भाग:–25
आर्यमणि वहां पहुंचकर नीचे बोर्ड पर अपना लात मारा और सभी स्विच एक साथ ऑन कर दिया। जैसे ही स्विच ऑन हुआ कुछ हल्की सी आवाज हुई।… "कमाल का सिविल इंजीनियरिंग है मौसा जी, स्विच कहीं है और दरवाजा कहीं और।" लेकिन इससे पहल की आर्यमणि उस गुप्त दरवाजे तक पहुंच पता, शांताराम के साथ कुछ हथियारबंद लोग अंदर हॉल में प्रवेश कर चुके थे।
इधर आवाज आना सुरु हुआ और पीछे से आ रही बू से आर्यमणि समझ चुका था कि वहां कुछ लोग पहुंच चुके है। लेकिन आर्यमणि सबको अनदेखा कर अपने काम में लगा रहा… "आर्य यहां क्या कर रहे हो।".... पीछे से नौकर शांताराम की आवाज आयि।
आर्यमणि:- सब लोग चले गए है काका और मै बिस्तर पर परे–परे उब गया हूं, शॉकेट से वायर निकाल रहा हूं, ये टीवी मुझे ऊपर के कमरे में चाहिए।
आर्यमणि बिना पीछे पल्टे जवाब दिया। तभी बहुत से लोगों में से किसी एक ने… "आप रहने दीजिए सर, मै नया टीवी मंगवा देता हूं।"… उसकी आवाज़ पर आर्यमणि पीछे पलट गया। आंखों के सामने कई गार्ड खड़े थे। सभी वर्दी में और अत्यआधुनिक हथियारों से लैस...…. "ये सब क्या है काका। इतने हथियारबंद लोग घर के अंदर।"..
शांताराम:- उन्हें लगा घर में कोई चोर घुस आया है, इसलिए ये लोग आ गये।
आर्यमणि:- हम्मम ! माफ कीजिएगा, मुझे इस घर के बारे में पता नहीं था। और हां टीवी रहने दीजिएगा, मै मासी को बोलकर मंगवा लूंगा।
आर्यमणि अपनी बात कहकर वहां से अपने कमरे में निकल गया। बिस्तर पर लेटकर वो अभी हुई घटना पर ध्यान देने लगा। नीचे लगे बोर्ड को ठोका और बड़ी ही धीमी आवाज़ जो मौसा–मासी के ठीक बाजू वाले कमरे से आयी। किताब घर से यह आवाज़ आयी थी।… "मंजिल तो यहीं है बस मंजिल की जाभी के बारे में ज्ञान नहीं। मौसा जी और तेजस दादा के करीब जाना होगा। हम्मम ! मतलब दोनो को कुछ काम का बताना होगा। इन्हे कुछ खास यकीन दिलाना होगा।"
आर्यमणि अपने सोच में डूबा हुआ था, तभी फिर से फोन की रिंग बजी, दूसरी ओर से मीनाक्षी थी। आर्यमणि ने जैसे ही फोन उठाया…. "तुझे टीवी चाहिए क्या आर्य।"..
आर्यमणि:- हद है टीवी वाली बात आपको भी बता दिया ये लोग। नहीं मासी मुझे नहीं चाहिए टीवी, दीदी से मेरी बात करवाओ।
भूमि:- क्या हुआ आर्य..
