भाग:–147
इधर टर्की में, खुशियों के बीच शादी के रश्मों का कारवां आगे बढ़ने लगा। हर दिन नए उमंग और नया जोश भरा होता। वो परिवार के बीच की खिंचाई और उसके बाद मुंह छिपाकर कटे–कटे घूमना। जया तो ज्यादा मजा लेने के चक्कर में रूही के प्रेगनेंसी के बारे में भी सबको बता चुकी थी।
आखिरकार 20 दिसंबर की शाम भी आ ही गई जब 2 जोड़े अपने परिणय सूत्र में बंध गये। आर्यमणि और रूही का चेहरा बता रहा था कि वो कितने खुश थे। वही हाल इवान और अलबेली का भी था। शादी संपन्न होने के बाद चारो को एक जगह बिठाया गया और उसके चारो ओर नेरमिन की फौज नाचने लगी। कई लड़कियां डफली पीटती हुई उनके चक्कर काटती रही। फिर आर्यमणि और इवान को उठा दिया गया और दोनो के गले में ढोल टांगकर उन्हे बजाने के लिए कहने लगे। वहीं रूही और अलबेली उस ढोल के धुन पर नाचना था...
सभी हंस रहे थे। आर्यमणि और इवान ढोल पिट रहे थे, वहीं रूही और अलबेली मस्त नाच रही थी। इसी बीच अलबेली और रूही का साथ देने, भूमि, निशांत, चित्रा और माधव पहुंच गये। उनको डांस फ्लोर पर जाते देख जया भी ठुमके लगाने पहुंच गयी। वहीं पापा केशव तो एक स्टेप आगे निकले। वो भी आर्यमणि की तरह ढोल टांगकर बजाने लगे।
चारो ओर जैसे खुशी झूम रही थी। शाम के 9 बजे सभी खाने के लिए गये। ठीक उसी वक्त 2 चॉपर रिजॉर्ट में लैंड हुई। जहां सभी गेस्ट खा रहे थे, वहां बड़े से बैनर में लिखा आने लगा.… "परिवार की ओर से छोटी सी भेंट"…
रूही और आर्यमणि को एक चॉपर में चढ़ा दिया गया। अलबेली और इवान को अलग चॉपर में। हां लेकिन इवान को जब चॉपर में चढ़ाया जा रहा था तब ओजल दोनो के पास पहुंची और गले लगाकर दोनो को बधाई देती... "तुम दोनो (इवान और अलबेली) अपने साथ शिवम सर को लिये जाओ। शिवम सर, आप भी इनके साथ जाइए"…
आर्यमणि, भी उन तीनो के पास पहुंचते..... “अरे कपल के बीच संन्यासी का क्या काम.. क्यों शिवम सर?”
ओजल:– इतना डिस्कशन क्यों। बस जो कह रही हूं उसे होने दीजिए जीजू"…
अलबेली, अपने और इवान के बीच संन्यासी शिवम् को सोचकर अंदर से थोड़ी चिढ़ी पर ओजल की जिद पर हां करती..... “ओजल, यहां बॉस भी है वरना ऐसी बात कहती न की तुम दोनो भाई बहन के अंतरियों में छेद हो जाता... दादा (आर्यमणि) रहने दो, आपकी इकलौती साली और अपनी इकलौती नंद की जिद पूरी हो जाने दो। आप भी रूही के साथ जाओ। चलिए शिवम् सर”
इस एक छोटे से विराम के बाद दोनो चॉपर 2 दिशा में उड़ गयी। तकरीबन 10 बजे रात चॉपर लैंड की और ठीक सामने जगमगाता हुआ एक छोटा सा कास्टल था। कास्टल के बाहर ड्रेस कोड में कुछ लोग खड़े थे जो आर्यमणि और रूही का स्वागत कर रहे थे। चॉपर उन्हे ड्रॉप करके चला गया और दोनो (आर्यमणि और रूही) रेड कार्पेट पर चलते हुये अंदर दाखिल हुये। अंदर की सजावट और स्वागत से दोनो का मन प्रश्न्न हो गया। हाउस के ओर से दोनो के लिए तरह–तरह के पकवान परोसे जा रहे थे। सबसे अंत में केक आया... जिसे दोनो ने एक दूसरे को कुछ खिलाया तो कुछ लगाया...
