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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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Devilrudra

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भाग:–168


निमेषदर्थ कुछ देर के लिये रुका। वहां से जब सारे लोग हटे तब एक साथ हजार लोगो की कतार थी। ठीक सामने आर्यमणि खड़ा। निमेषदर्थ का एक इशारा हुआ और हजार हाथ आर्यमणि के सामने हमला करने के लिये तन गये। उसके अगले ही पल हर जलीय सैनिक के हाथ से काला धुआं निकल रहा था। निमेषदर्थ और हिमा के दंश से भी भीषण काला धुवां निकल रहा था। धुएं के बीच आर्यमणि कहीं गुम सा हो गया। कहीं किसी तरह की कोई हलचल नहीं।

लगभग 5 मिनट तक पूर्ण शांति छाई रही। तभी निमेषदर्थ ने इशारा किया और सैनिकों की छोटी टुकड़ी उस काले धुएं के बीच घुसी। बाहर सभी लोग टकटकी लगाये बस धुएं को ही देख रहे थे। सैनिक की वह टुकड़ी भी धुएं में कहीं गायब हो गयी। तकरीबन मिनट भर तक चीर शांति छाई रही, उसके बाद जो ही चीखने की आवाज आयी। माहौल ही पूरा अशांत हो गया।

सैनिकों के लगातार चीखने की आवाज आती रही और रेंगते हुये जब कुछ सैनिक धुवां के बाहर आ रहे थे, तब वहां मौजूद हर किसी का कलेजा कांप गया। असहाय सैनिक खून से लहू–लुहान किसी तरह उस काले धुएं से निकल रहे थे। किंतु जैसे ही धुएं के बाहर आते उनका शरीर फटकर चिथरा हो जाता और मांस के लोथड़े वही आस पास फैल जाते।

पूरी टुकड़ी का वही हश्र हुआ। मौत की चींखें जब शांत हुई तब एक पल नही लगा उस धुएं को छंटने में। जैसे ही धुवां छंटा आर्यमणि अपनी जगह पर खड़ा मंद–मंद मुस्कुरा रहा था। निमेषदर्थ और बाकी सभी की आंखें फटी की फटी रह गयी, क्योंकि जिस काले धुएं ने आर्यमणि का कुछ नही बिगड़ा, उस काले धुएं के मात्र एक हिस्से से तो 10 सोधक प्रजाति के जीव फट जया करते थे।

आर्यमणि ने बस अपना एक हाथ ऊपर किया और जड़ों में सभी सैनिक जकड़े हुये थे। उसके अगले ही पल वो सब कहां गायब हुये ये तो बस आर्यमणि ही जानता था। हां लेकिन अब हिमा और निमेषदर्थ के चेहरे पर भय साफ देखा जा सकता था। आर्यमणि पूरे विश्वास के साथ जैसे ही अपना कदम आगे बढ़ाया तभी एक बार फिर से उसपर हमला हुआ।

पानी में कई सारे तैरते चट्टान आर्यमणि के ओर बड़ी रफ्तार के साथ बढ़े। आर्यमणि ने न तो अपने बढ़ते कदम को रोका और न ही आ रहे विशालकाय चट्टान के रास्ते से हटने की कोशिश करी। बस वो अपने कदम आगे बढ़ता रहा। चट्टाने बहते हुये आर्यमणि के करीब जरूर पहुंची, लेकिन हर चट्टान आर्यमणि के करीब पहुंचते–पहुंचते अपना रास्ता बदल लेता। कुछ दाएं से निकल गये तो कुछ बाएं से और आर्यमणि उन दोनो भाई बहन के करीब पहुंच चुका था।

जैसे ही आर्यमणि निमेषदर्थ और हिमा के करीब पहुंचा, दोनो ने अपना बाहुबल का प्रयोग करने का सोचा। दोनो के हाथ हवा में भी आये किंतु उसके बाद जैसे जम गये हो। न तो उसका हाथ हिला और न ही शरीर। आर्यमणि बिलकुल उनके करीब पहुंचते..... “जैसे तुम अभी बेजान हो ठीक अंदर से मैं भी इतना ही बेजान था।”.... आर्यमणि अपनी बात कहने के साथ ही अपना पंजा झटका और उसके क्ला झट से निकल आये।

अपने क्ला के एक वार से हिमा का दायां हाथ काटकर नीचे गिराते.... “तुम्हे क्या लगता है, क्या तुम मुझे मार सकते हो?”.... इतना कहकर आर्यमणि ने फिर अपना क्ला चलाया और निमेषदर्थ का दायां पाऊं कटकर अलग हो गया। बहन का हाथ गया तो भाई का पाऊं। दोनो जमे हुये थे। अपने अंग को शरीर से अलग होते जरूर देखे परंतु दर्द दोनो में से किसी को नही हुआ।

इस से आगे कुछ होता उस से पहले ही आर्यमणि का अभिमंत्रित जाल टूट चुका था। निमेषदर्थ और हिमा भीषण पीड़ा मेहसूस करते जोर–जोर से चिल्लाते हुये नीचे गिर गये। वहीं आर्यमणि, 6 योगियों के बीच घिरा था और पीछे से विजयदर्थ चला आ रहा था। विजयदर्थ ने इशारा किया और उसके लोग निमेषदर्थ और हिमा को सहारा देकर वहां से ले जाने की तैयारी में लग गये।

विजयदर्थ:– तुमने क्या सोचा यहां आकर मेरे बच्चों को मार सकते हो?

आर्यमणि, विजयदर्थ की बात सुनकर मुस्कुराया और प्रतिउत्तर में सिर्फ इतना ही कहा.... “अपनी विधि से दोषियों को सजा दे रहा हूं। आप बीच में न ही पड़े तो बेहतर होगा।”

विजयदर्थ:– गुरुदेव पहले इसे काबू करे, बाद में सोचते है इसका क्या करना है?

आर्यमणि:– विजयदर्थ ना तो मेरे यहां होने का कारण पूछे और न ही मुझसे इतने दिनो बाद मिलने की कोई खुशी जाहिर किये। अपने बच्चों के मोह में सब भूल गये?

विजयदर्थ:– आर्यमणि तुमसे मिलने की खुशी को मैं बयां नही कर सकता। तुम समझ नही सकते की तुम्हे सुरक्षित देखकर मैं अंदर से कैसा महसूस कर रहा हूं। किंतु इस वक्त तुम अपने आपे में नहीं हो।

आर्यमणि:– तुम्हारे कपूत बच्चे यहां एक सोधक जीव का शिकर कर रहे थे। इन्होंने मेरे परिवार को मुझसे दूर कर दिया और उसके बावजूद भी तुम्हारे नालायक बच्चों को मारने के बदले मैं तुमसे बात कर रहा हूं, ये मेरे धैर्य का परिचय है।

हिमा, दर्द से कर्राहती हुई कहने लगी..... “पिताजी यदि आरोप तय हो गया तो मृत्यु दण्ड भोगने के तैयार हूं, लेकिन बिना किसी सुनवाई के ऐसी बर्बरता।”...

विजयदर्थ:– गुरुदेव कृपा आर्यमणि को काबू में करे। यह अनुचित न्याय है।

विजयदर्थ के साथ आये योगी, आर्यमणि को घेरकर बैठ गये। आर्यमणि, हाथ जोड़कर वहां आये सभी योगियों को नमन करते.... “उम्मीद है योग और आध्यात्म किसी राजा के अधीन नही अपितु सत्य और न्याय के लिये प्रयोग में लाये जाते हो।”...

