• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Basant

komaalrani

Well-Known Member
22,071
57,068
259
Aaj update aayega kisi story par?
is thead men to main koshish karungi basnat ki aur basnat ke saathi, kaamdev ki charcha , HOLI thak chaalne ki,... stories main regular udpate deti rhungi
 
  • Like
Reactions: shivangi pachauri

komaalrani

Well-Known Member
22,071
57,068
259
बसंत और कामदेव दोनों मिंत्र हैं और एक के बिना दुसरे की कल्पना भी नहीं कर सकते और कामदेव के तीरों से कौन बचा है, और वो पंच शर , पांच पुष्प है , इसलिए कामदेव को पुष्पधन्वा भी कहते हैं ,

कल मैंने उन पांच पुष्पों में से एक की की चर्चा की थी , आम्र मंजरी,

amra-manjari.jpg


पांच पुष्प है जो कामदेव के शर हैं,

अरविन्द, अशोक, आम्र मंजरी, नीलोतपल्ल और नव मल्लिका, और पुष्पों के बिना बसंत की भी कल्पना नहीं कर सकते,

तो आज की पोस्ट होगी , अशोक के फूल,

और साथ में के चित्र कामदेव का मधुबनी शैली की पेंटिंग में,... यह फोरम ही काम की भावना से जुड़ा है,... और बसंत हो , फगुनाहट शुरू हो रही हो और कामदेव और उनके तीरों की चर्चा न हो, हम स्टोरी सेक्शन खोले या चित्र , उन्ही के तो तीर चलते रहते हैं , और यह थ्रेड मेरी सखि, अनुजा का है इसलिए अधिकार पूर्वक मैं यहाँ आती जाती हूँ जब चाहती हूँ बैठ जाती हूँ, तो बस मन्मथ का दूसरा तीर थोड़ी देर में ,
 
Last edited:
  • Love
Reactions: Rajizexy

komaalrani

Well-Known Member
22,071
57,068
259
ashok-1-download.jpg



अशोक के फूल , कामदेव के शर,... अशोक के फूल ये निबंध डा. हजारीप्रसाद द्विवेदी का प्रसिद्ध निबंध है और उसके कुछ अंश मैं प्रस्तुत कर रही हूँ,... बसंत के उपलक्ष्य में और कामदेव के चरणों में , सब पाठक पाठिकाओं का मंगल करे , कामना पूर्ती करें , इस कामना के साथ
 

komaalrani

Well-Known Member
22,071
57,068
259
अशोक को जो सम्मान कालिदास से मिला वह अपूर्व था।


Ashok-943c72661391008105a8495336e0a26c.jpg


सुंदरियों के आसिंजनकारी नूपुरवाले चरणों के मृदु आघात से वह फूलता था, कोमल कपोलों पर कर्णावतंस के रूप में झूलता था और चंचल नील अलकों की अचंचल शोभा को सौ गुना बढ़ा देता था। अशोक किसी कुशल अभिनेता के समान झम से रंगमंच पर आता है और दर्शकों को अभिभूत करके खप से निकल जाता है। क्यों ऐसा हुआ? कंदर्प देवता के अन्य बाणों की कदर तो आज भी कवियों की दुनिया में ज्यों-की-त्यों हैं। अरविंद को किसने भुलाया, आम कहाँ छोड़ा गया और नीलोत्पल की माया को कौन काट सका?

नवमल्लिका की अवश्य ही अब विशेष पूछ नहीं है; किंतु उसकी इससे अधिक कदर कभी थी भी नहीं। भुलाया गया है अशोक। मेरा मन उमड़-घुमड़कर भारतीय रस-साधना के पिछले हज़ारों वर्षों पर बरस जाना चाहता है। क्या यह मनोहर पुष्प भुलाने की चीज़ थी? सहृदयता क्या लुप्त हो गई थी? कविता क्या सो गई थी? ना, मेरा मन यह सब मानने को तैयार नहीं है। जले पर नमक तो यह है कि एक तरंगायित पत्रवाले निफूले पेड़ को सारे उत्तर भारत में ‘अशोक’ कहा जाने लगा। याद भी किया तो अपमान करके।

लेकिन मेरे मानने-न-मानने से होता क्या है? ईस्वी सन् के आरंभ के आस-पास अशोक का शानदार पुष्प भारतीय धर्म, साहित्य और शिल्प में अद्भुत महिमा के साथ आया था। उसी समय शताब्दियों के परिचित यक्षों और गंधर्वों ने भारतीय धर्म-साधना को एकदम नवीन रूप में बदल दिया था। पंडितों ने शायद ठीक ही सुझाया है कि ‘गंधर्व’ और ‘कंदर्प’ वस्तुत: एक ही शब्द के भिन्न-भिन्न उच्चारण हैं। कंदर्प देवता ने यदि अशोक को चुना है तो यह निश्चित रूप से एक आर्येतर सभ्यता की देन है। इन आर्येतर जातियों के उपास्य वरुण थे, कुबेर थे, वज्रपाणि यक्षपति थे। कंदर्प यद्यपि कामदेवता का नाम हो गया है, तथापि है वह गंधर्व का ही पर्याय।