आर्यमणि:- दीदी यहां रहना मुझे कन्फ्यूजन सा लग रहा है। मै आपके साथ ही रहूंगा।
मीनाक्षी:- मै यही हूं और फोन स्पीकर पर है, मै भी सुन रही हूं।
भूमि:- आई रुको अभी। आर्य तू मेरे साथ ही रहना बस जरा अपनी सिचुएशन एक्सप्लेन कर दे, वरना मेरी आई को खाना नहीं पचेगा।
आर्यमणि:- मैं गहन सोच में था। मुझे लगा मैंने रीछ स्त्री और उसके साथी का लगभग पता लगा ही लिया। मेरे दादा अक्सर कहते थे, "बारीकियों पर यदि गौर किया जाय, फिर किसी भी सिद्धि के स्रोत का पता लगाया जा सकता है। सिद्धियां द्वारा बांधना या मुक्त करना उनका भी पता लगाया जा सकता है।" और जानती हो दीदी अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक ऐसी पुस्तक को खोल डाली जो आम इंसान नही खोल पाये। बस इसी तर्ज पर मैंने रीछ स्त्री के मुक्त करने की पूरी सिद्धि पर ध्यान दिया। बहुत सारे तर्क दिमाग में थे और मैं किसी नतीजे पर पहुंचना चाहता था। लेकिन नतीजे पर पहुंचने से पहले मुझे अपने दिमाग में चल रहे सभी बातों को बिलकुल साफ करना था। ध्यान भटकाने के लिए मैंने सोचा क्यों न आराम से शाम तक टीवी देखा जाये।
बस यही सोचकर हॉल से टीवी निकालकर अपने कमरे में शिफ्ट कर रहा था, तभी 10-15 हथियारबंद लोग आ गए। फिर उन्ही में से एक कहता है मै नई टीवी ला देता हूं। उसे मैने साफ कह दिया की मुझे कुछ भी मंगवाना हो तो वो मैं मासी से मंगवा लूंगा। और देखो इतना कहने के बावजूद भी 5 मिनट बाद मासी का कॉल आ गया। एक टीवी के लिए मै पुरा शर्मिंदा महसूस करने लगा। दीदी तुम ही बताओ मुझे कैसा लगना चाहिए?
सुकेश:- बस रे लड़के। ये सब मेरी गलती है। मै आकर बात करता हूं, और मुझे पता है तुम मेरे यहां वैसे भी नहीं रहेने वाले थे, रहोगे तो भूमि के पास ही। टीवी नहीं तो किसी और बहाने से, नहीं तो किसी और बहाने से।
आर्यमणि:- सॉरी मौसा जी।
जया:- इसका यही तो है बस सॉरी बोलकर बात खत्म करो। ये नहीं को मौसा से अच्छे से बात कर ले।
आर्य:- मौसा ने क्या गलत कहा है, सही ही तो कह रहे है। मेरा दिल कह रहा है कि मै दीदी के पास रहूं। अभी टीवी का इश्यू दिखा तो अपने आप बढ़ गया। कल को हो सकता है कोई और इश्यू हो। अब वो सही कह रहे है तो उसपर मै क्या झूठ कह दू, जबकि समझ वो सारी बात रहे है। मां अब ये दोबारा दिल रखने वाली बात मत करना। मै आप सब को दिल से चाहता हूं, हां साथ में पलक को भी। बस मुझ से ये दिल रखने वाली बातो को उम्मीद नहीं रखो, और ना ही मै अपनी बात से किसी का दिल तोड़ूंगा।
मीनाक्षी:- तेरे तो अभी से लक्षण दिख रहे है।
आर्य:- मै फोन रखता हूं। सब लोग आ जाओ फिर बातें होंगी।
मीनाक्षी:- देखा जया, उसे लग गया कि खिंचाई होगी तो फोन रख दिया। क्यों पलक सुनी ना की दोबारा सुना दूं, उसके दिल का हाल।
पलक बेचारी, पूरे परिवार के सामने पानी–पानी हो गई। लेकिन साथ ही साथ दिल में गुदगुदी सी भी होने लगी थी। सभी लोग शाम के 8 बजे तक लौट आए थे। आज काफी मस्ती हुई। आकर सभी लोग हॉल में ही बैठ गए। कहने को यहां थे तो 3 परिवार थे, लेकिन सबसे छोटा भाई अरुण और उसका पूरा परिवार लगभग कटा ही था। क्योंकि बच्चो को किसी भी भाई–बहन से मतलब नहीं था, अरुण और उसकी पत्नी प्रीति का छल उसके चेहरे से नजर आता था। बावजूद इसके कि उस वक़्त शादी से पहले जया क्यों भागी थी ये बात सामने आने के बाद भी, अरुण ने ऐसा रिएक्ट किया जैसे हो गया हमे क्या करना। जबकि इसी बात को लेकर जो उसने एक बार रिश्ता तोड़ा था फिर तो एक दूसरे को तब देख पाये जब फेसबुक का प्रसार हुआ था।
अगली सुबह सुकेश, भूमि, तेजस और आर्यमणि को अपने साथ लिया और किताब वाले घर में चला आया…. "बाबा, आप आर्य को अंदर ले जाने वाले हो।"..
सवाल की गहराई को समझते हुए सुकेश कहने लगा… "हां शायद। मुझे लगता है चीजें जितनी पारदर्शी रहे उतना ही अच्छा होगा। आर्य वैसे भी है तो परिवार ही।"..
