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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Devilrudra

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भाग:–147


इधर टर्की में, खुशियों के बीच शादी के रश्मों का कारवां आगे बढ़ने लगा। हर दिन नए उमंग और नया जोश भरा होता। वो परिवार के बीच की खिंचाई और उसके बाद मुंह छिपाकर कटे–कटे घूमना। जया तो ज्यादा मजा लेने के चक्कर में रूही के प्रेगनेंसी के बारे में भी सबको बता चुकी थी।

आखिरकार 20 दिसंबर की शाम भी आ ही गई जब 2 जोड़े अपने परिणय सूत्र में बंध गये। आर्यमणि और रूही का चेहरा बता रहा था कि वो कितने खुश थे। वही हाल इवान और अलबेली का भी था। शादी संपन्न होने के बाद चारो को एक जगह बिठाया गया और उसके चारो ओर नेरमिन की फौज नाचने लगी। कई लड़कियां डफली पीटती हुई उनके चक्कर काटती रही। फिर आर्यमणि और इवान को उठा दिया गया और दोनो के गले में ढोल टांगकर उन्हे बजाने के लिए कहने लगे। वहीं रूही और अलबेली उस ढोल के धुन पर नाचना था...

सभी हंस रहे थे। आर्यमणि और इवान ढोल पिट रहे थे, वहीं रूही और अलबेली मस्त नाच रही थी। इसी बीच अलबेली और रूही का साथ देने, भूमि, निशांत, चित्रा और माधव पहुंच गये। उनको डांस फ्लोर पर जाते देख जया भी ठुमके लगाने पहुंच गयी। वहीं पापा केशव तो एक स्टेप आगे निकले। वो भी आर्यमणि की तरह ढोल टांगकर बजाने लगे।

चारो ओर जैसे खुशी झूम रही थी। शाम के 9 बजे सभी खाने के लिए गये। ठीक उसी वक्त 2 चॉपर रिजॉर्ट में लैंड हुई। जहां सभी गेस्ट खा रहे थे, वहां बड़े से बैनर में लिखा आने लगा.… "परिवार की ओर से छोटी सी भेंट"…

रूही और आर्यमणि को एक चॉपर में चढ़ा दिया गया। अलबेली और इवान को अलग चॉपर में। हां लेकिन इवान को जब चॉपर में चढ़ाया जा रहा था तब ओजल दोनो के पास पहुंची और गले लगाकर दोनो को बधाई देती... "तुम दोनो (इवान और अलबेली) अपने साथ शिवम सर को लिये जाओ। शिवम सर, आप भी इनके साथ जाइए"…

आर्यमणि, भी उन तीनो के पास पहुंचते..... “अरे कपल के बीच संन्यासी का क्या काम.. क्यों शिवम सर?”

ओजल:– इतना डिस्कशन क्यों। बस जो कह रही हूं उसे होने दीजिए जीजू"…

अलबेली, अपने और इवान के बीच संन्यासी शिवम् को सोचकर अंदर से थोड़ी चिढ़ी पर ओजल की जिद पर हां करती..... “ओजल, यहां बॉस भी है वरना ऐसी बात कहती न की तुम दोनो भाई बहन के अंतरियों में छेद हो जाता... दादा (आर्यमणि) रहने दो, आपकी इकलौती साली और अपनी इकलौती नंद की जिद पूरी हो जाने दो। आप भी रूही के साथ जाओ। चलिए शिवम् सर”

इस एक छोटे से विराम के बाद दोनो चॉपर 2 दिशा में उड़ गयी। तकरीबन 10 बजे रात चॉपर लैंड की और ठीक सामने जगमगाता हुआ एक छोटा सा कास्टल था। कास्टल के बाहर ड्रेस कोड में कुछ लोग खड़े थे जो आर्यमणि और रूही का स्वागत कर रहे थे। चॉपर उन्हे ड्रॉप करके चला गया और दोनो (आर्यमणि और रूही) रेड कार्पेट पर चलते हुये अंदर दाखिल हुये। अंदर की सजावट और स्वागत से दोनो का मन प्रश्न्न हो गया। हाउस के ओर से दोनो के लिए तरह–तरह के पकवान परोसे जा रहे थे। सबसे अंत में केक आया... जिसे दोनो ने एक दूसरे को कुछ खिलाया तो कुछ लगाया...

खा–पी कर हो गये दोनो मस्त। उसके बाद फिर रुके कहां। पहुंचे सीधा अपने सुहागरात वाले हॉल में जहां पूरा धमासान होना था। एक बड़ा सा हॉल था, जिसके बेड को पूरी तरह से सुहाग के सेज की तरह सजाया गया था। लहंगे में रूही कमाल लग रही थी, और अब रुकने का तो कोई प्रशन ही नही था। हां बस पूरे घपाघप के दौरान रूही ने बेलगाम घोड़े की लगाम खींच रखी थी और सब कुछ स्लो मोशन में हो रहा था। बोले तो आर्यमणि को तेज धक्के लगाने ही नही दी।

सुबह के 10 बजे तक दोनो घोड़े बेचकर सो रहे थे। पहले आर्यमणि की ही नींद खुली। आंखें जब खुली तो पास में रूही चैन से सो रही थी। उसे सुकून में सोते देख आर्यमणि की नजर उसपर ठहर गई और वो बड़े ध्यान से रूही को देखने लगा। एक मीठी सी अंगड़ाई के बाद रूही की आंखें भी खुल चुकी थी। अपने ओर आर्यमणि को यूं प्यार से देखते, रूही मुस्कुराने लगी और मुस्कुराती हुई अपनी दोनो बांह आर्यमणि के गले में डालती.… "शादी के बाद मैं खुद में पूर्ण महसूस कर रही। थैंक यू मेरे पतिदेव"…

आर्यमणि प्यार से रूही के होंठ को चूमते... "बहुत प्यारी हो तुम रूही।"…

अपनी बात कहकर आर्यमणि बिस्तर से ज्यों ही नीचे उतरा.… "अरे इतनी प्यारी लगती हूं तो मुझे छोड़कर कहां जा रहे"…

आर्यमणि:– बाथरूम जा रहा हूं, सुबह का हिसाब किताब देने... चलो साथ में..

रूही:– छी, छी.. तुम ही जाओ...

कुछ देर बाद आर्यमणि नहा धो कर ही निकला। उसके निकलते ही रूही अंदर घुस गई... "अच्छा सुनो रूही.. मैं जरा बाहर से घूमकर आता हूं।"…

"ठीक है जान, लेकिन ज्यादा वक्त मत लगाना"..

"ठीक है"… कहता हुआ आर्यमणि नीचे आया। जैसे ही नीचे आया एक स्टाफ वाइन की ग्लास आगे बढाते… "गुड मॉर्निंग सर"…

आर्यमणि:– तुम तो भारतीय मूल के लगते हो..

स्टाफ:– क्या खूब पहचाना है सर… विजय नाम है। आपके लिए कुछ अरेंज करवाऊं...

आर्यमणि:– नही शुक्रिया... अभी मैं बस बाहर टहलने निकला हूं...

विजय जोर–जोर से हंसने हुए... "सर बाहर कुछ नही केवल खतरा है। अंदर ही रहिए क्योंकि मैं तो ये भी नही कह सकता की बाहर आपको ठीक विपरित माहोल मिलेगा"…

आर्यमणि:– मतलब...

विजय:– चलिए आपको बाहर लिए चलता हूं यहां से मतलब बताने से अच्छा है दिखा ही दूं…

आर्यमणि जैसे ही बाहर आया... आंखों के आगे का नजारा देखकर.… "ये क्या है विजय सर"..

विजय:– ये रेगिस्तान का दरिया है। चलिए आपको सैर करवा दूं...

आर्यमणि:– हां हां जरूर... आज से पहले मैं कभी रेगिस्तान नही घुमा...

सर पर साफा बंधा। 2 ऊंट पहुंच गए। आर्यमणि, विजय के साथ सवार होकर घूमने निकल पड़ा। बातों के दौरान पता चला की उनका कैसल रेगिस्तान के बिलकुल मध्य में बना है। सौकिन लोगों के आराम करने की एक मंहगी जगह।

ऊंट पर सवार होकर आर्यमणि तकरीबन 6 किलोमीटर दूर निकला होगा तभी वो अपने चारो ओर के शांत वातावरण की हवाओं में गंध को मेहसूस करते... "विजय"…

विजय:– जी सर कहिए न...

आर्यमणि:– विजय तुम भारत से यहां तक आये, इसका मतलब यहां एलियन ने मेरे लिए जाल बिछाया है? एक बात जो मेरे समझ में नही आयी, तुम एलियन में तो न कोई गंध और न ही किसी प्रकार के इमोशंस को मेहसूस किया जा सकता था? फिर मेरे सेंस को चीट कैसे कर दिये? क्यों मैं तुम्हारी गंध और तुम्हारे इमोशन को मेहसूस कर सकता हूं?”

“हम ऐसे ही अपेक्स सुपरनैचुरल नही कहलाते है। हमारे पास पैसा, ताकत और टेक्नोलॉजी तीनो है। क्या समझे?”.... विजय अपनी बात कहकर आर्यमणि के ऊंट को एक लात मारा, आर्यमणि नीचे गिड़ा और ऊंट भाग गया... विजय अपने ऊंट से कूदकर नीचे उतरते... "जानवर हो न, हवा में ही अपने जैसे वुल्फ की मौजूदगी सूंघ लिये"..

आर्यमणि रेत झाड़ते हुए खड़ा हुआ... "कमाल ही कर दिये विजय... एलियन ने तुम जैसे नगीने के कहां छिपाकर रखा था, आज तक कभी दिखे नही?"…

विजय:– साथियों हमारा दोस्त हमसे कुछ सवाल पूछ रहा है...

जैसे ही विजय ने आवाज लगाई उसके चारो ओर लोग ही लोग थे... एक ओर एलियन तो दूसरे ओर सादिक यालविक का पूरा पैक। लगभग 400 लोगों के बीच घिरा अकेला आर्यमणि…

"हेल्लो आर्यमणि सर, मेरा नाम विवियन है... आप मुझे नही जानते लेकिन आपके दादा जी मुझे अच्छे से जानते थे"… विवियन अपनी बात कहते हुये अपना हाथ झटका और आर्यमणि के चारो ओर किरणों की गोल रेखा खींच गयी। आर्यमणि समझने की कोशिश में जुटा था कि आखिर हो क्या रहा है?... "क्यों मिस्टर विवियन, रिचर्डस साथ आता तो विवियन रिचर्ड्स बन जाते"…

विवियन:– अरे, आर्यमणि सर कॉमेडी कर रहे... सब हंसो रे…

आर्यमणि:– लगता है काफी खराब जोक था इसलिए सादिक और उसका पैक शांत खड़ा रह गया...

सादिक:– क्या करे आर्यमणि तुम जैसे वुल्फ को देखकर उसकी शक्ति पाने की चाह तो अपने आप बढ़ जाती है। लेकिन अकेले तुझ से जितने की औकाद नही थी, इसलिए जब शिकारियों का प्रस्ताव आया तब मैं ना नही कह सका। ऊपर जाकर मेरी बहन फेहरीन (रूही की मां) से मिल लेना।

आर्यमणि:– फिर तुम सब रुके क्यों हो?

तभी एक जोरदार लात आर्यमणि के चेहरे पर... किसी एलियन ने उसे मारा… "क्योंकि अब तक वो अनंत कीर्ति की किताब नही मिली न"…

विवियन:– आर्यमणि सर एक दूसरे का वक्त बचाते है। अभी प्यार से बता देंगे अनंत कीर्ति की किताब कहां है?

आर्यमणि:– एक खुफिया जगह जहां सिर्फ मैं पहुंच सकता हूं...

इसी बीच भीड़ में रास्ता बनने लगा और आखरी से कोई चिल्लाते हुए कहने लगा... "अनंत कीर्ति की किताब मिल गई है, और साथ में इसकी खूबसूरत बीवी भी, जो केवल एक कुर्ते में कमाल की लग रही"…

विवियन:– अरे उस वुल्फ को बीच में लाओ… हमने सुना था सरदार खान के रंडीखाने की सबसे मस्त माल थी...

आर्यमणि गुस्से में जैसे ही कदम आगे बढ़ाने की कोशिश किया, उसके पाऊं जम गये। कुछ बोलना चाह रहा था, लेकिन कुछ बोल नहीं पा रहा था। आंखों के सामने से रूही चली आ रही थी। वो मात्र एक कुर्ते में थी जिसमे उसका पूरा बदन पारदर्शी हो कर दिख रहा था। हर कोई उसे छू रहा था, चूम रहा था, उसके नाजुक अंगों में बड़ी बेरहमी से हाथ लगा रहा था।

रूही के आंखों से खून जैसे बह रहे हो। कान को फाड़ देने वाले लोगों के ठहाके। और दिल में छेद कर देने वाले लोगों के कमेंट... "सरदार खान के गली की सबसे खूबसूरत रण्डी"… अपनी बीवी की इस दशा पर आर्यमणि के आंखों से भी आंसू छलक आए...

विवियन:– एक रण्डी से काफी गहरा याराना लगता है। बेचारा आर्यमणि… कुछ तो करना चाह रहा है लेकिन देखो कैसे असहाय की तरह खड़ा है... अरे सादिक जरा हमे भी तो दिखाओ, तुम्हारे गली की रण्डी के साथ तुम लोग कैसे पेश आते हो...

विवियन ने जैसे ही यह बात कही, सादिक ने रूही की छाती पर हाथ डाला और कुर्ते को खींच दिया। उसका एक वक्ष सबके सामने था, जिसे देखकर सभी हंसने लगे। एक पुरानी बीती जिंदगी भुलाकर जो खुद को एक भारतीय नारी के रूप में देख रही थी, उसे, उसी के पति के सामने एक बार फिर बाजारू बना दिया गया।

रूही अपने बहते आंसू पोंछकर एक बार अपने पति को देखी। अगले ही पल जैसे आंखों में खून उतर आया हो। तेज वेयरवोल्फ साउंड फिजाओं में गूंज रही थी। रूही अपना शेप शिफ्ट कर चुकी थी। सामने यालविक पैक का मुखिया, और फर्स्ट अल्फा सादिक... देखते ही देखते उसके पूरे पैक ने शेप शिफ्ट कर लिया...

रूही के बदन को नोचने सादिक का बड़ा बेटा आदिल तेजी से आगे आया। उसका पंजा रूही के बदन पर बचे कपड़े के ओर और रूही दहारती हुई अपना सारा टॉक्सिक अपने नाखूनों में बहाने लगी... सादिक का लड़का आदिल थोड़ा झुक कर रूही के कपड़े को नोचने वाला था, रूही उतनी ही तेजी से अपने दोनो पंजे के नाखून उसके गर्दन में घुसाई और पूरा गला ही उतारकर हवा में उछाल दी।

रूही जब शेप शिफ्ट की उसकी लाल आंखें जैसे अंगार बरसा रही थी। सामने से 2 वुल्फ अपना बड़ा सा जबड़ा फाड़े, अपने दोनो पंजे फैलाये हवा में थे। जब हवा से वो लोग नीचे आये, उनका पार्थिव शरीर नीचे आ रहा था और सर हवा में उछल कर कहीं भीड़ में गिड़ गया। कड़ी प्रशिक्षण और प्योर अल्फा के असर ने रूही को इस कदर तेज बनाया था कि वह ऊंची छलांग लगाकर हवा में ही दुश्मनों का सर धर से अलग कर चुकी थी।

इसके बाद मोर्चा संभालने आया 3 एलियन जिसने सीधा सिल्वर बुलेट चला दिया। सिल्वर बुलेट तो चली लेकिन रुही के ब्लड में इतना टॉक्सिक दौड़ रहा था कि वो सिल्वर बुलेट शरीर अंदर जाते ही टॉक्सिक मे ऐसा गली की उसका कोई वजूद ही नही रहा... "तेरे ये फालतू बुलेट मेरा कुछ नही बिगाड़ सकते नामुराद"… रूही गला फाड़ती उनके सामने तांडव कर रही थी और जो खुद को थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी समझते थे, वो महज चंद सेकेंड में ढेर हो चुके थे।

रूही के सर पर खून सवार था। लेकिन उसी बीच विवियन अपने 5 साथियों के साथ खड़ा था। रूही तेज थी लेकिन जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ी होगी, उन एलियन की नजरों से लेजर तरंगे निकली। एनिमल इंस्टिंक्ट... खतरे को तुरंत भांप गई। किंतु 5 तरंगे एक साथ निकली थी और निशाना पेट ही था। शायद रूही को तड़पाते हुए मारना चाहते थे।

शिकारी अक्सर ये करते है। अपने शिकार का पेट चीड़ कर उसे तड़पते हुये धीमा मरने के लिये छोड़ देते है। उन एलियन को यह इल्म न था कि रूही के पेट में एक और जिंदगी पल रही थी। रूही तुरंत ही अपने जगह बैठ गई। 10 तरंगे उसके शरीर के आर पार कर चुकी थी। रूही के एक कंधे से दूसरे कंधे के बीच पूरा आर पार छेद हो चुका था और रूही दर्द से कर्राहती हुई अपना शेप शिफ्ट करके वहीं रेत पर तड़पने लगी...

ये सारा मंजर आर्यमणि के आंखों के सामने घटित हो रहा था। रूही की तड़प आर्यमणि के दिल में विछोभ पैदा करने लगी। आर्यमणि अपनी आंखें मूंद ईश्वर को याद करने लगा। एक पल में ही जीवन के सारे घटनाक्रम दिमाग में उभरने लगे... और फिर धीरे–धीरे वह अनंत गहराइयों में जाने लगा.…

आंखे जब खुली तब आचार्य जी सामने खड़े थे। आर्यमणि दौड़कर पास पहुंचा और पाऊं में गिरते... "बाबा वो रूही... बाबा रूही"…

आचार्य जी:– खुद को संभालो आर्य.... ऐसी कोई बाधा नहीं जो तुम पार ना कर सको। तुम जल्दी से रूही की जान बचाओ... मदद भी तुरंत पहुंच रही है...

आर्यमणि:– बाबा लेकिन कैसे... मैं अपनी गर्दन तक हिला नही पा रहा हूं।

आचार्य जी:– वो इसलिए क्योंकि अभी तुम्हारा मन विचलित है। थोड़ा ध्यान लगाओ.. पुराने नही नए घटनाक्रम पर... फिर जो अनियमितता दिखेगी, उसे देखकर बस खुद से पूछना, क्या कभी ऐसा हुआ था, और इस बाधा से कैसे पार पा सकते हैं? अब मैं चलता हूं...

अचानक ही वहां से आचार्य जी गायब हो गये। आर्यमणि खुद को किसी तरह शांत करते शादी की घटना पर ध्यान देने लगा। तभी कल रात उसे विजय दिखा। डिनर के वक्त, वो एक थाल में केक सजाकर ला रहा था। वो उसकी कुटिल मुस्कान... प्रतिबिंब में आर्यमणि और रूही एक दूसरे को देखकर खुश थे... जैसे ही केक हाथ में उठा, कुछ छोटे दाना नीचे गिड़ा...

उस वक्त अनदेखा की हुई एक बात... विजय अपने पाऊं के नीचे उस छोटे दाने को तेजी से दबाकर ऊपर देखन लगा, जैसे ही केक अंदर गया, विजय विजयी मुस्कान के साथ मुड़ा। पाऊं के नीचे के दाने को मसलते हुए वहां से चला गया...

"वो दाना.. वो दाना ही छलावा है.... क्या है वो... बाबा वो दाना क्या है, उसी का असर है... क्या कभी आपने ऐसा देखा है... इस दाने के जाल से निकलने का उपाय क्या है... क्या है उपाय बाबा"…

तभी जैसे चारो ओर धुवां होने लगा। एक प्रतिबिंब बनने लगी। आर्यमणि आज से पहले कभी यह चेहरा नही देखा था। आर्यमणि कुछ पूछ रहा था, लेकिन वो इंसान इधर–उधर घूम रहा था। अचानक ही उनका शरीर धू–धू करके जलने लगा। जब आर्यमणि ने उनकी नजरों का पीछा किया तब वहां तो और भी ज्यादा मार्मिक दृश्य था। कई सारे लोग बच्चों को पकड़–पकड़ कर एक बड़े से आग के कुएं में फेंक रहे थे।

आर्यमणि उसके आस पास मंडराते, बाबा बाबा कर रहा था। तभी उनके प्राण जैसे निकले हो। उस शरीर से सफेद लॉ निकली। धुएं की शक्ल वाली वो लॉ थी और शरीर जहां जला था वहां छोटे–छोटे हजारों कीड़े रेंग रहे थे। जैसे ही प्राण की वो लॉ निकली... तभी वहां गुरु निशि की आवाज गूंजने लगा.…

"मैं ये स्वप्न छोड़े जा रहा हूं। महादिपी ने तो केवल आग लगाई थी, लेकिन जिसने भी ये परिजीवी मेरे अंदर डाला वही साजिशकर्ता है। मैं समझ नहीं पाया ये पुराना जाल। प्रिय अपस्यु मेरा ज्ञान और मेरा स्वप्न तुम्हारा है। अब से आश्रम के गुरु और रक्षक की जिम्मेदारी तुम्हारी। बस जीवन काल में कभी तुम ऐसे फसो तो अपने अंदर पहले झांकना... अहम ब्रह्मास्मी… अहम ब्रह्मास्मी… का जाप करना।" इतना कहकर वह प्रतिबिंब गायब हो गया। वह प्रतिबिंब किसी और का नही बल्कि गुरु निशि का था, जो अपने आखरी वक्त की चंद तस्वीरें आने वाले गुरु के लिये छोड़ गये थे।

आर्यमणि वही मंत्र लगातार जाप करने लगा। धीरे–धीरे उसका रक्त संचार बढ़ता रहा। पहले अपने अंतर्मन में जोड़ जोड़ से कहने लगा, फिर जैसे आर्यमणि के होंठ खुलने लगे हो.. पहले धीमे बुदबुदाने जैसी आवाज। फिर तेज, और तेज और एक वक्त तो ऐसा आया की "अहम ब्रह्मास्मी" वहां के फिजाओं में चारो ओर गूंजने लगा।
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Devilrudra

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इधर टर्की में, खुशियों के बीच शादी के रश्मों का कारवां आगे बढ़ने लगा। हर दिन नए उमंग और नया जोश भरा होता। वो परिवार के बीच की खिंचाई और उसके बाद मुंह छिपाकर कटे–कटे घूमना। जया तो ज्यादा मजा लेने के चक्कर में रूही के प्रेगनेंसी के बारे में भी सबको बता चुकी थी।

आखिरकार 20 दिसंबर की शाम भी आ ही गई जब 2 जोड़े अपने परिणय सूत्र में बंध गये। आर्यमणि और रूही का चेहरा बता रहा था कि वो कितने खुश थे। वही हाल इवान और अलबेली का भी था। शादी संपन्न होने के बाद चारो को एक जगह बिठाया गया और उसके चारो ओर नेरमिन की फौज नाचने लगी। कई लड़कियां डफली पीटती हुई उनके चक्कर काटती रही। फिर आर्यमणि और इवान को उठा दिया गया और दोनो के गले में ढोल टांगकर उन्हे बजाने के लिए कहने लगे। वहीं रूही और अलबेली उस ढोल के धुन पर नाचना था...

