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Incest Aslam aur Uski Ammi

arushi_dayal

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प्रस्तुत है माँ बेटे के अवैध संबंध पर एक नई कविता। हालाँकि मैं व्यक्तिगत रूप से इस रिश्ते पर कविता लिखने को लेकर बहुत सहज नहीं हूँ, यह एक पाठक के अनुरोध पर लिखा गया है। अपनी ईमानदार समीक्षाएँ दें….

कहानी है उस औरत की सलमा है जिसका नाम

गाँव के सरकारी स्कूल में काम करती हूं मैं काम

पति गुजर गए थे मेरे जब आया था यहां कोरोना

दिल को समझा देती हूं की किस्मत में था ये होना

IMG-9258 IMG-9255
एक बेटा और बेटी थे मेरे महरूम पति की निशानी

लेकिन पचास की उम्र में भी कायम थी मेरी जवानी

शबनम का निकाह पड़वाया था पिछला ही महीने

और बेटा असलम देखता था जो गांव में थी ज़मीने
 

arushi_dayal

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एक दिन गई कमरे में असलम को सुबह उठा ने

गहरी नींद में सोया हुआ था मुँह पर चादर ताने

एक तरफ से चादर उसका खुला हुआ था थोडा

और उसके नीचे से झाँक रहा काला लम्बा लौड़ा

IMG-9293
उसका लौड़ा देख के मुझको सच में हुआ अचम्भा

सोई हुई हालात में उसका अपने अब्बू से था लंबा

कितनी किस्मतवाली होगी जो बनेगी उसकी बेगम

इसके लौड़े के नीचे ही वो तो रहना चाहेगी हरदम

धीरे से बाहर आगई कमरे से मैं बंद करके दरवाजा

असलम मुझको देख चुका है नहीं था मुझे अंदाज़ा

IMG-9236
एक रात काम ख़त्म कर मैं अपने कमरे को निकली

खुली हुई थी असलम के कमरे की खिड़की पिछली

असलम के होले करहाने की आवाज दी मुझे सुनाई

हल्की सी खोल के खिड़की मैंने अंदर आंख लगाई

IMG-9224
कामरे में खड़ा असलम जोर से मसल रहा था लौड़ा

बिस्तर पर पड़ा हुआ था मेरी मेरी ब्रा पैंटी का जोड़ा

हाय अम्मी कब तक मुझको तुम ऐसे ही तड़पयोगी

नंगी होकर अम्मी कब तुममेरे लौड़े के नीचे आओगी

ये ब्रा पैंटी सूंघ सूंघ के अपना कब तक लन हिलाउ

कब दिन आएगा जब नंगा कर तुझ पर मैं चढ़ जाऊं

IMG-9276 IMG-9278
कुछ देर बाद असलम ने कर दिए अपने टट्टे खाली

अपनी साड़ी मलाई असलम ने मेरी ही पैंटी पे डाली

कमरे मेंआकर सो गई मैं पर लेकिन वो मंज़र ना भूले

असलम का वो कालालौड़ा मेरी आँखों के आगे झूले

IMG-9279 IMG-9265
सुबह उठी जब बिस्तर से तो कुछ मन में आया ख्याल

कपड़ो से ढूंढ के पैंटी लगी सुंघने मैं असलम का माल

ना जाने की कब असलम अपने कमरे से बाहर आया

और ऐसा करता देख के मुझ को वो धीरे से मुस्काया

शर्म के मारे मैं कांप रही थी उससे आंख मिलाऊं कैसे

ना जाने असलम क्या सोचेगा वो देख के मुझको ऐसे

IMG-9262

IMG-9225
भाग गई कमरे में अब की वहां खड़ा रहा ना जाएगा

ये नहीं पता कि वो पीछे मेरे मेरे कमरे में आ जाएगा

मेरे पीछे ही खड़ा हुआ था लंड गांड से जोड़ कमीना

इतनी सर्दी के मौसम में भी माथे पर आ गया पसीना

IMG-9272
कुछ ऐसा वैसा ना कर असलम बेटा मैं औरत हूं पाक

किसी को भनक भी लगगई तो कट जाएगी मेरी नाक

अम्मी काहे को डरती हो तुम दुनिया वालो से ज्यादा

तुम पे कोई भी आंच ना आने दूंगा मैं करता हूं ये वादा

इतना कह असलम ने खोल दी मेरी सलवार को डोरी

अपने बेटे की बाहों में मैं हो गई शर्म से हो गयी दोहरी

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RAJ_K_RAVI

IT'S NOT JUST A NAME, IT'S A BRAND™🎃🎃
Supreme
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एक दिन गई कमरे में असलम को सुबह उठा ने

