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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–116


प्रहरी के खोजी शिकारी। अब तक कंटेनर के लोकेशन के हिसाब से छानबीन कर रहे थे। आज एक छोटा सा सुराग हाथ लगा और चोरी के समान की गुत्थी सुलझा चुके थे। अलबेली कान लगाकर सब सुन रही थी। खोजी शिकारियों की समीक्षा सुन वह दंग रह गयी। वहीं जब ये लोग अपने घर के पास पहुंचे और घर की बिजली गुल देखे, तभी पूरी समीक्षा पर आपरूपी सत्यापन का मोहर लग गया।

अलबेली ने जो सुना, वह तुरंत आ कर आर्यमणि को बताई। आर्यमणि ओजल और इवान को देखते.... “क्या तुम लोग अगले 5 मिनट में उन्हे हैक कर पाओगे।”

दोनो एक साथ.... “नही...”

आर्यमणि:– फिर तो कोई उपाय नहीं बचा। उन शिकारियों को गायब करना पड़ेगा...

ओजल:– हां लेकिन सोचने वाली बात यह है कि अगले 5 मिनट में वो संपर्क कैसे करेंगे? उनका मोबाइल, लैपटॉप, पासपोर्ट, रुपया, पैसा, क्रेडिट कार्ड सब तो चुरा लाये है। उन्हे यहां ब्लैंक कर दिया है।

आर्यमणि:– पर हमे तो हैक करना था न...

इवान:– इतना आसान नहीं है हैक करना। ये लोग अपने सिक्योर चैनल से सूचना प्रणाली चलाते है। बाहर से यदि हैक करेंगे तो उन्हे तुरंत पता चल जायेगा। हमे इनके सर्वर तक पहुंचना होगा।

आर्यमणि:– और इस चक्कर में बेवकूफी कर आये। 4 शिकारी जो उस घर में थे, केवल उन्हे ही तुमलोगों ने ब्लैंक किया है ना, उनके बाकी के 4 साथी तो अब भी बाहर घूम रहे।

ओजल:– उतना ही तो वक्त चाहिए। वो 4 लोग जबतक पहुंचेंगे और उन्हें पूरे मामले की जानकारी होगी, तब तक अपना काम हो जायेगा। अपने सुरक्षित चैनल से अपने आकाओं को संपर्क करेंगे, उस से पहले हम इनके सर्वर तक पहुंचकर इनका पूरा सिस्टम हैक कर चुके होंगे...

आर्यमणि:– लेकिन कब...

ओजल और इवान अपने लैपटॉप पर इंटर बटन प्रेस करते.... “अब.. हम दोनो रशिया के इस लोकेशन पर जायेंगे, जहां इनका सर्वर स्टेशन है। इसी जगह के सिस्टम में इनका सिक्योर कम्युनिकेशन चैनल का पूरा सॉफ्टवेयर ऑपरेट होता है। पूरा काम करके डिटेल देते हैं।”

संन्यासी शिवम् के साथ वो दोनो उस लोकेशन तक जाने के लिये तैयार थे। संन्यासी शिवम् दोनो को लेकर अंतर्ध्यान होते, उस से पहले ही आर्यमणि अनंत कीर्ति की किताब संन्यासी शिवम के हाथ में देते.... “इनके सर्वर स्टेशन की पूरी जानकारी इस पुस्तक में होगी। काम समाप्त कर जल्दी लौटिएगा”..

संन्यासी शिवम् ने सहमति जता दिया। चलने से पहले संन्यासी शिवम् आश्रम के अपने सिक्योर सिस्टम यानी अनंत कीर्ति के पुस्तक को ऑपरेट किये और उस जगह की पूरी जानकारी लेने के बाद, दोनो को लेकर अंतर्ध्यान हो गये। तीनो ही मुख्य सर्वर चेंबर में थे जहां कंप्यूटर का भव्य स्वरूप के बड़े–बड़े पुर्जे लगे थे। इवान और अलबेली ने सही पुर्जे को ढूंढकर वहां के लाल, काली, पीली कई तरह के वायर को छील दिया। उसमे अपना बग को लगाने के बाद छोटे से कमांड डिवाइस से बग में जैसे ही कमांड दिया, वहां केवल अंधेरा ही अंधेरा था और उनके (ओजल और इवान) डिवाइस पर लिखा आ रहा था... “सिस्टम रिस्टार्ट इन थ्री मिनट”... चलिए शिवम् सर अपना काम हो गया।

लगभग आधे घंटे में अपना पूरा काम समाप्त कर ये लोग लौट आये और उनके लौटने के एक घंटे बाद सभी शिकारी जयदेव से संपर्क कर रहे थे। जैसे ही उन लोगों ने जयदेव को पूरी बात बताई, जयदेव को उनकी बात पर यकीन नही हुआ। उसने मामले को पूरी छानबीन करने तथा पता लगाने के आदेश दे दिये। साथ ही साथ 21 लाश का ही ब्योरा मिला था, एक गायब शिकारी का भी पता लगाने का आदेश मिला था।”

इधर जयदेव अपने लोगों से बात कर रहा था और उधर उनकी पूरी बात अल्फा पैक सुन रही थी। आर्यमणि खुशी से ओजल और इवान को गले लगाते... “क्या बात है तुम दोनो ने कमल कर दिखाया”....

अलबेली:– बॉस सबासी देने के बहाने अपनी साली से खूब चिपक रहे...

ओजल:– हां तो मेरे इकलौते जीजा और मैं उनकी इकलौती साली... मुझसे न चिपकेंगे तो क्या तुझसे चिपकेंगे, जलकुकरी... वैसे तू चिंता मत कर, इवान से शादी के बाद जब तू भी जीजू के साले की पत्नी बनेगी... क्या कहते है उसे कोई बताएगा..

निशांत:– सलहज...

ओजल:– हां जब तू वही बनेगी सलहज, तब बॉस तुझे भी खुद से चिपकाए रखेंगे...

आर्यमणि, ओजल को आंख दिखाते... “क्या पागलों जैसी बातें कर रही हो। वो मुझे दादा पुकारती है।”

रूही:– अच्छा जब अलबेली बोली तब तो मुंह से कुछ नही निकला, लेकिन जैसे ही ओजल ने अपनी बात कही, तुमने मेरी बहन को आंखें दिखा दिये। देख रही हूं कैसे तुम मेरे सगे संबंधी को अभी से ट्रीट कर रहे...

आर्यमणि:– तुम मजाक कर रही हो न...

रूही, आर्यमणि को धक्का देकर अपने कमरे के ओर निकलती.... “मेरे भाई–बहन को नीचा दिखाने में तुम्हे मजा आता है ना आर्य, भार में जाओ।”

निशांत, आर्यमणि के कंधे पर हाथ डालते.... “तेरे तो पांचों उंगलियां घी में और सर कढ़ाई में है। मजे कर”...

आर्यमणि:– हां मजे तो कर रहा। चलो 2 पेग लगाकर आते है। शिवम् सर तब तक आप क्या उस एलियन जुल के साथ मिलकर ओजल और इवान के नायजो शक्तियों पर काम कर सकते है?

संन्यासी शिवम्:– हां ये मैं कर लूंगा...

आर्यमणि:– आपका आभार... अलबेली तुम तो अकेली रह जाओगी... हमारे साथ आओ..

अलबेली:– नही दादा तुम दोनो जाओ... मैं रूही के पास जाती हूं...