खा–पी कर हो गये दोनो मस्त। उसके बाद फिर रुके कहां। पहुंचे सीधा अपने सुहागरात वाले हॉल में जहां पूरा धमासान होना था। एक बड़ा सा हॉल था, जिसके बेड को पूरी तरह से सुहाग के सेज की तरह सजाया गया था। लहंगे में रूही कमाल लग रही थी, और अब रुकने का तो कोई प्रशन ही नही था। हां बस पूरे घपाघप के दौरान रूही ने बेलगाम घोड़े की लगाम खींच रखी थी और सब कुछ स्लो मोशन में हो रहा था। बोले तो आर्यमणि को तेज धक्के लगाने ही नही दी।
सुबह के 10 बजे तक दोनो घोड़े बेचकर सो रहे थे। पहले आर्यमणि की ही नींद खुली। आंखें जब खुली तो पास में रूही चैन से सो रही थी। उसे सुकून में सोते देख आर्यमणि की नजर उसपर ठहर गई और वो बड़े ध्यान से रूही को देखने लगा। एक मीठी सी अंगड़ाई के बाद रूही की आंखें भी खुल चुकी थी। अपने ओर आर्यमणि को यूं प्यार से देखते, रूही मुस्कुराने लगी और मुस्कुराती हुई अपनी दोनो बांह आर्यमणि के गले में डालती.… "शादी के बाद मैं खुद में पूर्ण महसूस कर रही। थैंक यू मेरे पतिदेव"…
आर्यमणि प्यार से रूही के होंठ को चूमते... "बहुत प्यारी हो तुम रूही।"…
अपनी बात कहकर आर्यमणि बिस्तर से ज्यों ही नीचे उतरा.… "अरे इतनी प्यारी लगती हूं तो मुझे छोड़कर कहां जा रहे"…
आर्यमणि:– बाथरूम जा रहा हूं, सुबह का हिसाब किताब देने... चलो साथ में..
रूही:– छी, छी.. तुम ही जाओ...
कुछ देर बाद आर्यमणि नहा धो कर ही निकला। उसके निकलते ही रूही अंदर घुस गई... "अच्छा सुनो रूही.. मैं जरा बाहर से घूमकर आता हूं।"…
"ठीक है जान, लेकिन ज्यादा वक्त मत लगाना"..
"ठीक है"… कहता हुआ आर्यमणि नीचे आया। जैसे ही नीचे आया एक स्टाफ वाइन की ग्लास आगे बढाते… "गुड मॉर्निंग सर"…
आर्यमणि:– तुम तो भारतीय मूल के लगते हो..
स्टाफ:– क्या खूब पहचाना है सर… विजय नाम है। आपके लिए कुछ अरेंज करवाऊं...
आर्यमणि:– नही शुक्रिया... अभी मैं बस बाहर टहलने निकला हूं...
विजय जोर–जोर से हंसने हुए... "सर बाहर कुछ नही केवल खतरा है। अंदर ही रहिए क्योंकि मैं तो ये भी नही कह सकता की बाहर आपको ठीक विपरित माहोल मिलेगा"…
आर्यमणि:– मतलब...
विजय:– चलिए आपको बाहर लिए चलता हूं यहां से मतलब बताने से अच्छा है दिखा ही दूं…
आर्यमणि जैसे ही बाहर आया... आंखों के आगे का नजारा देखकर.… "ये क्या है विजय सर"..
विजय:– ये रेगिस्तान का दरिया है। चलिए आपको सैर करवा दूं...
आर्यमणि:– हां हां जरूर... आज से पहले मैं कभी रेगिस्तान नही घुमा...