सभी हंस रहे थे। आर्यमणि और इवान ढोल पिट रहे थे, वहीं रूही और अलबेली मस्त नाच रही थी। इसी बीच अलबेली और रूही का साथ देने, भूमि, निशांत, चित्रा और माधव पहुंच गये। उनको डांस फ्लोर पर जाते देख जया भी ठुमके लगाने पहुंच गयी। वहीं पापा केशव तो एक स्टेप आगे निकले। वो भी आर्यमणि की तरह ढोल टांगकर बजाने लगे।

चारो ओर जैसे खुशी झूम रही थी। शाम के 9 बजे सभी खाने के लिए गये। ठीक उसी वक्त 2 चॉपर रिजॉर्ट में लैंड हुई। जहां सभी गेस्ट खा रहे थे, वहां बड़े से बैनर में लिखा आने लगा.… "परिवार की ओर से छोटी सी भेंट"…

रूही और आर्यमणि को एक चॉपर में चढ़ा दिया गया। अलबेली और इवान को अलग चॉपर में। हां लेकिन इवान को जब चॉपर में चढ़ाया जा रहा था तब ओजल दोनो के पास पहुंची और गले लगाकर दोनो को बधाई देती... "तुम दोनो (इवान और अलबेली) अपने साथ शिवम सर को लिये जाओ। शिवम सर, आप भी इनके साथ जाइए"…

आर्यमणि, भी उन तीनो के पास पहुंचते..... “अरे कपल के बीच संन्यासी का क्या काम.. क्यों शिवम सर?”

ओजल:– इतना डिस्कशन क्यों। बस जो कह रही हूं उसे होने दीजिए जीजू"…

अलबेली, अपने और इवान के बीच संन्यासी शिवम् को सोचकर अंदर से थोड़ी चिढ़ी पर ओजल की जिद पर हां करती..... “ओजल, यहां बॉस भी है वरना ऐसी बात कहती न की तुम दोनो भाई बहन के अंतरियों में छेद हो जाता... दादा (आर्यमणि) रहने दो, आपकी इकलौती साली और अपनी इकलौती नंद की जिद पूरी हो जाने दो। आप भी रूही के साथ जाओ। चलिए शिवम् सर”

इस एक छोटे से विराम के बाद दोनो चॉपर 2 दिशा में उड़ गयी। तकरीबन 10 बजे रात चॉपर लैंड की और ठीक सामने जगमगाता हुआ एक छोटा सा कास्टल था। कास्टल के बाहर ड्रेस कोड में कुछ लोग खड़े थे जो आर्यमणि और रूही का स्वागत कर रहे थे। चॉपर उन्हे ड्रॉप करके चला गया और दोनो (आर्यमणि और रूही) रेड कार्पेट पर चलते हुये अंदर दाखिल हुये। अंदर की सजावट और स्वागत से दोनो का मन प्रश्न्न हो गया। हाउस के ओर से दोनो के लिए तरह–तरह के पकवान परोसे जा रहे थे। सबसे अंत में केक आया... जिसे दोनो ने एक दूसरे को कुछ खिलाया तो कुछ लगाया...

खा–पी कर हो गये दोनो मस्त। उसके बाद फिर रुके कहां। पहुंचे सीधा अपने सुहागरात वाले हॉल में जहां पूरा धमासान होना था। एक बड़ा सा हॉल था, जिसके बेड को पूरी तरह से सुहाग के सेज की तरह सजाया गया था। लहंगे में रूही कमाल लग रही थी, और अब रुकने का तो कोई प्रशन ही नही था। हां बस पूरे घपाघप के दौरान रूही ने बेलगाम घोड़े की लगाम खींच रखी थी और सब कुछ स्लो मोशन में हो रहा था। बोले तो आर्यमणि को तेज धक्के लगाने ही नही दी।

सुबह के 10 बजे तक दोनो घोड़े बेचकर सो रहे थे। पहले आर्यमणि की ही नींद खुली। आंखें जब खुली तो पास में रूही चैन से सो रही थी। उसे सुकून में सोते देख आर्यमणि की नजर उसपर ठहर गई और वो बड़े ध्यान से रूही को देखने लगा। एक मीठी सी अंगड़ाई के बाद रूही की आंखें भी खुल चुकी थी। अपने ओर आर्यमणि को यूं प्यार से देखते, रूही मुस्कुराने लगी और मुस्कुराती हुई अपनी दोनो बांह आर्यमणि के गले में डालती.… "शादी के बाद मैं खुद में पूर्ण महसूस कर रही। थैंक यू मेरे पतिदेव"…

आर्यमणि प्यार से रूही के होंठ को चूमते... "बहुत प्यारी हो तुम रूही।"…

अपनी बात कहकर आर्यमणि बिस्तर से ज्यों ही नीचे उतरा.… "अरे इतनी प्यारी लगती हूं तो मुझे छोड़कर कहां जा रहे"…

आर्यमणि:– बाथरूम जा रहा हूं, सुबह का हिसाब किताब देने... चलो साथ में..

रूही:– छी, छी.. तुम ही जाओ...

कुछ देर बाद आर्यमणि नहा धो कर ही निकला। उसके निकलते ही रूही अंदर घुस गई... "अच्छा सुनो रूही.. मैं जरा बाहर से घूमकर आता हूं।"…

"ठीक है जान, लेकिन ज्यादा वक्त मत लगाना"..

"ठीक है"… कहता हुआ आर्यमणि नीचे आया। जैसे ही नीचे आया एक स्टाफ वाइन की ग्लास आगे बढाते… "गुड मॉर्निंग सर"…

आर्यमणि:– तुम तो भारतीय मूल के लगते हो..

स्टाफ:– क्या खूब पहचाना है सर… विजय नाम है। आपके लिए कुछ अरेंज करवाऊं...

आर्यमणि:– नही शुक्रिया... अभी मैं बस बाहर टहलने निकला हूं...

विजय जोर–जोर से हंसने हुए... "सर बाहर कुछ नही केवल खतरा है। अंदर ही रहिए क्योंकि मैं तो ये भी नही कह सकता की बाहर आपको ठीक विपरित माहोल मिलेगा"…

आर्यमणि:– मतलब...

विजय:– चलिए आपको बाहर लिए चलता हूं यहां से मतलब बताने से अच्छा है दिखा ही दूं…

आर्यमणि जैसे ही बाहर आया... आंखों के आगे का नजारा देखकर.… "ये क्या है विजय सर"..

विजय:– ये रेगिस्तान का दरिया है। चलिए आपको सैर करवा दूं...

आर्यमणि:– हां हां जरूर... आज से पहले मैं कभी रेगिस्तान नही घुमा...

सर पर साफा बंधा। 2 ऊंट पहुंच गए। आर्यमणि, विजय के साथ सवार होकर घूमने निकल पड़ा। बातों के दौरान पता चला की उनका कैसल रेगिस्तान के बिलकुल मध्य में बना है। सौकिन लोगों के आराम करने की एक मंहगी जगह।

ऊंट पर सवार होकर आर्यमणि तकरीबन 6 किलोमीटर दूर निकला होगा तभी वो अपने चारो ओर के शांत वातावरण की हवाओं में गंध को मेहसूस करते... "विजय"…

विजय:– जी सर कहिए न...

आर्यमणि:– विजय तुम भारत से यहां तक आये, इसका मतलब यहां एलियन ने मेरे लिए जाल बिछाया है? एक बात जो मेरे समझ में नही आयी, तुम एलियन में तो न कोई गंध और न ही किसी प्रकार के इमोशंस को मेहसूस किया जा सकता था? फिर मेरे सेंस को चीट कैसे कर दिये? क्यों मैं तुम्हारी गंध और तुम्हारे इमोशन को मेहसूस कर सकता हूं?”

“हम ऐसे ही अपेक्स सुपरनैचुरल नही कहलाते है। हमारे पास पैसा, ताकत और टेक्नोलॉजी तीनो है। क्या समझे?”.... विजय अपनी बात कहकर आर्यमणि के ऊंट को एक लात मारा, आर्यमणि नीचे गिड़ा और ऊंट भाग गया... विजय अपने ऊंट से कूदकर नीचे उतरते... "जानवर हो न, हवा में ही अपने जैसे वुल्फ की मौजूदगी सूंघ लिये"..

आर्यमणि रेत झाड़ते हुए खड़ा हुआ... "कमाल ही कर दिये विजय... एलियन ने तुम जैसे नगीने के कहां छिपाकर रखा था, आज तक कभी दिखे नही?"…

विजय:– साथियों हमारा दोस्त हमसे कुछ सवाल पूछ रहा है...

जैसे ही विजय ने आवाज लगाई उसके चारो ओर लोग ही लोग थे... एक ओर एलियन तो दूसरे ओर सादिक यालविक का पूरा पैक। लगभग 400 लोगों के बीच घिरा अकेला आर्यमणि…

"हेल्लो आर्यमणि सर, मेरा नाम विवियन है... आप मुझे नही जानते लेकिन आपके दादा जी मुझे अच्छे से जानते थे"… विवियन अपनी बात कहते हुये अपना हाथ झटका और आर्यमणि के चारो ओर किरणों की गोल रेखा खींच गयी। आर्यमणि समझने की कोशिश में जुटा था कि आखिर हो क्या रहा है?... "क्यों मिस्टर विवियन, रिचर्डस साथ आता तो विवियन रिचर्ड्स बन जाते"…

विवियन:– अरे, आर्यमणि सर कॉमेडी कर रहे... सब हंसो रे…

आर्यमणि:– लगता है काफी खराब जोक था इसलिए सादिक और उसका पैक शांत खड़ा रह गया...

सादिक:– क्या करे आर्यमणि तुम जैसे वुल्फ को देखकर उसकी शक्ति पाने की चाह तो अपने आप बढ़ जाती है। लेकिन अकेले तुझ से जितने की औकाद नही थी, इसलिए जब शिकारियों का प्रस्ताव आया तब मैं ना नही कह सका। ऊपर जाकर मेरी बहन फेहरीन (रूही की मां) से मिल लेना।

आर्यमणि:– फिर तुम सब रुके क्यों हो?

तभी एक जोरदार लात आर्यमणि के चेहरे पर... किसी एलियन ने उसे मारा… "क्योंकि अब तक वो अनंत कीर्ति की किताब नही मिली न"…

विवियन:– आर्यमणि सर एक दूसरे का वक्त बचाते है। अभी प्यार से बता देंगे अनंत कीर्ति की किताब कहां है?

आर्यमणि:– एक खुफिया जगह जहां सिर्फ मैं पहुंच सकता हूं...

इसी बीच भीड़ में रास्ता बनने लगा और आखरी से कोई चिल्लाते हुए कहने लगा... "अनंत कीर्ति की किताब मिल गई है, और साथ में इसकी खूबसूरत बीवी भी, जो केवल एक कुर्ते में कमाल की लग रही"…

विवियन:– अरे उस वुल्फ को बीच में लाओ… हमने सुना था सरदार खान के रंडीखाने की सबसे मस्त माल थी...

आर्यमणि गुस्से में जैसे ही कदम आगे बढ़ाने की कोशिश किया, उसके पाऊं जम गये। कुछ बोलना चाह रहा था, लेकिन कुछ बोल नहीं पा रहा था। आंखों के सामने से रूही चली आ रही थी। वो मात्र एक कुर्ते में थी जिसमे उसका पूरा बदन पारदर्शी हो कर दिख रहा था। हर कोई उसे छू रहा था, चूम रहा था, उसके नाजुक अंगों में बड़ी बेरहमी से हाथ लगा रहा था।

रूही के आंखों से खून जैसे बह रहे हो। कान को फाड़ देने वाले लोगों के ठहाके। और दिल में छेद कर देने वाले लोगों के कमेंट... "सरदार खान के गली की सबसे खूबसूरत रण्डी"… अपनी बीवी की इस दशा पर आर्यमणि के आंखों से भी आंसू छलक आए...

विवियन:– एक रण्डी से काफी गहरा याराना लगता है। बेचारा आर्यमणि… कुछ तो करना चाह रहा है लेकिन देखो कैसे असहाय की तरह खड़ा है... अरे सादिक जरा हमे भी तो दिखाओ, तुम्हारे गली की रण्डी के साथ तुम लोग कैसे पेश आते हो...

विवियन ने जैसे ही यह बात कही, सादिक ने रूही की छाती पर हाथ डाला और कुर्ते को खींच दिया। उसका एक वक्ष सबके सामने था, जिसे देखकर सभी हंसने लगे। एक पुरानी बीती जिंदगी भुलाकर जो खुद को एक भारतीय नारी के रूप में देख रही थी, उसे, उसी के पति के सामने एक बार फिर बाजारू बना दिया गया।

रूही अपने बहते आंसू पोंछकर एक बार अपने पति को देखी। अगले ही पल जैसे आंखों में खून उतर आया हो। तेज वेयरवोल्फ साउंड फिजाओं में गूंज रही थी। रूही अपना शेप शिफ्ट कर चुकी थी। सामने यालविक पैक का मुखिया, और फर्स्ट अल्फा सादिक... देखते ही देखते उसके पूरे पैक ने शेप शिफ्ट कर लिया...

रूही के बदन को नोचने सादिक का बड़ा बेटा आदिल तेजी से आगे आया। उसका पंजा रूही के बदन पर बचे कपड़े के ओर और रूही दहारती हुई अपना सारा टॉक्सिक अपने नाखूनों में बहाने लगी... सादिक का लड़का आदिल थोड़ा झुक कर रूही के कपड़े को नोचने वाला था, रूही उतनी ही तेजी से अपने दोनो पंजे के नाखून उसके गर्दन में घुसाई और पूरा गला ही उतारकर हवा में उछाल दी।

रूही जब शेप शिफ्ट की उसकी लाल आंखें जैसे अंगार बरसा रही थी। सामने से 2 वुल्फ अपना बड़ा सा जबड़ा फाड़े, अपने दोनो पंजे फैलाये हवा में थे। जब हवा से वो लोग नीचे आये, उनका पार्थिव शरीर नीचे आ रहा था और सर हवा में उछल कर कहीं भीड़ में गिड़ गया। कड़ी प्रशिक्षण और प्योर अल्फा के असर ने रूही को इस कदर तेज बनाया था कि वह ऊंची छलांग लगाकर हवा में ही दुश्मनों का सर धर से अलग कर चुकी थी।

इसके बाद मोर्चा संभालने आया 3 एलियन जिसने सीधा सिल्वर बुलेट चला दिया। सिल्वर बुलेट तो चली लेकिन रुही के ब्लड में इतना टॉक्सिक दौड़ रहा था कि वो सिल्वर बुलेट शरीर अंदर जाते ही टॉक्सिक मे ऐसा गली की उसका कोई वजूद ही नही रहा... "तेरे ये फालतू बुलेट मेरा कुछ नही बिगाड़ सकते नामुराद"… रूही गला फाड़ती उनके सामने तांडव कर रही थी और जो खुद को थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी समझते थे, वो महज चंद सेकेंड में ढेर हो चुके थे।

रूही के सर पर खून सवार था। लेकिन उसी बीच विवियन अपने 5 साथियों के साथ खड़ा था। रूही तेज थी लेकिन जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ी होगी, उन एलियन की नजरों से लेजर तरंगे निकली। एनिमल इंस्टिंक्ट... खतरे को तुरंत भांप गई। किंतु 5 तरंगे एक साथ निकली थी और निशाना पेट ही था। शायद रूही को तड़पाते हुए मारना चाहते थे।

शिकारी अक्सर ये करते है। अपने शिकार का पेट चीड़ कर उसे तड़पते हुये धीमा मरने के लिये छोड़ देते है। उन एलियन को यह इल्म न था कि रूही के पेट में एक और जिंदगी पल रही थी। रूही तुरंत ही अपने जगह बैठ गई। 10 तरंगे उसके शरीर के आर पार कर चुकी थी। रूही के एक कंधे से दूसरे कंधे के बीच पूरा आर पार छेद हो चुका था और रूही दर्द से कर्राहती हुई अपना शेप शिफ्ट करके वहीं रेत पर तड़पने लगी...

ये सारा मंजर आर्यमणि के आंखों के सामने घटित हो रहा था। रूही की तड़प आर्यमणि के दिल में विछोभ पैदा करने लगी। आर्यमणि अपनी आंखें मूंद ईश्वर को याद करने लगा। एक पल में ही जीवन के सारे घटनाक्रम दिमाग में उभरने लगे... और फिर धीरे–धीरे वह अनंत गहराइयों में जाने लगा.…

आंखे जब खुली तब आचार्य जी सामने खड़े थे। आर्यमणि दौड़कर पास पहुंचा और पाऊं में गिरते... "बाबा वो रूही... बाबा रूही"…

आचार्य जी:– खुद को संभालो आर्य.... ऐसी कोई बाधा नहीं जो तुम पार ना कर सको। तुम जल्दी से रूही की जान बचाओ... मदद भी तुरंत पहुंच रही है...

आर्यमणि:– बाबा लेकिन कैसे... मैं अपनी गर्दन तक हिला नही पा रहा हूं।

आचार्य जी:– वो इसलिए क्योंकि अभी तुम्हारा मन विचलित है। थोड़ा ध्यान लगाओ.. पुराने नही नए घटनाक्रम पर... फिर जो अनियमितता दिखेगी, उसे देखकर बस खुद से पूछना, क्या कभी ऐसा हुआ था, और इस बाधा से कैसे पार पा सकते हैं? अब मैं चलता हूं...

अचानक ही वहां से आचार्य जी गायब हो गये। आर्यमणि खुद को किसी तरह शांत करते शादी की घटना पर ध्यान देने लगा। तभी कल रात उसे विजय दिखा। डिनर के वक्त, वो एक थाल में केक सजाकर ला रहा था। वो उसकी कुटिल मुस्कान... प्रतिबिंब में आर्यमणि और रूही एक दूसरे को देखकर खुश थे... जैसे ही केक हाथ में उठा, कुछ छोटे दाना नीचे गिड़ा...

उस वक्त अनदेखा की हुई एक बात... विजय अपने पाऊं के नीचे उस छोटे दाने को तेजी से दबाकर ऊपर देखन लगा, जैसे ही केक अंदर गया, विजय विजयी मुस्कान के साथ मुड़ा। पाऊं के नीचे के दाने को मसलते हुए वहां से चला गया...