इतना कहकर आर्यमणि वहीं आसान लगाकर बैठे। उसके चारो ओर 6 योगी बैठ हुये थे। मंत्र उच्चारण शुरू हो गया। मंत्र से मंत्र का काट चलता रहा। लगातार 22 दिनो तक मंत्र से मंत्र टकराते रहे। एक अकेला आर्यमणि कई वर्षो से सिद्ध प्राप्त किये हुये 6 योगियों से टकरा रहा था और अकेले ही उनपर भारी पड़ रहा था। बाईसवें दिन की समाप्ति के साथ ही 6 योगियों ने मिलकर आर्यमणि के दिमाग पर काबू पा लिया।

काबू पाने के बाद सभी योगियों की इच्छा हुई की आखिर इतनी कम उम्र में एक लड़का इतनी सिद्धि कैसे प्राप्त कर कर सकता है, उसकी जांच की जाये। इच्छा हुई तो सभी मंत्र जाप करते आर्यमणि के दिमाग में भी घुस गये। आर्यमणि के दिमाग में जब वो घुसे तब उनके आश्चर्य की कोई सीमा ही नही रही। आर्यमणि की किसी भी याद को वो लोग नही देख पाये, सिवाय एक याद के जिसमे अल्फा पैक को लगभग समाप्त कर दिया गया था।

सभी योगी विचलित होकर आर्यमणि के दिमाग से बाहर निकले। वो लोग आर्यमणि को जगाते उस से पहले बहुत देर हो चुकी थी। राजा विजयदर्थ आर्यमणि के दिमाग पर काबू पा चुका था। 6 योगियों के मुखिया योगी पशुपति नाथ जी विजयदर्थ के समक्ष खड़े होते.... “हम इस लड़के से कई गुणा ज्यादा मंत्रो के प्रयोग को जानते थे। कई मंत्र और साधना के विषय में तो शायद इसे ज्ञान भी नही, फिर भी इसके सुरक्षा मंत्रो की सिद्धि हमसे कई गुणा ऊंची थी। परंतु तुमने क्या किया विजय?”...

विजयदर्थ:– मैने क्या किया गुरुदेव...

योगी पशुपतिनाथ:– तुम्हारे बेटी और बेटे ने मिलकर गुरु आर्यमणि के परिवार की हत्या कर डाली। उनमें से एक (अलबेली) गर्भवती भी थी। जिस हथियार से गुरु आर्यमणि के परिवार को मारा गया वह रीछ स्त्री महाजनीका की दिव्य खंजर थी। इसका अर्थ समझ भी रहे हो। वही स्त्री जो कभी महासागर पर काबू पाने के इरादे से आयी थी। जिसे बांधने में न जाने कितने साधुओं ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। उसी के खंजर से पूरे हत्याकांड को अंजाम दिया गया। तुम्हारे बच्चे जाकर असुर प्रवृति के लोगों से मिल गये और तुमने बिना जांच किये उल्टा गुरु आर्यमणि पर काबू किया।

विजयदर्थ अपने दोनो हाथ जोड़ते.... “गुरुवर क्या वाकई महाजनिका की खंजर से गुरु आर्यमणि के परिवार को मारा गया था।”..

योगी पशुपतिनाथ:– हां, और इस पूरे घटने का रचायता और कोई नही तुम्हारा पुत्र निमेशदर्थ था। आज हमने अपने योग को किसी राजा के अधीन कर दिया। इसलिए इसी वक्त मैं अपने प्राण त्यागता हूं।

इतना कहकर योगी पशुपतिनाथ जी ने कुछ मंत्रो का प्रयोग खुद पर ही कर लिया और जहां वो खड़े थे वहां मात्र राख बची थी। विजयदर्थ अपने घुटने पर आकर उस राख को छूते.... “ये मैने क्या कर दिया गुरुदेव। मैने कभी ऐसा तो न चाहा था। मुझे लगा आर्यमणि अपने परिवार की मृत्यु में बौखलाया था इसलिए मुझे इसपर काबू चाहिए था। ये मुझसे कौन सा पाप हो गया?”..

उन्ही योगियों में से एक योगी वशुकीनाथ जी.... "क्या वाकई सिर्फ इतनी सी बात थी विजय। तुम झूठ किस से बोल रहे?”

विजयदर्थ:– गुरुवर आर्यमणि कुछ देर पहले तक मेरे लिये मरा ही हुआ था। उसे काबू में करने की और क्या मनसा हो सकती है?

योगी वशुकीनाथ:– खड़े हो जाओ विजय। तुम अब भी पूरा सच नहीं कह रहे। आर्यमणि को यहां जल में रोक के रखने की चाह में जितने धूर्त तुम हो चुके थे, योगी पशुपतिनाथ जी को उसी की सजा मिली है। गुरु आर्यमणि का परिवार रहा नहीं। तुम्हे उन जैसा हीलर हर कीमत पर अपने पास चाहिए था। मौका उन्होंने खुद तुम्हे दिया, जब वो तुम्हारे बच्चे को मारने पहुंच गये। तुमने भी मौके को पूरा भुनाते हमारे जरिए उनके दिमाग पर काबू पा लिया। देख लो तुम्हारी बुरी नियत का क्या परिणाम हुआ?”

विजयदर्थ, योगी वशुकिनाथ जी के पाऊं में दोबारा गिरते..... “गुरुवर मुझे माफ कर दे। मै घोर पश्चाताप में हूं। मेरी लालच बस इतनी सी थी कि जलीय साम्राज्य फलता–फूलता रहे। कोई भी दुश्मन हमारी दुनिया को तबाह न करे।”

योगी वशुकीनाथ:– महासागर की भलाई को लेकर तुम्हारी नियत पर कभी शक नही था विजय। तभी तो हमने गुरु आर्यमणि को बांधा। लेकिन तुम भी कहां विश्वास पात्र रहे। सत्य और न्याय के बीच हमें ला खड़ा किया। हम सब के पापों की जिम्मेदारी योगी पशुपतिनाथ जी ने ली। जानते हो हमारे पाप की सजा तो उन्होंने खुद को दे दी। साथ ही साथ गुरु आर्यमणि के साथ जो गलत किया, उसके भरपाई में उन्होंने अपना सारा ज्ञान उनके मस्तिष्क में निहित कर दिया। अब हम अपनी साधना में जा रहे है। दोबारा अब हमसे किसी भी प्रकार के मदद की उम्मीद मत रखना।

विजयदर्थ, योगी वशुकीनाथ के चरणों को भींचते.... “ऐसा न कहे गुरुवर। आप हमे छोड़ चले जायेंगे तब यहां के जलीय तंत्र पूर्ण रूप से टूट जायेगा। विश्वास मानिए किसी योग्य उत्तराधिकारी के मिलते ही अपने पाप की सजा मैं भी खुद को स्वयं दूंगा। किंतु आप हमसे मुंह न मोरे।”

योगी वशुकीनाथ:– तुम्हारे निर्णय ने मुझे प्रसन्न जरूर किया है किंतु गुरु आर्यमणि का क्या? उनके साथ जो गलत हुआ है, उसकी भरपाई कैसे करोगे? तुमने तो मौका मिलते ही उनके दिमाग को भी अपने वश में कर लिया।

विजयदर्थ:– मैं एक पिता हूं, इसलिए मोह नहीं जायेगा। उपचार के उपरांत जब मेरे दोनो बच्चे ठीक हो जाएंगे तब मैं उन्हे जलीय तंत्र से पूर्ण निष्कासित कर दूंगा। न वो मेरे आंखों के सामने होंगे और न ही मैं आर्यमणि के प्रतिसोध के बीच आऊंगा। यही नही आर्यमणि का विवाह मैं अपने सबसे योग्य पुत्री महाती के साथ करवा दूंगा। और जिस दिन आर्यमणि की तंद्रा टूटेगी, उसी दिन मैं उन्हे यहां का राजा घोषित करके अपनी मृत्यु को स्वयं गले लगा लूंगा।

योगी वशुकीनाथ:– क्या कोई ऐसी शक्ति है जो तुम्हारे राज्य में घुसकर गुरु आर्यमणि को तुम्हारे वश से अलग कर सके? तुम उन्हे अभी क्यों नही छोड़ देते...

