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Incest Aslam aur Uski Ammi

komaalrani

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एक दिन गई कमरे में असलम को सुबह उठा ने

गहरी नींद में सोया हुआ था मुँह पर चादर ताने

एक तरफ से चादर उसका खुला हुआ था थोडा

और उसके नीचे से झाँक रहा काला लम्बा लौड़ा

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उसका लौड़ा देख के मुझको सच में हुआ अचम्भा

सोई हुई हालात में उसका अपने अब्बू से था लंबा

कितनी किस्मतवाली होगी जो बनेगी उसकी बेगम

इसके लौड़े के नीचे ही वो तो रहना चाहेगी हरदम

धीरे से बाहर आगई कमरे से मैं बंद करके दरवाजा

असलम मुझको देख चुका है नहीं था मुझे अंदाज़ा

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एक रात काम ख़त्म कर मैं अपने कमरे को निकली

खुली हुई थी असलम के कमरे की खिड़की पिछली

असलम के होले करहाने की आवाज दी मुझे सुनाई

हल्की सी खोल के खिड़की मैंने अंदर आंख लगाई

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कामरे में खड़ा असलम जोर से मसल रहा था लौड़ा

बिस्तर पर पड़ा हुआ था मेरी मेरी ब्रा पैंटी का जोड़ा

हाय अम्मी कब तक मुझको तुम ऐसे ही तड़पयोगी

नंगी होकर अम्मी कब तुममेरे लौड़े के नीचे आओगी

ये ब्रा पैंटी सूंघ सूंघ के अपना कब तक लन हिलाउ

कब दिन आएगा जब नंगा कर तुझ पर मैं चढ़ जाऊं

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कुछ देर बाद असलम ने कर दिए अपने टट्टे खाली

अपनी साड़ी मलाई असलम ने मेरी ही पैंटी पे डाली

कमरे मेंआकर सो गई मैं पर लेकिन वो मंज़र ना भूले

असलम का वो कालालौड़ा मेरी आँखों के आगे झूले

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सुबह उठी जब बिस्तर से तो कुछ मन में आया ख्याल

कपड़ो से ढूंढ के पैंटी लगी सुंघने मैं असलम का माल

ना जाने की कब असलम अपने कमरे से बाहर आया

और ऐसा करता देख के मुझ को वो धीरे से मुस्काया

शर्म के मारे मैं कांप रही थी उससे आंख मिलाऊं कैसे

ना जाने असलम क्या सोचेगा वो देख के मुझको ऐसे

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भाग गई कमरे में अब की वहां खड़ा रहा ना जाएगा

ये नहीं पता कि वो पीछे मेरे मेरे कमरे में आ जाएगा

मेरे पीछे ही खड़ा हुआ था लंड गांड से जोड़ कमीना

इतनी सर्दी के मौसम में भी माथे पर आ गया पसीना

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कुछ ऐसा वैसा ना कर असलम बेटा मैं औरत हूं पाक

किसी को भनक भी लगगई तो कट जाएगी मेरी नाक

अम्मी काहे को डरती हो तुम दुनिया वालो से ज्यादा

तुम पे कोई भी आंच ना आने दूंगा मैं करता हूं ये वादा

इतना कह असलम ने खोल दी मेरी सलवार को डोरी

अपने बेटे की बाहों में मैं हो गई शर्म से हो गयी दोहरी

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आपकी इस कहानी की गति भी तीव्र है लेकिन एकदम असहज नहीं लग रहा। और चित्र तो एकदम मौके के अनुसार, कितना वक्त लगता होगा उन्हें ढूंढने में, समझ में नहीं आता, चित्र देख के कहानी है या कहानी पे चित्र
 

komaalrani

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Final part
ऐसे जो इतने सालों से तड़प रही थी मैं भी लंड के बिन

शायद रिश्तों पर हावी हो गई अंदर की वासना उस दिन

मुझे शर्म आ रही है असलम बेटा बस इतना ही मैं बोली

मेरे कंधों से निकाल फैंक दी जब असलम ने मेरी चोली

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एक हाथ से पकड़ के चूची को लगा था असलम खेलने

दूजा हाथ से मेरी गिल्ली फुद्दी में लगा था उंगली पेलने

शायद उस पल मुझ पर हावी हो गई मेरे अंदर की गर्मी

उसकी बाहों में लगी बहक ने और बातों में आ गई नरमी


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मुझको तोकर दिया है नंगा और तू खुद के है कपड़े पहने

