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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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11 ster fan

Lazy villain
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:roflol::hehe::lol::lotpot: Aapne to Apne 11 ster fan bhaaya ki dukhti rag pr hath rakh diya...
Haa Bhai ye to hai...ye nain sir ka apsyu prem kuchh jyada hi hai....are guruji ho to aashram me raho, bhajan kirtan Karo , jyan bato...ye ladai jhagada kyo karta hai ....aur ye piddu sa sabko maarta hi phirata hai....waise iss story me bhi aa gaya hai kya apsyu....agar aa gaya to beda gark ho Tera apasyu....
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Bahut badhiya update bro...
Between ye dusri konsi kahani hai apasyu ki aur kitni kahaniyan hai
Bhai Nain11ster bhai ke signature me jo link hai Uspr click karke aap unki sari kahaniyo ke naam or unke link prapt kr sakte ho...
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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To kahe jaldibaji Kar the...
Hmari sadi Ghar valo ki Marji se hi hui hai bas jis ladki ka photo ghar valo ko middle man dikhane vala tha us photo ki jagah Maine apni vali ki photo rakh diya aur sath hi uski details bhi... Bas Ho gya kaam, baj gye Nagade...
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Haa Bhai ye to hai...ye nain sir ka apsyu prem kuchh jyada hi hai....are guruji ho to aashram me raho, bhajan kirtan Karo , jyan bato...ye ladai jhagada kyo karta hai ....aur ye piddu sa sabko maarta hi phirata hai....waise iss story me bhi aa gaya hai kya apsyu....agar aa gaya to beda gark ho Tera apasyu....
Pr Aapko jaan kr khushi hogi arya ne isme uske dono hath kharab kr diye the or vo haar bhi gya behosh hoke...

Ab isse sayad aapke dil ko thandhak pahuche or aap us paristhiti ko thoda thande baste me daal den...
 

Destiny

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Haa Bhai ye to hai...ye nain sir ka apsyu prem kuchh jyada hi hai....are guruji ho to aashram me raho, bhajan kirtan Karo , jyan bato...ye ladai jhagada kyo karta hai ....aur ye piddu sa sabko maarta hi phirata hai....waise iss story me bhi aa gaya hai kya apsyu....agar aa gaya to beda gark ho Tera apasyu....

Sirf aya hi nahi chota tikat bada dhamaka kar diya update 69 70&71 me lekin arya ne jo dhoya dono haath thod diya tha amliy varsha karke छेद itna kiya ki apashyu confused ho gaya.... Aage ka dailouge gisa pita hai 😁
 
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B2.

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भाग:–71







संन्यासी शिवम ने वहीं से पोर्टल खोल दिया। सभी लोग उस पोर्टल के जरिये निकल गये, सिवाय अपस्यु और उसके साथ के कुछ लोगों के। आर्यमणि, अपस्यु के साथ जंगलों के ओर निकला... "और छोटे गुरु जी अपने साथ मुझे भी फसा दिये।"..


अपस्यु:– बड़े गुरु जी मुझे लगा अब मैं रक्षक बन जाऊंगा। लेकिन आचार्य जी ने हम दोनो को फसा दिया। खैर अच्छा लगा आपसे मिलकर। मात्र कुछ महीनो के ध्यान में अपने कुंडलिनी चक्र को जागृत कर लेना कोई मामूली बात नही है। आप प्रतिभा के धनी है।


आर्यमणि:– तारीफ तो तुम्हारी भी होनी चाहिए छोटे, इतनी कम उम्र में गुरु जी। खैर अब इस पर चर्चा बंद करते हैं। क्या तुम मुझे हवा की तरह तेज लहराना सिखाओगे...


अपस्यु:– हां क्यों नही बड़े गुरु जी। बहुत आसान है.. और आपके लिये तो और ज्यादा आसान होगा..


आर्यमणि:– कैसे...


अपस्यु:– आप इस पूरे वातावरण को मेहसूस कर सकते हो, खुद में समा सकते हो। ॐ का जाप करके मन के सभी ख्यालों को भूल जाओ और बहती हवा को मेहसूस करो...


आर्यमणि:– हां, हां..


अपस्यु:– अब बस हवा के परिवर्तन को सुनो..


आर्यमणि:– हां, हां..


अपस्यु:– बस मेहसूस करो...