गहरी नींद में सोया हुआ था मुँह पर चादर ताने

एक तरफ से चादर उसका खुला हुआ था थोडा

और उसके नीचे से झाँक रहा काला लम्बा लौड़ा

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उसका लौड़ा देख के मुझको सच में हुआ अचम्भा

सोई हुई हालात में उसका अपने अब्बू से था लंबा

कितनी किस्मतवाली होगी जो बनेगी उसकी बेगम

इसके लौड़े के नीचे ही वो तो रहना चाहेगी हरदम

धीरे से बाहर आगई कमरे से मैं बंद करके दरवाजा

असलम मुझको देख चुका है नहीं था मुझे अंदाज़ा

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एक रात काम ख़त्म कर मैं अपने कमरे को निकली

खुली हुई थी असलम के कमरे की खिड़की पिछली

असलम के होले करहाने की आवाज दी मुझे सुनाई

हल्की सी खोल के खिड़की मैंने अंदर आंख लगाई

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कामरे में खड़ा असलम जोर से मसल रहा था लौड़ा

बिस्तर पर पड़ा हुआ था मेरी मेरी ब्रा पैंटी का जोड़ा

हाय अम्मी कब तक मुझको तुम ऐसे ही तड़पयोगी

नंगी होकर अम्मी कब तुममेरे लौड़े के नीचे आओगी

ये ब्रा पैंटी सूंघ सूंघ के अपना कब तक लन हिलाउ

कब दिन आएगा जब नंगा कर तुझ पर मैं चढ़ जाऊं

IMG-9276 IMG-9278
कुछ देर बाद असलम ने कर दिए अपने टट्टे खाली

अपनी साड़ी मलाई असलम ने मेरी ही पैंटी पे डाली

कमरे मेंआकर सो गई मैं पर लेकिन वो मंज़र ना भूले

असलम का वो कालालौड़ा मेरी आँखों के आगे झूले

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सुबह उठी जब बिस्तर से तो कुछ मन में आया ख्याल

कपड़ो से ढूंढ के पैंटी लगी सुंघने मैं असलम का माल

ना जाने की कब असलम अपने कमरे से बाहर आया

और ऐसा करता देख के मुझ को वो धीरे से मुस्काया

शर्म के मारे मैं कांप रही थी उससे आंख मिलाऊं कैसे

ना जाने असलम क्या सोचेगा वो देख के मुझको ऐसे

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भाग गई कमरे में अब की वहां खड़ा रहा ना जाएगा

ये नहीं पता कि वो पीछे मेरे मेरे कमरे में आ जाएगा

मेरे पीछे ही खड़ा हुआ था लंड गांड से जोड़ कमीना

इतनी सर्दी के मौसम में भी माथे पर आ गया पसीना

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कुछ ऐसा वैसा ना कर असलम बेटा मैं औरत हूं पाक

किसी को भनक भी लगगई तो कट जाएगी मेरी नाक

अम्मी काहे को डरती हो तुम दुनिया वालो से ज्यादा

तुम पे कोई भी आंच ना आने दूंगा मैं करता हूं ये वादा

इतना कह असलम ने खोल दी मेरी सलवार को डोरी

अपने बेटे की बाहों में मैं हो गई शर्म से हो गयी दोहरी

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Great beginning. Your writing style is appealing and captivating. It's a pleasure to read, with a hint of sensuality.

💐💐💐Best wishes for your new story.💐💐💐
 
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kingkhankar

Multiverse is real!
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Erotic Poem. Nicely written.
 

arushi_dayal

Active Member
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Final part
ऐसे जो इतने सालों से तड़प रही थी मैं भी लंड के बिन

शायद रिश्तों पर हावी हो गई अंदर की वासना उस दिन

मुझे शर्म आ रही है असलम बेटा बस इतना ही मैं बोली

मेरे कंधों से निकाल फैंक दी जब असलम ने मेरी चोली

IMG-9292

IMG-9287
एक हाथ से पकड़ के चूची को लगा था असलम खेलने

दूजा हाथ से मेरी गिल्ली फुद्दी में लगा था उंगली पेलने

शायद उस पल मुझ पर हावी हो गई मेरे अंदर की गर्मी

उसकी बाहों में लगी बहक ने और बातों में आ गई नरमी


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IMG-9300
मुझको तोकर दिया है नंगा और तू खुद के है कपड़े पहने