धोती के ऊपर से ही पकड़ लिया था उसका भी लौड़ा मैंने

चुम बदन का हर कोना असलम अपना हक लगा जगाने

उसकी ये बदमाशी देख मुझे भी मजा लगा था अब आने

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बैठ के मेरी टैंगो के बीच में असलम ने कच्छी मेरी हटा दी

मेरी बरसो से तड़पती चूत पे अपनी लंबी जीभ चला दी

अपने होठों में ले लगा चुसने मेरी फुद्दी का फडकता दाना

जवान मर्द का नशा अलग ही होता है मैंने आज ये माना

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बिस्तर पर अब तू ले जा असलम और मेरी प्यास बुझा दे

जिस छेद से तू आया था बाहर अब उसमें ये लन घुसा दे

मुझे उठा बाहों में असलम ने बिस्तर पर मेरे मुझे बिठाया

खोलके अपनी धोती को मेरे होठों पर अपना लड लगाया

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अम्मी जान एक ख्वाहिश है मेरी अगर बात तू मेरी रख ले

एक बार तू मेरा लन लेके मूंह में स्वाद तो इसका चाख ले

पकड़ असलम का मोटा लौड़ा मैंने सुपाड़े पर जीभ चलाई

अपने मुंह में लेकर उसका काला लौड़ा करने लगी चुसाई

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गर्मी सर चढ़ के बोल रही थी और मेरी चूत लगी अब बहने

असलम अब जल्दी से मुझे ठंडा कर लगो मैं उसको कहने

इतने सालो से दबी पड़ी थी तूने फिर वो प्यास जगा दी है

हाय असलम सच्ची तेरे लौड़े ने मेरी चूत में आग लगा दी है

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खोल के मेरी मांसलजांघें असलम ने घुटनो से उसको मोड़ा

पहले धक्के में असलम ने मेरी चूत के अंदर करदिया लौड़ा

पहली ही चोट पर असलम के लौड़े की ज़ोर से मैं चिल्लाई

जैसी किसी नयी दुल्हन की सुहागरात हो यह पहली ठुकाई

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बंद पड़ चुके थे जो इतने सालों से वो खुल गए सब दरवाजे

लन की चोट पे मुँह से फूट रही थी आह. उफ़ .की आवाजे

सुबह सवेरे जो शुरू हुई थी वो शाम तक चलती रही चुदाई

उस दिन तो घर के हर कोने में असलम ने मेरी करी ठुकाई

कल तक जो खेला मेरी गोद में अब मैं उसकी गोद में खेली

कुछ दिनों में मुझे बना घोड़ी असलम ने गांड भी मेरी ले ली

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खुल के चुदाई का खेल खेलते घर में हम दोनो रोज़ाना

एक बार तो मुझको असलम का बच्चा भी पड़ा गिराना

ऐसी गलती फिर ना हो जाए हमसे मैं असलम से बोली

इसिलिये तो अब रोज़ सुबह उठते ही खा लेती हू गोली

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उस दिन तो घर के हर कोने में असलम ने मेरी करी ठुकाई

कल तक जो खेला मेरी गोद में अब मैं उसकी गोद में खेली


ऐसी लाइनें ही आपको बाकी लेखकों से एकदम अलग कर देती हैं
 
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arushi_dayal

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बहुत ही बढ़िया

आज ही पढ़ना शुरू किया चित्र और शब्द दोनों का अद्भुत संगम है और बात आपकी सही है, कई बार जिन रिश्तों में हम असहज भी होते हैं मित्र पाठकों की मांग मान के उस पर भी कलम चलानी पड़ती है और कहानी तो कहानी है

लेकिन इन्सेस्ट के सारे रंग आपकी कहानियो में बिखरते हैं और उनसे प्रभावित हो के मेरी भी कुछ कहानियों में उसका असर दिखने लगता है

एक बार फिर से इस अद्भुत रचना के लिए बधाई
Thanks komal ji. Your comments and appreciation was being missed and today i feel this poem has achieved its purpose
 

rhyme_boy

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Final part
ऐसे जो इतने सालों से तड़प रही थी मैं भी लंड के बिन

शायद रिश्तों पर हावी हो गई अंदर की वासना उस दिन

मुझे शर्म आ रही है असलम बेटा बस इतना ही मैं बोली

मेरे कंधों से निकाल फैंक दी जब असलम ने मेरी चोली

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एक हाथ से पकड़ के चूची को लगा था असलम खेलने