विजयदर्थ:– विश्वास मानिए मैं चाहता तो हूं लेकिन उत्साह में मुझसे भूल हो गयी।

योगी वशुकीनाथ:– “हां मैं समझ गया। तुमने त्वरण वशीकरण का प्रयोग कर दिया। अब या तो कोई बाहरी त्वरित शक्ति आर्यमणि के दिमाग में घुसकर उसे तुम्हारे वशीकरण से निकलेगी या फिर जब आर्यमणि का जीवन स्थिर होगा तभी वो तुम्हारे जाल से निकलेगा। तुम इतना कैसे गिर सकते हो, मुझे अब तक समझ में नही आ रहा।”

“मेरा श्राप है तुम्हे, तुम हर वर्ष अपने परिवार के एक व्यक्ति का मरा हुआ मुंह देखोगे। सिवाय अपनी बेटी महाती के जिसके विवाह की योजना तुमने बनाई है और तुम्हारे दोनो पुत्र और पुत्री (निमेष और हिमा) जो गुरु आर्यमणि के दोषी है। अब मेरी नजरो से दूर हो जाओ इस से पहले की आवेश में आकर मैं कुछ और बोल जाऊं।”

विजयदर्थ:– क्षमा कीजिए गुरुदेव... मुझे क्षमा कीजिए...

योगी वशुकीनाथ:– तुम्हारे पाप की कोई क्षमा नही। एक आखरी शब्द तुम्हारे लिये है, तुम और तुम्हारे समुदाय के लोग अब जमीन का मुंह कभी नहीं देख सकते और इलाज के उपरांत निमेषदर्थ और हिमा कभी जल में नही रह सकते। बस तुम्हारे कुल से जिसका विवाह गुरु आर्यमणि के साथ होगा, उसकी शक्तियां पूर्ण निहित होगी।

विजयदर्थ, रोते हुये योगी वशुकीनाथ के पाऊं को जकड़ लिया। न जाने कितनी ही मिन्नते उसने की तब जाकर योगी वशुकीनाथ ने अपने श्राप का तोड़ में केवल इतना ही कहे की... “यदि गुरु आर्यमणि ने तुम्हे क्षमा कर दिया तो ही तुम श्राप से मुक्त होगे, लेकिन शर्त यही होगी विजयदर्थ की तुम खुद को सजा नही दोगे। बल्कि तुम्हारी सजा स्वयं गुरु आर्यमणि तय करेंगे और उसी दिन हम वापस फिर तुम्हारे राज्य में कदम रखेंगे।”

योगी अपनी बात समाप्त कर वहां से अंतर्ध्यान हो गये और विजयदर्थ नीचे तल को तकता रह गया। जैसे ही वह आर्यमणि के साथ अपने महल में पहुंचा, महल से एक अप्रिय घटना की खबर आ गयी। विजयदर्थ के सबसे छोटे पुत्र का देहांत हो गया था। विजयदर्थ के पास सिवाय रोने के और कुछ नही बचा था।

विजयदर्थ तो मानो जैसे गहरे वियोग में चला गया हो। कुछ दिन बीते होंगे जब उसके दो अपंग बच्चे (निमेषदर्थ और हिमा) को महासागर से निकालकर किसी वीरान टापू पर फेंक दिया गया। जल में विचरण करने की सिद्धि निमेषदर्थ और हिमा से छीन चुकी थी। कुछ दिन और बीते होंगे जब महाती अपने पिता से मिलन पहुंची। कारण था बीते कुछ दिनों से शासन के अंदेखेपन की बहुत सी खबरे और हर खबर का अंत विजयदार्थ के नाम से हो जाता। महाती आते ही उनके इस अनदेखेपन का कारण पूछने लगी। तब विजयदर्थ ने उसे पूरी कहानी बता दी।

अपने सौतेले भाई बहन की करतूत तो महाती पहले से जानती थी। अपने पिता की लालच भरी छल सुनकर तो महाती अचरज में ही पर गयी, जबकि आर्यमणि के बारे में तो विजयदर्थ को भी पूरी बात पता थी। महाती अपने पिता को वियोग में छोड़कर, उसी क्षण पूरे शासन का कार्य भार अपने ऊपर ली। मुखौटे के लिये बस अब उसके पिताजी राजा थे, बाकी सारे फैसले महाती खुद करने लगी।

लगभग 2 महीने बीते होंगे जब राजधानी में जश्न का माहोल था। एक बड़े से शोक के बाद इस जश्न ने जैसे विजयदर्थ को प्रायश्चित का मौका दिया था। वह मौका था आर्यमणि और महाती के विवाह का। जबसे विजयदर्थ ने आर्यमणि पर त्वरित सम्मोहन किया था, उसके कुछ दिन बाद से ही आर्यमणि, महाती के साथ रह रहा था। यूं तो चटपटे खबरों में महाती का नाम अक्सर आर्यमणि के साथ जोड़ा जाता। किंतु महाती ने किसी भी बात की परवाह नही की।
Mast 👍👍👍
 

king cobra

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kya bolun samjh na raha sab khatam ho gawa jaise Arya ab vashikaran me hai jiwan me ek baar sikhi agar dusman ko khatam na kiya to ek din wahi aapko khatam kar deta hai ishiliye dusman par kabhi daya na karna chahiye
 

RAJIV SHAW

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Super update hai Bhai
 
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The king

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भाग:–115


“तुम्हारा तूफान उठाओ कार्यक्रम टीवी पर आ चुका है। आपदा प्रबंधन वाले पता लगाने में जुटे है कि भीषण पानी के बीच आखिर इतनी झुलसी लाश कैसे सुरक्षित बच गयी, जिसे छूने मात्र पर वह भरभरा कर गिर गया। यह समाचार मिलते ही बच्चों ने पता लगा लिया की यह कैसे हुआ और अब वो लोग मैसेज पर मैसेज भेज रहे।”

“लगता है एक्शन में न सामिल करने की वजह से दिल टूट गया होगा। पता ना अब कितना भड़के होंगे। चलो जल्दी”...

तीनो घूम फिर कर फिर से कॉटेज से कुछ दूर पहुंचे। अमेरिकन आपदा प्रबंधन के साथ–साथ कई सारे डिपार्टमेंट की गाड़ी वहां लगी हुई थी। वो लोग समुद्र में उठे तूफान की जांच तथा जान–माल की हानी को देख रहे थे। कॉटेज से काफी दूर आर्यमणि ने कार को पार्क किया था, लेकिन समुद्री तूफान ने तो कार को भी नही बक्शा। आस–पास बाढ़ की परिस्थिति उत्पन्न हो चुकी थी। कई मकानों में पानी घुसा था, लेकिन किसी भी इंसान को किसी तरह का नुकसान नही हुआ था।

थोड़ी सी मेहनत के बाद कार शुरू हुई और जैसे ही उस क्षेत्र को पार किये, रूही, आर्यमणि के सर पर ऐसा मारी की उसका सर स्टेयरिंग से जोरदार टकराया।

आर्यमणि, रूही पर गुर्राते.... “तुम्हे नही लगता की तुम्हारा हाथ आजकल काफी ज्यादा चलने लगा है।”

रूही:– अपनी बॉसगिड़ी कहीं और झाड़ना। एक पल के लिये भी ये ख्याल आया की तुम्हारी हरकत से किसी की जान जा सकती थी?

आर्यमणि:– हां पानी का जमावड़ा देखकर मुझे भी अफसोस हुआ। मुझे इस तूफान और समुद्री ज्वार भाटा पर काम करना होगा। ताकि पूर्ण नियंत्रण में नपा–तुला और सुनिश्चित परिणाम मिले।

रूही:– अच्छी बात है। हम कुछ दिन मियामी में ही ट्रेनिंग करेंगे और आगे की योजना में कुछ बदलाव लाने होंगे।

आर्यमणि:– जी बॉस समझ गया। वैसे बात क्या है, आज तुम भी कुछ ज्यादा ही बॉसगिड़ी दिखा रही।

रूही:– ऐसी कोई बात नही है आर्य। तुम्हारी होने वाली पत्नी हूं न, इसलिए तुम्हारा आधा बोझ खुद पर ले रही।

आर्यमणि:– मतलब..

रूही:– जब तुम्हारे सर पर आग लगी तब दिमाग में एक ही ख्याल आया, यदि हर योजना में रिस्क को मैं भी कैलकुलेट करूं तो शायद हम कई तरह के रिस्क पर बात कर सकते है। बस उसके बाद से ही मैने अपना एक कदम आगे बढ़ा दिया। अब सवाल–जवाब बंद, क्योंकि ये बच्चे मैसेज कर–कर के परेशान कर रहे। लो एक और मैसेज...

