात्त्विक आश्रम का गुरु बन गया। बीते कुछ महीनों में जिस प्रकार से तुमने योग और तप का आचरण दिखाया, अपस्यु को लग गया कि तुम आश्रम के सबसे बेहतर गुरु बनोगे। एक विशुद्ध ब्राह्मण जो अलौकिक मुहरत में, ग्रहों के सबसे उत्तम मिलन पर एक अलौकिक रूप में जन्म लिये।"

"मैने ही उनसे कहा था कि आर्यमणि एक रक्षक के रूप में ज्यादा विशेष है और उसका अलौकिक जन्म भी उसी ओर इशारा कर रहे। अपस्यु नही माना और कहने लगा "यदि वो बिना छल के केवल अपने शारीरिक क्षमता से तुम्हे हरा देगा, तब हमे उसकी बात माननी होगी।" अपस्यु, तुम्हारे सामने नही टिक पाया और रक्षक न बनने के मलाल ने उसे अपनी जगह से हिलने नही दिया।


आर्यमणि:– छल मतलब कैसा छल करके जीत जाते...


निशांत:– ठीक वैसे ही जैसे पारीयान के तिलिस्म में हमने अनजाने में उस शेर को छला था, भ्रम से। कई तरह के मंत्र से। और वो तो आश्रम के गुरुजी हुये, उसके पास तो वो पत्थर भी है जो तुम्हे बांध दे। यहां के पत्थरों के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावशाली।


आर्यमणि:– और वो लड़की कौन थी.. जो इस बालक गुरुजी को देखकर बेहोश हो गयी।


निशांत:– उसकी परछाई.. उसकी प्रीयसी... अवनी.. वह गुरुजी को बेहोशी की हालत में घायल देख ले, फिर उसकी स्थिति मरने जैसी हो जाती है...


"इतनी छोटी उम्र में ऐसा घनिष्ठ रिश्ता... अतुलनीय है..."… आर्यमणि इतना कहकर निशांत को खींचकर एक थप्पड़ लगा दिया...


निशांत:– अब ये क्यों?


आर्यमणि:– घर के अंदर आते ही ताक झांक करने और उन 40 पत्थरों को देखने के लिये, जिसे मैंने अब तक न दिखाया था...


निशांत:– मैने कब देखा उसे...


आर्यमणि:– अच्छा इसलिए थोड़ी देर पहले मुझे कह रहा था की बालक गुरुजी के पास ऐसे पत्थर है जो मेरे पास रखे पत्थरों के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावशाली..


निशांत:– पकड़ लिया तूने... वैसे गलती हमारी नही है। ऐसे पत्थर को जबतक सही तरीके से छिपा कर नही रखोगे वह अपने पीछे निशान छोड़ती है।


आर्यमणि:– क्या मतलब निशानी छोड़ती है...क्या इस पत्थर के सहारे इसका मालिक यहां तक पहुंच सकता है...


आचार्य जी:– अब नही पहुंचेगा... सभी निशानी को मिटाकर एक भ्रमित निशान बना दिया है जो दुनिया के किसी भी कोने में पत्थर के होने के संकेत दे सकते है। शुक्र है ये पत्थर पानी के रास्ते लाये वरना कहीं हवा या जमीनी मार्ग से लाते तब तो इसका मालिक कबका न पहुंच गया होता।


आर्यमणि:– कमाल के है आप लोग। निशांत ने अभी कहा कि बालक गुरुजी बिना छल के लड़े, तो उनका शरीर हवा जैसा लचीला क्यों था?


आचार्य जी:– तुम्हारा शरीर भी तो एक प्राकृतिक संरचना ही है ना, फिर तुम कैसे रूप बदलकर अपने शरीर की पूरी संरचना बदल लेते हो। ये शरीर अपने आप में ब्रह्म है। इसपर जितना नियंत्रण होगा, उतना ही विशेष रूप से क्षमताओं को निखार सकते है।


आर्यमणि:– एक बात बताइए की जब आपके पास सब कुछ था। अपस्यु जब अपने शिक्षा के पांचवे वर्ष सारी सिद्धियां प्राप्त कर लिया था। फिर उसकी मां, गुरुजी, ये सब कैसे मर गये। क्या अपस्यु इन सबकी रक्षा नही कर सकता था?


आचार्य जी:– होने को तो बहुत कुछ हो सकता था लेकिन गुरु निशी किसी साजिश का शिकार थे। भारे के कातिल और सामने से मारने वाले में इतना दम न था। किसी ने पीछे से छल किया था जिसके बारे में अब पता चला है... अपस्यु के साथ में परेशानी यह हो गयी की वह बहुत छोटा था और मंत्रों का समुचित प्रयोग उस से नही हो पाया।


आर्यमणि:– सारी बात अपनी जगह है लेकिन बिना मेरी सहमति के आप मुझे रक्षक या गुरु कैसे बना सकते है। बताओ उस लिलिपुटियन (अपस्यु) ने मुझे ऐसा मारा की मेरे शरीर के पुर्जे–पुर्जे हिला डाले। यदि मैंने दिमाग न लगाया होता तब तो वह मुझे पक्का घुटनों पर ला दिया होता। उसके बाद जब मैंने उसके दोनो कलाई तोड़ डाले फिर भी वह अपनी जगह छोड़ा नहीं। बताओ कहीं मैं सीने पर जमाकर एक मुक्का रख दिया होता तो। और हां मैं अपने पैक और ये दुनिया भ्रमण को छोड़कर कुछ न बनने वाला। रक्षक या गुरु कुछ नही। बताओ ये संन्यासी शिवम, इनके साथ और न जाने कितने महर्षि और योगी है, जो आश्रम का भार संभाल सकते हैं लेकिन आप आचार्य जी उस बच्चे को छोड़ नही रहे। उल्टा मैं जो आपके कम्युनिटी से दूर–दूर तक ताल्लुक नहीं रखता, उसे गुरु या रक्षक बनाने पर तुले हो।


आचार्य जी:– बातें बहुत हो गयी। मैं तुम्हे रक्षक और गुरु दोनो के लिये प्रशिक्षित करूंगा। और यही अपस्यु के लिये भी लागू होगा। मुझे समझाने की जरूरत नहीं की क्यों तुम दोनो ही। अपस्यु जानता है कि वही गुरु क्यों है। अब तुम्हारी बारी... अपने क्ला मेरे मस्तिष्क में डालो...


आर्यमणि:– हो ही नही सकता... मैने रूही से वादा किया है कि ज्ञान पाने के लिये कोई शॉर्टकट नही...


आचार्य जी:– तुम्हारे पास जो है वो अलौकिक वरदान है। इस से समाज कल्याण के लिये ज्ञान दे रहा हूं। तुम्हारी मर्जी हो तो भी ठीक, वरना जब तुम्हे ज्ञान होगा तब खुद ही समझ जाओगे की क्यों हमने जबरदस्ती किया?


आर्यमणि:– रुको तिलिस्मी लोगो, मैं अपनी मर्जी से क्ला डालता हूं। पहले लिथेरिया वुलापीनी का इंजेक्शन तो लगा लेने दो...


आचार्य जी:– उसकी जरूरत नही है। बहुत कुछ तुम अपने विषय में भी नही जानते, उसका अध्यन भी जरूरी है।... तुम्हारे क्ला अंदर घुसने से मैं वेयरवोल्फ नही बन सकता... डरो मत...


आर्यमणि:– ये तो नई बात पता चल रही है। ठीक है जैसा आप कहो...


आर्यमणि अपनी बात कहते क्ला को उनके गले के पीछे डाल दिया। लगभग एक दिन बाद आर्यमणि की आंखें खुल रही थी। जब उसकी आंखें खुली चेहरे पर मुस्कान और आंखों में आचार्य जी के लिये आभार था।


आर्यमणि:– आचार्य जी मुझे आगे क्या करना होगा...


आचार्य जी:– तुम्हे अपने अंदर के ज्ञान को खुद में स्थापित करना होगा।


आर्यमणि:– मतलब..


गुरु अपस्यु के साथ वाली लड़की अवनी.… "आचार्य जी के कहने का मतलब है सॉफ्टवेयर दिमाग में डाल दिया है उसे इंस्टॉल कीजिए तब जाकर सभी फाइल को एक्सेस कर पायेंगे।"..


आर्यमणि:– तुम दोनो कब जागे... और आज कुछ नये चेहरे भी साथ में है।


आचार्य जी:– हम लोगों के निकलने का समय हो गया है। आर्यमणि तुम जीवन दर्शन के लिये निकले हो, अपने जीवन का अनुभव के साथ अपनी सारी सिद्धियां प्राप्त कर लेना। जीवन का ज्ञान ही मूल ज्ञान है, जिसके बिना सारी सिद्धियां बेकार है। प्रकृति की सेवा जारी रखना। ये तुम्हारे वायक्तिव, और पाने वाले सिद्धियों को और भी ज्यादा निखारेगा। हम लोग जा रहे है, बाकी दोनो गुरुजी आपस में जान पहचान बना लो।


आर्यमणि:– और निशांत...


निशांत:– अभी मेरी तपस्या अधूरी है। आचार्य जी ने एक दिन का विश्राम दिया था। वो आज पूरा हो गया।


संन्यासी शिवम ने वहीं से पोर्टल खोल दिया। सभी लोग उस पोर्टल के जरिये निकल गये, सिवाय अपस्यु और उसके साथ के कुछ लोगों के। आर्यमणि, अपस्यु के साथ जंगलों के ओर निकला... "और छोटे गुरु जी अपने साथ मुझे भी फसा दिये।"..
What the fuch man, what the भसड. ये तीनों कहानियां समानांतर में चल रही है और अपश्यु हर कहानी में है, आर्य के साथ भी और निश्चल जीविषा के साथ भी। आर्य भी निश्चल जीविषा के साथ था ब्लैक होल वाले अपडेट में।

चाहते क्या हो nain11ster भाई, दिमाग की नसे फाड़ने का इंतजाम किए हो क्या। जो लड़का दुश्मन लग रहा था वो तो जिगरी होने वाला है। क्या ही सोच लेते हो नैनू भाई। शानदार अपडेट
 

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भाग:–71







संन्यासी शिवम ने वहीं से पोर्टल खोल दिया। सभी लोग उस पोर्टल के जरिये निकल गये, सिवाय अपस्यु और उसके साथ के कुछ लोगों के। आर्यमणि, अपस्यु के साथ जंगलों के ओर निकला... "और छोटे गुरु जी अपने साथ मुझे भी फसा दिये।"..


अपस्यु:– बड़े गुरु जी मुझे लगा अब मैं रक्षक बन जाऊंगा। लेकिन आचार्य जी ने हम दोनो को फसा दिया। खैर अच्छा लगा आपसे मिलकर। मात्र कुछ महीनो के ध्यान में अपने कुंडलिनी चक्र को जागृत कर लेना कोई मामूली बात नही है। आप प्रतिभा के धनी है।


आर्यमणि:– तारीफ तो तुम्हारी भी होनी चाहिए छोटे, इतनी कम उम्र में गुरु जी। खैर अब इस पर चर्चा बंद करते हैं। क्या तुम मुझे हवा की तरह तेज लहराना सिखाओगे...


अपस्यु:– हां क्यों नही बड़े गुरु जी। बहुत आसान है.. और आपके लिये तो और ज्यादा आसान होगा..


आर्यमणि:– कैसे...


अपस्यु:– आप इस पूरे वातावरण को मेहसूस कर सकते हो, खुद में समा सकते हो। ॐ का जाप करके मन के सभी ख्यालों को भूल जाओ और बहती हवा को मेहसूस करो...


आर्यमणि:– हां, हां..


अपस्यु:– अब बस हवा के परिवर्तन को सुनो..


आर्यमणि:– हां, हां..


अपस्यु:– बस मेहसूस करो...


आर्यमणि बिलकुल खो गया। इधर हवा का परिवर्तन यानी अपस्यु का तेजी से चाकू चलाना। आर्यमणि अब भी आंखे मूंदे था। वह बस हवा के परिवर्तन को मेहसूस करता और परिवर्तित हवा के विपरीत अपने शरीर को ले जाता, जबकि उसके पाऊं एक जगह ही टीके थे।


अपस्यु:– बड़े गुरुजी आंखे खोल लो। आंखें आपकी सब कुछ देखेगी लेकिन अंतर्मन के ध्यान को हवा की भांति बहने दो। हवा के परिवर्तन को मेहसूस करते रहो...


आर्यमणि अपनी आंखें खोल लिया। वह चारो ओर देख रहा था, लेकिन अंदर से उसका ध्यान पूरे वातावरण से घुला–मिला था। अपस्यु लगातार आर्यमणि पर चाकू से वार कर रहा था और आर्यमणि उसे अपनी आंखों से देखकर नही बच रहा था। बल्कि उसकी आंखें देख रही थी की कैसे हवा के परिवर्तन को मेहसूस करके शरीर इतना तेज लहरा रहा है...


आर्यमणि:– और तेज छोटे गुरुजी..


अपस्यु भी हवा को मेहसूस करते काफी तेज हमला कर रहा था... दोनो के बदन मानो हवा की सुर में लहरा रहे थे। जितना तेज अपस्यु हमला कर रहा था, उस से भी कहीं ज्यादा तेज आर्यमणि अपना बचाव कर रहा था। दोनो विराम लिये। अपस्यु आगे चर्चा करते हुये आर्यमणि से सिर्फ इतना ही कहा की जब आप पूर्ण रूप से वातावरण में खो जाते हैं, तब कण–कण को मेहसूस कर सकते है।


आर्यमणि काफी खुश हुआ। दोनो की चर्चा आगे बढ़ी। अपस्यु ने सबसे पहले तो अपने और अवनी के बीच चल रहे रिश्ते को किसी से न बताने के लिये कहा। दुनिया और दोस्तों की नजरों में वो दोनो केवल अच्छे दोस्त थे, जबकि आचार्य जी या फिर गुरु निशी से ये बात कभी छिपी नही रही की अपस्यु और अवनी एक दूसरे को चाहते हैं। आर्यमणि मान गया।


चर्चाओं का एक छोटा सा सिलसिला शुरू हुआ। अपस्यु ने आश्रम पर चल रहे साजिश के बारे में बताया। शुरू से लेकर आज तक कैसे आश्रम जब भी उठने की कोशिश करता रहा है, कुछ साजिशकर्ता उसे ध्वस्त करते रहे। गुरु निशी की संदिग्ध मृत्यु के विषय में चर्चा हुई। अपस्यु के अनुसार.… "जिन लोगों ने आश्रम में आग लगायी वो कहीं से भी गुरु निशी के आगे नहीं टिकते। सामने रहकर मारने वाले की तो पहचान है लेकिन पीछे किसकी साजिश थी वह पता नहीं था, तबतक जबतक की आर्यमणि के पीछे संन्यासी शिवांश नही पहुंचे थे। और अब हमें पता है की लंबे समय से कौन पीछे से साजिश कर रहा था। लेकिन अपने इस दुश्मन के बारे में जरा भी ज्ञान नहीं।"



आर्यमणि मुस्कुराते हुये कहने लगा.… "धीरे बच्चे.. मैं बड़ा और तुम छोटे।"..


अपस्यु:– हां बड़े गुरुजी..


आर्यमणि:– "ठीक है छोटे फिर तुम जो ये अपनो को समेट कर खुद में सक्षम होने का काम कर रहे थे, उसे करते रहो। कुछ साल का वक्त लो ताकि दिल का दर्द और हल्का हो जाये। ये न सिर्फ तुम्हारे लिये बेहतर होगा बल्कि तुम्हारी टीम के लिये भी उतना ही फायदेमंद होगा। जिसने तुम्हारे आंखों के सामने तुम्हारे परिवार को मारा, वो तुम्हारा हुआ। मारना मत उन्हे... क्योंकि मार दिये तो एक झटके में मुक्ति मिल जायेगी। उन्हे सजा देना... ऐसा की मरने से पहले पल–पल मौत की भीख मांगे।"

"परदे के पीछे वाला जो नालायक है वो मेरा हुआ। मेरे पूरे परिवार को उसने बहुत परेशान किया है। मेरे ब्लड पैक को खून के आंसू रुलाये हैं। इनका कृतज्ञ देखकर मैं आहत हूं। निकलने से पहले मै उनकी लंका में सेंध मारकर आया था। संन्यासी शिवांश से आग्रह भी कर आया था कि मेरे परिवार की देखभाल करे।"


अपस्यु:– आश्रम के कई लोग नागपुर पहुंच चुके है। हमारी सर्विलेंस उन अजीब से लोगों पर भी शुरू हो चुकी है जो आश्रम के दुश्मन है। हम उन्हे अब समझना शुरू कर चुके है। उनके दिमाग से खेलना शुरू कर चुके है।


आर्यमणि:– उस आदमी से कुछ पता चला, जिसे संन्यासी शिवम को मैने पैक करके दिया था। (थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी, जिसे संन्यासी शिवम अपने साथ ले गया था)


अपस्यु:– आपने जिस आदमी को पैक करके शिवम के साथ भेजा था, वह मरा हुआ हमारे पास पहुंचा। अपने समुदाय का काफी वफादार सेवक था। हमने वहीं उसका अंतिम संस्कार कर दिया।


आर्यमणि:– उस तांत्रिक का क्या हुआ जिसे रीछ स्त्री के पास से पकड़े थे।


अपस्यु:– तांत्रिक उध्यात एक जटिल व्यक्ति है। हम उन्हे बांधने में कामयाब तो हुये है, लेकिन कुछ भी जानकारी नही निकाल सके। उनके पास हमलोगों से कहीं ज्यादा सिद्धि है, जिसका तोड़ हमारे पास नही। कुछ भी अनुकूल नहीं है शायद। और हम हर मोर्चे पर कमजोर दिख रहे।


आर्यमणि:– मरना ही तो है, कौन सा हम अमर वरदान लेकर आये हैं। फिर इतनी चिंता क्यों? इतनी छोटी उम्र में इतना बोझ लोगे तो जो कर सकते हो, वो भी नही कर पाओगे। चिल मार छोटे, सब अच्छा ही होगा।


अपस्यु:– हां कह सकते है। मुझे बड़े गुरु जी मिल गये। सो अब मैं अपनी नाकामी पर शर्मिंदा नहीं हो सकता क्योंकि मेरे ऊपर संभालने वाला कोई आ गया है। वरना पहले ऐसा लगता था, मैं गलती कैसे कर सकता हूं।


आर्यमणि:– चलो फिर सुकून है। आज से अपनी चिंता आधी कर दो। दोनो पक्ष को हम एक साथ सजा देंगे। तुम आग लगाने वाले को जिस अवधि में साफ करोगे, उसी अवधि में मैं इन एपेक्स सुपरनैचुरल का भी सफाया करूंगा। हम दोनो ये काम एक वक्त पर करेंगे।


अपस्यु:– हां ये बेहतर विकल्प है। जबतक हम अपनी तयारी में भी पूरा परिपक्व हो जायेंगे।


आर्यमणि:– बिलकुल सही कहा...


अपस्यु:– मैने सुना है ये जो आप इंसानी रूप लिये घूम रहे है, वो मेकअप से ऐसा बदला है कि वास्तविक रूप का पता ही नही चलता। इतना बढ़िया आर्ट सीखा कहां से।


आर्यमणि:– मेरे बीते वक्त में एक दर्द का दौड़ था। उस दौड़ में मैने बहुत सी चीजें सीखी थी। कुछ काम की और कुछ फालतू... ये मेरे फालतू कामों में से एक था जो भारत छोड़ने के बाद बहुत काम आया।


अपस्यु:– हमारे साथ स्वस्तिका आयी है। गुरु निशी की गोद ली हुई पुत्री है। उसे ये आर्ट सीखा दो ना बड़े गुरुजी...


आर्यमणि:– मेरे पास कुछ विषय के विद्वानों का ज्ञान है। चलो देखते हैं किसकी किसमे रुचि है, उनको शायद मैं मदद कर सकूं। वैसे एक बात बताओ मेरे घर का सिक्योरिटी सिस्टम को किसी मंत्र से तोड़ा या कोई कंप्यूटर एक्सपर्ट है।


अपस्यु:– एमी है न, वही ये सारा काम देखती है..


आर्यमणि:– विश्वास मानो इस भौतिक दुनिया में कंप्यूटर और पैसे से बड़ा कोई सुपरनैचुरल पावर नही। अच्छा लगा एक कंप्यूटर एक्सपर्ट तुम्हारी टीम में है..


अपस्यु:– अभी तो सब सीख ही रहे है। और पैसे अपने पास तो बिलकुल नही, लेकिन आश्रम को जलाने वाले दुश्मन के इतने पैसे उड़ाये है कि कहां ले जाये, क्या करे कुछ समझ में नहीं आ रहा।


आर्यमणि:– मेरी भूमि दीदी ने एक बात समझाई थी। पैसे का कभी भी सबूत न छोड़ो। और जो पैसा सिर दर्द दे, उसे छोड़कर निकल जाओ... पैसा वो तिलिस्मी चीज है जिसके पीछे हर कोई खींचा चला आता है। एक छोटी सी भूल और आपका खेल खत्म।


अपस्यु:– आपको बाहरी चीजों का बहुत ज्ञान है बड़े गुरु जी। मैं तो गुरुकुल में ही रहा और वहां से जब बाहर निकला तब दुनिया ही बदल चुकी थी। पहले अपनी दुनिया समेट लूं या दुनिया को समझ लूं यही विडंबना है।


आर्यमणि:– "मैं भी शायद कभी जंगल से आगे की दुनिया नही समझ पाता। मैने एक कमीने की जान बचाई। और उसी कमीने ने बदले में लगभग मेरी जान ले ली थी। एक लड़की ने मुझसे कहा था, हर अच्छाई का परिणाम अच्छा नहीं होता। शायद तब वो सही थी, क्योंकि मैं नर्क भोग रहा था। उस वक्त मुझे एहसास हुआ की मरना तो आसान होता है, मुश्किल तो जिंदगी हो जाती है।"

"खैर आज का आर्यमणि उसी मुश्किल दौड़ का नतीजा है। शायद उस लड़की ने, उस एक घटिया इंसान की करतूत देखी, जिसकी जान मैने बचाई थी। लेकिन उसके बाद के अच्छे परिणाम को वह लड़की देख नही पायी। मेरे एक अच्छे काम के बुरे नतीजे की वजह से मैंने क्या कुछ नही पाया था। ये जिंदगी भी अजीब है छोटे। अच्छे कर्म का नतीजा कहीं न कहीं से अच्छा मिल ही जाता है, बस किसी से उम्मीद मत करना...


अपस्यु:– आपसे बहुत कुछ सीखना होगा बड़े गुरुजी।


आर्यमणि:– नाना... मैं भी सिख ही रहा हूं। तुम भी आराम से अभी कुछ साल भारत से दूर रहो। सुकून से पहले इंसानो के बीच रहकर उनकी अजीब सी भावना को समझो। जिंदगी दर्शन तुम भी लो… फिर आराम से वापस लौटकर सबको सजा देने निकलना...


अपस्यु:– जैसा आप कहो। मेरे यहां के मेंटर तो आप ही हो।


आर्यमणि:– हम्म् सब मिलकर मुझे ही बाप बना दो.. वो तीन टीनएजर कम थे जो तुम्हारा भी एक ग्रुप आ गया।


अपस्यु:– कौन सा मैं आपके साथ रहने वाला हूं। बस बीच–बीच में एक दूसरे की स्किल साझा कर लिया करेंगे।


आर्यमणि:– हां लेकिन मेरी बात मानो और यहां से भारत लौटकर मत जाओ। पूरी टीम को पहले खुल कर जीने दो। कुछ साल जब माहोल से दूर रहोगे, तब सोच में बहुत ज्यादा परिवर्तन और खुद को ज्यादा संयम रख सकते हो। वैसे तुम तो काफी संतुलित हो। मुझसे भी कहीं ज्यादा, ये बात तो मैने जंगल में देख लिया। लेकिन तुम्हारी टीम के लिये शायद ज्यादा फायदेमंद रहे...


अपस्यु:– बड़े गुरु जी यहां रहना आसान होगा क्या?


आर्यमणि:– मुझे जो अनुभव मिला है वो तुम्हारे काम तो आ ही जायेगा। पहले अपनी टीम से मिलवाओ, फिर हम तुम्हारे दुश्मन के पैसे का भी जुगाड लगाते है।


आर्यमणि, अपस्यु की टीम से मिलने चला आया। अपस्यु और ऐमी (अवनी) के अलावा उनके साथ स्वस्तिका, नाम की एक लड़की, पार्थ और आरव नाम के 2 लड़के। कुल 5 लोगों की टीम थी। आर्यमणि ने सबसे थोड़ी जान पहचान बनानी चाही, किंतु अपस्यु को छोड़कर बाकी सब जैसे गहरे सदमे में हो। आर्यमणि उनकी भावना मेहसूस करके चौंक गया। अंदर से सभी काफी दर्द में थे।


आर्यमणि से रहा नही गया। आज से पहले उसने कभी किसी के भावना को अपने नब्ज में उतारने की कोशिश नही किया था। अचानक ही उसने ऐमी और आरव का हाथ थाम लिया। आंख मूंदकर वही "ॐ" का उच्चारण और फिर वह केवल उनके अंदर के दर्द भरी भावना के सिवा और कुछ भी मेहसूस नही करना चाह रहा था। आर्यमणि ने अपना हाथ रखा और भावना को खींचने की कोशिश करने लगा।


आंख मूंदे वह दोनो के दर्द को मेहसूस कर रहा था। फिर ऐसा लगा जैसे उनका दर्द धीरे–धीरे घटता जा रहा है। इधर उन दोनो को अच्छा लग रहा था और उधर आर्यमणि के आंखों से आंसू के धारा फुट रही थी। थोड़ी देर बाद जब आर्यमणि ने उनका हाथ छोड़ा, तब दोनो के चेहरे पर काफी सुकून के भाव थे। उसके बाद फिर आर्यमणि ने स्वस्तिका और पार्थ के हाथ को थाम लिया। कुछ देर बाद वो लोग भी उतने ही शांति महसूस कर रहे थे। अपस्यु अपने दोनो हाथ जोड़ते... "धन्यवाद बड़े गुरुजी"..