दोनो दोस्त पहुंचे मयखाने। दारू के पेग हाथ में उठाकर शाम का लुफ्त उठाने लगे। यूं तो दोनो कुछ रोज से साथ थे, लेकिन फुरसत से मिले नही थे। आज मिल रहे थे। नई–पुरानी फुरसत की बातें शुरू हो गयी थी। बातों के दौड़ान चित्रा और माधव की याद भी आ गयी। कुछ दिन पहले परिवार से तो बात हो गयी थी, बस दोस्त रह गये थे। आज दोस्तों से बात का लंबा दौड़ चला।

रात के 10 बजे से 2 बजे तक जाम और बातचीत। एक बार फिर माधव सबके निशाने पर था। चित्रा तो पहले ही माधव के बाबूजी की चहेती बनी थी, इसलिए माधव को प्यार से एंकी पुकारे जाने पर उसके बाबूजी ने कोई प्रतिक्रिया ना देते हुये उल्टा वो भी माधव को एंकी कह कर ही पुकारने लगे। बस फिर क्या था, माधव ने पहली बार अपने बाबूजी से सवाल किया.... “बहु ने यह नाम दिया इसलिए हंसकर स्वीकार किये, यही मैने किया होता तब”.... माधव ने मुंह से सवाल पूछा बाबूजी ने थप्पड़ लगाकर जवाब दिया... "तू करता तो यही होता"...

फिर बात दहेज के पैसे जोड़ने पर आ गयी। इस बात पर चित्रा ने तो निशांत और आर्यमणि की खड़े–खड़े क्लास ले ली। वहीं माधव “खी–खी” करते बड़ा सा दांत फाड़े था। बातें चलती रही और ऐसा मेहसूस होने लगा सभी प्रियजन आस–पास ही है। बातें समाप्त कर रात के 3 बजे तक दोनो दोस्त अपने गंतव्य पहुंच चुके थे।

सुबह यूं तो आर्यमणि को उठने की इच्छा नही हो रही थी, लेकिन गुस्साई पत्नी के आगे एक न चली और मजबूरी में उठना ही पड़ा। संन्यासी शिवम् रात को ही जुल से सारी प्रक्रिया को समझे। 2–4 बार शक्ति प्रदर्शन का डेमो भी लिया और जुल को वहीं छोड़, संन्यासी शिवम् दोनो (ओजल और इवान) को लेकर अंतर्ध्यान हो गये। सभी सीधा कैलाश पर्वत मार्ग के मठ में पहुंच गये जहां अगले कुछ दिन तक ओजल और इवान यहीं प्रशिक्षण करते।

इधर रूही ने एलियन की शक्तियों का विवरण कर, उसी हिसाब की नई ट्रेनिंग शुरू करने की बात कही, जिसमे बिजली और आग से कैसे पाया जा सकता था, उसके उपाय पर काम करना था। आग से तो बचने के उपाय थे। बदन के जिस हिस्से में आग लगी हो उसके सतह पर टॉक्सिक को दौड़ाना। बस बिजली से बचने का कोई कारगर उपाय नहीं सूझ रहा था।

सब अलग–अलग मंथन करने के बाद निशांत ने कठिन, किंतु कारगर उपाय का सुझाव दे दिया, जो हर प्रकार के बाहरी हमले का समाधान था। पहले तो निशांत ने आर्यमणि से सुरक्षा मंत्र के प्रयोग न करने के विषय में पूछा। सुरक्षा मंत्र वह मंत्र था, जिसे सिद्ध करने के बाद हवा के मजबूत सुरक्षा घेरे के अंदर शरीर रहता है। जैसा की सतपुरा के जंगलों में संन्यासी शिवम् ने करके दिखाया था।

आर्यमणि का इसपर साफ कहना था कि उसका पैक सुरक्षा मंत्र को सिद्ध नहीं कर सकते, इसलिए वह भी किसी प्रकार के मंत्र का प्रयोग नहीं करता। आर्यमणि का जवाब सुनने के बाद निशांत ने ही सुझाव दिया की शुकेश के घर से चोरी किये हुये अलौकिक पत्थर को पास में रखकर यदि सुरक्षा मंत्र पढ़ा जाये तो वह मंत्र काम करेगा। जैसे की खुद निशांत के साथ हुआ था। बिना इस मंत्र को सिद्ध किये निशांत ने भ्रमित अंगूठी के साथ मंत्र जाप किया, और मंत्र काम कर गयी थी।

सुझाव अच्छा था इसलिए बिना देर किये 2 काले हीरानुमा पत्थर को निकालकर रूही और अलबेली के हाथ में थमाने के बाद, मंत्र का प्रयोग करने कहा गया। दोनो को शुद्ध रूप से पूरा मंत्र उच्चारण करने में काफी समय लगा, किंतु जैसे ही पहली बार उनके मुख से शुद्ध रूप से पूरा मंत्र निकला, दोनो ही सुरक्षा घेरे में थी। फिर क्या था, पूरा दिन रूही और अलबेली सुरक्षा मंत्र को शुद्ध रूप से पढ़ने का अभ्यास करते रहे। यही सूचना संन्यासी शिवम् के पास भी पहुंचा दी गयी। एक पत्थर इवान के पास भी पहुंच चुका था। वहीं ओजल के पास पहले से अलौकिक नागमणि और दंश थी, इसलिए उसे अलग से पत्थर की जरूरत नहीं पड़ी।

एक हफ्ते तक सबका नया अभ्यास चलता रहा। दूसरी तरफ आर्यमणि ने अगले दिन ही उन सभी 8 इंसानी खोजी शिकारी को कैद कर लिया, ताकि अल्फा पैक सुनिश्चित होकर अभ्यास करता रहे। एक बचा था एलियन जुल, उस से थोड़ी सी जानकारी और निकालनी बाकी थी। इसलिए था तो वो आर्यमणि के साथ ही, लेकिन किसी कैदी से कम नही। अल्फा पैक क्या कर रहे है, उसकी भनक तक नहीं वह ले सकता था। अनंत कीर्ति किताब भी अलर्ट मोड पर थी। वह एलियन जुल, अल्फा पैक के ओर देखता भी था, तो आर्यमणि को खबर लग जाती।

हां लेकिन कब तक उस एलियन को भी साथ रखते। जिंदगी के अनुभव ने विश्वास न करना ही सिखाया था। और खासकर उस इंसान पर जिसने खुद की जान बचाने के लिये अपने समुदाय का पूरा राज उगल दिया हो। वैसा इंसान कब मौका देखकर डश ले कह नही सकते। 4 दिन तक साथ रखने के बाद आर्यमणि ने अपना बचा सवाल भी पूछ लिया।

पहला तो पलक को लेकर ही था कि क्यों जब आर्यमणि ने क्ला घुसाया तब पलक के अंदर उस तरह की फीलिंग नही आयी जैसे वह तेजी से हील हो रही हो। जुल ने खुलासा किया की... “18 की व्यस्क उम्र के बाद, हर एलियन को साइंस लैब ले जाया जाता है। वहां वेयरवॉल्फ के खून के साथ कई सारे टॉक्सिक नशों में चढ़ाया जाता है। उसके उपरांत कई तरह के प्रयोग उनके शरीर पर किये जाते है, तब जाकर उन्हें अमर जीवन प्राप्त होता है।”

“लैब में एक बार शरीर को पूर्ण रूप से परिवर्तित करने के बाद किसी भी एलियन के शरीर की कोशिका मनचाहा आकर बदलकर, किसी का भी रूप आसानी से ले सकती थी। हर 5 साल में एक बार मात्र वेयरवोल्फ के खून को नशों में चढ़ाने से सारी कोशिकाएं पुनः जवान हो जाती थी। बिलकुल नई और सुचारू रूप से काम करने वाली कोशिकाएं। जिस वजह से एलियन सदा जवां रहते थे।”