"वो दाना.. वो दाना ही छलावा है.... क्या है वो... बाबा वो दाना क्या है, उसी का असर है... क्या कभी आपने ऐसा देखा है... इस दाने के जाल से निकलने का उपाय क्या है... क्या है उपाय बाबा"…

तभी जैसे चारो ओर धुवां होने लगा। एक प्रतिबिंब बनने लगी। आर्यमणि आज से पहले कभी यह चेहरा नही देखा था। आर्यमणि कुछ पूछ रहा था, लेकिन वो इंसान इधर–उधर घूम रहा था। अचानक ही उनका शरीर धू–धू करके जलने लगा। जब आर्यमणि ने उनकी नजरों का पीछा किया तब वहां तो और भी ज्यादा मार्मिक दृश्य था। कई सारे लोग बच्चों को पकड़–पकड़ कर एक बड़े से आग के कुएं में फेंक रहे थे।

आर्यमणि उसके आस पास मंडराते, बाबा बाबा कर रहा था। तभी उनके प्राण जैसे निकले हो। उस शरीर से सफेद लॉ निकली। धुएं की शक्ल वाली वो लॉ थी और शरीर जहां जला था वहां छोटे–छोटे हजारों कीड़े रेंग रहे थे। जैसे ही प्राण की वो लॉ निकली... तभी वहां गुरु निशि की आवाज गूंजने लगा.…

"मैं ये स्वप्न छोड़े जा रहा हूं। महादिपी ने तो केवल आग लगाई थी, लेकिन जिसने भी ये परिजीवी मेरे अंदर डाला वही साजिशकर्ता है। मैं समझ नहीं पाया ये पुराना जाल। प्रिय अपस्यु मेरा ज्ञान और मेरा स्वप्न तुम्हारा है। अब से आश्रम के गुरु और रक्षक की जिम्मेदारी तुम्हारी। बस जीवन काल में कभी तुम ऐसे फसो तो अपने अंदर पहले झांकना... अहम ब्रह्मास्मी… अहम ब्रह्मास्मी… का जाप करना।" इतना कहकर वह प्रतिबिंब गायब हो गया। वह प्रतिबिंब किसी और का नही बल्कि गुरु निशि का था, जो अपने आखरी वक्त की चंद तस्वीरें आने वाले गुरु के लिये छोड़ गये थे।

आर्यमणि वही मंत्र लगातार जाप करने लगा। धीरे–धीरे उसका रक्त संचार बढ़ता रहा। पहले अपने अंतर्मन में जोड़ जोड़ से कहने लगा, फिर जैसे आर्यमणि के होंठ खुलने लगे हो.. पहले धीमे बुदबुदाने जैसी आवाज। फिर तेज, और तेज और एक वक्त तो ऐसा आया की "अहम ब्रह्मास्मी" वहां के फिजाओं में चारो ओर गूंजने लगा।
Nice
भाग:–148


आर्यमणि वही मंत्र लगातार जाप करने लगा। धीरे–धीरे उसका रक्त संचार बढ़ता रहा। पहले अपने अंतर्मन में जोड़ जोड़ से कहने लगा, फिर जैसे आर्यमणि के होंठ खुलने लगे हो.. पहले धीमे बुदबुदाने जैसी आवाज। फिर तेज, और तेज और एक वक्त तो ऐसा आया की "अहम ब्रह्मास्मी" वहां के फिजाओं में चारो ओर गूंजने लगा।

नाक, कान और आंख के नीचे से कई लाख छोटे–छोटे परिजिवी निकल रहे थे। रूही अचेत अवस्था में वहीं रेत में पड़ी तड़प रही थी और इधर जबसे आर्यमणि की आवाज उन फिजाओं में गूंजी, फिर तो विवियन अपने 5 लोगों की टीम के साथ आर्यमणि के पास पहुंच चुका था।

आर्यमणि की आंखें खुल चुकी थी। शरीर अब सुचारू रूप से काम करने लगा था। विवियन बिना कुछ सोचे अपने आंखों से वो लेजर चलाने लगा। उसके साथ उसके साथी भी लगातार लेजर चला रहे थे। आर्यमणि अपने शरीर को पूरा ऊर्जावान बनाते, अपने बदन के पूरे सतह पर टॉक्सिक को रेंगने दिया। रूही को देखकर मन व्याकुल जरूर था, लेकिन दिमाग पूर्ण संतुलित। वायु विघ्न मंत्र का जाप शुरू हो चुका था। शरीर के सतह पर पूरा टॉक्सिक रेंग रहा था और पूरा शरीर ही अब आंख से निकलने वाले लेजर किरणों को सोख सकता था। आर्यमणि बलवानो की पूरी की पूरी टोली से उसका बल छीन चुका था।

विवियन के साथ पहले मात्र 5 एलियन लेजर से प्रहार कर रहे थे। 5 से फिर 25 हुये और 25 से 50। देखते ही देखते मारने का इरादा रखने वाले सभी 100 एलियन झुंड बनाकर एक अकेले आर्यमणि को मारने की कोशिश में जुट गये।

इसके पूर्व... रात में जब अलबेली और इवान अपने कास्टल पहुंचे तब खुशी के मारे उछल पड़े। उत्साह अपने पूरे चरम पर था और दोनो अपने वेडिंग नाइट की तैयारी देखकर काफी उत्साहित हो गये... रात के करीब 12.30 बज रहे होंगे। विवाहित जोड़ा अपने काम क्रीड़ा में लगा हुआ था, तभी उनके काम–लीला के बीच खलल पड़ गया। उसके कमरे का दरवाजा कोई जोड़, जोड़ से पिट रहा था।

अलबेली:– ऑफ ओ इवान, अंदर डालकर ऐसे रुको मत.… मजा किडकिड़ा हो जाता है...

इवान:– कोई दरवाजे पर है।

अलबेली:– मेरे जलते अरमान को आग न लगाओ और तेज–तेज धक्का लगाओ...

इवान कुछ कहता उस से पहले ही दरवाजा खुल गया। दोनो चादर खींचकर खुद को ढके। अलबेली पूरे तैश में आती.… "संन्यासी सर आपको देर रात मस्ती चढ़ी है क्या?"

संन्यासी शिवम्:– सबकी जान खतरे में है। कपड़े पहनो हम अभी निकल रहे हैं।

इवान:– ये क्या बकवास है... आप निकलो अभी इस कमरे से...

अलबेली:– इवान वो सबकी जान के बारे में बात कर रहे है...

इवान:– नही मुझे यकीन नही... ये ओजल का कोई प्रैंक है...

संन्यासी शिवम:– यहां से अभी चलो। एक पल गवाने का मतलब है, किसी अपने के जान का खतरा बढ़ गया...

इवान:– ठीक है पीछे घूम जाइए...

संन्यासी शिवम पीछे घूम गया। दोनो बिना वक्त गवाए सीधा अपने ऊपर कपड़े डाले। तीनो जैसे ही नीचे ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचे सारा स्टाफ उन्हे घेरकर प्यार से पूछने लगा की वो कहां जा रहे थे? संन्यासी शिवम् शायद बातचीत में वक्त नहीं गवाना चाहता था। अपने सूट बूट वाले कपड़े के किनारे से वो 5 फिट का एक दंश निकाले। (दंश किसी जादूगर की छड़ी जैसी होती है जो नीचे से पतला और ऊपर से हल्का मोटा होता है)

संन्यासी शिवम् वह दंश निकालकर जैसे ही भूमि पर पटके, ऐसा लगा जैसे तेज विस्फोट हुआ हो और उन्हे घेरे खड़ा हर आदमी बिखर गया। "लगता है वाकई बड़ी मुसीबत आयी है। शिवम् सर पूरे फॉर्म में है।"… अलबेली साथ चलती हुई कहने लगी। तीनो बाहर निकले। बाहर गप अंधेरा। संन्यासी शिवम ने दंश को हिलाया, जिसके ऊपरी सिरे से रौशनी होने लगी।

थोड़ा वक्त लगा लेकिन जैसे ही सही दिशा मिली सभी पोर्ट होकर सीधा शादी वाले रिजॉर्ट पहुंचे। शादी वाले रिजॉर्ट तो पहुंच गये पर रिजॉर्ट में कोई नही था। संन्यासी शिवम् टेलीपैथी के जरिए ओजल और निशांत से संपर्क करने लगे।

संन्यासी शिवम्:– तुम दोनो कहां हो?

निशांत:– पूरा अंधेरा है। बता नही सकता कहां हूं। चारो ओर से हमले हो रहे है, और कोई भी होश में नही।

संन्यासी शिवम्:– ओजल कहां है?

निशांत:– वही इकलौती होश में है, और मोर्चा संभाले है। मुझे किसी तरह होश में रखी हुई है, वरना मेरा भ्रम जाल भी किसी काम का नही रहता।

संन्यासी शिवम्:– क्या संन्यासियों की टोली भी बेहोश है?

निशांत:– हां... आप जल्दी से आओ वरना मैं ज्यादा देर तक होश में नही रहने वाला। मैं बेहोश तो यहां का भ्रम जाल भी टूट गया समझो।

संन्यासी शिवम्:– सब बेहोश भी हो गये तो भी यहां कोई चिंता नहीं है। जर्मनी के जंगल मे हम इन्हे इतना डरा चुके थे, कि जबतक बड़े गुरुदेव (आर्यमणि) मरते नही, तब तक वो किसी को भी हाथ नही लगायेगा। तुम लोगों को तो केवल चारा बनाया जायेगा, असली निशाना तो गुरुदेव (आर्यमणि) ही होंगे। हौसला रखो हम जल्द ही पहुंच रहे हैं।

संन्यासी शिवम् मन में चले वार्तालाप को अलबेली और इवान से पूरा बताने के बाद..... “तुम दोनो उनकी गंध सूंघो और पता लगाओ कहां है।”...

एलियन थे तो प्रहरी समुदाय का ही हिस्सा। उन्हे गंध मिटाना बखूबी आता था। विवियन के साथ आया हर एलियन प्रथम श्रेणी का नायजो था। यानी की फर्स्ट लाइन सुपीरियर शिकारी से एक पायदान ऊपर। सभी 100 प्रथम श्रेणी के नायजो अपने साथ 5 फर्स्ट लाइन सुपीरियर शिकारी को लेकर चले थे। उन सभी 500 शिकारियों का काम था, आर्यमणि के दोस्त और परिवार को एक खास किस्म के कीड़ों का सेवन करवाकर, उन्हे अगवा कर लेना। ये वही कीड़ा था, जो आर्यमणि के केक में भी मिला था। जिसके शरीर में जाने के कारण आर्यमणि हील भी नही पा रहा था। देखने में वह कीड़ा किसी छोटे से कण जैसे दिखते, पर एक बार जब शरीर के अंदर पहुंच गये, फिर तो सामने वाला उन नायजो के इशारे का गुलाम। और गुलाम पूरे परिवार और दोस्तों को बनाना था ताकि आर्यमणि को घुटनों पर लाया जा सके।

सभी लोगों ने पेट भर–भर कर कीड़ों वाला खाना खाया था, सिवाय ओजल के। वह पिछले 8 दिन से किसी सिद्धि को साध रही थी, इसलिए आचार्य जी द्वारा जो झोले में फल मिला था, उसी पर कुल 10 दिन काटना था। जितना पानी आचार्य जी ने दिया, उतना ही पानी अगले 10 दिन तक पीना था। बस यही वजह थी कि ओजल होश में थी और जब एलियन दोस्त और परिवार के सभी लोगों को ले जाया जा रहा था, तब खुद को अदृश्य रखी हुई थी।

हालांकि संन्यासी शिवम् और निशांत की बात ओजल ने भी सुनी थी। पर थोड़ा भी ध्यान भटकाने का मतलब होता दुश्मन को मौका देना इसलिए वह चुप चाप पूरे माहोल पर ध्यान केंद्रित की हुई थी। वैसे इस रात का एक पक्ष और भी था, अलबेली, इवान और संन्यासी शिवम्। ये तीनों भी रेगिस्तान के किसी कास्टल में पहुंचे थे। वैसे तो तीनो को ही खाने खिलाने की जी तोड़ कोशिश की गयी, किंतु अलबेली और इवान इतने उतावले थे कि दोनो सीधा अपने सुहाग की सेज पर पलंग तोड़ सुगरात मनाने चले गये। फिर एक राउंड में ये कहां थकने वाले थे। संन्यासी शिवम जब दोनो के कमरे में दाखिल हुये, तब तीसरे राउंड के मध्य में थे।

वहीं संन्यासी शिवम देर रात भोजन करने बैठे थे। पहला निवाला मुंह के अंदर जाता उस से पहले ही ओजल, खतरे का गुप्त संदेश भेज चुकी थी। कुल मिलाकर तीनो ने कास्टल का कुछ भी नही खाया था। वहीं कास्टल में रुके नायजो की भिड़ को यह आदेश मिला था कि तीनो (इवान, अलबेली और संन्यासी शिवम) में से कोई भी किसी से संपर्क नही कर पाये।

कुल मिलाकर बात इतनी थी कि रात के 2 बजे तक 4 लोग होश में थे। ओजल जो की पूरे परिवार को सुरक्षित की हुई थी। अलबेली, इवान और संन्यासी शिवम उसके मदद के लिये पहुंच रहे थे। इवान और अलबेली ने महज 2 मिनट में पकड़ लिया की गंध को मिटा दिया गया है। संन्यासी शिवम थोड़े चिंतित हुये किंतु अलबेली और इवान उनकी चिंता मिटते हुये वह निशान ढूंढ निकाले जो ओजल पीछे छोड़ गयी थी।

ओजल निशान बनाती हुई सबका पीछा कर रही थी और उन्ही निशान के पीछे ये तीनों भी पहुंच गये। ये तीनों जैसे ही उस जगह पहुंचे, आग की ऊंची लपटें जल रही थी और 3 लोगों के चीखने की आवाज आ रही थी। उन्ही चीख के बीच ओजल भी दहाड़ी.... “क्यों बे चूहों किस बिल में छिप गये। कहां गयी तुम्हारी बादल, बिजली और आग की करामात। चलो अब बाहर आ भी जाओ। देखो तुम्हारे साथी कैसे तड़प रहे है।”...

इतने में ही ठीक अलबेली और इवान के 2 कदम आगे रेत में छिपा नायजो रेत से निकलकर हमला किया और फिर वापस रेत में। अलबेली और इवान के बीच आंखो के इशारे हुये और दोनो ने एक साथ रेत में अपना पंजा घुसाकर चिल्लाए..... “क्यों री झल्ली रेत में हाथ डालकर 10 किलोमीटर की जगह को ही जड़ों में क्यों न ढक दी।”

ओजल यूं तो जड़ों को फैलाना भूल गयी थी। फिर भी खुद को बचाती.... “चुप कर अलबेली। मैं कुछ नही भूली थी, बल्कि रेगिस्तान में उगने वाले पौधों की जड़ें मजबूत ही न थी।”...

अलबेली:– बहानेबाज कहीं की। खजूर की जड़ें मजबूत ना होती हैं? नागफणी की जड़ें मजबूत ना होती हैं। फिर मेरी जड़ों में ये 350 एलियन कैसे फंस गये?

इवान:– तुम दोनो बस भी करो। ना वक्त देखती ही न माहोल, केवल एक दूसरे से लड़ना है।

इवान की डांट खाकर दोनो शांत हुये जबकि झगड़े के दौरान ही सभी थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी को ये लोग पकड़ चुके थे। फिर तो इन सबको तबियत से ट्रीटमेंट दिया गया। पहले शरीर के हर हिस्से में मोटे कांटों का मजा लिये, उसके बाद जिस अग्नि को अपने हाथों से नियंत्रित करते थे, उसी में जलकर स्वाहा हो गये।

सुबह के लगभग 5 बज चुके थे। परिवार के जितने सदस्य और मित्र थे, सब के सब बेहोश पड़े थे। संन्यासी शिवम् उनकी हालत का जायजा ले रहे थे। इतने में ओजल, अलबेली और इवान तीनो ही सबको हील करने जा रहे थे।

संन्यासी शिवम्:– नही, कोई भी अपने खून में उस चीज का जहर मत उतारो जो इन सबके शरीर में है।

ओजल:– शिवम सर लेकिन हील नही करेंगे तो सब बेहोश पड़े रहेंगे। जहर का असर फैलता

संन्यासी शिवम्:– आचार्य जी से मेरी बात हो गयी है। जो इनके शरीर में डाला गया है, वो कोई जहर नही बल्कि एक विशेस प्रकार का जीव है। दिखने में ये किसी बालू के कण जितने छोटे होते है, लेकिन किसी सजीव शरीर में जाकर सक्रिय हो जाते है। एक बार यह सक्रिय हो गये फिर ये जब शरीर से बाहर निकलेंगे तभी मरेंगे, वरना किसी भी विधि से इस कीड़े के मूल स्वरूप को बदल नही सकते।

इवान:– फिर हम क्या करे?

संन्यासी शिवम्:– पूरे परिवार को इस्तांबुल एयरपोर्ट लेकर चलो। सबके टिकट बने हुये है। इस्तांबुल से सभी लॉस एंजिल्स जायेंगे। रास्ते में इनके अंदर के जीवों का भी इलाज हो जायेगा।

कुछ ही देर में सब गाड़ी पर सवार थे। संन्यासी शिवम टेलीपैथी के जरिए एक–एक करके सबके दिमाग में घुसे और “अहम ब्रह्मास्मी” का जाप करने लगे। सबने देखा कैसे एक–एक करके हर किसी के शरीर से करोड़ों की संख्या में कीड़े निकल रहे थे और बाहर निकलने के साथ ही कुछ देर रेंगकर मर जाते।

सुबह के लगभग 11 बजे तक सबको लेकर ये लोग सीधा इस्तांबुल के एयरपोर्ट पर पहुंचे, जहां लॉस एंजिल्स जाने वाली प्लेन पहले से रनवे पर खड़ी थी। पूरे परिवार के लोग जब पूर्णतः होश में आये तब खुद को एयरपोर्ट के पास देखकर चौंक गये। हर किसी को रात का खाना खाने के बाद सोना तो याद था पर एयरपोर्ट कैसे पहुंचे वह पूरी याद ही गायब। वैन में ही पूरा कौतूहल भरा माहोल हो गया।

बेचारा निशांत हर कोई उसी के कपड़े फाड़ रहा था जबकि वह भी उसी कीड़े का शिकर हुआ था, जिस कीड़े ने सबको अपने वश में कर रखा था। लागातार बढ़ते विवाद और समय की तंगी को देखते हुये संन्यासी शिवम् सबको म्यूट मोड पर डालते...... "ये सब आर्यमणि का सरप्राइज़ है। आप सब लॉस एंजिल्स पहुंचिए, आगे की बात आपको आर्यमणि ही बता देगा।"…

संन्यासी शिवम के कहने पर वो लोग शांत हुये। सभी लगभग सुबह के 11 बजे तक उड़ान भर चुके थे, सिवाय निशांत, ओजल, इवान और अलबेली के। जैसे ही सब वहां से चले गए.… "शिवम सर, जीजू और दीदी पर भी हमला हुआ होगा क्या?"… ओजल चिंता जताती हुई पूछी।

संन्यासी:– आर्यमणि आश्रम के गुरुदेव है। सामने खड़े होकर उनकी जान निकालना इतना आसान नहीं होगा। सबलोग वहां चलो जहां हमे कोई न देख सके।

साबलोग अगले 5 मिनट में आर्यमणि वाले कास्टल पहुंच गये। अगले 10 मिनट में ओजल, इवान और अलबेली ने पूरे कास्टल को छान मारे लेकिन वहां कोई नही था। इवान, संन्यासी का कॉलर पकड़ते... "कहां गए मेरे बॉस और दीदी... आपने तो कहा था कि बॉस आश्रम के गुरुदेव है। सामने से उन्हे हराना संभव नही...

ओजल:– हम यहां नही रुक सकते। हवाई गंध को महसूस करते उन तक जल्दी पहुंचते है...

संन्यासी शिवम्:– वहां पहुंचकर भी कोई फायदा नही होगा... हम रेगिस्तान के इतने बड़े खुले क्षेत्र को नहीं बांध सकते। तुम लोग कुछ वक्त दो...

इतना कहकर संन्यासी शिवम् वहीं नीचे बैठकर ध्यान लगाने लगे। वो जैसे ही ध्यान में गये, इवान और अलबेली उस जगह से निकलने की कोशिश करने लगे। लेकिन खुले दरवाजे के बीच जैसे कोई पारदर्शी दीवार लगी हो... "ये कौन सा जादू तुम लोगों ने किया है। यहां का रास्ता खोलो हमे रूही और दादा (आर्यमणि) को ढूंढने बाहर जाना है।"

निशांत:– यहां से कोई बाहर नही जायेगा। सुना नही संन्यासी शिवम् ने क्या कहा?

ओजल:– तुम दोनो खुद पर काबू रखो…

अलबेली:– काबू की मां की चू… दरवाजा खोलो या फिर मैं इस संन्यासी का सर खोल देती हूं।

सबके बीच गहमा गहमी वाला माहोल शुरू हो चुका था। इसी बीच संन्यासी शिवम का ध्यान टूटा... "ओजल, निशांत तुम दोनो से इतना हल्ला गुल्ला की उम्मीद नही थी। इवान और अलबेली को शांत करने के बदले लड़ रहे थे। तुम दोनो भी शांत हो जाओ। गुरुदेव (आर्यमणि) और रूही, दोनो यहीं आ रहे है। तुम लोग जल्दी से जाओ एक खाली बेड, चादर, गरम पानी, और वहीं किचन में नशे में इस्तमाल होने वाली कुछ सुखी पत्तियां होंगी उन्हें ले आओ। तुम दोनो (ओजल और निशांत) अपना झोला लेकर आये हो?

ओजल, और निशांत दोनो एक साथ... “हां शिवम सर”...

संन्यासी शिवम्:– ठीक है यहां छोड़कर जाओ...

चारो ही भाग–भाग कर सारा सामान वहीं नीचे ग्राउंड फ्लोर पर सजा चुके थे। जैसे ही उनका काम खत्म हुआ, सबकी नजर दरवाजे पर थी। बस चंद पल हुये होंगे, सबको आर्यमणि दूर से आते दिख गया। जैसे ही आर्यमणि दरवाजे तक आया, संन्यासी शिवम् ने अपना जाल खोल दिया। आर्यमणि अंदर और फिर से दरवाजा को बांध दिया।
Nice👍👍👍
 

Devilrudra

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भाग:–149


इसके पूर्व आर्यमणि जैसे ही उन कीड़ों की कैद से आजाद हुआ सबसे पहला ख्याल रूही पर ही गया। अचेत अवस्था में वो बुरी तरह से कर्राह रही थी। विवियन और बाकी एलियन को तो यकीन तक नही हुआ की आर्यमणि के शरीर से कीड़े निकल चुके है। वो लोग झुंड बनाकर आर्यमणि पर हमला करने लगे, किंतु आर्यमणि के शरीर की हर कोशिका सक्रिय थी और किसी भी प्रकार के टॉक्सिक को खुद में समाने के लिये उतने ही सक्षम। बदन के जिस हिस्से पर लेजर की किरण और उन किरणों के साथ कितने भी भीषण प्रकोप क्यों नही बरसते, सब आर्यमणि के शरीर में गायब हो जाते।

विवियन और उसके सकड़ो साथी परेशान से हो गये। वहीं आर्यमणि रूही की हालत देखकर अंदर से रो रहा था। किसी तरह खुद पर काबू रखकर आर्यमणि ने आस–पास के माहोल को भांपा। उसपर लगातार एलियन के हमले हो रहे थे। सादिक यालविक और उसका बड़ा सा पैक आराम से वहीं बैठकर तमाशा देख रहा था। आर्यमणि पूरी समीक्षा करने के बाद तेज दौड़ने के लिये पोजिशन किया। किंतु जैसे ही 2 कदम आगे बढ़ाया वह तेज टकराकर नीचे रेत पर बिछ गया।

आर्यमणि को ध्यान न रहा की वह किरणों के एक घेरे में कैद था। किरणों का एक विचित्र गोल घेरा जिसे आर्यमणि पार ना कर सका। आर्यमणि हर संभव कोशिश कर लिया किंतु किरणों के उस गोल घेरे से बाहर नही निकल सका। विवियन और उसकी टीम भी जब लेजर की किरणों से आर्यमणि को मार न पाये, तब उन लोगों ने भी विश्राम लिया। वो सब भी आर्यमणि की नाकाम कोशिश देख रहे थे और हंस रहे थे।

विवियन:– क्या हुआ प्योर अल्फा, किरणों की जाल से निकल नही पा रहे?