तेजस:- लेकिन बाबा क्या वो चीजों को समझ पाएगा?
सुकेश:- जब मैंने फैसला कर लिया है तो कुछ सोच–समझकर ही किया होगा। और आज से आर्य तुम दोनो का उत्तरदायित्व है, जैसे मैंने तुम्हे चीजें समझाई है, तुम दोनो आर्य को समझाओगे।
आर्यमणि:- क्या कुछ ऐसा है जो मुझे नहीं जानना चाहिए था मौसा जी। या कल अंजाने में मैंने आपका दिल दुखा दिया।
सुकेश:- ज्ञान का प्रसार जितने लोगों में हो अच्छा होता है। बस बात ये है कि तुमसे जिस कार्य को सम्पन्न करवाना चाहते हैं, उसके लिए हमने 25 साल की आयु निर्धारित की है। वो भी केवल प्रहरी समूह के सदस्य के लिए। पहली बार किसी घर के सदस्य को वो चीजें दिखा रहे है।
आर्यमणि:- मौसा जी फिर ये मुझे नहीं देखना है। बाद में आप मुझे प्रहरी सभा में सामिल होने कहोगे और वो मैं नही कर सकता...
तेजस:- मेरी अनुपस्थिति में मेरा प्रतिनिधित्व तो करने जा सकते हो ना। भूमि के साथ खड़े तो हो सकते हो ना। पलक जब अपना जौहर दिखा रही होगी तो उसकी मदद कर सकते हो ना। चित्रा और निशांत के लिए खड़े तो रह सकते हो ना।
आर्यमणि:- सकते वाला तो बात ही नहीं है दादा, मै ही सबसे आगे खड़ा रहूंगा। मै लेकिन प्रहरी समूह का हिस्सा नहीं हूं, बस ये बात मै अभी से साफ कर रहा हूं।
सुकेश:- हम जानते है ये बात। जया और केशव का भी यही मत है, इसलिए उसने तुम्हे कभी प्रहरी समूह के बारे में नहीं बताया और ना ही उसके और हमरे बीच क्या बातें होती थी वो बताया होगा।
सभी लाइब्रेरी में थे। इनकी बातें चल रही थी। इसी बीच दीवार के किनारे से एक गुप्त दरवाजा खुल गया। अंदर का गुप्त कमरा तो वाकई काफी रहस्यमय था। पीछे एक पूरी लाइब्रेरी थी लेकिन इस गुप्त कमरे में भी कई सारी पुस्तक थी। दीवार पर कई सीसे के सेल्फ बने थे, जिसमे कई तरह की वस्तु थी। आर्यमणि उन वस्तुओं का प्रयोग नही जानता था, लेकिन सभी वस्तुओं में कुछ तो खास था। एक सेल्फ के अंदर एक लंबी सी छड़ी थी। ऐसा लग रहा था, मानो किसी जादूगर की छड़ी हो, जिसे दंश कहते थे।आर्यमणि जिज्ञासावश उस सेल्फ को हाथ लगा लिया।
उसने जैसे ही सेल्फ को छुआ, तेज सायरन बजने लगा। आगे चल रहे सुकेश ने पीछे मुड़कर देखा और तेजस को अपनी नजरों से कुछ समझाया। चंद सेकेंड तक अलार्म बजने के बाद बंद हो गया और तेजस उस शेल्फ के पास पहुंचते.…. "ये किसी महान ऋषि का दंश था। वह जब मरने लगे तब उन्होंने इसे प्रहरी समुदाय को सौंप दिया था, ताकि कोई गलत इस्तमाल न कर सके। तब से यह दंश प्रहरी के कड़ी सुरक्षा के बीच रखा गया है?"..
आर्यमणि:– वाउ!!! एक असली पौराणिक वस्तु, जिसे मंत्रों से सिद्ध किया गया है। क्या मैं इसे देख सकता हूं?
तेजस:– नही, इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता...
आर्यमणि:– क्या बात कर रहे? क्या मौसा जी भी नही?
तेजस:– कोई नही, मतलब कोई नही...
आर्यमणि:– यदि कोई इसे चुरा ले, या फिर जबरदस्ती हाथ लगाने की कोशिश करे...
तेजस:– ऐसा कभी नहीं हो सकता...
आर्यमणि:– लेकिन फिर भी... यदि ऐसा हुआ तो?