रवींद्रनाथ ने इस भारतवर्ष को ‘महामानव समुद्र’ कहा है। विचित्र देश है यह! असुर आए, आर्य आए, शक आए, हूण आए, नाग आए, यक्ष आए, गंधर्व आए – न जाने कितनी मानव जातियाँ यहाँ आईं और आज के भारतवर्ष के बनाने में अपना हाथ लगा गईं। जिसे हमें हिंदू रीति-नीति कहते हैं, वह अनेक आर्य और आर्येतर उपादानों का अद्भुत मिश्रण है। एक-एक पशु, एक-एक पक्षी न जाने कितनी स्मृतियों का भार लेकर हमारे सामने उपस्थित है।

अशोक की भी अपनी स्मृति परंपरा है। आम की भी है, बकुल की है, चंपे की भी है। न जाने किस बुरे मुहूर्त में मनोजन्मा देवता ने शिव पर बाण फेंका था? शरीर जलकर राख हो गया और ‘वामन-पुराण’ (षष्ठ अध्याय) की गवाही पर हमें मालूम है कि उनका रत्नमय धनुष टूटकर खंड-खंड हो धरती पर गिर गया। जहाँ मूठ थी, वह स्थान रुक्म-मणि से बना था, वह टूटकर धरती पर गिरा और चंपे का फूल बन गया! हीरे का बना हुआ जो नाह-स्थान था, वह टूटकर गिरा और मौलसिरी के मनोहर पुष्पों में बदल गया! अच्छा ही हुआ। इंद्रनील मणियों का बना हुआ कोटि देश भी टूट गया और सुंदर पाटल पुष्पों में परिवर्तित हो गया। यह भी बुरा नहीं हुआ। लेकिन सबसे सुंदर बात यह हुई कि चंद्रकांत-मणियों का बना हुआ मध्य देश टूटकर चमेली बन गया और विद्रुम की बनी निम्नतर कोटि बेला बन गई, स्वर्ग को जीतनेवाला कठोर धनुष, जो धरती पर गिरा तो कोमल फूलों में बदल गया! स्वर्गीय वस्तुएँ धरती से मिले बिना मनोहर नहीं होतीं!

परंतु मैं दूसरी बात सोच रहा हूँ। इस कथा का रहस्य क्या है? यह क्या पुराणकार की सुकुमार कल्पना है या सचमुच ये फूल भारतीय संसार में गंधर्वों की देन हैं? एक निश्चित काल के पूर्व इन फूलों की चर्चा हमारे साहित्य में मिलती भी नहीं! सोम तो निश्चित रूप से गंधर्वों से खरीदा जाता था। ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञ की विधि में यह विधान सुरक्षित रह गया है। ये फूल भी क्या उन्हीं से मिले?
 
Last edited:
  • Love
Reactions: Rajizexy

Rajizexy

Punjabi Doc Rajiii
Supreme
46,359
48,102
304
Thanks dear Lovely Komal sis,mere thread ko grace karne ke liye,tumari presence se,sachmuch ma Saraswati khush ho kar,hum sab ko bless kregi.Sister jese Kamdev ka connection hai Basant se,vesse hi Ma Saraswati ka bhi hai.Basant Ko Mata Saraswati ka birthday hota hai,aur iss din inki puja karne se adbhut ashirwad milte hai Mataji se.Apne ye jo gyan Basant ke about hame de kar dhann kiya hai,uska bahut dhanyawad,apke aisa karne se Mata Saraswati bhi aap per khush ho kar aapke gyan ke khazane ko unlimited bana degi,vesse pehle bhi kuchh Kum nahi.
:thank_you: thanks again sis♥️u
 
  • Like
Reactions: komaalrani

Rajizexy

Punjabi Doc Rajiii
Supreme
46,359
48,102
304
बसंत, आम्र मंजरी और कामदेव

वसंत ऋतु में रंग-बिरंगे फूलों से आव्रत ‘अरविंद, अशोक, आम की मंजरी, नवमल्लिका और नीलोत्पल’ कामदेव के पाँच बाण माने जाते हैं। महाकवि कालिदास ने अपने काव्यों में बसंत ऋतु में बौरे हुए आम की मदमाती मादकता की जितनी उपमाएँ दी हैं उतनी अन्य वृक्ष की नहीं। मंजरियों से लदे हुए आम की मदमाती सुगंध वातावरण को तरोताजा कर देती है।


download.jpg



ऋतु संहार

बसंत ऋतु में बौर से लदे हुए आम के वृक्षों का वर्णन करते हुए ऋतु संहार में महाकवि कालिदास लिखते हैं, ‘‘लो प्रिये! फूले हुए आम की मंजरियों के पैने वाण लेकर और अपने धनुष पर भौरों की पाँतों की डोरी चढ़ाकर वीर बसंत शृंगार करने वाले रसिकों को बेधने आ पहुँचा है।’’