आर्यमणि:– तू बड़े ही कहा कर छोटे। हमारी बड़े–छोटे की जोड़ी होगी... मेरा कोई भाई नहीं, लेकिन आज से तू मेरा छोटा भाई है.. ला हाथ इधर ला…


अपस्यु ने जैसे ही हाथ आगे बढाया, आर्यमणि पहले चाकू से अपस्यु का हथेली चिर दिया, फिर खुद का हथेली चिड़कड़ उसके ऊपर रख दिया। दोनो २ मिनट के लिये मौन रहे उसके बाद आर्यमणि, अपस्यु का हाथ हील करके छोड़ दिया। जैसे ही आर्यमणि ने हाथ छोड़ा अपस्यु भी अपने हाथ उलट–पलट कर देखते... "काफी बढ़िया मेहसूस हो रहा। मैं एक्सप्लेन तो नही कर सकता लेकिन ये एहसास ही अलग है।"…


फिर तो बड़े–बड़े बोलकर सबने हाथ आगे बढ़ा दिये। एक छोटे भाई की ख्वाइश थी, तीन छोटे भाई, एक छोटी बहन और साथ में एक बहु भी मिल गयी, जिसका तत्काल वर्णन आर्यमणि ने नही किया। सोमवार की सुबह आर्यमणि का बड़ा सा परिवार एक छत के नीचे था। अपनी मस्ती बिखेड़कर अल्फा पैक भी वापस आ चुके थे। एक दूसरे से परिचय हो गया और इसी के साथ अल्फा पैक की ट्रेनिंग को एक नई दिशा भी मिल गयी।वुल्फ के पास तो हवा के परखने की सेंस तो पहले से होती है, लेकिन अल्फा पैक तो जैसे अपने हर सेंस को पूर्ण रूप से जागृत किये बैठे थे, बस जरूरत एक ट्रिगर की थी।


अपस्यु वहां रुक कर सबको हवा को परखने और पूर्ण रूप से वातावरण में खो कर उसके कण–कण को मेहसूस करने की ट्रेनिंग दे रहा था। और इधर आर्यमणि, अपस्यु और उसकी टीम को धीरे–धीरे ज्ञान से प्रकाशित कर रहा था। स्वस्तिका को डॉक्टर और मेक अप आर्टिस्ट वाला ज्ञान मिल रहा था। ऐमी को कंप्यूटर और फिजिक्स का। आरव को वाणिज्य और केमिस्ट्री। पार्थ को फिजिक्स, और केमिस्ट्री। इन सब के दिमाग में किसी याद को समेटने की क्षमता काफी कम थी। मात्र 5% यादें ही एक दिन में ट्रांसफर हो सकती थी।


वहीं अपस्यु के साथ मामला थोड़ा अलग था। उसका दिमाग एक बार में ही सभी विद्वानों के स्टोर डेटा को अपने अंदर समा लिया। चूंकि अपस्यु आश्रम का गुरु भी था। इसलिए आर्यमणि ने सीक्रेट प्रहरी के उन 350 कितना के आखरी अध्याय को साझा कर दिया जिसमे साधु को मारने की विधि लिखी थी। साथ ही साथ 50 मास्टर क्लास बुक जिसमे अलग–अलग ग्रह पर बसने वाले इंसानों और वहां के पारिस्थितिकी तंत्र तंत्र का वर्णन था, उसे भी साझा कर दिया।


खैर इन सब का संयुक्त अभ्यास काफी रोमांचकारी था। आर्यमणि ने अपस्यु और उसके पूरे टीम को तरह–तरह के हथियार चलाना सिखाया। ट्रैप वायर लगाना और शिकार को फसाने के न जाने कितने तरीके। जिसमे पहला बेहद महत्वपूर्ण सबक था धैर्य। किसी भी तरीके से शिकार पकड़ना हो उसके लिये सबसे ज्यादा जरूरी था धैर्य। उसके बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात, शिकार फसाने का तरीका कोई भी हो, लेकिन किसी भी तरीके में शिकार को शिकारी की भनक नहीं होनी चाहिए।


खैर संयुक्त अभ्यास जोरों पर था और उतने ही टीनएजर के झगड़े भी। कभी भी कोई भी टीनएजर किसी के साथ भी अपना ग्रुप बनाकर लड़ाई का माहोल बना देते थे। कभी–कभी तो आर्यमणि को अपने बाल तक नोचने पड़ जाते थे। हां लेकिन एक अलबेली ही थी जिसके कारनामों से घर में ठहाकों का माहोल बना रहता था। अलबेली तो अपने नाम की तर्ज पर अलबेली ही थी। इवान को चिढ़ाने के लिये वह पार्थ के साथ कभी–कभी फ्लर्ट भी कर देती और इवान जल–बूझ सा जाता। सभी टीनएजर ही थे और जो हाल कुछ दिन पहले अल्फा पैक का था, वैसा ही शोक तो इनके खेमे में भी था। दुनिया में कोई ऐसा शब्द नही बना जो किसी को सदमे से उबार सके, सिवाय वक्त के। और जैसे–जैसे सभी टीनएजर का वक्त साथ में गुजर रहा था, वो लोग भी सामान्य हो रहे थे।


अपस्यु की टीम को सबसे ज्यादा अच्छा जंगल में ही लगता। जब अल्फा पैक किसी जानवर या पेड़ को हील करते, वो लोग अपना हाथ उनके हाथ के ऊपर रख कर वह सबकुछ मेहसूस कर सकते थे, जो अल्फा पैक मेहसूस करता था। अपस्यु और उसके टीम की जिदंगी जैसे खुशनुमा सी होने लगी थी। अल्फा पैक के साथ वो लोग जीवन संजोना सिख रहे थे।


इसी बीच आर्यमणि अपने छोटे (अपस्यु) के काम में भी लगा रहा। अपने पहचान के मेयर की लंका तो खुद आर्यमणि लगा चुका था। इसलिए ग्रीन कार्ड के लिये किसी और जुगाड़ू को पकड़ना था। साथ ही साथ अपस्यु एंड टीम ने जो अपने दुश्मन के पैसे उड़ाये थे, उन्हे भी ठिकाने लगाना था। आर्यमणि कुछ सोचते हुये अपस्यु से लूट का अमाउंट पूछ लिया। अपस्यु ने जब कहा की उसने हवाला के 250 मिलियन उड़ाये हैं, आर्यमणि के होश ही उड़ गये। उस वक्त के भारतीय रुपए से तकरीबन 1000 करोड़ से ऊपर।


आर्यमणि:– ये थोड़ा रुपया है...


अपस्यु:– हमे क्या पता। हमारा तो लूट का माल है। जिनका पैसा है वो जाने की ऊसको कितना नुकसान हुआ।


आर्यमणि:– हम्मम रुको एक से पूछने दो। डील सेट हो गया तो पैसे ठिकाने लग जायेंगे...


आर्यमणि ने पार्किनसन को कॉल लगाया। कॉल लगाते ही सबसे पहले उसने यही पूछा की उसका हवाले का धंधा तो नही। उसने साफ इंकार कर दिया। उसने बताया की वह केवल वेपन, कंस्ट्रक्शन और गोल्ड के धंधे में अपना पैसा लगाता है। बाकी वह हर वो धंधा कर लेगा जिसमे कमीशन अच्छा हो। आर्यमणि ने 250 मिलियन का डील पकड़ाया, जिसे यूरोप के किसी ठिकाने से उठाना था। पार्केनसन एक शर्त पर इस डील को आगे बढ़ाने के लिये राजी हुआ... "जब कभी भी पैसे के पीछे कोई आयेगा, वह सीधा आर्यमणि के पीछे भेज देगा और कमीशन के पैसे तो भूल ही जाओ।" आर्यमणि ने जैसे ही उसके शर्त पर हामी भरी, डील सेट हो गया। 30% कमीशन से पार्किनसन ने मामला शुरू हुआ और 23% पर डील लॉक।


आधे घंटे में लोग ठिकाने पर पहुंच चुके थे। पूरे पैसे चेक हो गये। जैसे ही सब सही निकला अपस्यु के अकाउंट में पैसे भी ट्रांसफर हो गये। अपस्यु इस कमाल के कनेक्शन को देखकर हैरान हो गया। एक काम हो गया था। दूसरा काम यानी की ग्रीन कार्ड के लिये जब आर्यमणि ने पूछा तब पार्किनसन ने उसे या तो मेयर की बीवी से मिलने कह दिया, जो अपने पति को हटाकर खुद एक मेयर बन चुकी थी, या फिर शिकागो चले जाने कहा।


अपस्यु के दोनो समस्या का हल मिल गया था। लगभग 60 दिन साथ बिताने के बाद सभी ने विदा लिया। इस बीच आर्यमणि नए मेयर से मिला। यानी की पुराने मेयर की बीवी, जो अपने पति को हटाकर खुद अब मेयर थी। आर्यमणि ने पहले तो अपना पहचान बताया। आर्यमणि से मिलकर मानो वो मेयर खुश हो गयी हो। उसे भी 50 हजार यूएसडी का चंदा मिला और बदले में अपस्यु और आरव के ग्रीन कार्ड बन गये। स्वस्तिका अपनी अलग पहचान के साथ भारत वापस लौट रही थी। ऐमी की तो अपनी पहचान थी ही और पार्थ पहले से एक ब्रिटिश नागरिक था।


हर कोई विदा लेकर चल दिया। अपस्यु अपनी टीम को सदमे से उबरा देख काफी खुश नजर आ रहा था। नम आंखों से अपने दोनो हाथ जोडकर आर्यमणि से विदा लिया।
इस अपडेट को पढ़ कर जो बात याद आई वो थी कि
बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह

दूसरे के दर्द को अपनाने की और उसको दूर करने की जो आदत और चाहत है आर्य की वो सच में प्रशंसा के योग्य है। अपने अल्फा पैक का दर्द समेटा, अब छोटे और उसकी टीम का दर्द समेटा। सच में कमाल का लड़का है ये।

वैसे भी रोज रोज का दर्द सहन करके ही तो प्योर अल्फा बना है वो, तो दर्द से दिल का नही आत्मा का रिश्ता है आर्य का और जो खुद इतना दर्द देख चुका हो वो कैसे अपनो को दर्द में देख सकता है। अब तो वैसे भी सब ब्लड ओथ से जुड़ चुके है तो अब सब के दर्द भी आर्य से जुड़ चुके है।

इन दोनो अपडेट्स ने कुछ यादें ताजा करवा दी और दिल को खुशी भी दी। लाजवाब अपडेट्स nain11ster भाई।
 

Anubhavp14

न कंचित् शाश्वतम्
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भाग:–70





नजारा अकल्पनीय था। आर्यमणि जितना तेज हो सकता था उतना तेज हमला करता और वह लड़का उस से भी तेज बचते हुये जवाबी हमला करता। तेजी के साथ लगातार पड़ते मुक्कों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। एक तो दम से मारा गया मुक्का उसमे भी बिजली की रफ्तार। आर्यमणि के जिस अंग पर मुक्का लगता वह हिस्सा 4 इंच तक धंस जाता। कुछ ही पल में आर्यमणि का पूरा बदन सूज चुका था। हांफते और बदहाली में वह पीछे हटा और खड़ा होकर अपने दर्द से उबरने की कोशिश करने लगा। शरीर में इतनी क्षति हुई थी कि अब वह हाथों से हील नही हो पा रहा था। आंख की रौशनी बिलकुल धुंधली हो गयी थी और दिमाग अब गहरी निद्रा में जाने के लिये तड़प रहा था। फिर भी आर्यमणि खुद को संभाले अपने नए दुश्मन को समझने की कोशिश कर रहा था, जो अपनी जगह से एक कदम भी इधर–उधर नही हुआ था।


खुद से उम्र में कहीं छोटे एक तिल्लिश्मी बालक को आर्यमणि ने एक बार और ध्यान से देखने की कोशिश की। लेकिन नजर इतनी साफ नही थी कि अब उस बालक का चेहरा अच्छे से देख पाये। फिर निकली आर्यमणि के मुंह से दिल दहला देने वाली आवाज। यूं तो इस आवाज का दायरा सीमित था, लेकिन सीमित दायरे में गूंजी ये आवाज किसी भयंकर तूफान से कम नही था।बवंडर सी आंधी जिस प्रकार आती है, आर्यमणि की दहाड़ ठीक वैसी ही बवंडर तूफान उठा रहा थे।


आर्यमणि अपना शेप पूर्ण रूप से बदल चुका था। हीरे की भांति चमकीला बदन, विशाल और कठोर। ऐसा लग रहा था चमरी के जगह सीसा रख दिया हो, जिसके नीचे पूरे बदन पर फैले रक्त नलिकाओं को देखा जा सकता था, जिसमे बिलकुल गहरे काला रंग का खून बह रहा था। आर्यमणि अपने विकराल रूम में आ चुका था। उसका बदन पूरी तरह से हील हो चुका था तथा अपनी दहाड़ से उठे बवंडर के बीच एक बार फिर आर्यमणि उस लड़के के सामने खड़ा था।


एक बार फिर मारने की कोशिश अपने चरम पर थी। आर्यमणि पूरी रफ्तार से हमला किया और नतीजा फिर से वही हुआ, काफी तेज रिफ्लेक्स और जवाबी मुक्का उतने ही रफ्तार से लगा। फिर से खेल शुरू हो चुका था, लेकिन इस बार उस लड़के का मुक्का जब भी पड़ता पहले के मुकाबले कमजोर होता। अब तक आर्यमणि उस लड़के को छू भी नहीं पाया था, लेकिन फिर भी इस बार वह लड़का धीमा पड़ता जा रहा था।


आर्यमणि ने हथेली से जितने भी दर्द लिये। जितने भी टॉक्सिक उसने आज तक समेटा था, सब के सब उसके रक्त कोशिकाओं में बह रहा था। जब भी वह लड़का आर्यमणि के बदन पर मुक्का चलाता, ऐसा लगता उसका मुक्का 4 इंच तेजाब में घुस गया हो। ऐसा तेजाब जिसका असर बाद में भी बना रहता। और यही वजह थी कि वह लड़का धीरे–धीरे कमजोर पड़ने लगा था। एक वक्त ऐसा भी आया जब मुक्का तो पड़ रहा था लेकिन अब मानो आर्यमणि के शरीर को मात्र स्पर्श जैसा महसूस हो रहा हो। हां उस लड़के के रिफ्लेक्स अब भी काफी तेज थे। आर्यमणि उसे छू नही पा रहा था लेकिन जवाबी मुक्का भी अब बेअसर सा दिख रहा था।


कुछ वक्त बिताने के बाद आर्यमणि के हाथ अब मौका आ चुका था। पूर्ण रूप से तैयार आर्यमणि ने पूरे दहाड़ के साथ एक तेज हमला किया। आर्यमणि के हमले से बचने के लिये वह लड़का मुक्के के दिशा से अपने शरीर को किनारे किया और जैसे ही अपना मुक्का चलाया, ठीक उसी वक्त आर्यमणि ने अपना दूसरा मुक्का उस लड़के के मुक्के पर ही दे मारा। लागातार टॉक्सिक से टकराने के कारण उस लड़के का मुक्का पहले ही धीमा पड़ गया था, और उसके पास इस बार आर्यमणि के मुक्के से बचने का कोई काट नही था।


एक सम्पूर्ण जोरदार मुक्का ही तो पड़ा था और वह कहावत सच होती नजर आने लगी... "100 चोट सोनार की, एक चोट लोहार की"…. ठीक उसी प्रकार आर्यमणि के एक जोरदार मुक्के ने उस लड़के को हक्का बक्का कर दिया। वो तो शुक्र था कि उस लड़के ने ना तो सामने से मुक्का में मुक्का भिड़ाया था और न ही आर्यमणि का जब मुक्का उसके कलाई के आस–पास वाले हिस्से में लगा, तो उस हिस्से के ठीक पीछे कोई दीवार या कोई ऐसी चीज रखी हो जो रोकने का काम करे। यदि आर्यमणि के मुक्के और किसी दीवार के बीच उस बालक का वो कलाई का हिस्सा आ गया होता, तब फिर सबूत न रहता की उस हाथ में पहले कभी कलाई या उसके नीचे का पंजा भी था।


आर्यमणि का मुक्का पड़ा और उस लड़के का हाथ इतनी तेजी से हवा में लहराया की उसके कंधे तक उखड़ गये। हवा में लहराने से उसकी सारे नशे खींच चुकी थी। दवाब के कारण उसके ऊपरी हाथ में कितने फ्रैक्चर आये होंगे ये तो उस लड़के का दर्द ही बता रहा होगा लेकिन जिस हिस्से में आर्यमणि का मुक्का लगा वह पूरा हिस्सा झूल रहा था। दर्द और पीड़ा से वह लड़का अंदर ही अंदर पागल हो चुका था। एक हाथ ने पूरा काम करना बंद कर दिया था, लेकिन जज्बा तो उसका भी कम नही था। बिना दर्द का इजहार किये वह लड़का अब भी अपने जगह पर ही खड़ा था। न तो वह अपनी जगह से हिला और न ही लड़ाई रोकने के इरादे से था।


आर्यमणि हमला करना बंद करके 2 कदम पीछे हुआ... "जितना वक्त लेना है, लेकर खुद को ठीक करो।"..


वह लड़का अपने कमर से एक खंजर निकालते.... "तुम्हारी तरह खुद को मैं ठीक नही कर सकता लेकिन तैयार हूं।"… इतना कहकर उस लड़के ने आर्यमणि को आने का इशारा किया। फिर से वही तेज–तेज हमले का सिलसिला शुरू हो गया। अब वह लड़का खंजर थाम ले या बंदूक। उसके दोनो हाथ के मुक्के ने आर्यमणि के बदन का इतना टॉक्सिक छू लिया था कि अब वह काम करने से तो रहा। मात्र एक पंच का तो मामला था, आर्यमणि जाते ही एक मुक्का घूमाकर दे दिया। उस लड़के का दूसरा हाथ भी पूरा बेकार हो चुका था।


एक बार फिर आर्यमणि अपना कदम पीछे लिया। 2 कदम नहीं बल्कि पूरी दूरी बनाकर अब उसकी हालत का जायजा ले रहा था और उस लड़के को भी पूरा वक्त दिया, जैसे की उसने पहले आर्यमणि को दिया था। वह लड़का दर्द में भी मुस्कुराया। दोनो हाथ में तो जान बचा नही था, लेकिन फिर भी आंखों के इशारे से लड़ने के लिये बुला रहा था। आर्यमणि अपना कदम आगे बढ़ाते…. "जैसे तुम्हार मर्जी"…कहने के साथ ही अपनी नब्ज को काटकर तेज फूंक लगा दिया।


अंदर की फूंक बहुत ज्यादा तेज तो नही लेकिन तेज तूफान उठ चुका था। खून की बूंदें छींटों की तरह बिखर रही थी। तूफान के साथ उड़ते छींटे किसी घातक अम्लीय वर्षा से कम न था। लेकिन उस लड़के का रिफ्लेक्स.… आती हुई छींटों को भी वह किसी हथियार के रूप में देख रहा था। किंतु वह लड़का भी क्या करे? यह एक दिशा से चलने वाला कोई मुक्का नही था, जो अपने रिफ्लेक्स से वह लड़का खुद को मुक्के की दिशा से किनारे कर लेता। चाहु दिशा से आर्यमणि का रक्त बारिश चल रहा था। कुछ छींटों से तो बच गया, लेकिन शरीर के जिस हिस्से पर खून की बूंद गिरी, वह बूंद कपड़े समेत शरीर तक में छेद कर देता। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने उस लड़के के पूरे बदन में ही छेद–छेद करने का इरादा बना लिया था।


बड़े आराम से आर्यमणि अपना एक–एक कदम आगे बढ़ाते हुये, अपने फूंक को सामने की निश्चित दिशा देते बढ़ रहा था। आर्यमणि उस लड़के के नजदीक पहुंचकर फूंकना बंद किया और अपनी कलाई को पकड़ कर हील किया। आर्यमणि पहली बार उस लड़के के भावना को मेहसूस कर रहा था। असहनीय पीड़ा जो उसकी जान ले रही थी। अब कहां इतना दम बचा की खुद को बचा सके। हां किंतु आर्यमणि उसे अपने तेज हथौड़े वाला मुक्के का स्वाद चखाता, उस से पहले ही वह लड़का बेहोश होकर धम्म से गिर गया।


आर्यमणि इस से पहले की आगे कुछ सोचता उसके पास 2 लोग और पहुंच चुके थे.… "आर्य इसे जल्दी से उठा, और कॉटेज लेकर चल"….. यह आवाज सुनकर आर्यमणि के चेहरे पर जैसे मुस्कान आ गयी हो। मुड़कर देखा तो न केवल वहां निशांत था, बल्कि संन्यासी शिवम भी थे। आर्यमणि के चेहरे की भावना बता रही थी की वह कितना खुश था। लेकिन इस से पहले की वह अपनी भावना जाहिर करता, निशांत दोबारा कह दिया... "गधे, भरत मिलाप बाद में करेंगे, पहले उस लड़के की जान बचाओ और कॉटेज चलो"…


आर्यमणि, उस लड़के को अपने गोद में उठाकर, उसके जख्म को हील करते कॉटेज के ओर कदम बढ़ा दिया... "ये मेरा कोई टेस्ट था क्या?"..


निशांत:– हां कह सकते हो लेकिन टेस्ट उस लड़के का भी था।


आर्यमणि:– क्या ये तुम लोगों में से एक है?


संन्यासी शिवम:– हां हम में से एक है और इसे रक्षक बनना था इसलिए अपना टेस्ट देने आया था।


आर्यमणि:– ये रक्षक क्या होता है?


संन्यासी शिवम:– साथ चलो, हमारे आचार्य जी आ चुके है वो सब बता देंगे...


सभी कॉटेज पहुंचे। कॉटेज में भरा पूरा माहोल था। मीटर जितनी सफेद दाढ़ी में एक वृद्ध व्यक्ति के साथ कुछ संन्यासी और योगी थे। एक प्यारी सी किशोरी भी थी, जो उस लड़के को मूर्छित देखते ही बेहोश हो गयी। शायद उसे किसी प्रकार का पैनिक अटैक आया था। संन्यासी शिवम के कहने पर आर्यमणि ने उस लड़की का भी उपचार कर दिया। दोनो किशोर गहरी निद्रा में थे। आर्यमणि दोनो को ऊपर लिटाकर नीचे सबके बीच आया।


आर्यमणि, अपने दोनो हाथ जोड़ते... "यहां चल क्या रहा है? वो लड़का कौन है जिसे मरना पसंद था लेकिन अपनी जमीन उसने छोड़ा नहीं। क्या आप लोग भी प्रहरी तो नही बनते जा रहे, जो इंसानों को ही हथियार बना रहे हो।


निशांत:– कोई भी बात समझ ले न पहले मेरे भाई..


आर्यमणि:– समझना क्या है यार... कभी किसी जानवर का दर्द लो और उसे सुकून में देखो। तुम्हारी अंतरात्मा तक खुश हो जायेगी। वो एहसास जब तुम बेजुबानों के आंखों में अपने प्रति आभार मेहसूस करते देखते हो। मुख से कुछ बोल नही सकते लेकिन अपने रोम–रोम से वह धन्यवाद कहते है। जान लेना आसान है, पर जान बचाने वाले से बढ़कर कोई नही...


निशांत:– मुझ पर हमला होते देख तुमने तो कई लोगों की कुरुरता से जान ले ली थी। जिसकी तू बात कर रहा है उसके आंखों के सामने उसकी मां को जिंदा आग की भट्टी में झोंक दिया। लोग यहां तक नही रुके। जिसके साथ पढ़ा था, हंसा, खेला, और पूरे साल जिनके साथ ही रहता था, उतने बड़े परिवार को एक साथ आग की भट्टी में झोंक दिया। उसे कैसा होना चाहिए? तूने उस लड़के की उम्र देखी न, अब तू ही तय कर ले की उसकी मानसिकता कैसी होनी चाहिए?


आर्यमणि कुछ देर खामोश रहने के बाद.… "तो क्या वो मेरे हाथ से मारा जाता तो उसका बदला पूरा हो जाता? या फिर मुझे कहते बदला लेने?