आर्यमणि बिलकुल खो गया। इधर हवा का परिवर्तन यानी अपस्यु का तेजी से चाकू चलाना। आर्यमणि अब भी आंखे मूंदे था। वह बस हवा के परिवर्तन को मेहसूस करता और परिवर्तित हवा के विपरीत अपने शरीर को ले जाता, जबकि उसके पाऊं एक जगह ही टीके थे।


अपस्यु:– बड़े गुरुजी आंखे खोल लो। आंखें आपकी सब कुछ देखेगी लेकिन अंतर्मन के ध्यान को हवा की भांति बहने दो। हवा के परिवर्तन को मेहसूस करते रहो...


आर्यमणि अपनी आंखें खोल लिया। वह चारो ओर देख रहा था, लेकिन अंदर से उसका ध्यान पूरे वातावरण से घुला–मिला था। अपस्यु लगातार आर्यमणि पर चाकू से वार कर रहा था और आर्यमणि उसे अपनी आंखों से देखकर नही बच रहा था। बल्कि उसकी आंखें देख रही थी की कैसे हवा के परिवर्तन को मेहसूस करके शरीर इतना तेज लहरा रहा है...


आर्यमणि:– और तेज छोटे गुरुजी..


अपस्यु भी हवा को मेहसूस करते काफी तेज हमला कर रहा था... दोनो के बदन मानो हवा की सुर में लहरा रहे थे। जितना तेज अपस्यु हमला कर रहा था, उस से भी कहीं ज्यादा तेज आर्यमणि अपना बचाव कर रहा था। दोनो विराम लिये। अपस्यु आगे चर्चा करते हुये आर्यमणि से सिर्फ इतना ही कहा की जब आप पूर्ण रूप से वातावरण में खो जाते हैं, तब कण–कण को मेहसूस कर सकते है।


आर्यमणि काफी खुश हुआ। दोनो की चर्चा आगे बढ़ी। अपस्यु ने सबसे पहले तो अपने और अवनी के बीच चल रहे रिश्ते को किसी से न बताने के लिये कहा। दुनिया और दोस्तों की नजरों में वो दोनो केवल अच्छे दोस्त थे, जबकि आचार्य जी या फिर गुरु निशी से ये बात कभी छिपी नही रही की अपस्यु और अवनी एक दूसरे को चाहते हैं। आर्यमणि मान गया।


चर्चाओं का एक छोटा सा सिलसिला शुरू हुआ। अपस्यु ने आश्रम पर चल रहे साजिश के बारे में बताया। शुरू से लेकर आज तक कैसे आश्रम जब भी उठने की कोशिश करता रहा है, कुछ साजिशकर्ता उसे ध्वस्त करते रहे। गुरु निशी की संदिग्ध मृत्यु के विषय में चर्चा हुई। अपस्यु के अनुसार.… "जिन लोगों ने आश्रम में आग लगायी वो कहीं से भी गुरु निशी के आगे नहीं टिकते। सामने रहकर मारने वाले की तो पहचान है लेकिन पीछे किसकी साजिश थी वह पता नहीं था, तबतक जबतक की आर्यमणि के पीछे संन्यासी शिवांश नही पहुंचे थे। और अब हमें पता है की लंबे समय से कौन पीछे से साजिश कर रहा था। लेकिन अपने इस दुश्मन के बारे में जरा भी ज्ञान नहीं।"



आर्यमणि मुस्कुराते हुये कहने लगा.… "धीरे बच्चे.. मैं बड़ा और तुम छोटे।"..


अपस्यु:– हां बड़े गुरुजी..


आर्यमणि:– "ठीक है छोटे फिर तुम जो ये अपनो को समेट कर खुद में सक्षम होने का काम कर रहे थे, उसे करते रहो। कुछ साल का वक्त लो ताकि दिल का दर्द और हल्का हो जाये। ये न सिर्फ तुम्हारे लिये बेहतर होगा बल्कि तुम्हारी टीम के लिये भी उतना ही फायदेमंद होगा। जिसने तुम्हारे आंखों के सामने तुम्हारे परिवार को मारा, वो तुम्हारा हुआ। मारना मत उन्हे... क्योंकि मार दिये तो एक झटके में मुक्ति मिल जायेगी। उन्हे सजा देना... ऐसा की मरने से पहले पल–पल मौत की भीख मांगे।"