आर्यमणि:– क्या लिखा है?

रूही:– अगले १० मिनट में नही पहुंचे तो हम लोग उस जगह पहुंच जायेंगे जहां कांड हुआ है।

आर्यमणि:– हम तो अब 5 मिनट की दूरी पर है। चलो जल्दी से पहुंचा जाये।

5 मिनट में ही दोनो पहुंचे। घर के अंदर का माहोल थोड़ा गरम था। सभी लोग एक ही जगह मौजूद थे। दोनो के पहुंचते ही जो ही बरसे। अलबेली, इवान और ओजल तीनो एक सुर में कहते ही रह गये.... “जब एक्शन के वक्त साथ ले ही नही जाना, तो इतनी ट्रेनिंग करवाने का क्या फायदा।”... गुस्सा थे, रूठे थे, और दोनो (आर्यमणि और रूही) के किसी भी बात का कोई असर ही नही हो रहा था।

जबतक आर्यमणि और रूही ने यह कहा नही की अर्जेंटीना में केवल वही तीनो मिशन को लीड करेंगे, तब तक तीनो का गुस्सा शांत ही नही हुआ। और जब तीनो का गुस्सा शांत हुआ तब उनकी नजर घर आये एक नए मेहमान पर गयी, जिसे आर्यमणि और रूही लेकर पहुंचे थे।

अलबेली:– वैसे साथ में ये कौन है?

रूही:– ये जुल है। एक प्रहरी एलियन.....

जैसे ही रूही ने “एक प्रहरी एलियन” कहा, ठीक उसी वक्त कान फाड़ दहाड़ गूंज गयी। निशांत और संन्यासी शिवम् ने तो अपने कान बंद कर लिये।..... “दीदी इसके सामने से हटो। इसे फाड़कर मैं एलियन को मारने की प्रैक्टिस शुरू करूंगी”... ओजल चिंखती हुई कहने लगी।

ओजल के समर्थन में इवान और अलबेली भी खड़े हो गये। माहोल अब पहले से भी ज्यादा गरम था। आर्यमणि ने इशारा किया और रूही जुल के सामने से हट गयी।.... “हम्मम... तो ठीक है, तुम तीनो मिलकर इसे मार सकते हो तो मार दो।”

आगे फिर कौन बात करता है। तीनो के क्ला बाहर आ चुके थे। तीनो ही अपना शेप शिफ्ट कर चुके थे। जुल को अपने क्ला से फाड़ने के लिये तीनो एक बार में ही कूद गये। कूद तो गये लेकिन जब तीनो हवा में थे, तभी जुल ने बिजली का झटका दे दिया। बिजली का झटका खाकर अलबेली बेसुध नीचे गिरी जा रही थी। किंतु आज ओजल और इवान पर इस बिजली का कोई असर ही नही हुआ।

अलबेली के जमीन पर गिरने से पहले ही आर्यमणि उसे अपने हाथों में ले चुका था। चेहरे पर आये उसके बाल को हटा, प्यार से अलबेली के सर पर हाथ फेरकर हील करते हुये.... “तुम ठीक हो अलबेली”.... अलबेली सुकून से अपना सर आर्यमणि के सीने से लगाती.... “अच्छा लग रहा है दादा। सॉरी दादा आप यहां थे तब भी मैं गुस्से में आ गयी।” उधर इवान और ओजल जैसे ही जुल के सामने खड़े हुये, रूही उन्हे रोकती.... “बस बहुत हुआ। तुम दोनो शांत हो जाओ”...

रूही उन्हे शांत होने क्या कही, दोनो ही रूही को आंख गुर्राते तेज दहाड़े और अपने पंजे को जुल के सीने तक लेकर गये ही थे कि रूही ने वुल्फ कंट्रोल की वह दहाड़ निकाली, जिसे सुन ओजल और इवान सुन्न पड़ गये। दोनो अपना सर पकड़कर बैठते.... “हमे क्यों कंट्रोल कर रही हो। ये मेरे आई के कातिल है। हमे तहखाने पर जीने के लिये इन्होंने ही मजबूर किया था।”

रूही:– दोनो एक दम शांत हो जाओ। वो मेरी भी आई थी।

ओजल:– हां तो तुम इनके साथियों को मारकर अपना दिल हल्का कर आयी हो। मुझे इसे मारना है।

रूही:– ठीक है जाओ...

जैसे ही रूही ने अपना कंट्रोल हटाया वैसे ही ओजल और इवान जुल पर झपट पड़े। आश्चर्य तो तब हो गया जब दोनो अपना पंजा तो जुल पर चलाते, लेकिन वह जुल को न लगकर खाली वार हवा में हो रहा था। दोनो को समझते देर न लगी की यह करस्तानी किसकी है। दोनो तेज गुर्राते हुये निशांत को देखने लगे... “अपना भ्रम जाल हटाओ निशांत”

निशांत:– शिवम् भैया दोनो को शांत तो करो...

जैसे ही ओजल के कान तक यह बात पहुंची ओजल अपनी कलाई की नब्ज को दंश के मणि से काटकर माहोल को फ्रिज करने वाला जादुई मंत्र जोड़ से पढ़ने लगी। अगले ही पल वहां का पूरा माहोल ही फ्रिज हो चुका था। बस जागते हुये वहां 3 लोग ही थे.... ओजल, संन्यासी शिवम् और निशांत...

ओजल:– तुम दोनो जमे क्यों नही...

निशांत:–तुम मंत्रों को बिना सिद्ध किये हुये बलि के माध्यम से खेल रही हो और हमने सारे मंत्र सिद्ध किये है। तुम्हे क्या लगता है तुम्हारा जादू हम पर असर करेगा?

“तुम्हारा तरीका गलत है।” कहते हुये संन्यासी शिवम् ने वहां जल का छिड़काव किया और पूरा माहोल फिर से जीवंत हो गया। बहस का लंबा दौड़ चला। ओजल और इवान का मन जब शांत हुआ, तब अपने किये पर पछताने लगे। लेकिन अभी हुई घटनाओं में ओजल और इवान के हाव–भाव देखते संन्यासी शिवम्...

“गुरुदेव, दोनो का प्रशिक्षण तो आपने किया, लेकिन दोनो में बहुत ज्यादा विलक्षण दिख रहा है। दोनो ही शक्तियों के अधीन होकर शक्ति को खुद पर हावी हो जाने दे रहे है, जबकि आपको इन्हे शक्ति को अपने अधीन कर उस पर काबू रखना सीखाना चाहिए था।”

आर्यमणि:– माफ करना मुझे। आज इनके वजह से मैं वाकई ही शर्मिंदा हूं... आप ओजल और इवान दोनो को अपने साथ लेते जाएं...

इवान:– नही बॉस ऐसा मत कहो... आज ही हमने बस आपा खोया था। वो भी पहली बार जब एलियन को अपने सामने देखा तो काबू न रख पाया..... दिमाग मे बस मां का कातिल ही घूम रहा था।

आर्यमणि:– कुछ इंसान वेयरवोल्फ का शिकर करते है, इसका मतलब जो भी इंसान दिखे उसे मार दो....

कुछ वक्त तक आर्यमणि दोनो को देखता रहा और दोनो अपनी नजरे नीची कर आंख चुराते रहे। कुछ पल की खामोशी के बाद..... “सीधा किसी को भी मारने के नतीजे पर पहुंचना। पैक में से कोई रोके तो उन्हे घूरना और बाली प्रथा से जादू करना.... ऐसा तो मैंने नही सिखाया था।”

जुल:– क्या मुझे कुछ कहने की अनुमति है।

आर्यमणि:– हां बोलो...