आचार्य जी:– "उसका नाम अपस्यु है।


:rondu:Itni khushiiiii Itni khushiiiiiiiiiiiii

:yippi:maja aa gyi maja aa gayi

:dost:Nainu bhaiya tussi great ho tauffa kabooolllll karooooooo

:happy:dhinka chika dhinka chika dhinka chika

Mene tab khole jitne update ko padh ke review dena tha to ek najar last wale par gyi thoda padha aur aapne aaj ka mera din to abhi hi bana diya khair jese hi nishant ne uski maa ka kissa bataya mera mind me strike ho gaya aur fir mene aage padha bhi nhi aur direct review dene aa gaya baaki ke review bhi dunga lekin mera se ruka hi nhi gaya itna padte hi
tussi sahi me great ho yaaaaarrrrrr i don't know lekin i'm getting emotional ....... apsyu aur amy ke character ke saath na bhot attached hu jese fan bhai the nischal aur jisa ke character k saath aur aapne jis tarha se apsyu ka character ko prastut kiya hai me apko dand vat pranam karta hu ...
Kya to jabardast fight dikhayi haii aapne dil khush ho gaya ...... aur jab pata chala ki wo apsyu to bura bhi laga ki uski jo halat last me huyi uske liye aur amy ka apsyu ki halat ko dekh be hosh hona....khair ab to bache update ke review kar ke fata fat aana padega .... iska review dene .... u gaya u aaya aarya ki speed se :hellrider:
 
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भाग:–70





नजारा अकल्पनीय था। आर्यमणि जितना तेज हो सकता था उतना तेज हमला करता और वह लड़का उस से भी तेज बचते हुये जवाबी हमला करता। तेजी के साथ लगातार पड़ते मुक्कों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। एक तो दम से मारा गया मुक्का उसमे भी बिजली की रफ्तार। आर्यमणि के जिस अंग पर मुक्का लगता वह हिस्सा 4 इंच तक धंस जाता। कुछ ही पल में आर्यमणि का पूरा बदन सूज चुका था। हांफते और बदहाली में वह पीछे हटा और खड़ा होकर अपने दर्द से उबरने की कोशिश करने लगा। शरीर में इतनी क्षति हुई थी कि अब वह हाथों से हील नही हो पा रहा था। आंख की रौशनी बिलकुल धुंधली हो गयी थी और दिमाग अब गहरी निद्रा में जाने के लिये तड़प रहा था। फिर भी आर्यमणि खुद को संभाले अपने नए दुश्मन को समझने की कोशिश कर रहा था, जो अपनी जगह से एक कदम भी इधर–उधर नही हुआ था।


खुद से उम्र में कहीं छोटे एक तिल्लिश्मी बालक को आर्यमणि ने एक बार और ध्यान से देखने की कोशिश की। लेकिन नजर इतनी साफ नही थी कि अब उस बालक का चेहरा अच्छे से देख पाये। फिर निकली आर्यमणि के मुंह से दिल दहला देने वाली आवाज। यूं तो इस आवाज का दायरा सीमित था, लेकिन सीमित दायरे में गूंजी ये आवाज किसी भयंकर तूफान से कम नही था।बवंडर सी आंधी जिस प्रकार आती है, आर्यमणि की दहाड़ ठीक वैसी ही बवंडर तूफान उठा रहा थे।


आर्यमणि अपना शेप पूर्ण रूप से बदल चुका था। हीरे की भांति चमकीला बदन, विशाल और कठोर। ऐसा लग रहा था चमरी के जगह सीसा रख दिया हो, जिसके नीचे पूरे बदन पर फैले रक्त नलिकाओं को देखा जा सकता था, जिसमे बिलकुल गहरे काला रंग का खून बह रहा था। आर्यमणि अपने विकराल रूम में आ चुका था। उसका बदन पूरी तरह से हील हो चुका था तथा अपनी दहाड़ से उठे बवंडर के बीच एक बार फिर आर्यमणि उस लड़के के सामने खड़ा था।


एक बार फिर मारने की कोशिश अपने चरम पर थी। आर्यमणि पूरी रफ्तार से हमला किया और नतीजा फिर से वही हुआ, काफी तेज रिफ्लेक्स और जवाबी मुक्का उतने ही रफ्तार से लगा। फिर से खेल शुरू हो चुका था, लेकिन इस बार उस लड़के का मुक्का जब भी पड़ता पहले के मुकाबले कमजोर होता। अब तक आर्यमणि उस लड़के को छू भी नहीं पाया था, लेकिन फिर भी इस बार वह लड़का धीमा पड़ता जा रहा था।


आर्यमणि ने हथेली से जितने भी दर्द लिये। जितने भी टॉक्सिक उसने आज तक समेटा था, सब के सब उसके रक्त कोशिकाओं में बह रहा था। जब भी वह लड़का आर्यमणि के बदन पर मुक्का चलाता, ऐसा लगता उसका मुक्का 4 इंच तेजाब में घुस गया हो। ऐसा तेजाब जिसका असर बाद में भी बना रहता। और यही वजह थी कि वह लड़का धीरे–धीरे कमजोर पड़ने लगा था। एक वक्त ऐसा भी आया जब मुक्का तो पड़ रहा था लेकिन अब मानो आर्यमणि के शरीर को मात्र स्पर्श जैसा महसूस हो रहा हो। हां उस लड़के के रिफ्लेक्स अब भी काफी तेज थे। आर्यमणि उसे छू नही पा रहा था लेकिन जवाबी मुक्का भी अब बेअसर सा दिख रहा था।


कुछ वक्त बिताने के बाद आर्यमणि के हाथ अब मौका आ चुका था। पूर्ण रूप से तैयार आर्यमणि ने पूरे दहाड़ के साथ एक तेज हमला किया। आर्यमणि के हमले से बचने के लिये वह लड़का मुक्के के दिशा से अपने शरीर को किनारे किया और जैसे ही अपना मुक्का चलाया, ठीक उसी वक्त आर्यमणि ने अपना दूसरा मुक्का उस लड़के के मुक्के पर ही दे मारा। लागातार टॉक्सिक से टकराने के कारण उस लड़के का मुक्का पहले ही धीमा पड़ गया था, और उसके पास इस बार आर्यमणि के मुक्के से बचने का कोई काट नही था।


एक सम्पूर्ण जोरदार मुक्का ही तो पड़ा था और वह कहावत सच होती नजर आने लगी... "100 चोट सोनार की, एक चोट लोहार की"…. ठीक उसी प्रकार आर्यमणि के एक जोरदार मुक्के ने उस लड़के को हक्का बक्का कर दिया। वो तो शुक्र था कि उस लड़के ने ना तो सामने से मुक्का में मुक्का भिड़ाया था और न ही आर्यमणि का जब मुक्का उसके कलाई के आस–पास वाले हिस्से में लगा, तो उस हिस्से के ठीक पीछे कोई दीवार या कोई ऐसी चीज रखी हो जो रोकने का काम करे। यदि आर्यमणि के मुक्के और किसी दीवार के बीच उस बालक का वो कलाई का हिस्सा आ गया होता, तब फिर सबूत न रहता की उस हाथ में पहले कभी कलाई या उसके नीचे का पंजा भी था।


आर्यमणि का मुक्का पड़ा और उस लड़के का हाथ इतनी तेजी से हवा में लहराया की उसके कंधे तक उखड़ गये। हवा में लहराने से उसकी सारे नशे खींच चुकी थी। दवाब के कारण उसके ऊपरी हाथ में कितने फ्रैक्चर आये होंगे ये तो उस लड़के का दर्द ही बता रहा होगा लेकिन जिस हिस्से में आर्यमणि का मुक्का लगा वह पूरा हिस्सा झूल रहा था। दर्द और पीड़ा से वह लड़का अंदर ही अंदर पागल हो चुका था। एक हाथ ने पूरा काम करना बंद कर दिया था, लेकिन जज्बा तो उसका भी कम नही था। बिना दर्द का इजहार किये वह लड़का अब भी अपने जगह पर ही खड़ा था। न तो वह अपनी जगह से हिला और न ही लड़ाई रोकने के इरादे से था।


आर्यमणि हमला करना बंद करके 2 कदम पीछे हुआ... "जितना वक्त लेना है, लेकर खुद को ठीक करो।"..


वह लड़का अपने कमर से एक खंजर निकालते.... "तुम्हारी तरह खुद को मैं ठीक नही कर सकता लेकिन तैयार हूं।"… इतना कहकर उस लड़के ने आर्यमणि को आने का इशारा किया। फिर से वही तेज–तेज हमले का सिलसिला शुरू हो गया। अब वह लड़का खंजर थाम ले या बंदूक। उसके दोनो हाथ के मुक्के ने आर्यमणि के बदन का इतना टॉक्सिक छू लिया था कि अब वह काम करने से तो रहा। मात्र एक पंच का तो मामला था, आर्यमणि जाते ही एक मुक्का घूमाकर दे दिया। उस लड़के का दूसरा हाथ भी पूरा बेकार हो चुका था।


एक बार फिर आर्यमणि अपना कदम पीछे लिया। 2 कदम नहीं बल्कि पूरी दूरी बनाकर अब उसकी हालत का जायजा ले रहा था और उस लड़के को भी पूरा वक्त दिया, जैसे की उसने पहले आर्यमणि को दिया था। वह लड़का दर्द में भी मुस्कुराया। दोनो हाथ में तो जान बचा नही था, लेकिन फिर भी आंखों के इशारे से लड़ने के लिये बुला रहा था। आर्यमणि अपना कदम आगे बढ़ाते…. "जैसे तुम्हार मर्जी"…कहने के साथ ही अपनी नब्ज को काटकर तेज फूंक लगा दिया।


अंदर की फूंक बहुत ज्यादा तेज तो नही लेकिन तेज तूफान उठ चुका था। खून की बूंदें छींटों की तरह बिखर रही थी। तूफान के साथ उड़ते छींटे किसी घातक अम्लीय वर्षा से कम न था। लेकिन उस लड़के का रिफ्लेक्स.… आती हुई छींटों को भी वह किसी हथियार के रूप में देख रहा था। किंतु वह लड़का भी क्या करे? यह एक दिशा से चलने वाला कोई मुक्का नही था, जो अपने रिफ्लेक्स से वह लड़का खुद को मुक्के की दिशा से किनारे कर लेता। चाहु दिशा से आर्यमणि का रक्त बारिश चल रहा था। कुछ छींटों से तो बच गया, लेकिन शरीर के जिस हिस्से पर खून की बूंद गिरी, वह बूंद कपड़े समेत शरीर तक में छेद कर देता। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने उस लड़के के पूरे बदन में ही छेद–छेद करने का इरादा बना लिया था।



बड़े आराम से आर्यमणि अपना एक–एक कदम आगे बढ़ाते हुये, अपने फूंक को सामने की निश्चित दिशा देते बढ़ रहा था। आर्यमणि उस लड़के के नजदीक पहुंचकर फूंकना बंद किया और अपनी कलाई को पकड़ कर हील किया। आर्यमणि पहली बार उस लड़के के भावना को मेहसूस कर रहा था। असहनीय पीड़ा जो उसकी जान ले रही थी। अब कहां इतना दम बचा की खुद को बचा सके। हां किंतु आर्यमणि उसे अपने तेज हथौड़े वाला मुक्के का स्वाद चखाता, उस से पहले ही वह लड़का बेहोश होकर धम्म से गिर गया।


आर्यमणि इस से पहले की आगे कुछ सोचता उसके पास 2 लोग और पहुंच चुके थे.… "आर्य इसे जल्दी से उठा, और कॉटेज लेकर चल"….. यह आवाज सुनकर आर्यमणि के चेहरे पर जैसे मुस्कान आ गयी हो। मुड़कर देखा तो न केवल वहां निशांत था, बल्कि संन्यासी शिवम भी थे। आर्यमणि के चेहरे की भावना बता रही थी की वह कितना खुश था। लेकिन इस से पहले की वह अपनी भावना जाहिर करता, निशांत दोबारा कह दिया... "गधे, भरत मिलाप बाद में करेंगे, पहले उस लड़के की जान बचाओ और कॉटेज चलो"…


आर्यमणि, उस लड़के को अपने गोद में उठाकर, उसके जख्म को हील करते कॉटेज के ओर कदम बढ़ा दिया... "ये मेरा कोई टेस्ट था क्या?"..


निशांत:– हां कह सकते हो लेकिन टेस्ट उस लड़के का भी था।


आर्यमणि:– क्या ये तुम लोगों में से एक है?


संन्यासी शिवम:– हां हम में से एक है और इसे रक्षक बनना था इसलिए अपना टेस्ट देने आया था।


आर्यमणि:– ये रक्षक क्या होता है?


संन्यासी शिवम:– साथ चलो, हमारे आचार्य जी आ चुके है वो सब बता देंगे...


सभी कॉटेज पहुंचे। कॉटेज में भरा पूरा माहोल था। मीटर जितनी सफेद दाढ़ी में एक वृद्ध व्यक्ति के साथ कुछ संन्यासी और योगी थे। एक प्यारी सी किशोरी भी थी, जो उस लड़के को मूर्छित देखते ही बेहोश हो गयी। शायद उसे किसी प्रकार का पैनिक अटैक आया था। संन्यासी शिवम के कहने पर आर्यमणि ने उस लड़की का भी उपचार कर दिया। दोनो किशोर गहरी निद्रा में थे। आर्यमणि दोनो को ऊपर लिटाकर नीचे सबके बीच आया।


आर्यमणि, अपने दोनो हाथ जोड़ते... "यहां चल क्या रहा है? वो लड़का कौन है जिसे मरना पसंद था लेकिन अपनी जमीन उसने छोड़ा नहीं। क्या आप लोग भी प्रहरी तो नही बनते जा रहे, जो इंसानों को ही हथियार बना रहे हो।


निशांत:– कोई भी बात समझ ले न पहले मेरे भाई..


आर्यमणि:– समझना क्या है यार... कभी किसी जानवर का दर्द लो और उसे सुकून में देखो। तुम्हारी अंतरात्मा तक खुश हो जायेगी। वो एहसास जब तुम बेजुबानों के आंखों में अपने प्रति आभार मेहसूस करते देखते हो। मुख से कुछ बोल नही सकते लेकिन अपने रोम–रोम से वह धन्यवाद कहते है। जान लेना आसान है, पर जान बचाने वाले से बढ़कर कोई नही...


निशांत:– मुझ पर हमला होते देख तुमने तो कई लोगों की कुरुरता से जान ले ली थी। जिसकी तू बात कर रहा है उसके आंखों के सामने उसकी मां को जिंदा आग की भट्टी में झोंक दिया। लोग यहां तक नही रुके। जिसके साथ पढ़ा था, हंसा, खेला, और पूरे साल जिनके साथ ही रहता था, उतने बड़े परिवार को एक साथ आग की भट्टी में झोंक दिया। उसे कैसा होना चाहिए? तूने उस लड़के की उम्र देखी न, अब तू ही तय कर ले की उसकी मानसिकता कैसी होनी चाहिए?


आर्यमणि कुछ देर खामोश रहने के बाद.… "तो क्या वो मेरे हाथ से मारा जाता तो उसका बदला पूरा हो जाता? या फिर मुझे कहते बदला लेने?


आचार्य जी:– "उसका नाम अपस्यु है। अपने गुरुकुल काल के दूसरे वर्ष में उसने अपनी सातवी इंद्री जागृत कर ली थी। पांचवे वर्ष में सारी इंद्रियों पर नियंत्रण पा चुका था। हर शास्त्र का ज्ञान। जितनी हम सिद्धियां जानते है उन पूर्ण सिद्धियों का ज्ञान। ये सब उसने गुरुकुल के पांचवे साल तक अर्जित कर लिया था। उसके और हमारे गुरु, गुरु निशी उसे एक रक्षक बनाना चाहते थे। उसका अस्त्र और शस्त्र का प्रशिक्षण शुरू ही होने वाला था कि उसकी जिंदगी ही पूरी बदल गयी।"

"जिस वक्त गुरु निशी की मृत्यु हुई, अपस्यु ही उनका प्रथम शिष्य थे। प्रथम शिष्य यानी गुरु के समतुल्य। अब इसे अपस्यु की किस्मत कहो या नियति, वह अचानक सात्त्विक आश्रम का गुरु बन गया। बीते कुछ महीनों में जिस प्रकार से तुमने योग और तप का आचरण दिखाया, अपस्यु को लग गया कि तुम आश्रम के सबसे बेहतर गुरु बनोगे। एक विशुद्ध ब्राह्मण जो अलौकिक मुहरत में, ग्रहों के सबसे उत्तम मिलन पर एक अलौकिक रूप में जन्म लिये।"

"मैने ही उनसे कहा था कि आर्यमणि एक रक्षक के रूप में ज्यादा विशेष है और उसका अलौकिक जन्म भी उसी ओर इशारा कर रहे। अपस्यु नही माना और कहने लगा "यदि वो बिना छल के केवल अपने शारीरिक क्षमता से तुम्हे हरा देगा, तब हमे उसकी बात माननी होगी।" अपस्यु, तुम्हारे सामने नही टिक पाया और रक्षक न बनने के मलाल ने उसे अपनी जगह से हिलने नही दिया।


आर्यमणि:– छल मतलब कैसा छल करके जीत जाते...


निशांत:– ठीक वैसे ही जैसे पारीयान के तिलिस्म में हमने अनजाने में उस शेर को छला था, भ्रम से। कई तरह के मंत्र से। और वो तो आश्रम के गुरुजी हुये, उसके पास तो वो पत्थर भी है जो तुम्हे बांध दे। यहां के पत्थरों के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावशाली।


आर्यमणि:– और वो लड़की कौन थी.. जो इस बालक गुरुजी को देखकर बेहोश हो गयी।


निशांत:– उसकी परछाई.. उसकी प्रीयसी... अवनी.. वह गुरुजी को बेहोशी की हालत में घायल देख ले, फिर उसकी स्थिति मरने जैसी हो जाती है...


"इतनी छोटी उम्र में ऐसा घनिष्ठ रिश्ता... अतुलनीय है..."… आर्यमणि इतना कहकर निशांत को खींचकर एक थप्पड़ लगा दिया...


निशांत:– अब ये क्यों?


आर्यमणि:– घर के अंदर आते ही ताक झांक करने और उन 40 पत्थरों को देखने के लिये, जिसे मैंने अब तक न दिखाया था...


निशांत:– मैने कब देखा उसे...


आर्यमणि:– अच्छा इसलिए थोड़ी देर पहले मुझे कह रहा था की बालक गुरुजी के पास ऐसे पत्थर है जो मेरे पास रखे पत्थरों के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावशाली..


निशांत:– पकड़ लिया तूने... वैसे गलती हमारी नही है। ऐसे पत्थर को जबतक सही तरीके से छिपा कर नही रखोगे वह अपने पीछे निशान छोड़ती है।


आर्यमणि:– क्या मतलब निशानी छोड़ती है...क्या इस पत्थर के सहारे इसका मालिक यहां तक पहुंच सकता है...


आचार्य जी:– अब नही पहुंचेगा... सभी निशानी को मिटाकर एक भ्रमित निशान बना दिया है जो दुनिया के किसी भी कोने में पत्थर के होने के संकेत दे सकते है। शुक्र है ये पत्थर पानी के रास्ते लाये वरना कहीं हवा या जमीनी मार्ग से लाते तब तो इसका मालिक कबका न पहुंच गया होता।


आर्यमणि:– कमाल के है आप लोग। निशांत ने अभी कहा कि बालक गुरुजी बिना छल के लड़े, तो उनका शरीर हवा जैसा लचीला क्यों था?


आचार्य जी:– तुम्हारा शरीर भी तो एक प्राकृतिक संरचना ही है ना, फिर तुम कैसे रूप बदलकर अपने शरीर की पूरी संरचना बदल लेते हो। ये शरीर अपने आप में ब्रह्म है। इसपर जितना नियंत्रण होगा, उतना ही विशेष रूप से क्षमताओं को निखार सकते है।


आर्यमणि:– एक बात बताइए की जब आपके पास सब कुछ था। अपस्यु जब अपने शिक्षा के पांचवे वर्ष सारी सिद्धियां प्राप्त कर लिया था। फिर उसकी मां, गुरुजी, ये सब कैसे मर गये। क्या अपस्यु इन सबकी रक्षा नही कर सकता था?


आचार्य जी:– होने को तो बहुत कुछ हो सकता था लेकिन गुरु निशी किसी साजिश का शिकार थे। भारे के कातिल और सामने से मारने वाले में इतना दम न था। किसी ने पीछे से छल किया था जिसके बारे में अब पता चला है... अपस्यु के साथ में परेशानी यह हो गयी की वह बहुत छोटा था और मंत्रों का समुचित प्रयोग उस से नही हो पाया।


आर्यमणि:– सारी बात अपनी जगह है लेकिन बिना मेरी सहमति के आप मुझे रक्षक या गुरु कैसे बना सकते है। बताओ उस लिलिपुटियन (अपस्यु) ने मुझे ऐसा मारा की मेरे शरीर के पुर्जे–पुर्जे हिला डाले। यदि मैंने दिमाग न लगाया होता तब तो वह मुझे पक्का घुटनों पर ला दिया होता। उसके बाद जब मैंने उसके दोनो कलाई तोड़ डाले फिर भी वह अपनी जगह छोड़ा नहीं। बताओ कहीं मैं सीने पर जमाकर एक मुक्का रख दिया होता तो। और हां मैं अपने पैक और ये दुनिया भ्रमण को छोड़कर कुछ न बनने वाला। रक्षक या गुरु कुछ नही। बताओ ये संन्यासी शिवम, इनके साथ और न जाने कितने महर्षि और योगी है, जो आश्रम का भार संभाल सकते हैं लेकिन आप आचार्य जी उस बच्चे को छोड़ नही रहे। उल्टा मैं जो आपके कम्युनिटी से दूर–दूर तक ताल्लुक नहीं रखता, उसे गुरु या रक्षक बनाने पर तुले हो।


आचार्य जी:– बातें बहुत हो गयी। मैं तुम्हे रक्षक और गुरु दोनो के लिये प्रशिक्षित करूंगा। और यही अपस्यु के लिये भी लागू होगा। मुझे समझाने की जरूरत नहीं की क्यों तुम दोनो ही। अपस्यु जानता है कि वही गुरु क्यों है। अब तुम्हारी बारी... अपने क्ला मेरे मस्तिष्क में डालो...


आर्यमणि:– हो ही नही सकता... मैने रूही से वादा किया है कि ज्ञान पाने के लिये कोई शॉर्टकट नही...


आचार्य जी:– तुम्हारे पास जो है वो अलौकिक वरदान है। इस से समाज कल्याण के लिये ज्ञान दे रहा हूं। तुम्हारी मर्जी हो तो भी ठीक, वरना जब तुम्हे ज्ञान होगा तब खुद ही समझ जाओगे की क्यों हमने जबरदस्ती किया?


आर्यमणि:– रुको तिलिस्मी लोगो, मैं अपनी मर्जी से क्ला डालता हूं। पहले लिथेरिया वुलापीनी का इंजेक्शन तो लगा लेने दो...


आचार्य जी:– उसकी जरूरत नही है। बहुत कुछ तुम अपने विषय में भी नही जानते, उसका अध्यन भी जरूरी है।... तुम्हारे क्ला अंदर घुसने से मैं वेयरवोल्फ नही बन सकता... डरो मत...


आर्यमणि:– ये तो नई बात पता चल रही है। ठीक है जैसा आप कहो...


आर्यमणि अपनी बात कहते क्ला को उनके गले के पीछे डाल दिया। लगभग एक दिन बाद आर्यमणि की आंखें खुल रही थी। जब उसकी आंखें खुली चेहरे पर मुस्कान और आंखों में आचार्य जी के लिये आभार था।


आर्यमणि:– आचार्य जी मुझे आगे क्या करना होगा...


आचार्य जी:– तुम्हे अपने अंदर के ज्ञान को खुद में स्थापित करना होगा।


आर्यमणि:– मतलब..


गुरु अपस्यु के साथ वाली लड़की अवनी.… "आचार्य जी के कहने का मतलब है सॉफ्टवेयर दिमाग में डाल दिया है उसे इंस्टॉल कीजिए तब जाकर सभी फाइल को एक्सेस कर पायेंगे।"..


आर्यमणि:– तुम दोनो कब जागे... और आज कुछ नये चेहरे भी साथ में है।


आचार्य जी:– हम लोगों के निकलने का समय हो गया है। आर्यमणि तुम जीवन दर्शन के लिये निकले हो, अपने जीवन का अनुभव के साथ अपनी सारी सिद्धियां प्राप्त कर लेना। जीवन का ज्ञान ही मूल ज्ञान है, जिसके बिना सारी सिद्धियां बेकार है। प्रकृति की सेवा जारी रखना। ये तुम्हारे वायक्तिव, और पाने वाले सिद्धियों को और भी ज्यादा निखारेगा। हम लोग जा रहे है, बाकी दोनो गुरुजी आपस में जान पहचान बना लो।


आर्यमणि:– और निशांत...


निशांत:– अभी मेरी तपस्या अधूरी है। आचार्य जी ने एक दिन का विश्राम दिया था। वो आज पूरा हो गया।


संन्यासी शिवम ने वहीं से पोर्टल खोल दिया। सभी लोग उस पोर्टल के जरिये निकल गये, सिवाय अपस्यु और उसके साथ के कुछ लोगों के। आर्यमणि, अपस्यु के साथ जंगलों के ओर निकला... "और छोटे गुरु जी अपने साथ मुझे भी फसा दिये।"..
Wah ek aur teen ye to guru hai aur takatwar bhi
Dekhna hai aryamani ko kaun si saktiya prapt hui hai
 

arish8299

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भाग:–71







संन्यासी शिवम ने वहीं से पोर्टल खोल दिया। सभी लोग उस पोर्टल के जरिये निकल गये, सिवाय अपस्यु और उसके साथ के कुछ लोगों के। आर्यमणि, अपस्यु के साथ जंगलों के ओर निकला... "और छोटे गुरु जी अपने साथ मुझे भी फसा दिये।"..