दूजा हाथ से मेरी गिल्ली फुद्दी में लगा था उंगली पेलने

शायद उस पल मुझ पर हावी हो गई मेरे अंदर की गर्मी

उसकी बाहों में लगी बहक ने और बातों में आ गई नरमी


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मुझको तोकर दिया है नंगा और तू खुद के है कपड़े पहने

धोती के ऊपर से ही पकड़ लिया था उसका भी लौड़ा मैंने

चुम बदन का हर कोना असलम अपना हक लगा जगाने

उसकी ये बदमाशी देख मुझे भी मजा लगा था अब आने

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बैठ के मेरी टैंगो के बीच में असलम ने कच्छी मेरी हटा दी

मेरी बरसो से तड़पती चूत पे अपनी लंबी जीभ चला दी

अपने होठों में ले लगा चुसने मेरी फुद्दी का फडकता दाना

जवान मर्द का नशा अलग ही होता है मैंने आज ये माना

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बिस्तर पर अब तू ले जा असलम और मेरी प्यास बुझा दे

जिस छेद से तू आया था बाहर अब उसमें ये लन घुसा दे

मुझे उठा बाहों में असलम ने बिस्तर पर मेरे मुझे बिठाया

खोलके अपनी धोती को मेरे होठों पर अपना लड लगाया

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अम्मी जान एक ख्वाहिश है मेरी अगर बात तू मेरी रख ले

एक बार तू मेरा लन लेके मूंह में स्वाद तो इसका चाख ले

पकड़ असलम का मोटा लौड़ा मैंने सुपाड़े पर जीभ चलाई

अपने मुंह में लेकर उसका काला लौड़ा करने लगी चुसाई

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गर्मी सर चढ़ के बोल रही थी और मेरी चूत लगी अब बहने

असलम अब जल्दी से मुझे ठंडा कर लगो मैं उसको कहने

इतने सालो से दबी पड़ी थी तूने फिर वो प्यास जगा दी है

हाय असलम सच्ची तेरे लौड़े ने मेरी चूत में आग लगा दी है

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खोल के मेरी मांसलजांघें असलम ने घुटनो से उसको मोड़ा

पहले धक्के में असलम ने मेरी चूत के अंदर करदिया लौड़ा

पहली ही चोट पर असलम के लौड़े की ज़ोर से मैं चिल्लाई

जैसी किसी नयी दुल्हन की सुहागरात हो यह पहली ठुकाई

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बंद पड़ चुके थे जो इतने सालों से वो खुल गए सब दरवाजे

लन की चोट पे मुँह से फूट रही थी आह. उफ़ .की आवाजे

सुबह सवेरे जो शुरू हुई थी वो शाम तक चलती रही चुदाई

उस दिन तो घर के हर कोने में असलम ने मेरी करी ठुकाई

कल तक जो खेला मेरी गोद में अब मैं उसकी गोद में खेली

कुछ दिनों में मुझे बना घोड़ी असलम ने गांड भी मेरी ले ली

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खुल के चुदाई का खेल खेलते घर में हम दोनो रोज़ाना

एक बार तो मुझको असलम का बच्चा भी पड़ा गिराना

ऐसी गलती फिर ना हो जाए हमसे मैं असलम से बोली

इसिलिये तो अब रोज़ सुबह उठते ही खा लेती हू गोली

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Simply amazing final part... finally Aslam aur uski ammi dono ko tripti mili apni jism ki aag se..
 

arushi_dayal

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आपकी इस कहानी की गति भी तीव्र है लेकिन एकदम असहज नहीं लग रहा। और चित्र तो एकदम मौके के अनुसार, कितना वक्त लगता होगा उन्हें ढूंढने में, समझ में नहीं आता, चित्र देख के कहानी है या कहानी पे चित्र
जी हां कोमल जी. मैंने जानबूझकर इसकी गति तेज़ रखी है जैसा कि मैंने पहले कहा था कि मैं इस रिश्ते पर लिखने में सहज नहीं हूं। इसलिए मैं अधिक स्पष्ट विवरण नहीं जोड़ना चाहता थी। आशा है कि मेरे पाठक इसे समझेंगे और मेरा सहयोग करेंगे
सच कहा आपने। मैं तस्वीरें ढूंढने में काफी समय बिताती हूं. कई बार मैं अपना गद्य एक या दो दिन में ख़त्म कर लेती हूँ लेकिन उपयुक्त तस्वीरें ढूंढने में काफ़ी समय लग जाता है
 
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