यही रूप बदल का प्रयोग तब काम आता था, जब किसी परिवार के मुखिया को मृत घोषित करना होता था। महानायकों के बूढ़े चेहरे कोई भी एलियन अपना लेते और उन्हें बलि चढ़ा दिया जाता। वहीं उनके महानायक अपना बूढ़ा रूप छोड़कर किसी अन्य प्रहरी परिवार में उनके इंसानी बच्चों का रूप ले लेते और जिनका भी वो रूप बदलते, उन्हें भी मारकर रास्ते से हटा देते है।”

“किसी एलियन ने अपनी कोशिकाओं के आकार को बदलकर जिसका भी रूप लिया हो, उसे पहचानने का साधारण सा रास्ता है, मैक्रोस्कोपिक लेंस। मैक्रोस्कोपिक लेंस से यदि किसी भी एलियन को देखा जाये तो हर क्षण कोशिकाएं बदलते हुये नजर आ जाती है। यह नंगी आंखों से कैप्चर नही हो सकता, लेकिन मैक्रोस्कोप के लेंस से देखने पर असली चेहरा से परिवर्तित चेहरा, और परिवर्तित चेहरा से असली चेहरा बनने की प्रक्रिया को देखा भी जा सकता है, और कैप्चर भी किया जा सकता है।”

पलक के केस में उसने इतना ही बताया की अब तक वह साइंस लैब नही गयी। 2 बार उसपर दवाब भी बना लेकिन उसने जाने से इंकार कर दिया था। अभी वर्तमान समय में उसके शरीर पर एक्सपेरिमेंट हुआ या नहीं यह जुल को पता नही था।

फिर आर्यमणि ने जुल से आखरी सवाल पूछा... “सैकड़ों वर्षों से यहां हो, तुम एलियन की कुल कितनी आबादी पृथ्वी पर बसती है और कहां–कहां?”

जुल, आर्यमणि का सवाल सुन मुस्कुराया और जवाब में कहने लगा... “ठंडी जगह पर ज्यादा बच्चे पैदा नहीं कर सकते, इसलिए ज्यादातर आबादी एशिया और अफ्रीका महाद्वीप के गरम इलाको में बसती है। कुछ वीरान गरम आइलैंड पर हमारी पूरी आबादी बसती है। पृथ्वी की आखरी जनगणना के हिसाब से कुल 6 करोड़ की आबादी है हमारी। अकेला भारत में 1 करोड़ की आबादी है और हर साल 2 करोड़ शिशु हम अन्य ग्रह पर भेजते है, जिस वजह से पृथ्वी पर हमारी आबादी नियंत्रित है।”

आर्यमणि जवाब सुनकर कुछ सोचते हुये.... “पिछले सवाल को आखरी के ठीक पहले का सवाल मानो और ये आखरी सवाल, तो बताओ पृथ्वी की आबादी को कब अनियंत्रित करने का फैसला लिया गया है?”

जुल:– आने वाले 20 वर्षों में अन्य ग्रह पर इतने हाइब्रिड हो जायेंगे की आगे की आबादी आप रूपी बढ़ती रहेगी। उन सब ग्रहों पर एक बार पारिवारिक वर्गीकरण हो जाये, उसके 10 साल बाद के समय तक में पूरे पृथ्वी पर नायजो की हाइब्रिड आबादी बसेगी।

आर्यमणि एलियन जुल से सारी जानकारी निकाल चुका था। बदले में जुल उम्मीद भरी नजरों से देख रहा था कि उसके जानकारी के बदले उसे अब छोड़ दिया जायेगा। किंतु ऐसा हुआ नही। पहले तो आर्यमणि, रूही और अलबेली ने मिलकर उसके शरीर के हर टॉक्सिक, शरीर में बहने वाले वुल्फ ब्लड, सब पूरा का पूरा खींच लिया। तीनो को ही ऐसा मेहसूस हो रहा था जैसे 10 हजार पेड़ के बराबर उसके अंदर टॉक्सिक भरा हुआ था। जुल के शरीर से सारा एक्सपेरिमेंट बाहर निकालने के बाद, जब खंजर को घुसाया गया, तब वह खंजर अंदर गला नही और जुल दर्द से बिलबिला गया। रूही उसका चेहरा देखकर हंसती हुई कहने लगी.... “तुम्हारे शरीर को समझने के बाद हमें पता था कि तुम जैसों को आसान मौत कैसे दे सकते है, लेकिन उसमे मजा नही आता। कैद के दिनो को एंजॉय करना।”

जुल:– मैने तुमसे सारी जानकारी साझा किया। 2 नायजो वेयरवोल्फ के विकृति का कारण भी बताया वरना एक वक्त ऐसा आता की या तो तुम उसे मार देते या वो तुम्हे। फिर भी तुमने मुझे जड़ों में जकड़ा हुआ है।

आर्यमणि:– तुम्हारा एहसान है मुझपर, इसलिए तो मारा नही। सिर्फ कुछ दिन के लिये कैद कर रहा हूं। जल्द ही किसी अच्छी जगह पर छोड़ भी दूंगा।

जुल:– कब और कहां छोड़ने का प्लान बनाए हो। और ये क्ला तुम इनके गले के पीछे क्यों घुसा रहे?

आर्यमणि सभी इंसानी शिकारी के दिमाग से कुछ वक्त पूर्व की याद मिटा चुका था। साथ ही दिमाग ने निशांत से मिलने की घटना को थोड़ा बदल चुका था। 8 इंसानी शिकारी के साथ जुल को एक तहखाने में कैद दिया गया था, जहां सब के सब जड़ों के मजबूत जेल में पूरा कैद थे। उनके पोषण के लिये जड़ों के रेशे ही काम रहे थे। तहखाने में उन्हे जड़ों में अच्छे से लपेटने के अलावा सिक्योरिटी अलर्ट, और निशांत का भ्रम जाल भी फैला था, जो उन सभी कैदियों को जड़ों से छूटने के बाद भी उस जगह पर रहने के लिये विवश कर देते।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 
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shoby54

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भाग:–155


“मुझे कुछ वक्त दो। सोचने दो इसके लिये क्या किया जा सकता है।” अपनी बात कहते आर्यमणि वहीं बैठकर ध्यान लगाने लगा।

आर्यमणि शुरू से पूरे घटनाक्रम पर नजर दिया और आंख खोलते ही.… "तुम सब घास काटने वाली मशीन, वाटर पंप मोटर, और पाइप ले आओ। साथ में पानी गरम करने की व्यवस्था, और आड़ी भी लेकर आना। जबतक मैं इसकी जांच करता हूं... ओह हां साथ में बायोहेजार्ड सूट लाना मत भूलना"..

रूही, इवान और अलबेली समान लाने निकल गये। आर्यमणि आगे से पीछे तक उस विशालकाय जीव के बदन के 2 चक्कर लगाया और पूरी बारीकी से जांच कर लिया। तीसरी बार जांच के लिये आर्यमणि को उस जीव के ऊपर चढ़ना पड़ा। पूरी जांच करने के बाद वो सीधा क्रूज लेने निकला और क्रूज को घुमाकर समुद्र के उस तट तक लेकर आया, जिसके किनारे वह विशालकाय जीव पड़ा था।

जब रूही, इवान और अलबेली वापस लौटे तो वहां आर्यमणि नही था। करीब आधा घंटा इंतजार करने के बाद उन्हें आर्यमणि तो नही लेकिन क्रूज जरूर दिख गया। आर्यमणि नीचे आकर सबको एक वाकी देते... "इवान, अलबेली वो जो घास मुझे खिलाए थे, जितनी हो सके काटकर ले आओ।"..