अपस्यु:– बड़े गुरु जी मुझे लगा अब मैं रक्षक बन जाऊंगा। लेकिन आचार्य जी ने हम दोनो को फसा दिया। खैर अच्छा लगा आपसे मिलकर। मात्र कुछ महीनो के ध्यान में अपने कुंडलिनी चक्र को जागृत कर लेना कोई मामूली बात नही है। आप प्रतिभा के धनी है।


आर्यमणि:– तारीफ तो तुम्हारी भी होनी चाहिए छोटे, इतनी कम उम्र में गुरु जी। खैर अब इस पर चर्चा बंद करते हैं। क्या तुम मुझे हवा की तरह तेज लहराना सिखाओगे...


अपस्यु:– हां क्यों नही बड़े गुरु जी। बहुत आसान है.. और आपके लिये तो और ज्यादा आसान होगा..


आर्यमणि:– कैसे...


अपस्यु:– आप इस पूरे वातावरण को मेहसूस कर सकते हो, खुद में समा सकते हो। ॐ का जाप करके मन के सभी ख्यालों को भूल जाओ और बहती हवा को मेहसूस करो...


आर्यमणि:– हां, हां..


अपस्यु:– अब बस हवा के परिवर्तन को सुनो..


आर्यमणि:– हां, हां..


अपस्यु:– बस मेहसूस करो...


आर्यमणि बिलकुल खो गया। इधर हवा का परिवर्तन यानी अपस्यु का तेजी से चाकू चलाना। आर्यमणि अब भी आंखे मूंदे था। वह बस हवा के परिवर्तन को मेहसूस करता और परिवर्तित हवा के विपरीत अपने शरीर को ले जाता, जबकि उसके पाऊं एक जगह ही टीके थे।


अपस्यु:– बड़े गुरुजी आंखे खोल लो। आंखें आपकी सब कुछ देखेगी लेकिन अंतर्मन के ध्यान को हवा की भांति बहने दो। हवा के परिवर्तन को मेहसूस करते रहो...


आर्यमणि अपनी आंखें खोल लिया। वह चारो ओर देख रहा था, लेकिन अंदर से उसका ध्यान पूरे वातावरण से घुला–मिला था। अपस्यु लगातार आर्यमणि पर चाकू से वार कर रहा था और आर्यमणि उसे अपनी आंखों से देखकर नही बच रहा था। बल्कि उसकी आंखें देख रही थी की कैसे हवा के परिवर्तन को मेहसूस करके शरीर इतना तेज लहरा रहा है...


आर्यमणि:– और तेज छोटे गुरुजी..


अपस्यु भी हवा को मेहसूस करते काफी तेज हमला कर रहा था... दोनो के बदन मानो हवा की सुर में लहरा रहे थे। जितना तेज अपस्यु हमला कर रहा था, उस से भी कहीं ज्यादा तेज आर्यमणि अपना बचाव कर रहा था। दोनो विराम लिये। अपस्यु आगे चर्चा करते हुये आर्यमणि से सिर्फ इतना ही कहा की जब आप पूर्ण रूप से वातावरण में खो जाते हैं, तब कण–कण को मेहसूस कर सकते है।


आर्यमणि काफी खुश हुआ। दोनो की चर्चा आगे बढ़ी। अपस्यु ने सबसे पहले तो अपने और अवनी के बीच चल रहे रिश्ते को किसी से न बताने के लिये कहा। दुनिया और दोस्तों की नजरों में वो दोनो केवल अच्छे दोस्त थे, जबकि आचार्य जी या फिर गुरु निशी से ये बात कभी छिपी नही रही की अपस्यु और अवनी एक दूसरे को चाहते हैं। आर्यमणि मान गया।


चर्चाओं का एक छोटा सा सिलसिला शुरू हुआ। अपस्यु ने आश्रम पर चल रहे साजिश के बारे में बताया। शुरू से लेकर आज तक कैसे आश्रम जब भी उठने की कोशिश करता रहा है, कुछ साजिशकर्ता उसे ध्वस्त करते रहे। गुरु निशी की संदिग्ध मृत्यु के विषय में चर्चा हुई। अपस्यु के अनुसार.… "जिन लोगों ने आश्रम में आग लगायी वो कहीं से भी गुरु निशी के आगे नहीं टिकते। सामने रहकर मारने वाले की तो पहचान है लेकिन पीछे किसकी साजिश थी वह पता नहीं था, तबतक जबतक की आर्यमणि के पीछे संन्यासी शिवांश नही पहुंचे थे। और अब हमें पता है की लंबे समय से कौन पीछे से साजिश कर रहा था। लेकिन अपने इस दुश्मन के बारे में जरा भी ज्ञान नहीं।"



आर्यमणि मुस्कुराते हुये कहने लगा.… "धीरे बच्चे.. मैं बड़ा और तुम छोटे।"..


अपस्यु:– हां बड़े गुरुजी..


आर्यमणि:– "ठीक है छोटे फिर तुम जो ये अपनो को समेट कर खुद में सक्षम होने का काम कर रहे थे, उसे करते रहो। कुछ साल का वक्त लो ताकि दिल का दर्द और हल्का हो जाये। ये न सिर्फ तुम्हारे लिये बेहतर होगा बल्कि तुम्हारी टीम के लिये भी उतना ही फायदेमंद होगा। जिसने तुम्हारे आंखों के सामने तुम्हारे परिवार को मारा, वो तुम्हारा हुआ। मारना मत उन्हे... क्योंकि मार दिये तो एक झटके में मुक्ति मिल जायेगी। उन्हे सजा देना... ऐसा की मरने से पहले पल–पल मौत की भीख मांगे।"

"परदे के पीछे वाला जो नालायक है वो मेरा हुआ। मेरे पूरे परिवार को उसने बहुत परेशान किया है। मेरे ब्लड पैक को खून के आंसू रुलाये हैं। इनका कृतज्ञ देखकर मैं आहत हूं। निकलने से पहले मै उनकी लंका में सेंध मारकर आया था। संन्यासी शिवांश से आग्रह भी कर आया था कि मेरे परिवार की देखभाल करे।"


अपस्यु:– आश्रम के कई लोग नागपुर पहुंच चुके है। हमारी सर्विलेंस उन अजीब से लोगों पर भी शुरू हो चुकी है जो आश्रम के दुश्मन है। हम उन्हे अब समझना शुरू कर चुके है। उनके दिमाग से खेलना शुरू कर चुके है।


आर्यमणि:– उस आदमी से कुछ पता चला, जिसे संन्यासी शिवम को मैने पैक करके दिया था। (थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी, जिसे संन्यासी शिवम अपने साथ ले गया था)


अपस्यु:– आपने जिस आदमी को पैक करके शिवम के साथ भेजा था, वह मरा हुआ हमारे पास पहुंचा। अपने समुदाय का काफी वफादार सेवक था। हमने वहीं उसका अंतिम संस्कार कर दिया।


आर्यमणि:– उस तांत्रिक का क्या हुआ जिसे रीछ स्त्री के पास से पकड़े थे।


अपस्यु:– तांत्रिक उध्यात एक जटिल व्यक्ति है। हम उन्हे बांधने में कामयाब तो हुये है, लेकिन कुछ भी जानकारी नही निकाल सके। उनके पास हमलोगों से कहीं ज्यादा सिद्धि है, जिसका तोड़ हमारे पास नही। कुछ भी अनुकूल नहीं है शायद। और हम हर मोर्चे पर कमजोर दिख रहे।


आर्यमणि:– मरना ही तो है, कौन सा हम अमर वरदान लेकर आये हैं। फिर इतनी चिंता क्यों? इतनी छोटी उम्र में इतना बोझ लोगे तो जो कर सकते हो, वो भी नही कर पाओगे। चिल मार छोटे, सब अच्छा ही होगा।


अपस्यु:– हां कह सकते है। मुझे बड़े गुरु जी मिल गये। सो अब मैं अपनी नाकामी पर शर्मिंदा नहीं हो सकता क्योंकि मेरे ऊपर संभालने वाला कोई आ गया है। वरना पहले ऐसा लगता था, मैं गलती कैसे कर सकता हूं।


आर्यमणि:– चलो फिर सुकून है। आज से अपनी चिंता आधी कर दो। दोनो पक्ष को हम एक साथ सजा देंगे। तुम आग लगाने वाले को जिस अवधि में साफ करोगे, उसी अवधि में मैं इन एपेक्स सुपरनैचुरल का भी सफाया करूंगा। हम दोनो ये काम एक वक्त पर करेंगे।


अपस्यु:– हां ये बेहतर विकल्प है। जबतक हम अपनी तयारी में भी पूरा परिपक्व हो जायेंगे।


आर्यमणि:– बिलकुल सही कहा...


अपस्यु:– मैने सुना है ये जो आप इंसानी रूप लिये घूम रहे है, वो मेकअप से ऐसा बदला है कि वास्तविक रूप का पता ही नही चलता। इतना बढ़िया आर्ट सीखा कहां से।


आर्यमणि:– मेरे बीते वक्त में एक दर्द का दौड़ था। उस दौड़ में मैने बहुत सी चीजें सीखी थी। कुछ काम की और कुछ फालतू... ये मेरे फालतू कामों में से एक था जो भारत छोड़ने के बाद बहुत काम आया।


अपस्यु:– हमारे साथ स्वस्तिका आयी है। गुरु निशी की गोद ली हुई पुत्री है। उसे ये आर्ट सीखा दो ना बड़े गुरुजी...


आर्यमणि:– मेरे पास कुछ विषय के विद्वानों का ज्ञान है। चलो देखते हैं किसकी किसमे रुचि है, उनको शायद मैं मदद कर सकूं। वैसे एक बात बताओ मेरे घर का सिक्योरिटी सिस्टम को किसी मंत्र से तोड़ा या कोई कंप्यूटर एक्सपर्ट है।


अपस्यु:– एमी है न, वही ये सारा काम देखती है..


आर्यमणि:– विश्वास मानो इस भौतिक दुनिया में कंप्यूटर और पैसे से बड़ा कोई सुपरनैचुरल पावर नही। अच्छा लगा एक कंप्यूटर एक्सपर्ट तुम्हारी टीम में है..


अपस्यु:– अभी तो सब सीख ही रहे है। और पैसे अपने पास तो बिलकुल नही, लेकिन आश्रम को जलाने वाले दुश्मन के इतने पैसे उड़ाये है कि कहां ले जाये, क्या करे कुछ समझ में नहीं आ रहा।


आर्यमणि:– मेरी भूमि दीदी ने एक बात समझाई थी। पैसे का कभी भी सबूत न छोड़ो। और जो पैसा सिर दर्द दे, उसे छोड़कर निकल जाओ... पैसा वो तिलिस्मी चीज है जिसके पीछे हर कोई खींचा चला आता है। एक छोटी सी भूल और आपका खेल खत्म।


अपस्यु:– आपको बाहरी चीजों का बहुत ज्ञान है बड़े गुरु जी। मैं तो गुरुकुल में ही रहा और वहां से जब बाहर निकला तब दुनिया ही बदल चुकी थी। पहले अपनी दुनिया समेट लूं या दुनिया को समझ लूं यही विडंबना है।


आर्यमणि:– "मैं भी शायद कभी जंगल से आगे की दुनिया नही समझ पाता। मैने एक कमीने की जान बचाई। और उसी कमीने ने बदले में लगभग मेरी जान ले ली थी। एक लड़की ने मुझसे कहा था, हर अच्छाई का परिणाम अच्छा नहीं होता। शायद तब वो सही थी, क्योंकि मैं नर्क भोग रहा था। उस वक्त मुझे एहसास हुआ की मरना तो आसान होता है, मुश्किल तो जिंदगी हो जाती है।"

"खैर आज का आर्यमणि उसी मुश्किल दौड़ का नतीजा है। शायद उस लड़की ने, उस एक घटिया इंसान की करतूत देखी, जिसकी जान मैने बचाई थी। लेकिन उसके बाद के अच्छे परिणाम को वह लड़की देख नही पायी। मेरे एक अच्छे काम के बुरे नतीजे की वजह से मैंने क्या कुछ नही पाया था। ये जिंदगी भी अजीब है छोटे। अच्छे कर्म का नतीजा कहीं न कहीं से अच्छा मिल ही जाता है, बस किसी से उम्मीद मत करना...


अपस्यु:– आपसे बहुत कुछ सीखना होगा बड़े गुरुजी।


आर्यमणि:– नाना... मैं भी सिख ही रहा हूं। तुम भी आराम से अभी कुछ साल भारत से दूर रहो। सुकून से पहले इंसानो के बीच रहकर उनकी अजीब सी भावना को समझो। जिंदगी दर्शन तुम भी लो… फिर आराम से वापस लौटकर सबको सजा देने निकलना...


अपस्यु:– जैसा आप कहो। मेरे यहां के मेंटर तो आप ही हो।


आर्यमणि:– हम्म् सब मिलकर मुझे ही बाप बना दो.. वो तीन टीनएजर कम थे जो तुम्हारा भी एक ग्रुप आ गया।


अपस्यु:– कौन सा मैं आपके साथ रहने वाला हूं। बस बीच–बीच में एक दूसरे की स्किल साझा कर लिया करेंगे।


आर्यमणि:– हां लेकिन मेरी बात मानो और यहां से भारत लौटकर मत जाओ। पूरी टीम को पहले खुल कर जीने दो। कुछ साल जब माहोल से दूर रहोगे, तब सोच में बहुत ज्यादा परिवर्तन और खुद को ज्यादा संयम रख सकते हो। वैसे तुम तो काफी संतुलित हो। मुझसे भी कहीं ज्यादा, ये बात तो मैने जंगल में देख लिया। लेकिन तुम्हारी टीम के लिये शायद ज्यादा फायदेमंद रहे...


अपस्यु:– बड़े गुरु जी यहां रहना आसान होगा क्या?


आर्यमणि:– मुझे जो अनुभव मिला है वो तुम्हारे काम तो आ ही जायेगा। पहले अपनी टीम से मिलवाओ, फिर हम तुम्हारे दुश्मन के पैसे का भी जुगाड लगाते है।


आर्यमणि, अपस्यु की टीम से मिलने चला आया। अपस्यु और ऐमी (अवनी) के अलावा उनके साथ स्वस्तिका, नाम की एक लड़की, पार्थ और आरव नाम के 2 लड़के। कुल 5 लोगों की टीम थी। आर्यमणि ने सबसे थोड़ी जान पहचान बनानी चाही, किंतु अपस्यु को छोड़कर बाकी सब जैसे गहरे सदमे में हो। आर्यमणि उनकी भावना मेहसूस करके चौंक गया। अंदर से सभी काफी दर्द में थे।


आर्यमणि से रहा नही गया। आज से पहले उसने कभी किसी के भावना को अपने नब्ज में उतारने की कोशिश नही किया था। अचानक ही उसने ऐमी और आरव का हाथ थाम लिया। आंख मूंदकर वही "ॐ" का उच्चारण और फिर वह केवल उनके अंदर के दर्द भरी भावना के सिवा और कुछ भी मेहसूस नही करना चाह रहा था। आर्यमणि ने अपना हाथ रखा और भावना को खींचने की कोशिश करने लगा।


आंख मूंदे वह दोनो के दर्द को मेहसूस कर रहा था। फिर ऐसा लगा जैसे उनका दर्द धीरे–धीरे घटता जा रहा है। इधर उन दोनो को अच्छा लग रहा था और उधर आर्यमणि के आंखों से आंसू के धारा फुट रही थी। थोड़ी देर बाद जब आर्यमणि ने उनका हाथ छोड़ा, तब दोनो के चेहरे पर काफी सुकून के भाव थे। उसके बाद फिर आर्यमणि ने स्वस्तिका और पार्थ के हाथ को थाम लिया। कुछ देर बाद वो लोग भी उतने ही शांति महसूस कर रहे थे। अपस्यु अपने दोनो हाथ जोड़ते... "धन्यवाद बड़े गुरुजी"..


आर्यमणि:– तू बड़े ही कहा कर छोटे। हमारी बड़े–छोटे की जोड़ी होगी... मेरा कोई भाई नहीं, लेकिन आज से तू मेरा छोटा भाई है.. ला हाथ इधर ला…


अपस्यु ने जैसे ही हाथ आगे बढाया, आर्यमणि पहले चाकू से अपस्यु का हथेली चिर दिया, फिर खुद का हथेली चिड़कड़ उसके ऊपर रख दिया। दोनो २ मिनट के लिये मौन रहे उसके बाद आर्यमणि, अपस्यु का हाथ हील करके छोड़ दिया। जैसे ही आर्यमणि ने हाथ छोड़ा अपस्यु भी अपने हाथ उलट–पलट कर देखते... "काफी बढ़िया मेहसूस हो रहा। मैं एक्सप्लेन तो नही कर सकता लेकिन ये एहसास ही अलग है।"…


फिर तो बड़े–बड़े बोलकर सबने हाथ आगे बढ़ा दिये। एक छोटे भाई की ख्वाइश थी, तीन छोटे भाई, एक छोटी बहन और साथ में एक बहु भी मिल गयी, जिसका तत्काल वर्णन आर्यमणि ने नही किया। सोमवार की सुबह आर्यमणि का बड़ा सा परिवार एक छत के नीचे था। अपनी मस्ती बिखेड़कर अल्फा पैक भी वापस आ चुके थे। एक दूसरे से परिचय हो गया और इसी के साथ अल्फा पैक की ट्रेनिंग को एक नई दिशा भी मिल गयी।वुल्फ के पास तो हवा के परखने की सेंस तो पहले से होती है, लेकिन अल्फा पैक तो जैसे अपने हर सेंस को पूर्ण रूप से जागृत किये बैठे थे, बस जरूरत एक ट्रिगर की थी।


अपस्यु वहां रुक कर सबको हवा को परखने और पूर्ण रूप से वातावरण में खो कर उसके कण–कण को मेहसूस करने की ट्रेनिंग दे रहा था। और इधर आर्यमणि, अपस्यु और उसकी टीम को धीरे–धीरे ज्ञान से प्रकाशित कर रहा था। स्वस्तिका को डॉक्टर और मेक अप आर्टिस्ट वाला ज्ञान मिल रहा था। ऐमी को कंप्यूटर और फिजिक्स का। आरव को वाणिज्य और केमिस्ट्री। पार्थ को फिजिक्स, और केमिस्ट्री। इन सब के दिमाग में किसी याद को समेटने की क्षमता काफी कम थी। मात्र 5% यादें ही एक दिन में ट्रांसफर हो सकती थी।


वहीं अपस्यु के साथ मामला थोड़ा अलग था। उसका दिमाग एक बार में ही सभी विद्वानों के स्टोर डेटा को अपने अंदर समा लिया। चूंकि अपस्यु आश्रम का गुरु भी था। इसलिए आर्यमणि ने सीक्रेट प्रहरी के उन 350 कितना के आखरी अध्याय को साझा कर दिया जिसमे साधु को मारने की विधि लिखी थी। साथ ही साथ 50 मास्टर क्लास बुक जिसमे अलग–अलग ग्रह पर बसने वाले इंसानों और वहां के पारिस्थितिकी तंत्र तंत्र का वर्णन था, उसे भी साझा कर दिया।


खैर इन सब का संयुक्त अभ्यास काफी रोमांचकारी था। आर्यमणि ने अपस्यु और उसके पूरे टीम को तरह–तरह के हथियार चलाना सिखाया। ट्रैप वायर लगाना और शिकार को फसाने के न जाने कितने तरीके। जिसमे पहला बेहद महत्वपूर्ण सबक था धैर्य। किसी भी तरीके से शिकार पकड़ना हो उसके लिये सबसे ज्यादा जरूरी था धैर्य। उसके बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात, शिकार फसाने का तरीका कोई भी हो, लेकिन किसी भी तरीके में शिकार को शिकारी की भनक नहीं होनी चाहिए।


खैर संयुक्त अभ्यास जोरों पर था और उतने ही टीनएजर के झगड़े भी। कभी भी कोई भी टीनएजर किसी के साथ भी अपना ग्रुप बनाकर लड़ाई का माहोल बना देते थे। कभी–कभी तो आर्यमणि को अपने बाल तक नोचने पड़ जाते थे। हां लेकिन एक अलबेली ही थी जिसके कारनामों से घर में ठहाकों का माहोल बना रहता था। अलबेली तो अपने नाम की तर्ज पर अलबेली ही थी। इवान को चिढ़ाने के लिये वह पार्थ के साथ कभी–कभी फ्लर्ट भी कर देती और इवान जल–बूझ सा जाता। सभी टीनएजर ही थे और जो हाल कुछ दिन पहले अल्फा पैक का था, वैसा ही शोक तो इनके खेमे में भी था। दुनिया में कोई ऐसा शब्द नही बना जो किसी को सदमे से उबार सके, सिवाय वक्त के। और जैसे–जैसे सभी टीनएजर का वक्त साथ में गुजर रहा था, वो लोग भी सामान्य हो रहे थे।


अपस्यु की टीम को सबसे ज्यादा अच्छा जंगल में ही लगता। जब अल्फा पैक किसी जानवर या पेड़ को हील करते, वो लोग अपना हाथ उनके हाथ के ऊपर रख कर वह सबकुछ मेहसूस कर सकते थे, जो अल्फा पैक मेहसूस करता था। अपस्यु और उसके टीम की जिदंगी जैसे खुशनुमा सी होने लगी थी। अल्फा पैक के साथ वो लोग जीवन संजोना सिख रहे थे।


इसी बीच आर्यमणि अपने छोटे (अपस्यु) के काम में भी लगा रहा। अपने पहचान के मेयर की लंका तो खुद आर्यमणि लगा चुका था। इसलिए ग्रीन कार्ड के लिये किसी और जुगाड़ू को पकड़ना था। साथ ही साथ अपस्यु एंड टीम ने जो अपने दुश्मन के पैसे उड़ाये थे, उन्हे भी ठिकाने लगाना था। आर्यमणि कुछ सोचते हुये अपस्यु से लूट का अमाउंट पूछ लिया। अपस्यु ने जब कहा की उसने हवाला के 250 मिलियन उड़ाये हैं, आर्यमणि के होश ही उड़ गये। उस वक्त के भारतीय रुपए से तकरीबन 1000 करोड़ से ऊपर।


आर्यमणि:– ये थोड़ा रुपया है...


अपस्यु:– हमे क्या पता। हमारा तो लूट का माल है। जिनका पैसा है वो जाने की ऊसको कितना नुकसान हुआ।


आर्यमणि:– हम्मम रुको एक से पूछने दो। डील सेट हो गया तो पैसे ठिकाने लग जायेंगे...