बसंत के आने से बावड़ियों का जल, मणियों से जड़ी करधनियाँ, चाँदनी, स्त्रियाँ और मंजरी से लदी आम की डालें, सब और भी सुहावने लगने लगे हैं। लाल-लाल कोंपलों के गुच्छों से झुके हुए और सुंदर मंजरियों से लदी हुई शाखाओं वाले आम के पेड़ जब पवन के झोंकों से हिलने लगते हैं तो उन्हें देख-देख कर स्त्रियों के मन उछलने लगते हैं। अपनी स्त्रियों से दूर रहने के कारण जिनका जी बेचैन हो रहा है, वे यात्री जब मंजरियों से लदे हुए आम के पेड़ को देखते हैं, तब अपनी आँखें बंद करके रोते हैं, पछताते हैं, अपनी नाक बंद कर लेते हैं कि कहीं मंजरियों की भीनी-भीनी महक नाक में पहुँचकर स्त्री की याद न दिला दे और फूट-फूट कर रोने लगते हैं।

परदेश में पड़ा हुआ यात्री एक तो योंही विछोह से दुबला-पतला हुआ रहता है, उस पर जब वह मंद-मंद बहने वाले पवन के झोंकों से हिलते हुए और सुंदर सुनहले बौर गिराने वाले बौरे हुए आम के वृक्षों को अपने मार्ग में देखता है तो वह कामदेव के वाणों की चोट खाकर मूर्छित होकर गिर पड़ता है। और तभी महाकवि कालिदास की अमरवाणी गूँजती है-


‘‘जिसके आम के बौर ही वाण हैं, टेसू ही धनुष हैं, भौंरों की पाँत डोरी है, मलयाचल से आया हुआ पवन ही मतवाला हाथी है, कोयल ही गायक है और शरीर न रहते हुए भी जिसने संसार को जीत लिया है, वह कामदेव बसंत के साथ आपका कल्याण करे।’’


Sister mujhe lagta hai tumne to PhD kar rakhi hai Hindi Kavita ki,kalidas ke about tabhi to itna kuchh janti ho.Salute to ur knowledge.Adbhut 👌👌👌
:claps:
 
  • Like
Reactions: komaalrani

Rajizexy

Punjabi Doc Rajiii
Supreme
46,359
48,102
304
बसंत और कामदेव दोनों मिंत्र हैं और एक के बिना दुसरे की कल्पना भी नहीं कर सकते और कामदेव के तीरों से कौन बचा है, और वो पंच शर , पांच पुष्प है , इसलिए कामदेव को पुष्पधन्वा भी कहते हैं ,

कल मैंने उन पांच पुष्पों में से एक की की चर्चा की थी , आम्र मंजरी,

amra-manjari.jpg


पांच पुष्प है जो कामदेव के शर हैं,

अरविन्द, अशोक, आम्र मंजरी, नीलोतपल्ल और नव मल्लिका, और पुष्पों के बिना बसंत की भी कल्पना नहीं कर सकते,

तो आज की पोस्ट होगी , अशोक के फूल,

और साथ में के चित्र कामदेव का मधुबनी शैली की पेंटिंग में,... यह फोरम ही काम की भावना से जुड़ा है,... और बसंत हो , फगुनाहट शुरू हो रही हो और कामदेव और उनके तीरों की चर्चा न हो, हम स्टोरी सेक्शन खोले या चित्र , उन्ही के तो तीर चलते रहते हैं , और यह थ्रेड मेरी सखि, अनुजा का है इसलिए अधिकार पूर्वक मैं यहाँ आती जाती हूँ जब चाहती हूँ बैठ जाती हूँ, तो बस मन्मथ का दूसरा तीर थोड़ी देर में ,
Ye thread mere se pehle Tumara hai dear lovely knowledgeable Komal sis.APKE YAHA AANE SE hum bhi kuchh in anmol baton ke about jan jaate hai.thanks sis
 

komaalrani

Well-Known Member
22,071
57,068
259
Ye thread mere se pehle Tumara hai dear lovely knowledgeable Komal sis.APKE YAHA AANE SE hum bhi kuchh in anmol baton ke about jan jaate hai.thanks sis
Thanks soooooooo much,
 
Top