वो दोनो अपने काम पर लग गये। इधर आर्यमणि, रूही को क्रूज में जाकर क्रेन ऑपरेट करने कहने लगा। रूही भी हामी भरती क्रूज पर गयी और आर्यमणि के इशारे का इंतजार करने लगी। आर्यमणि ने उस जीव के पेट पर करीब 600 मार्क किये थे। वह अपनी आड़ी लेकर उन्ही मार्क्स पर चल दिया।

आर्यमणि मार्क किये जगह पर भले ही 2 फिट लंबा–चौड़ा चीड़ रहा था, लेकिन उस जीव के बदन के हिसाब से मात्र छोटा सा छेद था। आर्यमणि ऐतिहातन वो बायोहजार्ड़ सूट पहने था, ताकि पेट के अंदर का गैस उसे कोई नुकसान न करे। पहला छेद जैसे ही हुआ, चारो ओर धुवां ही धुवां। धुवां छटते ही आर्यमणि पेट के अंदर किसी नुकीली धातु का कोना अपने आंखों से देख रहा था।

वाकी पर उसने रूही को इंस्ट्रक्शन दिया और क्रेन का हुक ठीक उस छेद के पास था। आर्यमणि उस छेद पर चढ़ा। पेट में अटकी उस नुकीली चीज को हुक से फसाया और ऊपर खींचने बोला। हुक के वायर पर जैसे काफी लोड पड़ रहा हो। रूही जब खींचना शुरू की, अंदर से बहुत बड़ा मेटल स्क्रैप निकला। वह इतना बड़ा था की उस छोटे से छेद को बड़ा करते हुये निकल रहा था। वह जीव दर्द से व्याकुल हो गया। दर्द से उसका पूरा बदन कांपने लगा।

वह जीव इतना बड़ा था कि उसके हिलने से क्रूज का क्रेन ही पूरा खींचने लगा। आर्यमणि तुरंत अपना ग्लॉब्स निकालकर उसके बदन पर हाथ लगाया। आर्यमणि अपने अंदर भीषण टॉक्सिक लेने लगा। दर्द से राहत मिलते ही वह जीव शांत हो गया और रूही तुरंत उस मेटल स्क्रैप को बाहर खींचकर निकाल दी। जैसे ही मेटल स्क्रैप उस जीव के पेट से बाहर निकला, आर्यमणि एक हाथ से उस जीव का दर्द खींचते, दूसरे हाथ से पेट के कटे हुये हिस्से को बिना किसी गलती के सिल दिया। तकरीबन 10 मिनट तक टॉक्सिक अंदर लेने के कारण आर्यमणि पूरी तरह से चकरा गया। उसे उल्टियां भी हुई। जहां था वहीं कुछ देर के लिये बैठ गया। एक मार्क का काम लगभग आधे घंटे में खत्म करने के बाद आर्यमणि दूसरे मार्क पर पहुंचा। वहां भी उतना ही मेहनत किया जितना पहले मार्क पर मेहनत लगी थी।

लगातार काम चलता रहा। शिफ्ट बदल–बदल कर काम हो रहा था। चिड़ने और हाथों से हील करने का मजा सबने लिया। हां लेकिन जो टॉक्सिक आर्यमणि अकेले लेता था, वो तीनो (रूही, अलबेली और इवान) मिलकर भी नही ले पा रहे थे। इवान और अलबेली पहले ही घास का बड़ा सा ढेर जमा कर चुके थे जिसे क्रेन के जरिए क्रूज के स्विमिंग पूल तक पहुंचा दिया गया था। स्विमिंग पूल का पूरा पानी लगातार गरम करके, उसमे घास डाल दिया गया था। एक बार जब घास पूरी तरह से उबल गयी, तब पाइप के जरिए उस जीव के शरीर में उबला पानी उतारा जाने लगा। वह जीव लगातार घास का सूप पी रहा था।

एक दिन में तकरीबन 20 से 25 मार्क को साफ किया गया। तकरीबन 3 दिन के बाद वो जीव अपनी अचेत अवस्था से थोड़ा होश में आया। वह अपनी आंखें खोल चुका था। श्वांस लेने में थोड़ी तकलीफ थी, लेकिन खुद में अच्छा महसूस कर रहा था। पहले 3 दिन तक तो काम धीमा चला, पर एक बार जब अनुभव हो गया फिर तो सर्जरी की रफ्तार भी उतनी ही तेजी से बढ़ी।

तकरीबन 14 दिन तक इलाज चलता रहा। पूरा अल्फा पैक ही अब तो उस जीव के टॉक्सिक और दर्द को लगातार झेलने का इम्यून पैदा कर चुके थे। सबसे आखरी मार्क उस जीव के मल–मूत्रसाय मार्ग के ठीक ऊपर था। आर्यमणि क्रेन संभाले था और अलबेली पूल में पड़ी उबली घास को निकालकर, नया ताजा घास डाल रही थी। नया घास डालने के बाद उसे उबालकर उस काल जीव के मुंह तक लाना था, जो पिछले कुछ दिनों से उस जीव का आहार था।

इवान और रूही ने मिलकर आखरी जगह छेद किया और क्रेन के हुक से मेटल स्क्रैप को फसा दीया। वह स्क्रैप जब निकलना शुरू हुआ फिर तो ये लोग भी देखकर हैरान थे। लगभग 2 मीटर ऊंचाई और 60 मीटर लंबा स्क्रैप था। अब तक जितने भी मेटल स्क्रैप निकले थे, उनसे कई गुणा बड़ा था। वह जीव भयंकर पीड़ा में। रूही और इवान ने जैसे ही हाथ लगाया समझ गये की वो लोग इस दर्द को ज्यादा देर तक झेल नही पाएंगे। बड़े से मेटल स्क्रैप निकालने दौरान उस काल जीव के पेट का सुराख फैलकर फटना शुरू ही हुआ था, अभी तो पूरा स्क्रैप निकालना बाकी था। फिर उसे सीलना भी था। वक्त की नजाकत को देखते हुए रूही, आर्यमणि को अपने पास बुला ली और क्रेन अलबेली को बोली संभालने।

आर्यमणि बिना देर किये उसके पास पहुंचा और अपना पंजा डालकर जब उसने दर्द लेना शुरू किया, तब जाकर रूही और इवान को भी राहत मिली। हां लेकिन ये तो अभी इलाज एक हिस्सा था, दूसरा हिस्सा धीरे–धीरे उस विशालकाय जीव के पेट से निकल रहा था। 5 फिट का छोटा छेद कब 2–3 मीटर में फैल गया, पता ही नही चला। तीनो पूरा जान लगाकर उस काल जीव का दर्द ले रहे थे और स्क्रैप के जल्दी से निकलने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन जैसे ही वो स्क्रैप निकला, उफ्फ काफी खतरनाक मंजर था।

2 मीटर ऊंचा और 60 मीटर लंबे मेटल स्क्रैप न जाने कितने दिनों से मल–मूत्र का रस्ता रोक रखा था। मेटल स्क्रैप के पीछे जितना भी मल, गंदगी इत्यादि जमा था, बाढ़ की तरह उनके ऊपर गिड़ा। गिड़ा मतलब ऐसा वैसा गिड़ा नही। 5 मीटर ऊंची वो मल और गंदगी की बाढ़ थी, जिसमे 10 मिनट तक तीनो डूबे रह गये। ऊपर अलबेली का हंस–हंस कर बुरा हाल था। बायोहजार्ड सूट के अंदर तो वो सुरक्षित थे। ऑक्सीजन सप्लाई भी पर्याप्त थी पर मल में दबे रहने के कारण तीनो का मन उल्टी जैसा करने लगा, क्योंकि हाथ तो तीनो के खुले हुये थे।

10 मिनट लगा उस कचरे को बहने में। थुल थुले से मल के बीच वो तीनो, उस जीव का दर्द भी भागा रहे थे और पेट ज्यादा देर तक खोले नही रह सकते थे, इसलिए सिल भी रहे थे। इधर अलबेली वाटर पंप को पहाड़ से निकलने वाले झील में डाली और क्रेन की मदद से उस जगह पानी डालकर साफ–सफाई भी कर रही थी। ..