आर्यमणि ने पार्किनसन को कॉल लगाया। कॉल लगाते ही सबसे पहले उसने यही पूछा की उसका हवाले का धंधा तो नही। उसने साफ इंकार कर दिया। उसने बताया की वह केवल वेपन, कंस्ट्रक्शन और गोल्ड के धंधे में अपना पैसा लगाता है। बाकी वह हर वो धंधा कर लेगा जिसमे कमीशन अच्छा हो। आर्यमणि ने 250 मिलियन का डील पकड़ाया, जिसे यूरोप के किसी ठिकाने से उठाना था। पार्केनसन एक शर्त पर इस डील को आगे बढ़ाने के लिये राजी हुआ... "जब कभी भी पैसे के पीछे कोई आयेगा, वह सीधा आर्यमणि के पीछे भेज देगा और कमीशन के पैसे तो भूल ही जाओ।" आर्यमणि ने जैसे ही उसके शर्त पर हामी भरी, डील सेट हो गया। 30% कमीशन से पार्किनसन ने मामला शुरू हुआ और 23% पर डील लॉक।


आधे घंटे में लोग ठिकाने पर पहुंच चुके थे। पूरे पैसे चेक हो गये। जैसे ही सब सही निकला अपस्यु के अकाउंट में पैसे भी ट्रांसफर हो गये। अपस्यु इस कमाल के कनेक्शन को देखकर हैरान हो गया। एक काम हो गया था। दूसरा काम यानी की ग्रीन कार्ड के लिये जब आर्यमणि ने पूछा तब पार्किनसन ने उसे या तो मेयर की बीवी से मिलने कह दिया, जो अपने पति को हटाकर खुद एक मेयर बन चुकी थी, या फिर शिकागो चले जाने कहा।


अपस्यु के दोनो समस्या का हल मिल गया था। लगभग 60 दिन साथ बिताने के बाद सभी ने विदा लिया। इस बीच आर्यमणि नए मेयर से मिला। यानी की पुराने मेयर की बीवी, जो अपने पति को हटाकर खुद अब मेयर थी। आर्यमणि ने पहले तो अपना पहचान बताया। आर्यमणि से मिलकर मानो वो मेयर खुश हो गयी हो। उसे भी 50 हजार यूएसडी का चंदा मिला और बदले में अपस्यु और आरव के ग्रीन कार्ड बन गये। स्वस्तिका अपनी अलग पहचान के साथ भारत वापस लौट रही थी। ऐमी की तो अपनी पहचान थी ही और पार्थ पहले से एक ब्रिटिश नागरिक था।


हर कोई विदा लेकर चल दिया। अपस्यु अपनी टीम को सदमे से उबरा देख काफी खुश नजर आ रहा था। नम आंखों से अपने दोनो हाथ जोडकर आर्यमणि से विदा लिया।
Ab to sab ka dhamal hi dekhne ko milega
Dono ka dusman ye secret prahari hai
 

Kala Nag

Mr. X
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भाग:–70





नजारा अकल्पनीय था। आर्यमणि जितना तेज हो सकता था उतना तेज हमला करता और वह लड़का उस से भी तेज बचते हुये जवाबी हमला करता। तेजी के साथ लगातार पड़ते मुक्कों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। एक तो दम से मारा गया मुक्का उसमे भी बिजली की रफ्तार। आर्यमणि के जिस अंग पर मुक्का लगता वह हिस्सा 4 इंच तक धंस जाता। कुछ ही पल में आर्यमणि का पूरा बदन सूज चुका था। हांफते और बदहाली में वह पीछे हटा और खड़ा होकर अपने दर्द से उबरने की कोशिश करने लगा। शरीर में इतनी क्षति हुई थी कि अब वह हाथों से हील नही हो पा रहा था। आंख की रौशनी बिलकुल धुंधली हो गयी थी और दिमाग अब गहरी निद्रा में जाने के लिये तड़प रहा था। फिर भी आर्यमणि खुद को संभाले अपने नए दुश्मन को समझने की कोशिश कर रहा था, जो अपनी जगह से एक कदम भी इधर–उधर नही हुआ था।


खुद से उम्र में कहीं छोटे एक तिल्लिश्मी बालक को आर्यमणि ने एक बार और ध्यान से देखने की कोशिश की। लेकिन नजर इतनी साफ नही थी कि अब उस बालक का चेहरा अच्छे से देख पाये। फिर निकली आर्यमणि के मुंह से दिल दहला देने वाली आवाज। यूं तो इस आवाज का दायरा सीमित था, लेकिन सीमित दायरे में गूंजी ये आवाज किसी भयंकर तूफान से कम नही था।बवंडर सी आंधी जिस प्रकार आती है, आर्यमणि की दहाड़ ठीक वैसी ही बवंडर तूफान उठा रहा थे।


आर्यमणि अपना शेप पूर्ण रूप से बदल चुका था। हीरे की भांति चमकीला बदन, विशाल और कठोर। ऐसा लग रहा था चमरी के जगह सीसा रख दिया हो, जिसके नीचे पूरे बदन पर फैले रक्त नलिकाओं को देखा जा सकता था, जिसमे बिलकुल गहरे काला रंग का खून बह रहा था। आर्यमणि अपने विकराल रूम में आ चुका था। उसका बदन पूरी तरह से हील हो चुका था तथा अपनी दहाड़ से उठे बवंडर के बीच एक बार फिर आर्यमणि उस लड़के के सामने खड़ा था।


एक बार फिर मारने की कोशिश अपने चरम पर थी। आर्यमणि पूरी रफ्तार से हमला किया और नतीजा फिर से वही हुआ, काफी तेज रिफ्लेक्स और जवाबी मुक्का उतने ही रफ्तार से लगा। फिर से खेल शुरू हो चुका था, लेकिन इस बार उस लड़के का मुक्का जब भी पड़ता पहले के मुकाबले कमजोर होता। अब तक आर्यमणि उस लड़के को छू भी नहीं पाया था, लेकिन फिर भी इस बार वह लड़का धीमा पड़ता जा रहा था।


आर्यमणि ने हथेली से जितने भी दर्द लिये। जितने भी टॉक्सिक उसने आज तक समेटा था, सब के सब उसके रक्त कोशिकाओं में बह रहा था। जब भी वह लड़का आर्यमणि के बदन पर मुक्का चलाता, ऐसा लगता उसका मुक्का 4 इंच तेजाब में घुस गया हो। ऐसा तेजाब जिसका असर बाद में भी बना रहता। और यही वजह थी कि वह लड़का धीरे–धीरे कमजोर पड़ने लगा था। एक वक्त ऐसा भी आया जब मुक्का तो पड़ रहा था लेकिन अब मानो आर्यमणि के शरीर को मात्र स्पर्श जैसा महसूस हो रहा हो। हां उस लड़के के रिफ्लेक्स अब भी काफी तेज थे। आर्यमणि उसे छू नही पा रहा था लेकिन जवाबी मुक्का भी अब बेअसर सा दिख रहा था।


कुछ वक्त बिताने के बाद आर्यमणि के हाथ अब मौका आ चुका था। पूर्ण रूप से तैयार आर्यमणि ने पूरे दहाड़ के साथ एक तेज हमला किया। आर्यमणि के हमले से बचने के लिये वह लड़का मुक्के के दिशा से अपने शरीर को किनारे किया और जैसे ही अपना मुक्का चलाया, ठीक उसी वक्त आर्यमणि ने अपना दूसरा मुक्का उस लड़के के मुक्के पर ही दे मारा। लागातार टॉक्सिक से टकराने के कारण उस लड़के का मुक्का पहले ही धीमा पड़ गया था, और उसके पास इस बार आर्यमणि के मुक्के से बचने का कोई काट नही था।


एक सम्पूर्ण जोरदार मुक्का ही तो पड़ा था और वह कहावत सच होती नजर आने लगी... "100 चोट सोनार की, एक चोट लोहार की"…. ठीक उसी प्रकार आर्यमणि के एक जोरदार मुक्के ने उस लड़के को हक्का बक्का कर दिया। वो तो शुक्र था कि उस लड़के ने ना तो सामने से मुक्का में मुक्का भिड़ाया था और न ही आर्यमणि का जब मुक्का उसके कलाई के आस–पास वाले हिस्से में लगा, तो उस हिस्से के ठीक पीछे कोई दीवार या कोई ऐसी चीज रखी हो जो रोकने का काम करे। यदि आर्यमणि के मुक्के और किसी दीवार के बीच उस बालक का वो कलाई का हिस्सा आ गया होता, तब फिर सबूत न रहता की उस हाथ में पहले कभी कलाई या उसके नीचे का पंजा भी था।


आर्यमणि का मुक्का पड़ा और उस लड़के का हाथ इतनी तेजी से हवा में लहराया की उसके कंधे तक उखड़ गये। हवा में लहराने से उसकी सारे नशे खींच चुकी थी। दवाब के कारण उसके ऊपरी हाथ में कितने फ्रैक्चर आये होंगे ये तो उस लड़के का दर्द ही बता रहा होगा लेकिन जिस हिस्से में आर्यमणि का मुक्का लगा वह पूरा हिस्सा झूल रहा था। दर्द और पीड़ा से वह लड़का अंदर ही अंदर पागल हो चुका था। एक हाथ ने पूरा काम करना बंद कर दिया था, लेकिन जज्बा तो उसका भी कम नही था। बिना दर्द का इजहार किये वह लड़का अब भी अपने जगह पर ही खड़ा था। न तो वह अपनी जगह से हिला और न ही लड़ाई रोकने के इरादे से था।


आर्यमणि हमला करना बंद करके 2 कदम पीछे हुआ... "जितना वक्त लेना है, लेकर खुद को ठीक करो।"..


वह लड़का अपने कमर से एक खंजर निकालते.... "तुम्हारी तरह खुद को मैं ठीक नही कर सकता लेकिन तैयार हूं।"… इतना कहकर उस लड़के ने आर्यमणि को आने का इशारा किया। फिर से वही तेज–तेज हमले का सिलसिला शुरू हो गया। अब वह लड़का खंजर थाम ले या बंदूक। उसके दोनो हाथ के मुक्के ने आर्यमणि के बदन का इतना टॉक्सिक छू लिया था कि अब वह काम करने से तो रहा। मात्र एक पंच का तो मामला था, आर्यमणि जाते ही एक मुक्का घूमाकर दे दिया। उस लड़के का दूसरा हाथ भी पूरा बेकार हो चुका था।


एक बार फिर आर्यमणि अपना कदम पीछे लिया। 2 कदम नहीं बल्कि पूरी दूरी बनाकर अब उसकी हालत का जायजा ले रहा था और उस लड़के को भी पूरा वक्त दिया, जैसे की उसने पहले आर्यमणि को दिया था। वह लड़का दर्द में भी मुस्कुराया। दोनो हाथ में तो जान बचा नही था, लेकिन फिर भी आंखों के इशारे से लड़ने के लिये बुला रहा था। आर्यमणि अपना कदम आगे बढ़ाते…. "जैसे तुम्हार मर्जी"…कहने के साथ ही अपनी नब्ज को काटकर तेज फूंक लगा दिया।


अंदर की फूंक बहुत ज्यादा तेज तो नही लेकिन तेज तूफान उठ चुका था। खून की बूंदें छींटों की तरह बिखर रही थी। तूफान के साथ उड़ते छींटे किसी घातक अम्लीय वर्षा से कम न था। लेकिन उस लड़के का रिफ्लेक्स.… आती हुई छींटों को भी वह किसी हथियार के रूप में देख रहा था। किंतु वह लड़का भी क्या करे? यह एक दिशा से चलने वाला कोई मुक्का नही था, जो अपने रिफ्लेक्स से वह लड़का खुद को मुक्के की दिशा से किनारे कर लेता। चाहु दिशा से आर्यमणि का रक्त बारिश चल रहा था। कुछ छींटों से तो बच गया, लेकिन शरीर के जिस हिस्से पर खून की बूंद गिरी, वह बूंद कपड़े समेत शरीर तक में छेद कर देता। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने उस लड़के के पूरे बदन में ही छेद–छेद करने का इरादा बना लिया था।



बड़े आराम से आर्यमणि अपना एक–एक कदम आगे बढ़ाते हुये, अपने फूंक को सामने की निश्चित दिशा देते बढ़ रहा था। आर्यमणि उस लड़के के नजदीक पहुंचकर फूंकना बंद किया और अपनी कलाई को पकड़ कर हील किया। आर्यमणि पहली बार उस लड़के के भावना को मेहसूस कर रहा था। असहनीय पीड़ा जो उसकी जान ले रही थी। अब कहां इतना दम बचा की खुद को बचा सके। हां किंतु आर्यमणि उसे अपने तेज हथौड़े वाला मुक्के का स्वाद चखाता, उस से पहले ही वह लड़का बेहोश होकर धम्म से गिर गया।


आर्यमणि इस से पहले की आगे कुछ सोचता उसके पास 2 लोग और पहुंच चुके थे.… "आर्य इसे जल्दी से उठा, और कॉटेज लेकर चल"….. यह आवाज सुनकर आर्यमणि के चेहरे पर जैसे मुस्कान आ गयी हो। मुड़कर देखा तो न केवल वहां निशांत था, बल्कि संन्यासी शिवम भी थे। आर्यमणि के चेहरे की भावना बता रही थी की वह कितना खुश था। लेकिन इस से पहले की वह अपनी भावना जाहिर करता, निशांत दोबारा कह दिया... "गधे, भरत मिलाप बाद में करेंगे, पहले उस लड़के की जान बचाओ और कॉटेज चलो"…


आर्यमणि, उस लड़के को अपने गोद में उठाकर, उसके जख्म को हील करते कॉटेज के ओर कदम बढ़ा दिया... "ये मेरा कोई टेस्ट था क्या?"..


निशांत:– हां कह सकते हो लेकिन टेस्ट उस लड़के का भी था।


आर्यमणि:– क्या ये तुम लोगों में से एक है?


संन्यासी शिवम:– हां हम में से एक है और इसे रक्षक बनना था इसलिए अपना टेस्ट देने आया था।


आर्यमणि:– ये रक्षक क्या होता है?


संन्यासी शिवम:– साथ चलो, हमारे आचार्य जी आ चुके है वो सब बता देंगे...


सभी कॉटेज पहुंचे। कॉटेज में भरा पूरा माहोल था। मीटर जितनी सफेद दाढ़ी में एक वृद्ध व्यक्ति के साथ कुछ संन्यासी और योगी थे। एक प्यारी सी किशोरी भी थी, जो उस लड़के को मूर्छित देखते ही बेहोश हो गयी। शायद उसे किसी प्रकार का पैनिक अटैक आया था। संन्यासी शिवम के कहने पर आर्यमणि ने उस लड़की का भी उपचार कर दिया। दोनो किशोर गहरी निद्रा में थे। आर्यमणि दोनो को ऊपर लिटाकर नीचे सबके बीच आया।


आर्यमणि, अपने दोनो हाथ जोड़ते... "यहां चल क्या रहा है? वो लड़का कौन है जिसे मरना पसंद था लेकिन अपनी जमीन उसने छोड़ा नहीं। क्या आप लोग भी प्रहरी तो नही बनते जा रहे, जो इंसानों को ही हथियार बना रहे हो।


निशांत:– कोई भी बात समझ ले न पहले मेरे भाई..


आर्यमणि:– समझना क्या है यार... कभी किसी जानवर का दर्द लो और उसे सुकून में देखो। तुम्हारी अंतरात्मा तक खुश हो जायेगी। वो एहसास जब तुम बेजुबानों के आंखों में अपने प्रति आभार मेहसूस करते देखते हो। मुख से कुछ बोल नही सकते लेकिन अपने रोम–रोम से वह धन्यवाद कहते है। जान लेना आसान है, पर जान बचाने वाले से बढ़कर कोई नही...


निशांत:– मुझ पर हमला होते देख तुमने तो कई लोगों की कुरुरता से जान ले ली थी। जिसकी तू बात कर रहा है उसके आंखों के सामने उसकी मां को जिंदा आग की भट्टी में झोंक दिया। लोग यहां तक नही रुके। जिसके साथ पढ़ा था, हंसा, खेला, और पूरे साल जिनके साथ ही रहता था, उतने बड़े परिवार को एक साथ आग की भट्टी में झोंक दिया। उसे कैसा होना चाहिए? तूने उस लड़के की उम्र देखी न, अब तू ही तय कर ले की उसकी मानसिकता कैसी होनी चाहिए?


आर्यमणि कुछ देर खामोश रहने के बाद.… "तो क्या वो मेरे हाथ से मारा जाता तो उसका बदला पूरा हो जाता? या फिर मुझे कहते बदला लेने?


आचार्य जी:– "उसका नाम अपस्यु है। अपने गुरुकुल काल के दूसरे वर्ष में उसने अपनी सातवी इंद्री जागृत कर ली थी। पांचवे वर्ष में सारी इंद्रियों पर नियंत्रण पा चुका था। हर शास्त्र का ज्ञान। जितनी हम सिद्धियां जानते है उन पूर्ण सिद्धियों का ज्ञान। ये सब उसने गुरुकुल के पांचवे साल तक अर्जित कर लिया था। उसके और हमारे गुरु, गुरु निशी उसे एक रक्षक बनाना चाहते थे। उसका अस्त्र और शस्त्र का प्रशिक्षण शुरू ही होने वाला था कि उसकी जिंदगी ही पूरी बदल गयी।"

"जिस वक्त गुरु निशी की मृत्यु हुई, अपस्यु ही उनका प्रथम शिष्य थे। प्रथम शिष्य यानी गुरु के समतुल्य। अब इसे अपस्यु की किस्मत कहो या नियति, वह अचानक सात्त्विक आश्रम का गुरु बन गया। बीते कुछ महीनों में जिस प्रकार से तुमने योग और तप का आचरण दिखाया, अपस्यु को लग गया कि तुम आश्रम के सबसे बेहतर गुरु बनोगे। एक विशुद्ध ब्राह्मण जो अलौकिक मुहरत में, ग्रहों के सबसे उत्तम मिलन पर एक अलौकिक रूप में जन्म लिये।"

"मैने ही उनसे कहा था कि आर्यमणि एक रक्षक के रूप में ज्यादा विशेष है और उसका अलौकिक जन्म भी उसी ओर इशारा कर रहे। अपस्यु नही माना और कहने लगा "यदि वो बिना छल के केवल अपने शारीरिक क्षमता से तुम्हे हरा देगा, तब हमे उसकी बात माननी होगी।" अपस्यु, तुम्हारे सामने नही टिक पाया और रक्षक न बनने के मलाल ने उसे अपनी जगह से हिलने नही दिया।


आर्यमणि:– छल मतलब कैसा छल करके जीत जाते...


निशांत:– ठीक वैसे ही जैसे पारीयान के तिलिस्म में हमने अनजाने में उस शेर को छला था, भ्रम से। कई तरह के मंत्र से। और वो तो आश्रम के गुरुजी हुये, उसके पास तो वो पत्थर भी है जो तुम्हे बांध दे। यहां के पत्थरों के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावशाली।


आर्यमणि:– और वो लड़की कौन थी.. जो इस बालक गुरुजी को देखकर बेहोश हो गयी।


निशांत:– उसकी परछाई.. उसकी प्रीयसी... अवनी.. वह गुरुजी को बेहोशी की हालत में घायल देख ले, फिर उसकी स्थिति मरने जैसी हो जाती है...


"इतनी छोटी उम्र में ऐसा घनिष्ठ रिश्ता... अतुलनीय है..."… आर्यमणि इतना कहकर निशांत को खींचकर एक थप्पड़ लगा दिया...


निशांत:– अब ये क्यों?


आर्यमणि:– घर के अंदर आते ही ताक झांक करने और उन 40 पत्थरों को देखने के लिये, जिसे मैंने अब तक न दिखाया था...


निशांत:– मैने कब देखा उसे...


आर्यमणि:– अच्छा इसलिए थोड़ी देर पहले मुझे कह रहा था की बालक गुरुजी के पास ऐसे पत्थर है जो मेरे पास रखे पत्थरों के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावशाली..


निशांत:– पकड़ लिया तूने... वैसे गलती हमारी नही है। ऐसे पत्थर को जबतक सही तरीके से छिपा कर नही रखोगे वह अपने पीछे निशान छोड़ती है।


आर्यमणि:– क्या मतलब निशानी छोड़ती है...क्या इस पत्थर के सहारे इसका मालिक यहां तक पहुंच सकता है...


आचार्य जी:– अब नही पहुंचेगा... सभी निशानी को मिटाकर एक भ्रमित निशान बना दिया है जो दुनिया के किसी भी कोने में पत्थर के होने के संकेत दे सकते है। शुक्र है ये पत्थर पानी के रास्ते लाये वरना कहीं हवा या जमीनी मार्ग से लाते तब तो इसका मालिक कबका न पहुंच गया होता।


आर्यमणि:– कमाल के है आप लोग। निशांत ने अभी कहा कि बालक गुरुजी बिना छल के लड़े, तो उनका शरीर हवा जैसा लचीला क्यों था?


आचार्य जी:– तुम्हारा शरीर भी तो एक प्राकृतिक संरचना ही है ना, फिर तुम कैसे रूप बदलकर अपने शरीर की पूरी संरचना बदल लेते हो। ये शरीर अपने आप में ब्रह्म है। इसपर जितना नियंत्रण होगा, उतना ही विशेष रूप से क्षमताओं को निखार सकते है।


आर्यमणि:– एक बात बताइए की जब आपके पास सब कुछ था। अपस्यु जब अपने शिक्षा के पांचवे वर्ष सारी सिद्धियां प्राप्त कर लिया था। फिर उसकी मां, गुरुजी, ये सब कैसे मर गये। क्या अपस्यु इन सबकी रक्षा नही कर सकता था?


आचार्य जी:– होने को तो बहुत कुछ हो सकता था लेकिन गुरु निशी किसी साजिश का शिकार थे। भारे के कातिल और सामने से मारने वाले में इतना दम न था। किसी ने पीछे से छल किया था जिसके बारे में अब पता चला है... अपस्यु के साथ में परेशानी यह हो गयी की वह बहुत छोटा था और मंत्रों का समुचित प्रयोग उस से नही हो पाया।


आर्यमणि:– सारी बात अपनी जगह है लेकिन बिना मेरी सहमति के आप मुझे रक्षक या गुरु कैसे बना सकते है। बताओ उस लिलिपुटियन (अपस्यु) ने मुझे ऐसा मारा की मेरे शरीर के पुर्जे–पुर्जे हिला डाले। यदि मैंने दिमाग न लगाया होता तब तो वह मुझे पक्का घुटनों पर ला दिया होता। उसके बाद जब मैंने उसके दोनो कलाई तोड़ डाले फिर भी वह अपनी जगह छोड़ा नहीं। बताओ कहीं मैं सीने पर जमाकर एक मुक्का रख दिया होता तो। और हां मैं अपने पैक और ये दुनिया भ्रमण को छोड़कर कुछ न बनने वाला। रक्षक या गुरु कुछ नही। बताओ ये संन्यासी शिवम, इनके साथ और न जाने कितने महर्षि और योगी है, जो आश्रम का भार संभाल सकते हैं लेकिन आप आचार्य जी उस बच्चे को छोड़ नही रहे। उल्टा मैं जो आपके कम्युनिटी से दूर–दूर तक ताल्लुक नहीं रखता, उसे गुरु या रक्षक बनाने पर तुले हो।


आचार्य जी:– बातें बहुत हो गयी। मैं तुम्हे रक्षक और गुरु दोनो के लिये प्रशिक्षित करूंगा। और यही अपस्यु के लिये भी लागू होगा। मुझे समझाने की जरूरत नहीं की क्यों तुम दोनो ही। अपस्यु जानता है कि वही गुरु क्यों है। अब तुम्हारी बारी... अपने क्ला मेरे मस्तिष्क में डालो...


आर्यमणि:– हो ही नही सकता... मैने रूही से वादा किया है कि ज्ञान पाने के लिये कोई शॉर्टकट नही...


आचार्य जी:– तुम्हारे पास जो है वो अलौकिक वरदान है। इस से समाज कल्याण के लिये ज्ञान दे रहा हूं। तुम्हारी मर्जी हो तो भी ठीक, वरना जब तुम्हे ज्ञान होगा तब खुद ही समझ जाओगे की क्यों हमने जबरदस्ती किया?


आर्यमणि:– रुको तिलिस्मी लोगो, मैं अपनी मर्जी से क्ला डालता हूं। पहले लिथेरिया वुलापीनी का इंजेक्शन तो लगा लेने दो...


आचार्य जी:– उसकी जरूरत नही है। बहुत कुछ तुम अपने विषय में भी नही जानते, उसका अध्यन भी जरूरी है।... तुम्हारे क्ला अंदर घुसने से मैं वेयरवोल्फ नही बन सकता... डरो मत...


आर्यमणि:– ये तो नई बात पता चल रही है। ठीक है जैसा आप कहो...


आर्यमणि अपनी बात कहते क्ला को उनके गले के पीछे डाल दिया। लगभग एक दिन बाद आर्यमणि की आंखें खुल रही थी। जब उसकी आंखें खुली चेहरे पर मुस्कान और आंखों में आचार्य जी के लिये आभार था।


आर्यमणि:– आचार्य जी मुझे आगे क्या करना होगा...


आचार्य जी:– तुम्हे अपने अंदर के ज्ञान को खुद में स्थापित करना होगा।


आर्यमणि:– मतलब..


गुरु अपस्यु के साथ वाली लड़की अवनी.… "आचार्य जी के कहने का मतलब है सॉफ्टवेयर दिमाग में डाल दिया है उसे इंस्टॉल कीजिए तब जाकर सभी फाइल को एक्सेस कर पायेंगे।"..


आर्यमणि:– तुम दोनो कब जागे... और आज कुछ नये चेहरे भी साथ में है।


आचार्य जी:– हम लोगों के निकलने का समय हो गया है। आर्यमणि तुम जीवन दर्शन के लिये निकले हो, अपने जीवन का अनुभव के साथ अपनी सारी सिद्धियां प्राप्त कर लेना। जीवन का ज्ञान ही मूल ज्ञान है, जिसके बिना सारी सिद्धियां बेकार है। प्रकृति की सेवा जारी रखना। ये तुम्हारे वायक्तिव, और पाने वाले सिद्धियों को और भी ज्यादा निखारेगा। हम लोग जा रहे है, बाकी दोनो गुरुजी आपस में जान पहचान बना लो।


आर्यमणि:– और निशांत...


निशांत:– अभी मेरी तपस्या अधूरी है। आचार्य जी ने एक दिन का विश्राम दिया था। वो आज पूरा हो गया।


संन्यासी शिवम ने वहीं से पोर्टल खोल दिया। सभी लोग उस पोर्टल के जरिये निकल गये, सिवाय अपस्यु और उसके साथ के कुछ लोगों के। आर्यमणि, अपस्यु के साथ जंगलों के ओर निकला... "और छोटे गुरु जी अपने साथ मुझे भी फसा दिये।"..
यहाँ अपष्यु
तो दूल्हा अपष्यु था
अच्छा बैंड बाजा बारात था
 

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भाग:–71







संन्यासी शिवम ने वहीं से पोर्टल खोल दिया। सभी लोग उस पोर्टल के जरिये निकल गये, सिवाय अपस्यु और उसके साथ के कुछ लोगों के। आर्यमणि, अपस्यु के साथ जंगलों के ओर निकला... "और छोटे गुरु जी अपने साथ मुझे भी फसा दिये।"..


अपस्यु:– बड़े गुरु जी मुझे लगा अब मैं रक्षक बन जाऊंगा। लेकिन आचार्य जी ने हम दोनो को फसा दिया। खैर अच्छा लगा आपसे मिलकर। मात्र कुछ महीनो के ध्यान में अपने कुंडलिनी चक्र को जागृत कर लेना कोई मामूली बात नही है। आप प्रतिभा के धनी है।


आर्यमणि:– तारीफ तो तुम्हारी भी होनी चाहिए छोटे, इतनी कम उम्र में गुरु जी। खैर अब इस पर चर्चा बंद करते हैं। क्या तुम मुझे हवा की तरह तेज लहराना सिखाओगे...


अपस्यु:– हां क्यों नही बड़े गुरु जी। बहुत आसान है.. और आपके लिये तो और ज्यादा आसान होगा..


आर्यमणि:– कैसे...


अपस्यु:– आप इस पूरे वातावरण को मेहसूस कर सकते हो, खुद में समा सकते हो। ॐ का जाप करके मन के सभी ख्यालों को भूल जाओ और बहती हवा को मेहसूस करो...


आर्यमणि:– हां, हां..