"परदे के पीछे वाला जो नालायक है वो मेरा हुआ। मेरे पूरे परिवार को उसने बहुत परेशान किया है। मेरे ब्लड पैक को खून के आंसू रुलाये हैं। इनका कृतज्ञ देखकर मैं आहत हूं। निकलने से पहले मै उनकी लंका में सेंध मारकर आया था। संन्यासी शिवांश से आग्रह भी कर आया था कि मेरे परिवार की देखभाल करे।"


अपस्यु:– आश्रम के कई लोग नागपुर पहुंच चुके है। हमारी सर्विलेंस उन अजीब से लोगों पर भी शुरू हो चुकी है जो आश्रम के दुश्मन है। हम उन्हे अब समझना शुरू कर चुके है। उनके दिमाग से खेलना शुरू कर चुके है।


आर्यमणि:– उस आदमी से कुछ पता चला, जिसे संन्यासी शिवम को मैने पैक करके दिया था। (थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी, जिसे संन्यासी शिवम अपने साथ ले गया था)


अपस्यु:– आपने जिस आदमी को पैक करके शिवम के साथ भेजा था, वह मरा हुआ हमारे पास पहुंचा। अपने समुदाय का काफी वफादार सेवक था। हमने वहीं उसका अंतिम संस्कार कर दिया।


आर्यमणि:– उस तांत्रिक का क्या हुआ जिसे रीछ स्त्री के पास से पकड़े थे।


अपस्यु:– तांत्रिक उध्यात एक जटिल व्यक्ति है। हम उन्हे बांधने में कामयाब तो हुये है, लेकिन कुछ भी जानकारी नही निकाल सके। उनके पास हमलोगों से कहीं ज्यादा सिद्धि है, जिसका तोड़ हमारे पास नही। कुछ भी अनुकूल नहीं है शायद। और हम हर मोर्चे पर कमजोर दिख रहे।


आर्यमणि:– मरना ही तो है, कौन सा हम अमर वरदान लेकर आये हैं। फिर इतनी चिंता क्यों? इतनी छोटी उम्र में इतना बोझ लोगे तो जो कर सकते हो, वो भी नही कर पाओगे। चिल मार छोटे, सब अच्छा ही होगा।


अपस्यु:– हां कह सकते है। मुझे बड़े गुरु जी मिल गये। सो अब मैं अपनी नाकामी पर शर्मिंदा नहीं हो सकता क्योंकि मेरे ऊपर संभालने वाला कोई आ गया है। वरना पहले ऐसा लगता था, मैं गलती कैसे कर सकता हूं।


आर्यमणि:– चलो फिर सुकून है। आज से अपनी चिंता आधी कर दो। दोनो पक्ष को हम एक साथ सजा देंगे। तुम आग लगाने वाले को जिस अवधि में साफ करोगे, उसी अवधि में मैं इन एपेक्स सुपरनैचुरल का भी सफाया करूंगा। हम दोनो ये काम एक वक्त पर करेंगे।


अपस्यु:– हां ये बेहतर विकल्प है। जबतक हम अपनी तयारी में भी पूरा परिपक्व हो जायेंगे।


आर्यमणि:– बिलकुल सही कहा...


अपस्यु:– मैने सुना है ये जो आप इंसानी रूप लिये घूम रहे है, वो मेकअप से ऐसा बदला है कि वास्तविक रूप का पता ही नही चलता। इतना बढ़िया आर्ट सीखा कहां से।


आर्यमणि:– मेरे बीते वक्त में एक दर्द का दौड़ था। उस दौड़ में मैने बहुत सी चीजें सीखी थी। कुछ काम की और कुछ फालतू... ये मेरे फालतू कामों में से एक था जो भारत छोड़ने के बाद बहुत काम आया।


अपस्यु:– हमारे साथ स्वस्तिका आयी है। गुरु निशी की गोद ली हुई पुत्री है। उसे ये आर्ट सीखा दो ना बड़े गुरुजी...


आर्यमणि:– मेरे पास कुछ विषय के विद्वानों का ज्ञान है। चलो देखते हैं किसकी किसमे रुचि है, उनको शायद मैं मदद कर सकूं। वैसे एक बात बताओ मेरे घर का सिक्योरिटी सिस्टम को किसी मंत्र से तोड़ा या कोई कंप्यूटर एक्सपर्ट है।


अपस्यु:– एमी है न, वही ये सारा काम देखती है..