जुल:– आप सब में से कभी किसी ने खुद में मेहसूस किया है, या किसी ऐसी घटना को सुना है कि... यदि शक्तियां पास में हो और उसे नियंत्रित करना नही सिख पाये, तो वह शक्तियां दिमाग पर ऐसे हावी हो जाती है कि फिर उस मनुष्य के विलक्षण की गणना भी नही कर सकते। वह अपने आप में एक बॉम्ब की तरह होते है, जो कहां और किस पर फट जाये किसी को भी पता नहीं होता।

संन्यासी शिवम्:– हां मैं इस से भली भांति परिचित हूं। ऐसे मनुष्य जो शक्तियों के साथ जन्म ले, किंतु उन्हे कभी भी न तो अपनी शक्तियों का ज्ञान हो और न ही प्रशिक्षण मिला हो, वह अपनी मृत्यु अपने साथ लिये घूमते है। ये बात हमारे गुरुदेव आर्यमणि भी भली भांति जानते है। वह स्वयं भी इस दौड़ से गुजर चुके थे, जब वो वुल्फ में तब्दील नही हो पा रहे थे। गुरुदेव आपको कुछ कहना है?

आर्यमणि:– हम्मम!!! मैं ये बात क्यों नही समझ पाया। मुझे एहसास था कि शुकेश के अनुवांशिक गुण ओजल और इवान में है। मुझे लगा जब खुद से ये लोग अपनी शक्ति दिखाएंगे, तब उनके प्रशिक्षण के बारे में सोचूंगा लेकिन यहां तो कुछ और ही परिणाम सामने आ गया। दोषी मैं ही हूं।

ओजल:– बॉस आप ऐसे दुखी न हो। दोषी कोई भी नही। हमे अब उपाय पर काम करना है। लेकिन अभी पहले हमे अपने योजना पर ध्यान देना चाहिए। एलियन का कम्युनिकेशन सिस्टम में हमे घुसना है।

रूही:– ओजल सही कह रही है आर्य... हम आज का काम पूरा खत्म करने के बाद ओजल और इवान के बारे में आराम से सोचेंगे।

आर्यमणि, संन्यासी शिवम् के ओर देखने लगा। संन्यासी शिवम मुस्कुराते... “यहां मुझसे भी गलती हुई है। बिना कारण जाने मैं गलत नतीजे पर पहुंचा था। अंदर के अनियंत्रित शक्ति के साथ भी दोनो इतने संयम में थे, यह सिर्फ आपके ही प्रशिक्षण का नतीजा है गुरुदेव। ओजल सही कह रही है, हमे पहले अपने योजना अनुसार आगे बढ़ना चाहिए।”

सहमति होते ही सभी लोगों ने जाल बिछा दिया। करना यह था कि सभी इंसानी शिकारी को उनके किराये के घर से बाहर बुलाना था। जब वो लोग बाहर आते तब निशांत उस से टकरा जाता। वो लोग बाहर जब तक निशांत के विषय कुछ भी राय बनाकर वापस घर में अपने आला अधिकारियों से संपर्क करने जाते, इस बीच ओजल और इवान, संन्यासी शिवम् के साथ टेलीपोर्ट होकर सीधा उनके घर में होते और उनके कम्युनिकेशन सिस्टम को हैक कर लेते।

उन इंसानी शिकारी के घर के बाहर जाल तो बिछ चुका था, लेकिन कोई भी सदस्य बाहर नही निकला था। अलबेली जब ध्यान लगाकर उनके घर के अंदर हो रही बातों को सुनी तब पता चला की 4 शिकारी जयदेव से बात कर रहे थे और बचे 4 शिकारी कॉटेज के पास छानबीन के लिये गये थे।

अलबेली ने जैसे ही पूरा ब्योरा दिया, आर्यमणि... “ठीक है ये ऐसे तो बाहर नही आयेंगे। मैं उन्हे बाहर बुलाने की कोशिश करता हूं, और तुम अलबेली कान लगाकर रखो। देखो क्या बातचीत हो रही।

आर्यमणि अपनी बात समाप्त कर “वूऊऊऊ, वूऊऊऊ, वूऊऊऊ, वूऊऊऊ, वूऊऊऊ” करके भेड़ियों वाला दहाड़ लगाया। पीछे से अल्फा पैक ने भी एक साथ सुर मिला दिये। अंदर उन चार शिकारियों की जयदेव से बात चल रही थी। इसी बीच वुल्फ कॉलिंग साउंड सुनकर जयदेव के भी कान खड़े हो गये.... “ये तो पूरा एक वुल्फ पैक लगता है। जाकर देखो कौन है और कॉटेज की घटना में कहीं इनका हाथ तो नही।”

जयदेव के आदेश मिलते ही सभी शिकारी अपने घर से बाहर निकले। इधर अलबेली सबको अलर्ट भेज चुकी थी। सब काफी दूर जाकर फैल गये। शिकारियों के बाहर निकलते ही योजना अनुसार संन्यासी शिवम् के साथ ओजल और इवान अंतर्ध्यान होकर सीधा उस जगह पहुंचे जहां से उस घर का करंट सप्लाई था। पूरे घर के करेंट सप्लाई को जैसे ही बंद किया गया, अंदर पूरा अंधेरा।

इवान:– नाइट विजन सीसी टीवी कैमरा लगा है। हमे सीधा इनके काम करने वाली जगह तक लेकर चलिए शिवम् सर।

शिवम्:– वहां भी तो सीसी टीवी कैमरा कवर कर रहा होगा। मुंह ढक लो। हम लोग चोर बनकर घुसेंगे। घर की सारी चीजें गायब कर देंगे। इसी दौरान तुम उनके सिस्टम को हैक भी कर लेना।

ओजल:– अच्छा आइडिया है...

तीनो किसी चोर की तरह ही सामने से घुसे। तीनो पूरे घर में तूफान मचाए थे। घर में जितनी भी उठाने वाली चीजें थी वो सब एक साथ गायब कर चुके थे। वुल्फ कॉलिंग साउंड सुनकर सभी शिकारी हड़बड़ी में निकले थे, और उनका मोबाइल भी घर में ही रह गया था, वह भी गायब।

तीनो अपना काम खत्म करके वहां से सीधा गायब। ओजल और इवान ने मिलकर तुरंत लैपटॉप से काम की चीजों का डेटा बैकअप लिया और सारा सामान किसी चोर को बेचकर निकल गये। वहीं जब वह शिकारी आवाज की दिशा में आगे बढ़ते, घर से कुछ दूर आगे निकले, तभी उनसे निशांत टकरा गया।

निशांत को देखकर वो सभी थोड़े हैरान हुये और निशांत अपने पहचान के एक शिकारी को टोकते.... “अरे जितेंद्र, क्या बात है, इतने बड़े देश में हम टकरा गये? कहीं मेरा पीछा तो नही कर रहे?”

जितेंद्र:– ठीक यही सवाल तो मेरे मन में भी चल रहा है। कहीं तुम तो मेरा पीछा नहीं कर रहे?

निशांत:– तुम क्या हॉट बिकनी गर्ल हो जो मैं तुम्हारा पीछा करूंगा।

जितेंद्र:– तो तुम यहां क्या कर रहे?

निशांत:– मियामी के जन्नत का मजा ले रहे है। और तुम???

जितेंद्र:– कोई चुतिया, प्रहरी का कीमती सामान चोरी कर यहां बेचने की कोशिश कर रहा था, उसी को ढूंढने आये है। तुम यहां हो, चोर यहां है, तो क्या तुम्हारा दोस्त आर्यमणि भी यहां है?

निशांत:– क्या बकवास कर रहे हो बे... ज्यादा होशियार हो गये हो तो बताओ, सारी होशियारी तुम्हारी गांड़ में घुसेड़ दूंगा। मदरचोद कुछ भी कह रहा...

जितेंद्र गुस्से से आगे बढ़ा ही था कि उसके साथी रोकते हुये.... “तुम जाओ निशांत। आज एक लड़की इसका चुटिया काट गयी इसलिए पागल बना है।”

“तो दिमाग ठिकाने लाओ इसके। ज्यादा बोलेगा तो गांड़ में सरिया डालकर मुंह से निकाल दूंगा।”... निशांत चलते–चलते अपनी बात कहा और चलता बना... उसके जाते ही वह जितेंद्र.... “तूने रोक क्यों लिया?”