खैर 14–15 दिन की सर्जरी के बाद, अगले 4 दिन तक उस जीव को खाने में उबला घास और पीने के लिए घास का सूप मिलता रहा। सारी ब्लॉक लाइन क्लियर हो गयी थी। वह जीव खुद में असीम सुख की अनुभूति कर रहा था। अगले 4 दिन में अल्फा पैक ने उस जीव को पूरा हील भी कर दिया और उसके टांके भी खोल दिये।

20 दिनों के बाद वो जीव पूरी तरह से स्वास्थ्य था। खुश इतना की नाच–नाच के करतब भी दिखा रहा था। वो अलग बात थी की उसके करतब देखने के लिए पूरा पैक पर्वत की चोटी पर बैठा था। उस जीव के नजरों के सामने चारो बैठे थे। वह जीव अपनी आंखों से जैसे आंसू बहा रहा हो। अपनी आंख वो चारो के करीब लाकर 2 बार अपनी पलके टिमटिमाया ..

उसे ऐसा करते देख चारो खुश हो गये। फिर से उस जीव ने अपना सिर पीछे किया और खुद को जैसे हवा में लहराया हो... हां लेकिन वो लहर आर्यमणि के सर के ऊपर इतनी ऊंची उठी की बस सामने उस जीव का मोटा शरीर ही नजर आया। ऊपर कितना ऊंचा गया, वो नजदीक से देख पाना संभव नही था। वह जीव ठीक इन चारो के सर के ऊपर था और अपनी गर्दन नीचे किये अल्फा पैक को वह देख रहा था। उस जीव के शरीर पर, गर्दन के नीचे से लेकर पूंछ तक, दोनो ओर छोटे छोटे पंख थे। करीब 3 फिट या 4 फिट के पंख रहे होंगे जो दूर से देखने पर उस जीव के शरीर पर रोएं जैसा लगता था।

वह जीव गर्दन नीचे किये अल्फा पैक को देख रहा था और बड़ी सावधानी से अपना एक पंख रूही के पेट के ओर बढ़ा रहा था। रूही यह देखकर खुश हो गयी और पेट के ऊपर से कपड़ा हटाकर पेट को खुला छोड़ दी। वह जीव अपनी गर्दन नीचे करके धीरे–धीरे अपना पंख बढ़ाकर पेट पर प्यार से टीका दिया। आर्यमणि, अलबेली, और इवान को तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई पहाड़ उनके सामने से धीरे–धीरे करीब आ रहा हो।

क्या हो जब आप कहीं पार्क में बैठे हो और 100, 150 मंजिली इमारत आपके 10 फिट के फासले से नजदीक आ रही हो। और ये जीव तो उस इमारत से भी कहीं ज्यादा ऊंचा था, जिसे करीब से कभी पूरा नहीं देखा जा सकता। किंतु यहां किसी को भी डर नही लग रहा था उल्टा सब खुश थे। सबसे ज्यादा खुश तो रूही थी, क्योंकि उस जीव का स्पर्श उतना ही अलौकिक था।

उस जीव ने कुछ देर तक अपना पंख रूही के पेट पर टिकाए रखा। फिर तो सबने वो कारनामा देखा। नजरों के सामने उस जीव के शरीर का जितना हिस्सा था, उसमें जैसे वाइब्रेशन हुआ हो और एक पल के लिए उसने पंख को पेट से हटा लिया। वापस से उसने पेट पर स्पर्श किया और फिर से उसका शरीर वाइब्रेट किया।

रूही:– अमेया पेट में हरकत कर रही है। ये जीव उसे महसूस कर सकता है...

लगातार 3–4 बार वाइब्रेट होने और स्पर्श करने की प्रक्रिया के बाद तो वो जीव खुशी से गुलाटी ही लगा दिया। वो अलग बात थी कि गुलाटी लगी नही और अपना भारी शरीर लेकर सीधा जमीन पर गिर गया। सर हिलाते वह जीव उठा और अपना मुंह रूही के पेट के करीब लाकर अपने जीभ के छोटे से प्वाइंट से रूही के पेट को स्पर्श करके वहां से खुशी–खुशी वापस समुद्र में लौट गया। हालांकि मकसद तो पेट को ही स्पर्श करना था, लेकिन अब जीभ ही इतनी बड़ी थी की चारो को गिला करके भाग गया...

इतने बड़े जीव की जान बचाना अपने आप में ही अनोखा अनुभव था। आर्यमणि ने पूरे घटनाक्रम को विस्तार से अनंत कीर्ति की पुस्तक में लिखा। जब वह पूरी घटना लिख रहा था, उसी दौरान आर्यमणि ने सोच लिया की इस किताब को कॉटेज में न रखकर साथ ले जाना ज्यादा बेहतर होगा। अनंत कीर्ति की पुस्तक खुद यहां के पूरे पारिस्थितिक तंत्र को वर्णित कर देगी।

अगली सुबह तो और भी ज्यादा विचित्र परिस्थिति थी। आर्यमणि क्रूज को आइलैंड के दूसरे छोड़ से उसी किनारे पर लगा रहा था जहां क्रूज शुरू से लगी हुई थी। किंतु उस विशालकाय जीव को ठीक करने के बाद से तो जैसे आर्यमणि के पास वाले समुद्री तट पर कई सारे समुद्री जीवों का आना जाना हो गया। सभी समुद्री जीवों के आकार सामान्य ही थे लेकिन देखने में काफी मनमोहक और प्यारे लग रहे थे। सभी पीड़ा लेकर उस तट पर पहुंचे थे और आर्यमणि उन सबको हील कर खुशी–खुशी वापस भेज दिया।

अब तो जैसे रोज ही समुद्र किनारे समुद्री जीवों का भिड़ लगा रहता। उन सबकी संख्या इतनी ज्यादा हुआ करती थी कि अल्फा पैक उन्हे समुद्री रेशों में जकड़ कर एक साथ हील कर दिया करते थे। कभी–कभी तो काफी ज्यादा पीड़ा में होने के कारण कई समुद्री जीव आर्यमणि के फेंस तक पहुंच जाते। चारो मिलकर हर किसी की तकलीफ दूर कर दिया करते थे। और जितना वो लोग इस काम को करते, उतना ही अंदर से आनंदमय महसूस करते।

हां लेकिन उस बड़े से काल जीव को स्वास्थ्य करने वाली घटना के बाद, उन चारो को रात में कॉटेज के आस–पास किसी के होने की गंध जरूर महसूस होती, लेकिन निकलकर देखते तो कोई नही मिलता। उस बड़े से जीव को हील किये महीना बीत चुका था। जिंदगी रोजमर्रा के काम के साथ बड़ी खुशी में कट रही थी। रूही का छटवा महीना चल रहा था। सब लोग अब विचार कर रहे थे कि 4 महीने के लिये न्यूजीलैंड चलना चाहिए। रूही के प्रसव से लेकर बच्चे के महीने दिन का होने तक डॉक्टर के ही देख–रेख़ में रूही को रखना था।