सर पर साफा बंधा। 2 ऊंट पहुंच गए। आर्यमणि, विजय के साथ सवार होकर घूमने निकल पड़ा। बातों के दौरान पता चला की उनका कैसल रेगिस्तान के बिलकुल मध्य में बना है। सौकिन लोगों के आराम करने की एक मंहगी जगह।
ऊंट पर सवार होकर आर्यमणि तकरीबन 6 किलोमीटर दूर निकला होगा तभी वो अपने चारो ओर के शांत वातावरण की हवाओं में गंध को मेहसूस करते... "विजय"…
विजय:– जी सर कहिए न...
आर्यमणि:– विजय तुम भारत से यहां तक आये, इसका मतलब यहां एलियन ने मेरे लिए जाल बिछाया है? एक बात जो मेरे समझ में नही आयी, तुम एलियन में तो न कोई गंध और न ही किसी प्रकार के इमोशंस को मेहसूस किया जा सकता था? फिर मेरे सेंस को चीट कैसे कर दिये? क्यों मैं तुम्हारी गंध और तुम्हारे इमोशन को मेहसूस कर सकता हूं?”
“हम ऐसे ही अपेक्स सुपरनैचुरल नही कहलाते है। हमारे पास पैसा, ताकत और टेक्नोलॉजी तीनो है। क्या समझे?”.... विजय अपनी बात कहकर आर्यमणि के ऊंट को एक लात मारा, आर्यमणि नीचे गिड़ा और ऊंट भाग गया... विजय अपने ऊंट से कूदकर नीचे उतरते... "जानवर हो न, हवा में ही अपने जैसे वुल्फ की मौजूदगी सूंघ लिये"..
आर्यमणि रेत झाड़ते हुए खड़ा हुआ... "कमाल ही कर दिये विजय... एलियन ने तुम जैसे नगीने के कहां छिपाकर रखा था, आज तक कभी दिखे नही?"…
विजय:– साथियों हमारा दोस्त हमसे कुछ सवाल पूछ रहा है...
जैसे ही विजय ने आवाज लगाई उसके चारो ओर लोग ही लोग थे... एक ओर एलियन तो दूसरे ओर सादिक यालविक का पूरा पैक। लगभग 400 लोगों के बीच घिरा अकेला आर्यमणि…
"हेल्लो आर्यमणि सर, मेरा नाम विवियन है... आप मुझे नही जानते लेकिन आपके दादा जी मुझे अच्छे से जानते थे"… विवियन अपनी बात कहते हुये अपना हाथ झटका और आर्यमणि के चारो ओर किरणों की गोल रेखा खींच गयी। आर्यमणि समझने की कोशिश में जुटा था कि आखिर हो क्या रहा है?... "क्यों मिस्टर विवियन, रिचर्डस साथ आता तो विवियन रिचर्ड्स बन जाते"…
विवियन:– अरे, आर्यमणि सर कॉमेडी कर रहे... सब हंसो रे…
आर्यमणि:– लगता है काफी खराब जोक था इसलिए सादिक और उसका पैक शांत खड़ा रह गया...
सादिक:– क्या करे आर्यमणि तुम जैसे वुल्फ को देखकर उसकी शक्ति पाने की चाह तो अपने आप बढ़ जाती है। लेकिन अकेले तुझ से जितने की औकाद नही थी, इसलिए जब शिकारियों का प्रस्ताव आया तब मैं ना नही कह सका। ऊपर जाकर मेरी बहन फेहरीन (रूही की मां) से मिल लेना।
आर्यमणि:– फिर तुम सब रुके क्यों हो?
तभी एक जोरदार लात आर्यमणि के चेहरे पर... किसी एलियन ने उसे मारा… "क्योंकि अब तक वो अनंत कीर्ति की किताब नही मिली न"…
विवियन:– आर्यमणि सर एक दूसरे का वक्त बचाते है। अभी प्यार से बता देंगे अनंत कीर्ति की किताब कहां है?
आर्यमणि:– एक खुफिया जगह जहां सिर्फ मैं पहुंच सकता हूं...