अपस्यु:– अब बस हवा के परिवर्तन को सुनो..


आर्यमणि:– हां, हां..


अपस्यु:– बस मेहसूस करो...


आर्यमणि बिलकुल खो गया। इधर हवा का परिवर्तन यानी अपस्यु का तेजी से चाकू चलाना। आर्यमणि अब भी आंखे मूंदे था। वह बस हवा के परिवर्तन को मेहसूस करता और परिवर्तित हवा के विपरीत अपने शरीर को ले जाता, जबकि उसके पाऊं एक जगह ही टीके थे।


अपस्यु:– बड़े गुरुजी आंखे खोल लो। आंखें आपकी सब कुछ देखेगी लेकिन अंतर्मन के ध्यान को हवा की भांति बहने दो। हवा के परिवर्तन को मेहसूस करते रहो...


आर्यमणि अपनी आंखें खोल लिया। वह चारो ओर देख रहा था, लेकिन अंदर से उसका ध्यान पूरे वातावरण से घुला–मिला था। अपस्यु लगातार आर्यमणि पर चाकू से वार कर रहा था और आर्यमणि उसे अपनी आंखों से देखकर नही बच रहा था। बल्कि उसकी आंखें देख रही थी की कैसे हवा के परिवर्तन को मेहसूस करके शरीर इतना तेज लहरा रहा है...


आर्यमणि:– और तेज छोटे गुरुजी..


अपस्यु भी हवा को मेहसूस करते काफी तेज हमला कर रहा था... दोनो के बदन मानो हवा की सुर में लहरा रहे थे। जितना तेज अपस्यु हमला कर रहा था, उस से भी कहीं ज्यादा तेज आर्यमणि अपना बचाव कर रहा था। दोनो विराम लिये। अपस्यु आगे चर्चा करते हुये आर्यमणि से सिर्फ इतना ही कहा की जब आप पूर्ण रूप से वातावरण में खो जाते हैं, तब कण–कण को मेहसूस कर सकते है।


आर्यमणि काफी खुश हुआ। दोनो की चर्चा आगे बढ़ी। अपस्यु ने सबसे पहले तो अपने और अवनी के बीच चल रहे रिश्ते को किसी से न बताने के लिये कहा। दुनिया और दोस्तों की नजरों में वो दोनो केवल अच्छे दोस्त थे, जबकि आचार्य जी या फिर गुरु निशी से ये बात कभी छिपी नही रही की अपस्यु और अवनी एक दूसरे को चाहते हैं। आर्यमणि मान गया।


चर्चाओं का एक छोटा सा सिलसिला शुरू हुआ। अपस्यु ने आश्रम पर चल रहे साजिश के बारे में बताया। शुरू से लेकर आज तक कैसे आश्रम जब भी उठने की कोशिश करता रहा है, कुछ साजिशकर्ता उसे ध्वस्त करते रहे। गुरु निशी की संदिग्ध मृत्यु के विषय में चर्चा हुई। अपस्यु के अनुसार.… "जिन लोगों ने आश्रम में आग लगायी वो कहीं से भी गुरु निशी के आगे नहीं टिकते। सामने रहकर मारने वाले की तो पहचान है लेकिन पीछे किसकी साजिश थी वह पता नहीं था, तबतक जबतक की आर्यमणि के पीछे संन्यासी शिवांश नही पहुंचे थे। और अब हमें पता है की लंबे समय से कौन पीछे से साजिश कर रहा था। लेकिन अपने इस दुश्मन के बारे में जरा भी ज्ञान नहीं।"



आर्यमणि मुस्कुराते हुये कहने लगा.… "धीरे बच्चे.. मैं बड़ा और तुम छोटे।"..


अपस्यु:– हां बड़े गुरुजी..


आर्यमणि:– "ठीक है छोटे फिर तुम जो ये अपनो को समेट कर खुद में सक्षम होने का काम कर रहे थे, उसे करते रहो। कुछ साल का वक्त लो ताकि दिल का दर्द और हल्का हो जाये। ये न सिर्फ तुम्हारे लिये बेहतर होगा बल्कि तुम्हारी टीम के लिये भी उतना ही फायदेमंद होगा। जिसने तुम्हारे आंखों के सामने तुम्हारे परिवार को मारा, वो तुम्हारा हुआ। मारना मत उन्हे... क्योंकि मार दिये तो एक झटके में मुक्ति मिल जायेगी। उन्हे सजा देना... ऐसा की मरने से पहले पल–पल मौत की भीख मांगे।"

"परदे के पीछे वाला जो नालायक है वो मेरा हुआ। मेरे पूरे परिवार को उसने बहुत परेशान किया है। मेरे ब्लड पैक को खून के आंसू रुलाये हैं। इनका कृतज्ञ देखकर मैं आहत हूं। निकलने से पहले मै उनकी लंका में सेंध मारकर आया था। संन्यासी शिवांश से आग्रह भी कर आया था कि मेरे परिवार की देखभाल करे।"


अपस्यु:– आश्रम के कई लोग नागपुर पहुंच चुके है। हमारी सर्विलेंस उन अजीब से लोगों पर भी शुरू हो चुकी है जो आश्रम के दुश्मन है। हम उन्हे अब समझना शुरू कर चुके है। उनके दिमाग से खेलना शुरू कर चुके है।


आर्यमणि:– उस आदमी से कुछ पता चला, जिसे संन्यासी शिवम को मैने पैक करके दिया था। (थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी, जिसे संन्यासी शिवम अपने साथ ले गया था)


अपस्यु:– आपने जिस आदमी को पैक करके शिवम के साथ भेजा था, वह मरा हुआ हमारे पास पहुंचा। अपने समुदाय का काफी वफादार सेवक था। हमने वहीं उसका अंतिम संस्कार कर दिया।


आर्यमणि:– उस तांत्रिक का क्या हुआ जिसे रीछ स्त्री के पास से पकड़े थे।


अपस्यु:– तांत्रिक उध्यात एक जटिल व्यक्ति है। हम उन्हे बांधने में कामयाब तो हुये है, लेकिन कुछ भी जानकारी नही निकाल सके। उनके पास हमलोगों से कहीं ज्यादा सिद्धि है, जिसका तोड़ हमारे पास नही। कुछ भी अनुकूल नहीं है शायद। और हम हर मोर्चे पर कमजोर दिख रहे।


आर्यमणि:– मरना ही तो है, कौन सा हम अमर वरदान लेकर आये हैं। फिर इतनी चिंता क्यों? इतनी छोटी उम्र में इतना बोझ लोगे तो जो कर सकते हो, वो भी नही कर पाओगे। चिल मार छोटे, सब अच्छा ही होगा।


अपस्यु:– हां कह सकते है। मुझे बड़े गुरु जी मिल गये। सो अब मैं अपनी नाकामी पर शर्मिंदा नहीं हो सकता क्योंकि मेरे ऊपर संभालने वाला कोई आ गया है। वरना पहले ऐसा लगता था, मैं गलती कैसे कर सकता हूं।


आर्यमणि:– चलो फिर सुकून है। आज से अपनी चिंता आधी कर दो। दोनो पक्ष को हम एक साथ सजा देंगे। तुम आग लगाने वाले को जिस अवधि में साफ करोगे, उसी अवधि में मैं इन एपेक्स सुपरनैचुरल का भी सफाया करूंगा। हम दोनो ये काम एक वक्त पर करेंगे।


अपस्यु:– हां ये बेहतर विकल्प है। जबतक हम अपनी तयारी में भी पूरा परिपक्व हो जायेंगे।


आर्यमणि:– बिलकुल सही कहा...


अपस्यु:– मैने सुना है ये जो आप इंसानी रूप लिये घूम रहे है, वो मेकअप से ऐसा बदला है कि वास्तविक रूप का पता ही नही चलता। इतना बढ़िया आर्ट सीखा कहां से।


आर्यमणि:– मेरे बीते वक्त में एक दर्द का दौड़ था। उस दौड़ में मैने बहुत सी चीजें सीखी थी। कुछ काम की और कुछ फालतू... ये मेरे फालतू कामों में से एक था जो भारत छोड़ने के बाद बहुत काम आया।


अपस्यु:– हमारे साथ स्वस्तिका आयी है। गुरु निशी की गोद ली हुई पुत्री है। उसे ये आर्ट सीखा दो ना बड़े गुरुजी...


आर्यमणि:– मेरे पास कुछ विषय के विद्वानों का ज्ञान है। चलो देखते हैं किसकी किसमे रुचि है, उनको शायद मैं मदद कर सकूं। वैसे एक बात बताओ मेरे घर का सिक्योरिटी सिस्टम को किसी मंत्र से तोड़ा या कोई कंप्यूटर एक्सपर्ट है।


अपस्यु:– एमी है न, वही ये सारा काम देखती है..


आर्यमणि:– विश्वास मानो इस भौतिक दुनिया में कंप्यूटर और पैसे से बड़ा कोई सुपरनैचुरल पावर नही। अच्छा लगा एक कंप्यूटर एक्सपर्ट तुम्हारी टीम में है..


अपस्यु:– अभी तो सब सीख ही रहे है। और पैसे अपने पास तो बिलकुल नही, लेकिन आश्रम को जलाने वाले दुश्मन के इतने पैसे उड़ाये है कि कहां ले जाये, क्या करे कुछ समझ में नहीं आ रहा।


आर्यमणि:– मेरी भूमि दीदी ने एक बात समझाई थी। पैसे का कभी भी सबूत न छोड़ो। और जो पैसा सिर दर्द दे, उसे छोड़कर निकल जाओ... पैसा वो तिलिस्मी चीज है जिसके पीछे हर कोई खींचा चला आता है। एक छोटी सी भूल और आपका खेल खत्म।


अपस्यु:– आपको बाहरी चीजों का बहुत ज्ञान है बड़े गुरु जी। मैं तो गुरुकुल में ही रहा और वहां से जब बाहर निकला तब दुनिया ही बदल चुकी थी। पहले अपनी दुनिया समेट लूं या दुनिया को समझ लूं यही विडंबना है।


आर्यमणि:– "मैं भी शायद कभी जंगल से आगे की दुनिया नही समझ पाता। मैने एक कमीने की जान बचाई। और उसी कमीने ने बदले में लगभग मेरी जान ले ली थी। एक लड़की ने मुझसे कहा था, हर अच्छाई का परिणाम अच्छा नहीं होता। शायद तब वो सही थी, क्योंकि मैं नर्क भोग रहा था। उस वक्त मुझे एहसास हुआ की मरना तो आसान होता है, मुश्किल तो जिंदगी हो जाती है।"

"खैर आज का आर्यमणि उसी मुश्किल दौड़ का नतीजा है। शायद उस लड़की ने, उस एक घटिया इंसान की करतूत देखी, जिसकी जान मैने बचाई थी। लेकिन उसके बाद के अच्छे परिणाम को वह लड़की देख नही पायी। मेरे एक अच्छे काम के बुरे नतीजे की वजह से मैंने क्या कुछ नही पाया था। ये जिंदगी भी अजीब है छोटे। अच्छे कर्म का नतीजा कहीं न कहीं से अच्छा मिल ही जाता है, बस किसी से उम्मीद मत करना...


अपस्यु:– आपसे बहुत कुछ सीखना होगा बड़े गुरुजी।


आर्यमणि:– नाना... मैं भी सिख ही रहा हूं। तुम भी आराम से अभी कुछ साल भारत से दूर रहो। सुकून से पहले इंसानो के बीच रहकर उनकी अजीब सी भावना को समझो। जिंदगी दर्शन तुम भी लो… फिर आराम से वापस लौटकर सबको सजा देने निकलना...


अपस्यु:– जैसा आप कहो। मेरे यहां के मेंटर तो आप ही हो।


आर्यमणि:– हम्म् सब मिलकर मुझे ही बाप बना दो.. वो तीन टीनएजर कम थे जो तुम्हारा भी एक ग्रुप आ गया।


अपस्यु:– कौन सा मैं आपके साथ रहने वाला हूं। बस बीच–बीच में एक दूसरे की स्किल साझा कर लिया करेंगे।


आर्यमणि:– हां लेकिन मेरी बात मानो और यहां से भारत लौटकर मत जाओ। पूरी टीम को पहले खुल कर जीने दो। कुछ साल जब माहोल से दूर रहोगे, तब सोच में बहुत ज्यादा परिवर्तन और खुद को ज्यादा संयम रख सकते हो। वैसे तुम तो काफी संतुलित हो। मुझसे भी कहीं ज्यादा, ये बात तो मैने जंगल में देख लिया। लेकिन तुम्हारी टीम के लिये शायद ज्यादा फायदेमंद रहे...


अपस्यु:– बड़े गुरु जी यहां रहना आसान होगा क्या?


आर्यमणि:– मुझे जो अनुभव मिला है वो तुम्हारे काम तो आ ही जायेगा। पहले अपनी टीम से मिलवाओ, फिर हम तुम्हारे दुश्मन के पैसे का भी जुगाड लगाते है।


आर्यमणि, अपस्यु की टीम से मिलने चला आया। अपस्यु और ऐमी (अवनी) के अलावा उनके साथ स्वस्तिका, नाम की एक लड़की, पार्थ और आरव नाम के 2 लड़के। कुल 5 लोगों की टीम थी। आर्यमणि ने सबसे थोड़ी जान पहचान बनानी चाही, किंतु अपस्यु को छोड़कर बाकी सब जैसे गहरे सदमे में हो। आर्यमणि उनकी भावना मेहसूस करके चौंक गया। अंदर से सभी काफी दर्द में थे।


आर्यमणि से रहा नही गया। आज से पहले उसने कभी किसी के भावना को अपने नब्ज में उतारने की कोशिश नही किया था। अचानक ही उसने ऐमी और आरव का हाथ थाम लिया। आंख मूंदकर वही "ॐ" का उच्चारण और फिर वह केवल उनके अंदर के दर्द भरी भावना के सिवा और कुछ भी मेहसूस नही करना चाह रहा था। आर्यमणि ने अपना हाथ रखा और भावना को खींचने की कोशिश करने लगा।


आंख मूंदे वह दोनो के दर्द को मेहसूस कर रहा था। फिर ऐसा लगा जैसे उनका दर्द धीरे–धीरे घटता जा रहा है। इधर उन दोनो को अच्छा लग रहा था और उधर आर्यमणि के आंखों से आंसू के धारा फुट रही थी। थोड़ी देर बाद जब आर्यमणि ने उनका हाथ छोड़ा, तब दोनो के चेहरे पर काफी सुकून के भाव थे। उसके बाद फिर आर्यमणि ने स्वस्तिका और पार्थ के हाथ को थाम लिया। कुछ देर बाद वो लोग भी उतने ही शांति महसूस कर रहे थे। अपस्यु अपने दोनो हाथ जोड़ते... "धन्यवाद बड़े गुरुजी"..


आर्यमणि:– तू बड़े ही कहा कर छोटे। हमारी बड़े–छोटे की जोड़ी होगी... मेरा कोई भाई नहीं, लेकिन आज से तू मेरा छोटा भाई है.. ला हाथ इधर ला…


अपस्यु ने जैसे ही हाथ आगे बढाया, आर्यमणि पहले चाकू से अपस्यु का हथेली चिर दिया, फिर खुद का हथेली चिड़कड़ उसके ऊपर रख दिया। दोनो २ मिनट के लिये मौन रहे उसके बाद आर्यमणि, अपस्यु का हाथ हील करके छोड़ दिया। जैसे ही आर्यमणि ने हाथ छोड़ा अपस्यु भी अपने हाथ उलट–पलट कर देखते... "काफी बढ़िया मेहसूस हो रहा। मैं एक्सप्लेन तो नही कर सकता लेकिन ये एहसास ही अलग है।"…


फिर तो बड़े–बड़े बोलकर सबने हाथ आगे बढ़ा दिये। एक छोटे भाई की ख्वाइश थी, तीन छोटे भाई, एक छोटी बहन और साथ में एक बहु भी मिल गयी, जिसका तत्काल वर्णन आर्यमणि ने नही किया। सोमवार की सुबह आर्यमणि का बड़ा सा परिवार एक छत के नीचे था। अपनी मस्ती बिखेड़कर अल्फा पैक भी वापस आ चुके थे। एक दूसरे से परिचय हो गया और इसी के साथ अल्फा पैक की ट्रेनिंग को एक नई दिशा भी मिल गयी।वुल्फ के पास तो हवा के परखने की सेंस तो पहले से होती है, लेकिन अल्फा पैक तो जैसे अपने हर सेंस को पूर्ण रूप से जागृत किये बैठे थे, बस जरूरत एक ट्रिगर की थी।


अपस्यु वहां रुक कर सबको हवा को परखने और पूर्ण रूप से वातावरण में खो कर उसके कण–कण को मेहसूस करने की ट्रेनिंग दे रहा था। और इधर आर्यमणि, अपस्यु और उसकी टीम को धीरे–धीरे ज्ञान से प्रकाशित कर रहा था। स्वस्तिका को डॉक्टर और मेक अप आर्टिस्ट वाला ज्ञान मिल रहा था। ऐमी को कंप्यूटर और फिजिक्स का। आरव को वाणिज्य और केमिस्ट्री। पार्थ को फिजिक्स, और केमिस्ट्री। इन सब के दिमाग में किसी याद को समेटने की क्षमता काफी कम थी। मात्र 5% यादें ही एक दिन में ट्रांसफर हो सकती थी।


वहीं अपस्यु के साथ मामला थोड़ा अलग था। उसका दिमाग एक बार में ही सभी विद्वानों के स्टोर डेटा को अपने अंदर समा लिया। चूंकि अपस्यु आश्रम का गुरु भी था। इसलिए आर्यमणि ने सीक्रेट प्रहरी के उन 350 कितना के आखरी अध्याय को साझा कर दिया जिसमे साधु को मारने की विधि लिखी थी। साथ ही साथ 50 मास्टर क्लास बुक जिसमे अलग–अलग ग्रह पर बसने वाले इंसानों और वहां के पारिस्थितिकी तंत्र तंत्र का वर्णन था, उसे भी साझा कर दिया।


खैर इन सब का संयुक्त अभ्यास काफी रोमांचकारी था। आर्यमणि ने अपस्यु और उसके पूरे टीम को तरह–तरह के हथियार चलाना सिखाया। ट्रैप वायर लगाना और शिकार को फसाने के न जाने कितने तरीके। जिसमे पहला बेहद महत्वपूर्ण सबक था धैर्य। किसी भी तरीके से शिकार पकड़ना हो उसके लिये सबसे ज्यादा जरूरी था धैर्य। उसके बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात, शिकार फसाने का तरीका कोई भी हो, लेकिन किसी भी तरीके में शिकार को शिकारी की भनक नहीं होनी चाहिए।


खैर संयुक्त अभ्यास जोरों पर था और उतने ही टीनएजर के झगड़े भी। कभी भी कोई भी टीनएजर किसी के साथ भी अपना ग्रुप बनाकर लड़ाई का माहोल बना देते थे। कभी–कभी तो आर्यमणि को अपने बाल तक नोचने पड़ जाते थे। हां लेकिन एक अलबेली ही थी जिसके कारनामों से घर में ठहाकों का माहोल बना रहता था। अलबेली तो अपने नाम की तर्ज पर अलबेली ही थी। इवान को चिढ़ाने के लिये वह पार्थ के साथ कभी–कभी फ्लर्ट भी कर देती और इवान जल–बूझ सा जाता। सभी टीनएजर ही थे और जो हाल कुछ दिन पहले अल्फा पैक का था, वैसा ही शोक तो इनके खेमे में भी था। दुनिया में कोई ऐसा शब्द नही बना जो किसी को सदमे से उबार सके, सिवाय वक्त के। और जैसे–जैसे सभी टीनएजर का वक्त साथ में गुजर रहा था, वो लोग भी सामान्य हो रहे थे।


अपस्यु की टीम को सबसे ज्यादा अच्छा जंगल में ही लगता। जब अल्फा पैक किसी जानवर या पेड़ को हील करते, वो लोग अपना हाथ उनके हाथ के ऊपर रख कर वह सबकुछ मेहसूस कर सकते थे, जो अल्फा पैक मेहसूस करता था। अपस्यु और उसके टीम की जिदंगी जैसे खुशनुमा सी होने लगी थी। अल्फा पैक के साथ वो लोग जीवन संजोना सिख रहे थे।


इसी बीच आर्यमणि अपने छोटे (अपस्यु) के काम में भी लगा रहा। अपने पहचान के मेयर की लंका तो खुद आर्यमणि लगा चुका था। इसलिए ग्रीन कार्ड के लिये किसी और जुगाड़ू को पकड़ना था। साथ ही साथ अपस्यु एंड टीम ने जो अपने दुश्मन के पैसे उड़ाये थे, उन्हे भी ठिकाने लगाना था। आर्यमणि कुछ सोचते हुये अपस्यु से लूट का अमाउंट पूछ लिया। अपस्यु ने जब कहा की उसने हवाला के 250 मिलियन उड़ाये हैं, आर्यमणि के होश ही उड़ गये। उस वक्त के भारतीय रुपए से तकरीबन 1000 करोड़ से ऊपर।


आर्यमणि:– ये थोड़ा रुपया है...


अपस्यु:– हमे क्या पता। हमारा तो लूट का माल है। जिनका पैसा है वो जाने की ऊसको कितना नुकसान हुआ।


आर्यमणि:– हम्मम रुको एक से पूछने दो। डील सेट हो गया तो पैसे ठिकाने लग जायेंगे...


आर्यमणि ने पार्किनसन को कॉल लगाया। कॉल लगाते ही सबसे पहले उसने यही पूछा की उसका हवाले का धंधा तो नही। उसने साफ इंकार कर दिया। उसने बताया की वह केवल वेपन, कंस्ट्रक्शन और गोल्ड के धंधे में अपना पैसा लगाता है। बाकी वह हर वो धंधा कर लेगा जिसमे कमीशन अच्छा हो। आर्यमणि ने 250 मिलियन का डील पकड़ाया, जिसे यूरोप के किसी ठिकाने से उठाना था। पार्केनसन एक शर्त पर इस डील को आगे बढ़ाने के लिये राजी हुआ... "जब कभी भी पैसे के पीछे कोई आयेगा, वह सीधा आर्यमणि के पीछे भेज देगा और कमीशन के पैसे तो भूल ही जाओ।" आर्यमणि ने जैसे ही उसके शर्त पर हामी भरी, डील सेट हो गया। 30% कमीशन से पार्किनसन ने मामला शुरू हुआ और 23% पर डील लॉक।


आधे घंटे में लोग ठिकाने पर पहुंच चुके थे। पूरे पैसे चेक हो गये। जैसे ही सब सही निकला अपस्यु के अकाउंट में पैसे भी ट्रांसफर हो गये। अपस्यु इस कमाल के कनेक्शन को देखकर हैरान हो गया। एक काम हो गया था। दूसरा काम यानी की ग्रीन कार्ड के लिये जब आर्यमणि ने पूछा तब पार्किनसन ने उसे या तो मेयर की बीवी से मिलने कह दिया, जो अपने पति को हटाकर खुद एक मेयर बन चुकी थी, या फिर शिकागो चले जाने कहा।


अपस्यु के दोनो समस्या का हल मिल गया था। लगभग 60 दिन साथ बिताने के बाद सभी ने विदा लिया। इस बीच आर्यमणि नए मेयर से मिला। यानी की पुराने मेयर की बीवी, जो अपने पति को हटाकर खुद अब मेयर थी। आर्यमणि ने पहले तो अपना पहचान बताया। आर्यमणि से मिलकर मानो वो मेयर खुश हो गयी हो। उसे भी 50 हजार यूएसडी का चंदा मिला और बदले में अपस्यु और आरव के ग्रीन कार्ड बन गये। स्वस्तिका अपनी अलग पहचान के साथ भारत वापस लौट रही थी। ऐमी की तो अपनी पहचान थी ही और पार्थ पहले से एक ब्रिटिश नागरिक था।


हर कोई विदा लेकर चल दिया। अपस्यु अपनी टीम को सदमे से उबरा देख काफी खुश नजर आ रहा था। नम आंखों से अपने दोनो हाथ जोडकर आर्यमणि से विदा लिया।
तो अपष्यु आरव पार्थ एमी स्वास्तिका के गुरु अपने आर्यमणि निकले
 

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संन्यासी शिवम ने वहीं से पोर्टल खोल दिया। सभी लोग उस पोर्टल के जरिये निकल गये, सिवाय अपस्यु और उसके साथ के कुछ लोगों के। आर्यमणि, अपस्यु के साथ जंगलों के ओर निकला... "और छोटे गुरु जी अपने साथ मुझे भी फसा दिये।"..


अपस्यु:– बड़े गुरु जी मुझे लगा अब मैं रक्षक बन जाऊंगा। लेकिन आचार्य जी ने हम दोनो को फसा दिया। खैर अच्छा लगा आपसे मिलकर। मात्र कुछ महीनो के ध्यान में अपने कुंडलिनी चक्र को जागृत कर लेना कोई मामूली बात नही है। आप प्रतिभा के धनी है।


आर्यमणि:– तारीफ तो तुम्हारी भी होनी चाहिए छोटे, इतनी कम उम्र में गुरु जी। खैर अब इस पर चर्चा बंद करते हैं। क्या तुम मुझे हवा की तरह तेज लहराना सिखाओगे...


अपस्यु:– हां क्यों नही बड़े गुरु जी। बहुत आसान है.. और आपके लिये तो और ज्यादा आसान होगा..


आर्यमणि:– कैसे...