सुकेश, थोड़ा गंभीर आवाज में.… "तेजस ने कहा न... ऐसा हो ही नही सकता... जो बात होगी ही नही उसमे दिमाग लगाने का कोई अर्थ नहीं... हमे ऊपर चलना चाहिए.…
सुकेश ने सबको आगे किया और खुद पीछे–पीछे चलने लगा। लाइब्रेरी के पीछे कमरा और कमरे के अंत में एक घुमावदार सीढ़ी जो ऊपर के ओर जा रही थी। ऊपर के १४ फिट वाले कमरे के पीछे का जो 8 फिट का हिस्सा छिपा था, उसी का रास्ता। आर्यमणि के लिए ऊपर और भी आश्चर्य था। 6 कमरे के पीछे बना 8 फिट चौड़ा 90 फिट लंबा गुप्त हॉल। चारो ओर दीवार पर हथियार टंगे थे। चमचमाती रसियन, जर्मन और यूएस मेड अत्याधुनिक हथियार रखे थे। उसी के नीचे कई साइज के तलवार, भाला, बरछी, जंजीर और ना जाने क्या-क्या। कमरे की दीवार पर तरह-तरह के स्लोक लिखे हुए थे। आर्य चारो ओर का नजारा देखते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।
चलते-चलते दीदार उस पुस्तक के भी हुए जिसके आकर्षण में आर्यमणि नागपुर आया था। आर्यमणि सबके पीछे ही खड़ा था और उस पुस्तक को अपने पास होने का अनुभव कर रहा था। वो आगे बढ़कर जैसे ही उस पुस्तक को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढाया… "नाह ! ऐसे नहीं। इसमें 25 अध्याय है और हर अध्याय को पढ़ने के लिए एक परीक्षा। कुल 25 परीक्षा देने होंगे तभी इस पुस्तक को हाथ लगा सकते हो, इसे पढ़ सकते हो। इसलिए तो इसके जानने की आयु भी हमने 25 वर्ष रखी है।"… शुकेश मुस्कुराते हुए पुस्तक खोलने की विधि का वर्णन करने लगा...
आर्यमणि:- और वो 25 परीक्षाएं क्या है मौसा जी?
सुकेश:- 25 अलग-अलग तरह के हथियारबंद लोगो से एक साथ लड़ना और जीत हासिल करना। लेकिन एक बात ध्यान रहे, लड़ाई के दौरान एक कतरा खून का बहना नहीं चाहिए।
आर्यमणि:- इस से अच्छा मै फिजिक्स, मैथमेटिक्स न पढ़ लूं। वैसे मौसा जी बिना परीक्षा दिए इस किताब को खोले तो..
सुकेश:- एक कोशिश करो, खोलकर दिखाओ इस पुस्तक को।
आर्यमणि आगे बढ़कर किताब के ऊपर ऐसे हाथ फेरा जैसे किसी मासूम बच्चे के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हो। हाथ लगने से ही किताब का रंग बदलना शुरू हो गया। ऊपर का जो काला कवर था वो बदलकर हरे रंग का हो गया और कुछ अजीब सा लिखा आ रहा था।
सुकेश आश्चर्य से आर्यमणि का चेहरा देखते हुए..… "तुमने अभी क्या किया?"
आर्यमणि:- केवल स्पर्श ही तो किया है, आप भी तो यहीं हो।
सुकेश:- किताब तुम्हारे स्पर्श को पहचानती हुई कह रही है, धन्यवाद जो तुम यहां तक पहुंचे, अपने लक्ष्य में कामयाब हो। किताब तुमसे खुश है।
आर्यमणि:- खुश होती तो खुल ना जाती। मुझे तो आप पर शक होता है कि आप कोई सॉलिड जादूगर हो।
सुकेश:- और तू ये क्यों बोल रहा है?