इसी बीच भीड़ में रास्ता बनने लगा और आखरी से कोई चिल्लाते हुए कहने लगा... "अनंत कीर्ति की किताब मिल गई है, और साथ में इसकी खूबसूरत बीवी भी, जो केवल एक कुर्ते में कमाल की लग रही"…
विवियन:– अरे उस वुल्फ को बीच में लाओ… हमने सुना था सरदार खान के रंडीखाने की सबसे मस्त माल थी...
आर्यमणि गुस्से में जैसे ही कदम आगे बढ़ाने की कोशिश किया, उसके पाऊं जम गये। कुछ बोलना चाह रहा था, लेकिन कुछ बोल नहीं पा रहा था। आंखों के सामने से रूही चली आ रही थी। वो मात्र एक कुर्ते में थी जिसमे उसका पूरा बदन पारदर्शी हो कर दिख रहा था। हर कोई उसे छू रहा था, चूम रहा था, उसके नाजुक अंगों में बड़ी बेरहमी से हाथ लगा रहा था।
रूही के आंखों से खून जैसे बह रहे हो। कान को फाड़ देने वाले लोगों के ठहाके। और दिल में छेद कर देने वाले लोगों के कमेंट... "सरदार खान के गली की सबसे खूबसूरत रण्डी"… अपनी बीवी की इस दशा पर आर्यमणि के आंखों से भी आंसू छलक आए...
विवियन:– एक रण्डी से काफी गहरा याराना लगता है। बेचारा आर्यमणि… कुछ तो करना चाह रहा है लेकिन देखो कैसे असहाय की तरह खड़ा है... अरे सादिक जरा हमे भी तो दिखाओ, तुम्हारे गली की रण्डी के साथ तुम लोग कैसे पेश आते हो...
विवियन ने जैसे ही यह बात कही, सादिक ने रूही की छाती पर हाथ डाला और कुर्ते को खींच दिया। उसका एक वक्ष सबके सामने था, जिसे देखकर सभी हंसने लगे। एक पुरानी बीती जिंदगी भुलाकर जो खुद को एक भारतीय नारी के रूप में देख रही थी, उसे, उसी के पति के सामने एक बार फिर बाजारू बना दिया गया।
रूही अपने बहते आंसू पोंछकर एक बार अपने पति को देखी। अगले ही पल जैसे आंखों में खून उतर आया हो। तेज वेयरवोल्फ साउंड फिजाओं में गूंज रही थी। रूही अपना शेप शिफ्ट कर चुकी थी। सामने यालविक पैक का मुखिया, और फर्स्ट अल्फा सादिक... देखते ही देखते उसके पूरे पैक ने शेप शिफ्ट कर लिया...
रूही के बदन को नोचने सादिक का बड़ा बेटा आदिल तेजी से आगे आया। उसका पंजा रूही के बदन पर बचे कपड़े के ओर और रूही दहारती हुई अपना सारा टॉक्सिक अपने नाखूनों में बहाने लगी... सादिक का लड़का आदिल थोड़ा झुक कर रूही के कपड़े को नोचने वाला था, रूही उतनी ही तेजी से अपने दोनो पंजे के नाखून उसके गर्दन में घुसाई और पूरा गला ही उतारकर हवा में उछाल दी।
रूही जब शेप शिफ्ट की उसकी लाल आंखें जैसे अंगार बरसा रही थी। सामने से 2 वुल्फ अपना बड़ा सा जबड़ा फाड़े, अपने दोनो पंजे फैलाये हवा में थे। जब हवा से वो लोग नीचे आये, उनका पार्थिव शरीर नीचे आ रहा था और सर हवा में उछल कर कहीं भीड़ में गिड़ गया। कड़ी प्रशिक्षण और प्योर अल्फा के असर ने रूही को इस कदर तेज बनाया था कि वह ऊंची छलांग लगाकर हवा में ही दुश्मनों का सर धर से अलग कर चुकी थी।