अपस्यु:– आप इस पूरे वातावरण को मेहसूस कर सकते हो, खुद में समा सकते हो। ॐ का जाप करके मन के सभी ख्यालों को भूल जाओ और बहती हवा को मेहसूस करो...


आर्यमणि:– हां, हां..


अपस्यु:– अब बस हवा के परिवर्तन को सुनो..


आर्यमणि:– हां, हां..


अपस्यु:– बस मेहसूस करो...


आर्यमणि बिलकुल खो गया। इधर हवा का परिवर्तन यानी अपस्यु का तेजी से चाकू चलाना। आर्यमणि अब भी आंखे मूंदे था। वह बस हवा के परिवर्तन को मेहसूस करता और परिवर्तित हवा के विपरीत अपने शरीर को ले जाता, जबकि उसके पाऊं एक जगह ही टीके थे।


अपस्यु:– बड़े गुरुजी आंखे खोल लो। आंखें आपकी सब कुछ देखेगी लेकिन अंतर्मन के ध्यान को हवा की भांति बहने दो। हवा के परिवर्तन को मेहसूस करते रहो...


आर्यमणि अपनी आंखें खोल लिया। वह चारो ओर देख रहा था, लेकिन अंदर से उसका ध्यान पूरे वातावरण से घुला–मिला था। अपस्यु लगातार आर्यमणि पर चाकू से वार कर रहा था और आर्यमणि उसे अपनी आंखों से देखकर नही बच रहा था। बल्कि उसकी आंखें देख रही थी की कैसे हवा के परिवर्तन को मेहसूस करके शरीर इतना तेज लहरा रहा है...


आर्यमणि:– और तेज छोटे गुरुजी..


अपस्यु भी हवा को मेहसूस करते काफी तेज हमला कर रहा था... दोनो के बदन मानो हवा की सुर में लहरा रहे थे। जितना तेज अपस्यु हमला कर रहा था, उस से भी कहीं ज्यादा तेज आर्यमणि अपना बचाव कर रहा था। दोनो विराम लिये। अपस्यु आगे चर्चा करते हुये आर्यमणि से सिर्फ इतना ही कहा की जब आप पूर्ण रूप से वातावरण में खो जाते हैं, तब कण–कण को मेहसूस कर सकते है।


आर्यमणि काफी खुश हुआ। दोनो की चर्चा आगे बढ़ी। अपस्यु ने सबसे पहले तो अपने और अवनी के बीच चल रहे रिश्ते को किसी से न बताने के लिये कहा। दुनिया और दोस्तों की नजरों में वो दोनो केवल अच्छे दोस्त थे, जबकि आचार्य जी या फिर गुरु निशी से ये बात कभी छिपी नही रही की अपस्यु और अवनी एक दूसरे को चाहते हैं। आर्यमणि मान गया।


चर्चाओं का एक छोटा सा सिलसिला शुरू हुआ। अपस्यु ने आश्रम पर चल रहे साजिश के बारे में बताया। शुरू से लेकर आज तक कैसे आश्रम जब भी उठने की कोशिश करता रहा है, कुछ साजिशकर्ता उसे ध्वस्त करते रहे। गुरु निशी की संदिग्ध मृत्यु के विषय में चर्चा हुई। अपस्यु के अनुसार.… "जिन लोगों ने आश्रम में आग लगायी वो कहीं से भी गुरु निशी के आगे नहीं टिकते। सामने रहकर मारने वाले की तो पहचान है लेकिन पीछे किसकी साजिश थी वह पता नहीं था, तबतक जबतक की आर्यमणि के पीछे संन्यासी शिवांश नही पहुंचे थे। और अब हमें पता है की लंबे समय से कौन पीछे से साजिश कर रहा था। लेकिन अपने इस दुश्मन के बारे में जरा भी ज्ञान नहीं।"



आर्यमणि मुस्कुराते हुये कहने लगा.… "धीरे बच्चे.. मैं बड़ा और तुम छोटे।"..


अपस्यु:– हां बड़े गुरुजी..


आर्यमणि:– "ठीक है छोटे फिर तुम जो ये अपनो को समेट कर खुद में सक्षम होने का काम कर रहे थे, उसे करते रहो। कुछ साल का वक्त लो ताकि दिल का दर्द और हल्का हो जाये। ये न सिर्फ तुम्हारे लिये बेहतर होगा बल्कि तुम्हारी टीम के लिये भी उतना ही फायदेमंद होगा। जिसने तुम्हारे आंखों के सामने तुम्हारे परिवार को मारा, वो तुम्हारा हुआ। मारना मत उन्हे... क्योंकि मार दिये तो एक झटके में मुक्ति मिल जायेगी। उन्हे सजा देना... ऐसा की मरने से पहले पल–पल मौत की भीख मांगे।"

"परदे के पीछे वाला जो नालायक है वो मेरा हुआ। मेरे पूरे परिवार को उसने बहुत परेशान किया है। मेरे ब्लड पैक को खून के आंसू रुलाये हैं। इनका कृतज्ञ देखकर मैं आहत हूं। निकलने से पहले मै उनकी लंका में सेंध मारकर आया था। संन्यासी शिवांश से आग्रह भी कर आया था कि मेरे परिवार की देखभाल करे।"


अपस्यु:– आश्रम के कई लोग नागपुर पहुंच चुके है। हमारी सर्विलेंस उन अजीब से लोगों पर भी शुरू हो चुकी है जो आश्रम के दुश्मन है। हम उन्हे अब समझना शुरू कर चुके है। उनके दिमाग से खेलना शुरू कर चुके है।


आर्यमणि:– उस आदमी से कुछ पता चला, जिसे संन्यासी शिवम को मैने पैक करके दिया था। (थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी, जिसे संन्यासी शिवम अपने साथ ले गया था)


अपस्यु:– आपने जिस आदमी को पैक करके शिवम के साथ भेजा था, वह मरा हुआ हमारे पास पहुंचा। अपने समुदाय का काफी वफादार सेवक था। हमने वहीं उसका अंतिम संस्कार कर दिया।


आर्यमणि:– उस तांत्रिक का क्या हुआ जिसे रीछ स्त्री के पास से पकड़े थे।


अपस्यु:– तांत्रिक उध्यात एक जटिल व्यक्ति है। हम उन्हे बांधने में कामयाब तो हुये है, लेकिन कुछ भी जानकारी नही निकाल सके। उनके पास हमलोगों से कहीं ज्यादा सिद्धि है, जिसका तोड़ हमारे पास नही। कुछ भी अनुकूल नहीं है शायद। और हम हर मोर्चे पर कमजोर दिख रहे।


आर्यमणि:– मरना ही तो है, कौन सा हम अमर वरदान लेकर आये हैं। फिर इतनी चिंता क्यों? इतनी छोटी उम्र में इतना बोझ लोगे तो जो कर सकते हो, वो भी नही कर पाओगे। चिल मार छोटे, सब अच्छा ही होगा।


अपस्यु:– हां कह सकते है। मुझे बड़े गुरु जी मिल गये। सो अब मैं अपनी नाकामी पर शर्मिंदा नहीं हो सकता क्योंकि मेरे ऊपर संभालने वाला कोई आ गया है। वरना पहले ऐसा लगता था, मैं गलती कैसे कर सकता हूं।


आर्यमणि:– चलो फिर सुकून है। आज से अपनी चिंता आधी कर दो। दोनो पक्ष को हम एक साथ सजा देंगे। तुम आग लगाने वाले को जिस अवधि में साफ करोगे, उसी अवधि में मैं इन एपेक्स सुपरनैचुरल का भी सफाया करूंगा। हम दोनो ये काम एक वक्त पर करेंगे।


अपस्यु:– हां ये बेहतर विकल्प है। जबतक हम अपनी तयारी में भी पूरा परिपक्व हो जायेंगे।


आर्यमणि:– बिलकुल सही कहा...


अपस्यु:– मैने सुना है ये जो आप इंसानी रूप लिये घूम रहे है, वो मेकअप से ऐसा बदला है कि वास्तविक रूप का पता ही नही चलता। इतना बढ़िया आर्ट सीखा कहां से।


आर्यमणि:– मेरे बीते वक्त में एक दर्द का दौड़ था। उस दौड़ में मैने बहुत सी चीजें सीखी थी। कुछ काम की और कुछ फालतू... ये मेरे फालतू कामों में से एक था जो भारत छोड़ने के बाद बहुत काम आया।


अपस्यु:– हमारे साथ स्वस्तिका आयी है। गुरु निशी की गोद ली हुई पुत्री है। उसे ये आर्ट सीखा दो ना बड़े गुरुजी...


आर्यमणि:– मेरे पास कुछ विषय के विद्वानों का ज्ञान है। चलो देखते हैं किसकी किसमे रुचि है, उनको शायद मैं मदद कर सकूं। वैसे एक बात बताओ मेरे घर का सिक्योरिटी सिस्टम को किसी मंत्र से तोड़ा या कोई कंप्यूटर एक्सपर्ट है।


अपस्यु:– एमी है न, वही ये सारा काम देखती है..


आर्यमणि:– विश्वास मानो इस भौतिक दुनिया में कंप्यूटर और पैसे से बड़ा कोई सुपरनैचुरल पावर नही। अच्छा लगा एक कंप्यूटर एक्सपर्ट तुम्हारी टीम में है..


अपस्यु:– अभी तो सब सीख ही रहे है। और पैसे अपने पास तो बिलकुल नही, लेकिन आश्रम को जलाने वाले दुश्मन के इतने पैसे उड़ाये है कि कहां ले जाये, क्या करे कुछ समझ में नहीं आ रहा।


आर्यमणि:– मेरी भूमि दीदी ने एक बात समझाई थी। पैसे का कभी भी सबूत न छोड़ो। और जो पैसा सिर दर्द दे, उसे छोड़कर निकल जाओ... पैसा वो तिलिस्मी चीज है जिसके पीछे हर कोई खींचा चला आता है। एक छोटी सी भूल और आपका खेल खत्म।


अपस्यु:– आपको बाहरी चीजों का बहुत ज्ञान है बड़े गुरु जी। मैं तो गुरुकुल में ही रहा और वहां से जब बाहर निकला तब दुनिया ही बदल चुकी थी। पहले अपनी दुनिया समेट लूं या दुनिया को समझ लूं यही विडंबना है।


आर्यमणि:– "मैं भी शायद कभी जंगल से आगे की दुनिया नही समझ पाता। मैने एक कमीने की जान बचाई। और उसी कमीने ने बदले में लगभग मेरी जान ले ली थी। एक लड़की ने मुझसे कहा था, हर अच्छाई का परिणाम अच्छा नहीं होता। शायद तब वो सही थी, क्योंकि मैं नर्क भोग रहा था। उस वक्त मुझे एहसास हुआ की मरना तो आसान होता है, मुश्किल तो जिंदगी हो जाती है।"

"खैर आज का आर्यमणि उसी मुश्किल दौड़ का नतीजा है। शायद उस लड़की ने, उस एक घटिया इंसान की करतूत देखी, जिसकी जान मैने बचाई थी। लेकिन उसके बाद के अच्छे परिणाम को वह लड़की देख नही पायी। मेरे एक अच्छे काम के बुरे नतीजे की वजह से मैंने क्या कुछ नही पाया था। ये जिंदगी भी अजीब है छोटे। अच्छे कर्म का नतीजा कहीं न कहीं से अच्छा मिल ही जाता है, बस किसी से उम्मीद मत करना...


अपस्यु:– आपसे बहुत कुछ सीखना होगा बड़े गुरुजी।


आर्यमणि:– नाना... मैं भी सिख ही रहा हूं। तुम भी आराम से अभी कुछ साल भारत से दूर रहो। सुकून से पहले इंसानो के बीच रहकर उनकी अजीब सी भावना को समझो। जिंदगी दर्शन तुम भी लो… फिर आराम से वापस लौटकर सबको सजा देने निकलना...


अपस्यु:– जैसा आप कहो। मेरे यहां के मेंटर तो आप ही हो।


आर्यमणि:– हम्म् सब मिलकर मुझे ही बाप बना दो.. वो तीन टीनएजर कम थे जो तुम्हारा भी एक ग्रुप आ गया।


अपस्यु:– कौन सा मैं आपके साथ रहने वाला हूं। बस बीच–बीच में एक दूसरे की स्किल साझा कर लिया करेंगे।


आर्यमणि:– हां लेकिन मेरी बात मानो और यहां से भारत लौटकर मत जाओ। पूरी टीम को पहले खुल कर जीने दो। कुछ साल जब माहोल से दूर रहोगे, तब सोच में बहुत ज्यादा परिवर्तन और खुद को ज्यादा संयम रख सकते हो। वैसे तुम तो काफी संतुलित हो। मुझसे भी कहीं ज्यादा, ये बात तो मैने जंगल में देख लिया। लेकिन तुम्हारी टीम के लिये शायद ज्यादा फायदेमंद रहे...


अपस्यु:– बड़े गुरु जी यहां रहना आसान होगा क्या?


आर्यमणि:– मुझे जो अनुभव मिला है वो तुम्हारे काम तो आ ही जायेगा। पहले अपनी टीम से मिलवाओ, फिर हम तुम्हारे दुश्मन के पैसे का भी जुगाड लगाते है।


आर्यमणि, अपस्यु की टीम से मिलने चला आया। अपस्यु और ऐमी (अवनी) के अलावा उनके साथ स्वस्तिका, नाम की एक लड़की, पार्थ और आरव नाम के 2 लड़के। कुल 5 लोगों की टीम थी। आर्यमणि ने सबसे थोड़ी जान पहचान बनानी चाही, किंतु अपस्यु को छोड़कर बाकी सब जैसे गहरे सदमे में हो। आर्यमणि उनकी भावना मेहसूस करके चौंक गया। अंदर से सभी काफी दर्द में थे।


आर्यमणि से रहा नही गया। आज से पहले उसने कभी किसी के भावना को अपने नब्ज में उतारने की कोशिश नही किया था। अचानक ही उसने ऐमी और आरव का हाथ थाम लिया। आंख मूंदकर वही "ॐ" का उच्चारण और फिर वह केवल उनके अंदर के दर्द भरी भावना के सिवा और कुछ भी मेहसूस नही करना चाह रहा था। आर्यमणि ने अपना हाथ रखा और भावना को खींचने की कोशिश करने लगा।


आंख मूंदे वह दोनो के दर्द को मेहसूस कर रहा था। फिर ऐसा लगा जैसे उनका दर्द धीरे–धीरे घटता जा रहा है। इधर उन दोनो को अच्छा लग रहा था और उधर आर्यमणि के आंखों से आंसू के धारा फुट रही थी। थोड़ी देर बाद जब आर्यमणि ने उनका हाथ छोड़ा, तब दोनो के चेहरे पर काफी सुकून के भाव थे। उसके बाद फिर आर्यमणि ने स्वस्तिका और पार्थ के हाथ को थाम लिया। कुछ देर बाद वो लोग भी उतने ही शांति महसूस कर रहे थे। अपस्यु अपने दोनो हाथ जोड़ते... "धन्यवाद बड़े गुरुजी"..


आर्यमणि:– तू बड़े ही कहा कर छोटे। हमारी बड़े–छोटे की जोड़ी होगी... मेरा कोई भाई नहीं, लेकिन आज से तू मेरा छोटा भाई है.. ला हाथ इधर ला…


अपस्यु ने जैसे ही हाथ आगे बढाया, आर्यमणि पहले चाकू से अपस्यु का हथेली चिर दिया, फिर खुद का हथेली चिड़कड़ उसके ऊपर रख दिया। दोनो २ मिनट के लिये मौन रहे उसके बाद आर्यमणि, अपस्यु का हाथ हील करके छोड़ दिया। जैसे ही आर्यमणि ने हाथ छोड़ा अपस्यु भी अपने हाथ उलट–पलट कर देखते... "काफी बढ़िया मेहसूस हो रहा। मैं एक्सप्लेन तो नही कर सकता लेकिन ये एहसास ही अलग है।"…


फिर तो बड़े–बड़े बोलकर सबने हाथ आगे बढ़ा दिये। एक छोटे भाई की ख्वाइश थी, तीन छोटे भाई, एक छोटी बहन और साथ में एक बहु भी मिल गयी, जिसका तत्काल वर्णन आर्यमणि ने नही किया। सोमवार की सुबह आर्यमणि का बड़ा सा परिवार एक छत के नीचे था। अपनी मस्ती बिखेड़कर अल्फा पैक भी वापस आ चुके थे। एक दूसरे से परिचय हो गया और इसी के साथ अल्फा पैक की ट्रेनिंग को एक नई दिशा भी मिल गयी।वुल्फ के पास तो हवा के परखने की सेंस तो पहले से होती है, लेकिन अल्फा पैक तो जैसे अपने हर सेंस को पूर्ण रूप से जागृत किये बैठे थे, बस जरूरत एक ट्रिगर की थी।


अपस्यु वहां रुक कर सबको हवा को परखने और पूर्ण रूप से वातावरण में खो कर उसके कण–कण को मेहसूस करने की ट्रेनिंग दे रहा था। और इधर आर्यमणि, अपस्यु और उसकी टीम को धीरे–धीरे ज्ञान से प्रकाशित कर रहा था। स्वस्तिका को डॉक्टर और मेक अप आर्टिस्ट वाला ज्ञान मिल रहा था। ऐमी को कंप्यूटर और फिजिक्स का। आरव को वाणिज्य और केमिस्ट्री। पार्थ को फिजिक्स, और केमिस्ट्री। इन सब के दिमाग में किसी याद को समेटने की क्षमता काफी कम थी। मात्र 5% यादें ही एक दिन में ट्रांसफर हो सकती थी।


वहीं अपस्यु के साथ मामला थोड़ा अलग था। उसका दिमाग एक बार में ही सभी विद्वानों के स्टोर डेटा को अपने अंदर समा लिया। चूंकि अपस्यु आश्रम का गुरु भी था। इसलिए आर्यमणि ने सीक्रेट प्रहरी के उन 350 कितना के आखरी अध्याय को साझा कर दिया जिसमे साधु को मारने की विधि लिखी थी। साथ ही साथ 50 मास्टर क्लास बुक जिसमे अलग–अलग ग्रह पर बसने वाले इंसानों और वहां के पारिस्थितिकी तंत्र तंत्र का वर्णन था, उसे भी साझा कर दिया।


खैर इन सब का संयुक्त अभ्यास काफी रोमांचकारी था। आर्यमणि ने अपस्यु और उसके पूरे टीम को तरह–तरह के हथियार चलाना सिखाया। ट्रैप वायर लगाना और शिकार को फसाने के न जाने कितने तरीके। जिसमे पहला बेहद महत्वपूर्ण सबक था धैर्य। किसी भी तरीके से शिकार पकड़ना हो उसके लिये सबसे ज्यादा जरूरी था धैर्य। उसके बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात, शिकार फसाने का तरीका कोई भी हो, लेकिन किसी भी तरीके में शिकार को शिकारी की भनक नहीं होनी चाहिए।


खैर संयुक्त अभ्यास जोरों पर था और उतने ही टीनएजर के झगड़े भी। कभी भी कोई भी टीनएजर किसी के साथ भी अपना ग्रुप बनाकर लड़ाई का माहोल बना देते थे। कभी–कभी तो आर्यमणि को अपने बाल तक नोचने पड़ जाते थे। हां लेकिन एक अलबेली ही थी जिसके कारनामों से घर में ठहाकों का माहोल बना रहता था। अलबेली तो अपने नाम की तर्ज पर अलबेली ही थी। इवान को चिढ़ाने के लिये वह पार्थ के साथ कभी–कभी फ्लर्ट भी कर देती और इवान जल–बूझ सा जाता। सभी टीनएजर ही थे और जो हाल कुछ दिन पहले अल्फा पैक का था, वैसा ही शोक तो इनके खेमे में भी था। दुनिया में कोई ऐसा शब्द नही बना जो किसी को सदमे से उबार सके, सिवाय वक्त के। और जैसे–जैसे सभी टीनएजर का वक्त साथ में गुजर रहा था, वो लोग भी सामान्य हो रहे थे।


अपस्यु की टीम को सबसे ज्यादा अच्छा जंगल में ही लगता। जब अल्फा पैक किसी जानवर या पेड़ को हील करते, वो लोग अपना हाथ उनके हाथ के ऊपर रख कर वह सबकुछ मेहसूस कर सकते थे, जो अल्फा पैक मेहसूस करता था। अपस्यु और उसके टीम की जिदंगी जैसे खुशनुमा सी होने लगी थी। अल्फा पैक के साथ वो लोग जीवन संजोना सिख रहे थे।


इसी बीच आर्यमणि अपने छोटे (अपस्यु) के काम में भी लगा रहा। अपने पहचान के मेयर की लंका तो खुद आर्यमणि लगा चुका था। इसलिए ग्रीन कार्ड के लिये किसी और जुगाड़ू को पकड़ना था। साथ ही साथ अपस्यु एंड टीम ने जो अपने दुश्मन के पैसे उड़ाये थे, उन्हे भी ठिकाने लगाना था। आर्यमणि कुछ सोचते हुये अपस्यु से लूट का अमाउंट पूछ लिया। अपस्यु ने जब कहा की उसने हवाला के 250 मिलियन उड़ाये हैं, आर्यमणि के होश ही उड़ गये। उस वक्त के भारतीय रुपए से तकरीबन 1000 करोड़ से ऊपर।


आर्यमणि:– ये थोड़ा रुपया है...


अपस्यु:– हमे क्या पता। हमारा तो लूट का माल है। जिनका पैसा है वो जाने की ऊसको कितना नुकसान हुआ।


आर्यमणि:– हम्मम रुको एक से पूछने दो। डील सेट हो गया तो पैसे ठिकाने लग जायेंगे...


आर्यमणि ने पार्किनसन को कॉल लगाया। कॉल लगाते ही सबसे पहले उसने यही पूछा की उसका हवाले का धंधा तो नही। उसने साफ इंकार कर दिया। उसने बताया की वह केवल वेपन, कंस्ट्रक्शन और गोल्ड के धंधे में अपना पैसा लगाता है। बाकी वह हर वो धंधा कर लेगा जिसमे कमीशन अच्छा हो। आर्यमणि ने 250 मिलियन का डील पकड़ाया, जिसे यूरोप के किसी ठिकाने से उठाना था। पार्केनसन एक शर्त पर इस डील को आगे बढ़ाने के लिये राजी हुआ... "जब कभी भी पैसे के पीछे कोई आयेगा, वह सीधा आर्यमणि के पीछे भेज देगा और कमीशन के पैसे तो भूल ही जाओ।" आर्यमणि ने जैसे ही उसके शर्त पर हामी भरी, डील सेट हो गया। 30% कमीशन से पार्किनसन ने मामला शुरू हुआ और 23% पर डील लॉक।


आधे घंटे में लोग ठिकाने पर पहुंच चुके थे। पूरे पैसे चेक हो गये। जैसे ही सब सही निकला अपस्यु के अकाउंट में पैसे भी ट्रांसफर हो गये। अपस्यु इस कमाल के कनेक्शन को देखकर हैरान हो गया। एक काम हो गया था। दूसरा काम यानी की ग्रीन कार्ड के लिये जब आर्यमणि ने पूछा तब पार्किनसन ने उसे या तो मेयर की बीवी से मिलने कह दिया, जो अपने पति को हटाकर खुद एक मेयर बन चुकी थी, या फिर शिकागो चले जाने कहा।


अपस्यु के दोनो समस्या का हल मिल गया था। लगभग 60 दिन साथ बिताने के बाद सभी ने विदा लिया। इस बीच आर्यमणि नए मेयर से मिला। यानी की पुराने मेयर की बीवी, जो अपने पति को हटाकर खुद अब मेयर थी। आर्यमणि ने पहले तो अपना पहचान बताया। आर्यमणि से मिलकर मानो वो मेयर खुश हो गयी हो। उसे भी 50 हजार यूएसडी का चंदा मिला और बदले में अपस्यु और आरव के ग्रीन कार्ड बन गये। स्वस्तिका अपनी अलग पहचान के साथ भारत वापस लौट रही थी। ऐमी की तो अपनी पहचान थी ही और पार्थ पहले से एक ब्रिटिश नागरिक था।


हर कोई विदा लेकर चल दिया। अपस्यु अपनी टीम को सदमे से उबरा देख काफी खुश नजर आ रहा था। नम आंखों से अपने दोनो हाथ जोडकर आर्यमणि से विदा लिया।
Bahut acha 👌
 

Zoro x

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भाग:–70





नजारा अकल्पनीय था। आर्यमणि जितना तेज हो सकता था उतना तेज हमला करता और वह लड़का उस से भी तेज बचते हुये जवाबी हमला करता। तेजी के साथ लगातार पड़ते मुक्कों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। एक तो दम से मारा गया मुक्का उसमे भी बिजली की रफ्तार। आर्यमणि के जिस अंग पर मुक्का लगता वह हिस्सा 4 इंच तक धंस जाता। कुछ ही पल में आर्यमणि का पूरा बदन सूज चुका था। हांफते और बदहाली में वह पीछे हटा और खड़ा होकर अपने दर्द से उबरने की कोशिश करने लगा। शरीर में इतनी क्षति हुई थी कि अब वह हाथों से हील नही हो पा रहा था। आंख की रौशनी बिलकुल धुंधली हो गयी थी और दिमाग अब गहरी निद्रा में जाने के लिये तड़प रहा था। फिर भी आर्यमणि खुद को संभाले अपने नए दुश्मन को समझने की कोशिश कर रहा था, जो अपनी जगह से एक कदम भी इधर–उधर नही हुआ था।