आर्यमणि:– विश्वास मानो इस भौतिक दुनिया में कंप्यूटर और पैसे से बड़ा कोई सुपरनैचुरल पावर नही। अच्छा लगा एक कंप्यूटर एक्सपर्ट तुम्हारी टीम में है..


अपस्यु:– अभी तो सब सीख ही रहे है। और पैसे अपने पास तो बिलकुल नही, लेकिन आश्रम को जलाने वाले दुश्मन के इतने पैसे उड़ाये है कि कहां ले जाये, क्या करे कुछ समझ में नहीं आ रहा।


आर्यमणि:– मेरी भूमि दीदी ने एक बात समझाई थी। पैसे का कभी भी सबूत न छोड़ो। और जो पैसा सिर दर्द दे, उसे छोड़कर निकल जाओ... पैसा वो तिलिस्मी चीज है जिसके पीछे हर कोई खींचा चला आता है। एक छोटी सी भूल और आपका खेल खत्म।


अपस्यु:– आपको बाहरी चीजों का बहुत ज्ञान है बड़े गुरु जी। मैं तो गुरुकुल में ही रहा और वहां से जब बाहर निकला तब दुनिया ही बदल चुकी थी। पहले अपनी दुनिया समेट लूं या दुनिया को समझ लूं यही विडंबना है।


आर्यमणि:– "मैं भी शायद कभी जंगल से आगे की दुनिया नही समझ पाता। मैने एक कमीने की जान बचाई। और उसी कमीने ने बदले में लगभग मेरी जान ले ली थी। एक लड़की ने मुझसे कहा था, हर अच्छाई का परिणाम अच्छा नहीं होता। शायद तब वो सही थी, क्योंकि मैं नर्क भोग रहा था। उस वक्त मुझे एहसास हुआ की मरना तो आसान होता है, मुश्किल तो जिंदगी हो जाती है।"

"खैर आज का आर्यमणि उसी मुश्किल दौड़ का नतीजा है। शायद उस लड़की ने, उस एक घटिया इंसान की करतूत देखी, जिसकी जान मैने बचाई थी। लेकिन उसके बाद के अच्छे परिणाम को वह लड़की देख नही पायी। मेरे एक अच्छे काम के बुरे नतीजे की वजह से मैंने क्या कुछ नही पाया था। ये जिंदगी भी अजीब है छोटे। अच्छे कर्म का नतीजा कहीं न कहीं से अच्छा मिल ही जाता है, बस किसी से उम्मीद मत करना...


अपस्यु:– आपसे बहुत कुछ सीखना होगा बड़े गुरुजी।


आर्यमणि:– नाना... मैं भी सिख ही रहा हूं। तुम भी आराम से अभी कुछ साल भारत से दूर रहो। सुकून से पहले इंसानो के बीच रहकर उनकी अजीब सी भावना को समझो। जिंदगी दर्शन तुम भी लो… फिर आराम से वापस लौटकर सबको सजा देने निकलना...


अपस्यु:– जैसा आप कहो। मेरे यहां के मेंटर तो आप ही हो।


आर्यमणि:– हम्म् सब मिलकर मुझे ही बाप बना दो.. वो तीन टीनएजर कम थे जो तुम्हारा भी एक ग्रुप आ गया।


अपस्यु:– कौन सा मैं आपके साथ रहने वाला हूं। बस बीच–बीच में एक दूसरे की स्किल साझा कर लिया करेंगे।


आर्यमणि:– हां लेकिन मेरी बात मानो और यहां से भारत लौटकर मत जाओ। पूरी टीम को पहले खुल कर जीने दो। कुछ साल जब माहोल से दूर रहोगे, तब सोच में बहुत ज्यादा परिवर्तन और खुद को ज्यादा संयम रख सकते हो। वैसे तुम तो काफी संतुलित हो। मुझसे भी कहीं ज्यादा, ये बात तो मैने जंगल में देख लिया। लेकिन तुम्हारी टीम के लिये शायद ज्यादा फायदेमंद रहे...


अपस्यु:– बड़े गुरु जी यहां रहना आसान होगा क्या?