एक शिकारी:– चोरी का माल मियामी में बिकने के लिये आना, कॉटेज की घटना, वुल्फ पैक की दहाड़, और उसके बाद इसका (निशांत) मिलना। यह मात्र एक संयोग नही हो सकता। इसका दोस्त आर्यमणि जो वुल्फ का पैक बनाकर भागा था, वो यहीं है। और उसने न सिर्फ अनंत कीर्ति की किताब को चुराया था, बल्कि स्वामी के द्वारा चोरी किया हुआ सारा माल यही आर्यमणि लेकर उड़ा था। मदरचोद अकेला लड़का पूरे प्रहरी को पानी पिला दिया।

जितेंद्र:– बात में दम तो है। वर्धराज का पोता ही अलौकिक पत्थर से निकलने वाले संकेत को बंद कर सकता है, यह हमने पहले क्यों नहीं सोचा।

(सुकेश के घर से चोरी के समान में मिला पत्थर जो अपने पीछे निशानी छोड़ता था, जिस संकेत के जरिए प्रहरी वाले अपने पत्थर का पता लगा सकते थे। उसे अपस्यु और आचार्य जी ने निष्क्रिय किया था।)

दूसरा शिकारी:– इसका मतलब ये हुआ कि पिछले 7–8 दिन से ये लोग हम पर नजर रखे थे, और आज मौका मिलते ही हमारे 22 लोगों को जिंदा जला दिया। साले ने कौन सा मंत्र पढ़ा होगा जो समुद्र में तूफान उठा दिया?

(इन प्रहरी शिकारियों को एलियन के विषय में जरा भी ज्ञान नही था। उन्हे मारे गये सभी शिकारी अपनी तरह इंसान ही लगते थे)

तीसरा शिकारी:– जो 22 लोगों को मार सकता है वह हम 4 को क्यों नही मारा? हमे उनके विषय में नही पता था, लेकिन वो अपनी योजना अनुसार ही हमें यहां तक लेकर आये होंगे। जब उन्हे हमे मारना नही था, फिर योजनाबद्ध तरीके से हमे यहां तक लेकर क्यों आया?

जितेंद्र:– कहीं ये हमारे घर में तो नही घुसे?

एक शिकारी:– घर में क्या करने घुसेंगे...

जितेंद्र:– हां वहां तेरी बीवी भी तो नही जो ये डर रहता की उसे पेल देंगे। मदरचोद जब उन्हे हमे मारना नही था तो एक ही कारण बनता है ना, उन्हे हमसे कुछ चाहिए।

दूसरा शिकारी:– उन्होंने यहां न तो हमे मारा और न ही घेरकर कोई पूछताछ किया। मतलब साफ है, हमारे घर में घुसपैठ हुई है। सब घर चलो।

प्रहरी के खोजी शिकारी। अब तक कंटेनर के लोकेशन के हिसाब से छानबीन कर रहे थे। आज एक छोटा सा सुराग हाथ लगा और चोरी के समान की गुत्थी सुलझा चुके थे। अलबेली कान लगाकर सब सुन रही थी। खोजी शिकारियों की समीक्षा सुन वह दंग रह गयी। वहीं जब ये लोग अपने घर के पास पहुंचे और घर की बिजली गुल देखे, तभी पूरी समीक्षा पर आपरूपी सत्यापन का मोहर लग गया।
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The king

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भाग:–116


प्रहरी के खोजी शिकारी। अब तक कंटेनर के लोकेशन के हिसाब से छानबीन कर रहे थे। आज एक छोटा सा सुराग हाथ लगा और चोरी के समान की गुत्थी सुलझा चुके थे। अलबेली कान लगाकर सब सुन रही थी। खोजी शिकारियों की समीक्षा सुन वह दंग रह गयी। वहीं जब ये लोग अपने घर के पास पहुंचे और घर की बिजली गुल देखे, तभी पूरी समीक्षा पर आपरूपी सत्यापन का मोहर लग गया।

अलबेली ने जो सुना, वह तुरंत आ कर आर्यमणि को बताई। आर्यमणि ओजल और इवान को देखते.... “क्या तुम लोग अगले 5 मिनट में उन्हे हैक कर पाओगे।”

दोनो एक साथ.... “नही...”

आर्यमणि:– फिर तो कोई उपाय नहीं बचा। उन शिकारियों को गायब करना पड़ेगा...

ओजल:– हां लेकिन सोचने वाली बात यह है कि अगले 5 मिनट में वो संपर्क कैसे करेंगे? उनका मोबाइल, लैपटॉप, पासपोर्ट, रुपया, पैसा, क्रेडिट कार्ड सब तो चुरा लाये है। उन्हे यहां ब्लैंक कर दिया है।

आर्यमणि:– पर हमे तो हैक करना था न...

इवान:– इतना आसान नहीं है हैक करना। ये लोग अपने सिक्योर चैनल से सूचना प्रणाली चलाते है। बाहर से यदि हैक करेंगे तो उन्हे तुरंत पता चल जायेगा। हमे इनके सर्वर तक पहुंचना होगा।

आर्यमणि:– और इस चक्कर में बेवकूफी कर आये। 4 शिकारी जो उस घर में थे, केवल उन्हे ही तुमलोगों ने ब्लैंक किया है ना, उनके बाकी के 4 साथी तो अब भी बाहर घूम रहे।

ओजल:– उतना ही तो वक्त चाहिए। वो 4 लोग जबतक पहुंचेंगे और उन्हें पूरे मामले की जानकारी होगी, तब तक अपना काम हो जायेगा। अपने सुरक्षित चैनल से अपने आकाओं को संपर्क करेंगे, उस से पहले हम इनके सर्वर तक पहुंचकर इनका पूरा सिस्टम हैक कर चुके होंगे...

आर्यमणि:– लेकिन कब...

ओजल और इवान अपने लैपटॉप पर इंटर बटन प्रेस करते.... “अब.. हम दोनो रशिया के इस लोकेशन पर जायेंगे, जहां इनका सर्वर स्टेशन है। इसी जगह के सिस्टम में इनका सिक्योर कम्युनिकेशन चैनल का पूरा सॉफ्टवेयर ऑपरेट होता है। पूरा काम करके डिटेल देते हैं।”

संन्यासी शिवम् के साथ वो दोनो उस लोकेशन तक जाने के लिये तैयार थे। संन्यासी शिवम् दोनो को लेकर अंतर्ध्यान होते, उस से पहले ही आर्यमणि अनंत कीर्ति की किताब संन्यासी शिवम के हाथ में देते.... “इनके सर्वर स्टेशन की पूरी जानकारी इस पुस्तक में होगी। काम समाप्त कर जल्दी लौटिएगा”..

संन्यासी शिवम् ने सहमति जता दिया। चलने से पहले संन्यासी शिवम् आश्रम के अपने सिक्योर सिस्टम यानी अनंत कीर्ति के पुस्तक को ऑपरेट किये और उस जगह की पूरी जानकारी लेने के बाद, दोनो को लेकर अंतर्ध्यान हो गये। तीनो ही मुख्य सर्वर चेंबर में थे जहां कंप्यूटर का भव्य स्वरूप के बड़े–बड़े पुर्जे लगे थे। इवान और अलबेली ने सही पुर्जे को ढूंढकर वहां के लाल, काली, पीली कई तरह के वायर को छील दिया। उसमे अपना बग को लगाने के बाद छोटे से कमांड डिवाइस से बग में जैसे ही कमांड दिया, वहां केवल अंधेरा ही अंधेरा था और उनके (ओजल और इवान) डिवाइस पर लिखा आ रहा था... “सिस्टम रिस्टार्ट इन थ्री मिनट”... चलिए शिवम् सर अपना काम हो गया।

लगभग आधे घंटे में अपना पूरा काम समाप्त कर ये लोग लौट आये और उनके लौटने के एक घंटे बाद सभी शिकारी जयदेव से संपर्क कर रहे थे। जैसे ही उन लोगों ने जयदेव को पूरी बात बताई, जयदेव को उनकी बात पर यकीन नही हुआ। उसने मामले को पूरी छानबीन करने तथा पता लगाने के आदेश दे दिये। साथ ही साथ 21 लाश का ही ब्योरा मिला था, एक गायब शिकारी का भी पता लगाने का आदेश मिला था।”

इधर जयदेव अपने लोगों से बात कर रहा था और उधर उनकी पूरी बात अल्फा पैक सुन रही थी। आर्यमणि खुशी से ओजल और इवान को गले लगाते... “क्या बात है तुम दोनो ने कमल कर दिखाया”....