आर्यमणि:– यदि निकल गया होता तो क्या तू मुझसे ऐसे बात कर रहा होता।

विवियन:– अकड़ नही गयी हां। आर्यमणि सर तो बड़े टसन वाले वेयरवोल्फ निकले भाई। सुनिए आर्यमणि सर यहां हमे कोई मारकर भी चला जाये, तो भी तुम उस घेरे को पार ना कर पाओगे। चलो अब तुम्हे मै एक और कमाल दिखाता हूं। दिखाता हूं कि कैसे हम घेरे में फसाकर अपने किसी भी शक्तिशाली दुश्मन को पहले निर्बल करते है, उसके बाद उसके प्राण निकालते हैं।

आर्यमणि:– फिर रुके क्यों हो? तुम अपना काम करो और मैं अपना...

आर्यमणि अपनी बात कहकर आसान लगाकर बैठ गया। वहीं विवियन ने गोल घेरे के चारो ओर छोटे–छोटे रॉड को गाड़ दिया, जिसके सर पर अलग–अलग तरह के पत्थर लगे हुये थे। गोल घेरे के चारो ओर रॉड लगाने के बाद विवियन पीछे हटा। देखते ही देखते रॉड पर लगे उन पत्थरों से रौशनी निकलने लगी जो आर्यमणि के सर से जाकर कनेक्ट हो गयी।

आर्यमणि ने वायु विघ्न मंत्र का जाप तो किया पर उन किरणों पर कुछ भी असर न हुआ। फिर आर्यमणि ने उन किरणों को किसी टॉक्सिक की तरह समझकर खुद में समाने लगा। जितनी तेजी से वह किरण आर्यमणि के शरीर में समाती, उतनी ही तेजी से उसके शरीर से काला धुवां निकल रहा था। यह काला धुवां कुछ और नहीं बल्कि आर्यमणि के शरीर में जमा टॉक्सिक था, जो बाहर निकल रहा था।

पहले काला धुवां बाहर निकला उसके बाद उजला धुवां। उजला धुवां आर्यमणि के शरीर का शुद्ध ऊर्जा था, जो शरीर से निकलकर हवा में विलीन हो रहा था। धीरे–धीरे उसकी शक्तियां हवा में विलीन होने लगी। आर्यमणि खुद में कमजोर, काफी कमजोर महसूस करने लगा। आसान लगाकर बैठा आर्यमणि कब रेत पर लुढ़का उसे खुद पता नही चला।

आर्यमणि के शरीर की ऊर्जा, उजली रौशनी बनकर लगातार निकल रही थी। वह पूर्ण रूपेण कमजोर पड़ चुका था। आंखें खुली थी और होश में था, इस से ज्यादा आर्यमणि के पास कुछ न बचा था। तभी वहां आर्यमणि के जोर–जोर से हंसने की आवाज गूंजने लगी। किसी तरह वह खुद में हिम्मत करके अट्टहास से परिपूर्ण हंसी हंस रहा था।

विवियन:– लगता है मृत्यु को करीब देख इसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है।

आर्यमणि बिना कोई जवाब दिये हंसता ही रहा काफी देर तक सबने उसकी हंसी सुनी। जब बर्दास्त नही हुआ तब यालविक पैक का मुखिया सादिक यालविक चिल्लाते हुये पूछने लगा..... “क्यों बे ऐसे पागल की तरह क्यों हंस रहा है?”...

आर्यमणि:– अपने परिवार को धोखा दिया। नेरमिन से दुश्मनी भी हो ही जाना है, लेकिन जिस शक्ति के लिये तूने शिकारियों का साथ दिया, वो तुझे नही मिलेगी।

आर्यमणि इतना धीमे बोला की सबको कान लगाकर सुनना पड़ा। 3 बार में सबको उसकी बात समझ में आयी। आर्यमणि की बात पर विवियन ठहाके मारकर हंसते हुये..... “तुझे क्या लगता है हम अपनी बात पर कायम न रहेंगे। सादिक न सिर्फ तेरी शक्तियां लेगा बल्कि सरदार खान की तरह ही वह भी एक बीस्ट अल्फा बनेगा। बस थोड़ा वक्त और दे। अभी तेरी थोड़ी और अकड़ हवा होगी, फिर तू खुद भी देख लेगा, कैसे तेरी शक्तियां सादिक की होती है।”

आर्यमणि समझ चुका था कि विवियन खुद ये घेरा खोलने वाला है। पूरे मामले में सबसे अच्छी ये बात रही की किसी का भी ध्यान रूही पर नही गया। आर्यमणि ने सबका ध्यान अपनी ओर ही बनवाए रखा। वह कमजोर तो पड़ ही चुका था बस दिमाग को संतुलित रखे हुये था। आर्यमणि सोच चुका था कि घेरा खुलते ही उसे क्या करना है।

10 मिनट का और इंतजार करना पड़ा। आर्यमणि की जब आंखे बंद हो रही थी, ठीक उसी वक्त किरणों का वह घेरा खुला। किरणों का घेरा जैसे ही खुला, पंजे के एक इशारे मात्र से ही आर्यमणि ने सबको जड़ों में ढक दिया। आर्यमणि के अंदर इतनी जान नही बाकी थी कि वह खड़ा भी हो सके। यह बात आर्यमणि खुद भी समझता था, इसलिए सबकुछ जैसे पहले से ही सोच रखा हो।

सबको जड़ों में ढकने के बाद खुद को और रूही को भी जड़ों में ढका। कास्टल के रास्ते पर जड़ों की लंबी पटरी ही जैसे आर्यमणि ने बिछा रखी थी। जड़ें दोनो को आगे भी धकेल रही थी और उन्हे जरूरी पोषण भी दे रही थी। लगभग 3 किलोमीटर तक जड़ों पर खिसकने के बाद आर्यमणि के अंदर कुछ जान वापस आयी और वह रूही को उठाकर कैस्टल के ओर दौड़ लगा दिया।

आर्यमणि जैसे ही कास्टल के अंदर पहुंचा, इवान उसकी गोद से रूही को उठाकर सीधा बेड पर रखा। संन्यासी शिवम् भी उतनी ही तेजी से अपना काम करने लगे। और इधर आर्यमणि, जैसे ही उसकी नजर अपने लोगों पर पड़ी... वो घुटनो पर आ गया और फूट–फूट कर रोने लगा। ओजल नीचे बैठकर, अपने दोनो हाथ से आर्यमणि के आंसू पूछती... "बॉस, दीदी को कुछ नही हुआ है... उसका इलाज चल रहा है।"…

"सब मेरी गलती है... सब मेरी गलती है... मुझे इतने लोगों से दुश्मनी करनी ही नही चाहिए थी"… आर्यमणि विलाप करते हुये बड़बड़ाने लगा।

ओजल:– संभालो बॉस, खुद को संभालो...

आर्यमणि:– रूही.. कहां है... कहां है रूही"…

ओजल:– यहीं पास में है।

आर्यमणि:– हटो मुझे उसे हील करना है... सब पीछे हटो..

तभी संन्यासी शिवम पीछे मुड़े और दंश को भूमि पर पटकते... "अशांत मन केवल तबाही लाता है। अभी रूही का जिस्म हील करेंगे तो हमेशा के लिये 10 छेद उसके बदन में रह जाएंगे। खुद को शांत करो"…

संन्यासी शिवम की बात सुनने के बाद आर्यमणि पूरा हताश हो गया। वहीं जमीन पर बैठकर रूही, रूही बड़बड़ाने लगा। दूसरी ओर जड़ों में फसे एलियन ने पहले खुद को जड़ों से आजाद किया, बाद में सादिक यालक और उसके पूरे पैक को। कुछ ही देर में कास्टल के दरवाजे पर पूरी फौज खड़ी थी। फौज लगातार अंदर घुसने का प्रयास कर रही थी, लेकिन दरवाजे के 10 कदम आगे ही हवा में जैसे किसी ने दीवार बना दिया हो। सभी दरवाजे से 10 कदम की दूरी पर खड़े थे।

संन्यासी शिवम्:– गुरुदेव दुश्मन द्वार खड़े है। मैं रूही को देखता हूं, आपलोग उन बाहर वाले दुश्मनों को देखिए।

आर्यमणि:– हां सही कह रहे आप।

संन्यासी शिवम्:– ओजल अपने दंश से सामने की सुरक्षा दीवार गिरा दो।

कास्टल के ग्राउंड फ्लोर पर संन्यासी शिवम, रूही का इलाज शुरू कर चुके थे। पूरी अल्फा पैक कास्टल के दरवाजे से बाहर कतार लगाये खड़ी थी। उधर से विवियन चिल्लाया.... “तुम लोग बहुत टेढ़ी जान हो... तुम्हारी दुर्दशा हो गयी फिर भी बच गये। तुम्हारी बाजारू पत्नी के शरीर में इतने छेद हुये, लेकिन लेजर के साथ–साथ उसके भीषण जहर से भी बच गयी। कमाल ही कर दिया। अच्छा हुआ जो तुम और तुम्हारे लोग कतार लगाकर अपनी मौत के लिये पहले ही सामने आ गये।”

इवान कुछ तो कहना चाह रहा था किंतु आर्यमणि ने इशारे में बस चुप रहने के लिये कहा। उधर निशांत इशारे में सबको समझा चुका था कि आस पास का दायरा पूरे भ्रम जाल में घिरा हुआ है। तभी एक बड़े विस्फोट के साथ बाहर की अदृश्य दीवार टूट गयी। जब रेत और धूल छंटा तब वहां इकलौत आर्यमणि अपना पाऊं जमाए खड़ा था। बाकी अल्फा पैक सदस्य पर विस्फोट का ऐसा असर हुआ की वो लोग कई फिट पीछे जाकर कास्टल की दीवार से टकराये। दरअसल मंत्र उच्चारण के बाद ओजल द्वारा कल्पवृक्ष दंश को संतुलित रूप से भूमि पर पटकना था, किंतु ओजल से थोड़ी सी चूक हो गयी और दीवार गिराने वाले विस्फोट का असर न सिर्फ विपक्षी को हुआ बल्कि आंशिक रूप से अल्फा पैक पर भी पड़ा।

असर तो आर्यमणि पर भी होता लेकिन विस्फोट के ठीक पहले आर्यमणि के हाथ में उसका एम्यूलेट पहुंच चुका था। बाकी के अल्फा पैक अपना धूल झाड़ते खड़े हुये। सबसे ज्यादा गुस्सा निशांत को ही आया। गुस्से में झुंझलाते हुये..... “तुम (ओजल) कभी भी नही सिख सकती क्या? विस्फोट का असर खुद के खेमे पर भी कर दी।”..

ओजल:– निशांत सर अभी सिख ही रही हूं। किसी वक्त आप भी कच्चे होंगे...

निशांत:– कच्चा था लेकिन अपनी बेवकूफी से अपने लोगों के परखच्चे नही उड़ाता था। पागल कहीं की...

इवान:– अरे वाह एमुलेट वापस आ गया।

दरअसल एक–एक करके सबके एमुलेट लौट आये थे। हवा में बिखरे रेत जब आंखों के आगे से हटा, दृष्टि पूरी साफ हो चुकी थी। विपक्ष दुश्मनों के आगे की कतार तो जैसे गायब हो चुकी थी, लेकिन बाकी बचे लोग हमला बोल चुके थे। बेचारे एलियन और यालवीक की सेना अपनी मौत को मारने की कोशिश में जुटे थे।

इनकी कोशिश तो एक कदम आगे की थी। जिस जगह अल्फा पैक खड़ी थी उसके आस पास की जगह पर गोल–गोल घेरे बन रहे थे। गोला इतना बड़ा था कि उसमे आराम से 4–5 लोग घिर जाये। हर कोई जमीन पर किरणों के बने गोल घेरे साफ देख सकते थे। एक प्रकार का एलियन महा जाल था, जिसमे अल्फा पैक को फसाकर मारने की कोशिश की जा रही थी।

किंतु निशांत के भ्रम जाल में पूरे एलियन उलझ कर रह गये। विवियन को भी समझ में आ गया की उनका पाला किस से पड़ा है। किरणों के गोल जाल में जब अल्फा पैक नही फंसा तब विवियन ने टर्की के स्थानीय वेयरवोल्फ को इशारा किया। वुल्फ पैक का मुखिया सादिक यालविक, इशारा मिलते ही आर्यमणि पर हमला करने के लिये कूद गया।

सादिक याल्विक लंबी दहाड़ लगाकर सीधा आर्यमणि के ऊपर छलांग लगा चुका था। किंतु भ्रम जाल के कारण सादिक यालविक को लग रहा था कि वह आर्यमणि के ऊपर कूद रहा है और आर्यमणि साफ देख सकता था कि सादिक ने एक हाथ बाएं छलांग लगाया था। आर्यमणि ने पंजा झटक कर अपने क्ला को बाहर निकाला और जैसे ही सादिक याल्विक उसके हाथ के रेंज में आया फिर तो आर्यमणि ने अपना पंजा सीधा सादिक यालविक के सीने में घुसेड़ कर उसे हवा में ही टांग दिया। पूरा यालविक पैक ही दर्द भरी दहाड़ लगाते आर्यमणि के ऊपर हमला कर चुका था।

अल्फा पैक जो पीछे खड़ी थी, वह बिना वक्त गवाए तेज दौड़ लगा चुके थे। एमुलेट के पावर स्टोन ने फिर तो सबको ऐसा गतिमान किया की सभी कुछ दूर के दौड़ने के बाद जब छलांग लगाये, फिर तो हवा में कई फिट ऊंचा उठे और सीधा जाकर वुल्फ के भिड़ में गिरे। ओजल अपना कल्पवृक्ष दंश जब चलाना शुरू की फिर तो सभी वुल्फ ऐसे कट रहे थे, मानो गाजर मूली कटना शुरू हो चुके हो।

अलबेली और इवान तो पंजों से सबको ऐसे फाड़ रहे थे कि उसे देखकर यालविक पैक के दूसरे वुल्फ स्थूल पड़ जाते। भय से हृदय में ऐसा कंपन पैदा होता की डर से अपना मल–मूत्र त्याग कर देते। महज 5 मिनट में ही यालविक पैक को चिड़ने के बाद सभी एक साथ गरजते..... “बॉस यालविक पैक साफ हो गया। बेचारा सादिक आपके पंजों पर टंगा अकेला जिंदा रह बचा है।”...

“फिर ये अकेला वुल्फ बिना अपने पैक के करेगा क्या?”.... कहते हुये आर्यमणि ने अपना दूसरा पंजा सीधा उसके गर्दन में घुसाया और ऊपर के ओर खींचकर ऐसे फाड़ा जैसे किसी कपड़े में पंजे फंसाकर फाड़ते हो। पूरा चेहरा आड़ा तिरछा होते हुये फटा। सादिक यालविक का पार्थिव शरीर वहीं रेत पर फेंककर आर्यमणि चिल्लाया..... “ये हरमजादे एलियन अब तब अपने पाऊं पर क्यों है? वायु विघ्न मंत्र के साथ आगे बढ़ो और अपने क्ला से सबके बदन को चीड़ फाड़ दो। जलने का सुख तो बहुत से एलियन ने प्राप्त किया है, आज इन्हे दिखा दो की हम फाड़ते कैसे है। याद रहे इनके शरीर में एसिड दौड़ता है, इसलिए जब तुम इन्हें फाड़ो तो तुम्हारे पंजों में एसिड को भी जो गला दे, ऐसा टॉक्सिक दौड़ना चाहिए। चलो–चलो जल्दी करो, मेरे कानो में चीख की आवाज नही आ रही।”....

इवान अपनी तेज दहाड़ के साथ एलियन के ओर दौड़ते..... “बॉस बस एक मिनट में यहां का माहौल चींख और पुकार वाली होगी। और उसके अगले 5 मिनट में पूरा माहौल शांत।”...

अलबेली भी इवान के साथ दौड़ती..... “क्या बात है मेरे पतिदेव। आई लव यू”...

इवान एक पल रुककर अलबेली को झपट्टा मारकर चूमा और उसके अगले ही पल लंबी छलांग लगाकर धम्म से सीधा एलियन के बीच कूदा। इवान के पीछे अलबेली भी कुद चुकी थी। और उन दोनो के पीछे ओजल। इवान और अलबेली जबतक एक को चीड़–फाड़ रहे थे, तब तक ओजल अपने दंश को लहराकर जब शांत हुई चारो ओर कटे सर हवा में थे।

ओजल एक भीड़ को शांत कर दूसरे भिड़ को काटने निकल गयी। न तो क्ला निकला न ही फेंग। न ही एलियन के लेजर असर किये ना ही फसाने वाले गोल किरणे। बस ओजल का कल्पवृक्ष दंश था और चींख के साथ हवा में उड़ते धर से अलग सर। जबतक इवान और अलबेली दूसरी भिड़ तक पहुंचते तब तक ओजल दूसरी भिड़ काटकर तीसरी भिड़ के ओर प्रस्थान कर चुकी थी। पूर्ण रौद्र रूप में ओजल जैसे भद्र काली का रूप ले चुकी थी।

तीसरे भिड़ की ओर आगे बढ़ने के बजाय इवान और अलबेली वापस आकर निशांत के पास खड़े हो गये और चिल्लाते हुये बस ओजल को प्रोत्साहन दे रहे थे। एक बार जब ओजल शुरू हुई फिर तो महज 5 मिनट में एलियन को तादाद मात्र 1 बची थी। वो भी विवियन जीवित इसलिए बचा क्योंकि बदले मौहौल को देखकर वह सब छोड़ कर भाग रहा था।

ओजल भी उसे मारने के लिये दौड़ी ही थी कि इतने में पुलिस सायरन सुनकर वह रुक गयी। टर्की की स्थानीय पुलिस पहुंच चुकी थी। पुलिस को बुलाने में भी विवियन का ही हाथ था। आर्यमणि ने महज इशारे किये और पल भर में ही निशांत समझ चुका था कि क्या करना है। पुलिस आयी और गयी इस बीच में निशांत ने उसे वही दिखाया जिस से पुलिस जल्दी चली जाये। मौहौल जब शांत हुआ तब हर किसी में एक ही रोष था, विवियन जिंदा भाग गया।
Nice👍👍👍
 

Sushilnkt

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गजब ही कर दिया

सिन में सिन बना सुहागरात मेभी विघ्न आ गया

ओर ये विवियन बच गया इसकी तो लेनी पड़ेगी


क्लास रे


ओर सिन बनेंगे
 
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विवियन और उसके साथियों ने आर्य एंड कम्पनी को मारने के लिए अभेद्य तिलिस्म खड़ा कर दिया था। भोजन और केक खिलाकर इनके ऊपर वायरस अटैक किया और इन्हे मूर्छित अवस्था मे पहुंचाया। और आर्य को एक विचित्र एवं अविश्वसनीय किरणों के घेरे मे कैद कर दिया। और उस पर सैकड़ों अपेक्स एलियन ने अपनी नेत्रों से लेजर किरणों की बौछार शुरू कर दिया।

गनीमत था कि संन्यासी शिवम , ओजल और इवान - अलबेली ने इस भोजन को ग्रहण नही किया था। अगर इन्होने भी भोजन कर लिया होता तो सब कुछ तहस नहस हो जाना था।

बहुत मजा आया इस युद्ध को देखकर।
संन्यासी शिवम ने एकाग्रचित होकर ठंडे दिमाग से इस विकट परिस्थिति को सम्भाला।
निशांत ने भ्रम जाल से इन एलियन को पुरे समय तक भ्रम मे डाले रखा।
और ओजल ने कल्प वृक्ष दंश से मात्र पांच मिनट के अंदर इनका संहार कर दिया। वैसे अलबेली और इवान ने भी काफी अच्छी लड़ाई लड़ी पर जहां वो दोनो एक वक्त मे एक एलियन का शिकार करते थे वहीं ओजल एक पुरे झुंड को परलोक के रास्ते दिखा दिया करती थी।
इस पुरे युद्ध के दौरान सिर्फ रूही ही थी जो बहुत बुरी अवस्था मे थी। उसने सफाई से अपने पेट मे पल रहे बच्चे को तो बचा लिया था पर खुद को आहत होने से नही बचा पाई। आशा है शिवम जी के देखरेख मे वो जल्द ही स्वस्थ हो
सादिक आलविक और उसके ग्रूप के साथ जो कुछ भी आर्य पैक ने किया वो बिल्कुल ही अच्छा किया। मैने कहा था इस आलविक को सस्ते मे नही छोड़ा जाना चाहिए था।

बहुत ही बेहतरीन और जबरदस्त अपडेट नैन भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग।
 
Last edited:

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–147


इधर टर्की में, खुशियों के बीच शादी के रश्मों का कारवां आगे बढ़ने लगा। हर दिन नए उमंग और नया जोश भरा होता। वो परिवार के बीच की खिंचाई और उसके बाद मुंह छिपाकर कटे–कटे घूमना। जया तो ज्यादा मजा लेने के चक्कर में रूही के प्रेगनेंसी के बारे में भी सबको बता चुकी थी।

आखिरकार 20 दिसंबर की शाम भी आ ही गई जब 2 जोड़े अपने परिणय सूत्र में बंध गये। आर्यमणि और रूही का चेहरा बता रहा था कि वो कितने खुश थे। वही हाल इवान और अलबेली का भी था। शादी संपन्न होने के बाद चारो को एक जगह बिठाया गया और उसके चारो ओर नेरमिन की फौज नाचने लगी। कई लड़कियां डफली पीटती हुई उनके चक्कर काटती रही। फिर आर्यमणि और इवान को उठा दिया गया और दोनो के गले में ढोल टांगकर उन्हे बजाने के लिए कहने लगे। वहीं रूही और अलबेली उस ढोल के धुन पर नाचना था...