आर्यमणि:– मुझे जो अनुभव मिला है वो तुम्हारे काम तो आ ही जायेगा। पहले अपनी टीम से मिलवाओ, फिर हम तुम्हारे दुश्मन के पैसे का भी जुगाड लगाते है।


आर्यमणि, अपस्यु की टीम से मिलने चला आया। अपस्यु और ऐमी (अवनी) के अलावा उनके साथ स्वस्तिका, नाम की एक लड़की, पार्थ और आरव नाम के 2 लड़के। कुल 5 लोगों की टीम थी। आर्यमणि ने सबसे थोड़ी जान पहचान बनानी चाही, किंतु अपस्यु को छोड़कर बाकी सब जैसे गहरे सदमे में हो। आर्यमणि उनकी भावना मेहसूस करके चौंक गया। अंदर से सभी काफी दर्द में थे।


आर्यमणि से रहा नही गया। आज से पहले उसने कभी किसी के भावना को अपने नब्ज में उतारने की कोशिश नही किया था। अचानक ही उसने ऐमी और आरव का हाथ थाम लिया। आंख मूंदकर वही "ॐ" का उच्चारण और फिर वह केवल उनके अंदर के दर्द भरी भावना के सिवा और कुछ भी मेहसूस नही करना चाह रहा था। आर्यमणि ने अपना हाथ रखा और भावना को खींचने की कोशिश करने लगा।


आंख मूंदे वह दोनो के दर्द को मेहसूस कर रहा था। फिर ऐसा लगा जैसे उनका दर्द धीरे–धीरे घटता जा रहा है। इधर उन दोनो को अच्छा लग रहा था और उधर आर्यमणि के आंखों से आंसू के धारा फुट रही थी। थोड़ी देर बाद जब आर्यमणि ने उनका हाथ छोड़ा, तब दोनो के चेहरे पर काफी सुकून के भाव थे। उसके बाद फिर आर्यमणि ने स्वस्तिका और पार्थ के हाथ को थाम लिया। कुछ देर बाद वो लोग भी उतने ही शांति महसूस कर रहे थे। अपस्यु अपने दोनो हाथ जोड़ते... "धन्यवाद बड़े गुरुजी"..


आर्यमणि:– तू बड़े ही कहा कर छोटे। हमारी बड़े–छोटे की जोड़ी होगी... मेरा कोई भाई नहीं, लेकिन आज से तू मेरा छोटा भाई है.. ला हाथ इधर ला…


अपस्यु ने जैसे ही हाथ आगे बढाया, आर्यमणि पहले चाकू से अपस्यु का हथेली चिर दिया, फिर खुद का हथेली चिड़कड़ उसके ऊपर रख दिया। दोनो २ मिनट के लिये मौन रहे उसके बाद आर्यमणि, अपस्यु का हाथ हील करके छोड़ दिया। जैसे ही आर्यमणि ने हाथ छोड़ा अपस्यु भी अपने हाथ उलट–पलट कर देखते... "काफी बढ़िया मेहसूस हो रहा। मैं एक्सप्लेन तो नही कर सकता लेकिन ये एहसास ही अलग है।"…


फिर तो बड़े–बड़े बोलकर सबने हाथ आगे बढ़ा दिये। एक छोटे भाई की ख्वाइश थी, तीन छोटे भाई, एक छोटी बहन और साथ में एक बहु भी मिल गयी, जिसका तत्काल वर्णन आर्यमणि ने नही किया। सोमवार की सुबह आर्यमणि का बड़ा सा परिवार एक छत के नीचे था। अपनी मस्ती बिखेड़कर अल्फा पैक भी वापस आ चुके थे। एक दूसरे से परिचय हो गया और इसी के साथ अल्फा पैक की ट्रेनिंग को एक नई दिशा भी मिल गयी।वुल्फ के पास तो हवा के परखने की सेंस तो पहले से होती है, लेकिन अल्फा पैक तो जैसे अपने हर सेंस को पूर्ण रूप से जागृत किये बैठे थे, बस जरूरत एक ट्रिगर की थी।