अलबेली:– बॉस सबासी देने के बहाने अपनी साली से खूब चिपक रहे...

ओजल:– हां तो मेरे इकलौते जीजा और मैं उनकी इकलौती साली... मुझसे न चिपकेंगे तो क्या तुझसे चिपकेंगे, जलकुकरी... वैसे तू चिंता मत कर, इवान से शादी के बाद जब तू भी जीजू के साले की पत्नी बनेगी... क्या कहते है उसे कोई बताएगा..

निशांत:– सलहज...

ओजल:– हां जब तू वही बनेगी सलहज, तब बॉस तुझे भी खुद से चिपकाए रखेंगे...

आर्यमणि, ओजल को आंख दिखाते... “क्या पागलों जैसी बातें कर रही हो। वो मुझे दादा पुकारती है।”

रूही:– अच्छा जब अलबेली बोली तब तो मुंह से कुछ नही निकला, लेकिन जैसे ही ओजल ने अपनी बात कही, तुमने मेरी बहन को आंखें दिखा दिये। देख रही हूं कैसे तुम मेरे सगे संबंधी को अभी से ट्रीट कर रहे...

आर्यमणि:– तुम मजाक कर रही हो न...

रूही, आर्यमणि को धक्का देकर अपने कमरे के ओर निकलती.... “मेरे भाई–बहन को नीचा दिखाने में तुम्हे मजा आता है ना आर्य, भार में जाओ।”

निशांत, आर्यमणि के कंधे पर हाथ डालते.... “तेरे तो पांचों उंगलियां घी में और सर कढ़ाई में है। मजे कर”...

आर्यमणि:– हां मजे तो कर रहा। चलो 2 पेग लगाकर आते है। शिवम् सर तब तक आप क्या उस एलियन जुल के साथ मिलकर ओजल और इवान के नायजो शक्तियों पर काम कर सकते है?

संन्यासी शिवम्:– हां ये मैं कर लूंगा...

आर्यमणि:– आपका आभार... अलबेली तुम तो अकेली रह जाओगी... हमारे साथ आओ..

अलबेली:– नही दादा तुम दोनो जाओ... मैं रूही के पास जाती हूं...

दोनो दोस्त पहुंचे मयखाने। दारू के पेग हाथ में उठाकर शाम का लुफ्त उठाने लगे। यूं तो दोनो कुछ रोज से साथ थे, लेकिन फुरसत से मिले नही थे। आज मिल रहे थे। नई–पुरानी फुरसत की बातें शुरू हो गयी थी। बातों के दौड़ान चित्रा और माधव की याद भी आ गयी। कुछ दिन पहले परिवार से तो बात हो गयी थी, बस दोस्त रह गये थे। आज दोस्तों से बात का लंबा दौड़ चला।

रात के 10 बजे से 2 बजे तक जाम और बातचीत। एक बार फिर माधव सबके निशाने पर था। चित्रा तो पहले ही माधव के बाबूजी की चहेती बनी थी, इसलिए माधव को प्यार से एंकी पुकारे जाने पर उसके बाबूजी ने कोई प्रतिक्रिया ना देते हुये उल्टा वो भी माधव को एंकी कह कर ही पुकारने लगे। बस फिर क्या था, माधव ने पहली बार अपने बाबूजी से सवाल किया.... “बहु ने यह नाम दिया इसलिए हंसकर स्वीकार किये, यही मैने किया होता तब”.... माधव ने मुंह से सवाल पूछा बाबूजी ने थप्पड़ लगाकर जवाब दिया... "तू करता तो यही होता"...

फिर बात दहेज के पैसे जोड़ने पर आ गयी। इस बात पर चित्रा ने तो निशांत और आर्यमणि की खड़े–खड़े क्लास ले ली। वहीं माधव “खी–खी” करते बड़ा सा दांत फाड़े था। बातें चलती रही और ऐसा मेहसूस होने लगा सभी प्रियजन आस–पास ही है। बातें समाप्त कर रात के 3 बजे तक दोनो दोस्त अपने गंतव्य पहुंच चुके थे।

सुबह यूं तो आर्यमणि को उठने की इच्छा नही हो रही थी, लेकिन गुस्साई पत्नी के आगे एक न चली और मजबूरी में उठना ही पड़ा। संन्यासी शिवम् रात को ही जुल से सारी प्रक्रिया को समझे। 2–4 बार शक्ति प्रदर्शन का डेमो भी लिया और जुल को वहीं छोड़, संन्यासी शिवम् दोनो (ओजल और इवान) को लेकर अंतर्ध्यान हो गये। सभी सीधा कैलाश पर्वत मार्ग के मठ में पहुंच गये जहां अगले कुछ दिन तक ओजल और इवान यहीं प्रशिक्षण करते।

इधर रूही ने एलियन की शक्तियों का विवरण कर, उसी हिसाब की नई ट्रेनिंग शुरू करने की बात कही, जिसमे बिजली और आग से कैसे पाया जा सकता था, उसके उपाय पर काम करना था। आग से तो बचने के उपाय थे। बदन के जिस हिस्से में आग लगी हो उसके सतह पर टॉक्सिक को दौड़ाना। बस बिजली से बचने का कोई कारगर उपाय नहीं सूझ रहा था।

सब अलग–अलग मंथन करने के बाद निशांत ने कठिन, किंतु कारगर उपाय का सुझाव दे दिया, जो हर प्रकार के बाहरी हमले का समाधान था। पहले तो निशांत ने आर्यमणि से सुरक्षा मंत्र के प्रयोग न करने के विषय में पूछा। सुरक्षा मंत्र वह मंत्र था, जिसे सिद्ध करने के बाद हवा के मजबूत सुरक्षा घेरे के अंदर शरीर रहता है। जैसा की सतपुरा के जंगलों में संन्यासी शिवम् ने करके दिखाया था।

आर्यमणि का इसपर साफ कहना था कि उसका पैक सुरक्षा मंत्र को सिद्ध नहीं कर सकते, इसलिए वह भी किसी प्रकार के मंत्र का प्रयोग नहीं करता। आर्यमणि का जवाब सुनने के बाद निशांत ने ही सुझाव दिया की शुकेश के घर से चोरी किये हुये अलौकिक पत्थर को पास में रखकर यदि सुरक्षा मंत्र पढ़ा जाये तो वह मंत्र काम करेगा। जैसे की खुद निशांत के साथ हुआ था। बिना इस मंत्र को सिद्ध किये निशांत ने भ्रमित अंगूठी के साथ मंत्र जाप किया, और मंत्र काम कर गयी थी।

सुझाव अच्छा था इसलिए बिना देर किये 2 काले हीरानुमा पत्थर को निकालकर रूही और अलबेली के हाथ में थमाने के बाद, मंत्र का प्रयोग करने कहा गया। दोनो को शुद्ध रूप से पूरा मंत्र उच्चारण करने में काफी समय लगा, किंतु जैसे ही पहली बार उनके मुख से शुद्ध रूप से पूरा मंत्र निकला, दोनो ही सुरक्षा घेरे में थी। फिर क्या था, पूरा दिन रूही और अलबेली सुरक्षा मंत्र को शुद्ध रूप से पढ़ने का अभ्यास करते रहे। यही सूचना संन्यासी शिवम् के पास भी पहुंचा दी गयी। एक पत्थर इवान के पास भी पहुंच चुका था। वहीं ओजल के पास पहले से अलौकिक नागमणि और दंश थी, इसलिए उसे अलग से पत्थर की जरूरत नहीं पड़ी।

एक हफ्ते तक सबका नया अभ्यास चलता रहा। दूसरी तरफ आर्यमणि ने अगले दिन ही उन सभी 8 इंसानी खोजी शिकारी को कैद कर लिया, ताकि अल्फा पैक सुनिश्चित होकर अभ्यास करता रहे। एक बचा था एलियन जुल, उस से थोड़ी सी जानकारी और निकालनी बाकी थी। इसलिए था तो वो आर्यमणि के साथ ही, लेकिन किसी कैदी से कम नही। अल्फा पैक क्या कर रहे है, उसकी भनक तक नहीं वह ले सकता था। अनंत कीर्ति किताब भी अलर्ट मोड पर थी। वह एलियन जुल, अल्फा पैक के ओर देखता भी था, तो आर्यमणि को खबर लग जाती।