धोती के ऊपर से ही पकड़ लिया था उसका भी लौड़ा मैंने

चुम बदन का हर कोना असलम अपना हक लगा जगाने

उसकी ये बदमाशी देख मुझे भी मजा लगा था अब आने

IMG-9308

IMG-9297
बैठ के मेरी टैंगो के बीच में असलम ने कच्छी मेरी हटा दी

मेरी बरसो से तड़पती चूत पे अपनी लंबी जीभ चला दी

अपने होठों में ले लगा चुसने मेरी फुद्दी का फडकता दाना

जवान मर्द का नशा अलग ही होता है मैंने आज ये माना

IMG-9296

IMG-9280
बिस्तर पर अब तू ले जा असलम और मेरी प्यास बुझा दे

जिस छेद से तू आया था बाहर अब उसमें ये लन घुसा दे

मुझे उठा बाहों में असलम ने बिस्तर पर मेरे मुझे बिठाया

खोलके अपनी धोती को मेरे होठों पर अपना लड लगाया

IMG-9284

IMG-9286
अम्मी जान एक ख्वाहिश है मेरी अगर बात तू मेरी रख ले

एक बार तू मेरा लन लेके मूंह में स्वाद तो इसका चाख ले

पकड़ असलम का मोटा लौड़ा मैंने सुपाड़े पर जीभ चलाई

अपने मुंह में लेकर उसका काला लौड़ा करने लगी चुसाई

IMG-9239
गर्मी सर चढ़ के बोल रही थी और मेरी चूत लगी अब बहने

असलम अब जल्दी से मुझे ठंडा कर लगो मैं उसको कहने

इतने सालो से दबी पड़ी थी तूने फिर वो प्यास जगा दी है

हाय असलम सच्ची तेरे लौड़े ने मेरी चूत में आग लगा दी है

IMG-9299

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खोल के मेरी मांसलजांघें असलम ने घुटनो से उसको मोड़ा

पहले धक्के में असलम ने मेरी चूत के अंदर करदिया लौड़ा

पहली ही चोट पर असलम के लौड़े की ज़ोर से मैं चिल्लाई

जैसी किसी नयी दुल्हन की सुहागरात हो यह पहली ठुकाई

IMG-9285

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बंद पड़ चुके थे जो इतने सालों से वो खुल गए सब दरवाजे

लन की चोट पे मुँह से फूट रही थी आह. उफ़ .की आवाजे

सुबह सवेरे जो शुरू हुई थी वो शाम तक चलती रही चुदाई

उस दिन तो घर के हर कोने में असलम ने मेरी करी ठुकाई

कल तक जो खेला मेरी गोद में अब मैं उसकी गोद में खेली

कुछ दिनों में मुझे बना घोड़ी असलम ने गांड भी मेरी ले ली

IMG-9281

IMG-9263
खुल के चुदाई का खेल खेलते घर में हम दोनो रोज़ाना

एक बार तो मुझको असलम का बच्चा भी पड़ा गिराना

ऐसी गलती फिर ना हो जाए हमसे मैं असलम से बोली

इसिलिये तो अब रोज़ सुबह उठते ही खा लेती हू गोली

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vakharia

Supreme
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Final part
ऐसे जो इतने सालों से तड़प रही थी मैं भी लंड के बिन

शायद रिश्तों पर हावी हो गई अंदर की वासना उस दिन

मुझे शर्म आ रही है असलम बेटा बस इतना ही मैं बोली

मेरे कंधों से निकाल फैंक दी जब असलम ने मेरी चोली

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एक हाथ से पकड़ के चूची को लगा था असलम खेलने

दूजा हाथ से मेरी गिल्ली फुद्दी में लगा था उंगली पेलने

शायद उस पल मुझ पर हावी हो गई मेरे अंदर की गर्मी

उसकी बाहों में लगी बहक ने और बातों में आ गई नरमी


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मुझको तोकर दिया है नंगा और तू खुद के है कपड़े पहने

धोती के ऊपर से ही पकड़ लिया था उसका भी लौड़ा मैंने

चुम बदन का हर कोना असलम अपना हक लगा जगाने

उसकी ये बदमाशी देख मुझे भी मजा लगा था अब आने

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बैठ के मेरी टैंगो के बीच में असलम ने कच्छी मेरी हटा दी

मेरी बरसो से तड़पती चूत पे अपनी लंबी जीभ चला दी

अपने होठों में ले लगा चुसने मेरी फुद्दी का फडकता दाना

जवान मर्द का नशा अलग ही होता है मैंने आज ये माना

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बिस्तर पर अब तू ले जा असलम और मेरी प्यास बुझा दे