अपस्यु वहां रुक कर सबको हवा को परखने और पूर्ण रूप से वातावरण में खो कर उसके कण–कण को मेहसूस करने की ट्रेनिंग दे रहा था। और इधर आर्यमणि, अपस्यु और उसकी टीम को धीरे–धीरे ज्ञान से प्रकाशित कर रहा था। स्वस्तिका को डॉक्टर और मेक अप आर्टिस्ट वाला ज्ञान मिल रहा था। ऐमी को कंप्यूटर और फिजिक्स का। आरव को वाणिज्य और केमिस्ट्री। पार्थ को फिजिक्स, और केमिस्ट्री। इन सब के दिमाग में किसी याद को समेटने की क्षमता काफी कम थी। मात्र 5% यादें ही एक दिन में ट्रांसफर हो सकती थी।


वहीं अपस्यु के साथ मामला थोड़ा अलग था। उसका दिमाग एक बार में ही सभी विद्वानों के स्टोर डेटा को अपने अंदर समा लिया। चूंकि अपस्यु आश्रम का गुरु भी था। इसलिए आर्यमणि ने सीक्रेट प्रहरी के उन 350 कितना के आखरी अध्याय को साझा कर दिया जिसमे साधु को मारने की विधि लिखी थी। साथ ही साथ 50 मास्टर क्लास बुक जिसमे अलग–अलग ग्रह पर बसने वाले इंसानों और वहां के पारिस्थितिकी तंत्र तंत्र का वर्णन था, उसे भी साझा कर दिया।


खैर इन सब का संयुक्त अभ्यास काफी रोमांचकारी था। आर्यमणि ने अपस्यु और उसके पूरे टीम को तरह–तरह के हथियार चलाना सिखाया। ट्रैप वायर लगाना और शिकार को फसाने के न जाने कितने तरीके। जिसमे पहला बेहद महत्वपूर्ण सबक था धैर्य। किसी भी तरीके से शिकार पकड़ना हो उसके लिये सबसे ज्यादा जरूरी था धैर्य। उसके बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात, शिकार फसाने का तरीका कोई भी हो, लेकिन किसी भी तरीके में शिकार को शिकारी की भनक नहीं होनी चाहिए।


खैर संयुक्त अभ्यास जोरों पर था और उतने ही टीनएजर के झगड़े भी। कभी भी कोई भी टीनएजर किसी के साथ भी अपना ग्रुप बनाकर लड़ाई का माहोल बना देते थे। कभी–कभी तो आर्यमणि को अपने बाल तक नोचने पड़ जाते थे। हां लेकिन एक अलबेली ही थी जिसके कारनामों से घर में ठहाकों का माहोल बना रहता था। अलबेली तो अपने नाम की तर्ज पर अलबेली ही थी। इवान को चिढ़ाने के लिये वह पार्थ के साथ कभी–कभी फ्लर्ट भी कर देती और इवान जल–बूझ सा जाता। सभी टीनएजर ही थे और जो हाल कुछ दिन पहले अल्फा पैक का था, वैसा ही शोक तो इनके खेमे में भी था। दुनिया में कोई ऐसा शब्द नही बना जो किसी को सदमे से उबार सके, सिवाय वक्त के। और जैसे–जैसे सभी टीनएजर का वक्त साथ में गुजर रहा था, वो लोग भी सामान्य हो रहे थे।


अपस्यु की टीम को सबसे ज्यादा अच्छा जंगल में ही लगता। जब अल्फा पैक किसी जानवर या पेड़ को हील करते, वो लोग अपना हाथ उनके हाथ के ऊपर रख कर वह सबकुछ मेहसूस कर सकते थे, जो अल्फा पैक मेहसूस करता था। अपस्यु और उसके टीम की जिदंगी जैसे खुशनुमा सी होने लगी थी। अल्फा पैक के साथ वो लोग जीवन संजोना सिख रहे थे।


इसी बीच आर्यमणि अपने छोटे (अपस्यु) के काम में भी लगा रहा। अपने पहचान के मेयर की लंका तो खुद आर्यमणि लगा चुका था। इसलिए ग्रीन कार्ड के लिये किसी और जुगाड़ू को पकड़ना था। साथ ही साथ अपस्यु एंड टीम ने जो अपने दुश्मन के पैसे उड़ाये थे, उन्हे भी ठिकाने लगाना था। आर्यमणि कुछ सोचते हुये अपस्यु से लूट का अमाउंट पूछ लिया। अपस्यु ने जब कहा की उसने हवाला के 250 मिलियन उड़ाये हैं, आर्यमणि के होश ही उड़ गये। उस वक्त के भारतीय रुपए से तकरीबन 1000 करोड़ से ऊपर।


आर्यमणि:– ये थोड़ा रुपया है...