अंधेरा हो चला था। चारो कॉटेज के बाहर आग जला कर बैठे थे। इन्ही सब बातो पर चर्चा चल रही थी। सब न्यूजीलैंड जाने के लिये सहमति जता चुके थे, सिवाय रूही के। उसका कहना था कि आर्यमणि ही ये डिलीवरी करवा देगा। रूही की बात सुनकर तो खुद आर्यमणि का दिमाग ब्लॉक हो गया। यूं तो डॉक्टरों का ज्ञान चुराते वक्त प्रसव करवाने का मूलभूत ज्ञान तो आर्यमणि के पास था, किंतु अनुभव नहीं। और आर्यमणि जनता था डॉक्टरी पेशा ऐसा है जिसमे ज्ञान के साथ–साथ अनुभव भी उतना ही जरूरी होता है। आर्यमणि, रूही से साफ शब्दों में कह दिया... "इस मामले में तुम्हारी राय की जरूरत नही। जो जरूरी होगा हम वही करेंगे।"

आर्यमणि की बात सुनकर रूही भी थोड़ा उखड़ गयी। फिर क्या था दोनो के बीच कड़क लड़ाई शुरू। इन दोनो की लड़ाई मध्य में ही थी जहां आर्यमणि चिल्लाते हुए कह रहा था कि... "तुम्हारी मर्जी हो की नही हो, न्यूजीलैंड जाना होगा"…. वहीं रूही भी कड़क लहजे में सुना रही थी... "जबरदस्ती करके तो देखो, मैं यहां से कहीं नही जाऊंगी"

कोई निष्कर्ष नही निकल रहा था और जिस हिसाब से दोनो अड़े थे, निष्कर्ष निकलना भी नही था। दोनो की बहस बा–दस्तूर जारी थी। तभी वहां का माहोल जैसे कुछ अलग सा हो गया। समुद्र तट से काफी तेज तूफान उठा था। धूल और रेत के कण से आंखें बंद हो गयी। कुछ सेकंड का तूफान जब थमा, आर्यमणि अपने फेंस के आगे केवल लोगों को ही देख रहे थे। कॉटेज से 200 मीटर का इलाका उनका फेंस का इलाका था और उसके बाहर चारो ओर लोग ही लोग थे।

यहां कोई आम लोग आर्यमणि के फेंस को नही घेरे थे। बल्कि वहां समुद्रीय मानव प्रजाति खड़ी थी। एक जलपड़ी और उसके साथ एक समुद्री पुरुष जिसका बदन संगमरमर के पत्थर जैसा और शरीर का हर कट नजर आ रहा था। आर्यमणि सबको अपनी जगह बैठे रहने बोलकर खड़ा हो गया और फेंस की सीमा तक पहुंचा। वह बड़े ध्यान से सामने खरे मानव प्रजाति को देखते... "तुम सबका मुखिया कौन है?"…

आर्यमणि के सवाल पर भिड़ लगाये लोगों ने बीच से रास्ता दिया। सामने से एक बूढ़ा पुरुष और उसके साथ एक जलपड़ी चली आ रही थी। बूढ़ा वो इसलिए था, क्योंकि एक फिट की उसकी सफेद दाढ़ी हवा में लहरा रही थी। वरना उसका कद–काठी वहां मौजूद भीड़ में जितने भी पुरुष थे, उनसे लंबा और उतना ही बलिष्ठ दिख रहा था।

वहीं उसके साथ चली आ रही लड़की आज अपने दोनो पाऊं पर ही आ रही थी, लेकिन जब पहली बार दिखी थी, तब जलपड़ी के वेश में थी। कम वह लड़की भी नही थी। एक ही छोटे से उधारहण से उसका रूप वर्णन किया जा सकता था। स्वर्ग की अप्सराएं भी जिसके सामने बदसूरत सी दिखने लगे वह जलपड़ी मुखिया के साथ चली आ रही थी।

Bohot hi shandar update
 
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Nain bhai ji request hai pahle update dekar tab sabke reply karna bhai
 
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भाग:–118


महा:– फिर कहोगी सवाल क्यों कर रहे। अब ये एकलाफ कौन है, जिस से आर्यमणि मिलना चाहता है? उसे मैं नही जानता फिर वो कैसे जानने लगा? वह मुझसे क्यों नही मिलने की बात किया?

पलक:– वो जब आर्य मिलेगा तब पूछ लेना। अब प्लीज कुछ देर शांत रहो। एक बार मैं पूरा खत्म कर लूं, फिर सारे सवाल एक साथ कर लेना...

महा:– हम्मम... ठीक है..

पलक:– “8 मार्च को आर्यमणि कब और कहां मिलेगा वो पता नही चल पाया है। पहले से पहुंचे प्रहरी लगभग 30 शहरों की जांच कर चुके, लेकिन किसी भी जगह ऐसे कोई प्रमाण न मिले, जहां लगा हो की किसी ने जाल बिछाकर रखा है। और मुझे यकीन है कि आर्यमणि ने 2 महीने का वक्त इसलिए मांगा था, ताकि वह पूरी तैयारी कर सके”...

“शिकार फसाने और शिकार करने में कोई भी प्रहरी उसका मुकाबला नहीं कर सकता। मैं आर्यमणि को भली भांति जानती हूं, वह कितने दिन पहले से कितना कैलकुलेटिव प्लान कर सकता है। यदि उसने 2 महीने का समय लिया है तो विश्वास मानो वह 1000 प्रहरी तो क्या, 5000 प्रहरी को मारने के हिसाब से प्लान करेगा। इसलिए मैं चाहती हूं कि बचे 3 दिन में यानी 7 मार्च तक हम ये पता लगा ले की आर्यमणि हमसे किस जगह मिलने की योजना बना रहा।

सभी एलियन एक साथ, एक सुर में... “हां हमे तुरंत ये काम करना होगा।”

महा:– 2 महीने में नही कर पाये और 3 दिन में कर लोगे। चुतिये है सब के सब। और जो कोई भी अपना मुंह खोल रहा है, अभी बंद कर ले। अभी मेरी बात पूरी नही हुई। साला सभी उल्लू ही पहुंचे थे क्या जर्मनी जो अब तक पता न कर पाये की आर्यमणि कहां मीटिंग रख सकता है?...

पलक:– इतना सुनाने की जरूरत है क्या? या मैं तुम्हारी हम उम्र होकर तुमसे आगे निकल गयी, इस बात को लेकर मुझे नीचा दिखा रहे...

महा:– लड़ाई में निपुणता हासिल कर लेने से कोई दिमाग वाला नही होता। और फालतू बात करके टॉपिक से भटकाने वाला कभी सच्चा नेता नही होता। 2 महीने काफी है एक देश में किसी के भी होने का पता लगाने के लिये। और जैसा तुम कह रही हो की तुम्हारे पास आर्यमणि की पक्की खबर थी कि वो जर्मनी के बाहर हमारे लोगों का शिकर कर रहा, इसका साफ मतलब होता है कि वह किसी और के हाथों जर्मनी में किसी जगह पर अपना जाल बिछा रहा होगा। क्या तुमने यहां के स्थानीय शिकारी और जंगल के रेंजर्स से पता किया है...

पलक:– उन्हे क्या पता होगा...

