न ही किसी जड़ी बुटी का इस्तेमाल हुआ, न ही संजीवनी बुटी का और न ही कोई अन्य चमत्कारिक वस्तुओं का। प्योर एलियोपैथिक पद्धति से उस महाकाय जीव का इलाज किया आर्य ने। हां , पर दवा के रूप मे अवश्य औषधीय जड़ों का इस्तेमाल हुआ था।
उसके शरीर के 600 अंगों का आप्रेशन किया गया था। इतने जगहों पर उसके शरीर मे मेटल स्क्रैप घुसे हुए थे।
यह सब हुआ कैसे , बताया नही आपने !
पर क्या ही दिमाग का इस्तेमाल किया आर्य ने ! उसका इलाज तो अचरज भरा था ही पर उसके स्वस्थ होने के बाद इस जीव की प्रतिक्रिया तो और भी अधिक हैरतअंगेज थी।
उसका आर्य और उसके पैक की ओर देखकर अपनी आंखो से आभार व्यक्त करना , खड़े होकर रूही के पेट मे पल रहे बच्चे को अपने पंख से सहलाना और अपने खुशी के भाव व्यक्त करना बेहद खुबसूरत था।
डेढ़ सौ मंजिले से अधिक ऊंचाई तक का यह विलक्षण जीव अल्फा पैक के समक्ष अपने पैरों पर खड़ा हुआ होगा तब वह कैसा दिखता होगा , इसका अनुमान लगाना बेहद ही मुश्किल है। शायद एक तिलिस्म ही प्रतीत होता होगा।
काल जीव के बाद तो जैसे समन्दर के जीव - जन्तुओं ने वहां मेला सा लगा दिया। सभी किसी न किसी कारणवश अस्वस्थ थे और आर्य से उम्मीद बांधे बैठे थे। और आर्य ने भी किसी को निराश नही किया।
अंत मे एक बार से जलपरियों ने दर्शन दिया और उनके साथ शायद उनके परिवार ने। एक बार सिर्फ एक नजर मिलते ही आर्य अपनी चेतना खो बैठा था और बीमार भी हो गया था। देखते है इस बार क्या होता है ! और इनके आगमन का मकसद क्या है !
बहुत ही खूबसूरत अपडेट नैन भाई। आउटस्टैंडिंग।
और जगमग जगमग भी।