सभी हंस रहे थे। आर्यमणि और इवान ढोल पिट रहे थे, वहीं रूही और अलबेली मस्त नाच रही थी। इसी बीच अलबेली और रूही का साथ देने, भूमि, निशांत, चित्रा और माधव पहुंच गये। उनको डांस फ्लोर पर जाते देख जया भी ठुमके लगाने पहुंच गयी। वहीं पापा केशव तो एक स्टेप आगे निकले। वो भी आर्यमणि की तरह ढोल टांगकर बजाने लगे।

चारो ओर जैसे खुशी झूम रही थी। शाम के 9 बजे सभी खाने के लिए गये। ठीक उसी वक्त 2 चॉपर रिजॉर्ट में लैंड हुई। जहां सभी गेस्ट खा रहे थे, वहां बड़े से बैनर में लिखा आने लगा.… "परिवार की ओर से छोटी सी भेंट"…

रूही और आर्यमणि को एक चॉपर में चढ़ा दिया गया। अलबेली और इवान को अलग चॉपर में। हां लेकिन इवान को जब चॉपर में चढ़ाया जा रहा था तब ओजल दोनो के पास पहुंची और गले लगाकर दोनो को बधाई देती... "तुम दोनो (इवान और अलबेली) अपने साथ शिवम सर को लिये जाओ। शिवम सर, आप भी इनके साथ जाइए"…

आर्यमणि, भी उन तीनो के पास पहुंचते..... “अरे कपल के बीच संन्यासी का क्या काम.. क्यों शिवम सर?”

ओजल:– इतना डिस्कशन क्यों। बस जो कह रही हूं उसे होने दीजिए जीजू"…

अलबेली, अपने और इवान के बीच संन्यासी शिवम् को सोचकर अंदर से थोड़ी चिढ़ी पर ओजल की जिद पर हां करती..... “ओजल, यहां बॉस भी है वरना ऐसी बात कहती न की तुम दोनो भाई बहन के अंतरियों में छेद हो जाता... दादा (आर्यमणि) रहने दो, आपकी इकलौती साली और अपनी इकलौती नंद की जिद पूरी हो जाने दो। आप भी रूही के साथ जाओ। चलिए शिवम् सर”

इस एक छोटे से विराम के बाद दोनो चॉपर 2 दिशा में उड़ गयी। तकरीबन 10 बजे रात चॉपर लैंड की और ठीक सामने जगमगाता हुआ एक छोटा सा कास्टल था। कास्टल के बाहर ड्रेस कोड में कुछ लोग खड़े थे जो आर्यमणि और रूही का स्वागत कर रहे थे। चॉपर उन्हे ड्रॉप करके चला गया और दोनो (आर्यमणि और रूही) रेड कार्पेट पर चलते हुये अंदर दाखिल हुये। अंदर की सजावट और स्वागत से दोनो का मन प्रश्न्न हो गया। हाउस के ओर से दोनो के लिए तरह–तरह के पकवान परोसे जा रहे थे। सबसे अंत में केक आया... जिसे दोनो ने एक दूसरे को कुछ खिलाया तो कुछ लगाया...

खा–पी कर हो गये दोनो मस्त। उसके बाद फिर रुके कहां। पहुंचे सीधा अपने सुहागरात वाले हॉल में जहां पूरा धमासान होना था। एक बड़ा सा हॉल था, जिसके बेड को पूरी तरह से सुहाग के सेज की तरह सजाया गया था। लहंगे में रूही कमाल लग रही थी, और अब रुकने का तो कोई प्रशन ही नही था। हां बस पूरे घपाघप के दौरान रूही ने बेलगाम घोड़े की लगाम खींच रखी थी और सब कुछ स्लो मोशन में हो रहा था। बोले तो आर्यमणि को तेज धक्के लगाने ही नही दी।

सुबह के 10 बजे तक दोनो घोड़े बेचकर सो रहे थे। पहले आर्यमणि की ही नींद खुली। आंखें जब खुली तो पास में रूही चैन से सो रही थी। उसे सुकून में सोते देख आर्यमणि की नजर उसपर ठहर गई और वो बड़े ध्यान से रूही को देखने लगा। एक मीठी सी अंगड़ाई के बाद रूही की आंखें भी खुल चुकी थी। अपने ओर आर्यमणि को यूं प्यार से देखते, रूही मुस्कुराने लगी और मुस्कुराती हुई अपनी दोनो बांह आर्यमणि के गले में डालती.… "शादी के बाद मैं खुद में पूर्ण महसूस कर रही। थैंक यू मेरे पतिदेव"…

आर्यमणि प्यार से रूही के होंठ को चूमते... "बहुत प्यारी हो तुम रूही।"…

अपनी बात कहकर आर्यमणि बिस्तर से ज्यों ही नीचे उतरा.… "अरे इतनी प्यारी लगती हूं तो मुझे छोड़कर कहां जा रहे"…

आर्यमणि:– बाथरूम जा रहा हूं, सुबह का हिसाब किताब देने... चलो साथ में..

रूही:– छी, छी.. तुम ही जाओ...

कुछ देर बाद आर्यमणि नहा धो कर ही निकला। उसके निकलते ही रूही अंदर घुस गई... "अच्छा सुनो रूही.. मैं जरा बाहर से घूमकर आता हूं।"…

"ठीक है जान, लेकिन ज्यादा वक्त मत लगाना"..

"ठीक है"… कहता हुआ आर्यमणि नीचे आया। जैसे ही नीचे आया एक स्टाफ वाइन की ग्लास आगे बढाते… "गुड मॉर्निंग सर"…

आर्यमणि:– तुम तो भारतीय मूल के लगते हो..

स्टाफ:– क्या खूब पहचाना है सर… विजय नाम है। आपके लिए कुछ अरेंज करवाऊं...

आर्यमणि:– नही शुक्रिया... अभी मैं बस बाहर टहलने निकला हूं...

विजय जोर–जोर से हंसने हुए... "सर बाहर कुछ नही केवल खतरा है। अंदर ही रहिए क्योंकि मैं तो ये भी नही कह सकता की बाहर आपको ठीक विपरित माहोल मिलेगा"…

आर्यमणि:– मतलब...

विजय:– चलिए आपको बाहर लिए चलता हूं यहां से मतलब बताने से अच्छा है दिखा ही दूं…

आर्यमणि जैसे ही बाहर आया... आंखों के आगे का नजारा देखकर.… "ये क्या है विजय सर"..

विजय:– ये रेगिस्तान का दरिया है। चलिए आपको सैर करवा दूं...

आर्यमणि:– हां हां जरूर... आज से पहले मैं कभी रेगिस्तान नही घुमा...

सर पर साफा बंधा। 2 ऊंट पहुंच गए। आर्यमणि, विजय के साथ सवार होकर घूमने निकल पड़ा। बातों के दौरान पता चला की उनका कैसल रेगिस्तान के बिलकुल मध्य में बना है। सौकिन लोगों के आराम करने की एक मंहगी जगह।

ऊंट पर सवार होकर आर्यमणि तकरीबन 6 किलोमीटर दूर निकला होगा तभी वो अपने चारो ओर के शांत वातावरण की हवाओं में गंध को मेहसूस करते... "विजय"…

विजय:– जी सर कहिए न...

आर्यमणि:– विजय तुम भारत से यहां तक आये, इसका मतलब यहां एलियन ने मेरे लिए जाल बिछाया है? एक बात जो मेरे समझ में नही आयी, तुम एलियन में तो न कोई गंध और न ही किसी प्रकार के इमोशंस को मेहसूस किया जा सकता था? फिर मेरे सेंस को चीट कैसे कर दिये? क्यों मैं तुम्हारी गंध और तुम्हारे इमोशन को मेहसूस कर सकता हूं?”

“हम ऐसे ही अपेक्स सुपरनैचुरल नही कहलाते है। हमारे पास पैसा, ताकत और टेक्नोलॉजी तीनो है। क्या समझे?”.... विजय अपनी बात कहकर आर्यमणि के ऊंट को एक लात मारा, आर्यमणि नीचे गिड़ा और ऊंट भाग गया... विजय अपने ऊंट से कूदकर नीचे उतरते... "जानवर हो न, हवा में ही अपने जैसे वुल्फ की मौजूदगी सूंघ लिये"..

आर्यमणि रेत झाड़ते हुए खड़ा हुआ... "कमाल ही कर दिये विजय... एलियन ने तुम जैसे नगीने के कहां छिपाकर रखा था, आज तक कभी दिखे नही?"…

विजय:– साथियों हमारा दोस्त हमसे कुछ सवाल पूछ रहा है...

जैसे ही विजय ने आवाज लगाई उसके चारो ओर लोग ही लोग थे... एक ओर एलियन तो दूसरे ओर सादिक यालविक का पूरा पैक। लगभग 400 लोगों के बीच घिरा अकेला आर्यमणि…

"हेल्लो आर्यमणि सर, मेरा नाम विवियन है... आप मुझे नही जानते लेकिन आपके दादा जी मुझे अच्छे से जानते थे"… विवियन अपनी बात कहते हुये अपना हाथ झटका और आर्यमणि के चारो ओर किरणों की गोल रेखा खींच गयी। आर्यमणि समझने की कोशिश में जुटा था कि आखिर हो क्या रहा है?... "क्यों मिस्टर विवियन, रिचर्डस साथ आता तो विवियन रिचर्ड्स बन जाते"…

विवियन:– अरे, आर्यमणि सर कॉमेडी कर रहे... सब हंसो रे…

आर्यमणि:– लगता है काफी खराब जोक था इसलिए सादिक और उसका पैक शांत खड़ा रह गया...

सादिक:– क्या करे आर्यमणि तुम जैसे वुल्फ को देखकर उसकी शक्ति पाने की चाह तो अपने आप बढ़ जाती है। लेकिन अकेले तुझ से जितने की औकाद नही थी, इसलिए जब शिकारियों का प्रस्ताव आया तब मैं ना नही कह सका। ऊपर जाकर मेरी बहन फेहरीन (रूही की मां) से मिल लेना।

आर्यमणि:– फिर तुम सब रुके क्यों हो?

तभी एक जोरदार लात आर्यमणि के चेहरे पर... किसी एलियन ने उसे मारा… "क्योंकि अब तक वो अनंत कीर्ति की किताब नही मिली न"…

विवियन:– आर्यमणि सर एक दूसरे का वक्त बचाते है। अभी प्यार से बता देंगे अनंत कीर्ति की किताब कहां है?

आर्यमणि:– एक खुफिया जगह जहां सिर्फ मैं पहुंच सकता हूं...

इसी बीच भीड़ में रास्ता बनने लगा और आखरी से कोई चिल्लाते हुए कहने लगा... "अनंत कीर्ति की किताब मिल गई है, और साथ में इसकी खूबसूरत बीवी भी, जो केवल एक कुर्ते में कमाल की लग रही"…

विवियन:– अरे उस वुल्फ को बीच में लाओ… हमने सुना था सरदार खान के रंडीखाने की सबसे मस्त माल थी...

आर्यमणि गुस्से में जैसे ही कदम आगे बढ़ाने की कोशिश किया, उसके पाऊं जम गये। कुछ बोलना चाह रहा था, लेकिन कुछ बोल नहीं पा रहा था। आंखों के सामने से रूही चली आ रही थी। वो मात्र एक कुर्ते में थी जिसमे उसका पूरा बदन पारदर्शी हो कर दिख रहा था। हर कोई उसे छू रहा था, चूम रहा था, उसके नाजुक अंगों में बड़ी बेरहमी से हाथ लगा रहा था।

रूही के आंखों से खून जैसे बह रहे हो। कान को फाड़ देने वाले लोगों के ठहाके। और दिल में छेद कर देने वाले लोगों के कमेंट... "सरदार खान के गली की सबसे खूबसूरत रण्डी"… अपनी बीवी की इस दशा पर आर्यमणि के आंखों से भी आंसू छलक आए...

विवियन:– एक रण्डी से काफी गहरा याराना लगता है। बेचारा आर्यमणि… कुछ तो करना चाह रहा है लेकिन देखो कैसे असहाय की तरह खड़ा है... अरे सादिक जरा हमे भी तो दिखाओ, तुम्हारे गली की रण्डी के साथ तुम लोग कैसे पेश आते हो...

विवियन ने जैसे ही यह बात कही, सादिक ने रूही की छाती पर हाथ डाला और कुर्ते को खींच दिया। उसका एक वक्ष सबके सामने था, जिसे देखकर सभी हंसने लगे। एक पुरानी बीती जिंदगी भुलाकर जो खुद को एक भारतीय नारी के रूप में देख रही थी, उसे, उसी के पति के सामने एक बार फिर बाजारू बना दिया गया।

रूही अपने बहते आंसू पोंछकर एक बार अपने पति को देखी। अगले ही पल जैसे आंखों में खून उतर आया हो। तेज वेयरवोल्फ साउंड फिजाओं में गूंज रही थी। रूही अपना शेप शिफ्ट कर चुकी थी। सामने यालविक पैक का मुखिया, और फर्स्ट अल्फा सादिक... देखते ही देखते उसके पूरे पैक ने शेप शिफ्ट कर लिया...

रूही के बदन को नोचने सादिक का बड़ा बेटा आदिल तेजी से आगे आया। उसका पंजा रूही के बदन पर बचे कपड़े के ओर और रूही दहारती हुई अपना सारा टॉक्सिक अपने नाखूनों में बहाने लगी... सादिक का लड़का आदिल थोड़ा झुक कर रूही के कपड़े को नोचने वाला था, रूही उतनी ही तेजी से अपने दोनो पंजे के नाखून उसके गर्दन में घुसाई और पूरा गला ही उतारकर हवा में उछाल दी।

रूही जब शेप शिफ्ट की उसकी लाल आंखें जैसे अंगार बरसा रही थी। सामने से 2 वुल्फ अपना बड़ा सा जबड़ा फाड़े, अपने दोनो पंजे फैलाये हवा में थे। जब हवा से वो लोग नीचे आये, उनका पार्थिव शरीर नीचे आ रहा था और सर हवा में उछल कर कहीं भीड़ में गिड़ गया। कड़ी प्रशिक्षण और प्योर अल्फा के असर ने रूही को इस कदर तेज बनाया था कि वह ऊंची छलांग लगाकर हवा में ही दुश्मनों का सर धर से अलग कर चुकी थी।

इसके बाद मोर्चा संभालने आया 3 एलियन जिसने सीधा सिल्वर बुलेट चला दिया। सिल्वर बुलेट तो चली लेकिन रुही के ब्लड में इतना टॉक्सिक दौड़ रहा था कि वो सिल्वर बुलेट शरीर अंदर जाते ही टॉक्सिक मे ऐसा गली की उसका कोई वजूद ही नही रहा... "तेरे ये फालतू बुलेट मेरा कुछ नही बिगाड़ सकते नामुराद"… रूही गला फाड़ती उनके सामने तांडव कर रही थी और जो खुद को थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी समझते थे, वो महज चंद सेकेंड में ढेर हो चुके थे।

रूही के सर पर खून सवार था। लेकिन उसी बीच विवियन अपने 5 साथियों के साथ खड़ा था। रूही तेज थी लेकिन जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ी होगी, उन एलियन की नजरों से लेजर तरंगे निकली। एनिमल इंस्टिंक्ट... खतरे को तुरंत भांप गई। किंतु 5 तरंगे एक साथ निकली थी और निशाना पेट ही था। शायद रूही को तड़पाते हुए मारना चाहते थे।

शिकारी अक्सर ये करते है। अपने शिकार का पेट चीड़ कर उसे तड़पते हुये धीमा मरने के लिये छोड़ देते है। उन एलियन को यह इल्म न था कि रूही के पेट में एक और जिंदगी पल रही थी। रूही तुरंत ही अपने जगह बैठ गई। 10 तरंगे उसके शरीर के आर पार कर चुकी थी। रूही के एक कंधे से दूसरे कंधे के बीच पूरा आर पार छेद हो चुका था और रूही दर्द से कर्राहती हुई अपना शेप शिफ्ट करके वहीं रेत पर तड़पने लगी...

ये सारा मंजर आर्यमणि के आंखों के सामने घटित हो रहा था। रूही की तड़प आर्यमणि के दिल में विछोभ पैदा करने लगी। आर्यमणि अपनी आंखें मूंद ईश्वर को याद करने लगा। एक पल में ही जीवन के सारे घटनाक्रम दिमाग में उभरने लगे... और फिर धीरे–धीरे वह अनंत गहराइयों में जाने लगा.…

आंखे जब खुली तब आचार्य जी सामने खड़े थे। आर्यमणि दौड़कर पास पहुंचा और पाऊं में गिरते... "बाबा वो रूही... बाबा रूही"…

आचार्य जी:– खुद को संभालो आर्य.... ऐसी कोई बाधा नहीं जो तुम पार ना कर सको। तुम जल्दी से रूही की जान बचाओ... मदद भी तुरंत पहुंच रही है...

आर्यमणि:– बाबा लेकिन कैसे... मैं अपनी गर्दन तक हिला नही पा रहा हूं।

आचार्य जी:– वो इसलिए क्योंकि अभी तुम्हारा मन विचलित है। थोड़ा ध्यान लगाओ.. पुराने नही नए घटनाक्रम पर... फिर जो अनियमितता दिखेगी, उसे देखकर बस खुद से पूछना, क्या कभी ऐसा हुआ था, और इस बाधा से कैसे पार पा सकते हैं? अब मैं चलता हूं...

अचानक ही वहां से आचार्य जी गायब हो गये। आर्यमणि खुद को किसी तरह शांत करते शादी की घटना पर ध्यान देने लगा। तभी कल रात उसे विजय दिखा। डिनर के वक्त, वो एक थाल में केक सजाकर ला रहा था। वो उसकी कुटिल मुस्कान... प्रतिबिंब में आर्यमणि और रूही एक दूसरे को देखकर खुश थे... जैसे ही केक हाथ में उठा, कुछ छोटे दाना नीचे गिड़ा...

उस वक्त अनदेखा की हुई एक बात... विजय अपने पाऊं के नीचे उस छोटे दाने को तेजी से दबाकर ऊपर देखन लगा, जैसे ही केक अंदर गया, विजय विजयी मुस्कान के साथ मुड़ा। पाऊं के नीचे के दाने को मसलते हुए वहां से चला गया...

"वो दाना.. वो दाना ही छलावा है.... क्या है वो... बाबा वो दाना क्या है, उसी का असर है... क्या कभी आपने ऐसा देखा है... इस दाने के जाल से निकलने का उपाय क्या है... क्या है उपाय बाबा"…

तभी जैसे चारो ओर धुवां होने लगा। एक प्रतिबिंब बनने लगी। आर्यमणि आज से पहले कभी यह चेहरा नही देखा था। आर्यमणि कुछ पूछ रहा था, लेकिन वो इंसान इधर–उधर घूम रहा था। अचानक ही उनका शरीर धू–धू करके जलने लगा। जब आर्यमणि ने उनकी नजरों का पीछा किया तब वहां तो और भी ज्यादा मार्मिक दृश्य था। कई सारे लोग बच्चों को पकड़–पकड़ कर एक बड़े से आग के कुएं में फेंक रहे थे।

आर्यमणि उसके आस पास मंडराते, बाबा बाबा कर रहा था। तभी उनके प्राण जैसे निकले हो। उस शरीर से सफेद लॉ निकली। धुएं की शक्ल वाली वो लॉ थी और शरीर जहां जला था वहां छोटे–छोटे हजारों कीड़े रेंग रहे थे। जैसे ही प्राण की वो लॉ निकली... तभी वहां गुरु निशि की आवाज गूंजने लगा.…

"मैं ये स्वप्न छोड़े जा रहा हूं। महादिपी ने तो केवल आग लगाई थी, लेकिन जिसने भी ये परिजीवी मेरे अंदर डाला वही साजिशकर्ता है। मैं समझ नहीं पाया ये पुराना जाल। प्रिय अपस्यु मेरा ज्ञान और मेरा स्वप्न तुम्हारा है। अब से आश्रम के गुरु और रक्षक की जिम्मेदारी तुम्हारी। बस जीवन काल में कभी तुम ऐसे फसो तो अपने अंदर पहले झांकना... अहम ब्रह्मास्मी… अहम ब्रह्मास्मी… का जाप करना।" इतना कहकर वह प्रतिबिंब गायब हो गया। वह प्रतिबिंब किसी और का नही बल्कि गुरु निशि का था, जो अपने आखरी वक्त की चंद तस्वीरें आने वाले गुरु के लिये छोड़ गये थे।

आर्यमणि वही मंत्र लगातार जाप करने लगा। धीरे–धीरे उसका रक्त संचार बढ़ता रहा। पहले अपने अंतर्मन में जोड़ जोड़ से कहने लगा, फिर जैसे आर्यमणि के होंठ खुलने लगे हो.. पहले धीमे बुदबुदाने जैसी आवाज। फिर तेज, और तेज और एक वक्त तो ऐसा आया की "अहम ब्रह्मास्मी" वहां के फिजाओं में चारो ओर गूंजने लगा।
Sadi to dhum dham se nipat gyi, sale sadi ka tohfa dene aaye hai arya ko, arya ko cake raat me khilaya gya jiske chalte vo apna sarir tk hila nhi pa rha tha, us cake me salo ne kisi spacial kido ko istemal kiya tha jisse guru Nishi ki maut Hui...

