अध्याय 70 – 71...
सुखद आश्चर्य! निश्चल दिखाई देगा इस कहानी में इसकी अपेक्षा बहुत पहले से थी, इसका सीधा कारण वो दृश्य जो हम इश्क – रिस्क के द्वितीय भाग में पढ़ चुके हैं। परंतु अपस्यु महोदय के दर्शन भी होंगे इस कहानी में, इसकी अपेक्षा नहीं की थी। अपस्यु की भी अपनी ही कहानी थी, हां मुझे अपस्यु का किरदार इसके कुछ चुनाव और कर्मों के कारण उठा प्रिय नहीं, परंतु इस बात में कोई दोराय नहीं, की जिन कठिनाइयों और परेशानियों का उसने सामना किया, आश्रम के साथ हुई घटना हो या फिर उसकी मां के साथ.. भावनाओं के उस “भंवर” से निकलना, और अपने कर्मपथ पर आगे बढ़ना ही अपस्यु की काबिलियत और दृढ़ – निश्चय का परिचायक है!
खैर, यहां उसकी चर्चा करने बैठा, तो काफी कुछ लिखना पड़ेगा, इसीलिए इस कहानी के इन दो अध्यायों में हुई गतिविधियों पर ही नज़र डालना उचित होगा। पिछले भाग अर्थात अध्याय क्रमांक 69 के अंतिम दृश्य में जिस प्रकार उस लड़के (अपस्यु) ने आर्यमणि का सामना किया था, उसके बाद कहीं न कहीं, चिंता हुई थी की यदि अपेक्स सुपरनैचुरल द्वारा भेजा गया एक मोहरा इतना सशक्त हुआ, तो आगे कितनी बड़ी शक्तियां आर्यमणि के सामने खड़ी होंगी! परंतु, गनीमत रही की ये योद्धा, आर्यमणि का शुभचिंतक अर्थात् अपस्यु निकला, जिसका खुद का लक्ष्य भी एक तरह से उन अपेक्स सुपरनैचुरल को कर्मफल प्रदान करना है...
आश्रम के साथ हुई घटना और अपस्यु के निजी जीवन पर हुआ प्रहार, उनके दोषियों को देखने का ज़िम्मा आर्यमणि ने अपस्यु के हाथों में दे दिया है वहीं परदे के पीछे से प्रहार करने वाले.. अर्थात् अपेक्स सुपरनैचुरल को संभालने का कार्यभार उसने अपने हाथों में ले लिया है। सही भी है, वो लोग सीधे तौर पर कुलकर्णी परिवार और अल्फा पैक के गुनाहगार हैं, आर्यमणि की बातों से झलक दिखी उस दंड की जो उन अपराधियों को मिलेगा.. संभवतः ऐसा कोई दंड जो मृत्यु से भी भयंकर हो! बहरहाल, अपेक्स सुपरनैचुरल के खिलाफ शायद जल्द ही कोई और कदम भी उठा सकता है वो, आखिर काफी समय बीत गया है आखिरी बार उनकी बक्खियां उधेड़े हुए।
अपस्यु, अवनी, आरव, स्वास्तिका और पार्थ.. पांचों ही आर्यमणि के पास वहां कैलिफोर्निया में रुके और अताह ज्ञान भी अपने अंदर समाहित कर लिया। कोई यदि भंवर पढ़े तो उसे पहले ये दो अध्याय पढ़ लेने चाहिए, ताकि समझ में आए की इतना ज्ञान और काबिलियत कैसे थी इन पांचों के पास उस कहानी में! आर्यमणि ने ना केवल कैलिफोर्निया में रहकर अर्जित किया हुआ ज्ञान साझा किया अपितु, उन 400 पुस्तकों से हासिल किया हुआ ज्ञान – भंडार भी अपस्यु से साझा कर दिया। बाकी चारों की हालत ही खराब हो जानी थी यदि उनके साथ उन पुस्तकों का ज्ञान साझा किया गया होता, आखिर अपस्यु के समान तो नहीं है ना वो सब!
इधर अल्फा पैक भी कनाडा से लौट आया और इन सभी मेहमानों के साथ सामंजस्य बैठाने में अधिक समय भी नहीं लगा उन्हें। इवान और अलबेली की बात भी शायद खुल ही गई होगी, वहीं अलबेली अभी भी अपने नाम के मुताबिक ही चुहलबाज़ी जारी रखे हुए है! वहीं अपस्यु ने अपनी वो विधा जिसके ज़रिए वो आर्यमणि के प्रत्येक प्रहार को चकमा दे रहा था, आर्यमणि को भी सिखा दी है। वैसे काफी रोचक विधा थी वो, पवन के वेग से आने वाले प्रहार का अंदाज़ा लगा लेना। हालांकि, कई पौराणिक कथाओं में भी इसका विवरण मिलता है, परंतु यहां अपस्यु का इतनी कम आयु में इस विधा में पारंगत होना, अपने आप में एक बड़ी बात है। खैर, अब आर्यमणि, जोकि पहले ही अत्यंत शक्तिशाली थी, इस विद्या में पारंगत होने के पश्चात, अजय होता नज़र आ रहा है... बशर्ते, कोई महाबली (जैसे, महाजनिका) उसके विरोधी पक्ष में न हो!