खुद से उम्र में कहीं छोटे एक तिल्लिश्मी बालक को आर्यमणि ने एक बार और ध्यान से देखने की कोशिश की। लेकिन नजर इतनी साफ नही थी कि अब उस बालक का चेहरा अच्छे से देख पाये। फिर निकली आर्यमणि के मुंह से दिल दहला देने वाली आवाज। यूं तो इस आवाज का दायरा सीमित था, लेकिन सीमित दायरे में गूंजी ये आवाज किसी भयंकर तूफान से कम नही था।बवंडर सी आंधी जिस प्रकार आती है, आर्यमणि की दहाड़ ठीक वैसी ही बवंडर तूफान उठा रहा थे।


आर्यमणि अपना शेप पूर्ण रूप से बदल चुका था। हीरे की भांति चमकीला बदन, विशाल और कठोर। ऐसा लग रहा था चमरी के जगह सीसा रख दिया हो, जिसके नीचे पूरे बदन पर फैले रक्त नलिकाओं को देखा जा सकता था, जिसमे बिलकुल गहरे काला रंग का खून बह रहा था। आर्यमणि अपने विकराल रूम में आ चुका था। उसका बदन पूरी तरह से हील हो चुका था तथा अपनी दहाड़ से उठे बवंडर के बीच एक बार फिर आर्यमणि उस लड़के के सामने खड़ा था।


एक बार फिर मारने की कोशिश अपने चरम पर थी। आर्यमणि पूरी रफ्तार से हमला किया और नतीजा फिर से वही हुआ, काफी तेज रिफ्लेक्स और जवाबी मुक्का उतने ही रफ्तार से लगा। फिर से खेल शुरू हो चुका था, लेकिन इस बार उस लड़के का मुक्का जब भी पड़ता पहले के मुकाबले कमजोर होता। अब तक आर्यमणि उस लड़के को छू भी नहीं पाया था, लेकिन फिर भी इस बार वह लड़का धीमा पड़ता जा रहा था।


आर्यमणि ने हथेली से जितने भी दर्द लिये। जितने भी टॉक्सिक उसने आज तक समेटा था, सब के सब उसके रक्त कोशिकाओं में बह रहा था। जब भी वह लड़का आर्यमणि के बदन पर मुक्का चलाता, ऐसा लगता उसका मुक्का 4 इंच तेजाब में घुस गया हो। ऐसा तेजाब जिसका असर बाद में भी बना रहता। और यही वजह थी कि वह लड़का धीरे–धीरे कमजोर पड़ने लगा था। एक वक्त ऐसा भी आया जब मुक्का तो पड़ रहा था लेकिन अब मानो आर्यमणि के शरीर को मात्र स्पर्श जैसा महसूस हो रहा हो। हां उस लड़के के रिफ्लेक्स अब भी काफी तेज थे। आर्यमणि उसे छू नही पा रहा था लेकिन जवाबी मुक्का भी अब बेअसर सा दिख रहा था।


कुछ वक्त बिताने के बाद आर्यमणि के हाथ अब मौका आ चुका था। पूर्ण रूप से तैयार आर्यमणि ने पूरे दहाड़ के साथ एक तेज हमला किया। आर्यमणि के हमले से बचने के लिये वह लड़का मुक्के के दिशा से अपने शरीर को किनारे किया और जैसे ही अपना मुक्का चलाया, ठीक उसी वक्त आर्यमणि ने अपना दूसरा मुक्का उस लड़के के मुक्के पर ही दे मारा। लागातार टॉक्सिक से टकराने के कारण उस लड़के का मुक्का पहले ही धीमा पड़ गया था, और उसके पास इस बार आर्यमणि के मुक्के से बचने का कोई काट नही था।


एक सम्पूर्ण जोरदार मुक्का ही तो पड़ा था और वह कहावत सच होती नजर आने लगी... "100 चोट सोनार की, एक चोट लोहार की"…. ठीक उसी प्रकार आर्यमणि के एक जोरदार मुक्के ने उस लड़के को हक्का बक्का कर दिया। वो तो शुक्र था कि उस लड़के ने ना तो सामने से मुक्का में मुक्का भिड़ाया था और न ही आर्यमणि का जब मुक्का उसके कलाई के आस–पास वाले हिस्से में लगा, तो उस हिस्से के ठीक पीछे कोई दीवार या कोई ऐसी चीज रखी हो जो रोकने का काम करे। यदि आर्यमणि के मुक्के और किसी दीवार के बीच उस बालक का वो कलाई का हिस्सा आ गया होता, तब फिर सबूत न रहता की उस हाथ में पहले कभी कलाई या उसके नीचे का पंजा भी था।


आर्यमणि का मुक्का पड़ा और उस लड़के का हाथ इतनी तेजी से हवा में लहराया की उसके कंधे तक उखड़ गये। हवा में लहराने से उसकी सारे नशे खींच चुकी थी। दवाब के कारण उसके ऊपरी हाथ में कितने फ्रैक्चर आये होंगे ये तो उस लड़के का दर्द ही बता रहा होगा लेकिन जिस हिस्से में आर्यमणि का मुक्का लगा वह पूरा हिस्सा झूल रहा था। दर्द और पीड़ा से वह लड़का अंदर ही अंदर पागल हो चुका था। एक हाथ ने पूरा काम करना बंद कर दिया था, लेकिन जज्बा तो उसका भी कम नही था। बिना दर्द का इजहार किये वह लड़का अब भी अपने जगह पर ही खड़ा था। न तो वह अपनी जगह से हिला और न ही लड़ाई रोकने के इरादे से था।


आर्यमणि हमला करना बंद करके 2 कदम पीछे हुआ... "जितना वक्त लेना है, लेकर खुद को ठीक करो।"..


वह लड़का अपने कमर से एक खंजर निकालते.... "तुम्हारी तरह खुद को मैं ठीक नही कर सकता लेकिन तैयार हूं।"… इतना कहकर उस लड़के ने आर्यमणि को आने का इशारा किया। फिर से वही तेज–तेज हमले का सिलसिला शुरू हो गया। अब वह लड़का खंजर थाम ले या बंदूक। उसके दोनो हाथ के मुक्के ने आर्यमणि के बदन का इतना टॉक्सिक छू लिया था कि अब वह काम करने से तो रहा। मात्र एक पंच का तो मामला था, आर्यमणि जाते ही एक मुक्का घूमाकर दे दिया। उस लड़के का दूसरा हाथ भी पूरा बेकार हो चुका था।


एक बार फिर आर्यमणि अपना कदम पीछे लिया। 2 कदम नहीं बल्कि पूरी दूरी बनाकर अब उसकी हालत का जायजा ले रहा था और उस लड़के को भी पूरा वक्त दिया, जैसे की उसने पहले आर्यमणि को दिया था। वह लड़का दर्द में भी मुस्कुराया। दोनो हाथ में तो जान बचा नही था, लेकिन फिर भी आंखों के इशारे से लड़ने के लिये बुला रहा था। आर्यमणि अपना कदम आगे बढ़ाते…. "जैसे तुम्हार मर्जी"…कहने के साथ ही अपनी नब्ज को काटकर तेज फूंक लगा दिया।


अंदर की फूंक बहुत ज्यादा तेज तो नही लेकिन तेज तूफान उठ चुका था। खून की बूंदें छींटों की तरह बिखर रही थी। तूफान के साथ उड़ते छींटे किसी घातक अम्लीय वर्षा से कम न था। लेकिन उस लड़के का रिफ्लेक्स.… आती हुई छींटों को भी वह किसी हथियार के रूप में देख रहा था। किंतु वह लड़का भी क्या करे? यह एक दिशा से चलने वाला कोई मुक्का नही था, जो अपने रिफ्लेक्स से वह लड़का खुद को मुक्के की दिशा से किनारे कर लेता। चाहु दिशा से आर्यमणि का रक्त बारिश चल रहा था। कुछ छींटों से तो बच गया, लेकिन शरीर के जिस हिस्से पर खून की बूंद गिरी, वह बूंद कपड़े समेत शरीर तक में छेद कर देता। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने उस लड़के के पूरे बदन में ही छेद–छेद करने का इरादा बना लिया था।



बड़े आराम से आर्यमणि अपना एक–एक कदम आगे बढ़ाते हुये, अपने फूंक को सामने की निश्चित दिशा देते बढ़ रहा था। आर्यमणि उस लड़के के नजदीक पहुंचकर फूंकना बंद किया और अपनी कलाई को पकड़ कर हील किया। आर्यमणि पहली बार उस लड़के के भावना को मेहसूस कर रहा था। असहनीय पीड़ा जो उसकी जान ले रही थी। अब कहां इतना दम बचा की खुद को बचा सके। हां किंतु आर्यमणि उसे अपने तेज हथौड़े वाला मुक्के का स्वाद चखाता, उस से पहले ही वह लड़का बेहोश होकर धम्म से गिर गया।


आर्यमणि इस से पहले की आगे कुछ सोचता उसके पास 2 लोग और पहुंच चुके थे.… "आर्य इसे जल्दी से उठा, और कॉटेज लेकर चल"….. यह आवाज सुनकर आर्यमणि के चेहरे पर जैसे मुस्कान आ गयी हो। मुड़कर देखा तो न केवल वहां निशांत था, बल्कि संन्यासी शिवम भी थे। आर्यमणि के चेहरे की भावना बता रही थी की वह कितना खुश था। लेकिन इस से पहले की वह अपनी भावना जाहिर करता, निशांत दोबारा कह दिया... "गधे, भरत मिलाप बाद में करेंगे, पहले उस लड़के की जान बचाओ और कॉटेज चलो"…


आर्यमणि, उस लड़के को अपने गोद में उठाकर, उसके जख्म को हील करते कॉटेज के ओर कदम बढ़ा दिया... "ये मेरा कोई टेस्ट था क्या?"..


निशांत:– हां कह सकते हो लेकिन टेस्ट उस लड़के का भी था।


आर्यमणि:– क्या ये तुम लोगों में से एक है?


संन्यासी शिवम:– हां हम में से एक है और इसे रक्षक बनना था इसलिए अपना टेस्ट देने आया था।


आर्यमणि:– ये रक्षक क्या होता है?


संन्यासी शिवम:– साथ चलो, हमारे आचार्य जी आ चुके है वो सब बता देंगे...


सभी कॉटेज पहुंचे। कॉटेज में भरा पूरा माहोल था। मीटर जितनी सफेद दाढ़ी में एक वृद्ध व्यक्ति के साथ कुछ संन्यासी और योगी थे। एक प्यारी सी किशोरी भी थी, जो उस लड़के को मूर्छित देखते ही बेहोश हो गयी। शायद उसे किसी प्रकार का पैनिक अटैक आया था। संन्यासी शिवम के कहने पर आर्यमणि ने उस लड़की का भी उपचार कर दिया। दोनो किशोर गहरी निद्रा में थे। आर्यमणि दोनो को ऊपर लिटाकर नीचे सबके बीच आया।


आर्यमणि, अपने दोनो हाथ जोड़ते... "यहां चल क्या रहा है? वो लड़का कौन है जिसे मरना पसंद था लेकिन अपनी जमीन उसने छोड़ा नहीं। क्या आप लोग भी प्रहरी तो नही बनते जा रहे, जो इंसानों को ही हथियार बना रहे हो।


निशांत:– कोई भी बात समझ ले न पहले मेरे भाई..


आर्यमणि:– समझना क्या है यार... कभी किसी जानवर का दर्द लो और उसे सुकून में देखो। तुम्हारी अंतरात्मा तक खुश हो जायेगी। वो एहसास जब तुम बेजुबानों के आंखों में अपने प्रति आभार मेहसूस करते देखते हो। मुख से कुछ बोल नही सकते लेकिन अपने रोम–रोम से वह धन्यवाद कहते है। जान लेना आसान है, पर जान बचाने वाले से बढ़कर कोई नही...


निशांत:– मुझ पर हमला होते देख तुमने तो कई लोगों की कुरुरता से जान ले ली थी। जिसकी तू बात कर रहा है उसके आंखों के सामने उसकी मां को जिंदा आग की भट्टी में झोंक दिया। लोग यहां तक नही रुके। जिसके साथ पढ़ा था, हंसा, खेला, और पूरे साल जिनके साथ ही रहता था, उतने बड़े परिवार को एक साथ आग की भट्टी में झोंक दिया। उसे कैसा होना चाहिए? तूने उस लड़के की उम्र देखी न, अब तू ही तय कर ले की उसकी मानसिकता कैसी होनी चाहिए?


आर्यमणि कुछ देर खामोश रहने के बाद.… "तो क्या वो मेरे हाथ से मारा जाता तो उसका बदला पूरा हो जाता? या फिर मुझे कहते बदला लेने?


आचार्य जी:– "उसका नाम अपस्यु है। अपने गुरुकुल काल के दूसरे वर्ष में उसने अपनी सातवी इंद्री जागृत कर ली थी। पांचवे वर्ष में सारी इंद्रियों पर नियंत्रण पा चुका था। हर शास्त्र का ज्ञान। जितनी हम सिद्धियां जानते है उन पूर्ण सिद्धियों का ज्ञान। ये सब उसने गुरुकुल के पांचवे साल तक अर्जित कर लिया था। उसके और हमारे गुरु, गुरु निशी उसे एक रक्षक बनाना चाहते थे। उसका अस्त्र और शस्त्र का प्रशिक्षण शुरू ही होने वाला था कि उसकी जिंदगी ही पूरी बदल गयी।"

"जिस वक्त गुरु निशी की मृत्यु हुई, अपस्यु ही उनका प्रथम शिष्य थे। प्रथम शिष्य यानी गुरु के समतुल्य। अब इसे अपस्यु की किस्मत कहो या नियति, वह अचानक सात्त्विक आश्रम का गुरु बन गया। बीते कुछ महीनों में जिस प्रकार से तुमने योग और तप का आचरण दिखाया, अपस्यु को लग गया कि तुम आश्रम के सबसे बेहतर गुरु बनोगे। एक विशुद्ध ब्राह्मण जो अलौकिक मुहरत में, ग्रहों के सबसे उत्तम मिलन पर एक अलौकिक रूप में जन्म लिये।"

"मैने ही उनसे कहा था कि आर्यमणि एक रक्षक के रूप में ज्यादा विशेष है और उसका अलौकिक जन्म भी उसी ओर इशारा कर रहे। अपस्यु नही माना और कहने लगा "यदि वो बिना छल के केवल अपने शारीरिक क्षमता से तुम्हे हरा देगा, तब हमे उसकी बात माननी होगी।" अपस्यु, तुम्हारे सामने नही टिक पाया और रक्षक न बनने के मलाल ने उसे अपनी जगह से हिलने नही दिया।


आर्यमणि:– छल मतलब कैसा छल करके जीत जाते...


निशांत:– ठीक वैसे ही जैसे पारीयान के तिलिस्म में हमने अनजाने में उस शेर को छला था, भ्रम से। कई तरह के मंत्र से। और वो तो आश्रम के गुरुजी हुये, उसके पास तो वो पत्थर भी है जो तुम्हे बांध दे। यहां के पत्थरों के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावशाली।


आर्यमणि:– और वो लड़की कौन थी.. जो इस बालक गुरुजी को देखकर बेहोश हो गयी।


निशांत:– उसकी परछाई.. उसकी प्रीयसी... अवनी.. वह गुरुजी को बेहोशी की हालत में घायल देख ले, फिर उसकी स्थिति मरने जैसी हो जाती है...


"इतनी छोटी उम्र में ऐसा घनिष्ठ रिश्ता... अतुलनीय है..."… आर्यमणि इतना कहकर निशांत को खींचकर एक थप्पड़ लगा दिया...


निशांत:– अब ये क्यों?


आर्यमणि:– घर के अंदर आते ही ताक झांक करने और उन 40 पत्थरों को देखने के लिये, जिसे मैंने अब तक न दिखाया था...


निशांत:– मैने कब देखा उसे...


आर्यमणि:– अच्छा इसलिए थोड़ी देर पहले मुझे कह रहा था की बालक गुरुजी के पास ऐसे पत्थर है जो मेरे पास रखे पत्थरों के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावशाली..


निशांत:– पकड़ लिया तूने... वैसे गलती हमारी नही है। ऐसे पत्थर को जबतक सही तरीके से छिपा कर नही रखोगे वह अपने पीछे निशान छोड़ती है।


आर्यमणि:– क्या मतलब निशानी छोड़ती है...क्या इस पत्थर के सहारे इसका मालिक यहां तक पहुंच सकता है...


आचार्य जी:– अब नही पहुंचेगा... सभी निशानी को मिटाकर एक भ्रमित निशान बना दिया है जो दुनिया के किसी भी कोने में पत्थर के होने के संकेत दे सकते है। शुक्र है ये पत्थर पानी के रास्ते लाये वरना कहीं हवा या जमीनी मार्ग से लाते तब तो इसका मालिक कबका न पहुंच गया होता।


आर्यमणि:– कमाल के है आप लोग। निशांत ने अभी कहा कि बालक गुरुजी बिना छल के लड़े, तो उनका शरीर हवा जैसा लचीला क्यों था?


आचार्य जी:– तुम्हारा शरीर भी तो एक प्राकृतिक संरचना ही है ना, फिर तुम कैसे रूप बदलकर अपने शरीर की पूरी संरचना बदल लेते हो। ये शरीर अपने आप में ब्रह्म है। इसपर जितना नियंत्रण होगा, उतना ही विशेष रूप से क्षमताओं को निखार सकते है।


आर्यमणि:– एक बात बताइए की जब आपके पास सब कुछ था। अपस्यु जब अपने शिक्षा के पांचवे वर्ष सारी सिद्धियां प्राप्त कर लिया था। फिर उसकी मां, गुरुजी, ये सब कैसे मर गये। क्या अपस्यु इन सबकी रक्षा नही कर सकता था?


आचार्य जी:– होने को तो बहुत कुछ हो सकता था लेकिन गुरु निशी किसी साजिश का शिकार थे। भारे के कातिल और सामने से मारने वाले में इतना दम न था। किसी ने पीछे से छल किया था जिसके बारे में अब पता चला है... अपस्यु के साथ में परेशानी यह हो गयी की वह बहुत छोटा था और मंत्रों का समुचित प्रयोग उस से नही हो पाया।


आर्यमणि:– सारी बात अपनी जगह है लेकिन बिना मेरी सहमति के आप मुझे रक्षक या गुरु कैसे बना सकते है। बताओ उस लिलिपुटियन (अपस्यु) ने मुझे ऐसा मारा की मेरे शरीर के पुर्जे–पुर्जे हिला डाले। यदि मैंने दिमाग न लगाया होता तब तो वह मुझे पक्का घुटनों पर ला दिया होता। उसके बाद जब मैंने उसके दोनो कलाई तोड़ डाले फिर भी वह अपनी जगह छोड़ा नहीं। बताओ कहीं मैं सीने पर जमाकर एक मुक्का रख दिया होता तो। और हां मैं अपने पैक और ये दुनिया भ्रमण को छोड़कर कुछ न बनने वाला। रक्षक या गुरु कुछ नही। बताओ ये संन्यासी शिवम, इनके साथ और न जाने कितने महर्षि और योगी है, जो आश्रम का भार संभाल सकते हैं लेकिन आप आचार्य जी उस बच्चे को छोड़ नही रहे। उल्टा मैं जो आपके कम्युनिटी से दूर–दूर तक ताल्लुक नहीं रखता, उसे गुरु या रक्षक बनाने पर तुले हो।


आचार्य जी:– बातें बहुत हो गयी। मैं तुम्हे रक्षक और गुरु दोनो के लिये प्रशिक्षित करूंगा। और यही अपस्यु के लिये भी लागू होगा। मुझे समझाने की जरूरत नहीं की क्यों तुम दोनो ही। अपस्यु जानता है कि वही गुरु क्यों है। अब तुम्हारी बारी... अपने क्ला मेरे मस्तिष्क में डालो...


आर्यमणि:– हो ही नही सकता... मैने रूही से वादा किया है कि ज्ञान पाने के लिये कोई शॉर्टकट नही...


आचार्य जी:– तुम्हारे पास जो है वो अलौकिक वरदान है। इस से समाज कल्याण के लिये ज्ञान दे रहा हूं। तुम्हारी मर्जी हो तो भी ठीक, वरना जब तुम्हे ज्ञान होगा तब खुद ही समझ जाओगे की क्यों हमने जबरदस्ती किया?


आर्यमणि:– रुको तिलिस्मी लोगो, मैं अपनी मर्जी से क्ला डालता हूं। पहले लिथेरिया वुलापीनी का इंजेक्शन तो लगा लेने दो...


आचार्य जी:– उसकी जरूरत नही है। बहुत कुछ तुम अपने विषय में भी नही जानते, उसका अध्यन भी जरूरी है।... तुम्हारे क्ला अंदर घुसने से मैं वेयरवोल्फ नही बन सकता... डरो मत...


आर्यमणि:– ये तो नई बात पता चल रही है। ठीक है जैसा आप कहो...


आर्यमणि अपनी बात कहते क्ला को उनके गले के पीछे डाल दिया। लगभग एक दिन बाद आर्यमणि की आंखें खुल रही थी। जब उसकी आंखें खुली चेहरे पर मुस्कान और आंखों में आचार्य जी के लिये आभार था।


आर्यमणि:– आचार्य जी मुझे आगे क्या करना होगा...


आचार्य जी:– तुम्हे अपने अंदर के ज्ञान को खुद में स्थापित करना होगा।


आर्यमणि:– मतलब..


गुरु अपस्यु के साथ वाली लड़की अवनी.… "आचार्य जी के कहने का मतलब है सॉफ्टवेयर दिमाग में डाल दिया है उसे इंस्टॉल कीजिए तब जाकर सभी फाइल को एक्सेस कर पायेंगे।"..


आर्यमणि:– तुम दोनो कब जागे... और आज कुछ नये चेहरे भी साथ में है।


आचार्य जी:– हम लोगों के निकलने का समय हो गया है। आर्यमणि तुम जीवन दर्शन के लिये निकले हो, अपने जीवन का अनुभव के साथ अपनी सारी सिद्धियां प्राप्त कर लेना। जीवन का ज्ञान ही मूल ज्ञान है, जिसके बिना सारी सिद्धियां बेकार है। प्रकृति की सेवा जारी रखना। ये तुम्हारे वायक्तिव, और पाने वाले सिद्धियों को और भी ज्यादा निखारेगा। हम लोग जा रहे है, बाकी दोनो गुरुजी आपस में जान पहचान बना लो।


आर्यमणि:– और निशांत...


निशांत:– अभी मेरी तपस्या अधूरी है। आचार्य जी ने एक दिन का विश्राम दिया था। वो आज पूरा हो गया।


संन्यासी शिवम ने वहीं से पोर्टल खोल दिया। सभी लोग उस पोर्टल के जरिये निकल गये, सिवाय अपस्यु और उसके साथ के कुछ लोगों के। आर्यमणि, अपस्यु के साथ जंगलों के ओर निकला... "और छोटे गुरु जी अपने साथ मुझे भी फसा दिये।"..
क्या गजब का अपडेट दिया हैं नैन भाई
दिल गार्डन गार्डन हों गया आज तो
वो बंदा अपस्यू था उसे ऋषियों ने भेजा था आर्य की ताकत आजमाने के लिए लेकिन आर्य ने असली रुप में आकर अपने आप को बचा लिया नहीं तो यह लिलिपुटियां ठिकाने लगा देता आर्य को

ये ऋषि ने ऐसा क्यूं कहा आर्य से की तुम अपने बारें में कुछ भी नहीं जानते इसका क्या मतलब हैं नैन भाई

यह अपस्यू ओर उसके आश्रम के साथ बहुत बुरा हूआ भाई इनके पिछे प्रहरी हीं हैं अब इनके भी बुरे दिन आ गए हैं दों महारथी एक साथ हों गए गुरुजी की वजह से

ये आर्य ने गुरूजी के दिमाग से कितना ज्ञान लिया जों बंदा पुरें दिन सोता रहा था और यह जीवन दर्शन कोन है जो आगे उसके बहुत काम आने वाले हैं

ये पड़ा निशांत को थप्पड़ पड़ना ही चाहिए ससूरा इतने दिनों से हाय हैलो भी नहीं ओर आज आया तो सीधा तांक झांक साला पक्का खोजी का किड़ा घुस गया अभी से ट्रैनिंग भी पुरी नहीं हुई अभी तो उसकी

आर्य कैसे आचार्य के ज्ञान को सीध करेगा क्यूंकि मंत्र का ज्ञान होना हीं काफी नहीं हैं मंत्रों को सिद्ध करना पड़ता हैं इसमें शायद अपस्यू मदद करें


बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट नैन भाई
 

Destiny

Will Change With Time
Prime
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Ji humne kaan kholkar sun liya... Baki aapne jo dobara bacchon par bhadas nikala hai iss se yahi lagta hai ki ab tak koi mili na hai... Isliye bhadas nikal rahe... Sabne shadi ka announce kar diya hai isliye koi ladki na aa rahi varna puch leta koi khali hai kya ..

Khair highlighted comment to dekh liya maine waqt hai vistrit vivran ka jab aaj ka update aayega .. pahle update deta hun fir intzar karta hun :D
Aisa nahi hai gf bf bahut khel liya ab to bas जीवनसंगिनी lani hai lekin ghar wale usme रोड़ा atkaye baithe hai kahte hai tere pasnd ka nahi chlega bahu ham dhundhkar layenge hamne bhi man hi man kah diya "jaon jaon sikka to mere haath me hai uchhulnga tabhi to head ya tel aayega 😔
 
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