Ye aiyashi ka kila bta kr khud ke maut ke kue me le aaye hai, sale ye nhi jante ki unka samna Kisse hua hai, ek minute ye to jante hai, pr afsos Thik se nhi jaan paye :huh:

Ruhi ko aise hi utha laye or uske kapde bhi faad diye pr ruhi ne khud ka shashift kr liya or aane vale wolf va 3rd line sikari alian ko kuchh hi Samay me maar diya pr vo aaya hua nya general guru Nishi ka Katil, usne tadpane ke liye ruhi ke pet ko nishana bnaya, ruhi ne pet ko to bcha liya pr baki sarir me chhed ho gye, Dekhte hai kya karti hai ab...

Idhar arya ko vo yade mil gyi hai jo guru Nishi NE chhodi thi apne uttaradhikari ke liye, "Aham bramhasmi" apne aap me sampurn hai.

Jabardast update bhai sandar superb Nainu bhaya
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Poora stika byora aur poora aatika vivran.... Bus Ojal ka jo kissa tha na wahan sanyasi shivam ne yah kha tha ki wah Ojal ki shrakha ke liye pahunche hai... Aisa kyon kahe the ye aaj hi pata chal jayega.... Baki shadi aur suhagraat aaj complete ho Jani hai tension nakko xabhi bhai
Ojal ki suraksha ke liye 🤔 kahi Uspr koi nakaratmak energy to havi hone ki Kosis nhi kr rhi, kyoki Aksar dekha gya hai jo satvik urja ko dharan karne vale hote hai unhe currept karne ke liye nakaratmak urja apni Kosis jarur karti hai apni taraf milane me...
 

andyking302

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भाग:–147


इधर टर्की में, खुशियों के बीच शादी के रश्मों का कारवां आगे बढ़ने लगा। हर दिन नए उमंग और नया जोश भरा होता। वो परिवार के बीच की खिंचाई और उसके बाद मुंह छिपाकर कटे–कटे घूमना। जया तो ज्यादा मजा लेने के चक्कर में रूही के प्रेगनेंसी के बारे में भी सबको बता चुकी थी।

आखिरकार 20 दिसंबर की शाम भी आ ही गई जब 2 जोड़े अपने परिणय सूत्र में बंध गये। आर्यमणि और रूही का चेहरा बता रहा था कि वो कितने खुश थे। वही हाल इवान और अलबेली का भी था। शादी संपन्न होने के बाद चारो को एक जगह बिठाया गया और उसके चारो ओर नेरमिन की फौज नाचने लगी। कई लड़कियां डफली पीटती हुई उनके चक्कर काटती रही। फिर आर्यमणि और इवान को उठा दिया गया और दोनो के गले में ढोल टांगकर उन्हे बजाने के लिए कहने लगे। वहीं रूही और अलबेली उस ढोल के धुन पर नाचना था...

सभी हंस रहे थे। आर्यमणि और इवान ढोल पिट रहे थे, वहीं रूही और अलबेली मस्त नाच रही थी। इसी बीच अलबेली और रूही का साथ देने, भूमि, निशांत, चित्रा और माधव पहुंच गये। उनको डांस फ्लोर पर जाते देख जया भी ठुमके लगाने पहुंच गयी। वहीं पापा केशव तो एक स्टेप आगे निकले। वो भी आर्यमणि की तरह ढोल टांगकर बजाने लगे।

चारो ओर जैसे खुशी झूम रही थी। शाम के 9 बजे सभी खाने के लिए गये। ठीक उसी वक्त 2 चॉपर रिजॉर्ट में लैंड हुई। जहां सभी गेस्ट खा रहे थे, वहां बड़े से बैनर में लिखा आने लगा.… "परिवार की ओर से छोटी सी भेंट"…

रूही और आर्यमणि को एक चॉपर में चढ़ा दिया गया। अलबेली और इवान को अलग चॉपर में। हां लेकिन इवान को जब चॉपर में चढ़ाया जा रहा था तब ओजल दोनो के पास पहुंची और गले लगाकर दोनो को बधाई देती... "तुम दोनो (इवान और अलबेली) अपने साथ शिवम सर को लिये जाओ। शिवम सर, आप भी इनके साथ जाइए"…

आर्यमणि, भी उन तीनो के पास पहुंचते..... “अरे कपल के बीच संन्यासी का क्या काम.. क्यों शिवम सर?”

ओजल:– इतना डिस्कशन क्यों। बस जो कह रही हूं उसे होने दीजिए जीजू"…

अलबेली, अपने और इवान के बीच संन्यासी शिवम् को सोचकर अंदर से थोड़ी चिढ़ी पर ओजल की जिद पर हां करती..... “ओजल, यहां बॉस भी है वरना ऐसी बात कहती न की तुम दोनो भाई बहन के अंतरियों में छेद हो जाता... दादा (आर्यमणि) रहने दो, आपकी इकलौती साली और अपनी इकलौती नंद की जिद पूरी हो जाने दो। आप भी रूही के साथ जाओ। चलिए शिवम् सर”

इस एक छोटे से विराम के बाद दोनो चॉपर 2 दिशा में उड़ गयी। तकरीबन 10 बजे रात चॉपर लैंड की और ठीक सामने जगमगाता हुआ एक छोटा सा कास्टल था। कास्टल के बाहर ड्रेस कोड में कुछ लोग खड़े थे जो आर्यमणि और रूही का स्वागत कर रहे थे। चॉपर उन्हे ड्रॉप करके चला गया और दोनो (आर्यमणि और रूही) रेड कार्पेट पर चलते हुये अंदर दाखिल हुये। अंदर की सजावट और स्वागत से दोनो का मन प्रश्न्न हो गया। हाउस के ओर से दोनो के लिए तरह–तरह के पकवान परोसे जा रहे थे। सबसे अंत में केक आया... जिसे दोनो ने एक दूसरे को कुछ खिलाया तो कुछ लगाया...

खा–पी कर हो गये दोनो मस्त। उसके बाद फिर रुके कहां। पहुंचे सीधा अपने सुहागरात वाले हॉल में जहां पूरा धमासान होना था। एक बड़ा सा हॉल था, जिसके बेड को पूरी तरह से सुहाग के सेज की तरह सजाया गया था। लहंगे में रूही कमाल लग रही थी, और अब रुकने का तो कोई प्रशन ही नही था। हां बस पूरे घपाघप के दौरान रूही ने बेलगाम घोड़े की लगाम खींच रखी थी और सब कुछ स्लो मोशन में हो रहा था। बोले तो आर्यमणि को तेज धक्के लगाने ही नही दी।

सुबह के 10 बजे तक दोनो घोड़े बेचकर सो रहे थे। पहले आर्यमणि की ही नींद खुली। आंखें जब खुली तो पास में रूही चैन से सो रही थी। उसे सुकून में सोते देख आर्यमणि की नजर उसपर ठहर गई और वो बड़े ध्यान से रूही को देखने लगा। एक मीठी सी अंगड़ाई के बाद रूही की आंखें भी खुल चुकी थी। अपने ओर आर्यमणि को यूं प्यार से देखते, रूही मुस्कुराने लगी और मुस्कुराती हुई अपनी दोनो बांह आर्यमणि के गले में डालती.… "शादी के बाद मैं खुद में पूर्ण महसूस कर रही। थैंक यू मेरे पतिदेव"…

आर्यमणि प्यार से रूही के होंठ को चूमते... "बहुत प्यारी हो तुम रूही।"…

अपनी बात कहकर आर्यमणि बिस्तर से ज्यों ही नीचे उतरा.… "अरे इतनी प्यारी लगती हूं तो मुझे छोड़कर कहां जा रहे"…

आर्यमणि:– बाथरूम जा रहा हूं, सुबह का हिसाब किताब देने... चलो साथ में..

रूही:– छी, छी.. तुम ही जाओ...

कुछ देर बाद आर्यमणि नहा धो कर ही निकला। उसके निकलते ही रूही अंदर घुस गई... "अच्छा सुनो रूही.. मैं जरा बाहर से घूमकर आता हूं।"…

"ठीक है जान, लेकिन ज्यादा वक्त मत लगाना"..

"ठीक है"… कहता हुआ आर्यमणि नीचे आया। जैसे ही नीचे आया एक स्टाफ वाइन की ग्लास आगे बढाते… "गुड मॉर्निंग सर"…

आर्यमणि:– तुम तो भारतीय मूल के लगते हो..

स्टाफ:– क्या खूब पहचाना है सर… विजय नाम है। आपके लिए कुछ अरेंज करवाऊं...

आर्यमणि:– नही शुक्रिया... अभी मैं बस बाहर टहलने निकला हूं...

विजय जोर–जोर से हंसने हुए... "सर बाहर कुछ नही केवल खतरा है। अंदर ही रहिए क्योंकि मैं तो ये भी नही कह सकता की बाहर आपको ठीक विपरित माहोल मिलेगा"…

आर्यमणि:– मतलब...

विजय:– चलिए आपको बाहर लिए चलता हूं यहां से मतलब बताने से अच्छा है दिखा ही दूं…

आर्यमणि जैसे ही बाहर आया... आंखों के आगे का नजारा देखकर.… "ये क्या है विजय सर"..

विजय:– ये रेगिस्तान का दरिया है। चलिए आपको सैर करवा दूं...

आर्यमणि:– हां हां जरूर... आज से पहले मैं कभी रेगिस्तान नही घुमा...

सर पर साफा बंधा। 2 ऊंट पहुंच गए। आर्यमणि, विजय के साथ सवार होकर घूमने निकल पड़ा। बातों के दौरान पता चला की उनका कैसल रेगिस्तान के बिलकुल मध्य में बना है। सौकिन लोगों के आराम करने की एक मंहगी जगह।

ऊंट पर सवार होकर आर्यमणि तकरीबन 6 किलोमीटर दूर निकला होगा तभी वो अपने चारो ओर के शांत वातावरण की हवाओं में गंध को मेहसूस करते... "विजय"…

विजय:– जी सर कहिए न...

आर्यमणि:– विजय तुम भारत से यहां तक आये, इसका मतलब यहां एलियन ने मेरे लिए जाल बिछाया है? एक बात जो मेरे समझ में नही आयी, तुम एलियन में तो न कोई गंध और न ही किसी प्रकार के इमोशंस को मेहसूस किया जा सकता था? फिर मेरे सेंस को चीट कैसे कर दिये? क्यों मैं तुम्हारी गंध और तुम्हारे इमोशन को मेहसूस कर सकता हूं?”

“हम ऐसे ही अपेक्स सुपरनैचुरल नही कहलाते है। हमारे पास पैसा, ताकत और टेक्नोलॉजी तीनो है। क्या समझे?”.... विजय अपनी बात कहकर आर्यमणि के ऊंट को एक लात मारा, आर्यमणि नीचे गिड़ा और ऊंट भाग गया... विजय अपने ऊंट से कूदकर नीचे उतरते... "जानवर हो न, हवा में ही अपने जैसे वुल्फ की मौजूदगी सूंघ लिये"..

आर्यमणि रेत झाड़ते हुए खड़ा हुआ... "कमाल ही कर दिये विजय... एलियन ने तुम जैसे नगीने के कहां छिपाकर रखा था, आज तक कभी दिखे नही?"…

विजय:– साथियों हमारा दोस्त हमसे कुछ सवाल पूछ रहा है...

जैसे ही विजय ने आवाज लगाई उसके चारो ओर लोग ही लोग थे... एक ओर एलियन तो दूसरे ओर सादिक यालविक का पूरा पैक। लगभग 400 लोगों के बीच घिरा अकेला आर्यमणि…

"हेल्लो आर्यमणि सर, मेरा नाम विवियन है... आप मुझे नही जानते लेकिन आपके दादा जी मुझे अच्छे से जानते थे"… विवियन अपनी बात कहते हुये अपना हाथ झटका और आर्यमणि के चारो ओर किरणों की गोल रेखा खींच गयी। आर्यमणि समझने की कोशिश में जुटा था कि आखिर हो क्या रहा है?... "क्यों मिस्टर विवियन, रिचर्डस साथ आता तो विवियन रिचर्ड्स बन जाते"…

विवियन:– अरे, आर्यमणि सर कॉमेडी कर रहे... सब हंसो रे…

आर्यमणि:– लगता है काफी खराब जोक था इसलिए सादिक और उसका पैक शांत खड़ा रह गया...

सादिक:– क्या करे आर्यमणि तुम जैसे वुल्फ को देखकर उसकी शक्ति पाने की चाह तो अपने आप बढ़ जाती है। लेकिन अकेले तुझ से जितने की औकाद नही थी, इसलिए जब शिकारियों का प्रस्ताव आया तब मैं ना नही कह सका। ऊपर जाकर मेरी बहन फेहरीन (रूही की मां) से मिल लेना।

आर्यमणि:– फिर तुम सब रुके क्यों हो?

तभी एक जोरदार लात आर्यमणि के चेहरे पर... किसी एलियन ने उसे मारा… "क्योंकि अब तक वो अनंत कीर्ति की किताब नही मिली न"…

विवियन:– आर्यमणि सर एक दूसरे का वक्त बचाते है। अभी प्यार से बता देंगे अनंत कीर्ति की किताब कहां है?

आर्यमणि:– एक खुफिया जगह जहां सिर्फ मैं पहुंच सकता हूं...

इसी बीच भीड़ में रास्ता बनने लगा और आखरी से कोई चिल्लाते हुए कहने लगा... "अनंत कीर्ति की किताब मिल गई है, और साथ में इसकी खूबसूरत बीवी भी, जो केवल एक कुर्ते में कमाल की लग रही"…

विवियन:– अरे उस वुल्फ को बीच में लाओ… हमने सुना था सरदार खान के रंडीखाने की सबसे मस्त माल थी...

आर्यमणि गुस्से में जैसे ही कदम आगे बढ़ाने की कोशिश किया, उसके पाऊं जम गये। कुछ बोलना चाह रहा था, लेकिन कुछ बोल नहीं पा रहा था। आंखों के सामने से रूही चली आ रही थी। वो मात्र एक कुर्ते में थी जिसमे उसका पूरा बदन पारदर्शी हो कर दिख रहा था। हर कोई उसे छू रहा था, चूम रहा था, उसके नाजुक अंगों में बड़ी बेरहमी से हाथ लगा रहा था।

रूही के आंखों से खून जैसे बह रहे हो। कान को फाड़ देने वाले लोगों के ठहाके। और दिल में छेद कर देने वाले लोगों के कमेंट... "सरदार खान के गली की सबसे खूबसूरत रण्डी"… अपनी बीवी की इस दशा पर आर्यमणि के आंखों से भी आंसू छलक आए...

विवियन:– एक रण्डी से काफी गहरा याराना लगता है। बेचारा आर्यमणि… कुछ तो करना चाह रहा है लेकिन देखो कैसे असहाय की तरह खड़ा है... अरे सादिक जरा हमे भी तो दिखाओ, तुम्हारे गली की रण्डी के साथ तुम लोग कैसे पेश आते हो...

विवियन ने जैसे ही यह बात कही, सादिक ने रूही की छाती पर हाथ डाला और कुर्ते को खींच दिया। उसका एक वक्ष सबके सामने था, जिसे देखकर सभी हंसने लगे। एक पुरानी बीती जिंदगी भुलाकर जो खुद को एक भारतीय नारी के रूप में देख रही थी, उसे, उसी के पति के सामने एक बार फिर बाजारू बना दिया गया।

रूही अपने बहते आंसू पोंछकर एक बार अपने पति को देखी। अगले ही पल जैसे आंखों में खून उतर आया हो। तेज वेयरवोल्फ साउंड फिजाओं में गूंज रही थी। रूही अपना शेप शिफ्ट कर चुकी थी। सामने यालविक पैक का मुखिया, और फर्स्ट अल्फा सादिक... देखते ही देखते उसके पूरे पैक ने शेप शिफ्ट कर लिया...

रूही के बदन को नोचने सादिक का बड़ा बेटा आदिल तेजी से आगे आया। उसका पंजा रूही के बदन पर बचे कपड़े के ओर और रूही दहारती हुई अपना सारा टॉक्सिक अपने नाखूनों में बहाने लगी... सादिक का लड़का आदिल थोड़ा झुक कर रूही के कपड़े को नोचने वाला था, रूही उतनी ही तेजी से अपने दोनो पंजे के नाखून उसके गर्दन में घुसाई और पूरा गला ही उतारकर हवा में उछाल दी।

रूही जब शेप शिफ्ट की उसकी लाल आंखें जैसे अंगार बरसा रही थी। सामने से 2 वुल्फ अपना बड़ा सा जबड़ा फाड़े, अपने दोनो पंजे फैलाये हवा में थे। जब हवा से वो लोग नीचे आये, उनका पार्थिव शरीर नीचे आ रहा था और सर हवा में उछल कर कहीं भीड़ में गिड़ गया। कड़ी प्रशिक्षण और प्योर अल्फा के असर ने रूही को इस कदर तेज बनाया था कि वह ऊंची छलांग लगाकर हवा में ही दुश्मनों का सर धर से अलग कर चुकी थी।

इसके बाद मोर्चा संभालने आया 3 एलियन जिसने सीधा सिल्वर बुलेट चला दिया। सिल्वर बुलेट तो चली लेकिन रुही के ब्लड में इतना टॉक्सिक दौड़ रहा था कि वो सिल्वर बुलेट शरीर अंदर जाते ही टॉक्सिक मे ऐसा गली की उसका कोई वजूद ही नही रहा... "तेरे ये फालतू बुलेट मेरा कुछ नही बिगाड़ सकते नामुराद"… रूही गला फाड़ती उनके सामने तांडव कर रही थी और जो खुद को थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी समझते थे, वो महज चंद सेकेंड में ढेर हो चुके थे।

रूही के सर पर खून सवार था। लेकिन उसी बीच विवियन अपने 5 साथियों के साथ खड़ा था। रूही तेज थी लेकिन जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ी होगी, उन एलियन की नजरों से लेजर तरंगे निकली। एनिमल इंस्टिंक्ट... खतरे को तुरंत भांप गई। किंतु 5 तरंगे एक साथ निकली थी और निशाना पेट ही था। शायद रूही को तड़पाते हुए मारना चाहते थे।

शिकारी अक्सर ये करते है। अपने शिकार का पेट चीड़ कर उसे तड़पते हुये धीमा मरने के लिये छोड़ देते है। उन एलियन को यह इल्म न था कि रूही के पेट में एक और जिंदगी पल रही थी। रूही तुरंत ही अपने जगह बैठ गई। 10 तरंगे उसके शरीर के आर पार कर चुकी थी। रूही के एक कंधे से दूसरे कंधे के बीच पूरा आर पार छेद हो चुका था और रूही दर्द से कर्राहती हुई अपना शेप शिफ्ट करके वहीं रेत पर तड़पने लगी...

ये सारा मंजर आर्यमणि के आंखों के सामने घटित हो रहा था। रूही की तड़प आर्यमणि के दिल में विछोभ पैदा करने लगी। आर्यमणि अपनी आंखें मूंद ईश्वर को याद करने लगा। एक पल में ही जीवन के सारे घटनाक्रम दिमाग में उभरने लगे... और फिर धीरे–धीरे वह अनंत गहराइयों में जाने लगा.…

आंखे जब खुली तब आचार्य जी सामने खड़े थे। आर्यमणि दौड़कर पास पहुंचा और पाऊं में गिरते... "बाबा वो रूही... बाबा रूही"…

आचार्य जी:– खुद को संभालो आर्य.... ऐसी कोई बाधा नहीं जो तुम पार ना कर सको। तुम जल्दी से रूही की जान बचाओ... मदद भी तुरंत पहुंच रही है...

आर्यमणि:– बाबा लेकिन कैसे... मैं अपनी गर्दन तक हिला नही पा रहा हूं।

आचार्य जी:– वो इसलिए क्योंकि अभी तुम्हारा मन विचलित है। थोड़ा ध्यान लगाओ.. पुराने नही नए घटनाक्रम पर... फिर जो अनियमितता दिखेगी, उसे देखकर बस खुद से पूछना, क्या कभी ऐसा हुआ था, और इस बाधा से कैसे पार पा सकते हैं? अब मैं चलता हूं...

अचानक ही वहां से आचार्य जी गायब हो गये। आर्यमणि खुद को किसी तरह शांत करते शादी की घटना पर ध्यान देने लगा। तभी कल रात उसे विजय दिखा। डिनर के वक्त, वो एक थाल में केक सजाकर ला रहा था। वो उसकी कुटिल मुस्कान... प्रतिबिंब में आर्यमणि और रूही एक दूसरे को देखकर खुश थे... जैसे ही केक हाथ में उठा, कुछ छोटे दाना नीचे गिड़ा...

उस वक्त अनदेखा की हुई एक बात... विजय अपने पाऊं के नीचे उस छोटे दाने को तेजी से दबाकर ऊपर देखन लगा, जैसे ही केक अंदर गया, विजय विजयी मुस्कान के साथ मुड़ा। पाऊं के नीचे के दाने को मसलते हुए वहां से चला गया...