महा:– “अंधेर नगरी और चौपट राजा। 2 देश के बीच लड़ाई नही हो रही जो जंग के मैदान में लड़ोगे। और न ही ये कोई फिल्म है, जहां सड़कों पर खुले आम लाश गिरेगी वो भी बेगाने देश में। तो लड़ाई का स्थान ऐसा होगा जो काफी बड़ा हो और वहां कितनी भी लाश क्यों न गिर जाये, मिलों दूर तक कोई खबर लेने वाला भी नहीं हो। यदि किसी को भनक भी लगी तो वह 2–4 या 10 आदमी से 1000 की भिड़ से नही उलझेगा और इतनी भीड़ को कंट्रोल करने के लिये जितनी फोर्स चाहिए, उसे परमिशन लेने से आने तक में कम से कम 3–4 घंटे का वक्त लगना चाहिए... ऐसे जगह को ध्यान में रखकर ढूंढते तो 10 दिन में कुछ जगह मिल जाती। तुम लोग अभी तक जगह नही ढूंढ पाये तो आगे किस समझदारी की उम्मीद करूं।”

“खैर, ऐसी जगह रेगिस्तान, जंगल, या फिर मिलिट्री ट्रेनिंग की वह जगह हो सकती है, जो अब उपयोग में नही आती। इन सब जगहों पर लोगों को भेज कर वहां के स्थानीय लोगों से, जंगल के रेंजर से, यहां के स्थानीय शिकारी से पता लगाते तो अब तक पता भी चल चुका होता। उसके बाद जिसे टारगेट कर रहे उसकी क्षमता को समझते की यह आदमी किस हद तक सोच सकता है। ऐसा तो नहीं की 5–6 वीरान जगहों पर एक साथ काम चल रहा है और उसने अपनी योजना कहीं और बना रखी है।”

“क्योंकि यहां शिकार उसका करने जा रहे जो भागा था तो तुम्हे अपने पीछे इतने जगह दौड़ा चुका है कि आज तक उसकी परछाई का पता न लगा पाये। वैसा आदमी जब जाल बिछाए तो क्या इतना नही सोचेगा की हम किन–किन जगहों पर पता लगा सकते हैं, या हमारे काम करने का क्या तरीका है। चूहे बिल्ली का खेल ऐसे ही चलता है। हर संभावना पर काम करना पड़ता है। मैं अपनी टीम को लेकर वापस जा रहा हूं। बेहतर होगा की तुम भी अपनी टीम को वापस ले जाओ। क्योंकि 2 महीने तक यदि मैं ट्रैप बिछाऊं और उस ट्रैप का पता दुश्मन को अंत तक न चले फिर तादात कितनी भी हो दम तोड़ देगी।

पलक:– महा ऐसे बीच में छोड़कर न जाओ...

महा:– ठीक है नही जाता। हमारा काम बताओ, हम वही करेंगे। लेकिन एक बात मैं अभी कह देता हूं, यदि ये बात सत्य है कि पिछले डेढ़ महीने में आर्यमणि ने ही हमारे लोगों मारा और गायब किया है, फिर विश्वास मानो इस मुलाकात में बात करने की ही सोचना... शायद कुछ लोगों की जान बच जाये तो आगे जाकर बदला भी ले सकते हो, वरना तुम्हारी मौत के साथ ही तुम्हारा बदला भी दम तोड़ देगा।

पलक:– हम्मम... तो अब क्या योजना है।

महा:– जर्मनी का मैप निकालो और लैपटॉप खोलो...

अगले एक घंटे में 25 इलाकों की लिस्ट तैयार हो चुकी थी। लोग तो थे ही इनके पास और कई टुकड़ी तो उन्ही इलाकों के आसपास थी। अगले 12 घंटे में उन सभी 25 इलाकों को 4 भाग में बांटकर 100 जगहों पर छानबीन करने शिकारी पहुंच चुके थे। हर 100 जगहों पर पहुंचे शिकारीयों में एक न एक महा की टीम का था, जो बाकियों को लीड कर रहा था।

अलग–अलग कोनो से खबरे निकल कर बाहर आयी। अब इतने जगह जब गये हो तो भला ब्लैक फॉरेस्ट के इलाके में कैसे नही पहुंचते। एक ओर से निकली टीम मिले ब्लैक फॉरेस्ट के रेंजर मैक्स से, जो की वहां का स्थानीय वेयरवोल्फ हंटर भी था। वो अलग बात थी कि आर्यमणि जब ब्लैक फॉरेस्ट से निकला तब ब्लैक फॉरेस्ट को वेयरवॉल्फ फ्री जोन बनाकर निकला था। मैक्स से मिलना किसी जैकपॉट के लगने से कम नही था। आर्यमणि की जो विस्तृत जानकारियां मिली और मैक्स में मुंह से धराधर तारीफ, सुनकर महा की टीम का वह शिकारी गदगद हो गया।

वह खुद में ही समीक्षा करने लगा, जब आर्यमणि नागपुर से गया तब सभी वुल्फ को नही मारा, बल्कि सरदार खान और उसके गुर्गों को मारकर निकला। यहां भी सरदार खान के जैसा ही एक वेयरवोल्फ था, उसके पैक को मारकर गया। ये कर तो प्रहरी वाला काम ही रहा है, फिर प्रहरी के अंदर इतना बदनाम क्यों?

वह इंसानी शिकारी अपनी सोच में था, जबतक एलियंस पूरी खबर पलक को दे चुके थे। पलक खुद में ऐसा मेहसूस कर रही थी जैसे वह अभी से जंग जीत चुकी है। वहीं ब्लैक फॉरेस्ट के दूसरी ओर से पता करने गये लोग वुल्फ हाउस की दहलीज तक पहुंच चुके थे। (वही बड़ा सा बंगलो जहां आर्यमणि पहली बार वेयरवोल्फ बना था। जहां पहली बार उसे ओशून मिली थी। जहां पहली बार आर्यमणि की भिडंत एक कुरूर फर्स्ट अल्फा ईडेन से हुआ था)

वुल्फ हाउस यूं तो टूरिस्ट प्लेस की तरह इस्तमाल किया जाता था, लेकिन मालिकाना हक आर्यमणि के पास था और उसके दरवाजे लगभग 2 महीने से बंद थे। बिलकुल वीरान जगह पर और किसी से उस जगह के बारे में पता कर सके, ऐसा एक भी इंसान दूर–दूर तक नही था। कुछ देर बाद पलक के पास ये खबर भी पहुंच चुकी थी।

ऐसा नहीं था की केवल ब्लैक फॉरेस्ट से ही खबरे आ रही थी। मांट ब्लैंक (Mont Blanc), ओर माउंटेन (ore mountain) और हार्ड (Harz) जैसे जगहों से भी मिलता जुलता खबर मिला। इन तीन जगहों के घने जंगल के बीच आधिकारिक तौर पर पिछले २ महीने से कुछ लोग काम कर रहे थे, इसलिए पूरा इलाका ही टूरिस्टों के लिये बंद कर दिया गया था। इसके लिये अच्छी खासी रकम सरकार तक पहुंचाने के अलावा कई सरकारी लोगों को ऊपर से पैसे मिले थे।

5 मार्च की शाम तक पूरी रिपोर्ट आ चुकी थी। मैक्स से मिली जानकारी और अपनी समीक्षा को इंसानी शिकारी महा तक पहुंचा चुका था। महा को यहां कुछ गलत होने की बू तो आ चुकी थी इसलिए उसने भी आगे चुपचाप तमाशा देखने की ठान चुका था। ग्राउंड रिपोर्ट आने के बाद उत्साहित पलक एक बार फिर मीटिंग ले रही थी और कल की तरह आज भी उतने ही लोग साथ में थे...