इस बीच जो चीज़ सबसे बढ़िया लगी वो था, आर्यमणि का उन पांचों के दुखों को महसूस करना, और उनकी तकलीफ को अपने अंदर समा लेना। क्या ही बेहतरीन दृश्य था वो! सही मायनो में बहुत कुछ सहा था उन सभी ने, और अच्छा लगा देखकर की आर्यमणि की कृत्य से उन्हें कुछ तो बेहतर महसूस हुआ। आर्यमणि का यही स्वभाव उसे बाकियों से अलग बनाता है, जैसा एक बार शायद भूमि ने भी कहा था, आर्यमणि बेहद ही कोमल हृदय का है, और अपनी अच्छाई को कभी नहीं छोड़ता। ऐसा नहीं है की उसके ये सभी कर्म व्यर्थ ही चले जायेंगे, अपस्यु से द्वंद्व के दौरान हमने देख ही लिया था की जिन प्राणियों की तकलीफें वो सोखता था,वही उसका एक अकाट्य अस्त्र बन चुकी हैं! इससे पहले पेड़ों और वनस्पतियों को हील करने से उसे उन जड़ों और रेशों को काबू करने की क्षमता हासिल हुई थी, स्पष्ट है, प्रत्येक शुद्ध कर्म का सुंदर फल मिलता ही है...
खैर, काफी दिन तक अल्फा पैक के साथ रहे वो पांचों और काफी कुछ उन्होंने खुद सीखा, तो काफी बातें अल्फा पैक से भी साझा की। किन्हीं दो बड़े देशों का सामूहिक युद्धाभ्यास जैसा लगा मुझे ये सब, मानो किसी तीसरे देश के विरुद्ध युद्ध से पूर्व अपने अस्त्रों – शस्त्रों को धार दे रहे हों! अब अपस्यु अपने साथियों के साथ निकल पड़ा है अपनी आगे की यात्रा के लिए। संन्यासी शिवम्, निशांत और उनके साथ आए आचार्य ने काफी कुछ बातें बताई जो गौर करने लायक हैं। निशांत के अनुसार जो पत्थर आर्यमणि के पास हैं, उनसे भी अधिक प्रभावशाली अभी अपस्यु के पास भी मौजूद हैं। वहीं वो सभी पत्थर अपने पीछे निशान भी छोड़ते हैं, अच्छा ही हुआ की वो लोग यहां आए और उन निशानों को मिटा दिया, अन्यथा अपेक्स सुपरनैचुरल शायद वहां पहुंच चुके होते...
वहीं आचार्य ने आर्यमणि से कहा की वो अपने बारे में काफी बातों से अनभिज्ञ है, अर्थात् काफी कुछ बाकी है आर्यमणि के इस सफर में। जो ज्ञान उन्होंने आर्यमणि को प्रदान किया उसकी विराटता कितनी होगी, इससे ही पता चलता है की आर्यमणि एक दिन तक उसके कारण बेहोश रहा। अब लगातार प्रयास से उस सारे ज्ञान को वो अपने भीतर समाहित कर ही लेगा, देखते हैं और कौन – कौन सी चीज़ें सीखी हैं उसने इसके द्वारा। वहीं, आर्यमणि को रक्षक और गुरु, दोनों का ही प्रशिक्षण देने की बात कही आचार्य ने, शायद वो प्रशिक्षण इसी दिव्य – ज्ञान से संबंधित होगा। देखते हैं पुनः कब मुलाकात होगी, सात्विक आश्रम वालों की आर्यमणि से।
आर्यमणि और अपस्तु का द्वंद्व भी बहुत ही बढ़िया लिखा था आपने। प्रत्येक युद्ध के बाद आर्यमणि की कई प्रतिभाएं उजागर हो जाती हैं, सत्य यही है की शेप शिफ्ट करने के बाद, आर्यमणि की शक्तियां एक अलग ही स्तर पर पहुंच जाती हैं... अब देखना ये है की आगे क्या करेगा अल्फा पैक! अपस्यु और उसके साथियों के ज़रिए ज्ञान तो काफी प्राप्त हो गया है इन्हें,अब बारी है उस ज्ञान को कंठस्थ करने की, और ये तो हमें पता ही है को आर्यमणि लगभग एक योगी ही है, अधिक समय नहीं लगेगा उसे इस कार्य में। आर्यमणि और अपस्यु का एक – दूसरे को छोटे और बड़े कहकर संबोधित करने वाले दृश्य भी रमणीय थे!
बहुत ही खूबसूरत अध्याय थे भाई दोनों ही। दोनों के द्वंद्व का विवरण, अपस्यु और आर्यमणि के बीच की बातचीत, ज्ञान का आदान – प्रदान, सब कुछ बहुत ही बढ़िया था!
प्रतीक्षा अगली कड़ी की...