"वो दाना.. वो दाना ही छलावा है.... क्या है वो... बाबा वो दाना क्या है, उसी का असर है... क्या कभी आपने ऐसा देखा है... इस दाने के जाल से निकलने का उपाय क्या है... क्या है उपाय बाबा"…

तभी जैसे चारो ओर धुवां होने लगा। एक प्रतिबिंब बनने लगी। आर्यमणि आज से पहले कभी यह चेहरा नही देखा था। आर्यमणि कुछ पूछ रहा था, लेकिन वो इंसान इधर–उधर घूम रहा था। अचानक ही उनका शरीर धू–धू करके जलने लगा। जब आर्यमणि ने उनकी नजरों का पीछा किया तब वहां तो और भी ज्यादा मार्मिक दृश्य था। कई सारे लोग बच्चों को पकड़–पकड़ कर एक बड़े से आग के कुएं में फेंक रहे थे।

आर्यमणि उसके आस पास मंडराते, बाबा बाबा कर रहा था। तभी उनके प्राण जैसे निकले हो। उस शरीर से सफेद लॉ निकली। धुएं की शक्ल वाली वो लॉ थी और शरीर जहां जला था वहां छोटे–छोटे हजारों कीड़े रेंग रहे थे। जैसे ही प्राण की वो लॉ निकली... तभी वहां गुरु निशि की आवाज गूंजने लगा.…

"मैं ये स्वप्न छोड़े जा रहा हूं। महादिपी ने तो केवल आग लगाई थी, लेकिन जिसने भी ये परिजीवी मेरे अंदर डाला वही साजिशकर्ता है। मैं समझ नहीं पाया ये पुराना जाल। प्रिय अपस्यु मेरा ज्ञान और मेरा स्वप्न तुम्हारा है। अब से आश्रम के गुरु और रक्षक की जिम्मेदारी तुम्हारी। बस जीवन काल में कभी तुम ऐसे फसो तो अपने अंदर पहले झांकना... अहम ब्रह्मास्मी… अहम ब्रह्मास्मी… का जाप करना।" इतना कहकर वह प्रतिबिंब गायब हो गया। वह प्रतिबिंब किसी और का नही बल्कि गुरु निशि का था, जो अपने आखरी वक्त की चंद तस्वीरें आने वाले गुरु के लिये छोड़ गये थे।

आर्यमणि वही मंत्र लगातार जाप करने लगा। धीरे–धीरे उसका रक्त संचार बढ़ता रहा। पहले अपने अंतर्मन में जोड़ जोड़ से कहने लगा, फिर जैसे आर्यमणि के होंठ खुलने लगे हो.. पहले धीमे बुदबुदाने जैसी आवाज। फिर तेज, और तेज और एक वक्त तो ऐसा आया की "अहम ब्रह्मास्मी" वहां के फिजाओं में चारो ओर गूंजने लगा।
Fabulous excellent outstanding update bhai 😍❤️❤️❤️❤️😍😍❤️❤️

Ye yaha dur registan mey honey moon kelye Laya hey...

Aur ye kuthe alien ourus kuthe yadvik Bhi aggys ya हे harmai sala...

Aur ruhi ki itni be jati hogyi hey matlb ab arya to Pura jala dalega is karve Ko to sab ki laga chuka हे...

Aur ye guru nishi ne arya ko us se Bahar niksl ne ka upaay bata diya hey...
 

andyking302

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भाग:–148


आर्यमणि वही मंत्र लगातार जाप करने लगा। धीरे–धीरे उसका रक्त संचार बढ़ता रहा। पहले अपने अंतर्मन में जोड़ जोड़ से कहने लगा, फिर जैसे आर्यमणि के होंठ खुलने लगे हो.. पहले धीमे बुदबुदाने जैसी आवाज। फिर तेज, और तेज और एक वक्त तो ऐसा आया की "अहम ब्रह्मास्मी" वहां के फिजाओं में चारो ओर गूंजने लगा।

नाक, कान और आंख के नीचे से कई लाख छोटे–छोटे परिजिवी निकल रहे थे। रूही अचेत अवस्था में वहीं रेत में पड़ी तड़प रही थी और इधर जबसे आर्यमणि की आवाज उन फिजाओं में गूंजी, फिर तो विवियन अपने 5 लोगों की टीम के साथ आर्यमणि के पास पहुंच चुका था।

आर्यमणि की आंखें खुल चुकी थी। शरीर अब सुचारू रूप से काम करने लगा था। विवियन बिना कुछ सोचे अपने आंखों से वो लेजर चलाने लगा। उसके साथ उसके साथी भी लगातार लेजर चला रहे थे। आर्यमणि अपने शरीर को पूरा ऊर्जावान बनाते, अपने बदन के पूरे सतह पर टॉक्सिक को रेंगने दिया। रूही को देखकर मन व्याकुल जरूर था, लेकिन दिमाग पूर्ण संतुलित। वायु विघ्न मंत्र का जाप शुरू हो चुका था। शरीर के सतह पर पूरा टॉक्सिक रेंग रहा था और पूरा शरीर ही अब आंख से निकलने वाले लेजर किरणों को सोख सकता था। आर्यमणि बलवानो की पूरी की पूरी टोली से उसका बल छीन चुका था।

विवियन के साथ पहले मात्र 5 एलियन लेजर से प्रहार कर रहे थे। 5 से फिर 25 हुये और 25 से 50। देखते ही देखते मारने का इरादा रखने वाले सभी 100 एलियन झुंड बनाकर एक अकेले आर्यमणि को मारने की कोशिश में जुट गये।

इसके पूर्व... रात में जब अलबेली और इवान अपने कास्टल पहुंचे तब खुशी के मारे उछल पड़े। उत्साह अपने पूरे चरम पर था और दोनो अपने वेडिंग नाइट की तैयारी देखकर काफी उत्साहित हो गये... रात के करीब 12.30 बज रहे होंगे। विवाहित जोड़ा अपने काम क्रीड़ा में लगा हुआ था, तभी उनके काम–लीला के बीच खलल पड़ गया। उसके कमरे का दरवाजा कोई जोड़, जोड़ से पिट रहा था।

अलबेली:– ऑफ ओ इवान, अंदर डालकर ऐसे रुको मत.… मजा किडकिड़ा हो जाता है...

इवान:– कोई दरवाजे पर है।

अलबेली:– मेरे जलते अरमान को आग न लगाओ और तेज–तेज धक्का लगाओ...

इवान कुछ कहता उस से पहले ही दरवाजा खुल गया। दोनो चादर खींचकर खुद को ढके। अलबेली पूरे तैश में आती.… "संन्यासी सर आपको देर रात मस्ती चढ़ी है क्या?"

संन्यासी शिवम्:– सबकी जान खतरे में है। कपड़े पहनो हम अभी निकल रहे हैं।

इवान:– ये क्या बकवास है... आप निकलो अभी इस कमरे से...

अलबेली:– इवान वो सबकी जान के बारे में बात कर रहे है...

इवान:– नही मुझे यकीन नही... ये ओजल का कोई प्रैंक है...

संन्यासी शिवम:– यहां से अभी चलो। एक पल गवाने का मतलब है, किसी अपने के जान का खतरा बढ़ गया...

इवान:– ठीक है पीछे घूम जाइए...

संन्यासी शिवम पीछे घूम गया। दोनो बिना वक्त गवाए सीधा अपने ऊपर कपड़े डाले। तीनो जैसे ही नीचे ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचे सारा स्टाफ उन्हे घेरकर प्यार से पूछने लगा की वो कहां जा रहे थे? संन्यासी शिवम् शायद बातचीत में वक्त नहीं गवाना चाहता था। अपने सूट बूट वाले कपड़े के किनारे से वो 5 फिट का एक दंश निकाले। (दंश किसी जादूगर की छड़ी जैसी होती है जो नीचे से पतला और ऊपर से हल्का मोटा होता है)

संन्यासी शिवम् वह दंश निकालकर जैसे ही भूमि पर पटके, ऐसा लगा जैसे तेज विस्फोट हुआ हो और उन्हे घेरे खड़ा हर आदमी बिखर गया। "लगता है वाकई बड़ी मुसीबत आयी है। शिवम् सर पूरे फॉर्म में है।"… अलबेली साथ चलती हुई कहने लगी। तीनो बाहर निकले। बाहर गप अंधेरा। संन्यासी शिवम ने दंश को हिलाया, जिसके ऊपरी सिरे से रौशनी होने लगी।

थोड़ा वक्त लगा लेकिन जैसे ही सही दिशा मिली सभी पोर्ट होकर सीधा शादी वाले रिजॉर्ट पहुंचे। शादी वाले रिजॉर्ट तो पहुंच गये पर रिजॉर्ट में कोई नही था। संन्यासी शिवम् टेलीपैथी के जरिए ओजल और निशांत से संपर्क करने लगे।

संन्यासी शिवम्:– तुम दोनो कहां हो?

निशांत:– पूरा अंधेरा है। बता नही सकता कहां हूं। चारो ओर से हमले हो रहे है, और कोई भी होश में नही।

संन्यासी शिवम्:– ओजल कहां है?

निशांत:– वही इकलौती होश में है, और मोर्चा संभाले है। मुझे किसी तरह होश में रखी हुई है, वरना मेरा भ्रम जाल भी किसी काम का नही रहता।

संन्यासी शिवम्:– क्या संन्यासियों की टोली भी बेहोश है?

निशांत:– हां... आप जल्दी से आओ वरना मैं ज्यादा देर तक होश में नही रहने वाला। मैं बेहोश तो यहां का भ्रम जाल भी टूट गया समझो।

संन्यासी शिवम्:– सब बेहोश भी हो गये तो भी यहां कोई चिंता नहीं है। जर्मनी के जंगल मे हम इन्हे इतना डरा चुके थे, कि जबतक बड़े गुरुदेव (आर्यमणि) मरते नही, तब तक वो किसी को भी हाथ नही लगायेगा। तुम लोगों को तो केवल चारा बनाया जायेगा, असली निशाना तो गुरुदेव (आर्यमणि) ही होंगे। हौसला रखो हम जल्द ही पहुंच रहे हैं।

संन्यासी शिवम् मन में चले वार्तालाप को अलबेली और इवान से पूरा बताने के बाद..... “तुम दोनो उनकी गंध सूंघो और पता लगाओ कहां है।”...

एलियन थे तो प्रहरी समुदाय का ही हिस्सा। उन्हे गंध मिटाना बखूबी आता था। विवियन के साथ आया हर एलियन प्रथम श्रेणी का नायजो था। यानी की फर्स्ट लाइन सुपीरियर शिकारी से एक पायदान ऊपर। सभी 100 प्रथम श्रेणी के नायजो अपने साथ 5 फर्स्ट लाइन सुपीरियर शिकारी को लेकर चले थे। उन सभी 500 शिकारियों का काम था, आर्यमणि के दोस्त और परिवार को एक खास किस्म के कीड़ों का सेवन करवाकर, उन्हे अगवा कर लेना। ये वही कीड़ा था, जो आर्यमणि के केक में भी मिला था। जिसके शरीर में जाने के कारण आर्यमणि हील भी नही पा रहा था। देखने में वह कीड़ा किसी छोटे से कण जैसे दिखते, पर एक बार जब शरीर के अंदर पहुंच गये, फिर तो सामने वाला उन नायजो के इशारे का गुलाम। और गुलाम पूरे परिवार और दोस्तों को बनाना था ताकि आर्यमणि को घुटनों पर लाया जा सके।

सभी लोगों ने पेट भर–भर कर कीड़ों वाला खाना खाया था, सिवाय ओजल के। वह पिछले 8 दिन से किसी सिद्धि को साध रही थी, इसलिए आचार्य जी द्वारा जो झोले में फल मिला था, उसी पर कुल 10 दिन काटना था। जितना पानी आचार्य जी ने दिया, उतना ही पानी अगले 10 दिन तक पीना था। बस यही वजह थी कि ओजल होश में थी और जब एलियन दोस्त और परिवार के सभी लोगों को ले जाया जा रहा था, तब खुद को अदृश्य रखी हुई थी।

हालांकि संन्यासी शिवम् और निशांत की बात ओजल ने भी सुनी थी। पर थोड़ा भी ध्यान भटकाने का मतलब होता दुश्मन को मौका देना इसलिए वह चुप चाप पूरे माहोल पर ध्यान केंद्रित की हुई थी। वैसे इस रात का एक पक्ष और भी था, अलबेली, इवान और संन्यासी शिवम्। ये तीनों भी रेगिस्तान के किसी कास्टल में पहुंचे थे। वैसे तो तीनो को ही खाने खिलाने की जी तोड़ कोशिश की गयी, किंतु अलबेली और इवान इतने उतावले थे कि दोनो सीधा अपने सुहाग की सेज पर पलंग तोड़ सुगरात मनाने चले गये। फिर एक राउंड में ये कहां थकने वाले थे। संन्यासी शिवम जब दोनो के कमरे में दाखिल हुये, तब तीसरे राउंड के मध्य में थे।

वहीं संन्यासी शिवम देर रात भोजन करने बैठे थे। पहला निवाला मुंह के अंदर जाता उस से पहले ही ओजल, खतरे का गुप्त संदेश भेज चुकी थी। कुल मिलाकर तीनो ने कास्टल का कुछ भी नही खाया था। वहीं कास्टल में रुके नायजो की भिड़ को यह आदेश मिला था कि तीनो (इवान, अलबेली और संन्यासी शिवम) में से कोई भी किसी से संपर्क नही कर पाये।

कुल मिलाकर बात इतनी थी कि रात के 2 बजे तक 4 लोग होश में थे। ओजल जो की पूरे परिवार को सुरक्षित की हुई थी। अलबेली, इवान और संन्यासी शिवम उसके मदद के लिये पहुंच रहे थे। इवान और अलबेली ने महज 2 मिनट में पकड़ लिया की गंध को मिटा दिया गया है। संन्यासी शिवम थोड़े चिंतित हुये किंतु अलबेली और इवान उनकी चिंता मिटते हुये वह निशान ढूंढ निकाले जो ओजल पीछे छोड़ गयी थी।

ओजल निशान बनाती हुई सबका पीछा कर रही थी और उन्ही निशान के पीछे ये तीनों भी पहुंच गये। ये तीनों जैसे ही उस जगह पहुंचे, आग की ऊंची लपटें जल रही थी और 3 लोगों के चीखने की आवाज आ रही थी। उन्ही चीख के बीच ओजल भी दहाड़ी.... “क्यों बे चूहों किस बिल में छिप गये। कहां गयी तुम्हारी बादल, बिजली और आग की करामात। चलो अब बाहर आ भी जाओ। देखो तुम्हारे साथी कैसे तड़प रहे है।”...

इतने में ही ठीक अलबेली और इवान के 2 कदम आगे रेत में छिपा नायजो रेत से निकलकर हमला किया और फिर वापस रेत में। अलबेली और इवान के बीच आंखो के इशारे हुये और दोनो ने एक साथ रेत में अपना पंजा घुसाकर चिल्लाए..... “क्यों री झल्ली रेत में हाथ डालकर 10 किलोमीटर की जगह को ही जड़ों में क्यों न ढक दी।”

ओजल यूं तो जड़ों को फैलाना भूल गयी थी। फिर भी खुद को बचाती.... “चुप कर अलबेली। मैं कुछ नही भूली थी, बल्कि रेगिस्तान में उगने वाले पौधों की जड़ें मजबूत ही न थी।”...

अलबेली:– बहानेबाज कहीं की। खजूर की जड़ें मजबूत ना होती हैं? नागफणी की जड़ें मजबूत ना होती हैं। फिर मेरी जड़ों में ये 350 एलियन कैसे फंस गये?

इवान:– तुम दोनो बस भी करो। ना वक्त देखती ही न माहोल, केवल एक दूसरे से लड़ना है।

इवान की डांट खाकर दोनो शांत हुये जबकि झगड़े के दौरान ही सभी थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी को ये लोग पकड़ चुके थे। फिर तो इन सबको तबियत से ट्रीटमेंट दिया गया। पहले शरीर के हर हिस्से में मोटे कांटों का मजा लिये, उसके बाद जिस अग्नि को अपने हाथों से नियंत्रित करते थे, उसी में जलकर स्वाहा हो गये।

सुबह के लगभग 5 बज चुके थे। परिवार के जितने सदस्य और मित्र थे, सब के सब बेहोश पड़े थे। संन्यासी शिवम् उनकी हालत का जायजा ले रहे थे। इतने में ओजल, अलबेली और इवान तीनो ही सबको हील करने जा रहे थे।

संन्यासी शिवम्:– नही, कोई भी अपने खून में उस चीज का जहर मत उतारो जो इन सबके शरीर में है।

ओजल:– शिवम सर लेकिन हील नही करेंगे तो सब बेहोश पड़े रहेंगे। जहर का असर फैलता

संन्यासी शिवम्:– आचार्य जी से मेरी बात हो गयी है। जो इनके शरीर में डाला गया है, वो कोई जहर नही बल्कि एक विशेस प्रकार का जीव है। दिखने में ये किसी बालू के कण जितने छोटे होते है, लेकिन किसी सजीव शरीर में जाकर सक्रिय हो जाते है। एक बार यह सक्रिय हो गये फिर ये जब शरीर से बाहर निकलेंगे तभी मरेंगे, वरना किसी भी विधि से इस कीड़े के मूल स्वरूप को बदल नही सकते।

इवान:– फिर हम क्या करे?

संन्यासी शिवम्:– पूरे परिवार को इस्तांबुल एयरपोर्ट लेकर चलो। सबके टिकट बने हुये है। इस्तांबुल से सभी लॉस एंजिल्स जायेंगे। रास्ते में इनके अंदर के जीवों का भी इलाज हो जायेगा।

कुछ ही देर में सब गाड़ी पर सवार थे। संन्यासी शिवम टेलीपैथी के जरिए एक–एक करके सबके दिमाग में घुसे और “अहम ब्रह्मास्मी” का जाप करने लगे। सबने देखा कैसे एक–एक करके हर किसी के शरीर से करोड़ों की संख्या में कीड़े निकल रहे थे और बाहर निकलने के साथ ही कुछ देर रेंगकर मर जाते।

सुबह के लगभग 11 बजे तक सबको लेकर ये लोग सीधा इस्तांबुल के एयरपोर्ट पर पहुंचे, जहां लॉस एंजिल्स जाने वाली प्लेन पहले से रनवे पर खड़ी थी। पूरे परिवार के लोग जब पूर्णतः होश में आये तब खुद को एयरपोर्ट के पास देखकर चौंक गये। हर किसी को रात का खाना खाने के बाद सोना तो याद था पर एयरपोर्ट कैसे पहुंचे वह पूरी याद ही गायब। वैन में ही पूरा कौतूहल भरा माहोल हो गया।

बेचारा निशांत हर कोई उसी के कपड़े फाड़ रहा था जबकि वह भी उसी कीड़े का शिकर हुआ था, जिस कीड़े ने सबको अपने वश में कर रखा था। लागातार बढ़ते विवाद और समय की तंगी को देखते हुये संन्यासी शिवम् सबको म्यूट मोड पर डालते...... "ये सब आर्यमणि का सरप्राइज़ है। आप सब लॉस एंजिल्स पहुंचिए, आगे की बात आपको आर्यमणि ही बता देगा।"…

संन्यासी शिवम के कहने पर वो लोग शांत हुये। सभी लगभग सुबह के 11 बजे तक उड़ान भर चुके थे, सिवाय निशांत, ओजल, इवान और अलबेली के। जैसे ही सब वहां से चले गए.… "शिवम सर, जीजू और दीदी पर भी हमला हुआ होगा क्या?"… ओजल चिंता जताती हुई पूछी।

संन्यासी:– आर्यमणि आश्रम के गुरुदेव है। सामने खड़े होकर उनकी जान निकालना इतना आसान नहीं होगा। सबलोग वहां चलो जहां हमे कोई न देख सके।

साबलोग अगले 5 मिनट में आर्यमणि वाले कास्टल पहुंच गये। अगले 10 मिनट में ओजल, इवान और अलबेली ने पूरे कास्टल को छान मारे लेकिन वहां कोई नही था। इवान, संन्यासी का कॉलर पकड़ते... "कहां गए मेरे बॉस और दीदी... आपने तो कहा था कि बॉस आश्रम के गुरुदेव है। सामने से उन्हे हराना संभव नही...

ओजल:– हम यहां नही रुक सकते। हवाई गंध को महसूस करते उन तक जल्दी पहुंचते है...

संन्यासी शिवम्:– वहां पहुंचकर भी कोई फायदा नही होगा... हम रेगिस्तान के इतने बड़े खुले क्षेत्र को नहीं बांध सकते। तुम लोग कुछ वक्त दो...

इतना कहकर संन्यासी शिवम् वहीं नीचे बैठकर ध्यान लगाने लगे। वो जैसे ही ध्यान में गये, इवान और अलबेली उस जगह से निकलने की कोशिश करने लगे। लेकिन खुले दरवाजे के बीच जैसे कोई पारदर्शी दीवार लगी हो... "ये कौन सा जादू तुम लोगों ने किया है। यहां का रास्ता खोलो हमे रूही और दादा (आर्यमणि) को ढूंढने बाहर जाना है।"

निशांत:– यहां से कोई बाहर नही जायेगा। सुना नही संन्यासी शिवम् ने क्या कहा?

ओजल:– तुम दोनो खुद पर काबू रखो…

अलबेली:– काबू की मां की चू… दरवाजा खोलो या फिर मैं इस संन्यासी का सर खोल देती हूं।

सबके बीच गहमा गहमी वाला माहोल शुरू हो चुका था। इसी बीच संन्यासी शिवम का ध्यान टूटा... "ओजल, निशांत तुम दोनो से इतना हल्ला गुल्ला की उम्मीद नही थी। इवान और अलबेली को शांत करने के बदले लड़ रहे थे। तुम दोनो भी शांत हो जाओ। गुरुदेव (आर्यमणि) और रूही, दोनो यहीं आ रहे है। तुम लोग जल्दी से जाओ एक खाली बेड, चादर, गरम पानी, और वहीं किचन में नशे में इस्तमाल होने वाली कुछ सुखी पत्तियां होंगी उन्हें ले आओ। तुम दोनो (ओजल और निशांत) अपना झोला लेकर आये हो?