आर्यमणि:- क्योंकि आपने जो अभी किताब के साथ किया वो अद्भुत है। खैर जो भी हो यहां तक लाने का शुक्रिया। मेरी इंजिनियरिंग की बुक ही सही है, मै वही पढूंगा। हर 6 महीने में अपना एग्जाम दूंगा और कोशिश करूंगा किसी विषय में बैक ना लगे।
भूमि:- बाबा चिंता मत करो, इसे मै तैयार करूंगी।
आर्यमणि:- 25 लोग और 25 तरह के हथियार, दीदी मै तो सहिद ही हो जाऊंगा।
भूमि:- बात शहीद की नहीं बल्कि आनंत कीर्ति की है। बाकी मै हूं ना। चलो नीचे चला जाए। आर्य मेरे साथ रहना, मै चाहती हूं यदि मै कहीं भटकूं तो तुम मुझे संभालना।
आर्यमणि:- ठीक है दीदी।
भूमि और आर्यमणि सीधा पहुंचे गेस्ट रूम में, जहां मामा का परिवार रुका हुआ था। गेस्ट रूम का क्या नजारा था। भूमि और आर्यमणि एक ओर दरवाजे के बाहर देख रहे थे जहां हॉल में उसका पूरा परिवार बैठा था। नौकरों की कोई कमी नहीं फिर भी एक बहु अपने हाथ से चाय दे रही थी। बच्चे कभी अपने इस दादी तो कभी अपने उस दादी, तो कभी अपने दादा। जिसके साथ मन हुआ उसके साथ खेल रहे थे। अंदर मामा की फैमिली थी। मामा कुर्सी पर बैठकर मोबाइल चला रहे थे। मामी उसके बाजू में बैठकर मोबाइल चला रही थी। ममेरा भाई–बहन बिस्तर के दोनो किनारे पर लेटकर मोबाइल चला रहे थे। सभी मोबाइल चलाने में इतने मशगूल थे कि होश ही नहीं कमरे में कोई आया है।
भूमि:- वंश, नीर तुम दोनो बाहर जाओ। हमे कुछ जरूरी बात डिस्कस करनी है।
अरुण:- नहीं तुम रहने दो, हम अभी जाकर दीदी से ही डिस्कस कर लेते है।
भूमि:- कोई बात नहीं है मामा जी, जैसा आप ठीक समझे।
भूमि, आर्यमणि के साथ हॉल में चली आयी और पीछे-पीछे मामा और मामी भी.. अरुण, सुकेश के पास खड़ा होकर.… "बड़े जीजाजी, बड़ी दीदी आपसे कुछ बात करनी थी।"
सुकेश:- हां अरुण कहो ना।
अरुण:- जीजाजी वो मै बिजनेस में कहीं फंस गया हूं, आलम यें है कि यदि जल्द से जल्द मैटर सॉल्व नहीं किया तो हम सड़क पर आ जाएंगे।
सुकेश:- हम्मम ! कितने पैसे की जरूरत है।
इस से पहले की अरुण कुछ कहता, जया की भावना फूट पड़ी। अनायास ही उसके मुख से निकल गया.… "अरुण तू कितना स्वार्थी हो गया रे।"
अरुण, चिढ़ते हुए एक बार जया को देखा, इसी बीच उसकी पत्नी कहने लगी… "मुझे तो पहले से पता था कि हम रोड पर भी आ जाए तो भी ये हमारी मदद नहीं करेंगे। जान बूझकर हमे यहां अटकाकर रखे है।"..
कहानी में आर्य और कहानी के बाहर
nain11ster भईया क्या ही गोली दे देते है, जैसे की tv वाली बात को घुमाकर रीछ स्त्री वाली बात पर और वहां से किताब तक जो घुमाया है वो तो गजब ही था। साथ में सबको मक्खन भी लगा दिया और सबके सामने पलक से प्यार का इजहार भी कर दिया। सही खेला रे आर्य।
उसके बाद ये लाइब्रेरी और फिर वो किताब, अब यहां लोचा ये है कि आर्य का हाथ लगते ही किताब ने रंग क्यों बदला, कहीं इस किताब का आर्य के दादा से तो कोई संबंध नहीं है और उनका वंशज होने के नाते, किताब आर्य को भी पहचान गई है या फिर आर्य का एक अलग श्रेणी का प्राणी होने के नाते किताब उसको अपना संरक्षक मानती है?
आखिर में कुत्ते की पूंछ अरुण और उसका परिवार जो अपनी औकात दिखाए बिना बाज नहीं आए। इस अरुण के पिछवाड़े में छाता डाल कर खोल देना चाहिए और फिर इसको मोर बना कर नचाना चाहिए। अब देखना है की इसकी खाट सुकेश खड़ी करता है या भूमि? अगर भूमि ने किया तो सच में मोर ही बना देगी।
क्या ही मस्त अपडेट दे डाला वाह, बस स्परिवार अरुण का बैंड बज जाता तो और भी मजा आ जाता। मगर हम अगले अपडेट तक वेट कर लेंगे।