बसंत, आम्र मंजरी और कामदेव
वसंत ऋतु में रंग-बिरंगे फूलों से आव्रत ‘अरविंद, अशोक, आम की मंजरी, नवमल्लिका और नीलोत्पल’ कामदेव के पाँच बाण माने जाते हैं। महाकवि कालिदास ने अपने काव्यों में बसंत ऋतु में बौरे हुए आम की मदमाती मादकता की जितनी उपमाएँ दी हैं उतनी अन्य वृक्ष की नहीं। मंजरियों से लदे हुए आम की मदमाती सुगंध वातावरण को तरोताजा कर देती है।
ऋतु संहार
बसंत ऋतु में बौर से लदे हुए आम के वृक्षों का वर्णन करते हुए ऋतु संहार में महाकवि कालिदास लिखते हैं, ‘‘लो प्रिये! फूले हुए आम की मंजरियों के पैने वाण लेकर और अपने धनुष पर भौरों की पाँतों की डोरी चढ़ाकर वीर बसंत शृंगार करने वाले रसिकों को बेधने आ पहुँचा है।’’
बसंत के आने से बावड़ियों का जल, मणियों से जड़ी करधनियाँ, चाँदनी, स्त्रियाँ और मंजरी से लदी आम की डालें, सब और भी सुहावने लगने लगे हैं। लाल-लाल कोंपलों के गुच्छों से झुके हुए और सुंदर मंजरियों से लदी हुई शाखाओं वाले आम के पेड़ जब पवन के झोंकों से हिलने लगते हैं तो उन्हें देख-देख कर स्त्रियों के मन उछलने लगते हैं। अपनी स्त्रियों से दूर रहने के कारण जिनका जी बेचैन हो रहा है, वे यात्री जब मंजरियों से लदे हुए आम के पेड़ को देखते हैं, तब अपनी आँखें बंद करके रोते हैं, पछताते हैं, अपनी नाक बंद कर लेते हैं कि कहीं मंजरियों की भीनी-भीनी महक नाक में पहुँचकर स्त्री की याद न दिला दे और फूट-फूट कर रोने लगते हैं।
परदेश में पड़ा हुआ यात्री एक तो योंही विछोह से दुबला-पतला हुआ रहता है, उस पर जब वह मंद-मंद बहने वाले पवन के झोंकों से हिलते हुए और सुंदर सुनहले बौर गिराने वाले बौरे हुए आम के वृक्षों को अपने मार्ग में देखता है तो वह कामदेव के वाणों की चोट खाकर मूर्छित होकर गिर पड़ता है। और तभी महाकवि कालिदास की अमरवाणी गूँजती है-
‘‘जिसके आम के बौर ही वाण हैं, टेसू ही धनुष हैं, भौंरों की पाँत डोरी है, मलयाचल से आया हुआ पवन ही मतवाला हाथी है, कोयल ही गायक है और शरीर न रहते हुए भी जिसने संसार को जीत लिया है, वह कामदेव बसंत के साथ आपका कल्याण करे।’’