अपस्यु:– हमे क्या पता। हमारा तो लूट का माल है। जिनका पैसा है वो जाने की ऊसको कितना नुकसान हुआ।


आर्यमणि:– हम्मम रुको एक से पूछने दो। डील सेट हो गया तो पैसे ठिकाने लग जायेंगे...


आर्यमणि ने पार्किनसन को कॉल लगाया। कॉल लगाते ही सबसे पहले उसने यही पूछा की उसका हवाले का धंधा तो नही। उसने साफ इंकार कर दिया। उसने बताया की वह केवल वेपन, कंस्ट्रक्शन और गोल्ड के धंधे में अपना पैसा लगाता है। बाकी वह हर वो धंधा कर लेगा जिसमे कमीशन अच्छा हो। आर्यमणि ने 250 मिलियन का डील पकड़ाया, जिसे यूरोप के किसी ठिकाने से उठाना था। पार्केनसन एक शर्त पर इस डील को आगे बढ़ाने के लिये राजी हुआ... "जब कभी भी पैसे के पीछे कोई आयेगा, वह सीधा आर्यमणि के पीछे भेज देगा और कमीशन के पैसे तो भूल ही जाओ।" आर्यमणि ने जैसे ही उसके शर्त पर हामी भरी, डील सेट हो गया। 30% कमीशन से पार्किनसन ने मामला शुरू हुआ और 23% पर डील लॉक।


आधे घंटे में लोग ठिकाने पर पहुंच चुके थे। पूरे पैसे चेक हो गये। जैसे ही सब सही निकला अपस्यु के अकाउंट में पैसे भी ट्रांसफर हो गये। अपस्यु इस कमाल के कनेक्शन को देखकर हैरान हो गया। एक काम हो गया था। दूसरा काम यानी की ग्रीन कार्ड के लिये जब आर्यमणि ने पूछा तब पार्किनसन ने उसे या तो मेयर की बीवी से मिलने कह दिया, जो अपने पति को हटाकर खुद एक मेयर बन चुकी थी, या फिर शिकागो चले जाने कहा।


अपस्यु के दोनो समस्या का हल मिल गया था। लगभग 60 दिन साथ बिताने के बाद सभी ने विदा लिया। इस बीच आर्यमणि नए मेयर से मिला। यानी की पुराने मेयर की बीवी, जो अपने पति को हटाकर खुद अब मेयर थी। आर्यमणि ने पहले तो अपना पहचान बताया। आर्यमणि से मिलकर मानो वो मेयर खुश हो गयी हो। उसे भी 50 हजार यूएसडी का चंदा मिला और बदले में अपस्यु और आरव के ग्रीन कार्ड बन गये। स्वस्तिका अपनी अलग पहचान के साथ भारत वापस लौट रही थी। ऐमी की तो अपनी पहचान थी ही और पार्थ पहले से एक ब्रिटिश नागरिक था।


हर कोई विदा लेकर चल दिया। अपस्यु अपनी टीम को सदमे से उबरा देख काफी खुश नजर आ रहा था। नम आंखों से अपने दोनो हाथ जोडकर आर्यमणि से विदा लिया।
Awesome update Bhai ❤️🎉
 
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CG

Sab Chutiyapa hai Bhaya
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Apasyu ki meeting mast rahi …. Us story mein ye part ka koi scene hai kya ya link wala ya ye uske baad ka ghatnakram hai ??

Arya agar Acharya ban gaya to bechare ka danda kya kaam ka rah jaayega abhi to mouka banaa leta hai kisi na kisi k saath …
 

shoby54

New Member
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Haa Bhai ye to hai...ye nain sir ka apsyu prem kuchh jyada hi hai....are guruji ho to aashram me raho, bhajan kirtan Karo , jyan bato...ye ladai jhagada kyo karta hai ....aur ye piddu sa sabko maarta hi phirata hai....waise iss story me bhi aa gaya hai kya apsyu....agar aa gaya to beda gark ho Tera apasyu....
😀😀 Aa gaya bhai aur dhulayi bhi ho gayi humare Aarya mani ki...
 
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