इसके बाद मोर्चा संभालने आया 3 एलियन जिसने सीधा सिल्वर बुलेट चला दिया। सिल्वर बुलेट तो चली लेकिन रुही के ब्लड में इतना टॉक्सिक दौड़ रहा था कि वो सिल्वर बुलेट शरीर अंदर जाते ही टॉक्सिक मे ऐसा गली की उसका कोई वजूद ही नही रहा... "तेरे ये फालतू बुलेट मेरा कुछ नही बिगाड़ सकते नामुराद"… रूही गला फाड़ती उनके सामने तांडव कर रही थी और जो खुद को थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी समझते थे, वो महज चंद सेकेंड में ढेर हो चुके थे।
रूही के सर पर खून सवार था। लेकिन उसी बीच विवियन अपने 5 साथियों के साथ खड़ा था। रूही तेज थी लेकिन जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ी होगी, उन एलियन की नजरों से लेजर तरंगे निकली। एनिमल इंस्टिंक्ट... खतरे को तुरंत भांप गई। किंतु 5 तरंगे एक साथ निकली थी और निशाना पेट ही था। शायद रूही को तड़पाते हुए मारना चाहते थे।
शिकारी अक्सर ये करते है। अपने शिकार का पेट चीड़ कर उसे तड़पते हुये धीमा मरने के लिये छोड़ देते है। उन एलियन को यह इल्म न था कि रूही के पेट में एक और जिंदगी पल रही थी। रूही तुरंत ही अपने जगह बैठ गई। 10 तरंगे उसके शरीर के आर पार कर चुकी थी। रूही के एक कंधे से दूसरे कंधे के बीच पूरा आर पार छेद हो चुका था और रूही दर्द से कर्राहती हुई अपना शेप शिफ्ट करके वहीं रेत पर तड़पने लगी...
ये सारा मंजर आर्यमणि के आंखों के सामने घटित हो रहा था। रूही की तड़प आर्यमणि के दिल में विछोभ पैदा करने लगी। आर्यमणि अपनी आंखें मूंद ईश्वर को याद करने लगा। एक पल में ही जीवन के सारे घटनाक्रम दिमाग में उभरने लगे... और फिर धीरे–धीरे वह अनंत गहराइयों में जाने लगा.…
आंखे जब खुली तब आचार्य जी सामने खड़े थे। आर्यमणि दौड़कर पास पहुंचा और पाऊं में गिरते... "बाबा वो रूही... बाबा रूही"…
आचार्य जी:– खुद को संभालो आर्य.... ऐसी कोई बाधा नहीं जो तुम पार ना कर सको। तुम जल्दी से रूही की जान बचाओ... मदद भी तुरंत पहुंच रही है...
आर्यमणि:– बाबा लेकिन कैसे... मैं अपनी गर्दन तक हिला नही पा रहा हूं।
आचार्य जी:– वो इसलिए क्योंकि अभी तुम्हारा मन विचलित है। थोड़ा ध्यान लगाओ.. पुराने नही नए घटनाक्रम पर... फिर जो अनियमितता दिखेगी, उसे देखकर बस खुद से पूछना, क्या कभी ऐसा हुआ था, और इस बाधा से कैसे पार पा सकते हैं? अब मैं चलता हूं...
अचानक ही वहां से आचार्य जी गायब हो गये। आर्यमणि खुद को किसी तरह शांत करते शादी की घटना पर ध्यान देने लगा। तभी कल रात उसे विजय दिखा। डिनर के वक्त, वो एक थाल में केक सजाकर ला रहा था। वो उसकी कुटिल मुस्कान... प्रतिबिंब में आर्यमणि और रूही एक दूसरे को देखकर खुश थे... जैसे ही केक हाथ में उठा, कुछ छोटे दाना नीचे गिड़ा...
उस वक्त अनदेखा की हुई एक बात... विजय अपने पाऊं के नीचे उस छोटे दाने को तेजी से दबाकर ऊपर देखन लगा, जैसे ही केक अंदर गया, विजय विजयी मुस्कान के साथ मुड़ा। पाऊं के नीचे के दाने को मसलते हुए वहां से चला गया...