ओजल, और निशांत दोनो एक साथ... “हां शिवम सर”...

संन्यासी शिवम्:– ठीक है यहां छोड़कर जाओ...

चारो ही भाग–भाग कर सारा सामान वहीं नीचे ग्राउंड फ्लोर पर सजा चुके थे। जैसे ही उनका काम खत्म हुआ, सबकी नजर दरवाजे पर थी। बस चंद पल हुये होंगे, सबको आर्यमणि दूर से आते दिख गया। जैसे ही आर्यमणि दरवाजे तक आया, संन्यासी शिवम् ने अपना जाल खोल दिया। आर्यमणि अंदर और फिर से दरवाजा को बांध दिया।
Bohot hi khubhsurat लाजवाब update bade bhai ❤️❤️😍😍😍

In logo ne to sab ko bacha liya hey...


Aur arya ke sath kya huva kaise Bach ke nikla hey
 

andyking302

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भाग:–149


इसके पूर्व आर्यमणि जैसे ही उन कीड़ों की कैद से आजाद हुआ सबसे पहला ख्याल रूही पर ही गया। अचेत अवस्था में वो बुरी तरह से कर्राह रही थी। विवियन और बाकी एलियन को तो यकीन तक नही हुआ की आर्यमणि के शरीर से कीड़े निकल चुके है। वो लोग झुंड बनाकर आर्यमणि पर हमला करने लगे, किंतु आर्यमणि के शरीर की हर कोशिका सक्रिय थी और किसी भी प्रकार के टॉक्सिक को खुद में समाने के लिये उतने ही सक्षम। बदन के जिस हिस्से पर लेजर की किरण और उन किरणों के साथ कितने भी भीषण प्रकोप क्यों नही बरसते, सब आर्यमणि के शरीर में गायब हो जाते।

विवियन और उसके सकड़ो साथी परेशान से हो गये। वहीं आर्यमणि रूही की हालत देखकर अंदर से रो रहा था। किसी तरह खुद पर काबू रखकर आर्यमणि ने आस–पास के माहोल को भांपा। उसपर लगातार एलियन के हमले हो रहे थे। सादिक यालविक और उसका बड़ा सा पैक आराम से वहीं बैठकर तमाशा देख रहा था। आर्यमणि पूरी समीक्षा करने के बाद तेज दौड़ने के लिये पोजिशन किया। किंतु जैसे ही 2 कदम आगे बढ़ाया वह तेज टकराकर नीचे रेत पर बिछ गया।

आर्यमणि को ध्यान न रहा की वह किरणों के एक घेरे में कैद था। किरणों का एक विचित्र गोल घेरा जिसे आर्यमणि पार ना कर सका। आर्यमणि हर संभव कोशिश कर लिया किंतु किरणों के उस गोल घेरे से बाहर नही निकल सका। विवियन और उसकी टीम भी जब लेजर की किरणों से आर्यमणि को मार न पाये, तब उन लोगों ने भी विश्राम लिया। वो सब भी आर्यमणि की नाकाम कोशिश देख रहे थे और हंस रहे थे।

विवियन:– क्या हुआ प्योर अल्फा, किरणों की जाल से निकल नही पा रहे?

आर्यमणि:– यदि निकल गया होता तो क्या तू मुझसे ऐसे बात कर रहा होता।

विवियन:– अकड़ नही गयी हां। आर्यमणि सर तो बड़े टसन वाले वेयरवोल्फ निकले भाई। सुनिए आर्यमणि सर यहां हमे कोई मारकर भी चला जाये, तो भी तुम उस घेरे को पार ना कर पाओगे। चलो अब तुम्हे मै एक और कमाल दिखाता हूं। दिखाता हूं कि कैसे हम घेरे में फसाकर अपने किसी भी शक्तिशाली दुश्मन को पहले निर्बल करते है, उसके बाद उसके प्राण निकालते हैं।

आर्यमणि:– फिर रुके क्यों हो? तुम अपना काम करो और मैं अपना...

आर्यमणि अपनी बात कहकर आसान लगाकर बैठ गया। वहीं विवियन ने गोल घेरे के चारो ओर छोटे–छोटे रॉड को गाड़ दिया, जिसके सर पर अलग–अलग तरह के पत्थर लगे हुये थे। गोल घेरे के चारो ओर रॉड लगाने के बाद विवियन पीछे हटा। देखते ही देखते रॉड पर लगे उन पत्थरों से रौशनी निकलने लगी जो आर्यमणि के सर से जाकर कनेक्ट हो गयी।

आर्यमणि ने वायु विघ्न मंत्र का जाप तो किया पर उन किरणों पर कुछ भी असर न हुआ। फिर आर्यमणि ने उन किरणों को किसी टॉक्सिक की तरह समझकर खुद में समाने लगा। जितनी तेजी से वह किरण आर्यमणि के शरीर में समाती, उतनी ही तेजी से उसके शरीर से काला धुवां निकल रहा था। यह काला धुवां कुछ और नहीं बल्कि आर्यमणि के शरीर में जमा टॉक्सिक था, जो बाहर निकल रहा था।

पहले काला धुवां बाहर निकला उसके बाद उजला धुवां। उजला धुवां आर्यमणि के शरीर का शुद्ध ऊर्जा था, जो शरीर से निकलकर हवा में विलीन हो रहा था। धीरे–धीरे उसकी शक्तियां हवा में विलीन होने लगी। आर्यमणि खुद में कमजोर, काफी कमजोर महसूस करने लगा। आसान लगाकर बैठा आर्यमणि कब रेत पर लुढ़का उसे खुद पता नही चला।

आर्यमणि के शरीर की ऊर्जा, उजली रौशनी बनकर लगातार निकल रही थी। वह पूर्ण रूपेण कमजोर पड़ चुका था। आंखें खुली थी और होश में था, इस से ज्यादा आर्यमणि के पास कुछ न बचा था। तभी वहां आर्यमणि के जोर–जोर से हंसने की आवाज गूंजने लगी। किसी तरह वह खुद में हिम्मत करके अट्टहास से परिपूर्ण हंसी हंस रहा था।

विवियन:– लगता है मृत्यु को करीब देख इसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है।

आर्यमणि बिना कोई जवाब दिये हंसता ही रहा काफी देर तक सबने उसकी हंसी सुनी। जब बर्दास्त नही हुआ तब यालविक पैक का मुखिया सादिक यालविक चिल्लाते हुये पूछने लगा..... “क्यों बे ऐसे पागल की तरह क्यों हंस रहा है?”...

आर्यमणि:– अपने परिवार को धोखा दिया। नेरमिन से दुश्मनी भी हो ही जाना है, लेकिन जिस शक्ति के लिये तूने शिकारियों का साथ दिया, वो तुझे नही मिलेगी।

आर्यमणि इतना धीमे बोला की सबको कान लगाकर सुनना पड़ा। 3 बार में सबको उसकी बात समझ में आयी। आर्यमणि की बात पर विवियन ठहाके मारकर हंसते हुये..... “तुझे क्या लगता है हम अपनी बात पर कायम न रहेंगे। सादिक न सिर्फ तेरी शक्तियां लेगा बल्कि सरदार खान की तरह ही वह भी एक बीस्ट अल्फा बनेगा। बस थोड़ा वक्त और दे। अभी तेरी थोड़ी और अकड़ हवा होगी, फिर तू खुद भी देख लेगा, कैसे तेरी शक्तियां सादिक की होती है।”

आर्यमणि समझ चुका था कि विवियन खुद ये घेरा खोलने वाला है। पूरे मामले में सबसे अच्छी ये बात रही की किसी का भी ध्यान रूही पर नही गया। आर्यमणि ने सबका ध्यान अपनी ओर ही बनवाए रखा। वह कमजोर तो पड़ ही चुका था बस दिमाग को संतुलित रखे हुये था। आर्यमणि सोच चुका था कि घेरा खुलते ही उसे क्या करना है।

10 मिनट का और इंतजार करना पड़ा। आर्यमणि की जब आंखे बंद हो रही थी, ठीक उसी वक्त किरणों का वह घेरा खुला। किरणों का घेरा जैसे ही खुला, पंजे के एक इशारे मात्र से ही आर्यमणि ने सबको जड़ों में ढक दिया। आर्यमणि के अंदर इतनी जान नही बाकी थी कि वह खड़ा भी हो सके। यह बात आर्यमणि खुद भी समझता था, इसलिए सबकुछ जैसे पहले से ही सोच रखा हो।

सबको जड़ों में ढकने के बाद खुद को और रूही को भी जड़ों में ढका। कास्टल के रास्ते पर जड़ों की लंबी पटरी ही जैसे आर्यमणि ने बिछा रखी थी। जड़ें दोनो को आगे भी धकेल रही थी और उन्हे जरूरी पोषण भी दे रही थी। लगभग 3 किलोमीटर तक जड़ों पर खिसकने के बाद आर्यमणि के अंदर कुछ जान वापस आयी और वह रूही को उठाकर कैस्टल के ओर दौड़ लगा दिया।

आर्यमणि जैसे ही कास्टल के अंदर पहुंचा, इवान उसकी गोद से रूही को उठाकर सीधा बेड पर रखा। संन्यासी शिवम् भी उतनी ही तेजी से अपना काम करने लगे। और इधर आर्यमणि, जैसे ही उसकी नजर अपने लोगों पर पड़ी... वो घुटनो पर आ गया और फूट–फूट कर रोने लगा। ओजल नीचे बैठकर, अपने दोनो हाथ से आर्यमणि के आंसू पूछती... "बॉस, दीदी को कुछ नही हुआ है... उसका इलाज चल रहा है।"…

"सब मेरी गलती है... सब मेरी गलती है... मुझे इतने लोगों से दुश्मनी करनी ही नही चाहिए थी"… आर्यमणि विलाप करते हुये बड़बड़ाने लगा।

ओजल:– संभालो बॉस, खुद को संभालो...

आर्यमणि:– रूही.. कहां है... कहां है रूही"…

ओजल:– यहीं पास में है।

आर्यमणि:– हटो मुझे उसे हील करना है... सब पीछे हटो..

तभी संन्यासी शिवम पीछे मुड़े और दंश को भूमि पर पटकते... "अशांत मन केवल तबाही लाता है। अभी रूही का जिस्म हील करेंगे तो हमेशा के लिये 10 छेद उसके बदन में रह जाएंगे। खुद को शांत करो"…

संन्यासी शिवम की बात सुनने के बाद आर्यमणि पूरा हताश हो गया। वहीं जमीन पर बैठकर रूही, रूही बड़बड़ाने लगा। दूसरी ओर जड़ों में फसे एलियन ने पहले खुद को जड़ों से आजाद किया, बाद में सादिक यालक और उसके पूरे पैक को। कुछ ही देर में कास्टल के दरवाजे पर पूरी फौज खड़ी थी। फौज लगातार अंदर घुसने का प्रयास कर रही थी, लेकिन दरवाजे के 10 कदम आगे ही हवा में जैसे किसी ने दीवार बना दिया हो। सभी दरवाजे से 10 कदम की दूरी पर खड़े थे।

संन्यासी शिवम्:– गुरुदेव दुश्मन द्वार खड़े है। मैं रूही को देखता हूं, आपलोग उन बाहर वाले दुश्मनों को देखिए।

आर्यमणि:– हां सही कह रहे आप।

संन्यासी शिवम्:– ओजल अपने दंश से सामने की सुरक्षा दीवार गिरा दो।

कास्टल के ग्राउंड फ्लोर पर संन्यासी शिवम, रूही का इलाज शुरू कर चुके थे। पूरी अल्फा पैक कास्टल के दरवाजे से बाहर कतार लगाये खड़ी थी। उधर से विवियन चिल्लाया.... “तुम लोग बहुत टेढ़ी जान हो... तुम्हारी दुर्दशा हो गयी फिर भी बच गये। तुम्हारी बाजारू पत्नी के शरीर में इतने छेद हुये, लेकिन लेजर के साथ–साथ उसके भीषण जहर से भी बच गयी। कमाल ही कर दिया। अच्छा हुआ जो तुम और तुम्हारे लोग कतार लगाकर अपनी मौत के लिये पहले ही सामने आ गये।”

इवान कुछ तो कहना चाह रहा था किंतु आर्यमणि ने इशारे में बस चुप रहने के लिये कहा। उधर निशांत इशारे में सबको समझा चुका था कि आस पास का दायरा पूरे भ्रम जाल में घिरा हुआ है। तभी एक बड़े विस्फोट के साथ बाहर की अदृश्य दीवार टूट गयी। जब रेत और धूल छंटा तब वहां इकलौत आर्यमणि अपना पाऊं जमाए खड़ा था। बाकी अल्फा पैक सदस्य पर विस्फोट का ऐसा असर हुआ की वो लोग कई फिट पीछे जाकर कास्टल की दीवार से टकराये। दरअसल मंत्र उच्चारण के बाद ओजल द्वारा कल्पवृक्ष दंश को संतुलित रूप से भूमि पर पटकना था, किंतु ओजल से थोड़ी सी चूक हो गयी और दीवार गिराने वाले विस्फोट का असर न सिर्फ विपक्षी को हुआ बल्कि आंशिक रूप से अल्फा पैक पर भी पड़ा।

असर तो आर्यमणि पर भी होता लेकिन विस्फोट के ठीक पहले आर्यमणि के हाथ में उसका एम्यूलेट पहुंच चुका था। बाकी के अल्फा पैक अपना धूल झाड़ते खड़े हुये। सबसे ज्यादा गुस्सा निशांत को ही आया। गुस्से में झुंझलाते हुये..... “तुम (ओजल) कभी भी नही सिख सकती क्या? विस्फोट का असर खुद के खेमे पर भी कर दी।”..

ओजल:– निशांत सर अभी सिख ही रही हूं। किसी वक्त आप भी कच्चे होंगे...

निशांत:– कच्चा था लेकिन अपनी बेवकूफी से अपने लोगों के परखच्चे नही उड़ाता था। पागल कहीं की...

इवान:– अरे वाह एमुलेट वापस आ गया।

दरअसल एक–एक करके सबके एमुलेट लौट आये थे। हवा में बिखरे रेत जब आंखों के आगे से हटा, दृष्टि पूरी साफ हो चुकी थी। विपक्ष दुश्मनों के आगे की कतार तो जैसे गायब हो चुकी थी, लेकिन बाकी बचे लोग हमला बोल चुके थे। बेचारे एलियन और यालवीक की सेना अपनी मौत को मारने की कोशिश में जुटे थे।

इनकी कोशिश तो एक कदम आगे की थी। जिस जगह अल्फा पैक खड़ी थी उसके आस पास की जगह पर गोल–गोल घेरे बन रहे थे। गोला इतना बड़ा था कि उसमे आराम से 4–5 लोग घिर जाये। हर कोई जमीन पर किरणों के बने गोल घेरे साफ देख सकते थे। एक प्रकार का एलियन महा जाल था, जिसमे अल्फा पैक को फसाकर मारने की कोशिश की जा रही थी।

किंतु निशांत के भ्रम जाल में पूरे एलियन उलझ कर रह गये। विवियन को भी समझ में आ गया की उनका पाला किस से पड़ा है। किरणों के गोल जाल में जब अल्फा पैक नही फंसा तब विवियन ने टर्की के स्थानीय वेयरवोल्फ को इशारा किया। वुल्फ पैक का मुखिया सादिक यालविक, इशारा मिलते ही आर्यमणि पर हमला करने के लिये कूद गया।

सादिक याल्विक लंबी दहाड़ लगाकर सीधा आर्यमणि के ऊपर छलांग लगा चुका था। किंतु भ्रम जाल के कारण सादिक यालविक को लग रहा था कि वह आर्यमणि के ऊपर कूद रहा है और आर्यमणि साफ देख सकता था कि सादिक ने एक हाथ बाएं छलांग लगाया था। आर्यमणि ने पंजा झटक कर अपने क्ला को बाहर निकाला और जैसे ही सादिक याल्विक उसके हाथ के रेंज में आया फिर तो आर्यमणि ने अपना पंजा सीधा सादिक यालविक के सीने में घुसेड़ कर उसे हवा में ही टांग दिया। पूरा यालविक पैक ही दर्द भरी दहाड़ लगाते आर्यमणि के ऊपर हमला कर चुका था।

अल्फा पैक जो पीछे खड़ी थी, वह बिना वक्त गवाए तेज दौड़ लगा चुके थे। एमुलेट के पावर स्टोन ने फिर तो सबको ऐसा गतिमान किया की सभी कुछ दूर के दौड़ने के बाद जब छलांग लगाये, फिर तो हवा में कई फिट ऊंचा उठे और सीधा जाकर वुल्फ के भिड़ में गिरे। ओजल अपना कल्पवृक्ष दंश जब चलाना शुरू की फिर तो सभी वुल्फ ऐसे कट रहे थे, मानो गाजर मूली कटना शुरू हो चुके हो।

अलबेली और इवान तो पंजों से सबको ऐसे फाड़ रहे थे कि उसे देखकर यालविक पैक के दूसरे वुल्फ स्थूल पड़ जाते। भय से हृदय में ऐसा कंपन पैदा होता की डर से अपना मल–मूत्र त्याग कर देते। महज 5 मिनट में ही यालविक पैक को चिड़ने के बाद सभी एक साथ गरजते..... “बॉस यालविक पैक साफ हो गया। बेचारा सादिक आपके पंजों पर टंगा अकेला जिंदा रह बचा है।”...

“फिर ये अकेला वुल्फ बिना अपने पैक के करेगा क्या?”.... कहते हुये आर्यमणि ने अपना दूसरा पंजा सीधा उसके गर्दन में घुसाया और ऊपर के ओर खींचकर ऐसे फाड़ा जैसे किसी कपड़े में पंजे फंसाकर फाड़ते हो। पूरा चेहरा आड़ा तिरछा होते हुये फटा। सादिक यालविक का पार्थिव शरीर वहीं रेत पर फेंककर आर्यमणि चिल्लाया..... “ये हरमजादे एलियन अब तब अपने पाऊं पर क्यों है? वायु विघ्न मंत्र के साथ आगे बढ़ो और अपने क्ला से सबके बदन को चीड़ फाड़ दो। जलने का सुख तो बहुत से एलियन ने प्राप्त किया है, आज इन्हे दिखा दो की हम फाड़ते कैसे है। याद रहे इनके शरीर में एसिड दौड़ता है, इसलिए जब तुम इन्हें फाड़ो तो तुम्हारे पंजों में एसिड को भी जो गला दे, ऐसा टॉक्सिक दौड़ना चाहिए। चलो–चलो जल्दी करो, मेरे कानो में चीख की आवाज नही आ रही।”....

इवान अपनी तेज दहाड़ के साथ एलियन के ओर दौड़ते..... “बॉस बस एक मिनट में यहां का माहौल चींख और पुकार वाली होगी। और उसके अगले 5 मिनट में पूरा माहौल शांत।”...

अलबेली भी इवान के साथ दौड़ती..... “क्या बात है मेरे पतिदेव। आई लव यू”...

इवान एक पल रुककर अलबेली को झपट्टा मारकर चूमा और उसके अगले ही पल लंबी छलांग लगाकर धम्म से सीधा एलियन के बीच कूदा। इवान के पीछे अलबेली भी कुद चुकी थी। और उन दोनो के पीछे ओजल। इवान और अलबेली जबतक एक को चीड़–फाड़ रहे थे, तब तक ओजल अपने दंश को लहराकर जब शांत हुई चारो ओर कटे सर हवा में थे।

ओजल एक भीड़ को शांत कर दूसरे भिड़ को काटने निकल गयी। न तो क्ला निकला न ही फेंग। न ही एलियन के लेजर असर किये ना ही फसाने वाले गोल किरणे। बस ओजल का कल्पवृक्ष दंश था और चींख के साथ हवा में उड़ते धर से अलग सर। जबतक इवान और अलबेली दूसरी भिड़ तक पहुंचते तब तक ओजल दूसरी भिड़ काटकर तीसरी भिड़ के ओर प्रस्थान कर चुकी थी। पूर्ण रौद्र रूप में ओजल जैसे भद्र काली का रूप ले चुकी थी।

तीसरे भिड़ की ओर आगे बढ़ने के बजाय इवान और अलबेली वापस आकर निशांत के पास खड़े हो गये और चिल्लाते हुये बस ओजल को प्रोत्साहन दे रहे थे। एक बार जब ओजल शुरू हुई फिर तो महज 5 मिनट में एलियन को तादाद मात्र 1 बची थी। वो भी विवियन जीवित इसलिए बचा क्योंकि बदले मौहौल को देखकर वह सब छोड़ कर भाग रहा था।

ओजल भी उसे मारने के लिये दौड़ी ही थी कि इतने में पुलिस सायरन सुनकर वह रुक गयी। टर्की की स्थानीय पुलिस पहुंच चुकी थी। पुलिस को बुलाने में भी विवियन का ही हाथ था। आर्यमणि ने महज इशारे किये और पल भर में ही निशांत समझ चुका था कि क्या करना है। पुलिस आयी और गयी इस बीच में निशांत ने उसे वही दिखाया जिस से पुलिस जल्दी चली जाये। मौहौल जब शांत हुआ तब हर किसी में एक ही रोष था, विवियन जिंदा भाग गया।
Fabulous excellent fantastic update bade bhai 😍❤️❤️❤️😍😍


Ye to Pura vat laga dali hey hey yaha pey to...

Ojal ne to kahar hi dha Diya sab pey ek karke sab ko muot de dali hey usne to

Aur ye kuta kaise Bach ke chala gya hey sala harami....

Lagata hey uski mout ise bhi buri tari kese hone vali hey....
 
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