हां लेकिन कब तक उस एलियन को भी साथ रखते। जिंदगी के अनुभव ने विश्वास न करना ही सिखाया था। और खासकर उस इंसान पर जिसने खुद की जान बचाने के लिये अपने समुदाय का पूरा राज उगल दिया हो। वैसा इंसान कब मौका देखकर डश ले कह नही सकते। 4 दिन तक साथ रखने के बाद आर्यमणि ने अपना बचा सवाल भी पूछ लिया।

पहला तो पलक को लेकर ही था कि क्यों जब आर्यमणि ने क्ला घुसाया तब पलक के अंदर उस तरह की फीलिंग नही आयी जैसे वह तेजी से हील हो रही हो। जुल ने खुलासा किया की... “18 की व्यस्क उम्र के बाद, हर एलियन को साइंस लैब ले जाया जाता है। वहां वेयरवॉल्फ के खून के साथ कई सारे टॉक्सिक नशों में चढ़ाया जाता है। उसके उपरांत कई तरह के प्रयोग उनके शरीर पर किये जाते है, तब जाकर उन्हें अमर जीवन प्राप्त होता है।”

“लैब में एक बार शरीर को पूर्ण रूप से परिवर्तित करने के बाद किसी भी एलियन के शरीर की कोशिका मनचाहा आकर बदलकर, किसी का भी रूप आसानी से ले सकती थी। हर 5 साल में एक बार मात्र वेयरवोल्फ के खून को नशों में चढ़ाने से सारी कोशिकाएं पुनः जवान हो जाती थी। बिलकुल नई और सुचारू रूप से काम करने वाली कोशिकाएं। जिस वजह से एलियन सदा जवां रहते थे।”

यही रूप बदल का प्रयोग तब काम आता था, जब किसी परिवार के मुखिया को मृत घोषित करना होता था। महानायकों के बूढ़े चेहरे कोई भी एलियन अपना लेते और उन्हें बलि चढ़ा दिया जाता। वहीं उनके महानायक अपना बूढ़ा रूप छोड़कर किसी अन्य प्रहरी परिवार में उनके इंसानी बच्चों का रूप ले लेते और जिनका भी वो रूप बदलते, उन्हें भी मारकर रास्ते से हटा देते है।”

“किसी एलियन ने अपनी कोशिकाओं के आकार को बदलकर जिसका भी रूप लिया हो, उसे पहचानने का साधारण सा रास्ता है, मैक्रोस्कोपिक लेंस। मैक्रोस्कोपिक लेंस से यदि किसी भी एलियन को देखा जाये तो हर क्षण कोशिकाएं बदलते हुये नजर आ जाती है। यह नंगी आंखों से कैप्चर नही हो सकता, लेकिन मैक्रोस्कोप के लेंस से देखने पर असली चेहरा से परिवर्तित चेहरा, और परिवर्तित चेहरा से असली चेहरा बनने की प्रक्रिया को देखा भी जा सकता है, और कैप्चर भी किया जा सकता है।”

पलक के केस में उसने इतना ही बताया की अब तक वह साइंस लैब नही गयी। 2 बार उसपर दवाब भी बना लेकिन उसने जाने से इंकार कर दिया था। अभी वर्तमान समय में उसके शरीर पर एक्सपेरिमेंट हुआ या नहीं यह जुल को पता नही था।

फिर आर्यमणि ने जुल से आखरी सवाल पूछा... “सैकड़ों वर्षों से यहां हो, तुम एलियन की कुल कितनी आबादी पृथ्वी पर बसती है और कहां–कहां?”

जुल, आर्यमणि का सवाल सुन मुस्कुराया और जवाब में कहने लगा... “ठंडी जगह पर ज्यादा बच्चे पैदा नहीं कर सकते, इसलिए ज्यादातर आबादी एशिया और अफ्रीका महाद्वीप के गरम इलाको में बसती है। कुछ वीरान गरम आइलैंड पर हमारी पूरी आबादी बसती है। पृथ्वी की आखरी जनगणना के हिसाब से कुल 6 करोड़ की आबादी है हमारी। अकेला भारत में 1 करोड़ की आबादी है और हर साल 2 करोड़ शिशु हम अन्य ग्रह पर भेजते है, जिस वजह से पृथ्वी पर हमारी आबादी नियंत्रित है।”

आर्यमणि जवाब सुनकर कुछ सोचते हुये.... “पिछले सवाल को आखरी के ठीक पहले का सवाल मानो और ये आखरी सवाल, तो बताओ पृथ्वी की आबादी को कब अनियंत्रित करने का फैसला लिया गया है?”

जुल:– आने वाले 20 वर्षों में अन्य ग्रह पर इतने हाइब्रिड हो जायेंगे की आगे की आबादी आप रूपी बढ़ती रहेगी। उन सब ग्रहों पर एक बार पारिवारिक वर्गीकरण हो जाये, उसके 10 साल बाद के समय तक में पूरे पृथ्वी पर नायजो की हाइब्रिड आबादी बसेगी।

आर्यमणि एलियन जुल से सारी जानकारी निकाल चुका था। बदले में जुल उम्मीद भरी नजरों से देख रहा था कि उसके जानकारी के बदले उसे अब छोड़ दिया जायेगा। किंतु ऐसा हुआ नही। पहले तो आर्यमणि, रूही और अलबेली ने मिलकर उसके शरीर के हर टॉक्सिक, शरीर में बहने वाले वुल्फ ब्लड, सब पूरा का पूरा खींच लिया। तीनो को ही ऐसा मेहसूस हो रहा था जैसे 10 हजार पेड़ के बराबर उसके अंदर टॉक्सिक भरा हुआ था। जुल के शरीर से सारा एक्सपेरिमेंट बाहर निकालने के बाद, जब खंजर को घुसाया गया, तब वह खंजर अंदर गला नही और जुल दर्द से बिलबिला गया। रूही उसका चेहरा देखकर हंसती हुई कहने लगी.... “तुम्हारे शरीर को समझने के बाद हमें पता था कि तुम जैसों को आसान मौत कैसे दे सकते है, लेकिन उसमे मजा नही आता। कैद के दिनो को एंजॉय करना।”

जुल:– मैने तुमसे सारी जानकारी साझा किया। 2 नायजो वेयरवोल्फ के विकृति का कारण भी बताया वरना एक वक्त ऐसा आता की या तो तुम उसे मार देते या वो तुम्हे। फिर भी तुमने मुझे जड़ों में जकड़ा हुआ है।

आर्यमणि:– तुम्हारा एहसान है मुझपर, इसलिए तो मारा नही। सिर्फ कुछ दिन के लिये कैद कर रहा हूं। जल्द ही किसी अच्छी जगह पर छोड़ भी दूंगा।

जुल:– कब और कहां छोड़ने का प्लान बनाए हो। और ये क्ला तुम इनके गले के पीछे क्यों घुसा रहे?

आर्यमणि सभी इंसानी शिकारी के दिमाग से कुछ वक्त पूर्व की याद मिटा चुका था। साथ ही दिमाग ने निशांत से मिलने की घटना को थोड़ा बदल चुका था। 8 इंसानी शिकारी के साथ जुल को एक तहखाने में कैद दिया गया था, जहां सब के सब जड़ों के मजबूत जेल में पूरा कैद थे। उनके पोषण के लिये जड़ों के रेशे ही काम रहे थे। तहखाने में उन्हे जड़ों में अच्छे से लपेटने के अलावा सिक्योरिटी अलर्ट, और निशांत का भ्रम जाल भी फैला था, जो उन सभी कैदियों को जड़ों से छूटने के बाद भी उस जगह पर रहने के लिये विवश कर देते।
Nice update bhai
 

subodh Jain

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Vese update mast tha
Agle ka intjar rahega
 
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Jimmy83

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Puri kahani hi change ho gyi...haste khelte pariwar ko najar lag gyi..sahi kaha he kisi ne ki samay bada balwan hota he
 
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