जिस छेद से तू आया था बाहर अब उसमें ये लन घुसा दे

मुझे उठा बाहों में असलम ने बिस्तर पर मेरे मुझे बिठाया

खोलके अपनी धोती को मेरे होठों पर अपना लड लगाया

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अम्मी जान एक ख्वाहिश है मेरी अगर बात तू मेरी रख ले

एक बार तू मेरा लन लेके मूंह में स्वाद तो इसका चाख ले

पकड़ असलम का मोटा लौड़ा मैंने सुपाड़े पर जीभ चलाई

अपने मुंह में लेकर उसका काला लौड़ा करने लगी चुसाई

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गर्मी सर चढ़ के बोल रही थी और मेरी चूत लगी अब बहने

असलम अब जल्दी से मुझे ठंडा कर लगो मैं उसको कहने

इतने सालो से दबी पड़ी थी तूने फिर वो प्यास जगा दी है

हाय असलम सच्ची तेरे लौड़े ने मेरी चूत में आग लगा दी है

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खोल के मेरी मांसलजांघें असलम ने घुटनो से उसको मोड़ा

पहले धक्के में असलम ने मेरी चूत के अंदर करदिया लौड़ा

पहली ही चोट पर असलम के लौड़े की ज़ोर से मैं चिल्लाई

जैसी किसी नयी दुल्हन की सुहागरात हो यह पहली ठुकाई

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बंद पड़ चुके थे जो इतने सालों से वो खुल गए सब दरवाजे

लन की चोट पे मुँह से फूट रही थी आह. उफ़ .की आवाजे

सुबह सवेरे जो शुरू हुई थी वो शाम तक चलती रही चुदाई

उस दिन तो घर के हर कोने में असलम ने मेरी करी ठुकाई

कल तक जो खेला मेरी गोद में अब मैं उसकी गोद में खेली

कुछ दिनों में मुझे बना घोड़ी असलम ने गांड भी मेरी ले ली

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खुल के चुदाई का खेल खेलते घर में हम दोनो रोज़ाना

एक बार तो मुझको असलम का बच्चा भी पड़ा गिराना

ऐसी गलती फिर ना हो जाए हमसे मैं असलम से बोली

इसिलिये तो अब रोज़ सुबह उठते ही खा लेती हू गोली

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One more masterpiece, from the one and only arushi_dayal

Words, merely would not be enough to shower enough praises for this, one of its kind poetry-in-prose. Could not say anything more that I haven't said before but the truly eye-catching feature is that the rhyming never seems imposed. It feels so natural and effort-less. It's rare to see rhyme used in a way that never feels forced or imposed, but you manage to do that beautifully—each line flows with such ease, as though it were meant to be exactly that way. A very difficult feat to do.. The rhythm and cadence of your work create a perfect harmony, allowing the words to breathe and resonate without any awkwardness. It's a true gift to write in this way, and I find your poems a pleasure to read again and again....
💖✍️💗✍️💞💖✍️💗✍️💞💖✍️💗✍️💞💖✍️💗✍️💞💖✍️💗✍️💞💖✍️💗✍️
 

komaalrani

Well-Known Member
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प्रस्तुत है माँ बेटे के अवैध संबंध पर एक नई कविता। हालाँकि मैं व्यक्तिगत रूप से इस रिश्ते पर कविता लिखने को लेकर बहुत सहज नहीं हूँ, यह एक पाठक के अनुरोध पर लिखा गया है। अपनी ईमानदार समीक्षाएँ दें….

कहानी है उस औरत की सलमा है जिसका नाम

गाँव के सरकारी स्कूल में काम करती हूं मैं काम

पति गुजर गए थे मेरे जब आया था यहां कोरोना

दिल को समझा देती हूं की किस्मत में था ये होना

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एक बेटा और बेटी थे मेरे महरूम पति की निशानी

लेकिन पचास की उम्र में भी कायम थी मेरी जवानी

शबनम का निकाह पड़वाया था पिछला ही महीने

और बेटा असलम देखता था जो गांव में थी ज़मीने
बहुत ही बढ़िया

आज ही पढ़ना शुरू किया चित्र और शब्द दोनों का अद्भुत संगम है और बात आपकी सही है, कई बार जिन रिश्तों में हम असहज भी होते हैं मित्र पाठकों की मांग मान के उस पर भी कलम चलानी पड़ती है और कहानी तो कहानी है

लेकिन इन्सेस्ट के सारे रंग आपकी कहानियो में बिखरते हैं और उनसे प्रभावित हो के मेरी भी कुछ कहानियों में उसका असर दिखने लगता है

एक बार फिर से इस अद्भुत रचना के लिए बधाई
 
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