पलक:– महा कल के व्यवहार के लिये मैं माफी चाहती हूं। तो बताओ आगे क्या करना है।

महा:– मैं एक खोजी शिकारी हूं। पैड़ों के निशान से वुल्फ के पीछे जाता हूं। मैने तुम्हारे शिकार के ठिकाने को ढूंढ दिया। आगे का रणनीति तुम तय करो या जो भी इन मामलों का स्पेशलिस्ट हो। मैं जिसमे स्पेशलिस्ट था, वह करके दे दिया।

पलक:– अजुरी मुझे लगता है तुम इसमें कुछ मदद कर सको।

(नित्या का परिवारिवर्तित नाम। नित्या नाम से आम प्रहरी के सामने उसे नही पुकार सकते थे, क्योंकि वह कई मामलों में प्रहरी की दोषी थी। खैर ये बात तो पलक तक नही जानती थी की वह नित्य है। वो भी उसे अजुरी के नाम से ही जानती थी)

नित्या:– हां बिलकुल... 6 मार्च अहम दिन है। जो लोग 4 टारगेट की जगह पर है, उन्हे जितने लोग हायर करने है करे, जितने इक्विपमेंट में पैसे लगाने है लगाए। सरकारी अधिकारी को खरीद ले और 2 किलोमीटर पीछे से सुरंग खोदना शुरू कर दे। सुरंग बिलकुल गुप्त तरीके से खोदी जायेगी जो हर उस जगह के मध्य में खुलेगा जहां–जहां वह आर्यमणि हमारे लिये ट्रैप बिछा रहा।

7 या 8 मार्च को जब भी वह मिलने की जगह सुनिश्चित करे, पलक मात्र अपने दोस्तों के साथ उस से मिलने जायेगी। वहां 500 लोग आस–पास फैले होंगे और बाकी के सभी लोग सुरंग के अंदर घात लगाये। पलक के साथ गये लोग अपने साथ हिडेन कैमरा लेकर जाएंगे। मैक्रो मिनी कैमरा के बहुत सारे बग उसके घर में इस तरह से छोड़ेंगे की किसी की नजर में न आये। उसे हम बाहर रिमोट से एसेस करके पूरी जगह की छानबीन कर लेंगे और एक बार जब सुनिश्चित हो गये, फिर कहानी आर्यमणि के हाथ में होगी। आत्मसमर्पण करता है तो ठीक वरना टीम तो वैसे भी तैयार है। तो बताओ कैसा लगा प्लान...

बिनार (एक प्रथम श्रेणी का एलियन)... बस एक कमी है। सुरंग का रास्ता का निकासी 4 जगह होना चाहिए, ताकि चारो ओर से घेर सके। इसके अलावा एक निकासी को मध्य जगह से थोड़ा दूर रखना, ताकि यदि रास्ते में कोई जाल बिछा हो और वो कैमरा में नजर आ जाये, तो हमारी टीम चुपके से उस जाल को हटाकर बाहर खड़ी टीम के लिये रास्ता साफ कर देगी।

नित्या:– ये हुई न बात। अब सब कुछ परफेक्ट लग रहा है।

पलक:– महा तुम क्यों चुप हो? तुम्हे कुछ नही कहना क्या?

महा जो पूरे योजना बनने के दौरान चेहरे पर कोइ भवना नही लाया था, वह मन के भीतर खुद से ही बात कर रहा था.... “क्या चुतिये लोग है। ये पलक नागपुर में कितने सही नतीजों पड़ पहुंचती थी। नागपुर छोड़ते ही इसे किस कीड़े ने काट लिया? मदरचोद ये इनका प्लान है। ओ भोसडीवाले चाचा लोग, आर्यमणि तक तो आज ही खबर पहुंच चुकी होगी की हम लोग उसके ट्रैप वाले एरिया में पहुंच चुके है। साले वो पहले से सब प्लान करके बैठा है और तू केजी के बच्चों से भी घटिया प्लान बनाकर वाह वाही लूट रहा। मेरी टीम सतह पर ही रहेगी... पता चला सुरंग इसने खोदा और सुरंग के अंदर आर्यमणि पूरा जाल बिछाए है। आज कल तो वो सीधा चिता ही जला रहा। चिल्लाने की आवाज तक बाहर नहीं आयेगी।

पलक 3 बार पुकारी, महा अपनी खोई चेतना से बाहर आते.... “माफ करना बीवी की याद आ गयी थी। 6 महीने से मायके में थी और जब लौटी तो मैं यहां आ गया। उस से मिला तक नही”...

पलक:– तो तुमने प्लान नही सुना....

महा:– नाना कान वहां भी था। सब सुना मैने। बैंक रॉबरी वाला पुराना प्लान है, लेकिन कारगर साबित होगा। मैं अपनी टीम के साथ आईटी संभालूंगा, इसलिए मेरे सभी लोग सतह पर ही रहेंगे.....

पलक:– तो तय रहा मैं, एकलाफ, सुरैया, ट्रिस्कस और पारस.. हम पांच लोग आर्यमणि से सीधा मिलने जाएंगे। महा अपने 400 लोगों के साथ सतह से आईटी संभालेगा। वहीं से वह अजुरी (नित्या का परिवर्तित नाम) के कॉन्टैक्ट में रहेगा। अजुरी बाकी के 1200 की टीम को लीड करेगी। जिसे 50 के ग्रुप में बांटकर, उसके ग्रुप लीडर के साथ कॉर्डिनेट करेगी। सब कुछ ठीक रहा तो हम या तो अनंत कीर्ति की किताब के साथ चोरी का सारा सामान बिना किसी लड़ाई के साथ ले आयेंगे, वरना किसी को मारकर तो वैसे भी ले आयेंगे।

महा:– वैसे पलक तुमने तो 25 हथियारबंद लोग जो 25 अलग–अलग तरह के हथियार लिये थे, उन्हे हराया है। वो भी बिना खून का एक कतरा गिराए। फिर जब आर्यमणि तुम्हारे सामने होगा और वो तुम्हारी बात नही मानेगा तो मुझे उम्मीद है कि तुम अकेली ही उसे धूल चटा दोगी। बाकी की पूरी टीम को मेरी सुभकमना। मुझे इजाजत दीजिए।

महा अपनी बात कहकर वहां से निकल गया। कुछ पल खामोश रहकर सभी महा को बाहर जाते देख रहे थे। जैसे ही वह दरवाजे से बाहर निकला नित्या हंसती हुई कहने लगी.... “आखरी वाली बात उस बदजात कीड़े ने सही बोला, हमारी पलक अकेली ही काफी है। अच्छा हुआ जो उसने खुद ही सतह को चुना वरना हमारे बीच सुरंग में उसे कहां आने देती। आंखों से निकले लेजर को देखकर कहीं वो पागल न हो जाता और अपना राज छिपाने के लिये कहीं हमे उसे मारना न पड़ता। खैर सतह पर उसके 400 लोगों के साथ अपने 100 लोग भी होंगे, जिसे मलाली लीड करेगी। उसे मैं सारा काम समझा दूंगी। मेरे बाद भारती कमांड में होगी, जो सबको हुकुम देगी और पहला हमला भी वही करेगी, क्यों भारती?

भारती (देवगिरी पाठक की बेटी और धीरेन स्वामी की पत्नी).... “मैने पिछले एक महीने से अपना लजीज भोजन नहीं किया है। मैं कहती हूं, पलक के साथ मैं अपने 4 लोगों को लेकर चलती हूं, 5 मिनट में ही मामला साफ।

पलक:– नही... पहले मुझे कुछ देर तक उस से बात करनी है, उसके बाद ही कोई कुछ करेगा। और इसलिए मेरे साथ जाने वाले लोग फिक्स है। मीटिंग यहीं समाप्त करते है।

नित्या:– तुम लोग सोने जाओ मैं जरा 2 दिन घूम आऊं। भारती सबको काम समझा देना। अब सीधा युद्ध के मैदान में मुलाकात होगी।

लंबे–लंबे चर्चे और उस से भी लंबी वुल्फ पैक को मारने वालों की लिस्ट। इस बात से बेखबर की जिस होटल में पलक थी, उसका पूरा सिक्योरिटी सिस्टम हैक हो चुका था। आर्यमणि उनकी मीटिंग देख भी रहा था और सुन भी रहा था।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 
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nain11ster

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Bhai ak or update de do na plz

Ok bro thanks wetting for next update bro
Thanks Atif bhai .. aaram se maze lijiye... Waise bhi kahani mahine din se jyada nahi jayegi... Uske baad ek lamba avkash hai
 
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