"वो दाना.. वो दाना ही छलावा है.... क्या है वो... बाबा वो दाना क्या है, उसी का असर है... क्या कभी आपने ऐसा देखा है... इस दाने के जाल से निकलने का उपाय क्या है... क्या है उपाय बाबा"…
तभी जैसे चारो ओर धुवां होने लगा। एक प्रतिबिंब बनने लगी। आर्यमणि आज से पहले कभी यह चेहरा नही देखा था। आर्यमणि कुछ पूछ रहा था, लेकिन वो इंसान इधर–उधर घूम रहा था। अचानक ही उनका शरीर धू–धू करके जलने लगा। जब आर्यमणि ने उनकी नजरों का पीछा किया तब वहां तो और भी ज्यादा मार्मिक दृश्य था। कई सारे लोग बच्चों को पकड़–पकड़ कर एक बड़े से आग के कुएं में फेंक रहे थे।
आर्यमणि उसके आस पास मंडराते, बाबा बाबा कर रहा था। तभी उनके प्राण जैसे निकले हो। उस शरीर से सफेद लॉ निकली। धुएं की शक्ल वाली वो लॉ थी और शरीर जहां जला था वहां छोटे–छोटे हजारों कीड़े रेंग रहे थे। जैसे ही प्राण की वो लॉ निकली... तभी वहां गुरु निशि की आवाज गूंजने लगा.…
"मैं ये स्वप्न छोड़े जा रहा हूं। महादिपी ने तो केवल आग लगाई थी, लेकिन जिसने भी ये परिजीवी मेरे अंदर डाला वही साजिशकर्ता है। मैं समझ नहीं पाया ये पुराना जाल। प्रिय अपस्यु मेरा ज्ञान और मेरा स्वप्न तुम्हारा है। अब से आश्रम के गुरु और रक्षक की जिम्मेदारी तुम्हारी। बस जीवन काल में कभी तुम ऐसे फसो तो अपने अंदर पहले झांकना... अहम ब्रह्मास्मी… अहम ब्रह्मास्मी… का जाप करना।" इतना कहकर वह प्रतिबिंब गायब हो गया। वह प्रतिबिंब किसी और का नही बल्कि गुरु निशि का था, जो अपने आखरी वक्त की चंद तस्वीरें आने वाले गुरु के लिये छोड़ गये थे।
आर्यमणि वही मंत्र लगातार जाप करने लगा। धीरे–धीरे उसका रक्त संचार बढ़ता रहा। पहले अपने अंतर्मन में जोड़ जोड़ से कहने लगा, फिर जैसे आर्यमणि के होंठ खुलने लगे हो.. पहले धीमे बुदबुदाने जैसी आवाज। फिर तेज, और तेज और एक वक्त तो ऐसा आया की "अहम ब्रह्मास्मी" वहां के फिजाओं में चारो ओर गूंजने लगा।
Sadi to dhum dham se nipat gyi, sale sadi ka tohfa dene aaye hai arya ko, arya ko cake raat me khilaya gya jiske chalte vo apna sarir tk hila nhi pa rha tha, us cake me salo ne kisi spacial kido ko istemal kiya tha jisse guru Nishi ki maut Hui...
Ye aiyashi ka kila bta kr khud ke maut ke kue me le aaye hai, sale ye nhi jante ki unka samna Kisse hua hai, ek minute ye to jante hai, pr afsos Thik se nhi jaan paye
Ruhi ko aise hi utha laye or uske kapde bhi faad diye pr ruhi ne khud ka shashift kr liya or aane vale wolf va 3rd line sikari alian ko kuchh hi Samay me maar diya pr vo aaya hua nya general guru Nishi ka Katil, usne tadpane ke liye ruhi ke pet ko nishana bnaya, ruhi ne pet ko to bcha liya pr baki sarir me chhed ho gye, Dekhte hai kya karti hai ab...
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Jabardast update bhai sandar superb Nainu bhaya